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ाचीन भारत म शासन प त : पंचतं तथा कौ ट य के स तांग स दा त

सोनाली नरवरे
M.A. तीय वष
इ तहास वभाग(बी.एच.यू.)
तावना :- पंचतं का काल बौ दकाल एवं मौय सा ा य के काल के म य
का रहा है। जब क कौ ट य क अथशा क रचना स वतः तीसरी
शता द ई. पू. क मानी जाती है।1 पंचतं म राजतं सश सं ा तथा
राजा श का के है। रामा नणय क या पर नय ण रखता है।
म म ठल उसक कृ पा क आकां ा करता आ दखाई दे ता है। इस काल
म साम ती व ा ज म ले रही है। राजा क कृ पा से वमुख का सव व न
होता दखाई दे ता है।2
कौ ट य क अथशा म उन सभी साधन को बनाया गया है, जसम राजा
के व प का वकास हो।3 कौ ट य का मानना है क बना रा य कोई
राजा नही हो सकता। इस लए अथशा म रा य एवं उसके घटक का
ापक एवं त प परक व षे ण तुत कया गया है। अथशा म 15
अ धकरण, 150 अ याय तया 6000 ोक है। अ धकरण 1,2,5 तथा 6 का
स ब लोक शासन है। अ धकरण 6 म कौ ट य ने रा य के सात अंगो क
ववेचना क है। ये सात अंग है- वामी या राजा, आमा य या मं ी, जनपद या
लोग, ग, कोष, दं ड तथा म ।4 पंचतं के 5 भाग है - म भेद, म स ा त,
काकोलूक य, ल णाश तथा अपरी तकारक । इसका येक भाग
भारतीय राजतं पर वशद सामा ी उपल कराता है।5अगर हम कौ ट य
के रा य के स तांग स दा त से तुलना करे, तो इसका थम भाग - मु य प
से राजा तथा आमा य के वषय म, वैसे ही तीय भाग म के वषय म तथा
तृतीय भाग, दं ड (सश बल, गु तचर सेवा तथा पु लस), तीय तथा पंचम
भाग - कोष (धन) क ; वही थम तथा तृतीय भाग ग अथवा कले के वषय
म तथा येक भाग म जनपद अथवा जा के वषय म जानकारी ा त होती
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है।
कौ ट य के रा य के सात अंग म, कौ ट य ने येक अंग को रा य का
आव यक अवयव कहा है क तु उ हान राजा तथा रा य का धान माना है।
रा य म जनपद, पुर, सेना, कोष आ द का समावेश हो जाता है, तथा राजा
उसक शासन श का तीक है।6 इसी कार पंचतं भी राजा का रा य
का के मानता है। राजा का व राजनी त अथवा श के सापे
होता है। अतः इस कार पंचतं एवं कौ ट य के स तांग स ा त म म
राजतं क बात समान प म कही गई है। ये कहा जा कौ ट य सकता है। के
ारा बताये रा य के स तांग स दा त :- कौ ट य से पूव मनु, शु यह तथा
भी म ने भी स तांग स दा त का तपादन कया है। यह स दा त सावयव
स दा त पर आधा रत है। जस कार मानव शरीर व भ अंग से मलकर
बनता है। तथा सभी अंग का अपना वशेष मह व होता है। एक अंग म
वधान आने पर स ूण शरीर भा वत होता है। ठ क उसी कार स तांग
स दा त। क साता कृ तय का मह व है। इस स दा त का उद्गम ल
ऋ वेद के पु ष सू से आ है।
शु नी त म रा य के इन अंग क तुलना मानव शरीर के अंगो से करने को
कहा गया है। "इस शरीर पी रा य म राजा सर, आमा य आँख, कोष मुख,
जनपद जंघाएँ, सै य बल मन, ग हाथ तथा म कान के समान है।"7
कौ ट य के ारा तपा दत रा य के सात सात अंग अंग का का न न
उ लेख है -
1) राजा :- स तांग स दा त म सव थम ान राजा को दया गया है। राजा
क मह वपूण त के कारण उसे वामी नाम दया गया है। वामी का अथ
होता है। आदे श दे ने वाला अथात् राजा शासन क मु य धुरी होता है।
उसका येक अ दश सव तथा अ तम होता है। जसक अनदे खी रा य
क प र ध म कोई भी नही कर सकता है। कौ ट य अपने राजा को रा य के
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के वल एक शासक के प म नह दे खना चाहते, बा क वह तो उसे राज ष के


प म दे खना चाहते है।
राजा के बना दे श (रा य) नह होता तथा दे श के बना राजा नह होता।
अथात जतना मह व राजा का है, उतना ही रा य तथा जा का भी। राजा
को सुख तना के सुख म ही है, जा के हत म ही राजा का हत है। राजा का
द ड के अधीन रहकर जा का मय द का पालन करवाना चा हए।
कौ ट य अथशा म राजा के गुण :- महाकु लीन, दै वबु द ( दमागदार),
भावशाली, र- दश , धा मक स यवाद , एक बात कहने वाला, कृ त , उ
उ े यवाला, उ साही, शी काम करने वाला, ढ न यी, यो य, यो य मं य
से भरे दरबार करने वाला तथा श ा का इ ु क आ द वभा वक गुणवाला,
साथ ही राजा वनय ( नय ण) म रहने वाला हो, जानने क इ ा रखने
वाला, सर क बात सुनने वाला, सुनकर बात को हण अथवा धारण करने
वाला, वचारशीलता, उहापोह तथा सार प प रणाम पर ढ़ता । ये गुण भी
राजा म होन शौय, अमष, नणय चा हए। काय म शी ता तथा द ता ये
गुणभी राजा के लए आव यक है। राजाके लए इ य क वजय, काम,
ोध, लोभ, मान भय आ द का याग तथा शा के अ भ ाय को या वत
करना अ नवाय है।
कौ ट य ारा राजा को स पे काय :-
◆लोग का क याण सु न त करना तथा गभवती म हला , अनाथ
नवजात, नरा त तथा बुजगु को उ चत सहायता दे ना।
◆सभी मनु यो के धम या नधा रत कत , को बनाए रखना। को आंत रक
एवं बाहरी खतर से बचाना।
◆अकाल, आग, बाढ़ एवं सूरखा, महामारी, चूह,े सॉप तथा जलीय खतरे,
जंगली तथा ट य आ द, • जंगली जानवर (जैसे - बाघ) तथा मगरम क
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र ा करना एवं बुरी आ मा से जा क र ा करना है।


◆वै दक णाली पर आधा रत सावभौ मक एव मु त श ा अपने सभी
नाग रक को उपल करवाना।8
2) अमा य:- गुण:- उ कृ बु , मृ त, बु और बल होना, आ मसंयमी
तथा श प म नपुण, उपकार तथा अपकार ारा दं ड का ो ा, सनी नही,
ल ा-संकोच यु , वप य के नवारण म समथ, रदश दे श काल तथा
पु षाथ के स ब म तुत अवसर का भलीभाँ त योग करने वाला, स
तथा यु क समा त तथा सरे के साथ कये गये वाद को पूरा करने वाला,
श ु क नबलता का सही योग करने वाला, काम, ोध लोभ, ज ,
चपलता, ज दबाजी तथा उदासीनता से र हत तथा अपने रह य व स मान
को कायम रखने ए प रहास करने वाला, समयानुसार मु कु राकर तथा
कठोरतापूवक भाषण करने वाला, उ कृ कौ ट य ने च र वाला।9 कौ ट य
ने धम पधा (धा मक ), अथ पधा (धन के लालच म न आये), कामोपधा
(काम वासना से र हत) तथा भयोपधा ( जसे भयभीत न कया जा सके )
ारा परी त को उसक काय मता अनुसार काय स पना चा हए।10
काय:- आमा यो का काय जनपद क कम स , अपना तथा सर का
योग मे साधन, वप य का तीकार; खाली पड़ी ई भू म को बसाना तथा
उसक उ त करना, सेना का संगठन, करो का एक करना और अनु ह
द शत करना आ द। द ड का योग राजा के अधीन था, जो क आमा यवग
क सहायता से उसे यु करता था।11
3) जनपद:- रा य का तीसरा अंग जनपद है। कौ ट य ने जनपद नः ल. गुण
माने जाते है- ◆उसम पया त जगह होना चा हए, उसके म य तथा सीमा त
पर पुर(नगर) होने चा हए। ◆अपनी जनता का तथा वप के समय बाहय
लोग का भी पालन उसक पैदावार से हो सके , जसम आ मर ा के सब
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साधन हो; जो आ म नभर हो, जो राजा का पराभाव कर सके । ◆ जसम


साम त तथा पड़ोसी राजाओ को वश म करने क मता हो, जसम दलदल ,
प र वाली, ऊसर; ऊँची-नीची तथा काँटो भरी जमीन न हो, जो दे खने म
सु दर हो, जसम कृ ष यो य भू म, खान , हा थय तथा इमारती लकड़ी से
पूण जंगला क चुरता हो। जसम चारागाह, आरामदायक जलवायु, पालतू
पशु क चुरता, सचाई के के लए वषा के अलावा अ य साधन, जलमाग
एवं लमाग व वध कार के पदाथ का बाजार हो, सेना तथा कर का
बोझ उठाने वाले कमशील कसान, बु दमान जा तथा जहाँ प व आचरण
का पालन कया जाता हो।12 आचाय वशाला ने जनपद को आमा य क
तुलना म अ धक मह व दया है।
4) पुर या ग :- कौ ट य के अनुसार - "य द ग न हो तो कोश पर श ु
सुगमता से अपना अ धकार कर लेगा और यु के अवसर पर श ु के पराजय
के लए ग का ही आ य लेना होता है। सै यश का योग म वह से
भलीभाँ त कया जा सकता है। जनका ग सु ढ़ हो, उ ह परा त करना
सुगम नही होता।13
ग के कार:- जनपद क सीमा पर सा रा यक (यु द एवं दे श क र ा
के लए उपयोगी) ग, आव यकतानुसार औदक (नद या प के बीच) ग,
ा तर (ऊंचे टोले पर) ग, धा वन (रे ग तान या ऊसर भू म म) ग तथा वन
ग का नमाण कया जाए। राजधानी ग ( जसम राजपु ष, ा ण, श पी,
ापारी आ द सब कार क जनता का नवास हो, तथा जहाँ धन-धा य,
अ -श आ द का भुत मा ा म संचय कया गया है।14
5) कोश:- कोश के गुण :- कोश को धमपूवक अ धगत कया आ होना
चा हए, चाहे पूववत हो या राजा ने वयं उसे अ धगत कया होगा। कोश को
धानतया सुवण, रजत एवं सोने के स को, व वध रंग के तथा भारी र न
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से पूण होना चा हए और उसे मा ा म इतना अ धक होना चा हए क


सुद घकाल क वप के समय भी उससे नवाह कया जा सके । य क
कोश का सं ह जनता ारा वसूल कये गये कर से ही होता है। अतः उसका
संचय धम पूवक ही कया जाना चा हए।15
6) सेना या बल:-सेना के कार :- मौल (रा य के अपने नाग रक क सेना),
भृत, ेणी (सै नक क े णयाँ अथवा ग ) तथा आट वक (जंगल म
नवास करने वाली जा तय क सेना ) गुण :- सै नक ऐसे होने चा हए जो
अनुशा सत हो, उनक प नय एवं ब े भृ त से स तोष महसूस कर, जो
चरकाल क घर के बाहर रहने पर भी स तु रहे, सव अपरा जत, क
सहने वाले, यु द लड़ने क व ा म पारंगत हो, सभी अ -श के योग म
वशारद, उ कष एवं अपकष म एक समान, श ु को परा जत करने वाले।
मह वः - आ त रक व ोह, बाहय आ मण , जा क सुर ा नथा रा य क
स मृ द के लए आव यक।16
7) म :- रा य के लए आव यक है, क राजा को अ य राजा से म ता
का स ब भी ा पत करे। इसी कारण म को रा य के सात अंग के
अ तगत रखा गया है। म रा य ऐसा होना चा हए, जसके साथ पतृ
पतामह आ द के समय से मै ी स ब चला आ रहा हो, जो ायी हो,
जसम नय ण ं क स ा हो, जसे अपने व न कया जा सके और जो
शी ता के साथ बड़े पैमाने पर यु कर सकने म समथ हो।17
कौ ट य के अनुसार - " म ऐसे हो, जो वंश पर रागत हो, ायी हो, अपने
वश म रह सके , जनसे वरोध क स ावना न हो, भुम एवं उ साह आ द
श य से यु हो, समय आने पर सहायता कर सके । म म इन गुण का
होना म स कहा जा सकता है।"
इस कार कौ ट य के स तांग स ा त म सात त व का सापे त मह व
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है। एक त व के कमजोर होने पर सब त व भा वत होते ह। तथा इनक


प र सहयोग से ही रा य क व ा का सफल संचालन हो सकता।18
★ पंचतं म राजनी तक च तन :- भारतीय लोक कथा म व णु शमा
ारा णीत लोक कथा का ान सबसे ऊँचा है। इन कथा का पाँच
भाग म संकलन कया गया है। इन पाँच भाग के सं ह के नाम से 'पंचतं '
नाम पड़ा। पंचतं क कथाय न े य कथाय नह ह। उनमे भारतीय नी त
शा का नचोड़ है। । येक कथा नी त के कसी भाग का अव य
तपादन करती है। येक कथा का न त उ े य है।19पंचतं के पाँच
करण - 1. म भेद, 2. म स पा त, 3.काकोलूक यम्, 4. ल णाशम्
तथा 5. अपरी तकारकम्।20 अगर हम कौ ट य के स तांग स दा त को
पंचतं के करण से तुलना करे तो - थम तं म मु य प से राजा तथा
आमा य, तीय तं म म , तीय एवं तृतीय तं म दं ड, तीय एवं पंचम
तं म कोष, थम एवं तृतीय तं म ग तथा येक तं म जनपद का
उ लेख दे खने को मलता है। पंचतं म न हत नी तशा का नचोड़ इसके
पाँच भाग म न न प म मलता है-
(i) थम तं :- पंचतं के थम भाग म राजा को मं (सलाह) को गु त
रखने क बात कही है। राजा को भूल कर भी मं (मं ीप रषद के ारा रा य
के कसी काय के लए द गई सलाह) अपने कसी य को नह बताना
चा हये।21 श ु पर अपना परा म तथा द न- खय पर अपनी दया
दखाने क बात कही गई है।22 राजा को अपने मं य एवं एवं आमा य के
वशीभूत होकर काम करने के लए मना कया गया है। यू क ऐसा राजा
ज द ही न हो जाता है।23
"आमा यो, मं य एवं सेवक को सलाह द गई है क वे अपने राजा क र ा
करे। यू क कसी राजा के न होने पर उसके मं ी, आमा य एवं अनुचर भी
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वंय ही न हो जाते है।"24 यहाँ आमा य , मं य एवं राजसेवक को भी मं


(राजा को द गई सलाह) गु त रखने को भी कहा गया है।25 राजा को अपने
आमा य क बात सुनने तथा उस बात क स ाई का पता लगाने को कहा
गया है।26 इस तं म ग क मह ा के वषय म भी बताया गया है। जैसे -
" ग म रहने वाले श ु पर वजय पाना बड़ा क ठन होता है। ग म बैठा एक
श ु 100 श ु के के समान होता है। गहीन राजा द तहीन सांप तथा
मदहीन हाथी क तरह कमजोर हो जाता है।"27 राजा को म ता के वशीभूत
राजधम न भूलाने क बात कही गई है।28 राजा को समान बल शील वाल से
म ता तथा हत च तक म क बात पर यान दे ने के लए लए कहा गया
है।29 राजा को व ान्, नी तशा के ाता को धानमं ी बनाने क बात
कही गई। एक कथा म 'नी तशा के ाता, व ान, चतुर दमनक को
पगलक शेर ने अपना धानमं ी नयु कया था।'30
(ii) तीय तं :- तीय तं म मु य तौर पर कोश के वषय म बताया गया
है। होता है, धन बल से ही मनु य उ साही होता है, वीर होता है तथा सर को
परा जत करता है।31 धन म बड़ा चम कार है। धन से सब बली होते ह,
प डत होते है। धन के बना मनु य क अव ा द तहीन सप के समान हो
जाती है।32 राजा को धा मक माग से कोष को संचय करने क बात कही गई
है। यू क अधा मक कृ य के मा यम से ा त कया गया धन का राजा चाह
कर भी भोग नह कर पाता है। राजा को उपभु धन (वह धन जसका दान
अथवा स काय म य कया जाय) कमाने व सं चत करने क बात कही गई
है।33 कोश के वषय म आगे कहा गया है, क जगत म वह पू य माना जाता
है जसके पास धन का संचय हो। धन के कारण कृ पण तथा अकु लीन भी
समाज म आदर पाते है। संसार उनक ओर आशा लगाय बैठा रहता है।34
इस लए एक राजा को रा य के कोश का संचय करना चा हए।
राजा को म ता का स ब अ य रा य से ा पत करने क सलाह द ।
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य क म ता म बड़ी श होती है । म सं ह करना जीवन क सफलता


म बड़ा सहायक है। ववेक को सदा म ा त म य नशील रहना
चा हए। 35

(iii) तृतीय तं :- राजा को अ य शु रा य से स , यु द, यान (श ु से यु


अथवा स क त म कु छ दन के लए अ य रा य म जाके बस जाना),
आसन (अपने ग म रहकर, ग को ढ़ बनाना), संशय (अ य म रा य के
साथ मलकर श ु को हराना) दै धीभाव अथवा भेदनी त (श ु से सं ध कर
व ास म लेकर गु त आ मण कर हराना) आ द नी तय के मा यम से
वजय अथवा स ब ा पत करने क बात बताई गई।36 गु तचर के ारा
ही राजा श ु के नबल ल क खोज कर सकता है । गु तचर राजा 'क
आँख का काम करते ह।37
राजा के गुण:- राजा को नीच, आलसी, कायर, लोभी, सनी तथा पीठ पीछे
कटु भाषी नह होना चा हए।38 राजा को के मद म आकर अ याय नह करना
चा हए तथा याय से जा का पालन करना चा हए। राजा जा का वामी
नह सेवक होता है।39 राजा के नाम से ही सारे काम बन जाते है।40 इस लए
एक रा य म के वल एक राजा होता है।41
* रा या भषेक :- व वध तीथ से प व जल मंगाया गया, सहासन पर र न
जड़ाये गये, वण घट भरे गये, मंगल-पाठ शु हो गये, ाहमण ने वेद-पाठ
शु कये गये, नत कय ने नृ य क तैयारी कर ली। इस कार एक कथा म
राजा के रा या भषेक के बारे म बताया गया है।42 इसके अलावा सै नक43
तथा गु तचर के वषय म चचा क गई है। गु तचर के वषय म कहा गया है-
श ु के बीच वचरन करने वाले वाले गु तचर को मान-अपमान क चता
छोड़नी पड़ती है, वह के वल अपने राजा का वाथ सोचता है।44
(iv) चतुथ तं :- राजा को सलाह द गई है क मौन से सभी काम स होते
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है।45 वाचालता वनाशक है, मौन म बड़े गुण है।46जो राजा स न के वचन
पर नह चलता उसका अव य वनाश होता है। जैसे-घंटो का आ।47
उ कृ श ु को वनय से, बहा र को भेद से, नीच को दान ारा तथा
समश को परा म से राजा ने वश म लाना चा हए।48
(iv) पंचम तं :- पंचम तं
म फर कोष के मह व को दशाया गया है, क
धनहीन मनु य के गुण का भी समाज म आदर नही होता। उसके शील-कु ल-
वभाव क े ता भी द र ता म दब जाती है। बु द, ान तथा तभा के
सब गुण नधनता के तुषार म कु हला जाते है।49 मनु य (राजा) को अ तलोभ
नह करना चा हए।50 अथात राजा को लोभ वश जा के भाग म से अ धक
कर नह लेना चा हए। अगर राजा के भा य म धन होगा तो उसक जा
समृ एवं खुश होकर वयं वकास एवं लाभ ा त करने के बाद राजा को
अ धक कर दगी तथा रा य काय म सहयोग दे गी। राजा को एक साह सक
पु ष क भाँ त अवसर का लाभ उठाकर अपने तथा जा के भा य को
बदलने क को शश करनी चा हए।51राजा को अपने स े म क बात का
उ लघंन नह करना चा हए52 तथा पर र अपने आमा य , मं ीयो तथा
सेवक के साथ मल-जुलकर काय करना चा हए।53
★ पंचतं एवं कौ ट य के स तांग स दा त क तुलना :- पंचतं एवं
कौ ट य के 'अथशा ' म बताये गये स तांग स दा त दोन ही राजा के
मह व को रा यसं ा म मह वपूण ान दे ते ह। क तु साथ ही दोन ने 'राजा
क स ा अ य अंग के बलशाली होने पर नभर होने क बात को भी वीकार
कया है।' कौ ट य ने राजा को रा य क आ मा के प म वीकार कया है,
जो जा के ाण तथा स क र ा करता है। जो जनक याण क ा त
के लए द ड का योग करता है। उधर पंचतं म भी लेखक पशु -प य
क कथा के मा यम से बताना चाहते ह, क जहाँ अ व ा होती है वहाँ
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राजहीनता मुख कारण होता है। साथ ही राजा अथवा जनता को मूख
बनाने वाले को द ड दे ने क बात का ज भी मलता है। उदा. चंडरव को
राजा को मूख बनाने पर द ड मला था।
कौ ट य ने वामी, आमा य, जनपद, ग, कोष, सेना (द ड, गु तचर व
पु लस), म एवं श ु क बात क है, वैसे ही पंचतं यादा नही क तु थोड़ी
ब त ज ासा शा त करता है।
कौ ट य ने जो स तांग स ा त बताये है, उसम येक रा य के अंग को
मह व के मानुसार म घटता आ बताया है। जैसे - राजा का मह व सबसे
अ धक, वही म को सबसे कम मह व के साथ अ त म रखा है, क तु
पंचतं म ऐसा नह है।
न कष व प पंचतं म न हत कथाएँ सा ह य क से तो उ कृ है ही,
ब क कौ ट य के अथशा के समान नी त शा का नचोड़ भी रखती है।

स दभ :- 1. तो कौशल कशोर म ाचीन भारतीय राजनी तक च तन


,
का वकास (ख ड-1), रा ल प ल शग हाऊस, मेरठ, 2019, पृ. 137
2. वही, पृ. 154
3.उ ., पृ. 182
4. कौ टय 'अथशा ' का ह द अनुवाद, अनुवादक - ीयुत ाणनाथ
व ांलकार, काशक - मोतीलाल बनारसी दास, सै ा म ा बाजार, लाहौर
( 16336 Pdf) पृ. 236
5. व णु शमा कृ त पंचत का ह द अनुवाद - स यकाम व ालंकार,
राजपाल ए ड संस, क मीरी गेट, द ली - 6,
ाचीन भारत म शासन प त : पंचतं तथा कौ ट य के स तांग स दा त

6. सयके तु व ालंकार, ाचीन भारत क शासन - सं ाएँ और राजनी तक


वचारक, ी सर वती सदन, नई द ली, 1996, पृ. 289
7. वही, पृ. 289
8. वह पृ. 298 से 306
9. कौ ट य अथशा ६|१
10. मैक डल: मेग नीज पीपी 124-126(अं ज
े ी सं करण)
11. कौ ट य अथशा १।८
12. कौ ट य अथशा ६।१
13. कौ. अथ. ८।१
14. कौ. अथ. २।२
15 कौ. अथ. ६।१
16. कौ. अथ. ५।१
17. कौ. अथ. ६।१
18. स यके तु व ालंकार, ाचीन भारत क शासन- सं ाएँ और
राजनी तक वचारक, ी सर वती सदन, नई द ली, 1996 पृ. 312
19. व णुशमा क पंचतं का ह द पा तरण - स यकाम व ालङ् कार
राजपाल एक स स, क मीरी गेट, द ली-6, पृ. 7-5
20. वही पृ. 10
21. वही पृ. 20
ाचीन भारत म शासन प त : पंचतं तथा कौ ट य के स तांग स दा त

22. वह पृ. 25
23. वही पृ. 44
24. वही पृ. 59
25. वही पृ. 53
26. वह पृ. 61
27 वही पृ. 41
28. वह पृ. 45
29. वही पृ. 54
30. वही पृ. 52
31. वही पृ. 115
32 वही पृ. 116
33. वही पृ. 125
34. वही पृ. 121
35. वही पृ. 130
36. वही पृ. 134-136
37. वही पृ. 137
38 वही पृ. 143
39. वही पृ. 186
ाचीन भारत म शासन प त : पंचतं तथा कौ ट य के स तांग स दा त

40. वही पृ. 139


41. वह पृ. 138
42. वही पृ. 139
43. वही पृ. 169
44. वही पृ. 181-182
45. वही पृ. 214
46. वही पृ. 215
47. वही पृ. 219
48. वही पृ. 223
49. वही पृ. 231
50. वही . 238
51. वही पृ. 244
52. वही पृ. 255-256
53. वही पृ. 278

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