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प्राचीन भारत का इततहास

Complete Notes
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अतीत की घटनाओ ं का हुबहू वर्णन ही इततहास कहलाता है तथा वे


साक्ष्य जो हमें इततहास का ज्ञान करवाते हैं, ऐततहातसक साक्ष्य कहलाते हैं
तथा इन्हीं आधार पर मख्ु य रूप से इततहस को तीन भागों में बााँटा गया है-
(i) प्रागैततहातसक काल - 1450 करोड़ पथ्ृ वी
(ii) आद्यऐततहातसक काल - IVC समझा नहीं
(iii) ऐततहातसक काल -
 खदु ाई के दौरान
 अतभलेख
 मतू तणयााँ, तसक्के , खदु ाई
(iv) तवद्वानों के लेख, आत्मकथाएाँ, जीवनी
भारतीय इततहास
भारतीय इततहास की शरू ु आत तसधं ु घाटी सभ्यता से मानी जाती है। तथा
2350 ई. पवू ण से लेकर वतणमान तक का इततहास तीन भागों में बााँटा गया है।

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तसध िं ु घाटी सभ्यता:- तसधं ु घाटी सभ्यता का तवकास तसधं ु तथा उसकी सहायक
नतदयों के आस-पास हुआ है तथा सात सैन्धव नतदयााँ तसधं ु नदी से ही सबं तं धत
है।
• तसिंधु घाटी सभ्यता का तिस्तार :- वर्ण 1921 में सवणप्रथम दयाराम साहनी
द्वारा वतणमान पातकस्तान में पजं ाब प्रातं के मोल्ट गोमरी तजले में हड़प्पा शहर को
ढूंढा गया तथा अगले ही वर्ण तसंध प्रांत के लरकाना तजले में राखलदास बनजी
(R.D.) द्वारा मोहनजोदड़ो की खोज की गई तथावर्ण 1924 में भारतीय
परु ातातत्वक तवभाग के प्रमख ु जॉन माशणल के द्वारा तवश्व पटल पर है।
• वतणमान में यह सभ्यता भारत, पातकस्तान तथा अफगातनस्तान में फै ली हुई है।
• तसधं ु घाटी सभ्यता का कालक्रम 2350-1750 BC माना गया है।
• यह काबणन डेतटंग पद्धतत (C14) द्वारा यह ज्ञात तकया गया है।
• तवतभन्न तवद्वानों के कालक्रम को लेकर अलग-अलग मत है और सवणमान्य
काबणन डेंतटंग को ही माना गया है तथा तसधं ु घाटी के लोग द्रतवड़ तथा भमू ध्य
सागरीय थे।
तसधं ु घाटी सभ्यता एक नगरीय सभ्यता भी क्योंतक तवतभन्न प्रकार के
सतु नयोतजत शहर इस सभ्यता से प्राप्त हुए हैं।
मोहनजोदड़ो:-
 यहााँ मकान पक्की ईटोंं के बने थे तथा मकानों को तवतधवत नक्शों से बनाया
जाता था।
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 सड़के तिड प्रर्ाली में थी तथा एक-दसू रे को समकोर् पर काटती थी।
 घरों के बाहर उत्तम जल तनकासी व्यवस्था प्राप्त होती है तथा नातलयााँ ईटं तथा
लकड़ी की बनी थी।
 स्नानागार प्राय: गली की तरफ बनाया जाता था।
 मोहनजोदड़ों से एक तवशाल स्नानागार प्राप्त हुआ है, तजसका उपयोग सभं वत:
सामतू हक स्नान के तलए तकया जाता था जो 11.88 मीटर लंबा, 7.01 मीटर
चौड़ा, 2.43 मीटर गहरा था (39 x 23 x 8 फीट)। इस स्नानागार का उपयोग
धातमणक अनष्ठु ानों के तलए तकया जाता होगा, क्योंतक इसके पास परु ोतहत
आवास के भी प्रमार् तमले हैं
 मोहनजोदड़ों का अन्य नाम मतृ कों का टीला व नखतलस्तान है तथा यहााँ
तवतभन्न प्रकार की कब्रे व कतब्रस्तान तमले हैं। शहर दो टीलों में तवभक्त था
तजसके तहत पवू ी टीला व पतिमी टीला या एक टीले पर दगु ण के साक्ष्य तथा
दसू रे टीले पर श्रतमक आवास के साक्ष्य तमले हैं।
 मोहनजोदड़ों से कांस्य की नतृ की की मतू तण प्राप्त हुई है तथा तााँबे का रथ जैसी
सरं चना भी तमली है।
 मोहनजोदड़ों से पशपु तत तशव की मतू तण की प्रातप्त हुई है। इस मतू तण में एक योगी
ध्यान मद्रु ा में बैठा है तथा उसके तीन तसर व तीन सींग है तथा तजसके दोनों ओर
गेंडा व भैंसा और हाथी बाह्य से है।
 यहााँ से दाढ़ी वाले व्यतक्त की लकड़ी से बनी मतू तण प्राप्त हुई है तथा तजसने कपड़े
पहन रखे (Stelite) थे।
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 कुबड़ वाले बैल की मतू तण तमली है।
 यहााँ पर अन्नागार की प्रातप्त भी हुई।
हड़प्पा - हड़प्पा तसधं ु घाटी सभ्यता का पहला शहर था, इसीतलए इसे तसधं ु घाटी
सभ्यता के प्रतीक रूप में भी जाना जाता है। यह रावी नदी के तकनारे तमला था।
हड़प्पा से स्वातस्तक तचह्न तमला है यहााँ 6 अन्नागार तमले हैं तथा तवतभन्न
मतू तणयों पर शगंृ ी पशओ
ु ं का तचत्रर् तमला है।
यहााँ से
 संयक्तु रूप में दफन कतब्रस्तान
 पर्ू ण शवाधान
 आतं शक शवाधान
 अतं येष्टी - जला
 कलश शवाधान के साक्ष्य तमले हैं।
कालीबंगा सभ्यता - हनमु ानगढ़ (राजस्थान), घग्घर नदी के तकनारे
 भक ू ं प के साक्ष्य
 बड़ी मात्रा में काले रंग की तमटटी की चतु ड़या
 जतू े हुए खेत के साक्ष्य तथा एक साथ कई फसल उगाने के साक्ष्य तमले हैं।
 यगु ल शवाधान
 एक पल्ले का दरवाजा
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ऊाँट की अतस्थयााँ, वर्ृ भदेव की मतू तण
लोथल:- गजु रात
बंदरगाह शहर था, जो खंभात की खाड़ी के पास प्राप्त हुआ था तथा यहााँ
से फारस की मद्रु ा प्राप्त हुई तजससे प्रतीत होता है तक तसंधु लोग तवदेशी व्यापार
करते थे। चावल उगाने के अवशेर् तचतत्रत मद् ृ ांड तमला है, जो पच ं तत्रं की
चालाक लोमड़ी की याद तदलाता है।
बंदरगाह शहर होने के कारर् यहााँ गोदीवाड़ा के प्रमार् तथा यहााँ एक
पैमाना प्राप्त हुआ है जो तक हाथी दााँत का बना था।
चन्हुदड़ो:- पातकस्तान, तसधं ु नदी के तकनारे
झाँक
ु र व झांगर संस्कृतत के प्रमार् तमले, मनके बनाने का कारखाना,
तबल्ली के पंजे के तनशान, अतग्नवेतदका, सौंदयण प्रसाधन के साक्ष्य भी तमले हैं
तथा एकमात्र स्थान जहााँ दगु ण के साक्ष्य नहीं तमले हैं।
तसिंधु लोगों का धातमिक जीिन-
तसधं ु सभ्यता के लोग धातमणक प्रवतृ त के थे तथा यहााँ मातदृ वे ी की देवताओ ं की
भााँतत उपासना की जाती थी, तसंधु सभ्यता से पशपु तत तशव की मतू तण अद्धण
नारे श्वर की मतू तण और तवतभन्न प्रकार की मातदृ वे ी की लघु मर्ृ मतू तणयााँ तमलती है।
यहााँ प्रकृतत पजू ने, तलंग पजू ा, योतन पजू ा, वक्ष
ृ पजू ा का प्रमार् भी तमलता है।
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हड़प्पा से एक कुबड़वाले बैल का साक्ष्य भी तमला है तथा एक सींग वाला
जानवर के साक्ष्य तमले हैं। स्वातस्तक का तचह्न भी तमला।
ये लोग अधं तवश्वासी थे तथा जादू टोने, ताबीज गण्डे, नरबतल, कब्र में जानवरों को
ले जाना आतद।
मतं दर के साक्ष्य नहीं तमले हैं अतग्नवेतदका तमली।
सामातजक जीिन:- तसंधु समाज, पर आधाररत था तथा पररवार मातृ सत्तात्मक
था व समाज चार वगों में बाँटा हुआ था।
1. योद्धा वगण :- राजा, सैतनक, रक्षक
2. तवद्वान वगण:- परु ोतहत, ज्योततर्, जादु टोना करने वाले
3. व्यापारी वगण:-
4. श्रतमक वगण:- कृर्क, मजदरू
कपास का प्रथम (उत्पादन) तसंधु घाटी लोगों ने तकया। ये लोग शाकाहारी व
मांसाहारी दोनों प्रकार के थे। ये मनोरंजन प्रेमी थे तथा नत्ृ य व खेलों के प्रमार्
तमलते हैं।

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व्यापार तकया करते थे तथा तवदेशी व्यापार के साक्ष्य तमले हैं। तााँबे व कााँसे से
पररतचत थे परन्तु लोहे से पररतचत नहीं थे, इसीतलए इसे कास्ं ययगु ीन सभ्यता भी
कहा जाता है। मछली पकड़ना, तचतड़या का तशकार करना आतद।
जानवर:- बैल, गाय, कुत्ते, हाथी, सअ
ु र, तबल्ली, घोडे,े़ बकरा आतद से पररतचत
थे।
हड़प्पा - हड़प्पा तसधं ु घाटी सभ्यता का पहला शहर था, इसीतलए इसे तसधं ु घाटी
सभ्यता के प्रतीक रूप में भी जाना जाता है। यह रावी नदी के तकनारे तमला था।
हड़प्पा से स्वातस्तक तचह्न तमला है यहााँ 6 अन्नागार तमले हैं तथा तवतभन्न
मतू तणयों पर शंगृ ी पशओ
ु ं का तचत्रर् तमला है।
यहााँ से
 संयक्तु रूप में दफन कतब्रस्तान
 पर्ू ण शवाधान
 आतं शक शवाधान
 अंतयेष्टी - जला
 कलश शवाधान के साक्ष्य तमले हैं।
कालीबंगा सभ्यता - हनमु ानगढ़ (राजस्थान), घग्घर नदी के तकनारे
 भक
ू ं प के साक्ष्य

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 बड़ी मात्रा में काले रंग की तमटटी की चतु ड़या
 जतू े हुए खेत के साक्ष्य तथा एक साथ कई फसल उगाने के साक्ष्य तमले हैं।
 यगु ल शवाधान
 एक पल्ले का दरवाजा
ऊाँट की अतस्थयााँ, वर्ृ भदेव की मतू तण
लोथल:- गजु रात
बंदरगाह शहर था, जो खभं ात की खाड़ी के पास प्राप्त हुआ था तथा
यहााँ से फारस की मद्रु ा प्राप्त हुई तजससे प्रतीत होता है तक तसधं ु लोग तवदेशी
व्यापार करते थे। चावल उगाने के अवशेर् तचतत्रत मद् ृ ांड तमला है, जो पंचतंत्र
की चालाक लोमड़ी की याद तदलाता है।
बंदरगाह शहर होने के कारर् यहााँ गोदीवाड़ा के प्रमार् तथा यहााँ एक पैमाना
प्राप्त हुआ है जो तक हाथी दााँत का बना था।
चन्हुदड़ो:- पातकस्तान, तसंधु नदी के तकनारे
झाँक
ु र व झांगर संस्कृतत के प्रमार् तमले, मनके बनाने का कारखाना,
तबल्ली के पंजे के तनशान, अतग्नवेतदका, सौंदयण प्रसाधन के साक्ष्य भी तमले हैं
तथा एकमात्र स्थान जहााँ दगु ण के साक्ष्य नहीं तमले हैं।
िैतदक जीिन:-

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 भारत में वैतदक काल में रहने वाले लोगो की वैतदक आयण कहा गया है। तथा यह
सप्त सैंधव प्रदेश में रहते थे जहााँ मख्ु य रूप से सात नतदयााँ बहती थी तजसमें
सबसे प्रमखु नदी तसंधु थी तथा इसकी सहायक नतदयााँ अलग-अलग नामो से
जानी जाती थी।
 तसधं ु
 सरस्वती
 रावी – परू
ु ष्र्ी
 तचनाब- अतककनी
 झेलम – तवतस्ता
 सतलज – शतु द्वु ी
 व्यास – तवपाशा
 सप्त सैंधव प्रदेश में वतणमान में अफगातनस्तान पातकस्तान और भारत के उत्तरी
पतिमी इलाको में फै ला हुआ था तथा जहााँ पर कई नतदयों के तकनारे तवतभन्न
शहर बसे हुए थे तथा ऋग्वेद में 42 नतदयों का उल्लेख देखने को तमलता है।
िैतदक काल
 भारत में 1750BC से 600BC के मध्य काल को वैतदक काल कहते हैं।
 वैतदक काल वेदों पर आधाररत है तथा वेदों के संकलन कताण कृष्र् द्वैपायन को
माना है।

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वेद संख्या में चार है।
1. ऋग्वेद
2. यजवु ेद
3.सामवेद
4. अथवणवेद
 ऋग्िेद:- ऋग्वेद तवश्व का सबसे प्राचीन व प्रमातर्क िंथ है। तजसमें कुल 10
मण्डल, 1028 सक्त ू 11 बाल तखल्य हैं।
 इसमें लगभग 10,627 मंत्र भी संकतलत है गायत्री मंत्र:- ऋग्वेद के तीसरे मण्डल
में तमलता है। जो सातवतृ देव (सयू ण देव) को समतपणत हैं।
 ऋग्वेद के 10वें मण्डल में परू ु र् सक्त
ु आता है। तजसमें चार वर्ण ब्राह्मर्, क्षतत्रय,
वैकय, क्षद्रु का उल्लेख तमलतस है तथा ऋग्वेद का 9वां मण्डल सोम को
समतपणत है, जो तक वनस्पतत के देवता हैं
 ऋग्वेद में अतग्न, इन्द्र, वरूर्, आतद देवताओ ं का उल्लेख है तथा कोतट देवी-
देवताओ ं का उल्लेख तकया गया है।
 ऋग्वेद के मंत्र का पाठ करने वाले पतण्डत को 'होता' कहते है
 यजुिेद:- यजवु ेद कमणकाण्ड प्रधान िन्थ है तथा यह एक मात्र गंथ है जो गद्य-
पद्य में तलखा गया है।
 यजवु ेदों में यज्ञों के तनयमों का उल्लेख तमलता है तथा इसका पाठ करने वाले
पतण्डतों को अध्वयणु कहा जाता है।

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 सामिेद:- साम का अथण गायन है। सामवेद को ही भारतीय सगं ीत का जनक
माना जाता है तथा 7 स्वरों का उल्लेख भी पहली बार सामवेद में ही तकया गया
था। इसके पाठ करने वाले पंतडत को 'उद्गाता' कहते हैं।
 अथिििेद:- अथवणवेद का मतलब पतवत्र जादू से है। इसमें 20 कांड, 6000
श्लोक हैं।
 अंधतवश्वास व जाद-ू टोने, राज भतक्त, रोग तनवारर्, पररर्य गीत आतद का
उल्लेख तमलता है।
 उपिेद:- वेदों को पढने में सहायता हेतु उपवेदों का तनमाणर् तकया गया तजनके
अनसु ार तनम्न वेदो के उपवेद हैं-
िेद उपिेद रतचत सदिं भि
ऋग्वेद आयवु ेद धनवतरं ी तचतकत्सा
यजवु ेद धनवु ेद तवश्वातमत्र यद्ध
ु कला
सामवेद गन्धवण वेद भरतमतु न संगीत कला
अथवणवेद तशतल्प वेद तवश्वकमाण भवन तनमाणर्
ब्राह्मण ग्रिंथ:-

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 ब्राह्मर् िंथो का तनमाणर् वेदों को अच्छी तरह से समझने के तलए तथा वेदों में
वतर्णत सक्तू व धातमणक अनष्ठु ानों को तवशद्ध
ु ता से वर्णन करने के तलए तकया गया
था।
िेद ब्राह्मण
ऋग्वेद कौतर्ततकी, एतेरेय
यजवु ेद तैत्तरीय व शतपथ
सामवेद पंचतवंश, र्डतवंश(ताण्डय) जैतमनीय
अथवणवेद गोपथ
 ब्राह्मर् िथं ो में ना तसफण यज्ञों, बतल्क अक्षर वैतदक धमण, रहन सहन व रीतत-
ररवाजो का उल्लेख है प्रमातर्क ब्राह्मर्=शतपथ
 आरण्यक:- आरण्यक िंथो की रचना दाशणतनक िंथों के रूप में शांत वातावरर्
में की गई है तथा इन्हें वन पस्ु तक भी कहा जाता है। आरण्यको का तवर्य
दाशणतनक तसद्धांतों पर आधाररत था तजसमें प्रमख ु दाशणतनक तसद्धांत जन्म, मत्ृ य,ु
आत्मा, परमात्मा तथा पनु णजन्म था।
 ज्ञान मागण व कमण मागण के मध्य सेतु बताया गया है पवू ण कमणकांड का खडंन तकया
‘उपतनषद’

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 इसका तात्पयण गरू ु के समीप बैठकर ली गई तशक्षा से है। तथा उपतनर्दो की
सख्ं या 108 है। तथा सबसे प्रमातर्क उपतनर्द छांदग्योपतनर्द है तथा भारत का
आदशण वाक्य “सत्यमेव जयते” मण्ु डकोपतनर्द से ही तलया गया है।
 उपतनर्द भारतीय दशणन तनकता का प्रमख ु स्त्रोत माना गया है तथा यह भी
आरण्यको की भााँतत कमण काण्डों का तवरोध करते है। उपतनर्दो को वेदातं भी
कहा जाता है तथा इसमें वेदो का अंततम उद्देकय बताया गया है।
 िेदािंग:- वेदागों को वेद का अगं बताया गया है। तजससे वेदों को समझने में
आसानी हो तथा इनके ज्ञान का पिात ही वेदो को समझा जा सकता है। इनकी

1 छंद छंदशास्त्र
2 कल्प धातमणक
3 तनरूक्त सार
4 व्याकरर् सार
5 ज्योततर् ज्योततर्
6 तशक्षा
संख्या है।

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षड्दर्िन:- 6 दशणनो में जीवन के रहस्यों के बारे में बताया गया है तथा जीवन में
उपयोग होने वाले तवतभन्न प्रकार के तवर्यो के बारे में उल्लेख तकया गया है।
यह सत्रू शैली में तलखे गए है। जो सभी तवर्यो की स्टीक जानकारी देते है। थे
दशणन तनम्न प्रकार है।
 तवर्य:- आत्मा, परमात्मा, जीवन
 वैशेतर्क:- पदाथण कर्ाद या उलक ु
 योग – पतंजतल
 न्याय दशणन – महतर्ण गौतम
 उत्तर मीमांसा – बदरायर्
 पवू ण मीमांसा – जैतमनीय
 सांख्य दशणन – कतपल मतु न
 पुराण:- परु ार्ों की सख्ं या 18 है तथा सबसे प्राचीन एवं प्रमातर्क परु ार् मत्स्य
परु ार् को माना गया है। तजसमें तवष्र्ु के 10 अवतारों का उल्लेख है।
 महाकाव्य:- रामायर् चततु वंशती साहस्त्री संतहता
 रचना:- महतर्ण वातल्मकी 6000=12000 = 2400
 तिष्णु:- रामावतार, 7 काण्ड
महाभारत:- श्लोक 8800, कालांतर 12000, 24000=भारत
जय सतं हता तथा गप्तु काल तक आते आते श्लोको की सख्ं या 24000 से

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100000 हो गई तब इसे महाभारत तथा शत साहस्त्री संतहता महाभारत की
रचना वेदव्यास जी के द्वारा की गई तथा लेखक श्री गर्ेश जी थे।
 इसमें तवष्र्ु के कृष्र्वातार कौरवो व पाण्डवों के यद्ध
ु तथा कृष्र्जी के द्वारा
अजणनु को तदए गए उपदेश का वर्णन है।
 स्मतृ तयााँ:- सामातजक जीवन का उल्लेख तमलता है व वैतदक काल की
जानकारी तमलती है।
 नस्ृ मतृ त:- तववाह के 8 प्रकार बताए गए हैं।
 संस्कृत व्याकरर् का सबसे बडा िंथ
 अष्टाधायी चौथी सदी में पातर्नी द्वारा तलतखत िथं
 उदणू व तहन्दु काननु की सबसे बडी पस्ु तक तमताक्षरा फतवा-ए।
सामातजक जीिन:-
 वैतदक काल में समाज का प्रमख ु आधार पररवार होता था, इसका मतु खया
कुलपतत (कुलपा) कहा जाता था तथा पररवार को 'कुल', कुलों तमलाकर 'िाम'
का तनमाणर् होता था तजसका मतु खया िातमर्ी कहलाता था तथा िामों को
तमलकर तवंश का तनमाणर् होता था तजसका मतु खया तवशपतत कहलाता था।
तवतभन्न तवशपों को तमलाकर कबीले का तनमाणर् होता था, इसका मतु खया राजा
होता था राजा के अलावा परु पव दतु का उल्लेख भी तमलता है।
 मतहलाओ की तस्थतत अच्छी थी उन्हे समाज में सम्मान तदया जाता था पदाण
प्रथा नहीं थी। तववाह व तनयोग प्रथा का प्रचलन था।
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तििाह के प्रकार:-
1. ब्रह्म तववाह - (दहेज नहीं)
2. देव तववाह – (परु ोतहत)
3. आर्ण तववाह - (गाय व बैल)
4. प्रजापात्य तववाह
5. गधं वण तववाह
6. राक्षस तववाह (अपहरर्)
7. असरु तववाह (कन्या पण्ु य)
8. तपशाच तववाह (ब्लाहसगं द्ध)
 आश्रम व्यवस्था:- इसं ान के जीवन को 4 आश्रमों में बााँटा गया
 ब्रह्मचयण आश्रम (0-25 वर्ण) तशक्षा िहर्
 गहृ स्थ आश्रम (25-50 वर्ण) तववाह, गहृ स्थी
 वानप्रस्थ आश्रम (50-75 वर्ण) गहृ त्याग
 संन्यास आश्रम (75 वर्ण -मत्ृ यतु क)
 वैतदक लोग मनोरंजन प्रेमी थे। यद्धु , नत्ृ य व अन्य कलाओ ं का उल्लेख तमलता
है। यह लोग मांसाहारी व शाकाहारी दोनों प्रकार के थे लेतकन मछली व नमक
का उपयोग नहीं करते थे। घी में पके मालपओ ु ं – अपंपु घतृ वतृ नम्दही में तमला
सत्तु – क्ररंम्भ

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 धातमिक जीिन:- इन्द्र, वरूर्, अतग्न, प्रजापतत को महत्वपर्ू ण ब्रह्मा, तवष्र्,ु
महेश
उत्तर िैतदक काल (1000,B.C – 600,B.C)
 उत्तर वैतदक काल में धीरे -धीरे अन्य वेद यजणवु ेद, सामवेद, अथवणवेद की महत्ता
बढ़ गई।
 इस काल में राजा के प्रभाव में वतद्ध हुई तजससे जनपदों का तनमाणर् होने लगा।
 इस समय प्रभावी जनपद-कूरू और पांचाल थे।
 यह क्षेत्र सप्त सैंधव प्रदेश में सीतमत न होकर गगं ा-यमनु ा (दोआब) क्षेत्र में फै ल
गया।
 इस काल में पशचु ारर् के स्थान पर कृतर् को ज्यादा प्रधानता दी गई।
 उत्तर वैतदक काल में लोहे को पहचान तमली, तथा लोहे को कृर्र् अयस कहा
जाता था।
उत्तर िैतदक काल की राजनैततक तस्थत
 उत्तर वैतदक काल में राजा का पद प्रभावी हो गया था तथा इस काल में अन्य
कई पदों का सजृ न हुआ जैस-े
 पुरोतहत- राजा को सलाह देने का कायण/धातमणक अनष्ठु ान का कायण करता था।
 रत्न्न- तवतभन्न मतं त्रयों को कहा जाता था।
 मतहषी- मख्ु य रानी/पटरानी को कहा जाता था।

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 युिराज- राजा का ज्येष्ठ पत्रु /उत्तरातधकारी।
 सुत- रथों की रखवाली करने वाला।
 सेनानी- प्रमखु सेनापतत/सेनानायक।
 सिंग्रहीत- कोर्ाध्यक्ष का प्रधान।
 भागदुध- कर वसल ू करने वाला पदातधकारी।
 ग्रामणी- गााँव का मख्ु या।
राजा द्वारा तीन यज्ञ सम्पन्न तकए जाते थे
1. राजसयू यज्ञ- यह यज्ञ करने से राजा की प्रततष्ठा बढती थी।
2. िाजपेय यज्ञ- इस यज्ञ में घड़ु -दौड़ का आयोजन तकया करते थे तजसमें
यज्ञकताण तवजयी होता था।
3. अश्वमेघ यज्ञ- यह राजनीततक यज्ञ था और इसे वही सम्राट कर सकता
था तजसका अतधपत्य अन्य सभी नरे श मानते थे।
उत्तर िैतदक काल का सामातजक जीिन
 उत्तर वैतदक काल आते-आते समाज में वर्ण व्यवस्था जतटल हो गई तथा वर्ण
कमण के आधार पर न होकर जन्म के आधार पर हो गई।
 इस काल में तस्त्रयों की दशा में भी धीरे -धीरे तगरावट आने लगी।
 इस काल में गोत्र शब्द का उल्लेख पहली बार हुआ व समान गोत्र में तववाह का
तनर्ेध तकया जाने लगा।
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 इस काल में आश्रम व्यवस्था का प्रचलन बढ़ा और आश्रम व्यवस्था को चार
भागों में तवभातजत तकया गया-
1. 0-25 िषि- बह्मचायि आश्रम।
2. 25-50 िषि- गृहस्थ आश्रम।
3. 50-75 िषि- िानप्रस्थ आश्रम।
4. 75-100/मृ्यु तक- सन्यास आश्रम।
 मनु स्मृतत- में तववाह के आठ प्रकार बताए गए है जो तनम्न प्रकार है-
1. ब्रह्म तििाह- इसकें दोनों पक्ष की सहमतत से समान वगण के सयु ोज्ञ वर से
कन्या का तववाह तनतित कर देना, ब्रह्म तववाह कहलाता है।
सामान्यत: इस तववाह के बाद कन्या को आभर्ू र्यक्त
ु करके तवदा तकया जाता है।
2. दैि तििाह- तकसी सेवा कायण (यज्ञ करवाने वाले पतण्डत) के मल्ू य के
रूप अपनी कन्या को दान में दे देना, दैव तववाह कहलाता है।
3. आर्ि तििाह- कन्या पक्ष वालों को कन्या का मल्ू य देकर कन्या से
तववाह कर लेना, आशण तववाह कहलाता है।
4. प्रजाप्य तििाह- कन्या की सहमतत के तबना उसका तववाह
अतभजात्य वगण के वर से कर देना प्रजापत्य तववाह कहलाता है।

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5. गिंधिि तििाह- पररवार वालों की सहमतत के तबना वर और कन्या का
तबना तकसी रीतत-ररवाज के आपस में तववाह कर लेना गधं वण तववाह कहलाता
है। (प्रेम तववाह)
6. असुर तििाह- कन्या को खरीद कर तववाह कर लेना असरु तववाह
कहलाता है।
7. राक्षस तििाह- कन्या की सहमतत के तबना उसका अपहरर् करके
जबरदस्ती तववाह कर लेना राक्षस तववाह कहलाता है।
8. पैर्ाच तििाह- कन्या की मदहोशी (गहन तनद्रा, मानतसक दबु णलता
आतद) का लाभ उठाकर उससे शारीररक संबंध बना लेना और उससे तववाह
करना, पैशाच तववाह कहलाता है।
आतथिक जीिन
 उत्तर वैतदक काल में पशचु ारर् की जगह कृतर् मख्ु य आधार बन गई थी।
 इस काल में तचतत्रत धसु र मदृ ाभाण्ड (UGW) तमट्टी के बतणन का उल्लेख
तमलता है।
 इस काल में ज्यादातर कर वैकय वगण के द्वारा तदया जाता था।
धातमिक जीिन

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 ऋग्वैतदक काल के दो प्रमख ु देवता इन्द्र और अतग्न का पहले जैसा महत्व नहीं
उनके स्थान पर उत्तर वैतदक काल में प्रजापतत ब्रह्मा देवकुल में सतृ ष्ट के तनमाणता
थे को सवोच्च स्थान तमला।
 ऋग्वैतदक काल में पर्ू र् देवता को पशओ ु ं का देवता माना जाता था, लेतकन
उत्तर वैतदक काल में पर्ू र् देवता को शद्रु ों का देवता माना जाने लगा है।
 उत्तर वैतदक काल में तत्रदेव का महत्व बढ़ा।

- इस काल में अंधतवश्वास जादटू ोना का प्रचलन बढ गया है।


अन्य तथ्य
 इस काल में 33 कोटी देवी देवताओ ं का उल्लेख तमलता है।
 स्थान के आधार पर तीन प्रकार के देवी देवताओ ं का उल्लेख है-
1. अंतररत्र के देवी देवता- वाय,ु इन्द्र।
2. मध्य स्थान के देवी देवता- सयू ण, वरूर्, तमत्र।
3. पथ्ृ वी के देवी देवता- पथ्ृ वी, उर्ा, अतग्न।
“जैन धमि”
 जैन धमण के सस्ं थापक भगवान ऋर्भदेव हुए तथा भगवान बाहुबली तजनकी
मतू तण बीच गोमतेश्वर में है ऋर्भदेव के पत्रु थे।

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 ऋर्भदेव का उल्लेख ऋग्वेद में भी तमलता है। महावीर स्वामी 24वें तथा अंततम
तीथंकर हुए तजन्हे जैन धमण का वास्ततवक सस्ं थापक माना जाता है।
 23वें तीथंकर पाश्वणनाथ हुए, जैन धमण में पाश्वणनाथ ने 4 अर्व्रु त तदए तजसमें
अतहसं ा, अस्तेय, सत्य, अपररिह शातमल थे।
 इनका जन्म काशी के इक्ष्वांकु वश
ं में हुआ था।
महािीर स्िामी:-
जन्मिषि:-
श्वेताम्बर→599 BC→527
तदगम्बर→582 BC→510
ऐततहातसक→540 BC→468
 कुण्डिाम (वतज्जसंघ) का गर्तंत्र
 तपता – तसद्धाथण (ज्ञातक
ृ कुल)
 माता – तत्रशला (वैशाली – तलच्छवी चेटक की बहन)
 पत्नी – यशोदा
 तप्रयदशणनी व अर्ोजा
 जामतल – दामाद
 महावीर स्वामी ने ज्ञान प्रातप्त हेतु 20 वर्ण की आयु में घर छोड़ तदया था तब 12
वर्ण की कठोर तपस्या के बाद जतु म्यक िाम के पास ऋजपु ातलका नदी के पास
साल वक्षृ के नीचे इन्हे जानकी प्रातप्त हुई तथा सवोच्च ज्ञान के कै वल्य कहा
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जाता है। तथा कै वल्य की प्रातप्त के बाद इन्हें महावीर, के वेतलन, तजन पर, अहणत
(सबसे योग्य) तनिणन्थ (पाश्वणनाथ के तशष्य) के नाम से जाना गया।
 इन्होंने अपना पहला उपदेश “तवतल ु ांचल पवणत पर” तदया
 महावीर स्वामी ने “तजयो और जीने दो” का तसद्धांत तदया साथ ही साथ
पाश्वणनाथ के 4 अर्व्रु तों में 5वााँ अर्व्रु त “ब्रह्मचयण” जोड़ा तथा तत्ररत्न तसद्धांत
सम्यक ज्ञान, सम्यक चररत्र और सम्यक दशणन तदए।
 महावीर स्वामी कमणवाद में तवश्वास रखते थे तथा आत्मा व पनु जणन्म में भी इनका
तवश्वास था।
 महावीर स्वामी ने अपने अतधकांश उपदेश “प्राकृत व अद्धण मागधी “ भार्ा में
तदए।
 महावीर स्वामी अतधकांशत: स्थानीय भार्ा का ही उपयोग करते थे।
जैन धमि का तिभाजन:-
 चन्द्रगप्तु मौयण के काल में जब मगध में भयक ं र अकाल पड़ा तब भद्रबाहु के
नेतत्ृ व में कुछ अनयु ायी श्रवर्बेलगोला चले हुए तथा जब ये वातपस लौटे तो
स्थलू भद्र के नेतत्ृ व में श्वेताम्बर सम्प्रदाय पनप चकु ा था अत: दतक्षर्पथं ी जैनों ने
तदगम्बर सम्प्रदाय को अपनाया।
 जैन सतमततयााँ :-
पहली जैन समीततयााँ 322ई.प.ू 298 ई.पू पाटलीपत्रु सल ु भद्र
दसू री 512ई. वल्लभदेव श्री समारर्
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 सथिं ारा/सल्लेखना:- जैन मतु न जब अपना जीवन ईश्वर को समतपणत कर उपवास
पद्धतत से मत्ृ यु को प्राप्त कर लेता है इस तवतध को सल्लेखना तवतध या सथं ारा
कहा गया है सधांरा सत+लेखना
 जैन ग्रिंथ:- महावीर स्वामी व तीथंकरों की तशक्षाओ ं को 14 िंथों में सक
ं तलत
तकया गया तजसे पवू ण या आगम कहते है बाद में यह 12 अगं ों व 12 उपांगों में
तवभक्त हो गए भगवती सत्रू , आचारंर् सत्रू , तदव्यावदान आतद
 पयणर्ु र् पवण तदवस: जैन धमण में (क्षमायाचना) मत्रं नमोकार मत्रं ।
महािीर स्िामी के उपदेर्
 इन्होनें वेदों का खण्डन तकया था
 महावीर स्वामी ने मनष्ु य के अच्छे कमों को महत्व तदया था।
 तवश्व में दो तत्व बताए
1. जीव (चेतना) – जीव दख ु भोगता है
2. आत्मा (अचेतन) – शाश्वत है।
 महावीर स्वामी पनु जणन्म में तवश्वास करते थें
 जीवन के चक्र से छूटकारा प्राप्त करना तनवाणर् की अवस्था कहलाती है। इसे ही
मोक्ष कहा गया है।
 महावीर स्वामी ने समानता पर बल तदया हालांतक वर्ण व्यवस्था को पर्ू णत:
ठूकराया नहीं गया था
 अतहसं ा पर बल तदया
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 देवताओ ं के अतस्तत्व को स्वीकार तो तकया परन्तु उनका दजाण “तजन” से नीचे
रखा
 तजन-तजसने अपनी इतन्द्रयों पर तनयंत्रर् तकया हो।
पाश्विनाथ के 4 अनुव्रत
1.अमर्ृ ा (सत्य) – झठु न बोलना
2. अतहसं ा – तहसं ा न करना
3. अस्तेय – चोरी करना
4. अपररिह – संिह न करना
5. ब्रह्याचयण – स्त्री के बारे में नहीं सोचना यह अनव्रु त महावीर स्वामी के द्वारा
तदया गया है।
महािीर स्िामी जी ने परम् उद्देश्य-मोक्ष की प्राति हेतु तिर्न
बताए।
 सम्यक ज्ञान:- धमण के बारे में तसद्धांतो का सटीक ज्ञान होना चातहए।
 सम्यक चररत्र:- सटीक – तबल्कुल सही झठु ा ना हों तथा सयं तमत प्रकार का
चररत्र हो।
 सम्यक दशणन:- इसमें तीथंकारो के दशणन, उपदेशों का पालन करना।
 जब मनष्ु य तत्ररत्न का पालन करता है तो कमों का प्रवाह जीव की ओर रूक
जाता इसे सििं र कहते है

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 धीरे -धीरे पवू ण में व्याप्त कमण समाप्त हो जाते है तो इसे तनजिरा कहते है और यह
सवं र के पिात भी घटना है।
सल्लेखणा तितध (सिंथारा)-
 जीवन के अंततम पड़ाव में जब मनष्ु य बीमार पड़ता है एवं उसके शरीर पर कोई
और्तध कारगर नहीं रहती है तो वह अन्न, जल को त्याग देता है तजससे व्यतक्त
की (मत्ृ य)ु हो जाती है इसे ही जैन धमण में तनवाणर् कहा गया है।
स्याद िाद
 प्रत्येक वस्तु की उत्पतत अन्य वस्तु के सापेक्ष होती है।
स्यादवाद (1) स्यात अतस्त (2) स्यात नातस्तक
 जैन धमण ने वातकण कता को जन्म तदया।
 उपदेश:- महावीर स्वामी ने उपदेश स्थानीय भार्ा अथण मागधी, प्राकृत मे तदये।
जैन ग्रिंथ
 महावीर स्वामी द्वार तदए गए मौतलक उपदेशों को 14 िथं ों में समातहत तकया
गया है
 तजन्हे पवू ण या आगम कहा जाता है।
 बाद में यह 14 िथं 12 उपअगं ों में तवभातजत हो गए।
 जैन िंथ

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 पररतशष्ट पिि-हेमचन्र
 भद्रबाहू चररत्र
 आचारांग सतु
 कल्प सतु
 परू
ु र्चररत्र
 तत्रर्ातष्टशलाका
 उवासगदसाओ सतु
 आचारांग सतु
जैन महासगिं ीतत
 महासगं ीती:- एक ऐसा सम्मेलन तजसमें तवशेर् धमण से जडु े धमण के तवद्धान
आपस में चचाण करते है
 पहली जेन महासंगीती
 312 ई.प.ू -298 ई.प.ू में
 स्थान – पाटलीपत्रु (पटना)
 अध्यक्ष – स्थल
ु भद्र
तिर्ेष तििरण
 इसी संगीतत के दौरान भद्रबाहू व स्थल
ु भद्र में वैचाररक मतभेद हुआ।

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 जैन धमण दो सम्प्रदायों में तवभातजत हो गया।
1. श्वेताम्बर:- मगध के ही स्थल ु भद्र के नेतत्ृ व वस्त्र सफे द धारर् करते थे।
2. तदगम्बर:- दतक्षर् के जैन भद्रबाहू के नेतत्ृ व तनवणस्त्र बदन को नगां रखते है।
जैन धमि के पतन के कारण
 अतहसं ा को अत्यतधक बढावा तदया।
 जैन धमण तक्लर्ट धमण/कमणकांड पर ज्यादा बल
 आत्म दख ु पर बल/कठोर तपस्या, पर जोर
 उतचत राजाश्रय का आभाव था
 बौद्ध धमण का बढता प्रभाव।
 वेतदक धमण का पनु णउत्थान
 यह धमण ब्राह्मर् धमण से अलग नहीं कर सका
 जातत व्यवस्था का पर्ू णत खडं न ना करना
बौद्ध धमि
 बौद्ध धमण के संस्थापक महात्मा बद्ध ु को माना जाता है
 इसके तीन अगं है
 महात्मा बद्ध
ु (स्वय)ं
 उपदेश (धम्म)
 सघं प्रचार-प्रसार – बौद्ध तभक्षु तभक्षर्ु ीयां
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महा्मा बुद्ध
 बचपन का नाम - तसद्धाथण
 जन्म – 563 ई. प.ू
 स्थान:- कतपलवस्तु के तनकट लतु म्बनी गााँव/नेपाल के तराई क्षेत्र में
 तपता:- शद्ध ु ोधन (कतपलवस्तु के शाक्य कुल के राजा)
 माता:- महामाया (कौशल राज्य की राजकुमारी)
 तवमाता/मौसी:- प्रजापतत गौतमी
 पत्नी:– यशोधरा
 पत्रु :- राहूल
 महात्मा बद्ध ु का तववाह 16 वर्ण की आयु में हुआ था।
 सत्य की खोज एवं ज्ञान प्रातप्त के उद्देकय से वैशाख पतू र्णमा को 19 वर्ण की आयु
में गहृ त्याग तकया। इस घटना को महातभतनष्क्रमर् कहा जाता है।
घटनाएाँ प्रतीक
माता के गभण में प्रवेश हाथी
महात्मा बद्ध ु का जन्म कमल
योवनावस्था सांड
गहृ त्याग (महातभतनष्क्रमर्) घोड़ा
ज्ञान प्रातप्त (सम्बोतध) पीपल का पेड़

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समतृ द्ध का प्रतीक शेर
मत्ृ यु (महापररतनवाणर्) पद तचह्रन
तनवाणर् स्तपु
 अलोम नदी के तकनारे मडंु न तकया व गरू ु की तलाश में तनकल पड़े
 अलार कलाम से तशक्षा िहर् की।
 35 वर्ण में बौद्ध गया, पीपल वक्ष ृ के नीचे, सवोच्च ज्ञान की प्रातप्त की यह घटना
सम्बोतध कहलाई।
महा्मा बुद्ध के जीिन से जुड़ी घटनाएाँ एििं प्रतीक
पहला उपदेर् :- पहला उपदेश सारनाथ (उत्तर प्रदेश) में तदया इस घटना को
महाधमणच्रकपवणतन कहते है
• पहला तशष्य – आनन्द
धम्म :- महात्मा बद्ध
ु के उपदेशों को धम्म कहते हैं।
उपदेर् :- महात्मा बद्ध
ु ने उपदेश स्थानीय भार्ा, प्राकृत, पाली, अद्धणमागधी में
तदये।
चार आयि स्य
1. सवणत्र दख
ु म
2. दख
ु समदु ाय – दखु का कारर् होता है।
3. दखु तनवारर् – दखु का तनवारर् सभं व
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4. दख ु तनवारर् मागण – अष्टांतगक मागण
मनष्ु य अष्टांतगक मागण पर चलकर मोक्ष की प्रातप्त कर सकता है।
अष्ािंतगक मागि
1. सम्यक दृतष् :- दृतष्ट व दृतष्टकोर् सही (सत्य व असत्य को पहचानें)
2. सम्यक सक िं ल्प :- इच्छा व तहसं ा रतहत सक ं ल्प
3. सम्यक िाणी :- मदृ ु वार्ी (अपशब्द ना बोलें)
4. सम्यक कमि :- सत्कमण, दया, दान, सदाचारी अतहसं क कमण
5. सम्यक आजीि :- सदाचार पवू णक जीवन यापन
6. सम्यक व्यायाम :- तववेकपर्ू ण प्रत्यन, शारीररक तक्रयाएाँ
7. सम्यक स्मतृ त :- स्मतृ त अच्छी (मानतसक तस्थतत)।
8. सम्यक समातध :- तचत की एकािता
अन्य उपदेर्:-
 महात्मा बद्ध
ु अज्ञेयिादी (ईश्वर का अतस्तत्व ना तो माना ओर ना ही नकारा)
 वेदों को पर्ू णत नकार तदया था
 मनष्ु य को ही भतवष्य का तनमाणता बताया
 महात्मा बद्धु पनु जणन्म में तवश्वास रखते थे
 ऊच नीच के कटटर तवरोधी थे – समानता को महत्व तदया।
Class -14

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बौद्ध धमि के तीन अिंग-
 महात्मा बद्ध ु
 उपदेश (धम्म)
 सघं , तभक्ष-ु तभक्षतु र्यों का समहु
बौद्ध अनुयातय
 तभक्ष/ु तभक्षण
ु ी :- यह बोध्य धमण का प्रचार करते थे तथा संयासी जीवन व्यततत
करते थे।
 उपासक :- गहृ स्थ जीवन में रहकर भी बौद्ध धमण का अनसु ारर् करते थे।
सघिं
 तभक्ष-ु तभक्षतु र्ओ ं तथा उपासकों का समहु संघ कहलाता था।
 सघं का कायण धमण का प्रचार-प्रसार करना तथा तबल्कुल सटीक धमण का पालन
करना।
 संघ की व्यवस्था पर्ु ण रूप से लोकतांतत्रक व्यवस्था पर आधाररत थी।
 तकसी भी बैठक हेतु गर्पतू तण आवकयक थी।
 फै सला-बहूमत से होता था।
 संघ में प्रवेश हेतु न्यनु तम आयु 15 वर्ण रखी गई थी।
 शरूु आती समय में स्त्रीयों को सघं में प्रवेश की अनमु तत नहीं थी।
- संघ में प्रवेश करने वाली प्रथम स्त्री-प्रजापतत गौतमी
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- संघ में प्रवेश करने वाली गतर्का-अम्रपाली
- सघं में प्रवेश करने वाला प्रथम बालक-राहूल
 संध में कुष्ठ रोगी, टी.बी. मरीज (क्षय रोग) व अन्य संक्रामक बीमारी का मरीज
प्रवेश तनतर्द्ध था।
 चोर, लटु ेरे, असामातजक तत्व तथा सैतनकों का प्रवेश वतजणत था।
 राजा प्रवेश कर सकता था।
बौद्धि धमि के ग्रिंथ
 बौद्ध िथं ों की रचना पाली भार्ा में की गई हैं।
 सवाणतधक महत्वपर्ु ण िंथ – तत्रतपटक
- तिनय तपटक:- इसका सिहर् पहली बौद्ध महासंगीती में तकया गया था।
- सतु तपटक:- :- इसका सिहर् पहली बौद्ध महासगं ीती में तकया गया था।
- अतभधम्म तपटक:- बौद्ध संगीतत मोयण अशोक इसका संिहर् तीसरी बौद्ध
महासगं ीती में तकया था।
तपटक
 ऐसे िंथ तजसमें ज्ञान कों सिं तहत तकया गया है।
तिनय तपटक
 इस तपटक में बौद्ध संघ के तनयम बताए गए हो।

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 ज्यादातर बाते तभक्षु – तभक्षर्ु ीयों हेतु बताई गई है।
सतु तपटक
 इसमें बौद्ध धमण की तवस्ततृ व प्रमातर्क जानकारीया दी गई।
 बौद्ध धमण के तसद्धांत/उपदेश तदये गये है।
 सतु तपटक को पाच ं तनकाय में तवभातजत तकया गया है।
- दीघ तनकाय
- मतज्जम तनकाय
- खदु क तनकाय
- अंगतु र तनकाय
- सयं क्त
ु तनकाय
 खद्दु क तनकाय में बौद्ध धमण से जड़ु े 10-15 िंथो का संकलन है।
 जातक कथाए:- बद्ध ु के जन्म से जड़ु ी व जन्म के पवू ण की कथाए जातक कथाए
कहलाती है
 धम्मपद:- धम्मपद का स्थान बौद्ध धमण में वही है। जो सनातन धमण में गीता का
होता है।
 थेरीगाथा:- खद्दु क तनकाय के 15 िथं ों मे से एक है
 तवनय तपटक तथा सतु तपटक पहली बौद्ध महासंगीतत के दौरान अतस्तत्व में
आया।
अतभधम्म तपटक
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 इसमें प्रश्नोत्तर शैली में बौत्र धमण के उपदेश व तसद्धांतों को समझाया गया है।
 अतभधम्म तपटक तीसरी बौद्ध महासगं ीतत के दौरान अतस्तत्व में आया।
अन्य ग्रिंथ
 द्वीपवश
ं , महावंश
 बद्ध
ु चररत्र (अश्वघोर् द्वारा रतचत) इसमें बद्ध
ु की जीवनी है इसे बौद्ध धमण की
रामायर् कहा जाता है।
 सर एडतवन अनोड द्वारा रतचत एक प्रतसद्ध (The Light Asia) िथं है तजसमें
गौतम बद्धु के जीवन चररत का वर्णन है। यह िथं सन 1879 में लंदन से
प्रकातशत हुआ।
बौद्ध महासगिं ीतीया
 पहली बौद्ध सगिं ीती
 अध्यक्ष-महाकस्स्प
 स्थान – राजगहृ
 राजा – अजातशत्रु (हयणक वंश)
 समय – 483 BC
 इस महासगं ीती में तवनय तपटक व सतु तपटक का सिं ह तकया गया।
 दूसरी बौद्ध सगिं ीती
 अध्यक्ष - सबकमीर
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 स्थान – वैशाली
 राजा – कालाशोक (तशशनु ाग)
 समय – 383 BC
 इस िंथी में बौद्ध धमण दो भागों में बटं गया
1.स्थातवर
2. महासंतधक
 तीसरी बौद्ध सगिं ीती
 अध्यक्ष – मौगलीपत्रु ततस्त
 स्थान – पाटलीपत्रु
 राजा - अशोक (मौयण)
 समय – 251 BC
 इस संगीतीमी में अतभधम्म तपटक का संिहर् तकया गया
 चतुथि बौद्ध महासिंगीती
 अध्यक्ष – वसतु मत्र
 उपाध्यक्ष – अश्वघोर्
 स्थान – कुण्डलवन ककमीर
 राजा – कुर्ार् वश ं ी कतनष्क
 समय – 72 ईस्वी
तिर्ेष तटप्पणी

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बौद्ध तभक्षओ ु ं में मतभेद उत्पन्न हुआ तजससे बौद्ध धमण दो भागों में तवभातजत हो
गया-
1. हीनयान- यह सम्प्रदाय मगध व श्रीलंका में ही फै ल पाया था। यह रुढ़ीवादी
बौद्ध धमण को मानते है तथा बौतधसत्वों की पजु ा करते हैं।
• यह मतू तण पजु ा तवरोधी होते हैं और कटटरपंथी तवचारधारा प्रवतत्त के होते है।
2. महायान- यह सम्प्रदाय दतक्षर्-पवू ी एतशया, कोररया, जापान, चीन, भारत में
फै ला।• इन्होंने तवज्ञानवाद को बढ़ावा तदया।
• यह भगवान को मानते हैं और बद्ध ु की मतू तण को पजू ते हैं यह उदारवादी तवचार
प्रवतृ त्त के होते हैं।
राजा- जो बौद्ध धमि के अनुयायी थे।
1. सम्राट अर्ोक - सम्राट अशोक बौद्ध धमण के स्थातवर शाखा का अनयु ायी
था तथा इनके समय में तीसरी बौद्ध महासंगीती का आयोजन तकया गया।
2. कतनष्क - कुर्ार् शासक कतनष्क बौद्ध धमण के महायान शाखा का अनयु ायी
था इनके समय में चौथी बौद्ध महासगं ीती का आयोजन तकया गया।
3. हषििधिन - हर्णवधणन बौद्ध धमण के महायान शाखा का अनयु ायी था।
• इनके काल में बौद्ध धमण महासम्मेलन का आयोजन तकया गया।
िज्रयान सम्प्रदाय-
• आठवीं सदी में वज्रयान सम्प्रदाय बंगाल व तबहार में प्रचतलत हुआ।

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• इसके िथं मंजश्रु ीमल
ु कल्प तथा गह्य
ु समाज में वज्रयान के तसद्धान्त संितहत
है।
अन्य तथ्य-
• महात्मा बद्ध
ु की मत्ृ यु (महापररतनवाणर्) कुशीनगर, उत्तरप्रदेश में 483 ई.प.ू में
80 वर्ण की आयु में हुआ।
• महात्मा बद्ध
ु आठ माह तक धमण का प्रचार-प्रसार करते थे तथा बसतं ऋतु में
आराम करते थे।
• इनकी तशष्या अमरपाली जो तलछतवयों की राजनत्ृ यांगना थी।
तिश्व के अन्य प्रमुख धमि
 तवश्व में सभी धमों की आध्य भतू म एतशया महाद्वीप कहलाता है।
 मानव की उत्पतत्त अफ्रीका महाद्वीप की ररफ्ट घाटी से मानी जाती है।
इब्राहीमी धमि
 इब्राहीमी धमण उन धमों को कहते हैं जो ईश्वर को मानते है एवं इब्राहीम को ईश्वर
का पैगम्बर मानते है इसमें यहूदी, ईसाई और इस्लाम धमण शातमल है।
 इस धमण की शरुु आत जेरुशलम (इजराइल) को माना जाता है इसतलए जेरुशलम
को तवश्व की सबसे पतवत्र भतू म कहते हैं।
यहूदी धमि

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 इस धमण का संस्थापक मसु ा (Moses) को माना जाता है।
 इनकी प्रमखु पस्ु तक- तोरे त (मसु ा-सतहतं ा) है।
 इनके कायण क्षेत्र तमश्र, जेरुशलम था।
 इस धमण की शरू ु आत जदु ा स्थान से मानी जाती है।
 यहूदी लोग एके श्वरवाद में यकीन रखते है, मतू तण पजु ा के तवरोधी होते है।
 इसके पतवत्र स्थल को पजु ाघर/तसनोनोंग कहलाते हैं।
 वतणमान में इजराइल देश यहूतदयों का प्रमख ु के न्द्र माना जाता है।
पारसी धमि
 पारसी धमण का संस्थापक संत जरथष्ु र को माना जाता है।
 इस धमण में अतग्न को पजु ा जाता है।
 इनके पतवत्र स्थलों को अतगयारी (Fire Tample) कहते हैं।
 इनकी उत्पतत्त पारस क्षेत्र (इरान) से मानी जाती है।
 पारसी धमण को सनातनी धमण के नजदीक माना जाता है।
 यह अपना ईश्वर एक ईश्वर ‘अहूर’ को मानते हैं।
 पारसीयों की पतवत्र पस्ु तक जेनअ ं वस्दा है।
 तवश्व में पारतसयों का क्षेत्र इरान था।
 भारत में प्रमखु के न्द्र गजु रात व महाराष्र में है।
 इस्लाम धमण तथा इसाई धमण का पैतक ृ यहूदी धमण को माना जाता है।
इसाई धमि
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 इसाई धमण का सस्ं थापक ईसा मसीह को माना जाता है।
 इनका जन्म स्थान जेरुशलम के नजदीक बेथलेहम में हुआ।
 इनके जन्म तदवस 25 तदसम्बर को तक्रसमस डे मनाया जाता है।
 इनकी माता का नाम- मेरी व तपता का नाम- जोसेफ था।
 ईसा मसीह ने तत्रत्व का तसद्धान्त तदया-
1. ईश्वर – तपता
2. ईश्वर – पत्रु
3. ईश्वर – पतवत्र आत्मा
 इसाई धमण का पतवत्र तचन्ह क्रॉस का तनशान है।
 30 वर्ण की आयु में रोमन गवणनर ने पोतटयन्स ने ईसा मसीह को सल ु ी पर लटका
तदया था।
 ईसा मसीह के दो तप्रय तशष्य थे-
1. एड्रं यसु
2. संत पीटर
 ईसा मसीह के सदं श े इनकी धातमणक पस्ु तक बाईतबल में सितं हत है।
 ईसा मसीह ने अपने उपदेश संत पीटर को तदए तथा इन्हें ही अपना उत्तरातधकारी
घोतर्त तकया।
ईसाइयों के सम्प्रदाय
 इनके सम्प्रदाय को तीन भागों में बााँटा जाता है-
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1. कै थोतलक इसाई- यह अपना प्रमख ु के न्द्र वेतटकन नगर (रोम) के पोप को
अपना धमाणध्यक्ष मानते थे।
2. ऑथोडोक्स इसाई- 11वीं सदी में यह पंथ आया तजसने रोम के पोप को
अपना प्रमख ु मानने से इनकार कर तदया।
3. प्रोस्टें ट इसाई- सधु ार आन्दोलन (पनु णजागरर्) के तहत यह पंथ आया,
इन्होंने पोप की सत्ता को मानने से पर्ू णत: मना कर तदया।
 रोमन कै थोतलक इसाईयों का पतवत्र स्थल वेतटकन चचण है जहााँ मख्ु य पोप रहते
हैं।
 11 फरवरी, 1929 को वेतटकन तसटी नाम से देश घोतर्त कर तदया गया।
 वतणमान तवश्व में सवाणतधक जनसंख्या इसाईयों की है।
इस्लाम धमि
 सस्ं थापक- पैगम्बर हजरत महु म्मद।
 जन्म स्थान- अप्रैल, 570ई. में मक्का शहर (सऊदी अरब)।
 इनके तपता का नाम- अब्दल्ु ला व माता- अतमना थी।
 इन्हें इस्लाम धमण में ईश्वर का संदशे वाहक माना जाता है।
 इन्हें 610ई. में सवोच्च ज्ञान गारे -हीरा नामक गफ
ु ा में प्राप्त हुआ।
 सन 622ई. में हजरत महु म्मद मक्का छोड़कर मदीना चले गये। यह घटना
इस्लाम धमण में तहजरी संवत कहलाई।

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 हजरत महु म्मद की मत्ृ यु 632 ई. में मदीना में हुई थी जहााँ पर इनका मकबरा
तस्थत है।
 हजरत महु म्मद की मत्ृ यु के बाद इनके उत्तरातधकारी खलीफा कहलाए।
 सन्ु नी सम्प्रदाय के 5 खलीफा हुए-
1. अब बक्र तसद्दीकी
2. हजरत उमर
3. हजरत उस्मान गनी
4. हजरत अली
5. इमाम हसन
 हजरत महु म्मद के जवाई मौला अली व बेटी फाततमा थी।
 सन्ु नी अली को चौथा खलीफा मानते है।
 तशया अली को पहला खलीफा मानते है।
 मतु स्लमों का सबसे पतवत्र स्थल मक्का शहर में मौजदू है।
 मतस्जद अल-हरम दतु नया की सबसे बड़ी मतस्जद है।
 इस्लाम की पतवत्र पस्ु तक कुरान को माना जाता है।
 हजरत महु म्मद के अन्य उपदेश हदीस कहलाए।
 हजरत महु म्मद आम तौर पर जो कायण करते थे उनहें सन्ु नत कहते थे।
 मतु स्लमों की सवाणतधक जनसख्ं या वाला देश इण्डोनेतशया है।
इसाई धमि
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 इसाई धमण का सस्ं थापक ईसा मसीह को माना जाता है।
 इनका जन्म स्थान जेरुशलम के नजदीक बेथलेहम में हुआ।
 इनके जन्म तदवस 25 तदसम्बर को तक्रसमस डे मनाया जाता है।
 इनकी माता का नाम- मेरी व तपता का नाम- जोसेफ था।
 ईसा मसीह ने तत्रत्व का तसद्धान्त तदया-
1. ईश्वर – तपता
2. ईश्वर – पत्रु
3. ईश्वर – पतवत्र आत्मा
 इसाई धमण का पतवत्र तचन्ह क्रॉस का तनशान है।
 30 वर्ण की आयु में रोमन गवणनर ने पोतटयन्स ने ईसा मसीह को सल
ु ी पर लटका
तदया था।
 ईसा मसीह के दो तप्रय तशष्य थे-
1. एड्रं यसु
2. सतं पीटर
 ईसा मसीह के सदं श
े इनकी धातमणक पस्ु तक बाईतबल में सितं हत है।
 ईसा मसीह ने अपने उपदेश सतं पीटर को तदए तथा इन्हें ही अपना उत्तरातधकारी
घोतर्त तकया।
ईसाइयों के सम्प्रदाय
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 इनके सम्प्रदाय को तीन भागों में बााँटा जाता है-
1. कै थोतलक इसाई- यह अपना प्रमख ु के न्द्र वेतटकन नगर (रोम) के पोप
को अपना धमाणध्यक्ष मानते थे।
2. ऑथोडोक्स इसाई- 11वीं सदी में यह पंथ आया तजसने रोम के पोप
को अपना प्रमख ु मानने से इनकार कर तदया।
3. प्रोस्टें ट इसाई- सधु ार आन्दोलन (पनु णजागरर्) के तहत यह पंथ आया,
इन्होंने पोप की सत्ता को मानने से पर्ू णत: मना कर तदया।
 रोमन कै थोतलक इसाईयों का पतवत्र स्थल वेतटकन चचण है जहााँ मख्ु य पोप रहते
हैं।
 11 फरवरी, 1929 को वेतटकन तसटी नाम से देश घोतर्त कर तदया गया।
 वतणमान तवश्व में सवाणतधक जनसंख्या इसाईयों की है।
इस्लाम धमि
 सस्ं थापक- पैगम्बर हजरत महु म्मद।
 जन्म स्थान- अप्रैल, 570ई. में मक्का शहर (सऊदी अरब)।
 इनके तपता का नाम- अब्दल्ु ला व माता- अतमना थी।
 इन्हें इस्लाम धमण में ईश्वर का सदं श
े वाहक माना जाता है।
 इन्हें 610ई. में सवोच्च ज्ञान गारे -हीरा नामक गफ
ु ा में प्राप्त हुआ।

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 सन 622ई. में हजरत महु म्मद मक्का छोड़कर मदीना चले गये। यह घटना
इस्लाम धमण में तहजरी संवत कहलाई।
 हजरत महु म्मद की मत्ृ यु 623ई. में मदीना में हुई थी जहााँ पर इनका मकबरा
तस्थत है।
 हजरत महु म्मद की मत्ृ यु के बाद इनके उत्तरातधकारी खलीफा कहलाए।
 सन्ु नी सम्प्रदाय के 5 खलीफा हुए-
1. अब बक्र तसद्दीकी
2. हजरत उमर
3. हजरत उस्मान गनी
4. हजरत अली
5. इमाम हसन
 हजरत महु म्मद के जवाई मौला अली व बेटी फाततमा थी।
 सन्ु नी अली को चौथा खलीफा मानते है।
 तशया अली को पहला खलीफा मानते है।
 मतु स्लमों का सबसे पतवत्र स्थल मक्का शहर में मौजदू है।
 मतस्जद अल-हरम दतु नया की सबसे बड़ी मतस्जद है।
 इस्लाम की पतवत्र पस्ु तक कुरान को माना जाता है।
 हजरत महु म्मद के अन्य उपदेश हदीस कहलाए।
 हजरत महु म्मद आम तौर पर जो कायण करते थे उनहें सन्ु नत कहते थे।
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 मतु स्लमों की सवाणतधक जनसंख्या वाला देश इण्डोनेतशया है।
महाजनपद काल

 अतधकतर तवद्वान छठी शताब्दी ई. पवू ण से भारतीय इततहास के ऐततहातसक


काल के आरं भ मानते है। उत्तर वैतदक काल में जो अतधकतर कबीलों ने तनतित
भभू ागों पर अतधकार कर के अपने-अपने जनपद स्थातपत करना प्रारम्भ तकया
था। वही प्रतक्रया आगे चलकर महाजन पदों की स्थापना में सहायक हुई।
 इस काल को प्राय: आरंतभक राज्यों, नगरों, लोहे के बढ़ते प्रयोग और तसक्कों
के तवकास के साथ जोड़ा जाता है। इसी काल में बौद्ध तथा जैन सतहत तवतभन्न
दशाणतनक तवचारधाराओ ं का तवकास हुआ। बौद्ध और जैन धमण के आरंतभक
िंथों में महाजनपद नाम से सोलह राज्यों का उल्लेख तमलता है।
 यद्यतप महाजनपदों के नाम की सचू ी इन िंथों में एकसमान नहीं है लेतकन वतज्ज,
मगध, कोशल, कुरू, पांचाल, गांधार और अवतन्त जैसे नाम प्राय: तमलते हैं।
इससे यह स्पष्ट है तक उक्त महाजनपद सबसे महत्वपर्ू ण महाजनपदों मे तगने जाते
होंगे।
 महाजनपद काल को भारतीय इततहास के 'तद्वतीय नगरीकरण' की सज्ञं ा दी
जाती है। प्रथम नगरीकरर् तसन्धु घाटी सभ्यता को कहा जाता है।
जनपदीय राज्य :

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 ई.प.ू छठी शताब्दी में भारत में अनेक शतक्तशाली राज्यों का तवकास हुआ। बौद्ध
िंथ 'अंगत्तु रतनकाय' तथा जैन गंथ 'भगवतीसत्रू ' में इस समय के 16 महाजनपद
की सचू ी तमलती है।
 16 महाजनपद में वतज्ज और मल्ल गर्तंत्र थे, शेर् सभी राजतंत्रात्मक राज्य थे।
गणतिंि -
 गर्तत्रं में राजस्व पर प्रत्येक कतबलाई वगण का अतधकार होता था, तजसे राजा
कहा जाता था। यह राजा कतबलों द्वारा तमलकर चनु ा जाता था। गर्तत्रं व्यवस्था
में कुलीनों की सतमतत के अतं गणत कायण तकया जाता था।
राजतिंि :-
 राजतत्रं में वश ं ानगु त प्रतक्रया द्वारा राजा बनता था। जनता से वसल ू े गये राजस्व
पर राजा का अतधकार होता था।
 राजतंत्र में ब्राह्मर् प्रभावशाली थे। तनर्णय प्रतक्रया के वल एकमात्र शासक तक ही
सीतमत थी।

अिंगुत्तर तनकाय में ितणित महाजनपद तनम्नतलतखत है-

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1. अिंग – यह जनपद मगध के पवू ण मे आधतु नक भागलपरु (तबहार) के
समीप था। इसकी राजधानी चम्पा थी। प्राचीन काल में चपं ा नगरी वैभव तथा
व्यापार-वातर्ज्य के तलये प्रतसद्ध थी।
2. मगध - इसमें दतक्षर् तबहार के पटना और गया के आधतु नक तजले
सतम्मतलत थे। इसकी राजधानी राजगहृ या तगररव्रज थी। बाद में मगध की
राजधानी पाटतलपत्रु (पटना) स्थानान्तररत कर दी गई।
3. ितज्ज - यह आठ जाततयों का संघ था, तजसमें मख्ु य तलच्छतव, तवदेह
और ज्ञातक ृ जाततयााँ थीं। तलच्छतवयों की राजधानी वैशाली ही वतज्ज-सघं की
राजधानी थी।
4. कार्ी - इसकी राजधानी वारार्सी थी। ब्रह्मदत्त राजाओ ं के समय में
इसकी बहुत उन्नतत हुई। सम्भवतः काशी के राजाओ ं ने तवदेह राज्य के पतन में
प्रमख
ु भाग तलया। इस समय तवदेह एक गर्राज्य था।
5. कोर्ल - यह राज्य लगभग आजकल के अवध राज्य के समान था।
इस समय इसकी राजधानी श्रावस्ती थी। यह आजकल सहेतमहेत नाम का गांव
है, जो उत्तर प्रदेश में गोंडा तजले में है। कोशल के राजाओ ं की काशी के राजाओ ं
से प्रायः लड़ाई रहती थी।
6. मल्ल – मल्लों की दो शाखाएाँ थीं। एक की राजधानी कुशीनारा' और
दसू रे की पावा थी। बद्ध ु से पहले यहााँ राजतन्त्र शासन था। कुस जातक में
ओक्काक को वहााँ का राजा बताया गया है।

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7. चेतद - यह जनपद यमनु ा के समीप था और यमनु ा नदी से बन्ु देलखण्ड
तक फै ला हुआ था। इसकी राजधानी सोतत्थवती के न नदी पर तस्थत थी। यहााँ
का प्रतसद्ध शासक तशशपु ाल था, तजसका वध कृष्र् द्वारा तकया गया।
8. ि्स - इसकी राजधानी कौशाम्बी थी, जो इलाहाबाद से तीस मील की
दरू ी पर तस्थत है और अब कोसम कहलाती है। बद्ध ु काल में यहााँ पौरव वश
ं का
शासन था, तजसका शासक उद्यन था। तनचक्षु ने हतस्तनापरु के नष्ट होने के बाद
इसको ही अपनी राजधानी बनाया।
9. करु : इस जनपद में आजकल के धानेसर, तदल्ली और मेरठ तजले
शातमल थे। इसकी जानी हतस्तनापरु थी परन्तु यह राज्य इस समय तवशेर्
शतक्तशाली न था।
10. पािंचाल - इसमें उत्तर प्रदेश के बरे ली, बदाय,ू फरुणखाबाद तजले शातमले
थे। इसके दो भाग उत्तर पांचाल और दतक्षर् पंचाल। उत्तर पंचाल की राजधानी
अतहच्छत्र थी, जो बरे ली के तनकट है और दतक्षर् पचं ाल की कातम्पल्य। यहााँ
का एक प्रतसद्ध राजा दमु णख ु था। मत्स्य-यह जयपरु के आसपास का प्रदेश था।
इसकी राजधानी तवराटनगर थी।
11. र्ूरसेन - यह राज्य मथरु ा के आसपास तस्थत था। इस राज्य में यादव
कुल ने बहुत प्रतसतद्ध प्राप्त की। बद्ध
ु काल में यहााँ का राजा अवतन्तपत्रु था, जो
बद्ध
ु के प्रमखु तशष्यों में से एक था।
12. म्स्य - मत्स्य की राजधानी तवराट नगर थी, तजसकी स्थापना तवराट
नामक राजा ने की थी। वतणमान में यह जयपरु ,राजस्थान है।
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13. अश्मक - यह दतक्षर् भारत का एकमात्र महाजनपद था। यह राज्य
गोदावरी नदी के तट पर था। इसकी राजधानी पोतन या पैठन थी।
14. अितन्त - यह जनपद मालवा के पतिमी भाग में तस्थत था। इस जनपद
को तवन्ध्याचल दो भागों में बााँटता था। उत्तरी भाग की राजधानी उज्जतयनी और
दतक्षर्ी भाग की मातहष्मती थी। प्राचीन काल में यहााँ हैयय राजाओ ं ने राज्य
तकया। इस राज्य की वत्स राज्य के साथ प्रायः लड़ाई होती थी।
15. गान्धार - सम्भवतः यह आधतु नक अफगातनस्तान का पवू ी भाग था।
सम्भवतः ककमीर और पतिमी पजं ाब का कुछ भाग भी इसमें शातमल थे।
पेशावर और रावलतपंडी तजले इसमें अवकय शातमल थे। इसकी राजधानी
तक्षतशला थी। तक्षतशला प्रमख ु व्यापाररक नगर होने के साथ साथ तशक्षा का
प्रमख
ु के न्द्र भी था।
16. कम्बोज - इसमें ककमीर का दतक्षर्-पतिमी भाग और कातफररस्तान के
कुछ भाग शातमल बद्ध ु के समय में राजतन्त्र राज्यों में चार राज्य बहुत प्रमख
ु हो
गए। ये अवतन्त, वत्स, कोशल और मगध। इसकी राजधानी हाटक थी। प्राचीन
समय में कम्बोज जनपद अपने श्रेष्ठ घोड़ों के तलये तवख्यात था।
मगध का उ्कषि:-
 छठी से चौथी शताब्दी ई.प.ू में मगध (आधतु नक तबहार) सबसे शतक्तशाली
महाजनपद बन गया। आधतु नक इततहासकार इसके कई कारर् बताते हैं।
o एक यह तक मगध क्षेत्र में खेती की उपज खास तौर पर अच्छी होती थी।
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o दसू रे यह तक लोहे की खदानें भी आसानी से उपलब्ध थीं, तजससे उपकरर् और
हतथयार बनाना सरल होता था। जगं ली क्षेत्रों में हाथी उपलब्ध थे, जो सेना के
एक महत्वपर्ू ण अंग थे।
o साथ ही गंगा और इसकी सहायक नतदयों (उपनतदयों) से आवागमन सस्ता व
सल ु भ होता था
 लेतकन आरं तभक जैन और बौद्ध लेखकों ने मगध की महत्ता का कारर् तवतभन्न
शासकों की नीततयों को बताया है। इन लेखकों के अनसु ार तबंतबसार,
अजातशत्रु और महापद्मनंद जैसे प्रतसद्ध राजा अत्यंत महत्वकांक्षी शासक थे,
और इनके मत्रं ी उनकी नीततयााँ लागू करते थे।
 प्रारंभ में, राजगहृ मगध की राजधानी थी। यह रोचक बात है तक इस शब्द का
अथण है 'राजाओ ं का घर'। पहातड़यों के बीच बसा राजगहृ एक तकलेबदं शहर
था। बाद में चौथी शताब्दी ई.प.ू में पाटतलपत्रु को राजधानी बनाया गया, तजसे
अब पटना कहा जाता है, तजसकी गंगा के रास्ते आवागमन के मागण पर
महत्वपर्ू ण अवतस्थतत थी।
हयंक ििंर् (545 ई.पू. - 412 ई.पू.) :
 तबतम्बसार (546 ई.प.ू -494 ई.प.ू ) इस वंश का सबसे प्रतापी राजा था जो बद्ध

का समकालीन था। इसका उपनाम श्रेतर्क था। इसने तगररव्रज को अपनी
राजधानी बनाया।

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 तबतम्बसार ने वैवातहक संबंधों के द्वारा अपने राज्य का तवस्तार तकया तथा इसे
सदृु ढ़ता प्रदान की।
 अजातशत्रु (494-462 ई.प.ू ) अपने तपता की हत्या कर मगध के तसंहासन पर
बैठा। इसका नाम कुतर्क भी था। अजातशत्रु ने वतज्जसंघ को परातजत करने के
दौरान प्रथम बार रथमसू ल व तशलाकण्टक जैसे अत्रों का प्रयोग तकया।
 साम्राज्यवादी नीतत के तहत इसने काशी तथा वतज्जसंघ को मगध में तमलाया।
उदातयन (460-444 ई.प.ू ) ने गगं ा एवं सोन नदी के सगं म पर पाटतलपत्रु नामक
नगर की स्थापना की।
तबतम्बसार (546 ई. पू. - 494 ई. पू.)
 मगध का सबसे पहला शतक्तशाली राजा तबतम्बसार था। पातलिन्थों के अनसु ार
वह हयंक कुल का था। वह एक साधारर् सामन्त का पत्रु था और "श्रेतर्क”
नाम से भी प्रतसद्ध था। महावंश के अनसु ार जब वह गद्दी पर बैठा, उसकी
अवस्था के वल 15 वर्ण की थी।
 इस समय उसके सामने कई समस्याएाँ थीं। उत्तर में वतज्ज गर्राज्य बहुत
शतक्तशाली हो गया था। कोशल और अवतन्त के शतक्तशाली राजा सारे तनबणल
राष्रों को जीतकर अपने राज्य में तमलाना चाहते थे और अगं का राजा भी
उसका शत्रु था।
 तबतम्बसार ने बड़ी बतु द्धमता से काम तलया। उसने शतक्तशाली राजघरानों से
वैवातहक सम्बन्ध स्थातपत करके अपनी शतक्त बढ़ाई। उसकी प्रधान रानी
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कोशल देवी थी, जो कोशल के राजा प्रसेनतजत की बहन थी। इस तववाह में
दहेज के रूप में तबतम्बसार को काशी राज्य का कुछ प्रदेश तमला था, तजससे एक
लाख मद्रु ा वातर्णक भतू म-कर प्राप्त होता था उसकी दसू री रानी चेल्लना थी, जो
तलच्छतवयों के राजा चेटक की बहन थी। तीसरी रानी क्षेमा पंजाब के
शतक्तशाली मद्र राज्य की राजकुमारी थी। कहते है तक उसकी चौथी रानी तवदेह
की राजकुमारी पाती थी जो उसके तलए, जब उसके पत्रु अजातशत्रु ने तबतम्बसार
को कारागार में डाल तदया था, तब भोजन ले जाती थी।
 तबतम्बसार के वैवातहक सम्बन्ध मगध के साम्राज्य-तवस्तार में बहुत सहायक
हुए। तक्षतशला के राजा पष्ु करसारी ने प्रद्योत के तवरुद्ध तबतम्बसार से सहायता
मााँगी तकन्तु उसने प्रद्योत से शत्रतु ा मोल लेना ही उतचत समझा। उसने पष्ु करसारी
के राजदतू का स्वागत तकया परन्तु प्रद्योत के तवरुद्ध से सहायता नहीं दी। इसके
तवपरीत जब प्रद्योत पाण्डुरोग से पीतडत हुआ, तो तबतम्बसार ने अपने राजवैद्य
जीवक को उसकी तचतकत्सा करने भेजा।
अजातर्िु ( 494 ई.पू. - 462 ई.पू.)-
 अजातशत्रु या कुतर्क पातल िन्थों के अनसु ार अपने तबतम्बसार को मारकर
मगध के तसहं ासन पर बैठा। तबतम्बसार की मत्ृ यु के पिात उसकी की रानी
कोशलदेवी उसके शोक में मर गई। तब कोशलदेवी के भाई प्रसेनतजत ने काशी
का भाग जो उसने कोशलदेवी के दहेज में तबतम्बसार को तदया था, वापस लेने
के तलए अजातशत्रु के तवरुद्ध लड़ाई छे ड़ दी। इस यद्ध
ु में पहले मगध के राजा
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की जीत हुई। तफर कोशल का राजा तवजयी हुआ। अन्त में, कोशल-नरे श ने
अजातशत्रु से सतन्ध कर ली और अपनी पत्रु ी वतजरा का तववाह अजातशत्रु के
साथ कर तदया और काशी का वह भाग, जो पहले तबतम्बसार को तदया था, उसे
तफर से अजातशत्रु को दे तदया।
 अजातशत्रु के राज्यकाल में गौतम बद्ध ु और महावीर दोनों महापरुु र्ों की मत्ृ यु
हई। इस समय में पहली बौद्ध-संगीतत भी राजगहृ में हुई। इसमें बौद्ध धमण के
तसद्धांत स्वीकृत तकए गए।
 बौद्ध और जैन दोनों ही अजातशत्रु को अपने-अपने मत का मानने वाला कहते
हैं। एक जैन िन्थ 'उत्तराध्ययनसत्रू ' मे तलखा है तक कुतर्क प्रायः वैशाली और
चम्पा में महावीर से तमलने जाया करता था। अजातशत्रु के बौद्ध होने के भी कई
प्रमार् है। पहली बौद्धसंगीतत अजातशत्रु के संरक्षर् में राजगहृ के तनकट हुई थी।
भरहुत में एक तचत्र में अजातशत्रु को बद्ध ु को प्रर्ाम करता तदखाया गया है।
उसने अपने वैद्य जीवक के साथ गौतम बद्ध ु के दशणन तकये थे और बद्ध
ु की मत्ृ यु
के पिात उसकी अतस्थयों का एक भाग तलया था। उसने कई चैत्य भी बनवाये
थे।
1. अजातर्िु के उत्तरातधकारी ( 462 ई.पू. - 414 ई.पू.) - परु ार्ों के
अनसु ार अजातशत्रु का उत्तरातधकारी दशणक था तकन्तु पातल धमण िन्थों और जैन
अनश्रु तु त के अनसु ार अजातशत्रु का पत्रु और उत्तरातधकारी उदायीभद्र था।

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2. तर्र्ुनाग और उसके उत्तरातधकारी (414 ई.प.ू - 346 ई.प.ू ) -
हयंक कुल के अतन्तम राजा के समय में तशशनु ाग बनारस का राज्यपाल था।
उसकी दो राजधातनयााँ थीं - तगररव्रज और वैशाली। इस समय अवतन्त का राजा
अवतन्तवधणन था। तशशनु ाग ने प्रद्योत के इस वंश को परास्त करके अवतन्त के
राजाओ ं का मान-मदणन तकया। सभं वतः उसने कोशल, वत्स और अवतन्त के
तीनों प्रमख
ु राज्यों को मगध राज्य में तमलाकर मगध की सीमा बढ़ाई। इस प्रकार
तशशनु ाग के राज्य में मगध के अततररक्त मध्य प्रदेश (उत्तर प्रदेश) और मालवा
भी सतम्मतलत थे।
 तशशनु ाग का उत्तरातधकारी कालाशोक था। उसके राज्य-काल में बौद्धों की
दसू री महान सभा वैशाली में हुई। उसने तफर पाटतलपत्रु को अपनी राजधानी
बनाया। 'हर्णचररत' के अनसु ार एक हत्यारे ने शैशनु ागी कालाशोक के गले में
कटार भोंककर उसका वध कर तदया। 'महाबोतधवश ं ’ के अनसु ार कालाशोक के
दस पत्रु थे।
नन्द ििंर् (344 ई.पू.-322 ई.प.ू ) :-
 नन्द वंश का सस्ं थापक महापद्मनंद था। परु ार् में इसे सवणक्षत्रांतक कहा गया है।
 महाबोतधवंश इसे उिसेन कहता है। इसने एकराट की उपातध धारर् की।
 यनू ानी लेखकों व जैन अनश्रु तु त के अनसु ार महापद्मनंद एक नाई था।
 मैसरू के कुछ प्राचीन अतभलेखों से पता चलता है तक नन्दों ने मैसरू के उत्तर-
पतिमी भाग अथाणत कुन्तल पर भी राज्य तकया था।
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 घनानंद, नन्द वंश का अंततम राजा था। यह तसकन्दर का समकालीन था तथा
इसके शासनकाल में 326 ई.प.ू में तसकन्दर ने पतिमोत्तर भारत पर आक्रमर्
तकया था।
 चन्द्रगप्तु मौयण ने घनानंद की हत्या कर मौयण वंश की स्थापना की थी।
महापदमानिंद :-
 इसे नन्द वंश का संस्थापक माना जाता है। परु ार्ों में महापद्मानम्द को
सवणक्षत्रांतक (क्षतत्रयों का नाश करने वाला) तथा भागणव कहा गया है।
घनानिंद:-
 यह तसकदरं का समकालीन था। इसके समय में 326 ई.प.ू में तसकंदर ने
पतिमोत्तर भारत पर आक्रमर् तकया था।
 घनानंद के राज्य में जनता उसके क्रूर शासन से तंग थी। इसने अपने दरबार में
तक्षतशला के आचायण चार्क्य को अपमातनत तकया था।
 चार्क्य ने 322ई. प.ू चन्द्रगप्तु मौयण की सहायता से घनानन्द को मारकर नन्द
वंश का अंत कर तदया तथा मौयण वंश की स्थापना की।
 गणतिंि राज्य :-
 16 जनपदों में कई गर्राज्य थे। इनमें बद्ध
ु के समय 10 गर्तंत्र थे।
र्ाक्य:-
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 शाक्य 16 महाजनपदो में सबसे प्रतसद्ध गर्राज्य था।
 गौतम बद्ध ु का जन्म इसी गर्तत्रं राज्य में हुआ थ। शाक्यों की राजधानी
कतपलवस्तु थी, जो नेपाल की सीमा पर तहमालय की तराई में तस्थत थी। बौद्ध
िंन्थों के अनसु ार शाक्य अपने को इक्ष्वाकु-वंशीय मनाते थे।
 शाक्य सघं का प्रधान राष्रपतत की भांतत चनु ा जाता था यद्यतप वह राजा
कहलाता था। पहले बद्ध ु के तपता शद्ध
ु ोदन शाक्य गर्राज्य के राजा चनु े गये थे।
तलच्छति:-
 तलच्छतवयों में 9 गर्राज्य मल्लों के और 18 काशी और कोसल के राजतन्त्र
सतम्मतलत थे। इस संघ का प्रमख ु तलच्छतवयों का नेता चेटक था। इस गर्राज्य
की राजधानी वैशाली थी।
मल्ल:-
 इस गर्राज्य की दो शाखाएाँ थीं। एक की राजधानी पावा और दसू री की
कुशीनारा ( कतसया) थी। महावीर की मत्ृ यु पावा में हुई थी और गौतम बद्ध
ु की
कुशीनारा में। पावा के मल्लों ने एक नया संसद - भवन बनाया था, तजसका
उद्घाटन बद्ध
ु ने तकया था। प्रतसद्ध बौद्ध उपदेशक आनन्द और अनरुु द्ध मल्लों में
से ही थे।
कोतलय

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 इसका राज्य शाक्य राज्य के पवू ण में था। शाक्यों और कोतलय लोगों में रोतहर्ी
नदी के पानी के ऊपर झगड़ा होता रहता था। यह नदी दोनों राज्यों की सीमा पर
थी। इनकी राजधानी रामिाम थीभग्ग
मोररय
 इनकी राजधानी तपफतलवन थी। चन्द्रगप्तु मौयण सभं वतः इसी गर्राज्य में से था।
कालाम –
 इनकी राजधानी सपत्तु थी। बद्ध ु के गरुु आलार इसी जातत के थे। इस समय
तमतथला (नेपाल की सीमा पर) में तवदेहों और वैशाली में ज्ञातक लोगों के
गर्राज्य थे। ज्ञातक
ृ गर्राज्य के नेता भगवान महावीर के तपता थे। ज्ञातकों की
राजधानी कोल्लांग थी।

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