You are on page 1of 2

हिन्दू महाकाव्यों के अनुसार कौन थे सबसे शक्तिशाली ऋषि?

एक ऐसे ऋषि जिनके श्राप से देवता तक भयभीत हो जाते थे। आप देख रहे हैं मिस्टीरियस शैडो। तो चलिए अब
करते हैं ज्ञान की बात। वीडियो में आगे बढ़ने से पहले हमारे चैनल को सब्सक्राइब अवश्य करें और बैल आइकन जरूर दबाएं। हमारे सनातन इतिहास में कई सारे महान ऋषियों
का नाम आता है जिन्होंने मानव जाति के उत्थान में अधिकतम योगदान दिया है। इनमें सबसे पहले थे ऋषि अगस्त्य। अगस्त्य ऋषि वशिष्ठ मुनि के बड़े भाई थे। ये सप्त ऋषियों
में से एक माने जाते हैं। देवताओं के अनुरोध में इन्होंने काशी छोड़कर दक्षिण की यात्रा की और बाद में वहीं बस गए। वेदों में उनका वर्णन भी आता है। एक बार समुद्र राक्षसों के
अत्याचार से घबराकर देवता लोग इनकी शरण में आए और अपना दुख सुनाया। तब इसके बाद इन्होंने समुद्र का सारा जल पी लिया, जिससे राक्षसों का विनाश हो गया। इस
प्रकार इन्होंने सभी देवताओं का कल्याण किया। इस प्रकार अनेक असंभव कार्य अगस्त्य महाऋषि ने अपने मंत्र शक्ति से सहेजकर कर दिखाए थे और लोगों का कल्याण किया।
यही नहीं एक बार भगवान श्रीराम वन आगमन के समय इनके आश्रम में भी बता रहे थे। अगले ऋषि कोई और नहीं बल्कि भृगु ऋषि थे, जो ब्रह्माजी के मानस पुत्रों में से एक थे।
ऋषि नारद, वसिष्ठ, अत्रि, गौतम आदि दूसरे पुत्र थे। महाऋषि बेम्बू को प्रजापति भी कहा जाता है क्योंकि उन्हें भगवान ब्रह्मा ने ब्रह्मांड की रचना करने के लिए मदद करने के
लिए बनाया था। महर्षि भृगु ने कई अंगों का संपन्न किया था और दूसरों को उन्हें पूरा करने में मदद की थी। अपनी शक्तियों के

साथ उन्होंने लोगों की इच्छाओं को भी पूरा किया। महर्षि भृगु ने ही ब्रह्म संहिता की रचना की थी। साथ ही साथ इन्होंने ही संजीवनी विद्या की भी खोज की थी। अर्थात मृत
प्राणी को जिंदा करने की ही इन्होंने खोज की थी और आगे चलकर यह विद्या उनके पुत्र शुक्राचार्य को प्राप्त हुई थी। अगले ऋषि थे महर्षि भारद्वाज, हुए महर्षि भारद्वाज। ऋग्वेद
के छठे मंडल के द्रष्टा कहे जाते हैं। इस मंडल में ऋषि भारद्वाज के 765 मंत्र हैं। अर्थववेद में भी महर्षि भारद्वाज के 23 मंत्र मिलते हैं। वैदिक ऋषियों में भारद्वाज ऋषि का अति
उच्च स्थान है। महर्षि भारद्वाज हमारे उन प्राचीन विज्ञान वेदांगों में से एक हैं, जिन्होंने महा विज्ञानिकों की कई सारी श्रृंखलाओं को जन्म दिया। इनका जीवन बहुत ही अति
साधारण था लेकिन उनके पास कई सारी अद्भुत दृष्टि और शक्तियां थी। महाभारत के शांतिपर्व के अनुसार ऋषि भारद्वाज ने घनघोर वेद का प्रवचन किया था। इन्हें कई सारे ज्ञान
की प्राप्ति थी। कहते हैं इन्होंने उस रागनी को जान कर अमरत्व तत्व प्राप्त किया था जो स्वयं इंद्र ने महर्षि भारद्वाज को विद्या सिखाई थी। अगले ऋषि थे कश्यप ऋषि। ऋषि
कश्यप ब्रह्मा जी के मानस पुत्र मारीच के पुत्र थे। महाऋषि कश्यप ऋषि मुनियों में श्रेष्ठ माने जाते हैं। सुर असुरों के मूल पुरुष मुनि राजा कश्यप का आश्रम मेरु पर्वत के शिखर
पर था। यहां वे परमात्मा के ध्यान में मग्न रहते थे। उनकी कु ल 17 पत्नियां थी, जिनमें से 13 तो दक्ष प्रजापति की ही पुत्रियां थी। इन्हीं पुत्रियों में से ही देवों, असुरों, नागों
और कई अन्य प्राणियों का जन्म हुआ था। कहते हैं भगवान विष्णु ने अपना पांचवा अवतार ऋषि कश्यप

और उनकी पत्नी अदिति के पुत्र के रूप में लिया था और समस्त दैत्यों का जन्म उनकी पत्नी दिति के साथ हुआ। इनकी पत्नी कद्रू से समस्त नागों का जन्म हुआ। कश्यप
संहिता इन्होंने ही लिखी थी जिसमें समस्त आयुर्वेद का ज्ञान है और क्षीर प्रशस्त जिसमें वास्तुकला और परमात्मा विज्ञान का ज्ञान है। अगले महान ऋषि थे महर्षि दुर्वासा ऋषि
दुर्वासा। सनातन धर्म के इतिहास में प्रमुख संतों में से एक है। अगर वह न होते तो महाभारत कभी नहीं होती, क्योंकि उन्होंने ही कुं ती को पुत्र प्राप्ति का मंत्र वरदान स्वरूप दिया
था। वह स्वभाव से बड़े ही गुस्सैल थे। पुराणों के अनुसार भगवान शंकर के अंश से दुर्वासा ऋषि का जन्म हुआ था। इसीलिए उनका रूप आदि रौद्र था। इसी कारण वह अति
क्रोधित भी रहते थे। भगवान शंकर को प्रसन्न करना बेहद ही आसान है, पर महर्षि दुर्वासा को प्रसन्न करना बेहद ही कठिन। इन्हीं के क्रोधवश देवताओं को श्राप मिला जिसके
चलते समुंद्र मंथन किया गया। यह न सिर्फ रामायण बल्कि महाभारत में भी थे। अगले महान ऋषि है महर्षि वसिष्ठ। महाऋषि वसिष्ठ। प्राचीन वैदिक काल के पूर्ण ज्ञानी और महान
तेजस्वी, तपस्वी तथा मंत्र या विद्या के ज्ञानी थे। वह ब्रह्म ऋषियों में से एक थे और देव और सूर्य वंशों के लघु थे। गुरु वशिष्ठ को ब्रह्मा का मानस पुत्र भी कहा जाता है और
प्रजापतियों में से भी एक कहा गया है। कहते हैं। कामधेनु गाय के लिए ऋषि वशिष्ठ और 10 जुलाई युद्ध हुआ था। ऋषि वशिष्ठ तेजस्वी तपस्वी थे। वे वेद में कितने ही मंत्रों में
दोष था और मंडल के दृश्यता महाऋषि वशिष्ठ को ही माना गया है। कहते हैं भगवान श्रीराम को ज्ञान

, शस्त्र और शास्त्र के ज्ञान की शिक्षा प्रथम इन्होंने ही दी थी तथा भगवान श्रीराम के वनवास से लौटने के पश्चात इन्हीं के द्वारा उनका राज्यभिषेक भी हुआ था, जिसके चलते
रामराज्य की स्थापना संभव हो सकी थी। अगले महान ऋषि विश्वामित्र महर्षि विश्वामित्र का जन्म क्षत्रिय कु ल में हुआ। इन्होंने हजार वर्षों तक गहन अध्यात्म के माध्यम से
ब्रह्मऋषि की उपाधि प्राप्त की थी। इसका कारण बने थे ऋषि वशिष्ठ। एक बार विश्वामित्र जब सिर्फ एक क्षत्रिय राजा थे तो उन्होंने ऋषि वशिष्ठ की गाय ले जाने चाही। परंतु ऋषि
वशिष्ठ ने इनकार कर दिया और इनको परास्त कर वहां से जाने पर मजबूर कर दिया। आहत विश्वामित्र ने कठोर तपस्या से भगवान ब्रह्मा और भगवान शिव से ब्राह्मण से सभी
ज्ञान और अज्ञात अस्त्र शस्त्रों का अधिग्रहण किया था और पुनः वह वशिष्ठ ऋषि से प्रतिशोध लेने पहुंचे। कहते हैं विश्वामित्र ने ऋषि वशिष्ठ के विरुद्ध अपने सभी दिव्यास्त्रों का
आह्वान किया था, लेकिन ऋषि वशिष्ठ ने अपने दंड के माध्यम से ही अपनी सर्वोच्च कर्म ऊर्जा को एकत्रित किया और उस ऊर्जा ने ऋषि विश्वामित्र के समस्त दिव्यास्त्र को ले
लिया। कहते हैं आगे चलकर इन्होंने दुबारा सभी देवों को परास्त किया और एक समान्तर ब्रह्माण्ड बनाना शुरू कर दिया। देवों और राक्षसों सहित सभी प्राणी ब्रह्मा ऋषि से
भयभीत हो गए। अंततः विश्वामित्र भगवान ब्रह्मा के अनुरोध पर रुक गए और आगे उन्होंने फिर से तप किया जिसके फलस्वरूप वे ब्रह्मा ऋषि बनने में सफल हुए। साथ ही मूल
गायत्री मंत्र के थ्रस्ट महाऋषि विश्वामित्र जी को ही माना जाता है। तो यही थे वो महान खास ऋषि जिन्होंने हिन्दू धार्मिक ग्रंथो को एक नया मान सम्मान दिया और मानव
उत्थान और कल्याण के लिए कई सारे कार्य किए। इनमें
से आपको सबसे बेस्ट ऋषि कौन से लगे हमें कमेंट बॉक्स में जरुर बताएं। वीडियो अगर आपको अच्छी लगे तो लाइक करें हमारे चैनल को सब्सक्राइब करे और ज्यादा से
ज्यादा शेयर भी करें। मेरी अगली बार एक नई खास वीडियो के साथ तब तक देखते रहिये। संपूर्ण ज्ञान का कें द्र बिंदु मैं।

You might also like