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मौयकालीन थाप य या

वा तु कला

यह लेख सामा य उ लेखनीयता नदश के अनु प नह है।


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मौयकालीन कला

कला क से हड़ पा क स यता और मौयकाल के


बीच लगभग 1500 वष का अंतराल है। इस बीच क
कला के भौ तकअवशेष उपल ध नह है। महाका
और बौ ंथ म हाथीदाँत, म और धातु के काम
का उ लेख है। क तु मौयकाल से पूव वा तुकला और
मू तकला के मूत उदाहरण कम ही मलते ह। मौयकाल
म ही पहले—पहल कला मक ग त व धय काइ तहास
न त प से ार भ होता है। रा य क समृ और
मौय शासक क ेरणा से कलाकृ तय को ो साहन
मला। इस युग म कला के दो प मलते ह। एक तो
राजर क के ारा न मत कला, जो क मौय ासाद
और अशोक तंभ म पाई जाती है। सरा वह प जो
परखम के य द दारगंज क चामर ा हणी और
वेसनगर क य णी म दे खने को मलता है। रा य सभा
से स ब धत कला क ेरणा का ोत वयं स ाट था।
य —य णय म हम लोककला का प मलता है।
लोककला के प क पर परा पूव युग से का और
म म चली आई है। अब उसे पाषाण के मा यम से
अभ कया गया। राजक य कला राजक य कला
का सबसे पहला उदाहरण चं गु त का ासाद है,
जसका वशद वणन ए रयन ने कया है। उसके अनुसार
राज ासाद क शान—शौक़त का मुक़ाबला न तो सूसा
और न एकबेतना ही कर सकते ह। यह ासाद स भवतः
वतमान पटना के नकट कु हार गाँव के समीप था।
कु हार क खुदाई म ासाद के सभा—भवन के जो
अवशेष ा त ए ह उससे ासाद क वशालता का
अनुमान लगाया जा सकता है। यह सभा—भवन ख भ
वाला हाल था। सन् 1914—15 क खुदाई तथा 1951
क खुदाई म कुल मलाकर 40 पाषाण तंभ मले ह,
जो इस समय भ दशा म ह। इस सभा—भवन का फ़श
और छत लकड़ी के थे। भवन क ल बाई 140 फुट और
चौड़ाई 120 फुट है। भवन के तंभ बलुआ प थर के बने
ए ह और उनम चमकदार पा लश क गई थी। फ़ा ान
ने अ य त भाव— वण श द म इस ासाद क शंसा
क है। उसके अनुसार, "यह ासाद मानव कृ त नह है
वरन् दे व ारा न मत है। ासाद के तंभ प थर से बने
ए ह और उन पर सु दर उकेरन और उभरे च बने
ह।"फ़ा ान के वृ ा त से पता चलता है क अशोक के
समय इस भवन का व तार आ।

[1] मेग थनीज़ के अनुसार पाट लपु , सोन और गंगा के


संगम पर बसा आ था। नगर क ल बाई 9-1/2 मील
और चौड़ाई 1-1/2 मील थी। नगर के चार ओर लकड़ी
क द वार बनी ई थी जसके बीच—बीच म तीर चलाने
के लए छे द बने ए थे। द वार के चार ओर एक ख़ाई
थी जो 60 फुट गहरी और 600 फुट चौड़ी थी। नगर म
आने—जाने के लए 64 ार थे। द वार पर ब त से बुज़
थे जनक सं या 570 थी। पटना म गत वष म जो
खुदाई ई उससे का न मत द वार के अवशेष ा त
ए ह। 1920 म बुलंद बाग़ क खुदाई म ाचीर का एक
अंश उपल ध आ है, जो ल बाई म 150 फुट है।
लकड़ी के ख ब क दो पं याँ पाई गई ह। जनके बीच
14-1/2 फुट का अंतर है। यह अंतर लकड़ी के लीपर
से ढका गया है। ख भ के ऊपर शहतीर जुड़े ए ह।
ख भ क ऊँचाई ज़मीन क सतह से 12-1/2 फुट है
और ये ज़मीन के अ दर 5 फुट गहरे गाड़े गए थे। यूनानी
लेखक ने लखा है क नद —तट पर थत नगर म
ायः का श प का उपयोग होता था। पाट लपु क
भी यही थ त थी। सभा—मंडप म शला— तंभ का
योग एक नई था थी। मौयकाल के सव कृ नमून,े
अशोक के एका मक तंभ ह जो क उसने ध म चार के
लए दे श के व भ भाग म था पत कए थे। इनक
सं या लगभग 20 है और ये चुनार (बनारस के नकट)
के बलुआ प थर के बने ए ह। लाट क ऊँचाई 40 से
50 फुट है। चुनार क खान से प थर को काटकर
नकालना, श पकला म इन एका मक ख भ को काट
—तराशकर वतमान प दे ना, इन तंभ को दे श के
व भ भाग म प ँचाना, श पकला तथा इंजी नयरी
कौशल का अनोखा उदाहरण है। इन तंभ के दो मु य
भाग उ लेखनीय ह—(1) तंभ य या गाव म लाट
(tapering shaft) और शीष भाग। शीष भाग के
मु य अंश ह घंटा, जो क अखमीनी तंभ के आधार के
घंट से मलते—जुलते ह। भारतीय व ान इसे
अवांगमुखी कमल कहते ह। इसके ऊपर गोल अंड या
चौक है। कुछ चौ कय पर चार पशु और चार छोटे च
अं कत ह (जैसे सारनाथ तंभ शीष क चौक पर) तथा
कुछ पर हंसप अं कत है। चौक पर सह, अ , हाथी
तथा बैल आसीन ह। रामपुर म नटु वा बैल ल लत मु ा म
खड़ा है। सारनाथ के शीष तंभ पर चार सह पीठ सटाए
बैठे ह। ये चार सह एक च धारण कए ए ह। यह
च बु ारा धम—च — वतन का तीक है।
अशोक के एका मक तंभ का सव कृ नमूना
सारनाथ के सहं तंभ का शीषक है। मौय श पय के
प वधान का इससे अ छा सरा नमूना और कोई नह
है। ऊपरी सह म जैसी श का दशन है, उनक
फूली नस म जैसी वाभा वकता है और उनके नीचे
उकेरी आकृ तय म जो ाणवान वा त वकता है, उसम
कह भी आर भक कला क छाया नह है। श प ने
सह के प को ाकृ तक स चाई से कट कया है।
तंभ क — वशेषतः सारनाथ तंभ क —चमक ली
पा लश, घंटाकृ त तथा शीष भाग म पशु आकृ त के
कारण पा ा य व ान ने यह मत कया है क
कला को ेरणा अखमीनी ईरान से मली है। चौक पर
हंस क उकेरी गई आकृ तय और अ य स जा म
यूनानी भाव भी दखाई दे ता है। भारतीय व ान के
अनुसार अशोक के तंभ क कला का ोत भारतीय है।
मौय तंभ—शीष क पशु—मू तयाँ, सारनाथ का
सह तंभ, रामपुरवा का बैल ाचीन सधु घाट से
वाहमान पर परा के अनुकूल है। क तु वासुदेव शरण
अ वाल ने महाभारत और आप त ब सू से माण
तुत कए ह, जनसे स होता है क चमक ली
पा लश उ प करने क कला ईरान से कह पहले भारत
म ात थी। मौयकाल से पूव और एक हद तक
मौयकालीन थान पर जो काली पा लश वाले मृदभांड
पाए गए ह उनसे तीत होता है क दे श के इ तहास म
एक युग ऐसा था जब ओपदार चमक म च ली जाती
थी। यह भी स होता है क पा लश का रह य केवल
राज श पय तक सी मत नह था। पपरहवा तूप से
मली फ टक मंजूषा, पाट लपु के दो य और
द दारगंज क य ी म भी यह पा लश पाई जाती है।
सारनाथ के धमच क क पना नतांत भारतीय है।
ईरानी तंभ और मौय तंभ म प भेद ह। वतं
तंभ क क पना भारतीय है। ईरानी तंभ नालीदार ह
जब क भारतीय तंभ सपाट ह। ईरानी तंभ अलग—
अलग पाषाण—खंड के बने ए ह क तु अशोक तंभ
एक ही प थर के ह। तंभ के शीष भाग को घंटा कहा
गया है। क तु भारतीय व ान के अनुसार यह
आवांगमुख कमल अथवा पूणघट है जो बाहर क ओर
लहराती ई कमल क पंखु ड़य से ढका आ है। य द
कुछ समय के लए इसे घंटा मान भी लया जाए तो यह
ईरानी घंटे से भ है। तथाक थत मौय घंटा घटप लव
या पूणघट के अ भ ाय के स श बनाया गया है। इसके
अलावा ईरानी और मौय तंभ शीषक के अलंकरण म
भी अंतर है। मौयकालीन श पय ने चरप र चत
पर परा को अपनाया और अपनी तभा से उसे नवीन
आकार दान कया। य द ईरानी भाव को मान भी
लया जाए, तो भी अशोक तंभ क संगत राशी
मू तकला तथा अलंकरण को अखमीनी, ईरानी या यूनान
क मूलाकृ तय क नक़ल मा नह माना जा सकता।
वदे शी कला—ल ण का स यक् अ ययन करके
भारतीय कलाकार ने अपनी तभा से पातंरण कया
है और उ ह अपने ढं ग से कलाकृ तय म अ भ
कया है। अशोक ने तूप नमाण क पर परा को भी
ो साहन दया। बौ अनु ु त के अनुसार अशोक ने
8,400 तूप बनवाए। साँची तथा भर त के तूप का
नमाण मूल प म अशोक ने ही करवाया था। शुंग म
साँची तूप का व तार आ। अशोक ने वा तुकला के
इ तहास म एक नई शैली का ार भ कया, अथात
च ान को काटकर कंदरा का नमाण कया। गया के
नकट बाराबर क पहा ड़य म अशोक ने अपने
रा या भषेक के 12व वष म सुदामा गुहा आजीवक
भ ु को दान म द । इस गुफा म दो को ह। एक
गोल ास है जसक छत—अधवृ या ख़रबू ज़या
आकार क है। उसके बाहर का मुखमंडप आयताकार है
क तु छत गोलाकार है। दोन को क भ य और
छत पर शीशे जैसी चमकती ई पा लश है। इससे ात
होता है क चै य गृह का मौ लक वकास अशोक के
समय म ही ार भ हो गया था और इस शैली का पूण
वकास महारा के भाजा, क हेरी और काल चै यगृह म
प रल त होता है। अशोक के पु दशरथ ने नागाजुनी
पहा ड़य म आजा वक को 3 गुफाएँ दान क । इनम
से एक स गुफा गोपी गुफा है। इनका व यास सुरंग
जैसा है। इसके म य म ढोलाकार छत और दोन शर
पर दो गोल मंडप ह, जनम से एक को गभगृह और
सरे को मुखमंडप समझना चा हए। इसम
अशोककालीन गृह श प क पूणतः र ा ई है। लोक
कला मौयकाल क लोक कला का ान उन महाकाय
य —य ी मू तय के ारा होता है जो मथुरा से
पाट लपु , व दशा, क लग और प म सूपारक तक
पाई जाती है। इन य —य य क मू तय क अपनी
नजी शैली है, जसका ठे ठ प दे खते ही अलग
पहचाना जा सकता है। अ तमानवीय महाकाय मू तयाँ
खुले आकाश के नीचे था पत क जाती थ । इस
स ब ध म परखम ाम से ा त य मू त, पटना से ा त
य मू त— जस पर ओपदार चमक है और एक लेख भी
है—पटना शहर म द दारगंज से ा त चामर ा हणी य ी
— जस पर भी मौय शैली क चमक है—और बेसनगर से
ा त य ी वशेष उ लेखनीय है। ये मू तयाँ महाकाय ह
और माँसपे शय क ब ल ता और ढ़ता उनम जीवंत
प से ई है। वे पृथक प से खड़ी है पर उनके
दशन का भाव स मुखीन है, मान श पी ने उ ह
स मुख दशन के लए ही बनाया हो। उनका वेश है सर
पर पगड़ी, कंध और भुजा पर उ रीय, नीचे धोती
जो क ट म मेखला से कायबंधन से बँधी है। कान म
भारी कुँडल, गले म कंठा, छाती पर तकोना हार और
बा पर अंगद है। मू तय को थोड़ा घटोदर दखाया
गया है जैसे परखम क मू त म दे खने को मलता है।
गुहा वा तु
मु य लेख : गुहा वा तु

गुहा वा तु भारतीय ाचीन वा तुकला का एक ब त ही


सु दर नमूना है। अशोक के शासनकाल से गुहा का
उपयोग आवास के प म होने लगा था। गया के नकट
बराबर पहाड़ी पर ऐसी अनेक गुफाएँ व मान ह, ज ह
स ाट अशोक ने आवास यो य बनवाकर आजीवक को
दे दया था। अशोककालीन गुहाय सादे कमर के पम
होती थ , ले कन बाद म उ ह आवास एवं उपासनागृह के
प म त भ एवं मू तय से अलंकृत कया जाने लगा।
यह काय वशेष प से बौ ारा कया गया। मौय
काल का शासन बंध मौय के शासनकाल म भारत ने
पहली बार राजनी तक एकता ा त क । 'च वत
स ाट' का आदश च रताथ आ। कौ ट य ने च वत
े को साकार प दया। उसके अनुसार च वत े
के अंतगत हमालय से ह द महासागर तक सारा
भारतवष है। 'मौय युग' म राजतं के स ांत क वजय
है। इस युग म गण रा य का ास होने लगा और शासन
स ा अ य धक के त हो गई। सा ा य क सीमा पर
तथा सा ा य के अंदर कुछ अध- वतं रा य थे, जैस-े
का बोज, भोज, पै नक तथा आट वक रा य।
राजशासन क वैधता 'मौय काल' म जा क श म
अ य धक वृ ई। पर परागत राजशा स ांत के
अनुसार राजा धम का र क है, धम का तपादक नह ।
राजशासन क वैधता इस बात पर नभर थी क वह धम
के अनुकूल हो। क तु कौ ट य ने इस दशा म एक नया
तमान तुत कया। कौ ट य के अनुसार- 'राजशासन
धम, वहार और च र (लोकाचार) से ऊपर था'। इस
कार राजा ा को मुखता द गई। इस बढ़ती ई
भुस ा के कारण ही मौय स ाट अशोक के समय
राजतं ने पैतृक नरंकुशता का प धारण कया।
अशोक सारी जा को समान मानता था। उनके ऐ हक
और पारलौ कक सुख के लए वंय को उ रदायी
समझता था और जा को उ चत काय करने का उपदे श
दे ता था। शासन का के ब चूँ क शासन का के
ब राजा था, अतः इतने बड़े सा ा य के शासन
संचालन के लए यह आव यक था क राजा उ साही,
फू तवान और जा हत के काय के लए सदा त पर
हो।चं गु त मौय एवं अशोक दोन मौय स ाट म ये गुण
चुर मा ा म व मान थे। चं गु त क काय त परता के
स ब ध म मेग थनीज़ ने लखा है क- "राजा दरबार म
बना वधान के कायरत रहता था"। कौ ट य ने कहा है
क- "जब राजा दरबार म ही बैठा हो तो उसे जा से
बाहर ती ा नह करवानी चा हए, य क जब राजा
जा के लए लभ हो जाता है और काम अपने मातहत
अ धका रय के भरोसे छोड़ दे ता है, तो वह जा म
व ोह क भावना पैदा करता है और राजा के श ु के
षड़यं का शकार हो जाने क आशंका पैदा हो जाती
है।" अपने छठे शलालेख म अशोक ने यह व त जारी
क थी क- "वह जा के काय के लए त ण और
येक थान पर मल सकता है और जा क भलाई के
लए काय करने म उसे बड़ा संतोष मलता है"। नी त
नधारण राजा ही रा य क नी त नधा रत करता था
और अपने अ धका रय को राजा ा ारा समय-
समय पर नदश दया करता था। अशोक के शला तथा
तंभ लेख से यह प है क जा के नाम उसक
राजा ाएँ जारी होती थी। चं गु त मौय के समय म
गु तचर के मा यम से र थ दे श म शासन कर रहे
अ धका रय पर स ाट का पूरा नयं ण रहता था।
अशोक के समय पयटक महामा , राजुक , ादे शक ,
पु ष तथा अ य अ धका रय क सहायता लेते थे।
संचार व था के संचालन के लए सड़क थ , साम रक
मह व क जगह पर सेना क टु क ड़याँ तैनात रहा
करती थ । अ धका रय क नयु दे श क आंत रक
र ा और शा त, यु संचालन, सेना क नयं ण आ द
सभी राजा के अधीन था। अ धका रय का चयन
कौ ट य का ढ़ मत था क राज व ( भुता) बना
सहायता से स भव नह है, अतः राजा को स चव क
नयु करनी चा हए तथा उनसे मं णा लेनी चा हए।
रा य के सव च अ धकारी मं ी कहलाते थे। इनक
सं या तीन या चार होती थी। इनका चयन अमा य वग
से होता था। 'अमा य' शासन तं के उ च अ धका रय
का वग था। राजा ारा मु यमं ी तथा पुरो हत का
चुनाव उनके च र क भली-भाँ त जाँच के बाद कया
जाता था। इस या को 'उपधा परी ण' कहा गया है
(उपधा शु म्)। ये मं ी एक कार से अंतरंग मं मंडल
के सद य थे। रा य के सभी काय पर इस अंतरंग
मं मंडल म वचार- वमश होता था और उनके नणय
के प ात ही कायार भ होता था। मं प रषद मं मंडल
के अ त र एक और मं प रषद् भी होती थी। अशोक
के शलालेख म 'प रषा' का उ लेख है। राजा ब मत के
नणय के अनुसार काय करता था। जहाँ तक मं य
तथा मं प रषद् के अ धकार का सवाल है, उनका मु य
काय राजा को परामश दे ना था। वे राजा क नरंकुशता
पर नयं ण रखते थे, क तु मं य का भाव ब त कुछ
उनक यो यता तथा कसठता पर नभर करता था।
अशोक के छठे शलालेख से अनुमान लगता है क
प रषद् रा य क नी तय अथवा राजा ा पर वचार-
वमश करती थी और य द आव यक समझती थी तो
उनम संशोधन का सुझाव भी दे ती थी। यह राजा के हत
म था क वह मं ी या प रषद के सद य के परामश से
लाभ उठाए। क तु कसी नी त या काय के वषय म
अ तम नणय राजा के ही हाथ म होता था। शासन का
भार शासन काय का भार मु यतः एक वशाल वग पर
था, जो सा ा य के व भ भाग से शासन का संचालन
करते थे। 'अथशा ' म सबसे ऊँचे तर के कमचा रय
को 'तीथ' कहा गया है। ऐसे अठारह तीथ का उ लेख है,
इनम से कुछ मह वपूण पदा धकारी थे- मं ी, पुरो हत,
सेनाप त, युवराज, समाहता, स धाता तथा
मं प रषदा य । तीथ श द एक-दो थान पर यु
आ है। अ धकतर थल पर इ ह 'महामा ' या
'महामा य' क सं ा द गई है। सबसे मह वपूण तीथ या
महामा मं ी और पुरो हत थे। राजा इ ह के परामश से
अ य मं य तथा अमा य क नयु करता था। रा य
के सभी अ धकरण पर मं ी और पुरो हत का नयं ण
रहता था। सेनाप त सेना का धान होता था। ये पु
युवराज पद पर व धवत अ भ ष होता था। शासन
काय म श ा दे ने के लए उसे कसी ज़ मेदार पद पर
नयु कया जाता था। ब सार के काल म अशोक
मालवा दे श का शासक था और उसे व ोह को
दबाने या वजया भयान के लए भेजा जाता था। राज व
राज व एक करना, आय य का यौरा रखना तथा
वा षक बजट तैयार करना, समाहता के काय थे। दे हाती
े क शासन व था भी उसी के अधीन थी। शासन
क से दे श को छोट छोट इकाइय म वभ कया
जाता था और अ धका रय क सहायता से शासन काय
चलाया जाता था। इ ह अ धका रय क सहायता से वह
जनगणना, गाँव क कृ ष यो य भू म, लोग के
वसाय, आय य, तथा येक प रवार से मलने वाले
कर क मा ा क जानकारी रखता था। यह जानकारी
वा षक आय य का बजट तैयार करने के लए
आव यक थी। गु तचर के ारा वह दे शी व वदे शी
लोग क ग त व धय क पूरी जानकारी रखता था। जो
क सुर ा के लए काफ़ मह वपूण ज़ मेदारी थी।
दे अथवा ादे शक , था नक और गोप क
सहायता से वह चोरी, डक़ैती करने वाले अपरा धय को
दं डत करता था। इस कार समाहता एक कार से
आधु नक व मं ी और गृहमं ी के कत को पूरा
करता था। स धातृ एक कार से कोषा य था।
उसका काम था सा ा य के व भ दे श म कोषगृह
और को ागार बनवाना और नक़द तथा अ के पम
ा त होने वाले राज व क र ा करना। अथशा के
'अ य चार' अ याय म 26 अ य का उ लेख है। ये
वभ वभाग के अ य होते थे और मं य के
नरी ण म काम करते थे। क तपय अ य इस कार
थे—कोषा य , सीता य , प या य , मु ा य ,
पौतवा य , ब धनागारा य आ द। इन अ य के
काय— व तार के अ ययन से ात होता है क रा य दे श
के सामा जक एवं आ थक जीवन और काय— व ध पर
पूरा नयंत रखता था। शासन के कई वभाग के
अ य , मंडल क सहायता से काय करते थे। जनक
ओर मेग थनीज़ का यान आकृ आ। के य
महामा य (महामा ) तथा अ य के अधीन अनेक
न न तर के कमचारी होते थे ज ह 'यु ' और 'उपयु '
क सं ा द गई है। अशोक के शलालेख म यु का
उ लेख है। इन कमचा रय के मा यम से के और
थानीय शासन के बीच स पक बना रहता था। के य
शासन का एक मह वपूण वभाग सेना वभाग था।
यूनानी लेखक के अनुसार चं गु त के सेना वभाग म
60,000 पैदल, 50,000 अ , 9,000 हाथी व 400
रथ क एक थायी सेना थी। इसक दे खदे ख के लए
पृथक सै य वभाग था। इस वभाग का संगठन 6
स म तय के हाथ म था। येक स म त म पाँच सद य
होते थे। स म तयाँ सेना के पाँच वभाग क दे खदे ख
करती थी—पैदल, अ , हाथी, रथ तथा नौसेना। सेना के
यातायात तथा यु साम ी क व था एक स म त
करती थी। सेनाप त सेना का सव च अ धकारी होता
था। सीमांत क र ा के लए मज़बूत ग थे जहाँ पर
सेना अंतपाल क दे खरेख म सीमा क र ा म त पर
रहती थी। स ाट याय शासन का सव च अ धकारी
होता था। मौय सा ा य म याय के लए अनेक
यायालय थे। सबसे नीचे ाम तर पर यायालय थे।
जहाँ ामणी तथा ामवृ क तपय मामल म अपना
नणय दे ते थे तथा अपरा धय से जमाना वसूल करते
थे। ाम यायालय से ऊपर सं हण, ोणमुख, थानीय
और जनपद तर के यायालय होते थे। इन सबसे ऊपर
पाट लपु का के य यायालय था। यूनानी लेखक ने
ऐसे यायधीश क चचा क है जो भारत म रहने वाले
वदे शय के मामल पर वचार करते थे। ामसंघ और
राजा के यायलय के अ त र अ य सभी यायलय दो
कार के थे—धम थीय और कंटकशोधन। धम थीय
यायालय का याय— नणय, धमशा म नपुण तीन
धम थ या ावहा रक तथा तीन अमा य करते थे। इ ह
एक कार से द वानी अदालत कह सकते ह। कुछ
व ान के अनुसार धम थ यायालय वे यायालय थे,
जो य के पार प रक ववाद के स ब ध म नणय
दे ते थे। कंटकशोधन यायालय के यायधीश तीन दे
तथा तीन अमा य होते थे और रा य तथा के बीच
ववाद इनके याय के वषय थे। इ ह हम एक तरह से
फ़ौज़दारी अदालत कह सकते ह। क तु इन दोन के
बीच भेद इतना प नह था। अव य ही धम थीय
अदालत म अ धकांश वाद— वषय ववाह, ीधन,
तलाक़, दाय, घर, खेत, सेतुबंध, जलाशय—स ब धी,
ऋण—स ब धी ववाद भृ य, कमकर और वामी के
बीच ववाद, य— व य स ब धी झगड़े से स ब धत
थे। क तु चौरी, डाके और लूट के मामले भी धम थीय
अदालत के सामने पेश कए जाते थे। जसे 'साहस' कहा
गया है। इसी कार कुवचन बोलना, मानहा न और
मारपीट के मामले भी धम थीय अदालत के सामने
तुत कए जाते थे। इ ह 'वाक् पा य' तथा 'दं ड
पा य' कहा गया है। क तु समाज वरोधी त व को
समु चत दं ड दे ने का काय मु यतः कंटकशोधन
यायालय का था। नीलकंठ शा ी के अनुसार
कंटकशोधन यायालय एक नए कार क
आव यकता को पूरा करने के लए बनाए गए थे
ता क एक अ य त संग ठत शासन तं के व वध वषय
से स ब नणय को काया वत कया जा सके। वे एक
कार के वशेष यायालय थे जहाँ अ भयोग पर तुर त
वचार कया जाता था। मौय शासन ब ध म गूढ़ पु ष
(गु तचर ) का मह वपूण थान था। इतने वशाल
सा ा य के सुशासन के लए यह आव यक था क
उनके अमा य , मं य , राजकमचा रय और
पौरजनपद पर रखा जाए, उनक ग त वध और
मनोभावना का ान ा त कया जाए और पड़ोसी
रा य के वषय म भी सारी जानकारी ा त होती रहे।
दो कार के गु तचर का उ लेख है—सं था और संचार।
सं था वे गु तचर थे जो एक ही थान पर सं था
संग ठत होकर काप टक ा , उदा थत, गृहप तक,
वैदेहक ( ापारी) तापस ( सर मुंडाय या जटाधारी
साधु) के वेश म काम करते थे। इन सं था म संग ठत
होकर ये राजकमचा रय के शौक़ या ाचार का पता
लगाते थे। संचार ऐसे गु तचर थे जो एक थान से सरे
थान पर घूमते रहते थे। ये अनेक वेश म एक थान से
सरे थान पर जाकर सूचना एक त कर राजा तक
प ँचाते थे। रा य को कई शास नक इकाइय म बाँटा
गया था। सबसे बड़ी शास नक इकाई ा त थी।
चं गु त के समय इन ा त क स या या थी, यह
न त प से नह कहा जा सकता है। क तु अशोक
के समय पाँच ा त का उ लेख मलता है-- (1)
उ रापथ—इसक राजधानी त शला थी, (2)
अव तरा — जसक राजधानी उ ज यनी थी, (3)
क लग ा त— जसक राजधानी तोसली थी, (4)
द णपथ— जसक राजधानी सुवण ग र थी, और (5)
ाशी ( ाची, अथात् पूव दे श)—इसक राजधानी
पाटलीपु थी। ाशी अथवा मगध तथा सम त उ री
भारत का शासन पाट लपु से स ाट वंय करता था।
सौरा भी चं गु त के सा ा य का एक ा त था।
इ तहासकार के अनुसार सौरा क थ त अध— वतं
ा त क थी और चं गु त के समय पु यगु त तथा
अशोक के समय तुषा फ क थ त अध— वशासन
ा त सामंत क थी। तथा प उसके कायकलाप स ाट
के ही अ धकार े के अंतगत आते थे। ा त का
शासन वाइसराय पी अ धकारी ारा होता था। ये
अ धकारी राजवंश के होते थे। अशोक के अ भलेख म
उ ह "कुमार या आयपु " कहा गया है। के य शासन
क ही भाँ त ा तीय शासन म मं प रषद् होती थी।
रो मला थापर का सुझाव है क ा तीय मं प रषद्
के य मं प रषद् क अपे ा अ धक तं त थी।
द ावदान म कुछ उ रण से उ ह ने यह न कष
नकाला है क ा तीय मं प रषद् का स ाट से सीधा
स पक था। अशोक के शलालेख से भी यह प है क
समय—समय पर के से स ाट ा त क राजधा नय
म महामा को नरी ण करने के लए भेजता था।
सा ा य के अंतगत कुछ—कुछ अध वशा सत दे श थे।
यहाँ थानीय राजा को मा यता द जाती थी क तु
अ तपाल ारा उनक ग त व ध पर पूरा नयं ण रहता
था। अशोक के अ य महामा इन अध वशा सत रा य
म ध म महामा ारा धम चार करवाते थे। इसका
मु य उ े य उनके उ ं ड या—कलाप को नयं त
करना था। ा त ज़ल म वभ थे, ज ह 'आहार' या
' वषय' कहते थे और जो स भवतः वषयप त के अधीन
था। ज़ले का शासक था नक होता था और था नक
के अधीन गोप होते थे जो पूरे 10 गाँवो के ऊपर शासन
करते थे। था नक समाहता के अधीन भी थे। समाहता
के अधीन एक और अ धकारी शासन काय चलाता था
जसे ' दे ' कहा गया है। वह था नक गोप और ाम
अ धका रय के काय क जाँच करता था। इन दे य
को अशोक के ादे शक के सम प माना गया है।
मेग थनीज़ ने नगर शासन का व तृत वणन दया है।
नगर का शासन ब ध 30 सद य का एक मं डल
करता था। म डल स म तय म वभ था। येक
स म त के पाँच सद य होते थे। पहली स म त उ ोग
श प का नरी ण करती थी। सरी स म त वदे शय
क दे खरेख करती थी। इसका कत था, वदे शय के
आवास का उ चत ब ध करना तथा बीमार पड़ने पर
उनक च क सा का उ चत ब ध करना। उसक सुर ा
का भार भी इसी स म त पर था। वदे शय क मृ यु होने
पर उनक अं ये या तथा उनक स प उ चत
उ रा धका रय के सुपुद करने का काय भी यही स म त
करती थी। यह दे खरेख के मा यम से वदे शय क
ग त व धय पर नज़र भी रखती थी। तीसरी स म त
ज म—मरण का हसाब रखती थी। ज म—मरण का
यौरा केवल कर का अनुमान लगाने के लए ही नह
ब क इस लए भी रखा जाता था क सरकार को पता
रहे क मृ यु य और कस कार ई। रा य क से
यह जानकारी आव यक थी। चौथी स म त ापार और
वा ण य क दे खरेख करती थी। माप—तौल क जाँच,
व तु व य क व था करना और यह दे खना क
येक ापारी एक से अ धक व तु का व य न करे।
एक से अ धक व तु का व य करने वाले को अ त र
शु क दे ना पड़ता था। पाँचव स म त न मत व तु के
व य का नरी ण करती थी और इस बात का यान
रखती थी क नई और पुरानी व तु को मलाकर तो नह
बेचा जा रहा। इस नयम का उ लघंन करने वाल को
सज़ा द जाती थी। नई—पुरानी व तु को मलाकर
बेचना क़ानून के व था। छठ उपस म त का काय
ब कर वसूल करना था। व य मू य का दसवाँ भाग
कर के प म वसूल कया जाता था। इस कर से बचने
वाले को मृ युदंड दया जाता था। मौय सा ा य जैसे
व तृत सा ा य के संचालन के लए धन क
आव यकता रही होगी—इसम तो स दे ह हो ही नह
सकता। वा तव म इस युग म पहली बार राज व णाली
क परेखा तैयार क गई और उसके पया त ववरण
कौ ट य ने भी दए ह। रा य क आय का मुख ोत
के कुछ ववरण ऊपर भी दए जा चुके ह। उनके
अतर अनेक वसाय ऐसे थे, जन पर रा य का
पूण आ धप य था और जसका संचालन रा य के ारा
कया जाता था। इनम ख़ान, जंगल, नमक और अ —
श के वसाय मुख थे। राजा का यह दा य व था
क वह कुशल कमकार का ब ध कर ख़ान का पता
लगए, ख़ान से ख नज पदाथ नकालकर उ ह कमा त
या कारख़ान म भजवाए और जब व तुएँ तैयार हो
जाएँ तो उनक ब का ब ध करे। कौ ट य ने दो
कार क ख़ान का उ लेख कया है— थल ख़ान और
जल ख़ान। थल ख़ान से सोना, चाँद , लोहा, ताँबा,
नमक आ द ा त कए जाते थे और जल ख़ान से
मु ा, शु , शंख आ द। इन ख़ान से रा य को पया त
आय होती थी। जंगल रा य क स प होते थे। जंगल
के पदाथ को कारख़ान म भेजकर उनसे व वध कार
क प य व तुएँ तैयार कराई जाती थ । रा य को
को ागार म सं चत अ से, ख़ान और जंगल से ा त
से और कमा त म बनी ई प य व तु के व य
से भी काफ़ आय होती थी। मु ा—प त से भी आय
होती थी। मु ा संचालन का अ धकार रा य को था।
ल णा य स के जारी करता था और जब लोग
स के बनवाते तो उ ह रा य का लगभग 13.50
तशत याज पका और परी ण के प म दे ना
पड़ता था। व वध कार के दं ड से तथा स प क
ज़ ती से भी रा य क आमदनी होती थी। कौ ट य के
अथशा म अनेक ऐसी प र थ तय का न पण
कया गया है, जनसे रा य स प ज़ त कर लेता था।
संकट के काल म रा य अनेक अनु चत उपाय से भी
धन संचय करता था, जैसे अदभुत दशन और मेल को
संग ठत करना। पंतज ल के अनुसार मौय काल म धन
के लए दे वता क तमाएँ बनाकर बेची जाती थ ।
इस कार मौय शासन काल म रा य क आय के सभी
साधन को जुटाया गया। राजक य य को व भ वग
म रखा जा सकता है—जैसे 1. राजा और रा य प रवार
का भरण—पोषण, 2. रा य कमचा रय के वेतन। रा य
क आय का बड़ा भाग वेतन दे ने पर खच होता था।
सबसे अ धक वेतन 48,000 पण मं य का था और
सबसे कम वेतन 60 पण था। आचाय, पुरो हत और
य को वह दे ह भू म दान म द जाती थी जो कर
मु होती थी। ख़ान, जंगल, राजक य भू म पर कृ ष
आ द के वकास के लए रा य क ओर से धन य
कया जाता था। सेना पर काफ़ धन य कया जाता
था। अथशा के अनुसार श त पदा त का वेतन
500 पण, र थक का 200 पण और आरो हक (हाथी
और घोड़े पर चढ़कर यु करने वाले) का वेतन 500 से
1000 पण वा षक रखा गया था। इससे अनुमान लग
सकता है क सेना पर कतना खच होता था। उ च
सेना धका रय का वेतन 48,000 पण से लेकर
12,000 पण वा षक तक था।

य प मौय सा ा य म सै नक पर अ य धक खच
कया जाता था, तथा प यह वीकार नह कया जा
सकता क इस शासन— व था म क याणकारी रा य
क कई वशेषताएँ पाई जाती ह, जैसे राजमाग के
नमाण, सचाई का ब ध, पेय जल क व था,
सड़क के कनारे छायादार वृ का लगाना, मनु य और
पशु के लए च क सालय, मृत सै नक तथा राज
कमचा रय के प रवार के भरण—पोषण, कृपण—द न
—अनाथ का भरण—पौषण आ द। इन सब काय पर
भी रा य का य होता था। अशोक के समय इन
परोपकारी काय क सं या म अ य धक वृ ई।

1. Joshi, Tarun (2010). "मौयकालीन थाप य


एवं वा तु कला" (अं ेज़ी म).

"https://hi.wikipedia.org/w/index.php?
title=मौयकालीन_ थाप य_या_वा तु_कला&oldid=4008124"
से लया गया

Last edited 12 months ago by Sanjeev bot

साम ी CC BY-SA 3.0 के अधीन है जब तक अलग से उ लेख


ना कया गया हो।

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