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मेवाड़ का राजवंश
वैसे तो मेवाड़ का इितहास अित ाचीन ह। पुराता वक खुदाइय से पता चलता ह िक ईसा पूव दूसरी शता दी से
पहली शता दी तक यहाँ निदय क िकनार मानव ब तयाँ थ । महाराणा ताप क पूवज का काल गुहािद य से
आरभ होता ह, िज ह ने बलयी से आकर यहाँ अपने रा य क थापना क । इनक वंशज सुिहल या गुिहलौत
कहलाए, िजसक एक शाखा िससौिदया कहलाई। आगे चलकर इसी वंश म ब पा रावल जैसे महापरा मी राजा
ए, िज ह ने 734 से 753 ईसवी तक रा य िकया। िवदेशी आ मणका रय से मेवाड़ को वतं रखने क िलए
बल संघष करने क माण ब पा रावल और उनक उ रािधका रय क वीरता क गाथा से िमलते ह। इ ह ने
िसंध और मुलतान तक जाकर अरब आ मणका रय को खदेड़ा, तािक वे भारत-भूिम पर आगे बढ़ने का साहस न
कर।
ब पा रावल क कई पीि़ढय क बाद उनक वंशज सुमेरिसंह 1191 ई.म जब िसंहासन पर आसीन थे, तब
मुह मद गोरी ने भारत पर आ मण िकया था। सुमेर िसंह क आठव वंशज रतनिसंह क समय स 1303 म
अलाउ ीन िखलजी ने िच ौड़ पर हमला करक उसे जीत िलया था। राजपूतिनयाँ अपनी महारानी प नी क साथ
जौहर करक िजंदा िचता म जल गई और उनक वीर पित, िपता, भाई कस रया बाना पहन दुग क ार से
िनकलकर अलाउ ीन क िवशाल सेना से जा टकराए। जब तक इनम से एक भी राजपूत जीिवत था, िखलजी क
सेना को उसने आगे नह बढ़ने िदया। जब अलाउ ीन ने िच ौड़ क दुग म वेश िकया तो उसे राख क ढर क
अलावा कछ भी हाथ न लगा। एक महा मशान म खड़ अलाउ ीन को समझ नह आ रहा था िक अपनी इस जीत
पर हसे या रोए। उसने अनेक यु लड़ थे, पर न कभी ऐसी थित का सामना िकया था और न इसक क पना
ही क थी। बहरहाल अपने बेट को िच ौड़ क सूबेदारी स पकर अलाउ ीन िद ी लौट गया।
इसक बाद मेवाड़ क इितहास क गगन म एक और देदी यमान न का उदय आ, िजसका नाम था हमीर।
हमीर शूरवीर भी थे और मह वाकां ी भी। उ ह ने िसंहासन पर बैठते ही अपनी सैिनक श बढ़ाने और रा य
िव तार क योजना पर काम करना आरभ कर िदया। उनक आँख क सबसे बड़ी िकरिकरी तो िच ौड़गढ़ था,
जो उनक पूवज रतनिसंह से िखलजी ने छीन िलया था। उ ह ने पया सै यबल, सुिनयोिजत रणनीित और
आ मिव ास क साथ आ मण करक िचतौड़गढ़ जीत िलया। िखलिजय क बाद हमीर क तुगलक से भी कई
बार मुठभेड़ ई, िजनम हमेशा वे िवजयी रह। अपने रा य का िव तार करने और उसे सुगिठत करने क बाद हमीर
ने राजग ी अपने यो य पु े िसंह को स पी। हमीर क िवषय म एक और उ ेखनीय बात यह ह िक सव थम
इस वंश म उ ह ने ही महाराणा क उपािध धारण क थी, जो आगे आनेवाले मेवाड़ क शासक क उपािध बनी
रही।
े िसंह क बाद 1382 ई. म महाराणा लाखा और उनक बाद 1433 ई. म मेवाड़ क शासन क बागडोर उनक
पु महाराणा कभा क हाथ म आई। उ ह ने अपने कशल शासन और यु म मेवाड़ क िवजय-पताका फहराकर
उसक ित ा म चार चाँद लगा िदए। अपने रा य का िव तार करने क साथ-साथ महाराणा कभा ने कई दुग
बनवाकर उसे सुरि त करने का भी यास िकया, लेिकन कभा क रा यकाल का सबसे खेदजनक और ल ा पद

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संग यह रहा िक मेवाड़ क ऐसे यश वी एवं यो य शासक क ह या उसक अपने ही अयो य पु उदा ने कर दी।
मेवाड़ क वीर सामंत से यह सहन न आ। उ ह ने उदा क छोट भाई रायमल को महाराणा घोिषत कर िदया। दोन
भाइय क बीच ए यु म रायमल आशा क अनु प िवजयी रह।
रायमल क उ रािधकारी सं ामिसंह महापरा मी िस ए। राणा साँगा क नाम से िव यात इस वीर सेनानी ने
1508 ई. म स ा सँभालते ही मेवाड़ क श बढ़ानी आरभ कर दी। अपनी िवजय-पताका फहराते ए राणा साँगा
ने उन सभी देश को िफर से अपने रा य म स मिलत िकया, जो राणा कभा क बाद मेवाड़ क शासक से िछन
गए थे। वे अथक प र मी और अ यंत यो य सेनापित थे। उनक शरीर पर 80 वीर िच (यु क घाव) थे। राणा
सं ामिसंह को सबसे बड़ा आघात खानवा क लड़ाई म जही ीन बाबर से हारने पर लगा। वे पूरी तरह टट गए
और जंगल म चले गए। इसी बदहाली म 1528 ई. म उनका देहांत हो गया।
राणा साँगा क बाद मेवाड़ का इितहास उथल-पुथल, ष यं , ह या क शमनाक गाथा का इितहास ह,
िजसक अंितम िन कष क प म रा य क वा तिवक हकदार उदयिसंह को महाराणा का पद िमला। ष यं क बल
पर दासी पु से महाराणा बने बनवीर को यु म हराकर 1540 ई. म उदयिसंह जब िच ौड़ क िसंहासन पर
आ ढ़ ए, तब मेवाड़ म अराजकता का वातावरण था। हालाँिक तब उदयिसंह क उ ब त कम थी, लेिकन
ज दी ही उ ह ने राजपाट को ठीक से सँभालने क कोिशश शु कर द और जीण-शीण मेवाड़ क हालत धीर-धीर
सुधरने लगी।
युवा होते ही राणा उदयिसंह आकठ िवलािसता म डब गए। उनक रिनवास म 20 रािनयाँ थ । उनक पुरखे जहाँ
तलवार क धनी थे, उनक तुलना म िवलासी उदयिसंह को कायर ही कहा जाएगा। उनक रा यकाल म जब पहली
बार 1544 ई. म शेरशाह सूरी ने जोधपुर जीतने क बाद िच ौड़ का ख िकया तो उदयिसंह ने आ मणकारी का
मुकाबला करने क तैयारी करने क बजाय दुग क चािबयाँ शेरशाह को िभजवा द । शेरशाह ने भी राजपूत से नाहक
उलझना ठीक नह समझा। उसने यह आ मसमपण वीकार करते ए अपने एक ितिनिध श स खाँ क वहाँ
िनयु करक उदयिसंह को उसक देखरख म शासन चलाने क अनुमित दे दी।
िच ौड़ पर दूसरा बड़ा संकट 23 अ ूबर, 1567 को आया, जब अकबर ने एक बड़ी सेना लेकर उस पर
चढ़ाई कर दी। उदयिसंह को पहले ही इसक भनक लग गई थी। वह प मी पहाड़ी देश म चले गए। िकले क
सुर ा क िलए उ ह ने वीर राजपूत जयमल और फ ा क नेतृ व म 8 हजार राजपूत को िनयु कर िदया।
आसपास का इलाका खाली करवा िदया गया। कछ लोग दूर जंगल और पहाड़ म चले गए। बाक करीब 30
हजार नगरवासी िकले को सुरि त जानकर वहाँ आ गए।
उन िदन िकला जीतने का एक पुराना आजमाया आ तरीका था—उसक घेराबंदी करक पड़ रहना। जब िकले
का राशन-पानी ख म हो जाता था तो उसम तैनात छोटी सी सेना को फाटक खोलकर खुले म श ु से लड़ना ही
पड़ता था। अकबर ने भी यही िकया। वह कई महीन तक िकले को घेरकर बैठा रहा, पर उसक पास न इतना धैय
था, न समय था। उसने अपने कारीगर लगाकर दुग क मजबूत चारदीवारी म सुरग बनाने और कई थान पर उसे
तोड़ने का काम शु कर िदया। आिखरकार राजपूत क भरसक िवरोध क बावजूद िकले क दीवार कई जगह से
टटी। अब य यु क अलावा कोई िवक प न था। राजपूतिनयाँ जौहर क ाला म कद गई और कस रया
बाना पहने वीर राजपूत दुग क ार खोलकर मुगल क िवशाल वािहनी पर टट पड़।
िवजयी अकबर ने िच ौड़ म वेश िकया तो न वहाँ उदयिसंह िमले और न उनका शाही खजाना। िचता क राख
क अलावा अगर वहाँ कछ था तो वे िन सहाय प रवार, िज ह ने श ु क भय से गढ़ म शरण ली थी। अकबर महा
कह जानेवाले इस मुगल स ा ने खीजकर उन सबक क लेआम का म जारी कर िदया। उन िनह थ पर मुगल
सैिनक टट पड़ और देखते-ही-देखते वहाँ लाश क ढर लग गए। राजपूत क आन-बान का तीक िच ौड़ अब
मुगल क क जे म था।
कछ इितहासकार ने िट पणी क ह िक यह उदयिसंह का कपट था िक उ ह ने संपूण श लगाकर िच ौड़ को
बचाने का यास करने क बजाय एक छोटी सी राजपूत सेना को वहाँ र ा क िलए छोड़ िदया और वयं िखसक
गए। पर इसका दूसरा पहलू भी ह िजस पर िवचार न करना उदयिसंह क साथ अ याय होगा।
िच ौड़ क िलए लड़ी गई तीन मु य लड़ाइय पर अगर हम नजर डाल तो प हो जाएगा िक अजेय समझे
जानेवाले इस दुग क र ा करना वा तव म लगभग असंभव ह। उसक चार ओर का समतल भूभाग श ु सेना को
पड़ाव डालने और िकले को घेरकर बसे रहने क पूरी सुिवधा देता ह। श ु ारा िकले क पूरी नाकबंदी हो जाने
से बाहर से कोई सहायता नह िमलती और अंदर रसद ख म हो जाने पर र क सेना को बाहर आकर श ु का
सामना करना पड़ता ह। अलाउ ीन िखलजी क िव इसी तरह लड़ते ए वीर राजपूत मार गए और महारानी
प नी सिहत हजार राजपूत रािनय ने अपने स मान क र ा क िलए अ न-समािध ली। दूसरी बार जब गुजरात
क बहादुरशाह ने िच ौड़गढ़ पर आ मण िकया, तब भी इसी क पुनरावृि ई। रानी कमवती 13,000
राजपूतिनय क साथ जौहर क ाला म भ म हो गई और राजपूत श ु से जूझते ए वीरगित को ा ए।
उदयिसंह क समय यह तीसरी पुनरावृि थी।
िपछले कट अनुभव क सीख तो यही थी िक अगर दु मन क ताकत ब त यादा हो, ाणपण से जूझने पर भी
प रणाम मर-िमटना और पराजय ही हो तो अपने जन-धन क सार संसाधन ऐसे यु म न झ क जाएँ। महाराणा
उदयिसंह ने न तो अकबर क सेना क सामने हिथयार डाले, न ही उससे संिध क , यथाश ितरोध करने क
यव था क और िजतने संसाधन बचा सकते थे, उ ह लेकर गढ़ से िनकलकर सुरि त थान पर चले गए। इससे
िन य ही जान-माल क काफ हािन से मेवाड़ बच गया।
राणा उदयिसंह जानते थे िक एक-न-एक िदन िच ौड़ जैसे असुरि त गढ़ से उ ह िनकलना पड़ सकता ह और
िकसी बल श ु क आ मण क थित म िकला राजपूत क हाथ से िनकल सकता ह। अतः उ ह ने वैक पक
यव था क तौर पर उदयपुर बसाना आरभ कर िदया था। वहाँ पानी क यव था क िलए एक िवशाल झील
उदयसागर भी बनाई गई, िजसक वषाकाल म भर जाने पर साल भर पानी क ज रत पूरी हो जाती थी। इसे पलायन
क योजना या कायरता कहना उिचत नह । यह दूरदिशता और यावहा रक समझदारी ही थी। जैसे िक हम पहले
उ ेख कर चुक ह, शेरशाह सूरी क आस आ मण को टालने क िलए उदयिसंह ने िच ौड़गढ़ क चािबयाँ उसे
भेजकर अनाव यक र पात से खुद को बचा िलया। अकबर ने िच ौड़ म आने पर िनरीह नाग रक का जो
अमानुिषक क लेआम िकया, उसक िलए भी उदयिसंह को उ रदायी नह ठहराया जा सकता। कदािच राणा को
अकबर जैसे शासक से नृशंस यवहार क आशा न थी।
कछ इितहासकार का यह भी मत ह िक उदयिसंह को गढ़ छोड़कर िकसी सुरि त थान पर चले जाने क
सलाह खुद उनक मुख सामंत ने दी थी। यिद ऐसा नह भी आ हो, तो भी इतना लगभग िन त ह िक उनक
गढ़ यागने क िनणय म उनक सहमित अव य रही होगी। मेवाड़ म राजपूत सामंत सदा श शाली रह ह और
उ ह ने असहमत होने पर अपने राणा का िवरोध करने म भी कभी संकोच नह िकया। इस बात का कोई सा य नह
िमलता िक िच ौड़गढ़ म रहकर मुगल का सामना न करने क उदयिसंह क िनणय का कोई िवरोध आ हो।
आिखर अपनी ित ा क तीक व प एक गढ़ क र ा क िनिम पूर मेवाड़ को संकट म डालने, जा को

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बदहाली क थित म प चाने और सारी युवा पीढ़ी का बिलदान देकर भी पराजय का ही मुँह देखने म वीरता भले
ही हो, समझदारी न थी। यह वीरता और बिलदान पर आधा रत पुरानी नीित क िवपरीत नई नीित थी। एक नई सोच,
िजसे कायरता क सं ा दी गई।
उदयिसंह ने यिद ा धैय का पालन िकया ही न होता, अनाव यक यु से भी कतराते तो उ ह अव य कायर
माना जाता, लेिकन िसंहासन पर आसीन होने क बाद अपने रा य क सु ढ़ता क िलए और उसे िव तार देने क
िलए उ ह ने सैिनक अिभयान भी चलाए, िजनम से अिधकांश म िवजयी रह। इतना अव य ह िक ये यु उनक
आदेश पर उनक सामंत ने और िकशोराव था म कदम रखते ही उनक परा मी पु ताप िसंह ने लड़। िवलासी
उदयिसंह ने वयं उनम भाग नह िलया। य िप िकसी शासक क िलए वयं सै य संचालन करना अिनवाय नह
और न ही उसका सेनापित होना कोई आव यक शत ह, तो भी इस नाते उदयिसंह को त कालीन राजपूती मा यता
क आधार पर कायर कहा गया।
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ताप िसंह का बा यकाल


राणा उदयिसंह क 20 प नय म जैलोर क राजवंश क जैवंताबाई ही उनक पटरानी थ । इसी जैवंताबाई से उनक
ये पु ताप िसंह का ज म 9 मई, 1549 को आ। अ य रािनय से उदयिसंह क संतान को लेकर उनक 17
पु बताए जाते ह। इनम से ताप िसंह सबसे बड़ तो थे ही, उनक माता जैवंताबाई पटरानी होने क अित र सबसे
कलीन प रवार से भी थ । इसका कारण यह था िक उदयिसंह िववाह क िलए ी का प और यौवन देखते थे,
कल-शील या अ य गुण नह । इस बार म एक घटना उ ेखनीय ह। अलवर क शासक हाजी खाँ क एक रखैल
थी—रगराय पातर, िजसक खूबसूरती क चच दूर-दूर तक मश र थे। उदयिसंह को यह पता चला तो पातर को पाने
क िलए बेचैन हो गए। उ ह ने कभी हाजी खाँ क मारवाड़ क राजा मालदेव क िव सहायता क थी। इस
उपकार क बदले उ ह ने हाजी खाँ से कहा िक रगराय पातर उ ह स प दे। हाजी खाँ ने बहाना बनाया िक पातर
उसक बेगम ह, इसिलए यह संभव नह । उदयिसंह ने ोध म आकर अपने सामंत क राय क िव अलवर पर
आ मण करने का आदेश दे िदया।
हाजी खाँ जानता था िक मालदेव और उदयिसंह म 36 का आँकड़ा ह। इस बार उसने सहायता क िलए मालदेव
से गुहार लगाई। मालदेव ने उसक मदद क िलए एक सेना भेज दी। इसक सूचना िमलने पर भी उदयिसंह ने
आ मण करने का अपना इरादा नह बदला। फल व प उनक सेना को शमनाक हार का सामना करना पड़ा।
ऐसा प रणाम वाभािवक ही था। एक तो उदयिसंह क सेना क सं या हाजी खाँ और मालदेव क स मिलत सेना
से ब त कम थी। दूसरा कारण जो कदािच उदयिसंह ने समझने क कोिशश नह क —वह था सैिनक का
मनोबल। अपने देश क र ा क िलए लड़ते ए िसपाही यु म अपनी सारी श लगा देता ह, लेिकन िकसी भी
ी को ( ेिमका ही सही)अपने राजा क िलए छीनने क िलए लड़ने और अपने ाण गँवाने का जोिखम वह िकस
हौसले से उठाएगा?
बहरहाल इतना बड़ा रिनवास होते ए भी राणा उदयिसंह सुंद रय क तलाश म रहते थे और राग-रग म डबे रहते
थे। ऐसे िवलासी उदयिसंह क यहाँ 9 मई, 1549 को परा मी ताप िसंह का ज म आ। वे उदयिसंह क सबसे
बड़ पु थे। राणा उदयिसंह क पटरानी जैवंताबाई उनक माता थ ।
उदयिसंह का रा यकाल उथल-पुथल से भरा था। उ ह अपना सारा यान रा य को सुरि त करने, अपने श ु
पर िनयं ण रखने और सेना को सु ढ़ करने म लगाना पड़ता था। इसी म म उ ह ने पहाि़डय से िघर िगवा देश
म, जो काफ सुरि त था, उदयपुर का िनमाण भी आरभ िकया था। उनका शेष समय िवलािसता म बीतता, लेिकन
वे प रवार क तरफ िबलकल लापरवाह न थे। उ ह ने सभी राजकमार क िश ा-दी ा व श िश ण का उिचत
बंध िकया था, पर उनम से कोई भी ताप जैसा यो य िस न आ। इसका मु य कारण ताप क माता
जैवंताबाई का अपने पु क ित असीम ेम था। उ ह ने उसक लालन-पोषण पर अपना सारा यान कि त िकया।
ि य क वीरोिचत गुण ताप को मानो घु ी म ही िमले थे।
ताप अभी िकशोर ही थे िक उ ह ने बड़ उ साह क साथ मेवाड़ क सैिनक अिभयान म भाग लेना आरभ कर
िदया। अब डगरपुर और बाँसवाड़ा जैसी छोटी रयासत क मािलक, जो सदा मेवाड़ क अधीन रह, वयं को वतं

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समझने लगे, और सलूंबर, सराड़ा और चावँड जैसे परगन ने भी कर देना बंद कर िदया तो राणा उदयिसंह ने अपने
ये पु ताप को उनका दमन करने क िलए भेजा। मेवाड़ क श से प रिचत होने पर भी डगरपुर का शासक
आसकरण अपनी गढ़ी म बैठा चैन क बंसी बजा रहा था। कारण यह था िक उसक आसपास क पवतीय े म
राठौर ने छोटी-छोटी छ पन जागीर बना रखी थ , िजनसे उसक अ छी साँठगाँठ थी। ये चौहान छ पन जागीर क
कारण छ पिनए कहलाते थे। इनम िघरा डगरपुर खुद को सुरि त महसूस करता था।
ताप जो अभी यु क ि से कम उ क ही थे, िपता का आदेश पाकर 2000 घुड़सवार क साथ सैिनक
अिभयान पर बड़ उ साह से िनकल पड़। उ ह ने छ पिनय से उलझने क बजाय उनक घेराबंदी का आदेश िदया
और आगे बढ़ गए। चौहान म से िकसी ने चूँ-चपड़ भी न क । यह देखकर आसकरण क छ छट गए। िवजयी
ताप जब लौट तो वयं महाराणा ने उनका भ य वागत िकया। जैसा िक वाभािवक ही था, माता जैवंताबाई पु
क पहली सफलता पर फली न समाई। कहते ह िक उ ह ने आ मिवभोर होकर पु को गले से लगा िलया और
अपने शरीर क सार आभूषण उनक िसर से वार कर त काल दािसय म बाँट िदए। उनक बेट ताप का यह उ कष
देखकर सौतन क छाती पर साँप लोट गया।
यह तो शु आत थी। इसक बाद तो ताप िनयिमत प से िपता क सैिनक अिभयान का नेतृ व करते रह, य िक
उदयिसंह वयं तो यु े म कम ही जाते थे, पर इनम से अिधकांश छोटी लड़ाइयाँ ही थ । िकसी बड़ यु क
योजना और रणनीित का यावहा रक अनुभव उ ह नह आ।
ताप को िकशोराव था से ही िशकार खेलने का ब त शौक था। वे बंध-ु बाँधव क साथ वन देश म आखेट
क िलए जाते तो कई-कई िदन वहाँ यतीत कर देते। इस कारण उनका वनवासी भील क साथ ब त अ छा संपक
हो गया। मेवाड़ क राजकमार क िवन ता और अपनेपन से वे ब त भािवत थे, जो आगे चलकर ताप क ित
उनक अन य वािमभ का कारण बना।
ताप क य गत वीरता क कारण वे मेवाड़ क सामंत म ही नह , सैिनक म भी ब त लोकि य हो गए। जो
वीर सामंत उदयिसंह क कायरता और िवलािसता से मन-ही-मन िख थे, उनम मेवाड़ क भावी महाराणा क गुण
को देख आशा का संचार होने लगा।
वीर यो ा होने क साथ-साथ ताप अ यंत िवन और संवेदनशील भी थे। बड़ तो या अदना-से-अदना य
से भी वे िवन ता का यवहार करते थे। कहा जाता ह िक जब अकबर ने िच ौड़ िवजय क बाद 30 असहाय
नाग रक का क लेआम िकया तो ताप इस समाचार से अ यंत शोकम न हो गए थे। उ ह ने िच ौड़ म ाण
गँवानेवाले सभी सेनािनय व नाग रक क आ मा क शांित क िलए िवशेष ाथना और पूजा-अचना का आयोजन
करवाया। अकबर क ित ताप क मन म कटता का बीज कदािच इसी िदन से पड़ गया था।
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ताप का राजितलक
अ यंत िवलािसता म लीन रहनेवाले राणा उदयिसंह का शरीर िदन ितिदन जीण हो रहा था। 1570 ई. म जब वे
कभलमेर आए, तब भी उनका वा य ठीक न था। मेवाड़ क सुर ा क ित सदा िचंितत रहनेवाले उदयिसंह ने
वहाँ नए सैिनक क भरती क । वहाँ से वे गोगूंदा आए। रा यािभषेक से लेकर अब तक का उनका सारा जीवन
संघष म ही बीता था। मेवाड़ रा य को थर रखने क िलए वे िनरतर य नशील रह, पर प र थितयाँ ऐसी थ िक
वह लगातार िसकड़ रहा था। राणा उदयिसंह और मेवाड़ को सबसे बड़ा आघात िच ौड़ दुग िछन जाने से लगा था,
पर उ ह ने अपने जीवनकाल म िच ौड़ को पुनः जीतने क िलए न कोई यास िकया और न योजना बनाई।
वा तिवकता क धरातल पर जीनेवाले उदयिसंह अ छी तरह समझते थे िक िवशाल मुगल सा ा य से ट र लेना
उसक तुलना म पासंग भर मेवाड़ क िलए आ मह या ही होगा। यह पराजय उनको आजीवन सताती रही।
उदयिसंह खून का घूँट पीकर रह गए। इस भयंकर आघात का भाव भी उनक वा य पर पड़ रहा था। लगभग
पाँच महीने उनक गोगूंदा म ही यतीत ए, जहाँ उनका वा य अचानक और िबगड़ गया। उन िदन उनक सबसे
ि य रानी धीरजबाई भिटयाणी उनक सेवा म रहती थी। पित क सेवा करने क बजाय अंितम समय म खुशामद
करक अपने पु जगमाल को युवराज बनाना उसका मु य उ े य था। कहते ह िक भिटयाणी रानी क प-यौवन
पर अ यंत आस उदयिसंह ने वंश-परपरा क अवहलना करते ए अंितम समय म जगमाल को युवराज घोिषत
कर िदया, जबिक उनका ये पु ताप इसका अिधकारी था।
इस िवषय म एक मत यह भी ह िक वा तव म उदयिसंह ने ऐसी कोई घोषणा नह क थी। राजमहल म तरह-
तरह क ष यं चलते ही रहते ह। रानी भिटयाणी और उसक चहत ने एक ष यं क तहत जगमाल को उदयिसंह
का उ रािधकारी बना िदया। अपने अंितम िदन म जब राणा उदयिसंह लगभग अचेत से रहते थे और सारा राजकाय
सामंत क देख-रख म चल रहा था, रानी भिटयाणी ने राज-काज क कछ कागज क साथ उ रािधकार क प पर
भी धोखे से महाराणा क मुहर लगवा ली और उनक वगवास क बाद घोिषत कर िदया िक जगमाल को उदयिसंह
अपना उ रािधकारी बना गए ह। इसक िलए जगमाल ने और रानी भिटयाणी ने मेवाड़ क कछ सामंत को भी अपने
प म कर िलया था।
यह बात अिधक तकसंगत लगती ह िक उदयिसंह भले ही भिटयाणी पर आस रह ह , िकसी जजर शरीरवाले
रोग त य क िवरोध म यह कहना िक उसने इतना बड़ा िनणय सुंदरता पर मु ध होकर ले िलया, उिचत तीत
नह होता। उदयिसंह आजीवन मेवाड़ क सुर ा क ित अ यंत िचंितत व सचेत रह। वे भली-भाँित जानते थे िक
उनक बाद उनका ये पु ताप ही इस यो य ह िक रा य क र ा कर सक। ऐसे म उसे युवराज पद से हटाना
यु संगत नह लगता। यिद उदयिसंह ने ऐसा कोई िनणय अपने होशो-हवास म िलया होता तो वे इसक चचा
अपने मु य सामंत से अव य करते। मेवाड़ क परपरा क अनुसार, िबना उनक परामश और सहमित क वे ऐसा
कर ही नह सकते थे। अतः छल-कपटवाली बात ही स य तीत होती ह।
28 फरवरी, 1572 को उदयिसंह क सीने म दद आ और उसी िदन उ ह ने ाण याग िदए। िपता क मृ यु से
शोकाकल ताप इतना भी भूल गए िक मेवाड़ राजवंश क परपरा क अनुसार युवराज महाराणा क दाह-सं कार म
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नह जाता। वह महल क योढ़ी से ही उसे अंितम िवदाई देता ह और उसी िदन उसका रा यािभषेक िकया जाता
ह। यह परपरा महाराणा का पद एक िदन भी र न रखने क िवचार से बनी थी और अब तक इसका पालन होता
आया था, पर ताप को िसंहासन पर बैठने क उतावली न थी। ये पु होने क नाते वे िपता को मुखा न देना
अपना कत य समझते थे, जबिक परपरानुसार यह काम उनक अनुज का था। राजमहल म जो ष यं आ था,
उससे वे अनिभ थे। उ ह कदािच इसक आशंका भी नह थी।
उधर उदयिसंह का अंितम सं कार करने क बाद उनक आ मा क शांित क िलए ाथना क जा रही थी और
इधर जगमाल क रा यािभषेक क तैया रयाँ हो रही थ । मेवाड़ क परपरा क अनुसार रा य का शासक महाराणा
होता था और यव था क मुख चूड़ा। उ रािधकारी कौन होगा—उसका िनणय भी चूड़ा क णदास क सहमित क
िबना नह िकया जा सकता था। और चूड़ा क णदास एवं महाराज उदयिसंह क बीच इस बार म कोई चचा नह
ई। यिद महाराणा उदयिसंह जगमाल को अपना उ रािधकारी बनाते तो चूड़ा क णदास से अव य चचा ई होती।
अतः इस मामले म रिनवास म अव य ही कोई ष यं रचा गया था। प था िक उदयिसंह ने िकसी परपरा का
उ ंघन नह िकया था, उनसे तो छल-कपट से उ रािधकार क कागज पर मुहर लगवा ली गई थी।
एक मत यह ह िक ताप को इसका पता चल गया था, पर उ ह ने ऐसा मानकर िक िपता ने रानी भिटयाणी क
ेम म आस होकर जगमाल को युवराज बना िदया ह, चुप रह। उनक मशान म आने का कारण भी यही था।
मेवाड़ क ऐसी डाँवाँडोल अव था म वे घर म ेश और झगड़ा नह फलाना चाहते थे।
महाराज कवर ताप का मशान म आना और जगमाल का अनुप थत होना वभावतः घोेर शंका का कारण
था। शंका ही तो थी, य िक ष यं क जानकारी िकसी को न थी। जगमाल को वहाँ न देखकर वािलयर क राजा
मानिसंह ने उसक छोट भाई से न िकया, ‘‘कवर जगमाल य नह आए?’’
‘‘ या आप नह जानते िक वग य महाराणा ने उ ह अपना उ रािधकारी बनाया ह?’’ जगमाल क अनुज ने कहा
तो वहाँ खड़ सभी सामंत सकते म आ गए। सब कार से यो य मेवाड़ क र ा म स म और रा य क वा तिवक
उ रािधकारी क थान पर इस अयो य जगमाल को उ रािधकार? मेवाड़ का भिव य या ऐसे हाथ म िदया
जाएगा? मानिसंह सोनगरा ताप क मामा थे। उनक यौ रयाँ चढ़ गई, ‘‘चूड़ा क णदासजी, इस अ याय को या
आपका भी समथन ा ह?’’
‘‘समथन तो दूर क बात ह, मुझे इसक भनक तक नह ह। शायद यह महाराणा उदयिसंह क रिनवास क कोई
सािजश ह।’’
सुबह उदयिसंह क िनधन का शोक था तो शाम को नए महाराणा क रा यािभषेक का आयोजन। मेवाड़ क यही
परपरा थी। जगमाल अपने भाइय और कछ समथक क सहायता से राजिसंहासन पर बैठा था। सामने परपरा क
अनुसार उसक भाई बैठ थे। राजितलक मुख सामंत , िवशेष प से चूड़ाजी क उप थित म होता था। उसक बाद
सभी मुख सामंत महाराणा को अपनी-अपनी भट देकर उनक ित स मान व वफादारी का दशन करते थे। इसक
शु आत भी चूड़ा क णदास को ही करनी थी। अतः उनक ती ा हो रही थी।
चूड़ा क णदास मानिसंह सोनगरा और अ य मुख सामंत क साथ सारी थित पर िवचार-िवमश करने क बाद
या करना ह— इसका मन बनाकर दरबार क तरफ चल िदए। िकसी भी अि य थित से िनबटने क उ ह ने सारी
यव था कर ली थी।
सालूंबर राव क णदास ने अ य सामंत क साथ दरबार क म वेश िकया। ताप उनक साथ थे, िकतु वे
संकोचवश योढ़ी पर ही क गए। देवगढ़ क रावत साँगा और क णदास िसंहासन पर बैठ जगमाल क तरफ बढ़
तो सामंत से भर सभागार म स ाटा छा गया। या चूड़ा क णदास और साँगाजी जगमाल को भट देकर उसे
महाराणा वीकार करनेवाले ह? सबक चेहर पर यही सवाल था, पर अगले ही ण जो आ उसने उनक सवाल
का जवाब दे िदया।
एक तरफ से राव क णदास ने और दूसरी तरफ से रावत साँगा ने जगमाल का हाथ पकड़ा।
‘‘कवरजी, आप इस िसंहासन पर कसे बैठ ह, आपका थान तो इसक सामने ह।’’ उसे उठाते ए क णदास
बोले।
‘‘िकतु मेर िपता महाराणा उदयिसंह ने तो...।’’ बात जगमाल क गले म अटक गई। उसक िस ी-िप ी गुम हो
गई थी। उसक पास अपनी श क नाम पर तो धोखे से मुहर लगवाया आदेश-प मा था। वह जानता था िक
िवरोध करने पर उसक और उसक थोड़ से समथक क िलए प रणाम भयानक हो सकता ह। वह चुपचाप अपने
आसन से उठकर खड़ा हो गया।
‘‘आइए, तापजी!’’ क णदास ने िसंहासन क ओर संकत करते ए ार पर िठठक ताप को पुकारा।
ताप आकर िसंहासन पर बैठ तो उ ह ने ेह से कहा, ‘‘बैठो जगमाल।’’
उसक साथ ही उ ह ने अपने सामनेवाले आसन क ओर संकत िकया, जो उसक िलए उपयु और स मान द
थान था।
उ र म जगमाल चुपचाप दरबार से बाहर चला गया। उसने क पना भी न क थी िक महाराणा बनने का उसका
सपना इतनी आसानी से चकनाचूर हो जाएगा।
जगमाल ने आशा क थी िक उसक साथ ही उसक भाई और दूसर समथक भी ताप क राजितलक का
बिह कार करते ए बाहर आ जाएँग,े पर िकसी म इतना साहस न था िक कोई खुलेआम िवरोध करता। बाहर
आनेवाल म अकला जगमाल ही था। ताप का िविधवत राजितलक आ। चूड़ा क णदास ने बड़ स मान क साथ
नए महाराणा का अिभवादन िकया और अपनी ओर से भट दी। इसक बाद अ य सामंत ने परपरानुसार अपनी भट
दी और महाराणा को झुककर णाम िकया।
‘‘भगवा एकिलंग क जय।’’
‘‘महाराणा ताप क जय।’’
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दरबार जयघोष से गूँज उठा। मेवाड़ को उसका नया अिधपित िमल गया था— यो य, गुणशील, परा मी।
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4

काँट का ताज
महाराणा बनने पर ताप को वणमुकट या, यह कह िक काँट का ताज ही िमला तो अिधक उपयु होगा। उ ह
िवरासत म जो मेवाड़ िमला, वह अ यंत िवप थित म था। िच ौड़ और मांडलगढ़ तो राजपूत क हाथ से
िनकल ही चुक थे, िच ौड़ और अजमेर क बीच का सारा मैदानी इलाका भी मुगल क क जे म था। इसक
अलावा जहाजपुर का पहाड़ी इलाका भी मुगल ने जीत िलया था। राणा उदयिसंह उनक िवशाल श क सामने
िववश से हो गए थे। अकबर क सा ा यवादी मह वाकां ा सारा मेवाड़ अपने अधीन करने क थी, िजसका खतरा
हर समय मेवाड़ क िसर पर मँडरा रहा था।
महाराणा साँगा क समय िजस मेवाड़ क सीमा आगरा तक थी और जो हर तरह से समृ था, वह अब
िसकड़कर ब त छोटा हो गया था। उसक सीमा अब कभलगढ़ क सलूंबर तक और गोरवाड़ से देबादी तक थी।
मैदानी भाग पर श ु का अिधकार होने से बड़ी सं या म नाग रक ने भागकर पवतीय देश म शरण ली थी, जहाँ
उ ह नए िसर से आजीिवका क साधन खोजने थे। राणा उदयिसंह क सार रा यकाल म मेवाड़ ने भारी उथल-पुथल
और िनरतर सैिनक संघष देखे थे। इससे रा य िछ -िभ हो गया था और अथ यव था पूरी तरह चरमरा गई थी।
ताप क सामने मेवाड़ क सुर ा का बंध करने क अित र टट-फट रा य को जोड़ने, सँभालने और जा क
दयनीय दशा को यथासंभव सुधारने क चुनौितयाँ थ ।
दरअसल राजपूत क श को सबसे बड़ा आघात तो खानवा क लड़ाई म राणा साँगा क बाबर से हार क
कारण ही लगा था। साँगा ने अपने शौय और यवहार-कशलता क बल पर राजपूत रयासत का जो श शाली
संगठन बनाया था, खानवा क पराजय ने उसे िबखेरकर रख िदया था। मायूँ और िफर शेरशाह सूरी क काल म
राजपूत ने सँभलने क कछ कोिशश ज र क , पर अकबर क िसंहासन पर बैठने क बाद थित और भी िवकट हो
गई। मुगल क िवशाल सेना और सा ा य से भी यादा खतरनाक थी अकबर क भेद-नीित। राजपूत क हौसले
प त हो चुक थे। ऐसे म अकबर ने बड़ी होिशयारी से कई राजपूत घरान को लोभन देकर अपने साथ िमला
िलया। इनम से कछ तो मानो ऐसे िनमं ण क ती ा म ही थे। इनम सबसे पहला और मह वपूण था आमेर घराना,
िजसक राजा भगवानदास ने न कवल अकबर क अधीनता वीकार कर ली, ब क अपनी बहन जोधाबाई का
िववाह भी उससे कर िदया। इसक साथ ही भगवानदास ने अपने पु मानिसंह को अकबर क सेवा म भेज िदया।
वह अिभमानी, िकतु वीर यो ा था। मुगल क अप रिचत श का संबल पाकर उसका उ साह और भी बढ़ गया
और वह मुगल का परचम लहराता आ िवजय-या ा पर िनकल पड़ा। आमेर क देखा-देखी और भी कई राजपूत
घरान ने अकबर क अधीनता वीकार कर ली और अपनी बहन या बेिटय क शादी मुगल सामंत से कर दी।
मानिसंह ने इन राजपूत सरदार को अपने साथ िमलाकर एक सश संगठन बना िलया। यवहार-कशल अकबर
मानिसंह क हर सैिनक सफलता पर उसे पुर कार म जागीर और उपािधयाँ देता था। देखते-ही-देखते कवर मानिसंह
राजा मानिसंह बन गया।
मेवाड़ क आसपास क बाँसवाड़ा, डगरपुर जैसी छोटी रयासत ने भी देखा-देखी यही िकया। कभी राणा
उदयिसंह क दरबार म हािजरी देनेवाले राजा दौड़कर अकबर क शरण म चले गए, िजससे मेवाड़ क िगद मुगल
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का िशकजा और कस गया। वयं राणा का अपना भाई जगमाल भी, जो उनक रा यािभषेक क बाद ई या क आग
म जल रहा था, अजमेर क मुगल सूबेदार क शरण म चला गया। ष यं क बावजूद ताप का उसक ित ब त
ेहपूण यवहार था। सूबेदार जानता था िक शहशाह अकबर राजपूत को अपनी तरफ िमलाने क िलए सदा
इ छक रहते ह। उसने पूर उ साह क साथ जगमाल का वागत िकया और अितिथ-स कार म कोई कसर नह
छोड़ी।
अवसर िमलने पर जगमाल क इ छानुसार सूबेदार ने उसे अकबर क दरबार म पेश िकया। बादशाह ने िखलअत
और जहाजपुर क जागीर देकर उसका स मान िकया और मुगल सा ा य क छ छाया म पूण सुर ा दान करने
का आ ासन िदया। जगमाल यह उ मीद लेकर अकबर क शरण म आया था िक देर-सबेर मेवाड़ पर मुगल का
शासन हो ही जाएगा। आिखर मेवाड़ इतनी बड़ी श क सामने अपने सीिमत साधन क साथ कब तक िटकगा?
उस िदन उसे अपने अपमान का बदला तो िमल ही जाएगा, अकबर ताप क थान पर उसे मेवाड़ का राजा भी
बना देगा।
एक बार पहले जगमाल ने छल-कपट क ज रए मेवाड़ का राणा बनने का सपना देखा था, जो पल भर म
चकनाचूर हो गया था। अब उसका यह दूसरा सपना भी उसक मरने तक सपना ही रहा। मह वाकां ी पर अयो य
जगमाल अकबर क कटनीितक चाल का िशकार होकर एक लड़ाई म कट मरा। आ यह िक अकबर क नीित
राजपूत को आपस म लड़ाने क थी। इसक तहत उसने 1583 ई. म जगमाल को मुगल दरबार क ित वफादारी से
खुश होकर िसरोही रा य का आधा िह सा पुर कार म दे िदया। िसरोही पर उन िदन वयं जगमाल क ससुर राव
मानिसंह का शासन था। जगमाल क रा य-िल सा ने पहले अपने बड़ भाई ताप िसंह का यायपूण अिधकार
छीनने क कोिशश क थी, तो इस बार अपने िपतातु य ससुर का आधा रा य मुगल क सहायता से हड़पने को
बेचैन हो गया। शहशाह से पुर कार म िमला रा य का आधा भाग पाने क िलए उसने िसरोही पर हमला कर िदया।
आ मण का सामना करने क िलए राव मानिसंह का पु सुर ाण सेना लेकर आगे बढ़ा। सुर ाण अपने रा य क
र ा क िलए बड़ी वीरता से लड़ा और यु म जगमाल उसक हाथ मारा गया।
परपरा क अधीन ही सही, राणा ताप का रा यािभषेक िपता उदयिसंह क मृ यु क शोकसंत वातावरण क
छाया म और धूत जगमाल को हटाकर िसंहासनासीन होने क अ त- य तता म आ था। अतः यह तय िकया गया
िक कभलगढ़ म उनका राजितलक दोबारा पूर राजक य वैभव क साथ िकया जाए। िलहाजा पूरी तैया रय क साथ
महाराणा ताप का रा यािभषेक उ ासपूण वातावरण म आ और परपरानुसार उसक बाद िशकार खेलने का
आयोजन भी िकया गया। इसे ‘अह रया उ सव’ कहा जाता था।
आखेट क िलए उनक दो भाई समरिसंह और श िसंह भी ताप क साथ थे। उनक कल पुरोिहत भी इन तीन
क पीछ-पीछ चल रह थे। आखेट का उ साह अपने चरम पर था। ताप और श िसंह दोन ही एक बनैले सूअर
का पीछा कर रह थे। दोन क भाले लगभग एक ही समय म सूअर को लगे और वह चार खाने िचत हो गया। अब
दोन भाइय म िववाद हो गया िक िशकार िकसका ह। बात ब त बड़ी नह थी, लेिकन बड़ी बात यह थी िक ताप
क महाराणा बनने और उनका मान-स मान देखकर श िसंह ई या से जल-भुन गया था। वह अपने ोध पर काबू
न रख सका और उसक अंदर का िवष आ ोश भर श द म कट होने लगा। ताप भी आपा खो बैठ तो दोन ने
तलवार ख च ल , तब तक कल पुरोिहतजी भी पास आ गए थे। उ ह ने बीच-बचाव करने का भरसक यास िकया,
पर दोन भाइय ने उनक एक न सुनी। कोई िवक प न देख वृ पुरोिहत ने उन दोन क बीच आकर एक िवशाल
छरा अपने सीने म घ पकर ाण दे िदए। यह देखकर दोन भाई शम से पानी-पानी हो गए। उधर सं याकाल भी
िनकट था। राणा ताप ने राजपुरोिहत क अंितम सं कार का समुिचत बंध िकया और उनक प रवार को भरण-
पोषण क िलए पया धन िमला। इसक साथ ही उ ह ने ा ण क ह या क िलए उ रदायी करार देकर श िसंह
को देश-िनकाले का दंड भी दे िदया।
कछ इितहासकार ने िट पणी क ह िक कल पुरोिहत क आ मह या क िलए ताप भी उतने ही िज मेदार थे,
िजतना श िसंह, िफर उसे इस कार दंड देने का या औिच य था? लेिकन जैसा िक हम पहले संकत कर चुक
ह, यह एक घटना मा थी, िजसक इतना िव फोटक प लेने क पीछ राणा क ित श िसंह क ई या थी।
महाराणा ताप अपने िपता उदयिसंह क तरह ही अपने प रवार म और आसपास होनेवाली सभी गितिविधय क
जानकारी रखते थे। उ ह श िसंह क मन म पनप रही घोर ई या और असंतोष का पता था। यह अवसर िमलने पर
उ ह ने सोचा िक इससे पहले िक श िसंह ई यावश कोई बड़ा ष यं रचे, उसे अपने से दूर कर देने म ही भलाई
ह।
श िसंह कहाँ जाता? उसे भी वही माग िदखाई िदया, जहाँ उसका दूसरा भाई जगमाल गया था। उसने िद ी
क राह पकड़ी। अकबर तो महाराणा ताप से ठ हर राजपूत का वागत करने को तैयार बैठा था। िफर यह तो
उनका भाई था। न जाने िकतनी मह वपूण सूचनाएँ और गु जानका रयाँ इसक पास ह गी। उसने श िसंह का
आदर-स कार िकया और अपने यहाँ शरण दे दी।
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संिध ताव
अकबर क रा यकाल तक मुगल सा ा य दूर-दूर तक फल चुका था। ऐसे म छोट से मेवाड़ का अधीनता
वीकार न करना उसे बुरी तरह अखर रहा था। ताप इस बात को अ छी तरह जानते थे और यह भी िक मेवाड़
कभी मुगल क अधीनता वीकार नह करगा, भले ही वाधीनता क कछ भी क मत चुकानी पड़। यानी उनक
साथ भावी प रणाम आईने क तरह साफ था। देर-सबेर मुगल से यु क थित आने पर या मेवाड़ अपनी
वतमान थित म मुगल से ट र लेने लायक था? िबलकल नह ।
अतः महाराणा ताप क पहली वरीयता अपनी वतं ता क र ा करने क थी। इसक िलए एक सुगिठत,
िशि त सेना क आव यकता थी। सेना क पुनगठन और सश ीकरण क िलए संसाधन क आव यकता थी, जो
इस िवप ाव था म मेवाड़ क पास ख म ही थे। रा य का अिधकांश उवर व मैदानी भाग मुगल क आिधप य म
था। आए िदन क आ मण और सैिनक झड़प क चलते नाग रक अपने घर- ार से उजड़ चुक थे। उनम से
ब त से पवतीय े क सुर ा म शरण लेकर िकसी तरह जीवनयापन क िलए हाथ-पैर मार रह थे। ऐसी थित म
भी उ ह ने यथासंभव सेना को सुगिठत करने का यास िकया। नई भरती क गई, उ ह अ -श और िश ण
िदया गया। अपने सीिमत साधन म इस काय को सफल बनाने क िलए ताप ने संसाधन क अपे ा नैितक बल
का सहारा अिधक िलया। मेवाड़ क बार म यथा राजा तथा जावाली बात च रताथ ई। उदयिसंह ने भले ही मेवाड़
क सुर ा क िलए यास िकए ह , लेिकन देशर ा क िलए परा म या बिलदान क भावना का दशन कभी नह
िकया। अतः जाजन म भी िनराशा का वातावरण या हो गया। जबिक ऐितहािसक परपरा बताती ह िक उ ह ने
न कवल सामा य जन म अपने देश क र ा क िलए जन-जन का आ ान िकया, ब क वयं भी मेवाड़ क
पूणतः वतं न होने तक हर कार क राजसी सुख-भोग से दूर रहने क ित ा कर ली। उ ह ने सोने-चाँदी क
पा म राजसी यंजन का आनंद न लेने और मखमली सेज पर न सोने तक क ित ा कर ली। कहा जाता ह िक
राणा क इस ित ा क ड डी िपटवाकर सारी जनता को सूचना दी गई, िजसका बड़ा भाव पड़ा। उ ह ने वयं भी
जगह-जगह जाकर जन-जागरण अिभयान चलाया। नए महाराणा क वीरता, वतं ता क ित उनक अटट लगन
और िवन ता क चच तो उनक युवराज होने क समय से ही घर-घर म हो रह थे। उनक राजसी सुख क याग क
घोषणा ने इसे और बल िदया।
मेवाड़ क एक बड़ पवतीय वन देश म भील बसते ह। इनक अपनी यु कला ह। ये धनुष-बाण क योग म
अ यंत वीण और अचूक िनशानेबाज होते ह। पहाड़ और जंगल क बीहड़ रा त क जानकारी तथा उनक योग
म तो वभावतः इनक कोई बराबरी नह कर सकता। िकशोराव था से ही राणा ताप क कई भील सरदार से
ब त घिन ता रही। वे मेवाड़ क महाराजकवर क सहज ेह और िवन ता से अिभभूत थे। महाराणा ने मेवाड़ क
र ा क िलए इनका सहयोग चाहा तो एक-एक भील मातृभूिम क र ा क िलए ाण योछावर करने को त पर हो
गया।
काफ कछ आ, पर यह अब भी नाकाफ था, य िक िवशाल मुगल सा ा य और छोटा सा मेवाड़। ऐसे
श -असंतुलन म अपनी वाधीनता क र ा करना एक कड़ी चुनौती थी। ताप ने मेवाड़ क िहतैषी और राजपूती

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आन क र ा का संक प लेनेवाले सभी राव-राजा क साथ अपने संबंध और घिन बनाने तथा उ ह भी आने
वाले संकट क ित सचेत करने क यास भी तेज कर िदए। कभलगढ़ म दोबारा अपना रा यािभषेक कराने क पीछ
उनका मु य उ े य यही थी। इस बहाने उ ह ने बँ◌ूदी, ड◌ूगरपुर, बाँसवाड़ा, रणथंभौर क चौहान , ईडर और
िसरोही क देवड़ा तथा कछ अ य राव व रावल से घिन िम ता क संबंध बनाए। ताप क मामा जोधपुर क राव
चं सेन तो उनक अपने थे ही। एक तो पा रवा रक र तेदारी, दूसर िवचार म सा यता। राव चं सेन और ताप क
घिन ता वाभािवक ही थी। चं सेन भी िकसी क मत पर मुगल क पराधीनता वीकार करने को तैयार न थे, भले
ही उसक िलए िकतना ही बड़ा याग य न करना पड़।
अकबर मेवाड़ को अपने अधीन करने क िलए याकल हो रहा था। उसने उसे ित ा का न बना िलया था।
छोटा सा मेवाड़ इतने बड़ मुगल सा ा य क सामने न झुक—यह उसे सहन नह हो रहा था। उसने उ मीद क थी
िक शायद हमले क खतर को टालने क िलए राणा ताप खुद उसक पास संिध- ताव भेजेगा। शायद उसे समझने
म समय लगा िक उदयिसंह और ताप म िकतना फक ह। उसक सामने दो िवक प थे— सीधे मेवाड़ पर चढ़ाई
करक उस पर अिधकार करना या िफर राणा से संिध करक उसे अपने अधीन करना।
अकबर सीधे ताप से टकराना नह चाहता था। िच ौड़ िवजय का कड़वा वाद वह भूला न था। हालाँिक
उसक िवजय ई थी, पर यह जीत उसे इतनी महगी पड़गी, इसक उसने कभी क पना तक न क होगी। और िफर
जीतने क बाद उसे िमला था एक खाली दुग, िचता क राख और 30 हजार िनरीह नाग रक, िजनका नरसंहार करक
उसने अपनी खीज िमटाई थी।
दूरदश और कटनीित अकबर को यह भी मालूम था िक मेवाड़ घराने क िलए राजपूत क मन म ब त आदर-
मान ह। वयं मुगल क अधीन ब त से राजपूत भी राणा ताप का आदर करते ह। मुगल क िवशाल श का
सामना करने का साहस न जुटाने क कारण वे अकबर क अधीन तो हो गए थे, लेिकन वतं ता और िनभय रहने
क िलए ित ाब ताप का वे दय से स मान करते थे। मेवाड़ पर चढ़ाई करक वह इनम असंतोष क भावना
नह फलाना चाहता था, इसिलए ताप क ओर से कोई ताव न आने पर उसने अपनी तरफ से संिध- ताव
भेजने का िनणय िकया।
महाराणा ताप क सामने भी दो िवक प थे— या तो वे अ य राजपूत क तरह अकबर से संिध करक इस
अधीनता क बदले अपने और अपनी जा क िलए सुख-चैन खरीद लेते या वतं रहकर संघष का कटकाक ण
माग अपनाते। अकले महाराणा तो ऐसा िनणय ले नह सकते थे। आिखर िबना सामंत और जाजन क सि य
सहयोग क यह कसे संभव था? अतः उ ह ने अपने सभी सामंत-सरदार , मेवाड़ क सहयोगी राव-रावल और
जाजन का मन टटोला। परामश एक ही था, ‘‘पराधीनता वीकार करने क बजाय मातृभूिम क र ा म ाण
योछावर करना ेय कर समझगे।’’ उनक सैिनक ने ही नह जा क हर साधारण जन ने भी यही भाव य
िकए। भील तो अधीनता को कभी वीकार नह करते थे। अपने महाराणा क िलए सव व अपण करने को वे सदा
त पर रहते थे। यह महाराणा ताप क य व का क र मा तो था ही, मेवाड़ क परपरा भी थी। याग, बिलदान
आ मो सग क भावना र बनकर येक मेवाड़वासी क रग म वािहत हो रही थी। इसने ताप का उ साह
दोगुना कर िदया। िनणय हो गया। अब कवल उसक अनु प यथासंभव तैयारी करने क आव यकता थी।
अकबर ने महाराणा क िसंहासना ढ़ होने क लगभग छह महीने बाद ही िसतंबर, 1572 म उनक सामने संिध-
ताव रखने क िलए अपने िमठबोले और घाघ दरबारी जलाल खाँ कोरची को मेवाड़ भेजा। उसक साथ
राजदरबार क रीित-नीित म द कछ अ य दरबारी भी थे। महाराणा ने कोरची और उसक सािथय का उिचत

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आदर-स कार िकया और शाही अितिथशाला म उनक िलए अनेक सुिवधा क यव था कर दी। कोरची ने अपने
श द क चाशनी म डबोकर ताप को मुगल क अधीनता का कड़वा पेय िपलाने क पूरी कोिशश क । उसने
अ यंत िवन ता क साथ आदरणीय महाराणा को स ा अकबर महा क साथ संिध करने क लाभ और संिध न
करने से उनको और उनक जा को होनेवाले संभािवत क क बार म समझाया।
समय-समय पर ताप क साथ बैठ मुख सामंत और कोरची क साथ आए उसक सहयोिगय म वा ा क दौर
चलते रह। महाराणा उनक हर बात को बड़ यान से सुनते थे, पर कोई ठोस िति या कभी भी य नह करते
थे। कोरची ने अपने यास जारी रखे। वह सकारा मक या नकारा मक कोई-न-कोई जवाब चाहता था। लगभग दो
महीने बीत जाने पर उसने िन त उ र क िलए ताप से ब त आ ह िकया तो वे बोले, ‘‘खाँ साहब, मेवाड़ क
शासक तो भगवा एकिलंग ह। म तो उनका दीवान । जब तक मुझे उनक तरफ से कोई िन त उ र नह िमल
जाता, म आपको या जवाब दूँ?’’
कोरची को कछ समझ म नह आया। यह कोई राजपूती पहली थी, जो उसने आज तक नह सुनी थी। समझ म
आया तो िसफ इतना िक राणा कभी जवाब न दगे। िनराश होकर उसने अगले िदन अपना बो रया-िब तर समेटा
और िद ी क राह ली।
कोरची क असफलता से अकबर िनराश नह आ। उसे लगा िक संिध-वा ा क िलए िकसी राजपूत को भेजना
चािहए था। कछ सोच-िवचार करने क बाद उसने कवर मानिसंह को इस काम क िलए चुना।
1573 ई. म मानिसंह ने एक बड़ी सेना लेकर शोलापुर पर आ मण िकया और उसे जीत िलया। इसक बाद
उसने अंगर क क एक छोटी टकड़ी अपने पास रखकर शेष सेना को अकबर क पास लौट जाने का आदेश
िदया। इतनी समझ उसे भी थी िक मेवाड़ क िदशा म दल-बल सिहत आगे बढ़ने का अथ या लगाया जा सकता
ह। महाराणा ताप को मानिसंह क अकबर का दूत बनकर आने क सूचना पहले ही िमल गई थी। उ ह ने अपने
पु अमरिसंह को आदेश िदया िक मानिसंह का उदयपुर आने पर भ य वागत िकया जाए। सारी तैया रयाँ हो गई।
अमरिसंह ने कवर मानिसंह क अगवानी क और उसे बड़ आदर क साथ दरबार म ले आया, जहाँ वयं महाराणा
और उनक मुख सामंत ने उसका वागत िकया।
जलाल खाँ कोरची और मानिसंह म ब त अंतर था। जहाँ जलाल खाँ मृदुभाषी िवन था, मानिसंह मुगल
सा ा य क अप रिमत श क नशे म चूर था। अकबर का एक मुख सेनापित होने क नाते वह कई िवजय
अिभयान पर गया था और मुगलवािहनी व अपने रणकौशल क दम पर उसने जगह-जगह जीत क झंड लहराए थे।
वह यह मानकर आया था िक मेवाड़ जैसा छोटा सा रा य उसक िवन ताव म िछपी धमक से भयभीत होकर
संिध क िलए राजी हो जाएगा। उसक भाषा म िकसी दूत क िवन ता क थान पर ताकत क बल पर अपनी बात
मनवाने क खनक यादा थी।
पहले िदन क बैठक म ही मानिसंह और उसक साथ आए दरबा रय ने महाराणा क सामने ताव रखे। इनका
सारांश यह था िक महा मुगल स ा को मेवाड़ क वीर िशरोमिण राणा से संिध करक अतीव स ता होगी। यिद
आपस म िववाह संबंध हो जाएँ तो यह मै ी थायी और गाढ़ हो सकती ह। इतना सुनना था िक राणा क सामंत
क यौ रयाँ चढ़ गई। पर ताप क संकत पर सब शांत हो गए। इसक साथ ही यह िवक प भी था िक यिद
महाराणा को िववाह संबंधवाला ताव िकसी कारण से उिचत नह लगता तो यह संिध क अिनवाय शत नह ह।
वह अकबर क दरबार म हािजरी द और शहशाह उ ह ऊचा तबा दगे। दरबार म उनक ित ा क अनु प ही
उनका मान-स मान रहगा। इसक साथ ही मानिसंह क साथ आए दरबा रय ने राणा को दी जानेवाली जागीर, पदवी

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तथा अ य भट क बार म िव तृत जानकारी दी।
महाराणा ताप सारी बात यानपूवक सुनते रह। उसक बाद उ ह ने इतना ही उ र िदया िक अपने सभी सामंत से
परामश करने क बाद ही वे कोई िनणय कर सकगे। अमरिसंह ने िद ी दरबार से आए मेहमान क आित य का
ब त अ छा बंध कर रखा था। मानिसंह क सुख-सुिवधा और आमोद- मोद का वह वयं यान रख रहा था।
उसे पता था िक मानिसंह को िशकार खेलने का ब त शौक ह, इसिलए उसने उसका भी िवशेष बंध िकया था।
तीन िदन बीत गए, लेिकन कोई िन त उ र मानिसंह को न िमला। वह समझ गया िक महाराणा ताप उसका
ताव कभी नह मानगे। वह कवल टालमटोल कर रह ह। कोरची को उ ह ने दो महीने तक इसी तरह टाला था।
उसम इतना धैय नह था। वह बुरी तरह िचढ़ गया। अपना ताव न माने जाने को उसने य गत अपमान समझा।
उसक बुआ जोधाबाई क शादी उसक िपता ने अकबर से कर दी थी, इस नाते वह खुद को शहशाह का िनकट
संबंधी समझता था। इसक अलावा वह स ा अकबर का चहता तो था ही। बारह बरस क छोटी सी उ म ही
अकबर क चाकरी म आए मानिसंह को पराधीनता- वाधीनता का अंतर समझ म नह आ सकता था। संिध-
ताव को टालना उसे महाराणा क हठधिमता ही लगा। िवदाई का िदन आने पर अमरिसंह ने उदयसागर क िकनार
अितिथय क िलए िवशेष भोज का आयोजन िकया। झील क िकनार लगाए गए सुंदर गिलयार म अितिथय एवं
उनक साथ भोजन करनेवाले सामंत क िलए आसन लगाए गए और परपरागत तरीक से भोजन करने क िलए इनक
सामने चौिकयाँ रखकर सोने-चाँदी क बरतन म भोजन परोसा गया। मानिसंह राणा ताप क आने क ती ा कर
रहा था। जब कछ देर बाद भी राणा ताप नजर नह आए तो उसने पूछा, ‘‘अमरिसंह, भोजन तक तो ब त सुंदर
आयोजन आ ह, पर अभी तक राणा ताप नह आए?’’
अमरिसंह ने अ यंत िवन ता क साथ हाथ जोड़कर िनवेदन िकया, ‘‘कवरजी, म आपक सेवा म उप थत ।
आपक साथ भोजन भी अव य क गा। िपता ी उदरशूल से परशान ह। अतः नह आ सकगे।’’ इतना सुनना था
िक मानिसंह क तन-बदन म आग लग गई। वह समझ गया िक राणा ताप उसक साथ बैठकर भोजन करने म
अपना अपमान समझते ह। वह ले छ जो ह। वह सामने परोसा गया भोजन छोड़कर उठ खड़ा आ और बोला,
‘‘कोई बात नह , कवर अमरिसंह, म जा रहा । अब िद ी से उनक पेटदद क दवा लेकर ही आऊगा।’’
अमरिसंह तो खून का घूँट पीकर चुप रहा, लेिकन एक राजपूत सामंत जो मुगल क अधीनता वीकार करनेवाले
क साथ बैठकर भोजन करने क िववशता से ु ध था, चुप न रह सका। उसने आगे बढ़कर कहा, ‘‘कवर
मानिसंह, अगर आप दवा लेकर अकले आए तो हम मालपुरा म आपका वागत करगे। अगर अपने फफा क साथ
आए तो जहाँ भगवा एकिलंग को मंजूर होगा, वहाँ आपका भरपूर वागत िकया जाएगा।’’
मानिसंह और उसक साथ आए सभी दरबा रय क जाने क बाद सारा भोजन फकवा िदया गया। महाराणा ताप
क आदेश क अनुसार दरबार क , अितिथशाला और भोजन क थान को बार-बार गंगाजल से धुलवाकर पिव
िकया गया।
मानिसंह ने ताप क हठधिमता और उसक साथ बैठकर भोजन न करने क अपमान क कहानी थोड़ा नमक-
िमच लगाकर अपने फफा अकबर से बयान क । अकबर को समझते देर न लगी िक युवा मानिसंह को दूत बनाकर
भेजने म उससे भूल ही ई ह। मानिसंह यु क िलए एक यो य सेनापित तो था, लेिकन संिध-वा ा क िलए यो य
दूत नह हो सकता था। उसे उ मीद थी िक अपने से बड़ ताप क ित िवन ता िदखाकर और उनका सजातीय
राजपूत होने क नाते अपनी ही भाषा म उ ह ऊच-नीच समझाकर मानिसंह संिध क िलए राजी कर लेगा, परतु
मानिसंह से िमले िववरण और उसक साथ गए अ य दरबा रय से िमली िव तृत सूचना क आधार पर उसे पता चल
गया िक मानिसंह दूत न बनकर मुगल स ा का ितिनिध बनकर उदयपुर गया और उसने महाराणा क सामने
िवन ताव रखने क बजाय अहकार भरी आदेशा मक भाषा का योग िकया था। राजनय क अनु प कवर
मानिसंह का मेवाड़ क राजकवर अमरिसंह ारा वागत करना और उसक साथ बैठकर भोजन करने का ताव
रखना िबलकल यायोिचत था। महाराणा ताप क उसक साथ भोजन न करने से उसका कोई अपमान न आ था,
पर वह चुप रहा। संिध-वा ा भंग होने का तो उसे खेद रहा, लेिकन मानिसंह का बदला लेने का इरादा कट होने से
अकबर खुश ही आ। समय आने पर अब वह राजपूत को राजपूत से लड़ा सकगा, पर अभी तो िकसी व र और
अनुभवी राजपूत को दूत बनाकर एक बार िफर मेवाड़ भेजना चािहए। शायद राणा ताप ने इस बीच सोच-िवचार
करक मुगल क िवशाल श से टकराने और परािजत होने क बजाय संिध का अपना मन बना िलया हो।
उसने इस बार मानिसंह क िपता राजा भगवानदास को संिध- ताव क साथ भेजने का िनणय िलया। कछ
इितहासकार क अनुसार मानिसंह भगवानदास का भतीजा था, िजसे वह पु ही मानते थे। आमेर क राजवंश का
जहाँ अकबर से अब घिन संबंध था, वह कभी उसका मेवाड़ क राजवंश से भी गहरा नाता था। आमेर क
कछवाहा राजपूत कभी राणा साँगा क दरबार म हािजरी भरते थे और उनक साथ िकसी भी यु म सहयोग करने
को त पर रहते थे। मेवाड़ क श ीण हो जाने पर और अकबर क समय म मुगल का अप रिमत सै य बल
देखकर वे उसक साथ ही हो गए थे। उनक समझ म आ गया था िक मेवाड़ क सारी स मिलत श भी अकबर
को परािजत नह कर सकती। राणा ताप क वाधीनता क लगन उ ह हठधिमता और मूखता ही नजर आती थी।
अकबर का आदेश पाकर राजा भगवानदास ने अ ूबर 1573 म मेवाड़ क तरफ कच िकया। मानिसंह क तरह
भगवानदास भी सेना लेकर चला और रा ते म बड़नगर, राविलया आिद को र दता आ आगे बढ़ा। अपनी इस जीत
क मा यम से वह राणा ताप को संदेश देना चाहता था िक मुगल से दो ती न करनेवाल का या ह होता ह।
वहाँ से आगे बढ़कर उसने ईडा म डरा डाला और थोड़ा िव ाम करने क बाद ताप क पास अपने आने का संदेश
भेजा। वैसे तो राणा ताप को राजा भगवानदास क आगमन व उसक उ े य क बार म पहले ही खबर िमल चुक
थी। उ ह ने मानिसंह क तरह इस बार भी मुगल दरबार से आनेवाले दूत क वागत क पूरी तैयारी कर ली थी।
भगवानदास क आने पर महाराणा ताप ने वयं उनक आगवानी क और भरपूर वागत-स कार िकया। राणा ने
कहा िक आप तो मेर बड़ ह, पू य ह। इससे भगवानदास को आशा क िकरण िदखाई दी। उ ह ने सोचा िक
मानिसंह क धमक का कछ तो असर इस पर आ ह। राजा भगवानदास को आशंका थी िक अ य सामंत क
उप थित म संिध क चचा करने से कछ सम या हो सकती ह। वह मेवाड़ी राजपूत क वभाव और च र से
भली-भाँित प रिचत थे। िकसी भी राव-रावल क नकारा मक िति या वा ा को िवफल कर सकती थी। अतः
उसने पहली शत यह रखी िक जो कछ बातचीत होगी वह ताप और उनक बीच ही होगी। कोई तीसरा इसम
स मिलत नह होगा। यहाँ तक िक कवर अमरिसंह और राव क णदास को भी इससे अलग रखा गया। इस पर
िकसी को आपि न थी। सभी सामंत अपने महाराणा को जानते थे िक वे कभी मेवाड़ क वाधीनता क साथ
समझौता नह करगे।
राजा भगवानदास और राणा ताप क एकांत वा ा का भी सार सं ेप वही था जो मानिसंह क साथ उनक
बातचीत म सामने आया था। अंतर कवल इतना था िक भगवानदास ब त िवन ता और अपनेपन से पेश आ रह थे।
उ ह ने राणा को समझाया िक आमेर क राजवंश का अनुकरण करने म ही उनक भलाई ह। वह वयं अकबर से
िसफा रश करगे िक महाराणा को दरबार म उिचत स मानजनक पद और उपािध दी जाए। मुगल क िवशाल श
से टकराव छोट से मेवाड़ क िलए िवजय क आशा रखना असंभव ही तो ह। जब पराधीनता िन त ह तो यथ क
र पात से या लाभ? इससे तो मेवाड़ क जा क दुदशा ही होगी। अभी जो मान-स मान महाराणा को िमल रहा
ह, यु म पराजय क बाद उसक आशा रखना भी यथ ही होगा। आिखरकार इन सार तक क उ र म राणा
ताप ने वतं ता क बदले वग का रा य िमलने पर भी उसे तु छ कहा तो भगवानदास िचढ़ गए। बड़ होने क
नाते बोले िक ताप, म तो तु हार िहत क िलए समझा रहा था, पर अगर तुम आ मह या का रा ता ही अपनाना
चाहते हो तो तु हारी मरजी। अपनी हठधिमता से तुम मेवाड़ को यु क आग म झ कोगे और हजार वीर राजपूत
क बिलदान क िलए उ रदायी होगे। तुम मेवाड़ क साथ अपने िलए भी िवपदा मोल ले रह हो, वतं ता नह ।
भगवानदास क समझ म नह आ रहा था आिखर मुगल क िवशाल श से टकराकर मेवाड़ वतं क से रह
सकता ह? यह तो िनतांत असंभव ह।
राजा भगवानदास िनराश होकर लौट गए, पर अकबर उनसे सारा वृ ांत सुनने क बाद भी िनराश नह आ,
इनक बाद एक और यास करने क िलए उसने राजा टोडरमल को संिध-वा ा क िलए चुना। िदसंबर 1573 म
टोडरमल भी मेवाड़ क िलए रवाना ए, हालाँिक न टोडरमल को और न ही स ा अकबर को इस वा ा क
सफलता क कोई उ मीद थी। िफर भी नीितकशल और यवहारकशल टोडरमल को भेजकर एक और यास
करना उसने उिचत समझा। टोडरमल को भी राणा ताप से वह उ र िमला जो दूसर को िमला था। वे िकसी भी
क मत पर मेवाड़ क वतं ता क साथ समझौता करने को तैयार नह ए। राणा को लगता था िक यह तो अपनी
सुख-सुिवधा क िलए मेवाड़ क वतं ता को बेचना होगा। वे अ छी तरह जानते थे िक इस इनकार क बाद यु
अव यंभावी ह। वे यु क प रणाम से भी अवगत थे। यिद एक सैिनक संघष म मेवाड़ क िवजय भी होती ह तो
अकबर का अहकार इस अपमान को न सह सकगा। वह अपनी सारी श मेवाड़ को झुकाने क िलए यु म
झ क देगा। वयं महाराणा और उनक ि य मेवाड़ को िकस तरह क क का सामना करना पड़ सकता ह, इसे वे
अ छी तरह समझते थे। पर वतं ता उनक िलए सव प र थी।
राणा ताप को आरभ से ही पता था िक िकसी तरह क संिध-वा ा सफल नह हो सकती, चाह िकतना बड़ा
लोभन य न हो, मेवाड़ कभी पराधीनता वीकार न करगा, पर वे वा ा का म जारी रखना चाहते थे, तािक
आनेवाले यु का सामना करने क यथासंभव तैयारी कर ल। अकबर भी कोरची और मानिसंह क असफलता क
बाद समझ गया था िक ताप को अधीनता क िलए राजी करना असंभव ह, पर अपनी कटनीित क तहत वह अ य
राजपूत को िदखाना चाहता था िक मने तो मेवाड़ से िम ता का भरसक यास िकया, पर महाराणा क हठ क आगे
मेरी एक न चली, िफर िववश होकर आ मण का आदेश देना पड़ा। इस बीच जो समय िमला, उसका उपयोग
उसने मेवाड़ क अ य संभािवत सहयोिगय को दबाने म लगाया, तािक मुगल को राजपूत क स मिलत श का
सामना न करना पड़। शायद कह उसे यह आशा भी थी िक इस कार लगभग अकला पड़ जाने पर राणा ताप
संभवतः झुक जाएँ।
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सुर ा क तैया रयाँ


वा तव म मेवाड़ क वतं ता क र ा करने क चुनौती उदयिसंह क रा यकाल म ही खड़ी हो गई थी।
िच ौड़गढ़ क हाथ से िनकल जाने क बाद उदयिसंह मेवाड़ क र ा क ित िवशेष प से िचंितत रहते थे। उ ह ने
सेना म नई भरती क , मेवाड़ क अिधक-से-अिधक िम बनाने का यास िकया और अपे ाकत अिधक सुरि त
थान पर उदयपुर बसाना आरभ िकया। िकशोराव था तक आते-आते ताप इन सारी गितिविधय म िदलच पी लेने
लगे थे। अतः वे इस सम या और संभािवत समाधान से भी पूणतः प रिचत थे।
ताप क नजर क सामने धीर-धीर मेवाड़ का सारा मैदानी भाग मुगल क अिधकार म चला गया था। उस पर
या िससौिदया वंश क स मान क तीक िच ौड़गढ़ पर दोबारा अिधकार करने क क पना करना भी यथ िस
होता। ता कािलक आव यकता थी तो मुगल क िवशाल श से बचे-खुचे मेवाड़ क र ा करने और उसे वतं
रखने क ।
िस का दूसरा पहलू भी था। जहाँ िवशाल मुगल सा ा य क तुलना म मेवाड़ एक छोटा सा रा य था, कित
ने उसे अपने वािभमान क र ा क साधन भी िदए थे। उसक दुगम पवतीय देश, सँकरी घािटयाँ, दूर-दूर तक
फले जंगली देश और वषाकाल म उसक उफनती निदयाँ बाहरी आ मण से मेवाड़ क र ा करती थ ।
आ मणका रय क तुलना म ब त छोटी सेना भी इन दर और घािटय म मोरचे जमाकर अपनी र ा कर सकती
थी। यहाँ क िनवासी इच-इच भर भूिम से प रिचत थे, जबिक िकसी भी आ मणकारी क िलए यह िबलकल
अनजाना देश था। इसक अलावा इसक र ा करनेवाले जाँबाज राजपूत थे, जो वीरता म अपना सानी न रखते थे।
अकबर इस बात से भली-भाँित प रिचत था। िच ौड़गढ़ क चढ़ाई म उसका सामना उदयिसंह क वहाँ छोड़ी
एक छोटी सेना से ही आ था, लेिकन वे मु ी भर राजपूत िजस वीरता से लड़ थे, उसे वह अभी भूला नह था।
मेवाड़ क दुगम पवतीय देश म राजपूत से यु िकतना किठन और महगा पड़गा—इसका अनुमान भी उसे था।
यु क िलए मं णा हो रही थी तो उस बैठक म ताप का ठा आ और अकबर क शरण म गया भाई
श िसंह भी था। अकबर ने उससे पूछा िक अगर मेवाड़ क पवतीय देश म राणा को यु म हराना हो तो
िकतनी सेना क आव यकता होगी। इस पर श िसंह ने उ र िदया िक पूर े क घेराबंदी क िलए ही कम-से-
कम दो लाख क फौज चािहए। इसक अलावा हम यह भी याद रखना चािहए िक मुगल सेना क मु य ताकत
हाथी और तोपखाना वहाँ िकसी काम न आएँग।े सैिनक अगर िकसी गलत रा ते म भटक गए तो वनवासी भील क
िवष-बुझे बाण से एक भी न बचेगा।
मं णा सभा म उप थत अिधकांश सभासद ने श िसंह क बात को अितशयो माना। कछ ने खुलेआम
कहा िक जहाँपनाह, यह बड़ा डरावा िदखाकर अपने भाई महाराणा ताप को मुगल क कोप से बचाना चाहता ह।
आिखर ह तो उसका भाई ही न! कछ ने उसका मजाक भी उड़ाया।
अकबर उसक बात सुनकर गंभीर हो गया। उसे उसम ठोस वा तिवकता िदखाई दी। खुले मैदान म मेवाड़ क
छोटी सी सेना िवशाल मुगल सेना और उसक तोपखाने क सामने ठहर नह सकती थी, लेिकन बीहड़ पवतीय देश
म उसे हराना लोह क चने चबाना ही था। उसने श िसंह क बात क क क और भावी यु क योजना को

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लेकर गहरी सोच म डब गया।
इधर राणा ताप ने सुर ा तैया रयाँ तेज कर दी थ । उ ह ने गोगूंदा से अपना श ागार और राजकोष कभलगढ़
और आवलगढ़ म भेज िदया था। उ ह आशंका थी िक मुगल सेना गोगूंदा पर आ मण कर सकती ह। कभलगढ़
आज भी ब त दुगम तीत होता ह। अतः उस समय िकसी आ मणकारी सेना का सँकर रा त से होकर वहाँ
प चना असंभव ही था। इसक अलावा पवत से िघर इस दुग क चार ओर िकसी बड़ी सेना का जमा होना संभव न
था। आवलगढ़ अपे ाकत छोटा दुग था, लेिकन कभलगढ़़ से भी अिधक दुगम होने क कारण सुरि त था। राणा ने
इन दोन गढ़ म पया खा ा -भंडार भी जमा कर िलया था। पानी क इस देश म कमी न थी। इसक अित र
एक और लाभ यह था िक श ु क ब त अिधक दबाव क थित म यहाँ से िनकलकर बीहड़ पवतीय देश क
िकसी और सुरि त थान पर चले जाना सहज था। मेवाड़ क लुहार भाले, तलवार, धनुष-बाण बनाने म द थे। वे
रात-िदन हिथयार क पूित क िलए लगे थे और अ -श बनाकर पवत क कदरा म जमा कर रह थे।
श ु क अनाचार से त जो नाग रक शरण लेने क िलए पवतीय देश म चले गए थे, उनक पुनवास म
राणा ताप ने यथासंभव सहायता क और पहाड़ क बीच हर-भर मैदान म उनक रहने क िलए क े घर यु
तर पर बनवाए। इनम से जो युवा देश क र ा क िलए अपनी सेवाएँ देने को त पर थे, उ ह सेना म भरती कर
िलया गया। उ ह हिथयार से लैस िकया गया और श संचालन का िश ण िदया गया। वीरता-धीरता से मेवाड़
क र ा क िलए ाणो सग करना तो उनक र म शािमल था।
राणा ताप क सारी तैयारी भावी यु क सकारा मक व नकारा मक दोन प रणाम को यान म रखकर क गई
थी। कछ इितहासकार क यह िट पणी िक वे वीरता क अित उ साह म रहते थे—उपयु तीत नह होती। ताप
ने िजस तरह आस यु क तैयारी क , वह ठोस वा तिवकता पर आधा रत थी। उ ह ने पवतीय माग म एक-एक
नाक पर सुर ा िकस तरह क जाएगी, इसक पूरी और यापक योजना अपने सेनािनय क साथ बनाई। कभलगढ़
या आवलगढ़ पर भी संकट मँडराने पर राजकोष और राजप रवार को िकस तरह से वहाँ से िनकालना ह और कहाँ
थानांत रत करना ह—इस पर िव तृत योजना पहले से बना ली गई थी। उसक पुि बाद क घटना से भी होती
ह, जब हम देखते ह िक ताप कसे अपने प रवार और खजाने को श ु क घात- ितघात से बचाकर सुरि त रख
पाए।
सेना क पुनगठन, दुग क सुर ा, पवतीय माग क नाकबंदी क यव था, श ु सेना क आपूित म यथासंभव
बाधा प चाने क यव था, पवतीय देश एवं दुग म अ क भंडार, पशु क चार और जल क यव था करने
क बाद राणा ताप ने मैदानी े क ओर यान िदया, जहाँ से मुगल क सेना को आना था। उ ह ने आदेश जारी
कर िदया िक सार मैदानी े म कोई खेती नह क जाएगी। पूर देश को अंजर-बंजर क तरह उजाड़ िदया जाए।
श ु को िकसी भी तरह क खा ा क थानीय सहायता नह िमलनी चािहए। इस आ ा का उ ंघन करनेवाले
को देश का श ु माना जाएगा और ाणदंड िमलेगा। देशभ िकसान ने अपने महाराणा क आ ा का अ रशः
पालन िकया। अपवाद व प िजस इ -दु ने िकसी िक म क फसल उगाने क कोिशश क , उसका िसर काट
िदया गया।
इधर संिध- ताव क असफलता क बाद स ा अकबर भी यु -योजना पर िवचार कर रहा था। उसे यह बात
ब त अखर रही थी िक छोटा सा मेवाड़ िवशाल मुगल सा ा य को मुँह िचढ़ाते ए वाधीन खड़ा ह। उस पर
िकसी तरह क दबाव का कोई असर नह पड़ा ह, लेिकन मेवाड़ को िप ी सा और चंद घंट म र दा जा
सकनेवाला रा य समझने क भूल अकबर ने न क थी। िच ौड़गढ़ क लड़ाई का उसे य गत अनुभव था।

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उसने वहाँ मु ी भर राजपूत को अपने दुग क र ा करते ए ाण- योछावर करते देखा था। मेवाड़ मुँह का
िनवाला न था, इसीिलए वह पूरी योजना क साथ उस पर आ मण करना चाहता था, तािक एक ही बड़ वार म इस
सम या को सदा क िलए िमटा द। जो काम संिध-वा ा से नह आ, वह तलवार क जोर पर तो हो ही सकता था।
मेवाड़ क वाधीनता अकबर क िव तारवादी मह वाकां ा म ब त बड़ी बाधा तो थी ही, उसक वाधीन रहने
से एक और बड़ी सम या थी—आिथक सम या। िवदश से जो भी माल समु ी माग से आता था, वह सूरत क
बंदरगाह पर उतारा जाता था। वहाँ से गुजरात व राजपूताना क रा ते ही वह उ र भारत म आता था। इसीिलए
अकबर ने उस रा ते को िन कटक बनाने क िलए गुजरात और मेवाड़ पर अिधकार करना आव यक समझा। उन
िदन आमदनी का एक ज रया लूट भी होता था। बड़ राव-रावल क छापामार द ते मौका िमलने पर आस-पास क
इलाक म अचानक हमला करक लूटमार करते थे और िकसी बड़ी सेना क र ा क िलए आने से पहले अपने े
म लौट आते थे। इसक अलावा राज थान क भील और दूसर हिथयाबंद द ते सूरत से माल लेकर आनेवाले
यापा रक कारवाँ लूट लेते थे। इ ह वहाँ क शासक क मौन वीकित रहती थी। परपरा इतनी चिलत थी िक इसे
िकसी तरह का गलत काम या अपराध नह माना जाता था। नैितकता को सव वरीयता देनेवाले महाराणा ताप
क रा य म भी इस कार क गितिविधयाँ जारी थ । उनक अपने सैिनक द ते भी ब धा इनम शािमल रहते थे।
मेवाड़ पर अपना आिधप य जमाए िबना अकबर इस माग को पूरी तरह िनरापद नह बना सकता था।
अकबर ने जोधपुर क राव चं सेन क िव जो सैिनक अिभयान चलाया था, उसका एक कारण यह भी था।
राव चं सेन क सैिनक भी गुजरात से आनेवाले यापा रक कारवाँ लूटने म िस ह त थे, िजससे अकबर परशान
रहता था। िनरतर यास करने और उनक रा य क ब त बड़ भूभाग को अपने अिधकार म कर लेने क बावजूद
अकबर उ ह पराधीन करने म सफल नह हो सका था। वह चाहता था िक चं सेन उसक खेमे म आ जाएँ। उनका
और राणा ताप का गठजोड़ टट। दूसर से सफलता तो नह िमली, पर राणा ताप से सीधी ट र होने से पहले
वह चं सेन क श को ीण करने म अव य सफल रहा।
राव चं सेन से होनेवाली सैिनक झड़प ने भी अकबर को िसखा िदया था िक छोट से िदखनेवाले मेवाड़ से लोहा
लेना आसान नह होगा। इसिलए उसने पूरी तैयारी क साथ और सुिनयोिजत ढग से मेवाड़ पर आ मण करने क
योजना बनाई थी। इस योजना क सारी परखा बनाने एवं त संबंधी मं णा म पूरी य गत िच ली थी।
कछ मुसिलम इितहासकार ने इसका एक धािमक कारण भी िगनाया ह। उ र भारत से जो मुसलमान हज-या ा
पर जाते थे, वे भी सूरत से ही जहाज म बैठते थे। अतः उनका रा ता भी राज थान और गुजरात से होकर जाता था।
इन इितहासकार क अनुसार, अकबर उनक िलए भी इस रा ते को सुरि त करना चाहता था। दरअसल इस बात म
कोई दम नह ह। अजमेर और मेवाड़ क लूटनेवाले द त क हज-याि य म कोई िदलच पी नह थी। इसक
अित र मेवाड़ या अजमेर क शासक ने ही नह , वहाँ क िनवािसय ने भी सदा से धािमक सिह णुता का प रचय
िदया ह। दूसर क धम का आदर करना और सभी धम क अनुयाियय क साथ िमल-जुलकर रहना वहाँ क
सं कित का एक अंग था। कभी उ ह ने धािमक कारण से िकसी को हािन प चाने का िवचार तक नह िकया। जहाँ
तक ताप का सवाल ह, मुसलमान का महाराणा उतना ही आदर करते थे, िजतना अपने िहदू जाजन का। वे एक
लोकि य शासक थे और सबको समान ि से देखते थे। इसीिलए महाराणा क सेना म भी ब त से मुसलमान
सैिनक थे। हािकम खाँ सूर उनक मुख सेनािनय म एक था, जो ह दीघाटी क यु म ऐसी वीरता से लड़ा िक
एक बार तो श ु सेना क पाँव ही उखाड़ िदए।
सवाल उठता ह िक आिखर मेवाड़ को अपने अिधकार म लेने क िलए य अकबर ने सैिनक काररवाई करने म

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इतना समय य लगाया? संिध-वा ा क संभािवत प रणाम का अनुमान उसे था, पर मेवाड़ उसक िवजय-
अिभयान क योजना म नह था। इससे पहले वह गुजरात और मालवा पर पूरी तरह अपना आिधप य जमाना
चाहता था। इसक अलावा समय-समय पर होनेवाले छोट-मोट िव ोह को भी वह पूरी तरह कचलना चाहता था।
उसे यह भी अनुमान न था िक मेवाड़ क िव संघष आरभ करने पर उसक सेना िकतने समय तक वहाँ उलझी
रहगी। दूरदश यथाथवादी अकबर ने आनन-फानन म मेवाड़ को पददिलत करने का िदवा- व न कभी नह देखा
था।
यही कारण था िक वह संिध-वा ा क बहाने उस काररवाई को टालता रहा। इधर महाराणा ताप ने भी टालने
क नीित अपना रखी थी। उ ह मुगल क िवशाल सेना का सामना करने क िलए काफ तैयारी करनी थी। इसक
िलए िजतना अिधक समय िमले, उतना ही अ छा था। मानिसंह क भोजन क समय उ ंडता िदखाने पर अमरिसंह
तो िवन बना रहा, लेिकन राजपूत सरदार ने जो खरी-खरी सुनाई, उससे भी राणा ब त स थे। वे नह चाहते थे
िक श ु पर मेवाड़ क असली मंशा कट हो। िससौिदया वंश क अितिथपरायणता क अलावा महाराणा ताप और
युवराज अमरिसंह क अकबर क सभी दूत क ित िवन ता क यवहार क पीछ यही नीित थी।
बहरहाल अब सारी थित प हो चुक थी और दोन ओर से यु क तैया रयाँ जोर पर थ । मेवाड़ क वीर
क िसर पर यु ो माद हावी हो रहा था। वे िच ौड़ क पराजय का मुगल से बदला लेने को उतावले हो रह थे।
िपता राणा ताप क िनदशन म रणनीित एवं कटनीित दोन का िश ण पाए अमरिसंह व अ य व र सामंत उनक
उ साह पर िनयं ण रखने और उ ह अनुशािसत रखने का यास कर रह थे।
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ह दीघाटी का यु
यु क तैयारी ऐसी चीज ह, िजसे िकसी भी काल म गु रखना संभव नह था। मुगल क तरफ से या तैयारी
हो रही ह—उसक जानकारी ितिदन राणा ताप को िमल रही थी। इसी तरह राजपूत क तैयारी क सारी सूचना
अकबर तक भी प च रही थी। राणा ताप क साथ बाहर से कौन-कौन से राव-रावल यु म सहायता क िलए
त पर थे, उसक खबर भी अकबर को थी। वह उन सब क स मिलत श का पता करना चाहता था, लेिकन
यह संभव नह हो सका। अतः उसने अनुमान क आधार पर अपनी सेना को तैयार िकया।
राणा ताप को पता चल चुका था िक मानिसंह क नेतृ व म मुगल क एक बड़ी सेना मेवाड़ पर धावा बोलने क
िलए कच करनेवाली ह। वह िकतनी ह, इसका पता लगाना या अनुमान करना शायद उनक िलए मह व नह रखता
था। सेना पाँच हजार हो या पचास हजार—मेवाड़ को तो अपनी वाधीनता क र ा क िलए उसका सामना करना
ही था। जो कछ श राणा जुटा सकते थे, उ ह ने जुटा ली थी। अब तो आव यकता थी यु नीित बनाने और
मुगल सेना का सामना कहाँ िकया जाए, इसका िनणय लेने क ।
मं णा-क म रणनीित को लेकर मतभेद प प से उभरकर सामने आए। परपरा से चली आ रही रणनीित
को बदलना आसान नह होता। िवषय कोई भी हो, जो कछ चला आ रहा ह, उसक िवपरीत कछ करने क िलए
सामा यजन तो या िविश लोग भी आसानी से तैयार नह होते। राजपूत क अब तक क परपरा यह थी िक अपने
से सं या म चाह िकतनी बड़ी सेना हो, उस पर टट पड़ते थे और जब तक एक भी वीर जीिवत ह, श ु को आगे
बढ़ने से रोकने का भरपूर यास करता था। राजपूताने का इितहास ऐसे शौय क गाथा से भरा पड़ा ह। परािजत
होने पर राजपूत क एक पूरी युवा पीढ़ी बिलदान हो चुक होती थी। दूसरी पीढ़ी म युवा होनेवाले श ु का सामना
करने लायक बनने तक िववश रहते थे।
एक अं ेज लेखक ने ब त अ छी िट पणी क ह िक जो लड़ता ह, वह अपनी हार िन त देखकर यु े से
भाग खड़ा होता ह। वह िफर कभी श ु का सामना करने क िलए जीिवत रहता ह, लेिकन जो श ु का पलड़ा भारी
होने पर भी पीछ नह हटता और कट मरता ह, वह कभी अपनी हार का बदला लेने क िलए िफर खड़ा नह हो
सकता। राजपूत क साथ ऐसा ही होता आया था, पर वे इस त य को समझने को तैयार न थे।
ह दीघाटी क लड़ाई क िलए ई मं णा सभा म भी ऐसी ही मनो थित सामने आई। पहले क कई छोट-बड़
यु क कड़ अनुभव से गुजर कछ व र सामंत, िजनम रामिसंह तंवर मुख थे, इस मन क थे िक मुगल से
सीधी ट र न ली जाए। उ ह पहले आ मण करने िदया जाए और दुगम व सँकर पवतीय तर म हमारी सेना
उनका मुकाबला करते ए उलझाकर रखे।
ऐसी थित म मुगल सेना का मु य बल, उसक हाथी और तोपखाना िकसी काम न आ सकगे। सं या म
अिधक होने का लाभ भी उनको मैदान म ही था। पहाड़ क कछ रा ते तो इतने सँकर थे िजन पर एक साथ दो
सैिनक भी नह चल सकते थे। ऐसे म मोरचाबंदी करक वहाँ डटी राजपूत सेना क िलए उनका सामना करना सहज
होगा। पवत क आड़ म लगभग अ य भील क अचूक िनशाने और िवषब बाण क हार क सामने बड़ी-से-
बड़ी सेना भी असहाय ही रहगी। उनका कहना था िक छापामार यु क रणनीित क अनुसार आव यकता पड़ने

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पर िकसी एक मोरचे से पीछ हटने और िफर दूसर पा से श ु पर चोट करने क नीित भी अपनाई जा सकती ह।
यह नई सोच थी, जो परपरागत शैली क लड़ाईवाल क समझ म नह आई। उनक राय थी िक खु मखु ा
श ु पर पूरी श से धावा बोला जाए। पहाड़ी कदरा क ओट लेकर लड़ने म कहाँ क वीरता ह? इससे श ु
पर वैसा घातक हार भी नह हो सकगा, जो ज री ह। इनम से कछ अित उ साही सामंत ने राणा से अनुरोध िकया
िक उ ह हरावल द ते म रखा जाए। वे अपने आरिभक हार से ही श ु क पैर उखाड़ दगे।
काफ सोच-िवचार क बाद राणा ताप ने लगभग िमली-जुली रणनीित अपनाने का िनणय िलया। तय आ िक
यु ह दीघाटी म लड़ा जाएगा। इस सँकर और पथरीले इलाक म मुगल क िलए लड़ना आसान न होगा। वे
मैदानी इलाक क लड़ाई कअ य त थे। रा य क सैिनक मुगल तोपखाने क मार और हािथय क िवशाल सेना से
बचे रहते। यह परपरागत और छापामार यु क बीच क रणनीित थी, यानी दोन मत का सम वय िजसम छापादार
रणनीित का पुट प तः अिधक था।
इससे पहले वयं महाराणा ताप और उनक कछ अ य सामंत मांडलगढ़ क खुले इलाक म मुगल का सामना
करने क प म थे, पर सारी थित पर पुनिवचार करने और यु -मं णा क बाद ह दीघाटी म छापामार शैली म
लड़ने को ही ेय कर समझा गया। इधर अकबर ने मानिसंह को मेवाड़ पर आ मण करने क िलए भेजी जानेवाली
सेना का धान सेनापित िनयु िकया। कछ मुसलमान िसपहसालार को यह अखरा भी, पर वे मौन रह। अकबर
चाहता था िक राजपूत राणा ताप क िव जो सेना जाए, उसका नेतृ व एक राजपूत ही कर। इससे उसका साथ
देनेवाले अ य राजपूत पर गलत संदेश नह जाता। मानिसंह जब संिध-वा ा क िलए आया था, तब उसने ताप क
अनुप थित को अपना अपमान समझा था और उसने अकबर से कहा भी था िक समय आने पर उसे इस अपमान
का बदला लेने का अवसर िदया जाए। इसक अलावा मानिसंह कई यु का िवजेता, कशल एवं अनुभवी सेनापित
था। अकबर को उसक वीरता और रणनीित पर पूरा भरोसा था।
मानिसंह क रणकौशल पर तो अकबर को पूरा भरोसा था, लेिकन एक राजपूत का दूसर राजपूत से लड़ते समय
उस पर पूरा भरोसा करना उसने उिचत नह समझा। अतः उसने मानिसंह क सहायता क िलए अपने चुने ए
मुसलमान िसपहसालार गाजी खान, महाबल खान, मुजािहद खान, िमहतर खान, अरशद खान, वाजा मुह मद
रफ , आसफ खान, मीर ब शी और सैयद हमीम बरहा को भी साथ कर िदया। इसक अलावा िहदू सेनापित राय
लूनकरण, माधोिसंह और जग ाथ कछवाहा भी थे। रणनीित क िलए िजन यु पर राजपूत ने चचा क थी,
मुगल क मं णा सभा म भी उ ह पर चचा ई थी। उसका सारांश भी यही था िक दुगम पहाड़ी देश म मेवाड़ क
सेना को परा त करना सरल न होगा। वहाँ न तोपखाना काम आएगा, न हािथय क फौज, िजस पर मुगल को
ब त भरोसा था। मुगल सेना म सभी अनेक बड़ यु क अनुभवी िसपहसालार थे। उ ह ने राय लूनकरण क इस
तक को एकमत से वीकार िकया। रणनीित यही तय ई िक िकसी भी तरह राजपूत को उकसाकर मैदान म लाया
जाए और आमने-सामने क लड़ाई म परा त िकया जाए। दुगम पहाड़ी देश म यिद यु होता ह तो मुगल सेना
कदािच अिन त काल क िलए वहाँ फस जाएगी।
मानिसंह को धान सेनापित बनाकर भेजने क पीछ एक चाल और थी। राणा कभा क आमेर को अपने अधीन
कर लेने क बाद से आमेर क कछवाहा राजपूत िच ौड़ क दरबार म हािजरी भरते थे। वयं मानिसंह क िपता राजा
भगवानदास भी कछ समय तक महाराणा ताप क िपता राणा उदयिसंह क दरबार म हािजरी देते रह, लेिकन बाबर
क हाथ राणा साँगा क पराजय क बाद से ही वे मुगल क बढ़ती श क ित आकिषत हो रह थे। बीच म
मायूँ का अ त- य तता का समय आने पर और िद ी म शेरशाह सूरी का रा य थािपत होने क कारण वे कछ

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िनणय न ले सक, िफर अकबर क समय म मुगल क श ब त अिधक बढ़ गई। अकबर कछ राजपूत को
अपने साथ िमलाना चाहता था। आमेर क कछवाहा भी इसी अवसर क ताक म थे। उ ह ने न कवल उनक
अधीनता वीकार कर ली, ब क मानिसंह क बुआ जोधाबाई का डोला अकबर क हरम क शोभा बढ़ाने को
भेजकर इस संबंध को और भी सु ढ़ कर िलया।
जािहर ह िक उदयिसंह और उनक बाद राणा ताप इस िव ासघात को भूले न थे। अकबर को िव ास था िक
मानिसंह को अपने िव यु का संचालन करते देख राणा ताप का खून खौल उठगा। तय पाया गया िक
उिचत अवसर देखकर मानिसंह अपना हाथी बढ़ाकर राणा ताप क घोड़ क सामने ले आए और अगर िफर भी
राणा उ ेिजत न हो तो उसे यु क िलए ललकार। इस पर ताप आपा खोकर मानिसंह पर टट पड़गा। हाथी पर
सवार मानिसंह घुड़सवार ताप पर भारी पड़गा। वह अपने घोड़ को हाथी पर चढ़ाने क कोिशश कर सकता ह।
इसिलए तय पाया गया िक हाथी क सँ◌ूड़ म तीखी दोधारी तलवार बाँध दी जाएँ, िजनसे राणा का घोड़ा चेतक
घायल हो जाए। मानिसंह क हाथी क आस-पास चुिनंदा वीर सैिनक का एक जबरद त द ता तैनात कर िदया गया,
िज ह िनदश था िक ऐसा अवसर आने पर िजसक ब त संभावना थी, वे महाराणा ताप को घेरकर मार डाल।
अपने महाराणा को मरते देख राजपूत क हौसले प त हो जाएँगे और िफर शेष यु को जीतना सरल हो जाएगा।
जैसा िक हम आगे देखगे, मुगल ने इसी रणनीित क तहत काम िकया, जो काफ हद तक सफल रही।
मेवाड़ क िवजय अकबर क िलए िकतना मह व रखती थी, इसका अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता ह
िक यु क रणनीित तय हो जाने क बाद बादशाह अकबर खुद माच 1576 म अजमेर आया। उसने वाजा क
दरगाह पर माथा टका और ब त सा चढ़ावा चढ़ाकर यु म सफलता क म त माँगी। अजमेर म बैठकर अकबर
ने भावी यु से संबंिधत गितिविधय का खुद िनरी ण िकया। इसक अित र उसे मेवाड़ क इलाक म होनेवाली
गितिविधय क सूचनाएँ भी यहाँ आसानी से िमल जाती थ ।
यहाँ एक और त य क चचा करना भी ासंिगक होगा। राजपूताना क इितहास म कनल टॉड ने और उनक
िववरण से भािवत होकर कछ अ य लेखक ने भी िलखा ह िक अकबर ने मानिसंह क साथ अपने बेट सलीम को
भी यु म भेजा था। सलीम का ज म अग त 1559 म आ था। ह दीघाटी का यु जून 1576 म आ था।
इससे साफ जािहर ह िक इस यु क समय सलीम क उ स ह साल थी। अपने स ह साल क बेट को लड़ाई
क मैदान म भेजने क गलती या अकबर जैसा समझदार बादशाह कभी करता और वह बेटा, जो उसे बड़ी म त
क बाद िमला था?
मानिसंह िकतनी सेना लेकर आया था—इस बार म कई आँकड़ िमलते ह। मेवाड़ क यात क अनुसार मानिसंह
80 हजार क िवशाल सेना लेकर आया था, जबिक राणा ताप क पास उसका सामना करने क िलए कल 20
हजार सैिनक थे। ऐसा तीत होता ह िक ह दीघाटी क यु म राजपूत क पराजय का कारण उनका इतनी बड़ी
सेना से मुकाबला होना ही था। जािहर ह िक यह राजपूत क वीरता को सािह यमंिडत करने और उनक पराजय क
बावजूद उनक इतनी िवशाल सेना से टकराने का साहस िदखाने क िलए िकया गया। साथ ही यह भी कहा जाता ह
िक इनम से 14 हजार राजपूत मुगल से लड़ते ए वीरगित को ा ए, िकतु त य क छानबीन से िन कष
िनकलता ह िक ये आँकड़ ब त बढ़ा-चढ़ाकर पेश िकए गए ह। वा तव म मानिसंह पाँच हजार क सेना लेकर
आया था। उसका मुकाबला करने क िलए राणा ताप क पास तीन हजार घुड़सवार थे। भील क सेना इसक
अलावा थी, िजसक िन त सं या उपल ध नह ह। इतना ज र कहा जाता ह िक इनक सं या ब त अिधक
नह थी। इस बात पर भी सभी इितहासकार सहमत ह िक महाराणा ताप क सेना से मुगल सेना क सं या ब त
अिधक थी, जो सवथा यु संगत तीत होता ह।
अकबर ने अपने गु चर क मा यम से इस बात का पता लगाने क पूरी कोिशश क थी िक राणा ताप क पास
कल िकतनी सेना ह। िन त सं या कदािच उसे नह िमली, लेिकन जो अनुमािनत सं या िमली, उससे कह
अिधक सेना भेजना उसक िलए वाभािवक ही था। मानिसंह क पाँच हजार क सेना लेकर आने क त य क पुि
एक और बात से भी होती ह। मानिसंह को जब अकबर ने मेवाड़ क िव जानेवाली सेना का धान सेनापित
बनाया तो इसक साथ ही उसे पाँच हजारी मनसबदार का ओहदा भी िदया था।
राणा ताप क सेना म मु य सेनापित वािलयर क रामिसंह तंवर, राव क णदास, झाला मानिसंह, पुरोिहत
जग ाथ, बीदा झाला, रामदास राठौर, चारण ज सा, हािकम खाँ सूर, शंकरदास और भील सरदार पुंजा थे। यु
क िलए ह दीघाटी को चुना गया था, िजसक िम ी ह दी क रग क होने क कारण उसका यह नाम ह दीघाटी
पड़ा था। यह मेवाड़ क अित संक ण दर वाली घािटय म से एक थी। पवतीय वन देश से िघरी इस घाटी म यु
करना राजपूत क िलए अ यिधक अनुकल था। इसक संक ण माग क र ा म तैनात थोड़ी सी सेना भी बड़ी-से-
बड़ी सेना को आगे बढ़ने से रोक सकती थी और उसे पया ित प चा सकती थी। यिद राजपूत को पीछ हटना
पड़ता तो वे इन सँकर पहाड़ी माग पर यु करते ए ब त लंबे समय, लगभग अिन त काल तक श ु को
उलझाए रख सकते थे।
राजपूत सेना गोगूंदा से चलकर ह दीघाटी प च गई और रणनीित क अनु प वहाँ मोरचे जमाकर श ु क
ती ा करने लगी। एक और बात जो राजपूत क िलए अनुकल थी, वह थी जून क भीषण गरमी, िजसे सहने क
वे आिद थे, लेिकन िकसी आ ामक सेना क िलए इस चंड गरमी म लंबे समय तक यु करना उसे प त कर
देता। मुगल हालाँिक सं या म कह अिधक थे, लेिकन इन प र थितय म उनक िलए मेवाड़ क सेना का सामना
करना किठन था। इससे प होता ह िक मुगल क अधीनता से इनकार करने और उनका सामना करने का साहस
िदखाने म महाराणा ताप का राजपूती दंभ नह था, जैसा िक कछ लोग समझते ह। उसक पीछ ठोस वा तिवकता
थी, अपनी सेना क वीरता, मेवाड़ क ाकितक सुर ा और अपनी रणनीित पर उ ह पूरा भरोसा था िक अकबर
िकतनी भी बड़ी सेना भेज दे, अपनी वाधीनता क र ा क िलए वे उसका सामना कर सकते ह।
3 अ ैल, 1576 को अकबर ने अपने आशीवाद क साथ मुँहबोले ‘फजद’ (पु ) मानिसंह को उसक सेना क
साथ मेवाड़ पर आ मण करने क िलए अजमेर से रवाना िकया। उसक सेना म पैदल और घुड़सवार क अलावा
हाथी और तोपखाना भी था। अपनी इस सेना क साथ मानिसंह मांडलगढ़ म आकर का। वह दो महीन तक यहाँ
छावनी डाले पड़ा रहा। शायद वह सोचता था िक राणा ताप इस लंबी ती ा से अपना धैय खो दगे और उस पर
मांडलगढ़ म ही आ मण करगे। वह जहाँ तक हो सक, खुले मैदान म मेवाड़ी सेना का सामना करना चाहता था।
भले ही वह मेवाड़ क पवतीय देश क भूगोल से ब त प रिचत न था, पर इतना अव य जानता था िक दुगम पवत-
देश म जहाँ उसका तोपखाना और हाथी यथ िस होते, राजपूत को हराना लगभग असंभव होगा। कछ
इितहासकार का यह भी कहना ह िक राणा ताप क यु क तैयारी क पूरी सूचना पाकर मानिसंह को अपनी
सेना अपया लगी और उसने स ा अकबर से और सेना भेजने का आ ह िकया था। अब वह मांडलगढ़ म
ककर उस अित र सेना क प चने क ती ा कर रहा था। इस बात म स ाई हो सकती ह, य िक ह दीघाटी
क यु क बार म लगभग सभी इितहासकार इससे सहमत ह िक मुगल क सेना राजपूत से ब त अिधक थी।
अकबर भी हर क मत पर मेवाड़ को जीतना चाहता था। अतः उसने मानिसंह क कहने पर और सेना भेजी हो तो
कोई बड़ी बात नह ।
बहरहाल वजह चाह और सेना क इतजार क रही हो या राजपूत क आ मण क , दो महीने क बाद जून क
आरभ म मानिसंह ने मांडलगढ़ छोड़ िदया और माही गाँव म आकर पड़ाव डाला। यह सारा े उसे एकदम
वीरान िमला, िजसम घास का एक ितनका तक न था। आ मणकारी को कोई थानीय सहायता न िमले, इसक
िलए उस सेना क सार रा ते को खाली कर िदया जाता था, खेत म आग लगा दी जाती थी और जलाशय म िवष
घोल िदया जाता था। इससे मानिसंह प रिचत था। इसिलए वह अपनी सेना क िलए पया रसद-पानी लेकर चला
था और आ मण क योजना बनने क साथ ही पीछ से आपूित आने और संचार क िलए उसने यापक यव था
कर ली थी। मांडलगढ़ से चलते ए उसने जहाँ-जहाँ पड़ाव डाले, वहाँ चौिकयाँ थािपत करक सुर ा क पया
यव था करता आया था, तािक राजपूत उस माग से आनेवाली रसद वगैरह छापा मारकर लूट न सक। जून क
भयंकर गरमी से बेहाल अपने सैिनक और पशु को िव ाम देने क िलए अंततः उसने मोलेला गाँव म आकर
खेमे गाड़ और सेना क छावनी थािपत क । बनाम नदी यहाँ से लगभग आधा िकलोमीटर दूर बहती थी। अतः यह
थान सेना क पड़ाव क िलए मानिसंह को उपयु लगा। गरमी क कारण उसका पानी काफ सूख गया था और
नदी पतले नाले क तरह हो गई थी, लेिकन िफर भी यह जल ोत उनक िलए पया था। यहाँ से ह दीघाटी का
मुहाना करीब डढ़ िकलोमीटर क दूरी पर था। मानिसंह ने बनाम नदी क साथ-साथ अपनी सेना को बढ़ाने क नीित
अपनाई थी, तािक इस ाकितक जल- ोत का लाभ उसक सैिनक और पशु को िमले।
मानिसंह को अपने संिध-वा ा क िलए मेवाड़ आने क िदन क याद हो आई, तब वह अमरिसंह क आित य म
ऐसे ही िकसी वन देश म िशकार खेलने गया था। उसने अपने कछ चुने ए अंगर क को साथ िलया और पास
क जंगल म िशकार खेलने क िलए िनकल पड़ा। उसने इस वन देश को िनरापद समझने क भारी भूल क थी।
वह नह जानता था िक जंगल का च पा-च पा वनवासी भील क िनगरानी म ह, िजनक ती ि और तीखे बाण
से बचकर कोई नह जा सकता। उनक िलए ब त सरल था िक इस छोटी सी टोली को घेरकर मौत क घाट उतार
देते, पर अपने राणा क अनुमित क िबना उ ह ने ऐसा कोई कदम उठाना उिचत नह समझा। एक भील युवक को
तुरत महाराणा ताप को इसक सूचना देने क िलए दौड़ाया गया। राणा ताप ने उसक बात सुनने पर पल भर सारी
थित पर मनन िकया और अपना िनणय सुनाते ए कहा िक मानिसंह भले ही हमारा श ु ह पर ऐसी थित म उसे
घेरकर मारना कायरता होगी। भु एकिलंग ने चाहा तो यु भूिम म ललकार कर उसे मारगे। िकवदंती क अनुसार
इतना ही नह , राणा ताप क आदेश पर एक तीर क पीछ छोटा सा संदेश िलखकर मानिसंह को िशकार खेलने
आई टोली क पास फका गया, िजसम उसे सावधान िकया गया था िक इस े म िशकार न खेल,े यह उसक िलए
ाणघातक िस हो सकता ह। मानिसंह को तुरत अपनी भूल का एहसास हो गया। उसने अपने सािथय क साथ
घोड़ को एड़ लगाई और सीधे अपनी छावनी म आकर दम िलया।
महाराणा क इस िनणय पर कहा जाता ह िक कछ भील युवक ु ध ए, लेिकन अपने राणा क आदेश क
अवहलना वे नह कर सकते थे। अिधकांश राजपूत सामंत ने राणा ताप क इस िनणय क मु कठ से शंसा क ।
यह फसला आिखर राजपूती आन क अनु प था। इस तरह मानिसंह का वध करना उसे धोखे से मारना ही होता,
जो राजपूत ने कभी नह िकया। यु और ेम म सबकछ जायज होता ह, यह नीित अं ेज ने बनाई थी, राजपूत
ने नह । अगर उस अवसर का लाभ उठाकर राजपूत मानिसंह को मौत क घाट उतार देते तो संभव ह िक अपने
धान सेनापित क ह या से बौखलाए मुगल राजपूत को दंड देने क िलए ह दीघाटी क सँकर पहाड़ी देश म
मोरचे जमाए बैठी मेवाड़ी सेना पर आ मण कर देते और इितहास कछ और ही होता। सच ह, उ नैितकता का
पालन करना कभी-कभी ब त महगा पड़ता ह।
ह दीघाटी का यु 21 जून, 1576 को ातः लगभग 8 बजे आरभ आ था। दोन प क धान सेनापितय
महाराणा ताप और कवर मानिसंह ने अपनी-अपनी सेना का संयोजन परपरागत यु शैली म िकया था, िजसम
हरावल, चंदावल, दि ण और वाम पा होते ह। हरावल सेना का अि म भाग होता ह, चंदावल िपछला भाग।
जैसा िक नाम से ही प ह दि ण और वाम पा सेना मशः दाएँ और बाएँ भाग को कहते ह। धान सेनापित
वयं इनक क म होता ह। महाराणा ताप िसंह ने अपनी सेना क हरावल द ते म अपने अ यंत िव त सेनापित
हािकम खाँ को तैनात िकया था। उसक सहायता क िलए चूड़ावत क णदास, भीमिसंह, रावत साँगा आिद थे।
दि ण पा का नेतृ व वािलयर क राजा रामिसंह तंवर कर रह थे। उनक साथ सहायता क िलए उनक तीन पु ,
ताप क एक अ य िव त सेनापित भामाशाह और उनक भाई ताराचंद थे। वाम पा मानिसंह झाला क नेतृ व म
था और उनक साथ झाला मान, मानिसंह सोनगरा तथा कछ अ य सामंत थे। चंदावल या सेना क िपछले भाग क
नेता राणा पुंजा थे। उनक साथ ताप क चुने ए सेनापित और चारण कशव थे। क म अपने ि य घोड़ चेतक पर
सवार महाराणा ताप थे। भील को राणा ने अपने धनुष-बाण क साथ आस-पास क े क सुर ा करने और
आव यकतानुसार श ु पर छापा मारने का काम स पा था, िजसका नेतृ व भील सरदार पुंजा कर रह थे।
कवर मानिसंह ने भी इसी प ित से अपना सेना-संयोजन िकया था। उसने अपने हरावल द ते म राजा जग ाथ,
आसफ खान और यासु ीन को रखा। दि ण पा क नेता सैयद अहमद खान थे और वाम पा म गाजी खान
तथा राय लोन करफा थे। चंदावल द ते का नेतृ व मानिसंह ने िमहतर खान को स पा था और आरि त सेना का
नायक एक और िव त व यो य सेनापित माधोिसंह को बनाया था। मुगल क पास एक बड़ा तोपखाना और कछ
गाि़डय पर रखी छोटी तोप थ , िज ह आव यकतानुसार इधर-उधर तेजी से ले जाया जा सकता था। यह उनक
ब त बड़ी श थी। आमने-सामने क मैदानी लड़ाई म िकसी सेना का तोप क गोलाबारी म िटक पाना लगभग
असंभव था।
मेवाड़ क सेना क पास ऐसा कोई तोपखाना नह था। अगर उसक पास दो-चार तोप होत तो उ ह पहाड़ क
ऊचाई पर लगाकर वहाँ से मुगल सेना पर िव वंसक गोलाबारी क जा सकती थी। यु म संसाधन और बेहतर
हिथयार का ब त मह व होता ह। कई यु म तो बड़ी सेना क भी तोप क गोलाबारी क सामने पैर उखड़ते
देखे गए। इसीिलए एक अं ेज लेखक ने ब त सही िट पणी क थी िक ई र सदा िवशाल और श शाली सेना
क तरफ होता ह। अब अगर इन आग उगलनेवाले तोपखाने से बचने का कोई उपाय था तो कवल यही िक घाटी
क दर म जाकर बैठ रह और वह से श ु का सामना कर। योजना तो यही बनी थी, जो सही थी, लेिकन
दुभा यवश ऐसा नह आ।
21 जून को सुबह-सवेर तैया रयाँ शु हो गई। सभी पशु को उनका चारा िखलाया गया। सैिनक ने ना ता
िकया और गरमी से राहत क िलए शीतल पेय िपया, िफर सबने अपने-अपने मोरचे सँभाल िलए। सबम श ु का
सामना करने क िलए िवल ण उ साह था। इनम ब त से ऐसे युवक थे, िजनक िपता या िनकट संबंधी िच ौड़ क
यु म या उसक बाद ए नरसंहार म मार गए थे। वे मुगल से बदला लेने क िलए बेचैन हो रह थे। अिधकांश
सेना नई भरतीवाली और कम समय म िश ण पाई ई थी। उसे यु का कोई यावहा रक अनुभव नह था,
लेिकन इनम वीरता क कोई कमी न थी।
मानिसंह और उसक अनेक यु क अनुभवी िसपहसालार अ छी तरह जानते थे िक दुगम पहाड़ी े म
राजपूत से लड़ना अ यंत किठन ह। वे उ ह उकसाकर मैदान म लाना चाहते थे। मानिसंह अपनी सेना लेकर
मोलेला से आगे बढ़ा। वह ह दीघाटी क सँकर मुहाने पर आकर क गया। यह एक छोटा मैदान था, िजसे अब

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बादशाह बाग कहते ह। धनुषाकार पहाि़डय से िघर इस मैदान क आगे क ऊबड़-खाबड़ धरती पर भी यु करना
मुगल सेना क िलए ब त सुिवधाजनक तो न था, लेिकन पहाि़डय म मोरचा जमाए राजपूत से लड़ने से कह
बेहतर था। मानिसंह यह ककर राजपूत क आ मण का इतजार करने लगा। उसे उ मीद थी िक राजपूत श ु
सेना को देखकर जोश म आ जाएँगे और पहाड़ी दर क अपनी सु ढ़ मोरचाबंदी छोड़कर उस पर आ मण करने
क गलती ज र करगे।
मानिसंह अपनी चाल म सफल रहा। राजपूत ने अपना संयम खो िदया। अब उनसे और इतजार न हो सका।
उनक ओर से रणभेरी गूँजी, मेवाड़ का झंडा फहराता एक हाथी घाटी से िनकलकर सामने आया। इसक साथ ही
हािकम खाँ सूर अपने हरावल द ते क साथ कट आ और आनन-फानन म मुगल क सामने क र ा-पं पर
टट पड़ा। भयंकर मारकाट मच गई। मानिसंह क मु य सेना ने जहाँ मोरचे जमाए थे, बादशाह बाग का वह थान
अपे ाकत समतल था, लेिकन उसक आगे क जमीन पथरीली और ऊबड़-खाबड़ थी, िजस पर यु करने क
मुगल सैिनक अ य त नह थे। राजपूत क िलए यह कोई किठनाई नह थी।
ताप क हरावल द ते का धावा इतना ती था िक देखते-ही-देखते मुगल सेना क पैर उखड़ गए। ब त से
सैिनक तो पथरीली धरती पर अपना संतुलन कायम न रख पाने क कारण मार गए। यह देखकर राजपूत का उ साह
दोगुना हो गया। राणा ताप को भी िकसी बड़ यु का अनुभव न था। अपनी हरावल सेना क सफलता से
उ सािहत होकर वे अनुभवी सेनापितय क बनाई सारी रणनीित भूल गए और पहाड़ी क सुरि त मोरचे को छोड़कर
अपनी सम त सेना क साथ मैदान म उतर आए। यह भारी भूल थी, िजसक क मत राजपूत को पराजय क प म
चुकानी पड़ी।
मु य सेना आते ही बादशाह बाग क समतल भूिम पर मोरचे जमाए खड़ी मुगल वािहनी पर टट पड़ी। हालाँिक
यह थान यु क िलए मुगल क भी अनुकल था, िफर भी आ मण इतना ती था िक उनक िलए अपने थान
पर जमे रहना किठन हो गया। मानिसंह क दािहने पा पर राजपूत का जबरद त दबाव पड़ा। राय लूनकरण और
उनक साथी सेनापित जान बचाकर भाग खड़ ए। मानिसंह क मु य सेना क िलए भी पाँव जमाना मु कल हो रहा
था। उसक कछ सैिनक भी घबराकर 10-12 कोस क दूरी तक भागते चले गए। ऐसा लगता था िक राजपूत क
जीत िन त ह।
मुगल सेना पीछ हट रही थी। अपनी पहाड़ी क मोरचाबंदी म राजपूत क लौटने का तो सवाल ही अब नह था।
वे जोश से उसका पीछा कर रह थे। अगर लौटते या कते तो मुगल क पुनगिठत होने क आशंका थी। लड़ते-
लड़ते वे कछ पीछ उस थान पर प च गए िजसे खून क तलाई कहते ह। यह बनाम नदी क तट पर ह। मुगल
सेना िछ -िभ हो रही थी। भारी मारकाट मची थी। मुगल बड़ी बहादुरी से राजपूत का मुकाबला कर रह थे।
मानिसंह क अधीन मु य सेना भी उसक नेतृ व म डटी थी। हालाँिक उसक भी कछ सैिनक भाग रह थे। आसफ
खाँ ने तोप क िनरतर गोलाबारी से अपने थान पर राजपूत क बाढ़ को रोक रखा था। उसक छोटी सचल तोप
जहाँ राजपूत का भारी दबाव था, उस पर गोले बरसाकर उसे िछ -िभ करने का यास कर रही थ , िफर भी
राजपूत मुगल पर हावी हो रह थे।
अपनी सेना क यह दुदशा देखकर मुगल क चंदावल द ते का मुख िमहतर खान अपनी टकड़ी को लेकर
आगे आया। अनेक यु का अनुभवी िमहतर खान समझ गया था िक जब तक भागती ई फौज को रोका नह
जाता, जीतना असंभव ह। उसने एक चाल चली, तुरत ढोल बजवाकर झूठी मुनादी करवा दी िक खुद शहशाह
अकबर एक बड़ी सेना क साथ यु म प च चुक ह। इससे भागती सेना क पैर िफर से जम गए।

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पवतीय देश क सुरि त मोरचे ब त पीछ छट गए थे। यु बादशाह बाग से बनाम क िकनार पर प च गया
था। अपनी पूरी ताकत से मुगल से िभड़ने क कारण राजपूत थकने लगे थे। ऐसे म भागती मुगल सेना क पैर जमने
और िमहतर खान क ताजादम द ते क आ मण ने अपना असर िदखाया। तोप क गोलाबारी जो कहर ढा रही थी,
सो अलग। मुगल को भी भील क अचूक तीरदाजी ने कम बेहाल नह िकया था। अपने राणा क िलए वे बड़ी
वीरता से लड़ रह थे, हालाँिक उनको भी पहाड़ क सुर ा से तीर चलाने क सुिवधा अब नह थी।
यु म थोड़ी थरता आने पर और िमहतर खान क चाल क सफलता देखकर मानिसंह ने अपनी दूसरी सोची-
समझी चाल पर अमल िकया। अपने हाथी को आगे बढ़ाता आ वह राणा ताप क सामने प च गया। उसे देखते
ही राणा ताप का खून खौल गया। उस जाित ोही को दंड देने क िलए वे तेजी से आगे बढ़। राणा ताप क इशार
पर उनक सधे ए घोड़ चेतक ने अपने दोन अगले पैर मानिसंह क हाथी क म तक पर जमा िदए। राणा ताप ने
अपने भाले से मानिसंह पर हार िकया, लेिकन मानिसंह ज दी ही होदे क ओट म िछप गया। भाले क हार से
घायल होकर उसका महावत िगर पड़ा और उसक ाण पखे हो गए। महावत क िबना हाथी िचंघाड़ता आ भाग
खड़ा आ। इस यु म एक दुखद घटना यह घटी िक हाथी पर अपने पैर जमाने क यास म चेतक का एक पैर
उसक सूँड़ म बँधी दोधारी तलवार से बुरी तरह घायल हो गया था। अब वह पहले जैसे फरती से नह लड़ सकता
था, िफर भी वह अपने वामी क आदेश का यथासंभव पालन कर रहा था।
मानिसंह तो भाग गया, लेिकन पूव िनयोिजत रणनीित क अनुसार उसक चुने ए सैिनक क अंगर क द ते ने
राणा ताप को चार ओर से घेर िलया। मानिसंह ने यह योजना इसिलए बनाई थी िक अगर यु म राणा ताप इस
तरह मारा जाता ह तो उसे अपने अपमान का बदला तो िमल ही जाएगा। इसक साथ ही अपने महाराणा को मरते
देख राजपूत सेना क हौसले भी प त हो जाएँगे और वह यु े से भाग खड़ी होगी। उधर हािकम खाँ सूर और
झाला मान क नजर राणा ताप क तरफ ही थी, उ ह ने अपने राणा को संकट म देखा तो वे मानिसंह क अंगर क
द ते पर टट पड़। भयंकर मारकाट मचाते ए श ु क र ा पं को चीरते वे लगातार आगे बढ़ रह थे। झाला मान
अ यंत वीरता से लड़ता आ राणा ताप क पास प च गया। प चते ही उसने आ ह िकया, ‘‘अ दाता, आप
अपना छ और पताका मुझे दे द और यु े से सुरि त िनकल जाएँ।’’
‘‘यह तो कायरता होगी।’’ ताप बोले।
‘‘मेवाड़ को आपक आव यकता ह। अपने िलए नह अपनी मातृभूिम क वतं ता का संघष जारी रखने क
िलए आप अभी िनकल जाइए।’’ इतना कहते ए उसने राणा ताप को और कछ कहने का अवसर न देकर उनक
पताका और छ वयं ले िलया। ताप ने घायल चेतक को मोड़ा, कत ता से एक बार झाला को देखा और िनराश
भाव से यु भूिम से िनकल पड़।
मुगल सैिनक ने पताका और छ देखकर झाला को राणा ताप समझ िलया। वे उन पर टट पड़। झाला और
उनक साथ क सैिनक बड़ी वीरता से लड़, लेिकन मुगल क ब त बड़ी सं या से लड़ते-लड़ते अंततः वीरगित को
ा ए। इसक साथ ही महाराणा क छ और पताका का भी पतन हो गया।
झाला मान को राणा समझने क भूल कवल मुगल सैिनक से ही नह ई। राजपूत सैिनक ने भी वज और
पताका क साथ अ ारोही को िगरते देख समझ िलया िक महाराणा ताप यु म मार गए। इससे उनक हौसले
प त हो गए। अकबर क बड़ी सेना लेकर आने क अफवाह िजन राजपूत क कान म पड़ी थी, वे भी िनराश हो
गए। उ ह लगा िक पहले ही मुकाबले क ट र हो रही थी। अब नई सेना का सामना करना तो संभव न होगा।
देखते-ही-देखते राजपूत िपछड़ने लगे। िजन राजपूत सैिनक ने अपने धान सेनानायक महाराणा ताप को चेतक पर

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जाते देख िलया था, वे भी यु भूिम से हटने लगे। घायल अ पर बैठ घायल ताप उस समय उ ह कोई िनदश
देने क थित म भी न थे। िछ -िभ हो चुक राजपूत सेना पीछ हट गई। दोपहर तक मुगल ने यह लड़ाई जीत
ली थी, लेिकन जैसा िक अकसर होता ह, उ ह ने पीछ हटती सेना का पीछा नह िकया। उस िदन क कड़ मुकाबले
क बाद उनम इतनी ताकत बाक न थी िक उनक पीछ भागते। इसक अलावा मानिसंह जानता था िक पीछ हटते ए
राजपूत अपने पहाड़ी मोरच क सुर ा क शरण लगे। अपनी थक -हारी सेना को उनक पीछ भेजना मौत को दावत
देना था। पहले ही अपनी वीरता क जौहर िदखाकर उ ह ने मुगल सेना का कम िव वंस नह िकया था।
सवार और घोड़ा दोन घायल थे। चेतक क एक टाँग म तलवार का गहरा घाव लगा था। राणा ताप क शरीर
पर अनेक जगह घाव हो गए थे, िजनसे र बह रहा था। वे बेहद थक ए थे। उ ह ने अपना घोड़ा बािलया गाँव
क तरफ मोड़ िदया, जो र -तालाब से लगभग दो मील क दूरी पर था।
दो मुगल घुड़सवार ने झाला सरदार को राणा का छ एवं पताका लेते ए और महाराणा को वहाँ से िनकलते
देख िलया था। उ ह ने उनका पीछा करना आरभ कर िदया। उ ह राणा ताप को मारने म सफल होने पर ब त
बड़ा इनाम िमलने का लालच जो था। स ा अकबर ने भी आदेश िदया था िक इस यु म राणा ताप को जीिवत
न छोड़ा जाए। घायल ताप क ह या करने म उ ह कोई किठनाई नह िदखाई दी।
राणा का ठा आ भाई श िसंह भी इस यु म मानिसंह क कहने पर उसक साथ आया था। मानिसंह उसे
यह कहकर लाया था िक राणा ारा मेर और तु हार अपमान का बदला लेने का समय आ गया, लेिकन लड़ाई क
मैदान म आकर उसे अपने ऊपर लािन हो रही थी। उसक समझ म नह आ रहा था िक मेवाड़ क वाधीनता क
िलए लड़नेवाले अपने बड़ भाई क िव तलवार कसे उठाए। उसम य गत वीरता क कमी न थी, लेिकन
यु म राजपूत पर वार करने क बजाय उसने कवल अपनी र ा करने क िलए ही तलवार चलाई।
श िसंह क नजर यु भूिम से िनकलकर जाते ए अपने घायल बड़ भाई पर थी। उसने देखा िक मुगल सेना
क दो घुड़सवार उनका पीछा कर रह ह। श िसंह ने तुरत अपना घोड़ा उनक पीछ दौड़ाया। वे ताप से थोड़ी दूरी
पर प च चुक थे। राणा ने भी देख िलया था िक उनका पीछा हो रहा ह। इतने म उ ह ने देखा िक एक घुड़सवार
तेजी से आया। उसक इनसे कछ बातचीत ई। इसक बाद उस घुड़सवार ने अचानक वार करक उनम से एक
असावधान मुगल सैिनक का िसर धड़ से अलग कर िदया। दूसर ने सावधान होकर उसका सामना िकया, लेिकन
दोन का कोई मुकाबला न था। इस घुड़सवार ने जरा देर म ही पतरा बदलकर वार िकया और उस मुगल सैिनक
का िसर भी जमीन पर लोटने लगा।
महाराणा ताप अपने रा ते पर आगे बढ़ने लगे तो उस घुड़सवार ने आवाज दी, ‘‘ओ नीले घोड़ क सवार, ठहर
जा।’’
राणा ताप ने चेतक को मोड़ा और तलवार तानकर खड़ हो गए, लेिकन वह पास आकर शी ता से अपने घोड़
से उतरा और अपनी तलवार राणा क कदम म रख दी।
‘‘श िसंह, तुम?’’ महाराणा क मुख से अचानक िनकला। वह दूर से अपने भाई को पहचान नह पाए थे। तुरत
घोड़ से उतर पड़। उ र म श िसंह क मुँह से कवल इतना िनकला, ‘‘भैया!’’ बाक सबकछ उसक आँसु
और धे गले ने कह िदया।
बरस से िबछड़ दोन भाई गले िमले।
‘‘आप यहाँ क नह , हो सकता ह कछ और मुगल सैिनक आपको खोजते ए इधर आ जाएँ।’’ श िसंह
बोला। तब तक चेतक धड़ाम से धरती पर िगर पड़ा। थोड़ी ही देर म उसने दम तोड़ िदया। श िसंह ने राणा को

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अपना घोड़ा िदया और एक बार िफर ज दी से िनकल जाने को कहा। उसने मृत िसपािहय म से एक का घोड़ा
िलया और तेजी से मुगल छावनी क तरफ चल पड़ा। कहते ह िक वहाँ जाकर श िसंह ने सफाई दी िक राणा
ताप ने उनका पीछा करनेवाले दोन सवार को मार डाला। उसने मुझ पर वार िकया िजससे घायल होकर मेरा
घोड़ा मर गया। म बचकर एक मृत िसपाही क घोड़ पर सवार होकर इधर चला आया। मानिसंह को भले ही यह
कहानी हजम न ई हो, पर उसने कछ कहा नह । शायद वह मन-ही-मन भाई क सहायता करने क िलए श िसंह
क शंसा कर रहा था।
मानिसंह ने िजन कारण से भी श िसंह क संदेहा पद कहानी को वीकार कर िलया। अकबर को उससे ब त
असंतोष आ। वा तिवकता समझने म उसे देर नह लगी, पर वह भी श िसंह को नाराज नह करना चाहता था।
अगर बादशाह उसे दंड देना भी चाहता तो िकस आधार पर? कवल संदेह था, कोई ठोस माण नह । उसने म
िदया िक श िसंह को सेना से अलग कर िदया जाए।
छोटी सी बात पर भाई से झगड़कर श ु से िमल जाने क लािन अंदर-ही-अंदर श िसंह को कचोट रही थी।
आिखरकार उसने अपने चुने ए राजपूत सािथय को साथ लेकर वहाँ से मेवाड़ लौट जाने का फसला कर िलया।
उसे लगा िक खाली हाथ महाराणा से िमलना उिचत न होगा। अतः एक छोटी सेना एक करक उसने माइनासोर क
दुग पर आ मण करक उसे अपने अिधकार म ले िलया। मेवाड़ आकर महाराणा ताप से िमलने पर उसने यह
िकला उ ह भट व प िदया।
वभाव से िवन , सबक ित ेम भाव रखनेवाले राणा ताप ने सूअर क िशकार को लेकर ए िववाद या
उसक प रणाम व प कलपुरोिहत क आ मह या क कारण श िसंह को देशिनकाला नह िदया था। वे तो अपने
ित उसक घोर ई या क कारण सशंिकत रहते थे िक कभी कोई बड़ा ष यं न रच डाले। ह दीघाटी क मैदान से
लौटते समय िजस तरह श िसंह ने उनक सहायता क थी, उससे िस हो गया था िक अब उसक मन म मैल
नह ह। ताप ने भाई को ेम से गले लगा िलया और उसका जीता आ दुग उसे ही जागीर क प म वापस लौटा
िदया। िजन भाइय म इतनी दु मनी हो गई थी िक एक होकर श ु क खेमे म चला गया, अब उनम सगे भाइय
जैसा ेम हो गया। राणा ताप ने जब पवत म जगह-जगह अपने थान बदलकर मुगल क िव छापामार यु
करने क योजना बनाई तो उ ह ने अपने बेट अमरिसंह क प रवार तथा अ य प रजन को साथ रखा। लेिकन अपनी
वृ माता जैवंताबाई को इस तरह से भटकने का क न हो, यह सोचकर माइनसोर क िकले म श िसंह क
पास भेज िदया। श िसंह उदयिसंह क दूसरी रानी स ाबाई का पु था, पर उसने अपनी िवमाता जैवंताबाई का
भरपूर आदर-मान िकया और उनक सुख-सुिवधा का सारा बंध कर िदया। कहते ह जैवंताबाई भी वहाँ आकर
ब त खुश थ , य िक वह बेट श िसंह से भी ताप क तरह ही ेह करती थ ।
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ह दीघाटी क बाद
ह दीघाटी क यु म मानिसंह क नेतृ ववाली मुगल सेना क जीत ई थी। इस त य से लगभग सभी इितहासकार
सहमत ह, लेिकन अपवाद व प एकाध ने यहाँ तक िलखा िक राजपूत िवजयी रह। या यह राणा ताप क ित
अंधभ क कारण ऐितहािसक त य को झुठलाने का हा या पद यास था? बात दरअसल यह ह िक राजपूत को
िवजयी बताने म अितशयो भले ही हो, यह िबलकल िनराधार नह था। कारण यह ह िक ह दीघाटी क यु को
िनणायक नह कहा जा सकता। यह यु दो उ े य को लेकर मुगल ने लड़ा था—राणा ताप को जीिवत या
मृत बादशाह अकबर क सामने पेश करने क िलए और मेवाड़ पर अिधकार करक उसे मुगल सा ा य म िमलाने
क िलए। ये दोन उ े य पूर नह ए। मैदानी यु म मुगल का सामना न कर पाने क कारण राजपूत सेना पीछ
तो हट गई, पर मानिसंह क हाथ कछ न लगा। इससे इतना तो प ह िक यु अिनण त रहा। अगर यह कहा
जाए िक इसम न िकसी क हार ई और न जीत, तो शायद ब त गलत न होगा, य िक पीछ हटने क बाद राजपूत
ने हार नह मानी और अपना संघष जारी रखा।
वयं शहशाह अकबर यु क प रणाम से असंतु था। अगर वह इसे िवजय मानता तो यु से लौट अपने
धान सेनापित मानिसंह का वागत करता और उसे पुर कत करता, जैसा िक वह अ य यु को जीतकर मानिसंह
क लौटने पर करता आया था। इसक िवपरीत मानिसंह क असफलता से खीजकर उसने उससे िमलने से इनकार
कर िदया और दंड व प दो साल तक उसक शाही दरबार म आने पर पाबंदी लगा दी। कोई अपने िवजयी सेनापित
क साथ ऐसा करता ह या? वह भी अकबर जैसा नीित-िनपुण स ा ? जािहर ह िक उसने इस यु को अपनी हार
नह तो जीत भी नह माना।
राजपूत ने अपनी गलती से सबक सीख िलया था। उ ह ने तय कर िलया िक भिव य म कभी िवशाल
मुगलवािहनी से खुले मैदान म नह लड़गे। आमने-सामने क लड़ाई क बजाय उ ह ने छापामार यु क प ित
अपनाने क योजना बनाई। यहाँ सवाल उठता ह िक ह दीघाटी क यु से पूव ई मं णा म जब यह तय हो गया
था िक मुगल से संक ण घाटी क पवतीय ऊचाइय पर रहकर मुकाबला िकया जाएगा तो िफर राणा ताप ने अपने
सु ढ़ मोरचे छोड़कर खुले म आकर यु य िकया? जबिक इस यु क सारी योजना और मोरचाबंदी वयं
उ ह ने अपने िनदशन म कराई थी।
अनेक इितहासकार ने इसे राणा ताप क ब त बड़ी भूल कहा ह। उ ह ने िट पणी क ह िक आवेश म आकर
राणा अपनी मजबूत मोरचाबंदी छोड़कर सामने मैदान म खड़ी मानिसंह क सेना पर टट पड़। बड़-से-बड़ संकट म
धैय न खोने वाले राणा ताप भली-भाँित यह जानते ए िक उनक वीर सेनानी तोप क मार क हद मे आ जाएँगे,
ऐसा कसे कर सकते थे? कोई भी सेनापित अपनी पहले से सुिवचा रत योजना को ताक पर रखकर आ मघाती
आदेश नह देता। ऐसा तीत होता ह िक उनक कई सामंत आ मिनयं ण खो बैठ थे। उ ह अपनी श और वीरता
पर आव यकता से अिधक िव ास था। श ु को सामने देखकर भी अपने मोरच पर डट रहना उ ह कायरता लगी।
यह नई बात थी, िजनक वे अ य त न थे। यु -मं णा क समय भी उ ह ने इसक ित अपना मतभेद कट िकया
था। हरावल द ते क साथ ही वे भी मोरच से िनकलकर मुगल पर टट पड़। उसक बाद राणा ताप क पास शेष

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सेना को उनक सहायता क िलए मैदान म उतारने क अलावा कोई िवक प नह था।
प रणाम घातक ए, लेिकन तब भी उ ह ने एक समझदारी िदखाई। यु - े म कट मरने क राजपूती परपरा
क िव उ ह ने झाला सरदार क अ यंत आ ह पर ही सही, वहाँ से हट जाने का िनणय िलया। अ यंत घायल
अव था म वे अिधक-से-अिधर चार-छह मुगल िसपािहय को मार तो सकते थे। उसक बाद वीरगित को ा होते
तो बाद म मेवाड़ क वाधीनता क िलए उ ह ने जो संघष िकया, वह कौन करता? अमरिसंह उनका यो य और
वीर उ रािधकारी था, पर न तो उसका ऐसा य व था, जो सबको पूण सहमित क साथ अपने झंड तले रख
पाता और न ही वाधीनता क ित इतनी ितब ता। ताप का यु े से हट जाना अ य राजपूत क िलए भी
यह संकत था िक अब और लड़कर यु का प रणाम बदला नह जा सकता ह। बेहतर यही था िक यु े से
हट जाएँ और पुनः संगिठत होकर श ु से लोहा ल, जैसा िक उ ह ने आगे िकया भी। इस ि से भी ह दीघाटी क
यु को िनणायक नह कहा जा सकता, य िक मुगल से पहली ट र म वे िवजयी रह थे। मुगल सेना पीछ हटी
थी। उसक बाद मुगल का पलड़ा भारी हो गया और राजपूत को हटना पड़ा। इस मैदान म वे परा त ए, लेिकन
शी ही पुनगिठत होकर उ ह ने िफर संघष िकया। अतः ऐितहािसक ि से इसे एक अनवरत संघष क प म
देखा जा सकता ह—िजसक एक मोरचे पर ह दीघाटी क अिनण त यु म तकनीक ि से मुगल सेना िवजयी
रही।
ह दीघाटी से िनकलने क बाद राणा ताप ने तिनक भी िव ाम नह िकया। श िसंह क अ पर आ ढ़ होकर
वह को यारी गाँव प चे और तुरत आदेश िदए, िक यु मघायल ए सभी सैिनक क िचिक सा क यव था क
जाए। जो सैिनक यु भूिम से हट थे, उ ह भी वहाँ एकि त होने का आदेश राणा ने िदया। आदेशानुसार घायल को
को यारी म थािपत िकए गए एक िचिक सा िशिवर म लाया गया। यहाँ राणा क ाथिमक उपचार क साथ उन
सबका भी उपचार िकया गया। िज ह कवल मरहम-प ी क आव यकता थी, उ ह अपने-अपने घर म जाकर
वा य लाभ होने तक िव ाम का आदेश िदया गया। िज ह लंबे इलाज क ज रत थी, उनक िचिक सा और
देखभाल क पूरी यव था महाराणा ने क ।
यहाँ क बंध से फरसत पाकर राणा ताप गोगूंदा प चे। वहाँ उ ह समाचार िमला िक मानिसंह ह दीघाटी से
हटने क बाद गोगूंदा आ रहा ह। वह सझेरा क तरफ िनकल गए, जहाँ भील सरदार एक होकर उनक भावी
आदेश क ती ा कर रह थे। राणा ने भील सरदार का ध यवाद िकया और यु म अपूव वीरता का दशन करने
क िलए सभी भील क मु कठ से शंसा क । उ ह ने कहा िक यु समा नह आ ह, आरभ आ ह,
िजसक पहली झपट म उनक सेना को आघात प चा ह, िकतु भिव य म ऐसी गलती कभी दोहराई नह जाएगी।
राणा ने भील को पुनगिठत होकर भावी आदेश क ती ा करने क िलए कहा।
मानिसंह खरामा-खरामा गोगूंदा क तरफ आ रहा था। उसक सैिनक लड़ाई क थकान से बेहाल थे। वह बाज
क तरह गोगूंदा पर झपटा और 23 जून, 1576 को गोगूंदा पर अिधकार कर िलया। ह दीघाटी क लड़ाई म राणा
ताप को मारने या पकड़ने म वह असफल रहा था। उसने सोचा िक अब भी अगर राणा ताप हाथ आ जाएँ तो
उसक असफलता का कलंक धुल जाएगा और उसक फफा शहशाह अकबर क खुशी का पारावार न रहगा,
लेिकन वहाँ प चने पर उसे असफलता ही हाथ लगी।
कछ इितहासकार ने िट पणी क ह िक कवर मानिसंह राजपूत होने क नाते ताप को िगर तार नह करना चाहता
था। इस बात म स ाई नह िदखती। अगर ऐसा ही था तो उसने अकबर से आ ह करक राणा क िव यु म
सेना क कमान य सँभाली? अगर ऐसा ही था तो उसने यु क दौरान पूव िनधा रत योजना क अनुसार राणा
ताप क सामने अपना हाथी लाकर उ ह य उकसाया? अगर ऐसा ही था तो ह दीघाटी क लड़ाई क तीसर ही
िदन गोगूंदा प चकर उस पर अिधकार करने क ज दबाजी य िदखाई? दरअसल वह मुगल का चाकर था।
उसक पुरख ने राणा कभा, राणा साँगा और िफर राणा उदयिसंह क दरबार म हािजरी भरी थी। िससौिदया राजपूत
से ई या क चलते ही उसक िपता राजा भगवानदास कछवाहा मुगल क शरण म गए। बारह साल क मानिसंह को
उ ह ने अकबर क सेवा म भेज िदया था। इसक रग-रग म अकबर क ित वािमभ थी, िजसक रा य क
िव तार क िलए उसने अनेक लड़ाइयाँ लड़ । अकबर क बाद शहजादा सलीम जब जहाँगीर क नाम से त त पर
बैठा तो मानिसंह उसक भी चाकरी म रहा।
गोगूंदा प चने क बाद मानिसंह ने पड़ाव डाला और भावी योजना पर िवचार करने लगा िक िकस तरह राणा
ताप का पता लगाकर उ ह पकड़ा जाए या मौत क घाट उतार िदया जाए, पर गोगूंदा म उसक सेना पर या
आफत आनेवाली ह, इसका अनुमान मानिसंह को न था। जब वा तिवकता सामने आई तो ह दीघाटी क िवजय का
सारा नशा चूर हो गया। अ वल तो गोगूंदा क आस-पास का अिधकांश े अंजर-बंजर था। जहाँ कछ खेती नह
होती थी, वह सारा इलाका राणा ताप क आदेश से फक िदया गया था। अब वहाँ जली ई धरती क िसवा कछ न
था। साथ लाई रसद ख म हो चुक थी। राणा ताप क छापेमार द त ने बाहर से रसद मँगाने क सब ज रए ख म
कर िदए थे। राजपूत चंद िदन म ही इस तरह सि य हो जाएँग,े इसक उसने क पना तक न क थी।
मानिसंह और उसक िसपहसालार ने समझा था िक ह दीघाटी क पराजय से राजपूत क हौसले प त हो जाएँगे
और वे कम-से-कम कछ बरस तक िसर उठाने लायक न रहगे। दरअसल इसक ठीक िवपरीत आ था। महाराणा,
उनक सामंत और वीर सैिनक का उ साह ह दीघाटी क यु क बाद ब त बढ़ गया था। इस य अनुभव ने
उ ह बता िदया था िक मुगल से ट र लेना मेवाड़ क िलए संभव ह। ह दीघाटी म ही अगर उ ह ने मैदान म
उतरकर श ु का सामना करने क गलती न क होती तो िवजय उनक ही होती। उ ह ने अपनी योजना बदल ली थी
और चंद िदन म ही िफर संगिठत होकर छापामार यु आरभ कर िदया था।
आस-पास कोई उपज न थी। बाहर से रसद आने क माग पर महाराणा क छापामार टकि़डयाँ नजर गड़ाए ए
थ । बंजार या दूसर अनाज बेचनेवाले न जाने कहाँ अ य हो गए थे। मानिसंह क सैिनक भूखे मरने लगे। आस-
पास आम क फसल थी। उसे खाकर और जानवर का मांस खाकर वे अपना पेट भर रह थे। जब पक आम ख म
हो गए तो भूख से बेहाल िसपािहय ने क ी क रयाँ खाकर गुजारा िकया। इससे ब त से िसपाही बीमार पड़ गए।
एक तो खाने क लाले पड़ गए थे, ऊपर से िदन-रात यह भय सताता रहता था िक न जाने कब राणा ताप
अपनी सेना लेकर उन पर अचानक हमला कर द। डर क मार मानिसंह ने गाँव क चार तरफ गहरी न व खुदवाकर
ऊची दीवार खड़ी करवा दी थी। इस तरह से उसे एक अ थायी िकले का सा प दे िदया था। आ मण क सूचना
देने क िलए दूर-दूर तक छोटी चौिकयाँ तैनात करक पहर क यव था कर दी थी। गोगूंदा पर तो हमला न आ,
पर आस-पास राजपूत क छोट-मोट छापे मारने क समाचार िमलते रहते थे।
यह अभूतपूव था। अब तक का इितहास बताता था िक एक बार हारने क बाद राजपूत ज दी िसर नह उठाते थे।
उठाते भी कसे? अपने से चौगुनी सेना क साथ भी टकराने से वे िहचिकचाते नह थे। उनक याँ जीिवत िचता म
जलकर ाण दे देती थ और वे कस रया बाना पहनकर शाका कर लेते थे—यानी एक-एक राजपूत अनेक श ु
को मारकर अपने ाण दे देता था। पूरी एक युवा पीढ़ी इस तरह कटकर मर जाती थी, िफर दूसरी पीढ़ी क युवा
होने तक कौन िसर उठाता? दूसरी पीढ़ी भी लड़ने क िलए इसिलए उपजती थी िक सभी गभवती य को जौहर
से बचा िलया जाता था। यु क थोड़ी भी आशंका होने पर उ ह ायः िकसी सुरि त थान पर भेज देते थे।

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राणा ताप क समय म और उसक बाद न कोई जौहर आ और न शाका। पुरख क चलाई नीित क खामी
उ ह ने समझ ली थी। इरादा तो उनका ह दीघाटी क लड़ाई भी छापामार प ित से पहाड़ क सँकर रा त पर
लड़ने का था। वह न आ तो उससे सबक सीखने क बाद अब राजपूत इस रणनीित पर चल पड़ थे, िजससे पार
पाना िवशाल मुगल सा ा य क िलए भी दूभर ही नह असंभव िस आ। िकसी तरह िदन कट रह थे। मानिसंह
को समझ म नह आ रहा था िक िकसी ठोस प रणाम क िबना शहशाह अकबर क सामने कसे जाए। आिखर वह
उसक आदेश को पूरा नह कर पाया था।
इस बीच ज री था िक अकबर को ह दीघाटी क यु का सारा समाचार िदया जाए। इस काम क िलए शाही
इितहासकार बदायूँनी को बादशाह क पास भेजने का फसला िकया गया। इस यु म राणा ताप का एक ि य
हाथी भी मुगल ने पकड़ िलया था। सोचा गया िक बदायूँनी क साथ उसे भी स ा क पास तोहफ क तौर पर भेज
िदया जाए। बदायूँनी को एक छोट दल क साथ रवाना कर िदया गया। उसने वहाँ जाकर लड़ाई का सारा हाल और
मुगल सेना क िवजय का समाचार अकबर को िदया। बादशाह हाथी पाकर तो खुश आ, लेिकन िवजय क
समाचार से उसे तिनक भी संतोष नह आ, ब क वह ही आ। उसे समझते देर न लगी िक बदायूँनी क
िववरण म अितरजना ह। इस रण का कोई प रणाम तो था नह । न तो मानिसंह मेवाड़ पर अिधकार कर सका था
और राणा ताप को यु म मारने क योजना भी सफल न ई थी।। अकबर से यह बात भी िछपी न रह सक िक
ह दीघाटी क यु से बचे राजपूत िफर से संगिठत हो रह थे।
क े आम और मांस खाकर बीमार पड़ते िसपाही बेहद परशान थे। एक िसपहसालार ने समझाया िक कवरजी,
सेना म बदअमनी फलने का डर ह। इससे पहले िक िसपाही बगावत पर उतर आएँ या यहाँ से भाग खड़ ह , हम
िकसी दूसर इलाक म जाना चािहए, जहाँ कम-से-कम सेना को रसद तो िमल सक। बात मानिसंह को जँच गई।
उसने त काल कच क आदेश दे िदए। गोगूंदा क र ा क िलए उसने िकलेदार और थोड़ी सी सेना तैनात कर दी।
राणा ताप को मानिसंह क गितिविधय क पल-पल क खबर िमल रही थी। मुगल सेना क कच क बाद
उ ह ने दो िदन इतजार िकया, तािक वह दूर िनकल जाए। उसक बाद एक ही ह े म जुलाई 1576 म गोगूंदा पर
अिधकार कर िलया। अकबर को यह खबर िमली तो वह गु से से आग-बबूला हो गया। उसने त काल मानिसंह को
अजमेर आने का आदेश भेजा। अकबर ने मानिसंह और आसफ खाँ क ह दीघाटी क िवफलता पर नाराजगी
जताते ए उ ह दो साल तक दरबार म हािजर न होने क सजा दी। शेष िसपहसालार को मुगल क आन क र ा
करने और राजपूत क हाथ पराजय से बचाने क िलए पुर कत िकया गया। अब उसने सोचा िक खुद ही चलकर
अपने नेतृ व म मेवाड़ पर आ मण करक घमंडी राजपूत और उनक सरगना राणा ताप को सजा देनी होगी।
अकबर अजमेर आया। राणा ताप को इसक खबर लगी तो उसक इरादे को भाँप गए। वैसे तो वह वाजा क
मजार पर दुआएँ माँगने आया ही करता था, लेिकन िसतंबर म जब उस होता था। अभी तो माच का महीना था।
महाराणा पहले ही समझ चुक थे िक मानिसंह क मेवाड़ पर िवजय न पाने से अकबर चुप नह बैठगा। इससे उसक
सा ा यवादी मह वाकां ा को गहरी ठस लगी थी। वैसे बादशाह ने जािहर िकया िक उसक मंशा मेवाड़ क मुगल
क अिधकारवाले इलाक म िशकार खेलने क ह।
मेवाड़ क श को कम करक आँकने क गलती अनुभवी स ा अकबर ने नह क थी। वह फक-फककर
कदम रखना चाहता था। एक सुिवचा रत योजना बनाकर ब त बड़ सै यबल क सहायता से वह एक ही बार म
मेवाड़़ को अपने अधीन कर लेना चाहता था। मेवाड़ पर सीधे आ मण करने से पहले उसने राणा क सहायता
करनेवाले रा य को अपने अधीन कर लेना आव यक समझा, तािक मेवाड़ पर चढ़ाई करने पर उसे बाहर से कोई
मदद न िमले। मेवाड़ क िनकटवत इन छोट रा य को जीत लेने क बाद वह चार तरफ से मुगल सा ा य से िघर
जाता, िजससे महाराणा को मेवाड़ क वाधीनता बनाए रखना दु कर हो जाता।
ये रा य थे जालौर और िसरोही। अकबर क िलए इ ह जीतना कोई मु कल न था। ये अपनी र ा करने म
असमथ थे और राणा ताप चाहकर भी अपनी वतमान प र थितय म इनक य सैिनक सहायता नह कर
सकते थे। सेना क दो टकि़डयाँ उन पर चढ़ाई करने क िलए भेजी गई, िज ह ने आसानी से इन पर अिधकार कर
िलया। जालौर क ताज खाँ और िसरोही क शासक देवराराय को महाराणा ताप क िम ता क क मत पराधीनता
वीकार करक चुकानी पड़ी। इस कार यु क थित म आव यक व तु क आपूित करनेवाले मेवाड़ क दो
िम कम हो गए। इतना ही नह , अब मेवाड़ को बाहर से यु साम ी, खा ा या कछ भी अ य उपयोगी व तुएँ
मँगाने क सार रा ते भी बंद कर िदए गए। गुजरात क रा ते राणा ताप को कोई सहायता न िमल सक, उसक िलए
अकबर ने ह दीघाटी क यु से पहले ही वहाँ नाकबंदी कर दी थी। इस नाकबंदी का एक उ े य यह भी था िक
यु म हारने और समूचे मेवाड़ पर मुगल का अिधकार हो जाने क बाद महाराणा अपने प रवार और राजकोष क
साथ उस रा ते से भाग न सक। उसका यह सपना तो पूरा हो नह सका था, पर इस बार उसे आशा थी िक वह
अव य सफल होगा।
महाराणा ताप क वाधीन रहने से अकबर परशान ज र था, पर उसे राणा से य गत श ुता या कटता न
थी। ताप को बंदी बनाने या मार डालने क पीछ उसका मु य उ े य यह था िक उसक साथ ही राजपूत का
मनोबल टट जाएगा और िफर वह सहज ही मेवाड़ को अपने अधीन कर लेगा।
कछ अ य य तता क कारण अकबर लौट गया और हर साल क तरह इस बार भी अपने िनयमानुसार
िसतंबर म िफर अजमेर आया। उसने वाजा क दरगाह पर खुले िदल से चढ़ावा चढ़ाया और मेवाड़ िवजय क
दुआ माँगी । अब वह आगामी यु क योजना को ि या वत करने म लग गया। 11अ ूबर, 1576 को बादशाह
अकबर अजमेर से अपने मेवाड़ िवजय अिभयान क िलए रवाना आ। माच क बाद इतना समय लेने क पीछ अ य
य तता क अित र एक और भी बड़ा कारण था। मेवाड़ म अनेक छोटी-बड़ी निदयाँ और पहाड़ी नाले ह, जो
वषाकाल म अपने पूर उफान पर रहते ह। धरती का बड़ा भाग बाढ़ क कारण जलम न हो जाता ह। यह बाहर से
आनेवाली िकसी सेना क िलए असुिवधा का कारण तो बनता ही ह और साथ ही मेवाड़ को अित र ाकितक
सुर ा भी दान करता ह। अकबर ने आ मण क िलए ऐसा समय चुना था, जब वषा क कोई संभावना न हो और
निदय का पानी उतरकर सामा य तर पर आ चुका हो।
िवशाल मुगलवािहनी अपने पूर तामझाम क साथ चल रही थी। अकबर क आगे-आगे एक ब त बड़ा सुर ाबल
था, जो माग म होनेवाले िकसी भी तरह क अवरोध या छापे से िनबटने म स म था। िसपहसालार को प आदेश
था िक शहशाह क रा ते को पूरी तरह िन कटक रखा जाए और उ ह िकसी तरह क कावट महसूस न हो। दो िदन
बाद ही अकबर गोगूंदा प च गया और उसक सेना ने वहाँ पड़ाव डाल िदया। अब आगे क योजना पर िवचार होने
लगा।
महाराणा ताप को सूचना िमल गई थी िक अकबर एक ब त बड़ी सेना लेकर मेवाड़ क तरफ आ रहा ह।
अपनी छापामार रणनीित क अनुसार उ ह ने गोगूंदा मुगल क िलए खाली कर िदया था और अपनी सेना क साथ
पहाड़ी देश म चले गए। गोगूंदा और आसपास क देश को उ ह ने पूरी तरह उजड़वा िदया था, लेिकन अकबर
अपने साथ भरपूर रसद लेकर चला था। इसक अलावा उसने अजमेर तक क रा ते को खुला और हर तरह से
बाधारिहत रखने क प िनदश िदए थे, तािक हर तरह क आपूित िनरतर िमलती रह।

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मानिसंह और आसफ खाँ ने सोचा था िक शहशाह अकबर को गोगूंदा प चने पर इस बात का एहसास हो
जाएगा िक उनका म बजा लाने क िलए इन लोग ने िकतनी मु कल का सामना िकया था, पर आ इसका
उलटा। जमीन फकने क राजपूत क था नई न थी। सब आ मणकारी इससे प रिचत थे। अकबर को उलट
गु सा आया िक इन मूख ने गोगूंदा म पड़ाव डालने से पहले ही अपनी सेना क िलए भरपूर रसद साथ लाने और
अजमेर से िनरतर आपूित िमलने क भरपूर बंध य नह िकए।
बहरहाल गोगूंदा म पैर पसारने क बाद अकबर ने सबसे पहले राणा ताप को िगर तार करने का इरादा िकया।
उसे पूरा िव ास था िक एक बार महाराणा पकड़ म आ जाएँ तो िफर मेवाड़ िवजय का काम ब त सरल हो
जाएगा। अ वल तो ताप पर दबाव डालकर उ ह अधीनता वीकार करने को बा य िकया जा सकता ह। ऐसा न
होने पर भी नेतृ वहीन राजपूत पर िवजय पाना किठन न होगा। इसक िलए पहला काम था राणा ताप क बार म
पता लगाना िक वह कहाँ ह?
बड़ा आसान काम था। गोगूंदा से कछ टकि़डयाँ शाही फरमान क साथ िविभ िदशा म भेज दी गई। म
आ िक जहाँ भी राणा ताप ◌ं क होने का कोई सुराग िमले, फौरन खबर क जाए, तािक सार इलाक को घेरकर
इ ह बंदी बनाया जा सक। इस काम क िलए सेना क दो टकि़डयाँ बनाई गई थ , िजनक मुख राजा भगवानदास
और कतबु ीन खाँ थे। ये दोन ही मेवाड़ क भूगोल से दूसर क अपे ा अिधक प रिचत थे। इ ह ने छोटी
टकि़डयाँ आगे टोह लेने क िलए भेज द । उ ह समझाया गया िक इनाम का लालच देकर वनवािसय से राणा ताप
और उनक प रवार क बार म जानकारी हािसल कर। अब दोन सेनापित मसनद पर गावतिकए क टक लगाकर
आराम से बैठ गए िक दो-चार िदन म ही सब खोज-खबर िमल जाएगी।
कछ टकि़डयाँ तो लौटी ही नह , उनक सार िसपािहय को राजपूत ने घात लगाकर मौत क घाट उतार िदया।
उनक समझ म नह आता था िक छापामार कहाँ से अचानक कट होते ह और िफर अ य भी हो जाते ह। कछ
भील क िवषबुझे तीर से घायल हो बेहाल लौटते और आपबीती सुनाते िक िकस तरह उनक बाक साथी अचानक
ई बाण क वषा से मार गए। बाण का जहर अपना असर िदखाता और उपचार क बावजूद नीले-पीले होकर मर
जाते।
इस बार म िदलच प िक सा ब त मश र ह। भगवानदास वयं राजपूत होने और मेवाड़ क िनवािसय से भली-
भाँित प रिचत होने क कारण फक-फककर कदम रख रह थे। कतबु ीन इस िलहाज से अनाड़ी ही था। वह
समझता था िक पैसे का लालच देकर इन घुटन तक धोती पहननेवाले गरीब वनवािसय को खरीदना कौन सा
मु कल काम ह? जंगल म कछ गड़ रय ने राणा ताप क बार म पूछने पर पहले तो अनिभ ता जताई, िफर
बादशाह अकबर से बताने पर जान से मार देने क धमक क बाद वे सबकछ बक पड़। राणा ताप उस थान से
ब त दूर न थे। अपनी भेड़-बक रय को लेकर ये वह जा रह थे, तािक उनक प रवार क दूध क आव यकता पूरी
हो सक। यह सुनते ही कतबु ीन खाँ क बाँछ िखल गई। उसने तुरत एक सैिनक टकड़ी इनक साथ कर दी और
उ मीद करने लगा िक चंद घंट म ही महाराणा ताप और सारा प रवार अकबर क सामने हाथ बाँधे खड़ा होगा।
इस दंतकथा क मुतािबक भोले-भाले गड़ रए बड़ सरदार को झुक-झुक णाम करते उस टकड़ी को लेकर चल
पड़। जंगल म काफ चलने क बाद पहाड़ी कदरा क पास प चकर वे क गए। उ ह ने साथ आए सैिनक को
बताया िक हजूर, इसक दूसर छोर पर एक छोटा सा िशिवर ह, िजसम राणा ताप और उनका प रवार रहता ह।
सैिनक क नेता ने अपने तीन-चार िसपाही गड़ रय पर नजर रखने क िलए वह छोड़ िदए। उ ह कहा िक खबर
सही िनकली तो मालामाल कर िदया जाएगा। गलत िनकली तो मौत क घाट उतार दगे। वे खुशी-खुशी राजी हो गए।
जब वे सैिनक अपने नेता क साथ अँधेरी गुफा म आगे जाकर गुम हो गए तो भोले-भाले गड़ रए अचानक पहरा
देनेवाले सैिनक पर टट पड़। इससे पहले िक वे सँभलते, उ ह मौत क घाट उतार िदया गया।
राणा ताप को जीिवत पकड़वाने क अपने उ साह म जब सैिनक दल गुफा क पार िनकला तो राजपूत क एक
दल ने उ ह चार तरफ से घेर िलया। बच िनकलने क कोई संभावना न देखकर उ ह ने हिथयार डालकर
आ मसमपण कर िदया। ये राजपूत युवक क आगे ब त िगड़िगड़ाए िक उनक जान ब श दी जाए। वे बेचार तो
शाही म क तामील कर रह थे। वीर राजपूत िनह थ क ह या को वैसे भी कायरता ही समझते ह। उ ह दया आ
गई तो इन सबक िसर मूँड़कर इ ह वापस भेज िदया गया। लौटते समय वे मन-ही-मन सोच रह थे िक उस पार जाते
ही उन बदमाश गड़ रय का िसर धड़ से अलग करक इस अपमान का बदला लगे, लेिकन दूसर छोर पर प चे तो
उ ह वहाँ अपने सािथय क ही िसर धड़ से अलग पड़ िमले। गड़ रय का तो कह नाम-िनशान न था। वे इसी
बदहाली म कतबु ीन खाँ क िखदमत म पेश ए तो उसक होश उड़ गए। जब यह काररवाई चल रही थी तो
राजा भगवानदास कतबु ीन खाँ क मूखता पर मन-ही-मन हस रह थे। उ ह ने जानते ए भी अपने सहयोगी को
समझाने क कोिशश नह क िक तुम झाँसे म आ रह हो। मुगल दरबार क ित ं ता क िक से तो आज तक
मश र ह। भगवानदास चाहते थे िक कतबु दीन क बेवकफ सब पर जािहर हो। यह बात अकबर क कान तक
भी प चे और उसक साख िगर।
इसक बाद भी राजा भगवानदास और कतबु ीन खाँ क टकि़डयाँ आए िदन मेवाड़ क जंगल व पहाि़डय क
खाक छानती रह । महाराणा ताप का सुराग तो उ ह कह नह िमलता था, लेिकन राजपूत युवक क अचानक
हमले से कई मार जाते या घायल हो जाते। कभी अचानक ही कह से भील क तीखे बाण क वषा होती और वे
ल लुहान हालत म िसर पर पैर रखकर भागते। अचानक हमले क खौफ से सहमे ए और अनजान बीहड़ रा त
क खाक छानने से परशान िसपाही करते भी तो या? कभी उनक ब त से साथी अचानक हमले म मरते, कभी
साथ लाई रसद लूट ली जाती। महीन इसी तरह गुजर गए। अकबर उनक िवफलता क कहािनयाँ और मजबू रयाँ
सुन-सुनकर तंग आ गया था। राणा ताप को पकड़ने और मेवाड़ पर अिधकार करने क िलए वह वयं आया था।
अतः िकसी भी क मत पर असफल नह लौटना चाहता था। राजा भगवानदास समझ गया था िक राणा ताप को
इस तरह पकड़ना संभव न होगा। मेवाड़ क चार तरफ से नाकबंदी कर दी गई थी। ताप को िकसी भी तरह क
रसद या सहायता िमलने का सवाल ही न था। भगवानदास का अनुमान था िक अब तक तो राणा और प रवार को
खाने क भी लाले पड़ गए ह गे। राणा ताप को खोजना असंभव ह, पर इतना िन त ह िक जगह-जगह पर उनक
खोज म मुगल सेना क छापे पड़ने क कारण उ ह ज दी-ज दी दल-बल क साथ एक थान से दूसर थान पर
जाना पड़ता होगा। इससे भी वह िन त ही परशान हो गए ह गे। ऐसे म अगर िकसी तरह उन तक संदेश प चाया
जाए िक राजा भगवानदास िमलना चाहते ह तो कसा रहगा! संभव ह राणा िमलने को तैयार हो जाएँ। संभव ह
वतमान प र थितय म संिध क िलए राजी हो जाएँ। अगर कोई यु काम कर गई तो संभव ह छल से उ ह
िगर तार ही िकया जा सक या इस ि या म उनका कोई सुराग लग जाए या कोई संपक सू हाथ लग जाएँ
अथवा उनका कोई िव त लालच म आकर उनक िछपने का गु थान बता दे।
िवचार बुरा नह था। भगवानदास कछवाहा उसे ि या वत करने क यास म जुट गया। पहला काम तो उसने
यह िकया िक राणा ताप क िव भेजी जानेवाली सभी सैिनक टकि़डय को िव ाम करने को कहा। ये सैिनक
कारण तो नह जानते थे, पर उ ह ने चैन क साँस ली। कछ िदन क शांित क बाद जब भगवानदास को लगा िक
वातावरण बातचीत क लायक बन गया ह तो अपने कछ दूत इधर-उधर छोड़ िदए जो िकसी उपयु य को
खोज िजसका राणा ताप से संपक हो। आिखर एक राजपूत सहमत हो गया। उसने कहा िक आपका संदेश राणाजी
तक प चा दूँगा। अगर वे मान गए तो दो-तीन िदन म म आपक मुलाकात उनसे करा दूँगा। वह अगले िदन िफर
राणा ताप का उ र लेकर आने क िलए कहकर चला गया। राजा भगवानदास को ब त उ मीद थी िक इस बार
बात बन जाएगी।
इस कथा क अनुसार, दूसर िदन वह दूत राणा का संदेश लेकर हािजर आ। उसने अ यंत िवन ता से राजा
भगवानदास को णाम करने क बाद कहा िक म जो कछ कह रहा , वह आपक िलए राणाजी का संदेश ह। अगर
इसम आपको कछ ऊच-नीच लगे तो मुझे मा करगे।
‘‘ठीक ह, राणाजी ने या संदेश िभजवाया ह, िनभय होकर कहो।’’ भगवानदास बोले।
‘‘महाराणाजी ने कहा िक वैसे तो राजा भगवानदास और उनक चाकर भी उसी यवहार क लायक ह, जो
यवहार कतबु ीन खाँ क आयोजक क साथ िकया गया, लेिकन वे राजपूत ह, इस नाते उ ह मा िकया जाता ह।
वे िजसक चाकरी करते ह उसक तलवे चाट या दुम िहलाएँ यह उनक मरजी ह।’’
क े से अपनी तुलना सुनकर भगवानदास कछवाहा क तन-बदन म आग लग गई। उसने दूत से कछ न कहा।
उसे दंड देना तो धमिव होता, िफर अपने सब आदिमय क सामने वह उसे अभयदान भी दे चुका था।
जब यह तरक ब भी असफल रही तो भगवानदास क समझ म नह आया िक आिखर िकया या जाए। नए िसर
से सैिनक क टोिलयाँ इधर-उधर भेजना और जहाँ कह राणा ताप क होने क खबर या अफवाह िमले, वहाँ छापे
मारना जारी रहा। कतबु ीन भी यही कर रहा था। खबर देनेवाले भील उ ह बीहड़ जंगली रा त पर दूर तक भटका
देते। कभी घात लगाकर बैठ राजपूत युवक या भील क तरफ भेज देते, जहाँ से वे त-िव त होकर लौटते। अब
तक अकबर क सेना क जान-माल का काफ नुकसान हो चुका था, लेिकन हाथ कछ भी न लगा था।
अपने इन दोन िसपहसालार क यास से िनराश होकर अकबर ने इन दोन को इस काय से हटा िदया। उनक
अकम यता क दंड व प उ ह दरबार म वेश न करने का म भी बादशाह ने सुनाया। उसक बाद सारी
काररवाई क बागडोर खुद सँभाली। उसने राणा ताप को चार तरफ से घेरने क िलए जगह-जगह नाकबंदी क
और पया सेना क साथ अपने थाने थािपत िकए। इन थान म ऐसी यव था थी िक आव यकता पड़ने पर एक-
दूसर क सहायता कर सक। अकबर खुद अपने साथ भी भारी लाव-ल कर लेकर चल रहा था। कह -न-कह
उसक मन म भी राणा ताप क अचानक आ मण का डर समाया आ था। उसक रणनीित यह थी िक धीर-धीर
सार देश क नाकबंदी कर दी जाए। आिखर उसक बीच म पहाड़ी देश म ही राणा ताप कह ह गे, िफर उस
देश पर बड़ी सैिनक काररवाई करक उ ह िगर तार िकया जा सकता ह।
सुर ा और घेराव क इस सार बंध म पूर दो महीने का समय लग गया। उसक बाद स ा अकबर उदयपुर क
ओर बढ़ा। उस पर भी आसानी से अिधकार हो गया। कह भी आमने-सामने क लड़ाई लड़ने का तो राणा का कोई
इरादा था ही नह । वह तो मुगल सेना को छकाकर थका देना चाहते थे। जगह-जगह छापे मारने पर भी जब अकबर
को राणा ताप का कछ पता न चला तो वह हताश होने लगा। अब उसक समझ म आ रहा था िक उसक अनुभवी
िसपहसालार य िवफल ए थे। शायद इसी कारण बाद म माफ माँगने पर बादशाह ने उनको मा कर िदया।
उदयपुर म थोड़ा दम लेने और अपनी सारी थित को थर करने क बाद एक बार िफर अकबर ने आगे बढ़ने
का मन बनाया। उदयपुर आिखर एक मह वपूण मुकाम था। अतः वहाँ क सुर ा का सारा भार उसने अपने
अनुभवी और यो य सेनानायक —राजा जग ाथ और फख ीन को स पा। उनक साथ पया सेना रख दी गई।
इसक साथ ही अकबर ने राजा भगवानदास को उदयपुर क िनकटवत देश म राणा ताप का पता लगाने क
िज मेदारी एक बार िफर स पी। उसक सहायता क िलए एक और िसपहसालार अ दु ा खाँ को िनयु कर
िदया। अकबर जानता था िक िजस े म वह जा रहा ह, वहाँ उसक सेना क दिबश पड़ने पर राणा ताप अपना
थान बदलना चाहगे। ऐसे म उनक दल क उदयपुर क वन- े म आने क संभावना अिधक ह, तब उनक ताक
म बैठ ये दोन िसपहसालार उ ह दबोच लगे। यह भी संभव ह िक एक तरफ से िघर जाने क बाद बचाव का कोई
रा ता न देखकर राणा ताप आ मसमपण कर द।
अकबर को उ मीद थी िक अब ताप और उनक राजपूत सामंत अिधक िदन यह दबाव सहन नह कर सकगे।
वह श िसंह क सीख भूल गया था िक पूर े को घेरने क िलए कम-से-कम दो लाख क फौज चािहए, तभी
अचानक एक ऐसी घटना घटी िजससे अकबर को गहरा ध ा लगा।
बादशाह ने नाथ ारा क नजदीक मोही गाँव म एक बड़ा थाना थािपत िकया था। उसक सुर ा क िलए और
आसपास क थान से मदद क िलए उसने तीन हजार सैिनक क बड़ी सेना मुजािहद खान क अधीन रखी थी। रसद
क सम या तो थी ही। अतः मुजािहद खान ने वहाँ जोर-दबरद ती से या पैसे का लालच देकर एक खेत म म ा
क फसल उगाने का बंध िकया। वह सोच भी नह सकता िक राजपूत क लंबे हाथ यहाँ तक मार कर सकते ह।
राणा ताप ने सार े म िकसी भी तरह क खेती करने पर ितबंध लगा िदया था। साथ ही यह घोषणा भी
करवा दी थी िक अगर कोई इसका उ ंघन करगा तो उसे मृ युदंड िदया जाएगा। टॉड ने एक जगह िलखा ह िक
श ु को सहायता प चानेवाले गड़ रए का िसर काट िलया गया। एक अ य इितहासकार ने िलखा ह िक एक मुगल
िसपहसालार क िलए स जी उगाने का यास करनेवाले एक िकसान का िसर काटकर खेत म उस मुगल
िसपहसालार क िलए रख िदया गया था।
राणा क पास मोही म खेती करने क भी िशकायत प ची तो उ ह ने कवर अमरिसंह को युवक राजपूत क एक
दल और कछ भील क साथ वहाँ आव यक काररवाई क िलए भेजा। योजना क अनुसार कवर अमरिसंह अपने
सािथय और धनुष-बाण से लैस कछ भील क साथ कछ दूर पर रात क अँधेर म चुपचाप खड़ रह। दो-चार भील
को इशारा िकया गया तो वे आगे बढ़कर फसल काटने लगे। दूर पहरा दे रह कछ िसपािहय ने देखा तो दौड़कर
अपने थानेदार मुजािहद खान को खबर दी िक जूर कछ लोग चोरी से फसल काट रह ह। वह तुरत घोड़ पर सवार
होकर कछ सैिनक क साथ वहाँ प च गया, तािक उ ह अपने िकए का दंड दे सक। बेचार को या पता था िक
उसे ही अपने िकए का मृ युदंड िमलनेवाला ह। तीर क बौछार ने मुगल क इस टकड़ी का वागत िकया।
मुजािहद खान समझ पाता िक िकस तरफ से तीर आ रह ह, इससे पहले एक भाला उसक सीने म लगा, जो उसक
भारी भरकम शरीर क आर-पार हो गया। सैिनक अपने थानेदार को उठाने आगे बढ़ तो िफर तीर क एक और
बौछार उन पर पड़ी। वे भी जवाब म तीर और गोिलयाँ चला रह थे, पर कोई िदखाई देता तब ना? आिखर खान को
वह छोड़ वे जान बचाकर भागे।
भील ने सारी फसल लूट ली। उस िकसान को मारकर उसक लाश एक पेड़ पर टाँग दी और वहाँ से यह टोली
चुपचाप लौट आई। अकबर को यह समाचार िमला तो वह स ाट म आ गया। संदेश बड़ा प था िक सार
मेवाड़ म अब भी महाराणा क राजा ा चलती ह, मुगल स ा अकबर क नह । उसे इस बात क भी हरानी थी िक
कहाँ तो उसे खबर िमल रही थ िक चार तरफ से िघरकर राजपूत िपंजर म फसे पशु जैसे हो गए ह, उ ह खाने
तक क लाले पड़ रह ह, अब उनक महाराणा क पास आ मसमपण करने क अलावा और कोई चारा नह और
कहाँ ऐसे मौक पर जब वह खुद इतनी बड़ी सेना लेकर मेवाड़ पर चढ़ आया ह उसक नाक क नीचे उसक एक
सरदार को मौत क घाट उतार िदया गया। उसका सारा आ मिव ास डोल गया। इसी समय अकबर क गु चर ने
सूचना दी िक राणा ताप िफर से गोगूंदा पर अिधकार करने क योजना बना रह ह। वह परशान हो गया और तुरत
राजा भगवानदास और िमजा खाँ को एक सेना क साथ गोगूंदा क र ा क िलए भेजा।
अकबर परशान था। उसे वयं मेवाड़ क खाक छानते छह महीने हो गए थे। हर तरक ब आजमाने पर भी राणा
ताप को पकड़ना तो दूर उनक बार म कोई ठोस खबर तक नह िमली थी और न ही िकसी सैिनक काररवाई म
कोई और बड़ा सामंत या पहाड़ म कह िछपाकर रखा गया राणा ताप का खजाना हाथ आया था। इस दौरान
राजपूत क छापामार द त ने जगह-जगह घात लगाकर उसक सेना को काफ नुकसान प चाया था, पर बदले म
वह कछ न कर सका। आिखरकार उसने लौट जाने का फसला िकया।
राजा भगवानदास राणा ताप को पकड़ने या उनका पता लगाने म अपनी असफलता पर शिमदा था। ताप को
एक बार िफर संिध- ताव भेजने या उनसे भट करक समझाने क कोिशश म भी अपमान ही हाथ लगा था, पर
उसने उसक भरपाई क िलए कछ और य न िकए। उसने मेवाड़ क िम डगरपुर क शासक रावल आसकरण
और बाँसवाड़ क रावल ताप िसंह को ऊच-नीच समझाकर, भयंकर प रणाम का डर िदखाकर और ओहद का
लालच देकर अकबर क अधीनता वीकार करने क िलए राजी कर िलया। स ा अकबर िबना र पात क िकसी
छोट से रजवाड़ क भी उसक अधीन होने पर ब त स होता था। उसने इन दोन का वागत िकया और
भगवानदास कछवाहा क शंसा क ।
12 मई, 1577 को बादशाह अकबर मेवाड़ से राजधानी लौट आया। उसक लौटते ही राणा ताप ने अपनी
गितिविधयाँ तेज कर द । एक क बाद एक मुगल क थािपत िकए थान पर िफर से राजपूत का अिधकार होने
लगा। राणा क छापामार सैिनक कब कहाँ हमला कर द, इस आशंका से डर-सहमे मुगल सैिनक म अब पहले
जैसा हौसला नह रह गया था, जबिक इतनी बड़ी सेना का अपनी छापामार रणनीित क सफलतापूवक सामना कर
लेने पर राजपूत क हौसले बुलंद थे। उ ह ने गोगूंदा पर िफर से अिधकार कर िलया था। राणा ताप कभलगढ़ को
राजधानी बनाकर वहाँ से सारा राजकाय चला रह थे। थोड़ा सा अवकाश िमलते ही उ ह ने मुगल क अ याचार से
त अपनी जा क क याण और मैदानी े म िफर किष काय आरभ करने पर िवचार करना आरभ िकया।
राणा ताप और मेवाड़ क धरती-पु क भा य म सुख-चैन नह था। अकबर अभी मेरठ तक ही प चा था िक
उसे ये सार समाचार िमले। उसने राणा ताप को पकड़ने और मेवाड़ को पूरी तरह मुगल क पैर तले र द देने क
िलए बड़ी योजना बना डाली। उसे वयं महाराणा क श का अनुमान हो गया था। अतः इस बार उसने पूरी
ताकत से मेवाड़ को कचलने क िलए एक ब त बड़ी सेना भेजने का िनणय कर डाला। शाहबाज खाँ क नेतृ व म
भेजी जानेवाली इस सेना म स ा अकबर ने चुन-चुनकर अपने िसपहसालार िनयु िकए। इनम सैयद हािसम,
सैयद कािसम, पाइदा खाँ, सैयद राजू, िमजा खाँ, राजा भगवानदास कछवाहा और मानिसंह शािमल थे।
अकबर 12 मई, 1577 को मेवाड़ से लौटा था। शाहबाज खाँ ने 15 अ ूबर, 1577 को अपनी िवशाल सेना क
साथ मेवाड़ पर आ मण करने क िलए कच िकया। इतना समय लगने से ही अनुमान लगाया जा सकता ह िक
शाहबाज खाँ ने मेवाड़ ‘िवजय’ क िलए िकतनी तैया रयाँ क ह गी। उसने बादशाह को पूरा यक न िदलाया था िक
मेवाड़ िवजय करक और राणा ताप को िगर तार करक ही दम लेगा। मेवाड़ प चकर शाहबाज खाँ को पता चला
िक वह िकतने पानी म ह। अपने आरिभक य न म असफल होने पर शाहबाज खाँ ने दो काम िकए। एक तो
स ा अकबर से अनुमित िलए िबना ही राजा भगवानदास, मानिसंह क साथ अ य सभी छोट-बड़ िहदू
िसपहसालार को अपनी सेना से अलग कर िदया। उसे आशंका थी िक शायद ये राजपूत राणा से सहानुभूित रखते
ह। दूसरा, उसने अकबर क पास संदेश भेजा िक इतनी सेना काफ नह ह। जवाब म बादशाह ने शेख इ ािहम क
नेतृ व म एक और बड़ा सै यबल शाहबाज खाँ क सहायता क िलए भेज िदया। उसक िदल-िदमाग पर मेवाड़ को
झुकाने का िफतूर जारी था। वयं अपने य न म भी असफल होने क कारण वह बुरी तरह खीज गया था।
कहाँ तो राणा ताप अपने उजड़ मेवाड़ को िफर से हरा-भरा करने का सपना देख रह थे और कहाँ शाहबाज खाँ
क ब त बड़ी सेना लेकर आने का समाचार पाकर इ ह उसे िफर से उजाड़ने का आदेश देना था। वे नह चाहते थे
िक अ का एक दाना भी श ु सेना को थानीय सहायता क प म िमले। अनाज बेचनेवाले बंजार तो भूल से भी
उस तरफ नह आते थे।
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कभलगढ़ पर मुगल का अिधकार


शाहबाज खाँ िबना िकसी रोक-टोक क कलवाड़ा तक आ गया और वहाँ पड़ाव डालकर आगे क योजना बनाने
लगा। उस समय महाराणा ताप कभलगढ़ म थे। महाराणा कभा ने यह दुग अ यंत दुगम पवतीय देश म बनवाया
था, अतः यह ब त सुरि त था। पर यह कलवाड़ा से जहाँ शाहबाज खाँ इतनी बड़ी सेना क साथ पड़ाव डाले पड़ा
था, उससे कवल तीन मील क दूरी पर ही था। कभलगढ़ तक जानेवाला रा ता इतना सँकरा, पेचदार और किठन
था िक थोड़ सैिनक क साथ भी एक बड़ी सेना का वहाँ डटकर मुकाबला िकया जा सकता था, पर राणा ताप ने
सीधे मुकाबले क रणनीित छोड़ दी थी। अतः उ ह ने अपना खजाना वहाँ से हटाकर अंदर क पहाड़ी देश क एक
गुफा म प चा िदया िजस पर कवर अमरिसंह क कछ िव त युवक और तीर-कमान से लैस भील रात-िदन पहरा
देते थे। एक अ य िववरण क अनुसार सारा खजाना भामाशाह क सुपुद था, िजसे लेकर वे िकसी िनरापद थान पर
चले गए। राणा ने दुग खाली करवा िदया और वयं भी पवत म चले गए। िकसी संभािवत आ मण से दुग क
र ा करने क िलए उ ह ने वहाँ एक छोटी सेना तैनात कर दी थी।
शाहबाज खाँ ने भी राणा ताप का पता लगाने क िलए अपनी सैिनक टकि़डयाँ इधर-उधर भेज , पर कछ भी
हाथ नह लगा। ताप का पता लगाने क िलए वह सै य बल क ही नह , हर तरक ब का इ तेमाल कर रहा था।
उसक छोड़ ए जासूस चार तरफ घूम रह थे। आिखर उसे खबर िमल ही गई िक राणा ताप कभलगढ़ म ह। यह
भी पता चल गया िक दुग कलवाड़ा गाँव से यादा दूरी पर नह ह। उसने तुरत कभलगढ़ पर चढ़ाई करने क
योजना बनाई, लेिकन सबसे बड़ी सम या यह थी िक इस वन देश म कभलगढ़ ह कहाँ, यही पता नह चल रहा
था। कई टकि़डय को इधर-उधर भेजा गया, पर वे वन देश म भटककर लौट आई। कहा जाता ह िक शायद इसी
कारण यह दुग अजेय था।
इतनी बात तो शाहबाज खाँ समझ ही सकता था िक थानीय लोग को अव य इस िनकटवत दुग क बार म और
उस तक जानेवाले माग क बार म जानकारी होगी। उसने म जारी कर िदया िक बड़-से-बड़ इनाम का लालच
देकर भी दुग क रा ते का ज दी पता लगाओ। उसे डर था िक देर होने पर राणा ताप कह िनकल न जाए।
आसपास क सभी ात रा त क नाकबंदी मुगल सेनापित ने करवा दी। कहा जाता ह िक एक मािलन इनाम क
लालच म आकर अपने महाराणा से ोह करने को राजी हो गई। उसने कहा िक कभलगढ़ तक जानेवाले सार रा ते
पर वह फल िबखेर देगी। इसक सहार मुगल सेना दुग तक जा सकती ह। उसने अपना काम शु िकया, लेिकन
आधे रा ते तक ही फल िबखेर पाई, तब तक अपने दुग पर िनरतर ि रखनेवाले भील म से एक क नजर उस
पर पड़ी। पलक झपकते ही वह समझ गया िक यह ी या कर रही ह। उसक धनुष से एक बाण छटा और सीधे
मािलन क छाती को बेध गया।
मािलन को तो अपने िकए क सजा िमल गई, लेिकन मुगल सेना क िलए आधे रा ते का पता चल जाना भी
पया था। बाक का रा ता उसक अि म टकि़डय ने खुद खोज िलया और शाहबाज खाँ ने दुग को चार तरह से
घेर िलया। महाराणा कभा ने कभलगढ़ ऐसा बनवाया था िक उस दुगम दुग पर बड़ी-से-बड़ी सेना क िलए अिधकार
करना किठन था। इधर राणा ताप इस रणनीित पर िवचार कर रह थे िक दुग को घेरने वाली श ु सेना को िकस
तरह परशान िकया जा सकता ह। दुग क अंदर क र क दल ने बड़ी वीरता से श ु का सामना िकया और दुग
जीतने क उसक सार यास िवफल कर िदए।
पर होनी को कछ और ही मंजूर था। दुभा य से दुग क एक तोप म िव फोट हो गया और उससे भड़क आग म
ब त सी यु साम ी वाहा हो गई। बाहर से सहायता िमलने क तो कोई गुंजाइश थी ही नह । दुगर क वीर कवर
माण ने अपने साथी राजपूत क साथ परामश क बाद दुग क दरवाजे खोल िलए और सहसा श ु क िवशाल सेना
पर टट पड़। जब एक-एक राजपूत लड़ते ए वीरगित को ा आ तभी मुगल सेना दुग म वेश कर सक । इस
तरह 13 अ ैल, 1578 को कभलगढ़ पर शाहबाज खाँ का अिधकार हो गया, लेिकन िजस तरह महाराणा उदयिसंह
क रा यकाल म िच ौड़गढ़ म वेश करने पर अकबर को िनराशा ई थी, वही हाल शाहबाज खाँ का आ। उसक
हाथ एक िनजन दुग लगा था। वहाँ न राणा ताप थे और न उनका खजाना, िजसक खबर उसे लगी थी। अकबर
भयंकर मारकाट क बाद िच ौड़गढ़ म आया था तो उसे वहाँ न उदयिसंह िमले थे और न उनका खजाना। अकबर
ने तब दुग म शरण िलए 30 हजार िनरीह नाग रक क सामूिहक ह या करवाकर अपनी खीज िमटाई थी। इस बार
वहाँ कोई िचि़डया भी न थी। िजसका शाहबाज खाँ क ल करता। उसने दुग म थािपत देव ितमा और चंदन क
सुंदर न ाशीदार िकवाड़ को तोड़-फोड़कर अपनी खीज िमटाई।
शाहबाज खाँ को खबर िमली िक महाराणा गोगूंदा गए ह। कभलगढ़ एक िकलेदार क हवाले करक और वहाँ
र क दल बैठाकर शाहबाज खाँ सेना लेकर गोगूंदा क तरफ झपटा। गौगूंदा पर अिधकार करने पर जब वहाँ भी
राणा ताप नह िमले तो शाहबाज खाँ रातोरात उदयपुर क तरफ दौड़ा। उदयपुर पर भी उसने सरलता से अिधकार
कर िलया, लेिकन उसका असली मकसद यहाँ भी पूरा नह आ यानी राणा ताप वहाँ भी नह थे। इन किथत
िवजय क बावजूद वह खाली हाथ था।
कछ इितहासकार ने शाहबाज खाँ क इन सैिनक काररवाइय क बड़ी शंसा क ह और इतने कम समय म
गोगूंदा और उदयपुर जीत लेने पर उसक तुलना नेपोिलयन से क ह। वे शायद यह भूल गए िक नेपोिलयन ने
िबजली क तेजी से झपटकर यु जीते थे। शाहबाज खाँ ने कोई यु नह जीता, िसफ घोड़ दौड़ाकर वह दूरी पार
क थी। अकबर क तरह उसे भी कह िकसी ितरोध का सामना नह करना पड़ा था, िसवाय कभलगढ़ क।
राणा ताप को पकड़ने म असफल और जगह-जगह उसक थान व छोटी सैिनक टकि़डय पर होनेवाले राजपूत
क छापामार हमल से खीजे ए शाहबाज खाँ ने अपने अिधकार म आए मेवाड़ क सार े म लूट-खसोट मचाने
और उसे उजाड़ने म अपनी पूरी श लगा दी। उसने सोचा िक इससे आतंिकत होकर थानीय लोग राणा का साथ
छोड़ दगे और वह तथा उनक मु ी भर राजपूत अलग-थलग हो जाएँग।े शाहबाज खाँ को इतनी समझ नह थी
िक ऐसी हरकत क िवपरीत नतीजे िनकलते ह। मेवाड़ क जा को, जो पहले से ही अपने महाराणा क ित ब त
ा रखती थी, अब मुगल क अ याचार से उ ह मु िदलानेवाला राणा ताप ही तो नजर आ रहा था।
महाराणा क ित उनक िन ा और भी गहरी हो गई।
शाहबाज खाँ ने राणा ताप का पता लगाने क िलए जमीन-आसमान एक कर रखा था। जहाँ भी महाराणा क
िछपे होने क खबर िमलती, वह आँधी-तूफान क तरह दौड़कर वहाँ प च जाता, लेिकन तब तक महाराणा वहाँ से
िनकल चुक होते। दरअसल इनम से अिधकांश खबर गलत होती थ , जो शाहबाज खाँ और उसक सैिनक को
दौड़ाने-छकाने क िलए उस तक प चाई जाती थ । अगर कभी-कभार कोई लालच म आकर स ी खबर भी देता
था, जो मुगल सेना क उधर आने क सूचना राणा को तुरत िमल जाती और वह अपना थान बदल लेते थे।
ऐसी ही एक सही सूचना िकसी भेिदए ने इनाम क लालच म आकर शाहबाज खाँ को दे दी िक राणाजी
कमलमीर क िकले म ह। शाहबाज खाँ क पास आसपास क इलाक म पया सेना थी। उसने तुरत कमलमीर दुग
को घेरने और वहाँ से िनकल भागने क सभी रा त क नाकबंदी क आदेश दे िदए। छोटी सी दुगर क सेना इतनी
बड़ी आ ामक सेना का बड़ी बहादुरी से सामना कर रही थी। उसने िकले को जीतने क श ु क सभी यास िवफल
कर िदए। िकले क अंदर पानी क सभी ोत सूख गए थे, लेिकन एक िवशाल कड म पया जल था। शाहबाज
खाँ ने इसका भी पता लगा िलया। इतना ही नह , उसने भारी लालच देकर िकसी भेिदए क मदद से कड म जहर
डलवा िदया। दुग म रहनेवाली र क सेना अब पानी क अभाव म परशान हो गई। र क सेना क वीर ने दुग क
दरवाजे खोल िदए और मु ी भर राजपूत िवशाल मुगल सेना पर टट पड़। शाका क अपनी पुरानी परपरा को
िनभाते ए एक-एक यो ा कई श ु को मारकर वीरगित को ा आ।
दुग म वेश करने क बाद शाहबाज खाँ ने उसका च पा-च पा छान मारा। लेिकन िकला तो एक वीरान खंडहर
जैसा था। राणा ताप तो न जाने कब दुग को छोड़कर िकसी सुरि त थान पर चले गए थे। यह शाहबाज खाँ क
िनराशा क पराका ा थी। उसने जगह-जगह थाने थािपत करक मेवाड़ क जीते ए देश क सुर ा क यापक
बंध िकए और वयं स ा अकबर क दरबार म हािजरी देकर सारा समाचार सुनाने क िलए रवाना हो गया। 17
जून, 1578 को शाहबाज खाँ बादशाह क सामने पेश आ और लगभग तीन महीने म अपने सैिनक अिभयान क
सफलता-िवफलता क कथा सुनाई। स ा अकबर ने बड़ धैय से उसक बात सुनी। अपने य गत अनुभव क
कारण अकबर अब शाहबाज खाँ क किठनाइय को समझता था। खीजने या दंड देने क बजाय उसने उसक
यास क शंसा क ।
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संिध-प
राणा ताप क बार म एक दंतकथा यह भी ह िक उ ह ने अकबर को संिध-प िलखा था। इसका एक अिधक
चिलत प इस कार ह—
महाराणा जंगल म भटक रह थे। मुगल क िगर त से बचने क िलए वे अपने प रवार को लेकर एक थान से
दूसर थान पर जाते। खाने क लाले पड़ गए थे। जब कछ नसीब न आ तो घास क रोटी खानी शु कर दी। एक
िदन महारानी ने इसी तरह घास क रोिटयाँ बनाकर सब ब को द । साथ म पहाड़ी सोते का पानी पीने क िलए
िदया। राणा क छोटी बेटी ने अभी एक कौर ही खाया था िक एक वन-िबलाव ने झपटकर उसक रोटी छीन ली
और जंगल म भाग गया। ब ी रोने लगी।
क या का यह दुःख देखकर राणा ताप से रहा नह गया। वह कागज-कलम लेकर अकबर से संिध क िलए प
िलखने लगे। महारानी ने यह देखा तो उनका हाथ थाम िलया। कागज और कलम-दवात उनक समाने से उठा ल
और ाथना करते ए कहा िक िकतनी ही माता क लाल आपक एक इशार पर मातृभूिम क र ा म मर िमट।
िकतनी ही युवितय क पितय ने अपने ाण का उ सग कर िदया। आप मेवाड़ क गौरव ह, उसक वाधीनता क
संर क ह। झाला सरदार ने अपने ाण आप पर या इसीिलए योछावर िकए थे िक आप एक िदन कायर क तरह
श ु से संिध कर ल? राणा ताप ब त ल त ए। उ ह ने रानी से मा माँगी और िफर कभी अकबर से संिध
करने का िवचार मन म नह लाए।
एक अ य िववरण क अनुसार—दाने-दाने को मुहताज और आए िदन जंगल म सप रवार भटकते रहकर राणा
ताप थक-हार गए। उनसे जब ये घोर क सहन नह ए तो अकबर को संिध-प िलख भेजा। अकबर क दरबार
म संिध-प आया तो उसक आ य का िठकाना न रहा। उसे राणा ताप से ऐसी आशा न थी। प क स यता
जानने क िलए शहशाह अकबर ने अपने दरबारी बीकानेर नरश क भाई पृ वीराज को यह प िदखाया, जो ताप
क ह ता र पहचानते थे। वह राणा ताप क िनकट संबंधी और उनका अ यंत आदर-मान करनेवाल म से थे।
महाराणा ताप क भाई श िसंह क बेटी सुंदरदे उनक प नी थी। इस नाते वह राणा क ताप क भतीजी थी।
अतः प रवार क दामाद होने क नाते पृ वीराज राणा ताप, श िसंह व उनक अ य भाइय को य गत प से
जानते भी थे और उनक ह ता र व िलखावट से भी प रिचत थे। देखने म उ ह प क ह ता र महाराणा ताप क
ही लगे, पर िव ास नह आ िक राणा ताप जैसा वीर, वािभमानी ऐसा कर सकता ह। उ ह ने प कह िदया
िक ये राणा ताप क ह ता र नह । सारा संिध-प जाली तीत होता ह।
अकबर क अनुमित से पृ वीराज वह प घर ले आए और अपनी प नी सुंदरदे को िदखाया। सुंदरदे को इस बात
पर ब त गव था िक वह महाराणा ताप क भतीजी ह, िज ह ने कभी मुगल क अधीनता वीकार नह क । उसने
पित से कहा िक ह ता र तो ताऊजी क ही लगते ह, लेिकन ऐसा हो नह सकता। ज र िकसी ने यह जालसाजी
क ह। ब उनक िलखावट म प िलखकर और उनक ह ता र बनाकर स ा अकबर को भेजा ह। आप
महाराणा को एक प िलखकर इस संिध-प क स ाई का पता लगाएँ। इस पर पृ वीराज ने, जो एक अ छ किव
थे, किवता क अ यंत ेरक भाषा म एक प िलखकर उसी दूत क हाथ महाराणा को भेज िदया, जो संिध-प
लेकर आया था।
पृ वीराज ारा महाराणा को किवता म िलखे प का भावाथ कछ इस कार था िक अकबर ने हमार धम और
कल-गौरव को खरीद िलया ह, लेिकन वह उदयपुर क राणा ताप को नह खरीद सका। िजस ताप ने अपना
सव व याग िदया ह, या वह भी अब अपने वािभमान का सौदा करना चाहता ह? यिद महाराणा पी सूय ही
अ त होने को आ गया तो संसार को उजाला देनेवाला कौन बचेगा? इस प क ये पं याँ ब त लोकि य ई,
िजनका उ रण आज भी राज थान म पुराने लोग देते ह—
अकबर समंदर अथाह, ितह डबा िहदू तुरक।
मेवाड़ो िवन माह, पोयण फल ताप सी॥
(अकबर अथाह समु ह िजसम िहदू-तुक सब डब गए, पर मेवाड़ का अिधपित राणा ताप कमल पु प क
समान उसक ऊपर शोभायमान ह।)
इस प क दो पं याँ और जो अकसर सुनी जाती ह, वे ह—
अकब रए इणबार दागल क सारी दुणी।
अण दागल असबार, रिहयो राणा ताप सी॥
(अकबर ने सार संसार को कलुिषत-कलंिकत कर िदया ह। ह अ ारोही राणा ताप! सदा िन कलंक बने
रहना।)
नीचे क पं का एक पा यांतर इस कार भी ह—
अण दागर असवार, चेतक राणा ताप सी॥
(िकतु चेतक घोड़ क सवारी करनेवाले राणा ताप िन कलंक बने रह।)
प क अंत म पृ वीराज ने राणा ताप से पूछा िक िजस कार सूय का प म से उदय होना असंभव ह, उसी
कार राणा ताप क मुख से अकबर क िलए बादशाह श द िनकलना भी असंभव ही ह। ह एकिलंग क दीवान,
आप मुझे िलखकर भेज िक या ऐसा आ ह? म अपनी मूँछ पर ताव दूँ या अपने शरीर को तलवार क भट कर
दूँ (आ मह या कर लूँ)?
पातल जो पतसाह, बोलै मुख आ बयण।
िमहर पछम स माह, उम कासप राव उत॥
पटक मूँछा पाण, क पटक िनन तन करद।
दीजै िलख दीवाण, इन माँहली बात इक॥
पृ वीराज का प िमलने तक महाराणा अपनी िणक कमजोरी से उबर चुक थे और उ ह ने मुगल क साथ
संघष जारी रखने और मेवाड़ क वाधीनता बनाए रखने का अिडग िन य कर िलया था। इस प ने उनम और
भी उ साह भर िदया। उ ह ने दूत क हाथ अपना उ र भेजा—
तुरक कहासी मुख पत इण तन सूँ इकिलंग।
ऊगै जाह अगसी, ाची बीच पतंग॥
खुशी त पिथल कमध, पटको मूँछां पाण।
पथरण ह जेत पतौ, कलमां िसरक वाण॥
(इस मुख से भगवा एकिलंग बादशाह को तुक ही कहलवाएँगे। सूय सदा पूव िदशा से ही उगेगा। ह वीर राठौर,
जब तक राणा ताप क तलवार मुगल क िसर पर ह, आप अपनी मूँछ पर ताव देते रह।)
यह सारी कहानी कहने-सुनने म भले ही िदलच प लगे, लेिकन एकदम मनगढत ह। पहली बात तो यह िक राणा
ताप क कोई बेटी नह थी, िफर उसक घास क रोटी िबलाव छीनकर कसे ले गया? घास क रोटी कसे बनती ह
और िबलाव घास क रोटी पसंद करता ह, यह भी अटपटा ही लगता ह। मेवाड़ क पवतीय वन म कई तरह क
फल-मूल उ प होते ह, िज ह भील बड़ शौक से खाते ह। अपने महाराणा क िलए ाण योछावर करने को त पर
भील या उनको और उनक प रवार को ये फल आिद नह दे सकते थे, जो उ ह घास क रोटी खानी पड़ती?
यह बात सच ह िक संसाधन क कमी थी। इसीिलए राणा ताप ने ब त बड़ी सेना का गठन नह िकया, लेिकन
जो छापामार सेना थी, वह भी तो ब त छोटी न थी। उसका वेतन, रसद आिद का बंध अगर राणा ताप नह करते
थे तो कौन करता था? भले ही ये युवक राणा क अंधभ या अन य देश मी रह ह , लेिकन यह िव सनीय नह
लगता िक वष तक उ ह ने िबना वेतन क संघष िकया। आिखर उनक प रवार भी ह गे िजनक िलए उ ह कम-से-
कम अिनवाय व तु क ज रत तो पड़ती ही होगी।
िजस परा म से ये छापामार युवक मुगल से लड़ते थे, उससे पता चलता ह िक वे ब त -पु और बली रह
ह गे। पया भोजन िमलने पर ही कोई सैिनक -पु रह सकता ह। अगर वे अपने दम पर भी पया भोजन कर
लेते थे तो या अपने महाराणा को घास क रोटी खाने देते?
राणा ताप ने आदेश जारी िकया था िक कोई भी िकसान, िजस े पर मुगल ने अिधकार कर िलया ह, वहाँ
फसल नह उगाएगा। उनक आ ा पाकर ब त से िकसान ने पवतीय देश म आकर जो थोड़ी-ब त धरती िमली,
उस पर खेतीबारी क । इनसे कहा गया िक अगर आपको अ क कमी हो तो राजक य भंडार से अ ले सकते
ह, यानी राणा क अपने भंडार म इतना अ था िक जा क आव यकता पर उसे िदया जा सक। उ र म
कभलगढ़ से लेकर दि ण म ऋषभदेव तक क 90 मील लंबे और पूव म देवरी से प म म िसरोही सीमा तक 70
मील चौड़ देश म राणा ताप का शासन था। इतने बड़ े म ब त लोग रहते ह गे। इन जाजन क अ क
कमी होने पर सहायता करने क मता राणा ताप म थी यानी उनक भंडार म भरपूर अनाज था और बाहर से
अनाज मँगाने क ज रए भी थे। इतने बड़ े क शासक को भोजन क कमी कसे हो सकती थी? यह और बात ह
िक राणा ताप अपनी ित ा क कारण िवलािसता का जीवन यतीत नह करते थे। उनका और उनक प रवार का
रहन-सहन, खान-पान सामा य जन जैसा ही था।
राणा ताप क शासनवाले इस े म सैकड़ गाँव पहाि़डय क बीच समतल भूिम म थे, जहाँ क िकसान
चावल, चना, मकई क खेती करते थे। यहाँ ाकितक जल ोत क भी कमी नह थी। अतः फसल अ छी होती
थी। कछ इितहासकार ने कहा ह िक चार तरफ से मुगल क नाकबंदी क वजह से ताप दाने-दाने को मोहताज
हो गए थे। अगर लाख क सेना थी तो इस पवतीय देश क चार तरफ से नाकबंदी नह कर सकती थी।
दरअसल मेवाड़ का उ र-पूव े ही मुगल सेना से िघरा आ था। शेष े उससे मु था और िसरोही, ईडर,
मालवा क तरफ से अ तथा आव यकता क अ य व तुएँ मँगाने क सुिवधा थी। अगर ऐसा नह होता तो चार
तरफ से िघरकर और दाने-दाने को मोहताज होकर कोई वष तक इतनी बड़ी मुगल सेना से ट र कसे लेता? या
तो वह आ मसमपण करता या िफर राजपूती परपरा क अनुसार श ु पर टट पड़ता। भले ही उनम से हरक यो ा
वीरगित ही य न पाता।
राणा ताप क राजकोष म राणा कभा और राणा साँगा क समय का ब त सा संिचत धन था जो उनक िव त
भामाशाह क देख-रख म सदा सुरि त रहा। उसक गंध तक मुगल को नह लगी। इसक अलावा वयं भामाशाह
क पास और राणा क अ य सामंत क पास भी अपने पुरख का कमाया पया धन था। या वे िफर भी महाराणा
और उनक प रवार को िवप अव था म रहने देते?
मेवाड़ क अलावा मेवाड़ क बाहर भी उनक ब त से िम थे। वयं अकबर क दरबार म रहनेवाले कई राजपूत
भी राणा क शंसक ही नह ब क भ थे। आव यकता पड़ने पर वे भी उनक गु सहायता कर सकते थे। राणा
ने अकबर क िव जो इतना लंबा संघष करक मेवाड़ को सदा वतं रखा और राजपूती आन क र ा क ,
उसक िलए संभव ह िक अकबर क दरबार क कछ राजपूत से भी उ ह िकसी-न-िकसी कार क गु सहायता
िमलती रही हो।
टॉड ने अपने राजपूताना क इितहास म इस घटना का वणन िकया ह, लेिकन यह नह बताया िक ऐसी जानकारी
उ ह कहाँ से िमली, जबिक िकसी भी अ य इितहासकार ने इसका वणन नह िकया। राणा ताप क संिध-प
िलखने क दंतकथा अव य ह, पर यह भी का पिनक ही लगती ह। अगर उ ह ने कभी स ा अकबर को कोई
संिध-प िलखा होता तो या अकबर क दरबार क मुसिलम इितहासकार इसका िज न करते?
दरअसल, राणा ताप को मुगल से दबने या संिध करने क कोई आव यकता नह थी। मेवाड़ क पवतीय देश
पर उनका सदा अिधकार रहा, जहाँ राणा ताप व उनक सभी सामंत एवं उन सबक प रवार पूण सुर ा म रह। इन
दुगम देश म मुगल क घुसपैठ संभव न थी, न ही उ ह या उनक सामंत को कभी िकसी चीज का अभाव रहा।
सवाल उठता ह िक जब वा तिवकता यह थी तो िफर मेवाड़ क इस तापी महाराणा क इतनी दयनीय थित
क आधारहीन कहानी कसे फली, जो टॉड क कान तक प ची और उ ह ने उसे इितहास बना िदया? अकबर
अपनी सारी श लगाकर भी राणा ताप को झुका नह सका था। मेवाड़ क वाधीन रहने से मुगल सा ा य को
इतना नुकसान नह हो रहा था, िजतनी उसक अह को चोट प ची थी। ऐसा लगता ह िक इस असफलता से हताश
अकबर क घायल अह क तुि क िलए कछ चाटकार ने ऐसे िक से गढ़कर स ा को सुनाए िक आपक सेना
से चार तरफ से िघरकर ताप दाने-दाने को मोहताज हो गया ह। उसक प रवार को रोटी तक नसीब नह होती। वह
आपक भेजे िसपहसालार से बचने क िलए जंगल म मारा-मारा िफर रहा ह आिद। इसक अलावा और भी
कहािनयाँ िविभ प म चिलत हो गई।
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देवीर पर महाराणा का अिधकार


मेवाड़ को यथाश उजाड़कर और राणा ताप को पकड़ने क यथ य न से थककर शाहबाज खाँ अकबर क
पास सीकरी लौट गया था। पाँच महीन तक इतनी बड़ी सेना क साथ मेवाड़ क वन-पवत क खाक छानकर भी
उसक हाथ कछ न लगा था, िसवा अंजर-बंजर सी धरती और जले ए या टट-फट खँडहर क। जो बची-खुची
नाग रक या ामीण क ब तयाँ थ ,उ ह शाहबाज खाँ क सैिनक ने उसक आदेश पर लूट-खसोट, आगजनी और
नरसंहार से उजाड़ डाला था।
ये सार समाचार िनरतर राणा ताप तक प च रह थे। अपनी मातृभूिम और ि य जा क दुदशा पर उनका मन
ब त यिथत था, पर श ु क अप रिमत सेना से सीधा टकराना संभव नह था। उनक सैिनक टकि़डयाँ मुगल को
दंिडत करने क िलए जहाँ-तहाँ उन पर आ मण करत , उनक रसद और अ य साम ी लूट लेत , लेिकन इससे
अिधक क साम य उनम न थी। इसक िलए एक बड़ी और श शाली सेना क आव यकता थी। ताप क पास
साधन ज र थे, पर सीिमत थे। रा य क आमदनी इतनी न थी िक िकसी बड़ी सेना का गठन िकया जाता, उसे
हिथयार से लैस िकया जाता और लंबे समय तक बनाए रखा जाता। संघष िकतना लंबा चलेगा, इसका भी कछ
अनुमान न था। आव यकता पड़ने पर समय-समय पर मेवाड़ क संिचत राजकोष से धन िनकाला जाता था, पर
उसक अपनी सीमाएँ थ , तो िफर बड़ी सेना क गठन क िलए धन कहाँ से आए? महाराणा इसी सोच म डबे रहते।
मेवाड़ का खजाना भामाशाह क देख-रख म था। वह हमेशा अपनी बिहय म आय- यय का िहसाब रखते थे।
अतः उ ह व तु थित क पूरी जानकारी थी। वे भी जानते थे िक िकसी बड़ी धनरािश क बल पर वेतनभोगी सेना
एक िकए िबना मेवाड़ का उ ार कराना संभव न होगा। भामाशाह कोषा य ही नह , वीर सेनानी भी थे। अपने
भाई ताराचंद को साथ लेकर भामाशाह ने मालवा क पास क मुगल अिधकत े को जमकर लूटा और एक बड़ी
धनरािश एक क । चमड़ क बड़-बड़ थैल म इन वण-मु ा , रजत-मु ा आिद को भरकर और घोड़ पर
लादकर वे मेवाड़ क तरफ रवाना हो गए।
राणा ताप उस समय चुिलया गाँव म थे। भामाशाह उनक सेवा म उप थत ए और उनक सामने लूटकर
एक क गई 20,000 वण मु ा , 2,500,000 पए तथा हीर-मोितय क ढरी लगा दी, िफर हाथ जोड़कर
िवनती क िक अ दाता, इस धन से सेना एक करक आप मेवाड़ को मुगल क अ याचार से मु कराएँ। ताप
उनक देशभ और याग से ब त भािवत ए, िकतु संकोचवश बोले िक यह तो आपक कमाई ह, इस पर मेरा
अिधकार नह । भामाशाह ने उ र िदया िक आपने सारा राजक य सुख-वैभव यागकर अपना जीवन मेवाड़ को
वाधीन रखने क संघष म लगा िदया ह। यह धन म उसी मेवाड़ क वाधीनता क िलए अिपत कर रहा , िफर
इसे लेने म आप संकोच य कर रह ह? उनक तक से िन र राणा ने अपनी वीकित दे दी। सेना क भरती और
अ -श क खरीद अिवलंब आरभ कर दी गई। रसद का भी भरपूर बंध िकया गया।
सेना क पुनगठन क बाद छोट-मोट थान पर राजपूत ने आसानी से अिधकार कर िलया। वहाँ क मुगल र क या
तो मार गए या उ ह ने इधर-उधर भागकर पास क मुगल थान म शरण ली। त जनता ने राहत क साँस ली।
राणा सोच रह थे िक िकसी ऐसे मुख थाने को चुना जाए, जो साम रक मह व का भी हो और जहाँ मुगल क
पराजय से उनक ित ा को गहरा आघात भी लगे। इसक िलए देवीर गाँव क थाने को चुना गया। वहाँ काफ
मुगल सेना थी। शाहबाज खाँ ने मेवाड़ से लौटते समय र ते म शहशाह अकबर क चाचा सुलतान खाँ को देवीर
का थानेदार िनयु िकया था। सुलतान खाँ बहादुर िसपहसालार था और उस थाने क र क सेना म भी शाहबाज
खाँ ने चुने ए सैिनक रखे थे। यह मह वपूण थाना देवगढ़ और गोयती क चौर ते पर था, जहाँ से होकर मेवाड़
जाने का रा ता था। अतः इसक सुर ा मुगल क िलए िवशेष मह व रखती थी।
सुलतान खाँ अपनी ताकत क घमंड म चैन क बंसी बजा रहा था। उसने देवीर गाँव म छोट-मोट दरबार का
माहौल बना रखा था, जहाँ महिफल चलती थ और िदन आमोद- मोद म यतीत हो रह थे। एक िदन ऐसी ही एक
महिफल जमी थी िक सुलतान खाँ को भेिदए ने आकर खबर दी िक राजपूत क एक फौज देवीर पर हमला करने
क िलए आ रही ह। उसने फौरन नगाड़ बजवाकर सारी सेना को इक ा िकया। वह एक यो य सेनापित था। िबना
कोई समय गँवाए उसने पूरी मोरचाबंदी कर दी और हमले का इतजार करने लगा, पर कोई हमला नह आ।
रतजगे से उसक िसपाही खीज गए थे। उ ह लगा िक शायद खबर गलत थी या राजपूत को हमला करने का
हौसला नह आ, लेिकन अनुभवी सुलतान खाँ ने जरा भी गफलत नह क । उसने सबको सावधान करने का स त
म िदया।
सुलतान खाँ ने सब तरफ हरकार और भेिदय को तैनात कर रखा था। सुबह पौ फटने से कछ पहले ही एक
और भेिदए ने आकर खबर दी िक राणा ताप खुद एक बड़ी सेना लेकर देवीर क तरफ बढ़ रह ह, तब तक
राजपूत सामने आ गए। रणभेरी बज उठी। नगाड़ बजे। सुलतान खाँ खुद हाथी पर बैठकर सेना का नेतृ व कर रहा
था। उसका हरावल द ता आगे बढ़ा तो राजपूत थोड़ा पीछ हट गए। सुलतान खाँ ने अपनी सेना को आगे बढ़कर
उ ह खदेड़ने का म िदया। जब उसक सैिनक जोश म अपने जमे ए मोरच से आगे आए तो राजपूत ने पूरी
श से उन पर हार िकया। यह ह दीघाटी का जवाब था, जहाँ मानिसंह ने ताप क सेना को उकसाकर अपने
सुरि त मोरच से बाहर िनकाला था।
आमने-सामने क लड़ाई म मुगल सेना ने बड़ी बहादुरी से हमले का मुकाबला िकया। सुलतान खाँ खुद आगे
आकर बड़ी वीरता से लड़ रहा था, तभी उसक बदिक मती से उसका हाथी घायल हो गया और िचंघाड़कर भागा।
सुलतान खाँ िफर भी िवचिलत नह आ। वह शी ही घोड़ पर सवार होकर आगे आया। राजपूत को ह दीघाटी क
बाद पहली बार एक बड़ी मुगल सेना से आमने-सामने लड़ने का अवसर िमला था। उनका जोश और आ ोश
अपने चरम पर था। मुगल क पैर उखड़ने लगे। बाक क कसर िपता क साथ कधे-से-कधा िमलाकर लड़ रह
अमरिसंह क भाले क एक तीखे हार ने पूरी कर दी। कहते ह िक अमरिसंह ने इतने जोर से वार िकया था िक
उसका भाला सुलतान खाँ क कवच को भेदता आ उसक शरीर क पार िनकलकर घोड़ क शरीर म जा धँसा।
घोड़ा और सवार दोन धड़धड़ाकर जमीन पर जा िगर।
अपने सेनापित को मरते देख मुगल क हौसले प त हो गए। िसपािहय को िजधर रा ता िमला, वे भाग खड़ ए।
देवीर थाने पर राणा का क जा हो गया।
इस बार म एक कथा यह भी चिलत ह िक यु समा होने पर अमरिसंह ने दम तोड़ते श ु सेनापित सुलतान
खाँ क शरीर से अपना भाला िनकाला और अपने हाथ से उसे पानी िपलाया। सुलतान खाँ ने अपने ाण लेनेवाले
युवक क तरफ देखा। उसक आँख म अपने श ु क िलए घृणा नह , शंसा झलक रही थी, िफर उसने सदा क
िलए आँख मूँद ल ।
देवीर क िवजय राणा क एक अ यंत मह वपूण िवजय थी। उनका अगला ल य कभलगढ़ को श ु क
अिधकार से मु कराना था। रा ते म उ ह ने पहले हमीरसरा पर अिधकार िकया और थोड़ा िव ाम करने क बाद
कभलगढ़ क ओर सावधानी से बढ़। उ ह याद था िक िकस तरह वयं उनक एक छोटी सी र क सेना ने
शाहबाज खाँ क इतने बड़ आ मण का ितरोध िकया था। अपना काफ नुकसान करने क बाद ही शाहबाज खाँ
कभलगढ़ जीत सका था। वह भी तोप म िव फोट हो जाने क दुघटना क कारण, लेिकन कभलगढ़ क मुगल सेना
ने अिधक ितरोध नह िकया और गढ़ आसानी से राजपूत क हाथ आ गया। देवीर म मुगल सेना क पराजय और
सुलतान खाँ जैसे िसपहसालार क मार जाने क खबर कभलगढ़ प च चुक थी, िजसने वहाँ क मुगल सेना क
हौसले प त कर िदए थे।
राणा का िवजय अिभयान जारी रहा। रा ते क मुगल अिधकत े को सरलता से जीतते ए वे चावंड प चे।
चामुंडा देवी का यहाँ एक अ यंत ाचीन मंिदर होने क कारण इस थान का नाम चावंड पड़ा ह। मंिदर जीण-शीण
अव था म था िजसे महाराणा ने िफर से बनवाया। कछ समय तक उ ह ने वह ठहरकर आगे क योजना बनाई।
शाहबाज खाँ ने जाते समय मेवाड़ क जीते ए इलाक क सुर ा क िलए 25 थाने बनाए थे और वहाँ पया
सेना रखी थी। इन थान को आव यकता पड़ने पर एक-दूसर क सहायता करने क िनदश भी उसने िदए थे। राणा
ताप ने दोबारा इन पर अिधकार करने क रणनीित बनाते ए यह िनणय िलया था िक शु आत छोट थान से नह ,
बड़ और मह वपूण थाने से क जाए। इसीिलए उ ह ने पहले आ मण और श -परी ण क िलए देवीर को चुना।
यह रणनीित ब त सफल रही। राजपूत क देवीर-िवजय क खबर पूरी अितरजना क साथ मुगल क अ य थान म
प च चुक थ । वहाँ भी सेना म आतंक फल गया था। देखते-ही-देखते िबना कड़ मुकाबले क राणा ताप क
सेना ने सभी थाने मु करा िलए। परािजत मुगल सैिनक जान बचाकर अजमेर तक भागे। ताप क सेना क
राजपूत युवक का खून खौल रहा था। एक लंबे अरसे से मुगल सैिनक क अपने िविजत े म लूटमार और
आगजनी क समाचार उनक कान तक प च रह थे। ितशोध क ाला म जल रह ये युवक अवसर क तलाश म
थे। अब मौका िमला तो उ ह ने हर मुगल थाने पर भरपूर श से हार िकया और जो भी श ु-सैिनक सामने
आया, उसे काटकर रख िदया।
डगरपुर क राव आसकरण और बाँसवाड़ा क राव ताप मेवाड़ क िम थे। मेवाड़ पर िकसी भी कार का
संकट आने पर वे परो प से महाराणा क सहायता करते थे। राजा भगवानदास कछवाहा ने उन दोन को डरा-
धमकाकर और लालच देकर अकबर क अधीनता वीकार करने को राजी कर िलया था। राणा ताप क िलए उ ह
वापस अपने साथ रखना आव यक था। मेवाड़ क सीमावत इन दोन रा य क श ु क अधीन रहने से सदा वहाँ से
खतरा बना रहता। उ ह ने पुराने मै ी संबंध क बात चलाकर उ ह दोबारा मेवाड़ क साथ िम ता क िलए कहा, पर
ये नह माने। एक बार मुगल क शरण म चले जाने क बाद उनक िलए ऐसा करना सरल न था। उनक िलए इस
बात पर िव ास करना भी किठन था िक मुगल क आ मण करने पर मेवाड़ क सेना उनक र ा कर पाएगी।
इन दोन रा य क साम रक मह व को देखते ए और संिध-वा ा क सभी यास िवफल हो जाने पर राणा ताप
ने एक सेना उन पर आ मण करने क िलए भेजी। यु म ये दोन परािजत ए और डगरपुर व बाँसवाड़ा मेवाड़
क अधीन हो गए।
स 1578 म सोम नदी क तट पर ए इस यु क प रणाम क बार म इितहासकार म मतभेद ह। कछ का
कहना ह िक रावल मान क नेतृ व म राणा ताप ने जो सेना भेजी थी, वह डगरपुर और बाँसवाड़ा को परा त करने
म स म थी, लेिकन उनक सहायता क िलए जोधपुर क राव चं सेन भी अपनी सेना लेकर आए थे। इनक अनुसार
यु म मेवाड़ क सेना को डगरपुर और बाँसवाड़ा पर अिधकार करने म सफलता नह िमली, जबिक उसक
यो ा बड़ी वीरता से लड़। मुगल ने भी अपने अधीन इन रा य क र ा क िलए भरसक यास िकया। यह संघष
लंबा चला था और लगता ह िक संभवतः अिनण त रहा, इसिलए कौन िवजयी आ इस बार म मतभेद ह। बहरहाल
राणा ताप को इसका एक प लाभ तो यह आ िक मुगल सेना बाँसवाड़ा और डगरपुर क सैिनक संघष म
उलझी रही, िजससे महाराणा को अपनी थित मजबूत करने और श बढ़ाने का अवसर िमल गया।
अकबर को राणा ताप क इस िवजय अिभयान क सार समाचार िमल रह थे। चाटकार क सुनाई कपोल
क पत कहािनय क कलई भी उस पर खुल चुक थी। अगर कल तक महाराणा ताप मुगल क डर से जंगल म
िछप रहा था और दाने-दाने को मोहताज था तो एकाएक उसम इतनी ताकत कहाँ से आ गई िक उसने छह महीने
क अंदर मुगल क जीते सार इलाक पर िफर से अिधकार कर िलया। एक सेना डगरपुर और बाँसवाड़ा िवजय क
िलए भेजी। उसक छापामार द ते मालवा क मुगल अिधकत े म आए िदन छापे मार रह थे।
स ा अकबर क िलए यह सब अस और अ यंत अपमानजनक था िक छोटा सा मेवाड़ इतने बड़ मुगल
सा ा य क श को ललकार और वष क यास क बावजूद वतं बना रह। ब त सोच-िवचार क बाद उसने
एक बार िफर शाहबाज खाँ को ही मेवाड़ पर चढ़ाई करने क िलए एक िवशाल सेना क साथ भेजने का फसला
िकया। उसक सहायता क िलए अकबर ने कछ चुने ए िसपहसालार , मीरजाद, मुह मद सैन, गाजी खाँ, अली
खाँ आिद को उसक साथ कर िदया। अकबर को लगा िक सै य श शायद मेवाड़ को पराभूत करने क िलए
पया नह । इसिलए इस बार शाहबाज खाँ को सेना क अलावा ब त बड़ी धनरािश भी दी, िजसक बलबूते पर
राजपूत सामंत को खरीदकर अपने साथ िमलाया जा सक। कछ िव ासघाितय को खरीदकर राणा का पता लगाया
जा सक िक वह कहाँ ह और िफर उस े को घेरकर उ ह िगर तार िकया जा सक। िपछली असफलता से
ु ध शहशाह अकबर ने इस बार अपने सेनािनय को धमक भी दी िक इस बार सफल नह ए तो कठोर दंड
िदया जाएगा।
15 िदसंबर, 1578 को शाहबाज खाँ अपना िवशाल लाव-ल कर और चुर धनरािश लेकर बड़ी उ मीद क साथ
महाराणा ताप क िव अपने दूसर सैिनक अिभयान पर िनकला। िपछले अनुभव क बावजूद वह मेवाड़ को
अधीन करने व राणा को िगर तार करने क सपने देख रहा था िक सफलता िमलने क बाद बादशाह सलामत उसे
िकतना बड़ा ओहदा दगे। राणा ताप को भी मुगल क िवशाल सेना क आने का समाचार िमल गया था। श ु से
सीधे संघष क रणनीित उ ह ने याग दी थी। अतः एक बार िफर वे मैदानी इलाका छोड़कर पवतीय वन देश म
चले गए, जहाँ से छापामार यु क ज रए अपना कम-से-कम नुकसान करक श ु को अिधक-से-अिधक नुकसान
प चा सकते थे।
शाहबाज खाँ ने आकर अपने सभी हार ए े िफर से जीत िलए। उसे िवशेष ितरोध का सामना नह करना
पड़ा। उसक बाद शाहबाज खाँ ने पहले क तरह ही राणा ताप को खोजने का यास िकया। करीब तीन महीने
मेवाड़ क जंगल क खाक छानी। राणा का पता बताने क िलए बड़-बड़ लोभन िदए, िजसक बदले म उसे जो भी
जानकारी िमली, गलत िमली। उसे पता नह था िक मेवाड़ का एक-एक िनवासी अपने राणा क िलए ाण दे सकता
ह। िनराश होकर वह बादशाह क पास फतेहपुर लौट गया। वहाँ जाकर उसने अपनी जीत क िक से अकबर को
सुनाए, पर वह अिधक भािवत नह आ, य िक वह जानता था िक यह कसी जीत ह और इसक बाद या
हािसल आ, लेिकन शहशाह खून का घूँट पीकर रह गया।
शाहबाज खाँ ने पहले क तरह लौटते समय जगह-जगह मुगल थाने िनयु कर िदए थे। सुर ा क तमाम बंध
करने क बाद ही वह मेवाड़ से हटा था, लेिकन उसक पीठ फरते ही पहलेवाला िसलिसला िफर आरभ हो गया।
राणा ताप क छापामार द त ने मुगल थान को जीतना, लूटना आरभ कर िदया। अगर श ु क कोई सैिनक टकड़ी
कह िदखाई देती तो अचानक हमला करक उसे मौत क घाट उतार देते और रसद आिद लूट लेत।े
देखते-ही-देखते मेवाड़ का ब त सा े उ ह ने मुगल से मु करा िलया। अकबर को लगा था िक शाहबाज
खाँ राणा ताप को पकड़ तो नह सका, लेिकन उसने राजपूत क श ीण कर दी ह। दरअसल शाहबाज खाँ
अपनी सारी बहादुरी मेवाड़ को उजाड़ने, आगजनी और ह या का बाजार गरम करने या देव ितमा को
ित त करने म िदखाता था। जो समाचार मेवाड़ से आ रह थे, उनसे अकबर समझ गया िक शाहबाज खाँ क
सैिनक काररवाइय क िक से अितरजनापूण ही थे। अकबर परशान हो गया। वह िकसी भी क मत पर मेवाड़ पर
अिधकार जमाना चाहता था, लेिकन वष क यास िवफल रह थे। आदमी का िकसी थित पर जब कोई वश न
चले तो वह दैवी सहायता पाने का यास करता ह। भले ही यह एक झूठा िदलासा ही य न सािबत हो। अकबर
एक बार िफर अजमेर गया और वहाँ वाजा क दरगाह पर जाकर दुआ माँगी। हालाँिक इससे पहले माँगी मेवाड़
िवजय क दुआएँ यथ सािबत ई थ ।
वाजा क दरगाह पर अ ूबर 1579 म दुआएँ माँगने, माथा टकने और चढ़ावे चढ़ाने क बाद अकबर सांभर
आया और वहाँ बैठकर मेवाड़ को कचलने क योजना बनाने लगा। उसक परशानी यह थी िक मेवाड़ अिभयान क
िलए अकबर को शाहबाज खाँ ही सबसे उपयु और यो य सेनापित लगता था, लेिकन बादशाह िनरीह नाग रक
पर अमानुिषक अ याचार करने और देव ितमा को खंिडत करने क उसक हरकत को पसंद नह करता था।
यह वह अकबर नह था िजसने कभी िच ौड़ म 30 हजार िनह थे नाग रक का नरसंहार िकया था और अपनी हार
जैसी जीत क खीज िमटाने क िलए मेवाड़ क जीते ए इलाक को उजाड़कर रख िदया था। अब अपने िवचार म
कह अिधक प रप हो चुका अकबर समझ गया था िक यिद भारत पर शासन करना ह तो िहदु को साथ लेकर
चलना होगा। िवशेष प से वीर राजपूत को। उनक धािमक भावना को कम स मान देकर और शेष िहदु पर
अ याचार करक थायी सा ा य क क पना करना मूखता ही होगी।
अकबर क सामने यही सम या थी। शाहबाज खाँ समझता था िक दमन-च चलाकर, घोर अ याचार करक
और िहदु क धािमक भावना को कचलकर ही उ ह वश म िकया जा सकता ह। उसने बादशाह को भी
समझाने क कोिशश क िक मेवाड़ को झुकाने का यही एक रा ता ह। कशल शासक और कटनीित अकबर
इससे सहमत नह आ, हालाँिक वह शाहबाज खाँ को एक यो य सेनानी मानता था। अतः एक बार िफर उसी को
महाराणा ताप क िव भेजने का िनणय िलया।
शाहबाज खाँ ने अकबर को भरोसा िदलाया िक इस बार मेवाड़ पर संपूण िवजय ा करक और घमंडी राजपूत
राणा ताप को आपक कदम म झुकाकर ही दम लूँगा। इस इरादे क साथ और पुराने कट अनुभव क बावजूद
ऊचे मंसूबे बाँधता आ शाहबाज खाँ नवंबर 1579 म तीसरी बार ब त बड़ी सेना लेकर मेवाड़ क िलए चल पड़ा।
शाहबाज खाँ ने मेवाड़ पर अिधकार करना आरभ िकया। इतनी बड़ी सेना लेकर ऐसा करना कोई मु कल काम तो
था नह । राणा अपने सामंत और अिधकांश सेना क साथ पुरानी यु नीित क अनुसार पवत क सुरि त देश म
चले गए थे। यह उनक आजमाई ई रणनीित थी, जो सदा सफल रही थी।
शाहबाज खाँ ने एड़ी-चोटी का जोर लगा िदया। जहाँ-जहाँ खबर िमली, राणा ताप को घेरने क िलए पागल क
तरह दौड़ा, लेिकन कछ हाथ नह लगा। कह तो रा ते म घात लगाकर बैठ राजपूत युवक क अचानक धावे का
सामना करना पड़ता, कह सँकर पहाड़ी रा ते पर भील क जहर म डबे बाण उसका वागत करते। हर बार उसे
गलत ही सुराग िमलता, ऐसा नह था, लेिकन जब तक शाहबाज खाँ अपनी सेना लेकर राणा क खोज म िनकलता,
पहाड़ क दुगम छोट रा ते से आकर कोई भील उ ह श ु क आने का समाचार दे देता।
एक अरसे तक यही चलता रहा। उसक बाद महाराणा ताप सोढ़ा क पवतीय े म चले गए। लोयाना क राव
धूला को यह समाचार िमला तो उ ह ने आकर महाराणा से अपना आित य वीकार करने क ाथना क । वह राणा
ताप क शंसक, देशभ और िव सनीय थे। राणा ताप ने सहष उनक बात वीकार कर ली। राव लूना ने
अपने दुग म महाराणा क रहने और सुख-सुिवधा का पूरा बंध कर िदया। कछ िदन बाद उ ह ने िवशेष अनुरोध
करक राणा ताप से अपनी पु ी का िववाह भी कर िदया।
इधर शाहबाज खाँ राणा ताप को जंगल म खोजता िफर रहा था। कभी कोई वनवासी, कभी कोई गड़ रया राणा
ताप का िशिवर कह देखे जाने क जानकारी देता, कभी कह , जहाँ वह अपने प रवार और सामंत क साथ देखे
गए। शाहबाज खाँ बार-बार असफल होने पर भी उधर भाग खड़ा होता िक कभी तो खबर स ी होगी, कभी तो
सफलता िमलेगी। एक ओर जहाँ सफल होने पर मान-स मान, ऊचा ओहदा और जागीर िमलने का लोभ था तो
दूसरी ओर असफल होने पर अकबर क कोप का भाजन बनना पड़ता। शाहबाज खाँ क मेवाड़ क िलए कच करते
समय बादशाह ने गु से म उसे और उसक साथ जाने वाले िसपहसालार को धमक दी थी िक खाली हाथ लौट तो
तुम सबक सर कलम करवा दूँगा। वह अपनी कोिशश म लगा रहा और साथ ही यथाश मेवाड़ को उजाड़ता
रहा।
अकबर को िनरतर शाहबाज खाँ क य न क समाचार िमलते रहते थे, ब क यह कहना अिधक उपयु होगा
िक उसक असफलता क समाचार िमलते रहते थे। उसका धैय समा हो गया। शाहबाज खाँ और उसक साथ
गए िसपहसालार को मेवाड़ अिभयान पर गए सात महीने से अिधक समय हो गया था और अभी तक उनक
सैिनक काररवाइय का कोई ठोस, िनणायक प रणाम सामने नह आया था। वह ब त झ ाया और उसने शाहबाज
खाँ को वापस लौटने क आदेश जारी कर िदए। बादशाह क आदेश का पालन करते ए 12 जून, 1580 को
शाहबाज खाँ उसक गु से का सामना करने क िलए दरबार म हािजर आ। अकबर ने इन सबक सर तो कलम नह
करवाए, पर उ ह उसक िझड़िकय और अपमान का सामना करना पड़ा।
ह दीघाटी क लड़ाई 21 जून, 1576 को ई थी और अब जून 1580 था। इस दौरान िकए गए मेवाड़ िवजय क
सार अिभयान िन फल सािबत ए थे, पर अकबर हार मानने वाल म से नह था। उसने अपने एक और यो य
िसपहसालार तम खान को इस काम क िलए चुना। उसे अजमेर का सूबेदार बनाया और एक बड़ी सेना उसक
अधीन करक मेवाड़ जीतने का काम स पा। लेिकन तम खान क िक मत म कछ और ही िलखा था। अजमेर क
सूबेदारी सँभालने और वहाँ क सुर ा यव था को अपने तरीक क चाक-चौबंद करने क बाद तम खान ने
मेवाड़ पर चढ़ाई क योजना बनानी शु क । वह जानता था िक िजस काम को तीन-तीन बार कोिशश करक
शाहबाज खाँ अंजाम नह दे सका, वह आसान न होगा। इसिलए वह अपना अिभयान पूरी तैयारी क साथ करना
चाहता था, तािक शहशाह क सामने शिमदा न होना पड़।
इससे पहले िक तम खान राणा ताप क िव कोई कदम उठाता, शेरपुरा क कछवाहा राजपूत ने िव ोह
कर िदया। तम खान एक सेना लेकर उस िव ोह को कचलने क िलए िनकल पड़ा। जून 1580 म दोन सेना
म भयंकर यु आ। कछवाहा राजपूत बड़ी वीरता से लड़ और उस यु म उ ह ने तम खान को मार िगराया।
तम खान क मरने क बाद अकबर ने बैरम खाँ क बेट अ दुरहीम खानखाना को अजमेर का सूबेदार बनाया
और मेवाड़ जीतने तथा राणा ताप को बंदी बनाने का काम उसे स पा। खानखाना मेवाड़ अिभयान पर जा चुका
था। उसे मेवाड़ क यु , वहाँ क भौगोिलक थित और राजपूत क यु - णाली क बार म पया अनुभव था।
उसने अपना पद सँभाला और मेवाड़ क िव सैिनक अिभयान क तैयारी क । खानखाना ने शेरपुरा को आधार
बनाया, य िक यह गाँव गोगूंदा क ब त करीब था। खानखाना ने थोड़ी र क सेना क साथ अपने प रवार को वहाँ
छोड़ा और अपना लाव-ल कर लेकर जून 1580 म उधर बढ़ा।
मुगल सेनापित ने यह तो सोचा िक गोगूंदा क िनकटवत गाँव को आधार बनाने से उसे अपनी सैिनक काररवाई
क संचालन म सुिवधा होगी, पर यही उसक एक बड़ी भूल थी।
राजकवर अमरिसंह छापामार यु क आँच म तपकर बड़ा आ था। िपता क साथ वह हर यु म मौजूद रहा
था। राणा ताप का पु उनक ही समान वीर और रणकशल था। उसक साथ युवा राजपूत क सेना थी, जो अपने
सेनापित का हर इशारा समझती थी। खानखाना ने शेरपुरा म पड़ाव डाला तो राणा ताप समझ गए िक उसका ल य
गोगूंदा ह। महाराणा उन िदन वह थे। खानखाना का सामना करने क अपनी रणनीित बनाने क बाद उ ह ने
अमरिसंह को समझाया, ‘‘अमर, मुगल सेना क आगे बढ़ने पर तुम अपने दल क साथ धीर-धीर पीछ हटना शु
कर देना। इसक समाचार िमलने पर खानखाना समझेगा िक तुम लोग हमेशा क तरह पहाड़ क शरण म जा रह
हो, िफर वहाँ क सँकर जंगली रा त से होते ए अवसर देखकर शेरपुरा पर धावा करना। इधर खानखाना क आने
पर म उसे छापामार यु म उलझाए रखूँगा। मेरी सेना जैसे-जैसे पीछ हटगी, वह आगे बढ़गा, तब थोड़ी सी र क
सेनावाले शेरपुरा को जीतना तु हार िलए आसान हो जाएगा। वहाँ तु ह काफ रसद और हिथयार का भंडार
िमलेगा। साथ ही मुगल सेना को शेरपुरा से िमलनेवाली आपूित भी बंद हो जाएगी।’’
महाराणा क रणनीित सफल रही। खानखाना ने पुराने अनुभव क आधार पर समझा िक राणा ताप हमेशा क
तरह जंगल म भाग रह ह। उसने उनका पीछा करने का अिभयान तेज कर िदया। महाराणा उसे छकाते ए ढोलान
क तरफ िनकल गए। इधर अमरिसंह ने शेरपुरा पर अचानक धावा बोलकर वहाँ क सारी रसद, श ागार आिद
लूट िलए। इसक साथ ही खानखाना क प रवार क बेगम को भी िगर तार कर िलया। राजपूत मुगल क तरह न थे
िक मिहला पर अ याचार करते। उनक साथ तिनक भी दु यवहार न आ। बंदी अव य बनाया गया, पर उ ह पूर
स मान क साथ रखा गया। अमरिसंह क मंशा तो कवल मुगल सेनापित पर दबाव डालने क थी, न िक उसक
बेगम का अपमान करने क । शेरपुरा अिभयान क सफलता और खानखाना क हरम को बंदी बनाने का समाचार
कवर अमरिसंह ने तुरत हरकार दौड़ाकर महाराणा को भेजा।
राणा ताप अपने पु क सफलता पर स ए, पर खानखाना क बेगम को बंदी बनाने क बात उ ह जरा
भी पसंद नह आई। उ ह ने तुरत संदेश भेजा िक खानखाना क य को पूर स मान क साथ उ ह लौटा िदया
जाए। इधर खानखाना सकते म आ गया था। उसने क पना भी न क थी िक राजपूत शेरपुरा पर आ मण भी कर
सकते ह। न ही िकसी को उनक इस तरफ बढ़ने क भनक तक िमली थी। अपने प रवार क सुर ा को लेकर
खानखाना का िचंितत होना वाभािवक ही था, तभी उसे खबर िमली िक एक दूत उसक हरम क सभी बेगम को
लेकर आया ह और उसक सामने उप थत होना चाहता ह। उस युवक ने खानखाना से मा माँगी और वादा िकया
िक भिव य म कभी भी ऐसी भूल नह होगी। खानखाना क बेगम ने जब राजपूत युवक क उनक ित आदर-मान
िदखाने क शंसा क तो खानखाना का किव दय भाविवभोर हो गया।
कहते ह खानखाना ने उस युवक को इनाम देना चाहा, लेिकन उसक िवन तापूवक इनकार करने पर उसे शक
हो गया।
‘‘तुम अमरिसंह हो?’’ अचानक खानखाना क मुँह से िनकला।
‘‘जी,’’ अमरिसंह आँख नीची करक इतना ही बोला।
उसे अपनी भूल पर प ा ाप हो रहा था।
इधर खानखाना ग द थे। जैसा िपता वैसा पु । आिखर म श ु ही । िफर भी िकसी दूत को भेजने क बजाय
खतर क परवाह न करक खुद आया। खानखाना ने उसका उिचत स कार करक भेजा। कहते ह िक उसक बड़ी
बेगम ने खास तौर से राजपूत बेट को आशीवाद और ढर सारी दुआएँ देकर िवदा िकया।
खानखाना महाराणा क उसक प रवार क ित आदर-मान से कत तो आ, लेिकन उसे बादशाह क ित अपने
कत य का भान भी था। वह एक यो य और बहादुर सेनापित था। उसने िफर से उन सब े पर अिधकार करना
आरभ िकया, जो राजपूत ने जीत िलए थे। इधर अकबर को शेरपुरा लौटाए जाने क सारी घटना का समाचार
िमला। बैरम खाँ क बहादुर बेट क िलए बादशाह क मन म स मान क भावना थी। उसने मन-ही-मन खानखाना क
कत य-पालन क सराहना क , लेिकन महाराणा क ित कत खानखाना को उ ह क िव लड़ने क धमसंकट
से बचाने का िनणय िलया। खानखाना को अजमेर क सूबेदारी से तो नह हटाया गया, पर उ ह मेवाड़ क िव
सैिनक काररवाई करने से मु कर िदया गया। शहशाह अकबर ने इस बार राजा भगवानदास क भाई जग ाथ
कछवाहा को राणा ताप क िव यु क िलए भेजने का फसला िकया। जग ाथ कछवाहा बादशाह का म
बजाने क िलए एक बड़ी सेना लेकर िदसंबर 1584 म चल पड़ा। वह वीर यो ा था, लेिकन राजपूत वाले और
कोई गुण उसम न था। िनरीह नाग रक क ह या करना, औरत एवं ब पर अ याचार करना, ब तयाँ उजाड़ना
जैसी वहिशयाना हरकत करक वह आनंिदत होनेवाला नर-िपशाच था। अपने से पहले क सभी मुगल सेनािनय
(मानवतावादी किव खानखाना को छोड़कर) क तरह वह भी यही समझता था िक अमानुिषक अ याचार और लूट-
खसोट मचाकर मेवाड़ क जा को अधीन िकया जा सकता ह। िजतना अिधक ये सेनापित दमन करते थे, उतनी ही
साधारण मेवाड़वािसय क मन म इनक ित घृणा बढ़ती थी और साथ ही अपने उ ारकता और इनक साथ संघष
करनेवाले राणा ताप क िलए इनक मन म ा-भ और गाढ़ी हो जाती थी। इसीिलए मेवाड़ का ब ा-ब ा
अपने महाराणा का अंधभ था, जो उनक िलए हसते-हसते ाण योछावर कर सकता था। जग ाथ कछवाहा
सिहत सभी मुगल सेनापितय ने इ ह लोग को धन का लोभ देकर या िफर डरा-धमकाकर राणा ताप का पता
मालूम करने क मूखता क थी। महाराणा प म म होते तो वे बताते थे िक अभी-अभी पूव म देखे गए ह। उ र
िदशा म कह होते तो तो दि ण म देखे बताए जाते थे।
जग ाथ कछवाहा ने भी राजपूत का कम ितरोध होने और अपनी िवशाल सेना क बल पर एक-एक करक
राणा ताप ारा जीते गए सभी मुगल थान पर िफर से अिधकार जमाया। मोही, मांडलगढ़, मदा रयामो आिद पर
अिधकार जमाने क बाद उसने वहाँ क सुर ा- यव था कायम क । इनम सबसे मह वपूण मांडलगढ़ था। जग ाथ
कछवाहा ने एक यो य और अनुभवी िसपहसालार सैयद राजू को उसक सुर ा का भार स पा और एक सुर ा-सेना
उसक मातहत कर दी। इसक बाद वह राणा ताप का पता लगाने क िलए जंगल -पहाड़ क खाक छानने लगा।
िजधर भी कोई सुराग लगता, वह सेना लेकर उस इलाक को घेर लेता और उसका च पा-च पा छान मारता, पर
प रणाम वही िनकला जो अब तक िनकलता आया था। महाराणा का कह भी कछ पता न चल सका।
दरअसल जग ाथ कछवाहा िकस तरफ आ रहा ह, इसक खबर महाराणा को बराबर िमलती रहती थी। वह
िच ौड़ क पवतीय े म चले गए थे, लेिकन इस बार हमेशा क तरह िकसी सुरि त थान म िछपे रहकर श ु
सेनापित क लौटने क इतजार म नह थे। थित बदल चुक थी। इन वष म जहाँ मुगल का अनुमान था िक राणा
ताप क श ीण ई ह और दबाव पड़ने पर उ ह आ मसमपण करना पड़गा, वहाँ उनक श बढ़ी थी।
कछ संसाधन तो उनक छापामार द त ने मुगल क िठकान पर आ मण करक लूट ए श , रसद वगैरह से
इक िकए थे, लेिकन इस बार भी संसाधन जुटाने म भामाशाह का योगदान ब त मह वपूण रहा। राणा ताप क
इस देशभ मं ी ने गुजरात क कछ बड़ धिनक से अ छ संबंध बना िलए थे। अपने जहाज पर िवदेश से माल
मँगाकर बेचनेवाले ये यापारी ब त धनवान थे और राणा ताप क ित उनक अगाध ा थी। इ ह ने मेवाड़ क
मुगल क िव संघष जारी रखने क िलए भामाशाह को चुर धन िदया, लेिकन साथ ही ताक द क िक इस बात
को िनतांत गु रखा जाए। उ ह डर था िक अगर अकबर को जरा सी भी भनक लग गई तो उनक खैर नह ।
भामाशाह जब भी गुजरात से कोई बड़ी धनरािश लाता, कभी उसे महाराणा क संिचत खजाने से िनकाली बताता
(खजाने का मुख वही था), कभी अपनी जोड़ी ई पूँजी बताता तो कभी मालवा क लूट का धन बताता।
एक तो इन संसाधन क कारण महाराणा क श बढ़ी थी, दूसरा मु य कारण उनक रणनीित थी। इन वष म
उ ह ने सदा यास िकया िक उनक सेना को कम-से-कम नुकसान प चे, श ु को यादा-से- यादा। अतः राणा
ताप ने जग ाथ कछवाहा क दूर िनकल जाने पर उसक जीते ए मुगल थान पर आ मण करक उ ह िफर से
अपने अधीन करना आरभ कर िदया। यह अ यािशत था और अभूतपूव भी।
राजपूत का यह दु साहस देखकर सैयद राजू ब त बौखलाया और एक बड़ी सेना लेकर उधर झपटा, पर राणा
ताप तो अपने दल-बल क साथ कह अ य हो गए थे। राणा क खोज म भटकते ए जग ाथ कछवाहा को
खबर िमली िक वे कभलगढ़ म ह। वह तुरत कभलगढ़ क तरफ बढ़ा। इधर सैयद राजू को भी यही समाचार िमला।
वह भी ताप को िगर तार करने क िलए कभलगढ़ क तरफ बढ़ा। इन दोन को राणा ताप तो नह िमले, पर
इनका एक-दूसर से कभलगढ़ म ज र िमलाप हो गया।
एड़ी-चोटी का जोर लगाने क बावजूद जग ाथ कछवाहा को भी कछ हािसल नह आ। दूसर क तरह उसने
भी अपनी खीज जीते ए े को उजाड़ने म िनकाली। इस मामले म वह पहले क मुसिलम िसपहसालार से भी दो
कदम आगे था। अकबर ने समझ िलया िक मेवाड़ को झुकाने क सभी यास यथ ही जाएँग।े उसने जग ाथ
कछवाहा को लौट आने का म िदया।
q
12

महाराणा का िवजय अिभयान


जग ाथ कछवाहा क जाते ही राणा ताप िफर सि य हो गए। उ ह ने मुगल ारा थािपत िकए गए थान को
िफर से जीतने क योजना बनाई तो सबसे पहले उनक सवािधक मह वपूण और सश थाने देवीर को चुना। इससे
पहले भी उ ह ने जब देवीर पर िवजय ा क थी तो उसक साथ ही बाक मुगल थानेदार क छ छट गए थे।
देवीर का थानेदार शाहनवाज खाँ एक कशल सेनापित और वीर यो ा था। उसक पास देवीर क र ा क िलए
पया सेना थी। अपनी ताकत क घमंड म वह सोच भी नह सकता था िक राजपूत देवीर पर हमला कर सकते ह।
उसक जानकारी क मुतािबक, महाराणा ताप और उनक सामंत अपनी सेना क साथ कह पहाड़ म दुबक ए थे।
एक अफवाह यह भी थी िक राणा ताप प रवारसिहत मेवाड़ छोड़कर कह और चले गए ह।
ये अफवाह राजपूत क िलए ब त उपयोगी िस ई, य िक जब देवीर पर आ मण िकया गया, शाहनवाज
खाँ पूरी तरह गािफल था। उसे अपनी सेना को यव थत करक मोरचा सँभालने का मौका भी नह िमला। थोड़ी देर
क भयंकर मारकाट से ही आतंिकत होकर मुगल सेना अपाहन क तरफ भागी जहाँ उसे शरण और सहायता िमलने
क आशा थी। राजपूत ने उन पर िनरतर हार करते ए, अपाहन तक उनका पीछा तो िकया ही, अपाहन पर भी
आ मण कर िदया। अपाहन क सेना ने कछ देर तो सामना िकया, िफर उसक भी पैर उखड़ गए। ितशोध क
आवेश म जल रह राजपूत ने मुगल सैिनक को काटकर रख िदया। यह मेवाड़ क जा पर िकए गए उनक
अ याचार का दंड था।
राणा ताप क िवजय-वािहनी इसक बाद कमलगीर क तरफ बढ़ी। देवीर और अपाहन क पराजय क खबर
तब तक कमलगीर प च चुक थ । दुगर क अ दु ा खाँ सावधान था और डरा आ भी। वह बड़ी बहादुरी से
लड़ा, लेिकन यु म मारा गया। कमलगीर क िवजय क बाद शेष थान को वतं कराना सहज हो गया। एक-
एक करक सभी ने हिथयार डाल िदए।
अकबर को ये सार समाचार िमल रह थे, पर इस बार उसने मेवाड़ क मुगल सेना क सहायता क िलए िकसी
बड़ िसपहसालार को िवशाल सेना क साथ नह भेजा। कई बार ऐसा करक अकबर ने उसका प रणाम देख िलया
था। इससे मुगल सा ा य क ित ा बढ़ने क बजाय उसे ध ा ही लगा था। अकबर क िसपहसालार ने मेवाड़
म जो नरसंहार, िव वंस और लूटमार क क य िकए थे, उनसे भी बादशाह िख था। उसे यह भी पता था िक वयं
उसक दरबार क ब त से राजपूत भी मेवाड़ क िव इन सैिनक अिभयान से िख थे।
मेवाड़ क िव सैिनक काररवाई न करने का एक और बड़ा कारण यह था िक स 1579 से 1585 तक
अकबर को उ र देश, बंगाल, िबहार और गुजरात म हो रह िव ोह का दमन करने म य त रहना पड़ा। ऐसे म
वह मेवाड़ क तरफ कोई बड़ी सेना नह भेज सकता था। अभी ये िव ोह पूरी तरह दबे भी नह थे िक पंजाब और
उ र-प म सीमा ांत म भी मुगल क िव िव ोह क ाला भड़क उठी। अकबर को इधर यान देना पड़ा।
िवशेष प से सीमा ांत क तरफ जहाँ क िव ोही कबाइिलय को िकसी बड़ी सेना क सहायता से भी कचलना
आसान न था। वे जाँबाज लड़ाक तो थे ही, वहाँ का दुगम पवतीय देश उ ह ाकितक सुर ा भी दान करता था।
प र थितयाँ बदल चुक थ । मुगल क िलए मेवाड़ क िव सैिनक काररवाई कराना किठन था तो अपनी
श बढ़ जाने क कारण राजपूत क िलए अपने मेवाड़ को उनक दासता से मु कराना अपे ाकत सरल हो
गया था। धीर-धीर लगभग सार मेवाड़ पर महाराणा ताप का अिधकार हो गया। महाराणा क सै य बल का अनुमान
इस बात से भी लगाया जा सकता ह िक जब वे जग ाथ कछवाहा और सैयद राजू क सैिनक काररवाइय का
सामना कर रह थे, तब राठौर ने लूना चावंिडया क नेतृ व म उसे अ छा अवसर समझकर ताप क िव िव ोह
कर िदया। महाराणा उस िवकट थित म भी िवचिलत नह ए और उ ह ने त काल मगरा क दि ण-प म म
जाकर राठौर को सबक िसखाना आव यक समझा। यु म लूणा चावंिडया बुरी तरह परािजत आ और उसक
बाद राठौर ने कभी मेवाड़ क िव िसर उठाने का साहस नह िकया। यह घटना 1585 क ह।
मुगल क आिधप य से मेवाड़ को मु कराने क इन िवजय-अिभयान का नेतृ व मु यतः अमरिसंह ने िकया
और हर मोरचे पर सफल रहा। महाराणा क िवजय-वािहनी ने जग ाथ कछवाहा क थािपत िकए 36 मुगल
थान पर अिधकार कर िलया। िच ौड़, मांडलगढ़ और उ र-पूव क कछ े को छोड़कर शेष सार मेवाड़ पर
अब महाराणा ताप का अिधकार था। मुगल सेनापितय क र अ याचार से मु पाकर मेवाड़ क जनसाधारण ने
राहत क साँस ली। जो लोग सुर ा क िलए अपनी जमीन और घर-बार छोड़कर पहाड़ म चले गए थे, वे िफर से
अपने-अपने पु तैनी घर म लौटने लगे।
मेवाड़-िवजय से िनवृ होकर राणा ताप ने आसपास नजर दौड़ाई, आमेर क कछवाहा वंश क ित उनक मन
म िवशेष रोष था। मानिसंह, उसक बाद उसक िपता राजा भगवानदास और चाचा जग ाथ कछवाहा ने मेवाड़ को
बड़ी िनदयता से तबाह िकया था। अकबर क हरम म जोधाबाई का डोला भेजकर और उसक साथ संिध करने क
बाद राजपूत क िव सैिनक काररवाइयाँ करक उ ह ने राणा क नजर म घोर अपराध िकया था, िजसका दंड
देने का अवसर अब आ गया था। इस समय मेवाड़ क पास पया सै य बल था, जबिक कछवाहा राजपूत को
मुगल सेना से सहायता नह िमल सकती थी, य िक अकबर ने सारी सै य श िव ोह का दमन करने म लगा
रखी थी। महाराणा क सेना ने आमेर क े पर आ मण िकए, मालपुर को लूटने क बाद पूरी तरह न कर
िदया, तािक उ ह पता चले िक िवनाश-लीला क पीड़ा या होती ह।
जैसा िक हम पहले उ ेख कर चुक ह, बाँसबाड़ा और डगरपुर सदा से मेवाड़ क िम थे, पर राजा
भगवानदास ने उ ह मुगल क श से भयभीत करक और अकबर क दरबार म ओहदे िदलाने एवं सुर ा का
आ ासन देकर मुगल क अधीन कर िलया था। महाराणा ने इनक िव सेना भेजकर दोन रा य को आसानी से
अपने अधीन कर िलया।
अब समय आ गया था जीत क खुशी मनाने का। िवजय-महो सव गोगूंदा म मनाया गया। एक िवशाल सभा म
वहाँ महाराणा ताप ने 13 वष क मुगल क िव संघष म साथ देनेवाले सभी सामंत से लेकर जनसाधारण तक
क ित आभार य िकया। उ ह ने अपने वीर सामंत को बड़ी-बड़ी जागीर देकर पुर कत व स मािनत िकया,
लेिकन इसक साथ-साथ राणा ताप अपने साधारण से साधारण सैिनक को भी नह भूल।े
यु म िजन सैिनक ने असाधारण वीरता का दशन िकया था, उन सबको भी पुर कार देकर स मािनत िकया
गया। जो यो ा वीरगित को ा ए थे, उनक प रवार को रा य क ओर से सहायता देने क त काल घोषणा
क गई। यु काल म उजड़ मेवाड़ क मैदानी इलाक को िफर से बसाने क िलए त काल कदम उठाने क घोषणा
भी इस सभा म ई। भूिमहीन िकसान को जमीन क प िदए गए, तािक वे खेती कर सक। िजन िकसान क प
यु काल म ई आगजनी म न हो गए थे या खो गए थे, उ ह नए प िदए गए।
धीर-धीर मेवाड़ क खोई ई खुशहाली लौटने लगी। खेती क ह रयाली िदखाई देने लगी और वष तक फ◌ूक
गई धरती पर िफर से िकसान क आवास िदखाई देने लगे। यापार तथा अ य यवसाय को ो सािहत करने क
िलए रा य क ओर से सहायता दी गई, तािक मेवाड़ क खोई ई संप ता लौट सक। जल क आव यकता पूरी
करने क िलए कएँ, बावि़डयाँ बनाने क िलए भी राजकोष से धन िदया गया। िश ा और वा य संबंधी कई
योजनाएँ लागू क गई।
मुगल क साथ इन 13 वष क सैिनक संघष म चावंड महाराणा ताप क गितिविधय का कई बार क रहा।
पवत से िघरा यह सुर य एवं सुरि त देश उ ह ब त ि य था। महाराणा ताप ने यह अपनी नई राजधानी बनाने
का िन य िकया। चावंड मेवाड़ क िम रा य क भी पास पड़ता था। िकसी भी कार का संकट आने पर वहाँ से
कम समय म सहायता/आपूित िमल सकती थी। इसक आसपास क धरती ब त उपजाऊ थी, जहाँ खेती करक
राजधानी और उसक आसपास क े एवं सेना क िलए खा ा क आव यकता पूरी क जा सकती थी।
चावंड म राजमहल एवं अ य भवन को यु कालीन- थाप य क नमूने कहा जा सकता ह। महाराणा ने अपना
महल चामुंडा देवी क ाचीन मंिदर क सामने बनवाया था। इसक िनमाण म महाराणा कभा और महाराणा उदयिसंह
क बनवाए भवन क थाप य कला क झलक तो ह, लेिकन यु कालीन- थाप य का पुट भी ह, यानी राजमहल
एवं महाराणा क अपने मुख सामंत क िलए बनवाए गए भवन क परखा ऐसी तैयार क गई थी िक सुर ा का
पूरा यान रह।
अपने और अपने सामंत क िलए भवन का िनमाण कराने क साथ-साथ महाराणा ताप ने जनसाधारण का भी
यान रखा। उ ह ने चावंड को नगर का प िदया तो वहाँ सामा य जन क आवास क िलए ब त से क े घर भी
बनवाए। राणा ताप क बाद ग ी पर बैठ महाराणा अमरिसंह क रा यकाल म स 1615 तक चावंड
िससौिदयावंशीय राजपूत क राजधानी रहा। आज यह िफर से एक गाँव रह गया ह, लेिकन यहाँ राजमहल एवं
अ य सामंत क हवेिलय क खंडहर ाचीन इितहास क गाथा सुनाते तीत होते ह।
मेवाड़ म शांितकाल आ गया था। वह वैभव व धन-धा य से प रपूण था। खेत म फसल लहलहाती थ । यापार-
वािण य उ ित पर था। यायि य महाराणा वयं सबक फ रयाद सुनते थे। िकसी क साथ अ याय या अनुिचत
यवहार क िशकायत िमलने पर तुरत अपराधी को दंिडत िकया जाता था। नैितकता का तर अब पहले से भी
उ त था, िजस कारण अपराध कम ही होते थे। ब त से अपराध तो अभाव क कारण ज मते थे और मेवाड़ अब
अभाव त न था।
महाराणा ताप ने कला और सािह य को भी ब त ो साहन िदया। किव और कलावंत न कवल राजदरबार म
पुर कत होते थे, उ ह भरण-पोषण क िलए सहायता भी उपल ध थी। इितहासकार का कहना ह िक न कवल
महाराणा क काल म, ब क उसक बाद भी चावंड म लिलतकलाएँ और सािह य फले-फले। उसका ऐसा
दीघकालीन भाव पड़ा िक राजधानी बनी रहने क दो शता दय बाद तक चावंड सािह य एवं कला का क
बना रहा।
शता दय से बाहरी आ मण म व त ए सार मेवाड़ का पुनिनमाण हो रहा था। अतः वा तुिश पय तथा
अ य कारीगर एवं सामा य िमक क िलए भी रोजगार क नए अवसर उपल ध ए। राजकोष भरपूर था और
महाराणा उदारता से जा क क याण क िलए खच भी कर रह थे।
मेवाड़ सुर ा क वातावरण म फल-फल रहा था, पर राणा ताप उसे िकसी बाहरी आ मण से पूणतः सुरि त
बनाने क य न म लगे रह। उ ह ने सेना को और सश बनाने पर यान िदया। मु य िठकान क मोरचेबंदी को
सु ढ़ िकया और िकसी संभािवत आ मण क थित म एक थाने क दूसर क साथ संपक करने व त काल
सहायता प चाने क यव था क ।
सौभा य से अकबर क तरफ से कोई भी आ मण मेवाड़ पर िफर कभी नह आ, पर उसक संभावना से कसे
इनकार िकया जा सकता था। संभवतः इसी कारण महाराणा ताप ने अपने िपता क राजधानी उदयपुर पर अिधकार
कर लेने क बाद भी चावंड को ही अपनी राजधानी बनाए रखा, जो उदयपुर क अपे ा अिधक सुरि त था। इतने
बड़ मुगल सा ा य से ट र लेकर अंततः िवजयी होना साधारण सफलता न थी, पर अंितम समय तक राणा ताप
को िच ौड़गढ़ क मुगल क अिधकार म रहने क पीड़ा सताती रही। मेवाड़ क ित ा और गौरव क तीक इस
दुग क ब त कड़ी सुर ा- यव था अकबर ने उसे जीतने क बाद ही कर दी थी। वहाँ एक बड़ी र क सेना थी।
महाराणा जानते थे िक िच ौड़ को जीतने क यास करने म ब त अिधक र पात होगा। अतः उ ह ने इसे ित ा
का न बनाने क बजाय मेवाड़ क पुनिनमाण पर यान देने को वरीयता दी।
राणा ताप ने लगभग यारह वष तक नविनिमत मेवाड़ पर शासन िकया। य िप उनक उ भी काफ हो गई
थी, पर िशकार खेलने का शौक बरकरार था। ऐसे ही िशकार क समय उनक पाँव म गहरा घाव हो गया। भील
घायल महाराणा को चावंड क राजमहल म ले आए। राजवै ने ब त य न िकए, लेिकन उनक दशा िबगड़ती
चली गई। महाराणा क िचंताजनक हालत क खबर िमलते ही दूर-दूर क मेवाड़ क सामंत भी चावंड म एकि त हो
गए, लेिकन कोई उपचार या ाथना काम नह आई। 19 जनवरी, 1597 को मेवाड़ को पराधीनता क अंधकार से
िनकालकर वतं ता क काश म लानेवाला उनका जीवनदीप बुझ गया।
सारा मेवाड़ शोक म डब गया। सारा राजपूत समाज अपना अनमोल र न खोकर त ध रह गया। राणा ताप का
सबसे बड़ा श ु स ा अकबर वाधीनता क इस पुजारी का दय से शंसक था। कहते ह िक शोकाकल अकबर
दरबार म चुपचाप बैठा था, तभी उसक दरबार क एक चारण दुरसा ने महाराणा ताप क महा याण से भाविव ल
राज थानी म एक छा पय सुनायाः
अण लेगा अण दाग,
पाग लेगो अण नाभी।
गो आड़ा गबड़ाय,
िजको बहतो धुर बायो॥

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नवरोजे रह गयो,
न तो आतशा न वली।
न गो झरोखा हठ,
जेथ दुिनयाण दह ी॥
गहलोत राणा जीती गयो,
दशन मूँद रशनां उसी।
नीशास मूक भ रया नयण,
तो मृत शाह ताप सी॥
(िजसने कभी अपने घोड़ शाही सेना म भेजकर दगवाए नह , िजसने िकसी क सामने अपनी पगड़ी झुकाई नह ;
जो सदा श ु क ित उपहास से प रपूण किव ही गाता रहा, जो देश क भार क गाड़ी अपने बाएँ कधे से ही
ख चने क श रखता था, जो कभी बादशाह क खुशामद म नौरोज म हािजर नह आ, सारी दुिनया म बादशाह
क िजस झरोखे क ब त ित ा थी, जो कभी उसक नीचे नह आया—ऐसा गहलौत महाराणा ताप िवजयी रहकर
संसार से िवदा आ। यह समाचार जानकर शहशाह अकबर ने दाँत तले जीभ दबा ली ह और उसक आँख म
पानी भर आया ह। ह महाराणा! तेर िनधन से ऐसा आ ह। )
भर दरबार म बादशाह क सामने उस श ु क ऐसी शंसा! चारण दुरसा आढ़ा का यह दु साहस देख चार ओर
स ाटा छा गया। सब दरबारी साँस रोककर अकबर क िति या क ती ा करने लगे िक उ ंड दुरसा को
बादशाह या सजा देता ह।
‘‘वाह, या बात ह! दुरसा, तुमने तो हमार िदल क बात को किवता म कह सुनाया। अपना छा पय एक बार
और पढ़ो।’’ अकबर क मुँह से िनकला।
उसने दोबारा किवता सुनी, जी भर क उसक और महाराणा क वीरता क शंसा क और चारण दुरसा को
भरपूर इनाम िदया।
िजस महाराणा क श ु भी उसक वीरोिचत गुण क इतने शंसक थे, उसक शंसक , अनुयाियय , प रजन क
मनोभाव या रह ह गे—इसक सहज ही क पना क जा सकती ह।
महाराणा ताप चले गए, पर अपनी शौयगाथा भारतीय इितहास क प पर वणा र म िलखवा गए।
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जीवन या ा
महाराणा ताप का ज म : 9 मई, 1549
अकबर का िच ौड़ पर आ मण : 23 अ ूबर, 1567
ताप का रा यािभषेक : 28 फरवरी, 1572
जलाल खाँ कोरची का संिध- ताव : िसतंबर 1572
मानिसंह का संिध- ताव : 1573
राजा भगवानदास का संिध- ताव : िदसंबर 1573
मानिसंह का मेवाड़ क िलए कच : 3 अ ैल, 1576
ह दीघाटी का यु : 21 जून, 1576
मानिसंह का गोगूंदा पर अिधकार : 23 जून, 1576 DevEduNotes.Com
राणा ताप का गोगूंदा पर िफर अिधकार : जुलाई 1576
अकबर का मेवाड़ अिभयान : 11 अ ूबर, 1576
अकबर का मेवाड़ से लौटना : 12 मई, 1577
शाहबाज खाँ का पहला मेवाड़ अिभयान : 15 अ ूबर, 1577
कभलगढ़ पर शाहबाज खाँ का अिधकार : 13 अ ैल, 1578
उदयपुर पर िफर से मुगल का अिधकार : 14 अ ैल, 1578
शाहबाज खाँ अकबर क सामने पेश : 17 जून, 1578
शाहबाज खाँ का दूसरा मेवाड़ अिभयान : 15 िदसंबर, 1578
शाहबाज खाँ का तीसरा मेवाड़ अिभयान : नवंबर 1579
तम खान का कछवाहा राजपूत से यु : जून 1580
अ दुरहीम खानखाना का मेवाड़ अिभयान : जून 1580
जग ाथ कछवाहा का मेवाड़ अिभयान : िदसंबर 1584
मेवाड़ मुगल से मु : 1885
महाराणा ताप का महा याण : 19 जनवरी, 1597

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