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दोहावली
सं. राघव ‘रघु’
अपनी बात
िह दु क पिव ंथ ‘रामच रतमानस’ क गो वामी रचियता तुलसीदास को उ र भारत क घर-घर म वही स मान
ा ह, जो भगवा ीराम को ा ह। राम क अन य भ ने उनका पूरा जीवन राममय कर िदया था। हालाँिक
उनका आरिभक जीवन बड़ा क पूण बीता, अ पायु म माता क िनधन ने उ ह अनाथ कर िदया। उ ह िभ ाटन करक
जीवन-यापन करना पड़ा। धीर-धीर वे भगवा राम क भ क ओर आक ए। हनुमानजी क कपा से उ ह राम-
ल मण क सा ा दशन का सौभा य ा आ। इसक बाद उ ह ने ‘रामच रतमानस’ क रचना आरभ क । उ ह
ा ण वग का कोपभाजन भी बनना पड़ा; लेिकन अंत म भगवा राम क क‘ पा ि से उनक िवरोिधय को मुँह क
खानी पड़ी और समाज म उ ह मान-स मान िमलने लगा। इतनी कठोर थित म भी इतनी महा रचना का सृजन
सचमुच दैवी आशीवाद ही कहा जा सकता ह।
इसक बाद राम, सीता और हनुमान क तुित- व प उ ह ने अनेक ंथ क रचना क , जैसे—‘रामलला नहछ’,
इसम ीराम क य ोपवीत का वणन ह। इसका रचनाकाल सं. १६१६ िव. माना जाता ह; ‘जानक मंगल’, इसम नाम क
अनुकल सीताजी क िववाह का वणन ह; ‘पावती मंगल’, इसम पावतीजी क िववाह का वणन ह। इनक अलावा
‘गीतावली’, ‘िवनयपि का’, ‘क ण गीतावली’, ‘सतसई दोहावली’, ‘हनुमान बा क’ आिद उनक िस रचनाएँ ह।
लेिकन िजस ंथ ने उ ह लोकि य बनाया, वह रामच रतमानस ही ह। यह वही िस ंथ ह िजसका पारायण
सम त भारत म करोड़ लोग करते ह। इसम रामकथा बड़ ही सुंदर एवं मौिलक ढग से कही गई ह, िजसम एक
पा रवा रक जीवन का आदश उप थत करते ए अ या म क महा त व क िववेचना क गई ह। ‘रामच रतमानस’ क
लोकि यता का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता ह िक उ र भारत क म य े से उ प यह कथा भारतवािसय
को ही नह , अिपतु दुिनया भर क लोग को िकसी-न-िकसी प म े रत करती आ रही ह।
यह पु तक उ ह तुलसी को समिपत ह, जो अपनी रचना ारा हमारा मागदशन करते ह, हम सामािजक व
आ या मक प से े बनने क िश ा देत े ह। जो रचनाएँ उ ह ने िनजी क -िनवारणाथ िलख , आज वे सावजिनक
क -िनवारण का मा यम और वंदनीय ह। यह लोक-िव ास एवं जन-आ था ही ह िक उनक रचना म लोग अपना
भौितक, लौिकक व आ या मक क याण न कवल देखते ह, ब क पाते भी ह।
1
अमर रामभ तुलसीदास
जीवन प रचय
भा रतीय समाज और सं कित क उ ारक गो वामी तुलसीदास का ज म उ र देश क बाँदा िजले क राजापुर नामक
ाम म संव 1554 म आ था। उनक ज म क बार म यह दोहा चिलत ह—
पं ह सौ चौवन िवषै, कािलंदी क तीर।
सावन शु स मी, तुलसी धरउ शरीर॥
माता-िपता
ा ण वण म सरयूपारीण ा ण का उ थान ह। इसी वंश म आ माराम दूब े ए, िजनका समाज म िति त
थान था। तुलसी इ ह क सुपु थे। इनक माता का नाम लसी था। कहते ह, इनका ज म बारह महीने तक माता क
गभ म रहने क प ा आ। माता लसी तुलसी क परम भ थ । तुलसी क पूजा क फल व प उ प उस बालक
का नाम उ ह ने ‘तुलसी’ रख िदया। ज म क समय इनक मुँह से ‘राम’ श द का उ ारण आ और उस समय इनक
मुँह म ब ीस दाँत मौजूद थे।
िशशु का डील-डौल भी आम िशशु से हटकर था। वे पाँच साल क बालक क समान लगते थे। यह देखकर ा ण
दंपती िकसी अिन क आशंका से भयभीत हो गए। कई बुरी क पनाएँ उ ह यिथत करने लग । कई योितिषय ने
सलाह दी िक ब े को थोड़ िदन क िलए कह बाहर िभजवा द। अंत म वही िकया गया। ज म क तीन िदन बाद दसव
ितिथ को नवजात िशशु को ा ण दंपती ने अपनी दासी चुिनया क साथ उसक ससुराल भेज िदया और उसक अगले
िदन ही, िजस अिन क आशंका वे कर रह थे, वह आ गया। तुलसी क माता लसी का वगवास हो गया। लेिकन
दासी चुिनया ने बालक तुलसी को माँ का अभाव खलने नह िदया। उसने बड़ लाड़- यार से उनक परव रश क ।
लेिकन भगवा को यह भी अिधक िदन मंजूर नह आ। कहते ह न, कदन बनने क िलए कड़ी अ न परी ा से गुजरना
पड़ता ह, बालक तुलसी क साथ भी यह सब हो रहा था। जब वे साढ़ पाँच साल क ए, तभी चुिनया भी चल बसी।
अब तुलसी अनाथ हो गए। वे जीवन-यापन क िलए घर-घर जाकर िभ ाटन करने लगे। कहते ह िक भगवती पावती को
उनक यह हालत देखकर तरस आ गया और वे ा णी का वेश रखकर ितिदन उनक पास आकर उ ह भोजन
करवाने लग । इस कार तुलसी का पालन-पोषण होने लगा।
बचपन
बाद म भगवा शंकर क ेरणा से नरहयानंदजी ने तुलसी को अपना िश य बनाया और चूँिक ज म क समय उ ह ने
‘राम’ श द का उ ारण िकया था, अत: उनका नाम ‘रामबोला’ रख िदया।
‘रामबोला’ को कछ समय बाद वे अयो या ले गए। वह संव 1561 क माघ शु ा पंचमी शु वार को उनका
य ोपवीत सं कार करवाया गया।
िश ा
बालक रामबोला क बु ब त तेज थी। एक िदन उ ह ने जब िबना िसखाए ही गाय ी मं का उ ारण िकया तो गु
नरहयानंद और उनक अ य िश य अचंिभत रह गए। गु जी ने उ ह राममं क दी ा दी और उ ह बड़ चाव से
िव ा ययन कराने लगे। रामबोला एक बार सुनकर ही गु जी क सारी बात कठ थ कर लेत े थे। गु जी उनसे ब त
स रहते थे।
कछ समय अयो या म िबताकर गु िश य सोर (शूकर े ) प चे। यहाँ नरह रजी ने रामबोला को भगवा राम क
कथा सुनाई। यहाँ से वे काशी आ गए। काशी म रहकर शेष सनातनजी महाराज क सा य म रामबोला ने पं ह वष
तक वेद का अ ययन िकया। िश ा पूरी होने पर वे वापस अपने पैतृक घर लौट तो ात आ िक उनक िपता का
वगवास हो गया ह। उ ह ने उनका ा आिद िकया और वह रहकर लोग को रामकथा सुनाने लगे।
िववाह
तुलसी क रामकथा वाचन शैली इतनी भावशाली और रसपूण थी िक ज दी ही चार ओर उनक याित फल गई।
लोग दूर-दूर से उनक कथा सुनने आने लगे। इ ह म एक थे पं. दीनबंध।ु वे भी तुलसी क रामकथा वाचन शैली से
बेहद भािवत थे और एक िदन इसी भावावेश म उ ह ने अपनी बारह वष या पु ी र नावली से उनका िववाह कर िदया।
यह िववाह संव 1583 क ये शु ा योदशी, गु वार को संप आ।
िववाह क बाद नव-दंपती का वैवािहक जीवन मजे से गुजरने लगा। कहते ह िक तुलसी अपनी प नी से बेहद ेम करते
थे। एक िदन र नावली को उनका भाई मायक ले गया तो आस म डबे तुलसी भी पीछ-पीछ ससुराल प च गए। उ ह
वहाँ देखकर र नावली ल ा से गड़ गई और उ ह िध ारते ए बोल , ‘‘ह वामी! तुम मेर हाड़-मांस क शरीर म
इतना अनुराग रखते हो, इतना यिद अपने आरा य भगवा म रखते तो तु हारा क याण हो जाता।’’
हाड़ मांस को देह मम, तापर िजतनी ीित।
ितसु अधो जो राम ित, अविस िमिटिह भवभीित॥
ये श द तुलसी को ममाहत कर गए। उनक ने म ढ़ता क चमक उ प हो गई और वे उलट पैर वहाँ से लौट गए।
वैरा य
प नी क श द ने उनक आँख खोल दी थ । अब उ ह ने अपने आरा य को पाने का िन य कर िलया। उ ह ने घर-बार
याग िदया और साधु वेश धारण करक तीथाटन करने लगे। याग होते ए वे काशी प चे। वहाँ से जग ाथ, रामे र
तथा बदरीनारायण क पैदल या ा करते ए मानसरोवर प चे। यहाँ उनक भट काक-भुशुंडी से ई। ये एक ा ण थे,
जो लोमश ऋिष क शाप से कौआ हो गए थे। यह रामचं जी क बड़ भ थे। इ ह ने ‘भुशुंडी रामायण’ क रचना भी
क ह। तुलसी और भुशुंडीजी म बड़ िदन तक राम-चचा होती रही। इसी कार तीथाटन करते ए तुलसी काशी लौट
आए। यहाँ रहकर वे रामकथा कहने लगे। यहाँ उनक भट एक रामभ ेत से ई। उ ह ने ेत से भगवा राम क दशन
क इ छा जािहर क । ेत ने उ ह हनुमानजी का पता बताया िक वे राम-दशन म उनक सहायता कर सकते ह।
तुलसी क रचनाएँ
तुलसीदासजी ने अनेक कालजयी रचना का सृजन िकया ह, िजनम मुख ह—रामच रतमानस, हनुमान चालीसा,
िवनय पि का, किवतावली, दोहावली इ यािद।
कछ अ य मुख रचनाएँ ह—
1. पावती मंगल, 2. गीतावली, 3. रामलला नहछ, 4. रामा ा न, 5. वैरा य संदीपनी, 6. जानक मंगल, 7. बरवै
रामायण, 8. सतसई, 9. राम शलाका, 10. ीक ण गीतावली, 11. कडिलया रामायण, 12. छदावली रामायण, 13.
किव रामायण, 14. छ पय रामायण, 15. रोला रामायण, 16. झूलना, 17. किलधमाधम िन पण, 18. संकट मोचन,
19. हनुमान बा क, 20. रामनाम मिण, 21. कोष मंजूषा और 22. रामा ा आिद।
अंितम समय
तुलसीदासजी क जीवन क सां य वेला ब त क पूण बीती। एकाएक उनक दोन बाँह म पक फोड़ जैसी पीड़ा होने
लगी थी। इसी दौरान उ ह ने ‘हनुमान बा क’ क रचना क , िजसम उ ह ने वयं कहा ह—
पायपीर पेटपीर बाँहपीर मुँह पीर;
जजर सकल सरीर पीर भई ह।
देव, भूत, िपतर, करम, खल, काल ह;
मोिह पर दव र दमानक-सी दई ह॥
इस कार, अपने 126 वष क जीवनकाल का अिधकांश समय गो वामी तुलसीदासजी ने काशी म राम-का य-सृजन म
यतीत िकया और संव 1680 ावण शु ा स मी, शिनवार को अपना पंच भौितक शरीर यागकर मो पा िलया।
संव सोलह सौ असी, असी गंग क तीर।
ावण शु ा स मी, तुलसी त यो शरीर॥
आज तुलसी हमार बीच नह ह, लेिकन उनक कालजयी रचनाएँ— रामच रतमानस और हनुमान चालीसा आिद हमारा
सतत आ या मक मागदशन कर रही ह और सृि रहते यह िसलिसला जारी रहगा।
2
चम कार और सं मरण
अकबर क बंदी
अ पनी रामकथा वाचन प ित और रचना से तुलसीदासजी क याित दूर-दूर तक फलने लगी थी। यदा-कदा राम
नाम क सहार वे चम कार भी कर बैठते थे। उ ह महिष वा मीिक का अवतार भी कहा जाता था। इस सब बात से
भािवत होकर एक बार स ा अकबर ने उ ह अपने दरबार म आमंि त िकया।
आवभगत क बाद अकबर ने उनसे कोई चम कार िदखाने को कहा, लेिकन तुलसी ने ऐसा करने से इनकार कर िदया;
य िक यह उनक वभाव और आदत क िवपरीत था।
तुलसी ने स ा का म नह माना तो उसने उ ह बंदी बनाकर कदखाने म डलवा िदया। कछ समय बाद ही अकबर
को खबर िमली िक उसक राजमहल और रा य म बंदर का भीषण उप व शु हो गया ह। अनेक उपाय करने पर भी
जब यह उप व नह का तो स ा क कछ मंि य ने उसे बताया िक तुलसीदास रामजी क भ और हनुमानजी क
सखा-समान ह। यह बंदर सेना हनुमानजी क आ ा से ही उप व मचा रही ह य िक हमने तुलसीदासजी को अकारण
ही बंदी बना िलया ह।
बात अकबर क समझ म आ गई और उसने मन मारकर तुलसीदासजी को मु कर िदया।
★★★
मीरा क पाती तुलसी क नाम
ीक ण क अन य भ मीराबाई तुलसीदासजी क समकालीन थ । वे तुलसी से बेहद भािवत थ । जब उनक भ
माग म प रजन तरह-तरह क अवरोध खड़ करने लगे तो उ ह ने एक प िलखकर तुलसीदासजी से दी ा दान करने
का अनुरोध िकया था। तब ‘िवनयपि का’ क एक प म इसका जवाब देते ए उ ह ने कहा था िक जैसे ाद ने
अपने िपता िहर यकिशपु का, िवभीषण ने अपने बंध-ु बांधव का और भरत ने अपनी माता का याग कर िदया था, उसी
कार भ -माग क सभी अवरोधक का प र याग कर देना चािहए।
★★★
ेत का वरदान
िच कट म तुलसीदासजी बड़ सवेर उठकर दूर गंगा पार शौच क िलए जाते थे। लौटते समय लोट म बचा पानी वे एक
पेड़ क जड़ म डाल देते थे। यह िसलिसला कई िदन तक चला। उस पेड़ पर एक ेत रहता था। िन य पानी िमलने से
वह ेत संतु होकर तुलसी क सामने कट हो गया और उनसे वर माँगने को कहा।
तुलसी तो अपने इ ीराम कदशन करना चाहते थे। वर म उ ह ने यही इ छा कट क । ेत ने उ ह एक मंिदर का
पता बताते ए कहा िक वहाँ िन य रामकथा होती ह, िजसे सुनने किलए एक कोढ़ी क वेश म हनुमानजी सबसे पहले
आते ह और सबसे बाद म जाते ह। वे उ ह राम से िमला सकते ह।
तुलसी एक भी पल क देरी िकए बगैर उस मंिदर म प चे और कोढ़ी-वेश म हनुमानजी क पैर पकड़कर अपनी इ छा
जािहर कर दी।
तुलसी क अन य भ से हनुमानजी पसीज गए। उ ह ने राम-दशन क यु बता दी, िजसक फल व प िच कट क
घाट पर तुलसी को अपने इ देव क दशन ए।
★★★
घर का ा ण बैल बराबर
एक बार गो वामी तुलसीदासजी काशी म िव ान क म य बैठकर भगव -चचा कर रह थे िक दो देहाती कौतूहलवश
वहाँ आ गए। वे दोन गो वामीजी क ही ाम क थे और गंगा- ान करने काशी गए थे। दोन ने तुलसीदासजी को
पहचाना और उनम से एक देहाती दूसर से बोला, ‘‘अर भैया, यह तुलिसया अपने संग खेला करता था। आज ितलक
लगा िलया तो इसक काफ पूछताछ हो रही ह।’’ दूसर ने भी हामी भरते ए कहा, ‘‘हाँ भैया, यह तो प ा ब िपया
ह। कसा ढ ग कर रहा ह!’’
तुलसीदासजी ने उ ह देखा तो वे उनक पास चले आए। तब उनम से एक बोला, ‘‘अर तुलिसया, तूने यह या भेस बना
रखा ह? तू सबको धोखे म डाल सकता ह, पर हम लोग तेर धोखे म नह आएँगे।’’
तुलसीदासजी उन दोन क गँवारपन पर मन-ही-मन मुसकरा उठ और उनक मुँह से यह दोहा िनकला—
तुलसी वहाँ न जाइए, ज मभूिम क ठाम।
गुण-अवगुण ची ह नह , लेत पुरानो नाम॥
उ ह ने जब दोन को इस दोह का अथ समझाया, तब कह उ ह िव ास आ िक ‘तुलिसया’ तो महा मा बन गया ह।
★★★
राम स रस कोउ नाह
एक बार गो वामी तुलसीदास संत नाभादास से स संग करने वृंदावन गए। तब उ ह यह देख बड़ा दु:ख आ िक य -
त क ण का ही भजन-पूजन हो रहा ह और उनक आरा य देव रामचं जी का नाम कह सुनाई ही नह दे रहा ह। तब
उनक मुख से ये श द फट पड़—
राधा-क ण सबै कह, आक ठाक अ कर।
तुलसी का ज म कहा, िसयाराम स बैर॥
उनक मन-मंिदर म तो भु रामचं क ही मन-मोहक मूित िवराजमान थी, अत: वे जब गोपाल मंिदर प चे और वहाँ भी
जब उ ह क णािनधान राम क मूित न िदखाई दी, तो उ ह ने संक प िकया िक जब तक राघव क मूित िदखाई नह
देगी, वे अपना माथा नह नवाएँग े और आँख बंद कर उ ह ने िन न दोहा कहा—
कहाँ-कहाँ छिब आप क , भले बने हो नाथ।
तुलसी म तक तब नवै, धनुष-बाण लो हाथ॥
और दीनदयालु ीक ण को उनक संक प क आगे झुकना पड़ा। उ ह ने य ही आँख खोल , सामने रघुकल-ितलक
ीराम क ितमा िदखाई दी और तब उ ह ने दंडव णाम िकया।
महारा किव मोरोपंत (मयूर किव) ने ‘ककाविल’ म उपयु घटना का इस कार वणन िकया ह—
ीक णमूित जेण कली, ीराममूित स न हो।
रामसुत मयूर हणे याचा सुयशामृतांत म न हो॥
★★★
राम-ही-राम
एक बार गो वामी तुलसीदासजी राि को कह से लौट रह थे िक सामने से कछ चोर आते िदखाई िदए। चोर ने
तुलसीदासजी से पूछा, ‘‘कौन हो तुम?’’
उ र िमला, ‘‘भाई, जो तुम, सो म।’’
चोर ने उ ह भी चोर समझा। बोले, ‘‘मालूम होता ह, नए िनकले हो। हमारा साथ दो।’’
चोर ने एक घर म सध लगाई और तुलसीदासजी से कहा, ‘‘यह बाहर खड़ रहो। अगर कोई िदखाई दे तो हम खबर
कर देना।’’
चोर अंदर गए ही थे िक गोसाईजी ने अपनी झोली म से शंख िनकाला और उसे बजाना चालू िकया।
चोर ने आवाज सुनी तो डर गए और बाहर आकर देखा तो तुलसीदासजी क हाथ म शंख िदखाई िदया। उ ह ख चकर
वे एक ओर ले गए और पूछा, ‘‘शंख य बजाया था?’’
‘ ‘आपने ही तो बताया था िक जब कोई िदखाई दे तो खबर कर देना। मने अपने चार तरफ देखा तो मुझे
भु रामचं जी
िदखाई िदए। मने सोचा िक आप लोग को उ ह ने चोरी करते देख िलया ह और चोरी करना पाप ह, इसिलए वे ज र
दंड दगे, इसिलए आप लोग को सावधान करना उिचत समझा।’’
ी राम क ज म क उपरांत क थित का वणन करते ए तुलसीदास कहते ह िक अयो या क घर-घर म मंगल
मनाया जा रहा ह, शुभ शकन हो रह ह। सभी नर-नारी हिषत होकर अपने-अपने काय कर रह ह। घर, आँगन, बाजार
तथा गिलय को सुंदर ढग से सजा िदया गया ह। चँवर, पताका, मंडप, तोरण, कलश और दीपावली से सजी ऐ य एवं
वैभवता से यु अयो या इ पुरी क समान लग रही ह। देवगण नाचते-गाते ए पु प क वषा कर रह ह तथा राजा
दशरथ क वैभवता क शंसा कर रह ह। राम क छठी होने क कारण आज क राि अ यंत सुंदर और मंगलमय ह।
चार राजकमार इस कार सुशोिभत ह मानो िवधाता ने चार सुंदर मूितयाँ रचकर पूजा क िलए दशरथ को स प दी ह ।
दशरथ का महल सुख और आनंद म डबा आ ह। गु वर महिष विस ने सेवक और सुजान मंि य को लौिकक
और वैिदक िनयम का आदेश दे िदया ह। अत: वे सभी समय को साधने अथा तं -मं का योग करने क िलए तैयार
ह। पूजा क साम ी तथा दानािद क व तुएँ एक ओर सजाकर रखी ई ह। गु जन, ऋिष, मुिन, देवगण, सेवक—राजा
दशरथ ने सभी को उनक यो यता क अनुसार काय स प िदए ह। वे भी तुलसीदास क भाँित ीराम क ेम म डबे ए
सम त काय कर रह ह। अिणमािद िस याँ, शारदा और पावतीजी उन बालक का लालन-पालन कर रही ह।
महाल मी और पावती को आज वह सुख िमल गया ह, जो उ ह सार ज म म नह िमला था। लोकपाल अपने लोक क
बात भूलकर इस आनंदमय उ सव को भाव-िवभोर होकर देख रह ह। तुलसीदास कहते ह िक ऐसा तीत होता ह मानो
तीन ताप से तपे ए लोक को छठी क प म भु क छाया ा हो गई ह।
राम-िससु गोद महामोद भर दसरथ,
कौिसला ललिक लषनलाल लये ह।
भरत सुिम ा लये, ककयी स ुसमन,
तन ेम-पुलक मगन मन भये ह॥
मेढ़ी लटकन मिन-कनक-रिचत, बाल-
भूषन बनाइ आछ अंग-अंग ठये ह।
चािह चुचुका र चूिम लालत लावत उर
तैस े फल पावत जैसे सुबीज बये ह॥
घन-ओट िबबुध िबलोिक बरषत फल
अनुकल बचन कहत नेह नये ह।
ऐसे िपतु, मातु, पूत, ि य, प रजन िबिध
जािनयत आयु भ र येई िनरमये ह॥