You are on page 1of 56

lh- lh- bZ- iSdst J`a[kyk dh vU; iqLrdsa सतत एवं lexz ewY;kadu

lrr ,oa lexz ewY;kdau

lh-lh-bZ-
सतत एवं lexz ewY;kadu

lh-lh-bZ-
lh-lh-bZ-
mPp izkFkfed Lrj ij izfreku lkexzh
izkFkfed Lrj ds fy, izfreku lkexzh mPp izkFkfed Lrj ij izfreku lkexzh

xf.kr

izkFkfed f'k{kk xf.kr

सतत एवं lexz ewY;kadu सतत एवं lexz ewY;kadu

lh-lh-bZ- lh-lh-bZ-
mPp izkFkfed Lrj ij izfreku lkexzh mPp izkFkfed Lrj ij izfreku lkexzh

foKku lkekftd foKku

foKku lkekftd foKku

lkekftd foKku
सतत एवं समग्र मूल्‍यांकन

सी.सी.ई.
उच्‍च प्राथमिक स्‍तर के िलए प्रतिमान सामग्री
सामाजिक विज्ञान
प्राक्‍कथन
राष्‍ट्रीय शैक्षिक अनसु ंधान एवं प्रशिक्षण परिषद,् नई दिल्‍ली ने राष्‍ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरे खा-2005 तैयार
की थीं जिसे ससं द द्वारा शिक्षा के अधिकार अधिनियम, 2009 के महत्त्वपर्णू हिस्‍से के रूप में देखा गया। इस
पाठ्यचर्या रूपरे खा का दर्शन रचनावाद से प्रभावित है जो इस बात में विश्‍वास करता है कि सीखना अनवरत
रूप से चलने वाली प्रक्रिया है। यह रूपरे खा इस विश्‍वास पर आधारित है कि सीखना भिन्‍न-भिन्‍न विषयों को
अलग-अलग रखकर चलने वाली पद्धति में संभव नहीं होता बल्कि यह सामाजिक, सांस्‍कृ तिक, बौद्धिक
और बच्‍चों के सीखने की प्रक्रिया को प्रभावित करने वाले सभी कारकों से जडु ़ा होता है। इसलिए बच्‍चों
के सीखने का आकलन करने के लिए भी समग्रतावादी दृष्टिकोण होना जरूरी है। इसीलिए ‘सतत एवं समग्र
मलू ्‍यांकन’ की प्रणाली लागू की गई।
पिछले कुछ वर्षों के अनभु व बताते हैं कि भिन्‍न-भिन्‍न शैक्षिक संस्‍थाओ ं और समहू ों ने ‘सतत एवं समग्र
मलू ्‍यांकन’ के प्रति अपनी एक अलग ही सोच व समझ बनाई है और इसमें किसी तरह की हैरानी वाली बात
नहीं है। देश भर में सतत एवं समग्र मलू ्‍यांकन के संदर्भ में अलग-अलग तरीके से काम किया जा रहा है, और
मश्किल
ु वाली बात तो यह है कि ये सब पद्धतियाँ राष्‍ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरे खा-2005 की परू ी तरह से
उपेक्षा एवं विरोध सा करती नज़र आती हैं। ऐसी स्थिति में मानव संसाधन विकास मत्ं रालय, भारत सरकार
एवं राष्‍ट्रीय शैक्षिक अनसु धं ान और प्रशिक्षण परिषद,् नई दिल्‍ली ने आवश्‍यक समझा कि सतत एवं समग्र
मलू ्‍यांकन के संदर्भ में सही दिशा निर्देश देने की ज़रुरत है। परिषद् द्वारा 2009 में तैयार ‘आकलन के लिए
स्रोत पस्ति
ु का’ पहले से ही मौजदू है तथापि इस बात की आवश्‍यकता महससू की गई कि उस स्रोत पस्ति ु का
के साथ ससु म्‍बद्धता जोड़ते हुए सघन समझ पैदा कर सकने वाली सामग्री तैयार की जाए।
यह सामग्री मख्ु ‍यत: तीन खडं ों में विभाजित है। पहला खडं सतत व समग्र मलू ्‍यांकन से जडु ़ी भ्रान्तियों को
दरू करने और अवधारणा को सही रूप में समझने के अवसर देता है। दसू रा खडं अध्‍यापकों को सझु ाता है कि
सतत व समग्र मलू ्‍यांकन के लिए किन पद्धतियों को अपनाना होगा और इसके लिए भिन्‍न-भिन्‍न पाठ्यचर्या
के विषयों के उदाहरण भी प्रस्‍तुत किए गए हैं। तीसरे खडं में शिक्षा से सरोकार रखने वाले सभी भागीदारों के
लिए दिशा निर्देश दिए गए हैं। जिस तरह के उदाहरण प्रस्‍तुत किए गए हैं, उन सभी का शिक्षा का अधिकार
अधिनियम के मानकों का अनसु रण करने वाली कक्षाओ ं में क्षेत्र परीक्षण करके देखा गया है। उदाहरणार्थ
प्रस्‍तुत यह सामग्री राज्‍यों को उनकी आवश्‍यकतानसु ार ज्‍यों का त्‍यों प्रयोग में लाने अथवा स्थिति विशेष के
अनसु ार थोड़े-बहुत परिवर्तन के साथ मदद करे गी ।
सतत व समग्र मलू ्‍यांकन के लिए उदाहरणार्थ सामग्री की प्रस्‍तुति राष्‍ट्रीय शैक्षिक अनसु धं ान और
प्रशिक्षण परिषद् एवं मानव संसाधन विकास मत्ं रालय का साझा प्रयास है। इस सामग्री के विकास एवं
निर्माण की प्रक्रिया में अध्‍यापकों की सहभागिता और कक्षाओ ं में किए गए क्षेत्र परीक्षण के रहते यह एक
ऐसा आकार ले पाई है कि कक्षाओ ं में सवि ु धाजनक तरीके से इस्‍तेमाल किया जा सकता है। राष्‍ट्रीय शैक्षिक
अनसु धं ान और प्रशिक्षण परिषद,् मानव ससं ाधन विकास मत्ं रालय, यनि ू सेफ़ व उन सभी ससं ्‍थाओ ं एवं
व्‍यक्तियों के प्रति आभार प्रकट करती है जिन्‍होंने इस सामग्री के बनाने में भिन्‍न-भिन्‍न रूप में योगदान दिया
है। इस बात का उल्‍लेख करना भी ज़रूरी है कि प्रारंभिक शिक्षा विभाग ने इस परियोजना का सफलतापर्वू क
समन्‍वयन किया है।
यह सामग्री परू ी तरह से प्रस्‍तावित है। हम सामग्री को उन्‍नत करने और अधिकाधिक सफलता के साथ
उपयोग करने के सझु ावों व टिप्‍पणियों का सदा ही स्‍वागत करते हैं।
यह सामग्री आपके विचारार्थ प्रस्‍तुत है। हम सामग्री को उन्‍नत करने और अधिकाधिक सफलता के साथ
उपयोग करने के सझु ावों व टिप्‍पणियों का सदा ही स्‍वागत करते हैं।

ह्रषिके श सेनापति
निदेशक
राष्‍ट्रीय शैक्षिक अनसु धं ान और प्रशिक्षण परिषद्
फरवरी 2017
नई िदल्‍ली

iv
सामग्री के बारे में
राष्‍ट्रीय शैक्षिक अनसु धं ान एवं प्रशिक्षण परिषद् नई दिल्‍ली ने सभी पाठ्यचर्यक क्षेत्रों के लिए प्राथमिक स्‍तर
हेतु सतत एवं सारगर्भित मलू ्‍यांकन पर सामग्री तैयार की है। इस सामग्री के विकास एवं निर्माण की प्रक्रिया
में विषय विशेषज्ञों, अध्‍यापकों, शिक्षाविदों ने कार्यशालाओ ं व बैठकों के माध्‍यम से सझु ाव एवं परामर्श दिए
हैं। सामग्री की तैयारी से जडु ़े सदस्‍यों ने इसके प्रति अध्‍यापकों में समझ बनाई जिन्‍होंने आगे अपनी कक्षाओ ं
में इसे क्रियान्वित करके देखा। इस प्रकार यह सामग्री क्षेत्र परीक्षण के द्वारा सफलतापर्वू क तैयार की गई है ।
सतत व समग्र मलू ्‍यांकन के लिए इस प्रकार की उदाहरणार्थ सामग्री को तैयार करने के पीछे मख्ु ‍य भाव यह
था कि अध्‍यापकों को सतत व समग्र मलू ्‍यांकन के लिए कुछ ऐसी यक्ु तियाँ दी जाए जो वे प्राथमिक स्‍तर
की कक्षाओ ं में प्रभावशाली तरीके से इस्‍तेमाल कर सकें । सतत एवं समग्र मलू ्‍यांकन के भिन्‍न-भिन्‍न पक्षों
को ध्‍यान में रखते हुए कक्षा में किस तरह से अर्थपर्णू तरीके से मलू ्‍यांकन किया जाए, इस बात के लिए यह
सामग्री परू ी तरह से अध्‍यापकों को मदद करे गी, जैसे कि सीखने सिखाने की प्रक्रिया के दौरान आकलन कै से
किया जाए, बाद में आकलन कै से किया जाए, बच्‍चे की प्रगति कै से दर्ज की जाए और कै से फीडबैक दिया
जाए, आदि । शिक्षा के प्राथमिक स्‍तर पर अध्‍यापक सामान्यतः सभी विषय पढ़ाते हैं इसलिए सभी विषयों के
उदाहरण इस दस्‍तावेज़ में सारगर्भित रूप से शामिल किए गए हैं। प्राथमिक स्‍तर पर काम कर रहे अध्‍यापकों
को सिर्फ यही मदद नहीं मिलेगी कि किस तरह से भिन्‍न-भिन्‍न विषयों के सीखने-सिखाने को समावेशित रूप
दिया जा सके बल्कि उनकी यह भी समझ बनेगी कि कै से विषय वस्‍तुओ ं के बोझिल दोहराव से बचा जा सके ।
उच्‍च प्राथमिक स्‍तर पर विज्ञान, गणित, सामाजिक विज्ञान, हिदं ी, अग्रेज़ी ं , उर्दू एवं कला शिक्षा सभी के लिए
विषयानसु ार सामग्री तैयार की गई है। जिन कक्षाओ ं में छात्र शिक्षक अनपु ात शिक्षा के अधिकार अधिनियम
मानकों के अनसु ार है (प्राथमिक स्‍तर पर 1:30 और उच्‍च प्राथमिक स्‍तर पर 1:35) वहाँ इन ग‍तिविधियों का
क्षेत्र परीक्षण भी करके देखा गया है। राज्‍यों एवं कें द्र शासित प्रदेशों द्वारा इस सामग्री को इसके यथास्‍वरूप या
अपनी आवश्‍यकता अनसु ार परिवर्तन करके सामग्री का उपयोग किया जा सकता है।
सारे प्रमखु मद्ु दों में जो अभी तक सी.सी.ई. को लागू करने के लिए उठाए गए हैं उनमें प्रमख ु हैं - शासन
प्रबंध, व्याख्या, रिकॉर्डिंग और मलू ्यांंकन संबं‍धी रिपोर्ट। मलू ्‍यांकन के संदर्भ में शिक्षक की मदद करने के
लिए अलग-अलग तरीके हैं जो कि शिक्षक द्वारा मलू ्यांकन के लिए उपयोग में लाए जा सकते हैं। इन विभिन्‍न
तरीकों को किस प्रकार समाहित करके समचि ु त रूप से कक्षा में प्रयोग किया जाए तथा रिपोर्टिंग किस प्रकार
कि जाए, इस बारे में इस सामग्री के तीन खडं ों में बताया गया है। इसके साथ ही मलू ्यांकन के एक फ्रे मवर्क को
जो सारे शिक्षकों के लिए लागू होता है, विभिन्न उदाहरणों के साथ इस दस्‍तावेज़ में दिया गया है।
इस दस्‍तावेज़ के मख्ु ‍यत: तीन खडं हैं –
♦♦ खंड-1: यह सामग्री हमारी किस तरह से मदद करे गी और शिक्षा व्‍यवस्‍था सतत एवं समग्र मलू ्यांकन
को लेकर किस तरह की भ्रान्तियों से जझू रही है, इन सबके स्‍पष्‍टीकरण की तस्‍वीर पेश करता है पहला
खडं । यह खडं शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 के परिप्रेक्ष्य में सतत एवं समग्र मलू ्‍यांकन के प्रति
समझ बनाता है।
♦♦ खंड-2: यह खडं विषयानसु ार कुछ ऐसे उदाहरण प्रस्‍तुत करता है जो यह बताते है कि आकलन की
प्रक्रिया को क्‍या आकार देना चाहिए जिससे कि यह सीखने-सिखाने की प्रक्रिया का अभिन्‍न अगं बने
और ‘सीखना’ कें द्र में रहे (रचनात्‍मक आकलन)। इस खडं में प्रत्‍येक विषय के आकलन के आधार भी
‘सक ं े तकों’ के रूप में उल्लिखित हैं। दोहराने की आवश्‍यकता नहीं, ये सक
ं े तक भी प्रस्‍तावित हैं। इस खडं
में दिए उदाहरण कुछ इस तरह की जानकारी भी देते हैं कि सीखने का आकलन (योगात्‍मक आकलन)
अध्‍यापकों के द्वारा कै से इस्‍तेमाल किया जाए और बच्‍चों की प्रगति की जाँच के लिए पेपर पैंसिल टैस्‍ट
के अतिरिक्‍त और किन-किन यक्ु तियों का इस्‍तेमाल किया जा सकता है।
यह खडं यह भी सझु ाता है कि अध्‍यापकों को किस प्रकार की जानकारी रिकार्ड के रूप में रखनी चाहिए
और आकलन संबंधी कौन से बिंदु रिपोर्ट कार्ड में लिखने चाहिए जिससे कि बच्‍चों की प्रगति की सारगर्भित
तस्‍वीर प्रस्‍तुत हो सके ।
♦♦ खंड-3: खडं 2 में दिए गए उदाहरणों के आधार पर यह खडं सतत एवं समग्र मलू ्‍यांकन के क्रियान्‍वयन
के सदं र्भ में कुछ महत्‍वपर्णू दिशा निर्देश रे खांकित करता है। यह खडं अध्‍यापकों में कुछ इस तरह की
समझ बनाने की दिशा में कार्य करता है कि आकलन किस प्रकार से सीखने की प्रक्रिया का अभिन्‍न अगं
है, किस तरह की तैयारी की ज़रूरत है, सचू नाएं सग्रं हित करने के कौन-कौन से स्रोत हो सकते हैं, रिपोर्ट
करने के लिए किस तरह की सचू नाओ ं को लिखा जाना चाहिए और बच्‍चों की प्रगति को किस तरह से
सारगर्भित रूप में प्रस्‍तुत किया जाना चाहिए। यह खडं अध्‍यापक िशक्षकों एवं प्रशासनिक अधिकािरयों
को उनकी भिू मका के संबंध में िदशािनर्देश सझु ाता है िक िकस तरह से वे सतत व सारगर्भित मलू ्‍यांकन
को एक अर्थपर्णू रूप में िक्रयािन्‍वत करें ।
सामाजिक विज्ञान में सी.सी.ई के पैकेज का लक्ष्य है- अतं र्निहित ‍समस्याओ ं को पहचानना, इसका
क्रियान्‍वयन और शिक्षात्मक प्रणाली में इसके महत्व को बताना। यह पैकेज सतत मलू ्यांकन के गणु ों की चर्चा
करता है, साथ ही अधिगम प्रक्रिया में सतत मलू ्‍यांकन को शामिल करने के लिए दिशा-निर्देश भी देता है।
इसके अतिरिक्‍त यह पैकेज अधिगम सप्राप् ं ति के आधार पर मलू ्‍यांकन करने के लिए भी आवश्‍यक जानकारी
देता है।

vi
कृतज्ञता ज्ञापन
प्रारंभिक स्‍तर के लिए सतत एवं सार‍गर्भित मलू ्‍यांकन पर उदाहरणार्थ सामग्री का निर्माण सम्मिलित सासं ्‍थानिक
अकादमिक प्रयास है जिसमें मानव ससं ाधन विकास मत्ं रालय एवं यनि ू सेफ ने परू ी तरह सहयोग दिया। प्राथमिक
एवं उच्‍च प्राथमिक दोनों ही स्‍तरों पर के न्‍द्र समहू की बैठकों एवं भिन्‍न-भिन्‍न उप समहू ों की कार्यशालाओ ं के
दौरान बहुत से महत्‍वपर्णू रचनात्‍मक सझु ाव बिदं ु सामने आए। प्रख्‍यात शिक्षाविदों, विषयविशेषज्ञों, अध्‍यापकों,
शिक्षाशास्त्रियों, स्‍वैच्छिक सगं ठनों के प्रतिनिधियों एवं परिषद् के सक ं ाय सदस्‍यों ने इस सामग्री के विकास एवं
निर्माण प्रक्रिया के प्रत्‍येक चरण में अपना महत्‍वपर्णू योगदान दिया है। परिषद् में गठित कें द्रिक समहू के सदस्‍यों
द्वारा सझु ाए गए बिदं ओ ु ं से सामग्री समृद्ध एवं पष्ु ‍ट हुई है। श्री भट्टाचार्य, पर्वू सचिव, एवं सश्ु री वृदं ा सरूप,
अतिरिक्‍त सचिव, स्‍कूल शिक्षा और साक्षरता विभाग, मानव ससं ाधन विकास मत्ं रालय भारत सरकार के कुशल
नेतत्ृ ‍व से जो अनवरत सहयोग एवं प्रोत्‍साहन मिला है, उसके प्रति हार्दिक सराहना के भाव प्रकट करते हैं। हम
प्रो. कृष्‍ण कुमार, परिषद् के पर्वू निदेशक के मल्‍य ू वान योगदान हेतु आभारी है।
दिल्‍ली, हरियाणा और बहुत से प्रबंधन ससं ्‍थाओ ं द्वारा चलाए जा रहे कुछ चयनित विद्यालयों में इस
सामग्री के क्षेत्र परीक्षण से बहुत ही लाभ मिला है। क्षेत्र परीक्षण के लिए इन विद्यालयों के प्रधानाचार्यों ने जिस
तरह से अभतू पर्वू सहयोग दिया है, उसकी भी हम सराहना करते हैं। उन सभी बच्‍चों और अध्‍यापकों के प्रति
धन्‍यवाद ज्ञापित करना अत्‍यावश्‍यक है जिन्‍होंने सतत एवं समग्र मलू ्‍यांकन की इस सामग्री के क्रियान्‍वयन
में अपनी तीव्र रूचि एवं अपार उत्‍साह प्रदर्शित किया है। प्रो. सरोजबाला यादव, विभागाध्यक्ष, सामाजिक
शिक्षा विभाग जिन्होंने अपने यहाँ के संकाय सदस्यों को क्षेत्र परीक्षण के लिए लगाया है, बिना उनके सहयोग
के सी.सी.ई पैकेज का कार्यान्वयन प्रभावशाली और सचु ारू रूप से नहीं हो सकता था।
प्रोफे सर हरि वासदु वे न, इतिहास विभाग, कलकत्ता विश्वविद्यालय, प्रोफे सर निलाद्री भट्टाचार्या,
ऐतिहासिक अध्ययन कें द्र, जेएनय,ू प्रोफे सर कुमकुम राय, ऐतिहासिक अध्‍ययन कें द्र, जेएनय,ू सश्ु री रश्मि
पालीवाल, एकलव्य, सश्ु री शारदा बालगोपालन, सीएसडीएस, नई दिल्ली, डा. एम.वी.श्रीनिवासन,
डीईएसएस, एनसीईआरटी, नई दिल्ली, सश्ु री दिशा नवानी, टीआईएसएस, मबंु ई, एनसीईआरटी इन सबके
प्रति आभार व्‍यक्‍त करती है जिन्होंने कार्यक्रम के प्रारंभिक चरण के दौरान अपने विचारों को साझा किया।
दिक्षिता प्रमोद, कक्षा छ: की छात्रा को चित्रों के लिए धन्यवाद दिया जाता है।
प्रारंभिक शिक्षा विभाग के प्रशासनिक स्‍टॉफ़ को विशेषकर श्री शाकम्‍बर दत्‍त, श्री ओमप्रकाश, एवं सश्ु री
सनु ीता नारंग को उनके योगदान देने के लिए आभार प्रकट करते हैं। हम प्रारंभिक शिक्षा विभाग में परियोजना
से जडु ़े स्‍टाफ़ सदस्‍यों सश्ु री हेमलता (जे.पी.एफ.) सश्ु री एकांक्षी (जे.पी.एफ.), श्री अशोक और श्री मसीउद्दीन,
अता हुसैन (कम्‍प्‍यूटर टाइपिस्‍ट) चरन सिहं , सना मनु व्‍वर (डी.टी.पी. ऑपरे टर, डी. ई. ई), के प्रयासों की
सराहना करते हैं।
अपने पर्वू विभागाध्‍यक्ष प्रोफे सर मजं ू जैन के हम अत्‍यंत आभारी हैं, जिन्‍होंने इस कार्य को सफलतापर्वू क
प्रारंभ करने में महत्त्वपर्णू योगदान दिया। इसके अतिरिक्‍त हम प्रोफे सर अनपू राजपतू , वर्तमान विभागाध्‍यक्ष के
प्रति भी अपना आभार व्‍यक्‍त करते हैं जिनके नेतत्ृ ‍व में यह हिन्‍दी रूपांतरण का कार्य पर्णू हुआ।
हम प्राथमिक स्‍तर के लिए सतत एवं समग्र मलू ्‍यांकन पर सामग्री के प्रकाशन के लिए प्रकाशन विभाग
के प्रमख ु प्रो. ि‍सराज अनवर के प्रति धन्‍यवाद ज्ञापित करते हैं।
अन्‍तत: प्रारंभिक शिक्षा विभाग, राष्‍ट्रीय शैक्षिक अनसु ंधान एवं प्रशिक्षण परिषद् के निदेशक प्रो. ह्रषिके श
सेना‍पति एवं पर्वू सयं क्‍त
ु निदेशक प्रो. बी.के . त्रिपाठी को उनके द्वारा सतत रूप से दिए गए पर्णू मार्गदर्शन के
प्रति कृ तज्ञता ज्ञापित करता है।
सभं वतया यह सचू ी अपने आप में पर्णू न हो। हम उन सभी के प्रति आभार प्रकट करते हैं जिन्‍होंने इस
सामग्री को वर्तमान स्‍वरूप देने में अपना योगदान दिया है।

viii
सतत एवं समग्र मूल्‍यांकन सामग्री कार्य से
जुड़ा मुख्‍य समूह
अश ं मु ाला, सलाहकार, विज्ञान एवं गणित शिक्षा विभाग (डीईएसएम), राष्‍ट्रीय शैक्षिक अनसु ंधान एवं
प्रशिक्षण परिषद,् नई दिल्‍ली।
बी.के . त्रिपाठी, आचार्य और पर्वू सयं क्‍त
ु निदेशक, राष्‍ट्रीय शैक्षिक अनसु धं ान एवं प्रशिक्षण परिषद,् नई
दिल्‍ली ।
धरम प्रकाश, आचार्य (अवकाश प्राप्‍त), कें द्रीय शैक्षिक प्रौद्योगिकी संस्‍थान (सीआईईटी), राष्‍ट्रीय शैक्षिक
अनसु ंधान एवं प्रशि‍क्षण परिषद,् नई दिल्‍ली।
फारूख असं ारी, आचार्य, भाषा शिक्षा विभाग (डीईएल), राष्‍ट्रीय शैक्षिक अनसु ंधान एवं प्रशिक्षण परिषद,्
नई दिल्‍ली।
ज्‍योत्‍सना तिवारी, आचार्य, कला और सौंदर्यशास्‍त्र शिक्षा विभाग (डीईएए), राष्‍ट्रीय शैक्षिक अनसु ंधान एवं
प्रशिक्षण परिषद,् नई दिल्‍ली।
कविता शर्मा, सह आचार्य, प्रारंभिक शिक्षा विभाग (डीईई), राष्‍ट्रीय शैक्षिक अनसु धं ान एवं प्रशिक्षण परिषद,्
नई दिल्‍ली।
कीर्ति कपरू , आचार्य, भाषा शिक्षा विभाग (डीईएल), राष्‍ट्रीय शैक्षिक अनसु ंधान एवं प्रशिक्षण परिषद,् नई
दिल्‍ली।
लता पांडेय, आचार्य, प्रारंभिक शिक्षा विभाग (डीईई), राष्‍ट्रीय शैक्षिक अनसु ंधान एवं प्रशिक्षण परिषद,् नई
दिल्‍ली।
संध्‍या सिंह, आचार्य, भाषा शिक्षा विभाग (डीईएल), राष्‍ट्रीय शैक्षिक अनसु ंधान एवं प्रशिक्षण परिषद,् नई
दिल्‍ली।
तनु मलिक, सह आचार्य, सामाजिक विज्ञान शिक्षा विभाग (डीईएसएस), राष्‍ट्रीय शैक्षिक अनसु धं ान एवं
प्रशिक्षण परिषद,् नई दिल्‍ली।
कार्यक्रम समन्‍वयक:
मजं ू जैन, आचार्य (अवकाश प्राप्‍त)ेे एवं पर्वू विभागाध्‍यक्ष, प्रारंभिक शिक्षा विभाग (डीईई),राष्‍ट्रीय शैिक्षक
अनसु ंधान एवं प्रशिक्षण परिषद,् नई दिल्‍ली।

उच्‍च प्राथमिक स्‍तर पर सामाजिक विज्ञान पैकेज का


सी. सी. ई. उप-समहू
आश‍िता रविंद्रन, सहायक आचार्य (अर्थशास्‍त्र), पी. एम. डी., एनसीईआरटी, नई दिल्‍ली।
एम.वी.एस.वी. प्रसाद, सहायक आचार्य (राजनीति विज्ञान), सामाजिक विज्ञान शिक्षा विभाग (डीईएसएस), राष्‍ट्रीय
शैक्षिक अनसु धं ान एवं प्रशिक्षण परिषद,् नई दिल्‍ली।
सीमा ओझा, सहायक आचार्य (इतिहास), सामाजिक विज्ञान शिक्षा विभाग (डीईएसएस), राष्‍ट्रीय शैक्षिक
अनसु धं ान एवं प्रशिक्षण परिषद,् नई दिल्‍ली।
तनु मलिक, सह आचार्य, सामाजिक विज्ञान शिक्षा विभाग (डीईएसएस), राष्‍ट्रीय शैक्षिक अनसु ंधान एवं
प्रशिक्षण परिषद,् नई दिल्‍ली।
हिन्‍दी रूपान्‍तरण के लिए योगदान:
सीमा ओझा, सहायक आचार्य (इतिहास), सामाजिक विज्ञान शिक्षा विभाग (डीईएसएस), राष्‍ट्रीय शैक्षिक
अनसु धं ान एवं प्रशिक्षण परिषद,् नई दिल्‍ली।
तनु मलिक, सह आचार्य, सामाजिक विज्ञान शिक्षा विभाग (डीईएसएस), राष्‍ट्रीय शैक्षिक अनसु ंधान एवं
प्रशिक्षण परिषद,् नई दिल्‍ली।
के .के . शर्मा, प्रधानाध्‍यापक (अवकाश प्राप्‍त), एजकु े शन कॉलेज,अजमेर।
पी. के . मलिक,सहायक आचार्य, गवर्नमेंट कालेज, सिद्धरावाली, हरियाणा
पजू ा सिंह, परामर्शदाता,एस.एस.ए. प्रकोष्‍ठ, प्रारंभिक शिक्षा विभाग, एनसीईआरटी, नई दिल्‍ली।
कार्यक्रम समन्‍वयक:
संध्‍या संगई, प्रोफे सर, प्रारंभिक शिक्षा विभाग (डीईई), राष्‍ट्रीय शैक्षिक अनसु ंधान एवं प्रशिक्षण परिषद,् नई
दिल्‍ली।
रमेश कुमार, सहायक आचार्य, प्रारंभिक शिक्षा विभाग, एनसीईआरटी, नई दिल्‍ली।

x
िवषय सचू ी
प्राक्‍कथन iii
सामग्री के बारे में v

1. भाग I: उच्‍च प्राथमिक स्‍तर पर सामाजिक विज्ञान में सतत एवं समग्र मूल्‍यांकन 1
1.1 पैकेज की आवश्‍यकता? 1
1.2 सी. सी. ई का उपयोग क्‍यों करें ? 3
1.3 क्‍या मलू ्यांकन किया जाए? 5
1.4 मलू ्यांकन कब हो ? 12
1.5 आकलन कै से हो? 12
2. भाग II: सामाजिक विज्ञान की कक्षा में सतत एवं समग्र मूल्यांकन 15
2.1 इतिहास- मलू ्यांकन गतिविधि का उदाहरण 18
2.2 भगू ोल- मलू ्यांकन गतिविधि का उदाहरण 23
2.3 सा‍माजिक एवं राजनीतिक जीवन (राजनीति विज्ञान)- मलू ्‍यांकन गतिविधि का उदाहरण 25
2.4 सा‍माजिक एवं राजनीतिक जीवन (अर्थशास्‍त्र)- मलू ्‍यांकन गतिविधि का उदाहरण 30
3. भाग III: सतत एवं समग्र मूल्यांकन को लागू किए जाने के महत्त्वपूर्ण तत्व 34
3.1 आकलन योजना बनाना 34
3.2 आकलन योजना 35
3.3 रिर्पार्ट तैयार करना 36
3.4 सी.सी.ई. के कार्यान्वयन में चनु ौतियाँ 37
3.5 शिक्षक प्रशिक्षक तथा ब्लॅाक रिसोर्स/क्लस्टर रिसोर्स संयोजक की भमिू काएँ 38
3.6 प्रशासकों के लिए विस्तृत दिशा निर्देश 39
भाग 1

उच्‍च प्राथमिक स्‍तर पर


सामाजिक विज्ञान में सतत और
समग्र मूल्‍यांकन

1.1 पैकेज की आवश्यकता?


हम सभी जानते हैं कि बच्चों के लिए निःशलु ्क और अनिवार्य शिक्षा अधिनियम - 2009
(आर.टी.ई. अधिनियम, 2009) अप्रैल-2010 से लागू किया जा चक ु ा है। अधिनियम के
अनसु ार सतत और समग्र मलू ्यांकन (सी.सी.ई.) को प्रत्येक बच्चे की प्राथमिक शिक्षा परू ी होने
तक लागू किया जाए। सी.सी.ई. को लागू करने में शिक्षकों की भमिकू ा परू ी प्रकिया पर के न्द्रित
हो जाती है। क्षेत्रीय अनभु व और शिक्षकों के साथ बातचीत से यह पता चला है कि शिक्षकों को
सी.सी.ई. लागू करने में समस्याओ ं का सामना करना पड़ रहा है। सी.सी.ई. के एक आवश्यक
घटक के रूप में शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया के साथ एकीकृ त करने के बदले शिक्षक अधिकतर
समय आँकड़ों के संकलन और बच्चों के परीक्षा परिणाम के रिकॉर्ड रखने में व्यस्त रहते हैं।
आमतौर पर शिक्षक सी.सी.ई. को बाहरी गतिविधि के रूप में समझते हैं जिसे अलग से या
विषय/पाठ परू ा होने के बाद किया जाना चाहिए।
आर.टी.ई. अधिनियम कक्षा आठवीं तक सभी सार्वजनिक परीक्षाओ ं पर प्रतिबंध लगाता
है और ‘नो डिटेंशन’ नीति को लागू करता है। यहाँ पर, यह स्पष्ट होना चाहिए कि ‘नो डिटेंशन’
नीति को लागू करने का अर्थ यह कदापि नहीं है कि स्कूलों में शिक्षण-अधिगम के अभाव
को प्रोत्साि‍‍हत किया जाए। इसके विपरीत एक ओर आर.टी.ई. के दृष्टिकोण को परू ा करने में
सी.सी.ई. एक शक्तिशाली औज़ार के रूप में कार्य कर सकता है तथा दसू री ओर सभी बच्चों
का सीखना सनिश् ु चित करते हुए शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया के दौरान किया गया आकलन बच्चे
के सीखने में सधु ार के लिए आवश्यक व सामयिक फीडबैक प्रदान करे गा। इस प्रकार सी.सी.ई.
सभी को बच्चे के स्वयं के प्रदर्शन की तल ु ना में उसकी प्रगति पर ध्यान कें द्रित करने के लिए
प्रोत्साहित करे गा।
इसके अलावा सी.सी.ई. प्रक्रिया को लागू करने से संबंधित विभिन्न शब्दों को लेकर कई
भ्राँतियाँ हैं। ‘सतत’ का अर्थ प्रायः शिक्षकों द्वारा नियमित रूप से परीक्षा लेना माना जाता है। कई
विद्यालयों में सतत आकलन के नाम पर प्रति सप्ताह बच्चों की सभी विषयों में परीक्षा ली जा
रही है। ‘समग्र’ का अर्थ बच्चों के संयुक्त व्यवहार के विभिन्न पहलओ ु ं को अलग-अलग करके
देखना है। व्यक्तिगत-सामाजिक विशेषताओ ं (समानभु ति ू , सहयोग, स्व-अनश ु ासन, किसी कार्य
में पहल करना आदि) का भी चार-पाँच प्वाइटं स्केल में श्रेणीबद्ध करके अलग से आकलन
करना अव्‍यवहारिक प्रतीत होता है। मूल्यांकन को रिकॉर्ड रखने की गतिविधि के रूप में ही
देखा जा रहा है। परिणामस्वरूप शिक्षक बहुत अधिक असमजं स में हैं और अक्सर उनकी
शिकायत रहती है कि उनका अधिकतर समय आकलन के लिए आँकड़े एकत्र करने में ही जाता
है। जिसके कारण शिक्षण अधिगम के लिए निर्धारित वास्तविक समय का नक ु सान हो रहा है।
सी.सी.ई. के अतं र्गत छात्र के मार्गदर्शन और सीखने तथा समग्र प्रदर्शन में सधु ार हेतु अनेक
प्रकार के आकलन के तरीकों का प्रयोग किया जाता है। आकलन के इस माध्यम को छात्र की
सीखने की क्षमता का आकलन करने के लिए उपयक्त ु माना जाता है क्‍योंकि यह सर्व समावेशी,
संचयी तथा नैदानिक अनक ु ू ल है जिसे सीखने वालों की प्रगति में सधु ार तथा उनमें आत्म-
जागरूकता विकसित करने के लिए प्रयोग किया जा सकता है ताकि अधिक देरी होने से पर्वू
सधु ार किया जा सके । नतीजतन, प्राप्त परिणाम तथा प्रतिपष्टि ु अधिक मान्य, विश्‍वसनीय तथा
शिक्षार्थी की समग्र क्षमता के अधिक सचू नात्मक (निर्देशात्मक) होते हैं।
यह कक्षा आकलन योजना शिक्षार्थियों द्वारा प्राप्त‍ ज्ञान, समझ और कौशल का पता लगाने
में सहायता करती है। प्रतिपष्टि
ु शिक्षार्थियों को यह जानने में सहायता करती है कि उनको कौन-
से विषयों पर ध्यान के न्द्रित करना है, जिन पर उन्हें महारत हासिल नहीं हुई और सधु ार की
आवश्यकता है। एक मानकीकृ त परीक्षण में प्राप्त‍ निश्चित अंकों अथवा स्कोर की बजाय दिन
प्रतिदिन शिक्षण में एकीकृ त आकलन द्वारा विशेष स्तर तक दक्षता और कौशल में उपलब्धि
के विषय में सचू ना मिलती है।
अत: इस पैके ज का मखु ्य उद्देश्य है :
♦♦ शिक्षा से जड़ेु विभिन्न‍ लोगों जैसे शिक्षक, प्रशासनिक अधिकारी, शिक्षक प्रशिक्षकों आदि
में सतत और समग्र मलू ्यांकन की संकल्पना की समझ का विकास करना,
2 ♦♦ उदाहरण प्रदान करना कि कै से सतत और समग्र मलू ्यांकन (सी.सी.ई.) शिक्षण-अधिगम
प्रक्रिया के एक अभिन्‍न अश ं के रूप में प्रयोग की जा सकती है,
♦♦ बच्चे की प्रगति के बारे में किस प्रकार की सचू ना संकलित की जाए, इस संबंध में शिक्षकों/
शिक्षक-प्रशिक्षकों को सझु ाव देना,
♦♦ शिक्षकों का मार्गदर्शन करना कि किस प्रकार की रिपोर्टिंग बच्चे की प्रगति के लिए उपयोगी
हो सकती है,
सी.सी.ई. उच्‍च प्राथमिक स्‍तर पर सामाजिक विज्ञान
♦♦ सतत और समग्र मलू ्यांकन को लागू करने के लिए शिक्षक, शिक्षक प्रशिक्षकों तथा
प्रशासकों के लिए एक मानक और व्यापक दिशा-निर्देश प्रदान करना।
'सतत शब्द इस पर महत्व (बल) देता है कि व्यक्तित्व के पहचान क्षेत्रों का मलू ्यांकन एक सतत 'प्रक्रिया' है न कि
अलग-थलग असंद्धित 'घटनाओ'ं का एक संयोजन,यह संपर्णू शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया के अभिन्न अगं के रूप में बनाया
गया है और एक शैक्षिक सत्र की परू ी अवधि में फैला हुआ है। दसू रा शब्द 'व्यापक' यह संकेत करता है कि यह शैक्षिक से
परे व्यक्तित्व के विभिन्न- पहलओ
ु ं को समझने का प्रयास करता है जैसे योग्यता, कौशल, गणु ों, रूचियों, व्यवहार, मलू ्यों,
बाहरी गतिविधियाँ इत्यादि। तीसरे शब्द 'मलू ्यांकन' का तात्पर्य है कि कुल प्रयास का उद्देश्य के वल छात्रों की उपलब्धि और
प्रवीणता के स्तर को मापना नहीं है अपितु निदान और उपाय संवंर्धन के माध्यम से सधु ार करना है।
एच.एस. श्रीवास्तव (2010), क्‍रीकुलॅम एवं मैथ्डस ऑफ टीचिंग, पृष्ठ -66

1.2 सी.सी.ई. का उपयोग क्यों करें?


शिक्षण और सीखने की प्रकिया के एक महत्वपर्णू तत्व आकलन को माप से परे अनदु श े ात्मतक
प्रक्रिया के दौरान किए जाने की आवश्यकता इसलिए है क्योंकि यह सीखने वालों को उनकी
प्रगति और उपलब्धियों को देखते हुए समाहित और उत्साहित करे गा, असफलता और हार को
देखते हुए। आकलन विद्यालय की सफलता के सचक ू ांक के रूप में नहीं माना जाना चाहिए,
अपितु यह उस सफलता का कारण होना चाहिए जहाँ इस का प्रयोग छात्रों की उपलब्धि को
बढ़ावा देने के उपकरण के रूप में हुआ है।
सीखने में सध
ु ार :
इस समय देश में सीखने में एक बड़ी समस्या विद्यालयों में छात्रों का निम्न प्रदर्शन स्तर है।
एन.सी.एफ.-2005 में प्रदर्शन स्तर को ऊपर उठाने के लिए शिक्षार्थी कें द्रित अनदु श े ात्मक
दृष्टिकोण पर ज़ोर दिया गया है। योजना कार्य द्वारा सतत मलू ्यांकन को धारण करना जैसे-कक्षा
कार्य, परियोजनाएँ तथा परीक्षण, जिससे छात्र विश्ले ।षण, उपयोग तथा समस्या सल ु झाने पर
ज्यादा ध्यान देंगे और इस के अतं र्गत छात्रों को परियोजनाएँ करनी होंगी जिस के द्वारा उन्हें स्वयं
सीखने में मदद मिलेगी। कक्षा परीक्षण तथा परियोजनाओ ं को विश्लेे षणात्मक कौशल पर ज़ोर
देने के अनसु ार नया स्वरूप देने पर छात्रों को उच्च स्तर पर दक्षताओ ं को प्राप्त करने में सहायता
मिलेगी। इसके प्रभाव से, सतत मलू ्यांकन प्रणाली जो अधिक छात्र कें द्रित प्रणाली है देश में
शैक्षिक प्रदर्शन के सामान्य स्तर को बढ़ा सकती हैं।
यह जानना कि छात्र क्या जानते हैं और क्या कर सकते हैं :
कोई भी शिक्षक अपने छात्रों को बेहतर समझना चाहेगा और यह जानना चाहेगा कि क्या छात्र
वह सीख रहे हैं जो उन्हें पढ़ाया जा रहा है। लगातार बातचीत द्वारा शिक्षकों को यह पता चलता 3
है कि क्या छात्र वह सीख रहे हैं जो पढ़ाया जा रहा है एवं उनकी ताकत और कमज़ोरियों का पता
चलता है। सी.सी.ई. शिक्षार्थियों के प्रदर्शन की परू ी श्रृंखला को दर्शाता है और उन्हें महारत के
उच्च स्तर को प्राप्त करने के लिए कड़ी मेहनत हेतु प्रेरित करता है। सीखने वालो (शिक्षार्थियों)
के पास विभिन्न क्षमतायें होती है तथा विविध मलू ्यांकन क्रियाएँ सभी को विभिन्न तरीकों द्वारा
यह दर्शाने का मौका देती है कि वे क्या जानते हैं।
उच्‍च प्राथमिक स्‍तर पर सामाजिक विज्ञान में सतत एवं समग्र मलू ्‍यांकन
कोई नहीं पिछड़ता :
लगातार सीखने वालों का अवलोकन करते रहने से शिक्षक यह जान सकते हैं कि वे (शिक्षार्थी)
क्या जानते हैं और क्या कर सकते हैं तथा सनिश्
ु चित कर सकते हैं कि कोई भी शिक्षार्थी विफल न
हो । प्रत्येक को सफल होने का मौका दिया जाता है और जो बच्चे पिछड़ रहे हैं उन पर अधिक
ध्यान दिया जाता है। सतत मलू ्यांकन प्रक्रिया से छात्र और शिक्षक के बीच सहयोग को बढ़ावा
मिलता है। छात्र अपने परियोजना कार्य के विभिन्न पहलओ ु ं हेतु अपने अध्यापक, सहपाठियों
तथा अन्य स्त्रोतों से परामर्श करना सीखता है तथा शिक्षक सीखने में और सधु ार हेतु मदद
प्रदान कर पाता है ।
शिक्षण–अधिगम प्रक्रिया में सध
ु ार :
कक्षा आकलन एक प्रतिपष्टि ु प्रदान करता है जो छात्रों के सीखने में और अध्यापकों को पढ़ाने
में सधु ार लाता है। उपलब्ध जानकारी से शिक्षण मे समस्याओ ं की जानकारी में सहायता मिलती
है और यह पता चलता है कि क्या विशेष विषय के लिए यह शिक्षण प्रभावी था तथा शिक्षण–
अधिगम गतिविधियों को संशोधित करने में मदद करता है। जब मलू ्यांकन और शिक्षा को
प्रभावी ढंग से अन्तग्रथित करते हैं तो अध्यापकों को समय रहते छात्रों की व्यक्तिगत सीखने की
आवश्यकताओ ं को परू ा करने में सहायता मिलती है। शै‍क्षणिक रणनीतियों में उन विद्यार्थियों के
लिए सधु ार हेतु गतिविधियाँ सम्मिलित हैं जो उम्मीद के स्तर तक कार्य नहीं कर रहे हैं अथवा
उन सवं र्धन गतिविधि‍यों का सृजन सम्मिलित है जो उन विद्यार्थियों हेतु हैं जो उम्मीद या उससे
अधिक कार्य कर रहे है।
सध
ु ार एवं सवं र्धन :
सतत मलू ्यांकन को एक नैदानिक उपकरण के रूप में शिक्षक एवं शिक्षार्थी दोनों द्वारा प्रयोग
किया जा सकता है, इसके द्वारा यह समझ सकते हैं कि किन क्षेत्रों में वे पिछड़ रहे हैं और क्या
सधु ारात्मक कदम उठाए जा सकते हैं। सटीक और वर्णनात्मक प्रतिपष्टि ु से शिक्षार्थी को बेहतर
सीखने में सहायता मिलती है और उन्हें अपने ज्ञान और कौशल को सीखने द्वारा बेहतर बनाने
में प्रोत्साहन मिलता है।
विविध शिक्षार्थियों पर ध्यान देना :
‘सर्व शिक्षा अभियान’ द्वारा विद्यालय जाने वाली उम्र के सभी बच्चों को विद्यालय जाने का
मौका मिला तथा एक कक्षा में सीखने वालों की क्षमताओ ं की भिन्नता भी अधिक हो गई।
‘नो डीटेन्शन पॉलिसी’ द्वारा सभी शिक्षाि‍र्थयों को विद्यालय में सफल होने पर ज़ोर दिया गया।
सी.सी.ई. विभिन्न स्तर पर सीखने और क्षमताओ ं वाले विद्यार्थियों की जरूरतों पर ध्यान देता
है। सतत मलू ्यांकन से अध्यापक को यह सहायता मिलती है कि वह सीखने वालों की जरूरत
4 के अनसु ार अपने पढ़ाने के तरीकों में बदलाव ला सके ताकि सभी को सीखने व सफल होने
का मौका मिले।
विद्यार्थियों एवं अभिभावकों को प्रतिपुष्टि :
शिक्षण के उद्देश्यों और सफलता के मापदण्ड को ध्यान में रखते हुए, छात्रों को विशिष्ट, वर्णनात्मक
और तत्काल प्रतिपष्टि ु प्रदान की जानी चाहिए कि उन्होंने क्या प्राप्त किया है और कहाँ सधु ार की
आवश्यकता है। अभिभावकों (माता-पिता) को भी यह जानने की आवश्यकता है कि क्या उनके
सी.सी.ई. उच्‍च प्राथमिक स्‍तर पर सामाजिक विज्ञान
बच्चे सीख रहे हैं और किन क्त्षे रों में उन्हें कठिनाई है। सी.सी.ई. के माध्यम से अध्यापक तथा छात्रों
और अभिभावकों के बीच सबं ंध मज़बतू बनते है। अभिभावक न के वल अपने बच्चों के स्तर के
बारे में जान पाते है अपितु यह भी जान पाते हैं कि किस प्रकार शिक्षक शि‍क्षार्थियों की कठिनाई दरू
करने में सहायता करेगा तथा किस प्रकार वे इसमें योगदान दे सकते हैं ।
मूल्यांकन :
लगातार सतत मलू ्यांकन के माध्यम से शैक्षणिक वर्ष के अतं में अध्यापक ़ शिक्षार्थियों की
समग्र प्रगति का मलू ्यांकन कर पाएगा। एक समय पर एक प्रकार के मलू ्यांकन अर्थात् कागज
पेंसिल परीक्षण पर निर्भर होने की अपेक्षा शिक्षार्थियों का अलग–अलग समय पर समहू ों में तथा
व्यक्तिगत रूप से मलू ्यांकन किया जा सकता है।
1.3. क्या मूल्यांकन किया जाए?
जब आकलन को सतत और एकीकृ त किया जाता है तो अक्सर शिक्षक आश्चर्य (सोचते)
करते है कि विभिन्न गतिविधियों के संचालन के साथ क्या देखा जाए अथवा मलू ्यांकन किया
जाए। मलू ्यांकन गतिविधियाँ शिक्षण उद्देश्यों के आधार पर बनाई जानी चाहिए और शिक्षक को
सीखने के परिणामों का आकलन करना चाहिए। विभिन्न कौशलों को जानने के लिए शिक्षक
को कई प्रकार की गतिविधियाँ डिजाइन करनी चाहिए।
सामाजिक विज्ञान में शिक्षार्थियों का आंकलन करने के लिए शिक्षक निम्नलिखित सचकू ों/
संकेतकों को ध्यान में रख सकते हैं। ये के वल विचारोत्तेजक हैं तथा न तो आदेशात्मक हैं और
न ही थकाने वाली हैं। सभी मलू ्यांंकन गतिविधियाँ ज़रूरी नहीं कि सभी संकेतकों सचक
ू ों को
दर्शाये/आकलन करें । गतिविधियों के संचालन के दौरान शिक्षकों को एक से अधिक संकेतकों/
सचक
ू ों का मलू ्यांकन करने का अवसर मिल सकता है।
तर्क करने की क्षमताः
‘ज्ञान’ का मलू ्यांकन करने के अतिरिक्त, जिस का अर्थ के वल सिद्धातों, पद्धतियों इत्यादि से
संबंधित तथ्यात्मक सचू ना को याद करने से है, क्रियाकलापों का उद्देश्य यह होना चाहिए कि
सीखने वाले ने अवधारणाओ ं को किस स्तर तक समझा है। सीखने वालों से यह अपेक्षा की
जाती है कि वे निहित मखु ्य विचारों को अपने शब्दों में स्पष्ट कर सकें , जानकारी से संबंधित
उदाहरण दे सकें एवं निष्कर्ष निकाल कर इसे विभिन्न सदं र्भों में लागू कर सके ।
उदाहरणः
(i) ऐसे तरीकों की सचू ी बनाएँ जिसके द्वारा आप अनभु व कर सकते हैं कि लोकतंत्र में समानता
के मद्ु दे पर विज्ञापन का प्रभाव पड़ता है।
(ii) नीचे दिए गए कथनों को सही क्रम में व्यवस्थित कीजिए - 5

1. स्वप्ना व्यापारी को रूई बेचती है।


2. ग्राहक इन कमीज़ों को सपु र बाजार से खरीदते हैं।
3. व्यापारी ओटाई चक्की को रूई बेचते हैं।
4. वस्त्र निर्यातक कमीज़ बनाने के लिए व्यापारी से कपड़ा खरीदते हैं।
5. सतू के सौदागर अथवा व्यापारी बनु करों को सतू देते हैं।
उच्‍च प्राथमिक स्‍तर पर सामाजिक विज्ञान में सतत एवं समग्र मलू ्‍यांकन
6. वस्त्र निर्यातक, संयुक्त राज्य अमेरिका के व्यवसायी को कमीज़ बेचते हैं।
7. कताई चक्कियाँ, रूई खरीदती हैं और सतू के सौदागर को सतू बेचती हैं।
8. बनु कर कपड़ा तैयार कर के लाते हैं।
9. ओटाई चक्की रूई को साफ़ करती हैं और उनके गट्ठे बनाती हैं।
(III). भकंू प- एक अध्ययन

क) भकंू प के पश्चात् समाचार पत्रों के मखु ्य समाचार के रूप में दिया गया ‘भकंू प- एक
के स अध्ययन’ को पढ़ें और इस घटित घटना को क्रमानसु ार श्रेणीबद्ध करें ।
ख) कल्पना करें कि यदि स्कूल समय के बीच में अचानक भकंू प आ जाए, तो आप
अपनी सरु क्षा के लिए कहाँ जाएँगे?
(IV) आप क्यों सोचते हैं कि कोलब्रुक बंगाल में भारतीय किसान की परिस्थितियों से
संबंधित था? संभावित कारणों को सझु ाएँ।
अनुभवों के बीच समानता व अंतर पहचानना
सीखने वालों का आंकलन उसके द्वारा विषय के मखु ्य विचारों को सही स्थिति की तल ु ना और
विषमता को विपरीत समय, संस्कृतियों और विश्व विचारों को समझने की उसकी क्षमता के
आधार पर होना चाहिए । उन्होंने कक्षा में जो भी सीखा है उसे पाठ्य पसु ्तकों से बाहर विभिन्न
सामग्रियों को समझते हुए जोड़ सकें और अपने अनभु वों के आधार पर उसकी व्याख्या कर
सकें ।
उदाहरण :
(i) आपके व्यस्क होने के अनभु व समाओ ं के बच्चों और किशोरों के अनभु व से किस
6
प्रकार भिन्न है? इन अनभु वों में वर्णित क्या कोई ऐसी बात है जिसे आप अपने बड़े होने के
अनभु व में सम्मिलित करना चाहेंगे?
(ii) कल्पना करें कि आप एक कं पनी के यवु ा अधिकारी हैं जो भारत में कुछ महीनों से है।
आप घर में अपनी माँ को पत्र लिखें जिस में आप अपनी विषयासक्त जिंदगी की व्याख्या करते
हुए ब्रिटेन में अपने पहले के जीवन से तलु ना करें ।

सी.सी.ई. उच्‍च प्राथमिक स्‍तर पर सामाजिक विज्ञान


(iii) नीचे दिए गए छायाचित्र को देख।ें इन दोनों चित्रों में आप क्या समानताऐ ं एवं अतं र
देखते हैं।

पक्की सड़क कच्ची सड़क


(iv) नीचे दिए गए चित्रों को देख।ें ये नदी द्वारा विविध निर्मित स्थलकृ तियाँ हैं। इन्हें पहचानिए
एवं ये भी बताइए कि ये नदी के अपरदन अथवा निक्षेपण अथवा दोनों का परिणाम हैं?

स्थितियों के विवरण से निष्कर्ष निकालना व अनुमान लगाना


सीखने वाले आख्‍यान वृतांत को समझ सके और स्थिति के अनमु ान व विवरणों से नि‍ष्कार्ष 7
निकाल सके ।
उदाहरण :
(i) आपके विचार मे ओमप्रकाश वाल्मीकि के साथ उसके शिक्षक ने असमानता का
व्यवहार क्यों किया था? अपने आपको ओमप्रकाश वाल्मीकि की जगह कल्पना करते
हुए लिखिए कि उक्त स्थिति में आप कै सा अनभु व करें गे?
उच्‍च प्राथमिक स्‍तर पर सामाजिक विज्ञान में सतत एवं समग्र मलू ्‍यांकन
(ii) एक बागान मालिक और एक किसान जिसे नील की खेती के लिए मज़बरू किया जा रहा
है, के बीच सवं ाद की कल्पना किजिए। किसान को मनाने के लिए बागान मालिक क्या
कारण बताएगा? किसान किन समस्याओ ं को प्रस्तुत करे गा
(iii) नीचे दिए गए चित्र को देख।े प्रत्येक व्यक्ति समाज के लिए एक सभं ाव्य ससं ाधन है।
मानव संसाधन के रूप में आपका योगदान क्या होगा?
मै पल
ु का
मैं अपने पोते-पोतियों को कहानी निर्माण करता हू।ँ
सनु ाती हू।ँ

मैं घर की देखभाल
मैं विवाह समारोह करती हू।ँ
में गाता हू।ँ

मैं कैं सर उपचार की औषधियों के लिए मैं किसान हू।ँ


शोध कर रही हू।ँ

दृश्य - सामग्री की व्याख्या करना


सीखने वालों के पास दृश्य सामग्री का अध्ययन करने के भी अवसर होने चाहिए। चित्रों,
तालिकाओ,ं रे खाचित्र, अनक्र ु म चार्ट, अखबार की कतरनों इत्यादि पर आधारित क्रियाकलाप
उनके व्याख्या करने की क्षमता व कारणों का आंकलन करने में सहायता करें गे।
उदाहरण:
(i) चित्र -1 में ओडिशा का एक जैन मठ दर्शाया गया है। यह दो मंजिला इमारत शैल सतह
को काट कर बनाई गई है।
चित्र – 2 में मध्य प्रदेश की भीमबेटका गफु ाएँ दर्शायी गई हैं। आप इन दोनों में क्या अतं र
देखते हैं?

Figure 1 Figure 2

सी.सी.ई. उच्‍च प्राथमिक स्‍तर पर सामाजिक विज्ञान


(ii) नीचे दिए गए चित्र को देखें जो संदु रपरु गाँव और इसके आस-पास क्षेत्र को दर्शाता है।
अब पता लगाएँ :
• नदी किस दिशा में बह रही हैं?
• डुमरी गाँव के पास से किस प्रकार की सड़क गज़ु रती है?
• किस प्रकार की रे लवे लाइन के पास संदु रपरु स्थित है?
• रे लवे पल
ु के किस तरफ पलु िस स्टेशन स्थित है ?
• निम्न लिखित रे लवे लाइन के किस तरफ स्थित हैं?
छतरी, गिरजाघर, तालाब, मस्जिद, नदी, डाक एवं टेलीग्राफ़ कार्यालय, कब्रिस्ताान

संदु रपरु गाँव एवं उसके आसपास के क्षेत्र

स्प्ष्टीकरण एवं तर्क सगं त तर्क


सीखने वालों का आकलन उनकी पर्याप्त सबतू ों एवं ठोस तर्कों की सहायता से अपने
विचारों को प्रभावी ढंग से समझाने की क्षमता के आधार पर किया जाता है। आकलन
गतिविधियों को विभिन्न घटनाओ ं के मध्य तार्किक सबं ंध समझने में उनकी सहायता करनी
चाहिए।
उदाहरण :
(i) क्या आप सोचते हैं कि के यर साबनु के विज्ञापन में बच्चे की देखभाल के लिए के वल माँ
की छवि का प्रयोग करना अनचि ु त है।
(ii) तलु सी एक कृ षि श्रमिक है। उसे अपने काम का बहुत कम भगु तान मिलता है। क्या आप
को लगता है कि उस जैसे कृ षि श्रमिकों को कम मज़दरू ी लेने के लिए मजबरू किया
जाता है? 9
(iii) क्या आप जानते हैं कि प्राथमिक विद्यालय में जाने वाले पचास प्रतिशत बच्चे तेरह
अथवा चौदह वर्ष के होने तक विद्यालय जाना छोड़ देते हैं। क्या आप इसके कुछ संभावित
कारणों को सोच सकते हैं?
(iv) क) जल हमारे लिए क्यों महत्वपर्णू है?
ख) घर में एवं विद्यालय में जल को सरंक्षित करने के कुछ उपाय सझु ाएँ।
उच्‍च प्राथमिक स्‍तर पर सामाजिक विज्ञान में सतत एवं समग्र मलू ्‍यांकन
समीक्षात्मक सोच
शिक्षार्थी का आकलन ऐसे क्रियाकलापों से होना चाहिए जो विभिन्न पाठ्य सामग्री में दी गई
जानकारी के साथ ही विभिन्नत मीडिया प्रारूपों जैसे टीवी एवं इटं रनेट का पनु : किया समावेश
व मलू ्यांकन करें । वे दसू रों के द्वारा दिए गए तर्कों का मलू ्यांकन कर सकें जो उन के तर्क , सबतू
एवं वैचारिक ज्ञान पर आधारित हो।
उदाहरण :
(i) देश के अधिकांश किसान गरीब हैं। आप के अनसु ार उन की स्थिति बदलने के लिए क्या
किया जा सकता है?
(ii) किन कारणों से आप को लगता है कि राजेन्द्र एवं महमदू गजनी की नीतियाँ उनके समय
का परिणाम थी ? इन दोनों शासकों की कार्यवाइयाँ किस प्रकार भिन्न थी?
(iii) निम्नलिखित कथन सही है अथवा गलत? यदि सही है तो कारण बताइए।
'भारत में गंगा-ब्रह्मपत्रु का मैदान अधिक जनसंख्या वाला क्षेत्र हैं।'
समानुभूति एवं कल्पना की क्षमता
मलू ्याकं न गतिविधियों से सीखने वालो के बयान करने के तरीके का आकलन करने में मदद
मिलनी चाहिए जिसमें उनके कार्य किसी घटना की स्थिति की जाचँ कर सके , किसी घटना को
विभिन्न एवं विरोधी दृष्टिकोण से समझ सकें तथा उनके सनु ने की क्षमता, पढ़ना एवं उन विभिन्न
दृष्टिकोणों को प्रभावी ढंग से बता सके जो उनके अनभु वों पर आधारित नही हैं।
उदाहरण :
(i) बाम्बे प्रेसीडेन्सी में 1829 तक भी अछूतों को सरकारी विद्यालयों में प्रवेश की अनमु ति
नहीं थी। जब उनमें से कुछ ने अपने अधिकारों के लिए ज़ोर लगाया तब उन्हें कक्षा के
बाहर बरामदे में बैठने की अनमु ति मिली जहाँ से वे के वल पढ़ाने वाले को सनु सकते थे
और वह कमरा ‘प्रदषि ू त’ नही होता था जहाँ उच्‍च जाति के लड़के पढ़ रहे होते थे।

10

क) कल्पना कीजिए कि आप विद्यालय के बरामदे में बैठे हुए विद्यार्थियों में से एक हैं
और पाठ को सनु रहे हैं। आपके मन में किस प्रकार के प्रश्न उठें गे?
सी.सी.ई. उच्‍च प्राथमिक स्‍तर पर सामाजिक विज्ञान
ख) कुछ व्यक्तियों ने सोचा कि यह स्थिति उससे बेहतर थी जहाँ अछूत लोगों के लिए
शिक्षा का पर्णू तया अभाव था। क्या आप इस विचार से सहमत होंगे?
(ii) क) सोचिए कि आप प्रागैतिहासिक काल में एक ऊँचे पठार पर रहते हैं जहाँ तेज पवन
चलती हैं। आप और आपके मित्र तेज़ पवन का उपयोग कै से करें गे? क्याें आप पवन
को एक संसाधन कह सकते हैं?
ख) अब कल्पना कीजिए कि आप वर्ष 2114 में उसी स्थान पर रह रहे हैं। क्या आप
पवन का कोई उपयोग कर सकतें हैं? कै से? क्या आप बता सकते हैं कि अब पवन
एक महत्वपर्णू ससं ाधन क्यों हैं?
नैतिक मूल्य/अभिवत्ृ ति‍‍याँ/सरोकार
बच्‍चों में नैतिक मल्‍य
ू ों को विकसित करने की अावश्‍यकता है जिसमें सभी की भलाई
है।मलू ्यांकन गतिविधियों काे शिक्षार्थी द्वारा प्राप्त भावनात्मक और संबंध परक कौशल पर
ध्यान कें द्रित करने की ज़रूरत है।
उदाहरण :
(i) परु ाने स्मारक स्थलों एवं भिन्न प्रकार से समर्थ व्यक्ति‍यों की जरूरतों
को समझते हुए आप सझु ाव दीजिए कि किस प्रकार इन स्मारकों को
उनके लिए सगु म बनाया जा सकता हैं?
(ii) अध्याय से लिया गया एक पद एवं उसमें पछू े गए प्रश्नों के विषय में
अपने विचार दें।
उस शाम बच्चों और उनके मित्रों ने परु ाने समाचार पत्रों, व्यर्थ वस्त्रों
तथा बाँस की टोकरियों की डण्डियों से लिफ़ाफे ़ और खरीदारी के
लिए थैले बनाए। मोना ने कहा, ‘‘हम इनमें से कुछ उन परिवारों को देंगे
जिन्हें हम जानते हैं’’। मसु ्तफ़ा ने कहा, ‘‘ कम से कम यह एक अच्छे
काम के लिए है’’। ‘‘अपने ससं ाधनों को बचाना और अपनी पृथ्वी को
सजीव रखना एक बहुत अच्छा कार्य है।’’
जेस्सी ने कहा, ‘‘मैं बहुत ही सतर्क रहूगँ ी कि कागज़ व्यर्थ न हो। उसने स्पष्ट
किया’’। अफसोस है कि ‘‘कागज बनाने के लिए बहुत से पेड़ों को काट दिया जाता हैं।’’
मसु ्तफ़ा ने जोर से कहा, ‘‘मैं ध्यान रखगँू ा कि मेरे घर में बिजली व्यर्थ न हो। ‘‘अपने ससं ाधनों
को बचाना और अपनी पृथ्वी को सजीव रखना यह एक बहुत अच्छा कार्य हैं।’’ ‘‘बिजली
पानी और कोयले से बनती है।’’ आशा ने कहा ‘’ मैं घर में यह सनिश् ु चित करूँगी कि पानी नष्ट
न हो’’। ‘‘पानी की प्रत्येक बदँू कीमती है।’’ बच्चे एक सरु में चिल्लाए ‘‘हम इकट्ठे (कुछ भिन्न 11
कर सकते हैं) परिवर्तन ला सकते हैं।’’ ये कुछ चीजें हैं जिन्हें मोना, राजू और उसके दोस्तों ने
किया। आपका क्या विचार है? आप ससं ाधनों को सरं क्षित करने के लिए क्या करेंग?े
1.4. मूल्यांकन कब हो ?
सतत मलू ्यांकन शिक्षक-शिक्षार्थियों में विचारों के आदान-प्रदान के रूप में स्कूल स्तर के दौरान
बार–बार होना चाहिए। जिससे शिक्षार्थी के कौशल, ज्ञान व समझ प्राप्त की सनिश् ु चिता की जा
उच्‍च प्राथमिक स्‍तर पर सामाजिक विज्ञान में सतत एवं समग्र मलू ्‍यांकन
सके । इसे शिक्षण–अधिगम प्रक्रिया में एकीकृ त किया जाना चाहिए। मलू ्यांकन के लिए प्रयोग
किए जाने वाले कार्य इस आधार पर होने चाहिए कि वे सीखने के उद्देश्यों को परू ा करें और वे
ठीक से कार्य तभी कर सकते हैं जब शिक्षण–अधि‍गम की प्रक्रिया में विद्यार्थियों को अपनी समझ
को बताने का अवसर मिले। मलू ्यांकन के सभी उपकरण जैसे चर्चा, बहस, क्विज गतिविधियों
का अवलोकन, लिखे गए कार्यों तथा परियोजनाओ ं का मलू ्यांकन आदि को शिक्षण प्रक्रिया में
इस प्रकार रचित किया जाना चाहिए कि वे छात्रों को अपनी समझ को व्यक्त‍ करने का अवसर
प्रदान करें । शिक्षकों द्वारा किए गए आकलन पर आधारित छात्रों को दी गई प्रतिपष्टि
ु (फ़ीडबैक)
भी निरंतर होनी चाहिए ताकि सधु ार कार्य साथ ही हो सके । हालांकि, माता–पिता को रिपोर्टिंग
के वल विशिष्ट अतं राल पर ही होनी चाहि‍ए जैसे सत्र के एक चौथाई भाग में।
1.5 आकलन कै से हो?
समय के साथ शिक्षक विभिन्न तरीकों से आकलन करते हैं जिससे वह विविध कार्यों का
निरीक्षण और संबंधित सचू ना एकत्र कर सकें कि विद्यार्थी कितना जानते, समझते और क्या
कर सकते हैं? यह सीखने को बढ़ावा देने (सीखने के लिए मलू ्यांकन) और यह देखने के लिए
क्या सीखा हुआ है (सीखने का मलू ्यांकन), इसे जानने के लिए इसका प्रयोग किया जा सकता
है। शिक्षण या सीखने में सधु ार के उद्देश्य के लिए एक बड़ी संख्या में मलू ्यांकन कौशलों को
शिक्षण प्रक्रिया में डाले जाने की आवश्यकता है। शिक्षकों को विभिन्न मलू ्यांकन कौशलों
और साधनों का प्रयोग करने में निपणु होना चाहिए जिस से उन्हें छात्रों की सोच को समझने में
सहायता व उन्हें यह प्रतिपष्टि
ु (फ़ीडबैक) मिले जो स्पष्ट रूप से छात्रों को यह जानने में सहायता
दे कि वे किस प्रकार अपनी सोच और प्रदर्शन में सधु ार ला सकते हैं, तथा शिक्षण मार्गदर्शन
में यह प्रतिक्रिया मिली कि छात्रों को क्या जानने की आवश्यकता है और वे कै से सीखते है ।
आकलन की रचना
आकलन की रचना इस प्रकार होनी चाहिए कि वह किसी प्रसंग/विषय से अपेक्षित विवि‍ध
सीखने के संकेतकों को प्रतिबिंबित करे । शिक्षक उन मलू ्यांकन परिणामों का सहारा ले सकता है
जो आत्म मलू ्यांकन, सहपाठी मलू ्यांकन और उनके स्वयं के मलू ्यांकन से प्राप्त होते है।
आत्म -मूल्यांकन:
छात्रों को स्वयं के सीखने की प्रगति को दर्शाने और निगरानी करने की जिम्‍मेदारी लेनी चाहिए।
एक बार जब छात्र सीखने के अपने महत्वपर्णू साक्ष्य एकत्र कर ले, तब यह आवश्यक है कि
वे अपनी सोच को दर्शाये, अर्थात आत्म - मलू ्यांकन और साथियों के मलू ्यांकन को मानक
के संदर्भ में देख।ें आत्म मलू ्यांकन द्वारा शिक्षार्थी को निरंतर अपनी समझ की समीक्षा और
12 सदृु ढ करने तथा साथियों के साथ काम करते हुए एक दसू रे की समझ की समीक्षा करने की
क्षमता मिलती है। यह छात्रों को स्वयं–निगरानी, स्वयं - मलू ्यांकन और आत्म - मलू ्यांकन द्वारा
मलू ्यांकन की प्रक्रिया में सक्रिय भागीदारी बनने में सहायता करता है। यह न के वल सीखने को
परू ी तरह समझने में शिक्षक की सहायता करता है अपितु यह छात्रों पर उसका आधिपत्य बढ़ाता
है व अविश्वास कम करता है।

सी.सी.ई. उच्‍च प्राथमिक स्‍तर पर सामाजिक विज्ञान


शिक्षार्थी यह बताने में सक्ष्‍ाम होना चाहिए:
♦♦ शक्तियाँ : किस क्षेत्र में आश्‍वस्त हूँ तथा तार्किक हूँ
♦♦ कठिनाइयाँ : किस क्षेत्र में आत्मविश्वास की कमी है
साथी मूल्यांकन :
(सामयिक) निर्धारित मानदंडों पर आधारित प्रभावी प्रतिपष्टि ु का लाभ दोनों छात्रों को होता है
जो प्रतिपष्टि
ु देते हैं और जो प्राप्त करते हैं । छात्रों को लिखने के लिए सिखाया जाना चाहिए :
♦♦ साथी की ताकत
♦♦ वे क्या सधु ार सकते हैं
शिक्षक मूल्यांकन :
शिक्षक के वल छात्रों की शक्तियों और कठिनाइयों का ही नहीं अपितु छात्रों को सीखने में सक्षम
करने के लिए उपयक्त ु उद्देश्यों, सहायक सामग्री व कौशलों का निर्माण करना चाहिए। शिक्षक
को समावेशी कक्षा में संभावित सीखने की भिन्नताओ ं और असमर्थताओ ं के विषय में सचेत
होना चाहिए। विद्यार्थियों की उपलब्धि की अपेक्षा सधु ार पर ज़ोर होना चाहिए। इस का अर्थ
यह है कि मलू ्यांकन को विकासशील होना चाहिए क्योंकि यह कठिनाइयों को पहचानने एवं
उन्हें दरू करने में मदद करने वाले कौशलों का पता लगाता है। शिक्षकों को ध्यान देना चाहिए :
♦♦छात्र की ताकत
♦♦जहाँ सधु ार की आवश्यकता है
♦♦कठिनाइयों को दरू करने के उपाय
मूल्यांकन के तरीके
शिक्षार्थियों को विभिन्न आकलन के कार्य यह जानने के लिए दिए जा सकते हैं कि वे क्या
जानते हैं और क्या कर सकते हैं। इससे शिक्षक को यह जानने में सहायता मिलती हैं कि क्या
सीखने के परिणाम प्राप्त हो गए हैं। विभिन्न नियत कार्यों और परीक्षण्‍ा के तरीकों से विद्यार्थियों
की क्षमताओ,ं रिर्पोट को प्रस्तुत करने की व्यवहारिक क्षमता, आंकड़ों का विश्ले षण इत्यादि
का सतत तथा वैध मलू ्यांकन होता है तथा अधिग्रहित दक्षताऐ ं किसी विषय में शिक्षार्थी के
प्रदर्शन का एक विश्व‍सनीय संकतेक है। तथ्यों को रटने की अपेक्षा आकलन के तरीके जिस
में विश्ले रषणात्मक सोच, समस्या को सल ु झाने के तरीके व अन्य दक्षताऐ ं सम्मिलित हैं, उनसे
विवेचनात्मक सोच और तार्किक तर्क क्षमता प्राप्त करने में सहायता मिलती है। यह ध्यान में
रखते हुए कि हमारे शिक्षार्थी विविधता से भरपरू हैं, हमारी अनदु श े ात्मक योजनाएँ तथा परिणाम
भी विविध होने चाहिए। शिक्षक को विभिन्न आकलन कार्यों तथा साधनों का अपेक्षित सीखने
के परिणामों के अनरू ु प उपयोग करने में कुशल होना चाहिए जैसे अवलोकन, समहू चर्चा, 13
बहस, मौखिक प्रश्न, क्विज़ (प्रश्नोत्तोरी), भमिक
ू ा निभाना, कार्य,परीक्षा के कागज़, परियोजनाएँ
इत्यादि।
मलू ्यांकन के कई रूपों को लचीले रूप में प्रयोग करने से सीखने को समझने में सहायता
मिलती है, इससे मलू ्यांकन और शिक्षा एकीकृ त, सीखने के समान अवसर सनिश् ु चित तथा
किसी एक प्रकार के माप में निहित पर्वा ू ग्रहों से रक्षा होती है। विभिन्न सीखने की कठिनाइयों
उच्‍च प्राथमिक स्‍तर पर सामाजिक विज्ञान में सतत एवं समग्र मलू ्‍यांकन
का आकलन और उन पर ध्यान देना सीखने की विभिन्न गति‍यों तथा भिन्न – भिन्न आकलन
के तरीकों का प्रयोग करके किया जा सकता है। यह शिक्षार्थियों की व्यक्तिगत विविधता को
पहचानता है और सीखने की दरों में अतं र को सहमति देता है।
मलू ्यांकन में प्रदर्शन अथवा सही उत्तर की अपेक्षा कड़ी मेहनत और प्रयास को महत्व देना
चाहिए। शिक्षकों को त्रुटियों और गलतियों को सामान्य सीखने का हिस्सा मानना चाहिए।
प्रदर्शन का आकलन:
प्रदर्शन का आकलन करते समय कभी-कभी प्रक्रिया को अधिक महत्व दे दिया जाता है,
उदाहरणतया वाद-विवाद, चर्चा,भमिक ू ा निभाना (रोल प्ले ) इत्यादि। प्रदर्शन विश्ले षण में के वल
याद मापने की अपेक्षा गहन विश्ले षण और सीखने को बढ़ावा मिलता है। प्रस्तुति, कला और
शिल्प इत्यादि तरीकों द्वारा मलू ्यांकन करते समय उत्पाद की गणु वत्ता का महत्व उसके निर्माण
की प्रक्रिया से अधिक होता है।
♦♦ मौखिक प्रस्तुतियाँ/बहस/भमिक ू ा निभाना/प्रश्नोत्‍तरी/कला एवं शिल्प/अन्य
लिखित उत्तरों का मूल्यांकन:
♦♦ नियत कार्य/परियोजनाएँ/पोस्टर/नारे /कॉपी/परीक्षण व अन्य
मौखिक सपं र्क का मूल्यांकन :
विद्यार्थियों का मलू ्यांकन निर्देश देने, छात्रों की समहू चर्चा के अवलोकन, वाद-विवाद आदि के
दौरान बातचीत के तरीके से उनसे प्रश्न पछू कर किया जा सकता है।
♦♦ मौखिक प्रस्तुतियाँ / समहू चर्चा/ वाद-विवाद / अन्य ।

14

सी.सी.ई. उच्‍च प्राथमिक स्‍तर पर सामाजिक विज्ञान


भाग 2

सामाजिक विज्ञान की कक्षा में


सतत और समग्र मूल्यांकन

आओ अब हम उच्च प्राथमिक स्तर पर विभिन्न सामाजिक विज्ञान विषय क्षेत्रों जैसे इतिहास,
भगू ोल तथा सामाजिक और राजनीतिक जीवन के शिक्षण – अधिगम उद्देश्यों के बारे में जानें।
इन सब विषयों से संबंधित विभिन्न क्रियाकलापों के लिए एक उदाहरण मलू ्यांकन प्रक्रिया
प्रदान की गई है जिसमें यह दर्शाया गया है कि इसे निर्देशों से कै से जोड़े और विद्यार्थियों की
वैचारिक समझ की जाँच के लिए योजनाबद्ध करते महत्वपर्णू शिक्षण उद्देश्‍यों को प्राप्त किया
जा सकता है।
इतिहास
इतिहास की पाठ्यपसु ्तकों में बहुत-से उन विषयों को सम्मिलित किया गया है जो भारत के
इतिहास के लिए महत्व‍पर्णू हैं। मोटे तौर पर यह वे विषय हैं जिन के बारे में विशेषज्ञ एवं शिक्षक 15
यह समझते हैं कि बच्चों को इन विषयों का पता होना चाहिए। लेकिन समान रूप से यह विषय
आम आदमी, औरत जैसे - शिकारी और कृ षक, शिल्पकार और व्यापारी के जीवन तथा
गतिविधियों पर ध्यान कें द्रित करते हैं। यह विषय के वल राजनीतिक घटनाओ ं के बारे में ही नहीं,
अपितु समाज में जो कुछ भी घटित होता है उन सबके बारे में भी होते हैं। भारत के समकालीन
इतिहास, समानता और असमानता, शिक्षा का महत्व और अन्य से संबंधित कई मद्ु दे जो इन
सामाजिक विज्ञान की कक्षा में सतत समग्र मलू ्यांकन
विषयों में दिए गए हैं वे सामाजिक और राजनीतिक जीवन की पाठ्यपसु ्तकों में भी अच्छे से
समाहित होते हैं। पाठ्यपसु ्तकों की विषय सामग्री को पढ़ाने और समझाने से पर्वू शिक्षक को
पहले यह जान लेना चाहिए कि इतिहास में छात्रों को क्या जानना चाहिए और क्या वे कर पायेंगे।
ऐतिहासिक साक्षरता के तीन महत्वपर्णू पहलू है:
1. ऐतिहासिक तथ्यों, विषयों और विचारों का ज्ञान
2. ऐतिहासिक तर्क -वितर्क , मनोविश्ले षण, संश्लेषण और ऐतिहासिक तथ्यों के मलू ्यांकन की योग्यता
3. सपं र्णू स्रोतागण के लिए ऐतिहासिक ज्ञान और तर्क का संचार
इतिहास सीखने वाले छात्रों में ऐतिहासिक तथ्यों को सीखने के साथ–साथ कुछ कौशलों को
जानना आवश्यक है जो सामान्यतया इतिहास के अध्ययन में प्रयक्त ु होते है। इस विषय को
पढ़ाने का कें द्रित कार्य छात्रों को अधिक संज्ञानात्मक, चनु ौ‍तीपर्णू और रोचक काम करने के
लिए प्रेरित करना है जिस में विषय सामग्री पर विचार करने के लिए इतिहास सबं ंधी सोचने के
कौशल सम्मिलित हैं।
भूगोल
भगू ोल प्राथमिक स्तर पर पर्यावरण अध्ययन के शिक्षण का एक भाग रहा है। पर्यावरण अध्ययन
समय, स्थान और समाज में जीवन की व्यापक अवधि की ओर बच्चे का ध्यान आकर्षित करता
है और इन्हें इस प्रकार आकर्षित तथा एकीकृ त करता है कि बच्चे अपने आसपास की दनिय ु ा
को समझ पाएँ। उच्च प्राथमिक स्त‍र पर छात्रों को भगू ोल की वे बनिय
ु ादी अवधारणायें बताई
जाती हैं जो उस दनिय
ु ा को समझने के लिए आवश्यक है जिस में वे रह रहे हैं। बच्चे सीखने का
अधिक आनंद लेते हैं जब वह उनके निजी जीवन से सबं ंधित होता है। उन्होंने जो प्राथमिक स्तर
पर अर्जित किया है वह उनके उच्च प्राथमिक स्तर पर आगे सीखने के लिए आधार प्रदान करता
है जब भगू ोल को एक अलग विषय के रूप में पढ़ाया जाता है।

16

सी.सी.ई. उच्‍च प्राथमिक स्‍तर पर सामाजिक विज्ञान


उच्च प्राथमिक स्तर पर भगू ोल के शिक्षण उद्देश्य हैं:
1. ज्ञान और समझ का अधिग्रहण (भगू ोल के अध्‍ययन से सबं ंधित
तथ्यों, Terms, विचारों, प्रक्रियाओ ं इत्यादि के संदर्भ में ज्ञान
अर्जित करना)।
2. ज्ञान का प्रयोग (ज्ञान को नई ज्ञान परिस्थितियों में प्रयोग करना,
परिवेश के साथ जोड़ना)।
3. कौशलों का विकास (उदाहरणतया नक्शे की व्याख्या करना)।
4. चरित्र निर्माण गणु एवं मल्‍य
ू (पर्यावरण के प्रति सवं ेदनशीलता,
लोगों तथा प्राकृ तिक और सांस्कृतिक पर्यावरण की ओर एक
सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित करना)।
सामाजिक और राजनीतिक जीवन:
उच्च प्राथमिक स्तर पर छात्रों को राजनीतिक, सामाजिक और
आर्थिक जीवन के विभिन्न पहलओ ु ं से परिचित कराना है। यह कुछ
महत्वपर्णू अवधारणाओ ं तथा ज्ञान जो भारतीय लोकतंत्र के कामकाज
को समझने के लिए आवश्यक है, उन पर प्रांरभिक ध्यान देकर किया
जा सकता है। यह अवधारणायें काल्पनिक आख्यान का उपयोग करते
हुए समझाई जा सकती है जिन के द्वारा बच्चे इन में और अपने दिन-
प्रतिदिन के अनभु वों के बीच तालमेल बना सकते है। आदर्शों और
संस्थाओ ं की वास्तविक कार्यशैली पर ध्यान कें न्द्रित करने से बच्चों
को उनके दिन-प्रतिदिन के जीवन के राजनीतिक और सामाजिक
पहलओ ु ं के बीच संबंध का ज्ञान होता है तथा आर्थिक निर्णय लेने में
इनके प्रभाव की भी जानकारी मिलती है।
उद्देश्य
♦♦ बच्चों को उनके दिन-प्रतिदिन के जीवन और पाठ्यपसु ्तक में
दिए गए मद्ु दों के बीच सबं ंध बनाने में सक्षम करना।
♦♦ उन्हें भारतीय संविधान के आदर्शों से आत्मसात करवाना।
♦♦ उन्हें भारतीय लोकतंत्र, उसकी ससं ्थाओ ं और प्रक्रियाओ ं के
कामकाज का वास्तविक अर्थ समझाना।
♦♦ राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक मद्ु दों के बीच अतं र–
संयुक्तता को समझने के लिए बच्चोंं को सक्षम करना। 17
♦♦ उन्हें दिए गए सभी मद्ु दों की जैंडर प्रकृ ति से पहचान करवाना।
♦♦ उनमें हाशिए पर होने की दृष्टि से राजनीतिक, सामाजिक और
आर्थिक विकास का विवेचनात्मक विश्ले् षण और व्याख्या करने
का कौशल विकसित करना।

सामाजिक विज्ञान की कक्षा में सतत समग्र मलू ्यांकन


♦♦ उन बातों की पहचान करवाना जिन में राजनीति उनके दैनिक जीवन को प्रभावित करती है।
2.1 इतिहास- मूल्यांकन गतिविधि का उदाहरण
किसी ऐतिहासिक स्थान का भ्रमण
किसी ऐतिहासिक स्मारक/स्थल भ्रमण का एक रोचक पहलू बच्चों को कक्षा की चारदीवारी
से बाहर लाकर उन्हें अपनी संस्कृति को स्वयं देखने, छूने और अनभु व करने का अवसर प्रदान
करना है। स्थलों का भ्रमण अतीत के साथ शामिल व उसे समझने का आनं दमय साधन है।
अधिगम उद्देश्य
♦♦ अवलोकन कौशल का विकास
♦♦ विभिन्न विषयों के अन्त: संबंधों की समझ के विकास में मदद
♦♦ हमारी सांस्कृतिक विविधता की विरासत के प्रति महत्ता को प्रोत्सहित करना
स्मृति कथा
यह गतिविधि बच्चों के एतिहासिक अन्वेषण कौशल के विकास के मलू ्यांकन हेतु काफ़ी अच्छी है। यह ऐसी विस्‍तृत गतिविधि है जिसे
सभी बच्चे कुछ न कुछ सफलता के साथ करने में सक्षम होंगे।

निम्नलिखित व्यावहारिक कदम किसी भी ऐसे भ्रमण को शिक्षकों और विद्यार्थियों के लिए एक


यादगार अनभु व बना सकते हैं।
तैयारी
किसी भी भ्रमण की सफलता के लिए पर्वाू पेक्षा तैयारी पहली आवश्यकता होती है। इसमे निहित है :
♦♦ अध्यापक द्वारा स्थान का प्रारंभिक निरीक्षण किया जाए। इस प्रारंभिक निरीक्षण के दौरान
शिक्षक उस ऐतिहासिक स्थल से जड़ु ी सारी व्यवहारिक सचू नाएँ (जैसे-प्रवेश शलु ्क,
खल ु ने व बंद होने का समय, फोटो लेने की अनमु ति, पीने के पानी की उपलब्धता, खाने
या स्नैक्‍स की व्यवस्था, स्मृति चिन्‍ह बेचने वाली दक ु ानें, आराम करने के लिए कमरे ,
प्राथमिक उपचार की सविध ु ा) इकट्ठा करे , और यह भी पता लगाए कि क्या सभी विद्यार्थी
को वहाँ एक साथ लाया जा सकता है, या उन्हें बाँटकर अलग-अलग समहू ों में लाना होगा।
♦♦ वास्तविक भ्रमण से पहले विद्यार्थी के साथ चनु े गए ऐतिहासिक स्थल के संबंध में चर्चा
करना बहुत जरूरी है। यह कार्य आकलन के साथ एक गतिविधि के रूप में किया जा
सकता है।
गतिविधि 1(क) : प्रश्न/उत्तर
18 इस गतिविधि में हम प्रश्नोंे के माध्यम से बच्चों में सामान्य अन्वेषण और शोध के कौशल
का मलू ्यांकन कर सकते है और साथ ही यह उन्हें भ्रमण के लिए तैयार कर सकते हैं। मान
लीजिए आपने यह निश्चित किया है कि आप बच्चों को कुतबु मीनार प्रागण भ्रमण पर ले जाएगं े।
(कुतबु मीनार एक उदाहरण के रूप में दिया गया है। अपने–अपने क्षेत्रों में शिक्षक अपने हिसाब
से किसी भी स्मारक का चनु ाव कर सकते हैं) आप कुतबु मीनार और इससे जड़ेु अन्य स्मारकों
(क्युवात-उल-इस्लाम की मस्जिद, ईमाम जमीन का मकबरा, लौह स्तंभ, अलाई दरवाजा व
सी.सी.ई. उच्‍च प्राथमिक स्‍तर पर सामाजिक विज्ञान
अलाई मीनार इत्यादि) और इसके वास्तुकलात्मक विशिष्टताओ ं (उदाहरण के लिए स्तंभ,
मेहराब) और मर्तिकल ू ा को दर्शाते चिन्ह अलग- अलग मेज़ों पर रख दीजिए। आप दृश्य - श्रव्य
प्रमाण का भी इसके लिए प्रयोग कर सकते है। जो विद्यार्थी इन प्रमाणों के साथ काम करना
चाहते है वे इन्हें सनु और देख सकते है। आपको यह ध्यान रखना होगा कि कक्षा में बच्चों ने इन
चित्रों पर पहले काम न किया हो। अब आप अपनी कक्षा को अलग–अलग समहू ों में बाँटकर
उन्हें अलग–अलग चित्र निम्नलिखित निर्देशों के साथ दे सकते हैं।
कार्य-1: चित्र/दृश्य-अभिलेखन के बारे में कम से कम 10 प्रश्न लिखें/बताए।ं चित्र के बारे में
आप जो भी जानना चाहते हैं उस पर आप प्रश्न लिख सकते हैं हालांकि विषय से हटकर पछू े गए
प्रश्न बेहतर होंगे। सबसे पहले इन प्रश्नों का प्रारूप तैयार कर लें और जब आपको लगे ये बिल्कुल
ठीक है तब आप उसे अच्छी तरह से लिख लें।
क्या आकलन करें?
कार्य-1 में बच्चों से चित्र की जाँच-पड़ताल और प्रश्न प्रस्तुत करने की अपेक्षा की जाती है। इस कार्य से हम बच्चे के निरीक्षण और
प्रश्न की क्षमता का आकलन कर सकते हैं।
प्रतिरूप प्रश्न :
चित्र में क्या दिखाया गया हैं?
दृश्य या श्रवण अभिलेखन में क्या दिखाया व बताया गया है?
इसे किसने बनवाया?
इसका निर्माण कब हुआ?
इसके निर्माण में कौन सी सामग्री का प्रयोग हुआ है और क्यों?
यह किस लिए थी?
इसे किसके लिए बनाया?
यह कितनी परु ानी है?
इसकी आकृ ति ऐसी क्यों हैं?
इस स्मारक में किस प्रकार की गतिविधियाँ चलती थीं?
इस स्मारक पर किस प्रकार का प्रारूप है?
क्या स्मारक एक अथवा कई शैलियों का प्रतिनिधित्व करती है?
कार्य 2: किन्हीं 3 प्रश्नों को चनु ें और उनका अपने अनसु ार बेहतर उत्तर लिखने का प्रयास
करें । प्रत्येक उत्तर के लिए आप जितना भी लिखना चाहते हैं लिखें। पहले आप इनका संभावित
ख़ाका तैयार कर लें और बाद में उसे अंतिम रूप दें (क्या एक प्रश्न के एक से अधिक सभं ावित
उत्तर हो सकते हैं अगर ऐसा हैं तो उन उत्तरों में से कौन-सा सबसे श्रेष्ठ उत्तर है?)
19
क्या आकलन करें?
कार्य 2: अधिक उन्नत कौशल से संबंधित हैं। यहाँ विद्यार्थियों से यह उम्मीद की गई कि वे लिखे गए प्रश्नों में से किन्हीं 3 का चनु ाव
कर उनका उत्तर लिखें। चयन की यह प्रक्रिया विद्यार्थी का आकलन करने में मदद करे गी। अब बच्चे वृतांत प्रश्न पछू सकते हैं
जैसे यह इमारत कितनी परु ानी है? इस स्मारक पर कितनी तरह की डिज़ाईन बनाई गई है? इसके निर्माण में कौन सी सामग्री का
इस्तेमाल हुआ है और क्यों? या वे कुछ कुछ बनिय
ु ादी सवाल कर सकते हैं जैसे चित्र में क्या दिखाया गया है? इसका निर्माण
सामाजिक विज्ञान की कक्षा में सतत समग्र मलू ्यांकन
किसने करवाया? यह किस लिए थी? विद्यार्थी जिस तरह के प्रश्न पछू रहे हैं उनसे आपको बच्चों के प्रश्न पछू ने और सोचने के
कौशल का आकलन करने में मदद मिलेगी। बनिय ु ादी प्रश्न यह संकेत देते हैं कि बच्चों ने के वल स्मारक के वास्तविक पक्ष पर
ही ध्यान दिया है हालाँकि वह स्मा‍रक के इस्तेमाल पर भी चर्चा कर रहे है। उनके प्रश्न यह व्यक्त करते है कि वे वास्तविक किंतु
बनिय
ु ादी ऐतिहासिक प्रश्न पछू सकते हैं। जबकि कुछ अन्य बच्चे तरह- तरह के प्रश्न पछू ने व उनके चनिं ु दा रोचक उत्तर देने में सक्षम
है। जो विद्यार्थी सिर्फ मल
ू भतू प्रश्न पछू ने तक सीमित है उनको अभ्यास के लिए इस तरह की और गतिविधियाँ दी जा सकती है।
एक बार बच्चे 3 प्रश्नों का चनु ाव कर लें और तब उनके उत्तर ज्ञात करे । ये विद्यार्थी अपने उत्तर प्राप्ति के लिए कक्षा में इस्तेमाल
होने वाली सामग्री पसु ्तकालय में अथवा इटं रनेट की सहायता से ढूँढ सकते हैं।
कार्य-3: अतं त: चित्रों के नाम लिखिए। ध्यान रहे ये चार शब्दों से अधिक नहीं होने चाहिए।
क्या आकलन करें?
कार्य 3: के तहत बच्चों से यह उम्मीद की गई है कि वे संबंधित स्मारक की महत्वपर्णू विशेषताओ ं को ध्यान में रखते हुए उन्हें नाम दें।
गतिविधि के अतं में हम परू ी कक्षा को एक साथ इकट्ठा करके प्रत्येक समहू को नाम रूप से शीर्षक में दी गई जानकारी के औचित्य
को साबित करने के लिए कहें । महत्वपर्णू विशेषताओ ं के चयन तथा उनकी प्रमाणिकता शिक्षकों को बच्चों की समझ, तार्किक
शक्ति, अभिव्यक्ति और लेखन कौशल का आकलन करने में मदद करे गी।
गतिविधि 1(ख): परियोजना कार्य (अंतर्विषयक)
अधिगम उदेश्य
♦♦ अवलोकन, जाँच-पड़ताल, रचनात्मकता, अभिव्यक्ति और सहयोग कौशल का विकास।
♦♦ विभिन्न अनश ु ासन के परस्पर सबं ंधों की समझ बनाने में सक्षम बनाना, और
♦♦ हमारे विविध पैतक ृ संस्कृति के प्रति प्रशसं ा की भावना को प्रोत्साहित करना।
कक्षा को विभिन्न विषय समहू ों (इतिहास, भगू ोल, साहित्य, विज्ञान, कला आदि में बाँट
कर उन्हें संबंधित स्थल के इतिहास और विरासत के विभिन्न पक्षों पर परियोजना बनाने को
कहा जा सकता है। प्रत्येक समहू के लिए सझु ाए गए काम -
♦♦ इतिहास समूहः यह समहू विभिन्न कालों के दौरान ऐतिहासिक स्थल के बारे में सचू ना
एकत्र कर सकता है जैसे स्मारक का निर्माण कब हुआ अथवा स्मारक से कौन सा
ऐतिहासिक व्यक्‍तित्व सबं ंधि‍त है, आदि
♦♦ भूगोल समूहः यह समहू एेतिहासिक स्थल की स्थिति और उसकी, विशेषताएँ, भौगोलिक
विशेष इमारतों के निर्माण में इस्तेमाल हुई सामग्री, सामग्रियों के प्राप्ति स्थलों के बारे में
सचू नाएँ एकत्र कर सकता है।
♦♦ भाषा समूहः यह समहू स्मारक से जड़ु े ऐतिहासिक व्यक्तित्व की जीवनी (साहित्य-काव्य
20 और नाट्य रूप में) का सृजन कर सकता है।
♦♦ कला समूहः इस समहू के लोग स्मारक में इस्तेमाल भित्ति चित्रें, विशेष कला-शैलियों के
प्रारूप/अलंकरण तथा इमारत से जड़ु े कला के अन्य रूपों जैसे- चित्रें, मर्ू त्तिकला, लकड़ी
की नक्काशी आदि के चित्र बना सकते हैं।
♦♦ गणित/वास्तुकला समूहः यह समहू स्मारक के आकार एवं विस्तार का रे खांकन,
पाईचार्ट और अन्य आँकड़ों का इस्तेमाल करते हुए स्मारक की एक दृश्य रूपरे खा प्रस्तुत
सी.सी.ई. उच्‍च प्राथमिक स्‍तर पर सामाजिक विज्ञान
कर सकता है अथवा एेतिहासिक स्थल का पैमाने पर आधारित एक मॉडल भी बना सकता
है। इसके अतिरिक्त यह समहू इमारत की एक उभरी/उठी हुई रूपरे खा बना सकता है, साथ
ही स्मारक की प्रमख
ु वास्तुकलात्मक विशेषताओ ं जैसे- मेहराब, खभं ों, कोष्ठकों तथा गंबु द
आदि का चित्रांकन कर उनको परिभाषित कर सकता है।
♦♦ विज्ञान समूहः यह समहू स्मारक के प्राकृ तिक परिवेश (वनस्पति और जीव) उसकी साफ़
- सफ़ाई तथा स्मारक को पर्यटन से होने वाले सभं ावित खतरे के बारे में लिख सकता है।
परियोजना कार्य के परू ा होने के बाद विभिन्न समहू अपने परियोजना कार्य का प्रस्तुतिकरण
और आपस में उस पर चर्चा कर सकते हैं। इससे विद्यार्थीयों की इस स्मारक के विविध पक्षों के
बारे में समझ तो बनेगी ही साथ ही उनमें विभिन्न विषयों के अंर्तसंबंधों की जानकारी भी होगी।
क्या आकलन करें?
परियोजना कार्य में उसके प्रस्तुतिकरण और उसके बाद होने वाली चर्चा के आधार पर शिक्षक बच्चों में अन्वेषण की क्षमता, जाँच-
पड़ताल, समझ, अभिव्यक्ति, रचनात्मक सहयोग और अनसु ंधान दक्षता जैसे कौशलों का आकलन कर सकते हैं।
नोटः
♦♦ भ्रमणपर्वू , भ्रमण के दौरान व भ्रमण के पश्चात् विद्यार्थियों के ज्ञान, दृष्टिकोण, कौशल व
व्यवहार में बदलाव को मापने के लिए विद्यार्थी गतिविधि शीट बना सकते हैं। स्मारक यात्रा
से संबंधित सभी सामग्रियाँ जैसे लिखने व रे खांकन में इस्तेमाल आने वाले कागज़, पैंसिल
और कै मरा आदि को इकट्ठा कर लें। अगर आपके पास (वीडियो) रिकार्डर है तो आप यात्रा
को दर्ज भी कर सकते हैं और एक दृश्य - श्रव्य वीडियो कार्यक्रम भी बनाया जा सकता हैं।
जिसे बाद में शिक्षार्थियों, अभिभावकों व अन्य लोगों को दिखाया जा सकता है।
♦♦ विद्यार्थियों को विभिन्न प्रकार की गतिविधियों के लिए तैयार करें जैसे-दर्शनीय स्थल/
स्मारक के बारे में कहानी और किंवदंतियाँ सनु ाना या इसका चित्र बनाना।
♦♦ भ्रमण के पश्चात विद्यार्थी से क्या काम करवाने हैं इसकी योजना बनाना।
♦♦ स्मारक के भ्रमण के पर्वू आप विद्यार्थियों से गतिविधि शीट भरवा सकते हैं -
स्मारक का नाम--------------------------------------------------------------------------
-------------------------------
विद्यार्थी का नाम-------------------------------------------------------------------------
-------------------------------
भ्रमण की तिथि---------------------------------------------------------------------------
-------------------------------
स्मारक से आपकी क्या आकांक्षाएँ हैं (जैसे आप इमारत/स्थल के बारे में क्या जानना और खोज
करना चाहते हैं आदि) -------------------------------------------------------------------- 21
----------------------------------------------------------
गतिविधि 2 : स्थल का भ्रमण
यह मनोरंजक गतिविधि शिक्षाप्रद और मलू ्यांकन संदर्भित दोनों ही बनाई जा सकती हैं। स्मारक
पहुचँ ने पर आप बच्चों को निम्नलिखित कार्य करने का सझु ाव दे सकते है -
♦♦ स्मारक के किसी हिस्से अथवा विशेषता जो आपको बहुत पसदं आया हो उसका चित्र बनाएँ।
सामाजिक विज्ञान की कक्षा में सतत समग्र मलू ्यांकन
♦♦ स्मारक के बारे में कुछ तथ्य व आँकड़ों का अभिलेखन जिनका आपको पता लगा हो।
♦♦ स्मारक और उसकी कलात्मक विशिष्टताओ ं की फोटो ले लें।
♦♦ साक्षात्कार ले सकते हैं (ये साक्षात्कार बच्चे आपस में ले सकते हैं अथवा स्मारक के
आस-पास रहने वालों से भी ले सकते हैं जिससे यह मालमू चल सके गा कि उनके लिए इस
स्मारक का क्या महत्व हैं)
♦♦श्रव्य या दृश्य सामग्री का निर्माण (इसकी व्यावहारिकता के बारे में अध्यापक निर्णय ले सकते हैं)
क्या आकलन करें?
यह गतिविधि बच्चों की अन्वेषण क्षमता, जाँच - पड़ताल, समझ, अभिव्यक्ति, रचनात्मकता, सहयोग तथा शोध कौशलों के आकलन
के लिए बहुत उपयोगी है।
गतिविधि 3: ऐतिहासिक स्थल के भ्रमण के बाद की गतिविधियाँ
भ्रमण से पहले की तैयारी की तरह भ्रमण के बाद की गतिविधियाँ भी उतनी ही महत्वपर्णू होती
है। ये एक तरह से बच्चों को अपने अनभु वों को आत्मसात करने तथा दसू रों के साथ अपने
अनभु वों को साझा करने का मौका देती हैं। इस तरह की गतिविधि को आकलन के साथ किया
जा सकता है।
कार्य 1: समूह चर्चा
बच्चों को निम्नलिखित मद्ु दों पर चर्चा करने के लिए कहा जा सकता है-
♦♦ क्या स्मारक के भ्रमण से आपकी जो अपेक्षाएँ थीं वे परू ी हुई चर्चा करें ।
♦♦ क्यों आपको लगता है कि यह स्मारक महत्वपर्णू है?
♦♦ आपने क्या देखा और जाना, आपको कौन सी चीज़ सबसे अच्छी व कौन सी चीज़ सबसे
कम अच्छी लगी?
♦♦ इस स्मारक को सरु क्षित रखते हुए यहाँ पर्यटन को कै से बढ़ावा दिया जा सकता है? इस
स्मारक को संभावित खतरों व उससे बचने के उपायों की जाँच - पड़ताल कीजिए।
कार्य 2: प्रदर्शनी
भ्रमण के दौरान बनाई गई रे खाकृ तियों के आधार पर विद्यार्थियों को बड़े चित्रों अथवा मर्तिय
ू ाँ
बनाने के लिए कहा जा सकता है। इन चित्रों, मर्ू त्तियों के साथ भ्रमण के दौरान ली गई तस्वीरों
को विकसित कर पर्याप्त शीर्षकों के साथ विद्यार्थियों को एक प्रदर्शनी का आयोजन करने
के लिए कहा जा सकता है। (इस प्रदर्शनी मे कुछ सर्वश्रेष्ठ चित्रों को चनु ने की जिम्मेदारी
विद्यार्थियों को ही दी जा सकती है तथा विजेताओ ं को प्रोत्साहन स्वरूप परु स्कार भी दिया जा
22 सकता है।) विद्यार्थियों द्वारा तैयार की गई दृश्य - श्रव्य को भी इसी तरीके से सांझा किया जा
सकता है।
कार्य 3: परियोजना कार्य
(i) ऐतिहासिक इमारतों और स्मारकों तक अलग तरह से सक्षम लोगों की अधिक से अधिक
पहुचँ हो सके इसके लिए कुछ तरीकों की सचू ी बनाए।

सी.सी.ई. उच्‍च प्राथमिक स्‍तर पर सामाजिक विज्ञान


(ii) विद्यार्थियों को भ्रमण के अनभु वों पर विद्यालय तथा किसी स्थानीय अथवा राष्ट्रीय
अख़बार में प्रकाशन के लिए एक रिपोर्ट लिखने के लिए या संबंधित स्थल के बारे में
सचू ना देने वाली पस्तिक
ु ा अथवा विज्ञापन तैयार करने के लिए कहा जा सकता है।

क्या आकलन करें?


सबं ंधित ऐतिहासिक स्थल के बारे में इकट्ठा की गई सामग्री और यात्रा के बाद विभिन्न मद्ु दों पर की गई चर्चा से शिक्षकों को विद्यार्थियों
में अन्वेषण, जाँच - पड़ताल और जिज्ञासा के कौशलों को आकलन करने में मदद मिलेगी। कार्य 2 जिसके तहत विद्यार्थियों को सबसे
अच्छे चित्र चनु ने हैं, उससे विद्यार्थियों को साथियों के चित्र, और दृश्य - श्रव्य सामग्री चनु ने में मदद मिलेगी और इस तरह से यह
गतिविधि उनमें तार्किक कौशल के विकास में सहायक होगी। कार्य 3 उन्हें अलग तरह से सक्षम और वृद्ध लोगों के प्रति संवेदनशील
बनाएगा। इस कार्य से शिक्षक विद्यार्थियों में लेखन रचनात्मकता, दृष्टिकोण, मलू ्यों और व्यावहारिक कौशल की समझ का आकलन
कर सकते हैं।

2.2 भूगोल-मूल्यांकन गतिविधि का उदाहरण-


विषय: पर्यावरण
मुख्य अवधारणाएँ
सातवीं कक्षा की भगू ोल की पाठ्य पसु ्तक (एन.सी.ई.आर.टी) का अध्याय 1 पर्यावरण की
अवधारणा तथा उसके घटक; कै से और क्यों हमारा पर्यावरण बदलता है, को समझने में
विद्यार्थियों की सहायता करता है। विद्यार्थी इनके बारे में समझते हैं -
1. पर्यावरण – प्रकृ ति और मानव
2. पारिस्थिति का तंत्र
अध्याय पर आधारित इस गतिविधि, क्रियाकलाप को करते हुए विद्यार्थियों की निरीक्षण करने
की क्षमता, समझ, गंभीर रूप से सोचना और उनकी समझ व्यक्त करने की क्षमता का मलू ्यांकन
किया जा सकता हैं।
प्रकिया :
आरंभिक चर्चा
अध्यापक पर्यावरण के विषय में एक चर्चा के साथ आरंभ कर सकते हैं जैसे विद्यार्थी अपने
घर अथवा विद्यालय के आस-पास किस प्रकार के परिवर्तनों के बारे में देखते हैं अथवा सनु ते
हैं? क्या उन्होंने पिछले एक वर्ष में किसी परिवर्तन को देखा है अथवा उनके बारे में सनु ा है?
बच्चों ने जो गौर किया होगा, उस पर कक्षा में चर्चा की जा सकती है। जब वे याद करके अपने
पिछले अनभु वों को प्रस्तुत करते हैं तब वे अपनी अवलोकन तथा अभिव्‍यक्ति की क्षमताओ ं का 23
प्रयोग करते हैं। लेकिन ऐसी भी सभं ावना हो सकती हैं कि आस पास कुछ उल्लेखनीय परिवर्तन
नहीं हुआ। ऐसी स्थिति में अध्यापक उन्हें थोड़ा पहले के समय के बारे में कल्पना करने में मदद
कर सकता हैं। उदाहरण के लिए उन के विद्यालय की इमारत का निर्माण दस वर्ष पर्वू हुआ। क्या
छात्र यह कल्पना कर सकते है कि दस वर्षों से पहले इस स्थान पर क्या रहा होगा? उनके उत्तर
उनकी कल्पना करने की क्षमता को प्रतिबिंबित करें गे।
सामाजिक विज्ञान की कक्षा में सतत समग्र मलू ्यांकन
प्रत्येक कक्षा में कुछ ऐसे विद्यार्थी होंगे जो सदैव उत्तर देने के लिए उत्सु‍क रहते है और
दसू री ओर ऐसे भी बहुत विद्यार्थी होंगे जो चपु रहना पसं द करते हैं। चपु रहने वालों की श्रेणी में
कुछ ऐसे भी होंगे:
♦♦ कुछ ऐसे विद्यार्थी है जो उत्तर जानते है किंतु फिर भी शांत बैठे रहते हैं।
♦♦ दसू रे ऐसे भी विद्यार्थी हैं जो प्रश्न को समझ/जान नहीं पाते और शांत बैठे रहते हैं।
शिक्षक को स्थिति का निरीक्षण करते हुए प्रत्येक छात्र को चर्चा में भाग लेने के लिए मदद
करनी चाहिए। चर्चा हेतु पछू े गए प्रश्न सामान्‍य प्रकार के हैं एवं छात्रों के आस-पास के पर्यावरण
से सबं ंधित हैं। अत: इनसे छात्रों की अध्याय में रूचि उत्पन्न होगी तथा उन्हें आगे सीखने में
सविध
ु ा होगी।
क्रियाकलाप : समानुदेशन (नियत कार्य)
कार्य 1: परिचयात्मक चर्चा के पश्चात छात्रों को एक आदर्श पर्यावरण जहाँ वे रहना चाहेंगे के
विषय में कल्पना करने को कहें। उन्हें उनके आदर्श पर्यावरण का चित्र बनाने अथवा
शब्दों में बयान करने के लिए कहें।
कार्य 2: जैविक और अजैविक तत्वों की विशेषताओ ं पर एक वि‍वरण तैयार करें व उल्लेख
करें , की क्यों यह तत्व उनके आदर्श पर्यावरण में सम्मिलित हैं।
कार्य 3: उनके द्वारा बनाए गए चित्रों/व्याख्यान में से ही छात्र 3 या 4 चित्रों/व्याख्यानों का चयन
आगे की चर्चा के लिए कर सकते हैं।
सीखने के उद्देश्य:
1. पर्यावरण की संकल्पना एवं उसके घटक प्राकृ तिक, मानव तथा मानव निर्मित को समझें।
2. जैविक और अजैविक तत्वों के बीच अतंर - संबंध को समझें।
कार्यविधि :
1. सभी विद्यार्थी अपनी कल्पना के अनसु ार एक आदर्श पर्यावरण का चित्र बनाऐगं े/उल्लेख
करें गे।
2. उनके बनाए गए चित्र के आधार पर उन्हें मौखिक रूप से उसे समझाने के लिए कहा जा
सकता है और उस पर कक्षा में चर्चा की जा सकती है।
क) उन के चित्र/कथन में कौन सा पारिस्थितिकी तंत्र दर्शाया गया हैं?
ख) उनके विचार से यह क्यों एक आदर्श पर्यावरण हैं?
ग) उनके चित्र/कथन में क्या जैविक व अजैविक तत्वों के बीच किसी प्रकार की एक
दसू रे पर निर्भरता है?
घ) कौन से कारक इनकी एक दसू रे पर निर्भरता दर्शाते हैं?
24 ड़) कौन से कारक इस आदर्श पर्यावरण को हानि पहुचँ ा सकते हैं?
क्या आकलन करें ? पर्यावरण एवं उसके विभिन्न घटकों की समझ का आंकलन
छात्रों द्वारा बनाए गए चित्रों/कथन और उन पर आधारित चर्चा कर सकता है। शिक्षार्थी का चित्र/कथन तथा प्रस्तुति उसकी
के आधार पर अध्यापक निम्नलिखित मलू ्यांकन कर सकते हैं: कल्पना और रचनात्मकता को प्रतिबिंबित करे गा । कुछ चित्रों
शिक्षार्थियों द्वारा बनाए गए चित्र/कथन (कार्य) से शिक्षक उनकी के चयन में प्रतिबिंबित करे गा । कुछ चित्रों के चयन में छात्रों की
सी.सी.ई. उच्‍च प्राथमिक स्‍तर पर सामाजिक विज्ञान
तर्क करने की क्षमता तथा तार्किक सोच का पता लगेगा तथा साथ साथ शिक्षक भी उनका मलू ्यांकन कर सकते हैं ।
साथियों द्वारा मलू ्यांकन का मौका प्रदान करे गा । कार्य 2 और ऐसा देखा गया है कि छात्र परू ी कक्षा के सामने अपना पक्ष नहीं
3 की सहायता से शिक्षक बायोटिक और अबयोटिक तत्वों का रख पाते तथा उन्हें छोटे समहू में बोलने में आसानी होती है ।
मलू ्यांकन कर सकें गे तथा छात्रों के तर्क और तर्क सगं त विचार ऐसे में शिक्षक इस प्रकार के समहू को प्रोत्साहन प्रदान कर सकते
का समर्थन करने वाले आवश्यक तत्वों के संबंध में पर्यावरण के हैं । इस प्रकार की गतिविधि से शिक्षक यह पता लगा सकते हैं
प्रति संवेदनशीलता उत्पन्न कर सकते है। जो बच्चे कला चित्र में कि छात्र कितना समझा तथा अध्याय के निहितार्थों में अपनी
रुचि नहीं लेते उन्हें शिक्षक संगठित कर आपसी वार्तालाप का कितनी समझ बना सका एवं अपने विचारों को बताने में कितना
अधिवेश्न आयोजित कर, विचार-विमर्श के दौरान मलू ्यांकन कर सक्षम है।
सकते है। इस चर्चा के दौरान छात्र अपनी सभी शंकाओ ं को दरू छात्र का मलू ्यांकन उनकी संकल्पना के बारे में समझ एवं उसे
कर अपनी विषय के बारे में समझ बना सकता है। इस प्रक्रिया अपनी दिन-प्रतिदिन के जीवन से साझा करने की क्षमता के
में छात्र अपने सहपाठियों का भी मलू ्यांकन कर सकते हैं । इस आधार पर की जा रही है।
तरीके से वे एक दसू रे को सही गलत का आभास करा सकते हैं ।
2.3 सा‍माजिक एवं राजनीतिक जीवन (राजनीति विज्ञान)- मूल्‍यांकन गतिविधि
का उदाहरण
विषय : ग्रामीण एवं नगरीय क्षेत्रों में स्थानीय निकाय
यह सामग्री उच्च व प्राथमिक स्तर पर सामाजिक विज्ञान के एक विषय क्षेत्र सामाजिक एवं
राजनीतिक विज्ञान के तत्व/पहलु (पहले नागरिक शास्त्र के रूप में ज्ञात) से सबं ंधित है।
स्थानीय निकायों के अध्ययन अध्यापन के तहत, ग्रामीण क्षेत्र की पंचायते और शहरी
क्षेत्रों की नगर पालिका का अध्ययन परू े भारत में उच्च प्राथमिक विद्यालयों में पढ़ाए जाने
वाले सामाजिक विज्ञान शिक्षा का एक महत्वपर्णू हिस्सा है। इसके अलावा यह विषय एन.सी.
एफ.-2005 के प्रथम सिद्धांत ‘ज्ञान को स्कूल के बाहर के जीवन से जोड़ने’ में भी महत्वपर्णू है।
नि: शलु ्क और अनिवार्य शिक्षा संबंधी बच्चों का अधिकार अधिनियम (आर.टी.ई.) 2009
गतिविधियों, खोजों एवं अन्वेषणों के माध्यम से सीखने का विशेष उल्लेख करता है, इसके साथ
ही यह अधि‍नियम बच्चों के ज्ञान की समझ और उसे प्रयोग में लाने की क्षमता का सतत एवं
समग्र मलू ्यांकन किए जाने की बात करता है । किसी भी मामले में शिक्षार्थियों द्वारा ज्ञान,कौशल,
आचार - व्यवहार का अर्जन तो एक सतत प्रक्रिया है। इस दृष्टिकोण से, यह सझु ाव दिया गया है
की स्थानीय निकायों का सतत एवं समग्र आधार पर मलू ्यांकन शिक्षण को और अधिक प्रभावी
तथा सीखने की प्रक्रिया को और सार्थक बनाने में मदद करे गा।
परियोजना आधारित सीखने के 7 ई मॉडल द्वारा मूल्यांकन
सात स्तरों की श्रृंखला 7 ई मॉडल के माध्यम से यहाँ आकलन को अध्ययन - अध्यापन की
25
प्रक्रिया के ही महत्त्वपर्णू हिस्से के रूप में प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है । ये स्तर एक
दसू रे से अगल नहीं है क्योंकि इनमें से कुछ साथ-साथ घटित हो सकते हैं। इसके अलावा,
अध्ययन-अध्यापन के माहौल की आवश्यकतानसु ार भी आप इसके अनक्र ु म को रख सकते
हैं। हमारे लिए यह निरंतर ध्यान रखना उपयोगी होगा कि लोकतांत्रिक शिक्षण शैली सीखने के
लोकतांत्रिक माहौल का निर्माण करे गी। इसके परिणामस्वरूप अध्ययन-अध्यापन की प्रक्रिया
में शिक्षार्थियों की भी सक्रिय भागीदारी होगी।
सामाजिक विज्ञान की कक्षा में सतत समग्र मलू ्यांकन
स्थानीय सरकारी निकाय

ग्रामीण स्‍थानीय निकाय नगरीय स्थानीय निकाय


जि़ला परिषद नगर निगम
ब्लॅाक पंचायत नगर परिषद
ग्राम पंचायत नगर पंचायत
स्थानीय ग्रामीण निकाय
जि़ला परिषद
ब्लॅाक पंचायत
ग्राम पंचायत
ग्राम सभा
नागरिक

स्थानीय शहरी निकाय

नगर पंचायत नगर परिषद नगर निगम


( ग्रामीण से नगरीय क्षेत्र में (छोटा नगरीय क्षेत्र) (बड़ा नगरीय क्षेत्र )
परिवर्तित होता क्षेत्र) नगर सभापति मेयर
अध्यक्ष
26
वार्ड वार्ड कॉर्पो रे टर
सभासद सभासद वार्ड
नागरिक नागरिक नागरिक

सी.सी.ई. उच्‍च प्राथमिक स्‍तर पर सामाजिक विज्ञान


1. प्रकाश में लाना : अपने इलाके के स्थानीय निकाय से संबंधित मद्ु दों के बारे में शिक्षार्थियों
के मौजदू ा ज्ञान का पता लगाए। उनसे इस बारे में पछि ू ए कि दिन-प्रतिदिन की जिं़दगी से जड़ेु
विभिन्न मद्ु दों और इस संबंध में स्था‍नीय निकाय की भमिक
ू ा के बारे में वे क्या सोचते हैं।
2. शामिल होना: विद्यार्थियों से उनके पीने के पानी की आपर्ति ू , सफाई, सार्वजनिक स्वास्थ्‍य
और सड़कों की हालत जैसे मद्ु दों के बारे में निम्‍नलिखित प्रश्न पछू ें । ऐसा करके आप उनमें इन
मद्ु दों के बारे में रूचि जाग्रत कर सकते हैं।
♦♦आपके इलाके में पीने के पानी की आपर्तिू कौन करता है?
♦♦आपके इलाके से कचरा एकत्र कौन करता है?
♦♦आपके इलाके में सार्वजनिक स्वास्‍थ्य के मामलों की देखभाल कौन करता है?
♦♦आपके इलाके में सड़कों का निर्माण कौन कराता है?
♦♦इन कार्यों के लिए कौन जिम्मेदार है?
♦♦इन मामलों के बारे में निर्णय कौन करता है? ये निर्णय कब, कहाँ और कै से लिए जाते है?
‘प्रकाश में लाने’ और ‘शामिल होने’ के चरणों द्वारा आपको विद्यार्थियों से उनके आस-पास के
बारे में उनके मौजदू ा ज्ञान का संकेत मिलेगा । विद्यार्थियों की बाद में हुई प्रगति का आकलन करने
में ये संवाद बहुत उपयोगी होंगे।
3. अन्वेषण : उपर्युक्त चर्चा से निकले कुछ चनिंु दा मद्ु दों पर काम करने के लिए आप कक्षा में
पाँच विद्यार्थियों के समहू ों का निर्माण कर सकते है। आप प्रत्येक समहू को भारतीय संविधान
की 11 वीं अथवा 12 वीं अनसु चू ी में वर्णित कुछ मद्ु दों पर परियोजना कार्य का सझु ाव दे सकते
हैं। ये कार्य पीने के पानी, सफाई, सार्वजनिक स्वास्‍थ्‍य, सार्वजनिक वितरण प्रणाली, बाजारों
और ऐसे ही अन्य मद्ु दों से संबंधित हो सकते है। यह स्पष्ट है कि इनमें से बहुत से मद्ु दे भौगोलिक
तथा आर्थिक प्रकृ ति के हैं। आप‍ विद्यार्थियों को स्थानीय संदर्भ में महत्वपर्णू मद्ु दों का चयन
करने की सलाह दे सकते हैं। आप विद्यार्थियों को अपने स्थानीय निकाय की भमिक ू ा के बारे
में पता लगाने को कह सकते है। प्रत्येक समहू को अपने परियोजना कार्य के लिए एक माह का
समय दिया जा सकता है। क्षेत्रकार्य (फील्डवर्क ) की वजह से यह परियोजना कार्य आवासीय
विद्यालयों की अपेक्षा दिन के स्कूलों में अधिक प्रभावी ढ़ंग से किए जा सकते है।
विद्यार्थियों को अपने घरों और स्कूल के आस पड़ोस को जानने – समझने; विभिन्न
स्थानीय मद्ु दों और अपने स्थानीय निकाय के इतिहास के विषय में परिवार के सदस्यों और
पड़ोसियों से पछू ताछ कर, जानकारी इकट्ठा करने और रिकार्ड करने का अवसर दीजिए ।
सझ
ु ाई गई गतिविधियाँ
♦♦ अपने इलाके का विशेषकर अपने घर, स्कूल और पंचायत/ नगर पालिका के कार्यालय का 27

अंकन करते हुए, एक मानचित्र बनाये।


♦♦ एक सप्ताह की अखबारों को पढ़े और अपने स्था‍नीय निकाय के मामलों के बारे में दी गई
ख़बरों को नोट करें । अख़बारों के जिला परिशिष्ट काफी विस्तार से स्थानीय ख़बरे देते हैं।
4. समझाना : विद्यार्थियों को इन अनभु वों से उनकी खदु की समझ का निर्माण करने दीजिए ।
उन्हें अपने सहपाठियों को यह समझाने दें कि उन्होंने अब तक क्या सीखा है।
सामाजिक विज्ञान की कक्षा में सतत समग्र मलू ्यांकन
अपने इलाके के स्थानीय निकाय के विशेष संदर्भ में स्थानीय निकायों की संरचना और
कार्यों का वर्णन और व्याख्या करें । यहाँ शक्ति, अधिकार, वैधता, न्याय, समानता, चनु ाव,
मताधिकार, भागीदारी, अधिकार क्षेत्र, विकें द्रीकरण, पारदर्शिता, जवाबदेही और ऐसी कुछ
अन्य महत्पूवर्ण राजनीतिक अवधारणाओ ं का परिचय दें। हालाँकि इनमें से कुछ अवधारणाएं
अमर्तू व जटिल हैं तथापि इन्हें संक्षेप में सरल शब्दों में समझाने का प्रयास किया जा सकता है।
परियोजना के दौरान नियमित अतं राल पर विद्यार्थियों को उपयोगी जानकारी दी जा सकती है कि
आगे और सीखने के लिए उन्हें क्या करने की आवश्यकता है।
5. विस्तार देना: विद्यार्थियों को अपने स्थानीय निकाय की कार्यप्रणाली की समझ का उपयोग
करते हुए कुछ अन्‍य मद्ु दों के संबंध में इसकी भमिक
ू ा को और पता करने दीजिए। एक तरफ
स्थानीय निकाय और जि़ला प्रशासन दसू री तरफ राज्य सरकार और कें द्र सरकार के बीच संबंधों
पर प्रकाश डालें। कें द्र सरकार और राज्य सरकार द्वारा वित्त पोषित कई योजनाएं जैसे राष्ट्रीय
ग्रामीण स्वास्थ्‍य मिशन और मध्यान्ह भोजन स्थानीय निकाय लागू कर रहे हैं।
आप स्थानीय निकाय द्वारा किए गए कार्य के बारे में विद्यार्थियों को संबोधित करने के लिए
अपने स्थापनीय निकाय के निर्वाचित प्रतिनिधियों तथा अन्य पदाधिकारियों को भी आमंत्रित
कर सकते हैं।
सझ
ु ाई गई गतिविधियाँ:
♦♦ अपने स्थानीय निकाय की विविध गतिविधियों के बारे में चार्ट तैयार करें तथा कक्षा में
प्रदर्शित करें ।
♦♦ अपने स्थानीय निकाय द्वारा कुछ चनिं ु दा मद्ु दों पर किए जा रहे कार्यों के बारे में प्रेस कतरनों
से कोलाज तैयार करें और उन्हें कक्षा में प्रदर्शित करें ।
♦♦ प्रेस कतरनों से कुछ चनिं
ु दा मद्ु दों पर संक्षिप्त रिपोर्ट तैयार करें और उन पर कक्षा में चर्चा करें ।
♦♦ अपने इलाके के महत्‍वपर्णू मद्ु दों पर ‘रोल प्ले’ का आयोजन करें ।
♦♦ बच्चों की परिषद का गठन करें ।
♦♦ अपने विद्यालय में ‘मॉडल पंचायत’/‘मॉडल नगरपालिका’ का आयोजन करें ।
♦♦ अपने निकाय के निर्वाचित प्रतिनिधियों और उनके सामाजिक–आ‍र्थिक स्तर के बारे में
पता करें ।
♦♦ अपने स्थानीय निकाय के कार्यालय जाकर उसकी कार्यप्रणाली को समझे तथा इस पर
अपनी टिप्पणियों को नोट करें ।
28
♦♦ निर्वाचित प्रतिनिधियों/कर्मचारियों (नियमित व अनबु ंध पर) का उनके काम के बारे में
साक्षात्कार करें ।
♦♦ पेयजल और स्वच्छता मत्ं रालय, स्वास्थ्‍य एवं परिवार कल्याण मत्ं रालय, मानव ससं ाधन
मत्ं रालय, पंचायती राज मत्ं रालय, शहरी विकास मत्ं रालय, तथा महिला एवं बाल विकास
जैसे-विभिन्न मत्ं रालयों के विविध कार्यक्रमों/परियोजनाओ ं को आपके इलाके में लागू
करने में स्थानीय निकाय की भमिक ू ा के बारे में पता कीजिए।
सी.सी.ई. उच्‍च प्राथमिक स्‍तर पर सामाजिक विज्ञान
सतत आकलन
अन्वेषण, समझाने और विस्तार में बताने के चरणों से आपको अधिगमकर्ता का सतत आकलन
करने के कई अवसर मिलेंगे और साथ ही नियमित रूप से उनकी प्रगति को जानने में मदद
मिलेगी। अवलोकन के माध्यम से आप विद्यार्थियों की अवधारणओ ं की समझ कक्षा में होने वाली
चर्चाओ,ं बहसों व रोल प्ले द्वारा उनके मौखिक संचार कौशल तथा संक्षिप्त रिर्पोटों द्वारा उनके
लिखित संचार कौशलों का आकलन कर सकते है।
6. मूल्यांंकन: प्रत्येक समहू ने जिन मद्ु दों पर काम किया है उस पर उसे एक संक्षिप्त परियोजना
रिपोर्ट तैयार करने तथा कक्षा में प्रस्तुतिकरण के लिए कहें । इस संबंध्‍ा में न के वल अंतिम रिपोर्ट
का बल्कि परियोजना करने की प्रक्रिया का भी मलू ्यांकन करें । समहू में किए गए परियोजना
कार्य का आकलन एक कठिन काम है। हालाँकि परियोजना करते हुए प्रत्येेक समहू का प्रदर्शन
देखा जा सकता है, उसका रिकार्ड रखा जा सकता है और यदि आवश्यक हो तो इसे वर्गीकृत
भी किया जा सकता है।
समग्र आकलन
आपको इस परियोजना से बच्चों का समग्र आकलन करने में मदद मिलेगी जैसे कि इस परियोजना
के तहत बहुत सारी गतिविधियाँ कक्षा के अदं र और विद्यालय के बाहर हो रही हैं जिस प्रक्रिया से
अधिगमकर्ता विभिन्न तरह के कौशल सीख रहे हैं। यह स्व आकलन और साथियों के आकलन
का अवसर भी प्रदान करता है। सी.सी.ई. के जरिए अपने आस-पड़ोस के मद्ु दों और इस दिशा में
स्थानीय निकाय द्वारा निर्वाहन की जा रही भमिक
ू ा के बारे में आप अपने तथा विद्यार्थियों के ज्ञान
को गहरा और विस्तृत कर सकते है।

7. विस्तार देना
नए परियोजना कार्य लिए जा सकते हैं ताकि इस परियोजना से हासिल ज्ञान का उपयोग अन्य
विषयों पर महारत हासिल करने में किया जा सके । विद्यार्थी अपने नए ज्ञान को अन्य संदर्भों में
भी लागू कर सकते है।

29

सामाजिक विज्ञान की कक्षा में सतत समग्र मलू ्यांकन


2.4 सामाजिक एवं राजनीतिक जीवन (अर्थशास्‍त्र) - मूल्‍यांकन गतिविधि का
उदाहरण
विषय : आजीविकाएँ
शिक्षण – अधिगम के उद्देश्‍य
♦♦ग्रामीण एवं नगरीय क्षेत्रों में लोगों द्वारा जीविकोपार्जन हेतु अपनाए जाने वाले विभिन्न तरीकों के
बारे में पता करना
♦♦आजीविका की विविधता को समझना तथा उनकी जीवन स्थितियों की तल ु ना करना
♦♦लोगों के काम की परिस्थितियों तथा उनके सामने आने वाली समस्याओ ं तथा चनु ौतियों का
विश्ले षण करना
♦♦यह जाँच करना कि क्या लोगों को जीविका के समान अवसर उपलब्ध है
शिक्षण-अधिगम की प्रक्रिया से आकलन को एकीकृ त करने के लिए शिक्षक द्वारा शरू
ु आत
एक गतिविधि से हो सकती है। इससे शिक्षक को, अधिगमकर्ता द्वारा अपने दैनिक जीवन तथा
आस-पास के परिवेश से, अर्जित ज्ञान को समझने में मदद मिलेगी।
तरीका:
कक्षा की शरू
ु आत में शिक्षक विद्यार्थियों से उनके आस-पास दिखने वाली तरह-तरह की
आजीविका क्रियाओ ं के बारे में उनकी समझ की जाँच करने के लिए प्रश्न पछू कर चर्चा को
आरं भ कर सकते है।

30 ♦♦उपरोक्‍त चित्र में लोगों द्वारा किए गए विभिन्‍न कार्यों की व्‍याख्‍या कीजिए।
♦♦खेती से संबंधित विभिन्‍न कार्यों को चिन्हित कर एक सचू ी बनाए और तालिका में दर्शाए।
♦♦ग्रामीण क्षेत्रों के लोगो द्वारा किए जाने वाले विभिन्‍न कार्य के चित्र बनाए एवं उसकी व्‍याख्‍या करें ।
गतिविधि1
चर्चा : विद्यार्थी अपने दैनिक परिवेश और अनभु वों से अर्जित बहुत सारा ज्ञान लेकर आते है।
चर्चा की शरू
ु आत में शिक्षक विद्यार्थियों को उन विभिन्न तरह के कार्यों, जिससे वे परिचित
सी.सी.ई. उच्‍च प्राथमिक स्‍तर पर सामाजिक विज्ञान
हैं, के बारे में बोलने का अवसर दे सकते है। मीडिया तथा अख़बारों के माध्यमों से उन्हें जिन
आजीविका के साधनों के बारे में पता चला है, उस पर उन्हें बोलने के लिए प्रोत्साहित करें । इस
संबंध में उनकी समझ की जाँच के लिए निम्नलिखित प्रश्न पछू े जा सकते हैं –
♦♦आपके आस-पास के लोग किन विभिन्न प्रकार के कार्यों में लगे हैं?
♦♦अखबार/ मीडिया में आपने किन अन्य आजीविका गतिविधियों के बारे में पढ़ा अथवा सनु ा है?
♦♦क्या आप बता सकते हैं कि आप अपने क्षेत्र में इस तरह की गतिविधि क्यों नहीं देख पाते हैं?
♦♦आपके क्षेत्र में लोग इस तरह के कार्यों में क्यों संलग्न हैं?
♦♦जिस तरह के कार्य में वे संलग्न हैं क्या उसका उनके रहने के स्थान से कोई संबंध है?
♦♦क्या इसका संबंध उन के शैक्षिक स्तर या उसके लिंग/जाति भेद से है।
गतिविधि 2:
कार्य : उपर्युक्त चर्चा को आगे बढ़ाते हुए बच्चों को विभिन्न प्रकार की आजीविका के साधनों
के बारे में लिखने के लिए कहा जा सकता है।

क्या आकलन करें ?


इन विषयों पर चर्चा से शिक्षक को विद्यार्थियों द्वारा बाहरी दनिय
ु ा से अर्जित समझ को जानने
और इस समझ पर पछू ताछ करने में मदद मिलती है। दसू री गतिविधि की समाप्ति के बाद बच्चों
के लेखन कार्य को आपस में वितरित किया जा सकता है और इस तरह वे एक दसू रे के कार्यों
का आकलन कर सकते है। लेखन कार्य पर अधिगमकर्ता से टिप्पणी करने के लिए कहा जाना
चाहिए और इस कार्य को और सधु ारने के लिए, इसमें और क्या शामिल किया जा सकता है
इस विषय पर पछ ू ना चाहिए।
शिक्षक विद्यार्थियों द्वारा वास्तविक जीवन के अनभु वों के साथ संबंध बनाने की कला
और लोगों के काम की परिस्थितियों के कारण आजीविका में मतभेदों को प्रभावी ढंग से प्रस्तुत
करने के कौशल का आकलन कर सकते है। शिक्षक विद्यार्थियों के पर्याप्त सबतू और तर्क के
साथ प्रभावी ढंग से अपनी दलीलों को प्रस्तुत करने की क्षमता का भी आकलन कर सकते है।
सहानभु ति
ू के लिए अधिगमकर्ता की क्षमता का आकलन, उसकी (अधिगमकर्ता) सनु ने, पढ़ने
और (इस दृष्टि) बात करने की योग्यता जो किसी एक अनभु वों पर आधारित नहीं है, को देख
कर किया जा सकता है।

गतिविधि 3:
चर्चा : ऐसे भिन्न-भिन्न कार्यों की पहचान करें जिनका संबंध खेती से है और जिनका संबंध 31
खेती से नहीं है। ग्रामीण क्षेत्रों में खेती एक प्रमख
ु गतिविधि है। यहाँ पर भी एक संक्षिप्त चर्चा
करने से विद्यार्थियों को यह जानने में मदद मिलेगी कि उनसे क्या अपेक्षित है। इसके लिए शिक्षक
निम्नलिखित प्रश्न उठाते हुए चर्चा की शरू ु आत कर सकते है-
♦♦अगर आप खेती के काम में लगे हुए हैं तो आप इसकी शरू
ु आत कै से करें गे ? और फिर किन
गतिविधियों के माध्यम से आप आगे बढेंगे ?

सामाजिक विज्ञान की कक्षा में सतत समग्र मलू ्यांकन


♦♦क्या‍हर तरह के कृ षि उत्पादों के लिए आपको एक ही प्रकार के कौशल की आवश्यकता होगी?
♦♦आपको इस तरह की क्रियाओ ं को करने के लिए किस प्रकार के कौशल की आवश्यकता होगी ?
♦♦ऐसी और कौन सी संबंधित गतिविधियाँ हैं, जिसमें लोग लगे हुए हैं?
♦♦क्या आप गेहू/ँ धान/मक्का /नारियल/रबर/कॉफी की खेती में शामिल गतिविधियों में कोई अन्य
अतं र पाते हैं ?
♦♦क्या उन्हें भिन्न समय अवधि/जलवायु परिस्थितियों/भिन्न किस्म की मिटटी/कौशल की
आवश्यकता होती हैं?
♦♦वे कौन सी समस्याएं हैं जो खेती को प्रभावित करती हैं? क्या खेती को शारीरि‍क अथवा मानवीय
समस्याएं अधिक प्रभावित करती हैं?
विद्यार्थियों को उत्तर प्रदान करने के बजाय शिक्षक थोड़ी और पछू ताछ कर विद्यार्थियों को
स्वयं उत्तर खोजने में सक्षम बना सकते हैं। विद्यार्थियों द्वारा सामग्री का पता लगाने और अपने
अनभु वों से अर्थ निर्माण के लिए अधिक समय और प्रयास की आवश्यकता होती है।
गतिविधि 4 : तालिका की रचना
चित्र को देखते हुए कृ षि से जड़ेु हुए और न जड़ेु हुए विभिन्न कार्यों की सचू ी एक तालिका के
रूप में बनाएँ। शिक्षक कृ षि से जडु े़ विभिन्‍न गतिविधियों की चर्चा कर सकते हैं। बच्‍चों को उन
कार्यों के विषय में बोलने के अवसर प्रदान करें जो चित्र में नहीं हो। चर्चा के पश्चात जब कृ षि से
जड़ी
ु सभी गतिविधियों का उल्लेख किया जा चक ु ा हो तब बच्चोंे को उन सब गतिविधियों को
तालिका में डालने के लिए कहा जा सकता है और उनके समझ के स्तर को जाना जा सकता है।
क्या आकलन करें ?
जब विद्यार्थी एक दसू रे के सामने अथवा परू ी कक्षा के सामने अपने उत्तरों को सही ठहराने का
प्रयास करते हैं, तब शिक्षक को एक अवसर मिलता है जिसमें वह विद्यार्थियों की कृ षि से सबं ंधित
अवधारणाओ ं तथा समझ की गणु वत्ता का आकलन कर सकते है।
गतिविधि-3 के अंतिम-2 प्रश्नो अतं : विषयी प्रकृ ति के हैं तथा अध्यापक उन का प्रयोग
विभिन्न प्रकार की कृ षि, कृ षि पर भौगेलिक कारकों का प्रभाव; किस प्रकार वह पर्यावरण द्वारा
प्रभावित होते हैं तथा कृ षि से जड़ीु समस्याऐ ं जो मानव निर्मित तथा प्राकृ तिक हो सकती है
उनके विषय में विद्यार्थियों की समझ का आकलन करने में कर सकता है।
गतिविधि-4 के द्वारा शिक्षक सचू नाओ ं के विविध हिस्सों को एक साथ जोड़ने, उसे क्रमानसु ार
व्यवस्थित करने तथा गतिविधियों को संक्षिप्त रूप में प्रस्तुत करने की विद्यार्थियों की क्षमता
का आकलन कर सकते है। तालिका का स्व आकलन यदि वे पाठ्यपसु ्तक पढ़ने के बाद करें
तो वे स्वयं उसमें सधु ार करने में सक्षम होंगे। शिक्षक विद्यार्थियों के ज्ञान के स्तर को जानने के
32
लिए तथा अन्य विद्यार्थियों को उत्तर को विस्तारपर्वकू बताने को कहकर विद्यार्थियों की गलत
धारणाओ ं को दरू करने के लिए भी हस्तक्षेप कर सकते हैं।
गतिविधि 5:
विद्यार्थियों को उन कार्यों के कुछ चित्र बनाने को कहें जिसमें उन्होंने ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को
लगे देखा है। साथ ही उन्हें इन कार्यों का विवरण देते हुए इन पर कुछ वाक्य लिखने को कहें।
सी.सी.ई. उच्‍च प्राथमिक स्‍तर पर सामाजिक विज्ञान
उन्हें इन कार्यों में लगे लोगों के चित्र तथा विवरण से शिक्षक को यह जानने में मदद मिल सकती
है कि प्रत्येक विद्यार्थी क्या करने में सक्षम है और उनकी समझ का स्तर क्या है।
क्या आकलन करें ?
विद्यार्थी, जो लिखने में बहुत कुशल नहीं हैं वे अपने विचारों को रे खाचित्रों के माध्यम
से सामने रख सकते है जिन के माध्यम से शिक्षक उनकी समझ के स्तर का आकलन कर
सकता है। प्रत्येक गतिविधि के विवरण द्वारा विद्यार्थियों को अपने लिखने के कौशल को
बढ़ाने में सहायता मिलेगी। पढ़ाने के समय करवाई गई इस गतिविधि के द्वारा शिक्षक को यह
जानने में सहायता मिलेगी कि विभिन्न प्रकार की आजीविकाओ ं के विषय में विद्यार्थियों ने
किस स्तर तक समझ आर्जित की है; इन आजीविकाओ ं के विषय में उनके स्वयं के अनभु वों
से क्या समझ बनी है तथा इसे चित्रों एवं लिखित रूप में व्यक्त करने में वे कितने सक्षम हैं।

यह उदाहरणार्थ सामग्री शिक्षण अधिगम प्रक्रिया के दौरान उद्देश्‍यों की प्राप्‍ति में सहायक
होगीा इससे शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में मदद मिलेगी।

33

सामाजिक विज्ञान की कक्षा में सतत समग्र मलू ्यांकन


भाग 3

सतत एवं व्यापक मूल्यांकन को लागू किए जाने


के महत्वपूर्ण तत्व
3.1 आकलन योजना बनाना
इस खण्ड के तहत आकलन योजना कै से बनाई जाए कि उसमें शिक्षकों को निश्चित सफलता
मिले पर चर्चा की जाएगी। शिक्षक विषय निर्देशों से पहले प्रत्येक अध्याय के लिए एक
आकलन योजना तैयार कर सकते हैं। इसमें शिक्षक द्वारा विद्यार्थियों के अधिगम को मापने में
प्रयोग किए गए औपचारिक व अनौपचारिक आकलन का वर्णन शामिल है, जो विद्यार्थियों
की विषय संबंधी समझ, कौशल और किस प्रकार की प्रतिपष्टी ु प्रदान की जाए को दर्शाएगा।
इसमें विशेष शैक्षिक आवश्यकता वाले विद्यार्थियों के लिए प्रस्तावित योजना और वे कै से
इनकी आवश्यकताओ ं की पर्ति ू करें गी का भी वर्णन किया जा सकता है । यहां आकलन योजना
के मखु ्यत: चरणों की चर्चा के साथ साथ सभी सामाजिक विज्ञान विषयों में आर्दश आकलन
योजना की चर्चा की गई हैं।
ज़रूरत है सतत परीक्षण से सतत आकलन की ओर बढ़ने की
पद 1: प्रत्येक इकाई जिसे आप कक्षा में पढ़ाने जा रहे हैं उसके अधिगम उद्देश्य/ संभावित
अधिगम निष्कर्ष की सचू ी तैयार करें ।
पद 2: उन गतिविधियों अथवा कार्यों को ज्ञात किजिए जो आपको अधिगम उद्देश्यों को प्राप्त
करने के स्तर का प्रमाण दें। ऐसे साक्षों की सचू ी तैयार करें जो गतिविधियों/कार्यों को
संचालित करने के दौरान आकलन को विश्वसनीय व वैद्य बनाने के लिए आपको
इक्कठे करने है।
पद 3: शिक्षण-आकलन-अधिगम प्रक्रिया की योजना में समय प्रबंधन एक महत्वपर्णू भमिक ू ा
निभाता है। शिक्षक किसी विषय को गतिविधियों सहित पढ़ाए जाने में लगने वाले
समय के हिसाब से योजना बना सकते हैं। योजना बनाते समय वे उपचारी/सवं र्धन में
लगने वाले समय का भी ध्यान रख सकते हैं। मलू ्यांकन कार्य की योजना इस तरह
बनाई जानी चाहिए कि उससे अध्यापन में अवरोध न हो, बल्कि इससे अध्ययन
अध्यापन प्रक्रिया में निरंतर प्रतिपष्टि
ु हो।
पद 4: प्रयोजित मलू ्यांकन कार्य की समीक्षा करें और पता लगाये कि क्या आप सीखने के
सभी संभावित परिणामों और आकलन करने में सक्षम हैं।
पद 5 : सचू ी के आधार पर इकट्ठे किए जाने वाले सबतू ों को उचित तरीके से इकट्ठा करें व
उनको प्रत्येक विद्यार्थी के पोर्टफोलियों में आत्म मलू ्यांकन रिपोर्ट के साथ जगह दें।
पद 6 : एक विस्तृत आलेख पत्र तैयार करें जो सभं ावित सीखने के परिणामों और स्तर का
स्पष्ट संकेत प्रदान करें व शिक्षण अधिगम प्रकिया के दौरान की गई टिप्पणीयों और
इकट्ठे किए गए प्रमाणों के आधार के तरीके सझु ाए। यह सब विद्यार्थियों के साथ और
प्रत्येक तिमाही के अतं में माता-पिता/अभिभावकों के पोर्टफोलियो के साथ सांझा
किया जाना चाहिए।
3.2 आकलन योजना
विषय-वस्तु/प्रसगं
आकलन को एकीकृ त करके अध्यापन के साथ जोड़ने की आवश्यकता है। अगर यह कार्यों
अथवा प्रश्नों पर आधारित है तो यह सीखने को बढ़ावा नहीं देता, साथ ही निर्देशों के मखु ्य लक्ष्य
से भी भटकता ह।ै यदि यह विद्यार्थियों को उन वस्तुओ/ं विषयों को सीखने में आपेक्षित रूप से
व्यस्त न कर सके , तो यह निरर्थक ह।ै इसलिए, आकलन योजना किसी विषय - वस्तु ़ के सीखने
प्रसगं पर कें द्रित होना चाहिए। शिक्षक को विषय-क्षेत्र स्तर और विषय-वस्तु के सीखने के अनक्र
ु म
के बारे में ज्ञान होना आवश्यक है जिससे वह विद्यार्थियों को सीखने की प्रक्रिया में तय स्तर तक 35
पहुचँ ने में मदद कर सके , साथ ही वह उनकी प्रगति के लिए उपचारात्मक उपायों को जान सके ।
आकलन योजना में अधिगम का उद्शदे ्य, ज्ञान और उसकी रूपरे खा विद्यार्थियों की वैचारिक
सकं ल्पनात्मक समझ को जाँचने वाली और लक्ष्य प्राप्ति के उद्देश्‍यों को परिलक्षित करने वाली
होनी चाहिए। आकलन की रणनीति के के न्द्रीय विचारों में विद्यार्थी की वैचारिक संकलपनात्मक
समझ, चनु ौतियों को हल करने की क्षमताएँ और तर्क सत्रू बद्धता के विकास की ओर होनी चाहिए।
सतत एवं व्यापक मलू ्यांकन को लागू किए जाने के महत्वपरू ्ण तत्व
उदाहरणार्थ
विषय-वस्तु/प्रसगं
अधिगम के उद्देश्य सझ
ु ाई गई आकलन गतिविधियाँ क्षमताएँ आकलन कै से किया जाए
निष्कार्ष/परिणाम उन गतिविधियों व कार्यों को लिखिए सू चक जि न क ा आकलन के विभिन्न तरीकों में
जिनका आकलन हेतु उपयोग किया आ कल न क ि य ा सू चक ों के आधार पर शिक्षक
जाएगा। यह अधिगम के प्रमाणों को जाना है। आकलन के समय कुछ मापदण्डक
प्रदर्शित करे गा। बना सकते है।
3.3 रिर्पार्ट तैयार करना
अतं तः शिक्षकों को आकलन के परिणामों से शिक्षकों, विद्यालय प्रमख ु ों, अन्य अधिकारियों,
अभिभावकों और स्वयं शिक्षार्थियों को भी अवगत कराना होता ह।ै मलू ्यक ां न की यह रिपोर्ट सदैव
मानदंडों के सदं र्भ में होनी चाहिए जिससे यह पता चल सके गा कि अधिगम के विभिन्न उद्देश्यों
के अतं र्गत विद्यार्थी ने किस तरह की और कितनी प्रगति की है। माता-पिता यह जानने में उत्सुक
रहते हैं कि उनके बच्चे स्कूल में कै सा प्रदर्शन कर रहे है। प्रत्येक 3-4 माह के बाद शिक्षक सतत
मलू ्यांकन के आधार पर बच्चों की पढ़ाई के स्तर के विषय में माता-पिता को अवगत करा सकते
है। इससे उनको अपने बच्चे की प्रगति का पता चलेगा, इस ज्ञान के आधार पर माता-पिता स्कूल
में बच्चे की पढ़ाई के दौरान उसकी मदद कर सकते हैं ताकि वो उचित स्तर को प्राप्त कर सकें ।
साथ ही साथ उन्हें यह मौका भी मिलेगा कि वे समय रहते पढ़ाई के दौरान विद्यार्थी की पढ़ाई
में उसकी मदद कर सकें गे। किसी भी गतिविधि अथवा परियोजना की समाप्ति के तरु ं त बाद ही
विद्यार्थी को नियमित रूप से रिपोर्ट देने से उन्हें यह जानने में मदद मिलेगी कि उनका स्तर क्या
है और उन्हें क्या प्राप्त करना है। इस रिपोर्ट में विशेष सझु ाव भी दिए जाने चाहिए कि किस प्रकार
उनमें सधु ार लाया जा सकता है।
क्या प्रतिवेदन करना है?
अपेक्षित उद्देश्यों को प्राप्त करने की दिशा में विद्यार्थियों के सदं र्भ में क्या चीज़ काम कर रही है
और क्या नहीं,इस विषय में विस्तृत (पृष्ट पोषण) की आवश्यकता है। इस तरह की ससु ्पष्ट, समझने
में आसान प्रति पष्टिु जो अध्यापक के अपेक्षित परिणामों को ध्यान में रखकर तैयार की गई हो
शिक्षर्थियों के साथ-साथ माता-पिता को भी प्रदान की जानी चाहिए। प्रतिवेदन में निम्नलिखित
बातें शामिल होनी चाहिए-
अधिगम के प्रमाण प्राप्त की गई क्षमताओ ं का स्तर सधु ार हेतु सझु ाव
36 उन गतिविधियों और अपेक्षित उद्शदे ्यों और अधिगम विद्यार्थी की क्षमता के साथ यह भी बताएँ कि सुधार और
कार्यों को बताएँ जिनका के प्रमाण्‍ा को ध्यान में रखते समृद्धिकरण के लिए और क्या किया जा सकता है। (अवधारणाएँ
इस्तेमाल मलू ्यांकन हेतू हुए प्रत्येक विद्यार्थी की प्रगति के सही तरीके से निर्माण एवं कौशलों को अर्जित करने के लिए
और पोर्टफोलियो दिखाने बताएँ। और मिथ्य अवधारणा को दरू करने के लिए)
के लिए किया गया हो।

सी.सी.ई. उच्‍च प्राथमिक स्‍तर पर सामाजिक विज्ञान


यह एक विस्तृत छवि प्रस्तुत करे गी जहाँ विद्यार्थी संभावित सीखने के परिणामों और शिक्षक
अतं त: उन्हें सिखाने से सबं ंधित हैं। वास्तविक लक्ष्य विद्यार्थियों को प्रोत्साहन व सीखने के लिए
बढ़ावा देना है, जिसके लिए एक सकारात्मक प्रतिपष्टि ु की आवश्यकता है। इससे यह भी ज्ञात
होगा कि वर्तमान में उनमें क्‍या सामर्थ्य है एवं उसे और सशक्‍त कै से बनाया जाए।
3.4 सी.सी.ई. के कार्यान्वयन में चुनौतियाँ
कक्षा में बच्चों की अधिक सखं ्या
सी.सी.ई. कार्यान्वयन की दिशा में एक प्रमखु चनु ौती एक कक्षा में बच्चों की अधिक सखं ्या का
होता है। ऐसी स्थिति में शिक्षक के लिए विविध गतिविि‍धयों का संचालन और साथ ही साथ
उसका आकलन मश्किल ु हो जाता है। अध्यापक को जैसे ही सभी अधिगमकर्ताओ ं की प्रगति
चिन्हित और उनको लिपिबद्ध करने की जरूरत पड़ेगी तो उनका कार्यभार बढ़ जाएगा। शिक्षा
के अधिकार अधिनियम के कार्यान्वयन तहत सझु ाए गए 1:35 शिक्षक छात्र अनपु ात से उच्च
प्राथमिक स्तर पर बड़े आकार की ऐसी कक्षाओ ं की समस्या कुछ हद तक कम हो सकती है।
हालाँकि जैसा कि इस पैके ज में वर्णित है सभी गतिविधियों के दौरान सभी बच्चों का आकलन
करने की आवश्यकता नहीं है। शिक्षक को एक अवधि के दौरान यह आकलन करना है।
समय प्रबंधन
सतत मलू ्यक ां न को निश्चित तौर पर शिक्षण और सीखने की प्रक्रिया के साथ एकीकृ त किया जाना
चाहिए। यदि शिक्षक शिक्षण और आकलन की प्रक्रिया अलग-अलग चलाते हैं तो इसकी वजह
से बहुत समय नष्ट हो जाता है। यदि इन मलू ्यांकन विधियों को कक्षा की दिनचर्या से एकीकृ त कर
दिया जाए तब इस तरह के मलू ्यांकन मश्किल ु नहीं लगते और न ही वे पढ़ाई का अनावश्यक
समय ही नष्ट करते है। यदि इन सबसे जो अनभु व शिक्षक को प्राप्त होता है या यदि इससे उन्हें
विद्यार्थियों के साथ और प्रभावी ढंग से काम करने में मदद मिलती है तो ऐसी विविध मलू ्यांकन
विधियों में लगाया जाने वाला समय उपयक्त ु है।
छात्र अनुपस्थिति
उपस्थिति में अनियमितता छात्र-छात्रओ ं के सचु ारू प्रदर्शन के प्रबन्धन में एक बड़ी बाधा है।
कई बार चनु ौतीपर्णू कार्य के डर से भी अनपु स्थिति में बढ़त देखने को मिलती है। कुछ विद्यार्थी
अत्यधिक निगरानी के डर से भी स्कूल छोड़ सकते है। इसे दरू करने का एक उपाय यह हो सकता
है कि शिक्षक चनु ौतीपर्णू कार्य को सभी के लिए अनिवार्य न करें , साथ ही शिक्षकों को सीखने के
अपेक्षित परिणामों और हर तरह के शिक्षार्थियों को ध्यान में रखते हुए मलू ्यांकन की गतिविधियाँ
बनानी चाहिए। ऐसे में शिक्षार्थी मलू ्यांकन गतिविधियों में आनंद लेना शरू
ु कर देंगे और उन्हें यह
पता भी नहीं चलेगा कि उनका मलू ्यांकन हो रहा है। यह उन्हें बोझ के बिना ही सीखने के लिए 37

प्रेरित तो करे गा ही साथ ही साथ उनमें कक्षा में आने के प्रति भी रूचि जागृत करे गा।
निगरानी और प्रतिक्रिया/सझ
ु ाव
शिक्षार्थियों के आकलन के परिणाम सामान्यतया शिक्षकों के आकलन व निगरानी के लिए
इस्तेमाल किए जाते हैं। यही कारण है कि शिक्षक अक्सर शिक्षण और सीखने की प्रक्रिया को

सतत एवं व्यापक मलू ्यांकन को लागू किए जाने के महत्वपरू ्ण तत्व
समृद्ध करने के बजाए अधिकारियों की आवश्यकतानसु ार मलू ्यांकन उपकरणों का निर्माण,
मलू ्यांकन तथा रिकार्ड रखते हैं। इस प्रवृत्ति ने संकीर्ण निर्देश और शिक्षण को बढ़ावा देते हुए इसे
के वल ‘टेस्ट’ तक ही सीमित कर दिया है। इसका परिणाम यह हुआ है कि शिक्षक अपने शिक्षण
में सधु ार करने के बजाए अपना अधिकांश समय रिकार्ड सही तरीके से रखने में ही व्यय कर
देते हैं ताकि वे एक बेहतर शिक्षक दिख सकें । शिक्षकों की निगरानी इस तरह होनी चाहिए कि
सतत मलू ्यांकन करने में आने वाली समस्याओ ं के समाधान के साथ ही उन्हें समचि ु त सहायता
प्रदान की जा सकें ।
मलू ्यांकन को विकास की एक ऐसी प्रक्रिया मानना चाहिए जिसमें शिक्षार्थियों की उपलब्धि
के बजाए सधु ार पर ज़ोर हो। मलू ्यांकन इस तरह से होना चाहिए कि उससे शिक्षार्थियों के मज़बतू
और कमज़ोर पक्षों की पहचान, उनकी समस्याओ ं के निदान तथा उनके मज़बतू पक्ष को और
अधिक समृद्ध करने के तरीकों का निर्धारण किया जा सकें ।
3.5 शिक्षक प्रशिक्षक तथा ब्लॅाक रिसोर्स/क्लस्टर रिसोर्स संयोजक की
भूमिकाएँ
अध्यापक प्रशिक्षक, शिक्षकों के व्यावसायिक विकास में महत्वपर्णू भमिक ू ा निभाते हैं।
सी.सी.ई. लागू करते समय, अध्यापक प्रशिक्षकों और बी.आर. सी./सी.आर.सी. कार्मियों को
कुछ बिंदओ ु ं जो अतं तः शिक्षकों को अभिमख ु करने तथा नियमित रूप से शिक्षण व सीखने की
प्रक्रिया की निगरानी करते हैं, को ध्यान में रखना चाहिए। शिक्षकों एवं शिक्षक प्रशिक्षकों की
व्यावसायिक शिक्षा शिक्षकों को तैयार करने के कार्यक्रमों का एक निरंतर और अभिन्न अगं
होना चाहिए। इससे शिक्षकों को अपनी कार्य-प्रणाली दर्शाने और बच्चों की सीखने की प्रक्रिया
में सधु ार करने में महत्वपर्णू मदद मिलेगी। शिक्षकों के लिए सेवाकालीन प्रशिक्षण कार्यक्रम
आयोजित करते समय निम्नलिखित बातों को ध्यान रखा जाना चाहिए।
♦♦ प्रशिक्षण कार्यक्रम ‘ऊपर से नीचे’ तरीके से आयोजित नहीं किए जाने चाहिए जिसमें
शिक्षकों को प्रशिक्षकों द्वारा सी.सी.ई.के लिए विभिन्न तरीकों या रणनीतियों को लागू करने
के लिए ही सझु ाया जाता हो। शिक्षकों को इससे संबंधित विभिन्न बातें, उदाहरणों (कै से
करवाई) के जरिए समझाई जानी चाहिए ताकि उन्हें इस पर चर्चा करने, अपनी समस्याओ ं
के बारे में सोचने तथा अन्य के साथ उसे साझा करने का अवसर मिल सकें ।
♦♦ प्रशिक्षण कार्यक्रम में ऐसी रणनीति अपनायी जानी चाहिए जिससे शिक्षकों को सी.सी.ई. से
सबं ंधित विद्यालय में किए जाने वाले प्रयासों के बारे में अपने सहकर्मियों से विचार साझा
करने व चर्चा करने का अवसर मिल सकें । इस प्रक्रिया से परस्पर और भागीदारी पर्णू सीखने
38 की प्रक्रिया को अवसर मिलेगा।
♦♦ शिक्षक दर्ल ु भ इलाकों, विद्यार्थियों की अधिक संख्या वाली कक्षाओ ं तथा बहु-ग्रेड
कक्षाओ ं आदि जैसी भिन्न-भिन्न परिस्थितियों में काम कर रहे हैं। ऐसी स्थिति में एक जैसे
रिकार्डिंग और रिर्पोटिंग प्रारूप से सी.सी.ई. का उद्देश्य परू ा नहीं होगा। शिक्षकों के अनभु व
यह दर्शाते हैं कि इस तरह के प्रारूप से शिक्षण व सीखने के समय को बर्बाद करते हैं तथा
इससे सी.सी.ई. की प्रक्रिया में कोई मदद नहीं मिलती है।
सी.सी.ई. उच्‍च प्राथमिक स्‍तर पर सामाजिक विज्ञान
♦♦ प्रशिक्षण कार्यक्रम शिक्षकों को विभिन्न विषयों को बच्चों के अनभु वों व परिवेश से जोड़ने
में सक्षम बनाने वाला होना चाहिए। इसके अलावा कई बार भाषाई अल्पसखं ्यक वर्गों से
ताल्लुक रखने वाले बच्चों को घर की भाषा व विद्यालय की भाषा में अतं र होने के कारण
उत्तर देने में कठिनाई हो सकती है।
3.6 प्रशासकों के लिए विस्तृत दिशा निर्देश
सी.सी.ई. के अतं र्गत शिक्षण और सीखना एक सतत प्रक्रिया है जो एक हद तक बच्चे,
उसके सहपाठियों और शिक्षकों के सक्रिय अतं सम्पर्कों पर निर्भर करती है। शिक्षक एक ऐसा
व्यक्ति है जो अधिकांश समय कक्षा में बच्चों के साथ बिताता है। इसलिए बच्चों के सीखने की
आवश्यकताओ,ं स्तर और प्रगति के निर्णय के बारे में एक शिक्षक की कें द्रिय भमिक ू ा होती है।
अगर बच्चे के रचनात्मक मलू ्यांकन के लिए कोई रिकार्ड रखने की ज़रूरत है, उससे संबंधित
उचित रिकॉर्ड रखने का निर्णय अध्यापक पर होना चाहिए। कक्षा में की जाने वाले प्रत्येक और
सभी गतिविधियों को रिकार्ड करना न के वल दरू ु ह व अव्यावहारिक है बल्कि इससे शिक्षण व
सीखने की प्रक्रिया में भी कोई सहायता नहीं मिलती है।
इस सब में यह आवश्यकता है कि शिक्षा अधिकारी, वरिष्ठ अधिकारी तथा निरीक्षक,
शिक्षक की स्वायत्तता का आदर करें ताकि शिक्षकों को भी यह एहसास हो कि वे बच्चों की
शिक्षा के लिए जि़म्मेदार है तथा उनकी पढ़ाई की जिम्मेदारी लेने योग्य हैं। जहाँ शिक्षार्थियों और
अध्यापकों को शिक्षण व सीखने-सिखाने की जि़म्मेदारी दी गई वहाँ भी सी.सी.ई. तभी कारगर
होगा जब शिक्षकों व विद्यार्थीयों को किसी प्रकार का भय न हो। यहाँ प्रशासक शिक्षकों को
कक्षा में परिणाम की अपेक्षा उस परिणाम तक पहुचँ ने की प्रक्रिया और कक्षा में आपसी संवाद
के मलू ्यांकन पर अधिक ध्यान कें द्रित करने हेतु प्रोत्साहित कर सकते हैं।
♦♦ शिक्षण-सीखने की प्रक्रिया को सदृु ढ़ करने के लिए प्रशासकों को शिक्षकों के साथ नियमित
संवाद करते रहना चाहिए।
♦♦ सी.सी.ई. को लागू करने के लिए समय-सारणी में लचीलापन आवश्यक है। इससे शिक्षकों
को प्रशिक्षण कार्यक्रम में सीखी गई विभिन्न तकनीकों का प्रयोग करके देखने में भी
सहायता मिलेगी।
♦♦ शिक्षकों को स्थानीय रूप से उपलब्ध संसाधनों का प्रयोग करने तथा कक्षा के बाहर से
सीखने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
♦♦ प्रशिक्षण कार्यक्रमों में प्राप्त अनभु वों को शिक्षकों को वरिष्ठ शिक्षकों तथा अन्य
शिक्षाकर्मियों (बी.आर.सी.) से साझा करने के अवसर दिए जा सकते है। इस प्रक्रिया से
उन्हें भी अपने ज्ञान को अद्यतन करने तथा विभिन्न विषयों में किए गए परिवर्तनों (शिक्षा 39
शास्त्रीय बदलावों) के मलू उद्देश्यों की समझ बनाने में मदद मिलेगी।
♦♦ शिक्षकों को बच्चों की जरूरतों के हिसाब से पाठ्यक्रम का उपयोग करने की स्वायत्तता दी
जानी चाहिए। उदाहरण के लिए अधिकांश विद्यालयों में शिक्षकों को विद्यालय की सलाह
पर एक क्रम से पाठ पढ़ाने होते हैं।

सतत एवं व्यापक मलू ्यांकन को लागू किए जाने के महत्वपरू ्ण तत्व
♦♦ सी.सी.ई. पर नियोजकों और प्रशासकों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रमों का आयोजन इसके
प्रयोगकर्ताओ ं और प्रशासकों के बीच विचारों में सामजं स्य का विकास करने के लिए
आवश्यक हैं। इससे उन्हें भी शिक्षण और सीखने की इस परू ी प्रक्रिया तथा इस प्रयास में
उनकी अपनी भमिक ू ा को समझने में मदद मिलेगी।
♦♦ प्रशासक की भमिक ू ा एक पर्यवेक्षक अथवा रिर्पोटिंग अधिकारी की नहीं होनी चाहिए। उसे
विद्यालयों में सीखने की स्थितियाँ पैदा करने के साथ-साथ एक मार्गदर्शक की भमिकू ा भी
निभानी चाहिए।
सी.सी.ई. की परू ी प्रक्रिया, प्रशासकों, शिक्षकों और शिक्षार्थियों सभी को, अपनी-अपनी
ज़ि‍म्मेदारी निभाने की माँग करती है।Opimum essilic identebusa que iam neque
patio

40

सी.सी.ई. उच्‍च प्राथमिक स्‍तर पर सामाजिक विज्ञान


lh- lh- bZ- iSdst J`a[kyk dh vU; iqLrdsa सतत एवं lexz ewY;kadu

lrr ,oa lexz ewY;kdau

lh-lh-bZ-
सतत एवं lexz ewY;kadu

lh-lh-bZ-
lh-lh-bZ-
mPp izkFkfed Lrj ij izfreku lkexzh
izkFkfed Lrj ds fy, izfreku lkexzh mPp izkFkfed Lrj ij izfreku lkexzh

xf.kr

izkFkfed f'k{kk xf.kr

सतत एवं lexz ewY;kadu सतत एवं lexz ewY;kadu

lh-lh-bZ- lh-lh-bZ-
mPp izkFkfed Lrj ij izfreku lkexzh mPp izkFkfed Lrj ij izfreku lkexzh

foKku lkekftd foKku

foKku lkekftd foKku

lkekftd foKku

You might also like