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हिन्दी भाषा का प्रथम व्याकरण

लेखक - नारायण प्रसाद इ-मेलः <hindix@gmail.com>

एक तरफ जबकक साहित्य समृद्ध सभी द्रहिड़ भाषाओं (तहमल, कन्नड़, तेलुगु एिं मलयालम) के
प्राचीनतम साहित्य हजस काल से प्राप्त िोते िैं, लगभग उसी काल से उन भाषाओं के उनके भाषी हिद्वानों के
हलहखत व्याकरण भी उपलब्ध िैं, हिशेष रूप से कन्नड़ के काल-क्रमबद्ध न के िल पुराने हलहखत व्याकरण िैं,
बहकक इन्िीं व्याकरणों की सिायता से ईसा की छठी शती से चौदििीं शती के हशलालेखों में प्रयुक्त कन्नड़ भाषा
के भी व्याकरण गठठत कर हलए गए िैं;1 ििीं मध्य एिं उत्तरी भारत की ककसी भी आयय देशी भाषा
(Vernacular) का प्राचीनतम व्याकरण कोई तीन सौ िषय से ज्यादा पुराना निीं िै2। ऐसी दशा में भाषाओं के
क्रहमक हिकास एिं इहतिास के हिचार से कु छ प्राचीन हद्वभाहषक कृ हतयााँ, उदािरण स्िरूप बारििीं शती के
प्रारंभ में बनारस के दामोदर पंहित द्वारा रहचत बोलचाल की संस्कृ त भाषा हसखाने िाला ग्रंथ "उहक्त-व्यहक्त-
प्रकरण" से हिन्दी की प्राचीन कोशली या अिधी बोली3 के एिं 1280 ई. में संग्राम ससंि रहचत संस्कृ त प्रिेहशका
"बाल-हशक्षा" और 1394 ई. में कु लमण्िन द्वारा रहचत सरल संस्कृ त व्याकरण "मुग्धािबोध औहक्तक" से प्राचीन
गुजराती4 के स्िरूप का कु छ बोध कराने में सिायता प्रदान करती िैं। लगभग सभी आयय देशी भाषाओं के प्रथम
व्याकरण पाश्चात्य हिद्वानों द्वारा हलखे गये। यिी बात हिन्दी के बारे में भी लागू िोती िै।

हिन्दी के प्रथम व्याकरणकार - योन योस्िा के टलार (1659-1718)


सलंहग्िहस्टक् सिे ऑि् इंहिया5 के संपादक सर जॉजय अब्रािम हग्रयसयन ने हिन्दी (सिंदस्ु तानी) के प्रथम
व्याकरण की तरफ़ ध्यान आकृ ष्ट ककया िै और उन्िोंने इसके लेखक योन योस्िा के टलार (Joan Josua Ketelaar)
के बारे में भी कु छ जानकाठरयााँ दी िैं। हसन्योर एहमहलओ तेज़ा (Signor Emilio Teza) ने सियप्रथम जनिरी
1895 में हिद्वानों का ध्यान के टलार के हिन्दी व्याकरण की तरफ़ आकृ ष्ट ककया। बाद में िॉ. जे. पी. फ़ॉग़ल ने इस
लेखक के बारे में िेग शिर के ठरक्स अहभलेखागार (Rijks-Archief) से कु छ और जानकाठरयााँ िाहसल कर अपने
दो लेख 'The Author of the First Grammar of Hindustani'6 और 'Joan Josua Ketelaaar of Elbing,
author of the First Hindustani Grammar'7 प्रकाहशत कराये। भारत के प्रहसद्ध भाषाशास्त्री िॉ. सुनीहत
कु मार चटजी ने भी अपने लेख 'The Oldest Grammar of Hindustani'8 में के टलार के हिन्दी व्याकरण का
अनुशीलन कर एक उत्कृ ष्ट हिश्लेषण प्रस्तुत ककया।

िच भाषा में हलखा के टलार के हिन्दी व्याकरण का एक िस्तलेख ठरक्स-आर्कय फ़् में सुरहक्षत िै जो इस
प्रकार िै - "Instructie off onderwijsinge der Hindoustanse, en Persiaanse Talen, nevens hare
declinatie en conjugatie, als mede vergeleykinge der hindoustanse med de hollandse maat
en gewighten mitsgaders beduydingh eenieger moorse namen etc. door Joan Josua
Ketelaar, Elbingensem en gecopieert door Isaacq van der Hoeve, van Uytreght. Tot
Leckenauw A° 1698". हिन्दी में इस शीषयक का अनुिाद कु छ इस प्रकार ककया जा सकता िै - "सिंदस्ु तानी और
फ़ारसी भाषाओं के हलए अनुदश े न या अनुहशक्षण, इसके अहतठरक्त शब्दों की रूपािली, सिंदस्ु तानी एिं िच भारों
एिं मापों की तुलना, क्षुद्र मूठरश नामों का मित्त्ि इत्याकदः योन योस्िा के टलार, एलसबंग; प्रहतहलहपकार - उट्रेख्ट
के इज़ाक फान देअर िीि, लखनऊ, 1698 ई."।

िच इस्ट इंहिया कं पनी, सूरत द्वारा कदनांक 14 मई 1700 के पत्र से के टलार और उसके सिायक इजाक
फ़ान देअर िीि को आगरा में पुनः स्थाहपत फै क्ट्री के संचालन िेतु जारी ककये गये आदेश से िॉ. फ़ॉग़ल यि

1
अनुमान लगाते िैं कक के टलार ने इस व्याकरण को उसी िषय अथायत् 1698 ई. में िी या उससे कु छ समय पूिय पूरा
ककया था9।

के टलार की संहक्षप्त जीिनी


के टलार (Ketelaar) का िास्तहिक पाठरिाठरक नाम के टलर (Kettler) था। उसका जन्म पूिी प्रहशया
(Prussia) में बाहकटक सागर के तट पर हस्थत एसकबंग नामक नगर में 25 कदसंबर 1659 ई. को एक जमयन पठरिार
में हुआ। िि हजकदसाज योस्िा के टलर का ज्येष्ठ पुत्र था। अपने हपता के समान िी िि भी हजकदसाज का काम
करने लगा।

हजकदसाज माहलक अकसर कु छ रक़म ग़ायब पाता। उसे पता निीं चलता कक अपराधी कौन िै। आह़िर
एक कदन उसने युिक के टलार को रंगे िाथों धर दबोचा एिं अच्छी िााँट बजायी। के टलार ने एक घोड़ा भाड़े पर
हलया और मुरीनबुगय की तरफ़ भाग हनकला। उसके माहलक ने उसका पीछा ककया और उसे पकड़कर िापस अपने
घर लाया। इससे युिक के टलार बहुत नाराज हुआ। उसने अपने माहलक को बीयर में संहखया िालकर जान से
मारने का प्रयास ककया। अपने पड़ोसी औषहध-हिक्रेता माइके ल िुकफ़ के द्वारा द्रहित मक्खन (Liquid butter) की
ऊाँची खुराक कदये जाने से हजकदसाज माहलक की जान बच गयी। यि घटना 5 अक्तू बर 1680 ई. को हुई जब
के टलार की उम्र 21 िषय थी। उसे और कोई दंि निीं कदया गया, बहकक उसे नौकरी से िी बखायस्त कर कदया गया।
उसी शाम युिक के टलार दांहत्सग (Danzig) के हलए रिाना िो गया, जिााँ उसे एक अन्य हजकदसाज़ के यिााँ
हनयुहक्त हमल गयी। परंतु, ििााँ भी िि अपनी बुरी आदत छोड़ न सका और कु छ कदनों के बाद िी अपने नये
माहलक की सन्दूक तोड़कर तीन ठरक िॉलर चुरा समुद्री रास्ते से स्िेिेन की राजधानी स्टॉकिोम के हलए गुप्त रूप
से भाग हनकला।

उपयुयक्त घटना के बाद लगभग िेढ़ िषय तक के टलार की जीिन-शैली के बारे में कु छ पता निीं चलता। सन्
1682 के िसंत में िि िालैण्ि की राजधानी ऐम्सटरिम में था। उसने िच इस्ट इंहिया कं पनी में नौकरी प्राप्त कर
ली थी। अपने अनेक देशिाहसयों की तरि िी िि भी भारतिषय की अपार संपहत्त संबंधी किाहनयों से फु सलािट में
आ गया जो कु छ लोग हनधयन जमयनों को शहक्तशाली कं पनी के बंधन में लाने के हलए सुनाया करते थे। इस क्षण से
कं पनी द्वारा सुरहक्षत दस्तािेजों के के टलार के अगले सभी कारनामों की सूचना प्राप्त िोती िै। इस क्षण के बाद उसे
नये अपनाये िच नाम योन योस्िा के टलार से िी पुकारा जाने लगा और प्रतीत िोता िै कक इस नये नाम के साथ
िी उसके चाल-चलन में भी बदलाि आ गया। मई 1682 में िि समुद्री सफ़र कर बटाहिया (िालैण्ि) पहुाँचा। सन्
1683 में सूरत भेज कदया गया जिााँ उसने अपनी जीिन-िृहत्त एक क्लकय के रूप में शुरू की। स्पष्टतः उसने अच्छा
कायय ककया, क्योंकक उसे त्िठरत पदोन्नहत हमली। सन् 1687 में उसे 'अहसस्टेंट' का पद हमला। सन् 1695 में िि
आगरा में अहसस्टेंट था। सन् 1696 में उसकी पदोन्नहत 'अकाउं टेट' पद पर हुई हजसके हलए उसका िेतन प्रहतमाि
30 हगकिर था। सन् 1699 में अिमदाबाद की फ़ै क्टरी में बुक-कीपर का काम करता था। सन् 1700 में उसका
स्थानांतरण (ट्रांसफ़र) आगरा में कर कदया गया जिााँ िि बुक-कीपर और प्रोहिजनल 'चीफ़' था। उसकी प्रिीणता
को देखते हुए सन् 1701 में उसे पााँच साल के हलए 40 हगकिर प्रहत माि के िेतन पर "जूहनयर मचंट" का पद
कदया गया।

सन् 1705-08 के बीच कॉफ़ी खरीदने के हलए उसे दो बार मक्का भेजा गया। रास्ते में फ्रेंच िाकू से मुठभेड़
िोने के कारण उसे कई मुहककलों का सामना करना पड़ा, कफर भी उसने सौंपा हुआ काययभार (Assignment) पूरा
कर कदखाया हजससे उसके िठरष्ठ अफ़सर संतुष्ट हुए। अतः अरब की पिली यात्रा से िापस आते िी उसे 65 हगकिर
प्रहतमाि के िेतन पर 'मचंट' पद पर स्थाहपत ककया गया। यि घटना 15 कदसंबर 1706 की िै।

2
के टलार जब अरब की दूसरी मुहिम (अहभयान) पर था तभी बटाहिया की कें द्रीय सरकार ने मूठरश भाषा
और रस्म-ठरिाज के मामले में उसकी दक्षता और अनुभि देखकर उसे कफर से सूरत में हनयुक्त करने का फ़ै सला
ककया। यि 7 हसतंबर 1708 की घटना िै। 75 हगकिर प्रहतमाि के िेतन पर उसकी "सीहनयर मचंट" के पद पर
हनयुहक्त हुई।

शाि आलमशाि (1708-1712) एिं जिानदार शाि (1712) के यिााँ के टलार ने िच दूत के रूप में कायय
ककया। सन् 1711 में सूरत में उसने िच इस्ट इंहिया कं पनी का "हिरेक्टर ऑि् ट्रेि" पद साँभाला। सन् 1716 तक
उसने कु ल तीन िषों तक हिरेक्टर पद पर कायय ककया।

िच इस्ट इंहिया कं पनी प्रत्येक बीस िषों के अंतराल पर फ़ारस के शाि के पास अपनी एक एम्बसी
(Embassy) भेजा करती थी। सन् 1716 में जब इसकी बारी आयी तो के टलार को राजदूत हनयुक्त ककया गया।
जुलाई 1716 में पठरजन (Suite) के साथ राजदूत कं पनी के जिाज से रिाना हुआ और आठ सप्ताि में फ़ारसी
खाड़ी का मशहूर बंदरगाि गमरून (बंदर अब्बास) पहुाँचा। तीस कदनों के बाद सीलोन (श्रीलंका) से और दो जिाज
पहुाँचे हजनमें छः िाथी फ़ारस के शाि को भेंट के रूप में देने के हलए लाये गये थे। गमरून से इस्फिान का सफ़र
फ़ारसी अहधकाठरयों द्वारा मुिय ै ा कराये गये घोड़ों द्वारा तय ककया गया हजसमें आठ सप्ताि लगे। फ़ारस की
राजधानी इस्फिान में छः मिीने तक ठिरने के बाद समुद्री तट का िापसी सफ़र शुरु हुआ।

जब यि दल हशराज़ पहुाँचा तो राजदूत को गमरून के िच हिरेक्टर के यिााँ से संकट-सूचना हमली कक


अरब सैहनकों से लैस दो जिाज िोरमुज़ पहुाँच गये िैं जो फ़ारसी लोगों से ििााँ के मुख्य ककले को िहथयाना चािते
िैं। िो सकता िै कक िे गमरून पर भी िमला करें । ऐसी पठरहस्थहत में राजदूत ने अपने अधीनस्थ बारि सैहनकों को
यथासंभि उच्च गहत से गमरून की तरफ़ रिाना िोने का आदेश कदया। घोड़े पर रातकदन का सफ़र कर बारि कदनों
में उन्िोंने यि दूरी तय कर ली। इतने लंबे सफ़र के बीच िे हसफ़य बारि घंटे सोये। उनके गमरून पहुाँचने से िच
फ़ै क्टरी के यूरोपीय लोग बहुत प्रसन्न हुए।

राजदूत ििााँ एक पखिाड़े के बाद पहुाँचा। इस बीच फारसी अहधकाठरयों ने एक कनयल के अधीन कोई एक
िज़ार सैहनक गमरून भेज।े राजदूत हमहलट्री कमांिर से शिर के बािर उसके कैं प में भेंट करने से निीं चूका। इस
अिसर पर हमहलट्री कमांिर ने मााँग की कक िच कं पनी के हजस जिाज में एम्बसी के सदस्यों को िापस बटाहिया
जाना िै, िि जिाज नाहिकों सहित उसकी मजी के अनुसार सेना को अरब आक्रमणकाठरयों से मुहक्त कदलाने िेतु
िोरमुज़ भेजने कदया जाय। फ़ारसी कमांिर ने दूसरे कदन भी एक प्रहतहनयुक्त अफ़सर के माध्यम से यि मााँग
दुिरायी हजसे के टलार ने साफ इन्कार कर कदया। उसका किना था कक कं पनी का खुद कमयचारी िोने की िैहसयत
से िि कं पनी के जिाज को इस तरि निीं भेज सकता।

फ़ारसी कमांिर ने अब ऐसे क़दम उठाने शुरू कर कदये हजससे तंग आकर राजदूत उसकी इच्छाओं के
मुताहबक चल सके । उसने अपने सैकड़ों सैहनक िच फै क्ट्री के चारों तरफ़ हनयुक्त कर कदये। हबसकिंग में ककसी भी
प्रकार के खाने का सामान या पीने का पानी ले जाने निीं कदया गया। इस प्रकार की यातनाएाँ सिने के बािजूद
के टलार निीं झुका। लगभग दो कदनों की नाकाबंदी के बाद उसे तीव्र ज्िर चढ़ आया और तीन कदनों के बाद 12
मई 1718 को उसने प्राण त्याग कदये। इसके बाद फ़ारसी कमांिर ने अपने सैहनक िटा हलये।

गमरून शिर से कोई आधा मील दूर अाँग्रेज़ों के क़हब्रस्तान के पास िच क़ब्रगाि में राजदूत की लाश को
दफ़नाया गया। उसके भांजे सैमुएल ग्रुटनर ने 600 हगकिर के खचय से उसकी क़ब्र पर एक भव्य स्मारक बनिाया।
यि हपराहमि स्मारक 30 िाथ ऊाँचा था जो उस स्थल के ककसी भी मज़ार से अहधक बेशकीमती था। सन् 1908 के

3
आसपास तक िि स्मारक मौजूद था, अलबत्ता खंििर के रूप में। बाद में उस जगि नये घर बनाने िेतु इसे ढाि
कदया गया।

के टलार का हिन्दी व्याकरण


मूल िच भाषा में हलखा के टलार का हिन्दी व्याकरण कभी मुद्रण में निीं आया10 और िस्तलेख की
एकमात्र प्रहतहलहप िी िेग शिर में सुरहक्षत िै। इस व्याकरण का लैठटन अनुिाद उट्रेख्ट हिश्वहिद्यालय में काययरत
प्राच्य भाषाओं के प्रोफे सर िैहिि हमल ने ककया जो सन् 1743 में हमस्लेहनया ओठरयेन्ताहलया में प्रकाहशत हुआ।
इसी अनुिाद से यि व्याकरण प्रकाश में आया।

सन् 1921 में िॉ. सुनीहत कु मार चटजी जब इंग्लैंि में थे तो उन्िें पुरानी पुस्तकों के एक हिक्रेता के यिााँ से
िैहिि हमल की संपूणय रचना हमल गयी। इसी रचना के अनुशीलन पर आधाठरत िॉ. चटजी द्वारा के टलार
व्याकरण का हिस्तृत हिश्लेषण सन् 1933 में छपा।11 "The Oldest Grammar of Hindustani" नामक शीषयक के
अंतगयत िॉ. चटजी का पठरिर्द्द्धतय लेख पुनः 1935 में प्रकाहशत हुआ।12 इस अंहतम लेख का पुनमुयद्रण 1978 में
हुआ।13 इसी लेख के आधार पर के टलार व्याकरण का संहक्षप्त हििरण कदया जा रिा िै।

हमस्लेहनया ओठरयेन्ताहलया के प्रथम अध्याय, पृ. 455-488, में हिन्दी व्याकरण िै। अध्याय 2 के भाग 1
में फ़ारसी भाषा का संहक्षप्त व्याकरण (पृ.489-503) िै। पृ. 503-509 के अंतगयत तीन स्तंभों (Columns) में लैठटन,
हिन्दी एिं फ़ारसी में 140 कक्रयाओं का समािेश िै। बाद में लैठटन, हिन्दी, फ़ारसी और अरबी के लगभग 650
शब्दों का कोष िै। इसके बाद हमस्लेहनया ओठरयेन्ताहलया के अध्याय 2, भाग 2 में श्रुहतसम हभन्नाथयक शब्द
(Homonyms) का संकलन (पृ. 599-601) िै। फ़ारसी एिं अरबी शब्द अरबी हलहप में िैं जबकक हिन्दी शब्द
रोमन हलहप में।

के टलार का व्याकरण देिनागरी हलहप (पृ. 456 के सामने िाले प्लेट में) पर ठटप्पणी से प्रारंभ िोता िै।
हिन्दी अक्षरों या शब्दों के उच्चारण के बारे में लेखक ने कु छ निीं किा। उसने यि मान हलया िै कक रोमन अक्षरों में
उसके द्वारा व्यक्त की हुई ध्िन्यात्मक िच ितयनी (His Dutch values of the Roman letters) से पाठक
पठरहचत िैं। उदािरण स्िरूप - ङ = / nia / ; च, छ, ज, झ = / tgja, tscha, dhea, dhja / ; ट, ठ, ि, ढ = / tha,
tscha, dha, dhgja / ; ण = / nrha / ; त, थ, द, ध, न = / ta, tha, dha, da, na / ; य = / ja / ; श, ष, स, ि, ळ =
/ sjang, k'cho, sja, ha, lang / ; गया (gea), िर (der), किो मत (koo mat), समझे (somsje), बेटा (beetha),
बुकढ़या (boedia), आदमी (admi), कोई (koy), भाई (bhay), और (oor), चौथा (tsjoute), घोड़ा (gorra), मै
झूठ बोलता था (me dsjoetboltetha), बराबर (brabber), फठरकता (frusta), सच (tjets या tsjets)।

तीसरे पृष्ठ से हिन्दी शब्दों की रूपािली चालू िोती िै - पिले संज्ञा की और कफर सियनाम की। सियनाम के
बाद नकारात्मक हनपात (Particles) न, मत, निी / na, mat, ney / पर ठटप्पणी िै और 'मत' शब्द के प्रयोग के
उदािरण िैं, मत जाओ / mat dsjauw / उसके बाद एक पैरा में भाििाचक संज्ञाओं के उदािरण िैं, जैसे - खूब -
खूबी / ghoeb - ghoebje /

अगला हिषय-िस्तु िै - हिशेषणों की तुलना। उदािरणस्िरूप - काला, इससे काला, सबसे काला / kalla
- issoe kalla - sabsoe kalla /. कफर शब्द हनमायण की बारी आती िै। /-गार /, /-दार / और /- आर / प्रत्यय से
बने शब्द जैसे-गुनाि-गुनिगार / gonna-gonnagaar/, ज़मीन-जमीनदार / dsjimien - dsjimidaar/; /-ची/, /-
िाला/ से बने शब्द - तोप - तोपची / toop - tooptsie/, लकड़ी-लकड़ी िाला / lackri - lackriewalla/। स्त्री -
प्रत्यय '-अन' से बने शब्द, जैसे - धोबन, मालन, मोचन /dhooben, malen, mootsjen /.

4
आगे के टलार आदर या दुलार के अथय में प्रयुक्त '-जी' की व्याख्या करता िै। उदािरण - बिन जी / bhen
dsjeve/, बेटा जी /beetha dsjieve/। अमुक अथय में प्रयुक्त 'फलााँ' /fallan/ शब्द की भी व्याख्या िै और तब
तुलनात्मक िाक्य के बारे में नोट आता िै। जैसे - िाथी बैल से बड़ा िै /haathie bhelse barrahe/। इसके बाद पृ.
466-485 में कक्रयाओं की रूपािली िै। अन्त में बाइहबल के दश आदेश, धमयसार एिं प्रभु की प्राथयना के हिन्दी
अनुिाद के साथ व्याकरण पूरा िोता िै।

क्या के टलार का हिन्दी व्याकरण बाजारू भाषा पर आधाठरत िै?


िॉ. चटजी के अनुसार के टलार द्वारा कक्रयाओं के हििेचन से स्पष्ट िोता िै कक व्याकरण की दृहष्ट से उसकी
हिन्दी अशुद्ध बाज़ारू बोली िै। कक्रयाओं के स्त्रीसलंग रूप उसके हलए अनजाने थे। तीनों पुरुषों में एकिचन उत्तम
पुरुष का रूप िी मध्यम एिं अन्य (प्रथम) पुरुष में पाया जाता िै तथा उत्तम पुरुष एकिचन का अनुनाहसक रूप
अन्य पुरुषों एिं िचनों में भी हमलता िै। मुंबई एिं गुजराती शिरों में / िम जायाँगा /, / िो जायाँगा /, / सेठ जी
कल आयाँगा / जैसे िाक्य सुनने को हमलते िैं। के टलार की हिन्दी में भी इसी प्रकार के प्रयोग हमलते िैं।

िॉ. चटजी के इस हनष्कषय से कक के टलार का हिन्दी व्याकरण बाज़ारू भाषा पर आधाठरत िै, िॉ. फ़ॉग़ल
सिमत निीं िैं। उनका किना िै कक असली कारण सिंदस्ु तानी शब्दों का हलप्यंतरण िै, जो संतोषजनक निीं िै,
क्योंकक यि िैज्ञाहनक पद्धहत पर आधाठरत निीं िै। पूरी संभािना िै कक के टलार को हिन्दी पढ़ना-हलखना निीं
आता था। अतः उसे अपनी श्रिण-शहक्त पर िी आधाठरत रिना पड़ा और सुनी हुई ध्िहन को िच भाषा की ितयनी
के अनुसार यथासंभि प्रहतरूहपत ककया। कठठनाई उस दशा में हुई जब उसे कु छ ऐसी ध्िहनयों से पाला पड़ा जो
उस भाषा में निीं िैं; जैसे तालव्य एिं मूधयन्य व्यंजन। यि हनःसंदेि उसे चपरासी जैसे छोटे िगय के लोगों से पाला
पड़ता था, ककन्तु उसका कायय ऐसा था कक उसे ऊाँचे िगय के ऐसे भारतीय व्यापाठरयों से हमलना-जुलना पड़ता था
जो भारत में यूरोपीय लोगों के व्यापार में मुख्य भूहमका हनभाते थे। ऐसे व्यापारी अच्छी िैहसयत (Status) िाले
लोग थे, जैसे कक मोिन दास हजसकी दानशीलता का यश इतना फै ला था कक हशिाजी ने जब सूरत को लूटा तो
उसका घर छोड़ कदया।

िॉ. फ़ॉग़ल सन् 1936 में प्रकाहशत लेख के अंत में अपना मत देते िैं कक सर जाजय हग्रयसयन और िॉ. चटजी
द्वारा के टलार व्याकरण से उद्धृत धार्द्मयक पाठ बाज़ारू भाषा का प्रहतहनहधत्ि निीं करता। उसकी हिन्दी ककतने
अंश तक गुजराती या पहश्चमी बन्दरगािों के क्षेत्र में व्यिहृत बोली से प्रभाहित िै, इसका हनणयय करना कठठन िै।
यद्यहप स्पष्टतः व्यापार में व्याििाठरक प्रयोग के उद्देकय से यि व्याकरण हलखा गया था, तथाहप इसमें हिद्वत्तापूणय
उत्सुकता की झलक हमलती िै, जो उसके राजदूतािास के िृत्तांत में भी प्रहतसबंहबत िोती िै।

ठटप्पणी
1. इन सब व्याकरणों के संदभय के हलए देखें - िॉ. के . कु शालप्प गौि (1992): "कन्नड़ व्याकरण: सांप्रदाहयक िागू
भाषािैज्ञाहनक", कनायटक हिश्वहिद्यालय, धारिाि (कन्नड़ में)। (िागू=और; सांप्रदाहयक = परम्परागत)

2. यद्यहप भीष्माचायय रहचत 'पंचिार्द्तयक' नामक मराठी व्याकरण ईसा की तेरििीं -चौदििीं शती का िै, तथाहप यि नाम का िी
व्याकरण िै। इस पर प्रहतकक्रया व्यक्त करते हुए श्री अजुयनिािकर हलखते िै - "खुद्द पंचिार्द्तयक ज्या भाषेत हलहिलं आिे, हतचा
पूणय उलगिा या व्याकरणानं िोत नािी", अथायत् खुद पंचिार्द्तयक हजस भाषा में हलखा िै, उसी भाषा का स्पष्टीकरण इस
व्याकरण से निीं िोता। - कृ ष्ण श्री अजुयनिािकर (1991): "मराठी व्याकरणाचा इहतिास", मुंबई हिश्वहिद्यालय, मराठी
हिभाग, मुंबई, पृ. 6, पं. 30-31.

5
3. Richard Salomon (1982): "The उहक्त-व्यहक्त-प्रकरण as a manual of spoken sanskrit", Indo-Iranian Journal,
Vol. 24, pp. 13-25.

4. "भारतीय साहित्य", संपादक - िॉ. नगेन्द्र, प्रभात प्रकाशन, कदकली, 1987, पृ. 181-183.

5. Linguistic survey of India, Vol. IX Calcutta, 1916, Part 1, pp. 6-8; पुनमुयद्रण - मोतीलाल बनारसीदास, कदकली,
1963.

6. "भारतीय अनुशीलन", मिामिोपाध्याय गौरीशंकर िीराचंद ओझा के सम्मान में समर्द्पयत, 23 िााँ हिन्दी साहित्य सम्मेलन,
कदकली , 1933. हिभाग 4. अिायचीन काल, पृ. 30-36.

7. "Indian and Iranian Studies", िॉ. हग्रयसयन के पचासीिें जन्म कदिस 7 जनिरी 1936 पर समर्द्पत
य , The school of
Oriental Studies, लंदन, 1936, पृष्ठ 817-822.

8. Indian Linguistics, हग्रयसयन अहभनंदन ग्रंथ, खंि IV, 1935.

9. फु टनोट 7 का संदभय, पृ. 821, पैरा 2.

10. यि जानकारी िॉ. फ़ॉगल ने 1936 में अपने प्रकाहशत लेख में (पृष्ठ 821, पं. 20) दी िै। अभी इसकी क्या हस्थहत िै, यि प्रकृ त
लेखक को ज्ञात निीं।

11. हद्विेदी अहभनंदन ग्रंथ, बनारस, 1933, पृ. 194-203.

12. देखें फु टनोट 8.

13. S. K. Chatterji: "SELECT WRITINGS", Vol. I, Vikas Publishing House Pvt. Ltd., New Delhi, 1978,
pp.237-255.

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