You are on page 1of 157

प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं

इभिहास लेखन की िारिीय परं परा


ईसाई धर्म प्रचारकों का इभिहास बोध:-
प्राय: भारतीय इततहासकारों पर यह आरोप लगता है
ईसाई धमथ प्रचारक और कई यरू ोपीय लेखकों ने
तक उन्हें इततहास लेखन का कोई बोध नहीं है। लेतकन
भारतीय इततहास के बारे में तलखा वो तहदिं ू ग्रिंर्ों से
यह बात सत्य नहीं है। प्राचीन भारत में इततहास के
इतने प्रभातवत हुए तक हॉलवेल जैसा इततहासकार
ज्ञान को वेद के समान पतवत्र माना गया है। अर्थवेद
तलखता है तक ''तहदिं ू ग्रिंर्ों में ईसाई ग्रिंर्ों में उद्घट त
ब्राह्मणों उपतनषदों में इततहास, परु ाण की एक िाखा
के रूप में िातमल तकया गया है। इन्हीं परु ाणों में वतणथत सत्य से कहीं अतधक श्रेष्ठ सत्य का उद्घा न तकया
तवतभन्न राजविों की विंिावतलयों को आधार बना गया।'' हॉलवेल ने यहािं तक भी तलखा तक
कर एफ. ई. पॉतजथटर, और एच सी रॉय चौधरी जैसे ''तमस्रवातसयों, यनू ातनयों और रोमनों की तमर्क तवद्या
इततहासकारों ने इततहास तलखने की कोतिि की है। और सृति मीमािंसा ब्राह्मण ग्रिंर्ों से उधार ली गई हैं।
यद्यतप कल्हण की राजतिंरगणी को पहली वास्ततवक फ्ािंसीसी यात्री ‘तपयर द सोन्नरे त’ का तवश्वास र्ा तक
ऐततहातसक पस्ु तक माना जाता है तजसमें 12 वीं सारा ज्ञान भारत से आया है।
िताब्दी तक उत्तर भारत का राजनैततक इततहास
वतणथत है। साम्राज्यिादी इभिहास लेखन:-
इसका प्रारिंभ तवतलयम जोंस द्वारा 1784 में
प्रारंभिक भिदेशी इभिहासकार:- एतियातटक सोसायटी ऑफ बिंगाल की स्र्ापना से
प्राचीन भारत का इततहास तलखने का सबसे पहला माना जाता है। तजनमें तवतलयम जोंस, मैक्समल ू र,
प्रयास यनू ानी लेखकों द्वारा तकया गया तजसमें जे.एस. तमल, डब्ल्यू हीगल, इत्यातद िातमल र्े
हेरोडोटस, मेगस्र्नीज , प्लटू ॉकथ , स्रैबो, तनयाकथ स, इन्होंने भारतीय इततहास को साम्रज्यवादी तरीके से
एररयन, टॉलमी और तप्लनी प्रमख तलखना प्रारिंभ तकया। इनके एततहातसक ग्रिंर्ों में
ु हैं। लेतकन इन सब
में मेगस्र्नीज का इततहास सवाथतधक व्यापक है। साम्राज्यवादी देिों की प्रिंिसा और अपने धमथ का
यद्दतप मेगस्र्नीज की इतडडका हमें उपलब्ध नहीं है, मतहमामडिंन होता र्ा। इसमें सबसे अतधक प्रतसद्ध
बतल्क इसके अिंि डायडोरस स्रेबो और एररयन के तवसेंट ऑर्थर तस्मर् र्ा तजसने प्राचीन भारत का
उदाहरणों में तमलते हैं। सबसे पहला सतु नयोतजत इततहास 'अली तहस्री ऑफ
इततहास लेखन का दसू रा चरण अरबी लेखकों इतडडय' नाम से तैयार तकया । मैक्समल ू र जो ईसाई धमथ
तविेषकर अलबरूनी से प्रारिंभ होता है। उसकी पस्ु तक का पक्का अनयु ायी र्ा, उसने वेदों का अनवु ाद
'तहकीके - ए -तहदिं (तकताब-उल -तहदिं )' का इततहास 'सेक्रेड बक्ु स ऑफ द ईस्ट' नाम से तकया।
बोध में तविेष स्र्ान है।
र्ार्कसमिादी इभिहास लेखन:-

1
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
माक्सथवादी इततहासकार मानते हैं तक इततहास लेखन इसकी िरुु आत 1980 में रणजीत गहु ा और ज्ञान
का अर्थ तसफथ राजा-रानी और यद्ध ु ों का वणथन ही नहीं प्रकाि द्वारा की गयी। यह इततहास को तकसान,
है। इनके अनसु ार सभी सभ्यता इततहास के कम से आतदवासी पर कें तद्रत कर इततहास को नीचे से तदखाने
कम इन पािंच चरणों से गजु रते हैंमें आतदम साम्यवाद, में यकीन रखता है।
दासता, सामिंतवाद, पिंजू ीवाद और साम्यवाद।
इनमेंडी.डी कौिाम्बी, रोतमला र्ॉपर, तवतपन चद्रिं
आर.एस.िमाथ और इरफान हबीब प्रमख ु हैं।
राष्‍टरिादी इभिहास लेखन:-
19वीं िताब्दी से राष्रवादी इततहास लेखन का कायथ
प्रारिंभ होता है तजनमें डी.आर. भिंडडारकर, राजेंद्र लाल
तमत्र, के .पी.जायसवाल, एच.सी.रॉय चौधरी प्रमख ु र्े।

कुछ प्रमख
ु राष्रवादी और उनकी पस्ु तक
पस्ु िक लेखक
तहस्री एडड द कल्चर आर.सी.मजूमदार
ऑफ इतिं डडयन पीपल

तहदिं ु तसतवलाइजेिन, आर.के मख


ु जी
फिंडामेंटल यतु नटी
ऑफ इतिं डडया
पोतलतटकल तहस्री एच.सी राय चौधरी
ऑफ एतन्िएन्ट
इतिं डडया
तहन्िं दू पॉतलटी के पी जायसवाल
तहस्री ऑफ साउर् नीलकिंठ िास्त्री
इतडडया

सबॉल्टनम इभिहास लेखन:-

2
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
िारि के भिभिन्न नार् और उनके स्त्रोि
 कुछ तवदेिी सवथप्रर्म तसधिं ु तट वातसयों के सपिं कथ  ईसामी ने अपनी रचनाओें में भारत को
में आए इसीतलए उन्होंने भ्रमवि परू े देि को ही तहन्दस्ु तान कह कर सिंबोतधत तकया है वहीं अमीर
तसिंधु या इडिं स नाम से पक
ु ारा। खसु रों भारत को तहदिं कहता है।
 कुछ इततहासकार भारत नाम को एक परु ाने  वृहत्तर भारत (Greater India) की अवधारणा
प्राचीन राजवि िं भरत से स्वीकृ त करते हैं उनका सवथप्रर्म मत्स्यपरु ाण में तमलती है तजसमें भारत
राज्य सरस्वती व यमनु ा नतदयों के बीच में र्ा वषथ के सार् ताम्रपणी ( श्रीलिंका), समु ात्रा, जावा,
 जैन धमथ के अनसु ार उनके प्रर्म तीर्ंकर किंबोतडया, सतहत आठ द्वीप िातमल र्े।
ऋषभदेव के पत्रु सम्राट भरत के नाम पर देि का  सप्तसैंधव- सरस्वती, तवपािा,परुष्णी, तवतस्ता,
नाम भारत पडा। अतस्कनी और तसधिं ु इन सात नतदयों द्वारा तसतिं चत
 परु ाणों व अिोक के अतभलेखों में हमारे देि का क्षेत्र को आयों द्वारा सप्तसैंधव कहा गया।
नाम जबिं दू ीप तमलता है भारत में जम्बदू ीप नामक ध्यातव्य है तक सप्तसैंधव में अफगातनस्तान तसिंधु
वृक्ष बहुतायत में तमलने के कारण इसको जम्मू पिंजाब भी िातमल र्े।
दीप कहा गया।  मनु स्मृतत में सस्वती एविं दृषद्वती के बीच का क्षेत्र
 यनू ातनयों ने इस देि को 'इतिं डया' कहकर पक ु ारा, ब्रह्मावतथ तर्ा गगिं ा यमनु ा दोआब क्षेत्र ब्रह्मतषथ
सवथप्रर्म इतिं डया िब्द का प्रयोग पाचिं वी िताब्दी नाम से वतणथत है।
ईसा पवू थ में इततहास के तपता हेरोडोटस ने तकया
उसके बाद इतिं डया िब्द का प्रयोग मेगास्र्नीज ने
तकया
 चीतनयों ने भारत को तयन-तू कहा।
 भारत वषथ का सबसे पहला नाम भारत
(भरधवि) खारवेल के हार्ी गम्ु फा अतभलेख
में आया।
 एक प्रदेि के रूप में सबसे पहले भारत का वणथन
पातणनी की अिाध्याई में है।
 भारत का नाम तहदिं स्ु तान सवथप्रर्म 262 ईसवी में
ईरान के ससानी िासक िाहपरु प्रर्म के 'नक्िे
रुस्तम' अतभलेख में तमलता है

3
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
प्राचीन िारिीय इभिहास के स्रोि

तनकला है तजसका अर्थ है जानना, सामान्य रूप


से इसका अर्थ ज्ञान होता है।
 वेदों के सिंकलनकताथ कृ ष्ण द्वैपायन वेद व्यास
र्े।
 वेद चार है ऋग्वेद सामवेद यजवु ेद अर्वथवेद
इन चारों वेदों को सिंतहता भी कहते हैं।
 वेद सिंस्कृ त भाषा पद्य में तलखे गए हैं
धाभर्मक ग्रथ

 धातमथक ग्रिंर्ों में मख्ु यतः तीन तवभाजन है अपवाद स्वरूप यजवु ेद गद्य पद्य दोनों में है|

1-ब्राह्मण सातहत्य ब्राह्मर्


2-बौद्ध सातहत्य  जो यज्ञ की व्याख्या करें वही ब्राह्मण है,
3-जैन सातहत्य ब्राह्मण ग्रिंर्ों को वेदों का पररतिि माना जाता है
(नोट- भनम्नभलभखि स्रोि िारिीय इभिहास को इसमें वेदों की व्याख्या गद्य में की गई हैं ब्राह्मण
जानने के स्रोि के रूप र्ें जानकारी के भलए रखे ग्रिंर्ों में राजा परीतक्षत के बाद एविं तबम्बसार से
गए हैं इन का भिस्ििृ िर्मन उनसे सबं भं धि चैप्टर पहले की घटनाओ िं की जानकारी तमलती है।
र्ें भर्लेगा।)  हर वेद का एक या एक से अतधक
ब्राह्मणग्रन्र् है।
1. ब्राह्मर् साभहत्य आरण्यक
िेद  आरडयक तहन्दू धमथ के पतवत्रतम और
 वेदों को औपौरुषेय देव तनतमथत एविं श्रतु त सवोच्च ग्रन्र् वेदों का गद्य वाला खडड है। ये
(सनु ा हुआ)माना जाता है, वेद िब्द तवद से वैतदक वाङ्मय का तीसरा तहस्सा है और वैतदक
सिंतहताओ िं पर तदये भाष्य का दसू रा स्तर है।

4
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
 इनमें दिथन और ज्ञान की बातें तलखी हुई हैं,  प्रमख
ु वेदािंग तनम्न है-
कमथकाडड के बारे में ये चपु हैं। इनकी भाषा वैतदक  व्याकरण (मुख)
सिंस्कृ त है।  ज्योततष (नेत्र)
 इनको रहस्य ग्रर्िं भी कहा जाता है।  तनरुक्त (कान)
उपभनषद  तिक्षा (नातसका)
 उपतनषद का िातब्दक अर्थ है गरुु के समीप  कल्पसत्रू (हार्)
बैठ कर तिष्य जो ज्ञान प्राप्त करें ।  छिंद (पैर)
 वैतदक सातहत्य का अिंततम भाग उपतनषद है रार्ायर्
इसतलए उपतनषदों को वेदािंत भी कहते हैं
 रामायण वाल्मीतक द्वारा तलखा गया आतद
 उपतनषदों का प्रमख
ु तवषय आत्मतवद्या है काव्य है इसमें सात कािंड (अध्याय) हैं मल
ू रूप
 उपतनषदों की रचना गगिं ा नदी घाटी में हुई है से इसमें 6000 श्लोक र्े जो बढ़कर 24000 हुए
। इसतलए इस ग्रिंर् का नाम "चतुनथतविततसाहहस्त्री
नाराशस
ं ी साभहत्य सतिं हता" पडा
 इसमें राजाओ िं व ऋतषयोोँ के स्ततु तपरक गीत  बौद्ध ग्रिंर् दिरर् जातक में इसकी कर्ा का
है प्रारिंतभक उल्लेख तमलता है एविं जैन ग्रर्िं
 नाराििंसी सातहत्य से तवतदत होता है तक पउमचररयिं रामायण का जैन सिंस्करण है।
वैतदक काल में इततहास लेखन की परिंपरा मौजदू  1930 के दिक में रामास्वामी पेररयार ने
र्ी। सच्ची रामायण का लेखन भी तकया र्ा।
िेदांग  सवथप्रर्म 12 वीं िताब्दी में ततमल में

 वेदों को समझने के तलए छह वेदािंगों की रामायण का अनुवाद कम्बन ने "ईरामावतारम"

रचना की गई यह वैतदक सातहत्य का भाग नहीं नाम से तकया।

माने गए हैं ।

5
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
 मगु ल काल में रामायण का फारसी अनवु ाद  माधव कदाली ने असतमया में महाभारत का
अकबर के समय अब्दल
ु कातदर बदायनू ी ने व अनवु ाद तकया
िाहजहािं के समय इब्नहरकरण ने तकया।  मालधर वसू ने भगवत गीता का बाग्िं ला
 बगिं ाल में रामायण का अनवु ाद कृ ततबास ने अनवु ाद श्री कृ ष्ण तवजय नाम से तकया।
तकया इसे बगिं ाल की बाइतबल कहा जाता है।  महाभारत का फारसी अनवु ाद अकबर के
समय रजनामा नाम से अब्दल
ु कातदर बदायिंनू ी ने
र्हािारि तकया।

 परिंपरा के अनसु ार इस ग्रर्िं के तलतपक भगवान


श्री गणेि र्े लेतकन सातहत्य में इसे वेदव्यास की पुरार्
कृ तत माना जाता है ।  परु ाणों के रचतयता लोमहषथक व उनके पत्रु
 महाभारत में कुल 18 पवथ ( अध्याय) हैं उग्रश्रवा को माना जाता है कहीं-कहीं वेदव्यास
 भगवद्गीता इसके भीष्म पवथ का भाग है िातिं त पवथ को भी परु ाणों का कताथ माना जाता है।
महाभारत का सबसे बडा पवथ है  परु ाण भतवष्य िैली में तलखे गए हैं
 महाभारत का प्राचीन नाम जय र्ा इसतलए  इसमें तििनु ाग विंि से लेकर गप्तु विंि तक
उसको "जयसिंतहता" भी कहते हैं । के इततहास की जानकारी तमलती है।
 महाभारत के तवषय में यह भी कहा जाता है तक  परु ाणों में ही कृ त ,त्रेता, द्वापर एविं कलयगु
इसे परू ा परू ा एक बार में कभी नहीं पढ़ना चातहए नामक चार यगु बताए गए हैं श्रीराम का सबिं धिं
क्योंक रोग व्यातधयािं आ जाती हैं। त्रेता व कृ ष्ण का द्वापर से र्ा।
अनुिाद- ततमल में पेरूनदेवनार ने भारतबेडवा  मत्स्य परु ाण सबसे अतधक प्राचीन परु ाण है।
नाम से महाभारत का अनवु ाद तकया ,तेलगु ु में  महात्मा ज्योततबा फूले ने 1876 में
महाभारत का अनवु ाद ननैया प्रारिंभ तकया और ‘धमथततृ ीयरत्न (परु ाणों का भिंडाफोड)’ नामक
ततकन्ना ने पणू थ तकया। ननैया महाभारत का अनवु ाद
करते समय पागल हो गए र्े।

6
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
पस्ु तक तलखी, जबतक रामास्वामी नायकर ने बौद्ध साभहत्य
परु ाणों को पररयों की कर्ा कहा।  प्राचीन भारत के इततहास को जानने का एक
 वेदत्रयी :- ऋग्वेद, सामवेद एविं यजवु ेद को कहते प्रमख
ु स्रोत बौद्ध ग्रिंर् भी हैं प्रारिंतभक बौद्ध ग्रिंर्
हैं । मध्य गिंगा नदी घाटी अर्ाथत तबहार एविं पवू ी उत्तर
 प्रस्र्ानत्रई- उपतनषद, ब्रह्मसत्रू एविं गीता को प्रदेि में तलखे गए प्राचीनतम बौद्ध ग्रर्िं पाली
प्रस्र्ानत्रई कहा जाता है। भाषा में तलखे गए तजनमें से प्रमख
ु तत्रतपटक है
 कुछ बौद्ध सातहत्य सिंस्कृ त में भी तलखा गया
धर्म सरू तजसमें वसतु मत्र अश्वघोष एविं नागाजथनु की

 धमथसत्रू ों में वणाथश्रम- धमथ, व्यतक्तगत आचरण रचनाएिं प्रमख


ु है अवदानितक, तदव्यावदान

राजा एविं प्रजा आतद के कतथव्य का तवधान है। लतलत तवस्तार इत्यातद पस्ु तके सिंस्कृ त में ही है।
वसतु मत्र का तवभाषा िास्त्र बौद्ध धमथ की बाइतबल
 इनकी रचना 600 ई.प.ू से 300 ई.प.ू के मध्य हुई।
कहा जाता है यह भी सिंस्कृ त भाषा में ही तलखा
 प्रमख
ु धमथसत्रू :- आपस्तिंभ धमथसत्रू ( दतक्षण
गया है।
भारत में रतचत), गौतम धमथसूत्र, वतिष्ठ धमथसत्रू
 धम्र्पद - इसे बौद्ध धमथ की गीता कहते हैं
और तवष्णु धमथसत्रू ।
 वणथव्यवस्र्ा, वणथसिंकर और तमश्रजातत का का
स्पष्ट वणथन सत्रू सातहत्य में ही तमलता है। जैन साभहत्य

 तवष्णु धमथसत्रू में ही सवथप्रर्म अस्पृश्य िब्द का  जैन सातहत्य को आगम कहा जाता है जो

प्रयोग हुआ है। तद्वतीय जैन सिंगीतत में ही आगम तलतपबद्ध हुआ

 आपस्तभिं ने दस वषथ के ब्राह्मण को 100 वषथ के र्ा

क्षत्रीय से बडा बताया है।  जैतनयों की प्राचीनतम रचना अधथमगधी में है


भगवती सत्रू ,भद्रबाहु चररत्र ,पररतििपवथन,
कल्पसत्रू कुवलयमाला इत्यातद प्रमख
ु जैन ग्रर्िं है

7
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
तजनसे भारतीय इततहास के बारे में भी तवस्तृत
जानकाररयािं तमलती हैं। राजनीभि शास्र से सबं भं धि पस्ु िकें
 अर्थिास्त्र:- कौतटल्य की इस पस्ु तक को 1905
अन्य साभहत्य में प्रोफे सर सामिास्त्री में मैसरू सग्रिं ाहालय से प्राप्त
व्याकरर् ग्रंथ:- कर 1909 में ई. में अनवु ाद कर प्रकातित
1-अिाध्याई -पातणतन करवाया।
2-महाभाष्य-पतजिं तल  पिंचतिंत्र:- तवष्णु िमाथ
3-वततथका-कात्यायन  कृ त्यकल्पतरू:- लक्ष्मीधर (गोतवद चदिं
 पातणतन, कात्यायन एविं पतिंजतल को 'मतु नत्रय' गहडवाल का मिंत्री)
कहा जाता है  यतु क्तकल्पतरु:- भोज
4 -तोल्कातप्पयम- 'तद्वतीय सिंगम' का एक मात्र िेष  िक्र
ु नीतत :-िक्र
ु ाचायथ
ग्रिंर् है। अगस्त्य ऋतष के बारह योग्य तिष्यों में से एक
'तोल्कातप्पयर' द्वारा यह ग्रिंर् तलखा गया र्ा। सत्रू
िैली में रचा गया यह ग्रर्िं ततमल भाषा का प्राचीनतम
व्याकरण ग्रर्िं है।
भचभकत्सा संबध
ं ी पुस्िकें :-
 रस रत्नाकर- नागाजथनु
 चरक सतिं हता- चरक
 अिािंग हृदय वाग्भट
 आयवु ेद दीतपका चक्रपातण दत्त( यह चरक
सतिं हता की टीका है)
 िातलहोत्र- परमार राजा भोज

8
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
भिदेशी याभरयों के भििरर् करवाते र्े, तातक लोग उन्हे देख सके एविं पढ़ सके
और पालन कर सके
अतभलेखों के अध्ययन को एपीग्राफी कहते हैं वहीं
प्राचीन तलतपयों का अध्ययन "पेतलयोग्राफी"
कहलाता है दतक्षण भारत में मिंतदरों की दीवारों पर
चोल कालीन अतभलेख तमलते हैं भारत की
प्राचीनतम अतभलेख अिोक के हैं तजसे सवथप्रर्म
जेम्स तप्रसिं ेप ने पढ़ा र्ा। अतभलेख तसक्कों की अपेक्षा
ज्यादा प्रमातणक साक्ष्य के रूप में स्वीकार तकया जाते
हैं क्योंतक यह राजाओ िं की घोषणा होते हैं।

भसर्कका(coin)
तसक्के अर्ाथत मद्रु ा भी भारतीय इततहास को जानने
का प्रमखु स्रोत है इससे ना तसफथ तत्कालीन िासकों
की आतर्थक तस्र्तत के बारे में जानकारी तमलती है
बतल्क इसके सार्-सार् धातुओ िं व राजनीततक तस्र्तत
की भी जानकारी प्राप्त होती है
 भारतीय मुद्रा िास्त्र के जनक- जेम्स तप्रिंसेप
 तसक्कों का अध्ययन- न्यमू ैसमेतटक्स ।
 भारतीय मद्रु ा पररषद -इलाहाबाद में 1910 में
स्र्ातपत ।
 भारतीय उपमहाद्वीप के आरिंतभक तसक्के आहत
तसक्के हैं।
परु ािाभत्िक स्रोि  सवथप्रर्म तसक्कों पर लेख तलखवाने का कायथ
अभिलेख तहदिं यवन िासकों ने तकया
अतभलेख पत्र्र अर्वा धातु जैसी अपेक्षाकृ त कठोर  स्िर्म भसर्कका:- सवथप्रर्म तहन्द यवन िासकों
सतहों पर उत्कीणथ तकये गये पाठन सामग्री को कहते ने स्वणथ तसक्का जारी तकया सवथप्रर्म तहदिं ी यवन
है। प्राचीन काल से इसका उपयोग हो रहा है। िासक िासक तमनाडिं र र्ा तजसने स्वणथ तसक्का जारी
इसके द्वारा अपने आदेिो को इस तरह उत्कीणथ तकया र्ा ,कुषाण िासकों में सवथप्रर्म तवम

9
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
कै डतफिेसस ने भारतवषथ में स्वणथ तसक्का ईश्वरसेन द्वारा की गई कालातिं र में कलचरु रयों ने इसे
चलाया अतधकािंि इततहासकार तवम अपना नाम प्रदान तकया
कै डतफिेसस को ही भारत में सवथप्रर्म स्वणथ हषम संिि - इसका समय हषथ के राज्य रोहण की तततर्
तसक्का जारी करने का श्रेय देते हैं जबतक तमनािंडर अर्ाथत 606 ईसवी है
का स्वणथ तसक्का कौिािंबी से प्राप्त हो चक
ु ा है।
नोट- उत्तर प्रदेश लोक सेिा आयोग िारि र्ें
सिमप्रथर् स्िर्म भसर्कका चलाने का श्रेय भिर्
कै डभिशेसस को देिा है)
गप्तु िासकों में सवथप्रर्म स्वणथ तसक्का चलाने का श्रेय
चिंद्रगप्तु प्रर्म को है।

संिि
यह वषथ,काल की गणना प्रणाली है तजसके माध्यम से
इततहास की तवतिि जानकाररयािं प्राप्त होती हैं
िारि र्ें प्रचभलि प्रर्ुख संिि-
भिक्रर् संिि - इसका समय 57 ईसा पवू थ माना जाता
है| स्रोतों से जानकारी तमलती है तक 57 ईसा पवू थ में
मालवा के िासक तवक्रमातदत्य ने िकों को परातजत
कर इस सविं त को प्रारिंभ तकया र्ा
शक संिि - इस सिंवत का प्रारिंभ कुिल िासक
कतनष्क ने 78 ईसवी में तकया र्ा यही आज भारत का
राष्रीय सविं त है
बल्लिी संिि - इस सिंवत का वणथन अलबरूनी ने
तकया है उसके अनसु ार बल्लभ नाम के राजा ने इस
सविं त का प्रवतथन तकया इसकी तततर् 319 ईसवी है
यही तततर् गप्तु सिंवत की भी है अतः कुछ इततहासकार
दोनों सिंवत को एक ही मानते हैं
कलचुरी चेभद संिि- इसकी स्र्ापना 248-249
ईसवी के लगभग पतिमी भारत के आभीर िासक

10
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
प्रागैभिहाभसक काल
 इस काल का इततहास परु ातातत्वक साक्ष्यों पर
2. हैण्ड — एर्कस संस्कृभि
आधाररत है क्योंतक इस काल के इततहास का
1. चापर — चांभपग पेबल ु सस्ं कृभिः-
कोई तलतखत इततहास मौजदू नहीं है।
इस काल के उपकरण पिंजाव के सोहन नदी घाटी से
 प्रागैततहातसक काल के जो औजार एविं हतर्यार प्राप्त हुए इसीतलए इसे सोहन सिंस्कृ तत भी कहते हैं।
प्राप्त हुए वे पत्र्र अर्ाथत पाषाण के है इसतलए
मानव इततहास के प्रारतम्भक काल के पाषाण 2. हैण्ड एर्कस संस्कृभिः-
काल का नाम तदया गया
 सवथप्रर्म रावटथ ब्रसू फूट ने 1863 ई0 में मद्रास के
मानव सभ्यता के इस प्रारतम्भक काल को तीन
पास पल्लवरम में प्रर्म हैडड एक्स (हार् की
भागों में बाटतें हैं-
कुल्हाडी) प्राप्त की, इन्हीं रावटथ बसू फ्ूट को
1. पुरापाषार् काल ( तनम्न परु ापाषाण, मध्य
भारतीय प्रागैततहातसक परु ातत्व का जनक मानते
परु ापाषाण, उच्च परु ापाषाण)
हैं।
2. र्ध्य पाषार् काल
 हैडड एक्स सिंस्कृ तत के उपकरण मद्रास के
3. नि पाषार् काल
बादमदरु ाई व अततरमपक्कम से प्राप्त हुए।
1. पुरापाषार् कालः-
1. (b) र्ध्यपुरापाषार् कालः-
इस काल में मनष्ु य पणू थ रूप से तिकार पर तनभथर र्ा,
इसको फलक सिंस्कृ तत भी कहते है, फलक
मनष्ु य को अतग्न का ज्ञान र्ा पर अतग्न के प्रयोग से
अर्ाथत पत्र्रों को तोडकर बनाया औजार।
अनजान र्ा।
1. (C) उच्च पुरापाषार् कालः-
प्रर्खु स्थलः-
 मनष्ु य ने ब्लेड सरीखे नक
ु ीले पत्र्रों का प्रयोग
 भीमवेटका (M.P.) तचतत्रत गुफाएिं व िैलाश्रय
इस काल में तकया।
प्राप्त हुए।
 आधतु नक मानव होमोसेतपयिंस का तवकास इसी
 बेलन घाटी (U.P.) — इलाहाबाद, तमजाथपरु
काल में हुआ।

1. (a) भनम्न परु ापाषार् कालः-


2. र्ध्य पाषार् कालः-
तनम्न परु ापाषाण काल में मुख्यतः 2 प्रकार के पत्र्रों
के प्रकार तमले तजसे सस्िं कृ तत कह कर इसे पाषाण  इस काल में प्रयोग होने वाले पत्र्र बहुत छोटे
काल से जोडा गया। होते र्े इसीतलए इसे ‘माइक्रोतलर्’ कहते हैं।
1. चापर — चाभपंग पेबुल सस्कृभि

11
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
 मानव के अतस्र्पिंजर अर्ाथत मानव के अविेष  कोभल्डहिा — इलाहाबाद (उ0प्र0) यहाोँ से
मध्य पाषाण काल से ही तमलने प्रारम्भ हुए। चावल का प्रचीनतम साक्ष्य (6000 ई0पवू थ) प्राप्त
प्रर्ुख स्थलः- हुआ।
 बागोर — भीलवाडा (राजस्र्ान) भारत का  चौपानी र्ाडों — इलाहाबाद, हार् से तनतमथत
सबसे बडा मध्यपाषातणक आवास स्र्ल मृदभािंड (तमट्टी के बतथन) प्राप्त हुए।
 सराह नहर राय — उत्तर प्रदेि िाम्र पाषार् कालः-
 र्हदहा — प्रतापगढ़ (उ0प्र0) हड्डी व सींग के  मनष्ु य ने सवथप्रर्म तजस धातु का प्रयोग तकया
उपकरण तमले। वहा तािंबा र्ी।
 आदर्गढ़ — होिगािंबाद(म0प्र0) से पिपु ालन  इस काल का नामकरण भी इसी धातु के नाम पर
के प्राचीनतम साक्ष्य तमले। हुआ।
 लघं नाज — गजु रात  ताम्र पाषाण काल, हडप्पा की कास्िं य यगु ीन
 िीरिानपुर — प0 बगिं ाल सिंस्कृ तत से ठीक पहले की है। अतः ताबािं तफर
कािंसा का प्रयोग हुआ। परन्तु कालाक्रमानसु ार
3. नि पाषार् कालः- अर्ाथत समय से कई ताम्र सिंस्कृ ततयािं, हडप्पा
अर्ाथत कास्िं ययगु ीन सभ्यता के बाद भी आती है।
 नव पाषाण काल के स्र्लों की खोज का श्रेय
भारत में डॉ0 प्राइमरोज को जाता है।
कुछ िाम्रपाषार् संस्कृभियाः-
 स्र्लों के अततररक्त ओजारों की सवथप्रर्म खोज
 आहार संस्कृभि — 2800-1500 ई0 पवू थ
इस काल में, उ0प्र0 के टोंस नदी घाटी में 1860में
उदयपरु
लेमेन्सरु ीयर ने खोजे।
 कायथा सस्ं कृभि — 2400-1700 ई0 पवू थ
 नवपाषातणक स्र्ल ‘मेहरगढ़’ (ब्लतू चस्तान) से
चिंबल नदी
ही कृ तष का साक्ष्य प्राप्त हुआ
 र्ालिा संस्कृभि — 1900-1400 ई0 पवू थ
 जबतक कृ तष का प्राचीनतम साक्ष्य लहुरादेव से
नमथदा क्षेत्र
तमले है।
 रंगपुर संस्कृभि — 1700-1400 ई0 पवू थ
प्रर्ुख स्थलः- गजु रात
 भचरांद — तबहार के छपरा तजले में तस्र्त। यहाोँ  जोिम संस्कृभि — 1500-900 ई0 पवू थ महाराष्र
से प्रचरु मात्रा में हड्डी के उपकरण प्राप्त हुए। (दैमाबाद व इनामगाोँव)
 बज ु महोर् — श्रीनगर, से प्राप्त कब्रों से कुत्तों को
मातलक के सार् दफनाया गया।

12
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
भसन्धु घाटी सभ्यिा
 हडप्पा सभ्यता तवश्व की प्राचीनतम सभ्यताओ िं में  तसन्धु के तनवातसयों ने प्रर्म बार कास्िं य धातु का
से एक है, तसिंधु नदी व उसकी सहायक नतदयों के प्रयोग तकया इसतलए इसे कािंस्य यगु ीन सभ्यता
प्रदेिों में इस सभ्यता का तवकास हुआ र्ा । कुछ भी कहते हैं।
तवद्वान तो इसका समय 1000 वषथ ई.प.ू बताते हैं  हडप्पा सभ्यता के उदय को प्रर्म नगरीय क्रातन्त
और कुछ तवद्वान तो इसका समय 2500 ई.प.ू भी कहते हैं।
मानते हैं।
 डॉ.राजबली पाडडेय ने इस सभ्यता का काल सैन्धि सभ्यिा के भनर्ामिा
5000 ई.प.ू मना है।डॉ. सी.ऐल. फ्े बी ने इस  मख्ु य रूप से चार प्रजाततयों के अविेष प्राप्त
सभ्यता का समय 2800 से 2500 ई.प.ू माना है। हुए।–
डॉ.फ्ें कफटथ ने इसका काल 2800 ई.प.ू माना है
तर्ा डॉ.धमथपाल अग्रवाल ने रे तडयोकाबथन-14 1. प्रोटोऑस्रे लायड:- यह सैन्धव क्षेत्र में आने
परीक्षण प्रणाली के आधार पर इस सभ्यता का वाली पहली प्रजातत र्ी। इततहासकारों के
समय 2300 ई.प.ू से 1750 ई.पू.बताया है। अनसु ार वतथमान में यह मध्य भारत में अनसु तू चत
 यद्दतप तसिंधु सभ्यता के उदय काल के तवषय में जातत एविं जनजातत के रूप में तवद्यमान है।
तवद्वानों में मतभेद हैं परिंतु इसमें कोई सिंदहे नहीं
की यह तवश्व की प्राचीनतम सभ्यताओ िं में से एक 2. िू-र्ध्य सागरीय ( र्ेभडटेररयन):- सैन्धव
है। सभ्यता के मख्ु य तनमाथता इसी प्रजातत को माना
 इस काल खडड के 3 नाम प्रचतलत है और तीनों जाता है। जो तक वतथमान में दतक्षण भारत में बसी
का अतभप्राय एक है। हुई है।
1. भसन्धु घाटी सभ्यिा
2. हड़प्पा सभ्यिा 3. अल्पाइन:- यह प्रजातत गजु रात, महाराष्र,
3. कांस्य युगीन सभ्यिा तसन्धु प्रदेि एविं गिंगा के मैदानों में पाये जाती हैं।
 चिंतु क पतिमी पिंजाब के तनकट हडप्पा स्र्ल
सबसे पहले खोजा गया इसतलए इसे तसन्धु घाटी 4. र्ंगोलायड:- यह प्रजातत तहमालयी प्रदेि
सभ्यता कहते हैं। एविं पवू ी भारत में पायी जाती है।
 हडप्पा सभ्यता के प्रारतम्भक स्र्ल तसन्धु नदी के
आस पास के तन्द्रत र्े इस कारण तसन्धु नदी घाटी
या सैन्धव सभ्यता कहते हैं।

13
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
कै से प्रकाि में आयी सैन्धव सभ्यताः- 1. हररयार्ा:- बणावली, राखीगढ़ी, तससवल,
 चाल्सथ मैसन ऐसे पहले व्यतक्त र्े तजन्होनें 1826 तमतार्ल, बालू
में सातहवाल तजले में तस्र्त एक हडप्पा टीले का 2. राजस्थान:- सोर्ी, कालीबिंगा
उल्लेख तकया र्ा, लेतकन उनकी इस बात पर
तकसी ने ध्यान नहीं तदया।  िारि से बाहर भस्थि प्राक् सैन्धि स्थल:-
 1853 में कतनघिंम को हडप्पा से प्राप्त वृषभ की 1. भसन्ं ध :- कोटदीजी एविं आमरी
आकृ तत वाली एक महु र तमली तजसे गलती से 2. बलूभचस्िान:- क्वेटा, कुल्ली, तकलेगुलमोहम्मद,
कतनघमिं ने तवदेिी महु र मान तलया। मेहरगढ़, अिंजीरा, झािंब।
 वषथ 1921 में भारतीय परु ातत्व सवेक्षण तवभाग  आमरी की खोज ए.जी. मजमू दार ने की र्ी। यहािं
के महातनदेिक सर जान मािथल के तनदेिन में से बारहतसगिं ा एविं गैंडे की हतडयों का प्रमाण
रायबहादरु दयाराम साहनी ने पतिमी पिंजाब तमलता है।
(वतथमान-पातकस्तान) के मोडटगोमरी तजले में  कोटदीजी स्र्ान का अिंत दो भयानक अतग्नकािंडों
रावी नदी के तट पर हडप्पा को खोजा इसतलये से हुआ।
हडप्पा की खोज का श्रेय उन्हीं को जाता है।  मेहरगढ़ प्राक् सैन्धव का सबसे प्राचीन स्र्ल है।
 जान मािथल ने सवथप्रर्म इसे तसन्धु सभ्यता नाम  ‘नाल’ से गरुड के आकार वाली एक महु र तमली
तदया। है, यह गरुड अपने पिंजे में सपथ को दबाये हुए है।
 उसके बाद बडे पैमाने पर उत्खनन कायथ प्रारम्भ
तकए गए और एक परू ी नगरीय सभ्यता तवश्व के सभ्यिा भिस्िार:-
सामने प्रगट हुई।  इस सभ्यता का मुख्य तवस्तार भारत एविं
पातकस्तान देिों में र्ा लेतकन अल्प रूप में तसिंन्धु
प्राक् हड़प्पा संस्कृभि (प्राक् सैन्धि) :- सभ्यता का तवस्तार अफगातनस्तान में भी र्ा।
 नवपाषण काल के बाद और तवकतसत हडप्पा से क्योंतक अफगातनस्तान से सोतथघई और
पवू थ जो बतस्तयािं र्ीं, उनको प्राक् हडप्पा सस्िं कृ तत मतु डडगाक सैन्धव स्र्ल तमले हैं।
कहते हैं। इनको प्रारिंतभक हडप्पा सिंस्कृ तत भी
कहते हैं।

 िारि र्ें भस्थि प्रर्ुख प्राक् सैन्धि स्थल :-

14
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
भसन्धु सभ्यिा का भिस्िारः (अभन्िर् छोर) Note:- सैन्धि सभ्यिा का आकार भरिज ु ाकार
है।
स्थल उत्खननकिाम भस्थभि
हडप्पा दयाराम पजिं ाब
साहनी (पातकस्तान)
मोहनजोदडो आर डी तसन्ध
बनजी (पातकस्तान)
सत्ु कागेडोर अलथस्टाइन बलतू चस्तान
(पातकस्तान)
चन्हूदाडो मैके तसन्ध
पातकस्तान
रोपड यज्ञदत्त िमाथ पजिं ाब (भारत)

कालीबिंगा बी.बी.लाल गगिं ानगर


(राजस्र्ान)
आलमगीरपरु यज्ञदत्त िमाथ मेरठ (उ0प्र0)
धौलावीरा आर.एस. तवि कच्छ का रण
लोर्ल एस.आर. राव अहमदाबाद
(कातठयावाडा)

प्रदेश के आधार पर ििमर्ान िारि र्ें भस्थि


सैन्धि स्थल:-

1. जम्र्ू कश्र्ीर:- मािंडा

2. पजं ाब:- रोपड ( रूपनगर), सघिं ोल, ढेर- माजरा,


सिंघोल, बाडा, चक 86, कोटलातनहगिं खान।

3. हररयार्ा:- राखीगढ़ी कुणाल, तमतार्ल,


बणावली, बाल,ू तससवल

15
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
प्रर्ुख स्थलों से सम्बभन्धि र्हत्िपूर्म िथ्य
4. राजस्थान:- कालीबिंगा, बालार्ल एविं
तरखानवालाडेरा । हड़प्पाः-
खोजकताथ:- दयाराम साहनी ( 1921)
5. उत्िर प्रदेश:- आलमगीरपरु ( मेरठ),अम्बाखेडी, उत्खनन:- दयाराम साहनी, माधवस्वरूप वत्स, सर
बडगािंव, हुलास (सहारनपरु ), माडडी (मुजफ्फरनगर) मातटथन व्हीलर।
सनौली (बागपत)।
भिशेषिाये:-
 सनौली (बागपत) से 100 से अतधक मानव  12 कमरों का अन्नागार यहाोँ की तविेषता है।
िवाधान, एक सार् 3 िवों वाला कब्र तमले हैं,
 हडप्पा के आवास क्षेत्र के दतक्षण में एक
यह उत्तर हडप्पा स्र्ल है।
क्रतबस्तान तस्र्त है तजसे R-37 समातध नाम
 मािंडडी (मजु फ्फरनगर) से टकसाल गृह का साक्ष्य
तदया गया।
तमला है।
 इसे सैन्धव सभ्यता का अधथऔद्योतगक नगर भी
कहा जाता है।
6. गुजराि:- सवाथतधक सैन्धव स्र्ल यहीं से प्राप्त
हुए हैं।  एक स्त्री के गभथ के पौधा तनकलता हुआ तदखाया
गया है जो उवथरता का प्रतीक है।
(A) कच्छ का रर्:- सुरकोटडा, धौलािीरा,
देसलपरु  यहािं पर दो टीले तमले हैं तजसमें से एक Mound-
(B) खम्िाि की खाड़ी:- लोर्ल, रिंगपरु , AB एविं Mound - F हैं।
कुनतु ासी, रोजतद, प्रभासपाटन, नागेश्वर, तिकारपरु ,  हडप्पा को तोरण द्वार का नगर कहा जाता है।
तेलोद, भोगन्नार।  हडप्पा एविं मोहनजोदडो के बीच की दरू ी 642
 रोजतद और रिंगपरु हडप्पोत्तर स्र्ल ( हडप्पा तक.मी. र्ी, यद्यतप भी तपगट महोदय ने हडप्पा
सभ्यता के बाद) हैं। एविं मोहनजोदडो को तसन्धु सभ्यता की जडु वा
राजधानी कहा है।
7. र्हाराष्‍टर:- दैमाबाद
र्ोहनजोदड़ोः-
 ऐसे स्र्ल जो प्राक् हडप्पा, हडप्पाकालीन एविं खोजकताथ:- राखल दास बनजी ( 1922)
हडप्पोत्तर, तीनों काल का प्रतततनतधत्व करते हैं- उत्खनन:- प्रारिंभ में राखल दास बनजी, मािथल एविं
सरु कोटडा, धौलावीरा, राखीगढ़ी और मािंडा। उनके सातर्यों द्वारा और बाद में जे.एच. मैके और
आजाद भारत में जे. एफ. डेल्स ने तकया।

16
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
भिशेषिाये:- कालीबंगाः-
अन्य नार्:- स्तपू ों का िहर, रे तगस्तान का बगीचा,  खोजकताथ:- अमलानिंद घोष
मृतकों का टीला, तसिंध का बाग  उत्खनन:- बी.बी.लाल एविं र्ापर
 मोहनजोदडो का सबसे प्रतसद्ध उपनाम मृतकों का  ितब्दक अर्थ — काले रिंग की चतू डया
टीला है जो तसन्धी भाषा का िब्द है।
 भिशेषिाये:-
 मोहनजोदडो बाढ़ के कारण सात बार उजडा और
 यहािं से एक यग्ु म िवाधान का साक्ष्य तमला है
बसा, इसकी पतु ि मािथल ने उत्खनन के दौरान
और यहीं से िवों के अत्योंतष्ट सिंस्कार की तीन
सात परतों के तमलने से की।
तवतधयों का पता चलता है।
 इसकी सवथतधक महत्पूणथ स्र्ल है तविाल
 जतु े हुए खेत के साक्ष्य तमले
स्नानागार, मािथल ने इसे तत्कालीन तवश्व का एक
 कालीबगिं ा से ऊिंट की हतड्डयािं प्राप्त हुई हैं।
आियथजनक तनमाथण कहा है परन्तु तविाल
अन्नागार यहाोँ की सबसे बडी इमारत है।  हवनकुडड के साक्ष्य, हार्ी दातिं की किंघी, कासिं े
का दपथण, अिंलकृ त ईट,िं बालक की खोपडी में छ:
 मोहनजोदडो क्षेत्रफल की दृति से सबसे बडा नगर
छे द ( सम्भवत: िल्यतचतकत्सा का प्रमाण) प्राप्त
है।
हुआ है।
 मलेररया बीमारी का प्राचीनतम साक्ष्य यहीं से
 कालीबिंगा में हडप्पा कालीन सािंस्कृ ततक यिंगु के
प्राप्त हुआ है।
पाोँच स्तरों का पता चलता है।
 बनु े कपडों का प्राचीनतम साक्ष्य मोहनजोदडो से
प्राप्त हुआ है।  कुछ तवद्वान इसे सैन्धव सभ्यता की तीसरी
राजधानी मानते हैं।
 इस स्र्ान से कोई भी कतब्रस्तान नहीं तमला है।
 इसका नगर कच्ची ईटोंिं के चबतू रे पर तनतमथत र्ा।
लोथलः-
 कासिं े की नारी मतू तथ (पणू थतः नग्न), सतू ी कपडा
 खोजकिाम:- एस.आर.राव 1954-55
मद्रु ा पर अिंतकत पिपु तत नार् की महु र, पजु ारी
 उत्खनन:- एस.आर.राव
की मतू तथ इत्यातद सामग्री मोहनजोदडो से प्राप्त हुई।
 उपनार् :- लघु हडप्पा, लघु मोहनजोदडो
 मोहनजोदडो से तमली एक महु र पर समु ेररयन नाव
का अिंकन है।  भिशेषिायें:-
 चािंदी के कलि के रूप में चादिं ी का प्राचीनतम  भारत का पतिम एतिया से व्यापार का प्रमख ु
साक्ष्य यहीं से तमला है। बन्दरगाह स्र्ल।
  जहाजों का गोदी बाडा (डाक-याडथ) प्राप्त हुआ।

17
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
 फारस की महु र, घोडे की मतू तथ, तीन यगु ल  चन्हूदाडो एकमात्र एसा स्र्ल है जहािं से तमट्टी की
समातधयाोँ प्राप्त हुई। पक्की हुई पाइपनमु ा नातलयों का प्रयोग तकया
 लोर्ल की सिंम्पणू थ बस्ती एक ही रक्षा प्राचीर से गया है।
तघरी र्ी।
 यहािं पर भी कालीबगिं ा की भातिं त एक तछद्र यक्ु त धौलािीरा –
बालक की खोपडी प्राप्त हुई है जो तक  खोजकिाम:- जे.पी.जोिी
िल्यतचतकत्सा का प्रमाण हो सकता है।  उत्खनन:- आर.एस.तवष्ट 1967
 यहािं से वृत्ताकार एविं चतथजु ाकार अतग्नवेदी पायी  उपनार् :- सफे द किंु आ
गई है।  भिशेषिाये:-
 लोर्ल से हार्ी दातिं का बना हुआ एक पैमाना  गजु रात के कच्छ में तस्र्त
(Scale) भी प्राप्त हुआ है।  भारत में खोजे गए दो तविाल नगरों में से एक —
1. धौलावीरा, 2. राखीगढ़ी
चन्हुदाड़ोः-
 अन्य हडप्पा सिंस्कृ तत के नगर दो भागों (1-
 खोजकिाम:- एन.जी. मजूमदार 1931 तकला/दगु थ, 2-तनचले नगर) में तवभातजत र्े तकन्तु
 उत्खनन:- मैके इनसे अलग धौलावीरा तीन प्रमख ु भागों में
 उपनार् :- सैन्धव सभ्यता का ओद्यौतगक नगर तवभातजत र्ा।
 भिशेषिाय:-  यहािं से नेवले की, पत्र्र की मतू ी पायी गई है।
 यह सैन्धव सिंस्कृ तत के अततररक्त प्राक् हडप्पा  धौलावीरा की जल सिंरक्षण तकनीक बहुत
सिंस्कृ तत तजसे झक
ू र सिंस्कृ तत एविं झािंगर सिंस्कृ तत तवतिष्ट र्ी, उन्होंने बािंध बनाये और जलाियों
कहते है, के अविेष तमले हैं। में पानी सग्रिं ह तकया।
 चन्हूदाडों में तकसी भी दगु थ का प्रमाण नहीं तमला  यहािं से दस खाच िं े वाला एक लेख ( साइनबोडथ)
है। प्राप्त हुआ है।
 चन्हूदाडों से वक्राकार ईटेिं प्राप्त हुई है।
 यहाोँ मनके व सीप उत्पादन का के न्द्र र्ा। बनािली –
 यहािं से मतहलाओ िं के सौंदयथ प्रसाधान जैसे  उत्खनन: आर.एस. तवष्ट
तलतपतस्टक, पॉउडर इत्यातद तमले हैं।  भिशेषिायें:-
 यहािं से तमट्टी का हल, रसोईघर अतग्नकिंु ड के
साक्ष्य तमले हैं।

18
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
 बनावली सैंन्धव सिंस्कृ तत के तीनों स्तरों ( प्राक्, दसू रे को समकोण पर काटती हुई जाल सी प्रतीत
तवकतसत और उत्तर) का प्रतततनतधत्व करता है। होती र्ीं।
 नाभलयााँ :- जल तनकास प्रणाली तसन्धु सभ्यता
रोपड़:- की अतद्वतीय तविेषता र्ी जो हमें अन्य तकसी
 खोजकिाम : बी.बी.लाल 1950 भी समकालीन सभ्यता में नहीं प्राप्त होती।
 कालीबिंगा के अनेक घरों में अपने-अपने कुएोँ र्े।
 उत्खननकिाम: यज्ञदत्त िमाथ
 भिशेषिायें:-  ईटें :- हडप्पा, मोहनजोदडो और अन्य प्रमख ु
नगर पकाई गई ईटोंिं से पणू थतः बने र्े, जबतक
 यहािं से मातलक के सार् कुत्ते को दफनाने के
कालीबिंगा व रिंगपरु नगर कच्ची ईटोंिं के बने र्े।
साक्ष्य तमले हैं।
 सभी प्रकार के ईटोंिं की एक तविेषता र्ी। वे एक
 आजादी के बाद सवथप्रर्म इसी स्र्ान का
तनतित अनपु ात में बने र्े और अतधकािंितः
उत्खनन प्रारिंभ हुआ।
आयताकार र्े, तजनकी लम्बाई उनकी चौडाई
की दनु ी तर्ा उिंचाई या मोटाई चौडाई की आधी
नगर भनयोजनः-
र्ी अर्ाथत् लम्बाई चौडाई तर्ा मौटाई का
 हडप्पा सभ्यता की सबसे प्रभाविाली तविेषता अनपु ात 4:2:1 र्ा।
उसकी नगर योजना एविं जल तनकास प्रणाली है।
 प्राप्त नगरों के अविेषों से पवू थ एविं पतिम तदिा में सार्ाभजक व्यिस्थाः-
दो टीले हैं। पवू थ तदिा में तस्र्त टीले पर नगर या
 समाज की इकाई परम्परागत तौर पर पररवार र्ी।
तफर आवास क्षेत्र के साक्ष्य तमलते हैं। पतिम के मातृदवे ी की पजू ा तर्ा महु रों पर अिंतकत तचत्र से
टीले पर गढ़ी अर्वा दगु थ के साक्ष्य तमले हैं।
यह पररलतक्षत होता है हडप्पा समाज सम्भवतः
 लोर्ल एविं सरु कोटता के दगु थ और नगर क्षेत्र दोनों मातृसत्तात्मक र्ा।
एक ही रक्षा प्रचीर से तघरे हैं।
 नगर तनयोजन दगु थ, मकानों के आकार व रूपरे खा
 हडप्पा सभ्यता के तकसी तकसी भी परु ास्र्ल से तर्ा िवों के दफनाने के ढिंग को देखकर ऐसा
तकसी भी मिंतदर के अविेष नहीं तमले हैं के वल प्रतीत होता है तक सैन्धव समाज अनेक वगों जैसे
मोहनजोदडों की एक मात्र ऐसा स्र्ान है जहाोँ से परु ोतहत, व्यापारी, अतधकारी, तिल्पी, जुलाहे
एक स्तपू का अविेष तमला है। यद्यतप इसे कुषाण एविं श्रतमकों में तवभातजत रहा होगा।
कालीन माना गया है।  तसन्धु सभ्यता के तनवासी िाकाहारी एविं
 सड़कें :- सडकें गतलयाोँ एक तनधाथररत योजना के मािंसाहारी दोनों र्े। भोज्य पदार्ों में गेहू,ोँ जौं,
अनसु ार तनतमथत की गई हैं। मुख्य मागथ उत्तर से मटर, ततल, सरसों, खजरू , तरबजू ा, गाय, सअ ु र,
दतक्षण तदिा की ओर जाते हैं तर्ा सडकें एक

19
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
बकरी का मासिं , मछली, घतडयाल, कछुआ आभथमक जीिनः-
आतद का मािंस प्रमख ु रूप में खायें जाते र्े।  सैन्धव सभ्यता में कोई फावडा या फाल नहीं
 िवों की अन्त्योति सिंस्कार में तीन प्रकार के तमला है परन्तु कालीबिंगा में हडप्पा-पवू थ अवस्र्ा
अिंन्त्योतष्ट के प्रमाण तमले हैं- में कूडो (हल रे खा) से ज्ञात होता है तक हडप्पा
1.पणू थ समातधकरण — इसमें सम्पणू थ िव को काल में राजस्र्ान के खेतों में हल जोते जाते र्े।
भतू म में दफना तदया जाता र्ा।  नौ प्रकार के फसलों की पहचान की गई है —
2. आिंतिक समातधकरण — इसमें पिु पतक्षयों चावल (गुजरात एविं राजस्र्ान) गेह,ूोँ जौ, खजरू ,
के खाने के बाद बचे िेष भाग को भतू म में दफना तरबजू , मटर, राई, ततल आतद । तकन्तु सैन्धव
तदया जाता र्ा। सभ्यता के मुख्य खाद्यन्न गेहूोँ एविं जौ र्े।
 लोर्ल में चावल के अविेष प्राप्त हुए हैं।
धाभर्मक जीिनः-
 सवथप्रर्म कपास उत्पन्न करने का श्रेय तसन्धु
 मख्ु यतः प्रकृ तत पजू ा र्ी। सभ्यता के लोगों को र्ा।
 परु ास्र्लों से प्राप्त तमट्टी की मतू तथयों, पत्र्र की
छोटी मतू तथयों, महु रों, पत्र्र तनतमथत तलिंग एविं पशपु ालन:- हडप्पा लोग बैल, भेंड, बकरी, सअ ु र
योतनयों, मृदभाडडो पर तचतत्रत तचन्हों से यह आतद पालते र्े।
पररलतक्षत होता है तक धातमथक तवचार धारा  ऐसी कोई मूततथ नहीं तमलती है तजस पर गाय की
मातृदवे ी, परुु षदेवता (पिपु ततनार्), तलिंग-योतन, आकृ तत खदु ी हो। कूबड वाला सािंड इस सिंस्कृ तत
वृक्ष प्रतीक, पिु जल आतद की पजू ा की जाती में तविेष महत्व रखता है।
र्ी।  गजु रात के तनवासी हार्ी पालते र्े।
 मोहनजोदडों से प्राप्त एक सील पर तीन मख ु
वाला एक परुु ष ध्यान की मुद्रा में बैठा हुआ है। भशल्प एिं िकनीकी:- सैन्धव लोग पत्र्र के
उसके तसर पर तीन सींग है उसके बािंयी ओर एक अनेक प्रकार के औजार प्रयोग करते र्े, ताोँबे के सार्
गैंडा और भैंसा तर्ा दायीं ओर एक हार्ी एक तटन तमलाकर कािंसा तैयार तकया जाता र्ा, तकन्तु
व्याघ्र एविं तहरण है। इसे पिपु तत तिव का रूप हडप्पा में काोँसे के औजार बहुतायात से नहीं तमलते
माना गया है। मािथल ने इन्हें ‘आद्यतिव’ बताया। है।
 हडप्पा सभ्यता से स्वातस्तक, चक्र और क्रास के  हडप्पा समाज के तितल्पयों में कसेरों के समदु ाय
भी साक्ष्य तमलते हैं। स्वातस्तक और चक्र सयू थ का महत्वपणू थ स्र्ान र्ा।
पजू ा का प्रतीक र्ा।
 मतू तथपजू ा का आरम्भ सम्भवतः सैन्धव सभ्यता से
होता है।

20
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
भलभपः- व्यापारः-
 हडप्पा तलतप भावतचत्रात्मक (तपक्टोग्राफ) है  तसन्धु सभ्यता के लोगों के जीवन में व्यापार का
और उनकी तलखावट क्रमिः दायीं ओर से बायीं बडा महत्व र्ा। इसकी पतु ि हडप्पा, मोहनजोदडो
ओर की जाती र्ी। तर्ा लोर्ल में अनाज के बडे-बडे कोठरों तर्ा
 सैन्धव तलतप मल ू रूप से देिी है और उसका ढेर सारी सीलों (मृडमुद्राओ)िं एक रूप तलतप और
पतिम एतिया की तलतपयों से कोई सम्बन्ध नहीं मानकीकृ त माप-तौलों के अतस्तत्व से होती है।
है।  हडप्पाई लोग व्यापार में धातु के तसक्कों का
 र्ुहरें:- हडप्पा सिंस्कृ तत की सवोत्तम कलाकृ ततयाोँ प्रयोग नहीं करते र्े, सारे आदान-प्रदान वस्तु
है उसकी महु रे । अब तक लगभग 2000 महु रे तवतनमय द्वारा करते र्े।
प्राप्त हुई है। इनमें से अतधकािंि महु रे लगभग 500  समु ेररयन लेखों से ज्ञात होता है तक उन नगरों के
मोहनजोदडो से तमली है। व्यापारी ‘मेलहु ा’ के व्यापाररयों के सार् वस्तु
 अतधकािंि महु रों लघु लेखों के सार्-सार् एक तवतनमय करते र्े ‘मेलहु ा’ का समीकरण तसन्ध
तसगिं ी साडिं ् भैस, बाघ, बकरी और हार्ी की प्रदेि से तकया गया है।
आकृ ततयाोँ खोदी गई हैं।  लोर्ल से फारस की महु रें तर्ा कालीबिंगा से
 महु रों के बनाने में सवाथतधक उपयोग सेलखडी बेलनाकार महु रें भी तसनधु सभ्यता के व्यापार के
(Steatite) का तकया गया है। साक्ष्य प्रस्ततु करते हैं।

लघु र्र्
ृ र्भू िमयााँ:- आयाि की स्थल (क्षेर)
 तसन्ध प्रदेि में भारी सख्िं या में आग में पकी तमट्टी जाने िाली
( जो टेराकोटा कहलाती है) की बनी मतू तथकाएिं िस्िएु ाँ
(तफगररन) तमली है। इनका प्रयोग या तो तखलौने तटन ईरान (मध्य एतिया)
के रूप में या पज्ू य प्रततमाओ िं के रूप में होता र्ा। अफगातनस्तान
इनमें कुत्ते, भेंड, गाय, बैल और बन्दर की ताोँबा खेतडी (राजस्र्ान)
प्रततकृ ततयाोँ तमलती हैं। बलतू चस्तान
 यद्यतप नर और नारी दोनों की मृडमतू तथयाोँ तमली हैं चाोँदी ईरान, अफगातनस्तान
तर्ातप नारी मृडमतू तथयों की सिंख्या से अतधक हैं। सोना अफगातनस्तान, फारस,
दतक्षण भारत (कनाथटक)
 प्रस्तर तिल्प में हडप्पा सिंस्कृ तत तपछडी हुई र्ी।
लाजवदथ बदक्खिािं (अफगातनस्तान),
मेसोपोटातमया

21
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
सीसा ईरान, राजस्र्ान, डब्ल्य.ू एफ. तवदेिी व्यापार में कमी के
अफगातनस्तान, द0 भारत अल्ब्राइट कारण पतन
तहमालय क्षेत्र
सेलखडी बलतू चस्तान, राजस्र्ान, स्र्रर्ीय िथ्यः-
गजु रात  सैन्धवकालीन महु रें सवाथतधक मोहन जोदडों से
तमली है।
पिनः-  सवाथतधक सैन्धव परु ास्र्ल गजु रात से ही
 इसके परवती चरण में 2000 से 1700 ई0 पू0 के उत्खतनत हुए हैं।
बीच तकसी समय हडप्पा कालीन सभ्यता का  हडप्पा सभ्यता में प्रत्येक नगर दो भागों में
स्वतन्त्र अतस्तत्व धीर-धीरे तवलप्तु हो गया। तवभातजत र्े, जबतक धौलावीरा तीन भागों में
 इस सभ्यता के पतनोन्मख ु और अन्ततः तवलप्तु तवभातजत र्ा।
हो जाने के अनेक कारण हैं जो तनम्नतलतखत हैं-  स्वातस्तक तचन्ह सम्भवतः हडप्पा सभ्यता की
देन है। इस तचन्ह से सयू ोपासना का अनमु ान
भिद्वान पिन के कारर् लगाया जाता है।
गाडथन चाइल्ड बाह्य व आयों के आक्रमण  अतग्नकुडड लोर्ल एविं कालीबगिं ा से प्राप्त हुए हैं।
एविं व्हीलर
 कालीबागिं ा एविं बनवाली में दो सास्िं कृ ततक
जान मािथल, बाढ़
अवस्र्ाओ िं — प्राक् (पवू थ) हडप्पा एविं हडप्पा
मैके एविं एस.
कालीन के दिथन होते हैं।
आर. राव
 घोडे की जानकारी मोहनजोदडो, लोर्ल तर्ा
आरे ल स्टाइन, जलवायु पररवतथन
सरु कोतडा से प्राप्त हुई है।
ए.एन. घोष
 हडप्पा सभ्यता में मातृदवे ी की उपासना
एम.आर. भतू ातत्वक पररवतथन
सवाथतधक प्रचतलत र्ी।
साहनी
जान मािथल प्रिासतनक तितर्लता  चावल के प्रर्म साक्ष्य लोर्ल से प्राप्त हुए है।
के य0ू आर0 प्राकृ ततक आपदा  महु रें सवाथतधक सेलखडी (Steatite) की र्ी।
कनेडी  धान की भसू ी लोर्ल एविं रिंगपरु से प्राप्त हुई है।
एम.तदतमतत्रयेव भौततक रासायतनक  धातु तनतमथत मतू तथयों में सवाथतधक महत्वपू णू थ
(रूसी तवस्फोट या अदृश्य गाज मोहनजोदडो से प्राप्त एक नतथकी की कािंस्य मतू तथ
इततहासकार) है।

22
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
 हररयाणा के तहसार तजले में सरस्वती नदी के तट
पर तस्र्त प्राक्-हडप्पाकालीन परु ास्र्ल कुणाल
से चािंदी के दो मक
ु ु ट तमले हैं।
 मनके बनाने के कारखाने लोर्ल एविं चन्हूदडो से
 लोर्ल एविं कालीबगिं ा से यग्ु म समातधयाोँ तमली
हैं।

Note- उत्तर प्रदेश से सम्बंभधि सैन्धि


स्थल –

UPPCS के भिशेष सन्दिम र्ें


आलमगीरपरु मेरठ (उत्खनन यज्ञदत्त
िमाथ द्वारा )
अम्बखेडी सहारनपरु (उत्खनन
मधसु दू न
नरहरदेिपाडडेय ने
करवाया )
बडगािंव सहारनपरु (उत्खनन
मधसु दू न नरहर
देिपाडडेय ने करवाया )
हुलास सहारनपरु
माडिं ी मजु फ्फरनगर
सनौली बागपत

भबहार र्ें सैन्धि सभ्यिा का कोई स्थल प्राप्त नहीं


हुआ है र्कयों भक आलर्गीरपुर (र्ेरठ ) ही सबसे
पूिी सीर्ा थी |

23
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
िैभदक काल
 वैतदक काल की जानकारी वेदों से प्राप्त होती है। िेद:-
ब्राह्मण में वेद सबसे परु ाना है, वेद का िातब्दक  वेदों की भाषा सस्िं कृ त एविं तलपी ब्राह्मी है।
अर्थ है-जानना, वैतदक सिंस्कृ तत के सिंस्र्ापक  इनकी सख्िं या चार है-
आयथ र्े। आयथ िब्द सस्िं कृ त भाषा से तलया गया
है जो भाषाई समहू का पयाथय होने के सार्-सार् 1. ऋग्िेद
श्रेष्ठ, अतभजात्य व स्वतन्त्र तस्र्तत को दिाथता है। 2. सार्िेद
 वैतदक सिंस्कृ तत, ग्रामीण सिंस्कृ तत र्ी, आयों को 3. यजिु ेद
तलतप की जानकारी न होने के कारण वेद श्रवण 4. अथिमिेद
परिंपरा द्वारा पीढ़ी-दर-पीढ़ी पहुचोँ ाये जाते र्े,
इसतलए वेदों को ‘श्रतु त’ भी कहा जाता है। 1. ऋग्िेद
 सिंपणू थ वैतदक सातहत्य को दो भागों में बािंटा जाता  ऋग्वेद की रचना सप्तसेन्धव प्रदेि में सरस्वती
है- नदी के तट पर हुई, इसकी रचना तततर् को लेकर
1. श्रभु ि साभहत्य तवद्वानों में मतभेद है, तफर भी सामान्य तौर पर
2. स्र्ृभि साभहत्य ऋग्वेद को 1500 ई.प.ू से 1000 ई. प.ू तक माना
जाता है और इसके बाद उत्तरवैतदक काल का
1.श्रभु ि साभहत्य :- प्रारिंभ माना जाता है।
श्रतु त सातहत्य में वेदों के अततररक्त ब्राह्मण, आरडयक  ऋग्वेद का ईरानी ग्रिंर् अवेस्ता के सार् काफी
एविं उपतनषद् आते हैं, ये लिंबे समय तक श्रवण परम्परा समानता है, अवेस्ता एविं ऋग्वेद भारोपीय (इडिं ो-
के माध्यम से चलते रहे तर्ा बाद में इनका सक िं लन यरू ोपीयन) भाषा के दो प्राचीन ग्रर्िं हैं, लेतकन परू े
तकया गया। भारोपीय भाषा पररवार में ऋग्वेद सबसे
 वेदों का सिंकलन कृ ष्ण द्वैपायन व्यास ने तकया प्राचीनतम ग्रिंर् है।
र्ा, इसतलए वे वेदव्यास कहलाए।

 ऋग्वेद में कुल 10 मडडल (11 बालतखल्य


2. स्र्ृभि साभहत्य:- सतहत) एविं 1028 सक्त
ू हैं। इसमें 10,580 मिंत्र है
मनष्ु यों द्वारा रतचत है। इसमें वेदािंग, सत्रू एविं ग्रिंर् तजसमें 118 दहु राऐ गए हैं। अतः कुल 10,462
िातमल हैं। मिंत्र हैं।

24
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
ऋग्िेद के र्ण्ं डल:- िद्रू वणथ की उत्पतत्त हुई है, दसवें मडिं डल के परुु ष
सक्ु त में ही परुु रवा-उवथिी सिंवाद है।
प्रथर् र्ंण्डल:- इस मिंडडल के कई सक्ू त कई
ऋतषयों के द्वारा तमलकर तलखे गये, इस मडडल नासदीय सुर्कि:- इसमें सबसे प्रर्म बार तनगथणु
के ऋतषयों को िततचन: कहा जाता है, इसमें 20 ब्रह्म (एके श्वरवाद) का उल्लेख आया है।
राजाओ िं के यद्ध
ु का उल्लेख है।
 कृ तष सिंबिंतधत जानकारी चौर्े मिंडल से प्राप्त होती
िशं र्ण्ं डल :- दसू रे मडिं डल से सातवें मडडल है से प्राप्त होती है।
तक को, विंिमडडल कहा जाता है, इन ऋतषयों  गायत्री मिंत्र (तजसकी रचना तवश्वातमत्र ने की र्ी)
के समहू को प्रगार्ा कहा जाता है। का उल्लेख तीसरे मडडल में हैं।
 सातवाोँ मडडल वरूण को समतपथत हैं एविं नवें
र्ंण्डल संबंभधि ऋभष मडडल के 144 सक्त ू ों में सोम का वणथन है।
दसू रा गृहत्समद
 तवदषु ी मतहलाएोँ:- लोपामद्रु ा, तसक्ता, अपाला,
तीसरा तवश्वातमत्र
घोषा आतद ने कुछ ऋचाओ िं की रचना की।
चौर्ा वामदेव
 ऋग्वेद में इन मतहलाओ िं को ब्रह्मावतदनी कहा
पाच िं वािं अत्री
गया है।
छठवािं भारद्वाज
 ऋग्वेद में यमनु ा का उल्लेख तीन बार एविं गिंगा
सातवािं वतिष्ठ
का उल्लेख एक बार हुआ है।
आठवािं कडव
नौंवािं अिंतगरा  इस वेद में सोमरस का वणथन सवाथतधक बार हुआ
है तर्ा इन्द्र को परु िं दर (तकला तोडने वाला) कहा
गया है।
 दसिं वा मडिं डल:- इस मडडल के ऋतषयों को
सम्मतलत रूप से महासुक्ता कहा जाता है, सयू थ  ऋग्वेद में परू ु ष देवताओ िं की प्रधानता है। इन्द्र का
सक्ु त, परुु ष सक्ु त, नासदीय सुक्त दसवें मिंडडल वणथन सबसे अतधक 250 बार तकया गया है एविं
के ही भाग हैं। अतग्न का 200 बार तकया गया है।
ऋग्िेद के ब्राह्मर् ग्रंथ :-
 1. परुु ष सक्ु त :- इसमें वणथव्यवस्र्ा की
1. ऐतरे य ब्राह्मण
प्राचनीतम जानकारी तमलती है, परुु ष सक्ु त में ही
2. कौतषतकी
िद्रू िब्द का प्रर्म बार वणथन आया है, इसमें
तलखा है तक आतद परुु ष के मख ु से ब्राह्मण,
भजु ाओ िं से क्षत्रीय, पेट/ जिंघा से वैश्य और पैर से

25
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
(1) ऐिरेय ब्राह्मर् :- अरण्यक र्कया होिे हैं ?
 इसमें जर- जोरु- जमीन को सिंघषथ का मल ू कारण अरडयक िब्द का अर्थ वन मे तलखा जाने
बताया गया है। वाला है और इन्हे वन-पस्ु तक कहा जाता है।
 इसमें राज्य एविं राजाओ िं की उत्पतत्त का तसिंद्धािंत यह मख्ु यत: जगिं लों में रहने वाले सन्िं यातसयों
तदया गया है।
और छात्रों के तलये तलखी गई र्ीं। ये ब्राह्मणों
 ऐतरे य ब्राह्मण में जनपद एविं राजसयू यज्ञ का
के उपसहिं ारत्मक अि िं है, इनमें दिथन और
उल्लेख तमलता है।
(2) कौभषिकी ब्राह्मर् :-
रहस्यवाद का वणथन होता है। इनकी सख्िं या
 इसका दसू रा नाम ििंखायन ब्राह्मण है, तजसमें
सात है।
तवतभन्न यज्ञों का वणथन है।
2. सार्िेदः-
 कौतषतकी ब्राह्मण के सिंकलनकताथ कुतषतक
ऋतष है।  सामवेद गायी जाने वाली ऋचाओ िं का सिंकलन
है, तजनके परु ोतहत उद्गाता कहलाते र्े।
 आयवु ेद, ऋग्वेद का उपवेद है।
 यह वेद पद्य ( Poerty) में है।
ऋग्िेद के उपभनषद :-  सामवेद के प्रर्म रचनाकार जैतमनीय माने जाते
1. ऐतरे य हैं, बाद में सक ु माथ ऋतष ने इसका और तवस्तार
2. कौतषतकी तकया।
 गीता में श्री कृ ष्ण ने स्वयिं को वेदों मे सामवेद कहा
ऋग्िेद के अरण्यक :- है।
1. ऐतरे य  सामवेद सयू थ देवता को समतपथत है।
2. कौतषतकी  सामवेद से ही सवथप्रर्म सात स्वरों की जानकारी
प्राप्त होती है। इसतलए इसे भारतीय सिंगीत का
जनक माना जाता है।
 गिंधवथवेद सामवेद का उपवेद है।
 सामवेद में कुल मिंत्रों की सिंख्या 1549 है। इनमें
से 75 मिंत्रों के अततररक्त, िेष ऋग्वेद से तलेए गए
हैं।

26
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
सार्िेद के ब्राह्मर् :-  यह गद्य एविं पद्य दोनों में रतचत है एविं इसके दो
1. ताड्य उपभाग हैं-
2. जैमनीय 1. कृष्‍टर् युजिेद (गद्य)
2. शुर्कल यजुिेद (पद्य)
िाड्य:- यह आकार में बहुत बडा है इसतलये इसे
महाब्राह्मण भी कहते हैं, इसमें कुल 25 अध्याय हैं  िक्ु ल यजुवेद के भी दो भाग हैं-
इसतलये इसे पिंचतवि भी कहा जाता है, इसका एक 1. कडव
अन्य नाम अदभतु ब्राह्मण भी है। 2. माध्यातन्दनी

सार्िेद के उपभनषद :-  कृ ष्ण यजवु ेद के चार भाग हैं-


1. छान्िं दोग्य उपतनषद:- 1. मैत्रीय
2. के न उपतनषद 2. तैतत्तरीय
3. जैमनीय उपतनषद 3. कठ
4. कतपष्ठल
(1) छांन्दोग्य उपभनषद:- छािंन्दोग्य उपतनषद सबसे
प्राचीन उपतनषद है। यद्यतप कृ ष्ण का पहला उल्लेख
 यजिु ेद के ब्राह्मर् ग्रथ
ं :-
ऋग्वेद में तमलता है, लेतकन देवकीनिंदन कृ ष्ण का
1. ितपर् ब्राह्मण (िक्ु ल यजुवेद)
उल्लेख पहली बार छान्िं दोग्य उपतनषद में ही तमलता
2. तैततरीय ब्राह्मण (कृ ष्ण यजुवेद)
है। इसी में उद्दालक आरुतण एविं इनके पत्रु श्वेतके तु के
बीच सिंवाद का उल्लेख तमलता है।
(1) शिपथ ब्राह्मर् :-
 यह सबसे प्राचीन और सबसे बडा ब्राह्मण माना
(2) के न उपभनषद:- इसमें ब्रह्मा के स्वरूप को
जाता है।
समझाने के तलए प्रश्नोत्तर िैली में गरुु -तिष्य सिंवाद
है।  इसके लेखक ऋतष याज्ञवलक्य हैं।
 ितपर् ब्राह्मण में रामकर्ा, जलप्लावन परुु षमेघ
3. यजुिेदः- का वणथन उपनयन सिंस्कार का वणथन तवदेह माधव
 यजवु ेद में अनष्ठु ानों, कमथकाडडों तर्ा यज्ञ सिंबिंधी की कर्ा इत्यातद का वणथन है।
मिंत्रों का सिंकलन है। इनके परु ोतहत को अध्वयथु  ितपर् ब्राह्मण में स्त्री को अद्धांतगनिं ी कहा गया
कहते र्े। है।

27
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
 कृ ष्ण यजवु ेद का ब्राह्मण ग्रिंर् तैततरीय ब्राह्मण एविं  इसे अरडयक और उपतनषद दोनों कहा जाता है,
िक्ु ल यजवु ेद का ब्राह्मण ग्रर्िं ितपर् ब्राह्मण है। जो तक इसके नाम से ही स्पष्ट है।
 यजवु ेद का उपवेद धनवु ेद है।  प्रतसद्ध याज्ञवल्क्य -गागी सवािंद वृहदारडयक का
 ितपर् ब्राह्मण में कृ तष एविं तसिंचाई का उल्लेख ही भाग है।
तमलता है।
(2) कठोपभनषद:-
यजमिु ेद के उपभनषद :-  इसमें यम नतचके ता का सिंवाद है।
1. वृहदारडयक
2. कठोपतनषद (3) श्िेिाश्िर उपभनषद:-
3. इिोपतनषद इसमें मोक्ष एविं नवधा भतक्त की सिंकल्पना है, इसी
4. श्वेताश्वर उपतनषद में ब्रह्मा की प्रातप्त हेतु योग एविं यौतगक
5. मैत्रायतण उपतनषद तक्रयाओ िं पर बल तदया गया है।
6. तैत्तरीय उपतनषद
(5) र्ैरायभर् उपभनषद:-
 इसमे स्त्री की तल
ु ना जुआ एविं िराब से की गई
है।

 इसमें तत्रमतू ी का उल्लेख हुआ है।


(1) िृहदारण्यक उपभनषद:-
िेद परु ोभहि उपिेद ब्राह्मर् उपभनषद्
ऋग्वेद होतृ आयवु ेद ऐतरे य, कौषीतकी ऐतरे य, कौतितततक
सामवेद उद्गाता गिंन्धवथवेद जैतमनीय, तािंड्य छान्दोग्योपतनषद,
जैतमनीय, उपतनषद
यजवु ेद अध्वयथ धनवु ेद ितपर्, तैत्तरीय कठोपतनषद,् वृहदारडयक,
इिोपतनषद,् श्वेतास्वर
अर्वथवेद ब्रह्मा अर्वथवेद गोपर् मडु डकोपतनषद,
प्रश्नोपतनषद्
माडडुक्योपतनषद

28
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
(6) िैत्िरीय उपभनषद :- अथिमिेद का ब्राह्मर् ग्रथ
ं :-
 ‘अतततर् देवो भव, खबू अन्न उपजाओ, सदा 1. गोपर् ब्राह्मण
सत्य बोलो इत्यातद कर्न यहीं से तलये गये हैं।
अथिमिेद के उपभनषद:-
4.अथिमिेदः-
 अर्वथवेद चौर्ा एविं अिंततम वेद है, तजसकी रचना (1) र्ाण्डूर्कयोपभनषद:- सबसे छोटा उपतनषद
अर्वाथ ऋतष ने की र्ी।
 अर्वथवेद के मत्रिं रोग नािक, जाद-ू टोना, तववाह (2) र्ुण्डकोपभनषद:- ‘सत्यमेव जयते’ यही से
गीत आतद से सिंबिंतधत हैं। तलया गया है।
 इसका उपवेद अर्वथवेद है।
 अर्वथवेद का कोई आरडयक ग्रिंर् नहीं है। 3. प्रश्नोपभनषद
 अर्वथवेद में ही गोत्र िब्द का उल्लेख सवथप्रर्म
बार तमलता है।
उपभनषद्ः-
 अर्वथवेद के परु ोतहत को ब्रह्मा कहते र्े।
 उपतनषद वेदों का अिंततम भाग है इसतलए इन्हें
 इसी वेद में सभा और सतमतत को प्रजापतत की दो
वेदान्त भी कहते हैं।
पतु त्रयाोँ कहा गया है।
 उपतनषदों में हमें दािथतनक तचतिं न तमलते हैं।
 चाोँदी एविं गन्ने का सवथप्रर्म उल्लेख अर्वथवेद में
ही तमलता है।  उपतनषदों की कुल सख्िं या 108 है, तजसमें से 11
महत्वपूणथ हैं।
 मगध, अगिं और अयोध्या का उल्लेख अर्वथवेद
में हुआ है, अर्वथवदे में मगध के लोगों को ब्रात्य  इषोपतनषद् में गीता का तनष्काम कमथ का पहला
कहा गया है। तववरण तमलता है।
 ‘भतू म माता है, और मैं उसका पत्रु हु’िं यह  नतचके ता-यम का सिंवाद कठोपतनषद में है।
अर्वथवेद के पृथ्वीसक्ू त में उतल्लतखत है।  वृहदारडयक उपतनषद में अहम-ब्रह्मातस्म
उतल्लतखत है।
 वृहदारडयक उपतनषद् में ही पनु जथन्म का तसद्धान्त
एविं याज्ञवल्क्य-गगी सविं ाद का वणथन है।
 श्र्वेताश्र्वर उपतनषद में सवथप्रर्म भतक्त िब्द का
उल्लेख तमलता है।

29
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
िैभदकोत्िर साभहत्य तमलते हैं, इसके रचतयता आपस्तम्ब माने जाते
 वैतदकोत्तर सातहत्य में मुख्य रूप से वेदािंग, हैं।
उपवेद और स्मृतत ग्रिंर् रखे जाते हैं
स्र्ृभि ग्रथ
ं ः-
िेदांगः-  स्मृतत ग्रर्िं के अतिं गथत स्मृतत, धमथिास्त्र एविं परु ाण
 वैतदक मल ू ग्रिंर् का अर्थ समझने के तलए वेदािंगों आते हैं।
अर्ाथत वेद के अिंगभतू िास्त्रों की रचना की गयी।  ये तहन्दू धमथ के काननू ी ग्रिंर् भी कहे जाते हैं।
 वेदािंग गद्य भाषा में तलखे गये हैं।
ये िेदांग हैं – र्नस्ु र्भृ ि ( ई.प.ू 200) :-
 तिक्षा (उच्चारण तवतध)  यह सबसे प्राचीन स्मृतत-ग्रिंर् हैं। मेघातततर्,
 कल्प (कमथकाडिं ) गोतवन्दराज, भरूतच एविं कल्लुक भट्ट, मनस्ु मृतत
 व्याकरण पर टीका तलखने वाले तवद्वान हैं।
 तनरूक्त (भाषा तवज्ञान)  इस स्मृतत की मल ू रचना मौयाथत्तर यगु मे ििंगु
 छन्द काल में हुई।
 ज्योततष  मनस्ु मृतत में आयथ सिंस्कृ तत के चार क्षेत्र ब्रह्मवतथ,
ब्रह्मतषथ, मध्यदेि और आयाथवतथ का उल्लेख है।
कल्प का अर्थ है कमथकाडड, ऐसे तवतध तनयम जो सत्रू
में तलखे गये कल्पसत्रू कहलाते हैं, इसके तीन भाग हैं- याज्ञिल्र्कय स्र्ृभि ( ई.पू. 100) :-
 इसके भाष्यकार हैं- तवज्ञानेश्वर, अपराकथ एविं
1. श्रोि सूर :- इसी का एक भाग िुल्व सत्रू है, तवश्वरूप।
तजसमें यज्ञवेतदयों को मापने के तलए रे खा गतणत  मनु ने तनयोग प्रर्ा की तनदिं ा की लेतकन
का उल्लेख है। याज्ञवल्क्य ने नहीं।
 याज्ञवल्क्य ने तवधवा को समस्त
2. गृह सूर :- इसके रचतयता आश्वलायन माने उत्तरातधकाररयों में प्रर्म स्र्ान तदया।
जाते हैं।  इसी स्मृतत ने तस्त्रयों को सवथप्रर्म सिंम्पतत्त का
अतधकार प्रदान तकया।
3. धर्म सूर :- इसमें वणाथश्रम, परुु षार्थ,
राजनैततक, सामातजक और धातमथक कतथव्य

30
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
नारद स्र्भृ ि :- िौगोभलक भिस्िारः-
 यह स्मृतत गप्ु तकालीन है।  आयों की आरतम्भक इततहास की जानकारी का
 दासों की मतु क्त का तनयम सवथप्रर्म इसी स्मृतत मख्ु य स्रोत ऋग्वेद है।
में तमलता है।  ऋग्वैतदक काल की दसू री सवाथतधक पतवत्र नदी
 इसमें तनयोग प्रर्ा और तस्त्रयों के पनु थतववाह की सरस्वती र्ी। ऋग्वेद में सरस्वती को “नदीतमा”
अनमु तत दी गई है। (नतदयों में प्रमखु ) कहा गया है।
 ऋग्वेद में आयथ तनवास स्र्ल के सवथत्र ‘सप्त
सैन्धव’ िब्द का प्रयोग तकया गया है।
भिष्‍टर्ु स्र्ृभि:-  सरस्वती और दृिद्वती नतदयों के मध्य का प्रदेि
 यह भी गप्ु तकालीन स्मृतत मानी जाती है। अत्यन्त पतवत्र माना जाता है। तजसे ब्रह्मावतथ कहा
 इसमें मद्रु ाओ िं का तववेचन प्रमख
ु रूप से तदया जाता है।
गया है।  ऋग्वैतदक कालीन नतदयाोँ
नदी प्राचीन नार्
देिल स्र्भृ ि :- सतलज िततु द्र
 यह स्मृतत पवू थ मध्यकाल से सिंबतिं धत है। रावी परुष्णी
 इसमें उन तहन्दओ ु िं को पनु : तहन्दू धमथ में िातमल चेनाब अतस्कनी
करने का तनयम तमलता है तजन्होनें पवू थ में मतु स्लम झेलम तवतस्ता
धमथ अपना तलया र्ा। व्यास तवपािा
काबल ु कुभा
पुरार्ः- गिंडक सदानीरा
 परु ाण की सख्िं या 18 है।
 इनका सक िं लन गप्तु काल में हुआ तर्ा इनमें राजनीभिक व्यिस्थाः-
ऐततहातसक विंिावतलयािं तमलती हैं।  तपतृसत्तात्मक पररवार आयों के कबीलाई समाज
 मत्स्य, वाय,ु तवष्ण,ु तिव, ब्रह्मािंड, भागवत कुछ की बतु नयादी इकाई र्ी।
महत्वपूणथ परु ाण हैं।  ऋग्वेद में आयों के पाोँच कबीले के होने की वजह
 तवष्णु के दस अवतारों का तववरण मत्स्य परु ाण से उन्हें पिंचजन्य कहा गया है। ये र्े:- अन,ु द्रुहय,
से प्राप्त होता है, यह सबसे प्राचीन परु ाण है। परुु , तवु थस तर्ा यद्ध
ु ।

31
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
 ग्राम, तवि और जन ये उच्चतर इकाई र्े। ग्राम दशराज्ञ युद्ध
सम्भवतः कई पररवारों के समहू को कहते र्े।  ऋग्वेद के सातवें मडडल में इस यद्ध ु का
‘ग्रामणी’ ग्राम का प्रधान होता र्ा। वणथन है।
 तवश्व कई गाोँवों समहू र्ा इसका प्रधान ‘तविपतत’  भारत विंि के राजा सदु ास तर्ा अन्य दस
कहलाता र्ा। अनेक तविों का समहू जन होता राजाओ िं के सार् दािराज्ञ यद्ध ु हुआ
र्ा। जन के अतधपतत को जनपतत या राजा कहा तजनमें पाोँच आयथ तर्ा आयेत्तर जनों के
प्रधान र्े। यह दिराज्ञ यद्ध
ु (दस राजाओ िं
जाता र्ा। देि या राज्य के तलए राष्र िब्द आया के सार् लडाई) परुष्णी नदी के तट पर
है। हुआ।
 ऋग्वेद में सभा, सतमतत, तवदर् तर्ा गण जैसे  दसराजाओ िं के सिंघ में अन,ु द्रहु, यद,ु
अनेक कबीलाई पररषदों का उल्लेख है। ये तवु थस, परुु , अतनल, पक्क, भलानस,
सगिं ठन (पररषदें) तवचारात्मक सैतनक एविं धातमथक तवषातणनी और तिव िातमल र्े, तजनके
कायथ देखते ते। प्रमखु तवश्वातमत्र र्े।
 दिराज्ञ यद्ध ु में सदु ास की तवजय हुई।
 ऋग्वैतदक काल में मतहलाएोँ भी सभा एविं तवदर्
परातजत जनों में सबसे प्रमुख परुु र्े।
में भाग लेती र्ी। कालान्तर में भरतों और परुु ओ िं के बीच
 ऋग्वेद में ‘इन्द्र’ को ‘परु न्दर’ कहा गया है। मैत्री हो गई और कुरु नाम से एक नया
 रत्नी :- अन्य पदातधकारी जैसे:- सतू , रर्कार कुल बन गया।
और कमाथर भी र्े तजन्हें रत्नी कहा जाता र्ा,
राजा समेत कुल बारह रत्नी होते र्े ये
राज्यातभषेक के अवसर पर उपतस्र्त होते र्े। भिदथ:-
 परु प दगु थपतत होता र्ा तर्ा सैतनक कायथ भी करता  यह आयों की सवाथतधक प्राचीन सिंस्र्ा र्ी। इसे
र्ा। जनसभा भी कहा जाता र्ा।
 इसका उल्लेख ऋग्वेद में 122 बार आया है।
 तवदर् में ही उपज का तववरण होता र्ा।

सिा:-
 यह वृद्ध (श्रेष्ठ) एविं अतभजात (सभ्रिं ान्त) लोगों की
सिंस्र्ा र्ी। सभा के तवषय में उल्लेखनीय बात यह
है तक इसकी उत्पतत्त ऋग्वेद के उत्तरकाल में हुई
र्ी।

32
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
 ये वतथमान सिंसद की राज्यसभा की भािंतत र्ी। भशक्षा:-
 इसमें मतहलायें तहस्सा लेती र्ीं, और उन्हें  तिक्षा के द्वार तस्त्रयों के तलए खल ु े र्े, कन्याओ िं
सभावती कहा जाता र्ा, उत्तर वैतदक काल में को वैतदक तिक्षा दी जाती र्ी।
इसमें मतहलाओ िं की भागीदारी बिंद कर दी गई।  पत्रु ी का ‘उपनयन सिंस्कार’ तकया जाता र्ा,
 ऋग्वेद में इसका उल्लेख आठ बार तमलता है। तस्त्रयों को यज्ञ करने का अतधकार र्ा।
 ऋग्वेद में लोपामुद्रा, घोषा, तसकता, अपाला एविं
तवश्वारा जैसी तवदषु ी तस्त्रयों का उल्लेख तमलता
सभर्भि:- है, इन तवदषु ी तस्त्रयों को ऋषी कहा गया है।
 यह के न्द्रीय राजनीततक सिंस्र्ा (सामान्य जनता  गाय को ‘अघन्या’ (न मारने योग्य) माना जाता
की प्रतततनतध सभा) र्ी, सतमतत राजा की र्ा।
तनयतु क्त, पदच्यतु करने व उस पर तनयत्रिं ण रखती
र्ी। भििाह व्यिस्था:-
 ऋग्वेद में इसका उल्लेख 9 बार तमलता है।  ऋग्वेद काल में सामान्य तववाह के अततररक्त दो
प्रकार के अिंतवथणीय तववाह होते र्े-
 इसकी तुलना वतथमान सिंसद की लोक सभा से
की जाती है।
(1) अनुलोर् भििाह :- जब परुु ष उच्च वणथ का
 सतमतत के सभापतत को ईिान कहा जाता र्ा।
हो और कन्या तनम्न वणथ की हो।
सार्ाभजक व्यिस्थाः-
(2) प्रभिलोर् भििाह:- इसमें परुु ष तनम्न वणथ
 पररवार समाज की आधारभतू ईकाई र्ी। पररवार
का व कन्या उच्च वणथ की होती र्ी।
का प्रधान को कुलप या गृहपतत कहा जाता र्ा।
 ऋग्वैतदक काल में वणथ व्यवस्र्ा के तचन्ह तदखाई आभथमक जीिनः-
देते हैं।
 कृ तष योग्य भतू म को ‘उवथरा’ अर्वा क्षेत्र कहा
 ऋग्वेद का प्रर्म तर्ा 10वािं मडडल सबसे अिंत जाता र्ा।
में जोडा गया।
 वास्तव में आयों की आतर्थक तस्र्तत का
 समाज में तनयोग प्रर्ा प्रचतलत र्ी, तजसमें मलू ाधार पिधु न ‘गाय’ मद्रु ा की भाोँतत समझी
तवधवा स्त्री अपने देवर या अन्य परुु ष से तववाह जाती र्ी। अतधकािंि लडाइयाोँ गायों के तलए
कर सकती र्ी। लडी गयी र्ी, ऋग्वेद में ‘गाय’ का 176 बार
 ऋग्वैतदक सभा में तस्त्रयों को राजनीतत में भाग लेने उल्लेख तकया गया है।
तर्ा सम्पतत्त सम्बन्धी अतधकार प्राप्त नहीं र्े।

33
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
 गाय के बाद दसू रा प्रमख ु पिु घोडा र्ा क्योंतक  ऋग्वेद में अतग्न की स्ततु त में 200 सक्त
ू तमलते हैं।
घोडे का प्रयोग रर्ों में होता र्ा।  तीसरा प्रमख ु देवता वरूण र्ा जो जलतनतध का
 तवतनमय के माध्यम के रूप में ‘तनष्क’ का भी प्रतततनतधत्व करता है।
उल्लेख हुआ है।  वरूण को ऋतस्य गोपा कहा गया है अर्ाथत् वह
 बेकनाट (सदू खोर) वे ऋणदाता र्े जो बहुत प्राकृ ततक घटना क्रम का सयिं ोजक समझा जाता
अतधक ब्याज लेते ते। र्ा, उसे असरु भी कहा गया है।
 गतवति अर्ाथत् गायों की ‘गवेषणा’ ही यद्ध ु का  सोम को पेय पदार्थ देवता माना जाता है, ऋग्वेद
पयाथय माना जाता र्ा। इसी प्रकार गवेषण, गोष,ु का नवम् मडडल सोम की स्ततु त करता है।
गव्य, गम्य आतद सभी िब्द यद्ध ु के तलए प्रयक्त
ु  र्रुि:- आिंधी-तफ ू ान के देवता है।
होते र्े।  पजमन्य:- वषाथ का देवता।
 ऋग्वेद में एक ही अनाज अर्ाथत् यव का उल्लेख  अरण्यानी :- ऋग्वैतदक काल में जिंगल की देवी
हुआ है। र्ी
 रुद्र:- यह क्रोध, गस्ु सा इत्यातद के प्रतीक देवता
ऋग्िैभदक धर्मः- र्े, इन्हें औतषतधयों का सिंरक्षक एविं तचतकत्सक
 ऋग्वैतदक लोग तजस सावथभौतमक सत्ता में तवश्वास बताया गया है।
रखते र्े वह एकश्वरवाद र्ी, ऋग्वेद अनेक
देवताओ िं का अतस्तत्व मानता है, इससे स्पि
होता है तक वे एक सावथभौतमक सत्ता में तवश्वास
रखते हुए भी बहुलवादी हो गये र्े।
 मख्ु यत: ऋग्वैतदक देवकुल में देतवयों की नडयता
र्ी, सभी देवता प्राकृ ततक ितक्तयों के प्रतीक र्े।
 ऋग्वेद में सबसे महत्वपणू थ देवता इन्द्र को
‘परु न्दर’ भी कहा गया है, उन्हें वषाथ का देवता भी
माना गया है, ऋग्वेद में इन्द्र की स्ततु त में 250
सक्त
ू है।
 दसू रा महत्वपणू थ देवता अतग्न है, वैतदक काल में
अतग्न देवताओ िं व मनष्ु यों के मध्य मध्यस्र् र्ा,
इसके माध्यम से देवताओ िं की आहुततयाोँ दी
जाती र्ी।

34
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
उत्िर िैभदक काल
 भारतीय इततहास में उस काल को तजसमें  तवदेह के जनक, कै के य के अश्वपतत, कािी के
सामवेद, यजवु ेद एविं अर्वथवेद तर्ा ब्राह्मण अजातित्रु और पािंचाल के प्रवाहण जाबातल।
ग्रन्र्ों, आरडयकों एविं उपतनषदों की रचना हुई,  उत्तरवैतदक काल में पािंचाल सवाथतधक तवकतसत
को उत्तर वैतदक काल कहा जाता है। राज्य र्ा, ितपर् ब्राह्मण में इन्हें वैतदक सभ्यता
 ितपर् ब्राह्मण में बताया गया है तक माधव का सवथश्रेष्ठ प्रतततनतध कहा गया है।
सरस्वती नदी के तकनारे अपने परु ोतहत गौतम  उत्तर वैतदक काल में राजतन्त्र ही िासन का
राहुगण के सार् तनवास करते र्े, माधव ने आधार र्ा पर कहीं-कहीं पर गणराज्यों के
वैश्वानर अतग्न को महिंु में धारण कर तलया, तफर उदाहरण भी तमलते हैं।
वह अतग्न माधव से तनकलकर पृथ्वी पर आ  उत्तर वैतदक काल में तनयतमत करों तक प्रततष्ठा
तगरी, और सबकुछ जलाती हुई पवू थ की ओर बढ़ स्र्ातपत हुई।
चली, लेतकन सदानीरा नदी (गिंडडक नदी) को
अतग्न नहीं जला पायी, यहीं पर तमर्ला राज्य सार्ाभजक संगठनः-
तस्र्त र्ा, अत: आयथ सभ्यता का प्रसार पवू थ में
 उत्तर वैतदक काल का समाज चार वणों में तवभक्त
तमर्ला तक ही रहा।
र्ा:- ब्राह्मण, राजन्य या क्षतत्रय, वैश्य और िद्रू ।
 इस यगु की सभ्यता का के न्द्र पिंजाब से बढ़कर
 इस काल में यज्ञ का अनष्ठु ान अत्यतधक बढ़ गया
कुरुक्षेत्र (तदल्ली और गगिं ा-यमनु ा दोआब का
र्ा तजससे ब्रह्मणों की ितक्त में अपार वृतद्ध हुई।
उत्तर भाग) में आ गया र्ा।
 इस काल में वणथ व्यवस्र्ा का आधार कमथ पर
 इस सिंस्कृ तत का मख्ु य के न्द्र मध्य देि र्ा।
आधाररत न होकर जातत पर आधाररत हो गया
 परुु एविं भरत तमलकर कुरु और तवु थि एविं तक्रतव र्ा तर्ा वणें में कठोरता आने लगी र्ी।
तमलकर पािंचाल कहलाए।
 समाज में अनेक धातमथक श्रेतणयों का उदय हुआ
 मगध व अिंग आयथ क्षेत्र के बाहर र्े। जो कठोर होकर तवतभन्न जाततयों में बदलने
लगी। व्यवसाय आनवु िंतिक होने लगे।
राजनीभिक व्यिस्थाः-  ऐतरे य ब्राह्मण में चारों वणों के कत्तथव्यों का वणथन
 उपतनषद काल में अनेक राजा ऐसे हुए, जो ब्रह्म तमलता है।
ज्ञान तर्ा आध्यात्म तचतिं न से जडु े र्े। तजनमें  ब्राह्मण, क्षतत्रय तर्ा वैश्य इन तीनों को तद्वज कहा
प्रमखु र्े:- जाता र्ा ये उपनयन सिंस्कार के अतधकारी र्े।

35
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
 चौर्ा वणथ (िूद्र) उपनयन सिंस्कार का अतधकरी  उत्तर वैतदक काल के लोगों में लाल मृदभाडड
नहीं र्ा और यहीं से िद्रू ों को अपात्र या सबसे अतधक प्रचतलत र्ा। जबतक तचतत्रत धसू र
आधारहीन मानने की प्रतक्रया िरू ु हो गई। मृदभाडड (PGW) इस युग की तविेषता र्ी।
 उत्तर वैतदक काल में गौत्र प्रर्ा स्र्ातपत हुई तफर  वैतदक काल के लोगों ने तजन धातओ ु िं का प्रयोग
गोत्र वतहथतववाह की प्रर्ा चल पडी। तकया उनमें ताोँबा पहला रहा होगा। ताोँबे की
 सवथप्रर्म जाबालोपतनषद में चारों आश्रमों का वस्तएु ोँ तचतत्रत धसू र मृदभाडड स्र्लों में पाई गई
तववरण तमलता है। है।
 इस काल में तस्त्रयों के तलए उपनयन सिंस्कार
प्रततबतन्धत हो गया र्ा। उद्योग:-
 ितपर् ब्राह्मण में अनेक तवदषु ी कन्याओ िं का  कृ तष के अततररक्त तवतभन्न प्रकार के तिल्पों का
उल्लेख तमलता है, ये हैं:- गागी, गन्धवथ, गृहीता, उदय भी उत्तर वैतदक कालीन अर्थव्यवस्र्ा की
मैत्रेयी आतद। अन्य तविेषता र्ी।
 ब्राह्मण ग्रन्र्ों में श्रेष्ठी का भी उल्लेख तमलता है।
आभथमक जीिनः- श्रेतष्ठन श्रेणी का प्रधान व्यापारी होता र्ा।
 कृ तष इस काल में आयों का मुख्य व्यवसाय र्ा।  स्वणथ तर्ा लोहे के अततररक्त इस यगु में आयथ
ितपर् ब्राह्मण में कृ तष की चारों तक्रयाओ:िं - तटन, ताोँबा, चाोँदी सीसा आतद धातओ ु िं से
जतु ाई, बआु ई, कटाई तर्ा मडाई का उल्लेख पररतचत हो चक ु े र्े।
हुआ है।  तैतत्तरीय सतिं हता में ऋण के तलए कुसीद िब्द
 काठक सिंतहता में 24 बैलों द्वारा खीचें जाने वाले तमलता है।
हलों का उल्लेख तमलता है।
 ऋग्वैतदक लोग जौ (यव) पैदा करते र्े, परन्तु इस व्यापार:-
काल में उनकी मख्ु य फसल धान और गेहूोँ हो  उत्तर वैतदक काल में मद्रु ा का प्रचलन हो चक ु ा
गयी। र्ा। परन्तु सामान्य लेन-देन में या व्यापार वस्तु
 उत्तर वैतदक काल के लोग चार प्रकार के बतथनों तवतनमय द्वारा ही होता है।
(मृदभाडडों) से पररतचत र्े:-  तनष्क, ितमान, पाद, कृ ष्णाल आतद माप की
1. काले व लाल भाडड तभन्न-तभन्न इकाइयाोँ र्ीं। तनष्क जो ऋग्वैतदक
2. काले रिंग के भाडड काल में एक आभषू ण र्ा अब एक मद्रु ा माना
3. तचतत्रत धसू र मृदभाडड तर्ा जाने लगा।
4. लाल भाडड।

36
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
 ितमान सम्भवतः चाोँदी की मद्रु ा र्ी। ितपर्
ब्राह्मणों में दतक्षणा के रूप में इसका वणथन तमलता 1. होिृ ( होिा) :- यह ऋग्वेद का ज्ञाता र्ा, यह
है अर्वथवेद में चाोँदी का उल्लेख तमलता है। यज्ञ में अतग्न को आमिंतत्रत कर देवताओ िं का
अह्वान करता र्ा।
धाभर्मक जीिनः-
 उत्तर वैतदक काल में उत्तर दो-आब ब्राह्मणों के 2. उद्गािा:- यह सामवेद का ज्ञाता र्ा, और यज्ञ
प्रभाव में आयथ सस्िं कृ तत का के न्द्र स्र्ल बन गया। में सोम का गायन करता र्ा।
 यज्ञ इस सस्िं कृ तत का मल ू र्ा और यज्ञ के सार्-
सार् अनेकानेक अनष्ठु ान और मिंत्रतवतधयाोँ 3. अध्ियमु (याभज्ञक):- यह यजवु ेद का ज्ञाता
प्रचतलत हुई। र्ा, जो यज्ञ के कमथकाडडों को सिंपन्न करवाता
र्ा।
 पिओ ु िं के देवता रुद्र इस काल में एक महत्वपणू थ
देवता बन गये उत्तर वैतदक काल में इनकी पजू ा
4. ब्रह्मा :- यह सारे वेदों का ज्ञाता र्ा, यज्ञ में
तिव के रूप में होने लगी।
इसकी भतू मका तनरीक्षक (सपु रतवजन) की होती
 तवष्णु को सवथ सिंरक्षक के रूप में पजू ा जाता र्ा।
र्ी।
 पषू न िद्रू ों के देवता के रूप में प्रचतलत र्े
ऋग्वैतदक काल में वह पिओ ु िं के देवता र्े। यज्ञ के प्रकार :-

उत्िर िैभदक काल र्ें िीन प्रकार के ऋर् बिाये शलू गि यज्ञ:- यह रुद्र (तिव) को प्रसन्न करने
गये हैं- के तलए तकया जाता र्ा, लेतकन इसमें नन्दी की
बतल दी जाती र्ी यह यज्ञ अश्वत्र्ामा द्वारा प्रारिंभ
(1) देि ऋर्:- देवताओ िं की कृ पा से मानव जन्म तकया गया र्ा।
तमला है अत: यज्ञ कर यह ऋण चक ु ाया जा सकता
है। परुु षर्ेघ यज्ञ:- इसमें 25 यपू बनते र्े तजसमें
11 परुु षों की बतल दी जाती र्ी, इसका उल्लेख
(2) ऋभष ऋर्:- वेदों का अध्ययन- अध्यापन कर, ितपर् ब्राह्माण में है।
गरुु से जो ज्ञान तमला है, उसे चक
ु ाया जा सकता है।
(3) भपिृ ऋर्:- धमथ के अनसु ार तववाह कर सिंतान सोर्यज्ञ:- यह ऋग्वेतदक आयों का सबसे
उत्पतत्त करके यह ऋण चक ु ाया जा सकता है। महत्वपूणथ यज्ञ र्ा, यह यज्ञ कभी-कभी 1000 वषथ

यज्ञ करने िाले ब्रह्मार्ों के चार िगम थे-

37
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
तक चलता र्ा। इसमें सोम की आहुतत दी जाती प्रर्ख
ु दशमन एिं रभचयिा:-
र्ी।
दशमन रचभयिा/ प्रििमक
राजसूय यज्ञ:- राज्यातभषेक के समय यह यज्ञ चावाथक भौततकवादी चावाथक
तकया जाता र्ा, राजा इसमें चौसर और द्यतू सािंख्य कतपल
क्रीडा जैसे खेलों में भाग लेता र्ा। इसी यज्ञ से योग पतिं जतल (योग सत्रू )
रत्नहबसी सिंस्कार सिंबिंतधत है। तजसमें राजा सबसे न्याय गौतम (न्याय सत्रू )
पहले सेनानी के घर जाता र्ा। पवू थ मीमािंसा जैमनी
उत्तर मीमािंसा बादरायण (ब्रह्म सत्रू )
अभग्नष्‍टटोर् यज्ञ:- यह यज्ञ प्रकृ तत पजू ा से वैितषकी कणाद या उलक ू
सबिं तिं धत है, जो तक पाचिं तदन चलता र्ा।

अश्िर्ेघ यज्ञ :- यह यज्ञ इस बात का प्रतीक स्र्रर्ीय िथ्य


र्ा, तक सबिं तिं धत राजा का अश्व तजस क्षेत्र से
 इस काल में मद्रु ा प्रणाली का आतवभाथव नहीं
गजु रा है, आप उसके अधीन हो, इसमें यज्ञकताथ
हुआ र्ा। अतः बतल, िल्ु क, भाग आतद जो राजा
अपना सबकुछ दान कर देता र्ा।
को तदये जाते र्े वे वस्तओ
ु िं के रूप में ही होंगे।
 पनु जथन्म का तसद्धान्त सवथप्रर्म ितपर् ब्राह्मण में
व्रात्यस्टोर् यज्ञ:- इसके द्वारा अनायथ लोग आयथ
तदखाई देता है।
समदु ाय में िातमल तकये जाते र्े, पिंचतवष्ट
ब्राह्मण में इस यज्ञ का उल्लेख है।  तीनों आश्रमों सवथप्रर्म वणथन हमें छान्दोग्य
उपतनषद में तर्ा चारों आश्रमों का वणथन
सीिा यज्ञ:- कृ तष प्रारिंभ करते समय हल चलाने जबालोपतनषद में तमलता है।
से पवू थ तकया जाने वाला यज्ञ।  अश्वमेध, वाजपेय, राजसयू आतद यज्ञों के तवस्तृत
अध्ययन से पता चलता है तक मल ू तः इनका
पच
ं र्हायज्ञ:- इसमें ब्रह्म यज्ञ , तपतृ यज्ञ, देव उद्देश्य कृ तष-उत्पादन का बढ़ाना र्ा।
यज्ञ, भूत यज्ञ एव अतततर् यज्ञ (मनष्ु य)  सबसे बडा तर्ा सवाथतधक लोह पजिंु
सतम्मतलत है। अिंतरजीखेडा से तमला है।
 इस काल में गौत्र व्यवस्र्ा स्र्ातपत हुई।
 उत्तर वैतदक काल में ही मतू तथ पजू ा का आरम्भ
हुआ।

38
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
 तनष्क (सोने का तसक्का), ितमान (चाोँदी का
तसक्का), पाद, कृ ष्णाल आतद माप की तभन्न-
तभन्न इकाइयाोँ र्ी।
 यम और नतचके ता और उनके बीच तीन वर प्राप्त
करने की कहानी कठोपतनषद में वतणथत है।
 आरुतण उद्दालक और श्वेतके तु के मध्य सिंवाद
छान्दोग्य उपतनषद में तमलता है।
 ‘यज्ञ एक ऐसी नौका है तजस पर भरोसा नहीं
तकया जा सकता’ मडु डकोपतनषद।
 कठोपतनषद में आचायथ यम द्वारा नतचके ता को
ब्रह्म तवद्या का उपदेि तदया गया।
 उत्तर वैतदक काल के स्र्ल भगवानपरु ा
(हररयाणा) से पक्की ईटोंिं से तनतमथत तेरह कक्षीय
भवन प्रकाि में आये हैं।
 वेद में तक उल्लेख है तक गालव नामक ऋतष ने,
दासराज्ञ यद्धु में पािंचाल नरे ि तदवोदास को लोहे
की तलवारें देकर सहायता की र्ी।

39
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं

सगं र् काल
सगिं म यगु से तात्पयथ दतक्षण भारत के आरिंतभक  इस सिंगम का एकमात्र ततमल व्याकरण ग्रिंर्
संस्थापक — श्री गप्ु त
इततहास का वह यगु है, जब ततमल कतवयों द्वारा बडी ‘तोलकातप्पयम्’ ही उपलब्ध है।
चन्द्रगुप्कतवताओ
सिंख्या में ततमल त प्रथमः- िं की(319-35 रचना कीई0)गई।— गुप्त वंश का वास्तववक संस्थापक राजधानी – पा लिपुत्र

 सिंगम िब्द कतवयों के समागम319 अर्ाथईत0 सार् आनेसंवत ‘गुप्त संवत’ चिाया िृिीय संगर्
में नया
का स्र्ल है।  आयोजन स्थल: उत्तरी मदरु ा
लिच्छवी की राजकुमारी कुमार दे वी के साथ वैवाटिक संबंध स्थावपत करने के कारण वि अपने को “लिच्छनयः दौटित्र” किता था।
 परम्परागत रूप से एक के पिात 3 सिंगम  अध्यक्ष: नक्कीरर
अपने वववाि के उपिक्ष्य में “सोने के लसक्के” जारी ककया।
आयोतजत तकए गए।  तीसरे सगिं म की यह तविेषता है तक इस समय की
 तीनों सिंगम मदु रै के पाड सम् य ुर िासकों
गुप्तः- इसकी भी उपाधध
के सिंरक्षण में – लिच्छनयःदौटित्र
सिंकतलत ,कतवतायें“कववराज” आज भी उपलब्ध हैं।
तवतभन्न स्र्लों पर आयोतजत तकए गए।
ववजय अलभयानों की जानकारी — ‘प्रयाग प्रशास्स्त से’
 सगिं म सातहत्य की कतवताएिं 2 तवषय-वस्तु (प्रेम सगं र् साभहत्य
ननंसे आथथर ने इसे “भारत का नेपोलियन” किा िै ।
व यद्ध ु ) पर आधररत र्ी, इस सातहत्य की सिंगम सातहत्य मल ू रूप से ततमल भाषा में तलखे गये।
तविेषता तत्कालीन ततमल लसक्को समाजपर वीणा
का उत्तरबजाते िुए धचत्रत्रत ककया गया िै ।

सभ्यता (आयथ) के सार् सामजिं स्य का तववरण प्रर्ख ु सगं र् ग्रथ ं भनम्न भलभखि है-
इसने भी अश्वमेघ यज्ञ कराए और “अश्वमेघ पराक्रमांक” की उपाधध धारण की।
र्ा।
प्रथर् संगर् राम गुप्तः-िोलकाभप्पयर्:- यह एक व्याकरण ग्रर् है।
् िं
इसकी पत्नीआयोजन स्थलको: मद
ध्रुवस्वालमनी रु ा करने के लिए शकों का आक्रमण
प्राप्त  िधमथ ु आ।, अर्थ
इस ,घकाम, मोक्ष
ना की की व्याख्
जानकारी या इस ग्रकिंर्ृ त मे“देवी
ववशाखदत्त

 अध्यक्ष: ऋतष अगस्त्य चन्द्रगुप्तम” नामक ग्रन्द्थ से प्राप्त की गई िोतीहै।िै ।

 यह सिंगम सबसे अतधक समय तक चला, यह  इसकी रचना तोलकातप्पयर ने की है।


सिंगम कुल 4400 चन्द्रग वषों तक चला।
ुप्त द्ववतीय ‘ववक्रमाटदत्य’:- अन्द्य नाम-दे वराज या “दे वगुप्त”
 प्रर्म सिंगम का कोई भी ग्रिंर् उपलब्ध नहीं है। एिुत्िौके : यह 8 ग्रिंर्ों का सिंग्रह है, इसतलये इसको
परमभागवत की उपाधध उसके धमथननष्ठ वैअष् ष्णव ट सिोने की कहते
पुस्ष् हैंकरता
। िै।
िंग्रह भी
भद्विीय सचााँंगदर्ी की मुरा का प्रचिन करने वािा  इस पििा अष्गटुप्तसिंग्रशासकह का प्रमुख ग्रिंर् पररपादल है जो
ततमल सग्रिं ह का प्रर्म सगिं ीत सग्रिं ह है।
दसू  अयोजन—स्उज्जनयनी
री राजधानी थल : कपाटप (ववद्या रु म/ अलवै
एवं संस्कृनत का प्रलसद्ध केन्द्र) इससे पििे ववटदशा को दस ू री राजधानी बनाया
 अध्यक्ष: अगस्त्य ( बाद में तोलकातप्पयर  इस अष् ट स ग्र
िं ह का द स
ू रा प्रम ुख ग्रर्िं अहनारू है
नवरत्नः-
अध्यक्ष बने) जो तक मदरु ा तनवासी रुद्रिमथन ने तलखा ।
 यह सिंगमअमरलसं
3700 िवषों
, वेताि भट् , धन्द्वंतरर, शंकु, घ
तक चली। कपरर, क्षपण, कालिदास, वरािलमटिर, वररूधच

शक ववजेता किा जाता िै ।

फाह्यानः-

चन्द्रगुप्त द्ववतीय के शासन काि में यि चीनी यात्री भारत आया प्रलसद्ध ग्रन्द्थ ‘फू-की-की’ की रचना की। 40
नोट्स हेतु
चन्द्र के पा लिपुत्र स्स्थत राज प्रसाद का दशथन ककया।
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
पत्िप्ु पािु : भशल्पाभदकारर््
 इसको दस गीत भी कहते हैं।  लेखक: इल िं गोआतदगल
 यह तृतीय सिंगम का ग्रिंर् है।  यह चेर िासक िेनगट्टु वन का भाई र्ा।
 यह चेर राजाओ िं की कहानी है।  कहानी:- इस ग्रिंर् का नायक कोवलम एविं
 इस ग्रिंर् का प्रमख
ु भाग पतत्तनप्पालै है, तजसकी उसकी पत्नी कन्निंगी है, कोवलन को पाडडय
रचना रुद्रनकन्ननार ने की, इस कृ तत से प्रभातवत िासक नेडुजेतलयन ने फािंसी दी र्ी, तजसके
होकर चोल िासक कररकाल ने लेखक को 16 कारण कन्नगी ने क्रोध से मदरु ा को जला डाला
लाख स्वणथ मुद्रािंए ईनाम में दी र्ीं। और चेर राज्य चली गई, और चेर राज्य में
कन्नगी सती की देवी के रूप में स्र्ातपत हुई,
कुरल : तिल्पातदकारम् में कन्नगी पजू ा का उल्लेख
 यह तीसरे सिंगम के प्रमख ु ग्रिंर् तमलता है।
पतदनेतकल्लकणक्कु के 18 भागों में से एक है,  यह एक जैन कहानी है।
इसके लेखक ततरुवल्लवु र हैं।  तिल्पातदकारम् में 32 प्रकार के सतू ी वस्त्रों की
 कुरल को ततमल सातहत्य का आधार ग्रिंर् माना चचाथ है।
जाता है, इसकी गणना सातहतत्यक तत्रवगथ में की  इसमें ततमल राजओ िं द्वारा अपने तकले के द्वारपाल
गई है। के रूप में यवनों की तनयतु क्त का उल्लेख है।
 इसे ततमल सातहत्य का बाइबल और पिंचमवेद  इस ग्रिंर् को ततमल सातहत्य का इतलयड माना
भी माना जाता है। जाता है ।
 तकसी सातहत्य की तल ु ना इतलयड से करने का
संगर् काल के र्हाकाव्य कारण-
 सिंगम यगु में कुल 5 महाकाव्य हैं- इभलयड
 1. तिल्पातदकारम्
 2. मतणमेखलै इतलयड या ईतलयद प्राचीन यनू ानी िास्त्रीय
 3. जीवकतचिंतामतण (क्लातसकल) महाकाव्य है, जो यरू ोप के
आतदकतव होमर की रचना मानी जाती है। इसका
 4. वलयपतत
नामकरण ईतलयन नगर (राय) के यद्ध ु के वणथन के
 5. कुडडलके ति
कारण हुआ है। समग्र रचना 24 पस्ु तकों में तवभक्त
 इनमें से प्रर्म तीन ही उपलब्ध हैं, यद्यतप यह है इतलयड में राय राज्य के सार् ग्रीक लोंगो के
सातहत्य सिंगम सातहत्य के अिंतगथत नहीं आते यद्ध
ु का वणथन है। इस महाकाव्य में राय के तवजय
बतल्क यह सिंगम यगु के महाकाव्य हैं।

41
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
और ध्वसिं की कहानी तर्ा यनु ानी वीर एकतलस  कहानी:- इस कहानी का नायक 8 रातनयों से
के वीरत्व की गार्ाएिं हैं। तववाह कर सतु वधापवु थक जीवन तबताता र्ा, जो
इसतलए जब भी तकसी ग्रिंर् को उसकी महानता बाद में जैन तभक्षु बन जाता है।
बतानी होती है तो पतिम की इतलयट से तल ु ना कर
देते हैं ठीक उसी तरीके जैसे समद्रु गप्तु को वी ए  वलयपतत ओर कुडडलके ति महाकाव्य उपलब्ध
तस्मर् भारत का नेपोतलयन कहते हैं अर्ाथत उसकी नहीं है।
तलु ना नेपोतलयन से कर दी जाती है
संगर् युग का राजनैभिक इभिहास
र्भर्र्ेखलै  सिंगम सातहत्य से हमें दतक्षण के तीन प्रमख
ु राज्य
 लेखक: सीतलैसत्तनार (बौद्ध अन्न व्यापारी) चोल, चेर और पाडडय का राजनैततक इततहास
 इसे बौद्ध पस्ु तक माना जाता है। प्राप्त होता है।
 इसको तिल्पातदकारम् का दसू रा भाग कहते हैं
 काहानी:- इसकी कर्ा वहािं से प्रारिंभ होती है, चोल राज्य:-
जहािं से तिल्पातदकारम् की समाप्त होती है, इस  राजधानी: पहु ार या कावेरीपत्तनम
महाकाव्य की नातयका मतणमेखलै है जो  प्रारंभिक राजधानी: उत्तरी मनलरू एविं उरै यरू
कोवलम और उसकी दसू री प्रेतमका माधवी  राजभचन्ह: बाघ या चीता
(वैश्या) की पत्रु ी है, मतणमेखलै बाद में बौद्ध  सिंगम कालीन तीन प्रमखु राज्यों में सवथप्रर्म
तभक्षणु ी बन जाती है। चोलों का अभ्यदु य हुआ
 इस ग्रर्िं को ततमल सातहत्य का ओतडसी कहा
जाता है। उरिप्पहरेइलनजेभिचेन्नी:-
 इस महाकाव्य में कािंची में पडे अकाल का वणथन  यह चोलों का पहला एततहातसक िासक र्ा,
है।  इसी ने उरै यरू को राजधानी बनाया।
 इसके तवषय में प्रतसद्ध र्ा तक यह यद्ध
ु में सिंदु र
जीिक भचन्िार्भर्
रर्ों का प्रयोग करता र्ा।
 लेखक: ततरुतक्कदेवर
 यह एक जैन सन्यासी र्े, जो सम्भवत एक चोल एलारा:-
राजकुमार र्ा,  यह चोल राज्य का पहला िासक र्ा, तजसने
श्रीलिंका पर तवजय प्राप्त की और लगभग 50
वषों तक वहा िासन तकया।

42
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
 यह चेर विंि का सिंस्र्ापक राजा र्ा।
कररकाल  इसके तवषय में कहा जाता है तक इसने महाभारत
 इसके नाम का अर्थ र्ा पािंव जला व्यतक्त अर्ाथत के यद्ध
ु में भाग लेने वाले सभी योद्धाओ िं को
तजसके पैर झल ु से हों, यह चोलो का सवाथतधक भोजन कराया र्ा।
महत्वपूणथ िासक र्ा।
 इसने अपने दो प्रतसद्ध यद्धु ों से ख्यातत हातसल नेदुजेरलआदन :-
की-  इसने तहमालय तक तवजय तकया, और वहािं पर
 1. वेतडण का यद्ध ु चेर राजतचन्ह धनषु अतिं कत तकया।
 2. वाहइप्पारिंदलाई  इसने मालाबार तट पर यवन व्यापाररयों को बदिं ी
 इसने अपनी राजधानी उरै यरू से कावेरीपत्तनम् बना तलया र्ा।
स्र्ानातिंररत की।
शेनगट्टु ु िन
शेनगर्ान:-  यह चेर वि िं का सबसे प्रतापी राजा र्ा।
 इसके बारे में प्रचतलत र्ा तक यह पवू थ जन्म में  इसको लाल चेर और भला चेर भी कहते र्े।
मकडा र्ा।  इसने चेर राज्य में पतत्तनी पजू ा ( पत्नी पजू ा)
 सगिं म यगु के चोल िासकों ने चौर्ी सदी तक अर्ाथत कडणगी पजू ा प्रारिंभ की।
िासन तकया, इसके बाद चोल िासन अिंधकार  इसने ‘समद्रु को पीछे हटाने वाला’ की उपातध
पणू थ हो जाता है, तफर आगे चलकर 850 ई. में धारण की ।
तवजयालय के नेतत्ृ व में चोल सत्ता का  पेरुन्जेलन:- दतक्षण में गन्ने की खेती प्रारिंभ की।
पनु रुत्र्ान हुआ।
पाण्ड्य राज्य
चेर राज्य  राजधानी: मदरु ै
 राजधानी: वातिं ज या करुयरू  प्रारिंतभक राजधानी: कोरकई
 तद्वतीय राजधानी: तोंडडी  राजतचन्ह: मछली
 राजतचन्ह: धनषु
 सिंगम सातहत्य में सवाथतधक जानकारी चेर राज्य नेभडयोन :-
की तमलती है।  यह पाडड्य विंि का प्रर्म िासक र्ा।
 इसने समद्रु की पजू ा प्रािंरभ करवायी।
उभदयनजेरल:-

43
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
पलशालै र्दु ु कुडुर्ी:-  कडैतसयर: कृ षक मजदरू
 यह पाडड्य वि िं का प्रर्म ऐततहातसक िासक  वेल्लालर: सम्पन्न तकसान
माना जाता है।
 इसके नाम का अर्थ है “अनेक यज्ञिालाएिं भििाह
बनाने” वाला।  तोलकातप्पयम् में 8 प्रकार के तववाह का उल्लेख
तमलता है।
नेंडुजेभलयन:- 1. पंचभिर्ै: इसको प्रेम तववाह या गिंधवथ तववाह
 सबसे प्रतसद्ध पाडड्य िासक र्ा। भी कहते है।
 इसकी ख्यातत तलैयालगिं ानम् का यद्ध ु जीतने के  2. कै भर्ककर्ै: यह एकपक्षीय प्रेम है तजसमें
कारण है, यह यद्धु 290 ईस्वी में हुआ, इस यद्ध ु असरु , राक्षस और पैिाच तववाह होते र्े।
में उसने चोल, चेर एविं पाचिं सामतों के गटु ों को  3. पेरुभन्दर्ै: एक तरह का ‘अरें ज मैररज’
परातजत तकया। अर्ाथत् प्रजापत्य सतहत िेष चारों तववाह इसमें
 प्रसतद्ध कतव नक्कीरर इसी के दरबार में र्े। िातमल र्े।
 समाज में तवधवा-तववाह एविं पनु थतववाह का
 इततहासकारों के अनसु ार आगे चलकर कल्लभ्रों प्रचलन र्ा।
ने तीनों ततमल राजाओ िं (चोल, चेर और पाडड्य)  दास प्रर्ा का अभाव र्ा।
को बिंदी बना तलया र्ा, कलभ्रों को दष्ु ट िासक
कहा जाता र्ा। बाद में पाडिं ड्य पल्लव एविं संगर् युद्ध के बंदरगाह:
चालक्ु यों के हार्ों उनका दमन हुआ।
चोलों के बंदरगाह
सगं र् यगु ीन सार्ाभजक व्यिस्था  1. पहु ार:
समाज चार वगों मे तवभातजत र्ा,  2. अररकामेडु ( पातडडचेरी)
1. िडु ् डम वगथ (ब्राह्मण एविं बतु द्धजीव वग)
 3. उरै यरू
2. अरसर वगथ ( िासक एविं योद्धा वगथ
3. बेतनगर वगथ ( व्यापारी वगथ)
पहु ार (कािेरीपत्िनर्)् :
4. वेल्लाल वगथ (तकसान वगथ )
 यह चोलों का प्रमखु बिंदरगाह र्ा।
 टॉलमी ने कावेरीपत्तनम् का उल्लेख ‘खबेररस’
 परदवर: मछुआरे
नाम से तकया है।
 पल
ु ैन: रस्सी की चारपाई बनाने वाले

44
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
अररकार्ेड (पाभण्डचेरी) :  यह मोती खोजने का सबसे बडा पत्तन र्ा,
 यह चोलों का दसू रा प्रमखु बदिं रगाह र्ा। तजसका उल्लेख तप्लनी एविं पेररप्लस के लेखक
 यह भारत तर्ा रोम के व्यापार का प्रमखु कें द्र र्ा। ने तकया है।
 पेररप्लस में इसका नाम ‘पेडोक’ तमलता है।
 यहािं से तविाल रोमन बस्ती के साक्ष्य तमले हैं।

उरैयूर
 यह सतू ी वस्त्र उद्योग का सबसे बडा कें द्र र्ा, जो
तक चोलों की समृतद्ध का सबसे बडा कारण र्ा।

चेर बंदरगाह
1. मि
ु रर ( मजु रीस)
2. करौरा
3. वािंतज
4. बन्दर
5. तोडडी
 यह सभी पतिमी तट पर तस्र्त चेरों के बिंदरगाह
र्े।
 मि ु रर बदिं रगाह से यवन सोना भर कर लाते र्े,
और भारत से गोल तमचथ लेकर जाते र्े, यहािं से
आगस्तस मिंतदर भी तमला है,

पाण्ड्य बंदरगाह
 1 कोकथ ई (पवू ी तट)
 2. िातलयरू ( पवू ी तट)
 3. नेलतसडडा (पतिमी तट)
 कोकथ ई बदिं रगाह पाडड्य का सबसे महत्वपणू थ
बिंदरगाह र्ा।

45
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
धाभर्मक आन्दोलन

छठी िताब्दी ई.प.ू गिंगा के मैदानों में अनेक जैन और बौद्ध धर्म के अभिररर्कि छठी शिाब्दी
धातमथक सप्रिं दायों का उदय हुआ, इसी समय ई.प.ू के अन्य र्हत्िपर्
ू म सप्रं दाय :-
तवश्व के अनेक देिों में भी बौतद्धक आिंदोलन के
प्रमाण तमलते है जैसे ईरान में जरथ्रष्ु ट, चीन में (1) पूरर् कश्यप:-
कन्फ्यतू ियस इत्यातद। र्ि :- घोर अतक्रयावादी या अकमथवादी
 इनका मानना र्ा तक कमथ का व्यतक्त पर कोई
उद्भि का कारर्:- प्रभाव नहीं पडता है क्योंतक न तो कमथ होता है,
(1) वैतदक धमथ कमथकाडड और लगातार पष्ु ट हो न ही पनु थजन्म।
रही वणथव्यवस्र्ा के तवरोध में धमथ सधु ार  इन्होंने श्रावस्ती में जल समातध ली र्ी।
आिंदोलन प्रारिंभ हुआ।
(2) लोहे के आतवष्कार के कारण कृ तष में क्रािंतत (2) र्र्कखभलगोशाल:-
आई, कृ तष में सवाथतधक आवश्यकता पिओ ु िं की  र्ि:- तनयततवादी या भाग्यवादी
होती र्ी, इसके तवपरीत वैतदक कमथकािंड में पिु
 सस्ं थापक:- आजीवक सप्रिं दाय
मारे जाते र्े, अत: वैतदक कमथकािंड खेती की
 ये लोग तनयततवादी र्े इसतलये कमथ पर तवश्वास
प्रगतत में बाधक तसद्ध हुए, इसी कारण जनता ने
नहीं करते र्े।
इन अतहसिं ावादी आिंदोलनों को समर्थन तदया।
(3) ब्राह्मणों की श्रेष्ठता के तवरुद्ध क्षत्रीयों का  यह नालिंदा में महावीर स्वामी से तमले और उनके
खडा होना भी धमथ सधु ार आदिं ोलनों का एक बडा सार् लगातार छ: वषथ तप भी तकया, लेतकन उनसे
कारण बना तववाद हो जाने के कारण इन्होनें उनका सार् छोड
तदया, और आजीवक सिंप्रदाय की िरुु आत की
 कुल तमलाकर उस समय समाज एक सिंक्रमण
लेतकन यही मक्खतलगोिाल महावीर की
काल से गजु र रहा र्ा और इसी सिंक्रमण काल
ज्ञानप्रातत के पहले उनके तिष्य र्े, लेतकन बाद में
की कोख से जैन और बौद्ध धमथ का उद्भव हुआ।
इन दोनों के बीच कई बार सिंघषथ हुआ तजसकी
पतु ष्ट कई बौद्ध और जैन ग्रिंर् करते हैं, जैन ग्रिंर्
तो यहािं तक भी तलखते हैं तक इनकी मृत्यु
महावीर स्वामी की मत्रिं ितक्त के कारण हुई।
 मक्खतलगोिाल ने खदु को तीर्ंकर घोतषत कर
तलया र्ा।

46
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
 कौिल का राजा प्रसेनजीत आजीवक सिंप्रदाय  सारीपत्रु एविं महामोगलान बौद्ध सिंघ में जडु ने से
का सरिं क्षक र्ा, अिोक एविं दिरर् ने आजीवकों पवू थ इन्हीं के तिष्य र्े।
को गफ ु ायें दान दी र्ीं।
 गौतम बद्ध ु मक्खतलगोिाल को अपना सबसे (6) लोकायि :-
बडा ित्रु मानते र्े।  इस सिंप्रदाय के सिंस्र्ापक ब्रहस्पतत र्े, लेतकन
 आजीवक तदन में एकबार भोजन करते र्े वह भी इस मत के प्रमुख प्रततपादक चावाथक र्े, जो
तसफथ हर्ेली पर। भौततकवादी दिथन के प्रमख ु प्रवतथक भी र्े।
 आजीवकों ने अतहसिं ा पर बल तदया, लेतकन पि-ु  यह दिथन मोक्ष, ब्रह्मा, ईश्वर इत्यातद का तवरोधी
हत्या पर तविेष रोक नहीं लगाई, क्योंतक वे है, यह तसफथ उन्हीं को स्वीकार करते हैं तजनका
मािंसाहारी भोजन भी करते र्े। अनभु व मानव की इतिं द्रयों द्वारा तकया जा सके ।

(3) अभजिके सकम्बभलन:-


 र्ि:- भौततकवादी या उच्छे दवादी
 इनके अनसु ार पाप पडु य सत्य असत्य सब झठू है,
क्योंतक मृत्यु के बाद कुछ नहीं होता, इसतलये
अपने आनन्द के तलये जो इच्छा हो वही करना
चातहए।
 इस प्रकार इनका मत लोकायत अर्वा चावाथक
दिथन के बहुत करीब है।

(4) पकुधकच्चायन:-
 र्ि:- तनयततवादी
 यह मत भी भौततकवादी र्ा, इनका कहना र्ा तक
सिंसार में न कोई तकसी को मारता है, और न कोई
मारा जाता है।

(5) संजयिेलरिपुत्ि :-
 र्ि:- सिंदहे वादी ( अतनतियवादी)

47
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
जैन धर्म  24 वें तीर्ंकर महावीर स्वामी को जैन धमथ को
सगिं तठत करने, तवकतसत करने एविं जैन आन्दोलन
जैन िब्द सिंस्कृ त के ‘तजन’ िब्द से बना है के प्रवतथक का श्रेय तदया जाता है।
तजसका अर्थ ‘तवजेता’ होता है, महावीर से पहले
जैन धमथ, तनग्रंर् मत कहलाता र्ा, अिोक के ऋषिदेि/आभदनाथ
अतभलेख में भी जैन धमथ हेतु तनग्रंर् िब्द तमलता  ये जैन धमथ के प्रवतथक एविं प्रर्म तीर्ंकर र्े।
है।  ऋग्वेद में इनका उल्लेख अयोध्या के िासक के
जैन धर्म के अन्य नार् :- रूप में तमलता है। यजवु ेद में ऋषभदेव को धमथ
 यातपनीय प्रवतथकों में श्रेष्ठ कहा गया है।
 कुरुचक  भगवत गीता में ऋषभदेव को भारत के लोगों को
 श्वेतपट सभ्यता का पाठ पढाने वाला कहा गया है।
 तनग्रंर्  भरत एविं बाहुबली (गोमतेश्वर/गोम्मट) को इनका
पत्रु बताया गया है।
िीथंकर :-  इन्हें के िरीयानार् भी कहा जाता है।
 तीर्थ का िातब्दक अर्थ उन तनयमों एविं  भागवतपरु ाण में ऋषभदेव को नारायण तवष्णु का
उपतनयमों से है जो मनष्ु य को इस भव-सागर से अवतार माना गया है।
पार उतार दे, जबतक कर का अर्थ करनेवाला या  अर्वथवेद एविं गोपर् ब्राह्मण में उतल्लतखत स्वयिं
बनाने वाला है। भक ू श्यप का तादाम्य ऋषभदेव से लगाया जाता
 जैन धमथ के प्रर्म तीर्ंकर ऋषभदेव/ आतदनार् है।
र्े। इन्हें ही जैन धमथ की स्र्ापना का श्रेय जाता  इनका जन्म अयोध्या में हुआ र्ा एविं मृत्यु का
है। स्र्ान कै लाि पवथत बताया गया है।
 ऋषभदेव एविं अररिनेतम का उल्लेख ऋग्वेद मे
तमलता है। अभजिनाथ
 जैन धमथ में कुल 24 तीर्ंकर हुए र्े तजनमे प्रर्म  ये जैन धमथ के दसू रे तीर्ंकर र्े, इनका जन्म
22 तीर्ंकरों की ऐततहातसकता सिंतदग्ध है। 23 वें अयोध्या में बताया जाता है।
तीर्ंकर पाश्वथनार् एविं 24 वें तीर्ंकर महावीर  इनका उल्लेख यजुवेद में तमलता है।
स्वामी र्े।

48
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
र्भल्लनाथ  जैकोबी ने पाश्वथनार् को जैन धमथ का वास्ततवक
 ये जैन धमथ के 19 वें तीर्ंकर र्े। इनका प्रतीक सस्िं र्ापक माना है।
तचन्ह कलि र्ा।  इन्होंने सम्मेद तिखर पर 83 तदन कठोर तप तकया
 श्वेताम्बरों में मान्यता है तक मतल्लनार् मतहला 84 वें तदन इन्हें ज्ञान प्राप्त हुई, ज्ञान प्राप्त करने के
पररव्रातजका र्ीं, वही तदग्म्बरों की मान्यता र्ी तक बाद ये तनग्रथन्र् कहलाए, सम्मेद तिखर को अब
मतहला तीर्ंकर नहीं हो सकती इसतलए वे पुरूष पारसनार् पवथत नाम से जाना जाता है।
र्े।  इनकी प्रर्म अनयु ायी इनकी माोँ वामा और दसू री
अनयु ायी इनकी पत्नी प्रभावती र्ीं, इसके बाद
नेभर्नाथ इनके अनयु ायी गािंगेय, कालासवेतसय और
 ये जैन धमथ के 21 वें तीर्ंकर र्े। इनको तमतर्ला पष्ु पचल ु ा हुई।िं
के राजा जनक का पवू थज बताया गया है।  पष्ु पचल ु ा, पाश्वथनार् के तभक्षणु ी सिंघ की अध्यक्ष
 जैन धमथ में तनष्काम एविं अनासतक्तभाव इन्होंने ही र्ीं।
जोडा र्ा।  इनका सवथश्रेष्ठ अनयु ायी आयथदत्त र्ा, महावीर
स्वामी के माता- तपता भी पाश्वथनार् के अनयु ायी
र्े।
नेर्ी/ अररष्टनेभर्  पाश्वथनार् को सम्मेद पवथत तिखर पर तनवाथण की
 ये जैन धमथ के 22 वें तीर्ंकर र्े। इनका उल्लेख प्रातप्त हुई, पाश्वथनार् ने 73 तिष्यों के सार् तनवाथण
महाभारत में तमलता है। प्राप्त तकया र्ा।
 महाभारत के अनसु ार, ये यादवु विंिी वासदु वे श्री
कृ ष्ण के चचेरे भाई र्ें। (कृ ष्ण के समकालीन र्े।) पार्श्मनाथ का चिुयामर्/चाउज्जार् भसद्धांि –
पाश्वथनार् के चतयु ाथम तसद्धातिं में-
पार्श्मनाथ 1. अपररग्रह (सिंपतत्त का सिंग्रह न करना)
 उपातधयाोँ- परुु षादनीयम (महान परू ु ष), तनग्रथन्र्, 2. अतहसिं ा
कोतटसादाणीय 3. सत्य (सदा सत्य बोलना) / अमृषा (झठू न
 ये बनारस के राजा अश्वसेन के पत्रु र्े। इनकी माता बोलना)
का नाम वामा र्ा, अनकी पत्नी प्रभावती 4. अस्तेय (चोरी न करना) सतम्मतलत है।
अयोध्या अचिं ल के कुिस्र्ल की राजकुमारी र्ी।
 ये जैन धमथ के 23 वें तीर्ंकर र्े। इनका प्रतीक  महावीर स्वामी ने जैनधमथ का पािंचवािं तसद्धािंत
तचह् सपथ र्ा। ब्रह्मचयथ जोडा। पाच
िं वे तसद्धातिं के बाद इसे
पिंचतसतक्खन कहा गया।

49
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
र्हािीर स्िार्ी  नालिंदा में महावीर स्वामी की भेंट
 जन्म- 540 ई. प.ू में वैिाली के तनकट किंु डग्राम मक्खतलपत्तु गोिाल से हुई र्ी। प्रारिंभ में वह
में महावीर स्वामी का तिष्य बन गया र्ा तकन्तु 6
 महावीर स्वमी का कुल ज्ञातृक, गोत्र कश्यप, विंि वषथ बाद महावीर स्वामी का सार् छोडकर
इक्ष्वाकु एविं प्रतीक तचह् तसिंह र्ा। आजीवक नामक सिंम्प्रदाय की स्र्ापना की।
 भपिा- तसद्धार्थ (अन्य नाम – श्रेयािंस)  जैन ग्रिंर् आचारािंग सत्रू में उनकी कठोर तपस्या
 महावीर स्वामी के तपता वतज्ज सिंघ के 8 का वणथन तमलता है।
गणराज्यों में िातमल एक गणराज्य ज्ञातृक क्षतत्रय  महावीर स्वामी को 42 वषथ की अवस्र्ा में
कुल के प्रधान र्े। जृतम्भक ग्राम के समीप ऋजपु ातलका नदी
 र्ािा- तत्रिला (अन्य नाम- तप्रयकाररणी एविं (बराबर नदी ) के तट पर समगा गृहस्र् के
तवदेहदत्ता) खतलहान में िाल वृक्ष के नीचे ज्ञान की प्रातप्त हुई
 महावीर स्वामी की माता तलतच्छवी नरे ि चेटक र्ी।
की बहन र्ी।
ज्ञान प्राभप्त के बाद र्हािीर स्िार्ी को भनम्न
 पत्नी- यिोदा(कुडडीनय गोत्र)
नार्ों से िी पुकारा गया :-
 िाई- नतन्दवधथन
 बहन-सदु िथना 1. के िभलन:- सवोच्च ज्ञान तमलने के कारण
 पुरी- तप्रयदिथना या अणौज्जा (इनका तववाह
जमातल से हुआ र्ा।) 2. भजन:- इतिं द्रयों को जीतने के कारण
 महावीर स्वामी के बचपन का नाम वधथमान र्ा।
 महावीर स्वामी ने 30 वषथ की अवस्र्ा में अपने 3. र्हािीर:- कतठन तपस्या करने के कारण
बडे भाई नतन्दवधथन से आज्ञा लेकर गृहत्याग
तकया र्ा। 4. अहमि:- पज्ू य होने के कारण
 महावीर स्वामी षडवन नाम उद्यान में अिोक
वृक्ष के नीचे अपने सभी अलिंकार उतार कर तभक्षु 5. भनग्रमन्थ:- बिंधन रतहत होने के कारण
बने र्े।
 महावीर स्वामी ने गृहत्याग के 13 वें महीने में 6. र्हान शूर:- ज्ञान के माध्यम से सख
ु -दख
ु पर
स्वणथबालक तवजय पा लेने के कारण।
ु ा नदी के तट पर अपने वस्त्रों का
त्याग तकया र्ा।

50
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
 महावीर स्वामी ने प्रर्म उपदेि राजगृह में  सत्य सदा सत्य बोलना
तवतल ु ाचल/ तवपल ु ाचल पहाडी पर बराकर नदी  अपररग्रह सिंपतत्त एकतत्रत न करना
के तट पर तदया र्ा। यह घटना वीर िायन उदय  अस्तेय चोरी न करना
के रूप में जानी जाती है।  ब्रहमचयथ स्त्री के सिंपकथ में न रहना (महावीर स्वामी
 महावीर स्वामी ने अपने उपदेि अद्धथ-मागधी द्वारा जोडा गया र्ा।)
भाषा में तदए र्े, महावीर स्वामी ने 30 वषों तक
जैन धमथ का प्रचार तकया र्ा। जैन धर्म का भररत्न-
 महावीर स्वामी का प्रर्म तिष्य उनका भाजिं ा एविं 1.सम्यक ज्ञान
दामाद जमातल र्ा, जमातल, महावीर स्वामी की 2.सम्यक दिथन
बहन सदु िथना का पत्रु र्ा तर्ा महावीर स्वामी 3. सम्यक चररत्र
की पत्रु ी तप्रयदिथना (अणौज्जा) का पतत र्ा।
 महावीर स्वामी प्रर्म तवरोधी भी जमातल र्ा एविं (1) सम्यक ज्ञान:-
तद्वतीय तवरोधी ततसगप्तु र्ा। इस तत्ररत्न के पािंच प्रकार हैं-
 महावीर स्वामी का प्रर्म वषाथवास अतस्तकाग्राम (A) मतत ज्ञान:- इद्रिं ीयों द्वारा प्राप्त
में हुआ र्ा। महावीर स्वामी का प्रर्म तिष्य (B) श्रतु त ज्ञान:- सनु कर प्राप्त तकया गया।
जमातल र्ा एविं प्रर्म गणधर इद्रिं भतू त गौतम (C) मन: प्रायाथय:- दसू रे के मन की बात जान लेना
स्वामी र्ा। (D) अवतध ज्ञान :- तदव्य या अलौतकक ज्ञान
 महावीर स्वामी का अतिं तम वषाथवास पावापरु ी में (E) कै वल्य ज्ञान:- सवोच्च एविं पणू थ ज्ञान जो के वल
हुआ र्ा। तीर्ंकर को ही प्राप्त होगा।
 महावीर स्वामी की प्रर्म तिष्या चिंपा नरे ि
दतधवाहन की पत्रु ी चन्दना र्ी, यही महावीर (2) सम्यक दशमन:-
स्वामी के तभक्षणु ी सघिं की प्रमख इसके सात प्रकार हैं
ु र्ी।
(1) जीि- जैन धमथ के अनसु ार जीव चेतनरुपी एविं
 र्ृत्य:ु - महावीर स्वामी की मृत्यु 72 वषथ की
ज्ञानयक्त
ु है, परन्तु जीव का अपना कोई स्वरुप नहीं
अवस्र्ा में दीपावली के तदन पावापरु ी में मल्ल
होता है। जीव में तवद्यमान आत्मा स्वाभातवक रूप से
राज्य के िासक सतस्तपाल के राजप्रसाद में
सवथितक्तमान एविं सवथज्ञाता होती है।
आत्मउपवास से हुई र्ी।

(2) अजीि- यह जडरुपी एविं ज्ञानरतहत होता है,


जैन धर्म के पााँच र्हाव्रिः
इसके पाोँच भेद हैं- पदु गल, धमथ, अधमथ, आकाि,
 अतहसिं ा तकसी जीव के सार् तहिंसा न करना
काल। यहाोँ पदु गल का अर्थ ऐसे तत्व से हैं तजसका

51
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
तवभाजन तकया जा सकता है, यह एक प्रकार का कमथ (3) सम्यक चररर:-
पदार्थ है। तत्ररत्नों में सवाथतधक बल सम्यक चररत्र पर तदया गया
है।
(3) आस्रि - अज्ञानता के कारण कमथ जीव की ओर
आकतषथत होने लगते है, यह तस्र्तत आस्त्रव कहलाती जैन धर्म के चार भशक्षा व्रिः
है।  गृहस्र्ों के तलए आवश्यक :-
(4) बन्धन- कमथ का जीव के सार् सिंयक्त
ु हो जाना ही (1) देशभिरभि- तकसी देि/प्रदेि की सीमा से आगे
बन्धन कहलाता है, जब जीव (आत्मा) में कमथ घल ु न जाना
तमल जाते है, तो आत्मा एक प्रकार का रिंग उत्पन्न
करती है, यह रिंग लेश्य कहा जाता है। लेश्य 6 रिंगों का (2) सार्भयक व्रि- तदन में तीन बार ध्यान लगाना
होता है, काला, नीला, धसू र- बरु े चररत्र का सचू क,
पीला, लाल, सफे द- अच्छे चररत्र का सचू क (3) प्रोपोद्योपिास- उपवास करना

(5) सिं र- तत्ररत्नों (सम्यक ज्ञान, सम्यक दिथन एविं (4) िैया व्रि- दान देना एविं पजू ा करना
सम्यक चररत्र) के अनसु ारण से कमों का जीव की ओर कायार्कलेश:-
बहाव रुक जाता है। यह तस्र्तत सिंवर कहलाती है।  इसके अिंतगथत उपवास के द्वारा आत्महत्या का
तवधान है।
(6) भनजमरा- तत्ररत्न के अनसु रण से कमों का जीव की  इस पद्धतत को सल िं ेखना पद्धतत या तनतषद्धी भी
ओर बहाव रुक जाता है। तजससे नए कमों का सिंचय कहा जाता है।
नहीं होता तर्ा तपछले व्याप्त कमथ समाप्त होने लगते
 जैन ग्रिंर्ों के अनसु ार चद्रिं गप्ु त मौयथ ने
है। यह तस्र्तत तनजथरा कहलाती है।
श्रवणबेलगोला (मैसरू ) में इसी पद्धतत से प्राण
त्यागे र्े।
(7) र्ोक्ष/ भनिामर्-
 पतिमी गगिं वि िं के राजा नीततमागाथ (870 ईस्वी)
जब जीव के कमों का अविेष पणू थतः समाप्त हो जाता
ने भी सिंलेखना द्वारा प्राण त्यागे र्े।
है। तब उसे मोक्ष की प्रातप्त होती है। इस प्रकार, जैन
धमथ में कमथ का जीव से तवयोग ही मोक्ष कहा गया है।
मोक्ष के पिात जीव पनु जथन्म के चक्र से मक्त
ु हो जाता
जैन धर्म की र्ान्यिाए-ं
है तर्ा अनतिं चतिु य (अनिंत ज्ञान, अनतिं दिथन, अनतिं
वीयथ/ऊजाथ का अनिंत सख ु ) की प्रातप्त कर लेता है।  आतहसिं ा पर तविेष बल तदया गया है, इसी कारण
कृ तष कायों एविं यद्ध
ु में भाग लेने पर भी प्रततबिंध
लगाया गया है

52
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
 जैन धमथ पनु जथनम एविं कमथ में तवश्वास करता है, अनसु ार, तनवाथण का अर्थ जीव के भौततक अिंि/
जैन धमथ आठ प्रकार के कमथ मानता है। कमथ का नाि है, जैन धमथ के अनसु ार कमथफलों
 जैन धमथ मनष्ु य को स्वयिं अपना भाग्य तवधाता का तनरोध करके ही तनवाथण सिंभव है।
मानता है, जैन धमथ के अनुसार मनष्ु य की मृत्यु  जैन दिथन तहन्दू सािंख्य दिथन के अतधक तनकट
एविं पनु जथन्म का कारण कमथ है। है।
 जैन धमथ के अनसु ार कमथ का जीव से तवयोग ही  जैन धमथ के अनसु ार, इस सृति का तनमाथण जीव
मोक्ष है। एविं अजीव के सयिं ोग से हुआ है, इसमें जीव को
 जैन धमथ के अनसु ार सृति का तनमाथण ईश्वर ने नहीं चेतनायक्त
ु एविं अजर- अमर माना गया है, जैन
तकया अतपतु सृति का तनमाथण जीव एविं अजीव धमथ के अनसु ार जीव में दो तत्व सदैव तवद्यमान
के सिंयोग से हुआ है, जैन धमथ के अनसु ार सृति रहते है, आत्मा एविं भौततक तत्व।
तनत्य एविं िास्वत है।  जैन धमथ का मल ू दिथन अनेकातिं वाद स्यादवाद
 जैन धमथ सिंसार की वास्ततवकता को स्वीकार एविं अनीश्वरवाद है।
करता है, जैन धमथ के अनसु ार, ससिं ार
वास्ततवकता एविं सत्य है। स्यादिाद/ अनेकान्ििाद का भसद्धांि-
 जैन धमथ में वणथव्यवस्र्ा की तनिंदा नहीं की गयी।  यह तसद्धान्त जैन धमथ की आधारतिला है इसके
 जैन धमथ ईश्वर एविं वेदों की सत्ता को स्वीकार नहीं अनसु ार तत्व ज्ञान को पृर्क- पृर्क दृतिकोण से
करता। देखा जाता है।
 जैन धमथ ईश्वर में तवश्वास नहीं करता न ही ईश्वर  क्योंतक प्रत्येक काल में जीव का ज्ञान एक नहीं
को सृति का तनमाथणकताथ मानता है और न ही हो सकता। ज्ञान की तवतभन्नताएिं सात प्रकार से
तनयनता, जैन धमथ के अनसु ार सृति आतदकाल से हो सकती है। यहाोँ स्याद का अर्थ सभिं ावना से
चलती आ रही है, और अनिंत काल तक चलती होता है।
रहेगी, जैन धमथ के अनसु रा, सृति िास्वत तनयम  जीव, एक काल में सत्य के के वल एक ही स्वरुप
के आधार पर कायथ करती है। को देख पाता है उसी से पणू थ सत्य की धारणा बना
 जैन धमथ आत्मा के अतस्तत्व एविं मोक्ष की लेता है। जबतक सत्य के अनेक स्वरूप होते है,
अवधारणा को स्वीकार करता है। सत्य/ज्ञान के इन्हीं स्वरूपों को सात क्रतमक
तसद्धान्त कहलाता है।
जैन धर्म का दशमन  इस तसद्धान्त को वास्ततवकता की बहुलता का
 अन्य दिथनो की भािंतत जैन दिथन का भी अिंततम तसद्धान्त एविं ज्ञान की सापेक्षता भी कहते है।
लक्ष्य तनवाथण प्रातप्त (मोक्ष) ही है। जैन दिथन के

53
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
 इस तसद्धािंत के अनसु ार दृतिकोण की तभन्नता के सघं की सरं चना-
कारण हर ज्ञान सात तवतभन्न स्वरुपों में व्यक्त िीथंकर अििार पुरुष
तकया जाता सकता है ये सात तवतभन्न स्वरूप अहंत जो तनवाथण के बहुत करीब र्े
तनम्नतलतखत है- आचायथ जैन सन्यासी समहू का प्रधान
 स्याि् अभस्ि- िायद है उपाध्यक्ष जैन धमथ के अध्यापक/ सिंत
 स्याि् नाभस्ि- िायद नहीं है। तभक्ष-ु सन्िं यास जीवन व्यतीत करने वाले
तभक्षणु ी
 स्याि् अभस्ि च नभस्ि- िायद है और नहीं है।
श्रावक- गृहस्र् होकर भी सिंघ के सदस्य
 स्याि् अव्यक्तन- िायद कहा नहीं जा सकता
श्रातवका
 स्याि् अभस्ि च अव्यक्तन- िायद है तकन्तु कहा
तनष्क्रमण जैन सिंघ में प्रवेि के तलए एक
नहीं जा सकता
तवतध सिंस्कार
 स्याि् नाभस्ि च अव्यक्तन- िायद नहीं हैं और
कहा नहीं जा सकता
 महावीर स्वामी की मृत्यु के बाद जैन सिंघ का
 स्याि् अभस्ि च नभस्ि च अियक्तन च – पहला अध्यक्ष सधु मथन बना र्ा। सधु मथन की मृत्यु
िायद है, िायद नहीं है और कहा नहीं जा सकता के बाद जैन सिंघ का अध्यक्ष जम्बस्ू वामी बना र्ा।

जैन संघ- र्हािीर स्िार्ी के गर्धर


 महावीर स्वामी ने पावापरु ी में जैन सिंघ की  महावीर स्वामी ने अपने 11 अनयु ातययों के एक
स्र्ापना की र्ी। सिंघ की स्र्ापना की र्ी तजन्हें गणधर कहा जाता
 जैन सघिं के अध्यक्ष क्रमिः महावीर स्वामी – र्ा इन्हें अलग अलग समहू ों का अध्यक्ष बनाया
सधु मथन/ सधु मथना – जम्बस्ू वामी (अिंततम गया।
के वतलन)
 जैन मठ को बसतद कहते हैं।  इन गर्धरों के नार्- इद्रिं भतू म (पहले गणधर)
अतग्नभतू त, वायभु तू त, व्यक्त, सधु मथन (सधु माथ),
मिंतडत, मोररयपत्रु , अिंकतपत, अचलभ्राता, मेतायथ
एविं प्रभाष र्ा।
 इद्रिं भतू त गौतम एविं सधु मथन (सुधमाथ) को छोडकर
अन्य सभी गणधरों की मृत्यु महावीर स्वामी के
जीवनकाल में हो गयी र्ी जबतक इद्रिं भतू त गौतम,

54
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
महावीर स्वामी के तनवाथण के तदन ही के वतलन (2) भद्विीय जैन सगं ीभि-
हुए र्े।  यह छठी िताब्दी ई. में गजु रात के वल्लभी में
 महावीर स्वामी की मृत्यु के बाद के वल एक आयोतजत की गयी र्ी।
गणधर सधु मथन ही जीतवत बचा र्ा।  इसका अध्यक्ष देवऋतषगतण (क्षमाश्रमण) र्ा।
इसी सिंगीतत में जैन सातहत्य (आगामों का अिंततम रूप
शलाका परुु ष- से सिंकलन कर उन्हें तलतपबद्ध तकया गया र्ा।)
 जैन धमथ में कुल 63 तविेष िलाका परुु ष (महान
परुु ष) की मान्यता है। इनमें 24 तीर्ंकर, 12 जैन िीथंकर के प्रिीक भचन्ह
चक्रवती, 9 बलभद्र, 9 नारायण एविं 9 क्रर्ांक िीथंकर नार् प्रिीक
प्रततनारायण सतम्मतलत हैं। भचह्न
प्रर्म ऋषभदेव/आतदनार् वृषभ/बैल
तद्वतीय अतजतनार् गज/हार्ी
तृतीय सम्भनार् अश्व/घोडा
चतर्ु थ अतभनन्दन नार् कतप/बन्दर
जैन संगीभियां पिंचम समु ततनार् क्रौंच
(1) प्रथर् जैन संगीभि- यह चतर्ु थ िताब्दी ई. प.ू 10वें िीतलनार् श्रीवत्स
में, पाटतलपत्रु में आयोतजत की गयी र्ी। इस समय 13 वें तवमलनार् वराह
चन्द्रगप्तु मौयथ मगध का िासक र्ा। 15 वें धमथनार् बज्र
 इसका अध्यक्ष स्र्ल ू भद्र र्ा। 19 वें मतल्लनार् कलि
 इस सभा में जैन धमथ के 12 अिंगों का सवथप्रर्म 21 वें नेतमनार् नीलोत्पल /
सिंकल्न हुआ र्ा। इसी सभा में जैन धमथ श्वेतािंबर नीलकमल
एविं तदगम्िं बर नामक दो सम्प्रदायों में तवभातजत हो 22 वें अररिनेतम िख िं
गया र्ा। 23 वें पाश्वथनार् सपथफण
नोट- चौर्ी-पािंचवी ितातब्दयों में मर्रु ा एविं 24 वें महावीर स्वामी तसहिं / िेर
वल्लभी में दो जैन सभाएिं बुलायी गयी र्ी मर्रु ा
में आयोतजत जैन सभा की अध्यक्षता खातन्डल्य
ने की र्ी एविं वल्लभी में आयोतजत जैन सभा की
अध्यक्षता नागाजथनु ने की र्ी।

55
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
जैन धर्म के सम्प्रदाय- र्श्ेिाम्बरों के उप- सम्प्रदाय-
 तदगम्बर, श्वेताम्बर, यापनीय, श्वेतपत्त, अद्धथ- (1) पुजेरा/डेरािासी- इन्हें मिंतदरमागी भी कहते हैं। ये
स्पाटक एविं कुचकथ जैन धमथ के प्रमख
ु सिंप्रदाय है। जैन तीर्ंकरों की पजू ा करते है।
र्श्ेिाम्बर भदगम्बर (2) स्थानकिासी-
स्र्ल ू भद्र के समर्थक भद्रबाहु के समर्थक ये मतू ी पजू ा नहीं करते।
अनयु ायी अनयु ायी
श्वेत वस्त्र धारण करने वाले वस्त्र ना धारण करने वाले भदगम्बरों के उप-सम्प्रदाय
(नग्न) बीसपथ ं ी – मतिं दर में तीर्थकरों की मतू तथयों के सार्
आगम (जैन ग्रिंर्ों) में आगमों को मान्यता नहीं भैरव की मतू तथयों की भी पजू ा करते है।
तवश्वास करते है। देते िेरा पंथी – ये के वल जैन मतू तथयों की पजू ा करते है।
इनके अनसु ार तस्त्रयािं मोक्ष इनके अनसु ार तस्त्रयों को िारर् पथ ं ी – ये मतू ी पजू ा नहीं करते।
की अतधकारी हैं/ प्राप्त कर तनवाथण/ मोक्ष प्रातप्त सिंभव
सकती है। नहीं यापनीय सम्प्रदाय- यह जैन धमथ का एक सम्प्रदाय
इनके अनसु ार कै वल्य इनके अनसु ार कै वल्य के है जो श्वेताम्बरों एविं तदगम्बरों दोनों की मान्यताओ िं का
(ज्ञान प्रातप्त) के बाद भी बाद भोजन की पालन करता है। श्री कलि ने कल्याणगढ़ में यापनीय
भोजन की आवश्यकता आवश्यकता नहीं होती समप्रदाय की नींव डाली र्ी।
होती है। पंचस्िूप भनकाय :-
इनके अनसु ार महावीर इनके अनसु ार महावीर यह भी जैन धमथ का एक उप सप्रिं दाय र्ा जो तक
स्वामी तववातहत र्े। स्वामी अतववातहत र्े वाराणसी एविं मर्रु ा में फै ला हुआ र्ा, आतद परु ाण के
इनके अनसु ार 19 वें 19 वें तीर्ंकर मतल्लनार् लेखक तजनसेन इसी सिंप्रदाय के अनयु ायी र्े।
तीर्ंकर मतल्लनार् एक स्त्री परुु ष र्े
र्ी जैन धर्म के प्रर्ुख स्थल
इनके अनसु ार मोक्ष प्रातप्त इनके अनसु ार मोक्ष प्रातप्त  अयोध्या- जैन धमथ के प्रर्म तीर्ंकर ऋषभदेव
के तलए वस्त्र त्याग के तलए वस्त्र त्याग यहीं के र्े।
आवश्यक नहीं आवश्यक है।  सम्र्ेद भशखर- यहाोँ पाश्वथनार् को तनवाथण प्राप्त
यह सम्प्रदाय सचेलकत्व यह सम्प्रदाय हुआ र्ा।
(वस्त्र सतहत) कहलाता है। अचेलकत्व(वस्त्र रतहत)  पािापुरी- यहाोँ महावीर स्वामी को तनवाथण प्राप्त
कहलाता है। हुआ र्ा।
 कै लाश पिमि – यहाोँ ऋषभदेव को तनवाथण प्राप्त
हुआ र्ा।

56
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
 श्रिर्बेलगोला- यहाोँ चामिंडु राय ने गौमतेश्वर  अकबर के दरबार में हररतवजय सरू र एविं तजनचन्द्र
बाहुबली की तविाल प्रततमा का तनमाथण सरू र जैसे जैन तवद्वान र्े। अकबर ने हररतवजय को
करवाया र्ा। जगतगरुु एविं तजनचन्द्र को यगु प्रधान की उपातध
 र्ाउंट आबू- यहाोँ सफे द सिंगमरमर से बने दी र्ी।
तदलवाडा जैन मिंतदर तस्र्त हैं।  कनाथटक में भद्रबाहु ने अपना उत्तरातधकारी
तविाख को चनु ा र्ा।
जैन धर्म का प्रसार  दतक्षण में जैन तचत्रकला का प्राचीनतम उदाहरण
 तबतम्बसार एविं अजातित्रु महावीर के अनयु ायी तजिं ौर की तसत्तान्नवासल गफ ु ा से प्राप्त होता है।
र्े  जनू ागढ़ के तगरनार की पहातडयों में नेतमनार् का
 वैिाली के तलतच्छवी नरे ि चेटक, चम्पा, नरे ि मिंतदर हैं। तगरनार श्वेताम्बर सम्प्रदाय का प्रमख ु
दतधवाहन महावीर स्वामी के अनयु ायी र्े। कें द्र र्ा।
 जैन धमथ, तलतच्छवी विंि का राजधमथ र्ा।  खजरु ाहो में भी जैन मिंतदर तस्र्त हैं। एलोरा में
 समस्त नन्द िासक जैन धमथ के अनयु ायी र्े। इद्रिं सभा गफ ु ा एविं प्रयाग कौिाम्बी में फमोसा
 चन्द्रगप्तु मौयथ ने अपने जीवन के अिंततम समय में गफ ु ाएिं जैन धमथ की है।
जैन धमथ ग्रहण कर तलया र्ा।
 अिोक के पौत्र सम्पतत्त(जैन अनयु ायी) के समय जैन साभहत्य-
उज्जैन जैन धमथ का प्रमख ु कें द्र एविं मर्रु ा दसू रा  जैतनयों के धातमथक ग्रन्र् प्रारिंभ में अद्धथ- मागधी
कें द्र र्ा। भाषा में तलखे गए।
 खारवेल जैन धमथ का पोषक खारवेल के हार्ी  भद्रबाहु का कल्पसत्रू सस्िं कृ त में तलखा गया है।
गम्ु फा अतभलेख में जैन धमथ में मतू तथपजू ा का  जैन धमथ के प्राचीनतम ग्रर्िं ों को पव्ू व कहा जाता
प्राचीनतम अतभलेखनीय साक्ष्य तमलता है। है इनकी सिंख्या 14 है।
 कुषाणों के समय मर्रु ा जैन धमथ का प्रमख ु कें द्र  जैन सातहत्य को आगम (तसद्धान्त) कहा जाता है
र्ा। ये अद्धथ- मागधी, मागधी, या प्राकृ त भाषा में
 गप्तु काल में जैन धमथ उन्नत अवस्र्ा में र्ा। तलखे गए है इसके अिंतगथत 12 अिंग 12 उपािंग,
 दतक्षण में कदम्ब, पतिमी गगिं एविं राष्रकूट जैन 10 प्रकीणथ, 6 छे द सत्रू , 4 मल
ू सत्रू एविं अनपु योग
मत के पोषक र्े। सत्रू आते है।
 जैन तवद्धान राजिेखर एविं तजन प्रभु सरू र महु म्मद
तबन तगु लक के दरबार में र्े।

57
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
 अंग:- जैन सातहत्य में 12 अिंग का वणथन है (10) प्रकीर्म- इनमें जैन धमथ से सम्बतिं धत तवतध
तजनमें जैनों के तसद्धातिं , तनयमों आतद का तवषयों का वणथन है।
सिंकलन है। (11) छे द सूर- जैन तभक्षु- तभक्षतु णयों के तलए
 12 अिंगों को छोडकर समस्त आगम (जैन तनयमों का सिंकलन
सातहत्य) तद्वतीय जैन सिंगीतत की देन है। (12) र्ूल सूर – जैन धमथ के उपदेि, तभक्षओ ु िं
प्रमख
ु अिंग तनम्नतलतखत है- के तलए तनयमों का सिंकलन
अन्य जैन ग्रंथ-
(1) आचारांग सुत्त- जैन तभक्षओ ु िं द्वारा ग्रंथ भशक्षाएं
अनसु रण तकए जाने वाले तनयमों का वणथन नायाधम्मकहा महावीर स्वामी की तिक्षाएिं
(2) सरू कृदगं - तवतभन्न जैन मतों का वणथन कुवलयमाला उद्दोतन सरू र द्वारा तलतखत (प्राकृ त
(3 ) स्नांग :- जैन धमथ के तवतभन्न तसद्धािंतों का में)
वणथन तकया गया है। स्यादवाद मतल्लसेन दवारा तलतखत
(4) सर्िायांग – इसमें भी जैन धमथ के तवतभन्न मजिं री
तसद्धािंतों का वणथन कल्पसत्रू भद्रबाहु द्वारा तलतखत(सिंस्कृ त
(5) िगििी सूर- महावीर स्वामी एविं ग्रन्र्)
समकालीन जैन मतु नयों की जीवन गार्ाएिं। भारत र्ेरावतल जैन सम्प्रदाय के सिंस्र्ापकों की
के 16 महाजनपदों का उल्लेख, स्वगथ एविं नरक सचू ी
का वणथन भी भगवती सत्रू में ही है। नातद सत्रू एविं जैतनयों के िब्दकोष। इसमें
(6) उिासगदसाओ-ं 10 जैन व्यापाररयों का अनपु योग सत्रू तभक्षओ ु िं के तलए आचरण सिंबिंधी
वणथन तजन्होनें जैन तनयमों का पालन कर मोक्ष बाते सिंकतलत है।
प्राप्त तकया। पररतििपवथन हेमचन्द्र द्वारा तलतखत
(7) अन्िकृदशा—उन जैन तभक्षओ ु िं का वणथन प्रभाकमल प्रभाचन्द्र द्वारा तलतखत
तजन्होंने तपस्या के द्वारा प्राण त्यागे। मातथडड
(8) अनुत्तरोपपाभिक- मोक्ष प्राप्त करने वाले न्यायावतार तसद्धसेन तदवाकर द्वारा तलतखत
जैन मतु नयों का उललेख
(9) उपांग- प्रत्येक अिंग के सार् उपािंग सम्बद्ध हेमचद्रिं जैन, जैन लेखकों में सवथश्रेष्ठ र्ा, प्रारिंभ में वह
हैं। उपािंगों में ब्रह्मण का वणथन, प्रातणयों का चालक्ु य िासक जयतसिंह के दरबार का प्रमख ु
वगीकरण, खगोल तवद्या, काल तवभाजन एविं इततहासकार र्ा, हेमचिंद्र ने राजा कुमारपाल चालक्ु य
मरणोत्तर जीवन का उल्लेख को जैन धमथ में तदतक्षत तकया र्ा।

58
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
बौद्ध धर्म
पत्नी- यिोधरा (िाक्य कुल) अन्य नाम तबम्ब,
 बौद्ध धमथ के सिंस्र्ापक एविं प्रवतथक गौतम बद्ध

(तसद्धार्थ) र्े। गोपा, भदकच्छना

गौिर् बद्ध परु - राहुल (तववाह के 12 वषथ बाद राहुल का


ु का जीिन पररचयः
जन्म हुआ)
उपाभधयाः-
प्रिीक- गभथस्र् होने का प्रतीक गज एविं जन्म का
 िाक्य तसिंह
प्रतीक कमल
 िाक्यमतु न
 एतिया का ज्योततपिंजु बद्ध
ु के जन्र् के सर्य िभिष्‍टिार्ी-
 महावैद्य  कालदेव(देवल), अतति एविं कौतडडल नामक
 तर्ागत ब्राह्मण ने बद्ध
ु के जन्म के समय भतवष्वाणी की
 सवाथर्थतसद्ध र्ी तक यह बालक चक्रवती राजा अर्वा
सन्यासी होगा।
जन्र्- 563 ई. प.ू लतु म्बनी वन (आधतु नक  तसद्धार्थ ने गरू
ु तवश्वातमत्र से वेद एविं उपतनषद की
रुतम्मनदेई) तिक्षा ली र्ी।

बचपन का नार्ः तसद्धार्थ ,गोर: गौतम चार दृश्य भजन्हें देख कर भसद्धाथम भिचभलि
हुए थे।
भपिाः िद्ध
ु ोधन (कतपल वस्तु के िाक्य क्षतत्रय 1. एक वृद्ध व्यतक्त
कुल के िासक) 2. एक रोगग्रस्त व्यतक्त
3. एक मृतक
र्ािाः महामाया (कोलीन गणराज्य की) 4. एक प्रसन्न सन्यासी
 इन चार दृश्यों को देख कर तसद्धार्थ बहुत
पालन पोषर्ः तसद्धार्थ के जन्म के एक सप्ताह तवचतलत हो गए र्े और अपने अिंतमथन में उठ रहे
में ही उनकी माता महामाया की मृत्यु हो गयी र्ी सवालों के जवाब खोज रहे र्े। इसी क्रम में
इस कारण तसद्धार्थ का पालन पोषण उनकी तसद्धार्थ ने गृह त्याग कर सन्िं यास धारण करने का
सौतेली माता (मौसी) महाप्रजापतत गौतमी द्वारा मन बनाया।
तकया गया।

59
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
र्हाभिभनष्‍टक्रर्र्- ये पाचिं ों ब्राह्मण तसद्धार्थ का सार् छोड कर
 तसद्धार्थ ने 29 वषथ की अवस्र्ा में गृह त्याग तकया ऋतषपत्तम (सारनार्) आ गए।
इसे महातभतनष्क्रण कहा गया इसे अश्व द्वारा  इसके बाद तसद्धार्थ ने अश्वत्र् वृक्ष के नीचे
प्रदतिथत तकया गया। समातध लगायी। तसद्धार्थ को वैिाख पतू णथमा के
 तसद्धार्थ से बद्ध ु बनने की यात्रा (तसद्धार्थ की ज्ञान तदन 35 वषथ की आयु में ज्ञान की प्रातप्त हुई।
प्रातप्त यात्रा)-  तपस्यारत बद्ध ु की तपस्या में कामदेव (मार) ने
 गृहत्याग के समय तसद्धार्थ कन्र्क नामक घोडे तवघ्न डाला र्ा तजसके ऊपर बद्ध ु ने तवजय प्राप्त
और छन्दक नामक सारर्ी के सार् गए र्े। की इस घटना को बद्ध ु कला में भतू मस्पिथमद्रु ा के
 अनोमा नदी के तट के अनवु ैया नामक स्र्ान पर रूप में प्रदतिथत तकया गया है।
सारर्ी छन्दक और घोडे कन्र्क को वापस भेज  ज्ञान प्रातप्त के बाद अश्वत्र् वृक्ष बोतध वृक्ष
तसद्धार्थ तपस्वी का वेि धारण कर वैिाली आ कहलाया, तसद्धार्थ बद्ध ु कहलाए एविं उरुवेला
गए। बोधगया कहलाया।
 वैिाली में साख्िं य दिथन के आचायथ  ज्ञान प्रातप्त के बाद बद्ध
ु ने बोधगया में ही दी
आलारकलाम के तिष्य बने और उपदेि ग्रहण बिंजारों तपस्सु और भतल्लक को अपना सेवक
तकए।
 आलारकलाम से तसद्धार्थ ने तप तक्रया, उपतनषदों धर्म चक्र प्रििमन-
की ब्रह्म तवद्या की तिक्षा ली।  गौतम बद्ध ु को ज्ञान प्रातप्त के बाद प्रर्म उपदेि
 तसद्धार्थ, वैिाली से राजगृह आए यहाोँ उद्रक एविं दीक्षा देने की घटना को धमथचक्रप्रवतथन कहा
रामपत्रु के आश्रम पहुचोँ े यहाोँ उन्होंने योग का ज्ञान जाता है।
प्राप्त तकया।  बद्ध
ु ने ऋतषपतनम के मृगदाव (सारनार्) में पाोँच
 राजगृह से गया में तनरिंजना नदी के तट पर तस्र्त ब्राह्मणों (जो बद्ध
ु को छोडकर गए र्े।) को पहला
उरुवेला आए। उरुवेला में 5 ब्राह्मण सातर्यों धमोपदेि देकर धमथचक्र प्रवतथन तकया। इसकों
आजिं , अस्सतज, भतद्धय, कौतडडन्य एविं वप्प के बौद्ध कला में मृग सतहत चक्र द्वारा प्रदतिथत तकया
सार् कठोर तप तकया। (इस घटना को बौद्ध कला जाता है। प्रर्म उपदेि में ही बद्ध ु ने चार आयथ
में पाोँच हसिं ों को दाना चगु ते हुए प्रदतिथत तकया सत्यों को बताया र्ा।
गया है।)
 उरुवेला में ही तपस्यारत तसद्धार्थ ने सजु ाता बुद्ध की धर्मचक्र प्रििमन यारा-
नामक कन्या से आहार ग्रहण कर तलया इस बात सारनाथ-
से पािंचों सातर्यों से बद्ध
ु का मतभेद हो गया और  बद्ध
ु ने अपना प्रर्म उपदेि सारनार् में तदया र्ा
यह घटना धमथचक्रप्रवतथन कहलायी।

60
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
 कतपलवस्तु राज- पररवार के सभी स्त्री परू
ु षों ने
िारार्सी- बद्ध
ु से दीक्षा ग्रहण की।
 यि नामक श्रेतष्ठ पत्रु ने अपने पररवार सतहत 50
लोगों के सार् प्रवज्या ग्रहण की। यि की माता अनभु पय-
एविं पत्नी बद्ध
ु की प्रर्म उपातसकाएिं बनी  यहाोँ राजा भतद्रक के नेतत्ृ व में आए आनिंद,
उपातल, अतनरुद्ध एविं देवदत्त को अपना तिष्य
सारनाथ- बनाया।
 ज्ञान प्रातप्त के बाद बद्ध
ु का प्रर्म वषाथ काल
सारनार् में ही व्यतीत हुआ। िैशाली-
 यहाोँ के तलतच्छवी राजविंि ने बद्ध ु को
उरूिेला- कुटाग्रिाला तवहार, वैिाली की नगरवधु
 30 धनी यवु कों को उनके नेता भद्र सतहत दीक्षा आम्रपाली ने आम्रवातटका तवहार दान में तदया।
दी तीन जतटल कश्यपों और उनके हजारों
अनयु ातययों को दीक्षा दी। चुनार-
 यहाोँ के िासक बोतधकुमार को तिष्य बनाया।
राजगहृ -
 यहाोँ सारीपत्रु विं मौदगलयान को दीतक्षत तकया कौशम्बी-
तबतम्बसार ने बौद्ध धमथ स्वीकार कर तलया।  यहाोँ का िासक वत्सराज उदयन बौद्ध तभक्षु
 तबतम्बसार का पत्रु अभय भी तिष्य बना तपडडोला भारद्वाज के प्रभाव से बौद्ध बना।
तबतम्बसार न बद्ध ु को वेणवु न तवहार दान में तदया र्थरु ा-
र्ा।  बद्ध
ु ने मर्रु ा के िासक अवतन्तपत्रु को अपना
प्रमख ु तिष्य बनाया। मर्रु ा के बाद क्रमिः
लभु म्बनी- चम्पा- कजिंगल – श्रावस्ती – राजगृह- वैिाली-
 अपने पररवार के लोंगों को उपदेि तदया। इनका कतपलवस्त-ु पावापरु ी- कुिीनगर
चचेरा भाई देवदत्त तिष्य बना।  बद्धु का प्रचार कें द्र तो मगध र्ा तकन्तु सवाथतधक
प्रचार श्रावस्ती में हुआ। बद्ध
ु ने सवाथतधक उपदेि
राजगहृ - श्रावस्ती में तदए र्े।
 व्यापारी सदु ात्त को तिष्य बनाया।  बद्ध ु ने अपने उपदेि पाली भाषा में तदए।

कभपलिस्ि-ु

61
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
 बद्ध
ु ने 45 वषथ बौद्ध धमथ का प्रचार तकया एविं  बद्ध
ु का दाह सिंस्कार रामसिंभार नदी के तट पर
उपदेि तदए। हुआ र्ा।

बुद्ध के िषामिास- अिशेषों के भलए भििाद-


 बद्ध
ु ने एक तनयम बनाया र्ा, तक वह वषथ क आठ  गौतम बद्ध ु के महापररतनवाथण के बाद बद्ध ु की
माह धमथ का प्रचार करें गे, और बाकी के 4 महीनों िरीर धातु के अविेषों के तलए दावेदारों के मध्य
में एक जगह तस्र्र रहकर ध्यान करके वषाथवास तववाद उठा,। बद्ध ु के अविेषों के 8 दावेदार र्े
व्यतीत करें गे। बाद मे द्रोण नामक ब्राह्मण की मध्यस्र्ता से बद्ध

 बद्धु का प्रर्म वषाथवास सारनार् के मलू गन्धकुटी की िरीर धातु को 8 भागों में बाोँट तदया गया।
तवहार में हुआ। िरीर धातु के 8 दावेदार तनम्नतलतखत र्े-
 बद्ध ु का अिंततम वषाथवास वैिाली के वेलवु ग्राम  मगध नरे ि अजातित्रु
तवहार में हुआ।  कतपलवस्तु के िाक्य
 बद्ध ु के सवाथतधक वषाथवास श्रावस्ती में हुए।  वैिाली के तलतच्छवी
 कुिीनारा के मल्ल
र्हापररभनिामर्-  तपप्प्पतलवन के मौयथ
 जीवन के अिंततम समय में बुद्ध पावापरु ी पहुचोँ ।े  वेठद्वीप के ब्राह्मण
यहाोँ चन्ु द नाम के लहु ार के घर रात के भोजन में  रामग्राम के कोतलय
सक ू रमद्यप खाया। तजससे बद्ध ु को अततसार हो
 अलकप्प के बतु ल
गया।
 पावापरु ी से बद्ध
ु कुिीनगर आ गए यहाोँ कुिीनारा बुद्ध के प्रर्ुख भशष्‍टय
के मल्लों के िालवन में अिंततम तवश्राम तकया र्हाकस्सप-
और सभु द्र/ सभु द्द को अपना अतिं तम उपदेि
 पररतनवाथण के समय बद्ध ु ने महाकस्सप को अपना
तदया।
वस्त्र तदया र्ा। प्रर्म बौद्ध सिंगीतत की अध्यक्षता
 483 ई. प.ू में 80 वषथ की अवस्र्ा में वैिाख महाकस्सप ने ही की र्ी।
पतू णथमा के तदन बद्ध
ु को महापररतनवाथण की प्रातप्त
हुई। र्हाकच्चायन-
 बद्ध
ु कला में स्तपू बद्ध
ु के महापररतनवाथण का ही  बद्ध
ु ने अवन्ती (उज्जैन) में बौद्ध धमथ के प्रचार-
प्रतीक स्तपू है। प्रसार के तलए महाकच्चायन को भेजा र्ा।

62
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
अवन्ती के िासक चडिं प्रद्योत को बौद्ध धमथ में सघिं का अध्यक्ष बनने का असफल प्रयास तकया
इन्होंने ही दीतक्षत तकया र्ा। र्ा। इसने बद्ध
ु को मारने के तलए नालातगरर नामक
हार्ी भेजा र्ा।
साररपरु (उपभिष्‍टय)-
 कतपलवस्तु में राहुल को प्रवज्या साररपत्रु ने ही जीिक-
दी र्ी, ये बद्ध
ु को महाश्रद्धालू तिष्य र्े।  इसको बौद्ध सिंघ का आभषू ण कहा जाता र्ा, यह
एक प्रतसद्ध आयवु ेदाचायथ र्ा, इसका आयथवु ेद
र्ौदगल्यान (कोभलि)- का ज्ञान अत्यिंत उच्च कोतट का र्ा, इसीतलये
 साोँची के स्तपू सिंख्या तीन में साररपत्रु एविं तबतम्बसार ने इसको अवतिं त के िासक चडिं प्रद्दोत
मौदगल्यान की अतस्र्याोँ सरु तक्षत हैं। के इलाज के तलए अविंतत (उज्जैन) भेजा र्ा। इण

आनन्द- शद्ध
ु ोधन-
 ये बद्ध
ु का चचेरा भाई र्ा यह बद्ध ु का व्यतक्तगत  ये एक मात्र ऐसे बौद्ध उपासक र्े जो सिंघ की
सेवक र्ा एविं तप्रय तिष्य र्ा आनन्द के अनरु ोध सदस्यता तलए तबना अहथता की तस्र्तत को प्राप्त
पर ही बद्ध
ु सिंघ में मतहलाओ िं के प्रवेि की हुए र्े।
अनमु तत दी गयी र्ी प्रर्म बौद्ध सिंगीतत में आनन्द
को धम्मधर की उपातध दी गयी र्ी। प्रसेनभजि-
 ये कोसल के राजा र्े।
भबभम्बसार-  बद्ध
ु की पहली लाल चन्दन की काष्ठ प्रततमा का
 ये मगध का िासक तर्ा बुद्ध का तमत्र और तनमाथण करवाया र्ा।
सिंरक्षक र्ा। तबतम्बसार और इसकी पत्नी छे मा
बद्ध
ु के तिष्य/तिष्या र्े। अजािशरु-
 यह तबतिं बसार के पत्रु और मगध के िासक र्े।
सुिद्र (सुिद्द)-  प्रारिंभ में यह जैन धमथ का अनयु ायी र्ा तकन्तु
 बद्ध
ु ने अपना अिंततम उपदेि सभु द्द को ही तदया अन्त समय में इसने बौद्ध धमथ स्वीकार कर तलया
र्ा। र्ा।

देिदत्त- अभनरुद्ध-
 ये बद्ध
ु का घोर तवरोधी र्ा तफर भी बद्ध
ु ने इसको  यह एक धनी व्यापारी का पत्रु र्ा बौद्ध बनने के
दीतक्षत तकया र्ा इसने बद्ध
ु के जीवनकाल में ही बाद इसने सब त्याग तदया।

63
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
उपाभल-  आम्रपाली- वैिाली की नगरवध,ु वैिाली की
 ये एक नाई का पत्रु र्ा। गतणका र्ी आम्रपाली ने आम्रवातटका तवहार
सिंघ को दान में तदया र्ा बद्ध
ु ने इसे आयाथ अम्बा
सुनीभि- कहा र्ा यह तभक्षुणी सिंघ की अध्यक्षा भी बनी
 यह जातत का भिंगी र्ा, यह बद्ध
ु का तप्रय तिष्य र्ी।
बना।  नन्दा- महाप्रजापतत गौतमी की पत्रु ी एविं बद्ध
ु की
बहन
अंगुभलर्ाल-  यशोधरा- बद्ध ु की पत्नी
 ये श्रावस्ती का डाकू र्ा बुद्ध ने इसका ह्दय  भिशाखा- अगिं जनपद के श्रेतष्ठ की पत्रु ी
पररवतथन तकया र्ा।  र्भल्लका- प्रसेनतजत की पत्नी
 खेर्ा/छे र्ा- तबतम्बसार की पत्नी
छन्दक-
 सुप्रिासा- कोतलय गणराज्य की सप्रु तसद्ध
 ये बद्ध
ु का सारर्ी र्ा, महापररतनवाथण से पवू थ उपातसका र्ी।
गौतम बद्ध
ु ने इस पर ब्रह्मदडड का तवधान तकया
र्ा। बौद्ध संघ
स्थापना – गौतम बद्ध ु ने सारनार् में बौद्ध सिंघ
अनाथ भपण्डक :- की स्र्पाना की र्ी।
 यह श्रावस्ती का प्रतसद्ध व्यापारी र्ा, इसने  गौतम बद्ध ु ने आनन्द के प्रबल आग्रह पर वैिाली
चेतकुमार से जेतवन/ जेठवन खरीद कर बद्ध ु को में तभक्षुणी सिंघ में िातमल होने वाली पहली
दान तकया र्ा। मतहला महाप्रजापतत गौतमी र्ी।
 यह तवहार श्रावस्ती में तस्र्त र्ा।  बौद्ध सघिं का सगिं ठन गणतातिं त्रक पर आधाररत
 साचिं ी, अमरावती, भरहुत स्तुप में इस दान का र्ा।
अिंकन तकया गया है।  तकसी प्रस्ताव पर मतभेद होने पर मतदान
करवाया जाता र्ा। मतदान गप्तु एविं प्रत्यक्ष दोनों
रूप में होता र्ा।
बौद्ध धर्म की अनयु ायी प्रर्ख
ु भस्त्रयां-
 सिंघ की बैठक के तलए न्यनू तम गणपतू तथ 20
 र्हाप्रजापभि गौिर्ी- बद्धु की तवमाता, बद्ध
ु सदस्य होती र्ी।
सिंघ में िातमल होने वाली पहली मतहला।

64
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
सघं र्े प्रिेश के भनयर्- 2. उपासक- उपातसकाएिं- ये गृहस्र् जीवन में
 सघिं में प्रवेि पाने के तलए आयु कम से कम 15 रहकर बौद्ध धमथ का अनसु रण करने वाले लोग
वषथ होना आवश्यक र्ा माता- तपता की आज्ञा र्े।
के तबना कोई भी सिंघ में िातमल नहीं हो सकता
र्ा।  गौतम बद्धु ने तकसी को अपना उत्तरातधकारी
 बौद्धसिंघ में दासों, कजथदारों, सैतनकों, तवकलािंगों तनयक्त
ु नहीं तकया र्ा, उन्होंने घोषणा की र्ी तक
एविं पाच िं व्यातधयों से ग्रतसत व्यतक्तयों का प्रवेि धमथ और सिंघ के तनधाथररत तनयम ही मेरे
वतजथत र्ा। उत्तरातधकारी है।
 बौद्ध सिंघ की सदस्यता सभी जाततयों के तलए
सल ु भ र्ी। संघ के अभधकारी-
 चोर, डाकुओ िं (अपवाद- अिंगतु लमाल) एविं  निकभम्र्क- तनमाथण से सिंबिंतधत अतधकारी
हत्यारों का प्रवेि भी वतजथत र्ा।  िण्डागाररक- खान-पान से सिंबिंतधत अतधकारी
 सघिं में प्रवेि के समय तत्ररत्न मे तवश्वास करने की  कभप्पकारक- क्रय करने वाला आतधकारी
िपर् लेनी होती र्ी तर्ा 10 प्रततज्ञाओ िं को  चीिर- वस्त्रागार का अतधकारी
दोहराना आवश्यक होता र्ा।  आरभर्क- आराम से सबिं तिं धत अतधकारी
 20 वषथ की आयु पणू थ करने के बाद पणू थ सदस्यता
दी जाती र्ी। संघ से जुड़े शब्द-
 तभक्षु माोँसाहार ग्रहण कर सकते र्े। शब्द अथम
 12 वषथ से कम तववातहता और 20 वषथ से कम तवनयधर- सिंघ का प्रमख

कुमारी को सघिं में प्रवेि नहीं तदया जा सकता नतत/नेतत/वृतत्त- बौद्ध सघिं में लाया जाने वाला
र्ा। प्रस्ताव
 सिंघ में प्रतवि होने को उपसम्पदा कहा जाता र्ा। अनसु ावन- सिंघ की सभा में प्रस्ताव का पाठ
भमू तस्कम- बहुमत से पाररत प्रस्ताव
 ग्रहस्र् जीवन का त्याग प्रवज्या कहलाता र्ा।
अतधकरण- तकसी प्रस्ताव पर मतभेद
 प्रवज्या ग्रहण करने वाले को श्रमनेर कहते र्े।
आसन सभा में बैठने की व्यवस्र्ा कनरे
प्रज्ञापक- वाला अतधकारी
संघ के सदस्य 2 िगों र्ें भििाभजि थे।
उपसम्पदा- सिंघ की पणू थ सदस्यता/ सिंघ में
1. भिक्ष-ु भिक्षर्
ु ी- ये सन्यासी जीवन जीने वाले
प्रतवति
लोग र्े।
समनेर/श्रमनेर- प्रवज्या ग्रहण करने वाला व्यतक्त

65
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
सघं के दण्ड- उपोसत्थ सर्ारोह-
 सघिं मे ब्रह्मदडड, माननत, पररवास एविं सतततवनय  इस समारोह का आयोजन तकसी तविेष अवसर
दडड के प्रकार र्े। सिंघ का सबसे बडा एविं सबसे पर सभी तभक्षओ
ु िं द्वारा धमथ पर चचाथ करने के तलए
कठोर दडड ब्रह्मदडड र्ा। तकया जाता र्ा।
 ब्रह्मदडड के अिंतगथत, तभक्षु को बौद्ध समाज से
बतहष्कृ त कर तदया जाता र्ा। महात्मा बद्ध ु ने बौद्ध धर्म एिं दशमन की र्ान्यिाएः
अपने पररतनवाथण से पवू थ अपने सारर्ी छन्दक को  बौद्ध दिथन क्षतणकवादी है बद्ध ु ने सृति को
ब्रह्मदडड तदया र्ा। अतस्र्र एविं क्षतणक बताया है।
 बौद्ध दिथन अन्तः ितु द्ध वादी है बौद्ध धमथ में
चैत्य एिं भिहार- अन्तः ितु द्ध पर तविेष बल तदया गया है।
 चैत्य- ये एक प्रकार के समातध स्र्ल हैं। इन  बौद्ध दिथन तनतािंत कमथवादी है बौद्ध धमथ के
समातध स्र्लों में बौद्ध महापरुु षों की मृत्यु होने अनसु ार मनष्ु य अपने कमों के फल भोगता है
पर िवदाह के बाद उनके में धातु अविेषों को बौद्ध धमथ में ज्ञान प्रातप्त कमथ पर आधाररत मानी
सरु तक्षत रखने के तलए भतू म के अन्दर गाढ़ तदया गयी है।
जाता र्ा एविं ऊपर एक भवन का तनमाथण तकया  बौद्ध दिथन अनीश्वरवादी है यह ईश्वर को सिंसार
जाता र्ा। ये उपासना के कें द्र र्े। का कताथ, धताथ स्वीकार नहीं करता।
 भिहार- चैत्यों के पास ही अर्वा अन्य जगह पर  बौद्ध धमथ आत्मा में तवश्वास नहीं करता तकन्तु
बौद्ध धमथ के तभक्षओ
ु िं के तनवास के तलए आवास पनु जथन्म में तवश्वास करता है बौद्ध धमथ के अनसु ार
स्र्लों का तनमाथण तकया जाता र्ा। ये तनवास कमथफल ही चेतना के रूप में पनु जथन्म का कारण
स्र्ान ही तवहार कहलाते है। ये आवास के कें द्र बनता है।
र्े।  बौद्ध धमथ अनात्मवादी है बौद्ध धमथ आत्मा के
अतस्तत्व को स्वीकार नहीं करता (बौद्ध धमथ की
पिारना सर्ारोह एिं उपोसत्थ सर्ारोह- िाखा सातमत्व ने आत्मा को माना है)
पिारना सर्ारोह-
 बौद्ध धमथ के मल ू ाधार चार आयथ सत्य हैं।
 वषाथ ऋतु में बौद्ध धमथ के प्रचार का कायथ नहीं
 बद्ध
ु की तिक्षाओ िं का सार प्रतीत्यसमत्ु पाद है,
तकया जाता र्ा। इस समय बौद्ध तभक्षु तवहारों में
इसी से क्षणभिंगरु वाद के तसद्धान्त की उत्पतत्त हुई
ही रहते र्े। वषाथ ऋतु की समातप्त के बाद पवारना
है।
समारोह का आयोजन तकया जाता र्ा तजसमें
 बौद्ध धमथ में दख ु ों का मल ू कारण अतवद्या (चार
सभी बौद्ध तभक्षु इन चार माह में तकए गए
आयथ सत्यों की अज्ञानता) एविं तृष्णा को माना है।
अपराधों को स्वीकार करते र्े।

66
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
 बौद्ध धमथ के अनसु ार तनवाथण का अर्थ जीवन का 4. दुख भनरोधगाभर्नी प्रभिपदा- चौर्े आयथ
तवनाि न होकर उसके दख ु ों का तवनाि है बौद्ध सत्य में गौतम बद्ध
ु ने दखु तृष्णा के उन्मूलन का
दिथन के अनुसार तनवाथण की प्रातप्त इसी जीवन में मागथ बताया गया है। बद्ध
ु ने तृष्णा के तनवारण के
सिंभव है तकन्तु महापररतनवाथण मृत्यु के बाद ही आिािंतगक मागथ बताए हैं इनके पालन से दख ु का
सिंभव है। तनवारण होता है।
 बौद्ध धमथ में मानव व्यतक्तत्व को पाोँच स्किंधों से
तनतमथत बताया गया है ये पााँच स्कंध हैं- आष्टांभगक र्ागम
1. रूप  इसका सम्बन्ध् चतर्ु थ आयथ सत्य से है, ये वे मागथ
2. वेदना हैं तजनका पालन कर दख ु से मतु क्त तमलता है ये
3. सज्ञिं ा आिािंतगक ही चतर्ु थ आयथ सत्य दख ु
4. सिंस्कार तनरोधगातमनी प्रततपदा हैं इनके अनसु रण से
5. तवज्ञान व्यतक्त तनवाथण की ओर अग्रसर होता है
आिािंतगक मागथ तनम्नतलतखत है:-
चार आयम सत्य-
(1) दुखः बद्ध
ु के अनसु ार सिंसार में सभी वस्तएु िं (1) सम्यक दृभष्ट-
दःु खमय है जन्म, वृद्धावस्र्ा, मरण, अतप्रय  वस्तओ
ु िं के वास्ततवक रूप का ध्यान करना
तमलन, तप्रय तवयोग इत्यातद सभी दःु खमय है।
(2) दुखः सर्ुदायः दःु ख समदु ाय का तात्पयथ (2) सम्यक संकल्प-
उन कारणों से है तजनसे दःु ख उत्पन्न होता है  आसतक्त, द्वेष एविं तहसिं ा से मक्त
ु तवचार रखना
गौतम बद्ध
ु ने सभी दख ु ों का मल ू कारण अतवद्या
(चार आयथ सत्यों की अज्ञानता ) एविं तृष्णा को (3) सम्यक िाक्-
बताया है बद्ध
ु के अनसु ार दख ु समदु ाय का मल ू  अतप्रय वचन ना बोलना
कारण अतवद्या एविं तृष्णा है क्योंतक तृष्णा से ही
आसतक्त एविं राग का उद्भव होता है दख ु के (4) सम्यक कर्ामन्ि –
कारणों को प्रतीत्यसमत्ु पाद कहा गया है।  दान, दया, करूणा, तवनय, सत्य, अतहसिं ा आतद
सत्कमथ करना
3. दुख भनरोध- बद्ध ु के अनसु ार दखु के तनरोध
या तनवारण के तलए तृष्णा का उन्मल ू न आवश्यक (5) सम्यक आजीि-
है तृष्णा को त्याग कर दख
ु तनरोध का मागथ प्रिस्त
 सदाचार के तनयमों के अनसु ार जीवन जीना
होता है।

67
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
(6) सम्यक व्यायार्- ये दस िील बौद्ध तभक्षओ ु िं (सन्यासी जीवन जीने
 तववेकपणू थ प्रयत्न करना वालों) के तलए अतनवायथ र्े। इनमें प्रर्म पाोँच
गृहस्र्ों (उपासकों) के तलए अतनवायथ र्े तकन्तु
(7) सम्यक सर्ृभि- अिंततम पािंच गृहस्र्ों के तलए अतनवायथ नहीं र्े।
 गलत एविं झठू ी धारणाओ िं का त्याग कर सत्य
धारणाओ िं की स्मृतत रखना बुद्ध की जीिन से जुडी घटनाओ ं के प्रिीक
प्रिीक अथम
(8) सम्यक सर्ाभध- गभथ हार्ी
 मन एविं तचत्त को एकाग्र कर ध्यान लगाना। जन्म कमल
यौवन सािंड
बद्ध
ु के जीिन की चार र्हत्िपर् ू म घटनाए-ं गृहत्याग अश्व
 गृहत्याग- महातभतनष्क्रमण प्रतीक अश्व समृतद्ध िेर
प्रर्म उपदेि चक्र
 ज्ञान प्राभप्त- सम्बोतध प्रतीक बोतध वृक्ष
तनवाथण पदतचन्ह
 प्रथर् धर्ोपदेश- धमथचक्रप्रवतथन प्रतीक चक्र
महापररतनवाथण स्तपू
 देहािसान- महापररतनवाथण प्रतीक स्तपू
बौद्ध धर्म के भररत्न-
बौद्ध अनुयाभययों के भलए आिश्यक 10 शील
 बद्ध

(भसद्धान्ि)-
 सघिं
1. अतहसिं ा
2. सत्य बोलना  धम्म
3. चोरी न करना बौद्ध संगीभियां-
4. व्यतभचार न करना प्रथर् बौद्ध संगीभि-
5. मादक द्रव्यों का त्याग ये तसद्धान्त पिंचिील  समय- 483 ई. प.ू बद्ध ु की मृत्यु के तरु िं त बाद
कहलाते हैं। इन तसद्धान्तों का पालन करना  स्र्ान- राजगृह की सप्तपणी गुफा
गृहस्र् एवम तभक्षु दोनों के तलए अतनवायथ र्ा।  अध्यक्ष- महाकस्सप
6. नृत्य सगिं ीत का त्याग  सिंरक्षक- अजात ित्रु (हयथक विंि)
7. असत्य (दोपहर बाद) भोजन का त्याग  कायथ- सत्तु तपटक एविं तवनय तपटक की रचना
8. सगु तन्धत द्रव्यों का त्याग
 आनिंद और उपातल क्रमि: धमथ और तवनय के
9. कोमल िैया (तबस्तर) का त्याग
प्रमाण माने गये।
10. आभषू णों का त्याग

68
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
 सिंघभेद रोकने के तलये अत्यिंत कडे तनयम बना
भद्विीय बौद्ध संगीभि- तदये गये इसकी पतु ि अिोक के साच िं ी, सारनार्
 समय:- 383 ई. प.ू (बद्ध ु की मृत्यु के 100 वषथ एविं कौिाम्बी के लघु स्तिंभ लेख से होती है।
बाद)  अिोक ने महात्मा बद्ध ु के अविेषों को उनके
 स्र्ान:- वैिाली ियन स्र्ल से खोदकर तनकलवाया और उनका
 अध्यक्ष:- सब्बकामी/ सबाकामी/ सबु क ु ामी/ पनु : तवभाजन कर सिंम्पणू थ भारत में 84000 स्तपू ों
सावकमीर का तनमाथण करवाया, ध्यातव्य है तक नागविंि के
 सिंरक्षक:- कालािोक (तििनु ाग विंि) तीव्र तवरोध के कारण रामगािंव के िारीररक स्तपू
 कायथ:- बौद्ध सिंघ स्र्तवर (र्ेरावादी) एविं खल ु नहीं पाया।
महासतिं घकों में बटिं गया।
 स्थभिर / थेरिादी :- जो तभक्षु परिंपरागत तनयमों
चिुथम बौद्ध संगीभि
में आस्र्ा रखते र्े, उनको स्र्तवर कहते र्े,
इनका नेतत्ृ व महाकच्चायन ने तकया र्ा।  समय:- 102 ई िं बद्ध ु की मृत्यु के 585 वषथ के
बाद
 र्हासांभघक:- यह तनयमों में पररवतथनों के
तहमायती र्े, इनको पवू ी बौद्ध तभक्षु भी कहा  स्र्ान:- कुडलवन कश्मीर
जाता र्ा, इनके नेतत्ृ वकताथ महाकस्सप र्े और  अध्यक्ष:- वसतु मत्र
इनका प्रधान कें द्र मगध र्ा।  उपाध्यक्ष:- अश्वघोष
 कालािंतर में और तवभेद बढ़ने से स्र्तवर से  सिंरक्षक:- कतनष्क कुषाण विंि
हीनयान और महासिंतघक से महायान का उदय  इसी समय से बौद्धों ने सिंस्कृ त को एक भाषा के
हुआ। रूप में अपना तलया र्ा।
 इस सगिं ीतत में तवभाषािास्त्र नामक एक ग्रर्िं की
िृिीय बौद्ध संगीभि- रचना हुई।
 समय:- 247 ई. प.ू बद्ध ु की मृत्यु के 236 वषथ  इसी समय बौद्ध धमथ हीनयान एविं महायान नामक
बाद दो सिंप्रदायों में तवभातजत हो गया र्ा।
 स्र्ान:- पाटतलपत्रु
 अध्यक्ष:- मोगतलपतु त्तततस्स
 सिंरक्षक:- अिोक (मौयथ विंि)
 कायथ:- अतभधम्मतपटक का सिंकलन

69
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
बौद्ध धर्म का भििाजन एिं सप्रं दाय:- हीनयान एिं र्हायान के उपसम्प्रदाय-
हीनयान र्हायान हीनयान का उप सम्प्रदायः
स्र्तवर सम्प्रदाय से उदय महासिंतघक सम्प्रदाय से  िैिाभषकः इसकी उत्पतत कश्मीर में हुई र्ी
उदय इसका आधार तवभाषािास्त्र र्ा इसके प्रमख ु
यह व्यतक्तवादी धमथ है इसके यह समतिवादी धमथ है आचायथ धमथत्रात, घोषक, वसतु मत्र एविं बद्ध
ु देव र्े।
अनसु ार प्रत्येक व्यतक्त को तजसका उद्देश्य समस्त
अपने प्रयत्नों से ही मोक्ष मानव जातत का कल्याण है।  सौराभन्िकः यह सत्तु तपटक पर आधाररत है
प्राप्त करना चातहए। इसके प्रवतथक कुमारलात /कुमारलब्ध र्े।
यह गौतम बद्ध ु को महापरुु ष यह गौतम बद्ध ु को देवता
मानता है देवता नहीं मानता है। र्हायान के उप सम्प्रदायः
इसमें बद्ध
ु की मतू ी पजू ा नहीं इसमें मतू तथपजू ा एविं तीर्ो को  र्ाध्यभर्क/ शन्ू यिाद – इसके प्रवतथक नागाजथनु
होती अतपतु बोतधवृक्ष, स्तपू महत्व तदया जाता है। र्े
आतद की पजू ा का तवधान
 यह सम्प्रदाय िन्ू य को ही अिंततम सत्य मानता है।
र्ा।
 इसने सिंसार एविं तनवाथण दोनों को तमथ्या माना है।
इनका सातहत्य पाली भाषा इनका सातहत्य सस्िं कृ त
 इसको सापेक्षवाद भी कहते है।
में र्ा। भाषा में र्ा।
इसकी साधना पद्धतत कठोर इनके तसद्धान्त सरल एविं
र्ी एविं तभक्षु जीवन का सल ु भ र्े।  भिज्ञानिाद/योगाचार- इसके प्रवतथक मैत्रेय र्े।
तहमायती र्ा।  वसबु िंधु और असिंग ने इस सिंप्रदाय को प्रतसद्ध
इनमें तभक्षओु िं के सार् सार् इसमें पदु गल िन्ू यता एविं तकया।
उपासकों का भी महत्व र्ा। धमथिन्ू यता दोनों का  योग पर तविेष बल देने के कारण इस सिंप्रदाय को
इसमें में के वल उल्लेख है। योगाचायथ भी कहते हैं।
पदु गलिन्ू यता का उल्लेख
है। अन्य सम्प्रदाय-
हीनयान के प्रमख ु ग्रन्र् महायान के प्रमख ु ग्रन्र्  िज्रयान सम्प्रदाय- यह ज्ञान एविं आचार की
कर्ावस्त,ु तवितु द्धमग्ग, एविं लतलततवस्तार एविं जगह पिंचमकार (मद्य, मैर्नु , मािंस, मत्सय एविं
अवदानितक आतद हैं। वज्रछे तदका आतद हैं। मद्रु ा) पर बल देता है इसे हीरकयान भी कहा
जाता है।
 वज्रयान में महात्मा बद्ध
ु को आतदबद्ध ु कहा गया।
 9 वीं िताब्दी में नालिंदा वज्रयान का के द्र र्।

70
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
 इसमें तारा देवी को बद्ध ु या बोतधसत्व की पत्नी  िदयानीय संप्रदाय :- िातकणी विंि के समय
के रूप में माना जाता है यह जादईु ितक्त प्राप्त यह सप्रिं दाय नातसक और कन्हेरी में स्र्ातपत
करके मतु क्त की सिंकल्पना करता है। हुआ, वतिष्ठीपत्रु पल ु मु ावी के नातसक गहु ालेख
 इसके कें द्र नालिंदा, तवक्रमतिला, सोमपरु ी एविं में इस सिंप्रदाय का नाम आया है।
जगदल्ला र्े।
 इसके मख्ु य अनयु ातययों को 84 तसद्ध /  िैिभिमनक संघ / संप्रदाय :- यह सिंप्रदाय
तसद्धाचायथ/ सरहपा कहा जाता है, आठवीं महायान से सबिं तिं धत र्ा, जो तक गप्ु तोतर काल में
िताब्दी में पाल िासक धमथपाल के समकालीन स्र्ातपत हुआ।
एक महान सरहपा राहुलभद्र हुए तजनका तसद्ध
कतवयों में महत्वपणू थ स्र्ान है। बौद्ध धर्म के बोभधसत्ि-
 वज्रयान सम्प्रदाय ने ही बौद्ध धमथ के पतन का  अवलोतकतेश्वर (पद्मपातण)
मागथ प्रिस्त तकया र्ा।  मजिं ू श्री
 वज्रपातण
 सहजयान सम्प्रदाय- यह भी तािंतत्रक सम्प्रदाय  तक्षततगभथ
ही र्ा तकन्तु इसकी उत्पतत वज्रयान के मिंत्रपाठ  अतमताभ (स्वातगथक बद्ध ु )
एविं कमथकाडड के तवरोध में हुई र्ी, इसका मागथ  मैत्रेय(भावी बोतधसत्व, अभी जन्म लेना बाकी
योग तक्रया र्ा, इसका उद्भव आठवीं िताब्दी में है)
हुआ र्ा।
बौद्ध धर्म के संरक्षक राजा-
 कालचक्रयन सम्प्रदाय- इसके प्रवतथक मिंजश्रू ी  तबतम्बसार
को माना जाता है अन्य उपसम्प्रदायः भादयानीय
 अजातित्रु (हयथक विंि)
समप्रदाय, धमथत्तरीय समप्रदाय, चेतकीय
 प्रसेनतजत (कोसल नरे ि)
समप्रदाय आतद।
 उदयन (वत्स नरे ि)
 पूिमशैल संप्रदाय:- यह महासिंतघकों ( महायान)  प्रद्योत (अवन्ती नरे ि)
की िाखा र्ी, अिोक के अतभलेखों में इसका  अिोक एविं दिरर् (मौयथ विंि)
वणथन है।  कतनष्क (कुषाण विंि)
 हषथवधथन, सहसी विंि और पाल विंि

71
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
बौद्ध धर्म के आठ र्हास्थान- अतभधम्मकोष बौद्ध धमथ की एक महत्वपणू थ
 लतु म्बनी- बद्ध
ु का जन्म स्र्ान पस्ु तक है इसे बौद्ध धमथ का तवश्वकोष भी कहा
 बोधगया- बद्ध ु ने यहाोँ सम्बोतध प्राप्त की जाता है।
 सारनार्- बद्ध ु का प्रर्म उपदेि (धमथचक्र
प्रवतथन)  कुर्ारजीि- ये पािंचवी िताब्दी में चीन गए र्े
 कुिीनगर- बद्ध और कई ग्रर्िं ों का चीनी भाषा में अनवु ाद तकया
ु का पररतनवाथण
र्ा इनकी मृत्यु भी चीन में ही हुई र्ी इनका
 श्रावस्ती- बद्ध
ु ने चमत्कार (ऋतष प्रदिथन) तकया
प्रतसद्ध कर्न- मेरे कमों का अनसु रण करो तकन्तु
र्ा
मेंरे जीवन का नहीं र्ा।
 सिंतकसा/ सिंकश्य
 राजगृह
 नागाजमनु - ये रस िास्त्र/ रसायन िास्त्र के तवद्वान
 वैिाली र्े। इन्होंने रस तचतकत्सा एविं पारे की खोज की।
इन्होने िन्ू य के तसद्धान्त का प्रततपादन तकया र्ा।
इन्हें भारत का आइन्स्टीन एविं प्राचीन भारत का
बौद्ध धर्म की लोकभप्रयिा के कारर् मातटथन लर्ू र भी कहा जाता है।
 धाभर्मक िाद- तववाद से अलग रहा इस कारण  ये कुषाण िासक कतनष्क के दरबार से सम्बद्ध
जनसामान्य आकथ तषत र्े।
 वणथ व्यवस्र्ा की तनिंदा करने से तनम्न वगों का  आयमदेि- नागजथनु ने इन्हें अपना उत्तरातधकारी
समर्थन प्राप्त चनु ा र्ा।
 बौद्ध सिंघ सभी जाततयों के तलए खल ु ा र्ा  इनकी रचना चत:ु ितक है।
 ब्राह्मणवाद के तवरोधी लोगों की बौद्ध धमथ की  अर्श्घोष- ये कतनष्क के दरबारी कतव र्े ये एक
ओर रुतच दािथतनक भी र्े इन्होंने वज्रसचू ी नामक ग्रन्र् की
 बद्ध
ु का व्यतक्तत्व व उपदेि प्रणाली रचना की र्ी। इन्होने बद्ध ु चाररतिंम नामक ग्रन्र्
 उपदेि की भाषा पातल(जनसाधारण की भाषा) की भी रचना की र्ी।
 सिंघ की स्र्ापना, महत्वपणू थ िासकों का सहयोग  भदगनाग: इन्हें बौद्ध धमथ में तकथ िास्त्र का प्रवतथक
एविं मध्यकालीन न्याय का जनक माना जाता है
प्रभसद्ध बौद्ध भिद्वान
 िसुबन्ध-ु इन्होंने परमार्थसप्ततत, अतभधम्मकोष धर्मकीभिमः इन्होंने न्याय से सम्बिंतधत
एविं वज्रछे तदका नामक पस्ु तकें तलखी प्रमाणवाततथका, न्यायतबदिं ु जैसे ग्रन्र्ों की रचना
की र्ी इन्हें भारत का कािंट भी कहा जाता है।

72
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं

बुद्धपोष:- इन्होंने तविुतद्धमग्ग नामक ग्रन्र् की अन्य बौद्ध ग्रन्थ-


रचना की र्ी तजसे बौद्ध धमथ का लघु तवश्वकोष प्रज्ञापारभर्िा- यह महायान सम्प्रदाय की
एविं तत्रपटकों की किंु जी कहा जाता है। महत्वपूणथ दािथतनक पस्ु तक है। इसके लेखक
नागाजथनु है।
बौद्ध साभहत्य
जािक- यह सत्तु तपटक की खद्दु क तनकाय का
 भरभपटक – ये बौद्ध धमथ के प्राचीनतम ग्रन्र् हैं। 10 वािं ग्रन्र् है। इसमें भगवान बद्ध ु के 84000 पवू थ
1. सत्तु तपटक जन्मों की 500 से अतधक गार्ाएिं है।
2. तवनयतपटक थेरगाथा एिं थेरीगाथा-
3.अतभधम्मतपटक थेरगाथ- यह बौद्ध तभक्षओ ु िं द्वारा सकिं तलत ग्रन्र्
है।
 सत्त
ु भपटक- इसमें बद्ध ु के धातमथक तवचारों एविं थेरीगाथा- यह बौद्ध तभक्षतु णयों द्वारा सिंकतलत
उपदेिों का सिंग्रह है। यह गद्य एविं पद्य का तमश्रण ग्रन्र् है।
है। यह तपटक पाोँच तनकायों में तवभातजत है।
 1. दीघतनकायः इसमें महात्मा बद्ध लभलिभिस्िार-
ु के जीवन के
आतखरी समय का वणथन तमलता है।  इसमें बद्ध
ु की जीवनी तमलती है। एडतवन
2. मतज्झम तनकाय अनाथल्ड ने लाइट आफ एतिया नामक पस्ु तक
3. सिंयक्त
ु तनकाय तलखने में इसकों आधार बनाया र्ा।
4. अिंगत्तु र तनकायः इसमें 16 महाजनपदों का
उल्लेख तमलता है। संस्कृि बौद्ध ग्रंथ
5. खद्दु क तनकाय र्हािस्ि:ु -
 यह ग्रर्िं सस्िं कृ त भाषा में तलतखत है और महायान
 भिनय भपटक- इसमें बौद्ध तभक्षओ ु िं के से सिंबिंतधत है।
अनि ु ासन सिंबिंधी तनयम एविं सिंघ की
कायथप्रणाली की व्याख्या है। बुद्धचररि :-
 अभिधम्र् भपटक- इसमें महात्मा बद्ध ु के  इसकी रचना अश्वघोष ने की र्ी।
उपदेिों एविं तसद्धािंतों की दािथतनक व्याख्या की  इसमें बद्ध
ु के गभथ में आने से लेकर आिोक के
गयी है। इस तपटक का सिंकलन अिोक के समय समय तक तववरण प्राप्त होता है।
तृतीय बौद्ध सगिं ीतत में तकया गया र्ा।

73
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
साररपरु प्रकरर् :-  बौद्ध तवहारों में कुरीततयाोँ एविं भोग तवलातसता में
 यह भी अश्वघोष द्वारा तलखा गया। वृतद्ध
 यह एक नाटक है तजसमें साररपत्रु के बौद्ध धमथ में  कुछ िासकों का बौद्ध तवरोधी दृतिकोण
तदतक्षत होने का तववरण है।  तक
ु ों के आक्रमण

सौन्दरानंद:-
 यह भी अश्वघोष द्वारा रतचत है।
 इसमें बद्ध
ु बे सौतेले भाई सौन्दरानिंद के बौद्ध धमथ
ग्रहण करने का काव्यात्मक वणथन है।

िज्रसचू ी:-
 यह भी अश्वघोष द्वारा रतचत है, इसमें
वणथव्यवस्र्ा का खिंडन है, कुछ तवद्वान इसे
धमथकीती की रचना मानते है।

अभिधम्र् कोष:-
 इसकी रचना वसबु धिं ने की र्ी।

भिशभु द्धर्ग्ग:-
 यह हीनयान सिंप्रदाय का ग्रिंर् है तजसकी रचना
बद्ध
ु घोष द्वारा की गई।

बौद्ध धर्म के पिन के कारर्-


 बौद्ध धमथ में कमथकाडड का प्रभाव बढ़ गया र्ा।
 पाली भाषा त्याग कर सिंस्कृ त को अपनाना
 भारी मात्रा में दान प्रातप्त
 ब्राह्मण धमथ का पनु रुु त्र्ान

74
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
िैष्‍टर्ि धर्म (िागिि धर्म)  ऐतरे य ब्राह्मण में तवष्णु का उल्लेख सवोच्च
 भागवत धमथ के सिंस्र्ापक वासदु वे कृ ष्ण र्े। देवता के रूप में तकया गया है।
वासदु वे कृ ष्ण वृति विंिीय यादव र्े इन्हें वैतदक  गप्तु काल में वैष्णव धमथ चरमोत्कषथ पर र्ा। तवष्णु
तवष्णु का अवतार माना जाता है। का वाहन गरुण गप्तु विंि का राजतचन्ह र्ा।
 तवष्णु का सबसे पहले उल्लेख ऋगवेद में तमलता  गप्तु काल में तवष्णु का सबसे लोकतप्रय अवतार
है। वराह अवतार र्ा।
 छान्दोग्य उपतनषद में श्री कृ ष्ण का सवथप्रर्म  स्कन्दगप्तु का जनू ागढ़ अतभलेख भगवान तवष्णु
उल्लेख तमलता है, इसमें वासदु वे कृ ष्ण को की स्ततु त से ही प्रारिंभ होता है।
देवकी पत्रु एविं घोरा अिंतगरस का तिष्य बताया  चन्द्रगप्तु तवक्रमातदत्य ने महरौली लोहस्तिंभ के
गया है। रूप में तवष्णु धव्ज की स्र्ापना की र्ी।
 पातणतन कृ त अिाध्यायी से कृ ष्ण को भगवान के  गप्ु तकाल में वैष्णव धमथ प्रधान धमथ बन गया
रूप में पजू े जाने की जानकारी तमलती है। क्योंतक गप्ु त राजाओ िं ने वैष्णव धमथ अपनाया
 भागवत धमथ प्रर्म सम्प्रदाय है तजसका उदय और उसे सिंरतक्षत तकया, खदु चिंद्रगप्ु त तद्वतीय,
ब्राह्मण धमथ के जतटल कमथकाडड एविं यज्ञीय कुमारगप्ु त प्रर्म एव स्किंद गप्ु त ने परमभागवत
व्यवस्र्ा के तवरूद्ध प्रतततक्रया स्वरूप हुआ र्ा। की उपातध धारण की र्ी।
 वैष्णव धमथ में नवधा भतक्त पर बल तदया।  कुमारगप्ु त के गगिं ाधर अतभलेख में तवष्णू को
 वैष्णव सम्प्रदाय सािंख्य एविं योग से सिंबिंतधत है, मधसु दू न कहा गया है।
इसमें वेदान्त, सािंख्य एविं योग के दािथतनक तत्वों  स्किंदगप्ु त के भीतरी अतभलेख में देवकी एविं
का समावेि तमलता है। कृ ष्ण का उल्लेख तकया गया है।
 भगवत धमथ की पहली जानकारी हेतलयोडोरस के  पतिम चालक्ु यों का राजतचन्ह वराह र्ा, तवष्णु
बेसनगर गरुण स्तिंभ अतभलेख से तमलती है, इस उनके कुल देवता र्े।
स्तभिं को कतनघमिं ने खोजा र्ा।  पल्लव िासक तसहिं तवष्णु ने मामल्लपरु म में
 सातवाहन काल में भागवत धमथ की जानकारी आतद वराह मिंतदर तर्ा नरतसिंह वमाथ तद्वतीय ने
नानाघाट अतभलेख से तमलती है नानाघट कािंची में बैकुडठपेरुमाल मिंतदर बनवाया।
अतभलेख में वासदु वे एविं सिंकषथण (बलराम) की  प्रततहार नरे ि तमतहरभोज ने अपने ग्वातलयर
पजू ा का उल्लेख है। अतभलेख में स्वयिं को वराह घोतषत तकया है।
 कुषाणकाल में हुतवष्क एविं वासदु वे द्वारा तवष्णु
पजू ा का पता चलता है।

75
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
अलिार सिं  कभल्क :- यह अवतार अभी होना बाकी है, और
 दतक्षण भारत में वैष्णव धमथ के प्रमख ु सतिं ऐसी मान्यता है तक कलयगु में भगवान कतल्क
अलवार कहलाते र्े, इनकी सिंख्या 12 र्ी। अवतार लेंगे और सफे द घोडे पर बैठकर आयेंगे।
 सबसे प्रमख ु अलवार कुलिेखर अलवार र्ा, जो
के रल का राजा र्ा, इसकी पस्ु तक का नाम पांचरार भसद्धांि:-
‘मक ु िंु दमाला’ है।  यह सिंम्भवत: पािंच रातत्र और पािंच तदन तक
 अलवार सिंतों में एक मतहला सिंत भी हुई तजनका चलने वाला यज्ञ र्ा।
नाम अडिं ाल र्ा, इन्हे दतक्षण की मीराबाई कहा  परिंतु सवाथतधक तवचारकों का मानना है तक पाच िं
जाता है। वृतष्णवीरों ( वासदु वे , सिंकषथण, प्रद्यम्ु न, अतनरुद्ध,
 ततरुमिंगई भी प्रतसद्ध अलवार र्े जो तक अलवार और साम्ब) की पजू ा करने के कारण इसे
सिंत बनने से पवू थ एक डाकू र्े , ये बौद्ध और जैन पाचिं रातत्र कहा गया।
धमों के प्रमख ु तवरोधी र्े, इन्होंने श्रीरिंगम् मठ की
मरम्मत के तलए नागपट्टनम बौद्ध तवहार से स्वणथ  िासुदेदि:- इनके छ: गणु हैं।
मतू ी चरु ा ली र्ी।
 संकषमर्:- यह वासदु वे के रोतहणी से उत्पन्न पत्रु
र्े।
िैष्‍टर्ि धर्म के प्रर्ुख भसद्धांि  प्रद्युम्न:- यह कृ ष्ण के रुक्मणी से उत्पन्न पत्रु र्े।
 वैष्णव धमथ के प्रमख ु तसद्धािंतों में अवतारवाद ,
पािंचरात्र तसद्धािंत एविं वीरपजू ा प्रमख
ु है।  अभनरुद्ध :- यह प्रद्यम्ु न के पत्रु र्े।

 साम्ब:- यह कृ ष्ण के जामवती से उत्पन्न पत्रु र्े।


अििारिाद :- जाम्बवती चाडडाल कन्या र्ी।
 वैष्णव धमथ की प्रमखु तविेषता अवतारवाद की
सकिं ल्पना है।
 अमरकोष एविं गीतगोतविंद में तवष्णु के 39 चिमव्ु यूह भसद्धांि :-
अवतारों का उल्लेख है, परिंतु 10 अवतार
सवाथतधक प्रचतलत हैं: -  पािंचरातत्र तसद्धािंत के पािंचवे देवता साम्ब को
मत्सय, कूमथ, वराह, नरतसिंह, वामन, परिरु ाम, ईरानी सयू थ सप्रिं दाय से सबिं द्ध कर तदया गया, और
राम, कृ ष्ण, बद्ध
ु एविं कतल्क।

76
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
बाकी बचे चार देवताओ िं को वैष्णव धमथ में
चतथव्ु यहू तसद्धािंत में मान्यता दी गई।

यह िी जाभनये:-
1. गािंधीजी ने गीता को तवश्व माता कहा है।

2. चाल्सथ तवतल्किंस ने वारे न हेतस्टिंग्स के कहने पर गीता का


अनवु ाद अिंग्रेजी में तकया।

3. ततलक ने माडडले जेल में मराठी भाषा में गीता रहस्य


नामक पस्ु तक तलखी, इसी से प्रभातवत होकर मैक्समल
ू र ने
तब्रतटि सरकार से ततलक की सजा माफ करते हुए दया की
तसफाररि की र्ी।

4. हाल ही में अहमदाबाद के आिीष बारोट ने भगवद-


गीता का 39 भाषाओ िं में अनुवाद करना प्रारिंभ तकया है जो
तक पणू थ होने के बाद एक तवश्व ररकॉडथ बनेगा।

77
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
शैि धर्म शैि धर्म के सप्रं दाय
 िैव धमथ भारत का प्राचीनतम धमथ है। तिव के  वामन परु ाण में िैव मत के चार सप्रिं दायों का
उपासकों को िैव कहा जाता र्ा। उल्लेख है-
 उत्तरवैतदक काल में तैत्तरीय सिंतहता में तिव नाम 1. पािपु त सिंप्रदाय
का उल्लेख तमलता है अर्वथवेद एविं श्वेताश्वर 2. िैव
3. कापातलक
उपतनषद में तिव का नाम महादेव तमलता है चमथ
धारण करने के कारण तिव को कृ तत्तवासन की 4. कालामुख
सिंज्ञा भी दी जाती है।
1. पाशपु ि सप्रं दाय:-
 मेगास्र्नीज की इतिं डका में िैव धमथ के उदय की
जानकारी तमलती है इतिं डका में डायनोतसस  यह िैव धमथ का सबसे प्राचीन सप्रिं दाय है।
(तिव) एविं हेराक्लीज (कृ ष्ण) नामक दो भारतीय  स्र्ापना:- लकुलीि ने दसू री िताब्दी ई.प.ू में इस
देवताओ िं का वणथन तमलता है। सिंप्रदाय की स्र्ापना की र्ी, लकुलीि को तिव
 रूद्र की पत्नी के रूप में पावथती का नाम तैतत्तरीय का 18वािं अवतार माना जाता है, लकुलीि
गजु ारात के कायावरोहण के रहने वाले र्े।
आरडयक में तमलता है।
 के न उपतनषद में तहमालय की पत्रु ी उमा हेमावती  कुषाण िासक हुतवष्क के तसक्कों पर पािपु त
का उल्लेख तमलता है। सप्रिं दाय का सवथप्रर्म उल्लेख तमलता है,
 तिव की तलिंग रूप में पजू ा का प्राचीनतम प्रमाण
2. कापाभलक संप्रदाय:-
तसन्धु घाटी सभ्यता से तमलता है।
 यह लोग भैरव को अपना ईष्ट देव मानते हैं, इस
 तलिंग पजू ा का सवथ प्रर्म उल्लेख मत्स्य परु ाण में
मत के अनयु ायी सरु ा, सदिंु री और मासिं का सेवन
तमलता है।
करते हैं, एविं नरमडु ड धारण करते हैं।
 तिव की प्राचीनतम मतू ी मद्रास के तनकट रे नीगिंटु ा
 भवभतू त के मालतीमाधव के नाटक से पता
में प्रतसद्ध गतु डमल्लम तलगिं के रूप में प्राप्त हुई है।
चलता है तक श्री िैल नामक स्र्ान कापातलकों
 रामायण में तिव को ‘ह’ और वृषध्व उपातधयों
का प्रमख
ु कें द्र र्ा।
से तवभतू षत तकया गया है नदिं ी का सवथप्रर्म
 इस सिंप्रदाय में मतहलाएिं भी िातमल हो सकती
उल्लेख रामायण में हुआ।
र्ीं।
 पौरातणक यगु में तिव की महत्ता परमब्रह्म के रूप
में स्र्ातपत हुई र्ी।

78
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
कालार्ख
ु सप्रं दाय:- पच ं ायिन पज ू ा
 इस सप्रिं दाय के अनयु ायी कापातलकों के ही वगथ  इसमें तवष्ण,ु तिव, ितक्त, सयू थ और गणेि पजू ा
से र्े, तकिंतु ये उनसे भी ज्यादा अततवादी र्े, का तवधान है। ििंकराचायथ को पिंचायतन पजू ा का
अततवादी होने के कारण ही तिव परु ाण में उन्हें प्रणेता मानते हैं।
महाव्रतधर कहा गया है। शार्कि सप्रं दाय

िीरशैि अथिा भलंगायि सप्रं दाय :-  यह पहला ऐसा सिंप्रदाय है जो ितक्त को ईष्ट देवी
 इनको जिंगम सिंप्रदाय भी कहते हैं। मानकर पजू ा करता है,
 सिंस्र्ापक:- अल्लभप्रभु एविं उनके तिष्य वसव  यह एक वाममाग्री सप्रिं दाय है जो पच िं मकारों पर बल
देता है।
 वसव को निंदी का अवतार माना जाता है, वसव
 वतथमान में जम्मू एविं कश्मीर (वैष्णो देवी) , काच िं ी तर्ा
कल्याणी के कलचरु ी नरे ि तवज्जल के मिंत्री र्े। असम (कामाख्या मिंतदर) ितक्त उपासना के प्रमख ु कें द्र
 यह सिंप्रदाय दतक्षण भारत में स्र्ातपत हुआ। हैं।
 यह सिंप्रदाय इस्लाम से प्रभातवत र्ा।  चौसठ योगतनयों का मिंतदर (भेडाघाट, जबलपरु ) भी
 अक्का महादेवी इस सिंप्रदाय की प्रतसद्ध मतहला िाक्त देवी को समतपथत मतिं दर है।
शार्किों के दो प्रर्ुख उप संप्रदाय हैं-
सिंत र्ी।
1. कौलर्ागी :-
नाथ पंथ संप्रदाय (यौभगनी कौल र्ागम) :-  ये पच िं मक
िं ार की उपासना करते है तजनमें मद्य, मासिं ,
मत्स्य, मद्रु ा, एविं मैर्नु िातमल है
 इस सिंप्रदाय की स्र्ापना दसवीं िताब्दी में 2. सर्याचारी:-
मत्स्येंद्रनार् अर्वा मच्छन्दरनार् ने की र्ी।
 यह सामान्य रूप से देवी की पजू ा करते हैं, देवी के नौ
 यह सिंप्रदाय सातहत्य में बहुत रुतच रखता र्ा। अवतारों की अवधारणा समयाचारी उपसिंप्रदाय में ही
और अपनी उलटवातसयों के कारण नार् सातहत्य तनतहत है।
में इनका तवतिष्ट स्र्ान है, ध्यातव्य है तक कबीर
भी नागपिंर् के अनयु ायी र्े।
 गोरख नार् 11वीं िताब्दी में नागपिंर् सिंप्रदाय के
प्रमखु आचायथ हुए।

79
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
िारि के षड्दशमन िैशेभषक दशमन-
 इसके प्रवतथक उलक ू कणाद र्े।
सांख्य दशमन-  इसकी मान्यता के अनसु ार, पाोँच
 इसके प्रवतथक कतपलमतु न र्े। पदार्थ(पिंचमहाभतू ) पृथ्वी, आकाि, जल, पवन
 इस दिथन के अनसु ार, जगत की उत्पतत्त ईश्वर से एविं अतग्न के मेल से ही नई वस्तओ
ु िं का तनमाथण
नहीं हुई अतपतु मानव एविं प्रकृ तत के सिंयोग से होता है।
हुई है।  इस दिथन से ही भारत में परमाणवु ाद एविं भौततक
 यह सृति के तत्रगणु (सतगणु , रजगणु एविं तमगणु िास्त्र का आरम्भ माना जाता है।
को मानता है।  यह बहुत तनकटता के सार् न्याय दिथन से जडु ा
 यह दिथन जैन धमथ के दिथन से प्रभातवत है।) हुआ है।
 यह सबसे प्राचीन षड्दिथन है।
र्ीर्ांसा दशमन-
योग दशमन-  इसके प्रवतथक जैतमनीय र्े।
 इसके प्रवतथक पतिंजतल र्े।  इस दिथन से सम्बद्ध कुमाररल ने बौद्धों का खिंडन
 इसकी मान्यता है तक आसन एविं प्राणायाम के कर वेदों की प्रमातणकता स्र्ातपत की र्ी।
माध्यम से ईश्वर/मोक्ष की प्रातप्त होती है।  इसकी मान्यता के अनसु ार, वेद द्वारा तवतहत कमथ
 अलबरूनी ने योग सत्रू का अरबी भाषा में ही धमथ है इसतलए यज्ञवाद का समर्थन तकया, वेदों
अनवु ाद तकया र्ा। को तनत्य एविं अपौरुषेय माना तर्ा वैतदक
देवताओ िं का मत्रिं ों से अलग कोई अतस्तत्व नहीं
न्याय दशमन- है।
 इसके प्रवतथक अक्षपाद गौतम र्े। इन्होंने न्यायसत्रू
की रचना की र्ी। िेदान्ि दशमन-
 यह भारतीय तकथ तवद्या का प्राचीनतम ग्रन्र् है।  इसके प्रवतथक बादायण र्े।
 इसकी मान्यता है तक तकथ के आधार पर ही तकसी  इन्होंने ब्रह्मसत्रू की रचना की र्ी।
बात को स्वीकार करे ।ोँ इस दिथन का मल ू उपतनषद है।

80
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
र्हाजनपद काल
 महाजनपद प्राचीन भारत में राज्य या बडी
16 र्हाजनपद एिं उनकी राजधाभनयां:-
प्रिासतनक इकाईयों को कहते र्े।
 छठीं िताब्दी के उत्तराद्धथ में वैतदक काल के बडे
र्हाजनपद राजधानी
जनपद महाजनपदों में बदल गये, इसके सार् ही
अिंग/ राजग्रह चिंपा
छठीं िताब्दी ई.प.ू में गगिं ा-यमनु ा दोआब एविं
तबहार में लोहे का प्रचरु प्रयोग होने के कारण मगध तगररब्रज/ राजगीर
अतधिेष उत्पादन होने लगा और व्यापार अवतन्त उज्जैन/ महष्मतत
वातणज्य में बहुत वृतद्ध हुई, ये सभी कारण मल्ल कुिीनगर
महाजनपदों के तनमाथण में सहायक तसद्ध हुए। कािी वाराणसी
 16 महाजनपदों में 14 राजतिंत्रात्मक (वतज्ज व मत्स्य तवराट नगर (बैराठ)
मल्ल) एविं दो गणतिंत्रात्मक र्े। कौिल श्रावस्ती /कुिावती
वत्स कौिाम्बी
र्हाजनपद काल के स्रोि:- कम्बोज हाटक
वतज्ज वैिाली
 बौद्ध सातहत्य: अिंगुत्तर तनकाय एविं महावस्तु से कुरु हतस्तनापरु
16 महाजनपदों के तवषय में जानकारी तमलती है। पाच
िं ाल अतहतछत्र/ कातम्पल्य
गािंधार तक्षतिला
 जैन सातहत्य भगवती सत्रू से 16 महाजनपदों की
चेदी सोर्ीवतत /
जानकारी तमलती है।
सतु क्तवती
अश्मक पोटन / पैठान
 भिदेशी भििरर्: तनयाकथ स, जतस्टन, प्लटू ाकथ ,
सरू सेन मर्रु ा
कतटथयस, अररस्टोबल ु स एविं अनेतसक्रटस आतद
तवदेिी यातत्रयों की रचनाओ िं से महाजनपद काल
नोट:-
के बारे में जानकारी तमलती है।
 16 महाजनपदों में से 15 महाजनपद नमथदा घाटी
के उत्तर में र्े जबतक एकमात्र ‘अश्मक’
गोदावरी नदी घाटी में तस्र्त र्ा।
 महावस्तु में तजन महाजनपदों की सचू ी तमलती है
उनमें गािंधार एविं कम्बोज के स्र्ान पद क्रमि:

81
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
तितव (पजिं ाब) एविं दिथना (मध्य भारत) का  मगध की प्रारिंतभक राजधानी तगररब्रज (राजगीर/
उल्लेख है। राजगृह) र्ी। यह पाच िं पहातडयों ( वराह, वृषभ,
 महाजनपद काल की सवाथतधक महत्वपूणथ ऋतषतगरर, चेत्त्यक एविं वैभार) से तघरा नगर र्ा।
तविेषता ‘ आहत तसक्का’ या ‘पिंचमाकथ  ऋगवेद में मगध के तलए ‘कीकट’ एविं अर्वथवेद
तसक्का’ है। में मगध तनवातसयों के तलए ‘ब्रात्य’ कहा गया है।
 महाजनद काल में लोग ‘ उत्तरी काले मृदभािंडों’  महाभारत तर्ा परु ाणों के मगध का सवथप्रर्म
का उपयोग करते र्े। विंि वृहद्रर् र्ा, जरासिंघ, वृहद्रर् का पत्रु र्ा,
जरासघिं ने तगररब्रज ( राजग्रह) को मगध की
र्हाजनपद एिं उनकी भिशेषिाएं :- पहली राजधानी बनाया र्ा, जरासिंघ ने श्री कृ ष्ण
द्वारा किंष का वध करने के बाद मर्रु ा पर
1.अंग:- आक्रमण तकया र्ा। भीम ने जरासघिं को द्वदिं यद्ध ु
राजधानी – चिंम्पा ( प्राचीन नाम- मातलनी) में परातजत कर मारा र्ा।
 क्षेत्र: आधतु नक भागलपरु एविं मिंगु ेर ( तबहार)  तगररब्रज के अन्य नाम कुिाग्रपरु , वसमु तत,
 प्रमख ु नगर: चम्पा ( बिंदरगाह), अश्वपरु , भतद्रका मगधपरु , वृहद्रर्परु एविं तबतम्बसारपरु ी तमलते हैं।
 िासक: तबतम्बसार के समय यहािं का िासक  परु ाणों एविं तकिंवदतिं तयों के अनुसार, वृहद्रर् विंि
ब्रह्मदत्त र्ा। ब्रह्मदत्त को मगध के िासक में 10 राजा हुए र्े। तजसे उसके मिंत्री पल ु क ने
तबतम्बसार ने परातजत कर अगिं को मगध में मारकर अपने पत्रु को राजा बनाया र्ा एक अन्य
तमलाया र्ा। मिंत्री महीय ने पल ु क और उसके पत्रु की हत्या कर
 इस नगर का वास्तक ु ार महागोतविंद र्ा। दी एविं तबतम्बसार को गद्दी पर बैठाया।
 चिंम्पा के व्यापररयों का सिंबिंध सवु णथभूतम से र्ा।  बौद्ध ग्रिंर्ों में मगध के पहले राजविंि को हयथक
वि िं एविं इसका सस्िं र्ापक तबतम्बसार को माना है।
2. र्गध:-
राजधानी: तगररव्रज/ राजगीर/ राजगृह 3. िभज्ज:-
 इसके अिंतगथत वतथमान तबहार का पटना एविं गया राजधानी: वैिाली
तजला तर्ा िाहाबाद का कुछ क्षेत्र िातमल र्े। वतथमान तस्र्तत: तबहार व नेपाल में तवस्तृत
 वतज्ज सिंघ एविं मगध की सीमा रे खा का तनमाथण  वतज्ज सिंघ की राजधानी वैिाली र्ी, तजसकी
गिंगा नदी करती र्ी। पहचान आधतु नक बसाढ़ नाम से की जाती है,
यह तबहार के मज्ु जफरपरु तजले में तस्र्त है।

82
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
 िासक: वैिाली की स्र्ापना इक्ष्वाकु के पत्रु  वतज्ज सिंघ का गणराज्य तवदेह, अपने दािथतनक
तविाल ने की र्ी। उसी के नाम पर इसका नाम राजाओ िं के तलए प्रतसद्ध र्ा, तवदेह की राजधानी
वैिाली पडा। तमतर्ला र्ी।
 यह 8 गणराज्यों का एक सिंघ र्ा, यहािं का प्रमख ु  अजातित्रु ने अपने मिंत्री वस्सकार की सहायता
िासक चेटक र्ा, वतज्ज सिंघ में िातमल 8 से वतज्ज सिंघ के सदस्यों में फूट डालकर उनकी
गणराज्य- तवदेह, वतज्ज, तलच्छतव, ज्ञातृक, ितक्त को कमजोर कर वतज्ज सिंघ को मगध
किंु डग्राम, भोज, इक्ष्वाकू एविं कौरव र्े। साम्राज्य में तमलाया र्ा।
 वतथमान ततरहुत प्रमडिं ल में वतज्जयों का राज्य र्ा।
 वतज्ज सघिं का तलच्छतव गणराज्य इततहास में 4.अिंभन्ि:-
ज्ञात प्रर्म गणतिंत्र राज्य र्ा। राजधानी –
 तलच्छतवयों ने महात्मा बद्ध ु के तनवाथण हेतु  उत्तरी अवतिं त- उज्जैन
कतागारिाला का तनमाथण करवाया र्ा।  दतक्षणी अवतिं त मातहष्मती
 वतज्ज सिंघ के प्रधान चेटक की पत्रु ी चेलन (
छे लना) का तववाह मगध के राजा तबतम्बसार से वतथमान क्षेत्र: उज्जैन, तजले से लेकर नमथदा नदी तक
हुआ र्ा। ( मध्य प्रदेि)
 तलच्छतव सिंघ में ज्ञातृक कुल भी िातमल र्ा  प्रमख ु नगर: कुरारगढ़, मक्करगढ़ एविं सदु िथनपरु
तजसके प्रमख ु तसद्धार्थ र्े। इन्हीं के यहािं किंु डग्राम  िासक: परु ाणों के अनसु ार अवतन्त के सिंस्र्ापक
स्र्ान पर 540 ई. प.ू में महावीर स्वामी का जन्म हैहय वि िं के लोग र्े।
हुआ र्ा।  महावीर स्वामी तर्ा गौतम बद्ध ु के समकालीन
 महावीर स्वामी की माता तत्रिाला तलच्छवी यहािं का िासक चिंड प्रद्योत र्ा।
राज्य के प्रमख ु चेटक की बहन र्ी।  तबतम्बसार ने वैद्य जीवक को चिंड प्रद्योत के
 वैिाली की राज्यनृत्यािंगना आम्रपाली र्ी। तजसे उपचार के तलए उज्जैन भेजा र्ा।
‘वैिाली की नगरवध’ु भी कहा जाता र्ा।  लोहे की खान होने के कारण यह एक प्रमख ु एविं
आम्रपाली का प्रेम सिंम्बन्ध मगध के िासक ितक्तिाली महाजनपद र्ा।
तबतम्बसार से र्ा। तबतम्बसार तलच्छतवयों से
आम्रपाली को जीतकर राजगृह लेकर आया र्ा। 5. ित्स:-
 आम्रपाली को महात्मा बद्ध ु ने ‘आयाथ अम्बा’ राजधानी – कौिाम्बी
कहकर सिंबोतधत तकया र्ा।  वतथमानक्षेत्र: इलाहाबाद एविं तमजाथपरु तजला (
उत्तर प्रदेि)

83
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
 िासक: गौतम बद्ध ु एविं तबतम्बसार के  कािी सतू ी वस्त्र एविं अश्व व्यापार के तलए
समकालीन उदयन यहािं का िासक र्ा। प्रतसद्ध र्ा।
 चिंड प्रद्योत ने अपनी पत्रु ी वासदत्ता का तववाह
उदयन से तकया र्ा, गौतम बद्ध ु के तिष्य
तपडडोला ने उदयन को बौद्ध धमथ की दीक्षा दी र्ी, 7. कोशल:-
ध्यातव्य है तक यही उदयन भास की राजधानी:
स्वप्नवासदत्त, हषथ की रत्नावली एविं  उत्तरी राजधानी: श्रावस्ती
तप्रयदतिथका इन तीनों सिंस्कृ त नाटकों का नायक  दतक्षणी राजधानी: कुिावती
र्ा।  वतथमान क्षेत्र: आधतु नक अवध ( फै जाबाद,
 कालान्तर में अवतन्त ने वत्स पर अतधकार कर गोंडा, बहराइच) का सरयू नदी के आसपास का
तलया एविं अतिं तम रूप से तििनु ाग ने वत्स को क्षेत्र
मगध में तमला तलया।  िासक: बद्ध ु के समकालीन यहािं का िासक
 वत्स महाजनपद की राजधानी कौिाम्बी जैन एविं प्रसेनजीत र्ा।
बौद्ध दोनों धमों का कें द्र र्ी।  श्रावस्ती की पहचान महेत से की जाती है, और
वहािं पर तस्र्त जेतवन तवहार के अविेषों की
6. काशी: - पहचान सहेत से की जाती है, इन्हीं को सतम्मतलत
राजधानी- बनारस / वाराणसी रूप से ‘सहेत- महेत’ कहा जाता है।
 वतथमान क्षेत्र: वाराणसी एविं समीपवती क्षेत्र  महाकाव्य काल में इसकी राजधानी अयोध्या र्ी।
 कािी, वरुणा एविं अस्सी नतदयों के तकनारे बसा  प्रसेनजीत ने अपनी पत्रु ी वातजरा का तववाह
हुआ र्ा। अजातित्रु से तकया र्ा और कािी दहेज में तदया
 कािी को अतवमक्ु तक्षेत्र अतभधान भी कहा र्ा।
जाता र्ा।
 कािी का सवथप्रर्म उल्लेख अर्वथवेद में तमलता 8. कुरु:-
है। जातक के अनसु ार, राजा दिरर् एविं राम राजधानी: इन्द्रप्रस्र् एविं हतस्तनापरु
कािी के राजा र्े।  क्षेत्र: मेरठ, तदल्ली एविं र्ानेश्वर के आसपास का
 िासक: इसकी स्र्ापना तदवोदास ने की र्ी। क्षेत्र
 कािी का प्रमख ु िासक अजातित्रु र्ा।  िासक: बद्ध ु के समकालीन यहािं का िासक
अजातित्रु के समय ही कािी मगध का तहस्सा कौरणय र्ा।
बना।

84
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
 इसका उल्लेख महाभारत एविं अष्टध्यायी में 11. र्ल्ल: -
तमलता है। राजधानी: कुिीनारा/ पावापरु ी
 वतथमान क्षेत्र: देवररया
9. पांचाल:-  िासक: यहािं का िासक ओक्काक र्ा।
राजधानी:  यहािं का िासन गणतत्रिं ात्मक र्ा।
 उत्तरी पािंचाल: अतहछत्र  इसी महाजनपद के कुिीनगर में महात्मा बद्ध
ु को
 दतक्षण पािंचाल : कािंतम्पल्य महापररतनवाथण प्राप्त हुआ र्ा, जबतक इसी
 वतथमानक्षेत्र: इसके अिंतगथत बरे ली, बदाय,िंू महाजनपद के पावा स्र्ान पर महावीर की मृत्यु
फरुथखाबाद आतद क्षेत्र िातमल र्े। हुई र्ी।
 िासक: यहािं का िासक चल ु ामी ब्रह्मदत्त र्ा।
 इसका उल्लेख महाभारत एविं अष्टाध्यायी में 12. चेभद:-
तमलता है। राजधानी: ितु क्तमतत ( सोतत्र्वती)
 द्रोपदी पािंचाल महाजनपद से ही सिंबिंतधत र्ी।  वतथमान क्षेत्र: इस महाजनपद में मध्यप्रदेि एविं
 प्रमख बिंदु ले खिंड का यमनु ा नदी का क्षेत्र िातमल र्ा।
ु ऐततहातसक नगर कान्यकुब्ज ( वतथमान
कन्नौज) इसी महाजनपद में र्ा।  बद्ध ु के समय यहािं का राजा उपचर र्ा।
 यहीं पर महाभारत कालीन राजा तििपु ाल राज
तकया करता र्ा, तजसका वध श्री कृ ष्ण ने सदु िथन
10. सूरसेन:- चक्र द्वारा तकया र्ा।
राजधानी: मर्रु ा
 वतथमान क्षेत्र: इसमें मर्रु ा एविं आसपास का क्षेत्र
िातमल र्ा। 13. र्त्स्य:-
 िासक: बद्ध राजधानी: तवराट नगर
ु के समय यहािं का िासक
चडडप्रद्योत की कन्या का पत्रु अवतन्तपत्रु र्ा, इस  वतथमान क्षेत्र: इसमें राजस्र्ान के अलवर, जयपरु
प्रकार अिंवतत पत्रु की नतनहाल अवतन्त एविं भरतपरु का क्षेत्र िातमल र्ा।
महाजनपद र्ी।  मनस्ु मृतत में मत्स्य, कुरुक्षेत्र, पािंचाल, एविं सरू सेन
 यहीं के िासक यदवु िंिी भगवान कृ ष्ण र्े। को ब्राह्मण मतु नयों का अतधवास ब्रह्मषी देि कहा
 मेगास्र्नीज की पस्ु तक इतिं डका में िरू सेन का गया है।
उल्लेख तमलता है।

85
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
14. अश्र्क:-  यह गािंधार का पडोसी राज्य र्ा।
राजधानी- पोटन: पैठान ( प्राचीन नाम-  यह श्रेष्ठ घोडों के तलए प्रतसद्ध र्ा।
प्रततष्ठान)  महाभारत काल में यहािं के दो िासक चन्द्रवमथन
 वतथमान क्षेत्र: नमथदा एविं गोदावरी नतदयों के मध्य एविं सदु तक्षणा की चचाथ तमलती है।
का भाग।
 यह एकमात्र महाजनपद र्ा जो दतक्षण भारत में
तस्र्त र्ा।
 िासक: इसकी स्र्ापना इक्ष्वाकु वि िं के िासक
मल ू क ने की र्ी।
 जातक के अनसु ार, यहािं के िासक प्रवर अरुण
ने कतलिंग पर तवजय प्राप्त की एविं अपने राज्य में
तमलाया, कालान्तर में अवतन्त ने अश्मक राज्य
पर तवजय प्राप्त की।

15. गांधार:- राजधानी: तक्षतिला


 वतथमान क्षेत्र: इसमें पातकस्तान का पतिमी
(पेिावर, रावलतपडिं ी) एविं अफगातनस्तान का
काबल ु घाटी िातमल र्ा।
 इस महाजनपद का दसू रा प्रमख ु नगर पष्ु कलावती
र्ा।
 यहािं तबतम्बसार का समकालीन िासक
पष्ु करसरीन राज करता र्ा।
 गाधिं ार के िासक दृतहवि िं ी र्े।
 यह क्षेत्र ऊनी वस्त्र उत्पादन के तलए प्रतसद्ध र्ा।

16. कम्बोज:-
राजधानी: हाटक ( वैतदक यगु में- राजपरु )
 वतथमानक्षेत्र: इसमें पातकस्तान का रावलतपिंडी,
पेिावर, काबल ु घाटी का क्षेत्र िातमल र्ा।

86
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं

र्गध राज्य का उत्कषम

र्गध के उत्कषम / सिलिा के कारर्:- हयमक िंश:


(1) मगध की भौगोतलक तस्र्तत:- मगध  बौद्ध ग्रिंर् के अनसु ार, मगध का पहला राजविंि
प्राकृ ततक रूप से अभेद्य र्ा क्योंतक मगध की हयथक विंि ( तपतृहिंता विंि) र्ा तकिंतु इसका
प्रारिंतभक राजधानी तगररब्रज पािंच पहातडयों सस्िं र्ापक तबतम्बसार नहीं र्ा। बौद्ध ग्रर्िं ों के
(वराह, वृषभ, वैभार, ऋतषतगरी और चैत्तयक) अनसु ार, ‘तबतम्बसार के तपता ने उसका 15 वषथ
से चारों तरफ तघरी हुई र्ी, जबतक मगध की की आयु में राज्यातभषेक कर तदया र्ा।
दसू री राजधानी पातटलीपत्रु तीन नतदयों ( गिंगा,
गडडक और सोन) से तघरी हुई र्ी, जो तक एक भबभम्बसार ( 544 ई. पू. से 492 ई. पू.) :-
जलदगु थ का तनमाथण कर रही र्ी।  जैन ग्रिंर्ों में तबतम्बसार को श्रेतणक कहा गया है।
(2) योग्य राजाओ िं की श्रख िं ला:- मगध को  तबतम्बसार ने मगध में हयथक विंि की स्र्ापना की
तबतम्बसार, अजातित्रु जैसे महान राजा तमले एविं तगररब्रज (राजगृह) को अपनी राजधानी
और बाद के राजा भी ितक्तिाली हुए। बनाया।
(3) लोहे के समृद्ध भडिं ार:- लोहे के समृद्ध भडिं ार
 तबतम्बसार ने अिंग की राजधानी चिंपा का उपराजा
होने के कारण मगध व्यापार वातणज्य का कें द्र
अपने पत्रु अजातित्रु को बनाया र्ा।
बना और इसकी आतर्थक तस्र्तत सद्रु ण हुई।
 तबतम्बसार ने वैवातहक सबिं धिं ों के द्वारा मगध की
(4) कुिल यद्ध ु कला :- मगध ने कई प्रकार के
ितक्त में वृतद्ध की र्ी। तबतम्बसार द्वारा स्र्ातपत
नवीन अस्त्र जैसे महातिलाकिंडटक, रर्मसू ल
तकये गये वैवातहक सिंम्बध-
(अजातित्रु द्वारा) का प्रयोग तकया एविं मगध
1. तबतम्बसार ने कोसल नरे ि प्रसेनजीत की बहन
ऐसा पहला राज्य र्ा, तजसने यद्ध ु में हातर्यों का
महाकोसला से तववाह द्वारा तबतम्बसार को दहेज
प्रयोग करना प्रारिंभ तकया।
के रूप में कािी प्राप्त हुआ।
2. तबतम्बसार ने तलच्छतव गणराज्य के िासक
र्गध का एक राज्य के रूप र्ें उत्कषम:-
चेटक की पत्रु ी चेलना (छे लना) से तववाह तकया,
 परु ाणों के अनसु ार मगध पर िासन करने वाला
अजातित्रु द्वारा तबतम्बसार को कारागार में रखने
पहला वि िं वृहद्रर् वि
िं र्ा, इसका सस्िं र्ापक
पर यही तबतम्बसार के तलए भोजन लेकर जाती
वृहद्रर् र्ा, लेतकन बौद्ध ग्रर्ों के अनसु ार मगध
र्ी।
का पहला विंि हयथक विंि र्ा।

87
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
3. पजिं ाब के मद्रकुल के प्रधान की पत्रु ी क्षेमा (  तबतम्बसार के बाद उसका पत्रु अजातित्रु मगध
खेमा) से तववाह तकया। के तसहिं ासन पर बैठा र्ा। इसका अन्य नाम
‘कुतणक’ भी है इसे वैदते हपत्रु भी कहा जाता है।
 तबतम्बसार का अवतन्त (उज्जैन) के िासक चडड अजािशरु द्वारा र्गध साम्राज्य भिस्िार:-
प्रद्योत के सार् अतनणाथयक युद्ध हुआ र्ा, बाद में
दोनों में तमत्रता हो गयी र्ी। 1. कोसल:- अजातित्रु ने सबसे पहला
 तबतम्बसार ने अपने राजवैद्य जीवक को चडड आक्रमण कोसल राज्य पर तकया और कोसल
प्रद्योत के पािंडू रोग (पीतलया) के उपचार के तलए राजा प्रसेनजीत को परातजत तकया, दसु रे
अवतन्त ( उज्जैन) भेजा र्ा। आक्रमण के समय प्रसेनजीत ने अपनी पत्रु ी
 तबतम्बसार को जैन एविं बौद्ध दोनों अपना वातजरा का तववाह अजातित्रु से कर तदया।
अनयु ायी बताते हैं। वास्तव में तबतम्बसार दोनों
मतों का पोषक र्ा। 2. िैशाली/ भलच्छिी सघं से यद्ध ु :-
 मगध का प्रतसद्ध वास्तक अजातित्रु ने अपने मिंत्री वस्सकार/ वषथकार और
ु ार महागोतवन्द को माना
जाता है, इसी के तनदेिन में राजधानी राजगृह का सनु ीध की सहायता से वतज्ज सिंघ के सदस्यों में
नवीन नगर के रूप में तनमाथण हुआ र्ा। फूट डालकर पहले उनकी ितक्त को कमजोर
तकया बाद में वैिाली पर आक्रमण तकया।
 इततहास में तबतम्बसार प्रर्म िासक र्ा तजसने
स्र्ायी सेना रखी र्ी।  वैिाली के तलच्छतवयों के सार् यद्ध ु में ही
अजातित्रु ने दो नए यद्ध ु तिंत्र रर्मसू ल एविं
 तवनय तपटक के अनसु ार, देवदत्त के उकसाने पर
महातिलाटिंक का प्रयोग तकया र्ा।
अजातित्रु ने तबतम्बसार की हत्या कर दी र्ी,
जबतक जैन ग्रिंर्ों के अनसु ार, अजातित्रु ने  आजीवक, मक्खलीगोिाल इसी यद्ध ु को देखते
तबतम्बसार को कारागार में कै द कर तदया र्ा, और हुए मारे गये र्े।
कारागार में तबतम्बसार ने जहर खाकर आत्महत्या
कर ली र्ी। 3. र्ल्ल संघ:- अजातित्रु ने मल्लों पर
आक्रमण कर इसे भी मगध साम्राज्य में तमला
अजािशरु (492 ई.पू. से 460 ई. पू) :- तलया।
 बौद्ध ग्रिंर्ों में अजातित्रु को तपतृहतिं ा कहा गया
4. अिंन्िी:- अजातित्रु ने अवन्ती पर
है , जैन ग्रिंर्ों में नहीं।
आक्रमण कर इसे भी मगध साम्राज्य में तमला
तदया।

88
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
 अजातित्रु को कुल 36 गणराज्यों को नष्ट  यह जैन धमथ का समर्थक र्ा जैतनयों के उपवास
करने का श्रेय तदया जाता है। रखता र्ा, इसने पाटतलपत्रु में एक जैन चैत्याग्रह
 अजातित्रु ने पाटतलग्राम में एक दगु थ का तनमाथण का तनमाथण करवाया र्ा।
तकया र्ा। तजसका उद्घाटन महात्मा बद्ध ु ने तकया  अवतन्त के िासक पालक द्वारा भेजे गये गप्ु तचर
र्ा। महात्मा बद्ध ु ने भतवष्यवाणी की र्ी तक ने छुरा घोंप कर उदतयन की हत्या कर दी र्ी।
‘पाटलीपत्रु भारत का प्रधान नगर एविं व्यापार-  उदतयन के बाद तीन पत्रु अतनरुद्ध, मडु डक एविं
वातणज्य का कें द्र बनेगा’। नागदिक ने क्रमि: िासन तकया।
 अजातित्रु ने बद्ध ु के सामने अपने तपता की हत्या  हयथक विंि का अिंततम िासक नागदिक र्ा। यह
का अपराध स्वीकार तकया र्ा। अत्यिंत तवलासी और तनबथल िासक र्ा। इसके
 अजातित्रु ने िासनकाल के 8वें वषथ में गौतम िासनकाल में जनता में व्यापक असिंतोष फै ल
बद्धु के अविेषों पर स्तपू का तनमाथण करवाया गया और तवद्रोह िरू ु हो गया। जनता ने योग्य
र्ा। आमात्य तििनु ाग को अपना राजा बनाया। मगध
 अजातित्रु की हत्या इसके पत्रु उदयन/ उदतयन ने पर तििनु ाग विंि का िासन स्र्ातपत हुआ।
460 ई.प.ू ( लगभग 32 वषथ िासन) की र्ी।
 प्रर्म बौद्ध सगिं ीत:- इसका आयोजन अजातित्रु भशशनु ाग िंश (412 ई. पू. से 344 ई.पू)
के समय में 483 ई. प.ू में राजगृह की सप्तकरणी  तििनु ाग विंि का सिंस्र्ापक तििनु ाग र्ा।
गफ ु ा में हुआ र्ा। इसके अध्यक्ष महाकसप र्े।
इस सगिं ीतत में बद्ध
ु के उपदेिों को सत्ु ततपटक एविं भशशनु ाग ( 412 ई. पू. से 394 ई. पू.):-
तवनयतपटक में सिंकतलत तकया गया र्ा।  िासक बनने से पहले यह बनारस में गवथनर र्ा।
 इसने अवन्ती राज्य को जीतकर मगध साम्राज्य
उदयन / उदयिद्र (460 ई.प.ू से 445 ई.प.ू ) तमलाया र्ा, चिंतू क उस समय वत्स पर अवन्ती
 इसका अन्य नाम उदयभद्र तमलता है। यह का अतधकार र्ा इसतलये अवन्ती एविं वत्स दोनों
अजातित्रु एविं पद्मावती की सिंतान र्ा। इसके अतधकार में आ गये।
 मगध की गद्दी पर बैठने से पहले ये चिंपा का  इसने अपने राजधानी पाटलीपत्रु से वैिाली में
उपराजा र्ा। स्र्ानािंतररत की र्ी, इसने वैिाली की पनु :
 इसने गिंगा एविं सोन नदी के सिंगम पर पाटतलपत्रु स्र्ापना की र्ी, जो इसकी मािं की जन्मस्र्ली
(कुसमु परु ा) नामक एक नये नगर का तनमाथण र्ी।
करवाया एविं अपनी राजधानी को राजगृह से
पाटतलपत्रु स्र्ानािंतररत कर तदया।

89
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
कालाशोक ( 394 ई. प.ू से 366 ई. प.ू ) :- गतणका से उत्पन्न बताया गया है। परु ाणों में इसे
 इसका अन्य नाम काकवणथ भी र्ा। िद्रू िासक बताया गया है।
 यह अपनी राजधानी को पनु : पाटलीपत्रु ले गया
र्ा। र्हापद्मानदं :-
 बाणभट्ट रतचत हषथचररत के अनसु ार कालािोक  परु ाणों में इसे सवथक्षत्रािंन्तक ( क्षतत्रयों का नाि
की हत्या महापद्मानन्द ने की र्ी। करने वाला), भागथव और अपरोपरिरु ाम (
 महाबोतधविंि के अनसु ार, कालािोक के पत्रु ों ने तद्वतीय परिरु ाम) कहा गया है।
मगध पर 22 वषथ राज तकया र्ा।  महापद्मानन्द ने एकच्छत्र एविं एकराट की उपातध
 तद्वतीय बौद्ध सिंगीतत:- तद्वतीय बौद्ध सिंगीतत का धारण की र्ी।
अयोजन 383 ई. प.ू कालािोक के िासन काल  महाबोतधविंि में इसका नाम उग्रसेन तमलता है।
में वैिाली में हुआ र्ा। इसके अध्यक्ष  महापद्मनन्द ने कतलिंग, कोसल, हैहय और
सब्बाकामी ( सवथकामी) र्े। इस सिंगीतत में बौद्ध अश्मक पर तवजय प्राप्त की र्ी।
धमथ स्र्तवर एविं महासिंतघक दो भागों में बट गया  अश्मक पर तवजय प्रातप्त के उपलक्ष्य में इसने
र्ा। सिंभवत: गोदावरी नदी तट पर नवनन्द देहरा
 तििनु ाग वि िं का अतिं तम िासक नतन्दवद्यथन या (नान्देड) नगर का नामकरण तकया र्ा।
महानन्दी र्ा।  कतलिंग तवजय की पतु ि खारवेल के हार्ी गम्ु फा
अतभलेख से होती है, महापद्मनिंद कतलिंग से
तजनसेन की प्रततमा को उठा लाया र्ा, तजसे बाद
नदं िंश (344 ई. पू. से 324 ई. पू.) में खारवेल वापस ले गया र्ा।
राजधानी :- पातटलीपत्रु  महापद्मानद ने कतलिंग में नहरों का तनमाथण
 संस्थापक: महापद्मानन्द करवाया र्ा।
 इस विंि में कुल 9 राजा हुए, इसतलये इन्हें नवनन्द  इसका मिंत्री कल्पक र्ा, तजसने इसकी तवजयों में
भी कहते हैं। भरपरू सहायता की र्ी।
 परु ाणों में नन्द िासकों को अ-धतमथक, अर्थरुतच,  तविंध्य पवथत के दतक्षण में अपनी पताका फहराने
एविं नवनवततद्रव्यकोतटश्वर कहकर तनिंदा की गयी वाला वह प्रर्म मगध िासक र्ा।
है।  मजिं श्रू ी मलू कल्प के अनसु ार पातणतन,
 बौद्ध ग्रिंर्ों में महापद्मानन्द को अज्ञात कुल का महापद्मानिंद के तमत्र एविं दरबारी र्े।
जैन ग्रिंर् पररतिष्टपवथन में नातपत दास और  निंन्द विंि का अिंततम िासक घनानिंद र्ा।

90
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
घननन्द/ घनानन्द:-
 यह नदिं वि िं का अतिं तम िासक र्ा।
 यनू ानी लेखकों ने इसे ‘अग्रमीज’ कहा है। परु ाणों
में इसे ‘औग्रसेन्य’ कहा गया है। इसका एक अन्य
नाम ‘ जैन्द्रीमीज’ भी तमलता है।
 इसका सैनापतत भद्दिाल र्ा तजसे चन्द्रगप्ु त मौयथ
ने परातजत तकया र्ा।
 इसके समय में तसकन्दर ने भारत पर आक्रमण
तकया र्ा।
 नन्द वि िं के िासक जैन धमथ के उपासक र्े।
 घनानदिं के जैन आमात्य िकटाल तर् स्र्ल ू भद्र
र्े।
 मद्रु ाराक्षस के अनसु ार, नन्द विंि के तवनाि में जैन
धमथ की भतू मका र्ी।
 चन्द्रगप्ु त मौयथ ने चाणक्य की सहायता से
घनानन्द के सेनापतत भद्दिाल को परातजत तकया
एविं घनानन्द को मार कर मगध में मौय वि िं की
स्र्ापना की।

अन्य र्हत्िपर् ू म िथ्य:-


 वषथ, उपवषथ, वारुची, कात्यायन एविं पतणतन जैसे
तवद्वान निंद विंि काल में र्े।
 नन्द विंि के िासकों ने माप की नई प्रणाली
निंदोपक्रमतनमानातप चलायी र्ी।
 नन्दविंि पहला विंि र्ा तजसने बडे पैमाने पर
आहत तसक्के जारी तकये र्े।
 नन्द विंि ने प्रर्म वृहत मगध साम्राज्य की
स्र्ापना की र्ी। इन्होनें पाटतलपत्रु को समस्त
उत्तर भारत का कें न्द्र बना तदया र्ा।

91
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
िारि पर भिदेशी आक्रर्र्
भारत पर सबसे पहला तवदेिी आक्रमण पतिथया के  भारत में अतभलेख उत्कीणथ करने की प्रर्ा
ह्खामनी (ईरानी) िासक ने तकया और इनके बाद आरिंम्भ हुई।
दसू रा आक्रमण यनू ातनयों ने तकया र्ा।
 ईरातनयों की क्षत्रप प्रणाली को भारत के िक एविं
कुषाण िासकों ने अपनाया र्ा।
पारसी/ ईरानी/ हखार्नी आक्रर्र्:-
 भारत पर आक्रमण करने वाला पहला ईरानी यूनानी आक्रर्र् ( र्कदूभनयाई आक्रर्र्):-
िासक साइरस- II ( कुरुष) र्ा परिंतु इसका
 ईरान के बाद मकदतू नया तनवासी तसकन्दर ने
आक्रमण असफल रहा।
भारत पर आक्रमण तकया। तसकन्दर ने भारत पर
 डेररयस- I (दारा) ने 516 ई. प.ू में भारत पर 326 ई. प.ू में आक्रमण तकया र्ा। तसकन्दर के
आक्रमण तकया और तसिंधु नदी के तटवती भ-ू आक्रमण के समय मगध पर नन्द विंि के िासक
भाग सतहत कम्बोज एविं गािंधार पर अतधकार कर धनानन्द का िासन र्ा। तसकन्दर के सार्
तलया र्ा। तनयाकथ स( जलसेना अध्यक्ष), आनेतसक्टस और
 डेररयस- I के तीन अतभलेख तमले हैं। बेतहस्तनू , अररस्टोवल्ु स आये र्े। तसकन्दर का सेनापतत
पतिथपोतलस, नक्ि-ए-रुस्तम तजसमें पतिथपोतलस सेल्यकू स तनके टर र्ा।
और नक्ि-ए-रुस्तम में भारत पर आक्रमण का  326 ई.प.ू में तसकन्दर ने खैबर दरे से तसिंधु नदी
उल्लेख है। को पार कर भारत की धरती पर कदम रखा।
 जरकतसस इस ईरानी राजा ने यनू ातनयों के  तक्षतिला के िासक आम्भी ने आत्मसमपथण कर
तखलाफ भारतीयों को अपनी फौज में िातमल तसकन्दर की सहायता करने का वचन तदया।
तकया ( ध्यातव्य है तक हॉलीवुड की प्रतसद्ध
 तहन्दक
ु ु ि के िासक ितिगप्ु त ने भी
तफल्म ‘300’ में ईरानी राजा के रूप में इसी
आत्मसमपथण कर तदया र्ा।
जरकतसस को तदखाया गया है।)
 झेलम/ तवतस्ता/ हाइडेस्पीज का यद्ध ु :-
 ईरान में इस विंि की राजधानी पतसथपोलस र्ी।
 यह यद्धु झेलम नदी के तट पर पौरव / परुु / पोरस
तर्ा तसकन्दर के मध्य हुआ, इसमें परुु परातजत
आक्रर्र् का प्रिाि :-
हुआ।
 भारत का पतिम के सार् सिंम्बध सदृु ढ हुआ।
 पोरस की वीरता से प्रसन्न होकर तसकन्दर ने
 तवदेिी व्यापार को बल तमला।
पोरस का राज्य लौटा तदया एविं परुु से तमत्रता कर
 खरोष्ठी तलतप का जन्म अरमेइक तलतप की ली।
सहायता से।

92
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
 पोरस से यद्ध ु जीतने के बाद तसकन्दर आगे बढ़ा भसकन्दर द्वारा स्थाभपि नगर:-
तकिंन्तु तसकन्दर की सेना ने व्यास नदी पार करने  तनकै या (तवजय नगर)
से माना कर तदया।  बकु े फाल/ बऊके फला ( झेलम के तट पर अपने
 तसकन्दर के भारत आक्रमण के समय अश्वक घोडे की याद में)
राज्य (मसग) में सारे परुु षों के मारे जाने के बाद  तसकन्दररया नगर की स्र्ापना।
वहािं की मतहलाओ िं ने रानी तकलओतफस के
नेतत्ृ व में तसकन्दर से यद्ध
ु तकया र्ा, तसकन्दर ने भसकन्दर की िापसी:-
सारी मतहलाओ िं को मरवा तदया र्ा, यहीं से  तसकन्दर भारत में 19 महीने रहा
तसकन्दर को करीब ढाई लाख बैल प्राप्त हुए र्े  तसकन्दर ने अपने तवतजत प्रदेिों को चार
तजन्हें तसकन्दर ने अपने देि यनू ान भेज तदया र्ा। प्रिासतनक इकाईयों में बाटिं तदया और वापस
 आगालासोई जातत के लोगों ने तसकन्दर के चला गया, रास्ते में ही 323 ई. पवू थ में तसकन्दर
सामने समपणथ नहीं तकया और अपने बीवी बच्चों की मृत्यू बेबीलोन में हो गई।
सतहत आग में कूदकर जान दे दी, इस घटना को
जौहर प्रर्ा का पवू ाथनगु ामी माना जा सकता है। यूनानी आक्रर्र् का प्रिाि :-
 तसकन्दर की भारत में अिंततम तवजय:- पटलेन  भारत में यनू ानी मद्रु ाओ िं की तरह उलक
ू िैली के
(पाटल) राज्य पर र्ी। तसक्के ढाले गये।
 गािंधार कला पर यनू ानी कला का प्रभाव स्पष्ट
भसकन्दर के भिभजि प्रदेशों की प्रशासभनक रूप से तदखाई पडता है।
इकाईयां:-
 भारत में यनू ानी िब्दों का प्रचलन प्रारिंभ हुआ,
 तसन्धु के उत्तरी एविं पतिमी भागों का क्षत्रप जैसे नाटक के पदे को यवतनका कहा जाने लगा
तफतलप को तनयक्ु त तकया। एविं काली तमचथ को यवनतप्रय कहा जाने लगा।
 तसन्धु तर्ा झेलम के बीच का भ-ू भाग का िासन  तसकन्दर के आक्रमण से 4 तभन्न-तभन्न स्र्ल
आम्भी को सौंप तदया। मागथ एविं जलमागों के द्वार खुले।
 झेलम के पवू ी भाग से व्यास नदी तक का क्षेत्र  पतिमोत्तर भारत के अनेक छोटे-छोटे राज्यों का
पोरस को सौंप तदया। एकीकरण हुआ।
 तसिंधु नदी के तनचले भाग पर तपर्ोन को क्षत्रप  प्राचीन यरू ोप को भारत के सपिं कथ में आने का
तनयक्ु त कर तदया । अवसर तमला।

93
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं

र्ौयम काल (322 ई.प.ू से 184 ई. पू.)


कौभटल्य की अथमशास्र
मौयथ सम्राज्य भारत का पहला कें द्रीय साम्राज्य र्ा,
 मौयों का इततहास जानने के तलए सातहतत्यकों
यह साम्राज्य पवू थ में मगध में गगिं ा नदी के मैदानों से स्त्रोतों में सबसे महत्वपूणथ तववरण कौतटल्य का
प्रारिंभ हुआ, और तेजी से पतश्चम की तरफ अपने क्षेत्र अर्थिास्त्र है।
का तवस्तार तकया। चिंद्रगप्ु त मौयथ ने कई छोटे-छोटे  अर्थिास्त्र, राजनीतत और लोक प्रिासन पर तलखी
क्षेत्रीय राज्यों के आपसी मतभेदों का फायदा उठाया, गई पहली प्रमातणक पस्ु तक है।
316 ई.प.ू तक मौयथ विंि ने परू े उत्तरी पतिमी भारत  अर्थिास्त्र में कुल 15 अतधकरण ( चैप्टर) तर्ा
पर अतधकार कर तलया र्ा, सवाथतधक सम्राज्य 6000 श्लोक हैं।
तवस्तार सम्राट अिोक के समय में हुआ।  डा. िाम िास्त्री ने सवथप्रर्म 1905 में मैसरू
सग्रिं हालय से खोजा और उसके बाद 1906-1909
र्ौयम इभिहास के स्रोि:- तक उन्होंने इसका अिंग्रेजी अनवु ाद ‘इतिं डयन
एिंटीक्वेरी’ व ‘मैसरू ररव्य’ू में प्रकातित करवाया।
 भिशाखदत्ि की र्ुद्राराक्षस:- इसमें कौतटल्य
 इसकी िैली उपदेिात्मक और सलाहात्मक है।
की योजनाओ िं का उल्लेख है तक कै से उसने निंद
 कौतटल्य को भारत का मैतकयावेली भी कहा जाता
वििं की सत्ता को उखाड फें का। है।
 बौद्ध ग्रर्िं दीपवि िं एविं महावि
िं , तदव्यवादान एविं
तमतलन्दप् न्हो र्ेगस्थनीज की इभं डका
 जैन ग्रिंर्: कल्पसत्रू  मेगस्र्नीज सेल्यक ू स का राजदतू र्ा, जो चिंद्रगप्ु त
 तवष्णपु रु ाण मौयथ के दरबार में 304 ई. प.ू से 299 ई.प.ू तक रहा,
उसके ग्रिंर् इतिं डका से चिंद्रगप्ु त मौयथ के प्रिासन की
 पतिंजतल का महाभाष्य
जानकारी प्राप्त होती है।
 सिंगमकालीन सातहत्य: अहनारूर एविं परणार  यह ग्रिंर् अपने मल ू -रूप में उपलब्ध नहीं है, तफर भी
 क्षेमेन्द्र की वृहत्कर्ामिंजरी इसके उद्धरण अनेक यनू ानी लेखकों एररयन, स्रैबो,
 सोमदेव की कर्ासररत्सागर प्लटू ाकथ , तप्लनी, जतस्टन एविं डायोडोरस के ग्रिंर्ों में
प्राप्त होते हैं।
 अिोक के अतभलेख
 डा. स्वान वेग ने सवथप्रर्म 1846 में इन समस्त
 रुद्रदामन का जनू ागढ़ अतभलेख उद्धरणों को सिंग्रहीत करके प्रकातित करवाया।
 चन्द्रगप्ु त मौयथ का सोहगौरा लेख  1891 में मैतक्रडडल महोदय ने इसका अिंग्रेजी में
 महास्र्ान लेख अनवु ाद तकया।
 कौतटल्य की अर्थिास्त्र

94
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
र्ौयम िश
ं (322 ई.प.ू – 184 ई.प.ू )  1793 ईस्वी में सर तवतलयम जोन्स ने रॉयल
 स्थापना:- चन्द्रगप्ु त मौयथ एतियातटक सोिायटी के सम्मख ु बताया तक ये
 राजधानी:- पाटतलपत्रु तीनों नाम चिंद्रगप्ु त मौयथ के ही हैं।
 अंभिर् शासक: वृहद्रर्
 राजभचह्र: मयरू चंद्रगुप्ि र्ौयम की उपाभधयां:-
 पाटलीपत्रु क
चंद्रगुप्ि र्ौयम (322 ई. पू. से 298 ई. पू.):-  प्रर्म भारतीय साम्रज्य का सस्िं र्ापक
 र्ौयम कौन थे -  भारत का प्रर्म एततहातसक सम्राट
 शूद्र: ब्राह्मण ग्रर्िं , मद्रु ाराक्षस के अनसु ार  भारत का मतु क्तदाता / भारतीय स्वतिंत्रता सिंग्राम
 क्षभरय: बौद्ध एविं जैन ग्रर्िं इसे मोररय क्षतत्रय विंि का प्रर्म नायक: देि को मकदतू नयाई दासता से
से सिंम्बोतधत करते हैं। इसके अलावा लौरीया मक्ु त कराने के कारण।
निंदनगढ़ के स्तिंभ के नीचे मयरू की आकृ तत
उत्कीणथ है तजससे इस मत की पतु ष्ट होती है। चन्द्रगुप्ि र्ौयम का प्रारंभिक जीिन:-
 पारसीक: स्पनू र का मत  चाणक्य की चन्द्रगप्ु त मौयथ से प्रर्म भेंट
तवन्ध्याचल के जगिं लों में हुई र्ी, उस समय
 र्ान्य र्ि: अतधकािंि इततहासकारों ने चिंद्रगप्ु त
चिंन्द्रगप्ु त ‘राजकीलम’ खेल खेल रहा र्ा।
मौयथ को क्षतत्रय माना है।
 चाणक्य ने चिंद्रगप्ु त को 1000 काषाथपण में
 मद्रु ाराक्षस में चद्रिं गप्ु त मौयथ को धनानन्द का पत्रु
खरीदा र्ा एविं उसको तिक्षा दीक्षा के तलए
बताया है, और इसे बृषल और कुलहीन कहा
तक्षतिला भेजा र्ा।
गया है।
 चिंद्रगप्ु त नाम का प्रर्म अतभलेखीय साक्ष्य
चंद्रगुप्ि र्ौयम की राजनैभिक उपलभब्धयां:-
रुद्रदामन का जनू ागढ़ अतभलेख है।
 र्गध पर आक्रर्र्:- चन्द्रगुप्त मौयथ ने सबसे
पहले मगध पर आक्रमण तकया परिंन्तु परातजत
चंद्रगुप्ि र्ौयम के अन्य नार्:-
हुआ।
1. सैन्रकोट्स: मेगास्र्नीज, स्रैबो, एररयन एविं
जतस्टन ने चिंद्रगप्ु त मौयथ को सैड्रकोट्स कहा।
2. एरं ोकोप्टस: इसका प्रायोग एतप्पयानस और  उत्िर पभिर् सीर्ा भिजय:- परातजत होने के
प्लटू ाकथ ने तकया। बाद, चिंन्द्रगप्ु त मौयथ ने मगध के उत्तर-पतिमी
3. सैन्रोकोप्ट्स : इस नाम का प्रयोग तनयाकथ स ने राज्यों पर आक्रमण तकया और पजिं ाब एविं तसधिं
तकया है। पर तवजय प्राप्त की।

95
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
 सम्पूर्म िारि भिजय:- प्लटू ाकथ के अनसु ार
 र्गध की भिजय:- चन्द्रगप्ु त मौयथ ने पवथतक चद्रिं गप्ु त मौयथ ने 6 लाख की सेना लेकर सपिं णू थ
नामक राजा से सहायता लेकर मगध के सेनापतत भारत को रौंद डाला। महाविंि में चिंद्रगप्ु त मौयथ को
भद्दसाल को परातजत तकया और मगध पर तवजय सकल जम्बदू ीप का िासक बताया गया है।
प्राप्त की इस तवजय के बाद 322 ई. प.ू में मद्रु ाराक्षस के अनसु ार, चिंद्रगुप्त का साम्राज्य
चन्िं द्रगप्ु त मौयथ भारत का सम्राट बना। चत:ु समद्रु पयंत र्ा। चनद्रगप्ु त का अतधकार
सौराष्र पर र्ा इसकी पतु ि रुद्रदामन के जनू ागढ़
 सेल्यक ू स से युद्ध:- तसकिंदर का सेनापतत अतभलेख से होती है। चन्द्रगप्ु त के दतक्षण भारत
सेल्यक
ू स बेबीलोन का राजा बना एविं बैतक्रया पर अतधकार की पतु ि सिंगमकालीन ग्रर्िं
पर तवजय प्राप्त की, भारत तवजय की लालसा से अहनारूर से होती है।
सेल्यकू स भारत की ओर बढ़ा एविं तसिंधु नदी पार
की यहािं उसका सामना चिंन्द्रगप्ु त मौयथ से हुआ,  चंन्द्रगुप्ि के साम्राज्य की सीर्ांए:- पतिम में
इसमें सेल्यक ू स की पराजय हुई। 303 ई.प.ू तहदिं क
ु ु ि पवथत से लेकर परू ब में बगिं ाल तक। उत्तर
सेल्यक ू स तनके टर एविं चिंद्रगप्ु त मौयथ के मध्य एक में कश्मीर से लेकर दतक्षण में मैसरू ( कनाथटक)
सिंतध हुई, ‘ यह भारत के इततहास की प्रर्म तक चिंद्रगप्ु त मौयथ पहला सम्राट र्ा तजसने दतक्षण
अिंतराथष्रीय सिंतध है’ भारत पर तवजय प्राप्त की र्ी।
 चिंद्रगप्ु त एक प्रजातहतैषी िासक र्ा, इसके
महास्र्ान लेख एविं सोहगौरा लेख से ज्ञात होता
सतिं ध की ितें:- है तक यह पहला िासक र्ा, तजसने अकाल से
 सेल्यक ू स ने अपनी पत्रु ी ‘हेलना’ का तववाह तनपटने के हेतु अन्नागार (राितनिंग प्रणाली)
चद्रिं गप्ु त मौयथ के सार् तकया। स्र्ातपत की।
 चद्रिं गप्ु त मौयथ को 4 प्रातिं :- एररया ( हेरात),
अराकोतिया ( किंधार), जेड्रोतिया ( मकरान चंद्रगुप्ि र्ौयम का अंभिर् सर्य:-
तट), एविं पेरीपेतनषदाई (काबुल) दहेज में प्राप्त  जीवन के अिंततम वषों में चिंद्रगप्ु त मौयथ ने जैन धमथ
हुए। स्वीकार कर तलया र्ा। जैन ग्रर्िं राजाबली कर्ा
 चिंद्रगप्ु त ने सेल्यकू स को 500 हार्ी तदये र्े। के अनसु ार, चिंद्रगप्ु त मौयथ अपने बेटे तसिंहसेन
 सेल्यक ु स तनके टर ने मेगास्र्नीज को चिंद्रगप्ु त (तबन्दसु ार) के तलए राजतसिंहासन का त्याग कर
मौयथ के दरबार में अपना राजदतू र्ा। अपने गरुु भद्रबाहु के सार् मैसरू आ गया र्ा।
यहािं मैसरू में श्रवणबेलगोला में चद्रिं गप्ु त मौयथ ने
सिंलेखना पद्धतत द्वारा अपने प्राण त्याग तदये र्े।

96
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
भबन्दुसार (298 ई.पू. से 273 ई.पू.) :-  तबिंदसु ार ने सीररया के िासक एिंतटयोकि प्रर्म
 पररचय:- यह चिंद्रगप्ु त मौयथ और दधु थरा की को एक पत्र तलख कर तीन वस्तओ ु िं की मागिं की
सिंतान र्ा। र्ी-
 अन्य नार्:- इसके कई नाम तमलते हैं- 1. अिंगरू ी मतदरा
 भसंहसेन: कन्नड जैन ग्रिंर् राजा बली कर्ा में 2. सख ू े अिंजीर
3. एक सोतफस्ट ( दािथतनक)
 अभर्रघाि: पतिंजतल के महाभाष्य में
 सीररया के िासक ने दािथतनक को छोडकर
 िद्रसार: वायु परु ाण में
अिंगरू ी मतदरा एविं सख ू े अिंजीर तबिंदसु ार के पास
 बाररसार: परु ाणों में
भेज तदये र्े।
 अभर्रचेट्स/ अभर्रोके डीज: यनू ातनयों द्वारा  प्राचीन काल में सबसे बडी मिंत्रीपररषद तबिंदसु ार
 सािंची के एक अतभलेख में तबिंदसु ार का नाम की र्ी।
तमलता है।
 तबदिं सु ार ब्रह्मण धमथ का अनयु ायी र्ा सार् में वह
धमथ सतहष्णु भी र्ा।
र्ुख्य िथ्य:-
 तबिंदसु ार के दरबार में तपिंगलवत्स नामक
 पहले ‘चाणक्य’ तबिंदसु ार का प्रधानमिंत्री र्ा इसके
आजीवक रहता र्ा।
बाद ‘खल्लटक’ प्रधानमिंत्री बना।
 तक्षतिला में जनता ने तवद्रोह तकया वहा का सम्राट अशोक (273 ई.प.ू से 236 ई. प.ू )
गवनथर ससु ीम र्ा जो तवद्रोह को दबा न सका
 अिोक, तबदिं सु ार एविं सभु द्रागिं ी की सतिं ान र्ा।
इतसतलये तबन्दसु ार उज्जैन के गवनथर अिोक को
सभु द्रािंगी के अन्य नाम धम्मा, धमाथ, पासातदका
तवद्रोह दबाने के तलए तक्षतिला भेजा र्ा।
एविं जनपद कल्याणी भी तमलते हैं।
 अिोक ने खस एविं नेपाल में व्याप्त अराजकता अशोक के नार्:-
को भी िातिं तकया र्ा।
 अशोकिद्धमन: तवष्णु परु ाण में
 सीररया के िासक एतिं टयोकि ने ‘डामेकस’ को
 बुद्ध शार्कय: मास्की अतभलेख में
तबिंदसु ार के दरबार में राजदतू के रूप में तनयक्ु त
 र्गधाभधराज: भ्राबू अतभलेख में
तकया र्ा।
 देिानांभपय भप्रयदशी : रुतम्मनदेई एविं तगरनार
 तमस्र के िासक टॉलमी तद्वतीय तफलाडेल्फस ने
लेख में
‘डायनोतसस’ नामक राजदतू को तबिंदसु ार के
दरबार में भेजा र्ा।  अशोक: मास्की, गजु थरा, नेत्तरु और उडेगोलन
अतभलेख में
 भप्रयदशी: भब्रू अतभलेख, किंधार अतभलेख में

97
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
 देिनांभप्रय: 12वें और 13 वें तिलालेख में  कुर्ाल एिं र्हेंद्र: इन दो का नाम बौद्ध ग्रिंर्ों में
 धर्ामशोक: गहडवाल रानी कुमारदेवी के तमलता है।
सारनार् लेख में।  जलौक: इसका नाम राजतरिंतगणी में तमलता है।
 राभसलेउस: यनू ानी अतभलेखों में  िीिर: इसके नाम का उल्लेख प्रयाग स्तिंभ लेख
में इसकी मािं कारुवाकी के सार् तमलता है।
अशोक की पभत्नयां:-
 र्हादेिी: अिोक की पहली पत्नी, महेन्द्र और आशोक का राज्याभिषेक:-
सिंघतमत्रा की मािं  अिोक, तबिंदसु ार के समय अवतन्त (उज्जैन) का
 कारुिाकी: तीवर की मािं, कारुवाकी का नाम गवनथर र्ा।
आिोक के प्रयाग स्तिंभ लेख में प्राप्त होता है।  तबदिं सु ार की मृत्यु के बाद अिोक 273 ई. प.ू में
 भिष्‍टयरभक्षिा: इसी के कारण बोतधवृक्ष को हातन राधागप्ु त की सहायता से गद्दी पर बैठा।
पहुचिं ी।  अिोक 4 वषथ तक सत्ता प्रातप्त के तलए ससु ीम
 असंभधभर्रा से सिंघषथ करता रहा।
 पद्माििी: कुणाल की मािं  अिोक का तवतधवत राज्यातभषेक गद्दी पर बैठने
के 4 वषथ बाद 269 ई. प.ू में हुआ र्ा।
अशोक के िाई:-  बौद्ध ग्रिंर्ों के अनसु ार, अिोक ने अपनी
 तदव्यावदान में अिोक के दो भाई सुसीम एविं तवमाताओ िं से उत्पन्न 99 भाईयों की हत्या करके
तवगतािोक (ततष्य) का उल्लेख तमलता है। गद्दी प्राप्त की र्ी। ( ये बात इतसतलये सत्य प्रतीत
 बौद्ध ग्रर्िं ों में तबदिं सु ार के 101 पत्रु ( अिोक के नहीं होती क्योंतक अिोक ने अपने पािंचवें
100 भाई) बताये हैं। तिलालेख में अपने जीतवत भाईयों एविं पररवार
 सत्ता का सिंघषथ अिोक एविं सुसीम के मध्य हुआ का उल्लेख तकया है।)
र्ा। बौद्ध ग्रिंर्ों के अनसु ार सुसीम, तबिंदसु ार का कभलंग का युद्ध ( 261 ई.पू):-
सबसे बडा पत्रु र्ा।  यह यद्ध ु अिोक के राज्य प्रातप्त के 13वें वषथ
अशोक की पुभरयां:- एविं राज्यातभषेक के 9वें वषथ ( 8 वषथ बाद)
हुआ र्ा।
 बौद्ध ग्रर्िं ों में अिोक की दो पतु त्रयािं- सघिं तमत्रा एविं
 िासक बनने के बाद अिोक ने के वल एक ही
चारुमतत का नाम तमलता है, चारुमतत, रुतम्मनदेई यद्धु (कतलिंग यद्ध ु ) तकया र्ा। यही यद्ध
ु प्रर्म
यात्रा के समय अिोक के सार् र्ी। एविं आतखरी र्ा।
अशोक के परु :-  निंद विंि के पतन के बाद कतलिंग स्वतिंत्र हो गया
र्ा, सरु क्षा की दृति से किंतलिंग को जीतना

98
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
आवश्यक र्ा, रोतमला र्ापर का मत है तक ‘ सत्यवातदता, पतवत्रता, मृदतु ा, साधतु ा और
अिोक की नजर समृद्ध व्यापार पर र्ी’। ितु चता बताया है।
 कतलगिं यद्ध
ु का उल्लेख अिोक के 13वें  अिोक ने अपने तीसरे स्तिंभलेख में 5 आसीनव
तिलालेख ( िाहबाजगढ़ी राजाज्ञा) में तमलता ( पाप) बताए हैं- चडडता, तनष्ठुरता, क्रोध,
है।
घमडड और ईष्याथ ये धम्म के मागथ में बाधक है।
 कतलिंग यद्ध
ु में हुए भीषण नरसिंहार और
तवतजत तकए गये देि की जनता के कष्ट ने  अिोक ने अपने 12वें तिलालेख में धम्म की
अिोक को झकझोर कर रख तदया र्ा। सारवृतद्ध पर जोर तदया है।
 इस यद्ध
ु के बाद अिोक ने यद्ध
ु की नीतत को  धौली तिलालेख के अनसु ार धम्म का आदिथ ‘
त्याग तदया। राजा का तपता तल्ु य होना र्ा’। 12वें तिलालेख
के अनसु ार धम्म का लक्ष्य – सभी सम्प्रदायों में
सार वृतद्ध र्ा’।
अशोक का धर्म पररििमन:-  ब्रह्मतगरी, तसद्धपरु एविं जतटिंगरामेश्वर लघु
 अिोक प्रारिंभ में ब्राह्मण धमथ का अनयु ायी र्ा। तिलालेख में धम्म का सारािंि तदया गया है।
कल्हण की राजतरिंतगणी के अनसु ार िैव धमथ का
उपासक र्ा। कतलगिं यद्ध ु के बाद वह बौद्ध हो भिभिन्न भिद्वानों का धम्र् पर र्ि:-
गया र्ा।  फ्लीट र्होदय: इन्होनें धम्म को एक राजधमथ
 अिोक अपने भाई ससु ीम के पत्रु तनग्रोर् के माना है।
प्रवचन सनु कर बौद्ध धमथ से प्रभातवत हुआ बाद  राधाकुर्दु र्ख ु जी: धम्म को सभी धमों की
में मोगलीपत्तु ततस्स के प्रभाव से बौद्ध धमथ साझी सिंपतत्त बताया
अपनाया।  र्ैकिे ल: बौद्ध धमथ से प्रभातवत तहन्दु धमथ
 उपगप्ु त ने अिोक को बौद्ध धमथ की दीतक्षत  रोभर्ला थापर: प्रिासतनक तहतों को ध्यान में
तकया र्ा। रखकर आिोक द्वारा तकया गया एक तनजी
अतवष्कार
अशोक का धम्र्:-  नीलकंठ शास्री: नैततक व्यवहार सिंतहता
 अिोक अपनी तवजयों के कारण नहीं बतल्क  डी. आर. िण्डारकर: उपासक बौद्ध धमथ
अपने धम्म के कारण इततहास में प्रतसद्ध हैं।
 अिोक ने अपने दसू रे स्तिंभ लेख में धमथ का अर्थ धम्र् का प्रचार:-
– अल्प पाप, अत्यातधक कल्याण, दया- दान, अिोक ने धम्म के प्रचार के तलए कई देिों में धमथ
प्रचारक भेजे र्े जो अग्रतलतखत हैं-

99
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
धम्र् प्रचारक देश अतभलेखों को पढ़वाने का असफल प्रयास तकया
महेंद्र एविं सिंघतमत्रा श्रीलिंका र्ा।
मज्झातन्तक कश्मीर तर्ा गधिं ार  अिोक के अतभलेखों में एकमात्र लेखक
महारतक्षत यनू ान ‘चापड’ का नाम तमलता है।
महाधमथरतक्षत महाराष्र  अिोक के लेख सवाथतधक सिंख्या में कनाथटक एविं
महादेव मतहषमिंडल ( मैसरू ) आिंध्रप्रदेि से तमले हैं।
रतक्षत बनवासी (कनाथटक)  अिोक के तिलालेखों की भाषा प्राकृ त है जो
धमथरतक्षत अपरान्तक चार तलतपयों – ब्राह्मी, खरोष्ठी, अरामाइक एविं
मतज्झम तहमालय देि यनू ानी में तलखे गये हैं।
सोन तर्ा उत्तरा सवु णथ भतू म  अिोक के स्तिंभलेखों एविं गुहालेखों में प्राकृ त
 महेंद्र को मोगलीपत्ु तततस्स ने बौद्ध धमथ मे दीतक्षत भाषा एविं के वल ब्राह्मी तलतप का प्रयोग हुआ है।
तकया र्ा।  डी.आर. भडडारकर महोदय ने के वल अतभलेखों
 महेंद्र ने श्रीलिंका के राजा ततस्स को बौद्ध धमथ में के ही आधार पर अिोक का इततहास तलखने का
दीतक्षत तकया र्ा, ततस्स ने देवानािंतपय की उपातध प्रयास तकया।
धारण की र्ी।
 ततस्स ने अपने भतीजे अररट्ट के नेतत्ृ व में एक अशोक के भशलालेख
तिष्टमिंडल अिोक के पास भेजा र्ा। अिोक के अतभलेखों का तवभाजन 3 प्रकार के लेखों
में तकया जाता है-
अशोक के अभिलेख 1. भशलालेख
 अिोक के अतभलेखों को सबसे पहले 1750 ई. 2. स्िंिलेख
में तट.फै न्र्ेलर ने खोजा र्ा, इन्होंनें सवथप्रर्म 3. गुहालेख
तदल्ली- मेरठ अतभलेख खोजा र्ा।
 अिोक के अतभलेखों को सवथप्रर्म 1837 में 1. भशलालेख:-
कलकत्ता टकसाल के अतधकारी एविं इसको वृहद् तिलालेख एविं लघु तिलालेख दो भागों
एतियातटक सोसायटी के सतचव जेम्स तप्रसेंप ने में बािंटा जाता है।
पढ़ा र्ा, इन्होंने सवथप्रर्म तदल्ली- टोपरा यह 14 भिभिन्न लेखों का सर्ूह है जो 8 अलग-
अतभलेख को पढ़ा र्ा। अलग स्थानों से प्राप्ि हुए हैं-
 िम्स-ए-तसराज अफीक के अनसु ार सवथप्रर्म
तफरोज तगु लक ने तदल्ली के ब्राह्मणों से  प्रथर् भशलालेख: जीव हत्या/ पिु हत्या तनषेध

100
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
 भद्विीय भशलालेख: मानव एिंव पिु दोनों के पाडड्य, सततयपतु , के रलपत्रु , एविं ताम्रपतणथ तक
तलए तचतकत्सा का प्रबधिं , चोल, चेर, पाडड्य, हो चकु ी है।
सतीपतु एविं ताम्रपतणथ का वणथन।  चौदहिां भशलालेख: अपने तिलालेखों में
 िृिीय भशलालेख: यक्ु त, रज्जक ु एविं प्रादेतिक तलखवाई गयी बातों का तजक्र एविं आगे भी
अतधकाररयों का उल्लेख तलखवाते रहने की सिंभावना व्यक्त की गयी है।
 चिुथम भशलालेख: धम्मनीतत के कारण  धौली एविं जौगढ़ अतभलेखों में 11,12 एविं 13
धमाथनि ु ान में वृतद्ध का उल्लेख क्रम सिंख्या का लेख नहीं है इसकी जगह दो
 पांचिां भशलालेख : धम्ममहामात्रों की पृर्क लेख हैं-
तनयतु क्त का उल्लेख
 छठिां भशलालेख : प्रततवेदकों को प्रजा के प्रथर् पथ
ृ क लेख:
तवषय में तरु िं त सचू ना देने का आदेि इसमें अिोक कहता है तक सभी मनष्ु य मेरी
सिंतान है।
 साििां भशलालेख: सभी सम्प्रदायों के मानने
भद्विीय पृथक लेख:-
वालों के प्रतत सद्भावना का सिंदि े
इसमें अिोक कहता है तक सभी मनष्ु य मेरी प्रजा है,
 आठिां भशलालेख: अिोक की धम्म यात्राओ िं
इसमें अिोक सीमािंत प्रदेिों की अतवतजत जाततयों
का उल्लेख
को कहता है तक वह सम्राट से डरें नहीं उनमें तवश्वास
 नौिां भशलालेख: धम्ममिंगल को सवथश्रेष्ठ रखें।
घोतषत तकया गया है।
 दसिां भशलालेख: यि और कीततथ की जगह
धम्म पालन पर बल
 ग्यारहिां भशलालेख: धम्मदान को सवथश्रेष्ठ
घोतषत तकया गया।
 बारहंिा भशलालेख : अिोक की धातमथक
सतहष्णतु ा को दिाथता है। स्त्रयाध्यक्षों एविं
ब्रजभतू मकों की तनयतु क्त का उल्लेख
 िेरहिां भशलालेख: कतलिंग यद्ध ु का वणथन,
आटतवक जनजाततयों को धमकी, इसमें अिोक
यह भी बताता है तक उसकी धम्म तवजय पािंच
यवन राजाओ िं और दतक्षण के पाचिं राज्यों चोल,

101
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
 8 स्थान जहां से यह 14 दीघम भशलालेख भर्ले
हैं।
िृहद भशलालेख प्राभप्ि स्थल खोजकिाम
तगररनार तिलालेख जनू ागढ़ ( गजु रात) कनथल टाड
िाहवाजगढ़ी पेिावर ( पातकस्तान) जनरल कोटथ
मनसेहरा तिलालेख हजारा ( पातकस्तान) कतनिंघम
सोपारा तिलालेख र्ाणे (महाराष्र) .................
एरथ गडु ी तिलालेख कुनथलू (आिंध्र प्रदेि) अणघु ोष
कालसी तिलालेख देहरादनू ( उत्तराखिंड) फोरे स्ट
जौगड तिलालेख गिंजाम ( ओतडिा) वाल्टर इतलयट
धौली तिलालेख परु ी (ओतडिा) तकटो

102
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
B. लघु भशलालेख:-
लघु भशलालेख प्राभप्त स्थान भिशेष
भ्राब/ू बैराट जयपरु (राजस्र्ान) अिोक का नाम तप्रयदिी तमला है। बौद्ध धमथ के
तत्ररत्न – बद्ध
ु , धम्म, एविं सिंघ का उल्लेख। इसमें 7
बौद्ध पस्ु तकों की सचू ी दी गयी है।
मास्की रायचरू (कनाथटक) अिोक का नाम तमला है। सबसे पहले इसी
अतभलेख में अिोक नाम पढ़ा गया र्ा। इसी
तिलालेख में अिोक ने अपने आप को ‘ बद्ध ु
िाक्य’ कहा है। इसे वीडेन ने खोजा र्ा।
ब्रह्मतगरर तचत्तलदगु थ ( मैसरू )
तसद्धपरु कनाथटक
एरथ गतु ड कुनथल
ु , आध्रिं प्रदेि इस अतभलेख की लेखन िैली अन्य तिलालेखों
से तभन्न है- बािंये से दािंए एविं दायें से बायें
(बस्ू रोफे डन)
गोतवमठ मैसरू
अहरौरा तमजाथपरु ( उत्तर प्रदेि)
सारोमारो िहडोल ( मध्य प्रदेि)
नेत्तरू मैसरू अिोक का नाम तमलता है
पनगडु ररया सीहोर ( मध्य प्रदेि)

सन्नाती गल
ु बगथ, कनाथटक

उडेगोलन बेल्लारी, कनाथटक

राजलमिंडु तगरर कुनथल


ु , आिंध्रप्रदेि
गजु थरा मध्य प्रदेि के दततया तजले में इसमें भी अिोक नाम तमलता है।

103
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
2. स्िि
ं लेख:- इन साि िृहद स्िि ं ों के ऊपर साि लेख भलखे
हुए हैं जो भक भनम्नभलभखि हैं-
 इसमें मख्ु य रूप से धम्म एविं प्रिासतनक बातों का
उल्लेख है। 1. प्रथर् स्िि
ं लेख :- अिोक कहता है तक यह
 इन्हे भी दो भागों में वृहद् स्तिंभलेख एविं लघु स्तभिं धम्म लेख मेंनें राज्यातभषेक के 26 वषथ बाद
लेख में बाटिं ा गया है। तलखवाया, इसमें अिोक कहता है तक धमथ के
अनसु ार लोगों का पोषण एविं िासन करो
A. िृहद् स्िंि लेख :
2. भद्विीय स्िंि लेख:- इसमें अिोक ने खदु से एक
स्िंि लेख प्राभप्त स्थल प्रश्न उठाया ‘तकयिं चु धम्मे’ ( धम्म क्या है?) तफर
तदल्ली- मेरठ स्तिंभ पहले मेरठ में र्ा खदु ही इसका उत्तर तदया ‘ अपातसनावे बहुकयाने,
तफरोजिाह तगु लक द्वारा दया, दाने, सचे, सोचए, माधवे, साधवे, च’’ अर्ाथत
तदल्ली लाया गया पाप से दरू रहना, अत्यातधक कल्याण करना, दया,
दान, सत्यता, पतवत्रता, मृदतु ा और साधतु ा ही धम्म
तदल्ली-टोपरा स्तिंभ यह अिोक का अततिंम
लेख अतभलेख है, पहले है।
अम्बाला (हररयाणा) के 3. िीसरा स्िंि लेख:- इसमें अिोक ने पािंच प्रकार
टोपरा गािंव में र्ा के पाप बताये हैं।
तफरोजिाह तगु लक द्वारा
तदल्ली लाया गया 4. चिुथम स्िंि लेख:- इसमें रज्जक
ु ों के कायों का
वणथन है, अिोक ने इसमें यह भी कहा तक तजन लोगों
लौररया- अरराज तबहार के चपिं ारण तजले में
स्तिंभलेख को मौत की सजा दी गई उन्हें तीन तदन की मोहलत
दी जाये
रामपरु वा स्तभिं लेख तबहार के चिंपारण तजले में
5. पाचंिा स्िंि लेख:- इसमें यह वणथन है तक
लौररया निंदनगढ तबहार के चिंम्पारण तजले में अिोक ने अपने राज्यातभषेक के 26वें वषथ में जीव -
प्रयाग स्तभिं लेख यह पहले कौिाम्बी में र्ा वध तनषेध कर तदया र्ा।
बाद में अकबर के
6. छठां स्िंि लेख :- अिोक इसमें कहता है जनता
िासनकाल में जहािंगीर
द्वारा इलाहाबाद लाया का तहत एविं सख ु तजसमें है मैं उसकी परीक्षा करता हू,िं
गया। एविं सभी सिंप्रदायों का सम्मान करता हू।िं

104
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
7. साििां स्िि लेख:- यह लेख तसफथ तदल्ली-
टोपरा स्तभिं लेख में तमलता है , इसमें अिोक के लोक
कल्याणकारी कायों का वणथन है।
B. लघु स्िि
ं लेख:
लघु स्तभिं ों पर अिोक की राज घोषणायें खदु ी हुई हैं,
इसीतलये इनको “ROYAL STONE
LETTER” भी कहा जाता है।
लघु स्िि ं लेख भिशेष खोजकिाम
साच िं ी लघु स्तिंभ मध्य प्रदेि के रायसेन तजले में तस्र्त
लेख
सारनार् लघु स्तिंभ उत्तर प्रदेि के वाराणसी जनपद मे तस्र्त अलथ स्टाइन
लेख
कौिाम्बी स्तभिं लेख इलहाबाद के समीप तस्र्त इसमें अिोक की रानी कारुवाकी द्वारा बटथ
दान तदये जाने का उल्लेख है। इसमें अिोक के पत्रु तीवर का नाम
भी तमलता है। इस स्तिंभलेख रानी का अतभलेख भी कहलाता है।
रुतम्मनदेई स्तभिं लेख - यह नेपाल की तराई में लम्ु बनी में तस्र्त है फ्यरू र
- अिोक अपने राज्यातभषेक से मौयथकालीन कर व्यवस्र्ा की
जानकारी तमलती है। इसतलए इसे आतर्थक अतभलेख भी कहते हैं।
- इसमें अिोक ने कहा र्ा तक बद्ध ु का जन्म स्र्ान होने के कारण
लम्ु बनी से उपज का आठवािं भाग तलया जाएगा।
इस लेख में बद्ध
ु को भगवान कहा गया है।
तनगाली सागर/ यह नेपाल की तराई में तस्र्त है। इस अतभलेख से ज्ञात होता है तक फ्यरू र
तनग्लीवा अिोक ने बद्ध ु के पवू थजन्म को स्वीकार तकया र्ा।
बराबर एविं नागाजथनु ी हेररग्टिंन
मैसरू के तीन राइस
अतभलेख
रूपनार् लेख स्तभिं यह मध्य प्रदेि के कटनी तजले में तस्र्त हैं। कनथल एतलस
लेख

105
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
3. गहु ालेख:- वतथमान में तबहार राज्य के जहानाबाद तजले में
तस्र्त है।
 अिोक के गहु ालेख बराबर एिंव नागाजथनु ी
पहातडयों में तमले हैं। नागाजमनु ी पहाड़ी की गि
ु ांए:-
 सभी गहु ालेखों की भाषा प्राकृ त एविं तलपी ब्राह्मी
 नागाजथनु ी पहाडी पर 3 गफु ािंए तस्र्त है। इन तीनों
है।
गफ
ु ाओ िं का तनमाथण दिरर् ने करवाया र्ा इन
 अिोक एविं दिरर् ने आजीवकों को कुल 7
गफु ाओ िं के नाम – गोभपका गुिा, बभहयक
गफु ाएिं दान में दी र्ीं। गि ु ा, एिं िडभथका गि ु ा हैं।

बराबर की गुिाए:ं - र्ौयम कालीन अन्य अभिलेख


1. र्हास्थान अभिलेख:- पतिम बिंगाल के
 बराबर गहु ा, तबहार के गया तजले के पास
बोगरा तजले से प्राप्त अकाल से सिंबिंतधत
जहानाबाद तजले में तस्र्त हैं।
अतभलेख।
 िैलकृ त वास्तक ु ला का सबसे प्राचीनतम 2. सोहगौरा िाम्रलेख:- उत्तर प्रदेि के
उदाहरण बराबर की गफ ु ािंए हैं। गोरखपरु तजले में तस्र्त इसमें भी अकाल के
 बराबर में 4 गफ
ु ािंओ िं का तनमाथण तकया गया र्ा समय अनाज तवतरण और सरु तक्षत रखने का
तजसमें 3 का तनमाथण अिोक ने एविं 1 गहु ा का उल्लेख है।
तनमाथण दिरर् ने करवाया र्ा। ये 4 गफ ु ािंये 3. लंपक अभिलेख:- यह अतभलेख काबल ु
तनम्नतलतखत हैं- से प्राप्त हुआ है और सीररयाई भाषा में तलखा
(1) सदु ार्ा की गि ु ा:- यह सबसे प्राचीन है। गया है।
इसका तनमाथण अिोक ने राज्यातभषेक के 12वें 4. बनु ेर अभिलेख:- पेिावर के तनकट प्राप्त
वषथ में करवाया र्ा। हुआ है, यह उत्तर पतिम में प्राप्त ब्राह्मी तलपी
का अके ला अतभलेख है।
(2) भिश्ि झोपड़ी गुिा:- इसका तनमाथण 5. बाहापुर लेख:- नई तदल्ली से प्राप्त लघु
अिोक ने राज्यातभषेक के 12वें वषथ में करवाया तिलालेख।
र्ा।
(3) कर्म चौपड़ गि ु ा :- इसका तनमाथण अिोक
ने राज्यातभषेक के 19वें वषथ करवाया र्ा।
(4) लोर्श ऋभष गि ु ा:- यह गफ
ु ा बराबर और
नागाजथनु ी दोनों पहातडयों पर तस्र्त है, और

106
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
अशोक के बाद र्ौयम शासक र्ौयम प्रशासन
अिोक के बाद मौयथ िासकों का क्रम स्पष्ट नहीं र्ौयम कालीन प्रशासभनक व्यिस्था:-
है।
कें द्र ( सवोच्च अतधकारी: राजा)
 मत्स्य परु ाण के अनसु ार, अिोक के बाद 

उत्तरातधकारी अिोक का पौत्र दिरर् हुआ र्ा। → प्रािंत ( सवोच्च अतधकारी : गवनथर/ कुमार/
आयथपत्रु )
 तवष्णु परु ाण के अनसु ार, अिोक के बाद सयु िस 
गद्दी पर बैठा उसके बाद दिरर् गद्दी पर बैठा। → मडिं ल ( सवोच्च अतधकारी: प्रादेतिक/
 तदव्यवदान के अनसु ार, अिोक के बाद कुणाल महामात्य/ प्रदेष्टा)
िासक बना 
 कुर्ाल:- यह अिंधा र्ा, इसके नाम का िातब्दक → तवषय/ आहार ( तजला {अतधकारी- तवषयपतत}
अर्थ है, सिंदु र आिंखों वाला। इसकी उपातध 
धमथतववधथन र्ी। → स्र्ानीय ( 800 ग्रामों का समहू )

 संप्रभि:- यह जैन धमथ को मानने वाला र्ा। → द्रोणमख
ु ( 400 ग्रामों का समहू )
 जालौक:- जालौक िैव मतानयु ायी र्ा, और 
बौद्धों से घृणा करता र्ा, कल्हण इसे कश्मीर में → खावथतटक ( 200 ग्रामों का समहू )
अिोक का उत्तरातधकारी बताते हैं। 
 दशरथ:- अिोक की तरह इसकी उपातध → सिंग्रहण ( 10 ग्रामों का समहू ) {अतधकारी-
देवनािंतप्रय र्ी, और यह आजीवक मत का गोप}
समर्थक र्ा। 
→ ग्राम {प्रमख
ु - ग्रामीण}
 िृहद्रथ:- अिंततम मौयथ िासक र्ा, इसे, इसके
सेनापतत पष्ु यतमत्र ििंगु ने इसे मार कर ििंगु विंि
की स्र्ापना की र्ी।
कें द्रीय प्रशासन:-

 मौयथ प्रिासन भारत की प्रर्म कें द्रीकृ त प्रिासन


प्रणाली र्ी।
 प्रिासन का कें द्र तबिंदु राजा र्ा, वह
कायथपातलका, व्यवस्र्ातपका एविं न्यायपातलका
का प्रमखु होता र्ा।

107
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
 राजा की एक मिंत्रीपररषद् होती र्ी, मिंत्रीपररषद के 18 िीथम भनम्नभलभखि हैं-
सदस्यों का चनु ाव अमात्यों में से उपधा परीक्षण
तीर्थ/ अतधकारी अतधकार क्षेत्र
के बाद होता र्ा।
प्रधानमिंत्री एविं परु ोतहत परु ोतहत प्रमख ु अतधकारी होते
 मेगस्र्नीज बताता है, तक मौयथ साम्राज्य में र्े।
राजाओ िं की सरु क्षा के तलये अिंगरतक्षकायें तनयक्ु त
यवु राज राजा का उत्तरातधकारी
की गई िंर्ीं।
सेनापतत यद्ध
ु तवभाग का मिंत्री
सतन्नधाता राजकीय कोषाध्याक्ष
राजा के र्ंरीर्ंडल के दो घटक थे- समाहताथ राजस्व तवभाग का प्रधान
1. मतिं त्रण:- इसमें 4-5 सदस्य होते र्े। यह व्यवहाररक दीवानी न्यायालय का
वतथमान कै तबनेट के समान र्ी । इसके अिंतगथत न्यायाधीि
प्रदेष्ठा फौजदारी न्यायालय का
यवु राज, प्रधानमिंत्री, सेनापतत, परु ोतहत एविं
न्यायाधीि
सतन्नधाता होते र्े। इसका कायथ अततमहत्वपणू थ
मतिं त्रपररषदाध्यक्ष मिंतत्रपररषद का अध्यक्ष
तवषयों में सलाह देने का र्ा। दडडपाल सेना की सामग्री जटु ाने वाला
2. मतिं त्रपररषद:- यह आकार में मतिं त्रण से बडी अतधकारी
होती र्ी। इसके अिंतगथत सभी मिंत्री होते र्े। जो दगु थपाल देि के भीतरी दगु ों का प्रबधिं क
अमात्य उपधा परीक्षण की परीक्षा में सफल होते नागरक नगर का प्रमख ु अतधकारी
आटतवक वन तवभाग का प्रधान अतधकारी
र्े वहीं मत्रिं ी बनते र्े।
कमाथतन्तक उद्योग धिंधों का प्रधान तनरीक्षक
तीर्थ महामात्र :- यह उच्च स्तर के कमथचारी/ नायक सेना का सिंचालक / नेतत्ृ वकताथ
अतधकारी र्े इन्हें महामात्र भी कहा जाता र्ा। दौवाररक राजमहलों की देखरे ख करने
प्रिासन के तवभाग भी तीर्थ कहे जाते र्े। वाला
कौतटल्य के अर्थिास्त्र में 18 तीर्थ का उल्लेख आिंतवतिथक सम्राट की अिंगरक्षक सेना का
तमलता है- प्रधान
अन्तपाल सीमावती दगु ों का रक्षक
प्रिस्ता राजकीय कागजों को सरु तक्षत
रखने वाला एविं राजकीय
आज्ञाओ िं को तलतपबद्ध करने
वाला अतधकारी

108
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
अध्यक्ष:- अर्थिास्त्र में 26 अध्यक्षों का उल्लेख पौतवाध्यक्ष माप-तौल का अध्यक्ष
तमलता है जो तनम्नतलतखत है- मानाध्यक्ष दरू ी एविं समय से सिंबतिं धत
साधनों को तनयतिं त्रत करने
अध्यक्ष भििाग वाला अध्यक्ष
पडयाध्यक्ष वातणज्य तवभाग का अश्वाध्यक्ष घोडों का अध्यक्ष
अध्यक्ष हस्त्यध्यक्ष हातर्यों का अध्यक्ष
सरु ाध्यक्ष आबकारी तवभाग का सवु णथध्यक्ष सोने का अध्यक्ष
अध्यक्ष अक्षपटालाध्यक्ष महालेखाकार
सनू ाध्यक्ष बचू डखाने का अध्यक्ष
गतणकाध्यक्ष गतणकाओ िं का अध्यक्ष
सीताध्यक्ष राजकीय कृ तष तवभाग का प्रांिीय प्रशासन:-
अध्यक्ष
अकाराध्यक्ष खान तवभाग का अध्यक्ष  प्रांि:- कें द्र प्रािंन्तों में बिंटा र्ा। अिोक के समय
कोष्ठागाराध्यक्ष कोष्ठगार का अध्यक्ष मौयथ साम्राज्य पािंच बडे प्रान्िं तों में बिंटा हुआ र्ा।
कुप्याध्यक्ष वनों का अध्यक्ष ये प्रािंत तनम्नतलतखत र्े-
आयधु ागाराध्यक्ष आयधु गार का अध्यक्ष प्रांि राजधानी
िल्ु काध्यक्ष व्यापार कर वसल ू ने वालों उत्तरापर् तक्षतिला
का अध्यक्ष
लोहाध्यक्ष धातु तवभाग का अध्यक्ष दतक्षणापर् सवु णथतगरी
लक्षणाध्यक्ष छापेखाने का अध्यक्ष, मद्रु ा
अवतन्तराष्र उज्जतयनी
जारी करने वाला प्रमख ु
अतधकारी प्रािी / प्राची पाटतलपत्रु
गो- अध्यक्ष पिधु न तवभाग का अध्यक्ष
तवतवताध्यक्ष चारागाहों का अध्यक्ष कतलगिं तोसली
मद्रु ाध्यक्ष पासपोटथ तवभाग का
अध्यक्ष  प्रािंतो को चक्र कहा जाता र्ा। प्रािंतों का
नवाध्यक्ष जहाज रानी तवभाग का वायसराय राजविंि का कोई कुमार आयथपत्रु होता
अध्यक्ष र्ा। अिोक के समय तक्षतिला, तोसली एविं
पत्तनाध्यक्ष बिंदरगाहों का अध्यक्ष उज्जतयनी में कुमार तनयक्ु त र्े।
सिंस्र्ाध्यक्ष व्यापाररक मागों का
 कम्बोज, भोज, पैत्ततनक, आटतवक राज्य और
अध्यक्ष
सौराष्र प्रािंन्त की तस्र्तत अद्धथस्वतिंत्र राज्य की र्ी
देवताध्यक्ष धातमथक सस्िं र्ाओ िं का
अध्यक्ष

109
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
 अिोक ने कतलिंग में दो प्रिासतनक कें द्र बनाये
र्े- र्ौयमकाल के प्रर्ुख अभधकारी :-
 उत्तर कतलगिं की राजधानी तोसली एविं दतक्षण
कतलिंग की राजधानी समापा र्ी। अभधकारी भििाग
 मौयथकाल में प्रािंतों को मिंडलों में तवभक्त तकया पतु लसानी जनसिंपकथ अतधकारी
गया र्ा, और मडिं लों को तजलों में तवभक्त तकया पातटवेतदक सम्राट को प्रजा के तवषय में सचू ना देने
गया र्ा, ये तजले आहार / तवषय कहलाते र्े। वाला
अतिं महामात्र असभ्य जनजाततयों में धमथ प्रचारक
 र्ंडल प्रशासन:- प्रािंतों का तवभाजन मिंडल में
होता र्ा, इसका सवोच्च प्रिासतनक अतधकारी स्त्रध्यक्ष अिंन्त:परु एविं तस्त्रयों से सबिं िंतधत
प्रादेतिक/ प्रदेि या महामात्य होता र्ा, ये तवभाग का अतधकारी
अतधकारी समाहाताथ के प्रतत उत्तरदायी होते र्े। ब्रजभतू मक पिओ ु िं की देखभाल करने वाला
रज्जक
ु जनपद का प्रमख ु अतधकारी, भू
राजस्व अतधकारी, बाद में न्यातयक
 भजला प्रशासन:- तजले को आहार या तवषय
अतधकारी भी तदया गया
कहते र्े, और यह इस तजले का प्रिासतनक
नगर व्यवहाररक नगर का न्यायाधीि
अतधकारी तवषयपतत/ आहारपतत होता र्ा।
अमात्य योग्य अतधकाररयों का एक समहू
प्रदेष्टा मिंडल का प्रमुख अतधकारी
 र्ध्यििी स्िर:- तजले और ग्राम के बीच एक
नागरक नगर का प्रमख ु अतधकारी
मध्यवती स्तर भी र्ा, इस मध्यवती स्तर का पर
रूपदिथक तसक्कों की जािंच करने वाला
दो अतधकारी स्र्ातनक एविं गोप तनयक्ु त र्े, जहािं
अतधकारी
स्र्ातनक कर वसलू ता र्ा, वहीं गोप की भतू मका
गोप सिंग्रहण (10 ग्राम समहू ) का
आधतु नक लेखपाल की भािंतत र्ी।
अतधकारी, भ-ू राजस्व को तलखने
वाला
 तजले के नीचे स्र्ानीय (800 ग्रामों का समहू ) र्ा,
स्र्ातनक ग्रामों से भ-ू राजस्व वसल ू ने वाला
स्र्ानीय के नीचे द्रोणमख ु र्ा, और द्रोणमखु के अतधकारी
नीचे खावथतटक (200 ग्रामों का समहू ) र्ा, एविं
धम्म महामात्र जनता में धम्म का प्रचार करने वाला
खावथतटक के नीचे सिंग्रहण (10 ग्रामों का समहू
यक्ु त रज्जक ु के अधीन राजस्व
र्ा।) सिंग्रहण के नीचे ग्राम र्ा।
महामात्यपसपथ गप्ु तचरों का प्रमख

एग्रानोमोई तजले एविं सडक तनमाथण का प्रमख ु
 ग्रार् प्रशासन :- मौयथ प्रिासन की सबसे अतधकारी
तनचली इकाई ग्राम र्ा इसका प्रिासक ग्रामणी
एतस्टनोमोई नगर प्रिासन का प्रमख ु अतधकारी
र्ा। यह अवैततनक अतधकारी होता र्ा।

110
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
नगर प्रशासन:-  कण्टकशोधन:- यह फौजदारी न्यायालय र्ा,
इसका प्रमख
ु प्रदेष्टा र्ा।
 मेगास्र्नीज की इतिं डका से पाटतलपत्रु के नगर
प्रिासन के सिंबिंध में जानकारी तमलती है। नगर
 जनपद का मख्ु य न्यायधीि रज्जक ु र्ा, जो
प्रिासन का प्रमख ु नागरक र्ा, जबतक वतथमान में तडतस्रक्ट जज की भािंतत र्ा।
मेगास्र्नीज ने इसे एतस्टनोमोई कहा।
 मेगास्र्नीज के अनुसार, नगर का प्रिासन 6
गुप्िचर व्यिस्था
सतमततयों द्वारा चलाया जाता र्ा। प्रत्येक सतमतत
में 5 सदस्य होते र्े।  इसका प्रर्म तवस्तृत तववरण अर्थिास्त्र में
तमलता है।
सभर्भि कायम
 परुु ष एविं मतहलायें दोनों गप्ु तचर होते र्े,
तिल्प कला सतमतत सडकों एविं भवनों का तनमाथण, गतणकायें भी गप्ु तचर का काम करतीं र्ीं।
नगर की सफाई व्यवस्र्ा  गप्ु तचर दो प्रकार के होते र्े।
तवदेि सतमतत तवदेतियों के खाने, रहने, दवा
1. संस्था:- यह स्र्ायी गप्ु तचर र्े, इनके भी पाचिं
इत्यातद की व्यवस्र्ा
भाग र्े-
जनसख्िं या सतमतत जन्म-मृत्यु का रतजस्टर तैयार
करना (1) कापातटक:- तवद्यार्ी के भेष में रहने वाले गप्ु तचर
उद्योग व्यापार उद्योग एविं व्यापार पर तनयिंत्रण (2) वैदहे क:- व्यापारी के भेष में रहने वाले गप्ु तचर
सतमतत वस्तओु िं के मल्ू यों का तनधाथरण
वस्तु तनरीक्षक तमलावटी वस्तुओ िं पर रोक (3) उदातस्र्त:- सन्यासी के भेष में रहने वाले गप्ु तचर
सतमतत (4) तापस:- तपतस्वयों के भेष में रहने वाले गप्ु तचर
कर तनरीक्षक तवभाग से प्राप्त करों का
(5) गृहपततक:- तकसान के भेष में रहने वाले गप्ु तचर
सतमतत तववरण रखना एिंव करों की
चोरी को रोकना 2. संचरा:- इसमें भ्रमणिील गप्ु तचर आते र्े, इसके
चार भाग हैं- (1) पररव्रातजका:- तभक्षणु ी के भेष में
रहने वाली गप्ु तचर, इसमें मख्ु य रूप से वेश्याओ िं की
न्याय प्रशासन:- तनयतु क्त की जाती र्ी।
 सबसे बडा न्यायालय राजा का न्यायालय एविं (2) रिद:- क्रूर प्रवृतत्त के गप्ु तचर
सबसे छोटा न्यायालय ग्राम न्यायालय होता र्ा।
(3) सत्री:- तविेष प्रतिक्षण प्राप्त गप्ु तचर, तजनका
 धर्मस्थीय :- यह दीवानी न्यायालय र्ा, इसका
कोई पररवार नहीं होता र्ा।
प्रमख
ु व्यावहाररक र्ा।
(4) तीक्ष्ण:- िरू वीर गप्ु तचर

111
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
र्ौयमकालीन कर व्यिस्था
कर का नार् कर का उद्देश्य र्ौयमकालीन भसर्कके
प्रणय कर आपातकाल में वसूला जाने
 भनष्‍टक (सुिर्म):- सोने का तसक्का ( अभी तक
वाला कर
एक भी मौयथकालीन सोने का तसक्का प्राप्त नहीं
तवति कर बतल बेगार कर, एक प्रकार का धातमथक हआ)
कर
 पर्/ धरर्/ काषामपर्/ रूप्यरूप/ शिर्ान:-
तहरडय नगद कर चािंदी का तसक्का।
रज्जु कर भतू म की माप के समय तलया  पण मौयथकाल का प्रधान तसक्का एविं राजकीय
जाने वाला कर तसक्का र्ा।
तववीत चारागाह कर  र्ाषक, काकर्ी:- ये ताबिं े के तसक्के र्े
उदयकभाग राज्य द्वारा तलया जाने वाला
तसचािंई कर  द्रोण:- अनाज माप का एक पैमाना।
प्रवेश्य कर आयात कर  तनवतथन :- भतू म माप का पैमाना
तनष्क्राम्य कर तनयाथत कर
वतथनी कर सडक कर पररिहन साधन
परहीनक कर राजकीय भतू म में पिओ ु िं को  सडक एविं बदिं रगाह प्रमख
ु पररवहन साधन र्े।
चराई का जमु ाथना
चार प्रर्ुख सड़क र्ागम थे-
पाश्वथ कर व्यापारी के अतधक लाभ पर 1. उत्िरापथ:- ये परुु षपरु से ताम्रतलतप्त तक
वसल ू ा जाने वाला कर जाती र्ी, इसका तनमाथण चिंद्रगप्ु त मौयथ ने करवाया
र्ा, िेरिाह के समय इस सडक को सडक-ए-
तरदेय कर पल
ु पार करने पर लगने वाला कर
आजम कहा जाता र्ा, एविं ऑकलैडड के समय
यही सडक जीटी रोड कहलायी।

राज्य के भनयंरर् िाले उद्योग:- 2. दभक्षर्ापथ:- यह सडक श्रावस्ती से


प्रततष्ठान तक जाती र्ी।
 िराब उद्योग
 नमक उद्योग 3. तीसरी सडक मर्रु ा से भृगुकच्छ को जोडती
 खान उद्योग र्ी।
 हतर्यार उद्योग 4. चौर्ी सडक कौिाम्बी से चम्िं पा को जोडती
 जहाजरानी उद्योग र्ी।

112
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
र्ौयमकालीन बदं रगाह समाज की 7 जाततयािं बतायीं र्ी- दािथतनक,
तिल्पी, तकसान, चरवाहे (अहीर/ ग्वाले), योद्धा
 मौयथकाल में दरू पतिम में तस्र्त बेबीलोन के सार् (सैतनक), तनरीक्षक एविं अमात्य ( सभासद)
व्यापार एविं वातणज्य का अत्यतधक तवकास  दास प्रर्ा प्रचतलत नहीं र्ी। ( जबतक कौतटल्य ने
हुआ, एररयन भी कहता है तक भारतीय व्यापारी 9 प्रकार के दासों का उल्लेख तकया है)
सफे द चमडे के जतू े पहनते र्े, और मोती बेचने
र्ेगस्थनीज की इभं डका के अनुसार िारि की
यनू ान के बाजारों में आते र्े।
अथमव्यिस्था-
 पतिमी तट के बिंदरगाह – भडौच/ भृगक ु च्छ एिंव
सोपारा  कृ षक धनी र्े, अकाल नहीं पडता र्ा (जबतक
 पवू ी तट का बिंदरगाह - ताम्रतलतप्त या ताम्रलक
ु अन्य स्रोतों से चिंद्रगप्ु त मौयथ के िासन काल में
अकाल का वणथन तमलता है), कृ तष मुख्य
व्यवसाय र्ा।
र्ौयमकालीन िारिीय सर्ाज  पैतकृ व्यवसाय का प्रचलन र्ा।
 मेगस्र्नीज के अनसु ार राजा भ-ू राजस्व के रूप
र्ेगस्थनीज की इभं डका:- मेगस्र्नीज सेल्यक ू स में उपज का ¼ भाग लेता र्ा ( कौतटल्य ने भ-ू
तनके टर का राजदतू र्ा जो चिंद्रगप्ु त मौयथ के दरबार में राजस्व की मात्रा 1/6 बतायी है।
तनयक्ु त तकया गया र्ा। मेगास्र्नीज की तकताब  मेगस्र्नीज ने सोना खोदने वाली चीतटयों का
इतिं डका की मल
ू प्रतत उपलब्ध नहीं है तकिंतु इसके उल्लेख तकया है।
उद्धरण तवदेिी लेखक जैसे एररयन, प्लटू ाकथ , तप्लनी  भारतीय घोडे एविं एक तविेष प्रकार के एक सींग
एविं जतस्टन आतद के तववरणों से प्राप्त होते हैं। वाले घोडे का उल्लेख तकया है। उसका नाम
काटथजन र्ा।
र्ेगस्थनीज के अनुसार र्ौयमकालीन िारिीय
 उसने एक नदी की चचाथ की है तजससे सोना
सर्ाज- तनकलता र्ा।
 व्यतक्त सिंपन्न र्े, चोरी नहीं होती र्ी, घरों में ताले इभं डका के अनुसार िारि र्ें धर्म की भस्थभि:-
नहीं लगते र्े।
 अपराध कम र्ा, न्यायालयों का प्रयोग कम होता  ब्राह्मण धमथ की प्रधानता र्ी। लोग पनु थजन्म में
र्ा तवश्वास करते र्े।
 भारतीय लोग ब्याज नहीं लेते र्े।  हेरातक्लज ( श्री कृ ष्ण) और डायनोतनसस (तिव)
की पजू ा की जाती र्ी।
 सती प्रर्ा का प्रचलन नहीं र्ा
 जातत, समाज का मल ू ाधार र्ी। जातत व्यवस्र्ा
का पालन अतनवायथ र्ा। मेगास्र्नीज ने भारतीय

113
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
इभं डका के अनस
ु ार िारि की राजनैभिक दशा: है, तकिंतु मेगास्र्नीज साल में दो फसलों का
उल्लेख करता है।
 राजा अत्यतिं ितक्तिाली र्ा, राजा की अिंगरक्षक  कौतटल्य ने चावल को सवोत्तम फसल एविं ईख
तस्रयािं र्ी। को सबसे तनकृ ष्ट फसल माना है।
 अपराध कम होते र्े। दडिं के तवधान कठोर र्े।  मौयथ काल का प्रधान उद्योग सतू काताना एविं
 राजकीय सिंपतत्त को नक ु सान पहुचिं ाने पर मृत्यु बननु े का र्ा।
दडड का प्रावधान र्ा।  मौयथकाल में मतहलाओ िं की तस्र्तत स्मृतत काल
 राजा न्यायतप्रय र्ा एविं राज्य िािंत सख
ु ी र्ा। से बेहतर र्ी।

कौभटल्य के अथमशास्र के अनुसार सर्ाज:-


कला
 यह मौयथकालीन इततहास का सबसे महत्वपूणथ  मौयथ कला के दो भागों में बािंटा जाता है-
ग्रिंर् है। इसकी रचना सिंस्कृ त भाषा में की गयी र्ी 1. राजकीय कला
यह राजनीतत एविं लोक प्रिासन पर तलखी हुई 2. लोक कला
तकताब है। इसकी लेखन िेली महाभारत िैली
र्ी।
 कौतटल्य ने समाज में अनेक वणथििंकर जाततयों
का उल्लेख तकया है। कौतटल्य ने चडडालों के
अततररक्त अन्य सभी वणथििंकर जाततयों को िद्रू
कहा है। कौतटल्य ने िद्रू ों को वाताथ का अतधकार
तदया है और िद्रू ों को कृ षक कहा है।
 कौतटल्य के अनसु ार समाज में दास प्रर्ा प्रचतलत
र्ी और नौ प्रकार के दास होते र्े। वैश्यावृतत्त
सम्मातनत व्यवसाय माना जाता र्ा। कौतटल्य ने
समाज में सती प्रर्ा का उल्लेख नहीं तकया।
 रूपाजीवा: स्वतिंत्र वैश्यावृतत्त करने वाली मतहला
 समरागिं तनया: चद्रिं गप्ु त की सरु क्षा में तनयक्ु त
मतहला अिंगरक्षक
 कौतटल्य ने मतहलाओ िं को अतनष्कातसनी एिंव 1. राजसिा:- फातहयान ने मौयों के राजसभा
असयू थपश्या कहा है। को देवतनतमथत बताया र्ा।
 कौतटल्य कृ तष को सबसे अच्छा उद्योग मानता
2. स्िंि:-
है और साल में तीन फसलों का उल्लेख करता

114
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
 स्तभिं मौयथकालीन वास्तक ु ला का सवोत्तम  कुछ स्तिंभ ऐसे भी हैं, तजनमें कुछ भी नहीं तलखा
उदारहण है। है, ये लेखतवहीन स्तिंभ तनम्नतलतखत हैं-
 इन्हे अिोक की लाट कहा जाता है। 1. सिंतकिा स्तिंभ ( िीषथ पर हार्ी की आकृ तत )
 अिोक के स्तभिं ों की सिंख्या 30 बतायी जाती है। :- उत्तर प्रदेि के फरुथखाबाद तजले में तस्र्त
 ये स्तभिं मर्रु ा और चनु ार की पहतडयों से लाकर 2. रामपरु वा स्तिंभ ( िीषथ पर बैल की आकृ तत )
लाल और बलआ 3. बसाढ़ (वैिाली) स्तिंभ
ु पत्र्रों से बनाये गये हैं।
4. कोसम (कौिाम्बी) स्तिंभ
स्िंि का शीषम िाग
स्िपू
 स्तपू बद्धु के महापररतनवाथण के प्रतीक हैं, यद्यतप
स्तपू का प्रर्म उल्लेख ऋग्वेद में तमलता है,
 अशोक द्वारा भनभर्मि स्िूप:-
 बौद्ध ग्रिंर् आिोक को 84000 स्तपू ों को बनाने
वाला मानते हैं, तजनमें कुछ प्रमख ु स्तपू तनम्न हैं-
1. सांची र्हास्िूप:- यह मध्य प्रदेि के रायसेन
तजले में तस्र्त है, यह अिोक द्वारा तीसरी
िताब्दी में बनवाया गया र्ा, बाद में अतग्नतमत्र
ििंगु ने इसका जीणोंद्धार करवाया र्ा, इसकी
खोज 1818 में तब्रतटि अफसर जनरल टेलर ने
की र्ी।
 2. सारनाथ के स्िूप:- सारनार् में कई प्रमख ु ों
स्तपू ों की श्रिंखला है, तजनमें धमेख स्तपू और
मल ू गधिं कुटीर तवहार, धमथरातजक स्तपू इत्यातद
 कई तवदेि तवद्वानों के अनसु ार अिोक के स्तिंभ िातमल हैं,
ईरानी स्तभिं ों से प्रेररत हैं।  धमेख स्तपू :- इसका तनमाथण अिोक के समय
 रुतम्मनदेई स्तभिं सबसे छोटा स्तिंभ लेख है। प्रारिंभ हुआ कुषाण काल में तवस्तार हुआ जबतक
 लौररया निंदन सबसे सरु तक्षत स्तिंभ लेख है। गप्ु त काल में यह पणू थत: तैयार हुआ।
 पाटतलपत्रु (कुम्रहार) के स्तिंभ को फातहयान ने  तपपरहवा स्तपू प्राचीनतम स्तपू है।
जम्बदू ीप स्तिंभ कहा।

115
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
र्ृद्भिाण्ड
भिहार
मौयथ काल के सबसे प्रमख
ु मृद्भाभाडड उत्तरी काले
 अिोक ने पाटतलपत्रु में अिोकाराम तवहार, एविं पातलस वाले मृद्भाभाडड (नादथन ब्लैक पोतलस वेयर/
कुक्कटाराम तवहार का तनमाथण करवाया र्ा, NBPW) हैं।
अिोक ने कुक्कटाराम तवहार को 100 करोड
स्वणथ महु र देने का सक
िं ल्प तलया र्ा।
र्ौयों के पिन के प्रर्ख
ु कारर्:-
र्ंभदर/ नगर
 अिोक ने तवतस्ता नदी के तट पर श्रीनगर की  तवत्तीय दबु थलता
स्र्ापना की, और यहािं पर उसने अिोके श्वर  प्रिासन का अततकें द्रीयकरण
मिंतदर का तनमाथण करवाया  दरू वती क्षेत्रों में नए ज्ञान की पहुचिं
 अिोक ने नेपाल में लतलतपतन नामक नगर  तवदेिी आक्रमण
बसाया र्ा।  आयोग्य उत्तरातधकारी
 साम्राज्य का तवभाजन
 प्रािंतीय आमात्यों का दमनकारी िासन इसके
र्ूभिमकला कारण बराबर जनतवद्रोह
पत्थर की र्ूभिमयां ( लोक-कला) :-
 परखर् – ये यक्ष की मतू ी है तजसे मतणभद्र कहा
गया है, यह मर्रु ा के परखम से प्राप्त हुई है,
परखम कुबेर के काषोध्यक्ष है।

 भिभदशा एिं ग्िाभलयर की र्िू ी:- यहािं से यक्ष-


यतक्षणी की मतू ी प्राप्त हुई है।

 दीदारगंज की र्ूिी:- तबहार के दीदारगिंज से


चामर ग्रहणी यक्षी की प्रततमा प्राप्त हुई है।
 लोहानीपुर की र्ूिी :- पटना के लोहानीपरु से
दो जैन तीर्ंकरों की मतू ी प्राप्त हुई है।

116
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
र्ौयोत्तर काल

शुंग वुंश (मूलत: उज्जैन के185 से 73 ई.पू.) सातवािन वंश, चेटद


वंश, वाका क वंश , टिन्द्द यवन, शक,
कण्व वुंश ( 73 से 28 ईस्वी)
इक्ष्वाकु वंश पह्िव, कुषाण

मौयथ साम्राज्य के तवघटन के पिात का लाभ उत्तरी  हेतलयोडोरस का बेसनगर लेख


भारत में मख्ु यतः तवदेिी आक्रमणकाररयों ने और  हषथ चररत
दतक्षण में स्र्ानीय राज विंिों ने उठाया ।  मातलवाकतग्नतमत्रम
 मौयथविंि के अिंततम िासक वृहद्रर् की हत्या करने  मेरुतिंगु की र्ेरावली
के बाद पष्ु यतमत्र ििंगु ने 185 ई. प.ू में ििंगु विंि
 गागी सिंतहता
की स्र्ापना की।
 मनस्ु मृतत
शुंग िंश
 ििंगु विंि का सिंस्र्ापक पष्ु यतमत्र ििंगु र्ा।
 राजधानी: पातटलीपत्रु / तवतदिा
 मल ु त: िगिंु उज्जैन के तनवासी र्े। पष्‍टु यभर्र शुंग:-
सर्य: 185-149 ई.पू.
 पष्ु यतमत्र के िासन काल की सबसे महत्वपणू थ
शगुं िश
ं के ऐभिहाभसक स्रोि – घटना यवनों का भारत पर आक्रमण र्ा।
 धनदेव का अयोध्या अतभलेख

117
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
 यवन तवजय के उपलक्ष्य में पष्ु यतमत्र ने दो  इसी भागभद्र के तवतदिा तस्र्त दरबार में
अश्वमेघ यज्ञ कराए, यह जानकारी पष्ु यतमत्र िगिंु तक्षतिला के यनू ानी िासक, एतटयालकीडस का
के राज्यपाल धनदेव के अयोध्या अतभलेख से राजदतू हेतलयोडोरस आया र्ा, हेतलयोडोरस ने
तमलती है। भागभद्र से प्रभातवत होकर भागवत् धमथ स्वीकार
 पष्ु यतमत्र ििंगु की धातमथक नीतत सतहष्णतु ा की र्ी, कर तलया र्ा, और भागवत् धमथ की स्मृतत में
लेतकन बौद्ध ग्रिंर्, उसे बौद्धों का घोर ित्रु बताते तवतदिा में एक तवष्णु मतिं दर और गरुण ध्वज स्तिंभ
हैं, बौद्ध ग्रर्िं यह उल्लेख करते हैं तक उसने बनवाया र्ा।
पातटलीपत्रु तस्र्त कुक्कुटाराम तवहार को तीन  अंभिर् शुंग शासक:- ििंगु विंि का अिंततम
बार नष्ट करने का असफल प्रयास तकया, उसके िासक देवभतू त र्ा। इसकी हत्या 73 ई. प.ू में
बाद वह िाकल पहुचिं ा और उसने घोषणा की, ‘ उसके अमात्य वासदु वे ने कर दी तर्ा कडव
जो मझु े एक बौद्ध तभक्षू का सर देगा उसे मैं 100 राजविंि की स्र्ापना की।
दीनार दगिंू ा’, यहािं हमें यह भी ध्यान रखना होगा िरहुि स्िपू
तक पष्ु यतमत्र िगिंु इतना असतहष्णु होता तो वहा
 यह स्तपू सतना (मध्य प्रदेि ) के समीप
सािंची, भरहुत स्तपू का पनु थतनमाथण सिंभव नहीं
तस्र्त है।
होता, और पष्ु यतमत्र ििंगु के समय ही सािंची के
 खोजकिाम:- अलेंक्जेंडर कतन्नघिं म
स्तपू का आकार दगु ना कराया जाना भी सिंभव
 इस स्तपू को मूलत: सम्राट अिोक के
नहीं होता। द्वारा बनवाया गया र्ा और इसका
 पतिं जतल पष्ु यतमत्र िगिंु के परु ोतहत र्े, तजन्होनें पनु थतनमाथण पष्ु यतमत्र ििंगु के द्वारा करवाया
पातणनी की अष्टाध्यायी पर महाभाष्य की रचना गया।
की र्ी।

अभग्नभर्र :-  ििंगु काल में सिंस्कृ त भाषा एविं ब्राह्मण व्यवस्र्ा


 पष्ु यतमत्र के बाद अतग्नतमत्र िासक बना का पनु रूत्र्ान हुआ। इसी काल में पहला स्मृतत
 कातलदास कृ त मातल्वकातग्नत्रम् के अनसु ार ग्रिंर् मनस्ु मृतत की रचना की गई।
पष्ु यतमत्र ििंगु का पौत्र (अतग्नतमत्र का पत्रु )
वसतु मत्र ने यवनों को परास्त तकया, ध्यातव्य है
तक कातलदास की मातलकातग्नतमत्र का नायक
यही अतग्नतमत्र ििंगु है।
िागिद्र
 यह इस विंि का नौंवा िासक र्ा।

118
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
र्नस्ु र्भृ ि कण्ि िश ं (75 ई. प.ू से 30 ई.प.ू
मनस्ु मृतत का रचनाकाल :-  इस वि िं में कुल चार िासक हुए।
 1000 ई.प.ू से लेकर ई.प.ू 2 िताब्दी तक माना  परु ाणों में कडव विंि के िासकों को ििंगु भृत्य कहा
जाता है, इसतलये यह माना जाता है तक यह स्मृतत गया है।
ििंगु काल में आकर पणू थ हुई।
 कडव वि िं की स्र्ापना वासदु ेव ने िगिंु विंि के
 यह ग्रिंर् मल ू त: तहन्दू तवतध तवषयक ग्रिंर् है इसे
अिंततम राजा देववभतु त को मार कर की र्ी।
मानव धमथिास्त्र भी कहा जाता है।
 मनस्ु मृतत के कई अिंग्रेजी अनवु ाद हुए, तजसमें  इस विंि के अिंततम िासक सुिमाथ र्ा, तजसकी
सबसे प्रतसद्ध अनवु ाद “ A Code of Zentoo हत्या सातवाहन नरे ि तिमक ु ने कर दी, और
Laws” नाम से एन.बी.हेलहेक ने तकया र्ा। सातवाहन वि िं की स्र्ापना की।
 मनस्ु मृतत के टीकाकार :-
1. मेघातततर् साििाहन िंश
2. कुल्लक ु भट्ट  सातवाहन विंि का सिंस्र्ापक तिमक ु र्ा, तजसने
3. गोंतवद राज कडव वि िं के अतिं तम िासक सि ु माथ की हत्या कर
मनस्ु मृतत की मान्यातायें:- इस विंि की स्र्ापना की र्ी।
 मनु ने तलाक एविं तवधवा पनु थतववाह की अनमु तत  राजधानी:- गोदावरी के तट पर प्रततष्ठान
नहीं दी र्ी।
(औरिंगाबाद, महाराष्र) र्ी, जबतक इनकी
 मनस्ु मृतत में 60 वणथसिंकर जाततयों का उल्लेख है।
प्रारिंतभक राजधानी धान्यकटक (अमरावती) र्ी।
 मनु ने पत्रु ों को तपता की सिंम्पतत्त में बराबर
तहस्सेदार माना है,  धर्म:- ब्राह्मण
 मनु ने सात प्रकार के दास बताये हैं।  परु ाणों में इन्हें आिंध्रभृत्य कहा गया है।
 मनु ने ब्राह्मण को िद्रू कन्या के सार् तववाह की  ऐतरे य ब्राह्मण में आिंध्रों को दस्यु जातत का बताया
अनमु तत दी है। गया है।
 मनु ने तवधवाओ िं के तलए मडिंु न का प्रावधान
तकया है, और तस्त्रयों को वेद पढ़ने से माना तकया शािकर्ी-I (27 ई.पू. – 17 ई.पू.)
है।
 यह इस विंि का एक महान िासक र्ा, तजसने दो
 मनु ने आजीतवका के चलाने के तलए अध्यापक
अश्वमेघ यज्ञ तर्ा एक राजसयू यज्ञ सिंपन्न कराये।
का कायथ करने वालों को उपाध्याय, और
तन:िल्ु क तिक्षा देने वालों को आचायथ कहा है।  इसने चािंदी के तसक्कों पर ‘अश्व’ की आकृ तत
 अतधकाररयों को मनु ने भतू मदान के माध्यम से अतिं कत कराई।
भगु तान देने का समर्थन तकया।  िातकणी-I ने दतक्षणापर् का स्वामी की उपातध
धारण की र्ी।

119
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
 िातकणी की पत्नी नागतनका के ‘नानाघाट (1) आगमतनलय :- (वेदों का आश्रय दाता)
तिलालेख’ में िातकणी-I की उपलतब्धयों का (2) अतद्वतीय ब्राह्मण
वणथन तवस्तार से तकया गया है। (3) वणथव्यवस्र्ा का रक्षक
 नानाघाट पहला अतभलेख है तजसमें भतु मदान की (4) वर-वरण-तवक्रम-चारु तवक्रम:
जानकारी तमलती है। (5) पवथतों का स्वामी
 िातकणी प्रर्म की मृत्यु के समय उसके दोनों  उसने िकों से मालवा एविं कतठयावाड भी छीन
पत्रु अवयस्क र्े, इसतलये नागतनका ने सिंरतक्षका तलया।
के तौर पर िासन चलाया, इस प्रकार नागतनका  उसने क्षहरात विंि का नाि तकया, क्योंतक उसका
पहली भारतीय मतहला िातसका र्ी। ित्रु नहपान इसी विंि का र्ा, तजसे गौतमीपत्रु ने
हराकर मार डाला र्ा।
हाल-I (20 ई. – 24 ई.):-  गौतमीपत्रु को नहपान की जोगलर्म्बी से प्राप्त
 िातकणी प्रर्म की मृत्यु के बाद कई कमजोर कई हजार रजत मद्रु ायें तमली, तजसे गौतमीपत्रु ने
सातवाहन राजा हुए लेतकन हाल के समय पनु : अपनी आकृ तत में ढाला।
सातवाहनों की कला सिंस्कृ तत का भरपरू तवकास  िक तवजय के उपलध्य में गौतमीपत्रु िातकणी
हुआ। ने वेणाकटक नगर की स्र्ापना की और
 हाल सातवाहन विंि का 17 वॉ िासक र्ा। वेणाकटक का स्वामी कहालाया।
 इसने प्राकृ त ग्रिंर् गार्ासप्तिती (गार्ाहासत्तसई)  नातसक अतभलेख में गौतमीपत्रु िातकणी की
की रचना की । तवजय का उल्लेख है, इसी प्रितस्त में कहा गया
 हाल के दरबार में ही गणु ाढ्य तनवास करते र्े है तक उसके घोडे तीन समद्रु का पानी पीते र्े।
तजन्होंने वृहत्तकर्ा की रचना की र्ी।
 इसी के समय में सिंस्कृ त व्याकरण के लेखक
सवथवमथन ने कातन्त्र नामक पस्ु तक सिंस्कृ त में
तलखी।
िभशभष्‍टठ पुर पुलर्ािी (130-154 ईस्िी) :-
 उपातध: दतक्षणापर्ेश्वर, आिंध्र का िासक
गौिर्ीपरु शािकर्ी-I (106 ई. – 130 ई.)  यह दो बार िक िासक रुद्रदामन से परातजत
 सातवाहन विंि का पनु रूद्धार गौतमीपत्रु के समय हुआ, लेतकन रुद्रदामन ने इसे मारा नहीं क्योंतक
में हुआ। यह िक िासक रुद्रदामन के भाई का दामाद र्ा।
उपातधयािं:-
यज्ञश्री शािकर्ी-I (165 ई. – 194 ई)

120
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
 यह सातवाहन विंि का अिंततम ितक्तिाली तकया और वणथ सक िं र व्यवस्र्ा (वणों और
िासक र्ा, तजसके तसक्कों पर मछली, िख िं और जाततयों के सतम्मश्रण) को रोका अर्ाथत् वणथ
जहाज, नाव अिंतकत है। सिंकर कुप्रर्ा को रोकने के तलए चार वणों की
 पातजथटर के अनसु ार यज्ञश्री की देखरे ख में परु ाणों प्रर्ा को उसने पनु ः स्र्ातपत तकया।
का पनु संस्करण तैयार तकया गया।  ब्राह्मणों को भतू मदान या जागीर देने वाले प्रर्म
 सातवाहन विंि का अिंततम िासक पल ु वामी िासक सातवाहन ही र्े, तकन्तु उन्होंने अतधकतर
चतर्ु थ र्ा। भतू मदान बौद्ध तभक्षओु िं को ही तदया।
 भडौच सातवाहन काल का प्रमख ु अन्तराथष्रीय
भिभिध िथ्यः- बन्दरगाह एविं व्यापाररक के न्द्र र्ा।
 सातवाहनों की राजकीय भाषा प्राकृ त र्ी जो तक
ब्राही तलतप में र्ी, सातवाहन नरे ि हाल ने अपने साििाहन कला
प्रतसद्द ग्रन्र् गार्ा सप्तिती की रचना इसी भाषा  सातवाहन कला में गफ ु ाए एविं स्तपू का तविेष
में की। महत्व है।
 सातवाहन काल में चािंदी व ताबिं े के तसक्कों का  सातवाहन विंि में पतिमोत्तर दक्कन या महाराष्र
प्रयोग होता र्ा तजसे काषाथपण कहा जाता र्ा। में अत्यिंत दक्षता और लगन के सार् ठोस चट्टानों
 सातवाहनों ने आतर्थक लेन देन के तलए सीसे के को काटकर कर चैत्य एविं तवहार बनाये गए,
तसक्कों का भी प्रयोग तकया। वस्ततु : यह प्रतक्रया 200 ईसा पवू थ के आस पास
 सातवाहन िासकों ने ही सवथप्रर्म ब्राह्मणों को एक िताब्दी पहले ही आरिंभ हो चक ु ी र्ी
भतू मदान या जागीर देने की प्रर्ा िरूु की।  चैत्य – बौद्ध मिंतदर या प्रार्थना स्र्ल
 सातवाहनों में मातृसत्तात्मक सामातजक व्यवस्र्ा  तवहार - तभक्षु तनवास
र्ी।
 प्रमख गि
ु ायें
ु वास्तक ु ला-काले का चैत्य (भोरघाट,
पनू ा), अजिंता एविं एलोरा की गफ ु ाओ िं का  सातवाहन काल में नातसक, काले, कन्हेरी,
तनमाथण, अमरावती एविं नागाजथनु कोंड के स्तपू ों पीतलखोरा, भाजा, जन्ु नार, इत्यातद गफ
ु ाएिं
का तनमाथण। महत्वपूणथ हैं-

सार्ाभजक संगठन (1) पीिलखोरा की गुिा:-


 गौतमी पत्रु िातकणी ने तवतच्छन होते चातवु थडयथ
(चार वणों वाली व्यवस्र्ा) को तफर से स्र्ातपत

121
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
 यह 14 बौद्ध गफ ु ाओ िं का समहु है, जो महराष्र  यह महाराष्र के बोरवली ( मिंम्ु बई) में तस्र्त
के ओरिंगाबाद तजले में तस्र्त है, इनका तनमाथण गफ
ु ाएिं हैं, यहािं से 11 तसर वाले अतवलोतक्तश्वर
प्रततष्ठान के व्यापाररयों के द्वारा तकया गया र्ा। की प्रततमा तमली है, कन्हेरी से ही राष्रकूट
िासक अमोघवषथ का एक लेख तमला है।
(2) िाजा की गुिा:-
 भाजा गफ ु ा 22 रॉक-कट का समहू है, जो
महाराष्र के लोनावाला में तस्र्त है, इनका
तनमाथण 2 िताब्दी ईसा पवू थ में हुआ है, इन
गफु ाओ िं में सयू थ तर्ा इद्रिं देवता को भी दिाथया
गया है, लेतकन यह गफ ु ाएिं मख्ु य रूप से स्र्तवर
बौद्ध तभक्षओ
ु िं पर कें तद्रत हैं।

(3) जन्ु नार की गि ु ा:-


 जन्ु नार की गफ ु ा महाराष्र के पुणे में तस्र्त बौद्ध
गफु ाएिं हैं, ये 150 गफ ु ाओ िं का समहू है, ध्यातव्य
है तक क्षत्रपती तिवाजी का जन्म इन्हीं जन्ु नार की
गफ ु ाओ िं में तस्र्त तिवनेरी दगु थ में हुआ र्ा।

(4) काले की गि ु ा:-


 यह गफ ु ाएिं महाराष्र के पणु ें में तस्र्त हैं, काले एक
आयताकार चैत्य है, जो सबसे सिंदु र, सबसे
सरु तक्षत और सबसे बडा चैत्य है, दसू री िताब्दी
ईसा पवू थ में इसका तनमाणथ वतितष्ठ पत्रु पल ु वामी
के भतू पाल नामक श्रेष्ठी ने तकया र्ा। काले की
एक गफ ु ा का दानकताथ हरफान नामक पारसीक
र्ा।

(5) कन्हेरी की गुिा:-

122
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
स्िूप नागाजमनु कोंड स्िूप
 सातवाहनों के समय अमरावती और  तस्र्तत:- गटिंु ू र आध्रिं प्रदेि
नागाजथनु ीकोंड स्तपू कला के प्रमख
ु कें द्र र्े।  खोजकताथ:- लॉग हस्टथ (1926)
 इनका तनमाथण पहले सातवाहन िासकों और
अर्राििी स्िूप उसके बाद इक्ष्वाकुविंिीय िासकों की रातनयों
 इसको धान्यकटक स्तपू भी कहते हैं, महाचैत्य द्वारा करवाया गया, इक्ष्वाकुविंिीय, सातवाहनों
भी कहते हैं। के सामिंत र्े।
 तस्र्तत:- गिंटु ू र  व्हेनसािंग के अनसु ार यहािं के तवहार में बद्ध
ु की
 खोजकताथ:- कनथल मैकेंजी (1797) बहुत बडी सोने की मतू ी र्ी।
 उत्खनन:- इतलयट (1840)
 नागाजथनु कोंड से व्यायामिाला, अश्वमेघकिंु ड
 अमरावती स्तपू का तनमाथण लगभग 200 ईसा
पवू थ में आरम्भ हुआ यह स्तपू तभतत्त-प्रततमाओ िं नहर, कातेकेय का मिंतदर एविं चार बौद्ध सिंप्रदायों
से भरा हुआ है, इस स्तपू का तनमाथण सम्राट का उल्लेख तमलता है।
अिोक ने करवाया र्ा, उसके बाद सातवाहनों
ने इसका तवकास करवाया।
 यह मुख्यत: बौद्ध स्तपू है, तजसमें जातक
कर्ाओ िं का अक िं न है।

123
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं

र्ोयोत्िर कालीन अन्य राजिंश


कभलगं के चेभद राजिश ं हाथीगुम्िा अभिलेख
सिंस्र्ापक:- महामेघवाहन
खोजकताथ:- तविप स्टतलंग (1825)
राजधानी :- कतलिंग
 चेतद राजविंि को इसके सिंस्र्ापक के नाम के भाषा : प्राकृ त
कारण महामेघवाहन विंि भी कहते हैं। तलतप: ब्राह्मी
खारिेल (प्रथर् शिाब्दी ई.पू.) :-
उपातध:- कतलिंगातधपतत, वृद्धराज, आयथ महाराज,  अवतस्र्तत: यह अतभलेख भवु नेश्वर तजले में
धमथराज, तभक्षरु ाज। उदयतगरी-खडडतगरी पहातडयों पर गफ ु ा सिंख्या 14
पर उत्कीणथ ( तलखा) है।
 ‘खारवेल महाराज’ की उपातध धारण करने वाला
 मतू तथ पजू ा का प्रमाण देने वाला यह पहला
पहला िासक र्ा।
अतभलेख है, इसमें वणथन है तक महापदमनदिं तजन
 खारवेल जैन धमथ का अनयु ायी र्ा, खारवेल ने जैन आतदतजन की मतू तथ ले गया र्ा उसे खारवेल
भवु नेश्वर में उदयतगरी-खडडतगरी गफ ु ाओ िं का अपनी राजधानी वापस लाया र्ा।
तनमाथण करवाया।  नहरों का वणथन करने वाला यह प्राचीनतम
 उदयतगरी की गफ ु ाओ िं में रानी गफु ा सबसे बडी अतभलेख है, इसमें वणथन है तक खारवेल ने अपने
राज्यातभषेक के पािंचवें वषथ तनसतु ल से राजधानी
गफु ा है, उदयतगरी की अन्य गफ ु ाओ िं में गणेि
तक नहर का तवस्तार कराया।
गफ ु ा, हार्ी गफु ा, स्वगथपरु ी गुफा, मिंचापरु ी गफ
ु ा
 इसमें जैन तभक्षओ
ु िं को ग्रामदान तदये जाने का पहला
इत्यातद प्रतसद्ध हैं। अतभलेख है।
 खारवेल के बारे में तवस्तृत जानकारी उसके तनम्न  इसमें यह भी वणथन है तक खारवेल ने तफ ू ान से नष्ट
दो अतभलेखों के माध्यम से तमलती है- हुए कतलिंग का पनु थतनमाथण करवाया।
 (1) हार्ी गम्ु फा अतभलेख  इस अतभलेख में यह भी वणथन है तक यद्ध ु में जहाजों
 (2) मिंचपरु ी गहु ा लेख का प्रयोग होता र्ा।
 इसमें हार्ी गम्ु फा अतभलेख सवाथतधक महत्वपणू थ
अतभलेख हैं-

124
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
आिीर िश
ं रुद्रसेन भद्विीय ( 385 – 390):-
संस्थापक:- ईश्वरसेन  यह गप्ु त वि िं का दामाद र्ा, चद्रिं गप्ु त ने अपनी
 ईश्वरसेन ने 248-49 ईस्वी में कलचरु र चेतद पत्रु ी प्रभावती का तववाह इसी से तकया र्ा,
सिंवत् चलाया। रुद्रसेन की मृत्यु के बाद 13 वषों तक प्रभावती ने
 महाभाष्य कहता है तक आभीर तवदेिी र्े। अपने दो अल्पवयस्क पत्रु ों (तदवाकरसेन एविं
दामोदरसेन) की सरिं तक्षका के रूप में िासन
इक्ष्िाकु िश
ं तकया।
 सस्िं र्ापक: श्रीिातिं मल ू
 राजधानी: नागाजथनु कोडडा  प्रिरसेन भद्विीय:- प्रवरसेन तद्वतीय ने प्रवरपरु
 इक्ष्वाकु िासक ब्राह्मण धमथ के अनयु ायी र्े तकिंतु नामक नई राजधानी बनायी, इसी प्रवरसेन ने
उनकी रातनयािं बौद्ध धमथ के प्रतत तविेष लगाव सेतबु िंध नामक ग्रिंर् की रचना की ध्यातव्य है तक
रखती र्ीं। कातलदास ने इसी सेतबु िंध में सिंिोधन तकया र्ा।
 इसी विंि की मतहलाओ िं ने नागजु थनकोडडा में
कोंकर् का र्ौयम िंश
छायास्तभिं ों का तनमाथण करवाया।
 इनकी राजधानी एलीफें टा के तनकट धारापरु ी र्ी।
िाकाटक िंश  इस विंि को एहोल अतभलेख में पतिमी समद्रु की
 सिंस्र्ापक : तवन्ध्यितक्त लक्ष्मी कहा गया है।
 राजधानी: नन्दीवधथन (नागपरु ), प्रवरपरु
पभिर्ी गगं राजिश

 वाकाटकों के वैवातहक सिंम्बध गप्ु तों एविं नाग
 सस्ं थापक: कोंगवु मथन
िासकों से र्े।
 मैसरू में पतिमीगगिं राजविंि का उदय चौर्ी
प्रिरसेन प्रथर् (275-335) :- िताब्दी में हुआ।
 यह वाकाटकों का सबसे प्रतापी राजा र्ा।
 इसने कुल चार अश्वमेघ यज्ञ, एक वाजपेय एविं
सोम यज्ञ तकये र्े

125
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
भिदेशी आक्रर्र्
 तमलिंदपन्हों में नागसेन और तमनािंडर के बीच
िारिीय यूनानी (इण्डो-ग्रीक) वाताथलाप का उल्लेख है।
 उत्तर-पतिम से पतिमी तवदेतियों के आक्रमण
मौयोत्तर काल की सबसे महत्वपणू थ राजनीततक यक्र
ू े टाइडीज िश ं
घटना र्ी, इनमें सबसे पहले आक्रान्ता र्े  यह तहन्द यवनों की ही दसू री िाखा र्ी।
बैतक्रया के ग्रीक (यनू ानी) तजन्हें प्राचीन भारतीय  इस विंि का सबसे ितक्तिाली राजा
सातहत्य में यवन कहा गया है। एिंतटयालक्रीडस र्ा, इसने ििंगु िासक भागभद्र
 तसकिंदर के बाद भारतीय सीमा में सवथप्रर्म प्रवेि के दरबार में अपने राजदतू हेतलयोडोरस को भेजा
करने का श्रेय डेमेतरयस प्रर्म को है। इसने 183 र्ा।
ई0 प0ू के लगभग पिंजाब के कुछ भाग को
जीतकर साकल को अपनी राजधानी बनाया।  अततिंम तहदिं -यूनानी राजा हतमथयस र्ा।
 डेमेतरयस ने भारततयों के राजा की उपातध धारण
की और यनू ानी तर्ा खरोष्ठी दोनों तलतपयों वाले
तसक्के चलाए।
 डेमेतरयस के उपरान्त यक्र ू े टाइड्स ने भारत कुछ
तहस्सों को जीतकर तक्षतिला को अपनी
राजधानी बनाया।

भर्नांडर (160-120 ई.पू.) —


 सबसे प्रतसद्ध यवन िासक र्ा। उसने भारत में
यनू ानी सत्ता को स्र्ातयत्व प्रदान तकया।
 तमनाडिं र को नागसेन ने बौद्ध धमथ की दीक्षा दी र्ी,
इसने बौद्ध तभक्षु नागसेन से वादतववाद के बाद
बौद्ध धमथ स्वीकार कर तलया र्ा।

126
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
शक िंश

 यनू ातनयों के बाद भारत पर िकों का हमला  और इसी उपलक्ष्य में तवक्रमातदत्य ने तवक्रम
हुआ। सिंवत् (57 ई.प.ू ) चलाया र्ा।
 िक भारत में दो िाखाओ िं में तवभातजत र्े-
पभिर्ी िारि के शक
 1. उत्तरी क्षत्रप:- इनमें तक्षतिला और मर्रु ा के
 इनकी भी दो िाखाएिं र्ीं-
िक िासक िातमल र्े,
 1. क्षहरात िक
 2. पतिमी क्षत्रप:- नातसक एविं उज्जैन के िक
िासक।  2. कादथमक िक

िक्षभशला के शक शासक क्षहराि शक


 तक्षतिला के तक्ष िासकों में मेउस प्रर्म र्ा और  सिंस्र्ापक: भमू क
यह भारत का प्रर्म िक तवजेता भी र्ा।  नहपान इस विंि का सबसे प्रतापी राजा र्ा।
 इसी नहपािंग को मारकर गौतमीपत्रु िातकणी ने
र्थुरा के शक जोंगलर्म्बी तस्र्त उसके खजाने पर अतधकार
 मर्रु ा का पहला िक िासक राजल ु र्ा, मर्रु ा कर तलया र्ा।
के िकों को मालवा में तवक्रमातदत्य ने खदेड  नहपागिं की राजधानी तमन्ननगर र्ी।
तदया र्ा,

127
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
कादमर्क शक भहन्द-पाभथमयन या पहलि िश ं
 सस्िं र्ापक: चष्टन  पतिमोत्तर भारत में िकों के आतधपत्य के बाद
पातर्थयाई लोगों का आतधपत्य हुआ।
रुद्रदार्न (130 -150 ईस्िी) :-  पातर्थयाई लोगों का मल ू तनवास स्र्ान ईरान र्ा।
 उपातध: महाक्षत्रप  भारत पर आक्रमण करने वाले पातर्थयन मल ू रूप
 यह सबसे ितक्तिाली िक राजा र्ा। से अराके तसया (किंधार), सीस्तान (ईरान का एक
 इसके बारे में सवाथतधक जानकारी इसके जनू ागढ प्रािंत) के तनवासी र्े।
लेख से तमलती है,  सिंस्र्ापक:- मीथ्रेडेट्स प्रर्म (तमथ्रदात तृतीय
रुद्रदार्न का जनू ागढ़ अभिलेख 170- 130 ई.प.ू )

 इसको तगररनार अतभलेख भी कहते हैं।  गोन्दोिभनमस (20-41 ई.):- पहलव विंि का
 तविद्ध ु गद्य सिंस्कृ त भाषा में तलखा गया यह पहला सवाथतधक ितक्तिाली िासक र्ा।
अतभलेख है।  खरोष्ठी तलतप में उत्कीणथ तख्तेबही अतभलेख (
 सदु िथन झील का सवथप्रर्म अतभलेख इसी पेिावर) में इसे गदु व्ु हर कहा गया है, फारसी में
अतभलेख में तमलता है, तजसमें तलखा है तक उसका नाम तबन्दफणथ है तजसका अर्थ है ‘यि
रुद्रदामन ने अपने राज्यपाल सुतविाख के तनदेिन
में सदु िथन बािंध की मरम्मत करवायी। तवजयी’।
 रुद्रदामन ने सातवाहन नरे ि वतिष्ठीपत्रु पल ु वामी  इसकी राजधानी तक्षतिला र्ी।
को दो बार हराया र्ा।  गोन्दोफातनथस के िासन काल में सेंट टाइम ईसाई
धमथ का प्रचार करने के तलए भारत आये र्े,
पभिर्ी िारि का अंभिर् शक नरेश :- रुद्रतसिंह तजनकी मद्रास के तनकट हत्या कर दी गई र्ी।
तृतीय र्ा, तजसे गप्ु त िासक चिंद्रगप्ु त तद्वतीय ने  िकों तर्ा पतर्थयन िासकों ने सयिं क्ु त िासन का
परातजत कर पतिमी क्षत्रपों के राज्य को अपने राज्य चलन प्रारिंभ तकया, तजसमें यवु राज सत्ता के
में तमलाया उपभोग में राजा का बाराबर का सहभागी होता
र्ा।
 इस साम्राज्य का अन्त कुषाणों द्वारा हुआ।

128
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
कुषार्
 पातर्थयाई लोगों के बाद कुषाण आये, इनका मल ू  उसके कुछ तसक्कों पर यज्ञ करते हुए राजा की
तनवास स्र्ान चीन की सीमा पर तस्र्त चीनी आकृ तत भी अिंतकत है।
ततु कथ स्तान र्ा।
 हमें कुषाणों के दो राजविंिों के बारे में जानकारी कभनष्‍टक (78- 101 ई.)-
तमलती है जो एक के बाद एक आये, पहला  यह कुषाण विंि का महानतम् िासक र्ा।
राजविंि कडतफसस कहलाता है।  उपातध:- देवपत्रु , िाओनानोिाओ ( िहिं िाह),
तद्वतीय अिोक।
कुजल
ु कडभिसस प्रथर्ः-  इततहास में कतनष्क का नाम दो कारणों से प्रतसद्ध
 यह प्रारिंभ में हतमथयस का सामिंत र्ा। है, पहला उसने 78 ई. में एक सिंवत् चलाया जो
 इसके तसक्कों पर इसकी उपातध धमथतर्दस िक सविं त् कहलाता है आज भी यह सविं त् भारत
अिंतकत है। सरकार द्वारा प्रयोग में लाया जाता है, दसू रा उसने
 यह बौद्ध धमथ को मानने वाला र्ा। बौद्ध धमथ का मक्त ु हृदय से सम्पोषण एविं सिंरक्षण
तकया।
भिर् कडभिसेस भद्विीयः-  कतनष्क की जानकारी देने वाला सबसे महत्वपणू थ
 उपातध :- महेश्वर, सवथलोके श्वर, महाराज, अतभलेख रै बातक अतभलेख है, जो तक
राजाततराज, दमअतथ (सम्पणू थ ब्रह्माडड का अफगातनस्तान के सख ु थकोतल से प्राप्त हुआ है।
तनयिंत्रण कताथ)।  दसू रा महत्वपणू थ अतभलेख सारनार् एविं
 सवथप्रर्म तवम कडतफसस ने ही भारत में कुषाण कौिाम्बी अतभलेख है, तजसमें कतनष्क के
सत्ता की वास्ततवक स्र्ापना की। पाटतलपत्रु पर आक्रमण कर, अश्वघोष, बद्ध ु का
 सवथप्रर्म तवमकडतफसेस ने ही भारत में स्वणथ तभक्षापात्र एविं अद्भुत मगु ाथ प्राप्त करने का
मद्रु ा का प्रचलन तकया, उसने बडी सख्िं या में सोने अतभलेख है।
के तसक्के चलवाए, उसके बाद कुषाणों ने सोने  इसके समय में कश्मीर के कुडडलवन में वसतु मत्र
एविं ताोँबे के तवतभन्न तसक्के जारी तकये। की अध्यक्षता में चौर्ी बौद्ध सिंगीतत हुई इस
सिंगीतत में बौद्ध ग्रन्र्ों के ऊपर टीकाएिं तलखी जो
 यह िैव मत का अनयु ायी र्ा, इसके कुछ तसक्कों तवभाषिास्त्र कहलाती है।
पर तिव, नन्दी तर्ा तत्रिल ू की आकृ ततयाोँ  कतनष्क की प्रर्म राजधानी पेिावर (परुु षपरु )
तमलती है। एविं दसू री राजधानी मर्रु ा र्ी, कतनष्क ने कश्मीर
को जीतकर वहाोँ ‘कतनष्कपरु ’ नामक नगर

129
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
बसाया, एविं तक्षतिला में तसरसख ु नामक नगर 4. नागाजमनु :- यह िन्ू यवाद के प्रततपादक और
बसाया। माध्यतमक दिथन के आचायथ र्े।
 कभनष्‍टक का सीर्ा भिस्िार:- कतनष्क का
साम्राज्य प्रर्म अतिंराष्रीय साम्राज्य र्ा, तजसमें 5. र्थर:- कतनष्क का मिंत्री
चीनी, ततु कथस्तान, कािंधार, काबल ु , समरकिंद
इत्यातद प्रदेि सतम्मतलत र्े, पवू थ में कतनष्क का 6. एभजभसलाओस:- ग्रीक इजिं ीतनयर
साम्राज्य गिंगा घाटी एविं दतक्षण में मालवा क्षेत्र
तक फै ला हुआ र्ा। 7. सगं रक्ष:- कतनष्क के राजपरु ोतहत
 कतनष्क ने पेिावर में एक स्तूप और तवहार का
तनमाथण कराया तजसमें बद्ध ु के अतस्र्-अविेषों कभनष्‍टक द्वारा भसल्क र्ागम पर अभधकार:-
को प्रतततष्ठत कराया।  कतनष्क ने चीन से रोम की तरफ जाने वाले
 बौद्ध धमथ की महायान िाखा का अभ्यदु य और तसल्क मागथ की तीनों मख्ु य िाखाओ िं पर अपना
प्रचार कतनष्क के समय में हुआ। तनयिंत्रण स्र्ातपत कर तलया, ये मागथ र्े:-
 कतनष्क के तसक्कों पर ईरानी, यनू ानी, बौद्ध एविं 1. कै तस्पयन सागर से होकर जाने वाला मागथ।
ब्राह्मण कुल चार धमों के देवताओ िं का अिंकन 2. मवथ से फरात नदी होते हुए रूम सागर पर बने
तमलता है। भारतीय देवताओ िं में तिव, स्किंद और बिंदरगाह तक जाने वाला मागथ।
गणेि का अिंकन है। 3. भारत से लाल सागर तक जाने वाला मागथ।

कभनष्‍टक के दरबारी रेशर् र्ागम ( भसल्क रूट)


रे िम मागथ प्राचीनकाल और मध्यकाल में
1. िसुभर्र :- यह चौर्ी बौद्ध सिंगीतत के अध्यक्ष र्े। ऐततहातसक व्यापाररक-सािंस्कृ ततक मागों का
एक समहू र्ा, तजसके माध्यम
2. पाश्िम:- इन्हीं के कहने पर चौर्ी बौद्ध सिंगीतत से एतिया, यरू ोप और अफ्ीका जडु े हुए र्े, इसका
बल सबसे जाना-माना तहस्सा उत्तरी रे िम मागथ है
ु ाई गई र्ी।
जो चीन से होकर पतिम की ओर पहले मध्य
3. अश्िघोष :- यह चौर्ी बौद्ध सिंगीतत के उपाध्यक्ष एतिया में और तफर यरू ोप में जाता र्ा और तजससे
एविं मुख्य अतततर् र्े, इस सिंगीतत में िातमल होने के तनकलती एक िाखा भारत की ओर जाती र्ी। रे िम
तलए कतनष्क ने इनको साके त से बल मागथ का जमीनी तहस्सा 6,500 तकमी लम्बा र्ा और
ु वाया र्ा।
इसका नाम चीन के रे िम के नाम पर पडा तजसका
व्यापार इस मागथ की मुख्य तविेषता र्ी।

130
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
िाभसष्‍टक:-
इसकने प्रारिंभ में कतनष्क के सार् कुछ वषों तक  कुषाण काल में दो नई प्रर्ाओ िं का प्रारिंभ हुआ-
सिंयक्ु त िासन तकया र्ा, तफर कतनष्क की मृत्यु के
पश्चात यह स्वतिंत्र िासक बना, कामरालेख इसकी 1. अक्षयनीभि:- भ-ू राजस्व का स्र्ायी दान
उपलतब्धयों के बारे में बताता है।
2. देिकुल :- राजा की मृत्यु के बाद उसकी मतू तथ
हुभिष्‍टक (106-138 ई.):- बना कर उसे मिंतदर में स्र्ातपत करना।
 इसके समय कुषाण सत्ता का प्रमख ु के न्द्र पेिावर
से हटकर मर्रु ा पहुचिं गया।
 हुतवष्क के तसक्कों पर तिव, स्कन्द, उमा एविं
पािपु त, तवष्ण,ु कततथकेय आतद की आकृ ततयाोँ
उत्कीणथ तमलती हैं।
 कतनष्क कुल का अिंततम महान सम्राट वासदु वे -
II र्ा, वहीं कुछ इततहासकार लगतथमु ान को
कुषाण विंि का अिंततम िासक मानते हैं।
 कुषाण िासकों ने प्रातिं ों में द्वैध िासन प्रणाली का
प्रचलन तकया।

मौयोत्तर कालीन समाज, कला एव सिंस्कृ तत


सर्ाज

 मौयोत्तर काल में तवके न्द्रीकरण तर्ा सामन्तवाद


का उदय हुआ।
 भारतीय समाज में तवदेतियों का
आत्मसातीकरण तजतना अतधक मौयोत्तर काल
में हुआ उतना प्राचीन के इततहास में और तकसी
भी काल में नहीं हुआ, यद्यतप इस काल के
तवदेिी िासकों को म्लेच्छ कह कर पक ु ारा गया,
परिंतु उन्हे तनम्न क्षतत्रय वगथ के रूप में मान्यता
प्रदान कर दी गई।

131
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
र्भू िमकला शैभलयां

आधार गांधार शैली र्थरु ा शैली अर्राििी शैली


बाह्र प्रिाि यनू ानी या हेलेतनतस्टक का मतू तथकला यह िैली स्वदेिी रूप में यह िैली भी स्वदेिी रूप में
पर भारी प्रभाव, अतः इसे भारतीय तवकतसत हुई और बाह्र तवकतसत हुई और वाह्य
यनू ानी कला के रूप में भी जाना जाता सस्िं कृ ततयों से प्रभातवत नहीं र्ी। सस्िं कृ ततयों से प्रभातवत नहीं
है। र्ी।
प्रयुक्त प्रारिंतभक गिंधार िैली में नीले धसू र मर्रु ा िैली की मतू तथयािं अमरावती िैली की मतू तथयािं
सार्ग्री बलआ ु -प्रस्तर का उपयोग तकया गया तचत्तीदार लाल बलआ ु प्लस्तर सफे द सगिं मरमर का उपयोग
है, जबतक बाद की अवतध में तमट्टी का उपयोग करके बनाई गई र्ी। करके बनाई गई र्ी।
और प्लस्तर का उपयोग तकया गया
है।
धाभर्मक ग्रीक रोमन देवताओ िं के मिंतदरों से तात्कातलक तीनों धमों तहदिं ,ू मख्ु य रूप से बौद्ध धमथ से
प्रिाि प्रभातवत र्ा। मख्ु य रूप से बौद्ध बौद्ध तर्ा जैन का प्रभाव र्ा। प्रभातवत र्ी।
तचत्रकला पर इसका प्रभाव र्ा।
संरक्षर् कुषाण िासकों का सिंरक्षण प्राप्त कुषाण िासकों का सिंरक्षण प्राप्त सातवाहन िासकों का
हुआ। हुआ। सिंरक्षण प्राप्त हुआ।
भिकास उत्तर-पतिम सीमातिं , आधतु नक किंधार मर्रु ा, सोख तर्ा किंकाली कृ ष्णा-गोदावरी की तनचली
क्षेर क्षेत्र में तवकतसत हुई। टीला में और आसपास के क्षेत्रों घाटी में, अमरावती व
में तवकतसत हुई। नागाजनथु कोंडा में और
आसपास के क्षेत्रों में
तवकतसत हुई।
बुद्ध की गिंधार िैली में लहराते बालों के सार् बद्ध ु को मस्ु कुराते चेहरे के सार् अमरावती िैली में बद्ध ु की
र्भू िम की बद्ध
ु को आध्यातत्मक मद्रु ा में तदखाया प्रसन्नतचत्त तदखाया गया जो तगिं व्यतक्तगत तविेषताओ िं पर
भिशेषिाएं गया है, उन्होंने बहुत कम आभषू ण कपडे पहने हुए हैं, िरीर ह्रि-पिु कम बल तदया गया है,
धारण तकए हैं तर्ा योग मद्रु ा में बैठे है, चेहरा व तसर मडु ा हुआ है, मतू तथयािं सामान्यतः बद्ध ु के
हैं। आख िं ें आधी बदिं हैं, जैसे ध्यान बद्ध
ु की तवतभन्न मद्रु ाओ िं और जीवन व जातक कर्ाओ िं की
मद्रु ा में हो तसर पर जटा बद्ध ु के उनका चेहरा तवनीत भाव को कहातनयों को दिाथती है।
सवथज्ञता को प्रदतिथत करता है। दिाथता है।

132
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
र्ौयोत्तरकालीन साभहत्य व्यापार
पस्ु तक लेखक  आतर्थक रूप से इस काल का उज्ज्वल पक्ष है
महाभाष्य पिंतजतल वातणज्य व्यापार का तवकास एविं उन्नतत।
चरक सिंतहता चरक  इस काल के आतर्थक जीवन की सबसे महत्वपणू थ
नाट्यिास्त्र भरत तविेषता है, भारत का मध्य एतिया तर्ा पािात्य
सौन्दरानन्द अश्वघोष तवश्व के सार् घतनष्ठ व्यापाररक सिंघ की स्र्ापना।
बद्ध
ु चररत अश्वघोष  कुषाण कालीन भारत में व्यापार वातणज्य के क्षेत्र
स्वप्न्वासवदत्ता भास में स्वणथ तसक्कों का तनयतमत रूप से प्रचलन
गार्ा सप्तिती हाल हुआ, कालान्तर में गप्तु िासकों ने इन्हीं के
कातिंत्र सवथवमथन अनक ु रण पर तसक्के चलवाये।
 ईसा की पहली िती में तहप्पालस नाम ग्रीक
 कातिंत्र सिंस्कृ त व्याकरण पर आधाररत सवथवमथन नातवक ने अरब सागर से चलने वाली मानसनू
की रचना है, सातवाहन राजा हाल की रानी हवाओ िं की जानकारी दी, इससे पतिमी एतिया
मलयवती ने हाल को सिंस्कृ त सीखने के तलये के बन्दरगाहों से व्यापार और अतधक सगु म हो
प्रेररत तकया, तजसके फलस्वरूप यह तकताब गया।
तलखी गई।  पतिमी के लोगों को भारतीय गोल तमचथ इतनी
 भास को सवथप्रर्म सिंस्कृ त में नाटक तलखने का तप्रय र्ी तक सस्िं कृ त में गोल तमचथ का नाम
श्रेय प्राप्त है। यवनतप्रय पड गया।
 पेररप्लस ऑि द एरीभियन सी:- यह 80 से  रोम की मद्रु ा में होने वाली कमी का अनभु व इतना
115 ईस्वी में अज्ञात ग्रीक नातवक द्वारा यनू ानी तेज हुआ तक अन्ततोगत्वा रोम को भारत के सार्
भाषा में तलतखत पस्ु तक है, जो मौयोत्तर कालीन गोल तमचथ और इस्पात के माल का व्यापार बन्द
व्यापार पर सबसे ज्यादा प्रकाि डालती है। करने के तलए कदम उठाना पडा।
 नेचुरल भहस्टोररका:- यह तप्लनी द्वारा 77 ईस्वी  अररकामेडु में 1945 में हुई खुदाई से ई0 सन् की
में लैतटन भाषा में तलतखत पस्ु तक है। प्रर्म दो ितातब्दयों के रोमन मृदभाडडों के अनेक
 ज्योग्रािी:- यह टॉल्मी द्वारा 150 ईस्वी में ग्रीक टुकडों के सार्-सार् एक रोमन व्यापाररक के न्द्र
भाषा में तलतखत पस्ु तक है। (बस्ती) के अविेषों का पता चला है।
 उत्खनन के आधार पर कहा जा सकता है तक
अतधकतर नगर ईसा की पहली एविं दसू री सतदयों

133
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
कुषाण काल में फूले फले अर्ाथत् नगरीकरण  भारतीय यनू ानी िासकों ने सवथप्रर्म ऐसे तसक्कों
कुषाण काल में चरमोत्कषथ पर र्ा। को जारी तकया तजसमें िासकों के नाम और
 पेररप्लस आफ तद एररतथ्रयन सी नाम की पस्ु तक आकृ तत खदु ी होती र्ी।
में भारत द्वारा रोमन साम्राज्य को तनयाथत तकया  मौयथकाल के अन्त तक तसक्कों पर के वल कोई
जाने वाला सामान का तववरण तदया है। तचन्ह अिंतकत होता र्ा, (िासकों का नाम आतद
 तप्लनी ने ‘नेचरु ल तहस्री’ नामक अपने तववरण तसक्कों पर नहीं होते र्े।
में दःु ख भरे िब्दों में कहा है। तक “भारत के सार्  सातवाहनों ने भारी मात्रा में पोटीन (पक्की तमट्टी)
व्यापार करके रोम अपना स्वणथ भडडार लटु ाता तसक्के भी जारी तकये।
जा रहा है”।
 आररकामेडु में हुई हाल की खदु ाई से एक ऐसी र्ोयोत्िर कालीन बंदरगाह
रोमन बस्ती के तवषय में जानकारी तमली है जो
व्यापाररक के न्द्र के रूप में प्रतसद्ध र्ी। पतिमी तट :- भडौच एविं सोपारा

र्ौयोत्िर कालीन भसर्कके पवू ी तट:- अररकामेडु और ताम्रतलतप्त प्रतसद्ध


सोने के भसर्कके :- तनष्क, पल, स्वणथ बन्दरगाह र्े।
चांदी के भसर्कके :- ितमान, द्रम्म।  दतक्षण में मालाबार तट पर मतु जररस और ततमल
िांबे के भसर्कके :- कातकनी समद्रु तट पर कावेरीपत्तनम या पहु ार और
काषामपर्:- यह कई प्रकार की तमश्र धातएु िं जैसे अररकामेडु रोमन व्यापार के तीन महत्वपूणथ
सोना, चािंदी, तािंबा, सीसा, रािंगा इत्यातद का होता व्यापाररक के न्द्र र्े।
र्ा।
 सबसे िांबे के भसर्कके जारी करने िाले:- भडौच बिंदरगाह:- इन सभी बन्दरगाहों में भडौच सबसे
कुषाण महत्वपणू थ बन्दरगाह र्ा, इसे भृगक
ु च्छ भी कहा जाता
 स्टेटर:- इडिं डो ग्रीक िासकों के स्वणथ तसक्के ( र्ा, यनू ानी इसे वेररगाजा बिंदरगाह कहते र्े, पतिमी
130 ग्रेन) देिों के सार् अतधकािंि व्यापार इसी बिंदरगाह से होता
 ओबालका:- इडिं डो ग्रीक िासकों के चािंदी के र्ा
तसक्के (11.6 ग्रेन)
 कुषाणों के स्वणथ तसक्कों को दीनार भी कहा बारबेररकम बिंदरगाह:- यह तसिंध के महु ाने के पर तस्र्त
जाता र्ा, तजनका वजन 124 ग्रेन र्ा। र्ा, वतथमान में यह कराची ( पातकस्तान ) के तनकट
है।

134
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
अररकमेडु बदिं रगाह:- आधतु नक पाडिं ु चेरी में यह
बिंदरगाह तस्र्त र्ा, यहािं की सबसे बडी तविेषता
1945 में हुई खदु ाई के दौरान तमली रोमन बस्ती है,
पेररप्लस पस्ु तक में इस बिंदरगाह का नाम पेडोक
तमलता है।

मजु ररस बिंदरगाह:- यह वतथमान के रल में तस्र्त है,


और चेर साम्राज्य का तविेष बिंदरगाह र्ा।

बिंदर बिंदरगाह:- यह भी चेर विंि का बिंदरगाह र्ा।

सोपारा बिंदरगाह:- यह आधतु नक महाराष्र में तस्र्त


र्ा।

सैतमतलया बिंदरगाह:- इसका प्रतसद्ध नाम चौल


बिंदरगाह है, यह महाराष्र में तस्र्त र्ा।

कोरकई बदिं रगाह:- यह पाडिं ड्य वि िं का प्रमख ु


बिंदरगाह र्ा, यह मोततयों के तलये प्रतसद्ध बिंदरगाह
र्ा, पेररप्लस में इसका नाम कॉल्ची तमलता है।

135
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं

गप्तु िश

मौयोत्तर काल के बाद तजस विंि ने उत्तर भारतसंको स्थापक — श्रीगतलच्छवी
ुप्त की राजकुमारी कुमार देवी के सार्
एकता के सत्रू में बािंधा वह विंि गप्ु त विंि र्ा, इसी यगु वैवातहक सिंबिंध स्र्ातपत तकया, और इस तववाह
चन्द्रगुप्त प्रथमः- (319-35 ई0) — गुप्त वंश का वास्तववक संस्थापक राजधानी – पा लिपुत्र
में आकर वृहत्तर भारत (Greater India) की के उपलक्ष्य में गप्ु तों का पहला तसक्का तववाह
अवधारणा पणू थ हुई, इसी काल में परु 319 ई0 में नया
ाणों महाकाव् यों संवत ‘गुप्तप्रकार/
संवत’ राजदम्
चिायापतत प्रकार चलाया।

एविं षडदिथन को अिंततम रूप तदया गया।


लिच्छवी की राजकुमारी कुमार दे वी के साथ वैवाटिक संबंध स्थावपत करने के कारण वि अपने को “लिच्छनयः दौटित्र” किता था।
 सवथप्रर्म गप्ु तकाल को स्वणथ यगु कहने वाले – सर्ुद्रगुप्ि (335- 375 ई.)
अपने वववाि के उपिक्ष्य में “सोने के लसक्के” जारी ककया।
के .एम. मिंि ु ी।  उपाभध – तलच्छनयः दौतहत्र, “कतवराज”,
समुर गुप्तः- इसकी भी उपाधध – लिच्छनयःदौटित्र
धमथप्राचीरबिंध, “, कववराज”
सवथराजोच्छे ता।
गुप्िों की उत्पभत्त का ववजय भसद्धांिअलभयानों की जानकारी— अन् य नार्:-
‘प्रयाग चिंद्रसेप्रकाि
प्रशास्स्त ’
 वैश्य :- रोतमला र्ापर, रमिरण िमाथ गप्ु तों को  भिजय अभियानों की जानकारी — ‘प्रयाग
ननंसे आथथर ने इसे “भारत का नेपोलियन” किा िै ।
वैश्य मानते हैं। प्रितस्त से’
 क्षतत्रय:- आर.सी. मजिंमू दार, लसक्को गौरी ििंकपरर ओझा
वीणा बजाते िुए धचत्रत्रत ककया गया िै ।
 तवसेंट आर्थर ने इसे “भारत का नेपोतलयन” कहा
 िद्रू :- कािी प्रसाद इसने भी जायसवाल
अश्वमेघ (यज्ञवतज्जका
कराए और के “अश्वमेघ पराक्रमां
है। क” की उपाधध धारण की।
सिंस्कृ त नाटक कोंकणीं महोत्सव के आधार पर )  तसक्को पर वीणा बजाते हुए तचतत्रत तकया गया
राम गुप्तः-
 ब्राह्मण:- हेमचिंद राय चौधरी है।
इसकी पत्नी ध्रुवस्वालमनी को प्राप्त करने के लिए शकों का आक्रमण िुआ। इस घ ना की जानकारी ववशाखदत्त कृत “दे वी चन्द्रगुप्तम”
 इसने भी अश्वमेघ यज्ञ कराए और “अश्वमेघ
नामक ग्रन्द्थ से प्राप्त िोती िै ।
संस्थापक — श्री गुप्त पराक्रमािंक” की उपातध धारण की।
श्रीगप्ु त गप्ु त विंि का सिंस्र्ापक र्ा, इसके बाद
घटोत्कच राजा बना, सभिं वत: यह दोनों स्वतत्र िासक
चन्द्रगुप्त द्ववतीय िं ‘ववक्रमाटदत्य’:- अन्द्य सर्
नाम-दे
ुद्रगवुप्राज
ि कीयाय“दे ुद्धवनीभि:-
गुप्त”
नहीं र्े।  1 . अयामििम ( उत्िर िारि) की नीभि:-
परमभागवत की उपाधध उसके धमथननष्ठ वैष्णव िोने की पुस्ष् करता िै ।
प्रसभोद्धरण अर्थत् पणू थतया उखाड फें कना, एविं
चााँदी कीई.)मर
चन्द्रगप्तु प्रथर् (319-335 ु ा का प्रचिन करने वािा पििा गप्ु त शासक
तवलय करना।

दस
राजधानी – पाटतलपत्रु
ू री राजधानी — उज्जनयनी (ववद्या एवं संस्कृनत का प्रलसद्धकेन्द्र) इससे पििे नीभि:-
2. दभक्षर्ापथ ववटदशा ग्रहणमोक्षान
को दसू री राजधानी
ग्रु ह अर्ाथबनाया
त्
 गप्तु विंि का वास्ततवक सिंस्र्ापक तवलय न करना, मात्र करद बनाकर छोड देना,
नवरत्नः-
 319 ई0 में नया सिंवत ‘गप्तु सविं त’ चलाया- इस वहीं जब परातजत िासक के राज्य का साम्राज्य
अमरलसं ि वे त ाि भट् धन्द्वं त रर
सविं त् का सवथप्रर्म प्रयोग चद्रिं गप्ु त तद्वतीय के ु
, , , शं क , घ कपरर , क्षपण , कालिदास, वरािलमटिर, वररूधच
का तवलय कर तलया जाता र्ा, तो उसे तदतग्वजय
मर्रु ा अतभलेख में हुआ है, शक ववजेता किा जाता कहािै।गया है।
फाह्यानः-

चन्द्रगप्ु त द्ववतीय के शासन काि में यि चीनी यात्री भारत आया प्रलसद्ध ग्रन्द्थ ‘फू-की-की’ की रचना की। 136
नोट्स हेतु
चन्द्र के पा लिपुत्र स्स्थत राज प्रसाद का दशथन ककया।
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
 3. आटभिक नीभि:- परचाररकीकृ त अर्ाथत  समद्रु गप्ु त की दतक्षण तवजय को इततहासकार
सेवक बना देना। राय चौधरी ने धमथतवजय की सज्ञिं ा दी।

सर्ुद्र गुप्ि की भिजयें 4. आटभिक राज्यों की भिजय:- ये आटतवक


(1) आयामििम का प्रथर् युद्ध :- इसमें राज्य उत्तर प्रदेि के गाजीपरु तजले से लेकर मध्य
समद्रु गप्ु त ने तीन िासकों को हराया, प्रदेि के जबलपरु तक फै ले र्े, समद्रु गप्ु त के द्वारा
A. अच्यिु इन राज्यों को अपना सेवक बना तलया गया।
B. नागसेन:- ग्वातलयर के पदमावती में िासान
र्ा। 5. सीर्ाििी राज्यों की भिजय:- इन राज्यों
C. कोिकुलज:- पाटतलपत्रु में यद्ध ु तवजय के को समद्रु गप्ु त द्वारा जीतकर इनसे कर तलया जाता
पश्चात जब समद्रु गप्ु त तवजय की खि ु ी मना रहा र्ा।
र्ा, तब इन लोगों ने उसे कै द कर तलया र्ा, बाद  उत्तरी व पवू ी सीमा पर तस्र्त इन राज्यों की
में समद्रु गप्ु त ने इनको यद्ध ु में हराया। सख्िं या 5 र्ी-
(1) कतथपरु :- इसकी पहचान जालिंधर में
2. आयामििम का दूसरा युद्ध :- इस अतभयान तस्र्त करतारपरु से की जाती है।
में समद्रु गप्ु त ने कुल 9 राजाओ िं को हराया- 1. (2) समतट:- पवू ी बिंगाल अर्वा आधतु नक
रुद्रदेव 2. मतत्तल 3. नगादत्त 4. चद्रवमाथ 5. बाग्िं लादेि।
गणपततनाग 6. नागसेन 7. अच्यतु 8. नतन्द 9. (3) डवाक्:- इसकी पहचान असम के
बलवमाथ। नवगॉव तजले से की जाती है।
(4) कामरूप:- वतथमान असम
3. दभक्षर्ापथ की भिजय:- इस यद्ध ु में समद्रु (5) नेपाल
गप्ु त ने कुल 12 राज्यों को परातजत तकया, इन  समद्रु गप्ु त के समय श्रीलिंका में मेघवमथन का
राज्यों के प्रतत समद्रु गप्ु त द्वारा ग्रहणमोक्षानग्रु ह सम्राज्य र्ा, मेघवमथन ने गया में बद्ध
ु मिंतदर
नीतत अपनायी गई। बनाने की अनमु तत प्राप्त करने के तलये
 दतक्षणापर् की तवजय में सबसे महवपणू थ समद्रु गप्ु त के पास दतू भेजा र्ा।
िासक कािंची का पल्लव िासक तवष्णगु प्ु त  समद्रु गप्ु त को कभी पराजय का सामना नहीं
एरणपल्ल का िासक दमन, पालक्क का करना पडा इसीतलये प्रतसद्ध इततहासकार
िासक उग्रसेन, वेंगी का िासक हतस्तवमाथ, तवसेंट तस्मर् ने उसे भारत का नेपोतलयन
कुिस्र्लपरु का िासक धनिंजय र्ा। कहा है।

137
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
सर्द्रु गप्ु ि के भसर्कके प्रयाग प्रशभस्ि अभिलेख
भस्थभि:- मलू रूप से कौिाम्बी में तस्र्त र्ी,
1. परशुप्रकार :- इसके उपरी भाग पर समद्रु गप्ु त
बाद में अकबर ने इसे इलाहाबाद के तकले में
बाएिं हार् में धनषु तलये खडा है, और पीछे उसकी
स्र्ातपत करवाया।
उपातध कृ तान्त परिु अिंतकत है।
लेखक: हररषेण
2. गरुड़ प्रकार:- इस प्रकार के तसक्के
िाषा:- सस्िं कृ त
नागवि
िं ी राजाओ िं के ऊपर तवजय का सक
िं े त है।
भलभप:- ब्राह्मी
3. धनमध ु ारी प्रकार :- इसमें समद्रु गप्ु त की शैली :- चिंम्पू (गद्य-पद्य का तमश्रण)
उपातध अप्रततरर्: अतिं कत है, और इन तसक्कों में
समद्रु गप्ु त धनषु बाण तलये खडा है। कुल पभक्तया:- 33
सिमप्रथर् पढने िाला:- कै प्टन ए.ड्रायर
4. अश्िर्ेघ प्रकार:- यह तसक्के समद्रु गप्ु त द्वारा
अश्वमेघ तकये जाने का प्रमाण है।  प्रयाग प्रितस्त अिोकस्तिंभ पर उत्कीणथ
है।
5. िीर्ािादन का प्रकार:- इन तसक्कों में  इसमें समद्रु गप्ु त की तवजयों का उल्लेख
समद्रु गप्ु त वीणा बजाते हुए उत्कीणथ है, जो उसके है।
सिंगीत प्रेमी होने का प्रमाण है।  प्रयाग प्रितस्त में गिंगाअवतरण का
उल्लेख है।
6. व्याघ्र-हनन प्रकार:- इसके उपरी भाग पर
 प्रयाग प्रितस्त में पाटतलपत्रु को पष्ु प
धनषु - बाण से व्याघ्र का तिकार करते हुए राजा
नगर कहा गया है,
की आकृ तत है, और पीछे मकर वातहनी गिंगा की  कई प्रकार के अस्त्र-िस्त्रों का उल्लेख
आकृ तत उत्कीणथ है। इसमें तदया गया है।
 इस प्रितस्त पर जहािंगीर एविं बीरबल का
समद्रु गप्ु त के बारे में उपरोक्त सभी जानकाररयों भी लेख है।
का स्त्रोत प्रयाग प्रितस्त है।  प्रयाग प्रितस्त में कोई भी तततर् नहीं दी
गई है, न ही इसमें समद्रु गप्ु त द्वारा तकये
गये अश्वमेघ यज्ञ का वणथन है।

138
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
रार् गप्तु  चाोँदी की मद्रु ा का प्रचलन करने वाला पहला गप्तु
 इसकी पत्नी ध्रवु स्वातमनी को प्राप्त करने के तलए िासक
िकों का आक्रमण हुआ, सिंतध की ितों के  दूसरी राजधानी — उज्जैनी (तवद्या एविं सिंस्कृ तत
अनसु ार रामगप्ु त को अपनी पत्नी धव्रु स्वातमनी, का प्रतसद्ध के न्द्र) इससे पहले तवतदिा को दसू री
िक राजा को देना र्ा तकिंतु छोटा भाई चिंद्रगप्ु त राजधानी बनाया।
ध्रवु स्वातमनी का भेषधारण कर स्वयिं िक राजा
के ियन कक्ष में चला गया और िक राजा को चंद्रगप्ु ि भद्विीय के िैिाभहक सबं ध ं
मार डाला, तफर उसने अपने भाई रामगप्ु त को भी  चद्रिं गप्ु त तवक्रमातदत्य ने यद्ध ु से ज्यादा वैवातहक
मार डाला तफर अपनी भाभी से तववाह कर तलया सिंबिंधों के द्वारा अपने राज्य की सीमा का तवस्तार
। इस घटना की जानकारी तविाखदत्त कृ त “देवी तकया-
चन्द्रगप्तु म” नामक ग्रन्र् से प्राप्त होती है। 1. नागिश ं :- चद्रिं गप्ु त ने नागविंि की राजकुमारी
 रामगप्ु त के कुछ तािंबे के तसक्के एरण एविं कुबेरनागा से तववाह तकया, तजससे कन्या
तभतलसा से प्राप्त हुए है इस प्रकार रामगप्ु त पहला प्रभावती गप्ु ता पैदा हुई। नागविंि का क्षेत्र मर्रु ा
गप्ु त िासक र्ा, तजसने तािंबे की मद्रु ाएिं चलायीं। अतहक्षत्र पद्मावती ( ग्वातलयर) तक फै ला हुआ
र्ा।
चन्द्रगप्तु भद्विीय ‘भिक्रर्ाभदत्य’ 2. कदर्राजिंश:- तालगिंडु अतभलेख से पता
उपाभधयां:- चलता है तक इस विंि के िासक ने अपनी पत्रु ी
 देवराज – साचिं ी लेख में अिंतकत का तववाह चद्रिं गप्ु त तवक्रमातदत्य के पत्रु
 सहसाक िं – स्वयिं चद्रिं गप्ु त तद्वतीय ने यह उपातध कुमारगप्ु त प्रर्म से तकया र्ा। यह राजविंि
ली र्ी। कनाथटक में िासन करता र्ा।
 िकारी - िकों का ित्रु 3. िाकाटक िश ं :- वाकाटकों का सहयोग
 देवगप्ु त – प्रवरसेन के चमक लेख में यह उपातध प्राप्त करने के तलए चिंद्रगप्ु त ने अपनी पत्रु ी
अिंतकत है। प्रभावती गप्ु ता का तववाह वाकाटक नरे ि रुद्रसेन
तद्वतीय से तकया, ध्यातव्य है तक वाकाटक और
 परमभागवत – यह उपातध उसके धमथतनष्ठ वैष्णव
गप्ु तों ने सिंयक्ु त होकर िकों का उन्मल ू न कर
होने की पतु ि करता है।
डाला र्ा।
 चिंद्र - मेहरौली लौह स्तिंभ में अिंतकत
 देव शक भिजय:-
 तवक्रमातदत्य- िक तवजय के पश्चात यह उपातध चिंद्रगप्ु त तवक्रमातदत्य ने उज्जैन के अिंततम िक
धारण की िासक रुद्रसेन तृतीय को 409 ई. में परातजत तकया।

139
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
इस तवजय के उपलक्ष्य में उसने मालवा क्षेत्र में व्याघ्र िाह्यान
िैली के चािंदी के तसक्के चलाये।
 चन्द्रगप्तु तद्वतीय के िासन काल में यह चीनी
निरत्न
यात्री भारत आया।
 काभलदास- सातहत्यकार, नवरत्नों में सबसे  प्रतसद्ध ग्रन्र् ‘फू-की-की’ की रचना की।
प्रमखु  यह उत्तर पतिम के स्र्ल मागथ से आया, परिंतु
 अर्रभसंह - कोिकार (Lexicographer) जाते समय जल-मागथ से गया ( ताम्रतलप्ती)।
थे।  वह चीन के बाद खोतान एविं कासगर गया,
 िेिाल िट्ट- जादगू र र्े। खोतान में वह गोमती तवहार में ठहरा इस तवहार
में महायान सिंप्रदाय के 10000 हजार तभक्षु रहते
 धन्ििं रर- तचतकत्सक र्े।
र्े।
 शक ं ु - वास्तक
ु ार( Architect) र्े।  इसके बाद वह पिंजाब होता हुआ मध्य देि (
 घटकपम- कूटनीततज्ञ र्े। नॉर्थ इतिं डया) आया और इसी मध्य देि का
 क्षपर्क- फतलत ज्योततष के जानकार उसने तवस्तृत वणथन तकया है-
1. मध्य देि ब्राह्मणों का देि र्ा।
 िराहभर्भहर- फतलत ज्योततष के प्रणेता, खगोल
2. यहािं मृत्यदु डिं नहीं तदया जाता र्ा, आतर्थक
तवज्ञानी
दडिं अतधक प्रचतलत र्ा।
 िररूभच – व्याकरण के ज्ञानकताथ
3. मध्य देि के लोग मािंस-मतदरा, प्याज
लहसनु का प्रयोग नहीं करते र्े, के वल चािंडाल
िाह्यान
इसके अपवाद र्े।
 मलू नाम- किंु ड 4. मध्य देि के लोग क्रय-तवक्रय में कौतडयों
 फाह्यान एक चीनी यात्री र्ा, जो बौद्ध धमथ का का प्रयोग करते र्े।
अनयु ायी र्ा, उसने लगभग 399 ई. में अपने कुछ  श्रावस्ती तस्र्त जेतवन तवहार, तन:िल्ु क
तमत्रों हुई- तचिंग, ताओचेंग, हुई – तमिंग, के सार् तचतकत्सालयों की उसने प्रििंसा की।
भारत यात्रा प्रारिंभ की।  पाटतलपत्रु में उसने अिोक का राजमहल देखा
 फाह्यान की भारत यात्रा का उद्येश्य बौद्ध और उससे इतना प्रभातवत हुआ तक उसे
हस्ततलतपयों एविं बौद्ध स्मृततयों को खोजना र्ा। देवताओ िं द्वारा तनतमथत बताया।
 यह कुल 15 वषथ ( 399- 414 ई. ) तक भारत
में रहा।
 इसकी पस्ु तक में तत्कालीन गप्ु त िासक
चिंद्रगप्ु त का कोई उल्लेख नहीं है।

140
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
चंद्रगप्ु ि भिक्रर्ाभदत्य के अभिलेख कुर्ारगप्तु प्रथर् (र्हेन्द्राभदत्य) (414-455
र्थुरा स्िि
ं लेख:- यह चिंद्रगप्ु त तद्वतीय का प्रर्म ई0)
अतभलेख है।  कुमारगप्ु त चिंद्रगप्ु त की पत्नी ध्रवु देवी से उत्पन्न
पत्रु र्ा, सवाथतधक समय तक िासन करने वाला
उदयभगरर गुहा लेख:- यह चिंद्रगप्ु त के सिंतधतवग्रहक गप्ु त नरे ि यही र्ा, इसने कुल 40 वषों तक राज
वीरसेन िैव का है, उदयतगरी का दसू रा अतभलेख तकया।
चिंद्रगप्ु त के सनसातनक महाराज का है जो तक मालवा उपाभध:- महेंद्रातदत्य
का गवनथर र्ा।  व्हेनसािंग ने कुमारगप्ु त का उल्लेख िक्रातदत्य के
नाम से तकया है।
र्ेहरौली लौह स्िि ं लेख :- मल ू रूप से यह व्यास  तबहार में पटना के तनकट “नालन्दा
नदी की एक पहाडी पर तस्र्त र्ा, तजसे तदल्ली के तवश्वतवद्यालय” की स्र्ापना करवाया।
राजा अनिंगपाल तोमर ने उसके मल ू - स्र्ान से हटाकर
 नालदिं ा तवश्वतवद्यालय की यात्रा ह्वेनसागिं ने की
तदल्ली के मेहरौली में स्र्ातपत करवाया, यह एक
र्ी। उस समय वहाोँ का प्रधानाचायथ िीलभद्र र्ा।
मरोणोत्तर अतभलेख है अर्ाथत चद्रिं गप्ु त तद्वतीय के
 गप्ु त िासकों में सवाथतधक (18) अतभलेख
मरने के पश्चात् तलखा गया अतभलेख है, इसमें वणथन
कुमारगप्ु त के प्राप्त हुए हैं,
है तक चिंद्रगप्ु त तद्वतीय ने तसिंधु नदी को पार कर
बाहतलकों (परवती कुषाण) को हराया।
कुर्ारगप्ु ि के अभिलेख
सांची लेख:- यह चिंद्रगप्ु त तद्वतीय के सेनापतत  भबलसड अभिलेख- यह उत्तर प्रदेि के एटा
आम्रकाद्धथव बौद्ध का है, इसमें ग्राम पिंचायतों का तजले में तस्र्त है, और यह कुमारगप्ु त के
वणथन है। िासनकाल का प्रर्म अतभलेख है, इसमें
ध्रवु िमाथ ब्राह्मण के द्वारा काततथकेय भगवान का
गढ़िा लेख:- यह अतभलेख उत्तर प्रदेि के मिंतदर बनवाने का उल्लेख है, इसमें गप्ु तों की
इलाहाबाद से प्राप्त हुआ है, यहािं से गप्ु तों के चार विंिावली भी प्राप्त होती है।
अतभलेख प्राप्त हुए तजनमें एक चिंद्रगप्ु त तद्वतीय का,  करर्दण्ं डाअभिलेख- यह उत्तर प्रदेि के
दो कुमारगप्ु त के और एक सिंभवत: स्किंदगप्ु त का। फै जाबाद तजले में तस्र्त है, इसकी स्र्ापना
कुमारगप्ु त के मत्रिं ी पृथ्वीसेन ने तिव की मतू तथ के
नीचे भाग पर की र्ी।

141
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
 र्ंदसौर अभिलेख:- यह अतभलेख मध्य प्रदेि स्कंदगप्तु ( 455- 467 ई.)
में तस्र्त है, तजसकी रचना कुमारगप्ु त के दरबारी  उपाभधयां-
कतव वत्सभट्टी ने की र्ी, इस अतभलेख में क्रमातदत्य – तसक्कों पर।
तिंतवु ाय श्रेतणयों ( रे िम बनु कर) द्वारा सयू थ मिंतदर तवक्रमातदत्य – तभतरी अतभलेख में प्राप्त
का तनमाथण कराये जाने का उल्लेख है, इस िक्रोपम – कहौम अतभलेख में प्राप्त
अतभलेख में गप्ु त सविं त् के स्र्ान पर तवक्रम सविं त् हूर्
का प्रयोग तकया गया है।
 स्किंदगप्ु त के काल में मध्य एतियाई एक बबथर
 िुर्ैन अभिलेख- यह अतभलेख मध्य प्रदेि के जातत हूणों का आक्रमण हुआ ये मिंगोल जातत
गनु ा तजले में तस्र्त है, इसमें कुमारगप्ु त को के र्े जो सीतर्यनों की एक िाखा र्ी
िरदकालीन सयू थ की भातिं त बताया गया है।  काले हूणों का नेता-नेता एरट्टला
 श्वेत हूण – एपर्लाइट्स
 उदयभगरी गुहालेख- इसमें ििंकर नामक व्यतक्त  भारत में हूणों का प्रर्म आक्रमण खि ु नवाज
द्वारा तीर्ंकर पाश्वथनार् की मूततथ स्र्ातपत तकये के नेतत्ृ व में हुआ इस समय राजा तो
जाने का उल्लेख है। कुमारगप्ु त र्ा लेतकन उसने हूणों का दमन
करने के तलए स्किंदगप्ु त को भेजा, हूण तवजय
के उपलक्ष में स्किंदगप्ु त ने एक तवष्णु स्तिंभ
 र्नकुिर अभिलेख- यह अतभलेख इलाहाबाद बनवाया
तजले में तस्र्त है, और बद्ध
ु प्रततमा के नीचे भाग  करीब 30 वषथ पश्चात् हूणों ने दोबारा
पर बद्ध
ु तमत्र नामक बौद्धतभक्षु द्वारा तलखवाया आक्रमण तकया तजसका नेता तोरमाण र्ा।
गया।  तोरमाण हूणों का प्रर्म िासक र्ा तजसने
भारत के मध्यवती भागों में अपना तवजय
 गढ़िा के दो भशलालेख- इलाहाबाद में तस्र्त अतभयान तकया र्ा।
है इसमें स्वणथ तसक्कों का उल्लेख आया है।  तोरमाण का पत्रु तमतहरकुल र्ा जो िैव धमथ
का उपासक र्ा, प्रारम्भ में बौद्ध धमथ का
 कुमारगप्ु त बिंगाल से धनदैह, दामोदरपरु एविं
तजज्ञासु व्यतक्त र्ा बाद में कट्टर तवरोधी।
वैग्राम ताम्रपत्र तमले हैं, दामोदरपरु को उस समय तमतहरकुल को परातजत करने का श्रेय — मालवा
पडु ड्रवधथन कहा जाता र्ा, तजसका राज्यपाल के िासक यिोवमथन तर्ा मगध के िासक नरतसिंह
तचरागदत्त र्ा। गप्तु बालातदत्य को जाता है।

142
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
स्कंदगप्ु ि के अभिलेख:-  कहौम स्तिंभ लेख- यह उत्तर प्रदेि के गोरखपरु
 जूनागढ अभिलेख – यह अतभलेख गजु रात से तजले से प्राप्त हुआ है इसमें वणथन है तक भद्र
प्राप्त हुआ है, इसमें वणथन है तक तगरनार के नामक एक व्यतक्त ने पािंच जैन तीर्ंकरों के प्रततमा
परु पतत चक्रपातलत के द्वारा सदु िथन झील के बािंध का तनमाथण करवाया र्ा।
का पनु तनथमाथण करवाया गया-  सुभपया का लेख – मध्य प्रदेि के रीवा तजले से
सुदशमन झील का इभिहास प्राप्त, गप्ु त विंि को घटोत्कच विंि कहा गया है।
 इन्ं दौर िाम्रपर - यह उत्तर प्रदेि के बल ु िंदिहर
 सदु िथन झील का तनमाथण चिंद्रगप्तु मौयथ के तजले के एक स्र्ान से तमला है, इसमें सयू थ पजू ा
िासन काल में सौराष्र के प्रातिं पतत पष्ु यगप्तु का उल्लेख है।
वैश्य द्वारा कराया गया र्ा। परििी गुप्ि शासक
 यह झील/ बाधिं , उजथयत ( तगरनार) में उजथयत
 परुु गप्ु त:- यह स्किंदगप्ु त के बाद राजा बना, इसने
पहाडी से तनकले सवु णथतसकता और
पालतसनी झरनों के जल को जमा करके वैष्णव धमथ छोडकर बौद्ध धमथ ग्रहण कर तलया।
बनायी गई र्ी।  इसके बाद बद्ध ु गप्ु त, नरतसहिं गप्ु त बालातदत्य,
 बाद में जब यह झील जीणथ अवस्र्ा को प्राप्त भानगु गप्ु त, वैन्यगप्ु त, कुमारगप्ु त तृतीय और
हो गई, तब अिोक के महामात्य तषु ास्प ने तवष्णगु प्ु त िासक बने।
इस झील का पनु तनथमाथण कराया।
 परवती गप्ु त िासकों में भानगु प्ु त का एरण
 िक राजा रुद्रदामन के समय यह झील सख ू अतभलेख (510 ई.) है, तजसमें हूण आक्रमण
गई, तफर इस बािंध को दोबारा बनवाने का
काम रुद्रदामन के मिंत्री सतु वसाख ने तकया। का उल्लेख है, तजनसे लडते हुए भानगु प्ु त का
 स्किंदगप्तु के िासन के पहले ही साल में इस सेनापतत गोपराज मारा गया, तफर गोपराज की
झील का बाोँध टूट गया र्ा, तजससे प्रजा को पत्नी सती हो गई, यह सती प्रर्ा का प्रर्म
बडा कि हुआ पणथदत्त गप्ु त िासक अतभलेखीय साक्ष्य है।
स्किंदगप्ु त का राजकमथचारी र्ा, तजसने प्रतसद्ध
सदु िथन झील का जीणोद्धार करवाया र्ा।  गप्तु विंि का अतन्तम िासक — ‘तवष्णुगप्तु ’
पणथदत्त का पत्रु चक्रपातलत र्ा तजसने इस
झील के तनकट तवष्णु मिंतदर स्र्ातपत तकया
र्ा।

 तभतरी स्तभिं लेख – यह उत्तर प्रदेि के गाजीपरु


तजले में तस्र्त है, इसमें पष्ु यतमत्रों ओर हूणों के
सार् स्किंदगप्ु त के यद्ध
ु का वणथन है।

143
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
गप्तु कालीन प्रशासन पद्धभि कहलाता र्ा एविं अन्य सदस्य महत्तर कहलाते
कें द्रीय र्े।
  ग्राम सभा को पिंचमडडली एविं ग्राम जनपद कहा
प्रांि ( देश, िुभक्त,
जाता र्ा
अिभन)

भिषय (भजला) कें द्रीय प्रशासन के पदाभधकारी

िीभथ (िहसील) सतन्धतवग्रहक सतिं ध व यद्ध
ु का मिंत्री
 कुमारामात्य गप्तु साम्राज्य के सबसे बडे
पेठ
अतधकारी (IAS)

ग्रार् खाद्यटपातकक राजकीय भोजनालय का
अध्यक्ष
 गप्तु साम्राज्य की िासन व्यवस्र्ा राजतन्त्रात्मक
र्ी। राजपद विंिानगु त र्ा। लेतकन राजगद्दी हमेिा महादडडनायक न्यायाधीि
ज्येष्ठ पत्रु को ही नहीं तमलती र्ी। गप्तु साम्राज्य दडडपातिक पतु लस अतधकारी
की राजधानी पाटतलपत्रु र्ी। ध्रवु ातधकरण भतु मकर वसूलने वाला
महाक्षपटतलक प्रमख ु दस्तावेजों और
 गप्तु राजाओ िं ने प्रािंतीय एविं स्र्ानीय िासन की
अतभलेखों को तलतपबद्ध
पद्धतत चलाई।
करने वाला
 राज्य कई भतु क्तयों अर्ाथत प्रािंतों में तवभातजत र्ा
तवनयतस्र्तत धमथ व नैततकता का
और हर भतु क्त का प्रभारी उपररक होता र्ा।
स्र्ापक अतधकारी
 भतु क्तयाोँ कई तवषयों (तजलों) में तवभातजत र्ी महाबलातधकृ त सेना का सवोच्च
तजसका प्रभारी तवषयपतत होता र्ा। अतधकारी
 प्रत्येक तवषय को तवतधयों में बािंटा गया र्ा और महापीलपू तत हातर्यों की सेना का
तवतर्याोँ ग्रामों में तवभातजत र्ीं। अतधकारी
भटाश्वपतत घडु सवार सेना का प्रधान
पेठ — यह ग्राम समहू की इकाई र्ी। ग्राम परु पाल नगर का प्रधान अतधकारी
प्रिासन की सबसे छोटी इकाई र्ी। करतणक भतु मआलेखों को सरु तक्षत
ग्राम सभा — ग्राम का प्रिासन ग्राम सभा द्वारा रखने वाला, यह
सच िं ातलत होता र्ा, तजसका मतु खया ग्रातमक माहक्षपटतलक के अधीन
होता र्ा

144
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
गोप्ता — यह देि का प्रिासक र्ा जो सम्राट आभथमक जीिन
द्वारा सीधे तनयक्त
ु तकया जाता र्ा  गप्तु राजाओ िं का िासन काल आतर्थक दृति से समृतद्ध
एविं सम्पन्नता का काल माना जाता है। इस काल में कृ तष
राजस्ि के स्त्रोि लोगों का मख्ु य व्यवसाय र्ा।
 गप्तु काल में सामान्यतः भतू म पर सम्राट का  आतर्थक उपयोतगता की दृति से भतू म के कई
स्वातमत्व माना जाता र्ा। वह भतू म से उत्पन्न प्रकार बताए गए हैं जैसे-
उत्पादक के 1/6 भाग का अतधकारी र्ा। इस  क्षेत्र — खेती के तलए उपयक्तु भतू म।
प्रकार के कर को भाग कहा जाता र्ा।  वास्तु — वास करने योग्य भतू म।
 तखल — जो भूतम जोती नहीं जाती र्ी।
कुछ प्रर्ुख करः-
 अप्रहत — तबना जोती गई जिंगली भतू म।
 भाग — भतू म उपज का लगभग 1/6 भाग।
 चारागाह — पिओ ु िं के चारा योग्य भतू म।
 भोग — राजा को प्रतततदन दी जाने वाली फल-
फूल सब्जी आतद की भेंट।
 अमरकोष में 12 प्रकार की भतू म का उल्लेख
 उद्रगिं — एक प्रकार का भतू मकर
तमलता है,
 उपररकर — एक प्रकार का भतू मकर
 नारद स्र्भृ ि के अनस ु ार िभु र् के प्रकार-
 भतू ावात प्रत्याय — तवदेिी वस्तओ ु िं के आयात
 अद्धथतखल- तजस भतू म पर 1 वषथ से खेती न
पर लगा कर।
की गई हो।
 िल्ु क — सीमा, तबक्री की वस्तओ ु िं आतद पर
 तखल – तजस भतू म पर 3 वषथ तक खेती न
लगने वाला कर।
की गई हो।
 तवतष्ट – यह बेगार या तन:िल्ु क श्रम र्ा।
 वन- तजस भतू म पर 5 वषथ से खेती न की गई
 बतल – गप्ु त काल का धातमथक कर। हो।
 गप्ु त काल में तसच
िं ाई के साधनों में अरघट्ट
 करों की अदायगी दोनों ही रूपों तहरडय (नकद) (रहट) का वणथन है।
तर्ा मेय (अन्न) में की जाती र्ी।

145
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
िभू र् र्ाप की इकाईया:-
ं स्थान व्यापाररयों की
1. तनवथतन श्रेर्ी
2. पाटक
3. नड इन्दौर तैतलयों की श्रेणी
4. कुल्यावाप तवतदिा हार्ी दाोँत के कारीगर
5. द्रोणवाप
6. आढ़वाप उज्जैतयनी अनाज व्यापारी
नातसक बनु कर
व्यापार एिं िाभर्ज्य मदिं सौर रे िम बनु कर
 गप्ु त यगु में व्यापार व वातणज्य में प्रगतत हुई, मर्रु ा आटा पीसने वाले
लेतकन इसकी तल ु ना मौयोत्तर काल के कारीगर
व्यापर व वातणज्य से करें तो व्यापार में कमी कौिाम्बी गतन्धक
आई।
 व्यापाररयों की एक सतमतत होती र्ी तजसे तनगम
श्रेणी कहा जाता र्ा, तनगम का प्रधान श्रेतष्ठ कहलाता
 जब उद्योगों और व्यापार में लगे व्यतक्त र्ा, व्यापाररयों के समहू को सार्थ तर्ा उनके
सगिं तठत होकर अपने तहतों की रक्षा करने के नेताओ िं को सार्थवाह कहा जाता र्ा।
तलये एक सिंस्र्ा बनाते र्े, तो श्रेणी का जन्म गुप्िकालीन भसर्कके
होता र्ा, अर्ाथत् सिंगतठत व्यापररक एविं  गप्तु साम्राज्य के तवतभन्न भागों से तसक्कों के 16
औद्योतगक समहू को श्रेणी कहा जाता र्ा। ढेर तमल है तजनमें से सबसे अतधक महत्वपणू थ
 इस प्रकार श्रेणी के तलए अनेक िब्द प्रयक्ु त बयाना (भरतपरु क्षेत्र में) का पिंजु है।
होते र्े। जैस-े कुल, पनू ा, गण, तनकाय सिंघ  नगर श्रेतष्ठन बैंकरों एवम् साहूकारों के रूप में कायथ
समहू , सम्भयू समत्ु र्ान, सिंव्यवहार, तनगम करते र्े।
आतद।  सोने के तसक्कों को गप्तु अतभलेखों में दीनार कहा
 मिंदसौर अतभलेख से पता चलता है तक रे िम जाता र्ा, जो प्रारिंभ में कुषाण तसक्कों की भािंतत
बनु करों की श्रेणी ने एक भव्य सयू थ मिंतदर का 124 ग्रेन के र्े, लेतकन बाद में गप्ु तों ने उनका
तनमाथण कराया र्ा। वजन 144 ग्रेन कर तदया।
 चाोँदी के तसक्कों का प्रयोग स्र्ानीय लेन-देन में
तकया जाता र्ा। चाोँदी के तसक्कों का प्रचलन

146
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
चन्द्रगप्तु तद्वतीय की िकों के तवरूद्ध तवजय के  भस्थभि:- लतलतपरु (उत्तर प्रदेि)
पिात् आरम्भ हो गये र्े।  भनर्ामर् :- सम्भवतः गप्तु काल के अतन्तम समय
 रामगप्तु को छोडकर चन्द्रगप्तु तद्वतीय से पवू थ के में
ताोँबे के तसक्के नहीं के बराबर हैं। कुषाणों के  देवगढ़ के दिावतार मिंतदर का तिखर 12 मीटर
तवपरीत गप्तु ों के ताोँबे के तसक्के बहुत ही कम ऊिंचा है जो भारतीय मतिं दर तनमाथण में तिखर का
तमलते हैं। पहला उदाहरण है।
 सबसे अतधक स्वणथ तसक्के चलाने का श्रेय गप्ु तों  मतू तथयों तर्ा पौरातणक कर्ाओ िं का तनरूपण,
को ही प्राप्त है, यद्यतप सवाथतधक िद्ध ु स्वणथ रामावतार एविं कृ ष्णावतार दोनों से सम्बतन्धत
तसक्के चलाने का श्रेय कुषाणों को है। दृश्य, इसके अततररक्त तवष्णु के दिाअवतारों का
भी अिंकन
नचनाकुठारा का पािमिी र्भन्दरः-
गप्तु कालीन सांस्कृभिक गभिभिभधयााँ भस्थभि - सतना (म. प्र.) में अजयगढ़ के समीप
 कला और सातहत्य की दृति से — क्लातसकल  भनर्ामर् :- बलआ ु पत्र्र से ।
यगु तर्ा स्वणथ यगु  यह भी पिंचतायन िैली का मतन्दर है।
 प्राचीन भारत में मतन्दरों का तनमाथण सवथप्रर्म गप्तु
यगु में हुआ। भििरगांि का र्ंभदर:-
 पहले के मतन्दर सपाट र्े बाद में तिखर यक्त ु  तस्र्तत:- कानपरु (उत्तर प्रदेि)
मतन्दर बनने लगे  यह गप्ु तकाल का ईटोंिं से तनतमथत पहला मिंतदर है,
जो तक तवष्णु भगवान को समतपथत है।
गप्तु कालीन र्भन्दरों की भिशेषिाए:ं -
 अतधकाि िं मतन्दर प्रस्तर से तनतमथत है। इसका भसरपरु का लक्ष्र्र् र्ंभदर:-
अपवाद तभतरगाोँव (कानपरु उ0 प्र0) तसरपरु  तस्र्तत: रायपरु (छत्तीसगढ़)
(म0प्र0) जो ईटों द्वारा तनतमथत है।
 यह भी के वल ईटों से तनतमथत मिंतदर है।
 गप्तु कालीन मतन्दरों में द्वारपालों के स्र्ान पर —
गिंगा और यमनु ा की मतू तथयाोँ है।
 गिंगा ‘मकरवातहनी’ व यमनु ा को ‘कूमथवातहनी’
तदखलाया गया है।
र्भर्यारर्ठ का र्भन्दर
देिगढ़ का दशाििार र्भन्दर  भस्थभि:- नालिंदा (तबहार) में

147
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
 वृत्ताकार िैली का महत्वपणू थ मतन्दर, इसके  ‘Lapis lazuli’ रिंग को प्रिंिे फारस से आयात
तनकट एक उमरूनुमा स्तपू बना है। तकया जाता र्ा।
 इस मिंतदर को मतणनाग मिंतदर भी कहते हैं, कुछ
इततहासकार इसको महाभारत कालीन भी मानते भचरकारी की भिभधः-
हैं। फ्े स्को — तचत्रकारी गीले प्लास्टर पर तविद्ध ु रिंगो का
प्रयोग करके की जाती र्ी।
नागोद (िर्ू रा) का र्भन्दर टेम्पोरा — सखू े प्लातस्टक पर तमतश्रत रिंगों का प्रयोग
 भस्थभि: म0 प्र0 में जबलपरु इटारसी रे लवे लाइन करके
पर
 खोजकिाम: राखलदास बनजी अजन्िा की गि
ु ाएाँ
 पिंचतायन िैली का मतन्दर एविं यह मिंतदर तिव को  भस्थभि: महाराष्र के औरिंगाबाद तजले में
समतपथत है।  भनर्ामर्:- कई विंिो द्वारा (गप्ु त, राष्रकूट,
वाकाटक, चालक्ु य, यादव विंि द्वारा)
भिगिु ा का भिष्‍टर्ु र्ंभदर:  खोजकिाम: जेम्स अलेंक्जेडर
 तस्र्तत : जबलपरु (म.प्र.)  कुल — 29 गफ ु ाएोँ (16, 17, 19 गप्तु काल
से सम्बतन्धत)
बौद्धगहु ा र्ंभदर:  गफु ा सिंख्या-16 में ही मरणासन्न राजकुमारी
का तचत्र अिंतकत है।
 अिंजता की गफ ु ा सिंख्या 16, 17 और 19 गप्ु त
 गफ ु ा सख्िं या-17 में जातक कर्ाओ िं का सबसे
काल की मानी जाती हैं, बेहतरीन प्रदिथन हुआ है।
 गफ ु ा-16 की एक दीवार पर ‘अजातित्रु और
गप्तु कालीन भचरकला महात्मा बद्ध ु ’ की भेंट का तचत्र है।
 वात्सायायन ने अपने प्रतसद्ध ग्रन्र् ‘कामसत्रू ’ में
तचत्रकला की गणना 64 कलाओ िं के अन्तगथत की
अजन्ता की गफ ु ाए मख्ु यतः “बौद्ध धमथ से
है।
सम्बतन्धत हैं।
 कातलदास ने इन्हें ‘तचगचायं’ कहकर पक ु ारा है।
 तचत्रकारी हेतु प्रयक्त
ु रिंगः- (हरा, लाल, काला,
पीला, सफे द, भरू ा)
 इसके अलावा नीला, गिंदे हरे रिंग का प्रयोग तकया
जाता है।

148
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
बाघ की गि
ु ाएाँ  महात्मा बद्धु की तवतभन्न मद्रु ाओ िं में धातु एविं
पाषाण मतू तथयों का तनमाथण हुआ है।
 गुिाओ ं की कुल संख्या — 9
 भस्थभि : म0 प्र0 के धार तजले में तवन्ध्यािंचल  सवाथतधक प्रतसद्ध मतू तथ — भागलपरु तजले में
पवथत के समीप नमथदा की सहायक नदी सल्ु तानगिंज नामक स्र्ान से प्राप्त 7½ फीट ऊोँ ची
माहामती से 2-3 तकमी0 दरू ी पर कािंसे की बनी बद्ध
ु प्रततमा
 खोजकिाम: डेंजरफील्ड ( 1818 ई.)  इस मतू तथ को वतथमान में ‘बतकथ घम पैलेस’ में रखा
 बाघ गफ ु ा की दसू री गफ
ु ा को पाडडव गफ ु ा, गया है।
तीसरी को हार्ीखाना गफ ु ा तर्ा चौर्ी को
रिंगमहल गुफा कहा जाता है। र्हात्र्ा बुद्ध की बैठी हुई र्ूभिमयााँ:-
 यहीं पर बाघेश्वरी देवी का प्राचीन मतिं दर है।
 अभय की मद्रु ा — इसमें बद्ध ु पद्मासन मद्रु ा में बैठे
स्र्ानीय लोग इन्हें पचिं पािंडव के नाम से
पक ु ारते हैं । हैं, दायाोँ हार् अभय की मुद्रा में उठा है। इसे
आिीवाद की मद्रु ा कहा जाता है।
गप्तु कालीन र्ूभिमकला  समातध की मद्रु ा — इसमें बद्ध ु ध्यान मद्रु ा में है।
 गप्तु कालीन मतू तथकला का जन्म “मर्रु ा कला उनके दोनों हार् गोद में इस प्रकार रखे हैं तक
िैली” से हुआ है। उनकी हर्ेली एक दसू रे पर तटकी है।
 भतू म स्पिथ की मद्रु ा — इस मद्रु ा का अतभप्राय है
गप्तु कालीन र्ूभिमकला और र्थुरा कला शैली र्ें तक वे काम के देवता आए पर तवजय प्राप्त करने
र्ूलिूि अन्िरः- के प्रमाण में पृथ्वी को गवाह बना रहे हैं।
 मर्रु ा कला िैली की मतू तथयों को सन्ु दर बनाने के  उपदेि की मद्रु ा — दोनों हार् इस प्रकार सीने से
तलए नग्नता का प्रदिथन हुआ है जबतक गप्तु लगे है तक दाोँया हार् का कतनष्ठा व अिंगठू ा बाएोँ
कालीन मतू तथकारों ने अपनी मतू तथयों में मोटे हार् की माध्यतमका को छू रहे हैं।
उत्तरीय वस्त्रों का प्रयोग तकया है।
 कुषाण कालीन मतू तथयों में प्रभामडडल सादगी के बुद्ध की खड़ी र्ूभिमयााँ:-
तलए हुए है वही गप्तु काल में सुसतज्जत अिय र्ुद्रा: दािंया हार् अभय की मद्रु में, जबतक
प्रभामडिं ल बनाए गए हैं। बािंए हार् से वस्त्र पकडे हैं।
 गप्तु कालीन मतू तथकला के के न्द्र — मर्रु ा, बरद र्द्रु ा:- उत्सजथन की मद्रु ा है, बाल घोँघु राले
सारनार् और पाटतलपत्रु है, चेहरे पर आध्यात्मवाद की स्पष्ट झलक है।

बौद्ध धर्म से सम्बभन्धि र्ूभिमयाः-

149
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
ब्राह्मर् धर्म से सम्बभन्धि र्भू िमयााँ:- द्रभिड़ शैली
 तजन देवी देवताओ िं की मतू तथयों का तनमाथण हुआ इस िैली के मिंतदरों में वगाथकार गभथगहृ पाया जाता है।
उसमें तिव तर्ा तवष्णु का महत्वपणू थ स्र्ान है। इसके उध्वथ तवन्यास में तवमान सीढ़ीदार तर्ा तपरातमड
 देवगढ़ के दिावतार मतन्दर में तवष्णु को िेषनाग आकार के पाये जाते हैं। तवमान के ऊपर का िीषथ भाग
के ऊपर बैठा तदखलाया गया है। स्ततू पका कहलाता है।
 तभल्सा (म0 प्र0) के नजदीक उदयतगरर गुफा के  द्रतवड िैली के मतिं दरों की मख्ु य तविेषता एक
महु ाने पर दािंतो से पृथ्वी उठाए वराह की प्रततमा तविाल प्रािंगण का पाया जाना है, इसके अिंदर
का तनमाथण तकया गया है। मिंतदर स्र्ातपत होता र्ा। इस प्रािंगण में प्रायः
जलकिंु ड पाये जाते हैं, सार् ही कई कक्ष और
र्ंभदर िास्िुकला की शैभलयााँ अन्य मिंतदर भी होते हैं।
 तिल्प िास्त्र नामक ग्रिंर् के अनसु ार मिंतदर  प्रािंगण का मुख्य प्रवेि द्वार गोपरु म कहा जाता
वास्तक ु ला की तीन श्रेतणयािं बतायी गई है। इसे र्ा। इसके िीषथ पर दोनों तरफ गाय के सींग जैसी
मिंतदरों की िैलीगत बनावट के आधार पर तर्ा आकृ तत पायी जाती है जो द्रतवड िैली की प्रमख ु
क्षेत्रीय तवतवधता के आधार पर तवभातजत तकया तविेषताओ िं में से एक है।
गया हैं:-  इस िैली के मिंतदर कृ ष्णा तर्ा तिंगु भद्रा नदी से
 1. नागर िैली। लेकर कुमारी अिंतरीप तक पाये जाते हैं।
 2. द्रतवड िैली।  इस िैली को चोल, पल्लव, राष्रकूट और पािंड्य
 3. बेसर िैली। राजाओ िं द्वारा सिंरक्षण प्रदान तकया गया।
नागर शैली
नागर िैली के मिंतदरों के गभथगहृ तल तवन्यास में बेसर शैली
वगाथकार होते र्े तर्ा उध्वथ तवन्यास में तिखर गोलाई बेसर िब्द का अर्थ तमतश्रत होता है, यह तमश्रण नागर
तलए होते हैं, तजसकी रे खाएिं ततरछी और चोटी की िैली तर्ा द्रतवड िैली का तमतश्रत रूप है, इन िैतलयों
तरफ झक के तमश्रण-स्वरूप तविंध्य पवथत तर्ा कृ ष्णा नदी के बीच
ु ी हुई होती है। इनके िीषथ पर आमलक और
कलि की व्यवस्र्ा होती है। इनका तवकास हुआ।
 नागर िैली के मिंतदर तहमालय से लेकर तविंध्य  इस िैली में मिंतदर तवन्यास द्रतवड िैली में,
पवथत तक पाये जाते हैं। जबतक रूप नागर िैली में होता है।
 इस िैली में प्रािंतीय आधार पर भी तवतवधता  इस िैली को होयसल तर्ा चालक्ु य नरे िों द्वारा
पायी जाती है जैसे — उडीसा के मतिं दर तर्ा सरिं क्षण प्रदान तकया गया।
गजु रात के मिंतदर आतद

150
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
साभहत्य गप्ु िकालीन भिज्ञान एिं िकनीकी
 इस काल में अनेक स्मृततयों एविं सत्रू ों पर भाष्य  गप्ु तकाल में समाज एविं सस्िं कृ तत का तवकास तो
तलखे गये अनेक परु ाणों तर्ा रामायण एविं हुआ ही लेतकन सवाथतधक तवकास तवज्ञान एविं
महाभारत को अिंततम रूप तदया गया। नारद, तकनीकी दृति से हुआ।
कात्यायन, पारािर, वृहस्पतत आतद स्मृततयों की िाराहभर्भहर
रचना हुई।  जन्मस्र्ान : उज्जैन
गुप्तकाल की र्हत्िपूर्म रचनायें  पुस्िक:पिंचतसद्धातन्तका, वृहत्सिंतहता,
पस्ु तक लेखक लघजु ातक, तववाह पटल, योगमाया।
ऋतु सिंहार कातलदास  वाराहतमतहर ने बताया चद्रिं मा पृथ्वी के चक्कर
मेघदतू कातलदास लगाता है, और पृथ्वी सयू थ के चक्कर लगाती है।
कुमार सभिं व कातलदास
 पिंचतसद्धाततका गतणत ज्योततष सिंबिंतधत ग्रिंर् है।
मालतवकातग्नतमत्रम कातलदास
अतभज्ञान िाकुन्तलम कातलदास आयमिट्ट प्रथर्
मद्रु ाराक्षस तविाखदत्त
 जन्र्: पाटतलपत्रु (476 ई.)
देवी चन्द्रगप्तु म् तविाखदत्त
 पुस्िक: सयु थ तसद्धािंत, आयथभरट्टयम् ,
हषथचररत बाणभट्ट
दिगीततका
कादम्बरी बाणभट्ट
 आयथभट्ट का प्रर्म ऐततहातसक खगोलिास्त्री
स्वप्नवासदत्ता भास
कहा जाता है।
तकराताजथतु नयम भारतव
पच िं तसद्धान्त वराहतमतहर  आयथभट्ट ने ही गणना की, दिमलव प्रणाली का
ब्रह्रा तसद्धान्त आयथ भट्ट उल्लेख तकया है, ध्यातव्य है तक दिमलव
आयथभरट्टयम आयथ भट्ट प्रणाली का अतवष्कार एक अज्ञात भारतीय ने
तद्वतीय िताब्दी ई.प.ू तकया र्ा।
सयू थ तसद्धान्त आयथ भट्ट
पिंचतन्त्र तवष्णि ु माथ  इन्होंने सवथप्रर्म वषथ की लिंबाई 365 तदन बतायी।
नीततिास्त्र कामन्दक आयथभट्ट ने पाई () का तनकटतम मान 3.1416
बताया।
मृच्छकतटकम् िद्रू क
 आयथभट्ट पहले खगोलिास्त्री तजन्होंने सयू थ ग्रहण
तहतोपदेि नारायाण
एविं चिंद्रग्रहण को वैज्ञातनक कारण बताया।

ब्रह्मगुप्ि

151
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
 जन्म: उज्जैन  चिंद्रगप्ु त तवक्रमातदत्य के दरबार में आयथवु ेद के
 पस्ु तक: ब्रह्म तसद्धािंत प्रतसद्ध तचतकत्सक धनवन्तरी र्े, तजन्होन
 इन्होनें ही गरुु त्वाकषथण तसद्धातिं की कल्पना की तनघडटु पस्ु तक तलखी।
और बताया तक पृथ्वी सभी वस्तओ ु िं को अपनी  नवनीतकम् एक आयवु ेद ग्रर्िं है तजसकी रचना
ओर आकतषथत करती है। गप्ु त काल में हुई।
 पालकव्य नामक वेटरे नरी ( पितु चतकत्सक) ने
हस्त्यायवु ेद नामक ग्रिंर् की रचना की।

िास्कर प्रथर्
 पस्ु तक: महाभास्कयथ, लघभु ास्कयथ और भाष्य
 आयथभट्ट के तसद्धािंतों को आधार बनाकर
भास्कर प्रर्म ने आयथभरट्टयम पर अश्मकतत्रिं
नाम से टीका तलखी।

िास्कराचायम (िास्कर भद्विीय):


 जन्म: खानदेि, महाराष्र
 पस्ु तक: तसद्धािंततिरोमतण
 भास्कराचायथ को कै लक ु लस का
अतवष्कारकताथ माना जाता है।
 इनकी पस्ु तक तसद्धािंततिरोमतण के चार भाग हैं,
1. लीलावती
2. बीजगतणत
3. ग्रहगतणत
4. गोला
 लीलावती का फारसी अनवु ाद मगु लकाल में
फै जी ने तकया।
भचभकत्साशास्र
 िश्रु तु , गप्ु तकाल के िल्यतचतकत्सक
(प्लातस्टक सजथन) र्े, इन्होनें प्लातस्टक सजथरी
में प्रयक्ु त होने वाले 121 यत्रिं ों का वणथन तकया
है।

152
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं

गप्ु िोत्िर काल


राजनीभिक दशाः- तवके न्द्रीकरण के यगु का आरम्भ हुआ,
संस्थापक — श्री गप्ु त
• गप्तु काल के पतन के बाद भारतीय हषथवधथन के राज्यारोहण के सार् ही उसकी
चन्द्रगुप्त प्रथमः- (319-35 ई0) — गुप्त वंश का वास्तववक समातप्त
संस्थापक हुई।राजधानी – पा लिपुत्र
राजनीततक इततहास में एक ऐसी प्रवृतत्त का
आतवभाथव हुआ जो तवतभन्न ई0 मेंमेंलगभग
319रूपों नया संवत ‘गुप्त संवत’ चिाया

1000 ई0 तक हावी रही। • हषथ के पवू थ वधथन विंि की राजधानी र्ानेश्वर


लिच्छवी की राजकुमारी कुमार दे वी के साथ वैवाटिक संबंध स्थावपत करने के कारण वि अपने को “लिच्छनयः दौटित्र” किता था।
• यह प्रवृतत्त र्ी — तवके न्द्रीकरण और र्ी। तकन्तु हषथ ने कन्नौज को अपनी
अपने वववाि के उपिक्ष्य में “सोने के लसक्क े ” जारी ककया।
राजधानी बनाई।
क्षेत्रीयता की भावना।
• सातवीं सदी तक आते-आते पाटतलपत्रु के
समुर गुप्तः- इसकी भी उपाधध – लिच्छनयःदौटित्र, “कववराज”

गुप्त िंश के पिन के बाद भजन नये िंशों का उदय


ववजय अलभयानों की जानकारी — ‘प्रयाग प्रशास्स्त से’
बरु े तदन आ गये और कन्नौज का तसतारा
हुआ उनका भििरर् भनम्नभलभखि है- चमका। पाटतलपत्रु का राजनीततक पतन
ननंसे आथथर ने इसे “भारत का नेपोलियन” किा िै ।
इसतलए हुआ क्योंतक इसकी सत्ता एविं महत्ता
पुष्‍टयिुभि िंश (िधमन राजिश ) पर वीणा बजाते िुए धचत्रत्रत ककया
ं लसक्को वातणज्यगया िैव्यापार
। और मुद्रा धन पर तटकी हुई
सिंस्र्ापक : नरवधथन र्ी। अतएव ज्योंही व्यापार में तगरवाट आई
इसने भी अश्वमेघ यज्ञ कराए और “अश्वमेघ पराक्रमांक” की उपाधध धारण की।
राजधानी : र्ानेश्वर ( बाद में कन्नौज ) मद्रु ा दलु थभ होती गई और अन्ततः पतन हो
राम गुप्तः- गया।
इसकी पत्नी ध्रुवस्वालमनी को प्राप्त करने के लिए शकों का आक्रमण ि•ु आ।हषथ
प्रिाकरिद्धमन इसके घिासन ना की काल का आरतम्भक
जानकारी इततहास
ववशाखदत्त कृत “दे वी
उपातध: हूणहररणके सरी, गजु थप्रजागर, तसन्ुप्धतम”
चन्द्रग रु ाजज्नामक
वर ग्रन्द्थ से प्राप्त िोती
बाणभट्ट िै । से ज्ञात होता है।
अन्य नाम- प्रतापिील
• हषथ ने कश्मीर िासक से बद्ध ु के दन्त
प्रभाकरवद्धथन की पत्नी यिमु तत उसकी मृत्यु के बाद
अविेष बल पवू थक प्राप्त तकये। वह महायान
चन्द्रगुप्त द्ववतीय ‘ववक्रमाटदत्य’:- अन्द्य नाम-दे वराज या “दे वगुप्त”
सती हो गई र्ी।
बौद्ध धमथ का सिंरक्षक र्ा।
प्रभाकरवद्धथन के बादपरमभागवत
र्ानेश्वर का िासक हषथ का
की उपाधध उसके धमथननष्ठ वैष्णव िोने की पुस्ष् करता िै ।
बडा भाई राज्यवधथन तद्वतीय बनता है, इसकी हत्या
चााँदी की मुरा का प्रचिन करने वािा • पििाहषथगकेुप्तकाल शासक में उच्च अतधकाररयों के वेतन
बिंगाल के गौड िासक ििािंक ने धोखे से कर दी र्ी।
दस
के रूप में जागीरें (भतू म ू अन
ू री राजधानी — उज्जनयनी (ववद्या एवं संस्कृनत का प्रलसद्ध केन्द्र) इससे पििे ववटदशा को दस
दान) दी जाती
री ु राजधानी बनाया
र्ी। भतू म देने की सामन्ती प्रर्ा हषथ ने ही िरू ु
नवरत्नः-
की।
हषम िधमन(606-647 ई0):-
अमरलसंि, वेताि भट् , धन्द्वंतरर, शंकु, घ कपरर, क्षपण •, कालिदास
हषथ के िासन , वरािलमटिर
काल, कावररूधच
महत्व चीनी यात्री
• गप्तु साम्राज्य के तवघटन के पिात उत्तरी
ह्वेनसागिं के भ्रमण को लेकर है। वह 629 ई0
भारत में तजस राजनीततक (पष्ु यभशक तू त वववजे
िंि)ता किा जाता िै।
फाह्यानः-

चन्द्रगुप्त द्ववतीय के शासन काि में यि चीनी यात्री भारत आया प्रलसद्ध ग्रन्द्थ ‘फू-की-की’ की रचना की। 153
नोट्स हेतु
चन्द्र के पा लिपुत्र स्स्थत राज प्रसाद का दशथन ककया।
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
से लेकर 645 ई0 तक भारत में रहा। वह
नालन्दा के बौद्ध तवश्वतवद्यालय में पढ़ने के
तलए और भारत से बौद्ध ग्रन्र् बटोर कर ले
जाने के तलए आया र्ा।
• वह सयू थ, तिव एविं बद्ध
ु का उपासक र्ा।
• हषथ को तवद्वानों के सम्पोषक के रूप में नहीं
बतल्क तीन नाटकों तप्रयदतिथका, रत्नावली
तर्ा नागानन्द के रतचयता के रूप में याद
तकया जाता है। उसे सातहत्याकार सम्राट
कहा गया है।
• हषथ दतक्षण भारत में अपने साम्राज्य का
तवस्तार नहीं कर सका र्ा। चालक्ु य नरे ि
पल
ु के तिन तद्वतीय से नमथदा नदी के तट पर
उसका यद्ध
ु हुआ र्ा।
उपलभब्धः-
• गप्तु ोत्तर काल के नवेतदत राज्यों पर सबसे
लम्बे समय तक िासन तकया।
• इन्होंने हूणों को परातजत कर पवू ी भारत
को उनके आक्रमण से बचाया।
• गप्तु ों के उपरान्त उत्तर भारत में सबसे
तविाल राज्य स्र्ातपत तकया।

154
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं
राजिंश संस्थापक स्थान प्रर्ुख भिशेष/ उपलभब्ध
शासक
र्ैरक भट्टाकथ वल्लभी भट्टाकथ , • गप्ु तोत्तर काल के नवोतदत राज्यों पर सबसे
धवु थसेन- II लम्बे समय तक िासन तकया।
धमथसेन-IV • चीनी यात्री इतत्सिंग (671 ई.) ने यहािं तस्र्त
वल्लभी तवश्वतवद्यालय की प्रि िं सिं ा की है।

यशोधर्मन िंश यिोधमथन मालवा यिोधमथन • इसका प्रतसद्ध अतभलेख मिंदसौर अतभलेख
है तजसका लेखक वासुल है
• मदिं सौर प्रितस्त में उसे “जैनेन्द्र” कहा गया
है, क्योंतक इसने वाकाटकों, गप्ु तों एविं हूणों
को परातजत तकया र्ा।
र्गध और कृ ष्ण गप्ु त मालवा देवगप्ु त और • मधवु न और वसिं खेडा अतभलेख देवगप्ु त से
र्ालािा के आतदत्यसेन सिंबिंतधत है, देवगप्ु त ने बिंगाल के गौड
और
उत्िर गुप्ि ििािंक के सार् तमलकर हषथ के बडे भाई
मगध राज्यवधथन की हत्या कर दी र्ी।
• आतदत्यसेन ने तीन अश्वमेघ यज्ञ तकये र्े,
इसके समय चीनी राजदतू वािंग-हुएन-त्से ने
दो बार भारत की यात्रा की।

कन्नौज का हररवमाथ (510 कन्नौज हररवमाथ, • इनकी मद्रु ाएिं उत्तर प्रदेि के फै जाबाद तजले
र्ोखरर िंश ई.) (मल
ू रूप से आतदत्यवमाथ के तभटौरा से तमली हैं।
गया के र्े) , ईिानवमाथ, • इनके अतभलेखों में हरहा अतभलेख
सवथवमाथ ( बाराबिंकी) सोनार अतभलेख ( देवररया)
प्रमख
ु है।
गौड़ िंश ----------- बिंगाल ििािंक • व्हेनसािंग के अनसु ार उसने बोधगया के
बोतधवृक्ष को कटवा कर गिंगा फे क तदया
र्ा।
• यह िैव मत का पोषक र्ा।

155
नोट्स हेतु
प्राचीन भारत का इततहास तिवम तसहिं

156
नोट्स हेतु

You might also like