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राघवयादवीयम ् राम$तो'ा(ण

अनुलोम 2वलोम
(राम कथा) (कृ4ण कथा)
वंदेऽहं दे वं तं 9ीतं र:तारं कालं भासा यः । सेवाDयेयो रामालालC गोAयाराधी मारामोराः ।
रामः रामाधीः आAयागः लCलाम ् आर अयोDये वासे ॥ १॥ य$साभालंकारं तारं तं 9ीतं व:दे ऽहं दे वम ् ॥ १॥

मG उन भगवान 9ीराम के चरणJ मK Lणाम करता हूं िज:हJने मG भगवान 9ीकृ4ण - तप$वी व Qयागी, ^ि_मणी तथा गो2पयJ संग
अपनी पQनी सीता के संधान मK मलय और सहयाSC कT `Tड़ारत, गो2पयJ के पूaय - के चरणJ मK Lणाम करता हूं िजनके
पहाUड़यJ से होते हुए लंका जाकर रावण का वध Xकया तथा bदय मK मां लcमी 2वराजमान हG तथा जो शुe आभूषणJ से मंUडत
अयोDया वापस लौट दCघ[ काल तक सीता संग वैभव 2वलास हG.
संग वास Xकया ।
साकेताiया aयायामासीत ् या 2वLादCAता आया[धारा । वाराशावासाlया साkवा2वjयावादे ताजीरा पःू ।
पूः आजीत अदे वाjया2वkवासा अlया सावाशारावा ॥ २॥ राधाय[Aता दCLा 2वjयासीमा या aयाiयाता के सा ॥ २॥

पn
ृ वी पर साकेत, याoन अयोDया, नामक एक शहर था जो वेदJ समुS के मDय मK अवि$थत, 2वkव के $मरणीय शहरJ मK एक,
मK oनपण
ु pाqमणJ तथा व(णको के rलए Lrसjद था एवं अजा jवारका शहर था जहाँ अनwगनत हाथी-घोड़े थे, जो अनेकJ 2वjवानJ
के पु' दशरथ का धाम था जहाँ होने वाले यtJ मK अप[ण को के वाद-2ववाद कT Loतयोwगता $थलC थी, जहाँ राधा$वामी 9ीकृ4ण
$वीकार करने के rलए दे वता भी सदा आतुर रहते थे और यह का oनवास था, एवं आDयािQमक tान का Lrसjद कKS था.
2वkव के सवuvम शहरJ मK एक था.

कामभार$$थलसार9ीसौधा असौ घ:वा2पका । भxू रभस


ू रु कागारासना पीवरसारसा ।
सारसारवपीना सरागाकारसुभूरxरभूः ॥ ३॥ का अ2प व अनघसौध असौ 9ीरसाल$थभामका ॥ ३॥

सव[कामनापूरक, भवन-बहुल, वैभवशालC धoनकJ का oनवास, मकानJ मK oनrम[त पज


ू ा वेदC के चंहुओर pाqमणJ का जमावड़ा इस
सारस प{|यJ के कूँ-कूँ से गंज
ु ायमान, गहरे कुओं से भरा, बड़े कमलJ वाले नगर, jवारका, मK है . oनम[ल भवनJ वाले इस नगर
$व(ण[म यह अयोDया शहर था. मK ऊंचे आ‚व|
ृ J के ऊपर सय
ू [ कT छटा oनखर रहC है .

रामधाम समानेनम ् आगोरोधनम ् आस ताम ् । यादवेनः तु भाराता संरर| महामनाः ।


नामहाम ् अ|ररसं ताराभाः तु न वेद या ॥ ४॥ तां सः मानधरः गोमान ् अनेमासमधामराः ॥ ४॥

राम कT अलौXकक आभा - जो सय


ू त
[ †
ु य है , िजससे सम$त यादवJ के सय
ू ,[ सबJ को Lकाश दे ने वाले, 2वन‚, दयाल,ु गऊओं के
पापJ का नाश होता है – से पूरा नगर Lकाrशत था. उQसवJ मK $वामी, अतुल शि_तशालC के 9ीकृ4ण jवारा jवारका कT र|ा
कमी ना रखने वाला यह नगर, अन:त सख
ु J का 9ोत तथा भलCभांoत कT जाती थी.
तारJ कT आभा से अनrभt था (ऊंचे भवन व व|
ृ J के कारण).
यन ् गाधेयः योगी रागी वैताने सौ‡ये सौiये असौ । तं 'ाता हा 9ीमान ् आम अभीतं $फTतं शीतं iयातं ।
तं iयातं शीतं $फTतं भीमान ् आम अ9ीहाता 'ातम ् ॥ ५॥ सौiये सौ‡ये असौ नेता वै गीरागी यः योधे गायन ॥ ५॥

गाधीपु' गाधेय, यानी ऋ2ष 2वkवाrम', एक oन2व[‹न, सख


ु ी, नारद मुoन – दै दCAयमान, अपनी संगीत से योjधाओं मK शि_त
आनददायक यt करने को इ|ुक थे पर आसुरC शि_तयJ से संचारक, 'ाता, सjगुणJ से भरपरू , pाहमणJ के नेतQृ वकता[ के ^प
आ`ा:त थे; उ:हJने शांत, शीतल, गxरमामय 'ाता राम का मK 2वiयात – ने 2वkव के क†याण के rलए गायन करते हुए
संर|ण LाAत Xकया था. 9ीकृ4ण से याचना कT िजनकT iयाoत मK वj
ृ wध एक दयावान, शांत
परोपकार को इ|ुक, के ^प मK ŽदनोŽदन हो रहC थी.

मारमं सक
ु ु माराभं रसाज आप नत
ृ ाw9तं । तेन रातम ् अवाम अस गोपालात ् अमरा2वक ।
का2वरामदलाप गोसम अवामतरा नते ॥ ६॥ तं w9त नप
ृ जा सारभं रामा कुसुमं रमा ॥ ६॥

लcमीपoत नारायण के सु:दर सलोने, तेज$वी मानव अवतार नारद jवारा लाए गए, दे वताओं के र|क, oनज पoत के ^प मK
राम का वरण, रसाजा (भrू मप'
ु ी) - धरात†
ु य धैयश
[ ील, oनज LाAत, सQयवादC कृ4ण, के jवारा Lे2षत, तQवतः (वा$तव मK)
वाणी से असीम आन:द Lदाता, सुwध सQयवादC सीता – ने उaजवल पाxरजात पु4प को नप
ृ जा (नरे श-पु'ी) रमा (’ि_मणी) ने
Xकया था. LाAत Xकया.

रामनामा सदा खेदभावे दयावान ् अतापीनतेजाः xरपौ आनते । मे’भूजे'गा काणुरे गोसुमे सा अरसा भा$वता हा सदा मोŽदका ।
काŽदमोदासहाता $वभासा रसामे सग
ु ः रे णक
ु ागा'जे भ’
ू मे ॥ ७॥ तेन वा पाxरजातेन पीता नवा यादवे अभात ् अखेदा समानामर ॥ ७॥

9ी राम - दःु (खयJ के Loत सदै व दयालु, सूय[ कT तरह अपराजेय मे’ (सुमे’) पव[त से भी सु:दर रै वतक पव[त पर oनवास
तेज$वी मगर सहज LाAय, दे वताओं के सख
ु मK 2व‹न डालने करते समय ’ि_मणी को $व(ण[म चमकTले पाxरजात पु4पJ कT
वाले रा|सJ के 2वनाशक - अपने बैरC - सम$त भूrम के LािAत उपरांत धरती के अ:य प4ु प कम सुगि:धत, अ2Lय लगने
2वजेता, eमणशील रे णक
ु ा-प'
ु परशरु ाम - को परािजत कर लगे. उ:हK कृ4ण कT संगत मK ओज$वी, नवकलेवर, दै वीय ^प
अपने तेज-Lताप से शीतल शांत Xकया था. LाAत करने कT अनभ
ु ूoत होने लगी.

सारसासमधात अ{|भू‡ना धामसु सीतया । हारसारसुमा र‡य|ेमेर इह 2वसाDवसा ।


साधु असौ इह रे मे |ेमे अरम ् आसरु सारहा ॥ ८॥ य अतसीसम
ु धा‡ना भ{ू |ता धाम ससार सा ॥ ८॥

सम$त आसुरC सेना के 2वनाशक, सौ‡यता के 2वपरCत अपने गले मK मोoतयJ के हार जैसे पाxरजात पु4पJ को धारण Xकए
LभावशालC ने'धारC र|क राम अपने अयोDया oनवास मK सीता हुए, Lस:नता व परोपकार कT अwध4ठा'ी, oनभ—क ’ि_मणी, आतशी
संग सानंद रह रहे है थे. पु4पधारC कृ4ण संग oनज गह
ृ को L$थान कर गयी.

सागसा भरताय इभमाभाता म:यम


ु vया । सारतागwधया तापोपेता या मDयम'सा ।
स अ' मDयमय तापे पोताय अwधगता रसा ॥ ९॥ याvम:युमता भामा भयेता रभसागसा ॥ ९॥

पाप से पxरपूण[ कैकेयी पु' भरत के rलए `ोधाि™न से पागल सूcमकŽट (पतले कमर वालC), अoत 2वदष
ु ी, सQयभामा कृ4ण
तप रहC थी. लcमी कT काि:त से उaजवrलत धरती (अयोDया) jवारा उतावलेपन मK भेदभावपव
ू क
[ पाxरजात प4ु प ’ि_मणी को
को उस मDयमा (मझलC पQनी) ने पापी 2वwध से भरत के दे ने से आहत होकर `ोध और घण
ृ ा से भर गई.
rलए ले rलया.
तानवात ् अपका उमाभा रामे काननद आस सा । हह दाहमयी केकैकावासेjधवत
ृ ालया ।
या लता अवj
ृ धसेवाका कैकेयी महद अहह ॥ १०॥ सा सदाननका आमेरा भामा कोपदवानता ॥ १०॥

|ीणता के कारण, लता जैसी बनी, पीतवण—, सम$त आन:दJ सुमुखी (सु:दर चहरे वालC) सQयभामा, अQयंत 2वचrलत और अशांत
से परे कैकेयी, राम के वनगमन का कारण बन, उनके होकर दावाि™न (जंगल कT आग) कT तरह `ोध से लाल हो अपने
अrभषेक को अ$वीकारते हुए, वj
ृ ध राजा कT सेवा से 2वमुख भवन, जो मयूरJ का वास और `Tडा$थल था, उनके कपाटJ को
हो गयी. बंद कर Žदया ताXक से2वकाओं का Lवेश अव’jध हो जाए.

वरमानदसQयासbCत2प'ादरात ् अहो । सौ‡यगानवरारोहापरः धीरः ि$$थर$वभाः ।


भा$वरः ि$थरधीरः अपहारोराः वनगामी असौ ॥ ११॥ हो दरात ् अ' आ2पतbC सQयासदनम ् आर वा ॥ ११॥

2वन‚, आदरणीय, सQय के Qयाग से और वचन पालन ना संगीत कT धनी, याoन सQयभामा, के Loत सम2प[त Lभु (कृ4ण) –
करने से लिaजत होने वाले, 2पता के स‡मान मK अjभुत राम वीर, žढ़wचv – कदाwचत भय व लaजा से आ`ांत हो सQयभामा के
– तेजोमय, म_
ु ताहारधारC, वीर, साहसी - वन को L$थान oनवास पंहुचे.
Xकए.

या नयानघधीतादा रसायाः तनया दवे । भान ् अलोXक न पाता सः bCता या 2वŽहतागसा ।


सा गता Žह 2वयाता bCसतापा न Xकल ऊनाभा ॥ १२॥ वेदयानः तया सारदात धीघनया अनया ॥ १२॥

अपने शरणागतJ को शा$'ोwचत सjबुjwध दे ने वालC, धरती तेज$वी र|क कृ4ण - वैभवदाता, िजनका वाहन ग’ड़ है – उनकT
पु'ी सीता, इस लaजाजनक काय[ से आहत, अपनी काि:त को ओर, गूढ़ tान से पxरपूण[ सQयभामा ने अपने को नीचा Žदखाने से
बना गँवाए, वन गमन का साहस कर ग¡. अपमाoनत, (’ि_मणी को पु4प दे ने से) दे खा हC नहCं.

राwगराधoु तगवा[दारदाहः महसा हह । नो Žह गाम ् अदसीयामाजत ् व आरभत गा; न या ।


यान ् अगात भरjवाजम ् आयासी दमगाŽहनः ॥ १३॥ हह सा आह महोदारदावा[गoतधुरा wगरा ॥ १३॥

तामसी, उपSवी, द‡भी, अoनयं 'त श'ुदल को अपने तेज से सQयभामा, अदासी पु4पधारC कृ4ण, के श¢दJ पर ना तो Dयान हC
दहन करने वाले शूरवीर राम के oनकट, भारjवाज आŽद संयमी दC ना तो कुछ बोलC जब तक Xक कृ4ण ने पाxरजात व|
ृ को लाने
ऋ2ष, थकान से _लांत पँहुच याचना कT. का संक†प ना rलया.

यातुरािजदभाभारं jयां व मा’तग:धगम ् । या'या घनभः गातुं |यदं परमागसः ।


सः अगम ् आर पदं य|तुंगाभः अनघया'या ॥ १४॥ ग:धगं त’म ् आव jयां रं भाभादिजरा तु या ॥ १४॥

असंiय रा|सJ का नाश अपने तेजLताप से करनेवाले (राम), मेघवण[ के 9ीकृ4ण, सQयभामा को घोर अ:याय से शांत करने हेतु,
$वग[तु†य सुगि:धत पवन संचाxरत $थल (wच'कूट) पर अAसराओं से शोभायमान, र‡भा जैसी सुंदxरयJ से चमकते आँगन,
य|राज कुबेर तु†य वैभव व आभा संग rलए पंहुच.े $वग[ को गए ताXक वे सुगि:धत पाxरजात व|
ृ तक पहुँच सकK.
द£डकां Lदमो राजा†या हतामयकाxरहा । न सदातनभो™याभः नो नेता वनम ् आस सः ।
सः समानवतानेनोभो™याभः न तदा आस न ॥ १५॥ हाxरकायमताह†याजारामोदLका£डदम ् ॥ १५॥

दं डकवन मK संयमी (राम) - $व$थ नरे शJ के श'ु (परशुराम) सदा आनंददायी जननायक 9ीकृ4ण न:दनवन को जा पहुंचे, जो इंS
को परािजत करनेवाले, मानवयोoन वाले ¤यि_तयJ (मनु4यJ) के अoतआनंद का 9ोत था – वहC इ:S जो आकष[क काया वालC
को अपने oन4कलंक कToत[ से आनि:दत करनेवाले - ने Lवेश अŽह†या का Lेमी था, िजसने (छलपूवक
[ ) अŽह†या कT सहमoत पा
Xकया. लC थी.

सः अरम ् आरत ् अनtाननः वेदेराक£ठकंु भजम ् । हा धरा2वषदह नानागानाटोपरसात ् Sत


ु म् ।
तं Sस
ु ारपटः अनागाः नानादोष2वराधहा ॥ १६॥ ज‡भकु£ठकराः दे वन
े ः अtानदरम ् आर सः ॥ १६॥

वे राम शी¥ हC महाtानी - िजनकT वाणी वेद है , िज:हK वेद हाय, वो इंS, पn
ृ वी को जलLदान करने वाले, Xक:नरJ-ग:धव¦ के
कंठ$थ है - कु‡भज (मटके मK ज:मने के कारण अग$Qय सुरCले संगीत रस का आनंद लेने वाले, दे वाwधपoत ने aयJ हC
ऋ2ष का एक अ:य नाम) के oनकट जा पंहुचे. वे oनम[ल व|
ृ ज‡बासरु संहारक (कृ4ण) का आगमन सन
ु ा, वे अनजाने भय से
व†कल (छाल) पxरधानधारC हG, जो नाना दोष (पाप) वाले §rसत हो गए.
2वराध के संहारक हG.

सागमाकरपाता हाकंकेनावनतः Žह सः । तं रसासु अजराकालं म आरामाद[नम ् आस न ।


न समानद[ मा अरामा लंकाराज$वसा रतम ् ॥ १७॥ स Žहतः अनवनाकेकं हाता अपारकम ् आगसा ॥ १७॥

वेदJ मK oनपुण, स:तJ के र|क (राम) का ग’ड़ (जटायु) ने वे (कृ4ण) - वj


ृ धाव$था व मQृ यु से परे - पाxरजात व|
ृ के उ:मूलन
ु कर नमन Xकया िजनके Loत अपूण[ कामयाचना चुड़ल
झक ै , कT इ¨छा से गए, तब इंS - $वग[ मK रहते हुए भी कृ4ण के Žहतैषी
लंकेश कT बहन (शूपण
[ खा), को भी थी. – को अपार दःु ख LाAत हुआ.

तां सः गोरमदो9ीदः 2व§ाम ् असदरः अतत । केशवं 2वरसाना2वः आह आलापसमारवैः ।


वैरम ् आस पलाहारा 2वनासा र2ववंशके ॥ १८॥ ततरोदसम ् अ§ा2वदः अ9ीदः अमरगः असताम ् ॥ १८॥

पn
ृ वी को 2Lय (2व4णु याoन राम) के दाŽहनी भुजा व उ:हK उ†लास, जीवनीशि_त और तेज के bास होने का भान होने पर
गौरव दे ने वाले, oनडर लcमण jवारा नाक काटे जाने पर, उस केशव (कृ4ण) से rम'वत वाणी मK इंS – िजसने उ:नत पव[तJ को
माँसभ|ी नासा2वहCन (शूपण
[ खा) ने सूयव
[ श
ं ी (राम) के Loत वैर परा$त कर महQवहCन Xकया (उjदं ड उड़नशील पव[तJ के पंखJ को
पाल rलया. इंS ने अपने व©ायुध से काट Žदया था), िजसने अमर दे वJ के
नायक के ^प मK द4ु ट असुरJ को 9ी2वहCन Xकया - ने धरा व नभ
के रचoयता (कृ4ण) से कहा.

गोjयुगोमः $वमायः अभूत ् अ9ीगखरसेनया । हा अoतरादजरालोक 2वरोधावहसाहस ।


सह साहवधारः अ2वकलः अराजत ् अराoतहा ॥ १९॥ यानसेरखग 9ीद भूयः म $वम ् अगः jयुगः ॥ १९॥

पn
ृ वी व $वग[ के सुदरू कोने तक ¤याAत कToत[ के $वामी राम हे (कृ4ण), सव[कामनापूoत[ करने वाले दे वJ के गव[ का शमन करने
jवारा खर कT सेना को 9ी2वहCन परा$त करने से, उनकT एक वाले, िजनका वाहन वेदाQमा ग’ड़ है , जो वैभव Lदाता 9ीपoत हG,
गौरवशालC, oनडर, श'ु संहारक के ^प मK शालCन छ2व चमक िज:हK $वयं कुछ ना चाŽहए, आप इस Žद¤य व|
ृ को धरती पर ना
उठª. ले जाएँ.
हतपापचये हे यः लंकेशः अयम ् असारधीः । घोरम ् आह §हं हाहापः अरातेः र2वरािजराः ।
रिजरा2वरतेरापः हा हा अहम ् §हम ् आर घः ॥ २०॥ धीरसामयशोके अलं यः हे ये च पपात हः ॥ २०॥

पापी रा|सJ का संहार करनेवाले (राम) पर आ`मण का ¤यथा§rसत हो, श'ु के शि_त को भूल, उ:हK (कृ4ण को) बंदC
2वचार, नीच, 2वकृत लंकेश – सदै व िजसके संग मŽदरापान बनाने का आदे श ग:धव[राज इंS – सय
ू [ कT तरह शe
ु $वणा[भूषण
करनेवाले `ूर रा|सगण 2वjयमान हG – ने Xकया. अलंकृत मगर कुिQसत बुjwध से §$त - ने दे Žदया

ताटकेयलवादत ् एनोहारC हाxरwगर आस सः । 2वभुना मदनाAतेन आत आसीनाजयहासहा ।


हा असहायजना सीता अनाAतेना अदमनाः भु2व ॥ २१॥ सः सराः wगxरहारC ह नो दे वालयके अटता ॥ २१॥

ताड़कापु' मारCच को काट मारने से Lrसjद, अपनी वाणी से Ljयु‡न संग दे वलोक मK 2वचरण कर रहे कृ4ण को रोकने मK, प'

पाप का नाश करने वाले, िजनका नाम मनभावन है , हाय, जयंत के श'ु Ljयु‡न के अ«टहास को अपनी बाणवषा[ से काट कर
असहाय सीता अपने उस $वामी राम के बना ¤याकुल हो ग¡ शांत करनेवाले, अथाह संप2v के $वामी, पव[तJ के आ`मणकता[
(मारCच jवारा राम के $वर मK सीता को पक
ु ारने से). इंS, असमथ[ हो गए.

भारमा कुदशाकेन आशराधीकुहकेन हा । ताः ¬ताः Žह महCदे व ऐ_य अलोपन धी’चा ।


चा’धीवनपालो_या वैदेहC मŽहता ¬ता ॥ २२ ॥ हानकेह कुधीराशा नाकेशा अदकुमारभाः ॥ २२॥

लcमी जैसी तेज$वी का, अंत समय आस:न होने के कारण तब, एक pाqमण कT मै'ी से उस लAु त अ2वनाशी, wचर$थायी tान
नीच द4ु ट छलC नीच रा|स (रावण) jवारा, उ¨च 2वचारJ वाले व तेज को पन
ु Lा[Aत कर नाकेश ($वग[राज, इंS) – िजनकT इ¨छा
वनदे वताओं के सामने हC उस सव[पूिजता सीता का अपहरण पलायन करने वाले दे वताओं कT र|ा करने कT थी – ने आकुल
कर rलया गया. कुमार Ljयु‡न का Lताप हर rलया.

हाxरतोयदभः रामा2वयोगे अनघवायज


ु ः । यः अमराtः असादोमः अतापेतः Žहममा’तम ् ।
तं ’मामŽहतः अपेतामोदाः असारtः आम यः ॥ २३॥ जः युवा घनगेयः 2वम ् आर आभोदयतः अxरहा ॥ २३॥

मनोहारC, मेघवण—य (राम) – को सीता से 2वयोग के पkचात तब दे वताओं से युjध का पxरQयाग कर चक


ु े , अतु†य साहसी
संग rमला oन2व[कार हनम
ु ान का और सु§ीव का जो अपनी (Ljयु‡न), आकाश मK संचाxरत शीतल पवन से पन
ु ज—2वत हो
पQनी ’मा के 9jधेय थे, जो बालC jवारा सताए जाने के ग’
ु जनJ का गण
ु गान अज[न Xकया जब उनके jवारा श'ओ
ु ं को
कारण अपना सुख गवाँ 2वचारहCन, शि_तहCन हो राम के मार 2वजय LाAत Xकया गया.
शरणागत हो गए थे.

भानुभानुतभाः वामा सदामोदपरः हतं । 2वं सः वातकृताराoत|ोभासारमताहतं ।


तं ह तामरसाभ_|ः अoतराता अकृत वास2वम ् ॥ २४॥ तं हरोपदमः दासम ् आव आभातनभ
ु ानभ
ु ाः ॥ २४॥

सूय[ से भी तेज मK Lशंrसत, रमणीक पQनी (सीता) को oनरं तर उस कृ4ण ने – िजनके तेज के सम| सूय[ भी गौण है – िजसने
अतुल आनंद Lदाता, िजनके नयन कमल जैसे उaजवल हG – अपने उvेिजत सेवक ग’ड़ कT र|ा कT, िजस ग’ड़ ने अपने डैनJ
उ:हJने इंS के पु' बालC का संहार Xकया. कT फड़फड़ाहट मा' से श'ुओं कT शि_त और गव[ को |ीण Xकया
था – िजस (कृ4ण) ने कभी rशव को भी परािजत Xकया था.
हं सजा’jधबलजा परोदारसुभा अजoन । यं रमा आर यताघ 2वर|ोरणवरािजर ।
रािज रावण र|ोर2वघाताय रमा आर यम ् ॥ २५॥ oनजभा सुरद रोपजालबjध ’जासहम ् ॥ २५॥

हं सज, याoन सूयप


[ ु' सु§ीव, के अपराजेय सै:यबल कT महती उस कृ4ण के Žह$से oनम[ल 2वजय9ी कT iयाoत आई जो बाणJ
भूrमका ने राम के गौरव मK वj
ृ wध कर रावण वध से 2वजय9ी कT वषा[ सहने मK समथ[ हG, िजनका तेज युjधभूrम को असुर-2वहCन
Žदलाई. करने से चमक रहा है , उनका $वाभा2वक तेज दे वताओं पर 2वजय
से दमक उठा.

सागराoतगम ् आभाoतनाकेशः असुरमासहः । जं गतः गदC असादाभाAता गोजं त’म ् आस तं ।


तं सः मा’तजं गोAता अभात ् आसाjय गतः अगजम ् ॥ २६॥ हः समारसश
ु ोकेन अoतभामागoतः आगस ॥ २६॥

समुS लांघ कर सहयाSC पव[त तक जा समुS तट तक पहुंचने जो गदाधारC हG, अपxरrमत तेज के $वामी हG, वो कृ4ण – Ljयु‡न
वाले कT LािAत दत
ू हनुमान के ^प मK होने से, इंS से भी को Žदए क4ट से अQयwधक कु2पत हो - $वग[ मK उQप:न व|
ृ को
अwधक Lतापी, असरु J कT समj
ृ wध को असहनशील, उस र|क झपट कर 2वजयी हुए.
राम कT कToत[ मK वj
ृ wध हो गई.

वीरवानरसेन$य 'ात अभात ् अवता Žह सः । ना तु सेवनतः य$य दयागः अxरवधायतः ।


तोयधो अxरगोयादrस अयतः नवसेतुना ॥ २७॥ स Žह तावत ् अभत 'ासी अनसेः अनवारवी ॥ २७॥

वीर वानर सेना के 'ाता के ^प मK 2वiयात राम, उस जो ¤यि_त, Lभु हxर कT सेवा मK रत, उनका यशगान करता है , वह
सेतुसमु:S पर चलने लगे, जो अथाह 2व$तत
ृ सागर के जीव- Lभु कT दया LाAत कर श'ुओं पर 2वजय पाता है. जो ऐसा नहCं
जंतुओं से भी र|ा कर रहा था. करता है वह oनहQथे श'ु से भी भयभीत होकर काि:त2वहCन हो
जाता है .

हाxरसाहसलंकेनासुभेदC मŽहतः Žह सः । हा आoत[दाय धराम ् आर मोराः जः नुतभूः ’चा ।


चा’भूतनुजः रामः अरम ् आराधयदाoत[हा ॥ २८॥ सः Žहतः Žह मदCभे सन
ु ाके अलं सहसा अxरहा ॥ २८॥

चमQकाxरक ^प से साहसी उस राम jवारा रावण के Lाण हरने वे, Ljयु‡न को युjध के क4टJ से उबारने के पkचात लcमी को
पर दे वताओं ने उनकT $तoु त कT. वे ^पवती भrू मजा सीता के oनज व|$थलC रखने वाले, कToत[यJ के शरण$थल जो Ljय‡
ु न के
संग हG, तथा शरणागतJ का क4ट oनवारण करते हG. Žहतैषी कृ4ण, ऐरावत वाले $वग[लोक को जीत कर पn
ृ वी को वापस
लौट आए.

नाrलकेर सुभाकारागारा असौ सुरसा2पका । ना अमुना नŽह जेभेर पूः आमे अ|xरणा वरा ।
रावणाxर|मेरा पःू आभेजे Žह न न अमन
ु ा ॥ २९॥ का अ2प सारसस
ु ौरागा राकाभासरु केrलना ॥ २९॥

नाxरयल व|
ृ J से आ¨छाŽदत, रं ग- बरं गे भवनJ से oनrम[त अनेकJ 2वजयी गजराजJ वालC भूrम jवारका नगर मK धम[ के वाहक
अयोDया नगर, रावण को परािजत करने वाले राम का, अब सता2Lय कृ4ण, Žद¤य व|
ृ पाxरजात से दCिAतमान, का Lवेश
समुwचत oनवास $थल बन गया. `Tड़ारत गो2पयJ संग हुआ.
सा अlयतामरसागाराम ् अ|ामा घनभा आर गौः ॥ भा अजराग सम
ु ेरा 9ीसQयािजरपदे अजoन ।
oनजदे अपरिजoत आस 9ीः रामे सुगराजभा ॥ ३०॥ गौरभा अनघमा |ामरागा स अरमत अlयसा ॥ ३०॥

अयोDया का समj
ृ ध $थल, तामरस (कमल) पर 2वराजमान 9ीसQय (सQयभामा) के आँगन मK अवि$थत पाxरजात मK प4ु प
राaयलcमी का सवuvम oनवास बना. सव[$व :योछावर L$फुŽटत हुए. सQयभामा, इस oनम[ल संप2v को पा कृ4ण कT Lथम
करानेवाले अजेय राम के Lतापी शासन का उदय हुआ. भाया[ ’ि_मणी के Loत इ4या[भाव का Qयाग कर, कृ4ण संग
सुखपूवक
[ रहने लगी.

॥ इoत 9ीवे®कटाDवxर कृतं 9ी राघव यादवीयं समाAतम ् ॥

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