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रंगीला रसल


(हजरत मौहम्मद का वास्तववक “पववत्र” जीवन चररत्र)

लेखक
स्व० पं० चमपू वत एम०ए०

प्रकाशक
शहीदे आज़म महाशय राजपाल
(लाहौर)

रंगीला रसल
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प्रकाशक :—

शहीदे आज़म महाशय राजपाल


(लाहौर)

मूल्य : 15.00

वितरक :–
“मौहम्मद रफ़ी”
तरकारी मण्डी, पो० बाक्स - ४२०
वदल्ली - ६

नोट-–
स्वाविकार प्रकाशक के पास सरु वित है ।

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“समर्पण”

उस महान योद्धा, साहसी, ववद्वान् को यह कृ वत


समवपित है वजसने ससं ार के मानव मात्र को "हजरत महु म्मद
साहब" के वास्तववक जीवन चररत्र को प्रकावशत करा कर सही
वदग्दशिन कराया तथा वजसके वनवमत्त स्वयं छुरा खाकर शहीद हो
गये, ऐसी उस पण्ु यात्मा को मेरा अवं तम वन्दन है ।

लेखक :–
“चमूर्वत एम०ए०”

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प्रस्तािना
प्रस्ततु पस्ु तक में लेखक ने हजरत मौहम्मद साहब के
जीवन को पच्चीस वर्ि के बाद से आरम्भ वकया है, उससे
पहले का कोई वर्िन नहीं-वदया गया, अत: पाठकों की
जानकारी के वलए संिेप में जन्म से पच्चीस वर्ि तक के
जीवनसे पररवचत कराना मैं अपना पावन कत्तिव्य समझता ह।ूँ
हजरत मौहम्मद के वपता का नाम अब्दल्ु लाह था,
जो अब्दल ु मत्तु ावलब के बेटे थे, आप कुरै श खानदान से
ताल्लक़ु रखते थे, जो अरब का एक प्रमख ु वंश था तथा तमाम
वश ं जों में अपना प्रम ख
ु स्थान रखता था, आपका जन्म १२
रबीउल , वदन सोमवार (११ नवम्बर) सन् ५६९ ई० को मक्के
में हुआ । आपके वावलद (वपता) अब्दल्ु लाह आपके जन्म से
पवू ि ही परलोक वसिार गये थे । अतः आपका आरवम्भक
पालन पोर्र् आपके दादा अब्दल ु मत्तु ावलब द्वारा हुआ, उनके
मरने के बाद (तब आपकी उम्र मात्र आठ वर्ि की थी) आपके
चचा हजरत अबू तावलब ने आपकी देखभाल की ।
आपकी माता हजरत अमीना ने अपना दिू वपला
कर बडा वकया परन्तु वहां के ररवाज के अनसु ार कुछ समय के
वलए वहां के नजदीक के गांव में शारीररक व बौवद्धक उन्नवत
के वलए एक मवहला वजसका नाम हलीमा सावदया था, के
सावनध्य में भेज वदया । गांव से ,लौटने पर थोडे समय बाद ही
आपकी माता का देहान्त हो गया । अब सारी वजम्मेवारी
आपके चचा क॑ ऊपर आ गयी चचा का व्यापार था, आपको
भी अपने व्यापार में लगा वलया,तथा बक़ररयां चराने का कायि

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वदया गया । इसी तरह बकररयां चराते-चराते समय बीत गया
और आपने जवानी में कदम रक्खा, आपको खदु ा ने गजब का
हुस्न, बांका शरीर, शद्ध ु हृदय व वदल में ईमानदारी बख्शी,
आपका सारा जीवन गरीबी और संघर्ि में ही बीता, मां का
साया भी बचपन में हो उठ गया था । बाप का प्यार क्या होता
है? इसका तो कभी अनभु व ही नहीं हुआ ।
पच्चीसवें वर्ि में एक िनी बेवा मवहला खदु ीजा जो
उस समय चालीस वर्ि की थी, को आख ं हजरत से लड गयी
और यह भी वदल दे बैठे, इनकी भी पच्चीस साल बाद ही
लाटरी सी खल ु ी थी, वजस प्यार के वलए बेचारे पच्चीस साल
तक तरसते रहे, वह सारा प्यार जो पत्नी और मां दोनों के रूप
में साझं ा प्राप्त हुआ, इससे बडा और सौभाग्य क्या हो सकता
था ? उस समय तो अगर खदु ीजा की आयु साठ वर्ि भी होती
तो भी हजरत उसका प्रस्ताव न ठुकराते ।
अब आप आगे महु म्मद साहब के पववत्र? जीवन
चररत्र को ध्यान पवू िक पव़िये और उनके जीवन से लाभ
उठाइये । क्योंवक ऐसा वशिाप्रद जीवन वृत्त मवु ककल से ही
वकसी खदु ा के पैगम्बर का वमलेगा, वजस पर चल कर जन्नत
ही जन्नत है । वजसमें प्रत्येक बात को सप्रमार् ही उद्धतृ वकया
गया है, वजसे सभी सन्ु नी मसु लमान भाई प्रमार्. रूप में मानते
हैं, अगर आप इसको दोजख़ का मागि समझते हैं तो आज ही
वदये गये ईमान को वावपस ले सकते हैं, क्योंवक वबना
वास्तववकता जाने वकसी का मरु ीद हो जाना स्वाभाववक
है ।

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इस परू े जीवन चररत्र को वबनां वकसी भेद भाव के
सप्रमार् वलखा गया है । वजससे साफ पता चलता है वक वजस
सम्प्रदाय की बवु नयाद रखने जाले ही स्वयं इतने पववत्र रहे हों
वक वजनकी वमशाल इवतहास में अन्यत्र कहीं देखनेको नहीं
वमलती ! तो उनके उपदेश व वसद्धान्त वकतने वशिाप्रद वसद्ध
होगों ? पाठक स्वयं ववचार करें ।
ववतरक :–
“मौहम्मद रफी”


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।।ओ३म।् ।
र्ैगम्बर की तारीफ़
चमन में होने दो बलु बलु को फ़ूल के सदके ।
मैं तो जाऊूँ अपने "रंगीले रसल
ू " के सदके ।।

सदा बहार सजीला रसल ू है मेरा,


हों लाखपीर रसीला रसल ू है मेरा ।
ज़हे जमाल छबीला रसल ू है मेरा,
रे हीने इकक रंगीला रसलू है मेरा ।।

चमन में, होने दो बल


ु बलु को फूल के सदके ।
मैं तो जाऊं अपने “रंगीले रसल
ू ” के सदके ।।

वकसी की वबगडी बनाना है ब्याह कर, लेंगे,


बझु ा वचराग जलाना है ब्याह कर लेंगे ।
वकसी का रूप सहु ाना है ब्याह कर लेंगे,
वकसी के पास खजाना है ब्याह कर लेंगे ।।

चमन में होने दो बल


ु बल
ु को फूल के सदके ।
मैं तो जाऊं अपने “रंगीले रसल
ू ” के सदके ।।

“चमपू वत एम०ए०”

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“वबवस्मल्लाविरपिमावनरपरिीम”
खानेदार (गृिस्थ) र्ैगम्बर
महु म्मद की अज़मत इसमें है वक वह खानेदार गृहस्थ
पैगम्बर है, मसु लमान भाई महु म्मद की इस खसु खवू सयत को
बडे अवभमान के साथ पेश करते हैं, वक देखो जो बात दसू रे
पैगम्बरों में नहीं है वह महु म्मद में है, यही महु म्मद की फ़जीलत
(तारीफ़) है । यह बात मेरे वदल में लगती है ।
“दयानन्द” बाल ब्रह्मचारी हैं, वह देवता है, मैं
मामल ू ी मन ष्ु य उसके ब्रह्मचयि को कहाूँ पहुचूँ ?ू
“मिात्मा बुद्ध” ने शादी की, मगर घर से वनकल
गया, यवु ावस्था में औरत ओर बच्चों को अके ला छोडकर
सािु बन गया, मझु े न उस साितु ा की चाह है,.और न उसे
अवख्तयार करने का हौसला है । “ईसा” ने घर बार के बसाने
का कोई काम ही नहीं वकया ।
“मुिम्मद” ने शादी की, नहीं ! नहीं!! बवल्क शावदयों
की हर तरह की औरतों से शावदयाूँ की, बेवा से, कंु वारी से
बवु िया से, जवान से, हाूँ ! हाूँ !! एक नवयवु ती से
भी, शादी की । हर वकस्म की शादी का रंग देखा, उसके भले
बरु े को प़िा ही नहीं बवल्क उसने उसे आज़माया भी तथा
परखा भी। “महु म्मद” एक अनभु वी पैगम्बर है । उसके इलहाम
की बवु नयाद उसका तजरु बा है, तजरु बा भी ऐसा कडुवा वक
अलअमान, महु म्मद ने उसे मीठा घटंू समझ कर पी वलया,
वकस वलए ? वसफ़ि सबक फायदे के ' वलए और दसू रों को

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नसीहत देने के वलए । महु म्मद की वजन्दगी वशिाप्रद है,
उपदेशों से भरी हुई, और इबादतों से भरपरू , वाकई महु म्मद
“पथ प्रदशिक” हैं। मैं खानेदार! मेरा पैगम्बर खानेदार वह मेरा
गरू
ु और मैं उसका चेला । उपवनर्दों में वलखा है गरुु जनों के
अच्छे गर्ु ों को ग्रहर् करो और बरु ी बातों को छोड दो । इसी
नज़ररये से हम आज घरबार वाले, रंगीले, छबीले, रसीले,
रसल ू की वजन्दगी की बाबत खानेदारी (गृहस्थाश्रम) पर एक
रसीली वनगाह डालना चाहते हैं । महु म्मदी तथा गैर महु म्मदी
सब इसको प़िने में शरीक हो सकते: हैं क्योंवक “महु म्मद” तो
महु म्मवदयों और गैरमहु म्मवदयों अथाित् दोनों का हैं ।

“बह्म
ृ चारी” मिु म्मद

महु म्मद की पहली शादी २५ साल की उमर में हुई यहाूँ तो


आयि समावजयों को भी मानना होगा, वक महु म्मद ने शास्त्र के
मतु ावबक वजन्दगी का पवहला वहस्सा कंु वारे रहकर गजु ारा,
महु म्भद ब्रह्मचारी था, ओर उसका हक था वक वह शादी करें ।
हम सबं से पहले एक नज़र महु म्मद की उसी (ब्रह्मचयि)
अवस्था पर डालना चाहते हैं, क्योंवक दवु नयां में ऐसे बदबदु ार
वदमाग वाले भी लोग हैं जो नाहक भलेमानसों की आदतों पर
तथा उनके कमोंपर और उनके कथनपर शक (सन्देह) करते हैं।

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हम महु म्मद को ब्रह्मचारी मानते हैं क्योंवक उसने इस बारे में
अपनी शहादत आप दे रखी है, एक मक ु ाम पर आप कहते हैं
वक एक रात मैं एक कुरै शी लडके के साथ वमलकर रे वड (भेड
आवद) चरा रहा था, मैंने उस लडके से कहा वक अगर तू रे वड
की पास बानी (वनगाह बानी) करे तो मैं जाऊूँ ? और वजस
काम में नौजवान लोग रात गजु ारते हैं मैं भी गजु ार आऊूँ ।
यह कहकर महु म्मद मक्का चला गया । मगर यहाूँ एक शादी
की दाबत ने उसकी तवज्जह (ध्यान) अपनी तरफ खींच ली
और उसको नींद आ गई । एक और रात वह वफर इसी इरादे से
मक्का पहुचूँ ा । मगर स्वगीय प्रलोभनों ने उसके वदल को
अपने काबू में कर वलया और उसे सोते – सोते सबु ह हो गई ।
महु म्मद कहता है वक इन दो वाक़यात के बाद मेरा वदल बरु ाई
को तरफ नहीं ब़िा ।

“ियात मिु म्मदी म्योरसािब कृत”

हमें महु म्मद के कौल (कथन) पर ववश्वास है, क्योंवक उसे


हमामीन कहा गया है । हम मानते हैं वक, उसका वदल गनु ाह के
नतीजे से बचा हुआ था । दो ही दफे उसे शैतान ने बरगलाया
अथाित् पथ भ्रष्ट वकया मगर ईश्वरीय प्रेरर्ा ही इसमें मददगार
वसद्ध हुई और हमारा “रंगीला रसलू ”! इस गमु राही के गड्िे से
बाल-2 बच गया । उसने अमलन् अथाित् शारीररक
रूप से गनु ाह नहीं वकया । महु म्मद पर्ू ि -

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ब्रह्मचारी था, उसने २५ साल तक की उमर तक शादी नहीं की
और अपनी जवानी के उमगों के झकोंरों से बचता रहा ।
माई खुदीजा
हम खदु ीजा को “माई खदु ीजा” ही कहेंगे, क्योंवक उसकी ऊम्र
चालीस वर्ि की थी जब वह महु म्मद के मकान (अन्तःपरु ) में
आई, बवल्क अगर सच्ची बात वलखी जाए तो यों कवहये वक
महु म्मद खदु उसके घर में गये थे। महु म्मद पच्चीस साल के थे।
शकल और सरू त में खबू -सरू त थे, नेकआदत थे, शरीफ़घराने
के ही नहीं बवल्क शरीफ़ वठकाने के भी थे ।
परन्तु खदु ीजा बेवा (वविवा) थी,वह कुरै शी यानी
महु म्मदकी जावत वबरादरीकी थी, उसके दो पवत मर चक ु े थे,
वह बाल बच्चे वाली थी परन्तु महु म्मद और उसकी उम्र का
यह मक ु ाबला था, वक खदु ीजा के पास दौलत थी, जब
सौदागरोंके झण्ु ड गैरमल्ु कों में जाते थे, तो यह भी अपने एजेण्ट
रवाना करती थी । खदु ा बरकत देता था, वतजारत (व्यापार) में
सवाया, ड्यो़िा मनु ाफ़ा होता था । सारा मक्का उसे जानता
था, शावदयों की दरख्वास्तें भी कई बांके वदलचलों ने दी थी,
मगर वह अपनी दौलत और हालत पर सन्तष्टु थी, व्यथिमें वह
दवु नयाूँ का झंझट अपने वसरपर मोल नहीं लेना चाहती थी ।
एक साल उसने महु म्मद को एजेन्ट बनाकर
व्यापाररयों के झण्ु ड के साथ भेजा, बह आमीन था, औसत से
ज्यादा लाभ उठाया । मकान की छत पर बैठी खदु ीजा देख रही
थी वक सामने से एक शतु रु सवार आता हुआ मालमू हुआ ।

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वह कौन था? महु म्मद । महु म्मद ने वतजारत का वहसाब वदया
और अपनी उजरत लेकर रवानां हुआ । इसकी शरमदार-
आूँख,ें जरूरत से कम बोलना, कुदरती खबू सरू ती और व्यापार
का खरापन, बेतकल्लफ ु की सादगी जो वदल में थी, वही
जबु ान पर तथा वही अमल में बवु ़िया के वदल पर यह
बेसाख्तगी (स्वाभाववक रुप से) असर कर गई और उसे अपनी
वजन्दगी का शरीक बनाना चाहा ।
खदु ीजा (ताहरा) पववत्र थी । लोग उसके हुस्न के
तथा उसकी दौलत के परवाने थे, यहाूँ पर वह खदु परवाना
बनके वगरी, वफर ऐसी कौन-सी शमा थी, जो उसे वगरता देखती
और चमक न उठती? मंहु फे र लेती या उससे उलटा रुख
वदखाती?
खदु ीजा का बाप वजन्दा था । उसकी तरफ से अूँदश
े ा
था वक वह रास्ते का रोडा बनेगा । इसी समय खदु ीजा ने एक
दावत की, उसमें उसने अपने और महु म्मद के खानदान वालों
को वनमवन्त्रत वकया, शराब िलने लगी । खदु ीजा का बाप भी
दावत में शावमल हुआ परन्तु वह हद से ज्यादा पी गया । ब़िू ा
था, बहक़ उठा । यही बह मौका था वजसकी ताक में सब लोग
थे । उसे शादी फे कपडे पहना वदये गये और उसका (खदु ीजा)
का वनकाह हो गया । जब उसे होश आया तो वह हक्का
बक्का रह गया, मंपर पिो वपंजरे से वनकल चक ु ा था, बडे और
बजु गु ों का कहना मानना पडा, अन्तत: वफर खामोश रह गया ।

“ियात मुिम्मदी म्योरसािब कृत”

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खैर “महु म्मद” दल्ू हा हुए, माई खदु ीजा के पवत बन
उसकी जानों माल के मावलक और रिक बने । बचपन में
गरीब हो गये थे, बहुत वदनों तक माूँ की ममता का सख ु न
देखा था । इस औरत से ब्याह कर लेने पर दोनों मरु ादें वमल गई ं
। महु म्मद उसे चाहे जो भी कहे, परन्तु हम तो उसे माई खदु ीजा
ही कहेंग,े वह हमारी माूँ है और आयि शास्त्रों में एक हालत में
औरत को माूँ कहा भी है । यह माई खदु ीजा की तीसरी शादी
थी । माई खदु ीजा से महु म्मद को छ: सन्तानें हुई वजनमें दो
लडके और चार लडकीयाूँ थी, पहला लडका कावसम जो दो
बरस का होकर मर गया और दंसू रा भी जो वखल्कुल बच्चा ही
था, चल बसा ।
“सीरतुल्नबी' मौलाना शबलीं कृत”

डाक्टरों की राय है वक औरत चालीस या पैतालीस वर्ि की


उमर तक बच्चे पैदा कर सकती है मगर उस उम्र के बच्चे
ज्यादा वदन तक वजन्दा रहने वाले नहीं होते । मतलब यह है,
वक अगर बच्चे पदा करने के वलए शादी करनी हो तो औरत
की यह उमर इस मतलब के लायक नहीं और खदु ीजा की उम्र
इस एतबार से शादी करने के लायक न थी ।
महु म्मद अके ले में रहना अविक पसदं करते थे,
ख्यालात की दवु नयां में मस्त रहते थे, पहाडों में, जंगलों में
मैदानों में रे वगस्तानों में, घर के कोने (एकान्त) में जा बैठते और
अपने वदल से बातें वकया करते थे । यही पागलपन इनकी
पैगम्बरो की बवु नयाद (जड) थी ।

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अगर रोटी रोजी की वफकर होती तो यह आजादी
कहां से वमलती? और पैगम्बरी का दावा क्यों कर होता?
खदु ीजा की शादी ने ऐसी दैववक प्रेरर्ा महु म्मद के साथ की
वक ऐसा समय आ उपवस्थत हुआ ।
अरब में पाप होता था । वनहायत खौफ़नाक पाप
होता था और महु म्मद का वदल नेकी के ख्यालात से भरा हुआ
था, अरबी मवू तिपजू क थे और महु म्मद साहब ने खल ु े मैदान में
खल ु े आकाश में, बडे-बडे जगं लों में वकसी बडी भारी ताकत
का अन्दाज़ा वकया था । इससे यकीन हो गया था वक परमात्मा
एक है और उसकी कोई सरू त शक्ल नहीं है ।
खदु ीजा के गलु ामों में एक जैद नाम का ईसाई गल ु ाम
था उससे महु म्मद की बातचीत हुआ करती थी और वह ईसाई
िमि के अनसु ार महु म्मद् को ववश्वास वदलाता था । महु म्मद को
जैद से? अविक स्नेह हो गया था, और उसे खदु ीजा से अपने
वलए मांग वलया, खदु ीजा के ररकतेदारों में कुछ ऐसे हो लोग भी
थे, जो ईसाई िमि को मानते थे उन्होंने महु म्मद के वदली
होंसलों को वमटाने में परू ी मदद की ।
महु म्मद को यकीन हो गया वक दवु नया के लोग
गमु राह हो रहे हैं, उसे अपनी इस हालत पर रोना आता था
उसके वदल में गहरा ददि था, जो अरबी जबु ान में बडे ही
वदलचस्प शैरों के रूप में कभी-कभी वनकल रहा था, यही
कुरान की पहली आयत है जो न मालमू वकस कारर् से कुरान
के अन्त में वलखी गई है ? इसमें तडफ है तथा तेजी है, सत्यता
ही नहीं बवल्क बेकरार आरजू भी है और असवलयत

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की खोज है ।
महु म्मद का हौंसला ब़िता गया और िीरज का कोई उपाय न
देखकर आवखर उसे ख्याल हुआ वक आत्महत्या कर लेनी
चावहए, क्योंवक इस रोने िोने की वजन्दगी से क्या फायदा?
यहाूँ पर खदु ीजा का ब़िु ापा बहुत कुछ काम आया और कोई
नौजवान औरत होती जो उसको पागल समझती और उसका
साथ छोड देती आप डरती और दसू रे को भी डराती, खदु ीजा
ने महु म्मद को िैयि बंिाया । महु म्मद को शक था वक मझु पर
वजन्नों का जादू है । यह इल्हाम* नहीं बवल्क शैतान की करततू
है, खदु ीजा ने वजन्नों की जाूँच की और महु म्मद को ववश्वास
वदलाया वक यह 'फररकते हैं, इसका पैगाम दरु स्त है, और जब
महु म्मद ने कहा वक या तो वह दवु नयाूँ को बदल देगां या अपना
ही खात्मा कर लेगा । तब खदु ीजा ने दवु नयाूँ को बदलने वाले
इरादे को पसन्द वकया और खदु उस नये मजहब की वजसके
प्रचार का महु म्मद ने मन्सबू ा बांिा था, वह सबसे सबसे पहली
मददगार (सहायक) बनती । “कससल ु वम्बया”
महु म्मद को इल्हाम कं वक़्त बडी तकलीफ होती थी । उसके
मूँहु से झाग आने लगते, तमाम बदन से पसीना वनकल पडता
तथा बाहर की सिु बिु न रहती थी, बिुतेरे लोगों का ख्याल
था वक यि वमरगी के लक्षण थे , महु म्मद उस समय मरीज हो
जाते थे, तब खदु ीजा उसकी सेवा शश्रु र्ु ा करती थी. उसके
बदन पर कपडा डालती और पानी के छींटे देती, मतलब यह ह
वक उसे होश में लाती । “बुखारीबाबा लबिी”
* इल्हाम: अवस्था जिसमे महु म्मद को अल्ला का संदेश जमलता था।

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महु म्मद की पैगम्बरी के पवहले आमूँू खदु ीजा की गाद में बहाये
गये । यह कहानी बहुत लम्बी है. वकस्सा यों है वक महु म्मद ने
अपने आपको मौजदू ा मजहब और इसके काननू से अलग कर
वलया और अपन पीरों (भक्तजनों) का भी वपछले मजहब से
बागी बनने के वलए उपदेश देने लगा । इससे सब में महु म्मद के
प्रवत मखु ालफ़त पैदा हो गयी थी. और लोग महु म्मद की जान
के दकु मन बन गये, अरब का दस्तरू था वक “खनू का बदला
खनू ” स लत भर । वकसी खानदान के एक आदं मी को वकसी
दसु रे खानदान का कोई आदमी कत्ल कर देता थी तो इन
खानदानो में हमशा के वलए मख ु ालफ़त पैदा ही जाती थी,दोनों
खानदान एक दसु रे की जान के दकु मन बन जाते थे. मगर
महु ग्गद के वलए एक बचाव का तरीका था । वह यह वक एक
तो इसका चचा उसकी वहमायत पर था दसू री खदु ीजा थी,
वजसका वलहाज सभा छाटे बडे करते थे. महु म्मद ने मसु ीबत
सही, दःु ख बदािकत वकये, लेवकन उस बीवी को बरकत से
उसकी जान पर आूँच न आई । आवखर जब महु म्मद पचास
वर्ि का हुआ तो खवु दजा का इन्तकाल (देहावसान) हो गया
तथा चचा भी चल बसे ! अब महु म्मद अनाथ हो गये, लाचार
होकर वहजरत (देश त्याग) करके मदीन चले गये ।
पाठक ! इससे अन्दाजा लगा लें वक खदु ीजा का
वजदू महु म्मद के वलए वकस कदर भला था? यही वजह थी वक
इसकी मौत के बाद महु म्मद क॑ मकान में वसलवसलेवार
बीववयाूँ थीं और एक दसू रे से खबू सरू ती में बि, च़ि कर थीं ।

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सभी प्रकार से आनन्द और आराम था । हकूमत थी तथा सभी
अवख्तयार था, तो भी खदु ीजा की याद महु म्मद के वदल से न
भलू ती थी । यहाूँ तक की “आयशा” का अपनी वजन्दा सबतू ों
से भी वह लौ (लग्न) न थी जो मरहमा-मगफूरा (रहेम की
बख्शी हुई) खदु ीजा के नाम से हो रही थी । खदु ीजा ने महु म्मद
को बचाया, पच्चीस वर्ि के जमाने में ! जब तक वह महु म्मद
की बीवी बनकर वजन्दा रही, महु म्मद को कभी भी दसू री शादी
का ख्याल नहीं आया आयि शास्त्रों में खानेदारी (गृहस्थाश्रम)
की वमयाद (समय) पच्चीस वर्ि मक ु रि है । यह समय महु म्मद ने
बडी पववत्रता से वनभाहा, इसवलये इसे हम आयि गृहस्थ कह
सकते हैं ।
अगर महु म्मद ने खदु ीजा से शादी न की होती,
बवल्क उसका लडका बनना मंजरू कर लेता, तो यह रस्म आयि
िमि शास्त्रों के मतु ावबक होती । एक मसु लमान मौलाना साहब
से बातचीत करते समय हमने यही कहा तो वह हैरान हो गये
और आश्चयि चवकत होकर कहने लगे “हैं"! मायं े भी बनाई जा
सकती हैं ?” हमने कहा – “हाूँ वहन्दस्ु तान में यह दस्तरू है वक
वकसी बजु गु ि औरत को माई कहकर इस रह पत्रु वत् फजि अदा
करना ।” इसवलए हम उसे खदु ीजा कहेंगे ।
परन्तु वह अक्ल में, उम्र में, तजरु बे में बीवनश (देखने) में
अनभु वी कायों में "माई खदु ीजा" ही है ।

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बेटी आयशा
खदु ीजा का इन्तकाल हुए अभी तीन महीने भी न बीते थे वक
महु म्मद ने महससू (अनभु व) वकया वक दवु नयाूँ में बीवी के
समान प्यारी और कोई चीज नहीं है । मसु ीबत ब़िती ही जाती
थी, घर में कोई िािस बंिाने वाला न था । बस दसू री बीवी
की तलाश करने लगे ।
माई सदू ा सक ु रान की औरत थी । यह दोनों वमयाूँ
बीवी मसु लमान हो चक ु थे और इस जमु ि की इन्होंने सजा भी
बडी कडी पाई थी। अरब वनवावसयों से तगं आकर उन्हें अपने
देश को वजसका नाम “मालूफ” था, खेरबाद (अलववदा)
कहना पडा था और 'ववदेश' में रहकर गजु र करते थे । जब
महु म्मद ने कुफ्फार कावफर) से सल ु ह कर ली और उनकी
मवू तियों की कीवति को मान वलया (अगरचे) बाद में वफर उसे
इस सल ु ह से परे शानी हुई और इसने पहले इलहाम को,
“शैतानी बिी” कहकर मन्सख ू कर वदया । तो दसू रे देश
वनकाले हुए लोगों के साथ सक ु रान और सदू ा भी वावपस आ
गये । यहां आकर सक ु रान का इन्त्काल हो गया और सदू ा बेवा
हो गयी, सदू ा की वफादारी का सबतू इससे ज्यादा और क्या
हो सकता था वक उसने देश वनकाले की तकलीफों को इस्लाम
के वलए बरदाकत वकया ? इिर अपने यवत की वफादार उिर
अपने मजहब पर जान देने वाली !! इस प्रकार की
नोट :- इग्शादातुल्सारी शरह सहीह बुखारी जिल्द, सात मुअजल्ल
मुल्तनिील । तफसीरलिलालीन सफा पैतालीस जिल्द दो,
दाल्कु लतन्िील'सफा दो सौ छयालीस तफ़्सीर कबीर - तफ़सीर
कलब्री ।

रंगीला रसल
ू / १९
अच्छी बीवी वमलना महु म्मद के वलए मवु ककल था । रहमत
पैगम्बरी के कारर् उससे अपनी शादी कर ली । ब़िू े की बेवा
(वविवा) स्त्री से शादी कुछ बेजा न थी दोनों एक दसू रे के प्यारे
सनेक का हक़ अदा कर सकते थे । खदु ीजा की जगह आवखर
कौन ले सकता था ? वह भी एक उम्मीद थी, जो परू ी हुई और
घर ,सनू ा न रहा । हम ऊपर कह आये हैं वक गृहस्थाश्रम के
वनयमानसु ार महु म्मद पच्चीस वर्ि तक एक ही बीवी के साथ
रहे और वह भी दो पवतयों की वविवा! जो शादी के समय
चालीस वर्ि और मौत के समय पैंसठ वर्ि की थी, इस बवु ़िया
से इस जवान की वनभ गयी, यह बात महु म्मद की पववत्रता की
सािी है । वसनफ नाजक ु से प्यार महु ब्बत की वफदरत में था,
यह दसू रे मरदों को नेकी करने कौ नसीहत देता हें, मसु ीबत में
मजबरू बना देता है, आफत, में साववर (संतोर्) को ब़िाता है,
सीठे को उभारता है और रुह का “सकता” करता रहता है इस
वक्त भी बहुत से लोग हैं जो औरत के हुस्न की रंगीन तस्वीर
खींचते हैं । और पजू नीय देवी बना देते हैं, पववत्रता को मवु तियाूँ
बनाकर तसब्वरु की वफजां में उडते है, यह आलम तखील का
इकक इनके वदल वदमाग पर इफत व असमत (पाकदामन) का
राज बनाये रखता हें। महु म्मद ने शायराना तबीयत पायी थी ।
मगर खदु ीजा के वलए कहना वक - “शाली के बढु ार्े ने आलम
मौजूदा जिानी में औरत के शबाब की बिार का लुत्फ़ न उठाने
वदया” यह कुव्वत॑ तसव्बरु का एक और ताजयाना (सख्त)
हुआ, दवु नया की औरतें वदमाग से उतर गई । बवहकत की

रंगीला रसल
ू / २०
हरों के ख्याल आने लगे बाद में जब महु म्मद की मतावदद
(वसलवसलेवार) शावदयाूँ हो गई, तब उसका वदल कसरते
अज्दवाज़ (व्यवभचार) से खट्टा हो गया, चनु ाचे बाद के इल्हाम
में हरों की खबू सरू ती में वह मंजर जेब नजर नहीं हुए । जो
खदु ीजा के होन हयात (जीवनकाल) में रह रह कर कुरान की
आयतों में जलवागर होते रहते थे, सरू त बखान में मजकूर होते
है । अथाित-व्यक्त
् की गई सरू तों में यह बातें मौजदू हैं । इसी
तरह कंु वारं ी औरतें (लडवकयाूँ) गोरी बडी आूँख वाली है,
उभरे हुए सीने और भरे कासे की । सचमच्ु च औरत की खबू ी
क्वांरपन में है ।
और महु म्मद ने क्वांरी औरत से शादी की, वह आयशा थी
आयशा अबू बकर की लडकी थी, अबू बकर ओर महु म्मद
का अदायल उमर (बचपन का 'स्नेहों) था । उसकी उमर और
महु म्मद की उम्र लगभग एक सी थी । वसफि दो साल का फकि
था, महु म्मद अबू बकर से दो साल बडा था । अबू बकर बहुत
जल्दी वबना वकसी हीला हवोला (बहाने) के महु म्मद पर ईमान
लाया था और आयशा उसकी वदलबन्द थी । आयशा की
उमर उस समय कोई छह सात साल की थी ।
“मुआरजुलनब्बत सफा अट्ठाईस रकूब चार ”
महु म्मद ने इस कम उमर की लडकी पर जो उमर में
इसकी पोती के बराबर थी अपनी वनस्बत क्यों ठहराई ? वकतने
ही लोगों का ख्याल है वक अबू बकर को ररकतेदार बनाना था ।
प्रथम तो यह वक जब अबू बकर महु म्मद के दीन पर ईमान ले
आया और उसे खदु ा का रसल ू मान

रंगीला रसल
ू / २१
वलया, अथाित् उसकी आज्ञा को खदु ा क़ी आज्ञा मान वलया तो
इस प्रकार और वनजी ताल्लक ु की जरूरत ही न रही थी
लेवकन मान लो अगर वह ईमान का ररकता कमजोर वदखाई
पडता था तो उसकी मजबतू ी का सबसे अच्छा िंग यह होता
वक मुिम्मद अबू बकर की लड़की को अर्नी लड़की बना लेता
और उसकी शादी अपने हाथ से करता उसका जहेज (दहेज)
देता और उसका बाप बन जाता । लेवकन अरब वनवासी इस
मसनईु तथा हकीकी ररकतों से ज्यादा पायदार और खश ु ायन्दा
ररकतेदाररयों के इमकान से, आशना (जानकार) न थे
“सैय्यद अमीर अली” वलखते हैं वक-अरब में कोई
औरत बीबी के वसवाय वकसी और ररकते से वकसी मदि के साथ
न रह सकती थी । महु म्मद अपनी वसयासी जरूररयात से
मजबरू था, वक लगातार शावदयाूँ करे ।
आह ! प्यारे भारत !! पववत्रता के तारे भारत !!!
प्राचीन आयो की प्राचीन सभ्यता के भारत !!!! दगु ािदास,
औरंगजेब की पोती सफीयउवन्नसा को अपनी लडकी बताता
है, तथा वशवाजी, गोलेबादी की असीर शहजादी को जो
गनीमत (लटू ) के माल के साथ उसके साथ थी, वजसे वशवाजी
अपनी बेटी समझते हैं। !
परन्तु जरा इिर भी ध्यान दीवजये आयशा नाजक ु
और हल्के बदन की थी, इसवलए पालकी उठाने में बोझ के
अन्दाज से कोई पता न चला वक अन्दर आयशा है या नहीं ?
आयशा अब लाचार हो वहों बैठी रही वक अब कोई लेने आते
हैं, अब कोई लेने आते हैं । आवखर इसी इन्तजार में सवेरा

रंगीला रसल
ू / २२
हो गया और कोई भी न आया । संयोग से साफवान अपना
ऊूँट वलये उिर आ वनकला, आते ही उसने आयशा को
पहचान वलया और वबना कुछ बात-चीत वकये आयशा के
सामने ऊूँट बैठा वदया, और आयशा भी उस पर उचक
(उछल) कर सवार हो गई, अन्ततः एक रात एकान्त में गजु ारने
के बाद वफर अपने प्यारे महु म्मद से जा वमली ।
भला इस हालत में कौन वकसकी जबु ान पकडता;
तरह-तरह के गन्दे आिेप लोग लगाने लगे, िीरे -िीरे महु म्मद
जी आयशा से नाराज हो उठे । इस हालत में वबचारी आयशा
और कोई उपाय न देखकर नैहर अथाित् अपने माूँ-बाप के घर
चली गई; आयशा की माूँ उसका वदल बहलाती रहती मगर
आयशा के वदल से गम की गाूँठ दरू न होती और न ही
खल ु ती। इस पररवतिन के कारर् महु म्मद के दोस्तों और दकु मन
में तरह-तरह के मतभेद पैदा हो गये ।
महु म्मद के नाम पर दाग लग गया, उसके रौब में भी
फकि आ गया, अन्त में अली और उस्मान से राय ली । अली
ने कहा वक आयशा की दासी से इस घटना की सफाई ली
जाबे, सलाह नेक थी, मगर अली के वलए यह राय बडी बरु ी
सावबत हुई । आयशा इस गस्ु ताखी को मरते दम तक न भल ू ी
वक अली ने जो खदु महु म्मद का दामाद है, इसकी इज्जत पर
शक वकया, अब अली से आयशा की ववकट शत्रतु ा हो गई ।
महु म्मद की बेटी फावतमा, माई खदु ीजा की प्यारी यादगार
फावतमा, जो अली से ब्याहीं हुई थी,इिर फावतमा का पवत
उिर अपना दामाद “अली” है उिर चहेती बीवी आयशा

रंगीला रसल
ू / २३
हैं ! महु म्मद वकिर जाये और क्या करे ? आवखरकार घर में
घरे लू लडाई की जड जम गई । इस घरे लू लडाई ने महु म्मद की
मौत के बाद इस्लाम की तवारीख को लगातार खनू खराबी की
तवारीख (इवतहास) बना वदया । वखलाफत के वलए इस कदर
खनू खराबी न होती, अगर अली और आयशा का वदल साफ़
होता । हाूँ अगर आयशा की अली से शत्रतु ा न होती तो ।
बहुत बीववयाूँ करने बालों देखो जब पैगम्बरों की
वजन्दगी भी खतरे में है, अगर इस अजमत (बडप्पन) के लोग
भी अपनी गलवतयों से, तथा इन बरु े कामों से नहीं बच सकते,
तो तमु कौन हो ? अपनी करततू के कडवे फलों से अपने
आपको सरु वित समझते हो । दशरथ का घर बरबाद हो गया,
महु म्मद का दीन बरबाद हो गया, क्यों ? इसवलये वक ब़िू े
होकर नवयवु वतयों (कुमाररयों) से शावदयाूँ को ।
महु म्मद आयशा के कमरे में गया और उसके माूँ-
बाप के सामने सारी गजु री हुई कहानी को सचमचु सनु ा देने की
अजि की, तब मौहम्मद के सामने ही आयशा को उसके माूँ-
बाप ने कहा वक - “अगर तूने गुनाि वकया िै तो तू तौबा कर,
अल्लाि बख्शने िाला िै, रिम करने िाला िै और अगर तू
बेगुनाि िै तो तू अर्नी बेगुनािी का इजिार कर ”।
आयशा थोडी देर तक चपु रही । अन्त में बोली, “सब्र िी.
मेरा जिाब िै, र्रमात्मा मेरा मददगार िै, मैं अगर अर्ने
आर्को बेगुनाि किूँ तो कोई मानेगा निीं , तौबा करूँ भी तो
वकस कसरू से ? र्रमात्मा जानता िै वक मैं “बेगुनाि” िूँ " ।

रंगीला रसल
ू / २४
महु म्मद अपने वदल से आयशा का चाल चलन जानता था ।
और उसका कायल था, लेवकन लोगों को भी तो कायल करना
था । आवखर को अपने आपको इल्हाम की सरू त में डाला
और अपना मूँहु कपडे से िक वलया तथा वह कुछ देर जावहरा
बेहोश पडा रहा, आवखर अपने माथे से पसीना पोंछता हुआ
उठा और कहा -
"आयशा ! खुशी मना !! अल्ला ने तेरी बेगुनािी की साक्षी दी
िै" ।
आयशा का खोया हुआ सौभाग्य वफर से वमल गया ।
लेवकन आिेप लगाने बालों पर शामत आ गयी, इल्हाम पर
इल्हाम होने लगे, आिप लगाने वालों पर तरह-तरह की
बोछारें पडने लगीं आवखर उनके वलए सजा मक ु रि र हुई, वक
उन्हें अस्सी-अस्सी काडें लगावे जायें । मरदों के साथ-साथ
एक औरत पर भी यह कोड बरसाये गये ।
“सरू ह अन-नरू -चार (कुरान)” में रसलू और रसल ू के
खदु ा का गम व क्रोि अब तक वलखा चला आता है ।
बदजबु ान लोगों की जबु ानें उनके महंु में घसु ेड दी गयी, अब
जरूरत इस बात की हुई, वक हरम की फरमाइश की जावे,
क्योंवक ताली दो हाथों से बजती है । बह वखदमत भी
अल्लावमयाूँ ने कबल ू की और तब “सरू ये अखराब उतरी" वक
“ऐ र्ैगम्बर की बीवबयों ! तुम और औरतों
की तरि निीं िो, अगर तुम र्रमात्मा से डरती िो तो
अर्ने कौल (कथन) से न वफरो तावक िि लालच न करे,
वजसके वदल में मरज िै, और किा गया िै, कौल और

रंगीला रसल
ू / २५
मारफ अर्ने-अर्ने घरों में रकी रिो और न वदखाती वफरो
श्रंगार जैसे ज़िालत के जमानें की औरतें करती थी"!
आवखर महु म्मद को अपनी बीवबयों को आप
ताकीद करना, तथा तम्बीह देना बाकी जौवजयात व
लवाजमात के वखलाफ था । अल्लावमयाूँ स्त्री परू ु र् दोनों का
बजु गु ि है । उसको बीच में डाला और जो चाहा वह उससे
इल्हाम के रुप में कहलवाया । इस तरह आयशा और महु म्मद
में पनु : एकता हो गई, और आयशा का घर भर में राज्य हो
गया, परन्तु इसके बाद वफर वकसी यद्ध ु में आयशा साथ न ले
जाई गई ं।
इसके बाद आयशा के दशिन आवखरी दशिन हैं ।
इसके पवत की मृत्यु शैय्या पर हुए हैं । महु म्मद ने अपने
आवखरी मजि में जो मरजल्ु मौत (मौत को बीमारी) सावबत हुई,
अपनी 'बीवीयों से मंजरू करा वलया था वक अब मैं आयशा ही
के घर में रहा करूूँगा और इसी मकान में अक्सर आयतें उतर
करतो थीं, वही खवटया थी, वहीं वबस्तर था वहाूँ वलहाफ था ।
यह मकान महु म्मद को सब मकानों से ज्यादा प्यारा था ।
बीमारी के समय में महु म्मद कवब्रस्तान को गया और अपने
मरने का यकीन करके घर लौटा । आयशा भी इवत्तफाक से
वसरददि से दवु खत थी, वह कराह-कराह कर कह रहीथों । मेरा
सर ! मेरा सर !!
महु म्मद बोल उठे आयशा ! यह शब्द मझु े कहने
चावहए थे । आयशा सनु ते ही चपु हो गयी! महु म्मदको जराफ़त

रंगीला रसल
ू / २६
(मजाक) सझू ी और कहा ! आयशा क्या तमु पसन्द ना करोगी
की तम्ु हारी मौत मेरे जीते जी हो, वजससे मैं तम्ु हे अपने हाथों से
दफन करूूँ और तम्ु हारी कब्र पर दआ ु कहूँ ? आयशा ने नाक
भौं च़िा ली और जवाब वदया वक यह वकसी और को सनु ाओ,ं
मैं समझ गई, मेरे घर को मझु से खाली कराने और वकसी
(मझु से भी) खबू सरू त पतु ली (सन्ु दर स्त्री) को ला बसाने की
आरजू आपके मन में हैं । महु म्मद को जवाब के वलए फुरसत
कहाूँ थी ? ना ही इतनी ताकत थी वक जवाब दे सके आवखर
मन्द हसं ी (मस्ु कुराहर) में ही बात को टाल वदया ।

“ियात मुिम्मदी म्योरसािब कृत”

पाठक समझ गये होंगे वक एक नवयवु ती बीवी को अपने पीछे


छोडने का ख्याल महु म्मद के वलये वकस कदर परे शानी का
कारर् था ? पर हाय! यह वगला मंजर !! हसरत नाक मंजर !!!
इबरतनाक !!! मवस्जद का आूँगन है । बीस साल की जोरू जो
बाूँसठ साल के शौहर का वसर अपने घटु नों पर वलए हुए बैठी
है । महु म्मदू उसका चबाया हुआ दातनु महंु में देते हैं और इस
िवर्क शरीर से बाहर हो. जाते हैं ।
उसके बाद आयशा को अबू बकर कहता है वक बीस वर्ि की
वविवा आयशा मझु े तझु पर रहम आता है, तेरी ज़वानी पर
रहम आता है, ठे री उमंगों
तवारीख जेबुल्लाह पेज एक सौ छयासठ मरदाररजल्ु फतूहा रकूब
चार,बा बारह आवद ।

रंगीला रसल
ू / २७
पर, तेरी हसरतों पर, तेरे हुस्न पर तथा तेरी सरू त पर रहम आता
है, मेरी आूँखों में वह आसूँू हैं जो वकसी बाप ही आंखों से
अपनी लडक॒ ी को वविवा होता हुआ देख करके बेअवख्तयार
वनकल पडें । मगर करूूँ कया ? मैं तझु े अपनी लडकी कहकर
वससकता हूँ , जबवक महु म्मद के वलए मेरा मन कुछ नहीं
कहता ।
सदा सुिावगनें
अबू बकर हज़रत महु म्मद साहब का दायोूँ हाथ था
तो मौहम्मद उमर बायाूँ । वह इतनी आसानी से मसु लमान न
हुआ था, जैसे अबू बकर, मगर जब हुआ तो पर्ू ि ववश्वास के
साथ हुआ । अब वह अपने मजहब के वलए बराबर लडने परने
को तैयार रहता था ।अबू बकर वदलेर था, अकलमन्द था,
इसके बरवखलाफ़ (ववरूद्ध) मौहम्मद उमर जोशीला था, बह
बहुत जल्दी गस्ु से में आ जाता था, उस समय उसे अपने काबू
में कर लेना सहज न था । यहीं वमजाज मौहम्मद “उमर” से
उसकी लडकी “हफ़सा” ने पाया था । वह भी वकसी के रोके न
रूकती थी, इसको शादी “खनीस” से हुई थी, जो लडाई
(वगजवाबदर) में मारा गया, छ:-सात महीने तक वह वविवा
रही और कोई भी मसु लमान उससे शादी करने क॑ वलए तैयार
ने था इस पर उमर ने पहले अबू बकर से वनकाह करने को कहा
परन्तु उसके इन्कार करने पर वफर उस्मान से वनकाह के वलए
दरख्वास्त की, परन्तु इन दानों ने इन्कार कर वदया
क्योंवक “हफसा को संभालना कोई मजाक या खेल

रंगीला रसल
ू / २८
न था, इस पर उमर बहुत वबगडा और अन्त में महु म्मद के पास
हफ़्सा के वनकाह का प्रस्ताव लकर आया महु म्मद से अपनी
मेहरबानी से उस अपनों स्त्री बनाना मजं रू कर वलया! इस तरह
जो ररकता महु म्मद का अबू बकर से था वहीं उमर से भी हो
गया । दोनों बराबर वफादारी से इस्लाम का प्रचार करने लगे
और अपनी लडवकयों की तोफ़ै ल महु म्मद के गातहत बन गये
। ऐसे ही वगजवाबदर के एक और शहीद अबोदा की बीबी
ज़ेनब थी, अबीदा ररकते में महु म्मद का भाई था उसकी बेवा
औरत से भी यहु म्मद ने शादी कर ली. । जैनब ने बडी सखी
(वदलावर) तबीयत पायी थी इससे इसका नाम
"अम्मल ु मसाकीन" पड गया ।
अबू अल्लमा इवब्तदाई (आरवम्भक) मसु लमानों में था। वह
“हबश"” की वहज़रत में अरब से वनकाल वदया गया था ! जब
महु म्मद ने मदीना में डेरा डाल डाला तो वह वावपस आ गया,
“उहद” की लडाई में बह घायल हो गया था । मगर बाद में
अच्छा हो गया, जब “बवनसाद" पर इस्लाम ने चिाई की तो
यहा उसका सेनापवत बनाया गया- था, वहाूँ दह वपछले घावों
की कमजोरी के कारर् वफर बीमार पड गया और उसकी मौत
हो गयी । महु म्मदद को अपने ररकतेदारों से सहानभु वू त थी वह
उसकी वविवा औरत “वहन्द" के पास जाया करता था, वहन्द
थो ब़िू ी मगर बडी खबू सरू त थीं। महु म्मद ने उससे शादी करने
का इरादा जावहर वकया. उत्तसने ब़िु ापे का बहाना वकया, तब
पैगम्बर ने फरमाया मैं भी तो ब़िू ा हूँ । बवु ़िया ने कहा वक बाल
बच्चे हैं, महु म्मद उनका भी वाररस बनां और बवु ़िया को

रंगीला रसल
ू / २९
अपने घर ले आया ! मदीना मवस्जद के साथ इस समय तक
पांच कोठररयाूँ पहले ही बन चक ु ों िो, वजसमे हर एक में
महु म्मद की एक एक बीवी रहती थी । महु म्मद बारी-२ एक
एक रात, एक एक वदन, एक एक बीवी के पास काट देता था ।
आवखरी कोठरी हाररश की था, जब मम्ु मद के घर नई बीबी
आती थी, तो उसे हाररश की कोठरी में ठहराया जाता था और
हाररश के वलए दसू री नई कोठरी तैयार करायी जाती थी, वह
बेचारा चपु के से अल्हदा रहने का इन्तज़ाम कर लेता था ! एक
दफा महु म्मद को खदु शमि आयी और कहने लगा वक आवखर
हाररश भी क्या कहता होगा ?
रा० आ० सैयद अमीर अली फरमाते हैं वक यह सब
वविवायें वजन्हें महु म्गद की स्त्री होने का घमडं हुआ, ये सभी
बेकस थीं, वजनके खावबन्द (पवत) इस्लाम की सेवा करते-
करते शहीद हो गये थे । महु म्मद का यह फ़जि था वक उनके
गजु ारे का इन्तजाम करता, वह उसका कायि जरूरी था परन्तु
उसका अपना गजु ारा पहले हो तगं ी से चलता था, उस पर
उसने अपनी रोजी पर और भी बोझ ले वलया तथा अपने खचे
को वजम्मेदारी और भी ब़िा ली, और आमदनी की सरू त बही
रही । मल्ु क-मल्ु क का ररवाज है । ममु वकन हैं सैयद अमीर
अली का कयास (कथन) सही हो । अरब में रसालते महु म्मद
के ज़माने में कोई और वकसी मदि के पास वसफि ज़ोरू बनकर
हीं रह सकती हो । वरना वहन्दस्ु तान की रस्म तो यह हैं
वक ऐसे िमाित्मा लोग परायी औरतों को िमि
की बवहन बना लेते हैं, वजससे उनका गजु ारा

रंगीला रसल
ू / ३०
भी चल जाता है और दीन भी बरबाद नहीं होता, ममु वकन हैं
सारे मसु लमानों में कोई ओर वविवाओ ं का पालन कताि न हों
सकता हो, कोई कूँु वारा या रंडुवा उनको अपनी स्त्री के रूप में
ले जा सकता हो और यह मेहरबानी का मौर (सेहरा) वसफि
महु म्मद के वसर बंिा हो, हमारी तच्ु छ बवु द्ध में अगर महु म्मद
उन्हें बहन बना लेता तो भी काम चल जाता और अगर शादी
जरूरी थी तो वकसी कंु वारे से करा देता । अपना अपना मजहब
हैं । हो सकता हैं वक महु म्मद को यही तरीका पसन्द आया हो
वक बीवबयों से अपना घर भर ले, साठ वर्ि का ब़िू ा पांच-पांच
बीववयां ! खैर बीववयों से चहल पहल तो रहती ही होगी, मौज
से रात-वदन कटते होंगे, वसनफ नाजक ु के साथ ब़िू े का
ताल्लक द
ु ुरूस्त है ।
बिुररया
हम ऊपर कह चक ु े हैं वक जैद नाम का एक लडका
खदु ीजा का ईसाई गल ु ाम था उसने महु म्मद की मजहबी और
वदली मवु ककलें दरू की थी इसवलए महु म्मद को उससे खास
प्यार था, चंवू क खदु ीजा ने वह गल ु ाम उसे ही दे डाला था और
महु म्मद ने उसे अपना मतु बन्ना (लडका) बना वलया था । ज़ैद
भी महु म्मद से अविक प्रेम करता था, एक बार जबवक उसका
बाप उसे लेने आया तो उसने जाने से साफ इन्कार कर वदया
क्योंवक महु म्मद रसल ू भी और बाप भी (दोनों) थे, इसवलए वह
वहां अके ले वावलद (बाप) के पास जाकर क्या
करता ? उसकी पहली शादी “ उमए् मन" से हुई थी ।
वजसकी उमर ज़ैद से भी दगु नी थी, लेवकन उसे

रंगीला रसल
ू / ३१
खदु पसन्द करने वाले बाप (महु म्मद) क हुक्म से लाचार
होकर वनकाह करना पडा । इस औरत से एक लडका हुआ
वजसका नाम “उसामा” था, ज़ैद की दसू री शादी “ज़ैनब” से
हुई, ज़ैनब कुरे शी खानदान से थी और महु म्मद की फुफे री
जावत बहन थी । एक वदन महु म्मद ज़ैद के न होने पर उसके घर
जा पहुचूँ ा । वचक (परदे) की आड में जैनब बैठी थी उसने
रसल ू ( जो उसका ससरु भी था ) की आवाज सनु ी तो जल्दी
से उन्हें भीतर लाने का प्रबन्ि करने लगी महु म्मद की वनगाह
उसके सन्ु दर बदन पर पडी, बस वफर क्या था ? वदल पर एक
दम वबजली सी वगर पडी और मूँहु से वनकला “आह ! सभु ान
अल्ला!! तू कै सी-२ खबू सरू ती की कारीगरी करने वाला है ?”
जैनब ने यह शब्द सनु वलए और वदल हो वदल में पैग़म्बर के
वदल में कब्जा पा जाने की खश ु ी मनाने लगी । जैद से शायद
उसकी न बनती थी । वह लाख महु म्मद का वाररस हो, भई
आवखर था तो गल ु ाम ही ।
जब ज़ैद घर पर आया तो उससे ज़ैनब ने इस माज़रे
का वजक्र वकया । बस ! वफर क्या था इसे आप महु म्मद की
शादी की बातचीत (अकीदत) समवझये या शायद उसका वदल
ज़ैनब से पहले ही खट्टा हो गया हो, अतः वह दौडा दौडा
महु म्मद के पास गया और अपनी बीवी को वजस पर महु म्मद
का वदल आ चक ु ा था । तलाक देने पर राजी हो
गया, महु म्मद रोक कर यह कहा, आपस में खश ु ी से
गजु र करो, लेवकन ज़ैद ऐसी बीवी का पवत बनकर नहीं
रहना चाहता था, जो दसू रे को वदल दे चक ु ी हो, आवखर

रंगीला रसल
ू / ३२
उसने जैनब को तलाक दे ही वदया, और ज़ैनब महु म्मद के
पीछे पडी वक मझु े भी अपनी वखदमत में ले लीवजए । महु म्मद
को पेशोपेश से नाहक बदनामी होगी, आवखर “वही”
(इल्हाम) ने सब काम_तै कर वदया और सरू ह उतरी -
“खुदा ने इन्सान को दो वदल निीं वदये , न तुम्िारी
गोद के वलए बेटे अर्ने बनिायें िैं । जो तुम किते िो, यि
तुम्िारे मुंि से वनकला िै । मगर अल्ला असली बात जानता िै,
िि रास्ता ठीक वदखाता िै तुम्िारे िाररसों को चाविए वक िि
अर्ने बार् के नाम से मशिर िों और जब तूने एक ऐसे बन्दे से
वजस र्र अल्ला का भी फज़ल िै, तेरा भी फज़ल िै, किा वक
तू अर्नी बीबी अर्ने र्ास रख और अल्ला का खौफ़ कर और
तूने अर्नी छाती में छुर्ाया जो अल्ला वक मरजी थी वक जाविर
िो और तू इन्सान से डर, िालांवक अल्ला ज्यादा कावबल िै,
डरो मत, जब ज़ैद ने तलाक की रसम र्रू ी कर दी तो िमने उससे
(मौिम्मद से) ब्याि वदया, तावक मोंवमनों को इसके बाद अर्ने
मुतबन्नों (माने िुए लड़कों) की बीवबयों से शादी करना .जुल्म
न िो बशते वक तलाक की रसम र्ूरी िो चुकी िो और अल्ला
का िुक्म जरर र्ूरा िोगा ” ।
तय “सरू येअखराब रकूब-र्ांच”

महु म्मद तमु में से वकसी का बाप नहीं है । वह अल्ला


का रसल
ू है और “खावतमुलमरसलीम” है और अल्ला सब
कुछ जानता है ।

रंगीला रसल
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यह शब्द हमने इसवलए वलखे हैं तावक महु म्मद के वदल का
पता (जानकारी) पाठक लगा सकें , जैनब की वजयारत के बाद.
महु म्मद ने झठू -मठू ताअम्मल
ु ज़ावहर वकया वरना वदल में
इकक की आग भडक गयी थी तथा जो हर समय भडक रही थी
“वही” (इल्हाम) होता गया । और महु म्मद ने उसके बाद ज़ैनब
के पास पैगाम भेजा वक -
“अल्लाि ने तुझे मुझसे वमला वदया िै । इसवलए अब
वनकाि की कोई जररत निीं िै”
जहां अल्लाह वदल वमला दे, वहाूँ वनकाह प़िाने चाल
मौलववयों और कावज़यों का बीच में न पडना मज़ाक तहीं तो
और क्या है ? सब लोगों को खशु करना जरूरी था इसवलए
कह वदया वक -
“अल्लाि ने वनकाि र्ढा िै और वजब्राइल उसका
गिाि िै । और इन दो शतों के अलािा वनकाि के वलए और
शतप िी क्या िै” ?
“रंगीले रसल
ू ” का यह रंग कहावत अजीब है
बेटा ! बेटा न रहा, बह बह न रही ।
अब पाठक समझ सकते हैं वक क्यों महु म्मद को वकसी औरत
को माूँ या बेटी बनाने में वझझक थीं ? जब माने हुए लडकों
मतु बन्नों क॑ साथ वह सलक ू नहीं हो सकता जो हकीकी
(पैदायशी) औलाद के साथ होता है और उनक॑ ,बीबीयाूँ तक
महु म्मद क॑ वलए हलाल हो सकती हैं, तो िमि की बेवटयां,
बवहनें क्यों कर बच सकतीं हैं ?
तफसीर िुसैनी आयत मजकर खूरा , जमकुर,

रंगीला रसल
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उस वक्त के मसु लमान तो खामोश नहीं हैं तवारीख (इवतहास)
का फ़तवा यही है वक महु म्मद ने बेज़ा वकया ।
उसकी “वही"(इलहाम) बेज़ा ! पैगम्बर मवु ल्जम !!
उसका इल्हाम मवु ल्जम !!! अल्लावमयां और उसका वजब्राइल
मवु ल्जम! ! !
ऐसा नहीं है वक महु म्मद अपने गनु ाह न जानता था.।
बवल्क यह जानता था वक अगर उसकी बेहदु गीयाना नज़र
ज़ैनब पर न पडती या जैनब ने ही अपने बदन को परू ी तरह
वछपा वलया होता तो वदन-दहाडे यह अन्िेर न होता जो हुआ
अतः अब तो जो हो गया , सो हो गया अब आगे देखो-
पहले तो इसे (मौहम्मद को)अपने हो हरम का
ख्याल आया । लोग आजादी से उसके घर आते जाते थे ।
उसकी बीववयों से बातचीत होती थी सम्भव है वकसी समय पर
यही मामला वकसी मसु लमान के ऊपर गजु र जाये जैसा वक
पैगम्बर पर बीत चक ु ा हैं, और ममु वकन है वक महु म्मद को कोई
बीबी ऐसी ही होनहार वनकल जैसा वक ज़ैद बीवी सावबत हो
चक ु ी हैं । इसवलए इसका प्रबन्ि भी आगे के वलए हो जाना
चावहए । ऐसा सोच कर हज़रत ने दरु न्देशी के दपिर् में झाूँका
और “वही" (इल्हामी शवक्त) की जंजीर वहलाई और काम पछू
वकया ! सरू ह उतारी गई, देवखए-
"ऐ मोवमनों !! रसल
ू के मकान में न जाओ जब तुम्िें
कुछ र्ूछना िो तो र्रदे की आड़ से र्ूछ लो यि तुम्िारे और
उनके वदलों के वलए बेितर िोगा । यि मुनावसब निीं वक तुम

रंगीला रसल
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रसल ू के वदल को दुखाओ और न यि वक उनके बाद कभी भी
उनकी बीवियों से शादी करो रसल
ू की बीवियां मौवमनो की
माूँयें. (मातायें) िैं ।
“सुरि अखराब रकूब-र्ांच"

इस इल्हाम का आवखरी जमू ला (वाक्य) मझु बहुत


भाया, मैं खदु उन्हे अपनी माता कहता हूँ । आगे चलकर वफर
कहते हैं –
“ऐरसलू ! अर्नी बीवबयों और लड़वकयों तथा
मोवमनों की बीिीयों से कि दे, वक बि अर्ने ऊर्र दामन का
एक विस्सा डाल वलया करें । वफर अर्नी आूँखों र्र काबू
रक्खें. और अर्नी िया की विफाजत करें तथा अर्नी छिी र्र
र्रदा रक्खें और अर्नी-अर्नी लज्जा की विफ़ाजत करें । और
किायद (कानून) बनायें वक र्ड़ोवसनों के घर में वकसी तरि
दावखल न िों वजससे उनके काम मे बाधा ना र्ड़े ।”
“सुरि अखराब रकूब-छः"

अगर यह कायदे काननु जैनब क॑ घर जाने से पवहले बनाये


जाते तो जैनब का घर बच जाता और महु म्मद के नाम पर दाग
भी ना आता । मगर क्या परदे से मौवमनों को उनको करततू ों से
बचा वलया ? । बरु े काम के चाल चलन की सच्ची
दवा वदल का साफ़ होना है अगर महु म्मद इस
पर ज्यादा जोर देते तो शायद अपने दीन और दीन
के मानने वालों को ज्यादा बेकसरू छोड जीते । म्योर साहब

रंगीला रसल
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का एक वजक्र वकया है जो हज्ज क॑ वलए मक्का गयी थी
और अरब के व्यवहार का आखों देखा नक्शा इस प्रकार
खींचती है -
"औरतें अक्सर १०-१० शावदयाूँ कर लेती हैं।
वजन्होंने दो-दो खाववन्द वकये हैं उनकी तादाद बहुत कम है जो
अपने पवत को ब़िू ा होते देखती हैं या दसू रे से उसकी आूँख
लड जाती है तो वह मक्के शरीफ की सेवा में हावजर होती है
और मामला-फै सला करार अपने पवहले पवत को छोड देती हैं
और वकसी दसू रे से जो जवान तथा खबू सरू त हो उसके साथ
प्रेम पैदा कर लेती हैं। यह हैं परदे की बरकात” ।

िरम का वसंगार
मौजदू ा वजल्द का मजमनू रसल ू का दस्तरू खानदानी (गृहस्थ
ववर्य) है इसवलए हमने वकसी दसू रे मजमनू (गद्य) को इसमें
दावखल नहीं होने वदया, मगर इसमें इत्तेशना होगी, क्योंवक अब
वजन असमतमआब को महु म्मदी वसफि जौवजयत अदा करने
लगे हैं, वह के वल यहवदन है । मृहम्मद के इसरार (हठ) के
बाबजदू इसने अज्दवाज (व्यवभचार) से इन्कार वकया । पाठकों
के वलए इसका कारर् समझना कवठन होगा । अगर उन्हें
महु म्मद और अहले यहवदयों के आपस में मेल जोल का िोडा
सा हाल सनु ा वदया जाये तो अच्छा होगा देवखये-
वहज़रत के बाद महु म्मद को यहवदयों से तरह तरह

रंगीला रसल
ू / ३७
मजहब की तारीफ की और अपने मजहब की हक्कावनयत का
सवटिवफके ट भी उन्हीं से वलया और बाद में जब उसके बरु ाई का
कारर् बने जो काूँटे की तरह वदल में खटकने लगे एक वदन
आया जब उनका मसु हारा (घेराव) हो जाना सफल हुआ तब
उन्होने माफी मांगी तो फै सला हुआ वक उन्हें कत्ल कर वदया
जाये ।
सेंकडों यहदी जरा सी देर में तलवार के घाट उतार
वदये गये । वजनमें एक औरत को भी उनके फैं सले पर कत्ल कर
वदया गया।
मेहरबानी का सलक ू एक खबू सरू त औरत के साथ,
हुआ । वजसका नाम “रेिाना” था, उसे पवहले से ही सबके
बीच से हटा वदया गयी था, क्योंवक वह सन्ु दरता में ब़िी-च़िी
थी, जो महु म्मद के वलये ररजवि थी । महु म्मद ने उससे शादी की
दरख्वास्त की मगर उसने नामन्जरू कर वदया, उससे कहा गया
वक वह इस्लाम कबल ू कर ले, परन्तु वह इस पर भी राजी न
हुई । आवखर महु म्मद ने उसे लौंडी (रखैल) बना वलया और
इसी हालत में वह कुछ वदन तक जीती रही मगर बहुत साल
नहीं, आवखरकार वह अपनी कौम और अपनी खोई हुई
आबरू के गम में घल ु घलु कर मर गयी ।
बनीमस्ु तलक पर यद्ध ु करने का वजक्र हम आयशा
के पीछे रह जाने और तोहमतों (आिेपों) का वनशाना बनने के
समय कर चक ु े हैं । इस मवु हम में और मालोअस्बाब के साथ
“जोएररया” नामक एक यहवदन और आयी थी, उसकी

रंगीला रसल
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कीमत लगायी, तब महु म्मद के पास हुक्म भेजा गयां, महु म्मद
ने कीमत ब़िाने के बजाय पहली कौमत देकर ही उसे अपनी
बीवी बना वलया ज्यों ही “जोएररया” महु म्मद के कमरे में गई
त्नों ही आयशा ने उसकी सन्ु दरता देखकर ताड वलया वक यह
औरत अब वावपस न जायेगी । यह खटका पैदा हुआ हो या न
हुआ हो परन्तु वह समझ गयी थी वक एक सौवतन और ब़िने
को है और यही हुआ भी !
खैबर भी यहवदयों कौ एक बस्ती थी वजस पर महु सद ने च़िाई
की और उसे फ़तह कर वलया वजसमें उनका सरदार “कनान”
भी मारा गया बस उसकी बीवी हाथ आई महु मद ने उससे भी
दी का इरादा वकया वह राजी हो गई । अब मदीने वावपस जाने
की ताव वकसे ? वहीं पर वमट्टी के िेर बनाकर दस्तरखान
बनाये गये और उन पर खजरू ों, मक्खन, दही को दावत की गई
। नई दल्ु हन को संवारा गया और महु म्मद उसे एक कोठरी में
ले गये तथा महु म्मद के ववश्वासी लोगों ने उनके खेमे के आस
पास पहरा वदया वक कहीं बेदीन औरत अपने पवत का बदला
न चक ु ा बैठे ? मगर ऐसा नहीं हुआ ।
उस स्त्री के माथे पर जख्म का वनशान था । जब
महु म्मद ने उस जख्म के बारे में पछ
ू ा तो उसने जवाब वदया वक
मैने एक दफ़ा रात को ख्वाब में अपनी गोद में वगरते हुए चाूँद
को देखा और इस ख्वाब का माजरा मैंने अपने पवत से कह
वदया, पवत को शक्र हो गया और कहने लगा वक -
“िरामज़ादी- र्ैगम्बर के साथ शादी करना

रंगीला रसल
ू / ३९
बस !' वफर क्या था उसने गस्ु से मे आकर जोर से मेरे माथे पर
कोई लोहे की सींक दे मारी वजससे यह घाव पैदा हो गया ।
पाठक ! कुछ समझे, वजसके वदल में पहले से ही महु म्मद बसा
हो उसकी नेक चलनी के वलए क्या कहा जावे ? मौहम्मद
खैबर से मदीने वावपस आया तो वहां वफर महु म्मद ने
आबसू वफयां की लडकी “उस्मिबीबी' को अपनी स्त्री बनाया
था । सन् छह सौ तेईस ई० मे महु म्मद ने काबा का हज़ वकया ।
यह महु म्मद का पहला हज्न था । वजसकी आज्ञा काबा, के
पजु ाररयों ने महु म्मद को दी थी इस मौके पर भी महु म्मद ने
अपनी करततू ों से हाथ न खींचा । “मेमूता” नामक उसके चचा
अब्बास की वविवा स्त्री वहां मौजदू थी वजसकी उमर छब्बीस
वर्ि की थी और वह ररकते में भी महु म्मद के नजदीक की थी,
इसीवलए अपने चचा के कहने सनु ने पर महु म्मद ने उसे भी
अपने घर में रख वलया । मदीना की मवस्जद में जहां पहले नौ
कोठरी थीं अब दसवीं भी तैयार हो गई ।
यह तो महु म्मद की मनकूह (ब्याहता) बीवबयाूँ थीं
वजनको कुरान की रूह से महु म्मद ने दावहने हाथ से हावसल
वकया था , बाकी जो लौंवडयाूँ (रखैल) थी वह सब इनके
अलावा थीं ।
माररया
सन् छः सौ अट्ठाईस ई० में महु म्मद ने अपना गवनिर लकोकस
(वमस्त्र के एक उस ईसाई राजा) के पास भेजा परन्तु लकोकस
ने मौहम्मद के पैगम्बरी वाले

रंगीला रसल
ू / ४०
......
का ररकता कायम करने पर जरुर राजी हो गया, उसने दो
लौंवडया भी महु म्मद को भेजीं उनमें से एक का नाम “माररया”
 था ।
माररया को महु म्मद की अन्य बीबीयों की तरह
मवस्जद की कोठरी में जगह न वमली । क्योंवक यह लौंडी थी,
उसके वलए एक अलग से बाग तैयार वकया गया जहां महु म्मद
कभी-कभी जाते थे और उसके साथ समय वबताते थे ।
माररया के बारे में महु म्मद पर एक तोहमत (आिेप) लगायी
जाती हे वक ल वं डयाूँ रखना कुरान की रुह से जायज  है ?
महु म्मद के घर में लौंवडयां थी उन पर न महु म्मद की बीवबयों ने
एतराज वकया और न महु म्मद के पीरों (अनयु ाइयों) ने ।
एक दफ़ा कहीं से तीन ल वडयाूँ आई तो महु म्मद ने
१-१ अपने ससरु ों अबू बकर और उस्मान तथा एक अपने
दामाद अली को बतौर भेंट के दीं , आज की दवु नयाूँ उसे
शरमनाक विटाई ही कहेगी, वक अपने दामाद और ससरु ों के
साथ ऐसा मजवलसी याराना-बतािवा ? शाबास महु म्मद!
वहन्दस्ु तान में खसु र (ससरु ) वपता के दरजे का होता है और
दामाद बेटे के दरजे पर । इस प्रकार इज्जतदार बजगु ो और
अजीजों को ल वडया देना कोई भी भलामानस भला नहीं
कहता लेवकन उस जमाने में अरब के कुछ तौर तरीके
हदीस मवु स्लम तफसीर हुसैनी ।
सरू ये वनसाूँ रकूब-३ ।

रंगीला रसल
ू / ४१
फररकते की शहादत(गवाही) से एक चीज जायज कर दी तो
कौन है गैर मवु स्लम (कावफ़र) जो इस्लाम के पैग़म्बर पर
एतराज करे वक यह तो तमु ने नाजायज काम वकया ।

गजब यह है वक अब मसु लमानों को भी महु म्मद के


इस तजि (अमल) का काम खटकने लगा है । सैय्यद अमीर
अली इस बात को बगैर डकार वलए पी गये । ग़ैर मौलाना
वशबली इसकी हालत ही बदल देते हैं उनकी नजर में महु म्मद
के मकान में यह बात हुई ही नहीं कुरान में एक सरू ह आयी है
देवखये-
“या रसल ू ! तू क्यों अर्नी बीवबयों को खुश करने के
वलए िि चीज अर्ने र्र नाजायज समझता िै, जो अल्लाि ने
तुझ र्र जायज की- अल्लाि ने तुम्िारी कसमों के तोड़ने की
मंजूरी दे दी िै । रसलू ने एक राज़ (भेद) अर्नी बीबी को बताया
था, उसने दूसरी बीबी से उस राज़ के एक विस्से का वजक्र वकया
और दूसरा अर्ने वदल में रक्खा । इस र्र अल्लाि ने र्ूछा वक
आर्को वकसने बतलाया ? तब उन्िोंनें जबाब वदया, वक -
रसलू ने ! उसके बाद अल्ला ने जो सिपव्यार्क िै और सिपगुण
सम्र्न्न िै किा वक- अगर तुम दोनों (बीवबयां) तौबा करो- तो
अच्छा अन्यथा रसल ू ने अगर तुम्िें तलाक दे वदया, तो उसका
अल्लाि उसे तुम्िारी जगि र्र तुमसे अच्छी बीवबयाूँ देगा जो
अल्लाि की खावतरदारी करने िाली िोंगी और ईमान लाने
िाली िोंगी तथा र्ाक रिने िाली ि विश्वास रखने िाली और

रंगीला रसल
ू / ४२
र्िले शादी िो चुकी िै और िि भी जो कुूँिारी िै ूँ ।
(सरू ि तिरीम)

भाइयों क्या आप बतला सकते हैं वक -यह भेद कौन सा था जो


एक बीबी ने दसू री बीबी पर ज़ावहर वकया ? महु म्मद ने कौन
सी जायज चीज अपने ऊपर नाजायज कर ली ? गरीब बीववयों
को अल्ला से झाड क्यों वदलवाई गयी ?

हदीसों में आया हैं * वक एक वदन जब महु म्मद को


“हफसा” से वमलने की बारी आई तो हफसा पहले ही छुट्टी
लेकर नइहर चली गयी और उसके घर (कोठरी) में महु म्मद ने
“माररया” से घर बसा वलया, इतने में “हफसा” आ गयी वह
मौहम्मद का यह मनन्जर देख कर जल भनु गयी वक, उसकी
आरामगाह एक अवववावहत स्त्री से भरी हुई है, हाफ़सा के इस
गस्ु से को महु म्मद तरु न्त ताड गया और कहा- भागवान ! अगर
माररया के इस हाल का वजक्र तमु वकसी से न करो, तो मैं यह
प्रवतज्ञा करता हूँ वक वफर आगे से माररया के साथ कभी भी
सोहबत न होगी और मेरे बाद वखलाफत का हक्र तम्ु हारे बाप
का होगा ।

पाठकों ! बात थी, टल गई लेवकन “हफसा” को


अपने पर काबू न रह सका । और उसके इस समाचार के

* हदीस मवु स्लम तफ़्सीर हुसैनी।

रंगीला रसल
ू / ४३
स्वरुप आयशा की वनगरानी में बीवबयों को एक काूँवसल हुई
वजसमें सबने महु म्मद से मंहु फंर लेने का वनर्िय वलया ।
महु म्मद पैगम्बर ! और उस पर भी मदीना का एक मात्र
बादशाह ? उसने कहा वक ये बीवबयाूँ कौन से खेत की मल ू ी हैं,
जो मझु से रुखाई का बतािव करें ? उसने 'फौरन “वही” इल्हाम
वाले हवथयार का प्रयोग वकया और उसके आिार पर सब
बीवबयों का बायकाट करे वदया और महीने भर के वलए माररया
के यहाूँ डेरा डाल वदया तथा इन बीबीयों के वावलदों से कहा
वक लो वबगाड लो, जो तमु लोग मेरा कुछ वबगाड सको । इस
पर बहुत पेचीदा हालत हो गयी, उिर अबू बकर नाराज, उमर
नाराज, उस्मान नाराज, वक एक लौंडी की खावतर हमारी
बेवटयों से ताल्लकु छोड वदया है । महीना भर की जदु ाई के
बाद महु म्मद का वदल भी मल ु ायम हो गया(जो हफ़्सा के तेज
तरार गस्ु से से अच्छी तरह वावक्तफ था)और कहने लगा वक
अल्ला ने वसफाररश की है वक हफसा का कसरू माफ और
उसके साथ उसकी सब बवहनों का कसरू माफ ! खदु ा-खदु ा
करके रसल ू के घर अमन (चैन) हुआ-झगडा वमटा । “माररया”
से खास महु ब्बत होने का एक कारर् यह भी था वक उसके पेट
से बच्चा पैदा हो गया । महु म्मद के लडवकयां तो थीं लेवकन
लडके होकर मर गये थे, महु म्मद को वाररस वमला, शायद
काम का भी वाररस, जायदाद का भी वाररस, मकदजू ात का
और बडी बात तो यह थी वक खानदान की आन बान
का भी वाररस । लडका कौन न हीं चाहता ? सैयद अमीर

रंगीला रसल
ू / ४४
अली कहते हैं वक सूँभव है वक महु म्मद ने बाज शावदयाूँ
इसवलए ही की होंगी वक उसे औलाद नरीना (अच्छी सन्तान)
पाने की आरजू थी, वह आरजू भी वकसी दसू री बीबी को
हावसल नहीं हुई, अगर हुई भी तो वह भी उस लौंडी (माररया)
ही के भाग में पडी उसके उस नवजात पत्रु का नाम “इब्रावहम”
रक्खा गया वजसे पालने के वलए बकररयों का एक रे वड तैनात
वकया गया ।
एक वदन महु म्मद इब्रावहम को आयशा (अपनी
दसू री बीबी) के पास ले गया और उससे कहा वक- देख
महु म्मद की वनशानी है या नहीं ? खदािखाल (सरू त-शकल) में
रुप रंग में हबह महु म्मद है । आयशा को सौवतन के लडके से
नफ़रत थी । उसने कहा वक इसे वकसी और की समता
(बराबरी) दो, नाहक में अपनी सरू त की तौहीन मत करो,
महु म्मद ने उसका मोटा ताजा होमे का इशारा वकया, वक देख
कै सा बलवान लडका है ? इस पर आयशा बोली - वकसी की
खरु ाक में बकररयों का रे वड (गोल) दे दो तो वह भी फूल
जायेगा ।
हमने इस बात का वजक्र इसवलए वकया है वक बहुत
बीबी वालों को वशिा वमले । बाप ने औलाद को शक्ल
देखकर आूँखों से ठंडक पायी, वदल में खश ु ी मनाई, और नजर
में नरू की रोशनी का ज्ञान कर रहा है । और उिर बीवी है वक
सौत (सौतन) की डाह (द्वेर्) से जली जाती है ।
इब्रावहम की बदवकस्मती ही कवहये वक वह भी थोडे वदन
वजन्दा रहकर माूँ-बाप को छोडकर चल बसा, महु म्मद

रंगीला रसल
ू / ४५
की आूँखें आंसओ ु ं से डबडबा गई, नरू -पीरों, फ़कीरों ने अजि
की वक आप तो हमें सब्र करने का पाठ प़िाते थे, और आज
आपको क्या हुआ ? तब हजरत ने फरमाया और पैगम्बरी
शान से फरमाया वक आवखर मैं भी तो इन्सान हूँ, यहदी आह
जारी से मना करता ह,ूँ यह कौन कहता है वक जजबात (प्रेम)
से वदल को खाली कर दो ।
“महु म्मद मझु लेखक को तमु से प्यार है और वह
इसवलए है वक तू भी तो आवखर इन्सान है, तझु े भी औलाद
की आरजू है और बेटे के मर जाने का गम है, हाूँ ! अगर
कुदरत के काननू के मतु ावबक तू भी अमल करता और उस
परमात्मा के वनयम को न तोड्ता तो परमात्मा तेरी भी झोली
रिा के मोवतयों से भर देता ।”
हम हैरान हैं वक आवखर इस कतबी लौंडी के माजरे
पर लोग क्यों उंगली उठाते हैं ? खदु मसु लमान इसे काले हाथ
की तरह जेब में वछपाते हैं हम तो कहते हैं वक- या तो ल डं ी
रखने की रस्म कुरान से वमटाओ अन्यथा जब यह नहीं हो
सकता तो “हफसा” का गम और गस्ु सा तथा उसका ऊपर
कहा गया कथन वबल्कुल जायज है । क्योंवक मौहम्मद की
काली करततू ों से उसकी शान व जौवजयात में फकि आ
गया था, वक एक अदनी सी लौंडी उसके कमरे में
वनवास करे ? आयशा का गम व गस्ु सा भी जायज था
वक उसकी एक बहन की तौहीन हुई, उसकी

रंगीला रसल
ू / ४६
जोवजयात की तोहीन हुई, यही हक जौवजयात उसका अपना
था । उसका कौन सा हक जौवजयात मारा गया । जैनब जब
बगैर शादी के भी जायज पत्नी थी तो माररया क्यों नहीं ?
अल्लाह ने उसका भी वनकाह प़ि वदया । जहां दो वदल वमल
गये वहां अल्लाह ही काज़ी है और वजब्राइल गवाह है इस
बात का वक “माररया” महु म्मद की बीबी है ।

बीवबयों िाला िज़रत मुिम्मद


सभी वहन्दल ू ोग श्री कृ ष्र् को “बाूँसरु ी
वाला” कहते हैं । बाूँसरु ी ही श्री कृ ष्र् की अजमत (प्रशंसा) है
। बृन्दावनके जंगल, गायों के गल्ले, ग्वालोंके लडके और
लडवकयां, अयाना (अजीब) बाूँसरु ी वलए खडे हैं, और
जगं लकी चारों वदशाएूँ गजंू रही हैं, एकराग है वक जमीन व
आसमान पर छाया हुआ है की ग्वाले मस्त, ग्वावलनें मस्त,
गायें मस्त यहां तक की जंगल कं पेड और पत्ते तक मस्त हैं ।
यह कृ ष्र् का बचपन है । जवानी आई तो कंस को मारा,और
जरासन्ि को मारा, वहाूँ भी यद्ध ु के वलए रर्भेरी इसी बाूँसरु ी ने
फंू की थी, परन्तु जब श्री कृ ष्र् जी ब़िू े हुए तो जवानी की उमंगें
की जगह ब़िु ापे ने ले ली । अब वही बाूँसरु ी सभ्यता की जय ॑
में वबगडी को बनाती है भटके हुए (अजिनु ) को रास्ता बताती
है । कुरूिेत्र के मैदान में और कौन बोल रहा था ? यही
बाूँसरु ी तो, वजसके शब्द ईश्वरीय शब्द कहलाये जो भगवत
गीता के रुप में मौजदू हैं, इसी भगवदगीता के मानी है ।

रंगीला रसल
ू / ४७
“रिमानी नगमा” यही आज का कृ ष्र् है, वजन्दा कृ ष्र्! आूँखों
आगे, कानों के पास मौजदू कृ ष्र्, आह !! वजसकी अजमत
का एक शब्द कहा और कृ ष्र् की सारी वजन्दगी का नक्शा
सामने आ गया, वह शब्द क्या है ? वह है “बाूँसरु ी वाला”
आह ! क्या प्यारा नाम है ?
अब आप गरू ु गोववन्द वसंह जी को ही ले लीवजये
जो “कलगं ी िाला” कहलाते है । बादशाह तो इनसे पहले गरू ु
भी थे लेवकन कलगी (ताज) सबसे पहले गरू ु गोववन्द वस ह
ं जी
ने ही रक्खी थी । दसू रे खदु मख्ु त्यार कहां थे ? गरू ु ने
बाकायदा मैदान मारे और वकसी के कब्जे में न आया, यही
गरू
ु का यज्ञ था । यही लडाईयां थीं । कुरबानी थी और यही
मौत व आजादी थी ! खदु मख्ु त्यारी एक लपफ्ज (शब्द) में
यह सारे वाकयात शावमल हुए हैं जैसे फोनोग्राफ के ररकाडि
शाखा में गीत “कलंगीवाला" कहा है, और गरू ु गोववन्द वसंह
का मतलब वजद्दो जहद और जंगबदल यद्ध ु क्रांवत आवद सब
कह – वदये ।
ऋवर् दयानन्द का नाम पंजाब में “िेदों िाले” पडने
लगा है, ऋवर् का काम-वेद, ऋवर् का पैगाम-बेद, ऋवर् क्री
हयात (जीवन) ऋवर् की वफात (मौत) के बल वेद के प्रचार
का कारर् थी । ऋवर् का श्वासं -श्वासं वेदों का मत्रं था । “वेदों
वाला” मन भावना, नाम है यह नाम वलया और उसके वदल
को पा वलया अथाित् ऋवर् की रूह को समझ वलया ।
परन्तु मेरी समझ में नहीं आता है वक मैं अपने प्यारे

रंगीला रसल
ू / ४८
महु म्मद को ऐसा कौन सा नाम दूँू वजसमें महु म्मद की वजन्दगी
का परू ा फोटो आूँखों में उतर आये । मैंने महु म्मद की जीवनी
शरूु से अन्त तक प़िी, बडे ही मजे ले लेकर प़िी तथा बडी
ही महु ब्बत से प़िी, हकीकत (ववश्वास) से प़िी और जानना
चाहा वक आवखर वह ऐसा कौन सा तार है अथाित् वह ऐसा
कौन सा िागा है वजसमें महु म्मद की वजन्दगी का 'फल वपरोया
जा सके ? वजसमें ख्यालात के नक्शे बन जायें तथा कमि और
वार्ी जीती जागती तस्वीरें बन कर हावजर हों ।
महु म्मद को वजन्दगी का पहला परदा उस समय उठता है ज़ब
उसने माई खदु ीजा के साथ शादी करने की ठानी । इससे पहले
की कायिवाही इस शादी की एकमात्र तैयारी थी, हजरत ने
खदु ीजा से शादी की और महु म्मद “पैग़म्बर” बन गये ।

महु म्मद की पैगाम्बरी को सबसे पवहले वकसने मांना


? उसकी बीबी खदु ीजा ने । पैगाम्बरी में उसकी पीठ सबसे
पहले वकसने ठोकी ? खदु ीजा ने । मक्का की अदावत से
उसकी रिा वकसने की ? खदु ीजा के रसक ू ने । मैं कहता हूँ वक
पच्चीस साल की उमर से लेकर पचास साल तक की उमर
तक महु म्मद की वजन्दगी में अगर कोई कमाल है, तो वह
कमाल के वल खदु ीजा का है । कहते हैं वक महु म्मद उस वक्त
वाकई पैगम्बर था, अगर यह सच है, तो वाकई वह पैगाम्बरी
खदु ीजा की ही देन थी ।
परन्तु जब खदु ीजा मर गई, तो महु म्मद ने मक्का से
वहजरत की, और उसके बाद माई “सदू ा” से शादी की,

रंगीला रसल
ू / ४९
“आयशा” से शादी की, “हफसा” से शादी की । जैनब नं० १
“उफि -सलमा (बेटे की बहु)" से, जन॑ ब नं० २ “उफि -हबीबी
(दसू रे की बीबी) से, “मैमना” से, “ज्वेररया” से, इन सबसे तो
शादीयां की और कवती लौंडी “माररया” को थों ही (वबना
शादी वकये) अपने घर में रख वलया?
मौहम्मद पचास साल का था जब खदु ीजा की मौत
हुई, तथा बाूँसठ साल का था जब वह खदु मर गया । इन बारह
सालों के अरसे में ज़नाब ने दास औरतें कीं, यानी सवा साल
में एक औरत ! क्या हम महु म्मद पर बहुत ब्याह करने का दोर्
म़ि रहें हैं ? हरवगज नहीं, जबु ान जल जाय, अगर एक बात भी
महु म्मद के हक में ववश्वास के ववरूद्ध कोई बात जबु ान ॑ पर आ
तो जाय । और महात्मा गाूँिी ने उसे पववत्रता की सृवष्ट कहा है
। महु म्मद आप पाक, उसका ख्याल पाक, तब परमात्मा की
पववत्र सृवष्ट पर उसकी दृवष्ट न पडती तो और वकस पर फ्डती ?
हेनरी अष्टम जो इगं वलस्तान का बादशाह था, उसकी
सारी उम्र शादी और तलाक में गजु री उसकी बादशाहत के
हालात लम्बे चौडे थे वजन्हें याद करना भी मवु ककल था
आवखर मैंने इस तार को पकडा, उसकी बीवबयों के नाम याद
कर वलये, उनके हावसल करने और अपने से अलग कर देनें के
िंग याद कर वलए इसमें हेनरी की वाकयात से भरी तवाररख
(इवतहास) सब याद हो गई ।
हेनरी अष्टम ने छः शावदयाूँ की और उममें ही सारी
उम्र खतम की थी, महु म्मद ने वसफि बारह साल में उनसे कहां
ज्यादा शावदयां की हैं । बस ! महु म्मद की वजन्दगी हेनरी

रंगीला रसल
ू / ५०
अष्टम की वजन्दगी से वनस्््बत (मक ु ाबले) में कहीं ज्यादा
रंगीन कही जा सकती है ।
वमसाल के तौर पर वकसी लडाई में हज़रत को फतह
हावसल हुई । तो माना गया वक परमात्मा की पववत्र सृवष्ट की
सन्ु दरता आूँखों के सामने आयी है । बस ! वफर क्या था ? वहीं
महवफल जम गई, और लडाई में वजनके इष्ट वमत्र खो गये थे
वह तो रो रहे हैं । यतीमों को बाप का गम, वविवाओ ं को
पवतयों का गम, परन्तु क्या रंगीला रसल ू मातम परु सी
(शोकग्रवस्तयों के साथ सहानभु वू त) वदखाता है ? हरम
(ज़नानखाना) भी ब़िाता है, आठों पहर दल्ू हा बना हुआ है,
दावतें उड रही हैं, दो खजरू ें खाई और बीबी घर में रख ली, कई
अभावगनों तो सहु ावगनी हो गई ।
हज़रत आयशा महु म्मद की सबसे प्यारी बीबी फ़रमाती
है वक महु म्मद को तीन चीजें प्यारी थीं । प्रथम औरत, दसु रे इत्र
आवद, तीसरे खाना । खाने पीने की तो कमी ही न रही, रही इत्र
आवद की बात! वह तो इच्छानसु ार ही वमला क्योंवक औरतें तो
हजरत के वलए पसंदीदा खेल थीं । इन हालातों में अगर मैं
अपने इस रंगीले रसल ू को “बीवबयों बाला'” कह दूँू तो कया
वावजब (उवचत) न होगा ? बीवबयों वाला कहा और महु म्मद
को पा वलया, महु म्मद की रूह को पा वलया । उसकी असली
रंगीली तस्वीर आखों के सामने आकर खडी हो गयी ।
जैसे कृ ष्र् - “बाूँसरु ी वाला" है, गरूु गोववन्द वसंह
“कलंगी वाला" है, राम “कमान वाला” है, दयानन्द '' वेदों
वाला'' है, वैसे ही महु म्मद “बीवबयों वाला" है जो सब

रंगीला रसल
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पैगम्बरों की शान है और महु म्मद की शान उसकी बीवबयाूँ
हैं इसीवलए- बोलो ! “बीवबयों िाले की जय”।

मुिम्मद का तजुबाप
मैं महु म्मद पर क्यों वफदा होता हूँ ? क्या इसवलए वक
उसने बारह बीवबयाूँ की थीं ? नहीं-नहीं,भाईयों मे ूँ आप लोगों
को आगाह (ख़बरदार) कर देना चाहता हूँ वक- बीवबयों से घर
भर लेना कोई बजु गु ी नहीं है । हम पहले ही कह आये हैं वक
यह िक ु महु म्मद के वलये कडवा घूँटु था बवल्क महु म्मद की
बडाई उसमें है वक उसने इस कडुवे घूँटू से दवाई का काम
वलया । ज्यों-२ तजबु ाि ब़िा त्यों-२ बहुत सी बातों का कायल
होता गया । अथाित् अपनी गलती मानता गया । पहले तो
मौवमनों की बीवबयों पर संख्या की कोई कै द ( शति ) न थी
परन्तु बाद में चार की आज्ञा दी ।
“सरू ये वनसा-आयत-चार”

इस पर भी यह शति लगाई वक-“अगर तुम उन्िीं में


न्याय कर सको तो तभी इतनी बीवबयाूँ करना" । यही नहीं इसी
सरू ये में बवल्क इसी साूँस में कहा है वक - “इन्साफ (न्याय) न
कर सकोगे ”। भाइयों मैं कहना चाहता हूँ वक यह बहुत सी
शावदयों की रूकावट न थी तो और क्या था ? अपने आप तो
ब़िु ापे से मजबरू था,वक वजस्म (शरीर). के साथ कल्पना शवक्त
भी िीर् हो गई थी परन्तु जो आदत पड गई, उसके वलए क्या

रंगीला रसल
ू / ५२
वकया जावे ? उसे इस उम्र में बदलना बहुत मवु ककल था । हाूँ
अपने अनयु ाइयों के वलए “मन नकदपम शुभा िुजूर बकुनदे”
(मैंने तो परहेज नहीं वकया तमु करना) का मसला छोड गया
और आप भी अगर पवहले जनम की कायिवावहयों को याद कर
दसू रा जन्म लेता तो एक से अविक वस्त्रयां रखने से कानों पर
हाथ रखता । क्या! “माररया” का मामला उसे याद न था ?
जब सारी वक सारी बीवबयों ने सावजश करके ब़िू े की नाक में
दम कर वदया था । खाना खराबी अलग, इज्जत की बरबादी
अलग, वफर यह भी खैररयत थी वक वकसी स्त्री से लडक॒ ा पैदा
नहीं हुआ था वरना इब्रावहम का आयशा के सामने लाया
जाना और उसका उसकी सरू त शकल देखकर नाक भौं च़िाना
! अक्लमन्दों को इशारा ही काफी है, अली और आयशा में
भी एक वाह (घृर्ा सचू क शब्द) जो महु म्मद की छाती में
रोजाना खटका करता था उसे मालमू था वक मैं अपने दीन के
मकवल्लदों (अनयु ाइयों) को एक घनु लगा चला हूँ जो इन्हें
िीरे -िीरे बरबाद कर देगा ।
इस पर सवाल हो सकता है वक साफ शब्दों में
अविक बीवबयाूँ करने को रुकावट क्यों न कर दी ? परन्तु
हजरत की ऐसी साफगोई (स्पष्ट भार्र्) में अपनी वमसाल
मानय ( रुकावट डालने वाली ) थी । स्वयं बारह बीवबयाूँ करने
वाला दसू रों को वशिा दे वक तमु एक से ज्यादा न करो, कुछ
हद से ज्यादा जरु ि ती (ताकत) का काम था । उसे अपनी
पैगाम्बरी की फ़जीलत (बजु गु ी) आम मसु लमानों से वतगनु ें की
आज्ञा तो दी गई इससे ज्यादा की

रंगीला रसल
ू / ५३
“खावतमल ु मर सलीन” (आवखरी पैगेम्बर) को आज्ञा देना
उसकी ख़ास शान भी तो नहीं है सकती थी । हम “सैयद अमीर
अली” के साथ सहमत हैं वक इस आयत के कुछ मायने नहीं ।
अगर इसमें ज्यादा शादी करने को रोक टोक नहीं, हैं। ! शब्दों
में िील रह गई, वजरूका बरु ा नतीजा इस्लाम आज तक उठा
रहा है । मल्ु ला इन्साफ के माने (अथि) लेते हैं “खाने पीने का
प्रबन्ि कर देना” हालावं क सैयद अमीर अली इस शब्द से
महु ब्बत की मसाबात (बराबरी) वदली जोश तक में रुररआयत
न रखना आवद-२ मरु ाद (आशय) लेते हैं उसका कौल(कथन)
है वक ऐसा न्याय मनु ष्य शवक्त से बाहर है । इसवलए कुरान की
यह आयत “बहु वववाह” की स्पष्ट रूकावट है । हम “सैयद
अमीर अली साहब” के ख्याल को सही मानते हैं । वह
इसवलए वक महु म्मद को इस उमर में हरों को याद भी नहीं
आई, जबवक दसू री तरफ जमील जो हरों से तंग आया हुआ
बवहस्त में भी कानों पर हाथ घरता है ।
अगर अहले इस्लाम महु म्मद की वहदायत (नसीहत)
पर अमल नहीं करते और फकीरों की तशरीही (साफ़ ब्यानी)
ने महु म्मी शादी को एक बहुत पेंच दरपेंच मसला (ववचारर्ीय
ववर्य) बना वदया है तो इसमें वजम्मेदारी कुछ तो अहले
इस्लाम की अपनी सभ्यता कौ कमजोरी पर है वजन्होंने
खलीफों की इन्रीय लोलपु ता के वलहाज में आकर जायज को
नाजायज करार दे वदया और वफर इस ररवाज का बहुत बरु ा
फायदा खदु उठा रहे हैं और कुछ नसीहत में इशारा
तक ही संतोर् वकये जाने का अवगर्ु है । तो

रंगीला रसल
ू / ५४
भी इस सत्यता क॑ वलए हम महु म्मद की तारीफ वकए वबना
नहीं रह सकते और अपने. मसु लमान भाइयों को सलाह देते हैं
वक इस “रंगीले रसल ू " की वजन्दगी से नसीहत (वशिा)
हावसल करें और उसकी दोस्ताना वशिा पर उसके शब्दों पर
उल्टे सीिे स्वप्नफल (इल्हाम) पर अमल न करें ।
मझु े महु म्मद पर क्यों यकीदा है ? क्या इसवलए वक
उसने अपने हमवजन्सों (अनयु ाइयों) को औरतों के तलाक की
इजाजत दी है और मैं उसका हमवजन्स हूँ । नहीं! नहीं !!
बवल्क तलाक की इजाजत से तो शादी एक आरजी (बनावटी)
ररकता रह जाता है और गृहस्थी का प्रबन्ि स्थाई रूप से नहीं
होता । बेगम सावहबा भपू ाल ! का तजरु बा जो उन्हें अरब के
हज करने के दौरान अरब की औरतों के बारे में हुआ है वह इस
बात का प्रत्यि प्रमार् हैं वक जब शादी बच्चों का खेल हो तो
उसमें गम्भीरता आ ही नहीं सकती यह कारर् है वक बेगम
सावहबा को अरब में बहुत कम ऐसो औरतें वमली वजन्होंने दो
से कम पवत वकये हों बवल्क इसके ववरूद्ध दस-दस पवतयों की
घरवावलयाूँ भी देखने में आयी । जब एक जावत (ववशेर्) को
तलाक की खल ु ी छूट दे दी जावे और दसू री को पवतव्रता रहने
का पाबन्द वकया जावे, तो वह दसू री (पवतव्रता) भी अपनी
मखु ावलसा (प्रेमालाप) का बहाना वनकाल ही लेगी ।
हमें देखना यह है वक महु म्मद इस बारे में क्या कहता है ?
कुरान में पहला वजक्र औरत का वहां आता है जहां उसे मंजरू ी
देने कीं ताकीद (वज़द) की गई है । -
“सरू येवनसा”

रंगीला रसल
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पैसे देकर अस्तीत्व खरीदने में पाप नहीं समझा । अतएव
जबदिस्ती से कुछ अच्छी ही सरू त है । अस्तीत्व की कीमत
लगाई है, यही सही रसल ू के वजन्स अनास (वप्रय वस्त)ु पर
अगवर्त रहमत है, यह हुई रहमत नम्बर एक । इसी को अरबी
जबु ान में “मतअ” कहा गया है । ईरान में अब तक इसका
ररवाज है, लेवकन इरावनयों का गनु ाह महु म्मद के मत्थे नहीं
म़िा जा सकता, क्योंवक ईरावनयों ने तो एक आयत प़िी और
बस वहीं गल ु महु म्मद हो गये ।

महु म्मद ने आगे तरक्की की, शादी को, इस आरजी


(बनावटी) िवर्क ररकते से ज्यादा समय वाला बनाया, यहां
तक़ की तलाक पर अदरदें (सख्ं या) लगा दी तावक कोई वमयाूँ
अगर अपनी बीवी से रुठ गया हो और उसका वदल तलाक के
बाद भी दोबारा उसी की तरफ चला जाये तो कहीं कमान से
वनकले हुए तीर का उदाहरर् न हो जाय इसवलए साफ कह
वदया वक पहले तीन तलाकों में हर एक के बाद तीन-तीन माह
तक बगैर शादी वकये रहना चावहए परन्तु यह काननू वसफ़ि
औरतों के वलए है, मदों के वलए नहीं । वह अगर दो भी कर
लेगा तो भी कुरान की हद (सीमा)में ही रहेगा, एक आयत को
न सही दसू री आयत की सही । क्या खरा मजाक हैं ?
यही नहीं वफर “िलाला” की क़ै द (पाबन्दी) लगाई
है वक अगर कोई नटखट शौहर ऐसा ही हो वक बार-बार
तलाक देता जाय तो उसे तीसरी बार यह काम करते हुए कुछ
वझझक हो, अत: काननू बना वदया वक तीसरे तलाक

रंगीला रसल
ू / ५६
के बाद बीबी अपने खावबन्द से उस समय ब्याहीं जाये जब
उम्तकी वनस्बत (प्रेम सम्बन्ि) दसू रे आदमी से हो जाये, यहां
नहीं एक साथ बसगं (एक वबस्तर पर रात गजु ार लें) भी कर
लेवें ।
“सरू ये बकर रकुअ उन्तीस”

लोग कहेंगे वक यह रस्म तो लज्जाहीन है “सैयद अमीर अली”


वलखते हैं वक यह अरब की शमि (लाज) को उकसावा देने के
वलए है । रसल ू का मतलब यह था वक दो से ज्यादा तलाक
वकसी औरत को न वमलें ।
“िलाला” अमल में लाया जायेगा यह कयास
(ख्याल) तो रसल ू को कभी हुआ ही नहीं । हमें सही बात
मानने में कुछ उज्र नहीं हम नाहक में अपने मसु लमान भाइयों
को हलाला जैसी लज्जाजनक परम्परा का पाबन्द नहीं देखना
चाहते । यद्यवप हमारी समझ में इस बरु ी रस्म के अदा वकये
जाने की कुछ वमसालें मौजदू हैं । गलती काननू बनाने में हुई है,
महु म्मद की नीयत का इसमें कुछ भी कसरू नहीं है ।
“सैयद अमीर अली'' वलखते हैं, वक इस आयत के
आगे वफर एक और आयत वनकाह के अध्याय में ही आई है ।
इससे “हलाला” के हुक्म को रद्द करना ही समझना चावहए,
यह रबायत आनरे बल ु की अके ली राय है । लेवकन
हमारी सर आूँखों पर ! हम तो सारे कुरान को एक
तरफ से मन्सख ू (रद्द) करने को तैयार हैं, उनके अपने
कुरानी भाई उनकी सलाह मान लें तो “हलाला” से छुट्टी

रंगीला रसल
ू / ५७
हो भी जाये तो भी तलाक की बला तो वसर पर ही सवार रही,
ज्यादा देर न सही दो ही दफा सही । वह अलबत्ता कुछ
बरु ाइयों का कारर् है । हजरत ने खदु जैनब (अपनी पत्रु विु
अथाित् अपने बेटे ज़ैद की बहु) को तलाक वदलवाया था ।
कहकर न सही, इशारों से ही सही वजसका क़ुरान ने सारा भेद
खोल वदया वक उस समय हज़रत के वदल पर कुछ और ही
कै वफ़यत शजु र रही थी । जबु ान के बयान से वह कै वफ़यत
(दशा) बाहर थी हजरत वदल ही वदल में अपनी इस हरकत से
पछताये वक परदे की पाबवन्दयाूँ सब इस बात की गवाह हैं वक
हजरत को अपनी और जैनब की बेबाक (वनडर) नजर शाक्र
(असह्य) थी। वहीं बेबाक (वनडर) नजर ही तो तलाक का
कारर् बनी थी । हजरत अपनी बीवबयों से भी तो नाराज हुए थे
वजंसक॑ कारर् महीने भर तक उन्हें अपने वहज्र (जदु ाई) में और
अपने को उनके वहज़ में तडफाया था । उस समय तलाक क्यों
वदया ? बवल्क उल्टा उन सभी बीवबयों पर बहुत वबगडे और
अल्लावमयाूँ की मारफत वचट्ठी पत्री यानी सन्देश भेजे और
ठहलाक की िमकों भी दी लेवकन तलाक नहीं वदया ,
रबायत(पाठ)इस प्रकार हैं वक-
“जब सदू ा बढू ी िो गई तो िज़रत उसे तलाक देने र्र तैयार िो
गये लेवकन सदू ा ने अर्ना नम्बर आयशा के वलए बदल वदया,
और अल्लावमयाूँ की वसफाररश से मुिम्मद तलाक की गुनाि
से और सदू ा बेकसाना बारी के अज़ाब (र्ार्) से बच गई” ।

“मुवस्लम वजल्द रकूब”

रंगीला रसल
ू / ५८
असल में महु म्मद तलाक को बरु ा मानते थे । अजी एक हदीस
मौजदू है और हम तो कुरान को भी हदीस ही समझते है क्यों
अल्लावमयाूँ को कोई चीज ऐसी नाखश ु नहीं करती जैसी
अपनी घरवाली को तलाक देना अथाित् कोई ऐसे खश ु नहीं
करती जैसे गलु ाम को आजाद करना ।
“इब्नमाजा अिािाबल
ु वनकाि”

हजरत ने मरते दम तक खदु ा को खश ु रक्खा, हजरत ने भर


कर बीवबयाूँ की और उनमें से एक को भी तलाक हीं वदया ।
वाह ! आले महु म्मद ! उम्मत (िमािनयु ायी) हम्मद !! महु म्मद
की अकल पर पास (वनरीिर्) करो। तलाक नाजायज !
तलाक नाजायज !! तलाक वबलकुल नाजायज !!!
––––––––....–––––––

नोट:-
अब आर् िज़रत मौिम्मद सािब के
बारे में विशेष जानकारी ि उनके रंगीले जीिन
के विशेष अनुभिों का अबलोकन भी अगले
र्ृष्ठों में करें !
धन्यिाद !!
रंगीला रसल
ू / ५९
कौसे कजा (इन्रधनषु )
पाठक ! तनू े “रंगीले रसल ू ” की वजन्दगी के कई रंग मल
ु ावहजा
(जानकारी) वकये । क्या कोई रंग तझु पर भी च़िा ? महु म्मद
तजरु बेकार (अनभु वी) पैगम्बर था-उसके तजरु बे से फायदा
उठा । देख ! रंगीले का रंग एक नहीं ? ब्लवक परू ा कौसेकज़ा
(इन्रिनर्ु ) है । वजसमें सातों रंग मौजदू हैं ।
१. पच्चीस वर्ि तक ब्रह्मचयि का पालन कररये, जैसे
महु म्मद ने अपनी वजन्दगी के २५ वर्ि ब्रह्मचयिपवू िक गजु ारे ,
मगर हाूँ कभी वदल में काली रात के शगु ल ( काम वासना
सम्बन्िी मनोंरजन ) का ध्यान न लाना ।
२. अपने जीवन में भल ू कर भी चालीस वर्ि की
बवु िया से शादी न कररयो, बवल्क अगर वकसी बजु गु ि स्त्री की
गोद में लेटना ही हो व अपने (यतीमी) अनाथपन का गम
वमटाना ही हो तो उसे माूँ बना लीवजयो परन्तु बीबी कदावप
नहीं ।
३. वकसी खेलती गवु डयासे शादी न कररये नहीं तो
गवु डयाखेलती होगी और अगर पीछे (वविवा के रुप में) रही
तो वसर को रोवेगी, हाूँ ! अगरचे उस पर वदल आ ही जावे तो
उसे अपनी लडकी बना लीवजए ।
४. बह अपने लडके की बीब. हो या गोद वलए हुए
(मतु बन्ने) की बह हो उसे अपनी लडकी ही समवझयो नहीं तो
नाहक में ही वचकें (परदे) डलबाता वफरे गा । तथा दवु नयाूँ भर में
हुस्न पर परदे और पहरे लगवाता वफरे गा ।
५. लौंडी जायज नहीं होती उसकी औलाद को

रंगीला रसल
ू / ६०
बीवबयाूँ तस्लीम (स्वीकार) नहीं करतीं, उसके सहु ाग से भी
जलती हैं और दल्ू हे की इशरत (भोग ववलास) में दखल देती ।
६. बीबी एक से ज्यादा अजाब (झगडा), घर का
अजाब, बाहर का अजाब, रुह का अजाब, न वखलवत
(तनहाई) में चेन न जलवत (महवफल) में चैन, जो आपस में
लडे तो आफत । जो एका (संगठन) करें तो कयामत ।
७. जैसे अपनी बेवा को दसू रों की माूँ कहता है । नहीं
बवल्क अल्लावमयां से कहलवाता है । ऐसे ही दसु रे की
ववध्वाओ ं को भी अपनी मायें समवझयो, यह “वही” है अथाित्
यह अल्लावमयां का हुक्म हैं । अच्छा हज़रत-रुखसत (आज्ञा)
। रसालत (पैगाम्बरी) के नाटक का यह अदभतु दृकय खत्म
हुआ- वफर कभी वकसी दसू रे दृकय क्रो लेकर हावजर होंगे,
अच्छा ! खदु ा हावफ़ज !! ।
। । इवत । ।
नोट:
पाठक ! अभी तनू े अपने प्यारे रसल ु के अमल्ू य
अनभु वों का लाभ उठाया, अब आगे अपने प्यारे , रंगीले,
छबीले और रसीले रसल ू की रंगीली बातों से भी तो लाभ उठा
तावक तेरा यह मनष्ु य जीवन' सफल हो सके ।
–––––०–––––

रंगीला रसल
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रंगीले रसूल की कुछ रंगीली बातें
१. एक बार हजरत से एक शख्स ने पछू ा-“या रसल

अल्ला ! मैं औरतों का बड़ा िरीस (भूखा) िूँ इसवलए उन्िें
औधा ं (उल्टा) डालकर भी जमाअ (सभ ं ोग) करता िूँ इसमें
आर् क्या फरमाते िैं ?” इसी सवाल के वाल्ते हज़रत के द्वारा
तभी एक आयत नावज़ल हुई वक “औरतें तुम्िारी खेवतयाूँ िैं उन
र्र, वजधर से चािो उधर से जमाअ (सभ ं ोग) करो” । हजरत ने
यह भी फरमाया वक “अर्नी ओर से वचत्त-र्ट अथापत वकसी
भी वस्थवत में जमाअ (सभं ोग) करना दुरस्त िै ।”

“दरमन्सरू वजल्दअव्िल मतबुआवमसर सफा – दो सौ बाूँसठ”

२. एक औरत ने हजरत से पछू ा वक-हजरू ! हमारा


शौहर हमसे वचत्त-पट दोनों तरफ से जमाअ (संभोग) करता है.
क्या यह वावज़ब्र है ? तब हजरत ने फरमाया वक- - "क्या िरज
िै अगर सरु ाख िािद (एक) िो"।

३. एक व्यवक्त ने हुजरू से पछू ा वक हाथ से काम


अथाित् हस्तमैथनु करने पर कया रोजे को ज़लक नही लगता
अथाित् रोजा नहीं टूटता ? तब हज़रत ने फ़रमाया वक-
“गैरइम्जाल (िीयप न वनकलने की वस्थवत ) में जायज िै" ।
आगे वफर इसी सवाल के जवाब में हजरत ने यह भी कहा है
वक-“सोहबत तेज करने के वहसाब से तो जायज नहीं । हाूँ अगर
तस्कौन सोहवत (संभोग की तसल्ली को गरज से वकया जाये तो

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जलक लगाने वाला (हस्त मैथनु करने वाला) गनु हगार न होगा ।
तथा जब वकसी चौपाये वावमयत से जमाअ (संभोग) वकया जाय और
खलास न हो तो उस वस्थवत में रोजा फावसद (खराब) नहीं होता" ।
“दरमन्सरू सफा २६२ फातावी-
काजीखाूँ वजल्दअव्वल-
वकताबलु सोम-
फसलखावमस”

४. एक रोज हज़रत की वखदमत में सफबान


वबनमअ ु तल की जीजी उस वक्त हावजर हुई जब हजरत
रजीउल्ला भी वहाूँ हावजर थे, तब उनको बीबी ने पछू ा या
रसलू ल्ला! जब मैं नमाज प़िती हूँ, तो मझु े जमाआ (संभोग) न
कराने पर नमाज नहीं प़िने देता, मारता है ! जब रोजा रखती हूँ
तो जमाअ (सभं ोग) करके , अफ़तार (खवं डंत) कर देता है
रोजाना सबु ह तक मशगल ू जमाअ (सभं ोग में व्यस्त) रहता है ।
इस वाकया को सनु कर हजरत ने फरमाया, वक- “कोई औरत
वबना इजाजत शौिर के रणेजा नमाज न रक्खे !।
“तलिीसलु शिाि वजल्दशाि चार सफा अड़तालीस”

५. एक व्यवक्त ने हज़रत मौहम्मद से अरज वकया वक


हुजरू अगर मदि कंबल गैरइन्ज़ाल (वबना वीयिपात हुए) के
कारर् औरत से जदु ा हो जाये तो क्या करे ? इस

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पर आपने फ़रमाया वक - '' वसफ़प जाकर धो डाले और िजू
(िाथ धोकर) करके नमाज़ र्ढ ले ! ''
पाठक ! अब तो तनू े एक महान अनभु वी पैग़म्बर के
महान अनभु व भी प्राप्त कर वलए, इसवलए अब तो कम से कम
तहेवदल से एक बार ज़ोर से कह दें वक-
“महान अनभु वी पैग़म्बर की जय” !!
।। समाप्त ।।
नोट-
इस पस्ु तेक में वजल-वजन पस्ु तकों से हवाले वदये गये
हैं उन सबको के वल "सन्ु नी मसु लमान" ही प्रामावर्क मानतेह।ै

जवशेष :– पाठकों के लिए कुछ और बातें प्रमाण सलित आगे


पररलिष्ट में दी गयी िैं; जो की मूि पस्ु तक का अंग निी िैं,
परन्तु इस्िाम और िजरत मिु म्मद की “मिानता” को
उजागर करती िैं; पाठक इनको भी पढ़ें और िजरत सािब
के जीवन और चररत्र दोनों को और गिराई से जाने ।
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:: पररजशष्ट ::
सम्भोग की तैय्यारी :
ू ल्लाह ने फ़रमाया : “औरतें अपने पवतयों के घर में आने से पवहले
रसल
अपने नीचे के बाल साफ़ करके रखें ।” – सिीि बुखारी 7/62/173
वासना शांत करने हेतु पत्नी से सम्भोग :
रसलू ल्लाह ने फ़रमाया:“अगर कोई मदि वकसी पराई औरत को को
देखे और उसके वदल पर असर हो जाये, तो मदि को चावहए की वो
अपनी अपनी बीवी के पास जाकर सम्भोग क रे ।” मुवस्लम. 8/3240
पत्नी का दधू पीना िायज़ है :
याहया वबन मावलक ने कहा वक मैं अपनी पत्नी के स्तनों से दूि पीता
हूँ क्या यह हराम है ? तब अबू मूसने कहा वक इसे रसूल ने जायज
कहा है .और मैं दो सालों से यही कर रहा हूँ ।"मवलक मुित्ता 30/015
पकड़ी गयी औरतों से बलात्कार िायज़ है :
इब्न अब्बास ने कहा “तुम्हें पकडी गई औरतों से पूछने की जरूरत नही
है वक वह सम्भोग के वलए राजी हैं या नहीं .तुम जबरदस्ती सम्भोग कर
सकते हो उनकी इच्छा का कोई महत्त्व नहीं है ।” म.म.ु 29/100
कुंवारी लड़जकयााँ सम्भोग के जलए उत्तम हैं :
अल्ला के रसल ू ने कहा: “कंु वारी और अित योनी लडवकयाूँ उत्तम
होती है ।” सिीि बुखारी 7/62/16
ू ने कहा वक, “कंु वारी कन्या के साथ सम्भोग करने में अविक
रसल
आनंद आता है ।” सिीि मुवस्लम 8/3459
माहवारी के दौरान सम्भोग :
"आयशा ने कहा, “रसूल उस समय भी सम्भोग करते थे जब मैं
माहवारी में होती थी ।" सिीि बुखारी 3/33/247

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आयशा ने कहा वक, “जब भी मैं मावसक में होती थी रसूल मेरी योनी
से स्राव साफ करके सम्भोग वकया करते थे” स. मुवस्लम 3/658
"यवद स्त्री की योनी से मावसक स्राव अविक बह रहा हो तो ,पवहले
योनी से स्राव को साफ कर लें ,वफर तेल लगा कर सम्भोग करें .यही
तररका रसूल ने बताया है." स. मुवस्लम 3/647.
"अगर कोई गलती से पत्नी के आलावा वकसी ऐसी स्त्री से सम्भोग
करे ,जो मावसक से हो ,तो उसे प्रायवश्चत के वलए आिा दीनार खैरात
कर देना चावहए ।" अबू दाऊद -वकताब 11 िदीस 2164
हिरत मौहम्मद की सम्भोग जवजध :
आयशा ने बताया वक ,"जब रसूल और मैं सम्भोग के बाद गंदे हो
जाते थे ,तो रसूल वबना पानी छुए ही मेरे पास सो जाते थे .और उठकर
नमाज के वलए चले जाते थे ।" अबू दाऊद. 1/42
आयशा ने कहा वक “जब सम्भोग के बाद एअसुल गंदे हो जाते थे ,तो
उसी हालत में सो जाते थे ,वफर बाद में उठ जाने पर बाजार या नमाज
के वलए चले जाते थे .उनके कपडों पर वीयि के दाग साफ वदखाई देते
थे," अबू दाऊद 1/228
आयशा ने कहा वक, "जब सम्भोग के बाद रसूल के कपडों पर वीयि
सुख जाता था .और दाग पड जाता था तो मैं अपने नाखूनों से वीयि के
दागों को खुरच देती थी .रसूल वही कपडे पवहन कर नमाज के वलए
चले जाते थे ।" अबू दाऊद -वकताब 11 िदीस 2161
वीयय का स्वाद और रंग :
ने उम्म सलेम को बताया वक “पुरुर्ों के वीयि का रंग सफ़े द होता है
और गा़िा होता है .और बेस्वाद होता है .लेवकन स्त्री का वीयि पतला
,पीला और तल्ख़ होता है " अबू दाऊद -वकताब 3 िदीस 608.

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एक साथ सम्भोग :
याह्या वबन मवलक की रवायत है वक उबैदुल्ला इब्न उतवा इब्न मसूद
ने कहा वक उमर वबन खत्ताब ने वजहाद में एक माूँ और बेटी को पकड
वलया .और रसूल से पूछा क्या हम इन से एक एक करके सम्भोग करें
या अलग अलग ,रसूल ने कहा की “तुम दौनों से एक ही समय
सम्भोग कर सकते हो .इसकी अनुमवत है.लेवकन मैं इसे नापसंद करता
ह"ूँ मवलक मुित्ता-वकताब 28 िदीस 1433
वेश्या गमन :
ू ने कहा वक “वजहाद के समय मुसलमान एक रात के वलए भी
रसल
शादी कर सकते हैं ।" मुवस्लम -वकताब 8 िदीस 3253
हिरत का सम्भोग जवज्ञान :
अबू जुहरी ने कहा की रसूल ने कहा वक,तुम चाहे औरतों से आगे से
सम्भोग करो चाहे पीछे से ,परन्तु वलंग योनी के अन्दर ही प्रवेश होना
चावहए .नहीं तो संतान भेंगी होती है । मुवस्लम 8 िदीस 3365
िांघे :
"आयशा ने कहा वक “वजस समय मैं माहवारी में थी तभी रसूल आ
गए और मुझ से अपनी जांघें खोलने को कहा ,वफर नबी ने अपने
गाल मेरी जांघों पर रखे .मैंने उनके सर को जांघों में कस वलया और
वह उसी हालत में सोते रहे । अबू दाऊद-वकताब 1 / 270
औरतें भोग की वस्तु हैं :
यवद औरत की सम्भोग की इच्छा भी नहीं हो तब भी पवत उस से
जबरदस्ती सभोग करने का हकदार है .रसूल ने कहा वक अल्लाह ने
औरतों पर मदों को फजीलत दे रखी है । अबू दाऊद – 11 / 2044

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