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संपादकीय 3
विद्यार्थी-शिक्षकों के मध्य मानवाधिकारों के प्रति बीना चौधरी 5
जागरूकता का अध्ययन टी.सी. पाण्डेय
विशिष्ट बच्चों की शिक्षा सजं ीव कुमार शकु ्ला 20
एक के स अध्ययन
प्रिय पाठको! भारतीय आधनु िक शिक्षा की अकादमिक में बच्चों को पर्णत ू ा में समझकर सीखने-सिखाने की
सपं ादकीय समिति की ओर से नववर्ष की हार्दिक उपयक्तु शिक्षण-अधिगम गतिविधियाँ अपनाएँ,
शभु कामनाएँ। 26 जनवरी को प्रत्येक वर्ष की तरह इस जिससे बच्चों को सीखने के अधिक अवसर मिल
वर्ष भी हमने गणतत्रं दिवस (71वाँ) बहुत ही हर्षोल्लास सकें । इसी संदर्भ को प्रतिपादित करता हुआ लेख
के साथ मनाया। इस दिन हमारे देश का सवं िधान लागू ‘विद्यार्थियों में मनोविकारों की पहचान एवं शैक्षिक
हुआ था। हमारे देश का सवं िधान देश के प्रत्येक नागरिक रणनीतियाँ’ दिया गया है।
को समान अधिकार देने के साथ-साथ विकास करने के विद्यार्थियों को शिक्षा प्रदान करने में अध्यापकों
समान अवसर प्रदान करता है; ताकि प्रत्येक नागरिक की महत्वपर्णू भमि ू का होती है। इसलिए अध्यापकों
अपना निरंतर विकास करते हुए खशु हाल जीवनयापन के व्यक्तित्व, ज्ञान, व्यवहार आदि का प्रभाव
कर सके । हमारा सवं िधान धर्म, भाषा, जाति, जेंडर तथा विद्यार्थियों पर दिखाई देता है। इसी कथन के महत्व
क्षेत्र आदि के आधार पर बिना किसी भेदभाव के प्रत्येक को उजागर करता शोध पत्र ‘माध्यमिक विद्यालयों
व्यक्तिके अधिकारों को सरु क्षा प्रदान करता है। में भाषा अध्यापन करने वाले अध्यापकों के ‘कृ त्य
सवं िधान हमारे मानव अधिकारों को सरु क्षा प्रदान संतोष’ व ‘भमि ू का प्रभावशीलता’ का अध्ययन’
करता है। विद्यालयों में शिक्षकों द्वारा विद्यार्थियों को दिया गया है।
इन मानव अधिकारों की जानकारी प्रदान करने के शिक्षा प्राप्त करने के लिए भाषा का ज्ञान होना
विभिन्न अवसर उपलब्ध कराने होंग।े इसी सदं र्भ में आवश्यक है तथा बिना भाषा के व्यक्ति समाज में
‘विद्यार्थी-शिक्षकों के मध्य मानवाधिकारों के रहकर अपना पर्णू विकास नहीं कर सकता। ऐसे में
प्रति जागरूकता का अध्ययन’ नामक शोध पत्र में प्रत्येक समाज अपनी भाषा गढ़ता है। इसलिए भाषा
विद्यार्थी-शिक्षकों में मानवाधिकारों की जानकारी, उनकी उस समाज की पहचान या संस्कृति बन जाती है।
समझ एवं जागरूकता का विश्लेषण दिया गया है। इसी विषय पर आधारित लेख ‘भाषा एवं संस्कृति
देश के प्रत्येक बच्चे को शिक्षा प्रदान करना का अतं :गंथु न और इसके निहितार्थ’ में भाषा और
सनिश्चित
ु किया गया है, अतः सामान्य तथा विशिष्ट संस्कृति के संबंधों पर विमर्श प्रस्तुत किया गया है।
बच्चों के लिए ऐसे समावेशी विद्यालय हों, जिनमें हमारे देश की राजभाषा हिदं ी है और हिदं ी को
विशिष्ट बच्चों के अनसु ार शिक्षा का प्रबधं किया यह गौरव स्वतंत्रता के बाद प्राप्त हुआ। इस गौरवमयी
जाए। इसी पर प्रकाश डालता हुआ शोध पत्र ‘विशिष्ट हिदं ी भाषा को गाँधीजी भारतीय जनता तथा भारतीय
बच्चों की शिक्षा — एक के स अध्ययन’ दिया गया है। परिवेश के अनक ु ू ल समझते थे। अतः हिदं ी भाषा को
शिक्षा बच्चों के व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास बढ़ावा देने पर गाँधीजी के विचारों को ‘गाँधीजी और
करने में सहायक सिद्ध होती है। इसलिए शिक्षक कक्षा हिदं ी भाषा’ नामक लेख में दिया गया है।
4 भारतीय आधिु नक िशक्षा – जनवरी 2020
वर्तमान यगु डिजिटल यगु है और इस यगु मॉड्यल ू की प्रभावशीलता का अध्ययन’ दिया
में अधिकतम शिक्षार्थियों के पास अधिगम के गया है।
लिए डिजिटल उपकरण के रूप में स्मार्टफ़ोन है। भारत एक बहुसांस्कृतिक देश है। भारत
इसके माध्यम से शिक्षार्थी अनेक विषयवस्तुओ ं के में अनेक जनजातियाँ रहती हैं, जो भिन्न-भिन्न
साथ-साथ भाषा भी सीख सकते हैं। अतः भाषा ससं ्कृति, भाषा, धर्म, सामाजिक तथा भौगोलिक
सिखाने में स्मार्टफ़ोन की उपयोगिता पर शोध पत्र स्तर आादि पर विशिष्ट होती हैं। इन जनजातियों की
‘माध्यमिक विद्यालय के शिक्षकों की भाषा दक्षता विविधता ही भारतीय संस्कृति को उत्कृ ष्ट बनाती
के विकास में स्मार्टफ़ोन’ दिया गया है। है। परंतु भौगोलिक स्थिति के कारण ये जनजातियाँ
संस्कृत भाषा में अनेक विषयों का ज्ञान उपलब्ध विद्यालयी शिक्षा का पर्णू लाभ नहीं उठा पातीं। इन
है। इस ज्ञान को प्राप्त कर विद्यार्थी भविष्य में अपने जनजाति के विद्यार्थियों को शिक्षा प्राप्त करने में किन
विकास का मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं। अतः ससं ्कृत समस्याओ ं का सामना करना होता है तथा उनकी
भाषा के शिक्षण के निर्माणवादी उपागम पर आधारित शिक्षा में कितनी रुचि होती है? इन सब बिंदओ ु ं पर
आधारित शोध पत्र ‘उरांव जनजाति के विद्यार्थियों
शोध पत्र ‘माध्यमिक स्तर के विद्यार्थियों की ससं ्कृत
की अकादमिक प्रभावशीलता का अध्ययन’ दिया
विषय में शैक्षिक उपलब्धि पर निर्माणवादी उपागम
गया है।
की प्रभावशीलता’ दिया गया है।
प्रत्येक विद्यार्थी की शैक्षिक आकांक्षा होती है,
विद्यालय में विद्यार्थियों की विविधता में भाषा जिस पर उसकी शैक्षिक उपलब्धि निर्भर करती है।
का प्रमख ु स्थान है। अतः शिक्षक जब विद्यालयों में इसी विषय पर शोध पत्र ‘स्नातक स्तर के विद्यार्थियों
पढ़ाते हैं, तो उन्हें स्थानीय भाषा का भी ज्ञान होना की शैक्षिक आकांक्षा स्तर एवं शैक्षिक उपलब्धि में
चाहिए तथा पढ़ाते समय उन्हें बहुभाषी कक्षा को सहसंबंध का अध्ययन’ दिया गया है।
एक संसाधन के रूप में प्रयोग करना चाहिए। इसी पर आप सभी की प्रतिक्रियाओ ं की हमें सदैव
आधारित लेख ‘बहुभाषी कक्षा — एक संसाधन’ प्रतीक्षा रहती है। आप हमें लिखें कि यह अक ं आपको
दिया गया है। कै सा लगा। साथ ही, आशा करते हैं कि आप हमें
शोध कौशल पर हिदं ी भाषा में विकसित अधिगम अपने मौलिक तथा प्रभावी लेख, शोध पत्र, शैक्षिक
मॉड्यल ू शिक्षार्थियों को सीखने में मदद कर सकते हैं। समीक्षाएँ, श्रेष्ठ अभ्यास, पसु ्तक समीक्षाएँ, नवाचारी
इसी पर आधारित शोध पत्र ‘शैक्षिक शोध में साखं ्यिकी प्रयोग, विद्यालयों के अनभु व आदि प्रकाशन हेतु
अनप्रु योग एवं व्याख्या पर हिदं ी भाषा में विकसित आगे दिए गए पते पर प्रेषित करें गे।
अकादमिक संपादकीय समिति
विद्यार्थी-शिक्षकों के मध्य मानवाधिकारों
के प्रति जागरूकता का अध्ययन
बीना चौधरी *
टी.सी. पाण्डेय **
इस शोध पत्र में विद्यार्थी-शिक्षकों के मध्य मानवाधिकारों के प्रति जागरूकता का अध्ययन दिया गया है। इस शोध
हेतु उत्तराखण्ड राज्य में स्थित कुमाऊँ विश्वविद्यालय, नैनीताल से संबद्ध कॉलेजों/परिसरों में प्रशिक्षणरत 130
विद्यार्थी-शिक्षकों का चयन साधारण यादृच्छिक प्रतिचयन विधि द्वारा किया गया। विशाल सदू और आरती आनन्द
(2014) द्वारा निर्मित व प्रमाणीकृ त मानवाधिकार जागरूकता परीक्षण का प्रयोग किया गया। प्राप्त आँकड़ों की
सार्थकता स्पष्ट करने हेतु वर्णनात्मक तथा अनमु ानात्मक सांख्यिकी का प्रयोग किया गया। आँकड़ों के विश्लेषण
के पश्चात् जेंडर, निवास-स्थान तथा परिवार के स्वरूप के आधार पर विद्यार्थी-शिक्षकों में मानवाधिकरों के प्रति
जागरूकता में कोई सार्थक अतं र नहीं पाया गया।
सृष्टि के निर्माण के साथ ही मनष्य ु ने अपना जीवन प्राचीन काल में समाज को मखु ्यतः चार वर्णों—
अर्थपर्णू बनाने के लिए विभिन्न कर्तव्यों का निर्धारण ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य एवं शद्रू में विभाजित किया
किया, जिससे सभी मनष्य ु ों को अपने-अपने कार्य गया था। ब्राह्मण का कर्तव्य विद्या प्रदान करना,
करने में सहजता होने लगी और इस प्रकार एक क्षत्रिय का कर्तव्य प्रजा की रक्षा करना व यद्ध
ु करना,
सामाजिक व्यवस्था का विकास होने लगा। धीरे-धीरे वैश्यों का कर्तव्य आर्थिक व्यवस्थाओ ं को सचु ारु
मनष्यु का सामाजिक दायरा बढ़ने लगा, जिसके रूप से चलाने के लिए व्यापार करना तथा शद्रों ू का
साथ-साथ उसके दायित्व भी बढ़ने लगे, प्रारंभ में मनष्य ु कर्तव्य सेवा करना बन गया। समाज में बनी इस वर्ण
के कर्तव्यों का निर्धारण उसकी परिवार में स्थिति, जेंडर, व्यवस्था से धीरे -धीरे लोगों में संघर्ष पनपने लगा।
समाज में उसके पद व आर्थिक स्थिति के आधार पर सशक्त व्यक्तियों द्वारा असहाय व दलित व्यक्तियों
होता था। यह सामाजिक दृष्टि से आवश्यक भी था। पर अत्याचार किए जाने लगे और इन्हीं अत्याचारों
प्रारंभ में जो व्यक्ति जैसा कार्य करता था, वह उसी वर्ग के विरोध ने मानव अधिकारों की नींव रखी। लोगों
का माना जाता था। धीरे-धीरे कर्तव्यों की यह सामाजिक को जीवन में संघर्ष के दौरान समझ आने लगा कि
व्यवस्था कर्म प्रधान न होकर जन्म प्रधान होने लगी। समाज में अपनी स्थिति को बनाए रखने तथा उसमें
*सहायक अध्यापिका, राजकीय बालिका इटं र कॉलेज, लोहाघाट, उत्तराखण्ड 262524
**असिस्टेंट प्रोफ़े सर, बी.एड. विभाग, एम.बी. राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, हल्द्वानी, उत्तराखण्ड 263139
6 भारतीय आधिु नक िशक्षा – जनवरी 2020
निरंतर सधु ार करने के लिए मात्र कर्तव्य ही पर्याप्त आर्थिक, सामाजिक व सांस्कृतिक अधिकारों को
नहीं होते हैं, अपितु इन कर्तव्यों के साथ ही उनके पास द्वितीय पीढ़ी के मानवाधिकार भी कहा जाता है, इन्हें
मनष्यु होने के नाते कुछ अधिकार भी होने चाहिए जो नकारात्मक अधिकार भी कहा जाता है, क्योंकि ये
सम्मानपर्वू क जीवन जीने के लिए आवश्यक हैं। अधिकार राज्य का सक्रिय हस्तक्षेप चाहते हैं, न
एक व्यक्ति तब तक अपने अधिकारों का कि राज्य की तटस्थता। इसके अतिरिक्त विकास
आनंद प्राप्त नहीं कर सकता जब तक वह दसू रों के का अधिकार तथा पर्यावरण के प्रति अधिकार भी
प्रति अपने कर्तव्यों का निर्वहन न करता हो। अतः हैं जिन्हें तृतीय पीढ़ी के अधिकार भी कहा जाता है
यह तो तय हो गया था कि कर्तव्य और अधिकार (नसीमा, 2014)। ये अधिकार समय की माँग के
एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। समाज में रहने वाले अनुसार अस्तित्व में आए हैं।
प्रत्येक व्यक्ति को कुछ अधिकार प्राप्त हैं। कोई भी द्वितीय विश्वयद्ध
ु के हिसं क परिणामों के बाद
धर्म, जाति, सम्प्रदाय या स्थान विशेष इन्हें प्राप्त वैश्विक स्तर पर मानवाधिकारों की माँग निरंतर
करने में बाधा उत्पन्न नहीं कर सकता है। मानव बढ़ने लगी। मानवाधिकारों के संरक्षण व सवर्द्धन ं
अधिकार के सिद्धांत मनुष्यों द्वारा ही विकसित के लिए वर्ष 1947 में अतं र्राष्ट्रीय मानवाधिकार
किए गए हैं, जिसमें मनुष्य की प्रतिष्ठा का उचित आयोग का गठन किया गया तथा मानवाधिकारों
तथा समान रूप से सम्मान करने की प्रतिबद्धता से संबंधित अधिकारों को निर्धारित करने के लिए
होती है। मानवाधिकारों का अस्तित्व में होना ही एक अतं र्राष्ट्रीय लेख पत्र का प्रारूप तैयार किया
इस बात को दर्शाता है कि प्रत्येक मनुष्य को दसू रे गया तथा इसी प्रारूप के आधार पर अतं र्राष्ट्रीय
मनुष्य के जीवन का मल्य ू समझना आवश्यक है। मानवाधिकार आयोग (1947) ने मानवाधिकारों के
मानवाधिकारों की उत्पत्ति से संबंधित कई सिद्धांत हैं लिए एक अलग अनबु ंध तैयार किया। इसी दस्तावेज़
जिनमें प्राकृ तिक अधिकार का सिद्धांत, अधिकारों को ‘मानवाधिकार का अतं र्राष्ट्रीय अनबु ंध’ कहा
की न्याय-संगतता का सिद्धांत, अधिकारों के जाता है (अग्रवाल, 2014)। 10 दिसम्बर, 1948 में
सामाजिक कल्याण का सिद्धांत, अधिकारों का सयं क्त
ु राष्ट्र की सामान्य महासभा ने मानवाधिकारों
आदर्शवादी तथा ऐतिहासिक सिद्धांत प्रमख ु हैं। के सार्वभौमिक घोषणा पत्र की स्वीकृ ति देकर इसकी
मानवाधिकारों को नागरिक, राजनैतिक, आर्थिक, घोषणा की। इसका उद्देश्य प्रत्येक व्यक्ति व समाज
सामाजिक तथा सांस्कृतिक अधिकारों में वर्गीकृ त का प्रत्येक भाग इस घोषणा को लगातार दृष्टि में
किया गया है। नागरिक व राजनैतिक अधिकार रखते हुए अध्यापन कार्य तथा शिक्षा के द्वारा यह
प्रथम पीढ़ी के मानवाधिकार हैं, जिन्हें नकारात्मक प्रयत्न करे गा कि इन अधिकारों व स्वतंत्रता के प्रति
अधिकार भी कहा जाता है, क्योंकि ये अधिकार सम्मान की भावना जाग्रत हो और उत्तरोत्तर ऐसे
सरकार को ऐसे कार्य करने से मना करते हैं जिनके अधिकारों की सार्वभौमिक तथा प्रभावोत्पादक
करने से इन अधिकारों का उल्लघंन होता हो। स्वीकृ ति दें और उनका पालन करवाएँ।
विद्यार्थी-शिक्षकों के मध्य मानवाधिकारों के प्रति जागरूकता का अध्ययन 7
वर्ष 1949 में, यरू ोपीय परिषद् ने यह सहमति गया कि मानवाधिकार शिक्षा मात्र सचू नाएँ देना नहीं
जताई कि मानवाधिकारों का शिक्षण पाठ्यचर्या है। यह जीवनपर्यंत चलने वाली विस्तृत प्रक्रिया है
का एक महत्वपर्णू मद्ु दा होना चाहिए। यरू ोपीय जिसमें विकास के प्रत्येक चरण में तथा समाज के
परिषद,् 1981 के अनसु ार, विद्यालय का सामाजिक प्रत्येक स्तर में लोग एक-दसू रे का सम्मान व आदर
परिवेश विद्यार्थियों को अन्य व्यक्तियों के अधिकारों करें । अतः मानवाधिकार शिक्षा का तात्पर्य व्यक्तियों
को पहचानने, अपने व्यक्तित्व को भली-भाँति प्रस्तुत में उस भावना का विकास करना है, जहाँ पर वे
करने तथा अन्य व्यक्तियों के विचारों व संकल्पनाओ ं मानवाधिकारों को समझ सकें तथा दसू रों के महत्व
को प्रोत्साहित करने वाला हो। मानवाधिकार शिक्षा को आदर दे सकें ।
को पाठ्यचर्या में शामिल करने के लिए अमेरिका, मानवाधिकार भारतीय समाज के सामाजिक,
जर्मनी आदि देश आगे आए। मानवाधिकार शिक्षा आर्थिक तथा सांस्कृतिक जीवन का क्रमिक विकास
को पाठ्यचर्या में सम्मिलित करने हेतु विभिन्न है। पर्वी
ू देशों में रहने वाले व्यक्तियों के कर्तव्य
देशों ने भिन्न-भिन्न निर्धारकों का चयन किया। पश्चिमी देशों में रहने वाले व्यक्तियों के अधिकारों
मानवाधिकार से सबं ंधित सार्वभौमिक घोषणा पत्र में के रूप में सामने आए। स्वतंत्रता के पश्चात् सवं िधान
उल्लिखित अनचु ्छेद 26 के अनसु ार, ‘शिक्षा मनष्य ु को रूप देने वाले लोगों ने पर्वी
ू तथा पश्चिमी, दोनों
के व्यक्तित्व के पर्णू विकास को दिशा प्रदान करने
ही दर्शन को लेकर भारतीय राजनीति तथा भारतीय
वाली तथा मौलिक स्वतंत्रता व मानवाधिकार के
परिस्थितियों के परिप्रेक्ष्य से तालमेल बैठाते हुए
सम्मान को शक्ति प्रदान करने वाली होनी चाहिए।
मानवाधिकार के प्रत्ययों का समावेश सवं िधान
यह समस्त देशों के मध्य सहनशीलता, मित्रता व
में किया। हमारे संविधान के भाग तीन में व्यक्ति
समझ को बढ़ावा देने वाली तथा संयक्त ु राष्ट्र द्वारा
शांति को बनाए रखने से संबंधित कार्यक्रमों को को मौलिक अधिकारों के रूप में कुछ अधिकार
बढ़ावा देने वाली होनी चाहिए (नसीमा, 2014)। प्रदान किए गए हैं। ‘मौलिक’ शब्द दर्शाता है कि ये
यनू ेस्को की अतं र्राष्ट्रीय सभा (1993) ने यह अधिकार प्रत्येक व्यक्ति को जन्म से प्राप्त होने के
स्वीकार किया कि मानवाधिकार शिक्षा, भेदभाव, साथ-साथ उनके व्यक्तित्व व आत्म विकास के लिए
अन्याय, अनचि ु त व्यवहार, अलोकतात्ं रिक व्यवहार, अत्यंत आवश्यक हैं। मौलिक अधिकार साधारण
सासं ्कृतिक मल्य ू ों का ह्रास, उत्पीड़न, बधं आ
ु मज़दरू ी, अधिकारों से भिन्न होते हैं, क्योंकि किसी भी राज्य
मानवाधिकार के प्रति निरक्षरता तथा किसी भी स्तर व प्रशासन द्वारा इन अधिकारों का अतिक्रमण नहीं
पर मानवाधिकार की अवमानना से सरु क्षा प्रदान किया जा सकता है।
करने वाली होनी चाहिए। संयक्त ु राष्ट्र की सामान्य भारतीय सवं िधान की प्रारूप समिति के अध्यक्ष
महासभा, 1994 ने 1 जनवरी, 1995 से वर्ष 2005 भीमराव अम्बेडकर के अनसु ार, “मौलिक अधिकारों
तक आने वाले अगले दस वर्षों को मानवाधिकार के उल्लिखित करने का उद्देश्य एक तो यह है कि
शिक्षा का दशक घोषित किया। महासभा में यह कहा प्रत्येक व्यक्ति इन अधिकारों का दावा कर सके और
8 भारतीय आधिु नक िशक्षा – जनवरी 2020
दसू रा यह है कि प्रत्येक अधिकारी इन्हें मानने के लिए नागरिक तथा राजनैतिक अधिकारों के
विवश हो।” भारतीय संविधान में वर्णित मौलिक अतं र्राष्ट्रीय अनबु ंध के समान ही आर्थिक,
अधिकार नागरिक तथा राजनैतिक अधिकारों से सामाजिक तथा सांस्कृतिक अधिकारों से संबंधित
संबंधित सार्वभौमिक घोषणा पत्र के अतं र्राष्ट्रीय अनबु ंध भी अतं र्राष्ट्रीय स्तर पर किए गए हैं। जहाँ
अनबु ंध में वर्णित अधिकारों की भाँति निर्दिष्ट है। एक ओर नागरिक तथा राजनैतिक अधिकारों की
इन्हें ‘निर्दिष्ट’ इसलिए कहा गया है, क्योंकि ये प्राप्ति के लिए राज्य को काननू द्वारा बाध्य किया
मौलिक अधिकार संविधान में उनके नाम के द्वारा जा सकता है, वहीं दसू री ओर आर्थिक, सामाजिक
उल्लिखित किए गए हैं। तालिका 1 में अतं र्राष्ट्रीय तथा सांस्कृतिक अधिकारों के प्रति कर्तव्य निभाने
स्तर पर नागरिक तथा राजनैतिक अधिकारों के के लिए राज्य को बाध्य नहीं किया जा सकता है।
अनबु ंध में वर्णित अधिकार तथा उनके अतं र्राष्ट्रीय भारतीय सवं िधान में इन अधिकारों का वर्णन भाग 4
अनबु ंध पत्र व भारतीय संविधान में उल्लिखित में किया गया है, जिन्हें राज्य के ‘नीति निर्देशक
सबं ंधित अनचु ्छेद दिए गए हैं। तत्व’ भी कहा जाता है। राज्य के नीति निर्देशक तत्व
तालिका 1 — अंतर्राष्ट्रीय अनुबंध पत्र व भारतीय सवं िधान में उल्लिखित
मानवाधिकारों से सबं ंधित अनुच्छे द (नागरिक व राजनैतिक अधिकारों के सदं र्भ में)
क्र. अधिकार नागरिक व राजनैतिक भारतीय सवं िधान में
स.ं अधिकार सबं ंधी अंतर्राष्ट्रीय वर्णित अनुच्छे द
अनुबंध पत्र में वर्णित अनुच्छे द
1. बाल श्रम/बेगारी/जबरन मज़दरू ी अनचु ्छेद 8(3) अनचु ्छेद (23)
2. काननू के समक्ष समानता अनचु ्छेद 14(1) अनचु ्छेद 14
3. भेदभाव का निषेध अनचु ्छेद 26 अनचु ्छेद 15
4. सेवाओ ं में समान अवसर अनचु ्छेद 25(C) अनचु ्छेद 16(1)
5. भाषण तथा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता अनचु ्छेद 19(1) तथा (2) अनचु ्छेद 19(1) a
6. शांतिपर्णू सभाएँ करने की स्वतंत्रता अनचु ्छेद 21 अनचु ्छेद 19(1) b
7. संगठन बनाने की स्वतंत्रता अनचु ्छेद 22(1) अनचु ्छेद 19(1) c
8. देश/राज्य के किसी भी भाग में आबाध रूप से भ्रमण करने की स्वतत्रं ता अनचु ्छेद 22(1) अनचु ्छेद 19(1) d तथा e
9. अभियोग तथा दण्डात्मक कार्यवाही के विरुद्ध सरु क्षा अनचु ्छेद 14(7) अनचु ्छेद 20(2)
10. स्वयं के प्रति साक्ष्य देने के लिए बाध्य न करने का अधिकार अनचु ्छेद 14(3)(g) अनचु ्छेद 20(3)
11. जीवन जीने तथा स्वतंत्रता का अधिकार अनचु ्छेद 6(1) तथा अनचु ्छेद 9(1) अनचु ्छेद 21
स्रोत— अग्रवाल, एच.ओ. 2014. इटं रनेशनल लॉ एडं ह्यूमन राइट् स.
विद्यार्थी-शिक्षकों के मध्य मानवाधिकारों के प्रति जागरूकता का अध्ययन 9
मानवाधिकारों के ही अंग हैं, क्योंकि यह आर्थिक वास्तव में, शिक्षा का उद्देश्य ही व्यक्ति की जागरूकता
तथा सामाजिक अधिकारों को पूर्णतः समाए हुए को बढ़ाना, प्रश्न पछू ने के लिए साहस प्रदान करना
हैं। जिस प्रकार अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आर्थिक, तथा समस्याओ ं के समाधान के लिए प्रेरित करना
सामाजिक तथा सांस्कृतिक अधिकारों के अनुबंध है। शिक्षा का प्रारम्भिक लक्ष्य एक व्यक्ति को
में अनुच्छेदों का वर्णन है, उसी प्रकार भारतीय उसकी जीवन यात्रा शरू ु करने हेतु मल ू भतू रूप से
संविधान में भी विभिन्न अनुच्छेदों के माध्यम से ज्ञान, अभिवृत्ति, मल्य
ू व कौशल प्रदान करना है।
उपरोक्त अधिकारों का भी वर्णन किया गया है, शिक्षा सामाजिक परिवर्तन का एक साधन है। व्यक्ति
जिसे तालिका 2 में दर्शाया गया है। मानवाधिकारों की शिक्षा प्राप्त कर, जागरूक होकर
मानवाधिकार की शिक्षा को बढ़ावा देने के समाज में परिर्वतन करने में समर्थ हो सकता है।
लिए राष्ट्रीय तथा अतं र्राष्ट्रीय स्तर पर सेमिनार तथा मानवाधिकारों की शिक्षा बिना किसी भेदभाव के
कार्यशालाओ ं का आयोजन किया जाता रहा है। व्यक्तियों की शिक्षा की वकालत करती है। विद्यालय
इन सेमिनार व कार्यशालाओ ं का उद्शदे ्य प्रत्येक में बच्चों को उनके अधिकारों की जानकारी देना
व्यक्ति को प्रत्येक स्थान पर अपने अधिकारों के तथा तदनरू ु प व्यवहार करना सिखाया जाना चाहिए।
प्रति जागरूक करना होना चाहिए ताकि सार्वभौमिक अपने अधिकारों का सरं क्षण व उनका सम्मान करना
रूप से मानवाधिकारों का अनप्रु योग किया जा सके । सिखाना ही अध्यापक का कर्तव्य होना चाहिए।
तालिका 2 — अंतर्राष्ट्रीय अनुबंध पत्र तथा भारतीय सवं िधान में उल्लिखित मानवाधिकारों से सबं ंधित
अनुच्छे द (आर्थिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक अधिकारों के सदं र्भ में)
क्र. स.ं अधिकार आर्थिक, सामाजिक तथा भारतीय सवं िधान
सांस्कृतिक अधिकारों से सबं ंधित में वर्णित अनुच्छे द
अंतर्राष्ट्रीय अनुबंध में वर्णित
अनुच्छे द
1. समान कार्य के लिए समान वेतन अनचु ्छेद 7a(i) अनचु ्छेद 39(d)
2. कार्य करने के लिए सरु क्षित तथा मानवीय दशाएँ अनचु ्छेद 7(b) अनचु ्छेद 42
3. प्रसति
ू सहायता अनचु ्छेद 10(2) अनचु ्छेद 42
4. काम पाने का अधिकार अनचु ्छेद 6(1) अनचु ्छेद 41
5. बच्चों के लिए अवसर अनचु ्छेद 10(3) अनचु ्छेद 39(f)
6. बच्चों के लिए अनिवार्य शिक्षा अनचु ्छेद 13(2) (a) अनचु ्छेद 45
7. जीवन निर्वाह मज़दरू ी अनचु ्छेद 7(a) (ii) अनचु ्छेद 43
8. पर्याप्त जीवन स्तर बनाए रखना अनचु ्छेद 11 अनचु ्छेद 47
9. कार्य की दशाएँ अनचु ्छेद 7(d) अनचु ्छेद 43
10. बच्चों की शिक्षा का अधिकार अनचु ्छेद 13(1) अनचु ्छेद 21(a)
स्रोत — अग्रवाल, एच.ओ. 2014. इटं रनेशनल लॉ एडं ह्यूमन राइट् स.
10 भारतीय आधिु नक िशक्षा – जनवरी 2020
इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुए भारत में शिक्षक द्वारा इस परिवर्तन को मर्तू रूप दिया जा
मानवाधिकार से संबंधित शिक्षा की नींव 1968 सकता है। वर्ष 1988 में शिक्षक शिक्षा पाठ्यचर्या
की राष्ट्रीय शिक्षा नीति द्वारा रखी गई। शिक्षक में कुछ उद्देश्य निर्धारित किए गए जो मानवाधिकार
शिक्षा की पाठ्यचर्या के लिए प्रमख ु ता से जानी शिक्षा से जड़ु े हुए थे। विद्यार्थी-शिक्षकों में विभिन्न
जाने वाली चट्टोपाध्याय समिति (1983) ने भी गतिविधियों के माध्यम से लोकतांत्रिकता,
शिक्षक शिक्षा में मानवाधिकार की अनुशंसा की। नागरिकता, सहनशीलता, दसू रों के प्रति समझ का
समिति के अनुसार शिक्षक को शिक्षा के सामाजिक विकास, सहयोग की भावना तथा सामाजिक न्याय
परिदृश्य के प्रति ज़िम्मेदार व संवेदनशील होना के प्रति प्रतिबद्धता आदि गुणों का विकास किया
चाहिए। जिसके लिए शिक्षक शिक्षा पाठ्यक्रम में जाना इत्यादि पाठ्यचर्या के प्रमख ु उद्देश्य निर्धारित
कई आमल ू चलू बदलाव लाए गए। किए गए। इसके अतिरिक्त लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता,
वर्ष 1986 में राष्ट्रीय पाठ्यचर्या के लागू वैज्ञानिक स्वभाव, समान अधिकार, सांस्कृतिक
होने पर विद्यालयी पाठ्यचर्या में मानवाधिकार विरासत, पर्यावरण का संरक्षण व नागरिकता की
शिक्षा को व्यापक स्थान दिया गया। भारतीय ज़िम्मेदारियों के प्रति सामाजिक, सांस्कृतिक व
स्वतंत्रता आंदोलन, आज़ादी के लिए जन-जन नैतिक मल्ू य उन्मुखी शिक्षा को भी पाठ्यचर्या में
का संघर्ष, गाँधीजी द्वारा चलाए गए मानवता की
अहम स्थान दिया गया (एन.सी.टी.ई., 1988)।
रक्षा से संबंधित आंदोलन, भारतीय संविधान
भारतीय संविधान में वर्णित राष्ट्रीय मल्य ू
जैसे महत्वपूर्ण प्रकरणों को सामाजिक विषय में
व लक्ष्यों को प्रतिस्थापित करना, शिक्षकों
स्थान दिया गया। संधारणीय विकास को बनाए
की सामाजिक एकजुटता, बाल अधिकारों व
रखने हेतु पर्यावरण संरक्षण, समानता व भेदभाव,
सामाजिक बाधाओ,ं रीति-रिवाजों आदि से मानवाधिकारों की अंतर्राष्ट्रीय समझ व संरक्षण के
संबंधित मद्ु दे जो मानवाधिकार से संबंधित हैं, प्रति संवेदनशील बनाना तथा किसी भी पूर्वाग्रह
उनका वर्णन यथोचित रूप से पाठ्यचर्या में व पक्षपात के प्रति शिक्षकों में तार्कि क क्षमता का
किया गया। शिक्षक शिक्षा राष्ट्रीय आयोग ने विकास करना आदि वर्ष 1998 में, शिक्षक शिक्षा
क्रमशः वर्ष 1978, 1988, 1998, तथा 2009 की पाठ्यचर्या के प्रमख ु बिंदु निर्धारित किए गए
में शिक्षक शिक्षा पाठ्यचर्या में अपनी अनुशंसाएँ (एन.सी.टी.ई., 1998)। वर्ष 2009 व वर्ष 2014
दी हैं। मानवाधिकार शिक्षा के परिप्रेक्ष्य में राष्ट्रीय की राष्ट्रीय शिक्षक शिक्षा पाठ्यचर्या में समाज
आयोग 1978 में कहा गया है कि अध्यापक की भाषागत, धार्मिक, जातिगत व वैयक्तिक
शिक्षा बच्चों व उस समदु ाय की आकांक्षाओ,ं विभिन्नता से संबंधित मानवीय मल्य ू ों के विकास
आवश्यकताओ ं व जीवन के साथ जुड़ी होनी चाहिए पर ज़ोर दिया गया (एन.सी.टी.ई., 2009)। वर्तमान
जिससे वे जड़ु े हुए हैं (एन.सी.टी.ई., 1978)। शिक्षा परिप्रेक्ष्य में तो मानवाधिकार शिक्षा, शिक्षक शिक्षा
समाज में परिवर्तन का एक प्रमख ु माध्यम है तथा पाठ्यचर्या का एक महत्वपर्णू विषय बन गया है।
विद्यार्थी-शिक्षकों के मध्य मानवाधिकारों के प्रति जागरूकता का अध्ययन 11
विद्यार्थियों में इस प्रकार की समझ को विकसित करने अध्ययन किया तथा निष्कर्ष में पाया कि जेंडर
का उत्तरदायित्व एक शिक्षक के हाथ में होता है। इस के आधार पर माध्यमिक विद्यार्थी-शिक्षकों में
सदं र्भ में विद्यार्थी-शिक्षक का मानवाधिकारों के प्रति मानवाधिकार के प्रति जागरूकता में सार्थक अतं र
जागरूक होना एक स्वस्थ समाज की आवश्यकता है। है तथा मानवाधिकार के प्रति जागरूकता में विज्ञान
सबं ंधित साहित्य का अध्ययन वर्ग के विद्यार्थी-शिक्षकों का स्तर कला वर्ग के
मानवाधिकारों की समझ व उनके प्रति जागरूकता विद्यार्थी-शिक्षकों से अधिक है। अशरफ (2013)
से सबं ंधित साहित्य का पनु रावलोकन के अतं र्गत ने बी.एड. तथा डी.एल.एड. विद्यार्थी-शिक्षकों
तिवारी (2002) ने माध्यमिक विद्यालयों से संबद्ध के मध्य मानवाधिकारों के प्रति जागरूकता का
शिक्षिकाओ ं की मानवाधिकारों के प्रति अभिवृत्ति अध्ययन किया। शोधोपरातं बी.एड. तथा डी.एल.एड.
का अध्ययन किया। शोध का उद्देश्य अतं र्राष्ट्रीय विद्यार्थी-शिक्षकों में, मानवाधिकार के प्रति
व राष्ट्रीय स्तर पर मानवाधिकारों की स्थिति के जागरूकता का स्तर औसत पाया गया व परुु ष
प्रति शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों की शिक्षिकाओ ं की डी.एल.एड. विद्यार्थी-शिक्षकों में, महिला डी.एल.एड.
अभिवृत्ति का तलन ु ात्मक अध्ययन करना था। विद्यार्थी-शिक्षकों की अपेक्षा अधिक जागरूकता पाई
निष्कर्षतः अतं र्राष्ट्रीय स्तर पर मानवाधिकारों की गई। कुमार पक्कीरीसामी तथा शिवकुमार (2004)
स्थिति के प्रति ग्रामीण व शहरी क्षेत्र की शिक्षिकाओ ं ने बी.एड. विद्यार्थी-शिक्षकों के मध्य मानवाधिकार
की अभिवृत्ति में कोई सार्थक अतं र नहीं पाया गया। के प्रति जागरूकता विषय पर अध्ययन किया तथा
पाण्डे (2005) ने विद्यालयी शिक्षा के विभिन्न स्तरों परिणाम निकाला कि बी.एड. विद्यार्थी-शिक्षकों में
पर कार्यरत शिक्षक-शिक्षिकाओ ं व विद्यार्थी-शिक्षकों मानवाधिकार के प्रति जागरूकता का स्तर कम है।
में मानवाधिकारों के प्रति जागरूकता के अध्ययन महिला बी.एड. विद्यार्थी-शिक्षकों में, परुु ष बी.एड.
हेतु स्वनिर्मित मानवाधिकार जागरूकता संबंधी विद्यार्थी-शिक्षकों की अपेक्षा मानवाधिकार के
प्रश्नावली का प्रयोग किया तथा परिणाम प्राप्त प्रति अधिक जागरूकता है। मातलीवाला (2014)
किए कि देश के प्राथमिक विद्यालयों की विभिन्न ने “ह्मयू न राइट्स अवेयरनेस अमगं बी.एड.
किताबों में समावेशित मल ू भतू मानवाधिकारों के स्टूडेंट्स” विषय पर शोध कार्य किया। निष्कर्षतः
प्रत्ययों के विषय में, शिक्षकों में जागरूकता की कमी बी.एड. विद्यार्थी-शिक्षकों में, मानवाधिकार के प्रति
पाई गई तथा मानवाधिकार की शिक्षा को उपलब्ध जागरूकता का स्तर औसत से भी कम पाया गया।
कराने वाले समावेशित मॉडल शिक्षकों तथा पांडियन (2015) ने नागालैण्ड के उच्च
विद्यार्थी-शिक्षकों को इस प्रत्यय के विषय में, माध्यमिक स्तर पर अध्ययनरत विद्यार्थियों के
समर्थ बनाने में पर्णू तः सफल नहीं पाए गए। कटौच मध्य मानवाधिकारों के प्रति जागरूकता का
(2012) ने “ह्मयू न राइट्स अवेयरनेस अमगं सेकंड्री अध्ययन किया। शोध के पश्चात् निष्कर्ष में पाया
टीचर्स ट्रेनीज़ ऑफ़ हिमाचल प्रदेश’’ विषय पर गया कि सरकारी विद्यालयों के विद्यार्थियों में,
विद्यार्थी-शिक्षकों के मध्य मानवाधिकारों के प्रति जागरूकता का अध्ययन 13
सार्थक अतं र नहीं है। अतः शनू ्य परिकल्पना सखं ्या 1 तालिका 5 के अवलोकन से ज्ञात होता है
“विद्यार्थी-शिक्षक के मध्य जेंडर के आधार पर कि एकल व सयं क्त ु पारिवारिक पृष्ठभमि ू वाले
मानवाधिकारों के प्रति जागरूकता में कोई सार्थक अतं र विद्यार्थी-शिक्षकों की मानवाधिकारों के प्रति जागरूकता
नहीं है”, 0.05 सार्थकता स्तर पर स्वीकृ त की जाती है। के सदं र्भ में एकल परिवार वाले विद्यार्थी-शिक्षकों की
तालिका 4 के अवलोकन से ज्ञात होता है कि मानवाधिकारों के प्रति जागरूकता का मध्यमान व
विद्यार्थी-शिक्षकों के ग्रामीण व शहरी क्षेत्र में निवास मानक विचलन क्रमशः 72.26 व 7.44 तथा सयं क्त ु
करने के आधार पर मानवाधिकारों के प्रति जागरूकता परिवार वाले विद्यार्थी-शिक्षकों की मानवाधिकारों
के सदं र्भ में ग्रामीण क्षेत्र में निवास करने वाले के प्रति जागरूकता का मध्यमान व मानक विचलन
विद्यार्थी-शिक्षकों की मानवाधिकारों के प्रति जागरूकता क्रमशः 71.79 व 9.66 है। उपरोक्त दोनों समहू ों के
का मध्यमान व मानक विचलन क्रमशः 71.34 व 10.21 मानवाधिकारों के प्रति जागरूकता की तलन ु ा करने हेतु
तथा शहरी क्षेत्र में निवास करने वाले विद्यार्थी-शिक्षकों t-परीक्षण की गणना की गई। परीक्षणोपरातं t-मान 0.315
की मानवाधिकारों के प्रति जागरूकता का मध्यमान व पाया गया। जो तालिका में 128 स्वतत्रं ता अशं पर 0.05
मानक विचलन क्रमशः 72.73 व 6.68 है। निवास स्थान सार्थकता स्तर पर निर्धारित t-मान 1.98 से कम है। अतः
के आधार पर विद्यार्थी-शिक्षकों की मानवाधिकारों के विद्यार्थी-शिक्षकों के मध्य परिवार के स्वरूप के
प्रति जागरूकता की तलन ु ा करने हेतु t-परीक्षण की गणना आधार पर मानवाधिकारों के प्रति जागरूकता में
की गई। जिसके आधार पर t-मान 0.932 पाया गया जो 0.05 सार्थकता स्तर पर कोई सार्थक अतं र नहीं
तालिका में स्वतत्रं ता अशं 128 पर 0.05 सार्थकता स्तर पाया गया। अतः शनू ्य परिकल्पना सखं ्या (3)
पर निर्धारित t-मान 1.98 से कम है। अतः निवास स्थान “विद्यार्थी-शिक्षकों के मध्य परिवार के स्वरूप के
के आधार पर दोनों समहू ों (ग्रामीण क्षेत्र व शहरी क्षेत्र) आधार पर मानवाधिकारों के प्रति जागरूकता में कोई
में 0.05 सार्थकता स्तर पर कोई सार्थक अतं र नहीं है। सार्थक अतं र नहीं है”, 0.05 सार्थकता स्तर पर स्वीकृ त
अतः शनू ्य परिकल्पना सखं ्या (2) “विद्यार्थी-शिक्षकों की जाती है।
के मध्य निवास स्थान के आधार पर मानवाधिकारों के निष्कर्ष
प्रति जागरूकता में कोई सार्थक अतं र नहीं है”, 0.05 आँकड़ों के विश्लेषण से निम्नलिखित परिणाम
सार्थकता स्तर पर स्वीकृ त की जाती है। प्राप्त हुए —
तालिका 5— विद्यार्थी-शिक्षक के मध्य परिवार के स्वरूप के आधार पर
मानवाधिकारों के प्रति जागरूकता का तुलनात्मक विवरण
क्र. स.ं परिवार का स्वरूप सख
ं ्या मध्यमान मानक t-मान df मान सार्थकता
विचलन स्तर
1. एकल परिवार वाले विद्यार्थी-शिक्षक 57 72.26 7.44 0.05 पर
0.315 128
2. संयक्त
ु परिवार वाले विद्यार्थी-शिक्षक 73 71.79 9.66 स्वीकृ त
16 भारतीय आधिु नक िशक्षा – जनवरी 2020
दायित्व का वर्णन कर उनकी सचू ना प्राप्त करना ही में भी कर सकें गे तथा भविष्य के विद्यार्थियों में पर्याप्त
एकमात्र उद्देश्य न होकर उनसे जड़ु े हुए मल्यू ों का मानवाधिकार जागरूकता पैदा कर पाएँगे एवं स्वयं
विकास भी विद्यार्थी-शिक्षकों में हो, इसके लिए भी विद्यालयों का स्वतंत्र एवं मानवाधिकार मल्य ू ों
शिक्षक शिक्षा पाठ्यचर्या में व्यापक गतिविधियों के पालन करने वाला संस्थान बनाने में भमि ू का
यथा मानवाधिकारों से संबंधित दस्तावेज़ों की का उचित निर्वहन कर सकें गे। यह भी सतं ोषजनक
जानकारी, मानवाधिकारों के प्रत्यय व सिद्धांतों की परिणाम है कि ग्रामीण व शहरी पृष्ठभमि ू के
जानकारी व समझ तथा मानवाधिकारों के हनन विद्यार्थी-शिक्षकों तथा संयक्तु एकल परिवार से
से संबंधित परिस्थितियों की समझ पर आधारित संबंध रखने वाले विद्यार्थी-शिक्षकों के मानवाधिकार
गतिविधियों आदि का समावेशन किया जा सकता जागरूकता में समानता पाई गई अर्थात् मानवाधिकार
है। मानवाधिकारों से सबं ंधित प्रकरणों पर आधारित मल्य
ू ों के प्रति जागरूकता की दृष्टि को ध्यान में रखकर
क्रियात्मक शोधों को पाठ्यक्रम में समावेशित किया यदि शिक्षकों को प्रशिक्षित किया जाता है तो ऐसी दशा
जाना चाहिए। विद्यार्थी-शिक्षकों को मानवाधिकारों में बिना किसी विशेष वर्गीय विभाजन के जानकारियाँ
से सबं ंधित आयोजित होने वाले कार्यक्रमों यथा— प्रदान की जा सकती हैं। यह एक सख ु द परिणाम है
सेमिनारों, कार्यशालाओ,ं भाषण व वाद-विवाद कि जागरूकता के स्तर पर सभी तीनों वर्गों—
प्रतियोगिताओ ं में अधिक-से-अधिक भाग लेने परुु ष/महिला, ग्रामीण/शहरी तथा संयक्त ु /एकल
की आवश्यकता है। विद्यार्थी-शिक्षकों को अपने विद्यार्थी-शिक्षकों में समानता पाई गई।
प्रशिक्षण काल के दौरान निर्मित की जाने वाली शिक्षक शिक्षा की पाठ्यचर्या का निर्माण
पाठ्य योजनाओ ं में, विशेषकर पर्यावरण अध्ययन, करते समय उक्त परिणामों की सहायता ली जा
हिदं ी तथा सामाजिक विज्ञान जैसे विषयों में, सकती है। जिससे मानवाधिकार जागरूकता के
मानवाधिकारों के प्रति मद्ु दों को भी शिक्षण-प्रक्रिया प्रति विद्यार्थी-शिक्षकों के जागरूकता स्तर को
में शामिल करने की आवश्यकता है। अभिसिचि ं त किया जा सके । विभिन्न जेंडर, क्षेत्रों
व पारिवारिक पृष्ठभमि ू में रहने वाले परुु ष तथा
शैक्षिक निहितार्थ महिला विद्यार्थी-शिक्षकों में मानवाधिकारों के
इस शोध पत्र में बी.एड. विद्यार्थी-शिक्षकों की प्रति जागरूकता के अध्ययन से उनके इस विषय
मानवाधिकारों के प्रति जागरूकता का अध्ययन में समान स्तर का ज्ञान पाया गया है। इससे भारतीय
किया गया है। शोध अध्ययन के निष्कर्षों से परिस्थितियों को ध्यान में रखकर प्रशिक्षण कार्यक्रमों
यह संतोषजनक परिणाम सामने आया कि में, मानवाधिकारों से संबंधित प्रत्ययों को विशेषकर
मानवाधिकार जागरूकता के स्तर में परुु ष व महिला कमज़ोर समहू ों व वर्गों (महिलाएँ, बच्चे, मज़दरू
विद्यार्थी-शिक्षकों में अतं र नहीं है अर्थात् उनके द्वारा वर्ग, किसी भी प्रकार की अक्षमता से यक्त ु समहू
प्राप्त ज्ञान कोई विभेद पैदा नहीं करता है। यह कहा आदि) को कें द्र बिंदु मानकर इनका समावेशन व
जा सकता है कि वे समान स्तर का सप्रेष ं ण विद्यालयों इनसे जड़ु े हुए विभिन्न पाठ्येत्तर क्रियाकलापों को
18 भारतीय आधिु नक िशक्षा – जनवरी 2020
भी निर्धारित करने में सहायता प्राप्त हो सकती है। तथा प्रयोग न करने के मत के प्रति संवेदनशीलता,
साथ ही साथ ग्रामीण स्तर पर विभिन्न विधिक शिविरों, साफ़ व स्वच्छ पर्यावरण के प्रति समझ तथा
नक्क
ु ड़ नाटकों द्वारा यथोचित जागरूकता उत्पन्न चेतना, सांस्कृतिक कारकों तथा गुणों के वितरण
की जा सकती है। शिक्षक शिक्षा का पाठ्यक्रम ऐसा का अध्ययन, गणित विषय में मानवाधिकारों
होना चाहिए जो बच्चों के सामाजिक, सांस्कृतिक व के हनन से संबंधित आँकड़े तथा अखबारों में
राजनैतिक संदर्भों को समझने में सहायता प्रदान कर छपे आँकड़ों की विश्लेषणात्मक विवेचना, हिदं ी
सके । शिक्षा आयोग (1964–66) के अनसु ार प्रत्येक विषय में विद्यार्थियों के मध्य आपसी बातचीत
शिक्षक चाहे वह किसी भी विषय का हो अपने विषय तथा तत्कालीन सामाजिक मद्ु दों पर वाद-विवाद
के शिक्षण के दौरान उसे विद्यार्थियों में मल
ू भतू मल्य
ू ों, और अनेक ऐसे प्रश्न जो मानवाधिकारों के प्रति
जैस— े अखण्डता व सामाजिक ज़िम्मेदारियों का संवेदना व जागरूकता उत्पन्न करते हों आदि को
विकास करना चाहिए। विद्यालयी स्तर पर पाठ्यक्रम समावेशित किया गया है।
के अतं र्गत जो किताबें विद्यालयों द्वारा चलाई जा रही अतः आवश्यक है कि भावी शिक्षकों को
हैं, उनमें यथासभं व मानवाधिकारों से सबं धि ं त प्रत्ययों उनके प्रशिक्षण काल में ही मानवाधिकारों की
का वर्णन किया गया है। जानकारी प्राप्त हो जाए, जिससे वे भविष्य में
विद्यालयी स्तर पर चलाई जा रही विभिन्न पाठ्यपुस्तकों में वर्णित मानवाधिकारों से संबंधित
विषयों की पाठ्यपुस्तकों में, जैसे— नागरिक मद्ु दों को विद्यार्थियों तक पहुचँ ाकर, उन्हें इस विषय
शास्त्र विषय में नागरिकों के कर्तव्य तथा अधिकार, में संवेदनशील बनाकर एक कुशल नागरिक का
इतिहास विषय में लोकतंत्र की विचारधारा के निर्माण कर सकें तथा एक स्वस्थ समाज का निर्माण
विकास, संयुक्त राष्ट्र का निर्माण तथा सामाजिक हो सके । यदि एक शिक्षक अपने विषय के माध्यम
सुधार, भगू ोल विषय में विद्यार्थी तथा उसके अपने से विद्यार्थियों में मानवाधिकारों से संबंधित मल्य ू ों
देश से संबंधित ज्ञान, पर्यावरण व जीवन की दशाओ ं का विकास करता है तो वह अप्रत्यक्ष रूप से इन
की जानकारी, देशों की आपसी आत्मनिर्भरता, मल्य
ू ों को एक पीढ़ी से दसू री पीढ़ी तक हस्तांतरित
अर्थशास्त्र विषय में सामाजिक न्याय तथा आर्थिक करने के साथ ही विद्यार्थियों के व्यवहार में भी
विकास की धारणा, विज्ञान विषय में उसके प्रयोग परिवर्तन लाता है।
सदं र्भ
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विशिष्ट बच्चों की शिक्षा
एक के स अध्ययन
संजीव कुमार शकु ्ला*
शिक्षा मनषु ्य के जीवन में महत्वपरू ्ण स्थान रखती है, क्योंकि यह मनषु ्य के जीवन में परिवर्तन लाती है और उसके
व्यवहार को परिष्कृ त करती है। इस के स अध्ययन में, विशिष्ट बच्चों की शिक्षा के सदं र्भ में, अध्ययन किया
गया है। शोधार्थी के द्वारा के स अध्ययन के लिए चेतना संस्थान, लखनऊ के विशिष्ट बच्चों को लिया गया तथा
प्रदत्त संकलन हेतु उपकरण के रूप में साक्षात्कार, प्रश्नावली एवं प्रेक्षण प्रविधि का उपयोग किया गया है। चेतना
संस्थान का मखु ्य उद्देश्य विशिष्ट बच्चों को विशिष्ट शिक्षा प्रदान कर आत्मनिर्भर बनाना तथा व्यावसायिक
प्रशिक्षण देकर उन्हें समाज में उचित स्थान दिलाना है। शोध पत्र में ससं ्थान द्वारा बच्चों को प्रदान की जा रही शिक्षा
सविु धाओ ं तथा चिकित्सा सेवाओ ं पर विशेष बल दिया गया है।
भारत एक जनतात्ं रिक देश है, जहाँ पर प्रत्येक नागरिक बच्चों को शिक्षित करने के लिए विशेष शिक्षा प्रदान
को शिक्षा प्राप्त करने का समान अधिकार है। वर्तमान किए जाने की आवश्यकता है।
समय में शिक्षा के इच्छुक विद्यार्यथि ों की सखं ्या में शिक्षा, वास्तव में सामाजिक परिवेश में व्यक्ति
अपेक्षाकृत कई गनु ा वृद्धि हो रही है। जगह-जगह पर के जन्मजात गुणों के स्वाभाविक व निर्बाध विकास
छोटे-छोटे विद्यालय खल ु रहे हैं जहाँ न तो खेल के की वह प्रक्रिया है जो उसके सामाजिक वातावरण
मैदान हैं, न चिकित्सा सवु िधा, न पसु ्तकालय, और न के साथ अनुकूलन व समायोजन में सहायक होती
प्रयोगशालाएँ जैसी मल ू भतू सवु िधाएँ, जिसके कारण है तथा उसके व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास कर
बच्चे का न तो मानसिक विकास हो पाता है और न ही उसके भावी जीवन को सख ु ी व संतोषमय बनाने
शारीरिक विकास! ऐसी स्थिति में एक सामान्य कक्षा के योग्य बनाती है। बाल विकास के आधार पर
में दी जाने वाली शिक्षा जब सामान्य विद्यार्यथि ों की ही बच्चों का वर्गीकरण दो प्रकार से किया गया
आवश्यकताओ ं की पर्ति ू नहीं कर पाती है तो विशिष्ट है—सामान्य बच्चे व विशिष्ट बच्चे और इस
विद्यार्यथि ों की आवश्यकताओ ं की पर्ति ू किस प्रकार विशिष्टता के क्रम में प्रखर बुद्धि वाले बच्चों से
सभं व है? क्योंकि इन विद्यार्यथि ों की आवश्यकताएँ लेकर बौद्धिक रूप से अक्षम बच्चों को रखा गया
एवं समस्याएँ सामान्य विद्यार्यथि ों से भिन्न हैं, अतः इन है। मनोविज्ञान के विकास से पूर्व समस्त बच्चों
* असिस्टेंट प्रोफे ़सर, शिक्षा विभाग, श्री गांधी महाविद्यालय, सिधौली, सीतापरु , उत्तर प्रदेश 261303
विशिष्ट बच्चों की शिक्षा–एक के स अध्ययन 21
•• बोलने में अक्षम बच्चों को स्पीच थेरेपी मांसपेशियों की गति अनियंत्रित हो जाती
(वाक् चिकित्सा) देना है, जिसके फलस्वरूप बच्चे की मांसपेशीय
बौिद्धक अक्षमता वाले बच्चों के साथ-साथ समायोजन में कमी आ जाती है। इन बच्चों
श्रवणबाधित बच्चों का भी एक बड़ा समहू को थेरेपी देना, शिक्षित करना, व्यावसायिक
संस्थान में शिक्षा ग्रहण कर रहा है। इनका ु उद्देश्य है।
प्रशिक्षण देना ससं ्थान का प्रमख
सामान्य पाठ्यक्रम है। इन्हें बोलने में सक्षम •• बौिद्धक अक्षमता वाले बच्चों को
बनाने लिए स्पीच थेरेपी (वाक् चिकित्सा) देना व्यावसायिक प्रशिक्षण देना
संस्थान का दसू रा प्रमखु उद्देश्य है। इसके लिए बौिद्धक अक्षमता वाले बच्चों को आत्मनिर्भर
एक स्पीच थेरेपिस्ट (वाक् चिकित्सक) की बनाने के लिए विभिन्न प्रकार के व्यावसायिक
व्यवस्था है, जो प्रतिदिन बोलने में अक्षम बच्चों प्रशिक्षण दिए जाते हैं। इनमें से प्रमख
ु हैं —
को बोलने में प्रशिक्षित करता है। (i) मोमबत्ती बनाना; (ii) सिलाई-कढ़ाई
•• शारीरिक रूप से अक्षम बच्चों हेतु सवु िधाएँ का प्रशिक्षण देना; (iii) कपड़े की बनु ाई का
उपलब्ध कराना प्रशिक्षण देना; (iv) बागवानी; (v) मर्तिू बनाना;
चेतना ससं ्थान का तीसरा मखु ्य उद्देश्य शारीरिक ु संरक्षण प्रशिक्षण।
(vi) पष्प
रूप से अक्षम बच्चों को सहायता देना है, परंतु •• बौिद्धक अक्षमता वाले बच्चों के
जगह की कमी के कारण इसके लिए अभी अभिभावकों को परामर्श देना
तक कोई व्यवस्था नहीं हो पाई है। के वल दस बौिद्धक अक्षमता वाले बच्चों के अभिभावकों
बालक/बालिकाएँ शारीरिक रूप से अक्षम हैं, को हर महीने के दसू रे शनिवार को परामर्श दिया
जिन्हें के वल चिकित्सा सवु िधा प्रदान की जाती जाता है। इसमें सभी बच्चों के अभिभावक सभी
है। भविष्य में इन बच्चों के लिए भी चेतना अध्यापक, चिकित्सक एवं सचिव उपस्थित
संस्थान शिक्षा व्यवस्था व अन्य सवु िधाएँ देने रहते हैं। इस परामर्श के माध्यम से उन्हें उचित
के लिए प्रयासरत है। सझु ाव व उपचार की विधि एवं समस्याओ ं का
•• बौिद्धक विकार से पीड़ित बच्चों को निदान प्रदान किया जाता है।
सवु िधाएँ उपलब्ध कराना •• बौिद्धक अक्षमता वाले बच्चों के
बौिद्धक अक्षमता वाले बच्चों के साथ बौिद्धक अभिभावकों का बच्चों को व्यक्तिगत
विकार से पीड़ित बच्चों को सहायता देना, प्रशिक्षण देने के लिए पथ-प्रदर्शन करना
संस्थान का प्रमख ु उद्देश्य है, परंतु जगह की समय-समय पर संस्थान बौिद्धक अक्षमता
कमी के कारण इसके लिए भी अभी तक कोई वाले बच्चों के अभिभावकों का पथ-प्रदर्शन
कार्य नहीं हुआ है। संस्थान में कुल 35 बच्चे करता रहता है। अभिभावक अपने बच्चों
बौिद्धक विकार से पीड़ित हैं। इस प्रकार के को किस प्रकार शिक्षा दें, किस प्रकार उनका
बच्चों में मस्तिष्कीय क्षति के कारण कुछ ध्यान रखें और उन्हें कै सा वातावरण दिया
24 भारतीय आधिु नक िशक्षा – जनवरी 2020
व्यवहार न अपनाएँ, बल्कि सधु ार के लिए विशेषज्ञ द्वारा समय-समय पर जाँच कराई
प्रोत्साहित करें । जाती है।
(v) समय-समय पर स्कू ल के डॉक्टर, चेतना ससं ्थान में प्रयोग की जा रही शिक्षण
मनोवैज्ञानिक व मनोचिकित्सक से सहायता विधि की प्रकृति का अध्ययन और अवलोकन
लेना। ससं ्थान में विशिष्ट बच्चों को उनकी दिव्यांगता की
•• बौिद्धक विकार के लिए चिकित्सालय प्रकृ ति एवं रुचि के अनसा ु र शिक्षा देने का प्रावधान
ससं ्थान में बौिद्धक विकार से पीड़ित बालक व बड़ा ही अनठू ा है। जो शिक्षित करने योग्य बौिद्धक
बालिकाएँ हैं। इनके मस्तिष्क का विकास बहुत अक्षमता वाले बच्चे हैं, उन्हें सामान्य पाठ्यक्रम,
देर से होता है। इस कारण इनके शारीरिक अगं भी जैस— े हिदं ी, अग्रें ज़ी, गणित, सामान्य ज्ञान, कला
प्रभावित होते हैं तथा उनकी मासं पेशियों की गति इत्यादि विषयों की शिक्षा दी जाती है। चेतना ससं ्थान
अनियत्ं रित होती है। इनके उपचार के लिए ससं ्थान के मानसिक दिव्यांग सक ं ाय की प्रधानाचार्या मीना
में चिकित्सालय है। इस चिकित्सालय में विभिन्न तिवारी ने शोधार्थी को बताया कि अध्यापक इन्हें
उपचारों के द्वारा बौिद्धक विकार से पीड़ित बच्चों शिक्षित करने के लिए अधिकाधिक रंगीन चित्रों,
का उपचार किया जाता है। प्राथमिक उपचार से मॉडलों आदि के प्रयोग के द्वारा अपनी शिक्षण
काफ़ी हद तक सधु ार किया जाता है। विधि को अधिक प्रभावी बनाने का प्रयास करते हैं,
•• अन्य चिकित्सीय सवु िधाएँ जैसे — गणित विषय में कुछ सखं ्याओ ं को जोड़ना है,
संस्थान में अतिरिक्त अन्य चिकित्सीय सवु िधाएँ तो लकड़ी के बने छोटे-छोटे बक्सों का प्रयोग करते हैं।
भी उपलब्ध हैं, जो निम्नवत हैं — इससे ये बच्चे काफ़ी रुचि के साथ आसानी से किसी
(i) ससं ्थान में यदि किसी बच्चे को कोई भी जोड़ या घटाना को हल करते हैं। अध्यापक बार-
गभं ीर समस्या हो जाती है, तो उसके लिए बार दोहराने की विधि को अपनाने पर बल देते हैं और
‘ऑनलाइन मेडिकल के यर’ की सवु िधा एक पाठ को समाप्त करने में लगभग एक महीना लग
भी उपलब्ध है। इस सवु िधा के तहत किसी जाता है। जो बच्चे अत्यधिक बौिद्धक अक्षमता के
भी समस्या का निदान तरु ं त किया जाता है। होते हैं, उन्हें के वल स्वयं का कार्य करने व रुचि के
(ii) व्यावहारिक चिकित्सा के द्वारा किसी अनसा ु र व्यावसायिक प्रशिक्षण दिया जाता है, जैस— े
भी समस्यात्मक व्यवहार का समाधान सिलाई-कढ़ाई, आर्ट बनाना, मर्ति ू बनाना, मोमबत्ती
शीघ्रातिशीघ्र किया जाता है। इस सवु िधा बनाना, बागवानी इत्यादि। यह प्रशिक्षण प्रतिदिन दिए
के लिए संस्थान के अध्यापकों को जाते हैं। चेतना ससं ्थान के श्रवण दिव्यांग सक ं ाय की
प्रशिक्षण दिया जाता है। प्रधानाचार्या अजं ना मिश्रा ने शोधार्थी को बताया
(iii) ससं ्थान के बच्चों की मनोचिकित्सक, कि शिक्षक श्रवणबाधित बच्चों को शिक्षित करने
आर्थोपैडिक विशेषज्ञ, नाक, कान, गला में अनक ु रण विधि, चित्रों का अत्यधिक प्रयोग जैसी
26 भारतीय आधिु नक िशक्षा – जनवरी 2020
अनेक शिक्षण विधियों का प्रयोग करते हैं। यद्यपि बच्चों •• व्यावसायिक प्रशिक्षण के स्तर में सध ु ार
का पाठ्यक्रम सामान्य न होने के बावजदू भी शिक्षक, संस्थान में दिए जा रहे विभिन्न प्रकार के
शिक्षण विधि में बोलने के साथ-साथ हाथों का उचित व्यावसायिक प्रशिक्षण, जैसे— मोमबत्ती
प्रयोग करते हैं, जिससे बच्चे कम समय में किसी भी बनाना, मर्तिू बनाना, बागवानी, सिलाई-कढ़ाई
विषय-वस्तु को सीख लेते हैं। अनक ु रण विधि में इत्यादि के स्तर में सधु ार करना है। इसके लिए
शिक्षक को काफ़ी आसानी होती है और यह बच्चों के संस्थान का प्रबंधन प्रयासरत है।
लिए अत्यंत प्रभावी होती है। •• छात्रावास की सवु िधा को बढ़ाना
श्रवणबाधित बच्चों की कक्षाएँ काफ़ी चेतना संस्थान में एक छात्रावास संस्थान के
ससज ु ्जित बनाई जाती हैं। इन बच्चों को शिक्षित परिसर में ही स्थित है जिसमें के वल कुछ ही
करने में, शिक्षक मॉडलों का प्रयोग भी अधिक करता शारीरिक रूप से अक्षम बच्चों के रहने की
है। बौिद्धक अक्षमता वाले बच्चे, जो गायन व नृत्य में व्यवस्था है, बाकी क्षेत्र में संस्थान की शिक्षिकाएँ
रुचि रखते हैं, उन्हें गायन व नृत्य की शिक्षा प्रतिदिन रहती हैं। भविष्य में ससं ्थान सभी बच्चों के लिए
प्रशिक्षित अध्यापकों द्वारा दी जाती है। इसके लिए छात्रावास अनिवार्य करने के बारे में विचार कर
ससं ्थान में लगभग सभी प्रकार के वाद्ययंत्र उपलब्ध रहा है, ताकि बच्चों के मानसिक व शारीरिक
हैं। शिक्षक इन कौशलों के विकास में अनक ु रण विधि विकास में प्रत्येक क्षण देखभाल की जा सके ।
एवं बार-बार किसी पक्ति ं को दोहराने का अधिक एक अन्य छात्रावास का निर्माण कराना ससं ्थान
प्रयोग करते हैं। जिससे बच्चा जल्दी ही इन कलाओ ं की भविष्य की योजना है। इसके लिए संस्थान
को सीख जाता है। शिक्षकों के अनसा ु र अभिभावकों सरकार से सहायता राशि प्राप्त करने के लिए
को भी इन विधियों के बारे में जानकारी दी जाती है। प्रयासरत है।
चेतना ससं ्थान की भविष्य की योजनाओ ं का •• ससं ्थान में ही सभी प्रकार की चिकित्सा
अध्ययन करना सवु िधाएँ उपलब्ध हों
चेतना संस्थान एक अशासकीय स्वैच्छिक संगठन संस्थान में अभी के वल विभिन्न प्रकार की
है, जिसकी भविष्य की योजनाएँ निम्नलिखित हैं — थे रेपी, जै से— फि़ जि़योथे रेपी, ऑक्युपेशनल
•• शैक्षिक प्रशिक्षण कें द्र की व्यवस्था थे रेपी, स्पीच थे रेपी की व्यवस्था है। संस्थान
चेतना संस्थान में ही शैक्षिक प्रशिक्षण की ने यह इच्छा ज़ाहिर की है कि सभी प्रकार
सुविधा है, परंतु प्रबंधक की यह योजना है की चिकित्सा सुविधाएँ, जै से—ऑपरे श न
कि भविष्य में विशेष प्रशिक्षणों के लिए एक थिये टर, विभिन्न रोगों के विशेषज्ञ डॉक्टर,
अलग कें द्र हो। इसके लिए संस्थान का प्रबंधन दवाएँ व अन्य सुव िधाओ ं की व्यवस्था
प्रयासरत है, ताकि वह विशिष्ट बी.एड. व चेतना संस्थान में ही उपलब्ध हो, इसके
अन्य फ़ाउंडेशन कोर्सों के प्रशिक्षण की अलग लिए भी संस्थान भविष्य की योजना बना
से व्यवस्था कर सके । रहा है।
विशिष्ट बच्चों की शिक्षा–एक के स अध्ययन 27
विशिष्ट बच्चों के लिए सगं ठित और सच ं ालित जाता है। बौिद्धक अक्षमता वाले बच्चों को
किए जा रहे विशिष्ट कार्यों और क्रियाओ ं का बनु ाई का प्रशिक्षण देने के लिए, बनु ाई के
अध्ययन करना प्रशिक्षक की भी व्यवस्था है। ससं ्थान में एक
विभिन्न प्रकार के क्रियाकलापों का प्रशिक्षण विशिष्ट छोटी-सी कार्यशाला है, जिसमें बनु ाई के लिए
बच्चों की रुचि के अनसा ु र दिया जाता है। ससं ्थान में चार हथकरघा मशीनें लगी हैं। इन हथकरघा
वर्तमान समय में निम्नलिखित विशिष्ट क्रियाकलापों मशीनों के द्वारा चादरों की बनु ाई का प्रशिक्षण
का प्रशिक्षण दिया जाता है— दिया जाता है। विभिन्न प्रकार की रंगीन चादरों को
•• मोमबत्ती बनाना बनु कर इन्हें बाज़ार में बेच दिया जाता है। ससं ्थान
चेतना संस्थान में विशिष्ट बच्चों को मोमबत्ती में उपरोक्त तीन व्यावसायिक प्रशिक्षणों के
बनाने का प्रशिक्षण दिया जाता है। ये प्रशिक्षण अतिरिक्त मर्ति
ू कला, बागवानी, घर की देखभाल
व्यावसायिक तौर पर दिया जाता है। इस करने का प्रशिक्षण भी प्रशिक्षित अध्यापकों
प्रशिक्षण को देने के लिए प्रशिक्षण विशेषज्ञ की द्वारा दिया जाता है। सभी व्यावसायिक प्रशिक्षण
व्यवस्था है, जो प्रतिदिन विशिष्ट बच्चों को बच्चों को उनकी रुचि के अनसा ु र दिया जाता
व्यावसायिक तौर पर प्रशिक्षित करता है। इस है। चेतना ससं ्थान में विशिष्ट बच्चों को शिक्षित
प्रशिक्षण में सबसे पहले मोम को पिघलाकर एवं आत्मनिर्भर बनाने के लिए विशिष्ट कोर्सों
उसमें विभिन्न प्रकार के रंग घोल देते हैं और इस का प्रशिक्षण दिया जाता है।
घोल को विभिन्न प्रकार के साँचों में डाल दिया चेतना ससं ्थान के क्रियाकलापों के बारे में बच्चों
जाता है। उस साँचे को कार्यशाला में ही बने पानी के अभिभावकों के विचारों का अध्ययन करना
के टब में डाल दिया जाता है। साँचा ठंडा होने विशिष्ट बच्चों का ज़िक्र आते ही सबसे पहले उनके
पर मोमबत्तियों को साँचे से निकालकर अलग अभिभावकों का ज़िक्र होता है। उनकी आर्थिक व
कर लिया जाता है। विशिष्ट बच्चों को भविष्य सामाजिक स्थिति कै सी है जिससे वे विशिष्ट बच्चों
में आत्मनिर्भर बनाने के लिए यह व्यावसायिक का संतलि ु त व समन्वित विकास कर सकें , इसका
प्रशिक्षण अत्यंत महत्वपर्णू है। अध्ययन किया जाता है। शोधार्थी ने विशिष्ट बच्चों
•• सिलाई-कढ़ाई सिखाना के अभिभावकों से चेतना संस्थान में शिक्षा, प्रशिक्षण
चेतना संस्थान में जो बालिकाएँ बौिद्धक विकार व उनके बच्चों से सबं ंधित प्रश्न पछू े , जिससे
से ग्रसित हैं, उन्हें उनकी रुचि के अनसा ु र निम्नलिखित विचार प्राप्त हुए —
सिलाई-कढ़ाई का प्रशिक्षण दिया जाता है। •• सभी अभिभावकों ने अपने बच्चों में सध ु ार की
एक प्रशिक्षित अध्यापिका के निर्देशन में उन्हें बात कही, उनके कथानसा ु र पहले उनका बच्चा
सिलाई-कढ़ाई का प्रशिक्षण दिया जाता है। अपने कार्य स्वयं नहीं कर पाता था। लेकिन जब
•• बुनाई का प्रशिक्षण से इस संस्थान में आया है, वह स्वयं अपना
चेतना ससं ्थान में बनु ाई का प्रशिक्षण भी दिया कार्य थोड़ा-थोड़ा कर लेता है।
28 भारतीय आधिु नक िशक्षा – जनवरी 2020
•• कुछ अभिभावकों ने ससं ्थान में दिए जा रहे इन्हें नौकरी नहीं मिलती। कुछ ने कहा कि हम
व्यावसायिक प्रशिक्षणों की सहृदय प्रशसा ं की है न तो परिवर्तन करने की बात करते हैं और न
और कहा कि इस प्रकार के प्रशिक्षणों में और ही परिवर्तन चाहते हैं। परिवर्तन होना चाहिए,
वृद्धि की जाए, ताकि विशिष्ट बच्चे आत्मनिर्भर लेकिन ससं ्थान में नहीं, बल्कि उनके बच्चों में
हो सकें , लेकिन कुछ अभिभावकों ने छोटे बच्चों होना चाहिए।
को व्यावसायिक प्रशिक्षण न दिए जाने के प्रति •• समय-समय पर अभिभावकों ने निर्देशन एवं
रोष जताया है। परामर्श कार्यक्रमों में भाग लिया। इस सेवा को
•• कुछ अभिभावकों ने यह स्वीकार किया सभी अभिभावकों ने अच्छा बताया।
कि चेतना ससं ्थान में उनके बच्चों को सभी •• सभी अभिभावकों को भविष्य में चेतना संस्थान
सवु िधाएँ मिल रही हैं, लेकिन आर्थिक सवु िधा से यही आशा है कि उनके बच्चों को आत्मनिर्भर
से वे वंचित हैं। बनाने में मदद करे तथा व्यावसायिक प्रशिक्षण
•• अभिभावकों ने शिक्षकों के बारे में बताया कि पर अधिक ध्यान दे।
सभी शिक्षक उनके बच्चों से अच्छा व्यवहार निष्कर्ष
करते हैं। विभिन्न शोध अध्ययनों से पाया गया कि चार प्रतिशत
•• कुछ अभिभावकों ने, जिनकी आर्थिक स्थिति भारतीय जनसखं ्या दिव्यांगता या अक्षमता से ग्रसित
ठीक नहीं है, उन्होंने संस्थान में विगत वर्ष फ़ीस है, जिसमें से 70 प्रतिशत अक्षमता की रोकथाम
बढ़ने के कारण नाराज़गी ज़ाहिर की है और संभव है। भारत में सबसे अधिक पोलियो से ग्रसित
कहा है कि संस्थान का फ़ीस बढ़ाने का निर्णय जनसखं ्या है। प्रति मिनट में एक बच्चा पोलियो का
उचित नहीं है। शिकार होता है। भारत के 80 प्रतिशत दिव्यांग या
•• संस्थान द्वारा प्रदत्त यातायात सवु िधा का लाभ अक्षम व्यक्ति गाँवों से संबंधित हैं, जिनकी देखभाल
सभी बच्चों को नहीं मिलता, क्योंकि बस की न के बराबर होती है। के वल ऐसे दो प्रतिशत दिव्यांग
फ़ीस अधिक है। अतः अभिभावकों को स्वयं या अक्षम व्यक्ति हैं, जिन्हें सवु िधाएँ व शिक्षा मिल
बच्चे को स्कू ल लाना पड़ता है और वापस पाती है। सामान्यतः शहरों में रहने वाले कुछ अक्षम
स्कू ल लेने आना होता है, जिसके कारण समय या दिव्यांग, गाँवों के ऐसे विशिष्ट लोगों से थोड़ी
और धन, दोनों की हानि होती है। अधिक सवु िधाएँ प्राप्त कर रहे हैं। क्योंकि उन्हें शिक्षा
•• संस्थान परिवर्तन को लेकर अभिभावकों ने कई प्राप्त करने के लिए निर्देशन एवं परामर्श तथा अन्य
विचार दिए। कुछ ने कहा कि बच्चों के लिए सवु िधाओ ं की जानकारी देने के लिए शिक्षित लोग
निःशलु ्क शिक्षा व्यवस्था का प्रावधान हाेना हैं। इस शोध अध्ययन में शोधार्थियों को अध्यापकों
चाहिए। कुछ ने कहा कि इन बच्चों को के वल की प्रतिक्रियाएँ, विशिष्ट बच्चों की प्रतिक्रियाएँ,
व्यावसायिक प्रशिक्षण देना चाहिए, क्योंकि माता-पिता के विचारों और सबं ंधित साहित्य के
विशिष्ट बच्चों की शिक्षा–एक के स अध्ययन 29
अध्ययन से उद्देश्यों को प्राप्त करने में सफलता है। इस सहायक सामग्री में विशेषकर रंगीन चित्रों
प्राप्त हुई। एवं मॉडलों का प्रयोग अधिक किया जाना चाहिए।
चेतना संस्थान एक अशासकीय स्वैच्छिक संस्थान में शिक्षण विधियों पर प्रकाश डालने से
सगं ठन है। इसका प्रबंध तंत्र, इसकी सफलता, यह पता चलता है कि बार-बार दोहराने की क्रिया,
असफलता के लिए ज़िम्मेदार है। चेतना संस्थान अनक ु रण विधि या फिर बच्चों की रुचि के अनसा ु र
का मखु ्य उद्देश्य विशिष्ट बच्चों को विशिष्ट शिक्षा वे अपनी शिक्षण विधि को प्रभावी बनाते हैं, जैसे—
प्रदान कर आत्मनिर्भर बनाना तथा व्यावसायिक गायन सिखाने के लिए बार-बार दोहराने की विधि
प्रशिक्षण देकर उन्हें समाज में उचित स्थान व अधिक उपयक्त ु है। ठीक इसी प्रकार श्रवणबाधित
मान-सम्मान दिलाना है। विशिष्ट शिक्षा देने के बच्चों को शिक्षित करने में, चित्रों का अधिक प्रयोग
लिए चेतना संस्थान स्वयं अनेक विशिष्ट कोर्सों का किया जाता है। ये बच्चे चित्रों एवं मॉडलों में अधिक
प्रशिक्षण प्रदान करता है। रुचि लेते हैं तथा किसी भी विषय को आसानी से
चेतना संस्थान विशिष्ट बच्चों की शिक्षा एवं समझ लेते हैं।
व्यावसायिक प्रशिक्षण देने के लिए कार्य कर रहा दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 में भी
है, लेकिन के वल दो ही प्रकार के अक्षम बच्चों उल्लेख किया गया है कि सरकार दिव्यांगजनों के लिए
नियोजित, विशेषकर उनके व्यावसायिक प्रशिक्षण
को शिक्षा एवं प्रशिक्षण दे रहा है, जिसमें बौिद्धक
और स्वनियोजन को आसान बनाने और उसमें
अक्षमता वाले और श्रवणबाधित बच्चे प्रमख ु हैं।
सहायता करने के लिए, जिसके अतं र्गत रियायती दरों
शारीरिक दिव्यांग एवं दृष्टिबाधित बच्चों की शिक्षा
पर ॠण उपलब्ध कराना भी है, योजना (स्कीम) और
की व्यवस्था संस्थान में नहीं है।
कार्यक्रम बनाएगी। इस स्कीम के अतं र्गत औपचारिक
चेतना ससं ्थान ने अपने लक्ष्यों और उद्देश्यों में एवं गैर-औपचारिक वृत्तिक और कौशल प्रशिक्षण
भी शारीरिक रूप से अक्षम बच्चों को सहायता देने स्कीम और कार्यक्रमों में दिव्यांगजनों को सम्मिलित
की बात कही है। किया जाएगा तथा यह सनि ु श्चित किया जाएगा कि
शोधार्थी ने स्वयं के अवलोकन के आधार पर दिव्यांगजन को विनिर्दिष्ट प्रशिक्षण प्राप्त करने के
यह भी पाया कि विभिन्न बौिद्धक अक्षमता वाले लिए पर्याप्त सहायता और सवु िधाएँ दी जाएँ। साथ
बच्चों को एक साथ एक ही कक्षा में शिक्षित किया ही वर्णित किया गया है कि सरकार ऐसी ससं ्थाओ ं
जाता है। इस प्रकार जो बालक बौिद्धक रूप से की आर्थिक क्षमता और विकास की सीमाओ ं के
अधिक अक्षम है, उसे काफ़ी कठिनाइयों का सामना भीतर रजिस्ट्रीकृ त संस्थाओ ं को सेवा प्रदान करने के
करना पड़ता है। वे किसी भी विषय को काफ़ी देर से लिए वित्तीय सहायता प्रदान करे गी। इसके बावजदू
समझ पाते हैं। भी ससं ्थान की भविष्य की योजनाओ ं पर ध्यान देने
विशिष्ट बच्चों को दी जाने वाली शिक्षा में पर यह पता चलता है कि ससं ्थान के एक कें द्र का
अत्यधिक सहायक सामग्री की आवश्यकता होती निर्माण करने की आवश्यकता है, जिसमें विशिष्ट
30 भारतीय आधिु नक िशक्षा – जनवरी 2020
कोर्सों का अलग प्रशिक्षण दिया जा सके । छात्रावास आत्मविश्वास जाग्रत कर उन्हें आत्मनिर्भर
की सवु िधा भी पर्याप्त नहीं है और सभी प्रकार की बनाया जा सकता है।
चिकित्सा की व्यवस्था संस्थान के लिए अत्यंत •• विशिष्ट शिक्षा के द्वारा विशिष्ट बच्चों को
आवश्यक है। इसके लिए संस्थान को सरकार से विभिन्न सामाजिक परिस्थितियों में समायोजित
आर्थिक सहायता मिले जिससे यह कार्य सभं व हो करने योग्य बनाया जा सकता है। यदि ये
सके । संस्थान प्रबंधन आर्थिक सहायता के लिए बच्चे भली-भाँति सामाजिक परिस्थितियों
सामाजिक सहयोग की अपेक्षा भी करता है। में समायोजित होंगे तो अनेक मनोवैज्ञानिक
इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि चेतना संस्थान समस्याओ ं से बचे रह सकते हैं।
विशिष्ट बच्चों के लिए अत्यंत प्रभावी सगं ठन है। •• विशिष्ट शिक्षा के द्वारा आर्थिक क्रियाओ ं का
संस्थान का प्रबंधन व शिक्षक अपने उद्देश्यों की पर्ति
ू प्रशिक्षण देकर इन्हें आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर
हेतु कार्य कर रहे हैं। बनाया जा सकता है।
शैक्षिक निहितार्थ •• विशेष शिक्षा के द्वारा इन बच्चों के प्रति समाज
•• विशिष्ट बच्चों को सामान्य कक्षाओ ं में के दृष्टिकोण को बदला जा सकता है।
लाभान्वित नहीं किया जा सकता है। इसके लिए सझाव
ु
विशिष्ट शिक्षा अत्यंत आवश्यक है।
•• विशिष्ट शिक्षा के द्वारा उचित वातावरण देकर अध्यापकों के लिए सझ ु ाव
सीखने के लिए लगातार प्रेरित करते रहने से •• अध्यापकों को सभी विशिष्ट बच्चों पर एक
विशिष्ट बच्चों में प्रेरणा का अभाव समाप्त समान ध्यान देना चाहिए।
होता है। •• अध्यापकों को बच्चों से प्रेमपर्व ू क एवं
•• विशिष्ट शिक्षा में अक्षम बच्चों की रुचियों का मित्रतापर्वू क व्यवहार रखकर शिक्षण कार्य
विकास आसानी से किया जा सकता है। करना चाहिए।
•• विशिष्ट शिक्षा अभिभावकों, शिक्षकों एवं शैक्षिक •• अध्यापकों को अधिकाधिक सृजनात्मक होने
प्रबधं कों को विशिष्ट बच्चों की समस्याओ ं को की आवश्यकता है।
समझने में सहायता प्रदान करती है। •• सभी अध्यापकों को चाहिए कि वे चेतना ससं ्थान
•• विशिष्ट शिक्षा, विशिष्ट बच्चों की छिपी हुई के उद्देश्यों को ध्यान में रखकर शिक्षण कार्य करें ।
अन्य प्रतिभाओ ं एवं गुणों को उभारकर उन्हें •• अध्यापकों को समय-समय पर इन
आत्मनिर्भर बनाने में सहायता प्रदान करती है। विद्यार्थियों के अभिभावकों से मिलकर उनके
•• विशिष्ट शिक्षा के द्वारा विशिष्ट बच्चों की शैक्षिक, बच्चों के क्रियाकलापों के बारे में जानकारी
सामाजिक एवं शारीरिक आवश्यकताओ ं को देनी चाहिए।
परू ा किया जा सकता है। •• अध्यापकों को विशिष्ट बच्चों के व्यावसायिक
•• विशिष्ट शिक्षा के द्वारा विशिष्ट बच्चों में प्रशिक्षण पर अधिकाधिक ध्यान देना चाहिए।
विशिष्ट बच्चों की शिक्षा–एक के स अध्ययन 31
सदं र्भ
भार्गव, महेश. 2007. विशिष्ट बालक—शिक्षा एवं पर्नु वास. एच.पी. भार्गव बक
ु हाउस, आगरा.
विद्यार्थियों में मनोविकारों की पहचान एवं शैक्षिक रणनीतियाँ
प्रीति मौर्या*
शिक्षा मानव के सर्वाेन्खमु ी विकास का सर्वोत्तम साधन है। शिक्षा का कार्य व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास करना
है। व्यक्तित्व का विकास उसी स्थिति में संभव है जब बच्चे का शरीर एवं मन पर्णू रूप से स्वस्थ हो। बच्चे भविष्य
की नींव हैं, इसलिए उनका मानसिक रूप से स्वस्थ रहना अत्यंत आवश्यक है, क्योंकि यदि वे ही मानसिक रूप
से अस्वस्थ होंगे तो देश के उज्ज्वल भविष्य की कल्पना नहीं की जा सकती है। मानसिक स्वास्थ्य के अभाव में
व्यक्ति के विकास का मार्ग अवरुद्ध हो जाता है। शिक्षण प्रक्रिया की सफलता मानसिक स्वास्थ्य पर ही निर्भर
करती है। इस दृष्टि से बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान देना अत्यंत आवश्यक है। कई बार बच्चों के समक्ष
ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न हो जाती हैं कि वे वातावरण के साथ सामजं स्य स्थापित नहीं कर पाते हैं और मनोविकारों
का शिकार हो जाते हैं। इस दृष्टि से इस लेख के माध्यम से यह सदं श े दिया गया है कि परिवार, विद्यालय तथा
समाज, बच्चों को ससु मायोजन की ओर प्रवृत्त करने और मानसिक रूप से स्वस्थ बनाए रखने में अपने-अपने स्तर
पर महत्वपर्णू योगदान प्रदान करते हुए, अपनी ज़िम्मेदारियों का निर्वहन करें ।
शिक्षा के माध्यम से बच्चों के व्यक्तित्व का के भविष्य के निर्माणकर्ता देश के विद्यालय होते हैं।
सर्वांगीण विकास करने, उनके व्यवहार में अपेक्षित किंतु कई बार ऐसी परिस्थितियाँ आती हैं जब बच्चे
परिवर्तन लाने तथा उन्हें समाज के योग्य नागरिक विद्यालय में स्वयं को भली-भाँति समायोजित नहीं
के रूप में रचनात्मक भमिू का निभाने के लिए तैयार कर पाते हैं और कुसमायोजन का शिकार हो जाते
किया जाता है। बच्चे के व्यक्तित्व का विकास उसी हैं, जिससे धीरे -धीरे वे मनोविकार की ओर बढ़ने
स्थिति में संभव है जब बच्चे का शरीर एवं मन परू ी लगते हैं जो न के वल उनके स्वयं के लिए हानिकारक
तरह से स्वस्थ हो। शिक्षा के माध्यम से ही बच्चे का होता है, अपितु सपं र्णू समाज के लिए हानिकारक
मानसिक स्वास्थ्य उत्तम बनाया जा सकता है। आज होता है। इस दृष्टि से यह आवश्यक है कि शिक्षक
के बच्चे कल का भविष्य हैं, यदि वे ही मानसिक अपनी ज़िम्मेदारी को समझते हुए कक्षा-कक्ष सबं ंधी
रूप से अस्वस्थ होंगे तो हम देश के उज्ज्वल भविष्य शिक्षण-अधिगम गतिविधियों के लिए ऐसी उपयक्त ु
की कल्पना कै से कर सकते हैं? कक्षा में देश के परिस्थितियाँ तथा वातावरण उपलब्ध कराएँ, जिससे
भविष्य का निर्माण किया जाता है और इन बच्चों बच्चों को सीखने में सहायता प्राप्त हो।
*विभागाध्यक्ष, कला संकाय, नेशनल पी.जी. कालेज, लखनऊ, उत्तर प्रदेश 226001
विद्यार्थियों में मनोविकारों की पहचान एवं शैक्षिक रणनीतियाँ 33
मानसिक स्वास्थ्य का सप्रं त्यय सबं ंधी दोष व्याप्त हो जाते हैं, उनका पढ़ने में मन
मानव एक मनो-शारीरिक प्राणी है। उसका व्यवहार नहीं लगता और सीखने में उन्नति नहीं हो पाती।
शारीरिक तथा मानसिक, दोनों ही प्रकार के अनेक इसके अतिरिक्त समायोजन दोष वाले बच्चे
कारकों पर निर्भर करता है। इसलिए स्वास्थ्य से विद्यालय में कई प्रकार की समस्याओ ं का सामना
अभिप्राय के वल शारीरिक स्वास्थ्य से नहीं होता करते हैं। इन समस्याओ ं को समझने व समाधान के
है, वरन् शारीरिक तथा मानसिक दोनों ही प्रकार के लिए शिक्षक को मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान का ज्ञान
स्वास्थ्य से होता है। इस प्रकार मानसिक स्वास्थ्य होना आवश्यक है।
से तात्पर्य व्यक्ति की उस मनोस्थिति से है जिसके मानसिक स्वास्थ्य बच्चों के समग्र स्वास्थ्य का
द्वारा व्यक्ति विभिन्न परिस्थितियों में सामाजिक तथा एक अनिवार्य अंग है। इसका बच्चे के स्वास्थ्य के
व्यक्तिगत समायोजन करने में समर्थ होता है। जब साथ तथा विद्यालय में, कार्यस्थल पर और समाज
व्यक्ति इच्छाओ,ं महत्वाकाक् ं षाओ,ं आदर्शों आदि में उनकी सफलता प्राप्त करने की योग्यता के साथ
को जीवन की वास्तविकताओ ं के अनरू ु प ढालकर अत्यंत गहरा संबंध है। मानसिक और शारीरिक,
अपने तथा वातावरण के मध्य एक सतं ोषजनक सबं धं दोनों ही प्रकार के स्वास्थ्य हमारे सोचने, महससू
स्थापित कर लेता है, तब उसे समायोजित व्यक्ति कहा करने और कार्य करने की क्षमता को प्रभावित करते
जाता है। हैं। बेहतर मानसिक स्वास्थ्य बच्चों और युवाओ ं
इस प्रकार, मानसिक स्वास्थ्य एक प्रकार का को समस्याओ ं का समाधान करने की क्षमता का
समायोजी व्यवहार है जो व्यक्ति को जीवन के विकास करने तथा उन्हें एक सर्वोन्मुखी, स्वस्थ
सभी प्रमख ु क्षेत्रों, जैसे— सांवेगिक, सामाजिक एवं वयस्क के रूप में विकसित होने में सहायता करता
शैक्षिक आदि में सफलतापर्वू क समायोजन करने में है। सकारात्मक मानसिक स्वास्थ्य यह सुनिश्चित
मदद करता है; जबकि मानसिक रोग या मनोविकार करता है कि बच्चा अपनी संवेदनाओ ं को
वातावरण के साथ कुसमायोजी व्यवहार को कहा प्रभावशाली ढंग से व्यक्त कर सकता है, मित्र बना
जाता है। सकता है और विश्व को जान सकता है।
बच्चों का मानसिक स्वास्थ्य तथा शिक्षा मानसिक रूप से स्वस्थ बच्चों के लक्षण
लगभग पाँच में से एक बच्चे और यवु ा को मानसिक शिक्षा प्रक्रिया का सबं ंध बच्चों के शारीरिक,
स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ रहती हैं, जिसमें दश्चिंत
ु ा मानसिक, सामाजिक तथा नैतिक विकास से है।
एवं अवसाद सम्मिलित हैं। शिक्षा का एक महत्वपर्णू इसलिए शिक्षा प्रक्रिया की सफलता के लिए
उद्देश्य है— बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य को बनाए शिक्षक एवं विद्यार्थी, दोनों का ही मानसिक दृष्टि से
रखना। अच्छे मानसिक स्वास्थ्य के बिना बच्चों की स्वस्थ होना आवश्यक है। मानसिक रूप से स्वस्थ
योग्यताओ ं का उचित विकास सभं व नहीं है और जिन बच्चों के कुछ लक्षण होते हैं जिनका विस्तारपर्वू क
बच्चों में भय, चितं ा, निराशा तथा अन्य समायोजन वर्णन निम्नलिखित है —
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•• मानसिक रूप से स्वस्थ बच्चे सवं ेगात्मक रूप स्वतत्रं रूप से निर्णय लेने की क्षमता होती है।
से स्थिर होते हैं। उनमें अपने संवेगों को नियंत्रित वे समस्याओ ं का हल करने के लिए रचनात्मक
रखने तथा उन्हें वांछनीय ढंग से व्यक्त करने की तथा स्पष्ट ढगं से चितं न करने की क्षमता रखते हैं।
क्षमता होती है। वे क्रोध, भय, ईर्ष्या, प्रेम, घृणा •• ऐसे बच्चे अनावश्यक चितं ाओ,ं कंु ठाओ ं से पीड़ित
आदि सवं ेगों में व्यस्त नहीं होते हैं। नहीं होते हैं अर्थात् उनमें निराशा तथा कंु ठाओ ं का
•• मानसिक रूप से स्वस्थ बच्चों का शारीरिक सामना करने की क्षमता होती है। वे असफलताओ ं
और सामाजिक विकास उत्तम होता है। वे अपने से बहुत जल्दी विचलित नहीं होते हैं।
शारीरिक स्वास्थ्य पर ध्यान देते हैं। उनकी एक •• मानसिक रूप से स्वस्थ बच्चे अपनी दर्बु लताओ ं
नियमित दिनचर्या होती है। उनके रहन-सहन, को पहचानने और स्वीकार करने में समर्थ होते
खान-पान, सोने-जागने तथा अन्य क्रियाकलापों हैं। साथ ही वे दसू रों को जानने व समझने की
आदि की कुछ निश्चित आदतें होती हैं। उनमें क्षमता भी रखते हैं।
आत्मविश्वास होता है और वे स्वयं को सरु क्षित •• मानसिक रूप से स्वस्थ बच्चों का एक निश्चित
समझते हैं। जीवन-दर्शन होता है, उनके अदं र ससं ार की
•• मानसिक रूप से स्वस्थ बच्चे सामाजिक व वास्तविकताओ ं से पलायन करने की प्रवृत्ति
रचनात्मक क्रियाओ ं में बढ़-चढ़कर भाग लेते नहीं होती तथा जीवन के प्रति आशावादी
हैं तथा दसू रों से अच्छे संबंध बनाए रखते हैं दृष्टिकोण रखते हैं।
अर्थात् ऐसे बच्चों के अपने माता-पिता,
शिक्षकों, सहपाठियों तथा अन्य दसू रे व्यक्तियों बच्चों के लिए मानसिक स्वास्थ्य की
के साथ अच्छे संबंध होते हैं।
आवश्यकता
•• मानसिक रूप से स्वस्थ बच्चों में वातावरण व्यक्ति के सर्वांगीण विकास के लिए स्वस्थ शरीर
के अनसु ार समायोजन की योग्यता होती है। वे के साथ-साथ स्वस्थ मस्तिष्क का होना अत्यंत
अपनी क्षमतानसु ार ही अपनी आवश्यकताएँ आवश्यक है। व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य का
एवं आकाक् ं षाएँ निश्चित करते हैं और समाज के जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में उसके समायोजन पर
आदर्शोंनकु ू ल अपने व्यवहार को सनिश्चित
ु करते हैं। प्रभाव पड़ता है। वैसे तो मानसिक रूप से स्वस्थ
•• मानसिक रूप से स्वस्थ बच्चों की रुचियाँ तथा रहना प्रत्येक व्यक्ति के लिए आवश्यक है, परंतु
व्यवहार पर्णू रूप से विकसित होते हैं। वे मनोरंजन बच्चों के लिए इसकी आवश्यकता अपेक्षाकृ त
के लिए स्वस्थ मनोरंजक साधनों का प्रयोग करते सबसे अधिक होती है, क्योंकि यह काल मनुष्य
हैं। साथ ही वे विनोदी स्वभाव के होते हैं और के बनने-बिगड़ने का काल होता है। यदि इस
प्रसन्न रहते हैं। समय वे मानसिक दृष्टि से स्वस्थ नहीं रहते और
•• मानसिक रूप से स्वस्थ बच्चों की मानसिक कुसमायोजन की ओर बढ़ जाते हैं, तो फिर उन्हें सही
शक्तियाँ उचित ढगं से विकसित होती हैं। उनमें राह पर लाना कठिन हो सकता है। बच्चों को अपनी
विद्यार्थियों में मनोविकारों की पहचान एवं शैक्षिक रणनीतियाँ 35
शिक्षा सचु ारू रूप से परू ी करने के लिए भी मानसिक या अन्य कोई व्यक्ति जिसकी देखभाल में बच्चा
दृष्टि से स्वस्थ रहना आवश्यक होता है। मानसिक है, सभी प्रकार की शारीरिक या मानसिक हिसं ा,
रूप से स्वस्थ बच्चे शारीरिक रूप से भी स्वस्थ चोट या दर्व्यव
ु हार, उपेक्षा या लापरवाही, उपचार,
होते हैं। वे नकारात्मक सवं ेगों से मक्त
ु होते हैं और अत्याचार या शोषण से बच्चे को बचाने के लिए,
परिस्थितिनसु ार स्वयं को भली-भाँति समायोजित सभी प्रकार के उचित वैधानिक, प्रशासनिक,
भी कर लेते हैं। अपने साथियों व शिक्षकों के साथ सामाजिक और शैक्षिक उपाय करें ग।े
अच्छा व्यवहार रखते हैं और यह उनके सीखने में •• इस तरह के सरु क्षा उपायों को उचित रूप से
सहायक होता है। इसके विपरीत मानसिक रूप से बच्चों के लिए आवश्यक समर्थन प्रदान करने के
अस्वस्थ बच्चे शारीरिक रूप से भी अस्वस्थ होते लिए, सामाजिक कार्यक्रमों की स्थापना और उन
हैं, उनकी सवं ेगात्मक स्थिति भी ठीक नहीं होती, लोगों के लिए जिनके पास बच्चे की देखभाल
वे नकारात्मक संवेगों से ग्रसित होते हैं, चिड़चिड़े है, साथ ही साथ रोकथाम के अन्य रूपों के लिए
स्वभाव के होते हैं और अपनी परिस्थितियों के साथ और पहचान, रिपोर्टिंग, रे फ़रल, जाँच, उपचार
सही समायोजन नहीं कर पाते। ये सब उनके सीखने और न्यायिक भागीदारी के लिए, पहले वर्णित
में बाधा उत्पन्न करते हैं। बाल अत्याचार के उदाहरणों की जाँच करने के
‘मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम 1987’ में कहा लिए, प्रभावी प्रक्रियाएँ शामिल करनी चाहिए।
गया है कि, ‘जहाँ पर किसी बच्चे का अभिभावक ‘शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009’ के
किसी बच्चे को मानसिक रोगी समझता है तथा बच्चे अतर्गत
ं धारा 17 में किसी भी बच्चे का शारीरिक एवं
को इलाज के लिए किसी मनोचिकित्सीय अस्पताल मानसिक उत्पीड़न का निषेध किया गया है अर्थात्
तथा मनोचिकित्सीय नर्सिंग होम में भर्ती करना यह कहा गया है कि किसी भी बच्चे को शारीरिक
चाहता है, तो वह प्रभारी चिकित्सीय अधिकारी से एवं मानसिक प्रताड़ना न दी जाए। एक गलत धारणा
बच्चे को स्वैच्छिक रोगी के रूप में भर्ती करने के है कि बच्चों में अनश ु ासन दण्ड एवं भय से आता है।
लिए अनरु ोध कर सकता है।’ जागरूकता बढ़ाने और अतः विद्यालय में अनश ु ासन स्थापित करने के लिए
समाज के सभी स्तरों पर प्रभावी रणनीतियों और भी भय एवं दण्ड का प्रयोग न किया जाए। आज
कार्यवाही को लागू करने और कार्यान्वित करने के शिक्षाविदों द्वारा भी यह स्वीकार किया गया है कि
लिए आवश्यक राजनीतिक इच्छाशक्ति को बढ़ावा प्रारम्भिक वर्षों में बच्चों को सीखने का जो वातावरण
देने के लिए सल ु भ प्रारूपों में तथ्यों के व्यापक मिलता है, वह उनकी बचपन की अवधारणा को
प्रसार की आवश्यकता जारी रहेगी। ‘बाल अधिकार प्रभावित करता है तथा उनके वयस्क जीवन को भी
अधिनियम’ में यह कहा गया है कि — प्रभावित करता है। अतः विद्यालय का वातावरण
•• राज्य सभी प्रकार के यौन दर्व्यव ु हार सहित अच्छा होना चाहिए। बच्चों के शरीर कोमल और
माता-पिता की देखभाल में, काननू ी अभिभावकों कमज़ोर होते हैं। एक छोटी-सी सज़ा से उन्हें चोट लग
36 भारतीय आधिु नक िशक्षा – जनवरी 2020
सकती है। यहाँ तक कि थप्पड़ के परिणामस्वरूप इसी परिप्रेक्ष्य में, शिक्षक शिक्षा को और अधिक
एक बच्चा बहरा हो सकता है। शारीरिक दण्ड के कारगर बनाने की आवश्यकता है। शिक्षक शिक्षा
कारण बच्चों पर गंभीर चोट के कई उदाहरण हैं। में आमल ू चल ू बदलाव की आवश्यकता बताते
शारीरिक दण्ड मानसिक आघात पहुचँ ाता है। सभी हुए राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरे खा 2005 में,
शारीरिक दण्ड एवं मानसिक आघात सभं ावित रूप शिक्षकों की भमि ू का के संबंध में कहा गया है कि वे
से अनिश्चित और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं। सीखने-सिखाने की परिस्थितियों में उत्साहवर्धक,
भारतीय संविधान के अनचु ्छे द 39 (एफ) में सहयोगी तथा सीखने को सहज बनाने वाले बनें। जो
कहा गया है कि, ‘राज्य यह सनिश्चितु करे गा कि अपने विद्यार्थियों को उनकी प्रतिभाओ ं की खोज
बच्चों को स्वस्थ तरीके से और स्वतंत्रता एवं गरिमा में उनकी शारीरिक तथा बौद्धिक क्षमताओ ं को
की स्थिति में विकसित करने के अवसर दिए जाएँ ू ा तक जानने में, उनमें अपेक्षित सामाजिक तथा
पर्णत
और बच्चों व यवु ाओ ं को शोषण से बचाएगा।’ मानवीय मलू ्यों व चरित्र के विकास में तथा ज़िम्मेदार
राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरे खा 2005 ने भी
नागरिक की भमि ू का निभाने में समर्थ बनाए।
शिक्षकों की बदलती भमि ू का को रे खांकित किया
है। आज एक शिक्षक के लिए आवश्यक है कि वह मानसिक रूप से अस्वस्थ बच्चे के लक्षण
बच्चों को जाने-समझे, कक्षा में उनके व्यवहार को बच्चों में मानसिक अस्वस्थता एक गंभीर समस्या
समझे, उनके सीखने के लिए उपयक्त ु माहौल तैयार है। यह उनके सपं र्णू व्यक्तित्व को प्रभावित करता
करे , उनके लिए उपयक्त ु सामग्री व गतिविधियों है। शिक्षकों को इसका ज्ञान होना भी आवश्यक है।
का चनु ाव करे , बच्चे की जिज्ञासा को बनाए रखे, मानसिक रूप से अस्वस्थ बच्चों के कुछ लक्षण होते
उन्हें अभिव्यक्ति का अवसर प्रदान करे , व उनके हैं, जिसके आधार पर मानसिक रूप से अस्वस्थ
अनभु वों का सम्मान करे । तात्पर्य यह है कि आज बच्चों की पहचान आसानी से की जा सकती है।
की जटिल परिस्थितियों में शिक्षक की भमि ू का कहीं इसका विस्तारपर्वू क वर्णन तालिका 1 में दिया
अधिक उत्तरदायित्वपर्णू व महत्वपर्णू हो गई है। गया है।
तालिका 1— मानसिक रूप से अस्वस्थ बच्चों के लक्षण
मनोदशा संबंधी लक्षण •• स्वयं को लोगों से अलग कर लेना, बहुत शांत रहना व किसी कार्य में मन न लगना।
•• निम्न आत्मसम्मान की भावना, असफलता का भय और स्वयं को अयोग्य समझना।
•• अत्यधिक चिड़चिड़ापन, जो कि आज्ञा की अवहेलना व आक्रामकता के रूप में परिलक्षित होता है।
•• निराशा व व्याकुलता अनभु व करना।
•• अस्थिर मनोदशा का होना।
•• अत्यधिक चितं ित व भयभीत रहना।
•• अत्यधिक गंभीर मद्ु रा में रहना।
विद्यार्थियों में मनोविकारों की पहचान एवं शैक्षिक रणनीतियाँ 37
तालिका 2—बच्चों में होने वाले मनोविकार, उसके लक्षण व अनुदेशनात्मक रणनीतियाँ
विकार लक्षण अनुदेशनात्मक रणनीतियाँ
दश्चिंत
ु ा •• लगातार विद्यालय में अनपु स्थित रहना। •• विद्यार्थियों को उनकी आयु व क्षमतानसु ार
•• सामाजिक गतिविधियों में सम्मिलित होने गृहकार्य दिया जाना चाहिए।
से मना करना। •• कठिन गृहकार्य हेतु विद्यार्थियों को पर्याप्त समय
•• अलग-थलग रहना। प्रदान किया जाना चाहिए।
•• विभिन्न प्रकार की शारीरिक समस्याएँ •• जहाँ तक सभं व हो सके विद्यार्थियों को गृहकार्य
होना। कम दिया जाना चाहिए। उन्हें खेलकूद व
•• गृहकार्य/ग्रेड के संबंध में अत्यधिक चितं ा रचनात्मक क्रियाओ ं द्वारा सीखने का अवसर
करना। प्रदान किया जाना चाहिए।
•• नवीन परिस्थितियों में भयभीत होना। •• विद्यार्थियों की अधिगम शैली को बेहतर बनाने के
•• दवा अथवा शराब का सेवन करना। लिए इस बात की ओर ध्यान दिया जाना चाहिए
कि पाठ्यक्रम विद्यार्थियों के स्तर के अनरू ु प हो,
जिसके लिए पाठ्यक्रम में समयानसु ार संशोधन
भी किया जाना चाहिए।
•• विद्यार्थियों के विद्यालयी-कार्यभार को कम किया
जाना चाहिए।
•• विद्यार्थियों की अनपु स्थिति को रोकने के लिए नियमित
रूप से उपस्थिति-पजि ं का में उपस्थिति दर्ज करें।
•• विद्यालय की समय-सारणी लचीली व कम
समयावधि की होनी चाहिए।
•• शिक्षकों को विद्यार्थियों के माता-पिता से पछ ू ना
चाहिए कि वे घर पर क्या काम करते हैं?
•• शिक्षकों को कक्षा-कक्ष में विद्यार्थियों को सिखाने
के लिए शैक्षिक-तकनीकी का प्रयोग करना
चाहिए। इससे विद्यार्थियों में रुचि व प्रेरणा को
बढ़ाया जा सकता है।
•• शिक्षकों का विद्यार्थियों के प्रति व्यवहार
सहयोगात्मक एवं प्रेमपर्णू होना चाहिए।
एस्पर्जर सिंड्रोम •• वयस्क व्यक्ति द्वारा किए जाने वाले •• विद्यालयी-वातावरण शांत एवं भय-मक्त ु
बौद्धिक कार्य, रुचियों, सामाजिक व होना चाहिए।
संप्रेषण संबंधी व्यवहार का अभाव। •• विद्यार्थियों में होने वाली मनोवैज्ञानिक/संवेदी
•• खेल व शारीरिक गतिविधियाँ सबं ंधी समस्याओ ं हेतु मनोवैज्ञानिक/मनोचिकित्सक की
कठिनाइयाँ होना। व्यवस्था होनी चाहिए।
विद्यार्थियों में मनोविकारों की पहचान एवं शैक्षिक रणनीतियाँ 39
मनोग्रसित-बाध्यता •• किसी वस्तु को बार-बार छूना अथवा एक •• उन स्थितियों एवं व्यवहारों को समायोजित करना,
विकार ही व्यवहार को बार-बार दोहराना। जिस पर विद्यार्थियों का नियंत्रण नहीं है।
•• वस्तुओ ं को बार-बार अनावश्यक रूप से •• मनोग्रसित-बाध्यता विकार के बारे में साथियों को
गिनना अथवा उन्हें बार-बार व्यवस्थित भी शिक्षित करना।
करना। •• विद्यार्थी के व्यवहार में होने वाले परिवर्तनों के
•• बार-बार मत्रू त्याग के लिए जाना। प्रति सचेत रहना।
विद्यार्थियों में मनोविकारों की पहचान एवं शैक्षिक रणनीतियाँ 43
स्रोत— मिनीसोटा एसोसिएशन फ़ॉर चिल्ड्रेंस मेंटल हेल्थ. 2007. चिल्ड्रेंस मेंटल हेल्थ डिसऑर्डर फै क्ट
़ शीट फ़ॉर द क्लासरूम. पृ.सं.1–13.
परंतु विद्यालय के विभिन्न साधनों द्वारा भी उसका विद्यालय जाने से मना करते हैं, उनमें ‘स्कू ल
समचित
ु विकास होता है। बच्चों के मानसिक फ़ोबिया’ (भय) की समस्या उत्पन्न हो जाती
स्वास्थ्य की उन्नति हेतु विद्यालय में निम्नलिखित है। अतः विद्यालय में जनतंत्रीय सिद्धांतों पर
उपायों पर ध्यान दिया जाना चाहिए —विद्यालय का आधारित स्वानश ु ासन पर बल दिया जाना
अच्छा वातावरण तथा शांत सौम्य परिवेश शारीरिक चाहिए। यह विद्यार्थियों के मानसिक स्वास्थ्य में
तथा मानसिक स्वास्थ्य की दृष्टि से आवश्यक है। उन्नति करने वाला होता है।
अतः विद्यालय का वातावरण इस प्रकार का होना •• शिक्षक को विद्यार्थियों की आय,ु योग्यता व
चाहिए कि बच्चे का समचित ु रूप से शारीरिक और विषय के अनसु ार शिक्षण विधियों का प्रयोग
मानसिक विकास हो। करना चाहिए। इससे उनकी शैक्षिक उपलब्धि
•• बच्चों के प्रति शिक्षकों का स्नेहपर्ण ू में वृद्धि होगी, उनमें आत्मबल, आत्मविश्वास
सहयोगात्मक व्यवहार उनके मानसिक स्वास्थ्य जैसे गणु विकसित होंगे और उनका मानसिक
का उन्नयन करता है। यदि विद्यार्थियों के प्रति स्वास्थ्य उन्नत होगा।
शिक्षक का व्यवहार सहानभु तू िपर्णू एवं प्रेमपर्णू •• विद्यालय में खेलकूद, मनोरंजन, स्काउटिगं ,
है तो इससे विद्यार्थियों में शिक्षक के प्रति जड़ु ाव सास्कृ
ं तिक कार्यक्रम आदि का आयोजन किया जाना
उत्पन्न होता है। इसके विपरीत यदि शिक्षक का चाहिए। इन क्रियाओ ंके द्वारा बच्चों की प्रवत्ति
ृ , प्रेरणा
व्यवहार बच्चों के प्रति भेदभावपर्णू व रूखा व इच्छा आदि की अभिव्यक्ति हो जाती है।
होता है तो इसका उनके मानसिक स्वास्थ्य पर •• विद्यालय में विद्यार्थियों को व्यक्तिगत, शैक्षिक
बरु ा प्रभाव पड़ता है। व व्यावसायिक निर्देशन प्रदान करने की व्यवस्था
•• पाठ्यक्रम सत ं लित
ु व विद्यार्थियों की रुचि, की जानी चाहिए, जिससे वे अपनी विभिन्न
आवश्यकता तथा परिस्थितियों के अनरू ु प समस्याओ ं का उचित समाधान कर सकें ।
होना चाहिए। यदि पाठ्यक्रम असंतलित ु व •• विद्यालय में बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य-सबं धं ी
विद्यार्थियों की आवश्यकता के अनरू ु प नहीं समस्याओ ं का अध्ययन करने तथा उनका निदान
होता है तो विद्यार्थियों में मानसिक थकान करने के लिए मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों से
होने लगती है, वे पढ़ने व समझने में रुचि नहीं परामर्श लिया जाना चाहिए। समस्यात्मक बच्चों
लेते हैं। इससे उनकी शैक्षिक उपलब्धि एवं का अध्ययन करने के लिए विशेषज्ञों का परामर्श
आत्मविश्वास में कमी आ जाती है। जो उनके लिया जाना चाहिए और उनके उपचार की
मानसिक स्वास्थ्य के लिए उचित नहीं है। समचितु व्यवस्था करनी चाहिए।
•• भय, दण्ड, दमन तथा कठोरता पर आधारित समाज के कार्य
अनश ु ासन बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य को बच्चे के मानसिक स्वास्थ्य में महत्वपर्णू योगदान देने
नष्ट करता है। जिसके कारण कई बार विद्यार्थी वाला तीसरा अभिकरण समाज है। अतः मानसिक
विद्यार्थियों में मनोविकारों की पहचान एवं शैक्षिक रणनीतियाँ 45
स्वास्थ्य के क्षेत्र में समाज निम्नलिखित कार्य कर दौड़ने-भागने की अवधि में जितने क्रियाशील होते
सकता है — हैं, उतना ही जल्दी वे सीखते हैं एवं अपने तनावों,
•• बच्चे की मौलिक आवश्यकताओ,ं यथा प्रेम, अवसादों (निराशा एवं उदासी) को सहज रूप से भल ू ते
स्नेह, वात्सल्य और प्रसन्नता की पर्ति ू । जाते हैं। इससे उनका शरीर स्फूर्तिवान एवं मस्तिष्क पनु ः
•• बच्चे को सख ु व सरु क्षा प्रदान करना। तरोताज़ा होकर सीखने के लिए तैयार होता है। बच्चों
•• बच्चे के सांवेगिक-सामाजिक विकास हेतु के विकास के ये अवसर परिवार एवं विद्यालय, दोनों
पर्याप्त अवसर उपलब्ध कराना। स्तर पर होते हैं। बच्चों का यह विकास तब सभं व होगा
•• बच्चे के विकास के लिए उत्तम शिक्षा सस्था जब बच्चों का स्वास्थ्य ठीक होगा। भारतीय परिदृश्य
ं ओं
की स्थापना करना। में बच्चों के स्वास्थ्य की परिस्थितियों में विविधता
•• बच्चे में लोकतांत्रिक नागरिकता के गण दिखाई देती है एवं इस विविधता को समझे बगैर उनका
ु ों को
प्रोत्साहित करना। सर्वांगीण विकास सनिश्चित
ु नहीं हो सकता है। शिक्षण
•• बच्चे में सामदु ायिक तथा राष्ट्रीय भावनाओ ं काप्रक्रिया को सफल बनाने के लिए यह आवश्यक है
विकास करना। कि बच्चों में होने वाली मानसिक अस्वस्थता को
•• जातीय विद्वेष, सामाजिक विद्वेष, राजनीतिक
रोका जाए और यह ज़िम्मेदारी सभी व्यक्तियों की है।
प्रपंच, धार्मिक उन्माद आदि की समाप्ति यदि शिक्षक यह ज़िम्मेदारी परिवार पर डाल दे अथवा
करके बच्चे के सम्मुख सामाजिक परिवेश का परिवार यह ज़िम्मेदारी विद्यालय पर डाल दे, तो इससे
समस्या का समाधान नहीं होगा। क्योंकि एक-दसू रे
विकास करना।
के ऊपर ज़िम्मेदारी थोपने से बच्चे मानसिक रूप से
निष्कर्ष पीड़ित रहेंग।े अतः बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य की
शिक्षा का मल
ू लक्ष्य है
, बच्चों का सर्वां
ग ीण विकास। ज़िम्मेदारी परिवार, विद्यालय व समाज, तीनों की है।
इसका तात्पर्य मानसिक एवं शारीरिक क्षमताओ ं इसलिए तीनों को सहयोगपर्णू ढगं से कार्य करते हुए
के समेकित विकास से है। बच्चे खेलने-कूदने, देश के भविष्य के निर्माण में योगदान देना चाहिए।
सदं र्भ
द फ़ोर्स— सोसाइटी फ़ॉर किड्स मेंटल हेल्थ. 2008. ओरियेन्टेशन टू चाइल्ड + यथू मेंटल हेल्थ सर्विसेज— ए गाइड फ़ॉर
टीचर्स. पृष्ठ 8–9. द फ़ोर्स सोसाइटी, वेस्ट वैनक्यूलर.
नेशनल इस्टीट
ं ् यटू ऑफ़ मेंटल हेल्थ. 25 जल ु ाई, 2018 को http://www.nimh.nih.gov से लिया गया है.
भारत सरकार. 2009. निःशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009. भारत सरकार, नयी दिल्ली.
मिनीसोटा एसोसिएशन फ़ॉर चिल्ड्रेंस मेंटल हेल्थ. 2007. चिल्ड्रेंस मेंटल हेल्थ डिसऑर्डर फै ़क्ट शीट फ़ॉर द क्लासरूम.
वेस्टर्न एवेन्यू नॉर्थ, सेन्ट पॉल 16 सितंबर, 2016 को http://www.macmh.org से लिया गया है.
46 भारतीय आधिु नक िशक्षा – जनवरी 2020
इस शोध अध्ययन में भाषा अध्यापन करने वाले अध्यापकों की कार्य सतं षु ्टि व भमिू का प्रभावशीलता का अध्ययन
कर, उनके मध्य संबंध को मापने का प्रयास किया गया है। इस अध्ययन में यह जानने का प्रयास भी किया गया है
कि माध्यमिक स्तर पर भाषा अध्यापन करने वाले अध्यापकों का‘कृ त्य संतोष’ व‘भमि ू का प्रभावशीलता’ कै सी
है? क्या अध्यापकों के जेंडर (महिला या परुु ष होने), अनभु व (शाला अध्यापन के वर्ष), प्रबंधन के प्रकार (सरकारी
व गैर-सरकारी) व भाषा अध्यापन का माध्यम (हिदं ी या अग्ं रेज़ी) का कृ त्य सतं ोष व भमि
ू का प्रभावशीलता से कोई
संबंध है तथा इन दोनों का आपस में भी कोई संबंध है या नहीं। इस अध्ययन में होशगं ाबाद ज़िले में वर्ष 2016–17
में संचालित 50 सरकारी व गैर-सरकारी विद्यालयों का चयन किया गया था। कार्य संतषु ्टि मापने हेतु प्रमोद कुमार
व मतु ्था (1973) के कृ त्य संतोष प्रश्नावली व भमि ू का प्रभावशीलता मापने हेतु पारिक, य.ू (1998) के रोल
एफ़ीशिएसं ी स्के ल (भमि
ू का प्रभावशीलता मापनी) का उपयोग किया गया था। हिदं ी व अग्ं रेज़ी का अध्यापन करने
वाले 100 अध्यापकों को सरकारी/गैर-सरकारी, परुु ष/महिला, अनभु व व आयु के आधार पर विभिन्न समहू ों में
बाँटा गया है। आँकड़ों का विश्लेषण करने हेतु मध्यमान, मानक विचलन, t-मान व सह-संबंध गणु ांक का उपयोग
किया गया था। इस शोध अध्ययन में निष्कर्षस्वरूप पाया गया कि कार्य संतषु ्टि व भमिू का प्रभावशीलता धनात्मक
रूप से सह-सबं ंधित है अर्थात् अधिक सतं ष्ट
ु अध्यापकों की भमि ू का प्रभावशीलता अधिक पाई गई।
किसी भी राष्ट्र के निर्माण में शिक्षा की महत्वपर्णू शिक्षा प्रक्रिया का प्रमखु आधार है, क्योंकि पाठ्यक्रम
व सकारात्मक भमि ू का होती है। आदिकाल से ही या पसु ्तकें स्वयं सक्रिय नहीं होती हैं तथा विद्यार्थी
शिक्षा सभ्यता का आधार रही है। शिक्षा प्रक्रिया अल्पविकसित अवस्था में होता है, परंतु अध्यापक
में, प्रकृ तिवादियों और आदर्शवादियों के अनसु ार चैतन्य अवस्था में होता है। एक शिक्षक से समाज
क्रमशः विद्यार्थी एवं शिक्षक को महत्वपर्णू माना को अनेक अपेक्षाएँ होती हैं। विद्यालयी जीवन और
गया है। शिक्षा प्रक्रिया के तीन महत्वपर्णू अगं हैं— शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया के कें द्र में शिक्षक और
अध्यापक, विद्यार्थी, और पाठ्यक्रम। परंतु गहराई से विद्यार्थी होते हैं। इनके परस्पर संबंधों की परिणति
विचार करने पर यह प्रतीत होता है कि शिक्षक ही विद्यार्थी के व्यक्तित्व विकास के रूप में होती है। यह
*प्रधानाचार्य, आयषु ्मती कॉलेज एजक
ु े शन, एन.एच.12, जाटखेरी, होशगं ाबाद रोड, भोपाल, मध्य प्रदेश 462010
48 भारतीय आधिु नक िशक्षा – जनवरी 2020
परस्पर सबं ंध तभी मज़बतू होते हैं जब शिक्षक और समाज में माता को प्रथम शिक्षक का स्थान
विद्यार्थी परस्पर अपनी ज़रूरतों के अनसु ार कार्य प्राप्त है, क्योंकि बच्चा सर्वप्रथम अपनी माँ से ही
योजना बनाएँ। शिक्षक का दायित्व के वल ज्ञान देना शिक्षा ग्रहण करता है। ज्यों-ज्यों उसका विकास होता
नहीं, अपितु विद्यार्थियों में विभिन्न जीवन कौशल है, त्यों-त्यों उसकी शिक्षा का प्रबंध अलग-अलग
का विकास करना भी है। ताकि वे विषम परिस्थितियों व्यक्तियों द्वारा किया जाता है। भारतीय शालाओ ं में
का धैर्य के साथ सामना कर सकें । सामान्यतः भाषा औपचारिक शिक्षा के मखु ्यत: तीन स्तर माने जाते
अध्ययन के माध्यम से शिक्षक विद्यार्थियों में अपनी हैं— प्राथमिक स्तर, माध्यमिक स्तर, उच्चतर स्तर।
बात कहने, दसू रे की बात सनु ने, प्रश्न करने, तर्क इन तीनों का अपना विशेष महत्व है। जहाँ प्राथमिक
करने इत्यादि कौशल का विकास करता है। जीवन के स्तर शिक्षा का मल ू है, वहीं माध्यमिक स्तर तना एवं
सर्वांगीण विकास के लिए शिक्षा एक ऐसी प्रक्रिया उच्चतर स्तर उसका विकासात्मक पक्ष है। सामान्यतः
है जिसके द्वारा मनषु ्य अपनी जन्मजात शक्तियों यह कहा जाता है कि व्यक्ति अपने कार्य में तब तक
को विकसित करके अपने व्यवहार तथा विचारों में सफल नहीं हो सकता, जब तक की वह किसी कार्य
निरंतर परिवर्तन, परिमार्जन एवं परिवर्धन कर सकता को पर्णू मनोयोग से न करे ।
है। शिक्षा प्रक्रिया में अध्यापक का स्थान सर्वाधिक भाषा अध्यापन करने वाले शिक्षक की अपने
महत्वपर्णू माना जाता है। जिस समाज में अध्यापक कार्य के प्रति संतष्टि
ु अपनी भमि ू का का सही एवं
का सम्मान होता है, वह समाज अधिक सभ्य व सकारात्मक रूप से निर्वहन करना अत्यावश्यक है।
विकसित माना जाता है। शिक्षक, शिक्षा और समाज सामान्यतः कृ त्य संतोष की अवधारणा पश्चिम की
को जोड़ने की महत्वपर्णू कड़ी है। अन्य लोग जहाँ देन है; आधनि ु क भौतिकतावादी यगु में व्यवसाय से
वस्तुएँ एवं पदार्थ बनाते हैं, वहीं शिक्षक बच्चे की मिलने वाले सतं ोष को पश्चिम में जीवन का अभीष्ट
चेतना को अभीष्ट दिशा में मोड़कर उसे विकसित, लक्ष्य माना गया है।
सदृु ढ़ एवं सघु ड़ इनसान के रूप में विकसित करता है। ‘कृ त्य संतोष’ क्या है? हिदं ी शब्दकोश अथवा
पूर्व प्राथमिक स्तर पर भाषा अध्यापन व शैक्षिक व समाजशास्त्रीय ग्रंथों में इसकी सटीक
अध्ययन और निश्चित परिभाषा नहीं मिलती है। वाक्य
इस स्तर पर शिक्षक एक महत्वपर्णू भमि
ू का निभाते हैं, विन्यास के आधार पर कृ त्य संतोष दो शब्दों से
क्योंकि मातृभाषा या बोलचाल की भाषा में किए गए मिलकर बना है; प्रथम, कृ त्य या कार्य और द्वितीय,
अध्यापन को बच्चा शीघ्र ग्रहण करता है। साधारणतः संतुष्टि। कार्य का अर्थ है— अपनाया गया कोई
एक शिक्षक बच्चे में जानने की शक्ति, उसके साथ व्यवसाय जिसके लिए कार्य किया जाता है और
कार्य करने का सामर्थ्य, शिक्षण योग्यता व सहकारिता संतुष्टि का अर्थ होता है— संतोष अथवा प्रसन्नता।
आदि गणु ों का विकास करता है अर्थात् शिक्षण कार्य शाब्दिक अर्थ में अपने कार्य अथवा पेशे से प्राप्त
वह व्यक्ति कर सकता है जिसमें बौद्धिक, सामाजिक, होने वाले आनंद और संतोष को ‘कृ त्य संतोष’
नैतिक एवं सावं गि
े क आदिगणु मौजदू हों। कहा जा सकता है।
माध्यमिक विद्यालयों में भाषा अध्यापन करने वाले अध्यापकों के ‘कृ त्य संतोष’... 49
व्यवसाय के किन पक्षों अथवा रीतियों से बात का प्रभाव विद्यार्थियों के बौद्धिक स्तर में या
संतोष प्राप्त होता है, यह मनोविज्ञान का विषय है। व्यवहार में परिवर्तन करने में सक्षम हो। इस रूप में
एक व्यक्ति को कार्य की अच्छी दशाएँ, सामाजिक मातृभाषा में शिक्षण व सप्रें षण का माध्यम बोलचाल
सम्मान और प्रतिष्ठा, उचित वेतन, मनोवांछित की भाषा या मातृभाषा हो तो शिक्षक का कृ त्य सतं ोष
स्थान पर नियकु ्ति होने के बावजदू भी सतं ोष प्राप्त उच्च स्तर का हो सकता है।
नहीं होता, वहीं समान योग्यता रखने वाले किसी इसी प्रकार ‘भमि ू का प्रभावशीलता’ भी दो
दसू रे व्यक्ति को कम सवि ु धाजनक अवस्थाओ ं व शब्दों, भमिू का व प्रभावशीलता से मिलकर बना है।
कम वेतन पर भी सतं ोष प्राप्त हो जाता है। कहने का समेकित रूप में ‘भमि ू का प्रभावशीलता’ अपने कार्य
अभिप्राय यह है कि कृ त्य संतोष एक संतष्टि ु अथवा को प्रभावशाली ढंग से निर्वहन करने से सबं ंधित है।
आतं रिक अनभु ति ू है। इसका संबंध मनषु ्य के हृदय एक शिक्षक की भमि ू का संपर्णू शैक्षिक पर्यावरण में
से होता है। संतष्टि ु अथवा संतोष की भावना के मल ू अत्यंत गरिमामय व प्रभावपर्णू होती है। एक शिक्षक
में भी कुछ प्रवृत्तिमल ू क और भौतिक परिस्थितियाँ जब कम समय, कम सामग्री, कम ऊर्जा, कम प्रयास
होती हैं। व्यवसाय से मिलने वाले संतोष की पहली और कम पैसे से वांछित परिणाम (विद्यार्थियों के
आवश्यकता प्रवृत्ति जन्य होती है अर्थात् अपने शैक्षणिक उपलब्धि में परिवर्तन) लाने में सक्षम होता
स्वभाव, प्रवृत्ति, रुचि और इच्छाओ ं के अनक ु ूल है, तब उसकी भमि ू का को प्रभावपर्णू माना जा सकता
कार्य मिलना सतं ष्टि ु की पहली शर्त है। कृ त्य सतं ोष है। शिक्षा व्यवस्था में भमि
ू का से तात्पर्य शिक्षक द्वारा
का दसू रा आधार भौतिकता है। किए जाने वाले दैनिक शैक्षणिक क्रियाकलापों से है,
सक्
ं पषे में कहा जा सकता है कि कार्य में सतं ष्टि
ु परंतु साथ-साथ शिक्षक के सामाजिक पक्ष को भी
मखु ्यतः दो आधारों पर प्राप्त हो सकती है। प्रथम— दृष्टिगत रखना चाहिए। शिक्षक का अपना व्यक्तित्व
व्यक्ति को उसकी प्रकृ ति अथवा स्वभाव व रुचि के व व्यवहार समाज का मार्गदर्शन करने वाला होना
अनसु ार कार्य मिला हो तथा दसू रा— अपने व्यवसाय चाहिए। कार्य के अतं र्गत आने वाली शिक्षक की
से कम से कम इतनी आर्थिक सवि ु धाएँ व वेतन मिलता भमिू का और विशेष प्रकार की कार्यदशाओ ं में
हो जो उस समाज में जीवनयापन के लिए आवश्यक तादात्म्य स्थापित हो जाने पर शिक्षक अधिक
है। सामान्यतः कार्य सतं ोष को, जेंडर, आय,ु अनभु व, प्रभावशालीपर्णू , कुशलतापर्वू क एवं रुचि के साथ
कार्य के घण्टे, समय सारणी, बद्ु धि, आकाक् ं षा का स्तर, कार्य करते हुए आनंद का अनभु व करता है। भमि ू का
क्षेत्र, शिक्षा, व्यक्तित्व व व्यक्तिगत आवश्यकताएँ निर्वहन के अतं र्गत कुशलतापर्वू क कार्य सपं ादन हेतु
तथा मलू ्य एवं आदर्श प्रभावित करते हैं। भाषा प्रशिक्षण की आवश्यकता व कार्य विशेष में अपेक्षित
अध्यापन करने वाले शिक्षकों के सबं धं में, इनमें से कौशल का विकास नितांत आवश्यक है। अपेक्षित
भाषा का माध्यम व उसका अध्यापन भी सम्मिलित कौशल प्राप्त व्यक्ति का आत्मबल उच्च होता है,
किया जा सकता है। एक अध्यापक अपने शिक्षण को क्योंकि उसे यह एहसास रहता है कि वह कार्य को
तभी प्रभावी बनाने में सक्षम होगा जब उसकी कही बिना किसी बाधा के पर्णू कर लेगा। भमि ू का निर्वहन
50 भारतीय आधिु नक िशक्षा – जनवरी 2020
में जिन लोगों के बीच में रहकर कार्य किया जाता अनभु व का कृ त्य संतोष पर कोई सार्थक प्रभाव
है, उनके व्यवहार, आपसी संबंध, विनोदप्रियता, नहीं पाया। गप्ता
ु , पसरीजा और बंसल (2012) ने
सहयोग की भावना आदि भी भमि ू का को प्रभावित यह पाया कि कृ त्य संतोष में महिला शिक्षक परुु ष
करते हैं। यदि सहकर्मियों का व्यवहार सकारात्मक शिक्षक की तल ु ना में अधिक संतष्ट
ु हैं। भट्ट (1997)
है तो शिक्षक अच्छा महससू करता है। सामान्यतः ने कृ त्य सतं ोष को कृ त्य भागीदारी से सार्थक रूप
भमि ू का प्रभावशीलता के अतं र्गत भमि ू का का से सहसंबंधित पाया है। पांडे (2016) ने सरकारी व
निर्माण, भमि ू का का कें द्रण व भमि ू का का अन्य गैर-सरकारी शिक्षकों के कृ त्य संतोष का अध्ययन
गतिविधियों से सबं ंध महत्वपर्णू घटक हैं। किया और यह पाया कि कृ त्य सतं ोष पर सैलरी व
संक्षेप में, ‘भमि
ू का प्रभावशीलता’ को किसी मैनेजमेंट का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
भमिू का के प्रभावी रूपांतरण के रूप में परिभाषित भमि
ू का प्रभावशीलता पर विभिन्न कारकों
किया जा सकता है। एक शिक्षक चकँू ि शिक्षा एवं कृ त्य संतोष में संबंध स्थापित करने हेतु किए
व्यवस्था की धरु ी होता है; अतः उसका अपनी गए अध्ययन कम हैं। सिन्हा (1980) ने शिक्षित व
भमि ू का निर्वहन के प्रति सकारात्मक रवैया होना अशिक्षित शिक्षकों की भमि ू का प्रभावशीलता पर
अत्यावश्यक है। भमि ू का प्रभावशीलता को शिक्षक विषय, आय,ु जेंडर, शैक्षणिक योग्यता, अनभु व
के अपने सहकर्मियों के साथ सबं ंध, ससं ्था की का अध्ययन किया। सिहं और मोहतं ी (1996) ने
स्थिति, आय,ु अनभु व, जेंडर, बद्ु धि व अध्यापन का भमिू का प्रभावशीलता को भमि ू का की चितं ा व
माध्यम प्रभावित करते हैं। भमि
ू का स्तर पर अध्ययन किया और उनके मध्य
विभिन्न स्तरों पर शिक्षकों के ‘कृ त्य सतं ोष’ पर सार्थक संबंध पाया। पाथेय और चौधरी (2000)
प्रभाव डालने वाले कारकों का अध्ययन किया गया ने भमि
ू का प्रभावशीलता के घटकों के मध्य संबंध
है। कौर (1983), श्रीवास्तव (1985), पटनायक और स्थापित करने हेतु अध्ययन किया। सावले (2000)
पंडा (1982), खातनू और हसन (2000), लाहिरी, ने प्राथमिक विद्यालयों की भमि ू का प्रभावशीलता
एस. और सक्सेना (2003), अलका और अस्थाना का अध्ययन किया और आयु व प्रशिक्षण योग्यता
(2004), एवं सिंह (2007), ने अपने अध्ययनों के आधार पर सार्थक अतं र दर्शाया। शर्मा, आलोक
में ‘कृ त्य संतोष’ पर जेंडर, आय,ु शिक्षण स्तर व (2001) ने जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थानों के
शिक्षण अनभु व और अन्य व्यक्तिगत चरों के पड़ने शिक्षकों की भमि ू का प्रभावशीलता व सगं ठनात्मक
वाले प्रभावों का अध्ययन किया है। रामा (2000) स्वास्थ्य का अध्ययन किया और जेंडर व आयु के
ने शिक्षकों के कृ त्य संतोष व जीवन स्तर के मध्य आधार पर शिक्षकों की भमि ू का प्रभावशीलता में
महत्वपर्णू संबंध पाया है। गप्ता
ु और जैन (2003) ने कोई सार्थक अतं र नहीं पाया। पटनायक और शर्मा
यह पाया है कि वेतन, सरु क्षा, भौतिक स्थिति, प्रमोशन (2003) ने भी अपने अध्ययन में आयु व जेंडर व
आदि ‘कृ त्य संतोष’ को प्रभावित करते हैं। इसी प्रकार, आयु के आधार पर भमि ू का प्रभावशीलता में कोई
श्रीदेवी (2012) ने शिक्षकों के जेंडर एवं शिक्षण सार्थक अतं र नहीं पाया।
माध्यमिक विद्यालयों में भाषा अध्यापन करने वाले अध्यापकों के ‘कृ त्य संतोष’... 51
तालिका 1 से यह स्पष्ट है कि कृ त्य सतं ोष में कोई सार्थक अतं र नहीं है, स्वीकृ त की जाती है। जेंडर
महिला शिक्षकों का मध्यमान (25.78) परुु ष शिक्षकों के के आधार पर महिला एवं परुु ष अध्यापकों में भमि ू का
मध्यमान (23.77) की तल ु ना में अधिक है। परंतु t-मान प्रभावशीलता में अतं र का न होना एक सकारात्मक
का मलू ्य 1.07 (df 98) 0.01 पर 2.62 तालिका मलू ्य सचू ना देता है कि हमारे समाज में महिला व परुु षों
से कम है। अतः दोनों समहू ों में साख्यि
ं की रूप से कोई में कार्य के आधार पर भेद नहीं किया जाता एवं उन्हें
सार्थक अतं र नहीं है। अतएव शनू ्य परिकल्पना किभाषा समचि ु त समान अवसर प्रदान किए जाते हैं। महिलाएँ,
अध्यापन करने वाले महिला व परुु ष अध्यापकों में जेंडर परुु षों की तलु ना में अधिक धैर्यवान होती हैं व उनके
के आधार पर कृ त्य सतं ोष में कोई सार्थक अतं र नहीं है, शैक्षणिक गणु परुु षों की तल
ु ना में अधिक होते हैं। अतः
स्वीकार की जाती है। मध्यमान के आधार पर यह स्पष्ट उनकी प्रभावशीलता अपने साथी परुु ष अध्यापकों की
होता है कि महिला शिक्षकों का अच्छा कृ त्य सतं ोष तल ु ना में अधिक होती है। प्रबधं न द्वारा भी महिला व
उनकी रुचि के अनसु ार कार्य का चयन करने व भारतीय परुु षों को समान यथोचित अवसर प्रदान किए जाते हैं,
सामाजिक परिस्थितियों के कारण है। हमारे समाज समान सवि ु धाएँ व समान शैक्षणिक वातावरण प्रदान
में महिलाओ ं को प्रथम शिक्षक का दर्जा प्राप्त है और किए जाते हैं; इस कारण इनकी भमि ू का प्रभावशीलता
जब वह शिक्षण व्यवसाय में आती हैं, तो उनके अपने में कोई अतं र नहीं है।
घर में शिक्षक के रूप में किया गया कार्य मदद करता है, द्वितीय शून्य परिकल्पना—भाषा अध्यापन
जिसके प्रभाव से उनका प्रदर्शन निखरता है और वह परुु ष करने वाले अध्यापकों के ‘कृत्य सतं ोष’ व
शिक्षकों की तलु ना में अधिक कृ त्य सतं ोषी होती हैं। ‘भूमिका प्रभावशीलता’ में प्रबंधन के आधार
साथ ही, तालिका 1 से यह प्रदर्शित होता है कि पर कोई सार्थक अंतर नहीं है
भमिू का प्रभावशीलता हेतु t-मान 1.00 है जो कि भाषा अध्यापन करने वाले 100 शिक्षकों का कृ त्य
0.01 स्तर पर तालिका मान 2.62 (df 98) से कम है। संतोष व भमि ू का प्रभावशीलता हेतु प्राप्त अक ं ों का
अतः शनू ्य परिकल्पना स्वीकृ त की जाती है एवं परुु ष प्रबंधन के आधार पर प्राप्त सांख्यिकी विश्लेषण
व महिला अध्यापकों की भमि ू का प्रभावशीलता में किया गया, जो तालिका 2 में दिए गए हैं।
54 भारतीय आधिु नक िशक्षा – जनवरी 2020
तालिका 2 से यह स्पष्ट है कि सरकारी विद्यालयों गैर-सरकारी विद्यालय के भाषा अध्यापन करने वाले
के अध्यापकों का कृ त्य सतं ोष (मध्यमान 24.32), शिक्षकों की भमिू का प्रभावशीलता में कोई अतं र नहीं
गैर-सरकारी विद्यालय के शिक्षकों (मध्यमान 23.35) है, अस्वीकृ त की जाती है। यह स्पष्ट है कि सरकारी
की तल ु ना में अधिक है। अतः कहा जा सकता है कि विद्यालयों के शिक्षकों की भमि
ू का प्रभावशीलता का
सरकारी विद्यालय के शिक्षक गैर-सरकारी विद्यालय मध्यमान 23.52, गैर-सरकारी विद्यालयों के शिक्षकों
के शिक्षकों की तल ु ना में अधिक कृ त्य सतं ोषी हैं। की भमि ू का प्रभावशीलता के मध्यमान 28.27
लेकिन साख्यि
ं की दृष्टिकोण से t-मान 0.162 है। जो की तल ु ना में कम है। अतः कहा जा सकता है कि
कि तालिका मान 2.62 (0.01) से कम है। अतः शनू ्य गैर-सरकारी विद्यालय के अध्यापक अधिक प्रभावी
परिकल्पना कि सरकारी विद्यालय व गैर-सरकारी ढगं से अपना कार्य सपं न्न करते हैं। अधिक या प्रभावी
विद्यालय के भाषा अध्यापन करने वाले अध्यापकों भमिू का प्रभावशीलता का कारण गैर-सरकारी विद्यालयों
के कृ त्य सतं ोष में कोई सार्थक अतं र नहीं है, स्वीकृ त में अनशु ासन व शैक्षणिक स्तर का उच्च होना है।
की जाती है। सामान्यतः समान पाठ्यक्रम, शिक्षण की गैर-सरकारी विद्यालय के शिक्षक अपने व्यवसाय के
समान अवधि व एकसमान शैक्षणिक परिस्थितियों प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण रखते हैं, कठिन परिश्रम
के कारण यह अतं र नहीं है, किंतु सरकारी विद्यालय व प्रभावी कार्य योजना अनपु ालन उन्हें अधिक
के शिक्षकों का कृ त्य सतं ोषी होना उनके वेतनमान व प्रभावशाली बनाते हैं। ईमानदारी, लगन, अनशु ासन,
नौकरी की अधिक लचीली व सतं ोषजनक परिस्थितियों विनम्रता व विद्यालय का सकारात्मक वातावरण प्रभावी
के कारण है। यह देखा गया है कि विद्यालय में कार्य कार्यशीलता को बढ़ाने में महत्वपर्णू भमि
ू का निभाते हैं।
की अधिकता व कम वेतनमान के कारण गैर-सरकारी तृतीय शून्य परिकल्पना— भाषा अध्यापन करने
विद्यालयों के शिक्षक कम कृ त्य सतं ोषी होते हैं। वाले अध्यापकों के ‘कृत्य सतं ोष’ व ‘भूमिका
तालिका 2 से यह भी स्पष्ट है कि भमि ू का प्रभावशीलता’ में अनुभव के आधार पर कोई
प्रभावशीलता हेतु t-मान 2.01 है जो कि 0.05 स्तर पर सार्थक अंतर नहीं है
तालिका मान 1.98 से अधिक है। अतः शनू ्य परिकल्पना भाषा अध्यापन करने वाले 100 शिक्षकों का अनभु व
अस्वीकृ त होती है एवं शनू ्य परिकल्पना सरकारी व के आधार पर 10 वर्ष से कम व 10 वर्ष से अधिक
माध्यमिक विद्यालयों में भाषा अध्यापन करने वाले अध्यापकों के ‘कृ त्य संतोष’... 55
अनभु वी शिक्षक के समान भमि ू का प्रभावशीलता शिक्षक स्वयं को विशिष्ट वर्ग का समझने लगते
का प्रदर्शन करते हैं। हैं जिससे नौकरी की परिस्थितियों में सामंजस्य
चतुर्थ शून्य परिकल्पना— भाषा अध्यापन करने स्थापित करने में असुविधा होती है और कृ त्य
वाले अध्यापकों के ‘कृत्य सतं ोष’ व ‘भमू िका संतोष कम हो जाता है। कार्य के प्रति रुचि, उत्साह,
प्रभावशीलता’ में भाषा अध्यापन (हिदं ी एवं आशाजनक परिणाम, विद्यालय का वातावरण,
अंग्रेज़ी) के आधार पर कोई सार्थक अंतर नहीं है विद्यार्थियों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति सहित
हिदं ी व अग्रें ज़ी भाषा का अध्यापन करने वाले अन्य महत्वपूर्ण कारक हैं जो हिदं ी शिक्षकों के कृ त्य
शिक्षकों के कृ त्य संतोष व भमि ू का प्रभावशीलता हेतु संतोष को बढ़ाते हैं।
प्राप्त आँकड़ों के आधार पर सांख्यिकी विश्लेषण किंतु सांख्यिकी रूप से t-मान 0.62 तालिका
किया गया है, जिसे तालिका 4 में दर्शाया गया है। मान 1.98 व 2.62 से अत्यंत कम है; अतः
तालिका 4 से स्पष्ट है कि हिदं ी शिक्षण परिकल्पना स्वीकृ त होती है और यह कथन कि हिदं ी
करने वाले शिक्षकों का मध्यमान 24.32, अंग्रेज़ी अध्यापन करने वाले शिक्षक अग्रें ज़ी अध्यापन करने
अध्यापन करने वाले शिक्षकों के मध्यमान 22.35 वाले शिक्षकों के कृ त्य संतोष में कोई सार्थक अतं र
की तुलना में अधिक है। अतः कहा जा सकता है नहीं है, सत्य है।
कि मातृभाषा में शिक्षण कार्य करने में अध्यापक तालिका 4 से स्पष्ट होता है कि भमि ू का
अपनी बातों का प्रभावी रूप से संप्रेषण करने में प्रभावशीलता हेतु t-मान 0.260 है जो तालिका
सक्षम होते हैं। विद्यार्थियों की शिक्षण में सहभागिता मान 1.98 (0.05 स्तर) व 2.62 (0.01 स्तर) से
बढ़ती है जिससे उनके साथ पाठ्यक्रम व शिक्षण का बहुत कम है। अतः परिकल्पना कि हिदं ी शिक्षक व
सामंजस्य स्थापित करने में आसानी होती है। अतः अग्रें ज़ी शिक्षक की भमि ू का प्रभावशीलता में कोई
अंग्रेज़ी पढ़ाने वाले शिक्षकों की तुलना में, हिदं ी सार्थक अतं र नहीं है, स्वीकृ त होती है और यह कहा
शिक्षण करने वाले शिक्षक अधिक कृ त्य संतोषी जा सकता है कि अध्यापन विषय का शिक्षकों की
होते हैं। अंग्रेज़ी विषय का अध्यापन करने वाले भमिू का प्रभावशीलता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
तालिका 4— भाषा अध्यापन के आधार पर कृत्य सतं ोष व भूमिका प्रभावशीलता से
प्राप्त आँकड़ों के मध्यमान, मानक विचलन व t-मान की गणना
चर समूह मध्यमान मानक N df t-मान
विचलन
कृ त्य संतोष हिदं ी 24.32 5.38 42 98 0.162
अग्रें ज़ी 22.35 5.38 58
भमि
ू का प्रभावशीलता हिदं ी 27.32 6.32 42 98 0.260
अग्रें ज़ी 28.42 6.32 58
माध्यमिक विद्यालयों में भाषा अध्यापन करने वाले अध्यापकों के ‘कृ त्य संतोष’... 57
किंतु सांख्यिकी रूप से t-मान 0.162 तालिका अतः कहा जा सकता है कि भमि ू का प्रभावशीलता
मान 2.62 (0.01 स्तर) से अत्यंत कम है, अतः शनू ्य व कृ त्य संतोष एक-दसू रे के परू क हैं।
परिकल्पना स्वीकृ त की जाती है और यह कथन कि भमि
ू का प्रभावशीलता कार्य की योग्यता
हिदं ी अध्यापन करने वाले शिक्षक अग्रें ज़ी अध्यापन का निर्धारण करता है, जबकि कृ त्य संतोष एक
करने वाले शिक्षकों के कृ त्य सतं ोष में कोई सार्थक भावनात्मक तथ्य है। तालिका 5 से यह सिद्ध
अतं र नहीं है, सत्य है। होता है कि शिक्षक अपनी भमि ू का प्रभावी रूप से
तालिका 4 से स्पष्ट होता है कि भमि ू का निभाता है तो उसे कार्य में संतुष्टि प्राप्त होती है
प्रभावशीलता हेतु t-मान 0.260 है जो तालिका मान और यह कहा जा सकता है कि पर्णू कार्य संतुष्ट
2.262 (0.01 स्तर) से बहुत कम है। अतः शनू ्य शिक्षक अपनी भमि ू का को प्रभावी रूप से निर्वहन
परिकल्पना कि हिदं ी व अग्रें ज़ी शिक्षक की भमिू का करने में सक्षम होता है। भाषा अध्यापन करने वाले
प्रभावशीलता में कोई सार्थक अतं र नहीं है, स्वीकृ त शिक्षकों की कार्य संतुष्टि व भमिू का प्रभावशीलता
की जाती है और यह कहा जा सकता है कि अध्यापन संपूर्ण शैक्षणिक परिदृश्य को प्रभावित करती है,
विषय का शिक्षकों की भमि ू का प्रभावशीलता पर क्योंकि भाषा संप्रेषण का एक महत्वपूर्ण माध्यम
कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। है। भाषा अध्यापन करने वाले शिक्षकों का उचित
पंचम शून्य परिकल्पना— भाषा अध्यापन करने वेतन, प्रोत्साहन की गतिविधियाँ, उनके प्रति
वाले अध्यापकों के कृत्य सतं ोष व ‘भूमिका व्यवहार, उनका मलू ्याकंन, प्रबंधन का उनके प्रति
प्रभावशीलता’ में कोई सार्थक सह-सबं ंध नहीं है सकारात्मक व्यवहार होना आवश्यक है ताकि वह
इस शनू ्य परिकल्पना के सत्यापन हेतु इनके मध्य अधिक कार्य संतुष्ट होकर अपनी भमि ू का प्रभावी
सह-संबंध गणु ांक की गणना की गई। कृ त्य संतोष ढंग से निवर्हन कर सकें ।
व भमि ू का प्रभावशीलता के मध्य सह-सबं ंध गणु ांक शैक्षिक निहितार्थ
तालिका 5 में प्रदर्शित किया गया है। शैक्षिक दृष्टि से इस शोध पत्र में उठाई गई समस्या
तालिका 5 — कृत्य सतं ोष एवं भमू िका
प्रभावशीलता के मध्य सह-सबं धं गण
ु ाक
ं की गणना महत्वपर्णू है। आज यह आवश्यक है कि शिक्षकों के
चर N df r कृ त्य सतं ोष का विभिन्न पहलओ ु ं से अध्ययन किया
जाए, क्योंकि शिक्षक यदि अपने कृ त्य से सतं ष्ट
ु है तो
कृ त्य सतं ोष एवं भमि
ू का 100 99 0.21 वह विद्यालय में अपनी भमि ू का का प्रभावी निष्पादन
प्रभावशीलता
करने में सक्षम होगा। शिक्षक का अपने सहयोगियों
तालिका 5 में सह-सबं ंध गणु ांक का मान 0.01 के साथ व्यवहार, विद्यालय का वातावरण व भाषा
सार्थकता स्तर पर सार्थक है। अतः शनू ्य परिकल्पना सप्रें षण उनके कृ त्य सतं ोष व भमि
ू का प्रभावशीलता
अस्वीकृ त की जाती है। कृ त्य संतोष व भमि ू का को प्रभावित करते हैं। अध्ययन में यह पाया गया है कि
प्रभावशीलता में सार्थक धनात्मक सह-सबं ंध है; कार्य सतं ष्टि
ु व भमि ू का प्रभावशीलता धनात्मक रूप से
58 भारतीय आधिु नक िशक्षा – जनवरी 2020
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ू टी. संपादन में बचु , ऍम. बी. (संपादक). थर्ड सर्वे ऑफ़ रिसर्च इन एजक ु े शन.
रा.शै.अ.प्र.प., नयी दिल्ली.
भाषा एवं ससं ्कृति का अंत:गुंथन और इसके निहितार्थ
के वलानंद काण्डपाल*
प्रत्येक मनषु ्य को आपसी अतं ःक्रिया के लिए भाषा की ज़रूरत होती है। भाषा को बोलने का लहजा, प्रयोग में लाए
जाने वाले प्रतीकों या संकेतों आदि का निर्धारण उस समाज की संस्कृ ति द्वारा किया जाता है। मनषु ्य जाति के मल
ू
विभागों और उनके परस्पर सबं ंधों का विश्लेषण करने वाले विद्वानों तथा समाज-भाषाशास्त्रियों की प्रमख
ु मान्यता
है कि भाषा स्वभाव या आदत है। अगर भाषा आदत है या आदतन सीखी जाती है तो स्पष्टतः उसका संबंध मनषु ्य
के पीढ़ीगत संस्कारों से अवश्य ही होना चाहिए अर्थात् भाषा किसी समाज की संस्कृ ति से उदभ् तू एक व्यवस्था है।
भाषा का एक समाजशास्त्र होता है। इसी प्रकार समाज की एक विशिष्ट संस्कृ ति होती है और संस्कृ ति की अपनी
विशिष्ट भाषा भी होती है। अतः किसी समाज और उसकी ससं ्कृ ति एवं भाषा में जटिल प्रकार का अतं :गथंु न
रहता है। इस लेख में भाषा एवं संस्कृ ति के आपसी अतं :गंथु न को विस्तार से समझाने का प्रयास किया गया है।
भाषा किसी भी समाज की चेतना एवं इस चेतना से है तथा इस प्रकार वह समाज विशेष की चेतना को
निःसृत मलू ्यों को सहजने तथा उन्हें आगे की पीढ़ियों अभिव्यक्त करती है। समाज का संगठन एवं उसकी
में हस्तांतरित करने का एक सशक्त माध्यम होती नींव समाज द्वारा स्वीकृ त मलू ्यों पर निर्भर करती
है। किसी भी समाज की सामाजिक, राजनीतिक, है। मलू ्यों की सरं चना एवं अभिव्यक्ति समाज द्वारा
आर्थिक एवं सांस्कृतिक प्रगति, उस समाज विशेष अपनाई गई भाषा के माध्यम से होती है। मानव
के प्रयासों, आविष्कारों, कौशल विकास एवं मलू ्यों समाज इन मलू ्यों को भाषा के माध्यम से अभिव्यक्त
के आत्मसातीकरण पर निर्भर करती है। इन सभी को करता है और इन मलू ्यों को आधार बनाकर जीवन
लिपिबद्ध करने, संरक्षित करने एवं एक-दसू रे तक जीने का प्रयास करता है। इस प्रकार अपनी भाषा में,
पहुचँ ाने के लिए भाषा की ज़रूरत पड़ती है। भाषा उस समाज विशेष की संस्कृति को प्रस्तुत करता है।
के माध्यम से किसी समाज विशेष के लिए उपयक्ु त भारत की भाषायी विविधता उतनी ही आश्चर्य
ज्ञान, कौशल एवं मलू ्यों को ग्रहण करने की प्रक्रिया चकित करती है; जितना कि इसका सांस्कृतिक
को सरल बनाया जा सकता है। किसी समाज में बहुलवाद। ये दोनों विविधताएँ परस्पर संबद्धता की
भाषा सभी व्यक्तियों को एक विशेष प्रकार से कार्य संगति में विद्यमान हैं, इसलिए भाषायी एवं सांस्कृतिक
करने, बरतने एवं व्यवहार करने के लिए प्रेरित करती विविधता हमारी ताकत है। भारत बहुभाषी देश है।
* प्रधानाध्यापक, राजकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, पडु ् कुनी (कपकोट), बागेश्वर, उत्तराखडं 263642
भाषा एवं संस्कृ ति का अतं :गंथु न और इसके निहितार्थ 61
वर्ष 1971 की जनगणना के अनसु ार, भारत में 1652 को सामाजिक रूप से सगं ठित करने में अहम भमू िका
भाषाओ ं की पहचान की गई थी, जो पाँच विभिन्न निभाई है। भाषा मनषु ्य के विचारों के आदान-प्रदान
भाषा परिवारों के अतं र्गत आती हैं। ‘भाषा’ शब्द की का एक सशक्त माध्यम है, इसके द्वारा मनषु ्य अपने
व्युत्पत्ति ‘भाष’ धातु से हुई है, जिसका सामान्य अर्थविचारों को दसू रों तक पहुचँ ा सकता है और दसू रों के
है ‘बोलना’। जब कोई बच्चा बोलना शरू ु करता है
विचारों को ग्रहण कर सकता है।
तब वह अपने ध्वनि यंत्र का प्रयोग करता है और इस अमेरिकन भाषा-विज्ञानी द्वय ब्लॉक और ट्रेगर
ध्वनि यंत्र का प्रयोग निश्चित रूप से किसी न किसी (1942) ने भाषा को परिभाषित करते हुए लिखा है,
भाषा के संदर्भ में ही किया जाता है। यदि यह प्रयोग “भाषा मनषु ्य की वागेंद्रियों से उत्पन्न यादृच्छिक
किसी भाषा के सदं र्भ में नहीं किया जा रहा है तो वह ध्वनि प्रतीकों की ऐसी व्यवस्था है जिसके द्वारा
कोई ध्वनि तो हो सकती है, परंतु उसे बोलना नहीं एक भाषा समदु ाय के सदस्य परस्पर विचारों का
कहा जा सकता। कोई भी व्यक्ति क्यों बोलता है? या आदान-प्रदान करते हैं।”
उसे बोलने की ज़रूरत क्यों पड़ती है? इसका सहज किसी भी समाज की भाषा वस्तुतः उस समाज
उत्तर यह है कि व्यक्ति अपनी आवश्यकता पर्ति ू के
की संस्कृति को वाचिक रूप से प्रस्तुत करने की एक
लिए बोलता है और यह आवश्यकता किसी विचार, सामाजिक व्यवस्था है। समाज ही अपनी भाषा के
तथ्य, संदश े या भाव के सप्रें षण के क्रम में उत्पन्न
व्यवहार, भाषा के स्वरूप, उसकी उच्चारण संबंधी,
होती है। इसके लिए एक या एक से अधिक श्रोताओ ं व्याकरणिक, अर्थगत एवं लिपिगत सरं चना सबं ंधी
का होना भी ज़रूरी है। ये श्रोता प्रत्यक्ष सामने मौजदू नियमों का निर्धारण करता है। भाषा संबंधी इन
हो सकते हैं या फिर वे हो सकते हैं जो बाद में सनु नियमों का पालन करना उस समाज विशेष के प्रत्येक
रहे होंगे, जिन्हें अप्रत्यक्ष श्रोता कह सकते हैं। किसी
व्यक्ति के लिए अनिवार्य होता है। किसी समाज का
विषय पर किसी विशेषज्ञ के व्याख्यान की रिकॉर्डिंग, प्रभाव क्षेत्र जितना व्यापक होता है, उसकी भाषिक
किसी गायक के गाने की रिकॉर्डिंग आदि इस श्रेणी में क्षमता एवं प्रभावशीलता उतनी ही व्यापक होती है।
रखे जा सकते हैं। आशय यह है कि बोलना/सभं ाषण मानव विकास के इतिहास के अवलोकन से
किसी उद्देश्य या आवश्यकता के क्रम में ही होता हमें ज्ञात होता है कि किसी भी समाज के गठन एवं
है। अतः बोलने वाले (वक्ता) के सामने प्रत्यक्ष या विकास में एक सगु ठित भाषा की अहम भमू िका है।
अप्रत्यक्ष श्रोता/श्रोताओ ं की मौजदू गी होनी चाहिए। वान्द्रियेज (1986) के अनसु ार, “मानव का अधिकार
तािक वक्ता अपनी बात, सदं श े , भाव आदि का भाषा पर न होता तो वह विधि द्वारा नियत जीवन के
संप्रेषण कर सके । इस प्रकार वक्ता एवं श्रोता का इतने महत्वपर्णू ध्येय की पर्ति
ू नहीं कर पाता।” किसी
अनिवार्य संबंध स्थापित होता है। भी समाज की स्थापना में भाषा की भमू िका निस्संदेह
भाषा सर्वोपरि है। भाषा किसी भी समाज के सदस्यों के
आदि मानव से आधनि ु क मानव के विकास की सामाजीकरण की प्रक्रिया एवं एकीकरण का मखु ्य
यात्रा में भाषा एक महत्वपर्णू सेतु है, जिसने मनषु ्य आधार है।
62 भारतीय आधिु नक िशक्षा – जनवरी 2020
किसी समाज को सतत रूप से सुगठित एवं अपनी अस्मिता के प्रति चेतना उत्पन्न करती है। इस
संचालित रहने के लिए ज़रूरी है कि उस समाज के चेतना को किसी भाषा के माध्यम से अभिव्यक्ति
लोग भावनात्मक रूप से नियंत्रित रहें। भावनात्मक मिलती है। थ्योंगे (1994) ने कहा है, “जन समदु ाय
रूप से नियंत्रित होने के लिए यह भी ज़रूरी है की अस्मिता और मानव समदु ाय का सदस्य होने का
कि समाज के लोगों को अपनी भावनाओ ं को विशिष्ट बोध का आधार ये मलू ्य ही हैं और इन सारे
अभिव्यक्त करने के लिए उचित अवसर एवं उचित मलू ्यों के वाहक का काम भाषा करती है।”
माध्यम मिलें और वह माध्यम भाषा है जिसके इस प्रकार से भाषा मानव समदु ाय में विशिष्टता
द्वारा यह अभिव्यक्ति संभव होती है। भाषा के वल का बोध पैदा करने के साथ-साथ समदु ाय के
विचारों की अभिव्यक्ति का साधन भर ही नहीं है, सांस्कृतिक चरित्र का भी प्रतिबिंब प्रस्तुत करती है।
वरन् यह स्वयं में एक कथ्य भी होती है, जिसमें किसी समाज की संस्कृति का एक बहुत बड़ा हिस्सा
किसी समाज का परंपरागत ज्ञान, कौशल, चेतना वह होता है जो समदु ाय के सोचने-विचारने एवं चितं न
एवं मलू ्य भी निर्मित होते हैं तथा संरक्षित होते हैं प्रक्रिया से सबं ंधित होता है। ऐसा इसलिए भी होता है
और पीढ़ियों से उपार्जित ज्ञान, कौशल, चेतना एवं कि वह समाज अपने सांस्कृतिक प्रतिमानों के बारे में
मलू ्य एक विशेष संस्कृति का निर्माण करते हैं। जिसे सदैव सजग रहता है तथा अपने अनभु वों के आलोक
सतत रूप से भावी पीढ़ियों को हस्तांतरित किया में जाँचता-परखता है। इस प्रकार भाषा किसी समाज
जाता है। इस प्रकार भाषा किसी समाज, संस्कृति के मन-मस्तिष्क में चल रही चितं न प्रक्रिया को बाह्य
की निरंतरता एवं परिवर्तनशीलता, दोनों को सहज संसार में प्रस्तुत करने का एक सशक्त माध्यम है।
बनाती है। किसी विशेष समाज में सांस्कृतिक ससं ्कृति
अस्मिता सामहि ू क जीवन को एक अर्थ प्रदान ब्रिटिश मानवशास्त्री टेलर (1871) ने संस्कृ ति को
करती है, अस्मिता देती है। यह अस्मिता सक्रिय परिभाषित करते हुए कहा है कि, “संस्कृति वह जटिल
रूप से उस समाज के सांस्कृतिक प्रतिमानों एवं इकाई है जिसमें ज्ञान, निश्चय, कला, नैतिकता,
आचरणों में अभिव्यक्त होती है। ये सांस्कृतिक काननू , रीति-रिवाज तथा मनषु ्य द्वारा समाज का
प्रतिमान संस्कृति के अभिलक्षण होते हैं, जिनके बारे सदस्य होने के नाते अर्जित बहुत-सी योग्यताएँ तथा
में क्यूलेव (1986) ने कहा है, “आत्मिक संस्कृति आदते हैं।”
अपने में किसी भी मानव समष्टि की सामहि ू क ‘संस्कृति ’ शब्द का सामासिक अर्थ है—
स्मृति में अस्तित्वमान उस सचू ना को द्योतित करती सम+कृ ति, जिसका आशय है कि किसी समाज
है जो पीढ़ी दर पीढ़ी और प्रदर्शन द्वारा प्रेषित होती के सोचने -विचारने, व्यवहार करने, बरतने, जीवन
है और आचरण के कुछ रूपों में निर्धारित होती है।” पद्धति में समरसता और संतल ु न हो, ऐसा कार्य।
किसी समाज विशेष के लोगों की अपने स्थान यह संतल ु न पीढ़ी दर पीढ़ी अनभु वों, अवलोकनों,
एवं विशिष्ट सांस्कृतिक स्थिति के प्रति विशेष परीक्षणों एवं विमर्श के बाद निर्मित होता है। किसी
सजगता होती है। यह सजगता समाज के लोगों में भी समाज का आधार रूप एक भाषा होती है,
भाषा एवं संस्कृ ति का अतं :गंथु न और इसके निहितार्थ 63
बाद इसके मल ू तत्वों में बदलाव करना बहुत आसान भाषा एवं ससं ्कृति का अंत:गुंथन
नहीं होता है अर्थात् समाज के तौर-तरीकों में फौरी भाषा किस स्तर पर संस्कृति को प्रतिबिंबित करती
बदलाव के साथ उस समाज विशेष की संस्कृति में है, यह उस समाज की आतं रिक सामाजिक व्यवस्था
त्वरित बदलाव नहीं आता है, इसमें समय लगता है पर निर्भर करता है। इसमें विद्वान, अकादमिक,
और कई बार बहुत लंबा समय लगता है। वस्तुतः संस्कृतिकर्मी, कला-मर्मज्ञ, व्यापारी, पंजू ीपति,
संस्कृति किसी समाज में गहन रूप में मौजदू रहती है। मज़दरू , किसान, ग्रामीण, फि़ल्म जगत, मीडिया,
यह किसी व्यक्ति विशेष से प्रभावित नहीं होती है। शहरी, ग्रामीण आदि सभी शामिल हैं। ये सभी भाषा
समाज में निरंतर बदलावों के बावजदू संस्कृति का को परिमार्जित एवं परिष्कृ त करते हैं और अपनी
मल ू तत्व शाश्वत बना रहता है। उदाहरण के लिए, ज़रूरत एवं सदं र्भों के अनसु ार भाषा में नए-नए
भारत के कतिपय समाजों में निरंतर बदलावों के आयाम जोड़ते हैं। संस्कृति मनषु ्य के विचारों एवं
बावजदू संस्कृति में कर्म की प्रधानता, संघर्ष, निरंतर व्यवहारों के प्रतिमानों को इगि ं त करती है। इसके
बेहतर रचना/सृजन, जिजीविषा, सर्व-धर्म सम्भाव, अतं र्गत मलू ्य, विश्वास, आचार-संहिता, राजनीतिक
प्रकृ ति से तादात्म्य आदि मल ू भतू तत्व विद्यमान हैं। प्रतिमान और आर्थिक व्यवहार सभी समाहित होते
किसी समाज और उसकी ससं ्कृति के अतं र्निहित सबं धं हैं। इन सभी को अभिव्यक्त करने के लिए किसी भी
की जाँच-पड़ताल की जाए तो इनका साथ चोली-दामन
समाज को एक भाषा की ज़रूरत होती है।
की तरह होता है। इनका एक-दसू रे के बिना सपं र्णू होना
समाज का सगं ठन एवं उसकी नींव समाज द्वारा
सभं व नहीं है। कोई मनषु ्य समाज के बिना नहीं रह सकता।
स्वीकृ त कुछ मलू ्यों पर निर्भर करती है। मलू ्यों की
किसी व्यक्ति को समाज सदस्य के रूप में पर्णू तः
तभी स्वीकार किया जाता है, जब वह उस समाज सरं चना एवं अभिव्यक्ति समाज द्वारा अपनाई गई
विशेष के सासं ्कृतिक नियमों का पालन करता है, भाषा के माध्यम से होती है। मानव समाज इन मलू ्यों
प्रतिबद्धता अभिव्यक्त करता है। व्यक्ति का अधिकतर को भाषा के माध्यम से अभिव्यक्त करता है और इन
समय समाज में ही गज़ु रता है। इसके साथ ही, यह भी मलू ्यों को जीवन में जीने का प्रयास करता है। इस प्रकार
सत्य है कि सासं ्कृतिक बदलाव किसी समाज के किसी समाज द्वारा अपनी भाषा में, उस समाज विशेष
तौर-तरीकों में भी बदलाव लाता है। वह समाज में रहते की ससं ्कृति को प्रस्तुत करने का प्रयास करता रहता है।
हुए समाज में घटित घटनाओ ं के माध्यम से नवीन किसी भाषा के शब्दों में निहित प्रतीकात्मकता
अनभु व प्राप्त करता रहता है और सीखता रहता है। संप्रेषण का आधार बनती है। भाषा की निर्मिति का
समाज के सासं ्कृतिक नियमों एवं परंपराओ ं का पालन रहस्य व्यक्ति द्वारा उच्चारित रूपों की परंपरागत
करता है, इस प्रकार समाज विशेष की ससं ्कृति को अभिव्यक्ति तथा समाज के अन्य सदस्यों द्वारा उसी
ग्रहण करता जाता है। इसी क्रम में समाज से अतं ःक्रिया परंपरागत अर्थ में ग्रहण करने की स्वीकृ ति में निहित
करने के लिए एक भाषा भी इस्तेमाल करता है और होता है। संभवतः इसीलिए भाषा को अर्जित करना
यह भाषा वस्तुतः समाज द्वारा स्वीकार्य भाषा होती है। होता है, यह अर्जन एक महत्वपर्णू सासं ्कृतिक कार्य है।
भाषा एवं संस्कृ ति का अतं :गंथु न और इसके निहितार्थ 65
भाषा एवं ससं ्कृति के मध्य गहरा सबं ंध होता प्रतिमानों एवं मलू ्यों की अभिव्यक्ति भाषा के
है। मोटे तौर पर भाषा को संस्कृति की मौखिक माध्यम से ही हो सकती है।
अभिव्यक्ति के रूप में देखा जा सकता है। सांस्कृतिक •• भाषा एक प्रकार से ससं ्कृति का एक सॉफ़्टवेयर
प्रतिमानों को अभिव्यक्त करने एवं सप्रेषि
ं त करने के है। यदि किसी समाज की ससं ्कृति को समझना है
लिए एक भाषा की ज़रूरत होती है, वरन् समाज तो इस सॉफ़्टवेयर के इस्तेमाल के बिना यह बहुत
किन मलू ्यों पर विश्वास करता है? किस प्रकार दरूु ह हो जाएगा। उदाहरण के लिए, किसी व्यक्ति
सोचता-विचारता है? को अभिव्यक्त करने की से मिलने पर राम-राम कहना, प्रणाम करना या फिर
प्रतीकात्मक प्रणाली भी है। गडु मॉर्निंग कहना आदि व्यक्ति को सामाजिक
अंत:गुंथन के निहितार्थ समष्टि से जोड़ने वाली ससं ्कृति की भाषिक
किसी समाज की भाषा एवं ससं ्कृति का आपसी अभिव्यक्तियाँ हैं। ये अभिव्यक्तियाँ भिन्न-भिन्न
अतं :गथंु न किस प्रकार का है? उस समाज विशेष ससं ्कृतियों की पहचान को दर्शाती हैं।
में इसके गभं ीर शैक्षिक निहितार्थ हैं। समाज को एक •• संस्कृति समाज की अनभु वमल ू क उपलब्धि
सासं ्कृतिक इकाई के रूप में सगं ठित करने में भाषा है। किसी समाज की संस्कृति के तत्वों का उस
की एक अहम भमू िका होती है। हम ऐसे समाज को समाज की शिक्षा के स्वरूप पर गहरा असर
एक परिपर्णू समाज एवं सगु ठित समाज कह सकते पड़ता है। संस्कृति, समाज की पीढ़ियों से
हैं, जिसके जीवन व्यवहार के सपु रिभाषित नियम परिष्कृ त-विकसित जीवन शैली है, शिक्षा उसे
हों, जिसकी एक ससु ्पष्ट ससं ्कृति हो और इन्हें परिमार्जित करने में अहम भमू िका निभाती है।
अभिव्यक्त करने के लिए मान्य एवं स्वीकार्य भाषा शिक्षा वह प्रक्रिया है, जिसके द्वारा कोई बच्चा
हो। किसी समाज में भाषा एवं ससं ्कृति का अतं :गथंु न वयस्क होता हुआ समाज के सामहि ू क जीवन
के निम्नांकित निहितार्थ हो सकते हैं — एवं संस्कृति में प्रवेश करता है। जब किसी
•• भाषा के माध्यम से किसी समाज विशेष के व्यक्ति, व्यक्ति समहू या समाज का मलू ्यांकन
लिए उपयक्ु त ज्ञान, कौशल एवं मलू ्यों को ग्रहण किया जाता है तो उसकी शिक्षा, भाषा एवं
करने की प्रक्रिया को सरल बनाया जा सकता है। सांस्कृतिक मलू ्यों के आलोक में ही यह
भाषा किसी समाज में सभी व्यक्तियों को एक मलू ्यांकन किया जाता है।
विशेष प्रकार से कार्य करने, बरतने एवं व्यवहार •• बच्चे अपने समाज की संस्कृति को ग्रहण करते
करने के लिए प्रेरित करती है और इस प्रकार से हुए बड़े होते हैं, भाषा एवं संस्कृति, बच्चों के
उस समाज विशेष की चेतना को अभिव्यक्त सीखने के तरीकों एवं स्वभाव को निर्धारित
करती है। यह कार्य-व्यवहार, बरतना एवं चेतना करते हैं, बहुत हद तक यह इसी बात से निर्धारित
मिलकर उस समाज की विशिष्ट संस्कृति की होता है कि बच्चा क्या सीखेगा? और किन
निर्मिति करते हैं और उस समाज के सांस्कृतिक बातों को सीखना उसके लिए आसान होगा?
66 भारतीय आधिु नक िशक्षा – जनवरी 2020
किन बातों को सीखने में उसे दवु िधा होगी? नागरिक बन सके । इस भमू िका निर्वहन के
और कहाँ शिक्षक को संवेदनशील प्रयास लिए व्यक्ति का समाजीकरण ज़रूरी होता है।
करने की ज़रूरत पड़ेगी। इसके लिए सबसे अनौपचारिक तौर पर यह परिवार एवं समाज
बड़ी ज़िम्मेदारी शिक्षक की होती है। उदाहरण में जारी रहता है, जिसमें व्यक्ति सामाजिक
के लिए, यदि किसी समाज की संस्कृति अति अपेक्षाओ ं के अनरू ु प अपने व्यवहार को
रूढ़िवादी हो और कतिपय अधं विश्वासों को ढालने का प्रयास करता है, सामाजिक मानकों
मानती है तो ऐसा समाज शिक्षा के द्वारा सिखाए तथा सांस्कृतिक मलू ्यों को आत्मसात करता
गए वैज्ञानिक दृष्टिकोण को आसानी से स्वीकार है। औपचारिक शिक्षा के माध्यम से विद्यार्थी
नहीं करे गा। अतः ऐसी स्थिति में एक शिक्षक में नागरिकोचित व्यवहार हेतु आवश्यक ज्ञान,
को गंभीर प्रयास करने होंगे। कौशल एवं मलू ्यों का बीजारोपण किया जाता
•• संस्कृति एवं शिक्षा के अतं :संबंध में भाषा की है। इस क्रम में शिक्षा उपयोगी सांस्कृतिक मलू ्यों
कें द्रीय भमू िका है। यह एक सर्वमान्य तथ्य है को बढ़ावा देती है और ज़रूरत पड़ने पर इनका
कि यदि बच्चे को शरुु आती वर्षों में उसकी परिमार्जन भी करती है।
मातृभाषा (यह निश्चित ही उसके सांस्कृतिक •• प्रत्येक समाज की ससं ्कृति उस समाज की भाषा
परिवेश की भाषा होगी) में पढ़ने के अवसर दिए को गढ़ने का काम भी करती है। आर्कटिक
जाएँ और इसी भाषा में मार्गदर्शन किया जाए तो प्रदेशों में हिम या बर्फ़ के लिए 100 से अधिक
अपनी रुचि के चनु े हुए विषयों में बच्चा बेहतर शब्द व्यवहार में लाए जाते हैं। इसी प्रकार कृ षि
प्रदर्शन करने में सफल होगा। इसके विपरीत प्रधान समाज, औद्योगिक समाज, व्यापारिक
बच्चे को अपनी मातृभाषा में यह अवसर न देकर समाज, कला एवं मनोरंजन कार्य में रत समाज
अन्य भाषा (वर्तमान संदर्भों में आगं ्ल भाषा) में आवश्यकतानसु ार शब्द गढ़ते हैं, भाषा रचते हैं।
पढ़ने-लिखने का उपक्रम किया जाए तो बच्चे अलग-अलग समाजों की संस्कृतियाँ अपनी
की ऊर्जा विषय को सीखने के बजाय, इस परिवेशीय आवश्यकताओ ं के अनरू ु प शब्द
नई भाषा को सीखने-समझने में लग जाएगी। गढ़ती हैं और एक विशेष भाषा को अपनाती
सोचना-विचारना, समझना मखु ्यतः किसी हैं। शिक्षा उपक्रम में इनकी उपेक्षा नहीं की जा
सासं ्कृतिक सदं र्भ में ही होता है और उसी भाषा में सकती है। शिक्षा में बच्चे के द्वारा ज्ञान निर्माण
होता है जो बच्चे के सासं ्कृतिक परिवेश की हो। में इसकी विशेष भमू िका होती है।
•• शिक्षा, व्यक्ति की मल ू भतू क्षमताओ ं को •• सरं चनावाद की सामाजिक सरं चनावाद शाखा
उच्चतम स्तर तक विकसित करने के लिए के समर्थक विद्यार्थी, भाषाई एवं सासं ्कृतिक
अवसर उपलब्ध करने का औपचारिक उपक्रम सदं र्भों पर बहुत ज़ोर देते हैं। इनका मानना है कि
है, जिससे वह समाज का जि़म्मेदार एवं उपयोगी विद्यार्थी अपने सामाजिक एवं सासं ्कृतिक सदं र्भों
भाषा एवं संस्कृ ति का अतं :गंथु न और इसके निहितार्थ 67
में ज्ञान की रचना बेहतर ढगं से कर सकते हैं और जो किसी पद या सत्ता प्राप्त करने में सहायक
ऐसा ज्ञान विद्यार्थी के लिए अर्थपर्णू भी होता है। मानी जाती है। समाज में किसी ऐसी भाषा का
जिस भाषा का प्रयोग विद्यार्थी अभी तक करता आग्रह, जिसको सत्ता, प्रभतु ्व एवं संसाधनों तक
आया है, उसी भाषा में सीखना विद्यार्थी के लिए पहुचँ के आधार पर स्थानिक भाषा के ऊपर
सहज होता है। सीखने या ज्ञान निर्माण के क्रम में, तरजीह दी जाती है, समाज में भाषिक क्षमता
अपनी ससं ्कृति के सदं र्भ में जाँच-पड़ताल करते के आधार पर उसका स्तरीकरण होता है। यह
हुए, विद्यार्थी ज्ञान की रचना करता है। कोई ऐसी स्तरीकरण स्थानीय भाषा, विद्यालयी भाषा एवं
भाषा जो विद्यार्थी के तात्कालिक परिवेश से नहीं आग्रह की भाषा (भारतीय संदर्भों में आगं ्ल
जड़ु ी है, विद्यार्थी के ज्ञान निर्माण की प्रक्रिया को भाषा) के आधार पर होता है। इसका असर
बाधित करती है। विद्यालयों तक पहुचँ ता है। भारत में किसी भाषा
•• हमारे देश में, भाषा के व्यावहारिक परिप्रेक्ष्य विशेष के प्रति बढ़ते आग्रह के कारण आगं ्ल
में देखा जाए तो प्रिंट एवं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया भाषा में शिक्षा का दावा करने वाले विद्यालयों
द्वारा लगभग 87 भाषाएँ व्यवहार में लाई जाती के बहुत सारे स्तर मौजदू हैं। ये विद्यालय समाज
हैं (आर. पार्थसारथी, 1989), प्रशासनिक स्तर के मनोविज्ञान का हित दोहन अपने पक्ष में
पर 13 भाषाओ ं में काम होता है, विद्यालयों बखबू ी करते हैं। भाषा को समाज में प्रगति का
में बच्चे लगभग 47 भाषाएँ लेकर आते हैं, आधार मानने का यह मनोविज्ञान भाषाई आधार
(जे. डी. गप्ता
ु , 1970)। यह हमारे देश की पर भेदभाव की सरं चना करता है। भाषा किसी
भाषाई विविधता को प्रदर्शित करती है, परंतु यह भी संस्कृति की अनगु ामिनी, सहगामिनी होनी
भी एक वास्तविकता है कि किसी एक भाषा चाहिए, परंतु जब भाषा अग्रगामी भमू िका में
के प्रति आग्रह के कारण भाषाई विविधता के आ जाती है तो एक अलग किस्म के सामाजिक
महत्वपर्णू संसाधन की निरंतर उपेक्षा होती है। भेदभाव की संरचना करती है और भाषा की
विद्यालयों में तो यह उपेक्षा अपने चरम पर रहती सत्ता स्थापित होने लगती है।
है। किसी भी विद्यालय, संस्थान या प्रशासनिक •• एक ऐसी भाषा जो उस समाज के सांस्कृतिक
अभिकरण में यह व्यवहार व्यक्ति में अपनी परिवेश का प्रतिनिधित्व नहीं करती है, किसी
भाषा के प्रति हीनताबोध पैदा करता है और भी समाज में संस्कृति का निर्धारक बनने
यह हीनताबोध अपनी संस्कृति तक पहुचँ ता है। लगती है तो उस समाज की संस्कृति में एक
वस्तुतः कोई भी ससं ्कृति अपने समकालीन रूप विशेष प्रकार का विद्रूपीकरण पैदा करती है।
में बेहतर ही होती है। किसी परंपरागत समाज (एेथनिक सोसाइटी)
•• किसी समाज की अपनी भाषा को समृद्ध करने में विभिन्न उत्सवों, समारोहों एवं आयोजनों में
के बजाय उस भाषा के प्रति आग्रह बढ़ रहा है इसे साफ़-साफ़ महससू कर सकते हैं। भारतीय
68 भारतीय आधिु नक िशक्षा – जनवरी 2020
सदं र्भों में अवलोकन करने पर हम महससू कर ससं ्कृति के मल ू में यह तत्व गहराई से मौजदू भी
सकते हैं कि हम आगं ्ल भाषा के प्रति विशेष रहते हैं। भाषा इसे उद्घाटित करके समरस समाज की
आग्रह के कारण आगं ्ल भाषी समाज के अनरू ु प भाव-भमू ि निर्मित कर सकती है।
रहन-सहन, तौर-तरीके अपनाने की कोशिश में, समाज, भाषा एवं संस्कृति में अत्यंत गहरा
संस्कृति के मल ू तत्वों से छे ड़-छाड़ का प्रयास संबंध है। समाज के संघर्ष, सुख-दःु ख, पीड़ा, मलू ्य,
करते हैं, परंपरागत संस्कृति को पिछड़ेपन का उत्साह, अवसाद को उसकी संस्कृति में महसूस
प्रतीक मानने लगते हैं तथा आगं ्ल भाषा व्यवहार किया जा सकता है और भाषा इन्हें शब्द देती है।
को आधनि ु कता मानते हैं। इससे किसी विशेष संस्कृति की आइसबर्ग अवधारणा के अनुसार,
ससं ्कृति के प्रति हीनताबोध पैदा किया जाता है। ‘जिस तरह पानी में तैरते हुए आइसबर्ग के पानी की
यह किसी भी समाज की संस्कृति के लिए बहुत सतह से दिखाई देने वाले ऊपरी हिस्से की तुलना
घातक है। किसी भी समाज की भाषा समचू े में पानी में डूबा हुआ हिस्सा बड़ा होता है, जो कि
समाज की सामहि ू क संपत्ति होती है, जिसका नज़र नहीं आता है।’ उसी प्रकार ऊपरी तौर पर
सृजन किसी एक समहू के नियंत्रण में नहीं होता। किसी भी संस्कृति के जो हिस्से नज़र आते हैं, वे
भाषा बहते पानी की तरह है, जिस पर समाज खान-पान, पहनावा, आचार-व्यवहार हैं, लेकिन
के सभी व्यक्तियों का समान अधिकार है, परंतु संस्कृति के जो अहम हिस्से नज़र नहीं आते हैं, वे
इसके प्रवाह को नियंत्रित एवं प्रभावित करने का मलू ्य, परम्पराएँ, विश्वास, मान्यताएँ आदि हैं। इन्हें
अधिकार किसी व्यक्ति/समहू को नहीं दिया जा जानने-समझने के लिए उस समाज से अंतःक्रिया
सकता है। करके समझने की ज़रूरत होती है, इसके लिए भाषा
निष्कर्ष में हम कह सकते हैं कि कोई भी समाज माध्यम बनती है और यह उस समाज की अपनी
संस्कृति को अपने जीवन में जीता है और भाषा को विशेष भाषा होती है।
अपने व्यवहार में बरतता है। भाषा किसी समाज भाषा किसी समाज विशेष की संस्कृति को
की ससं ्कृति को सरं क्षित करने, आगे की पीढ़ियों समझने में खिड़की की तरह होती है जो सामाजिक
तक पहुचँ ाने का महत्वपर्णू साधन है। भाषा एक सवं ाद में अहम भमू िका निभाती है। इसका एक
साधन है, संस्कृति एक साध्य है। किसी भी समाज सरलीकृ त उदाहरण लिया जा सकता है, जैसे—
की समरसता के लिए आवश्यक है कि समाज के हमारे समाज में किसी को संबोधित करते समय
सदस्यों में तादात्म्य हो, विविधता का सम्मान औपचारिकता बरती जाती है तो अधिकतर
हो, आपसी सम्मान हो, किसी भी आधार पर ‘आप’ शब्द का इस्तेमाल किया जाता है, जबकि
कोई भेदभाव न हो, भाषाई विभेद न हो, संस्कृति अनौपचारिक संबोधन में ‘तमु ’ और कई बार तो ‘त’ू
के मल ू तत्वों की व्यापक समझ हो और इनकी का भी इस्तेमाल साधारण बात है। इस अनौपचारिक
जाँच-पड़ताल का साहस हो। वस्तुतः किसी भी सबं ोधन में किसी व्यक्ति की गरिमा का अपमान
भाषा एवं संस्कृ ति का अतं :गंथु न और इसके निहितार्थ 69
न होकर बहुधा स्नेहतिरे क या प्रेमातिरे क भी हो बदलाव होने पर कुछ हद तक ससं ्कृति भी स्वयं को
सकता है। इसका ठीक-ठीक अदं ाज़ा प्रतीकात्मक समायोजित करती रहती है। परिवार में किसी बच्चे
भाषिक व्यवहार से ही हो सकता है। मानव समाज को जन्मदिन की शभु कामनाओ ं की अभिव्यक्ति
के जीवनयापन के तौर-तरीके संस्कृति का एक में, भाषा में ‘हैप्पी बर्थडे’ जड़ु ता है तो साथ-साथ
अहम हिस्सा हैं, वहीं इनकी अभिव्यक्ति के लिए ‘बर्थडे के क’ और इससे सबं ंधित सभी प्रक्रियाएँ
किसी माध्यम की ज़रूरत होती है और इस ज़रूरत भी पीछे -पीछे आ जाती हैं। इसी प्रकार, कुछ नए
को भाषा परू ा करती है। समाज और उसकी संस्कृति तौर-तरीके जड़ु ते हैं तो इनके लिए ज़रूरी शब्द या
से सामजं स्य बिठाने के लिए मानवीय आवश्यकता शब्दावलियाँ भी भाषा में जड़ु ती जाती हैं। इस प्रकार
की खोज भाषा है। ससं ्कृति में बदलाव होने पर भी से किसी समाज की भाषा और ससं ्कृति का आपस
बदलाव आता रहता है, वहीं भाषाई व्यवहार में में अतं र्गंथु न चलता रहता है।
सदं र्भ
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गाँधीजी और हिंदी भाषा
रमेश तिवारी*
यह हम सबके लिए हर्ष और गर्व का विषय है कि हमारा देश महात्मा गाँधीजी की 150वीं जयंती मना रहा है।
गाँधीजी ने इस देश की स्वाधीनता और अभिव्यक्ति के माध्यम के रूप में भाषा पर लगातार काम किया है।
उल्लेखनीय है कि ऐसे अनेक प्रयासों के परिणामस्वरूप देश को अग्ं रेज़ी हुकूमत से स्वाधीनता तो सन् 1947 में
प्राप्त हो गई, किंतु भाषा के रूप में हिदं ी को उसका अपेक्षित स्थान आज तक प्राप्त नहीं हो सका है। बीसवीं सदी
के इतिहास में यह तथ्य उल्लेखनीय है कि दनि ु या को सर्वाधिक प्रभावित करने वाले भारतीय महापरुु षों के बारे
में जब भी अध्ययन-विश्लेषण किया जाएगा तो उसमें मोहनदास करमचदं गाँधी का नाम सर्वोपरि होगा। गाँधीजी
बहुआयामी प्रतिभा के धनी थे। गाँधीजी के जीवन, लेखन और आचरण से देश का प्रत्येक व्यक्ति प्रभावित है। इस
लेख में गाँधीजी और उनकी भाषा संबंधी मान्यताओ ं पर विचार-विमर्श प्रस्तुत किया गया है।
हमारा देश भारत बहुभाषी, बहुसासं ्कृ तिक और सदा मातृभाषा को सर्वोपरि मानते रहे। सन् 1915 में,
बहुजातीय देश ह।ै यह विविधता ही भारत की विशेषता जब वे दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटे, तो उन्होंने परू े
और पहचान ह।ै हालाँकि, इसके कारण कभी-कभी देश की यात्रा की और यह पाया कि हिदं ी ही एकमात्र
चनु ौतियाँ और समस्याएँ भी उत्पन्न होती हैं। इस देश भाषा है जो देश के अधिकतर भागों में बोली और
की बहुभाषिकता से उत्पन्न समस्या के बारे में गाँधीजी समझी जाती है। वास्तव में, गाँधीजी ने दक्षिण अफ्रीका
के विचार बड़े स्पष्ट, व्यावहारिक और राष्ट्र-सापेक्ष में ही हिदं ी की शक्ति और महत्ता को पहचान लिया
हैं। देश की स्वतत्रं ता के लिए गाँधीजी राष्ट्रीय एकता था। इसलिए उन्होंने 1906 में, इडं ियन ओपिनियन
पर बल देते थे। राष्ट्रीय एकता के लिए उन्होंने एक नामक अपनी पत्रिका में, इस भाषा के महत्व पर चर्चा
ऐसी सपं र्क भाषा की आवश्यकता समझी, जिसके करते हुए इसे मीठी, नम्र और ओजस्वी भाषा कहा
अध्ययन से समचू े राष्ट्र को एक सत्रू में जोड़ा जा सके । था। देश को स्वाधीनता के लिए प्रेरित करने के क्रम में
यह सर्वविदित है कि गाँधीजी की मातृभाषा गजु राती गाँधीजी समस्त भारतवर्ष में भ्रमण करते और लोगों
थी। फिर भी जब-जब राष्ट्र को एकजटु करने के लिए से जड़ु ते थे। उत्तर से दक्षिण और परू ब से पश्चिम तक
किसी एक भारतीय भाषा का सवाल सामने आया अपने भ्रमण के दौरान उन्होंने हिदं ी की व्यापकता को
तो गाँधीजी सदैव हिदं ी के पक्ष में खड़े रहे। साथ ही गहराई से समझा था। भारत की स्वतत्रं ता के लिए
जब-जब शिक्षा के माध्यम का सवाल आया, गाँधीजी उन्होंने सिर्फ़ जन-जागरण अभियान ही नहीं चलाया,
*64 बी, फे स - II, डी.डी.ए. फ्लैट, कटवारिया सराय, नयी दिल्ली 110016
गाँधीजी और हिदं ी भाषा 71
अपित ु हिदं ी को राष्ट्रभाषा के रूप में स्थापित करने में भारत के उन प्रांतों में पाँच ‘हिदं ी दतू ’ भेजे, जहाँ पर
भी अग्रणी भमि ू का निभाई थी। भारत आने के बाद इस भाषा का ज़्यादा प्रचलन नहीं था। इन पाँच दतू ों
जब 1917 में गाँधीजी ने अपनी पहली सत्याग्रह यात्रा में महात्मा गाँधी के सबसे छोटे बेटे देवदास गाँधी
चम्पारण से आरंभ की तो इसी दौरान 3 जनू को उन्होंने भी एक थे। ये पाँच हिदं ी दतू हिदं ी के प्रचार के लिए
एक परिपत्र निकाला, जिसमें हिदं ी की महत्ता के सदर्भ ं सबसे पहले तत्कालीन मद्रास स्टेट पहुचँ ,े जो आज
में लिखा था —“हिदं ी जल्दी से जल्दी अग्रें ज़ी का का तमिलनाडु है। गाँधीजी दरू -द्रष्टा थे और स्पष्ट
स्थान ले ले, यह ईश्वरी सक ं े त जान पड़ता ह।ै हिदं ी वक्ता भी। हिदं ी भाषा को राष्ट्रभाषा बनाने के पीछे
शिक्षित वर्गों के बीच समान माध्यम ही नहीं, बल्कि उनकी स्पष्ट मान्यता थी, “राष्ट्रभाषा के बिना राष्ट्र
जनसाधारण के हृदय तक पहुचं ने का द्वार बन सकती गगंू ा है।” एक सपं र्क भाषा के अभाव में किसी भी देश
है। इस दिशा में कोई देसी भाषा इसकी समानता नहीं की राजनीतिक और सांस्कृ तिक एकता न तो संभव है
कर सकती। अगं ज़ी े तो कदापि नहीं कर सकती।” और न ही स्थायी हो सकती है। गाँधीजी ने राष्ट्रहित में
गाँधीजी की संवेदनशीलता बहुत गहरी और बड़ी ही समझदारी और दरदर्शित ू ा दिखाते हुए भाषा
दृष्टि अत्यंत दरदर्
ू शी थी। वह जहाँ जाते, वहीं लोगों के प्रश्न को स्वराज के प्रश्न से जोड़ दिया और सिर्फ़
से बड़ी ही गर्मजोशी और गहराई से जड़ु ते। उनसे जोड़ ही नहीं दिया, बल्कि आजीवन इस बात पर ज़ोर
संवाद कर उन्हें अपना बना लेते और उनके बन जाते। देते रहे कि हिदं सु ्तान को सचमचु एक राष्ट्र बनाना है
लोगों से जड़ु ने का गाँधीजी का तरीका भी अनोखा तो राष्ट्रभाषा ही आधिकारिक हिदं ी हो सकती है।
था। यह विश्वास करना मश्किल ु है कि लोगों से स्वाधीनता प्राप्ति के बाद हमें उम्मीद थी कि हिदं ी
जड़ु ने और उनके दःु ख-दर्द को करीब से समझने के को राष्ट्रभाषा का गौरव प्रदान करने की दिशा में हम
उद्देश्य से अपने जीवन की अधिकांश यात्राएँ गाँधीजी आगे बढ़ेंगे। किंतु तत्कालीन राजनीतिक नेतृत्व की
ने तीसरे दर्जे में की। इससे उन्हें भारत के जनसामान्य अदरदर्शित
ू ा और दर्भाु ग्यवश हिदं ी को आज तक यह
से संपर्क करने का परू ा अवसर मिला सम्मान प्राप्त नहीं हो सका है और तो और, जब भी
सन् 1918 में, महात्मा गाँधीजी ने इदं ौर के हिदं ी को राष्ट्रव्यापी स्तर पर स्वीकृति देने-दिलाने की
हिदं ी साहित्य सम्मेलन में कहा था —“जैसे ब्रिटिश दिशा में प्रयास किए जाते हैं, तब अनावश्यक रूप
अग्रें ज़ी में बोलते हैं और सारे कामों में अग्रें ज़ी का ही से कुछ छुटभैये राजनेता और अग्रें ज़ीदाँ समाज के
प्रयोग करते हैं, वैसे ही मैं सभी से प्रार्थना करता हूँ प्रतिनिधि, हिदं ी को अन्य भारतीय भाषाओ ं के लिए
कि हिदं ी को राष्ट्रीय भाषा का सम्मान अदा करें । इसे खतरा बताते हुए, हिदं ी-विरोध का ढोल पीटने लगते
राष्ट्रीय भाषा बनाकर हमें अपने कर्तव्य को निभाना हैं। ऐसी किसी भी साज़िश को किसी भी दृष्टि से
चाहिए।” हिदं ी को राष्ट्रभाषा बनाने के प्रति गाँधीजी उचित और राष्ट्रहितकारी नहीं कहा जा सकता है।
के वल कथनी के स्तर पर ही नहीं, बल्कि करनी के हम देखते हैं कि सदु रू दक्षिण में जब हिदं ी
स्तर पर भी उतने ही समर्पित थे। इसी समय उन्होंने भाषा के प्रचार-प्रसार के लिए महात्मा गाँधी द्वारा
72 भारतीय आधिु नक िशक्षा – जनवरी 2020
‘दक्षिण भारत हिदं ी प्रचार सभा’ की स्थापना की गई तो सभी भारतीय भाषाओ ं के प्रति उनके मन में विशिष्ट
गाँधीजी ने अपने बेटे देवदास गाँधी को खशु ी-खशु ी सम्मान भावना थी। प्रत्येक व्यक्ति अपनी मातृभाषा में
हिदं ी के प्रचार-प्रसार की ज़िम्मेदारी देकर दक्षिण भारत शिक्षा प्राप्त करे , उसमें कार्य करे किंतु देश में सर्वाधिक
भेजा। भाषा, समाज, ससं ्कृ ति के लिए ऐसा समर्पण ही बोली जाने वाली हिदं ी भाषा भी वह सीखे, यह उनकी
गाँधीजी को विराट व्यक्तित्व का स्वामी बना देता ह।ै हार्दिक इच्छा थी।” इस सदर्भ ं से यह परू ी तरह स्पष्ट है
अकारण गाँधीजी नहीं कहते हैं कि मेरा जीवन ही मेरा कि गाँधीजी सभी भारतीय भाषाओ ं को समान रूप से
सदं शे ह।ै गाँधीजी जो सोचते थे, वही कहते और करते महत्व देते हुए राष्ट्रीय स्तर पर, जब राष्ट्रभाषा का प्रश्न
थे। जीवन, लेखन और आचरण में व्याप्त यह साम्य आता था तो उसके लिए वे हिदं ी भाषा को सर्वश्रेष्ठ
ही गाँधीजी को महात्मा के रूप में हम सबके समक्ष मानते थे। गाँधीजी का मन-मस्तिष्क हिदं ी को लेकर
स्थापित करता ह।ै सदैव जागरूक रहता था। उनके लिए हिदं ी एक भाषा
गाँधीजी की मान्यता थी कि अगर स्वराज्य या सप्ं षरे ण का माध्यम मात्र न होकर राष्ट्रीयता का
अग्रें ज़ी बोलने वाले भारतीयों का और उन्हीं के लिए प्रतीक थी। उनकी मान्यता थी कि सबसे बड़ी समाज
होने वाला हो तो नि:सदं हे अग्रें ज़ी ही राष्ट्रभाषा होगी। सेवा यह है कि हम सब अपनी देशी भाषाओ ं की तरफ़
लेकिन अगर स्वराज्य करोड़ों भख ू े मरने वालों, निरक्षर, मड़ु ें और भारत की सभी भाषाओ ं का आदर करते हुए
दलितों और अन्त्यजों का है और उन सब के लिए होने
हिदं ी को राष्ट्रभाषा के पद पर प्रतिष्ठित करें । आज
वाला हो तो हिदं ी ही एकमात्र राष्ट्रभाषा हो सकती
हिदं ी भाषा की राष्ट्रव्यापी स्वीकृति के सवाल पर अन्य
है। हिदं ी का निर्माण राष्ट्र के अनसु ार ही हुआ है और
भारतीय भाषाओ ं के ठे केदारों को यह बात समझने की
यह वर्षों से ही राष्ट्रभाषा की भाँति व्यवहृत हो चक ु ी
ज़रूरत है कि गाँधीजी ने हिदं ी को राष्ट्रव्यापी स्वीकृति
है। “अखिल भारत के परस्पर व्यवहार के लिए ऐसी
भाषा की आवश्यकता है जिसे जनता का अधिकतम के साथ-साथ भारत की सभी देशी भाषाओ ं के आदर
भाग पहले से ही जानता-समझता है और हिदं ी इस की बात भी कही थी। वे हिदं ी के ज़रिए अन्य भारतीय
दृष्टि से सर्वश्ष्रे ठ ह।ै ” गाँधीजी के सपनों के भारत की भाषाओ ं को दबाना नहीं चाहते थे, बल्कि उनके साथ
जो तसवीर थी, उसमें एक सपना राष्ट्रभाषा के रूप में हिदं ी को भी मिला देना चाहते थे। यदि उनकी इस बात
हिदं ी को प्रतिष्ठित करने का भी था। उनकी मान्यता को हम सही आशय और दिशा के साथ समझने में
थी कि राष्ट्रभाषा के बिना राष्ट्र गगँू ा हो जाता ह।ै सफल हो गए, तो हिदं ी का विरोध करने की मश ं ा ही
इसलिए राष्ट्रभाषा का सवाल हमारे राष्ट्र की अस्मिता नहीं रहेगी। गाँधीजी ऐसा किस आधार पर कह पा रहे
का सवाल ह।ै राष्ट्रभाषा के रूप में हिदं ी को राष्ट्रीय थे? इसे समझने के लिए हमें गाँधीजी की एक अन्य
पहचान दिलाने में, गाँधीजी का योगदान अनपु म और विशेषता को समझना होगा।
अनक ु रणीय रहा ह।ै यहाँ यह स्मरण रखना चाहिए गाँधीजी की वह अन्य विशेषता यह थी कि
कि, “महात्मा गाँधी की मातृभाषा गजु राती थी और किसी बात को सार्वजानिक जीवन में सामने रखने से
उन्हें अग्रें ज़ी भाषा का उच्चकोटि का ज्ञान था, किंतु पर्वू वे उसे अपने अनभु व और व्यवहार की कसौटी
गाँधीजी और हिदं ी भाषा 73
पर परखते थे। हिदं ी को राष्ट्रभाषा क्यों बनाया जाए, एक ही ज़बान के सचू क हैं, जिसे उत्तर भारत में
राष्ट्रभाषा का स्वरूप क्या हो, राष्ट्रभाषा के गणु क्या हिन्दू-मसु लमान बोलते हैं, जो देवनागरी या अरबी-फ़ारसी
हों आदि बिंदओ ु ं पर उनका चितं न-मनन निरंतर जारी लिपि में लिखी जाती है। इस बारे में उन्होंने यह भी
रहता था। भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के दौरान स्पष्ट किया कि हिदं ी देवनागरी लिपि में लिखी
एक ऐसा कालखंड भी आया, जब तत्कालीन जाती है और उर्दू अरबी-फ़ारसी लिपि में लिखी
अंग्रेज़ी हुकूमत ने ‘फूट डालो और राज करो’ जाती है, किंतु इन दोनों भाषा-रूपों का मौखिक रूप
की नीति अपनाते हुए, हिन्दू-मसु लमानों के बीच हिन्दुस्तानी है, जिसे सभी वर्ग बोलते हैं। वे जानते
भाषा आधारित वैमनस्य को बढ़ावा देने की कुटिल थे कि हिन्दुस्तानी का सझु ाव देने से दोनों वर्गों में
चाल चली। गाँधीजी ने ब्रिटिश हुकूमत की इस अलगाव और अविश्वास की भावना दरू होगी,
चाल को समय रहते समझते हुए, हिदं ी के स्थान इसीलिए उन्होंने एक बात और कही कि असली
पर हिन्दुस्तानी शब्द का प्रयोग आरंभ कर दिया। प्रतिस्पर्धा तो हिदं ी और उर्दू में नहीं, बल्कि हिन्दुस्तानी
“हिदं ी-उर्दू-हिन्दुस्तानी संबंधी लेख में गाँधीजी ने और अग्रें ज़ी में है। आज़ादी के 72 वर्षों का यथार्थ
हरिजन सेवक (3 जुलाई 1937, 17 जुलाई 1937, यह है कि आज भी गाँधीजी का हिदं ी को लेकर देखा
29 अक्तूबर 1938, 8 फ़रवरी 1942) के विभिन्न गया सपना साकार होना बाकी है। भारतीय जनमानस
अंकों में हिदं ी, उर्दू और हिन्दुस्तानी के विवाद के हित में हमें शासन, न्यायपालिका, चिकित्सा,
पर अपनी लेखनी चलाई थी और वे बाद में इसी सचू ना-प्रौद्योगिकी, प्रबंधन के क्षेत्र में हिदं सु ्तानी को
समस्या पर अपने विचार प्रस्तुत करते रहे।” इस दौर और अधिक विस्तार देने की आवश्यकता है। इन
में हिदं ी-उर्दू विवाद को उभारने में अंग्रेज़ी हुकूमत प्रयासों के द्वारा ही हम गाँधीजी के सपनों का भारत
की भी बड़ी भमि ू का थी। उस समय एक वर्ग हिदं ी बनाने में सफलता हासिल कर पाएँगे।
का प्रबल समर्थक था और उसे श्रेष्ठ मानता था। दक्षिण भारत हिदं ी प्रचार सभा की स्थापना
जबकि दसू रा वर्ग उर्दू को श्ष्रे ठ मानता था। इस विवाद सन् 1918 में हुई। सन् 1936 में, वर्धा में राष्ट्रभाषा
से गाँधीजी काफ़ी आहत थे, क्योंकि उन्हें यह आशक ं ा प्रचार समिति की स्थापना द्वारा हिदं ी के राष्ट्रव्यापी
थी कि यह विवाद भारत के स्वतत्रं ता-सग्रा ं म में बाधक विस्तार की दिशा में जो दरदर् ू शी प्रयास गाँधीजी ने
हो सकता है।” किए, उसका परिणाम हम सबके सामने ह।ै हिदं ी
वास्तव में, अपने इन विचारों के द्वारा गाँधीजी के प्रति गाँधीजी का समर्पण ऐसा था कि वे तमाम
सबको यह बताना चाहते थे कि हिन्दुस्तानी की समकालीन हस्तियों को अपना भाषण हिदं ी में
ताकत, उसकी जीवंतता, ग्रहणशीलता, आत्मीयता देने के लिए प्रेरित करते थे। इस संदर्भ में टैगोर ने
और संवाद में है। गाँधीजी हिन्दुस्तानी को एक संस्मरण में लिखा है कि जब उन्हें एक बार
ु म एकता की एक मज़बतू कड़ी भी मानते
हिन्दू-मस्लि गुजरात में व्याख्यान देने के लिए आमंत्रित किया
थे। उन्होंने दोनों वर्गों की गलतफ़हमी दरू करने के गया तो उन्होंने गाँधीजी से पछ ू ा कि वे किस भाषा
लिए कहा कि हिदं ी, उर्दू और हिन्दुस्तानी शब्द उस में व्याख्यान दें? जवाब में गाँधीजी ने कहा कि,
74 भारतीय आधिु नक िशक्षा – जनवरी 2020
‘जैसी भी हिदं ी आती हो, उसी हिदं ी में।’ उनके इस के व्यक्तित्व को देखकर 2 अक्तूबर, 1944 को
सुझाव से प्रेरित होकर टैगोर ने हिदं ी में ही व्याख्यान आइन्स्टाइन ने गाँधीजी के जन्मदिवस पर अपने सदं श े
दिया। आगे चलकर हिदं ी में दिए गए उस व्याख्यान में लिखा कि, “आनेवाली नस्लें शायद मश्किल ु से ही
को टैगोर ने अपने जीवन के अविस्मरणीय अनुभवों विश्वास करें गी कि हाड़-मासं से बना हुआ कोई ऐसा
में गिना। इसी तरह एक राष्ट्रभाषा सम्मेलन में व्यक्ति भी धरती पर चलता-फिरता था।” गाँधीजी को
लोकमान्य तिलक द्वारा अपना भाषण अंग्रेज़ी में महात्मा और राष्ट्रपिता के रूप में स्वीकार करने वाला
दिए जाने पर गाँधीजी ने कहा था, “बस इसलिए भारत देश आजीवन उनका ॠणी रहेगा।
मैं कहता हूँ कि हिदं ी सीखने की आवश्यकता है।” उपर्युक्त समस्त बिंदओ ु ं पर चितं न-मनन के
इसके बाद लोकमान्य तिलक ने गाँधीजी के हिदं ी उपरांत निष्कर्ष के रूप में यह उल्लेख करना उचित
भाषा संबंधी सझु ाव पर अमल करते हुए अपना होगा कि गाँधीजी के भाषा संबंधी विचारों को
व्याख्यान हिदं ी में देना शरूु किया। अपनाकर ही हम आज हिदं ी को उसका अपेक्षित
स्वतत्रं ता आदं ोलन के लगभग सभी नेताओ ं स्थान दिला सकते हैं। हमें गाँधीजी के जीवन और
ने गाँधीजी के विचारों का अनसु रण करते हुए, हिदं ी आचरण से निरंतर बहुत कुछ सीखने की आवश्यकता
सीखने और हिदं ी को अपने जीवन-व्यवहार में बढ़ावा है। आज के बाज़ारवादी सर्वग्रासी वातावरण में
देने का निरंतर प्रयास किया। गाँधीजी का समय चारों ओर जो अशांति, हिसं ा और प्रदर्शन के सहारे
और व्यक्तित्व कितना प्रेरक था कि एक गजु राती गलाकाट प्रतिस्पर्धा है, उसका निदान गाँधी-मार्ग में
दसू रे बगं ाली, मराठी, या अन्य किसी भाषा-भाषी से है। हिदं ी भाषा की सेवा के द्वारा राष्ट्र को मज़बतू ी
राष्ट्रहित के लिए यदि हिदं ी को अपनाने का सझु ाव प्रदान करने के साथ-साथ गाँधीजी के बताए रास्ते
देता था तो बिना किसी विवाद के उसके सझु ाव को पर चलकर हम समाज में शांति, भाईचारा, समता,
उसके कालखडं के दिग्गज भी स्वीकार कर लेते थे सरक्षा
ु की भावना का विकास कर सकते हैं। इन सभी
लेकिन आज जब हिदं ी की बात की जाती है तो अन्य लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए हमारी भाषा एक महत्वपर्णू
भाषा-भाषी समाज के कुछ लोग उसे शक की निगाह भमि ू का निभाएगी। भाषा ही किसी समाज और
से देखने लगते हैं। राष्ट्र और राष्ट्रहित गौण हो जाता ससं ्कृ ति का आईना है। भाषा के सरं क्षण और सवं र्धन
है, स्थानीयता-प्रांतीयता से जड़ु ी अस्मिता हावी हो की ज़िम्मेदारी हम हिन्दुस्तानियों की है। राष्ट्रभाषा के
जाती ह।ै विभाजनकारी राजनीति शरूु हो जाती ह।ै रूप में गाँधीजी द्वारा हिदं ी की उपयक्तत
ु ा के संदश े
अग्रें ज़ जाते-जाते हमें बाँटो और राज करो की नीति को हमें अपने जीवन में आत्मसात करना होगा। परस्पर
सिखा गए थे। अग्रेज़ ं ों के जाने के 72 वर्षों बाद भी विश्वास करना और विश्वास जीतना होगा। यही हमारे
हमने इस नीति को अपने ही लोगों को बरगलाने हित में है, हमारे समाज और राष्ट्र का भी इसी में भला
का माध्यम बना लिया ह।ै गाँधीजी के कालखडं में ह।ै गाँधीजी के प्रति अपनी सच्ची श्रद्धांजलि एवं उन्हें
परस्पर भाईचारा तथा भरोसा कायम था। गाँधीजी निरंतर स्मरण रखने का यही सर्वोत्तम मार्ग भी है।
गाँधीजी और हिदं ी भाषा 75
सदं र्भ
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deshbandhu.co.in/vichar/hindi-according-to-gandhiji-77525-2 से लिया गया है.
गाँधी का हिदं ी प्रेम. भारत-दर्शन. 17 दिसंबर, 2019 को https://www.bharatdarshan.co.nz/lit-collection/
literature/339/gandhis-hindi-love.html से लिया गया है.
माध्यमिक विद्यालय के शिक्षकों की
भाषा दक्षता के विकास में स्मार्ट फ़ोन
लता*
अनु जी. एस.**
पी.डी. सभु ाष***
वर्तमान डिजिटल यगु में शिक्षा परिवर्तन के दौर से गज़ु र रही है, जिसमें शिक्षार्थी को उच्च स्तर पर पारंपरिक
दृष्टिकोण आधारित अधिगम के स्थान पर स्वयं नियंत्रित और अधिक लचीले प्रारूप की आवश्यकता प्रतीत हो
रही है। अधिगम के वल कक्षा-कक्ष तक ही सीमित नहीं रह गया है। आज का शिक्षार्थी और माध्यमिक विद्यालयों
के शिक्षक, सचू ना एवं संचार प्रौद्योगिकी (आई.सी.टी.) के माध्यम से स्वयं अधिगम करते हुए अपनी कई शैक्षिक
समस्याओ ं का समाधान कर सकते हैं। आज के शिक्षार्थी हिदं ी भाषा में अशद्ु धियाँ कर रहे हैं, जिसका मखु ्य कारण
शिक्षकों में शद्ध
ु भाषा शिक्षण में असमर्थता का पाया जाना है। शिक्षण के इस स्तर पर शिक्षक अपनी भाषा में शद्ध ु
वर्तनी लाने के लिए एम-लर्निंग (मोबाइल-लर्निंग) के उपयोग से ‘कहीं भी तथा कभी भी लर्निंग’ का लाभ प्राप्त
कर सकता है। इस लेख में माध्यमिक विद्यालयों के शिक्षकों की भाषा दक्षता एवं योग्यता के विकास में स्मार्टफ़ोन
के प्रयोग पर अध्ययन दिया गया है। इसके साथ ही आज के इस तकनीकी दौर में, शद्ध ु भाषा के रूप में सीखने के
लिए एक ऐसे मॉडल की आवश्यकता को दर्शाया गया है, जिसके माध्यम से स्व-अधिगम के लिए स्मार्टफ़ोन को
समस्या-समाधान उपकरण के रूप में प्रयक्ु त कर, वर्तनी संबंधी समस्याओ ं के निदान एवं उपचार को प्रोत्साहित
किया जा सकता है।
से सिखाने का कार्य विद्यालय में भाषा शिक्षण के पाने की प्रक्रिया का महत्वपरू ्ण रूप भी है। इस प्रकार,
माध्यम से किया जाता है, जहाँ भाषा संबंधित ज्ञान भाषा-शिक्षण द्वारा विद्यार्थी भाषा के कौशल —
को समृद्ध करने के लिए क्रिया पक्ष को प्रधानता देते श्रवण, वाचन, पठन, लेखन आदि से अवगत
हुए, विद्यार्थियों को शद्धु भाषा प्रयोग का अभ्यास होना चाहिए।
करवाया जाता है। माध्यमिक विद्यालयों में भाषा अधिगम
भाषा अधिगम की प्रक्रिया नियमों एवं व्याकरण की स्थिति
पर आधारित होती है, जो व्याकरणिक नियमों की आज का यगु विकास का यगु है, जिसमें विद्यार्थी
सहायता से सिखाई जाती है। भाषा के अध्ययन के नई-नई तकनीकों के प्रयोग से अपने ज्ञान में वृद्धि कर
लिए बच्चे की अर्जित भाषा का प्रयोग किया जाता रहे हैं। यह तकनीकें हमें बदलते समय एवं परिस्थितियों
है तथा समय-समय पर नियमों का स्मरण करवाने के के अनरू ु प मिल रही हैं। पहले विद्यार्थी के वल
लिए वास्तविक उदाहरणों का संकेत दिया जाता है। कक्षा-कक्ष में शिक्षक एवं पसु ्तकों तक ही सीमित था;
भाषा अधिगम के लिए भिन्न-भिन्न शिक्षण विधियों जबकि आज का शिक्षार्थी नवीन तकनीकों का प्रयोग
का प्रयोग भी किया जाता है, जिसके आधार पर कर अपनी समस्याओ ं का समाधान कर सकता है।
विद्यार्थियों को भाषा के मौखिक एवं लिखित रूप से आज भी यदि हम विद्यालयों में जाएँ तो हमें
अवगत करवाते हुए, उनकी रचना शक्ति को बढ़ाने कक्षा में कई ऐसे विद्यार्थी मिलेंगे जो प्रारंभिक भाषिक
का प्रयत्न किया जाता है। ज्ञान में काफ़ी पिछड़े हुए हैं। कई विद्यार्थी अक्षरों,
राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरे खा 2005 में, भाषा शब्दों और वाक्यों को पढ़ने में असमर्थ हैं। अध्ययनों
के महत्व को दर्शाते हुए कहा गया है कि भाषा की से पता चला है कि विद्यार्थी विद्यालयी शिक्षा के
शिक्षा को मात्र एक स्कू ली विषय के रूप में नहीं दौरान भाषा के बनि ु यादी कौशल नहीं सीख पा रहे हैं।
देखा जाए, बल्कि विद्यार्थी के समग्र विकास के रूप प्रारंभिक एवं माध्यमिक शिक्षा में अधिगम उपलब्धि
में देखा जाए। विद्यार्थी का भाषा पर अधिकार शिक्षा के निम्न स्तर के कई कारण हो सकते हैं, जैसे—
का सबसे महत्वपरू ्ण पहलू है। भाषा के माध्यम से भाषा की अज्ञानता, शारीरिक दोष, प्रादेशिकता या
ही शिक्षा के अन्य विषयों, जैसे— विज्ञान, गणित, उचित मार्गदर्शन की कमी। अज्ञानता शद्ध ु व्याकरण
सामाजिक विज्ञान आदि में भी विद्यार्थियों की की जानकारी के अभाव में होती है। जबकि विद्यार्थी
पहुचँ मज़बतू होती है। भाषा ही बच्चे को विचार की भाषा विकास संबंधी अक्षमता भाषिक विकास
करने, निर्णय लेने, तर्क देने में सक्षम बनाती है। में बाधक बनती है। प्रदेश विशेष की भाषा का प्रभाव
भाषा ही विद्यार्थी में समझ विकसित करने का प्रमख ु भी विद्यार्थी को मखु ्य भाषा के शद्ध ु प्रयोग में बाधक
आधार होती है। यह विद्यार्थी के दृष्टिकोण, रुचियों, बनाता है, जो अत्यधिक एवं लगातार अभ्यास से
क्षमताओ ं तथा मलू ्यों व मनोवृत्तियों को आकार देती सधु ारा जा सकता है। अगला कारण उचित एवं शद्धु
है। भाषा मात्र साधन नहीं है, बल्कि अर्थ को समझ मार्गदर्शन की कमी है अर्थात् प्रारंभिक एवं माध्यमिक
78 भारतीय आधिु नक िशक्षा – जनवरी 2020
स्तर के शिक्षकों में भाषिक अशद्धु ता एवं उचित निर्देशन शिक्षा आयोग (1964–66) ने सुझाव दिया
की कमी का होना। यदि विद्यार्थी को शद्धु मार्गदर्शन था कि सेवारत शिक्षकों के प्रशिक्षण का आयोजन
न मिले तो विद्यार्थी शिक्षक के आदर्श वाचन को ही विश्वविद्यालयों और शिक्षक संगठनों द्वारा किया
शद्धु मान लेता है जो विद्यार्थी के ज्ञान प्राप्ति के मार्ग जाना चाहिए और हर पाँच वर्ष में इस तरह के
में अवरोधक सिद्ध होता है। मानव ससं ाधन विकास कार्यक्रम में हर शिक्षक को दो-तीन महीने बिताने
मत्रा
ं लय, राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान, 2009 चाहिए। यह कार्यक्रम अनुसंधान के आँकड़ों के
में कहा गया है कि, “शिक्षक विद्यार्थियों की क्षमता आधार पर निर्धारित होने चाहिए और प्रशिक्षण
पहचान कर उनका मार्गदर्शन करें।” सही मार्गदर्शन संस्थानों को वर्ष भर सेमिनार, कार्यशालाएँ, रिफ्रेशर
विद्यार्थी में रुचि जाग्रत करता है, आगे बढ़ाता है और कोर्स, ग्रीष्मकालीन इसं ्टीट्यटू आयोजित करने
उन्हें ऊँचाइयों पर ले जाता है। शिक्षक के शद्धु भाषा चाहिए। शिक्षकों पर राष्ट्रीय आयोग (1983–85)
प्रयोग द्वारा ही विद्यार्थियों को शद्धु भाषा के प्रयोग के ने शिक्षक कें द्रों का विचार सामने रखा जो एक
लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है। मिलन मंच की तरह हो, जहाँ शिक्षक एकत्रित
शिक्षकों की शद्ध ु भाषिक क्षमता के विकास का होकर अपने-अपने अनुभवों पर विचार-विमर्श
कार्य शिक्षक-प्रशिक्षण काल में, शद्ध ु भाषा प्रशिक्षण करें । आचार्य राममर्तिू समीक्षा समिति (1990)
द्वारा तथा सेवारत शिक्षकों को समय-समय पर विभिन्न ने संस्तुति दी कि रिफ्रेशर कोर्स आदि शिक्षकों
कार्यशालाओ,ं सेमिनारों एवं पनु श्चर्या पाठ्यक्रम के की विशेष आवश्यकताओ ं से जोड़ दिए जाएँ
माध्यम से ज्ञान एवं जानकारी से अवगत करवाकर और मलू ्यांकन और उसके बाद फ़ॉलोअप की
किया जा सकता है। विद्यालयी शिक्षा में गणु ात्मक गतिविधियाँ भी इस योजना का हिस्सा बनें।
सधु ार के लिए आवश्यक है कि शिक्षकों का लगातार राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरे खा 2005 के अनुसार
शैक्षिक समृद्धिकरण हो ताकि वे प्राप्त जानकारी एवं सेवा-पूर्व शिक्षण और सेवाकालीन प्रशिक्षण के
सामग्री अध्ययन-अध्यापन की प्रक्रिया में महत्वपरू ्ण दौरान शिक्षकों का पर्याप्त अभिमख ु ीकरण हो
भमि ू का अदा कर सकें । साथ ही माध्यमिक स्तर के और ऐसी क्षमता का विकास हो कि वे पाठ्यचर्या
विद्यार्थियों के भाषिक दायरे और वैचारिक समृद्धि को रूपरे खा की चनु ौतियों को समझें तथा उनका
विकसित करने की आवश्यकता है ताकि वे भाषिक सामना कर सकें । सेवाकालीन प्रशिक्षण विशेष रूप
रूप से इतना सक्षम हो जाएँ कि हिदं ी उनके विमर्श से शिक्षकों के कक्षानुभवों के संदर्भ में होने चाहिए
और ज्ञान-विज्ञान की भाषा बन सके । भाषा के शद्ध ु (राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरे खा 2005)।
ज्ञान एवं भाषा सबं धं ी समस्याओ ं के समाधान के इस प्रकार की अनश ु सं ा होने पर भी शिक्षकों
लिए प्रभावी शिक्षकों की व्यवस्था होनी चाहिए जो के लिए समय-समय पर सेवाकालीन प्रशिक्षण की
स्वयं अधिगम के आधार पर अपने भाषिक ज्ञान को कमी को अनभु व किया गया है। जिस प्रकार बदलते
समय-समय पर निखार सकें । समय के साथ वातावरण और स्थितियों में परिवर्तन
माध्यमिक विद्यालय के शिक्षकों की भाषा दक्षता के विकास में स्मार्टफ़ोन 79
होता रहा है, समाज में शिक्षकों एवं विद्यार्थियों की शैक्षिक प्रक्रिया है, जिसमें समय और स्थान के आयामों
भमिू का में भी परिवर्तन हुआ है तथा इन परिवर्तनों का शिक्षण एवं अधिगम में कोई हस्तक्पषे नहीं होता है।
के आधार पर विद्यार्थियों की माँग में भी बदलाव यह एक ऐसा व्यापक क्त्रषे है जो सचू ना के सचं ालन
हुआ है। उसी प्रकार शिक्षण के क्षेत्र में भी नवीन की योग्यता सहित सचं ार के विभिन्न माध्यमों, जैस— े
तकनीकों का विकास हुआ है। बदलते समय के साथ रेडियो, मोबाईल फ़ोन, टेलीविजन, कम्प्यूटर, हार्डवेयर
नई तकनीकों ने अधिगम के प्रारूप में भी परिवर्तन और सॉफ़्टवेयर तथा इटं रनेट नेटवर्क की सेवाओ ं और
कर दिया है। आज का विद्यार्थी और शिक्षक समय उनके प्रयोग द्वारा सचू ना के प्रसारण में भी सहायक है।”
की माँग के अनसु ार के वल कक्षा-कक्ष एवं प्रशिक्षण सचं ार अगर आज के दौर की आवश्यकता है तो
पर ही निर्भर नहीं रह सकता है; वह स्वयं अधिगम के निश्चित तौर पर सचू ना हर व्यक्ति का अधिकार है।
आधार पर अपने आप को अद्यतित (अपडेट) करना शिक्षा के क्षेत्र में इस तकनीकी की महत्वपरू ्ण भमि
ू का
चाहता है जो आई.सी.टी. आधारित स्मार्टफ़ोन द्वारा रही है। शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया में इसके माध्यम से
सभं व है। स्व-अधिगम के लिए एम-लर्निंग अर्थात् शिक्षार्थी एवं शिक्षक, दोनों ही सचू नाओ ं को एकत्र
मोबाइल-अधिगम एक महत्वपरू ्ण एवं लाभप्रद यकु ्ति है। करने के विभिन्न स्रोतों, भडं ारित करने के विभिन्न
सच
ू ना एवं सच
ं ार प्रौद्योगिकी माध्यमों तथा सप्रेषि ं त करने की विभिन्न तकनीकों
वर्तमान समय में सचू ना एवं सचं ार प्रौद्योगिकी से अवगत होने में समर्थ होंग।े शिक्षक इन तकनीकों
(आई.सी.टी.) सचू ना क्रांति के रूप में मानव जीवन का प्रयोग कर अपने शिक्षण कार्य को प्रभावी बनाने
के हर क्षेत्र में समावेश कर चकु ा है। यह शिक्षा प्रक्रिया के लिए आवश्यक सचू नाओ ं को सग्रं हित कर सकता
के सभी स्तरों एवं पक्षों को प्रभावित कर रहा है। है। यह माध्यमिक एवं उच्च स्तर के विद्यार्थियों की
शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया, दरू स्थ शिक्षा, मक्तु शिक्षा, रचनात्मक एवं सृजनात्मक चितं न की क्षमताओ ं को
प्रशिक्षण, कार्यक्रम निर्माण योजना, प्रश्न पत्र निर्माण, विकसित करने में भी सहायक है। आज के तकनीकी
परीक्षा परिणाम तथा मलू ्यांकन प्रक्रिया आदि में सचं ालित डिजिटल यगु में शिक्षा परिवर्तन के दौर
इसकी स्पष्ट छाप देखने को मिलती है। इस तकनीक से गज़ु र रही है, जिसमें शिक्षार्थी को उच्च स्तर पर
का सबं धं वैज्ञानिक तकनीकी के उन सभी साधनों से है पारंपरिक दृष्टिकोण आधारित अधिगम के स्थान
जिनके माध्यम से त्वरित गति से सचू नाओ ं का उचित पर स्वयं नियत्रि ं त और अधिक लचीले प्रारूप की
आदान-प्रदान सभं व होता है। किसी तथ्य या सचू ना आवश्यकता प्रतीत हो रही है। अधिगम के वल
को जानना एवं उसे उसी रूप में हस्तांतरित करना कक्षा-कक्ष तक ही सीमित नहीं रहा है। शिक्षार्थी
ही सचू ना एवं सचं ार प्रौद्योगिकी है। पीटर (2014) और शिक्षक, दोनों ही आई.सी.टी. के माध्यम से
के अनसु ार, “सचू ना तकनीकी ज्ञान, कौशल तथा स्वयं अधिगम करते हुए अपनी कई समस्याओ ं का
अभिवृति प्रदान करने की एक नवीन तथा उभरती हुई समाधान कर सकते हैं। 1993 की यशपाल समिति
विशिष्ट आवश्यकताओ ं की पर्ति ू करने वाली एक की रिपोर्ट, ‘शिक्षा बिना बोझ के ’ में कहा गया है कि
80 भारतीय आधिु नक िशक्षा – जनवरी 2020
‘इन शिक्षक-शिक्षा कार्यक्रमों में इस बात पर ज़ोर दिया उपकरणों के व्यापक उपयोग ने पारंपरिक शिक्षण
जाना चाहिए कि प्रशिक्ओ षु ं में स्वय-ं अधिगम और विधि और अधिगम प्रक्रिया को बदल दिया है
स्वतत्रं -चिन्तन का विकास हो सके ।’ इसके साथ ही (कुकुलस्का-हमे, 2009)। इन मोबाइल उपकरणों
राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा 2005 के अनसु ार, की सहायता से लोग अपनी समस्याओ ं के समाधान
‘शिक्षा कार्यक्रमों की पहुचँ को बढ़ाने में, व्यवस्था के के लिए तत्पर हो रहे हैं। भाषा शिक्षण के क्षेत्र में भी
प्रबधं न में और शिक्षा सबं धं ी विशिष्ट आवश्यकताओ ं यह उपकरण महत्वपरू ्ण भमि ू का निभा रहे हैं। मोबाइल
की पर्ति ू करने में तकनीकी का विवेकपरू ्ण उपयोग ऐप्लीके शन (ऐप) के माध्यम से हिदं ी व अग्रेज़ी
ं भाषा
सराहनीय हो सकता है।’ इलेक्ट्रोनिक-अधिगम अर्थात् के शिक्षण का कार्य और भी आसान हो रहा है।
ई-लर्निंग के रूप में विद्यार्थी विभिन्न तकनीकी साधनों इटं रनेट की सवु िधा के कारण कई सारी
के समहू का प्रयोग कर अपने अधिगम के स्तर का ऐप्लीके शन भाषा शिक्षार्थियों को स्वयं भाषा
विस्तार करते हुए उसे अधिक प्रभावी बनाता है। यह अधिगम करते हुए, अपनी भाषा संबंधी अशद्धि ु यों
तकनीकी ज्ञान शिक्षार्थियों और शिक्षकों को शिक्षण एवं समस्याओ ं को दरू करने के लिए प्रेरित कर रही
परिसर के भीतर और बाहर, कभी भी एवं कहीं भी हैं, जो इटं रनेट ब्राउसर की सहायता से नि:शलु ्क एवं
अपनी सवु िधानसु ार अध्ययन करने हेतु प्रोत्साहित शलु ्क का भगु तान कर, स्मार्टफ़ोन पर आसानी से
करती है। उपलब्ध हो जाती हैं। भाषिक अशद्ध ु ता का उपचार
भारत एक बहुसांस्कृतिक एवं बहुभाषिकता करने के लिए उच्च स्तर की शिक्षा के शिक्षार्थी
वाला देश है। अतः कोई भी शिक्षक भाषा शिक्षण मोबाइल उपकरणों का प्रयोग कर स्वयं ही समस्या
के दौरान प्रदेश की प्रादेशिक भाषा के प्रभाव को का समाधान खोजने के लिए विभिन्न हिदं ी भाषा
नकार नहीं सकता है और उसे भाषा के मानक रूप अधिगम सबं ंधी ऐप्लीके शन की सहायता ले सकते
का अनसु रण करना होगा जिसे वह विद्यालय में हैं। मोबाइल उपकरणों की विशेषताएँ— सवा ु ह्यता
विद्यार्थियों को उनकी भाषा सहित भाषा के मानक (कहीं भी ले जाना) एवं अभिगम्यता (पहुचँ ) भाषा
रूप से परिचित करवाएगा। इसके लिए वह स्मार्टफ़ोन शिक्षण और अधिगम की वृद्धि में प्रमख ु भमि ू का
सहायक भाषा अधिगम का प्रयोग कर सकता है। निभाती हैं (हुसैन और क्रोंजे, 2010)। इन उपकरणों
भाषा अधिगम में समस्याओ ं के उपचार के की सवा ु ह्यता तथा अभिगम्यता के आधार पर
लिए स्मार्ट फ़ोन की भूमिका अधिगम सामग्री को आसानी से ग्रहण किया जा
वर्तमान समय में स्मार्टफ़ोन प्रौद्योगिकी अत्यधिक सकता है। इस प्रकार, विभिन्न प्रकार की ऐप्लीके शन
प्रचलित प्रौद्योगिकी है जो शिक्षा के क्षेत्र में नवीन के विकास और सचं ालन से भाषा अधिगम को सरल
क्रांति लेकर उभरी है। अधिगम के क्षेत्र में स्मार्टफ़ोन बनाने का प्रयत्न किया जा रहा है। स्मार्टफ़ोन उपकरण
उपकरणों के प्रति आकर्षण बढ़ता जा रहा है। सभी के पास उपलब्ध होने के कारण यह ‘कहीं भी
स्मार्टफ़ोन एवं विभिन्न परिवहनीय और वाई-फ़ाई तथा कभी भी लर्निंग’ की अवधारणा को दर्शाता है।
माध्यमिक विद्यालय के शिक्षकों की भाषा दक्षता के विकास में स्मार्टफ़ोन 81
इटं रनेट की आसान पहुचँ एवं उपलब्धता के साथ, •• साधन/रूपात्मकता (मॉडेलिटी)— इटं रनेट
लोगों द्वारा बातचीत एवं जानकारी का आदान-प्रदान एक बहु-साधन अधिगम उपकरण है जो कई
मोबिलिटी या एक स्थान से दसू रे स्थान तक स्वतंत्र प्रकार की ग्रहणशील सज्ं ञान सबं ंधी जानकारी
रूप में स्थानांतरित करने की क्षमता के आधार पर, उपलब्ध करवाते हुए शिक्षार्थी के भाषिक ज्ञान
इन उपकरणों का उपयोग काफ़ी सराहनीय है। अर्जन में सहायक है।
•• विशिष्टता (स्पेसिफ़िसिटी)— इट ं रनेट की
स्मार्टफ़ोन द्वारा उपलब्ध अधिगम की
निम्नलिखित विशेषताएँ हैं— सवु िधा भाषा अधिगम प्रेरक शिक्षार्थियों को यह
स्वतंत्रता देती है कि वह क्या और किसके साथ
•• अभिगम्यता (एक्सेस)— इट ं रनेट के माध्यम सीखना चाहते हैं। शिक्षार्थी अपनी आवश्यकता
से स्मार्टफ़ोन द्वारा ऑनलाइन अधिगम शिक्षार्थी
और उपकरण या ऐप्लीके शन की विशिष्टता के
को आसानी से भाषा अधिगम सामग्री तक
आधार पर उसे चनु कर अधिगम के लिए प्रयक्त ु
पहुचँ ाता है।
कर सकता है।
•• लचीलापन (फ़्लेक्सिबिलिटी)— स्मार्टफ़ोन
•• मूल्य (कॉस्ट)— इट ं रनेट के माध्यम से
द्वारा भाषा अधिगम की व्यवस्था में समय एवं उपलब्ध ऐप्लीके शन सॅाफ़्टवेयर आर्थिक रूप
स्थान की बाध्यता नहीं होती। शिक्षार्थी इटं रनेट से एक किफ़ायती साधन है जो किसी भी समय
की सहायता से कभी भी तथा कहीं भी अधिगम तथा कहीं पर भी आवश्यकता महससू करने पर
संबंधी कार्य में संलग्न हो सकते हैं तथा अपनी विस्तृत पहुचँ के आधार पर प्रयक्तु किया जा
भाषा संबंधी त्रुटियों का निवारण कर सकते हैं। सकता है।
•• प्रतिक्रिया (रिस्पॉन्स)— स्मार्टफ़ोन में
इस प्रकार, संक्षेप में यह कहा जा सकता है
शिक्षार्थी को तरु ं त प्रतिपष्ु टि प्राप्त होने की परू ्ण कि स्मार्टफ़ोन भाषा अधिगम में महत्वपरू ्ण भमि ू का
सभं ावना होती है जो शिक्षार्थी के अनभु वात्मक
निभाता है, जो एक शिक्षक और शिक्षार्थी को
अधिगम को बढ़ाने में सहायक है।
•• दोहराव (रिपीटे बिलिटी)— स्मार्टफ़ोन की
अभिगम्यता, लचीलापन, प्रतिक्रियात्मकता,
सहायता से शिक्षार्थी समस्यात्मक पाठों का दोहराव क्षमता, स्थायित्व, विशिष्टता एवं मलू ्यपरक
पनु ः दोहराव कर भाषा में प्रवीणता प्राप्त करने विशेषताओ ं एवं विस्तृत सामग्री उपलब्ध करवाते हुए
तक प्रयत्न कर सकता है। सहयोगात्मक लेखन एवं अधिगम को सक्षम बनाता
•• स्थिरता एवं स्थायित्व (ड्यरू ेबिलिटी)— है। स्मार्टफ़ोन माध्यमिक स्तर पर भाषा अधिगम
स्मार्टफ़ोन में इटं रनेट की सवु िधा सप्ताह के सातों के पाठ्यक्रम को सगु म बनाने तथा प्रामाणिक एवं
दिन एवं 24 घटं े उपलब्ध होने से अधिगम का रचनात्मक सप्रें षण का निर्माण करने में शिक्षक को
यह प्रारूप शिक्षार्थी के लिए स्थिर एवं स्थायी रूप सहयोग प्रदान करता है।
से सहायक सिद्ध होता है। हर समय एवं हर स्थिति मोबाइल अधिगम अर्थात् एम-लर्निंग ‘लर्निंग
में इस सवु िधा के उपलब्ध रहने से भाषा अधिगम ऑन द मवू ’ के सिद्धांत पर आधारित एक प्रभावी
के लिए शिक्षार्थियों को प्रेरणा मिलती है। शैक्षिक माध्यम के रूप में उभरकर सामने आया है।
82 भारतीय आधिु नक िशक्षा – जनवरी 2020
इसमें इटं रनेट एक सक्रिय भमि ू का निभा रहा है। तथा स्मार्टफ़ोन सहायक भाषा अधिगम (स्मार्टफ़ोन
इटं रनेट का सवु िधापर्वू क एक्सेस होने के कारण असिस्टेड लैंग्वेज लर्निंग— एस.पी.ए.एल.एल.)
मोबाइल डिवाइसेस लोगों को शिक्षा के क्षेत्र में का विकास एवं प्रयोग होता दिखाई दे रहा है।
अधिगम से जोड़ने में अधिक सफल हुए हैं। आज एम-लर्निंग स्वयं अधिगम, स्वतंत्र अधिगम,
के दौर में शिक्षा विभिन्न माध्यमों से साधारण औपचारिक व अनौपचारिक अधिगम, मोबाइल
जनता तक पहुचँ ी है। ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म पर उपकरणों की सर्वव्यापकता तथा अतं र्क्रि याशीलता
शिक्षा प्रेमी व्यक्तियों के लिए वीडियो लेक्चर, (परस्पर सहयोगी) आदि के साथ शिक्षकों की
शब्द-चित्र एवं लिखित सामग्री जैसी सवु िधाएँ विश्व भमि
ू का को कुशल बनाता है।
के कोने-कोने पर उपलब्ध हो रही हैं। वैज्ञानिकों,
सबं ंधित साहित्य का पुनरवलोकन
विशेषज्ञों, शिक्षार्थियों और रिसर्च स्कॉलरों के लिए
शिक्षा के क्षेत्र में भाषा अधिगम के लिए स्मार्टफ़ोन
ऑनलाइन सर्विसेस और ऐप्लीके शन के माध्यम से
को एक माध्यम के रूप में प्रयक्त ु करने वाले कुछ
डाटा एक्सेस व डाटा एनालिसिस की प्रक्रिया और
अध्ययन किए गए हैं, जो स्मार्टफ़ोन को शिक्षण एवं
भी आसान हो गई है। नए स्मार्ट जी.पी.एस. आधारित
स्मार्टफ़ोन ऐप्लीके शन, ई-जर्नल, वेब-लेक्चर, अधिगम के लिए सकारात्मक परिणाम देने में उचित
वर्चुअल कॉन्फ्रें स, मोबाइल-कोलेबरे शन टूल्स और यकु ्ति मानते हैं, जिनमें हाश्मी, अजिजेंजाद, नजाकी
एम-लर्निंग जैसे शब्द इस मोबाइल तकनीकी की और नेसरी (2011) ने अपने सयं क्त ु शोध पत्र “व्हाट
वजह से ही सनु ाई दे रहे हैं। “एम-लर्निंग शिक्षार्थी इज़ मोबाइल लर्निंग? चेलजि ें स एडं के पेबिलिटीज़” में
ु मता पर आधारित है; यह भाषा अधिगम के
की बद्धि मोबाइल लर्निंग, उसके उपयोग, विभिन्न तकनीक एवं
लिए उचित स्थान व समय के प्रयोग पर आधारित है, उपकरण, उसकी उपलब्धता, महत्व तथा हानियों का
जिसका निर्णय शिक्षार्थी के हाथों में निहित होता है” वर्णन करते हुए यह दर्शाया है कि सचू ना एवं सचं ार
(कुकुल्सका-हमे, 2009)। प्रौद्योगिकी के ससं ार में, मोबाइल अधिगम सबसे
आज के समय में भाषा सीखने में मोबाइल महत्वपरू ्ण एवं उपयोगी उपकरण है, जो आज के यवा ु
प्रौद्योगिकी तथा मोबाइल ऐप्लीके शन (ऐप्स) वर्ग में भाषा अधिगम के लिए आवश्यक सामग्री की
एक अनिवार्य अगं के रूप में हैं। अधिगम में इनके सवु िधा प्रदान करता है।
उपयोग की पद्धति को एम-लर्निंग अर्थात् मोबाइल लिस, तोही और कुक (2015) ने अपने
लर्निंग कहा जाता है। जो स्वतंत्र व सक्रिय अधिगम शोध पत्र “स्मार्टफ़ोन असिस्टेड लैंग्वेज लर्निंग एडं
को बढ़ावा देते हुए शैक्षिक संस्थानों में अत्यधिक ऑटोनोमी” में विद्यार्थियों में भाषा अधिगम में
प्रयक्त
ु हो रही है। इस क्षेत्र में कंप्यूटर सहायक भाषा स्मार्टफ़ोन के उपयोग के प्रभाव को दर्शाया है। इस
अधिगम (कंप्यूटर असिस्टेंड लैंग्वेज लर्निंग— शोध में इन्होंने एक प्रयोग किया जिसमें विद्यार्थियों के
सी.ए.एल.एल.), मोबाइल सहायक भाषा अधिगम एक समहू को भाषा अधिगम में स्मार्टफ़ोन के प्रयोग
(मोबाइल असिस्टेड लैंग्वेज लर्निंग— एम.ए.एल.एल.) के लिए निर्देशित किया गया; जबकि दसू रे समहू को
माध्यमिक विद्यालय के शिक्षकों की भाषा दक्षता के विकास में स्मार्टफ़ोन 83
स्मार्टफ़ोन से वचि ं त रखा गया। निष्कर्षतः स्मार्टफ़ोन इटं रनेट एवं स्मार्टफ़ोन के प्रयोग द्वारा विद्यार्थियों
सहायक भाषा अधिगम (एस.पी.ए.एल.एल.) के प्रयोग की रुचि एवं दृष्टिकोण के आधार पर प्रभावी
के लिए प्रोत्साहित विद्यार्थी स्वयं अधिगम में अच्छे अधिगम को दर्शाया है। इसमें अंग्रेज़ी के शिक्षकों
परिणाम प्राप्त कर सकते हैं। एवं विद्यार्थियों, दोनों के लिए अध्ययन सामग्री एवं
स्टोक्वेल और ली (2015) के शोध पत्र शिक्षण प्रविधि के चनु ाव में सहायता मिलती है।
“एगं जिे गं इन मोबाइल फ़ोन-बेस्ड एक्टिविटी फ़ॉर इन उपकरणों के प्रयोग से शिक्षक तथा विद्यार्थी,
लर्निंग वोके बल ु री — एन इन्वेस्टीगेशन इन जापान दोनों ही अधिक सक्रिय एवं क्रियाशील बनते हैं
एडं ताइवान” में यह दर्शाया गया कि जापान और तथा उनमें आलोचनात्मक शक्ति का भी विकास
ताइवान के शिक्षार्थियों द्वारा भाषा अधिगम के लिए होता है।
डेस्कटॉप आधारित कंप्यूटर गतिविधियों के बजाय गोडविन-जोंस (2017) ने अपने शोध पत्र
मोबाइल फ़ोन आधारित गतिविधियों को अधिक “स्मार्टफ़ोन एडं लैंग्वेज लर्निंग” में भाषा अधिगम
मात्रा में प्रयक्त
ु किया गया। इस पत्र में इन्होंने मोबाइल और साक्षरता शिक्षा में स्मार्टफ़ोन जैसे डिवाइस
अधिगम में स्मार्टफ़ोन के प्रभाव तथा मोबाइल के की विकसित विशेषताओ ं को दर्शाया है। उन्होंने
सामाजिक पहलू आदि का वर्णन किया। इस अध्ययन स्मार्टफ़ोन को जीवन साथी, भाषा अधिगम की
के लिए दोनों शहरों में विद्यार्थियों से स्मार्टफ़ोन पर योग्यता संबंधी उपकरण, परिवर्तनकारी उपकरण,
भाषा अधिगम सबं धं ी कई गतिविधियाँ करवाई स्थान एवं समय आधारित अधिगम, स्थानीय
गर्इं। स्टोक्वेल (2015) ने इस पत्र में अपने पर्वू संस्था एवं वैश्विक पहुचँ के लिए उपयोगी उपकरण,
(2007–2009) के अध्ययन के परिणामों (जो 2010 व्यक्तिगत सशक्तिकरण को स्थापित करने वाला
में प्रकाशित हुए थे) से भी तल ु ना की। इसके आधार उपकरण कहा है। जो भाषा अधिगम को इन
पर यह कहा गया कि स्मार्टफ़ोन आधारित गतिविधियाँ सभी पहलओ ु ं के आधार पर विकसित करता है।
भाषा अधिगम के स्तर को बढ़ाने में सहायक हैं। होसान (2018) ने अपने शोध पत्र में ढाका
गगं मै रण और पशपु ति (2017) ने अपने शोध इटं रनेशनल विश्वविद्यालय, बांग्लादेश के उच्च
पत्र “रिव्यू ऑन यज़ू ऑफ़ मोबाइल ऐप्स फ़ॉर लैंग्वेज स्तर के विद्यार्थियों की अग्रेज़ी
ं भाषा अधिगम में
लर्निंग” में इटं रनेट की सहायता से अग्रेज़ी ं भाषा के स्मार्टफ़ोन एवं ऐप्लीके शन सॅाफ़्टवेयर के महत्व
भाषाई कौशल के शिक्षण में प्राथमिक, माध्यमिक की व्याख्या की तथा साथ ही वहाँ के शिक्षकों एवं
एवं विश्वविद्यालय स्तर के विद्यार्थियों के लिए शिक्षार्थियों द्वारा इनके प्रयोग की भी व्याख्या की।
अग्रेज़ी
ं भाषा ऐप्लीके शन की प्रभावशीलता का इस पत्र के निष्कर्ष में उन्होंने दर्शाया है कि भाषा
अध्ययन किया। लेकवैल (2017) ने अपने शोध अधिगम के क्षेत्र में शब्दावली अधिगम, उच्चारण
पत्र “द इम्पैक्ट ऑफ़ स्मार्टफ़ोन एंड इटं रनेट यूज़र्स क्षमता एवं वाक्य निर्माण परीक्षण में अधिगमकर्ता
ऑन इग्लिश ं लैंग्वेज लर्निंग” में उन्होंने शिक्षण स्मार्टफ़ोन और अग्रेज़ी
ं भाषा अधिगम ऐप्लीके शन
एवं अधिगम प्रक्रिया में तकनीकी के विकास से का सकारात्मक प्रयोग कर सकता है।
84 भारतीय आधिु नक िशक्षा – जनवरी 2020
उपरोक्त शोध अध्ययनों के वर्णन से यह स्पष्ट राजभाषा है तथा अत्यधिक जनसंख्या हिदं ी के
होता है कि स्मार्टफ़ोन एवं उपलब्ध ऐप्लीके शन शद्ध
ु रूप का प्रयोग करने में असमर्थ है, जो उच्च
भाषा शिक्षण में सकारात्मक परिणाम उपलब्ध स्तर की शिक्षा की महत्वपरू ्ण आवश्यकता के
करवाने में सहायक सिद्ध हो सकते हैं। स्मार्टफ़ोन रूप में दिखाई दे रही है। स्मार्टफ़ोन से जुड़े हिदं ी
सहायक भाषा अधिगम शिक्षकों एवं शिक्षार्थियों भाषा अधिगम के लिए ऐप्लीके शन सॅाफ़्टवेयर इस
द्वारा स्वयं अध्ययन करते हुए अपनी भाषा व्याकरण प्रकार हैं —
एवं भाषा कौशल सबं ंधी सभी समस्याओ ं एवं त्रुटियों •• आर भाषा हिंदी— एड् ं रॉइड फ़ोन एवं आई-पैड
के निवारण व उपचार के लिए प्रयक्त
ु किए जा सकते के लिए गगू ल प्ले स्टोर द्वारा डाउनलोड किया
हैं। शिक्षक अपने भाषिक एवं व्याकरण संबंधी ज्ञान जा सकता है। यह ऐप्लीके शन 2एस होल्डिंगस
को समसामयिक बनाने के लिए स्मार्टफ़ोन आधारित प्रा.लि.द्वारा निर्मित है। इस ऐप द्वारा हिदं ी भाषा
भाषा अधिगम ऐप्लीके शन का प्रयोग करते हुए का ज्ञान करवाने के लिए शब्द, मात्राएँ, वर्ण—
अपने विद्यार्थियों की भाषा संबंधी समस्याओ ं का स्वर एवं व्यंजन आदि का ज्ञान एवं जानकारी
दी जाती है। यह हिदं ी भाषा के शद्ध ु उच्चारण
निवारण कर सकता है।
का ज्ञान भी करवाती है। आर भाषा हिदं ी लाइट
स्मार्टफ़ोन में उपलब्ध भाषा अधिगम ऐप्लीके शसं नाम से यह ऐप छोटे बच्चों को रंगीन अक्षरों
स्मार्टफ़ोन भाषा अधिगम का एक अच्छा साधन है जो एवं स्वरों के माध्यम से हिदं ी वर्णमाला सीखने
इटं रनेट की सहायता से मोबाइल पर ही शिक्षार्थियों में सहायक है।
को भाषा अधिगम के लिए आवश्यक जानकारी एवं •• हिंदी भाषा क्विज़— हिद ं ी भाषा क्विज़
अभ्यास सामग्री, विभिन्न ऐप्लीके शन सॅाफ़्टवेयर ऐप्लीके शन मक ु े श हर्देहा द्वारा निर्मित है जो
की सहायता से उपलब्ध करवाता है। स्मार्टफ़ोन में गगू ल प्ले स्टोर द्वारा डाउनलोड किया जा
गूगल प्ले स्टोर की सहायता से इन भाषा अधिगम सकता है। इस ऐप में हिदं ी व्याकरण संबंधी
संबंधी ऐप्लीके शन तक पहुचँ ा जा सकता है। अंग्रेज़ी प्रश्नों के माध्यम से हिदं ी संबंधी समस्याओ ं का
भाषा अधिगम के लिए कई ऐप्लीके शन हैं, जैसे— समाधान करने का कार्य किया जाता है, जिसमें
अग्रेज़ी
ं को प्रथम भाषा एवं हिदं ी को द्वितीय
पोग्ग-स्पेल्लिंग एंड वर्ब्स, स्पीच विद मीलो ऐप्स,
भाषा के रूप में सिखाया जाता है।
माइडं स्नैक, किड्स लर्न टू रीड, रोसेट्टा स्टोन, •• हिंदी भाषा बेसिक— हिद ं ी भाषा बेसिक
मेमोराईस, ओपन लैंग्वेज, ड्यूलिंगो, फ़्लूएंट यू, ऐप्लीके शन जीनियस गेम्स द्वारा निर्मित की गई है।
साउंड राईट, स्पीच ट्यूटर, इग्लिश
ं पोडकास्ट फ़ॉर इसे गगू ल प्ले स्टोर से डाउनलोड किया जा सकता
लर्नर, एग्ज़ाम वोके बुलरी बिल्डर, लर्न इग्लिश
ं है। इस ऐप में हिदं ी भाषा सबं धं ी विभिन्न पाठों को
विथ basuu.com, सेन्टेंस बिल्डर फॉर iPad चित्रों एवं ध्वनि के माध्यम से सिखाया जाता है।
आदि। हिदं ी भाषा आज के समाज की बहुत बड़ी इसमें अग्रेज़ी
ं की सहायता से हिदं ी भाषा सिखाई
आवश्यकता है, क्योंकि हिदं ी भाषा भारत की जाती है। यह ऐप हिदं ी भाषा को अग्रेज़ी ं में अनवाु द
माध्यमिक विद्यालय के शिक्षकों की भाषा दक्षता के विकास में स्मार्टफ़ोन 85
करते हुए हिदं ी भाषा का शद्धु अर्थ समझाती है। अभ्यास के आधार पर हिदं ी भाषा के व्याकरण
‘हिदं ी मात्रा और शब्द’ नाम से यह ऐप भाषा के की जानकारी देता है। एक दिन में 5 मिनट के
शद्धु लेखन में सहायता भी करता है। अभ्यास द्वारा हिदं ी भाषा अधिगम कोर्स कराता
•• लर्न हिदं ी— स्पीक हिदं ी—लर्न हिदं ी— स्पीक है। यह ऐप कोरियन, जापानी, चीनी सहित 25
हिदं ी ऐप्लीके शन ATi स्टूडियोज़ द्वारा निर्मित की भाषाएँ सिखाता है।
गई है जिसे गगू ल प्ले स्टोर से एड्ं राइड फ़ोन के लिए •• लर्न हिंदी फ्री— इस ऐप्लीके शन को गगू ल प्ले
नि:शलु ्क डाउनलोड किया जा सकता है। यह एक स्टोर से नि:शलु ्क डाउनलोड किया जा सकता
प्रकार के कोर्स के रूप में कार्य करता है, जो प्रतिदिन है। यह एक साधारण ऐप है जो ऑफ़लाइन
5 मिनट में भाषा सबं धं ी अभ्यास करवाता है। इस भी सेवाएँ प्रदान करता है। इसकी सहायता
ऐप में हिदं ी व्याकरण के ज्ञान एवं जानकारी के लिए से विद्यार्थी हिदं ी शब्द, वाक्यांश और श्रव्य
अभ्यासात्मक पाठों का निर्माण किया गया है। जिसमें उच्चारण के उदाहरणों की सहायता से भाषा के
क्रिया एवं उच्चारण सहित दिनचर्या में प्रयक्त ु होने शद्धु प्रयोग को सीखते हैं। इसमें प्रश्नोत्तरी के
वाली भाषा का अभ्यास करवाया जाता है। माध्यम से हिदं ी भाषा की जानकारी दी जाती है।
•• लर्न हिदं ी भाषा— लर्न हिदं ी भाषा ऐप्लीके शन •• ड्यूलिंगो— ड्यलि ू ंगो ऐप्लीके शन गगू ल प्ले
Bhasha.io. द्वारा निर्मित है जो iOS डिवाइसेज़ स्टोर से नि:शलु ्क डाउनलोड किया जा सकता
के लिए गगू ल प्ले स्टोर से नि:शलु ्क डाउनलोड है। यह भाषा अधिगम ऐप कई भाषाओ ं के
किया जा सकता है। इस ऐप में विद्यार्थियों के अधिगम में सहायक है। इसमें सामान्य स्तर की
अधिगम स्तरों के आधार पर उपयक्त ु स्तर हिदं ी के लिए छोटे-छोटे सत्रों की व्यवस्था है।
का चनु ाव करते हुए हिदं ी भाषा में बोलना एवं इस ऐप द्वारा खेल-खेल में हिदं ी शब्दावली के
लिखना सिखाया जाता है। इसमें हिदं ी शब्द, विभिन्न शब्दों को सीखा जाता है। इसके एक टर्म
वाक्यांश और शद्ध ु उच्चारण सहित सही में 34 घटं ों के अधिगम की व्यवस्था की गई है।
आचरण सिखाया जाता है। यह ऐप व्यक्तिगत •• गूगल अनुवादक— गगू ल ट्रांसलेटर अर्थात्
अध्ययन को प्रोत्साहित करते हुए अग्रेज़ी ं के गगू ल अनवा ु दक एक महत्वपरू ्ण एवं सर्वाधिक
माध्यम से हिदं ी का ज्ञान करवाता है। यह ऐप प्रयोग किया जाने वाला भाषा अधिगम
शद्ध
ु भाषा अधिगम में एक प्रभावी उपकरण ऐप्लीके शन है, जिसे नि:शलु ्क रूप में गगू ल स्टोर
के रूप में है। इसमें हिदं ी के साथ-साथ तमिल, से प्राप्त किया जा सकता है। यह अग्रेज़ी
ं से हिदं ी
तेलगु ू और कन्नड़ भाषा भी सिखाई जाती है। तथा हिदं ी से अग्रेज़ी
ं भाषा में अनवा ु द करता है।
•• ड्रोप — लर्न हिंदी— यह ऐप्लीके शन गगू ल •• हेल्लो टॉक— हिदं ी भाषा अधिगम में हेल्लो
प्ले स्टोर से नि:शलु ्क डाउनलोड किया जा टॉक एक रुचिकर एवं प्रगतिशील भाषा अधिगम
सकता है। यह ऐप कई भाषाएँ सिखाने में ऐप है, जिसे गगू ल प्ले स्टोर से डाउनलोड किया
सहायक है। हिदं ी भाषा में यह ऐप सप्रें षण जा सकता है। यह ऐप नि:शलु ्क उपलब्ध है।
हिदं ी, शद्धु शब्द और वाक्यांशों के प्रयोग के इसमें श्रव्य एवं श्रव्य-वार्तालाप, लिखित संदश े ,
86 भारतीय आधिु नक िशक्षा – जनवरी 2020
चित्र-सदं श
े , श्रव्य-सदं श
े आदि के माध्यम से अधिगम ऐप्लीके शन का सहारा लेने से अच्छे
अधिगम किया जाता है। यह 100 भाषाओ ं के एवं सफल परिणाम प्राप्त किए जा सकते हैं। उसी
अधिगम की सवु िधा प्रदान करता है। प्रकार हिदं ी भाषा के शद्ध ु उच्चारण एवं वर्तनी के
इस प्रकार उपरोक्त वर्णन की सहायता से यह लिए हिदं ी भाषा अधिगम संबंधी ऐप्लीके शन का
कहा जा सकता है कि स्मार्टफ़ोन तकनीकी साक्षरता भी प्रयोग किया जा सकता है ताकि अच्छे परिणाम
और विकास को बढ़ावा देने में मोबाइल तकनीक प्राप्त हो सकें । परंतु गगू ल प्ले स्टोर पर उपलब्ध
अर्थात् डिजिटल ऑडियो, डिजिटल कै मरा, अधिकतम ऐप्लीके शन अग्रेज़ी ं भाषा को प्रथम तथा
वॉयस-रिकार्डर, पेन स्कै नर तथा मोबाइल फ़ोन हिदं ी भाषा को द्वितीय भाषा के रूप में ही सिखा
आदि की महत्वपरू ्ण भमि ू का द्वारा शिक्षकों के लिए रही हैं, साथ ही ये भाषा अधिगम ऐप प्राथमिक
अधिगम सामग्री उपलब्ध करवा रहा है। यदि शिक्षक अधिगम प्रदान कर रही हैं, जो के वल प्रारंभिक स्तर
और शिक्षार्थी अपनी हिदं ी भाषा सबं ंधी समस्याओ ं के विद्यार्थियों के लिए काफ़ी लाभदायक सिद्ध
का समाधान करना चाहते हैं तो उसके लिए सचू ना हो सकता है। माध्यमिक स्तर के विद्यार्थियों तथा
एवं संचार प्रौद्योगिकी द्वारा विकसित स्मार्टफ़ोन के शिक्षण के कार्य में सल ं ग्न शिक्षकों की हिदं ी भाषिक
माध्यम से उपलब्ध विभिन्न हिदं ी भाषा अधिगम समस्याओ ं के लिए उचित ऐप्लीके शन सॉफ़्टवेयर
ऐप्लीके शन सॉफ़्टवेयर एक सार्थक एवं सराहनीय की कमी है। राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरे खा 2005
उपकरण के रूप में हैं; जो भाषा शिक्षण एवं अधिगम के अनसु ार, नयी तकनीक में अभिरुचि जाग्रत करने
के लिए कभी भी एवं कहीं भी स्वयं अधिगम के लिए के लिए ज़रूरी है कि शिक्षक को स्वयं इन माध्यमों
प्रयक्त
ु करने में सवु िधाजन्य माध्यम हैं। में कार्यक्रम बनाने का सीधा अनभु व हो। प्रशिक्षण
संस्थानों में कंप्यूटर तथा अन्य तकनीकी सवु िधाओ ं
निष्कर्ष की उपलब्धता अपर्याप्त है। यह एक कारण है कि
इस लेख में हिदं ी भाषा अधिगम के माध्यम के रूप में नयी सम्प्रेषण तकनीकी की सभं ावनाएँ विद्यालयों
स्मार्टफ़ोन के प्रयोग पर बल दिया गया है जो इटं रनेट तथा प्रशिक्षण ससं ्थाओ ं का माहौल बदलने में परू ी
की सहायता से विभिन्न भाषा अधिगम ऐप्लीके शन भमिू का नहीं निभा सकी हैं।
सॉफ़्टवेयर का प्रयोग कर भाषा शिक्षार्थियों की इस प्रकार इन आधनि ु क तकनीकों एवं इटं रनेट
भाषिक समस्याओ ं के समाधान एवं उपचार की के माध्यम से शिक्षकों को स्व-अधिगम आधारित
व्याख्या करता है। इन ऐप्लीके शसं के माध्यम से अध्ययन के लिए प्रोत्साहित करते हुए, उनके भाषिक
हिदं ी भाषा के व्याकरण की जानकारी प्राप्त करते ज्ञान में सधु ार लाते हुए, प्रारंभिक शिक्षा के स्तर को
हुए भी भाषिक अशद्ध ु ता को दरू किया जा सकता सधु ारा जा सकता है। चकि ँू शिक्षकों में हिदं ी भाषा के
है, जिस प्रकार लेख में वर्णित शोध अध्ययन पत्रों अधरू े ज्ञान का प्रभाव प्रारंभिक एवं माध्यमिक स्तर
में दर्शाया गया है कि अग्रेज़ी
ं भाषा अधिगम को के विद्यार्थियों पर पड़ता है, जिसके कारण वह हिदं ी
स्थापित एवं विकसित करने के लिए अग्रेज़ी ं भाषा भाषा के शद्ध ु लिखित एवं मौखिक प्रयोग में असमर्थ
माध्यमिक विद्यालय के शिक्षकों की भाषा दक्षता के विकास में स्मार्टफ़ोन 87
हो रहे हैं। शिक्षकों के अपरू ्ण ज्ञान का बोझ आने स्वयं-अधिगम मॉड्यल ू या ऐप्लीके शन का निर्माण
वाली पीढ़ी पर पड़ रहा है। वह भाषा के व्याकरण के किया जाना चाहिए। जो प्रथम भाषा के रूप में हिदं ी
उचित प्रयोग से वंचित हो रहे हैं, जिसके कारण वह को हिदं ी के माध्यम से सिखा सके । शिक्षक प्रशिक्षण
अपने ज्ञान को शद्धु भाषा में व्यक्त करने में असमर्थ प्राप्त करने वाले शिक्षार्थियों की भाषिक शद्ध ु ता
हो रहे हैं। इस प्रकार, शिक्षा व्यवस्था के प्रारंभिक के लिए भी ऐसे ऐप्लीके शन होने चाहिए जो उन्हें
एवं माध्यमिक स्तर में सधु ार लाने के लिए शिक्षा उनकी हिदं ी भाषिक शद्ध ु ता के लिए सही निर्देश दे
के स्वरूप में परिवर्तन लाना पड़ेगा। स्मार्टफ़ोन एवं सकें तथा भावी शिक्षक सहित माध्यमिक विद्यालयों
इटं रनेट के प्रयोग द्वारा माध्यमिक विद्यालयों के के शिक्षक भी सगु मता से कभी भी तथा कहीं भी
शिक्षकों को स्व-अधिगम द्वारा प्रोत्साहित करते हुए इन्हें प्रयक्त
ु कर सकें । भारत जैसे देश में स्मार्टफ़ोन
उन्हें अपनी समस्याओ ं का स्वयं समाधान निकालने आधारित भाषा अधिगम में सहायक ऐप्लीके शन के
के लिए प्रेरित किया जा सकता है। प्रति लोगों में जागरूकता की बहुत कमी है, जिसका
सझ
ु ाव मखु ्य कारण है कि यहाँ बहुत कम संख्या में लोगों द्वारा
स्मार्टफ़ोन, आई-पैड, इटं रनेट आदि उपकरण हमारे स्मार्टफ़ोन का प्रयोग किया जाता है। इसके लिए हमें
दैनिक जीवन की गतिविधियों का महत्वपरू ्ण अगं बन अधिक से अधिक संख्या में लोगों को स्मार्टफ़ोन के
चक ु े हैं। भाषा अधिगम के क्षेत्र में इन सभी उपकरणों उपयोगों से अवगत कराते हुए इसके प्रयोग के लिए
ने स्वयं-निर्देशित अधिगम को परिवर्तित कर दिया प्रोत्साहित करना होगा।
है। इनके द्वारा हिदं ी भाषा अधिगम ऐप्लीके शन की बदलते समय के अनरू ु प मानव संसाधन
उपलब्धता हिदं ी भाषा के शद्ध ु प्रयोग को प्राेत्साहित विकास मंत्रालय, भारत सरकार ने विभिन्न विषयों
करती है। परंतु इन ऐप्लीके शन में उपलब्ध सामग्री के ज्ञान एवं अधिगम के लिए ‘स्वयं’ ऑनलाइन
के वल छोटी कक्षाओ ं के विद्यार्थियों के लिए ही प्लेटफ़ॉर्म की व्यवस्था की है। इसी प्रकार विभिन्न
लाभदायक है। माध्यमिक शिक्षकों के लिए यह राज्यों में प्रारंभिक एवं माध्यमिक स्तर के विद्यालयों
अधिक सहायक सिद्ध नहीं हो पा रहे हैं। इस तरह में अध्ययन-अध्यापन करने वाले शिक्षक एवं
इस क्षेत्र में सभी हिदं ी भाषा शिक्षकों के भाषिक शिक्षार्थियों के शद्धु भाषिक ज्ञान के लिए भी उचित
शद्धु ता सबं ंधी समस्याओ ं के उपचार के लिए भी व्यवस्था होनी चाहिए।
सदं र्भ
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माध्यमिक स्तर के विद्यार्थियों की ससं ्कृत विषय में शैक्षिक
उपलब्धि पर निर्माणवादी उपागम की प्रभावशीलता
रंजय कुमार पटेल*
शिरीष पाल सिंह**
यह शोध अध्ययन माध्यमिक स्तर के विद्यार्थियों की ससं ्कृ त विषय में शैक्षिक उपलब्धि पर निर्माणवादी उपागम
की प्रभावशीलता पर आधारित है। इस शोध अध्ययन में शोध प्रविधि के रूप में अर्द्ध प्रयोगात्मक शोध प्रारूप
को अपनाया गया था। न्यादर्श इकाई के रूप में वर्ष 2018–19 में, उत्तर प्रदेश राज्य के वाराणसी जनपद के कुल
दो सरकारी विद्यालयों जिनमें किसान इण्टर कॉलेज, मिर्जामरु ाद के कक्षा 9 के संस्कृ त विषय के एक वर्ग के
सभी (कुल 43) विद्यार्थियों को प्रयोगात्मक समहू के रूप में तथा भारती निके तन उच्चतर माध्यमिक विद्यालय,
ईश्वरगंगी के कक्षा 9 के संस्कृ त विषय के एक वर्ग के सभी (कुल 42) विद्यार्थियों को नियंत्रित समहू के रूप
में चयनित किया गया। विद्यार्थियों का चयन उद्देश्यपर्णू न्यादर्श प्रविधि के द्वारा किया गया। इस शोध कार्य में
प्रयोगात्मक समहू को निर्माणवादी उपागम की सहायता से उपचार (शिक्षण) दिया गया तथा नियंत्रित समहू
को परंपरागत विधि की सहायता से शिक्षण कार्य दिया गया। उपचार के रूप में दोनों समहू ों को कुल 12 कार्य
दिवसों में प्रतिदिन 1 घटं ा उपचार (सीखने के अवसर प्रदान) दिया गया। शोध उपकरण के रूप में शोधार्थी द्वारा
स्वनिर्मित संस्कृ त उपलब्धि परीक्षण का प्रयोग करते हुए पर्वू परीक्षण एवं पश्च परीक्षण के द्वारा प्रदत्त संकलित
किए गए तथा बद्धि ु लब्धि संबंधी प्रदत्तों के संकलन के लिए आर. के . ओझा और के . रॉय चौधरी (1958, नेशनल
साइकॉलोजिकल कॉर्पोरे शन, आगरा) के द्वारा निर्मित एवं मानकीकृत शाब्दिक बद्धि ु परीक्षण का उपयोग किया
गया। प्रदत्त विश्लेषण के लिए प्राप्त प्रदत्तों की प्रकृति के आधार पर उपयक्ु त सांख्यिकी का प्रयोग किया गया।
शोध निष्कर्ष के रूप में पाया गया है कि माध्यमिक स्तर के विद्यार्थियों की संस्कृ त भाषा में शैक्षिक उपलब्धि में
निर्माणवादी उपागम से शिक्षण की तल ु ना में परंपरागत विधि प्रभावी पाई गई।
शिक्षा व्यक्ति को भविष्य में आगे बढ़ने के लिए शक्तिशाली हथियार है जिससे आप दनि ु या को
बहुत-से रास्तों का निर्माण करती है। इतना ही नहीं, बदल सकते हैं।” यहाँ उनके इस कथन से एक बात
सभ्य समाज का निर्माण भी सशु िक्षित नागरिकों तो स्पष्ट हो जाती है कि ‘शिक्षा’ दनि
ु या को बदलने
के द्वारा ही होता है। दक्षिण अफ्रिका के भतू पर्वू में अपनी महत्वपर्णू भमि
ू का निभाती है, किंतु इसके
राष्ट्रपति नेल्सन मडं ेला ने अपने शैक्षिक विचारों के साथ ही साथ इतिहास के पन्ने हमें यह भी बताते हैं
अतं र्गत यह अभिव्यक्त किया था कि, “शिक्षा सबसे कि दनि
ु या को बदलने की शक्ति रखने वाली शिक्षा
*शोधार्थी, शिक्षा विभाग, महात्मा गांधी अतं रराष्ट्रीय हिदं ी विश्वविद्यालय, वर्धा, महाराष्ट्र 442005
**एसोसिएट प्रोफे ़सर, शिक्षा विभाग, महात्मा गांधी अतं रराष्ट्रीय हिदं ी विश्वविद्यालय, वर्धा, महाराष्ट्र 442005
90 भारतीय आधिु नक िशक्षा – जनवरी 2020
व्यवस्था को भी समय के साथ निरंतर बदलते रहना और कै से जानना है? (फ़ॉस्नॉट, 2013) निर्माणवाद
चाहिए। इस समय शिक्षा की परू ी प्रक्रिया में बड़े स्तर बाल-कें द्रित शिक्षाशास्त्र का मखु ्य आधारभतू सिद्धांत
पर निरंतर परिवर्तन किए जा रहे हैं। जिसमें निःसंदहे है, इस व्यवस्था में बच्चों के अनभु वों, जिज्ञासाओ ं
वर्तमान समय की शिक्षा व्यवस्था निर्माणवादी और उनकी सक्रिय सहभागिता को कें द्र में रखकर
उपागम पर आधारित है। विद्यालयी शिक्षा में राष्ट्रीय पठन-पाठन हेतु वातावरण तैयार किया जाता है
पाठ्यचर्या की रूपरे खा 2005 के आने के बाद से (यादव, 2017)। निर्माणवाद शिक्षण का सिद्धांत नहीं
शिक्षा जगत में ‘निर्माणवाद’ की चर्चा अत्यंत ज़ोरों है, अपितु यह ज्ञान और अधिगम का सिद्धांत है, यह
पर है। इस पाठ्यचर्या में ‘निर्माणवाद’ को एक सिद्धांत ज्ञान को अस्थायी, उद्देश्य रहित सामाजिक
अनपु म एवं विशिष्ट स्थान प्रदान किया गया है। और सांस्कृ तिक मध्यस्थता के रूप में परिभाषित
‘विद्यार्थी-कें द्रित शिक्षा’ को कई बार ‘निर्माणवाद’ करता है (ब्रुक्स और ब्रुक्स, 1993)।
से भी जोड़कर देखा जाता है। जिसे हाल ही में हुई इसी के साथ निर्माणवादी शिक्षा दर्शन की
चर्चाओ ं में ‘शिक्षा का नया दर्शन’ कहा गया है। अनेक विशेषताएँ भी दृष्टिगोचर होती हैं। यह
हम इसे साधारण रूप में समझने की कोशिश अधिगम प्रक्रिया का एक दर्शन होने के साथ
कर सकते हैं कि, ‘बच्चा तभी ज्ञान का निर्माण ही एक दार्शनिक और वैज्ञानिक अवस्थिति है,
करे गा, जब वह उस ज्ञान को अपने लिए, अपने जिसमें व्यक्तिगत शिक्षा के लिए विशेष ध्यान
संदर्भों में, अपनी मानसिक क्षमताओ ं से, अपने रूपों दिया जाता है। यह सीखने का एक प्राकृतिक
में आत्मसात करे गा।’ दरअसल ‘जानने’ एवं ‘मानने’ या स्वाभाविक सिद्धांत है, जिसके अधिगम की
में महत्वपर्णू भेद होता है। बिना जाने मानना ज्ञान प्रक्रिया में अधिगमकर्ता को महत्व दिया जाता है।
निर्माण में बाधक है, जबकि जानकर मानना ज्ञान यह बाल-कें द्रित शिक्षाशास्त्र का मखु ्य आधारभतू
निर्माण का मार्ग है। इस प्रकार निर्माणवाद राष्ट्रीय सिद्धांत है जो कि अधिकतम अधिगम के लिए एक
पाठ्यचर्या की रूपरे खा 2005 का सबसे महत्वपर्णू से अधिक रास्तों का निर्माण करता है। निर्माणवाद
पक्ष रहा है, जो यह सझु ाती है कि ‘शिक्षा एवं शिक्षण रचनात्मकता के विचारों के माध्यम से विकसित
में निर्माणवादी उपागम को अपनाया जाए।’ किया गया है, जो यह मानता है कि ज्ञान सक्रिय
निर्माणवाद अधिगम प्रक्रिया का एक दर्शन निर्माण की प्रक्रिया के माध्यम से उत्पन्न होता है।
है (नासा, 2017)। ज्ञान का निर्माण भौतिक, निर्माणवादी शिक्षण व्यवस्था में सीखने के भी अनेक
जैविक व सामाजिक सदं र्भों से जड़ा ु होता है दृष्टिकोण हैं, जैसे— सहकर्मी सहयोग, पारस्परिक
(रामदास, 2013)। निर्माणवाद हमेशा किसी शिक्षण, पारस्परिक अधिगम, संज्ञानात्मक प्रशिक्षण,
वस्तु या संदर्भ के स्थापित ज्ञान के सीखने के समस्या-आधारित निर्देश इत्यादि। वर्तमान समय
इर्द-गिर्द बँधा होता है (सोलोमन, 1994)। में निर्माणवाद के प्रतिमान के विशेष संदर्भ में कई
निर्माणवाद ज्ञान और अधिगम के विषय में एक प्रतिमान हैं, जैसे— 4Es निर्माणवादी प्रतिमान, 5Es,
सिद्धांत है, जो यह बताता है कि क्या जानना है? निर्माणवादी प्रतिमान, 7Es, निर्माणवादी प्रतिमान
माध्यमिक स्तर के विद्यार्थियों की संस्कृ त विषय में शैक्षिक उपलब्धि पर निर्माणवादी उपागम की प्रभावशीलता 91
तथा I Con (आई कॉन) निर्माणवादी प्रतिमान के अधिगम के लिए वास्तविक आधार’ प्रदान करता
रूप में अभिव्यक्त किया गया है। इसके साथ ही है। निर्माणवाद यह मानता है कि ज्ञान व्यक्तिगत
निर्माणवादी उपागम के और भी अनेक प्रतिमान होता है, जो कि अनुभवों के आधार पर विकसित
हैं। प्रथम प्रतिमान को रोजर डब्ल्यू. बायबी के द्वारा होता है। निर्माणवादी कक्षा में ज्ञान का निर्माण एक
विकसित किया गया था, जिसे 5Es (फ़ाइव ई) गतिशील, सदैव परिवर्तनशील, अनुभव आधारित
निर्माणवादी प्रतिमान के रूप में जाना जाता है। 5Es एवं आंतरिक माना जाता है। इस बाल-कें द्रित
शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया के पाँच चरणों का शिक्षण व्यवस्था में शिक्षक एक ‘सुगमकर्ता’
प्रतिनिधित्व करता है, जिसमें व्यस्त करना (इगं ेज), अथवा ‘संसाधन प्रदाता’ के रूप में बच्चों को
खोज करना (एक्सप्लोर), व्याख्या करना (एक्स्प्लैन), सीखने हेतु यथोचित सामग्री एवं सीखने की सहज
विस्तार करना (एलैबोरे ट) एवं मलू ्यांकन करना परिस्थितियों को उपलब्ध कराने और निरंतर उनका
(इवैल्युएट) शामिल है। सतत एवं व्यापक मलू ्यांकन करते हुए, उन्हें अपनी
निर्माणवादी शिक्षा व्यवस्था के सभी उद्देश्य क्षमताओ ं के विकास के अवसर उपलब्ध कराने की
‘शिक्षक’ अथवा ‘शिक्षण-कें द्रित’ न होकर महती भमि ू का का निर्वहन करता है।
‘विद्यार्थी-कें द्रित’ होते हैं, जिसमें विद्यार्थियों की वैश्विक स्तर पर हुए अनुसंधानों में ‘योगात्मक
रुचियों, अनुभवों एवं उनके पर्वू ज्ञान आदि को आकलन’ की बजाय ‘निर्माणवादी आकलन’
आधार बनाकर शिक्षा के उद्देश्य निर्धारित किए पर ज़ोर दिया गया है। निर्माणवादियों के अनुसार,
जाते हैं। उसे वह बनने के लिए उपयुक्त अवसर या ‘शिक्षा का तात्पर्य बालक का सर्वांगीण विकास
वातावरण उपलब्ध कराए जाते हैं, जो कि वह अपने है।’ अतः आकलन का उद्देश्य भी सर्वांगीण विकास
जीवन में अपनी रुचियों एवं स्व-प्रयासों के द्वारा का आकलन करने वाला होना चाहिए, न कि सिर्फ़
बनना चाहता है। निर्माणवादी पाठ्यक्रम ज्ञान को एकपक्षीय आकलन करने वाला। निर्माणवादी
विभिन्न विषयों में विभाजित नहीं करता, अपितु उसे विद्वान आकलन को एक सक्रिय प्रक्रिया के रूप
एक एकीकृ त संपर्णू विषय के रूप में स्वीकार करता में देखते हैं, जो अधिगम के साथ-साथ चलती है
है। निर्माणवाद एक अधिगम उपागम है। सीखने और इसका उद्देश्य विद्यार्थियों को सतत प्रतिपष्टि ु
की प्रक्रिया में शिक्षक एवं शिक्षार्थी, दोनों समान देते हुए, आकलन की प्रक्रिया में विद्यार्थी को
रूप से शामिल होते हैं तथा सीखने की प्रक्रिया सहभागी बनाते हुए, उसे आगे के अधिगम के लिए
अत्यंत लचीली होती है, जिसमें गतिशील रूप तैयार करना है। निर्माणवादी अधिगम का आकलन
से बातचीत को एक महत्वपर्णू अंग बनाया जाता विद्यार्थियों के कार्यों एवं प्रदर्शनों का पर्यवेक्षण
है। इसके साथ ही एक-दसू रे के बारे में जागरूकता करके रूब्रिक्स, स्व-मलू ्यांकन, साथी मलू ्यांकन
विकसित की जाती है (मण्डल, 2014)। कक्षा एवं तथा पोर्टफ़ोलियो इत्यादि के आधार पर भी किया
वातावरण की दृष्टि से निर्माणवाद ‘अधिकतम जाता है।
92 भारतीय आधिु नक िशक्षा – जनवरी 2020
•• माध्यमिक स्तर पर कक्षा 9 के विद्यार्थियों की परंपरागत विधि से शिक्षण दिया गया। 12 कार्य
संस्कृ त भाषा में पर्वू उपलब्धि को सहचर मानते दिवसों में रोज़ाना 1 घटं े उपचार (सीखने के
हुए उपचार, जेंडर तथा इनकी अतं :क्रिया का अवसर प्रदान) दिया गया। निर्माणवादी उपागम से
संस्कृ त भाषा की उपलब्धि पर कोई सार्थक ससं ्कृ त कै से पढ़ाई जाए? इसके लिए शोधार्थी द्वारा
प्रभाव नहीं पड़ता है। सर्वप्रथम निर्माणवादी उपागम पर आधारित
जनसख
ं ्या विभिन्न प्रतिमानों का अत्यंत गहराई एवं
इस शोध में उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद् व्यापकता के साथ अध्ययन किया गया। तत्पश्चात्
प्रयागराज द्वारा सचं ालित वर्ष 2018–19 में, राज्य के संस्कृ त भाषा विशेषज्ञों, शोध विशेषज्ञों तथा अन्य
सभी विद्यालयों के कक्षा 9 के ससं ्कृ त भाषा के सभी शिक्षा एवं शिक्षण जगत के विद्वानों के दिशानिर्देश
विद्यार्थी जनसखं ्या के रूप में सम्मिलित किए गए थे। एवं उनके द्वारा प्राप्त सझु ावों के आधार पर 5Es
न्यादर्श प्रतिमान (इगं जे , एक्सप्लोर, एक्सप्लैन, एलैबोरेट और
न्यादर्श इकाई के रूप में वर्ष 2018–19 में, उत्तर इवैल्यूएशन) पर आधारित पाठ योजनाओ ं का निर्माण
प्रदेश राज्य के वाराणसी जनपद के कुल दो सरकारी किया गया। इनमें से तीन पाठ योजनाएँ ससं ्कृ त के गद्य
विद्यालयों जिनमें किसान इण्टर कॉलेज, मिर्जामरु ाद पाठ से तथा अन्य तीन पद्य पाठ से सबं धि ं त थीं। दृष्टांत
के कक्षा 9 के संस्कृ त भाषा के एक वर्ग के सभी के लिए प्रथम पाठ योजना जो कि गद्य पाठ ‘अस्माकं
(कुल 43) विद्यार्थियों को प्रयोगात्मक समहू के रूप राष्ट्रियप्रतिकानि’ पाठ से सबं धि ं त थी, उसमें स्पष्ट
में तथा भारती निके तन उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, निर्देश, प्रमखु अवधारणा, अधिगम के उद्देश्य, प्रक्रिया
ईश्वरगगं ी के कक्षा 9 के ससं ्कृ त भाषा के एक वर्ग के कौशल, अधिगम ससा ं धन तथा पर्वू ज्ञान से सबं धि ं त
सभी (कुल 42) विद्यार्थियों को नियंत्रित समहू के महत्वपर्णू बिदं ओु ं को पहले स्पष्ट किया गया है,
रूप में चयनित किया गया था। दोनों विद्यालयों के तत्पश्चात् 5Es प्रतिमान को क्रमशः शिक्षण सोपान
प्रत्येक वर्गों के कुल 85 विद्यार्थियों (43 प्रयोगात्मक के रूप में प्रयोग किया गया। इस प्रकार 5Es प्रतिमान
समहू एवं 42 नियंत्रित समहू ) का चयन उद्देश्यपर्णू पर आधारित कुल छह पाठ योजनाएँ बनाकर शिक्षण
न्यादर्श प्रविधि के द्वारा किया गया था। कार्य किया गया।
शोध विधि शोध उपकरण एवं प्रदत्त सक
ं लन की प्रक्रिया
यह शोध अध्ययन मात्रात्मक शोध विधि पर आधारित शोध उपकरण के रूप में शोधार्थी द्वारा स्वनिर्मित
था, जिसमें ‘प्रयोगात्मक शोध विधि’ तथा इसके संस्कृ त उपलब्धि परीक्षण का प्रयोग करते हुए
अतं र्गत ‘अर्द्ध प्रयोगात्मक शोध प्रारूप’ को अपनाया पर्वू परीक्षण एवं पश्च परीक्षण के द्वारा प्रदत्त
गया। इस शोध अध्ययन में प्रयोगात्मक समहू को संकलित किए गए तथा बुद्धिलब्धि संबंधी प्रदत्तों
निर्माणवादी उपागम की सहायता से उपचार के संकलन के लिए ओझा और चौधरी (1958,
(शिक्षण) दिया गया तथा नियत्रि ं त समहू को नेशनल साइकॉलोजिकल कॉर्पोरे शन, आगरा)
94 भारतीय आधिु नक िशक्षा – जनवरी 2020
के द्वारा निर्मित एवं मानकीकृ त शाब्दिक बुद्धि सहायता से शिक्षण (उपचार) दिया गया तथा
परीक्षण (वर्बल इटं ेलिजेंस टेस्ट) का उपयोग किया नियंत्रित समहू को परंपरागत विधि से शिक्षण
गया। शोधार्थी द्वारा बुद्धिलब्धि संबंधी प्रदत्तों को (उपचार) दिया गया। प्रयोगात्मक समहू में
तीन स्तरों (औसत से अधिक, औसत तथा औसत कुल 43 विद्यार्थी तथा नियंत्रित समहू में कुल
से कम) में विभक्त किया गया। 42 विद्यार्थी थे। ससं ्कृ त भाषा में उपलब्धि
प्रदत्त विश्लेषण एवं व्याख्या संबंधी प्रदत्तों के संकलन के लिए शोधार्थी
द्वारा स्वनिर्मित संस्कृ त उपलब्धि परीक्षण का
प्रदत्त विश्लेषण के लिए उपयक्त ु सांख्यिकी
उपयोग किया गया। ससं ्कृ त उपलब्धि परीक्षण
प्रविधियों की सहायता से प्रदत्तों का विश्लेषण किया
की सहायता से एकत्रित आँकड़ों के विश्लेषण
गया। जिसका उद्देश्यवार विवरण एवं व्याख्या निम्न
के लिए एकमार्गी एनकोवा (One way
प्रकार है —
ANCOVA) का उपयोग किया गया। आँकड़ों
1. ससं ्कृत भाषा की पूर्व उपलब्धि को सहचर के विश्लेषण के पश्चात् प्राप्त परिणामों को
मानते हुए प्रयोगात्मक समूह तथा नियंत्रित तालिका 1 में प्रदर्शित किया गया है।
समूह की ससं ्कृत उपलब्धि के समायोजित तालिका 1 का अध्ययन करने पर स्पष्ट होता है कि
माध्य प्राप्तांकों की तुलना ससं ्कृ त भाषा की पर्वू उपलब्धि को सहचर मानते हुए
इस शोध अध्ययन का प्रथम उद्देश्य माध्यमिक स्वातन्त्र्य की मात्रा (1, 84) पर उपचार के समायोजित F का
स्तर पर कक्षा 9 के विद्यार्थियों की संस्कृ त मान 56.740 है। जिसकी सार्थकता का मान .000 है, जो
भाषा में पर्वू उपलब्धि को सहचर मानते हुए कि 0.01 सार्थकता मान से कम है और 0.01 सार्थकता
निर्माणवादी उपागम तथा परंपरागत विधि स्तर पर सार्थक है, अतः शनू ्य परिकल्पना माध्यमिक
से ससं ्कृ त पढ़ाने के पश्चात् दोनों समहू ों की स्तर पर कक्षा 9 के विद्यार्थियों की ससं ्कृ त भाषा में पर्वू
उपलब्धि के समायोजित माध्य प्राप्तांकों उपलब्धि को सहचर मानते हुए निर्माणवादी उपागम
की तल ु ना करना था। इस शोध अध्ययन में तथा परंपरागत विधि से ससं ्कृ त पढ़ाने के पश्चात् दोनों
प्रयोगात्मक समहू को निर्माणवादी उपागम की समहू ों की उपलब्धि के समायोजित माध्य प्राप्तांकों
माध्यमिक स्तर के विद्यार्थियों की संस्कृ त विषय में शैक्षिक उपलब्धि पर निर्माणवादी उपागम की प्रभावशीलता 95
में कोई सार्थक अतं र नहीं है, अस्वीकृ त की जाती कि माध्यमिक स्तर पर ससं ्कृ त भाषा के प्रयोगात्मक
है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि संस्कृ त भाषा समहू के विद्यार्थियों की शैक्षिक उपलब्धि बेहतर
की पर्वू उपलब्धि को सहचर मानते हुए निर्माणवादी है। अतः स्पष्ट है कि यदि निर्माणवादी उपागम की
उपागम तथा परंपरागत विधि से संस्कृ त पढ़ाने के सहायता से शिक्षण कार्य किया जाता है तो शैक्षिक
पश्चात् दोनों समहू ों की उपलब्धि के समायोजित उपलब्धि प्रभावित होती है।
माध्य प्राप्तांकों में सार्थक अतं र है। अतः स्पष्ट 2. ससं ्कृत भाषा में पूर्व उपलब्धि को सहचर
रूप से कहा जा सकता है कि जब दोनों समहू ों के मानते हुए उपचार, बुद्धिलब्धि तथा इनकी
संस्कृ त भाषा की पर्वू उपलब्धि को सहचर माना अंत:क्रिया का ससं ्कृत भाषा की उपलब्धि
जाता है, तब प्रयोगात्मक समहू तथा नियंत्रित समहू
पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन
के समायोजित माध्य प्राप्तांकों में अतं र देखने को
इस शोध का द्वितीय उद्देश्य माध्यमिक स्तर
मिलता है। प्रयोगात्मक समहू तथा नियंत्रित समहू में
पर कक्षा 9 के विद्यार्थियों की ससं ्कृ त भाषा में
से किस समहू के विद्यार्थियों ने बेहतर प्रदर्शन किया
पर्वू उपलब्धि को सहचर मानते हुए उपचार,
है? इस तथ्य की जाँच करने के लिए प्रयोगात्मक
ु लब्धि तथा इनकी अतं :क्रिया का ससं ्कृ त
बद्धि
समहू तथा नियंत्रित समहू के समायोजित माध्य
प्राप्तांकों का अवलोकन किया गया, जिसका भाषा की उपलब्धि पर पड़ने वाले प्रभाव का
विवरण तालिका 2 में दिया गया है। अध्ययन करना था। इस शोध कार्य में प्रयोगात्मक
समहू को निर्माणवादी उपागम की सहायता से
तालिका 2— ससं ्कृत भाषा में समूह अनुसार
समायोजित उपलब्धि माध्यमान अंकों की तुलना उपचार (शिक्षण) दिया गया तथा नियत्रि ं त समहू
को परंपरागत विधि से शिक्षण दिया गया। उपचार
उपचार N समायोजित माध्य
के रूप में कुल 12 कार्य दिवसों में रोज़ाना 1 घटं े
प्रयोगात्मक समहू 43 26.47
उपचार (सीखने के अवसर प्रदान) दिया गया।
नियंत्रित समहू 42 21.49
इसमें निर्माणवादी उपागम पर आधारित ससं ्कृ त
तालिका 2 के अवलोकन से स्पष्ट होता है की छह पाठ योजनाओ ं का शिक्षण कार्य किया
कि प्रयोगात्मक समहू की ससं ्कृ त उपलब्धि के गया। संस्कृ त भाषा में उपलब्धि संबंधी प्रदत्तों
समायोजित माध्य प्राप्तांकों का मान 26.47 तथा के सक ं लन के लिए शोधार्थी द्वारा स्वनिर्मित
नियंत्रित समहू की संस्कृ त उपलब्धि के समायोजित संस्कृ त उपलब्धि परीक्षण तथा बद्धि ु लब्धि
माध्य प्राप्तांकों का मान 21.49 है। प्रयोगात्मक समहू संबंधी प्रदत्तों के संकलन के लिए ओझा और
का माध्य प्राप्तांक नियंत्रित समहू के माध्य प्राप्तांक चौधरी (1958, नेशनल साइकॉलोजिकल
से सार्थक रूप से अधिक है, जो इस बात का द्योतक कॉर्पोरे शन, आगरा) के द्वारा निर्मित एवं
है कि प्रयोगात्मक समहू तथा नियंत्रित समहू के माध्य मानकीकृ त शाब्दिक बद्धि ु परीक्षण का उपयोग
प्राप्तांकों में सार्थक अतं र है। इसका अभिप्राय यह है किया गया। शोधार्थी द्वारा बद्धि
ु लब्धि संबंधी
96 भारतीय आधिु नक िशक्षा – जनवरी 2020
प्रदत्तों को तीन स्तरों (औसत से अधिक, संस्कृ त भाषा की उपलब्धि पर कोई सार्थक प्रभाव
औसत तथा औसत से कम) में विभक्त किया नहीं पड़ता है, स्वीकृत की जाती है। इस प्रकार कहा
गया। ससं ्कृ त उपलब्धि परीक्षण तथा शाब्दिक जा सकता है कि संस्कृ त विषय की पूर्व उपलब्धि
बद्धि
ु परीक्षण की सहायता से एकत्रित आँकड़ों को सहचर मानते हुए बुद्धिलब्धि के तीनों स्तरों के
के विश्लेषण के लिए 2×3 कारक सह प्रसरण विद्यार्थियों की संस्कृ त भाषा की शैक्षिक उपलब्धि
विश्लेषण का उपयोग किया गया। आँकड़ों में कोई सार्थक अंतर नहीं है। अतः स्पष्ट है कि
के विश्लेषण के पश्चात् प्राप्त परिणामों को बुद्धिलब्धि के तीनों स्तरों के विद्यार्थियों की संस्कृ त
तालिका 3 में दिया गया है। विषय की शैक्षिक उपलब्धि एकसमान है।
तालिका 3 का अध्ययन करने पर स्पष्ट होता तालिका 3 को देखने पर यह भी �ात होता कि
है कि संस्कृ त विषय की पर्वू उपलब्धि को सहचर ससं ्कृ त भाषा की पर्वू उपलब्धि को सहचर मानते हुए
मानते हुए स्वातन्त्र्य की मात्रा (2, 78) पर बद्धि
ु लब्धि स्वातन्त्र्य की मात्रा (2, 78) पर उपचार तथा बद्धि
ु लब्धि
के समायोजित F का मान 2.650 है। जिसकी की अतं :क्रिया के समायोजित F का मान 1.655 है।
सार्थकता का मान 0.077 है, जो कि 0.01 सार्थकता जिसकी सार्थकता का मान 0.198 है, जो कि 0.01
मान से अधिक है, अर्थात् 0.01 सार्थकता स्तर पर सार्थकता मान से अधिक है अर्थात् 0.01 सार्थकता स्तर
सार्थक नहीं है। अतः शनू ्य परिकल्पना माध्यमिक पर सार्थक नहीं है, अतः शनू ्य परिकल्पना माध्यमिक
स्तर पर कक्षा 9 के विद्यार्थियों की संस्कृ त विषय में स्तर पर कक्षा 9 के विद्यार्थियों की ससं ्कृ त भाषा में पर्वू
पूर्व उपलब्धि को सहचर मानते हुए बुद्धिलब्धि का उपलब्धि को सहचर मानते हुए उपचार तथा बद्धि ु लब्धि
तालिका 3— उपचार, बुद्धिलब्धि तथा इनकी अंत:क्रिया का ससं ्कृत भाषा
की उपलब्धि का 2×3 कारक सह प्रसरण विश्लेषण का सारांश
विचरण का स्वातन्त्र्य वर्गों का योग माध्यों का वर्ग एफ मान सार्थकता टिप्पणी
स्रोत का अंश (SSy.x) (MSSy.x) F (Fy.x)
(df)
उपचार 1 437.084 437.084 50.661 .000
> 0.01
बद्धि
ु लब्धि 2 45.718 22.859 2.650 0.077
सार्थक नहीं है
उपचार x > 0.01
2 28.550 14.275 1.655 0.198
बद्धि
ु लब्धि सार्थक नहीं है
त्रुटि 78 672.950 8.628
योग 83
माध्यमिक स्तर के विद्यार्थियों की संस्कृ त विषय में शैक्षिक उपलब्धि पर निर्माणवादी उपागम की प्रभावशीलता 97
की अतं :क्रिया का ससं ्कृ त भाषा की उपलब्धि पर उपलब्धि को सहचर मानते हुए उपचार, जेंडर
कोई सार्थक प्रभाव नहीं पड़ता है, स्वीकृ त की जाती तथा इनकी अतं :क्रिया का संस्कृ त विषय की
है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि संस्कृ त भाषा उपलब्धि पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन
की पर्वू उपलब्धि को सहचर मानते हुए प्रयोगात्मक करना था। इस शोध कार्य में प्रयोगात्मक समहू
तथा नियंत्रित समहू के औसत बद्धि ु लब्धि, औसत से को निर्माणवादी उपागम की सहायता से शिक्षण
अधिक बद्धि ु लब्धि तथा औसत से कम बद्धि ु लब्धि (उपचार) दिया गया तथा नियंत्रित समहू को
की संस्कृ त भाषा की उपलब्धि के माध्य प्राप्तांकों परंपरागत विधि से शिक्षण (उपचार) दिया
में कोई सार्थक अतं र नहीं है। इस प्रकार प्रभावी रूप गया। ससं ्कृ त भाषा में उपलब्धि सबं ंधी प्रदत्तों
से कहा जा सकता है कि यदि ससं ्कृ त भाषा की पर्वू के संकलन के लिए शोधार्थी द्वारा स्वनिर्मित
उपलब्धि को सहचर मानकर निर्माणवादी उपागम संस्कृ त उपलब्धि परीक्षण का उपयोग किया
की सहायता से विद्यार्थियों को संस्कृ त भाषा सीखने गया। ससं ्कृ त उपलब्धि परीक्षण की सहायता
का अवसर दिया जाता है, तो बद्धि ु लब्धि के तीनों से एकत्रित आँकड़ों का जेंडर के आधार पर
स्तरों (औसत, औसत से अधिक तथा औसत से उनकी अतं :क्रिया के विश्लेषण के लिए 2×2
कम) के विद्यार्थी समान रूप से लाभान्वित होते हैं। कारक सह प्रसरण विश्लेषण का उपयोग किया
3. माध्यमिक स्तर पर कक्षा 9 के विद्यार्थियों गया। आँकड़ों के विश्लेषण के पश्चात् प्राप्त
की ससं ्कृत विषय में पूर्व उपलब्धि को परिणामों को तालिका 4 में दिया गया है।
सहचर मानते हुए उपचार, जेंडर तथा इनकी तालिका 4 का अवलोकन करने पर स्पष्ट होता
अंत:क्रिया का ससं ्कृत भाषा की उपलब्धि है कि ससं ्कृ त भाषा की पर्वू उपलब्धि को सहचर
पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन मानते हुए स्वातन्त्र्य की मात्रा (1,80) पर जेंडर के
इस शोध का तृतीय उद्देश्य माध्यमिक स्तर पर समायोजित F का मान 1.280 है। जिसकी सार्थकता
कक्षा 9 के विद्यार्थियों की ससं ्कृ त विषय में पर्वू का मान 0.261 है, जो कि 0.01 सार्थकता स्तर पर
तालिका 4— उपचार, जेंडर तथा इनकी अंत:क्रिया का ससं ्कृत भाषा की
उपलब्धि का 2×2 कारक सह प्रसरण विश्लेषण का सारांश
विचरण का स्वातन्त्र्य का वर्गों का योग माध्यों का वर्ग F मान सार्थकता टिप्पणी
स्रोत अंश (df) (SSy.x) (MSSy.x) (Fy.x)
उपचार 1 273.715 273.715 31.407 .000
जेंडर 1 11.154 11.154 1.280 .261 0.01 सार्थक नहीं
उपचार x जेंडर 1 43.654 43.654 5.009 0.028 0.01 सार्थक नहीं
त्रुटि 80 697.207 8.715
योग 83
98 भारतीय आधिु नक िशक्षा – जनवरी 2020
सहायता से ससं ्कृ त भाषा सीखने का अवसर शैक्षिक निहितार्थ का निरूपण करते हुए यह कहा जा
प्रदान किया जाता है, तो छात्र एवं छात्राएँ समान सकता है कि यह शोध विद्यार्थियों को अधिकतम
रूप से नवीन ज्ञान को सीखते हैं। अधिगम के लिए मार्ग प्रशस्त करे गा, जो कि
शैक्षिक निहितार्थ निर्माणवादी दर्शन का मखु ्य ध्येय भी है। इस शोध
के आधार पर विद्यार्थी अपनी सक्रिय सहभागिता
ससं ्कृ त आयोग (1956 एवं 2012) ने यह सिफ़ारिश
को सनि ु श्चित करने के साथ ही यह समझ सकें गे
की है कि पारंपरिक संस्कृ त ज्ञान को आधनि ु क कि समस्त शिक्षा एव शिक्षण की प्रक्रिया के कें द्र
ं
शिक्षा प्रणाली से जोड़ा जाए। इस बिंदु को ध्यान
में वे स्वयं हैं, न कि पाठ्यक्रम अथवा शिक्षक।
में रखते हुए यह कहा जा सकता है कि यह शोध इसी के साथ इस शोध के माध्यम से विद्यार्थी मक्त
ु
अध्ययन परु ातन ससं ्कृ त शिक्षा एवं आधनिु क शिक्षा अथवा आत्म अनशास ु न की प्रासंगिकता को भी
प्रणाली (निर्माणवाद) के बीच एक सेतु का निर्माण समझ सकें गे। इसके अतिरिक्त यह कहा जा सकता
कर सकता है। यह अध्ययन संस्कृ त भाषा-शिक्षण है कि यह अध्ययन भावी शोधार्थियों के लिए एक
को एक नई दृष्टि प्रदान करे गा। जिससे कि शिक्षक आधार प्रदान करे गा। इसके अतिरिक्त, पालकों
अपनी शिक्षण विधियों में एवं शिक्षार्थी अपने (अभिभावकों) को भी यह दृष्टि प्रदान करे गा कि उन्हें
आचरणों में यत्किंचित परिवर्तन अवश्य कर सकें गे। अपने बच्चों के साथ कै सा व्यवहार करना चाहिए,
निश्चित रूप से यह शोध शिक्षकों एवं शिक्षार्थियों जिससे कि बच्चों को आज़ादी इस रूप में प्राप्त हो
के मध्य पारस्परिक अतं :क्रिया को बढ़ावा देगा तथा सके कि वे अपने जीवन में जो कुछ भी बनना चाहते
शिक्षण-अधिगम के वातावरण को मनोवैज्ञानिक हैं, बन सकें अर्थात् बालकों के मन पर अभिभावकों
आधार प्रदान करे गा। विद्यार्थियों के विशेष सदं र्भ में के विचार कदापि नहीं थोपे जाने चाहिए।
सदं र्भ
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बहुभाषी कक्षा
एक सस
ं ाधन
उमेश चमोला*
विद्यालय में विभिन्न भाषा, विश्वास, रीति-रिवाज और परंपराओ ं का निर्वहन करने वाले अभिभावकों के बच्चे पढ़ने
आते हैं। वे स्थानीय ज्ञान को अपनी मातृभाषा में प्रचलित शब्दों के माध्यम से ही व्यक्त करते हैं। ये शब्द कक्षा शिक्षण
में प्रयक्ु त भाषा से अलग भी हो सकते हैं। इसलिए कक्षा-कक्ष में सचालित ं शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया में शिक्षक को
उन भाषाओ ं को भी महत्व देना चाहिए जो स्थानीय समदा ु य में प्रयोग की जाती हैं। इससे कक्षा में स्थानीय भाषा पर
आधारित ज्ञान की साझेदारी का अवसर प्राप्त होता है। बच्चे इस ज्ञान को अपने विषय की पाठ्यवस्तु से जोड़ने में
सफल हो पाते हैं। विषय के प्रति उनका गहरा जड़ु ाव हो जाता है। वे विषयगत अवधारणाओ ं को समझने में भी स्थानीय
ज्ञान का प्रयोग करने लगे हैं। इसलिए जिस कक्षा में अलग-अलग भाषाओ ं का प्रयोग करने वाले विद्यार्थी होते हैं, वह
भाषाई दृष्टि से उतनी ही समृद्ध होती है। इस लेख में बहुभाषी शिक्षण का सबं धं भाषा विषय तक ही सीमित नहीं है,
अपितु अन्य विषयों को भी अभिन्न अगं बताया गया है। कई बार स्थानीय भाषा में प्रचलित शब्द और शिक्षण माध्यम
के रूप में प्रयक्ु त भाषा में आए समान शब्दों का अर्थ भिन्न-भिन्न होता है। यहाँ न के वल शिक्षक, अपितु अकादमिक
विशेषज्ञ, अनश्रु वणकर्ता और अधिकारियों को भी समदा ु य में प्रचलित भाषाओ ं का ज्ञान होना चाहिए। तभी सार्थक
रूप से बहुभाषी कक्षा एक ससं ाधन के रूप में प्रयोग की जा सकती है।
विद्यालय लघु समाज का प्रतिनिधित्व करता है। यहाँ भी हो सकते हैं। इसलिए कक्षा-कक्ष में संचालित
विभिन्न भाषा, विश्वास, रीति-रिवाज और परंपराओ ं शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया में शिक्षक को उन भाषाओ ं
का निर्वहन करने वाले अभिभावकों के बच्चे पढ़ने को भी महत्व देना चाहिए जो स्थानीय समदु ाय में
आते हैं। विभिन्न समदु ायों में प्रचलित विश्वास, प्रयोग की जाती हैं। अतः शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया
रीति-रिवाज, तीज-त्यौहार, मेले, खानपान, औषधि में बहुभाषी कक्षा को एक संसाधन के रूप में प्रयोग
आदि से संबंधित स्थानीय ज्ञान पर आधारित कई करना चाहिए।
शब्द प्रचलित होते हैं। विद्यालय में पढ़ने वाला बच्चा राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरे खा 2005 के
इन शब्दों के बारे में जानकारी रखता है। वह स्थानीय अनसु ार,‘‘बहुभाषिकता बच्चे की अस्मिता का
ज्ञान को इन शब्दों के माध्यम से ही व्यक्त करता निर्माण करती है। इसका संसाधन के रूप में उपयोग,
है। ये शब्द कक्षा शिक्षण में प्रयक्ु त भाषा से अलग कक्षा-कक्ष की कार्यनीति का हिस्सा बनाना तथा उसे
*शिक्षक-प्रशिक्षक, राज्य शैक्षिक अनसु ंधान और प्रशिक्षण परिषद,् देहरादनू , उत्तराखण्ड 248001
102 भारतीय आधिु नक िशक्षा – जनवरी 2020
लक्ष्य के रूप में रखना रचनात्मक भाषा शिक्षक का था कि चीड़ के बीजों की विशिष्ट संरचना (बीज
कार्य है।” जो कक्षा जितनी बहुभाषिक होगी अर्थात् के पीछे पँछू जैसी सरं चना) उसे वायु के माध्यम से
जिस कक्षा में भिन्न भाषा-भाषी विद्यार्थी होंगे, वह एक स्थान से दसू रे स्थान तक ले जाने में मदद करती
उतनी ही समृद्ध होगी। बहुभाषी कक्षा को संसाधन के है। शिक्षण के दौरान उसने अनभव ु किया कि बच्चे
रूप में प्रयोग करने के लिए एक शिक्षक को अपनी चीड़ के रूप में एक अजनबी पेड़ की कल्पना कर
शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया में विद्यार्थियों द्वारा दैनिक रहे हैं। उसने बच्चों से पछू ा, ‘‘क्या आपने चीड़ का
जीवन में प्रयोग की जाने वाली भाषाओ ं को महत्व पेड़ देखा है?”, ‘‘नहीं”, बच्चों ने एक स्वर में कहा।
देना होगा। इससे उन्हें शिक्षण में अपनापन महससू जबकि चीड़ के पेड़ बच्चों के गाँव के पास के जंगल
होगा। वे शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया से जड़ु ाव महससू में विद्यालय से ही दिखाई दे रहे थे। उसने बच्चों से
करें गे। वे कक्षा-कक्ष में अध्यापित विषय-वस्तु को उनकी स्थानीय भाषा गढ़वाली में पछू ा, ‘‘क्या तमु ने
उनके द्वारा परिवेश के अवलोकन पर आधारित कुलें (चीड़ का स्थानीय नाम) का पेड़ देखा है?”,
स्थानीय ज्ञान से जोड़ पाएँगे। एक रचनात्मक शिक्षक ‘‘हाँ”, सभी बच्चों ने उत्साह से कहा। लेखक ने अब
शिक्षण के दौरान शिक्षण माध्यम के रूप में प्रयक्ु त चीड़ के बारे में बच्चों से बातचीत करनी शरू ु कर दी।
भाषा के अलावा बच्चों द्वारा दैनिक जीवन में प्रयोग बच्चों ने चीड़ के बारे में कई बातें साझा की, जैसे—
की जाने वाली भाषाओ ं को भी महत्व देता है। चीड़ के पेड़ के तने से लीसा निकलता है। लीसे से
इस प्रकार के शिक्षण के लिए वह बच्चों से तेल बनाया जाता है। इसके बीज पकाकर खाए जाते
पछू कर समदु ाय में प्रचलित रीति-रिवाज, परंपरा, हैं। लेखक को पता चला कि बच्चों ने चीड़ के बीजों
तीज-त्यौहार, पेड़-पौधे, आस-पास की वस्तुएँ, का प्रत्यक्ष अवलोकन किया है। इसलिए वे चीड़ के
जंगली और पालतू जंतओ ु ं के स्थानीय भाषा में बीज की संरचना से भी परिचित हैं।
प्रयक्ु त नामों की सचू ी बना सकता है। वह शिक्षण बहुभाषी शिक्षण का मसला भाषा शिक्षण तक ही
में आवश्यकतानसु ार इन नामों का प्रयोग कर सकता सीमित नहीं है, अपितु अन्य विषयों के शिक्षण से भी
है। वह शिक्षण प्रक्रिया में विशेषकर प्राथमिक स्तर इसका सीधा सबं धं है। इस सबं धं में राष्ट्रीय पाठ्यचर्या
पर बच्चों को स्थानीय भाषा पर आधारित ज्ञान को की रूपरे खा 2005 में वर्णित यह दृष्टिकोण प्रासगि ं क
साझा करने का अवसर प्रदान कर सकता है। है— ‘विज्ञान, सामाजिक विज्ञान या गणित की कक्षाएँ
विषयगत अवधारणाओ ं को स्पष्ट करने में भी एक तरह से भाषा की ही कक्षा होती हैं। किसी
बच्चों के परिवेश की भाषा कितनी महत्वपर्णू होती विषय को सीखने का मतलब है उसकी अवधारणाओ ं
है? इस संदर्भ में लेखक अपने शिक्षण अनभव ु को सीखना, उसके बारे में आलोचनात्मक ढगं से
को साझा करना प्रासंगिक समझता है। लेखक की चिन्तन करना और उसके बारे में चर्चा करना।’
नियक्तिु विज्ञान शिक्षक के रूप में दरू स्थ क्षेत्र के एक ऐसा करना तभी सभव ं है जब इन विषयों के
विद्यालय में हुई। लेखक को विज्ञान में चीड़ के बीजों शिक्षण में भी भाषा की विविधता के प्रयोग को महत्व
के प्रकीर्णन को समझाना था। लेखक स्पष्ट कर रहा दिया जाए। किसी विषय में कई बार बच्चों के द्वारा
बहुभाषी कक्षा एक संसाधन 103
दैनिक जीवन में प्रयोग की जाने वाली भाषा और ऐसी परिस्थिति में शिक्षक को बच्चे को समझाना
शिक्षण माध्यम के रूप में प्रयोग की जाने वाली भाषा के होगा कि उसने वाक्यांश का जो अर्थ बताया; वह
एक ही जैसे शब्दों के अलग-अलग अर्थ होते हैं। ऐसी स्थानीय भाषा के परिप्रेक्ष्य में सही है, किंतु जो पाठ
स्थिति में विषयगत अवधारणाओ ं को समझने में बच्चों पढ़ाया जा रहा है, वहाँ पर उसका उत्तर भिन्न है।
को कठिनाई महससू होती है। इसे दो वास्तविक शिक्षण उत्तराखण्ड के कुछ विद्यालयों में नेपाल
अनभवु ों के दृष्टांत से स्पष्ट किया जा रहा है — और बिहार से आए दिहाड़ी और मज़दरू ी करने
•• दृष्टांत एक— उत्तराखण्ड के गढ़वाल मण्डल वाले अभिभावकों के बच्चे भी पढ़ने आते
के एक गाँव के दरू स्थ विद्यालय में एक विज्ञान हैं। इनके द्वारा दैनिक जीवन में बोली जाने
शिक्षक ‘गति’ विषय पर शिक्षण कर रहे थे। उन्होंने वाली भाषा अन्य बच्चों की भाषा से अलग
बच्चों से पछू ा, ‘‘क्या तमु गति के बारे में जानते होती है। एक रचनात्मक शिक्षक शिक्षण में इन
हो?” एक बच्चा तपाक से बोला, ‘‘जी, गति मनषु ्य बच्चों की भाषा को भी सम्मान और महत्व
में मरने के बाद की जाती है।” बच्चे के परिवेश की देता है जिससे वे कक्षा शिक्षण में अपने को
भाषा में गति शब्द का अर्थ दाह ससं ्कार से है। बच्चे अलग-थलग महससू न कर सकें , वे अपनी भाषा
का उत्तर उसके अपने परिवेश के अवलोकन पर के साथ-साथ दसू री भाषाएँ भी सीख सकें । कई
आधारित है। इसे गलत नहीं ठहराया जा सकता। अध्ययनों से पता चला है कि द्विभाषी क्षमता
यहाँ पर शिक्षक का कर्तव्य है कि वह बच्चे की सज्ं ञानात्मक वृद्धि, सामाजिक सहिष्णुता, विस्तृत
स्थानीय भाषा को सम्मान देते हुए बताए कि गति चितं न और बौद्धिक उपलब्धियों के स्तर को बढ़ा
का मतलब जो वह बता रहा है; वह भी सही है, किंतु देती है (एन.सी.एफ 2005, पृष्ठ सखं ्या 42)।
बहुभाषी कक्षा का तात्पर्य ऐसी कक्षा से नहीं है
यहाँ पर गति से तात्पर्य दसू रे सदं र्भों में है।
जिसमें शिक्षण माध्यम के रूप में प्रयक्ु त भाषा (उदाहरण
•• दृष्टांत दो— गढ़वाल के एक विद्यालय में बच्चों
के लिए, हिदं ी) के साथ-साथ स्थानीय बोलचाल की
से पछू ा गया, ‘‘मैया! मोरि मैं नहिं माखन खायो” भाषा को ही महत्व दिया जाता है, अपितु ऐसी कक्षा
का अर्थ बताओ। एक बच्चे ने उत्तर दिया, ‘‘हे से भी है जहाँ इन भाषाओ ं के अलावा द्वितीय भाषा,
माता! मझु े खिड़की में मक्खी ने नहीं खाया।” जैस—े अग्ं जरे ़ी को भी स्थान दिया जाता है। भारत के
स्थानीय गढ़वाली भाषा में मोरि का अर्थ ‘खिड़की’ बहुभाषी समाज में एक वैश्विक भाषा के रूप में अग्ं जरे ़ी
और माखन का अर्थ ‘मक्खी ने’ है। कक्षा के अन्य को भी सम्मान प्राप्त है। यहाँ यह बात उल्लेखनीय है
बच्चे जिन्हें इस काव्यांश का सदं र्भित अर्थ पता है, कि अग्ं जरे ़ी भाषा शिक्षण के कारण बच्चों की स्थानीय
उस बच्चे का मज़ाक उड़ा सकते हैं। एक शिक्षक भाषा की उपेक्षा न हो। प्रारंभिक स्तर पर विषयगत
द्वारा अनायास ही बच्चों द्वारा किए उपहास में अवधारणाओ ं को समझने और स्पष्ट करने में द्वितीय
सम्मिलित होने की सभं ावना भी हो सकती है। भाषा की तल ु ना में मातृभाषा अधिक प्रभावशाली
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सिद्ध होती है। बहुभाषी कक्षा के शिक्षक और राज्य अपनी शिक्षण योजना में सम्मिलित करे और शिक्षण
तथा जि़ला/विकासखण्ड स्तरीय अधिकारियों, योजना सोच-विचार कर तैयार की जाए। विभिन्न
अकादमिक विशेषज्ञों और अनश्रु वणकर्ताओ ं को शैक्षिक अनसु धं ानों से सिद्ध हो चक ु ा है कि विद्यार्थी
अग्ं रेज़ी के साथ-साथ उस क्षेत्र में प्रचलित स्थानीय उस भाषा के माध्यम से सहज और प्रभावी ढगं से
भाषा की आधारभतू जानकारी का होना आवश्यक है। सीखता है, जिसे वह अच्छी तरह जानता हो और
इसे एक दृष्टांत के माध्यम से समझा जा सकता है। एक शिक्षक उस भाषा में बेहतर शिक्षण कर पाता है जिसमें
बार किसी विद्यालय में अनश्रु वण करने वाले विशेषज्ञ उसकी दक्षता हो (अग्निहोत्री, 2007)। यदि बच्चों
व अधिकारी ने बच्चों से पछू ा, ‘‘अग्ं जरे ़ी में सज्ं ञा को द्वारा बोली/समझी जाने वाली भाषा जो कि प्राय:
क्या कहते हैं?”, एक बच्चे ने कुछ झिझकते हुए कहा, उनकी मातृभाषा होती है और शिक्षक द्वारा शिक्षण में
‘‘जी! नि ओन।” विशेषज्ञ ने समझा कि बच्चा नाउन को प्रयोग की जाने वाली भाषा भिन्न हो तो ऐसी स्थिति
त्रुटिवश ‘नि ओन’ कह रहा है। जबकि स्थानीय भाषा में उचित शैक्षणिक परिणाम प्राप्त नहीं होंग।े इसलिए
गढ़वाली-कुमाउंनी में इसका अर्थ ‘मझु े नहीं आता है’ अपेक्षित शैक्षणिक परिणामों के लिए आवश्यक है कि
होता है। इसी प्रकार एक बच्चे से पछू ा गया, ‘‘सर्वनाम शिक्षक बच्चों द्वारा प्रयक्ु त भाषा में भी दक्षता प्राप्त
किसे कहते हैं?” बच्चे को सर्वनाम की आधी परिभाषा करें और अपने शिक्षण में उसे महत्व दें।
याद थी। बच्चे ने कहा, ‘‘जी! परुू नि ओन” (स्थानीय
भाषा में इसका अर्थ है मझु े परू ा नहीं आता है।)। पछू ने निष्कर्ष
वाले विशेषज्ञ को स्थानीय भाषा की जानकारी नहीं थी। बहुभाषी कक्षा शिक्षण स्थानीय भाषा पर आधारित
उसने समझा कि बच्चा प्रोनाउन को गलती से ‘परुू नि ज्ञान को साझा करने का अवसर प्रदान करता है, जिससे
ओन‘ कह रहा है। बच्चे उस ज्ञान का प्रयोग विषयगत अवधारणाओ ं को
अतः बहुभाषी कक्षा सामाजिक और राष्ट्रीय समझने में करते हैं। बहुभाषी शिक्षण, भाषा शिक्षण
स्तर पर एक ऐसा ससं ाधन है जिसकी तल ु ना किसी तक ही सीमित नहीं है, अपितु अन्य विषयों के शिक्षण
भी अन्य राष्ट्रीय ससं ाधन से की जा सकती है में भी यह अधिगम ससं ाधन के रूप में प्रयोग किया जा
(एन.सी.एफ. 2005 )। बहुभाषी कक्षा को ससं ाधन के सकता है। इसलिए शिक्षक को स्थानीय भाषा का ज्ञान
रूप में तभी प्रयोग किया जा सकता है जब शिक्षक इसे अर्जित कर बच्चों को विद्यालय में पढ़ाना चाहिए।
सदं र्भ
अग्निहोत्री, आर. के . 2007. आइडेंडिटी एडं मल्टीलिंगअ ु लिटी — द के स ऑफ़ इडिय ं ा. संपादन में सईु , ए. और टोलेफ़सन,
जें. डब्ल्यू. लैंग्वेज पॉलिसी, कल्चर एडं आइडेंटिटी इन एशियन कॉन्टैक्स्ट. रोटलेज, न्यूयाॅर्क .
मल्टीलिंगअ ु ल एजक ु े शन रिसर्च. http://blog.britishcouncil.org.in/टुवर्ड ए मल्टीलिंगअ ु ल एजकु े शन रिसर्च
पार्टनरशिप फ़ॉर इडिय ं ा.
राष्ट्रीय शैक्षिक अनसु धं ान और प्रशिक्षण परिषद.् 2006. राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा 2005. पृ. 42. रा.शै.अ.प्र.प., नयी दिल्ली.
शैक्षिक शोध में सांख्यिकी अनुप्रयोग एवं व्याख्या
पर हिंदी भाषा में विकसित मॉड्यूल की
प्रभावशीलता का अध्ययन
एस. के . त्यागी*
इस शोध अध्ययन के अतं र्गत शोधार्थी द्वारा शैक्षिक शोध में सांख्यिकी के अनप्रु योग तथा परीक्षणों के परिणामों
की व्याख्या से जड़ु े ग्यारह प्रकरणों पर हिदं ी भाषा में मॉड्यलू निर्मित किए गए। देवी अहिल्या विश्वविद्यालय,
इदं ौर के शिक्षाशास्त्र विषय के 2018–19 सत्र के प्री पीएच.डी. कोर्स वर्क के 20 शोधार्थियों पर इन मॉड्यलू ्स का
परीक्षण किया गया। शोधार्थियों से प्राप्त प्रतिपषु ्टि के आधार पर मॉड्यलू ्स का अति
ं म प्रारूप तैयार किया गया।
विकसित मॉड्यल ू की प्रभावशीलता का परीक्षण करने के उद्देश्य से 15 दिन की एक कार्यशाला आयोजित की
गई। कार्यशाला में छह विभिन्न विश्वविद्यालयों के 36 प्रतिभागियों ने भाग लिया। इन प्रतिभागियों में 64 प्रतिशत
शोधार्थी, 28 प्रतिशत शोध पर्यवेक्षक तथा 8 प्रतिशत शिक्षक-प्रशिक्षक सम्मिलित थे। शोध उपकरणों में क्रमशः
सांख्यिकी अनप्रु योग तथा सांख्यिकी व्याख्या पर उपलब्धि के दो परीक्षण तथा मॉड्यल ू के प्रति प्रतिक्रिया मापनी
का उपयोग किया गया। शोध में एकल समहू पर्वू -पश्च परीक्षण आकल्प प्रयक्ु त किया गया। प्रदत्त विश्लेषण
हेतु एस.पी.एस.एस. की सहायता से सह-संबंधित t-टेस्ट का प्रयोग किया गया। विकसित मॉड्यल ू सांख्यिकी
अनप्रु योग, सांख्यिकी व्याख्या तथा सांख्यिकी अनप्रु योग और व्याख्या में उपलब्धि के पदों पर प्रभावी पाया गया।
प्रभाव आकार माप कोहन ‘d’ के मान 1.41 से 2.02 के बीच थे, जिसका अर्थ है कि उपचार का प्रभाव अत्यधिक
था। उपचार के प्रति प्रतिभागियों की प्रतिक्रिया भी 12 प्रतिशत विचरणशीलता के साथ 80 प्रतिशत सकारात्मक
पाई गई, जो उपचार की प्रभावशीलता को दर्शाती है।
भारत सरकार के 5 जल ु ाई, 2016 के राजपत्र द्वारा तथा पंजीकृ त शोधार्थियों की संख्या में तेज़ी से
विश्वविद्यालय अनदु ान आयोग (एम. फिल./ पीएच.डी. बढ़ोतरी होगी। वर्तमान विनियम, 2009 में, किसी
उपाधि प्रदान करने हेतु न्नयू तम मानदडं एवं प्रक्रिया) नियमित संकाय सदस्य को शोध पर्यवेक्षक बनने के
विनियम, 2016, को अधिसूचित किया गया। इस लिए, पीएच.डी. उपाधि प्राप्त करने के बाद पाँच वर्ष
विनियम में शोध पर्यवेक्षकों की मान्यता हेतु पात्रता का शिक्षण अनभु व तथा मानक शोध पत्रिकाओ ं में
में शिथिलता की गई है, जिसके परिणामस्वरूप कम से कम पाँच शोध पत्रों का प्रकाशन आवश्यक
विश्वविद्यालयों में मान्यता प्राप्त शोध पर्यवेक्षकों था। लेकिन विनियम, 2016 में, पीएच.डी. उपाधि
* सीनियर फे ़लो, आई.सी.एस.एस.आर. शिक्षा अध्ययनशाला, देवी अहिल्या विश्वविद्यालय, इदं ौर, मध्य प्रदेश 452001
106 भारतीय आधिु नक िशक्षा – जनवरी 2020
प्राप्त करने के बाद पाँच वर्ष का शिक्षण अनभु व का पर अधिकतम मक्त ु ऑनलाइन पाठ्यक्रम विकसित
प्रतिबंध तो हटा ही दिया गया है, साथ ही मानक किए जाएँ तथा यूट्यूब एवं अन्य वेबसाइट्स पर
पत्रिकाओ ं में प्रकाशित शोध पत्रों की संख्या भी पाँच उपलब्ध मक्त ु अधिगम संसाधनों का सीखने में
से घटाकर दो कर दी गई है। इस छूट के कारण जैसे भरपरू उपयोग किया जाए।
ही किसी नियमित शिक्षक ने पीएच.डी. उपाधि प्राप्त यद्यपि सभी वीडियो व्याख्यान शोधार्थियों के
की, वैसे ही वह शोध पर्यवेक्षक बनने हेतु आवेदन लिए काफ़ी उपयोगी हो सकते हैं, किंतु हिदं ी भाषी
कर सकता है। नि:संदहे विश्वविद्यालयों का प्रमख ु शोधार्थियों के लिए ये व्याख्यान चनु ौतीपूर्ण हो सकते
कार्य नए ज्ञान का सृजन करना है, न कि ज्ञान का हैं। क्योंकि ये व्याख्यान प्रायः अग्ं रेज़ी भाषा में होते हैं,
हस्तांतरण करना, ऐसे में विश्वविद्यालय अनदु ान जिनका निर्माण विदेशी विशेषज्ञों अथवा महानगरों
आयोग का यह कदम निश्चित ही स्वागत योग्य है। की चनि ु ंदा ससं ्थाओ ं के विशेषज्ञों द्वारा किया जाता
फिर भी बावजदू इसके यह तो ध्यान रखना ही होगा है। इसलिए एक साधारण हिदं ी भाषी शोधार्थी के
कि शोध पर्यवक्ष े कों को मान्यता प्रदान करने हेतु लिए इन व्याख्यानों को समझना मशु ्किल होता है।
निर्धारित मानदडं में लचीलेपन के परिणामस्वरूप साथ ही, इन वीडियो व्याख्यानों का प्रमख ु उद्देश्य
कहीं नए पर्यवेक्षकों और उनके मार्गदर्शन में शोध विषय की समझ विकसित करना होता है। इसलिए
कर रहे शोधार्थियों के शोध कौशल से समझौता इनकी शैली विवरणात्मक अथवा व्याख्यात्मक
तो नहीं किया जा रहा है। अतः यह आवश्यक है होती है। इन व्याख्यानों में प्रायोगिक कार्य द्वारा
कि शोधार्थियों और शोध पर्यवेक्षकों के शोध व्यावहारिक कौशलों को विकसित करने के अवसर
संबंधी कौशल के निरंतर उन्नयन के प्रयास किए अपेक्षाकृ त कम होते हैं। इसलिए शोध कौशल पर
जाएँ। जिनमें सर्वप्रथम यह है कि नए मान्यता प्राप्त हिदं ी भाषा में विकसित अधिगम मॉड्यूलों द्वारा इन
पर्यवेक्षकों तथा शोधार्थियों के लिए अनसु ंधान तथा समस्याओ ं का समाधान किया जा सकता है।
प्रदत्त विश्लेषण विधियों पर निरंतर सशक्तिकरण अधिगम का मॉड्यूल उपागम
कार्यक्रम आयोजित किए जाएँ। साथ ही, कुछ मॉड्यूल एक स्व-अधिगम सामग्री है, जिसके द्वारा
वैधानिक उपबंधों के आधार पर शोधार्थियों और शोधार्थी स्वतंत्र रूप से अधिगम करता है। ह्सयू ्टन
पर्यवक्षे कों की शोध कौशल उन्नयन कार्यशालाओ ं (1972) के अनसु ार, “मॉड्यूल उन अनभु वों का
में प्रतिभागिता सनिु श्चित की जाए। उदाहरण के लिए, समचु ्चय है, जिनका निर्माण शोधार्थियों द्वारा
शोध पर्यवेक्षकों को प्रारंभ में चार में से दो शोधार्थी निश्चित उद्देश्यों के प्रदर्शन में सहायता करना होता
लेने की अनमु ति दी जाए, किंतु दो/ निश्चित सखं ्या है।” खसनवीस (1976) द्वारा मॉड्यूल को एक ऐसा
में क्षमता संवर्धन कार्यक्रमों में सफलतापूर्वक भाग साधन बताया गया है जो विद्यार्थी की अधिगम
लेने के बाद शेष दो शोधार्थी लेने की छूट दिए जाने प्रक्रिया को व्यवस्थित करता है तथा उन्हें अपने
के बारे में सोचा जा सकता है। दसू रा, शोध विधि अधिगम अनभु वों के प्रति उत्तरदायी बनाता है।
शैक्षिक शोध में सांख्यिकी अनप्रु योग एवं व्याख्या पर हिदं ी भाषा... 107
दसू रे शब्दों में, मॉड्यूल विद्यार्थियों को अधिगम के आवश्यक तत्वों का अध्ययन किया। शोध का प्रमख ु
विभिन्न मार्गों, कार्यों, अनप्रु योगों तथा खोजबीन जैसी उद्देश्य विद्यार्थी-शिक्षकों की उपलब्धि के सदं र्भ में
गतिविधियों में सलि ं प्त रखता है। मल ू तः मॉड्यूल एक मॉड्यूल उपागम की तल ु ना पारंपरिक शिक्षण उपागम
सक्रिय तथा विद्यार्थी-कें द्रित अधिगम पर बल देने से करना था। के रल के 19 महाविद्यालयों से चयनित
वाला उपागम है। शिक्षकों के न्नयू तम मार्गदर्शन के 170 विद्यार्थी-शिक्षकों पर यह अध्ययन किया
बावजदू मॉड्यूल आधारित अधिगम की सहायता से गया। अध्ययन में पाया गया कि मॉड्यूल उपागम
विद्यार्थी निर्धारित ज्ञान तथा कौशल प्राप्त कर सकते हैं। से अधिगम करने वाले विद्यार्थी-शिक्षकों की माध्य
साथ ही मॉड्यूल उपागम अध्ययन एक व्यक्ति-कें द्रित उपलब्धि, पारंपरिक शिक्षण उपागम से अधिगम करने
विधा है, जो विद्यार्थी को अपनी गति एवं सविधा ु नसु ार वाले विद्यार्थी-शिक्षकों से सार्थक रूप से उच्च थी।
अध्ययन करने की अनमु ति देती है। जोशी (1999) ने शैक्षिक तकनीकी विषय
मॉड्यूल निर्माण के सोपान की उपलब्धि के पदों में मॉड्यूल उपागम की
मॉड्यूल विकसित करने में प्रायः निम्न सोपानों का प्रभावशीलता की तल ु ना पारंपरिक विधि से
अनसु रण किया जाता है— की। शिक्षा अध्ययनशाला, इदं ौर के 56 बी.एड.
•• विषय का चयन विद्यार्थी-शिक्षकों के न्यादर्श पर यह शोध कार्य
•• प्रवेशित व्यवहार अथवा पूर्व ज्ञान का निर्धारण किया गया। शोध में पाया गया कि मॉड्यूल उपागम
•• अति ं म व्यवहार अथवा शिक्षण लक्ष्यों का से अध्ययन करने वाले विद्यार्थी-शिक्षकों की माध्य
निर्धारण उपलब्धि, पारंपरिक शिक्षण उपागम से अध्ययन
•• मानदड ं परीक्षण का निर्माण करने वाले विद्यार्थी-शिक्षकों से सार्थक रूप से उच्च
•• विषय-वस्तु विश्लेषण थी। विद्यार्थी-शिक्षकों की प्रतिक्रियाओ ं के सदं र्भ में
•• विषय-वस्तु की मॉड्यूलर प्रस्तुति भी मॉड्यूल उपागम को प्रभावी पाया गया।
•• मॉड्यूल के प्रारम्भिक प्रारूप का क्षेत्र-परीक्षण कोहल (1999) ने भगू ोल विषय में अधिगम
•• प्राप्त प्रतिपषु ्टि के आधार पर मॉड्यूल में
मॉड्यूल की प्रभावशीलता का अध्ययन शिक्षण के
सशं ोधन स्वामित्व तथा गैर-स्वामित्व आव्हयू ों, विद्यार्थियों की
•• मॉड्यूल का अति ं म प्रारूप बद्ु धि तथा अध्ययन आदतों के सदं र्भ में किया है। न्यादर्श
पूर्व शोध अध्ययनों की समीक्षा तथा शोध के रूप में कक्षा 11 के 115 विद्यार्थियों को चनु ा गया।
की आवश्यकता शोध का निष्कर्ष था कि शिक्षण के स्वामित्व आव्हयू
अधिगम मॉड्यूल की प्रभावशीलता से सबं धं ित वाले विद्यार्थियों में भगू ोल सक ं ल्पनाओ ं की प्राप्ति
कुछ चयनित शोध अध्ययनों की समीक्षा इस प्रकार गैर-स्वामित्व आव्हयू की तल ु ना में बेहतर पाई गई।
है— मॉलीकुट्टी (1991) ने शिक्षक शिक्षा में मॉड्यूल चोपड़ा (2002) ने महाविद्यालयी प्राचार्यों के
उपागम की प्रभावशीलता तथा क्रियान्वयन के लिए संप्रेषण कौशल के उन्नयन हेतु स्व-अधिगम मॉड्यूल
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शोध अध्ययन करने का निश्चय किया। यह शोध उपलब्धि का माध्य फलांक उपचार पूर्व माध्य
अध्ययन भारतीय समाज विज्ञान अनसु धा ं न परिषद‚ फलांक से सार्थक रूप से अधिक होगा।
नई दिल्ली द्वारा वरिष्ठ अध्येतावृत्ति योजना 2017–18 •• सांख्यिकी अनप्रु योग तथा व्याख्या पर विकसित
के अतं र्गत समर्थित था। मॉड्यूल से उपचार के पश्च सांख्यिकी
शोध अध्ययन के उद्देश्य अनप्रु योग तथा व्याख्या उपलब्धि का माध्य
शोध अध्ययन के निम्नलिखित उद्देश्य थे — फलांक उपचार पूर्व माध्य फलांक से सार्थक
•• सांख्यिकी अनप्रु योग तथा व्याख्या पर विकसित रूप से अधिक होगा।
मॉड्यूल से उपचार के पूर्व एवं पश्च सांख्यिकी शोध आकल्प
अनप्रु योग उपलब्धि के माध्य फलांकों की शोध अध्ययन में एकल समूह पूर्व-पश्च परीक्षण
तल ु ना करना। आकल्प का उपयोग किया गया था। जिसका
•• साख्यि
ं की अनप्रु योग तथा व्याख्या पर विकसित निरूपण निम्न प्रकार है —
मॉड्यूल से उपचार के पूर्व एवं पश्च साख्यिं की O X O
व्याख्या उपलब्धि के माध्य फलाक ं ों की तल
ु ना जहाँ पर ‘O’ का अर्थ अवलोकन तथा ‘X’ उपचार
करना। हेतु कूट सकं े त है। X के पहले O से आशय पूर्व-परीक्षण
•• सांख्यिकी अनप्रु योग तथा व्याख्या पर विकसित तथा X के बाद आए O से आशय पश्च परीक्षण से है।
मॉड्यूल से उपचार के पूर्व एवं पश्च सांख्यिकी शोध विधि एवं प्रक्रिया प्रयोग हेतु न्यादर्श
अनप्रु योग तथा व्याख्या उपलब्धि के माध्य इस शोध अध्ययन में प्रयोग हेतु सांख्यिकी
फलांकों की तल ु ना करना। अनप्रु योग तथा व्याख्या पर 15 दिवसीय कार्यशाला
•• सांख्यिकी अनप्रु योग तथा व्याख्या पर विकसित का आयोजन किया गया। कार्यशाला के लिए
मॉड्यूल की प्रभावशीलता का प्रतिभागियों की 100 से अधिक प्रतिभागियों का पंजीकरण हुआ,
प्रतिक्रिया के सदं र्भ में अध्ययन करना। जिनमें से 44 प्रतिभागियों ने कार्यशाला में अपनी
शोध परिकल्पनाएँ प्रतिभागिता सनिु श्चित की। 44 प्रतिभागियों में से
शोध अध्ययन में निम्नलिखित परिकल्पनाओ ं का आठ प्रतिभागियों ने अस्वस्थता, पेशवे र जवाबदेही
परीक्षण किया गया था — तथा अन्य व्यक्तिगत कारणों से कार्यशाला पूर्ण नहीं
•• सांख्यिकी अनप्रु योग तथा व्याख्या पर विकसित की। इस प्रकार 36 प्रतिभागियों ने सभी मॉड्यूल
मॉड्यूल से उपचार के पश्च सांख्यिकी अनप्रु योग द्वारा अध्ययन कर कार्यशाला पूर्ण की। इसलिए
उपलब्धि का माध्य फलांक उपचार पूर्व माध्य 36 प्रतिभागियों से ही पूर्व एवं पश्च परीक्षण तथा
फलांक से सार्थक रूप से अधिक होगा। प्रतिक्रिया मापनी पर प्रतिक्रियाएँ प्राप्त की जा सकीं।
•• सांख्यिकी अनप्रु योग तथा व्याख्या पर विकसित अतः कुल न्यादर्श 36 थे। न्यादर्श का विस्तृत विवरण
मॉड्यूल से उपचार के पश्च सांख्यिकी व्याख्या तालिका 1 में प्रस्तुत किया गया है।
110 भारतीय आधिु नक िशक्षा – जनवरी 2020
गए थे, जिनमें से के वल एक सही उत्तर तथा अन्य सात प्रश्नों को यथावत रखा गया, जबकि दो प्रश्नों
तीन गलत विकल्प (डिस्ट्रेक्टर) थे। प्रत्येक सही उत्तर को बदल दिया गया तथा एक प्रश्न की संरचना में
पर एक अक ं देने का प्रावधान रखा गया था, जबकि संशोधन किया गया।
गलत उत्तर पर शून्य अक ं दिया गया। परीक्षण की मॉड्यूल पर आधारित प्रतिक्रिया मापनी
अवधि एक घटं ा निर्धारित की गई थी। मॉड्यूल पर शोधार्थियों की प्रतिक्रिया ज्ञात करने के
निर्मित परीक्षण पर सर्वप्रथम दो विशेषज्ञों की उद्देश्य से मॉड्यूल पर आधारित प्रतिक्रिया मापनी
राय ली गई। जिनमें से एक विशेषज्ञ परीक्षण एवं का निर्माण किया गया। लिकर्ट प्रकार की प्रतिक्रिया
मापन विषय का तथा दसू रा विशेषज्ञ शैक्षिक शोध मापनी में कुल 25 कथन सम्मिलित किए गए,
का था। विशेषज्ञों के मतों के आधार पर आवश्यक जिनमें से 10 कथन नकारात्मक तथा शेष 15 कथन
संशोधन के पश्चात् प्रथम प्रारूप का क्षेत्र-परीक्षण सकारात्मक थे। मॉड्यूल की भाषा, बोधगम्यता,
(ट्राई आउट) एक छोटे न्यादर्श पर किया गया। जिसमें तार्कि कता, प्रस्तुत उदाहरण, कार्यपत्रक, अधिगम
इलाहाबाद विश्वविद्यालय, इलाहाबाद के 10 तथा जाँच प्रश्न आदि पर प्रतिक्रिया को ध्यान में रखते
क्षेत्रीय शिक्षा संस्थान, अजमेर के आठ शोधार्थी हुए कथनों का निर्माण किया गया। प्रत्येक कथन पर
सम्मिलित थे। प्राप्त उत्तरों के विश्लेषण के पश्चात् शोधार्थी को पाँच बिंदओ ु ं (क्रमशः पूर्णतः असहमत,
तीन प्रश्नों की सरं चना में सधा
ु र किया गया तथा एक असहमत, अनिश्चित, सहमत तथा पूर्णतः सहमत)
प्रश्न बदल दिया गया। इस प्रकार अति ं म प्रारूप को के आधार पर प्रतिक्रिया देनी थी। सकारात्मक
रूहेलखण्ड विश्वविद्यालय में आयोजित कार्यशाला कथन हेतु प्रतिक्रिया पर क्रमशः 1, 2, 3, 4 तथा 5
के 33 प्रतिभागियों के एक समूह पर प्रशासित किया अक ं प्रदान किए गए, जबकि नकारात्मक कथन पर
गया। प्राप्त तथ्यों का एस.पी.एस.एस. की सहायता क्रमशः 5, 4, 3, 2 तथा 1 अक ं प्रदान किए गए। इन
से विश्वसनीय गणु ांक क्रोनबेक ज्ञात किया गया, कथनों के अतं में शोधार्थियों से दो प्रश्नों के आधार
जिसका मान 0.624 ज्ञात हुआ। पर मॉड्यूल में सधा ु र हेतु अन्य सझु ाव भी आमत्रिं त
सांख्यिकी व्याख्या उपलब्धि परीक्षण किए गए थे।
शोध में प्रयक्त
ु यह दसू रा परीक्षण था। इस परीक्षण में उपचार हेतु प्रमाप (मॉड्यूल) का निर्माण
विभिन्न प्रदत्तों के विश्लेषण के लिए प्रयक्त
ु उपयक्तु शोधार्थियों, शोध-पर्यवेक्षकों और संकाय सदस्यों
सांख्यिकी परीक्षणों की अवधारणाओ ं तथा टेस्ट के (शिक्षक-प्रशिक्षकों) के लिए उपचार के रूप में
परिणामों की व्याख्या पर आधारित कुल 10 मक्त ु प्रश्न प्रयक्त
ु किए जाने वाले मॉड्यूल के निर्माण में निम्न
सम्मिलित किए गए थे। प्रत्येक प्रश्न हेतु पाँच अक ं प्रक्रियाएँ अपनाई गर्इं —
निर्धारित थे। सांख्यिकी अनप्रु योग उपलब्धि परीक्षण •• पाँच राज्यों के क्रमशः एक-एक विश्वविद्यालय
के साथ-साथ इस परीक्षण का भी छोटे न्यादर्श पर के गत पाँच वर्षों के शोध-प्रबंधों का सांख्यिकी
परीक्षण किया गया। प्राप्त उत्तरों के आधार पर अनप्रु योग की दृष्टि से विश्लेषण।
112 भारतीय आधिु नक िशक्षा – जनवरी 2020
•• विश्लेषण के परिणामों के आधार पर प्रस्तावित द्वारा मॉड्यूल से स्व-अध्ययन किया गया एवं
मॉड्यूल हेतु प्रकरणों का निर्धारण। शोधार्थी द्वारा प्रदत्त संकलन का कार्य भी किया गया।
•• विभिन्न प्रकरणों पर ग्यारह मॉड्यूलों का इस कार्यशाला में भाग लेने वाले कुछ प्रतिभागियों
निर्माण। द्वारा सांख्यिकी अनप्रु योग तथा व्याख्या हेतु अपने
•• निर्मित मॉड्यूल का प्री-पीएच. डी. कोर्स वर्क के लैपटॉप पर एस.पी.एस.एस. सॅाफ़्टवेयर डाउनलोड
दौरान क्षेत्र-परीक्षण (ट्राई आउट)। कर प्रैक्टिस की गई तथा कुछ प्रतिभागियों ने शिक्षा
•• प्राप्त प्रतिपषु ्टि के आधार पर मॉड्यूलों का अध्ययनशाला की कंप्टयू र लैब में प्रैक्टिस की। सपं ूर्ण
अतिं म संशोधित प्रारूप। कार्यशाला प्रतिदिन छह घटं े की अध्ययन अवधि के
इस प्रकार प्रत्येक विकसित मॉड्यूल के शीर्षक साथ निरंतर बिना किसी अवकाश के 15 दिन तक
की जानकारी तालिका 2 में दी गई है। चली। प्रतिभागियों को प्रारंभ में ही बताया गया था
प्रयोग का सच
ं ालन तथा प्रदत्त सक
ं लन कि एक मॉड्यूल परू ा करने के बाद ही उन्हें अगला
प्रक्रिया मॉड्यूल दिया जाएगा। कोई प्रश्न अथवा स्पष्टीकरण
शोधार्थी द्वारा शिक्षा अध्ययनशाला, इदं ौर में 28 की आवश्यकता होने पर प्रतिभागी परियोजनकर्ता
सितंबर से 12 अक्तूबर, 2019 तक 15 दिवसीय (शोधार्थी) से संपर्क कर सकते थे। उन्हें यह भी
कार्यशाला आयोजित की गई थी, जिसमें प्रतिभागियों बताया गया कि यदि मॉड्यूल में किसी भी प्रकार की
तालिका 2— प्रत्येक प्रमाप (मॉड्यूल) का शीर्षक
मॉड्यूल प्रमाप (मॉड्यूल) का शीर्षक
सख्या
ं
1. परीक्षण सांख्यिकी की सार्थकता के विभिन्न उपागम
2. वितरण के प्रसामान्यता की अवधारणा तथा उसके उल्लंघन का प्रबंधन
3. प्रभाव आकार — स्वतंत्र एवं यग्मि ु त न्यादर्श t-परीक्षण
4. द्वि-पंचु ्छीय एवं एक-पंचु ्छीय t-टेस्ट — स्वतंत्र तथा यग्मि
ु त
5. नियोजित एवं यगु ्मवार तल ु नाएँ — एक-मार्गीय प्रसरण तथा सहप्रसरण
विश्लेषण
6. अतं र्क्रिया प्रभाव — द्वि-मार्गीय प्रसरण एवं सहप्रसरण विश्लेषण
7. अप्राचलिक तल ु नाएँ — दो स्वतंत्र समूह
8. अप्राचलिक तल ु नाएँ — K-स्वतंत्र न्यादर्श
9. विलकॉक्सन चिह्नित कोटि यग्मि ु त t-परीक्षण
10. काई वर्ग परीक्षण — अवशिष्ट विश्लेषण तथा प्रभाव आकार
11. रे खीय प्रतिगमन विश्लेषण
शैक्षिक शोध में सांख्यिकी अनप्रु योग एवं व्याख्या पर हिदं ी भाषा... 113
त्रुटि पाई जाए तो वे उसे तत्काल शोधार्थी को बताएँ शोध पर्यवेक्षकों तथा शिक्षक-प्रशिक्षकों के चयनित
ताकि मॉड्यूल में वांछित सधा ु र किए जा सकें । समूह को सांख्यिकी अनप्रु योग उपलब्धि का परीक्षण
प्रथम दिन उद्घाटन सत्र के तत्काल बाद, मॉड्यूल द्वारा अध्ययन कराए जाने के पूर्व तथा पनु ः
सर्वप्रथम संपूर्ण न्यादर्श (प्रतिभागियों) पर सांख्यिकी अध्ययन की समाप्ति पर प्रशासित कर फलांक प्राप्त
अनुप्रयोग तथा व्याख्या उपलब्धि के दो पूर्व किए गए। सांख्यिकी अनप्रु योग उपलब्धि के पूर्व और
परीक्षण प्रशासित किए गए। तत्पश्चात् एक सत्र में पश्च फलांकों के माध्यों की तल ु ना हेतु सहसंबंधित
एस.पी.एस.एस. का प्रारंभिक उन्मुखीकरण दिया t-परीक्षण प्रयक्त
ु करने से पहले परीक्षण की निम्न
गया तथा प्रतिभागियों को विभिन्न प्रकार के अवधारणाएँ जाँची गर्इं —
आँकड़ों की एस.पी.एस.एस. में प्रविष्टि करना •• सांख्यिकी अनप्रु योग उपलब्धि के पूर्व और
बताया गया। अंतिम सत्र में अभ्यास हेतु कुछ पश्च फलांकों के प्रसरणों की समानता की
आँकड़े देकर उन्हें एस.पी.एस.एस. में प्रविष्ट अवधारणा।
करने को कहा गया। प्रतिदिन 15–20 मिनट का •• सांख्यिकी अनप्रु योग उपलब्धि के पूर्व और
समस्या-समाधान सत्र रखा गया था, जिसमें कुछ पश्च फलांकों के अतं रों के प्रसामान्य होने की
ऐसे बिंदओ ु ं पर संपूर्ण समूह में चर्चा आयोजित अवधारणा।
की जाती थी जो अधिकांश प्रतिभागियों के •• पूर्व और पश्च फलांकों में रे खीय सहसब ं ंध की
लिए आवश्यक तथा प्रासंगिक थे। कई बार ऐसे अवधारणा।
प्रतिभागियों को, जो अन्य की अपेक्षा शीघ्र प्रत्येक अवधारणा की जाँच एस.पी.एस.एस. के
मॉड्यूल पूरा कर लेते थे, दूसरों की सहायता करने माध्यम से की गई, जिनके परिणाम इस प्रकार हैं —
के लिए कहा जाता था। प्रयोग के समापन पर सांख्यिकी अनप्रु योग उपलब्धि के पर्वू और पश्च
प्रतिभागियों पर पुनः सांख्यिकी अनुप्रयोग तथा फलांकों के प्रसरणों की समानता की अवधारणा
व्याख्या उपलब्धि के दोनों पश्च परीक्षण प्रशासित सहसंबंधित t-परीक्षण में पूर्व और पश्च फलांकों के
किए गए। इसके पश्चात् मॉड्यूल पर आधारित प्रसरणों की समानता की अवधारणा का परीक्षण
प्रतिक्रिया मापनी देकर प्रतिक्रियाएँ ज्ञात की गर्इं। लेविन के परीक्षण द्वारा नहीं किया जाता। क्योंकि
परिणाम तथा विवेचना यह दोनों प्रसरण स्वतंत्र नहीं होकर सहसबं ंधित
उपचार के पर्वू एवं उपचार के पश्चात् साखं ्यिकी होते हैं। इस हेतु पिटमैन-मॉर्गन परीक्षण किया जाता
अनप्रु योग उपलब्धि के माध्य फलाक ं ों की तल
ु ना है। यह परीक्षण पूर्व और पश्च परीक्षण फलांकों के
शोध अध्ययन का प्रथम उद्देश्य शोध मॉड्यूल से योग तथा इनके अतं र के बीच सहसबं ंध (r) का
उपचार के पूर्व एवं उपचार के पश्चात् सांख्यिकी परीक्षण है। स्नेडेकर और कोचरान (1989, पृष्ठ
अनप्रु योग उपलब्धि के माध्य फलांकों की तल ु ना सखं ्या 197) के अनसु ार यदि सहसबं धं गणु ाक ं r का
करना था। इस हेतु प्रयोग में सम्मिलित शोधार्थियों, मान सार्थक न हो तो दोनों प्रसरण समान माने जाते हैं।
114 भारतीय आधिु नक िशक्षा – जनवरी 2020
उपचार पर्वू एवं उपचार के पश्चात् साखं ्यिकी व्याख्या साखं ्यिकी व्याख्या उपलब्धि के पर्वू और पश्च
उपलब्धि के माध्य फलाक ं ों की तलु ना फलाक ं ों के प्रसरणों की समानता की अवधारणा
इस शोध अध्ययन का द्वितीय उद्देश्य शोध मॉड्यूल साख्यि
ं की व्याख्या उपलब्धि हेतु प्रयक्त ु
से उपचार के पूर्व एवं उपचार के पश्चात् साख्यि ं की सहसबं धं ित t-परीक्षण की पूर्व और पश्च फलाक ं ों के
व्याख्या उपलब्धि के माध्य फलाक ं ों की तल ु ना प्रसरणों की समानता की अवधारणा का परीक्षण
करना था। इस हेतु प्रयोग में सम्मिलित शोधार्थियों, पिटमैन-मॉर्गन परीक्षण द्वारा किया गया। एस.पी.एस.एस.
शोध पर्यवक्षे कों तथा शिक्षक-प्रशिक्षकों के चयनित के ट्रांसफ़ॉर्म विकल्प के द्वारा दो नए चर सृजित किए
समूह को सांख्यिकी व्याख्या उपलब्धि का गए— पूर्व और पश्च साख्यि ं की व्याख्या उपलब्धि
परीक्षण मॉड्यूल से अध्ययन के पूर्व तथा पुनः का योग (sum_prepostinterp) तथा पूर्व और पश्च
अध्ययन की समाप्ति पर प्रशासित कर फलांक फलाक ं ों का अतं र (diff_prepostinterp)। इन दोनों
प्राप्त किए गए। सांख्यिकी व्याख्या उपलब्धि चरों में सहसबं धं r का मान ज्ञात किया गया, जिसके
के पूर्व और पश्च फलांकों के माध्यों की तुलना परिणाम तालिका 10 में दिए गए हैं।
हेतु सहसंबंधित t-परीक्षण प्रयुक्त करने से तालिका 10 के अवलोकन से स्पष्ट हो जाता है
पहले प्रसरणों की समानता की अवधारणा, कि योग और अतं र फलाक ं ों के बीच सहसबं धं गणु ाक ं
पूर्व और पश्च फलाक ं ों के अतं रों के प्रसामान्य (r = 0.634, सार्थकता = 0.000 < 0.01) सार्थकता
होने की अवधारणा तथा रेखीय सहसबं धं की के 0.01 स्तर पर सार्थक है। अतः साख्यि ं की व्याख्या
अवधारणाएँ जाँची गर्इं। प्रत्येक अवधारणा की जाँच उपलब्धि के पूर्व और पश्च फलाक ं ों के प्रसरणों में
एस.पी.एस.एस. के माध्यम से की गई, जिनके सार्थक अतं र है अर्थात् सहसबं धं ित प्रसरणों की
परिणाम इस प्रकार हैं — समानता की अवधारणा का अतिक्रमण हो रहा है।
तालिका 10— सांख्यिकी व्याख्या उपलब्धि के पूर्व और पश्च परीक्षण
फलांकों के प्रसरण की समानता हेतु पिटमैन-मॉर्गन परीक्षण के परिणाम
पूर्व और पश्च पूर्व और पश्च
सांख्यिकी व्याख्या फलांकों का अंतर
उपलब्धि का योग
पियर्सन सहसंबंध 1 00.634
sum_prepostinterp सार्थकता (द्वि-पंचु ्छीय) 00.000
N 36 36
पियर्सन सहसंबंध 00.634 1
diff_prepostinterp सार्थकता (द्वि-पंचु ्छीय) 00.000
N 36 36
शैक्षिक शोध में सांख्यिकी अनप्रु योग एवं व्याख्या पर हिदं ी भाषा... 119
प्रसार 4.91
अतं रचतर्थु क प्रसार 1.67
विषमता सचू कांक 0.898 0.393
कुकुदता 0.332 0.768
तालिका 16 का अवलोकन करने पर स्पष्ट होता है लिए प्रभाव आकार का माप d = t/ = 12.125/ =
कि साख्यि
ं की व्याख्या के रूपातं रित फलाक
ं ों में यग्मि
ु त 2.021 है। तालिका 16 और 14 देखने पर क्रमशः
अतं र 2.53275 का t-मान 12.215 है। इसका सार्थकता t-मान 12.215 तथा N का मान 36 है। अतः यह
(p- एक-पचंु ्छीय) मान = 0.000/ 2 = 0.000 < मान अत्यधिक है, जो दर्शाता है कि प्रतिभागियों का
0.01 सार्थकता के 0.01 स्तर पर सार्थक है। पनु ः मॉड्यूल द्वारा उपचार उनके सांख्यिकी कौशल में
तालिका 14 दर्शाती है कि सांख्यिकी व्याख्या अत्यधिक वृद्धि करने में सफल रहा है।
उपलब्धि के पश्च फलांकों का माध्य पूर्व फलांकों उपचार पूर्व एवं उपचार के पश्चात् सांख्यिकी
के माध्य से अधिक है, जैसा कि दिशायी परिकल्पना अनुप्रयोग तथा व्याख्या उपलब्धि के माध्य
में कहा गया है। अतः शून्य परिकल्पना को दिशायी फलांकों की तुलना
परिकल्पना के पक्ष में निरस्त किया जा सकता है। इस शोध अध्ययन का तृतीय उद्देश्य शोध मॉड्यूल
फलस्वरूप, कहा जा सकता है कि सांख्यिकी से उपचार के पूर्व एवं उपचार के पश्चात् सांख्यिकी
व्याख्या उपलब्धि के पश्च फलांक माध्य पूर्व अनप्रु योग तथा व्याख्या उपलब्धि के माध्य फलांकों
फलांक, माध्य से सार्थक रूप से उच्च हैं। उपचार के की तल ु ना करना था। इस हेतु प्रयोग में सम्मिलित
122 भारतीय आधिु नक िशक्षा – जनवरी 2020
शोधार्थियों, शोध पर्यवेक्षकों तथा शिक्षक-प्रशिक्षकों के ट्रांसफ़ॉर्म विकल्प के द्वारा दो नए चर सृजित किए
के चयनित समूह को सांख्यिकी अनप्रु योग तथा गए — पूर्व और पश्च साख्यि ं की अनप्रु योग तथा
व्याख्या उपलब्धि का परीक्षण मॉड्यूल अध्ययन से व्याख्या उपलब्धि का योग (sum_preposttotal)
पूर्व तथा पनु ः अध्ययन की समाप्ति पर प्रशासित कर तथा पूर्व और पश्च फलाक ं ों का अतं र (diff_
फलांक प्राप्त किए गए। सांख्यिकी अनप्रु योग तथा preposttotal)। इन दोनों चरों में सहसबं धं r का मान ज्ञात
व्याख्या उपलब्धि के पूर्व और पश्च फलांकों के किया गया, जिसके परिणाम तालिका 17 में दिए गए हैं।
माध्यों की तल ु ना हेतु सहसंबंधित t-परीक्षण प्रयक्त
ु तालिका 17 से स्पष्ट है कि सांख्यिकी अनुप्रयोग
करने से पहले प्रसरणों की समानता की अवधारणा, तथा व्याख्या उपलब्धि के पूर्व और पश्च फलांकों
पूर्व और पश्च फलाक ं ों के अतं रों के प्रसामान्य होने के योग तथा अंतर के चरों में सहसंबंध गणु ांक
की अवधारणा तथा रेखीय सहसबं धं की अवधारणाएँ (r = 0.584, p = 0.000 < 0.01) सार्थकता के
जाँची गर्इं। प्रत्येक अवधारणा की जाँच एस.पी.एस.एस. 0.01 स्तर पर सार्थक है। अतः पिटमैन-मॉर्गन टेस्ट
के माध्यम से की गई, जिनके परिणाम इस प्रकार हैं — के परिणाम सार्थक हैं। इसका अर्थ यह है कि पूर्व
सांख्यिकी अनप्रु योग तथा व्याख्या उपलब्धि के और पश्च फलांकों के प्रसरण समान नहीं कहे जा
पर्वू और पश्च फलांकों के प्रसरणों की समानता की सकते। इस उद्देश्य से सांख्यिकी अनुप्रयोग तथा
अवधारणा व्याख्या उपलब्धि के पूर्व एवं पश्च फलांकों का
साख्यि
ं की अनप्रु योग तथा व्याख्या उपलब्धि हेतु प्रयक्त ु लघगु णकीय रूपांतरण (क्रमशः sum_logtot
सहसबं धं ित t-परीक्षण की पूर्व और पश्च फलाक ं ों तथा diff_logtot) किया गया। पुनः इन रूपांतरित
के प्रसरणों की समानता की अवधारणा का परीक्षण चरों के योग (sum_logtot) तथा अंतरों
पिटमैन-मॉर्गन परीक्षण द्वारा किया गया। एस.पी.एस.एस. (diff_logtot) के बीच सहसंबंध गणु ांक ज्ञात
तालिका 17— सांख्यिकी अनुप्रयोग तथा व्याख्या उपलब्धि के पूर्व एवं पश्च
फलांकों के प्रसरण की समानता हेतु पिटमैन-मॉर्गन परीक्षण के परिणाम
पूर्व और पश्च सांख्यिकी अनुप्रयोग पूर्व और पश्च
तथा व्याख्या उपलब्धि का योग फलांकों का अंतर
पियर्सन सहसंबंध 1 0.584
sum_preposttotal सार्थकता (द्वि-पंचु ्छीय) 0.000
N 36 36
पियर्सन सहसंबंध 0.584 1
difference_preposttotal सार्थकता (द्वि-पंचु ्छीय) 0.000
N 36 36
शैक्षिक शोध में सांख्यिकी अनप्रु योग एवं व्याख्या पर हिदं ी भाषा... 123
तालिका 19 से स्पष्ट है कि क्रमशः विषमता सांख्यिकी अनप्रु योग तथा व्याख्या उपलब्धि के पर्वू
सचू कांक तथा कुकुदता के मान क्रमशः उनकी संगत और पश्च फलांकों (रूपांतरित) में रे खीय सहसबं ंध
मानक त्रुटियों के 1.96 गणु ा के अदं र स्थित हैं, की अवधारणा
अतः सार्थक नहीं हैं। इसलिए सांख्यिकी अनप्रु योग सांख्यिकी अनुप्रयोग तथा व्याख्या उपलब्धि के
तथा व्याख्या उपलब्धि के पश्च और पूर्व फलांकों पूर्व और पश्च फलांकों में रे खीय सहसंबंध की
के अतं र का वितरण प्रसामान्य कहा जा सकता है। अवधारणा की जाँच प्रकीर्ण आरे ख 3 द्वारा की गई।
तालिका 20 में दिए गए प्रसामान्यता के परीक्षण के आरे ख 3 से स्पष्ट होता है कि अधिकांश बिंदु
परिणाम भी इसी बात की पषु ्टि करते हैं। वृत्तीय आकार में हैं, जिससे सहसंबंध की रे खीयता
तालिका 20— सांख्यिकी अनुप्रयोग तथा स्पष्ट हो जाती है।
व्याख्या उपलब्धि के पश्च और पूर्व फलांकों आरेख 3 — सांख्यिकी अनुप्रयोग तथा व्याख्या
(रूपांतरित) के अंतर की प्रसामान्यता उपलब्धि के पूर्व एवं पश्च परीक्षण फलांकों
शापिरो विल्क (रूपांतरित) में सहसबं ंध की रेखीयता
सांख्यिकी df सार्थकता
diff_
0.962 36 0.252
logtot
एस.पी.एस.एस. का उपयोग कर परिणाम प्राप्त का माध्य पूर्व फलाक ं ों के माध्य से अधिक है। पूर्व
किए गए, जिन्हें तालिका 21 से तालिका 23 तक में परिकल्पनाओ ं की तरह ही प्रभाव आकार की गणना
प्रस्तुत किया गया है। की जाए, तो पाते हैं कि d = t/=11.648/= 11.648/
तालिका 21, 22 तथा 23 यह दर्शाती हैं 6 =1.947 का प्रभाव आकार अत्यधिक है।
कि रूपातं रित फलाक ं ों में अतं र की सार्थकता के सांख्यिकी अनुप्रयोग तथा व्याख्या उपलब्धि
सहसबं धं ित t-मान = 11.648 का सार्थकता का के मॉड्यूल पर प्रतिभागियों की प्रतिक्रियाएँ
एक-पचंु ्छीय मान 0.000/ 2 = 0.000 < 0.01 इस शोध अध्ययन का चौथा और अति ं म उद्देश्य
सार्थकता के 0.01 स्तर पर सार्थक पाया गया। पनु ः मॉड्यूल पर प्रतिभागियों की प्रतिक्रिया का
साख्यि
ं की अनप्रु योग तथा व्याख्या उपलब्धि का माध्य अध्ययन करना था। प्रतिक्रिया के फलांक न्यादर्श
पश्च फलाक ं पूर्व माध्य फलाक ं से अधिक है। अतः पर प्रतिक्रिया मापनी प्रशासित कर प्राप्त किए
शून्य परिकल्पना को दिशायी परिकल्पना के पक्ष में गए। सर्वप्रथम एस.पी.एस.एस. के द्वारा प्रतिक्रिया
निरस्त किया जा सकता है। निष्करस्ष ्वरूप, साख्यि
ं की फलांकों की विवरणात्मक सांख्यिकी ज्ञात की गई,
अनप्रु योग तथा व्याख्या उपलब्धि के पश्च फलाक ं ों जिसके परिणाम तालिका 24 में दिए गए हैं।
तालिका 22 — सांख्यिकी अनुप्रयोग तथा व्याख्या उपलब्धि के
पूर्व एवं पश्च परीक्षण फलांकों (रूपांतरित) में सहसबं ंध
N सहसबं ंध सार्थकता
Pair 1 log_totpost & log_totpre 36 0.441 0.007
प्रतिक्रिया फलांकों के वितरण के विषमता सचू कांक की प्रतिक्रिया के आधार पर भी प्रभावी कहा जा
तथा कुकुदता क्रमशः उनकी संगत मानक त्रुटियों सकता है।
के 1.96 गणु ांक से अधिक नहीं है। अतः वितरण शोध प्राप्तियाँ एवं चर्चा
प्रसामान्य माना जा सकता है। इस परिप्रेक्ष्य में शोध का उद्देश्य शोधार्थियों, शोध पर्यवक्ष े कों तथा
प्रतिक्रिया फलाकं ों के माध्य और मानक विचलन शिक्षक-प्रशिक्षकों के लिए विकसित मॉड्यूल की
विश्वसनीय होने से प्रयक्त
ु किए जा सकते हैं। प्रतिक्रिया प्रभावशीलता का अध्ययन, उनकी साख्यि ं की
फलांकों के वितरण का माध्य 100.75 तथा मानक अनप्रु योग, साख्यि
ं की व्याख्या तथा साख्यि ं की
विचलन 12.2763 पाया गया। वितरण के माध्य का अनप्रु योग और व्याख्या के कौशल तथा विकसित
मान 100.75 का अर्थ है कि न्यादर्श की मॉड्यूल मॉड्यूल के प्रति उनकी प्रतिक्रियाओ ं के सदं र्भ में करना
पर प्रतिक्रिया 100.75/ 125 (कुल संभव प्राप्तांक) था। शोध के परिणाम दर्शाते हैं कि विकसित मॉड्यूल
= 80.6 प्रतिशत सकारात्मक है। द्वारा दिया गया उपचार समूह के साख्यि ं की अनप्रु योग,
तालिका 25— मॉड्यूल पर प्रतिक्रिया हेतु साख्यि
ं की व्याख्या तथा साख्यि ं की अनप्रु योग और
अनुपात सांख्यिकी व्याख्या के कौशल बढ़ाने की दृष्टि से प्रभावी रहा है।
विचरणशीलता गुणांक (CoV) उपचार का प्रभाव आकार भी अत्यधिक है। साथ ही,
माध्य कें द्रित प्रस्तुत शोध के परिणामों की पषु ्टि मॉलीकुट्टी (1991),
12.185% जोशी (1999), कोहल (1999), चोपड़ा (2002),
पनु ः एस.पी.एस.एस. द्वारा विचरणशीलता शेट्टी (2004), लोन्धे (2007) तथा महाराणा (2011)
गणु ांक का मान 12.185 प्रतिशत प्राप्त किया गया। के शोध अध्ययनों से भी होती है। विभिन्न विद्यालयी
सत्रू से भी प्राप्त विचरणशीलता गणु ांक (CoV) तथा शिक्षक-शिक्षा स्तर के विषयों के सदं र्भ में उक्त
= 100/M = 100 (12.27628)/ 100.75 = शोध अध्ययनों में मॉड्यूल उपागम को प्रभावी पाया
1227.628/ 100.75 = 12.185 भी उक्त मान की गया है। इस शोध अध्ययन में विकसित मॉड्यूल के
पुष्टि करता है। विचरणशीलता का यह मान दर्शाता प्रति प्रतिभागियों की प्रतिक्रिया भी 80 प्रतिशत तक
है कि प्रतिक्रिया फलांकों में विचलन अपेक्षतः सकारात्मक पाई गई, जिसकी पषु ्टि जोशी (1999),
कम है। अतः सांख्यिकी अनप्रु योग तथा व्याख्या लोन्धे (2007) तथा महाराणा (2011) द्वारा किए गए
उपलब्धि पर विकसित मॉड्यूल को प्रतिभागियों शोध अध्ययनों के परिणामों द्वारा भी प्राप्त होती है।
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उरांव जनजाति के विद्यार्थियों की अकादमिक
प्रभावशीलता का अध्ययन
लक्ष्मी कुमारी*
शिरीष पाल सिंह**
यह शोध पत्र उरांव जनजाति के विद्यार्थियों की अकादमिक प्रभावशीलता का जेंडर तथा कक्षा के आधार पर
तल ु नात्मक अध्ययन पर किए गए शोध अध्ययन पर आधारित है। यह शोध कार्य वर्णनात्मक सर्वेक्षण शोध विधि
पर आधारित था। शोधार्थी द्वारा प्रतिदर्श के रूप में कार्तिक उरांव आदिवासी बाल विकास उच्च विद्यालय, सिसई,
गमु ला (झारखण्ड) के अध्ययन सत्र 2019–20 के कक्षा 9 एवं 10 के 100 विद्यार्थियों का चयन उद्देश्यपरू ्ण न्यादर्श
प्रविधि द्वारा किया गया। आँकड़ों के एकत्रीकरण के लिए शोधार्थी द्वारा अकादमिक प्रभावशीलता मापनी का
निर्माण किया गया, जो तीन बिंदु लिकर्ट मापनी पर आधारित है। इस मापनी का उद्देश्य विद्यार्थियों की अकादमिक
प्रभावशीलता का मापन करना था। एकत्रित आँकड़ों का विश्लेषण करने के लिए प्रतिशत तथा स्वतंत्र न्यादर्श
t-परीक्षण सांख्यिकी प्रविधि का उपयोग किया गया था। आँकड़ों के विश्लेषण के पश्चात् निष्कर्ष के रूप में यह
ज्ञात हुआ कि उरांव जनजाति के विद्यार्थियों की अकादमिक प्रभावशीलता का स्तर उच्च है। उरांव जनजाति के
बालक तथा बालिकाओ ं की अकादमिक प्रभावशीलता में कोई सार्थक अतं र नहीं है, साथ ही उरांव जनजाति के
कक्षा 9 के विद्यार्थियों की अकादमिक प्रभावशीलता, कक्षा 10 के विद्यार्थियों की अकादमिक प्रभावशीलता की
तल ु ना में सार्थक रूप से अधिक है।
भारतीय ससं ्कृ ति अनेकता में एकता की परिचायक है। है। वन्य जनजातियों की विविधता ही भारतीय ससं ्कृ ति
यह अनेकता धार्मिक, भौगोलिक, सासं ्कृ तिक और को उत्कृ ष्ट बनाती है और भारत को एक विशिष्ट पहचान
सामाजिक रूपों में विद्यमान है। इस अनेकता का एक प्रदान करती है। इन सभी जनजातियों में विभिन्नता होते
आधार जनजातियों की विभिन्नता भी है, जो भारत के हुए भी ये एक-दसू रे से कहीं न कहीं जड़ु ी हुई हैं। भारत की
अलग-अलग क्त्षे रों में पाई जाती है। इन वन्य जातियों को जनगणना, 2011 के अनसा ु र, भारत की सपं र्णू जनसखं ्या
क्त्षे रीय विषमताओ ं और सासं ्कृ तिक विचित्रता के कारण में अनसु चिू त जनजातियों की सखं ्या 8.2 करोड़ थी।
अलग-अलग नामों से पक ु ारा जाता है। कहीं पर इन्हें जो अपनी सनि ु श्चित भौगोलिक स्थिति के कारण एक
जनजाति तो कहीं वन्य जनजाति के नाम से जाना जाता विशेष सासं ्कृ तिक प्रतिभा को समाविष्ट किए हुए है, किंतु
*शोधार्थी, शिक्षा विभाग, शिक्षा विद्यापीठ, महात्मा गांधी अतं रराष्ट्रीय हिदं ी विश्वविद्यालय, वर्धा, महाराष्ट्र 442005
**एसोसिएट प्रोफे ़सर, शिक्षा विभाग, शिक्षा विद्यापीठ, महात्मा गांधी अतं रराष्ट्रीय हिदं ी विश्वविद्यालय, वर्धा, महाराष्ट्र 442005
उरांव जनजाति के विद्यार्थियों की अकादमिक प्रभावशीलता का अध्ययन 129
विशिष्ट भौगोलिक स्थिति के कारण आधनि ु क समाज से इस बात पर बल दिया गया कि, ‘राज्य, छह वर्ष से
ये जनजातियाँ अलग हैं। परिणामस्वरूप ये जनजातियाँ चौदह वर्ष तक की आयु वाले सभी बच्चों के लिए
शेष भारतीय समाज की तल ु ना में बहुत पिछड़ी हुई हैं। इन निःशलु ्क और अनिवार्य शिक्षा देने का ऐसी रीति में,
जनजातियों को अशिक्षा, अज्ञानता, अधं विश्वास जैसी जो राज्य विधि द्वारा, अवधारित करे , उपबंध करे गा।’
बरु ाइयों ने ग्रसित कर रखा है। स्वतत्रं ता प्राप्ति के बाद और इसी 86वें संविधान संशोधन द्वारा संविधान के
भारत सरकार उन्हें मखु ्य धारा में लाने का समचि ु त प्रयास भाग 4(क) में वर्णित मल ू कर्तव्यों में एक नया मल ू
कर रही है (पाशा, 2016)। कर्तव्य 51(ट) जोड़ा गया जिसमें कहा गया कि,
भारत सरकार द्वारा सन् 1967 से संवैधानिक ‘माता-पिता या संरक्षक 6 से 14 वर्ष तक कि आयु
सरु क्षा होने के बावजदू जनजाति समहू ों में सामाजिक वाले, अपने यथास्थिति बालक या प्रतिपाल्य के
न्याय, सकारात्मक अभिवृत्ति और शैक्षिक लिए शिक्षा के अवसर प्रदान करें ।’ आगे चलकर
जागरूकता का स्तर अब भी निम्न है। अतः वर्तमान सन् 2009 में, बच्चों का नि:शलु ्क और अनिवार्य
भारत में जनजातियों का विकास करना और उन्हें शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 पास किया
अभावग्रस्त स्थिति से निकालकर देश की मखु ्य गया। इस अधिनियम के अनसा ु र 6 से 14 आयु वर्ग
धारा के साथ जोड़ना, कें द्र एवं राज्य सरकारों तथा के बच्चों को कक्षा 1 से 8 तक की नि:शलु ्क शिक्षा प्राप्त
राजनीतिक एवं समाज सधु ारकों के लिए चितं न का करने का मल ू अधिकार है। सरकार ने 1 अप्रैल, 2010
विषय रहा है। भारतीय संविधान की प्रस्तावना में से इसे काननू के रूप में लागू भी कर दिया है। इसके
भी प्रजातंत्रात्मक समाजवाद की बात कही गई है। संविधान के अनचु ्छेद 46 में यह भी घोषणा की
इसके लिए सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक है कि ‘राज्य जनता के दर्बु ल वर्गों के विशिष्टतया
स्तर पर न्याय प्राप्त करने हेतु सभी को व्यक्तित्व अनसु चि
ू त जातियों और अनसु चि ू त जनजातियों के
के विकास के समान अवसर प्रदान करने की शिक्षा और अर्थ संबंधी हितों की विशेष सावधानी
अपेक्षा सनि ु श्चित की गई है (सिंह,1992)। भारतीय से अभिवृद्धि करे गा, साथ ही सामाजिक और सभी
सवं िधान के अनचु ्छेद 45 में यह घोषणा की गई कि, प्रकार के शोषण से उसकी रक्षा करे गा।
‘राज्य संविधान के प्रारम्भ से 10 वर्ष की कालावधि उरांव जनजाति
के अदं र सभी बच्चों को 14 वर्ष की आयु समाप्ति उरांव जनजाति भारत के मल ू निवासियों में से एक
तक नि:शलु ्क एवं अनिवार्य शिक्षा देने के लिए प्रबंध प्रमखु समहू है। इस जनजाति के सदस्य भारत के
करे गा’ और तभी से राज्यों ने 14 वर्ष तक की आयु बिहार, मध्य प्रदेश, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, उत्तर
के बच्चों की अनिवार्य एवं नि:शलु ्क शिक्षा की प्रदेश, असम, त्रिपरु ा तथा अडं मान आदि राज्यों में
व्यवस्था करने का प्रयास शरू ु किया। आगे चलकर निवास करते हैं। ये देश के बाहरी हिस्सों, जैसे—
सन् 2002 में, 86वें संविधान संशोधन द्वारा संविधान नेपाल, भटा
ू न, बागं ्लादेश और पश्चिमी पाकिस्तान में
में एक नया अनचु ्छेद 21(क) जोड़ा गया, जिसमें भी बसे हुए हैं। यह झारखण्ड के पठारी भागों मखु ्यतः
130 भारतीय आधिु नक िशक्षा – जनवरी 2020
गमु ला, लोहरदगा, राँची, पलाम,ू हजारीबाग, सिमडेगा शिकार, पशपु ालन, यायावर आदि की अवस्था को
और पर्ू वी सिहं भमू जि़ले में निवास करते हैं। झारखण्ड में पार कर स्थायी उन्नत कृषि-पद्धति एवं सामाजिक
32 जनजातियाँ निवास करती हैं। उनमें से सबसे अधिक व्यवस्था यहाँ लेकर आए। जब उरांव यहाँ आए तो
शिक्षा एवं विकास की दृष्टि में उरावं को विकसित माना उदार मडा
ंु जनजाति के सदस्यों ने इसका कोई विरोध
जाता है। कृषि के अतिरिक्त आज ये विभिन्न सेवा और नहीं किया। मडांु तथा उरांव दोनों साथ-साथ रहने
व्यवसाय में कार्यरत हैं। उरावं परंपरा के अनसा ु र, उरावं लगे। उरांव, मडा ंु से अधिक चतरु , कृषि में प्रवीण
के पर्वज
ू ों का मल ू निवास स्थान मोहनजोदड़ो और और रण कौशल में दक्ष थे। उरांव का दसू रा जनप्रवाह
हड़प्पा सभ्यता में था। उरावं की अपनी शासन व्यवस्था रोहतसगढ़ से आया जिससे उनका बल और महत्व
रोहतासगढ़ थी। वहाँ पर इनकी रहन-सहन, सामाजिक, बढ़ गया। उरांव की आबादी बढ़ती गई और बस्तियों
धार्मिक, आर्थिक और राजनीतिक व्यवस्था अधिक का विस्तार होता रहा अर्थात् उरांव विकास की ओर
विकसित थी। इस कारण उरावं के लोग उरागान ठाकुर बढ़ते गए (चन्द्रा और नायक, 2018)।
कहलाते थे। उरावं की अपनी भाषा कुडूख है तथा उरांव जनजातियों का शैक्षिक स्तर
भाषिक दृष्टि से कुडूख भाषा द्रविड़ भाषा परिवार में व्यक्तित्व के निर्माण में शिक्षा की अपनी विशिष्ट
रखी गयी है (पालीवाल, 2011)। भमि ू का होती है। जनजातीय समाज साक्षरता एवं
उरांव जनजाति का ऐतिहासिक परिचय आधनि ु क शिक्षा की दृष्टि से पिछड़ा हुआ समाज
उरांव, मडांु , संथाल, हो तथा अन्य सभी जनजातियाँ है। निक्षरता का अनपु ात स्त्रियों में परुु ष की अपेक्षा
एक परिवार की हैं। जो अपनी भाषा के आधार पर अधिक है। बाटोमोर (1972) के अनसा ु र, ‘शिक्षा
द्रविड़ वर्ग की मानी जाती हैं (दास, 2006)। इसका आवश्यक रूप से नयी पीढ़ी के समाजीकरण का कार्य
मखु ्य कारण उरांव का ऐतिहासिक विवरण है। उरांव करती है।’ 2011 की जनगणना के आँकड़े यह दर्शाते
उत्तर भारत से दक्षिण कब पहुचँ ?े यह ज्ञात नहीं है और हैं कि अखिल भारतीय साक्षरता स्तर 74.04 प्रतिशत
इस काल में वे अपनी मल ू भाषा को भल ू बैठे, किंतु था, जबकि अनसु चि ू त जनजाति में यह स्तर मात्र
दक्षिण में उन्होंने सदियों से द्रविड़ को अपना लिया। 58.96 प्रतिशत था। भारत की कें द्रीय मखु ्य जनजातीय
अपेक्षाकृ त अपने नए इतिहास से उरांव, कर्नाटक से क्षेत्र-विस्तार तक सीमित रखते हुए, साक्षरता का
उत्तरी क्षेत्र की ओर बढ़ने वाली जनजाति मानी जाती अनपु ात बिहार में 51.1 प्रतिशत, झारखडं में 57.1
है। यह तथ्य उनकी परंपरा से सनु ने को मिलता है कि प्रतिशत, मध्य प्रदेश में 50.6 प्रतिशत, आन्ध्रप्रदेश
वे कर्नाटक की मल ू जनजाति हैं। वे कर्नाटक से होते में 49.2 प्रतिशत, ओडिशा में 52.2 प्रतिशत,
हुऐ बिहार, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ की सोन नदी जम्मू-कश्मीर में 50.6 प्रतिशत, तमिलनाडु में 54.3
और नर्मदा घाटी पहुचँ ,े जहाँ से उन्हें पनु ः अपेक्षाकृ त प्रतिशत, उत्तर प्रदेश में 55.7 प्रतिशत, पश्चिम बगं ाल
कम उर्वरक क्षेत्र छोटा नागपरु में शरण लेनी पड़ी। में 57.9 प्रतिशत तथा राजस्थान 52.8 प्रतिशत है।
छत्तीसगढ़ एवं झारखडं में प्रवेश करने से पर्वू ही उरांव जनजातीय समदु ाय के अन्य सामाजिक-आर्थिक पक्षों
उरांव जनजाति के विद्यार्थियों की अकादमिक प्रभावशीलता का अध्ययन 131
नकारात्मक कथनों पर क्रमश: 1, 2 तथा 3 अक ं प्रदान के लिए स्वतंत्र न्यादर्श t-परीक्षण सांख्यिकी
किए गए हैं। इस प्रकार मापनी में प्राप्तांकों का न्यूनतम प्रविधि का उपयोग किया गया।
तथा अधिकतम प्रसार 36–108 के मध्य था। •• शोधार्थी द्वारा उरांव जनजाति के कक्षा 9 तथा
आँकड़ों के सक ं लन की प्रक्रिया 10 के विद्यार्थियों की अकादमिक प्रभावशीलता
प्रदत्त सग्रं हण हेतु सर्वप्रथम शोधार्थी न्यादर्श में के माध्य फलांकों की तल ु ना करने के लिए
चयनित झारखडं राज्य के गमु ला जि़ले के कार्तिक स्वतंत्र न्यादर्श t-परीक्षण सांख्यिकी प्रविधि का
उरावं आदिवासी बाल विकास उच्च विद्यालय, उपयोग किया गया।
सिसई पहुचँ ी और वहाँ के प्रधानाचार्य से अनमु ति आँकड़ों का विश्लेषण एवं व्याख्या
लेकर कक्षा 9 व 10 के विद्यार्थियों के साथ सौहार्दपर्णू इस शोध अध्ययन में समस्त आँकड़ों के विश्लेषण
सबं धं स्थापित कर, उन्हें शोध अध्ययन से अवगत के लिए शोधार्थी द्वारा उद्देश्यवार उपयुक्त सांख्यिकी
कराया। तत्पश्चात् शोधार्थी द्वारा सपं र्णू कक्षा 9 व 10 प्रविधि द्वारा आँकड़ों का विश्लेषण किया गया —
में उपकरण को प्रशासित कर प्रदत्त सक ं लित किए गए। •• शोध अध्ययन के प्रथम उद्देश्य की प्राप्ति के
आँकड़ों के विश्लेषण हेतु साख्यि ं की प्रविधि लिए शोधार्थी द्वारा स्वनिर्मित अकादमिक
इस शोध अध्ययन में प्राप्त समस्त आँकड़ों के प्रभावशीलता मापनी का निर्माण किया गया
विश्लेषण के लिए शोधार्थी द्वारा उद्देश्यवार उपयक्त ु है। इस मापनी में अकादमिक प्रभावशीलता
सांख्यिकी प्रविधियों द्वारा आँकड़ों का विश्लेषण के कुल 11 आयामों को दृष्टिगत रखते हुए
किया गया — 36 कथनों (24 धनात्मक एवं 12 ॠणात्मक
•• शोधार्थी द्वारा उरांव जनजाति के कक्षा 9 व 10 कथन) को समिल्लित किया गया।
के विद्यार्थियों की अकादमिक प्रभावशीलता •• शोध अध्ययन के द्वितीय उद्देश्य उरांव जनजाति
के स्तर का अध्ययन करने के लिए प्रतिशत के कक्षा 9 तथा 10 के विद्यार्थियों की
सांख्यिकी प्रविधि का उपयोग किया गया। अकादमिक प्रभावशीलता का अध्ययन करने
•• शोधार्थी द्वारा उरांव जनजाति के कक्षा 9 व के लिए सभी विद्यार्थियों से प्राप्त आँकड़ों का
10 के छात्र तथा छात्राओ ं की अकादमिक प्रतिशत के आधार पर विश्लेषण किया गया,
प्रभावशीलता के माध्य फलांकों की तल ु ना करने जिसका परिणाम तालिका 2 में दिया गया है।
तालिका 2— वर्ग-अंतरालवार विद्यार्थियों की सख
ं ्या एवं प्रभावशीलता के स्तर
क्र. स.ं वर्ग-अंतराल विद्यार्थियों की सख
ं ्या प्रतिशत (%) प्रभावशीलता का स्तर
1. 85 – 108 93 93 % उच्च स्तर
2. 61 – 84 07 07 % मध्य स्तर
3. 36 – 36 00 00 निम्न स्तर
कुल _ 100 100 %
134 भारतीय आधिु नक िशक्षा – जनवरी 2020
के दोनों समहू ों का न्यादर्श आकार तथा प्रसरण रूप से अधिक है। जो इस बात का द्योतक है
समान है; अत: अकादमिक प्रभावशीलता के कि कक्षा 9 के विद्यार्थियों को कक्षा, परिवार
प्रभाव आकार (इफ़ेक्टिव साइज़) को ज्ञात करने तथा साथी समहू के द्वारा इस प्रकार का अधिगम
के लिए कोहेन ‘d’ प्रभाव आकार माप का वातावरण मिलता है जो उनकी अकादमिक
उपयोग किया गया। जिसके द्वारा प्राप्त परिणामों प्रभावशीलता को बढ़ाने का कार्य करता है।
का विवरण तालिका 5 में दिया गया है — शोध निष्कर्ष
तालिका 5 के अवलोकन से स्पष्ट होता है कि •• उरावं जनजाति के कक्षा 9 व 10 के विद्यार्थियों की
उरावं जनजाति के कक्षा 9 तथा 10 के विद्यार्थियों अकादमिक प्रभावशीलता के स्तर का अकादमिक
की अकादमिक प्रभावशीलता के माध्य फलाक ं ों प्रभावशीलता मापनी द्वारा आँकड़ों के सक ं लन
की तल ु ना करने पर, कक्षा 9 की अकादमिक तथा विश्लेषण के पश्चात् निष्कर्ष के रूप में यह
प्रभावशीलता के प्राप्तांकों का माध्य 91.94 ज्ञात हुआ कि उरावं जनजाति के विद्यार्थियों की
तथा मानक विचलन 3.641 है तथा कक्षा 10 के अकादमिक प्रभावशीलता का स्तर उच्च है तथा
विद्यार्थियों के अकादमिक प्रभावशीलता के उरावं जनजाति के विद्यार्थी अपनी शिक्षा के प्रति
प्राप्तांकों का माध्य 88.92 तथा मानक विचलन अकादमिक आकाक् ं षा रखते हैं।
3.851 है। परिकलित ‘d’ का निरपेक्ष मान 0.81 •• जेंडर के आधार पर उरावं जनजाति के कक्षा 9 व 10
है, जो कोहेन द्वारा प्रतिपादित प्रभाव आकार के विद्यार्थियों की अकादमिक प्रभावशीलता
मार्गदर्शिका सारणी में दर्शाए गए मान 0.80 से का तल ु नात्मक अध्ययन करने पर पाया गया
अधिक तथा 1.2 से कम है (कोहेन, 1988) कि उरांव जनजाति के छात्र तथा छात्राओ ं में
अर्थात् प्रभाव आकार है। इसके फलस्वरूप यह कोई सार्थक अतं र नहीं है तथा उरांव जनजाति
कहा जा सकता है कि कक्षा स्तर का अकादमिक के छात्र तथा छात्राओ ं की अकादमिक
प्रभावशीलता पर बड़ा प्रभाव आकार है। इसके प्रभावशीलता एकसमान है तथा इस पर जेंडर
बड़े प्रभाव आकार का प्रमख ु कारण यह है का सार्थक प्रभाव नहीं पड़ता है।
कि कक्षा 9 के विद्यार्थियों की अकादमिक •• कक्षा के आधार पर उरांव जनजातियों के
प्रभावशीलता का मान कक्षा 10 के विद्यार्थियों कक्षा 9 व 10 के विद्यार्थियों की अकादमिक
की अकादमिक प्रभावशीलता के मान से सार्थक प्रभावशीलता का अध्ययन करने पर पाया गया
तालिका 5— अकादमिक प्रभावशीलता के प्रभाव आकार का विवरण
अकादमिक विद्यार्थियों की माध्य मानक विचलन प्रभाव आकार निरपेक्ष मान
प्रभावशीलता सख ं ्या
समहू कक्षा 9 51 91. 94 3.641 0.81
कक्षा 10 49 88.92 3.851
उरांव जनजाति के विद्यार्थियों की अकादमिक प्रभावशीलता का अध्ययन 137
सदं र्भ
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स्नातक स्तर के विद्यार्थियों के शैक्षिक आकांक्षा स्तर
एवं शैक्षिक उपलब्धि में सहसबं ंध का अध्ययन
सोहिल कुमार बंसल*
लाजवंती**
प्रत्येक विद्यार्थी का शैक्षिक आकांक्षा स्तर एवं शैक्षिक उपलब्धि स्तर विशिष्ट होता है, जो उसे स्वयं का आकलन
करने में सहायक होता है; जिसके फलस्वरूप वह भविष्य के लिए विभिन्न योजनाओ ं व उद्देश्यों को स्वरूप
प्रदान करता है। शिक्षा ही वह साधन है जिसके माध्यम से हम विद्यार्थियों की शैक्षिक आकांक्षा स्तर एवं शैक्षिक
उपलब्धि को ऊँचा उठा सकते हैं। यह शोध पत्र शोध अध्ययन पर आधारित है। जिसका उद्देश्य स्नातक स्तर के
विद्यार्थियों की शैक्षिक आकांक्षा स्तर एवं शैक्षिक उपलब्धि का अध्ययन करना था। यह शोध अध्ययन सौद्देश्य
न्यादर्श विधि से आगरा शहर के दयालबाग शिक्षण संस्थान (विश्वविद्यालय) के स्नातक स्तर के तीन संकायों
का चयन कर, प्रत्येक सक ं ाय से सरल यादृच्छिक विधि द्वारा 50–50 विद्यार्थियों, जिनमें 25 छात्र व 25 छात्राएँ
शामिल थीं, का चयन किया गया। इस प्रकार, कुल 150 विद्यार्थियों का न्यादर्श के रूप में चयन किया गया।
उपकरण के रूप में शैक्षिक उपलब्धि के मापन हेतु उनके स्नातक स्तर के तृतीय सेमिस्टर के प्रतिशत प्राप्तांकों को
लिया गया तथा शैक्षिक आकांक्षा स्तर के मापन हेतु शर्मा एवं अनरु ाधा (2009) द्वारा निर्मित शैक्षिक आकांक्षा
स्तर प्रमापीकृ त परीक्षण का प्रयोग किया गया। सांख्यिकी प्रयोग हेतु मध्यमान, मानक विचलन, क्रान्तिक अनपु ात
एवं प्रोडक्ट मोमेंट सहसंबंध गणु ांक का प्रयोग किया गया। शोध अध्ययन में निष्कर्ष के रूप में ज्ञात हुआ कि
विद्यालयों की शैक्षिक उपलब्धि एवं शैक्षिक आकांक्षा में धनात्मक सहसंबंध है।
शिक्षा एक सतत प्रक्रिया है, इस प्रक्रिया का प्रत्येक विद्यार्थी की शैक्षिक आकाक्षा ं स्तर
औपचारिक संचालन स्कूल व कॉलेज, दोनों में व शैक्षिक उपलब्धि स्तर विशिष्ट होता है जो उसे
किया जाता है। इनमें विभिन्न धर्म, जाति, वर्ग स्वयं का आकलन करने में सहायक होता है; जिसके
तथा समदु ाय के विद्यार्थी एक साथ शिक्षा ग्रहण फलस्वरूप वह भविष्य के लिए विभिन्न योजनाओ ं
कर अपना विकास करते हैं। सभी विद्यार्थियों की व उद्देश्यों को स्वरूप प्रदान करता है। प्रारंभ में वह
शैक्षिक आकांक्षा स्तर व शैक्षिक उपलब्धि स्तर कभी-कभी काल्पनिक स्तर के होते हैं, लेकिन मानसिक
भिन्न होते हैं, जो उनमें मौलिकता एवं नवीनता की विकास के साथ-साथ वह इनमें परिवर्तन करता है
भावना को जन्म देते हैं। और धीरे -धीरे वास्तविकता के धरातल पर अपनी
*शोधार्थी, दयालबाग शिक्षण ससं ्थान (डीम्ड विश्वविद्यालय) दयालबाग, आगरा, उत्तर प्रदेश 282005
**प्रोफे ़सर, दयालबाग शिक्षण संस्थान (डीम्ड विश्वविद्यालय) दयालबाग, आगरा, उत्तर प्रदेश 282005
140 भारतीय आधिु नक िशक्षा – जनवरी 2020
योजनाओ ं व उद्देश्यों को निरूपित करता है। उद्देश्यों वर्ग के छात्र-छात्राओ ं की शैक्षिक आकांक्षा स्तर व
का निर्धारण करने के बाद वह अपने उद्देश्यों की प्राप्ति शैक्षिक उपलब्धि में पर्याप्त भिन्नता पाई जाती है।
के लिए आकाक्षा ं रखता है और उन्हें प्राप्त करने के विद्यार्थी किसी भी लक्ष्य के लिए किए गए प्रथम
लिए कार्य करता है। प्रत्येक विद्यार्थी की उद्देश्य प्राप्ति प्रयास में ही अपनी शैक्षिक आकांक्षा स्तर व शैक्षिक
की तीव्रता अलग-अलग होती है तथा विद्यार्थी को उपलब्धि का निर्धारण कर लेता है। उसके आधार
अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए, शैक्षिक आकाक्षा ं पर वह अपनी शैक्षिक आकांक्षा स्तर व शैक्षिक
स्तर व शैक्षिक उपलब्धि स्तर आधार प्रदान करते हैं। उपलब्धि स्तर में परिवर्तन लाता है।
चकि
ँू शैक्षिक आकाक्षा ं स्तर व शैक्षिक उपलब्धि स्तर शैक्षिक आकांक्षा स्तर व शैक्षिक उपलब्धि
विद्यार्थी-कें द्रित पक्ष होता है, इसलिए विद्यार्थी अपनी विद्यार्थी के जीवन के निर्माण को प्रभावित
शैक्षिक आकाक्षा करते हैं। विद्यार्थी अपनी शैक्षिक आकांक्षा
ं स्तर व शैक्षिक उपलब्धि स्तरों को
स्तर व शैक्षिक उपलब्धि स्तर को अपनी
अपनी सामर्थ्य के अनसु ार तय करता है। कभी-कभी
सामाजिक-आर्थिक स्थिति को ध्यान में रखकर
वह इतने ऊँचे आकाक्षा ं स्तर निर्धारित कर लेता है
निर्धारित करता है। विद्यार्थी की आकांक्षाओ ं में
कि उन्हें प्राप्त करने में असफल भी हो सकता है।
माता-पिता की आकांक्षाएँ भी महत्वपूर्ण भूमिका
इस प्रकार शिक्षा ही वह साधन है जिसके माध्यम से निभाती हैं। प्रायः उच्च सामाजिक, आर्थिक परिवारों
हम विद्यार्यथि ों की शैक्षिक आकाक्षा ं स्तर व शैक्षिक के विद्यार्थी अवास्तविक उच्च स्तरीय आकांक्षाओ ं
उपलब्धि स्तर को ऊँचा उठा सकते हैं। इस तरह शिक्षा का निर्माण करते हैं। इसके विपरीत निम्न अथवा
विद्यार्थी का सतं लि ु त तथा सर्वांगीण विकास करती है। औसत सामाजिक स्तर के विद्यार्थी भी ऊँची
विद्यार्थी की आतं रिक शक्तियों का विकास करती है; आकांक्षा सोचकर उच्च आकांक्षा स्तर निर्धारित
उन्हें भविष्य के लिए तैयार करती है तथा आत्मनिर्भर करते हैं। इसकी झलक कॉलेज में देखी जा सकती
बनाती है। है; कॉलेज में पढ़ने वाले विद्यार्थियों का सामाजिक,
समस्या का प्रादुर्भाव एवं औचित्य आर्थिक स्तर भिन्न-भिन्न होता है। विद्यार्थी अपने
किसी भी विद्यार्थी के जीवन में सफलता का सामाजिक-आर्थिक स्तर से बहुत ऊँचा आकांक्षा
महत्वपूर्ण स्थान होता है। विद्यार्थी अपनी शिक्षा स्तर बना लेते हैं तथा कक्षा में उसके अनसु ार ही
किसी न किसी लक्ष्य को ध्यान में रखकर ही प्राप्त उपलब्धियाँ प्राप्त करना चाहते हैं, लेकिन उसके
करता है, कोई भी विद्यार्थी अपने द्वारा मिलने वाली अनरू ु प योग्यताओ ं के अभाव में जब वह असफलता
सफलता व असफलता को किस दृष्टि से स्वीकार प्राप्त करते हैं तो उससे उनका समायोजन प्रभावित
करता है, यह सब उसके द्वारा निर्धारित शैक्षिक होता है। अतः शिक्षा व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए
आकांक्षा स्तर व शैक्षिक उपलब्धि स्तर पर निर्भर जिससे विद्यार्थी अपनी योग्यताओ ं व कौशल के
करता है। एक ही कॉलेज में पढ़ने वाले समान आयु अनरू ु प आकांक्षाओ ं का निर्धारण कर सकें ।
स्नातक स्तर के विद्यार्थियों के शैक्षिक आकांक्षा स्तर एवं शैक्षिक उपलब्धि में सहसंबंध का अध्ययन 141
शैक्षिक उपलब्धि में अतं र का कारण उनकी आर्थिक, तालिका 3 के अवलोकन से स्पष्ट होता है
सामाजिक, पारिवारिक स्थिति, कक्षा में उपस्थिति कि स्नातक स्तर के 90–99 के मध्य प्रतिशत प्राप्त
एवं उनकी बद्ु धिलब्धि हो सकते हैं। करने वाले अति उच्च श्रेणी के छात्रों का प्रतिशत
स्नातक स्तर की छात्राओ ं को उनकी शैक्षिक शून्य है, जबकि छात्राओ ं का प्रतिशत नौ है।
उपलब्धि के आधार पर पाँच श्रेणियों— अति उच्च, 80–89 के मध्य प्रतिशत प्राप्त करने वाले उच्च
उच्च, औसत, निम्न तथा अति निम्न में विभाजित श्रेणी के छात्रों का प्रतिशत 24 है, जबकि छात्राओ ं
किया गया। अति उच्च श्रेणी में नौ प्रतिशत छात्राएँ, का प्रतिशत 39 है। 60–79 के मध्य प्रतिशत प्राप्त
उच्च श्रेणी में 39 प्रतिशत छात्राएँ, औसत श्रेणी में करने वाले औसत श्रेणी के छात्रों का प्रतिशत 69
49 प्रतिशत छात्राएँ, निम्न श्रेणी में तीन प्रतिशत है, जबकि छात्राओ ं का प्रतिशत 49 है। 50–59 के
छात्राएँ तथा अति निम्न श्रेणी में शून्य प्रतिशत मध्य प्रतिशत प्राप्त करने वाले निम्न श्रेणी के छात्रों
छात्राएँ हैं। इन छात्राओ ं की शैक्षिक उपलब्धि में का प्रतिशत सात है, जबकि छात्राओ ं का प्रतिशत
अंतर का कारण उनकी आर्थिक, सामाजिक, तीन है तथा 40–49 के मध्य प्रतिशत प्राप्त करने
पारिवारिक स्थिति, व्यक्तिगत भिन्नताएँ आदि हो वाले अति निम्न श्रेणी के छात्र एवं छात्राओ ं का
सकते हैं। प्रतिशत शून्य है। तालिका 3 के आधार पर यह नहीं
स्नातक स्तर के छात्र-छात्राओ ं की शैक्षिक कहा जा सकता कि स्नातक स्तर के छात्र-छात्राओ ं
उपलब्धि का तुलनात्मक अध्ययन की शैक्षिक उपलब्धि में अंतर पाया गया या नहीं।
इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु शोधार्थी द्वारा स्नातक स्तर यह जानने के लिए हमें मध्यमान व प्रमाणिक
के छात्र-छात्राओ ं की शैक्षिक उपलब्धि के परिणामों विचलन एवं इन दोनों के मध्य सार्थक अंतर की
के तल ु नात्मक अध्ययन को तालिका 3 में दर्शाया जाँच के लिए क्रान्तिक अनुपात की गणना करनी
गया है। होगी, जिसे तालिका 4 में दर्शाया गया है।
तालिका 3— स्नातक स्तर के छात्र-छात्राओ ं की शैक्षिक उपलब्धि का तुलनात्मक विवरण
तालिका 4 के अवलोकन से स्पष्ट होता चयन कर उनके शैक्षिक आकांक्षा स्तर के मापन हेतु
है कि स्नातक स्तर के 150 छात्र-छात्राओ ं की शर्मा और अनुराधा (2009) द्वारा निर्मित शैक्षिक
शैक्षिक उपलब्धि का मध्यमान क्रमशः 72.63 तथा आकांक्षा स्तर प्रमापीकृ त परीक्षण का प्रयोग किया
78.36 एवं प्रमाणिक विचलन क्रमशः 8.74 तथा गया, जिसके परिणाम को तालिका 5 में दर्शाया
9.22 प्राप्त हुआ। दोनों छात्र-छात्राओ ं की शैक्षिक गया है।
उपलब्धि के मध्य सार्थक अतं र की जाँच के लिए तालिका 5— स्नातक स्तर के छात्रों के शैक्षिक
क्रान्तिक अनपु ात की गणना की गई। जिसका मान आकांक्षा स्तर का विवरण
3.92 प्राप्त हुआ, जो कि .01 सार्थकता स्तर पर शैक्षिक श्रेणी कुल छात्र (75)
सार्थक है। अतः निष्कर्षस्वरूप यह कहा जा सकता आकांक्षा स्तर
है कि स्नातक स्तर के छात्र-छात्राओ ं की शैक्षिक आवत्ृ ति प्रतिशत
उपलब्धि में सार्थक अतं र पाया गया। इस अतं र 48–56
उच्च
3
31
का कारण उनकी पारिवारिक, सामाजिक, आर्थिक 40–48 20
स्थिति, रुचि, बद्ु धिलब्धि, कक्षा में उपस्थिति, 32–40 22
मध्यम 51
24–32 16
माता-पिता का प्रोत्साहन एवं व्यक्तिगत भिन्नताएँ
16–24 14
हो सकते हैं। छात्रों की तल
ु ना में छात्राओ ं की शैक्षिक 8–16
निम्न
0
18
उपलब्धि अधिक होती है, क्योंकि छात्राएँ, छात्रों
की तल ु ना में पढ़ने में अधिक रुचि लेती हैं। अतः तालिका 5 के अवलोकन से स्पष्ट होता है
इससे संबंधित शून्य परिकल्पना स्नातक स्तर के कि स्नातक स्तर के 75 छात्रों के शैक्षिक आकांक्षा
छात्र-छात्राओ ं की शैक्षिक उपलब्धि में कोई अतं र स्तर के मापन हेतु शर्मा और अनुराधा (2009)
नहीं पाया जाता है, अस्वीकृ त की जाती है। द्वारा निर्मित शैक्षिक आकांक्षा स्तर प्रमापीकृ त
स्नातक स्तर के छात्रों के शैक्षिक आकांक्षा स्तर परीक्षण से संबंधित प्रदत्तों को एकत्रित कर
का अध्ययन उन्हें कुल तीन श्रेणियों में बाँटा गया। इस प्रकार
इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु शोधार्थी द्वारा डी.ई.आई. एकत्रित प्रदत्तों को सुव्यवस्थित रूप से वर्गीकृ त
विश्वविद्यालय के तीन सक ं ायों में से 75 छात्रों का करके आवृत्ति वितरण किया गया है। इन आवृत्ति
146 भारतीय आधिु नक िशक्षा – जनवरी 2020
से उनके शैक्षिक आकांक्षा स्तर का निर्धारण होता है। •• स्नातक स्तर की छात्राओ ं के शैक्षिक आकांक्षा
जिन विद्यार्थियों की शैक्षिक उपलब्धि अधिक होती स्तर में अतं र पाया गया। इस अतं र का कारण
है, उनका शैक्षिक आकांक्षा स्तर भी अधिक होता उनकी बद्ु धिलब्धि, पारिवारिक वातावरण,
है तथा जिन विद्यार्थियों की शैक्षिक उपलब्धि कम विद्यालयी वातावरण, सामाजिक वातावरण
होती है, उनका शैक्षिक आकांक्षा स्तर भी कम होता तथा व्यक्तिगत आकांक्षा आदि हो सकते हैं।
है। अतः इससे संबंधित शून्य परिकल्पना स्नातक •• स्नातक स्तर के छात्र-छात्राओ ं के शैक्षिक
स्तर के विद्यार्थियों की शैक्षिक उपलब्धि एवं शैक्षिक आकाक्षा
ं स्तर में 0.01 सार्थकता स्तर पर अतं र
आकांक्षा स्तर में सहसंबंध नहीं पाया जाता है, नहीं पाया जाता है।
अस्वीकृ त की जाती है। •• स्नातक स्तर के विद्यार्थियों की शैक्षिक
निष्कर्ष उपलब्धि एवं शैक्षिक आकांक्षा स्तर में 0.01
प्रदत्तों के विश्लेषण के आधार पर निम्नलिखित सार्थकता स्तर पर उच्च धनात्मक सहसंबंध
निष्कर्ष दिए गए हैं — पाया गया। इस सहसंबंध के आधार पर
•• स्नातक स्तर के छात्रों की शैक्षिक उपलब्धि में अधिक शैक्षिक उपलब्धि वाले विद्यार्थियों के
अतं र पाया गया। इस अतं र का कारण उनकी शैक्षिक आकांक्षा स्तर का निर्धारण होता है।
आर्थिक, सामाजिक, पारिवारिक स्थिति, अधिक शैक्षिक उपलब्धि वाले विद्यार्थियों
व्यक्तिगत भिन्नताएँ आदि हो सकते हैं। का शैक्षिक आकांक्षा स्तर भी अधिक होता
•• स्नातक स्तर के छात्राओ ं की शैक्षिक उपलब्धि है तथा जिन विद्यार्थियों की शैक्षिक उपलब्धि
में अतं र पाया गया। इस अतं र का कारण उनकी कम होती है, उनका शैक्षिक आकांक्षा स्तर
आर्थिक, सामाजिक, पारिवारिक स्थिति, भी कम होता है।
व्यक्तिगत भिन्नताएँ आदि हो सकते हैं।
•• स्नातक स्तर के छात्र-छात्राओ ं की शैक्षिक
शैक्षिक निहितार्थ
उपलब्धि में 0.01 सार्थकता स्तर पर सार्थक अतं र इस शोध अध्ययन के आधार पर प्राप्त उपलब्धियाँ
पाया गया। इस अतं र का कारण उनकी बद्ु धिलब्धि, व उनसे प्राप्त निष्कर्षों के आधार पर निम्न शैक्षिक
रुचि, कक्षा में उपस्थिति, माता-पिता का प्रोत्साहन निहितार्थ दिए गए हैं —
आदि हो सकते हैं। छात्रों की तलु ना में छात्राओ ं की •• शिक्षक विद्यार्थियों को उनकी क्षमताओ,ं
शैक्षिक उपलब्धि अधिक होती है। योग्यताओ ं आदि को पहचानने हेतु उपयुक्त
•• स्नातक स्तर के छात्रों के शैक्षिक आकांक्षा अवसर प्रदान करें गे ताकि वे अपनी क्षमताओ ं
स्तर में अतं र पाया गया। इस अतं र का कारण के अनुरूप अपने लिए उचित लक्ष्य का निर्माण
उनकी बद्ु धिलब्धि, पारिवारिक वातावरण, कर सकें ।
विद्यालयी वातावरण, सामाजिक वातावरण •• शिक्षकों द्वारा विद्यार्थियों को आगे बढ़ने के
तथा व्यक्तिगत आकांक्षा आदि हो सकते हैं। लिए उचित मार्गनिर्देशन दिया जा सकता है।
150 भारतीय आधिु नक िशक्षा – जनवरी 2020
•• विद्यार्थियों की रुचियों, आवश्यकताओ,ं शैक्षिक आकांक्षा स्तर को प्राप्त करने में सक्षम
आकांक्षा स्तर तथा योग्यताओ ं को ध्यान हो सकें ।
में रखते हुए उन्हें प्रोत्साहित किया जा •• कॉलेज में सभी विषयों को महत्व दिया जाए,
सकता है। जिससे उनका अध्ययन करके विद्यार्थी अपनी
•• कॉलेज में अच्छा वातावरण उपलब्ध कराना, शैक्षिक उपलब्धि तथा शैक्षिक आकांक्षा स्तर
जिससे विद्यार्थी अपनी शैक्षिक उपलब्धि व का मलू ्यांकन कर सकें ।
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