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सतत एवं समग्र मूल्यांकन
सी.सी.ई.
उच्च प्राथमिक स्तर के िलए प्रतिमान सामग्री
सामाजिक विज्ञान
प्राक्कथन
राष्ट्रीय शैक्षिक अनसु ंधान एवं प्रशिक्षण परिषद,् नई दिल्ली ने राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरे खा-2005 तैयार
की थीं जिसे ससं द द्वारा शिक्षा के अधिकार अधिनियम, 2009 के महत्त्वपर्णू हिस्से के रूप में देखा गया। इस
पाठ्यचर्या रूपरे खा का दर्शन रचनावाद से प्रभावित है जो इस बात में विश्वास करता है कि सीखना अनवरत
रूप से चलने वाली प्रक्रिया है। यह रूपरे खा इस विश्वास पर आधारित है कि सीखना भिन्न-भिन्न विषयों को
अलग-अलग रखकर चलने वाली पद्धति में संभव नहीं होता बल्कि यह सामाजिक, सांस्कृ तिक, बौद्धिक
और बच्चों के सीखने की प्रक्रिया को प्रभावित करने वाले सभी कारकों से जडु ़ा होता है। इसलिए बच्चों
के सीखने का आकलन करने के लिए भी समग्रतावादी दृष्टिकोण होना जरूरी है। इसीलिए ‘सतत एवं समग्र
मलू ्यांकन’ की प्रणाली लागू की गई।
पिछले कुछ वर्षों के अनभु व बताते हैं कि भिन्न-भिन्न शैक्षिक संस्थाओ ं और समहू ों ने ‘सतत एवं समग्र
मलू ्यांकन’ के प्रति अपनी एक अलग ही सोच व समझ बनाई है और इसमें किसी तरह की हैरानी वाली बात
नहीं है। देश भर में सतत एवं समग्र मलू ्यांकन के संदर्भ में अलग-अलग तरीके से काम किया जा रहा है, और
मश्किल
ु वाली बात तो यह है कि ये सब पद्धतियाँ राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरे खा-2005 की परू ी तरह से
उपेक्षा एवं विरोध सा करती नज़र आती हैं। ऐसी स्थिति में मानव संसाधन विकास मत्ं रालय, भारत सरकार
एवं राष्ट्रीय शैक्षिक अनसु धं ान और प्रशिक्षण परिषद,् नई दिल्ली ने आवश्यक समझा कि सतत एवं समग्र
मलू ्यांकन के संदर्भ में सही दिशा निर्देश देने की ज़रुरत है। परिषद् द्वारा 2009 में तैयार ‘आकलन के लिए
स्रोत पस्ति
ु का’ पहले से ही मौजदू है तथापि इस बात की आवश्यकता महससू की गई कि उस स्रोत पस्ति ु का
के साथ ससु म्बद्धता जोड़ते हुए सघन समझ पैदा कर सकने वाली सामग्री तैयार की जाए।
यह सामग्री मख्ु यत: तीन खडं ों में विभाजित है। पहला खडं सतत व समग्र मलू ्यांकन से जडु ़ी भ्रान्तियों को
दरू करने और अवधारणा को सही रूप में समझने के अवसर देता है। दसू रा खडं अध्यापकों को सझु ाता है कि
सतत व समग्र मलू ्यांकन के लिए किन पद्धतियों को अपनाना होगा और इसके लिए भिन्न-भिन्न पाठ्यचर्या
के विषयों के उदाहरण भी प्रस्तुत किए गए हैं। तीसरे खडं में शिक्षा से सरोकार रखने वाले सभी भागीदारों के
लिए दिशा निर्देश दिए गए हैं। जिस तरह के उदाहरण प्रस्तुत किए गए हैं, उन सभी का शिक्षा का अधिकार
अधिनियम के मानकों का अनसु रण करने वाली कक्षाओ ं में क्षेत्र परीक्षण करके देखा गया है। उदाहरणार्थ
प्रस्तुत यह सामग्री राज्यों को उनकी आवश्यकतानसु ार ज्यों का त्यों प्रयोग में लाने अथवा स्थिति विशेष के
अनसु ार थोड़े-बहुत परिवर्तन के साथ मदद करे गी ।
सतत व समग्र मलू ्यांकन के लिए उदाहरणार्थ सामग्री की प्रस्तुति राष्ट्रीय शैक्षिक अनसु धं ान और
प्रशिक्षण परिषद् एवं मानव संसाधन विकास मत्ं रालय का साझा प्रयास है। इस सामग्री के विकास एवं
निर्माण की प्रक्रिया में अध्यापकों की सहभागिता और कक्षाओ ं में किए गए क्षेत्र परीक्षण के रहते यह एक
ऐसा आकार ले पाई है कि कक्षाओ ं में सवि ु धाजनक तरीके से इस्तेमाल किया जा सकता है। राष्ट्रीय शैक्षिक
अनसु धं ान और प्रशिक्षण परिषद,् मानव ससं ाधन विकास मत्ं रालय, यनि ू सेफ़ व उन सभी ससं ्थाओ ं एवं
व्यक्तियों के प्रति आभार प्रकट करती है जिन्होंने इस सामग्री के बनाने में भिन्न-भिन्न रूप में योगदान दिया
है। इस बात का उल्लेख करना भी ज़रूरी है कि प्रारंभिक शिक्षा विभाग ने इस परियोजना का सफलतापर्वू क
समन्वयन किया है।
यह सामग्री परू ी तरह से प्रस्तावित है। हम सामग्री को उन्नत करने और अधिकाधिक सफलता के साथ
उपयोग करने के सझु ावों व टिप्पणियों का सदा ही स्वागत करते हैं।
यह सामग्री आपके विचारार्थ प्रस्तुत है। हम सामग्री को उन्नत करने और अधिकाधिक सफलता के साथ
उपयोग करने के सझु ावों व टिप्पणियों का सदा ही स्वागत करते हैं।
ह्रषिके श सेनापति
निदेशक
राष्ट्रीय शैक्षिक अनसु धं ान और प्रशिक्षण परिषद्
फरवरी 2017
नई िदल्ली
iv
सामग्री के बारे में
राष्ट्रीय शैक्षिक अनसु धं ान एवं प्रशिक्षण परिषद् नई दिल्ली ने सभी पाठ्यचर्यक क्षेत्रों के लिए प्राथमिक स्तर
हेतु सतत एवं सारगर्भित मलू ्यांकन पर सामग्री तैयार की है। इस सामग्री के विकास एवं निर्माण की प्रक्रिया
में विषय विशेषज्ञों, अध्यापकों, शिक्षाविदों ने कार्यशालाओ ं व बैठकों के माध्यम से सझु ाव एवं परामर्श दिए
हैं। सामग्री की तैयारी से जडु ़े सदस्यों ने इसके प्रति अध्यापकों में समझ बनाई जिन्होंने आगे अपनी कक्षाओ ं
में इसे क्रियान्वित करके देखा। इस प्रकार यह सामग्री क्षेत्र परीक्षण के द्वारा सफलतापर्वू क तैयार की गई है ।
सतत व समग्र मलू ्यांकन के लिए इस प्रकार की उदाहरणार्थ सामग्री को तैयार करने के पीछे मख्ु य भाव यह
था कि अध्यापकों को सतत व समग्र मलू ्यांकन के लिए कुछ ऐसी यक्ु तियाँ दी जाए जो वे प्राथमिक स्तर
की कक्षाओ ं में प्रभावशाली तरीके से इस्तेमाल कर सकें । सतत एवं समग्र मलू ्यांकन के भिन्न-भिन्न पक्षों
को ध्यान में रखते हुए कक्षा में किस तरह से अर्थपर्णू तरीके से मलू ्यांकन किया जाए, इस बात के लिए यह
सामग्री परू ी तरह से अध्यापकों को मदद करे गी, जैसे कि सीखने सिखाने की प्रक्रिया के दौरान आकलन कै से
किया जाए, बाद में आकलन कै से किया जाए, बच्चे की प्रगति कै से दर्ज की जाए और कै से फीडबैक दिया
जाए, आदि । शिक्षा के प्राथमिक स्तर पर अध्यापक सामान्यतः सभी विषय पढ़ाते हैं इसलिए सभी विषयों के
उदाहरण इस दस्तावेज़ में सारगर्भित रूप से शामिल किए गए हैं। प्राथमिक स्तर पर काम कर रहे अध्यापकों
को सिर्फ यही मदद नहीं मिलेगी कि किस तरह से भिन्न-भिन्न विषयों के सीखने-सिखाने को समावेशित रूप
दिया जा सके बल्कि उनकी यह भी समझ बनेगी कि कै से विषय वस्तुओ ं के बोझिल दोहराव से बचा जा सके ।
उच्च प्राथमिक स्तर पर विज्ञान, गणित, सामाजिक विज्ञान, हिदं ी, अग्रेज़ी ं , उर्दू एवं कला शिक्षा सभी के लिए
विषयानसु ार सामग्री तैयार की गई है। जिन कक्षाओ ं में छात्र शिक्षक अनपु ात शिक्षा के अधिकार अधिनियम
मानकों के अनसु ार है (प्राथमिक स्तर पर 1:30 और उच्च प्राथमिक स्तर पर 1:35) वहाँ इन गतिविधियों का
क्षेत्र परीक्षण भी करके देखा गया है। राज्यों एवं कें द्र शासित प्रदेशों द्वारा इस सामग्री को इसके यथास्वरूप या
अपनी आवश्यकता अनसु ार परिवर्तन करके सामग्री का उपयोग किया जा सकता है।
सारे प्रमखु मद्ु दों में जो अभी तक सी.सी.ई. को लागू करने के लिए उठाए गए हैं उनमें प्रमख ु हैं - शासन
प्रबंध, व्याख्या, रिकॉर्डिंग और मलू ्यांंकन संबंधी रिपोर्ट। मलू ्यांकन के संदर्भ में शिक्षक की मदद करने के
लिए अलग-अलग तरीके हैं जो कि शिक्षक द्वारा मलू ्यांकन के लिए उपयोग में लाए जा सकते हैं। इन विभिन्न
तरीकों को किस प्रकार समाहित करके समचि ु त रूप से कक्षा में प्रयोग किया जाए तथा रिपोर्टिंग किस प्रकार
कि जाए, इस बारे में इस सामग्री के तीन खडं ों में बताया गया है। इसके साथ ही मलू ्यांकन के एक फ्रे मवर्क को
जो सारे शिक्षकों के लिए लागू होता है, विभिन्न उदाहरणों के साथ इस दस्तावेज़ में दिया गया है।
इस दस्तावेज़ के मख्ु यत: तीन खडं हैं –
♦♦ खंड-1: यह सामग्री हमारी किस तरह से मदद करे गी और शिक्षा व्यवस्था सतत एवं समग्र मलू ्यांकन
को लेकर किस तरह की भ्रान्तियों से जझू रही है, इन सबके स्पष्टीकरण की तस्वीर पेश करता है पहला
खडं । यह खडं शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 के परिप्रेक्ष्य में सतत एवं समग्र मलू ्यांकन के प्रति
समझ बनाता है।
♦♦ खंड-2: यह खडं विषयानसु ार कुछ ऐसे उदाहरण प्रस्तुत करता है जो यह बताते है कि आकलन की
प्रक्रिया को क्या आकार देना चाहिए जिससे कि यह सीखने-सिखाने की प्रक्रिया का अभिन्न अगं बने
और ‘सीखना’ कें द्र में रहे (रचनात्मक आकलन)। इस खडं में प्रत्येक विषय के आकलन के आधार भी
‘सक ं े तकों’ के रूप में उल्लिखित हैं। दोहराने की आवश्यकता नहीं, ये सक
ं े तक भी प्रस्तावित हैं। इस खडं
में दिए उदाहरण कुछ इस तरह की जानकारी भी देते हैं कि सीखने का आकलन (योगात्मक आकलन)
अध्यापकों के द्वारा कै से इस्तेमाल किया जाए और बच्चों की प्रगति की जाँच के लिए पेपर पैंसिल टैस्ट
के अतिरिक्त और किन-किन यक्ु तियों का इस्तेमाल किया जा सकता है।
यह खडं यह भी सझु ाता है कि अध्यापकों को किस प्रकार की जानकारी रिकार्ड के रूप में रखनी चाहिए
और आकलन संबंधी कौन से बिंदु रिपोर्ट कार्ड में लिखने चाहिए जिससे कि बच्चों की प्रगति की सारगर्भित
तस्वीर प्रस्तुत हो सके ।
♦♦ खंड-3: खडं 2 में दिए गए उदाहरणों के आधार पर यह खडं सतत एवं समग्र मलू ्यांकन के क्रियान्वयन
के सदं र्भ में कुछ महत्वपर्णू दिशा निर्देश रे खांकित करता है। यह खडं अध्यापकों में कुछ इस तरह की
समझ बनाने की दिशा में कार्य करता है कि आकलन किस प्रकार से सीखने की प्रक्रिया का अभिन्न अगं
है, किस तरह की तैयारी की ज़रूरत है, सचू नाएं सग्रं हित करने के कौन-कौन से स्रोत हो सकते हैं, रिपोर्ट
करने के लिए किस तरह की सचू नाओ ं को लिखा जाना चाहिए और बच्चों की प्रगति को किस तरह से
सारगर्भित रूप में प्रस्तुत किया जाना चाहिए। यह खडं अध्यापक िशक्षकों एवं प्रशासनिक अधिकािरयों
को उनकी भिू मका के संबंध में िदशािनर्देश सझु ाता है िक िकस तरह से वे सतत व सारगर्भित मलू ्यांकन
को एक अर्थपर्णू रूप में िक्रयािन्वत करें ।
सामाजिक विज्ञान में सी.सी.ई के पैकेज का लक्ष्य है- अतं र्निहित समस्याओ ं को पहचानना, इसका
क्रियान्वयन और शिक्षात्मक प्रणाली में इसके महत्व को बताना। यह पैकेज सतत मलू ्यांकन के गणु ों की चर्चा
करता है, साथ ही अधिगम प्रक्रिया में सतत मलू ्यांकन को शामिल करने के लिए दिशा-निर्देश भी देता है।
इसके अतिरिक्त यह पैकेज अधिगम सप्राप् ं ति के आधार पर मलू ्यांकन करने के लिए भी आवश्यक जानकारी
देता है।
vi
कृतज्ञता ज्ञापन
प्रारंभिक स्तर के लिए सतत एवं सारगर्भित मलू ्यांकन पर उदाहरणार्थ सामग्री का निर्माण सम्मिलित सासं ्थानिक
अकादमिक प्रयास है जिसमें मानव ससं ाधन विकास मत्ं रालय एवं यनि ू सेफ ने परू ी तरह सहयोग दिया। प्राथमिक
एवं उच्च प्राथमिक दोनों ही स्तरों पर के न्द्र समहू की बैठकों एवं भिन्न-भिन्न उप समहू ों की कार्यशालाओ ं के
दौरान बहुत से महत्वपर्णू रचनात्मक सझु ाव बिदं ु सामने आए। प्रख्यात शिक्षाविदों, विषयविशेषज्ञों, अध्यापकों,
शिक्षाशास्त्रियों, स्वैच्छिक सगं ठनों के प्रतिनिधियों एवं परिषद् के सक ं ाय सदस्यों ने इस सामग्री के विकास एवं
निर्माण प्रक्रिया के प्रत्येक चरण में अपना महत्वपर्णू योगदान दिया है। परिषद् में गठित कें द्रिक समहू के सदस्यों
द्वारा सझु ाए गए बिदं ओ ु ं से सामग्री समृद्ध एवं पष्ु ट हुई है। श्री भट्टाचार्य, पर्वू सचिव, एवं सश्ु री वृदं ा सरूप,
अतिरिक्त सचिव, स्कूल शिक्षा और साक्षरता विभाग, मानव ससं ाधन विकास मत्ं रालय भारत सरकार के कुशल
नेतत्ृ व से जो अनवरत सहयोग एवं प्रोत्साहन मिला है, उसके प्रति हार्दिक सराहना के भाव प्रकट करते हैं। हम
प्रो. कृष्ण कुमार, परिषद् के पर्वू निदेशक के मल्य ू वान योगदान हेतु आभारी है।
दिल्ली, हरियाणा और बहुत से प्रबंधन ससं ्थाओ ं द्वारा चलाए जा रहे कुछ चयनित विद्यालयों में इस
सामग्री के क्षेत्र परीक्षण से बहुत ही लाभ मिला है। क्षेत्र परीक्षण के लिए इन विद्यालयों के प्रधानाचार्यों ने जिस
तरह से अभतू पर्वू सहयोग दिया है, उसकी भी हम सराहना करते हैं। उन सभी बच्चों और अध्यापकों के प्रति
धन्यवाद ज्ञापित करना अत्यावश्यक है जिन्होंने सतत एवं समग्र मलू ्यांकन की इस सामग्री के क्रियान्वयन
में अपनी तीव्र रूचि एवं अपार उत्साह प्रदर्शित किया है। प्रो. सरोजबाला यादव, विभागाध्यक्ष, सामाजिक
शिक्षा विभाग जिन्होंने अपने यहाँ के संकाय सदस्यों को क्षेत्र परीक्षण के लिए लगाया है, बिना उनके सहयोग
के सी.सी.ई पैकेज का कार्यान्वयन प्रभावशाली और सचु ारू रूप से नहीं हो सकता था।
प्रोफे सर हरि वासदु वे न, इतिहास विभाग, कलकत्ता विश्वविद्यालय, प्रोफे सर निलाद्री भट्टाचार्या,
ऐतिहासिक अध्ययन कें द्र, जेएनय,ू प्रोफे सर कुमकुम राय, ऐतिहासिक अध्ययन कें द्र, जेएनय,ू सश्ु री रश्मि
पालीवाल, एकलव्य, सश्ु री शारदा बालगोपालन, सीएसडीएस, नई दिल्ली, डा. एम.वी.श्रीनिवासन,
डीईएसएस, एनसीईआरटी, नई दिल्ली, सश्ु री दिशा नवानी, टीआईएसएस, मबंु ई, एनसीईआरटी इन सबके
प्रति आभार व्यक्त करती है जिन्होंने कार्यक्रम के प्रारंभिक चरण के दौरान अपने विचारों को साझा किया।
दिक्षिता प्रमोद, कक्षा छ: की छात्रा को चित्रों के लिए धन्यवाद दिया जाता है।
प्रारंभिक शिक्षा विभाग के प्रशासनिक स्टॉफ़ को विशेषकर श्री शाकम्बर दत्त, श्री ओमप्रकाश, एवं सश्ु री
सनु ीता नारंग को उनके योगदान देने के लिए आभार प्रकट करते हैं। हम प्रारंभिक शिक्षा विभाग में परियोजना
से जडु ़े स्टाफ़ सदस्यों सश्ु री हेमलता (जे.पी.एफ.) सश्ु री एकांक्षी (जे.पी.एफ.), श्री अशोक और श्री मसीउद्दीन,
अता हुसैन (कम्प्यूटर टाइपिस्ट) चरन सिहं , सना मनु व्वर (डी.टी.पी. ऑपरे टर, डी. ई. ई), के प्रयासों की
सराहना करते हैं।
अपने पर्वू विभागाध्यक्ष प्रोफे सर मजं ू जैन के हम अत्यंत आभारी हैं, जिन्होंने इस कार्य को सफलतापर्वू क
प्रारंभ करने में महत्त्वपर्णू योगदान दिया। इसके अतिरिक्त हम प्रोफे सर अनपू राजपतू , वर्तमान विभागाध्यक्ष के
प्रति भी अपना आभार व्यक्त करते हैं जिनके नेतत्ृ व में यह हिन्दी रूपांतरण का कार्य पर्णू हुआ।
हम प्राथमिक स्तर के लिए सतत एवं समग्र मलू ्यांकन पर सामग्री के प्रकाशन के लिए प्रकाशन विभाग
के प्रमख ु प्रो. िसराज अनवर के प्रति धन्यवाद ज्ञापित करते हैं।
अन्तत: प्रारंभिक शिक्षा विभाग, राष्ट्रीय शैक्षिक अनसु ंधान एवं प्रशिक्षण परिषद् के निदेशक प्रो. ह्रषिके श
सेनापति एवं पर्वू सयं क्त
ु निदेशक प्रो. बी.के . त्रिपाठी को उनके द्वारा सतत रूप से दिए गए पर्णू मार्गदर्शन के
प्रति कृ तज्ञता ज्ञापित करता है।
सभं वतया यह सचू ी अपने आप में पर्णू न हो। हम उन सभी के प्रति आभार प्रकट करते हैं जिन्होंने इस
सामग्री को वर्तमान स्वरूप देने में अपना योगदान दिया है।
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सतत एवं समग्र मूल्यांकन सामग्री कार्य से
जुड़ा मुख्य समूह
अश ं मु ाला, सलाहकार, विज्ञान एवं गणित शिक्षा विभाग (डीईएसएम), राष्ट्रीय शैक्षिक अनसु ंधान एवं
प्रशिक्षण परिषद,् नई दिल्ली।
बी.के . त्रिपाठी, आचार्य और पर्वू सयं क्त
ु निदेशक, राष्ट्रीय शैक्षिक अनसु धं ान एवं प्रशिक्षण परिषद,् नई
दिल्ली ।
धरम प्रकाश, आचार्य (अवकाश प्राप्त), कें द्रीय शैक्षिक प्रौद्योगिकी संस्थान (सीआईईटी), राष्ट्रीय शैक्षिक
अनसु ंधान एवं प्रशिक्षण परिषद,् नई दिल्ली।
फारूख असं ारी, आचार्य, भाषा शिक्षा विभाग (डीईएल), राष्ट्रीय शैक्षिक अनसु ंधान एवं प्रशिक्षण परिषद,्
नई दिल्ली।
ज्योत्सना तिवारी, आचार्य, कला और सौंदर्यशास्त्र शिक्षा विभाग (डीईएए), राष्ट्रीय शैक्षिक अनसु ंधान एवं
प्रशिक्षण परिषद,् नई दिल्ली।
कविता शर्मा, सह आचार्य, प्रारंभिक शिक्षा विभाग (डीईई), राष्ट्रीय शैक्षिक अनसु धं ान एवं प्रशिक्षण परिषद,्
नई दिल्ली।
कीर्ति कपरू , आचार्य, भाषा शिक्षा विभाग (डीईएल), राष्ट्रीय शैक्षिक अनसु ंधान एवं प्रशिक्षण परिषद,् नई
दिल्ली।
लता पांडेय, आचार्य, प्रारंभिक शिक्षा विभाग (डीईई), राष्ट्रीय शैक्षिक अनसु ंधान एवं प्रशिक्षण परिषद,् नई
दिल्ली।
संध्या सिंह, आचार्य, भाषा शिक्षा विभाग (डीईएल), राष्ट्रीय शैक्षिक अनसु ंधान एवं प्रशिक्षण परिषद,् नई
दिल्ली।
तनु मलिक, सह आचार्य, सामाजिक विज्ञान शिक्षा विभाग (डीईएसएस), राष्ट्रीय शैक्षिक अनसु धं ान एवं
प्रशिक्षण परिषद,् नई दिल्ली।
कार्यक्रम समन्वयक:
मजं ू जैन, आचार्य (अवकाश प्राप्त)ेे एवं पर्वू विभागाध्यक्ष, प्रारंभिक शिक्षा विभाग (डीईई),राष्ट्रीय शैिक्षक
अनसु ंधान एवं प्रशिक्षण परिषद,् नई दिल्ली।
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िवषय सचू ी
प्राक्कथन iii
सामग्री के बारे में v
1. भाग I: उच्च प्राथमिक स्तर पर सामाजिक विज्ञान में सतत एवं समग्र मूल्यांकन 1
1.1 पैकेज की आवश्यकता? 1
1.2 सी. सी. ई का उपयोग क्यों करें ? 3
1.3 क्या मलू ्यांकन किया जाए? 5
1.4 मलू ्यांकन कब हो ? 12
1.5 आकलन कै से हो? 12
2. भाग II: सामाजिक विज्ञान की कक्षा में सतत एवं समग्र मूल्यांकन 15
2.1 इतिहास- मलू ्यांकन गतिविधि का उदाहरण 18
2.2 भगू ोल- मलू ्यांकन गतिविधि का उदाहरण 23
2.3 सामाजिक एवं राजनीतिक जीवन (राजनीति विज्ञान)- मलू ्यांकन गतिविधि का उदाहरण 25
2.4 सामाजिक एवं राजनीतिक जीवन (अर्थशास्त्र)- मलू ्यांकन गतिविधि का उदाहरण 30
3. भाग III: सतत एवं समग्र मूल्यांकन को लागू किए जाने के महत्त्वपूर्ण तत्व 34
3.1 आकलन योजना बनाना 34
3.2 आकलन योजना 35
3.3 रिर्पार्ट तैयार करना 36
3.4 सी.सी.ई. के कार्यान्वयन में चनु ौतियाँ 37
3.5 शिक्षक प्रशिक्षक तथा ब्लॅाक रिसोर्स/क्लस्टर रिसोर्स संयोजक की भमिू काएँ 38
3.6 प्रशासकों के लिए विस्तृत दिशा निर्देश 39
भाग 1
क) भकंू प के पश्चात् समाचार पत्रों के मखु ्य समाचार के रूप में दिया गया ‘भकंू प- एक
के स अध्ययन’ को पढ़ें और इस घटित घटना को क्रमानसु ार श्रेणीबद्ध करें ।
ख) कल्पना करें कि यदि स्कूल समय के बीच में अचानक भकंू प आ जाए, तो आप
अपनी सरु क्षा के लिए कहाँ जाएँगे?
(IV) आप क्यों सोचते हैं कि कोलब्रुक बंगाल में भारतीय किसान की परिस्थितियों से
संबंधित था? संभावित कारणों को सझु ाएँ।
अनुभवों के बीच समानता व अंतर पहचानना
सीखने वालों का आंकलन उसके द्वारा विषय के मखु ्य विचारों को सही स्थिति की तल ु ना और
विषमता को विपरीत समय, संस्कृतियों और विश्व विचारों को समझने की उसकी क्षमता के
आधार पर होना चाहिए । उन्होंने कक्षा में जो भी सीखा है उसे पाठ्य पसु ्तकों से बाहर विभिन्न
सामग्रियों को समझते हुए जोड़ सकें और अपने अनभु वों के आधार पर उसकी व्याख्या कर
सकें ।
उदाहरण :
(i) आपके व्यस्क होने के अनभु व समाओ ं के बच्चों और किशोरों के अनभु व से किस
6
प्रकार भिन्न है? इन अनभु वों में वर्णित क्या कोई ऐसी बात है जिसे आप अपने बड़े होने के
अनभु व में सम्मिलित करना चाहेंगे?
(ii) कल्पना करें कि आप एक कं पनी के यवु ा अधिकारी हैं जो भारत में कुछ महीनों से है।
आप घर में अपनी माँ को पत्र लिखें जिस में आप अपनी विषयासक्त जिंदगी की व्याख्या करते
हुए ब्रिटेन में अपने पहले के जीवन से तलु ना करें ।
मैं घर की देखभाल
मैं विवाह समारोह करती हू।ँ
में गाता हू।ँ
Figure 1 Figure 2
10
क) कल्पना कीजिए कि आप विद्यालय के बरामदे में बैठे हुए विद्यार्थियों में से एक हैं
और पाठ को सनु रहे हैं। आपके मन में किस प्रकार के प्रश्न उठें गे?
सी.सी.ई. उच्च प्राथमिक स्तर पर सामाजिक विज्ञान
ख) कुछ व्यक्तियों ने सोचा कि यह स्थिति उससे बेहतर थी जहाँ अछूत लोगों के लिए
शिक्षा का पर्णू तया अभाव था। क्या आप इस विचार से सहमत होंगे?
(ii) क) सोचिए कि आप प्रागैतिहासिक काल में एक ऊँचे पठार पर रहते हैं जहाँ तेज पवन
चलती हैं। आप और आपके मित्र तेज़ पवन का उपयोग कै से करें गे? क्याें आप पवन
को एक संसाधन कह सकते हैं?
ख) अब कल्पना कीजिए कि आप वर्ष 2114 में उसी स्थान पर रह रहे हैं। क्या आप
पवन का कोई उपयोग कर सकतें हैं? कै से? क्या आप बता सकते हैं कि अब पवन
एक महत्वपर्णू ससं ाधन क्यों हैं?
नैतिक मूल्य/अभिवत्ृ तियाँ/सरोकार
बच्चों में नैतिक मल्य
ू ों को विकसित करने की अावश्यकता है जिसमें सभी की भलाई
है।मलू ्यांकन गतिविधियों काे शिक्षार्थी द्वारा प्राप्त भावनात्मक और संबंध परक कौशल पर
ध्यान कें द्रित करने की ज़रूरत है।
उदाहरण :
(i) परु ाने स्मारक स्थलों एवं भिन्न प्रकार से समर्थ व्यक्तियों की जरूरतों
को समझते हुए आप सझु ाव दीजिए कि किस प्रकार इन स्मारकों को
उनके लिए सगु म बनाया जा सकता हैं?
(ii) अध्याय से लिया गया एक पद एवं उसमें पछू े गए प्रश्नों के विषय में
अपने विचार दें।
उस शाम बच्चों और उनके मित्रों ने परु ाने समाचार पत्रों, व्यर्थ वस्त्रों
तथा बाँस की टोकरियों की डण्डियों से लिफ़ाफे ़ और खरीदारी के
लिए थैले बनाए। मोना ने कहा, ‘‘हम इनमें से कुछ उन परिवारों को देंगे
जिन्हें हम जानते हैं’’। मसु ्तफ़ा ने कहा, ‘‘ कम से कम यह एक अच्छे
काम के लिए है’’। ‘‘अपने ससं ाधनों को बचाना और अपनी पृथ्वी को
सजीव रखना एक बहुत अच्छा कार्य है।’’
जेस्सी ने कहा, ‘‘मैं बहुत ही सतर्क रहूगँ ी कि कागज़ व्यर्थ न हो। उसने स्पष्ट
किया’’। अफसोस है कि ‘‘कागज बनाने के लिए बहुत से पेड़ों को काट दिया जाता हैं।’’
मसु ्तफ़ा ने जोर से कहा, ‘‘मैं ध्यान रखगँू ा कि मेरे घर में बिजली व्यर्थ न हो। ‘‘अपने ससं ाधनों
को बचाना और अपनी पृथ्वी को सजीव रखना यह एक बहुत अच्छा कार्य हैं।’’ ‘‘बिजली
पानी और कोयले से बनती है।’’ आशा ने कहा ‘’ मैं घर में यह सनिश् ु चित करूँगी कि पानी नष्ट
न हो’’। ‘‘पानी की प्रत्येक बदँू कीमती है।’’ बच्चे एक सरु में चिल्लाए ‘‘हम इकट्ठे (कुछ भिन्न 11
कर सकते हैं) परिवर्तन ला सकते हैं।’’ ये कुछ चीजें हैं जिन्हें मोना, राजू और उसके दोस्तों ने
किया। आपका क्या विचार है? आप ससं ाधनों को सरं क्षित करने के लिए क्या करेंग?े
1.4. मूल्यांकन कब हो ?
सतत मलू ्यांकन शिक्षक-शिक्षार्थियों में विचारों के आदान-प्रदान के रूप में स्कूल स्तर के दौरान
बार–बार होना चाहिए। जिससे शिक्षार्थी के कौशल, ज्ञान व समझ प्राप्त की सनिश् ु चिता की जा
उच्च प्राथमिक स्तर पर सामाजिक विज्ञान में सतत एवं समग्र मलू ्यांकन
सके । इसे शिक्षण–अधिगम प्रक्रिया में एकीकृ त किया जाना चाहिए। मलू ्यांकन के लिए प्रयोग
किए जाने वाले कार्य इस आधार पर होने चाहिए कि वे सीखने के उद्देश्यों को परू ा करें और वे
ठीक से कार्य तभी कर सकते हैं जब शिक्षण–अधिगम की प्रक्रिया में विद्यार्थियों को अपनी समझ
को बताने का अवसर मिले। मलू ्यांकन के सभी उपकरण जैसे चर्चा, बहस, क्विज गतिविधियों
का अवलोकन, लिखे गए कार्यों तथा परियोजनाओ ं का मलू ्यांकन आदि को शिक्षण प्रक्रिया में
इस प्रकार रचित किया जाना चाहिए कि वे छात्रों को अपनी समझ को व्यक्त करने का अवसर
प्रदान करें । शिक्षकों द्वारा किए गए आकलन पर आधारित छात्रों को दी गई प्रतिपष्टि
ु (फ़ीडबैक)
भी निरंतर होनी चाहिए ताकि सधु ार कार्य साथ ही हो सके । हालांकि, माता–पिता को रिपोर्टिंग
के वल विशिष्ट अतं राल पर ही होनी चाहिए जैसे सत्र के एक चौथाई भाग में।
1.5 आकलन कै से हो?
समय के साथ शिक्षक विभिन्न तरीकों से आकलन करते हैं जिससे वह विविध कार्यों का
निरीक्षण और संबंधित सचू ना एकत्र कर सकें कि विद्यार्थी कितना जानते, समझते और क्या
कर सकते हैं? यह सीखने को बढ़ावा देने (सीखने के लिए मलू ्यांकन) और यह देखने के लिए
क्या सीखा हुआ है (सीखने का मलू ्यांकन), इसे जानने के लिए इसका प्रयोग किया जा सकता
है। शिक्षण या सीखने में सधु ार के उद्देश्य के लिए एक बड़ी संख्या में मलू ्यांकन कौशलों को
शिक्षण प्रक्रिया में डाले जाने की आवश्यकता है। शिक्षकों को विभिन्न मलू ्यांकन कौशलों
और साधनों का प्रयोग करने में निपणु होना चाहिए जिस से उन्हें छात्रों की सोच को समझने में
सहायता व उन्हें यह प्रतिपष्टि
ु (फ़ीडबैक) मिले जो स्पष्ट रूप से छात्रों को यह जानने में सहायता
दे कि वे किस प्रकार अपनी सोच और प्रदर्शन में सधु ार ला सकते हैं, तथा शिक्षण मार्गदर्शन
में यह प्रतिक्रिया मिली कि छात्रों को क्या जानने की आवश्यकता है और वे कै से सीखते है ।
आकलन की रचना
आकलन की रचना इस प्रकार होनी चाहिए कि वह किसी प्रसंग/विषय से अपेक्षित विविध
सीखने के संकेतकों को प्रतिबिंबित करे । शिक्षक उन मलू ्यांकन परिणामों का सहारा ले सकता है
जो आत्म मलू ्यांकन, सहपाठी मलू ्यांकन और उनके स्वयं के मलू ्यांकन से प्राप्त होते है।
आत्म -मूल्यांकन:
छात्रों को स्वयं के सीखने की प्रगति को दर्शाने और निगरानी करने की जिम्मेदारी लेनी चाहिए।
एक बार जब छात्र सीखने के अपने महत्वपर्णू साक्ष्य एकत्र कर ले, तब यह आवश्यक है कि
वे अपनी सोच को दर्शाये, अर्थात आत्म - मलू ्यांकन और साथियों के मलू ्यांकन को मानक
के संदर्भ में देख।ें आत्म मलू ्यांकन द्वारा शिक्षार्थी को निरंतर अपनी समझ की समीक्षा और
12 सदृु ढ करने तथा साथियों के साथ काम करते हुए एक दसू रे की समझ की समीक्षा करने की
क्षमता मिलती है। यह छात्रों को स्वयं–निगरानी, स्वयं - मलू ्यांकन और आत्म - मलू ्यांकन द्वारा
मलू ्यांकन की प्रक्रिया में सक्रिय भागीदारी बनने में सहायता करता है। यह न के वल सीखने को
परू ी तरह समझने में शिक्षक की सहायता करता है अपितु यह छात्रों पर उसका आधिपत्य बढ़ाता
है व अविश्वास कम करता है।
14
आओ अब हम उच्च प्राथमिक स्तर पर विभिन्न सामाजिक विज्ञान विषय क्षेत्रों जैसे इतिहास,
भगू ोल तथा सामाजिक और राजनीतिक जीवन के शिक्षण – अधिगम उद्देश्यों के बारे में जानें।
इन सब विषयों से संबंधित विभिन्न क्रियाकलापों के लिए एक उदाहरण मलू ्यांकन प्रक्रिया
प्रदान की गई है जिसमें यह दर्शाया गया है कि इसे निर्देशों से कै से जोड़े और विद्यार्थियों की
वैचारिक समझ की जाँच के लिए योजनाबद्ध करते महत्वपर्णू शिक्षण उद्देश्यों को प्राप्त किया
जा सकता है।
इतिहास
इतिहास की पाठ्यपसु ्तकों में बहुत-से उन विषयों को सम्मिलित किया गया है जो भारत के
इतिहास के लिए महत्वपर्णू हैं। मोटे तौर पर यह वे विषय हैं जिन के बारे में विशेषज्ञ एवं शिक्षक 15
यह समझते हैं कि बच्चों को इन विषयों का पता होना चाहिए। लेकिन समान रूप से यह विषय
आम आदमी, औरत जैसे - शिकारी और कृ षक, शिल्पकार और व्यापारी के जीवन तथा
गतिविधियों पर ध्यान कें द्रित करते हैं। यह विषय के वल राजनीतिक घटनाओ ं के बारे में ही नहीं,
अपितु समाज में जो कुछ भी घटित होता है उन सबके बारे में भी होते हैं। भारत के समकालीन
इतिहास, समानता और असमानता, शिक्षा का महत्व और अन्य से संबंधित कई मद्ु दे जो इन
सामाजिक विज्ञान की कक्षा में सतत समग्र मलू ्यांकन
विषयों में दिए गए हैं वे सामाजिक और राजनीतिक जीवन की पाठ्यपसु ्तकों में भी अच्छे से
समाहित होते हैं। पाठ्यपसु ्तकों की विषय सामग्री को पढ़ाने और समझाने से पर्वू शिक्षक को
पहले यह जान लेना चाहिए कि इतिहास में छात्रों को क्या जानना चाहिए और क्या वे कर पायेंगे।
ऐतिहासिक साक्षरता के तीन महत्वपर्णू पहलू है:
1. ऐतिहासिक तथ्यों, विषयों और विचारों का ज्ञान
2. ऐतिहासिक तर्क -वितर्क , मनोविश्ले षण, संश्लेषण और ऐतिहासिक तथ्यों के मलू ्यांकन की योग्यता
3. सपं र्णू स्रोतागण के लिए ऐतिहासिक ज्ञान और तर्क का संचार
इतिहास सीखने वाले छात्रों में ऐतिहासिक तथ्यों को सीखने के साथ–साथ कुछ कौशलों को
जानना आवश्यक है जो सामान्यतया इतिहास के अध्ययन में प्रयक्त ु होते है। इस विषय को
पढ़ाने का कें द्रित कार्य छात्रों को अधिक संज्ञानात्मक, चनु ौतीपर्णू और रोचक काम करने के
लिए प्रेरित करना है जिस में विषय सामग्री पर विचार करने के लिए इतिहास सबं ंधी सोचने के
कौशल सम्मिलित हैं।
भूगोल
भगू ोल प्राथमिक स्तर पर पर्यावरण अध्ययन के शिक्षण का एक भाग रहा है। पर्यावरण अध्ययन
समय, स्थान और समाज में जीवन की व्यापक अवधि की ओर बच्चे का ध्यान आकर्षित करता
है और इन्हें इस प्रकार आकर्षित तथा एकीकृ त करता है कि बच्चे अपने आसपास की दनिय ु ा
को समझ पाएँ। उच्च प्राथमिक स्तर पर छात्रों को भगू ोल की वे बनिय
ु ादी अवधारणायें बताई
जाती हैं जो उस दनिय
ु ा को समझने के लिए आवश्यक है जिस में वे रह रहे हैं। बच्चे सीखने का
अधिक आनंद लेते हैं जब वह उनके निजी जीवन से सबं ंधित होता है। उन्होंने जो प्राथमिक स्तर
पर अर्जित किया है वह उनके उच्च प्राथमिक स्तर पर आगे सीखने के लिए आधार प्रदान करता
है जब भगू ोल को एक अलग विषय के रूप में पढ़ाया जाता है।
16
7. विस्तार देना
नए परियोजना कार्य लिए जा सकते हैं ताकि इस परियोजना से हासिल ज्ञान का उपयोग अन्य
विषयों पर महारत हासिल करने में किया जा सके । विद्यार्थी अपने नए ज्ञान को अन्य संदर्भों में
भी लागू कर सकते है।
29
30 ♦♦उपरोक्त चित्र में लोगों द्वारा किए गए विभिन्न कार्यों की व्याख्या कीजिए।
♦♦खेती से संबंधित विभिन्न कार्यों को चिन्हित कर एक सचू ी बनाए और तालिका में दर्शाए।
♦♦ग्रामीण क्षेत्रों के लोगो द्वारा किए जाने वाले विभिन्न कार्य के चित्र बनाए एवं उसकी व्याख्या करें ।
गतिविधि1
चर्चा : विद्यार्थी अपने दैनिक परिवेश और अनभु वों से अर्जित बहुत सारा ज्ञान लेकर आते है।
चर्चा की शरू
ु आत में शिक्षक विद्यार्थियों को उन विभिन्न तरह के कार्यों, जिससे वे परिचित
सी.सी.ई. उच्च प्राथमिक स्तर पर सामाजिक विज्ञान
हैं, के बारे में बोलने का अवसर दे सकते है। मीडिया तथा अख़बारों के माध्यमों से उन्हें जिन
आजीविका के साधनों के बारे में पता चला है, उस पर उन्हें बोलने के लिए प्रोत्साहित करें । इस
संबंध में उनकी समझ की जाँच के लिए निम्नलिखित प्रश्न पछू े जा सकते हैं –
♦♦आपके आस-पास के लोग किन विभिन्न प्रकार के कार्यों में लगे हैं?
♦♦अखबार/ मीडिया में आपने किन अन्य आजीविका गतिविधियों के बारे में पढ़ा अथवा सनु ा है?
♦♦क्या आप बता सकते हैं कि आप अपने क्षेत्र में इस तरह की गतिविधि क्यों नहीं देख पाते हैं?
♦♦आपके क्षेत्र में लोग इस तरह के कार्यों में क्यों संलग्न हैं?
♦♦जिस तरह के कार्य में वे संलग्न हैं क्या उसका उनके रहने के स्थान से कोई संबंध है?
♦♦क्या इसका संबंध उन के शैक्षिक स्तर या उसके लिंग/जाति भेद से है।
गतिविधि 2:
कार्य : उपर्युक्त चर्चा को आगे बढ़ाते हुए बच्चों को विभिन्न प्रकार की आजीविका के साधनों
के बारे में लिखने के लिए कहा जा सकता है।
गतिविधि 3:
चर्चा : ऐसे भिन्न-भिन्न कार्यों की पहचान करें जिनका संबंध खेती से है और जिनका संबंध 31
खेती से नहीं है। ग्रामीण क्षेत्रों में खेती एक प्रमख
ु गतिविधि है। यहाँ पर भी एक संक्षिप्त चर्चा
करने से विद्यार्थियों को यह जानने में मदद मिलेगी कि उनसे क्या अपेक्षित है। इसके लिए शिक्षक
निम्नलिखित प्रश्न उठाते हुए चर्चा की शरू ु आत कर सकते है-
♦♦अगर आप खेती के काम में लगे हुए हैं तो आप इसकी शरू
ु आत कै से करें गे ? और फिर किन
गतिविधियों के माध्यम से आप आगे बढेंगे ?
यह उदाहरणार्थ सामग्री शिक्षण अधिगम प्रक्रिया के दौरान उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायक
होगीा इससे शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में मदद मिलेगी।
33
प्रेरित तो करे गा ही साथ ही साथ उनमें कक्षा में आने के प्रति भी रूचि जागृत करे गा।
निगरानी और प्रतिक्रिया/सझ
ु ाव
शिक्षार्थियों के आकलन के परिणाम सामान्यतया शिक्षकों के आकलन व निगरानी के लिए
इस्तेमाल किए जाते हैं। यही कारण है कि शिक्षक अक्सर शिक्षण और सीखने की प्रक्रिया को
सतत एवं व्यापक मलू ्यांकन को लागू किए जाने के महत्वपरू ्ण तत्व
समृद्ध करने के बजाए अधिकारियों की आवश्यकतानसु ार मलू ्यांकन उपकरणों का निर्माण,
मलू ्यांकन तथा रिकार्ड रखते हैं। इस प्रवृत्ति ने संकीर्ण निर्देश और शिक्षण को बढ़ावा देते हुए इसे
के वल ‘टेस्ट’ तक ही सीमित कर दिया है। इसका परिणाम यह हुआ है कि शिक्षक अपने शिक्षण
में सधु ार करने के बजाए अपना अधिकांश समय रिकार्ड सही तरीके से रखने में ही व्यय कर
देते हैं ताकि वे एक बेहतर शिक्षक दिख सकें । शिक्षकों की निगरानी इस तरह होनी चाहिए कि
सतत मलू ्यांकन करने में आने वाली समस्याओ ं के समाधान के साथ ही उन्हें समचि ु त सहायता
प्रदान की जा सकें ।
मलू ्यांकन को विकास की एक ऐसी प्रक्रिया मानना चाहिए जिसमें शिक्षार्थियों की उपलब्धि
के बजाए सधु ार पर ज़ोर हो। मलू ्यांकन इस तरह से होना चाहिए कि उससे शिक्षार्थियों के मज़बतू
और कमज़ोर पक्षों की पहचान, उनकी समस्याओ ं के निदान तथा उनके मज़बतू पक्ष को और
अधिक समृद्ध करने के तरीकों का निर्धारण किया जा सकें ।
3.5 शिक्षक प्रशिक्षक तथा ब्लॅाक रिसोर्स/क्लस्टर रिसोर्स संयोजक की
भूमिकाएँ
अध्यापक प्रशिक्षक, शिक्षकों के व्यावसायिक विकास में महत्वपर्णू भमिक ू ा निभाते हैं।
सी.सी.ई. लागू करते समय, अध्यापक प्रशिक्षकों और बी.आर. सी./सी.आर.सी. कार्मियों को
कुछ बिंदओ ु ं जो अतं तः शिक्षकों को अभिमख ु करने तथा नियमित रूप से शिक्षण व सीखने की
प्रक्रिया की निगरानी करते हैं, को ध्यान में रखना चाहिए। शिक्षकों एवं शिक्षक प्रशिक्षकों की
व्यावसायिक शिक्षा शिक्षकों को तैयार करने के कार्यक्रमों का एक निरंतर और अभिन्न अगं
होना चाहिए। इससे शिक्षकों को अपनी कार्य-प्रणाली दर्शाने और बच्चों की सीखने की प्रक्रिया
में सधु ार करने में महत्वपर्णू मदद मिलेगी। शिक्षकों के लिए सेवाकालीन प्रशिक्षण कार्यक्रम
आयोजित करते समय निम्नलिखित बातों को ध्यान रखा जाना चाहिए।
♦♦ प्रशिक्षण कार्यक्रम ‘ऊपर से नीचे’ तरीके से आयोजित नहीं किए जाने चाहिए जिसमें
शिक्षकों को प्रशिक्षकों द्वारा सी.सी.ई.के लिए विभिन्न तरीकों या रणनीतियों को लागू करने
के लिए ही सझु ाया जाता हो। शिक्षकों को इससे संबंधित विभिन्न बातें, उदाहरणों (कै से
करवाई) के जरिए समझाई जानी चाहिए ताकि उन्हें इस पर चर्चा करने, अपनी समस्याओ ं
के बारे में सोचने तथा अन्य के साथ उसे साझा करने का अवसर मिल सकें ।
♦♦ प्रशिक्षण कार्यक्रम में ऐसी रणनीति अपनायी जानी चाहिए जिससे शिक्षकों को सी.सी.ई. से
सबं ंधित विद्यालय में किए जाने वाले प्रयासों के बारे में अपने सहकर्मियों से विचार साझा
करने व चर्चा करने का अवसर मिल सकें । इस प्रक्रिया से परस्पर और भागीदारी पर्णू सीखने
38 की प्रक्रिया को अवसर मिलेगा।
♦♦ शिक्षक दर्ल ु भ इलाकों, विद्यार्थियों की अधिक संख्या वाली कक्षाओ ं तथा बहु-ग्रेड
कक्षाओ ं आदि जैसी भिन्न-भिन्न परिस्थितियों में काम कर रहे हैं। ऐसी स्थिति में एक जैसे
रिकार्डिंग और रिर्पोटिंग प्रारूप से सी.सी.ई. का उद्देश्य परू ा नहीं होगा। शिक्षकों के अनभु व
यह दर्शाते हैं कि इस तरह के प्रारूप से शिक्षण व सीखने के समय को बर्बाद करते हैं तथा
इससे सी.सी.ई. की प्रक्रिया में कोई मदद नहीं मिलती है।
सी.सी.ई. उच्च प्राथमिक स्तर पर सामाजिक विज्ञान
♦♦ प्रशिक्षण कार्यक्रम शिक्षकों को विभिन्न विषयों को बच्चों के अनभु वों व परिवेश से जोड़ने
में सक्षम बनाने वाला होना चाहिए। इसके अलावा कई बार भाषाई अल्पसखं ्यक वर्गों से
ताल्लुक रखने वाले बच्चों को घर की भाषा व विद्यालय की भाषा में अतं र होने के कारण
उत्तर देने में कठिनाई हो सकती है।
3.6 प्रशासकों के लिए विस्तृत दिशा निर्देश
सी.सी.ई. के अतं र्गत शिक्षण और सीखना एक सतत प्रक्रिया है जो एक हद तक बच्चे,
उसके सहपाठियों और शिक्षकों के सक्रिय अतं सम्पर्कों पर निर्भर करती है। शिक्षक एक ऐसा
व्यक्ति है जो अधिकांश समय कक्षा में बच्चों के साथ बिताता है। इसलिए बच्चों के सीखने की
आवश्यकताओ,ं स्तर और प्रगति के निर्णय के बारे में एक शिक्षक की कें द्रिय भमिक ू ा होती है।
अगर बच्चे के रचनात्मक मलू ्यांकन के लिए कोई रिकार्ड रखने की ज़रूरत है, उससे संबंधित
उचित रिकॉर्ड रखने का निर्णय अध्यापक पर होना चाहिए। कक्षा में की जाने वाले प्रत्येक और
सभी गतिविधियों को रिकार्ड करना न के वल दरू ु ह व अव्यावहारिक है बल्कि इससे शिक्षण व
सीखने की प्रक्रिया में भी कोई सहायता नहीं मिलती है।
इस सब में यह आवश्यकता है कि शिक्षा अधिकारी, वरिष्ठ अधिकारी तथा निरीक्षक,
शिक्षक की स्वायत्तता का आदर करें ताकि शिक्षकों को भी यह एहसास हो कि वे बच्चों की
शिक्षा के लिए जि़म्मेदार है तथा उनकी पढ़ाई की जिम्मेदारी लेने योग्य हैं। जहाँ शिक्षार्थियों और
अध्यापकों को शिक्षण व सीखने-सिखाने की जि़म्मेदारी दी गई वहाँ भी सी.सी.ई. तभी कारगर
होगा जब शिक्षकों व विद्यार्थीयों को किसी प्रकार का भय न हो। यहाँ प्रशासक शिक्षकों को
कक्षा में परिणाम की अपेक्षा उस परिणाम तक पहुचँ ने की प्रक्रिया और कक्षा में आपसी संवाद
के मलू ्यांकन पर अधिक ध्यान कें द्रित करने हेतु प्रोत्साहित कर सकते हैं।
♦♦ शिक्षण-सीखने की प्रक्रिया को सदृु ढ़ करने के लिए प्रशासकों को शिक्षकों के साथ नियमित
संवाद करते रहना चाहिए।
♦♦ सी.सी.ई. को लागू करने के लिए समय-सारणी में लचीलापन आवश्यक है। इससे शिक्षकों
को प्रशिक्षण कार्यक्रम में सीखी गई विभिन्न तकनीकों का प्रयोग करके देखने में भी
सहायता मिलेगी।
♦♦ शिक्षकों को स्थानीय रूप से उपलब्ध संसाधनों का प्रयोग करने तथा कक्षा के बाहर से
सीखने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
♦♦ प्रशिक्षण कार्यक्रमों में प्राप्त अनभु वों को शिक्षकों को वरिष्ठ शिक्षकों तथा अन्य
शिक्षाकर्मियों (बी.आर.सी.) से साझा करने के अवसर दिए जा सकते है। इस प्रक्रिया से
उन्हें भी अपने ज्ञान को अद्यतन करने तथा विभिन्न विषयों में किए गए परिवर्तनों (शिक्षा 39
शास्त्रीय बदलावों) के मलू उद्देश्यों की समझ बनाने में मदद मिलेगी।
♦♦ शिक्षकों को बच्चों की जरूरतों के हिसाब से पाठ्यक्रम का उपयोग करने की स्वायत्तता दी
जानी चाहिए। उदाहरण के लिए अधिकांश विद्यालयों में शिक्षकों को विद्यालय की सलाह
पर एक क्रम से पाठ पढ़ाने होते हैं।
सतत एवं व्यापक मलू ्यांकन को लागू किए जाने के महत्वपरू ्ण तत्व
♦♦ सी.सी.ई. पर नियोजकों और प्रशासकों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रमों का आयोजन इसके
प्रयोगकर्ताओ ं और प्रशासकों के बीच विचारों में सामजं स्य का विकास करने के लिए
आवश्यक हैं। इससे उन्हें भी शिक्षण और सीखने की इस परू ी प्रक्रिया तथा इस प्रयास में
उनकी अपनी भमिक ू ा को समझने में मदद मिलेगी।
♦♦ प्रशासक की भमिक ू ा एक पर्यवेक्षक अथवा रिर्पोटिंग अधिकारी की नहीं होनी चाहिए। उसे
विद्यालयों में सीखने की स्थितियाँ पैदा करने के साथ-साथ एक मार्गदर्शक की भमिकू ा भी
निभानी चाहिए।
सी.सी.ई. की परू ी प्रक्रिया, प्रशासकों, शिक्षकों और शिक्षार्थियों सभी को, अपनी-अपनी
ज़िम्मेदारी निभाने की माँग करती है।Opimum essilic identebusa que iam neque
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