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कौटिल्य के सप्तांग सिद्धांत एवं पंचतंत्र-WPS Office
कौटिल्य के सप्तांग सिद्धांत एवं पंचतंत्र-WPS Office
सोनाली नरवरे
M.A. तीय वष
इ तहास वभाग(बी.एच.यू.)
तावना :- पंचतं का काल बौ दकाल एवं मौय सा ा य के काल के म य
का रहा है। जब क कौ ट य क अथशा क रचना स वतः तीसरी
शता द ई. पू. क मानी जाती है।1 पंचतं म राजतं सश सं ा तथा
राजा श का के है। रामा नणय क या पर नय ण रखता है।
म म ठल उसक कृ पा क आकां ा करता आ दखाई दे ता है। इस काल
म साम ती व ा ज म ले रही है। राजा क कृ पा से वमुख का सव व न
होता दखाई दे ता है।2
कौ ट य क अथशा म उन सभी साधन को बनाया गया है, जसम राजा
के व प का वकास हो।3 कौ ट य का मानना है क बना रा य कोई
राजा नही हो सकता। इस लए अथशा म रा य एवं उसके घटक का
ापक एवं त प परक व षे ण तुत कया गया है। अथशा म 15
अ धकरण, 150 अ याय तया 6000 ोक है। अ धकरण 1,2,5 तथा 6 का
स ब लोक शासन है। अ धकरण 6 म कौ ट य ने रा य के सात अंगो क
ववेचना क है। ये सात अंग है- वामी या राजा, आमा य या मं ी, जनपद या
लोग, ग, कोष, दं ड तथा म ।4 पंचतं के 5 भाग है - म भेद, म स ा त,
काकोलूक य, ल णाश तथा अपरी तकारक । इसका येक भाग
भारतीय राजतं पर वशद सामा ी उपल कराता है।5अगर हम कौ ट य
के रा य के स तांग स दा त से तुलना करे, तो इसका थम भाग - मु य प
से राजा तथा आमा य के वषय म, वैसे ही तीय भाग म के वषय म तथा
तृतीय भाग, दं ड (सश बल, गु तचर सेवा तथा पु लस), तीय तथा पंचम
भाग - कोष (धन) क ; वही थम तथा तृतीय भाग ग अथवा कले के वषय
म तथा येक भाग म जनपद अथवा जा के वषय म जानकारी ा त होती
ाचीन भारत म शासन प त : पंचतं तथा कौ ट य के स तांग स दा त
है।
कौ ट य के रा य के सात अंग म, कौ ट य ने येक अंग को रा य का
आव यक अवयव कहा है क तु उ हान राजा तथा रा य का धान माना है।
रा य म जनपद, पुर, सेना, कोष आ द का समावेश हो जाता है, तथा राजा
उसक शासन श का तीक है।6 इसी कार पंचतं भी राजा का रा य
का के मानता है। राजा का व राजनी त अथवा श के सापे
होता है। अतः इस कार पंचतं एवं कौ ट य के स तांग स ा त म म
राजतं क बात समान प म कही गई है। ये कहा जा कौ ट य सकता है। के
ारा बताये रा य के स तांग स दा त :- कौ ट य से पूव मनु, शु यह तथा
भी म ने भी स तांग स दा त का तपादन कया है। यह स दा त सावयव
स दा त पर आधा रत है। जस कार मानव शरीर व भ अंग से मलकर
बनता है। तथा सभी अंग का अपना वशेष मह व होता है। एक अंग म
वधान आने पर स ूण शरीर भा वत होता है। ठ क उसी कार स तांग
स दा त। क साता कृ तय का मह व है। इस स दा त का उद्गम ल
ऋ वेद के पु ष सू से आ है।
शु नी त म रा य के इन अंग क तुलना मानव शरीर के अंगो से करने को
कहा गया है। "इस शरीर पी रा य म राजा सर, आमा य आँख, कोष मुख,
जनपद जंघाएँ, सै य बल मन, ग हाथ तथा म कान के समान है।"7
कौ ट य के ारा तपा दत रा य के सात सात अंग अंग का का न न
उ लेख है -
1) राजा :- स तांग स दा त म सव थम ान राजा को दया गया है। राजा
क मह वपूण त के कारण उसे वामी नाम दया गया है। वामी का अथ
होता है। आदे श दे ने वाला अथात् राजा शासन क मु य धुरी होता है।
उसका येक अ दश सव तथा अ तम होता है। जसक अनदे खी रा य
क प र ध म कोई भी नही कर सकता है। कौ ट य अपने राजा को रा य के
ाचीन भारत म शासन प त : पंचतं तथा कौ ट य के स तांग स दा त
है।45 वाचालता वनाशक है, मौन म बड़े गुण है।46जो राजा स न के वचन
पर नह चलता उसका अव य वनाश होता है। जैसे-घंटो का आ।47
उ कृ श ु को वनय से, बहा र को भेद से, नीच को दान ारा तथा
समश को परा म से राजा ने वश म लाना चा हए।48
(iv) पंचम तं :- पंचम तं
म फर कोष के मह व को दशाया गया है, क
धनहीन मनु य के गुण का भी समाज म आदर नही होता। उसके शील-कु ल-
वभाव क े ता भी द र ता म दब जाती है। बु द, ान तथा तभा के
सब गुण नधनता के तुषार म कु हला जाते है।49 मनु य (राजा) को अ तलोभ
नह करना चा हए।50 अथात राजा को लोभ वश जा के भाग म से अ धक
कर नह लेना चा हए। अगर राजा के भा य म धन होगा तो उसक जा
समृ एवं खुश होकर वयं वकास एवं लाभ ा त करने के बाद राजा को
अ धक कर दगी तथा रा य काय म सहयोग दे गी। राजा को एक साह सक
पु ष क भाँ त अवसर का लाभ उठाकर अपने तथा जा के भा य को
बदलने क को शश करनी चा हए।51राजा को अपने स े म क बात का
उ लघंन नह करना चा हए52 तथा पर र अपने आमा य , मं ीयो तथा
सेवक के साथ मल-जुलकर काय करना चा हए।53
★ पंचतं एवं कौ ट य के स तांग स दा त क तुलना :- पंचतं एवं
कौ ट य के 'अथशा ' म बताये गये स तांग स दा त दोन ही राजा के
मह व को रा यसं ा म मह वपूण ान दे ते ह। क तु साथ ही दोन ने 'राजा
क स ा अ य अंग के बलशाली होने पर नभर होने क बात को भी वीकार
कया है।' कौ ट य ने राजा को रा य क आ मा के प म वीकार कया है,
जो जा के ाण तथा स क र ा करता है। जो जनक याण क ा त
के लए द ड का योग करता है। उधर पंचतं म भी लेखक पशु -प य
क कथा के मा यम से बताना चाहते ह, क जहाँ अ व ा होती है वहाँ
ाचीन भारत म शासन प त : पंचतं तथा कौ ट य के स तांग स दा त
राजहीनता मुख कारण होता है। साथ ही राजा अथवा जनता को मूख
बनाने वाले को द ड दे ने क बात का ज भी मलता है। उदा. चंडरव को
राजा को मूख बनाने पर द ड मला था।
कौ ट य ने वामी, आमा य, जनपद, ग, कोष, सेना (द ड, गु तचर व
पु लस), म एवं श ु क बात क है, वैसे ही पंचतं यादा नही क तु थोड़ी
ब त ज ासा शा त करता है।
कौ ट य ने जो स तांग स ा त बताये है, उसम येक रा य के अंग को
मह व के मानुसार म घटता आ बताया है। जैसे - राजा का मह व सबसे
अ धक, वही म को सबसे कम मह व के साथ अ त म रखा है, क तु
पंचतं म ऐसा नह है।
न कष व प पंचतं म न हत कथाएँ सा ह य क से तो उ कृ है ही,
ब क कौ ट य के अथशा के समान नी त शा का नचोड़ भी रखती है।
22. वह पृ. 25
23. वही पृ. 44
24. वही पृ. 59
25. वही पृ. 53
26. वह पृ. 61
27 वही पृ. 41
28. वह पृ. 45
29. वही पृ. 54
30. वही पृ. 52
31. वही पृ. 115
32 वही पृ. 116
33. वही पृ. 125
34. वही पृ. 121
35. वही पृ. 130
36. वही पृ. 134-136
37. वही पृ. 137
38 वही पृ. 143
39. वही पृ. 186
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