You are on page 1of 6

पञ्चम अध्‍या्‍

ए‍ेतिहयातिक महयाकयाव््‍

भारत में ऐततहातिक तिषयों को लेकर कावय तलखने की एक प्ाचीन परमपरा है। िैतिक ऋतषयों
की िचू ी, महाभारत एिं परु ाण आति में िी गई िश ं ािली अथिा िश ं िृक्ष एेततहातिक दृतटि
के िाक्षात् प्माण हैं। तितभनन प्कार के अतभलेख-तशलालेख, मतनिरों की िीिारों, गफु ाओ ं
अथिा ताम्रपत्ों पर अतं कत तितभनन िण्णन आति भारतीयों के इिी ऐततहातिक तचनतन
को अतभवयक्त करते हैं। रामायण, महाभारत एिं परु ाणों की परमपरा का तिकाि शनै:-शनै:
ऐततहातिक महाकावय परमपरा में हुआ। राजतरंतिणी इिी परमपरा का एक प्मख ु ग्रनथ है। यहाँ
यह सपटि होना अतनिाय्ण है तक हमारी इततहाि की कलपना कुछ तभनन प्कार की थी।
कुछ पाश्ात्तय तिद्ानों ने भारतीयों के तिषय में यह िष्ु प्चार तकया तक उनमें ऐततहातिक
चेतना का अभाि था, तकनतु राजतरंतिणी आति अनेक कावयग्रनथ इि आक्षेप का पया्णप्त
रूप में तनराकरण करते हैं। प्ाचीन भारतीय परमपरा में घटनाओ ं का िामानयत: तििरण
तो लोग िेते थे, तकनतु उनके िाथ तततथयों को अतं कत नहीं करते थे। इि अथ्ण में ही
महाभारत को इततहाि-ग्रनथ कहा गया है। िैतिक िातहतय के अनश ु ीलन िे पता चलता
है तक इततहाि तलखने िालों का एक अलग िग्ण था। इततहाि के अनतग्णत घटनाओ ं का
िचचा तििरण तिया जाता था।
राजशेखर के अनिु ार इततहाि िो प्कार का होता है— पररतरिया और परु ाकलप।
पररतरिया उि इततहाि को कहते हैं, तजिका नायक एक वयतक्त होता है अथा्णत्
तकिी एक राजा के चररत् का िण्णन करना पररतरिया है। रामायण, नविाहिांकचररत,
तवक्रमांकदेवचररत आति इिी प्कार के ग्रनथ हैं। ििू री ओर परु ाकलप िह इततहाि है
तजिमें अनेक नायकों का िण्णन होता है। महाभारत, राजतरंतिणी आति इिी प्कार के
इततहाि-ग्रनथ हैं।
यति हम िंसकृ त के अतभलेखों का अधययन करें तो िहाँ पया्णप्त ऐततहातिक िचू नाएँ
कावय के रूप में तमलेंगी। यहाँ तक तक उनमें तततथयों का भी तनिदेश हुआ है। यह िही है तक
ििं ार की क्षतणकता की िाश्णतनक भािना िे अतभभतू होने के कारण िसं कृ त के तिद्ानों ने
लौतकक वयतक्तयों तथा घटनाओ ं को बहुत महत्ति न िेकर राम, कृ ष्ण, तशि आति िेिताओ ं
के तिषय में ही महाकावय तलखे। तफर भी राजाओ ं की प्शतसत का गान करने िाले कतियों

2022-23

Chapter-5.indd 49 12/7/2021 9:58:21 AM


का भी यहाँ अभाि नहीं था। लेतकन आज ऐिी अनेक कृ ततयाँ नटि हो चक ु ी हैं तजनमें
ऐततहातिक तथयों का भण्ार था। लोकोत्तर चररत् का िण्णन करने िाले महाकावयों को
यहाँ अतिक िममान तमला, जबतक लौतकक परुु षों िे िमबद्ध कावय िममान नहीं पा िके ।
तवक्रमांकदेवचररत अज्ात कोने में पडा रहा, जबतक नैषधीयचररत टीकाओ ं िे तिभतू षत
होता रहा। एक ही लेखक बाणभट्ट की कादम्बरी पतण्तों के बीच आिर पाती रही, जबतक
उनका हष्षचररत उतना आिर नहीं पा िका। तफर भी कतियों ने अपने आश्रयिाताओ ं की
प्शतसतयाँ गद्य में या महाकावयों के रूप में तलखीं। गप्तु काल के अतभलेखों में इन प्शतसतयों
का उतकष्ण तिखाई िेता है। यह तिशेष रूप िे उललेखनीय है तक इततहाि पर कावय का ऐिा
गहरा रंग चढा है तक शद्धु इततहाि को तनकालना बहुत कतिन हो गया।
प्यारत्भिक ग्रन्थ
िंसकृ त िातहतय में ऐततहातिक रचनाएँ भी कावय के रूप में ही तमलती हैं। कतियों ने
अपनी रचनाओ ं द्ारा अपने आश्रयिाताओ ं को अमर कर तिया। बाणभट्ट (630 ई.) ने
अपने आश्रयिाता हष्णिि्णन के प्ारतमभक जीिन को आिार बनाकर हष्षचररत नामक
गद्य-कावय तलखा। िसततु : इि रचना में बाण ने अपना, हष्णिि्णन का तथा उिके पिू ्णजों
का भी कावयातमक िण्णन तकया है। इिमें हष्ण की राजयप्ातप्त के िमय तक की घटनाओ ं
का िण्णन है। िाकपततराज ने प्ाकृ त कावय (िउडवहो) में कननौज के राजा यशोवम्षन की
तिजय का िण्णन तकया है। इनका िमय 750 ई. है। कशमीर के लतलतातितय ने यशोवम्षन
को िंग्राम में हराया था। इि कावय में ग्रामीण जीिन के िजीि तचत् तमलते हैं। पद्मगप्तु का
नविाहिांकचररत (1005 ई.) एक प्कार िे िंसकृ त का पहला ऐततहातिक महाकावय
है, तजिमें 18 िग्ण हैं। इिमें मालि-नरे श तिनिरु ाज का इततहाि ितण्णत है। तिनिरु ाज
भोज के तपता थे। इि महाकावय में शतशप्भा के िाथ उनके तििाह का िण्णन है। पद्मगप्तु
पहले राजा मञु ज के िभाकति थे। मञु ज की मृतयु के बाि तिनिरु ाज ने पद्मगप्तु का आिर
तकया। पद्मगप्तु पर कातलिाि की रिमयी पद्धतत का बहुत प्भाि है, इिीतलए इनहें
पररमल-कातलिाि भी कहा गया है।
तिक्रमयांकद‍ेि्चररि
इि कावय के लेखक तबलहण कशमीरी थे तथा तशतक्षत होने के बाि भ्रमण हेतु कशमीर
छोडकर तनकल पडे। मथरु ा, कननौज, प्याग, काशी इतयाति सथानों िे होते हुए िे अनत
में कलयाण के चालकु य-नरे श तिरिमातितय (षष्ठ) की राजिभा में पहुचँ ।े तबलहण का िहाँ
बहुत िममान हुआ। अपने िंरक्षक की प्ंशिा में तबलहण ने िहीं 18 िगगों का महाकावय
तवक्रमांकदेवचररत तलखा। इिका रचनाकाल 1088 ई. है। मल ू त: यह ऐततहातिक ग्रनथ
50 संस्‍कृ त साहित्य — परिच्य

2022-23

Chapter-5.indd 50 12/7/2021 9:58:24 AM


है, तजिे महाकावय के रूप में प्सततु तकया गया है। राजा तिरिमातितय के पिू ्णजों का िण्णन
करते हुए इनहोंने इिके प्थम िात िगगों में ऐततहातिक तथय तिए हैं। इिमें आििें िग्ण िे
ित्हिें िग्ण तक तिरिमातितय (षष्ठ) का कावयातमक िण्णन है। इिमें मखु यत: नायक और
नातयका का प्णय ितण्णत है। तििाह, जलरिीडा, मृगया आति के िण्णन में तबलहण ने कई
िग्ण के िल महाकावय-िम्ण का तनिा्णह करने के तलए लगाए हैं। तबलहण इततहािकार के
रूप में तनष्पक्ष नहीं है कयोंतक िे राष्ट्रकूटों पर तैलप (873-97 ई.) की तिजय का तो िण्णन
करते हैं, तकनतु मालि-नरे श द्ारा उिकी पराजय का नहीं। तबलहण इि महाकावय के िो
िगगों में अपने िंरक्षक के पाररिाररक कलह का भी िण्णन करते हैं। अतं तम िग्ण में उनहोंने
अपने कुटुमब का िण्णन करते हुए अपनी भारत-यात्ा का भी िृत्तानत तलखा है।
कावय की दृतटि िे तवक्रमांकदेवचररत बहुत िफल है। इिमें प्िाह, रोचकता और
िरलता िभी गणु हैं। यह प्िािपणू ्ण िैिभभी शैली में तलखा गया है। भाषा िरल और
सपटि है। लंबे िमािों का प्योग इिमें नहीं तमलता। कातलिाि की कावयशैली तबलहण
पर छायी हुई है। तबलहण ने चौरपञचातशका नामक गीततकावय भी तलखा था। अपनी
जनमभतू म कशमीर पर कति को बहुत गि्ण है। िे कहते हैं तक के िर तथा कतिता कशमीर
को छोडकर अनयत् नहीं होती। कसतरू ी की गंि िे यक्त ु पशमीने का चािर तथा तितसता
(झेलम) में चलने िाली नौकाएँ कशमीर को सिग्ण बना िेती हैं। तबलहण में कतितिशतक्त
एिं पातण्तय के िाथ-िाथ ऐततहातिक चेतना भी है।
रयाजिरंतिणी
राजतरंतिणी तनतश्त रूप िे िसं कृ त िातहतय का श्रेष्ठ ऐततहातिक ग्रथं है, तजि पर कावय का
रंग बहुत गहरा नहीं है। कलहण और उनके इि ग्रनथ पर िसं कृ त िातहतय को गि्ण है। कलहण
के तपता चमपक कशमीर के राजा हष्ण के िचचे अनयु ायी थे। हष्ण की हतया हो जाने पर चमपक
ने राजनीतत िे िनं याि ले तलया और इितलए कलहण भी राजनीतत िे ित्चत रह गए। हष्ण
के िगं ीत-तशक्षक कलहण के चाचा कनक थे। राजा उनिे पणू त्ण : प्भातित थे। उनहीं के कारण
पररहािपरु में बद्ध
ु प्ततमा को बचाया जा िका था। कलहण तशि के भक्त होते हुए भी बौद्धमत
के प्शिं क थे। उनहोंने िसं कृ त िातहतय का गहन अधययन तकया था। उनहोंने राजतरंतिणी
की रचना में कशमीर के िमसत ऐततहातिक िािनों का प्योग तकया था। उनहोंने इि कावय
को 1148 ई. में तलखना आरंभ करके तीन िषगों में परू ा तकया। कलहण कहते हैं तक उनहोंने
प्ाचीन राजाओ ं के कथािग्रं ह, नीलमतपरु ाण, तितभनन तशलालेख, प्शतसत-पत्, प्ाचीन
मद्ु ा आति का उपयोग करके इि इततहाि-ग्रनथ को प्ामातणक बनाया है। उनहोंने िेिालयों,
प्ाचीन भिनों, समारकों और शािन-पत्ों का भी अिलोकन तकया था।

ए‍ेतिहा
िहातततिक
िक महाकाव्‍य 51

2022-23

Chapter-5.indd 51 12/7/2021 9:58:25 AM


राजतरंतिणी में आि तरंग हैं। इिमें आििाँ तरंग ग्रनथ का प्ाय: अि्णभाग है। इिमें
िमकातलक तथा तनकट अतीत का इततहाि है। कति के िाक्षात् अनभु ि पर आतश्रत होने
के कारण इि तरंग की बातें तिशेषत: प्ामातणक हैं। आरतमभक तरंगों में परु ाणों का आिार
तलया गया है, इितलए कलपना का िमािेश िहाँ अतिक है। जैि-े जैिे कति ििु रू अतीत िे
तनकट अतीत की ओर अग्रिर होता गया, िैि-े िैिे उिके िण्णनों में प्ामातणकता बढती गई।
राजतरंतिणी का आरमभ तकिी गोननि नामक राजा के िण्णन िे होता है, तकनतु
प्थम तीन तरंगों में काल या तततथ का उललेख नहीं है। इिमें पहली तततथ 813 ई. के
आिपाि है और यहाँ िे आरमभ करके 1150 ई. तक की घटनाओ ं का प्ामातणक, पणू ्ण
और िैज्ातनक रीतत िे िण्णन तकया गया है। नैततकता का प्चार करना कलहण का मखु य
उद्ेशय लगता है, इितलए कई राजाओ ं और मतनत्यों के अनैततक कायगों का िण्णन इनहोंने
खल ु कर तकया है। कलहण ने कशमीर में िातम्णक ितहष्णतु ा तिखाई है, तकनतु कुछ राजाओ ं
के िम्ण-तिरोिी कायगों को भी इनहोंने प्कातशत तकया है। कलहण के इततहाि पर भारतीय
जीिन-िश्णन, यगु तिभाजन, कम्ण-तिद्धानत, भागयिाि, तनत्-मनत् आति का सपटि प्भाि
है। इनहोंने कशमीरी नागररकों की कटु आलोचना की है। लोभी परु ोतहतों, अनश ु ािनहीन
िैतनकों तथा िटिु कम्णचाररयों की इनहोंने घोर तननिा की है। रानी तिद्ा की महत्तिाकांक्षा का
इनहोंने तिसतार िे िण्णन तकया है।
राजतरंतिणी एक िचचे इततहािकार द्ारा कावयातमक शैली में तलखा गया ग्रनथ है।
अलंकारों का प्योग बहुत सिाभातिक रूप िे इिमें तकया गया है। प्ाय: परू ा ग्रनथ अनटिु ुप्
छनि में तलखा गया है। कहीं-कहीं छनि बिले गए हैं। कलहण मल ू त: अपने को कति
बतलाते हैं। कुल तमलाकर यह महाकावय िसं कृ त का गौरि-ग्रनथ है।
अन्‍ ऐतिहयातिक महयाकयाव््‍
कलहण की राजतरंतिणी को आगे बढाने का काय्ण तितभनन कालों में जोनराज (1450 ई.),
श्रीिर (1486 ई.) तथा शक ु (1586 ई.) ने तकया। फलत: अपने-अपने िमय तक का
इततहाि इन कतियों ने प्सततु तकया। अकबर को राजतरंतिणी िे बडा प्ेम था, इितलए
इिका अनिु ाि उिने फारिी में कराया। फारिी में इिके तीन अनिु ाि तमलते हैं।
िसं कृ त में ऐततहातिक कावय परंपरा आगे भी चली। जलहण ने िोमपालतवलाि में िसु िल
द्ारा तितजत राजपरु ी के राजा का तििरण तलखा। हेमचनद् (1088-1172 ई.) ने अनतहलिाड
के चालकु य-नरेश कुमारपाल िे िमबद्ध कुमारपालचररत तलखा। इिमें जैनमत की मतहमा का
िण्णन अतिक तथा इततहाि कम है। तेरहिीं शताबिी के कति िोमेश्वर ने कीतत्षकौमदु ी नामक
महाकावय में गजु रात के राजा िसतपु ाल का िण्णन तकया है। राजा बीिलिेि के िभापतण्त
अररतिहं ने 11 िगगों का िक ं ीत्षन नामक महाकावय तलखा। इिमें िसतपु ाल के िातम्णक
ु ृ त िक
52 संस्‍कृ त साहित्य — परिच्य

2022-23

Chapter-5.indd 52 12/7/2021 9:58:25 AM


कृ तयों का िण्णन है। तिजयनगर के राजपररिार की ििू गगं ािेिी ने 1371 ई. के आिपाि
अपने पतत (कमपण) की ितक्षण-तिजय पर आतश्रत आि िगगों का महाकावय मधरु ातवजय
तलखा। नयचनद्िरू र ने हममीर-महाकावय 14 िगगों में तलखा, तजिमें रणथमभौर के चौहान नरेश
हममीर का िण्णन तकया गया है। जयानक ने पृथवीराजतवजय महाकावय (1191-93 ई.) तलखा,
जो अपणू ्ण रूप में के िल 12 िगगों में प्ाप्त हुआ है। आितु नक काल में ्ॅा. काशीनाथ तमश्र ने
राजतरंतिणी के ढाँचे पर तमतथला के कणा्णटिश ं ीय राजाओ ं का िण्णन करते हुए आि तरंगों में
कणयाणाटरयाजिरतं िणी तलखी। इि प्कार कतियों ने तकिी राजा या उनके कायगों िे प्िनन होकर
ऐततहातिक महाकावय तलखे हैं। तशवराजयोदय, छत्रपततचररत, िात्धचररत, तववेकान्दचररत,
िरुु िोतव्दतिहं चररत आति बीििीं शताबिी में तलखे गए ऐततहातिक महाकावय हैं।
ध्‍यािव््‍ तिनददु
♦ ऐतिहयातिक महयाकयाव््‍ — भारतीय ऐततहातिक तिषयों को लेकर तलखे गए कावय।
♦ रयाजश‍ेखर क‍े अनदुियार इतिहयाि क‍े दो भि‍ेद — (i) पररतरिया और (ii) परु ाकलप
(i) पररतक्र्‍या — एक नायक के िण्णन िाला इततहाि। यथा — रामायण,
नविाहिांकचररत, तवक्रमांकदेवचररत आति।
(ii) पदुरयाकल्प — अनेक नायकों के िण्णन िाला इततहाि। यथा — महाभारत,
राजतरंतिणी आति।
♦ हरणा्चररि
लेखक — बाणभट्ट।
तिषय — राजा हष्णिि्णन का िण्णन।
♦ िउडिहो (प्याकृिकयाव््‍)
लेखक — िाकपततराज।
तिषय — कननौज के यशोिम्णन की तिजय का िण्णन।
♦ निियाहियांक्चररि
लेखक — पद्मगप्ु त।
तिषय — मालि-नरे श तिनिरु ाज का इततहाि िण्णन।
♦ तिक्रमयांकद‍ेि्चररि
लेखक — तबलहण।
तिषय — चालकु य-नरे श तिरिमातितय (षष्ि) की प्शिं ा का िण्णन।
िग्ण — 18
♦ रयाजिरंतिणी
लेखक — कलहण।
ए‍ेतिहा
िहातततिक
िक महाकाव्‍य 53

2022-23

Chapter-5.indd 53 12/7/2021 9:58:25 AM


तिषय — प्ाचीन गोननि राजा िे लेकर 1150 ई. तक के राजाओ ं िे िमबतनित
घटनाओ ं का िण्णन।
तरंग — आि
छनि — प्ाय: अनष्ु टुप।्
♦ कदुमयारपयाल्चररि
लेखक — हेमचनद्। िमय — 1088–1172 ई.।
तिषय — अनतहलिाड के चालकु य-नरे श कुमारपाल का िण्णन।
♦ कीतिणाकौमदुदी
लेखक — िोमेशिर।
तिषय — गजु रात के राजा िसतपु ाल का िण्णन।
िमय — तेरहिीं शताबिी।
♦ िकदु ृ ि-िक
ं ीिणान
लेखक — राजा िीिलिेि के िभापतण्त अररतिंह।
तिषय — िसतपु ाल के िातम्णक कृ तयों का िण्णन।
िग्ण — 11
♦ मधदुरयातिज्‍
लेतखका — तिजयनगर के राजपररिार की ििू गंगािेिी।
तिषय — कमपण की ितक्षण तिजय का िण्णन।
िमय — 1371 ई. के आिपाि।
िग्ण — 8
♦ ह्मीर-महयाकयाव््‍
लेखक — नयचनद्िरू र।
तिषय — रणथमभौर के चौहान-नरे श हममीर का िण्णन।
िग्ण — 14
♦ पथृ िीरयाजतिज्‍
लेखक — जयानक
िमय — 1191–93 ई.
िग्ण — अपणू ्ण रूप में के िल 12 िगगों में प्ाप्त।
♦ कणयाणाटरयाजिरंतिणी
लेखक — ्ॉ. काशीनाथ तमश्र (आितु नक काल)
तिषय — ‘राजतरंतगणी’ के ढाँचे पर तमतथला के कणा्णटिंशीय राजाओ ं का िण्णन।
तरंग — आि

54 संस्‍कृ त साहित्य — परिच्य

2022-23

Chapter-5.indd 54 12/7/2021 9:58:26 AM

You might also like