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महर्षि सान्दीपनि वेदविद्या प्रतिष्ठान

एवं महावीर मन्दिर, पटना के संयुक्त तत्त्वावधान में आयोजित


त्रिदिवसीय वैदिक सम्मेलन का
उद्घाटन सत्र
समय- 10:30AM से 11:30AM

10:30 AM - महामहिम का आगमन

10:35 AM - 10:40 AM से महामहिम एवं अन्य मंचस्थ व्यक्तियों का अंगवस्त्रम् एवं पुस्तक से सम्मान

10:40 AM- 10:45 AM औपचारिक स्वागत-भाषण: आचार्य किशोर कु णाल

10:45 AM-10:55 AM महामहिम के द्वारा दीपप्रज्वलन के साथ ऋग्वेद आदि चारों वेदों से मंगलाचरण का पाठ

10:55 AM - 11:05 AM महर्षि सान्दीपनि वेद विद्या प्रतिष्ठान के विषय में (संस्कृ त में) प्रस्तुति- डा. रामविलास चौधरी।

11:55 AM से महामहिम का उद्बोधन

महामहिम के उद्बोधन के बाद धन्यवाद ज्ञापन- डा. प्रफु ल्ल कु मार मिश्र, उपाध्यक्ष, महर्षि सान्दीपनि वेद विद्या प्रतिष्ठान, उज्जैन।

महामहिम का प्रस्थान
महामहिम के आगमन पर मंच पर बैठने की व्यवस्था

बायीं ओर बीच में दायीं ओर

किशोर कु णाल महामहिम डा. प्रफु ल्ल कु मार मिश्र


सचिव उपाध्यक्ष, महर्षि सान्दीपनि वेद विद्या प्रतिष्ठान,
श्री महावीर स्थान न्यास समिति उज्जैन
महामहिम के भाषण के लिए प्रारूप

भारत की संस्कृ ति के मूल आधार चारों वेद हैं। वेदों में मानवल मात्र के लिए कल्याणकारी उपदेश उपलब्ध हैं। यही कारण है कि वैदिक
संहिताएँ वर्तमान में भी मानव कल्याण का पथ प्रशस्त करने में सर्वथा सक्षम हैं। वेद ज्ञान परंपरा की वह विरासत हैं, जो जड़-चेतन, सारे संसार
और पूरे ब्रह्मांड में शांति और कल्याण का रास्ता सुझाती है। वेद हमारी प्राचीन जीवन संस्कृ ति के संवाहक तो हैं ही, साथ ही जीवन के सर्वांगीण
विकास की कुं जी भी हैं।
वेद में सभी वर्गों के लिए जीवन जीने का सर्वोत्तम ढंग बताया गया है। इसलिए यह जरूरी है कि वेद शाखाओं में से जो कु छ भी विलुप्त
हो रहा है, उसे जतन कर बचाया जाए और उसका संरक्षण किया जाए। जटिल वेद मन्त्रों की व्याख्या के लिए विद्वानों की सेवाएँ ली जाए और
वेदों में निहित ज्ञान को अनुवाद के जरिए व्यापक पाठक वर्ग तक पहुँचाया जाए।
वेद संस्कृ ति आधुनिक ज्ञान-विज्ञान का महत्त्वपूर्ण आधार हो सकती है। इसलिए वेदों से जुड़े लौकिक व अलौकिक ज्ञान को जन-जन
तक पहुँचाने के लिए प्रभावी प्रयास करने की जरूरत है। आज आवश्यकता है कि वैदिक परम्पराओं के लिए कार्य करने वाले विषय-विशेषज्ञों के
लिए सुनियोजित प्रयास किए जायें। देश में नई शिक्षा नीति बहुत सोच-विचार के बाद बनाई गई है। इसमें प्राचीन और आधुनिक ज्ञान-विज्ञान के
अध्ययन के भरपूर अवसर विद्यार्थियों को मिल सकें गे।
हमें अत्यन्त प्रसन्नता है कि उज्जैन स्थित महर्षि सान्दीपनि वेदविद्या प्रतिष्ठान इस दिशा में अग्रसर है। हमें सूचित किया गया है कि इस
प्रतिष्ठान के द्वारा देश के विभिन्न भागों में 250 से अधिक गुरुकु ल-परम्परा की ईकाइयाँ हैं, जहाँ सात्त्विक विधि से परम्परागत रूप में गुरु अपने
शिष्यों को वेद का अध्यापन कराते हैं। इनके अतिरिक्त औपचारिक मान्यता वाले 125 वेद विद्यालय भी इस संस्थान के द्वारा संचालित किए
जाते हैं।
हमें सूचना दी गयी है कि संस्थान के द्वारा संचालित इन के न्द्रों में पारम्परिक रूप से छात्र 12 वर्षों तक वेद का अध्ययन करते हैं और
वे अपनी शाखा को मौखिक रूप में सुरक्षित रखने में समर्थ हो जाते हैं। यही पद्धति प्राचीन काल में भारत की सबसे बड़ी सम्पत्ति थी, जिसके
कारण वेदों की मौखिक परम्परा चली और सारे वेद सुरक्षित रहे। उज्जैन का यह संस्थान वेदों के उच्चारण के मौलिक स्वरूप को सुरक्षित करने में
अपनी भूमिका निभा रहा है, जिसके लिए मैं संस्थान के अधिकारियों को धन्यवाद देता हूँ।
हमें यह भी खुशी हो रही है कि इस प्रकार का कार्यक्रम बिहार में हो रहा है। हमें बतलाया गया है कि ऐसा कार्यक्रम पहली बार बिहार में
हो रहा है। इसे स्थानीय स्तर पर आयोजित करने में महावीर मन्दिर ने जो भूमिका निभायी है, उसके लिए मैं मन्दिर के सचिव किशोर कु णालजी
को धन्यवाद देता हूँ।
महावीर मन्दिर ऐसी संस्था है, जिसपर न के वल पटना के निवासी अपितु समग्र बिहार के लोग गौरव करते हैं। एक धार्मिक संस्था के
माध्यम से जनहित के जो कार्य हो रहे हैं, वे अपने आप में महत्त्वपूर्ण हैं। इस मन्दिर के द्वारा चिकित्सा के क्षेत्र में बहुत सारे कीर्तिमान स्थापित
किए गये हैं। महावीर कैं सर संस्थान, महावीर नवात्सल्य अस्पताल, महावीर आरोग्य संस्थान अस्पतालों में किशोर कु णालजी के कु शन निर्देशन
में कम खर्च में बेहतर चिकित्सा सुविधा उपलब्ध करायी जा रही है, यह गौरव का विषय है।
यह संस्था इस वैदिक-सम्मेलन के आयोजन में अपनी महत्त्वपूर्ण भागीदारी निभा रही है, यह खुशी का विषय है। वेदों का संरक्षण और
उनके ज्ञान का प्रचार-प्रसार करना तो मन्दिरों का प्रधान कर्तव्य हो जाता है। महावीर मन्दिर इस दिशा में अग्रसर है। मैं आशा करता हूँ कि
महावीर मन्दिर बिहार में भी वेदों के अध्ययन-अध्यापन के लिए सुनियोजित व्यवस्था करे, ताकि इस दिशा में बिहार की भी सहभागिता रहे ।
मैं इस कार्यक्रम की दोनों आयोजक संस्थाओं- महर्षि सान्दीपनि वेदविद्या प्रतिष्ठान तथा महावीर मन्दिर पटना के अधिकारियों को
धन्यवाद देता हूँ और जितने लोग इससे जुड़े हुए हैं, सबके प्रति शुभकामना व्यक्त करता हूँ।
नई शिक्षा नीति प्राचीन मूल्यों की मजबूत नींव पर भविष्य के श्रेष्ठ भारत का निर्माण करने वाली है। हमारे प्राचीन ज्ञान और वैदिक
परंपरा के विकास के लिए वेद से जुड़े ज्ञान को यदि पाठ्यक्रमों में सम्मिलित किया जाए तो यह नई पीढ़ी के लिए बेहद महत्त्वपूर्ण होगा। बिहार में
वैदिक शिक्षा के विकास के लिए राज्य सरकार, विश्वविद्यालय और महावीर मन्दिर आगे बढ़कर पहल करेंगे, ताकि प्राचीन ज्ञान-विज्ञान के
आलोक से भारत फिर से विश्वगुरु बन सके ।

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