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समस्त लेखों/पाठों से संबंशित शकसी भी शववाद के शलए सबं ंशित लेखक शिम्मेदार होगा ।
शकसी भी शववाद का िूररसशडक्िन हल्द्वानी (नैनीताल) होगा ।
कापीराइट: उत्तराखण्ड मुक्त शवश्वशवद्यालय
प्रकािन वर्ष: 2016
सस्ं करण: सीशमत शवतरण हेतु
प्रकािक: कुलसशिव, उत्तराखण्ड मुक्त शवश्वशवद्यालय, हल्द्वानी, नैनीताल, उत्तराखण्ड -263139
समकालीन भारत एवं शिक्षा
Contemporary India and Education
BEDSEDE-A2
1.1 प्रस्तािना
1.2 उद्देश्य
1.3 विक्षा का अर्थ
1.3.1 विक्षा का विश्लेषणात्मक ि दािथवनक अर्थ
1.3.2 विक्षा का समाजिास्त्रीय ि राजनैवतक अर्थ
1.3.3 विक्षा का आवर्थक ि मनोिैज्ञावनक अर्थ
1.3.4 विक्षा का समग्र एिं िास्तविक अर्थ
1.4 विक्षा के कायथ
1.4.1 विक्षा के सामान्य कायथ
1.4.2 मानिीय जीिन में विक्षा के कायथ
1.4.3 सामावजक जीिन में विक्षा के कायथ
1.4.4 राष्ट्रीय जीिन में विक्षा में कायथ
1.5 विक्षा का विषय क्षेत्र
1.5.1 िैवक्षक समस्याएं
1.5.2 अध्ययन के विविष्ट क्षेत्र
1.6 सारांि
1.7 िब्दािली
1.8 स्िमूलयांकन हेतु प्रश्नों के उत्त्तर
1.9 संदर्थ ग्रन्र् सूची
1.10 वनबन्धात्मक प्रश्न
1.1 प्रस्तावना
मानि प्रकृ वत की सिोत्तम रचना है, जो अपने सार् कुछ जन्मजात िवक्तयााँ लेकर पैदा होता है।
विक्षा के द्वारा मानि की इन जन्मजात िवक्तयों का विकास, उसके ज्ञान एिं कला कौिल में िृवि
एिं व्यिहार में पररितथन वकया जाता है और उसे सभ्य, ससु स्ं कृ त एिं योग्य नागररक बनाया जाता है।
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यह कायथ मानि के जन्म से ही उसके पररिार द्वारा अनौपचाररक रूप से तत्पश्चात विद्यालय र्ेजकर
औपचाररक रूप से प्रारम्र् कर वदया जाता है। विद्यालय के सार्-सार् उसे पररिार एिं समदु ाय में र्ी
कुछ-न कुछ वसखाया जाता रहा है और सीखने - वसखाने का यह क्रम विद्यालय छोड़ने के बाद र्ी
चलता रहता है और जीिन र्र चलता है। अपने िास्तविक अर्थ में वकसी समाज में सदैि चलने
िाली सीखने वसखाने की यह सप्रयोजन प्रवक्रया ही विक्षा है। इस इकाई में आप विक्षा के विवर्न्न
अर्थ यर्ा-िावब्दक, सक
ं ु वचत, व्यापक, विश्लेषणात्मक, समग्र एिं व्यापक अर्थ से अिगत हो सकें गे
सार् ही इन अर्थ को पररर्ावषत करने िाले विवर्न्न दृवष्टकोणों के बारे में जान सके गें।
1.2 उद्देश्य
इस इकाई के अध्ययन के पश्चात् आप -
1. विक्षा के सकं ु वचत एिं व्यापक अर्थ को स्पष्ट कर सकें गे।
2. विक्षा के अर्थ को र्ारतीय दृवष्टकोण एिं पाश्चात्य दृवष्टकोण के आधार पर स्पष्ट कर सकें गे।
3. विक्षा के सामान्य, मानिीय, सामावजक, राष्ट्रीय जीिन में कायथ को पररर्ावषत कर सकें गे।
4. विक्षा के विषय विस्तार के आधार पर विक्षा की प्रवक्रया एिं स्िरूप को समझ सकें गे।
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उसके ज्ञान एिं कला-कौिल में िृवद्व एिं व्यिहार में पररितथन वकया जाता है और इस प्रकार उसे
सभ्य, ससु ंस्कृ त एिं योग्य नागररक बनाया जाता है। इसके द्वारा व्यवक्त एिं समाज दोनों वनरन्तर
विकास करते है।
विद्वान जे.एस. मैकेन्जी के िब्दों में:-व्यापक दृवष्ट से विक्षा जीिन पयथन्त चलने िाली प्रवक्रया है और
जीिन के प्रत्येक अनर्ु ि के द्वारा इसका विकास होता है।
शिक्षा का संकुशित अर्थ:-विक्षा के सक ं ु वचत या सीवमत अर्थ के अनसु ार विक्षा का अवर्प्राय,
बालक को विद्यालय में दी जाने िाली विक्षा से है। दसू रे िब्दों में संकुवचत अर्थ में विक्षा वकसी
समाज में एक वनवश्चत समय तर्ा वनवश्चत स्र्ान (विद्यालय) में सवु नयोवजत ढंग से चलने िाली िह
सोदेश्् य सामावजक प्रवक्रया है वजसके द्वारा मनष्ट्ु य की जन्मजात िवक्तयों का विकास, उसके ज्ञान एिं
कला - कौिल में िृवि एिं व्यिहार में पररितथन वकया जाता है, और इस प्रकार उसे सभ्य, ससु ंस्कृ त
एिं योग्य नागररक बनाया जाता है। इसके द्वारा व्यवक्त एिं समाज दोनों वनरन्तर विकास करते है।
विद्वान जे0एस0मेंकेंजी के अनसु ार- संकुवचत अर्थ में विक्षा का अवर्प्राय -हमारी िवक्तयों के
विकास एिं उन्नवत के वलए चेतनापिू थक वकए गये वकसी र्ी प्रयास से हो सकता है।
1.3.1 शिक्षा का शिश्ले षणात्मक ि दािथशनक अर्थ :-
शिक्षा का शिश्ले षणात्मकअर्थ:- विक्षा के विश्लेषणात्मकअर्थ को स्पष्ट करने के वलए मल ू र्वू मका
दािथवनकों, समाजिावस्त्रयों , राजनीवतिावस्त्रयों, अर्थिावस्त्रयों, मनोिैज्ञावनकों एिं िैज्ञावनकों ने अदा
की है और इन सबने विक्षा का संवक्षप्त वििरण प्रस्ततु कर इनके द्वारा उद्घावित तथ्यों के आधार पर
विक्षा के स्िरूप के ा समझने एिं पररर्ावषत करने का प्रयत्न वकया है।
शिक्षा का दािथशनक अर्थ:-दािथवनकों की दृवष्ट से विक्षा मनष्ट्ु य जीिन के अवन्तम उद्देश्य की प्रावप्त
का साधन होती है। और चवंू क मनष्ट्ु य जीिन के अवन्तम उद्देश्य के सम्बन्ध में दािथवनकों में मतैक्य
नहीं है अतः वनम्नवलवखत विवर्न्न पररर्ाषायें विक्षा के सम्बन्ध में दी गयी है।
जगतगुरू िक ं रािायथ की दृशि से -
विक्षा िह है जो मवु क्त वदलाये। (सः विद्या या विमक्त
ु ये)
स्िामी शििेकानन्द के अनुसार -
मनष्ट्ु य की अन्तथवनवहत पणू थता को अवर्व्यक्त करना ही विक्षा है।
यूनानी दािथशनक प्लेटो िरीर ि आत्मा दोनों के महत्ि को स्िीकार करते हैं तर्ा कहते हैं विक्षा
का कायथ मनष्ट्ु य के िरीर और आत्मा को िह पणू थता प्रदान करता है वजसके वक िे योग्य है।
यगु परू ु ष महात्मा गााँधी ने िरीर, मन और आत्मा, तीनो के विकास पर समान रूप से बल देते हुये
कहा है – “विक्षा से मेंरा अवर्प्राय बालक और मनष्ट्ु य के िरीर, मन तर्ा आत्मा के सिाांगीण एिं
सिोत्कृ ष्ट विकास से है”।
प्रकृशतिादी दािथशनक हरबटथ स्पेन्सर के अनस ु ार -
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“विक्षा का अर्थ अन्तःिवक्तयों का बाहृय जीिन से समन्िय स्र्ावपत करना है”।
प्रयोजनिादी मनष्ट्ु य को सामावजक प्राणी मानते है और यह मानते हैं वक विक्षा के द्वारा मनष्ट्ु य में
ितथमान में अनक ु ू लन करने एिं र्विष्ट्य के समाज का वनमाथण करने की क्षमता का विकास करना
चावहए। प्रयोजनिादी दािथशनक जॉन ड्यिू ी के िब्दों में – “विक्षा व्यवक्त की उन सब
योग्यताओ ं का विकास है, जो उसमें अपने पयाथिरण पर वनयन्त्रण रखने तर्ा अपनी सम्र्ािनाओ ं को
पणू थ करने की सामथ्यथ प्रदान करे ”।
1.3.2 शिक्षा का समाजिास्त्रीय ि राजनैशतक अर्थ –
शिक्षा का समाजिास्त्रीय अर्थ:- समाजिावस्त्रयों के मतानसु ार विक्षा एक सामावजक प्रवक्रया
मानी जाती है क्योंवक इनके अनसु ार समाज के अवस्तत्ि पर ही विक्षा का अवस्तत्ि वनर्थर करता है
इस दृवष्ट से विक्षा की वनम्नवलवखत पररर्ाषायें महत्िपणू थ र्वू मका वनर्ाती है यर्ा -
1. विक्षा एक उद्देश्यपणू थ एिं समायोजनपणू थ प्रवक्रया है।
2. विक्षा एक विकासात्मक प्रवक्रया है।
3. विक्षा एक गवतिील प्रवक्रया है।
4. विक्षा एक वद्वध्रिु ीय प्रवक्रया है।
5. विक्षा एक वत्रध्रिु ीय प्रवक्रया है।
6. विक्षा सांस्कृ वतकरण है।
7. विक्षा एक अनिरत चलने िाली प्रवक्रया है।
शिक्षा का राजनैशतक अर्थ - विक्षा के राजनैवतक दृवष्टकोण के अनसु ार विक्षा, राष्ट्र वनमाथण का
साधन है। राष्ट्र का वनमाथण , श्रेष्ठ नागररकों के वनमाथण से ही सर्ं ि है वजसके वलए विक्षा से यह
अपेक्षा की जाती है वक िह व्यवक्त के अन्दर राष्ट्रप्रेम उत्पन्न करे।
1.3.3 शिक्षा का आशर्थक ि मनोिैज्ञाशनक अर्थ –
विक्षा का आवर्थक अर्थ –
अर्थिावस्त्रयों के विचार में विक्षा एक उत्पादक प्रवक्रया है वजसमें विक्षा का िह आवर्थक वनिेि है
वजसके द्वारा व्यवक्त में उत्पादन एिं संगठन के कौिलों का विकास वकया जाता है और इस प्रकार
व्यवक्त, समाज और राष्ट्र की उत्पादन क्षमता बढ़ाई जाती है और इनका आवर्थक विकास वकया
जाता है।
शिक्षा का मनोिैज्ञाशनक अर्थ - मनोिैज्ञावनकों के विचार में मनष्ट्ु य एक मनोिारीररक प्राणी है जो
जन्म से कुछ िवक्तयां लेकर पैदा होता है। अतः विक्षा के द्वारा सिथप्रर्म इन िवक्तयों का विकास
होना चावहए। जमथन शिक्षािास्त्री पैस्टालॉजी के िब्दों में इसे वनम्न प्रकार पररर्ावषत वकया जा
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सकता है –“विक्षा मनष्ट्ु य की जन्मजात िवक्तयों का स्िार्ाविक, समरस एिं प्रगवतिील विकास
है।”
फ्रोबेल के अनुसार –“विक्षा िह प्रवक्रया है वजसके द्वारा बालक अपनी आन्तररक िवक्तयों को
बाहर कीओर प्रकि करता है।”
1.3.4 शिक्षा का समग्र एिं िास्तशिक अर्थ-
विक्षा के विषय में दािथवनकों, समाजिावस्त्रयों, राजनीवतिावस्त्रयों, अर्थिावस्त्रयों, मनोिैज्ञावनकों और
िैज्ञावनकों के वर्न्न-वर्न्न दृवष्टकोण है। उपरोक्त सर्ी दृवष्टकोणों से विक्षा की प्रकृ वत के विषय में ये
तथ्य उजागर होते है वक विक्षा एक सोद्देश्य, अविरल, गवतिील, ि विकास की प्रवक्रया है। उपयथक्त ु
दी गई सर्ी पररर्ाषाओ ं को यवद सार रूप में प्रस्ततु वकया जाये तो इसे वनम्न रूप में पररर्ावषत
करना चावहए -
विक्षा वकसी समाज में सदैि चलने िाली िह सोद्देश्य सामावजक प्रवक्रया है वजसके द्वारा मनष्ट्ु य की
जन्मजात िवक्तयों का विकास, उसके ज्ञान, एिं कला - कौिल में िृवि तर्ा व्यिहार में पररितथन
वकया जाता है और इस प्रकार उसे सभ्य, ससु ंस्कृ त एिं योग्य नागररक बनाया जाता है। इसके द्वारा
व्यवक्त एिं समाज दोनों वनरन्तर विकास करते है।
विक्षा की उपरोक्त पररर्ाषा अपने आप में पणू थ एिं समवन्ित दृवष्टकोण समावहत वकए हुये है तर्ा
विक्षा के अर्थ को पयाथप्त रूप से स्पष्ट करती है।
स्िमलू याक
ं न हेतु प्रश्न
1. प्रत्येक प्राणी जन्म के बाद सिथप्रर्म पहला पाठ .......की गोद में पढ़ता है।
2. विक्षा के द्वारा ........................दोनों वनरन्तर विकास करते है।
3. विक्षा के द्वारा मनष्ट्ु य की जन्मजात िवक्तयों का विकास, उसके ज्ञान एिं कला-कौिल में
िृवि एिं ...........पररितथन वकया जाता है,
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विक्षा के कायथ
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मनष्ट्ु य को िावं त और यद्वु के समय व्यवक्तगत और सािथजवनक - दोनों प्रकार के सब कायों
को उवचत रूप से करने के योग्य बनाती है।
6. उत्तम नागररकों का वनमाथण- उत्तम नागररक, उत्तम राज्य का आधार स्तम्र् है। यही कारण है
वक प्रत्येक राज्य आिा करता है वक उसके नागररक-ईमानदार, पररश्रमी, देिर्क्त और
कतथव्य तर्ा दावयत्िों को र्ली प्रकार समझते हों तर्ा इन गणु ों का विकास विक्षा द्वारा ही
वकया जा सकता है।
7. सामावजक पररितथन, सधु ार, ि उन्नवत- समाज द्वारा बालक की विक्षा का आयोजन
इसवलए वकया जाता है, तावक बालक को न के िल समाज के अनक ु ू ल बनाये, िरन समाज
के वनयमों और वसद्वान्तों का ज्ञान प्राप्त करके उसका सधु ार करें और उसे उवचत वदिा में
आगे बढ़ायें। ड्यिू ी के िब्दों में -विक्षा में अवत वनवश्चत और अलपतम साधनों द्वारा
सामावजक औरसस्ं र्ागत उद्देश्यों के सार्-सार् समाज के कलयाण, प्रगवत और सधु ार में
रूवच का पवु ष्ट्पत होना पाया जाता है।
8. उपरोक्त पंवक्तयों में विक्षा के कुछ कायों का िणथन वकया गया है, परन्तु विक्षा का कायथ क्षेत्र
अवत व्यापक है। विक्षा की प्रवक्रया वस्र्र न होकर सदैि चलने िाली है।अतः विक्षा का
कायथ वनधाथररत करना आसान नहींहै।डा0 जावकर हुसैन के अनसु ार विक्षा का प्रमख ु कायथ
यह है - विक्षा का कायथ बालक के मवस्तष्ट्क को िद्वु , नैवतक और बौवद्वक मलू यों को
अनर्ु ि करने में इस प्रकार सहायता देना है वक िह इन मलू यों से प्रेररत होकर, इनको
सिोत्तम प्रकार से अपने कायथ और जीिन में प्राप्त करे।
1.4.2मानि जीिन में शिक्षा के कायथ
महान दािथवनक डा0 राधा कृ ष्ट्णन के अनसु ार- विक्षा को मानिीय होना चावहए। इसमें मात्र बौवद्वक
प्रविक्षण का ही स्र्ान नहीं होना चावहए िरन् आत्मानि ु ासन तर्ा हृदय की पवित्रता पर र्ी बल
वदया जाना चावहए।र्ारतीय समाज की ितथमान आिश्यकताओ,ं मलू यों, गणु ों, समस्याओ ं तर्ा
उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुये मानि जीिन के वनम्न कायथ है -
1. मानिीय आिश्यकताओ ं की पवू तथ - मानि जीिन में विक्षा के कायथ का महत्ि बताते हुये
स्िामी वििेकानन्द ने वलखा है - विक्षा का कायथ यह पता लगाना है वक जीिन की
समस्याओ ं को वकस प्रकार हल वकया जाय और आधवु नक सभ्य समाज का गम्र्ीर ध्यान
इसी बात में लगा हुआ है। विक्षा का कायथ व्यवक्त की आिश्यकता की पवू तथ करने के
अवतररक्त उसे समाज के अन्य व्यवक्तयों के सार् सामावजक सम्बन्ध स्र्ावपत करने में मदद
देना तर्ा ऐसे अिसर प्रदान करना है वजससे वक िह उन्नवत कर सके ।
2. आत्मवनर्थरता की प्रावप्त- विक्षा का एक महत्िपणू थ कायथ व्यवक्त को अपना जीिन-यापन कर
पाने में सक्षम बनाना है। स्िामी वििेकानन्द के अनसु ारहमें उस विक्षा की आिश्यकता
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हैवजसके द्वारा चररत्र का वनमाथण होता है मवस्तष्ट्क की िवक्त बढ़ती है, बवु द्व का विकास
होता है और मनष्ट्ु य अपने पैरों पर खड़ा हो सकता है।
3. व्यािसावयक कुिलता की प्रावप्त- मानि जीिन में विक्षा का एक कायथ, छात्रों को
व्यािसावयक कुिलता की प्रावप्त में सहायता प्रदान करना है। इससे राष्ट्रीय आय और
उत्पादकता में िृवद्व होती है।
4. िातािरण से समायोजन एिं पररितथन- विक्षा, व्यवक्त को िातािरण के सार् समायोजन
करना वसखाती है तर्ा िातािरण को पररितथन योग्य बनाती है।
5. जॉन ड्यिू ी के अनसु ार -विक्षा व्यवक्त में उन क्षमताओ ं का विकास है जो उसको अपने
िातािरण को वनयंवत्रत तर्ा अपनी र्ािी सम्र्ािनाओ ं को पणू थ करने के योग्य बनाती है ।
6. जीिन के वलए तैयारी - विक्षा व्यवक्त को जीिन के संघषो से वनपिने के वलए तैयार करती
है। विलमॉि का कर्न है -‘‘ विक्षा जीिन की तैयारी है।’’ अब यवद विक्षा-जीिन की
तैयारी है, तो विक्षा का कायथ है - बच्चों को जीिन की कवठनाई ि संघषो का सामना करने
हेतु तैयार करना। विक्षा के इस कायथ पर अपने विचार व्यक्त करते हुये स्िामी वििेकानन्द ने
वलखा है -‘‘ यवद कोई मनष्ट्ु य के िल कुछ परीक्षायें पास कर सकता है। और अच्छे
व्याख्यान दे सकता हो तो आप उसको विवक्षत समझते है। क्या िह विक्षा,विक्षा कहलाने
के योग्य है, जो सामान्य जनसमहू को जीिन के सघं षथ के वलए अपने आप को तैयार करने में
सहायता नही देती है, और उनमें िेर का सा साहस उत्पन्न नहीं करती है।’’
7. कायथ का व्यिहाररक ज्ञान - विक्षा का अवन्तम और महत्िपणू थ कायथ है - बालकों को
विवर्न्न कायथ क्षेत्रों का व्यिहाररक ज्ञान देना। हमारे देि की विक्षा व्यिस्र्ा में वसिातं पर
आिश्यकता से अवधक बल वदया जाता है फलतः बालक को जीिन के वकसी र्ी कायथ-
क्षेत्र का व्यिहाररक ज्ञान नहीं प्राप्त होता है।
अन्ततः हम कह सकते है वक मानि जीिन में विक्षा का कायथ समाज के सदस्यों की उन सब
िवक्तयों, क्षमताओ ं ि गणु ों का विकास करना है, जो उनमेंह,ै वजससे वक िे वनवदथष्ट लक्ष्य की ओर
बढ़ सकें ।
1.4.3 सामाशजक जीिन में शिक्षा के कायथ
चंवू क मनष्ट्ु य एक सामावजक प्राणी है, अतः समाज के सार् वनिाथह करने के वलए विक्षा को अनेक
कायथ करने पड़ते हैं। वजसमें सें कुछ कायथ मख्ु यतः वनम्नवलवखत हैं -
1. समाज के सार् अनक ु ू लन।
2. सामावजक कुिलता की उन्नवत एिं सधु ार।
3. सामावजक कतथव्यों की पवू तथ।
4. संस्कृ वत और सभ्यता का विकास।
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5. व्यवक्तगत वहत को सामावजक वहत से दरू रखना।
6. सामावजक र्ािना की जागृवत।
7. सामावजक गणु ों का विकास।
प्रत्येक व्यवक्त समाज में ही जन्म लेता है, समाज में ही पललवित होकर जीिन व्यतीत करता है और
समाज में ही उसकी जीिन लीला समाप्त हो जाती है। ऐसी वस्र्वत में विक्षा का महत्िपणू थ कतथव्य हो
जाता है वक बालकों में सामावजक र्ािना जागृत करे, उनमें दया, परोपकार, सहनिीलता, सौहादथ,
सहानर्ु वू त, अनि ु ासन इत्यावद सामावजक गणु ों का विकास करे।
एच0गाडथन के अनसु ार- विक्षा को यह जानने की आिश्यकता नहींहै वक िह सामावजक प्रवक्रया को
उन व्यवक्तयों के सम्मख
ु लाने की वदिा में आगे बढ़े जो इसके वलए अयोग्य हैं।विक्षा समाज को
वदिा देती है। ओिािे के अनसु ार- यह वनःसंदहे सत्य है वक सामावजक पररितथन में विक्षा को एक
महत्िपणू थ कायथ करना पड़ता है।
1.4.4 राष्ट्रीय जीिन में शिक्षा के कायथ
वकसी राष्ट्र का उत्र्ान एिं पतन उसके व्यवक्तयों की श्रेष्ठता ि हीनता से वनधाथररत होता है।
मैकाइिर एिं पेज के अनस ु ार- ‘‘ राष्ट्र का गणु , उसकी सामावजक इकाइयों का गणु है, अर्ाथत
सामावजक इकाइयों का सामवू हक जीिन ही राष्ट्रीय जीिन है। यवद ईधन ही खराब है तो ज्योवत कै से
तेज हो सकती है - अर्ाथत यवद सामावजक इकाइयााँ वनबथल है, तो राष्ट्र कै से दैदीमायमान हो सकता
है”।
राष्ट्र की उन्नवत तर्ी हो सकती है, जब उसके नागररक श्रेष्ठ हों। उनको ऐसा बनाना ही राष्ट्रीय जीिन
में विक्षा का कायथ है।
1. नेतृत्ि के शलए प्रशिक्षण - राष्ट्रीय जीिन में विक्षा का मख्ु य कायथ है - व्यवक्तयों को इस
प्रकार प्रविवक्षत करना है वक िे सामावजक, राजनीवतक, औद्योवगक और सांस्कृ वतक क्षेत्रों
में नेतत्ृ ि का कायथ कर सकें ।
2. कुिल श्रशमकों की पूशतथ - राष्ट्रीय जीिन में विक्षा का कायथ - कुिल श्रवमकों की पवू तथ
करना है। ऐसे श्रवमक व्यापार और उद्योग के उत्पादन को बढ़ायेंगे। फलतः राष्ट्रीय सम्पवत्त
में िृवद्व होगी।
हुमाय,ूाँ कबीरके अनसु ार -‘‘ विवक्षत श्रवमक अवधक उत्पादन में योगदान देंगे और इस
प्रकार उद्योग तर्ा व्यिसाय - दोनों की अवधक उन्नवत होगी”।
3. राष्ट्रीय एकता का शिकास - विक्षा का कायथ राष्ट्रीय एकता का विकास करना है।
विवक्षत व्यवक्त के सोचने का क्षेत्र व्यापक हो पाता है िह जावतिाद, साम्प्रदावयकता,
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अन्धविश्वास, क्षेत्रीयता आवद में विश्वास नहीं करता है तर्ा िह एक दसू रे के सार् र्ाई-चारे
का व्यिहार करता है तर्ा देि के वहत को सिोपरर समझता है।
जिाहरलाल नेहरू के अनसु ार - राष्ट्रीयता एकता के प्रश्न में जीिन की प्रत्येक िस्तु आ
जाती है। विक्षा का स्र्ान सबसे ऊपर है और यही आधारविला है।
4. भािात्मक एकता का शिकास - देि में राष्ट्रीय एकता स्र्ावपत करने के वलए
देििावसयों में र्ािात्मक एकता का विकास करना बहुत आिश्यक है। विक्षा हमारे चारों
ओर र्ािात्मक एकता का िातािरण वनवमथत करती है। नागररकों में उवचत संिेगो एिं एकता
का विकास करती है।
5. सांस्कृशतक शिरासत से सम्पकथ - राष्ट्रीय जीिन में विक्षा का प्रमख ु कायथ बालक को
राष्ट्र की संस्कृ वत के सम्पकथ में लाना है। विक्षा बालकों को उनके राष्ट्र की संस्कृ वत का ज्ञान
कराती है तर्ा देि की सस्ं कृ वत की विकास प्रवक्रया से अिगत कराती है।
डा0 जावकर हुसैन के अनसु ार - ‘‘के िल संस्कृ वत की सामग्री द्वारा ही विक्षा की प्रवक्रया को
गवत दी जा सकती है। के िल इसी सामग्री से मानि-मवस्तष्ट्क का विकास हो सकता है।‘‘
6. व्यशिगत शहत को सािथजशनक शहत से शनम्न रखना- राष्ट्रीय जीिन में विक्षा का एक
महत्िपणू थ कायथ है वक िह लोगों को ऐसा प्रविक्षण दे वक अपने वहतों को अपने समहू ,
समाज, देि ि राष्ट्र के वहतो से वनम्न समझे।
7. मनुष्ट्य को इस प्रकार प्रशिशक्षत करना है शक िह अनिु ावसत रहे ि हर प्रकार का
बवलदान करने के वलए तैयार रहे, तर्ी िह सािथजवनक वहत में योग देकर देि का कलयाण
कर सकता है।
8. योग्य नागररक का शनमाथण करना - विक्षा का कायथ प्रत्येक नागररक में उवचत नागररकता
का विकास करना है। विक्षा द्वारा प्रत्येक बालक में देिर्वक्त, अवधकारों और कतथव्यों को
समझने और वनर्ाने की क्षमता, देि की बागडोर सम्र्ालने की योग्यता इत्यावद को उत्पन्न
वकया जाता है।डा0 जावकर हुसनै के अनसु ार -’’प्रजातावन्त्रक समाज में यह आिश्यक है
वक व्यवक्त नैवतक और र्ौवतक दोनों प्रकार से समाज के जीिन को उत्तम बनाने के
सवम्मवलत उत्तरदावयत्िों को सहषथ स्िीकार करे ”।
अतः स्पष्ट है वक विक्षा मानिीय, सामावजक तर्ा राष्ट्रीय जीिन में अपने विवर्न्न कायों को
सम्पन्न करती है। ये सर्ी एक दसू रे से घवनष्ठ सम्बन्ध रखते है। इस सदं र्थ मेंबोशसगं जीका विचार है
वक- ‘‘ विक्षा का कायथ व्यवक्त और समाज के बीच ऐसा सामजं स्य स्र्ावपत करना है वजसमें व्यवक्त
अपने को मोड़ सके और पररस्र्वतयों को पनु थव्यिवस्र्त कर ले वजससे दोनों को अवधकावधक स्र्ाई
सन्तोष प्राप्त हो सके ”।
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स्िमूलयांकन हेतु प्रश्न
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‘‘ िैवक्षक समाजिास्त्र, समाजिास्त्र के वसिान्तों को विक्षा की सम्पणू थ प्रवक्रया पर वक्रयावन्ित करता
है। ’’
ओिािे ने िैवक्षक समाजिास्त्र को पररर्ावषत करते हुए कहा है:-
‘‘ िैवक्षक समाजिास़्त्त्र विक्षा और समाजिास्त्र के पारस्पररक सम्बन्धों का अध्ययन है।’’
शिक्षा मनोशिज्ञान - आज विक्षा की प्रवक्रया में बालक को बड़ा महत्ि वदया जाता है। उसके
िारीररक, मानवसक, संिेगात्मक एिं सामावजक विकास के आधार पर ही उसकी विक्षा व्यिस्र्ा
की जाती है। इन सबको समझने के वलए हमें मनोविज्ञान का सहारा लेना पड़ता है। मनोविज्ञान का
िह र्ाग वजसमें बालक के विकासक्रम, सीखने की प्रवक्रया और अन्य िैवक्षक समस्याओ ं का
अध्ययन वकया जाता है, उसे विक्षा मनोविज्ञान कहते है। इसके अन्तथगत बच्चों की प्रकृ वत उनकी
योग्यता, रूवचयों और अवर्रूवचयों तर्ा स्मृवत, विस्तृवत, वचन्तन और कलपना आवद िवक्तयों का
अध्ययन वकया जाता है। और विक्षा की प्रवक्रया में उनके उपयोग की सीमा वनवश्चत की जाती है।
विक्षा मनोविज्ञान में बच्चो की बवु ि और उनके व्यवक्तत्ि के विकास की विवधयााँ एिं उनके मापने
की विवधयााँ तर्ा सीखने की प्रवक्रया के स्िरूप, विवधयों एिं दिाओ ं का र्ी विस्तृत अध्ययन वकया
जाता है।
कोलसशनक महोदय के अनसु ार-
“विक्षा मनोविज्ञान विक्षा के क्षेत्र में मनोविज्ञान की खोजों और वसिान्तों का प्रयोग है”।
शस्कनर के अनसु ार -
“विक्षा मनोविज्ञान मानिीय व्यिहार का िैवक्षक पररवस्र्वतयों में अध्ययन है”।
शलण्डग्रेन के अनसु ार -
विक्षा मनोिैज्ञावनकों का सम्बन्ध तीन के न्र वबन्दओ ु ं से है और िह है -
i. विक्षार्ी
ii. सीखने का प्रक्रम
iii. सीखने की पररवस्र्वतयााँ
शिक्षा का इशतहास - ितथमान की रचना अतीत की उपलवब्धयों के आधार पर ही की जाती है,
इसवलए अतीत का अध्ययन आिश्यक होता है। विक्षािास्त्र के अन्तगथत हम विक्षा के इवतहास का
अध्ययन इसी दृवष्ट से करते है। जब तक हम आवद काल से लेकर अब तक विक्षा का जो स्िरूप रहा
है, उसकी जो व्यिस्र्ा रही है और उसके जो पररणाम रहे है, उस सबका विस्तृत अध्ययन नहीं करते
तब तक हम अपने वलए उवचत विक्षा की व्यिस्र्ा नहीं कर सकते। अतः विक्षािास्त्र में इस सबका
अध्ययन र्ी वकया जाता है।
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तुलनात्मक शिक्षा- आज मनष्ट्ु य के िल अपनी जावत के अनर्ु िों से ही लार् नहीं उठाता अवपतु
दसू रे देिों और राष्ट्रों के लोगों के अनर्ु िों से र्ी लार् उठाता है। विक्षािास्त्र के क्षेत्र में र्ी विवर्न्न
देिों की विक्षा प्रणावलयों का तल ु नात्मक अध्ययन वकया जाता है और उनके गणु दोषों का वििेचन
वकया जाता है। इससे हम अपनी पररवस्र्वतयों में अपने उपयोग की विक्षा व्यिस्र्ा का वनमाथण करने
में सफल होते है।
1.5.1 िैशक्षक समस्याएाँ
इसके अन्तगथत देि की ितथमान िैवक्षक समस्याओ ं पर विचार वकया जाता है और उनके समाधान के
तरीके ढूंढे जाते है। आज हमारे देि में मख्ु य िैवक्षक समस्याएाँ है -देि के सर्ी क्षेत्रों में विक्षा की
समान सवु िधाएाँ उपलब्ध कराना, विक्षा को व्यिसावयक स्िरूप प्रदान करना, धमथवनरपेक्ष राज्य में
धावमथक और नैवतक विक्षा का विधान करना तर्ा विक्षा का राष्ट्रीयकरण करना आवद। जब तक
विक्षािास्त्र के अन्तगथत ितथमान समस्याओ ं का अध्ययन कर उनके समाधान के तरीके नहीं सोचे
जाते तब तक इसे विकवसत नहीं कहा जा सकता।
िैवक्षक प्रिासन एिं संगठन- वनयवमत विक्षा की व्यिस्र्ा विद्यालयों में होती है, इसवलए
विक्षािास्त्र में इन विद्यालयों के संगठन और संचालन की विवधयों का अध्ययन र्ी वकया जाता है।
इसके अन्तगथत वजन तथ्यों का अध्ययन वकया जाता है उनमें से मख्ु य है –
विक्षा का सचं ालन वकसके हार् में है, राज्य का इसमें वकस प्रकार सहयोग है? समाज वकस
प्रकार सहयोग कर रहा है, विद्यालयों का वनमाथण कै से करना चावहए, विद्यालयो में विवर्न्न िैवक्षक
(पाठ्यचारी एिं सहपाठ्यचारी) वक्रयाओ ं का संगठन वकन वसिान्तों के आधार पर वकया जाए वक
उनसे अवधक से अवधक लार् उठाया जा सके , प्रधानाध्यापकों एिं अध्यापकों के गणु एिं कतथव्यों
और उनके आपसी सम्बन्धों को समु धरु बनाने के उपाय, बच्चों में अनि ु ासन उत्पन्न करने के उपाय,
बच्चों का प्रिेि, उनका िगीकरण औरउनकी उपलवब्धयों का मलू यांकन और कक्षोन्नवत, विद्यालयों
में बच्चों के स्िास्थ्य की रक्षा के उपाय और िैवक्षक एिं व्यिसावयक वनदेिन। इन सबके अध्ययन
से हम विक्षा की प्रवक्रया को सचु ारू रूप से चलाने में समर्थ होते है।
विक्षण कला एिं तकनीकी- विक्षण प्रवक्रया में सीखना और वसखाना दोनों वक्रयाएाँ आती है।
सीखना क्या है?इसकी विवधयााँ कौन-कौन सी है?उत्तम सीखना कब सम्र्ि होता है? इन सब प्रश्नों
के उत्तर हमें मनोविज्ञान देता है और उसके आधार पर वर्न्न-वर्न्न स्तरों के बच्चों को वर्न्न-वर्न्न
विषयों को पढ़ाने की कौन-कौन सी विवधयों का वनमाथण हुआ है?उनमें कौन सी विवधयााँ उपयोगी
है? और इन विवधयों को अपनाते समय क्या सािधावनयााँ बरतनी चावहए? इन सबकी चचाथ विक्षण
कला एिं तकनीकी के अन्तगथत की जाती है। अतः विक्षािास्त्र में इस सबका अध्ययन र्ी वकया
जाता है। वनयोवजत विक्षा को चलाने के वलए हमें इस सबका अध्ययन करना ही होता है।
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1.5.2 अध्ययन के शिशिि क्षेत्र
विक्षािास्त्र के क्षेत्र में अब नए-नए विषयों का विकास हो रहा है और उनका अध्ययन र्ी आिश्यक
समझा जाता है।जैसे - वििु विक्षा, बालविक्षा, प्रौढ़ विक्षा, स्त्रीविक्षा, व्यिसावयक विक्षा,
तकनीकी विक्षा, विक्षक विक्षा, पस्ु तकालय संगठन, िैवक्षक और व्यािसावयक वनदेिन, विक्षण में
दृश्य -श्रव्य सामग्री का प्रयोग, िैवक्षक तकनीकी, िैवक्षक वनयोजन, िैवक्षक वित्त, िैवक्षक मापन
और मलू यांकन, िैवक्षक सावं ख्यकी और विक्षा में अनसु ंधान आवद। इस सदं र्थ में हम यह स्पष्ट कर
देना आिश्यक समझते है वक आज से कुछ िषथ पहले तक इन सबका अध्ययन विक्षा के इवतहास,
िैवक्षक प्रिासन, विक्षा मनोविज्ञान और िैवक्षक तकनीकी के अन्तगथत ही वकया जाता र्ा, परन्तु
अब से अलग-अलग विषयों के रूप में विकवसत हो रहे है।
स्िमूलयाक
ं न हेतु प्रश्न
8. एजक ु े िन िब्द लैविन र्ाषा के ............... के िब्द से बना है।
9. विक्षा िह है जो ................. वदलाये। (जगदगरू ु िकं राचायथ)
10. .......... के अनसु ार, विक्षा िह प्रवक्रया है वजसके द्वारा बालक अपनी आतं ररक िवक्तयों
को बाहर की ओर प्रकि करता है।
11. विक्षा मनोविज्ञान मानिीय व्यिहार का ............. पररवस्र्वतयों में अध्ययन है।
1.6 साराांि
i. विक्षा, समाज में चलने िाली सीखने-वसखाने की सप्रयोजन प्रवक्रया है।
ii. विक्षा के अर्थ को विवर्न्न दृवष्टकोणों के आधार पर समझा जा सकता है वजनमें से प्रमख ु
है- िावब्दक अर्थ, सक ं ु वचत अर्थ, व्यापक अर्थ, विश्लेष्ट्णात्मक एिं समग्र अर्थ।
iii. विक्षा का कायथ मानि एिं समाज की आिश्यकताओ ं को ध्यान में रखकर वनधाथररत होता
है।
iv. विक्षा के इस प्रकार चार प्रमख ु कायथ है-सामान्य, मानिीय, सामावजक एिं राष्ट्रीय जीिन में
कायथ।
v. विक्षािास्त्र ज्ञान की िह िाखा है वजसमें विक्षा प्रवक्रया के स्िरूप एिं उसके विवर्न्न अगं ों
तर्ा समस्याओ ं का दािथवनक, समाजिास्त्रीय, राजनैवतक, आवर्थक, मनोिैज्ञावनक एिं
िैज्ञावनक दृवष्टकोणों से अध्ययन वकया जाता है।
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1.7 िब्दावली
प्रौढ़ विक्षा:-प्रौढ़ विक्षा उन लोगों के वलए चलाया गया एक अवर्यान र्ा, जो वकसी कारण से
विक्षा से िवं चत रह गये हैं।इसमेंउम्र की सीमा का कोई बन्धन नहीं र्ा।
तल ु नात्मक विक्षा- विक्षािास्त्र के क्षेत्र में र्ी विवर्न्न देिों की विक्षा प्रणावलयों का तल
ु नात्मक
अध्ययन वकया जाता है और उनके गणु दोषों का वििेचन वकया जाता है। इससे हम अपनी
पररवस्र्वतयों में अपने उपयोग की विक्षा व्यिस्र्ा का वनमाथण करने में सफल होते है।
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इकाई-2 शिक्षा के साधन: औपचाशिक, अनौपचाशिक एवं
शनिौपचाशिक
Agencies of Education: Formal, Informal and Non-
formal
2.1 प्रस्तािना
2.2 उद्देश्य
2.3 विक्षा के साधनों का िगीकरण
2.3.1 विक्षा के औपचाररक साधन
2.3.2 औपचाररक विक्षा की वििेषताएाँ
2.3.3 औपचाररक विक्षा के दोष
2.4 विक्षा के अनौपचाररक साधन
2.4.1 अनौपचाररक विक्षा की वििेषताएाँ
2.4.2 अनौपचाररक विक्षा के दोष
2.5 विक्षा के वनरौपचाररक साधन
2.5.1 वनरौपचाररक विक्षा की वििेषताएाँ
2.5.2 वनरौपचाररक विक्षा के दोष
2.5.3 विक्षा के औपचाररक, अनौपचाररक एिं वनरौपचाररक साधनों में अतं र
2.6 सारांि
2.7 िब्दािली
2.8 स्िमलू याक ं न हेतु प्रश्नों के उत्तर
2.9 संदर्थ ग्रन्र् सचू ी
2.10 वनबंधात्मक प्रश्न
2.1 प्रस्तावना
जब हम विक्षा को आजीिन चलने िाली प्रवक्रया के रूप में देखते हैं तो हम विक्षा के साधन के रूप
में वसफथ विद्यालय को ही नहीं देखते िरन् उन अनेक संस्र्ाओ ं को र्ी उसमें समवन्ित करते हैं, वजनमें
व्यवक्त जीिन पयथन्त रहता है एिं वजनसे व्यवक्त उपयोगी या अनपु योगी ज्ञान प्राप्त करता है। इन
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सस्ं र्ाओ ं को हम विक्षा के साधन के नाम से पक ु ारते हैं। विक्षा के साधन िह तत्ि, कारण या
संस्र्ाएं हैं, जो बालक पर परोक्ष या प्रत्यक्ष रूप से िैवक्षक प्रर्ाि डालते हैं। यवद हम व्यापक अर्थ में
देखें तो मनष्ट्ु य का सम्पणू थ िातािरण ही उसकी विक्षा को प्रर्ावित करता है, परन्तु इस िातािरण में
कुछ तत्ि अवधक महत्िपणू थ होते हैं। चवंू क इनका बालक की विक्षा से प्रत्यक्ष संबधं होता है। विक्षा
के साधनों का अर्थ स्पष्ट करते हुए बी.डी. र्ाविया ने वलखा है:-
‘‘समाज ने विक्षा के कायों को करने के वलए अनेक विविष्ट संस्र्ाओ ं का विकास वकया है। इन्हीं
सस्ं र्ाओ ं को विक्षा के साधन कहा जाता है।’’
2.2 उद्देश्य
इस इकाई के अध्ययन के पश्चात आप :
1. औपचाररक विक्षा की वििेषताओ ं को जान सकें गे।
2. औपचाररक विक्षा के दोषों को जान सकें गे।
3. अनौपचाररक विक्षा की वििेषताओ ं को जान सकें गे।
4. अनौपचाररक विक्षा के दोषों को जान सकें गे।
5. वनरौपचाररक विक्षा की वििेषताओ ं को जान सकें गे।
6. वनरौपचाररक विक्षा के दोषों को जान सकें गे।
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स्िमूलयांकन हेतु प्रश्न
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5. इसमें बालक स्ितत्रं िातािरण में विक्षा ग्रहण करता है। उसके ऊपर कोई कठोर वनयत्रं ण
नहीं होता है।
6. यह बालक की रूवच ि वजज्ञासा पर आधाररत होती है।
विक्षा के इन साधनों के संबधं में जॉन ड्यिू ी का कर्न सही है, ‘‘अन्य व्यवक्तयों के सार्
अनौपचाररक रूप से रहकर बालक विवक्षत होता है। यह प्रवक्रया बालक को विवक्षत करती है एिं
उसके अनर्ु िों को व्यापक ि प्रकावित करती है और उसकी कलपना को प्रेररत करती है, यह साधन
हमारे विचारों ि कर्नों को स्पष्ट एिं सही करते है एिं उत्तरदावयत्ि की र्ािना उत्पन्न करते है।’’
(The child is informally educated by living with others and the very process of
living together educates. It enlarge and enlighters experience, it stimulates and
enriches imagination, it creates responsibility, accuracy and civilness of
statement and thought.)
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की व्यिस्र्ा परू ी तरह से औपचाररक होती है, परन्तु इसके सार् ही इसमें विक्षा न तो पणू थतया
वनयंवत्रत होती है और न ही पणू थतया अवनयंवत्रत, िरन् यह इन दोनों का सवम्मश्रण है।
विक्षा की इस अिधारणा के अतं गथत विक्षार्ी कई क्षेत्रों में वनयंवत्रत होता है एिं कई क्षेत्रों में
अवनयंवत्रत होता है। इसमें प्रायः आय,ु स्र्ान, विक्षण विवध पर वनयंत्रण नहीं होता जबवक पाठ्यक्रम,
परीक्षा, समय आवद की सीमा वनवश्चत होती है।
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1. छात्र 1. वनवश्चत होते है। 1. सीखने िालों की आयु 1. छात्र वनवश्चत होते है।
(Student) 2. आयु सीमा वनधाथररत सीमा वनवश्चत नहीं होती।
होती है। 2. आयु सीमा पर कोई
वनयंत्रण नहीं होता।
2. अध्यापक 1. अध्यापक विवक्षत 1. अध्यापक कोई र्ी हो 1.विक्षा देने िाले ि
(Resource Person or होता है। सकता है। विक्षा ग्रहण करने िालों
Teacher) 2.अध्यापक वनवश्चत होता 2.अध्यापक वनवश्चत नहीं के मध्य कोई सबं धं
है। होता है। प्रत्यक्ष नहीं होता है।
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1. अंक या उपावध के रूप सर्ं ि नहीं है। व्यिस्र्ा है।
में वमलता है।
1. प्रिंसा के रूप में प्राप्त 1 अंक या उपावध के रूप
होता है। में वमलता है।
स्िमलू याक
ं न हेतु प्रश्न
8. अनौपचाररक विक्षा का प्रमख ु साधन संग्रहालय है। (सही/गलत)
9. अनौपचाररक विक्षा के प्रमखु साधन पररिार, पड़ोस, राज्य आवद है। (सही/गलत)
10. वनरौपचाररक विक्षा का पाठ्यक्रम वनवश्चत होता है। (सही/गलत)
2.6 साराांि
प्रत्येक विक्षा की एक संस्कृ वत होती है और इस संस्कृ वत का संरक्षण या रक्षा करने का दावयत्ि
विद्यालय का होता है, परन्तु इस संरक्षण के सार् ही सार् विद्यालय का यह दावयत्ि र्ी है वक िह
संस्कृ वत का मलू यांकन करे एिं उसकी अच्छी बातों को सरु वक्षत रखा जाये। विद्यालय का कायथ
बालक की तकथ कलपना, वचन्तन ि वनणथय िवक्त का विकास करना, वजससे बालक स्ितत्रं , स्पष्ट ि
तावकथ क रूप से वचन्तन कर सके । जबवक विद्यालय के द्वारा अनौपचाररक कायथ करने की अपेक्षा
समाज द्वारा की जाती है। विक्षा िास्त्री विद्यालय के औपचाररक कामों को अवनिायथ या प्रार्वमक
कायों की श्रेणी में रखते है। जैस-े बालक का िारीररक विकास करने का दावयत्ि पररिार पर है। परन्तु
पररिार के वलए यह सर्ं ि नहीं वक िह बालक का िारीररक विकास िारीररक वक्रयाओ ं के माध्यम
से कर सके । इस वजम्मेदारी को विद्यालय अच्छी तरह वनर्ा सकता है। पस्ु तकालय र्ी बालक के
चतथमु ख ु ी विकास में अपना योगदान देते है। एक अच्छा अध्यापक िही होता है, वजसके पास
वकताबों का र्ण्डार हो, वकताबों को इकट्ठा करना ि उनको छात्रों के वलए उपलब्ध कराना
अध्यापक की वजम्मेदारी होती है। अतः विक्षा के औपचाररक, अनौपचाररक ि वनरौपचाररक
विकास की वजम्मेदारी को अध्यापक महससू करें ि इन साधनों के द्वारा छात्रों का विकास करें।
2.7 िब्दावली
1. वनरौपचाररक विक्षा :. एक समय में बहुत अवधक लोगों को विवक्षत वकया जा सकता है।
अतः वजन देिों में जनसख्ं या तीव्र गवत से बढ़ रही है, िहााँ यह बहुत उपयोगी है।
2. औपचाररक विक्षा :- . औपचाररक विक्षा में विक्षा के उद्देश्य, पाठ्यक्रम, स्र्ान, समय,
अध्यापक आवद सवु नवश्चत कर वलए जाते है।
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2.8 स्वमूलयाांकन हेतु प्रश्नों के उत्तर
1. औपचाररक साधन - विद्यालय, पस्ु तकालय एिं संग्रहालय।
2. अनौपचाररक साधन - पररिार, समाज ि राज्य।
3. व्यािसावयक साधन - प्रेस, रेवडयो, समाचार-पत्र।
4. अव्यािसावयक साधन - खेल संघ, समाज कलयाण के न्र।
5 सत्य
6 सत्य
7 असत्य
8 गलत
9 सही
10 सही
2.9 सांदर्थ ग्रन्र् सूची
1. पाण्डे (डॉ) रामिकल उदीयमान र्ारतीय समाज में विक्षक अग्रिाल प्रकािन आगरा।
2. सक्सेना (डॉ) सरोज विक्षा के दािथवनक ि सामावजक आधार सावहत्य प्रकािनआगरा।
3. वमत्तल एमएल (2008) उदीयमान र्ारतीय समाज में विक्षक इण्िरनेिनल पवब्लविंग
हाउसमेरठ।
4. िमाथ रामनार् ि िमाथ राजेन्र कुमार (2006) िैवक्षक समाजिास्त्र एिलांविक पवब्लिसथ
एण्ड वडस्रीब्यिू सथ।
5. सलैक्स (डॉ) िीलू मैरी (2008) विक्षक के सामावजक एिं दािथवनक पररप्रेक्षय रजत
प्रकािन नई वदलली।
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इकाई 3: प्रकृशतवाद Naturalism
3.1 प्रस्तािना
3.2 उद्देश्य
3.3 प्रकृ वतिाद
3.3.1 प्रकृ वतिादी दिथन का अर्थ
3.3.2 प्रकृ वतिाद की पररर्ाषाएं
3.3.3 प्रकृ वतिाद के दािथवनक स्िरूप
3.4 प्रकृ वतिाद के प्रमुख वसिान्त
3.4.1 प्रकृ वतिाद ि विक्षा के उद्देश्य
3.4.2 प्रकृ वतिाद ि पाठ्यक्रम
3.4.3 प्रकृ वतिाद ि विक्षण विवधयां
3.5 प्रकृ वतिाद की प्रमुख वििेषताएं
3.6 विक्षा में प्रकृ वतिाद की देन
3.7 सारांि
3.8 िब्दािली
3.9 स्िमलू याक ं न हेतु प्रश्नों के उत्तर
3.10 सन्दर्थ ग्रन्र् सचू ी
3.11 वनबंधात्मक प्रश्न
3.1 प्रस्तावना
दिथन की समस्या के रूप में तत्ि की खोज तो अनावद काल से हो रही है और इसी आधार पर
दािथवनकों को समहू ों में बांि वदया गया है। जो एक तत्ि मानते हैं िे एकतत्ििादी अर्िा अद्वैतिादी,
जो दो तत्िों में विश्वास करते हैं िे वद्वतत्ििादी अर्िा द्वैतिादी और बहुतत्ि मानने िाले
बहुततत्ििादी कहलाते हैं। साधारणतया एकतत्ििादी विचारधारा ही प्रबल है। ब्रह्माण्ड का मल ू
कारण चेतन है अर्िा अचेतन? उसका रूप पौद्गवलक है अर्िा मानवसक? इन प्रश्नों का उत्तर यह
प्रकि कर देगा वक विचारक विचारिादी है अर्िा प्रकृ वतिादी। विचारिादी प्रत्ययों को िाश्वत
मानता है और उन सब प्रत्ययों का र्ी मल ू वकसी एक प्रत्यय को ही मानता है। यह मल ू तत्ि उसके
अनसु ार मानवसक है। यह तत्ि चेतन है। इस पर आधाररत विक्षा-प्रणाली उस विक्षा प्रणाली से वर्न्न
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होगी जो पद्गु ल को ही प्रर्म कारण मानते हैं और सार्-सार् उसे स्ियं प्रेरक, पररितथनिील और
प्रयोजनहीन मानते हैं। यह मल ू तत्ि पद्गु ल है और प्रयोजनहीन है तो विक्षा का उद्देश्य प्रयोजनिील
नहीं हो सकता। के िल जीवित रहने के योग्य बनाना ही विक्षा का लक्ष्य रहेगा।
एक प्रकृ वतिादी विचारधारा यांवत्रक र्ौवतकिाद से वमलती है। र्ौवतकिादी के वलए पद्गु ल मल ू तत्ि
है, मनस् है मवस्तष्ट्क उसकी वक्रया। पद्गु ल ही मनस् का उद्गम है, न वक मनस् पद्गु ल का प्रेरक। चेतना
इस मवस्तष्ट्क का उपफल है। र्ौवतकिादी संसार को एक यंत्र मानते हैं और उनके वलए जीवित प्राणी
तो के िल अण-ु परमाणु इत्यावद का जोड़ है। प्राकृ वतक चनु ाि के द्वारा उच्च प्रकार की चेतन-मिीनों
की उत्पवत्त संर्ि है। अतः र्ौवतकिावदयों के वलए मनष्ट्ु य एक यंत्र है। प्रयोजनहीन, लक्ष्यहीन और
वनमाथण की िवक्त से च्यतु मनष्ट्ु य के िल एक यंत्र है और मनोविज्ञान के वलए व्यिहारिादी िाखा इस
दिथन की देन है। व्यिहारिादी मनोविज्ञान के अनसु ार मनोविज्ञान मनष्ट्ु य के के िल बाह्य व्यिहार का
अध्ययन करता है और वजन्हें हम मानवसक वक्रयायें कहते हजैं िे के िल बाह्य उत्तेजन की प्रवतवक्रया
मात्र हैं। आत्मा और परमात्मा की मान्यता इस विचारधारा के अनसु ार नहीं के बराबर है। चािाथक का
मत र्ी इस विचारधारा से वमलता-जल ु ता सा ही है।
3.2 उद्देश्य
1. प्रकृ वतिाद के बारे में ज्ञान प्राप्त कर सकें गे।
2. प्रकृ वतिाद ि विक्षा के संबधं में जान सकें गे।
3. प्रकृ वतिादी दिथन के अर्थ का ज्ञान प्राप्त कर सकें गे।
4. प्रकृ वतिाद के दािथवनक रूपों का अध्ययन कर सकें गे।
5. प्रकृ वतिाद के प्रमख
ु वसिान्तों के बारे में जान सकें गे।
6. प्रकृ वतिाद की प्रमखु वििेषताओ ं के बारे में जान सकें गे।
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प्रकृ वत िह है जो सिथत्र तर्ा सिथदा विद्यमान है और इसकी गवतविवधयां वनवश्चत ि प्राकृ वतक वनयमों
द्वारा सचं ावलत ि वनयंवत्रत होती हैं। सार् ही इनका यह र्ी विचार है वक प्रकृ वत में अनेक पदार्थ होते
हैं वजनके परस्पर सहयोग से विवर्न्न प्रकार की रचनाएं जन्म लेती हैं। यह पदार्थ गवतिील ि
वक्रयािील होते हैं। इसी कारण प्रकृ वतिाद, र्ौवतकिाद र्ी कहा जाता है। दिथनिास्त्र में प्रकृ वत को
ही सिोपरर सत्ता के रूप में स्िीकार वकया जाता है परन्तु प्राकृ वतक दािथवनक विचारधारा बहुत ही
व्यापक रूप में प्रकृ वत को स्िीकार करती है। एक ओर तो िह प्रकृ वत को र्ौवतक जगत के रूप में
देखती है, वजसका हम प्रत्यक्ष दिथन कर सकते हैं तो दसू री ओर प्रकृ वत की व्याख्या जीि-जगत के
रूप में र्ी की जाती है। सार् ही तीसरे अर्थ में देि-काल की सभ्ज्ञी बातें र्ी प्रकृ वत में वनवहत होती
हैं।
3.3.1 प्रकृशतिादी दिथन का अर्थ (meaning of Naturalistic Philosophy)-
प्रो. सोले के अनसु ार प्रकृ वतिाद को नकारात्मक रूप से र्ली-र्ावं त समझाया जा सकता है। यह िह
विचारधारा है वजसके अनसु ार स्िार्ाविक या वनमाथण की िवक्त मनष्ट्ु य के िरीर को नहीं दी जा
सकती। प्रकृ वतिादी विचारक बवु ि का स्र्ान मानते हैं, पर कहते हैं वक उसका अर्थ के िल बाह्य
पररवस्र्वतयों तर्ा विचारों को काबू में लाना है जो उसकी िवक्त से बाहर जन्म लेते हैं। एक प्रकार से
प्रकृ वतिादी र्ी र्ौवतकिावदयों की र्ांवत आत्मा-परमात्मा, स्पष्ट प्रयोजन, इत्यावद की सत्ता में
विश्वास नहीं करते। प्रकृ वतिाद सभ्यता की जविलता की प्रवतवक्रया के रूप में हमारे सम्मख ु आया है।
इसके मख्ु य नारे ‘‘प्रकृ वत की ओर लौिो’’, ‘‘समाज के बंधनों को तोड़ो’’ इत्यावद हैं। सभ्यता का
लचीलापन समाप्त होने पर यह िाद जन्म लेता है। पर प्रकृ वत का अर्थ क्या है ? सर जान एडम्स ने
कहा है वक यह िब्द बड़ा ही जविल है। इसकी अस्पष्टता के कारण बहुत सी र्ल ू ें और अन्धकार
का फै लाि होता है। इसका अर्थ तीन प्रकार से वकया जा सकता है। प्रर्म अर्थ में प्रकृ वत का तात्पयथ
है वनवहत गणु और वििेषकर िे गणु जो जीिन के विकास और क्रमिः उन्नवत की ओर ले जाने के
वलए सहायक हों। यवद हम बालक को पढ़ाना चाहते हैं तो उसके विकास के वनयम हमें ज्ञात होने
चावहए। प्रकृ वत का इस प्रकार अर्थ करने का गौरि रूसो को प्राप्त है। डॉ. हॉल वजसे बाल-के वन्रत
विक्षा कहते हैं, उसे रूसो ने प्रेरणा दी र्ी, यद्यवप उससे पिू थ वक्िवन्िवलयन र्ी इसे जानता र्ा। इस
संदर्थ में हम कह सकते हैं वक प्रर्म अर्थ में प्रकृ वत का तात्पयथ बहुत कुछ स्िर्ाि से लगाया जाता
है।
प्रकृ वत का वद्वतीय अर्थ है बनािि के ठीक विपरीत। वजस कायथ में मनष्ट्ु य ने सहयोग न वदया िही
प्राकृ वतक है। यह सत्य है वक मनष्ट्ु य प्रकृ वत में अपनी वक्रयात्मकता से पररितथन लाया करता है। पर
इसका अर्थ बनािि तो नहीं है। क्योंवक उक्त पररितथन अप्राकृ वतक कै से हो सकता है, जबवक मनष्ट्ु य
स्ियं प्रकृ वत के कारण जीवित है और िह प्राकृ वतक प्राणी है। बस इसका अर्थ यह है वक हम आवद
काल की बात सोचने लगें। उस समय मनष्ट्ु य पिु र्ा अर्िा एक साधु अिस्र्ा में, इसका वनणथय
कवठन है। वफर एक चोर चोरी करने में क्या अपने स्िर्ाि का सहारा नहीं लेता ? वफर उसे सजा क्यों
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वमलती है ? क्या हमें बालक को मलू य प्रिृवत्त या सिं ेगों की विक्षा देनी है ? हम ठीक नहीं बता
सकते। हमारा हृदय के िल उपयक्त ु और हृष्ट-पष्टु मनष्ट्ु यों को ही जीवित रहने में सहायता पहुचं ाना
नहीं है िरन् आधे से अवधक मनष्ट्ु यों को जीवित रखने के योग्य बनाना है और हम यहां प्रकृ वत को
स्िार्ाविक तर्ा बनाििी दोनों ही रूपों में लेते हैं।
प्रकृ वत का तृतीय अर्थ है समस्त विश्व तर्ा उसकी वक्रया और इस अर्थ में मनष्ट्ु य जो कुछ र्ी करता
है िह प्राकृ वतक है। विक्षा में इसका अर्थ होगा विश्व की वक्रया का अध्ययन और उसे जीिन में उतार
देना। इसका अर्थ हुआ वक एक सस्ु त और कामचोर को र्ी इस प्रकार कहने का अिसर वमल सकता
है वक िह बहुत से कीिाणओ ु ं की र्ावं त स्िार्ाविक रूप से कायथ नहीं कर सकता। इस प्रकार वहसं क
प्रिृवत्त का व्यवक्त अपनी वहसं ात्मक कायथिावहयों को र्ी प्राकृ वतक कहने की धृष्टता कर सके गा। कुछ
विद्वानों का मत है वक मनष्ट्ु य को प्रकृ वत की विकासिादी श्रृख
ं ला में बाधक नहीं बनना चावहए िरन्
उसे उस वक्रया से अलग ही रहना ठीक है। विकास वकसी व्यवक्तत्ि के वबना नहीं हो सकता,
व्यवक्तत्ि वबना प्रयोजन काम नहीं कर सकता। इसवलए हमें कुछ विद्वानों के अनसु ार इस विकास के
वनयम का अध्ययन करना चावहए तर्ा प्रकृ वत का अनयु ायी हो जाना चावहए। विक्षा का उद्देश्य इस
विकास को समझाना तर्ा इसका अनयु ायी बनने में सहायता करना है। विक्षा सर्ं ि हो सके ,
इसवलए हमें बहुत सी बनाििी बातों पर र्ी बल देना होगा। इस प्रकार हमने देखा वक प्रकृ वत के अर्थ
का वनणथय कवठन है। वफर र्ी हम इस बात को जानते हैं वक हरबिथ स्पेसर तर्ा रूसो को प्रकृ वतिादी
माना जाता है।
3.3.2 प्रकृशतिाद की पररभाषाएं (Definition of Naturalism)
प्रकृ वतिाद की पररर्ाषा को हम वनम्न प्रकार समझ सकते हैं:-
जेम्स बाडथ- ‘‘प्रकृ वतिाद िह वसिान्त है, जो प्रकृ वत को ईश्वर से पृर्क करता है, आत्मा को पदार्थ
के अधीन करता है और अपररितथनीय वनयमों को सिोच्चता प्रदान करता है।’’
र्ॉमस और लेंग के अनसु ार- ‘‘प्रकृ वतिाद आदिथिाद के विपरीत मन को पदार्थ के अधीन मानता
है, और यह विश्वास करता है वक अवं तम िास्तविकता-र्ौवतक है, आध्यावत्मक नहीं।’’
जायस के अनसु ार- ‘‘प्रकृ वतिाद एक ऐसा दािथवनक तत्रं है, वजसमें प्रर्त्ु ि वििेषता के रूप में
आध्यावत्मक, अन्त ज्ञानात्मक एिं पदार्थ जगत से परे की अनर्ु वू तयों को बवहष्ट्कृत वकया जाता है।’’
पैरी के अनसु ार- ‘‘प्रकृ वतिाद, विज्ञान नहीं है, िरन् विज्ञान के बारे में दािा है। अवधक स्पष्ट रूप में
यह इस बात का दािा है वक िैज्ञावनक ज्ञान अवं तम है, वजसमें विज्ञान से बाहर या दािथवनक ज्ञान का
कोई स्र्ान नहीं है।’’
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ब्राइस के अनसु ार- ‘‘प्रकृ वतिाद एक प्रणाली है और जो कुछ आध्यावत्मक है, उसका बवहष्ट्कार ही
उसकी प्रमखु वििेषता है।’’
रस्क के अनसु ार- ‘‘प्रकृ वतिाद एक दािथवनक वस्र्वत है वजसे िे लोग अपनाते हैं, जो दिथन की
व्याख्या िैज्ञावनक दृवष्टकोण से करते हैं।’’
3.3.3 प्रकृशतिाद के दािथशनक स्िरूप (Philosophy Form of Naturalism)
दािथवनक वसिान्त की दृवष्ट से प्रकृ वतिाद के वनम्नवलवखत तीन रूप माने जाते हैं:-
(1) र्ौवतक जगत का प्रकृ वतिाद (Naturalism of Physical Words) - यह वसिान्त मानि
वक्रयाओ ं व्यवक्तगत अनर्ु िों, संिेगों, अनर्ु वू तयों आवद की र्ौवतक विज्ञान से व्याख्या करना चाहता
है। यह र्ौवतक विज्ञान के द्वारा समस्त जगत की व्याख्या करना चाहता है। इसका विक्षा के क्षेत्र पर
वििेष प्रर्ाि नहीं है। इसने विज्ञान को ज्ञान में सबसे ऊंचे आसन पर बैठा वदया है। विज्ञान न के िल
एक मात्र ज्ञान है बवलक उसके अलािा कोई ज्ञान सर्ं ि नहीं है। इस प्रकार र्ाििाद के रूप में इस
वसिान्त में दािथवनक ज्ञान को र्ी व्यर्थ माना जाता है।
(2) यांवत्रक प्रकृ वतिाद (Mechanical Naturalism) - इस वसिान्त के अनसु ार समस्त जगत एक
यंत्र के समान कायथ कर रहा है और िह यंत्र जड़तत्ि का बना है वजसमें स्ियं उसको चलाने की िवक्त
है। इस प्रकार प्रकृ वतिाद का यह रूप जड़िाद है। जड़िाद के अनसु ार जड़तत्ि ही सब कुछ है और
जो कुछ है िह जड़ है। व्यवक्त एक सवक्रय यंत्र से अवधक कुछ नहीं है। उसमें पररिेि के प्रर्ाि के
कारण कुछ सहज वक्रयायें होती हैं। यंत्रिाद के प्रर्ाि से मनोविज्ञान में व्यिहारिादी सम्प्रदाय का
जन्म हुआ वजसके अनसु ार समस्त मानि-व्यिहार की व्याख्या उत्तेजना और अनवु क्रया के िब्दों में
की जा सकती है। व्यिहारिादी जड़तत्ि से अलग चेतना का कोई अवस्तत्ि नहीं मानते और
वचन्तन, कलपना, स्मृवत आवद सर्ी मानवसक प्रवक्रयाओ ं की व्याख्या िारीररक िब्दों के द्वारा करते
हैं। इनके अनसु ार मनष्ट्ु य और पिु की वक्रयाओ ं में कोई अन्तर नहीं है, इन दोनों की ही व्याख्या
उत्तेजना-अनवु क्रया के िब्दों में की जा सकती है। इस प्रकार व्यिहारिाद समस्त मानि-व्यिहार की
यावं त्रक प्रवक्रया के रूप में व्याख्या करता है। प्रकृ वतिाद के इस रूप ने विक्षा के क्षेत्र में व्यापक
प्रर्ाि डाला है।
(3) जैिकीय प्रकृ वतिाद (Biological naturalism) - प्रकृ वतिाद के इस रूप ने विक्षा के क्षेत्र में
सबसे अवधक प्रर्ाि डाला है। इसी ने प्राकृ वतक मानि का वसिान्त उपवस्र्त वकया। विकासिाद
पिु और मानि विकास को एक ही क्रम में मानता है। िह मनष्ट्ु य की आध्यावत्मक प्रकृ वत को नहीं
मानता और उसकी प्रकृ वत को मानि पिू थजो से वमला हुआ मानता है। इसवलए मनष्ट्ु य और पिु
स्िर्ाि में बहुत कुछ समानता है। जैिकीय प्रकृ वतिाद के अनसु ार जगत में समस्त प्रवक्रयाओ ं और
समस्त प्रकृ वत की व्याख्या र्ौवतक अर्िा यावं त्रक वक्रयाओ ं के रूप में नहीं की जा सकती क्योंवक
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जीि जगत में विकास मख्ु य घिना है। सर्ी प्रावणयों में जीिन की प्रेरणा होती है और इसवलए जीिन
का वनम्न से उच्च स्तरों का विकास होता है। विकास के समस्त लक्षण मानि व्यवक्त के जीिन में
देखे जा सकते हैं। िह क्या रूप लेगा और वकस प्रकार िृवि करेगा यह सब विकास के वसिान्तों से
वनवश्चत होता है। जबवक पि-ु जगत में विकास की प्रवक्रया के िल र्ौवतक स्तर तक ही सीवमत है।
मानि-प्रावणयों में िह सबसे अवधक मानवसक, नैवतक और आध्यावत्मक स्तरों पर ही बढ़ती है।
के िल मानि व्यवक्त ही नहीं बवलक मानि समहू ों में र्ी विकास की प्रेरणा होती है और इसवलए िे
विकवसत होते हैं तर्ा उनमें विकास के िे ही वनयम काम करते हैं जो व्यवक्त के विषय में लागू होते
हैं। चालसथ डाविथन ने विकास की प्रवक्रया में अवस्तत्ि के वलए सघं षथ (Struggle for Existence)
और उपयक्त ु तम की विजय (Survival of the Fittest) के वसिान्तों को महत्िपणू थ माना है। इसके
अनसु ार आत्म-संरक्षण (Self preservation) ही प्राकृ वतक जगत में सबसे बड़ा वनयम है।
स्िमूलयांकन हेतु प्रश्न
1. पदु गल से क्या अवर्प्राय है ?
2. प्रकृ वत से आप क्या समझते हैं ?
3. ‘‘प्रकृ वतिाद आदिथिाद के विरूि मन को पदार्थ के अधीन मानता है और यह विश्वास
करता है वक अवं तम िास्तविकता र्ौवतक है, आध्यावत्मक नहीं।’’ यह पररर्ाषा वकस
विद्वान की है ?
(अ) जेम्स िाडथ (ब) र्ॉमस और लैग (स) जायस (द) पैरी
4. यावं त्रक प्रकृ वतिाद से आप क्या समझते हैं ?
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h. मनष्ट्ु य के सासं ाररक जीिन की र्ौवतक दिाएं विज्ञान की खोजों और मिीनों के
आविष्ट्कारों द्वारा बदल दी गई।
i. विकास की प्रवक्रया में मवस्तष्ट्क एक घिना है। यह उच्चकोवि के जीिों में अवधक विकवसत
नाड़ी मण्डल का समहू है।
j. हर िस्तु का जन्म प्रकृ वत के ही सावन्नध्य में होता है और मृत्यपु रांत प्रकृ वत (पचं तत्ि) में ही
विलीन हो जाता है।
k. ज्ञान और सत्य का आधार-इवन्रयों का अनर्ु ि है।
l. प्रकृ वत के वनयम अपररितथनीय हैं। अपररितथनीय प्राकृ वतक वनयम सब घिनाओ ं को र्ली
प्रकार स्पष्ट करते हैं।
m. िास्तविकता की व्याख्या के िल प्राकृ वतक विज्ञानों द्वारा की जा सकती है।
n. मवस्तष्ट्क मानि की िवक्त एिं वक्रया का स्रोत है।
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ii. बालक की प्राकृ वतक िवक्तयों का विकास करना।
iii. बालक को इस प्रकार का ज्ञान ि दक्षता प्रदान करना वजससे वक िह अपने पयाथिरण के
सार् समायोवजत हो सके ।
iv. मानि में उवचत तर्ा उपयोगी सहज वक्रयाओ ं को उत्पन्न करना अर्ाथत् मनष्ट्ु य में विक्षा
द्वारा ऐसी आदतोंएिं िवक्तयों का विकास करना जो मिीन के पजु े की र्ांवत अिसरानक ु ूल
प्रयक्त
ु की जा सकें ।
v. बालक को जीिन संघषो के योग्य बनाना।
vi. जातीय वनष्ट्पवत्तयों का संरक्षण करना ि विकास करना।
vii. बालक का आत्मसंरक्षण ि आत्मसंतोष की प्रावप्त।
viii. मल ू प्रिृवत्तयों का िोधन एिं मागाथन्तरीकरण।
ix. बालके के व्यवक्तत्ि का स्ितत्रं विकास।
3.4.2 प्रकृशतिाद ि पाठ्यक्रम Naturalism of Curriculum-
प्रकृ वतिाद के विक्षा के उद्देश्य के संबंध में स्पेन्सर ने पाचं उद्देश्यों की चचाथ की है। िह प्रकृ वतिाद के
पाठ्यक्रम को र्ी इन उद्देश्यों की पवू तथ का एक सासधन मानते हुए कहते हैं:-िास्ति में यवद देखा
जाए तो प्रकृ वतिादी पाठ्यक्रम का संगठन अपने ही ढंग से करते हैं और मानते हैं वक बालक की
प्रकृ वत, नैसवगथक रूवच, योग्यता, अनर्ु ि ि स्िार्ाविक वक्रयाओ ं के आधार पर ही पाठ्यक्रम का
संगठन होना चावहए और पाठ्यक्रम में िह विषय रखे जाने चावहए जो बालक के विकास की
विवर्न्न अिस्र्ाओ ं के अनरू ु प हों। पाठ्यक्रम वनमाथण के वसिान्तों के संबंध में प्रकृ वतिादी
विचारधारा इस प्रकार हैः-
i. पाठ्यक्रम वनमाथण का आधार बाल हो।
ii. पाठ्यक्रम में विज्ञान विषयों को महत्िपणू थ स्र्ान वदया जाये।
iii. पाठ्यक्रम व्यािहाररक ि जीिनोपयोगी हो।
iv. पाठ्यक्रम अनर्ु ि-के वन्रत हो।
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i. विकास या उन्नवत का वसिान्त (Principal of growth)
ii. छात्र वक्रया का वसिान्त(Principal of pupil Activity)
iii. िैयवक्तकता का वसिान्त (Principal of Individualization
स्पेन्सर (Spencer) महोदय ने प्रकृ वतिादी विक्षण विवधयों की चचाथ की है, जो इस प्रकार है -
1. प्रकृ वत के अनरू ु प विक्षा (Education according to Nature) विक्षा बालक के
वलए सचं ावलत की जाने िाली एक प्रवक्रया है वजसका उद्देश्य बालक का स्िार्ाविक रूप
से विकास करना है। अतः विक्षा के द्वारा बालक की नैसवगथक िृवि होनी चावहए और
विक्षण प्रवक्रया ि बालक के अनर्ु िों के बीच सामजं स्य स्र्ावपत वकया जाना चावहए।
2. विक्षा आनन्द प्रदायनी Education for Enjoyment : हम विक्षण की जो विवध
अपनाए,ं उसका उद्देश्य बालक में विक्षण के प्रवत रूवच जागृत करना होना चावहए। चवंू क
जब तक बालक वकसी चीज में रूवच नहीं लेगा, तब तक िह िारीररक ि मानवसक रूप से
वकसी र्ी बात को सीखने हेतु तत्पर नहीं होगा। इसी कारण प्रवसि मनोिैज्ञावनक र्ानथडाइक
ने कहा र्ा वक विक्षण विवध में अवर्प्रेरणा वसिान्त, प्रर्ाि का वनयम तर्ा तत्परता का
वनयम (Law of Effect) को समावहत वकया जाना चावहए।
3. स्िचावलत आत्म-वक्रया (Spontaneous self-activity): स्पेन्सर का विचार र्ा वक
बालक वकन्ही अन्य के प्रयासों द्वारा नहीं सीखता, अवपतु िह स्ियं अपनी आत्म-वक्रया
सीखता है और स्ियं के प्रयासों द्वारा अवजथत ज्ञान ही िास्तविक ि वचरस्र्ाई होता है।
4. विक्षा में िारीररक ि मानवसक विकास का सतं ल ु न (Balance in Physical and
mental development) : विक्षण विवधयां इस विचार को ध्यान में रखते हुए अपनाई
जानी चावहए वक विक्षा को बालक के व्यवक्तत्ि के दो प्रमख ु पक्षों (मानवसक ि िारीररक)
का समान रूप से विकास करना है। वकसी की र्ी उपेक्षा नहीं की जानी चावहए।
5. नकारात्मक विक्षा (Negative Education) - नकारात्मक विक्षा से आिय है वक विक्षा
हमें सत्यता ि पण्ु य का पाठ नहीं पढ़ाये िरन् हमें असत्यता ि पाप से दरू रहना वसखाए।
अर्ाथत् नकारात्मक विक्षा गणु आरोवपत नहीं करती िरन् अिगणु ों से बचाती है। यह िह
मागथ प्रिस्त करती है जो व्यवक्त को अिगणु ों से परे रखता है।
6. विक्षण विवध आगमनात्मक हो (Teaching Method should be Inductive) - इस
संदर्थ में प्रकृ वतिाद ने वजस विवध को जन्म वदया, उसे ह्यरू रवस्िक विवध (Heuristic
Method) के नाम से जाना जाता है। बालक को प्रत्यक्ष रूप से सीखने के अिसर वमलने
चावहए, वजसमें छात्र को एक अन्िेषक या आविष्ट्कारक की र्वू मका अदा करनी होती है।
इसी को आगमन विवध कहते हैं।
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3.5 प्रकृशतवाद की प्रमुख शविेषताएां (Chief Characteristics of
Nature)
1. प्रकृशत ही िास्तशिकता है (Nature is Ultimate Reality)- प्रकृ वतिाद प्रकृ वत को
अवं तम सत्ता मानता है और मानि प्रकृ वत पर अवधक बल देता है। यह इस बात पर विश्वास
करता है वक िास्तविकता ि प्रकृ वत (Reality and Nature) में कोई अन्तर नहीं है। अर्ाथत् जो
िास्तविक है, िह प्रकृ वत है या जो प्रकृ वत है, िह िास्तविक है। हॉवकंग (Hocking) के
िब्दों में- ‘‘प्रकृ वतिाद इस बात को अस्िीकार करता है वक प्रकृ वत से परे, प्रकृ वत के पीछे या
प्रकृ वत के अलािा कोई चीज अपना अवस्तत्ि रखती है, चाहे िह सासं ाररक पररवध में हो या
आध्यावत्मक पररवध में।’’ (Naturalism denies existence of anything nature,
behind nature such as the supernatural of other worldy)
2. मन ि िरीर में कोई अंतर नहीं है (No distinction between mind and body) -
प्रकृ वतिादी विचारधारा मन ि िरीर में कोई अतं र नहीं करती। िह यह मानती है वक मानि
पदार्थ है, चाहे उसका मन हो या िरीर, दोनों ही इस पदार्थ का पररणाम हैं।
3. िैज्ञाशनक ज्ञान पर बल (Emphasis on Scientific knowledge) - प्रकृ वतिाद यह र्ी
मानता है वक िैज्ञावनक ज्ञान ही उवचत ज्ञान होता है और हमारा प्रयास यह होना चावहए वक हम
इस िैज्ञावनक ज्ञान को जीिन से जोड़ सकें ।
4. िैज्ञाशनक शिशध द्वारा ज्ञान प्राशि पर बल (Emphasis on acquiring knowledge
through scientific method) - प्रकृ वतिाद के अन्तगथत आगमन (Inductive) विवध द्वारा
ज्ञानाजथन की चचाथ की गई है, सार् ही िह इस बात की र्ी चचाथ करते हैं वक ज्ञान-प्रावप्त का
सिोवचत तरीका वनरीक्षण विवध है।
5. ज्ञान-प्राशि हेतु इशन्ियों की आिश्यकता (Need of sense for Acquiring
Knowledge) - प्रकृ वतिाद यह र्ी मानता है वक मानि इस जगत पर जो र्ी ज्ञान प्राप्त करता
है, उसका माध्यम इवन्रयां होती हैं। वबना इवन्रय सहयोग के मानि ज्ञानाजथन नहीं कर सकता।
6. प्रकृशत ही िास्तशिक सत्ता ;(Nature as a big Power) - प्रकृ वतिादी विचार यह र्ी
मानता है वक इस ससं ार में सिोच्च िवक्त प्रकृ वत के हार्ों में ही वनवहत रहती है और प्रकृ वत के
वनयम अपररितथनिील हैं।
7. मानि प्रकृशत का ही अंग है (Man is a Segment of Nature)- प्रकृ वतिादी समाज के
अवस्तत्ि के प्रवत कोई आस्र्ा नहीं रखते। इस कारण मनष्ट्ु य को समाज का अगं नहीं मानते।
उनका विचार है वक मनश्ु य प्रकृ वत का ही अवर्न्न अगं होता है।
8. मूलय प्रकृशत में ही शनशहत है (Value Lie in Nature) - मलू य का वनधाथरण आदिथिादी के
अनसु ार समाज द्वारा होता है। जबवक प्रकृ वतिादी यह मानते हैं वक मलू य प्रकृ वत में ही विद्यमान
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रहते हैं और यवद मानि मलू यों की प्रावप्त चाहता है तो उसे प्रकृ वत से घवनष्ठ सबं धं स्र्ावपत करना
होगा।
9. आत्मा और परमात्मा का कोई महत्ि नहीं (No Importance of Soul and God) -
प्रकृ वतिाद वकसी आध्यावत्मक िवक्त में या आत्मा में विश्वास नहीं रखते। िह मानते हैं वक मानि
की रचना प्रकृ वत के द्वारा हुई है और मनष्ट्ु य के िरी का नाि होते ही उसका चेतन तत्ि र्ी
समाप्त हो जाता है।
10. भौशतक सुख की प्राशि (To achieve Material Prosperity) - प्रकृ वतिाद मानि
जीिन का सिोच्च लक्ष्य र्ौवतक सम्पन्नता की प्रावप्त मानता है। इस कारण मानि पररवस्र्वतयों
को अपने अनक ु ू ल ढालता है। िह मानि को इस संसार का श्रेष्ठतम पदार्थ मानता है जो बवु ि,
तकथ ि वचन्तन के कारण अन्य पिओ ु ं से सिोपरर है।
11. िैयशिक स्ितंत्रता पर बल (Emphasis on Scientific Knowledge) - प्रकृ वतिाद यह
र्ी मानता वक व्यवक्त दःु खी इस कारण है चवंू क िह प्रकृ वत से दरू होता जा रहा है। व्यवक्त को
इतनी स्ितंत्रता वमलनी चावहए वक िह प्रकृ वत से समीपता स्र्ावपत कर सके ।
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5. ‘प्रकृ वत की ओर लौिो’ इस विचारधारा का नारा है। इसका कर्न है ‘सभ्यता की जविलता
से दरू प्रकृ वत की िावन्तमयी गोद की ओर चलो।’ इस प्रिृवत्त ने प्रकृ वत-प्रेम में िृवि की।
6. के िल पस्ु तकीय ज्ञान को हिाकर अनर्ु ि तर्ा ज्ञान को महत्िपणू थ स्र्ान वदया गया।
7. अन्त में यह कह देना आिश्यक होगा वक इग्ं लैण्ड में नील के स्कूल में तर्ा डोरा रसेल के
स्कूल में इस प्रवक्रयािादी विचारधारा पर आधाररत, स्ितंत्रता तर्ा सरलता के िातािरण
में, मलू प्रिृवत्त के आधार पर, स्ियचं ावलत विक्षा दी जाती र्ी। इन स्कूलों में र्ेद न होने के
कारण तर्ा स्िस्र् विचारधाराओ ं के कारण चररत्र संबंधी विकायत कर्ी नहीं चलती र्ी।
यहां विक्षा र्ी खेल के ऊपर आधाररत र्ी। पस्ु तकीय ज्ञान का महत्ि कम है। अतः डोरा
रसेल के विद्यालय में इस पर अवधक बल नहीं र्ा। पर, यह कहना भ्रामक न होगा वक
के िल प्रकृ वतिाद ही बालक की रूवच पर बल देने िाली विचारधारा नहीं है। आदिथिाद
र्ी बालक के महत्ि को कम न करेगा। कहना न होगा वक यवद प्रकृ वत को आदिथिाद का
संबल वमल जाये तो पािविक एिं आध्यावत्मक दोनों अिस्र्ाओ ं से मनष्ट्ु य का उवचत
संबंध स्र्ावपत हो जाएगा।
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3.7 साराांि
विक्षा के क्षेत्र में प्रकृ वतिाद का प्रर्ाि दो रूपों में वदखलाई पड़ता है- एक तो दिथन के रूप में उसने
विक्षा के लक्ष्यों और उद्देश्यों को वनवश्चत वकया है। दसू रे उसने मानि प्रकृ वत की व्याख्या करके
विक्षण विवधयों और विक्षा के साधनों की व्याख्या की है। विक्षा के क्षेत्र में प्रकृ वतिाद न तो र्ौवतक
जगत का प्रकृ वतिाद है, न यावं त्रक प्रकृ वतिाद और न जैिकीय प्रकृ वतिाद। इन तीनों से वर्न्न िह एक
नमनीय व्याख्या है जो वक विक्षा को बालक के सपं णू थ अनर्ु ि पर आधाररत करना चाहती है और
वकताबी ज्ञान के विरूि अर्ाथत् प्रकृ वतिाद के बनाए हुए विक्षा के वचत्र में बालक सबसे आगे होता
है। विक्षक, विद्यालय, पस्ु तकें , पाठ्यक्रम आवद सब पृष्ठर्वू म में होते हैं। सर जॉन एडम्स ने इस प्रिृवत्त
को बाल के वन्रत अवर्िृवत्त (Paidocentric attitude) कहा है। प्रकृ वतिावदयों के अनसु ार बालक
पर पणू थ आयोवजत विक्षा लादी नहीं जानी चावहए। चाहे िह वकतनी र्ी िैज्ञावनक क्यों न हो। विक्षा
में बालक को स्ितंत्र चनु ाि का अिसर देना चावहए। िह क्या पढ़ेगा, वकस तरह व्यिहार करेगा,
वकस तरह खेलेगा-कूदेगा, कै से बैठेगा आवद बातें उसकी इच्छा पर छोड़ देनी चावहए। सार् ही विक्षा
का स्र्ान िासक का नहीं बवलक वमत्र और सार्ी का है। विक्षक का कायथ उसे सामग्री जिु ाना,
अिसर उत्पन्न करना, आदिथ पररिेि का वनमाथण करना है। वजससे बालकों का सिाांगीण विकास हो
सके । प्रकृ वतिादी विक्षा-प्रणावलयों के विषय में खेल प्रणाली पर जोर देता है तर्ा पाठ्यक्रम
बहुमख ु ी और व्यापक हो, इसमें समाजिास्त्रीय, मनोिैज्ञावनक तर्ा िैज्ञावनक प्रिृवत्त के अवतररक्त
विक्षा के लक्ष्यों और पाठ्यक्रम की ओर समाहारक प्रिृवत्त वदखलाई पड़ती है। लगर्ग बहुमख ु ी
पाठ्यक्रमों और पाठ्यक्रमोत्तर कायथक्रमों का महत्ि स्िीकार वकया गया है।
3.8 िब्दावली
1. र्ौवतक जगत का प्रकृ वतिाद- यह वसिान्त मानि-वक्रयाओ,ं व्यवक्तगत अनर्ु िों, संिेगों,
अनर्ु वू तयों आवद की र्ौवतक विज्ञान से व्याख्या करना चाहता है। यह र्ौवतक विज्ञान के द्वारा
समस्त जगत की व्याख्या करना चाहता है।
2. स्िचावलत आत्म-वक्रया (Spontaneous Self-activity) - स्पेन्सर का विचार है वक बालक
वकन्हीं अन्य के प्रयासों द्वारा नहीं सीखता, अवपतु िह स्ियं अपनी आत्म-वक्रया से सीखता है
और स्ियं के प्रयासों द्वारा अवजथत ज्ञान ही िास्तविक ि वचरस्र्ाई होता है।
3. प्रकृ वतिाद की ओर लौिो- प्रकृ वतिादी चाहते हैं वक सभ्यता की जविलता से दरू प्रकृ वत की
िावन्तमयी गोद की ओर चलो तावक बालक का नैसवगथक विकास हो सके ।
4. यांवत्रक प्रकृ वतिाद- इस वसिान्त के अनसु ार समस्त जगत एक यंत्र के समान कायथ कर रहा है।
व्यवक्त एक सवक्रययत्रं से अवधक कुछ नहीं है। उसमें पररिेि के प्रर्ाि के कारण कुछ सहज
वक्रया होती है। यंत्रिाद के प्रर्ाि से मनोविज्ञान में व्यिहारिादी सम्प्रदाय का जन्म हुआ।
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3.9 स्वमूलयाांकन हेतु प्रश्नों के उत्तर
1. र्ौवतकिाद के वलएपदु गल मल ू तत्ि है, मनस् है मवस्तष्ट्क $ उसकी वक्रया। पदु गल ही
मनस का उद्गम है, न वक मनस पदु गल का प्रेरक। चेतना इस मवस्तष्ट्क का उपफल है।
र्ौवतकिादी ससं ार को एक यंत्र मानते हैं और उनके वलए जीवित प्राणी तो के िल अण-ु
परमाणु इत्यावद का जोड़ है।
2. प्रकृ वत से हमारा अवर्प्राय समस्त विश्व तर्ा उसकी वक्रया और इस अर्थ में मनष्ट्ु य जो कुछ
र्ी करता है, िह प्राकृ वतक है। विक्षा में इस का अर्थ होगा विश्व की वक्रया का अध्ययन
और उसे जीिन में उतार देना।
3. (ब) र्ॉमस और लैग
4. यावं त्रक प्रकृ वतिाद (Mechanical Naturalism) समस्त जगत एक यत्रं के समान कायथ
कर रहा है और िह यंत्र जड़तत्ि का बना है, वजसमें स्ियं उसको चलाने की िवक्त है। इस
प्रकार प्रकृ वतिाद का यह रूप जड़िाद है। व्यवक्त एक सवक्रय यंत्र से अवधक कुछ नहीं है।
उसमें पररिेि के प्रर्ाि के कारण कुछ सहज वक्रयाएं होती हैं।
5. (D )
6. (C)
7. (D)
8. (A)
9. (B)
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3.12 शनबांधात्मक प्रश्न
1. प्रकृ वतिाद के अनसु ार विक्षा के उद्देश्यों और पाठ्यक्रम के स्िरूप की व्याख्या कीवजए।
2. प्रकृ वतिादी विक्षा के उद्देश्यों का िणथन कीवजए।
3. प्रकृ वतिाद का क्या अर्थ है? विक्षा के वसिान्त को इसने वकस प्रकार प्रर्ावित वकया है ?
4. प्रकृ वतिादी दिथन की प्रमख ु वििेषताएं क्या हैं ? व्याख्या कीवजए।
5. प्रकृ वतिादी िैवक्षक उद्देश्यों का आलोचनात्मक मलू याक ं न कीवजए।
6. प्रकृ वतिाद के विविध रूप कौन-कौन से हैं ?
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इकाई 4 : आदियवाद Idealism
4.1 प्रस्तािना
4.2 उद्देश्य
4.3 आदिथिाद और विक्षा
4.3.1 आदिथिाद का अर्थ
4.3.2 आदिथिाद की पररर्ाषाएं
4.3.3 जीिन दिथन के रूप में आदिथिाद
4.4 विक्षा के उद्देश्य
4.4.1 आदिथिाद ि विक्षा के उद्देश्य
4.4.2 आदिथिाद और पाठ्यक्रम
4.4.3 विक्षण पिवतयां
4.5 आदिथिाद ि विक्षक
4.6 आदिथिाद एिं बालक
4.7 आदिथिाद का मलू याक ं न
4.8 सारांि
4.9 िब्दािली
4.10 स्िमूलयांकन हेतु प्रश्नों के उत्तर
4.11 संदर्थ ग्रन्र् सचू ी
4.12 वनबधं ात्मक प्रश्न
4.1 प्रस्तावना
मानि सभ्यता के उदर्ि और विकास के समय से ही आदिथिादी विचारधारा का वकसी न वकसी
रूप में अवस्तत्ि रहा है। आधवु नक काल में जब मानि ने वचन्तन एिं मनन आरम्र् वकया तब से
आदिथिादी विचारधारा वनरन्तर पवु ष्ट्पत एिं पललवित होती है। आदिथिादी विचारधारा जीिन की
वनवश्चतताओ ं से जड़ु ी हुई है। इसका आिय है-जीिन के वलए वनवश्चत आदिो ि मलू यों का वनधाथरण
कर मनष्ट्ु य को उनके अनक ु रण हेतु वनदेवित करना। यह विचारधारा र्ौवतक िस्तओ ु ं की अपेक्षा
विचारों पर अवधक बल देती है। आदिथिादी दिथन का प्रवतपादन सक ु रात, मालेिो, डेकॉिो, स्पनोसा,
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िकथ लकान्ि, वफििे, रोवलग, हीगल, ग्रीन जेन्िाइल आवद अनेक पाश्चात्य तर्ा िेदों ि उपवनषदों के
प्रणेता महवषथयों से लेकर अरविन्द घोष तक अनेक पिू ी दािथवनकों ने वकया है।
4.2 उद्देश्य
1. आदिथिाद का ज्ञान प्राप्त कर सकें गे।
2. आदिथिाद का अर्थ, पररर्ाषाएं ि जीिन दिथन के रूप में आदिथिाद को समझ सकें गे।
3. आदिथिाद ि विक्षा के उद्देश्यों को जान सकें गे।
4. आदिथिाद में पाठ्यक्रम ि विक्षण पिवत का ज्ञान प्राप्त कर सकें गे।
5. आदिथिाद में विक्षक ि बालक के गणु ों को समझ सकें गे।
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है। इस दृवष्ट से आदिथिाद की वस्र्वत की व्याख्या करते हुए डब्ल.ू ई. हावकग ने वलखा है वक
आदिथिाद के अनसु ार प्रकृ वत आत्मवनर्थर नहीं है। िह स्ितंत्र वदखलाई पड़ती है। वकन्तु िास्ति में
िह मनस् पर आधाररत है। दसू री ओर मनस् आत्मा या प्रत्यय ही िास्तविक सद्वस्तु है।
4.3.1 आदिथिाद का अर्थ Meaning of Idealism
आदिथिाद, वजसे हम अग्रं ेजी में (Idealism) कहते हैं, दो िब्दों से वमलकर बना है- Ideal+ism
लेवकन कुछ विचारक यह मानते हैं वक इसमें दो िाब्द हैं - Ideal+ism इसमें स् सवु िधा के वलए
जोड़ वदया गया है। िास्ति में यवद देखा जाये तो इसे Idea या विचार से ही उत्पन्न होना माना जाना
चावहए। चवंू क इसके प्रितथक दािथवनक विचार की वचरन्तन सत्ता में विश्वास करते हैं, इस कारण इसे
विचारधारा का प्रत्ययिाद की संज्ञा दी जाती है। परन्तु प्रचलन में हम आदिथिाद का प्रयोग ही करते
हैं। यह दिथन िस्तु की अपेक्षा विचारों, र्ािों तर्ा आदिो को महत्ि देते हुए यह स्िीकार करता है
वक जीिन का लक्ष्य आध्यावत्मक मलू यों की प्रावप्त तर्ा आत्मा का विकास है। इसी कारण यह
आध्यावत्मक जगत को उत्कृ ष्ट मानता है और उसे ही सत्य ि यर्ार्थ के रूप में स्िीकार करता है।
4.3.2 आदिथिाद की पररभाषाएं Definition of Idealism
रास (Ross) . ‘‘आदिथिावदयों के अनेक रूप हैं, वकन्तु सबका सार यह है वक मन या आत्मा ही इस
जगत का पदार्थ है और मानवसक स्िरूप सत्य है।’’ (Idealism Philosophy takes many and
varied from, but the postulate underlying all is that mind or sprit is essential
word stuff that the true reality is of a Mental character)
ब्रिू ेकर (Brubacher)‘‘आदिथिावदयों के अनसु ार- इस जगत को समझने के वलए मन के न्रीय वबन्दु
है। इस जगत को समझने हेतु मन की वक्रयािीलता से बढ़कर उनके वलए अन्य कोई िास्तविकता
नहीं है।’’ (The Idealism point out that It is mind that is central in understanding
the world . To them nothing gives greater sense of reality then the activity of
mind lugged in typing to comprehended its words.
हैण्डरसन (Handerson)‘‘आदिथिाद मनष्ट्ु य के आध्यावत्मक पक्ष पर बल देता है, क्योंवक
आदिथिावदयों के वलए आध्यावत्मक मलू य जीिन के तर्ा मनष्ट्ु य के सिाथवधक महत्िपणू थ पहलू हैं।
एक तत्िज्ञानी आदिथिादी का विश्वास है वक मनष्ट्ु य का सीवमत मन असीवमत मन से पैदा होता है।
व्यवक्त और जगत दोनों बवु ि की अवर्व्यवक्त हैं और र्ौवतक जगत की व्याख्या मन से की जा सकती
है।’’
डी.एम.दत्ता (D.M.datta)‘‘आदिथिाद िह वसिान्त है जो अवन्तम सत्ता आध्यावत्मकता को मानता
है।’’
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राजन के अनसु ार . ‘‘आदिथिावदयों का विश्वास है/ वक ब्रह्माण्ड की अपनी बवु ि एिं इच्छा है और
सब र्ौवतक िस्तओु ं कों उनके पीछे विद्यमान मन द्वारा स्पष्ट वकया जा सकता है।’’
4.3.3 जीिन दिथन के रूप में आदिथिाद (Idealism of Philosophy of life)
आदिथिाद जीिन की एक प्राचीन विचारधारा है। आज र्ी इस बात का पयाथप्त सम्मान है। जीिन
दिथन के रूप में इसने विश्व के उच्च कोवि के दािथवनकों को आकृ ष्ट वकया है। सक ु रात, मालेिो, कान्ि
आवद दािथवनक आदिथिादी र्े। सक्ष ं पे में आदिथिाद के मल
ू वसिान्त वनम्न हैं:-
a. आदिथिाद के अनसु ार पदार्थ अवन्तम सत्य नहीं है। पदार्थ का प्रत्यय िास्तविक है, पदार्थ
का र्ौवतक रूप असत्य है।
b. र्ौवतक सृवष्ट सत्ि का आर्ासमात्र है। इस सृवष्ट के पीछे कोई मानवसक सत्य है जो सृवष्ट के
प्रकािन का आधार है। सृवष्ट िस्ततु ः तावकथ क एिं मानवसक ही है। इसका बाह्य रूप तो
कलपनाजन्य है।
c. जो अवन्तम सत्य है िही िास्तविक विि है। अन्य र्ौवतक पदार्ो में र्र अर्िा विि को
देखना भ्रम है। जो सत्य है और विि है, िही िास्ति में सन्ु दर र्ी है। संसार के र्ौवतक
पदार्ो में सन्ु दरता का आर्ास मात्र है। अतः उनमें आसवक्त व्यर्थ है। ‘सत्यम् वििम्
सन्ु दरम’् की यह व्याख्या आदिथिाद की आत्मा है।
d. र्ौवतक जगत नश्वर है, पररितथनिील है। सत्य को स्र्ायी एिं अपररितथनिील होना चावहए।
अतः सत्य विचारात्मक एिं मानवसक है क्योंवक विचार एिं प्रत्यय में स्र्ावयत्ि होता है।
e. इस आधार पर िरीर नश्वर है, अतः असत्य है, आत्मा अनश्वर सत्य है।
f. मानि जीिन का लक्ष्य इसी अनश्वर, अजर, अमर एिं अपररितथनिील आत्मा की प्रावप्त है।
g. आदिथिाद विकास में विश्वास करता है, वकन्तु उसका विकासिाद प्रकृ वतिादी विकासिाद
से वर्न्न है। आदिथिाद के अनसु ार विकास का अवन्तम लक्ष्य आत्मा की प्रावप्त ही है न वक
वनचले स्तर से ऊंचे स्तर के प्राणी में विकास करना।
h. मन और पदार्थ वर्न्न हैं। मन पर नैवतकता एिं आदिो का प्रर्ाि पड़ता है, पदार्थ पर नहीं।
मन चेतन है, पदार्थ जड़। जड़ से चेतनता का उदय नहीं हो सकता।
i. इवन्रयों की अपेक्षा मवस्तष्ट्क अवधक महत्िपणू थ है, क्योंवक विचारात्मक सत्य का ज्ञान
इवन्रयों से संर्ि नहीं।
j. 10. अवं तम सत्य का ज्ञान ही िास्तविक ज्ञान है, िेष तो अज्ञान अर्िा ज्ञानार्ास है। यह
ज्ञान तकथ जन्य है, वचन्तन एिं मनन तर्ा अतं दृवष्ट का पररणाम है। यह इवन्रयों का विषय
नहीं है।
k. इस प्रकार विज्ञान द्वारा प्राप्त ज्ञान अपणू थ है। िास्तविक ज्ञान तो व्यवक्त के अपने प्रयासों का
पररणाम है।
l. आदिथिाद धावमथकता एिं नैवतकता का समर्थन करता है।
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m. प्रकृ वत अपने आप में अपणू थ है। िह स्ियं वकसी सत्य पर आवश्रत है। अतः प्रकृ वत का ज्ञान
सम्पणू थ ज्ञान नहीं। र्ारतीय सांख्य-दिथन प्रकृ वत एिं परू
ु ष में मौवलक र्ेद करता है।
n. आदिथिाद अनेकता में एकता का दिथन करता है। सत्य मानवसक है। सृवष्ट के अनेक रूपों में
उस एक चरम सत्य को देखना ही अनेकता में एकता का दिथन करना है।
इस प्रकार हम देख रहे हैं वक आदिथिाद सृवष्ट के आध्यावत्मक पहलू पर अवधक बल देता है।
प्राकृ वतक िातािरण की अपेक्षा आध्यावत्मक िातािरण अवधक महत्िपणू थ है। आदिथिाद व्यवक्त एिं
सृवष्ट पर इसी दृवष्टकोण को महत्िपणू थ बताता है।
स्िमलू याक
ं न हेतु प्रश्न
1. वकसके अनसु ार “आदिथिाद एक अर्िा दसू रे रूप में दिथन के समस्त इवतहास में व्याप्त
है।’’
(अ) एडम्स (ब) जी.िी. डब्लयू पैवरक (स) डब्लय.ू ई. हावकग(द) हिसन
2. आदिथिाद का दसू रा नाम है-
(अ) आत्मिाद (ब) विचारधारा का प्रत्यिाद (स) प्रकृ वतिाद(द) प्रमाण-िास्त्र
3. िरीर नश्वर है अतः असत्य है, आत्मा अनश्वर अतः असत्य है। यह विचारधारा है-
(अ) प्रकृ वतिाद (ब) प्रयोजनिाद (स) अवस्तत्ििाद(द) आदिथिाद
4. प्रकृ वत अपने आप में अपणू थ है। िह स्ियं वकसी सत्य पर आवश्रत है। अतः प्रकृ वत का ज्ञान
सम्पणू थ ज्ञान नहीं है। यह विचारधारा है-
(अ) प्रकृ वतिादी (ब) आदिथिादी (स) प्रयोजनिादी(द) अवस्तत्ििादी
5. वनम्न में कौन विचारक आदिथिादी र्े ?
(अ) सक ु रात (ब) लॉक (स) गैलीवलयो (द) हावं कग
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चरण पर उसे अपने आध्यावत्मक ‘स्ि’ का विकास करना होता है। इसके अतं गथत आध्यावत्मक
चेतना का विकास आता है। आदिथिादी इन्हीं सबको विक्षा के उद्देश्य वनवश्चत करते हैं।
4.4.1 आदिथिाद ि शिक्षा के उद्देश्य (Idealism and Objectives of Education)
1. आत्मनभ ु ूशत का शिकास (Development of self –realization) - आदिथिादी
विचारधारा यह मानती है वक प्रकृ वत से परे यवद कोई चेतन सत्ता के अनरू ु प है तो िह है
‘मनष्ट्ु य’। इस कारण विश्व व्याप्त चेतन सत्ता की अनर्ु वू त मनष्ट्ु य तब तक नहीं कर सकता जब
तक उसके अदं र व्याप्त चैतन्यता का विकास न हो। इस कारण विक्षा का सिोच्च कायथ यह है
वक िह मनष्ट्ु य को इतना सक्षम बनाये वक िह अपने िास्तविक स्िरूप को पहचाने ि उसकी
अनर्ु वू त कर सके । इस आत्मानर्ु वू त के प्रमख
ु रूप से चार सोपान होते हैं:-
4. आध्यावत्मक ‘स्ि’ (spiritual self)
3. बौविक ‘स्ि’ Intellectual self
2. सामावजक ‘स्ि’ (Social self )
1. िारीररक ि जैविकीय (Physical Self)
िारीररक ‘स्ि’ आत्मानर्ु वू त का वनम्नतम सोपान है, वजसे प्रकृ वतिादी आत्मावर्व्यवक्त (Self
expression) संज्ञा देते हैं। सामावजक ‘स्ि’ को अर्थ वक्रयािादी महत्ि देता है, इसमें व्यवक्त
सामावजक वहत की पररकलपना करता है ि सामावजक कलयाण हेतु व्यवक्तगत स्िार्ो का पररत्याग
कर देता है। बौविक अनर्ु वू त के स्तर पर व्यवक्त वििेक द्वारा ‘स्ि’ की अनर्ु वू त करता है ि
सामावजक नैवतकता से ऊपर उठकर सद-् असद् में र्ेद कर सकता है और उसका आचरण वचन्तन
तर्ा विश्वास वििेकपणू थ हो जाता है। आध्यावत्मक ‘स्ि’ स्िानर्ु वू त का सिोच्च स्तर है जहां व्यवक्त
गणु ों को अपने व्यवक्तत्ि में अगं ीकृ त सहज प्रवक्रया द्वारा ही कर लेता है ि अपने अदं र विश्वात्मा का
तादाम्य करने लगता है। इस विश्वात्मा को हम तीन रूपों में अवर्व्यक्त करते हैं:- सत्य, विि ि सन्ु दर।
आदिथिादी जब आत्मानर्ु वू त के वलए विक्षा देने की बात करते हैं तो उनका एक ही लक्ष्य होता है,
‘‘अपने आपको पहचानो’’ (To Know Thyself)
2. आध्याशत्मक मूलयों का शिकास (Development of Spiritual Values) -
आदिथिादी विचारधारा र्ौवतक जगत की अपेक्षाकृ त आध्यावत्मक जगत को महत्िपणू थ मानती
है। अतः विक्षा के उद्देश्यों में र्ी बालक के आध्यावत्मक विकास को महत्ि देते हैं। यह मनष्ट्ु य
को एक नैवतक प्राणी के रूप में अिलोवकत करते हैं ि विक्षा का उद्देश्य चररत्र वनमाथण को मानते
हैं। िह ‘सत्यं वििं सन्ु दरं’ के मलू यों का विकास करते हुए इस बात की र्ी चचाथ करते हैं वक
विक्षा का प्रमखु उद्देश्य बालक में आध्यावत्मक दृवष्ट से विकास करना है।
3. बालक के व्यशित्ि का उन्नयन (To Exalt Child’s Personality) - बोगोस्लोिस्की
के अनसु ार-‘‘ हमारा उद्देश्य छात्रों को इस योग्य बनाना है वक िे सम्पन्न तर्ा सारयक्त
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बीता सकें , सिाथगीण तर्ा रंगीन व्यवक्तत्ि का वनमाथण कर सकें , सख ु ी रहने के उललास का
उपर्ोग कर सकें । यवद तकलीफ आये तो गररमा एिं लार् के सार् उनका सामना कर सकें तर्ा
इस उच्च जीिन को जीने में दसू रे लोगों की सहायता कर सकें ’’।
व्यवक्तत्ि के उन्नयन की चचाथ करते हुए मालेिो ि रॉस र्ी यह मानते हैं वक विक्षा के द्वारा मानि
व्यवक्तत्ि को पणू थता प्राप्त की जानी चावहए और सार् ही उसके व्यवक्तत्ि का उन्नयन होना
चावहए।
4. अनेकता में एकता के दिथन (To Establish Unity in Diversity) - आदिथिाद इस
विचारधारा का समर्थन करते हुए इस बात पर बल देता है वक विक्षा का उद्देश्य बालक को इस
दृवष्ट से समर्थ बनाना होना चावहए वक िह ससं ार में विद्यमान वर्न्न-वर्न्न बातों को एकता के
सत्रू में बाधं सके अर्ाथत् बालक के अदं र यह समझ उत्पन्न करनी चावहए वक िह इस संसार के
सचं ालन करने िाली एक परम सत्ता है जो ईश्वर के नाम से जानी जाती है और यह ईश्वर की सत्ता
जगत के सर्ी प्रावणयों का सचं ालन करती है। इस ईश्वरीय सत्ता की अनर्ु वू त कराना ही विक्षा
का लक्ष्य होना चावहए। इसकी अनर्ु वू त होने पर ही व्यवक्त इस संसार के सार् तादात्म्य स्र्ावपत
कर सकता है ि व्यवक्तत्ि को पणू थता प्रदान कर सकता है।
5. सभ्यता एिं सस्ं कृशत का शिकास Development of Culture and Civilization -
आदिथिाद यह मानता है वक व्यवक्त वजस समाज का सदस्य है, उस समाज की सस्ं कृ वत से
उसका पररचय होना परम आिश्यक है। सार् ही बालक यवद समाज को जीवित रखना चाहता
है तो उसे समाज की धरोहर के रूप में जो सभ्यता ि संस्कृ वत प्राप्त होती है, उसकी र्ी रक्षा
करनी चावहए। सभ्यता ि सस्ं कृ वत तो िह आधार प्रस्ततु करती है वजसके द्वारा समाज का
विकास सर्ं ि होता है। आदिथिाद व्यवक्त की अपेक्षा समाज को महत्ि देता है। इसी कारण िह
विक्षा का उद्देश्य सभ्यता ि संस्कृ वत का विकास करना मानते हैं। रस्क का विचार है वक
‘‘सांस्कृ वतक िातािरण मानि का स्िरवचत िातािरण है अर्िा यह मनष्ट्ु य की सृजनात्मक
वक्रया का पररणाम है वजसकी रक्षा ि विकास करना विक्षा का उद्देश्य होना चावहए।’’
(Culture Environment is an environment of man’s creative activity. The
aim of idealistic education is the preservation as well as environment of
Culture. (Rusk ) ।
6. िस्तु की अपेक्षा शििारों का महत्ि (Idea are Important than Objective) -
आदिथिाद यह मानता है वक इस संसार में पदार्थ नाििान है ि विचार अमर। विचार सत्य,
िास्तविक ि अपररितथनिील है। विचार ही मनष्ट्ु य को ज्ञान प्रदान करने का माध्यम है। यह
संसार मनष्ट्ु य के विचारों में ही वनवहत होता है। िह यह मानते हैं वक यह जगत यंत्रित् नहीं है।
चंवू क इस जगत में विद्यमान िस्तओ ु ं का जन्म मानवसक प्रवक्रयाओ ं के फलस्िरूप ही होता है।
इनका विचार है वक ‘‘यह विश्व विचार के समान है, यत्रं ित् नही। (Universe is like a
thought than a machine )
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7. जड़ प्रकृशत की अपेक्षा मनुष्ट्य का महत्ि (Man is Important then Nature) -
आदिथिादी मनष्ट्ु य का स्र्ान ईश्वर से र्ोड़ा ही नीचा मानते हैं। (Man is little lower than
angels ) इनका विचार है वक मनष्ट्ु य इतना सक्षम होता है वक िह आध्यावत्मक जगत का
अनर्ु ि कर सके ि ईश्वर से अपना तादात्म्य स्र्ावपत कर सके या उसकी अनर्ु वू त कर सके । इस
कारण िह जड़ प्रकृ वत से बहुत महत्िपणू थ है। िह यह र्ी मानते हैं वक मनष्ट्ु य बवु िपणू थ ि
वििेकपणू थ प्राणी है और बवु ि ही मनष्ट्ु य के विवर्न्न प्रकार के वक्रया-कलापों का आधार बनती
है, वजससे मानि अपने आपको पििु त् गणु ों से ऊंचा उठा लेता है।
8. समाज शहत का उद्देश्य (Aims of the Welfare of the Society) - आदिथिाद जब
विक्षा के उद्देश्यों की चचाथ करता है तो व्यवक्तत्ि के विकास पर बल देता है और व्यवक्तत्ि
विकास में सामावजक वहत अन्तवनथवहत होता है। जब आदिथिाद आत्मानर्ु वू त में व्यवष्ट या
स्िार्थपरता वनवहत न होकर समवष्ट या परमार्थ र्ाि वनवहत होता है। प्रवसि आदिथिादी दािथवनक
हॉवकंग (Hocking) जब विक्षा के उद्देश्यों की चचाथ करता है तो िह विक्षा के दो उद्देश्य
बताता है-
a. सम्प्रेषण (Communication)
b. विकास के वलए प्रािधान (Development of the Society)
सम्प्रेषण में िह यह मानता है वक विक्षा का मख्ु य उद्देश्य है वक िह समाज की संस्कृ वत को एक पीढ़ी
से दसू री पीढ़ी तक स्र्ानान्तररत करें, वसफथ संस्कृ वत का सम्प्रेषण मात्र करना ही विक्षा का उद्देश्य
नहीं है। चवू क सम्प्रेषण कर देने से संस्कृ वत अिरूि हो जायेगी। अतः विक्षा द्वारा प्रत्येक पीढ़ी को
इस बात के वलए तैयार वकया जाना चावहए वक िह उस संस्कृ वत में विकास कर सके । इसके वलए यह
आिश्यक है वक विक्षा उवचत सामावजक िातािरण तैयार करे जो समाज के विकास में सहयोग दे।
हॉनथ (Horn) इन दोनों पक्षों (व्यवक्तगत ि सामावजक) के मध्य संश्लेषण करते हुए कहता है,
‘‘विक्षा द्वारा बालक की संस्कृ वत का ज्ञान ि उसमें विकास करना आना चावहए, सार् ही उसमें
सामावजक कुिलता ि नागररकता का विकास र्ी होना चावहए।’’
आदिथिादी विचारधारा ने मख्ु यतया विक्षा के उद्देश्यों की चचाथ की है, परन्तु इन्होंने विक्षा के अन्य
पक्षों पर र्ी र्ोड़ा प्रकाि डाला है, उनकी उपेक्षा नहीं की है। अब हम इस बात की चचाथ करेंगे वक
आदिथिाद ने पाठ्यक्रम, पाठन विवध, विक्षक, अनि ु ासन आवद के संबधं में क्या विचार वदये हैं।
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आर्ास तो मानता ही है। सत्य को इसी र्ौवतक जगत में रहकर एिं र्ौवतक िातािरण के सहयोग से
ही आदिथिाद चरम सत्य को प्राप्त करने का परामिथ देता है। मनष्ट्ु य का आध्यावत्मक िातािरण
अवधक महत्िपणू थ होता है वकन्तु प्राकृ वतक िातािरण की उपेक्षा नहीं की जा सकती। व्यवक्त िरीर
और मन का संयोग है वजसमें मन अवधक महत्िपणू थ है। वकन्तु यवद िारीररक आिश्यकताओ ं की
पवू तथ न की गयी तो मानवसक वक्रया र्ी दःु साध्य हो जायेगी। व्यवक्त आत्मानर्ु वू त की ओर तर्ी आगे
बढ़ सकता है जबवक उसने िारीररक आिश्यकताओ ं को िि में कर वलया हो। अतः र्ौवतक जगत
की जानकारी र्ी आिश्यक है। छात्र को प्राकृ वतक िातािरण का ज्ञान होना चावहए। इसके सार् ही
आध्यावत्मक िातािरण पर वििेष दृवष्ट होनी चावहए। आध्यावत्मक िातािरण में व्यवक्त के बौविक,
सौन्दयाथनर्ु वू त संबधं ी, नैवतक एिं धावमथक सर्ी वक्रया-कलाप आते हैं। उसका ज्ञान, कला, नीवत
तर्ा धमथ इसी आध्यावत्मक िातािरण के अतं गथत हैं। समाज की प्राकृ वतक एिं आध्यावत्मक दोनों
प्रकार की आिश्यकताएं हैं। प्राकृ वतक िातािरण से मानि समाज प्रर्ावित होता रहता है। उसने
कला, धमथ एिं नीवत आवद का विकास करके आध्यावत्मक िातािरण का सृजन वकया है। समाज
अपने ज्ञान को स्र्ायी बनाना चाहता है वक उसके र्ािी सदस्य प्राकृ वतक विषयों एिं आध्यावत्मक
विषयों का ज्ञान प्राप्त करें। िह यह नहीं चाहता वक समाज में एक प्रकार के ही व्यवक्त हों। अतः
समाज एिं व्यवक्त दोनों की दृवष्ट से ही पाठ्यक्रम में प्राकृ वतक एिं आध्यावत्मक िातािरण के ज्ञान
का समािेि होना चावहए। व्यवक्त आत्मानर्ु वू त र्ी तर्ी कर सकता है जब दोनों प्रकार की
आिश्यकता की पवू तथ में सचेष्ट हो।
इस दृवष्ट से आदिथिाद िारीररक प्रविक्षण की उपेक्षा नहीं कर सकता। िारीररक विक्षा र्ी उसके
पाठ्यक्रम में होगी। प्राकृ वतक िातािरण की जानकारी प्राकृ वतक विज्ञानों से होती है, अतः र्ौवतकी,
रसायवनकी, र्वू मवत, र्गू ोल, खगोल, र्गू र्थ विज्ञान, िनस्पवतिास्त्र, जीि-विज्ञान आवद विषयों को
आदिथिाद वतलांजवल नहीं देता। आध्यावत्मक विकास के वलए कला, सावहत्य, नीवतिास्त्र, दिथन,
धमथ, मनोविज्ञान, संगीत आवद विषय अवधक महत्िपणू थ हैं। इन विषयों के अध्ययन से मानि की
आत्मा का विकास होता है। यवद इन विषयों का अध्ययन न वकया जाये तो व्यवक्त प्राकृ वतक
िातािरण तक ही सीवमत रह जायेगा।
4.4.3 शिक्षण पद्धशतयां (Teaching Method)
i. स्िाध्याय शिशध - आदिथिादी दािथवनक प्राचीन सावहत्य का आदर करते हैं। िे मानते हैं वक
हमारे प्राचीन सावहत्य में हमारे पिू थजों द्वारा खोजा हुआ ज्ञान र्रा पड़ा है, हमें उससे लार् उठाना
चावहए। प्राचीन सावहत्य के अध्ययन के वलए िे स्िाध्याय विवध के पक्षधर हैं। पर इस विवध का
प्रयोग विक्षा के उच्च स्तर पर ही वकया जा सकता है।
ii. आगमन एिं शनगमन शिशध - प्रवसि दािथवनक अरस्तू इन विवधयों द्वारा विक्षा वदये जाने पर
बल देते हैं। आगमन विवध में सामान्य से विविष्ट की ओर चला जाता है और वनगमन विवध में
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विविष्ट से सामान्य की ओर चला जाता है। पहले िे उदाहरण प्रस्ततु कर सामान्यीकरण करते र्े
और वफर इस प्रकार प्राप्त वसिान्त का प्रयोग करते र्े।
iii. प्रश्नोत्तर एिं संिाद शिशध - प्रश्नोत्तर एिं सिं ाद पिवत के जनक प्रख्यात दािथवनक सक ु रात र्े।
संदर्थ विषयों की व्याख्या करके और तदपु रान्त पछू े गये प्रश्नों का उत्तर देकर सक ु रात तत्कालीन
समय में विद्यावर्थयों को विक्षा प्रदान वकया करते र्े। िे वकसी स्र्ान पर यिु कों को एकवत्रत कर
उनके सामने प्रश्न प्रस्ततु करते र्े, यिु क उन प्रश्नों पर विचार करते र्े, उत्तर देते र्े, तब िे उन
प्रश्नों के सदं र्थ में अपना मत स्पष्ट करते र्े। मालेिो ने प्रश्नोत्तर विवध के आधार पर संिाद विवध का
विकास वकया। मालेिो ने अपनी अवधकतर रचनाएं र्ी संिादों के रूप में वलखी हैं। मालेिो के
संिाद विश्वविख्यात हैं।
इसके अवतररक्त आधवु नक आदिथिादी दािथवनकों ने तकथ विवध, खेल विवध, अनदु ेिन विवध एिं
आिृवत्त विवध का विकास वकया है।
iv. अनुकरण शिशध - आदिथिादी दािथवनकों के अनसु ार बालक अनक ु रण द्वारा र्ी सीखता है।
अतः विक्षकों, बालकों के सामने अपने उच्च आचरण प्रस्ततु करने चावहए। विक्षकों से यह
अपेक्षा करते हैं वक िे बच्चों के सम्मख ु लेख, वचत्रकला ि सगं ीत आवद के उत्कृ ष्ट नमनू े प्रस्ततु
करें, वजनका अनक ु रण कर िे इनको सीखें। िे विक्षकों से यह र्ी अपेक्षा रखते हैं वक िे छात्रों में
अच्छे से अच्छा कर वदखाने की प्रेरणा ि स्पधाथ उत्पन्न करें। उस वस्र्वत में अनक ु रण विवध द्वारा
विक्षण अवत लार्कारी होता है। बच्चों के मलू यों के विकास और उनके चररत्र वनमाथण के वलए
िे बच्चों के सामने धमथग्रन्र्ों और सावहत्य के धीरोदात्त नायकों के चररत्र प्रस्ततु करने पर बल
देते हैं। आदिथिावदयों का विश्वास है वक मनष्ट्ु य की प्रकृ वत अच्छे बरु े में र्ेद करने की होती है, िे
इन धीरोदात्त नायकों के गणु ों का अनक ु रण कर अच्छे मनष्ट्ु य बन सकें गे।
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10. तकथ विवध, खेल विवध, अनदु ेिन विवध एिं आिृवत्त विवध का विकास वकया है-
(अ) प्रकृ वतिादी (ब) प्रयोजनिादी (स) आदिथिादी (द) अवस्तत्ििादी
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4.6 आदिथवाद एवां बालक (Idealism and Child)
आदिथिाद में बालक को विक्षण प्रवक्रया का मख्ु य वबन्दु नहीं माना जाता। उनके अनसु ार विक्षण
प्रवक्रया में र्ािों, विचारों ि आदिो का महत्िपणू थ स्र्ान है और इनको प्रदान करने के माध्यम के
रूप में िह अध्यापक को महत्िपणू थ स्र्ान देते हैं ि बालक को गौण। िह छात्रों को एक आध्यावत्मक
प्राणी मानते हैं ि यह स्िीकार करते हैं वक आध्यावत्मक सत्ता र्ी होती है। िे मन को िरीर से अवधक
महत्ि देते हैं। हॉनथ ने इस संबंध में कहा है, ‘‘विद्यार्ी एक पररवमत व्यवक्त है वकन्तु उवचत विक्षा
वमलने पर िह परम परूु ष के रूप में विकवसत होता है। उसकी मल ू उत्पवत्त दैविक है, स्ितंत्रता उसका
स्िर्ाि है और अमरत्ि की प्रावप्त उसका लक्ष्य है।’’
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स्िमूलयांकन हेतु प्रश्न
4.8 साराांि
आदिथिादी विक्षा को पवित्र कायथ मानता है। विक्षार्ी का व्यवक्तत्ि उसके वलए महान है। अतः िह
छात्र के व्यवक्तत्ि का पणू थ विकास करना चाहता है। यह विकास सही वदिा में होना चावहए। विकास
की वदिा ऐसी हो वक बालक आत्मानर्ु वू त की ओर बढ़ सके और ‘‘सत्यम् वििम् सन्ु दरम’् ’ का
दिथन कर सके । विश्व में इससे बढ़कर न तो कोई लक्ष्य हो सकता है, न ही इससे बढ़कर कोई
उपलवब्ध हो सकती है। आदिथिादी परम-सत्य में विश्वास करता है। िह परम-सत्य लक्ष्यों का लक्ष्य
है, विवर्न्न सत्यों का आधार, सन्ु दरों में सौन्दयथ का मल ू तर्ा साक्षात् वििम् है। जीिन की पणू थता
उसी वदिा में चलने में है। अतः हम यह कह सकते हैं वक आदिथिाद ने विक्षा की वदिा वनवश्चत करने
में विक्षािावस्त्रयों का मागथ-दिथन वकया है। विक्षा के उद्देश्य वनवश्चत करते समय हम कर्ी-कर्ी दरू
दृवष्ट से काम नहीं लेते। आदिथिाद हमें इस खतरे से सािधान करता है। आदिथिादने आत्मानर्ु वू त
जैसा विक्षा का उद्देश्य देकर, अनेकता में एकता की अतं दृवष्ट प्रदान करके एिं ‘‘सत्यम् वििम्
सन्ु दरम’् ’ की प्रावप्त की दरू -दृवष्ट देकर विक्षा का बड़ा उपकार वकया है।
आदिथिाद ने विक्षक के स्र्ान को बड़ा महत्ि वदया है। इसका पररणाम यह होता है वक विक्षक
अत्यवधक सवक्रय रहता है और छात्र वनवष्ट्क्रय हो जाते हैं। छात्र इससे वनरूत्सावहत होता है और स्ियं
सीखने के वलए इच्छा नहीं करता।
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उपयथक्त
ु दोषों में कुछ सत्यता अिश्य है, वकन्तु कर्ी-कर्ी वकसी दािथवनक विचारधारा को ठीक से न
समझने के कारण ही उसकी आलोचना की जाती है। आदिथिाद का परम-सत्य सबकी समझ में नहीं
आ पाता। अतः िे उसे कालपवनक और अयर्ार्थ समझते हैं। जहां तक विक्षण-विवधयों का प्रश्न है,
आदिथिाद ने अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने के वलए वजस विवध को उवचत समझा, उसे अपनाया।
अन्त में हम यह कह सकते हैं वक जहा तक विक्षा के उद्देश्यों का सबं धं है, आदिथिाद के सामने
कोई दसू री विचारधारा विक नहीं सकती। विक्षा के अन्य अगं ों के क्षेत्र में आदिथिाद ने अवधक ध्यान
नहीं वदया।
4.9िब्दावली
1. जगत - जगत से हमारा अवर्प्राय संसार अर्ाथत् परू े विश्व में व्याप्त र्मू ण्डल।
2. आध्याशत्मक - आध्यावत्मक से हमारा अवर्प्राय धावमथक वक्रया-कलापों, पजू ा-पाठ ि
ईश्वर में ध्यान, सत्य का मागथ आवद।
3. नश्वर - इस ससं ार में प्रत्येक िस्तु नश्वर है। अर्ाथत् वजसका जन्म हुआ है या वनमाथण हुआ
िह एक वदन समाप्त अिश्य ही होती है।
4. संस्कृशत - संस्कृ वत से हमारा अवर्प्राय हमारे रीवत-ररिाज, परम्पपराए,ं आचरण ि धावमथक
वक्रया-कलाप, हमारी संस्कृ वत हैं।
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14. (ब) आदिथिादी
15. आदिथिादी
4.12शनबांधात्मक प्रश्न
1. आदिथिाद से आप क्या समझते हैं? जीिन दिथन के रूप में आदिथिाद की विस्तृत चचाथ
कीवजए।
2. आदिथिाद में विक्षा के प्रमख
ु उद्देश्यों का विस्तृत िणथन कीवजए।
3. आदिथिादी पाठ्यक्रम और विक्षण पिवतयों का विस्तृत िणथन कीवजए।
4. आदिथिादी विक्षक एिं बालकों के प्रमख ु गणु ों का विस्तृत िणथन कीवजए।
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इकाई- 5: प्रयोजनवाद Pragmatism
5.1 प्रस्तािना
5.2 उद्देश्य
5.3 प्रयोजनिाद और विक्षा
5.3.1 प्रयोजनिाद की तत्ि मीमासं ा, ज्ञान मीमासं ा, आचार मीमासं ा
5.3.2 प्रयोजनिाद का अर्थ
5.3.3 प्रयोजनिाद की पररर्ाषाएं
5.4 प्रयोजनिाद की प्रमुख वििेषताएं
5.5 प्रयोजनिाद के आधारर्ूत वसिान्त
5.5.1 प्रयोजनिादी पाठ्यक्रम
5.5.2 प्रयोजनिादी विक्षण पिवत
5.6 आदिथिाद ि प्रयोजनिाद में अतं र
5.7 प्रकृ वतिाद ि प्रयोजनिाद में अतं र
5.8 प्रयोजनिाद का आधवु नक विक्षा पर प्रर्ाि
5.9 सारांि
5.10 िब्दािली
5.11 स्िमूलयांकन हेतु प्रश्नों के उत्तर
5.12 सन्दर्थ ग्रर्ं सचू ी
5.13 वनबन्धात्मक प्रश्न
5.1 प्रस्तावना
प्रयोगिाद एक आधवु नक अमेररकी जीिन दिथन है। यह अमेररकी राष्ट्र के जीिन तर्ा विचार का
प्रवतवनवधत्ि करता है। िस्ततु ः अमेररका नि वनिावसयों का देि है। वििेषकर पवश्चमी यरू ोप के
प्रगवतिील वनिासी ही िहां जाकर 16िीं-17िीं िताब्दी में बस गए। िहााँ उन्हें सिथर्ा नई वस्र्वतया,ं
समस्याओ ं एिं िातािरण का सामना करने के वलए कोई पिू थ वनवमथत समाधान नहीं र्ा। इसवलए िे
अपने जीिन का मागथ खदु प्रस्त वकए । जीिनगत समस्याओ ं का समाधान र्ी उन्हें नये तरीके से
स्ियं ढूंढना पड़ा। यहां तक वक पिू थ मान्यताएं स्ितः ही वबखरने लगीं तर्ा निीन उपयोगी
विचारधारा का जन्म हुआ। यही विचारधारा प्रयोजनिाद के नाम से अवर्वहत हुई। उसके अनसु ार
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िही दिथन सही है वजसका नाता मानि जीिन तर्ा मानि वक्रयाकलापों से ही प्रयोजनिाद वनवश्चत
एिं िाश्वत् मलू यों के वसिान्त को स्िीकार नहीं करता है। िह तो जीिन और समाज के वलए उपयोगी
एिं व्यािहाररक वसिान्तों को स्िीकार करता है। वजनके सहारे मानि अपनी जीिनगत समस्याओ ं
का समाधान ढूंढने में सफल होता है। यह आसमान को कम, धरती को ज्यादा महत्ि देता है।
प्रयोजनिाद का उत्पवत्त स्र्ल अमेररका है, जहां एक दिथन के रूप में इसका विकास हुआ। चालसथ
वपयसथ तर्ा विवलयम जेम्स इस विचारधारा के प्रवतपादक माने जाते हैं। जेम्स ने मानि अनर्ु ि के
महत्ि को स्पष्ट वकया और मानि को समस्त िस्तओ ु ं और वक्रयाओ ं की सत्यता की कसौिी बताया।
जेम्स के बाद अमेररका के ही एक विचारक जॉन डीिी ने इस विचारधारा को आगे बढ़ाया। डीिी ने
व्यवक्त की इच्छा को सामावजक पररप्रेक्ष्य में स्िीकार वकया। उनके अनसु ार मानि प्रगवत का आधार
सामावजक बवु ि ही होती है। डीिी के बाद अमेररका में उनके विष्ट्य वकलपैवरक ने इस विचारधारा
को आगे बढ़ाया और इग्ं लैण्ड में विलर महोदय ने। इन सबमें डीिी का योगदान सबसे अवधक
है।प्रयोजनिादी वकसी वनवश्चत सत्य में विश्वास नहीं करते। उनके विचार से दिथन र्ी सदा वनमाथण की
वस्र्वत में रहता है। चवंू क मानि जीिन पररितथनिील है, अतः इस प्रकार की विक्षा के उद्देश्य, पाठ्य
चचाथ आवद का वनमाथण न करके उनके वनमाथण के वसिान्त प्रस्ततु वकए गये हैं। इस विचारधारा के
प्रमखु दािथवनक एिं विक्षाविद् जॉन डीिी माने जाते हैं।
5.2 उद्देश्य
1. प्रयोजनिाद ि विक्षा के संबधं में जान सकें गे।
2. प्रयोजनिाद दिथन के अर्थ और पररर्ाषाएं का ज्ञान प्राप्त कर सकें गे।
3. प्रयोजनिाद के दािथवनक रूपों का अध्ययन कर सकें गे।
4. प्रयोजनिाद के प्रमख
ु वसिान्तों के बारे में ज्ञान प्राप्त कर सकें गे।
5. प्रयोजनिाद की प्रमखु वििेषताओ ं के बारे में जान सकें गे।
6. अवस्तत्ििादी विक्षा के उद्देश्य, पाठ्यक्रम के बारे में ज्ञान प्राप्त कर सकें गे।
7. अवस्तत्ििादी विक्षक, विद्यार्ी ि विक्षण विवध के बारे में जान सकें गे।
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िैयवक्तक कुिलता के माध्यम द्वारा उसे अवधक सामावजक मलू य प्राप्त होता है।’’ िह यह मानता है
वक मनष्ट्ु य की विक्षा की प्रवक्रया अनिरत चलती रहती है। चवंू क अनर्ु ि द्वारा िह कुछ न कुछ ग्रहण
करता रहता है। वनत्य प्रवत मानिीय पररवस्र्वतयां बदलती हैं और मनष्ट्ु य उनके अनक ु ू ल अपनी
वक्रयाओ ं को र्ी बदल लेता है। नये पररिेि में व्यवक्त जब अपनी समस्याओ ं का हल ढूंढता है तो
उसके अनर्ु ि विकवसत होने लगते हैं। यह समृि अनर्ु ि ही विक्षा है। जॉन ड्यिू ी विक्षा को एक
व्यापक प्रवक्रया के रूप में देखते हैं जो विद्यालय के सार् ही समाज में र्ी चलती रहती है। इसी
कारण अर्थ वक्रयािादी यह मानता है वक विक्षा जीिन पयथन्त चलने िाली एक प्रवक्रया है अर्िा
विक्षा जीिन है और जीिन विक्षा।
5.3.1 प्रयोजनिाद की तत्ि मीमास
ं ा, ज्ञान मीमास
ं ा, आिार मीमास
ं ा
Metaphysics, Epistemology and Ethics of Pragmatism
प्रयोजनिाद की तत्ि मीमास
ं ा Metaphysics of Pragmatism
प्रयोजनिादी इस ब्रह्माण्ड की रचना के संबंध में विचार करने के स्र्ान पर मनष्ट्ु य जीिन के
िास्तविक पक्ष पर अपना ध्यान के वन्रत रखते हैं। िे इस ब्रह्माण्ड के बारे में के िल इतना ही कहते हैं
वक यह अनेक िस्तओ ु ं और अनेक वक्रयाओ ं का पररणाम है, िस्तु और वक्रयाओ ं की व्याख्या के
झमेले में ये नहीं पड़ते। इस इवन्रयग्राह संसार के अवतररक्त ये वकसी अन्य संसार के अवस्तत्ि को
स्िीकार नहीं करते। ये आत्मा-परमात्मा के अवस्तत्ि को र्ी नहीं स्िीकारते। इनके अनसु ार मन का
ही दसू र नाम आत्मा है और मन एक पदार्थ जन्म वक्रयािील तत्ि है।
प्रयोजनिाद की ज्ञान मीमास
ं ा Epistemology of Pragmatism
प्रयोजनिावदयों के अनसु ार अनर्ु िों की पनु रथचना ही ज्ञान है। ये ज्ञान को साध्य नहीं अवपतु मनष्ट्ु य
जीिन को सख ु मय बनाने का साधन मानते हैं। इसकी प्रावप्त सामावजक वक्रयाओ ं में र्ाग लेने से स्ियं
होती है। कमेवन्रयों और ज्ञानेवन्रयों को ये ज्ञान का आधार मानते हैं और मवस्तष्ट्क तर्ा बवु ि को ज्ञान
का वनयंत्रक।
प्रयोजनिाद की आिार मीमांसा Ethics of Pragmatism
प्रयोजनिादी वनवश्चत मलू यों और आदिो में विश्वास नहीं करते इसवलए ये मनष्ट्ु य के वलए कोई
वनवश्चत आचार संवहता नहीं बनाते। इनका स्पष्टीकरण है वक मनष्ट्ु य जीिन में वनरन्तर पररितथन होता
रहता है इसवलए उसके आचरण को वनवश्चत नहीं वकया जा सकता। उसमें तो िह िवक्त होनी चावहए
वक िह बदले हुए पयाथिरण में समायोजन कर सके । िे बच्चों में के िल सामावजक कुिलता का
विकास करना चाहते हैं। सामावजक कुिलता से व्यािहाररकतािावदयों का तात्पयथ समाज में
समायोजन करने, अपनी जीविका कमाने, मानि उपयोग की िस्तु एिं वक्रयाओ ं की खोज करने और
नई-नई समस्याओ ं का समाधान करने की िवक्त से होता ह
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5.3.2 प्रयोजनिाद का अर्थ Meaning of Pragmatism
प्रयोजनिाद आग्ं ल र्ाषा के ‘प्रैग्मवै िज्म’ (Pragmatism) िब्द का वहन्दी रूपान्तर है, वजसकी
व्यत्ु पवत्त ग्रीक र्ाषा के ‘प्रैग्मा’ (Prama)िब्द से हुई है, वजसका तात्पयथ है ‘वक्रया’ अर्ाथत्
‘व्यािहाररक’ या ‘व्यिहायथ’। दसू रे िब्दों में प्रयोजनिाद िह विचारधारा है जो उन्हीं बातों को सत्य
मानती है, जो व्यािहाररक जीिन में काम आ सकें । प्रयोजनिादी मतू थ िस्तओ ु ,ं िाश्वत वसिान्तों और
पणू थता तर्ा उत्पवत्त में विश्वास नहीं करते। इनके अनसु ार सदैि देिकाल तर्ा पररवस्र्वत के अनसु ार
सत्य पररिवतथत होता रहता है, क्योंवक एक िस्तु जो एक देि, काल तर्ा पररवस्र्वत में उपयोगी होती
है िह दसू रे में नहीं। प्रयोगिाद को ‘प्रयोजनिाद’ र्ी कहा जाता है, क्योंवक यह ‘प्रयोग’
(Experiment0 को ही सत्य की एकमात्र कसौिी मानता है। इसे हम ‘फलिाद’ र्ी कह सकते हैं,
क्योंवक इसमें वकसी कायथ का मलय उसके पररणाम या फल के आधार पर आक ं ा जाता है।
इस प्रकार, ‘‘प्रयोजनिाद वजसे हम प्रयोगिाद या फलिाद र्ी कह सकते हैं, िह विचारधारा है जो
उन्हीं वक्रयाओ,ं िस्तओ ु ,ं वसिान्तों तर्ा वनयमों को सत्य मानती है, जो वकसी देि, काल और
पररवस्र्वत में व्यािहाररक तर्ा उपयोगी हो।’’
5.3.3 प्रयोजनिाद की पररभाषाएं Definition of Pragmatism
1. रस्क के अनसु ार (According to Rusk) - ‘‘प्रयोजनिाद एक प्रकार से निीन
आदिथिाद के विकास की अिस्र्ा है, एक ऐसा आदिथिाद जो िास्तविकता के प्रवत पणू थ
न्याय करेगा, व्यािहाररक तर्ा आध्यावत्मक मलू यों का समन्िय करेगा और इसके
पररणामस्िरूप उस संस्कृ वत का वनमाथण होगा वजसमें वनपणु ता का प्रमख ु स्र्ान होगा, न वक
उसकी उपेक्षा होगी।’’
2. जेम्स के अनसु ार (According to Jams) - ‘‘प्रयोजनिाद मवस्तष्ट्क का स्िर्ाि तर्ा
मनोिृवत्त है। यह विचारों की प्रकृ वत एिं सत्य का र्ी वसिान्त है और अपने अवं तम रूप में
यह िास्तविकता का वसिान्त है।’’ (Pragmatism is a temper of mind an
attitude. It Is also a thing of nature of ideas and truth and finally it is
a thing about reality)
3. रॉस के अनसु ार (According to Ross)- ‘‘प्रयोजनिाद एक मानिीय दिथन है जो यह
स्िीकार करता है वक मनष्ट्ु य वक्रया की अिवध में अपने मलू यों का वनमाथण करता है और यह
स्िीकार करता है वक िास्तविकता सदैि वनमाथण की अिस्र्ा में रहती है।’’ (Pragmatism
is essently a humanistic philosophy, maintain that man creates his own
values in course of activity, that reality is still in making and awaits its
past of completion from that future)
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4. जैम्स प्रैि के अनसु ार (According to Jams Prett) - ‘‘प्रयोजनिाद हमें अर्थ का
वसिान्त, सत्य का वसिान्त, ज्ञान का वसिान्त और िास्तविकता का वसिान्त देता है।’’
(Pragmatism offers us a theory of meaning, a theory of truth , a theory
of knowledge and a theory of Knowledge.)
5. रोजन के अनसु ार (According to Rosen) - ‘‘प्रयोजनिाद के अनसु ार सत्य को उसके
व्यािहाररक पररणामों द्वारा जाना जा सकता है। इस कारण सत्य वनरपेक्ष न होकर व्यवक्तगत
या सामावजक समस्या है।’’ (Pragmatism states that truth can be known only
through its practical consequence and is thus an Individual or social
matter rather than an absolute)
िास्ति में देखा जाए तो अर्थ वक्रयािाद व्यािहाररकता या वक्रया पर बल देता है।
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प्रदान करती है और उनका महत्ि वनधाथररत करती है। हॉ, इस बात को र्ी स्िीकार करते हैं वक
विचार आतं ररक िस्तु है ि वक्रया बाह्य।
iv. शकसी सािथभौशमक सत्ता में आस्र्ा न होना (No faith in Supreme Power)-
प्रयोजनिाद ईश्वरीय सत्ता को स्िीकार नहीं करता। िह यह मानता है वक ईश्वरा वमथ्या है। आत्मा
के अवस्तत्ि को िह मानता अिश्य है परन्तु उसे एक वक्रयािील तत्ि के रूप में स्िीकार करता
है। उनके अनसु ार सिाथच्च सत्ता समाज की होती है।
v. उपयोशगता के शसद्धान्त पर बल (Emphasis on Principal of utility)- प्रयोजनिाद
यह मानता है वक वकसी र्ी वसिान्त अर्िा विश्वास की कसौिी उपयोवगता है। यवद कोई
वसिान्त हमारे उद्देश्यो का परू क है ि हमारे वलए लार्प्रद है तो ठीक है अन्यर्ा नहीं। कोई र्ी
वसिान्त स्ियं में उपयोगी या अनपु योगी नहीं होता। अगर उसका फल उपयोगी है तो ठीक है
और अगर फल अनपु योगी है तो वसिान्त र्ी ठीक नहीं है।
vi. व्यशि के सामाशजक जीिन पर बल (Emphasis on Individual’s School life)-
प्रयोजनिाद व्यवक्त को एक सामावजक इकाई के रूप में स्िीकार करता है ि बालक के व्यवक्तत्ि
के सामावजक पक्ष के विकास की अवधकाि ं तया चचाथ करता है। व्यवक्त समाज में रहकर अपने
जीिन को सफल बना सके , इसे िह महत्ि देता है ि इसके वलए यह र्ी अवनिायथ मानता है वक
व्यवक्त में सामावजक कुिलता का विकास वकया जाए।
vii. मनुष्ट्य एक मनोिरीररक प्राणी (Man is a Psychological Individual)- प्रयोजनिाद
मनष्ट्ु य को एक मनोिारीररक प्राणी मानता है। इनके अनसु ार मनष्ट्ु य को विचार ि वक्रया करने की
िवक्तयां प्राप्त हैं, वजनके माध्यम से मनश्ु य समस्या को समझने ि उनका हल ढढूं ने का प्रयास
करता है और अन्ततोगत्िा िह स्ियं को अपने िातािरण के अनक ु ू ल ढालने का प्रयास करता
है।
viii. बहुतत्ििादी शििारधारा (Pluralist Ideology)- प्रयोजनिाद यह मानता है वक इस ससं ार
की रचना अनेक तत्िों से वमलकर हुई है और इन तत्िों के मध्य वक्रया चलती रहती है, वजसके
पररणामस्िरूप रचनात्मक कायथ होता है। सबसे बड़ी बात यह है वक यह वक्रया सदैि चलती
रहती है ि ससं ार की रचना करती रहती है। इसी कारण प्रयोजनिाद के अनसु ार यह संसार सदैि
वनमाथण की अिस्र्ा में रहता है। मनष्ट्ु य इस संसार का सृजनिील प्राणी है। अतः मनष्ट्ु य र्ी सदैि
वक्रयािील रहता है।
ix. दिथन, शिक्षा का शसद्धान्त (Philosophy as the Theory of Education) -
प्रयोजनिाद यह मानता है वक िैवक्षक अभ्यासों के फलस्िरूप ही दिथन का जन्म होता है। जॉन
ड्यिू ी ने इस संबंध में कहा वक सामान्य रूप से दिथन विक्षा का वसिान्त है। (Philosophy is
the theory of education in its most general phase) िास्ति में दिथन द्वारा वनधाथररत
वसिान्त ही सत्य ि व्यिहायथ होते हैं।
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x. प्रजातंत्र में आस्र्ा (Faith in Democracy)- अर्थ वक्रयािाद प्रजातंत्र िासन व्यिस्र्ा पर
बल देकर उसके प्रवत अपनी आस्र्ा अवर्व्यक्त करता है। िह प्रजातंत्र को जीिन का एक
तरीका ि अनर्ु िों का आदान-प्रदान करने की एक व्यिस्र्ा के रूप में देखता है। िह जीिन,
विक्षा ि प्रजातंत्र को एक-दसू रे से संबंवधत प्रवक्रया मानते हैं।
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सफलता सत्य का रूप ग्रहण कर लेती है। इस प्रकार हमारे जीिन की समस्याऐ ं ही सत्य की
खोज के वलए हमें प्रेरणा प्रदान करती है।
iii. सत्य मानि वनवमथत होता है (Truth is Man-Made) - प्रयोजनिावदयों के अनसु ार सत्य
कोई ऐसी चीज नहीं जो पहले से विद्यमान हो। पररवस्र्वतयों में पररितथन होने के फलस्िरूप
मनष्ट्ु य के सामने अनेक समस्याएं उत्पन्न होती हैं। वजनकी पवू तथ के वलए मनष्ट्ु य वचन्तन करने
लगता है, वकन्तु वचन्तन में आए सर्ी विचार तो सत्य नहीं होते, सत्य तो के िल िही
विचार होते हैं, वजनका प्रयोग करने पर सन्तोषजनक फल प्राप्त हो।
iv. बहुत्ििाद का समर्थन (Vindication of Pluarism)- अवं तम सत्ता एक है, दो या अनेक
इस संबधं में मख्ु यतः तीन िाद हैं। 1. एकत्ििाद (Mononism)2. द्वैतिाद (Dualism)
तर्ा 3. बहुत्ििाद (Plualism)। प्रयोजनिाद बहुत्ििाद का समर्थक है। रस्क महोदय ने
इस तथ्य पर विचार करते हुए वलखा है-‘‘प्रकृ वतिाद प्रत्येक िस्तु को जीिन या (र्ौवतक
तत्ि), आदिथिाद मन या आत्मा मानता है। प्रयोजनिाद इस बात की आिश्यकता नहीं
समझता वक संसार का वकसी एक तत्ि या वसिान्त के आधार पर स्पष्टीकरण करे।
प्रयोजनिाद अनेक वसिान्तों को स्िीकार करने में सतं ोष अनर्ु ि करता है। इस तरह िह
बहुत्ििादी है।’’
“Naturalism reduces everything to life, idealism to mind or spirit.
Pragmatism sees no necessity for seeking one fundamental principal of
explanation. It is quite content to admit several principles and
accordingly is pluralistic” –Rusk.
v. उपयोवगता के वसिान्त का समर्थन (To Support the Principal of Utility)-
प्रयोजनिाद के अनसु ार के िल िही िस्तु अर्िा विचार ठीक है जो हमारे वलए उपयोगी है
और इसके विपरीत जो िस्तु या विचार हमारे वलए उपयोगी नहीं है िह हमारेवलए व्यर्थ है।
इस प्रकार प्रयोजनिादी उपयोवगता के वसिान्त का समर्थन करते हैं।
vi. मानिीय िवक्त पर बल (Emphasis on human power)- प्रयोजनिादी मानि की िवक्त
पर वििेष बल देता है, क्योंवक िह उसके द्वारा अपनी आिश्यकतओ ं के अनसु ार िातािरण
बना लेता है। िह सफलतापिू थक समस्याओ ं का समाधान करके अपने वलए सन्ु दर
िातािरण वनवमथत कर लेता है।
vii. सामावजक प्रर्ाओ ं एिं परम्पराओ ं की उपेक्षा (Negligence of Social Customs and
Traditions)- प्रयोजनिादी समाज में नाना प्रकार की प्रचवलत रूवढ़यों, बधं नों एिं
परम्पराओ ं की सिथर्ा उपेक्षा करते हैं। ये लोग ‘विचार’ की अपेक्षा ‘वक्रया’ को वििेष
महत्ि देते हैं, क्योंवक उनका विचार है वक विचार हमेिा ‘वक्रया’से ही उत्पन्न होते हैं।
viii. आध्यावत्मक तत्िों की उपेक्षा (Negligence of Spiritual Elements)- प्रयोजनिादी
व्यािहाररक जीिन से संबंध रखना उवचत समझते हैं। ईश्वर, आत्मा, धमथ इत्यावद का
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व्यािहाररक जीिन से सबं धं न होने के कारण इनका कोई महत्ि नहीं है। हॉ, यवद
व्यािहाररक जीिन में उनकी आिश्यकता अनर्ु ि हो तो िे उन्हें स्िीकार करने में र्ी नहीं
चक ू ते। कुछ र्ी हो प्रयोजनिादी आध्यावत्मक तत्िों की उपेक्षा करते हैं।
5.5.1 प्रयोजनिादी पाठ्यक्रम Pragmatism Curriculum)
प्रयोजनिादी पाठ्यक्रम वनम्नवलवखत बातों पर आधाररत हैः-
i. उपयोशगता शसद्धान्त (Principle of Utility) - प्रयोजनिावदयों के अनसु ार पाठ्यक्रम
में ऐसे वनयमों को स्र्ान देना चावहए जो बालकों के र्ािी जीिन में काम दें और उन्हें ज्ञान
तर्ा सफल जीिन की क्षमता प्रदान करें। इस दृवष्ट से उनके अनसु ार पाठ्यक्रम में र्ाषा,
स्िास्थ्य विज्ञान, िारीररक प्रविक्षण, इवतहास, र्गू ोल, गवणत, विज्ञान-बावलकाओ ं को
गृह-विज्ञान आवद विषयों को स्र्ान देना चावहए जो वक मानि प्रगवत में सहायक हों।
ii. सानुबंशधत का (Principle of Integration) - प्रयोजनिावदयों का विचार है वक जो
विषय पाठ्यक्रम में वनधाथररत वकए जाएाँ उन सबमें आपस में संबंध होना चावहए, क्योंवक
ज्ञान का पृर्क-पृर्क विर्ाजन नहीं होता। उनका विचार है वक बालकों को समस्त विषय
एक-दसू रे से संबवं धत कर पढ़ाने चावहए, वजससे न के िल बालकों का ज्ञान प्राप्त करना
सार्थक हो िरन् विक्षकों को पढ़ाने में र्ी सवु िधा हो।
iii. बाल के शन्ित पाठ्यक्रम (Child-Centered Curriculum)- प्रयोजनिावदयों का
विचार है वक पाठ्यक्रम का संगठन इस प्रकार करना चावहए वक उसमें बालक की प्राकृ वतक
अवर्रूवचयों को पणू थ स्र्ान हो। बालक की ये अवर्रूवचयां मख्ु य रूप से चार हैं- 1.
बातचीत करना, 2. खोज करना, 3. कलात्मक अवर्व्यवक्त एिं 4. रचनात्मक कायथ करना।
इस दृवष्ट से पाठ्यक्रम में वलखने, पढ़ने, वगनने, प्रकृ वत विज्ञान, हस्तकायथ एिं ड्राइगं का
अध्ययन करने के साधनों को स्र्ान वमलना चावहए।
iv. बालक के व्यिसाय, शक्रयाओ ं एिं अनभ ु ि पर आधाररत (On the base of
Child’s Occupation Activities and Experience)- प्रयोजनिावदयों का विचार
है वक पाठ्यक्रम का संगठन बालक के व्यिसायों एिं अनर्ु ि पर आधाररत होना चावहए।
उनका विचार है वक वकताबों को के िल रि लेना विक्षा नहीं है बवलक यह तो एक सवु िचार
प्रवक्रया है, फलस्िरूप पाठ्यक्रम में विक्षा विषयों के अवतररक्त सामावजक, स्ितंत्र एिं
उद्देश्यपणू थ वक्रयाओ ं को स्र्ान वमलना चावहए, वजससे वक बालकों में नैवतक गणु ों का
विकास होगा, स्ितत्रं ता की र्ािना का सचं ार होगा, उन्हें नागररकताकी प्रवतक्षा वमलेगी
तर्ा उनमें आत्म-अनि ु ासन की र्ािना पैदा होगी।
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5.5.2 प्रयोजनिादी शिक्षण पद्धशत Pragmatic Method of Teaching
प्रयोजनिादी विक्षािावस्त्रयों ने प्राचीन एिं रूवढ़िादी विक्षा पिवतयों का विरोध करते हुए ितथमान
विक्षण विवधयों का प्रवतपादन वकया। उनका विचार है वक कोई पिवत इसवलए स्िीकार नहीं करनी
चावहए, क्योंवक िह पहली से विक्षा के क्षेत्र में प्रयोग होती आ रही है बवलक उनका विचार है वक
पररवस्र्वतयों के अनसु ार निीन पिवतयों की रचना करनी चावहए। इस दृवष्टकोण से उन्होंने विक्षण
पिवत के कुछ वसिान्त प्रवतपावदत वकए हैं, वजनके आधार पर उसका वनमाथण होना चावहए। ये
वसिान्त वनम्नवलवखत हैं:-
i. बाल के शन्ित पद्धशत (Child- Centered Method) - प्रयोजनिावदयों का विचार है
वक प्रत्येक विक्षण पिवत को ‘बाल के वन्रत’ (Child-Center) होना चावहए, अर्ाथत्
विक्षा पिवत इस प्रकार होनी चावहए जो बालक की अवर्रूवचयों, आिश्यकताओ,ं उद्देश्यों
आवद के अनक ु ू ल हो, वजससे वक बालक प्रसन्नतापिू क
थ अपने जीिन में काम आने िाली
विक्षा ग्रहण कर सके ।
ii. करके सीखने अर्िा स्िानभ ु ि से सीखने की पद्धशत (Method of Learning by
doing or Experience)- प्रयोजनिादी विचार अर्िा िब्द की अपेक्षा वक्रया पर
अवधक जोर देते हैं। उनका विचार है वक बालकों को पस्ु तकों की अपेक्षा वक्रयाओ ं और
अनर्ु िों से अवधक सीखना चावहए वजससे वक उनके ज्ञान का व्यािहाररक मलू य अवधक
हो, फलस्िरूप िह ‘करके सीखने अर्िा स्िानर्ु ि द्वारा सीखने’ (Learning by doing
or Experience) पर वििेष महत्ि देते हैं।
iii. सानबु न्धता की पद्धशत ((Method of Integration)- प्रयोजनिावदयों ने विक्षा-
पिवतयों के वनमाथण का तीसरा वसिान्त प्रवतपावदत वकया है, वजसे सानबु न्धता का वसिान्त
(Principal of Integration or Correlation))- कहते हैं। प्रयोजनिादी ‘विवर्न्नता में
एकता के वसिान्त’ (Principal of Unity in Divedrsity) का समर्थन करते हुए कहते
हैं वक समस्त विषयों को परस्पर सबं वं धत कर पढ़ाना चावहए, वजससे बालक जो ज्ञान और
कौिल सीखते हैं, उनमें एकता स्र्ावपत हो जाती है।
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A. एकत्ििाद (Mononism)B. द्वैतिाद (Dualism)C.बहुत्ििाद (Pluralism)
9. ‘‘विवर्न्नता में एकता के वसिान्त (Principal of Utility In Diversity) का समर्थन
करते हैं।’’ यह विचारधारा है-
A. फलिाद/प्रयोजनिादB. आदिथिाद C. प्रकृ वतिाद D. अवस्तत्ििाद
10. ‘‘प्रत्येक विक्षण पिवत को बाल के वन्रत (Child-Cented) होना चावहए।’’ यह
विचारधारा है-
A. प्राचीनकालीन B. आधवु नक C. अवस्तत्ििादीD. प्रयोजनिादी
11. ‘‘मलू य तो मानि की व्यवक्तगत ि सामावजक घिनाओ ं के फलस्िरूप उत्पन्न होते हैं जो
सदैि पररितथनिील होते हैं।’’ यह विचारधारा है-
A. प्रयोजनिाद B. अवस्तत्ििाद C. प्रकृ वतिाद D. आदिथिाद
12. प्रयोग (Experiment) को ही सत्य की एकमात्र कसौिी कौन मानता है ?
A. प्रकृ वतिाद B. अवस्तत्ििाद C. प्रयोजनिाद D. आदिथिाद
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कसौिी है। 3. प्रयोजनिाद के अनसु ार ‘पनु ः
4. प्रकृ वतिादी आदिो एिं मान्यताओ ं को वनरीक्षण’(Observation) सत्यकी कसौिी है।
पणू थरूपेण स्िीकार नहीं करते। 4. प्रयोजनिादी वकसी न वकसी रूप में आदिो
5. प्रकृ वतिावदयों का दृवष्टकोण यावं त्रक तर्ा तर्ा मान्यताओ ं को स्िीकार करते हैं। ड्यिू ी के
अिैयवक्तक है। इसी दृवष्ट से ही तो ‘व्यिहारिाद’ अनसु ार यवद पिू -थ वनवश्चत मान्यताएं प्रयोग तर्ा
;ठमींअपिनतपेउि को जन्म वमला। अनर्ु ि द्वारा वसि होती हैं तो उन्हें र्ी स्िीकार
6. प्रकृ वतिादी ईश्वर के अवस्तत्ि को वकसी र्ी कर लेना चावहए।
माने में स्िीकार करने को तैयार नहीं हैं। 5. प्रयोजनिादी मानि की प्रिृवत्तयों, अनर्ु वू तयों
तर्ा र्ािनाओ ं पर बल देते हैं। इस दृवष्ट से यह
मानिीय विचारधारा कही जा सकती है।
6. यवद ईश्वर की मान्यता द्वारा मानिीय
आिश्यकताओ ं की पवू तथ हो सके तो
प्रयोजनिादी ईश्वर को मानने में नहीं चक ू ते हैं।
िैक्षशणक अतं र (Educational Difference)
7. प्रकृ वतिादी विक्षा का प्रमख ु उद्देश्य आत्म- 7. प्रयोजनिादी विक्षा का प्रमख ु उद्देश्य
प्रकािन या िैयवक्तकता का विकास मानते हैं। सामावजक कलयाण तर्ा कायथ वनपणु ता को
8. प्रकृ वतिादी बालक में वकसी र्ी प्रकार की मानते हैं।
आदत वनमाथण करने के विरोध में हैं। 8. प्रयोजनिादी कायथ वनपणु ता या ‘स्िर्ाि
9. प्रकृ वतिादी पाठ्यक्रम में उन विषयों को रखने वनमाथण’ को ही विक्षा का के न्र वबन्दु मानते हैं।
पर बल देते हैं वजनसे आत्म-प्रकािन तर्ा 9. प्रयोजनिादी पाठ्यक्रम में उन विषयों को
आत्म-रक्षा संर्ि हो सके । वििेष स्र्ान देते हैं वजनसे वक सारे समाज की
10. प्रकृ वतिादी बालक की विक्षा में विक्षक प्रगवत हो।
की पणू थ उपेक्षा करते हैं। 10. प्रयोजनिादी बालक में उत्तम गणु ों के
11. प्रकृ वतिादी प्राकृ वतक पररणामों द्वारा विकास के वलए विक्षक को महत्िपणू थ स्र्ान देते
अनि ु ासन के वसिान्त अर्ाथत् मक्ु त्यात्मक हैं
अनि ु ासन का समर्थन करते हैं। 11. प्रयोजनिादी प्राकृ वतक दष्ट्ु पररणामों से
12. प्रकृ वतिादी विक्षा नकारात्मक विचारधारा बालिक की रक्षा करने की दृवष्ट से सीवमत
पर आधाररत है। मक्ु त्यात्मक अनिु ासन पर बल देते हैं।
12. प्रयोजनिादी विक्षा सकारात्मक विचारधारा
पर आधाररत है।
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तीनों विचारधाराओ ं में सामजं स्य आिश्यक हैं
उपयथक्त
ु िब्दों का यह वनष्ट्कषथ न वनकालना चावहए वक चवंू क इन तीनों िादोंमें अतं र है। अतः विक्षा
के क्षेत्र में ये तीनों अलग-अलग कायथ करेंगे। िास्ति में रॉस के िब्दों में - ‘‘यवद आदिथिादी अपने
आपको प्रगवतिील रखें तो प्रयोजनिाद एिं आदिथिाद के बीच का अतं र कम हो जाता है।’’ जहां
तक मानि द्वारा वनवमथत मलू यों एिं आदिो का सबं धं है िहां प्रयोगिाद प्रगवतिील आदिथिाद से
और जहां तक बालक एिं उसकी प्रगवत अध्ययन का संबंध है िहां प्रयोगिाद प्रकृ वतिाद से वमलता
जलु ता है। इसीवलए तो िायद प्रयोगिाद के प्रितथक जेम्स का कर्न है, ‘‘प्रयोगिाद को आदिथिाद
एिं प्रकृ वतिाद की मध्यािस्र्ा कहा जा सकता है।’’
“Pragmatism is described as a Via-media between Idealism Naturalism”
James
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ix. परम्परागत, रूवढ़गत तर्ा कठोर विवधयों ि विचारों को विक्षा में लाकर एक लचकदार
समाज में एक लचकदार विक्षा की आिश्यकता है।
x. विक्षा जीिन की तैयारी ही नहीं जीिन का लक्ष्य है। र्विष्ट्य अवनवश्चत है। अतः ितथमान
अवधक मलू य रखता है। विक्षा द्वारा बालकों को िह गणु , ज्ञान, मनोिृवत्तयां ि कौिल वदये
जाएाँ जो उन्हें एक बदलते हुए समाज में पररवस्र्वतयों के अनक ु ू ल अपना समाज में स्र्ान
लेने योग्य बनाए।ं
स्िमलू याक
ं न हेतु प्रश्न
13. प्रयोजनिादी िाश्वत मलू यों पर विश्वास करते हैं:-
A. सत्य B. असत्य
14. प्रयोजनिादी र्ािना तर्ा पररवस्र्वतयों से अवधक बवु ि को अवधक महत्ि देते हैं:-
A. सत्य B. असत्य
15. प्रयोजनिादी विक्षा में गवतिीलता ि पररितथनिीलता पायी जाती है:-
A. सत्य B. असत्य
16. प्रयोजनिादी ‘पद्गु ल’ Metter से संसार की समस्त िस्तओु ं तर्ा विचारों की उत्पवत्त मानते
हैं। इस तरह से िे एक तत्ििादी हैं-
A. सत्य B. असत्य
17. ‘‘परम्परागत, रूवढ़गत तर्ा कठोर विवधयों ि विचारों को विक्षा में लाकर एक लचकदार
समाज में एक लचकदार विक्षा की आिश्यकता है।’’ यह विचारधारा है-
A. अवस्तत्ििादी B. प्रकृ वतिादी C. आदिथिादी D. प्रयोजनिादी
5.9 साराांि
विक्षा दिथन के रूप में प्रयोजनिाद का एक प्रगवतिील दिथन है। िह विक्षा को सामावजक
(Social), गवतिील (Dynamic) और विकास की प्रवक्रया (Process of Development)
मानता है। उसके इस विचार ने प्रगवतिील विक्षा (Progressive Education) को जन्म वदया है।
िास्तििाद और प्रकृ वतिाद ने विक्षा को मनोिैज्ञावनक और िैज्ञावनक आधार ही वदए र्े,
व्यािहाररकतािाद ने उसे एक तीसरा आधार र्ी वदया, वजसे हम सामावजक आधार कहते हैं।
जहां तक विक्षा के उद्देश्यों की बात है, व्यािहाररकतािाद उन्हें वनवश्चत करने के पक्ष में नहीं है।
उसका स्पष्टीकरण है वक यह संसार और मनष्ट्ु य जीिन पररितथनिील है, इसवलए विक्षा के कोई
वनवश्चत उद्देश्य नहीं हो सकते, अगर विक्षा का कोई उद्देश्य हो सकता है तो यही वक उसके द्वारा
मनष्ट्ु य का सामावजक विकास कर उसे इस योग्य बनाया जाए वक िह बदलते हुए समाज में अनक ु ू लन
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कर सके और अपनी आिश्यकताओ ं की पवू तथ के वलए सामावजक पयाथिरण पर वनयत्रं ण रख सके
और उसमें पररितथन कर सके । परन्तु जब तक मनष्ट्ु य यह नहीं जानता वक उसे सामावजक पयाथिरण में
वकस सीमा तक अनक ु ू लन करना है और उसे अपनी वकन आिश्यकताओ ं की पवू तथ करनी है तब तक
िह उवचत मागथ पर नहीं चल सकता। व्यािहाररकतािाद इन प्रश्नां के सही उत्तर नहीं देता, इसवलए
उसके द्वारा वनवश्चत विक्षा के ये उद्देश्य अपने में अपणू थ हैं। डीिी महोदय ने सामावजक कुिलता के
विकास और वकलपैवरक महोदय ने लोकतत्रं ीय जीिन के विकास पर बल वदया है। हमारी दृवष्ट से तो
विक्षा को मनष्ट्ु य का सिाथगीण विकास करना चावहए।
विक्षण विवधयों के क्षेत्र में प्रयोजनिावदयों की देन बड़ी मलू यिान है। वजन मनोिैज्ञावनक तथ्यों का
उद्घािन एिं प्रयोग िास्तििावदयों और प्रकृ वतिावदयों ने वकया, व्यािहाररकतािावदयों ने उसमें
सामावजक पयाथिरण के महत्ि को और जोड़ वदया। उन्होंने बच्चों की जन्मजात िवक्तयों को
पहचाना, उनके व्यवक्तगत र्ेदों का आदर वकया और ज्ञानेवन्रयों द्वारा सीखने, करके सीखने और
अनर्ु ि द्वारा सीखने पर बल वदया और इसके सार्-सार् इस बात पर र्ी बल वदया वक बच्चों को
जो कुछ र्ी वसखाया जाये उसका संबंध उनके िास्तविक जीिन से होना चावहए और उन्हें
व्यािहाररक वक्रयाओ ं के माध्यम से अनर्ु ि करने के अिसर देने चावहए। समस्त विषयों एिं
वक्रयाओ ं की विक्षा एक ईकाई के रूप में देने पर र्ी इन्होंने बल वदया है। इन वसिान्तों पर डीिी
महोदय ने समस्या समाधान विवध (Problem Solving Method) और वकलपैवरक ने प्रोजेक्ि
विवध (Project Method) का वनमाथण वकया। ईकाई विवध (Unit Technique0 र्ी इन्हीं
वसिान्तों पर आधाररत है। आज संसार के सर्ी देिों की विक्षा में इन विवधयो को अपनाया जाता
है।प्रयोजनिादी व्यवक्त और समाज दोनों के वहत साधन के वलए विद्यालयों को समाज के सच्चे
प्रवतवनवध के रूप् में देखना चाहते हैं। उनके इस विचार ने विद्यालयों को सामदु ावयक के न्रो
(Community Centered) में बदल वदया है। अब विद्यालय कोई कृ वत्रम संस्र्ाएं नहीं माने जाते
अवपतु बच्चों की जैविक प्रयोगिालाओ ं के रूप में स्िीकार वकए जाते हैं, जहां बच्चे िास्तविक
वक्रयाओ ं में र्ाग लेते हैं, स्ियं वक्रया करते हैं, वनरीक्षण करते हैं और िास्तविक जीिन की विक्षा
प्राप्त करते हैं।
5.10.िब्दावली
प्रयोजनिाद की तत्ि मीमासं ा Metaphysics of Pragmatism
यह अनेक िस्तओ ु ं और अनेक वक्रयाओ ं का पररणाम है, िस्तु और वक्रयाओ ं की व्याख्या के झमेले
में ये नहीं पड़ते। इस इवन्रयग्राह ससं ार के अवतररक्त ये वकसी अन्य संसार के अवस्तत्ि को स्िीकार
नहीं करते। ये आत्मा-परमात्मा के अवस्तत्ि को र्ी नहीं स्िीकारते। इनके अनसु ार मन का ही दसू र
नाम आत्मा है और मन एक पदार्थ जन्म वक्रयािील तत्ि है।
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प्रयोजनिाद की ज्ञान मीमासं ा Epistemology of Pragmatism
प्रयोजनिावदयों के अनसु ार अनर्ु िों की पनु रथचना ही ज्ञान है। ये ज्ञान को साध्य नहीं अवपतु मनष्ट्ु य
जीिन को सख ु मय बनाने का साधन मानते हैं। इसकी प्रावप्त सामावजक वक्रयाओ ं में र्ाग लेने से स्ियं
होती है। कमेवन्रयों और ज्ञानेवन्रयों को ये ज्ञान का आधार मानते हैं और मवस्तष्ट्क तर्ा बवु ि को ज्ञान
का वनयत्रं क।
प्रयोजनिाद की आचार मीमासं ा Ethics of Pragmatism
प्रयोजनिादी वनवश्चत मलू यों और आदिो में विश्वास नहीं करते इसवलए ये मनष्ट्ु य के वलए कोई
वनवश्चत आचार संवहता नहीं बनाते। इनका स्पष्टीकरण है वक मनष्ट्ु य जीिन में वनरन्तर पररितथन होता
रहता है इसवलए उसके आचरण को वनवश्चत नहीं वकया जा सकता। उसमें तो िह िवक्त होनी चावहए
वक िह बदले हुए पयाथिरण में समायोजन कर सके ।
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5.12 सन्दर्थ ग्रन्र् सूची
1. पाण्डे (डॉ) रामिकल, उदीयमान र्ारतीय समाज में विक्षक, अग्रिाल प्रकािन, आगरा।
2. सक्सेना (डॉ) सरोज, विक्षा के दािथवनक ि सामावजक आधार, सावहत्य प्रकािन, आगरा।
3. वमत्तल एम.एल.(2008) उदीयमान र्ारतीय समाज में विक्षक, इण्िरनेिनल पवब्लविंग
हाउस, मेरठ।
4. िमाथ रामनार् ि िमाथ राजेन्र कुमार (2006) िैवक्षक समाजिास्त्र, एिलांविक पवब्लिसथ
एण्ड वडस्रीब्यिू सथ।
5. 5. सलैक्स (डॉ) िीलू मैरी (2008) विक्षक के सामावजक एिं दािथवनक पररप्रेक्षय, रजत
प्रकािन, नई वदलली।
6. िमाथ, रामनार् ि िमाथ राजेन्रकुमार (2006) एिलावं िक पवब्लिसथ एण्ड वडस्रीब्यिू सथ, नई
वदलली।
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समकालीन भारत और शिक्षा BEDSEDE A2
इकाई -6 अस्ततत्ववाद Existentialism
6.1 प्रस्तािना
6.2 उद्देश्य
6.3 अवस्तत्ििाद और विक्षा
6.3.1 अवस्तत्ििाद का अर्थ
6.3.2 अवस्तत्ििाद की पररर्ाषाएं
6.3.3 अवस्तत्ििाद की वििेषताएं
6.4 अवस्तत्ििादी विक्षा
6.4.1 अवस्तत्ििादी विक्षा का अर्थ
6.4.2 अवस्तत्ििादीमनोविज्ञान
6.4.3 अवस्तत्ििादी विक्षा के उद्देश्य
6.4.4 अवस्तत्ििाद ि पाठ्यक्रम
6.4.5 अवस्तत्ििाद और विक्षक
6.4.6 अवस्तत्ििाद और विद्यार्ी
6.4.7 अवस्तत्ििाद और विक्षण विवध
6.4.8 अवस्तत्ििादऔर विद्यालय
6.4.9 अवस्तत्ििादऔरअनुिासन
6.5 सारांि
6.6 िब्दािली
6.7 स्िमूलयांकन हेतु प्रश्नों के उत्तर
6.8 सन्दर्थ ग्रन्र् सचू ी
6.9 वनबंधात्मक प्रश्न
6.1 प्रस्तावना
अवस्तत्ििाद मनष्ट्ु य के अवस्तत्ि की संर्ािना और उसके ितथमान रूपों से संबवं धत है। स्ितंत्रता की
र्ािना को नैसवगथक तर्ा स्ितत्रं ता को जन्म वसि अवधकार मान लेने के बाद इस यात्रा का प्रारम्र्
होता है, वजसमें मानिीय जीिन की संर्ािनायें प्रत्येक व्यवक्त के वलए सल ु र् हो सके । सोरेन
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वककथ गाडथ एिं जीन पॉल सात्रे ने अवस्तत्ििादी वचन्तन को नया नैवतक धरातल प्रदान वकया। उन्होंने
स्ितंत्रता के प्रश्न को एक मानिीय प्रश्न बनाया और उसे समाज के संगठनात्मक ढाचं े के अन्दर
व्यिवस्र्त करने का प्रयास वकया। मानिीय विकास के ितथमान दौर की उसने पहली बार
पररवस्र्वतगत तावत्िक व्याख्या की और लगर्ग उसे कालथ माक्सथ से वमलती-जल ु ती िब्दािली में
िगथ समाज कहा। सात्रे मनष्ट्ु य की िैयवक्तक इच्छाओ ं को ही अवस्तत्ि का के न्रीय वबन्दु मानता है
तर्ा ितथमान विघिनकारी पररवस्र्वतयों के वलए औद्योवगक सभ्यता को उत्तरदायी ठहराता है।
िास्ति में अवस्तत्ििाद वपछली दो ितावब्दयों के 125 िषों में वजस तरह के परस्पर विरोधी विचारों
को एक सार् वमला-जल ु ाकर एक वबन्दु पर के वन्रत करता रहा है वक मानिीय अवस्तत्ि सक ं ि के दौर
से गजु र रहा है और मनष्ट्ु य के वलए अपने अवस्तत्ि की रक्षा का प्रश्न बन गया है। िह सर्ी दािथवनकों
की प्रिृवतयों का प्रस्र्ान वबन्दु रहा है। मानिीय अवस्तत्ि के प्रारूप के बारे में अवस्तत्िाद की धारणा
अर्ी स्पष्ट नहीं है बवलक स्ितंत्रता तर्ा पररवस्र्वतयों की व्याख्या इसके दो मद्दु े हैं, जहां से सब कुछ
वनयंवत्रत होता है। अवस्तत्ि की वनरर्थकता तीसरा वबन्दु है जहां सर्ी विचारक सहमत होते हैं और
स्ितंत्रता को चररतार्थ करने के प्रश्न पर पनु ः गवतरोध उत्पन्न होता है।
6.2 उद्देश्य
1. अवस्तत्ििाद और विक्षा के संबंध में ज्ञान प्राप्त कर सकें गे।
2. अवस्तत्ििाद का अर्थ, पररर्ाषाएं और वििेषताओ ं के बारे में ज्ञान प्राप्त कर सकें गे।
3. अवस्तत्ििादी विक्षा के उद्देश्य, पाठ्यक्रम के बारे में ज्ञान प्राप्त कर सकें गे।
4. अवस्तत्ििादी विक्षक, विद्यार्ी ि विक्षण विवध के बारे में जान सकें गे।
5. अवस्तत्ििाद और मानि जीिन का ज्ञान प्राप्त कर सकें गे।
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नावस्तकिादी यहां पर ईसाई िब्द के स्र्ान पर प्रमावणक सत् (Authentic Being) िब्द का
प्रयोग कर सकता है। इस प्रकार अवस्तत्ििावदयों ने ज्ञान (knowledge) और व्याख्या
(Explaining) के स्र्ान पर वक्रया (Action) और चनु ाि (Choice) पर जोर वदया है, क्या
(What) के स्र्ान पर कै से (How) को महत्िपणू थ माना है।
अवस्तत्ििादी दिथन का प्राचीन यनू ानी दिथन से सबं धं बतलाते हुए सक ु रात को अवस्तत्ििादी माना
गया है। डॉ. राधाकृ ष्ट्णन् के िब्दों में ‘‘अवस्तत्ििाद एक प्राचीन प्रणाली के वलए एक नया नाम
है।’’ इसी बात को दसू री तरह से रखते हुये ब्लैकहम ने वलखा है, ‘‘यह प्रोिेस्िेंि अर्िा स्िोइक
प्रकार के व्यवक्तिाद की आधवु नक िब्दों में पनु ः स्र्ापना प्रतीत होता है, जो वक पनु जाथगरण यगु के
अनर्ु ििादी व्यवक्तिाद अर्िा आधवु नक उदारतािाद अर्िा एपीक्यरू स के व्यवक्तिाद और रोम या
मास्को तर्ा मालेिो की सािथर्ौम व्यिस्र्ा के विरूि लड़ा हुआ वदखलाई पड़ता है। यह आदिो के
संघषथ में मानि अनर्ु ि के आिश्यक सोपानों में से एक की समकालीन पनु जाथगवृ त है, वजसे इवतहास
ने अर्ी समाप्त नहीं वकया है।
6.3.1 अशस्तत्ििाद का अर्थ Meaning of Existentialism
अवस्तत्ििाद आधवु नक समाज तर्ा परम्परागत दिथन की कुछ वििेषताओ ं के विरूि एक
आन्दोलन है। यह अि ं तः ग्रीक की वििेकिीलता या िास्त्रीय-दिथन के विरोध स्िरूप प्रकि हुआ।
अवस्तत्ििाद प्रकृ वत तर्ा तकथ के विरूि िैयवक्तक की संज्ञा से प्रकि हुआ। यह विचार आधवु नक या
प्रौद्योवगक यगु की अिैयवक्तक प्रिृवत्त के विरोध स्िरूप प्रकि हुआ। औद्योवगक समाज व्यवक्त को
मिीन के अधीन रखने पर बल देता है। इस कारण यह खतरा उत्पन्न हो गया है वक मानि एक यंत्र
या िस्तु बनता जा रहा है। इस प्रकृ वत के विरोधस्िरूप यह विचार उर्रा है। यह िैज्ञावनकिाद तर्ा
प्रत्यक्षिाद की प्रवतवक्रया के फलस्िरूप विकवसत हुआ। िैज्ञावनकिाद तर्ा प्रत्यक्षिाद मानि की
बाह्य िवक्त पर बल देते हैं तर्ा उसे (मानि को) र्ौवतक वक्रयाओ ं के अगं के रूप में संचावलत करता
है। इसका अवधनायकिादी प्रिृवत्त के विरोध में विकास हुआ। अतः अवस्तत्ििाद एक
प्रवतवक्रयात्मक वसिान्त के रूप में उर्रा है। व्यवक्त की विषम पररवस्र्वतयों में उत्पन्न िेदनाओ ं का
अनर्ु ि कर उसे स्िर देने के वलए यह विचार एक समयोवचत प्रयास है, प्रर्त्ु ि और बाह्य दिथनों का
स्ितत्रं के नाम पर विरोध वकया तर्ा स्पष्ट वकया वक व्यवक्त अपने राजनैवतक, धावमथक, नैवतक,
सांस्कृ वतक, सामावजक आवद संबंधों में स्ितंत्र वकन्तु दावयत्ियक्तु है। यह विरोध वचन्तन या तकथ
बवु ि की खोज नहीं बवलक र्ोगे हुए सत्य का पररणाम है, वजसने उनके जीिन को झकझोर वदया।
आधवु नक यगु में अभ्यदु य के सार् ही धमथ ने विज्ञान को अपनी ज्योवतिलाका पकड़ा दी और
विज्ञान ने औद्योवगक तर्ा प्रौद्योवगक प्रगवत के क्रम में व्यवक्त को व्यवक्त नहीं रहने वदया। उसके
अवस्तत्ि का अर्थ उसी की आख ं ों में समाप्त कर वदया। इसके सार् ही हीगल के ‘विश्व मन’ तर्ा
माक्सथ के ‘साम्यिाद’ ने र्ी व्यवक्त की विविष्टता और स्ितंत्रता को कोई महत्ि नहीं वदया। इन
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सबके सार् यक्त ु होकर विश्वयि ु ों ने मलू यों का विघिन वकया। परम्परागत मलू यों की मृत्यु ने धमथ,
नैवतकता, विज्ञान, समानता भ्रातृत्ि के वसिान्तों को धल ू में वमला वदया। इस प्रकार अवस्तत्ििाद
िास्त्रीय तर्ा परम्परागत दिथन पर एक प्रहार के रूप में विकवसत हुआ, वजसने जीिन से असम्बि
दिथन को समाप्त कर वदया।िस्ततु ः अवस्तत्ििाद मानिीय जीिन और वनयवत का यर्ार्थ परक
विश्लेषण है। सोरेन वककथ गाडथ के अनसु ार, अवस्तत्ि िब्द का उपयोग इस दािे पर बल देने के वलए
वकया जाता है वक प्रत्येक व्यवक्त या इकाई अपने आप में स्ियं जैसी या अद्भुत है तर्ा आध्यावत्मक
या िैज्ञावनक प्रवक्रया के सदं र्थ में अविश्लेषणीय है। यह िह अवस्तत्िमय है, जो स्ियं चनु ाि करता है
एिं स्ियं वचन्तन करता है। उसका र्विष्ट्य कुछ अि ं ों में उसके स्ितंत्र चनु ाि पर वनर्थर है। अतः इस
संबंध में कुछ र्ी नहीं कहा जा सकता है।
6.3.2 अशस्तत्ििाद की पररभाषाएं Definitions of Existentialism
अवस्तत्ििाद की वनम्न पररर्ाषाएं हैं:-
“जीन पॉल सात्रे वलखते हैं वक- ‘‘अवस्तत्ििाद अन्य कुछ नहीं िरन् एक ससु ंयोवजत वनरीश्वरिादी
वस्र्वत से सर्ी वनष्ट्कषो को उत्पन्न करने का प्रयास है।’’
एनसाइक्लोपीवडया फफ वब्रिेवनका के अनसु ार- ‘‘अवस्तत्ििादी दिथन वचन्तन का िह मागथ है जो
सम्पणू थ पावर्थि ज्ञान का उपयोग करता है, उसे इस क्रम में पररिवतथत करता है, वजससे मानि पनु ः
स्ियं जैसा बन सके ।’’
डॉ. राधाकृ ष्ट्णन के िब्दों में- ‘‘अवस्तत्ििाद एक प्राचीन प्रणाली के वलए एक नया नाम है।’’
6.3.3 अशस्तत्ििाद की शििेषताएं Characteristics of Existentialism
अवस्तत्ििाद की वनम्न वििेषताएं हैं:-
i. आदिथिाद की आलोिना Criticism of Idealism - अवस्तत्ििाद आदिथिाद के
विरूि विरोह के रूप में खड़ा हुआ है। अस्त,ु अवस्तत्ििादी दािथवनक आदिथिाद अर्िा
प्रत्ययिाद के वसिान्त का खण्डन करते हैं। प्रत्ययिाद के अनसु ार मानि व्यवक्तत्ि वकसी
सािथर्ौम सारतत्ि या आध्यावत्मक तत्ि की अवर्व्यवक्त है। इसके वबलकुल विरूि
अवस्तत्ििावदयों के अनसु ार मानि अवस्तत्ि सािथर्ौम सार तत्ि (Universal Essence) के
पहले होताहै। प्रत्ययिाद के अनसु ार मानि व्यवक्तत्ि की स्ितंत्रता सािथर्ौम आध्यावत्मक तत्ि
की स्ितंत्रता पर वनर्थर है।
ii. अन्तद्वथन्द की समस्या पर जोर Emphasis on problem of Inner conflict- आज के
जविल संसार में सबसे बड़ी समस्या मनष्ट्ु य को वकसी वसिान्त का अनयु ायी बनाना नहीं बवलक
उसे उसकी स्ितत्रं ता का बोध कराना है। ऐसा होने से आदान प्रदान सहज हो जाता है। ससं ार में
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िावन्त के िल िावन्त-िावन्त वचललाने से नहीं वमलेगी। जब तक मानि िस्तु से र्ी वनम्न बना
रहेगा तब तक िावन्त नहीं हो सकती। इस प्रकार अन्य दिथनों की तल ु ना में अवस्तत्ििादी दिथन
अन्द्वथन्द की समस्याओ ं पर वििेष जोर देता है। परम्परागत दिथन इन समस्याओ ं को महत्िपणू थ
नहीं मानते। मानि की जगत से पृर्कता और स्ियं अपने से पृर्कता से ही दिथन प्रारम्र् होता
है।
iii. प्रकृशतिाद की आलोिना Criticism of Naturalism- अवस्तत्ििादी दािथवनक एक
ओर आदिथिाद और दसू री ओर उसके विपरीत दिथन प्रकृ वतिाद की र्ी आलोचना करते हैं।
प्रकृ वतिादी दिथन के अनसु ार-मानि व्यवक्तत्ि प्राकृ वतक वनयमों से वनयंवत्रत होता है और िह
वकसी प्रकार की स्ितंत्रता नहीं रखता। दसू री ओर अवस्तत्ििावदयों ने मानि को प्रकृ वत के द्वारा
वनयंवत्रत न मानकर व्यवक्तत्ि की स्ितंत्रता की स्र्ापना की है।
iv. शनरािा से उत्पशत्त Born from Despair - हमारे चारों ओर का जगत अनेक संघषो और
समस्याओ ं से र्रा हुआ है, वकन्तु सामान्य समझदार व्यवक्त इनसे समझौता करके जीिन जीता
रहता है। अवस्तत्ििादी को यह जीिन असंर्ि लगता है और िह अपने को असहाय महससू
करता है। िह अत्यवधक वचन्ता से व्याप्त हो जाता है। उसे र्य लगता है वक िह कतथव्यों को परू ा
नहीं कर सके गा। उसे प्रतीत होता है वक िह चारों ओर के जगत को समझ नहीं पा रहा है। िह
समय की आिश्यकताओ ं को परू ा करने में अपने को असमर्थ पाता है। मनोिैज्ञावनक दृवष्ट से
कुछ लोग इसे असामान्य संिदे निीलता कह सकते हैं।
v. मानि व्यशित्ि का महत्ि Value of Human Personality- अवस्तत्ििादी दािथवनक
मानि व्यवक्तत्ि को अत्यवधक महत्िपणू थ ठहराते हैं और इसके सामने ब्रह्म, ईश्वर, आत्मा, जगत
वकसी को र्ी इतना अवधक महत्िपणू थ नहीं मानते। मानि व्यवक्तत्ि का मल ू तत्ि स्ितंत्रता है।
समाज व्यवक्त के वलए है न वक व्यवक्त समाज के वलए है। यवद सामावजक वनयम व्यवक्त की
स्ितंत्रता में बाधक हों तो व्यवक्त को इन वनयमों का विरोध करने का अवधकार है। इस धारणा
को लेकर अवस्तत्ििादी सावहत्यकारों और कलाकारों ने अपने विचारों को स्ितंत्र रूप से
अवर्व्यक्त करने की स्ितत्रं ता को बनाये रखने के वलए सब कहीं र्ारी सघं षथ वकया है और कर
रहे हैं। िे इस स्ितंत्रता को अत्यवधक पवित्र मानते हैं और उसे वकसी र्ी कीमत पर बेचने के
वलए तैयार नहीं हैं। विवर्न्न अवस्तत्ििादी दािथवनकों ने इस स्ितंत्रता की अलग-अलग प्रकार से
व्याख्या की है।
vi. िैज्ञाशनक दिथन की आलोिना Criticism of Scientific Philosophy- प्रत्ययिाद
और प्रकृ वतिाद के अवतररक्त अवस्तत्ििादी दािथवनक िैज्ञावनक दिथन के आलोचक हैं। िास्ति
में इन तीनों प्रकार के दिथनों के विरूि प्रवतवक्रया के रूप में ही अवस्तत्ििाद का जन्म हुआ है।
पाश्चात्य समाजों में विज्ञान और प्रौद्योवगकी की प्रगवत के सार्-सार् नगरीयता बढ़ी। बड़े-बड़े
नगरों में मानि का अवस्तत्ि र्ीड़ में खो गया। वििालकाय मिीनों के सामने उसका महत्ि
नगण्य हो गया। कारखाने का एक पजु ाथ बनकर िह अपने अवस्तत्ि को र्ल ू गया। यांवत्रक
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सभ्यता में उसके मलू य खो गये। पग-पग पर िह यत्रं ों और मिीनों का गल ु ाम बन गया।
अवस्तत्ििाद मानि के इसी अमानिीयकरण के विरूि एक विरोह है। वद्वतीय विश्व यि ु के
पश्चात् विज्ञान और प्रौद्योवगकी के विकास का जो र्यंकर रूप सामने आया उसे देखकर
सावहत्यकारों और कलाकारों ने मानि समस्याओ ं की ओर ध्यान देना आिश्यक समझा और
मानि अवस्तत्ि के महत्ि को वफर से स्र्ावपत करने की आिश्यकता अनर्ु ि की। अस्त,ु
सावहत्य और कला के क्षेत्र में और क्रमिः धमथ ि दिथन के क्षेत्र में र्ी अवस्तत्ििादी वचन्तन
बढ़ने लगा।
vii. दािथशनक व्यिस्र्ा की रिना नहीं No Construction of Philosophical system-
प्राचीनकाल से दािथवनकगण ईश्वर, आत्मा और जगत, देि और काल, सृवष्ट और विकास
इत्यावद समस्याओ ं पर विचार करते रहे हैं। अवस्तत्ििादी की समस्या व्यवक्तगत, ितथमान और
व्यािहाररक है। िह इन परम्परागत दािथवनक प्रश्नों पर विचार नहीं करता। इसवलए िह दािथवनक
वसिान्त रचना को महत्ि नहीं देता।
viii. आत्मशनष्ठता का महत्ि Importance of Subjectivity - अवस्तत्ििादी दािथवनक
कीके गाडथ ने कहा र्ा वक सत्य आत्मवनष्ठता है। जबवक विज्ञान से प्रर्ावित दािथवनकों ने
आत्मवनष्ठता और व्यवक्तगत अनर्ु ि को वििेष महत्िपणू थ माना है। अवस्तत्ििादी दिथन मानि
को उसके व्यवक्तत्ि के विकास में सहायता करता है और उसके प्रत्यक्ष अनर्ु िों जैस-े र्य,
आनन्द, घिु न इत्यावद की व्याख्या करके उनमें अन्तवनथवहत सत् तत्ि के दिथन कराता है।
प्रत्येक व्यवक्त आत्मवनष्ठ होकर ही अपने अन्दर के सम् (Being) को जान सकता है। यह एक
रचनात्मक अनर्ु ि है। इसी से मानि मलू यों का सृजन होता है। यह एकाकीपन (Loneliness)
की वस्र्वत है, वजसमें व्यवक्त प्रत्यक्ष रूप से के िल अपने अवस्तत्ि के सामने खड़ा होता है।
ix. व्यशि और शिश्व के संबंध की समस्या पर जोर Emphasis on the Problem of the
individual and Word - अन्त में अवस्तत्ििादी दिथन के अनसु ार एक प्रमख ु समस्या व्यवक्त
और विश्व का संबधं है। इसकी जो परम्परागत व्याख्यायें की गयी हैं, उनसे यह समस्या हल नहीं
होती। यवद वनरपेक्ष सािथर्ौम तत्ि को हेगेल के समान मान वलया जाये तो व्यवक्त में वकसी
प्रकार की स्ितंत्रता नहीं रहती। अस्त,ु अवस्तत्ििादी ऐसे दिथनों के विरूि हैं क्योवक इस प्रकार
के दिथनों के रहते हुए व्यवक्त का कोई नैवतक उत्तरदावयत्ि नहीं बनता। अवस्तत्ििावदयों के
अनसु ार मानि को वकसी र्ी वनयम के अधीन नहीं वकया जा सकता है,चाहे िह विश्व का वनयम
हो, प्रकृ वत का वनयम हो, राज्य का वनयम अर्िा समाज का वनयम। वनयम कायथ की
प्रमावणकता नहीं वदखलाता, उलिे कायथ ही वनयम को प्रमावणक बनाता है।
अवस्तत्ििादी दिथन वकसी एक विचारक की सृवष्ट नहीं है। यह दिथन अनेक दािथवनकों के लेखों में
वबखरा हुआ है वजनमें प्रमख
ु हैं-नीत्िे (Nietzshe) सोरेन कीके गाडथ (S.Kierkegaard), गैवब्रयल
मासेल (G.Marchel), माविथन हाईडैगर (M.Heideggar) ज्यां पॉल सात्रथ (J.P.Sartre), कालथ
जास्पसथ ;(K.Jaspers), एबगनामो (Abbagnamo), बरदाइयेि (Barduaev), कामू (Camus),
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समकालीन भारत और शिक्षा BEDSEDE A2
इत्यावद। इन दािथवनकों ने अवस्तत्ि के विषय में वर्न्न-वर्न्न प्रकार के वसिान्त उपवस्र्त वकए हैं।
सात्रथ अपने दिथन को वििेष रूप से अवस्तत्ििादी कहता है जबवक मासेल अपने को अवस्तत्ििादी
मानने के वलए र्ी तैयार नहीं है। कीके गाडथ और मासेल दोनों आत्मिादी विचार हैं। कुछ
अवस्तत्ििादी आवस्तक हैं और कुछ नावस्तक हैं। जास्पसथ और सात्रथ के वचन्तन में दिथन का मनष्ट्ु य से
उतना संबधं नहीं है, वजतना वक कीके गाडथ के दिथन में वदखलाई पड़ता है। कीके गाडथ, जास्पसथ और
मासेल ईश्वरिादी हैं। दसू री ओर नीत्िे हाईडेगर और सात्रथ नावस्तक हैं।
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लेवकन हमारे जीिन में सबसे महत्िपणू थ पक्ष िैयवक्तक या अिैज्ञावनक है। इसवलए अवस्तत्ििादी इस
बात पर बल देते हैं वक सबसे महत्िपणू थ एिं प्रमख
ु ज्ञान मानिीय दिाओ ं या चयनों से संबंवधत है।
इस विचार के अनसु ार विक्षा िह प्रवक्रया है जो स्ितंत्रता के चयन के वलए चेतना विकवसत करती
है। विक्षा हममें स्ि-चेतना की र्ािना का वनमाथण करती है। इसी के कारण हम मानि प्राणी कहने के
अवधकारी हो जाते हैं।
6.4.2 अशस्तत्ििादी मनोशिज्ञान Existentialism Psychology
अवस्तत्ििादी िैवक्षक वचन्तन, सीखने िाले के माध्यवमक तर्ा रजस्िला के उत्तरोत्तर काल पर बल
देता है। अवस्तत्ििावदयों के अनसु ार, जब बालक का जन्म होता है तब बालक के अवस्तत्ि को
जन्म वमलता है। इसके बाद पिू थ अवस्तत्ि का पक्ष आता है। इस समय बालक अपने ‘स्ि’ के प्रवत
चेतनिील नहीं होता है। इसके बाद ‘अवस्तत्ििादी आन्दोलन’ आरम्र् होता है। इस समय व्यवक्त
आकवस्मक रूप से अपने अवस्तत्ि के बारे में सचेत हो जाता है तर्ा यह र्ािना र्ी विकवसत होती
है वक पनु ः अपनी बालयािस्र्ा में जो वक ‘स्ि’ की अज्ञानता का समय होता है। इस र्ािना को
‘Pre-Existentialism Nostaligia’ कहा जाता है। व्यवक्त इस र्ािना का बहादरु ी के सार् सामना
करता है। मनोिैज्ञावनक विचारधारा को वनम्न रेखावचत्र से स्पष्ट वकया जा रहा है-
अ ब स
Pre-Existentialism Existentialism
Phase Phase
(अ) जन्म (बालक का जन्म)
(ब) िह वस्र्वत वजसमें बालयिस्र्ा की वस्र्वत को िापस नहीं लाया जा सकता है।
(स) मृत्यु
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6.4.9 अशस्तत्ििाद औरअनुिासन Existentialism and Discipline
सात्रे वकसी र्ी आचार-सवं हता को स्िीकार नहीं करता। िह बालक को पणू थ स्तत्रं ता प्रदान करता है।
ऐसी पररवस्र्वत में यह सर्ं ि है वक असंख्य विद्यार्ी मनमानी करें और समाज में अव्यिस्र्ा फै ल
जाये। सात्रे के अनसु ार िैयवक्तक चेतना द्वारा इस समस्या को आसानी से सलु झाया जा सकता है।
स्ितत्रं चयन से िैयवक्तक वनिाथह की क्षमता उत्पन्न होती है।
व्यवक्त जो कुछ चयन करेगा, िर्ु होगा। इसी प्रकार अिर्ु का चयन र्ी हो जाता है तो उसका
र्ोक्ता िह स्ियं है। इस प्रकार चयन से िैयवक्तक दावयत्ि उत्पन्न होता है। इस उत्तरदावयत्ि र्ाि तर्ा
स्ितंत्रता से परे कोई नैवतक गणु नहीं होता। इससे ही अनि ु ासन लाया जा सकता है। अवस्तत्ििाद
ऐसा दिथन है वजसने क्रावन्तकारी विचारों से मानि के अवस्तत्ि को वमिते देखा और पनु ः मानि
प्रवतष्ठा को प्राप्त करने के वलए उसके न हो या उसे विवक्षत न वकया जाये। आज के यगु में मनष्ट्ु य के
अवस्तत्ि की प्रार्वमकता को बनाए रखते हुए अवतमानि के व्यवक्तत्ि की कलपना उर्ारने का प्रयास
अवस्तत्ििाद ने वकया है।
स्िमलू याक
ं न हेतु प्रश्न
12. विक्षक-विद्यार्ी के बीच ‘मैं-त’ू के सबं धं को स्र्ावपत करने पर बल देता है-
(अ)प्रकृ वतिादी (ब)प्रयोजनिादी (स)अवस्तत्ििादी (द)आदिथिादी
13. विक्षण विवध में समय तावलका की बजाए पारस्पररक समपथण पर अवधक बल देते हैं-
(अ) अवस्तत्ििादी(ब)प्रकृ वतिादी(स) प्रयोजनिादी (द) आदिथिादी
14. करके सीखने के वसिान्त पर बल देते हैं-
(अ)प्रकृ वतिादी (ब) अवस्तत्ििादी(स)प्रयोजनिादी(द)आदिथिादी
15. िैयवक्तकता का विकास संर्ि है-
(अ) प्रकृ वतिावदयों द्वारा (ब)आदिथिावदयों द्वारा
(स)प्रयोजनिावदयों द्वारा (द)अवस्तत्ििावदयों द्वारा
6.5 साराांि
अवस्तत्ििाद का विकास समकालीन सामावजक, आवर्थक और राजनैवतक पररवस्र्वतयों के विरूि
प्रवतवक्रया के रूप में हुआ, वजनमें मानि ने अपनी आत्मा खो दी है। इस दिथन ने कला और सावहत्य
पर व्यापक प्रर्ाि डाला है। राजनीवत में िह यि ु के विरूि है। उसके अनयु ायी सवक्रय रूप से यि
ु
का विरोध करते हैं। विक्षा के क्षेत्र में अवस्तत्ििाद का योगदान अग्रवलवखत हैं-
उत्तराखण्ड मक्त
ु विश्वविद्यालय 84
समकालीन भारत और शिक्षा BEDSEDE A2
i. सम्पणू थ विकास - अवस्तत्ििावदयों का लक्ष्य विक्षा के द्वारा बालक के व्यवक्तत्ि का सम्पणू थ
विकास है। विक्षा का सरोकार सम्पणू थ मनष्ट्ु य से है। उसका लक्ष्य चररत्र वनमाथण और आत्म-
साक्षात्कार है।
ii. आत्मगत ज्ञान - विज्ञान के ितथमान यगु में िस्तगु त ज्ञान पर इतना अवधक जोर वदया जा रहा है
वक आत्मगत िब्द अयर्ार्थ, व्यर्थ, अज्ञानपणू थ और अप्रासं वगक के वलए प्रयोग वकया जाता है।
अवस्तत्ििावदयों ने यह वदखलाया वक आत्मगत ज्ञान िस्तगु त ज्ञान से र्ी अवधक महत्िपणू थ
उनका कहना है वक सत्य आत्मगत है। िह मानि मलू य है और मलू य तथ्य नहीं होते। मलू यों में
आस्र्ा कम होती है। अस्त,ु विज्ञान और गवणत का विक्षा के सार्-सार् विक्षा के प्रत्येक स्तर
पाठ्यक्रम में मानविकी अध्ययनों, कला और सावहत्य को उपयक्त ु स्र्ान वदया जाना चावहए।
आधवु नक मनष्ट्ु य की अनेक परेिावनयां अत्यवधक िस्तगु त दृवष्टकोण के कारण हैं। इसके वलए
अवस्तत्ििादी विचारों के प्रकाि में आत्मगत सधु ार जरूरी है।
iii. पररिेि का महत्ि - ितथमान औद्योवगक, आवर्थक, राजनैवतक और सामावजक पररिेि मलू यहीन
हैं। अस्त,ु िह सब प्रकार की अस्तव्यस्तता, भ्रष्टाचार, तनाि और संघषथ बढ़ाता है।
अवस्तत्ििावदयों ने एक ऐसे पररिेि जिु ाने की बात की, वजसमें आत्म-विकास और आत्म-
चेतना संर्ि हुए। विद्यालय में इस पररिेि के वलए मानविकी अध्ययनों, कला और सावहत्य की
विक्षा दी जानी चावहए। इनसे विक्षार्ी में िैयवक्तकता का विकास होगा और िह सामावजक
पवहये का एक पजु ाथ मात्र बनकर नहीं रहेगा। दसू री ओर िह आत्म-चेतन और संिेदनिील
व्यवक्त बनेगा।
अवस्तत्ििाद के उपरोक्त योगदान के बािजदू एक जीिन दिथन के रूप में उसने संतवु लत विचार
उपवस्र्त नहीं वकए । उसकी प्रवतर्ा के बािजदू उसमें अनेक मानवसक रोग के लक्षण वदखलाई
पड़ते हैं। आधवु नक अवस्तत्ििाद के जनक कीके -गाडथ के दिथन में अनेक असामान्य तत्ि हैं। िास्ति
में यवद सत्य िस्तगु त नहीं है तो आत्मगत र्ी नहीं है। बवु ििाद के विरूि अवस्तत्ििाद का विरोह
महत्िपणू थ होते हुए र्ी अत्यवधक सीवमत है। नैवतक और धावमथक विक्षा के क्षेत्र में अवस्तत्ििादी
प्रणावलयां अवधक उपयोगी होते हुए र्ी िे विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में उपयोगी नहीं हैं। संक्षेप में,
विक्षा के क्षेत्र में अवस्तत्ििादी विक्षा की सीमाएं वनम्नवलवखत हैं:-
i. विक्षा का अवस्तत्ििादी लक्ष्य अत्यवधक एकांगी है।
ii. मानविकी अध्ययनों, कला और सावहत्य पर अत्यवधक जोर देना उतना ही एकाक ं ी है,
वजतना वक विज्ञान कीविक्षा पर अत्यवधक जोर देना।
iii. आत्म-साक्षात्कार के जोि में अवस्तत्ििादी यह र्ल ू जाते हैं वक जीविकोपाजथन र्ी
विक्षा का एक महत्िपणू थ लक्ष्य है। इस दृवष्ट से विक्षा का उपयोवगतािादी लक्ष्य र्ी
महत्िपणू थ है।
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iv. अवस्तत्ििादी अध्यापन प्रणाली नैवतक और धावमथक विक्षा में महत्िपणू थ हो सकती है,
वकन्तु िह विज्ञान और प्रौद्योवगकी के अध्यापन में महत्िपणू थ नहीं है।
विक्षा के क्षेत्र में अवस्तत्ििाद के उपयोग और सीमाओ ं के उपरोक्त वििेचन से स्पष्ट है वक िह विक्षा
के क्षेत्र में कुछ महत्िपणू थ कवमयों को परू ा करता है।
6.6 िब्दावली
1. अवस्तत्ििाद - अवस्तत्ििाद आधवु नक समाज तर्ा परम्परागत दिथन की कुछ वििेषताओ ं
के विरूि एक आन्दोलन है। यह अि ं तः ग्रीक की वििेकिीलता या िास्त्रीय-दिथन के
विरोध स्िरूप प्रकि हुआ।
2. प्रकृ वतिाद - प्रकृ वतिादी दिथन के अनसु ार मानि व्यवक्तगत प्राकृ वतक वनयमों से वनयवं त्रत
होता है और िह वकसी प्रकार की स्ितंत्रता नहीं रखता। दसू री ओर अवस्तत्ििावदयों ने
मानि को प्रकृ वत के द्वारा वनयवं त्रत न मानकर व्यवक्तत्ि की स्ितंत्रता की स्र्ापना की है।
3. अवस्तत्ििादी अनिु ासन - सात्रे वकसी र्ी आचार सवं हता को स्िीकार नहीं करता। िह
बालक को पणू थ स्ितत्रं ता देता है। िह जो कुछ चयन करेगा िर्ु होगा। इस प्रकार अिर्ु का
चयन र्ी हो जाता है तो उसका र्ोक्ता िह स्ियं है।
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6.8सन्दर्थ ग्रन्र् सूची
1. पाण्डे (डॉ) रामिकल, उदीयमान र्ारतीय समाज में विक्षक, अग्रिाल प्रकािन, आगरा।
2. सक्सेना (डॉ) सरोज, विक्षा के दािथवनक ि सामावजक आधार, सावहत्य प्रकािन, आगरा।
3. वमत्तल एम.एल.(2008) उदीयमान र्ारतीय समाज में विक्षक, इण्िरनेिनल पवब्लविंग
हाउस, मेरठ।
4. िमाथ रामनार् ि िमाथ राजेन्र कुमार (2006) िैवक्षक समाजिास्त्र, एिलांविक पवब्लिसथ
एण्ड वडस्रीब्यिू सथ।
5. सलैक्स (डॉ) िीलू मैरी (2008) विक्षक के सामावजक एिं दािथवनक पररप्रेक्षय, रजत
प्रकािन, नई वदलली।
6.9शनबांधात्मक प्रश्न
1. अवस्तत्ििाद का अर्थ बताते हुए अवस्तत्ििाद और विक्षा में सबं धं ों को स्पष्ट कीवजए।
2. अवस्तत्ििाद की वििेषताओ ं का विस्तृत िणथन कीवजए।
3. अवस्तत्ििाद की दो पररर्ाषाएं दीवजए ि अवस्तत्ििादी विक्षा के उद्देश्यों की व्याख्या
कीवजए।
4. अवस्तत्ििाद में पाठ्यक्रम ि विक्षण विवध की विस्तृत व्याख्या कीवजए।
5. अवस्तत्ििादी विक्षा से आप क्या समझते हैं। अवस्तत्ििाद में विक्षक की र्वू मका की स्पष्ट
व्याख्या कीवजए।
6. अवस्तत्ििाद पर एक आलोचनात्मक लेख वलवखए।
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इकाई-7 : महात्मा गााँधी Mahatma Gandhi
7.1 प्रस्तािना
7.2 उद्देश्य
7.3 गााँधी जी के दािथवनक विचार
7.3.1 गााँधी जी के सिोदय दिथन की तत्िमीमासं ा
7.3.2 गााँधी जी के सिोदय दिथन की ज्ञानमीमांनसा
7.3.3 गााँधी जी के सिोदय दिथन की मूलयमीमासं ा
7.4 महात्मा गााँधी के िैवक्षक विचार
7.4.1 विक्षा का संप्रत्यय
7.4.2 विक्षा के उद्देश्य
7.4.3 विक्षा का पाठ्यक्रम
7.4.4 विक्षण की विवधयााँ
7.4.5 अनुिासन
7.4.6 विक्षक
7.4.7 विक्षार्ी
7.4.8 विद्यालय
7.4.9 बेवसक विक्षा
7.4.10 बेवसक विक्षा गुण
7.4.11 बेवसक विक्षा के दोष
7.5 सारांि
7.6 िब्दािली
7.7 स्िमूलयांकन हेतु प्रश्नों के उत्तर
7.8 सन्दर्थ ग्रर्ं सचू ी
7.9 वनबंधात्मक प्रश्न
7.1 प्रस्तावना
र्ारत के वनमाथण में महात्मा गााँधी के योगदान के ो ध्यान में रखते हुये उन्हें सम्मान देने हेतु राष्ट्रवपता
की उपावध से निाजा गया। गााँधी जी की विचारधारा आदिथिादी विचारधारा से मेल खाती है। गााँधी
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जी की विक्षा के क्षेत्र में अवद्वतीय देने है। िे पहले व्यवक्त र्े वजन्होंने र्रतीय जीिन को दृवष्ट में रखते
हुये ितािरण के अनसु ार ऐसी विक्षा योजना प्रस्ततु की वजसको कायथ रूप में पररणत करने से र्रतीय
समाज में नया जीिन आने की सम्र्ािना है, गााँधी जी समस्त र्ारतीय नागररकों को विवक्षत बनाना
चाहते र्े, विवक्षत होने से उनका तात्पयथ यह नही र्ा वक िे के िल साक्षर बन कर रह जाएाँ , क्योंवक
गााँधी जी साक्षरता को विक्षा का दजाथ नहीं देते र्े। िे इसे ज्ञान या ज्ञान का माध्यम ही मानते र्े।
7.2 उद्देश्य
इस इकाई के अध्ययन के पश्चात् आप-
1. महात्मा गााँधी के दािथवनक विचारों को स्पष्ट कर पाएगं े ।
2. महात्मा गााँधी के अनसु ार विक्षा के संप्रत्यय का िणथन कर सकें गे।
3. महात्मा गााँधी के िैवक्षक विचारों को अपने िब्दों को व्यक्त कर सकें गे।
4. महात्मा गााँधी के िैवक्षक विचारों का मलू याक ं न कर सकें गे।
5. महात्मा गााँधी की बेवसक विक्षा की वििेषताएाँ वलख सकें गे।
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अब आप यहााँ गााँधी जी के सिोदय दिथन की तत्िमीमासं ा, ज्ञानमीमासं ा ि मलू य मीमासं ा के विषय
में पढ़ेगें।
7.3.1गााँधी जी के सिोदय दिथन की तत्िमीमास
ं ा
Metaphysics of Philosophical Thoughts of Gandhiji
गााँधी जी गीता की इस बात से सहमत र्े वक मल ू तत्ि दो हैं- परू
ु ष (ईश्वर) और प्रकृ वत (पदार्थ) और
इनमें ईश्वर श्रेष्ठ है। गााँधी जी ने ईश्वर की श्रेष्ठता को दो तथ्यो द्वारा स्पष्ट वकया हैं। पहला वक ईश्वर
प्रकृ वत के कण-कण में विद्यमान है परन्तु प्रकृ वत ईश्वर में विद्यमान नहीं है, दसू रा ईश्वर ही ससं ार का
सृजक है पालनहार है और विनािकताथ र्ी है। उन्होंने ईश्वर को परम सत्य के रूप को माना, गााँधी जी
ने माना वक ईश्वर अपररितथनिील है। अतः िह सत्य है, और प्रकृ वत पररितथनिील है अतः असत्य
है।
गााँधी जी आत्मा को परमात्मा का अिं मानते र्े, और चाँवू क परमात्मा सत्य है, तो आत्मा र्ी सत्य
है। गााँधी जी मनष्ट्ु य को िरीर, मन ि आत्मा का योग मानते र्ें, उसके जीिन का परम उद्देश्य
आत्मज्ञान, ईश्वर प्रावप्त और मोक्ष प्रावप्त है।
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(सत्य, अवहसं ा,अर्य, अस्तेय, अपररगृह ,अस्िाद, अस्पृश्यता वनिारण, श्रम,सिथधमथ, सम्र्ाि
विनम्रता और ब्रह्मचयथ), गााँधी जी ने इन्हें मानि जीिन का मलू य माना है।
गााँधी जी के जीिन के प्रमख
ु आदथि ि मलू य वनम्न हैं-
सत्य- गााँधी जी के अनसु ार सत्य, साध्य एंि साधन दोनों है। गााँधी जी के अनसु ार मानि जीिन का
अवन्तम लक्ष्य ईश्वर प्रावप्त है। और ईश्वर को प्राप्त करने का सबसे अच्छा साधन के िल एक ही है-
सत्य।
साध्य रूप में सत्य िह है वजसका अवस्तत्ि है वजसका कर्ी अन्त नही होता अर्ाथत ईश्वर और
साधन के रूप में सत्य से गााँधी जी का तात्पयथ सत्य विचार, सत्य आचरण ि सत्य र्ाषण से हैं।
गााँधी जी के वलए ईश्वर ि सत्यमें कोई अन्तर नही र्ा। गााँधी जी ने अपने सम्पणू थ जीिन सत्य की
खोज में ही व्यतीत वकया।
अवहसं ा- अवहसं ा गााँधी जी की दािथवनक विचारधारा का दसू रा महत्िपणू थ तत्ि है। उनका विश्वास र्ा
वक सत्य का पालन के िल अवहसं ा द्वारा ही सम्र्ि है। सत्य और अवहसं ा को एक दसू रे से अलग
करना प्रायः असम्र्ि है, यह एक वसक्के के दो पहलू है। अतः गााँधी जी ने सत्य और अवहसं ा को
एक दसू रे से सम्बवन्धत मानते हुये इस बात पर बल वदया वक यवद जीिन का लक्ष्य उस सत्य रूपी
ईश्वर को प्राप्त करना है तो उसकी प्रावप्त का साधन अवहसं ा है। गााँधी जी के अनसु ार अवहसं ा का अर्थ
है- समस्त प्रावणयो के प्रवत बरु ी र्ािना, द्वेष का अर्ाि, अवं हसा अपने सवक्रय रूप में जीिन के प्रवत
सदर्ािना है यह िद्वु प्रेम है।
वनर्थयता- वनर्थयता का अर्थ स्पष्ट करते हुये गााँधी जी ने कहा है वक वनर्थयता का अर्थ है समस्त र्य
से मवु क्त। गााँधी जी को विश्वास र्ा वक वबना वनर्थयता के सत्य तर्ा अवहसं ा का पालन करना
असम्र्ि है। जैसे बीमारी का र्य, िारीररक चोि तर्ा मृत्यु का र्य, सम्पवत्त विहीन होने का र्य,
प्रवतष्ठा खोने का र्य, अपने वप्रयजन की मृत्यु का र्य, अनवु चत कायथ करने का र्य इवत्यावद।
सत्याग्रह- सत्याग्रह का िावब्दक अर्थ है सत्य के प्रवत आग्रह, सत्य का अनसु रण करना एिं कराना।
गााँधी जी के अनसु ार सत्याग्रह िब्द का अर्थ है -सत्य का दृढ़ अिलम्बन, उन्होंने इसको आत्मबल
के नाम से र्ी पक ु ारा है। यह वसद्वान्त सत्य तर्ा मायार पर आधाररत है इसके अन्तगथत विरोधी को कष्ट
नहीं वदया जाता अवपतु स्ियं को कष्ट देकर विरोधी को सत्य का समर्थन कराया जाता है। सत्याग्रह
के प्रयोग के प्रारवम्र्क स्तरों पर उन्होंने यह खोज की वक सत्य का अनसु रण इस बात की आज्ञा नहीं
देता वक कोई व्यवक्त अपने विरोधी पर बल का प्रयोग करें , इसके विपरीत उसे धैयथ और सहानर्ु वू त से
उनको गलत मागथ से हिाना चावहये। कारण यह है वक जो बात एक व्यवक्त को सत्य मालमू होती है,
िह दसू रे को असत्य मालमू हो सकती है।
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गााँधी जी के अनसंु ार प्रत्येक मनष्ट्ु य को इन आदिो को अनसु रण करना चावहये । िह व्यवक्त को इन
आदिों का अनसु रण करेगा सर्ी मनष्ट्ु यों के वहत के बारे में सोचेगा िह सच्चे अर्ों में सिोदयी
बनेगा, गााँधी जी के विचार से ऐसा व्यवक्त ही जीिन में सखु ि िावन्त की प्रावप्त कर सकता है। उसे ही
आत्म ज्ञान ि ईश्वर की प्रावप्त होगी।
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अग्रं ेजी को ऐसी र्ाषा माना जो वक मानवसक दासता (Mental Slavery)उत्पन्न करती है। िह
चाहते र्े वक विक्षा मनष्ट्ु य को आत्म-वनर्थर बनाए और उसको जीविकोपाजथन करने योग्य बनाए,
अत: उन्होंने हस्तविलप की विक्षा पर वििेष बल वदया।
इस िैवक्षक दिथन के आधार पर गााँधी जी ने राष्ट्रीय विक्षा का रूप वनधाथररत वकया और उसको
‘बेवसक विक्षा’ नाम वदया।
अब आप गााँधी जी के िैवक्षक विचारों का वनम्नित अध्ययन करेंगे।
7.4.1 शिक्षा का संप्रत्यय Concept of Education
गााँधी जी साक्षरता को विक्षा नहीं मानते र्े। गााँधी जी के अनसु ार,‘’साक्षरता न तो विक्षा का अन्त है
और न आरम्र्। यह के िल एक साधन है वजसके द्वारा परूु ष तर्ा स्त्री को विवक्षत वकया जा सकता
है।‘’
“Literacy is not the end of education nor even the beginning. It is the only one
of the means whereby men and women can be educated.”
उनका विश्िास र्ा वक विक्षा को बालक की समस्त िवक्तयों का विकास करना चावहए वजससे िह
पणू थ मानि बन जाये। पणू थ मानि का अर्थ बालक के व्यवक्तत्ि के चारों तत्िों-िरीर, हृदय, मन तर्ा
आत्मा के समवु चत विकास से है। गााँधी जी के अनसु ार विक्षा का कायथ वलखना, पढ़ना या गणना
करना, वसखना नहीं हैं, बवलक मनष्ट्ु य के िरीर, मवस्तष्ट्क ि हृदय का विकास करना है।
गााँधीजी के अनसु ार,‘’विक्षा से मेरा तात्पयथ है – बालक और मनष्ट्ु य के िरीर, मवस्तष्ट्क और आत्मा
में पाये जाने िाले सिोत्तम गणु ों का चहुमाँ ख
ु ी विकास।‘’
According to Gandhi ji – “By education I mean an all round drawing out of the
best, in child and man-body, mind and spirit.”
7.4.2 शिक्षा के उद्देश्य Aims of Education
गााँधी जी ने सर्ी पक्षों को ध्यान में रखा और विक्षा को उसी के अनसु ार कई दृवष्ट्कोणों से देखा।
‘स्िािलम्बन’ उनकी विक्षा का प्रमख ु उद्देश्य र्ा। प्राचीन र्ारतीय दिथन की र्ॉ ंवत ‘सा विद्या या
विमक्ु तये’ गााँधी जी का आदिथ र्ा। िह व्यवक्त की स्ितत्रं ता के सार् उसे एक सामावजक प्राणी के
रूप में र्ी देखते हैं।
गााँधी जी के अनसु ार, मानि जीिन का परम उद्देश्य मोक्ष है। उन्होंने मोक्ष को िृहद रूप में वलया है।
उन्होंने आध्यावत्मक मवु क्त से पहले, र्ौवतक, मानवसक, आवर्थक ि राजनैवतक मवु क्त की बात कही,
उनका तकथ र्ा वक जब तक मनष्ट्ु य िारीररक ि र्ौवतक कमजोरी, मानवसक दिाब, आवर्थककमी
उत्तराखण्ड मक्त
ु विश्वविद्यालय 93
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तर्ा राजनैवतक दासता से मक्ु त नहीं हो जाता, िह आध्यावत्मक मवु क्त प्रामात नहीं कर सकता। यही
िह कारण है वजसके वलए िे मनष्ट्ु य के िरीर, मवस्तष्ट्क ि आत्मा के उच्चतम विकास को प्रर्ावित
करना चाहते र्े।
अब आप गााँधी जी के अनसु ार विक्षा के उद्देश्यों का वनम्नित अध्ययन करेंगे –
i. िारीररक शिकास (Physical Development)– मनष्ट्ु य जीिन का कोई र्ी उद्देश्य क्यों
न हो उसकी प्रावप्त तर्ी सर्ं ि है जब िरीर स्िस्र् हो। अत: िरीरका स्िस्र् विकास सबसे
पहले होना चावहए। गााँधी जी ने इसे महत्िपणू थ माना है।
ii. मानशसक एिं बौशद्धक शिकास (Mental and Intellectual Development) –
गााँधी जी के अनसु ार िरीर के सार्-सार् मन तर्ा आत्मा का विकास र्ी आिश्यक है।
विक्षा द्वारा बालक का मानवसक विकास होना चावहए।
iii. जीशिकोपाजथन का उद्देश्य (Vocational Aim) –गााँधी जी विक्षा में आत्मवनर्थरता से
वसिान्त के प्रबल समर्थक र्े। िे चाहते र्े वक प्रत्येक बालक वनयवमत विक्षा प्रामात करें
वकसी व्यिसाय के द्वारा अपनी आवर्थक आिश्यकताओ ं की पवू तथ स्ियं कर सकें । आवर्थक
आर्ाि से मक्त ु होनेके उद्देश्य पर बल वदया। िे प्रत्येक मनष्ट्ु य को आत्मवनर्थर बनाना चाहते
र्े और उन्होंने हस्तविलप उद्योग की विक्षा पर बल वदया। उन्होंने यह स्पष्ट्ि रूप से कहा
वक बालक को बेवसक विक्षा द्वारा जीविकोपाजथन करने योग्य बनाना, विक्षा का उद्देश्य है
iv. िैयशिक एिं सामाशजक शिकास (Individual and social Development)गााँधी
जी ने मनष्ट्ु य के दोनों प्रकार के विकास पर बल वदया, िैयवक्तक विकास एिं सामावजक
विकास। गााँधी जी िैयवक्तक विकास को व्यवक्त, समाज और राष्ट्र, सर्ी के विकास के वलए
आिश्यक मानते र्े। इनके अनसु ार िैयवक्तक विकास ही आध्यावत्मक विकास है, और
आध्यावत्मक विकास के वलए सामावजक विकास आिश्यक है। सामावजक विकास से
उनका तात्पयथ र्ा प्रेम एिं सहयोग से जीना सीखना। उनका मानना र्ा वक संपणू थ मानि
जावत से प्रेम करने ि सेिा करने से ही आध्यावत्मक विकास संर्ि है। इस प्रकार गााँधीजी ने
िैयवक्तक एिं सामावजक उद्देश्यों को सश्ं लेवषत वकया।
v. सांस्कृशतक शिकास (Cultural Development) – गााँधी जी के अनसु ार, संस्कृ वत
आत्मा से संबंवधत है और िह स्ियं को मनष्ट्ु य के व्यिहार में पररलवक्षत करती है। उन्होंने
सस्ं कृ वत को जीिन का आधार माना है। उन्होंने मनष्ट्ु य के व्यिहार को वनयवं त्रत करने के
वलए सांस्कृ वतक विकास को महत्िपणू थ माना है अत: इसे विक्षा का उद्देश्य माना और कहा
“मैं विक्षा के सास्ं कृ वतक पक्ष को उसके सावहवत्यक पक्ष से अवधक महत्िपणू थ समझता ह।ाँ
अत: मानि के प्रत्येक व्यिहार पर संस्कृ वत की छाप होनी चावहए”।
vi. नैशतक तर्ा िाररशत्रक शिकास (Moral and Character development) –गााँधी
जी समस्त विक्षा को चररत्र वनमाथण की कसौिी पर कसते हैं, उनका मानना है वक,विक्षा का
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ु विश्वविद्यालय 94
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एक उद्देश्य चररत्र वनमाथण र्ी है। उन्होंने बच्चों में सत्य, अवहसं ा, अर्य, अस्तेय, अपररग्रह
आवद गणु ों के विकास को महत्ि वदया। इस संबधं में उन्होंने अपनी आत्मकर्ा में वलखा है
– ‘’मैंने सदैि हृदय की संस्कृ वत, अर्िा चररत्र वनमाथण को प्रर्म स्र्ान वदया है। उनके
अनसु ार सर्ी ज्ञान का अन्त िैयवक्तक िवु ि एिं चररत्र वनमाथण है।
vii. आध्याशत्मक शिकास (Spiritual Development) – गााँधी जी के अनसु ार, मानि
जीिन का अवं तम उद्देश्य मवु क्त, आत्म-बोध, स्ियं का ज्ञान है। उनके अनसु ार विक्षा ऐसी
होनी चावहए जोवक मनष्ट्ु य को सांसाररक बन्धनों से मक्ु त करें, उसकी आत्मा को उत्तम
जीिन की ओर प्रिृत्त कर सकें , संक्षेप में, गााँधी जी विक्षा के द्वारा आत्म विकास के वलए
आध्यावत्मक स्ितंत्रता वदलाना चाहते र्े।
उत्तराखण्ड मक्त
ु विश्वविद्यालय 95
समकालीन भारत और शिक्षा BEDSEDE A2
f. सामान्य विज्ञान – बागिानी, िनस्पवत विज्ञान, प्रावण विज्ञान, रसायन विज्ञान, गृह विज्ञान,
र्ौवतक विज्ञान।
g. संगीत
h. स्िास्र्-विज्ञान (स्िच्छता, व्यायाम, खेलकूद)
i. वचत्रकला
j. नैवतक विक्षा
इस पाठ्यक्रम में हस्तविलप एिं उद्योग को प्रमख
ु स्र्ान वदया गया, इनके वलए 3 घण्िे 20 वमनि का
समय वनधाथररत वकया गया र्ा।
इस पाठ्यक्रम में अग्रं ेजी र्ाषा तर्ा धावमथक विक्षा को कोई स्र्ान नहीं वदया गया है, वसफथ नैवतक
विक्षा को स्िीकृ त वकया, वजसमें सर्ी धमों का सार वनवहत है।बेवसक विक्षायोजना का पाठ्यक्रम 7
से 14 िषथ तक के बालक ि बावलकाओ ं के वलए वनधाथररत वकया गया। पााँचिी कक्षा तक सह-विक्षा
लागू रहेगी। इसके उपरान्त यद्यवप बालक-बावलकाओ ं के वलए पाठ्यक्रम समान है, वफर र्ी
बावलकाओ ं के वलए सामान्य विज्ञान के स्र्ान पर गृह-विज्ञान की विक्षा की व्यिस्र्ा की गई।
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ु विश्वविद्यालय 97
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होती है। विक्षक को बच्चे का वमत्र और मागथदिथक होना चावहए। उसे मैत्रीपणू थ ढगं से बालक के
मानोर्ािों के प्रवत प्रवतवक्रया करनी चावहए।
7.4.7 शिक्षार्ी Student
गााँधी जी विक्षा व्यिस्र्ा का के न्र विक्षार्ी है। गााँधी जी के अनसु ार विद्यार्ी को अनि
ु ावसत रहना
चावहए और ब्रह्राचयथ का पालन करना चावहए। गााँधी जी बच्चों को उनके व्यवक्तगत विकास हेतु पणू थ
स्ितंत्रता देने के समर्थक हैं, परन्तु उनके सामावजक और आध्यावत्मक विकास को ध्यान में रखते
हुए। बच्चों को आत्मवनर्थर बनानेके वलए गााँधी जी ने प्रारंर् से ही उनके िारीररक, मानवसक और
बौविक विकास में बल वदया। गााँधी जी बच्चे को वजज्ञास,ु उत्साही एिं आत्मबल रखने िाला
बनाना चाहते र्े।
7.4.8शिद्यालय School
विद्यालय को लेके गााँधी जी के विचार नीिन र्े। उनके अनसु ार विद्यालय एक ऐसी कायथिला होना
चावहए जहााँ विक्षक समवपथत होकर कायथ करें। जहााँ वक विक्षक और विक्षार्ी के संयक्ु त प्रयत्न से
इतना उत्पादन वकया जा सके वजससे वक िे आवर्थक रूप से आत्मवनर्थर बन सकें । इन्होंने विद्यालयों
को सामदू ावयक के न्र बनाने पर बल वदया। उनके अनसु ार विद्यालयों को समदु ाय में विवर्न्न
गवतविवधयााँ करानी चावहए और लोगों को िहॉ ं पढ़ने और काम करने की सवु िधा होनी चावहए।
विद्यालयों को प्रौढ़ विक्षा की व्यिस्र्ा करनी चावहए और रात में पाठिाला लगाने की व्यिस्र्ा र्ी
करनी चावहए। समदु ाय को विद्यालयों को विवर्न्न वक्रयाओ ं में सहायता करनी चावहए और
विद्यालय को समदु ाय के वलए सहायक होना चावहए।
7.4.9बेशसक शिक्षाBasic Education
तत्कालीन विक्षा के दोषों के वनराकरण तर्ा अपने िैवक्षक प्रयोगों को राष्ट्रीय विक्षा योजना का रूप
देने के वलए स्ितंत्रता के सार्-सार् गााँधी जी ने िैावक्षक सधु ार हेतु र्ी कायथ वकए। अक्िूबर 1937
को िधाथ में राष्ट्रीय विक्षा संगोष्ट्ठी (The National Education conference)हुई, वजसमें गााँधी
जी ने राष्ट्रीय विक्षा योजना का प्रवतपादन वकया, वजसे वक बेवसक विक्षा कहा जाता है। इसे िधाथ
योजना, नयी तालीम और बवु नयादी विक्षा के नाम से र्ी जाना जाता है।
अब आप बेवसक विक्षा के प्रस्तािों को पढ़ेंगे –
i. 7 से 14 िषथ की आयु िगथ के सर्ी बच्चों के वलए अवनिायथ एिं वनिलु क विक्षा दी जाएगी।
ii. विक्षा का माध्यम मातृ र्ाषा होगी।
iii. सपं णू थ विक्षा स्र्ानीय हस्तकला पर आधाररत होगी।
iv. हस्तकला का चयन बच्चों की क्षमता और क्षेत्रीय आिश्यकताओ ं के आधार पर वकया
जाएगा।
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v. बच्चों द्वारा बनाई गई िस्तओ
ु ं का उपयोग वकया जाएगा और उससे अवजथत आवर्थक लार्
विद्यालय के व्यय में उपयोग लाया जाएगा।
vi. हस्तकलाएं इस प्रकार वसखाई जाएाँ वजससे की बच्चे आत्मवनर्थर बनें।
vii. आवर्थक महत्ि के सार्-सार् हस्तकालाओ ं की विक्षा को सामावजक एिं िैज्ञावनक महत्ि
र्ी वदया जाए।
7.4.10बेशसक शिक्षा के गुण Merits of Basic Education
सैिावन्तक तौर पर यह योजना उपयोगी लगती है, परन्तु िास्तविकता में यह उपयोगी नहीं है।
i. सिाांगीण शिकास- बेवसक विक्षा ने बालक के िारीररक, मानवसक, समावजक,
सांस्कृ वतक, नैवतक एिं चाररवत्रक विकास में बल वदया।
ii. सामाशजक और राष्ट्रीय एकता- धमथ, जावत और व्यिसाय के आधार पर समाज कई
िगों में बिा है। बेवसक विक्षा ने सर्ी को समान अिसर विक्षा प्रदान कर िगथ र्ेद को
हिाया।
iii. भारतीयता की छाप- बेवसक विक्षा सच्चे अर्ों में र्ारतीय है। इसमें मातृ-र्ाषा को विक्षा
का माध्यम बनाया और अग्रं ेजी को कोई स्र्ान नहीं वदया।
iv. वक्रया आधाररत विक्षण विवधयााँ- बेवसक विक्षा में स्िानर्ु ि द्वारा सीखने के अिसर प्रदान
वकए गये। इसमें स्ियं करके सीखने के मनोिैज्ञावनक वसिान्त के आधार पर विक्षा दी जाती
है।
v. िास्तशिक जीिन से सबं ंशधत- बेवसक विक्षा ग्रामीण उद्योगों में अवनिायथ करने के वलए
बनी र्ीं। बेवसक विक्षा कृ वष, पि-ु पालन, ग्रामीण उद्योग एिं हस्तकला की विक्षा द्वारा
विक्षार्ी को जीविकोपाजथन के योग्य बनाती है। बेवसक विक्षा बालक की वक्रयात्मक
प्रिृवत्तयों को प्रोत्सावहत करके उसकी उत्पादन क्षमता को बढ़ाती है। र्ारत जैसे कृ वष प्रधान
देि में इसका बड़ा महत्ि है।
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माध्यवमक एिं उच्च विक्षा से सबं वं धत नहीं है। यह उच्च विक्षा के वलए उपयक्ु त आधार
नहीं है।
iii. बेवसक विक्षा में बच्चों को तरह-तरह की हस्तकला वसखाने में कच्चे माल का उपयोग
अपव्यय है।
iv. रतिषथ गरीब देि है और यहााँ प्रार्वमक विक्षा अवनिायथ ि वनिलु क होनी चावहए, परन्तु
इसके वलए बालकों से अवनिायथ रूप से उत्पादन कराना उवचत नहीं जान पड़ता।
v. बेवसक विक्षा में हस्तकला पर आिश्यकता से अवधक जोर वदया गया, वजससे अन्य विषय
उपेवक्षत रह गए। इसमें पाठ्य-पस्ु तकों को महत्ि नहीं वदया जाता वजससे बालक उनके लार्
से िंवचत रह जाता है।
vi. बेवसक विक्षा, र्ारत की मौवलक विक्षा है, परन्तु इसमें धावमथक विक्षा को सवम्मवलत नहीं
वकया गया है के िल नैवतक विक्षा को ही सवम्मवलत वकया गया है। गााँधी जी को र्य र्ा
वक धावमथक विक्षा िैमनस्य को बढािा दे सकती है।
गााँधी जी सिोदय दिथन के समर्थक र्े। िे एक िगथ रवहत समाज की स्र्ापना करना चाहते र्े। गााँधी
जी की विक्षा के क्षेत्र में अवद्वतीय देन है। िे पहले व्यवक्त र्े वजन्होंने र्ारतीय जीिन को दृवष्ट में रखते
हुए ऐसी विक्षा योजना प्रस्ततु की वजसको कायथ रूप में पररणत करने से र्ारतीय समाज में एक नया
जीिन आने की संर्ािना है। उन्होंने के विस्तृत उद्देश्य वनधाथररत वकए,और व्यापक पाठ्यक्रम का
वनमाथण वकया। गााँधी जीके दिथन में प्रकृ वतिाद, आदिथिादतर्ा प्रयोजनिाद की झलक स्पष्ट्ि रूप से
वदखाई पड़ती है।
डॉ० एम०एस० पटेल ने र्ी इसी आिय की पवु ष्ट करते हुए वलखा है –
“दािथवनक के रूप में गााँधी जी की महानता इस बात में है वक उनके विक्षा-दिथन में प्रकृ वतिादी,
आदिथिाद और प्रयोजनिाद की मख्ु य प्रिृवत्तयॉ ं अलग और स्ितंत्र नहीं हैं िरन् िे सब वमलजल
ु कर
एक हो गई हैं, वजससे ऐसे विक्षा-दिथन का जन्म हुआ है जो आज की आिश्यकताओ ं के वलए
उपयक्ु त होगा तर्ा मानि आत्मा की सिोच्च अकाक्ष ं ाओ ं को सतं ष्ट्ु ि करेगा।”
7.5साराांि
गााँधी जी ने नया दिथन प्रवतपावदत नहीं वकया। उन्होंने र्ारतीय दिथन दिथन के मल ू तत्िों को
िास्तविक रूप वदया।गााँधी जी गीता की बात से सहमत र्े वक मल ू तत्ि दो हैं- परू
ु ष (ईश्वर) और
प्रकृ वत (पदार्थ) और इनमें ईश्वर श्रेष्ठ है। गााँधी जी आत्मा को परमात्मा का अिं मानते र्े, और चाँवू क
परमात्मा सत्य है, तो आत्मा र्ी सत्य है। गााँधी जी मनष्ट्ु य को िरीर, मन ि आत्मा का योग मानते र्ें,
उसके जीिन का परम उद्देश्य आत्मज्ञान, ईश्वर प्रावप्त और मोक्ष प्रावप्त है।
गााँधी जी ने ज्ञान को दो िगो में बााँिा है र्ौवतक ज्ञान ि आध्यावत्मक ज्ञान, गााँधी जी के अनसु ार
मनष्ट्ु य को दोनो प्रकार के ज्ञान की आिश्यकता है। र्ौवतक ज्ञान र्ौवतक जगत के वलए आिश्यक
है और आध्यावत्मक ज्ञान आत्म ज्ञान, ईश्वर प्रावप्त ि मोक्ष प्रावप्त के वलए आिश्यक है। गााँधी जी के
जीिन के प्रमख ु आदथि हैं सत्य, अवहसं ा, वनर्थयता एिं सत्याग्रह।गााँधी जी के अनसु ार सत्य, साध्य
एंि साधन दोनो है। गााँधी जी के वलए ईश्वर ि सत्यमें कोई अन्तर नही र्ा। गााँधी जी ने अपने
सम्पणू थ जीिन सत्य की खोज में ही व्यतीत वकया।अवहसं ा गााँधी जी की दािथवनक विचारधारा का
दसू रा महत्िपणू थ तत्ि है। गााँधी जी के अनसु ार वनर्थयता का अर्थ है समस्त र्य से मवु क्त। गााँधी जी
को विश्वास र्ा वक वबना वनर्थयता के सत्य तर्ा अवहसं ा का पालन करना असम्र्ि हैं। गााँधी जी के
अनसु ार सत्याग्रह िब का अर्थ है -सत्य का दृढ़ अिलम्बन, उन्होंने इसको आत्मबल के नाम से र्ी
पक ु ारा है।
गााँधी जी विक्षा को मनष्ट्ु य का जन्म वसि अवधकार माना और उसको वकसी र्ी अन्य प्रकार के
विकास की र्ााँवत ही आिश्यक माना है। गााँधी जी साक्षरता को विक्षा नहीं मानते र्े। गााँधी जी के
अनसु ार,‘’साक्षरता न तो विक्षा का अन्त है और न आरम्र्। यह के िल एक साधन है वजसके द्वारा
परूु ष तर्ा स्त्री को विवक्षत वकया जा सकता है।‘’ गााँधी जी, देि के मल ू र्तू आिश्यकताओ ं से
पररवचत र्े। उन्होंने देि की आिश्यकताओ ं को ध्यान में रखते हुए तर्ा एक िगथ रवहत समाज के
वनमाथण हेत,ु वक्रया-प्रधान पाठ्यक्रम पर बल वदया। गााँधी जी की विक्षा योजना को बेवसक विक्षा की
संज्ञा दी जाती है। इस विक्षा का पाठ्यक्रम वक्रया-प्रधान है, तर्ा इसका उद्देश्य बालक को कायथ,
प्रयोग एिं खोज के द्वारा उसकी िारीररक, मानवसक और आध्यावत्मक िवक्तयों का विकास करना
है।
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गााँधी जी अनिु ासन को बहुत महत्ि देते र्े। उनके अनसु ार सच्चा अनि
ु ासन आतं ररक अवर्प्रेरणा
से आता है। गााँधी जी के विचार से विक्षक एक आदिथ व्यवक्त होना चावहए, िह ज्ञान का पंजु और
सत्य आचरण करने िाला होना चावहए। गााँधी जी विक्षा व्यिस्र्ा का के न्र विक्षार्ी है।विद्यालय
को लेके गााँधी जी के विचार नीिन र्े। उनके अनसु ार विद्यालय एक ऐसी कायथिला होना चावहए
जहााँ विक्षक समवपथत होकर कायथ करें। जहााँ वक विक्षक और विक्षार्ी के संयक्ु त प्रयत्न से इतना
उत्पादन वकया जा सके वजससे वक िे आवर्थक रूप से आत्मवनर्थर बन सकें ।
तत्कालीन विक्षा के दोषों के वनराकरण तर्ा अपने िैवक्षक प्रयोगों को राष्ट्रीय विक्षा योजना का रूप
देने के वलए स्ितंत्रता के सार्-सार् गााँधी जी ने िैावक्षक सधु ार हेतु र्ी कायथ वकए।गााँधी जी सिोदय
दिथन के समर्थक र्े। िे एक िगथ रवहत समाज की स्र्ापना करना चाहते र्े। गााँधी जी की विक्षा के
क्षेत्र में अवद्वतीय देन है।
7.6 िब्दावली
1. तत्िमीमांसा- िास्तविकता का विज्ञान
2. ज्ञानमीमांसा- ज्ञान का विज्ञान
3. मलू यमीमासं ा- मलू य का विज्ञान
4. 4.सत्याग्रह- सत्य के प्रवत आग्रह।
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11. गााँधीजी के अनसु ार,‘’विक्षा से मेरा तात्पयथ है – बालक और मनष्ट्ु य के िरीर, मवस्तष्ट्क
और
12. आत्मा में पाये जाने िाले सिोत्तम गणु ों का चहुमाँ खु ी विकास।‘’
13. वक्रया –प्रधान
14. सत्य
15. गााँधी जी द्वारा दी गयी विक्षण विवधयााँ वनम्न हैं-
i. अनक ु रण विवध
ii. स्िानर्ु ि द्वारा सीखने की विवध
iii. वक्रया विवध
iv. सहसंबधं विवध
v. मौवखक विवध
vi. श्रिण-मनन-वनवधध्यासन विवध
16. प्रर्ािात्मक
17. सत्य
18. सत्य
19. विक्षार्ी
20. कायथिला
21. बेवसक विक्षा को िधाथ योजना, नयी तालीम और बवु नयादी विक्षा के नाम से र्ी जाना
जाता है।
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7.9 शनबांधात्मक प्रश्न
1. गााँधी जी के अनसु ार विक्षा का अर्थ क्या है? गाम्धी जी के अनसु ार विक्षा के उद्देश्यों को
िवणथत कीवजए।
2. गााँधी के अनसु ार विक्षा के पाठ्यक्रम को स्पष्ट कीवजए।
3. गााँधी जी के जीिन के प्रमखु आदथि ि मलू यों की व्याख्या कीवजए।
4. िैवक्षक उदेश्यों और पाठ्यक्रम के विषय में गााँधी जी के विचारों का िणथन कीवजये।
5. विक्षण विवधयों के विषय में गााँधी जी के विचारों का िणथन कीवजये।
6. बेवसक विक्षा के गणु एिं दोषों को वलवखए।
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इकाई-8 िवीन्द्रनाथ टै गोि
Rabindranath Tagore
8.1 प्रस्तािना
8.2 उद्देश्य
8.3 िैगोर का विक्षा दिथन
8.3.1 िैगोर का जीिन पररचय एिं विक्षा
8.3.2 िैगोर का का व्यािहाररक जीिन एिं गवतविवधयां
8.3.3 आत्मविक्षा के वसिान्त
8.4 रिीन्रनार् िैगोर का विश्वबोध दिथन
8.4.1 िैगोर के जीिन दिथन में विवर्न्न दािथवनक विचारधाराओ ं का
संश्लेषण
8.4.2 विक्षा के उद्देश्य
8.4.3 पाठ्यक्रम
8.4.4 विक्षण पिवत
8.4.5 अनि ु ासन
8.5 िैगोर के विक्षा दिथन का मूलयांकन ि योगदान
8.6 सारांि
8.7 िब्दािली
8.8 स्िमलू याक ं न हेतु प्रश्नों के उत्तर
8.9 सन्दर्थ ग्रन्र् सचू ी
8.10 वनबन्धात्मक प्रश्न
8.1 प्रस्तावना
र्ारतीय विक्षा िावस्त्रयों में रिीन्रनार् िैगोर का अपना वद्वतीय स्र्ान है। डॉ. एस. वसन्हा के अनसु ार-
रिीन्रनार् िैगोर का जीिन आधवु नक र्ारत के परू े यगु में फै ला हुआ है। उनके व्यवक्ति विकासमें
नि जागरण की मख्ु य बाते पायी जाती है।उनके सामावजक दिथन का सही ज्ञान र्ारतीय लोगों में
नतू न इवतहास का पयाथप्त ज्ञान का समािेि करता है। बड़े र्ारतीय जन-समहू की वनरक्षरता पवश्चम के
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लोगों के सार् बहुत ही वििेष प्रकि करती है। विक्षा के द्वारा वनरक्षरता का वनिारण उनके जीिन की
एक प्रबल इच्छा बनी।
इस प्रकार के अवद्वतीय व्यवक्तत्ि के कारण िैगोर अपने को एक महान कवि, सावहत्यकार, समाज
सधु ारक और दािथवनक के रूप में सीवमत न रख सके बवलक अपने महान विचारों के कारण र्ारत की
जनता को प्रगवत के पर् पर अग्रसर करने के वलए एक महान विक्षा िास्त्री, विक्षा वििेषज्ञ और
विक्षक के रूप में हमारे वलए िरदान वसि हुए।
8.2 उद्देश्य
1. रिीन्रनार् िैगोर की विक्षा दिथन का अध्ययन।
2. िैगोर के आत्मविक्षा के वसिान्त का अध्ययन।
3. रिीन्रनार् िैगोर के विश्वबोध दिथन का अध्ययन
4. िैगोर के जीिन दिथन में विवर्न्न दािथवनक विचारधाराओ ं का संश्लेषण का ज्ञान।
5. रिीन्रनार् िैगोर की विक्षा के उद्देश्य, पाठ्यक्रम, विक्षण पिवत, अनि
ु ासन का ज्ञान।
6. िैगोर का विक्षा दिथन में योगदान।
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पररिार अपनी समृि, कला एिं सगं ीत के वलए सारे बगं ाल में प्रवसि र्ा। िैगोर को अपने माता-
वपता से विद्वता, देिर्वक्त, धमथवप्रयता, साधतु ा आवद गणु उत्तरावधकार के रूप में प्राप्त हुए हैं। इनके
वपता इन्हें एक सार् गायक, िैज्ञावनक, दािथवनक, डॉक्िर, सावहवत्यक सर्ी कुछ बना देना चाहते र्े।
इनका जीिन नौकरों के संरक्षण में व्यतीत हुआ, जो इन्हें घर की चार-दीिारी में रखते र्े, वजसके
कारण उनमें प्रकृ वत के प्रवत प्रेम जागृत हो गया।
शिक्षा (Education)
प्रारम्र् से ही स्कूलों में गलत विक्षा पिवत ि अध्यापक के तानािाही व्यिहार के कारण ये स्कूल में
न पढ़ सके । घर पर ही बड़े र्ाई देिेन्रनार् िैगोर ि अन्य विक्षकों की देख-रेख में उन्होंने अग्रं ेजी,
संगीत, सावहत्य, कुश्ती-व्यायाम, इवतहास, र्गू ोल, गवणत आवद की विक्षा प्राप्त की।
इसके अवतररक्त िैगोर का पररिार स्ियं समाज के सामावजक, धावमथक, सावहवत्यक एिं राष्ट्रीय कायथ
का एक के न्र र्ा, वजसका बालक िैगोर के मवस्तष्ट्क पर गहरा प्रर्ाि पड़ा और उसमें राष्ट्रीय र्ािना
का बीज बो वदया गया। इस प्रकार सोलह िषथ तक अस्त-व्यस्त ढंग से विक्षा ग्रहण करने के उपरान्त
सन् 1869 में िैगोर उच्च विक्षा प्राप्त करने हेतु इग्ं लैण्ड गये। िहां से विचार पररितथन करने के कारण
लदं न चले गये वकन्तु िहां वकसी विद्यालय में प्रिेि नहीं वलया और घर िापस आ गये। लेवकन
कुिाग्र बवु ि तर्ा र्ािक
ु हृदय होने के कारण िैगोर ने अपनी जन्मजात प्रवतर्ा को और अवधक
विकवसत कर वलया।
8 .3.2 टैगोर का व्यािहाररक जीिन एिं गशतशिशधयां (Practical Life and Activities
of Tagore)
सन् 1881 में जब िे इगं लैण्ड से स्िदेि लौिे तो उनका व्यािहाररक जीिन और र्ी अवधक
व्यािहाररक हो गया। उन्होंने सिथप्रर्म र्ारत लौिकर सामावजक, जातीय एिं राष्ट्रीय र्ािना से
प्रेररत होकर लेखक के रूप में अपना व्यािहाररक जीिन प्रारम्र् वकया। िरू ु में िे सन् 1881 तक
मावसक पवत्रका ‘र्ारती’ में तर्ा इसके बाद सन् 1891 से 1894 ई. तक ‘साधना’ नामक पवत्रका में
अपने लेख देते रहे। ‘गीतांजली’ उनके सबसे प्रमखु रचना र्ी, वजस पर उन्हें नोबल परु स्कार र्ी प्राप्त
हुआ। अपने विचारों का प्रसार करने के वलए सबसे महत्िपणू थ कायथ ‘िावन्त वनके तन’ की स्र्ापना
सन् 1901 में की, वजसे आज हम ‘विश्व र्ारती विश्वविद्यालय’ के नाम से संबोवधत करते हैं।
िावन्त वनके तन में उन्होंने घरेलू उद्योग, ग्राम स्िायत्त िासन, सहकाररता, प्रारंवर्क एिं प्रौढ़ विक्षा
का विकास, ग्रामोिार, कृ वष विश्वविद्यालय, प्रयोगिाला, पस्ु तकालय आवद के वलए आध्यावत्मक
अनर्ु वू त की ओर कदम बढ़ाये। सन् 1912 से 1916 तक उन्होंने विश्व भ्रमण वकया और सिथत्र विश्व
िावन्त एकता एिं मातृत्ि का सदं ेि वदया। सन् 1915 में वब्रविि सरकार ने 1916 में उन्हें नाइिहुड
की उपावध प्रदान की। सन् 1941 में इनकी मृत्यु हो गयी।
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8 .3.3 आत्म-शिक्षा के शसद्धान्त
आत्म-विक्षा आत्म-साक्षात्कार पर आधाररत है। आत्म-साक्षात्कार की प्रवक्रया विक्षा की प्रवक्रया
के समान आजीिन चलती रहती है। इसमें सबसे अवधक आिश्यक यह है वक विक्षार्ी को स्ियं
अपने में विश्वास हो और अपनी बाह्य आत्मा के मल ू में अवधक व्यापक िास्तविक आत्मा के
अवस्तत्ि में विश्वास हो। विक्षा की प्रवक्रया में िे सब वक्रयायें सहायक हो सकती हैं वजनमें आनन्द
की स्िार्ाविक अनर्ु वू त वमलती है। यह आनन्द आत्मा की प्रवतवक्रया है और इसवलए सख ु अर्िा
सतं ोष मात्र से वर्न्न है। रिीन्र की आत्म-विक्षा-व्यिस्र्ा में विक्षार्ी को वनम्नवलवखत तीन
कायाथत्मक वसिान्तों को सीखकर उनका प्रयोग करना होता है।
i. स्ितत्रं ता - रिीन्र ने अपनी विक्षा प्रणाली में विक्षावर्थयों को सब प्रकार की स्ितंत्रता दी है।
उन्होंने बवु ि, हृदय, और संकलप अर्िा ज्ञान, र्वक्त और कमथ की स्ितंत्रता पर वििेष जोर
वदया है। इस स्ितत्रं ता को प्राप्त करने के वलए विक्षार्ी को वनष्ट्कामर्ाि, समानता, समन्िय
और संतल ु न का अभ्यास करना आिश्यक है। इससे िह सत्य और असत्य, स्िार्ाविक
और कृ वत्रम, प्रासवं गक और अप्रासवं गक, स्र्ायी और अस्र्ायी, सािथर्ौम और व्यवक्तगत
तर्ा वििाल और सक ं ु वचत में अतं र कर सकता है तर्ा सत्य और स्िार्ाविक, प्रासवं गक,
िाश्वत, समवन्ित और विश्वगत तत्िों को ग्रहण कर सकता है। एक बार यह सामर्थय उत्पन्न
होने के बाद विक्षार्ी स्ियं अपना वनदेिन कर सकता है। िह स्ियं यह जान सकता है वक
कौन-कौन से अनर्ु ि और वक्रयायें उसके मागथ में बाधक हैं और कौन से साधक हैं। रिीन्र
के अनसु ार स्ितंत्रता का अर्थ स्िार्ाविकता है। दसू रे िब्दों में, जब बवु ि, र्ािना और
सक ं लप स्िार्ाविक रूप से विस्तृत हों तो उसे स्ितत्रं ता की वस्र्वत कहा जा सकता है। इस
प्रकार स्ितंत्रता अवनयंत्रण से वर्न्न है। िह आत्म-वनयंत्रण है। िह ‘स्ि’ के अनसु ार
आचरण करना है। इस प्रकार की स्ितंत्रता एक बार प्राप्त हो जाने पर वफर मागथ-भ्रष्ट होने का
खतरा नहीं रहता, क्योंवक उसकी इवं रया,ं बवु ि, संिेग, अनर्ु वू तयां और सर्ी िवक्तयां उसके
अपने ‘स्ि’ के आदेि पर चलती हैं।
ii. पणू थता - आत्म-विक्षा का दसू रा कायाथत्मक वसिान्त पणू तथ ा है। इसके अनसु ार प्रत्येक
विक्षार्ी को अपने व्यवक्तत्ि के सर्ी पहलओ ु ं और अपनी सर्ी िवक्तयों का पणू थ विकास
करना चावहए। इस दृवष्ट से विक्षा का लक्ष्य व्यािसावयक वनपणु ता प्राप्त करना, परीक्षा में
सफल होना अर्िा वडवग्रयां लेकर सामावजक सम्मान प्राप्त करना नहीं है। विक्षा का एक
मात्र लक्ष्य बालक के व्यवक्तत्ि का पणू थ विकास है। यह पणू थ विकास तर्ी संर्ि हो सकता
है, जबवक व्यवक्तत्ि के सर्ी पहलओ ु ं पर समवु चत जोर वदया जाए, न वकसी पर
आिश्यकता से अवधक बल वदया जाए।
iii. सािथर्ौवमकता - व्यवक्त का विकास तब तक पणू थ नहीं हो सकता, जब तक वक िह अपने
अदं र उपवस्र्त विश्वात्मा को प्राप्त न कर ले। इसके वलए व्यवक्तगत आत्मा का विश्वात्मा से
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तादाम्य करना पड़ता है। इस विश्वात्मा के अवस्तत्ि में आस्र्ा विक्षा की पहली ितथ है।
विक्षा का उद्देश्य कोरा विकास मात्र न होकर एक नया जन्म है, वजससे व्यवक्त अपने सीवमत
व्यवक्तत्ि से ऊपर उठकर विश्वात्मा से एक हो जाता है। इस विश्वात्मा को न के िल व्यवक्तगत
जीिन में, बवलक अपने चारों ओर के प्राकृ वतक जीिन में र्ी खोजा जाता है। यह खोज
ज्ञान, र्वक्त और कमथ तीनों के ही माध्यम से होती है। एक बार इस विश्वात्मा का साक्षात्कार
हो जाने पर वफर इसके वनदेिन में आगे बढ़ना सरल हो जाता है।
iv. उपयथक्त
ु वििेचन से स्माष्ट है वक रिीन्र नार् िैगोर की विक्षा-प्रणाली में विक्षा का लक्ष्य
स्ितंत्रता, पणू थता और व्यापकता प्राप्त करना है। विक्षा की प्रवक्रया के द्वारा विक्षा एक ऐसे
पररिेि का वनमाथण करती है, वजसमें बालक के व्यवक्तत्ि का उन्मक्त ु , पणू थ और अत्यवधक
व्यापक विकास संर्ि होता है।
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शिश्वबोध दिथन की तत्ि मीमास ं ा :-
गरू
ु देि संसार को ईश्वर के व्यवक्तत्ि की अवर्व्यवक्त मानते र्े। इसवलए उनके अनसु ार ईश्वर द्वारा
वनवमथत यह जगत उतना ही सत्य है वजतना ईश्वर अपने आप में सत्य है। ईश्वर को इन्होंने वनराकार और
साकार, दोनों ही रूपों में स्िीकार वकया है। इनके अनसु ार बीज रूप में िह वनराकार है और सृवष्ट
(प्रकृ वत) के रूप में साकार है। गरू
ु देि को प्रकृ वत के कण-कण में ईश्वर की अनर्ु वू त होती र्ी। आत्मा
को गरू ु देि ने उपवनषदों के आधार पर तीन रूपों में स्िीकार वकया है। अपने प्रर्म रूप में यह मनष्ट्ु यों
को आत्मरक्षा में प्रिृत्त करती है, दसू रे रूप में ज्ञान-विज्ञान की खोज और अनन्त ज्ञान की प्रावप्त की
ओर प्रिृत्त करती है, और तीसरे रूप में अपने अनन्त रूप को समझने की ओर प्रिृत्त करती है।
गरूु देि के अनसु ार ये तीनों कायथ आत्मा के स्िार्ाविक गणु हैं। इसमें आत्मानर्ु वू त को गरू ु देि
मनष्ट्ु य जीिन का अवन्तम उद्देश्य मानते र्े।
शिश्वबोध दिथन की ज्ञान मीमास ं ा :-
ज्ञान प्रावप्त के साधनों के समबं न्ध में गरूु देि ने स्पष्ट वकया वक आध्यावत्मक तत्िों का ज्ञान सक्ष्ू म
माध्यमों द्वारा तर्ा र्ौवतक िस्तओ ु ं एिं वक्रयाओ ं का ज्ञान र्ौवतक माध्यमों द्वारा प्राप्त होता है। सक्ष्ू म
माध्यमों में इन्होंने प्रेम योग के महत्ि को स्िीकार वकया है। इन्होंने स्पष्ट वकया वक आध्यावत्मक तत्ि
के ज्ञान के वलए सबसे सरल मागथ प्रेम मागथ है, प्रेम ही हमें मानि मात्र के प्रवत सिं दे निील बनाता है,
यही हमें एकात्म र्ाि की अनर्ु वू त कराता है और यही हमें आत्मानर्ु वू त अर्िा ईश्वर की प्रावप्त
कराता है। िैगोर अन्य र्ारतीय दिथनों की तरह र्ौवतक एिं आध्यावत्मक दोनों पक्षों को महत्ि देते
हैं, इस मत का समर्थन करते हुए िे कहते हैं वक जो लोग के िल अविद्या अर्ाथत् ससं ार की ही
उपासना करते हैं िे तमस् में प्रिेि करते हैं और उससे अवधक अधं कार में िे प्रिेि करते हैं जो
के िल ब्रह्म विद्या में ही वनरत हैं। अतः िैगोर र्ौवतक जगत के ज्ञान को उपयोगी ज्ञान और
आध्यावत्मक जगत के ज्ञान को वििि ु ज्ञान कहते र्े। इनकी दृवष्ट से संसार की समस्त जड़ िस्तओ ु ं
और जीिों में एकात्म र्ाि ही अवं तम सत्य है और इसकी अनर्ु वू त ही मनष्ट्ु य जीिन का अवं तम
लक्ष्य है।
शिश्वबोध दिथन की आिार मीमास ं ा :-
गरू ु देि मानितािादी व्यवक्त र्े। ये मनष्ट्ु य को पहले अच्छा मनष्ट्ु य बनाने पर बल देते र्े, ऐसा मनष्ट्ु य
जो िरीर से स्िस्र् हो, मन से वनमथल और संिदे निील हो, समस्त मानि जावत के प्रवत उसके हृदय
में प्रेम हो और जो प्रकृ वत के कण-कण से प्रेम करता हो। ये प्रेम को मनष्ट्ु य के आचार-विचार का
आधार बनाना चाहते र्े। इनका तकथ र्ा वक प्रेम ही िह र्ािना है जो मनष्ट्ु य को मनष्ट्ु य के प्रवत
सिं ेदनिील बनाती है और मनष्ट्ु य को मनष्ट्ु य की सेिा की ओर प्रिृत्त करती है। इनका विश्वास र्ा वक
प्रेम से र्ौवतक जीिन र्ी सख ु मय बनाया जा सकता है और आध्यावत्मक पणू थता र्ी प्राप्त की जा
सकती है। यही कारण है वक गरू ु देि के सर्ी कायथक्रम-ग्राम सेिा, समाज सेिा, राष्ट्र सेिा और
अन्तराथष्ट्रीय अिबोध, प्रेम पर ही आधाररत रहते र्े। इनका तकथ र्ा वक प्रेम के अर्ाि में मानि सेिा
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की बात तो दरू मानि सेिा का र्ाि र्ी जागृत नहीं हो सकता। मानि सेिा को गरू
ु देि ईश्वर सेिा
मानते र्े।
8.4.1 टैगोर के जीिन दिथन में शिशभन्न दािथशनक शििारधाराओ ं का सश्ल
ं े षण
(Synthesis of Various Philosophical View in the Philosophy of Life of
Tagore)
दािथशनक शसद्धान्त (Philosophical Principles)
िैगोर के जीिन में विवर्न्न दािथवनक विचारधाराओ ं के दिथन हमे होते हैं। जैसे-1. आदिथिाद
(Idealism), 2. प्रकृ वतिाद (Naturalism), 3. यर्ार्थिाद (Realism), 4. प्रयोजनिाद
(Pragmatism)] 5. लोकतंत्रिाद (Democratic)] 6. मानितािाद (Humanism), 7. विश्विाद
(Universalism)। िैगोर के जीिन दिथन में पाई जाने िाली इन सर्ी विचारधाराओ ं पर संक्षेप में
प्रकाि डाल रहे हैं:-
1. आदिथिाद (Idealism) :- अपनी आदिथिादी र्ािना से प्रेररत होकर िैगोर ने र्ौवतकिादी
प्रगवत के संबंध में खेद प्रकि करते हुए कहा है वक मनष्ट्ु य र्ौवतक िस्तओ ु ं को पाने के वलए
व्याकुल है। वजससे वक िह अमर सत्य को पाने में असमर्थ हो गया है। इनका विचार है वक ईश्वर
की विश्व में रहकर प्रावप्त की जाती है।
एक दसू रे स्र्ान पर िैगोर ने कहा है वक प्रत्येक समय के सार् हमें सदैि इस बात का अनर्ु ि
होना चावहए वक हमारी िवक्त में ईश्वर का िास है। हमारे देि पर पवश्चमी सभ्यता का इतना
अवधक प्रर्ाि पड़ा वक िह ईश्वर का त्यागा हुआ देि बन गया। िैगोर का विश्वास है वक हम पनु ः
आध्यावत्मक संस्कृ वत एिं जीिन का सृजन कर देते हैं। इसके वलए उन्होंने आत्मा की पणू थ
स्ितत्रं ता और उसकी अवर्व्यवक्त के वलए अनक ु ू ल पररवस्र्वतयों पर बल वदया।
2. प्रकृशतिाद (Naturalism):- िैगोर प्रारंर् से ही प्रकृ वत एिं प्राकृ वतक सौन्दयथ के उपासक रहे
हैं। िे जब अप्राकृ वतक िातािरण से यक्त ु विद्यालय में गये तो उन्हें उसकी अस्िार्विकता
अनर्ु ि हुई और िे उसके विरूि प्रवतवक्रयािील हो उठे और रूसो की र्ावं त पक ु ार उठे -‘प्रकृ वत
की ओर चलो।’ अपने प्रकृ वतिादी दिथन में प्रकृ वत को महान विक्षक (Great Teacher) माना
है। उन्होंने मानि प्रकृ वत को समझने एिं अपने आपको सामाजीकृ त करके आगे बढ़ाने के वलए
संदेि वदया है। िैगोर ने प्रकृ वत को एक ऐसा के न्रवबन्दु बताया है जहां पर सर्ी मनष्ट्ु यों की
इच्छाए,ं आकांक्षाएं एिं अवर्लाषाएं एक होती हैं।
इस प्रकार िैगोर ने प्रकृ वत सबं धं ी विचारों के आधार पर मानि एकता की ओर सक ं े त वकया है।
िैगोर का विचार है वक प्रकृ वत में आरंर् से पररपणू थ सादा जीिन होता है, जहां पर अत्यवधक
स्र्ान िि ु िायु एिं गम्र्ीर िावन्त होती है। प्रकृ वत में मनष्ट्ु य आगामी िाश्वत जीिन के वलए पणू थ
विश्वास से रहता है।
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3. यर्ार्थिाद (Realism):- िैगोर ने अपने जीिन में र्ारतीय यर्ार्थिाद एिं पाश्चात्य यर्ार्थिाद
के बीच अवद्वतीय समन्िय स्र्ावपत वकया है। इस समन्िय के आधार पर उन्होंने र्ारत के वलए
एक ऐसी संस्कृ वत के विकास के वलए बल वदया है, वजसमें एक ओर नैवतक, चाररवत्रक एिं
िाश्वत मलू य एिं सत्यों का समािेि हो। िैगोर ने इस यर्ार्थिाद को सामने रखते हुए वक र्ारत
एक ग्रामीण देि है और वकसी देि की जनता तर्ी प्रगवत कर सकती है जबवक उसे देि में
जीिन की आिश्यकताओ ं की पवू तथ करने के वलए िस्तओ ु ं एिं साधनों का अत्यवधक उत्पादन
वकया जाये। प्रत्येक ग्राम में ऐसे विक्षा संस्र्ान स्र्ावपत वकए जाएाँ , जहां पर सामान्य विक्षा
के अवतररक्त कृ वष एिं ग्रामीण उद्योगों का विकास करने के वलए विज्ञान की सहायता ली जाये।
4. प्रयोजनिाद (Pragmatism):- िैगोर एक आदिथिादी दािथवनक होते हुए र्ी उनका
प्रयोजनिादी दृवष्टकोण र्ा। उनका यह विचार वक र्ौवतकिादी आदिो का अधं ानक ु रण न करके
उन्हें तर्ी स्िीकृ त वकया जाय जबवक उनकी परख कर ली जाए, उनके प्रयोजनिादी दृवष्टकोण
की पवु ष्ट करता है। सप्रु वसि प्रयोजनिादी दािथवनक श्री डी.िी. की र्ांवत िैगोर र्ी विक्षा को
जीिन से संबंवधत करने के पक्ष में र्े। िे विक्षा एिं विक्षालयों को समाज ि समदु ाय से संबंवधत
रखना चाहते र्े। उनका विचार है, ‘विक्षा का लक्ष्य के िल एक अच्छा क्लकथ या एक
तकनीवियन बनाना नहीं है, बवलक यह तो एक पणू थ मनष्ट्ु यत्ि के अनर्ु ि को पणू थता द्वारा
विकवसत करना है।’
5. लोकतंत्रिाद (Democratic):- िैगोर के दािथवनक विचारों में लोकतंत्रिाद की र्ी एक
झलक वमलती है। िे जमींदार होते हुए र्ी जनता के प्रवत भ्रातृत्ि र्ाि र्ी रखते र्े, और उनकी
स्ितत्रं ता पर बल देते र्े। िैगोर ने बताया वक एक देि की सख ु -सम्पन्नता जन-साधारण की
विक्षा पर वनर्थर करती है। िैगोर इस बात को अच्छी तरह समझते र्े वक जब तक जन-साधारण
के वलए विक्षा की व्यिस्र्ा नहीं की जाती तब तक र्ारत में जनतंत्र की कलपना करना वनरर्थक
है। अतः िैगोर ने सािाथर्ौवमक विक्षा एिं जन-साधारण की विक्षा के वलए मांग की। इसके वलए
स्ियं प्रयास र्ी वकए । िैगोर ने लोकतंत्रीय समाज की स्र्ापना करने के वलए ग्रामोिार की
योजना पर सबसे पहले विचार प्रस्ततु वकए । इसवलए यह कहा जाता है वक आधवु नक र्ारत में
सामदु ावयक विकास आन्दोलन एिं सिोदय आन्दोलन की प्रेरणा िैगोर से प्राप्त हुई। िैगोर र्ारत
में के िल राजनैवतक दृवष्ट से ही लोकतंत्र की स्र्ापना नहीं करना चाहते र्े, बवलक िे आवर्थक,
िैवक्षक एिं सामावजकता से र्ी सच्चे लोकतत्रं की स्र्ापना पर बल देते र्े। अतः िैगोर का
जीिन-दिथन मानितािाद का पष्टु पोषक है।
6. मानितािाद (Humanism):- िैगोर के जीिन-दिथन में मानितािाद की अत्यवधक झलक
वमलती है। उनके लेख मानितािादी विचारों से ओत-प्रोत हैं। िैगोर के मानितािाद की एक
अन्य उललेखनीय प्रिृवत्त सामान्य एिं सरल मानि जीिन के आनन्द की खोज है। अपनी इस
धारणा के पररणामस्िरूप िैगोर ने अपनी कविता ‘कवि कलम’ में वलखा हैः-‘मैं तो
मानितािाद के हृदय में िास करने का अत्यंत इच्छुक ह।ू ’ अपनी इस इच्छा की पवू तथ करने के
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वलए िैगोर ने लोक-विक्षा की योजना तैयार की और इसके वलए विवर्न्न के न्र स्र्ावपत वकए ,
तावक बहुत से स्त्री-परू
ु ष मानिीकृ त वकए जा सकें । िैगोर ने कहा मानिता के सािथर्ौवमक
हृदय एिं अन्तर में ईश्वर का िास है।
7. शिश्विाद (Universalism) :- िैगोर र्ारतीय दिथन, वििेषकर औपवनषदीप दिथन से
प्रर्ावित होकर विश्विाद की तरफ र्ी उन्मख
ु हुए। उन्होंने सृवष्ट की समस्त िस्तओ
ु ं को विश्विाद
एिं मानितािादी दृवष्टकोण से देखना िरू ु वकया। िैगोर ने अपने विश्विाद को सभ्यताओ ं के
एकीकरण के रूप में व्यक्त वकया है। अपनी विश्विाद की इस धारणा के आधार पर िैगोर ने विश्व
र्ारती की स्र्ापना की।
8.4.2 शिक्षा के उद्देश्य (Aims of Education)
i. विक्षा का मख्ु य उद्देश्य बालक की जन्मजात िवक्तयों का विकास कर उसके व्यवक्तत्ि का
चतथमु ख ु ी तर्ा सिाांगीण विकास करना होना चावहए।
ii. विक्षा का कायथ के िल बालकों को अच्छा क्लकथ , वनपणु वकसान, विलपी या िैज्ञावनक बना
देना नहीं है। बवलक उन्हें अनर्ु ि की पणू थता द्वारा पणू थ मनष्ट्ु य के रूप में विकवसत करना र्ी
है।
iii. बालकों के प्रकृ वत के घवनष्ट संपकथ में रहकर विक्षा देने की व्यिस्र्ा होनी चावहए, क्योंवक
प्रकृ वत के सार् घवनष्ट सपं कथ स्र्ावपत करने में आनन्द का अनर्ु ि होता है।
iv. विद्यावर्थयों को नगरों की अनैवतकता, र्ीड़ और गन्दगी से दरू प्रकृ वत के िान्त तर्ा सायेदार
एकान्त स्र्ान में रखना चावहए।
v. विक्षा राष्ट्रीय होनी चावहए एिं उसमें र्ारत के र्तू एिं र्विष्ट्य का ध्यान रखना चावहए।
vi. र्ारतीय विक्षा एिं र्ारतीय विद्यालयों के पाठ्यक्रमों में र्ारतीय दिथन के प्रमख ु विचारों
को स्र्ान वदया जाना चावहए।
vii. सर्ी विद्यावर्थयों को र्ारतीय विचारधारा एिं र्ारतीय समाज की पृष्ठर्वू म का स्पष्ट रूप से
ज्ञान करना चावहए।
viii. प्रत्येक बालक एिं बावलका में सगं ीत, वचत्रकला और अवर्नय की योग्यताओ ं का
विवधपिू थक विकास करना चावहए।
ix. मातृर्ाषा विक्षा का माध्यम होना चावहए, क्योंवक उनके द्वारा ही संपणू थ राष्ट्र को अच्छे
प्रकार से विवक्षत वकया जा सकता है।
x. सच्ची विक्षा बालकों को स्ितंत्र प्रयासों से ही प्राप्त की जानी चावहए।
xi. अनन्त मलू यों की प्रावप्त विदेिी र्ाषा से सर्ं ि नहीं है। अतः मातृर्ाषा का प्रयोग करना
चावहए।
xii. विद्यावर्थयों को पस्ु तकों के बजाय प्रत्यक्ष स्रोतों से ज्ञान प्राप्त करने का अिसर देना चावहए।
xiii. बालकों को उत्तम र्ोजन, वजससे मानवसक विकास हो, र्ोजन प्रदान करना चावहए।
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xiv. विक्षण पिवत का आधार जीिन की िास्तविक बातें तर्ा प्राकृ वतक होनी चावहए।
xv. विद्यावर्थयों के सामावजक आदिो, परम्पराओ,ं प्रर्ाओ ं और रीवत-ररिाजो को पाठ्यक्रम में
स्र्ान वदया जाना चावहए।
xvi. बालकों को इस प्रकार की विक्षा दी जाय, जो उन्हें आध्यात्मिाद की ओर अग्रसर होने का
अिसर प्रदान करे।
xvii. बालक का जन्म प्रकृ वत एिं मनष्ट्ु य दोनों के ससं ार में होता है। अतः दोनों ससं ार के वलए
उनका आकषथण बनाये रखना चावहए।
xviii. विक्षा द्वारा बालकों में उच्चकोवि की धावमथक र्ािना जागृत करनी चावहए, वजससे उनमें
मानिता का कलयाण करने की क्षमता का विकास हो।
8.4.3 पाठ्यक्रम (Curriculum)
िैगोर के अनसु ार विक्षा का प्रमख
ु उद्देश्य पणू थ जीिन की प्रावप्त करने के वलए मनष्ट्ु य का पणू थ विकास
करना है। विक्षा के इस व्यापक उद्देश्य की पवू तथ के वलए िैगोर ने व्यापक तर्ा विस्तृत पाठ्यक्रम
संबंधी विचार प्रस्ततु वकए हैं। उनके अनसु ार-विक्षा तर्ी अपने मख्ु य उद्देश्य की प्रावप्त कर सकती
है, जबवक पाठ्यक्रम से मानि जीिन के विवर्न्न पक्षों यर्ा-िारीररक, मानवसक, र्ािात्मक,
सामावजक, नैवतक तर्ा आध्यावत्मक विकास को स्र्ान वदया जाय।
िैगोर ने अपने िावन्त वनके तन और बाद में विश्व र्ारती में विषयों के सार्-सार् विवर्न्न वक्रयाओ ं
को र्ी पाठ्यक्रम में महत्िपणू थ स्र्ान वदया है। ये विषय, वक्रयाएं तर्ा पाठान्तर वक्रयाएं वनम्नवलवखत
हैं:-
i. विषय (Subject) - इवतहास, र्गू ोल, विज्ञान, प्रकृ वत विज्ञान, सावहत्य आवद।
ii. वक्रयाएं (Activities) - बागिानी, भ्रमण, अवर्नय, ड्राइगं , क्षेत्रीय अध्ययन, प्रयोगिाला
कायथ, अजायब घर के वलए िस्तओ ु ं का संग्रह आवद।
iii. पाठान्तर वक्रयाएं (Extra Curricular Activities) - समाज सेिा, छात्र स्ििासन,
खेलकूद आवद।
िैगोर का पाठ्यक्रम विषय प्रधान न होकर वक्रया प्रधान रहा है। डॉ. एल.िी. मख ु जी ने कहा है वक
‘इस दृवष्ट से िैगोर की विक्षा संस्र्ाओ ं में लागू वकया जाने िाला पाठ्यक्रम वक्रया प्रधान पाठ्यक्रम
रहा है।’
स्िमूलयांकन हेतु प्रश्न
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5. भ्रमण द्वारा सीखना (Learning by walking)-िैगोर का विचार है वक भ्रमण के समय
पढ़ना, विक्षण की सिोत्तम विवध है। इसके उन्होंने दो कारण बताए हैं। प्रर्म-भ्रमण के समय
हमें अनेक िस्तओ ु ं को प्रत्यक्ष रूप से देखकर उनका अध्ययन करने का अिसर प्राप्त होता
है। वद्वतीय-भ्रमण द्वारा हमारी मानवसक िवक्तयां सतकथ रहती हैं, वजसमें हम प्रत्यक्ष की जाने
िाली बातों को सरलता से सीख लेते हैं।
6. िाद-शििाद एिं प्रश्नोत्तर शिशध (Discussion and question answer
method)-िैगोर का विचार है वक िास्तविक विक्षा पस्ु तकों पर आधाररत न होकर जीिन
एिं समाज पर आधाररत होनी चावहए। इस विक्षा के वलए उन्होंने िाद-वििाद तर्ा प्रश्नोत्तर
विवध को महत्िपणू थ स्र्ान वदया है। उनका विचार है वक प्रश्नों के द्वारा बालकों के समक्ष
दैवनक जीिन की समस्याओ ं को रखा जाये। िे सब उन पर िाद-वििाद करें और उनके हल
करने के तरीके बताए।ं
8.4.5 अनुिासन (Discipline)
अनि ु ासन का तात्पयथ स्िार्ाविक अनिु ासन से है। िैगोर ने अनि ु ासन को एक मलू य या आदिथ
माना है। अतः यह व्यवक्त के नैवतक विकास के वलए अवत आिश्यक है। अनिु ासन से िैगोर का
तात्पयथ स्िार्ाविक अनि ु ासन (Natural Discipline) से है, वजसे िे आत्म-अनि ु ासन (Self
Discipline) अर्िा आन्तररक अनि ु ासन (Inter Discipline) र्ी कहते हैं। िैगोर के अनसु ार
अनि ु ासन न तो अधं ी आज्ञाकाररता है और न ही िाह्य व्यिस्र्ा।
िैगोर और उनके विक्षा दिथन का विक्षा के क्षेत्र में अत्यवधक योगदान है, वजसके कारण न के िल
र्ारतीय विक्षा के इवतहास में बवलक विश्व की विक्षा के इवतहास में उनका नाम अमर हो गया। विक्षा
के क्षेत्र में िैगोर का योगदान वनम्नवलवखत हैः-
1. विक्षा का व्यापक एिं पणू थ अर्थ(Wider and complete meaning of education):-िैगोर
ने विक्षा की अिधारणा को विस्तृत एिं पणू थ रूप प्रदान वकया। प्रायः कहा जाता है वक स्पेन्सर ने
अपनी पस्ु तक विक्षा में दािथवनक जीिन की पणू थता पर विचार प्रकि वकए हैं, वकन्तु विक्षा के
सबं धं में िैगोर ने जो दृवष्टकोण अपनाया है िह स्पेन्सर से कहीं अवधक व्यापक एिं पणू थ है। िैगोर
ने विक्षा के वलए जो योजना तर्ा विधान बनाया है, िह र्ारतीय एिं पवश्चमी दोनों जीिन को
छूता है और वजसमें आध्यावत्मक एिं र्ौवतक दोनों प्रकार के तत्िों का मेल है।
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2. र्ारतीय सस्ं कृ वत का विस्तार (Extension of Indian culture) :- िैगोर ने र्ारतीय सस्ं कृ वत
के अध्यापकों के प्रवत देि-विदेि के लोगों को आकृ ष्ट कर उनका विश्व में प्रचार वकया। उन्होंने
र्ारतीय संस्कृ वत के आधार पर राष्ट्रीय विक्षा की नींि डाली और व्यापक दृवष्टकोण को लेकर
पवश्चम को एक ऐसा सदं ेि वदया, वजसने पिू थ एिं पवश्चम के आदिो में समन्िय स्र्ावपत वकया।
3. विश्वव्यापी विक्षा का प्रवतपादन एिं प्रसार (Propagation and diffusion of
universal education):- मानितािादी र्ािना पर आधाररत विश्व-बधं त्ु ि एिं विश्व-िावन्त के
विचार को साकार रूप प्रदान करने के वलए िैगोर ने सिथप्रर्म विश्वव्यापी विक्षा का प्रवतपादन
एिं प्रसार वकया।
4. विक्षा में प्रकृ वत को महत्ि देना (Giving importance of nature in education):-
रिीन्रनार् िैगोर एक कवि र्े। अतः प्रकृ वत का एिं प्रकृ वत की र्ािना उनके अगं -प्रत्यंग में
आचार-विचार से र्री हुई है। उन्होंने अपनी प्रकृ वत िादी विक्षा में प्रकृ वत को सबसे बड़ा
विक्षक माना है। िैगोर ने अपनी सक्ष्ू म एिं र्ािना प्रधान बवु ि के द्वारा प्रकृ वत के सौन्दयथ एिं
आनन्द, िवक्त एिं ओज, स्ितंत्रता तर्ा आत्म-प्रेरणा को देखा।
5. सौन्दयथ के साक्षात्कार की विक्षा देना (Giving education for the realization of
beauty):- उन्होंने अपनी विक्षा योजना में सौन्दयथ के साक्षात्कार की विक्षा देने का सझु ाि
वदया है। सौन्दयथ बोध हेतु लवलत कलाओ ं जैस-े सगं ीत, पेंविंग, नृत्य, अवर्नय, कला आवद को
विक्षा में वििेष स्र्ान वदया। विश्व र्ारती में कला र्िन इस प्रकार की विक्षा का एक विश्व
प्रवसि प्रर्ाग है।
6. वनजी विक्षा दिथन एिं वसिान्तों की रचना (Construction of own philosophy of
education and principles):- िैगोर उन महान विक्षा िावस्त्रयों में से हैं, वजन्होंने अपना
वनजी विक्षा दिथन तैयार वकया है। सार् ही सार् उसके पृर्क-पृर्क वसिान्तों का वनमाथण वकया
है। उन्होंने विक्षा के विवर्न्न अगं ों यर्ा-उद्देश्य, पाठ्यक्रम, विक्षण विवध, विक्षक, विक्षार्ी,
विद्यालय आवद का जीिन की िास्तविक पररवस्र्वतयों को ध्यान में रखकर संगठन वकया है।
7. निीन विक्षा की र्वू मका (Introduction of new education)- िैगोर ने अपने विक्षा दिथन
संबंधी वजन वक्रयाओ ं को बीसिीं िताब्दी के प्रारंर् में प्रस्ततु वकया, उन्हें बाद में र्ारत की
विक्षा हेतु स्िीकार वकया गया। सेडलर कमीिन 1917, बेवसक विक्षा 1937, मदु ावलयर
कमीिन 1952, एिं समाज विक्षा 1948 में जो विचार हमें वमलते हैं, उनकी र्वू मका हमें िैगोर
के विचारों में हमें बहुत पहले वमलती है।
8. विश्व र्ारती की स्र्ापना (Establishment of Vishva Bharati)- िैगोर ने अपने जीिन
दिथन तर्ा विक्षा दिथन को साकार रूप प्रदान करने के वलए वजस विक्षा संस्र्ा की स्र्ापना की,
िह आज विश्व र्ारती के नाम से एक विश्व प्रवसि विश्वविद्यालय है।
उत्तराखण्ड मक्त
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समकालीन भारत और शिक्षा BEDSEDE A2
स्िमूलयांकन हेतु प्रश्न
8 .6 साराांि
उपरोक्त िब्दों में हमने क्रमिः िैगोर के जीिन दिथन एिं विक्षा दिथन पर प्रकाि डाला, वजससे पता
चलता है वक िैगोर के िल एक महान कवि एिं सावहत्यकार ही नहीं र्े, बवलक िे एक महान
दािथवनक, विक्षा िास्त्री तर्ा समाज सधु ारक र्ी र्े। इसवलए उन्हें विक्षा के इवतहास में अवद्वतीय
स्र्ान वदया जाता है।
सप्रु वसि प्रयोजनिादी विक्षािास्त्री प्रो. वकलपैवरक ने वलखा हैं। अपने व्यवक्तगत अध्ययन एिं
वचन्तन में अपने वनजी विचार में िैगोर ने यहां िहीं उत्तर विचारों का गहन स्र्ान विक्षा विषय के
संबंध में वलखा है।
डॉ. सरु ेन्र नार् ने वलखा है- िैगोर की प्रवतर्ा सपं न्नता अवद्वतीय एिं अतल
ु नीय र्ी और अन्यत्र
कहीं र्ी यह प्रवतर्ा पररश्रय से सबं वं धत नहीं पायी जाती।
महात्मा गाधं ी ने वलखा है वक िैगोर ने िावन्त वनके तन के रूप में अपनी विरासत परू े राष्ट्र को िस्ततु ः
परू े विश्व को दी है।
कलकत्ता विश्व विद्यालय के वसंडीके ि में िैगोर की महानता के संबधं में वलखा है- ‘रिीन्रनार् िैगोर
द्वारा र्ारत ने मानि जावत को अपना सदं ेि वदया और सावहत्य दिथन और विक्षा तर्ा कला के क्षेत्रों
में उनकी अद्भुत उपलवब्धयों ने उनके वलए अमर यज्ञ प्राप्त वकया तर्ा र्ारत का पद विश्व की सृवष्ट से
ऊंचा उठाया। र्ारत के र्तू पिू थ राष्ट्रपवत डॉ. राजेन्र प्रसाद एिं सिथपलली राधाकृ ष्ट्णन् ने िैगोर की
महानता या उनके अवद्वतीय स्र्ान पर विस्तृत प्रकाि डाला है।
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8.7 िब्दावली
आत्म विक्षा:- आत्म विक्षा आत्म साक्षात्कार पर आधाररत है। आत्म-साक्षात्कार की प्रवक्रया
विक्षा की प्रवक्रया के समान आजीिन चलती रहती है। विक्षा की प्रवक्रया में िे सब वक्रयाएं सहायक
हो सकती हैं, वजनमें आनन्द की स्िार्ाविक अनर्ु वू त वमलती है।
पणू थता:- विक्षा का एक मात्र लक्ष्य बालक के व्यवक्तत्ि का पणू थ विकास है। यह पणू थ विकास तर्ी
संर्ि है जबवक व्यवक्तत्ि के सर्ी पहलओ ु ं पर समवु चत जोर वदया जाए, न वक वकसी पर
आिश्यकता से अवधक बल वदया जाए।
विश्वबोध दिथन की तत्ि मीमासं ा:- ईश्वर द्वारा वनवमथत यह जगत उतना ही सत्य है, वजतना ईश्वर अपने
आप में सत्य है। इनके अनसु ार बीज रूप में िह वनराकार है और सृवष्ट रूप में साकार है।
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इकाई-9 श्री अिशवन्द्द Sri Aurobindo
9.1 प्रस्तािना
9.2 उद्देश्य
9.3 अरविन्द के दािथवनक विचार
9.3.1 तत्िमीमांसा
9.3.2 ज्ञानमीमासं ा
9.3.3 मलू य मीमासं ा
9.4 अरविन्द के िैवक्षक विचार
9.4.1 विक्षा का प्रत्यय
9.4.2 विक्षा के उद्देश्य
9.4.3 विक्षा का पाठ्यक्रम
9.4.4 विक्षण विवधयााँ
9.4.5 अनुिासन
9.4.6 विक्षक
9.4.7 विक्षार्ी
9.4.8 विद्यालय
9.5 अरविन्द के िैवक्षक विचारों का मलू याक
ं न
9.6 सारांि
9.7 िब्दािली
9.8 स्िमूलयााँकन हेतु प्रश्नों के उत्तर
9.9 सन्दर्थ ग्रर्ं सचू ी
9.10 वनबधं ात्मक प्रश्न
9.1 प्रस्तावना
श्री अरविन्द अधवु नक र्ारत के महान ऋवष कहे जाते सकते है, उन्होंने र्ारत में ‘राष्ट्रिादी
आन्दोलन‘ को प्रेरणा प्रदान की, िे र्रत में पनु जाथगरण आन्दोलन के सत्रू धार र्ी माने जाते हैं।
अरविन्द ने पिू ी और पवश्चमी सभ्यताओ ं का समवु चत समन्िय करके और उनके बीच कोई
प्रवतद्वन्दता पैदा वकए वबना अपना लक्ष्य परू ा कर वदखाया।
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अरविन्द एक दािथवनक के रूप में अवधक प्रवसद्व हैं। परन्तु विक्षा के क्षेत्र में इनका योगदान अवधक
सराहनीय है। इस इकाई में आप श्री अरविन्द के दािथवनक एिं िैवक्षक विचारों का अध्ययन करगें
तर्ा आधवु नक विक्षा प्रणाली में उसकी उपयोवगता के विषय में जान सकें गें। श्री अरविन्द ने पिू ी
और पवश्चमी दिथन, धमथ, सावहत्य तर्ा मनोविज्ञान को अपने लेखन में संश्लेवषत वकया।
9.2 उद्देश्य
इस इकाई के अध्ययन के पश्चात् आपः
1. अरविन्द के दािथवनक विचारों को स्पष्ट कर पाएंगे ।
2. अरविन्द के अनसु ार विक्षा के सप्रं त्यय का िणथन कर सकें गे।
3. अरविन्द के िैवक्षक विचारों को अपने िब्दों को व्यक्त कर सकें गे।
4. अरविन्द के िैवक्षक विचारों का मलू याक ं न कर सकें गे।
5. अरविन्द की एकीकृ त विक्षा की वििेषताएाँ वलख सकें गे।
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िस्तु जगत का रूप धारण करता है। उन्होंने अिरोहण के सात सोपान बताये हैं।सत-वचत-आनन्द-
अवतमानस-मानस-प्राण-रव्य ।
श्री अरविन्द के अनसु ार इस जगत में मनष्ट्ु य अपने रव्य रूप से आरोहण द्वारा सतकी ओर बढ़ता है।
उन्होंने आरोहण के र्ी सात सोपान बताये हैं। रव्य-प्राण-मानस-अवतमानस-आनन्द-वचत-सत। ब्रह्मा
को ये सतऔर ईश्वर को सत-वचत-आनन्द के रूप में स्िीकार करते हैं। अरविन्द ने आत्मा को गीता
के परूु ष के रूप में वलया है। उनके विचार से आत्मा में परमात्मा की दो वििेषतायें होती हैं-आनन्द
और वचत, और ये विवर्न्न योवनयों से होती हुई मनष्ट्ु य योवन में प्रिेि करती है, तर्ा इस िरीर के
माध्यम से सत की ओर बढ़ती है। अरविन्द के अनसु ार मानि जीिन का परम उद्देश्य सत+
वचत+आनन्द = ईश्वर की प्रावप्त है।
अरविन्द का मानना है वक पदार्थ, रव्य का ज्ञान मनष्ट्ु य के िारीररक विकास के वलए आिश्यक है
तर्ा यह ज्ञान ज्ञानेवन्रयों द्वारा प्राप्त वकया जा सकता है। मनष्ट्ु य के आध्यावत्मक विकास के वलए
स्ियं का ज्ञान आिश्यक है जो वक योवगक वक्रयाओ द्वारा प्राप्त वकया जा सकता है। इन योवगक
वक्रयाओ ं के वलए अरविन्द ने विक्षा की आिश्यकता को समझा।
9.3.2 अरशिन्द के सिाांग योग दिथन की ज्ञानमीमास
ं ा Epistemology of Aurobindo’s
Sarvang Yoga Darshan
श्री अरविन्द के अनसु ार र्ौवतक एिं आध्यावत्मक दोनो तत्िो में मल
ू तत्ि ब्रह्म है। अतः र्ौवतक
तर्ा आध्यावत्मक तत्िों के मध्य र्ेद को जानना ही सच्चा ज्ञान है। उपयोवगता के दृवष्टकोण से
अरविन्द ने ज्ञान को दो र्ागों में बााँिा है-
रव्यज्ञान (Material Knowledge/Worldly Knowledge)
आत्मज्ञान/ आवत्मक ज्ञान (spiritual Knowledge)
अरविन्द रव्य ज्ञान को (ससं ाररक ज्ञान) साधारण ज्ञान मानते हैं और आवत्मक ज्ञान को उच्च ज्ञान
मानते हैं। उनके दृवष्टकोण से पदार्थ जगत (रव्य जगत) का ज्ञान, ज्ञानवन्रयों द्वारा प्राप्त वकया जाता है,
और आध्यावत्मक तत्ि का ज्ञान र्ीतरी-स्ि (अन्तःकरण) द्वारा प्राप्त होता है। आवत्मक तत्ि के ज्ञान
के वलए इन्होंने यौवगक वक्रयायों(यम, वनयम, आसन, प्रणायाम, प्रत्याहार, धारणा,ध्यान एंि
समावध) को आिश्यक माना है।
9.3.3 अरशिन्द के सिाांग योग दिथन की मूलय मीमास
ं ा Axiology and Ethics of
Aurobindo’s Sarvang Yoga Darshan
अरविन्द के अनसु ार मनष्ट्ु य जीिन का परम उद्देश्य सत+ वचत + आनन्द की प्रावप्त है। इसके वलए
उन्होंने गीता के कमथ योग एंि ध्यान योग को साधन बताया हैं वजसमें योगी संसार (कमथ का क्षेत्र) से
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दरू नहीं र्ागता बवलक सत, वचत, आनन्द में वचत लगाकर वनष्ट्काम र्ाि से अपने कतथव्य का पालन
करता है। ऐसे कमथयोगी ि ध्यानयोगी के वलए आिश्यक है एक स्िस्र् िरीर, स्िस्र् मन तर्ा
वनयंवत्रत जीिन और उसके वलए अरविन्द के यौवगक वक्रयाओ ं को महत्ि वदया है।
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9.4.2 शिक्षा के उद्देश्य Aims of Education
श्री अरविन्द के अनसु ार विक्षा के दो प्रमख
ु कायथ है-
i. मनष्ट्ु य को उसके विकास की प्रवक्रया से पररवचत कराना।
ii. मनष्ट्ु य में सत के सोपान तक पहुचाँ ने की िवक्त का विकास करना।
श्री अरविन्द ने िैवक्षक उद्देश्यों को विकास की प्रवक्रया के क्रम में प्रस्ततु वकया है-
1. िारीररक शिकास (Physical Development)-इस ब्रह्मण्ड ि मनष्ट्ु य के विकास का
पहला पद रव्य (matter) है, श्री अरविन्द मनष्ट्ु य को इस रव्य जगत, पदार्थ जगत से
पररवचत कराना चाहते हैं तर्ा उसे अपनी िरीर की रक्षा तर्ा विकास से जडु ी वक्रयाओमं ें
प्रविवक्षत करना चाहते हैं इसको उन्होने दसू रे िब्दों में िारीररक विकास का उद्देश्य कहा है।
अरविन्द के अनसु ार, सत, वचत, आनन्द की प्रावप्त, एक स्िस्र् िरीर द्वारा ही सम्र्ि है,
अतः विक्षा का सिोपरर उद्देश्य मानि का िारीररक विकास है। उनका विश्वास र्ा-
“िरीरम् खलू घमथ साधनम”् , अर्ाथत िरीर के माध्यम से ही धमथ की साधना होती है, अतः
उन्होंने बालक के िारीररक विकास पर ही बल नहीं वदया अवपतु इस के अन्तगथत िारीररक
िवु द्व को र्ी सवम्मवलत वकया और बताया वक िरीर के उवचत विकास के वबना मानि का
आध्यावत्मक विकास नहीं हो सकता।
2. प्राशणक शिकास ( Pranic Development) -मनष्ट्ु य के विकास का दसू रा चरण, प्राण
है प्राण से तात्पयथ उस उजाथ से है वजसके कारण ब्रह्मांड में पररितथन होते हैं। श्री अरविन्द के
अनसु ार विक्षा का उद्देश्य इस प्राण का विकास करना है। उनके अनसु ार, मनष्ट्ु य के प्राण को
सही वदिा वनदेवित करने के वलए, उसका नैवतक ि चाररवत्रक विकास आिश्यक है तर्ा
उसके आत्मबल को दृढ़ करना र्ी आिश्यक है। यह विकास तर्ी सम्र्ि है जब वक
ज्ञानेवन्रयों को असत् से सत् की ओर पनु ः वनदेवित वकया जाए। अतः ज्ञानेवन्रयों का
विकास, विक्षा का उद्देश्य होना चावहए।
3. मानशसक शिकास (Mental Development)-मानि विकास का तीसरा चरण,मानस
अतःमन है। मानस हमारे अवस्तत्ि का सबसे सवक्रय र्ाग है। अतः विक्षा को मनष्ट्ु य के
मानवसक विकास को प्रर्ावित करना चावहये,उनका मत है वक मानवसक िवक्तयो के
विकास के क्षेत्र में सिथप्रर्म आिश्यकता ध्यान एकाग्र करने की है। मानवसक विकास से
उनका तात्पयथ स्मृवत, वचन्तन, तकथ , कलपना तर्ा वनणथय िवक्त आवद से है। इस सब के
विकास को बढ़ाने के वलए उन्होने योवगक वक्रयाओ ं पर बल वदया।
4. अन्तः करण का शिकास ( Development of Inner Self)- अवतमानस ि
अन्तःकरण मानि विकास का चौर्ा चरण है, श्री अरविन्द के अनसु ार विक्षा का महत्िपणू थ
उद्देश्य अन्तःकरण का विकास करना है। उनके अनसु ार अन्तःकरण के चार स्तर हैं-वचत्त
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(हृदय), मानस बवु द्व एिं आत्मज्ञान,आध्यावत्मक विकास तर्ी सम्र्ि है जबवक व्यवक्त का
अन्तःकरण िद्वु हो और उसकी आत्मा का पणू थ विकास हुआ हो, इसके वलए व्यवक्त के
िारीररक विकास को अत्यन्त महत्ि प्रदान वकया है क्योंवक स्िस्र् िरीर में ही पवित्र
आत्मा का वनिास हो सकता है। अन्तःकरण के विकास के वलए , श्री अरविन्द ने योवगक
विवध को महत्िपणू थ माना है।
5. आध्याशत्मक शिकास (Spiritual Development)-श्री अरविन्द आदिथिादी
विचारक र्े, उन्होंने विक्षा में आध्यात्मिाद को वििेष रूप से िावमल वकया। उनका मानना
र्ा वक विक्षा का मख्ु य उद्देश्य आध्यावत्मक विकास करना है। चवाँू क प्रत्येक व्यवक्त में
ईश्वरीय अि
ं होता है। अतःविक्षा का कायथ है इस ईश्वरीय अि ं का विकास करना। इसके
वलए श्री अरविन्द ने योवगक वक्रयाओ को महत्िपणू थ माना है। श्री अरविन्द के अनसु ार,
आघ्यावत्मक विकास ही विक्षा का अवन्तम उद्देश्य है।
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श्री अरविन्द बालक की समस्त िवक्तयों को विकवसत करने के वलए स्ितन्त्र िातािरण के पक्षधर
हैं। उन्होंने पाठ्यक्रम में बालक की रूवचयों के अनसु ार, उन सर्ी विषयों को सवम्मवलत करने का
सझु ाि वदया वजनमें िैवक्षक अवर्व्यवक्त तर्ा वक्रयािीलता के गणु हों।
श्री अरविन्द ने बालक के पणू थ विकास हेतु विक्षा के विवर्न्न स्तरो पर पाठ्यक्रम के अन्तगथत
वनम्नवलवखत विषयों को सवम्मवलत वकया है-
प्रार्शमक स्तर (Primary Level)- मातृ र्ाषा, अग्रंजी फ्रेंच, सामान्य विज्ञान, गवणत, सामावजक
अध्ययन, खेल-कूद, व्यायाम, बागिानी, वचत्रकला तर्ा र्वक्तगीत।
माध्यशमक स्तर (Secondary Level)- मातृ र्ाषा, अरग्रंजी फ्रेंच, गवणत, र्ौवतक विज्ञान,
िनस्पवत विज्ञान, रसायन विज्ञान, प्राणी विज्ञान, स्िच्छता, र्वू िज्ञान, सामावजक अघ्ययन,
व्यायाम,बागिानी कृ वष, वचत्रकला, अन्य हस्तविलप, ध्यान तर्ा योग।
शिश्वशिद्यालय स्तर/उच्ि स्तर ( University Level/ Higher Level)- अग्रं जी सावहत्य, फ्रेंच
सावहत्य,गवणत, र्ौवतक विज्ञान, रसायन विज्ञान, प्राणी विज्ञान, विज्ञान का इवतहास, सभ्यता का
इवतहास, जीि-विज्ञान, समाजिास्त्र, मनोविज्ञान, र्ारतीय एिं पाश्चात्य् दिथन, अन्तराथष्ट्रीय सम्बन्ध
तर्ा विश्व-एकीकरण तर्ा कृ वष।
व्यिसाशयक शिक्षा (Vocational education)- विलपकारी,वचत्रकारी, फोिोग्राफी, वसलाई,
कुिीर उद्योग, िंकन, आि-ु वलवप, काष्ठ कला, संगीत, वसविल, मैकेवनकल तर्ा इलैक्रीकल
इजं ीवनयररंग, अवर्नय तर्ा नृत्य।
9.4.4शिक्षण शिशधयााँ (Teaching Methods)
विक्षण विवधयोके विषय में श्री अरविन्द के विचार पणू थतः स्पष्ट नही है। यह सत्य है वक िे प्राचीन
विवधयों में निीनता लाना चाहते र्े। उन्होनें उपदेि, व्याख्यान एिं मौवखक विवधयों को स्िीकृ त
वकया, परन्तु इस ितथ पर वक बच्चो को रि कर सीखने के वलए बाध्य नहीं वकया जायेगा, बवलक िे
अपने स्ियं के प्रयासों द्वारा आत्मसात करके सीखेंगे। प्रार्वमक स्तर पर उन्होंने कहानी-कर्न विवध
की बात कही। उन्होंने पाठ्यपस्ु तक विवध का र्ी समर्थन वकया। परन्तु इस सम्बन्ध में उनका मत र्ा
वक बालक को स्िंय ज्ञान की खोज करने के वलए प्रेररत करना चावहये तर्ा उसके पश्चात उसे
पस्ु तकें पढ़ने को कहा जाये। बालक रि कर पस्ु तकों से ना सीखें, वकन्तु उन्हें सहायक तर्ा सन्दर्थ
पस्ु तकों की तरह उपयोग करे। उनके विचार से योग सीखने की अवधक उपयक्त ु विवध है। वकन्तु उनके
विचार से स्ि-गवतविवध वचंतन एंि तकथ , ये सर्ी इसके आधार है। उनके विक्षण से संबवन्धत विचारो
के विश्लेषण के पश्चात आप वनम्नवलवखत तथ्यों को जान पायेंगें।
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1. बच्चो को पढ़ाते समय, उनके िारीररक मानवसक क्षमता एिं रूवचयों को ध्यान में रखना
चावहये।
2. रिने द्वारा सीखने के सर्ना पर समझ कर सीखने पर बल देना चावहये।
3. बालकों को वक्रया करने के अवधकतम अिसर प्रदान करने चावहये और स्िानर्ु ि द्वारा
सीखने की अनमु वत प्रदान करनी चावहयें।
4. बालकों को अपनी ज्ञानेवन्रयो को वनयवं त्रत रखने के वलय प्रविवक्षत करना।
5. बालकों के सार् मायार एिं सहानर्ु वू तपणू थ व्यिहार करना चावहये।
6. मातृर्ाषा को विक्षा का माध्यम होना चावहये।
पाठ्यक्रम रोचक हो।
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9.4.7 शिक्षार्ी (Student)
श्री अरविन्द विक्षार्ी को विक्षा का के न्र मानते हैं। उनके अनसु ार प्रत्येक बालक वनवश्चत सामान्य
क्षमताओ ं कुछ विविष्ट योग्यताओ ं और प्रवतर्ाओ ं के सार् जन्म लेता है। प्रत्येक बालक में
व्यवक्तगत क्षमताये तर्ा विलक्षणतायें होती है। श्री अरविन्द के अनसु ार बालकों की क्षमताओ ं और
योग्यताओ के आधार पर उनको विक्षा प्रदान करनी चावहये प्रत्येक बालक की व्यवक्तगत रूवचयों,
अवर्िृवत्त एिं योग्यताओ को ध्यान में रखते हुये विक्षा की व्यिस्र्ा की जानी चावहये वजससे उसके
व्यवक्तत्ि का पणू थ विकास हो सके । श्री अरविन्द के अनसु ार ज्ञान आत्मा में अन्तवनथवहत है और इस
संम्पणू थ ज्ञान को िही प्राप्त कर सकता है जो वक ब्रह्चायथ का पालन करे। श्री अरविन्द ,विद्यार्ी से
यही अपेक्षा करतें है वक िह ब्रह्चयथ का पालन कर िावस्िक ज्ञान की प्रावप्त करे।इस सम्बन्ध में श्री
अरविन्द स्ियं वलखतें है-
‘‘बालक को माता-वपता अर्िा विक्षक की इच्छानक ु ू ल ढालना अन्धविश्वास तर्ा जंगलीपन
है‘‘माता-वपता इससे बडी र्ल ू नही कर सकते वक िे पहले से ही इस बात की व्यिस्र्ा करें वक
उनके पत्रु में विविष्ट गणु ों , क्षमताओ तर्ा विचारों का विकास होगा। प्रकृ वत को स्ियं अपने धमथ का
त्याग करने के वलए बाध्य करना उसे स्र्ायी हावन पहुचाँ ाना है। उसके विकास को व्यत्ु कृ त करना है
तर्ा उसकी पणू थता को दवू षत करना है।”
“The idea of hammering the child into shape desired by the parent or teacher is
a barbarous and ignorant superstition. There can be no great error than for the
parent to arrange before hand that his son shall develop particular qualities and
capacities. To force the nature to abandon its own Dharma is to do it permanent
harm, mutilate its growth and deface its perfection.”
श्री अरविन्द व्यवक्तगत वर्न्नता के वसद्वान्त को मानते हैं। उनकी कलपना है वक विक्षार्ी को विनय,
परोपकार, स्िाध्याय, एकाग्रता सेिा आवद गणु ों को अपने अन्दर वनवहत करना चावहये। श्री अरविन्द
ने बालक पर िातािरण के प्रर्ाि को र्ी स्िीकार वकया है। उनका मत हे वक िातािरण बालक के
विकास में महत्िपणू थ र्वू मका वनर्ाता है, उनका मानना है वक बालको को उच्च िातािरण में रखना
चावहये वजसमें वक उनके अनर्ु वू त के अगं ो का विकास एिं प्रविक्षण हो सके और िे सत्य की खोज
की ओर अग्रसर हो सकें ।
9.4.8 शिद्यालय (School)
श्री अरविन्द के अनसु ार विद्यालय को बच्चो के र्ौवतक एिं आध्यावत्मक विकास में सहायक होना
चावहये उनके अनसु ार विद्यालय का िातािरण विश्व-बन्धत्ु ि की र्ािना से पणू थ होना चावहये। श्री
अरविन्द ने बालक के र्ौवतक विकास के वलए र्ाषा, सावहत्य सभ्यता एिं संस्कृ वत गवणत एिं
विज्ञान पर बल वदया और आध्यावत्मक विकास हेतु मानि सेिा कतथव्य पालन एिं ध्यान आवद को
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महत्िपणू थ स्र्ान वदया। इस प्रकार उन्होंने बालक के सम्पणू थ विकास के वलए र्ौवतक एिं
आध्यावत्मक दोनो पक्षों पर समान बल वदया।
श्री अरविन्द के अनसु ार विद्यालयों को र्ौवतक प्रगवत एिं योग साधना का के न्र होना चावहये वजससे
वक एक बालक का सम्पणू थ विकास हो सके ।
श्री अरविन्द ने मानि और मानि के बीचा कोई र्ेदर्ाि नहीं रखा उन्होंने जावत, धमथ, आवर्थक
वस्र्वत ,रंग आवद वकसी र्ी आधार पर र्ेदर्ाि को स्िीकार नहीं वकया िे सर्ी बालको को समान
अिसर प्रदान करने के पक्षधर हैं उन्होंने विद्यालय में विश्व-बन्धत्ु ि के िातािरण को विकवसत करने
की बात कही।श्री अरविन्द “अन्तराथष्ट्रीय विक्षा के न्र” वजसकी स्र्ापना श्री अरविन्द द्वारा पााँडचे ेरी
में की गयी है, िह इसी प्रकार का विक्षा का के न्र है।
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श्री अरविन्द के अनसु ार स्िेच्छा से कतथव्य पालन ही अनि ु ासन है, उनके अनसु ार अनि ु ासन
स्र्ावपत करने के वलए तो विक्षक को आदिथ व्यिहार प्रस्ततु करना चावहये और यवद बालक
अनि ु ासन का पालन न करें तो उन्हें मायार ि स्नेह द्वारा समझाना चावहये। उन्होंने दण्ड को अमानिीय
माना है।
इसमें दो मत नहीं हैं वक अध्यापक द्वारा आदिथ व्यिहार, अनि ु ासन स्र्ावपत करने के वलए
आिश्यक है परन्तु के िल स्नेह द्वारा बालकों को अनि ु ावसत रखना सफल नहीं हो सकता, कर्ी-
कर्ी दण्ड र्ी आिश्यक है, परन्तु यह दण्ड सीवमत हो।
श्री अरविन्द विक्षक को ज्ञान प्रदान करने िाले की र्वू मका में नहीं देखते िरन एक पर्-प्रदिथक एिं
वनदेिक के रूप में ही मानते हैं जो वक बालक के स्ितन्त्र विकास में सहायता प्रदान करता है।
बालक के स्ितन्त्र विकास की बात का समर्थन करना सही प्रतीत होता है परन्तु औपचाररक विक्षा
इस रूप में प्रदान नहीं की जा सकती। विक्षक को योगी बना देना व्यिहाररक नहीं है। यह एक
विक्षक के ओर से पयाथप्त नहीं है।
श्री अरविन्द बालक की िैयवक्तकता का सम्मान करतें है। उन्होंने बालको की िैयवक्तक वर्न्नताओ ं
को ध्यान में रखते हुये विक्षा की व्यिस्क्र्ा की, उन्होंने बालक के र्ौवतक एिं आध्यावत्मक विकास
पर बल वदया और इन दोनो पक्षों के विकास हेतु उन्होंने ब्रह्मचयथ पालन को महत्ि वदया। श्री
अरविन्द ने र्ौवतक एिं आध्यावत्मक विकास के वलए ब्रह्मचयथ को महत्तिपणू थ माना है।
जहााँ तक ब्रह्मचयथ पालन का प्रश्न है। यह उवचत प्रतीत होता है। परन्तु सत्य की खोज हेतु ध्यान आज
के आधवु नक पररदृश्य में व्यिहाररक नहीं है।श्री अरविन्द का तकथ है वक विद्यालय योग साधना का
के न्र हो यह सब को स्िीकायथ नहीं हो सकता। परन्तु मनष्ट्ु य को िास्तविक खिु ी और िावन्त की
प्रवप्त हेतु इसका पालन करना चावहये। विद्यालयों को बालकों के र्ौवतक एिं आध्यावत्मक विकास
हेतु प्रयत्न करने चावहये वजससे वक बालको के व्यवक्तत्ि का सन्तवु लत विकास हो सके । एक
दािथवनक के रूप में श्री अरविन्द ने र्ारतीय दिथन को एक िैज्ञावनक पिु देने का प्रयास वकया। िे
विश्व बन्धत्ु िमें विश्वास करते हैं।
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9.6 साराांि
श्री अरविन्द अधवु नक र्ारत के महान ऋवष कहे जाते सकते है, उन्होंने र्ारत में ‘राष्ट्रिादी
आन्दोलन‘ को प्रेरणा प्रदान की, िे र्रत में पनु जाथगरण आन्दोलन के सत्रू धार र्ी माने जाते हैं।
विक्षा के क्षेत्र में इनका योगदान अवधक सराहनीय है। श्री अरविन्द ने अपने पिू ी और पवश्चमी दिथन,
धमथ, सावहत्य तर्ा मनोविज्ञान को अपने लेखन में सश्ल
ं ेवषत वकया।
श्री अरविन्द श्रीमद् र्ागित गीता के बहुत बडे उपासक र्ें। उन्होने गीता के ‘कमथ योग, ि ध्यान योग
का िैज्ञावनक विश्लेषण प्रस्ततु वकया।
श्री अरविन्द मानिजावत को अज्ञान, अधं कार ि मृत्यु से ज्ञान, प्रकाि ि अमरत्ि की ओर ले जाना
चाहते हैं। अतः उनकी विचारधारा सिाांग योग दिथन कहलाती है। श्री अरविन्द के अनसु ार ईश्वर इस
ब्रह्माण्ड का वनमाथता हैं। इनके मतानसु ार विकास की दो वदिाएाँ हैं- अिरोहण और आरोहण। श्री
अरविन्द के अनसु ार र्ौवतक एंि आध्यावत्मक दोनो तत्िो में मल ू तत्ि ब्रह्म है। अतः र्ौवतक तर्ा
आध्यावत्मक तत्िों के मध्य र्ेद को जानना ही सच्चा ज्ञान है। श्री अरविन्द के अनसु ार मनष्ट्ु य जीिन
का परम उद्देश्य सत+ वचत + आनन्द की प्रावप्त है। श्री अरविन्द ने विक्षा की राष्ट्रीय योजना प्रस्ततु
की। श्री अरविन्द ने विक्षा के पााँच उद्देश्य िवणथत वकए हैं-िारीररक, प्रावणक, मानवसक, अन्तःकरण
और आध्यावत्मक विकास। उनके विचार से इस सर्ी उद्देश्यों की प्रावप्त के वलए समग्र रूप से
प्रयास करने होंगें और इसके उन्होंने एक विस्तृत एंि एकीकृ त पाठ्यक्रम प्रस्ततु वकया है। एक
दािथवनक के रूप में श्री अरविन्द ने र्ारतीय दिथन को एक िैज्ञावनक पिु देने का प्रयास वकया। िे
विश्व बन्धत्ु ि में विश्वास करतें हैं
9.7 िब्दावली
1. तत्िमीमासं ा- िास्तविकता का विज्ञान
2. ज्ञानमीमांसा- ज्ञान का विज्ञान
3. मलू यमीमांसा- मलू य का विज्ञान
4. अिरोहण- उच्च स्तर से वनम्न स्तर की ओर जाना
5. आरोहण- वनम्न स्तर से उच्च स्तर की ओर जाना
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2. सत
3. वचत + आनन्द
4. नेिनल वसस्िम फफ एजक ु े िन, फफ ऐजक ु े िन
5. श्री अरविन्द के अनसु ार विक्षा के दो प्रमख ु कायथ है-
i. मनष्ट्ु य को उसके विकास की प्रवक्रया से पररवचत कराना।
ii. मनष्ट्ु य में सत के सोपान तक पहुचाँ ने की िवक्त का विकास करना।
6. श्री अरविन्द के अनसु ार, आध्यावत्मक विकास ही विक्षा का अवन्तम उद्देश्य है।
7. श्री अरविन्द का मानना र्ा वक मनष्ट्ु य ‘मानस‘ की वस्र्वत में आने के वलए‘रव्य‘ एंि
‘प्राण‘ दो सोपानो को पार करता है।
8. श्री अरविन्द ने पाठयक्रम को इन स्तरों में बााँिा-
प्रार्वमक स्तर, माध्यवमक स्तर, विश्वविद्यालय स्तर, व्यिसावयक विक्षा
9. श्री अरविन्द के अनस ु ार योग सीखने की अवधक उपयक्त ु विवध है।
10. प्रर्ािात्मक अनि ु ासन
11. श्री अरविन्द ने विक्षा के क्षेत्र में विक्षक को बच्चों के वलए एक पर् प्रदिथक एिं सहायक
विक्षक के रूप में स्िीकार वकया है।
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इकाई-10 समकालीन भाितीय पशिप्रेक्ष्य
Contemporary Indian Perspective
10.1 प्रस्तािना
10.2 उद्देश्य
10.3 लोकतत्रं और विक्षा
10.3.1 विक्षा के वलए सिं धै ावनक प्रािधान
10.4 राष्ट्रीयता और विक्षा
10.4.1 विक्षा और उदारीकरण
10.4.2 विक्षा और वनजीकरण
10.4.3 विक्षा और र्ूमण्डलीकरण
10.5 सचू ना और सचं ार तकनीक
10.6 साराि ं
10.7 िब्दािली
10.8 स्िमूलयांकन हेतु प्रश्नों के उत्तर
10.9 संदर्थ ग्रन्र् सचू ी
10.10 वनबन्धात्मक प्रश्न
10.1 प्रस्तावना
र्ारत के सवं िधान का वनमाथण सवं िधान सर्ा द्वारा बनाया गया, वजसमें एक प्रारूप सवमवत र्ी।
वजनके अध्यक्ष डॉ. र्ीमराि अम्बेडकर जी र्े। वजन्होंने र्ारत को एक वलवखत एिं विस्तृत सवं िधान
प्रदान वकया। सवं िधान सर्ा की प्रर्म बैठक 9 वदसंबर, 1946 को हुई र्ी। सर्ा ने 26 निम्बर,
1949 को सवं िधान को अगं ीकार कर वलया। सवं िधान में प्रस्तािना के अलािा 1 से 10
अनसु वू चया,ं 1 से 395 धाराएं और एक पररविष्ट है। संविधान के द्वारा र्ारत के सर्ी बालकों को
विक्षा प्राप्त करने के अवधकार प्रदान वकए गये। सार् ही विक्षा ने िैश्वीकरण, वनवजकरण ि
र्मू ण्डलीकरण के क्षेत्र में र्ी तेजी से विकास वकया। आज हम विक्षा को अपने ही देि में प्राप्त न कर
अतं राथष्ट्रीय स्तर पर र्ी प्राप्त कर रहे हैं। विक्षा ने सर्ी के वलए चतमु ख
थु ी द्वार खोल वदये हैं।
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10.2 उद्देश्य
1. विक्षा के सिं ैधावनक प्रािधानों का अध्यययन कर सकें गे
2. विक्षा और लोकतंत्र की व्यिस्र् का अध्ययन कर सकें गे
3. विक्षा और उदारीकरण का अध्ययन कर सकें गे
4. विक्षा और वनजीकरण का अध्ययन कर सकें गे
5. विक्षा और र्मू ण्डलीकरण का अध्ययन कर सकें गे
6. सचू ना और संचार तकनीक का अध्ययन कर सकें गे
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14. सीखने में सामावजक तत्िों का वििेष महत्ि है। अतः कक्षा में सामावजक अनर्ु ि अिश्य प्रदान
वकए जाएाँ ।
10.3.1 शिक्षा के सिं ैधाशनक प्रािधान (Constitutional Provisions For Education)
हमारे संशिधान में शिक्षा संबंधी शनम्न प्रािधान शनशहत हैं:-
1. अवनिायथ तर्ा वनःिलु क विक्षा- सवं िधान की 45िीं धारा के अनसु ार राज्य 14 िषथ की आयु
परू ी करने तक सर्ी बच्चों के वलए संविधान लागू होने से दस िषथ के अदं र स्ितंत्र ि अवनिायथ
विक्षा की व्यिस्र्ा करने का प्रयत्न करेगा।
2. धावमथक विक्षा- संविघान की इक्कीसिीं धारा के अनसु ार वकसी धमथ वििेष के प्रचार के वलए
कर या दान देने के वलए वकसी व्यवक्त को बाध्य नहीं वकया जा सकता है। धारा-28 (1) में कहा
गया है वक परू ी तरह राज्य के धन से चलने िाली वकसी विक्षण सस्ं र्ा में धावमथक विक्षा नहीं दी
जाएगी। धारा-22 (2) में कहा गया है वक सहायता प्राप्त या राज्य से मान्यता प्राप्त विक्षण
संस्र्ाओ ं के वकसी सदस्य को उस संस्र्ा द्वारा चलाए जा रहे वकसी धावमथक अनष्ठु ान में र्ाग
लेने के वलए वििि नहीं वकया जा सकता है। धारा-28 के अनसु ार अन्य धमो के अनयु ावययों
को उनकी सहमवत के वबना धावमथक अनदु ेिन नहीं देना चावहए।
3. दृश्य सामग्री- धारा-49 में कहा गया है वक राज्य प्रत्येक स्मारक या ससं द द्वारा राष्ट्रीय महत्ि के
घोवषत स्र्ान ि िस्तओ ु ं का संरक्षण करे।
4. अलपसंख्यकों की विक्षा- धारा-30 के अनसु ार अलपसंख्यक समदु ाय को मनपसंद िैवक्षक
संस्र्ाएं स्र्ावपत करने ि उनका प्रिासन करने का अवधकार प्राप्त है ि अनदु ान देते समय इन
विद्यालयों के सार् इस कारण र्ेदर्ाि नहीं वकया जा सकता है वक िे धावमथक समदु ाय द्वारा
सचं ावलत हैं।
5. वपछड़े िगथ की विक्षा-वपछड़ों िगो की विक्षा संबधं ी सिं ैधावनक धाराएं ि उनमें कही गई बातें
वनम्न हैं:
i. धारा-17- अस्पृश्यता वनिारण ि वकसी र्ी रूप में अस्पृश्यता का प्रयोग िवजथत है।
ii. धारा-24- 14 िषथ से कम आयु िाले वकसी बच्चे को वकसी फै क्री,, खान या अन्य
खतरनाक रोजगार
iii. में कायथ करने के वलए वनयक्त ु नहीं वकया जा सकता है।
iv. धारा-23- मनष्ट्ु यों के क्रय-विक्रय ि बेगार पर रोक लगी रहेगी।
v. धारा-15- वहन्दओ ु ं के सर्ी सािथजवनक धावमथक सस्ं र्ानों के द्वार वपछड़े िगो के वलए
खल ु े रहेंगे।
vi. धारा-16 ि 335- राज्यों को सािथजवनक सेिाओ ं में स्र्ान आरवक्षत करने की छूि
रहेगी।
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vii. धारा-46- वपछड़ों िगो के िैवक्षक ि आवर्थक वहतों के उन्नयन तर्ा उन्हें सामावजक
अन्याय ि सर्ी प्रकार के िोषण से सरु क्षा वमलेगी।
6. के न्र ि राज्य के िैवक्षक दावयत्ि- र्ारतीय सवं िधान में के न्र ि राज्य सरकार के िैवक्षक
दावयत्ि का िणथन वकया गया है। के न्र सरकार विक्षा सवु िधाओ ं के समन्िय, उच्च िैज्ञावनक ि
तकनीकी विक्षा के स्तरों के वनधाथरण तर्ा वहन्दी ि अन्य सर्ी र्ारतीय र्ाषाओ ं में िोध कायथ
ि उनकी अवर्िृवि के वलए उत्तरदायी है।
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वजसको पजंू ीपवतयों ने इसे र्ापं वलया है। िे सरकार से लोन लेकर बड़े-बड़े सस्ं र्ान बना रहे हैं और
छात्रों को उन संस्र्ानों में प्रिेि देकर उनसे मोिी रकम प्राप्त कर रहे हैं।
उदारीकरण से हमारा अवर्प्राय विक्षा के द्वार सर्ी वलए खोलना ि सर्ी के वलए विक्षा की व्यिस्र्ा
करना है। अर्ाथत् सरकार द्वारा विक्षा की उवचत ि मान्य व्यिस्र्ा करना तर्ा इन संस्र्ानों को
खोलने में ज्यादा आनाकानी न करना। र्ारत में सन् 1960 में इजं ीवनयररंग सस्ं र्ानों के मामलों में
वनजी क्षेत्रों को 7 प्रवतित सीिें प्राप्त होती र्ीं। आज उनको 86.40 प्रवतित सीिें प्राप्त हैं। मेवडकल में
6.8 प्रवतित से बढ़ाकर 40.9 प्रवतित हो गया है। यही हाल माध्यवमक विक्षा के वलए तैयार हो रहे
बी.एड विक्षण संस्र्ानों का है, जहां इनकी बाढ़ सी आ गयी है। सरकार द्वारा इन वनजी संस्र्ानों को
50 प्रवतित सीिें स्ियं र्रने का अवधकार वदया गया है जो वक यह सरकार की उदारीकरण की नीवत
का ही पररणाम है।
10.4.2 शिक्षा और शनजीकरण (Education and Privatization)
विक्षा के गणु ात्मक और संघात्मक विकास के वलए हम वनजीकरण विक्षा की ओर बढ़ रहे हैं। यवद
वनजीकरण की ऐवतहावसक पृष्ठर्वू म को देखें तो मैकाले वमवनि के माध्यम से ही र्ारत में विक्षा में
वनजीकरण की व्यिस्र्ा र्ी। यद्यवप उस समय वनजीकरण के कारण कुछ अन्य र्े। उस समय छनाई
वसिान्त के माध्यम से विक्षा को समृि पररिारों तक सीवमत वकया गया तर्ा समृि पररिारों को
विवक्षत िगथ से छानकर विक्षा र्ारत के जन-साधारण तक पहुचं ाने की कलपना की गई जो न तो परू ी
होने की संर्ािना र्ी न ही परू ी हुई। इसके विपरीत छनाई वसिान्त परू े देि को दो र्ागों में विर्क्त
कर गया, एक समृि विवक्षत िगथ तर्ा दसू रा आरवक्षत कमजोर िगथ, वजसके पररणाम दरू गामी र्े।
आज र्ारत सवहत दवु नया के अवधकतर देि वनजीकरण की विक्षा को प्रोत्सावहत कर रहे हैं। देि में
आज सरकारी सस्ं र्ाओ ं या कालेजों के बजाय वनजी सस्ं र्ान तेजी से अपने पािं पसार रहे हैं। चाहे िे
प्रार्वमक विक्षण संस्र्ान हों अर्िा उच्च विक्षण संस्र्ान। ये संस्र्ान वबना मापदण्ड परू ा वकए
गली-महु ललों में खल ु रहे हैं। जहां अग्रेजी माध्यम का बोडथ लगाने र्र मात्र से अवर्र्ािकों को लिू ा
जा रहा है। अवर्र्ािक र्ी लिु ना चाहता है। आज अवर्र्ािकों के मन में यह बात घर कर गई है वक
वजस विद्यालय, कॉलेज, संस्र्ान की वजतनी ज्यादा फीस होगी िह उतना ही अच्छा होगा। पंजू ीपवत
आज इस बात को र्ापं गये हैं और विक्षा को ऊंचे दामों में बेच रहे हैं। आज लोगों के पास धन की
कोई कमी नहीं है। धनी व्यवक्त धन के बदले वनजी संस्र्ानों से वडवग्रयां बिोरकर अच्छी खासी
नौकरी र्ी प्राप्त कर रहे हैं। अतः विक्षा के वनजीकरण को रोका जाना अवत आिश्यक है।
10.4.3 शिक्षा और भूमण्डलीकरण (Educationand Globalization)
विक्षा मानि का अमलू य उपहार है, वजसको प्रत्येक मानि को प्राप्त करने का प्रयास करना चावहए।
विक्षा आज अपने गांि या िहर की सीमाओ ं तक सीवमत न रहकर िह राष्ट्रीय ि अतं राथष्ट्रीय स्तर
पर प्रदान की जा रही है। पहले साधनों के अर्ाि के कारण लोग अपने आसपास के क्षेत्रों तक विक्षा
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प्राप्त करते र्े, लेवकन आज साधनों ने इस दरू ी को कम कर वदया है। आज हम अपने ही राष्ट्र में न
के िल विक्षा प्राप्त करतें हैं बवलक उच्च विक्षा प्राप्त करने के वलए अन्य देिों में र्ी जाते हैं। अने
विदेिी छात्र र्ारत में विक्षा प्राप्त कर रहे हैं। यह र्मू ण्डलीकरण का ही नतीजा है।
र्मू ण्डलीकरण से हमारा अवर्प्राय इस सम्पणू थ ससं ार को एक सीमा में बांधना हैं। वजसके कारण
हमारी सस्ं कृ वत का प्रर्ाि अन्य देिों को प्रर्ावित कर र्ारत की ओर आकवषथत करता है।
र्मू ण्डलीकरण आज वििाल क्षेत्र न होकर सीमाओ ं में बधं गया है। आज न के िल धनी लोगों के ही
बच्चे विदेिों में विक्षा ग्रहण करने के वलए जाते हैं, बवलक आज जागरूक नागररक का बच्चा र्ी
छात्रिृवत्तया बैंक से कजथ लेकर विदेिी वडग्री प्राप्त कर रहा है।
इस विक्षा के विकास में मक्त ु विश्वविद्यालयों ने र्ी अपना अमलू य योगदान वदया है। आज हम बैठे
विक्षा प्राप्त कर रहे हैं। र्ारत में इवन्दरा गांधी मक्त
ु विश्वविद्यालय जो सन् 1985 में स्र्ावपत हुआ र्ा,
आज विश्व में इसके अनेकों के न्र बन गए हैं, जो र्मू ण्डलीकरण का एक अच्छा उदाहरण प्रस्ततु
कर रहा है।
स्िमलू याक
ं न हेतु प्रश्न
5. ‘‘राज्य प्रत्येक स्मारक या संसद द्वारा राष्ट्रीय महत्ि के घोवषत स्र्ान ि िस्तओ
ु ं का
संरक्षण करे।’’ यह वकस अनच्ु छे द में कहा गया है ?
6. वकस अनच्ु छे द में 14 िषथ से कम बच्चे को काम पर रखने पर दण्ड का प्रािधान है ?
7. राज्यों को सािथजवनक सेिाओ ं में स्र्ान आरवक्षत करने की छूि वकस अनच्ु छे द के अतं गथत
रहेगी ?
8. र्ारत में जनतंत्रीय नागररकता के विकास का िैवक्षक उद्देश्य वकसने कहा-
(A) हन्िर कमीिन (B) सैडलर कमीिन
(C) मदु ावलयर कमीिन (D) सस्ं कृ त कमीिन
उत्तराखण्ड मक्त
ु विश्वविद्यालय 139
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iv. अन्तःवक्रयात्मक विवडयो (Interactive Video)
v. विवडयोिेक्स्ि (Videotext)
vi. ई-मेल (E-mail)
vii. कम्मायिू र (Computer)
viii. कम्मायिू र सहायवतत अनदु ेिन (Computer Assisted Instruction)
1. डायल पहुंि (Dial Access)- डायल पहुचं का तात्पयथ विक्षा में िेलीफोन नेििवकां ग से है।
डॉयल पहुचं के माध्यम से विद्यार्ी फवडयो वडलीिर व्यिस्र्ा एिं अपनी पसंद का वनिेदन
करते हैं। िेलीफोन करने िालों को िृहद पस्ु तकालय एिं विक्षा संबंवधत फवडयो कै सेि
कायथक्रमों की सवु िधा वमल जाती है।
2. िैशक्षक टेलीशिजन (Educational Television)- र्ारत में िैवक्षक िेलीविजन विक्षा की
लोकवप्रय पिवत है। आप विवर्नन स्तरों पर विविष्ट िैवक्षक िेलीविजन कायथक्रमों के संपकथ में
आओगे। जैसे-के न्रीय िैवक्षक तकनीकी संस्र्ा (CIET) एिं राज्य िैवक्षक तकनीवक संस्र्ान
(SIET) द्वारा विकवसत विद्यालय स्तरीय िैवक्षक िेलीविजन, विश्वविद्यालय अनदु ान आयोगा
(UGC) द्वारा महाविद्यालय स्तरीय देिव्यापक कक्षा-कक्ष कायथक्रम, इवन्दरा गाधं ी राष्ट्रीय मक्त ु
विश्वविद्यालय (IGNOU) द्वारा विकवसत दरू स्र् विक्षा कायथक्रम आवद। आपने वनवश्चत रूप से
दरू दिथन राष्ट्रीय नेििकथ द्वारा प्रसाररत प्रौढ़ विक्षा, कृ षक विस्तार विक्षा कायथक्रम आवद से
संबंवधत विविष्ट िैवक्षक िेलीविजन कायथक्रम देखे होंगे। र्ारत में सेिलाइिों के सफल प्रक्षेपणों
के माध्यम से प्रसारण के िैकवलपक चैनल खोलने में सवु िधा हो गयी है। िैवक्षक िेलीविजन द्वारा
इन सवु िधाओ ं का र्रपरू उपयोग वकया जाता है।
3. िीशडयो (Video)- विक्षा एिं प्रविक्षण गवतविवधयों में विवडयो कायथक्रमों का काफी प्रयोग
बढ़ गया है। विविष्ट विवडयो कायथक्रम अध्यापन कौिल के विकास, गवतविवधयों के प्रदिथन,
विचारों के वचत्रण में हमारी सहायताकरते हैं। विद्यार्ी अपनी आिश्यकता एिं सवु िधायक्त ु
विवडयो कै सेिों का प्रयोग कर सकता है। विवडयो कै सेि ररकाडथरों पर विवडयो कायथक्रमों को
ररकाडथ करना एिं उनको देखना काफी लोकवप्रय है।
4. अन्तःशक्रयात्मक शिशडयो (Interactive Video) - अन्तःवक्रयात्मक विवडयो के माध्यम
द्वारा समीक्षक को प्रस्ततु कताथ से अन्तःवक्रया करने की सवु िधा प्राप्त होती है। िेलीविजन पिल
पर विवडयो लेखन के दौरान समीक्षक प्रश्न पछू सकते हैं। उन्नत संचार तकनीक प्रस्ततु कताथ एिं
समीक्षक के मध्य दोनों ओर से अन्तःवक्रया को बढ़ािा देती है। प्रश्नों के उत्तर विवडयो विक्षक के
द्वारा प्रस्ततु वकए जाते हैं। विद्यार्ी को िेलीविजन पिल, जो वक विवडयो वडस्क से जड़ु ा होता
है, से स्िरूवपत अन्तःवक्रया होती है।
5. शिशडयोटेक्सस्ट (Videotext)- विवडयोिेक्स्ि के अतं गथत िेलीफोन लाईनों द्वारा जड़ु े िेलीविजन
रूिों के माध्यम से पाठ एिं रेखावचत्र ग्रावफक्स प्रस्ततु वकए जाते हैं। दिथक विवडयोिेक्स्ि के
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माध्यम द्वारा प्रश्न पछू सकता है। इन प्रश्नों का उत्तर पहले से ही कम्मायिू र के पास सग्रं वहत होता
है। विद्यार्ी के प्रश्नों के अनसु ार उत्तर िीिी पिल पर आ जाता है। उदाहरण के वलए-एक दरू स्र्
विक्षा का विद्यार्ी खल ु े विश्वविद्यालय द्वारा प्रस्ततु पाठ्यक्रमों, काउन्सवलंग समय, पररक्षाएं
आवद के बारे में विविष्ट जानकारी प्राप्त करना चाहता है तो उसे इस तरह की सचू नाएं
विवडयोिेक्स्ि के माध्यम से प्राप्त हो सकती हैं।
6. ई-मेल (E-mail) - इलेक्रावनक मेल को ईमेल के नाम से जाना जाता है। दरू संचार संपकथ के
प्रयोग द्वारा ई-मेल के माध्यम से आक ं ड़े, वबम्ब तर्ा जबु ानी सचू नाएं र्ेजी जा सकती हैं। र्ेजने
िाले के कम्मायिू र से सचू ना प्रारम्र् होकर एक या बहुत से प्राप्तकताथओ ं के कम्मायिू र पर प्राप्त
होती है। िे इन सचू नाओ ं को र्-ू मण्डल के वकसी र्ी दरू -दराज के क्षेत्र में अपने कम्मायिू र पर
प्राप्त कर सकते हैं। ई-मेल के माध्यम से विक्षकों, िोधकताथओ,ं विद्यावर्थयों तर्ा िैक्षवणक
प्रिासकों को तीव्र सचू नाएं र्ेजी जा सकती हैं।
7. कम्प्यूटर (Computer) - यह इस यगु की उन्नत तकनीवक की बहुत ही महत्िपणू थ देन है।
आप कम्मायिू र का प्रयोग आक ं ड़ों को एकत्र करने, एक जगह से दसू री जगह सदं ेि वर्जिाने,
विवर्न्न वस्र्वतयों में आक ं ड़ों के परीक्षण आवद में कर सकते हैं। कम्मायिू र में तीव्र स्मरण िवक्त,
गणना क्षमता, बहुत सारे आक ं ड़ों के संग्रहण तर्ा समस्या समाधान की क्षमता होती है।
िैक्षवणक वस्र्वतयों में पाठ्यक्रम के विवर्न्न चरणों में कम्मायिू र आधाररत वनदेिों का प्रयोग
काफी लोकवप्रय हो गया है।
8. कम्प्यटू र सहायशतत अनदु ेिन (Computer Assisted Instruction)- कम्मायिू र
सहायवतत वनदेि स्ि-वनदेिन का लोकवप्रय तरीका है। स्ि-वनदेवित पैकेजों को कम्मायिू र में
संग्रवहत वकया जाता है। विद्यार्ी कम्मायिू र सहायवतत वनदेिन के माध्यम द्वारा चरणगत रूप से
अवधगम गवतविवधयों के सार् आगे बढ़ता है। विद्यावर्थयों को प्रवतवक्रया हेतु फीडबैक वदया
जाता है, विद्यार्ी अपनी सवु िधानसु ार प्रगवत कर सकता है। सामग्री प्राप्त कर सकता है तर्ा
उसका चयन कर सकता है। िह स्ितंत्र रूप से वनदेिन स्तर का क्रम तय कर सकता है। प्रत्येक
विद्यार्ी की प्रगवत का मलू याक ं न वकया जा सकता है।
स्िमलू याक
ं न हेतु प्रश्न
9. यजू ीसी (UGC) को पणू थ रूप में वलवखए।
10. इग्नू (IGNOU) को पणू थ रूप में वलवखए।
11. ई-मेल (E-Mail) को पणू थ रूप में वलवखए।
12. कम्मायिू र का एक मख्ु य कायथ बताईये।
उत्तराखण्ड मक्त
ु विश्वविद्यालय 141
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10.6 साराांि
र्ारत एक लोकतावं त्रक देि है। यहां प्रत्येक व्यवक्त को अपना चतमु ख
थु ी विकास करने का मौका वदया
गया है। संविधान द्वारा र्ारत के नागररकों को विक्षा संबधं ी अनेक अवधकार प्रदान वकए गये हैं।
समय-समय पर अनेक िैवक्षक कायथक्रम चलाकर समाज को एक नई वदिा देने का प्रयास वकया
जाता है। आज विक्षा सरकारी सस्ं र्ानों तक ही सीवमत न रहकर िैश्वीकरण ि वनजीकरण की ओर
बढ़ रही है और र्मू ण्डलीकरण के कारण एक देि के व्यवक्त अन्य देिों में विक्षा प्राप्त करने हेतु जा
रहे हैं। आज विक्षा को धनी ि सम्पन्न व्यवक्त धन के बल पर खरीद रहे हैं ि उसको प्राप्त कर महगं े
दामों में र्ी बेच रहे हैं, वजससे गरीब िगथ पनु ः वपछड़ रहा है। आज आिश्यकता है सरकारी कॉलेजों
ि संस्र्ानों पर ध्यान देने की, वजससे उनमें गणु ात्मक िृवि कर योग्य नागररकों का वनमाथण वकया जा
सके ।
10.7 िब्दावली
1. डायल पहुचं (Dial Access) - डायल पहुचं का तात्पयथ विक्षा में िेलीफोन नेििवकां ग से
है। डॉयल पहुचं के माध्यम से विद्यार्ी फवडयो वडलीिर व्यिस्र्ा एिं अपनी पसदं का
वनिेदन करते हैं। िेलीफोन करने िालों को िृहद पस्ु तकालय एिं विक्षा संबंवधत फवडयो
कै सेि कायथक्रमों की सवु िधा वमल जाती है।
2. ई-मेल (E-mail) - इलेक्रावनक मेल को ईमेल के नाम से जाना जाता है। दरू सचं ार संपकथ
के प्रयोग द्वारा ई-मेल के माध्यम से आक
ं ड़े, वबम्ब तर्ा जबु ानी सचू नाएं र्ेजी जा सकती हैं।
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11. इलेक्रावनक मेल।
12. तीव्र स्मरण िवक्त, गणना क्षमता, आक
ं ड़ों का संग्रहण, समस्या समाधान की क्षमता आवद
कम्मायिू र के कायथ हैं।
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इकाई-11 गुणवत्ता एवं समता के पहलू
Issues of Quality and Equity
11.1 प्रस्तािना
11.2 उद्देश्य
11.3 िैवक्षक समानता के अिसर ि विक्षामें उत्कृ ष्टता सम्बन्धी मुद्द,े गुणित्ता ि
सख्ं यात्मक सम्बन्धी िैवक्षक पहलू ि समता
11.3.1 िैवक्षक अिसरों की समानता का अर्थ
11.3.2 र्ारत में िैवक्षक अिसरों की समानता
11.3.3 विक्षा मं समानता ि उत्कृ ष्टता सम्बन्धी मुद्दे
11.4 संिधै ावनक प्रािधान
11.4.1 र्ारत में विक्षा के अिसरों की विषमताएं
11.4.2 िैवक्षक अिसरों की समानता की आिश्यकता
11.5 र्ारत में गुणित्ता ि सख्ं यात्मक सम्बन्धी िैवक्षक पहलू ि समताउपाय
11.6 विश्व मानिीय अवधकार
11.7 सारांि
11.8 िब्दािली
11.9 स्िमलू याक ं न हेतु प्रश्नों के उत्तर
11.10 सन्दर्थ ग्रन्र् सचू ी
11.11 वनबन्धात्मक प्रश्न
11.1 प्रस्तावना
समानता की धारणा जनतत्रं ीय धारणा है। जनतत्रं स्ितत्रं ता, समानता और िावन्त के तरीकों में
विश्वास करता है। यि ु और राजनैवतक अर्िा अन्य प्रकार के तनािों के मध्य समाज की प्रगवत नहीं
हो सकती। जनतत्रं का यह विश्वास है वक पारस्पररक द्वेष, सघं षथ ि तनाि की अिस्र्ाएं िावन्तपणू थ
ढंग से सलु झाई जा सकती हैं। यि ु की अपेक्षा िावन्त की विजय अवधक वचरस्र्ायी है, इसमें जनतंत्र
का पणू थ विश्वास है।जनतंत्र सहयोग, सवहष्ट्णतु ा, पारस्पररक आदान-प्रदान, न्याय और दृवष्टकोण की
वििालता को सामावजक समस्याओ ं के हल करने तर्ा अच्छे मानिीय सम्बधं ों को स्र्ावपत करने में
िक्त मानता है। जनतंत्र विरोधी विचारों ि दृवष्टकोणों की वर्न्नताओ ं का अनादर नहीं आदर करता
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है। जनतत्रं का यह विश्वास है वक विचारों ि दृवष्टकोणों के र्ेदों का आदर होना, यही उनके सामान्य
लक्षणों और गणु ों का वमलन होता है और विरोध समन्िय की ओर अग्रसर होता है।
स्ितत्रं ता और समानता के सम्बंध में भ्रमपणू थ विचार होने के कारण लोग बहुधा उनका गलत मतलब
वनकालते हैं और उनका दरू ु पयोग करते हैं। इन दोनों का अर्थ लोग अपने स्िार्थिि गलत लगा
बैठते हैं। स्ितत्रं ता प्रावप्त के बाद हम स्ियं अपने देि में ही देख रहे हैं वक स्ितत्रं ता का वकतना गलत
अर्थ लगाया जा रहा है और उसका वकतना दरू ु पयोग हो रहा है। हम स्ितंत्रता को उच्छृ ं खलता
समझ बैठे हैं। हम यही नहीं अनर्ु ि करते वक ‘स्ितत्रं ’ होना अपने ऊपर स्ियं द्वारा अवधक वनयत्रं ण
चाहता है। परतंत्र होने में तो दसू रे का वनयंत्रण हमें स्िीकार करना पड़ता है और यवद हम अपराध
करते हैं तो हमें दण्ड र्गु तना पड़ता है। स्ितंत्र होने पर हमें अपना वनयंत्रण स्िीकार करना पड़ता है
और यवद हम ऐसा नहीं करते तो उसके दष्ट्ु पररणाम हम को ही र्ोगने पड़ते हैं। वनयत्रं ण के वबना वकसी
र्ी प्रकार की व्यिस्र्ा नहीं चल सकती,, चाहे िह वनयंत्रण दसू रों का हो तो परतंत्रता की अिस्र्ा में
होता है, और चाहे िह अपना हो तो स्ितंत्रता की अिस्र्ा में होता है। यह मानि दृवष्टकोण की
संकीणथता और कठोरता है
िास्तविक स्ितत्रतं ा दोनों वसरों के वमलन वबन्दु पर है। स्ितत्रं ता अनि
ु ासनहीनता नहीं है बवलक
स्ितंत्रता दसू रों की स्ितंत्रता को खतरे में न डाल दें, यह आिश्यक है। जनतंत्रीय स्तंत्रता इसी बीच
के वमलन वबन्दु पर खड़ी है। जनतत्रं ीय व्यिस्र्ा के पैर दोनों ओर हैं और ि दोनों पर चढ़कर ही
चलती है, एक पर चढ़कर िह उसी प्रकार नहीं चल सकती वजस प्रकार एक पवहए पर गाड़ी नहीं
चल सकती। इसी प्रकार के भ्रम समानता के सम्बंध में र्ी हैं और लोग इसका आिय अवधकारों
और अिसरों तर्ा सवु िधाओ ं के बाराबर बािं ने से लगाते हैं चाहे कोई उनका लार् उठा सके अर्िा
नहीं। सब मनष्ट्ु यों में एक सी िवक्त नहीं होती और सब लोग अिसरों ि सवु िधाओ ं से बराबर लार्
नहीं उठा सकते। अतः सबको बराबर बांि कर देने का पररणाम यह होगा वक कुछ उनका लार् उठा
सकें गे और कुछ नहीं, कुछ उनका दरू ु पयोग करेगे तो कुछ को अवधक अिसरों ि सवु िधाओ ं की
आिश्यकता होगी। समता या समानता का आिय यह है वक प्रत्येक व्यवक्त को उतनी सवु िधा या
अिसर वदए जाएं वजनका िह लार् उठा सकें और यवद िह उनसे लार् न उठा सके तो उसे िे उतनी
मात्रा में न वदए जाएं। समानता का अर्थ सबके वलए समान नीवत से है, सबको समान बनाने से नहीं।
र्ारतीय संविधान की प्रस्तािना इस प्रकार है-
हम र्ारत के लोग, र्ारत को एक सम्पणू थ प्रर्त्ु ि-सम्पन्न लोकतत्रं ात्मक गणराज्य बनाने के वलए
तर्ा उसके समस्त नागररकों को सामावजक, आवर्थक और राजनैवतक न्याय, विचार, अवर्व्यवक्त,
विश्वास धमथ और उपासना की स्ितत्रं ता, प्रवतष्ठा और अिसर की समता प्राप्त करने के वलए तर्ा उन
सब में व्यवक्त की गररमा और राष्ट्र की एकता सवु नवश्चत करने िाली बधं तु ा बढ़ाने के वलए दृढ़
संकलप होकर अपनी इस संविधान सर्ा में ..............एतदद्व् ारा इस संविधान को अगं ीकृ त,
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अवधवनयवमत और आत्मसमवपथत करते हैं। बाद में इसमें समाजिाद और धमथवनरपेक्षता र्ी जोड़ वदये
गये।
यह प्रस्तािना हमारे राष्ट्रीय जीिन, राजनीवत और िैवक्षक उद्देश्यों या मलू यों को पररर्ावषत करने
िाले िब्द-प्रतीक हैं।
11.2 उद्देश्य
1. िैवक्षक अिसरों की समानता का अर्थ जान सकें गे।
2. िैवक्षक अिसरों की समानता ि असमानता का ज्ञान प्राप्त कर सकें गे।
3. िैवक्षक अिसरों की प्रावप्त हेतु सिं ैधावनक प्रािधानों को जान सकें गे।
4. विश्व मानिीय अवधकारों के बारे में समझ सकें गे।
5. र्ारत में िैवक्षक अिसरों की समानता की प्रावप्त के उपायों को समझ सकें गे।
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11.3.1 िैशक्षक अिसरों की समानता का अर्थ
िैवक्षक अिसरों की समानता का सामन्य अर्थ है देि के सर्ी बच्चों को वबना वकसी र्ेद -र्ाि के
विक्षा प्राप्त करने के समान अिसर और समान सवु िधाएं प्रदान करना। परन्तु समान अिसर और
समान सवु िधाओ ं के सम्बंध में विद्वानों के वर्न्न-वर्न्न मत हैं। कुछ विद्वान विक्षा प्राप्त करने के समान
अिसर और समान सवु िधाओ ं के अर्थ देि के सर्ी बच्चों के वलए एक समान विक्षा अर्ाथत् समान
पाठ्यक्रम से लेते हैं। आप ही विचार करें वक विविधता के इस देि र्ारत में ऐसा कै से हो सकता है।
वफर सामान्य विक्षा तो सबके वलए समान हो सकती है और होती र्ी है, परन्तु विविष्ट विक्षा तो
बच्चों की रूवच, रूझान, योग्यता और क्षमता के आधार पर ही दी जा सकती है। इसके विपरीत कुछ
विद्वान इसका अर्थ विक्षा संस्र्ाओ ं के समान रूप से लेते हैं। िे सरकारी, गैरसरकारी और पवब्लक
स्कूलों के र्ारी अन्तर को समाप्त करने के पक्ष में हैं। इनका तकथ है वक उसी वस्र्वत में सर्ी को विक्षा
के समान अिसर वमल सकते हैं। अन्यर्ा धनी िगथ के बच्चे पवब्लक स्कूलों की अच्छी विक्षा प्राप्त
करते रहेंगे और वनधथन िगथ के बच्चे सरकारी एिं गैर-सरकारी स्कूलों की वनम्न स्तर की विक्षा ही
प्राप्त कर सकें गे। िैवक्षक अिसरों की समानता से अर्थ विक्षा की वकसी र्ी स्तर पर सर्ी बच्चों को
प्रिेि की सवु िधा प्रदान करने से लेते हैं। इनका तकथ है वक विक्षा मनष्ट्ु य का मौवलक अवधकार है।
परंतु यह धारणा र्ी गलत है। अवधकार के सार् कतथव्य जड़ु ा होता है। समान अिसरों के पीछे समान
योग्यता एिं समान क्षमता का र्ाि वनवहत है। जहां तक अवनिायथ एिं वनःिलु क विक्षा की बात है
उसके अिसर तो सर्ी को सल ु र् कराना आिश्यक है परन्तु उससे आगे की विक्षा के अिसर
योग्यता एिं क्षमता के आधार पर ही सल ु र् कराने चावहए।
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विक्षा(Education) के क्षेत्र में ‘समानता’ की अिधारणा को स्र्ावपत करने के वलए वनम्नवलवखत
प्रयासवकए गये हैं–
i. एक वनवश्चत अिवध तक र्ेदर्ाि रवहत वनःिलु क एिं अवनिायथ विक्षा की व्यिस्र्ा।
ii. माध्यवमक स्तर पर विवर्न्नीकृ त पाठ्यक्रम व्यिस्र्ा।
iii. उच्च स्तर पर सर्ी के वलए अपेवक्षत िैवक्षक उन्नवत की व्यिस्र्ा तावक िे उवचत योगदान
देने में सक्षम हो सकें ।
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b. (3) मदु ावलयर आयोग (4) कोठारी आयोग
2. कश्मीर प्रान्त में वकस स्तर तक की विक्षा वनःिलु क है ?
a. (1) प्रार्वमक (2) माध्यवमक
b. (3) उच्च (4) सम्पणू थ
3. माध्यवमक स्तर पर गवतवनधाथरक विद्यालयों का प्रस्ताि वकस राष्ट्रीय विक्षा नीवत में वकया
गया र्ा ?
a. (1) राष्ट्रीय विक्षा नीवत, 1968 (2) राष्ट्रीय विक्षा नीवत, 1979
b. (3) राष्ट्रीय विक्षा नीवत, 1986 (4) संिोवधत राष्ट्रीय विक्षा नीवत,
1992
4. आश्रम स्कूलों की व्यिस्र्ा वकन के वलए की जा रही है ?
a. दरू दराज में रहने िाले लड़कों के वलए
b. दरू दराज में रहने िाली लड़वकयों के वलए
c. दरू दराज में रहने िाले लड़के -लड़वकयों के वलए
d. दरू दराज में रहने िाले जनजावत के बच्चों के वलए
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ु विश्वविद्यालय 149
समकालीन भारत और शिक्षा BEDSEDE A2
अनच्ु छे द 46- इन जावतयों के िैवक्षक और आवर्थक वहतों की रक्षा और उनका सर्ी प्रकार के िोषण
और सामावजक अन्याय से बचाि।
अनच्ु छे द 146- के न्र ि राज्यों में अछूतों के कलयाण हेतु समाज कलयाण एिं अिासकीय संस्र्ाओ ं
को खोलने पर बल वदया गया है।
अनच्ु छे द 244- अनसु वू चत जावतयों के वलए प्रिासन संबधं ी वििेष व्यिस्र्ा की गयी है।
अनच्ु छे द 330 ि 335- संसद और विधान मण्डलों में अनसु वू चत जावतयों को वििेष प्रवतवनवधत्ि
वमलेगा।
संविधान के अनसु ार अनसु वू चत जावतयों और अनसु वू चत जनजावतयों के कलयाण की देखर्ाल करने
के वलए वििेष कवमश्नर की वनयवंु क्त की जाए जो प्रवतिषथ राष्ट्रपवत को उनकी दिा के सम्बधं में
अपनी ररपोिथ प्रस्ततु करे। इस महत्िपणू थ पद पर एम0ए0 श्री कांत ि सप्रु वसि गाधं ीिाद ि
सामावजक, मानि िास्त्री डा. एनके बोस कायथ कर चक ु े र्े। प्रवतिषथ प्रस्ततु की जाने िाली कवमश्नर
की ररपोिथ में अनसु वू चत जावतयों ि जनजावतयों के जीिन में रुतगवत से प्रर्ािपणू थ पररितथन लाने के
वलए कई महत्िपणू थ सझु ाि वदये जाते रहे हैं। इन जावतयों में पररितथन लाने के वलए अवनिायथ
प्रार्वमक विक्षा की सवु िधाओ ं को प्रदान करना हमारा पहला कतथव्य है और स्ितत्रं ता प्रावप्त के
पश्चात् देि में व्याप्त वनरक्षरता को समाप्त करने के वलए अवनिायथ विक्षा के प्रसार पर जोर वदया गया।
इसके वलए सवं िधान में र्ी प्रािधान वकया गया वक बालक-बावलकाओ ं को वनःिलु क एिं अवनिायथ
विक्षा प्रदान की जाये।
र्ारतीय सवं िधान के अनच्ु छे द 45 में प्रािधान है वक लोकतत्रं को सफल बनाने तर्ा उसकी सरु क्षा
के वलए सर्ी नागररक का विवक्षत होना अवत आिश्यक है। लोकतंत्र िह िासन पिवत होती है
वजसमें सिोच्च सत्ता जनता के हार् में होती है। अब लोकतत्रं के वलए सािथजवनक मतावधकार होना
आिश्यक समझा जाता है और मतावधकार का समवु चत प्रयोग करने के वलए मतदाता को कंु छ
सामान्य विक्षा देना परमािश्यक है।
11.4.1 भारत में शिक्षा के अिसरों की शिषमताएं
विक्षा अिसरों की विषमताओ ं की जविलतओ ं के वनन्नवलवखत रूप में उललेख वकया गया है-
1. ग्रामीण और नगरीय शिशभन्नता-‘‘बवु ि, नैवतक, न्याय और घवनष्ठता की दृवष्ट से विक्षा की
व्यिस्र्ा में बहुत अवधक असमानता है। यिवप जनसंख्या का तीन-चौर्ाई र्ाग ग्रामीण क्षेत्रों में
रहता है, वफर र्ी उन्हें विक्षा के वलए बहुत कम ससं ाधन प्राप्त हो रहे हैं। समृैि लोग िहरों में
वनजी रूप से चलायी जाने िाली अच्छी विक्षण संस्र्ाओ ं का लार् लेते हैं तर्ा ये ही
व्यािसावयक विक्षा सस्ं र्ओ ं में अनारवक्षत स्र्ानों के बहुत बड़े वहस्से पर अवधकार कर लेते हैं,
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जबवक ग्रामीण स्कूलों की अपेक्षाकृ त दयनीय दिा के कारण ग्रामीण क्षेत्रों के बच्चों को बहुत
बड़ी हावन उठानी पड़ती है।’’
2. शलंग और जाशत पर आधाररत शिषमता-‘‘लड़वकयों, अनसु वू चत जावतयों और अनसु वू चत
जनजावतयों के बच्चों ने वपछले दिक के दौरान उललेखनीय प्रगवत की है। इसके उपरान्त र्ी िे
िैवक्षक उपलवब्ध के अवं तम सोपान पर हैं। बावलकाएं तो घर-गृहस्र्ी के कायाथ में अपनी
दत्तवचन्तता तर्ा सामावजक कुरीवतयों की विकार होती हैं इनमें से अवधकाि ं तः पहली पीढ़ी के
विक्षार्ी होने के कारण बालयकाल के कुपोषण, सामावजक अके लेपन की र्ािना, कायथ करने
की खराब आदतें तर्ा बौविक क्षमताओ ं के प्रवत आत्मविश्वास अर्ाि के कारण समवु चत
विकास नहीं कर सकते। िे अपने को सामान्य धारा के छात्रों से सामजं स्य स्र्ावपत करने में
कवठनाई अनर्ु ि करते हैं। इन मनोिैज्ञावनक दबािों के कुप्रर्ाि को समाप्त करने के वलए तर्ा
उनकी योग्यताओ ं में बढोत्तरी करने हेतु एिं समाज की प्रमख ु धारा में उन्हें समवन्ित करने के
वलए वििेष कायथक्रम की आिश्यकता है।’’
इन िैवक्षक विषमताओ ं का उललेख क्रमबि ढंग से वनम्नवलवखत रूप में वकया है -
i. वजन स्र्ानों पर प्रार्वमक, माध्यवमक या कॉलेज की विक्षा देने िाली संस्र्ाएं नहीं हैं, िहां
के बच्चों को िैसा अिसर नहीं वमल पाता, जैसा उन बच्चों को वमल पाता है, वजनकी
बवस्तयों में ये संस्र्ाएं उपलब्ध हैं।
ii. इस देि के विवर्न्न र्ागों में िैवक्षक विकासों में र्ारी असंतल ु न देखने को वमलता है-एक
राज्य और दसू रे राज्य के िैवक्षक विकासों में बहुत बड़ा अन्तर मौजदू है और एक वजले
तर्ा दसू रे वजले के विकास में और र्ी बड़ा अन्तर देखने को वमलता है।
iii. विक्षा के अिसरों की विषमता का एक और कारण यह है वक जनसख्ं या का बहुत बड़ा
र्ाग गरीब है और बहुत र्ोड़ा र्ाग धनी। वकसी विक्षा-संस्र्ा के समीप होते हुए र्ी गरीब
पररिारों के बच्चों को िह अिसर नहीं वमलता, जो धनी पररिारों के बच्चों को वमल जाता
है।
iv. विक्षा के अिसरों की विषमता का एक और बड़ा दःु साध्य रूप विद्यालयों तर्ा कॉलेजों के
अपने-अपने वर्न्न स्तरों के कारण पैदा होता है। जब वकसी विश्वविद्यालय या िृवत्तक
कॉलेज जैसी संस्र्ा में प्रिेि उन अक ं ों के आधार पर वदया जाता है, जो माध्यवमक स्तर
की समावप्त पर दी गयी सािथजवनक परीक्षा में प्राप्त हुए हों और प्रिेि साधारणतया इसी
आधार पर होता है, तब देहाती क्षेत्र के साधनहीन ग्रामीण विद्यालय में पढ़े छात्र के वलए
यह कसौिी या मापदण्ड एक समान नहीं रहता।
v. घरेलू पयाथिरणों के वर्न्न-वर्न्न होने के कारण र्ी र्ारी विषमताएं उत्पन्न होती हैं। देहात के
घर या िहरी गन्दी बवस्तयों में रहने िाले और अनपढ़ माता-वपता की संतान को विक्षा पाने
का िह अिसर नहीं वमलता, जो उच्चतर विक्षा पाये हुए माता-वपता के सार् रहने िाली
उनकी सतं ान को वमलता है।
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vi. र्ारतीय पररवस्र्वतयों ने वनम्नवलवखत दो प्रकार की िैवक्षक विषमताओ ं को प्रमख ु रूप से
जन्म वदया है- विक्षा के सर्ी स्तरों पर तर्ा क्षेत्रों में लड़कों तर्ा लड़वकयों की विक्षा में
र्ारी अतं र। उन्नत िगाथ तर्ा वपछड़े िगाथ-अनसु वू चत जावतयों तर्ा अनसु वू चत आवदम
जावतयों के बीच िैवक्षक विकास का अन्तर।
11.4.2 िैशक्षक अिसरों की समानता की आिश्यकता (Need of Equality of
Educaitonal Opportunities)
आज परू ा ससं ार मानिावधकार के प्रवत सचेत है। ससं ार के सर्ी देिों में विक्षा को मानि का मल ू
अवधकार काना है। तब वकसी र्ी देि में सर्ी को विक्षा विक्षा प्राप्त करने की समान सवु िधाएं होनी
चावहए। लोकतंत्रीय देिों में तो यह और र्ी अवधक आिश्यक है, वबना इसके लोकतंत्र अर्थहीन है।
हमारे लोकतत्रं ीय देि में तो इसकी और अवधक आािश्यकता है, कारण स्पष्ट हैंरू-
1. लोकतत्रं की रक्षा के वलए - लोकतत्रं की सफलता उसके नागररकों पर वनर्थर करती है, उसके
नागररकों की योग्यता और क्षमता पर वनर्थर करती है और नागररकों की योग्यता और क्षमता
वनर्थर करती है विक्षा पर। अतः देि के प्रत्येक नागररक को विवक्षत करना आिश्यक है। इस
क्षेत्र में हमारे देि की वस्र्वत बड़ी चनु ौतीपणू थ है। पहली बात तो यह है वक इसकी जनसख्ं या
बहुत अवधक है और साधन अपेक्षाकृ त बहुत कम हैं। दसू री बात यह है वक देि की आधे से
अवधक जनता वनधथन है, अपने बच्चों की विक्षा की व्यिस्र्ा करने में असमर्थ है। तीसरी बात
यह है वक इसकी बहुसंख्यक जनता गांिों में रहती है, दरू -दराजों में रहती है। रेवगस्तानी पहाड़ी
और जंगली क्षेत्रों में रहने िालों की बहुत बड़ी संख्या है। पररणाम यह है वक विक्षा सिथसल ु र्
नहीं है। अतः आिश्यक है वक हम उपेवक्षत, वनधथन और दरू -दराज में रहने िालों को विक्षा
सवु िधाएं प्रदान करें।
2. व्यवक्त के िैयवक्तक विकास के वलए - लोकतंत्र व्यवक्त के व्यवक्तत्ि का आदर करता है और
प्रत्येक व्यवक्त को अपने विकास के स्ितंत्र अिसर प्रदान करता है। और हमारे देि की वस्र्वत
यह है वक इसकी आधे से अवधक जनसंख्या वपछड़ी है, वनधथन है, अच्छी विक्षा से िवं चत है।
यवद हम सचमचु अपने देि के प्रत्येक व्यवक्त को अपने विकास के अिसर प्रदान करना चाहते
हैं तो पहली आिश्यकता यह है वक सर्ी को विक्षा प्राप्त करने के समान अिसर एिसं सवु िधाएं
प्रदान करें।
3. िगथ र्ेद की समावप्त के वलए - स्ितत्रं ता प्रावप्त से पहले हमारे देि में विक्षा उच्च िगथ तक सीवमत
र्ी, पररणाम यह हुआ वक इस देि में जीिन के प्रत्येक क्षेत्र में उच्च िगथ का अवधकार बढ़ता
गया और वनम्न िगथ के व्यवक्त और वपछड़ते गये और िगथ र्ेद बढ़ता गया। लोकतत्रं इस प्रकार
के सामावजक और आवर्थक िगथ र्ेद का विरोधी है। इस िगथ र्ेद की समावप्त के वलए सर्ी िगाथ
के बच्चों एिं यिु कों को विक्षा प्राप्त करने के समान अिसर एिं सवु िधाएं प्राप्त कराना
आिश्यक है।
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4. समाज के उन्नयन के वलए - लोकतत्रं सामावजक िगथर्दे का विरोधी है, िह परू े राष्ट्र को एक
समाज मानता है और उसे सभ्य एिं ससु ंस्कृ त समाज के रूप में विकवसत करने में विश्वास करता
है और यह तब तक संर्ि नहीं है जब तक देि के प्रत्येक नागररक को विवक्षत नहीं वकया
जाता। इसके वलए हमारे देि में िैवक्षक अिसरों की समानता की बहुत आिश्यकता है।
5. राष्ट्र के आवर्थक विकास के वलए - वकसी राष्ट्र का आवर्थक विकास दो तत्िों पर वनर्थर करता
है-प्राकृ वतक ससं ाधन और मानि ससं ाधन। जहां तक प्राकृ वतक ससं ाधनों की बात है यह तो
प्रकृ वत की देन है, परन्तु मानि संसाधन का विकास विक्षा द्वारा होता है। और वजस राष्ट्र में
वजतनी अवधक और उत्तम प्रकार की विक्षा की व्यिस्र्ा होती है, िह राष्ट्र उतनी ही तेजी से
आवर्थक विकास करता है। अतः आिश्यक है वक हम वजन तक विक्षा नहीं पहुचं ा पा रहे हैं, उन
तक विक्षा पहुचं ाए,ं उनके मागथ की कवठनाईयों को दरू करें। यही िैवक्षक अिसरों की समानता
का अर्थ है।
स्िमलू याक
ं न हेतु प्रश्न
5. सरकारी नौकररयां सर्ी के वलए खल ु ी होंगी तर्ा अनसु वू चत जावत ि जनजावत के वलए
वििेष सवु िधायें सरु वक्षत स्र्ानों के रूप में होंगी -
(अ) अनच्ु छे द 15 (ब) अनच्ु छे द 16
(स) अनच्ु छे द 28 (द) अनच्ु छे द 29
6. धमथ, मल ू , िंि, जावत, वलंग ि जन्म स्र्ान के आधार पर कोई र्ेदर्ाि वकसी र्ी र्ारतीय
नागररक के सार् नहीं बरता जाएगा -
(अ) अनच्ु छे द 15 (ब) अनच्ु छे द 16
(स) अनच्ु छे द 28 (द) अनच्ु छे द 29
7. राज्य द्वारा पोवषत अर्िा राज्य वनवध से सहायता पाने िाली वकसी सस्ं र्ा में प्रिेि कर
वकसी र्ी तरह से प्रवतबधं वनषेध -
(अ) अनच्ु छे द 16 (ब) अनच्ु छे द 17
(स) अनच्ु छे द 29 (द) अनच्ु छे द 46
8. अनसु वू चत जावतयों के वलए प्रिासन संबंधी वििेष व्यिस्र्ा की गई है -
(अ) अनच्ु छे द 46 (ब) अनच्ु छे द 244
(स) अनच्ु छे द 15 (द) अनच्ु छे द 17
9. लोकतंत्र को सफल बनाने तर्ा उसकी सरु क्षा के वलए सर्ी नागररकों का विवक्षत होना
आिश्यक है -
(अ) अनच्ु छे द 44 (ब) अनच्ु छे द 42
(स) अनच्ु छे द 43 (द) अनच्ु छे द 45
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11.5 र्ारत में र्गुणवत्ता व सांख्यात्मक सम्बन्धी िैशक्षक पहलू व
समताकेउपाय Quality, Quantity and Equity related aspects of
Education in India
िैवक्षक अिसरों की समानता के दो मख्ु य पहलू हैं- पहला यह वक देि के सर्ी िगों और यिु कों को
वबना वकसी र्ेदर्ाि के , वकसी र्ी स्तर की, वकसी र्ी विक्षा से सल
ु र् कराना और दसू रा यह वक
वकसी र्ी िगथ के बच्चों अर्िा यिु कों के वकसी र्ी स्तर की, वकसी र्ी प्रकार की विक्षा प्राप्त करने
में आने िाली बाधाओ ं का वनिारण करना। हम यह र्ी देख रहे है वक वजस तेजी के सार् विधालय
ि कालेजो की संख्यामें बढोतरी हो रही है उतनी तेजी के सार् विक्षामें गणु ात्मक ब्रवि नही हो रही।
इसका कारण यह है विक्षको द्वारा िोध कायथ ि पठ्न-पाठन पर गवम्र्रता पिू क थ ध्यान नही वदया जा
रहा है जब तक विक्षक ि छात्र िोध कायथ तर्ा आज की तकनीवक के प्रवत जागरुक नही होगे तब
तक विक्षामें गणु ात्तमकता की बात करना नाइसं ाफी होगी।
कोठारी आयोग ( 1964-66) के सुझाि
i. कक्षा 1 से कक्षा 8 तक की विक्षा अवनिायथ एिं वनःिलु क की जाए और इस लक्ष्य को दो
पचं िषीय योजनाओ ं में प्राप्त वकया जाए।
ii. प्रार्वमक स्तर पर छात्रों को पाठ्यपस्ु तकें , लेखन सामग्री और माध्यान्ह र्ोजन वनःिलु क
वदया जाए।
iii. वपछड़े िगथ, अलपसंख्यक िगथ, अनसु वू चत जावत और अनसु वू चत जनजावतयों के बच्चों क
विक्षा के वलए वििेष व्यिस्र्ा की जाए और कबीलों के बच्चों के वलए आिासीय आश्रम
स्कूल खोले जाए।ं
iv. मदं बवु ि और विकलांग बालकों के वलए अलग से स्कूल खोले जाए,ं इनमें वििेष
प्रविक्षण प्राप्त विक्षकों की वनयवु क्त की जाए।
v. माध्यवमक एिं उच्च विक्षा के वनधथन छात्रों को िलु क मक्त
ु वकया जाए।?
राष्ट्रीय शिक्षा नीशत 1968 के प्रस्ताि
के न्र सरकार ने कोठारी आयोग के उपयथक्त
ु सझु ािों के आधार पर राष्ट्रीय विक्षा नीवत 1968 में
वनम्नवलवखत घोषणाएं कीं-
i. ग्रामीण एिं वपछड़े क्षेत्रों में और अवधक स्कूल-कॉलेज खोले जाएंगे और इन क्षेत्रों के
बच्चों और यिु कों को सर्ी स्तरों की विक्षा सलु र् कराई जाएगी।
ii. देि में सामान्य विद्यालय प्रणाली (Common School System)लागू की जाएगी, अर्ाथत् एक क्षेत्र में
रहने िाले सर्ी िगो के बच्चे एक प्रकार के स्कूल में पढ़ेंगे, एक सार् पढ़ेंग।े
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iii. वपछड़े िगथ, अलपसख्ं यक िगथ, अनसु वू चत जावत, अनसु वू चत जनजावत और कबीलों के
बच्चों की विक्षा की वििेष व्यिस्र्ा की जाएगी और इनको आिश्यक आवर्थक सहायता
दी जाएगी।
iv. मन्दबवु ि और विकलांग बच्चों के वलए अलग से विद्यालय खोले जाऐगं े।
v. पवब्लक स्कूलों में वनम्न एिं वनधथन िगथ के बच्चों के वलए स्र्ान आरवक्षत वकए जाएाँ गे
और उनके वलए वनःिलु क विक्षा की व्यिस्र्ा की जाएगी।
राष्ट्रीय शिक्षा नीशत 1986 के प्रस्ताि
i. एक वनवश्चत कायथ योजना के अतं गथत सिथप्रर्म कक्षा 1 से कक्षा 5 तक की विक्षा अवनिायथ
एिं वनःिलु क की जाएगी और उसके बाद कक्षा 6 से 8 तक की विक्षा अवनिायथ एिं
वनःिलु क की जाएगी और यह लक्ष्य 1995 तक प्राप्त कर वलया जाएगा।
ii. वपछड़े िगथ, अलपसख्ं यक िगथ, अनसंु वू चत जावत, अनसु वू चत जनजावत और कबीलों आवद
उपेवक्षत िगथ के बच्चों की विक्षा की वििेष व्यिस्र्ा की जाएगी।
iii. उपेवक्षत िगथ के बच्चों को आवर्थक सहायता दी जाएगी, इनके वलए वििेष छात्रिृवत्तयों की
व्यिस्र्ा की जाएगी।
iv. मन्द बवु ि और विकलांग बालकों के वलए अलग से स्कूल खोले जाएाँ गे।
v. माध्यवमक स्तर पर गवत वनधाथरक विद्यालय (Pace Making Schools)खोले जाएगं ,े इनमें
उपेवक्षत क्षेत्रों (ग्रामीण) और उपेवक्षत िगथ (अनसु वू चत जावत एिं अनसु वू चत जनजावत) के
मेधािी छात्रों के वलए आिासीय वनःिलु क विक्षा की व्यिस्र्ा की जाएगी।
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iv. प्रत्येक व्यवक्त को विक्षा ग्रहण करने का अवधकार प्राप्त है। इसवलए प्रारवम्र्क विक्षा
अवनिायथ रूप से िलु क-मक्त ु होनी आिश्यक है।
सांस्कृ वतक अवधकार - मानिीय अवधकारों की घोषणा में वनम्नवलवखत सांस्कृ वतक अवधकारों का
समािेि वकया गया है-
i. प्रत्येक व्यवक्त अपने सामदु ावयक वक्रया-कलापों में सहर्ावगता हेतु स्ितंत्र है। अन्य िब्दोंमें
प्रत्येक व्यवक्त अपने कला-कौिलों के माध्यम से आनन्द की अनर्ु वू त कर सकता है तर्ा
िैज्ञावनक उन्नवत में सक्षम योगदान दे सकता है।
ii. प्रत्येक राष्ट्र के व्यवक्त को अपनी सांस्कृ वत धरोहर के संरक्षण, सम्प्रेषण तर्ा सरु क्षा का
अवधकार है, चाहे यह िैज्ञावनक, िस्तगु त या सावहवत्यक हो।
11.7 साराांि
1. यह सत्य है वक स्ितत्रं ता के पश्चात् िैवक्षक सवु िधाओ ं के प्रसार के पफलस्िरूप समाज के सर्ी
िगथ लार्ावन्ित हुए हैं, लेवकन अब र्ी िगीय विषमता विद्यमान है। अतः नयी विक्षा-नीवत
‘लार् उठाने से अब तक िवं चत िगथ’ को उनकी आिश्यकताओ ं के अनरू ु प िैवक्षक अिसरों
की समानता उपलब्ध कराकर विषमताओ ं के उन्मल ू न को कम वकया जा सकता है।
2. परू
ु षों के समान मवहलाओ ं को र्ी विक्षा की आिश्यकता है तर्ा इसे अवजथत करने का उन्हें
अवधकार है। अतः मवहलाओ ं की वस्र्वत में मल ू र्तू पररितथन लाने के उद्देश्य से विक्षा के
अवर्करण का उपयोग वकया जाना चावहए। वचरकाल से चली आ रही इस विसंगवत के समच्ु च्य
को वनष्ट्प्रर्ािी बनाने हेतु मवहलाओ ं के पक्ष में एक सवु नयोवजत कायथक्रम विचारणीय है।
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3. अनसु वू चत जावत का एक वििाल समदु ाय सामावजक, आवर्थक और िैवक्षक वपछड़ेपन से ग्रस्त
है। यद्यवप विगत की अपेक्षा उनके िैवक्षक स्तर में सधु ार आया है वफर र्ी 1981 की जनगणना
के अनसु ार अन्य िगाथ की अपेक्षा उनकी यह उपलवब्ध आधी है
4. अनसु वू चत जावत के िैवक्षक विकास में प्रमख ु विचारणीय बात यह है वक उन्हें सर्ी आयामों में
तर्ा विक्षा के सर्ी क्षेत्रों और स्तरों के समान सवु िधाएं उपलब्ध कराई जाएाँ । यह कम से कम
समय में के िल के न्र और राज्य स्तर पर सतत् सचं ारेक्षण तर्ा प्रर्ािी रणनीवत के माध्यम से ही
संर्ि हो सकता है।
5. विद्यालय र्िन तर्ा प्रौढ़ विक्षा के न्र ऐसे स्र्ान पर स्र्ावपत हों, जहां ऐसे छात्रों के वलए आ
सकने की सवु िधा हो।
11.8 िब्दावली
1. जनतत्रं - जनतत्रं स्ितत्रं ता, समानता और िावन्त के तरीकों में विश्वास करता है। यि ु और
राजनैवतक अर्िा अन्य प्रकार के तनािों के मध्य समाज की प्रगवत नहीं हो सकती ।
2. स्तर में अतं र- विवर्न्न स्कूलों से आये बच्चों की िैवक्षक उपलवब्ध में अतं र होता है सबके
मापदण्ड में अतं र होता है।
3. सामावजक स्तरीकरण Social Stratifications - समाज के व्यवक्त जब अपने स्तर से उपर
या वनचे की ओर उन्मख ु होते है तो इसे हम सामावजक स्तरीकरण कहते है।
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11.10 सन्दर्थ ग्रन्र् सूची
1. पाण्डे (डॉ) रामिकल, उदीयमान र्ारतीय समाज में विक्षक, अग्रिाल प्रकािन, आगरा।
2. सक्सेना (डॉ) सरोज, विक्षा के दािथवनक ि सामावजक आधार, सावहत्य प्रकािन, आगरा।
3. वमत्तल एम.एल,(2008) उदीयमान र्ारतीय समाज में विक्षक, इण्िरनेिनल पवब्लविग
हाउस, मेरठ।
4. िमाथ रामनार् ि िमाथ राजेन्र कुमार (2006) िैवक्षक समाजिास्त्र, एिलांविक पवब्लिथस
एण्ड वडस्रीब्यिू सथ।
5. सलैक्स (डॉ) िीलू मैरी (2008) िैवक्षक के सामावजक एिं दािथवनक पररप्रेक्षय, रजत
प्रकािन, नईवदलली।
6. िमाथ, रामनार् ि िमाथ राजेन्रकुमार (2006) एिलावं िक पवब्लिथस एण्ड वडस्रीब्यिू सथ, नई
वदलली।
7. गप्तु , रामबाबू (1996) र्ारतीय विक्षा िास्त्री, आगरा, रतन प्रकािन, मवं दर।
8. वसहं (डॉ.), िीरके श्र प्रसाद (1999) प्रवतवनवध, राजनीवतक विचारक, वदलली, निप्रर्ात
वप्रंविंग प्रेस।
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इकाई 12- शिक्षा संबंधी संवैधाशनक प्रावधान
Constitutional Provisions with Regard to Education
12.1 प्रस्तािना
12.2 उद्देश्य
12.3 र्ारत का संविधान- उद्देविका
12.3.1 मल ू अवधकार
12.3.2 मल ू कतथव्य
12.4 विवर्न्न स्तरों पर राजकीय िैवक्षक कायथ
12.5 र्ारत के संविधान में विक्षा संबंधी अनुच्छे द- प्रािधान
12.6 विक्षा का अवधकार अवधवनयम 2009
12.7 साराि ं
12.8 िब्दािली
12.9 स्िमूलयांकन हेतु प्रश्नोंके उत्तर
12.10 संदर्थ ग्रर्ं सचू ी
12.11 वनबंधात्मक प्रश्न
12.1 प्रस्तावना
आधवु नक यगु में मनष्ट्ु य के वलए विक्षा आिश्यक हो गई है। इसका कारण यह है वक आज का यगु
र्ौवतक एिं विज्ञान का यगु है। इसवलए मनष्ट्ु य का सचेत और जागरूक होकर जीवित रहना
आिश्यक हो गया है। एक समय र्ा जब विक्षा सबके वलए नहीं र्ी। विक्षा के िल कुछ धनी लोगों
के वलए र्ी तर्ा इसका उद्देश्य के िल व्यवक्त का बौविक विकास र्ा। परन्तु आधवु नक यगु में विक्षा
जनसाधारण व्यवक्त के वलए र्ी उतनी ही आिश्यक है वजतनी िगथ वििेष के वलए हुआ करती र्ी।
इस वस्र्वत का मख्ु य कारण प्रजातन्त्र का विकास तर्ा प्रसार है।
15 अगस्त 1947 ई0 को हमारा देि स्ितन्त्र हुआ। र्ारतीय संविधान जो 26 जनिरी, 1950 को
लागू हुआ उसमें विक्षा के प्रवत पणू थ रूप से सिं ैधावनक दावयत्ि की चचाथ की गई। र्ारत का सवं िधान
सिथप्रर्म हमें विक्षा की विवर्न्न समस्याओ ं को समझाने में सहायता प्रदान करता है। विक्षा जगत् से
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सम्बवन्धत सवं िधान में जो व्यिस्र्ाएाँ हमारी राजनैवतक, आवर्थक, सामावजक और सास्ं कृ वतक जीिन
से जड़ु ी हुई हैं, उनका समझना बहुत आिश्यक है।
इस इकाई में आप विक्षा से सम्बवं धत विवर्न्न प्रािधानों का अध्ययन करेंगे।
12.2 उद्देश्य
इस इकाई के अध्ययन के पश्चात आप:
1. र्ारत के नागररकों के मलू अवधकार जान पायेंगे।
2. र्ारत के नागररकों के मल ू कतथव्यों से पररवचत हो पायेंगे ।
3. विवर्न्न स्तरों पर राजकीय िैवक्षक कायथ की व्याख्या कर सकें गे।
4. र्ारत के संविधान में िवणथत विवर्न्न विक्षा संबंधी प्रािधानों को वलख पायेंग।े
5. विक्षा का अवधकार अवधवनयम 2009 का िणथनकर सकें गे।
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िषथ 2002 में 86िें सवं िधान सि
ं ोधन द्वारा 6-14 िषथ तक के बालकों के वलए विक्षा को मल
ू
अवधकार बनाया गया।
12.3.2 मूल कतथव्य
संविधान के 42िें सि
ं ोधन अवधवनयम , 1976 द्वारा सवं िधान 10 मौवलक कत्तथव्यों को समाविष्ट
कर वदया गया है। िषथ 2002 में 86िें संविधान संिोधन द्वारा संविधान के अनच्ु छे द 51- क से एक
अन्य मौवलककतथव्य समावहत वकया गया। र्ारत के प्रत्येक नागररक के 11 मौवलक कत्तथव्य वनम्नित
है-
1. संविधान का पालन करे और उसके आदिों, संस्र्ाओ,ं राष्ट्र ध्िज और राष्ट्र गान का
आदर करे,
2. स्ितत्रं ता के वलए हमारे राष्ट्रीय आदं ोलन को प्रेररत करने िाले उच्च आदिों को हृदय में
संजोए रखे और उनका पालन करे,
3. र्ारत की प्रर्सु त्त, एकता और अखण्डता की रक्षा करे और उसे अक्षण्ु ण रखे,
4. देि की रक्षा करें और आह्वान वकए जानेपर राष्ट्रकी सेिा करें ,
5. र्ारत के सर्ी लोगों में समरसता और समान भ्रातृत्ि की र्ािना का वनमाथण करे जो धमथ,
र्ाषा और प्रदेि या िगथ पर आधाररत सर्ी र्ेदर्ाि से परे हो, ऐसी प्रर्ाओ ं का त्याग करे
जो वस्त्रयों के सम्मान के विरुि है,
6. हमारी सामावजक संस्कृ वत की गौरििाली परंपरा का महत्ि समझे और उसका परररक्षण
करें ,
7. प्राकृ वतक पयाथिरण की,वजसके अतं थगत िन, झील, नदी और िन्य जीि है, रक्षा करे और
उसका सिं धथन करें तर्ा प्रावण मात्र के प्रवत दयार्ाि रखें ,
8. िैज्ञावनक दृवष्टकोण, मानििादी और ज्ञानाजथन तर्ा सधु ार की र्ािना का विकास करें ,
9. सािथजवनक सम्पवत्त को सरु वक्षत रखे और वहसं ा से दरू रहें ।
10. व्यवक्तगत और सामवू हक गवतविवधयों के सर्ी क्षेत्रों में उत्कषथ की ओर बढ़ने का सतत
प्रयास करे वजससे राष्ट्र वनरंतर बढ़ते हुए प्रयत्न और उपलवब्ध की नई ऊंचाइयों को छू ले।
11. माता-वपता या अवर्र्ािक के रूप में र्ारत के प्रत्येक नागररक का यह कतथव्य होगा वक
िह 6 से 14 िषथ के बच्चे या पालय को विक्षा प्राप्त करने के अिसर उपलब्ध कराएगा।
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3. िषथ 2002 में ____________ द्वारा 6-14 िषथ तक के बालकों के वलए विक्षा को
मलू अवधकार बनाया गया।
4. संविधान के 42िें सि ं ोधन अवधवनयम , 1976 द्वारा सवं िधान
10____________ को समाविष्ट कर वदया गया है।
5. र्ारत के प्रत्येक नागररक के ____________ मौवलक कत्तथव्य है
i. 10
ii. 11
iii. 12
iv. 13
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क. िृवत्तक , व्यिसावयक या तकनीकी प्रविक्षण के वलए है वजसके अतं गथत पवु लस
अवधकाररयों का प्रविक्षण है; या
ख. वििेष अध्ययन या अनसु ंधान की अवर्िृवि के वलए है; या
ग. अपराध के अिं ेषण या पता चलाने में िैज्ञावनक या तकनीकी सहायता के वलए है।
66 उच्चतर विक्षा या अनसु धं ान सस्ं र्ाओ ं में तर्ा िैज्ञावनक और तकनीकी सस्ं र्ाओ ं में
मानकों का समन्िय और अिधारणा ।
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अनुच्छे द 29-अलपसंख्यक- िगों के शहतों का संरक्षण-
(1) र्ारत के राज्यक्षेत्र या उसके वकसी र्ाग के वनिासी नागररकों के वकसी अनर्ु ाग को, वजसकी
अपनी वििेष र्ाषा, वलपी या संस्कृ वत है, उसे बनाए रखने का अवधकार होगा।
(2)राज्य द्वारा पोवषत या राज्य-वनवध से सहायता पाने िाली वकसी विक्षा संस्र्ा में प्रिेि से वकसी
र्ी नागररक ओको के िल धमथ, मल ू िंि, जावत, र्ाषा या इन्में से वकसी के आधार पर िंवचत नहीं
वकया जाएग।
अनुच्छे द 30- शिक्षा सस्ं र्ाओ ं की स्र्ापना करने का अलपसंख्यक- िगों का अशधकार –
(1) धमथ या र्ाषा पर आधाररत सर्ी अलपसख्ं यक-िगों को अपनी रुवच की विक्षा सस्ं र्ाओ ं की
स्र्ापना और प्रिासन का अवधकार होगा।
(2) विक्षा संस्र्ाओ ं को सहायता देने में राज्य वकसी विक्षा संस्र्ाके विरुि इस आधार पर विर्ेद
नहीं करेगा वक िह धमथ या र्ाषा पर आधाररत वकसी अलपसख्ं यक- िगथ के प्रबंध में है।
अनच्ु छे द 41– कुछ दिाओ ं में काम , शिक्षा और लोक सहायता पाने का अशधकार- राज्य
अपनी आवर्थक सामथ्यथ और विकास की सीमाओ ं के र्ीतर ,काम पाने के , विक्षा पाने के और
बेकारी, बढ़ु ापा, बीमारी और वनःिक्तता तर्ा अन्य अनहथ अर्ाि की दिाओ ं में लोक सहायता पाने
के अवधकारकोप्राप्त कराने का प्रर्ािी उपबधं करेगा।
अनच्ु छे द 46- अनुसूशित जाशतयों , अनुसूशित जनजाशतयों और अन्य दुलथब िगों के शिक्षा
और अर्थ सबध ं ी शहतों की अशभिृशद्ध – राज्य , जनता के दबु थल िगों के , विविष्टतया,
अनसु वू चत जावतयों और जनजावतयोंके विक्षा और अर्थ संबंधी वहतों की वििेष सािधानी से
अवर्िृवि करेगा और सामावजक अन्याय और सर्ी प्रकार के िोषण से उनकी सरु क्षा करेगा ।
अनच्ु छे द 15 (3) स्त्री शिक्षा का शिशिि प्रािधान – इस अनच्ु छे द की कोई बात राज्य को वस्त्रयों
और बालकों के वलए कोई वििेष उपबंध करने से वनिाररत नहीं करेगी।
अनच्ु छे द 15 (4)- इस अनच्ु छे द या अनच्ु छे द 29 के खडं (2) की कोई बात राज्य को सामावजक
और िैवक्षक दृवष्ट से वपछड़े हुए नागररकों के वकन्हीं िगों की उन्नवतके वलए या अनसु वू चत जावतयों
और अनसु वू चत जनजावतयों के वलए कोई वििेष उपबंध करने से वनिाररत नहीं करेगी।
अनच्ु छे द 350 व्यर्ा के शनिारण के शलए अभ्यािेदन में प्रयोग की जाने िली भाषा- प्रत्येक
व्यवक्त वकसी व्यर्ा के वनिारण के वलए सघं या राज्य के वकसी अवधकारी या प्रावधकारी को,
यर्ावस्र्वत , सघं में या राज्य में प्रयोग होने िाली वकसी र्ाषा में अभ्यािेदन देने का हकदार होगा।
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अनुच्छे द 350 क. प्रार्शमक स्तर पर मातृभाषा में शिक्षा की सुशिधाए-ं प्रत्येक राज्य के र्ीतर
प्रत्येक प्रावधकारी र्ाषाई अलपसख्ं यक- िगों के बालकों को विक्षा के प्रार्वमक स्तर पर मातृर्ाषा
में विक्षा की पयाथप्त सवु िधाओ ं की व्यिस्र्ा करने का प्रयास करेगाऔर राष्ट्रपवत वकसी राज्य को
ऐसे वनदेि दे सके गा जो िह ऐसी सवु िधाओ ं का उपबंध सवु नवश्चत कराने के वलए आिश्यक या
उवचत समझता है।
अनच्ु छे द 350 ख. भाषाई अलपसख् ं यक-िगोंके शलए शििेष अशधकारी-(1) र्ाषाई
अलपसख्ं यक- िगों के वलए एक वििेष अवधकारी होगावजसे राष्ट्रपवत वनयक्त
ु करेगा।
(2) वििेष अवधकारी का यह कतथव्य होगा वक िह इस सवं िधान के अधीन र्ाषाई अलपसख्ं यक –
िगों के वलए उपबवं धत रक्षापायों से सम्बंवधत सर्ी विषयों का अिं ेषण करे और उन विषयों के
सम्बध में ऐसे अतं रालों पर जो राष्ट्रपवत वनवदथष्ट करे, राष्ट्रपवत को प्रवतिेदन दे और राष्ट्रपवत ऐसे
सर्ी प्रवतिेदनों को ससं द के प्रत्येक सदन के समक्ष रखिाएगाऔर सम्बवं धत राज्यों की सरकारों को
वर्जिाएगा।
अनुच्छे द 343- संघ की राजभाषा – संघ की राजर्ाषा वहदं ी और वलवप देिनागरी होगी।
अनच्ु छे द 351 शहदं ी भाषा के शिकास के शलए शनदेि- संघ का यह कतथव्य होगावक िह वहदं ी
र्ाषा का प्रसार बढ़ाए ,उसका विकास करे वजससे िह र्ारत की सामावजक संस्कृ वत के सर्ी तत्िों
की अवर्व्यवक्त का माध्यम बन सके और उसकी प्रकृ वत में हस्तक्षेप वकए वबना वहदं स्ु तानी में और
आठिीं अनसु चू ी में विवनवदथष्ट र्ारत की अन्य र्ाषाओ ं में प्रयक्त
ु रूप , िैली और पदों को आत्मसात
करते हुए और जहााँ आिश्यक या िाछंनीय हो िहााँ उसके िब्द – र्ंडार के वलए मख्ु ्त:संस्कृ त
और गौणत: अन्य र्ाषाओ ं से िब्द ग्रहण करते हुए उसकी समृवि सवु नवश्चत करे ।
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4 अगस्त 2009 को लोकसर्ा द्वारा र्ी इसे पाररत कर वदया गया।
3 वसतम्बर 2009 को राष्ट्रपवत की स्िीकृ वत के पश्चातयह अवधवनयम बन गया।
1 अप्रेल 2010 को यह अवधवनयम जम्मू ि कश्मीर राज्य को छोड़कर सम्पणू थ र्ारत में
लागू हो गया।
“ विक्षा का अवधकार अवधवनयम 2009 र्ारत में लागू होने के पश्चात र्ारत विश्वके उन 135 देिों
में सवम्मवलत हो गया है वजनमें विक्षा के अवधकार को मल ू अवधकार के रूप में मान्यता दी गई है।
िास्ति में, विक्षा जो एक संिधै ावनक अवधकार िरू ु में र्ा अब उसे एक मौवलक अवधकार का दजाथ
प्राप्त है. र्ारत के सवं िधान की िरुु आत में, विक्षा का अवधकार अनच्ु छे द 41 के तहत राज्य के नीवत
वनदेिक वसिांतों के तहत मान्यता दी गई र्ी वजसके अनसु ार,
"राज्य अपनी आशर्थक क्षमता और शिकास की सीमाओ ं के भीतर, शिक्षा और बेरोजगारी,
िृद्धािस्र्ा, बीमारी और शिकलांगता के मामले में सािथजशनक सहायता करने के शलए काम
करते है, सही हाशसल करने के शलए प्रभािी व्यिस्र्ा करने, और नाहक के अन्य मामलों में
िाहते है "
वन:िलु क और अवनिायथ विक्षा का आश्वासन राज्य के नीवत वनदेिक अनच्ु छेद 45, के अनसु ार
वनम्नित वदया गया है-
"राज्य, इस सशं िधान के प्रारम्भ सेदस िषथ की अिशध के भीतर सभी बालकों को िौदह
िषथ की आयु परू ी करने तक शन:िलु कऔर अशनिायथ शिक्षा देने के शलए उपबध ं करने का
प्रयास करेगा”
विक्षा का अवधकार अब 6 से 14 िषथ तक के सर्ी बच्चों के वलए एक मौवलक अवधकार है । सरल
िब्दों में इसका अर्थ यह है वक सरकार प्रत्येक बच्चे को आठिीं कक्षा तक की वन:िलु क पढ़ाई के
वलए उत्तरदायी होगी, चाहे िह बालक हो अर्िा बावलका अर्िा वकसी र्ी िगथ का हो । इस प्रकार
इस काननू ने देि के बच्चों को मजबतू , साक्षर और अवधकार संपन्न बनाने का मागथ तैयार कर वदया
है ।
इस अवधवनयम में सर्ी बच्चों को गणु ित्तापणू थ और अवनिायथ विक्षा प्रदान करनेका प्रािधान है,
वजससे ज्ञान, कौिल और मलू यों से यक्त ु होकर िे र्ारत के प्रबि ु नागररक बनाये जा सके । यवद
विचार वकया जाए तो आज देिर्र में स्कूलों से िवं चत लगर्ग एक करोड़ बच्चों को विक्षा प्रदान
करना सचमचु हमारे वलए एक दष्ट्ु कर कायथ है । इसवलए इस लक्ष्य को साकार करने के वलए सर्ी
वहतधारकों — माता-वपता, विक्षक, स्कूलों, गैर-सरकारी संगठनों और कुल वमलाकर समाज, राज्य
सरकारों और के न्र सरकार की ओर से एकजिु प्रयास का आह्वान वकया गया है ।
इस अवधवनयम में इस बात का प्रािधान वकया गया है वक बालक की पहुचं के अन्तगथत आने िाला
कोई वनकििती स्कूल वकसी र्ी बच्चे को प्रिेि देने से इनकार नहीं करेगा । इसमें यह र्ी प्रािधान
िावमल है वक प्रत्येक 30 छात्र के वलए एक विक्षक के अनपु ात को कायम रखते हुए पयाथप्त संख्या में
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सयु ोग्य विक्षक स्कूलों में मौजदू होने चावहए । स्कूलों को पाच
ं िषों के र्ीतर अपने सर्ी विक्षकों
को प्रविवक्षत करना होगा । उन्हें तीन िषों के र्ीतर समवु चत सवु िधाएं र्ी सवु नवश्चत करनी होगी,
वजसमें खेल का मैदान, पस्ु तकालय, पयाथप्त संख्या में अध्ययन कक्ष, िौचालय, िारीररक विकलांग
बच्चों के वलए वनबाथध पहुचं तर्ा पेय जल सवु िधाएं िावमल है । विद्यालय प्रबधं न सवमवतयों के 75
प्रवतित सदस्य छात्रों की कायथप्रणाली और अनदु ानों के इस्तेमाल की देखरेख करेंगे । विद्यालय
प्रबधं न सवमवतयााँ तर्ा स्र्ानीय अवधकारी स्कूल से िवं चत बच्चों की पहचान करेंगे और उन्हें
समवु चत प्रविक्षण के बाद उनकी उम्र के अनसु ार समवु चत कक्षाओ ं में प्रिेि वदलाएंगे । सवम्मवलत
विकास को बढ़ािा देने के उद्देश्य से वनजी स्कूल र्ी सबसे वनचली कक्षा में समाज के गरीब और
हाविये पर रहने िाले िगों के वलए 25 प्रवतित सीिें आरवक्षत करेंगे ।
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12.7 साराांि
संविधान के अनच्ु छे द 12 से 32 में नागररकों के मल
ू अवधकारों का उललेख है। ितथमान में र्ारत के
नागररकों के छः मल ू अवधकार है।िषथ 2002 में 86िें संविधान संिोधन द्वारा 6-14 िषथ तक के
बालकों के वलए विक्षा को मल ू अवधकार बनाया गया। सवं िधान के 42िें संिोधन अवधवनयम ,
1976 द्वारा सवं िधान 10 मौवलक कत्तथव्यों को समाविष्ट कर वदया गया है। िषथ 2002 में 86िें
संविधान संिोधन द्वारा सवं िधान के अनच्ु छेद 51- क से एक अन्य मौवलक कतथव्य समावहत वकया
गया।सवं िधान के अनच्ु छेद 246 के अतं थगत सचू ी 1 – संघ सचू ी तर्ा सचू ी 3- समिती सचू ी में
सवम्मवलत विक्षा विषयक तथ्य है । सवं िधान के अन्तगथत सरकार के विवर्न्न स्तरों पर विक्षा से
सम्बवन्धत कतथव्यों तर्ा दावयत्िों का उललेख है।विक्षासे सम्बंवधत संिधै ावनक प्रािधान
वनम्नवलवखत है-
1. र्ारत के संविधान के अनच्ु छेद 15(3) तर्ा 15(4) में िवणथत उपबंध से सामावजक और
िैवक्षक दृवष्ट से वपछ्ड़े नागररकों, वस्त्रयों और बावलकाओ ं के वलए आरक्षण का प्रािधान।
2. संविधान के अनच्ु छे द 29 तर्ा 30 के आधार पर अलपसंख्यक िगथ के संस्कृ वत और विक्षा
सबं धं ी अवधकारों का प्रािधान।
3. संविधान के अनच्ु छे द 41 में िवणथत राज्य की नीवत के वनदेिक तत्ि के अनसु ार कुछ
दिाओ ं में काम, विक्षा और लोक सहायता पाने के अवधकार।
4. सवं िधान के अनच्ु छे द 45 में में िवणथत राज्य की नीवत के वनदेिक तत्ि के अनसु ार बालकों
के वलए वनःिलु क और अवनिायथ विक्षाकाउपबंध।
5. अनसु वू चत जावतयों, अनसु वू चत जनजावतयों और अन्य दबु थल िगों के विक्षाऔरअर्थ संबधं ी
वहतोंकी अवर्िृवि हेतु राज्यों के कतथव्य के संदर्थ में संविधान के अनच्ु छे द 46।
6. िषथ 2002 में संविधान के 86िें संिोधन द्वारा माता-वपता अर्िा अवर्र्ािकों के बच्चों
अर्िा पालयों को विक्षा प्राप्त कराने सबं धं ी मल ू अवधकार।
7. संविधान के अनच्ु छेद 246 के अतं थगत सचू ी 1 – संघ सचू ी तर्ा सचू ी 3- समिती सचू ी में
सवम्मवलत विक्षा विषयक तथ्य।
8. संविधान के अनच्ु छे दों 350, 350 क, 350 ख तर्ा 351 के अतं थगत िवणथत वििेष वनदेि।
9. बालक- बावलकाओ ं के वनः िलु क एिं अवनिायथ विक्षा प्राप्त करनेकाविक्षा काअवधकार
अवधवनयम 2009। विक्षा का अवधकार अब 6-14 िषथ तक के बच्चों के वलए एक
मौवलक अवधकार है । सरल िब्दों में इसका अर्थ यह है वक सरकार प्रत्येक बच्चे को
आठिीं कक्षा तक की वनःिलु कपढ़ाई के वलए उत्तरदायी होगी, चाहे िह बालक हो अर्िा
बावलका अर्िा वकसी र्ी िगथ का हो । इस प्रकार इस काननू ने देि के बच्चों को मजबतू ,
साक्षर और अवधकार सपं न्न बनाने का मागथ तैयार कर वदया है ।
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12.8 िब्दावली
1. भारत का संशिधान- उद्देशिका:-
हम र्ारत के लोग, र्ारत को एक सपं णू थ प्रर्त्ु ि- सपं न्न समाजिादी पंर्वनरपेक्ष
लोकतत्रं ात्मक गणराज्य बनाने के वलए तर्ा समस्त नागररकों कोसामावजक, आवर्थक और
राजनैवतक न्याय विचार, अवर्व्यवक्त,विश्वास,धमथ और उपासना की स्ितंत्रता,प्रवतष्ठा और
अिसर की समता प्राप्त कराने के वलए, तर्ा उन सब में व्यवक्त की गररमा और राष्ट्र की
एकता और अखडं ता सवु नवश्चत करने िाली बंधतु ा बढाने के वलए दृढसंकलप होकर अपनी
इस सवं िधान सर्ा में आज तारीख 26 निंबर , 1949 ई0 को एतद् द्वारा इस सवं िधान को
अगं ीकृ त, अवधवनयवमत और आत्मावपथत करते है।
2. समिती सूिी (Concurrent list)
सन् 1976 में 42 िें सिं ैधावनक संिोधन से विक्षा को समिती सचू ी में सवम्मवलत वकया
गया।
र्ारत के संविधान के अनच्ु छेद 246 की समिती सचू ी में प्रविवष्टयााँ वनम्नित हैं-
25 सचू ी1 की प्रविवष्ट 63, 64, 64 और 66 के उपबधं ों के अधीन रहते हुए, विक्षा वजसके
अतं गथत तकनीकीविक्षा , आयवु िथज्ञान विक्षा और विश्वविद्यालय है; श्रवमकों का
व्यािसावयक और तकनीकी प्रविक्षण।
12.11शनबांधात्मक प्रश्न
1. र्ारतके संविधान में िवणथत मल
ू अवधकारों एिं मल ू कतथव्यों को वलवखए।
2. र्ारत के संविधान में िवणथतविक्षा संबंधी अनच्ु छे दों की व्याख्या कीवजए।
3. विक्षा का अवधकार अवधवनयम 2009 का िणथन कीवजए ।
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इकाई -13 िाष्ट्रीय शिक्षा आयोग 1964-66 (कोठािी
कमीिन)
National Education Commission (1964-66)
13.1 प्रस्तािना
13.2 उद्देश्य
13.3 आयोग के सदस्य
13.3.1 आयोग की वनयुवक्त के कारण ि प्रयोजन
13.3.2 आयोग का प्रवतिेदन
13.4 राष्ट्रीय विक्षा आयोग के मख्ु य सझु ाि
13.4.1 विक्षा के प्रिासन, वित्त एिं वनयोजन सम्बन्धी सझु ाि
13.4.2 विक्षा और राष्ट्रीय लक्ष्य
13.4.3 अध्यापकों की वस्र्वत
13.4.4 अध्यापक विक्षा
13.4.5 अध्यापक विक्षा के दोष
13.4.6 प्रविक्षण सवु िधाओ ं का विस्तार
13.4.7 विद्यालय विक्षा का विस्तार
13.4.8 प्रार्वमक विक्षा का विस्तार
13.4.9 माध्यवमक विक्षा का विस्तार
13.5 सारांि
13.6 िब्दािली
13.7 स्िमलू याक ं न हेतु प्रश्नों के उत्तर
13.8 सन्दर्थ ग्रर्ं सचू ी
13.9 वनबंधात्मक प्रश्न
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13.1 प्रस्तावना
र्ारत काफी समय वब्रवरि िासन के अधीन रहा है यहााँ पर वव्रविि िासन की नीवतया ही लागू रही
है जो र्ारतीयों के वहत में न होकर वव्रविि के प्रवत ज्यादा झक ु ी हुयी र्ी स्ितन्त्र र्ारत में विक्षा की
विवर्न्न समस्याओ ं पर विचार करने हेतु 1948में विश्वविधालय आयोग (राधाकृ ष्ट्णनन कमीिन)
की वनयवु क्त की गयी । इस आयोग ने विश्वविधालय विक्षा के प्रिासन सगं ठन और उसके स्तर को
उचााँ उठाने सम्बन्धी अनेक ठोस सझु ाि वदये।। उसके कुछ सझु ािों का वक्रयान्ियन र्ी वकया गया
उससे उच्च विक्षा के क्षेत्र में कुछ सधु ार र्ी हुआ परन्तु िह सब हार् नहीं लगा वजसे हम प्राप्त करना
चाहते र्े विक्षा के क्षेत्र में र्ारत सरकार का दसू रा बड़ा कदम र्ा माध्यवमक विक्षा आयोग
(मदु ावलयर कमीिन) की वनयवु क्त इस आयोग ने तत्कालीन माध्यवमक विक्षा के दोषो को उजागर
वकया और उसके पनु गथठन हेतु ठोस सझु ाि वदए, कुछ प्रान्तीय सरकारों ने उसके सझु ािों के अनसु ार
माध्यवमक विक्षा में पररितथन वकया परन्तु यह पररितथन हमारे उद्देश्यो को पणू थ नहीं कर सका अतः
र्ारत सरकार ने विक्षा के पनु गथठन पर समग्र रुप से सोचने समझने और देि र्र के वलए समान
विक्षा वनवत का वनमाथण करने के उद्देश्य से 14 जल ु ाई 1964 को डा. डी. एस. कोठारी (तत्कालीन
अध्यक्ष विश्वविधालय अनदु ान आयोग) की अध्यक्षता में राष्ट्रीय विक्षा आयोग का गठन वकया
इस आयोग को इसके अध्यक्ष के नाम पर कोठारी आयोग (Kothari Commission)र्ी कहते
है।आयोग का उद्घािन 2 अक्िूबर 1964 को नई वदलली के विज्ञान र्िनमें हुआ ।
13.2 उद्देश्य
1. कोठारी कवमिन के सदस्यों के बारे में जान सकें गे।
2. आयोग की वनयवु क्त के कारण ि प्रयोजन को जान सकें गे।
3. राष्ट्रीय विक्षा आयोग के मख्ु य सझु ाि को जान सकें गे।
4. विक्षा के प्रिासन, वित्त एिं वनयोजन सम्बन्धी सझु ाि को जान सकें गे।
5. तत्कालीन विक्षा और राष्ट्रीय उद्देश्यों को समझ सकें गे।
6. अध्यापक विक्षा ि अध्यापकों की वस्र्वत को समझ सकें गे।
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1. श्री ए. आर. दाऊद - र्तू पिू थ स्र्ानापन्न सच ं ालन माध्यवमक विक्षा प्रसार योजना
वनदेिालय नई वदलली।
2. श्री एच. एल. एलविन संचालक विक्षा संस्र्ान, लन्दन विश्वविधालय लन्दन।
3. श्री आर. एस. गोपालस्िामी संचालक जनरल अनसु न्धान सस्र्ान नई वदलली।
4. प्रो. संतोषी इहारा- विज्ञान एिं अवर्यन्त्रण विद्यालय िसदा विश्वविधालय िोवकयो।
5. डा. बी. एस. झा र्तू पिू थ सचं ालक कामनिेलर् विक्षा सम्पकथ इकाई लन्दन।
6. श्री पी. एन. कृ पाल िैवक्षक परामिथदाता एिं सवचि र्ारत सरकार विक्षा मन्त्रालय, नई
वदलली।
7. प्रो. एम. पी. मार्रू प्राध्यापक अर्थिास्त्र एिं सािथजवनक प्रिासन राजस्र्ान विश्वविधालय
(बादमें उपकुलपवत राजस्र्ान विश्वविधालय )।
8. डा. िी. पी. पाल सचं ालक र्ारतीय कृ विथ अनसु न्ं धान सस्ं र्ान नई वदलली।
9. कु0 एस. पनान्दीकर अध्यक्ष विक्षा विर्ाग कनाथिक विश्वविधालय।
10. प्रो रोगर रेिेल डाइरेक्िर, सेन्िर फॉर पापल ु ेषन स्िेडीज हािडथ स्कूल फफ पवब्लक हेलप,
हारिडथ विश्वविधालय कवम्ब्रज (अमेररका)।
11. डॉ. के . जी. सैयदेन, उपकुलपवत, जादिपरु विवष्ट्िद्यालय कलकत्ता।
12. डा. वत्रगणु सेन, उपकुलपवत जादिपरु विश्वविधालय कलकत्ता।
13. प्रो एस. ए. षमोिस्की, प्राध्यापक र्ौवतक षास्त्र मास्को विश्वविधालय , मास्को।
14. श्री एम जीन र्ामस, विक्षा महावनरीक्षक फ्रासं ।
15. सवचि श्री जे. पी. नायक अध्यक्ष, िैवक्षक योजना प्रिासन एिं अर्थ विर्ाग गोखले
राजनीवतक एिं अर्थिास्त्र संस्र्ान पनू ा।
16. संयक्त
ु सवचि श्री जे. एफ. मैक्डूगल, उप संचालक विद्यालय एिं उच्च विक्षा विर्ाग,
यनू स्को, पेररस।
इस प्रकार 17 व्यवक्तयों को इस कमीिन में वलया गया इस कमीिन ने अक्िूबर 1964 से देि र्र
का दौरा वकया कमीिन ने सर्ी राज्यो ि के न्रिावसत प्रदेिो में भ्रमण वकया भ्रमण के दौरान
कमीिन ने 9000 व्यवक्तयों के इन्िरव्यू वलए इन व्यवक्तयों में समाज के हर िगथ के व्यवक्त र्े।
कमीिन ने अपने कायथ का सचं ालन करने के वलए 22 कायथ िोवलयााँ और अध्ययन दल वनयक्त ु
वकए। इस कमीिन को अपनी ररपोिथ प्रस्ततु करने में दो िषथ लगे।
13.3.1 आयोग की शनयशु ि के कारण ि प्रयोजन (Reasons and purposes for
settling up the commission)
र्ारत सरकार ने अपने 14 जल ु ाई 1964 के प्रस्ताि में वनयवु क्त के कारण एिं प्रयोजनों को
वनम्नवलवखत िब्दों में प्रकावित वकया
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समकालीन भारत और शिक्षा BEDSEDE A2
i. विक्षा, विज्ञान और तकनीकी में अनसु न्धान - विक्षा के द्वारा ही चतमु ख थु ी विकास होता है।
यह विकास तर्ी संर्ि है जब विज्ञान और प्रौद्यौवगकी के सर्ी साधनों का प्रयोग करते हुए
िोधकायथ वकया जाये । विक्षा और विज्ञान पर अवधक से अवधक धन अनसु न्धान करने में
लगाया जाऐगा।
ii. राष्ट्रीय विक्षा प्रणाली का विकास:- राष्ट्रीय विक्षा प्रणाली का विकास करना र्ारत
सरकार की प्रमख ु आिश्यकता र्ी विक्षा के द्वारा ही लोकतन्त्रीय समाज का वनमाथण तर्ा
राष्ट्रीय एकता सम्र्ि है विक्षा से ही सन्तवु लत एिं संगवठत राष्ट्रीय विक्षा प्रणाली का
विकास होगा।
iii. धमथ वनरपेक्ष लोकतन्त्र की विक्षा - परम्परागत विक्षा व्यस्र्ा में बदलाि लाकर एक
धमथवनरपेक्ष प्रजातन्त्र के वलए नए लक्ष्य वनधाथररत करना होना चावहय जैसे वनधथनता का
अन्त, कृ वष का आधवु नकीकरण, उद्योगों का विकास, विज्ञान और प्रोद्यौवगकी का प्रयोग,
समाजिादी समाज की रचना, विक्षा रोजगार और सांस्कृ वतक प्रगवत के वलए समान अिसर
आवद ।
iv. विक्षामें गणु ात्मक विकास - स्ितन्त्रता प्रावप्त के पश्चात विक्षा में बहुत तेजी से विकास
हुआ है परन्तु उताना विकास नही हुआ वजतना की आिश्यकता र्ी विक्षा का स्तर वनम्न
र्ा सख्ं यात्मक िृवि तो हुई है लेवकन गणु ात्मक िृवध कम ही हुई ।
v. विक्षा स्तरों का विकास- िैवक्षक विकास के वलए सम्पणू थ क्षेत्र का विकास करना आिश्यक
है। क्योंवक विक्षा प्रणाली के विवर्न्न अगं एक दसू रे पर प्रबल प्रवतवक्रया करते हैं प्रार्वमक
विक्षा यवद अच्छी होगी तो माध्यवमक विक्षा र्ी अच्छी होगी माध्यवमक विक्षा उत्तम है तो
उच्च विक्षा र्ी उत्तम होगी अतः विक्षा स्तरों का उन्नयन करने के वलए विक्षा के सम्पणू थ
क्षेत्र की जााँच करना आिश्यक है।
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विक्षा से जडु े विवर्न्न िगथ के लगर्ग 5000 व्यवक्तयों के पास र्ेजा इनमे से 2400
व्यवक्तयों ने इसे र्रकर लौिाया आयोग ने इस प्रश्नािली का सांवख्यकीय वििरण तैयार
वकया इसके बाद आयोग ने इन दोनो विवधयो से प्राप्त सझु ािों पर विचार विमिथ वकया
अन्त में 29 जनू 1966 को अपना प्रवतिेदन विक्षा एिं राष्ट्रीय प्रगवत (Education and
national Development) र्ारत सरकार को प्रेवषत वकया
iii. प्रशतिेदन (Report)-विक्षा आयोग ने अपना प्रवतिेदन 29 जनू 1966 को र्ारत सरकार
के तत्कालीन विक्षा मत्रं ी एम. सी. छागला के समक्ष प्रस्ततु वकया लगर्ग 700 प्रश्ठों का
यह प्रवतिेदन 3 र्ागों में विर्ावजत है और इसका नाम है
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iii. विक्षा को राष्ट्रीय महत्ि का विषय माना जाए और उसकी राष्ट्रीय नीवत घोवषत की जाए
इसके वलए यवद आिश्यक हो तो के न्र सरकार ‘नेिनल एजक ू े िन एक्ि’ बनाए और
प्रान्तीय सरकारें ‘स्िेि एजक
ू े िन एक्ि’ बनाएाँ
iv. र्ारतीय विक्षा सेिा में उन व्यवक्तयों का चयन वकया जाए वजन्हें विक्षण कायथ का अनर्ु ि
हो।
v. के न्रीय विक्षा मन्त्रालय में विक्षा सलाहकार और विक्षा सवचि के पदों पर सरकारी,
गैरसरकारी, र्ारतीय विक्षा सेिा और विश्वविद्यालयों में से योग्यतम व्यवक्तयों का चयन
वकया जाए।
vi. विक्षा प्रिासकों और विक्षकों के बीच स्र्ानान्तरण की व्यिस्र्ा की जाए।
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v. िैवक्षक वनयोजन में विक्षा के प्रसार के सार् सार् उसमें गणु ात्मक सधु ार के वलए व्यिसाय
वकया जाए।
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i. आधवु नकरण की दृवष्ट से औद्योवगकी सहायता ली जाये
ii. आधवु नकरण करने के वलए विक्षा को एक साधन के रूप में स्िीकार वकया जाये
iii. सामान्य व्यवक्त के विक्षा स्तर को ऊाँचा वकया जाये
iv. विक्षा के द्वारा उवचत मलू यों और दृवष्ट कोण का विकास हो।
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4. कायथ ि सेिा की दिाये (Conditions of work and Service)- आयोग ने विक्षकों के कायथ
एिं सेिा की दिाओ ं में सधु ार हेतु वनम्न सझु ाि वदयें।
i. सरकारी एिं गैर सरकारी विद्यालयों के विक्षकों की सेिा दिाओ ं में समानता स्र्ावपत की
जाए।
ii. विक्षा संस्र्ाओ ं में विक्षकों के कुिलतापिू क थ कायथ करने हेतु न्यनू तम सवु िधायें प्रदान की
जाए
iii. विक्षक को अपनी व्यािसावयक उन्नवत करने हेतु उपयक्त ु सवु िधायें प्रदान की जाएाँ
iv. विक्षकों के अध्यापन कायथ के घण्िो को वनवश्चत करते समय उसके द्वारा वकए जाने िाले
अन्य कायो को दृवष्ट गत रखा जाए
v. विक्षकों को 5 िषथ में कम से कम एक बार, देि के वकसी स्र्ान में भ्रमण करने हेतु उनके
िेतन के अनसु ार ररयायती दर पर रेल के विकि वदए जाएाँ
vi. सर्ी सरकारी एिं सहायता प्राप्त गैर सरकारी विक्षकों के वलए वत्रमख ु ी लार् योजना (जी.
पी.एफ. बीमा और पेंिन) लागू होनी चावहए
vii. ग्रामीण क्षेत्रों में कायथ करने िाले विक्षकों को आिास सवु िधा दी जाए और विवक्षकाओ ं
को आिास सवु िधा के सार् सार् वििेष र्त्ता र्ी वदया जाय।
13.4.4अध्यापक शिक्षा (Teacher’s Education)
आयोग ने अध्यापकों की व्यािसावयक विक्षा के महत्ि के सम्बन्ध में कहा है, विक्षा की गणु ात्मक
उन्नवत के वलए अध्यापकों की व्यािसावयक विक्षा का ठोस कायथक्रम अवनिायथ है
अध्यापक विक्षा के उपयथक्त
ु महत्त्ि के दृवष्ट गत आयोग ने सिथप्रर्म अध्यापक विक्षा के दोषों का
उललेख वकया और तत्पश्चात् इस विक्षा के सधु ार के सम्बन्ध में अपने विचारों को लेखबि वकया
उत्तराखण्ड मक्त
ु विश्वविद्यालय 180
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1. अध्यापक विक्षा की पृर्कता का अन्त (Removal of Isolation of
TeacherEducation) आयोग के अनसु ार अध्यापकों की व्यािसावयक विक्षा को
प्रर्ािपणू थ बनाने के वलए उसे एक ओर विश्वविद्यालयों के सावहवत्यक जीिन के और दसू री
ओर विद्यालय जीिन एिं विक्षा सम्बन्धी निीनतम विचारों के सम्पकथ में लाया जाना परम्
आिश्यक है इस उद्देश्य की प्रावप्त हेतु आयोग ने वनम्न सझु ाि प्रस्ततु वकए हैं -
i. कुछ विविष्ट विश्वविद्यालयों में अध्यापक विक्षा के कायथक्रमों के विकास, अध्ययन एिं
अनसु ंधान हेतु विक्षा विर्ाग (Department of Education)को स्र्ावपत वकया जाए।
ii. विक्षा विषय को विषय विद्यालयों के बी.ए. एिं एम. ए. के पाठ्यक्रमों में सवम्मवलत वकया
जाए
iii. प्रविक्षण संस्र्ाओ ं में प्रसार सेिा विर्ाग (Extension Service Department)करे
स्र्ावपत वकया जाए।
iv. सब राज्यों में कॉम्प्रीहेवन्सि कॉलेजों(Comprehensive Colleges)को स्र्ावपत कर
उसमें विक्षा के विवर्न्न स्तरों के वलए अध्यापकों को प्रविक्षण वदया जाना चावहए
v. प्रत्येक राज्य में अध्यापक विक्षा की राज्य पररिद् (State Board of Teacher Education)
स्र्ावपत की जाए वजस पर सब क्षेत्रों एिं स्तरों के प्रवक्षण का उत्तरदावयत्ि हो
vi. विवर्न्न प्रकार की विक्षण सस्ं र्ाओ ं की पृर्कता का अन्त करने के वलए सबको रेवनगं
कॉलेजों की संज्ञा दी जाए तर्ा उनको अपने क्षेत्रों के विश्वविधालय से सम्बि वकया जाए
2. व्यािसावयक विक्षा की उन्नवत (Improvement in Professional Education)
आयोग ने अध्यापकों की व्यािसावयक विक्षा की गणु ात्मक उन्नवत करने के वलए
वनम्नावं कत वसफाररिे की है।
i. विक्षण के अभ्यास में गणु ात्मक उन्नवत करने के प्रयास वकए जाये
ii. छात्राध्यापकों के वलए विविष्ट कायथक्रमों एिं पाठ्यक्रमों का वनमाणथ वकया जाए
iii. अध्यापक-विक्षा के सब स्तरों पर कायथक्रमों एिं पाठ्यक्रमों को उन आधारर्तू
उद्देश्यो के दृवष्ट गत दोहराया जाए, वजनके वलए छात्राध्यापको को तैयार वकया जा
रह है
iv. सब प्रविक्षण संस्र्ाओ ं के पाठ्क्रमों की विक्षा एिं विषय सामाग्री में इस प्रकार
रूपान्तर वकया जाए वजससे छात्राध्यापकों को विद्यालयों में पढ़ाये जाने िाले
विषयो के उद्देश्यो प्रयोजन एिं जविलताओ ं का समवु चत ज्ञान प्राप्त हो।
3. प्रविक्षण की अिवध (Period of Training)आयोग के विवर्न्न प्रविक्षण स्तरों की
अिवध के विषय में वनम्न विचार व्यक्त वकए है।
i. प्रार्वमक विद्यालयों के उन अध्यापकों के वलए, वजन्होंने सेकेण्डरी स्कूल कोसथ पास
वकया है, प्रविक्षण की अिवध 2 िषथ की हो
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ii. माध्यवमक विद्यालयों के उन अध्यापकों के वलए जो स्नातक है, प्रविक्षण की अिवध
अर्ी तो 1िषथ की हो पर कुछ समय के पश्चात2 िषथ की कर दी जाए।
iii. विक्षा में स्नातकोत्तर (M.Ed) पाठ्यक्रम की अिवध 1िषथ की हो।
4. प्रविक्षण संस्र्ाओ ं की उन्नवत (Improvement in Training Institutions)- आयोग ने
प्रवक्षण संस्र्ाओ ं की गणु ात्मक उन्नवत हेतु वनम्न वसफाररिें की है
i. रेवनगं कॉलेजों के अध्यापकों के पास विक्षा की उपावध (Degree in Education)के
अवतररक्त दो स्नातकोत्तर उपावधयााँ (Post-Graduate Degrees)हो
ii. रेवनंग कॉलेजों के अध्यापकों में डॉक्िर (Doctorate)की उपावधयााँ िाले विक्षकों की
संख्या उवचत अनपु ात में हो
iii. गवणत, विज्ञान, मनोविज्ञान एिं समाजषास्त्र आवद विषयो को विक्षा देने के वलए विषेिज्ञों
की वनयवु क्त की जाए, चाहे उन्होनें प्रविक्षण प्राप्त न वकया हो
iv. प्रत्येक प्रविक्षण संस्र्ाओ ं से एक प्रयोगात्मक (Experimental)विद्यालय संलग्न हो।
v. प्रविक्षण संस्र्ाओ ं में छात्राध्यापको से वकसी प्रकार का िलु क न वलया जाए और उनको
ऋण एिं छात्रिृवत्तयों के रूप में आवर्थक सहायता देने की व्यिस्र्ा की जाए
vi. विद्यालयो में कायथ करने िाले अप्रविवक्षत विक्षकों को प्रविक्षण देने हेतु के न्रीय स्र्ानों पर
ग्रीष्ट्मकालीन सस्ं र्ाओ ं (Summer Institutes)की योजना आरम्र् की जाए।
13.4.6प्रशिक्षण सुशिधाओ ं का शिस्तार (Expansion of Training Facilities)
आयोग ने प्रविक्षण सवु िधाओ ं का विस्तार करने हेतु वनम्नावं कत विचार व्यक्त वकए
i. प्रविक्षण संस्र्ाओ ं के आकार में एक वनवश्चत योजना के अनसु ार पयाथप्त विस्तार वकया जाए
ii. पत्र व्यिहार द्वारा विक्षा एिं अलपकालीन प्रविक्षण की सवु िधाओ ं में विस्तार वकया जाए
iii. विद्यालय विक्षकों को अध्यापन कायथ करते हुए विक्षा तर्ा प्रविक्षण प्राप्त करने वक
सवु िधायें प्रदान करने हेतु विश्वविद्यालयों तर्ा प्रविक्षण संस्र्ाओ ं द्वारा विवर्न्न प्रकार के
कायथक्रमों का आयोजन कराया जाए
आयोग के अनसु ार विक्षा के क्षेत्र में दो मख्ु य प्रकार की व्यापक असमानतायें है
1. विक्षा के सब पक्षों एिं स्तरों पर बालको एिं बावलकाओ ं की विक्षा में व्यापक असमानता
विद्यमान है
2. उन्नत िगो, वपछड़े िगो अछूत जावतयों एिं आवदिावसयों की विक्षा में व्यापक असमानता
विद्यमान है।
उपयथक्त
ु दोनों प्रकार की असमानताओ ं को दरू करने के वलए आयोग ने वनम्न चार सझु ाि वदये है।
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i. वनःिलु क विक्षा की व्यिस्र्ा की जाए।
ii. विक्षा के खचो में कमी की जाए
iii. छात्रिृवत्तयों की व्यिस्र्ा की जाए
iv. छात्रिृवत्तयों की योजना हो
1. वनःिलु क विक्षा (Free Education) आयोग ने वनःिलु क विक्षा के सम्बन्ध में वनम्न विचार
व्यक्त वकए है
a. चौर्ी पचं िषीय योजना के अन्त से प्रार्वमक विक्षा को वनःिलु क वकया जाए।
b. पााँचिी पचं िीय योजना के अन्त तक या उससे पिू थ वनम्न माध्यवमक विक्षा को
वनःिलु क वकया जाए
c. पााँचिी पचं िीय योजना के अन्त से 10 िषथ की अिवध में उच्चतर माध्यवमक एिं
विश्वविधालय विक्षा का योग्य एिं वनधथन छात्रों के वलए वनःिलु क वकया जाए।
2. विक्षा के व्यय में कमी (Reducation in the Cost of Education)विक्षा के खचो में वनम्न
प्रकार कमी की जाए
a. प्रार्वमक विद्यालयों के छात्रों को पाठ्य पस्ु तके एिं लेखन सामग्री वनःिलु क प्रदान
की जाए
b. माध्यवमक विद्यालयों कॉलेजों एिं विश्वविद्यालयों में पस्ु तक गृहों (Book
Bank)की व्यिस्र्ा की जाए जहााँ से छात्रों को पाठ्य पस्ु तके दी जाएाँ
c. छात्रों के प्रयोग हेतु माध्यवमक विद्यालयों एिं उच्च विक्षा की संस्र्ाओ ं के
पस्ु तकालयों में पाठ्य पस्ु तकें प्राप्त सख्ं या में हो
d. योग्य छात्रों को पाठ्य पस्ु तकों एिं अन्य आिश्यक पस्ु तकों को खरीदने के वलए
आवर्थक सहायता प्रदान की जाए
3. छात्रिृवत्तयों की व्यिस्र्ा (Provision for Scholarships)-छात्रिृवत्तयों के सम्बन्ध में
वनम्नावं कत व्यव्स्र्ा की जाए
a. वनम्न प्रार्वमक स्तर के उपरान्त विक्षा के सर्ी स्तरों पर छात्रिृवत्तयों के कायथक्रम
को संगवठत वकया जाए
b. छात्र के विक्षा के एक स्तर से दसू रे स्तर पर पहुचने पर इस बात का पणू थ ध्यान रखा
जाए वक कोई वनधथन पर योग्य विद्यार्ी छात्रिृवत्त न वमल सकने के कारण अपनी
र्ािी विक्षा से िंवचत न रह ज
c. छात्रािासों में रहकर कॉवलज या विश्वविधालय में अध्ययन करने िाले छात्रो के
वलए छात्रिृवत्तयों के रूप में इतना धन वदया जाए, वजससे विक्षा से सम्बवन्धत
सम्पणू थ प्रत्यक्ष एि अप्रत्यक्ष व्यय की पवू तथ हो जाए।
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d. अपने घरों पर रहकर अध्ययन करने िाले छात्रों के वलए के िल इतनी आवर्थक
सहायता दी जानी चावहए, वजससें अवधकाि ं प्रत्यक्ष एिं अप्रत्यक्ष व्यय की पवू तथ
हो जाए
4. छात्रिृवत्तयों की योजनायें (Schemes of Scholarships)छात्रिृवत्तयों की वनम्न प्रकार की
योजनाओ ं को लागू वकया जाए
a. राष्ट्रीय छात्रिृवत्तयों की योजना की पवू तथ हेतु विश्वविधालय अनदु ान आयोग द्वारा
विश्वविधालय छात्रिृवत्तयों (University Scholarships)की योजना आरम्र् की
जाए
b. व्यािसावयक विक्षा (Vocational Education)ग्रहण करने िाले विद्यावर्थयों के वलए
छात्रिृवत्त व्यिस्र्ा इस प्रकार हो(विद्यालय स्तर पर 30 प्रवतित को, कॉवलज स्तर पर
50 प्रवतित को)
c. ऋण छात्रिृवत्तयों (Loan Scholarships) की योजना को कुछ सीमा तक सामान्य
विक्षा प्राप्त करने िाले योग्य छात्रों के वलए वक्रयावन्ित वकया जाए
d. असाधारण प्रवतर्ा के विद्यावर्थयों को विदेषों में उच्च विक्षा प्रावप्त हेतु प्रवतिषथ 500
छात्रिृवत्तयााँ प्रदान की जानी चावहए।
e. कुछ छात्रों, वििेषकर विज्ञान एिं तकनीकी के छात्रों को ऋण छात्रिृवत्तयॉ दी जाएाँ ,
जो िे आगे चलकर अपने िेतन में किौती द्वारा लौिाये। ।
f. माध्यवमक स्तर की छात्रिृवत्तयों का वित्तीय र्ार राज्य सरकारों पर हो और उच्च स्तर
के छात्रों को दी जाने िाली छात्रिृवत्तयों का वित्तीय र्ार के न्र सरकार पर हो ।
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iv. पिू थ प्रार्वमक वििओ
ु ं के खेल के न्रों (Sensorial Education)को प्रार्वमक विद्यालयों
से सम्बि वकया जाए
13.4.8प्रार्शमक शिक्षा का शिस्तार (Expansion of Primary Education)
आयोग के प्रार्वमक विक्षा के विस्तार हेतु सझु ाि वनम्न प्रकार है
i. सन् 1975-76 तक देि के सब बच्चों के वलए 5 िषथ की उत्तम प्रार्वमक विक्षा की
व्यिस्र्ा हो।
ii. सन् 1985-86 तक देि के सब बच्चों के वलए 7 िषथ की उत्तम प्रार्वमक विक्षा का
योजना पणू थ की जाए
iii. अपव्यय ि अिरोधन (Wasteage and Stagnation)को अवधक से अवधक कम करने
के वलए प्रयास वकए जाने चावहए।
iv. जो बालक कक्षा 7 पास करने के समय 14 िषथ के न हों और अपनी सामान्य विक्षा के क्रम
को जारी रखने के इच्छुक न हों उनको इस आयु तक उनकी रुवच के अनसु ार व्यािसावयक
विक्षा दी जानी चावहए
v. प्रार्वमक विक्षा का विस्तार करने हेतु प्रार्वमक विद्यालयों की स्र्ापना इस प्रकार की जाए,
वक लोअर प्राइमरी स्कूल वकर्ी बालक से घर से क्रमि 1 और 3 मील से अवधक दरू न
हों
vi. वपछ़डी जावत, अनसु वू चत जावत और अनसु वू चत जनजावतयों के बच्चों के वलए प्रार्वमक
विद्यालय खोले जाएाँ
vii. मन्द बवु ि और विकलागं बच्चों के वलए अलग से स्कूल खाले जाएाँ
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स्िमूलयांकन हेतु प्रश्न
1. कोठारी कवमिन का गठन कब हुआ?
2. राष्टीय विक्षा आयोग में कुल वकतने सदस्य र्े ?
3. र्ारत में पचं िषीय योजना का श्री गणेि कब हुआ ?
4. अध्यापक विक्षा के दो दोष वलवखए?
5. कोठारी कमीिन ने मदं िवु ि बालको के वलय क्या सझु ाि वदया र्ा?
13.5 साराांि
र्ारत सरकार ने विक्षा के पनु गथठन पर समग्र रुप से सोचने समझने और देि र्र के वलए समान
विक्षा वनवत का वनमाथण करने के उद्देश्य से 14 जल ु ाई 1964 को डा. डी. एस. कोठारी (तत्कालीन
अध्यक्ष विश्वविधालय अनदु ान आयोग) की अध्यक्षता में राष्ट्रीय विक्षा आयोग का गठन
वकया।आयोग ने इस बडे कायथ को सम्पन्न करने के वलए दो विवधयो का अनसु रण वकया पहली
वनररक्षण एिं साक्षात्कार और दसू री प्रश्नािली, वनररक्षण एिं साक्षात्कार विवध (Observation and
Interview method) वनरीक्षण एिं साक्षात्कार के वलए आयोग ने कायथकारी दल (Working
Groups)बनाए। इन दलों ने देि के विवर्न्न प्रान्तो का दौरा वकया, उनके अनेक विद्यालय,
महाविद्यालय और विश्वविद्यालयो को देखा और उनके छात्रो विक्षकों और प्रिासकों से साक्षात्कार
वकया अनेक विक्षाविदो से र्ेंि कर उनसे विचार विमिथ वकया और मख्ु य तथ्यों को लेखबि वकया।
विक्षा के राष्ट्रीय लक्ष्य, विक्षा की सरं चना, विक्षकों की वस्र्वत, िैवक्षक अिसरों की समातनता
कृ वष विक्षा, व्यािसावयक विक्षा, स्त्री विक्षा और प्रौढ़ विक्षा और कुछ समस्याओ ं का वििेचन
स्तर वििेष की विक्षा के सन्दर्थ में वकया।
13.6 िब्दावली
1. विक्षा और आधवु नकीकरण - आयोग ने र्ारत में आधवु नकरण के वलए औद्योवगकी
सहायता ि विक्षा को एक साधन के रूप में स्िीकार करने विक्षा स्तर को ऊाँचा उठाने तर्ा
विक्षा के द्वारा उवचत मलू यों और दृवष्ट कोण का विकास होने की बात कही।
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2. 17 सदस्य
3. िषथ1951
4. अध्यापक विक्षा के दो दोष वनम्न हैं :-
i. प्रविक्षण संस्र्ाओ ं के पाठ्यक्रमों में निीनता, सजीिता एिं िास्तविकता नहीं है।
ii. प्रविक्षण संस्र्ाओ ं द्वारा वदया जाने िाली प्रविक्षण परम्परागत तर्ा अलप
उपयोवगता िाला है।
5. मन्द बवु ि और विकलांग बच्चों के वलए अलग से स्कूल खाले जाएाँ ।
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इकाई- 14 िाष्ट्रीय शिक्षा नीशत 1986
National Education Policy 1986
14.1 प्रस्तािना
14.2 उद्देश्य
14.3 राष्ट्रीय विक्षा नीवत, 1986 कादस्तािेज
14.4 कायथ योजना 1986 का दस्तािेज
14.5 राष्ट्रीय विक्षा नीवत 1986 के मूल तत्ि
14.5.1 मुक्त विश्वविद्यालय तर्ा दरू स्र् विक्षा
14.5.2 फपरेिन ब्लैक बोडथ योजना
14.6 सारांि
14.7 स्िमूलयांकन हेतु प्रश्नों के उत्तर
14.8 िब्दािली
14.9 संदर्थ ग्रर्ं सचू ी
14.10 वनबधं ात्मक प्रश्न
14.1 प्रस्तावना
र्ारत देि सवदयों तक अधीन रहा है वजसके कारण र्ारत की विक्षा व्यिस्र्ा चरमरा गयी र्ी इस
विक्षा व्यिस्र्ा को पिरी पर लाने के वलय स्िन्त्रन्ता के बाद अनेक नीवतयों का वनमाथण वकया गया
लेवकन समय ि सरकार बदलने के सार् आधारर्तू नीवतयों को लागू नहीं वकया जा सका।पररणाम
यह रहा वक सरकार बदलते ही नीवतयों में र्ी पररितथन देखा गया।1969 में के न्र की काग्रं ेस सरकार
ने राष्ट्रीय विक्षा नीवत घोवषत की र्ी, कई प्रान्तों में 10+2+3 विक्षा संरचना लागू हो गई र्ी, कई
प्रान्तों ने अपने-अपने ढ़ग से वत्रर्ाषा सत्रू लागू कर वदया र्ा, कई प्रान्तों में कृ वष, व्यिसावयक एिं
तकनीकी विक्षा, विज्ञान विक्षा और िैज्ञावनक िोधों के वलए वििेष प्रािधान वकए जाने लगे र्े,
प्रायः सर्ी प्रान्तों में परीक्षा प्रणाली में सधु ार की प्रवक्रया िरू हो गई र्ी, आधवु नकीकरण के नाम पर
विज्ञान एिं गवणत की विक्षा अवनिायथ कर दी गई र्ी और िैवक्षक अिसरों की समानता के वलए
कदम उठाये जाने लगे र्े। परन्तु 1977 में के न्र में जनता दल सत्तारूढ़ हो गया और मोरारजी देसाई
प्रधानमन्त्री बने। मोरारजी देसाई ने 10+2+3 विक्षा सरं चना के स्र्ान पर 8+4+3 विक्षा संरचना का
विचार प्रस्ततु वकया। पररणाम यह हुआ वक तत्कालीन के न्रीय विक्षा मन्त्री श्री प्रताप चन्र चन्दर ने
कुछ विक्षाविदों और सासं दों के सहयोग से एक नई विक्षा नीवत तैयार की और 1979 में उसकी
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घोषणा कर डाली। इसे अर्ी लागू र्ी नहीं वकया जा सका र्ा वक 1980 में के न्र में पनु ः काग्रं ेस सत्ता
में आ गई और श्रीमती इवन्दरा गााँधी पनु ः प्रधानमन्त्री बनीं। इवन्दरा गााँधी ने पनु ः राष्ट्रीय विक्षा नीवत
1968 के अनपु ालपर जोर वदया। इसी बीच इवन्दरा गााँधी की हत्या कर दी गई, उनके स्र्ान पर
राजीि गााँधी को प्रधानमन्त्री बनाया गया।
यिु ा प्रधानमन्त्री राजीि गााँधी ने हर क्षेत्र में आन्दोलनकारी कदम उठाने िरू ु वकए, विक्षा के क्षेत्र में
र्ी। उन्होने कहा वक ितथमान विक्षा राष्ट्र की मााँगों को परू ा करने में असमर्थ है, इनका पनु वनरीक्षण
होना चावहए और पनु गठथ न होना चावहए। पर इस बार न तो वकसी आयोग का गठन वकया गया और
न ही वकसी सवमवत का। सिथप्रर्म सरकार ने तत्कालीन विक्षा का सिेक्षण कराया और उसे विक्षा
की चनु ौतीः नीवत सम्बन्धी पररप्रेक्ष्य’ (Challenge of Education: A Policy Perspective)नाम से
अगस्त, 1983 में प्रकावित वकया। इस दस्तािेज में र्ारतीय विक्षा की 1951 से 1983 तक की
प्रगवत यात्रा का सावं ख्यकीय वििरण, उसकी उपलवब्धयों एिं असफलताओ ं का यर्ाथर् वचत्रण और
उसके गणु -दोषों का सम्यक् वििेचन वकया गया है। सरकार ने इस दस्तािेज को जनता के हार्ों में
पहुचाँ ाया और इस पर देिव्यापी बहस िरू ु की। सर्ी प्रान्तों के वर्न्न-वर्न्न क्षेत्रों से सझु ाि प्राप्त हुए।
के न्रीय सरकार ने इस सझु ािों के आधार पर एक नई विक्षा नीवत तैयार की और उसे ससं द के बजि
अवधिेिन 1986 में प्रस्ततु वकया। ससं द के पास कराने के बाद इसे मई 1986 में प्रकावित वकया
गया। इस विक्षा नीवत की घोषणा के कुछ माह बाद इसकी कायथ योजना ((Plan of Action)नामक
दस्तािेज प्रकावित वकया गया। यह र्ारत की ऐसी पहली राष्ट्रीय विक्षा नीवत है। इस नीवत के बारे में
कहा गया र्ा वक यह आने िाले समय के वलय विक्षा का महावधकार-पत्र (Megna Chartaa)
सावबत होगी ।
14.2 उद्देश्य
1. राष्ट्रीय विक्षा नीवत 1986 ने विक्षा में जो क्रावं तकारी पररितथन वकए है उनको जान
सकें गे।
2. राष्ट्रीय विक्षा नीवत 1986 के दस्तािेजो की जानकारी प्राप्त कर सकें गे।
3. वमड दे वमल योजना के उद्देश्यों को जान सकें गे।
4. राष्ट्रीय विक्षा नीवत 1986 के मलू तत्ि को जान सकें गे।
5. प्रार्वमक विक्षा को वस्र्वत को जान सकें गे।
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प्रर्म भाग- भूशमका(Introductory):-राष्ट्रीय विक्षा नीवत 1968 का व्यापक प्रर्ाि पड़ा हैसर्ी
प्रान्तों में 10+2+3 विक्षा संरचना स्िीकार कर ली गई है, प्रार्वमक विक्षा 90 प्रवतित बच्चों को
उपलब्ध है, माध्यवमक स्तर पर विज्ञान और गवणत की विक्षा को अवनिायथ कर वदया गया है, उच्च
विक्षा के स्तर को उठाने की प्रवक्रया िरू
ु हो चकु ी है और देि की आिश्यकतानसु ार जन िवक्त की
पवू तथ हो रही है। पर सार् ही यह र्ी स्िीकार वकया गया है। वक उस नीवत के अवधकाि ं सझु ाि कायथ
रूप में पररवणत नहीं हो सके हैं। वफर इस बीच देि की पररवस्र्वतयों में र्ारी पररितथन हुआ है। देि
की जनसंख्या तेजी से बढ़ने पर लोकतन्त्रीय लक्ष्यों की प्रावप्त में अनेक अड़चनें आ रही हैं। इनके
अवतररक्त हमें र्विष्ट्य में अनेक समस्याओ ं का सामना करना होगा, अतः आिश्यक है वक ितथमान
और र्विष्ट्य की चनु ौवतयों का सामना करने के वलए सरकार विक्षा की नई नीवत तैयार करे और उसे
वक्रयावन्ित करे।
शद्वतीय भाग- शिक्षा का सार और उसकी भूशमका (The Essence and Role of Education)
:- सबके वलए विक्षा हमारे र्ौवतक एिं अध्यावत्मक विकास की बवु नयादी आिश्यकता है। विक्षा
मनष्ट्ु य को ससु ंस्कृ त बनाती है और सिं ेदनिील बनाती है वजससे राष्ट्रीय एकता विकवसत होती
है।यह मनष्ट्ु य में स्ितन्त्र वचन्तन एिं सोच-समझ की क्षमता उत्पन्न करती है वजससे हम लोकतन्त्रीय
लक्ष्य-स्ितन्त्रता, समानता, भ्रातृत्ि, समाजिाद, धमथवनरपेक्षता और न्याय की प्रावप्त कर सकते हैं,
आवर्थक विकास कर सकते हैं और अपने ितथमान एिं र्विष्ट्य का वनमाथण कर सकते हैं। विक्षा
िास्ति में एक उत्तम वनिेि (Investment) है। सर्ी अवर्र्ािकों को आज की वस्र्वत को देखते हुय
उत्तम विधालयो में विक्षा वदलानी चावहय।
तीसरे भाग- राष्ट्रीय शिक्षा प्रणाली (National Education System):- राष्ट्रीय विक्षा प्रणाली में
संविधान की मल ू धारणा- ‘एक वनवश्चत स्तर तक वबना वकसी र्ेदर्ाि के सर्ी को समान विक्षा
उपलब्ध हो‘ को सिथप्रर्म िरीयता दी जानी चावहए।सार् ही परू े देि में समान विक्षा संरचना
10+2+3 लागू होनी चावहए। इसमें प्रर्म 10 िषीय विक्षा की ऐसी आधारर्तू पाठ्यचयाथ (Core
Curriculum) तैयार होनी चावहए वजसके द्वारा राष्ट्रीय मलू यों और िैज्ञावनक दृवष्टकोण का विकास हो
सके । सार् ही प्रत्येक स्तर की विक्षा का न्यनू तम अवधगम स्तर (Minimum Level of Learning)
वनवश्चत होना चावहए और उसमें गणु ात्मक सधु ार होना चावहए।
िौर्े भाग- समानता के शलए शिक्षा (Education for Equality):-सर्ी िगों को विक्षा का
समान अवधकार प्राप्त हो। विक्षा के क्षेत्र में व्याप्त विषमताओ ं को दरू कर मवहलाओ,ं अनसु वू चत
जावतयों, अनसु वू चत जनजावतयों, वपछडे िगो, अलपसख्ं यकों, विकलागं ों और प्रौढ़ की विक्षा के
वलए वििेष प्रयत्न वकए जाने चावहए। क्योवक विक्षा के ही माध्यम से व्यवक्त अपने अवधकारों को
पाप्त जीिन कर सकता है अर्िा न वमलने पर काननू का सहारा लेकर सम्मान से जीवित रह सकता
है।
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पााँििें भाग- शिशभन्न स्तरों पर शिक्षा का पुनगथठन-शििुओ ं की देख-भाल और शिक्षा
(Reorganization of Education at Different Stages-Early Childhood Care and
Education) :- पिू थ प्रार्वमक स्तर पर वििओ ु ं के पोषण, प्रार्वमक स्तर पर बच्चों की रूवचपणू थ
वक्रयाओ,ं माध्यवमक स्तर पर गवत वनधाथरक विद्यालयों (Pace Setting Schools) की स्र्ापना और
उच्च स्तर पर खल ु े विश्वविद्यालयों (Open Universities) की स्र्ापना पर बल वदया गया है। सार् ही
यह घोषणा की गई है वक चनु े हुए क्षेत्रों में रोजगार की उपावध से विलग करने की िरू ु आत की
जाएगी।
छठे भाग- तकनीकी एिं प्रबन्ध शिक्षा (Technical and Management Education) :- इसमें
तकनीकी और प्रबन्ध विक्षा के महत्त्ि को स्पष्ट वकया गया है और इसकी समवु चत व्यिस्र्ा पर बल
वदया गया है।
सातिें भाग- शिक्षा व्यिस्र्ा को कारगर बनाना (Making the System Work) :-विक्षा तब
तक प्रर्ाििाली नहीं हो सकती जब तक विक्षक विक्षा के अन्दर विक्षा के प्रवत समपणथ न हो।
प्रिासवनक तन्त्र को सवक्रय बनाने, विक्षकों की जिाबदेही वनवश्चत करने और विक्षावर्थयों को कत्तथव्य
बोध कराने पर बल वदया गया है।
आठिें भाग- शिक्षा की शिषयिस्तु और प्रशक्रया को नया मोड़ देना (Reorienting the
Content and Process of Education) :- सांस्कृ वतक मलू यों और िैज्ञावनक सोच में समन्िय करने
पर बल वदया गया है, मलू यों की विक्षा और र्ारतीय र्ाषाओ ं के विकास के सार्-सार् गवणत और
विज्ञान की विक्षा पर बल वदया गया है और स्िास्थ्यििथक वक्रयाओ-ं खेल-कूद आवद पर बल वदया
गया है और अन्त में परीक्षा प्रणाली एिं मलू यांकन प्रवक्रया में सधु ार के वलए सझु ाि वदए हैं।
निें भाग- शिक्षक (The Teacher) :- विक्षको के िेतनमान बढ़ाने ओेर सेिाितो को आकषथक
बनाने की बात कही गई है और विक्षक प्रविक्षण में सधु ार के सझु ाि वदए गए हैं। तावक विक्षा का
विकास हो सके । व्यिसाय से संतष्टु विक्षक ही विक्षण कायो में अवधक रूवच लेते है।
दसिें भाग- शिक्षा का प्रबन्ध (The Management of Education) :- विक्षा में प्रिासन के
विके न्रीकरण पर बल वदया गया है, राष्ट्रीय स्तर पर ‘र्ारतीय विक्षा सेिा‘, राज्य स्तर पर ‘प्रान्तीय
विक्षा सेिा‘ और वजले स्तर पर ‘वजला विक्षा पररषद‘के गठन की बात कही गई है और विक्षा
प्रिासन को चस्ु त करने की बात कही गई है। सार् ही विक्षा पर राष्ट्रीय आय की 6 प्रवतित
धनरावि व्यय करने की घोषणा की गई है।
ग्यारहिें भाग- सस
ं ाधन तर्ा समीक्षा (Resources and Review) :- राष्ट्रीय विक्षा नीवत, 1986
को लागू करने के वलए एक बड़ी धनरावि की आिश्यकता होगी। अतः प्रत्येक प्रस्तावित कायथ के
वलए अनमु ावनत धनरावि आिवं ित करने की व्यिस्र्ा की जाएगी। इस र्ाग में इस बात पर र्ी बल
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वदया गया है वक प्रत्येक पााँच िषथ बाद नई विक्षा नीवत के वक्रयान्ियन और उसके पररणामों की
समीक्षा की जाए। तावक विक्षा सर्ी बच्चों को आसानी से सल ु र् हो सके ।
बारहिें और अशन्तम भाग- भशिष्ट्य (The Future) :- र्ारत सरकार ने सािथर्ोवमक विक्षा के
उद्देश्य हेतु सर्ी के द्वार तक विक्षा की अलख जगाने का प्रयास वकया है यह विश्वास प्रकि वकया
गया है वक हम वनकि र्विष्ट्य में ितप्रवतित साक्षरता का लक्ष्य प्राप्त कर सकें गे और हमारे देि के
उच्च विक्षा प्राप्त व्यवक्त सिोत्तम स्तर के होंगे।
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चतर्ु थ र्ाग-विक्षा का व्यािसायीकरण (Vocationalization of Education) :- प्रारम्र् से ही
कायाथनर्ु ि पर बल देन,े +2 के वलए विवर्न्न प्रकार के व्यािसावयक पाठ्यक्रम तैयार करने और
उपेवक्षत िगो के बच्चों के वलए अलग से वििेष व्यािसावयक संस्र्ान स्र्ावपत करने पर बल वदया
गया है।
पंचम र्ाग-उच्च विक्षा (Higher Education) :-उच्च विक्षा के उन्नयन हेतु छात्रों को प्रिेि परीक्षा
द्वारा प्रिेि देन,े पाठ्यक्रमों के पनु गथठन करने, उच्च विक्षा संस्र्ानों को ससं ाधन उपलब्ध कराने और
उनके विक्षकों के वलए पनु बोध कायथक्रमों की व्यिस्र्ा करने की बात कही गई है।
छठे र्ाग-मक्त ु विश्वविद्यालय एिं सस्ं र्ान (Open University and Distance Education) :-इवं दरा
गााँधी राष्ट्रीय मक्त
ु विश्वविद्यालय के कायथक्रमों को विस्तार देने और नए मक्तु विश्वविद्यालयों की
स्र्ापना सािधानी से करने का कायथक्रमों की व्यिस्र्ा करने की बात कही गई है।
सातिें र्ाग-ग्रामीण विश्वविद्यालय एिं संस्र्ान (Rural Universities and Institutes) :- के न्रीय
ग्रामीण संस्र्ान पररषद (Central Council of Rural Institutes) का गठन करने, ग्रामीण
विश्वविद्यालयों एंि संस्र्ाओ ं का पनु गथठन करने और इन क्षेत्रों के कुछ संस्र्ानों को स्िायत्तता प्रदान
करने की योजना प्रस्ततु की गई है।
आठिें र्ाग-तकनीकी एिं प्रबन्ध विक्षा (Technical and Management Education) :- अवखल
र्ारतीय तकनीकी विक्षा पररषद (AICTE) एिं राज्यों के तकनीकी विक्षा बोडो को सदृु ढ़ करने,
कुछ अच्छे तकनीकी तर्ा प्रबन्ध विक्षा संस्र्ाओ ं को स्िायत्तता प्रदान करने, तकनीकी विक्षा
संस्र्ाओ ं में अन्तसथम्बन्ध बढ़ाने और इस क्षेत्र में सतत् विक्षा की व्यिस्र्ा करने की बात कही गई
है।
नौिें र्ाग-प्रणाली को कायथकारी बनाना (Making the System Work) :- संस्र्ाओ ं के प्रिासन
तर्ा विक्षकों के वलए मानक वनधाथररत करने, विक्षक तर्ा छात्रों की कायथ प्रणाली में सधु ार करने
और विक्षा संस्र्ाओ ं का मलू याक
ं न करने पर बल वदया गया है।
दसिें र्ाग- उपावधयों की रोजगार से विलगता एिं मानि िवक्त का वनयोजन (Delinking Degrees
from Jobs and Manpower Planning) :-राष्ट्रीय परीक्षण सेिा (National Test Service) िरू ु
करना वनवश्चत वकया गया है। अब क्षेत्र वििेष के रोजगार प्राप्त करने के वलए क्षेत्र वििेष के राष्ट्रीय
परीक्षण में उत्तीणथ होना आिश्यक होगा।
ग्यारहिें र्ाग- अनसु धं ान तर्ा विकास (Research and Development) :- उच्च विक्षा के
पाठ्यक्रमों को विकवसत करने, अनसु धं ान के न्रों की अवधसरं चना (Infrastructure) में सधु ार करने,
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अनसु धं ान हेतु प्रवतर्ाओ ं की खोज करने और कायथरत विक्षकों को अनसु धं ान के अवधक अिसर
सल
ु र् कराने की योजना प्रस्ततु की गई है।
बारहिें र्ाग- नारी समानता के वलए विक्षा (Education for Women's Equality) :- बावलकाओ ं के
वलए अलग से स्कूल ि कााँवलज खोलने, बावलकाओ ं के वलए अवधक छात्रिृवतयों की व्यिस्र्ा
करने और विक्षकों की वनयवु क्त में मवहलाओ ं को िरीयता देने की योजना प्रस्ततु की गई है।
तेरहिें र्ाग-अनसु वू चत जावत, अनसु वू चत जनजावत तर्ा वपछड़े िगथ की विक्षा (Education of SCs,
STs and OBCs) :- इनके क्षेत्रों में विद्यालय खोलने को प्रार्वमकता देने, इन िगों के बच्चों को दी
जाने िाली छात्रिृवत्तयों की दर बढ़ाने, इनके वलए छात्रािासों की व्यिस्र्ा करने और इन जावतयों के
विक्षकों की वनयवु क्त करने की योजना प्रस्ततु की गई है।
चौदहिें र्ाग-अलपसंख्यकों की विक्षा (Education of Minorities) :- अलपसंख्यकों के क्षेत्रों में
स्कूल और पौवलिैवक्नक कॉवलज खोलने, विक्षकों को प्रविवक्षत करने, इनके वलए कोवचंग सेन्िर
खोलने और इनकी बवच्चयों की विक्षा की व्यिस्र्ा पर वििेष ध्यान देने पर बल वदया गया है।
पन्रहिें र्ाग-विकलागों की विक्षा (Education of the Handicapped) :-जनपद स्तर पर
विकलागं ता जानकारी हेतु सेिाएाँ िरू
ु करने और इनकी विक्षा की उपयक्त
ु व्यिस्र्ा करने की बात
कही गई है।
सोलहिें र्ाग-प्रौढ़ विक्षा (Adult Education) :- प्रौढ़ विक्षा, सतत् विक्षा को गवत प्रदान करने के
वलए ग्रामों में सतत् विक्षा के न्र, पस्ु तकालय एिं िाचनालय स्र्ावपत करने पर बल वदया गया है।
सत्रहिें र्ाग-स्कूल विक्षा की विषयिस्तु तर्ा प्रवक्रया (Content and Process of School
Education) :- राष्ट्रीय कोर पाठ्यक्रम और पाठ्य पस्ु तकों में सध
ु ार पर वििेष बल वदया गया है।
अठारहिें र्ाग-मलू याक
ं न प्रवक्रया तर्ा परीक्षा सधु ार (Evaluation Process and Examination
Reforms):- के िल 10 तर्ा 12 कक्षाओ ं के अन्त में सािथजवनक परीक्षा करने सतत् मलू यांकन
करने और अक्षर ग्रेड प्रणाली अपनाने की बात कही गई है। और सार् ही राष्ट्रीय परीक्षण सेिा िरू
ु
करने एिं नकल विरोधी काननू बनाने की बात कही गई है।
उन्नीसिें र्ाग-यिु ा तर्ा खेल (Youth and Sports) :-िारीररक विक्षा एिं खेलों को सवम्मवलत
करने पर बल वदया गया है।
बीसिें र्ाग-र्ाषा विकास (Language Development) :- आधवु नक र्ारतीय र्ाषाओ ं के विकास
और वहन्दी को सम्पथक र्ाषा के रूप में विकवसत करने के वलए आवर्थक सहायता देने का िायदा
वकया गया है।
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इक्कीसिें र्ाग-सांस्कृ वतक पररपेक्ष्य (The Cultural Perspective) :- सांस्कृ वतक कायथक्रमों को
पाठ्यचयाथ का अगं स्िीकार वकया गया है। तावक व्यवक्त संस्कारिान बन सके ।
बाईसिें र्ाग-संचार साधन तर्ा िैवक्षक तकनीकी (Media and Educational Technology):-
विक्षा में रेवडयो, िेलीविजन, कम्मायिू र एिं ओिर हैड प्रोजेक्िर आवद के प्रयोग की संस्तवु त की गई
है।
तेईसिें र्ाग-विक्षक एिं उनका प्रविक्षण (Teacher and their Training) :- विक्षक विक्षामें सधु ार
हेतु प्रत्येक वजले में वजला विक्षा एिं प्रविक्षण संस्र्ान (DIETs)स्र्ावपत करने, कुछ अच्छे कॉलेजों
को विक्षक विक्षा कॉलेजों (CTEs) में समन्ु नत करने और कुछ बहुत अच्छे कॉलेजों को ‘विक्षा
उच्च अध्ययन के न्रों (CASEs)में सम्मनु त करने की योजना प्रस्ततु की गई है और सार् ही ‘राष्ट्रीय
विक्षा पररषद‘ (NCTE)को स्िायत्त दजाथ देने की बात कही है।
चौबीसिें एिं अवन्तम र्ाग-विक्षा का प्रबन्ध (Management of Education) :- मानि ससं ाधन
मन्त्रालय को सदृु ढ़ करने, प्रिासन का विके न्रीयकरण करने, र्ारतीय विक्षा सेिा िरूु करने और
वजला विक्षा पररषदों का गठन करने की योजना प्रस्ततु की गई है।
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उपलब्ध कराना स्िीकार वकया गया है और यह घोषणा की गई है वक के न्र अपने बजि में
विक्षा पर 6 प्रवतित का प्रािधान करेगा। सार् ही प्रत्येक स्तर पर जन सहयोग को प्रोत्सावहत
करने का प्रयत्न वकया जाएगा।
3. सम्पूणथ देि में 10+2+3 शिक्षा संरिना लागू होगी :- राष्ट्रीय विक्षा नीवत 1986 के तृतीय
र्ाग में सम्पणू थ देि के वलए 10+2+3 विक्षा संरचना स्िीकार की गई है। प्रर्म 10 िषीय विक्षा
परू े देि के वलए समान होगी, इसके वलए एक आधारर्तू पाठ्यचयाथ (Core Curriculum) होगी।
+2 पर प्रवतर्ािाली छात्र-छात्राओ ं को विश्वविद्यालय विक्षा के वलए तैयार वकया जाएगा और
सामान्य छात्र-छात्राओ ं को वििेष की आिश्यकाताओ ं और छात्र-छात्राओ ं की रूवच एिं
योग्यतानसु ार व्यािसावयक विक्षा प्रदान की जाएगी। +3 पर छात्रों को उच्च ज्ञान प्रदान वकया
जाएगा जो देि की सांस्कृ वतक सरु क्षा और उसके आधवु नकीकरण में सहायक होगा,सार् ही
वचवकत्सा, न्याय, कृ वष, विज्ञान एिं तकनीकी विक्षा की व्यिस्र्ा की जाएगी वजसके द्वारा
समाज की मााँगों की पवू तथ होगी।
4. शिशभन्न स्तरों पर शिक्षा का पनु गथठन शकया जाएगा :-इस विक्षानीवत के पााँचिें र्ाग में
विक्षा के सर्ी स्तरों का पनु गथठन करने पर बल वदया गया है। और पिू थ प्रार्वमक, प्रार्वमक,
माध्यवमक और उच्च विक्षा की पाठ्यचथया में सधु ार करने और उनके स्तर को उठाने पर बल
वदया गया है। विक्षा के सर्ी स्तरों पर एक तरफ सामावजक एिं सास्ं कृ वतक मलू यों की विक्षा
और दसू री तरफ गवणत, विज्ञान एिं कम्मायिू र प्रयोग आवद की विक्षा पर बल वदया गया है,
सांस्कृ वतक संरक्षण एिं आधवु नकीकरण में समन्िय पर बल वदया गया है।
5. पूिथ प्रार्शमक शिक्षा की व्यिस्र्ा की जाएगी :- इस स्तर पर वििओ ु ं के िारीररक एिं
मानवसक विकास पर ध्यान वदया जाएगा; उनके र्ोजन, िस्त्र, सफाई और पयाथिरण पर ध्यान
वदया जाएगा अैर उनके वलए खेल-कूद एिं व्यायाम की उवचत व्यिस्र्ा की जाएगी।
6. अशनिायथ एिं शनःिुलक प्रार्शमक शिक्षा के लक्ष्य को िीघ्राशतिीघ्र प्राि शकया जाएगा
:-प्रार्वमक विक्षा को सिथसल ु र् बनाया जाएगा। अर्ी 90 प्रवतित बच्चों को 1 वकमी0 की दरू ी
पर प्रार्वमक विद्यालय उपलब्ध हैं, िेष 10 पवतित को 1990 तक उपलब्ध करा वदए जाएाँगे।
1995 तक 11 से 14 आयु िगथ के ित प्रवतित बच्चों को र्ी उच्च प्रार्वमक विक्षा सल ु र्
करा दी जाएगी। प्रार्वमक विद्यालयों की दिा में सधु ार वकया जाएगा।
7. माध्यशमक शिक्षा का पुनगथठन शकया जाएगा:- इस राष्ट्रीय विक्षा नीवत के पााँचिें र्ाग में
यह घोषणा की गई है वक माध्यवमक विक्षा सर्ी इच्छुक लड़के -लड़वकयों को सल ु र् कराई
जाएगी। इस स्तर पर वत्रर्ाषा सत्रू लागू होगा और गवणत, विज्ञान सामावजक विज्ञान, मानविकी,
इवतहास, राष्ट्रीयता, संिैधावनक दावयत्ि, नागररक अवधकार एिं कत्तव्यथ, सांस्कृ वतक संस्कार
और कायाथनर्ु िको अवनिायथ वकया जाएगा। प्रत्येक वजले में एक निोदय विद्यालय स्र्ावपत
वकया जाएगा जो अन्य विद्यालयों के वलए आदिथ विद्यालय होगा। +2 पर सामान्य विक्षा के
सार्-सार् क्षेत्र वििेष की आिश्यकतानसु ार व्यािसावयक विक्षा की व्यिस्र्ा की जाएगी और
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यह प्रयत्न वकया जाएगा वक 1995 तक इस व्यािसावयक िगथ में 25 प्रवतित छात्र-छात्राएाँ
विक्षा ग्रहण करें।
8. उच्ि शिक्षा का प्रसार एिं उन्नयन शकया जाएगा :- इस विक्षा नीवत के पााँचिें र्ाग में यह
स्पष्ट वकया गया है वक उच्च विक्षा द्वारा छात्रों में विविष्ट ज्ञान एिं कुिलता का विकास वकया
जाएगा वजससे राष्ट्रका विकास होगा। इसके मौजदू ा पाठ्यक्रमों में सधु ार वकया जाएगा और
विक्षण को वचन्तनपरक बनाया जाएगा। सार् ही विक्षकों के कायो का मलू याक ं न वकया जाएगा
और उनकी पदोन्नवत योग्यता के आधार पर की जाएगी। उच्च विक्षा का स्तर मान बनाए रखने
का उत्तरदावयत्ि विश्वविद्यालय अनदु ान आयोग का होगा। उच्च विक्षा को सिथसल ु र् कराने के
वलए खल ु े विश्वविद्यालयों (Open Universities) की स्र्ापना की जाएगी।
9. तकनीकी एिं प्रबन्ध शिक्षा में सध ु ार शकया जाएगा :- इस विक्षा नीवत के छठे र्ाग में
तकनीकी एिं प्रबन्ध विक्षा के महत्त्ि को स्िीकार करते हुए उसकी उवचत व्यिस्र्ा करने पर
बल वदया गया है। यह घोषणा की गई है वक तकनीकी एिं प्रबन्ध विक्षा को र्विष्ट्य की
आिश्यकतानसु ार वनयोवजत वकया जाएगा और मवहलाओ ं और समाज के कमजोर िगथ के
बच्चों को तकनीकीविक्षा की परू ी-परू ी सवु िधाएाँ उपलब्ध कराई जाएाँगी। इस विक्षा के स्तर को
उठाने के वलए इनके पाठ्यक्रमों को अद्यतन बनाया जाएगा और सैद्वावन्तक ज्ञान की अपेक्षा
प्रायोवगक दक्षता पर अवधक बल वदया जाएगा और सार् ही िोध कायथ पर वििेष ध्यान वदया
जाएगा। इस विक्षा का स्तरमान वनवश्चत करने और इस प्रकार की विक्षण संस्र्ाओ ं पर वनयन्त्रण
करने के वलए ‘अवखल र्ारतीय तकनीकी विक्षा पररषद’ (All India Council for Technical
Education) को काननू ी अवधकार वदए जाएाँगे। वनम्न स्तर की तकनीकी सस्ं र्ाओ ं को बन्द
वकया जाएगा और इस क्षेत्र में उच्च स्तरीय कायथ करने िालों को प्रोत्साहन वदया जाएगा।
10. परीक्षा प्रणाली और मूलयांकन प्रशक्रया में सुधार शकया जाएगा :-राष्ट्रीय विक्षा
नीवत,1986 के आठिें र्ाग के अन्त में तत्कालीन परीक्षा प्रणाली और मलू याक ं न प्रवक्रया में
सधु ार की चचाथ की गई है। यह घोषणा की गई है वक मलू याक ं न को एक सतत् प्रवक्रया बनाया
जाएगा, बाह्य मलू याक ं न को अवधक महत्त्ि वदया जाएगा, परीक्षाओ ं को िैध और विश्वसनीय
बनाया जाएगा, प्रश्नपत्रों की रचना और उत्तर पस्ु तकों के मलू यांकन को िस्तवु नष्ठ बनाया जाएगा
और श्रेणी के स्र्ान पर ग्रेड वसस्िम लागू वकया जाएगा।
11. शिक्षकों के स्तर और शिक्षक प्रशिक्षण में सुधार शकया जाएगा :-विक्षकों का चयन उनकी
योग्यता के आधार पर वकया जाएगा। उनके स्तर को उठाने के वलए उनके िेतनमान बढ़ाए जाएाँगे
और सेिाितो को आकषथक बनाया जाएगा। परू े देि में समान कायथ के वलए समान िेतनमान के
वसिान्त को लागू वकया जाएगा, सार् ही सेिापिू थ और सेिाकालीन विक्षक प्रविक्षण में सधु ार
वकया जाएगा। प्रत्येक वजले में ‘वजला विक्षा और प्रविक्षण संस्र्ान’(District Institute of
Education and Training, DIET) की स्र्ापना की जाएगी वजनमें प्रार्वमक विक्षकों और
वनरौपचाररक विक्षा तर्ा प्रौढ़ विक्षा के कायथकताथओ ं के प्रविक्षण की व्यिस्र्ा होनी और सार्
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ही अलपकालीन प्रविक्षण कायथक्रम चलाए जाएाँगे और इस क्षेत्र में िोध कायथ कीये जाएगे।
घविया वकस्म के प्रार्वमक विक्षक प्रविक्षण विद्यालयों को बन्द कर वदया जाएगा। कुछ चनु े हुए
उच्च स्तर के माध्यवमक विक्षक प्रविक्षण महाविद्यालयों का दजाथ बढ़ाया जाएगा, उन्हें ‘विक्षक
विक्षा महाविद्यालय’(College of Teacher Education, CTE में समोन्नत वकया जाएगा वजनमें
माध्यवमक विक्षकों के प्रविक्षण और इस क्षेत्रमें िोध कायथ की व्यिस्र्ा होगी।
12. प्रौढ़ शिक्षा कायथक्रमों का शिस्तार शकया जाएगा :- प्रौढ़ विक्षा को राष्ट्रीय लक्ष्यों से जोड़ा
जाएगा और 15-35 आयु िगथ के प्रौढ़ों को साक्षर बनाने के वलए सरकारी और गैरसरकारी
संगठनों का उपयोग वकया जाएगा। औद्योवगक एिं व्यापाररक प्रवतष्ठानों को उनमें कायथरत
वनरक्षक प्रौढ़ों को साक्षर बनाने का उत्तरदावयत्ि सौंपा जाएगा। प्रौढ़ विक्षा के दसू रे पक्ष-अद्यतन
जानकारी हेतु सतत् विक्षा की व्यिस्र्ा की जाएगी। ग्रामीण क्षेत्रों में सतत् विक्षा के न्र खोले
जाएाँगे और पस्ु तकालयों और िाचनालयों की व्यिस्र्ा की जाएगी। प्रौढ़ विक्षा के प्रचार एिं
प्रसार में जनसचं ार के साधनों का प्रयोग वकया जाएगा।
13. सतत् शिक्षा की व्यिस्र्ा की जाएगी :- यिु ा िगथ, गृहवणयों, वकसानों, व्यापाररयों और
विवर्न्न उद्योगोंमें कायथरत व्यवक्तयों को उनके क्षेत्र की अद्यतन जानकारी देने हेतु सतत् विक्षा
की व्यिस्र्ा की जाएगी और इसके वलए खल ु ी विक्षा और दरू विक्षा की व्यिस्र्ा की जाएगी
और जनसचं ार के माध्यमों का प्रयोग वकया जाएगा।
14. िैशक्षक तकनीकी का प्रयोग शकया जाएगा :-वकसी र्ी स्तर की वकसी र्ी प्रकार की विक्षा
के वलए िैवक्षक तकनीकी का प्रयोग वकया जाएगा। जन संचार के माध्यमों से विक्षा को
सिथसल ु र् बनाया जाएगा।
15. शिक्षा व्यिस्र्ा को कारगर बनाया जाएगा :-राष्ट्रीय विक्षा नीवत, 1986 के सातिें र्ाग में
विक्षा को कारगर बनाने के वलए विक्षकों की जिाबदेही (Accountability) वनवश्चत करने और
छात्रों को कत्तथव्य बोध कराने पर बल वदया गया हैं इसके तीसरे र्ाग में विक्षा के प्रत्येक स्तर के
वलए न्यनू तम अवधगम स्तर (Minimum Level of Learning, MLL) वनवश्चत करने की बात
कही गई है और उसमें गणु ात्मक सधु ार करने की बात कही गई है। इस दस्तािेज के दसिें र्ाग
में प्रिासन तन्त्र को चस्ु त करने पर बल वदया गया है।
16. िैशक्षक अिसरों की समानता के शलए ठोस कदम उठाए जाएाँगे:-इस विक्षा नीवत के चौर्े
र्ाग में स्पष्ट घोषणा की गई है वक िैवक्षक विषमताओ ं को दरू वकया जाएगा और मवहलाओ,ं
अनसु वू चत जावत, अनसु वू चत जनजावत, वपछडे िगथ, अलपसंख्यक और विकलांगों की विक्षा की
वििेष व्यिस्र्ा की जाएगी और सर्ी को विक्षा प्राप्त करने के समान अिसर सल ु र् कराए
जाएाँगे।
17. मशहला शिक्षा पर शििेष ध्यान शदया जाएगा- इस हेतु वनम्नवलवखत कदम उठाए जाएाँगे :-
स्त्री-परू
ु षों की विक्षा में र्ेद नहीं वकया जाएगा, वलगं मल ू क अन्तर को समाप्त वकया जाएगा।
मवहलाओ ं की विक्षा के विकास हेतु प्रारम्र् से ही प्रयत्न वकए जाएाँगे। मवहलाओ ं को विज्ञान
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एिं तकनीकी विक्षा प्राप्त करने के वलए प्रोत्सावहत वकया जाएगा। मवहलाओ ं को व्यािसावयक
एिं तकनीकी विक्षा प्राप्त करने के वलए वििेष सवु िधाएाँ दी जाएाँगी।
18. अनुसूशित जाशत और अनस ु ूशित जनजाशतयों के बच्िों की शिक्षा की उशित व्यिस्र्ा
की जाएगी :-इस क्षेत्र में वनम्नवलवखत कदम उठाए जाएाँगे- नगरों, गााँिों और पहाड़ी तर्ा
आवदिासी क्षेत्रों में अनसु वू चत जावत, अनसु वू चत जनजावत के बच्चों के वलए विद्यालयों की
व्यिस्र्ा की जाएगी। इन विद्यालयों में यर्ासम्र्ि इन्हीं िगो और इन्हीं क्षेत्रों के विक्षकों की
वनयवु क्त की जाएगी। दरू -दराज से आने िालें बच्चों के वलए छात्रािासों का वनमाथण कराया
जाएगा। इन िगों के बच्चों की आवर्थक सहायता की धनरावि बढ़ाई जाएगी।
19. शपछड़े िगथ एिं शपछड़े क्षेत्रों के बच्िों की शिक्षा की उशित व्यिस्र्ा की जाएगी :-इस
हेतु वनम्नवलवखत कदम उठाए जाएाँग-े वपछड़े िगथ एिं वपछड़े क्षेत्रों के बच्चों की विक्षा पर
वििेष ध्यान वदया जाएगा। देि के रेवगस्तानी, पहाड़ी और जगं ली क्षेत्रों में और अवधक स्कूल
खोले जाएाँगे। इन क्षेत्रों के स्कूलों में इन्हीं क्षेत्रों के विवक्षत यिु कों को प्रविवक्षत कर विक्षक
वनयक्त
ु करने का प्रयास वकया जाएगा। वपछड़े िगथ के बच्चों को आवर्थक सहायता जारी रहेगी,
सार् ही उन्हें छात्रिृवत्तयााँ दी जाएाँगी।
20. अलपसख् ं यकों के बच्िो की शिक्षा पर शििेष ध्यान शदया जाएगा :-सवं िधान में
अलपसख्ं यकों (मसु लमान एिं इसाई आवद) को अपनी र्ाषा, सस्ं कृ वत एिं धमथ की रक्षा करने
का अवधकार वदया गया है। अतः- इन्हें अपनी विक्षा संस्र्ाएाँ चलाने का आवधकार होगा, परन्तु
इनका पाठ्यक्रम प्रान्तीय सरकारों द्वारा वनवश्चत पाठ्यक्रम ही होगा। इनके क्षेत्रों में स्कूलों की
स्र्ापना की जाएगी।
21. शिकलागं और मन्दबुशद्ध बच्िों की शिक्षा की व्यिस्र्ा की जाएगी:-इनकी विक्षा की
व्यिस्र्ा हेतु वनम्नवलवखत कदम उठाये जाएाँग-े विकलांग और मन्दबवु ि बालकों की विक्षा पर
वििेष ध्यान वदया जाएगा और इनकी विक्षा व्यिस्र्ा हेतु स्िैवच्छक प्रयासों को प्रोत्सावहत
वकया जाएगा। मामल ू ी विकलांग बच्चे सामान्य बच्चों के सार् पढ़ेग,े गाँगू े, बहरे , अन्धे और
मन्दबवु ि बालकों के वलए अलग-अलग स्कूल खोले जाएाँगे। विकलागं बच्चों को कुिीर
अद्योग-धन्धों की विक्षा दी जाएगी और उन्हें आत्मवनर्थर बनाया जाएगा। विकलांग और
मन्दबवु ि बालकों की विक्षा हेतु वििेष प्रविक्षण प्राप्त विक्षकों की वनयवु क्त की जाएगी।
14.5.1 मि
ु शिश्वशिद्यालय तर्ा दूरस्र् शिक्षा Open University and Distance
Learning
उच्चतर विक्षा के अिसरों को बढ़ाने के उद्देश्य से तर्ा विक्षा को लोकतावन्त्रक बनाने बाले माध्यम
के रूप में ओपन विश्वविधालय पिवतका आरम्र् वकया गया। इन उद्देश्यों की पतू ी के वलय सन
1985 में स्र्ावपत ‘इवं दरा गााँधी राष्ट्रीय मक्त
ु विश्वविधालय (Indira Gandhi National open
university) को मजबतू बनाया जायगा। दरू स्र् विक्षा के माध्यम से बढ़ािा देने के वलय र्ारत में
उत्तराखण्ड मक्त
ु विश्वविद्यालय 199
समकालीन भारत और शिक्षा BEDSEDE A2
आज 16 विश्वविधालय विक्षा के विकास में अपना योगदान कर रहे है । उत्तराखडं में िषथ 2005 में
स्र्ावपत उत्तराखडं मक्त
ु विश्वविधालय हलद्वानी आज स्नातक ि स्नातकोतर उपावध प्रदान करने के
सार् पी०एच०डी० ि िोध कायथ करके राष्ट्र के विकास में अपना योगदान कर रहा है। इसके माध्यम
से उन लोगो के वलय विक्षा के द्वार खल ु गये है वजनको वकसी कारण से अपनी विक्षा बीच में
छोडनी पड़ी। िे दरू स्र् विक्षा के माध्यम से अपनी विक्षा परू ी कर रहे है।
14.5.2 ऑपरेिन ब्लैक बोडथ योजना (Operation Black Board Plan) :-फपरेिन
ब्लैक बोडथ योजना के अनसु ार कम से कम दो कमरों, एक िराण्डे और दो िौचालयों के पक्के र्िन,
दो विक्षक (वजनमें यर्ा सम्र्ि एक मवहला विक्षक होगी), पस्ु तकालय सामग्री, विक्षण-अवधगम
सामग्री (ब्लैक बोडथ, चॉक, डस्िर, नक्िे, विज्ञान वकि), िाि-पट्टी खेल के पैदान और खेल सामग्री
उपलब्ध कराई जाएगी। ऐसे बच्चे जो वकसी कारण औपचाररक विक्षा के न्रों पर नहीं जा पाते हैं
उनके वलए वनरौपचाररक विक्षा के न्र (Non Formal Education Centre) खोले जाएाँग।े आज विक्षा
में बढ़ािा देने के वलय बच्चों को पका र्ोजन प्रदान वकया जा रहा है।
उत्तराखण्ड मक्त
ु विश्वविद्यालय 200
समकालीन भारत और शिक्षा BEDSEDE A2
5. सिं ोवधत राष्ट्रीय विक्षा नीवत, 1986 में प्रार्वमक विक्षा को कब तक सिथसल
ु र् बनाने की
घोषणा की गई हैं।
(a) 1995 (b) 2000
(c) 2005 (d) 2010
6. िषथ 1986 से पहले वकस िषथ राष्ट्रीय विक्षा नीवत बनी।
(a) 1985 (b) 1968
(c) 1980 (d) 1969
14.6 साराांि
र्ारत िषो की गल ु ामी के बाद स्ितंत्र हुआ यहााँ पर अग्रं जो ने एक छत्र िासन वकया। यधवप उन्होंने
र्ारत में काफी सधु ार कायथ वकए विक्षा को एक अनोठी वदिा प्रदान की । आजादी के बाद विक्षा
में सधु ार हेतु अनेक आयोग बनाये गये लेवकन विक्षा सर्ी के वलय सल ु र् न हो सकी क्योवक समाज
का धनाड्य िगथ नही चाहता र्ा वक सर्ी िगों को विक्षा प्राप्त हो । उन्हें र्य है वक यवद िे विवक्षत हो
गये तो िे अपने अवधकारों की मांग करेगे, हमारे द्वारा वकए जाने िाले कायो में सधु ार वक माग
करेंगे। लेवकन तत्कालीन सरकार ने सर्ी के वलय विक्षा के द्वार खोलने का प्रयास वकया और िषथ
1986 में नई राष्ट्रीय विक्षा नीवत बनाई गयी । इसमें सरकार ने प्रयास वकया वक सर्ी िगों के बच्चों
को घर के पास एक वकलोमीिर की दरू ी पर विक्षा प्राप्त हो। घर से एक वकलोमीिर पर प्रार्वमक
विधालय ि तीन वकलोमीिर की दरू ी पर जवू नयर विधालय की स्र्ापना की गयी। जहा पर प्रविवक्षत
अध्यापकों की वनयवु क्त र्ी की गयी। लेवकन सरकार के अवधकाररयो ने सरकारी विधालयो के चारो
ओर खल ु ने िाले प्राइिेि स्कूलों को मान्यता देकर कुकुरमत्तु ो की तरह उनको स्र्ावपत कराकर
सरकारी स्कूलों की विक्षा को समाप्त करने का षडयत्रं वकया है। क्योवक समाज का जब जागरूक
नागररक अपने बच्चों को नहीं पढायेगे तब सरकारी विधालयो में विक्षक की गवतविवधयों से उनको
कोई लेना देना नहीं है। आज विक्षक सरकारी कायो का बहाना बनाकर विधालय से गायब रहते है।
जब तक इन प्राइिेि विधालयो को बंद नहीं वकया जाता तब तक न तो सरकारी विधालयो को बच्चे
वमलगे न ही समाज उन्नवत कर सकता है यह पंजू ीपवत िगथ की बहुत सोची समझी चाल है। क्योवक
विक्षा प्राइिेि होने पर आम आदमी का बच्चा विक्षा नही कर पायगा।
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ु विश्वविद्यालय 201
समकालीन भारत और शिक्षा BEDSEDE A2
14.7 िब्दावली
1. विक्षा की विषयिस्तु और प्रवक्रया में नया मोड़ (Reorienting the Content and Process
of Education) :- सांस्कृ वतक मलू यों और िैज्ञावनक सोच में समन्िय करने पर बल वदया
गया है, मलू यों की विक्षा और र्ारतीय र्ाषाओ ं के विकास के सार्-सार् गवणत और
विज्ञान की विक्षा पर बल वदया गया है और स्िास्थ्यििथक वक्रयाओ-ं खेल-कूद आवद पर
बल वदया गया है और अन्त में परीक्षा प्रणाली एिं मलू याक ं न प्रवक्रया में सधु ार के वलए
सझु ाि वदए हैं।
2. ब्लैक बोडथ योजना :- ब्लैक बोडथ योजना के अन्तथगत प्रार्वमक विश्वविद्यालयों की न्यनू तम
आिश्यकताओ ं (दो कमरों का र्िन, फनीचर, विक्षण सामग्री, पस्ु तकालय सामग्री खेल
सामग्री और कम से कम दो विक्षकों) की पवू तथ करने और इन सबके वलए धनरावि जिु ाने
का संकलप वकया गया है।
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समकालीन भारत और शिक्षा BEDSEDE A2
14.10 शनबन्धात्मक प्रश्न
1. राष्ट्रीय विक्षा नीवत1986 का विस्तृत िणथन कीवजए।
2. राष्ट्रीय विक्षा नीवत1986 की कायथ योजना का विस्तृत िणथन कीवजए ।
3. राष्ट्रीय विक्षा नीवत1986 में प्रार्वमक विक्षा के सम्बन्ध में क्या प्रस्ताि वकए गए हैं ? िणथन
कीवजए ।
4. राष्ट्रीय विक्षा नीवत1986 में विक्षकों के स्तर को उठाने के सम्बन्ध में क्या प्रस्ताि वकए गए
हैं ? िणथन कीवजए ।
5. राष्ट्रीय विक्षा नीवत, 1986 में प्रौढ़ एिं सतत् विक्षा के सम्बन्ध में क्या प्रस्ताि वकए गए हैं?
6. वनम्नवलवखत पर सवं क्षप्त विमापणी वलवखए-
(1) फपरेिन ब्लैक बोडथ (2) निोदय विद्यालय
(3) खल ु े विश्वविद्यालय (4) वजला विक्षा एिं प्रविक्षण संस्र्ान
7. राष्ट्रीय विक्षा नीवत, 1986 में वनम्नवलवखत के सम्बन्ध में क्या प्रस्ताि वकए गए हैं
वलवखए-
i. प्रार्वमक विक्षा का सािथर्ौमीकरण
ii. माध्यवमक विक्षा का व्यािसायीकरण
iii. वत्रर्ाषा सत्रू
iv. विक्षा योजना को कारगर बनाना
v. िैवक्षक अिसरों की समानता
vi. परीक्षा एिं मलू यांकन
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इकाई -15 संिोशधत िाष्ट्रीय शिक्षा नीशत 1986 (1992)
Revised National Education Policy, 1986(1992)
15.1 प्रस्तािना
15.2 उद्देश्य
15.3 सि ं ोवधत राष्ट्रीय विक्षा नीवत, (1992) की नीवत ि सि
ं ोधन
15.4 कायथ योजना1992 का दस्तािेज
15.5 संिोवधत राष्ट्रीय विक्षा नीवत, 1986 (1992) के मूल तत्त्ि
15.5.1 राष्ट्रीय विक्षा नीवत, 1986 एिं संिोवधत (1992) का मूलयांकन
अर्िा गुण-दोष वििेचन
15.5.2 राष्ट्रीय विक्षा नीवत, 1986 एिं सिं ोवधत (1992) का प्रर्ाि
15.6 साराि ं
15.7 िब्दािली
15.8 स्िमूलयांकन हेतु प्रश्नों के उत्तर
15.9 सन्दर्थ ग्रन्र् सचू ी
15.10 वनबन्धात्मक प्रश्न
15.1 प्रस्तावना
राष्ट्रीय विक्षा नीवत, 1986 में यह घोषणा की गई र्ी वक प्रत्येक 5 िषथ के बाद इस नीवत के
वक्रयान्ियन और उसके पररणामों की समीक्षा की जाएगी। पर के न्र सरकार ने 3 िषथ बाद 1990 में
ही इसकी समीक्षा हेतु ’राममवू तथ समीक्षा सवमवत, 1990’ का गठन वकया र्ा। अर्ी इस सवमवत के
प्रवतिेदन पर विचार र्ी िरूु नहीं हुआ र्ा वक सरकार ने 1992 में इस नीवत के वक्रयान्ियन एिं
पररणामों की समीक्षा हेतु जनादथन रेड्डी सवमवत, 1992’ का गठन कर वदया। इन दोनों सवमवतयों की
ररपोिथ के आधार पर सरकार ने 1992 में ही राष्ट्रीय विक्षा नीवत, 1986 में कुछ संिोधन कर वदए
और इसे सि ं ोवधत राष्ट्रीय विक्षा नीवत, 1986‘ (National Policy on Education,1986, with
Modifications Undertaken in 1992) के नाम से प्रकावित वकया। कुछ विद्वान इसे ही र्ल ू से
राष्ट्रीय विक्षा नीवत 1992 कहते हैं। सरकार ने उसी िषथ इसकी कायथ योजना (Plan of Action) में
कुछ पररितथन वकए। इस पररिवतथत कायथ योजना को कायथ योजना 1992 (Plan of Action, 1992)
उत्तराखण्ड मक्त
ु विश्वविद्यालय 204
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कहा जाता है। यहााँ 1992 की सि ं ोवधत नीवत की एक स्पष्ट रूप से अध्धयन करने से के िल दो
अनच्ु छे द जोड़े गए है और चौतीस अनच्ु छेदों में सधु ार वकए गये है।
15.2 उद्देश्य
1. संिोवधत राष्ट्रीय विक्षा नीवत, (1992) के दस्तािेज को समझ सकें गे।
2. कायथ योजना 1992 का दस्तािेज ि प्रवक्रया को समझ सकें गे।
3. संिोवधत राष्ट्रीय विक्षा नीवत 1986 (1992) के मल ू तत्त्ि को समझ सकें गे।
4. राष्ट्रीय विक्षा नीवत 1986 एिं संिोवधत (1992) के गणु से बच्चों को लार्ावन्ित कर सकें गे।
5. राष्ट्रीय विक्षा नीवत, 1986 एिं संिोवधत (1992) के दोष को जान सकें गे।
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समकालीन भारत और शिक्षा BEDSEDE A2
i. ब्लैक बोडथ योजना के अन्तगथत प्रत्येक प्रार्वमक विद्यालय में कम से कम तीन बडे कमरों
और तीन विक्षकों की व्यिस्र्ा की जाएगी।
ii. र्विष्ट्य में प्रार्वमक स्कूलों में वनयक्त
ु होने िाले विक्षकों में 50 प्रवतित मवहलाएाँ होंगी।
iii. ब्लैक बोडथ योजना को उच्च प्रार्वमक विद्यालयों में र्ी लागू वकया जाएगा।
iv. अवनिायथ एिं वनःिलु क विक्षा के लक्ष्य को 2000 तक प्राप्त करने हेतु एक राष्ट्रीय वमिन
चलाया जाएगा।
v. माध्यवमक विक्षा में लड़वकयों और अनसु वू चत जावत ि अनसु वू चत जनजावतयों के बच्चों के
नामाक ं न पर बल वदया जाएगा।
vi. मक्त
ु अवधगम प्रणाली को सदृु ढ़ वकया जाएगा।
vii. परीक्षा एंि मलू यांकन में सधु ार हेतु ‘राष्ट्रीय मलू याक
ं न संगठन‘ गवठत वकया जाएगा।
र्ाग छह- तकनीकी तर्ा प्रबन्ध विक्षा में के िल एक संिोधन वकया गया है-
a. अवखल र्ारतीय तकनीकी विक्षा पररषद (AICTE) को और सदृु ढ़ वकया जाएगा।
र्ाग सात- विक्षा व्यिस्र्ा को कारगर बनाना में कोई संिोधन नहीं वकया गया है।
र्ाग आठ-विक्षा की विषयिस्तु और प्रवक्रया को नया मोड़ देना में दो सि
ं ोधन वकए गए हैं-
a. प्रार्वमक एिं माध्यवमक विक्षा में जनसख्ं या विक्षा पर वििेष बल वदया जाएगा।
b. परीक्षा सस्ं र्ाओ ं के वदिा वनदेिन हेतु परीक्षा सधु ार प्रारूप ग तैयार वकया जाएगा।
र्ाग नौ-विक्षक के सम्बन्ध में कोई संिोधन नहीं वकया गया है।
र्ाग दस-विक्षा का प्रबन्ध में के िल एक सि
ं ोधन वकया गया है-
a. विक्षा पर राष्ट्रीय आय का 6 प्रवतित से अवधक व्यय वकया जाएगा।
र्ाग ग्यारह-सि
ं ाधन और समीक्षा पर बल वदया गया ।
र्ाग बारह- र्विष्ट्य में कोई संिाधन नहीं बढ़ाया गया है।
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ु विश्वविद्यालय 206
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i. प्राररम्र्क विक्षा (Elementary Education)
ii. माध्यवमक विक्षा (Secondary Education)
iii. उच्च विक्षा (Higher Education)
iv. विकलांगों की विक्षा (Education of Handicapped)
v. प्रौढ़ एिं सतत विक्षा (Adult and Continuing Education)
vi. पिू थ बालय काल पररचयाथ एिं विक्षा (Early Childhood Care and Education)
vii. नारी समानता के वलए विक्षा (Education for Women Equality)
viii. अनसु वू चत जावत, अनसु वू चत जनजावत तर्ा वपछड़े िगो की विक्षा ( Education of
Scheduled Castes, Scheduled Tribes and Backward Classes )
ix. निोदय विद्यालय ( Novodya Vidyalaya)
x. व्यािसावयक विक्षा (Vocational Education)
xi. अलपसंख्यकों की विक्षा (Education of Minorities)
xii. मक्तु विक्षा (Open Education)
xiii. उपावध की रोजगार से विलगता (Delinking Degrees with Jobs)
xiv. ग्रामीण विश्वविद्यालय एिं संस्र्ान (Rural Universities and Institutes)
xv. तकनीकी एिं प्रबन्ध विक्षा (Technical and Management Education)
xvi. अनसु ंधान एिं विकास (Research and Development)
xvii. सांस्कृ वतक पररप्रेक्ष्य (Cultural perspective)
xviii. र्ाषाओ ं का विकास (Development of Languages)
xix. जन संचार एिं िैवक्षक तकनीकी (Media and Educational Technology)
xx. खेल, िारीररक विक्षा एिं यिु ा (Sports, Physical Education and Youth)
xxi. मलू यांकन प्रवक्रया एिं परीक्षा सधु ार (Evaluation process and Examination)
xxii. विक्षा का प्रबन्ध (Management of Education)
xxiii. विक्षक एिं उनका प्रविक्षण (Teacher and their Training)
प्रारम्र् में नारी समानता के वलए विक्षा, अनसु वू चत जावत एिं जनजावत तर्ा वपछड़े िगो की विक्षा,
अलपसंख्यकों की विक्षा, विकलांगों की विक्षा, प्रौढ़ एिं सतत विक्षा और पिू थ बालय काल पररचयाथ
एिं विक्षा सम्बन्धी योजनाओ ं को प्रस्ततु करने से स्पष्ट है वक इस कायथ योजना में इन पर वििेष बल
वदया गया है।
इसमें प्रार्वमक सम्बन्धी योजनाओ ं को र्ोड़ा विस्तार वदया गया है। कायथ योजना, 1986 में ब्लैक
बोडथ योजना के िल प्रार्वमक स्कूलों के वलए बनाई गई र्ी, कायथ योजना 1992 में इसकी सीमा में
उच्च प्रार्वमक स्कूलों को र्ी लाया गया। 1986 में 300 जनसंख्या िाले क्षेत्र में एक प्रार्वमक
स्कूल स्र्ावपत करने की योजना बनाई गई र्ी, 1992 में इसे 200 जनसख्ं या कर वदया गया।
उत्तराखण्ड मक्त
ु विश्वविद्यालय 207
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1986 में एक प्रार्वमक में कम से कम 2 कमरों के र्िन और 2 विक्षकों की व्यिस्र्ा करने की
योजना बनाई गई र्ी, 1992 में इसे कम से कम 3 कमरों के र्िन और 3 विक्षकों की व्यिस्र्ा में
विस्तृत कर वदया गया। 1986 में 3 वकमी की दरू ी के अन्दर स्र्ावपत करने की योजना बनी।
इस योजना के र्ाग 13 से 23 तक में कोई नई योजना प्रस्ततु नहीं की गई है, के िल कायथ योजना,
1986 की योजनाओ ं को ही िब्द पररितथनों के सार् र्ोड़े बल के सार् प्रस्ततु वकया गया है।
उत्तराखण्ड मक्त
ु विश्वविद्यालय 208
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15.5.1 राष्ट्रीय शिक्षा नीशत, 1986 एिं संिोशधत (1992) का मूलयांकन अर्िा गुण-दोष
शििेिन
राष्ट्रीय विक्षा नीवत 1986 और उसके संिोवधत रूप (1992) का मलू यांकन वनम्न आधारर्तू
मानदण्डों पर करेंगे। इन मानदण्डों पर करने पर इस विक्षा नीवत में वनम्नवलवखत गणु -दोष उजागर
होते हैं।
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ु विश्वविद्यालय 209
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इनमें ग्रामीण क्षेत्रों एिं वपछडे िगथ एिं अनसु वू चत जनजावतयों के प्रवतर्ािाली छात्र-
छात्राओ ं को प्रिेि के वििेष अिसर प्राप्त हैं।
6. खुले शिश्वशिद्यालयों की स्र्ापना- राष्ट्रीय विक्षा नीवत, 1986 में खल ु े विश्वविद्यालय
स्र्ावपत करने की घोषणा की गई र्ी, उसके तहत् वदलली में इवन्ररा गााँधी राष्ट्रीय खल ु ा
विश्वविद्यालय की स्र्ापना की गई है। यह विश्वविद्यालय उन यिु कों को उच्च विक्षा के
अिसर प्रदान कर रहा है जो अन्यत्र प्राप्त नहीं कर पा रहे। सार् ही देि में 11 अन्य खल ु े
विश्वविद्यालयों की स्र्ापना की गई है।
7. तकनीकी शिक्षा का उन्नयन- राष्ट्रीय विक्षा नीवत 1986 में वकसी र्ी स्तर की
तकनीकी विक्षा के पाठ्यक्रम को अद्यतन बनाने पर बल वदया गया है और तकनीकी
विक्षा संस्र्ाओ ं की दिा सधु ारने पर बल वदया गया है और सबसे बड़ी बात यह है वक
इसके वलए वित्त व्यिस्र्ा र्ी की गई है। राष्ट्रीय तकनीकी विक्षा पररषद‘ के वनदेिानसु ार
इस तकनीकी विक्षा में काफी सधु ार र्ी हुआ है।
8. शिक्षक शिक्षा में सध ु ार- राष्ट्रीय विक्षा नीवत 1986 में विक्षकों के स्तर और उनके
प्रविक्षण में सधु ार पर बल वदया गया है। याँू तो इस पर राष्ट्रीय विक्षा नीवत,1968 में र्ी
बहुत बल वदया गया र्ा और तद्नक ु ू ल विक्षकों के िेतनमान बढ़ाए गए र्े और उनकी
सेिाितो में सधु ार वकया गया र्ा परन्तु इस विक्षा नीवत, 1986 के तहत विक्षक विक्षा में
सधु ार हेतु 2007 तक 556 वजला विक्षा एिं प्रविक्षण संस्र्ान‘ (DIETs)स्र्ावपत वकए
गए, 104 विक्षक प्रविक्षण महाविद्यालयों को विक्षक विक्षा महाविद्यालयों(CTEs) और
39 को विक्षा उच्च अध्ययन के न्रों (CASEs) में सम्मनु त वकया गया है। सार् ही 1993 में
राष्ट्रीय विक्षक विक्षा पररषद‘ (NCTE) को संिधै ावनक दजाथ वदया गया और उसे और
अवधक अवधकार वदए गए हैं। देि की समस्त विक्षक प्रविक्षण संस्र्ाएाँ अपने उत्तरदावयत्ि
का वनिाथह ईमानदारी से कर रही है वजससे उनकी वस्र्वर् में सधु ार हुआ।
9. परीक्षा प्रणाली में सध ु ार- राष्ट्रीय विक्षा नीवत 1986 में परीक्षा को विश्वसनीय और
िस्तवु नष्ठ बनाने और सतत् मलू याक ं न पर बल वदया गया है। इस बीच परीक्षा एिं मलू याक ं न
प्रणाली में काफी सधु ार हुआ है।
10. न्यनू तम अशधगम स्तर एिं जिाबदेही- राष्ट्रीय विक्षा नीवत, 1986 पहली नीवत है
वजसमें योजना र्ी बनाई गई और उसके वक्रयान्ियन के वलए ठोस सझु ाि र्ी वदए गए।
इसमें विक्षा व्यिस्र्ा को कारगर बनाने हेतु वकसी र्ी स्तर की विक्षा के वलथए न्यनू तम
अवधगम मानक‘ (Minimum Learning Standard) बनाने, विक्षकों एिं विक्षा प्रिासकों
की जिाबदेही (Accountability) वनवश्चत करने और छात्रों के उत्तरदावयत्ि वनवश्चत करने पर
बल वदया गया है। जब तक छात्र, विक्षक और विक्षा प्रणाली से जडु े सर्ी व्यवक्त अपने-
अपने कत्तथव्यों का पालन नहीं करते तब तक कोई र्ी विक्षा योजना सफल नहीं हो सकती।
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ु विश्वविद्यालय 210
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11. िैशक्षक अिसरों की समानता- राष्ट्रीय विक्षा नीवत, 1986 और उसके संिोवधत रूप
(1992) में िैवक्षक अिसरों की समानता की प्रावप्त पर बहुत बल वदया गया है और इसके
वलए ठोस कदम उठाने पर बल वदया गया है और इसकी प्रावप्त के वलए वित्त व्यिस्र्ा र्ी
की गई है। यह बात दसू री है वक इस वदिा में अब तक जो र्ी कायथ वकए गए हैं िे िोि की
राजनीवत पर अवधक आधाररत हैं, लोकतन्त्र की मााँग पर कम।
उत्तराखण्ड मक्त
ु विश्वविद्यालय 211
समकालीन भारत और शिक्षा BEDSEDE A2
पर िैवक्षक सवु िधाएाँ प्रदान करने की बात कही जा रही है और उसके अनक ु ू ल प्रयत्न र्ी
वकए जा रहे हैं। यह िोि की राजनीवत नहीं तो और क्या है।
5. ब्लैक बोडथ योजना का ईमानदारी से शक्रयान्ियन नहीं- ब्लैक बोडथ योजना के अन्तगथत
प्रार्वमक स्कूलों के जो र्िन बनाए जा रहे हैं और उनके वलए जो फनीचर एिं सामग्री र्ेजी
जा रही हैं, िे बहुत घविया वकस्म के हैं। संिोवधत राष्ट्रीय विक्षा नीवत एिं कायथ योजना
1992 के अनसु ार उच्च प्रार्वमक स्कूलों को जो 40-40 हजार रूपयों की धनरावि दी जा
रही है उसका र्ी सही प्रयोग सवु नवश्चत नहीं वकया जा रहा है।
6. निोदय शिद्यालय योजना असफल- निोदय विद्यालय के िल सफे द हार्ी वसि हुए हैं।
निोदय विद्यालय इस आिा से स्र्ावपत वकए गए र्े वक इनमें वपछड़े क्षेत्रों, वपछडे िगो
और उपेवक्षत जावतयों के योग्य बच्चों को प्रिेि वदया जा सके गा, उन्हें अपने विकास के
अिसर वदए जा सकें गे। पहली बात तो यह है वक ऐसे वनयमों के होते हुए र्ी बड़ी हेराफे री
हो रही है, इनका लार् िे नहीं उठा पा रहे वजनके वलए ये स्र्ावपत वकए गए हैं। दसू री बात
यह है वक इनकी स्र्ापना एिं संचालन में वजतना व्यय हो रहा है उसका 10िां र्ाग र्ी
लार् नहीं हो रहा है।
7. +2 पर व्यािसाशयक पाठ्यक्रम असफल- इस बीच वजन प्रान्तों में +2 पर जो र्ी
व्यािसावयक पाठ्यक्रम िरू ु वकए गए, िे असफल रहे हैं। सबसे पहली बात तो यह है वक
वजन विद्यालयों में ये पाठ्यक्रम िरू ु वकए गए उनमें संसाधनों और प्रविक्षण विक्षकों की
कमी है। दसू री बात यह है वक ये पाठ्यक्रम अपने में न पणू थ हैं और न उपयोगी।
8. उच्ि शिक्षा के सार् शखलिाड़ - राष्ट्रीय विक्षा नीवत 1986 में एक तरफ उच्च विक्षा में
प्रिेि पर वनयन्त्रण की बात कही गई है और दसू री तरफ उच्च विक्षा के अिसर सर्ी को
सल ु र् कराने की बात कही गई है और इस हेतु खल ु े विश्वविद्यालयों की स्र्ापना और
पत्राचार पाठ्यक्रम िरू ु करने की बात कही गई है। हर क्षेत्र की र्ााँवत विक्षा के क्षेत्र में र्ी
दोहरी नीवत। इससे उच्च विक्षा का आवधकतर संस्र्ाओ ं में अयोग्य छात्रों का प्रिेि हो रहा
है, अराजक तत्त्िों का प्रिेि हो रहा है और अवधकतर उच्च विक्षा सस्ं र्ाएाँ वडवग्रयााँ प्राप्त
करने के कारखाने बन गई हैं। यह समय, िवक्त और धन का अपव्यय नही तो और क्या है।
संिोवधत राष्ट्रीय विक्षा नीवत 1992 के तहत उच्च विक्षा को स्िवित्तपोवषत बनाना
सरकार का अपने उत्तरदावयत्ि से महाँु मोड़ना ही कहा जाएगा। उच्च विक्षा के वनजीकरण
(Privatization) से तो विक्षा के क्षेत्र में िोषण बढ़ रहा है और उच्च विक्षा वनधथनों की
पहुचाँ से दरू होती जा रही है।
9. कै पीटेिन फीस की मार- राष्ट्रीय विक्षा नीवत, 1986 में कै पीिेिन फीस के वलए इस
बन्धन के सार् स्िीकृ वत दे दी गई वक ये संस्र्ाएाँ सरकार द्वारा चयवनत छात्रों को एक
वनवश्चत प्रवतित मात्रा में वबना कै पीिेिन फीस के प्रिेि देंगी। इससे र्ी िोषण बढ़ा है।
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15.5.2 राष्ट्रीय शिक्षा नीशत, 1986 एिं संिोशधत (1992) का प्रभाि
राष्ट्रीय विक्षा नीवत 1986 देि की पहली राष्ट्रीय विक्षा नीवत है वजसमें नीवत के सार् इसको लागू
करने के वलए परू ी कायथ योजना, 1986 बनाई गई। 1992 में जब इसमें कुछ संिोधन वकए गए तो
सार् ही इसकी कायथ योजना में र्ी सि ं ोधन वकया गया है और उसे कायथ योजना, 1992 के नाम से
प्रकावित वकया गया। इस नीवत के तहत अब तक जो वििेष हुआ है उसे वनम्नवलवखत रूप से
क्रमबि वकया जा सकता है-
1. के न्र और प्रान्तों के विक्षा बजिों में बढ़ोतरी िरू ु हुई है, यह बात दसू री है वक अर्ी तक
के न्र के बजि में विक्षा पर 6 प्रवतित व्यय अर्ी तक सवु नवश्चत नहीं वकया जा सका है।
2. परू े देि में 10+2+3 विक्षा संरचना लागू हो गई है, यह बात दसू री है वक प्रर्म 10 िषीय
आधारर्तू पाठ्यचयाथ अर्ी लागू नहीं हो पाई है।
3. वििओ ु ं की देखर्ाल और पोषण तर्ा पिू थ प्रार्वमक विक्षा के वलए अनेक योजनाएाँ
चलाई जा रही है। 2007 तक देि में 7.5 लाख से अवधक तो आाँगनबावड़यााँ और
बालबावड़यााँ स्र्ावपत की जा चक ु ी र्ीं और इनमें 2.4 करोड़ से अवधक बच्चे लार्ावन्ित
हो रहे र्े, वकतने लार्ावन्ित हो रहे, यह दसू री बात है।
4. प्रार्वमक विक्षा का तेजी से प्रसार एिं उन्नयन हो रहा है। ब्लैकबोडथ योजना के तहत 2007
तक लगर्ग 80 प्रवतित प्रार्वमक और 40 प्रवतित उच्च प्रार्वमक स्कूलों की दिा में
सधु ार वकया जा चक ु ा र्ा।
5. माध्यवमक विक्षा के प्रसार के प्रयत्नों में तेजी आई है। इस हेतु इस स्तर पर खल ु ी विक्षा का
र्ी विस्तार वकया गया है, अके ले राष्ट्रीय खल ु े विद्यालय (National Open School) में 4
लाख से अवधक छात्र-छात्राएाँ पजं ीकृ त हैं। गवत वनधाथरक विद्यालयों के रूप में 2007 तक
565 निोदय विद्यालय खोले जा चक ु े र्े।
6. लगर्ग सर्ी प्रान्तों में +2 पर व्यािसावयक पाठ्यक्रम र्ी िरूु वकए गए हैं, यह बात दसू री
है वक इनमें सफलता नहीं वमल पा रही है।
7. उच्च विक्षा, व्यािसावयक विक्षा, तकनीकी विक्षा, और प्रबन्ध विक्षा सर्ी के विकास एिं
उन्नयन के वलए प्रयत्न जारी हैं। इस बीच उच्च विक्षा के प्रसार हेतु दरू विक्षा (खल ु ी
विक्षा) का काफी प्रसार वकया गया हैं ओर इसके उन्नयन के वलए अद्यतन एिं स्तरीय
पाठ्यक्रम तैयार एिं लागू वकए गए हैं। सार् ही स्िवित्तपोवषत उच्च विक्षा संस्र्ाओ ं को
खल ु े हार् मान्यता दी गई है।इससे उच्च विक्षा का प्रसार तो अिश्य हुआ है पर उसके स्तर
पर वगरािि आ रही है।
8. विक्षक विक्षा के क्षेत्र में तो क्रावन्तकारी पररितथन हुए हैं, 2007 तक 556‘वजला विक्षा एिं
प्रविक्षण संस्र्ान (DIETs) स्र्ावपत वकए जा चक ु े र्े,104 विक्षक विक्षा महाविद्यालयों
को विक्षक विक्षा के न्रों (CTEs)में सम्मनु त वकया जा चक ु ा र्ा और 39 विक्षक विक्षा
कॉलेजों को विक्षा उच्च अध्ययन के न्रों’ (CASEs) में सम्मनु त वकया जा चक ु ा र्ा। इस
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बीच वदसम्बर, 1993 में ससं द के एक एक्ि द्वारा राष्ट्रीय विक्षक विक्षा पररषद् (NCTE)
को संिधै ावनक दजाथ वदया गया और 1995 में इस एक्ि के अनसु ार गठन वकया गया।
प्रारम्र् में तो उसके हस्तक्षेप से विक्षक विक्षा विद्यालयों एिं महाविद्यालयों की दिा में
सधु ार हुआ र्ा परन्तु अब यह पररषद र्ी भ्रष्टाचार का विकार हो गई है और स्िवित्तपोवषत
विक्षक विक्षा संस्र्ानों को खल ु े हार् मान्यता दे रही है और विक्षक विक्षा एक व्यिसाय
बन गई है।
9. इस बीच प्रौढ़ विक्षा एिं सतत विक्षा कायथक्रमों के वलए र्ी अवतररक्त धनरावि उपलब्ध
कराई गई है वजससे इस क्षेत्र में र्ी कायथ की गवत बढ़ी है। 2001 में हमारे देि में साक्षरता
प्रवतित 65.38 हो गया र्ा जो ितथमान (2008) में लगर्ग 72 प्रवतित हो गया होगा।
10. याँू िैवक्षक अिसरों की समानता के वलए जो र्ी कदम उठाए गए हैं िे िोि की राजनीवत पर
आधाररत हैं परन्तु इससे स्त्री विक्षा, अनसु वू चत जावत, अनसु वू चत जनजावत, वपछड़े िगथ
और अलपसंख्यकों के बच्चों की विक्षा में विस्तार हुआ है, उनका नामाक ं न बढ़ा है। कुछ
विद्यालय अपंग एिं मन्दबवु ि बच्चों, वकिोरों और यिु कों के वलए र्ी खोले गए हैं।
स्िमूलयांकन हेतु प्रश्न
1. राष्ट्रीय विक्षा योजना 1986 से 1995 तक वकतने प्रवतित छात्र/छात्राओ ं को
व्यािसावयक धारा मे लाने की घोषणा की गई र्ी ?
(a) 20 (b) 25
(c) 50 (d) 75
2. संिोवधत राष्ट्रीय विक्षा नीवत 1986 में प्रार्वमक विक्षा को कब तक सिथसलु र् बनाने की
घोषणा की गई हैं।
(a) 1995 (b) 2000
(c) 2005 (d) 2010
3. प्रश्न 3 ब्लैक बोडथ योजना को उच्च प्रार्वमक स्तर पर कब लागू वकया गा र्ा ?
(a) 1986 (b) 1987
(c) 1992 (d) 1995
4. प्रश्न 4 उच्च प्रार्वमक स्कूलों को ब्लैक बोडथ योजना के अन्तगथत वकतनी धनरावि दी जा
रही है ?
(a) 10 हजार (b) 40 हजार
(c) 50 हजार (d) 60 हजार
5. राष्ट्रीय विक्षा नीवत 1992 में आपरेिन ब्लेक बोडथ में कम से कम वकतने कमरों के र्िन
और विक्षकों की व्यिस्र्ा की बात की गयी ?
6. राष्ट्रीय विक्षक विक्षा पररषद‘ (NCTE) को सिं ैधावनक दजाथ कब वदया गया है।
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15.6 साराांि
कुल वमलाकर यह कहा जा सकता है वक राष्ट्रीय विक्षा नीवत, 1986 एिं संिोवधत (1992)के
दस्तािेजों में तत्कालीन विक्षा में सधु ार हेतु सझु ाि अवधक हैं और नीवत सम्बन्धी घोषणाएाँ कम हैं।
वफर जो नीवत सम्बन्धी घोषणाएाँ की र्ी गई हैं उनमें कुछ मानने योग्य हैं जैस-े परू े देि में 10+2+3
विक्षा सरं चना लागू करना, प्रर्म 10 िषीय विक्षा के वलए आधारर्तू पाठ्यचयाथ होना, +2 को
स्कूली विक्षा का अगं बनाना, +3 की विक्षा को राष्ट्र की मााँग के अनसु ार वनयोवजत करना और
तकनीकी विक्षा की उत्तम व्यिस्र्ा करना आवद। विक्षा नीवत सम्बन्धी योजनाओ ं के वक्रयान्ियन
हेतु जो कायथ योजनाएाँ बनाई गई हैं, िे तो अच्छी हैं पर भ्रष्टाचार प्रधान इस यगु में हार् बहुत कम
लगा है- ब्लैक बोडथ योजना के अन्तगथत जो र्िन बनाए गए हैं िे बहुत वनम्न स्तर के हैं और
विद्यालयों को जो सामग्री प्रदान की गई है िह बहुत वनम्न कोवि की है। सि ं ोवधत राष्ट्रीय विक्षा
नीवत, 1986 के तहत् उच्च प्रार्वमक विद्यालयों को विक्षण-अवधगम सामग्री के क्रय हेतु जो 40-
40 हजार रूपए वदए गए हैं उसमें र्ी बड़ी हेरा-फे री हुई है, उसका सदृपयोग र्ी सवु नवश्चत नहीं वकया
गया है। निोदय विद्यालय र्ी सफे द हार्ी सावबत हुए हैं। कै पीिेिन फीस की स्िीकृ वत से तो विक्षा
अपने में एक व्यिसाय बन गई है। और उच्च विक्षा के वनजीकरण करने की ओर कदम बढ़ाने से
उच्च विक्षा का स्तर वगर रहा है और सार् ही छात्रों का िोषण बढ़ रहा है। आज इसमे बहुत सधु ार
की आिश्यकता है।
15.7 िब्दावली
शिक्षक शिक्षा - राष्ट्रीय विक्षा नीवत 1986 में विक्षकों के स्तर और उनके प्रविक्षण में सधु ार पर
बल वदया गया है। याँू तो इस पर राष्ट्रीय विक्षा नीवत,1968 में र्ी बहुत बल वदया गया र्ा और
तद्नक
ु ू ल विक्षकों के िेतनमान बढ़ाए गए र्े और उनकी सेिाितो में सधु ार वकया गया र्ा परन्तु इस
विक्षा नीवत, 1986 के तहत विक्षक विक्षा में सधु ार हेतु 2007 तक 556 वजला विक्षा एिं प्रविक्षण
संस्र्ान‘ (DIETs)स्र्ावपत वकए गए, 104 विक्षक प्रविक्षण महाविद्यालयों को विक्षक विक्षा
महाविद्यालयों(CTEs) और 39 को विक्षा उच्च अध्ययन के न्रों (CASEs) में सम्मनु त वकया गया
है। सार् ही 1993 में राष्ट्रीय विक्षक विक्षा पररषद‘ (NCTE) को सिं धै ावनक दजाथ वदया गया और
उसे और अवधक अवधकार वदए गए हैं।
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इकाई- 16 शविेष तथा समावेशित शिक्षा के संदभय में
िाष्ट्रीय एवं अंतििाष्ट्रीय नीशतयााँ औि कानून
National & International Policies and Laws in context
of Special and Inclusive Education
16.1 प्रस्तािना
16.2 उद्देश्य
16.3 अतं रराष्ट्रीय नीवतयााँ और कानून
16.3.1 विकलांग व्यवक्तयों के अवधकारों पर सयं ुक्त राष्ट्रसंघ का घोषणा पत्र
16.3.2 बच्चों के अवधकारों पर अवधिेिन
16.3.3 सर्ी के वलए विक्षा पर घोषणा पत्र
16.3.4 सालामाक ं ा स्िेिमेंि और वििेष विक्षण पर कायथयोजना
16.3.5 वबिाको वमलेवनयम फ्रेमिकथ फॉर एक्िन
16.3.6 विकलांग व्यवक्तयों के अवधकारों पर सयं ुक्त राष्ट्र सघं अवधिेिन
16.4 राष्ट्रीय नीवतयााँ और कानून
16.4.1 संिधै ावनक प्रािधान
16.4.2 मानवसक स्िास्थ्य अवधवनयम
16.4.3 र्ारतीय पुनिाथस पररषद अवधवनयम
16.4.4 विकलांग व्यवक्तयों के वलए अवधवनयम
16.4.5 राष्ट्रीय न्यास अवधवनयम
16.4.6 विकलांग व्यवक्तयों के वलए राष्ट्रीय नीवत
16.4.7 विक्षा का अवधकार अवधवनयम
16.5 साराि ं
16.6 िब्दािली
16.7 स्िमूलयांकन हेतु प्रश्नों के उत्तर
16.8 संदर्थ ग्रर्ं सचू ी
16.9 वनबधं ात्मक प्रश्न
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16.1 प्रस्तावना
जैसा वक आप जानते हैं वक विकलांग व्यवक्तयों के वलए विक्षा की िरुु आत वििेष विद्यालय से हुई
जहााँ विकलागं व्यवक्त अपने घर-पररिार से दरू रहकर अपनी विक्षा ग्रहण करता र्ा। परन्तु समय के
सार् विकलांग व्यवक्तयों की विक्षा का प्रारूप र्ी बदला, अब वििेष विक्षा की जगह समािेवित
विक्षा के द्वारा इनको विक्षा देने की िरुु आत हो चक ु ी है।
इस इकाई में हम पढ़ेगें वक अतं रराष्ट्रीय एिं राष्ट्रीय स्तर पर वििेष विक्षा एिं समािेवित विक्षा के
वलए कौन-कौन सी नीवतयााँ एिं काननू बनायी गई हैं।
9.2 उद्देश्य
इस इकाई का अध्ययन करने के पश्चात आप-
1. अतं रराष्ट्रीय नीवतयों एिं काननू ों को जान सकें गे, जैसेः
विकलांग व्यवक्तयों के अवधकारों पर संयक्त ु राष्ट्रसंघ का घोषणा पत्र
बच्चों के अवधकारों पर अवधिेिन
सर्ी के वलए विक्षा
सालामांका स्िेिमेंि
विकलांग व्यवक्तयों के अवधकारों पर संयक्त ु राष्ट्र संघ अवधिेिन
2. विवर्न्न राष्ट्रीय नीवतयों एिं काननू ों को जान सकें गें जैसेः
मानवसक स्िास्थ्य अवधवनयम
र्ारतीय पनु िाथस पररषद अवधवनयम
विकलांग व्यवक्तयों के वलए अवधवनयम
राष्ट्रीय न्यास अवधवनयम
विकलागं व्यवक्तयों के वलए राष्ट्रीय नीवत
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16.3.1 शिकलागं व्यशियों के अशधकारों पर संयुि राष्ट्र संघ का घोषणा पत्र
विकलांग व्यवक्तयों के अवधकारों के वलए संयक्त
ु राष्ट्र सघं ने 9 वदसम्बर 1975 को एक घोषणा पत्र
जारी वकया। यह घोषणा पत्र विकलांग व्यवक्तयों के मानि अवधकारों की रक्षा के वलए एक महत्िपणू थ
कदम र्ा। इस घोषणा पत्र की कुछ प्रमखु बाते वनम्नवलवखत हैं
i. विकलागं व्यवक्त दसू रे सामान्य नागररकों के समान ही सर्ी मलू र्तू अवधकारों की पात्रता
रखते हैं, चाहे उनकी विकलांगता का कारण, उसकी प्रकृ वत ि उसकी बाधा या विकलांगता
की गर्ं ीरता वकतनी र्ी हो।
ii. विकलांग व्यवक्तयों को आवर्थक ि सामावजक सरु क्षा के अवधकार के सार् ही सम्मानजनक
जीिन जीने का अवधकार है। उन्हें अपनी क्षमताओ ं के अनरूु प नौकरी पाने ि करने का
अवधकार है।
iii. विकलांग व्यवक्तयों को अपने पररिारों के सार् रहने का और सर्ी सामावजक, रचनात्मक
एिं मनोरंजनात्मक गवतविवधयों में र्ाग लेने का अवधकार है।
संयक्त
ु राष्ट्र संघ ने अतं रराष्ट्रीय एिं राष्ट्रीय स्तर पर इन अवधकारों को वदलाने की गारंिी के वलए दो
महत्िपणू थ कदम उठाए। पहला कदम र्ा सन् 1983-92 के दिक को विकलागं व्यवक्तयों के वलए
संयक्त
ु राष्ट्र संघ दिक घोवषत करना तर्ा दसू रा कदम र्ा सन् 1993-2002 के दिक को विकलांग
व्यवक्तयों के वलए एविया पेवसवफक दिक घोवषत करना। एविया पेवसवफक दिक को दोबारा से
बढ़ाकर सन् 2003-2012 कर वदया गया र्ा।
16.3.2 बच्िों के अशधकारों पर अशधिेिन
संयक्त
ु राष्ट्र सघं ने 20 निम्बर, 1989 को बच्चों के अवधकारों पर अवधिेिन घोवषत वकया। इस
अवधिेिन की कुछ प्रमख ु बातें वनम्नवलवखत हैं
i. इस अवधिेिन में िावमल अवधकारों को राज्य प्रत्येक बच्चे को वबना वकसी र्ेदर्ाि के
प्रदान करेगा।
ii. राज्य विकलांग बच्चे के अवधकारों को पहचान करते हुए उनके वलए वििेष देखर्ाल का
इन्तेजाम करेगा।
iii. राज्य यह वनवश्चत करेगा वक मानवसक या िारीररक विकलागं बच्चा संतोषजनक जीिन
समाज में सवक्रय र्ागीदारी करते हुए जी सके गा।
इस अवधिेषन के अनच्ु छेद 43 और 44 में कहा गया वक इस अवधिेषन में कहे गये दावयत्ि/कतथव्य
की राज्य द्वारा वकए गए प्रगवत का मलू याक
ं न वकया जाएगा तर्ा यह मलू याक
ं न ‘बच्चे के अवधकार
पर कमेिी’ द्वारा वकया जाएगा।
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16.3.3 सभी के शलए शिक्षा पर घोषणा पत्र
सन् 1990 ई. में जोमेविन (र्ाईलैण्ड) में ‘‘सर्ी के वलए विक्षा पर विश्व सम्मेलन’’ का आयोजन
हुआ वजसमें 155 राष्ट्र के प्रवतवनवध एिं 150 गैर-सरकारी सस्ं र्ाओ ं ने र्ाग वलया।इस सम्मेलन का
मख्ु य उद्देश्य र्ा विक्षा को सिथव्यापी बनाने के वलए तर्ा वनरक्षरता हिाने के वलए उपायों पर विचार
करना।
इस सम्मेलन का र्ारत सवहत विश्व के अन्य देिों पर बहुत प्रर्ाि पड़ा तर्ा सर्ी के वलए विक्षा में
विकलागं बच्चों के र्ी विक्षा पर गर्ं ीरता पिू थक ध्यान वदया जाने लगा।
इस घोषणा पत्र में बवु नयादी विक्षा के छः मख्ु य उद्देश्यों की पहचान की गयी, जो हैं
i. प्रारवम्र्क बालयािास्र्ा देख-रेख और विकासात्मक कायथकलाप का विस्तार
ii. प्रार्वमक विक्षा का सािथर्ौवमक पहुचाँ और सपं ादन।
iii. अध्ययन उपवलब्ध में सधु ार करना तावक अध्ययन उपवलब्ध एक आिश्यक स्तर तक
पहुचाँ सके ।
iv. ियस्क वनरक्षता के दर को कम करना।
v. बवु नयादी विक्षा के प्रािधानों तर्ा नियिु क एिं व्यिस्क द्वारा अपेवक्षत दसू रे आिश्यक
कौिलों का विस्तार करना।
vi. व्यवक्तगत एिं पररिार के अच्छे जीिन जीने के वलए आिश्यक ज्ञान, कौिलों एिं मलू यों
के उपलवब्धयों को बढ़ाना।
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इस कर्न में यनू ेस्को, यनू ीसेफ, यएू नडीपी एिं विश्व बैंक से अनरु ोध वकया गया है वक िे समािेवित
विक्षा को बढ़ािा देने एिं वििेष आिश्यकता विक्षण को िैवक्षक प्रोग्राम में सवम्मवलत करने के
वलए कायथ करें।
16.3.5 शबिाको शमलेशनयम फ्रेमिकथ फॉर एक्सिन
22 मई, 2002 को एविया पेसवफक क्षेत्र ने वबिाको वमलेवनयम फ्रेमिकथ फॉर एक्िन को स्िीकार
वकया। इसका मख्ु य उद्देश्य र्ा ‘अिरोध रवहत एिं अवधकार आधाररत एक समािेवित समाज का
वनमाथण करना’। यह एविया और प्रिातं क्षेत्र के विकलागं व्यवक्तयों के वलए एिं ‘‘एवियन पैवसवफक
वडके ड फफ द वडजेबलड पसथन्स’’ का ही विस्तार है।(राि, 2010)
इसके सात प्रार्वमक कायथक्षेत्र हैः
i. विकलागं व्यवक्तयों, उनके पररिार ि अवर्र्ािक सघं ों के स्ियं-सहायता सगं ठन
ii. विकलांग मवहलाएं
iii. िीघ्र वनदान, िीघ्र हस्तक्षेप एिं विक्षा
iv. स्ि-रोजगार सवहत, प्रविक्षण एिं रोजगार
v. वनवमथत िातािरण एिं सािथजवनक िाहनों की उपलवब्ध
vi. सचू ना एिं सपं कथ तक पहुचाँ वजसमें सचू ना सपं कथ एिं सहयोगी प्रौद्योवगकी र्ी सवम्मलत हो
vii. क्षमता वनमाथण, सामावजक सरु क्षा ि अविरत रोजगार कायथक्रमों के द्वारा गरीबी उन्मल ू न
संर्ि हो।
इन प्रार्वमकताओ ं को साकार रूप देने हेतु 21 लक्ष्यों ि इन लक्ष्यों की प्रावप्त के वलए 17 तरीकों की
र्ी इस घोषणा में पहचान की गयी है। इन सबके अवतररक्त इसमें सयं क्त ु राष्ट्र आवर्थक ि सामावजक
आयोग द्वारा इस घोषणा में सझु ायी गयी प्रार्वमकताओ ं ि लक्ष्यों की प्रावप्त में की गयी प्रगवत के
अिलोकन ि आिश्यक तानसु ार पररितथन करने का र्ी प्रािधान है।
16.3.6 शिकलागं व्यशियों के अशधकारों पर सयं ि ु राष्ट्र सघं अशधिेिन
विकलागं व्यवक्तयों के अवधकारों पर अवधिेिन वजसको सक्ष ं पे में ‘य.ू एन.सी.आर.पी.डी.’ र्ी कहते
हैं, विकलांग व्यवक्तयों के अवधकारों को संरवक्षत रखने के वलए संयक्त ु राष्ट्र संघ का एक महत्िपणू थ
दस्तािेज है।
संयक्त
ु राष्ट्र संघ महासर्ा ने इस सवं धपत्र को 13 वदसम्बर, 2006 को स्िीकार वकया तर्ा 30 माचथ,
2007 को हस्ताक्षर करने के वलए रखा। इस वदन र्ारत सवहत 82 देिों ने इस पर हस्ताक्षर वकया,
(माचथ, 2013 तक 155 देिों ने हस्ताक्षर वकया है) यह सवं धपत्र 3 मई 2008 को अतं रराष्ट्रीय काननू
बना।
यएू नसीआरपीडी में कुल 50 अनच्ु छे द (आविथकल) हैं। कुछ महत्िपणू थ अनच्ु छे द वनम्नवलवखत हैं:
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अन.ु 6:विकलागं मवहलाओ ं के बारे में है, वजसमें कहा गया है वक सरकार विकलागं
मवहलाओ ं के विकास एिं अवधकाररता के वलए उपयक्त ु कदम उठाये।
अन.ु 7:विकलांग बच्चों के बारे में है, वजसमें कहा गया है वक इन बच्चों के अवधकारों,
स्ितत्रं ता तर्ा अच्छे जीिन के वलए कायथ करें।
अन.ु 9 :सगु म्यता के बारे में हैं, वजसमें कहा गया है वक विकलांगों को सषक्त करने हेतु
अत्याधवु नक तकनीक से बने वििेष उपकरण उपलब्ध कराया जाय।
अन.ु 10 :जीने का अवधकार के बारे में है, वजसमें कहा गया है वक विकलागं व्यवक्तयों को
र्ी सामान्य व्यवक्तयों के सामान सम्मान पणू थ जीिन जीने का अवधकार है।
अन.ु 24 :विक्षा के बारे में है, वजसमें कहा गया है वक विकलांग बच्चों के वलए विक्षा की
व्यिस्र्ा सरकार करे वजससे िे अपने व्यवक्तत्ि, प्रवतर्ाओ ं ि रचनात्मकता का विकास कर
सकें ।
अन.ु 27 :कायथ और रोजगार के बारे में है, वजसमें कहा गया है वक प्रत्येक विकलांग व्यवक्त
को हर तरह के काम, जो उसके योग्य हैं, करने का अवधकार है वजसके वलए उपयक्त ु
सवु िधाओ ं ि िातािरण का उपलब्ध कराया जाना आिश्यक है।
मख्ु यतः यह अवधिेिन विकलांग व्यवक्तयों के अवधकार वनवदथष्ट करता है और उनके संििथन संरक्षण
ि सवु नवश्चतता के वलए राज्य के कत्तथव्य
वनधाथररत करता है, वजसके सार् सार् उनके वक्रयान्ियन ि अनश्रु िण सहयोग हेतु उवचत व्यिस्र्ा
विकवसत करने का वनदेि देता है।
इस अवधिेिन की एक वििेष बात यह र्ी है वक इसमें विकलागं ों को एक श्रेणी मात्र न मानकर
विकलांगता वििेष और उसमें र्ी व्यवक्त वििेष की आिश्यक ताओ ं को ध्यान में रखते हुए
उपयक्त
ु सवु िधाएं देने की बात कही गयी है। इसके अवतररक्त इसमें विकलांग व्यवक्तयों की व्यवक्तगत
जरूरतों की तरफ र्ी ध्यान वदया गया है।
इस सवं धपत्र में यह व्यिस्र्ा है वक समय-समय पर हर उस देिको वजसने इस संवधपत्र पर हस्ताक्षर
वकया है, यह बताना होगा वक उसने इस सवं धपत्र के कायाथन्ियन हेतु क्या कदम उठाए हैं।
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4. य.ू एन. सी. आर. पी. डी. का पणू थ रूप है ..............................।
5. र्ारत ने य.ू एन.सी.आर.पी.डी. पर सन् .................. में हस्ताक्षर वकया।
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16.4.3 भारतीय पुनिाथस पररषद अशधशनयम
र्ारतीय पनु िाथस पररषद अवधवनयम वजसे संक्षेप में हम आर.सी.आइ.एक्ि कहते हैं, सन् 1992 में
पाररत हुआ तर्ा 22 जनू , 1993 से लागू हुआ। सन् 2000 में इस अवधवनयम में संिोधन वकया
गया।
र्ारत सरकार द्वारा इस अवधवनयम की आिश्यकता इसवलए महससू की गयी क्योंवक विकलागं ता
के क्षेत्र में विक्षा की गणु ित्ता एिं प्रविक्षण इत्यावद के वलए कोई अवधवनयम एिं संस्र्ा नहीं र्ी।
र्ारतीय पनु िाथस पररषद के कुछ प्रमख ु उद्देश्य वनम्नवलवखत हैं
i. विकलांग व्यवक्तयों के पनु िाथस संबंधी प्रविक्षण नीवतयों ि कायथक्रमों को वनयवमत करना।
ii. विकलांग व्यवक्तयों के सार् काम करने िाले विवर्न्न श्रेणी के व्यािसावयकों की विक्षा ि
प्रविक्षण हेतु एक न्यनू तम मानक प्रस्तावित करना।
iii. परू े देि में एकरूपता लाने हेतु सर्ी प्रविक्षण सस्ं र्ानों में इन मानकों का वनयवमतीकरण
करना।
iv. उन सर्ी संस्र्ाओ/ं विश्वविद्यालयों को मान्यता प्रदान करना जो विकलांग व्यवक्तयों के
पनु िाथस विषय पर वडग्री/वडमालोमा/सविथवफके ि पाठ्यक्रम चलाता है।
v. मान्यता प्राप्त पनु िाथस योग्यता रखने िाले व्यवक्तयों की सचू ी के न्रीय पनु िाथस पंजीकरण में
रखना।
vi. पनु िाथस एिं वििेष विक्षा के क्षेत्र में अनसु ंधान को प्रोत्सावहत करना।
र्ारतीय पनु िाथस पररषद से मान्यता प्राप्त विवर्न्न विश्व विद्यालय, प्रवषक्षण सस्ं र्ान ि गैर सरकारी
संगठन प्रवषक्षण कायथक्रम चलाते हैं। ये प्रवषक्षण बवु नयादी पाठ्यक्रम और प्रमाणपत्र से वडमालोमा,
वडग्री, स्नातकोत्तर वडमालोमा तक सर्ी प्रकार के होते हैं। पाठ्यक्रम पणू थ करने िाले विद्यार्ी र्ारतीय
पनु िाथस पररषद पंजी में पंजीकरण पाठ्यक्रम की अहथता पा लेते हैं सफल विद्यार्ी अपने प्रवषक्षण के
अनरू ु प अवधकारी या व्यािसावयक की श्रेणी में पंजीकृ त होते हैं। र्ारत में विकलांगता पनु िाथस के
क्षेत्र में काम करने िाले वकसी पनु िाथस वििेष ज्ञ के वलए र्ारतीय पनु िाथस पररषद् में पजं ीकृ त होना
अवनिायथ है तर्ा प्रत्येक 5 िषथ बाद पंजीकरण का निीनीकरण कराना पड़ता है वजसके वलए उन्हें
समय-समय पर पररषद द्वारा मान्यता प्राप्त सेवमनार, िकथ षाप इत्यावद में र्ाग लेना होता है।
16.4.4 शिकलांग व्यशियों के शलए अशधशनयम
विकलांग व्यवक्तयों के वलए अवधवनयम सन् 1995 में पाररत हुआ तर्ा इसका परू ा नाम है -
‘‘विकलागं व्यवक्त (समान अिसर, अवधकारों की सरु क्षा एिं पणू थ सहर्ावगता) अवधवनयम 1995।
यह अवधवनयम 7 फरिरी 1996 ई. से लागू हुआ। इस अवधवनयम के अतं गथत सात विकलांगताएं
आती हैं, जो हैं:
i. अधं त्ि (Blindness)
ii. अलपदृवष्ट(Low Vision)
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iii. श्रिण बाधा(Hearing Impairment)
iv. मानवसक विकलांगता(Mental Retardation)
v. मानवसक रोग(Mental Illness)
vi. गामक बाधा(Locomotar Impairment)
vii. कोढ़ उपचररत(Leprosy Cured)
र्ारत में इस समय विकलांग व्यवक्तयों को जो सवु िधाएं दी जाती हैं, उसके वलए जरूरी है वक िह
विकलागं व्यवक्त उपयथक्त
ु सात विकलागं ता में से वकसी एक श्रेणी में हो तर्ा उसके विकलागं ता का
प्रवतित कम से कम 40 हो।
पी.डब्ल.ू डी. एक्ि, 1995 का सरकार द्वारा संिोधन का कायथ चल रहा है तर्ा इसका ड्राफ्ि वबल
तैयार हो चकु ा है। वजसमें उपयथक्त
ु सात विकलांगता के अलािा ग्यारह और विकलांगता को र्ी इसमें
सवम्मवलत वकया गया है। इस वबल का नाम है ‘‘विकलागं व्यवक्तयों के अवधकार वबल, 2012’’।
पी.डब्लडू ी. एक्ि 1995 में कुल 14 अध्याय हैं वजसमें से अध्याय-4: विकलांगता का िीघ्र वनदान
ि रोकर्ाम के बारे में बताता है, अध्याय-5: विकलांग बच्चों के विक्षा के बारे में है, वजसमें कहा
गया है वक प्रत्येक विकलागं बच्चे को उवचत ि समािेवित िातािरण में 18 िषथ की आयु तक
वनःिलु क विक्षा वमले। अध्याय-6: विकलांग व्यवक्तयों के रोजगार के बारे में है, वजसमें इन व्यवक्तयों
के वलए सरकारी प्रवतष्ठानों में 3 प्रवतित नौकररयों के आरक्षण की बात कही गयी है तर्ा ये 3
प्रवतित दृवष्टबावधत, श्रिणबावधत एिं गामक बावधत व्यवक्तयों के वलए है (प्रत्येक के वलए 1
प्रवतित)।
इस अवधवनयम के अध्याय-8 में विकलांग व्यवक्तयों के वलए बाधारवहत िातािरण का र्ी प्रािधान
है वजसमें कहा गया है वक विकलागं व्यवक्त अस्पताल, रेलिे स्िेिन, प्रविक्षण के न्र, मनोरंजन स्र्ल,
वनिाथचन बर्ू , कायथक्षेत्र और सर्ी सािथजवनक स्र्लों की समस्त सवु िधाओ ं का प्रर्ाििाली ढंग से
उपयोग कर सके , इसके वलए सरकार इस बात की स्पष्ट घोषणा करती है वक इन सब सािथजवनक
स्र्लों का बाधारवहत होना अवनिायथ, इसके वलए इन सािथजवनक इमारतों में रैंप, पवहयेिाली
कुसीिालों के वलए िौचालयों में अनक ु ू ल सवु िधा; वलफ्ि आवद में ब्रेक वचन्ह ि श्रव्य सक
ं े त;
अस्पतलों में रैंप ि ऐसे ही अनक ु ू ली साधन होने चावहए।
16.4.5 राष्ट्रीय न्यास अशधशनयम
राष्ट्रीय न्यास अवधवनयम सन् 1999 में पाररत हुआ तर्ा इसका परू ा नाम है- ‘‘राष्ट्रीय न्यास
अवधवनयम (स्िलीनता, प्रमवस्तष्ट्क पक्षाघात, मानवसक विकलागं ता और बहु-विकलागं ता प्रर्ावित
व्यवक्तयों के कलयाण हेत)ु 1999’’। इसको संक्षेप में एन.िी. एक्ि, 1999 र्ी कहते हैं।
जैसा वक नाम से ही पता चलता है वक यह अवधवनयम चार विकलांगताओ ं के वलए है जो है:
i. स्िलीनता (Autism )
ii. प्रमवस्तष्ट्क पक्षाघात (सेरेबरल पॉलसी)
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iii. मानवसक विकलागं ता (Mental Retardation)
iv. बहु विकलांगता (Multiple Disabilities)
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ii. िैवक्षक पनु िाथस
iii. आवर्थक पनु िाथस
विकलांग औरतों के बारे में इस नीवत में कहा गया है वक इन औरतों को अपने बच्चों की
देखर्ाल करने में परेिानी होती है अतः सरकार इनको आवर्थक मदद करे तावक ये अपने
बच्चों को देखने के वलए वकसी को वकराये पर रख सके । इस तरह की आवर्थक सवु िधा
के िल दो बच्चों के वलए तर्ा अवधकतम दो साल के वलए वदया जाएगा।
विकलांग बच्चों के बारे में इस नीवत में कहा गया है वक सरकार इन बच्चों की देखर्ाल ि
सरु क्षा सवु नवश्चत करें तर्ा ये लोग समान अिसर एिं पणू थ सहर्ावगता के सार् अपना जीिन
व्यतीत कर सकें ।
विकलांग व्यवक्तयों के वलए सािथजवनक स्र्लों पर अिरोध मक्त ु िातािरण बनाना।
विकलांग व्यवक्तयों को वबना वकसी परेिानी के विकलांगता सिीवफके ि प्रदान करना।
विकलागं ता के क्षेत्र में काम करने के वलए गैर सरकारी सगं ठनों को प्रोत्सावहत करने की
बात र्ी इस नीवत में कही गयी है।
विकलांग व्यवक्तयों के बारे में वनयवमत रूप से आाँकड़े इकट्ठा करना।
इस नीवत में एक महत्िपणू थ बात कही गयी है वक विकलागं व्यवक्तयों से जड़ु े हुए
अवधवनयमों जैसे आर.सी.आई. एक्ि, 1992, पी.डब्ल.ू डी. एक्ि 1995 तर्ा एन.िी. एक्ि
1999 में समय-समय पर संिोधन होते रहना चावहए। इसी नीवत के फलस्िरूप ही
पी.डब्ल.ू डी. एक्ि 1995 में
संिोधन हो रहा है, जो ‘विकलांग व्यवक्तयों के अवधकार वबल, 2012’’ के रूप में ड्राफ्ि हो
चक ु ा है।
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है, अध्याय-4:विद्यालयों एिं वषक्षकों के उत्तरदावयत्िों पर है, अध्याय-5: प्रार्वमक विक्षा के
पाठ्यक्रम एिं सपं ादन पर है, तर्ा अध्याय-6: बच्चों के अवधकारों का संरक्षण पर है।
अगर हम विकलांग बच्चों के संदर्थ में बात करें तो इस अवधवनयम में इनको स्पष्टतया एक अलग
िगथ के रूप् में सवम्मवलत नहीं वकया गया है, लेवकन अध्याय-1: प्रस्तािना के खण्ड 2(d)में
‘‘अलार्कारी समहू के बच्चे’’ (चाइलड वबलााँगइगं िु वडसि्िैवन्िज ग्रपु ) के बारे में चचाथ है। इसी
खण्ड में कहा गया है वक उपयक्त ु सरकार अवधसचू ना के द्वारा स्पष्टीकरण करके वकसी समहू को जो
वकसी दसू रे कारण से अलार्कारी है, को इस खण्ड में सवम्मवलत कर सकता है। अर्ाथत उपयक्त ु
सरकार चाहे तो अवधसचू ना के माध्यम से विकलांग बच्चों को अवधवनयम के खण्ड 2 (d)में
सवम्मवलत कर सकता है।
16.5 साराांि
इस इकाई में हमने वििेष एिं समािेवित विक्षा के सदं र्थ में विवर्न्न अतं रराष्ट्रीय एिं राष्ट्रीय नीवतयों
एिं काननू ों की चचाथ की।
अतं रराष्ट्रीय नीवतयों एिं काननू ों में हमने प्रमख
ु तः विकलांग व्यवक्तयों के अवधकारों पर संयक्त
ु राष्ट्र
सघं का घोषणा पत्र (1975), बच्चों के अवधकारों पर अवधिेिन (1989), सर्ी के वलए विक्षा
(1990), सालामाक ं ा स्िेिमेंि (1994), वबिाको वमलेवनयम फ्रेमिकथ (2002) तर्ा
य.ू एन.सी.आर.पी.डी. (2008) की चचाथ की।
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राष्ट्रीय नीवतयों एिं काननू ों में हमने र्ारतीय सवं िधान में िवणथत कुछ सिं धै ावनक प्रािधानों,
मानवसक स्िास्थ्य अवधवनयम (1987), आर.सी.आई. एक्ि (1992), पी.डब्ल.ू डी. एक्ि (1995),
एन.िी. एक्ि (1999), तर्ा विकलांग व्यवक्तयों के वलए राष्ट्रीय नीवत (2006) तर्ा आर.िी.ई. एक्ि
(2009) की चचाथ की।
16.6 िब्दावली
1. शििेष शिक्षा-वििेष विक्षा से तात्पयथ िैसी विक्षा से है जो वििेष आिश्यकता िाले
बच्चों (जैस-े दृवष्टबावधत बच्चे, मानवसक मदं बच्चे, श्रिण बावधत बच्चे) को वििेष स्कूल
में दी जाती है।
2. समािेशित शिक्षा-समािेवित विक्षा से तात्पयथ है- ऐसी विक्षा जो वििेष एिं सामान्य
बच्चों को एक सार् एक ही सामान्य स्कूल में दी जाती है।
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5. आर.सी.आई एक्ि (1992). नई वदललीः र्ारत सरकार
6. आर.िी.ई. एक्ि (2009). नई वदललीः र्ारत सरकार
7. नेिनल पॉवलसी फॉर परसन्स विद वडजबेवलिी (2006). नई वदललीः र्ारत सरकार
8. नेिनल रस्ि एक्ि (1999). नई वदललीः र्ारत सरकार
9. य.ू एन.सी.आर.पी.डी. (2008). न्ययू ाकथ ः यनु ाइिेड नेिन
10. सरकारी िेबसाइि
i. संयक्त ु राष्ट्र संघ (www.un.org/en)
ii. राष्ट्रीय न्यास (www.thenational trust.co.in)
iii. सामावजक न्याय एिं अवधकाररता मत्रं ालय (www.socialjustic.nic.in)
iv. र्ारतीय पनु िाथस पररषद (www.rehabcoucil.nic.in)
सहायक/उपयोगी पाठ्यसामग्री
1. पांडा, के .सी (1997). एजक ु े िन फफ एक्सेपिनल वचलड्रेन, नई वदललीः विकास
पवब्लविंग एण्ड वडस्रब्यिू िथ।
2. पी.डब्ल.ू डी. एक्ि (1995). नई वदललीः र्ारत सरकार
3. आर.सी.आई एक्ि (1992). नई वदललीः र्ारत सरकार
4. आर.िी.ई. एक्ि (2009). नई वदललीः र्ारत सरकार
5. नेिनल पॉवलसी फॉर परसन्स विद वडजबेवलिी (2006). नई वदललीः र्ारत सरकार
6. नेिनल रस्ि एक्ि (1999). नई वदललीः र्ारत सरकार
7. य.ू एन.सी.आर.पी.डी. (2008). न्ययू ाकथ ः यनु ाइिेड नेिन
16.10शनबांधात्मक प्रश्न
1. विकलांग व्यवक्तयों के अवधकारों पर संयक्त ु राष्ट्र संघ के घोषणा पत्र की प्रमख
ु बातों का
उललेख करें।
2. सर्ी के वलए विक्षा से आप क्या समझते हैं? इस पर हुए सम्मेलन पर प्रकाि डालें।
3. य.ू एन.सी.आर.पी.डी. के प्रमख ु अनच्ु छे दों का िणथन करें।
4. र्ारतीय सवं िधान में बच्चों के अवधकारों से सबं वं धत कुछ प्रमख ु प्रािधानों का उललेख
करें।पी.डब्ल.ू डी. एक्ि एिं विकलांग व्यवक्तयों के वलए राष्ट्रीय नीवत की मख्ु य बातों की
व्याख्या करें।
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