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शिक्षक के व्यक्तित्व का निखार है आचार्यत्व

--लक्ष्मीनारायण भाला "लक्खीदा"

मानव ससं ाधन विकास मत्रं ालय का पनु श्च शिक्षा मत्रं ालय के नाते नामकरण करना और 10+2+3 को
बदलकर 5+3+3+4 के मनोवैज्ञानिक ढांचे में ढालना भारत सरकार का एक सराहनीय और
साहसिक कदम है। इस नीति के क्रियान्वयन में आने वाली चनु ौतियों को जानने, समझने और उनका
समाधान करने में शिक्षा क्षेत्र के सभी घटकों को अपनी-अपनी भमि ू का निभानी होगी । इसी दृष्टि से
विद्यार्थी को कें द्रबिंदु मानकर निर्धारित की गई शिक्षा नीति में शिक्षक की भमि
ू का पर गहन चितं न
करने की आवश्यकता है।
जिसका आचरण ऐसा हो कि वह हर किसी को अनक ु रणीय लगे, प्रेरणादायी लगे तो निश्चित ही कहा
जा सकता है कि वह व्यक्ति आचार्य है । आचरते इति आचार्य। किसी शिक्षक का आचरण
विद्यार्थियों के लिए आचरणीय और अनक ु रणीय हो तो वह आचार्य कहलाने का हकदार हो ही जाता
है। शिक्षक का स्थान अपने आप में एक आदरणीय स्थान है। आदरणीय स्थान पर विराजमान व्यक्ति
का व्यक्तित्व आचरणीय हो यही अपेक्षित है । अतः शिक्षक आचार्य बने यह शिक्षा क्षेत्र की एक
महती आवश्यकता है । शिक्षक का आचार्य होना एक दीर्घ प्रक्रिया है, या कहे कि यह एक साधना है,
तो गलत नहीं होगा। अपने कार्य में पारंगत होने के लिए किया गया प्रयास ही साधना कहलाता है ।
शिक्षा क्षेत्र में साधना करने का महत्वपर्णू माध्यम या साधन है प्रशिक्षण । अपने छात्र अथवा शिष्य के
लिए एक शिक्षक या गरुु का अनक ु रणीय आचरण वाला बनना बहुत ही आवश्यक है । अर्थात यह
स्पष्ट है कि गरुु की भमिू का में कार्यरत शिक्षक को प्रशिक्षण प्राप्त कर प्रशिक्षित होना होगा ।
शिक्षक की इस भमि ू का के महत्व को समझ कर ही 2020 की राष्ट्रीय शिक्षा नीति में शिक्षक
प्रशिक्षण या अध्यापक शिक्षा के विषय में विस्तार से चर्चा की है । राष्ट्रीय शिक्षा नीति के कुल 27
अध्यायों में 15 वां अध्याय इसी विषय पर कें द्रित है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति के भाग दो में उल्लेखित इस
अध्याय के पहले बिंदु में पहला ही वाक्य यह है कि "अगली पीढ़ी को आकार देने वाले शिक्षकों की
एक टीम के निर्माण में अध्यापक शिक्षा की भमि ू का महत्वपर्णू है।"
शिक्षा प्राप्त करनी हो तो विद्यार्थी या छात्र की भमि
ू का में ही रहना होगा । शिक्षक से भी यह अपेक्षा
की जानी चाहिए कि वह भी अपने आप को एक छात्र या विद्यार्थी ही समझे । इसी बात को स्पष्ट
करते हुए करत-करत अभ्यास के जड़मति होत सजु ान की तर्ज पर शिक्षा नीति में कहा गया है - "ज्ञान
प्राप्ति के लिए अभ्यास की आवश्यकता होती है । यह सनि ु श्चित किया जाना चाहिए की अध्यापक
शिक्षा और शिक्षण प्रक्रिया से सबं धि
ं त विषयों में अद्यतन प्रगति के साथ ही साथ भारतीय मल्ू यों,
भाषाओ,ं ज्ञान, लोकाचार और जनजातीय परंपराओ ं सहित सभी परंपराओ ं के प्रति वह जागरूक
रहे।"
जिसकी कथनी और करनी में अतं र नहीं होता उसके प्रति उसके सपं र्क में आने वालों के मन में आदर
का भाव भी कम नहीं होता, यह मनोवैज्ञानिक तथ्य है। इसी तथ्य के आधार पर शिक्षा नीति के
नीतिकारों ने मानव ससं ाधन विकास मत्रं ालय में व्याप्त भ्रष्टाचार के प्रति सवं ेदनशील होकर अब शिक्षा
मंत्रालय को इससे मक्तु किया जाना जरूरी होने का वादा किया है। भ्रष्ट व्यवस्था के कारण फर्जी
उपाधियों का जो बोलबाला हुआ है उससे शिक्षा क्षेत्र को मक्त ु करने के लिए शिक्षकों से यह अपेक्षा
की गई है कि "पनु रुद्धार की तात्कालिक आवश्यकता है, जिससे कि गणु वत्ता के उच्चतर मानकों को
निर्धारित किया जा सके और शिक्षक के माध्यम से शिक्षा प्रणाली में अखंडता, विश्वसनीयता,
प्रभाविता और उच्चतर गणु वत्ता को बहाल किया जा सके ।" ऐसी शिक्षा प्राप्त कर उसके परिणाम पाने
में दस वर्ष लगने की संभावना प्रकट करते हुए आगे कहा गया है कि "वर्ष 2030 तक के वल शैक्षिक
रूप से सदृु ढ़ बहु विषयक और एकीकृ त अध्यापक शिक्षा कार्यक्रम ही कार्यान्वित होंगे।" खोई हुई
साख को पाने का यह एक प्रामाणिक प्रयास है ऐसा कहा जा सकता है ।
प्रशिक्षित शिक्षकों की गणु वत्ता और तत्परता के सहारे शिक्षा मंत्रालय आगामी 10 वर्षों में जिन
पड़ावों को पार करने की आकाक्ष ं ा रखता है उसका भी उल्लेख नीति पत्र के 15 वें अध्याय में किया
गया है। विविध विधाओ ं और कलाओ ं के शिक्षा कें द्रों के साथ ही "वर्ष 2030 तक सभी एकल-
शिक्षक शिक्षा के सस्ं थानों को बहु विषयक संस्थानों के रूप में बदलने की आवश्यकता होगी क्योंकि
उन्हें भी 4 वर्षीय एकीकृ त शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रमों को सचं ालित करना होगा।" शिक्षा व्यवस्था के
10+2+3 के स्थान पर 5+3+3+4 के ढांचे को क्रियान्वित करने के लिए शिक्षक प्रशिक्षण के ढांचे में
भी बदलाव लाना होगा इसका सक ं े त देते हुए नीति पत्र में कहा गया है कि 4 वर्षीय, 2 वर्षीय और 1
वर्षीय बीएड कार्यक्रमों के लिए उत्कृ ष्ट उम्मीदवारों को आकर्षित करने के उद्देश्य से मेधावी
विद्यार्थियों के लिए छात्रवृत्तियों की स्थापना की जाएगी। प्रशिक्षित शिक्षकों के द्वारा सामदु ायिक सेवा,
वयस्क शिक्षा, व्यावसायिक शिक्षा आदि में सहभागिता के साथ शिक्षण का कार्य करने का प्रशिक्षण
भी दिया जाएगा।
ख्याति प्राप्त, अनभु वी, सेवानिवृत्त शिक्षकों का सान्निध्य तथा मनोविज्ञान, बाल विकास, भाषा
विज्ञान, समाजशास्त्र, दर्शन, अर्थशास्त्र, राजनीति शास्त्र, विज्ञान शिक्षा, गणित शिक्षण, सामाजिक
विज्ञान शिक्षा और भाषा शिक्षा जैसे कार्यक्रमों से संबंधित विषयों में प्रशिक्षण प्राप्त संकाय सदस्यों को
शिक्षक शिक्षा संस्थानों में आकर्षित और नियक्त
ु किया जाएगा, जिससे कि शिक्षकों की बहु विषयी
शिक्षा को और उनके अवधारणात्मक विकास को मजबतू ी प्रदान की जा सके ।
विविध विषयों में शोध करने वाले छात्रों तथा शिक्षकों को उत्साहित करने के साथ-साथ आधनि
ु कतम
तकनीक से परिचित होने के लिए शिक्षकों के ऑनलाइन प्रशिक्षण, जिसमें प्रौद्योगिकी प्लेटफार्म के
उपयोग को प्रोत्साहित किया जाएगा ताकि मानकीकृ त प्रशिक्षण कार्यक्रम कम समय के भीतर
अधिकाधिक शिक्षकों के लिए उपलब्ध कराया जा सके ।
इस प्रकार प्रयोजनीय ससं ाधनों से यक्त
ु शिक्षक मानवीय मल्ू यों के साथ शैक्षिक विधाओ ं से परिपर्णू
होकर वर्तमान और भविष्य के नागरिकों का निर्माण करने में सफल होगा ऐसी आशा की जानी चाहिए
। नीति पत्र में भले ही इसकी व्याख्या ना की गई हो परं तु ऐसे शिक्षक अपने आचरण के कारण
विद्यार्थियों की नजरों में आदरणीय होकर विद्यार्थियों के लिए अनक ु रणीय भी होंगे। शिक्षकों में
आचार्यों के गणु पनपाकर उनके आचार्यत्व को जगाने का हमारा प्रयास 2020 की शिक्षा नीति को
2030 तक क्रियान्वित करने में उपयोगी सिद्ध होगा इसका हमें परू ा विश्वास है ।
धन्यवाद।

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