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कृष्ण

हिन्द ू धर्म र्ें विष्णु के 8िें अितार

श्रीकृष्ण, हिन्द ू धर्म र्ें भगिान िैं। िे विष्णु के 8िें अितार र्ाने गए िैं। कन्िैया, श्यार्,
गोपाल, केशि, द्िारकेश या द्िारकाधीश, िासुदेि आहद नार्ों से भी उनको जाना जाता िै।
कृष्ण ननष्कार् कर्मयोगी, आदशम दाशमननक, स्थितप्रज्ञ एिं दै िी संपदाओं से सुसस्जजत र्िान
पुरुष िे। उनका जन्र् द्िापरयुग र्ें िुआ िा। उनको इस युग के सिमश्रेष्ठ पुरुष, युगपुरुष या
यग
ु ाितार का थिान हदया गया िै। कृष्ण के सर्कालीन र्िवषम िेदव्यास द्िारा रचित
श्रीर्द्भागित और र्िाभारत र्ें कृष्ण का िररत्र विथतत
ृ रूप से ललखा गया िै। भगिद्गीता
कृष्ण और अजुमन का संिाद िै जो ग्रंि आज भी परू े विश्ि र्ें लोकवप्रय िै। इस उपदे श के
ललए कृष्ण को जगतगुरु का सम्र्ान भी हदया जाता िै।

श्री कृष्ण
करुणा, ज्ञान और प्रेर् के ईश्िर

श्री र्ाररर्ान र्ंहदर, लसंगापुर र्ें यदि


ु ंशी अिीर श्री कृष्ण प्रनतर्ा

दे वनागरी कृष्ण
संस्कृत लिप्यंतरण कृष्णः

तलिि लिपि கிருஷ்ணா

तलिि लिप्यंतरण Kiruṣṇā

कन्नड़ लिपि ಕೃಷ್ಣ

कन्नड़ लिप्यंतरण Kr̥ṣṇa

संबंध थियं भगिान ् , परर्ात्र्न ,ब्राह्र्ण, विष्ण,ु राधा कृष्ण[3][4]

ननवासस्थान िंद
ृ ािन, द्िारका, गोकुल, िैकंु ठ

अस्र सुदशमन िक्र

युद्ध कुरुक्षेत्र युद्ध

जीवनसाथी राधा ,रुस्मर्णी, सत्यभार्ा, जांबिती, नग्नस्जत्ती, लक्षणा, काललंदी, भद्रा [5][note
1]

िाता-पिता दे िकी (र्ााँ) और िासुदेि (वपता), यशोदा (पालक र्ां) और नंदा बाबा
(पालक वपता)

भाई-बहन बलरार्, सभ
ु द्रा

शास्र भागित पुराण , िररिंश , विष्णु परु ाण, र्िाभारत ('भगिद् गीता' ), गीत
गोविंद

त्यौहार कृष्णा जन्र्ाष्टर्ी, िोली


बाल कृष्ण का लड्डू गोपाल रूप, स्जनकी सहदयों से घर घर र्ें पूजा की जाती रिी िै।

कृष्ण िसद
ु े ि और दे िकी की 8िीं संतान िे। दे िकी कंस की बिन िी। कंस एक अत्यािारी
राजा िा। उसने आकाशिाणी सुनी िी कक दे िकी के आठिें पुत्र द्िारा िि र्ारा जाएगा।
इससे बिने के ललए कंस ने देिकी और िसुदेि को र्िुरा के कारागार र्ें डाल हदया। र्िुरा
के कारागार र्ें िी भादो र्ास के कृष्ण पक्ष की अष्टर्ी को उनका जन्र् िुआ। कंस के डर से
िसुदेि ने निजात बालक को रात र्ें िी यर्ुना पार गोकुल र्ें यशोदा के यिााँ पिुाँिा हदया।
गोकुल र्ें उनका लालन-पालन िुआ िा। यशोदा और नन्द उनके पालक र्ाता-वपता िे।

बाल्यािथिा र्ें िी उन्िोंने बडे-बडे कायम ककए जो ककसी सार्ान्य र्नुष्य के ललए सम्भि निीं
िे। अपने जन्र् के कुछ सर्य बाद िी कंस द्िारा भेजी गई राक्षसी पूतना का िध ककया ,
उसके बाद शकटासरु , तण
ृ ाितम आहद राक्षस का िध ककया। बाद र्ें गोकुल छोडकर नंद गााँि
आ गए ििां पर भी उन्िोंने कई लीलाएं की स्जसर्े गोिारण लीला, गोिधमन लीला, रास लीला
आहद र्ख्
ु य िै। इसके बाद र्िरु ा र्ें र्ार्ा कंस का िध ककया। सौराष्र र्ें द्िारका नगरी की
थिापना की और ििााँ अपना राजय बसाया। पांडिों की र्दद की और विलभन्न संकटों से
उनकी रक्षा की। र्िाभारत के युद्ध र्ें उन्िोंने अजुमन के सारिी की भूलर्का ननभाई और
रणक्षेत्र र्ें िी उन्िें उपदे श हदया। 124 िषों के जीिनकाल के बाद उन्िोंने अपनी लीला
सर्ाप्त की। उनके अितार सर्ास्प्त के तुरंत बाद परीक्षक्षत के राजय का कालखंड आता िै।
राजा परीक्षक्षत, जो अलभर्न्यु और उत्तरा के पत्र
ु तिा अजुमन के पौत्र िे, के सर्य से िी
कललयुग का आरं भ र्ाना जाता िै।
हिन्दओ
ु ं के इनतिास, साहित्य और धर्म का एक दृश्य, स्जसर्ें उनके लशष्टािार और रीनत-ररिाजों का
एक लर्नट िणमन और उनके प्रर्ुख कायों (1863) (147 9 1550762) से अनुिाद शालर्ल िैं

भगिान कृष्ण की सद
ुं रता हदखाती एक छवि
र्ााँ यशोदा के साि श्री कृष्ण

र्ााँ यशोदा के साि श्री कृष्ण

नार् और उपशीषमक
“कृष्ण” एक संथकृत शब्द िै, जो “काला”, “अंधेरा” या “गिरा नीला” का सर्ानािी िै।
“अंधकार” शब्द से इसका सम्बन्ध ढलते िंद्रर्ा के सर्य को कृष्ण पक्ष किे जाने र्ें भी
थपष्ट झलकता िै। इस नार् का अनुिाद किीं-किीं “अनत-आकषमक” के रूप र्ें भी ककया गया
िै।

श्रीर्दभागित परु ाण के िणमन अनस


ु ार कृष्ण जब बाल्यािथिा र्ें िे तब नन्दबाबा के घर
आिायम गगामिायम द्िारा उनका नार्करण संथकार िुआ िा। नार् रखते सर्य गगामिायमने
बताया कक, ‘यि पुत्र प्रत्येक युग र्ें अितार धारण करता िै। कभी इसका िणम श्िेत, कभी
लाल, कभी पीला िोता िै। पूिम के प्रत्येक युगों र्ें शरीर धारण करते िुए इसके तीन िणम िो
िुके िैं। इस बार कृष्णिणम का िुआ िै, अतः इसका नार् कृष्ण िोगा।‘ िसुदेि का पुत्र िोने
के कारण उनको ‘िासुदेि’ किा जाता िै। “कृष्ण” नार् के अनतररमत भी उन्िें कई अन्य नार्ों
से जाना जाता रिा िै, जो उनकी कई विशेषताओं को दशामते िैं। सबसे व्यापक नार्ों र्ें
र्ोिन, गोविन्द, र्ाधि, और गोपाल प्रर्ुख िैं।

चित्रण
कृष्ण भारतीय संथकृनत र्ें कई विधाओं का प्रनतननचधत्ि करते िैं। उनका चित्रण आर्तौर पर
विष्णु जैसे कृष्ण , काले या नीले रं ग की त्ििा के साि ककया जाता िै। िालांकक, प्रािीन
और र्ध्ययुगीन लशलालेख ,भारत और दक्षक्षणपूिम एलशया दोनों र्ें , और पत्िर की र्ूनतमयों र्ें
उन्िें प्राकृनतक रं ग र्ें चित्रत्रत ककया िै, स्जससे िि बनी िै। कुछ ग्रंिों र्ें, उनकी त्ििा को
काव्य रूप से जांबुल ( जार्न
ू , बैंगनी रं ग का फल) के रं ग के रूप र्ें िर्णमत ककया गया िै।

कृष्ण को अमसर र्ोर-पंख िाले पुष्प या र्ुकुट पिनकर चित्रत्रत ककया जाता िै, और अमसर
बांसुरी (भारतीय बांसुरी) बजाते िुए उनका चित्रण िुआ िै। इस रूप र्ें, आर् तौर पर त्रत्रभन्ग
र्ुद्रा र्ें दस
ू रे के सार्ने एक पैर को दस
ु रे पैर पर डाले चित्रत्रत िै। कभी-कभी िि गाय या
बछडा के साि िोते िै, जो िरिािे गोविंद के प्रतीक को दशामती िै।

अन्य चित्रण र्ें, िे र्िाकाव्य र्िाभारत के यद्


ु ध के दृश्यों का एक हिथसा िै। ििा उन्िें एक
सारिी के रूप र्ें हदखाया जाता िै, विषेश रूप से जब िि पांडि राजकुर्ार अजन
मु को
संबोचधत कर रिे िैं, जो प्रतीकात्र्क रूप से हिंद ू धर्म का एक ग्रंि,भगिद् गीता को सन
ु ाते
िैं। इन लोकवप्रय चित्रणों र्ें, कृष्ण कभी पि प्रदशमक के रूप र्ें सार्ने र्ें प्रकट िोते िैं, या
तो दरू दृष्टा के रूप र्ें, कभी रि के िालक के रूप र्ें।

कृष्ण के िैकस्ल्पक चित्रण र्ें उन्िें एक बालक (बाल कृष्ण) के रूप र्ें हदखाते िैं, एक बच्िा
अपने िािों और घुटनों पर रें गते िुए ,नत्ृ य करते िुए , सािी लर्त्र ग्िाल बाल को िुराकर
र्मखन दे ते िुए (र्मखन िोर), लड्डू को अपने िाि र्ें लेकर िलते िुए (लड्डू गोपाल)
अििा प्रलय के सर्य बरगद के पत्ते पर तैरते िुए एक आलौककक लशशु जो अपने पैर की
अंगुली को िूसता प्रतीत िोता िै। (ऋवष र्ाकं डेय द्िारा वििरर्णत ब्रह्र्ांड विघटन) कृष्ण की
प्रनतर्ा र्ें क्षेत्रीय विविधताएं उनके विलभन्न रूपों र्ें दे खी जाती िैं, जैसे ओडडशा र्ें
जगन्नाि, र्िाराष्र र्ें विट्ठल या विठोबा। , राजथिान र्ें श्रीनाि जी, गुजरात र्ें
द्िारकाधीश और केरल र्ें गुरुिायरुप्पन अन्य चित्रणों र्ें उन्िें राधा के साि हदखाया जाता िै
जो राधा और कृष्ण के हदव्य प्रेर् का प्रतीक र्ाना जाता िै। उन्िें कुरुक्षेत्र यद्
ु ध र्ें विश्िरूप
र्ें भी हदखाया जाता िै स्जसर्ें उनके कई र्ुख िैं और सभी लोग उनके र्ुख र्ें जा रिे िैं।
अपने लर्त्र सुदार्ा के साि भी उनको हदखाया जाता िै जो लर्त्रता का प्रतीक िै।

िाथतक
ु ला र्ें कृष्ण चिह्नों एिं र्ूनतमयों के ललए हदशाननदे शों का िणमन र्ध्यकालीन युग र्ें
हिन्द ू र्ंहदर कलाओं जैसे िैखानस अगर् , विष्णु धर्ोत्तर परु ाण, बि
ृ त संहिता और अस्ग्न
परु ाण र्ें िर्णमत िै। इसी तरि, र्ध्यकालीन यग
ु के शरु
ु आती तलर्ल ग्रंिों र्ें कृष्ण और
रुस्मर्णी की र्ूनतमयां भी सस्म्र्ललत िैं। इन हदशाननदेशों के अनुसार बनाई गई कई र्ूनतमयां
सरकारी संग्रिालय,िेन्नई के संग्रि र्ें िैं।
१७५५ के आसपास, भारतीय चित्रकार द्िारा बनाया गया चित्र

ऐनतिालसक और साहिस्त्यक स्रोत


एक व्यस्मतत्ि के रूप र्ें कृष्ण का विथतत
ृ वििरण सबसे पिले र्िाकाव्य र्िाभारत र्ें
ललखा गया िै , स्जसर्ें कृष्ण को विष्णु के अितार के रूप र्ें दशामया गया िै। र्िाकाव्य की
र्ुख्य किाननयों र्ें से कई कृष्ण केंद्रीय िैं श्री भगित गीता का ननर्ामण करने िाले र्िाकाव्य
के छठे पिम ( भीष्र् पिम ) के अठारििे अध्याय र्ें युद्ध के र्ैदान र्ें अजुमन की ज्ञान दे ते
िैं। र्िाभारत के बाद के पररलशष्ट र्ें िररिंश र्ें कृष्ण के बिपन और यि
ु ािथिा का एक
विथतत
ृ संथकरण िै।

भारतीय-यूनानी र्ुद्रण

१८० ईसा पूिम लगभग इंडो-ग्रीक राजा एगैिोकल्स ने दे िताओं की छवियों पर आधाररत कुछ
लसमके जारी ककये िे। भारत र्ें अब उन लसमको को िैष्णि दशमन से संबंचधत र्ाना जाता िै।
लसमकों पर प्रदलशमत दे िताओं को विष्णु के अितार बलरार् – संकषमण के रूप र्ें दे खा जाता िै
स्जसर्ें गदा और िल और िासद
ु े ि-कृष्ण , शंख और सुदशमन िक्र दशामये िुए िैं।

प्रािीन संथकृत िैयाकरण पतंजलल ने अपने र्िाभाष्य र्ें भारतीय ग्रंिों के देिता कृष्ण और
उनके सियोचगयों के कई संदभों का उल्लेख ककया िै। पार्णनी की श्लोक ३.१.२६ पर अपनी
हटप्पणी र्ें, िि कंसिध अििा कंस की ित्या का भी प्रयोग करते िैं, जो कक कृष्ण से
सम्बस्न्धत ककं िदं नतयों का एक र्ित्िपूणम अंग िै।
िेलीडडयोोरस थतंभ और अन्य लशलालेख

र्ध्य भारतीय राजयर्ध्य प्रदे श र्ें औपननिेलशक काल के पुरातत्िविदों ने एक ब्राह्र्ी ललवप
र्ें ललखे लशलालेख के साि एक थतंभ की खोज की िी। आधुननक तकनीकों का उपयोग करते
िुए, इसे १२५ और १०० ईसा पूिम के बीि का घोवषत ककया गया िै और ये ननष्कषम ननकाला
गया की यि एक इंडो-ग्रीक प्रनतननचध द्िारा एक क्षेत्रीय भारतीय राजा के ललए बनिाया गया
िा जो ग्रीक राजा एंहटलालसडास के एक राजदत
ू के रूप र्ें उनका प्रनतननचध िा। इसी इंडो-
ग्रीक के नार् अब इसे िे लेडडयोोरस थतंभ के रूप र्ें जाना जाता िै। इसका लशलालेख
“िासद
ु े ि” के ललए सर्पमण िै जो भारतीय परं परा र्ें कृष्ण का दस
ू रा नार् िै। कई विद्िानों
का र्त िै की इसर्ें “िासद
ु े ि” नार्क दे िता का उल्लेख िैं, मयोंकक इस लशलालेख र्ें किा
गया िै कक यि “ भागित िे ललयोडोरस” द्िारा बनाया गया िा और यि “ गरुड थतंभ” (दोनों
विष्णु-कृष्ण-संबंचधत शब्द िैं)। इसके अनतररमत, लशलालेख के एक अध्याय र्ें कृष्ण से
संबंचधत कविता भी शालर्ल िै र्िाभारत के अद्याय ११.७ का सन्दभम दे ते िुए बताया गया िै
कक अर्रता और थिगम का राथता सिी ढं ग से तीन गुणों का जीिन जीना िै: थि- संयर् (
दर्ः ), उदारता ( त्याग ) और सतकम ता ( अप्रार्दाि )।

िे ललयोडोरस लशलालेख एकर्ात्र प्रर्ाण निीं िै। तीन िािीबाडा लशलालेख और एक घोसूंडी
लशलालेख,जो की राजथिान राजय र्ें स्थित िैं और आधुननक कायमप्रणाली के अनुसार स्जनका
सर्यकाल १९िी सदी ईसा पि
ू म िै उनर्े भी कृष्ण का उल्लेख ककया गया िै। पिली सदी ईसा
पि
ू म , संकषमण (कृष्ण का एक नार् ) और िासद
ु े ि का उल्लेख करते िुए, उनकी पज
ू ा के ललए
एक संरिना का ननर्ामण ककया गया िा। ये िार लशलालेख प्रािीनतर् ज्ञात संथकृत लशलालेखों
र्ें से एक िैं।

कई पुराणों र्ें कृष्ण की जीिन किा को बताया या कुछ इस पर प्रकाश डाला गया िै । दो
पुराण, भागित परु ाण और विष्णु पुराण र्ें कृष्ण की किानी की सबसे विथतत
ृ जानकारी िै
, लेककन इन और अन्य ग्रंिों र्ें कृष्ण की जीिन किाएं अलग-अलग िैं और इसर्ें
र्ित्िपूणम असंगनतयां िैं। भागित पुराण र्ें बारि पथ
ु तकें उप-विभास्जत िैं स्जनर्ें ३३२
अध्याय, संथकरण के आधार पर १६,००० और १८,००० छं दो के बीि संचित िै। पाठ की
दसिीं पथ
ु तक, स्जसर्ें लगभग ४००० छं द (~ २५ %) शालर्ल िैं और कृष्ण के बारे र्ें
ककं िदं नतयों को सर्वपमत िै, इस पाठ का सबसे लोकवप्रय और व्यापक रूप से अध्ययन ककया
जाने िाला अध्याय िै।

जीिन और ककिदं नतयां


अितरण एिं र्िाप्रयाण

कृष्ण का जन्र् भाद्रपद र्ास र्ें कृष्ण पक्ष र्ें अष्टर्ी नतचि, रोहिणी नक्षत्र के हदन रात्री के
१२ बजे िुआ िा । कृष्ण का जन्र्हदन जन्र्ाष्टर्ी के नार् से भारत, नेपाल, अर्ेररका
सहित विश्िभर र्ें र्नाया जाता िै। कृष्ण का जन्र् र्िरु ा के कारागार र्ें िुआ िा। िे र्ाता
दे िकी और वपता िासद
ु े ि की ८िीं संतान िे। श्रीर्द भागित के िणमन अनुसार द्िापरयुग र्ें
भोजिंशी राजा उग्रसेन र्िरु ा र्ें राज करते िे। उनका एक आततायी पुत्र कंस िा और उनकी
एक बिन देिकी िी। दे िकी का वििाि िसुदेि के साि िुआ िा। कंस ने अपने वपता को
कारगर र्ें डाल हदया और थियं र्िरु ा का राजा बन गया। कंस की र्त्ृ यु उनके भानजे,
दे िकी के ८िे संतान के िािों िोनी िी। कंस ने अपनी बिन और बिनोई को भी र्िुरा के
कारगर र्ें कैद कर हदया और एक के बाद एक दे िकी की सभी संतानों को र्ार हदया। कृष्ण
का जन्र् आधी रात को िुआ तब कारागि
ृ के द्िार थितः िी खुल गए और सभी लसपािी
ननंद्रा र्ें िे। िासद
ु े ि के िािो र्ें लगी बेडडया भी खल
ु गई।गोकुल के ननिासी नन्द की पत्नी
यशोदा को भी संतान का जन्र् िोने िाला िा। िासद
ु े ि अपने पत्र
ु को सप
ू र्ें रखकर कारागि

से ननकल पडे ।

कई भारतीय ग्रंिों र्ें किा गया िै कक पौरार्णक कुरुक्षेत्र युद्ध (र्िाभारत के यद्
ु ध ) र्ें
गांधारी के सभी सौ पत्र
ु ों की र्त्ृ यु िो जाती िै। दय
ु ोधन की र्त्ृ यु से पिले रात को, कृष्णा ने
गांधारी को उनकी संिेदना प्रेवषत की िी । गांधारी कृष्ण पर आरोप लगाती िै की कृष्ण ने
जानबूझ कर यद्
ु ध को सर्ाप्त निीं ककया, क्रोध और दःु ख र्ें उन्िें श्राप दे ती िैं कक उनके
अपने “यद ु राजिंश” र्ें िर व्यस्मत उनके साि िी नष्ट िो जाएगा। र्िाभारत के अनुसार,
यादि के बीि एक त्यौिार र्ें एक लडाई की शुरुिात िो जाती िै, स्जसर्े सब एक-दस
ू रे की
ित्या करते िैं।कुछ हदनों बाद एक िक्ष
ृ के नीिे नींद र्ें सो रिे कृष्ण को एक हिरण सर्झ
कर , जरा नार्क लशकारी तीर र्ारता िै जो उन्िें घातक रूप से घायल करता िै कृष्णा जरा
को क्षर्ा करते िै और दे ि त्याग दे ते िैं। गुजरात र्ें भालका की तीिमयात्रा ( तीिम ) थिल
उस थिान को दशामता िै जिां कृष्ण ने अपना अितार सर्ाप्त ककया तिा िापस िैकुण्ठ को
गए । यि दे िोतसगम के नार् से भी जाना जाता िै। भागित पुराण , अध्याय ३१ र्ें किा
गया िै कक उनकी र्त्ृ यु के बाद, कृष्ण अपने योचगक एकाग्रता की िजि से सीधे िैकुण्ठ र्ें
लौटे । ब्रह्र्ा औरइंद्र जैसे प्रतीक्षारत दे िताओं को भी कृष्ण को अपने र्ानि अितार छोडने
और िैकुण्ठ लौटने के ललए र्ागम का पता निीं लगा ।

बाल्यकाल और यि
ु ािथिा
कृष्ण ने दे िकी और उनके पनत, िंद्रिंशी क्षत्रत्रय िासद
ु े ि के यिां जन्र् ललया। देिकी का भाई
कंस नार्क दष्ु ट राजा िा । पौरार्णक उल्लेख के अनुसार दे िकी के वििाि र्ें कंस को
भविष्यद्िमताओं ने बताया कक दे िकी के पत्र
ु द्िारा उसका िध ननस्श्ित िै। कंस दे िकी के
सभी बच्िों को र्ारने की व्यिथिा करता िै। जब कृष्ण जन्र् लेते िैं, िासुदेि िुपके से लशशु
कृष्ण को यर्न
ु ा के पार ले जाते िै और एक अन्य लशशु बाललका के साि उनका आदान-
प्रदान करता िै। जब कंस इस निजात लशशु को र्ारने का प्रयास करता िै तब लशशु बाललका
हिंद ू दे िी दग
ु ाम के रूप र्ें प्रकट िोती िै, तिा उसे िेतािनी दे ते िुए कक उनकी र्त्ृ यु उसके
राजय र्ें आ गई िै, लोप िो जाती िै। परु ाणों र्ें ककं िदं नतयों के अनुसार ,कृष्ण, नंद और
उनकी पत्नी यशोदा के साि आधुननक काल के र्िरु ा के पास पालते बढ़ते िै िै। इन
पौरार्णक किाओं के अनुसार, कृष्ण के दो भाई-बिन भी रिते िैं,बलरार् और सुभद्रा । कृष्ण
के जन्र् का हदन [[कृष्ण जन्र्ाष्टर्ी[[ के रूप र्ें र्नाया जाता िै।

ियथकता

भागित पुराण कृष्ण की आठ पस्त्नयों का िणमन करता िै, जो इस अनुक्रर् र्ें( रुस्मर्णी ,
सत्यभार्ा, जार्िंती , काललंदी , लर्त्रिंद
ृ ा , नाग्नस्जती (स्जसे सत्य भी किा जाता िै),भद्रा
और लक्ष्र्णा (स्जसे र्द्रा भी किते िैं) प्रकट िोती िैं। डेननस िडसन के अनुसार, यि एक
रूपक िै, आठों पस्त्नयां उनके अलग पिलू को दशामती िैं। जॉजम विललयम्स के अनुसार, िैष्णि
ग्रंिों र्ें कृष्ण की पस्त्नयों के रूप र्ें सभी गोवपयों का उल्लेख िै, लेककन यि सभी भस्मत
एिं आध्यास्त्र्क सम्बन्ध का प्रतीक िै। और प्रत्येक के ललए कृष्ण पण
ू म श्रद्धेय िै। उनकी
पत्नी को कभी-कभी रोहिणी , राधा , रुस्मर्णी, थिार्ीननजी या अन्य किा जाता िै। कृष्ण-
संबंधी हिंद ू परं पराओं र्ें, िि राधा के साि सबसे अचधक चित्रत्रत िोते िैं। उनकी सभी
पस्त्नयां को और उनके प्रेलर्का राधा को हिंद ू परं परा र्ें विष्णु की पत्नी दे िी लक्ष्र्ी के
अितार के रूप र्ें र्ाना जाता िै। गोवपयों को राधा के कई रूप और अलभव्यस्मतयों के रूप र्ें
र्ाना जाता िै।

कुरुक्षेत्र का र्िाभारत युद्ध


र्िाभारत के अनुसार, कृष्ण कुरुक्षेत्र यद्
ु ध के ललए अजुमन के सारिी बनते िैं, लेककन इस
शतम पर कक िि कोई भी िचियार निीं उठाएंगे।दोनों के युद्ध के र्ैदान र्ें पिुंिने के बाद
और यि दे खते िुए कक दश्ु र्न उसके अपने पररिार के सदथय , उनके दादा, और उनके ििेरे
भाई और वप्रयजन िैं, अजमन
ु क्षोभ र्ें डूब जाते िैं और किते िै कक उनका ह्रदय उन्िें अपने
पररजनों से लडने और र्ारने की अनर्
ु नत निीं दे गा। िि राजय को त्यागने के ललए और
अपने गाण्डीि (अजुमन के धनष
ु ) को छोडने के ललए तत्पर िो जाते िै । कृष्ण तब उसे
जीिन, नैनतकता और नश्िरता की प्रकृनत के बारे र्ें ज्ञान दे ते िै। जब ककसी को अच्छे और
बुरे के बीि युद्ध का सार्ना करना पडता िै तब , पररस्थिनत की स्थिरता, आत्र्ा की
थिायीता और अच्छे बुरे का भेद ध्यान र्ें रखते िुए , कतमव्यों और स्जम्र्ेदाररयों को ननभाते
िुए , िाथतविक शांनत की प्रकृनत और आनंद और विलभन्न प्रकार के योगों को आनंद और
भीतर की र्ुस्मत के ललए ऐसा योध अननिायम िोता िै । कृष्ण और अजुमन के बीि बातिीत
को भगिद् गीता नार्क एक ग्रन्ि के रूप र्ें प्रथतुत ककया गया िै।

श्रीर्द भगिद्गीता

कुरु क्षेत्र की युद्धभूलर् र्ें श्रीकृष्ण ने अजन


ुम को जो उपदे श हदया िा िि श्रीर्द्भागित के
नार् से प्रलसद्ध िै। सभी हिन्द ू ग्रंिों र्ें, श्रीर्द भगित गीता को सबसे र्ित्िपूणम र्ाना
जाता िै। मयोंकक इसर्ें एक व्यस्मत के जीिन का सार िै और इसर्ें र्िाभारत काल से
द्िापर तक कृष्ण के सभी लीलाओ का िणमन िैं। ऐसी र्ान्यता िै की यि र्िवषम िेदव्यास
द्िारा रचित िै िालांकक, इसर्ें कोई प्रर्ाण निीं िै लेककन भगिद गीता एक पथ
ु तक िै जो
अजुमन और उनके सारिी श्री कृष्ण के बीि िातामलाप पर आधाररत िै। गीता र्ें सांख्य योग ,
कर्म योग, भस्मत योग, राजयोग, एक ईश्िरािाद आहद पर बिुत िी सद
ुं र तरीके से ििाम की
गई िै।

संथकरण और व्याख्याएं

कृष्ण की जीिन किा के कई संथकरण िैं, स्जनर्ें से तीन का सबसे अचधक अध्ययन ककया
गया िै: िररिंश , भागित परु ाण और विष्णु पुराण। ये सब र्ूल किानी को िी दशामते िै िैं
लेककन उनकी विशेषताओं, वििरण और शैललयों र्ें काफी लभन्नता िैं। सबसे र्ूल रिना,
िररिंश को एक यिािमिादी शैली र्ें बताया गया िै जो कृष्ण के जीिन को एक गरीब ग्िाले
के रूप र्ें बताता िै, लेककन काव्यात्र्क और अलौककक कल्पना से ओतप्रोत िै । यि कृष्ण
की अितार सर्ास्प्त के साि सर्ाप्त निीं िोती। कुछ वििरणों अनुसार विष्णु पुराण की
पांििीं पुथतक िररिंश के यिािमिाद से दरू िो जाती िै और कृष्ण को रिथयर्य शब्दों और
थतम्भों र्ें आिरण करती िै कई संथकरणों र्ें विष्णु परु ाण की पांडुललवपयां र्ौजद
ू िैं।
भागित पुराण की दसिीं और ग्यारििीं पुथतकों को व्यापक रूप से एक कविष्ठ कृनत र्ाना
जाता िै, जो कक कल्पना और रूपकों से भरा िुआ िै, िररिंश र्ें पाये जाने िाले जीिों के
यिािमिाद से कोई संबंध निीं िै। कृष्ण के जीिन को एक ब्रह्र्ांडीय नाटक ( लीला ) के रूप
र्ें प्रथतत
ु ककया गया िै, जिां उनके वपता धर्मगरू
ु नंद को एक राजा के रूप र्ें पेश ककया
गया िा। कृष्ण का जीिन िररिंश र्ें एक इंसान के करीब िै, लेककन भागित परु ाण र्ें एक
प्रतीकात्र्क ब्रह्र्ांड िै, जिां कृष्ण ब्रह्र्ांड के भीतर िै और इसके अलािा, साि िी ब्रह्र्ांड
िी िर्ेशा से िै और रिे गा । कई भारतीय भाषाओं र्ें भागित पुराण पांडुललवपयां कई
संथकरणों र्ें भी र्ौजूद िैं।

संभावित तितिय ां
कृ ष्ण क जन्म हर स ल जन्म ष्टमी के रूप में मन य ज ि है । मह भ रि और कुछ पुर णों में तकांवदांतियों के अनुस र घटन ओ ां के आध र पर यह कह
ज ि है तक कृ ष्ण एक व स्ितवक ऐतिह तसक व्यति िे। उद हरण के तलए, ल नव न्य वेंस नी कहिे हैं तक कृ ष्ण क पुर णों में ३२२७ ईस पूवव – ३१०२
ईस पूवव के बीच होने क अनुम न लग य ज सकि है । इसके तवपरीि, जैन परांपर में पौर तणक कि ओ ां के अनुस र कृ ष्ण नेतमन ि के चचेरे भ ई िे,
जो जैनों के २२ वें िीिंकर िे। ९वीं शि ब्दी से जैन परांपर में म नन है की नेतमन ि ८४,००० वर्व पहले पैद हुए। “ग य बेक” कहिी हैं तक कृ ष्ण –
च हे म नव हो य तदव्यअवि र – प्र चीन भ रि में व स्ितवक व्यति को दश वि है, जो कम से कम १००० ईस पूवव रहिे िे, लेतकन इस ऐतिह तसक
प्रम णों से , तवशद्ध
ु रूप से सस्ां कृ ि तसद्ध िां के अध्ययन से ,यह प्रतिस्ि तपि नहीं तकय ज सकि है।

लडु ो रोशेर और हज़र जैसे अन्य तवद्व नों क कहन है तक पुर ण “भ रिीय इतिह स” के तलए एक तवश्वसनीय स्रोि नहीं हैं, क्योंतक इसमें र ज ओ,ां
तवतभन्न लोगों, ऋतर्यों और र ज्यों के ब रे में तलखी गई प ांडुतलतपय ां में तवसांगतिय है। वे कहिे हैं तक ये कह तनय ां सांभविय व स्ितवक घटन ओ ां पर
आध ररि हैं, जो तक तवज्ञ न पर आध ररि हैं और कुछ भ गों में कल्पन द्व र सुशोतभि हैं। उद हरण के तलए मत्सस्य पुर ण में कह गय है तक कुमव पुर ण में
१८,००० छांद हैं, जबतक अतनन पुर ण में इसी प ठ में ८००० छांद हैं, और न रदीय यह पुतष्ट करिे है तक कुमव प ांडुतलतप में १७,००० छांद हैं। पुर तणक
स तहत्सय समय के स ि धीमी गति से बदल स ि ही स ि कई अध्य यों क अच नक तवलोपन और इसकी नई स मग्री के स ि प्रतिस्ि तपि तकय गय
है। विवम न में पररतणि पुर ण उन लोगों के उल्लेख से पूरी िरह अलग हैं जो ११वीं सदी, य १६वीं सदी से पहले मौजूद िे।। उद हरण के तलए, नेप ल में
ि ड़ पत्र प ांडुतलतप की खोज ८१० ईस्वी में हुई है , लेतकन वह पत्र ,पुर ने प ठ के सांस्करणों से बहुि अलग है जो दतिण एतशय में औपतनवेतशक युग के
ब द से पररच तलि हो रह है।

दशवन और धमवश स्त्र


तहदां ू ग्रिां ों में ध तमवक और द शवतनक तवच रों की एक तवस्िृि श्ृख
ां ल ,जो कृ ष्ण के म ध्यम से प्रस्ििु की ज िी है। र म नजु ,जो एक तहदां ू धमवतवज्ञ नी िे एवां
तजनके क म भति आांदोलन में अत्सयतधक प्रभ वश ली िे [60] , ने तवतशष्ट द्वैि के सांदभव में उन्हें प्रस्िुि तकय । म धवच यव, एक तहांदू द शवतनक तजन्होंने
वैष्णवव द के हररद स सप्रां द य की स्ि पन की , कृ ष्ण के उपदेशो को द्वैिव द (द्वैि) के रूप में प्रस्ििु तकय । गौतदय वैष्णव तवद्य लय के एक सिां जीव
गोस्व मी, कृ ष्ण धमवश स्त्र को भति योग और अतचांि भेद-अभेद के रूप में वतणवि करिे िे।धमवश स्त्री वल्भआच यव द्व र कृ ष्ण के तदए गए ज्ञ न को अद्वैि
(तजसे शुद्ध द्वैि भी कह ज ि है) के रूप में प्रस्िुि , जो वैष्णवव द के पुतष्ट पांि के सांस्ि पक िे । भ रि के एक अन्य द शवतनक मधुसूदन सरस्विी, कृ ष्ण
धमवश स्त्र को अद्वैि वेद िां में प्रस्िुि करिे िे, जबतक आतद शांकर च यव , जो तहांदू धमव में तवच रों के एकीकरण और मुख्य ध र ओ ां की स्ि पन के तलए
ज ने ज िे है, शुरुआिी आठवीं शि ब्दी में पांच यि पूज पर कृ ष्ण क उल्लेख तकय है ।
कृ ष्ण पर एक लोकतप्रय ग्रन्ि भ गवि पुर ण,असम में एक श स्त्र की िरह म न ज ि है, कृ ष्ण के तलए एक अद्वैि, स ांख्य और योग के रूपरेख क
सांश्लेर्ण करि है, लेतकन वह कृ ष्ण के प्रति प्रेमपूणव भति के म गव पर चलिे है। ब्र यांट भ गवि पुर ण में तवच रों के सांश्लेर्ण क इसप्रक र वणवन करिे है,

“ भागित का दशमन, सांख्य, तत्िर्ीर्ांसा और भस्मत योग जैसी िेदांत शब्दािली का


एक लर्श्रण िै। दसिीं ककताब ईश्िर की सबसे र्ानिीय रूप र्ें कृष्ण की लशक्षाओं को बढ़ािा
दे ती िै।”

—एडविन ब्रायंट, कृष्णा: ए सोसमबुक

शेररडन और वपंटिर्ैन दोनों ब्रायंट के वििारों की पुस्ष्ट करते िैं और किते िैं कक भगित र्ें
िर्णमत िेदांनतक वििार लभन्नता के साि गैर -द्िैतिादी िै। परंपरागत रूप से िेदांत ,
िाथतविकता र्ें एक दस
ू रे पर आधाररत िै और भागित यि भी प्रनतपाहदत करता िै कक
िाथतविकता एक दस
ू रे से जड
ु ी िुई िै और बिुर्ख
ु ी िै।

विलभन्न चियोलॉजीज और दशमन के अलािा ,सार्ान्यतः कृष्ण को हदव्य प्रेर् का सार और


प्रतीक के रूप र्ें प्रथतुत ककया गया िै, स्जसर्ें र्ानि जीिन और हदव्य का प्रनतत्रबंब िै।
कृष्ण और गोवपयों की भस्मत और प्रेर्पूणम ककं िदं नतयां और संिाद ,दाशमननक रूप से हदव्य
और अिम के ललए र्ानि इच्छा के रूपकों के सर्तुल्य र्ाना जाता िै और सािमभौलर्क शस्मत
और र्ानि आत्र्ा के बीि का सर्न्िय िै । कृष्ण की लीला प्रेर्-और आध्यात्र् का एक
धर्मशाथत्र िै। जॉन कोल्लेर के अनुसार, “र्ुस्मत के साधन के रूप र्ें प्रेर् को प्रथतुत निीं
ककया जाता िै, यि सिोच्ि जीिन िै”। र्ानि प्रेर् भगिान का प्रेर् िै। हिंद ू परं पराओं र्ें
अन्य ग्रंि ,स्जनर्ें भगिद गीता सस्म्र्ललत िैं ,ने कृष्ण के उपदे शो को कई भाष्य (हटप्पणी)
ललखने के ललए प्रेररत ककया िै।

प्रभाि
िैष्णििाद

कृष्ण की पूजा िैष्णििाद का हिथसा िै, जो हिंद ू धर्म की एक प्रर्ुख परंपरा िै। कृष्ण को
विष्णु का पूणम अितार र्ाना जाता िै, या विष्णु थियं अितररत िुए ऐसा र्ाना जाता िै।
िालांकक, कृष्ण और विष्णु के बीि का सटीक संबध
ं जहटल और विविध िै, कृष्ण के साि
कभी-कभी एक थितंत्र दे िता और सिोच्ि र्ाना जाता िै। िैष्णि विष्णु के कई अितारों को
थिीकार करते िैं, लेककन कृष्ण विशेष रूप से र्ित्िपूणम िैं। शब्द कृष्णर् और विष्णुिाद को
कभी-कभी दो र्ें भेद करने के ललए इथतेर्ाल ककया गया िै, स्जसका अिम िै कक कृष्णा
श्रेष्ठतर् सिोच्ि व्यस्मत िै।

सभी िैष्णि परं पराएं कृष्ण को विष्णु का आठिां अितार र्ानती िैं; अन्य लोग विष्णु के
साि कृष्ण की पििान करते िैं, जबकक गौदीया िैष्णििाद , िल्लभ संप्रदाय और ननम्बारका
संप्रदाय की परं पराओं र्ें कृष्ण को थिार्ी भगिान का र्ल
ू रूप या हिंद ू धर्म र्ें ब्राह्र्ण की
अिधारणा के रूप र्ें सम्र्ान करते िैं। जयदे ि अपने गीतगोविंद र्ें कृष्ण को सिोच्ि प्रभु
र्ानते िैं जबकक दस अितार उनके रूप िैं। थिार्ीनारायण संप्रदाय के संथिापक
थिार्ीनारायण ने भगिान के रूप र्ें कृष्ण की भी पज
ू ा की। “िि
ृ द कृष्णिाद” िैष्णििाद र्ें ,
िैसुललक काल के िासुदेि और िैहदक काल के कृष्ण और गोपाल को प्रर्ुख र्ानते िैं।
आजभारत के बािर भी कृष्ण को र्ानने िाले एिं अनुसरण एिं विश्िास करने िालो की बिुत
बडी संख्या िै।

प्रारं लभक परं पराएं

प्रभु श्रीकृष्ण-िासुदेि (“कृष्ण, िसुदेि के पुत्र”) ऐनतिालसक रूप से कृष्णिाद और िैष्णििाद र्ें
इष्ट दे ि के प्रारं लभक रूपों र्ें से एक िै। प्रािीन काल र्ें कृष्ण धर्म को प्रारं लभक इनतिास की
एक र्ित्िपूणम परं परा र्ाना जाता िै। इसके बाद, विलभन्न सर्ान परं पराओं का एकीकरण
िुआ इनर्ें प्रािीन भगितिाद , गोपाला का पंि, “कृष्ण गोविंदा” (गौपालक कृष्ण), बालकृष्ण
और “कृष्ण गोपीिलभा” (कृष्ण प्रेलर्का) सस्म्र्ललत िैं । आंद्रे कोटे र के अनुसार, िररिंश ने
कृष्ण के विलभन्न पिलओ
ु ं के रूप र्ें संश्लेषण र्ें योगदान हदया।

भस्मत परं परा

भस्मत परम्परा र्ें आथिा का प्रयोग ककसी भी देिता तक सीलर्त निीं िै। िालांकक, हिंद ू धर्म
के भीतर कृष्ण भस्मत , परं परा का एक र्ित्िपूणम और लोकवप्रय केंद्र रिा िै, विशेषकर
िैष्णि संप्रदायों र्ें । कृष्ण के भमतों ने लीला की अिधारणा को ब्रह्र्ांड के केंद्रीय लसद्धांत
के रूप र्ें र्ाना स्जसका अिम िै ‘हदव्य नाटक’। यि भस्मत योग का एक रूप िै, तीन प्रकार
के योगों र्ें से एक भगिान कृष्ण द्िारा भगिद गीता र्ें ििाम की िै।

भारतीय उपर्िाद्िीप

दक्षक्षण र्ें , खासकर र्िाराष्र र्ें , िारकरी संप्रदाय के संत कवियों जैसे ज्ञानेश्िर , नार्दे ि ,
जनाबाई , एकनाि और तक
ु ारार् ने विठोबा की पज
ू ा को प्रोत्साहित ककया।दक्षक्षणी भारत र्ें,
कनामटक के पुरंदरा दास और कनकदास ने उडुपी की कृष्ण की छवि के ललए सर्वपमत गीतों
का ननर्ामण ककया। गौडीय िैष्णििाद के रूपा गोथिार्ी ने भस्मत-रसार्त
ृ -लसंधु नार्क भस्मत
के व्यापक ग्रन्ि को संकललत ककया िै। दक्षक्षण भारत र्ें, श्री संप्रदाय के आिायम ने अपनी
कृनतयों र्ें कृष्ण के बारे र्ें बिुत कुछ ललखा िै, स्जनर्ें अंडाल द्िारा चिरुपािई और िेदांत
दे लसका द्िारा गोपाल विर्शती शालर्ल िैं । तलर्लनाडु, कनामटक, आंध्र प्रदे श और केरल के
राजयों र्ें कई प्रर्ुख कृष्ण र्ंहदर िैं और जन्र्ाष्टर्ी दक्षक्षण भारत र्ें व्यापक रूप से र्नाए
जाने िाले त्योिारों र्ें से एक िै।

एलशया के बािर

१९६५ तक कृष्ण-भस्मत आंदोलन भारत के बािर भमतिेदांत थिार्ी प्रभप


ु ाद (उनके गरु
ु ,
भस्मतलसद्धांत सरथिती ठाकुर द्िारा ननदे लशत )द्िारा फैलाया गया। अपनी र्ातभ
ृ लू र् पस्श्िर्
बंगाल से िे न्यूयॉकम शिर गए िे । एक साल बाद १९६६ र्ें, कई अनय
ु ानययों के साननध्य र्ें
उन्िोंने कृष्ण िेतना (इथकॉन) के ललए अंतरामष्रीय सोसायटी का ननर्ामण ककया िा, स्जसे िरे
कृष्ण आंदोलन के रूप र्ें जाना जाता िै। इस आंदोलन का उद्दे श्य अंग्रेजी र्ें कृष्ण के बारे
र्ें ललखना िा और संत िैतन्य र्िाप्रभु की लशक्षाओं को फैलाने का कायम करना िा तिा
कृष्ण भस्मत के द्िारा पस्श्िर्ी दनु नया के लोगों के साि गौद्द्य िैष्णि दशमन को साझा
करना िा। िैतन्य र्िाप्रभु की आत्र्किा र्ें िर्णमत जब उन्िें गया र्ें दीक्षा दी गई िी तो
उन्िें काली-संताराण उपननषद के छि शब्द की कविता ,ज्ञान थिरुप बताई गई िी, जो की
“िरे कृष्ण िरे कृष्ण, कृष्ण कृष्णा िरे िरे , िरे रार् िरे रार्, रार् रार् िरे िरे “ िी । गौडीय
परं परा र्ें कृष्ण भस्मत के संदभम ने यि र्िार्ंत्र या र्िान र्ंत्र िै। इसका जप िरर-नार्
संिररत के रूप र्ें जाना जाता िा।

र्िा-र्ंत्र ने बीटल्स रॉक बैंड के जॉजम िैररसन और जॉन लेनन का ध्यान आकवषमत ककया और
िैररसन ने १९६९ को लंदन स्थित राधा कृष्ण र्ंहदर र्ें भमतों के साि र्ंत्र की ररकॉडडंग की।
“ िरे कृष्ण र्ंत्र “ शीषमक से, यि गीत त्रब्रटे न के संगीत सूिी पर शीषम बीस तक पिुंि गया
और यि पस्श्िर् जर्मनी और िेकोथलोिाककया र्ें भी अत्यचधक लोकवप्रय रिा। उपननषद के
र्ंत्र ने भस्मतिेदांत और कृष्ण को पस्श्िर् र्ें इथकॉन वििारों को लाने र्ें र्दद की। इथकॉन
ने पस्श्िर् र्ें कई कृष्ण र्ंहदर बनाए, साि िी दक्षक्षण अफ्रीका जैसे अन्य थिानों र्ें भी
र्ंहदरो का ननर्ामण ककया।

दक्षक्षण पि
ू म एलशया
कृष्ण दक्षक्षणपूिम एलशयाई इनतिास और कला र्ें पाए जाते िैं, लेककन उनका लशि , दग
ु ाम ,
नंदी ,अगथत्य और बुद्ध की तुलना र्ें बिुत कर् उल्लेख िै ।जािा , इंडोनेलशया र्ें
पुरातास्त्िक थिलों के र्ंहदरों ( कैं डी ) र्ें उनके गांि के जीिन या प्रेर्ी के रूप र्ें उनकी
भलू र्का का चित्रण निीं िै और न िी जािा के ऐनतिालसक हिंद ू ग्रंिों र्ें इसका उल्लेख िै।
इसके बजाए, उनका बाल्य काल अििा एक राजा और अजन
मु के सािी के रूप र्ें उनके
जीिन को अचधक उल्लेर्खत ककया गया िै।

कृष्ण की कलाओं को , योगकाताम के ननकट सबसे विथतत


ृ र्ंहदर , प्रम्बनन हिंद ू र्ंहदर
पररसर र्ें ,कृष्णायण र्ंहदरो की एक श्रंख
ृ ला के रूप र्ें उकेरा गया िै। ये ९िी शताब्दी ईथिी
के िै । कृष्ण 14 िीं शताब्दी ईथिी के र्ाध्य से जािा सांथकृनतक और धालर्मक परम्पराओं
का हिथसा बने रिे । पनातरान के अिशेषों के अनुसार पूिम जािा र्ें हिंद ू भगिान रार् के साि
इनके र्ंहदर प्रिलन र्ें िे और तब तक रिे जबतक की इथलार् ने द्िीप पर बौद्ध धर्म और
हिंद ू धर्म की जगि ली।

वियतनार् और कंबोडडया की र्ध्यकालीन युग र्ें कृष्ण कला की विशेषता िै। सबसे पिले
जीिंत र्ूनतमयों और अिशेष ६ िीं और ७ िीं शताब्दी ईथिी के प्राप्त िुए िैं , इन र्ें
िैष्णििाद प्रनतर्ा का सर्ािेश िै। जॉन गाइ , एलशयाई कलाओं के ननदे शक,के अनस
ु ार
र्ेरोपोललटन म्यस्ू ़ियर् ऑफ साउि ईथट एलशया र्ें , दानंग र्ें ६ िी / ७ िी शताब्दी ईथिी
के वियतनार् के कृष्ण गोिधमन कला और ७ िीं शताब्दी के कंबोडडया, अंगकोर ‘बोरी र्ें
फ्नॉर् दा’ गुफा र्ें, इस युग के सबसे पररष्कृत र्ंहदर िैं।

सूयम और विष्णु के साि कृष्ण की प्रनतर्ाओं को िाईलैंड र्ें भी पाया गया िै , सी-िेप र्ें
बडी संख्या र्ें र्ूनतमयां और चिह्न पाए गए िैं। उत्तरी िाइलैंड के फीटबन
ु क्षेत्र र्ें चिप और
कलाग्ने थिलों पर , फनान और झेंला काल के पुरातास्त्िक थिलों से, ये ७ िीं और ८ िीं
शताब्दी के अिशेष पाए गए िैं ।

प्रदशमन कला
भारतीय नत्ृ य और संगीत चिएटर प्रािीन ग्रंिो जैसे िेद और नाट्यशाथत्र ग्रंिों को अपना
आधार र्ानते िैं । हिंद ू ग्रंिों र्ें पौरार्णक किाओं और ककं िदं नतयों से प्रेररत कई
नत्ृ यनाहटकाओं को और िलचित्रों को , स्जसर्ें कृष्ण-संबंचधत साहित्य जैसे िररिंश और
भागित पुराण शालर्ल िैं ,अलभनीत ककया गया िै ।

कृष्ण की किाननयों ने भारतीय चियेटर, संगीत, और नत्ृ य के इनतिास र्ें र्ित्िपूणम भूलर्का
ननभाई िै, विशेष रूप से रासलीला की परं परा के र्ाध्यर् से। ये कृष्ण के बिपन,
ककशोरािथिा और ियथकता के नाटकीय कायम िैं। एक आर् दृश्य र्ें कृष्ण को रासलीला र्ें
बांसरु ी बजाते हदखाया जाता िैं, जो केिल कुछ गोवपयों को सन
ु ाई दे ती िै तिा जो
धर्मशास्थत्रक रूप से हदव्य िाणी का प्रनतननचधत्ि करती िै स्जसे र्ात्र कुछ प्रबुद्ध प्रार्णयों
द्िारा सन
ु ा जा सकता िै। कुछ पाठ की ककं िदं नतयों ने गीत गोविंद र्ें प्रेर् और त्याग जैसे
र्ाध्यलर्क कला साहित्य को प्रेररत ककया िै।

भागित पुराण जैसे कृष्ण-संबंधी साहित्य, प्रदशमन के ललए इसके आध्यास्त्र्क र्ित्ि को
र्ानते िैं और उन्िें धालर्मक अनुष्ठान के रूप र्ें र्ानते िैं तिा प्रनतहदन जीिन को
आध्यास्त्र्क अिम के साि जोडते िैं। इस प्रकार एक अच्छा, ईर्ानदार / सत्यननष्ठा और
सुखी जीिन व्यतीत करने का पि प्रदलशमत करते िैं। इसी तरि, कृष्ण द्िारा प्रेररत प्रदशमन
का उद्देश्य विश्िासयोग्य अलभनेताओं और श्रोताओं के हृदय को शुद्ध करना िै। कृष्ण लीला
के ककसी भी हिथसे का गायन, नत्ृ य और प्रदशमन, पाठ र्ें धर्म को याद करने का एक कायम
िै। यि पराभस्मत (सिोच्ि भस्मत) के रूप र्ें िै। ककसी भी सर्य और ककसी भी कला र्ें
कृष्ण को याद करने के ललए, उनकी लशक्षा पर दे ते िुए, उनकी सुन्दर और हदव्य पूजा की
जाती िै।

विशेषकर किक , ओडडसी , र्र्णपुरी ,कुिीपुडी और भरतनाट्यर् जैसे शाथत्रीय नत्ृ य शैललयां
उनके कृष्ण-संबंधी प्रदशमनों के ललए जाने जाते िैं। कृष्णाट्टर् ( कृष्णट्टर् ) ने अपने र्ूल
को कृष्ण पौरार्णक किाओं के साि रखा िै और यि किकली नार्क एक अन्य प्रर्ुख
शाथत्रीय भारतीय नत्ृ य रूप से जुडा िुआ िै। ब्रायंट, भागित पुराण र्ें कृष्ण किाननयों के
प्रभाि का सारांश दे ता िै, “ संभितः ककसी भी अन्य पाठ की तुलना र्ें संथकृत साहित्य के
इनतिास र्ें ,रार्ायण के अपिाद के साि ,इतने अचधक व्यत्ु पन्न साहित्य, कविता, नाटक,
नत्ृ य, चियेटर और कला को प्रेररत निीं ककया। ।
अन्य धर्म
जैन धर्म

जैन धर्म की परं परा र्ें ६३ शलाकपुरुषों की सूिी िै, स्जनर्े िौबीस तीिंकर (आध्यास्त्र्क
लशक्षक) और त्रत्रदे ि के नौ सर्ीकरण शालर्ल िैं। इनर्ें से एक सर्ीकरण र्ें कृष्ण को
िासद
ु े ि के रूप र्ें, बलरार् को बलदेि के रूप र्ें, और जरासंध को प्रनत -िासद
ु े ि के रूप र्ें
दशामया जाता िै। जैन िक्रीय सर्य के प्रत्येक यग
ु र्ें बडे भाई के साि िासद
ु े ि का जन्र्
िुआ िै, स्जसे बलदे ि किा जाता िै। तीनों के बीि, बलदे ि ने ,जैन धर्म का एक केंद्रीय
वििार, अहिंसा के लसद्धांत को बरकरार रखा िै। खलनायक प्रनत -िासद
ु े ि िै, जो विश्ि को
नष्ट करने का प्रयास करता िै। विश्ि को बिाने के ललए, िासुदेि-कृष्ण को अहिंसा लसद्धांत
को त्यागना और प्रनत -िासुदेि को र्ारना पडता िै। इन तीनों की किाननयां, स्जनसेना के
िररिंश पुराण (र्िाभारत के एक शीषमक से भ्रलर्त िो )(८ िीं शताब्दी ईथिी ) र्ें पढ़ी जा
सकती िै एिं िे र्िंद्र की त्रत्रशस्मत-शलाकापुरुष -िररत र्ें भी इनका उल्लेख िै।

विर्लसुरी को िररिंश पुराण के जैन संथकरण का लेखक र्ाना जाता िै, लेककन ऐसी कोई
पांडुललवप निीं लर्ली िै जो इसकी पुस्ष्ट करती िै। यि संभािना िै कक बाद र्ें जैन विद्िानों,
शायद 8 िीं शताब्दी के स्जनसेना ने , जैन परं परा र्ें कृष्ण ककं िदं नतयों का एक परू ा
संथकरण ललखा और उन्िें प्रािीन विर्लसरु ी र्ें जर्ा ककया। कृष्ण की किानी के आंलशक
और पुराने संथकरण जैन साहित्य र्ें उपलब्ध िैं, जैसे कक श्िेताम्बर अगर् परंपरा के अंतगत
दसाओ र्ें ये िर्णमत िै।

अन्य जैन ग्रंिों र्ें, कृष्ण को बाइसिे तीिंकर, नेलर्नाि के ििेरे भाई किा जाता िै। जैन
ग्रंिों र्ें किा गया िै कक नेलर्नाि ने कृष्ण को सिम ज्ञान लसखाया िा स्जसने बाद र्ें भगिद
गीता र्ें अजन
ुम को हदया िा। जेफरी डी लांग के अनस
ु ार, कृष्ण और नेलर्नाि के बीि यि
संबंध एक ऐसा ऐनतिालसक कारण िै स्जस कारण जैननयो को भगिद् गीता को एक
आध्यास्त्र्क रूप से र्ित्िपूणम पाठ के रूप र्ें थिीकार, पढ़ना, और उद्धत
ृ करना पडा तिा
कृष्ण- संबंचधत त्योिारों और हिंदओ
ू ं को आध्यास्त्र्क ििेरे भाई के रूप र्ें थिीकार करना
पडा ।

बौद्ध
धर्मकृष्ण की किानी बौद्ध धर्म की जातक किाननयों र्ें लर्लती िै। विदरु पंडडत जातक र्ें
र्धुरा (संथकृत: र्िुरा) का उल्लेख िै, घट जातक र्ें कंस , दे िभग ( दे िकी), उपसागरा या
िासुदेि, गोिधन (गोिधमन), बलदे ि (बलरार्) और कान्िा या केसि ( कृष्ण, केशि ) का
उल्लेख िै

लसख धर्म

कृष्ण को िौबीस अितार र्ें कृष्ण अितार के रूप र्ें िर्णमत ककया गया िै, जो परंपरागत
रूप से और ऐनतिालसक रूप से गुरु गोत्रबंद लसंि को सर्वपमत दशर् ग्रंि िै।

बिाई पंि

बिाई पंचिओं का र्ानना िै कक कृष्ण “ ईश्िर के अितार “ या भविष्यद्िमताओं र्ें से एक


िै स्जन्िोंने धीरे -धीरे र्ानिता को पररपमि बनाने िे तु भगिान की लशक्षा को प्रकट ककया िै।
इस तरि, कृष्ण का थिान इब्रािीर् , र्ूसा , जोरोथटर , बुद्ध , र्ुिम्र्द ,यीशु , बाब , और
बिाई विश्िास के संथिापक बिाउल्लाि के साि साझा करते िैं।

अिर्हदया

अिर्हदया , एक आधुननक युग का पंि िै , कृष्ण को उनके र्ान्य प्रािीन प्रितमकों र्ें से
एक र्ाना जाता िै। अिर्दी खद
ु को र्ुसलर्ान र्ानते िैं, लेककन िे र्ुख्यधारा के सुन्नी और
लशया र्ुसलर्ानों द्िारा इथलार् धर्म के रूप र्ें खाररज करते िैं, स्जन्िोंने कृष्ण को अपने
भविष्यद्िमता के रूप र्ें र्ान्यता निीं दी िै।

गुलार् अिर्द ने किा कक िि थियं कृष्ण, यीशु और र्ुिम्र्द जैसे भविष्यद्िमताओं की


तरि एक भविष्यिमता िे, जो धरती पर धर्म और नैनतकता के उत्तराद्मध पन
ु रुद्धार के रूप
र्ें आए िे।

अन्य

कृष्ण की पूजा या सम्र्ान को १९ िीं के बाद से कई नए धालर्मक आंदोलनों द्िारा अपनाया


गया िै। उदािरण के ललए, एडिडम शरू े , कृष्ण को एक र्िान प्रितमक र्ानते िै, जबकक
चियोसोकफथट कृष्ण को र्ैत्रेय ( प्रािीन बद्
ु ध के गरु
ु ओ र्ें से एक) के अितार के रूप र्ें
र्ानते िैं, जो बुद्ध के सबसे र्ित्िपूणम आध्यास्त्र्क गुरु िै।
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