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Scholarly Research Journal for Interdisciplinary Studies,

Online ISSN 2278-8808, SJIF 2021 = 7.380, www.srjis.com


PEER REVIEWED & REFEREED JOURNAL, JULY-AUGUST, 2022, VOL- 10/72

वििेकानन्द केन्द्र की स्थापना का ऐविहाविक पुनरािलोकन

अतुल कुमार1 & भरत कुमार पंडा2, Ph. D.


1
पी-एच.डी. शोधार्थी
2
सहायक प्राध्यापक, शशक्षा शिभाग, महात्मा गाां धी अांतरराष्ट्रीय, शहां दी शिश्वशिद्यालय, िधाा ,
महाराष्ट्र - 442001

Paper Received On: 25 AUGUST 2022


Peer Reviewed On: 31 AUGUST 2022
Published On: 01 SEPTEMBER 2022

Abstract

स्वामी वििेकानन्द ने अपने जीिन के अत्यंत अल्प समय में ही सारे विश्व को जो राह विखाई संभितः
कोई अन्य कई सौ िर्षों तक जीवित रह कर भी न कर पाता। उनके कमम योग का संिेश कमम को ईश्वर के रूप में
िे खने की प्रेरणा िे ता है । उनका कहना था वक आधुवनक काल में भारत का जो पतन हुआ है िह धमम की अज्ञानता
के कारण हुआ है । इसवलए जीिन में धमम की अज्ञानता को िू र करना मनु ष्य का परम लक्ष्य होना चावहए। इस
अज्ञानता को िू र करने के वलए हमें सही मागमिशम क वशक्षा की आिश्यकता है । जो प्रत्येक भ्ां वतयों को िू र कर
यथाथम का ज्ञान कराये। इसी कारण से उन्ोंने वशक्षा की राष्ट्र केन्द्रीयता के आह्वाहन के साथ राष्ट्र के युिा िगम
उविष्ठत जाग्रत प्राप्य िराविबोधत के साथ राष्ट्रीय चररत्र के वनमाम ण के वलये प्रेररत वकया। स्वामी जी के इन विचारों
से प्रेररत होकर एकनाथ जी ने सिमप्रथम वििेकानन्द वशला स्मारक, कन्याकुमारी को प्रवतवष्ठत कराया। उसके
पश्चात् स्वामी जी के विचारों को मू तम रूप िे ने के वलए वििेकानन्द केंद्र की स्थापना की। ितममान समय में
वििेकानन्द केंद्र भारत के 24 राज्ों और 2 केन्द्रशावसत प्रिे शों में विवभि कायमक्रमों जै से- वशक्षा, स्वास्थ्य, ग्रामीण
एिं जनजातीय कल्याण के कायमक्रम प्रकाशन, सामावजक एिं सां स्कृवतक विकास सम्बन्धी कायों के द्वारा विकास
के वनत नए प्रवतमान स्थावपत कर रहा है तथा स्वामी वििेकानन्द जी के कल्पनाओं को मूतम रूप िे रहा है । इस
ले ख के माध्यम से शोधाथी ने वििेकानन्द केंद्र की स्थापना का इवतहास, उद्देश्य एिं पररयोजनाओं को सभी के
सम्मुख प्रस्तु त करने का प्रयास वकया है ।
मुख्य शब्द: एकनार्थ रानडे जी, शििेकानन्द शशला स्मारक, शििेकानन्द केंद्र।

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प्रस्तािना: हमारा िे श सामावजक जीिन के सभी क्षे त्रों में अग्रणी रहा है , वकंतु कई आक्रमणों एिं

वििे शी साम्राज् से संघर्षम ने हमारी वशक्षा पद्धवत एिं मानवसकता को प्रभावित कर विया है । उसके बाि
अंग्रेजों ने हमारी वशक्षा को प्रभावित कर हमें मानवसक रूप से पंगु बनाकर हमारे ऊपर लगभग 200

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िर्षों तक शासन करने का प्रयत्न करते रहे । “तथावप उसी समय की अंग्रेजी वशक्षा प्रणाली ितममान समय
में हमारी मागमिशम क बनी हुई है जबवक उस समय की अंग्रेजी वशक्षा का उद्दे श्य विविश राज् को भारत
में स्थायी एिं शक्तिशाली बनाना, पाश्चात्य संस्कृवत सावहत्य का प्रचार-प्रसार करना, बाबू िगम का वनमाम ण
करना एिं वनस्यन्दन वसद्धांत द्वारा कुछ भारतीय लोगों को अंग्रेजी पढा कर उन्ें अं ग्रेजी के प्रवत वनष्ठािान
बनाना तथा शेर्ष को इससे िंवचत रखना था।” (विश्र, 2011)। वजसका पररणाम यह हुआ की स्वतंत्रता के
बाि भी भारतीय वशक्षा का भारतीयकरण नहीं हो पाया। स्वामी वििेकानन्द ने अपनी पुस्तक ‘आिर

एजुकेशन’ वलखा है वक, “वशक्षा की संपूणम प्रणाली भारतीय संस्कृवत और परं परा से पूणमतया विलग है ।
जबवक िह िे श जीिंत नहीं कहा जा सकता है वजस िे श के बच्चे अपनी संस्कृवत की जानकारी न रखते
हो एिं उस पर गिम न करते हो। जब हमें अपनी संस्कृवत का ज्ञान ही नहीं है तो हम गिम वकस पर
करें गे।” (विश्र, 2011)। वजसके संिभम में स्वामी जी यह चाहते थे वक “यवि हमारे िे श की सभी धावममक
भािनाओं को जनवहत के कायों में पररिवतमत कर विया जाए तथा िे श के सम्पूणम धावममक आिेश को
राष्ट्रीय पुनवनममाम ण में बिल विया जाए, तो यह वकतनी विशाल शक्ति होगी! यह एक बहुत बडी योजना है ,
बहुत बडी पररकल्पना है ” (विडे एिं परांजपे , 2015)। स्वामी जी के इन्ीं विचारों से अवभप्रेररत होकर
एकनाथ रानडे जी ने 7 जनिरी सन् 1972 में वििेकानन्द केंद्र, कन्याकुमारी की स्थापना की। यह संस्थान

मुख्यतः भारत के पूिी राज् अरुणाचल प्रिे श, असम, नागालैंड, अंडमान वनकोबार द्वीप समूह आवि
जगहों पर आिासीय ि सामान्य विद्यालय स्थावपत कर स्वामी वििेकानन्द जी के कल्पनाओं को साकार

कर रहा है । यह संस्थान केिल वशक्षा के वलए ही कायम नहीं करता बक्ति िे श के आवथमक और
सामावजक क्तस्थवत में प्रगवत लाने के उद्दे श्य से पोर्षक बालिावडया, युिा प्रेरणा वशविर, ग्रामीण

पुस्तकालय, वचवकत्सा सेिा, सां स्कृवतक िगम, वनयवमत योग प्रवशक्षण वशविर और आध्याक्तिक साधना
वशविर का भी आयोजन करता है । वजससे िे श का सिोतोन्मुखी विकास हो। भारत सरकार की ओर से

वििेकानन्द केन्द्र को वशक्षा एिं ग्रामीण विकास में उत्कृष्ट् योगिान के वलये 16 जनिरी 2019 को िर्षम
2015 का गां धी शां वत पुरस्कार विया गया। केन्द्र को पुरस्कार रावश के रूप में 1 करोड रूपये वमला,

वजसे केन्द्र ने पुलिामा हमले में शहीि हुये जिानों के पररिारों को िान में िे ने की घोर्षणा की
(स्रोि:khabar.ndtv.com)।

वििेकानन्द केंद्र की स्थापना: कन्याकुमारी में बना वििेकानन्द वशला स्मारक भारतीय स्थापत्य कला
की सुंिरता, पवित्रता के साथ-साथ पूरे राष्ट्र की महत्वाकां क्षाओं एिं एकता का अवद्वतीय प्रतीक है क्ोंवक

पूरे राष्ट्र ने इसके वनमाम ण की इच्छा व्यि की तथा उसके वलए काम करके अपना योगिान विया। यह
एक ऐसा स्मारक है , वजसकी मूल कल्पना राष्ट्रीय स्वयंसेिक संघ के स्वयंसेिकों ने की थी, वजसे
रामकृष्ण वमशन का आशीिाम ि वमला। सभी आध्याक्तिक, सां स्कृवतक और राष्ट्रीय संस्थाओं ने इसे अपना
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पूरा समथमन विया था। सभी राज् सरकारों तथा केंद्र सरकार ने आवथमक सहायता िी थी वजस तरह
कन्याकुमारी, तीन समुद्रों के वमलन का स्थान है , उसी तरह से यह स्मारक भी एक केंद्र वबंिु है ।

वििेकानन्द वशला स्मारक का वनमाम ण कायम जैसे-जैसे आगे बढ रहा था िैसे-िैसे एकनाथ जी के मन एिं
मक्तस्तष्क में यह विचार चल रहा था वक की क्ा केिल स्वामी जी की मूवतम की स्थापना के वलये उनका

जन्म हुआ है तथा क्ा यह केिल मूवतम स्थापना से ही स्वामी जी के विचारों से समस्त विश्व को पररवचत
कराया जा सकता है ? नहीं वबिुल नहीं हमें स्वामीजी के विचारों को साकार करने के वलये जीिन्त

व्यक्तियों के समूह की जो त्याग, तपस्या के वलये तैयार हो तथा उनके अन्दर राष्ट्र के वलये कुछ कर
गुजरने की चाहत हो और वजनके अन्दर राष्ट्र से प्रेम हो, वक आिश्यकता होगी तब एकनाथ जी के मन में

वशला स्मारक के वनमाम ण के समय से ही वििेकानन्द केंद्र की स्थापना का विचार आ गया था। “वकस
प्रकार इस प्रकल्प के बारे में विचार-विमशम प्रारं भ हुआ और वकस प्रकार प्रथम चरण में ही वद्वतीय चरण
के बीज बो विए गए थे जब हम स्मारक-योजना प्रथम चरण को कायाम क्तित कर रहे थे तब वििेकानन्द
केंद्र की स्थापना के विचार ने जड पकड ली थी” (व्याि,2012)।
वििेकानन्द विला स्मारक: स्वामी वििेकानन्द जी का जन्म 12 जनिरी सन् 1863 को हुआ था। सन्
1962 में स्वामी वििेकानन्द जी के जन्म के 100 िर्षम पूरा होने के उपलक्ष्य में रामकृष्ण वमशन द्वारा स्वामी

जी के एक सौिें जन्मवििस से एक सौ एकिें जन्म वििस तक की समूची अिवध को अक्तखल भारतीय


स्तर पर शताब्दी िर्षम के रूप में मनाने की योजना बनायी। अतः स्वामी जी के विए गए जीिनोपयोगी

उपिे शों और उनकी जीिनी के बारे में अनेक जगहों पर अनेक कायमक्रम आयोवजत वकए गए, जब
संपूणम भारतिर्षम में स्वामी वििेकानन्द जी का जन्म शताब्दी िर्षम मनाया जा रहा था उसी समय

कन्याकुमारी के वनिावसयों ने सोचा वक जो श्रीपाि् वशला है जहां पर िे िी पािमती ने भगिान वशि को िर


रूप में प्राप्त करने के वलए िावहने पां ि पर खडी होकर ध्यान और तपस्या की थी। इसी वशला पर

बैठकर स्वामी वििेकानन्द जी ने 25, 26 और 27 विसंबर 1892 तीन विन ि तीन रात ध्यान वकया था,
वचंतन-मनन वकया था और उन्ें भविष्य के वलए मागमिशमन वमला तथा यहीं पर स्वामी जी को उनके गुरु

श्री रामकृष्ण परमहं स ने िशमन विया। इसवलए सभी व्यक्तियों की यही इच्छा थी वक िहां पर एक स्मारक
बनना चावहए। िे परस्पर वमले और उन्ोंने अपना विचार प्रकि वकया वक “हम इस स्मारक को बनाए

और पैिल चलने िाले व्यक्तियों के वलए एक पु ल भी बनाए तावक लोग वशला तक जा सके”
(व्याि,2012)। उसी समयान्तर पर रामकृष्ण वमशन के प्रमुख स्वामी सत्त्वानंि एक जनसभा आयोवजत

कर रहे थे। उस समय उनके भी मन में कन्याकुमारी के लोगों की तरह िहां पर स्मारक बनाने की बात
मन में आयी थी। इस प्रकार एक ही समय में एक समान विचार मद्रास और कन्याकुमारी के लोगों के
मन में प्रविष्ट् हुयी। तिु परां त कन्याकुमारी सवमवत और मद्रास के लोग संगवठत हुए और योजना बनाना
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प्रारं भ वकया। योजना की जानकारी िहां के अन्य समुिाय के लोगों को हुयी। वजसके उपरान्त सवमवत के
सिस्यों और उनसे झगडे की नौबत आ गयी। तब सवमवत के सिस्यों ने सोचा वक समस्या तो कोई अलग

ही मोड ले रहा है और उन्ें इस कायम हे तु अक्तखल भारतीय सवमवत का वनमाम ण करना चावहए। इस विशा
में प्रयत्न होने लगा वक िह सवमवत अक्तखल भारतीय सवमवत में पररिवतमत होनी चावहए। उसके बाि केरल

के श्री मिाथ पद्मनाभन् जी को अध्यक्ष चुना गया और िे श के कई महत्वपूणम व्यक्तियों से संपकम स्थावपत
वकया, और निम्बर 1962 को सवमवत का वनमाम ण हुआ। वजसका सन् 1963 में पंजीकरण हुआ। इसके

बाि सरकार की आज्ञा से 17 जनिरी 1963 को वशला पर एक वशलालेख प्रवतस्थावपत वकया गया।
वजसके बाि िहां बडा समारोह, शोभायात्रा और जनसभा आयोवजत की गई। उसी सभा में कुछ लोगों ने

कहा वक इस प्रकार का वशलालेख पयाम प्त नहीं होगा िहां तो मूवतम की स्थापना होनी चावहए। वशलालेख
स्थावपत होने के कुछ समय पश्चात् द्वे र्ष की भािना से कुछ स्थानीय समूह के व्यक्तियों ने यह वनश्चय वकया

वक उस वशलालेख को भी हिाना चावहए। “एक विन जब सुबह समुद्र में तू फान था और नौकायें पानी पर
नहीं चल सकती थी, तब उन्ोंने वशलालेख को तोड डाला और समुद्र में फेंक विया वजसका अभी तक
पता नहीं लग सका है । उसके कारण बडा कोलाहल हुआ, आं िोलन हुआ, जुलूस वनकाले गए और
अपने से बडे अवधकाररयों को भी तार भेजे गये” (व्याि,2012)।
एकनाथ रानडे जी उस समय राष्ट्रीय स्वयंसेिक संघ के सरकायमिाहक थे। उि घिनाक्रम तक
िे सवमवत से नहीं जुडे थे। िे अपनी पुस्तक ‘कथा वििेकानन्द वशला स्मारक की’ में वलखते हैं वक,

“राष्ट्रीय स्वयंसेिक संघ का सरकायमिाहक होने के नाते िे श के चारों ओर यात्रा वकया करता था। उस
समय मैं कन्याकुमारी भी आया था बस यहां तक ही मेरा संबंध था परं तु उस समय मेरा कोई सीधा संबंध
सवमवत से नहीं था” (व्याि,2012)।
एकनाथ जी ने वििेकानन्द केंद्र का काम, पहले चरण अथाम त् वििेकानन्द वशला स्मारक का

काम पूरा हो जाने के बाि हाथ में वलया हो, ऐसी बात नहीं थी। जैसे-जैसे ग्रेनाइि से बने स्मारक का काम
प्रगवत कर रहा था, केंद्र की कल्पना लोगों के हृिय में आकार लेती जा रही थी। एकनाथ जी के विचार

स्वामी जी के विचारों के अनुरूप ही थे उनका मानना था वक “आिश्यकता है केिल उन उपेवक्षत और


परतंत्र लोगों के प्रवत नैसवगमक जन्मजात आस्था और आिीयता रखने िाले समवपमत कायम कताम ओं की ि
उनके सुवनयोवजत संगवठत प्रयत्नों की। वििेकानन्द स्मारक उस महान उद्योग पिम का सूत्रपात मात्र है ।
लेवकन इस स्मारक के वनमाम ण के अलािा, जो वनःसंिेह िहां स्वामी जी के िे िी रूपां तरण का पवित्र
प्रतीक होगा, समुवचत होगा वक हमारे िे श के उस िवक्षणी छोर से ऊपर की ओर राष्ट्र वनमाम ण के वलए
मूलभूत गवतविवधयााँ तीव्र गवत से चलाई जाएं , वजनकी अवभकल्पना उस महान िे शभि िे ििू त ने िे श
के खोए हुए व्यक्तित्व की पुनप्राम क्तप्त के उद्दे श्य से तथा िे शिावसयों की उिवत के वलए की थी और वजसके
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वलए उसी क्षण से उन्ोंने अपना जीिन भी समवपमत वकया था। इसे प्राप्त करने के वलए एक तरफ ध्येय
प्रेररत समवपमत व्यक्तियों को प्रवशवक्षत करना, उन्ें कायमकताम के रूप में ढालना ि िू सरी ओर ऐसे
कायमकताम ओं के िलों को बडी संख्या में कायमक्षेत्र में तैनात करके िे शिावसयों को वशक्षण, प्रकाशन और
सेिा के माध्यम से उनके महान ध्येय और विरासत के बारे में जागृत करना, यह हमारी दृवष्ट् में मूलभूत
कायम है , वजनके वलए स्वामी जी जीवित रहे और वतरोवहत भी हुए” (विड़े एिं परांजपे , 2015)। स्वामी
वििेकानन्द के विचारों से अवभभूत एकनाथ जी का कहना था वक “वशला स्मारक तभी उपयोगी वसद्ध

होगा जब स्वामी वििेकानन्द के विचार लोगों के मन में तथा कमम में रहें गे। सही अथो में वचरं तन स्मारक
का स्थान तो जनसाधारण का हृिय ही होता है और यह तभी संभि होगा, जब एक िैसा ही विचार लेकर,
एक जीिंत स्मारक, यानी एक सेिा भािी संगठन की स्थापना हो” (विड़े एिं परांजपे , 2015)। इन
उद्दे श्यों को मूतम रूप िे ने के वलए एकनाथ जी घू मने वफरने लगे और गैर-सन्यासी सेिा संगठन और

समवपमत कायमकताम ओं के अक्तखल भारतीय प्रवशक्षण केंद्र की स्थापना के कायों का सूक्ष्मता से वनयोजन
करने में जुि गए।

“नौ िर्षों के आधारभूत कायम के बाि, 7 जनिरी 1972 को वििेकानन्द केंद्र की विवधित् स्थापना
की गई। उस विन स्वामी वििेकानन्द की 108 िीं जयंती थी। उस पवित्र विन पूिम वछवतज पर अपनी
लावलमा वबखेरते हुए जैसे ही सूयोिय हुआ, ओम अंवकत भगिा ध्वज वििेकानन्द वशला स्मारक के प्रसि
िातािरण के बीच आकाश में लहराने लगा और इसी के साथ स्थापना हुई वििेकानन्द केंद्र एक
आध्याक्तिक सेिा संगठन की। एकनाथ जी के माध्यम से स्वामी वििेकानन्द का िह भव्य स्वप्न साकार हो
रहा था। राष्ट्र सेिा में लीन एक गैर सन्यासी संगठन का जन्म हुआ था” (विड़े एिं परांजपे , 2015)।
वििेकानन्द केंद्र के उद्दे श्य : एकनाथ रानडे जी वनवध संकलन के िौरान ही महत्वपूणम व्यक्तियों से
संपकम बनाकर सवमवत गठन के कायों तथा उद्दे श्यों पर भी विचार मंथन कर रहे थे “स्मारक वनवममती के

कुछ समय बाि ही स्मारक योजना के वद्वतीय चरण अथाम त् गैर-सन्यासी, वकंतु अध्याि प्रेररत, सेिा
संगठन की स्थापना का कायम वकया गया। ‘वििेकानन्द केंद्र’ नाम का यह संगठन एक आं िोलन है जो
स्वामी वििेकानन्द के जीिन और व्यक्तित्व से ऊजाम पाकर गवतमान हुआ है । इस आं िोलन का उद्दे श्य
केंद्र के महासवचि श्री एकनाथ रानडे द्वारा िे श के विवभि शहरों में जनसभा को सं बोवधत करते हुए विये
गये व्याख्यान में से स्पष्ट् वकए जा सकते हैं ” (विड़े एिं परांजपे , 2015)। जो वक वनम्न है –
1. हिारी राष्ट्रीय प्रकृवि: िुक्ति की कािना: इस िे श को धमम और अध्याि की भूवम कहा जाता है ।

स्वामी वििेकानन्द कहा करते थे वक, “हमारे िे श की आिा धमम है । इस िे श के लोगों ने मुक्ति को ही
सिोच्च पुरुर्षाथम माना है । यहां तक वक, राज्शास्त्र सरीखे लौवकक विर्षयों से संबंवधत परं परागत ग्रंथ भी

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अपने प्राक्कथन में ही घोर्षणा कर िे ते हैं वक उन शास्त्रों का अंवतम लक्ष्य प्रत्येक मनुष्य को उसी
आध्याक्तिक लक्ष्य अथाम त् मोक्ष की ओर बढने में सहायता िे ना है ” (विडे , 2012)।
2. राष्ट्र को एकिा के िूत्र िें वपरोना: एकनाथ रानडे जी कहते थे वक,“वकसी विवशष्ट् नगर में यवि
कोई स्वयं को वसक्ख, आयम समाजी, जैन या बौद्ध नाम से संबोवधत करता है तो कोई बात नहीं, परन्तु िह
सब िैविक हैं । सम्पूणम आप्तिचन िेिों से प्रिावहत होता है । उन्ोंने वनिे श विया वक व्यक्तिगत झंडे कोई
भी हो हमें सभी लोगों को एकता के सूत्र में बां धना होगा तथा उन्ें एक सूत्र में वपरोना होगा” (व्याि,
2012)।
3. िितिान परस्पर विरोधी क्तस्थवि को विटाना: “आज हमारे िे श में ितम मान समय में लाखों लोगों के

द्वारा मंविरों में िशमन, तीथम-यात्रा, कीतमन, भजन, यज्ञ, अनुष्ठान, धावममक एिं आध्याक्तिक प्रिचनों को
सुनने तथा िे श में बडी सं ख्या में धममगुरुओं के उपिे श एिं साधु-संतों के अक्तस्तत्व को यवि िे खा जाए
और इसे ही धावममक अवभव्यक्ति का लक्षण माना जाए, तब संभित: हमारा िे श अतीत के वकसी भी
कालखंड की अपेक्षा आज अवधक धावममक कहलाने का अवधकारी है वकंतु िु भाम ग्य से इस ऊपरी
इश्वरोन्मुखता का सामावजक जीिन पर अपेवक्षत स्वाभाविक पररणाम कहीं भी दृवष्ट्गोचर नहीं हो रहा है ।
उपलब्ध प्रमाणों के आधार पर हम कह सकते हैं वक अतीत के काल में यह सभी लक्षण हमारे िे श में
पयाम प्त मात्रा में विद्यमान थे , वकंतु अब यह तेजी से हमारे अंिर से वतरोवहत होते जा रहे हैं ” (व्याि,
2012)। अतः केंद्र के कायों द्वारा हमें इस परस्पर विरोधी क्तस्थवत को वमिाना होगा समाप्त करना होगा।

4. िूल रोग: धित या आध्याक्तिकिा की विकृि धारणा: रानडे जी कहते थे वक “हमारे िे श की


आध्याक्तिक शक्तियां वबखरी पडी है , इसके वलए हमें पैने दृवष्ट्कोण को अपनाना होगा वजससे हम इसे
िे ख सकें क्ोंवक गत कई शताक्तब्दयों से धमम की विकृत धारणा का प्रचलन ही हमारी समस्त व्यावधयों
का मूल कारण रहा है और हम आज भी उससे वचपके हुए हैं वजसके कारण आज सिमतोमुखी पतन का
दृश्य उत्पि हुआ है ” (विड़े , 2015)।
5. िुद्ध धित िाि के लक्षण को जागृि करना: “धावममक जागृवत का अथम है , अंतरािा एिं सम्पूणम विश्व

में ईश्वर का िशमन करना। इससे मनुष्य आं तररक विव्यत्व के प्रवत जागरूक होने लगता है और
आध्याक्तिक विकास के वलए कायम करने की प्रेरणा उसमें जगने लगती है । फलस्वरूप िह समस्त मानि
जावत के प्रवत बंधुत्व की भािना से ओत-प्रोत हो उठता है और मानि कल्याण तथा प्रगवत के वलए कायम
करने की लगन, उसमें उत्पि हो जाती है । अतः हमें केंद्र के द्वारा लोगों में शुद्ध धमम भाि के लक्षण को
जागृत करना होगा तथा उससे राष्ट्र का पुनवनममाम ण करना होगा” (विड़े एिं परांजपे , 2015)।
6. स्वािी जी का आह्वाहन: उि प्रिु की पूजा करो जो हिारे चारों ओर दे ख रहे हैं : मानि सेिा ही
ईश्वर पूजा है । ईश्वर की पूजा करने का िास्तविक अथम यह है वक “वजसको आप चारों ओर िे खते हैं
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उनकी सेिा एिं भलाई का कायम करना। ईश्वर कहीं स्वगम में बैठा हुआ नहीं है बक्ति िह हमारे चारों ओर
जगत में अवभव्याप्त है । हमें प्रत्येक व्यक्ति में ईश्वर को िे खने में सक्षम होना चावहए। इसवलए यवि
आपका लक्ष्य ईश्वर की पूजा है तो आपको उसके संसार की पूजा करनी होगी (व्याि, 2012)। तभी हम
अन्य सब िे िताओं की उपासना के अवधकारी भी बन सकेंगे। हमें अपने केंद्र के कायमकताम ओं के माध्यम

से लोगों के अंिर इस अनुभूवत को जगाना होगा, लाना होगा।


वनष्कर्त: एकनाथजी जब कलकिा के रामकृष्ण वमशन में रहकर स्वामी जी के ग्रंथों का अध्ययन कर

रहे थे तभी से उनके मन में स्वामी जी के विचारों को साथमक रूप िे ने के वलए वकसी न वकसी रूप में
कायम करने की योजना उनके मक्तस्तष्क में चल रही थी। ईश्वर एिं स्वामी जी के आशीिाम ि से उन्ें

वििेकानंि वशला स्मारक, कन्याकुमारी से जुडने का अिसर प्राप्त हुआ जहां सिमप्रथम उन्ोंने वशला
स्मारक के वनमाम ण के साथ-साथ वििेकानंि केंद्र की भी स्थापना की। वजसमें उनका मुख्य ध्येय ही था

वक लोगों के अंिर धमम का जो अज्ञान है उसे समाप्त वकया जाए। जैसा वक स्वामी जी के विचारों में सिा
ही पररलवक्षत होता रहा था। स्वामी जी ने यह भी पाया वक लोगों में धमम के प्रवत अज्ञानता ि वपछडे पन का

सिमप्रमुख कारण वशक्षा है । इसवलये स्वामी वििेकानंि जी ने एक ऐसे राष्ट्र की कल्पना की जहां सभी
मनुष्य वशवक्षत, सभ्य एिं सु संस्कृत हों इसके साथ-साथ समाज में वकसी भी प्रकार का भेिभाि न हो।

ऐसे समाज की संकल्पना केिल वशक्षा द्वारा ही पूरी हो सकती है जहां सभी प्रकार की वशक्षा और
अभ्यास का उद्दे श्य मनुष्य वनमाम ण हो। इसे प्राप्त करने के वलए मनुष्य को मनुष्य के साथ जोडना होगा,

वमलाना होगा। इसके वलए स्वयं भारत की जनता को आगे आना होगा। आगे आने का यह िावयत्व स्वामी
जी ने वशवक्षत जन समुिाय को सौंपा। एकनाथ जी ने इस विशा में भी कायम करने के वलए तथा िे श से

अज्ञानता को वमिाने के वलए उन्ोंने वििेकानंि केंद्र विद्यालयों की श्रृंखला शुरू की आज वििेकानंि केंद्र
भारत के उिर पूिी क्षेत्रों में विद्यालय का सफल संचालन कर रहा है और विश्व विख्यात हो रहा है ।

“भारत को जगि् गुरु बनाने के वलए तपश्चयाम की परं परा को अपनाकर, वििेकानन्द केंद्र में आने
िाले युिा कायमकताम स्वामी वििेकानन्द का संिेश जन-जन तक पहुं चाने के वलए कविबद्ध रहें गे। वसं ह के
पौरुर्ष से युि, परमािा के प्रवत अिू ि वनष्ठा से सं पि और पावित्र्य की भािना से उविप्त सहस्त्रों नर-
नारी, िररद्रों एिं उपेवक्षतों के प्रवत हाविम क सहानुभूवत लेकर िे श के एक कोने से िू सरे कोने तक भ्मण
करते हुए मुक्ति का, सामावजक पुनरुत्थान का, सहयोग और समता का संिेश िें गे”(विड़े एिं परांजपे ,
2015)। एकनाथ जी के माध्यम से स्वामी वििेकानन्द का िह भव्य स्वप्न साकार हो रहा है ।

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अतुल कुमार & डॉ. भरत कुमार पांडा 17455
(Pg. 17448-17455)

िन्दित ग्रन्थ िूची


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https://www.jagranjosh.com/current-affairs/govt-announces-winners-of-gandhi-peace-prize-
for-2015-2018-in-hindi-1547703105-2
https://khabar.ndtv.com/news/india/vivekananda-center-gave-one-crore-rupees-of-gandhi-
shanti-puraskar-to-families-of-pulwama-martyrs-1999604

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