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Episode: 36

Sant Rampal Ji Maharaj:-

https://youtu.be/_ntNooaAXbo

अब पुण्य आत्माओं! परमात्मा कबीर जी ने इस उद्देश्य से कि गुरु जी के बिना मोक्ष नहीं हो सकता। और यदि मैं गुरु नहीं बनाऊं गा, तो आने वाले समय में यह कहा
करेंगे काल का दांव लग जाएगा, कि कबीर जी ने कौन सा गुरु बनाया था ? बगैर गुरु के ही बात बन जाएगी। और काल फिर मेरी आत्माओं को धोखा दे देगा। इसलिए
उस परमेश्वर ने अब वह ऋषि किसी के ज्ञान को तो सुनता नहीं था, कौन ? स्वामी रामानंद जी ब्राह्मण पंडित। परमात्मा ने उसको ज्ञान सुनाने का कौन सा तरीका
अपनाया -: एक ढाई वर्ष के बालक का रूप धारण किया। जब परमात्मा 5 वर्ष के थे। यह लीलामय शरीर कर रहे थे 5 वर्ष के । उस समय ढाई वर्ष के बच्चे का रूप धारण
किया। और पंचगंगा घाट के ऊपर काशी में जहां रामानंद जी स्नान करने के लिए जाया करते थे ,वहां एक घाट बना हुआ था, पक्की पौडियों का। उन पौडियों पर
जाकर कबीर परमेश्वर जी ढाई वर्ष के बच्चे के रूप में लेट गए। स्वामी रामानंद जी सुबह-सुबह जाया करते थे ब्रह्म मुहूर्त में। गर्मियों के दिन थे ,जैसे ही वह नीचे पौडियों
से उतर रहें थे। परमात्मा कबीर जी ढाई वर्ष के बालक का रूप धारण करके लेटे हुए थे। स्वामी रामानंद जी की खड़ाऊ सिर में लगी, लकड़ी की खड़ाऊ पहना करते
थे। खड़ाऊ लगते ही परमात्मा ने रोना शुरू किया जैसे बालक चिल्लाते हैं। रामानंद जी एकदम बहुत तेजी से झुके ,की किसी बच्चे को चोट लग गई। क्योंकि दया होती है
संत में ,चाहे वह किसी का भी साधक हैं। अगर संत लक्षण है उसमें ,तो दया अवश्य होती है। एकदम नीचे झुके थे, गले में एक कं ठी होती है एक ..एक मनिये की
तुलसी के , तुलसी की लकड़ी का एक ही मनका होता है, वह रामानंद जी अपने गले में डाले रखा करते थे। और अन्य जो शिष्य बनाते थे उनको भी एक वही माला
देते थे ,कं ठी बोलते हैं उसको। एक मनके की। और वह प्रतिक होता था , कि यह वैष्णव परंपरा से रामानंद जी का शिष्य है। वैष्णव साधु की प्रतीक होती थी। और एक
तिलक लगाते थे ऐसे। रामानंद जी जैसे झुके उनके गले की वह कं ठी निकलकर कबीर परमेश्वर जी के गले में डल गई। रामानंद जी ने कहा ,की बेटा राम - राम बोल।
राम राम बोल। सिर पर हाथ रखा छोटे बच्चे के और रो मत बेटा, बैठ जा यहां। परमात्मा चुप हो गए। उनको तो लीला करनी थी। और कहा बेटा, रामानंद जी कहने
लगे कि बेटा तू यहां बैठा रह, मैं स्नान कर लेता हूं। आश्रम में ले चलूंगा ,और दिन में जिसका भी होगा पता करके तुझे भिजवा दूंगा डरना मत। रामानंद जी स्नान करने
लग गए। परमात्मा वहां से अंतर्ध्यान हो गए। उनका काम पूरा हो लिया था । अंतर्ध्यान हो करके अपने मुंह बोले माता-पिता नीरू नीमा की झोपड़ी में आकर के सो गए।
कु छ दिन के बाद परमात्मा ने क्या किया -: एक रामानंद जी का शिष्य विवेकानंद। अब रामानंद जी ने 1400 ऋषि बना रखें थे ,1400 चेले थे ,ऋषि जो प्रचार करते
थे रामानंद जी से ग्रहण ज्ञान का। और रामानंद जी सुप्रसिद्ध थे, कि यह गीता ,वेदों और पुराणों के मर्मज ज्ञाता हैं। विवेकानंद जी जो महऋषि रामानंद जी के शिष्य थे।
विष्णु जी के उपासक थे। विष्णु पुराण के अंदर सुना रहे थे विष्णु जी सर्वेश्वर हैं, महेश्वर हैं। और यह सबके मालिक हैं। यह सब सृष्टि रचनहार हैं ,यही तीन रूप धारण
करके सृष्टि, स्थिती, संहार का कार्य करते हैं, यह स्वयं अजन्मा है। इनके कोई माता-पिता नहीं है। अब उधर से परमात्मा कबीर जी जैसे वैष्णव तिलक लगाते हैं ऐसा
लंबा तिलक, नाक के ऊपर से माथे तक, चंदन का सफे द तिलक लगा रखा। और परमात्मा छेड़छाड़ करे बिना रहा नहीं करते । क्योंकि वह तो आए इसी उद्देश्य से थे।
तो जब स्वामी जी ने विवेकानंद जी ने अपना भाषण पूरा कर लिया सत्संग पूरा कर लिया ,तब कबीर जी खड़े हो गए। और करबद्ध होकर कहने लग गए , की स्वामी
जी! एक शंका है मेरे मन में ? उसका समाधान चाहता हूं। विवेकानंद जी ने सोचा ,कि यह कोई वैष्णव भगत है पूरा तिलक लगा रखा है, होगी बच्चे को कोई शंका, ला
बता देता हूं। 5 वर्ष की आयु थी उस समय। परमात्मा ने पूछा ,कि
कौन ब्रह्मा का पिता है , कौन विष्णु की मां ।
शंकर का दादा कौन है, हमको देयो बता।
अब इस बात के ऊपर समस्या पैदा हो गई। कहने लग गए भई ऐसा कु छ नहीं है। इनके कोई माता-पिता नहीं है। यह तो अजरों -अमर है, सर्वेश्वर हैं ,स्वयंभू है ऐसा है।
तब परमात्मा ने कहा ,कि स्वामी जी! शिव पुराण के अंदर रूद्र संहिता आप पढ़ कर देखिएगा। पांचवें, छठें, सातवें, और आठवें ,नौवें अध्याय में - उसमें इनके विष्णु
जी के माता-पिता भी हैं। अब स्वामी जी ने वहीं पर ले रखे थे उसने वह, उसी समय खोला । शिवपुराण को देखा। देख भी लिया लेकिन माना नहीं।
अब पुण्यआत्माओं! परमात्मा 600 वर्ष पहले कहा करते थे।
कि तीन पुत्र अष्टांगी जाएं, ब्रह्मा, विष्णु ,शिव नाम धराए।।
मां अष्टांगी पिता निरंजन , यह जम दारूं वंशन अंजन।।
की ब्रह्मा, विष्णु, महेश के माता-पिता यह काल, सदा काल रूपी ब्रह्म ज्योति निरंजन भी कहते हैं। और दुर्गा इनकी माता है। यह देखिएगा शिव पुराण:-----
…………………. संक्षिप्त शिवपुराण सचित्र मोटा टाइप के वल हिंदी। गीताप्रेस गोरखपुर से प्रकाशित है। इसके संपादक कौन है - यह सारा विवरण इसलिए दिया
जाता है, की किसी को शंका नहीं हो जाए की यह कौनसी शिवपुराण है ? कहां से आई है ? संपादक है हनुमान प्रसाद पोद्दार। और प्रकाशक एवम मुद्रक है ,गीता प्रैस
गोरखपुर गोविंदभवन कार्यालय कोलकाता का सस्थान ।
अब देखिएगा यह रुद्र साहिता अध्याय नंबर 5 हम निचे देखेगे। पृष्ट नंबर 98 से। यहां से आ जाइये। 5 वा अध्याय - अपने पुत्र नारद की यह बात सुन कर लोक
पितामह ब्रह्मा वहा इस प्रकार बोले। अब छटा यहां प्रारंभ हो गया, छ्टे पर पढ़ेंगे। ब्रह्मा जी ने कहा ब्रह्मण ! यह 99 पृष्ट पर । ब्रह्मा जी ने कहा ब्रह्मण ! अपने पुत्र को
कह रहा है ब्रह्मा जी ,नारद को। देवशिरोमणे ! तुम सदा समस्त जगत के उपकार में ही लगे रहते हो। तुमने लोगो के हित की कामना से यह बहुत उत्तम बात पूछी है।
नारद ने पूछा था ,की इनकी सृष्टि कै से हुई सारे संसार की ? तो ब्रह्मा जी बता रहा है जिस समय समस्त चराचर जगत नष्ट हो गया था। सर्वत्र के वल अंधकार ही
अंधकार था। नहीं सूर्य दिखाईं देते थे , नहीं चंद्रमा अन्यो ग्रहों और नक्षत्रों का भी कोई पता नही था। नहीं दिन होता था, नहीं रात अग्नी वायु कु छ भी नहीं था। उस
समय "तत्सतब्रह्म" इस श्रुति में जो " सत" सुना जाता है एक मात्र वही शेष था। अब आगे देखिएगा 100 पृष्ट पर। जिस परब्रह्म के विषय में ज्ञान और अज्ञान से पूर्ण
उक्तियों द्वारा इस प्रकार विकल्प किए जाते है । उसने कु छ काल के बाद दिवतीय की इच्छा प्रकट की। उसके भीतर एक से अनेक होने का संकल्प उदित हुआ। उस
निराकार परमात्मा ने अपनी लीला शक्ति से अपने लिए मूर्ति यानि आकार की कल्पना की। मूर्ति मतलब आकार। जो वह मूर्तिरहित परम ब्रह्म है, उसकी मूर्ति यानि
उसका साकार स्वरूप भगवान सदाशिव है। अर्वाचीन और प्राचीन विद्वान उन्ही को ईश्वर कहते है। उस समय एकाकी रह कर सवेइच्छानुसार विहार करने वाले उन
सदाशिव ने अपने विग्रह से स्वयं ही एक सवरूपभूता शक्ति की सृष्टि की, जो उनके अपने श्रीअंग से कभी अलग होने वाली नही थी। उस पराशक्ति को प्रधान, प्रकृ ति,
गुणवती , माया, बुधितत्व की जननी और विकाररहित बताया गया है।
ओहो।
यह काल के शरीर से निकाली थी परमात्मा ने। परमात्मा ने ब्रह्मा जी को कु छ ज्ञान बताया था उसी ज्ञान के सुने सुनाए को यह ऐसे बता रहा है। वह शक्ति अंबिका
कही गई है। उसी को प्रकृ ति, सर्वशरी , त्रिदेवजननी , नित्या और मूलकारण भी कहते है।
ओहो!
"त्रिदेवजननी" ब्रह्मा, विष्णु ,महेश की माता। सदाशिव द्वार प्रकट की गई उस शक्ति की आठ भुजाएं है। यह दुर्गा है , सपष्ट हुई । इसको प्रकृ ति भी कहते है , यह भी
ध्यान रखना यह आपके गीता जी में काम आयेगा, जब ब्रह्मा ,विष्णू ,महेश की उत्पति कोड वर्डो में लिखी हुई आपकों दिखायेंगे । नाना प्रकार के आभूषण उसके
श्रीअंग की शोभा बढ़ाते है ,दुर्गा की महिमा है । वह देवी नाना प्राकर की गतियों से संपन , और अनेक प्रकार के अस्त्र - शस्त्र धारण करती है। एकाकिनी होकर भी वह
माया सयोंगवशात अनेक हो जाती है। यानी इसने ही तीन रुप बनाए थे सावत्री, लक्ष्मी और पार्वती के । और एक - एक पूत्र से उनका विवाह कर दिया था यह भी सपष्ट
है इसमें। एकाकिनी होकर भी वह माया सयोंगवशात अनेक हो जाती है। वह जो सदाशिव है, इस काल के बारे में कहा है उन्हें परम पुरष ,ईश्वर, शिव शंभू और
महेश्वर कहते है। यहां देखना ।। यह 101 पृष्ट पर आ गए हम। रुद्रसंहिता का।
वह अपने सारे अंगों में भस्म रमाये रहते है। दुर्गा की तो जानकारी पूरी हुई ,अब इस काल रुपी ब्रह्म इस ज्योति निरंजन काल की महिमा है। वह अपने सारे अंगों में
भस्म रमाये रहते है। उन काल रुपी ब्रह्म ने इसको ब्रह्म कहो , काल कहो, काल रुपी ब्रह्म कहो ,सदाशिव कहो यह काल जो है अपने पूत्र कभी शिवरूप में आ जाता हैं,
कभी ब्रह्मा रुप में ,कभी विष्णू जी के रुप में। तो उन कालरूपी ब्रह्म ने एक ही समय शक्ति के साथ (नाथ नही) शिवालोक नामक क्षेत्र का निर्माण किया था । उस
उतम क्षेत्रको काशी कहते है। वह प्रिया और प्रियतम रूप शक्ति और शिव जो परमानंद स्वरूप है, उस मनोरम क्षेत्र में नित्य निवास करते है । वह प्रिया और प्रियतम
यानी पति- पत्नी शक्ति और शिव, दुर्गा और यह काल रुपी ब्रह्म, यह सिद्ध हो गया की "यह दुर्गा और काल है " जो परमानंद स्वरूप है उस मनोरम क्षेत्र में नित्य
निवास में करते है। यहा देखो-: देवर्षे ! ब्रह्मा बता रहा है अपने पूत्र नारद को। एक समय उस आनन्दवन में रमण करते हुए शिवा और शिवके मन में , दुर्गा और काल
के मन में यह इच्छा हुई। ,की किसी दुसरे पुरष की सृष्टि करनी चहिए। जिस पर यह सृष्टि संचालन का महान भार रख कर हम दोनो के वल काशी में रहकर इच्छानुसार
विचरे, और निर्वाण धारण करे। इन्होंने सोचा की कोई बालक उत्पन करे। और उसको सारा सिस्टम संभलवा दे। ऐसा निश्चय करके शक्तिसहित सर्वव्यापी परमेश्वर
शिव ने अपने वाम भाग के दशवे अंग पर अमृत मल दिया। यानी पति - पत्नी व्यवहार किया। फिर तो वहा से एक पुरष प्रकट हुआ। यानी एक बालक की उत्पति हुई।
उसका नाम क्या रखा ?- शिवपुराण 102 पृष्ट पर। शिव ने कहा, इस काल ने कहा ,की वत्स! बेटा! व्यापक होने के कारण तुम्हारा विष्णू नाम विख्यात हुआ। अब
यह होगा छटा अध्याय यहां समापत हुआ । अब सातवे में क्या कहता है ब्रह्मा जी -: ब्रह्मा जी कहते है देवर्षे! यानी नारद जी तत्पश्चात कल्याणकारी परमेशवर
साम्ब सदाशिव ने पूर्ववत प्रयत्न करके जैसे विष्णू पैदा किया, मुझे भी अपने दाहिने अंग से उत्पन किया।
अब पुण्यात्माओं! यहां इस शिवपुराण के अनुवाद कर्ता ने यहां से गड़बड़ कर दी ,की शिव जी से शिव की उत्पत्ति कै से लिखूं ? गोलमोल कर दिया। अब देखो कहते हैं
, सच्चाई छु प नहीं सकती।
चोर चूरावें तंबूडी, गाढ़े पानी माहीं।
वह गाढ़े वह ऊपर आवें, ऐसे सच्चाई छानी नाहीं।
यह देखिए 110 पृष्ठ पर…….। अब 9 वे अध्याय के लास्ट में लिखा हैं ,की इस प्रकार ब्रह्मा , विष्णु और रुद्र इन तीन देवताओं में गुण है। परंतु शिव गुणातित माने
गए है । ब्रह्मा ,विष्णु और शंकर रुद्र कहो, चाहे शंकर कहो ,महेश कहो इन तीनो देवताओं में तो गुण है। और यह चौथा इनका पिता इनसे अलग है। हो गए चार अलग -
अलग।
एक समय भगवान ब्रह्मा, और भगवान विष्णु का आपस में झगड़ा हो गया। अब झगड़ा इनका कै से होता है - कि जैसे यह साधक साधना करते थे, मेडिटेशन हठयोग
करके सामाधिष्ट होते थे। तो काल इनको भ्रमित करने के लिए किसी को तो विष्णु रूप में दर्शन दे देता। तो यह ऋषि- महर्षि यह सोचते थे ,कि यह विष्णु जी देवता है
,यह पूर्ण परमात्मा है। और उनको आ कर फू ल बांध देते ,कि आप ही समर्थ हो। आप ही सर्वशक्तिमान हो। मुझे समाधि दशा में आपके दर्शन हुए ,आप खुद परमात्मा
हो। अपने आप को छु पाएं हों। इस बात से विष्णु जी फू ल कर कु प्पा हो जाते ,और सोच लिया कि मैं ही भगवान हूं। एक ने ,दो ने, दस ने ,बीस ने ऐसे ही कहा। फिर
किसी को यह जैसे सामाधिष्ट होते हैं किसी को ब्रह्मा के रूप में दर्शन दे देता है। और वह थोड़ी बहुत मांगें कोई सिद्धि - वगैरा उसको दे कर अंतर्ध्यान हो जाता है,
सामाधिदशा में। तो वह क्या कहते थे, की हे भगवन! यह ब्रह्मा को कहते है ,की आप खुद पूर्ण परमात्मा हों आप ही समर्थ हो, हमने समाधि दशा में आपका दर्शन पाएं
हैं। और आप ही समर्थ हो, आप अपने आप को छु पाएं हुए हो, आप सृष्टि के रचनहार हो। और किसी को शिव रूप में दे देता है, तो वह सोचता है, कि शिव ही सृष्टि
रचने वाला है , यह छु पाएं हुए हैं अपने आप को। तो इसी आधार से ब्रह्मा जी ने तो यह सोच लिया ,कि मैं ही सृष्टि कर्ता, सब मेरे से उत्पन्न हुए। और विष्णु जी ने यह
सोच लिया ,कि मैं सबका मालिक ।
एक दिन ब्रह्मा जी आ गए विष्णु जी के पास ,ब्रह्मा जी को देखकर विष्णु उठे नहीं। यह जानकर के ,कि मैं इससे बड़ा हूं। और मैंने इसकी उत्पत्ति की है। जैसे उसने और
ऋषि - महर्षियो से सुन रखी थी। उधर से ब्रह्मा जी ने सोचा ,की मैं इसका बाप हूं। मैं इसका जनक हूं। और यह मेरी आदर भी नहीं कर रहा है ? ब्रह्मा जी कहने लगे-
बेटा! उठ देख मैं तेरा बाप आया हूं। अब विष्णु जी कहते हैं मैं तेरा बाप हूं ,तेरा जन्म मेरी नाभि कमल से हुआ है। इसी बात पर दोनों का झगड़ा हो गया। अब उन झगड़े
को समाप्त करने के लिए इस काल ने सदाशिव ने बीच में एक पिलर खड़ा कर दिया लोहे का ,शिवलिंग बोलते हैं उसको। वह लोहे का एक सफे द , नूरी एक पिलर सा
खड़ा कर दिया। तो इन दोनों ने झगड़ा तो दिया छोड़ , उसको ढूंढने लग गए उसके end को। कहने का भाव यह है ,कि यह फिर शिव रूप में प्रकट हो गया। और फिर
यह क्या समझाता है इन ब्रह्मा, विष्णु ,महेश इन से प्रश्न किया । तो काल फिर इनको धोखा देता है ,कि यह तो मेरा साकार रूप है यह पिलर। और मैं निराकार
रूप हूं। मैं अब तुम्हारे सामने साकार बन कर आया हूं। मैं ही भगवान हूं। तुम अपने आप को भगवान मत समझो।
अब देखो विध्वेश्वर संहिता। यह वही शिवपुराण गीता प्रैस गोरखपुर से प्रकाशित। और यह देखो ब्रह्म ,विष्णु का आपस मे झगड़ा हो गया था। बीच में यह सतंभ खड़ा
कर दिया ,इसको लिंग बोलते है शिवलिंग। और यह 25 पृष्ट पर अब दिखाते है-: ब्रह्मा और विष्णु ने पूछा प्रभो! सृष्टि आदि पांच कृ त्योके लक्षण क्या - क्या है ?
यह हम दोनो को बताइये। भगवान शिव बोले ,यह काल बोला ,की मेरे कर्तव्यो को समझना अत्यंत गहन है। तथापि मैं कृ पापूर्वक तुम्हे उनके विषयों में बता रहा हु। तो
यहां देखो।।
यहां देखिएगा 26 पृष्ट पर संक्षिप्त शिवपुराण। निचे आते है।
अब यह काल शिव रूप में खड़ा क्या कहा रहा है -: पुत्रो तुम दोनो ने तपस्या करके प्रसन्न हुए मुझ परमेश्वर से सृष्टि और स्थिती नामक दो कृ त्य प्राप्त किए है। यह
तुमको बहुत प्रिय है। अब देखो यह "दो" तो यह हो गए ब्रह्मा और विष्णु। और फिर क्या कहता है - इसी प्रकार मेरी विभूति सवरूप रुद्र और महेश्वर ने( यह में गलत
लिखा है ) दो अन्य उत्तम कृ त्य - संहार और तिरोभाव मुझसे प्राप्त किए है। तो "दो" तो यह ब्रह्म ,विष्णु हो गए। और" दो "यह रुद्र और महेश्वर और बोलने वाला
पांचवा। यह सिद्ध हो गया ,की ब्रह्म और विष्णु ,रुद्र और महेश इस काल के ही पुत्र है। यह अपने पुत्र इस शिव को ही इन ग्यारह रुद्रो का मुखिया बनाता है। इसलिए
यही एक रुद्र रूप भी धारण करता है। वैसे वह लीला काल की ही होती है। तो यहां यह महेश और रुद्र इन चार को सुन कर भ्रम में मत पड़ना। हमने यह देखना है
,कि यह ब्रह्म, विष्णु और महेश यह इनसे अलग है जो इनका पिता, जो बोल रहा है। जिससे इनका जन्म हुआ है। हमने चार सिद्ध करने थे यह अलग - अलग। तो
ब्रह्मा ,विष्णु और महेश , रुद्र भी एक अलग से इन्होंने बना रखा है मुखिया, वह अलग है। तो यह ब्रह्मा ,विष्णु और महेश यह काल के पुत्र है। यह सिद्ध करना था।
इनका जन्म और दुर्गा इनकी माता है।
अब पुण्य आत्माओं! अब वह विवेकानंद जो महर्षि रामानंद जी का शिष्य था। उसने आंखों देख लिया, कि ठीक लिखा है। लेकिन अभिमान वश माना नहीं। और कहने
लगा तू क्या जाने पुराणों के बारे में ? तू कौन है ?, कहां से आया है ? छोटी सी उम्र का बालक तुझे क्या पता पुराणों में क्या लिखा है ? परमात्मा तो बोले नहीं, उससे
पहले वह श्रोता कहने लगे , की यह नीरू का बेटा है। यह जुलाहे का पुत्र है। तो ब्राह्मण ने, ब्रह्मण बात बदल गया वह तो हटाना था वहां से उनका सबका ध्यान पलटना
था। कहने लगा अरे तूने यह तिलक क्यों लगा रखा है ? तूने कोई गुरु बनाया है ? की "हां जी" गुरु बना रखा है । कौन है तेरा गुरु ? और तू शुद्र जाति का ? की हां
मैं शुद्र जाति का , और मैंने गुरु बना रखा है। कौन ?
जो तेरा गुरु है वही मेरा गुरु है। अब विवेकानंद जी ने कहा देखो रे लोगों कितना झूठा है। पाखंडी है। यह धानक जुलाहा शूद्र वर्ण में और मेरे गुरुदेव स्वामी रामानंद जी
पंडित "श्री- श्री एक हजार आठ" यह तो शूद्रो के दर्शन भी नहीं करते। वह तो ऐसे पल्ला करके बात करते हैं । और यह कहता है देखो मेरे गुरु जी की बेइज्जती कर रहा
है। तेरे को, अभी जाता हूं गुरुजी के पास, तेरी जो है मुसीबत आएगी। तुझे सबक मिलेगा। और तुम भी आना श्रोताओं वहां पर और देखना। वह जो बात थी , वह दबा
दी। सच्चाई को ऊपर आने नहीं दिया। और पुण्यात्माओं! कहने लगा कल देखूंगा तूझे..
तो पुण्य आत्माओं! आगे की कथा फिर कल सुनाएंगे आपको।
।।बोलो सतगुरु देव जी की जय।।
।।बन्दी छोड़ सतगुरू रामपाल जी महाराज जी की जय।।

Next Satsang
यह पांच दिवसीय सत्संग समारोह परमेश्वर कबीर बन्दीछोड़ जी की उस याद में मनाया जा रहा है ,कि वह परमात्मा जेष्ठ शुद्धि पूर्णमासि को अपने उस सुखमय स्थल
को छोड़ कर उस सुख सागर को त्याग कर अपनी प्यारी आत्माओं को इस काल के जाल से छु ड़वाने के लिए , इस काल का भेद बताने के लिए, आध्यात्मिक ज्ञान को
पुन: बताने के लिए वह परमात्मा प्रकट हुए । उस परमेश्वर ने हम भोली आत्माओं पर , अज्ञानी आत्माओं पर रहम आया। क्योंकि हमने एक ऐसी गलती की थी जो
क्षमा योग्य नहीं थी । हम सतलोक में रहा करते थे और वहा कोई दुख: नहीं था, मृत्यु नहीं थी हमारा परिवार था हमारा नूर का शरीर था। ( सुकर्म अकायम
असविनाव्रम ) माता -पिता के यहाँ जो योग है " सुकर "यानि पांच तत्व से बना हुआ शरीर नहीं था हमारा, नाड़ी आदि के योग से वह जत्रं नहीं था। परमात्मा का भी
नूरी शरीर है उनका भी शरीर "असविनाव्रम सुकर्म आकायम" वहाँ हमारा नूर का शरीर था उसमें वृद्ध अवस्था नहीं होती युवा शरीर बना रहता है । किसी प्रकार का
कोई रोग कष्ट नहीं है, उसको अनामय शरीर बोलते है। निरोग =रोग रहित। हम वहाँ पूर्ण रूप से सुखी थे।, प्रत्येक वस्तु उपलब्ध थी कोई पदार्थ का अभाव नहीं था।
हमारे को एक मस्ती छा गई- उस समय यह काल भगवान यह ब्रह्म जो 21 ब्रह्माण्ड का प्रभु है । ब्रह्मा, विष्णु, महेश का पिता है , दुर्गा का पति है । यह सतलोक में तप
कर रहा था इसका उद्देश्य था ,कि मैं अलग से राज्य प्राप्त करूँ । यह तो अपने स्वार्थ वश प्रयत्न कर रहा था,और हम इस पर आसक्त हो गये। जैसे कोई हीरो, हिरोइन
या अभिनेता, अभिनेत्री ,अभिनेता, अभिनेता, अभिनेत्री जब कोई एकटिंग करते हैं यह युवा वर्ग उसके ऊपर uncessary attracted हो जाता है। जिस का कोई
यूज नहीं ? उनको कोई लाभ नहीं ? वह अपने पेट के लिए सारी चटक -मटक करते हैं ,और हम उनकी तरफ आंखे फाड़कर देखते रहते हैं । सिनेमा घरों में जाकर
के , या T.V के ऊपर बैठ करके अपना समय और पैसा दोनों व्यर्थ करते हैं । यही रोग हमारे को वहाँ लगा था , यह अपना राज्य अलग मांग रहा था, उससे तप कर
रहा था तप से राज्य प्राप्त होता है यह विधान है प्रभु का ,विधाता का। और हम बिना मतलब इसके ऊपर आसक्त हुए । और हम अपने उस परम पिता को भूल गए,
जिसने हमें वहाँ सभी सुख- सुविधाएं उपलब्ध करवा रखी थी । कोई रोग नहीं था, कोई मृत्यु नहीं थी ,किसी चीज का अभाव नहीं था । हम अपने परमपिता से हृदय
हटाकर इस काल के ऊपर आसक्त हो गये। परमात्मा ने बहुत बार हमें आकाशवाणी की, की तुम यह इसकी क्रिया को मत देखो, अपने मस्त रहो। लेकिन हम ऊपर से
तो सावधान हो जाते रहे, और अंदर से हम इसकी कसक भुला नहीं सके । उस अंतरयामी परमात्मा ने जान लिया ,अब यह यहाँ रहने योग्य नहीं रहे। उधर से काल ने
जो demand की 21 ब्रह्माण्ड वह दे दिये ,पांच तत्व ,तीन गुण उसको दे दिये परमात्मा ने । और फिर उसने जब कु छ आत्माओं की demand की ,तब प्रभु ने
कहा की जो स्वइच्छा से जाना चाहते हैं वह तेरे साथ जा सकते हैं। तो हम फिर भी हम स्वयं स्वइच्छा से इसके साथ जाने को तैयार हो गये। परमात्मा ने हमारे को वहाँ
निष्कासित कर दिया। हम पतिव्रता पद् से गिर गये। हम ऐसा जुल्म करके ,यहाँ अपने कर्म भोग रहे हैं। और जो कष्ट हमें यहाँ प्राप्त है, यह उस, उस गलती को देखते हुए
यह कष्ट कु छ नहीं है। कीड़े पड़ जाते हैं ,अदरंग हो जाता है ,चार बेटे हैं चारों मर जाते हैं ,टक्कर मार रहे हैं माता- पिता यह कष्ट भी थोड़ा है। हमारे को इस से भी ज्यादा
कष्ट यह काल दे सके तो वह भी कम है। क्योंकि हमने वह जुल्म किया है। वह कितने दयालु परमात्मा है- कहते है मात-पिता बच्चे की हर गलती को क्षमा कर देते हैं।
हमारे वह पिता है ,उसी में माँ के गुण है।
त्मेव मात च् पिता त्मेव, त्मेव बन्धु तवम् च् शखा त्मेव ।
यह वही परमात्मा है, जिसमें यह सब उपमाएं है। वह दयालु यहाँ आता है, उसने हमें फिर भी क्षमा करना चाहा है । इस दौरान काल ने हमें इतना misguide कर
दिया ,की भगवान को भूल चुके हैं । हमें वह परमात्मा याद भी नहीं रहा ? लेकिन आत्मा को यह भूल नहीं पडी़ है, की कोई परम शक्ति है ,जो दुखी को पूर्ण रूपेण
सुखी कर सकता है। उसी की तलाश में, उसी की खोज में किसी ने बताया किसी मंदिर, मस्जिद, गुरूद्वारे में हम वहाँ भी चले गए । किसी ने बताया जगंल या गुफा में
हम वहाँ भी चले गए। किसी ने बताया की वह दरिया में स्नान करने से मोक्ष होगा ,हम वहाँ भी पहुँच गए। लेकिन स्थिती ज्यों की त्यों ही रही। क्योंकि काल भगवान ने
परमात्मा की परिभाषा बदल रखी है ,और स्वयं वह अपने आप को प्रभु बना कर, बन कर सब को कं ट्रोल किये हुए हैं। उसी के रिमोट से ,उसी की पावर से यहाँ सभी
प्राणी इतना कष्ट उठा रहे हैं । और जन्म और मृत्यु के रोग से ग्रस्त हैं। इस अज्ञान को हटाने के लिए उस परमात्मा को स्वंय आना पडा़। क्योंकि परमेश्वर ने बहुत दया
की थी, कि हे भोली आत्मा चले तो गए, इनको मेरी याद सताऐगी, यह जी नहीं पायेंगे। क्योंकि परमात्मा के बिना यह आत्मा रह नहीं सकती और जिस दिन से बिछड़
कर आई है कु छ दिनों के बाद ही इसको उसकी याद सता रही है।
क्योंकि परमात्मा के बिना यह आत्मा रह नहीं सकती और जिस दिन से यह बिछड़ कर आई है कु छ दिनों के बाद ही इसको उसकी याद सता रही है। लेकिन उसके पाने
का मैथड जो है। इस काल ने पूर्ण रूप से गुप्त करवा दिया। नष्ट करवा दिया। सतलोक जाने के लिए उस सनातन परम् धाम को पाने के लिए वह मार्ग बताने के लिए
परमेश्वर स्वयं आए है। अब यह जो समागम चल रहा है 5 दिवश्य। यह उसी याद में है। आत्मा को ऐसा झटका लगता है जब यह बाते याद आती है। कि हम कितने नीच
हैं। हम यहां कितना कष्ट उठा रहे है। आज अरबपति बन गया दो नम्बर का या जैसा भी कर्म करके कल मृत्यु हो गई। वह अरबपति वह फै क्ट्री और वह सारी संपत्ति कहा
है तेरी। कितना बड़ा धोखा हमारे साथ इस काल ने कर रखा है। लेकिन हमारी बुद्धि एक जीव सत्र की है और इस बुद्धि का उत्थान परमात्मा के ज्ञान और उसके
सहयोग और सहारे से ही हो सकता है।हमे ज्ञान भी हो गया। परमात्मा का साथ है नही। परमात्मा का साथ आपके साथ तब तक रहेगा जब तक आप परमात्मा की
मर्यादा और नाम को सुचारु रखोगे। नामखंडित नहीं होगा। जैसे आपने कनेक्शन ले लिया पॉवर का बिजली का और कनेक्शन जब तक सही है बिजली आ रही है ।
आपके सब कार्य पॉवर सत्र से हो रहे है। कनेक्शन कट जाए किसी भी कारण से तो कोई भी सुविधा आपकों पॉवर सत्र की नहीं होगी। इसी प्रकार आप जी को ज्ञान भी
हो गया और नाम भी खंडित हो परमात्मा का हाथ हट गया।तो फिर भी उस ज्ञान पर आप रुक नहीं सकोगे। परमात्मा का ज्ञान तो सबसे पहले होना चाहिए। क्योंकि
गीता जी अध्याय नंबर 4 के श्लोक नंबर 33 में कहा है कि अर्जुन द्रवयम यज्ञ से ज्ञान यज्ञ श्रेष्ठ है। क्योंकी जब तक ज्ञान नही होगा हम कहीं धर्म भंडारे करते है धर्म
पर दो पैसे लगाते है। यह यूजलेस है। ज्ञान हो जाएगा फिर हम सुचारु रुप से लगाएंगे और मोक्ष भी पाएंगे।तो ज्ञान प्रथम है। उसके बाद नाम का सहारा और परमात्मा का
सहयोग। पंजा दस्त कबीर का,सिर पर रखो हंस। जम किं कर चंपे नहीं, तुम्हारा उधर जायेगा वंश।तो इस प्रकार हमने इस परमात्मा के मार्ग को सुरक्षित रखना है।
परमात्मा की कृ प्या हम पर बनी रहें ऐसा हमने करना है।तो उस ज्ञान को जो हमारे को आवश्यक है।उस ज्ञान को प्रदान करने के लिए परमात्मा प्रत्येक युग में आते है।
इस काल भगवान को परमात्मा ने पांच वेद दिए थे इसके अन्दर फीड कर दिए थे। जैसे आजकल एक मोबाइल से दूसरे मोबाइल में पूरी फिल्म की फिल्म फै क्स हो
जाती है। ऐसे परमात्मा ने यह ज्ञान इसके अंतकरण में फीड कर दिया था।और समय आने पर उसको परमात्मा ने इसके अदंर से बाहर उगलवा दिया। जैसे समय आने
पर माता गर्भ धारण करती है। फिर समय आने पर बच्चा ऑटोमैटिकली बहार आ जाता है। ऐसे परमात्मा ने विधान बनाया की जब यह बच्चे थोड़े समझदार हो जायेगा
क्योंकि यहां यह तो दुर्गति तो करेगा ही करेगा ।फिर इनको इस ज्ञान की आवश्यकता पड़ेगी और फिर यह मुझको पहचान लेंगे। तो इस काल ने अपनी सांसों से यह
पांचों वेद बहार निकाल दिए समुंद्र में डाल दिए। इसने पहले इनका निरीक्षण किया। पांचवा वेद जो था वह परमात्मा कबीर जी के प्रत्यक्ष विषय में लिखा हुआ था और
उसको पाने की पूरी विधि उसमें वर्णित थी। इस काल ने सोचा कि यदि प्राणियों को उस पूर्ण परमात्मा का ज्ञान हो गया तो यहां कोई नहीं रुके गा।और वहां के सुख का
इनको पता लग गया तो यहां कोई नहीं रहेगा।तेरा राज्य उजड़ जायेगा।इस दृष्टि कोण से इसने वह पांचवा वेद नष्ट कर दिया।उस यथार्थ ज्ञान को बताने के लिए वह
परमात्मा स्वयं आते है।उसी उद्देश्य से परमात्मा कलयुग में संवत 1455 सन 1398 जेष्ठ सुधि पूर्ण मासी को ब्रह्म मुहूर्त में सुबह सुबह एक कमल के फू ल पर प्रकट
हुए थे। वहां नीरू और नीमा नाम के जुलाहा दंपति परमात्मा को उठा लाए थे। वह निःसंतान थे। परमात्मा 25 दिन के हो गए कु छ आहार किया नही। माता पिता को
चिंता ज्यादा हुई। मुंह बोले माता पिता। बहुत बुरी तरह विलाप किया नीमा ने।तब परमात्मा क्योंकि वह पहले हिन्दू थे। हिन्दू से फिर इनको बायफोर्स मुस्लमान बना
दिया गया था। मुस्लमान बने हुए भी उनको 20–25 वर्ष हो गए थे। फिर भी भगवान शिव की भूल उनको पड़ी नहीं थी। भगवान शिव को याद करते रहे। तो भगवान
शिव अपनी शिवपुरी से मतलब शिव के लोक से चलकर आए एक साधू रुप बना कर।और फिर परमात्मा से उनकी वार्ता हुई 25 दिन के बालक के साथ शिव जी बोले
बात की। तब परमेश्वर ने शिव जी से कहा कि एक कुं वारी गाय कहो इनको एक कुं वारी गाय ले आए बछिया। उसपर आप अपना हाथ रख देना शिव जी परमात्मा ने कहा
। वह दूध दिया करेगी उस दूध का मैं पान करूं गा। ऐसा ही हुआ। यह आपकों कल के सतसंग में बता दिया था।आज नए भगत आए है उनको थोड़ा सा हिंट दे रहे है।तो
उसके बाद परमात्मा कबीर परमेश्वर जी उस कुं वारी गाय का दूध पीकर एक लीलामय शरीर में बड़े होते हुए। बड़े हुए लीला करते हुए। जो प्रत्येक युग में वह किया करते
है और इसी का प्रमाण ऋग्वेद मण्डल नंबर 9 सुक्त नंबर 1 के मंत्र नम्बर 9 में स्पष्ट किया है कि वह परमात्मा पूर्ण ब्रह्म जब शिशु रूप धारण करके लीला करने आता है।
तो उसके लीलामय शरीर की परवरिश कुं वारी गायों से होती है।तो पुण्य आत्माओं जिनको हम भगवान माना करते थे। किसी भी प्रभु की लीला में या उनकी जीवनी में
ऐसा उल्लेख नहीं है। इससे सिद्ध है कि वह प्रभु नहीं थे। इससे यह भी सिद्ध हुआ कि कबीर इज गोड। यह कबीर परमेश्वर है।और वह स्वयं आकर के प्रत्येक युग में अपनी
प्यारी आत्माओं को हम इतने नालायक और निक्कमे थे कि हमने भगवान को भुला।आज हम इतना कष्ट उठा रहे है। इस पृथ्वी पर कोई भी प्राणी सुखी नहीं है पुण्य
आत्माओं। लेकिन हमने सुख की जो डेफिनेशन भी भूल गए हम।एक व्यक्ति के तीन लड़के थे और एक की मृत्यु हो गईं। टक्कर मार रहा सारा परिवार। वहां एक शोक
व्यक्त करने के लिए एक व्यक्ति आ गया। अन्य व्यक्ति कहने लगे की भाई तेरे दो पुत्र तो जीवित है। एक ही मृत्यु को प्राप्त हुआ हैं। इस बेचारे को देख एक ही था एकलोता
पुत्र ही मृत्यु को प्राप्त हो गया। तो उस व्यक्ति ने जिसके दो पुत्र शेष थे एक मर गया था। राहत की सांस ली। कि चोखा हे भगवान! इससे तो मैं ही सुखी। कै से सुखी?
बता जिसका बेटा मर गया क्या सुखी?तो कहने का भाव यह है कि हम इतनी ही राहत को सुख मान रहे है।और शेष जो बच रहे है उनका क्या पता यह कितने दिन
ओर रहेंगे।क्या राहत हुई।तो परमात्मा कहते है झूठे सुख को सुख कहे, ये मान रहा मन मोज।
ये सकल चबीना काल का, कु छ मुख में कु छ गोद। यह सारी बाते याद दिला कर परमात्मा हमे यह बताना चाहते है। इस प्रोसीजर को एक्सेप्ट करो। तुम यहां भी सुखी
और अंत समय में तुम्हें जहाज़ में बिठा कर ले जाऊं गा। देखो कई भगत कहते है कि क्या तुम्हारी मृत्यु नहीं होगी बाकी सब मर जाएंगे। मृत्यु हमारी होगी। लेकिन आम
व्यक्ति जैसी नहीं होगी। जो भगति हीन प्राणी जैसी नहीं होगी। आए है सो जायेंगे, ये राजा रंक फकीर। एक सिंघासन चढ़ कर जा, एक बंधे जात जंजीर।। मृत्यु में बहुत
अंतर होगा। एक तो अपराधी की तरह बांध कर ले जायेंगे यम के दूत जो भगति ठीक नहीं करते और करते है तो शास्त्र विरुद्ध करते है उनको। और जो परमात्मा कबीर
जी के हंस सत साधना कर रहे है। आजीवन मर्यादा में रहेंगे।वह विमान में बैठ कर परमात्मा उनको लेकर जाएगा।तो आने में और जाने में कितना अंतर हो गया।तो इस
ज्ञान को देने के लिए वह परमात्मा स्वयं आए।फिर परमात्मा के नामांकन का समय आया।नाम धरने के लिए नामकरण करने के लिए नामकरण करने के लिए काजी आ
गए कु रान लेकर। और वह क्या करते है कु रान शरीफ को खोलते हैं एक book है वह। Holy book है पवित्र किताब है। और उसमें प्रथम पृष्ठ पर, प्रथम अक्षर जो
होता है जो Left side का जो प्रथम अक्षर होता है प्रथम पंक्ति में, उस आधार से यह नाम रखते हैं। तो उसमें लिखा था "कबीर" प्रथम लाइन में, "कबीर "
Word लिखा था। कबीर का अर्थ होता है= बड़ा। यह मानते हैं कबीर मतलब बड़ा। जो फारसी भाषा में कबीर का अर्थ= बड़ा होता है। तो उन्होंने सोचा ,कि यह छोटा
शुद्र वर्ण का व्यक्ति एक गरीब जुलाहे का ,इसका नाम बड़ा रखना अच्छा नहीं लगता। फिर क्या किया उन्होंने-: पुनः कु रान शरीफ को बंद किया दुबारा फिर खोला।
फिर वहीं पृष्ठ । उन्होंने फिर वहां जानबूझकर कोई और अलग से खोला, तो उस पुरे पृष्ठ पर कबीर, कबीर ,कबीर, लिखा हुआ था, कु रान शरीफ के लेख नहीं थे। पूरी
कु रान शरीफ को देखा तो पूरी कु रान शरीफ में only कबीर, कबीर, कबीर, कबीर लिखा हुआ था। अल्लाह कबीर, अल्लाह कबीर। अब काजियों ने नाम नहीं रखा।
परमात्मा ने कहा ,कि काजी मेरा नाम कबीर ही रहेगा। नवजात शिशु ऐसे बोला तो काजी भी खिसक गए। क्योंकि परमात्मा चारों युगों में अपना एक- एक नाम पूर्व
निर्धारित है , उसी को प्रकाशित करते हैं ,उसी में सुप्रसिद्ध होते हैं। और यह कबीर नाम परमात्मा का original नाम है। जैसे हमारे देश के प्रधानमंत्री जी का शरीर
का नाम तो अन्य होता है, प्रधानमंत्री उनकी पोस्ट का नाम होता है, उसको Prime Minister भाषा भिन्न में बोल देते हैं। ऐसे ही पूर्ण ब्रह्म, परम अक्षर ब्रह्म, सत्य
पुरुष, परमात्मा यह तो पोस्ट के नाम उपमात्मक नाम है, original नाम, वास्तविक नाम, शरीर का नाम कबीर देव है, कबीर साहब है।
अब हम अपने उस प्रसंग पर आते हैं। कल हम यहां तक पहुंच गए थे ,कि परमात्मा 5 वर्ष के हुए 5 वर्ष की आयु लीला में वह show कर रहे थे ,उसी समय ढाई
वर्ष के बच्चे का रूप धारण करके गंगा घाट पर बनी हुई पोड़ियो पर जाकर लेट गए थे। उधर से 104 वर्ष के व्योवृद्ध महर्षि रामानंद पंडित वह बहुत बड़े विद्वान माने जाते
थे। उस गंगा घाट पर प्रतिदिन सुबह-सुबह स्नानर्थ जाया करते थे। रामानंद जी प्रतिदिन की तरह उस दिन भी वह नीचे पोड़ियो में उतर रहे थे। कबीर परमेश्वर ढाई
वर्ष के बच्चे का रूप धारण करके लेटे हुए थे, उनके सिर में खड़ाऊ लगी स्वामी रामानंद जी की। रामानंद जी एकदम झुके ,शीघ्रता से किसी बालक को चोट लग गई,
भगवान एक लीलामय तरीके से रोने लग गए ,जैसे बच्चा रोता है। और उनके गले में एक कं ठी होती है एक तुलसी का मनका only वह प्रतीक है वैष्णव परंपरा का। कि
एक तुलसी के मनके की जो माला उसका कं ठी बोलते हैं। वह कं ठी जिसने धारण कर रखी है वह Understood है ,कि वह वैष्णव परंपरा से उपदेशी है दीक्षित है।
तो वह कं ठी स्वयं रामानंद जी ने भी धारण कर रखी थी वह कं ठी निकल कर कबीर परमेश्वर जी के गले में अंधेरे में डल गई। और रामानंद जी ने कहा बेटा बैठ जा, मैं
तेरे घर भिजवा दूंगा। तु रास्ता भूल गया लग रहा है। वह स्नान करने लगे महर्षि तो ,परमात्मा अंतर्ध्यान हुए। अपने मुंह बोले माता-पिता की कु टिया में विराजमान हो
गए। कु छ दिन के बाद परमेश्वर ने क्या किया - एक महर्षि रामानंद जी का शिष्य ऋषि विवेकानंद कहीं सत्संग कर रहा था। विष्णु जी की उपमा कर रहा था। परमेश्वर
कबीर जी ने उससे पूछा, कि क्या विष्णु जी की जन्म-मृत्यु होती है ? क्या विष्णु जी के कोई माता-पिता भी है ? इस पर विवेकानंद ऋषि जी ने कहा ,कि तुम बालक
हो, आपको इतना भी नहीं पता ? ,कि यह विष्णु जी अजरो- अमर है सर्वेश्वर, महेश्वर है, सर्वशक्तिमान है, इनके कोई माता-पिता नहीं है। तब परमेश्वर ने उस
विवेकानंद को जहां पर हजारों उसके उपदेशी और श्रोता विराजमान थे, सैकड़ों की संख्या में। वहां परमेश्वर ने कहा ,कि नहीं आप गलत कह रहे हो स्वामी जी।
शिवपुराण रुद्र संहिता 5,6,7,8,9 मंत्र ,अध्याय में - और विद्यवेश्वर संहिता प्रथम अध्याय में यह स्पष्ट लिखा हुआ है ,कि दुर्गा इनकी माता है। और यह काल रूपी
शिव इनका पिता है। इनकी जन्म-मृत्यु होती है। विवेकानंद जी ने स्वयं देख भी लिया शास्त्र उसके पास थे, फिर भी वह माना नहीं। और ऊपर से उस बात को सबका
जो है ध्यान परिवर्तित करने के लिए, ध्यान बांटने के लिए कहने लगा ,कि तूने तिलक कै से लगा रखा है ? एक लंबा तिलक यहां नाक पर पूरा सफे द चंदन का तिलक
लगाते हैं ,यह वैष्णव परंपरा वाले। और अब यही रीति ऐसी की ऐसी अब कबीर पंथ में समा गई। यह भूल रहे हैं ,कि कबीर जी ने वह किस उद्देश्य से किया था खेल। तो
वह भी प्रतीक था ,कि वैष्णव परंपरा से यह उपदेशी है। तब उस विवेकानंद ने पूछा ,कि तूने कहीं से उपदेश ले रखा है ? दीक्षा ले रखी है ? की हां दीक्षा ले रखी है। तो
स्वामी जी ने पूछा ,कि तेरा गुरु कौन है ? विवेकानंद जी ने पूछा कबीर परमेश्वर से तेरा गुरु कौन है ? परमेश्वर ने कहा कि जो तेरा गुरु है ,वही मेरा गुरू है। इस बात
से बहुत अक्षुद्ध हुआ विवेकानंद। क्योंकि विवेकानंद को पता चला, ,कि यह शुद्र वर्ण से संबंध रखता है। यह धानक जुलाहे का पुत्र है। क्योंकि वहां उपस्थित जनों ने
तुरंत खड़े होकर बता दिया था ,की यह धानक का पुत्र है जुलाहे का पुत्र है। नीरू को कही मिला था वह है यह। तो उसी समय वह कहने लगा ,कि तू शुद्र वर्ण का होकर
के तू कहता है - रामानंद जी से मैंने दीक्षा ले रखी है ? देखो रे लोगो यह कितना झूठा और कपटी है । इससे सोच लेना ,कि यह सब झूठ बोल रहा है। हमारे स्वामी
रामानंद जी कभी किसी को दीक्षा नहीं देते। वह बहुत ज्यादा छु आछू त किया करते थे। और शुद्र वर्ण से तो वह बिल्कु ल hate करते थे। पल्ला कर लेते थे, पर्दा कर
लेते थे। बात करते हुए भी उनकी शक्ल नहीं देखते थे। और ऐसे व्यक्ति के बारे में भरे ब्राह्मण समाज और अन्य व्यक्ती वहा उपस्थित थे। और वहां यह कहना कि मैंने
रामानंद जी से दीक्षा ले रखी है, एक बहुत बड़े आश्चर्य की बात थी। और आम व्यक्ति को यह हो गया ,कि यह झूठ बोलता है । और ब्रह्मा, विष्णु ,महेश जी के माता
पिता की जानकारी भी यह झूठी ही दे रहा होगा। और यही विवेकानंद चाहता था ,तेरी इज्जत बनी रहे। यह श्रोता धोखे में पड़े रहे। और यह मेरी जो है दाल रोटी चलती
रहे। इनकी यही तक बुद्धि सीमित रही इन गुरु, ऋषि -महऋषिओं की। उस समय विवेकानंद जी ने कहा ,कि श्रोताओं कल सभी आना स्वामी जी की कु टिया पर।
रामानंद जी की कु टिया पर । और उनके सामने मैं अर्ज करूं गा, कि हमारी तो नाक काट ली इस जुलाहे के पुत्र ने। इसने भरी सभा में आपको अपना गुरु बता दिया।
हम कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं रहे । देखना सच्चाई का कल पता चलेगा। अब शाम को जाकर के विवेकानंद जी ने जो महर्षि रामानंद जी के शिष्य थे। स्वामी जी से
कहा ,स्वामी जी! हमारी तो नाक काट ली, हम कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं रहे। स्वामी जी ने पूछा क्या बात हुई ? सारी कहानी बता दी ,कि एक जुलाहे का बेटा
आपको अपना गुरु बता रहा है गुरुवार । और वहां कई सैकड़ों की संख्या में ,कई सैकड़ों की संख्या में श्रोता उपस्थित थे उसने सरेआम कहा यह ,कि मैंने रामानंद जी
से नाम ले रखा है। और वह तिलक भी लगाता है माथे पर, ऐसे ही लगाता है। रामानंद जी का पारा 100 पर चला गया। एकदम high और कहने लगा वह झूठा है, वह
कपटी है कल उसकी सब असलियत सामने आ जाएगी उसको बुला कर लाओ। अब सुबह-सुबह वह विवेकानंद और 8-9 गुंडे लेकर लठों वाले , चल पड़ा ।परमात्मा
कबीर जी की कु टिया के तरफ ,जहां वह रहा करते थे जुलाहो की कॉलोनी में ।
किसी व्यक्ति ने देखा ,कि यह कोई घर पूछ रहे हैं ? उन्होने कबीर नीरू का घर पूछा। और उनके इरादे से वह परिचित हुए, इसी प्रकार एक बहन को पता चला। उनको
उन्होंने कु छ रास्ता नहीं दिया , वह तो कहने लगे पूछ लो कहीं आगे। वह किसी और से घर पूछने लगे ,तब तक वह दोनों आ गए शीघ्र आ गए। पहले एक बहन आई
,और फिर एक भगत ने, एक व्यक्ति ने आकर यही बताया, कि एक ब्राह्मण है। उसके 7-8 लठ वाले हैं। और तुम्हारा घर पूछ रहे हैं। अब तुम सावधान हो जाओ, उनके
इरादे नेक नहीं है। अब नीमा समझ गई ,कि ब्राह्मण है। क्योंकि उससे पहले भी कबीर परमेश्वर जी इन नकली गुरुओं को जहां भी खड़े चर्चा हो रही होती थी, यह
परमात्मा उनसे प्रश्न किया ही किया करते थे। और उनके उल्हाने आते थे नीमा और नीरू को आकर कहते थे ,कि अपने बेटे को मना कर दो इनको समझा लो यह
हमारे सत्संग में बाधा डालता है। और परमात्मा बताया करते , तुम गलत ज्ञान प्रचार कर रहे हो। इनको विष खिला रहे हो अपने श्रोताओं को। तुम सत से परिचित नहीं
हो। और नीमा धमकाया भी करती थी बेटा! तू मत छेडा़ कर इनको। यह तो राक्षस type के व्यक्ति है ,बेटा तुझे कभी मार देंगे। तब कबीर परमात्मा कहा करते ,कि
माता जी मेरे बस की बात नहीं। मैं तो इनको समझाने की चेष्टा करता हूं, यह सब मेरे ही बच्चे हैं। मैं इनको सही ज्ञान बताना चाहता हूं, यह मुझे पहचानते नहीं। इस बात
से माई भी क्षुब्ध हो जाया करती ,की पडा़ रह तू दादा बन गया। 5 साल का बालक यह कहे, कि मेरे बच्चे है, तू ज्यादा मत बोला कर। और बेटा तू मत छेड़ा कर
इनको।
तो उसको इस दिन भी तुरंत उसके हृदय में गया, कि अवश्य यह कोई गड़बड़ कर के आया कल। और आज तो भयंकर रूप धारण कर रखा है उन्होंने, यदि लट्ठ लेकर
आ रहे हैं तो। माता ने बच्चे को उठाया, सोए हुए को । परमात्मा तो सोए -जगे बराबर ही होते हैं, खड़े हो गए। पूछा माता ने पूछा - बेटा तूने कल किसी के साथ छेड़छाड़
की थी ब्राह्मण से ? की नहीं माता जी छेड़छाड़ तो नहीं की थी ,मैंने तो प्रश्न किया था। मां बोली तू यह प्रश्न करना छोड़ दे बेटा! वह आने लग रहे हैं और चल तुझे
छु पा देती हूं। तू बोलना मत। छु प जा। झोपड़ी के पीछे जाकर लेटा कर ऊपर कपड़े डाल दिए,वस्त्र आदि डाल दिए। की तू बोलना मत बेटा। कि ठीक है । अब इतने में
वह आ गए, आते ही बोले कहां है वह तुम्हारा पुत्र ? वह कबीर कहां है ? हमें दो। आज उसको स्वामी जी के सामने ले जाएंगे,उसकी वहां पिटाई होएगी। अब नीमा
कहने लगी क्या बात हो गई ? क्या गलती कर दी मेरे पुत्र ने? मैं धमका दूंगी , डांट दूंगी आगे नहीं करेगा। वह कहने लगे - नहीं हमें दो वह कहां है ? और ऐसे कहते-
कहते वह अंदर चले गए। उस कु टिया में झोपड़ी में जो भी चारपाई थी ,वस्त्र थे सब इधर-उधर फें क दिए। कहां छु पा रखा है ? और माता हाथ जोड़कर कह रही है मेरे
बच्चे पर रहम करो, बालक है। बच्चे तो गलती कर ही दिया करते हैं आप तो महान हो ,ब्राह्मण हो,विद्वान हो। और लाल आंख हो रखी विवेकानंद की, क्योंकी उसकी तो
पोल खुल गई निकम्मे की। कहने लगा दूर हो जा तू, बता कहां है ? नहीं तो तेरी टांग तोड़ दूंगा।
अब , पुण्यात्माओं! देवीभागवत में लिखा है प्रथम स्कं ध में ,कि यह कलयुग के जो ब्राह्मण है, कलयुग में जो ब्राह्मण है , वह ऐसे है जो सतयुग, त्रेतायुग, द्वापर में
राक्षस हुआ करते। और यह प्रत्यक्ष सिद्ध हो रहा है । उधर से परमात्मा ने देखा कबीर जी ने ,कि यह माताजी को तंग कर रहे हैं। और यह टांग तोड़ देंगे मां की। बाहर
खड़ा होकर , एकदम खड़े हो गए वहीं पर ,और कहा विवेकानंद! आ जा झोपड़ी के पीछे खड़ा हूं मैं। अब विवेकानंद तो आवाज सुनते ही भाग कर गए सारे ,और पकड़
लिए परमात्मा को बाजू से। उधर से नीमा ने अपने बच्चे को छु ड़वाना चाहा, उसके लिपट गई। अपने बच्चे को ऐसे लिपट गई । बच्चा तो नहीं था वह तो हमारा बाप था,
पिता था सबका , लेकिन लीला कर रहें थे दाता। उधर से सर्वानंद और ने उसके हाथों पर लट्ठ मारे, उसको गुंडों ने माता को। और हाथ छु ड़वा दिए बुरी तरह पीट कर
छोड़ दिया। उधर से नीरू को जब पता चला ,कि क्या झगड़ा हो ? गया , वह भागा आया। उसने भी विरोध किया, बच्चे को छु ड़वाना चाहा, तो उसकी भी बहुत पिटाई
कर दी। और बेहोश करके गली में डाल दिया। परमेश्वर को उठाकर वह ले गए। वहां रामानंद जी अपनी कु टिया में बैठे थे स्नान करके आए थे। वह प्रतिदिन जो कर्मकांड
किया करते थे, वह करने की तैयारी कर रहे थे। विवेकानंद ने कहा ,कि जी यह आ गया है नीरू पुत्र! जुलाहे का बेटा कबीर ,जो आपको अपना गुरु बताता है । रामानंद
जी ने अपनी कु टिया के सामने पर्दा लगा दिया। और कबीर जी बाहर खड़े हैं , रामानंद जी कु टिया के अंदर और हजारों की संख्या में श्रोता वहां विद्यमान हैं। क्योंकि
विवेकानंद तो सब को न्योता देकर लाया था ,कि कोई और कोई यह नहीं कह दे, कि विवेकानंद से प्रश्न किया था, जबाव नहीं आया ? जबाव तो टाल दिया ,और यह
और पंगा कर दिया। लेकिन परमात्मा तो अपने बच्चों के लिए, आए ही इस उद्देश्य से थे। चाहे कु छ भी हो, कोई कु छ भी करे , बुरा कहे ,चाहे भला कहे ,मालिक ने तो
अपने ज्ञान को उजागर करना था। जिनको शरण में लेना है वह लेना ही था । अब रामानंद जी को शरण में लेने के लिए यह सब कु छ कर रहे थे परमात्मा। कितना कष्ट
उठाया, बुरी तरह बेइज्जत हुए, लेकिन माता-पिता अपने बच्चों के लिए सब कष्ट उठा सकते हैं। और यह तो सबका पिता, सबका माता ,हम सभी उन्हीं के बच्चे हैं। अब
रामानंद जी ने परदे के अंदर से ऊं ची आवाज में पूछा, कि कौन तुम्हारी जाति है ? और कौन तुम्हारा भगवान है ? किस पंथ से तुम जुड़े हुए हो ? तब क्या वार्ता
होती है। परमात्मा और उस आत्मा की। परमात्मा कबीर जी और आत्मा उस रामानंद जी की क्या चर्चा होती है। यह आपको सुनाते हैं:-

आढा पर्दा लगाएं कर ,रामानंद बुझन्त।


दास गरीब कू रंग छवि, अधर डाक कू दंत।।

अधर डाक कू दंत, जैसे मृग कू दा करते हैं खड़ा ही । कहते हैं, आढा पर्दा लगाएं कर रामानंद बुझंत।
और गरीब दास साहेब जी जो परमेश्वर से परिचित हुए थे। परमात्मा गरीब दास जी को सतलोक लेकर गये थे उनकी आत्मा को, फिर वापिस शरीर में छोड़ा था। उन्होंने
आंखों देखा और पीछे का और आगे का दिव्य दृष्टि से सब विवरण परमात्मा की महिमा का यह आखों देखा चित्रण किया। उस आधार से गरीब दास कह रहे हैं ,कि ऐसे
कू द रहा है रामानंद जी कु टिया में, जैसे मृग कू दा करते हैं गुस्से में। कि तूने कै से कह दिया ? और कहता है,
कौन जात कु ल पंथ है, कौन तुम्हारा नाम।
दास गरीब आधीन गति, बोलत है बलिजाऊं मैं।।
अब गरीब दास जी कहते हैं वह परमात्मा बलिहारी जाऊं उस परमेश्वर पर, उस 5 वर्ष की आयु में।
जब रामानंद जी ने यह पुछा-
कौन जात कु ल पंथ है, और कौन तुम्हारा नाम।
दास गरीब आधीन गति बोलत है बलिजाऊं मैं।।
जैसे एक नेक शिष्य ने अपने गुरु जी के प्रति कै सा व्यवहार आचरण करना चाहिए ,वह करते हुए बोल रहे हैं। कहते है, गुरु जी तो गुस्से में हो रहें हैं ,गुस्सा कर रहे हैं।
और परमात्मा कबीर जी, परमात्मा कबीर जी और आधिनी से बोलते हैं। और फिर सच्चाई बताते हैं,
जाति हमारी जगतगुरु, परमेश्वर है पंथ।
ऐसे खड़े है परमात्मा,
दास गरीब लिखत पड़े, मेरा नाम निरंजन कं त।।
अब परमात्मा ने तो सच्चाई कहनी थी कहते हैं-: जाति हमारी जगतगुरु, मैं पूरे विश्व को ज्ञान देने वाला हूं। और परमेश्वर वाला मेरा पंथ है।
ईश, ईश्वर ,परमेश्वर, ईश तो यह ब्रह्म है, इक्कीस ब्रह्मांड का स्वामी है। ब्रह्मा, विष्णु ,महेश का पिता है। और ईश्वर यह परब्रह्म है जो सात संख ब्रम्हांड का परमात्मा है ।
मालिक है, स्वामी है ,प्रभु है । और परमेश्वर असंख्य ब्रह्मांड का स्वामी , वह कबीर परमेश्वर है। वह परम अक्षर ब्रह्म है। गीता जी अध्याय नंबर 15 के श्लोक नंबर 16
और 17 में तीनों प्रभुओ का उल्लेख है। क्षर पुरुष यह ईश है, अक्षर पुरुष यह ईश्वर है ,और 17 वे श्लोक में 15 वे अध्याय के में कहा-
उत्तमः पुरुषस्त्वन्यः परमात्मेत्युदाहृतः|
यह लोकत्रयमाविश्य बिभर्त्यव्यय ईश्वरः||
वह परमेश्वर है|
गीता जी अध्याय नंबर 8 के श्लोक नंबर 1 में अर्जुन ने प्रश्न किया - प्रभु जी! आपने जो सातवें अध्याय के 29 में श्लोक में गीता जी में जिस तत् ब्रह्म के विषय में
जानकारी दी है, कि उसके जानने के बाद प्राणी फिर यहां जरा और मरण से ही छू टने का प्रयत्न करता है। किम् तत् ब्रह्म ?
गीता ज्ञान दाता 8 वें अध्याय के तीसरे श्लोक में कहता है- वह परम अक्षर ब्रह्म है। गीता जी अध्याय नंबर 8 के श्लोक नंबर 5 और 7 में गीता ज्ञान दाता कहता है
मेरी भक्ति करेगा ,मुझे प्राप्त होगा। तू युद्ध भी कर और मेरी भक्ति भी कर। 8 वें अध्याय के 13 में श्लोक में गीता ज्ञान दाता अपना मंत्र बताता है ,कि-
ओमित्येकाक्षरं ब्रम्ह व्याहरन्मामनुस्मरन्।
य: प्रयाति त्यन्देहं स याति परमाम् गतिम्।
(माम् ब्रह्म ) मुझ ब्रह्म का ओम यह एक अक्षर है उच्चारण करके सिमरन करने का। और जो अंतिम स्वांस तक शरीर छोड़कर जाते समय इसका उच्चारण करता हुआ
शरीर छोड़ता है, तो मेरे ओम नाम से मिलने वाली जो अंतिम उपलब्धि है ,उसको प्राप्त करता है। परम गति। सातवें अध्याय के 18 वें में श्लोक में गीता जी में गीता
ज्ञान दाता कहता है, कि यह मेरे वाली गति भी, यह ज्ञानी आत्मा है तो अच्छी यह भक्ति में समर्पित है ,पर मेरे वाली अनुत्तम्, अश्रेष्ठ गति में ही स्थित है। अनुत्तम
,घटिया गति में स्थित है। अपनी स्थिति को , अपनी उपलब्धि को भी घटिया क्यों बता रहा है ?- क्योंकि चौथे अध्याय के पांचवे और नौवे श्लोक में स्पष्ट कर रहा है
,और दूसरे अध्याय के 12 वे श्लोक में ,गीता ज्ञान दाता कह रहा है -: कि अर्जुन तेरे और मेरे बहुत जन्म हो हो चुके है। तू नहीं जानता मैं जानता हूं। अर्थात जन्म -
मृत्यु में दुखी तू भी है ,मैं भी हूं। इसलिए 18 वे अध्याय के 62 वें श्लोक में कहा है ,कि तू सर्व भाव से उस परमेश्वर की शरण में जा, और 66 में भी उसी का संके त
है। और गीता जी अध्याय नंबर 8 के श्लोक नंबर 8, 9, 10 में गीता ज्ञान दाता अपने से अन्य उस परम अक्षर ब्रह्म की भक्ति के लिए कहता है, कि उसकी जो साधना
करता है उसको प्राप्त हो जाता है। उस भक्ति की गति से ,भक्ति के बल से यानी जो साधना वह संत देगा तत्वदर्शी संत। जो चौथे अध्याय के 34 वें श्लोक में जिस संत
के विषय में कहा है। और 15 वें अध्याय के 1 से 4 में उस तत्वदर्शी संत की पहचान, और परमात्मा पूर्ण परमात्मा के पाने का विधान बताया है। उसकी भक्ति जो
करेगा तो उसको प्राप्त होगा। 17 वें अध्याय गीता जी के मंत्र 23 में कहा ,कि उस परमात्मा के पाने का, परम अक्षर ब्रह्म को पाने का उस परमेश्वर को पाने का- " ॐ
तत्सदिति निर्देशो ब्रम्हणस्त्रिविधः स्मृतः|
उस सच्चिदानंद घन ब्रह्म, यानी परम अक्षर ब्रह्म ,परमेश्वर को पाने का वह तीन मंत्र का जाप है। जिसमें एक ओम जाप यह ब्रह्म का ,और जो तत् यह सांके तिक है, यह
उस परब्रह्म का। (ईश, ईश्वर,) और तीसरा जो सत् है वह गुप्त है, सांके तिक है, वह भी यह दास बताएगा। वह परम अक्षर ब्रह्म का ,वह परमेश्वर का। इन तीन मंत्रों के
जाप से परमात्मा प्राप्ति होगी। उसकी विधि अलग है, उसकी क्रियाएं अलग है। उनका कै से-कै से फिर इसका आगे विवरण अलग से बताया जाएगा। अभी इतना समय
नहीं|
तो यहां क्या बताया है परमात्मा ने कहा-
जाति हमारी जगतगुरु, परमेश्वर है पंथ|
जैसे किसी का तो वैष्णव पंथ है वह विष्णु जी का उपासक है। किसी का शिव का पंथ है, शिव जी की विधि उसके अंदर वर्णित है। पंथ मतलब मार्ग (Way Of
worship) और कोई ब्रह्म तक ही जानता है। परब्रह्म की जानकारी, विधि पूजा की किसी को नहीं है
परमेश्वर कबीर जी कहते हैं , सोहम् शब्द हम जग में लाएं, सार शब्द हमने गुप्त छिपाए।।
और वह अब प्रकट करवाया है परमात्मा ने ,इस दास के माध्यम से। अब उन तीनों के जाप से ही लाभ होगा। अभी तक दो मंत्र देते रहे परमात्मा अपनी पुण्यआत्माओं
को।
तो 5 मंत्र देते थे। जो विशेष आत्माएं थी, विशेष खास भक्ति में लीन हो जाते थे उनको दूसरा मंत्र दे देते थे। कु छ एक को ऐसा है, जिनको उन्होंने तीनों मंत्र भी दिए हैं।
लेकिन उनको कसम दिला दी थी ,सौगंध खिला दी थी ,कि यह सारनाम कहीं जिक्र नही करोगे।
इन दो मंत्रों का जाप कबीर जी की वाणी या परमात्मा प्राप्त उन संतो की वाणी में स्पष्ट लिखा हुआ है। लेकिन सारनाम को गुप्त रखा हुआ है। तो कहने का भाव यह है
,कि क्या बताते हैं - कि हमारा जो पंथ है Way Of Worship है वह ब्रह्म की भी नहीं, ईश की नहीं, ईश्वर की नहीं, हम परमेश्वर ,उस परम अक्षर ब्रह्म के पाने
का मार्ग बताने आया हूं। वह मेरा पंथ है।
जाति हमारी जगतगुरु, यानी पूरे विश्व को ज्ञान मैं ही दे सकता हूं। मैं ही देता हूं। और सब अज्ञान प्रदान कर रहे हैं । और फिर क्या बता दिया कि- दास गरीब लिखित
पड़े, मेरा नाम निरंजन कं त। मैं भगवान हूं, निरंजन हूं। एक तो इस काल को भी निरंजन कहते हैं क्योंकि यहां तो यह प्रसिद्ध है।
उस मालिक को तो परोक्ष है, उसकी तो किसी को जानकारी नहीं थी। तो ब्रह्म भी यही प्रसिद्ध हो गया। वैसे ज्योति निरंजन है यह । और वास्तव में निरंजन का अर्थ
होता है= निर्लेप परमात्मा, माया रहित, माया रहित भगवान ही हो सकता है।
इसलिए निरंजन का सीधा अर्थ प्रभु से है , प्रभु। कहता है मै भगवान हूं, परमात्मा ने कहा। अब यह रामानंद जी के यकीन नहीं हों यह बात , की यह बालक यह कह
रहा है, की मै भगवान हूं। उसने जान लिया ,की यह सचमुच सिरफिरा है।
रे बालक सुन दुर्बुद्धि, घट मट तन आकार।
दास गरीब दर्द लगा ,वह बोले सिरजनहार।।
गरीबदास जी ,जैसे तुलसीदास जी ने रामायण का पुनः चित्रण किया सारा दोबारा right. लिखवाया, बोला। ऐसे ही गरीब दास साहिब जी ने परमात्मा से प्राप्त ज्ञान
योग के आधार से ,दिव्य दृष्टि के आधार से पिछली पूरी घटनाएं ऐसे बिल्कु ल चलचित्र की तरह देख ,और आवाज सुनकर लिखा। अब जैसे श्रीमद्भगवद्गीता बोली गई थी
युद्ध के समय ,युद्ध प्रारंभ होने से पहले महाभारत का । और लिपिबद्ध की उसके 20 वर्ष के बाद, वेदव्यास जी ने as it is. क्योंकि काल भगवान ने उस में प्रवेश
करके वह लिख दी। हम दूसरा इसको यह भी कह सकते हैं, कि उसको दिव्य दृष्टि दे दी इतनी ,कि यह उस घटना को as it is चलचित्र करके पूरी as it is लिख
सकता है। हमारे प्रत्येक प्राणी के अंतःकरण में, हमारे समझ लो एक प्रत्येक के अंदर एक ऐसी चिप डाल रखी है परमात्मा ने ,परमानेंट डाल रखी है। और उसकी
इतनी Capacity है- असंख्य युगो की जो भी घटनाएं पशु -पक्षी मनुष्य जीवन में जहां भी राजा, महाराजा ,देव रहे है हम, वह सभी हमारे अंतःकरण में है। और उस
अंतःकरण में एक ऐसा सिस्टम भी लगा रखा है परमात्मा ने ,की हम कभी भी किसी समय भी घटना घटी हुई किसी भी प्राणी के विषय में उसकी जानकारी हम उसी से
ले सकते हैं । और उसकी क्या वार्ता हुई ? कहां - कहां, क्या- क्या उसने कै से कर्म किए ? कै से उसने घटना की ? वह सब चलचित्र की तरह सामने आ जाते हैं। ऐसे
ही गरीब दास साहेब जी चलचित्र की तरह जो भी पिछली घटनाएं घटी थी, वह as it is वर्णन कर रहे हैं। कबीर परमात्मा जी की रजा से।
तो रामानंद जी क्या कहते हैं- अरे! बालक सुन दुर्बुद्धि तेरा घट मट तन आकार।
अब हमारी बुद्धि इस काल ने इतनी घुमा रखी है, विष्णु जी के उपासक स्वामी रामानंद जी और फिर भी भगवान को निराकार कहते है। और कहते है इस बात से दुखी
हो गए ,कि तू अपने आप को भगवान बताता है तु तो साकार दिखाई देता है ? भगवान तो निराकार है। हमारी बुद्धि काल के बिकी हुई थी। और यह खुद कहता है गीता
जी के अध्याय नंबर 7 में ,कि यह बलवानो का बल और बुद्धिमानो की बुद्धि मेरे हाथ में है। जब चाहे On कर दू, और जब चाहे off कर दू।

अब जैसे श्री कृ ष्ण जी की मृत्यु हो गयी उनके पैर में तीर मार दिया था विषाक्त। एक पारदी ने, शिकारी ने जो सुग्रीव का भाई बाली था त्रेता में। वह अपना tit for
tat के आधार से विधान से ,उसने उसको मार दिया। उसके बाद फिर कृ ष्ण जी के जितने भी वहां यादवो की पत्नियां थी ,यादव आपस में लड़ कर मर गए थे। सारे
खत्म हो गए थे दुर्वासा के श्राप से। और अर्जुन उन सभी औरतों को कृ ष्ण जी के आदेश के अनुसार सभी औरतों दिल्ली लेकर आ रहा था। रास्ते में भीलों ने अर्जुन को
पीटा, सब औरतों के गहने छीन लिए। कु छ गोपियों को भी लेकर साथ चले गए। अर्जुन के पास वही गांडीव धनुष था, जिसके द्वारा उसने महाभारत में ऐसे तूफान मचा
रखा था। और उसके हाथ काम नहीं कर रहे थे ? वह तीर उठा नहीं उससे, वह बाण ? अर्जुन बाद में रो रहा है ,कि मेरे साथ छल किया श्रीकृ ष्ण ने। युद्ध में तो मुझे
पावर दे दी, मैने लाखों लोग मार दिए ,पाप इकट्ठे कर लिए। आज वही अर्जुन और वही यह धनुष आज मेरे से चल नहीं रहा, कांप रहा है खड़ा - खड़ा।
तो यह श्री कृ ष्ण छल - कपट नहीं करते थे। यह काल करवा रहा है। और परमात्मा कहते हैं यह श्री कृ ष्ण छल नहीं करता ,यह काल कर रहा है। यह खुद कह रहा है
,कि बलवानो का बल , और बुद्धिमानो की बुद्धि मेरे हाथ में है । अब सब की बुद्धि बंद कर रखी है काल ने। सब निराकार बता रहे है ,और कोई विष्णु जी को पूज रहा है
? कोई शंकर जी को पूज रहा है ? फिर भी भगवान निराकार । यह कै सा सिद्धांत हमने ecsept कर रखा था ? अब इसी आधार से रामानंद जी कहते हैं रे बालक
सुन दुर्बुद्धि, हे दुर्बुद्धि बच्चा! तेरा शरीर दिखाई दे ,और तू कह रहा है अपने आपको भगवान ? दास गरीब दर्द लगा वह बोले सिरजनहार। रामानंद जी को दुख हुआ
,जब भगवान ने अपने आप को भगवान कह दिया।
और कै से अपशब्द कहे ,और फिर परमात्मा एक अच्छे शिष्य की भूमिका निभाते हुए, हमें एक example ,उदाहरण देना चाहते हैं- रामानंद जी गालियां दे रहे हैं और
वह ऐसे खड़े है।
रामानंद जी क्या कह रहे हैं-
तुम मोमन के पालवा, तेरा जुलहे के घर वास|
दास गरीब अज्ञान गति, ऐता दृढ़ विश्वास।।
क्या कहता है ,कि तू अपने आप को भगवान कह रहा है ? और एक जुलाहे के टुकड़े पर पलने वाला, और अपने आप को भगवान कह रहा है तू? यानी इससे घटिया
और क्या बात कहेगा। कि तू उस के टुकड़ों पर पल रहा है। और अपने आप को भगवान कह रहा है, इतना मतलब दुखी होकर इतने अपशब्द बोल रहा है। आगे क्या
बोला -
तर्क तलु से बोलते, रामानंद सूर् ज्ञान|
कहते हैं यह तो इन अच्छे महापुरुषों के वचन है, कै से बोल रहा है वह । कौन ? वह रामानंद जी।
तर्क तलु से बोलते, रामानंद सूर् ज्ञान।
दास गरीब कु जात है, आखिर नीच निदान।।
देख कहां तक अपशब्द बोल दिए , की आखिर में यह कु जात है । कु जात मतलब इसके मां का पता नहीं बाप का। वह कहते हैं जैसे , कु जात जिसकी जाति का पूरा
पता नहीं हो। और आखिर नीच निदान ,कहते हैं यह तो बिल्कु ल नीच है। इसलिए तो अपने आप को भगवान कह रहा है।
अब परमात्मा क्या बोलते हैं-
महके बदन खुलास कर, सुन स्वामी प्रवीन|
दास गरीब मनी मरे, मैं अजीज आधीन।।
वह तो गाली दे रहे हैं ,और परमात्मा विनम्रता से और खुश होकर कह रहे हैं-
मैं अविगत गत से परे, और चार वेद से दूर।
दास गरीब दसो दिशा, मैं सकल सिंध भरपूर।।
वह परमात्मा कहते हैं कबीर जी, की मैं वह अविगत हूं। जिसको तेरे चारों वेद भी नहीं जानते। वेद भी आखिर में यह कह देते हैं- नेति नेति नेति
नयति! नयति! की , हम जो बता रहे हैं परमात्मा की महिमा यह कं प्लीट यह final नहीं है।
इसलिए यजुर्वेद अध्याय नंबर 40 के श्लोक नंबर 10 से 13 में स्पष्ट किया है, कि कोई तो परमात्मा को साकार बताता है जन्म लेने वाला। कोई निराकार बताता है
वह जन्म नहीं लेता। और कोई जिसने कोई अक्षर ज्ञान ग्रहण कर लिया, उसको विद्वान कह देते हैं। और जिसको अक्षर ज्ञान नहीं है उसको अविद्वान बताते हैं। परमात्मा
कै सा है ? विद्वान और अविद्वान की definition भी वह तत्वदर्शी संत बताएंगे ,उनसे सुनो। इससे सिद्ध है ,कि वेद ज्ञान कं प्लीट नहीं । और वेदों में वर्णित विधि से
पूर्ण परमात्मा प्राप्ति नहीं , के वल ब्रह्म तक की ही पूजा विधि और उसकी प्राप्ति का मार्ग है। तो यहां परमात्मा कहते हैं मैं अवगत गत से परे , और चार वेद से दूर। चार
वेदों में लिखी जो महिमा वह है तो मेरी, लेकिन उसको पा नहीं सकता मै। मुझे नहीं पाया जा सकता । इस कारण से इन चारों वेदों में वर्णित विधि मैं से दूर हूं । तुम्हारे
से दूर इसलिए हूं । और कहते हैं दसो दिशा भरपूर सकल सब दिशाओं में मेरी ही प्रभुता है|
"जात पात मेरे नहीं" परमात्मा कहते हैं जाति पाति हम नहीं मानते "और बस्ती है बिन थाम" हमारी जो सतलोक हैं ,उसका कोई आधार नहीं। वह अपने आप हमारे
वचन से रुका हुआ है। "दास गरीब अन्यन गति तन मेरा बिन चाम।। मेरा शरीर तुम्हारे जैसा चाम का बना हुआ नहीं है। शरीर है- सुक्रम अकायम् असनाविरम् स्वयंभूं
परिभूं परमात्मा कबीर मनिषि।
यूजर्वेद अध्याय नंबर 40 के मंत्र 8 में कबीर मनिषि सहपरियागात सुक्रम अकायम् अवरणम् अछिद्र कबीर मनिषि परिभूं स्वयंभू ।
वह स्वयंभू परमात्मा है जिसका कोई जनक नहीं हो। तो यहां वही कह रहे हैं,
जात पात मेरे नहीं, बस्ती हैं बिन थाम। दास गरीब अन्यन गति, तन मेरा बिन चाम।।
हे स्वामी सृष्टा मैं, यह सृष्टि मेरे तीर। परमात्मा कहते हैं हे स्वामी जी! गुरु - शिष्य की भूमिका को भी mainten, कायम रखने के लिए ,कि गुरु के प्रति शिष्य की
कै सी भाषा हो ? कै सी विनम्रता हो ? और सच्चाई भी बता रहे हैं। "हे स्वामी सृष्टा मैं," सृष्टा मतलब सिरजनहार सबका। सारी सृष्टि को बनाने वाला मैं ही हूं। "और सृष्टि
मेरे तीर।" यह सब ब्रह्मांड मेरे ही आधार है ,मेरे वचन से चल रहे हैं। रुके हुए हैं। बने हुए हैं।
हे स्वामी सृष्टा में, सृष्टि हमरे तीर।
दास गरीब अधर बसू, अवगत सत कबीर।।
मैं ऊपर रहता हूं अधर ,ऊपर। ओहो….!!
और यही हमारे चारों वेद बताते हैं। ऋग्वेद मंडल नंबर 9 सूक्त नंबर 86 मंत्र नंबर 26,27 में स्पष्ट किया है ,कि कबीर परमात्मा वह सतलोक से गति करके अपने
तीसरे मुक्तिधाम में रहता है। सतलोक में। और वहां से चलकर गति करके आता है। अपनी अच्छी आत्मा को मिलता है। और वह हमारे सब संकटों का मृदन करता है।
और अपने रूप को हल्का करके , अपने रूप को हल्का तेज पुंज का बना करके यहां भक्तों को मिलता है आकर के । और वह ऊपर रहता है। और वह भगवान खुद कह
रहे हैं ,कि
हे स्वामी सृष्टा में, यह सृष्टि हमरे तीर।
दास गरीब अधर ऊपर बसु, अविगत सत कबीर।।
ऊपर रहता हूं। और मैं सारी सृष्टि को रचने वाला हूं।
सुन रामानंद राम मैं, मैं 52 नरसिंह।
दास गरीब सर्व कला में, मैं ही व्यापक सर्वांग।।
जैसे "व्यापक सर्वांग" मतलब वासुदेव मैं ही हूं। सब जगह व्यापक मैं ही हूं। जैसे गीता जी अध्याय नंबर 3 के श्लोक नंबर 10 से लेकर 15 तक बताया गया है ,कि जो
यज्ञ नहीं करते वह नालायक व्यक्ति हैं ही हैं। यज्ञ करो, धार्मिक अनुष्ठान करो, लेकिन पूर्ण परमात्मा परम अक्षर ब्रह्म उस सर्वगतम् ब्रह्म को पूज्य मानकर, ईष्ट मानकर
पूजा करो। उससे यह सभी भक्ति रूपी आपकी व्यवस्था सुचारु होगी। तो वह परमात्मा ही यज्ञों में प्रतिष्ठित है। वह सर्वगतम् ब्रह्म। तो कहते हैं ,वह मैं ही हूं। जो सभी
यज्ञों में पूज्य हूं।
मैं रोवत हूं सृष्टि को, यह सृष्टि रोय मोहे।
गरीबदास हमरे वियोग को, समझ नहीं सकता कोय।।
मैं रोवत हूं सृष्टि को, यह सृष्टि रोय मोहे।
गरीबदास इस वियोग को, पूछे और नहीं कोय।।
मैं ही बुझू मैं ही कहूं, हम ही किया वियोग।
दास गरीब गलतान् हम, शब्द हमारा भोग।।
चार युगन में हम फिरे, मैं आऊं मैं जाऊं ।
गरीबदास गुरु भेद से, लखो हमारी ठाऊ।
कहते हैं सतगुरु से ,पूर्ण संत से मेरे स्थान को समझो, जहां मैं रहता हूं।
जेता अंजना आंजिये, चश्मों में चमकं त।
गरीबदास हरीभक्ति बिन, माल बाल जुजंत।।
अब पुण्य आत्माओं! क्योंकि सत्संग के माध्यम से इतना विस्तार होता है। क्योंकि यह ज्ञान इतना अज्ञान बना रखा था, कि इसको समझाने सुलझाने में बहुत समय
लगता है। 2 घंटे ऐसे जाते हैं जैसे 2 मिनट हुई हो। और प्रकरण ज्यों का त्यों ही रह जाता है। क्योंकि अज्ञान आधार से हम इतने परिपूर्ण हो चुके हैं , उस अज्ञान को
हटाकर के फिर ज्ञान प्रवेश किया जाता है। जैसे पहले किसी ने गलत पेंट कर रखा है नकली, उसको उतारने के लिए रेग मार्क लगाना पड़ता है। वह मेहनत extra
और हो गई। और उसके बाद फिर पेंट किया जाता है। अगर पहले वाले पेंट को अच्छी तरह से नहीं उतारा जाए, तो फिर original पेंट उस पर रुके गा नहीं। इसलिए
यह उदाहरण, यह ज्ञान बार- बार ,रह -रह कर बताया जाता है। तब यह हमारा परमात्मा का ज्ञान तुम्हारे ऊपर ठहरेगा।
तो क्या बताते हैं जैसे जेता अंजना आंजिये,चश्मों में चमकं त।
अब पुण्य आत्माओं! सत्संग के दौरान आपका एकाग्रह चित होना चाहिए। क्या - क्या शब्द इस दास के मुख से निकल रहे हैं । इनमें प्रत्येक के अंदर बहुत बड़ा रहस्य
और आपके काम की बातें होती हैं। आप जी इधर-उधर ध्यान नहीं रखे, क्योंकि 2 घंटे की क्या बात है। फिर 2 घंटे शाम होंगे 4 घंटे। बाकी 20 घंटे बहुत कु छ होते हैं
इधर-उधर की सोचने की। तब जैसे यह कई बार बताते हैं । कई भक्तों को शंकाएं भी रह जाती हैं। प्रत्येक को invadjali नहीं बताया जा सकता, नहीं समाधान किया
जा सकता है। सत्संग इसलिए किया जाता है सामूहिक तौर पर आपको कु छ ऐसे गूढ़ रहस्य भी साथ में बताएं जाते हैं जो आपको आवश्यक है। अब इसमें क्या शब्द
आया है= की जेता अंजना आंजिये वह चश्मों में दिखंत।
(अंजन मतलब माया) जितना भी अंजन यानि भक्ति रूपी जो शक्ति तू ग्रहण करेगा, धन भक्ति माया वह तेरी आंखों में चमकें गी। आपकी आंखों के सामने जैसे यह हमे
अंधेरे में भी दिखती है। और ऐसे बहुत से कु छ ऐसी अलग -सी वस्तु दिखती है जो आप जी को भी दिख रही है ,जिन्होने नाम लें लिया। दो ,चार महीने, छह महीने
,साल ,दो साल हो गए जिनको, उनको यह प्रगट होना शुरू हो जाते हैं। आंखों के सामने थोड़ी-सी दूरी पर ऐसे तार- से नजर आएंगे, बहुत ज्यादा। और भी काफी
क्रियाएं अपने आप दृष्टि गोचर होती है। वह क्या है ? हमारी जितनी भक्ति अंदर बढ़ गई उसका leval हैं। उसका प्रतिक है । कि आपकी भक्ति इतनी हो चुकी है। और
एक भगत कई बार कु छ भक्त ऐसे मिले वह कहने लगे ,जी मेरी आंखें खराब हो गई। आंखों के आगे काला- काला दिखता है। तार - से दिखते है। और डॉक्टर को भी
दिखाया डॉक्टर बोला ऑपरेशन करवा लें। मैंने कहा भाई! यह तार जो है यह जो भी तुझे दिखाई दे रहा है, बेटा! यह तेरी भक्ति का प्रतिक है। और यह हमें भी दिखाई
देते है। यह नहीं दिखता तो फिर भक्ति है ही नहीं तुम्हारी। यह देखने से नहीं, अपने आप दिखेंगी। ऐसे ध्यान से देखोगे ,आपको कई बार ऐसा लगेगा, जैसे कोई मक्खी
आ गई खाना खाते समय भी मक्खी या मच्छर आ गया। लेकिन वह हमारे, परमात्मा अंदर से जो भक्ति का आगे प्रतीक वह reflection बाहर आ रहा है। और यह
सुक्ष्म शरीर ऐसा ही होता है। और यह भक्ति का प्रतिक भी उस नूर से ही हमारा यह leval बता रहा है। तो इस प्रकार चिंतित नहीं होना। बहुत से ऐसे भक्त है एक कहने
लगा जी, मैं तो घर से बाहर नहीं निकलु, देखु तभी ऐसे दिखने लग जाता है। मैं डर गया कहीं भूत हो।
पुण्यआत्माओं! पहले इस दास को बचपन से ही यह थोड़ा- सा दिखाई देता था। यह पूर्वजन्म की जो कोई संस्कार deposit रह रहा था। नहीं तो खो दिया , पता
नहीं कहां - कहां देवता बन कर, राजा बन कर। और वह थोड़ा - सा दिखाई देता था। ज्यादा से ज्यादा एक इंच की लंबाई होगी। एक ही था वह । यानी इतनी ही शेष
कमाई बची थी इस कलयुग में। वह पूर्व जन्म की deposit भक्ति की पुण्य कमाई थी। और यह दास यह सोचता था ,कि मेरी आंखें कु छ कमजोर है, इसलिए यह कोई
दृष्टि दोष है। जब उपदेश लिया। नाम लिया, पांच- छह महीने के बाद देखा तो यह तो और ज्यादा बढ़ गया। 1 साल के बाद तो बहुत मुश्किल हो गई, और ज्यादा बढ़
गया। मैंने सोचा , बड़ी दिक्कत आई। तो गुरुजी उस समय वृद्ध बहुत थे 104, 5 वर्ष की आयु हो चुकी थी, हमारे पूज्य गुरुदेव जी की। उनसे ज्यादा समाधान नहीं
करवा पाया करते थे। क्योंकि और भी बहुत भगत थे, हमारा नंबर भी देर से आता था। कभी आता ,कभी नहीं आता था। तो एक दिन दांव लग गया और दास ने यही
प्रकरण उनसे कहां - की गुरूदेव! ऐसे - ऐसे पहले तो यह छोटा सा था। अब यह बहुत बढ़ गया, लगता है आंखें और week हो जाएंगी। तब वह हंसे ,कहने लगे बेटा!
यह तो तेरी भक्ति बढ़ गई। और यही तो प्रतिक है। आज तक मेरे को किसी ने नहीं बताया, कि मेरे साथ ऐसा है जो आज आप ने आकर बताई है। इससे सिद्ध है ,कि
यह भक्ति नहीं करते बाकी के । और ऐसा ही था। उनके पास कोई माया मांगने आते थे ,कोई बेटे मांगने आया करते , कोई कार , कोई कोठी। और वहां भी नाम ले लेते
और फिर माता के घंटी बजाते वैष्णो देवी पर भी जाते वह सारे। अब समझ में आई वह तो कर्म बिगाड़ रहे थे। ठीक ही नहीं उनको कु छ दिखता था। और क्या दिखना
था।
अब रामानंद जी ने सोचा ,कि यह छोटा सा बच्चा और बात करे ऐसी कांटे की, की मेरी छाती में लग रही है यह। आत्मा में ठेस पहुंच रही है। बहुत confidence , से
बोल रहा है।
परमात्मा कहते है :-
गोता लाऊं स्वर्ग में, मैं जा बैठु पाताल।
कबीर साहेब कहते हैं गरीब दास जी उसको बता रहे हैं। गरीबदास ढूंढता फिरूं , हीरे माणिक लाल।।
अपनी प्यारी आत्माओं, अपनी पुण्य आत्माओं को जैसे-: ऋग्वेद मंडल नंबर 9 और सूक्त नंबर 86 मंत्र 26,27
ऋग्वेद मंडल नंबर 9 सूक्त 82 मंत्र 1, 1,2,3
ऋग्वेद मंडल नंबर 9 सूक्त 20 मंत्र 1,2 में
तो पुण्य आत्माओं! यह वही वर्णन है जो परमात्मा कै सी लीला करता है -: कि वह परमात्मा सतलोक से चलकर आता है । एक श्रेष्ठ ,अच्छी आत्माओं को मिलता है।
उनको ज्ञान दे देता है। ज्ञान से परिपूर्ण करता है। उनको मोक्ष मार्ग बताता है। और स्वयं परमात्मा खुद कह रहे हैं ,
गोता लाऊं स्वर्ग में, और जा बैठु पाताल।
कबीर साहेब कहते हैं मैं ढूंढता फिरूं , अपने हीरे मोती लाल।।
आप जैसे पहले तो सतयुग, त्रेता, द्वापर में परमात्मा ने अधिक प्रयत्न इसलिए नहीं किया, क्योंकि सभी सुखी थे। सभी की समाधियां लगा करती थी। स्वस्थ शरीर थे।
क्योंकि पुण्य जब तक चलते हैं प्राणी के , तब तक यह यहां का नकली सुख महसूस करता रहता है। और जिसको बताना चाहते थे वह सुनना नहीं चाहते थे। सभी कहते
थे हमें मौज हो रही है ,हमें किसी ओर भगवान की आवश्यकता नहीं। हमारे तो कृ ष्ण जी ने या विष्णु जी ने हमारी मौज कर रखी है। अब कलयुग में परमात्मा को पता
था, कि कलयुग में इनका सभी का यह सब खाली हो लेंगे, इनकी सब पुण्य कमाई नष्ट हो जाएगी। और पहले की कमाई इनकी होगी नहीं ? और जिन भगवानों को यह
मोक्षदायक मान कर इनसे सुख राहत प्राप्ति के लिए पूजाएं भी कर लेंगे, उनसे राहत मिले नहीं। क्योंकि वह दे ही नहीं सकते। वह आपके भाग्य में परिवर्तन नहीं कर
सकते हैं। तब परमात्मा ने कहा था कलयुग में फिर मैं पहचान में आ जाऊं गा इनके । क्योंकि इनके पिछले पुण्य होंगे नहीं , दुर्गति सबकी हो जाएगी। आज कोई परिवार
खाली नहीं जिसमें कष्ट नहीं हो। और एक- दो प्रतिशत कोई शेष बचा हुआ है उस पर नहीं जाने कल क्या बिजली गिर जाएं ? तो इस परमात्मा की शरण में आने से
आपके कष्ट भी दूर होंगे। गारंटीड होंगे, यह सतकर मान लेना पुण्यात्माओं। दास का कोई उद्देश्य नहीं, कोई खानदानी पेशा नहीं । कि हमारे दादे परदादे भी यही कार्य
किया करते ,हमें कोई रोजी-रोटी नहीं मिल रही थी। दास सर्विस किया करता था JE की सर्विस थी। दो टाइम की रोटी ठीक मिल रही थी । लेकिन आदेश हों गया
परमेश्वर का ,गुरुदेव का, की तू यह काम कर ,सेवा कर ,मजदूरी कर मेरी। दास उनका मजदूर बन कर उनकी प्यारी आत्माओं को यह संदेश भेज रहा है, उनके
आदेनुशार। तो यह सतकर मान लेना जो इस दास ने इस मालिक को चुना है। नहीं दास तो पहले कृ ष्ण पूजारी था ,विष्णु पूजारी था, हनुमान पूजारी था, शंकर भगवान
का पूजारी था। लेकिन हम उनका अनादर नहीं । यह नहीं सोचो, कि हम ब्रह्मा, विष्णु, महेश को बिलकु ल हेय समझते हैं। नहीं।
जैसे गीता जी के अध्याय नंबर 2 के श्लोक नंबर 46 में कहा है ,कि जब बहुत बड़े जलास्य की प्राप्ति के उपरांत छोटे जलास्य में जैसी आस्था रह जाती है। अर्जुन जब
तुझे परमात्मा के गुणों से तू परिचित हो जाएगा, फिर अन्य देवताओं में ,अन्य ज्ञान में तेरी इतनी श्रद्धा रह जाएगी। जैसे पहले क्या था, कि सारी व्यवस्था मनुष्य की
जल के ऊपर, जो तालाबों पर आधारित थे ,सिंचाई भी उसी से करते थे। पशुपालन भी उसी से करते थे। और स्वयं भी जलपान उसी से करते थे। तालाबों से। और
कु छ छोटे तालाब जिसके ऊपर आश्रित पूरा गांव 20 -30 घर हुआ करते थे। 30- 40 मुश्किल से। एक तालाब पर आश्रित रहते थे उसी से पीते थे, उसी से पशुओं
को पानी पिलाते थे। उसी से कु छ सिंचाई कर लेते थे। अब 1 वर्ष वर्षा नहीं होती तो वह सूख जाते थे ,सब तड़प जातें थे। वह भाग जाते थे इधर - उधर कहीं बड़े
जलास्य की खोज में । और उन व्यक्तियों को कोई बहुत बड़ी झील प्राप्त हो जाएं ,जिसमें 10 वर्ष वर्षा नहीं हो तो भी जल अंत नहीं हो, समाप्त नहीं हो , तो फिर उन
व्यक्तियों की धारणा उस छोटे जलास्य में जैसी आस्था रह जाएगी, उस बड़ी झील की प्राप्ति के बाद, तो उनको वह छोटे तालाब वाला जल व्यर्थ नहीं लगता, वह बुरा
नहीं लगता। लेकिन उनकी capisty नहीं है, जो उसको सदा सुखी कर सकें । वह स्वयं नाशवान है। वर्षा हो गई तो वह परिपूर्ण हो जाएगा। एक वर्ष गुजारा हो जाएगा।
एक वर्ष वर्षा नहीं हुई तो आश्रित भी मरेंगे। वह तो सुख ही गया। और उस झील के ऊपर जल वही है, वर्षा का ही जल है , शुद्ध जल है लेकिन उसकी capisty पुरी
नहीं है बहुत कम क्षमता का है। ऐसे ही यह ब्रह्मा, विष्णु, महेश की जो पावर है यह पूरी नहीं है। और परमात्मा की पावर क्या है -: यह तो दरिया है, दरिया। गंगा दरिया
जैसा समझो। जिसका जल कभी अंत नहीं हो। नहा भी लें, धो भी लें, नहर भी निकाल लें, और सिंचाई भी कर लें और फिर भी खत्म नहीं हो। तो इस प्रकार हमने इस
परमात्मा में जब आपकी आस्था हो जाएगी, इसका ज्ञान हो जाएगा फिर ब्रह्मा ,विष्णु ,महेश हमारी फिर वह बुरे नहीं लगते। लेकिन उनकी क्षमता का पता लग गया हमें।
और जिसको 10 वर्ष तक वर्षा नहीं हो, और ऐसी झील मिल जाए फिर कौन झांकने जाएगा उसके ऊपर ? understood है। की जो कार्य ब्रह्मा ,विष्णु ,महेश जी
नहीं कर सकते । और कर सकते थे तो कितना कर सकते थे ? और वह हमें उससे सारा ही मिल रहा है तो वहां कौन जाएगा फिर? वहीं बस जाएंगे उसके पास जा
करके । तो ऐसे परमात्मा हमे बताना चाहते हैं।
तो कहने का भाव यह है ,कि इस प्रकार इस दास ने इस परमात्मा को खुब पहचाना। और लगभग सन् 1994 से आज 2011 आ गया है, 17 वर्ष के करिब हो गए
हैं। और जो सुख और जो स्थिति में परिवर्तन इन पुण्य आत्माओं में किया है, जो दास देख रहा है। ,की जिनके पास साइकल नहीं था आज दो - दो कार चल रहीं है
उनके । अब यह तो वैसे ही ,यह तो आपको यहां कि सुविधा तो Automatically मिले ही मिलेगी इस भगवान की भक्ति से। जिनको तुम भटक रहे थे, इसी के
ऊपर सारा divot हों रहें थे माया कमाने के लिए ही hook and cook कु छ भी हो जाएं वहीं करने के लिए तैयार थे। यह तो आपको इस भक्ति से मालिक आप
व्यवस्था करेगा, किसी तरह भी करे। और एक नंबर का धन देगा आपको।

🙏।।।सत साहेब जी।।।

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