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4 Rites of passage पाठांश 1
4 Rites of passage पाठांश 1
दे श का विकास और उन्नति तब ही हो सकती है जब शिक्षा व्यवस्था सही हो। जीवन में सफल
होने और कुछ अलग करने के लिए शिक्षा एक महत्वपूर्ण साधन है । जीवन की कठिन चुनौतियों
को इसके जरिये कम किया जा सकता है । शिक्षा अवधि में प्राप्त ज्ञान प्रत्येक व्यक्ति को अपने
जीवन के बारे में आश्वस्त करता है ।
गुरुकुल में छात्र इकट्ठे होते हैं और अपने गुरु से वेद सीखते हैं। सामाजिक मानकों के बावजूद हर
छात्र के साथ समान व्यवहार किया जाता था यानी यहाँ पर हर वर्ण के छात्र पढ़ते थे चाहे वे
किसी भी जाति धर्म या परिवार से हो, उनमें किसी प्रकार का भेदभाव नही किया जाता था।
गुरुकुल का मुख्य उदे श्शय ज्ञान विकसित करना और शिक्षा पर अत्यधिक ध्यान केंद्रित करना
होता था।
यहाँ पर धर्मशास्त्र की पढाई से लेकर अस्त्र की शिक्षा भी सिखाई जाती थी। इसमें कोई संदेह
नहीं है कि योग साधना और यज्ञ के लिए गुरुकुल को एक अभिन्न अंग माना जाता है । यहां पर
हर विद्यार्थी हर प्रकार के कार्य को सीखता है और शिक्षा पर्ण
ू होने के बाद ही अपना काम रूचि
और गुण के आधार पर चुनता था।
उपनिषदों में लिखा गया है कि मात ृ दे वो भवः ! पित ृ दे वो भवः ! आचार्य दे वो भवः ! अतिथि
दे वो भवः !
अर्थात माता-पिता, गुरु और अतिथि संसार में ये चार प्रत्यक्ष दे व हैं , इनकी सेवा करनी चाहिए।
इनमें भी माता का स्थान पहला, पिता का दस
ू रा, गुरु का तीसरा और अतिथि का चौथा है ।