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रामायण

 रामायण ह रघु
वं
श के
राजा राम क गाथा है
।।

 यह आ द क व वा मी क ारा लखा गया सं


कृत का एक अनु
पम महाका , मृ
त का वह अं
ग है

 इसे
आ दका [1] तथा इसके
रच यता मह ष वा मी क को 'आ दक व' भी कहा जाता है

 रामायण के
छः अ याय ह जो का ड के
नाम से
जाने
जाते
ह, इसके
२४,००० ोक ह।

 महाका क ऐ तहा सक वृ और सं
रचनागत परत को जानने
केलए कई यास कए गए ह;

 7 व से
4 व शता द ईसा पूव म पाठ े
णी के
शुआती चरण केलए व भ हा लया व ान के
अनु
मान बाद के
चरण केसाथ तीसरी शता द सीई तक फै
लेए ह।[3]

 कु
छ भारतीय कहते
ह क यह ६०० ईपू
सेपहलेलखा गया।

 ा जी के
कहे अनुसार वा मी क ने
भगवान ी रामकेवृता त को ोकब कया। मह ष वा मी क के ारा
ोकब भगवान ी राम क कथा को वा मी क रामायण के नाम से
जाना जाता है
। वा मी क को आ दक व कहा
जाता हैतथा वा मी क रामायण को आ द रामायण केनाम सेभी जाना जाता है
और यही सबसेामा णक भी है ।

 सनातन धम के धा मक ले खक तु लसीदास जी के अनु


सार सव थम ी राम क कथा भगवान ी शं कर ने
माता
पावती जी को सुनायी थी। जहाँपर भगवान शंकर पावती जी को भगवान ी राम क कथा सु ना रहेथे
वहाँ
कागा
(कौवा) का एक घ सला था और उसके भीतर बैठा कागा भी उस कथा को सु
न रहा था। कथा पू
री होने
केपहले ही
माता पावती को न द आ गई पर उस प ी ने पूरी कथा सु
न ली। उसी प ी का पु
नज म काकभु शुड[घ] के प म
आ। काकभु शुड जी ने यह कथा ग ड़ जी को सुनाई। भगवान ी शंकर के मु
ख सेनकली ीराम क यह प व
कथा अ या म रामायण के नाम से यात है। अ या म रामायण को ही व का सव थम रामायण माना जाता है ।

 दे
श म वदे शय क स ा हो जाने केबाद सं कृ
त का ास हो गया[कृ
पया उ रण जोड़] और भारतीय लोग उ चत
ान केअभाव तथा वदेशी स ा के भाव के कारण अपनी ही संकृत को भूलनेलग गये।[कृ
पया उ रण जोड़]
ऐसी थ त को अ य त वकट जानकर जनजागरण केलये महा ानी स त ी तुलसीदास जी नेएक बार फर से
भगवान ीराम क प व कथा को दे शी (अवधी) भाषा म ल पब कया। स त तु लसीदास जी ने
अपनेारा
ल खत भगवान ीराम क क याणकारी कथा से प रपू
ण इस थ ंका नाम रामच रतमानस[ङ] रखा। सामा य प
से रामच रतमानस को तु
लसी रामायण के नाम सेजाना जाता है

 संे
प म रामायण-कथा

 बालका ड- अयो या नगरी म दशरथ नाम केराजा येजनक कौश या, कै केयी और सु म ा नामक
प नयाँ थ । स तान ा त हेतुअयो याप त दशरथ ने अपने गु ी व श क आ ा से पुकामे य
करवाया[6] जसेक ऋं गी ऋ ष नेस प कया। भ पू ण आ तयाँ पाकर अ नदे व स ये और उ ह ने
वयंकट होकर राजा दशरथ को ह व यपा (खीर, पायस) दया जसेक उ ह ने अपनी तीन प नय म बाँ ट
दया। खीर केसेवन के
प रणाम व प कौश या के गभ से राम का, कैकेयी के गभ से भरत का तथा सु म ा के
गभ से ल मण और श ु न का ज म आ। राजकु मार के बड़ेहोनेपर आ म क रा स से र ा हे
तुऋष
व ा म राजा दशरथ से राम और ल मण को मां ग कर अपने साथ ले गये। राम ने ताड़का और सु बा जैसे
रा स को मार डाला और मारीच को बना फल वाले बाण[7] सेमार कर समुके पार भे
ज दया। उधर
ल मण ने रा स क सारी से ना का सं
हार कर डाला। धनुषय हे तु राजा जनक केनम ण मलने पर
व ा म राम और ल मण के साथ उनक नगरी म थला (जनकपु र) आ गये । रा तेम राम नेगौतम मु नक
ी अह या का उ ार कया। म थला म आकर जब राम शवधनु ष को दे खकर उठाने का य न करने लगेतब
वह बीच से टू
ट गया और जनक त ा के अनुसार राम नेसीता सेववाह कया। राम और सीता केववाह के
साथ ही साथ गुव श ने भरत का मा डवी से, ल मण का उ मला से और श ु न का ु तक त से करवा
दया।
 अयो याका ड- राम केववाह केकु
छ समय प ात्राजा दशरथ ने राम का रा या भषेक करना चाहा।तब
मं
थरा,जो कैकेयी क दासी थी,ने कै
केयी क बु को फे र दया। म थरा क सलाह से कैके
यी कोपभवन म चली
गई। दशरथ जब मनाने आये तो कैकेयी ने
उनसे वरदान[9] मांगेक भरत को राजा बनाया जाये और राम को
चौदह वष केलये वनवास म भे ज दया जाये । राम केसाथ सीता और ल मण भी वन चले गये। ऋं गवे
रपु
रम
नषादराज गु ह नेतीन क ब त से वा क । कुछ आनाकानी करने के बाद केवट ने तीन को गं गा नद के पार
उतारा। याग प च ंकर राम ने भार ाज मु न से भट क । वहां से राम यमु ना नान करतेये वा मी क ऋ ष के
आ मप ं च।ेवा मी क सेई म णा के अनु सार राम, सीता और ल मण च कू ट म नवास करने लगे

अयो या म पुकेवयोग के कारण दशरथ का वगवास हो गया। व श ने भरत और श ु न को उनके न नहाल
सेबु
लवा लया। वापस आने पर भरत ने अपनी माता कै केयी क , उसक कु टलता केलये , ब त भत ना क
और गुजन के आ ानु सार दशरथ क अ ये या कर दया। भरत ने अयो या के रा य को अ वीकार कर
दया और राम को मना कर वापस लाने केलये सम त ने हीजन के साथ च कू ट चले गये। कैकेयी को भी
अपनेकये पर अ य त प ाताप आ। भरत तथा अ य सभी लोग ने राम के वापस अयो या जाकर रा य करने
का ताव रखा जसेक राम ने , पता क आ ा पालन करने और रघु वंश क री त नभाने केलये , अमा य कर
दया। भरत अपनेने ही जन के साथ राम क पा का को साथ ले कर वापस अयो या आ गये । उ ह नेराम क
पा का को राज सहासन पर वरा जत कर दया वयं न द ाम म नवास करने लगे ।

 अर यका ड- कु
छ काल के
प ात राम नेच कू ट सेयाण कया तथा वे अ ऋ ष के आ मप च ँ।ेअ
नेराम क तु त क और उनक प नी अनसू या ने सीता को पा त त धम के मम समझाये । वहाँसेफर राम ने
आगे थान कया और शरभं ग मुन से भट क । शरभं ग मु न केवल राम के दशन क कामना से वहाँनवास
कर रहे थेअतः राम के दशन क अपनी अ भलाषा पू ण हो जाने सेयोगा न से अपने शरीर को जला डाला और
लोक को गमन कया। और आगे बढ़ने पर राम को थान थान पर ह य के ढे
र दखाई पड़ेजनकेवषय
म मु नय ने राम को बताया क रा स ने अने क मु नय को खा डाला है और उ ह मु नय क ह याँ ह। इस
पर राम ने त ा क क वे सम त रा स का वध करके पृ वी को रा स वहीन कर दगे । राम और आगे बढ़े
और पथ म सु ती ण, अग य आ द ऋ षय से भट करतेये द डक वन म वे श कया जहाँ पर उनक
मु
लाकात जटायु सेई। राम ने पंचवट को अपना नवास थान बनाया। पं चवट म रावण क बहन शू पणखा ने
आकर राम सेणय नवे दन- कया। राम ने यह कह कर क वे अपनी प नी के साथ ह और उनका छोटा भाई
अके ला हैउसे ल मण के पास भे ज दया। ल मण ने उसके णय- नवे दन को अ वीकार करतेये श ु क बहन
जान कर उसके नाक और कान काट लये । शूपणखा ने खर- षण से सहायता क मां ग क और वह अपनी से ना
के साथ लड़ने केलये आ गया। लड़ाई म राम ने खर- षण और उसक से ना का सं
हार कर डाला।[11]
शू
पणखा ने जाकर अपने भाई रावण सेशकायत क । रावण ने बदला ले नेकेलये मारीच को वणमृ ग बना कर
भेजा जसक छाल क मां ग सीता ने राम से क । ल मण को सीता के र ा क आ ा दे कर राम वणमृ ग पी
मारीच को मारने केलये उसके पीछे चले गये। मारीच के हाथ मारा गया पर मरते मरतेमारीच ने राम क
आवाज बना कर ‘हा ल मण’ का दन कया जसे सुन कर सीता ने आशं कावश होकर ल मण को राम के
पास भेज दया। ल मण के जाने के बाद अके ली सीता का रावण ने छलपू वक हरण कर लया और अपने साथ
लं
का ले गया। रा तेम जटायु ने सीता को बचाने केलये रावण से यु कया और रावण ने तलवार के हार से
उसे अधमरा कर दया। सीता को न पा कर राम अ य त ःखी ये और वलाप करने लगे। रा ते
म जटायु से
भट होने पर उसने राम को रावण के ारा अपनी दशा होने व सीता को हर कर द ण दशा क ओर ले जाने
क बात बताई। ये सब बताने के बाद जटायु ने अपनेाण याग दये और राम उसका अ तम सं कार करके
सीता क खोज म सघन वन के भीतर आगे बढ़े। रा तेम राम नेवासा के शाप के कारण रा स बने ग धव
कब ध का वध करके उसका उ ार कया और शबरी के आ म जा प च ँेजहाँपर क उसके ारा दये गये जूठे
बे
र को उसके भ के वश म होकर खाया। इस कार राम सीता क खोज म सघन वन के अंदर आगे बढ़ते
गये।

 क क धाका ड- राम ऋ यमू


क पवत केनकट आ गये
। उस पवत पर अपने
म य स हत सुीव रहता
था। सुीव ने, इस आशं का म क कह बा ल ने उसेमारनेकेलयेउन दोन वीर को न भेजा हो, हनु
मान को
राम और ल मण केवषय म जानकारी ले नेकेलयेा ण के प म भे जा। यह जाननेकेबाद क उ ह बा ल
नेनह भेजा है हनु
मान ने
राम और सुीव म म ता करवा द । सुीव ने राम को सा वना द क जानक जी
मल जायग और उ ह खोजने म वह सहायता दे
गा साथ ही अपने
भाई बा ल के अपनेऊपर कये गयेअ याचार
केवषय म बताया। राम ने बा ल का वध कर के सुीव को क क धा का रा य तथा बा ल के पुअं गद को
युवराज का पद देदया। रा य ा त के बाद सुीव वलास म ल त हो गया और वषा तथा शरद् ऋतु तीत
हो गई। राम क नाराजगी पर सुीव ने
वानर को सीता क खोज केलये भेजा। सीता क खोज म गयेवानर
को एक गु फा म एक तप वनी के दशन ये । तप वनी ने खोज दल को योगश से समुतट पर प च
ंा दया
जहांपर उनक भट स पाती सेई। स पाती ने वानर को बताया क रावण ने
सीता को लंका अशोकवा टका म
रखा है। जा बव त ने
हनु
मान को समुलां घने केलये उ सा हत कया।

 सु
दरका ड- हनु
ं मान ने
लं
का क ओर थान कया। सु रसा नेहनु
मान क परी ा ली[14] और उसे यो य
तथा साम यवान पाकर आशीवाद दया। माग म हनु मान नेछाया पकड़ने वाली रा सी का वध कया और
लं कनी पर हार करके लंका म वे श कया। उनक वभीषण से भट ई। जब हनु मान अशोकवा टका म प च ँे
तो रावण सीता को धमका रहा था। रावण के जाने पर जटा ने सीता को सा तवना द । एका त होने पर
हनुमान जी नेसीता माता सेभट करके उ ह राम क मुका द । हनु मान नेअशोकवा टका का व वं स करके
रावण के पुअ य कु मार का वध कर दया। मेघनाथ हनु मान को नागपाश म बां
ध कर रावण क सभा म ले
गया।[15] रावण के के उ र म हनुमान नेअपना प रचय राम केत के प म दया। रावण ने हनुमान क
पूँ
छ म ते
ल म डूबा आ कपड़ा बां ध कर आग लगा दया इस पर हनु मान नेलंका का दहन कर दया। हनु मान
सीता केपास प ँच।ेसीता नेअपनी चूड़ाम ण दे कर उ ह वदा कया। वे वापस समुपार आकर सभी वानर
सेमले और सभी वापस सुीव के पास चले गये। हनु
मान के काय सेराम अ य त स ये । राम वानर क
सेना केसाथ समुतट पर प ँ च।ेउधर वभीषण ने रावण को समझाया क राम से बैर न ल इस पर रावण ने
वभीषण को अपमा नत कर लं का सेनकाल दया। वभीषण राम के शरण म आ गया और राम ने उसे लंका
का राजा घो षत कर दया। राम ने समुसे रा ता देने
क वनती क । वनती न मानने पर राम नेोध कया
और उनके ोध से भयभीत होकर समुनेवयं आकर राम क वनती करने केप ात् नल और नील के ारा
पुल बनानेका उपाय बताया।

 लं
काका ड (युका ड)- जा बव त केआदे
श से
नल-नील दोन भाइय नेवानर सेना क सहायता से
समुपर पु ल बां
ध दया।[17] ी राम नेी रामेर क थापना करके भगवान शंकर क पू जा क और से ना
स हत समुके पार उतर गये। समुके पार जाकर राम ने डे
रा डाला। पुल बंध जानेऔर राम के समुके पार
उतर जाने केसमाचार से रावण मन म अ य त ाकु ल आ। म दोदरी के राम से
बैर न ले
नेकेलये समझाने
पर भी रावण का अहं कार नह गया। इधर राम अपनी वानरसे ना केसाथ सु बे
ल पवत पर नवास करने लगे ।
अंगद राम केत बन कर लं का म रावण के पास गयेऔर उसे राम के शरण म आने का सं
देश दया क तु
रावण ने नह माना। शा त के सारेयास असफल हो जाने पर यु आर भ हो गया। ल मण और मे घनाद के
म य घोर यु आ। श बाण के वार सेल मण मू छत हो गये । उनके उपचार केलये हनु
मान सु षे
ण वैको
ले आये और सं जीवनी लाने केलये चले गये। गुतचर से समाचार मलने पर रावण नेहनुमान के काय म बाधा
केलये कालने म को भेजा जसका हनु मान नेवध कर दया। औष ध क पहचान न होने के कारण हनुमान पू रे
पवत को ही उठा कर वापस चले । माग म हनुमान को रा स होने केस दे ह म भरत नेबाण मार कर मू छत कर
दया पर तु यथाथ जानने पर अपने बाण पर बैठा कर वापस लं का भे
ज दया। इधर औष ध आने म वल ब दे ख
कर राम लाप करने लगे। सही समय पर हनु मान औष ध ले कर आ गये और सु षे
ण के उपचार से ल मण व थ
हो गये। रावण नेयु केलये कुभकण को जगाया। कुभकण ने भी रावण को राम क शरण म जाने क
असफल म णा द । यु म कुभकण ने राम केहाथ परमग त ा त क । ल मण ने मेघनाद सेयु करके
उसका वध कर दया। राम और रावण के म य अनेक घोर यु ऐ और अ त म रावण राम के हाथ मारा
गया।[19] वभीषण को लं का का रा य स प कर राम, सीता और ल मण के साथ पुपक वमान पर चढ़ कर
अयो या केलये थान कया।

 उ रका ड- उ रका ड राम कथा का उपसं हार है। सीता, ल मण और सम त वानरसे ना केसाथ राम
अयो या वापस प ँ च।ेराम का भ वागत आ, भरत के साथ सवजन म आन द ा त हो गया। वे द और
शव क तु त केसाथ राम का रा या भषेक आ। अ यागत क वदाई द गई। राम नेजा को उपदे श दया
और जा ने कृत ता कट क । चार भाइय के दो दो पु ये । रामरा य एक आदश बन गया। उपरो बात
के साथ ही साथ गो वामी तुलसीदास जी नेउ रका ड म ी राम-व श सं वाद, नारद जी का अयो या आकर
रामच जी क तु त करना, शव-पावती संवाद, ग ड़ मोह तथा ग ड़ जी का काकभु शुड जी से रामकथा
एवं राम-म हमा सु
नना, काकभु शुड जी के पू
वज म क कथा, ान-भक् त न पण, ानद पक और
भक् त क महान म हमा, ग ड़ के सात श्न और काकभु शुड जी के उ र आ द वषय का भी व तृ त
वणन कया है । जहाँतु
लसीदास जी ने उपरो वणन लखकर रामच रतमानस को समा त कर दया है वह
आ दक व वा मी क अपने रामायण म उ रका ड म रावण तथा हनु मान केज म क कथा, सीता का नवासन,
राजा नृग, राजा न म, राजा यया त तथा रामरा य म कुेका याय क उपकथाय, लवकु श का ज म, राम के
ारा अ मे घ य का अनुान तथा उस य म उनके पु लव तथा कु
श के ारा महाक व वा मी क र चत
रामायण गायन, सीता का रसातल वे श, ल मण का प र यागका भी वणन कया है । वा मी क रामायण म
उ रका ड का समापन राम के महा याण के बाद ही आ है

 वा मी क रामायण सेे
रत होकर स त तु
लसीदास ने
रामच रतमानस जै
से
महाका क रचना क जो क वा मी क
के ारा संकृत म लखे
गयेरामायण का हद सं करण है

 रामायण से
ही ेरत होकर मै
थलीशरण गुत नेपंचवट तथा साके
त नामक खं
डका क रचना क । रामायण म
ल मण क प नी उ मला केउ ले
खनीय याग को शायद भू
लवश अनदे खा कर दया गया है
और इस भू
ल को साके

खंडका रचकर मै थलीशरण गुत जी ने
सुधारा है

 बौ पर परा म ीराम से
सं
बं
धत दशरथ जातक, अनामक जातक तथा दशरथ कथानक नामक तीन जातक कथाएँ
उपल ध ह।

 जैन सा ह य म राम कथा स ब धी कई थ ं लखे गये


, जनम मुय ह- वमलसू र कृत 'पउमच रयं' ( ाकृ
त), आचाय
र वषेण कृत 'प पुराण' (संकृत), वयं
भू कृत 'पउमच रउ' (अप शं), रामचंच र पु राण तथा गुणभ कृ तउ र
पुराण (संकृत)। जैन पर परा केअनुसार राम का मू
ल नाम 'प ' था।

 परमार भोज ने
भी चं
पु
रामायण क रचना क थी।

 राम कथा अ य अने


क भारतीय भाषा म भी लखी गय । ह द म कम से
कम 11, मराठ म 8, बाङ्
ला म 25,
त मल म 12, ते
लु
गु
म 12 तथा उ ड़या म 6 रामायण मलती ह।

 इसके अतर भी सं
कृत,गु
जराती, मलयालम, क ड, अस मया, उ , अरबी, फारसी आ द भाषा म राम कथा
लखी गयी।

 महाक व का लदास, भास, भ , वरसेन, े


मे, भवभू त, राजशे
खर, कु
मारदास, व नाथ, सोमदे
व, गु
णाद , नारद,
लोमे
श, मै
थलीशरण गु त, के
शवदास, समथ रामदास, सं
त तुकडोजी महाराज आ द चार सौ से
अ धक क वय तथा
सं
त ने अलग-अलग भाषा म राम तथा रामायण केसरे पा केबारेम का /क वता क रचना क है ।

 वतमान म च लत ब त से राम-कथानक म आष रामायण, अ त ुरामायण, कृ वास रामायण, बलं का रामायण,


मैथल रामायण, सवाथ रामायण, त वाथ रामायण, ेम रामायण, सं
जीवनी रामायण, उ र रामच रतम्
, रघु
वं
शम्,
तमानाटकम्, क ब रामायण, भु
शुड रामायण, अ या म रामायण, राधेयाम रामायण, ीराघव च रतम् ,म
रामायण, योगवा श रामायण, हनुम ाटकम् , आनं
द रामायण, अ भषे
कनाटकम् , जानक हरणम्आ द मुय ह।

वदे
श म रामायण
 त बती रामायण

 पू
व तु
क तान क खोतानीरामायण

 इं
डोने
शया क कक बनरामायण

 जावा का से
रतराम, सै
रीराम, रामके
लग, पातानीरामकथा

 इ डोचायना क रामके
त (रामक त), खमै
ररामायण,

 बमा ( यां
मार) क यू
तोक रामयागन

 थाईलड क राम कये


भारतीय भाषा म रामायण


 कथा रामायण – अस मया

 कृ वास रामायण – बां


ला

 भावाथ रामायण - मराठ

 राम बाल कया – गु


जराती

 रामावतार या गो ब द रामायण - पं
जाबी (गुगो ब द सह ारा र चत)

 रामावतार च रत – क मीरी

 रामच रतम्
– मलयालम

 रामावतारम्
या कं
बरामायण - त मल

 मु
गल बादशाह अकबर ारा रामायण का फारसी अनु
वाद करवाया था। उसके
बाद हमीदाबानू
बे
गम, रहीम और
जहाँ
गीर ने
भी अपनेलये
रामायण का अनु वाद करवाया था।

 अकबर क स च रामायण वतमान समय म महाराजा सवाई मान सह तीय संहालय, जयपुर म है
। यह रामायण
ई.स. १५८४ से
१५८८ के
बीच तै
यार ए थ । इस रामायण क पा डु
ल प दौलताबाद कागज़ पर लीखी गई ह
जसके ३६५ पृह।
महाभारत
 ववरण 'महाभारत' भारत का अनु
पम, धा मक, पौरा णक, ऐ तहा सक और दाश नक

ं है। यह ह धम केमुयतम थ ं म से एक है। यह व का सबसे ल बा
सा ह यक थंहै।

 रच यता वे
द ास ले
खक भगवान गणे

 भाषा सं
कृत

 ोक संया(ल बाई)- 1,10,000 - 1,40,000

 मुय पा ीकृण, भी म, अजु न, ोण, कण, य धन, अ भम यु


, धृ
तरा , यु
ध र,
ौपद , शकु
न, कु

ती, गां
धारी, व र आ द।

 18 पव-

1. आ दपव- यह महाभारत जै सेवशाल थ क मू ल तावना है । ार भ म महाभारत


केपव और उनकेवषय का सं त संह है । कथा- वेश केबाद यवन का ज म,
पुलोमा दानव का भ म होना, जनमे
जय केसपस क सू चना, नाग का वं
श, क ूक ू
और वनता क कथा, दे व -दानव ारा समुमं थन, परी त का आ यान, सपस ,
राजा उप रचर का वृा त, ास आ द क उ प , य त-शकुतला क कथा, पुरवा,
न ष और यया त केच र का वणन, भी म का ज म और कौरव -पा डव क उ प ,
कण- ोण आ द का वृा त, पद क कथा, ला ागृ ह का वृा त, ह ड ब का वध और
ह ड बा का ववाह, बकासुर का वध, धृ ु
न और ौपद क उ प , ौपद - वयं वर
और ववाह, पा डव का ह तनापु र म आगमन, सुद-उपसु द क कथा, नयम भं ग के
कारण अजु न का वनवास, सुभ ाहरण और ववाह, खा डव-दहन और मयासु रर ण
क कथा व णत है ।

2. सभापव- सभा पव म मयासु


र ारा यु
ध र केलए सभाभवन का नमाण,
लोकपाल क भ - भ सभा का वणन, यु ध र ारा राजसू
य करनेका सं
क प
करना, जरास ध का वृा त तथा उसका वध, राजसू
य केलए अजु न आ द चार
पा डव क द वजय या ा, राजसूय य , शशु
पालवध, तु डा, यु
ध रक त ूम
हार और पा डव का वनगमन व णत है

3. वनपव- वन पव म पा डव का वनवास, भीमसे


न ारा कम र का वध, वन म ीकृण
का पा डव सेमलना, शा यवधोपा यान, पा डव का ै
तवन म जाना, ौपद और
भीम ारा यु ध र को उ सा हत करना, इ क लपवत पर अजु न क तप या, अजुन
का करातवे शधारी शंकर से यु, पाशु
पता क ा त, अजु न का इ लोक म जाना,
नल-दमय ती-आ यान, नाना तीथ क म हमा और यु ध र क तीथया ा, सौग धक
कमल-आहरण, जटासु र-वध, य सेयु, पा डव क अजु न वषयक च ता,
नवातकवच केसाथ अजु न का यु और नवातकवचसं हार, अजगर पधारी न ष
ारा भीम को पकड़ना, यु ध र से वातालाप केकारण न ष क सपयो न से मु ,
पा डव का का यकवन म नवास और माक डे य ऋ ष सेसंवाद, ौपद का स यभामा
सेसंवाद, घोषया ा के बहानेय धन आ द का ै तवन म जाना, ग धव ारा कौरव से
यु करके उ ह परा जत कर ब द बनाना, पा डव ारा ग धव को हटाकर य धना द
को छुड़ाना, य धन क लानी, जय थ ारा ौपद का हरण, भीम ारा जय थ को
ब द बनाना और यु ध र ारा छुड़ा दे
ना, रामोपा यान, प त ता क म हमा, सा व ी
स यवान क कथा, वासा क कुती ारा से वा और उनसे वर ा त, इ ारा कण से
कवच-कुडल ले ना, य -युध र-संवाद और अ त म अ ातवास केलए परामश का
वणन है।

4. वराटपव- वराट पव म अ ातवास क अव ध म वराट नगर म रहनेकेलए


गुतम णा, धौ य ारा उ चत आचरण का नदश, यु ध र ारा भावी काय म का
नदश, व भ नाम और प सेवराट केयहाँनवास, भीमसे न ारा जीमूत नामक
म ल तथा क चक और उपक चक का वध, य धन केगु तचर ारा पा डव क
खोज तथा लौटकर क चकवध क जानकारी दे ना, गत और कौरव ारा म य दे श
पर आ मण, कौरव ारा वराट क गाय का हरण, पा डव का कौरव-से ना सेयु,
अजु न ारा वशे ष प सेयु और कौरव क पराजय, अजु न और कुमार उ र का
लौटकर वराट क सभा म आना, वराट का यु
ध रा द पा डव सेप रचय तथा अजुन
ारा उ रा को पुवधू
के प म वीकार करना व णत है

5. उ ोगपव- उ ोग पव म वराट क सभा म पा डव प सेीकृण, बलराम, सा य क


का एक होना और यु केलए पद क सहायता से पा डव का युस जत होना,
कौरव क यु क तै यारी, पद केपुरो हत ला कौरव क सभा जाना और स दे श-
कथन, धृतरा का पा डव के यहाँसंजय को संदे
श देकर भे
जना, सं
जय का युध र से
वातालाप, धृ
तरा का व र से वातालाप, सन सुजात ारा धृ
तरा को उपदेश, धृ
तरा
क सभा म लौटेए सं जय तथा पा डव का स दे श-कथन, युध र केसेनाबल का
वणन, संजय ारा धृतरा को और धृ तरा ारा य धन को समझाना, पा डव से
परामश कर कृण ारा शा त ताव ले कर कौरव केपास जाना, य धन ारा
ीकृण को ब द बनाने का षडय करना, ग ड़गालवसं वाद, व लोपा यान, लौटे
ए ीकृण ारा कौरव को द ड दे नेका परामश, पा डव और कौरव ारा
सैय श वर क थापना और से नाप तय का चयन, य धन के त उलू क ारा स दे

ले
कर पा डव-सभा म जाना, दोन प क से ना का वणन, अ बोपा यान, भी म-
परशुराम का यु आ द वषय का वणन है । पां
डव का अ ातवास समा त हो गया। वे
कौरव से अपने अपमान का बदला ले
नेको तै
यार थे। अ भम युऔर उ रा केववाह
पर अनेक राजा उप थत ए। ीकृण केकहने पर वराट केराज-दरबार म आमंत
सभी राजा क सभा बु लाई गई ीकृण ने सभी को कौरव केअ याय क कथा
सु
नाई तथा पूछा क पां
डव अपनेराज ा त केलए य न कर या कौरव के अ याचार
सहते रह। महाराज पद ने पां
डव का समथन कया जब क बलराम ने उनका वरोध
कया। सबक सहम त सेय धन के पास त भेजने का न य कया गया।

6. भी मपव- भी म पव म कु ेम यु केलए स दोन प क से ना म


युस ब धी नयम का नणय, सं जय ारा धृ तरा को भूम का मह व बतलातेए
ज बू
ख ड के प का वणन, शाक प तथा रा , सू य और च मा का माण, दोन
प क से ना का आमने -सामने होना, अजु
न केयु- वषयक वषाद तथा ाहमोह
को र करने केलए उ ह उपदेश ( ीम गव ता), उभय प केयो ा म भीषण
यु तथा भी म केवध और शरश या पर ले टकर ाण याग केलए उ रायण क
ती ा करनेआ द का न पण है।

7. ोणपव- ोण पव म भी म केधराशायी होने


पर कण का आगमन और यु करना,
से
नाप त पद पर ोणाचाय का अ भषे क, ोणाचाय ारा भयं कर यु, अजु न का
सं
श तक से यु, ोणाचाय ारा च ह
ूका नमाण, अ भम युारा परा म और
ह म फँ
ू से ए अके लेन:श अ भम युका कौरव महार थय ारा वध,
षोडशराजक योपा यान, अ भम युकेवध से पा डव-प म शोक, संश तक केसाथ
यु करकेलौटे ए अजु न ारा जय थवध क त ा, कृण ारा सहयोग का
आ ासन, अजु न का ोणाचाय तथा कौरव-से
ना से
भयानक यु, अजु न ारा जय थ
का वध, दोन प केवीर यो ा केबीच भीषण रण, कण ारा घटो कच का वध,
धृ ु न ारा ोणाचाय का वध

8. आ मे
धकपव- आ मे
धक पव म 113 अ याय ह। आ मे
धक पव म मह ष ास
ारा अ मेध य करने केलए आव यक धन ा त करने का उपाय यु
ध र सेबताना
और य क तै यारी, अजुन ारा कृण सेगीता का वषय पू
छना, ी कृण ारा अनेक
आ यान रा अजु न का समाधान करना, ा णगीता का उपदेश, अ य आ या मक
बात, पा डव ारा द वजय करकेधन का आहरण, अ मे ध य क स प ता,
युध र ारा वै
णवधम वषयक और ीकृण ारा उसका समाधान आ द वषय
व णत ह।

9. महा ा था नकपव- महा ा था नक पव म मा 3 अ याय ह। इस पव म ौपद


स हत पा डव का महा थान व णत है
। वृण वं शय का ा करके , जाजन क
अनुम त ले
कर ौपद केसाथ यु ध र आ द पा डव महा थान करते ह, क तु
युध र केअ त र सबका देहपात माग म ही हो जाता है
। इ और धम सेयुध र
क बातचीत होती है
और यु
ध र को सशरीर वग मलता है ।

10. सौ तकपव- सौ तक पव म ऐषीक पव नामक मा एक ही उपपव है


। इसम 18
अ याय ह। अ थामा, कृ तवमा और कृ
पाचाय-कौरव प केशे ष इन तीन महार थय
का वन म व ाम, तीन क आगे केकाय केवषय म म णा, अ थामा ारा अपने
ूर न य से कृ
पाचाय और कृ तवमा को अवगत कराना, तीन का पा डव केश वर
क ओर थान, अ थामा ारा रा म पा डव केश वर म घु सकर सम त सोयेए
पां
चाल वीर का सं
हार, ौपद केपु का वध, ौपद का वलाप तथा ोणपुकेवध
का आ ह, भीम ारा अ थामा को मारने केलए थान करना और ीकृण अजु न
तथा युध र का भीम केपीछेजाना, गं गातट पर बै
ठेअ थामा को भीम ारा
ललकारना, अ थामा ारा ा का योग, अजु न ारा भी उस ा केनवारण
केलए ा का योग, ास क आ ा से अजुन ारा ा का उपशमन,
अ थामा क म ण ले ना और अ थामा का मानम दत होकर वन म थान आ द
वषय इस पव म व णत है ।

11. ीपव- ी पव म य धन क मृ युपर धृ


तरा का वलाप, सं जय और व र ारा
उ ह समझाना-बु झाना, पु
न: मह ष ास ारा उनको समझाना, य और जा के
साथ धृ तरा का यु भू म म जाना, ी कृण, पा डव और अ थामा से उनक भट,
शाप देने केलए उ त गा धारी को ास ारा समझाना, पा डव का कुती सेमलना,
ौपद , गा धारी आ द य का वलाप, ास के वरदान सेगा धारी ारा द से
यु म नहत अपने पु और अ य यो ा को दे खना तथा शोकातु र हो ोधवश शाप
दे
ना, युध र ारा मृ त यो ा का दाहसं कार और जलां ज लदान, कुती ारा अपने
गभ से कण क उ प का रह य बताना, यु ध र ारा कण केलए शोक कट करते
ए उसका ा कम करना और य केमन म रह य न छपने का शाप देना आ द
व णत है ।

12. शा तपव- शा त पव म 365 अ याय ह। शा त पव म यु क समा त पर यु


ध र
का शोकाकु
ल होकर प ाताप करना, ी कृण स हत सभी लोग ारा उ ह समझाना,
युध र का नगर वे श और रा या भषेक, सबकेसाथ पतामह भी म केपास जाना,
भी म के ारा ीकृण क तु त, भी म ारा युध र के का उ र तथा उ ह
राजधम, आप म और मो धम का उपदे श करना आ द व णत है। मो पव म सृ का
रह य तथा अ या म ान का वशे ष न पण है । शा त पव म “मङ्कगीता’’ (अ याय
177), “पराशरगीता” (अ याय 290-98) तथा “हं सगीता” (अ याय 299) भी है ।
शा तपव म धम, दशन, राजानी त और अ या म ान का वशद न पण कया गया
है

13. अनु
शासनपव- अनुशासन पव म कु ल मलाकर 168 अ याय ह। अनु शासन पव के
आर भ म 166 अ याय दान-धम पव केह। इस पव म भी भी म केसाथ यु ध र के
सं
वाद का सात य बना आ है। भी म युध र को नाना कार सेतप, धम और दान क
म हमा बतलातेह और अ त म यु ध र पतामह क अनु म त पाकर ह तनापु
र चले
जातेह। भी म वगारोहण पव म केवल 2 अ याय (167 और 168) ह। इसम भी म के
पास युध र का जाना, युध र क भी म से बात, भी म का ाण याग, यु
ध र ारा
उनका अ तम सं कार कए जाने का वणन है। इस अवसर पर वहाँउप थत लोग के
सामने गं
गा जी कट होती ह और पुकेलए शोक कट करने पर ी कृण उ ह
समझाते ह।

14. मौसलपव- मौसल पव म कोई उपपव नह है , और अ याय क संया भी के वल 8 है।


इस पव म ॠ ष-शापवश सा ब केउदर से मुसल क उ प तथा समु-तट पर चू ण
करकेफकेगये मुसलकण से उगेए सरक ड से यादव का आपस म लड़कर वन
हो जाना, बलराम और ी कृण का परमधाम-गमन और समु ारा ारकापु री को
डु
बो देनेका वणन है । यादव का नाश कृण कु ेकेयु केबाद ा रका चले आए
थे
। यादव-राजकु मार नेअधम का आचरण शु कर दया तथा म -मां स का सेवन भी
करने लगे। प रणाम यह आ क कृण के सामने ही यादव वं
शी राजकुमार आपस लड़
मरे। कृण का पुसा ब भी उनम से एक था। बलराम नेभासतीथ म जाकर समा ध
ली। कृण भी खी होकर भासतीथ चले गए, जहाँ उ ह ने
मृत बलराम को देखा। वे
एक पे ड़ केसहारे योग न ा म पड़ेरहे
। उसी समय जरा नाम केएक शकारी नेहरण
के म म एक तीर चला दया जो कृण केतलवे म लगा और कु छ ही ण म वे भी
परलोक सधार गए। उनकेपता वसु दे
व ने
भी सरे ही दन ाण याग दए। ह तनापु र
सेअजु न नेआकर ीकृण का ा कया। मणी, हे मवती आ द कृण क प नयाँ
सती हो ग । स यभामा और सरी सरी प नयाँ वन म तप या करने चली ग ।

15. कणपव-कण पव केअ तगत कोई उपपव नह हैऔर अ याय क संया 96 है। इस
पव म ोणाचाय क मृ
युकेप ात्कौरव से
नाप त केपद पर कण का अ भषे
क, कण
केसेनाप त व म कौरव सेना ारा भीषण यु, पा डव के परा म, श य ारा कण का
सार थ बनना, अजुन ारा कौरव सेना का भीषण सं
हार, कण और अजु न का यु, कण
केरथ केप हये का पृवी म धँसना, अजुन ारा कणवध, कौरव का शोक, श य ारा
य धन को सा वना देना आ द व णत है।

16. श यपव- श य पव म कण क मृ
युकेप ात्
कृपाचाय ारा स ध केलए य धन
को समझाना, सेनाप त पद पर श य का अ भषेक, म राज श य का अदभु त परा म,
युध र ारा श य और उनके भाई का वध, सहदे
व ारा शकु न का वध, बची ई से
ना
केसाथ य धन का पलायन, य धन का द म वे श, ाध ारा जानकारी मलने पर
युध र का द पर जाना, यु ध र का य धन से सं
वाद, ीकृण और बलराम का भी
वहाँप चँना, य धन केसाथ भीम का वा यु और गदा यु और य धन का
धराशायी होना, ु बलराम को ी कृण ारा समझाया जाना, य धन का वलाप
और सेनाप त पद पर अ थामा का अ भषे क आ द व णत है।

17. वगारोहणपव- वगारोहण पव म कु


ल 5 अ याय ह। इस पव केअ त म महाभारत
क वण व ध तथा महाभारत का माहा य व णत है । इस पव के थम अ याय म वग
म नारद केसाथ युध र का सं वाद और तीय अ याय म दे व त ारा युध र को
नरकदशन और वहाँ भाइय क चीख-पु कार सु
नकर यु ध र का वह रहने का न य
व णत है। तृ
तीय अ याय म इ और धम ारा यु ध र को सां वना दान क जाती
है
।युध र शरीर यागकर वगलोक चले जातेह। चतुथ अ याय म यु ध र द लोक
म ी कृण और अजु न सेमलते ह। पं
चम अ याय म वह भी म आ द वजन भी
अपने पू
व व प म मलते ह। त प ात्महाभारत का उपसं हार व णत है

18. आ मवा सकपव- आ मवा सक पव म कु


ल मलाकर 39 अ याय ह।
आ मवा सक पव म भाइय समे त युध र और कुती ारा धृ तरा तथा गा धारी क
से
वा, ास जी केसमझाने पर धृ
तरा ,गा धारी और कुती को वन म जाने
दे
ना, वहाँ
जाकर इन तीन का ॠ षय केआ म म नवास करना, मह ष ास के भाव से यु
म मारे
गयेवीर का परलोक से आना और वजन सेमलकर अ य हो जाना, नारद
केमुख सेधृ
तरा , गा धारी और कुती का दावानल म जलकर भ म हो जाना सु नकर
युध र का वलाप और उनक अ थय का गं गा म वसजन करके ा कम करना
आ द व णत है।

महाभारत सव थम महामु
न ास क रचना के प म स है । महामु न ास से ले
कर
अब तक अनेक ले
खक ारा अनेक प म महाभारत क रचना होती रही है
। यह व भ
भाषा तथा सा ह य केव भ प का , महाका , नाटक, च पू आ द के प म
र चत होते
रहा है

जै
न सं
करण

बृ
हद पां
डवपु
राण - शु
भच

पां
डवपु
राण - वा दच

पां
डवच रत - दे
व भा सू

ह रवं
श पु
राण (जै
न) - जनसे

ष शलाकापुष जै
न महाभारत - हे
मच ाचाय

बालभारतका - अमरचं

सं
कृत नाटक

अ भ ानशाकुतल - का लदास

व मोवशीय - का लदास

कणभार - भास

ऊ भं
ग - भास

तवा य - भास

तघटो कच - भास

पां
चरा - भास

म यम ायोग - भास

बालच र - भास

वे
णीसं
हार - नारायण भ

बालभारत - राजशे
खर

तपतीसं
वरण - कु
लशे
खर वमा

क याणसौगं
धक - नीलकं

नै
षधान द - म
ेी र

हरके
ल - व हराज

नल वलास - रामच सू

नभयभीम - रामच सू

यादवा यु
दय - रामच सू

वनमाला - रामच सू

पाथपरा म - ादनदे

धनं
जय वजय - कां
चनाचाय

यया तच रत - दे

करातजनीय - व सराज

पु
रदाह - व सराज

समुमं
थन - व सराज

क णाव ायु
घ - बालचंसू

ौपद वयं
वर - वजयपाल

सौग धकाहरण - व नाथ

भीम व म - मो ा द य

सु
भ ाजु
न - के
शवशा ी

सु
भ ाधनं
जय - गुराम

सु
भ ाहरण - माधवभ

सु
भ ाधनं
जय - कु
लशे
खर वमा

सु
भ ाना टका - ह तम ल

सु
भ ाप रणय - न लाक व
सु
भ ाप रणय - रधु
नाथाचाय

सु
भ ाप रणय - वे
कं
टा वरी

सु
भ ाप रणय - रामदे
व ास

पा डवा यु
दय - रामदे
व ास

क चकभीम

च भारत - े
मे

पा डवा यु
दय

पाथ वजय - लोचन

मु
कु
टता डतक - बाण

व ध वल सत

वल य धन

श म ाप रणय

नल वजय

पयो धमं
थन

भीम वजय

श म ायया त

यया तदे
वयानीच रत

पां
डव वजय अथवा सभापवनाटक - जयरणम ल दे

व यात वजय - ल मणमा ण य दे


नलच रत - बालक व

सं
कृत का

नलानय - मा ण य वजयसू

सु
भ ाहरण - नारायण

कराताजु
नीयम्
- भार व

शशु
पालवघ - माघ

यु
ध र वजय - वासु
दे

भारतमं
जरी - े
मे

नै
षधीयमहाका - हष

स दयानं
द - कृणानं

उ रनै
षधीय - वं
दा भ

क याणनै
षध

राघवपां
डवीय

यादवराघवपां
डवीय - अनं
ताचाय

नलह र ं

राघवनै
षधीय - हरद

नरनारायणानं
द - व तु
पाल

बालभारत - अग य

नलक तकौमु
द - अग य

नला यु
दय - वामनभ बाण

पा डवा यु
दय का - शवसू

भारतच पू
- राजचू
डाम ण द त

सु
भ ाजु
नका - नीलकं

ौपद प रणय - च क व

एक दन बं
ध - सू
यनारायण
पा डवच रत - अ ात

राजसू
य - नारायणीयम्

पां
चाली वयं
वर - नारायणीयम्

ौपद प रणय - नारायणीयम्

करात - नारायणीयम्

भारतयु - नारायणीयम्

वगारोहण - नारायणीयम्

यमकभारत - माधव आचाय

त णभारतका

अ भनवभारत - नर पामंी

पां
डव वजय - हे
मच राय क वभू
षण

व मभारत - ी वर वघालं
कार

भारतोदय - च भानु

क चकवघम्
- नी तवमन

नलोदयका

ौपद क याण - न थल वकटेर

नलच पू
- व म

भारतच पूतलक - ल मण

बकवघ

कु
मारा यु
दय

पं
चेोप यान

कु
मार वजय - भा कर
नयनीदशन

अ य भारतीय भाषा म महाभारत

आसाम के अने
क क वय नेरा या य मे महाभारत का आसामी अनु
वाद कया था। इ ह ने
महाभारत मे
अने
क प रवतन भी कयेथे।

राम सर वती - असमी महाभारत

गोपीनाथ पाठक - ोणपव, सभापव, वगारोहणपव का आसामी पु


नःकथन

दामोदरदास - श यपव

वघा पं
चानन - भी मपव, कणपव

राम म ा - भी मपव

दामोदर ज - श यपव

ीनाथ ज - आ दपव, ौपद वयं


वर, ोणपव

क वशे
खर - ोणपव

क वराज ज - ोणपव, भी मपव

ल मीनाथ ज - शां
तपव

पृ
थरु
ाम ज - मौसु
लपव, महा थानपव, वगारोहणपव

सागर खरी - कू
मावलीवघ

क वराज म ा - गदापव

गा साद - सौ तकपव

गं
गादास - अ मे
धपव

शू राय - जै
मनी अ मे

बां
ला

काशीराम दास - आ द, सभा, वन और वराटपव का पु


नःकथन
रामच खान - जै
मनी अ मे
ध का पु
नःकथन

रधु
नाथ - अ मे
ध का पु
नःकथन

बाङ्
ला महाभारत - क व सं
जय

मलयालम

भारतम पाटु
- अय ा पल

महाभारथम क लीपाटु
- इथु
ताचन

न यानीच रत - कु

चान नामबाइर

भारतगाथा - पोनाथील शं
कर

भारतमाला - शं
कर

ओ डया

सारलादास - महाभारत का पु
नःकथन

मोहन से
नाप त - महाभारत का पु
नःकथन

गु
जराती

भील भारत - गु
जरात के
डूं
गरी के
भीलो क महाभारत

पद चउपइ - रं
ग वमल

पद चतु
पद - कनककु
शल

नला यान - भालण

वासा आ यान - भालण

नला यान - नाकर

नला यान - े
मानं

महाभारत - े
मानं

चंहास आ यान - े
मानं

ऋष ृ
ग आ यान - े
ं मानं

ौपद वयं
वर - े
मानं

मां
धाता आ यान - े
मानं

भगव ता - े
मानं

ौपद हरण - े
मानं

सु
भ ाहरण - े
मानं

अ ाव आ यान - े
मानं

पां
चाली स ा यान नाटक - े
मानं

तप या यान नाटक - े
मानं

ःशासन घरा यान - व लभ[8]

य ो र - व लभ

कु

ती स ा यान - व लभ

कृण व ी - व लभ

यु
ध रवृ
कोदर आ यान - व लभ

शशु
पालवघ - र नेर

ौपद व ाहरण - शामलभ

अ भनव ऊझं
णु
- दे
हल क व

सु
भ ाहरण - घरता क व

ौपद वयं
वर - शवदास

पां
डव व - सु
रजी

अ भम यु
आ यान - तापीदास

नलदमयं
तीरास - महीराज
नलदमयं
तीरास - नयसु

ंर

नलदमयं
तीरास - मे
धराज

नलकथा - समयसु

ंर

ब व
ुाहन आ यान - हरीदास

नलकथा - तु
लसीपुवै
कु

अ भम यु
आ यान - नाकर

कण आ यान - नाकर

कृण व ी - नाकर

चंहासा यान - नाकर

सु
ध वा यान - नाकर

मोर वज आ यान - नाकर

वीरवमा आ यान - नाकर

व रनी वनं
ती - नाकर

आ दपव - नाकर, काशीसु


त, व णु
दास, शवदास

वनपव - नाकर, व णु
दास, अ वचलदास

वराटपव - नाकर, व णु
दास, काशीसु
त, शालीसू

उघोगपव - व णु
दास, भाऊ, भाईयासु

भी मपव - व णु
दास, जसो, वै
कु

ौणपव - व णु
दास, भाऊ

कणपव - व णु
दास, वै
कु

ठ, भाऊ, नाकर

श यपव - व णु
दास, वै
कु

ठ, नाकर

सौ तकपव - व णु
दास, नाकर
ीपव - व णु
दास, नाकर

मौसु
लपव - व णु
दास, शवदास

महा थानपव - व णु
दास

वगारोहणपव - व णु
दास, सू
रभ
शल प दकारम

 सबसे
पहला जै
न त मल महाका ।

 इलं
गो आ दगल एक जै न संत, एक चेर राजकु
मार और एक क व थे
। उ ह पारं
प रक
प सेत मल सा ह य केपांच महान महाका म से एक- सल प तकरम केले खक
के प म ेय दया जाता है

 पां
च त मल महाका -

 शल प दकारम (5 व या 6 व शता द ) म लखा गया।

 म णमे कलई (6ठ शता द ) - यह एक "एंट -लव टोरी" है


। यह शुआती त मल
महाका सल पा दकारम म " ेम कहानी" क अगली कड़ी है , जसम इसकेकुछ
च र और उनक अगली पीढ़ है । म णमे
कलाई शीषक कोवलन और माधवी क बे ट
का नाम भी है
, जो एक नतक और बौ नन ( भकु नी) के प म अपनी मां के
न शेकदम पर चलती है

 सीवाका सतामनी - 10 व शता द क शुआत म म रैकेएक जै न तप वी


त कटवर ारा ल खत, महाका एक राजकु मार क अलौ कक फंतासी कहानी
है
जो सभी प नय , सं
पू
ण यो ा और कई प नय केसाथ पू
ण ेमी का आदश गुहै।

 वेलाप त (10 व शता द क शुआत म वै यापुरी प लई ारा) - महाका एक


वदे
शी ापा रक वसाय केसाथ एक ापारी क कहानी तीत होती है , जसने दो
म हला से शाद क थी। उसने एक को छोड़ दया, जो बाद म अपने बे
टे को ज म
दे
ती है
। सरी प नी के साथ उसके ब चेभी ह। प र य पुको अपनेपता का नाम न
जानने केलए वदे शी ब च ारा तं ग कया जाता है । उसक माँतब पता केनाम का
खुलासा करती है। बे
टा या ा करता हैऔर अपनेपता का सामना करता है , जो पहले
उसेवीकार करने सेमना कर देता है
। फर, एक देवी क सहायता से, वह अपनी माँको
लाता हैजसक उप थ त उसकेदावे को सा बत करती है । पता लड़केको वीकार
करता है, और उसे अपना खुद का ापारी वसाय शु करने म मदद करता है ।

 कु
ंतलकेशी (घु
घराले
ं बाल वाली म हला) जसे कु

तलक व म भी कहा जाता है , एक
त मल बौ महाका है , जो नाथकुनार ारा लखा गया है
, सं
भवत: 10 व शता द
म।

 यह लगभग पू
री तरह से
अकावल (ए क रयम) मीटर (एकालाप) म 5,730 पं य क
क वता है

 महाका एक साधारण यु
गल, क क और उसकेप त कोवलन क एक खद े

कहानी है

 त मल चारण परंपरा म सल पा थकारम क अ धक ाचीन जड़ ह, क क और


कहानी केअ य पा का उ लेख संगम सा ह य म कया जाता है
जैसेक नरनई और
बाद म कोवलम कटई जैसेथ
ं म।

 कहानी-

क णगी-कोवलन: त मलनाडु
लोक-कथा

(क णगी-कोवलन क कथा " शल प दकारम" ("पायल क कथा") का म व णत है । ये


का सं गम काल म, लगभग २००० वष पहले , पहली सद म एक जै न राजकु
मार "इलां
गो
अ डगल" के ारा लखा गया था। इस का क गणना त मल सा ह य के५ सबसे बड़े
महाका म क जाती है । अ य ४ का ह म णमे कलाई (५ वी सद ), कुडलके च (५ वी
सद ), वलयाप त (९ वी सद ) तथा शवका चताम ण (१० वी सद )।)

ाचीन काल म चोला रा य केबंदरगाह पु


हार म एक धनी ापारी रहता था जसका नाम
था माकटु
वन। उसका एक पुथा कोवलन जसका ववाह पु हार केही नवासी एक अ य
धनी ापारी मना यकन क पुी क णगी सेआ। ारं भ के
कुछ वष उ ह नेबड़ेे म और
स ता सेबताये । एक समय कोवलन पु हार क व यात नतक माधवी का नृ य दे
खने
गया और उसकेस दय पर मु ध हो गया। उसने माधवी केलए १००० वण मुा का
शु क चु
काया और उसकेसाथ सु ख से रहने लगा। उसक प नी प त ता क णगी ने उसे
कई बार वापस आने को कहा क तु माधवी केमोहजाल म फँ सा कोवलन वापस नह
लौटा।

माधवी सेउसेम णमे कलाई नामक एक पु ा त आ जो सरेत मल महाका


"म णमेकलाई" का मुय नायक है । ३ वष तक कोवलन माधवी केसाथ भोग- वलास म
ल त रहा और जब उसका सम त धन समा त हो गया, उसे अपनी गलती का अहसास आ
और वो माधवी को याग कर वापस क णगी केपास लौट आया। इससे थत होकर
माधवी अपना पूरा धन लेकर कोवलन केपास आयी और उसे वापस चलनेका अनुरोध
कया क तु कोवलन ने वापस जानेसे मना कर दया। इ तहास बतातेह क माधवी उसके
प ात कई वष तक एकाक रही और उसकेप ात उसने बौ धम अपना लया और
स यासन बन गयी।
उधर कोवलन का सारा धन समा त हो चु का था इसी कारण उसने म रई जाकर नया
वसाय करने का न य कया। अपनी भाया क णगी को ले कर वो म रई क ओर चल
पड़ा। माग म उसक भट एक वृ सा वी सेई और उसी के मागदशन म तीन अ यंतक
सहतेए म रई नगर प च ँ।ेवहाँप च
ँनेपर कोवलन और क णगी ने सा वी से
भरे
मन से
वदा ली और एक वाले केघर म शरण ली। अगलेदन क णगी ने कोवलन को अपने एक
पै
र का र न सेभरा पायल दया और उससे कहा क इस पायल को बेच कर कुछ वण ले
आये और अपना वसाय ार भ करे ।

उसक पायल ले कर कोवलन नगर म चला गया और वहाँ प ँच कर राजक य जौहरी को


उसने पायल दखाया और कहा क वो उसे बेचना चाहता है
। उस नगर क रानी केपास
बलकु ल उसी कार क पायल थी जो चोरी हो गयी थी। जौहरी ने समझा क ये वही चोरी
कया पायल है और इसक खबर उसने वहाँकेराजा "ने
डुं
जे लयन" को द । ने
डुं
जेलयन
अपनेयाय केलए स था और उसने कभी भी कसी केसाथ भी अ याय नह कया
था। उसने अपनेसै नक को आदे श दया क जाकर दे खे और अगर उस केपास
रानी का पायल मले तो उसेमृयु-दं
ड दे
कर वो पायल वापस ले आएं । सैनक नेजब इतना
क मती पायल कोवलन केपास दे खा तो राजा क आ ा केअनु सार उ ह नेबना कोवलन
का प सु नेउसका वध कर दया और वो पायल ले कर वापस राजा को स प दया जसे
राजा नेअपनी रानी को देदया।

जब कोवलन क मृ युका समाचार क णगी को मला तो वो ोध म राजा केभवन प च ँी


और उसेध कारतेए कहा क "हे नराधम! तूनेबना स य जाने मेरेप त को मृयु दं

दया। कस आधार पर तू अपने आप को याय य कहता है ?" इसपर राजा ने कहा "हेभ े!
मेरे
रा य म चोर को मृयुदं
ड दे
ने का ही ावधान है। तु
म कस कार कहती हो क तु हारा
प त चोर नह था। उसकेपास मे री प नी केपायल ा त ए। या तु हारेपास कोई माण
हैक वो पायल उसने नह चु
राया?" क णगी नेो धत वर म कहा "रे मु
ख! वो पायल मेरी
थी जसे मनेअपने प त को बेचने को दया था।" ऐसा कहकर उसने अपना सरा पायल
राजा को दखाया। राजा नेघबराकर रानी से उस पायल को मँ गवाया। यान से दे
खने पर
पता चला क वो पायल क णगी केपायल से ही मलता था, रानी केपायल से नह । रानी
केपायल म मोती भरे थेजब क क ागी का पायल र न से भरा था। राजा को अपनी भू ल
का पता चला और मारे शम और ःख के उसनेक णगी के सम ही आ मह या कर ली।
इतनेपर भी क णगी का ोध काम नह आ और उसने अ यंत ो धत हो कहा "हेदेवता!
अगर मने कभी मन और वचन से कोवलन केअ त र और कसी का यान ना कया हो
और अगर म वा तव म प त ता ँ , तो त काल ा हण , बालक-बा लका और प त ता
य को छोड़ कर पू रा नगर भ म हो जाये।" ऐसा कहतेए उसने अपने हाथ म पड़े
पायल को भू म पर पटका जससेचं ड अ न उ प ई और दे खतेही दे
खते पूरा म रई
नगर जलकर भ म हो गया। म रई नगर केभ म होने केबाद भी जब वो अ न शां त नह
ई तो वयं दे
वी मीना ी (द ण भारत म इ हे दे
वी पावती का प माना जाता है) कट
ई और उ ह नेक णगी का ोध शां त कया।

सती क णगी को द ण भारत, वषे कर त मलनाडु म देवी के प म पू जा जाता हैऔर


उसे "क णगी-अ मा" केनाम सेजाना जाता है
। पुहार और म रई म इनक गणना दे वी
मीना ी केअवतार के प म भी क जाती है
। यही नह , ीलंका म भी इनक बड़ी मा यता
है
। येकथा प त ता ी केसती व केबल को द शत करती है । सती अनुसूया केसामान
ही दे
वी क णगी चर-काल तक पूय

ⓘ शल प दकारम

शल पा दकारम को त मल सा ह य के थम महाका के प म जाना जाता है । इसका


शा दक अथ है पु
- "नूर क कहानी"। इस महाका क रचना चे र वं
श केशासक से न
गु टु
वन केभाई इलांगो आ दगल ने लगभग ईसा क सरी-तीसरी शता द म क थी।
शल पा दकारम क स पू ण कथा नुपू
र केचार ओर घू मती है
। इस महाका केनायक
और ना यका कोवलन और क णगी ह। यह महाका ‘पु हार कांडम’, मदरैकां
डम और
वंज कांडम तीन भाग म वभा जत है । इन तीन भाग म मशः चोल, पा , और चेर
रा य का वणन है। महाका म क व ने त कालीन त मल समाज का सजीव च तु

करने केसाथ-साथ समाज म च लत नृ य , वसाय आ द का भी प रचय दया है ।

सं
गम सा ह य सं
गम यु

शल पा दकारम को त मल सा ह य के थम महाका के प म जाना जाता है


। इसका
शा दक अथ है नू
पु
र क कहानी। इस महाका क रचना चे
र वं
श के
शासक से न गुटु
वन
केभाई इलांगो आ दगल नेलगभग ईसा क सरी तीसरी शता द म क थी।
शल पा दकारम को त मल सा ह य के थम महाका के प म जाना जाता है
। इसका
शा दक अथ है
नू
पु
र क कहानी।

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