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वषय कोड - 501

वषय - सं कृत का यम ्
क ा - पव
ू म यमा थम खंड (9 वीं)
पा य साम ी स हत न उ र (सेट - A)
रघव
ु श
ं म ् - महाका य का प रचय
रघव
ु श
ं महाका य उ नीस सग म वभ त है । इसम 1569 लोक ह। इस महाका य म सय
ू वंश
के 31 राजाओं के शौय तथा जीवन का वणन है । अ य त तापी तथा दयालु राजा मनु से लेकर
परम वलासी राजा अि नवण तक क कथा रघव
ु श
ं म संक लत है । रघव
ु श
ं महाका य का मल
ू ोत
रामायण है क तु रघव
ु श
ं क कथा प मपरु ाण के अ धक समीप है । रघव
ु श
ं वीर रस धान महाका य है ।
क व ने इस महाका य म रघव
ु श
ं के उ कष और अपकष का मनोहार वणन कया है । इस महाका य के
थम सग के दस लोक म से थम लोक मंगलाचरण के प म है । िजसम क व ने अपने आरा य शव
और पावती क वंदना क है । दस
ू रे लोक म उ ह ने सय
ू से उ प न रघव
ु श
ं के मह व का संकेत करते हुये
उसके वणन म अपनी असमथता का न पण कया है जो उनक वन ता का योतक है । तीसरा लोक
भी क व क वन ता क ह तु त है । चौथे म पव
ू क वय के त अधमणता (आभार) य त क गयी
है , पाँचव से दसव तक रघव
ु श
ं ी राजाओं क वशेषताओं का वणन है ।
रघव
ु श
ं महाका य क कथा राजा दल प के च र - च ण से आर भ होती है । दल प अ य त
तापी और परा मी राजा थे क तु उनके कोई स तान नह ं थी। स तान ाि त क कामना से वे अपनी
प नी सद
ु णा के साथ गु व श ठ के पास जाते ह तथा गु वर के आदे शानस
ु ार कामधेनु क पु ी
नि दनी (गौ) क सेवा का त लेते ह। राजा दल प प नी सद
ु णा के साथ नि दनी क सेवा करते हुए
कई मह ने यतीत कर दे ते ह। एक दन नि दनी राजा क पर ा लेने के उ दे य से पवत क क दराओं
म वेश कर जाती है और एक संह उस पर आ मण कर दे ता है । संह से गाय को बचाने के लए राजा
वयं अपनी दे ह संह को अ पत कर दे ते ह। राजा के इस याग से अ भनत
ू होकर नि दनी राजा को
पु ाि त का वरदान दे ती है । इसके प चात ् राजा के परा म का वणन, राजा दल प के घर रघु का ज म
आ द कथाओं से सय
ू वंश आगे बढ़ता है । अ त म सद
ु शन के पु अि नवण क कामक
ु ता तथा वला सता
से दःु खद म ृ यु होती है । रघव
ु श
ं का लदास क उ कृ ट कृ त है । पद-पद पर तभा फुट होती भाव, भाषा,
रस तथा कला का अनप
ु म उदाहरण इस महाका य म ट य है । रघव
ु श
ं महाका य के नाम से ह प ट है
क िजस वंश म राजा रघु हुए उनके वंश का वणनपरक है यह महाका य।
थम सग के आर भ म रघव
ु श
ं नाम क साथकता स ध करते हुए का लदास वयं लखते ह–
रघण
ू ाम वयं व ये इ
​ सका यु प परक अथ भी प ट है - रघोः वंशः (रघु का वंश) रघण
ू ां वंश (रघव
ु ं शय
का वंश), रघव
ु श
ं य व ृ म ती याि मन ् का ये तत ् रघव
ु श
ं म त (रघव
ु श
ं का वणन है िजस का य म वह
रघव
ु श
ं महाका य है ), राजा दल प से ार भ करते हुए राजा राम का व तत
ृ वणन है । सोलहव सग तक
राम का वणन तथा अ या य राजाओं का वणन सं ेप म मलता है । 18व सग म 21 राजाओं का उ लेख
है इस कार रघव
ु श
ं म कुल 31 राजाओं का वणन ा त है -
(1) राजा दल प (2) रघु (3) अज (4)दशरथ (5) राम (6) कुश (7) अ त थ (8) नषध (9) नल
(10) नभ (11) पु डर क (12) ेमध वा (13) दे वानीक (14) अह नग ( 15) पा रया (18) शील (17)
उ नाभ (18) व नाभ ( 19) श खण (20) यु षता व (21) व वसह (22) हर यनाभ (23) कौश य (24)
म न ठ (25) पु पु य (26 ) व
ु सि ध ( 27 ) सद
ु शन (28 ) अि नवण। यहाँ राम के साथ ल मण,
भरत, श ु न को जोड़कर कुल-31 राजाओं का वणन ा त है । रघव
ु श
ं महाका य उ नीस सग म वभ त
है । इसम महाका य के सभी ल ण घ टत होते ह।
थम सग – महाक व का लदास श द और अथ के समान एक भत
ू , सिृ ट के माता- पता भगवान ् शव
और पावती को वाणी और अथ क स ध के लये नमन करते हुए रघव
ु श
ं महाका य का ार भ करते ह।
थ क न व न समाि त के लये मंगलाचरण करके वयं का रघक
ु ु ल जैसे महान वंश का वणन करने
म असमथ कहते ह तथा लखते ह क वा मी क आ द महाक वय ने सय
ू वंश पर का य क रचना करके
वाणी का वार खोल दया है तभी म अ पम त इस वंश का वणन कर पा रहा हूँ। वरना इतने उ च कुल
का वणन करना मेरे लये ठ क वैसा ह है जैसे क कोई यि त छोट सी नौका से वशाल समु को पार
करने का यास करता है ।
वेद म ॐकार के समान इ वाकुवंशीय राजाओं म सव थम सय
ू पु वैव वत मनु हुए। मनु के
वंश म खर मेधा, याय य और दयालु राजा दल प हुए। राजा दल प याय य, धमावल बी तथा
स च र वान थे क तु उनके कोई स तान नह ं थी रानी सद
ु णा को लेकर राजा दल प गु व स ठ के
आ म पहुंचे। गु व स ठ ने उ ह कामधेनु क पु ी नि दनी (गौ) क सेवा करने का नदश दया। िजस
समय गु व स ठ नि दनी क सेवा का नदश दे रहे थे उसी समय नि दनी वन से लौटकर आ गई। उसके
खरु क धल
ू से राजा दल प और रानी सद
ु णा प व हो गए। अपने बछड़े को दे खते ह नि दनी के थन
से दध
ू बहने लगा। गु व स ठ ने राजा दल प से कहा- 'राजन ्। नाम लेते ह नि दनी आ गई है तथा बहते
दध
ू का दशन हुआ है यह अ य त शभ
ु शकुन है आपका मनोरथ शी पण
ू होगा। आज से आप दोन
इसका अनक
ु रण करो, इसक सेवा करो। तभी से राजा दल प ने गौ सेवा त क त ाक।

का यांश क या या - मंगलाचरणम ्
वागथा वव स प ृ तौ वागथ तप ये।
जगतः पतरौ व दे पावतीपरमे वरौ।।1।।
स ग – कसी भी थ क न व न समाि त के लये तथा पाठक , अ यापक एवं या याकार के
क याण के लये तथा श य क श ा के लये क व अपने का य के ार भ म मंगलाचरण के प म
अपने इ ट दे वता क आराधना करते ह उ त लोक म महाक व का लदास ने भगवान शव व पावती को
णाम कया है । यह थ का मंगलाचरण लोक है ।
अ वयः – (अहं ) वागथ इव स प ृ तौ जगतः पतरौ पावतीपरमे वरौ वागथ तप ये व दे ।
श दाथ – अहं = म का लदास, वागथ इव = श द और अथ के समान, स प ृ तौ = न य स ब ध,
जगतः = संसार के, पतरौ = माता और पता, पावतीपरमे वरौ = पावती और शव को, वागथ तप ये =
श दाथ के ान के लए, व दे = णाम करता हूँ।
अनव
ु ाद – म का लदास श द और अथ के सामान न य स ब ध जगत के माता- पता पावती और
परमे वर शव को श दाथ के ान के लए णाम करता हूँ।
सि ध
● वागथा वव - वागथ + इव (अया द सि ध)
● वागथ तप ये - वाक् + अथ तप ये (ज व सि ध)
समास -
● पतरौ - माता च पता च पतरौ (एकशेष व व समास)
● पावतीपरमे वरौ - पावती च परमे वर च पावतीपरमे वरौ ( व व समास)
● वागथ तप ये - वाक् च अथ च वागथा तयोः तप ः त यै। ( व व समास)
छ द – अनु टुप ् ल णम ् -
लोके ष ठं गु ेयं सव लघप
ु चमम ्।
वचतु पादयोः व वं स तमं द घम ययोः।।
अनु टुप या लोक के येक पाद म 8 अ र होते ह। इसम ष ट अ र सदा गु होता है और पंचम अ र
सदा लघ।ु वतीय और चतथ
ु चरण म स तम अ र लघु होता है और थम तथा तत
ृ ीय चरण म गु
होता है । अ य अ र लघु या गु हो सकते ह।
अलंकार – उपमा अलंकार है । इसका ल ण 'सा यम येन वणय य वा यं चेदेकदोपमा है ।

व सय
ू भवो वंशः व चा प वषया म तः?
ततीषद
ु ु तरं मोहादड
ु ु पेनाि म सागरम ्।।2।।
स ग – तत
ु प य म महाक व का लदास ने वन ता य त करते हुये महान सय
ू वंश के सम
अपनी बु ध को व प वषया बताकर उस वंश का वणन करने म अपने को असमथ बताया है ।
अ वय – सय
ू भवो वंशः व? अ प वषया म तः च व, मोहा द ु तर सागरम ् उडुपेन ततीषःु अि म।
श दाथ – सय
ू भवः = सय
ू है कारण िजसका, वंश = कुल, व = कहाँ, अ प वषया = अ प वषय को
जानने वाल , म त = बु ध, द ु तरम ् = पार करने म द ु कर, सागरम ् - सागर को, मोहात ् - अ ानता से,
उडुपेन = छोट नाव से, ततीषःु = तैरने क इ छा वाला, अि म = हूँ।
अनव
ु ाद – सय
ू से उ प न होने वाला कुल कहाँ और अ प वषय को जानने वाल मेर बु ध कहाँ फर भी
म अ य त क ठन सागर को अ ानतावश छोट नाव से पार करने का इ छुक हूँ, अथात ् जस
ै े छोट नाव
से अगाध सागर को पार करना अ य त क ठन है , उसी कार मेर व प वषय को समझने वाल बु ध
से महान सय
ू वंश का वणन कर पाना अ य त द ु कर है ।
सि ध -
1. चा प वषया - च+अ प वषया (द घ वर सि ध)
2. ततीषद
ु ु तरं - ​ ततीषःु + द ु तरम ( वसग सि ध)
3. उडुपेनाि म - उडुपेन + अि म (द घ वर सि ध)
समास -
● सय
ू भवः - सय
ू ः भयो य य सः (बहु ी ह समास)
● अ प वषया- अ पो वषयो य याः सा (बहु ी ह समास)

म दः क वयशः ाथ ग म या यप
ु हा यताम ्।
ांशल
ु ये फले लोभाद ु बाहु रव वामनः।।3।।
स ग– तत
ु लोक म का लदास ने सय
ू वंश का वणन सफलतापव
ू क न कर पाने के अन तर अपने
को अपयश का पा बताने का उप म कया है ।
अ वय – म द क वयशः ाथ ांशल
ु ये फले लोभात ् उ बाहुः वामन इव उपहा यतां ग म या म।
श दाथ – म द = मढ़
ू , क वयशः ाथ = क च के यश को ा त करने के इ छुक, ांशल
ु ये = उ नत
पु ष वारा ा त करने यो य, फले = फल म, लोभात ् = ाि त क इ छा से, उदबाहुः = ऊपर उठाये हाथ
वाले, वामनः = बौने पु ष के, इव = समान, उपहा यताम ् = उपहास क पा ता को, ग म या म = ा त
क ँ गा।
अनव
ु ाद – म मख
ू हूँ और क व के यश को ा त करने के इ छुक हूँ। ऐसा म का लदास उ नत पु ष के
वारा ा त करने यो य फल क ओर लोभ से ऊपर हाथ उठाये हुए बौने यि त के समान उपहास का
पा बनग
ंू ा।
सि ध -
1. ग म या यप
ु हा याताम ् - ग म या म + उपहा यताम ् (यण सि ध)
2. लोभाद ु बाहुः - लोभात ् + उ बाहु (ज व सि ध)
3. उ बाहु रव - उ बाहु + इव ( वसग सि ध)
समास -
● क वयशः ाथ - कवीनां यशः क वयशः तत ् ाथयते त छ लः (त पु ष समास)
● ांशल
ु ये - ांशन
ु ा ल यः ति मन ् (त पु ष समास)

अथवा कृतवा वारे वंशऽे ि मन पव


ू सू र भः।
मणौ व समु क ण सू येवाि त मे ग तः।।4।।
स ग – महाक व का लदास ने तत
ु लोक म पव
ू महाक वय वा मी क आ द के वारा अपने थ
म कये गये सय
ू वंश के वणन के सहारे रघव
ु श
ं के वणन म अपनी सफलता क स भावना क है ।
अ वयः – अथवा पव
ू सू र भः कृतवा वारे अि मन ् वंशे व समु क ण मणौ सू य इव मे ग तः अि त।
श दाथ – अथवा = अथवा, पव
ू सू र भः = मेरे पव
ू वत क व वा मी क, यास आ द के वारा, कृतवा वारे
= रामायण आ द क रचना के मा यम से, अि मन ् = इस, वंशे = कुल म, व समु क ण = व वारा
छ कये गये, मणौ = म ण म, सू य इव = सू के समान, मे = मेर , ग तः = ि थ त, अि त = है ।
अनव
ु ाद – वा मी क आ द पव
ू क वय ने सय
ू वंश पर रामायण आ दका य लखकर मेरे लये वाणी का
वार पहले ह खोल दया है । अतः मेरे लये सय
ू वंश म व ट होना तथा उसका वणन करना उसी कार
सरल हो गया है , िजस कार व से छे दे गये म ण म सू सरलता से व ट हो जाता है ।
सि ध –
1. वंशऽे ि मन - वंशे + अि मन (पव
ू प सि ध)
2. सू येव - सू य + इव (गण
ु सि ध)
3. इवाि त - इव + अि त (द घ सि ध)
समास –
● कृतवा वारे - कृतं वाक् एवं वारं ( वेशः) य य, ति मन ् (बहु ी हः समास)
● पव
ू सू र भः - पव
ू च ते सरू यः पव
ू सरू यः, तैः पव
ू सू र भः (कमधारय समास)
● व समु क ण - व ेण समु क णः व समु क णः, ति मन ् (त पु ष समास)

सोऽहमाज मशु धानामाफलोदयकमणाम ्।


आसमु तीशानामानाकरथ व मनाम ्।।5।।
स ग– तत
ु लोक म क व ने रघव
ु श
ं के राजाओं क वशेषता का वणन कया है । ये राजा ज म से
शु ध, फल ाि तपय त काय करने वाले, समु पय त प ृ थवी का शासन करने वाले थे। इनका रथ वग
तक जाता था।
अ वय – सः अहम ्, आज मशु धानाम ् आफलोदयकमणाम ् आसमु तीशानाम ्, आनाकरथव मनाम ्
(​रघण
ू ाम ् अ वयं व ये)।
श दाथ – सः = वह पव
ू त गण
ु से यु त, अहम ् = म का लदास, आज मशु धानाम ् = ज म से लेकर
शु ध, आफलोदयकमणाम ् = फल ाि त पय त काय करने वाले, आसमु तशानाम ् = समु पय त
प ृ वी के वामी, अनाकरथव मनाम ् = वग पय त रथ को ले जाने वाले।
अनव
ु ाद – पव
ू त गण
ु से यु त म का लदास ज म से शु ध, फल क ाि त पय त काय को करने वाले,
सागर पय त प ृ वी के वामी, वग पय त रथ को ले जाने वाले रघव
ु श
ं ी राजाओं का वणन क ँ गा।
सि ध –
1. सोऽहम - स: + अहम ् (पव
ू प- वसग सि ध)
2. सू येवाि त - सू य + इव (गण
ु सि ध)
3. इवाि त - इव + अि त (द घ सि ध)
समास –
● आफलोदयकमणाम ् - आफलोदयं कम येषां ते आफलोदयकमाणः तेषाम ् (बहु ी हः समास)
● आसमु तीशानाम - आसमु ं तेः ईशः तीशः तेषाम ् (त पु ष समास)
● अनाकरथव मनाम ् - अनाकं रथव म येषां तेषाम ् (बहु ी हः समास)

यथा व धहुता नीनां यथाकामा चता थनाम ्।


यथाऽपराधद डानां यथाकाल बो धनाम ्।।6।।
स ग– तत
ु लोक म क व का लदास ने पव
ू लोक म व णत वशेषताओं के अ त र त अ य चार
वशेषताओं का उ लेख कया है ।
अ वय – (​ सः अहम ्) यथा व धहुता नीनां यथाकामाऽ चताऽ थनाम ्, यथापराधद डानां
यथाकाल बो धनाम ् (रघण
ू ाम वयं व ये)।
श दाथ – यथा व धहुता नीनाम ् = व ध के अनस
ु ार अि न म हवन करने वाले, यथाकामा चता थनाम ् =
याचक क इ छा के अनस
ु ार दान दे ने वाले, यथाऽपराधद डानां = अपराध के अनस
ु ार द ड दे ने वाले,
यथाकाल बो धनाम ् = उ चत समय पर बु ध होकर काय पण
ू करने वाले।
अनव
ु ाद – ​म, शा के अनस
ु ार य करने वाले और याचक क इ छा के अनस
ु ार दान दे ने वाले, अपराध
के अनस
ु ार द ड दे ने वाले, उ चत समय पर बु ध होकर अपने काय को पण
ू करने वाले, रघव
ु श
ं के
राजाओं का वणन क ँ गा।
सि ध –
1. यथाकामा चत - यथाकाम + अ चत (द घ सि ध)
2. यथापराध - यथा + अपराध (द घ सि ध)
समास –
● यथा व धहुता नीनाम ् - व धम ् अन त य यथा व ध, यथा व ध हुता अ नयः यैतषाम ्
(अ ययीभावगभबहु ी हः)
● यथापराधद डानाम ् - अपराधम ् अन त य यथापराध द डो येषां तेषाम ्
(अ ययीभावगभबहु ी हः)
● यथाकाल बो धनाम ् - कालम ् अन त य यथाकालं, यथाकालम ् (अ ययीभावगभबहु ी हः)
बो धनः तेषां यथाकाल बो धनाम ्

यागाय स भत
ृ ाथानां स याय मतभा षणाम ्।
यशसे विजगीषण
ू ां जायै गह
ृ मे धनाम ्।।7।।
स ग – ​ तत
ु लोक म का लदास ने रघव
ु श
ं ी राजाओं के मतभा षता आ द गण
ु का स योजन
उ लेख कया है ।
अ वय – ​(सः अहम ्) यागाय स भत
ृ ाऽथानां, स याय मतभा षणां, यशसे विजगीषण
ू ां जायै
गह
ृ मे धनाम ् (रघण
ू ाम वयं व ये)।
श दाथ – यागाय = स पा को दान के लए, स भत
ृ ानां = धन को इक ठा करने वाले, स याय = स य
के लए, मतभा षणाम ् = कम बोलने वाले, यशसे = यश के लए, विजगीषण
ू ाम ् = जीतने के इ छा वाले,
जायै = जा के लए अथात ् स तान के लए, गह
ृ मे धनाम ् = ववाह करने वाले।
अनव
ु ाद – यो य स पा को दान दे ने के लए जो धन को सं चत करते थे, स य बोलने के लए जो कम
बोलते थे और यश के लए जीतने क इ छा करते थे कसी अ य के रा य को छ नने के लए नह ं। जो
स तान ाि त के लए ववाह करते थे, भोग के लए नह ं। म इस कार के रघव
ु श
ं ी राजाओं का वणन
क ँ गा।
समास –
1. स भत
ृ ाथानाम ् - स भत
ृ ः अथः यैः ते स भत
ृ ाथाः तेषाम ् स भत
ृ ाथानाम ् (बहु ी हः समास)
2. मतभा षणाम ् - मतं भाष ते त छ लाः इ त मतभा षणः तेषाम ्
3. विजगीषण
ू ाम ् - वजेतंु इ छि त इ त विजगीषि त, विजगीषि त इ त विजगीषवः तेषां
विजगीषण
ू ाम ् (उपपदसमास)
4. गह
ृ मेधीनाम ् - गह
ृ ै ः मे धतम
ु ् शीलम ् येषां ते गह
ृ मे धनः तेषां गह
ृ मे धनाम ् (बहु ी हः समास)

शैशवेऽ य त व यानां यौवने वषयै षणाम ्।


वाधके मु नव ृ ीनां योगेना ते तनु यजाम ्।।8।।
स ग–​ तत
ु प य म महाक व का लदास ने रघव
ु श
ं ी राजाओं के शैशव, यौवन और व ृ धाव था के
काय का उ लेख करते हुये उनक वशेषताय बतायी ह।
अ वय ​– ​(सः अहम ्) शैशवे अ य त व यानां, यौवने वषयै षणां वाधके मु नव ृ ीनाम ् अ ते योगेन
तनु यजाम ् (रघण
ू ाम वयं व ये)।
श दाथ – शैशवे = बा यकाल म, अ य त व यानां = सम त व याओं का अ यास करने वाले, यौवने =
यव
ु ाव था म, वषयै षणाम ् = गह
ृ थ म रहकर वषय का भोग करने वाले, वाधके = व ृ धाव था म,
मु नव ृ ीनां = ऋ षय के समान आचार यवहार करने वाले, अ ते = म ृ यक
ु ाल म, योगेन = च व ृ य
के नरोध से अथात ् वान थ आ म म परमा मा को मरण करते हुए, तनु यजां = शर र को छोड़ने
वाले।
अनव
ु ाद – बा यकाल म व या का अ यास करने वाले, यव
ु ाव था म गह
ृ था म के वषय का भोग
करने वाले, व ृ धाव था म ऋ षय के समान यवहार करने वाले, अथात ् (अर य म रहकर परमा मा को
यान करने वाले) मरण काल म भगवान को मरण करते हुए शर र को छोड़ने वाले रघव
ु श
ं का वणन म
का लदास क ँ गा।
सि ध –
1. योगेना ते - योगेन+अ ते (द घ सि ध)
समास –
● अ य त व यानाम ् - अ य ताः व या यैः ते अ य त व याः तेषाम ् अ य त व यानाम ्
(बहु ी हः समास)
● मु नव ृ ीनाम ् - मन
ु ेः व ृ रव व ृ ः येषाम ् ते मु नव ृ यः तेषाम ् मु नव ृ ीनाम ् (बहु ी हः समास)
● तनु यजाम ् - तनम
ु ् यजि त इ त तनु यजः तेषाम ् तनु यजाम ् (उपपद समास)

रघण
ू ाम वयं व ये तनव
ु ाि वभवोऽ प सन ्।
त गण
ु ःै कणमाग य चापलाय चो दतः।।9।।
स ग – का लदास ऊपर चार लोक म रघव
ु श
ं म उ प न राजाओं क वशेषताओं का उ लेख करने के
अन तर उनका वणन करने क त ा करते ह।
अ वय – (सः, अहम ्) तनव
ु ाि वभवः सन ् अ प त गण
ु ःै कणम ् आग य चापलाय चो दतः सन ् रघण
ू ाम ्
अ वयं व ये।
श दाथ – तनव
ु ाि वभवोऽ प = वाणी के साम य से र हत, सन ् = होने पर भी, तदगण
ु ःै = रघव
ु श
ं ी राजाओं
के गण
ु के वारा, कणमाग य = कान म आकर, चापलाय = चपलता के लए अथात ् बना वचार कये
काय करने के लए, चो दतः = े रत कया, रघण
ू ाम ् = रघव
ु ं शय के, अ वयम ् = वंश को, व ये =
कहूँगा।
अनव
ु ाद – य य प मेर वाणी म साम य कम है फर भी म पव
ू म कहे गये गण
ु से यु त रघव
ु श
ं ी राजाओं
का वणन करने को उ यत हूँ, य क उनके गण
ु ने मेरे कान म आकर मझ
ु े चपलता करने के लये े रत
कर दया है ।
सि ध –
1. त गण
ु ःै - तत ् + गण
ु ःै (ज व सि ध)
समास –
● तनव
ु ाि वभवः - वाचां वभवः वाि वभवः तनःु वाि वभवः य य सः तनव
ु ाि वभवः। (बहु ी हः
समास)
● त गण
ु ःै - तेषां गण
ु ाः त गण
ु ाः तैः त गण
ु ःै (त पु ष समास)
वशेष ​– म
​ हाक व का लदास ने पाँचव लोक से आठव लोक तक कुल चार लोक म, रघव
ु श
ं ी राजाओं के
सोलह गण
ु का वणन कया है जो न न ल खत ह -
1. ज म से ह प व ता, 2. फल ाि तपय त उ यमशीलता, 3. समु पय त प ृ वी का वा म व,
4. वगपय त रथगा म व, 5. शा ो त व ध से य स पादन, 6. याचक को आव यकतानस
ु ार दान
दे ना, 7. अपराध के अनस
ु ार द ड वधान, 8. समयानस
ु ार काय स पादन, 9. याग के लये धन संचय, 10.
स य के लये मतभा षता 11. यश के लये वजये छा, 12. स त त के लये गह
ृ मेधा, 13. शैशव काल म
व या का अ यास, 14 यौवन म वषय का उपभोग, 15, व ृ धाव था म मु नव ृ का धारण तथा 16,
सं यास आ म योगबल से दे ह का याग।
का लदास का कथन है क य य प मेर वाणी म उतना साम य नह ं है तथा प इन राजाओं के
गण
ु वण ने मझ
ु े इनका गण
ु गान करने के लये रघव
ु श
ं महाका य क रचना प चपलता करने के लये
े रत कया है ।

तं स तः ोतम
ु हि त सदस वयि तहे तवः।
हे नः संल यते य नौ वशु धः या मकाऽ प वा।।10।।
स ग – महाक व का लदास ने इस लोक म व वान से रघव
ु श
ं ी राजाओं के च र को सन
ु ने का आ ह
कया है तथा यह कहा है क, सोने क पर ा अि न म ह हुआ करती है ।
अ वय – ​तं सदस यि तहे तवः स तः ोतम
ु ् अहि त, ह हे नः वशु धः या मका अ प वा अ नौ
संल यते।
श दाथ – सदस यि तहे तवः = स य और अस य को जानने वाले, स तः = व वान ्, तं = उस रघव
ु श

को, ोतम
ु ् = सन
ु ने के लए, अहि त = यो य है , ह = य क, हे नः = सोने क , वशु धः = शु धता,
या मका = दोषयु तता, अ प = भी, अ नौ = अि न म ह , संल यते = तीत होती है ।
अनव
ु ाद – उ चत और अनु चत को जानने वाले व वान ् ह इस रघव
ु श
ं महाका य को सन
ु ने के यो य ह,
य क वण क शु धता अथवा दोष यु तता का पर ण अि न म डालने से ह होता है ।
सि ध –
1. य नौ - ह + अ नौ (यण ् सि ध)
समास –
● सदस वयि तहे तवः - सत ् च असत ् सदसती सदसतोः यि तः सदस वयि तः सदस वय तेः
हे तवः सदस वयि तहे तवः (त पु ष समास)
​आदश- नप म ्

न. 1 अधो ल खतम ् अनु छे दं प ठ वा द नानाम ् उ रा ण लखत –


क व शरोम णः क वकुलगु ः का लदासः क व े ठः इ त उ यते। का लदासः ाचीनका लकः
रा क वः उ यते। का लदास य ज म थानं क मीराः वा ब गभू मवा राज थानं वा उ ज यनी वे त नि चतं
व तंु न श यते। न चा य महानभ
ु ाव य जीवनकाल वषये कि च नणयः। महाराज व मा द य य
राजसभायां अयं ति ठतो व वान ् इ त सवः वी यते।
का लदासेन अ भ ानशाकु तलम ्, व मोवशीयम ्, माल वकाि न म ं च इ त ीण पका ण,
रघव
ु श
ं म ्, कुमारस भवम ् च इ त वे महाका ये, ऋतस
ु ह
ं ारम ्, मेघदत
ू ं च इ त वे खंडका ये वर चता न। त य
कौशलम ् यथा प यरचनायाम ् तथैव नाटकेषु वतते। वाभा वक वषयवणनं, च र ानस
ु ा रपा चयनं,
वभावोपि थता भनयं, का ये रसपा रकम ् सत
ु रां वलोकयामः। महाक व: का लदास: न केवल भारत य यत

व व य े ठ: क व: अि त। मेघदत
ू य शाकु तल य च चार: वदे शष
े ु अ प अ धको वतते।
व वसा ह ये अयं शे स पयरे ण क वना सह समतां धारय त। उपमा का लदास य इ त उि त: त य
वषये सु स धा अि त। त य रचनासु सादं माधय
ु च गण
ु यो: अपव
ू सि म णं व यते। सं कृतसा ह ये
का लदासः उपमायै यातः अि त। क यते एव उपमा का लदास य, स यमेव अ य उपमाः अनु पाः,
रमणीयाः च वत ते। अ य'रघव
ु श
ं ' नाम महाका यं उपमाल कार योगेनव
ै ार यते। अ य महाकवेः अ यः
व श टः गण
ु ः 'भाषासरलता' अि त।
एकपदे न उ रत –
1. क वकुलगु ः, क व शरोम णः, क व े ठः इ त कः उ यते?
2. वैि वकसा ह ये केन सह का लदास य तल
ु ना भव त?
पण
ू वा येन उ रत –
1. का लदास य रचना का?
2. त य रचनासु कं वै श यम ् अि त?
नदशानस
ु ारम ् उ रत –
1. 'त य कौशलम ् यथा प यरचनायाम ् तथैव नाटकेषु वतते।' अ ‘त य’ पदं क मै यु तम ्?(
न यै / दशरथाय / का लदासाय / रघव
ु श
ं ाय )
2. ' वाभा वक वषयवणनं, च र ानस
ु ा रपा चयनं, वभावोपि थता भनयं, का ये रसपा रकम ्
सत
ु रां वलोकयामः।' अि मन ् वा ये ‘ वलोकयामः’ इ त यापद य कतपदं
ृ कम ्? ( त य /
अहम ् / अ माकम ् / वयम ् )
3. उपमा का लदास य इ त उि त: त य वषये सु स धा अि त। अ ‘सु स धा’ इ त वशेषणं
क मै यु तम ्? ( भारतवषाय / उपमायै / गंगायै / न यै )
4. अ सु व यातः इ त पद य अ यः कः पयायः अि त?
( कुशलः / नपण
ु ः / द ः / सु स धः)

न. 2 अधो ल खतश दानां सं धं सं ध व छे दं च कु त।


1. दग बरः -..........+ अ बरः ( दक् / दग ्)
2. जगद शः -..........+ ईशः (जगत ् / जग )
3. अयं ग छ त-...........+ ग छ त (अयं / अयम ्)
4. त ल नः- तत ् + ................ ( लनः / ल नः)
5. सत ्+जनः- .................... (स जनः/ स जनः)
6. मनः+रथः- .................... (मनरथः / मनोरथः)
7. इतः+ततः- .................... (इत ततः/इत ततः)
8. मु नः+आग छ त- ............. (मु नराग छ त / मु नरगि छत)

न. 3 अ
​ धो ल खत श दानाम ् अथ लखत - (केचन - 10)
स प ृ तौ, सय
ू भवः, उडुपेन, म दः, उ बाहुः, कृतवा वारे , मणौ, आफलोदयकमणाम ्, जायै, विजगीषण
ू ाम ्,
यौवने, वाधके, चापलाय।

न. 4 उ चतं योजयत।
● आज मशु धानाम ् हे नः
● जगतः सू र भः
● ाचीनक व भः माता च पता च
● सव
ु ण य ज मतः प व णाम ्
● पतरौ लोक य

न.5 अधो ल खत-वा येषु रे खां कतपदानां कृ त- ययं संयो य वभ य वा लखत-


● म दः क वयशः ाथ ग म या म उप+हस ्+ यत ् ……….।
● व+शध
ु ्+ि तन…….
् या मकाऽ प वा।
● त गण
ु ःै कणम ् आग य चापलाय चो दतः
● हे नः संल यते ह अ नौ।

न. 6 अधो ल खत प यांशं प ठ वा नानाम ् उ रा ण लखत-

वागथा वव स प ृ तौ वागथ तप ये।


जगतः पतरौ व दे पावतीपरमे वरौ।।
एकपदे न उ रत –
1. जगतः पतरौ कौ तः?
पण
ू वा येन उ रत –
1. वागथा वव कौ संप ृ तौ तः?
यथा नदशम ् उ रत –
1. ‘श दः’ इ यथ कं पदम प यांशे यु तम ्?
2. ‘ पतरौ’ अ कः वभि तः?
3. जगतः इ य य पयायपदं लखत।

न. 7 अधो ल खतवा येषु रे खां कतपदानाम ् समास व हं वा द वक पे यः च वा लखत।


1. अि मन संसारे कौ पू यौ? नन
ू मेव पतरौ। (माता च पता च / माता पता / पता च पतरौ /
मात ृ च पत ृ च)
2. दानवीरः कणः दनं दनं त दानं करो त। ( त दनः / त दनम ् / त दन / दन दनम ्)
3. अहम ् आ व ृ े ि थ वा प चम वरे ण गाया म। (आ य व ृ े / आ ाणाम ् व ृ े / आ म ् व ृ े /
आ े वृ े )
4. सय
ू भवः, अ प वषया, ांशल
ु ये, यथापराधद डानाम ्

न. 8 अ
​ धो ल खत लोकानाम ् अ वयं कु त –
1. शैशवेऽ य त व यानां यौवने वषयै षणाम ्। वाधके मु नव ृ ीनां योगेना ते तनु यजाम ्।
अ वयः-.....(1)......अ य त व यानां.....(2)........ वषयै षणां। वाधके....(3).....अ ते.....(4)......
तनु यजाम ्।।
2. व सय
ू भवो वंशः व चा प वषया म तः? ततीषद
ु ु तरं मोहादड
ु ु पेनाि म सागरम ्।।
अ वयः – सय
ू भवो.....(1)...... व?.....(2).......म तः व,मोहा ....(3)....... सागरम ् …..(4)....
ततीषःु अि म।

न. 9 यथा न द टअधो ल खत नानाम ् उ रं लखत। लघउ


ु रय नाः – केचन प च
1. रघव
ु श
ं महाका य य र चयता कः?
2. रघव
ु श
ं महाका यं ग यका यं अथवा प यका यम ्?
3. महाक वका लदासः क त लोकेषु रघव
ु श
ं ीयानां रा ां गण
ु वणनमकरोत ्?
4. रघव
ु श
ं महाका य य थमसग क त लोकाः सि त?
5. रघव
ु श
ं महाका य य म गल लोकं क शम ्?
6. रघव
ु श
ं महाका य य कथा क त सगषु वभ ताः?

न. 10 ​अधो ल खत लोक य स स गं या यां कु त।

म दः क वयशः ाथ ग म या यप
ु हा यताम ्।
ांशल
ु ये फले लोभाद ु बाहु रव वामनः।।

न. 11 ​द घउ र य नाः – केचन प च
1. कमवलो य का लदासः रघव
ु श
ं लेखन य वक यां यो यतामनभ
ु व त?
2. अनु टुप छ द य ल णं सोदाहरणं लखत।
3. रघव
ु श
ं महाका य य म गल लोकं लखत।
4. उपमाऽल कार य ल णं सोदाहरणं लखत।
5. महाक व का लदासव णतान ् रघव
ु श
ं ीयरा ां अ टगण
ु ान ् लख त।ु
6. रघव
ु श
ं महाका य रच यतःु वनय दशकौ लोकौ लख त।ु
उ रमाला
एकपदे न उ रत –
1. महाक व का लदासः
2. शे स पयरे ण सह
पण
ू वा येन उ रत –
1. का लदासेन अ भ ानशाकु तलम ्, व मोवशीयम ्, माल वकाि न म ं च इ त ीण पका ण,
रघव
ु श
ं म ्, कुमारस भवम ् च इ त वे महाका ये, ऋतस
ु ह
ं ारम ्, मेघदत
ू ं च इत वे खंडका ये
वर चता न।
2. त य रचनासु सादं माधय
ु च गण
ु यो: अपव
ू सि म णं व यते। सं कृतसा ह ये का लदासः उपमायै
यातः अि त। क यते एव उपमा का लदास य, स यमेव अ य उपमाः अनु पाः, रमणीयाः च
वत ते।
नदशानस
ु ारम ् उ रत –
1. का लदासाय
2. वयम ्
3. उपमायै
4. सु स धः

न. 2 अधो ल खतश दानां सं धं सं ध व छे दं च कु त।


दग बरः- दक् +अ बरः, जगद शः- जगत ्+ ईशः, अयं ग छ त- अयम ्+ग छ त, त ल नः- तत ् +ल नः,
सत ्+जनः - स जनः, मनः+रथः - मनोरथः, इतः+ततः - इत ततः, मु नः+आग छ त - मु नराग छ त

​ धो ल खत श दानाम ् अथ लखत - (केचन - 10)


न. 3 अ
स प ृ तौ - स पकयु तौ, सय
ू भवः - भा करो प नः, उडुपेन - लवेन ् (लघु नौका), म दः - मढ
ू ः, उ बाहुः -
उ नतभज
ु ः, कृतवा वारे - व हतका य वेश,े मणौ - र ने, आफलोदयकमणाम ् - फल स धपय तं
कमाऽनु ठे तॄणाम ्, जायै - स तानाय, विजगीषण
ू ाम ् - वजयाऽ भला षणाम ्, यौवने - ता ये, वाधके -
व ृ ध वे, चापलाय - चा च याय।

न. 4 उ चतं योजयत।
● आज मशु धानाम ् ज मतः प व णाम ्
● जगतः लोक य
● ाचीनक व भः सू र भः
● सव
ु ण य हे नः
● पतरौ माता च पता च

न.5 अधो ल खत-वा येषु रे खां कतपदानां कृ त- ययं संयो य वभ य वा लखत-


1. उप+हस ्+ यत ् --- उपहा यताम ्
2. व+शध
ु ्+ि तन ् --- वशु धः
3. आग य --- आ +गम ्+ यप ्
4. संल यते --- सम ्+ल +ल (कम)
न. 6 अधो ल खत प यांशं प ठ वा नानाम ् उ रा ण लखत-
एकपदे न उ रत –
1. पावतीपरमे वरौ
पण
ू वा येन उ रत –
1. वागथा वव जगतः पतरौ पावती परमे वरौ संप ृ तौ तः।
यथा नदशम ् उ रत –
1. वाक्
2. थमा, ववचन
3. लोक य

न. 7 अधो ल खतवा येषु रे खां कतपदानाम ् समासं व हं वा द वक पे यः च वा लखत।


माता च पता च, त दनम ्, आ य व ृ े, सय
ू भवः - सय
ू ः भवः य य सः, अ प वषया - अ पः वषयः
य याः सा, ांशल
ु ये - ांशन
ु ा ल यं ांशल
ु यम ् ति मन ्, यथापराधद डानाम ् - अपराधम ् अन त य
यथाऽपराधम ्, यथाऽपराधं द डो येषां ते यथाऽपराधद डाः, तेषाम ्
​ धो ल खत लोकानाम ् अ वयं कु त –
न. 8 अ
1. शैशवे (1) अ य त व यानां यौवने (2) वषयै षणां। वाधके मु नव ृ ीनाम ् (3) अ ते योगेन (4)
तनु यजाम ्।।
2. सय
ू भवो वंश (1) व? अ प वषया (2) म तः व? मोहा द ु तरं (3) सागरम ् उडुपेन (4)
ततीषःु अि म।

न. 9 यथा न द टअधो ल खत नानाम ् उ रं लखत। लघउ


ु रय नाः – केचन प च
1. रघव
ु श
ं महाका य य र चयता महाक व का लदासः।
2. रघव
ु श
ं महाका यं प यका यम ्।
3. महाक वका लदासः प चसु लोकेषु रघव
ु श
ं ीयानां रा ां गण
ु वणनमकरोत ्।
4. रघव
ु श
ं महाका य य थमसग प चनव तः (95) लोकाः सि त।
5. रघव
ु श
ं महाका य य म गल लोकं नम कारा मकम ् अि त।
6. रघव
ु श
ं महाका य य कथा एकोन वंश त(19) सगषु वभ ताः।

न. 10 ​अधो ल खत लोक य स स गं या यां कु त।


स ग– तत
ु लोक म का लदास ने सय
ू वंश का वणन सफलतापव
ू क न कर पाने के अन तर अपने
को अपयश का पा बताने का उप म कया है ।
अ वय – म द क वयशः ाथ ांशल
ु ये फले लोभात ् उ बाहुः वामन इव उपहा यतां ग म या म।
अनव
ु ाद – म मख
ू हूँ और क व के यश को ा त करने के इ छुक हूँ। ऐसा म का लदास उ नत पु ष के
वारा ा त करने यो य फल क ओर लोभ से ऊपर हाथ उठाये हुए बौने यि त के समान उपहास का
पा बनग
ंू ा।

न. 11 ​द घउ र य नाः – केचन प च
1. पव
ू कवीनां का या यवलो य का लदासः वक यां रघव
ु श
ं का य य लेखने अयो यतामनभ
ु व त।
2. अनु टुप छ द य ल णं – ​ लोके ष ठं गु ेयं सव लघप
ु चमम ्। वचतु पादयोः व वं
स तमं द घम ययोः।। अनु टुप या लोक के येक पाद म 8 अ र होते ह। इसम ष ट अ र
सदा गु होता है और पंचम अ र सदा लघ।ु वतीय और चतथ
ु चरण म स तम अ र लघु
होता है और थम तथा तत
ृ ीय चरण म गु होता है । अ य अ र लघु या गु हो सकते ह।
उदाहरण - अख डम डलाकारं या तं येन चराचरम ्। च ु मी लतं येन त मै ी गरु वे नमः।।
3. रघव
ु श
ं महाका य य म गल लोकं –
वागथा वव स प ृ तौ वागथ तप ये।
जगतः पतरौ व दे पावतीपरमे वरौ।।
4. उपमाऽल कार य ल णं – ​साध यमप
ु मा भेदे। सा यं वा यमवैध य वा यै य उपमा वयो:।
दो व तओ
ु ं म भेद रहने पर भी, जब उनक समानता का तपादन कया जाता है , तब वहाँ
उपमा अलंकार होता है । उदाहण- ​र वसं ा तसौभा य तष
ु ारा णम डल:। न: वासा ध
इवादश च मा न काशते।। अथात ् - सय
ू के वारा सं मत कए गए काश वाला तथा धु ध
के कारण म लन कर दए गए लाल वण वाला च मा, वास के कारण म लन दपण क तरह
का शत नह ं हो रहा है ।
5. रघव
ु श
ं ीयेषु राजसु न नां कता गण
ु ा आसन ् –
(क) रघव
ु श
ं ीयाराजानः आज मशु धा आसन ्।
(ख) रघव
ु श
ं ीया राजान: फल ाि तकालं कमानु ठानमकाषः।

(ग) रघव
ु श
ं ीया राजानः समु पय तायाः प ृ थ या: ाशसका आसन ्।
(घ) रघव
ु श
ं ीया राजानो यथा व ष हुता नय आसन ्।
(ङ) रघव
ु श
ं ीया राजान: यथाकामा चता थनःआसन ्।
(च) रघव
ु श
ं ीया राजान: अपराधानस
ु ारे ण द डमदःु ।
(छ) रघव
ु श
ं ीया राजानः यथाकाल बो धनोऽभव
ू न ्।
(ज) रघव
ु श
ं ीया राजानः दानं दातंु धन य सं हं च ु ः।
6. रघव
ु श
ं महाका य रच यतःु वनय दशकौ लोकौ न नां कतौ तः –
वसय
ू भवो वंश: वचा प वषया म तः।
ततीषद
ु ु तरं मोहादड
ु ु पेनाि म सागरम ्।।
म दः क वयशः ाथ ग म या यप
ु हा यताम ्।
ांशल
ु ये फले मोहाद ु बाहु रव वामनः।।

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