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और
दे श में शिक्षा का भविष्य
शोध प्रस्ताव
डॉ शिवेश प्रसाद राय
अस्सिटें ट प्रोफेसर
राजनीती विज्ञान
अमरनाथ मिश्र स्नातकोत्तर महाविद्यालय
दब
ु ेछपरा ,बलिया
9450725750
शिक्षक एवं प्रशिक्षण संस्थानों में शिक्षक व विद्यार्थी
तीनो क्षेत्र कार्य संतोष से अलग नहीं किये जा सकते और कार्य संतोष इन तीनो
क्षेत्रों का संतुलित सहयोग है । सरल शब्दों में हम कह सकते हैं कि सारे संतोष
कर्मचारी की अपने कार्य के प्रति पर्ण
ू सहमति है । कार्य संतोष सामान्य तौर पर
किसी व्यक्ति की पारिवारिक तथा समाज के जीवन से संतष्ु ट करता है । लेकिन
यह परिभाषा उचित और सही नहीं है क्योंकि ऐसा भी दे खा गया है कि कुछ
व्यक्तियों में उनका पारिवारिक तथा समाज का जीवन ठीक है । लेकिन फिर भी
यह कह सकते हैं कि जीवन संतोष और कार्य संतोष एक दस
ू रे से संबधि
ं त है ।
कार्य संतोष को परिभाषित करने वाली भाषा को लगभग सभी विद्वान स्वीकार
करते हैं। “रोजगार संतुष्टि में रोजगार से संबधि
ं त सभी योग्यताओं, छमताओं को
सम्मिलित करते हैं जिससे व्यक्ति उस रोजगार के कार्यों को करना पसंद करता
है , उसी रहकर प्रगति कि इच्छा रखता है ।
शोध समस्या- आधनि
ु क यग
ु में मनष्ु य की बढ़ती हुई आकांक्षाओं के कारण चारों
तरफ तनाव और संतोष एवं और असरु क्षा की भावना पाई जाती है । यदि किसी
व्यक्ति को ऐसा कार्य मिले जो उसकी रूचि का ना हो और रूचि के साथ साथ
भौतिक आवश्यकताओं की पर्ति
ू भी ना हो तो व्यक्ति अपने जीवन को और अधिक
तनाव पूर्ण ढं ग से जीने के लिए मजबूर हो जाएगा।
शिक्षक हो या शिक्षिका कार्य से मिलने वाले संतोष पर ही भावी पीढ़ी के सुखद
भविष्य की कामना की जा सकती है और असंतुष्ट शिक्षक एवं शिक्षिका असंतुष्ट
विद्यार्थियों को जन्म दें गे।
जिससे समाज का पतन हो जाएगा। असंतष्ु ट मन व बद्धि
ु का प्रभाव शिक्षकों के
कार्य पर पड़ता है ।यदि शिक्षक अपने कार्य से संतष्ु ट होंगे तो निश्चय ही ऐसे
समाज का निर्माण होगा जो स्वस्थ मस्तिष्क और बौद्धिक प्रतिभा का धनी होगा।
परिकल्पनाओं का का परीक्षण-
तालिक संख्या -१
क्रम संख्या क्षेत्र N संख्याM मध्यमान मानक विचलन "t " मान सार्थकता
अनुदानित शिक्षक -
प्रशिक्षण
N.S.- असार्थक