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छत्तीसगढ़ भारती

कक्षा – 6 सत्र 2019-20

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विकल्प 1: अपने मोबाइल ब्राउज़र पर diksha.gov.in/app टाइप करें ।


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पाठ्यपस्
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कोScan करने के ललए मोबाइल केजरित करें । से ललूंक की गई सची उपलब्ध
में QR Code tap करें । होगी

डेस्कटॉप परQR Codeका उपयोग कर सीजिटल विषय-िस्तु तक कैसे पहुुँचें

1-QR Code के नीचे 6 अूंकों काAlpha ब्राउिर में diksha. gov.in/cgटाइप करें ।
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राज्य शैनक्षक अ ुसध


ं ा और प्रनशक्षण पररषद् छत्तीसगढ़, रायपुर

न िःशुल्क नितरण हेतु


प्रकाशन वर्ष 2019

एस.सी.ई.आर.टी., छत्तीसगढ़, रायपरु

सहयोग प्रो. रमाकारत अजननहोत्री

अिीम प्रेमिी फाउण्डेशन

मुख्य समरियक श्री उत्पल कुमार चक्रबती

विषय समरियक डॉ. विद्यािती चूंिाकर

सूंपािक डॉ. लशिराम शमाा, डॉ. सी.एल. लमश्र , डॉ.विद्यािती चूंिाकर

लेखक- मंडल

हहन्दी I छत्तीसगढ़ी

डॉ. लशिराम शमाा, डॉ. सी. एल. लमश्र डॉ. िीिन यि,ु डॉ. पीसी लाल यािि
डॉ. भारती खुबालकर, श्रीमती उषा पिार श्री विनय शरण लसूंह डॉ. माूंघी लाल यािि,
श्री गिानूंिप्रसाि िे िाूंगन, श्रीमती अरुणा चौहान श्री मूंगत रिीूंि, श्री डुम न लाल ध्रुि,
श्री विनय शरण लसूंह, श्री दिनेश गौतम श्री पाठक परिे शी, श्री गणेश यि,ु श्री कुबेर साह
डॉ.रचनाित्त, कातताकेय शमाा, श्रीमती नम्रता लसूंह, श्री तनलशकाूंत त्रत्रपाठी,

श्रीमती मैना अनूंत


चचत्राूंकन समीर श्रीिास्ति
आिरण पष्ृ ठ रे खराि चौरागडे, रायपुर
फोटोग्राफर एस.अहमि, रायपुर
सहयोग आलसफ, लभलाई

प्रकाशक :

छत्तीसगढ़ पाठ्यपुस्तक ननगम, रायपरु

मुद्रक

मुदित पुस्तकों की सूंख्या - ....


प्राक्कथन

1 निम्बर 2000 को छत्तीसगढ़ के नए राज्य के रूप में अजस्तत्ि में आने से यह आिश्यक
हो गया था कक राज्य की आिश्यकताओूं एिूं आकाूंक्षाओूं को परा करने के ललए विद्यालयीन
पाठ्यक्रम में उचचत सूंशोधन ककया िाए। वपछले िो िषों तक राज्य में यजत्कूंचचत सूंशोधन के
उपरारत िे ही पाठ्यपुस्तकें प्रचललत रहीूं िो रािीि गाूंधी लशक्षा लमशन मध्यप्रिे श ने तैयार की
और मध्यप्रिे श पाठ्यपुस्तक तनगम ने प्रकालशत की। राज्य के विद्याचथायों के ललए राज्य की
अपेक्षाओूं के अनुरूप पाठ्यचयाा और पाठ्यपुस्तकों का तनमााण करना आिश्यक था। ये पुस्तकें ऐसी
हों जिनमें राष्रीय लक्ष्यों और उद्िे श्यों के साथ-साथ राज्य की विलशष्टताओूं, उसके कलात्मक और
साूंस्कृततक धरोहर का पररचय विद्याचथायों को लमल सके । अतः शासन ने तनणाय ललया कक िषा
2004-05 से प्रिे श के शालेय विद्याचथायों के ललए पाठ्यचयाा और पाठ्यक्रम नए रूप में तैयार ककए
िाएुँ । यह इसललए भी आिश्यक था कक माध्यलमक लशक्षा मण्डल छत्तीसगढ़ का गठन हो चक
ु ा
था और उसने कक्षा 9 िीूं से 12 िीूं तक के ललए पाठ्यचयाा और पाठ्यक्रम का तनमााण कर ललया
था। इधर विद्यालयीन लशक्षा के ललए राष्रीय पाठ्यचयाा की रूपरे खा तनलमात की गई और उसके
आधार पर पाठ्यक्रमों का तनमााण भी ककया गया। इस पाठ्यचयाा और पाठ्यक्रमों के विलभरन
उद्िे श्यों में एक मख्
ु य उद्िे श्य है पाठ्यसामग्री को अद्यतन बनाना और मल्यपरक लशक्षा प्रिान
करना। राज्य शासन ने छत्तीसगढ़ राज्य शैक्षक्षक अनस
ु ूंधान एिूं प्रलशक्षण पररषद् को पाठ्यचयाा एिूं
पाठ्यक्रम सूंशोधन एिूं नि तनमााण का काया सौंपा है । तिनस
ु ार पररषद् ने प्रिे श की पररजस्थततयों,
आकाूंक्षाओूं और आिश्यकताओूं को ध्यान में रखते हुए सत्र 2004-2005 में िक्षता आधाररत
पाठ्यक्रम तैयार करने का काया आरूं भ ककया।

पाठ्यचयाा एिूं पाठ्यक्रम तनमााण में सहयोग िे ने के ललए कुछ अशासकीय सूंस्थाओूं की
सहायता भी हमें लमली और इसके ललए आचथाक सहायता यतनसेफने प्रिान की। उसके ललए हम
उन अशासकीय सूंस्थाओूं और यतनसेफ के अचधकाररयों के आभारी हैं।

शासन के तनणाय पर राज्य शैक्षक्षक अनुसूंधान और प्रलशक्षण पररषद् के तत्िािधान में नई


पाठ्यचयाा और पाठ्यक्रम पर िुलाई 2003 से ही काया गोजष्ठयाुँ आयोजित होने लगीूं थीूं और चार
कायागोजष्ठयों में यह काया पणा ककया गया। इसके अनरतर पाठ्यपुस्तकों का लेखन और सूंपािन
काया प्रारूं भ हुआ। शासन की सहमतत से तनणाय यह भी ललया गया कक िषा 2004-05 के ललए कक्षा
1, 2 और 6 के पाठ्यक्रमानस ु ार पाठ्यपस्
ु तकें तैयार कराई िाएुँ और एक िषा राज्य के िो सौ
विद्यालयों, लशक्षकों, प्रधानाध्यापकों, तनरीक्षकों एिूं लशक्षा-विशेषज्ञों से प्राप्त सझ
ु ािों के आधार पर
इनमें आिश्यक सूंशोधन करके िषा 2006-07 से सूंपणा राज्य में इनका अध्यापन कराया िाए।

लशक्षा आिीिन चलने िाली सतत ् और विकासशील प्रकक्रया है । ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में
तनररतर तेिी से हो रहे विस्फोट और निीन शैक्षक्षक आिश्यकताओूं तथा निाचार के कारण नए
पाठ्यक्रम और नई पुस्तकों का तनमााण आिश्यक हो िाता है ।
भाषा की इस पुस्तक के लेखन में हमने तनम्नललखखत बातों का विशेष रूप से ध्यान रखा
है -

सूंकलन के पाठों का चयन करते समय विद्याचथायों के बौद्चधक स्तर और भाषा का स्तर
इन िो बातों पर विशेष रूप से बल दिया गया है । इस पुस्तक का उद्िे श्य विद्याचथायों को श्रेष्ठ
सादहत्य एिूं सादहत्य की विलभरन विधाओूं से पररचचत कराना है । विद्याचथायों की अलभरुचच को
पररष्कृत करके उनको श्रेष्ठ सादहत्य की ओर प्रेररत करना हमारा अभीष्ट रहा है ।

इस पुस्तक में जिन विचारों और मानिीय मल्यों पर अचधक बल दिया गया है उनमें से
कुछ हैंराष्रीय एकता,पारस्पररक सद्भाि, सामाजिक सहयोग, श्रम का महत्ि, समय-पालन, साहस,
स्िास््य, पयाािरण सूंरक्षण, राष्रीय एिूं राज्यीय सूंस्कृतत का ज्ञान, सभी धमों के प्रतत आिर भाि
आदि। इनके साथ ही प्रकृतत-सौरिया, राष्रीय एकता, लौककक नीतत, िात्सल्य तथा कताव्य-भािना से
पररपणा कविताएुँ इस सूंकलन में समाविष्ट हैं।।

इस पस्
ु तक में हमने यह भी प्रयास ककया है कक विद्याचथायों से विषय-िस्तुको सही रूप में
समझने के ललए अभ्यास अचधक कराए िाएुँ। अभ्यास एक ऐसा प्रभािशाली साधन है जिससे पाठ
को भली प्रकार समझा िा सकता है । अभ्यास के िररए हम विद्याचथायों की रचनात्मक शजलत का
विकास करना चाहते हैं। विषयिस्तु पर पछे गए प्रश्न न केिल स्मरण के प्रश्न हैं बजल्क उनका
उत्तर िे ने में विद्याचथायों को अपनी बौद्चधक क्षमता का भी उपयोग करना पडेगा।

भाषा अध्ययन में व्याकरण का महत्िपणा स्थान है , ककूंतु हमने इसे एक पथ


ृ क विषय न
बनाकर पाठ पर आधाररत एक आनष
ु ूंचगक विषय के रूप में पढ़ाने का प्रयास ककया है । सूंज्ञा,
सिानाम, विशेषण आदि व्याकरण के अूंगों की पररभाषाएुँ, उनके भेि-उपभेि बताना तथा प्रत्येक के
कुछ उिाहरण स्मरण कर लेने से ज्ञान का पयााप्त उपयोग नहीूं होता लयोंकक यह ज्ञान पाठ की
सामग्री से असूंबद्ध-सा रहता है । इसी कमी को िर करने के ललए हमने इस पुस्तक में व्याकरण
को पाठ्यसामग्री से सूंबद्ध ककया है । भाषा तत्त्ि में कुछ ऐसे प्रश्न भी समाविष्ट ककए गए हैं
जिनसे विद्याचथायों को भाषा का प्रभािी प्रयोग करने में सहायता लमलेगी और ितानी, प्रयोग तथा
िालय विरयास सूंबूंधी उनकी अशुद्चधयाुँ िर हो सकेंगी।

पाठ्यसामग्री में विविधता और रोचकता बनाए रखने के ललए पस्


ु तक में सादहत्य की अलग-
अलग विधाओूं, यथा कविता, कहानी, तनबूंध, प्रेरक-प्रसूंग, चररत, आत्मकथा, सूंस्मरण, एकाूंकी, पत्र
आदि सभी का समािेश ककया गया है । अूंत में योनयता विस्तार शीषाक से कुछ कक्रयात्मक अभ्यास
भी दिए गए हैं जिनसे विद्याचथायों की सुनने, बोलने, पढ़ने और ललखने की योनयताओूं का विकास
हो सकेगा।

इस पुस्तक में दहूंिी सादहत्य के जिन प्राचीन तथा ितामान कवियों, लेखकों की रचनाओूं को
समाविष्ट ककया गया है , हम उनके तथा उनके उत्तराचधकाररयों के कृतज्ञ हैं। हमने इस सूंकलन में
छत्तीसगढ़ के कुछ प्रख्यात लेखकों-कवियों की रचनाएुँ भी सजम्मललत की हैं। राज्य के कुछ अरय
प्रततजष्ठत सादहत्यकारों की रचनाओूं को कक्षा 7 और 8 की पाठ्यपुस्तकों में सूंकललत करने का
हमारा तनश्चय है । इस सूंबूंध में हमारी सीमाएुँ भी हैं जिन पर विचार करके राज्य के िे सादहत्यकार
हमें क्षमा करें गे जिनकी रचनाएुँ हम इस सूंकलन में नहीूं रख पाए हैं।

सूंकलन के पाठों के चन
ु ाि और अभ्यासों को तैयार करने में हमें दिल्ली विश्िविद्यालय के
भाषाविज्ञान विभाग के आचाया प्रो. रमाकारत अजननहोत्री का विशेष रूप से मागािशान लमला है । हम
उनके प्रतत कृतज्ञ हैं। लेखक मूंडल के सिस्यों ने जिस कमाठता और लगन से इस सूंकलन को
अूंततम रूप प्रिान ककया है , इसके ललए िे बधाई के पात्र हैं।

राज्यस्तरीय पाठ्यपुस्तक स्थायी सलमतत के विद्िान सिस्यों ने इस पुस्तक का परीक्षण


कर इसे अचधक प्रभािशाली बनाने के ललए सूंशोधन के कुछ सुझाि भी दिए हैं। उन सुझािों के
अनुसार पाठ्यपुस्तक में सूंशोधन कर दिया गया है । अब विश्िास है कक विषयिस्तु और प्रस्तत
ु ीकरण
की दृजष्ट से भारती कक्षा 6 के इस निीन सूंस्करण का विद्याचथायों और लशक्षकों द्िारा स्िागत
ककया िाएगा।

लशक्षा का अचधकार अचधतनयम 2009 बच्चों को गुणित्तायल


ु त लशक्षा िे ने पर िोर िे ता है ।
एन.सी.ई.आर.टी.,नई दिल्ली द्िारा कक्षा 1-8 तक के बच्चों हे तु कक्षािार, विषयिार अचधगम
प्रततफलों का तनमााण कर सझ
ु ािात्मक लशक्षण प्रकक्रयाओूं का उल्लेख ककया है । जिससे बच्चों के
सिाांगीण विकास के लक्ष्य को प्राप्त ककया िा सकेगा। पस्
ु तकों में समयानस
ु ार सूंशोधन तथा
पररिधान एक तनरूं तर प्रकक्रया है । अतः सत्र 2018-19 हे तु पुस्तकों को समसामातयक तथा प्रासूंचगक
बनाया गया है। जिससे बच्चों को िाूंतछत उपलजब्ध प्राप्त करने के अचधक अिसर उपलब्ध होंगे।
आशा है कक पुस्तकें लशक्षक साचथयों तथा बच्चों को लक्ष्य तक पहुुँचने में मििगार होंगी।

स्कल लशक्षा विभाग एिूं राज्य शैक्षक्षक अनुसूंधान और प्रलशक्षण पररषि, छ.ग. द्िारा लशक्षकों
एिूं विद्याचथायों में िक्षता सूंिधान हे तु अततररलत पाठ्य सूंसाधन उपलब्ध कराने की दृजष्ट से
Energized Text Books एक अलभनि प्रयास है , जिसे ऑन लाईन एिूं ऑफ लाईन (डाउनलोड करने
के उपराूंत) उपयोग ककया िा सकता है । ETBs का प्रमुख उद्िे श्य पाठ्यिस्तु के अततररलत ऑडडयो-
िीडडयो, एनीमेशन फॉरमेट में अचधगम सामग्री, सूंबूंचधत अभ्यास, प्रश्न एिूं लशक्षकों के ललए सूंिभा
सामग्री प्रिान करना है ।

प्रस्तत
ु पस्
ु तक को और अचधक उपयोगी बनाने के ललए विद्याचथायों, अध्यापकों, लशक्षावििों
द्िारा भेिे गए सझ
ु ािों का हम सिै ि स्िागत करें गे।

संचालक

राज्य शैक्षक्षक अनुसूंधान और प्रलशक्षण पररषद्

छत्तीसगढ़, रायपुर
शशक्षकों से आग्रह

छत्तीसगढ़ राज्य शैक्षक्षक अनुसूंधान और प्रलशक्षण पररषद् के मागािशान में बनी कक्षा छठिीूं
की भाषा की पुस्तक 'भारती' का छठिाुँ सूंस्करण आपके सामने है । पहले और िसरे सूंस्करण में
क्षेत्र - परीक्षण में विद्याचथायों, लशक्षकों

और राज्यस्तरीय पाठ्यपस्
ु तक स्थायी सलमतत के सिस्यों के सुझािों के अनुसार पाठ्यपुस्तक
में आिश्यक सूंशोधन कर दिए गए हैं। बच्चा सीखने की क्षमता लेकर स्कल आता है । 11-12 की
आयु में तो यह क्षमता चरम सीमा पर रहती है । बच्चे अपने आस-पास की ितु नया, सूंसार, ब्रहमाूंड
आदि के बारे में कुछ और समझना चाहते हैं। आिश्यक यह नहीूं है कक बच्चों को सभी के सूंबूंध
में िानकारी करिाई िाए। आिश्यकता इस बात की है कक उनकी समझने की शजलत का भरपर
विकास हो। बच्चे पढ़कर स्ियूं समझ सकें ि सन
ु ीि पढ़ी बात की साथाक वििेचना कर सकें। इस
प्रकार उनकी बोलने ि ललखने की क्षमता का भी विकास होना चादहए। लशक्षण के क्षेत्र में
पाठ्यपस्
ु तकें, सहायक सामग्री तथा अरय शैक्षक्षक गततविचध कोई उतना सफ
ु ल नहीूं िे सकतीूं जितना
एक सय
ु ोनय लशक्षक । यह लशक्षक ही है िो िदटल, नीरस विषय-िस्तु को सग
ु म और सरस बना
िे ता है । हमें विश्िास है कक प्रस्तत
ु पस्
ु तक के लशक्षण में राज्य के सभी सूंबूंचधत लशक्षक अपनी
इस प्रततभा का सही उपयोग करें गे।

प्रत्येक लशक्षक अपने ढूं ग से लशक्षण-पद्धतत अपनाता है । लशक्षण की उसकी अपनी शैली
होती है । कफर भी हम अपेक्षा करते हैं कक िे हमारे इन विनम्र सुझािों पर विचार करें गे और यदि
िे इन सुझािों को उपयोगी समझें तो इरहें अपनाएुँगे।

इस पुस्तक कोस्तरानुकल और रोचक बनाने में राज्य के अनेक लशक्षकों, विद्िानों, पाठकों,
लशक्षावििों और राज्यस्तरीय पाठ्यपस्
ु तक स्थायी सलमतत के सिस्यों का योगिान है । इन सभी के
परामशा से पाठ्यपस्
ु तक में िीिन के विविध क्षेत्रों से िड
ु े बच्चों की रुचच पर आधाररत पाठ
सूंकललत ककए गए हैं। इन पाठोंको कविता, तनबूंध, चररत्र, एकाूंकी, पत्र, िीिनी आदि अनेक विधाओूं
से सुँिोया गया है । इन पाठों के आधार पर कक्षा में विद्याचथायों के बीच सूंिाि, समहचचाा, अलभनय,
परी कक्षा के साथ विचार-विमशा आदि कक्रयाओूं का आयोिन ककया िा सकता है । आपको इन
कक्रयाओूं में प्रत्येक बच्चे की भागीिारी सतु नजश्चत करनी है । साथ ही विद्याचथायों में धैयप
ा िाक
सन
ु ने, समझने तथा स्िाभाविक ढूं ग से बोलकर अपनी बात कहने की िक्षताओूं का विकास भी
करना है ।

यह भी आिश्यक है कक बच्चे ढूं ग से बातचीत करना सीख िाएुँ - कब बोलना है और कब


कहाुँ, ककस प्रकार के सूंिभा में ककस प्रकार की भाषा ललखी या बोली िाएगी। जिस शैली का प्रयोग
आप अपने िोस्त को पत्र ललखने में करते हैं, उसी शैली में आप एक तनबूंध नहीूं ललख सकते।
िालय-सूंरचना से ऊपर अनुच्छे ि का अपना स्िरूप और चररत्र होता है । ऐसे कई तनयम हैं िो एक
अनुच्छे ि में िालयों को एक िसरे से बाुँधते हैं। एक अनुच्छे ि से 'और', 'िह', 'उस', 'या', 'लयोंकक' िैसे
शब्िों को हटाकर िे खा िाए तो आपकी समझ में आएगा कक अनुच्छे ि को कैसे परस्पर बाुँधते हैं।
भाषा की इस विशेषता की तरफ भी बच्चों को िागरूक करना आिश्यक है ।

अपने लशक्षण को और अचधक कारगर बनाने के ललए आप तनम्नललखखत सोपानों को अपना


सकते हैं

1. पाठ की तैयारी- ककसी पाठ को एकिम पढ़ाना प्रारूं भ करने से पिा यह अचधक उचचत है कक
पष्ृ ठभलम का तनमााण करें । इससे विद्याचथायों के पिा ज्ञान का भी पता चल िाता है और उरहें
पाठ को समझने में सहायता भी लमल िाती है । पाठ्यिस्तु प्रारम्भ करने के पिा विद्याचथायों से
ऐसे प्रश्न पतछए जिनके उत्तरों से आपको उनके पिा ज्ञान का पता लगे। उिाहरण के ललए- ‘सहृियता
और सहनशीलता' शीषाक पाठ पढ़ाने के पिा िे शरत्न डॉ. रािेरि प्रसाि िी के सूंबूंध में प्रश्न पछना
चादहए। साथ ही उरहें क्राूंततकाररयों या प्रथम राष्रपतत िी के सूंबूंध में आिश्यक िानकारी भी
िे नी चादहए।

कविता के पाठ पढ़ाने के सूंबूंध में यह बात ध्यान में रखनी चादहए कक इसे पढ़ाने का ढूं ग
कहानी, तनबूंध, चररत आदि के पाठों से त्रबल्कुल लभरन है । कविता पढ़ाने का मख्
ु य उद्िे श्य
विद्याचथायों को सौंिया-बोध और रसानभ
ु तत कराना है । विद्याथी कविता पढ़कर आनूंदित हों; साथ
ही िे श, प्रकृतत, पश-ु पक्षक्षयों, उपेक्षक्षत मानिों आदि के प्रतत उनके मन में अनरु ाग पैिा हो।

2. नवीन शब्द पररचय - प्रायः सभी पाठों में कुछ-न-कुछ निीन शब्िों का प्रयोग होता ही है । भाषा-
लशक्षण का एक उद्िे श्य यह भी है कक प्रत्येक कक्षा में विद्याचथायों को कुछ निीन शब्ि अिश्य
पढ़ाए िाएुँ। हम यह कब कहें गे कक बच्चों ने कोई नया शब्ि सीख ललया है। इसमें कोई शक नहीूं
है कक बच्चे को शब्ि का सही उच्चारण आना चादहए और उसे उस शब्ि से लमलते-िुलते शब्िों
के बारे में भी िागरूक रहना चादहए, लेककन सबसे महत्िपणा बात है कक बच्चा एक शब्ि का
अलग-अलग सूंिभो में साथाक प्रयोग कर सके।

3. वाचन - विद्याचथायों द्िारा सस्िर िाचन करने के पिा यह आिश्यक है कक आप एक अनच्


ु छे ि
का आिशा िाचन करें , कफर विद्याचथायों से उसका अनक
ु रण िाचन कराएुँ। इससे विद्याचथायों को
शब्िों के सही उच्चारण करने, बलाघात, विराम चचहनों के अनस
ु ार पढ़ने में सहायता लमलेगी। कौन
ककतनी शीघ्रता से िाचन करता है , यह िाुँच करना अच्छे िाचन का लक्षण नहीूं माना िा सकता।
कौन विराम चचहनों का पालन करते हुए, बलाघात का अनस
ु रण करते हुए, शद्
ु ध उच्चारण के साथ
पठन करता है , यह आिशा िाचन का लक्षण है । िाचन कराते समय इस बात का विशेष रूप से
ध्यान रखें कक िाचन करने का अिसर समान रूप से सभी विद्याचथायों को लमले। िो विद्याथी
िाचन में वपछडे हैं, उरहें अरय विद्याचथायों के समकक्ष लाने का प्रयास करें ।

4. भार्ा संबंधी दक्षताओं का ववकास - पाठ की विषय िस्तु को समझने के साथ-साथ यह भी


अपेक्षक्षत है कक विद्याचथायों में भाषा सूंबूंधी योनयताओूं का तनरूं तर विकास होता रहे । साधारण रूप
से पढ़ना के अरतगात अथाग्रहण और शब्ि-बोध सूंबूंधी कुशलताएुँ होती हैं। पाठ्यपुस्तक के प्रत्येक
पाठ के अरत में इन िक्षताओूं के विकास के ललए अभ्यास दिए गए हैं। आप ऐसे ही कुछ अरय
अभ्यास िे कर उनकी िक्षता को विकलसत कर सकते हैं।
5. योग्यता ववस्तार के क्रियाकलाप - भाषा ज्ञान एकाूंगीन रहे . इसके ललए आिश्यक है कक भाषायी
योनयताओूं के साथ अरय विषयों से उसका सूंबूंध स्थावपत ककया िाए। ऐसा सूंबूंध स्थावपत करने
के ललए अभ्यास के अूंत में योनयता विस्तार शीषाक में विद्याचथायों को कुछ करने के ललए
कक्रयाकलाप सझ
ु ाए गए हैं। आपको यह िे खना है कक ये कक्रयाकलाप अतनिाया रूप से प्रत्येक
विद्याथी करे । इन कक्रयाकलापों से विद्याचथायों का रचनात्मक और सिनात्मक विकास होगा।
उनमें कला और लेखन सूंबूंधी िागरुकता आएगी। समय-समय पर कक्षा में िाि वििाि प्रततयोचगता
अूंत्याक्षरी प्रततयोचगता, चचत्र तनमााण की प्रततयोचगता, भाषण प्रततयोचगता, पत्र-पत्रत्रकाओूं से सामग्री
एकत्र करना, ऐततहालसक स्थलों का भ्रमण करके उनके सूंबूंध में लेख ललखना आदि कक्रयाकलापों
से विद्याचथायों के भाषायी कौशल में अलभिद्
ृ चध होगी।
आप सबको अध्यापन करने का लूंबा अनुभि है । आपके इस लूंबे अनभ
ु ि से तनःसूंिेह
विद्याथी लाभाजरित होते हैं । हमारे बताए कुछ सझ
ु ािों पर आप अमल करें - हो सकता है आपकी
लशक्षणकला में इससे कुछ इज़ाफा हो। यदि ऐसा हुआ तो हम अपने प्रयास को साथाक समझेंगे।

संचालक

राज्य शैक्षक्षक अनुसूंधान और प्रलशक्षण पररषद्

छत्तीसगढ़, रायपरु
अनि
ु मणिका

1 अलभमान गीत 01

2 एक टोकरी भर लमट्टी 05

3 हे लन केलर 10

4 िुँ गी फल कनेर के 15

5 बरखा आथे 20

6 सफेि गुड 24

7 समय तनयोिन 28

8 मेरा नया बचपन 32

9 ि ठन नारहे कहानी 36

10 हम पूंछी उरमुलत गगन के 40

11 शहीि की माुँ 43

12 सिाधमा समभाि 50

13 आलसीराम 55

14 नाचा के पुरखा-िाऊ मूंिरािी 59

15 सरलता और सहृियता 63

16 चचा छलकन ने केले खरीिे 69

17 नीतत के िोहे 76

18 हमर कतका सूंुिर गाुँि 80

19 हार की िीत 84

20 हाना 91

21 छत्तीसगढ़ का िशान 96
पाठ 1
अभियान गीत
-डॉ. हरिवंशिाय बच्चन'

डॉ. हरिवंश िाय बच्चन अभियान गीत में नन्हें बच्चों के माध्यम से मात-ृ िूभम के प्रतत प्रेम,
सम्मान औि कततव्य का बोध किाते हुए दे शिक्तत के प्रतत लोगों का आह्वान कि िहे हैं। साथ ही
दे श के भलए बभलदान होने की िावना अपने में समाहहत किने का संदेश दे िहे हैं।

िाित माता के बेटे हम चलते सीना तान के।

धमत अलग हों, जातत अलग हों, वगत अलग हों, िाषाएँ,

पवतत, सागि-तट, वन, मरुथल, मैदानों से हम आएँ ।

फौजी वदी में हम सबसे पहले हहन्दस्


ु तान के,

िाित माता के बेटे हम चलते सीना तान के ॥

हहन्दस्
ु तान की क्जस भमट्टी में हम सब खेले-खाए हैं,

क्जसके िजकण को हम ममता-समता से अपनाए हैं,

कजत चक
ु ाने हैं हमको उन िजकण के एहसान के ।

िाित माता के बेटे हम चलते सीना तान के।


क्जसकी पूजा में सहदयों से श्रम के फूल चढाए हैं ,

क्जसकी िक्षा में पुिखों ने अगणणत शीश कटाए हैं।

हम िखवाले पौरुषवाले उसके गौिव मान के

िाित माता के बेटे हम चलते सीना तान के ॥

हम गगि जाएँ ककंतु न गगिने दें गे दे श तनशान को,

हम भमट जाएँ ककंतु न भमटने दें गे हहन्दस्


ु तान को ।

हम हैं सबसे आगे िहते अवसि पि बभलदान के

िाित माता के बेटे हम चलते सीना तान के ॥

जो वीित्व-वववेक समि में हम सैतनक हदखलाएँगे,

उसकी गाथाएँ िाित के गाँव, नगि, घि गाएँगे।

अनगगन कंठों में गूंजेंगे बोल हमािे गान के ,

िाित माता के बेटे हम चलते सीना तान के ॥

शब्दार्थ :- मरूथल – मरूस्थल, िजकण- धल


ू के कण, भमट्टी, एहसान- िलाई, उपकाि, सहदयों - सौ
वषों का समूह, शताब्दी, पौरूष - पिाक्रम, पुरूषाथत, गौिव-प्रततष्ठा, आदि, महहमा, तनशान-गचह्न, बभलदान-
आत्मदान, वीित्व – वीिता, पिाक्रम, वववेक - बुद्गध, समि-युद्ध, गाथाएँ - कहातनयाँ, अनगगन-अनंत,
क्जसको गगना न जा सके।

अभ्यास

पाठ से
1. अभियान गीत से तया तात्पयत है ?
2. बालक िाित की भमट्टी की महहमा का गान तयों कि िहा है ?
3. सैतनक दे श के भलए तया प्रततज्ञा किते हैं?
4. अनेकता में एकता', यह िाित की ववशेषता है । यह िाव कववता की ककन-ककन पंक्ततयों में
तिपे हैं उन्हें भलणखए?
5. िाित माता के बेटे सीना तानकि चलने की बात तयों किते हैं?
6. कवव अभियान गीत के माध्यम से िाित माता का कौन सा कजत चक
ु ाने की बात किते हैं?
7. माति
ृ ूभम की िक्षा के भलए सैतनक तया-तया किते हैं? ।
8. सैतनक खद
ु भमटकि दे श के ककन तनशानों को बचाना चाहते हैं?
9. कवव सैतनकों की वीिगाथा को गाँव, नगि, घि तक तयों पहुँचाना चाहता है ?
10. बालक िाित की भमट्टी की महहमा का गान ककस तिह कि िहा है ? अपनी िाषा में भलणखए।
11. तनम्नभलणखत पद्यांशों के िावाथत भलणखए -

(क) कजत चक
ु ाने हैं हमको, उन िजकण के एहसान के

िाित माता के बेटे हम, चलते सीना तान के।

(ख) हम गगि जाएँ, ककन्तु न गगिने दें गे दे श तनशान को,

हम भमट जाएँ, ककन्तु न भमटने दें गे हहन्दस्


ु तान को।

पाठ से आगे
1. िाित की सुिक्षा के भलए सैतनक सदै व तत्पि िहते हैं। अगि आपको दे श के
भलए कुि किने का अवसि भमल जाये तो आप कौन सा काम किना चाहें गे?

2. ककसी सैतनक या फौजी को दे खकि आपके मन में उनके परिवाि वालों के प्रतत कौन से
िाव आते हैं? उन िावों को अपने शब्दों में भलणखए।

3. अपने दे श के प्रतत हम सिी के कई कततव्य हैं। वैसे ही अपने ववद्यालय के प्रतत िी हमािे
कततव्य हैं। कोई चाि कततव्य जो आप अपने ववद्यालय के प्रतत तनष्ठापूवक
त किना चाहते
हैं। उन्हें भलणखए।

4. दे श की िक्षा किने वाले फौजी वदी पहनते हैं। वदी पहनने के तया कािण हो सकते हैं?
अपने ववचाि भलणखए।

5. िाष्र के प्रतत नागरिकों के तया-तया कर्त्तव्य हैं उन्हें भलणखए?

िाषा से

1. कववता में आए तनम्न शब्दों के अथत भलखकि वातयों में प्रयोग कीक्जए -
शीश कटाना, सीना तान के चलना, कजत चक
ु ाना, बभलदान दे ना।
2. ’तया’ शब्द का प्रयोग किके बनाए गए इन प्रश्नवाचक वातयों को पहढए -
(क) तया आपका नाम मीना है ?
(ख) आपने खाने में तया खाया?

िाषा में प्रश्नवाचक वातय दो प्रकाि के होते हैं ’’हाँ-ना’’ उर्त्ि वाले प्रश्न वाचक वातय औि
सच
ू नाओं की अपेक्षा िखने वाले प्रश्नवाचक वातय। पहले वाले वातय का उर्त्ि हाँ/नहीं में ही होगा।
इसमें तया का प्रयोग हमेशा वातय में शुरू में ही होगा। ’हाँ-नहीं’ उर्त्ि वाले पाँच प्रश्न वाचक वातय
सोचकि भलणखए।

3. तनम्नभलणखत शब्दों के दो-दो पयातयवाची शब्द भलणखए।

पवतत, सागि, वन, फूल।


4. तनम्नभलणखत उदाहिणों को पढकि योजक गचन्हों वाले ऐसे ही पाँच शब्द पाठ से िाँटकि
भलणखए।

जैसे - माता-वपता, गौिव-गाथा।

5. एक वचन से बहुवचन बनाने का एक उदाहिण नीचे हदया गया है ।

गाथा..........गाथाएँ,

तनम्न का बहुवचन िी भलणखए।

कथा.........ववपदा..............माता..........लता...............माला...........

6. तनम्नभलणखत पंक्तत बहुवचन की द्योतक है । इसे एकवचन में भलणखए।

कजत चक
ु ाने है हमकों, उस िजकण के एहसान के।

योग्यता विस्तार

1. िाित के िाष्रीय गचह्न िाष्रीय पशु, िाष्रीय पक्षी, िाष्री य गान आहद
के साथ-साथ िर्त्ीसगढ के िाजकीय धिोहिों के बािे में िी जानकािी
प्राप्त कीक्जए।

2. दे श के वीि शहीदों एवं महापुरूषों के गचत्रों का संकलन कि फाईल बनाइए।

3. िाित के उस पड़ोसी दे श के बािे में जानकािी प्राप्त कीक्जए जो िाित के भलए हमेशा
खतिा बना िहता है।

4. अपने दे श के प्रतत आपके अनेक कर्त्तव्य हैं, क्जन्हें आपको किना चाहहए। ऐसे कोई पाँच
कर्त्तव्य भलणखए क्जन्हें आप तनष्ठापूवक
त किते हैं।

5. महापुरुषों के नािों को चाटत में भलणखकि कक्षा में सजाएँ।


पाठ 2
एक टोकरी िर भिट्टी
श्री िाधि राि सप्रे

इंसान का गवत उसे अन्याय औि ववद्वेष किने को प्रेरित किता है । इस हे तु वह िल झठ



औि षड़यंत्र किने से िी नहीं चक
ू ता पिं तु सत्य औि ईमानदािी की एक चोट उसे हकीकत की
धिातल पि ला पटकती है औि परिणाम स्वरूप उसका जमीि जाग जाता है। उसे सत्य की पहचान
होती है । प्रस्तत
ु कहानी में एक जमींदाि द्वािा असहाय ववधवा की झोपड़ी को हगथया लेने के बाद
की क्स्थतत का प्रिाव पूणत गचत्रांकन हुआ है । यह कहानी मानवीय संवेदनशील से जड़
ु ी हुई है ।
ववधवा की झोपड़ी को जमींदाि द्वािा लौटा दे ना औि ववधवा के कथन से उसका हृदय परिवततन
होना, यही इस कहानी का उद्दे श्य है ।

ककसी श्रीमान ् जमींदाि के महल के पास एक गिीब, अनाथ ववधवा की झोंपड़ी थी । जमींदाि
साहब ने ववधवा से बहुतिे ा कहा कक अपनी झोंपड़ी हटा ले, पि वह तो कई जमाने से वहीं बसी
थी। उसका पतत औि इकलौता पुत्र िी उसी झोपड़ी में मि गए थे । पतोहू िी एक पाँच बिस की
कन्या िोड़कि चल बसी थी। अब यही उसकी पोती इस वद् ृ ध काल में उसका एक मात्र आधाि
थी। जब किी उसे अपनी पूवत क्स्थतत की याद आती तो मािे द:ु ख के फूट-फूट कि िोने लगती थी
औि जब से उसने अपने श्रीमान ् पड़ोसी की इच्िा का हाल सुना तब से वह मत
ृ प्राय हो गई थी।
उस झोपड़ी में उसका मन लग गया था । बबना मिे वह वहाँ से तनकलना नहीं चाहती थी। श्रीमान ्
के सब प्रयत्न तनष्फल हो गए तब वे अपनी जमींदािों वाली चाल चलने लगे । बाल की खाल
तनकलवाने वाले वकीलों की थैली गिम कि उन्होंने अदालत में झोंपड़ी पि अपना कब्जा कि भलया।
ववधवा को वहाँ से तनकाल हदया । बेचािी अनाथ तो थी ही, पास-पड़ोस में कहीं जाकि िहने लगी।
एक हदन श्रीमान ् उस झोंपड़ी के आसपास टहल िहे थे औि लोगों को काम बता िहे थे कक
इतने में वह ववधवा हाथ में टोकिी लेकि वहाँ पहुँची । श्रीमान ् ने उसको दे खते ही अपने नौकिों
से कहा- "तम
ु उसे यहाँ से हटा दो।" पि वह गगड़गगड़ाकि बोली-“महािाज, अब तो यह झोपड़ी तम् ु हािी
हो गई है , मैं उसे लेने नहीं आई हूँ। महािाज, क्षमा किें तो एक ववनती है।" जमींदाि साहब के भसि
हहलाने पि उसने कहा, "जब से यह झोपड़ी िूटी है तब से मेिी पोती ने खाना-पीना िोड़ हदया है ।
मैंने बहुत कुि समझाया पि वह एक नहीं मानती। यही कहा किती है कक अपने घि चल, तब
िोटी खाऊँगी । अब मैंने यह सोचा है कक इस झोंपड़ी से एक टोकिी भमट्टी लेकि उसी का चल्
ू हा
बनाकि िोटी पकाऊँगी। इससे ििोसा है कक वह िोटी खाने लगेगी। महिाज, कृपा किके आज्ञा
दीक्जए तो इस टोकिी में भमट्टी ले जाऊँ।" श्रीमान ् ने आज्ञा दे दी।

ववधवा झोंपड़ी के िीति गई। वहाँ जाते ही उसे अपनी पुिानी बातों का स्मिण हुआ औि
उसकी आँखों से आँसू की धािा बहने लगी । अपने आंतरिक दख ु ों को ककसी तिह सम्हाल कि
उसने अपनी टोकिी भमट्टी से िि ली औि हाथ में उठाकि बाहि ले आई। कफि श्रीमान ् से हाथ
जोड़कि ववनती किने लगी, “महािाज, कृपा किके

हाथ लगा दीक्जए क्जससे कक मैं इसे अपने भसि पि धि लँ ।" जमींदाि साहब पहले तो गुस्सा
हए, कफि जब वह बाि-बाि हाथ जोड़ने लगी औि पैिों में गगिने लगी तो उनके मन में िी कुि
दया आ गई। ककसी नौकि से न कहकि आप ही स्वयं टोकिी उठाने आगे बढे । ज्योंही टोकिी को
हाथ लगाकि ऊपि उठाने लगे, त्योंही दे खा कक यह काम उनकी शक्तत के बाहि है । कफि तो उन्होंने
अपनी सब ताकत लगाकि टोकिी को उठाना चाहा, पि क्जस स्थान पि टोकिी िखी थी, उस स्थान
से वह एक हाथ िी ऊँची न उठी। वह लक्ज्जत होकि कहने लगे यह टोकिी हमसे नहीं उठाई
जाएगी।

यह सुनकि ववधवा ने कहा, “महािाज, नािाज न हों, तो ...... आपसे एक टोकिी िि भमट्टी
नहीं उठाई जाती औि इस झोपड़ी में तो हजािों टोकरियाँ भमट्टी पड़ी है । उसका िाि आप जनम
िि कैसे उठा पाओगे? आप इस बात पि ववचाि कीक्जए।"

जमींदाि साहब धन मद से गववतत हो अपना कर्त्तव्य िूल गए थे। पि ववधवा के कहे हुए
वचन सुनते ही उनकी आँखें खल
ु गईं। कृतकमत का पश्चाताप कि उन्होंने ववधवा से क्षमा माँगी
औि झोंपड़ी वापस दे दी।

शब्दार्थ:- जमींदाि - िू-स्वामी, अनाथ-लावारिश, असहाय, पतोहू-बहू, मत


ृ प्राय-जो मिे हुए के समान
हो, प्रयत्न-कोभशश, तनष्फल-व्यथत, अदालत-न्यायालय, स्मिण-याद किना, पश्चाताप-पितावा

अभ्यास
पाठ से
1. जमींदाि ववधवा से झोपड़ी हटाने के भलए तयों कह िहा था?
2. जमींदाि ने झोपड़ी को कब्जा किने के भलए कौन-सी चाल चली?
3. ववधवा की झोपड़ी से कौन सी यादें जुड़ी हुई थीं? क्जसके कािण वह झोपड़ी िोड़ना नहीं
चाहती थी।
4. ववधवा की पोती ने खाना-पीना तयों िोड़ हदया था ?
5. बुहढया झोपड़ी में से एक टोकिी भमट्टी तयों ले जाना चाहती थी?
6. ववधवा द्वािा टोकिी उठाने को कहने पि ’जमींदाि नौकि से न कहकि खद
ु टोकिी तयों
उठाने लगे?
7. जमींदाि को ववधवा के सामने ककस कािण से लक्ज्जत होना पड़ा?
8. जमींदाि द्वािा टोकिी न उठा पाने पि ववधवा ने तया कहा?
9. ‘‘आपसे एक टोकिी िि भमट्टी नहीं उठाई जाती औि इस झोपड़ी में तो हजािों टोकरियाँ
भमट्टी पड़ी है ।’’ ववधवा के इस कथन के पीिे तया िाव िहा होगा?
10. इस कहानी का शीषतक ‘एक टोकिी िि भमट्टी’ तयों िखा गया है ?

पाठ के आगे
1. जमींदाि के द्वािा ववधवा के साथ ककया जाने वाला व्यवहाि उगचत है
अथवा अनुगचत ? अपने ववचाि भलणखए।
2. वकीलों का कायत न्याय हदलाना होता है , पिन्तु इस पाठ में जमींदाि वकीलों की मदद से
गिीब ववधवा की झोपड़ी पि कब्जा कि लेता है । वकीलों का जमींदाि का साथ दे ना उगचत
था या अनगु चत भलणखए।
3. जमींदाि ने ववधवा की जमीन को गलत तिीके से हगथया भलया था क्जसे उसने बाद में
वापस िी कि हदया। उसे वापस किने के पीिे तया कािण िहे होंगे? भलणखए।
4. हमािे आस-पास अिाव में क्जंदगी जीने वाले कई लोग िहते है। उन्हें कई पिे शातनयों का
सामना किना पड़ता है । उन्हें दे खकि आपके मन से ककस तिह के िाव उत्पन्न होते हैं?

िाषा से
पाठ में आए इस वातय को दे णखए ’’ ववधवा को वहाँ से तनकाल हदया’’।
यहाँ पि ववधवा, उस गिीब स्त्री के भलए प्रयुतत शब्द है क्जसे जमींदाि ने
उसकी अपनी जमीन से बेदखल कि हदया था। सामान्य रूप से ’ववधवा’
जाततवाचक संज्ञा शब्द है जो ऐसी क्स्त्रयों के भलए प्रयुतत होता है क्जनका पतत मि चक
ु ा होता है ।
किी-किी िाषा में जाततवाचक संज्ञा का व्यक्तत वाचक संज्ञा के रूप में प्रयोग होता है जैसा कक
ऊपि के वातय में ववधवा शब्द को लेकि ककया गया है । जाततवाचक संज्ञा का व्यक्ततवाचक के
रूप में प्रयोग के कुि अन्य उदाहिण तनम्न हैं -
1. मैं पिु ी जाने वाला हूँ?
2. पुिोहहत ने कथा सुनाई।
3. इस आदमी ने चोिी की है ।
1. अब आप सागथयों की सहायता से दस ऐसे वातय भलणखए क्जसमें जाततवाचक संज्ञा का
व्यक्ततवाचक संज्ञा के रूप में प्रयोग हुआ हो।
2. संज्ञा के क्जस रुप से एक से अगधक वस्तुओं का बोध हो उसे बहुवचन कहते हैं।
जैसे -
1. सड़कों पि लोग चल िहे हैं।
2. ववद्यागथतयों को पुस्तकें दे दो।
3. हम लोग पाठशाला जाएँगे।
हहन्दी में अनेक संज्ञाएँ ऐसी हैं क्जनका प्रयोग एकवचन में िी होता है औि बहुवचन
में िी।
जैसे - बालक जा िहा है - बालक जा िहे हैं।
ऐसे ही दो अन्य संज्ञाओं को ढूँढकि उनका वातयों में प्रयोग कीक्जए।
3. नीचे हदए गए वातयों को बहुवचन में बदभलए
क. आम पका हुआ है ।
ख. आदमी सुन िहा है ।
ग. साधु ध्यानमग्न बैठा है ।
4. पाठ में आए तनम्न मुहाविों का वातयों में प्रयोग कीक्जए।
फूट-फूटकि िोना, बाल की खाल तनकालना, थैली गिम किना, आँखे
ं े खल
ु ना।
5. तनम्न शब्दों के दो-दो पयातयवाची शब्द भलणखए औि उनका अपने वातयों में प्रयोग कीक्जए-
घि, आँख, हाथ, पत्र
ु , पैि।
6. तनम्नभलणखत वातयांशों के भलए एक-एक शब्द भलणखए -
जैसे - जो किी नहीं मिता - अमि
क. क्जसका पतत मि गया हो -
ख. क्जसका कोई नहीं हो -
ग. जो मिे हुए के समान हो -
घ. क्जसका कोई सहािा न हो -
ङ. क्जसकी तल
ु ना न की जा सके -
7. आपने स्वि औि व्यंजन पढे हैं। अ, आ, इ, ई, उ, ऊ,ऋ, ए, ऐ, ओ, औ ये ग्यािह स्वि हैं।
क, ख,ग ......................आहद व्यंजन हैं।
8. इन शब्दों को पहढए -
अपना, उठा, आप, इस, ओि, एक, ऊपि, ओस।
इन शब्दों में आप दे खेंगे/दे खेंगी कक कहीं िी दो स्वि एक साथ नहीं आए हैं।
आए, आओ शब्दों में दो स्वि वणत एक साथ आए हैं।
आप ऐसे चाि शब्द सोचकि भलणखए क्जनमें दो स्वि एक साथ आए हों।
इन शब्दों की िचना समणझए -
वहीं - वहाँ + ही
कहीं - कहाँ + ही
आप इसी प्रकाि इन शब्दों की िचना भलणखए -
तिी, सिी, तुम्हीं, अिी, किी।
9. तनधतन व्यक्तत के दै तनक जीवन पि दस वातय भलणखए।

योग्यता विस्तार-
1. जमींदािी प्रथा के बािे में अपने अध्यापक/अध्यावपका से पूिकि जानकािी प्राप्त कीक्जए।
2. जमींदािी प्रथा सामाक्जक, आगथतक, शैक्षणणक ववकास में एक बाधा थी। ऐसे ही हमािे आस-
पास कई कुप्रथायें प्रचभलत हैं, जो हमािे समाज के ववकास में अविोध उत्पन्न किती हैं।
3. ’’एक टोकिी िि भमट्टी’’ जैसी ही अन्य कहानी भशक्षक की मदद से ढूँढकि पहढए।
पाठ 3
हे लन केलर
-संकभलत

आम तौि पि दे खा गया है कक ववकलांग बच्चे या यव


ु ा अपने जीवन से तनिाश होकि
अकमतण्य हो जाते हैं ककन्तु ववश्व इततहास में ऐसे िी उदाहिण भमल जाएँगें जहाँ ववकलांग बच्चों
ने सामान्य बच्चों की अपेक्षा अगधक क्षमता से न केवल सामान्य जीवन ही क्जया विन ् महान
कायत िी ककए। अमेरिका की एक अंधी-बहिी महहला, हे लन केलि ऐसी ही महान ् वविूतत थी। उन्होंने
अपने कठोि श्रम, दृढ इच्िा -शक्तत से वे असाधिण कायत ककए जो दो आँखें औि दो कान िखने
वाले किोड़ों लोग नहीं कि पाए। आइए इस पाठ में हम उस कमतठ महहला का जीवन परिचय पढें ।

अमेरिका की सुप्रभसद्ध महहला, हे लन केलि का जन्म 27 जून, सन ् 1880 में हुआ था। अंधी
औि बहिी होते हुए िी इस महहला ने उच्च भशक्षा प्राप्त की औि कफि दीनदणु खयों की सेवा में
अपना जीवन अवपतत कि हदया । आज इस महहला को सािा संसाि जानता है । कुमािी हे लन जन्म
से तो अंधी, गूंगी औि बहिी नहीं थी, डेढ वषत की अवस्था तक वह िी दस
ू िे बच्चों की तिह दे ख-
सुन सकती थी । कुि-कुि तुतलाकि बोलने िी लगी थी, पि वह अकस्मात ् बीमाि हो गई। बीमािी
से तो उसकी जान बच गई, पि आँख, कान औि वाणी वह सदा के भलए खो बैठी।
हे लन अन्य बच्चों की अपेक्षा अगधक बुद्गधमती थी। उसमें ववलक्षण प्रततिा थी, पि बेचािी
अपने अनुिवों को प्रकट किने में बबल्कुल असमथत थी। उसे अपनी असमथतता पि बड़ी झुंझलाहट
होती थी। किी-किी वह अपने िोटे िाई-बहहनों को बुिी तिह माि बैठती थी या कफि दख
ु ी होकि
अपने आपको ही ककसी-न-ककसी तिह दं ड हदया किती थी।
हे लन का दख
ु उसके माता-वपता से नहीं दे खा गया । उन्होंने काफी सोच-ववचाि के बाद उसे
अंधे-बहिों के स्कूल में िती किाने का तनश्चय ककया । दै वयोग से बोस्टन की अंध-बगधि शाला में
सलीवन नाम की एक योग्य अध्यावपका उन्हें भमल गई । सलीवन बहुत ही संवेदनशील थी' ।
उन्होंने खद
ु िी अंधेपन का दख
ु िोगा था औि आपिे शन के बाद कुि हदनों पहले ही दृक्ष्ट प्राप्त
की थी। इसभलए वे हे लन के दख
ु को समझ सकती थीं। उन्होंने उसकी दे ख-िे ख औि भशक्षा का
िाि सहषत अपने कंधों पि ले भलया औि हे लन के दखों को दि किने का उपाय सोचने लगीं, पि
हे लन को समझने औि उसके मन की बात समझने का कोई उपाय उन्हें नज़ि नहीं आया। इससे
सलीवन को बड़ी तनिाशा हुई । क्जस दातयत्व को उन्होंने स्वीकाि ककया था, उसे पूिा किने का वे
सदा प्रयत्न किती िहीं।
हे लन को अपनी गुडड़या बहुत प्यािी थी । वह उससे पल िि िी जुदा नहीं होना चाहती थी।
सलीवन ने एक हदन हे लन की हथेली पि उँ गली से डॉल (गुडड़या) शब्द भलखा । हे लन को उँ गभलयों
का यह खेल बड़ा पसंद आया । वह फौिन अपनी माँ के पास गई । उसने वैसा ही डॉल (गुडड़या)
शब्द भलखा । यह दे खकि हे लन की भशक्षक्षका फूली न समाई । उन्हें क्जस उपाय की खोज थी वह
आज अनायास ही भमल गया । अब सलीवन उसे तनत नए शब्द
भसखाने लगीं । हे लन ज्यों-ज्यों नए शब्द सीखती, त्यों-त्यों अगधक
सीखने की उसकी क्जज्ञासा बढती जाती। वह अपने संपकत में आने
वाली हि एक चीज़ का नाम जान लेना चाहती थी। हे लन ने उन
हदनों का वणतन किते हुए अपनी आत्मकथा में भलखा है -"ज्यों-
ज्यों मैं सीखती जा िही थी, दतु नया, क्जसमें मैं िहती थी, मझ
ु े
अगधक सुखमय औि आकषतक नज़ि आती जा िही थी।"
धीिे -धीिे सलीवन ने हे लन को अंध भलवप (ब्रेल) िी भसखा
दी। अब तया था ? हे लन ने अपना सािा समय भलणखत साहहत्य
को पढने में लगा हदया। वह खाना-पीना िल
ू कि िात-हदन इस
भलवप में भलखे साहहत्य को पढा किती । दै वयोग से एक हदन उसकी वाचा िी खल
ु गई । एक
हदन यकायक उसके मँह
ु से कुि टूटे -फूटे शब्द तनकल पड़े क्जसका आशय था 'आज बड़ी गमी है ।'
हे लन की वाणी सन ु कि अन्य लोगों को तो प्रसन्नता हुई ही, पि हे लन के जीवन का वह सबसे
सख ु ी हदन था । हे लन ने इसका उल्लेख िी अपनी जीवनी में ककया है । वह भलखती है "उस हदन
मेिे हृदय में क्जतना आनंद औि उल्लास उमड़ा, उतना शायद ही ककसी बालक के जीवन में किी
उमड़ा हो।"
इस अध्ययनशील बाभलका ने घि की पढाई पिू ी किके अपनी भशक्षक्षका की सहायता से
कैक्म्ब्रज स्कूल में प्रवेश ककया । आश्चयत की बात है कक स्कूल की पढाई किने के अलावा उसने
के वल दो वषत में ही अंग्रेजी, जमतन औि फ्रेंच िाषाओं पि िी अच्िा काबू पा भलया । स्कूल की
पढाई पिू ी किके हे लन ने कॉलेज में प्रवेश ककया । कॉलेज में िी उसने कहठन परिश्रम ककया औि
सन ् 1904 में बी. ए. की पिीक्षा पास कि ली । उल्लेखनीय बात यह है कक पिीक्षा में हे लन प्रथम
श्रेणी में पास हुई। पढाई पूिी किके हे लन ने भलखना शुरू ककया । ब्रेल भलवप में उसने 'मेिी
आत्मकथा' आहद एक के बाद एक पूिी नौ पस् ु तकें भलखीं। ये पुस्तकें ववश्व-साहहत्य की अमूल्य
तनगध हैं ।
हे लन को प्रकृतत से बड़ा प्रेम था । यद्यवप वह वसंत के णखले फूलों को औि लहिों पि
गथिकती चाँदनी को दे ख नहीं सकती थी पि उनका मन-ही-मन अनि
ु व अवश्य किती थी। प्रकृतत
उसे कैसी लगती है औि उसका उसके अंतमतन पि तया प्रिाव पडता है . इसका उसने अपनी पस्तकों
में ववस्ताि से उल्लेख ककया है । हे लन को नाव खेने, तैिने औि घुड़सवािी किने का िी शौक था।
वह शतिं ज औि ताश िी खेल लेती थी। एक बाि यौवनकाल में हे लन ने वववाह किने औि
घिगह
ृ स्थी बसाने का ववचाि ककया था, पि शीघ्र ही उसे अपनी िूल मालूम हो गई औि वववाह का
ववचाि त्यागकि उसने अपने आपको समाज-सेवा के काम में लगा हदया।
सबसे पहले उसने अनाथालय के अंधे-बहिे बच्चों की सेवा किने का काम शरू
ु ककया । कफि
'भमल्टन अंध सोसाइटी' नामक एक सोसाइटी कायम किके अंधे ववद्यागथतयों के भलए ब्रेल भलवप में
उपयोगी साहहत्य प्रकाभशत किने की व्यवस्था की।
इसके पश्चात ् हे लन ने ववश्व-यात्रा प्रािं ि की । पहले उसने यूिोप की यात्रा की, कफि वह
आस्रे भलया, कनाडा, भमस्र, जापान, दक्षक्षणी अफ्रीका, िाित इत्याहद दे शों में घूमी। उसकी यात्रा का
एकमात्र उद्दे श्य था, ववभिन्न दे शों के अंधे-बहिे लोगों के जीवन में आशा औि उत्साह का संचाि
किना । वह इस पववत्र उद्दे श्य को लेकि जहाँ कहीं गई, उसका यथेष्ट आदि हुआ । उसकी सेवाओं
से आज सािा संसाि उसके चिणों में श्रद्धानत है । एक अंधी-बहिी महहला इतना सब कि सकती
है , यह बात आसानी से समझ में नहीं आती, पि जैसा कक ककसी ने कहा है - 'सत्य घटनाएँ कक्ल्पत
ककस्सों से अगधक आश्चयतजनक होती हैं ।' यह बात हे लन के जीवन पि हू-ब-हू लागू होती है ।
टीप-बेल भलवप- ब्रेल भलवप दृक्ष्टहीनों को भशक्षा दे ने के भलए बनाई गई वह ववशेष भलवप है क्जसमें
मोटे कागज़ पि सज ू े से िे दकि ध्वतनसूचक बबंहदयाँ बनाई जाती हैं । पलट कि उन उििी हुई
बबंहदयों को उँ गभलयों के स्पशत से पढा जाता है । इसका आववष्काि लई ु ब्रेल ने ककया था।
शब्दार्थ - सुप्रभसद्ध - मशहूि, ववख्यात, अवपतत - दे ना, दान, ववलक्षण -ववशेष लक्षण से मुतत, प्रततिा
- ववलक्षण बुद्गध, बोस्टन - अमेरिका का अिाव, अनायास - बेवजह, क्जज्ञासा - जानने की इच्िा,
फौिन - तुिन्त, दै वयोग - दे वताओं की कृपा से, यकायक - अकास्मात ्, उल्लास -प्रसन्रता, आनन्द,
परिश्रम - मेहनत, यथेष्ट - क्जतना चाहहए उतना, काफी।

अभ्यास

पाठ से
1. हे लन केलि कौन थी?
2. हे लन केलि ने अपनी पढाई ककस ववद्यालय से प्रािं ि की थी एवं उन्होंने ककस कक्षा तक
भशक्षा प्राप्त की?
3. सलीवन हे लन के दुःु ख को तयों समझ सकती थी?
4. सलीवन ने हे लन के मन की तनिाशा को कैसे दिू ककया?
5. सलीवन की प्रेिणा से तया सीख/भशक्षा भमलती है ।
6. हे लन के जीवन का सबसे सुखी हदन कौन सा था?
7. सलीवन की ववभशष्ट क्षमता हाभसल किने के बाद अपने सुखद अनुिवों के बािे में हे लन
ने अपनी जीवनी में तया भलखा?
8. हे लन ने समाज सेवा के कौन-कौन से कायत ककए?
9. सलीवान ने हे लन को शब्द भलखना कैसे भसखाया?
10. ब्रेल भलवप तया है ?
11. पढाई के अलावा हे लन के कौन-कौन से शौक थे? उसका ककन-ककन िाषाओं पि अगधकाि
था?
12. हे लन केलि ने हदव्यागों की सेवा के भलए ककस सोसायटी की स्थापना की? इसकी स्थापना
के उद्दे श्य तया थे?
13. हे लन का जीवन शािीरिक रूप से बागधत लोंगो को तया प्रेिणा दे ता है ?
14. हे लन झुंझलाहट मैं तया किती थी?
15. ‘ज्यों-ज्यों मैं सीखती गई दतु नया, क्जसमें मैं िहती थी, मुझे अगधक सुखमय औि आकषतक
नजि आती जा िही थी’। हे लन के इस कथन का तया आशय है ?
16. ‘सत्य घटनाएँ कक्ल्पत ककस्सों से अगधक आश्चयतजनक होती हैं।’इसका तया आशय हैं?

पाठ से आगे
1. यहद हे लन स्वयं पि ईश्वि का प्रकोप मानकि तनक्ष्क्रय पड़ी िहती तो
तया होता? सोचकि भलणखए।
2. एक नेत्रहीन व्यक्तत दतु नया के रूप के बािे में तया सोचता होगा? कल्पना
किके भलणखए।
3. शािीरिक रूप से अक्षम लोगों के भलए तया-तया सुववधाएँ होनी चाहहए?
4. शािीरिक रूप से बागधत लोग सहानुिूतत के पात्र होते हैं या समान अवसि पाने के? अपने
ववचाि भलणखए।
5. हे लन के सफल होने में उसकी भशक्षक्षका सलीवान की महत्वपूणत िूभमका थी? अगि सलीवान
न होती तो तया हे लन वो सब कि पाती जो उसने ककया?
6. ‘आत्मववश्वास औि सच्ची लगन से जो कायत प्रािं ि ककया जाता है , उसमें व्यक्तत को अवश्य
सफलता भमलती है ।’ हे लन के जीवन को दृक्ष्ट में िखते हुए इस कथन को भसद्ध कीक्जए।

िाषा से
1. हदए गए उपयत
ुत त कािक गचह्नों को खाली स्थानों में िरिए -
(पि, को, ने, के, का )
क. हे लन ................अपनी गडु ड़या बहुत वप्रय थी।
ख. सलीवन .....................हेलन की हथेली पि ऊँगली से डॉल (गुडड़या)
शब्द भलखा।
ग. हे लन ....................ऊँगभलयों ....................यह खेल बहुत पसंद आया। वह फौिन
अपनी माँ ..................पास गई।
घ. धीिे -धीिे सलीवन ..................हे लन ..............ब्रेल भलवप भसखा दी।
ङ हे लन को नाव खेने, घोड़े ..............सवािी किने ................िी शौक था।
2. पाठ में ज्यों का ज्यों, ककसी न ककसी, हू-ब-हू, मन-ही-मन आहद शब्द आए है । इन शब्दों के
अथत ज्ञात कि इनका वातयों में प्रयोग कीक्जए।
3. (i) मैंने ककताब माँग कि पढी ।
(ii) उसकी माँग में भसंदिू था।
(i) सम संख्याओं का योग हमेशा सम संख्या ही होती है ।
(ii) योग किने से शिीि स्वस्थ िहता है ।
(i) नीचे हदए गए सवालों को हल किो।
(ii) ककसान हल से खेत जोतते है ।
ऊपि हदए गए वातयों में िे खांककत शब्द ’मांग’ ‘योग’ औि ’हल‘, अलग-अलग वातयों में
भिन्न अथत प्रकट कि िहे हैं। इस प्रकाि जब कोई एक ही शब्द, एक से अगधक अथत प्रकट किता
है तो वह ’अनेकाथतक’ या ’अनेकाथी’ शब्द कहलाता है । नीचे कुि अनेकाथी शब्द हदए गए हैं।
उनका अपने शब्दों में प्रयोग कीक्जए-
(1) अंक (2) काल (3) गतत (4) वणत
(5) कि (6) धन (7) खि (8) कनक
(9) घट (10) उर्त्ि (11) आम (12) गुरू
4. िाषा का शुद्ध लेखन उसके शुद्ध उच्चािण पि तनिति किता है । इसभलए िाषा के शुद्ध
उच्चािण पि ध्यान दे ना बहुत आवश्यक है । नीचे कुि त्रहु टयाँ औि उनके शुद्ध रूप हदए
जा िहे हैं-
अशुद्ध शुद्ध
कांच - काँच
मन
ु ी - मतु न
पुणत - पूणत
घन्टा - घण्टा
अब आप नीचे भलखे शब्दों की वततनी को शुद्ध किके भलणखए।
हस्ताक्षेप, बबमािी, लहु, एनक, हहिन, कँगन, ववस्वास, िुद्र्ि, ग्रहस्थ, आशीवाद।
5. तनम्नभलणखत के पयायतवाची शब्द भलणखए -
िात, हदन, माता, फूल, ईश्वि।

योग्यता विस्तार
1. शािीरिक रूप से बागधत कई प्रभसद्ध कवव, लेखक, कलाकाि औि वैज्ञातनक हुए हैं। भशक्षक
की सहायता से उनकी जीवतनयाँ खोज कि पहढए।
2. लुई ब्रेल का जीवन परिचय खोज कि पहढए।
3. अपनी आँखो पि पट्टी बांधकि ककसी अपरिगचत वस्तु को िूकि उसे पहचानने का प्रयास
कीक्जए एवं उसके आकाि, प्रकाि के ववषय में भलणखए।
4. कल्पना कीक्जए की एक नेत्रहीन व्यक्तत के भलए दतु नया का रुप कैसा होगा? अपने ववचाि
भलणखए।
पाठ 4
दूँ गी फल कनेर के
- श्री गंगाप्रसाद

इस कववता में कवव श्री गंगाप्रसाद जी ने िाितीय ग्रामीण जनजीवन की एक मोहक झाँकी
प्रस्तुत की है। बालकों के मन के िावों को एक नन्हीं बाभलका के माध्यम से अत्यंत सहजता एवं
सजीवता के साथ गचबत्रत किते हुए कवव ने मानव की उस स्वाथी प्रववृ र्त् की ओि िी ध्यान हदलाया
है , जो लालच में वक्ष
ृ ों को काटने से ततनक िी नहीं हहचकता। सिल, सुबोध िाषा-शैली में गाँव की
नन्हीं बाभलका के मन के िावों को प्रकट किती हुई यह कववता अत्यंत प्रिावी बन गई है ।

आना मेिे गाँव तम्


ु हें मैं
दं ग
ू ी फूल कनेि के ।
(1)
कुि कच्चे , कुि पतके घि हैं ,
एक पुिाना ताल है ।
सड़क बनेगी , सुनती हूँ ,
इसका नंबि इस साल है ।
चखते आना टीले ऊपि
कई पेड़ हैं बेि के ।
आना मेिे गाँव तुम्हें मैं
दं ग
ू ी फूल कनेि के ।
(2)
बाबा ने था पेड़ लगाया,
बापू ने फल खाए हैं ।
िाई कैसे उसे काटने ,
को िहते ललचाए हैं ?
मेिे बचपन में ही आए ,
हदन कैसे अंधेि के ?
आना मेिे गाँव तुम्हें मैं
दं ग
ू ी फूल कनेि के ।

(3)
खडड़या - पाटी , कॉपी - बस्ते
भलखना - पढना िोज़ है ।
खेलें - कूदें किी न तो कफि ,
यह सब लगता बोझ है ।
कई मख
ु ौटे तम
ु दे खोगे ,
भमट्टीवाले शेि के ।
आना मेिे गाँव तुम्हें मैं
दं ग
ू ी फूल कनेि के ।

(4)
हँसना - िोना तो लगता ही ,
िहता है हि खेल में ।
रूठे , कुट्टी कि ली लेककन ,
णखल उठते हैं मेल में ।
मगि दे खना तया होता है ,
मेिी गचट्ठी फेि के ?
आना मेिे गाँव तुम्हें मैं
दं ग
ू ी फूल कनेि के ।
शब्दार्थ:- ताल- तलाब, ललचाना - लुिाना, मोहहत किना मुखौटे - पाटी, चाक-स्लेट, कुवटी - अलग
होना (घास का चािा)

अभ्यास

पाठ से
1. प्रस्तत
ु कववता में कौन, ककसे अपने गाँव आने के भलए तनमंबत्रत कि िहा है ?

2. बाभलका अपने गाँव में बुलाने के भलए तया-तया प्रलोिन दे ती है ?

3. कववता की ककन पंक्ततयों से बाभलका का पयातविण प्रेम प्रकट होता है ?

4. ‘हँसना िोना तो लगता ही िहता है हि खेल में ’ कववता की इस पंक्तत का तया आशय है ?

5. ’कई मुखौटे ’ तुम दे खोगे भमट्टी वाले शेि के कववता की इस पंक्तत में मख
ु ौटे औि भमट्टी
वाले शेि का ककन अथों में प्रयोग हुआ है ?

6. ‘मेिे बचपन में ही आए हदन कैसे अंधेिे के’ बाभलका ऐसा तयों कह िही है ?

पाठ से आगे
1. बाभलका बता िही है कक इस साल उसके गाँव में सड़क बनेगी। सड़क के
बन जाने से गाँव औि वहाँ के लोगों के जीवन में तया-तया परिवततन हो
सकते हैं? सोचकि भलणखए।

2. बाभलका के िाई पेड़ को तयों काटना चाहते हैं? पेड़ काटने के तया नुकसान हैं? अपने ववचाि
भलणखए।

3. गाँव में कुि घि कच्चे औि कुि घि पतके हैं? आपको कच्चा घि अच्िा लगता है या
पतका? उसका कािण िी भलणखए।

4. बाभलका के गाँव में एक पुिाना तालाब है । तालाब तया होता है ? तालाब को अगि पाट हदया
जाए तो उससे गाँव ककस तिह प्रिाववत होगा? ववचािकि भलणखए।

5. कुट्टी किने की क्स्थतत कब आती है ? आपने िी अपने ककसी भमत्र से कुट्टी अवश्य की
होगी। उसकी वजह भलणखए औि यह िी भलणखए कक कफि कब औि कैसे आपकी पुनुः दोस्ती
हो गई।

6. ' कक्रया ' व्याकिण का एक प्रमख


ु अंग है । साधािण अथत में इससे तात्पयत है कायों से संबंध
होना। नीचे कुि वातय हदए जा िहे हैं । इनके िाव के अनुसाि खाली जगह को सही कक्रया
शब्द से िरिए ।
उदाहरण - बच्चे आम के बगीचे के आसपास. बणाचक आसपास . . . . . .. . . िहे थे ।
बच्चे आम के बगीचे के आसपास मँडिा िहे थे ।

क. हदन िि साइककल पि यात्रा किके िाकेश जब घि आया तो वह. . . . . . . .


ख. अपनी माता जी को आता हुआ दे खकि भशशु . . . . . . . . . . . . . .।
ग. डाकू की आवाज सुनकि सब लोग . . . . . . . . . . . . . . .
घ. ककशोि तो बहुत कमजोि है , भशक्षक कुि बात जोि से बताते हैं तो वह . . .।

7. क. तनम्नभलणखत संज्ञाओं से कक्रयाएँ बनाइए।

उदाहिण - पढाई - पढना भलखाई , भसलाई , बन


ु ाई , ििाई, सजाई।

ख. इन शब्दों के आधाि पि संज्ञा से कक्रया बनाने के संबंध में आप तया तनयम


बना सकते हैं ?

8. कववता के ककसी एक अंश को (पद्यांश को) गद्य में भलणखए।

िाषा से
1. अपने शहि या गाँव का िोचक वणतन किते हुए अपने भमत्र को पत्र
भलखकि वहाँ आने के भलए आमंबत्रत कीक्जए।

2. (अ) आना मेिे गाँव तुम्हें मैं, दँ ग


ू ी फूल कनेि के
कववता की इन पंक्ततयों को गद्य में इस प्रकाि भलखा जा सकता है -
मेिे-गाँव आना, मैं तुम्हें कनेि के फूल दँ ग
ू ी।
अब आप िी कववता की ककन्हीं आठ लाईनों को गद्य की शैली में परिवतततत कि
भलणखए।

3. नीचे भलखे वातयों में िे खांककत शब्दों पि ध्यान दीक्जए -


(अ) (i) कुतुबमीनाि इततहास से संबंगधत इमाित है ।
(ii) कुतुबमीनाि ऐततहाभसक इमाित है ।
(ब) (i) महात्मा पर्त्ों से बनी कुहटया में तनवास किते हैं।
(ii) महात्मा जी पणतकुटी में तनवास किते हैं।

’इततहास से संबंगधत’ के भलए ’ऐततहाभसक’ तथा ’पर्त्ों’ से बनी कुहटया के भलए ’पणतकुटी’
शब्द का प्रयोग ककया जा सकता हैं। इस प्रकाि िाषा में अनेक शब्दों के भलए एक शब्द का प्रयोग
ककया जा सकता है । इससे िाषा में संक्षक्षप्तता आती है तथा िाषा का सौंदयत बढ जाता है । आप
िी नीचे भलखे अनेक शब्दों के भलए एक शब्द भलणखए औि उनका वातयों में प्रयोग कीक्जए-
(1) जो किी न मिे (2) क्जसकी उपमा न हो
(3) क्जसका मूल्य न आँका जा सके (4) क्जसका अंत न हो
(5) सदा िहने वाला (6) जो सब कुि जानता हो
(7) जो कहठनाई से भमले। (8) जो मांस खाता है ।
(9) बहुत बोलने वाला (10) नष्ट होने वाला

4. कववता की तनम्न पंक्ततयों को लय में पहढए।


मेिे बचपन में ही आए
हदन कैसे अंधेि के?
आना मेिे गाँव तुम्हें मैं
दँ ग
ू ी फूल कनेि के

5. पढते समय आप दें खेगे कक िे खांककत शब्द अंधेि के तथा कनेि के शब्द की तुकान्तता की
वजह से कववता में लयात्मकता या गेयता आ गई है । आप िी हदये गये शब्दों से भमलते-
जल
ु ते तक
ु वाले

पाँच-पाँच साथतक शब्द भलणखए। खेले, खाए, टीले, फूल, घि, गाँव।

योग्यता विस्तार-
1. अपने घि औि आसपास के बड़े बुजुगों से पूि कि पता लगाइए कक
आपके गाँव या शहि में उनके बचपन से अब तक तया-तया परिवततन
हुए हैं? यह िी पता कीक्जए कक उन परिवततनों से तया-तया फायदे
नक
ु सान हुए हैं?

2. मुखौटे के बािे में आप तया जानते हैं? इसका उपयोग कहाँ-कहाँ औि तयों होता है ? समूह
में चचात किें ।

नीचे बनी ताभलका में कुि फूलों के अधिू े नाम हदए हुए हैं। उनके सही नाम बताइए।
(कोष्ठक में हदए वगों से पूिे कीक्जए। क्रम बाएँ से होगा) (ल, ि, ह, अ, व, बे, मों, ल, ल)
पाठ 5
बरखा आर्े
- लाला जगदलपरु ी
लोगन मन कहहथे बदलाव ह हमि संसाि के तनयम हवय ! जेकि कािण से समय के साथ
हमि धिती माता के रूप ह घलो बदलत िहहथे। किू चािों खट
ुँ गमी के हदन म रूखिाई मन के
पर्त्ा ह झि जाथे अऊ ठक-ठक लो हदखथे। त किी चािो खट
ुँ बिसात होय ला पानी ह िि जाथै।
सुतखा िुइयां म हरियाली िा जाथे। तब लगथे हमि सपना ह भसितोन होगे। ककसान अऊ बतनहाि
के मन खश
ु ी ल चमक जाथे। करिया-करिया बादि दे खके अइसन लगाये जइसे दुःु ख-पीिा के गचट्ठी
ल बादि हिकािा बनके बिखा ल बुलाके लाए हवय। अउ जेकि कािण चािों खट
ुँ आज जम्मो लोगन
मन खश
ु ी से झुमत हवय। ककसम-ककसम के साग-पान फिे -फूले हवय अऊ धिती के जम्मो जीव
मन के प्यास आज बुझ जाथे।

खेती ल हुभसयाि बनाय बि


िुइयाँ म बिखा आथे।
क्जनगी ल ओसाि बनाय बि
िुइयाँ म बिखा आथे।
सोन बनाय बि माटी ल
सपना ल भसितोन बनाय बि,
आँसू ल बतनहाि बनाय बि
िुइयाँ म बिखा आथे।
बाजत िहहथे णझभमि-णझभमि
िोज गचकािा अस बिखा के।
बाजत िहहथे घड़-घड़-घड़
िोज नंगािा अस बिखा के।
खभु सयाली के गचट्ठी लेके
बादि दरु िहा-दरु िहा जाथे,
करिया-करिया बादि ल
समझव हलकािा अस बिखा के।
जोत जोगनी के तािा अस
जुग-जुग बिथे अँगधयािी म।
आसा, मन के, बबजली बन के
चम-चम किथे अँगधयािी म।
मेचका मन के आिो भमलथे
कपस-कपस जाथे लइका हि,
हवा बही कस किू उदप
ु ले
कहूँ खस
ु िथे अँगधयािी म।
कहूँ तोिइ, तूमा, िमकेभलया
झूलत होवे बखिी म।
कहूँ किे ला-कँु दरु अउ िणखया
फूलत होवे बखिी म।
कहूँ जिी ह लामे होही,
बिबट्टी ह ओिमे होही।
खस
ु होके लइका-वपचका मन
बल
ू त होही बखिी म।
अतका पानी दे तैं, जतका
क्जनगी के बबस्वास माँगथे।
अतका पानी दे तैं, जतका
अन लिमी ह साँस माँगथे।
मोि दे स के गाँव-गाँव ल
अतका पानी दे तैं बिखा,
जतका पानी पतनहारिन ल
तरिया तीि वपयास माँगथे।

छत्तीसगढ़ी शब्द िन के हहन्दी अर्थ


िुइयाँ = िूभम, धिती ओसाि = शक्ततशाली
भसितोन = सच,सत्य बतनहाि = मजदिू
गचकािा = सािं गी जैसा एक प्रकाि हलकािा = संदेशवाहक
का बाजा जोगनी = जुगनू
आिो = आवाज,जानकािी कपस जाथे = काँप जाते हैं
जिी = एक प्रकाि का पौधा, ओिमे होही = लटका होगा
क्जसका सब कुि सब्जी बूलत = घूमना
के काम में आता है ।(खेंड़हा) अन = अन्न
बबसाबो = खिीदें गे फरिका = बाँस आहद से बना
ककवाड़
अभ्यास
पाठ से
1. बिखा आये के का कािण हवय ?
2. बिखा आये से क्जनगी म का पििाव होथे ?
3. सपना ह भसितोन कइसे बनथे ?
4. बिखा ह कोन-कोन रूप म बाजत हवय ?
5. कवव ह बादल ल हिकािा कस काबि कहे हवय ?
6. अंगधयािी म बित जोगनी ल कवव ह का क्जतनस कहे हवय ?
7. लइका मन का कािण से कपसत हवय ?
8. कवव बिखा ले कतका पानी माँगत हे ?
9. खाल्हे भलखाय कववता मन के अथत भलखव-
(क) क्जनगी ल ओसाि बनाय बि िइ
ु याँ म बिखा आथे।
(ख) जतका पानी पतनहारिन ल तरिया तीि वपयास माँगथे।
(ग) आसा मन के बबजली बन के चम-चम किके अँगधयािी म।

पाठ से आगे
1. बिखा आये के पहहली अऊ बाद में कोन-कोन से रितु होथे ? उन तीनों
रितु म कोन-कोन से अंति दे खे बि भमलथे ? कक्षा में बात किके भलखव।
2. ककसान मन बिखा आये के पहहली ककसानी किे बि कोन ककसम से तइयािी किथें ? ओकि
ले ककसानी बािी मां का लाि होथे ?
3. बिखा रितु आये से हमि घि के चािों कोती बदलाव होथे जेमा झंझटहा अऊ सघ्
ु घि दन
ु ो
लागथे। अपन अनुिव ल भलखव।
4. कवव ह दे स के गाँव बि काबि पानी मांगत हे अऊ ओकि से गाँव म का-का पििाव होही?

िाषा से

1. ओहि नहदया के तीि बैठे िहहस।


इहाँ तीि के मायने ‘पास’ हवे। तीि के उल्टा शब्द दरु िहा हवे।
अइसने ककसम से खाल्हे भलखाय सब्द मन के अथत समझके हहंदी में उल्टा सब्द भलखव।
बबस्वास, खस
ु , ओसाि, बतनहाि, भसितोन, बबसाबो आहद।
2. ‘‘चम-चम किथे अँगधयािी में ’’ कववता के पंक्तत म चम-चम सब्द ह सँघिा द ू बेि
आये हवय।
जब कोनो सब्द एक संघिा द ू बेि आथे त ओला पन
ु रूक्तत सब्द कहे जाथे। चम-चम सब्द
जइसन सँघिा सब्द ल पाठ ले िाँट के भलखव।
3. पाठ में पानी सब्द आये हवय जेकि मायने ‘जल’ होथे अऊ ‘नीि’ घलो कहहथे।
िाषा म जेन सब्द मन के मायने समान होथे वोला पयातयवाची सब्द कहे जाथे। अइसने
पिकाि के सब्द मन के अथत समान होथे।
जैस-े पानी-जल, नीि
अइसने पिकाि से खाल्हे भलखाय सब्द मन के हहन्दी म अथत भलखके पयातयवाची
सब्द भलखव। सोन, बिखा, बबजली, फूल, लिमी, िुइयाँ।

योग्यता विस्तार
1. हमि िर्त्ीसगढ में बिखा जइसन अलग-अलग ततहाि उपि घलो कववता
भलखे गेहे। ओमन ला खोज के पढव।
2. लक्ष्मण-मस्तुरिहा के गाये गीत ‘‘मोि संग चलव िे ’’ ला सुनव अऊ कक्षा में गावव।
3. ‘‘मोि गँवई गाँव लागय बड़ सुघ्घि-सुध्घि सबके घि दव
ु ाि हदखत हवय उज्जि-उज्जि।’’
अइसने तुक भमलाके चाि पंक्तत के कववता भलखव।

इन्हें िी जानें-
गाय के बारे िें विस्तत
ृ जानकारी

टीप-उपयत
ुत त बबन्दओ
ु ं पि िात्र/िात्राओं से परिचचात, वाद-वववाद, लेखन आहद किाएँ।
पाठ - 6
सफेद गुड़
- सिेश्िर दयाल सक्सेना
प्रस्तुत कहानी बाल मन की उन सहज िावनाओं को व्यतत किता है , क्जसका तनमातण उसके
घि, परिवेश औि माँ के द्वािा सुनाई हुई कहातनयों के जरिये हुआ हैं। माँ का यह कहना कक वे
अकेले नहीं हैं , उनके साथ ईश्वि है , से आश्वस्त, ववपन्नता से गुजिता हुआ वह ग्यािह वषत का
बालक ईश्वि के एहसास के साथ जीता औि ईश्वि की प्रसन्नता औि साथ के भलए अपनी तोतली
जबान के समय से ही प्राथतना, मंत्र पाठ में लगा िहता है । ववश्वास औि ईश्वि के साथ होने की
यही सोच उसे सफेद गुड़ को पाने के भलए उत्साह से िि दे ता है , पि कहानी का अंत एक पीड़ा
बोध की अनुिूतत िोड़ जाता है , जब वह बालक अपनी िलिलायी आँखों से यह एहसास किता है
कक ‘‘उसने ईश्वि से माँगा था, दक
ु ानदाि से नहीं। दस
ू िों की दया उसे नहीं चाहहए।‘‘

दक
ु ान पि सफेद गुड़ िखा था, दल
ु ि
त था। उसे दे खकि बाि-बाि उसके मँह
ु में पानी आ जाता
था। आते-जाते वह ललचाई नजिों से गुड़ की ओि दे खता, कफि मन मसोसकि िह जाता ।
आणखिकाि उसने हहम्मत की औि घि जाकि माँ से कहा। माँ बैठी फटे कपड़े भसल िही थी।
उसने आँख उठाकि कुि दे ि दीन दृक्ष्ट से उसकी ओि दे खा, कफि ऊपि आसमान की ओि दे खने
लगी औि बड़ी दे ि तक दे खती िही। बोली कुि नहीं। वह चप
ु चाप माँ के पास से चला गया। जब
माँ के पास पैसे नहीं होते तो वह इसी तिह दे खती थी। वह यह जानता था।
वह बहुत दे ि गुमसुम बैठा िहा, उसे अपने वे साथी याद आ िहे थे जो उसे गचढ-गचढाकि गुड़
खा िहे थे। ज्यों-ज्यों उसे उनकी याद आती, उसके िीति गुड़ खाने की लालसा औि तेज होती
जाती। एकाध बाि उसके मन में माँ के बटुए से पैसे चिु ाने का िी ख्याल आया। यह ख्याल आते
ही वह अपने को गधतकािने लगा औि इस बुिे ख्याल के भलए ईश्वि से क्षमा माँगने लगा।
उसकी उम्र ग्यािह साल की थी। घि में माँ के भसवा कोई नहीं था। हालाँकक माँ कहती थी
कक वे अकेले नहीं हैं , उनके साथ ईश्वि हैं। वह चँ कू क माँ का कहना मानता था इसभलए उसकी यह
बात िी मान लेता था। लेककन ईश्वि के होने का उसे पता नहीं चलता था। माँ उसे तिह-तिह से
ईश्वि के होने का यकीन हदलाती। जब वह बीमाि होती, तकलीफ में किाहती तो ईश्वि का नाम
लेती औि जब अच्िी हो जाती तो ईश्वि को धन्यवाद दे ती। दोनों घंटों आँख बंद कि बैठते। बबना
पूजा ककए हुए वे खाना नहीं खाते। वह िोज सुबह-शाम अपनी िोटी-सी घंटी लेकि, पालथी मािकि
संध्या किता। उसे संध्या के सािे मंत्र याद थे, उस समय से ही जब उसकी जबान तोतली थी। अब
तो यह साफ बोलने लगा था।
वे एक िोटे -से कस्बे में िहते थे। माँ एक स्कूल में अध्यावपका थी। बचपन से ही वह ऐसी
कहातनयाँ माँ को सुनता था। क्जनमें यह बताया जाता था कक ईश्वि अपने िततों का ककतना
ख्याल िखते हैं औि हि बाि ऐसी कहानी सुनकि वह ईश्वि का सच्चा ितत बनने की इच्िा से
िि जाता। दस
ू िे िी उसके पीठ ठोंकते, औि कहते, ‘बड़ा शिीफ लड़का है ‘। ईश्वि उसकी मदद किे गा।
वह िी जानता कक ईश्वि उसकी मदद किे गा। लेककन किी इसका कोई सबूत उसे नहीं भमला था।
उस हदन जब वह सफेद गुड़ खाने के भलए बेचन
ै था तब उसे ईश्वि याद आया। उसने खद

को गधतकािा, उसे माँ से पैसे माँगकि माँ को दख
ु ी नहीं किना चाहहए था। ईश्वि ककस हदन के
भलए है ? ईश्वि का ख्याल आते ही वह खशु हो गया। उसके अंदि एक ववगचत्र-सा उत्साह आ गया।
तयोंकक वह जनता था कक ईश्वि सबसे अगधक ताकतवि है । वह सब जगह है औि सब कुि कि
सकता है । ऐसा कुि िी नहीं जो वह न कि सके। तो तया वह थोड़ा-सा गड़
ु नहीं हदला सकता?
उसे, जो कक बचपन से ही उसकी पूजा किता आ िहा है औि क्जसने किी कोई बुिा काम नहीं
ककया। किी चोिी नहीं की, ककसी को सताया नहीं। उसने सोचा औि इस िाव से िि उठा कक
ईश्वि जरूि उसे गुड़ दे गा।
वह तेजी से उठा औि घि के अकेले कोने में पूजा किने बैठ गया। तिी माँ ने आवाज दी,
‘बेटा, पूजा से उठने के बाद बाजाि से नमक ले आना।‘
उसे लगा जैसे ईश्वि ने उसकी पुकाि सुन ली है । विना पूजा पि बैठते ही माँ उसे बाजाि
जाने को तयों कहती। उसने ध्यान लगाकि पूजा की, कफि पैसे औि झोला लेकि बाजाि की ओि
चल हदया।
घि से तनकलते ही उसे खेत पाि किने पड़ते थे, कफि गाँव की गली, जो ईंटों की बनी हुई थी,
कफि बाजाि की ओि चल हदया।
उस समय शाम हो गई थी। सूिज डूब िहा था। वह खेतों में चला जा िहा था, आँखें आधी
बंद ककए, ईश्वि पि ध्यान लगाए औि संध्या के मंत्रो को बाि-बाि दोहिाते हुए। उसे याद नहीं उसने
ककतनी दे ि में खेत पाि ककए, लेककन जब वह गाँव की ईंटों की गली में आया तब सूिज डूब चक
ु ा
था औि अंधेिा िाने लगा था। लोग अपने-अपने घिों में थे। धआु ँ उठ िहा था। चौपाए खामोश खड़े
थे । नीम सदी के हदन थे।
उसने पूिी आँख खोलकि बाहि का कुि िी दे खने की कोभशश नहीं की। वह अपने िीति
दे ख िहा था जहाँ अँधेिे में एक णझलभमलाता प्रकाश था। ईश्वि का प्रकाश औि उस प्रकाश के आगे
वह आँखें बंद ककए मंत्रपाठ कि िहा था।
अचानक उसे अजान की आवाज सुनाई दी । गाँव के भसिे पि एक िोटी-सी मक्स्जद थी।
उसने थोड़ी-सी आँखें खोलकि दे खा। अँधेिा काफी गाढा हो गया था। मक्स्जद के एक कमिे बिाबि
दालान में लोग नमाज के भलए इकट्ठे होने लगे थे। उसके िीति एक लहि-सी आई। उसके पैि
हठठक गए। आँखें पूिी बंद हो गईं। वह मन-ही-मन कह उठा, ईश्वि यहद तुम हो औि सच्चे मन
से तम्
ु हािी पज
ू ा की है तो मझ
ु े पैसे दो, यहीं, इसी वतत।
वह वहीं गली में बैठ गया। उसने जमीन पि हाथ िखा। जमीन ठं डी थी। हाथों के नीचे कुि
गचकना-सा महसूस हुआ। उल्लास की बबजली-सी उसके शिीि में दौड़ गई। उसने आँखें खोलकि
दे खा। अँधेिे में उसकी हथेली में अठन्नी दमक िही थी। वह मन-ही-मन ईश्वि के चिणों में लोट
गया। खशु ी के समुद्र में झूलने लगा। उसने उस अठन्नी को बाि-बाि तनहािा, चम
ू ा, माथे से लगाया।
तयोंकक वह एक अठन्नी ही नहीं था, उस गिीब पि ईश्वि की कृपा थी। उसकी सािी पूजा औि
सच्चाई का ईश्वि की ओि से इनाम था, ईश्वि जरूि है , उसका मन गचल्लाने लगा। िगवान मैं
तुम्हािा बहुत िोटा-सा सेवक हूँ। मैं सािा जीवन तुम्हािी िक्तत करूँगा। मझ
ु े किी मत बबसिाना।
उल्टे -सीधे शब्दों में उसने मन-ही-मन कहा औि बाजाि की तिफ दौड़ पड़ा। अठन्नी उसने जोि से
हथेली में दबा िखी थी।
जब वह दक ु ान पि पहुँचा तो लालटे न जल चक
ु ी थी। पंसािी उसके सामने हाथ जोड़े बैठा
था। थोड़ी दे ि में उसने आँख खोली औि पूिा, तया चाहहए?
उसने हथेली में चमकती अठन्नी दे खी औि बोला, ‘आठ आने का सफेद गुड़।‘
यह कहकि उसने गवत से अठन्नी पंसािी की तिफ गद्दी पि फेंकी। पि यह गद्दी पि न
गगि उसके सामने िखे धतनए के डडब्बे में गगि गई। पंसािी ने उसे डडब्बे में टटोला पि उसमें
अठन्नी नहीं भमली। एक िोटा-सा खपड़ा (गचकना पत्थि) जरूि था क्जसे पंसािी ने तनकाल कि
फेंक हदया।
उसका चेहिा एकदम से काला पड़ गया। भसि घम
ू गया। जैसे शिीि का खन
ू तनकल गया
हो। आँखें िलिला आईं।
‘कहाँ गई अठन्नी! पंसािी ने िी है ित से कहा।
उसे लगा जैसे वह िो पड़ेगा। दे खते-दे खते सबसे ताकतवि ईश्वि की उसके सामने मौत हो
गई थी। उसने मिे हाथों से जेब से पैसे तनकाले, नमक भलया औि जाने लगा।
दक
ु ानदाि ने उसे उदास दे खकि कहा, ‘गुड़ ले लो, पैसे कफि आ जाएँगे।
नहीं।‘ उसने कहा औि िो पड़ा।
अच्िा पैसे मत दे ना। मेिी ओि से थोड़ा-सा गड़
ु ले लो। दक
ु ानदाि ने प्याि से कहा औि एक
टुकड़ा तोड़कि उसे दे ने लगा। उसने मँुह कफिा भलया औि चल हदया। उसने ईश्वि से माँगा था,
दक
ु ानदाि से नहीं। दस
ू िों की दया उसे नहीं चाहहए।
लेककन अब वह ईश्वि से कुि नहीं माँगता।

शब्दार्थ:- दल
ु ि
त -जो कहठनता से भमल सके, क्जले पाना सहज न हो, दष्ु प्राप्य गम
ु शम
ु -चप
ु चाप अपने
में खोया हुआ, गधतकािना-ततिस्काि किना, लानत मलामत किना फटकािना यकीन-ववश्वास, एतबाि
नीम सदी-हल्की सदी दलान-बिामदा, पोचत तनहािना-ध्यानपूवक
त दे खना, टक लगाकि दे खना, दे खना
ताकना बबसािना-िुला दे ना, स्मिण न िखना, ध्यान में न िखना पंसािी-ककिाने के व्यापािी या
दक
ु ानदाि
अभ्यास
पाठ से
1. माँ के आसमान की तिफ दे खने िि से बालक तया समझ जाता था ?
2. बचपन से ही माँ बालक को कैसी कहातनयाँ सुनाती थी ?
3. बालक के अंदि ववगचत्र सा उत्साह तयों आ गया ?
4. अठन्नी भमलने पि बालक ने तया ककया ?
5. अठन्नी की जगह खपड़ा तनकलने पि बालक पि तया प्रिाव पड़ा ?
6. दक
ु ानदाि के प्याि से कहने पि िी बालक ने गुड़ लेने से इंकाि तयों कि हदया?
7. बालक को तयों ववश्वास था कक ईश्वि उसे जरूि गुड़ दे गा ?
पाठ से आगे
1. माँ के बटुए से पैसे चिु ाने का ख्याल आने पि बालक स्वयं को गधतकािता
है । हम ककस तिह के काम किने का ख्याल मन में आते ही स्वयं को
गधतकािते हैं, सागथयों से चचात कि भलणखए।
2. बालक क्जसे अठन्नी समझ कि गुड़ खिीदना चाह िहा था वह खपड़ा तनकला दक
ु ानदाि
उसकी पिे शानी को समझते हुए उसे गुड़ दे ना चाहता है पि बालक मुफ्त में गुड़ लेने
से इंकाि कि दे ता है । आप उस स्थान पि होते तो तया किते औि तयों? कल्पना कि
भलणखए?
3. बालक ईश्वि से सफेद गुड़ पाने की चाहत िखता है आप सिी को अगि मौका भमले तो
ईश्वि से तया पाना चाहें गे। आपस में बातचीत कि अपनी िावना को व्यतत कीक्जए।
4. बालक माँ की परिक्स्थतत को समझते हुए उसे दुःु खी नहीं किना चाहता था। जब हम ककसी
चीज को पाने या लेने की क्जद अपने माँ-वपता से किते हैं तो तया हम उनकी क्स्थतत को
समझते हैं, चचात कि भलणखए।
5. िाह में चलते हुए अगि आपको १०० रुपए भमल जाए तो आप तया किना चाहें गे? सागथयों
से चचात कि भलणखए।

िाषा से
1. पाठ का शीषतक है सफेद गुड़ इसी तिह से पाठ में फटे कपड़े, गाढा अँधेिा,
चमकती अठन्नी, िलिलाई आँखें, णझलभमलाता प्रकाश, दीन दृक्ष्ट शब्दों
का प्रयोग हुआ है । िे खांककत शब्द संज्ञा या सवतनाम शब्द की ववशेषता
बताने के कािण ववशेषण के उदाहिण हैं। आप पाठ में इसी प्रकाि से प्रयत ु त ववशेषण के
उदाहिणों को ढूंढ कि भलणखए।
2. सबसे ताकतवि ईश्वि, एकदम से काला पड़ना, बहुत िोटा सेवक प्रववशेषण के उदाहिण हैं,
अथातत किी-किी ववशेषणों के िी ववशेषण बोले औि भलखे जाते हैं। जो शब्द ववशेषण की
ववशेषता बताते हैं, वे प्रववशेषण कहलाते हैं। आप पाठ को पढते हुए प्रववशेषण के कुि
उदहािणों को खोक्जए औि कुि नए शब्द िी बनाइए।
3. तनम्नभलणखत अवतिण के रितत स्थानों को कोष्टक में हदए गए सटीक शब्दों से िरिए
ताकक कहानी का वही िाव औि सन्दित अभिव्यतत हो जैसा कक पाठ में उक्ल्लणखत है
-------- (अकस्मात/अचानक) उसे अजान की ------- (पुकाि/आवाज ) सुनाई दी । गाँव के
------- (भसिे /बीच) पि एक िोटी-सी मक्स्जद थी। उसने थोड़ी-सी आँखें ------(फाड़कि/खोलकि)
दे खा। अँधेिा काफी------ ( चढा/गाढा ) हो गया था। मक्स्जद के एक कमिे बिाबि -----
(ढलान/ढलान ) में लोग नमाज के भलए----- (इकट्ठे /बबखिने) होने लगे थे। उसके िीति
एक ----( ज्वाला/लहि)-सी आई। उसके पैि ----- (जड़/हठठक) गए। आँखें पिू ी बंद हो गईं।
वह------( चीख-चीख कि/मन-ही-मन) कह उठा, ईश्वि यहद तुम हो औि सच्चे मन से
तम्
ु हािी--( प्राथतना/पज
ू ा) की है तो मझ
ु े ---- (दौलत/पैसे ) दो, यहीं इसी वतत।

योग्यता विस्तार
1. अलग-अलग धमों की पूजा पद्धततयों के बािे में भशक्षक तथा सागथयों
से चचात कि उनमें तनहहत सामानता को भलणखए।
2. गड़
ु बनाने के कौन-कौन से तिीके हैं औि इसका तनमातण ककन चीजों से
होता है ? घि औि समाज के बड़े-बज
ु ग
ु ों से पि
ू कि भलणखए औि कक्षा में
चचात कीक्जए।
पाठ – 7
सिय ननयोजन
- श्री सिर बहादरु भसंह

प्रस्तुत पाठ में लेखक श्री समि बहादिु भसंह ने मानव जीवन के भलए समय तनयोजन की
आवश्यकता तथा उसके महत्व को बताते हुए स्पष्ट ककया है कक अपनी व्यस्तता का प्रदशतन किने
वाले ही समय के अिाव का बहाना बनाते हैं। वास्तव में जो अपने कमत के प्रतत तनष्ठावान होते
हैं, वे अत्यगधक व्यस्त िहते हुए िी, अपने सिी कायों के भलए समय तनकाल ही लेते हैं। गाँधी जी
औि नेहरू जी का उदाहिण दे ते हुए लेखक ने ववद्यागथतयों को िी समय तनयोजन हे तु प्रेरित ककया
है । जीवन में सुख, समद्
ृ गध औि सफलता उन्हीं को भमलती है जो समय की कद्र किते हैं।

हम अतसि भशकायत ककया किते हैं-समय के अिाव की,


समय न भमलने की। पत्र का उर्त्ि न दे सका-समयािाव के कािण;
कसित नहीं कि सकता, समय न भमलने के कािण । ककंतु यहद हम
सही ढं ग से आत्म-ववश्लेषण किें तो हम पाएँगे कक हमािी ये भशकायतें
अतसि गलत होती हैं। हम अपने को समझ नहीं पाते औि तिी ऐसी
भशकायतें किते हैं । यह हमािा आलस्य है , जो सदै व समय के अिाव
की दहाई हदया किता है । वस्तुतुः कोई िी ऐसा व्यक्तत नहीं है , जो व्यस्तताओं के बीच िी उन
कामों को न कि सके, क्जसे वह किने पि उतारू है , क्जसे किना वह अतनवायत मानता है ।

नेहरू जी ककतना व्यस्त िहते थे ? िाित के प्रधानमंत्री के नाते उन पि ककतना दातयत्व


था? कुि हदन पहले उनके साथ काम किने वाले एक सज्जन से बात किने का सौिाग्य भमला ।
वे बताने लगे, नेहरू जी के पास िोज़ इतनी सािी फाइलें जाती थीं, ककन्तु दस
ू िे हदन वे उन सिी
को तनपटाकि वापस िेज दे ते थे । जहाँ तक बस चलता, एक हदन िी दे ि न किते । ज़िा सोगचए
उनकी व्यस्तता को, जो हदनिि न जाने ककतने आदभमयों से मुलाकात किते थे; ककतनी गंिीि
समस्याओं पि सहकभमतयों से ववचाि-ववमशत किते थे; ककतनी सिा-सोसाइहटयों में जाते थे कफि िी
वे अपने व्यस्त जीवन में से कुि समय अपने दै तनक व्यायाम
औि मनोिं जन के भलए िी तनकाल ही लेते थे।

गाँधी जी िी कम व्यस्त नहीं िहते थे । दशतनागथतयों की


िीड़ तो उन्हें घेिे ही िहती, मुलाकाततयों का िी ताँता लगा िहता
। दे श-ववदे श के अनेक पेचीदे मामलों पि ववचाि-ववतनमय होता,
अखबािों के भलए लेख भलखे जाते ककन्तु कफि िी न तो गाँधी
जी की प्राथतना-सिा के समय में हे िफेि होता औि न उनके प्रातुः भ्रमण में ही बाधा आती थी। यही
नहीं, दतु नया के कोने-कोने से िेजे गए पत्रों का जवाब िी वे अतसि हाथ से ही भलखकि दे ते थे ।
गाँधी जी औि नेहरू जी दोनों का जीवन प्रमाणणत किता है कक यहद हम अपने समय को
सोच-समझकि वविाक्जत कि लें औि कफि उस पि दृढता से आचिण किें तो अपने तनक्श्चत
व्यवसाय के अततरितत िी अन्य अनेक कायों के भलए हमें पयातप्त समय भमल जाएगा। समय की
कमी की भशकायत कफि किी नहीं िहे गी । हाँ, इसके भलए हमें सतत ् सचेष्ट औि जागरूक अवश्य
िहना पड़ेगा।

ककसी ने ठीक ही कहा है - समय धन के समान है । अतुः सावधानी औि सतकतता से हम


अपने धन के हहसाब से समय के प्रतत थोड़ी ज़्यादा ही सावधानी बितें । कािण, धन तो आता-
जाता है ककंतु गया समय कफि वापस नहीं आता। समय का बजट बनाना क्जसने सीख भलया, उसने
जीने की कला सीख ली, सुख औि समद्
ृ गध के िंडाि की कंु जी प्राप्त कि ली।

ृ गध,शांतत, यही न ! ककंतु ये चीजें तिी भमल सकती


हम जीवन में तया चाहते हैं - सुख, समद्
हैं जब हम इनको पाने का तनिं ति प्रयास किते चलें । यहद हम व्यायाम के भलए, गचंतन के भलए,
अध्ययन के भलए समय नहीं तनकाल पाएँगे तो हमािा तन-मन कैसे स्वस्थ औि सबल बन सकेगा?
ववषम परिक्स्थततयों में िी हम अपना संतल
ु न के से बनाए िख सकेंगे । अतुः जीवन को सही अथत
में सफल बनाने के भलए यह आवश्यक है कक हम इन सिी की साधना में िोज़ कुि-न-कुि समय
लगाएँ यह तिी संिव हो सकेगा जब हम अपने समय का ठीक वविाजन कि लें , िोज़ उसका
लेखाजोखा किते िहें । वस्तुतुः जो समय की कद्र किना सीख गया, वह सफलता का िहस्य समझ
गया । हम अपने सख
ु , अपनी समद्
ृ गध के भलए अपना समय-वविाजन क्जतना शीघ्र कि लें उतना
ही अच्िा होगा तयोंकक ककसी मनीषी ने यह चेतावनी पहले ही दे िखी है कक समय औि लहिें
ककसी की प्रतीक्षा में खड़ी नहीं िहतीं।

वयस्कों की अपेक्षा ववद्यागथतयों के भलए समय-पालन का कई कािणों से अगधक महत्व है ।


ववद्यागथतयों को एक लंबा जीवन जीना है औि सफलता की ऊँची-से-ऊँची मंक्जलें तय किनी हैं।
दस
ू िी बात यह है कक ववद्याथी-जीवन में जो आदतें पड़ जाती हैं, वे जीवन पयंत बनी िहती हैं ।
ववद्यालयों में िात्रों को समय-ताभलका दी जाती है लेककन वह केवल 5-6 घंटों के भलए होती है ।
18-19 घंटे िात्रों के स्वयं वववेकपण
ू त उपयोग के भलए िहते हैं। यहद वे इस समय का सही उपयोग
किें तो वे न केवल पिीक्षा में अच्िे अंकों से उर्त्ीणत होंगे , बक्ल्क सामाक्जक, साहहक्त्यक, सांस्कृततक
कायतक्रमों तथा खेलकूद, व्यायाम आहद के भलए िी पयातप्त समय तनकाल सकेंगे । समय ताभलका
बनाने के बाद उसका दृढता औि तनष्ठा के साथ पालन किना िी आवश्यक है । तनधातरित समय
पि तनक्श्चत काम किने से ही जीवन में सफलता भमलती है ।

शब्दार्थ :- किसत - व्यायाम, आलस्य - भशगथलता, सस्


ु ती, दातयत्व - क्जम्मेदािी, ववचाि-ववमशत -
ककसी समस्या पि ववचािों का आदान-प्रदान (सलाह-मशविा), सोसाइटी – समाज, पेचीदे –
समस्यात्मक, सचेष्ट - चेष्टा के साथ, साधना - उपासना, (अभ्यास किना)
अभ्यास

पाठ से
1. समय तनयोजन से लेखक का तया तात्पयत है ?
2. समय के संबंध में लोगों की अतसि तया भशकायतें िहती हैं?
3. नेहरू जी अपने कायों का समय प्रबंधन कैसे किते थे?
4. गाँधी जी के समय तनयोजन के बािे में अपने ववचाि भलणखए।
5. सुख, समद्
ृ गध एवं शांतत प्राक्प्त का समय के साथ तया संबंध है ?
6. कहठन परिक्स्थततयों में िी अपना संतुलन बनाने के भलए हमें तया किना चाहहए?
7. ववद्यागथतयों के भलए समय तनयोजन तयों महत्वपण
ू त है ?
8. समय वविाजन (तनयोजन) के अनस
ु ाि कायत किने से तया लाि होता है ?
9. धन तो आता-जाता िहता है ककन्तु गया समय कफि से वापस नहीं आता, कैसे? स्पष्ट कीक्जए।

पाठ से आगे
1. आप पठन-पाठन के भलए अपने समय का तनयोजन ककस प्रकाि किते हैं ?
एक रूपिे खा बनाइये।
2. 'समय औि लहिें ककसी की प्रततक्षा नहीं किती है ' आप कोई ऐसी घटना
बताइये, क्जसमें समय तनकल जाने के बाद आपको पिताना पड़ा हो।
3. अपने आस-पास के परिवेश से ऐसे लोगों के बािे में बताइये क्जन्होंने कहठन परिक्स्थततयों के
बाद िी समय की कद्र किके अपने को सफल बनाया तथा समाज में अपनी पहचान बनायी।
4. समय की कद्र न किने पि लोगों को कौन-कौन सी पिे शानी हो सकती है ? अपने सागथयों से
चचात कि भलणखए।
5. ‘समय धन के समान है ', इस प्रभसद्ध वातय के संबंध में आपकी तया िाय है ? भलणखए।
6. वस्तुतुः कोई िी ऐसा व्यक्तत नहीं है जो व्यस्तताओं के बीच िी उन कायों को न कि पाए,
क्जसे वह किने पि उतारु है , क्जसे किना वह अतनवायत मानता है । आपने िी ऐसा ककया होगा
उसके कायत के बािे में भलणखए।

िाषा से
1. नेहरू जी तयों व्यस्त िहते थे?
हमािा तन मन कैसे सबल बन सकेगा? जब ककसी वातय को पढते, भलखते
या सुनते समय प्रश्न पि
ु े जाने का बोध होता है तो उसे प्रश्नवाचक वातय कहते हैं। प्रश्न
वाचक वातय के अंत में "?" प्रश्न वाचक गचह्न का प्रयोग ककया जाता है ।
आप अपने सागथयों के सहयोग से 10 प्रश्न वाचक वातयों का तनमातण कीक्जए।

2. संस्कृत िाषा के शब्द ज्यों के त्यों हहन्दी िाषा में आये है उन्हें तत्सम शब्द कहते है तथा
वे शब्द जो दे श एवं परिक्स्थतत के अनुसाि अपने नये रूप को प्राप्त हुए उसे तद्िव शब्द
कहा जाता है ।
जैसे -
तत्सि शब्द तद्िि शब्द
कायत काम
अक्ग्न आग
गह
ृ घि

इसी प्रकाि आप अपने भशक्षक की सहायता से तनम्नभलणखत शब्दों का तद्िव रुप भलणखए

आम्र, पद, चंद्र, िाबत्र, सूय,त ग्राम, दग्ु ध ।


3. 'नेहरू जी न मालूम ककतनी सोसायहटयों में िाग लेने जाते थे' इस वातय में 'सोसायहटयों' शब्द
के प्रयोग पि ध्यान दीक्जए। यह अंग्रेजी िाषा के 'सोसायटी' का बहुवचन रुप है । अंग्रेजी में
इसका बहुवचन ‘सासाइटीज' होता है लेककन हहन्दी में हम इसे 'सोसाइहटयों' भलखते हैं। हमने
बहुत से ववदे शी शब्दों को हहन्दी में अपना भलया है औि उनका प्रयोग हहन्दी व्याकिण के
अनुसाि किते हैं। जैसेस्कूल का स्कूलों, कापी का कावपयों, रे न का रे नों आहद।
आप अपने परिवेश में प्रचभलत ऐसे शब्दों की सूची बनाइए जो अंग्रेजी िाषा के हैं ककन्तु उनका
प्रयोग हहन्दी के बहुवचन के तनयमानुसाि ककया जाता है ।
4. तनम्नभलणखत शब्दों का संगध ववच्िे द कीक्जए –
समयािाव, आशातीत, ववद्याथी, भशवालय, जगन्नाथ ।
5. तनम्नांककत वातयों को शुद्ध किके भलणखए –
क. गिम गाय का दध
ू अच्िा लगता है ।
ख. एक फूलों की माला बनाइए ।
ग. मेिे भलए ठं डी बिफ लाओ ।
घ. मेिे को बाज़ाि जाना है ।
ङ. मेिे आँख से आँसू बहता है ।
6. क. तनम्नांककत शब्दों में से मल
ू शब्द औि प्रत्यय अलग-अलग कीक्जए -
आध्याक्त्मक, आधारित, नैततक, सामाक्जक, हवषतत, मौभलक, सि
ु ावषत ।
ख. इस वातय को पहढए - जैसे ही मैं स्टे शन पहुँचा, वैसे ही गाड़ी िूट गई । इसी प्रकाि ज्योही-
त्योही, जब-तब, यद्यवप-तथावप शब्दों का प्रयोग किते हुए एकएक वातय बनाइए।
'समय की महर्त्ा' पि दस वातय भलणखए ।

योग्यता विस्तार
1. सोगचए, यहद वावषतक पिीक्षा चल िही हो औि आप समय से न पहुँचे, तो
तया होगा ?
2. आपको पढना, भलखना, खेलना, टी.वी. दे खना, गह
ृ -कायत किना, कम्प्यूटि सीखना है तथा शाला
जाना है । ये सािे कायत किने के भलए एक समय-ताभलका बनाइए।
3. सोगचए, यहद प्रकृतत अपने तनयोक्जत समय के अनुसाि न चले तो तया होगा ?
पाठ – 8
िेरा नया बचपन
- श्रीिती सि
ु द्रा कुिारी चौहान
बचपन की मधिु यादें हि उम्र में व्यक्तत को पुलककत औि िोमांगचत किती हैं। घि के बच्चों की
शिाितों औि बाल सुलि क्रीड़ाओं से मन बिबस ही स्वयं के बचपन की मधिु स्मतृ तयों में खो
जाता है । इस कववता में िी सुमद्रा कुमािी चौहान ने अपने बचपन की यादों को प्रस्तुत ककया है
जो उन्हें अपनी बेटी की गततववगधयों को दे ख कि याद आयी हैं ऊँच-नीच औि िलकपट िहहत
बचपन की उन्हें याद बाि-बाि आती है ।

बाि-बाि आती है मुझको मधिु याद, बचपन तेिी ।


गया, ले गया तू जीवन की सबसे मस्त खश
ु ी मेिी ।।
गचंता िहहत खेलना, खाना, वह कफिना तनितय स्वच्िं द ।
कैसे िल
ू ा जा सकता है , बचपन का अतभु लत आनंद ॥
ऊँच-नीच का ज्ञान नहीं था, िुआिूत ककसने जानी ?
बनी हुई थी अहा, झोपड़ी औि चीथड़ों में िानी ॥
ककए दध
ू के कुल्ले मैंने, चस
ू अँगूठा सुधा वपया।
ककलकािी कल्लोल मचाकि, सूना घि आबाद ककया।

िोना औि मचल जाना िी तया आनंद हदखाते थे ।


बड़े-बड़े मोती-से आँसू, जयमाला पहनाते थे ।
मैं िोई, माँ काम िोड़कि आई, मुझको उठा भलया ।
झाड़-पोंिकि, चम
ू -चम
ू , गीले गालों को सख
ु ा हदया।
आ जा बचपन ! एक बाि कफि दे -दे अपनी तनमतल शांतत।
व्याकुल व्यथा भमटाने वाली, अपनी वह प्राकृत ववश्रांतत ॥
वह िोली-सी मधिु सिलता, वह प्यािा जीवन तनष्पाप ।
तया कफि आकि भमटा सकेगा, तू मेिे मन का संताप ?
मैं बचपन को बुला िही थी बोल उठी बबहटया मेिी।।
नंदन वन-सी गूंज उठी, वह िोटी-सी कुहटया मेिी ।।
'माँ ओ' कहकि बुला िही थी, भमट्टी खाकि आई थी।
कुि मँह
ु में , कुि भलए हाथ में , मुझे णखलाने आई थी।
पुलक िहे थे अंग, दृगों में कौतूहल था िलक िहा ।
मँह
ु पि थी आलाद-लाभलमा, ववजय गवत था झलक िहा।
मैंने पूिा "यह तया लाई ?" बोल उठी वह, “माँ काओ।"
हुआ प्रफुक्ल्लत हृदय खश
ु ी से, मैंने कहा-“तुम्हीं खाओ।"
पाया मैंने बचपन कफि से, बचपन बेटी बन आया।
उसकी मंजुल मूततत दे खकि मुझमें नवजीवन आया ॥
मैं िी उसके साथ खेलती-खाती हूँ, तुतलाती हूँ।
भमलकि उसके साथ स्वयं मैं िी बच्ची बन जाती हूँ |
क्जसे खोजती थी बिसों से, अब जाकि उसको पाया।
िाग गया था मुझे िोड़कि, वह बचपन कफि से आया ।
शब्दार्थ:- तनिति - तनडि, स्वच्िद - जो दस
ू िे के तनयंत्रण में न िहे , स्वतंत्र, अतभु लत - क्जसकी
तल
ु ना न ककया जा सकें, कल्लोल - आमोद-प्रमोद, क्रीड़ा, ककलकािी - बच्चे की हषत ध्वतन, व्याकुल -
ववकल, बहुत घबिाया हुआ, ववश्रांतत - आिाम, आिाम तनष्पाप - पाप िहहत, संताप - जलन, दुःु ख,
ग्लातन, समद्
ृ गध - एश्वयत, बहुत अगधक सम्पन्नता, मनीषी -ज्ञानी, ववद्वान।

अभ्यास
पाठ से
1. इस कववता का शीषतक ‘मेिा नया बचपन’ से तया अभिप्राय है ?
2. कवतयत्री अपनी बच्ची के साथ ककस प्रकाि बच्ची बन जाती है ?
3. बच्ची तया खा कि आई थी औि वह अपनी माँ से तया कह िही थीं?
4. कवतयत्री अपने बचपन का सख
ु द अनि
ु व कब किती हैं?
5. माँ ककस उम्र की बात हमेशा दोहिाती है?
6. बचपन की स्वच्िं दता, पाठ की ककन पंक्ततयों के द्वािा अभिव्यतत की गई हैं?
7. बेटी की ’मंजूल मतू तत दे खकि, मझ
ु में नवजीवन आया’ के द्वािा कवतयत्री तया कहना चाहती है?
8. बच्ची को भमट्टी खाते दे खकि माँ नािाज तयों नहीं होती है ?
9. बचपन में हम ककन चीजों से खेलना पसंद किते हैं?
10. ऊँच-नीच का .................‘चीथड़ों में िानी’ इन पंक्ततयों के माध्यम से कवतयत्री बच्चपन की ककन
बातों की ओि हमािा ध्यान आकृष्ट कि िही हैं।
पाठ से आगे
1. िोटे बच्चों का घि में होना हमािे मन में कौन-कौन सा िाव जागत
ृ किता है ।
सागथयों से चचात कि भलणखए?
2. कववता में हमने नन्हीं बबहटया औि उसके माँ के प्याि ििे संबध
ं ों को जाना है ।
आप अपनी माँ के बािे में कैसा महसस
ू किते है? भलणखये।
3. कवतयत्री कववता में बेटी के बचपन का उल्लेख किती है । हमािे आस-पास बेहटयाँ का बचपन कैसा
होता है ? बेटों की तिह या उससे अलग। सागथयों से चचात कि भलणखए।
4. आपको जीवन की कौन-सी अवस्था (बाल्यावस्था/यव
ु ावस्था/वद्
ृ धावस्था) अच्िी लगती है औि तयों?
सतकत उर्त्ि दीक्जए।
5. बच्चन में हम ककन-ककन चीजों से खेलना पसंद किते हैं। सागथयों से चचात कि भलणखए?
6. अतसि बचपन में अगधकांश बच्चों की िाषा तोतली होती है । संिवतुः आपकी िाषा िी वैसी िही
होगी। अपने माता-वपता से इस बािे में जानकािी प्राप्त कीक्जए औि इसे कक्षा में सागथयों के साथ
साझा कीक्जए व भलणखए।
7. आम तौि पि बच्चे हि चीज को बबना जाने समझे मह
ँु में डाल लेते है । आपने िी ऐसा ककया होगा
यहद स्वयं आपको अपनी ऐसी कोई स्मतृ त हो तो भलणखए अथवा अपने माता-वपता से इस बािे में
पि
ू कि भलणखए।
8. हम ककसी िोटे बच्चे को दे खकि स्वयं िी बचपन को पन
ु ुः जीना चाहते है । आपको तया लगता है,
इसके पीिे तया कािण हो सकते है ।
9. जैसा कक इस कववता का शीषतक ‘मेिा नया बचपन’ है आप अपने अभििावकों से इस बािे में बात
कीक्जए कक उन्हें अपने नये बचपन का एहसास कब औि कैसे हुआ।

िाषा से
1. ’जय’ शब्द में ’वव’ जोड़कि ’ववजय’ शब्द बना है । वे शब्दांश जो ककसी के पहले
जुड़कि नया अथत प्रदान किते हैं, उपसगत कहलाते हैं, जैसे - वव+मल = ववमल
इसी तिह हदए गए शब्दों के पहले ’वव’ उपसगत लगाकि नए शब्द बनाइए- नम्र,
शेष, दे ह, सगत, तान, कल, जय।
2. वविाम का अथत होता है , ववश्राम या ठहिाव। जब हम अपने िावों को बोलने या भलखने में प्रयोग
किते हैं तो कुि ठहिते है । इसी ठहिाव को भलखते समय हम वविाम गचन्हों के द्वािा प्रकट किते
है ।
अल्प वविाम ( , ), प्रश्न वाचक ( ? ), तनदे शक गचन्ह ( - ), उद्धिण या अवतिण ( ’’ ’’), पण
ू त वविाम
(। ) वविाम गचन्हों सबसे ज्यादा प्रयत
ु त होने वाले गचन्ह हैं -
मैने पि
ू ा, ’’यह तया लाई?’’ बोल उठी वह ’’माँ काओ।’’
हुआ प्रफुक्ल्लत हृदय खुशी से, मैंने कहा- ’’तम्
ु ही खाओं।’’
(इस प्रकाि कववता में आए वविाम गचन्हों को पहचानकि भलणखए।)
3. कववता की इन पंक्ततयों को दे णखए -
क. बड़े-बड़े मोती से आंस।ू
ख. वह िोली सी मधुि सिलता।
ग. नंदन वन सी गज
ूं उठी वह।
इन पंक्ततयों में सहज ही एक वस्तु की तल
ु ना दस
ू िे से की गई है । काव्य में सद
ुं िता लाने के भलए
इस तिह की यक्ु ततयां प्रयोग में लाई जाती है । जब काव्य में ककसी एक वस्तु की तल
ु ना ककसी दस
ू िी
वस्तओ
ु ं की जाती है तो उसे उपमा अलंकाि कहते है । यह तल
ु ना रूप, िं ग, गण
ु , आकाि के आधाि पि की
जाती है ।
उपमा अलंकाि में क्जसका वणतन ककया जाता है या क्जसको उपमा दी जाती है उसे उपमेय तथा क्जस वस्तु
से तल
ु ना की जाए उसे उपमान कहते हैं।
सागि सा गंिीि हृदय हो।
गगरि सा ऊँचा हो क्जसका मन।
यहाँ पि सागि औि गगरि उपमान तथा हृदय तथा मन उपमेय है ।
उपमा अलंकाि के कुि अन्य उदाहिण अपनी पाठ्यपस्
ु तक से खोज कि भलणखए।

4. ‘‘ मैं बचपन को बल
ु ा िही थी बोल उठी बबहटया िानी’’ कववता की इस पंक्तत में ‘ब वणत की आवतृ त
बाि-बाि हुई है । क्जससे इस पंक्तत को पढने में लयात्मकता का बोध होता है । इसका कािण वहाँ
अनप्र
ु ास अलंकाि का होना है। जब ककसी वणत की आवतृ त बाि-बाि होती है । तो वहां अनप्र
ु ास अलंकाि
होता है क्जससे िाषा का सौदयत बढ जाता है औि उसमें लयात्मकता का गण
ु आ जाता है ।
उदाहिण - चंदा चमके चम-चम चीखे चौकन्ना चोि।
चींटी चाटे चीनी चटोिी चीनी खोि।।

5. आप िी इस तिह के अन्य गीतों अथवा कववताओं की पंक्ततयों को ढूँढकि भलणखए औि उन्हें कक्षा
में लय के साथ पहढए।
6. बचपन की अपनी कोई स्मतृ त क्जसे याद कि आज िी आपको बहुत मजा आता है , के संबध
ं में
एक अनच्
ु िे द भलणखए।
7. कववता में मधुि याद, प्यािा जीवन तनस्पाप आहद ववशेषण यत
ु त शब्दों का प्रयोग हुआ है । ‘मधिु
शब्द याद (कक्रया) की ववशेषता बता िहा है । इसी प्रकाि ‘प्यािा’ औि ‘तनस्पाप’ शब्द जीवन की
ववशेषता बता िहें है ।
इस प्रकाि ककसी संज्ञा, कक्रया की ववशेषता बताने वाले शब्द ववशेषण एवं वे क्जसकी (संज्ञा/कक्रया)
की ववशेषता बताते है । वे ‘ववशेष्य कहलाते हैं। कववता में प्रयत
ु त ववशेषण एवं ववशेष्य को पहचातनए एवं
तनम्न सािणी में भलणखए।
ववशेषण ववशेष्य
..................... .....................

योग्यता विस्तार

1. िगवान श्रीिाम अथवा श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं संबध


ं ी पद को भशक्षक की
मदद से पस्
ु तकालय से ढूँढकि भलणखए औि उसमें वणणतत िाव पि चचात कीक्जए।
2. बच्चों अथवा बचपन पि आधारित गानों को ढूंढकि सतु नए एवं उसमें तनहहत िाव को भलणखए।
3. काटूतन भसरियल ‘डोिे मॉन’ में भसनचैन औि उसकी माँ के बीच ककस तिह की नोक िोंक (बात-चीत)
होती है ? उसे भलणखए।
पाठ 9
द ठन नान्हे कहानी
मल
ू लेखक - डॉ.पदम
ु लाल पन्
ु नालाल बख्शी
रूपांति - लेखक मंडल
द ू ठन नान्हे कहानी के िाव ल लेखक डॉ. पदम
ु लाल पुन्नालाल बतशी ह िर्त्ीसगढी म
अनुवाद किे हवय। हीिा अऊ ओस के बूंद कहानी म बताय गेहे। सुंदिई म त्याग के िावना घलो
होना चाही जेन अपन सुंदिई के घमंड किथे वोहा पथिा बिोबि कहे जाथे वोहा ककिो काम नई
आवय। कि-ू किू िोटे से क्जतनस घलो ह बड़ काम आथे जेकि हहिदे म दया-मया के अमरित ििे
िहहथे वोही ह सुहघि होथे। ‘महतािी के ितन’ कहानी म बताय गेहे कक हि संतान ह अपन महतािी,
बाप के ितन बिोबि होथे। फेि लइका मन नई समझ सकय अऊ जौन हदन समझ जाथेवो हदन
क्जनगी बदल जाथे।

हीिा अउ ओस के बंद

हीिा ह जतका सुग्घि होथे ओतके महँ गी घलो होथे।


अइसने सुग्घि अउ महँगी हीिा ल जंगल म पिे -पिे गजब
हदन बीत गे । ओकि उपि कोनो मनखे के नजि नइ
परिस, काबि के ओ हीिा के चिों-खुंट म काँदी जाम गे
िहय। काँदी के एक ठन पर्त्ा ह ओकि उपि ओिमे िहय।
काँदी के पर्त्ा म पिे ओस के बँूद ह बड़ नीक लागत िहय।
जब हवा म काँदी ह हाले,तब ओस के बँद
ू ह मोती कस
चमके लागय। अइसे लागे जइसे हीिा-मोती दन
ू ो ह एके जघा सकला गे हवँय। ये झाँकी ल दे ख
के एक ठन बड़े जन णझंगुिा ह हीिा ल कहहथे-‘‘हे महिाज ! मोि असन िोटे जीव के उपि तुंेँहि
ककिपा बने िहय।’’ अपन ल ‘महिाज’ कहत सुन के हीिा ह घमंड म फुलगे। णझंगुिा ह फेि कहहथे-
‘महिाज’,काँदी के उपि चमकइया क्जतनस ह तँुहि कोनो सगा -सहोदि लागत हे । ये कोन आय ?’’
ये बात ल सुन के हीिा के जीव बगगया गे । ओ ह रिस म णझंगुिा ल कहहथे-‘‘तोला मँय बुधमान
समझत िे हेंव,फेि तँय तो तनचट िोकवा हस । अिे णझंगुिा मोि कुल ह बड़ उँ च हावे, अउ ये ओस
के बँद
ू ह तो भिखमंगा आय। एखि पटं ति तँय मोला दे खत हवस िे । जा िाग जा, ईंहा ले । दन
ू ों
झन भिखमंगा आव।’’ हीिा के रिस ल दे ख के णझंगिु ा ह सकपका गे। आधा डि अउ आधा बल
किके णझंगिु ा ह कहहथे-‘‘महिाज ! मोला तिमा किव । तम ु न जइसे सग्ु घि तइसने यहु ह सग्ु घि
हदखत हे , एकिे कािन मैं पि
ू पािें व।’’ अतका कहहके णझंगिु ा ह काँदी म लुका गे।ओस के बंद
ू हीिा
अउ णझंगिु ा के गोठ ल कलेचप
ु सन
ु त िहहस हे ।
ओतके समे एक ठन बड़े जन गचिइ ह अगास ले उही तति टप ले उतरिस। वपयास म
ओकि टोंटा ह सुखागे िहहस। ओ ह हीिा ल ओस के बूंद समझ के अपन चोंच ल ओकि उपि
मारिस,त ओला अपन चोंच ल पखिा म मािे कस लागगस। ओ ह कहहस-‘‘अिे ,मैं तो एला ओस के
बँद
ू समझे िे हेंव। ये तो पथिा बिोबि ठाहहल हीिा आय । ये हा मोि वपयास का बुझाही ? एकि
मोला कोनो जरूित नइ हे ,अब मोला बबगि पानी के मिनच पिही।’’ हीिा ये बात ल सुनके रिसागे।
ओ ह गचिइ ल कहहस-‘‘अिे ,गचिइ ! काली के मिइया तैं आजे मि जा। तोि मिे ले दतु नया सन्
ु ना
नइ हो जाय।’’
ओस के बूंद ह दन
ू ो के बात ल सुन के ववचाि करिस के ओकिे जीवन अउ सुघिइ ह
धन्य होथे जेन मन पि के खातति अपन पिान ल घलो त्याग दे थें। ओस के बूंद ह गचिइ ल
कहहथे-‘‘सुन गचिइ िाई, मैं ह ओस के नानकुन बद
ूं आँव। मोला वपये ले तँह
ु ि पिान बाँच जाही त
मोि नानकुन जीवन अउ मोती कस सुघिइ ह धन्य हो जाही।’’ ओस के बूंद के गोठ ल सुन के
गचिइ ह कहहथे- ‘‘हाँ,तहीं मोि पिान ल बचा सकत हस। तैं धन्य हस। अतका कहहके गचिइ ह
ओस के बंद
ू ल अपन चोंच ले अमि भलस। ओखि टोंटा ह जड़
ु ाय कस लागगस अउ पिान ह बाँच
गे। णझंगिु ा ह काँदी म सपटे -सपटे ये घटना ल दे णखस अउ सोंगचस,के एक के हहिदे ह पथिा बिोबि
कठोि हे त दस
ू ि के हहिदे म मया-दया के अमरित ििे हे ।
महतािी के ितन

माधो बाबू के घि दग
ु ात पज
ू ा बड़ धम
ू -
धाम ले मनाय जाय। माधो बाबू के परिवाि
वाला मन ये पइँत थोिककन जादा ततयािी
किे हावँय। खेल-तमाशा अउ नाचा-पेखन के
घलो जोिा किे िहहन हे । महल बिोबि मकान
ह बबजली के बर्त्ी ले जगि-मगि कित िहहस
हे । सोन-चाँदी अउ हीिा ले सजे नािी-पिानी
मन आवत-जात िहँय। बबवपन ह माधो बाबू के पिोसी िहय। एकिे सेती वोहु ह पज
ू ा दे खे बि आय
िहहस। उहाँ सजे - धजे नािी-पिानी मन ल दे खके ओला अपन महतािी के सुिता आ गे। बाप ल
बीते गजब हदन हो गे िहहस हे । बबवपन ल अपन बाप के सुिता घलो नइ ए। बपुिी दाई ह बनी-
िुती कि के घि ल चलावत हे । ओहा सोंचथे-इहाँ सोन-चाँदी म लदाय नािी-पिानी मन हँ सी-ठट्ठा
कित ककंजित हवँय,अउ उहाँ बबचािी दाई ह,बनी-िुती म थके-माँदे आके मोि बि िात िाँधत होही।
कतेक अंति हे दन
ू ो घि म। बबवपन ह सोंचे-बबचािे के उमि म पहुँचत िहहस। ओकि मन उदास हो
गे। माधो बाबू के घि के चकाचौंध म ओखि मन नइ लगगस। ओहा ह घि लहुट गे।
बबवपन के दाई चल्
ू हा तीि बइठे िात िाँधत िाहय। गँग
ु वावत चल्
ू हा ल किु तनहि के फँु कनी
म फँु कत घलो जाय। बबवपन के दाई के नजि बबवपन उपि नइ परिस। आज बबवपन के मन ह घि
म घलो नइ लगगस। ओहा उहठस अउ नँहदया कोती तनकलगे ।
धीिे -धीिे संझा होये लगगस। सरु
ु ज के वपंविा ककिन ह बादि ल सोन के पानी म पोते कस
वपंविा हदस। बादि ह अइसे लागे,जइसे सोन बगिे हे । बबवपन ह सोंचथे- कहूँ मैं बादि म चढे
सकतें व,त बोिा िि सोन सकेल के ला लेतेंव। मोि गिीबबन महतािी ह सख
ु के हदन ल दे ख लेततस।
फेि बादि म चढना तो मुसककल हे । कोजनी कोन ह अतेक सोन ल बादि मं बगिा दे हे । ओतके
बेि ओला कोनो मनखे के आिो भमलथे। बबवपन ह लहुट के दे खथे,त ओहा अपन पािू म माधो
बाबू ल ठाढे पाथे। सगा मन ल जताके माधो बाबू ह थोरिक हवा ले बि नँहदया कोती तनकले िहहस
हे ।
‘‘कस ग बबवपन ! तैं ह खेल तमाशा दे खे बि नइ गे ?’’ माधो बाबू ह पूतिस।
‘‘गे िे हेंव,बाबू साहे ब ! फेि लहुट के आ गें व’’ बबवपन ह बताइस ।
‘‘काबि?’’ माधो बाबू ह पुतिस।

बबवपन ल लबािी बोले के आदत नइ िहहस। ओ ह अपन मन के सबो हाल ल बता हदस।
बबवपन के बात ल सुन के माधो बाबू हँ स परिस अउ हँ सत-हँ सत कहहस-‘‘अिे बबवपन ! तँय फोकट
दख
ु ी होवत हस। कोन कहहथे के तोि महतािी ह गिीबबन हे । ओकि तीि तो अइसे ितन हे ,जेन
मोिो घि म नइ हे ।’’

‘‘नइ हे ! मैं तो अपन महतािी मेि आज ले कोनो ितन ल नइ दे खे हँ व।बबवपन ह ककहहस।

‘‘बबवपन तोला मोि बात म ििोसा नइ हे ,त तैं अपन महतािी ल पूि लेबे।‘‘ माधो बाबू
कहहस। बबवपन ह माधो बाबू के गोठ ल सुनके घि कोती लहुटगे। माधो बाबू के घि के आगू म
खेल-तमाशा होवत िाहय। िीड़ ह सइमों-सइमों कित िहहस । बबवपन ह भसद्धा अपन घि म खस
ु ि
गे ।

‘‘दाई-दाई !’’बबवपन ह गचल्लाइस।


‘‘काय बेटा ?’’ बबवपन के दाई कहहस।
‘‘दाई ! तोि मेि कइसन ितन हे ? महूँ ल दे खा तो। माधो बाबू ह कहत िहहस के तोि महतािी तीि
जइसन ितन हे ,वइसन ितन ओकिो घि म नइये,का ये बात ह सही हे दाई ?’’
‘‘हाँ बेटा ! मोि मेि जइसन ितन हे ,माधो बाबू के घि म घलो नइ हे ।’’
‘‘दे खा तो,महूँ दे खतें व ितन ल।’’
‘‘आ बेटा,मोि तीि आ।’’बबवपन के दाई ह बबवपन ल अपन तीि बलाइस।

जब बबवपन ह अपन महतािी तीि पहुँच गे,त ओकि दाई ह ओला काबािि पोटाि के अपन
हहिदे ले लगा भलस अउ कहहस-‘‘बेटा, तहीं मोि ितन अस,मोि खजाना अस,दाई-ददा बि संतान ले
बड़के कोनो ितन नइ होय। संतान ह दाई-ददा के क्जनगी ल ितन बिोबि चमकाथे।’’ बबवपन ल
पहहली तो बड़ अचिज होइस,फेि पािू ओहा ये बात ल समझ गे।

बबवपन ह पढ-भलख के बहुत बड़ साहे ब बन गे,फेि तीस बरिस पहहली के घटना ल ओहा
आजो सुिता किथे।

शब्दार्थ:- सह
ु घि - संद
ु ि, सकलागे - इकट्ठा हो गया, िोकवा - मख
ू ,त बगिाना - फैलाना, लहुटगे -
लौटना, मेि - पास, आिो - आहट, बपिु ी- बेचािी, नीक - अच्िा, काबािि - बाहों की परिगध में , तनचट
- एकदम, ठाहहल -ठोस, भसद्धा - सीधा।
अभ्यास
पाठ से
1. हीिा उपि कोनो मनखे के नजि काबि नई परिस?
2. णझंगुिा ह ओस के बूंद ल हीिा के सगा काबि कहहस?
3. वपयासे गचिइ ह का क्जतनस ल दे खके खाल्हे उतरिस?
4. गचिई ह अपन चोंच ल ओस के बूंद समझ के मारिस त ओला का लगगस?
5. ओस के बूंद ह हीिा अऊ गचिई के बात ल सुनके मन में का ववचाि किथे?
6. णझंगुिा ह काँदी में सपट के कोन से घटना ल दे णखस अऊ का सोगचस?
7. माधो बाबू ल अपन महतािी के काबि सुिता आगे?
8. वववपन ह सरु
ु ज के वपंविा ककिन ल दे खके का सोचत िहहस?
पाठ से आगे
1. ‘‘हीिा अउ ओस के बूँद’’ कहानी म एक के हहिदे ह पथिा बिोबि कठोि हे
त दस
ू ि के हहिदे म मया दया के अमरित ििे हवय काबि कहे गेहे?
2. महतािी बि लइका ितन से कम नई होवय। तुहि महतािी ह घलो तुमन ल ितन काहत होही।
ओ कािण ल पता लगाके भलखव।
िाषा से
1. कहानी में आये वातय ‘‘जेकि बुध नई िहय’’ वोला एक शब्द म ‘िोकवा’ कहे जाथे।
अइसने खाल्हे भलखाय वातय मन के अथतवाला एक शब्द भलखव
 जेन किू सच नई बोलय-
 जेन बनी िूती किथे -
 जेन ह बैपाि किथे -
 जेन खेल - तमाशा दे खाथे -
2. पाठ म आये समझ, कह, सोच सब्द म ‘‘इया’’ प्रत्यय लगाके नवा शब्द बन जाथे-
जैसे - समझ + इया = समझइया
कह + इया = कहइया
सोच + इया = सोचइया
अइसने खाल्हे दे सब्द मन ला ‘‘इया’’ प्रत्यय लगाके नवा शब्द बनावव-
सकल, दे व, दे ख, आहद।
3. कहानी म आये ‘‘वपयास’’ ‘‘घमंड’’ शब्द िाववाचक संज्ञा हवय इन ल ववशेषण म बदले ले -
वपयास - वपयासी = गचिई वपयासी है ।
घमंड - घमंडी = मनखे, घमंडी हो जाथे।
अइसने खाल्हे दे शब्द मन के ववशेषण बनावव
त्याग, लबिा, चमक ।
योग्यता विस्तार
1. ‘महतािी के मया’ जेन कववता, कहानी, नाटक म बतावय। गेहे अइसने कोनो िाव
वाले ककताब ल पढव।
2. डॉ. पदम
ु लाल पुन्नालाल बतशी के अऊ दस
ू ि कहानी मन ल घलो पढव।
पाठ 10
हि पंछी उन्िुक्त गगन के
-डॉ. भशििंगल भसंह 'सि
ु न'

पितंत्रता औि बंधन ककसी िी रूप में सुखदायी नहीं हैं। अगधक वैिव औि सुख के आड़ में पीिे
उनमें समाहहत होती है । इस कववता में पितंत्रता की पीड़ा, व वपंजिे में बदं पंिी उसके उद्दे श्य
हीन जीवन का गचत्रण ककया गया है । उसकी ककस्मत में भसफत वववशता, आकुलता औि व्यथा ही
शेष िह जाती है ।
हम पंिी उन्मुतत गगन के
वपंजिबद्ध न गा पाएँगे,
कनक-तीभलयों से टकिाकि
पुलककत पंख टूट जाएँगे।
हम बहता जल पीनेवाले
मि जाएँगे िूखे-प्यासे,
कहीं िली है कटुक तनबोिी
कनक-कटोिी की मैदा से।
स्वणत-शंख
ृ ला के बंधन में
अपनी गतत, उड़ान सब िल
ू े,
बस सपनों में दे ख िहे हैं।
तरु की फुनगी पि के झल
ू े।
ऐसे थे अिमान कक उड़ते
नील - गगन की सीमा पाने,
लाल ककिण-सी चोंच खोल
चग
ु ते तािक-अनाि के दाने।
होती सीमाहीन क्षक्षततज से
इन पंखों की होड़ा-होड़ी,
या तो क्षक्षततज भमलन बन जाता
या तनती साँसों की डोिी।
नीड़ न दो, चाहे टहनी का
आश्रय तिन्न-भिन्न कि डालो,
लेककन पंख हदए हैं , तो
आकुल उड़ान में ववघ्न न डालो ।

शब्दार्थ:- गगन - आसमान, वपंजिबद्ध - वपंजिे में बंद, पुलककत - प्रसन्न, तनबोिी -नीम का फल,
फुनगी - पेड़ का अंततम भसिा, तािक - पंक्षी, होड़ा-होड़ी - बिाबिी किना, ववध्न - बाधा, क्षक्षततज- वहा
स्थान जहाँ पि धिती औि आसमान भमलते हुए हदखाई दे । आश्रय- सहािा, आकुल-व्याकुल
अभ्यास
पाठ से
1. वपंजि बद्ध पंिी के तया-तया अिमान थे?
2. हि तिह की सुख-सुववधाएँ पा कि िी पक्षी वपंजिे में अपने आपको बन्द तयों नहीं िखना
चाहता है ?
3. पुलककत पंखों का आशय तया है ?
4. ‘स्वणत..........श्रख
ंृ ला के बंधन में अपनी गतत, उड़ान सब िूले’, से कवव का तया आशय है ?
5. उन्मुतत गगन के पंिी से तया आशय है ?
6. कनक तीभलयों से कवव का तया आशय है ?
7. स्वतंत्र रूप से ववचिण किने वाले व्यक्तत को यहद एक ही स्थान पि बंधक बनाकि िखा
जाए, उसे खाने-पीने, आिाम किने की सािी सुववधाएँ दी जाएँ तब िी वह बहुत-सी असुववधाएँ
अनुिव किे गा। वे असववधाएँ तया होंगीं?
8. तनम्नभलणखत पद्यांशों का अथत स्पष्ट कीक्जए
क. ऐसे थे अिमान कक उड़ते, नील-गगन की सीमा पाने,
लाल ककिण-सी चोंच खोल, चग
ु ते तािक-अनाि के दाने।
ख. नीड़ न दो चाहे टहनी का, आश्रय तिन्न-भिन्न कि डालो।
लेककन पंख हदए हैं तो, आकुल उड़ान में ववघ्न न डालो।
पाठ से आगे
1. आपको कोई वपंजड़े में बंद कि दे औि आपसे आपकी आवश्यकता की सािी सुववधाएँ दे , तो
तया आप वपंजड़े में बंद िहना पसन्द किें गे? हाँ अथवा न कािण सहहत उर्त्ि दीक्जए।
2. मनुष्य की वततमान जीवन शैली पक्षक्षयों को ककस प्रकाि से प्रिाववत कि िही है ? भशक्षक
एवं अपने सागथयों से चचात कि भलणखए।
3. अपने घिों में लोग पक्षी पालते है , उन्हें वपंजिें में िखते हैं। वपंजिे में बंद पक्षी तया सोचता
होगा?
4. पितंत्रता की गचकनी-चप
ु ड़ी िोटी से स्वतंत्रता की रूखी-सूखी िोटी अगधक अच्िी होती है ।
इस कथन के संमथतन में अपने ववचाि भलणखए।
5. पक्षक्षयों को आसमान में उड़ते दे खकि आपके मन में तया-तया ववचाि उठते हैं? समह
ू में
चचात कि भलणखए।
6. वपंजिे में बंद पक्षी औि एक स्विं द पक्षी दोनों की जीवन शैली में तया-तया समानता औि
अंति होता है । ववचाि कि भलणखए।
7. पतंग की उड़ान, पक्षक्षयों की उड़ान, बातों की उड़ान आहद इन तीनों तिह की उड़ानों के संबंध
में आपने लोगों को प्रायुः बात किते सुना अथवा स्वयं अनुिव ककया होगा। इनमें तया
फकत है भलणखए।

िाषा से
1. पानी, नीि, अम्बु आहद जल के पयातयवाची हैं। (प्रायुः समान अथत या आशय
का बोध किाने वाले शब्दों को पयातयवाची शब्द कहा जाता है ।) पाठ में
आए तनम्नभलणखत शब्द के पयातयवाची हदए गए हैं इनमें से गलत पयातयवाची शब्दों की
पहचान कीक्जए।
1. गगन - अम्बि, नम, अनन्य, आसमान
2. ककिण - कि, िक्श्म, पद्म, अंशु
3. आश्रय - सहािा, आधाि, अवसान, अवलंबन
4. नीड़ - घोसला, माँद, उद्यम
5. पंख - पि, डेने, पिं तु
6. जल - वारि, अम्ब,ु वारिगध, नीि
7. वक्ष
ृ - पादप, दारू, दिख्त, दोलन
8. आसमान - आकाश, अतनल, व्योम, अंबि
9. कनक - िाकेश, स्वणत, सोना, धतुिा
10. पंक्षी - खग, पक्ष, पखेरु, पंिी
2. कववता में पक्षी, स्वणत, ववध्न, स्वप्न, श्वास आश्रय, श्रख
ं ृ ला, उन्मुतत जैसे शब्द आए हैं क्जन्हें
हम तत्सम शब्द कहते हैं (तत ्+सम = उसके समान) आधतु नक िाितीय िाषाओं में प्रयुतत
ऐसे शब्द क्जनको संस्कृत से बबना कोई रूप बदले ले भलया गया है । तथा जो सीधे संस्कृत
से आये हैं, तत्सम शब्द कहलाते है । हदए गए तत्सम शब्दों का अथत अपनी िाषा में स्पष्ट
किते हुए वातयों में प्रयोग कीक्जए।
3. कनक-तीभलयों, स्वणत-शंख ृ ला पाठ में इस प्रकाि के शब्दों में योजक गचह्नों का प्रयोग हुआ
है । योजक गचह्न (Hyphen) दो शब्दों को जोड़ने के भलए प्रयोग ककया जाता है ऐसे ही
शब्दों को पाठ से िाटकि भलणखए।
4. तनम्नभलणखत शब्दों के तद्िव रुप भलणखए।
पक्षी, स्वणत, ववध्न, स्वप्न, श्वास।
5. प्रस्तुत कववता से अनुप्रास अलंकाि का उदाहिण ढूँढकि भलणखए।
6. हम पंिी उन्मुतत गगन के इस कववता का केन्द्रीय िाव अपने शब्दों में भलणखए।
योग्यता विस्तार
1. आज कल गौिै या जैसे पक्षी ववलुप्त हो िहे है । ऐसे ववलुप्ती के कगाि
पि पहुंचे िहे उन पक्षक्षयों को बचाने के भलए तया ककया जा सकता है ,
समूह में चचात कि भलणखए।
2. हमािे संववधान में नागरिकों के भलए कुि मौभलक अगधकािों का प्रावधान है , उनमें स्वतंत्रता
का अगधकाि िी एक है । सामाक्जक ववज्ञान के भशक्षक की मदद से यह जानने का प्रयास
कीक्जए कक स्वतंत्रता के इस अगधकाि के अंतगतत ककस-ककस तिह के अगधकाि शाभमल है
एवं उनकी तया सीमाएँ हैं।
3. ‘‘स्वतंत्रता हमािा जन्म भसद्ध अगधकाि है ’’ यह स्लोगन लोकमान्य बाल गंगाधि ततलक
ने आजादी की लड़ाई के समय िाित की जनता को हदया था। आप िी इस स्वतंत्रता के
अगधकाि के संबंध में जो ववचाि िखते है , उस आधाि पि कोई दो स्लोगन भलणखए।
पाठ 11
शहीद की िाूँ
- श्री योगेश चंद्र शिाथ
िाितीय स्वतंत्रता संग्राम दो रूपों में लड़ा जा िहा था । एक वगत में वे लोग थे जो अहहंसक लड़ाई
लड़ िहे थे। दस
ू िे वगत में वे क्रांततकािी थे जो हहंसा तक का सहािा लेकि अंग्रेजों को िाित से खदे ड़ना चाहते
थे। िामप्रसाद 'बबक्स्मल' दस
ू िे वगत में थे । क्रांततकारियों को अंग्रेजों से लड़ने के भलए हगथयािों की आवश्यकता
थी। हगथयाि खिीदने के भलए उन्हें धन चाहहए था। वे िाितीयों से धन िीनने की अपेक्षा बब्रहटश सिकाि
का खजाना लट
ु ना श्रेयस्कि समझते थे। क्रांततकारियों के जाससों ने उन्हें सचना दी कक अमक तािीख को
अमक रे न से सिकािी खजाना हदल्ली जाएगा। क्रांततकारियों ने उस खजाने को लट
ू ने की योजना बना ली।
क्रांततकारियों के दल ने काकोिी नामक स्थान पि रे न को िोका औि खजाना लट
ू भलया । िामप्रसाद
'बबक्स्मल' क्रांततकारियों के दल के नेता थे। अंग्रेजों ने अपना जाल फैलाकि उन्हें तथा उनके कुि अन्य
सागथयों को पकड़ भलया। 'बबक्स्मल' को फाँसी की सज़ा सन
ु ाई गई । फाँसी के एक हदन पहले उनकी माँ
उनसे भमलने जेल में पहुँची। 'बबक्स्मल' अपनी माँ से भमलना नहीं चाहते थे। उन्हें िय था कक कहीं उनसे
भमलकि माँ का हृदय द्रववत न हो जाए। ककं तु क्रांततवीि 'बबक्स्मल' की माँ का हृदय तो चट्टान की िाँतत
कठोि था। उन्हें गवत था कक उनका बेटा िाित माँ को स्वतंत्र किाने के प्रयास में फाँसी पि झूलने जा िहा
है । दे शिक्तत से सिाबोि उस त्यागमयी माँ ने अपने सपत
ू को आशीवातद हदया औि उससे हँसते-हं सेत ववदा
ली। धन्य है वह माँ क्जसने अपने लाल को िाित माता हदया। असीम दे शिक्तत, साहस, वीिता की िावना
से ओतप्रोत माँ औि पत्र
ु का वातातलाप इस एकांकी में पहढए ।

(जेल की कोठिी का दृश्य। िामप्रसाद 'बबक्स्मल' सींखचों के पीिे , इधि-उधि घम


ू ते हुए मस्ती से गा िहे हैं।)
“सिफिोशी की तमन्ना, अब हमािे हदल में है,
दे खना है ज़ोि ककतना बाजए
ु काततल में है ।
भसफत भमट जाने की हसित, इक हदले 'बबक्स्मल' में है
अब तेिी हहम्मत की चचात, गैि की महकफल में है ।
(गीत की समाक्प्त के साथ ही जेलि प्रवेश किता है । जेलि िाितीय है । िामप्रसाद 'बबक्स्मल' के प्रतत उसकी
आँखों में अपनापन है ।)
जेलर - (प्रवेश किते हुए) पंडडत िामप्रसाद 'बबक्स्मल' !
बबस्स्िल - (मस्ु कुिाते हुए जेलि की तिफ दे खकि) जेलि साहब ! फिमाइए तया बात है?
जेलर - तम
ु से कोई भमलने आया है ।
बबस्स्िल - मझ
ु से भमलने ? कौन आया है ?
जेलर - तम्
ु हािी माँ हैं।
बबस्स्िल - (प्रसन्नता से) मेिी माँ! (कुि सोचकि अचानक उदास हो जाता है ।) लेककन....! नहीं, नहीं, जेलि
साहब ! मैं अपनी माँ से नहीं भमलँ ग
ू ा।
जेलर - (आश्चयत से) माँ से नहीं भमलोगे? यह तम
ु तया कह िहे हो?
बबस्स्िल - हाँ जेलि साहब, मैं अपनी माँ से नहीं भमल पाऊँगा। मझ
ु े उनसे नहीं भमलना चाहहए।
जेलर - लेककन तयों? कल तम्
ु हें फाँसी होने वाली है औि तम
ु आणखिी बाि अपनी माँ से ववदा िी नहीं
लोगे?
बबस्स्िल - मज़बिू हूँ जेलि साहब ! केवल एक हदन की मेिी इस क्जंदगी को दे खकि माँ को ककतना दख

होगा, इसे आप नहीं जान सकते औि मझ
ु े डि है कक माँ की िीगी आँखें कहीं मेिे कदमों को
डगमगा न दें , मझ
ु े मेिी मौत के भलए अफसोस न होने लगे।
जेलर - (व्यंग्य से) इसका मतलब हुआ कक तम्ु हें अपने आप पि यकीन नहीं।
बबस्स्िल - नहीं, नहीं, जेलि साहब ! ऐसा न कहहए। मैं चट्टान की तिह अटल हूँ औि ईश्वि को अवपतत
ककए गए ककसी फूल की मस्
ु कान मेिी िग-िग में है । लेककन तब िी जेलि साहब ! माँ से
भमलने की हहम्मत मैं नहीं जुटा पा िहा हूँ । क्षमा चाहता हूँ जेलि साहब ! माँ से िी मेिी
ओि से क्षमा माँग लेना, मैं उनसे नहीं भमल सकँू गा ।।
(यकायक िामप्रसाद 'बबक्स्मल' की वद्
ृ धा माँ प्रवेश किती हैं। साधािण वेशिष
ू ा ।)
िाूँ - (प्रवेश किते हुए) तया कह िहा है , िामप्रसाद ? माँ से नहीं भमलेगा ? मझ
ु से नहीं भमलेगा तू ?
ज़िा कफि से एक बाि मेिी ओि दे खकि कहना तो सही ।
बबस्स्िल - (आश्चयत से) माँ ? तम
ु ............. ? माँ - हाँ मैं ही तो हूँ | तया अपनी माँ को पहचान िी
नहीं सकता ? बबक्स्मल - ऐसे मत बोलो, माँ ! माँ - औि तया बोलँ ,ू अपने दे श का ऐसा दीवाना
बना कक जन्म दे ने वाली अपनी माँ को िी िल
ू गया ? मझ
ु से भमलने को िी तेिा जी न चाहा?
बबस्स्िल - माँ ! मझ
ु े गलत मत समझो । मेिा मतलब यह नहीं था । मैंने तो ...... |
(बात काटकि स्नेह से) अिे , अब िहने दे अपनी सफाई को । मैं सब जानती हूँ | तू अपनी माँ
को िले ही िल
ू जा, पि मैं अपने बेटे िामप्रसाद को खब
ू जानती हूँ। तन
ू े सोचा होगा कक तझ
ु े
इस हाल में दे खकि मझ
ु े शायद दख
ु होगा । मौत की गोद में तझ
ु े दे खकि मेिी आँखों से
पिनाले बहने लगें गे।
बबस्स्िल - हाँ माँ ! मेिा मतलब यही था।
िाूँ - पगले! तू अपनी माँ को इतना िी नहीं पहचान सका? क्जस िाित माँ के भलए तू कुबातन हो
िहा है , वह अकेले तेिी ही तो माँ नहीं, वह तो मेिी िी माँ है । बेटे ! तेिे सिी बज
ु ुगों की माँ है ।
इस सािे दे श की माँ है ।
बबस्स्िल - (िावावेश में ) माँ ! मैंने समझा था कक .... ।
िाूँ - अन्य साधािण क्स्त्रयों की तिह मैं िी िोने-चीखने लगग
ूं ी। यही न? लेककन बेटे, तन
ू े यह न
सोचा कक क्जस माँ ने तझ
ु े बचपन से ही त्याग, वीिता औि दे श-प्रेम का पाठ पढाया है , आज
अपनी मेहनत को फलते-फूलते दे खकि उसे कष्ट तयों होगा? आज का हदन तो मेिे भलए सबसे
बड़ी खुशी का हदन है ।
बबस्स्िल - मझ
ु े अपने ववचािों के भलए अफसोस है माँ !
िाूँ - नहीं मेिे लाल ! आज के हदन तू ककसी का अफसोस न कि।तत
ू ो कुबातनी की िाह जा िहा है ,
मेिे बच्चे ! अफसोस तो मझ
ु े है कक मेिा दस
ू िा बेटा अिी इतना िोटा तयों है ?
बबस्स्िल - माँ ! ववश्वास िखो। तम्
ु हािे इस बेटे के बभलदान से अनेक िामप्रसाद पैदा होंगे औि तब वह
हदन दिू नहीं होगा, जब हमािा यह दे श गल
ु ामी के चंगल
ु से मत
ु त होकि आज़ादी की साँस ले
सकेगा औि लहलहाती ज़मीन हमािी अपनी होगी।
िाूँ - ककतना शि
ु होगा वह हदन ?
बबस्स्िल - हाँ माँ। (कुि ठहिकि) माँ ! एक इच्िा है ।
िाूँ - बोल बेटे ! तया इच्िा है ? मैं तेिी हि इच्िा को पिू ा किने की कोभशश करूँगी।
बबस्स्िल - जब आज़ादी का पहला जश्न मनाया जाए, तब मेिी तस्वीि को ऐसी जगह िख दे ना, जहाँ से
मैं सािा जश्न अपनी उस तस्वीि के ज़रिए दे ख सकँू , लेककन मेिी उस तस्वीि को कोई न दे ख
सके ।
िाूँ - ऐसा तयों मेिे लाल ? मैं तेिी तस्वीि को ऐसी जगह िखूगी, जहाँ सािी दतु नया उसे दे ख सके ।
बबस्स्िल - नहीं माँ ! ऐसा मत किना । मेिी तस्वीि को दे खकि लोगों को मेिी याद आ जाएगी औि तब
शायद उस खुशी के मौके पि उनकी आँखे गीली हो जाएँ । मेिे दे श को आज़ादी भमले औि मेिे
दे शवासी उस हदन आँसू बहाएँ, यह सहन नहीं हो सकेगा, माँ !
िाूँ - (िावावेश में ) मेिे बेटे ! ऐसा ही होगा, मेिे लाल !
बबस्स्िल - (घड़ी दे खते हुए) क्षमा कीक्जए । समय काफी हो चक
ु ा ।

िाूँ - चलती हूँ जेलि साहब ! (अपनी साड़ी के पल्लू में बँधे हुए कुि बेसन के लड्डू तनकालती हैं ।)
ले बेटा ! ये बेसन के लड्डू तेिे भलए बनाकि लाई हूँ । माँ के हाथ का यही तझु े अंततम िोग
है ।
बबस्स्िल - बेसन के लड्डू?
िाूँ - हाँ ! तझ
ु े बेसन के लड्डू बहुत अच्िे लगते हैं ना ?
बबस्स्िल - (हहचककचाते हुए) लेककन माँ ....... जेलि साहब ! (बबक्स्मल जेलि की तिफ दे खता है । जेलि
मस्
ु कुिाकि स्वीकृतत दे ता है ।)
िाूँ - (मस् ु कुिाकि) गचंता न कि । जेलि साहब से मैंने पहले ही पि
ू भलया है । बहुत अच्िे आदमी
हैं।
बबस्स्िल - लाओ माँ ! अपने हाथ से ही णखला दो । (प्रसन्नगचर्त् माँ बबक्स्मल को लड्डू णखलाती हैं ।)
बबस्स्िल - बस माँ ! ये बचे हुए लड्डू मैं बाद में खा लँ ग
ू ा । (लड्डू लेकि अपने पास िख लेता है ।)
िाूँ - (बबक्स्मल के भसि पि हाथ फेिते हुए) अच्िा मेिे लाल ! मैं चलती हूँ।
बबस्स्िल - अच्िा माँ ! ईश्वि किे अगले जन्म में िी तम
ु ही मेिी माँ बनो ।
िाूँ - औि मैं कफि तझ
ु े इसी तिह कुबातन कि दँ ू । पाल-पोसकि बड़ा करूँ औि कफि ........... (गला
सँध जाता है ।)
बबस्स्िल - (आश्चयत से) माँ यह तया ? यह तम्
ु हें अचानक तया हो गया ? माँ - (जबदतस्ती हँसते हुए) कुि
नहीं बेटा ! कुि िी तो नहीं ।
बबस्स्िल - तो कफि तम्
ु हािी आँखों में आँसू तयों िलक आए माँ ?
िाूँ - उन्हें िलकने दे बेटा ! उनकी तू तयों गचंता किता है ? बबक्स्मल - नहीं माँ ! ववदा की बेला
में तम्
ु हािी आँखों में चमकने वाले ये आँसू .... मेिे कदमों को डगमगा िहे हैं ।
िाूँ - (आश्चयत औि दख
ु से) िामप्रसाद ! यह तया कहता है ? जन्मिभू म पि न्यौिावि होने वाले
बहादिु इस तिह की बातें नहीं ककया किते । संसाि की कोई िी शक्तत उनके कदमों को नहीं
डगमगा सकती।
बबस्स्िल - मैं िी अब तक अडडग ही हूँ माँ ! लेककन तम्
ु हािी आँखों से बहनेवाले ददत को मैं सहन नहीं
कि सकता । तम
ु दख
ु ी िहोगी माँ तो मेिी आत्मा िी दख
ु ी िहे गी। माँ - मेिा दख
ु ? तेिी कुबातनी
पि मझ
ु े दख
ु ? यह तू तया कह िहा है बेटा ?
बबस्स्िल - मैं नहीं कह िहा माँ ! तम्
ु हािी आँखों से बहने वाले आँसू कह िहे हैं कक तम्
ु हें कोई दख
ु है ।
िाूँ - (हँसकि) पगले ! अिे ये आँसू तो खश
ु ी के हैं ।
बबस्स्िल - खुशी के आँसू !
िाूँ - हाँ बेटा ! पाल-पोसकि अपनी संतान को अपने हाथों से दे श के भलए कुबातन कि दे ने में िी
एक अजीब-सी खश
ु ी है औि उस खुशी को प्राप्त किने का गौिव मझ
ु े प्राप्त हो िहा है ।
बबस्स्िल - माँ ! .... मैंने समझा था कक ....... |
िाूँ - अिे ! अब िहने िी दे अपनी समझ को । जेलि साहब ! तया कल अपने बेटे की फाँसी के
समय में यहाँ िह सकती हूँ ।
जेलर - जी नहीं । हुतम न होने के कािण मैं मज़बिू हूँ ।
बबस्स्िल - ज़रूित िी तया है माँ ? तम
ु ने अपने बेटे को िाित माँ की गोद में डाल हदया। अब उसकी
सेवा के भलए, यह आत्मा ककसी िी रूप में िहे । तया फकत पड़ता है ?
िाूँ - तू ठीक कहता है मेिे लाल ! अच्िा मेिे बच्चे ! अपनी िाित माँ की अच्िी तिह सेवा किना।
कोई चूक न होने पाए। (बबक्स्मल के भसि पि हाथ फेिती हैं । बबक्स्मल माँ के पैि िूता है ।)
चभलए जेलि साहब ! (जेलि के साथ प्रस्थान किती है । बबक्स्मल उस तिफ दे खता िहता है ।
पदात धीिे -धीिे गगिता है ।)

शब्दार्थ :- सिफिोशी – बाभलदान दे ना, भसि कलम कि दे ना, तमन्ना - तीव्र इच्िा, हसित-इच्िा, महकफल-
सिा, मजबिू -बेबस, लाचाि, अफसोस-दुःु ख, यकीन–ववश्वास, पिनाले–आँस,ू गल
ु ामी-दासता, जश्न-समािोह, चंगल
ु -
बंधन ।

अभ्यास

पाठ से
1. िामप्रसाद 'बबक्स्मल' कौन थे? उन्हें फाँसी की सजा तयों हुई?
2. जेल में आईं अपनी माँ से भमलने के भलए 'बबक्स्मल' हहचककचा तयों िहे थे?
3. 'बबक्स्मल' की माँ ने अपने बेटे को ककस बात की उलाहना दी?
4. 'बबक्स्मल' ने माँ के सामने कौन-सी इच्िा प्रकट की?
5. "मझ
ु े मेिी मौत के भलए अफसोस न होने लगे" बबक्स्मल ने ऐसा तयों कहा ?
6. तस्वीि को कैसी जगह पि िखने को बबक्स्मल ने अपनी माँ से इच्िा व्यतत की ?
7. 'बबक्स्मल' ने अपनी तस्वीन को सिी के सामने िखने के भलए मना तयों ककया?
8. अपनी आँखों में आँसू आने का माँ ने तया कािण बताया?
9. कािागाि से ववदा होते समय माँ ने बबक्स्मल से तया कहा ?
10. माँ को ककस बास से गौिव का अनि
ु व हो िहा था?
11. इस एकांकी के आधाि पि बबक्स्मल की माँ की चरित्रगत ववशेषताओं को भलणखए?

पाठ से आगे
1. “अपने दे श का ऐसा दीवाना बना कक जन्म दे ने वाली अपनी माँ को िी िल

गया!' माँ के ऐसा कहने में कौन से िाव िहे होंगे? ववचाि कि भलणखए।
2. मैं चट्टान की तिह अटल हूँ औि ईश्वि को अवपतत ककए गए ककसी फूल की मस्
ु कान मेिे िग-िग
में है मगि वह हहम्मत नहीं है । जेलि साहब से बबक्स्मल ने ऐसा तयों कहा होगा ?
3. क्जस माँ ने तझ
ु े “बचपन से ही त्याग, वीिता औि दे श-प्रेम का पाठ पढाया है, आज अपनी मेहनत
को फलते-फूलते दे खकि उसे कष्ट तयों होगा? बबक्स्मल की माँ का यह कहना ककस िाव का सच
ू क
है ?
4. एकांकी में बबक्स्मल के भलए जेल में उनकी माँ बेसन के लड्डू बनाकि खाने के भलए लाती है । इसी
तिह आपको िी माँ के हाथों से बने कोई िोज्य पदाथत ववशेष रुप से पंसद होंगे। उसके बािे में
भलणखए।

िाषा से
1. "तम्
ु हािे इस बेटे के बभलदान से अनेक िामप्रसाद पैदा होंगे" पाठ में उद्धत
ृ इस वातय में शब्द
'िामप्रसाद' सामान्यत व्यक्तत वाचक संज्ञा है । क्जसका संबध
ं िामप्रसाद नामक व्यक्तत से हैं पिं तु
यहाँ इस वातय में स्वयं िहीद ‘िामप्रसाद' ने दे शहहत में शहीद होने वाले वीिों के भलए अनेक
िामप्रसाद' के पैदा होने की बात कही हैं। िाषा में इस प्रकाि की क्स्थतत आने पि व्यक्तत वाचक
संज्ञा, जातत वाचक संज्ञा का कायत किने लगती है । कुि अन्य उदाहिण नीचे हदए गए हैं इन्हें िी
दे णखए –
क. वह कलयग
ु का िाम है ।
ख. तम
ु ही वविीषण हो।
ग. वह आदमी नहीं जल्लाद है ।
आप िी इस तिह के पाँच वातयों को भलणखए।
2. मेिी माँ! (कुि सोचकि) लेककन ............! नहीं नहीं जेलि साहब! मैं अपनी माँ से नहीं भमलँ ग
ू ा।
आश्चयत, आनंद, दुःु ख आहद का िाव प्रकट किने के भलए क्जस गचह्न का प्रयोग ककया जाता है उसे
ववस्मयाहद बोधक गचह्न (!) कहते हैं, पाठ में इस प्रकाि के वातयों का अनके स्थानों पि प्रयोग
हुआ है, उन्हें खोजकि भलणखए।
3. तनम्नभलणखत अनच्
ु िे द में रितत स्थानों को कोष्ठक में हदए गए उगचत शब्द से ििकि पिू ा कीक्जए-
अन्य साधािण क्स्त्रयों की ............. (तिह / वजह) मै िी िोने-चीखने लगग
ूं ी। यह न ? लेककन (बेटे/
बेटी) तन
ू े यह न सोचा कक क्जस माँ ने तझ
ु े...............(जवानी/बचपन) से ही त्याग, वीिता औि दे श-
प्रेम का पाठ पढाया है , आज अपनी............... (हहम्मत / मेहनत) को फलते-फूलते दे खकि उसे
........(कष्ट/ खुशी) तयों होगा ? "आज का हदन तो मेिे भलए सबसे........... (बड़ी/िोटी) खुशी का
हदन है ।
4. पाठ में हम दे खते हैं कक बबक्स्मल औि जेलि के बातचीत में काफी सवाल हैं, क्जन्हें हम प्रश्नवाचक
वातय कहते हैं जैसे –
• मझ
ु से भमलने कौन आया है ?
• माँ से नहीं भमलोगे ?
• यह तम
ु तया कह िहे हो ?
उपयत
ुत त वातयों को पढने से स्पष्ट होता है कक प्रश्न वाचक वातय हम कैसे बनाते हैं अथातत ् क्जस
वातय में कोई प्रश्न पि
ू ा गया हो अथवा प्रश्न पि
ू ने का िाव हो उसके अंत में प्रश्न वाचक गचह्न
(?) का प्रयोग होता है ।
पाठ में प्रयत
ु त प्रश्न वाचक वातयों को खोज कि भलणखए तथा कुि साधािण वातयों का चन
ु ाव कि
प्रश्नवाचक वातयों का तनमातण कीक्जए।
5. तनम्नभलणखत शब्दों को पहढए –
क ख क ख
नीतत अनीतत रुगच अरुगच
सत्य असत्य मान्य अमान्य
धमत अधमत ववश्वास अववश्वास
क खण्ड के नीचे भलखे शब्दों में औि ख खण्ड के नीचे भलखे शब्दों में आपको तया अन्ति हदखाई
दे िहा है ? तया ख खण्ड के शब्द क खण्ड के शब्दों के ववलोम शब्द हैं । यहद हाँ तो इन उदाहिणों
से तया तनयम तनधातरित होता है ? इसी तनयम के पालन में कोई पाँच अन्य शब्द औि उनके ववलोम
शब्द भलणखए ।

6. तनम्नांककत मह
ु ाविों के अथत भलखकि वातयों में प्रयोग कीक्जए। जी चाहना, कदम डगमगाना, गोद
में डालना, फलना-फूलना, चंगल
ु से मत
ु त होना ।

7. समानाथी शब्दों को भमलाइए जैसे उद्यान – बगीचा


सिफिोशी त्याग
तमन्ना हत्यािा
काततल अंति
कुबातनी सिा
भसि कटाना
महकफल इच्िा
फकत आदे श
8. नीचे भलखे शब्दों को बािहखड़ी के क्रम में भलणखए
भमठाई, मल
ू ी, मतलब, मंगल, मौसी, मीनाि, माभलक, मक
ु ु ट, मेला, मोिनी, मैदान ।
नोट :- शब्द कोश में इन्हीं बािहखड़ी के क्रम से शब्दों की व्यवस्था होती है । उनके क्रम के आधाि
पि शब्दाथत ढूँढा जाता है ।
9. तनम्नभलणखत अनच्
ु िे द को ध्यान से पहढए तथा नीचे कोष्ठक में हदए गए उपयत
ु त शब्दों का प्रयोग
कि रितत स्थानों की पतू तत कीक्जए -
प्रस्तत
ु एकांकी में लेखक ने माँ.... ममता, दे शप्रेम की उत्कट अभिलाषा औि .... के प्रतत बभलदान
की िावना का .... गचत्र प्रस्तत
ु ककया है । ऐसा उत्कृष्ट.... किनेवाली माँ के वल अपने बेटे.... ही
माँ नहीं होती बक्ल्क वे.... के नाम से इततहास में जानी जाती हैं । बबक्स्मल जैसे िणबाँकु िे , वीि,
दे शितत .... साहसी बेटों को पाकि िाष्र गौिव...... अनि
ु व किता है औि वह िाष्र.... होकि हदन-
दन
ू ी िात चौगन
ु ी उन्नतत के भशखि पि बढता जाता है ।
(िाष्रमाता, का, औि, की, िाष्र, स्वतंत्र, अनठ
ू ा, बभलदान, की)
10. इन वातयों को पहढए –
क. मैंने अपने हाथों से कमिे की सफाई की है ।
ख. अिे , अब िहने दे अपनी सफाई को।
दोनों वातयों में ' सफाई ' शब्द का प्रयोग हुआ है । इन दोनों के अथत अलग-
अलग हैं। दोनों अथों में इनका अलग-अलग प्रयोग कीक्जए।
11. इस एकांकी का सािांश भलणखए ।

योग्यता विस्तार
1. स्वतंत्रता आंदोलन के क्रांततकारियों का गचत्र संग्रह कि उनकी सच
ू ी बनाइए औि कक्षा में चस्पा
कीक्जए ।
2. प्रस्तत
ु एकांकी को सागथयों के साथ भमलकि अभिनय के साथ ववद्यालय में प्रस्तत
ु कीक्जए। आप
इस कायत में अपने भशक्षक की सहायता िी ले सकते हैं।
3. स्वाधीनता आन्दोलन में क्जन क्रांततकारियों ने िाग भलया, उनकी सच
ू ी बनाइए।
4. इस एकांकी का अभिनय ववद्यालय मंच पि प्रस्तत
ु कीक्जए।
5. 'सिफिोशी की तमन्ना अब हमािे हदल में ।' इस गीत के तनहहत िाव को भशक्षक की मदद से
समणझए औि ऐसे ही िाव वाले अन्य गीतों को ढूँढकि भलणखए।
पाठ 12
सिथधिथ सििाि
-डॉ.कृष्ण गोपाल रस्तोगी
धाभमतक सहहष्णत
ु ा औि मानव धमत सवोपरि है । यद्
ु ध,द्वेष औि कलह का िी इन पि कोई असि नहीं होना
चाहहए। मानव कल्याण, ववश्वबंधुत्व की िावना हि मनष्ु य में सवोपरि हो। इस बात का प्रमाण महािाणा
प्रताप औि गरू
ु गोववन्द भसंह की इन दो प्रेिक कहातनयों में भमलता है जहाँ यद्
ु ध जीतने के बाद िी दोनों
में मानवता को सबसे ज्यादा महत्व दे ते हुए शत्र-ु सैतनक औि उनके परिवाि से आत्मीय व्यवहाि ककया।

महािाणा प्रताप औि मग
ु लों के बीच यद्
ु ध चल िहा था। कँु वि अमिभसंह के नेतत्ृ व में िाणा का पलड़ा
िािी िहा । खानखाना औि उसकी सेना को मैदान िोड़ना पड़ा। अमिभसंह ने मग
ु लों की क्स्त्रयों, बच्चों,
परिवािवालों औि सैतनकों को बंदी बना भलया ।

िाणा प्रताप ने जब लड़ाई में जीतने का समाचाि सन


ु ा, तो वे कँु वि अमिभसंह को बधाई दे ने स्वयं
आए | पिं तु जब महािाणा को पता चला कक कँु वि ने मग
ु लों की क्स्त्रयों औि परिवािवालों को बन्दी बना
भलया है , तो वे अत्यंत क्रुद्ध होकि बोले, “ कँु वि ! लड़ाई जीतकि तम
ु ने जो स्थान मेिे हृदय में प्राप्त ककया
था, वह समाप्त हो गया है । तम
ु नहीं जानते तम
ु ने मग
ु लों की क्स्त्रयों औि परिवािवालों को बन्दी बनाकि
ककतना बड़ा अपिाध ककया है । हमािी शत्रत
ु ा मग
ु ल साम्राज्य से है , ककसी व्यक्तत ववशेष से नहीं। उनकी
क्स्त्रयाँ िी हमािी माँ-बहनों के समान हैं।"

िाणा प्रताप ने स्वयं जाकि खानखाना की बेगम से िेट की औि कँु वि के अपिाध के भलए क्षमा माँगी।
उन्होंने आदे श हदया कक मग
ु लों की क्स्त्रयाँ औि बच्चे सम्मान पव
ू क
त मग
ु लों के पास पहुँचा हदए जाएँ ।
अकबि ने जब दे खा कक मग
ु लों की क्स्त्रयाँ औि बच्चे िाजपत
ू ों के संिक्षण में सकुशल लौट िहे हैं, तो
उसका भसि िी महािाणा प्रताप की धाभमतक सहहष्णुता के सामने आदि से झुक गया | संसाि में अनेक धमत
हैं । सिी धमत हमें अच्िी-अच्िी बातें भसखाते हैं । वे सिी हमें असत्य से सत्य की ओि, बिु ाई से अच्िाई
की ओि तथा पाप से पण्
ु य की ओि ले जाते हैं । हमािा कततव्य है कक हम सिी धमों का आदि किें ।
िाितीय संस्कृतत में तो ववशेष रूप से कहा गया है कक ककसी िी धमत की तनंदा मत किो।

ऐसी ही एक दसरी घटना और पहढ़ए।

एक बाि गरु
ु गोववन्द भसंह को सच
ू ना भमली कक ककसी शत्रु ने उनके िाज्य के ककसी िाग पि अचानक
हमला कि हदया है । उन्होंने अपने सैतनकों से उसका मक
ु ाबला किने को कहा । यद्
ु ध हुआ औि उसमें
भसखों की जीत हुई । अगले हदन गरु
ु के कुि भशष्यों ने एक भसख सैतनक को उनके सामने प्रस्तत
ु ककया
औि कहा, “गरु
ु जी ! यह यद्
ु ध के मैदान में भसख िाइयों के साथसाथ दश्ु मन के घायल भसपाहहयों को िी
पानी वपला िहा था । लगता है , यह दश्ु मन से भमला हुआ है, इसे दण्ड भमलना चाहहए।" ___ गरु
ु गोववंद भसंह
ने उस यव
ु क से पि
ू ा, "तया यह सच है कक तम
ु यद्
ु धिभू म में शत्रु सेना के घायल भसपाहहयों को पानी वपला
िहे थे ?''

"हाँ, महािाज ! यह बबल्कुल सच है ," वह बोला। “पि तया शत्रु के सैतनकों को पानी वपलाना उगचत है
?'' गरु
ु ने पि
ू ा।

"श्रीमान ! आप ही ने एक बाि बताया था कक सिी मनष्ु यों में एक ही आत्मा है । इसी बात को ध्यान
में िखकि मैंने उन्हें पानी वपलाया । यहद मझ
ु से कोई अपिाध हो गया है, तो आप मझ
ु े दण्ड दे सकते हैं,
महािाज !'' वह यव
ु क बोला ।

गरु
ु गोववंद भसंह उस यव
ु क के उर्त्ि से बेहद खुश हुए | उन्होंने कहा, "मझ
ु े खुशी है कक मेिे सािे भशष्यों
में से धमत का वास्तववक अथत के वल तम्
ु हीं ने समझा है । तम
ु ने दश्ु मन के घायल सैतनकों को पानी
वपलाकि कोई अपिाध नहीं ककया, तम
ु ने गरु
ु नानक की वाणी को सही तिह से समझा ही नहीं, अपने आचिण
में िी उतािा है ।'' ___ एक सैतनक ने शंका प्रकट की, “यहद यद्
ु ध में घायल पड़े शत्र-ु सैतनक को पानी वपलाना
धमत का काम है तो कफि उसी सैतनक को यद्
ु ध में माि गगिाना तो अधमत होना चाहहए।"

“यद्
ु ध में शत्रु सैतनक का सामना किना िाष्र धमत है, जबकक घायल सैतनक को पानी वपलाना मानव
धमत है । ककसी घायल, असहाय या दब
ु ल
त व्यक्तत से केवल इसीभलए घण
ृ ा किना कक वह दस
ू िे धमत का
अनय
ु ायी है , उगचत नहीं है," गरु
ु गोववंद भसंह ने उर्त्ि हदया ।

हमािा दे श िाित ऐसा दे श है जहाँ अनेक धमों के लोग िहते हैं। िाित के संववधान के अनस
ु ाि सिी
को धाभमतक स्वतंत्रता प्राप्त है । इसभलए दे श की एकता औि अखण्डता के भलए यह अत्यंत आवश्यक है
कक प्रत्येक िाितीय अपने-अपने धमत का पालन किता हुआ िी ककसी अन्य धमत के प्रतत घण
ृ ा या द्वेष का
िाव न िखे । ईश्वि, अल्लाह, गॉड आहद उसी ईश्वि के अनेक नाम हैं । गांधी जी अपने िजन में ठीक ही
गाया किते थे- “ ईश्वि अल्लाह तेिे नाम, सबको सन्मतत दे िगवान ् ।"

बच्चो ! ध्यान िहे , इस साम्प्रदातयक िेद के कािण िाित की एकता पि आँच नहीं आनी चाहहए।
है साम्प्रदातयक िेद से कब ऐतय भमट सकता अहो ! बनती नहीं तया एक माला ववववध सम
ु नों की
कहो ।
- िैथर्लीशरण गप्ु त

शब्दार्थ :- बधाई – मंगलकामना, कँु वि- िाजकुमाि, संिक्षण–तनगिानी, हहफाजत, दे खिे ख, सहहष्णत
ु ा -
सहनशीलता, कततव्य – फजत, (दातयत्व), ववशेष – असाधािण, असामान्य, तनन्दा - दोष कथन, अचानक -
अकास्मात, भसख – एक धमत, पंथ, िाष्रधमत – िाष्र के प्रतत हमािे कततव्य, सहाय – लाचाि, दब
ु ल
त – कमजोि,
अनय
ु ायी – अनच
ु ि, संववधान - ववगध की व्यवस्था, धाभमतक स्वतंत्रता – धमत को मानने की आजादी, सन्मतत -
अच्िी बद्
ु गध, एतय –एकता।

अभ्यास

पाठ से

1. सवतधमत समिाव से आप तया समझते हैं ?


2. िाणा प्रताप ने कँु वि अमिभसंह को बधाई िी दी औि उन पि क्रोगधत िी हुए। तयों?
3. शत्र-ु नारियों औि बच्चों के प्रतत िाणा प्रताप की तया धािणा थी?
4. महािाणा प्रताप खानखाना की बेगम से क्षमा तयों माँगते हैं ?
5. अकबि महािाणा के सामने तयों झक
ु गया?
6. भशष्यों ने गरु
ु गोववन्द भसंह से तया भशकायत की ?
7. भशष्य के उर्त्ि से गरु
ु गोववन्द भसंह तयों प्रिाववत हुए ?
8. िाष्रधमत औि मानवधमत का एक-एक उदाहिण दीक्जए ।
9. महािाणा प्रताप व गरू
ु गोववंद भसंह में कौन-सी समानताएँ थी ?
10. एक माला में भिन्न-भिन्न प्रकाि के फूलों की बात पाठ में कक स संदित में कही गई है ?
पाठ से आगे
1. सिी धमो में मानव सेवा को सवोच्च माना गया है आपके ववचाि से मानव
सेवा ककसे कहें गे ? उदाहिण सहहत बताइए।
2. आप अगि गरू
ु गोववंद भसंह के भशष्य की जगह होते तो तया अपने शत्रु के
घायल भसपाहहयों को पानी वपलाते ? अपने ववचाि भलणखए।
3. महािाणा प्रताप ने मग
ु लों की क्स्त्रयों औि बच्चों को सम्मान पव
ू क
त सिु क्षक्षत वापस कि हदया। आपके
ववचाि से दश्ु मनों के परिवाि को महािाणा प्रताप के द्वािा िोड़ना उगचत था अथवा नहीं।
4. दे श की अखण्डता एवं एकता के भलए हमें तया किना चाहहए? अपने ववचाि भलणखए।
5. सिी धमत असत्य से सत्य की ओि, बिु ाई से अच्िाई की ओि तथा पाप से पण्
ु य की ओि ले जाते
हैं। इसी प्रकाि अधमत, हहंसा, अभशक्षा ककस ओि ले जाते हैं?
6. यहद आपको कोई घायल व्यक्तत भमले तो आप तया किें गे? संक्षेप में भलणखए।

िाषा एिं व्याकरण


1. "हाँ महािाज ! यह बबल्कुल सच है " वह बोला। " पि तया शत्रु के सैतनकों को
पानी वपलाना उगचत है " गरू
ु ने पि
ू ा। उपिोतत दोनों | ही वातय में उद्धिण
गचह्न ................'' का प्रयोग ककया गया है ।
ककसी के कथन को ज्यों का त्यों प्रस्तत
ु किने के भलए दोहिे उद्धिण गचह्न का प्रयोग ककया जाता
है । पाठ में आये उद्धिण गचह्न वाले अन्य वातयों को ढूँढकि भलणखए।
2. मानव शब्द में 'ता' प्रत्यय लगकि 'मानवता' शब्द बन जाता है । इस प्रकाि वे शब्दांश जो शब्द के
अन्त में जुड़कि उसके अथत को बदल दे ते हैं अथवा उसमें ववशेषता उत्पन्न कि दे ते है, उसे प्रत्यय
कहते है । ऐसे ही पाठ में आये शब्द में 'ता' प्रत्यय लगाकि 10 शब्द बनाइए।
3. नीचे भलखे वातयों को पहढए -
1. सैतनकों से मक
ु ाबला ककया 2. सैतनक को प्रस्तत
ु ककया।
वातय में सैतनकों (बहुवचन) व दस
ू िे वातय में सैतनक (एकवचन) में भलखा हुआ है , अथातत ् “पदों के
क्जस रूप में उसके एक या अनेक होने का बोध हो वचन कहलाता है ।"
जैसे :- लड़का-लड़के
एकवचन में संज्ञापदों की एक संख्या का औि बहुवचन में उसकी अनेक संख्याओं का बोध होता
है । पाठ में आए एकवचन एवं बहुवचन संज्ञाओं को ढूँढकि भलणखए एंव उनका वातयों में प्रयोग िी
कीक्जए।
हदए गए उदाहिण के समान ही पाठ में आये हुए शब्दों को ढूँढकि एकवचन से बहुवचन बनाइए।
4. तया संसाि में अनेक धमत हैं ?
गरू
ु गोववन्द भसंह उस यव
ु क के उर्त्ि से खश
ु नहीं हुए।
पहले वातय में तया लगा हुआ है अथातत वह प्रश्न का बोध किाता है । ऐसे वातय क्जसमें तया, कब,
कैसे पि
ू ा जाये वहाँ प्रश्न सच
ू क वातय होता है । दस
ू िे वातय में ककसी बात के न होने का िाव है
अतुः यह तनषेध सच
ू क वातय है ।
ननदे शानस
ु ार िाक्यक को बनाइए।
1. यह सच है (प्रश्न वाचक)
2. उन्होनें आदे श हदया (तनषेध वाचक)
3. सेना को मैदान िोड़ना पड़ा (प्रश्न वाचक)
4. उगचत है । (तनषेध वाचक)
5. पाठ में हदया गया है वातय – ककसी िी धमत की तनंदा मत किो।' इस वातय में तनंदा की जगह
बिु ाई भलख दें तो वातय के अथत में कोई परिवततन नहीं होता।
ऐसे शब्द क्जनके अथत में समानता होती है समानाथतक शब्द कहे जाते हैं, तनम्नांककत वातयों में
िे खांककत शब्दो के समनाथी शब्द भलणखए।
1. हमािी शत्रत
ु ा मग
ु ल साम्राज्य से है ।
2. यद्
ु ध हुआ औि उसमें भसखों की जीत हुई
3. इसे दण्ड भमलना चाहहए।
4. मैंने उन्हे पानी वपलाया।
6. तनम्नभलणखत शब्दों से ऐसे वातय बनाइए कक प्रत्येक का भलंग प्रकट हो जाए –
मक
ु ाबला, यद्
ु ध, सेना, लड़ाई, पानी, सम
ु न, िाला
7. 'धमत' शब्द में 'इक' प्रत्यय लगाकि धाभमतक' शब्द बना है । इसी प्रकाि तनम्नभलणखत शब्दों में 'इक'
प्रत्यय लगाकि नए शब्द बनाइए –
ममत, कमत, समाज, परिवाि
8. 'हाि' का ववलोम शब्द 'जीत' है । इसी प्रकाि तनम्नभलणखत शब्दों के ववलोम शब्द बनाइए -
सत्य, अच्िाई, पण्
ु य, आदि

योग्यता विस्तार
1. महािाणा प्रताप व गरू
ु गोववंद भसंह जैसे ही िर्त्ीसगढ में िी वीि महापरू
ु ष हुए हैं। उनके बािे में
जानकािी प्राप्त कि उनके नाम व कायो की सच
ू ी बनाइये।
2. ऐततहाभसक मग
ु लकालीन शासकों की सच
ू ी भशक्षक की सहायता से बनाइए।
3. ऐसे गीत/ कववताओं का संकलन किें क्जनमें सवत धमत समिाव तनहहत हो।
पाठ 13
आलसीराि
- श्रीनारायण लाल परिार
िर्त्ीसगढ के प्रभसद्ध साहहत्यकाि श्री नािायण लाल पिमाि की प्रस्तत
ु लोककथा एक ओि आलसी
व्यक्तत के हृदय परिवततन की कहानी है । कुएँ में डुबककयाँ लगाने का दं ड िग
ु त लेने पि आलसीिाम सदा
के भलए कमतठ बन जाता है । कथा में आए पात्रों के नामों, ग्राम्य शब्दों तथा लोकगीत की कडड़यों के समावेश
से ग्राम्य जीवन का गचत्र तनखि उठा है ।

अंगद उसका नाम था । 'यथा नाम तथा गण


ु ' वाली कहावत उस पि पिू े सौ पैसे ठीक उतिती थी। जहाँ
वह बैठ जाता, कफि उठने का नाम न लेता। न घि की गचंता, न खाने-पीने की । बेचािी पत्नी गाँव का
कूटना-पीसना किके ककसी तिह बच्चों का पेट पालती औि अपने पतत की िाह दे खा किती। अंगद किी घि
जाता, किी ककसी के चौिे पि ही सोया िहता।
लोगों को आश्चयत होता यह दे खकि कक गाँव का यह स्वस्थ-प्रसन्न यव
ु क इतना आलसी तयों है ? बात
ककसी की समझ में न आती। किी कोई पड़ोसी उसकी पत्नी से कहता कक अब यहद घि आए तो उसे
िोजन न दे ना। किी उसके भलए दिवाजा बंद िखने की तिकीब की जाती, पिं तु अंगद पि उसका िी कुि
असि न होता। न वह जेठ में सख
ू ता औि न िादों में हिा होता। ककसी ने उसे काम पि बल
ु ाया तो ठीक
औि न बल
ु ाया तो ठीक । न ककसी से िामिमौवल, न ककसी से दश्ु मनी। बस अंगद अंगद ही था।
धीिे से एक हदन पिऊ ठे ठवाि ने कहा कक अंगद तो चोि है । कल िात उसकी बाड़ी में कंु दरू चिु ाने
आया था। बात पि ककसी को ववश्वास नहीं हुआ। अंगद की घिवाली से पि
ू ा गया, तो पता चला कक वह
वपिले तीन हदनों से घि नहीं आया। बेचािे ठे ठवाि की रुसवाई हुई औि बस।
पिं तु अब अंगद के पीिे काफी नज़िें लगी होतीं। लोग सोचते कक यह प्रायुः घि नहीं जाता। खाने के
भलए किीकिाि काम के एवज में कोई कुि दे दे ता है, पिं तु उतने से ही इस जवान शिीि का पोषण िला
कैसे हो सकता है ? पिं तु अंगद था कक िाग-द्वेष से पिे क्जए चला जा िहा था। ___ िादों की िात थी।
पण
ू म
त ासी थी, पिं तु बादलों के कािण धप
ु अँगधयािी िाई हुई थी। कोचरू पटे ल अपनी बाड़ी की िखवाली कि
िहा था कक सहसा उसे आवाज़ सन
ु ाई पड़ी
खीिा िे , िई खीिा, बड़ सग्ु घि रुख हीिा।
खाँव का द-ू चाि, खा न गा हजाि।
उसके बाद कुि खीिे तोड़कि खाए गए औि कफि सन्नाटा िा गया। उपयत
ुत त कथन का आशय यह था
कक ओ खीिे के अनमोल पेड़ ! मैं दो-चाि खा लँ ू तया ? (औि क्षणणक अंतिाल से वही आवाज़ कफि गज
ूं ी
कक एक तया हजाि फल खा लो न।)
सन
ु कि कोचरू पटे ल दं ग िह गया । पहले सोचा कक कहीं ित
ू -प्रेत न हो । बाहि तनकलकि ललकािने
की हहम्मत न हुई औि खीिे खानेवाला खाकि चला गया। प्रातुः जब उन्होंने गाँव के लोगों से इस बात की
चचात की तो ककसी ने कहा कक हो-न-हो सपना दे खा होगा। औि कफि उस गाँव में तथा आसपास कोई-न-
कोई ऐसा ही सपना किी-किी दे खने लगा।
माघ आ गया। किाि में कभलंदि लगाए गए। िखवाली होने लगी। एक िात को महँगू ने अपनी बाड़ी
में सन
ु ा-

कभलंदि िे , िई कभलंदि, पाके हवस ते सद


ुं ि,
खाँव का द-ू चाि,खान न गा हजाि।
(ओ िई कभलंदि, तम
ु सद
ंु ि हो, पक चक
ु े हो, खा लँ ू तया दो-चाि ? एक तया खाओ न हजाि।)
औि उसके बाद दो-चाि कभलंदि तोड़कि िागने की आवाज़ । इस घटना ने अंगद को चोि भसद्ध कि
हदया। बेचािा ! गाँव में पंचों की बैठक हुई। आणखि इस अंगद को तया सज़ा दी जाए ? हदखने में तो यह
चोि नहीं हदखता। आणखि पंच साब ने पि
ू ा अंगद से -
"तम
ु ने चोिी की है या नहीं?"
"मैंने तो पि
ू कि ही फल तोड़े थे' - अंगद ने कहा।
"ककससे पि
ू ा था ?"
“पेड़ से' - अंगद ने कहा।
"पेड़ िी बोलता है तया?"
अंगद ने इसका कोई जवाब न हदया।
काफी सोच-ववचाि के बाद अंगद की सज़ा तय हुई जो गप्ु त िखी गई। दस
ू िे हदन कोचरू पटे ल की
बाड़ी में गाँव के लोग इकट्ठे हुए। अंगद को एक िस्से से बाँधा गया औि आहहस्ते से कुएँ में उतािा गया।
जब अंगद पानी की सतह पि पहुँचा तो ऊपि से एक ने आवाज़ दी
कुआँ िे िई कुआँ, तोि नाम ले काँपे रुआँ ।
डुबकतनयाँ खवाओं का द-ू चाि, खवा न गा हजाि।
(ओ िई कुआँ, तम्
ु हािे नाम से ही िोएँ काँप जाते हैं। दो चाि डुबककयाँ खवाऊँ तया ? दो-चाि तया हजाि
खवाओ न!)
औि उसके बाद अंगद को दो-चाि डुबककयाँ णखलाईं गईं औि पि
ू ा गया-तयों अंगद अब जी ििा या
नहीं? अंगद ने क्षमा-प्राथतना की। उसे ऊपि लाया गया। लोग खूब हँसे । अंगद चुप। शमत से उसने भसि नीचा
कि भलया।
कफि तो अंगद काम में जुटा, सो जुट ही गया । पत्नी खुश, बच्चे खुश औि सािा गाँव खुश। पिं तु अब
िी अंगद ‘आलसीिाम' के नाम से पक
ु ािा जाता, जबकक वह िात-हदन काम में लगा िहता। अंगद को अपने
इस नाम की िी पिवाह नहीं थी। मानों वह अपने ित
ू काल को िल
ू गया था औि जुट गया था स्वगत बनाने
में - अपने गाँव को, अपनी धिती को।

शब्दार्थ :- तिकीब-उपाय, रुसवाई-अपमान, एवज-बदले में , िाग-द्वेष –ईष्यात, डाह, आहहस्ते-धीिे , पिवाह-गचंता,
ित
ू काल-बीता हुआ कल।
अभ्यास

पाठ से
1. अंगद का नाम आलसीिाम तयों पड़ा?
2. अंगद की पत्नी अपने बच्चों का पालन-पोषण कैसे किती थी?
3. अंगद को बदलने के भलए उसकी पत्नी ने कौन-कौन सी तिकीबें अपनाई?
4. कोचरू पटे ल के खेत में कौन-सी घटना घटी?
5. ठे ठवाि की बातों का लोगों ने ववश्वास तयों नहीं ककया?
6. ककस घटना ने अंगद को चोि भसद्ध कि हदया?
7. पंचों ने अंगद को तया सजा दी?
8. अंगद की सजा को गप्ु त िखने के तया कािण होंगे?
9. सजा भमलने के बाद अंगद के जीवन में तया बदलाव हुआ?
10. तनम्नभलणखत कथनों का आशय स्पष्ट कीक्जए।
क. अंगद अंगद ही था ।
ख. अंगद था कक िाग-द्वेष से पिे क्जए चला जा िहा था।
ग. वह ित
ू काल को िल
ू गया औि जट
ु गया था स्वगत बनाने में - अपने गाँव को, अपनी धिती को।
घ. अंगद के पीिे काफी नज़िें लगी होतीं ।

िाषा से

पाठ में आए तनम्नभलणखत मह


ु ाविों का अथत भलणखए औि वातयों में प्रयोग कीक्जए।

1. तनम्नभलणखत मह
ु ाविों का अथत भलणखए औि वातयों में प्रयोग कीक्जए ।
पेट पालना, िाह दे खना, िाम-िमौवल, किी-किाि, दं ग िह जाना, हो-न-हो, भसि नीचा किना।

2. इस लोक कथा में दो लोकोक्ततयों का प्रयोग हुआ है - 'यथा नाम तथा गण


ु ' औि
'न जेठ में सख
ू ,े न िादों में हिे ' इनका अथत भलणखए औि उगचत प्रसंगों में इनका वातयों में प्रयोग
कीक्जए।
3. नीचे भलखे शब्दों के ववरुद्धाथी शब्द भलणखए ।
िाग, अँगधयािी, मोल, स्वगत, वततमान ।
4. 'खेद' को पैदा किने वाले के भलए 'खेदजनक' शब्द का प्रयोग किते हैं। इसी प्रकाि नीतत से यत
ु त को
नीततयत
ु त, बद्
ु गध से हीन को बद्
ु गधहीन, िाजा का दिबाि को िाजदिबाि, कायत में पिायण को कायतपिायण
भलखा जाता है ।

नीचे भलखे सािाभसक शब्दक का विग्रह कीस्जए ।


ध्यानमग्न, स्नानगह
ृ , धमतशाला, ित
ू काल, ववश्रामगह
ृ , संसदिवन, मयातदाहीन, िाग्यहीन, मंदिाग्य ।

5. 'श्रम की महर्त्ा' ववषय पि दस वातय भलणखए। इस पाठ से आपको तया संदेश भमलता है ?
6. 'आलसीिाम' लोक-कथा का सािांश पन्द्रह वातयों में भलणखए ।

पाठ से आगे
1. अंगद की पत्नी बच्चों की दे खिाल किती थी। अपने परिवाि व बच्चों की अकेले
दे खिाल किने वाली महहलाओं को ककन-ककन पिे शातनयों का सामना किना पड़ता
है ? अपने घि तथा आस-पास िहने वाली माताओं-बहनों से इस समस्या पि बातचीत कि भलणखए।
2. आलसी व्यक्तत अपने परिवाि व समाज पि ककस प्रकाि बोझ होता है, सागथयों से चचात किके भलणखए।
3. अंगद द्वािा काम किना प्रािं ि किने से उसके परिवाि में तया परिवततन आए होंगे?

योग्यता विस्तार
1. साल के बािह महीनों के हहन्दी नाम भलणखए।
2. पाठ में दी गई कववता के समान ही अन्य कववता बनाइए।
3. पण
ू म
त ासी व अमावस्या के बािे में अपने घि के बड़ों से पि
ू कि उनके बािे में
भलणखए।
4. आपने अपने बड़ों से कोई न कोई लोक कथा जरूि सन
ु ी होगी, उसे भलणखए औि अपनी कक्षा में सन
ु ाइए।
5. अपने क्षेत्र में प्रचभलत लोकगीतों का संकलन तैयाि कीक्जए।
पाठ 14
नाचा के पुरखा : दाऊ िंदरा जी
-लेखक िंडल
ये पाठ म नाचा के महान कलाकाि दल
ु ाि भसंह साव दाऊ मंदिाजी के संक्षक्षप्त जीवन परिचय दे
गेहे। ओ मन कलाकािी ले अपन अउ अपन गाँव, प्रदे श के नाँव उँ च करिन। नाचा ल नवा रूप-िं ग दे म
मंदिाजी अलगेच काम करिन, जेकि से नाचा के रूप बदलगे। दाऊ मंदिाजी म संगठन क्षमता खूबच
े िहहस
े़
हे । ओ हो मन नाचा के कलाकाि मन ल एक संगठन म जोडे के उहदम करिन। िर्त्ीसगढ के कला ल जग
म उजागि किे बि जेमन अपन सिबि फँू क दे इन, ओमा पहली नाव दाऊ दल
ु ाि भसंह मंदािाजी के हे ।

लोकनाट्य ह ओतकेच जन्


ु ना आय जतके मनखे के क्जनगी। लोक कलाकाि मन जइसन सपना
दे खथें अउ ओला सही असन किे के उहदम किथें, उही ह लोकनाट्य कहाथे। ‘नाचा’ ह िर्त्ीसगढ के प्रमख

लोकनाट्य आवय। नाचा के सिलता, सहजता ह ओकि सघ
ु िइ आय अउ ओकि प्रिाव के कािन ह इही म
लक
ु ाय हे ।
नाचा दे खइया मन मोहहत हो जाथें अउ िातिि
अपन जघा ले टस-ले-मस नइ होवँय। नाचा म जेन लोक-
जीवन के महक,लोकहहत के िाव अउ लोक संस्कृतत के
अधाि हवय, ओही एकि आत्मा आय। नाचा के कोनो
भलणखत म बोली-िाखा (संवाद) नइ होवय। नाचा के
कलाकाि मन अपन हाक्जिजवाबी म हाँसी-मजाक के बात
ल त बोलथेंच, फेि एमा मनखे के सि
ु ाव अउ समाज के
कुिीतत के बिनन घलो िहहथे। इही ववशेषता ह दे खइया मन
ल िातिि बाँध के िाखे िहहथेेे।
कहे जाथे के िर्त्ीसगढ के नाट्य पिं पिा ह संसाि
के सब ले जन्
ु ना नाट्य पिं पिा आय। िामगढ के पहाड़ी के
िं गशाला ल सबले जन्
ु ना िं गशाला माने जाथे।
नाचा में पहहली खड़े साज के चलन िहहस। फेि
कोनो नाचा दल (पाटी) संगहठत नइ िहहस। नाचा के
कलाकाि मन ल सकेल के दाऊ मंदिाजी ह एक ठन नाचा
दल बनाइस ‘िवेली रिंगनी साज’। इही ह िर्त्ीसगढ के पहहली नाचा पाटी आय।
नाचा बि अपन तन-मन-धन ल अवपतत किइया दल
ु ाि भसंह साव ‘मंदिा जी’ के जनम 1 अपै ्िल सन ्
1911 म िाजनाँदगाँव ले 7 कक.मी. दरू िहा गाँव िवेली के मालगज
ु ाि परिवाि म होय िहहसि्। इंकि वपताजी
के नाव दाऊ िामाधीन अउ माता जी के नाव िे वती बाई िहहसि्। इंकि प्राथभमक भशक्षा कन्हािपिु ी म पिू ा
होइस।
मंदिा जी दाऊ ह नानपन ले गाना-बजाना म गधयान धिे िहहस। गाँव के कलाकाि मन के संगत
म िहहके तबला-गचकािा बजाय बि भसणखन। ओ समय म हिमतु नया(हािमोतनयम) ल कोनो जानत नइ
िहहन।
दाई-ददा मन के इच्िा िहहस के बेटा ह पढ-भलख के मालगज
ु ािी ल सँिाल लय,फेि बालक मंदिा
जी के मन म नाचा अइसे िभमस के ओला नाचा िोड़ कुिू नइ िाइस। दाई-ददा ल ये सब थोिको पसंद
नइ िहहस। एकिे सेती 14 साल के बालपन म मंदिाजी के बबहाव कि दे इन। फेि ओकि मड़
ँू म तो नाचा
के धुन सवाि िाहय,वो ह कहाँ बँधाततस घि-गह
ृ स्थी म। तनसहदन ओकि मन म नाचा के बोली-बात अउ
गीत ह घम
ु ित िाहय।
े़
दल
ु ािभसंह साव ले मंदिाजी बने के एक ठन ककस्सा हे । बचपन म बडे जन पेट वाला,मोठ-डाँट लइका ह
अँगना म खेलत िाहय। उही अँगना के तल
ु सी चँ विा म एक ठन पेटला मतू तत माड़े िाहय। नना-बबा मन ह
इही ल दे ख के दल
ु ािभसंह ल मदिासी कहह हदन। काकी अउ िउजी मन ल घलो इही नाव िा गे। इही
मदिासी ह आगू चलके मंदिा जी होगे।
मंदिा जी के मन नाचा म तो िमे िाहय,फेि समाज के कइ ठन कुिीतत अउ अँगिे जी िाज के गल
ु ामी ह
घलो उँ कि मन ल कचोटे । ओ मन िर्त्ीसगढ ल जगाना चाहत िहहन। िर्त्ीसगढी समाज ल जगाये बि
ओला नाचा ले बहढया उगचत साधन अउ का भमलततस। मंदिाजी ह अब नाचा ल अपन मन माकफक रूप दे
म भिड़गें ।
मंदिा जी दाऊ मन सन ् 1927-28 म नाचा के नामी कलाकाि मन ल जोिे के काम शरू
ु कि हदन।
गड
ुं िदे ही (खल्लािी) के नािद तनमतलकि(पिी),लोहािा ििीटोला के सक
ु लू ठाकुि(गम्मततहा, जोकि),खेिथा
अिोली के नोहि दास (गम्मततहा, जोकि), कन्हािपिु ी िाजनाँदगाँव के िहइया िामगल
ु ाल तनमतलकि (तबलची)
अउ खद
ु मंदिाजी दाऊ (गचकिहा),ये पाँचों कलाकाि भमल के पहहली िर्त्ीसगढी नाचा दल ‘िवेली नाचा पाटी’
के अधाि बतनन।
मंदिा जी दाऊ मन सन ् 1930 म कलकर्त्ा ले हािमोतनयम बबसा के लाइन। नाचा म पहहली बेि
गचकािा के जघा म हािमोतनयम बजाइन। खड़े साज नाचा ह मसाल के अँजोि म होवय। कलाकाि मन
ब्रम्हानंद अउ कबीि के तनिगतु नया िजन आँवि-िाँवि घम
ू -घम
ू के गावँय।

ओ मन नाचा के रूप ल बदभलन। तनिगतु नया िजन के जघा ‘‘िाई िे तैं िुवा ल काबि डिे ’’ अउ
‘‘तोला जोगी जानेव िे िाई’’ जइसन सग्ु घि-सग्ु घि गीत ल शाभमल करिन। नाचा अब मंच म होय लगगस,मंच
उपि चँदोवा तनगे। बजकिी कलाकाि मन बाजबट(तख्त)उपि बइठे लगगन। मसाल के जघा पेरोमेतस
(गैसबर्त्ी) आगे। िुही,गेरू,कोइला अउ हिताल के जघा स्नो,पावडि आगे। नवाँ-नवाँ गम्मत बनाय गगस।
नाचा के समय घलो बदल दे गगस। अब िात के दस बजे ले बबहतनया के होवत ले नाचा होय लगगस।

तीि-तकाि अउ दरू िहा-दरू िहा ले लइका भसयान गाड़ी-गाड़ा म नाचा दे खे बि जावँय। मंदिा जी अउ
नाचा अब एक-दस
ू ि के साथी बनगें । िवेली नाचा पाटी के कायतक्रम 1950-51 म िायपिु म होइस। डेढ महीना
ले िोज नाचा होइस। िवेली नाचा पाटी के कलाकाि मन अतेक सग्ु घि गम्मत दे खावँय के शहि के जम्मो
भसनेमाघि(टॉकीज) के खेल बंद होगे।
मंदिा जी ह नाचा अउ कलाकाि मन बि अपन तन-मन-धन सबो ल खुवाि कि हदस। नाचा के
ओखी म समाज म अँजोि बगिाय खातति अपन मालगज
ु ािी ल होम कि हदस। क्जनगी के आखिी समय म
उँ खि तीि हािमोतनयम के िोड़ कुिू नइ िहहस। 24 भसतंबि 1984 म मंदिाजी ह ये दतु नया ल िोड़ के
स्वगतवासी होगें ।
हमि बड़े पिु खा मन अपन पीिू जेन चीज िोड़ के जाथे, ओकि ले समाज ह कई जुग तक ले
अँजोि म चमकत िहहथे। उँ कि किम-कमई के ममहई ह जन-जन के मन म बसे िहहथे।
मंदिा जी कहे रिहहन- “हमन गम्मत दे खा के समाक्जक कुिीतत ल उजागि किे न। ’पांेेगवा पंडडत’
गम्मत म िुवािूत ल दरू िहा किे के कोभसस किे न। ‘इिानी’ गम्मत म हहन्द-ू मस
ु लमान एकता समाज के
आघू लायेन। ‘मोि नाव दमाद अउ गॉवॉँ के नाव ससिु ाि’ गम्मत म बाल-बबहाव ल िोके के कोभसस
किे न।‘मिारिन’ गम्मत म दे वि-िउजी के नता ल दाई-बेटा के रूप म दे खायेन। अजादी के खातति लड़ई
चलत िहहस। हमि नाचा पाटी ह घलो बीि-सेनानी मन के संग हदस। हमि गीत अउ गम्मत दे श-प्रेम के
िाव ले जड़
ु े िहय। अजादी के बात हमि गीत अउ गम्मत म िहय। एकिे सेती हमि नाचा म अंेँगिे जी
सिकाि ह िोक घलो लगाय िहहस।’’
आज नाचा कलाकाि मन के बीच म मंदिाजी के बड़ सम्मान हे । उँ कि जनम स्थान िवेली म हि
साल 1 अप्रेल के िर्त्ीसगढ के िोटे -बड़े कलाकाि मन सकलाथें अउ उँ कि सिु ता किथें।
िर्त्ीसगढ शासन ह घलो नाचा के पिु खा मंदिाजी के सम्मान म हि साल कलाकाि मन ल द ू लाख
रुवपया के इनाम दे थे।

शब्दार्थ:- पिु खा-पव


ू ज
त , ओतकेच-उतना ही, लक
ु ाय - तिपाना, सकेल- इकट्ठा, नानपन-बचपन, भसणखन - सीखना,
थोिको - थोड़ा िी मननाकफक - मन के अनस
ु ाि, बबसाके - खिीदकि, जोगी - योगी, ऋवष, अतेक - इतना,
खव
ु ाि -नष्ट, आधू - आगे।
अभ्यास
पाठ से
1. लोकनाट्य ल कतेक जुन्ना माने गेहे?
2. लोगन मन नाचा से काबि पििाववत होथे?
3. नाचा के आत्मा काला कहे गेहे?
4. नाचा दे खइया मन ल नाचा के कोन से ववशेषता िातिि बाँधे िहहथे?
5. दाऊ मंदिा जी ह नाचा के गम्मत में समाज के कोन-कोन से कुिीतत ल उजागि कित िहहसे?
6. नाचा म पहहली गचकािा के जधा म कोन क्जतनस के प्रयोग किय?
7. दाऊ मंदिा जी के मन काबि कचोटत िहहसे?
8. अंगिे जी सिकाि ह नाचा पाटी ल कोन कािण से बंद किवा दे इस?

पाठ से आगे
1. तम
ु न ल कि-ू किू नाटक या प्रहसन दे खे के अवसि भमले होही अऊ कोनो
प्रहसन अऊ गम्मत के कोनो पात्र ल दे खके तँह
ु ि मन म कोनो िाव ह अच्िा
लगगस होही। उन िाव ल अपन शब्द म भलखव।
2. ‘‘िाई िे तै िुवा ल काबि डिे ’’ गीत ल नाचा म शाभमल किे के पािू म का सोच िहहस होही?
ववचाि किके भलखव।
3. हमि पिु खा मन अपन पािू कोन से क्जतनस िोड़ के जाथे, जेकि कािण समाज ह कई यग
ु तक ले
अंजोि िहहथे।

िाषा से
1. खाल्हे दे वातय ल घलो पढव अऊ समझव
मंदिा जी नाचत िहहन।
इहां ‘मदाि जी’ कतात अऊ नाचत ‘ कमत हवय।
‘‘जौन शब्द ले कोनो कािज के किे के बात होथे ओला कक्रया कहहथे।
िेद - (1) सकमतक (2) अकमतक
सकमतक - जौन कक्रया मे कतात अऊ कमत दन
ु ो होथे वोला सकमतक कक्रया कहहथे।
जैसे - मै खाथव, मैं नहाथव, मे गाथव।
अइसने ककसमले खाल्हे दे सकमतक ल अकमतक कक्रया म बदलव -
(1) मै स्कूल जाथव (2) मैं पस्
ु तक दे खथव
(3) मैं खेल खेलतहव (4) मैं गाँव जात हव।
2. पाठ म ‘पाटी’ अउ ‘पेरोमेतस’ जइसन शब्द मन भलखाय हवय जेन ह ववदे शी शब्द आय।
‘अइसने शब्द जेला हहन्दी म अऊ िर्त्ीसगढी म शाभमल कि ले गेहे वोला ववदे शी शब्द कहहथें।
पाठ म आये अइसने ववदे शी शब्द ल िाँट के भलखव।
3. खाल्हे भलखाये शब्द मन के हहन्दी म उल्टा शब्द भलखव-
नवा, हदन, अपन, बंद सम्मान
4. खाल्हे भलखाय शब्द मन के दो-दो पयातयवाची शब्द भलखव -
संगवािी, क्जनगी, मनखे, बेटा, प्रेम, तन

योग्यता विस्तार
1. िर्त्ीसगढ में कई ठन नाचा पाटी हवय। ऊँखि बािे म पता लगावव अऊ सच
ू ी बनावव।
2. पाठ के कोनो नाटक ल गम्मत बनाके स्कूल म अभिनय किव।
3. ‘‘खड़े साज के नाचा’’ के बािे म घलो भशक्षक के सहायता से जानकािी भलखव।
पाठ 15
सरलता और सहृदयता

-श्री एस. के. दत्त


इंसान महान भसफत अपनी डडगग्रयों औि पदों से ही नहीं होता अवपतु अपनी सादगी, सहजता औि
सहृदयता से बनता है । डॉ. िाजेन्द्र प्रसाद एक ऐसे व्यक्तत थे क्जन्होने िाष्रपतत जैसे सवोच्च पद पि आसीन
होते हुए िी अपने मानवीय मल्
ू यों को हमेशा उपि िखा। घि के एक साधािण नौकि के प्रतत उनक अपनत्व
ििे व्यवहाि को दशातती यह कहानी हृदय में संवग
े ों का संचाि किती है ।

वह नौकि बचपन से ही उनके घि काम किता आ िहा था। अब वह बढ


ू ा हो गया था। उसने घि के
बच्चों को अपनी उँ गली पकड़कि चलना भसखाया था। अब वे बच्चे बड़े हो गए थे। वे बच्चे ऊँचे -ऊँचे पदों
पि पहुँच गए थे। पि इस बढ
ू े काका के प्रतत सबके मन में स्नेह औि सम्मान की िावना थी। सब उन्हें
अपने परिवाि का एक सदस्य समझते थे। परिवािवाले चाहते थे कक ये बढ
ू े काका अब काम-काज किना
बंद कि दें औि शेष जीवन आिाम से गज
ु ािें , पि ये थे कक मानते ही नहीं थे। घि की सफाई, झाड़-पोंि तथा
कमिों की दे ख-िाल खद
ु ककया किते थे।
एक हदन ये बढ
ू े काका अपने बाबू के पढने के कमिे की सफाई कि िहे थे। अपने बाबू के एक-एक
सामान को उठाते, उसकी धल
ू पोंिते औि उसे यथा-स्थान िख दे त।े अचानक एक हदन जाने कैसे एक बहुत
कीमती कलमदान उनके हाथ से िूट गया। कोई साधािण कलमदान नहीं था वह, कािीगिी का उत्कृष्ट
नमन
ू ा था, बहुत कीमती तथा दल
ु ि
त था।
बढ
ू े काका जी टूटे हुए कलमदान को एकटक दे खते िहे । उन्हें कुि सझ
ू ा नहीं कक अब तया किें ?
चुपचाप वह टूटा हुआ कलमदान उठाकि मेज़ पि िख हदया, पि वे बहुत घबिा गए। 'बाबू आएँग,े तो वे उनसे
तया कहें ग?े वे डाँटेंग,े तो मैं तया उर्त्ि दं ग
ू ा? ऐसा कीमती कलमदान तो अब भमलेगा नहीं, ककतना दख
ु होगा
'बाब'ू को ?' यही सोच-सोचकि उनका हदल बैठा जा िहा था।
सायंकाल 'बाब'ू आए औि िोजन के उपिान्त अपने कमिे में अपना दै तनक काम-काज तनपटाने चले
गए। कमिे में पहुँचे ही थे कक उनकी नज़ि टूटे हुए कलमदान पि पड़ी। वे इतने कीमती कलमदान को टूटा
हुआ दे खकि बहुत दख
ु ी हुए। उन्होंने उसे उठाया तो दे खा उसके दो टुकड़े हो चुके थे। उन्होंने बढ
ू े काका को
आवाज़ दी-'काका । काका।'
बढ
ू े काका ने डिते हुए प्रवेश ककया।
'यह कलमदान ककसने तोड़ा ?'
'मझ
ु से टूट गया, माभलक।'
'कैसे?'
'मैं सफाई कि िहा था कक अचानक हाथ से िूट गया।'
'जानते हो यह ककतना कीमती था ? ऐसा दस
ू िा कलमदान कहाँ भमलेगा?'
बढ
ू े काका भसि नीचा ककए सन
ु ते िहे ।
‘अब खड़े-खड़े मेिा मँह
ु तया दे ख िहे हो, जाओ यहाँ से।........ औि हाँ, कल से मेिे पढने के कमिे की
सफाई मत किना।' बढ
ू ा डाँट खाकि, भसि नीचे ककए चप
ु चाप चला गया। उसकी आँखों से आँसू बहने लगे।
इससे पहले अपने ‘बाब'ू से उसे किी ऐसी डाँट नहीं खानी पड़ी थी।
िात हो गई। 'बाब'ू अपने बबस्ति पि लेटे-लेटे सोने की कोभशश कि िहे थे, पि न जाने तयों आज नींद
आने का नाम ही नहीं लेती थी। उनका मन अशांत था। वे िह-िहकि अपने कलमदान, बढ
ू े काका औि उनके
प्रतत अपने व्यवहाि के बािे में सोच िहे थे।
'बचपन से ही ये काका हमािे यहाँ काम कि िहे हैं। इन्होंने तो मझ
ु े उँ गली पकड़कि चलना भसखाया।
तया उनके प्रतत मेिा ऐसा कठोि व्यवहाि उगचत था ?'
'तया एक कलमदान एक व्यक्तत के सम्मान से अगधक कीमती है ?'
'अगि गलती से उनसे वह कीमती कलमदान टूट िी गया, तो तया हुआ ? यहद वह मझ
ु से गगिकि
टूट जाता तो ......... ?'
'ककतनी सेवा की है उन्होंने हमािे परिवाि की? किी भशकायत का कोई मौका नहीं हदया, पि आज मैंने
उन पि इतना क्रोध किके तया उनकी सािी सेवा पि पानी नहीं फेि हदया?'........इस तिह के अनेक सवाल
'बाब'ू के मन में उठते औि उनका मन अधीि हो उठता।
िात काफी हो चक
ु ी थी। बाबू ने बढ
ू े काका को आवाज़ दी। बढ
ू े काका िी सो नहीं िहे थे। वे िी
अपनी गलती को याद किके आँसू बहा िहे थे। अचानक बाबू की आवाज़ सन
ु कि उन्होंने आँसओ
ु ं को पोंिा
औि वे डिते-डिते 'बाब'ू के कमिे की ओि जाने लगे। पिं तु काका ने दे खा बाबू उन्हीं की ओि आ िहे हैं।
काका की घबिाहट औि बढ गई । वे सोचने लगे, 'शायद बाबू का गस्
ु सा अिी ठं डा नहीं हुआ है ।' काका भसि
नीचे किके खड़े हो गए।
'काका ! मझ
ु े माफ कि दो। मैं अपने व्यवहाि पि शभमंदा हूँ।' ........... अचानक बाबू के मँह
ु से तनकला।
बढ
ू ा काका उनके मँह
ु की ओि दे खता िह गया । इतना बड़ा आदमी एक िोटे -से नौकि से माफी माँग
िहा है । वह 'बाब'ू के पैिों में गगिक ि माफी माँगने को झुका ही था कक बाबू ने उसे बीच में ही िोक हदया।
'काका ! तया आप मझ
ु े क्षमा नहीं किें गे ?'
'बाबू ! आप ये तया कह िहे हैं ? मझ
ु से जो िल
ू हुई है , मैं उसके भलए शभमंदा हूँ । कफि कहाँ आप
औि कहाँ मैं .......... ?'
बाबू बोले, 'जब तक आप मेिे सि पि हाथ िखकि नहीं कहें गे कक आपने मझ
ु े क्षमा कि हदया है, मझ
ु े
चैन नहीं पड़ेगा ।' बढ
ू े काका की आँखों से आँसओ
ु ं की झड़ी लग गई । उन्हें बाबू के भसि पि हाथ िखकि
कहना पड़ा, 'अच्िा, चलो, मैंने अपने 'बाब'ू को क्षमा कि हदया।'
बच्चो ! तया तम
ु जानते हो ये 'बाब'ू कौन थे ? ये 'बाब'ू थे िाित के प्रथम िाष्रपतत डॉ. िाजेन्द्र
प्रसाद। यह घटना तब की है , जब वे िाष्रपतत िवन में थे औि उनके एक पिु ाने बढ
ू े सेवक से उनका एक
बेशकीमती कलमदान टूट गया था जो उन्हें ककसी बड़े आदमी ने उपहाि में हदया था। ज़िा सोचो, िाित के
िाष्रपतत होकि िी वे ककतने उदाि, सहृदय औि ववनम्र थे। घमंड तो उन्हें िू तक न गया था।

शब्दार्थ:- कमलदान - कलम िखने का पात्र, हदल बैठना (महु ाविा), सायंकाल - संध्या, शाम, अचानक - सहसा,
अकस्मात ्, कोभशश - प्रयत्न, अधीि - अक्स्थि, बेचैन, घबिाहट -व्याकुलता, अधीिता, शभमतन्दा - लक्ज्जत, उदाि
- शीलवान, सहृदय - दयाल,ु ववनम्र -सश
ु ील।

अभ्यास

पाठ से
1. काका के बाबू कौन थे?
2. बढ
ू े काका का, घि के सिी लोग सम्मान तयों किते थे?
3. परिवाि वाले तयों चाहते थे कक बढ
ू े काका काम किना बंद कि दें ?
4. िाजेन्द्र बाबू का मन अशांत तयों था?
5. िाजेन्द्र बाबू को नींद तयों नहीं आ िही थी?
6. कीमती कलम दान कैसे टूटा ?
7. बढ
ू े काका तयों नहीं सो पा िहे थे?
8. िाजेन्द्र बाबू ने बढ
ू े काका से क्षमा तयों माँगी?
9. बढ
ू े काका ने बाबू के भसि पि हाथ िखकि तया कहा?
10. िाजेन्द्र बाबू को अपने ककए पि पितावा तयों हुआ?

पाठ से आगे

1. ‘तया एक कलमदान एक व्यक्तत के सम्मान से अगधक कीमती है ’? ववचाि कि भलणखए।


2 बढ
ू े काका ने सच बोलकि अपनी गलती स्वीकाि की औि डाँट खाई। वो झठ
ू बोल कि कलमदान
तोड़ने का दोष दस
ू िे पि लगा सकते थे। तया उनका दस
ू िे पि दोष मढना उगचत होता? अपने ववचाि
कािण सहहत भलणखए।
3. बढ
ू े काका ने गलती की थी इस भलए िाजेन्द्र बाबू ने उन्हे डाँटा। िाजेन्द्र बाबू ने डाँट कि सही ककया
या गलत? अपने ववचाि भलणखए।
4. बढ
ू े काका को डाँटने के बाद िाजेन्द्र बाबू बेचैन औि अधीि हो गए थे। तया आपके साथ िी ऐसी
कोई घटना हुई है क्जससे आप बेचैन हो गएहों?
5. बढ
ू े काका ने कलमदान जान बझ
ु कि नहीं तोड़ा िी कफि िी उन्होंने चुप-चाप डाँट सह ली। अगि
आप उनकी जगह होते तो तया किते?

िाषा से
(i) (1) इन शब्दों को दे णखए -
आजन्म, अततशय, उपाध्यक्ष, पिाजय, प्रबल, वववाद। इन शब्दों में मल
ू शब्दों के
साथ ’आ’, ’अतत’, ’उप’, पिा ’प्र’ औि ’वव’ जुड़े हैं, जो शब्दों के अथत का ववस्ताि कि िहे
हैं। इस प्रकाि के अव्ययों या शब्दों को जो ककसी शब्द के आगे जुड़ कि उसके अथत
में ववस्ताि कि दे ते हैं, उपसगत कहते हैं।
अब आप तनम्नाभलणखत शब्दों से उपसगत पहचान कि अलग कीक्जए-
प्रततहदन, आक्रमण, संयोग, सग
ु म, अभिनंदन, अनक
ु िण, अगधकाि, उर्त्ीणत, तनबंध, उपग्रह।
2. अब इन शब्दों को दे णखए -
धनवान, सफलता, आनेवाला, श्रेष्ठति, पहनावा, घहटया, होनहाि, कुलीन, लेखक, सख
ू ा।
इन शब्दों में क्रमशुः ’वान’, ’ता’, ’वाला’, ’ति’, ’आवा’, इया , हाि’, ’ईन’ ’अक’, ’आ’ शब्दों के पीिे
लगकि शब्दों को ववभशष्ट अथत प्रदान कि िहें हैं। इस प्रकाि के शब्दों अथवा अव्ययों को प्रत्यय
कहते है ।
अब आप तनम्नभलणखत शब्दों से प्रत्यय अलग कीक्जएुः-
घबिाहट, कुलीन, चमक, पववत्र, पाँचवाँ, भमलनसाि, घस
ू खोि, अफीमची, सन
ु वाई।
3. नीचे भलखे शब्दों में प्रत्यय औि उपसगत दोनों हैं। उन्हें अलग कीक्जए -
अपमातनत, अधाभमतक, अभिमानी, बेचैनी, दस्
ु साहसी, उपकाि, अनद
ु ािता, तनदत यी
4. तनम्नभलणखत शब्दों को ध्यान से दे णखए -
पश,ु सद
ुं िता, व्यथा, मोहन, हदल्ली, मािना,

इन शब्दों से जातत, गण
ु , िाव, व्यक्तत, स्थान तथा कक्रया का बोध हो िहा है इस प्रकाि के शब्दों को
संज्ञा कहते हैं।

अब इन शब्दक को िी दे खखए-
मनष्ु य, नदी, नगि, पवतत, पश,ु पक्षी, लड़का, कुर्त्ा, गाय, घोड़ा, नािी, गाँव।

इन शब्दों से व्यक्तत स्थान, वस्तु आहद की जातत का बोध हो िहा है इस प्रकाि के संज्ञा शब्दों को
जाततवाचक संज्ञा कहते हैं। इसी प्रकाि अमेरिका, नमक, अतनल जैसे शब्द एक व्यक्तत, वस्तु या स्थान का
बोध किाते हैं इसभलए इस प्रकाि के संज्ञा शब्दों को व्यक्तत वाचक संज्ञा कहते हैं।

बढ
ु ापा, भमठास, बचपन, मोटापा, थकावट, चढाई जैसे शब्दों से ककसी व्यक्तत या पदाथत की अवस्था,
गण
ु -दोष अथवा गण
ु धमत का बोध होता है इसभलए इन्हें िाववाचक संज्ञा कहते हैं।
अब आप तनम्नभलणखत शब्दों में से जाततवाचक, व्यक्ततवाचक तथा िाववाचक, संज्ञाओं को पहचान
कि भलणखए।
सहायता, नािी, िामायण, जुलस
ू , प्यास, कवपला, मद्रास, सलाह, संतोष, ताँबा, वपता, यव
ु क, गंदा, जवान, चोि,
िसगल्
ु ला, सिू ज, ऐिावत, परिवाि, कक्षा, िामायण।

5. नीचे भलखे हुए वातयों में िे खांककत शब्दों पि ध्यान दीक्जए-


क. मैं चटाई पि लेट गया।
ख. मोहन कहानी सन
ु ाते-सन
ु ाते िो पड़ा।
ग. ततिं गे के सम्मान में सि झक
ु जाता है ।
घ. वह िायगढ से लौट आया है।
ङ. सीता कल ही हदल्ली पहुँच गयी थी।
च. रे न जल्दी ही आ जाएगी।

िे खांककत शब्दों में दो अलग-अलग कक्रयाएँ एक साथ भमलकि ककसी घटना को हदखा िही हैं। इस
प्रकाि जब दो अलग कक्रया शब्द एक साथ भमल कि एक नयी पण
ू कत क्रया का बोध किाते हैं तो उन्हें संयत
ु त
कक्रया कहते हैं।
अब आप नीचे हदए हुए कक्रया शब्दों में से नये संयत
ु त कक्रया शब्द बनाइए तथा वातयों में प्रयोग
कीक्जए-
पढना, खाना, आना, किना, पाना, भलखना, जाना, लड़ना।

नीचे भलखे िाक्यक को पहढ़ए और सिखिए :

क. 'यह कोई साधािण कलमदान नहीं था ?'


ख. 'कोई साधािण कलमदान नहीं था यह।'

दोनों वातयों का अथत एक ही है , लेककन दस


ू िे वातय में शब्दों का स्थान बदलकि कथन अगधक
सशतत बना हदया गया है ।
आप िी इस तिह के दो उदाहिण दीक्जए –

6. तनम्नभलणखत मह
ु ाविों का वातयों में प्रयोग कीक्जए ।

हदल बैठ जाना, खड़े-खड़े मह


ँु दे खना,पानी फेि दे ना,झड़ी लग जाना ।

7. तनम्नभलणखत शब्दों के ववलोम शब्द भलणखए।

दल
ु ि
त , उदाि, उत्कृष्ट, साधािण, प्रश्न ।

8. तनम्नभलणखत शब्द-यग्ु मों को ध्यान से पहढए औि उन्हें इस प्रकाि वातयों में प्रयोग कीक्जए कक
उनके अथत स्पष्ट हो जाएँ।

गचता-चीता, वपता-पीता, कुल-कूल, ओि-औि, समान-सामान, घटना-घटाना,हदया-दीया।


9. सही जोड़ी भमलाइए।
दै तनक काका
कीमती पद
ऊँचा कामकाज
बढ
ू े कलमदान
शेष मन
अधीि जीवन

योग्यता विस्तार

1. डॉ. िाजेन्द्र प्रसाद को ‘बाब'ू के नाम से जाना जाता है इसी प्रकाि महात्मा गाँधी को 'बाप'ू कहा जाता
हैं। हमािे दे श के ऐसे बहुत सािे महापरु
ु ष एवं क्रांततकािी हुए है क्जन्हें हम उनके उपनाम से जानते
है । आप उनके वास्तववक नाम तथा उनके उपनाम की सच
ू ी तैयाि कीक्जए।
2. िाजेन्द्र बाबू के ववषय में जानकािी पस्
ु तकालय से ढूँढकि पहढए औि उनकी चारिबत्रक ववशेषताओं
का लेखन कीक्जए।
3. ‘सादा जीवन उच्च ववचाि' ववषय पि कक्षा में अपने ववचाि व्यतत कीक्जए।
4. गाँधीजी औि लाल बहादिु शास्त्री जी का जीवन िी बहुत सिल औि सादा था। उनके जीवन से
ऐसी घटनाएँ खोजकि कक्षा में सन
ु ाइए।
पाठ 16
चचा छक्कन ने केले खरीदे
- श्री इस्ततयाज अली
मनष्ु य अपनी िावनाओं, लालसाओं औि इच्िाओं को तिपाने का हि संिव प्रयास किता है । पिन्तु
मौका आते ही उसका लालच ककसी न ककसी रूप में बाहि आ जाता है । प्रस्तत
ु हास्य कहानी में इक्म्तयाज
अली ने चचा ितकन के माध्यम से मनष्ु य के इसी स्विाव को गचबत्रत ककया है । चचा ितकन के केले
खाने की लालचने उन्हें ति ह-तिह के बहतन बनाने पे मजबिू कि हदया। औि उन्होंने पिू े परिवाि के हहस्सों
के केले खा भलए।

एक बात मैं शरू


ु में ही कह दँ ू । इस घटना का वणतन किने में मेिी इच्िा यह हिगगज़ नहीं है कक
इससे चचा ितकन के स्विाव के क्जस अंग पि प्रकाश पड़ता है , उसके संबध
ं में आप कोई स्थायी िाय
तनधातरित कि लें । कई बाि मैं खुद दे ख चक
ु ा हूँ कक शाम के वतत चचा ितकन बाज़ाि से कचौरियाँ या
गड़ेरियाँ या गचलगोज़े औि मग
ूं फभलयाँ एक बड़े-से रूमाल में बाँधकि घि पि सबके भलए ले आते हैं । औि
कफि तया बड़ा औि तया िोटा, सबमें बिाबि-बिाबि बाँटकि खातेणखलाते िहे हैं । पि उस िोज़ अल्लाह जाने
तया बात हुई कक .......... ।
उस िोज़ तीसिे पहि के वतत इर्त्फाक से चचा ितकन औि बबंदो के भसवाय कोई िी घि में मौजद

न था । मीि मश
ुं ी साहब की पत्नी को बख
ु ाि था । चची दोपहि के खाने से तनवर्त्
ृ होकि उनके यहाँ चली
गई थीं। बबन्नों को घि िोड़े जा िही थीं कक चचा ने कहा - "बीमाि को दे खने जा िही हो तो शाम से पहले
िला तया लौटना होगा ? बची पीिे घबिाएगी। साथ ले जाओ, वहाँ बच्चों में खेलकि बहली िहे गी।'' चची
बड़बड़ाती हुईं बबन्नो को साथ ले गई, नौकि चची को मीि मश
ुं ी साहब के घि तक पहुँचाने िि जा िहा था,
मगि बबन्नो साथ कि दी गई तो बच्ची के भलए उसे िी वहाँ ठहिना पड़ा।
लल्लू के मदिसे का डी.ए.वी. स्कूल से कक्रकेट का मैच था । वह सब
ु ह से उधि गया हुआ था |
मोदे की िाय में लल्लू अपनी टीम का सबसे अच्िा णखलाड़ी है । अपनी इस िाय की बदौलत उसे अतसि
कक्रकेट मैचों का दशतक बनने का मौका भमल जाता है । इसभलए साधािण तनयमानस
ु ाि आज िी वह लल्लू
की अिदली में था। दो बजे से भसनेमा का मैहटनी शो था । दद्द ू चचा से इजाज़त लेकि तमाशा दे खने जा
िहा था । िुट्टन को पता लगा कक दद् तमाशे में जा िहा है तो ऐन वतत पि वह मचल गया औि साथ
जाने की क्जद किने लगा। चचा ने उसकी पढाई-भलखाई के ववषय में चची का हवाला दे -दे कि एक िोटा
ककन्तु ववचािपण
ू त िाषण दे ते हुए उसे िी अनम
ु तत दे दी । बात असल यह है कक चची कहीं भमलने गई हों,
तो बाकी लोगों को बाहि जाने के भलए इज़ाज़त लेना कहठन नहीं होता। ऐसे स्वणत अवसिों पि चचा पण
ू त
एकांत पसंद किते हैं । क्जन कायों की ओि बहुत समय से ध्यान दे ने का अवसि नहीं भमला होता, ऐसे
समय चचा ढूंढ-ढूँढ कि उनकी ओि ध्यान दे ते हैं ।
आज उनकी कक्रयाशील बद्
ु गध ने चची की अनप
ु क्स्थतत में घि के तमाम पीतल के बितन आँगन
में जमा कि भलए थे । बबंदो को बाज़ाि िेजकि दो पैसे की इमली मँगाई थी । आँगन में मोढा डालकि बैठ
गए थे । पाँव मोढे के ऊपि िखे हुए थे । हुतके का नैचा मँह
ु से लगा हुआ था । व्यक्ततगत तनगिानी में
पीतल के बितनों की सफाई की व्यवस्था हो िही थी।

बबंदो ने कुि कहे बबना इमली लोटे में भिगो दी । चचा ने अभिमान से संतोष का प्रदशतन ककया-
“कैसी बताई तिकीब ? ले, अब बाविचीखाने में जाकि बितन माँजने की थोड़ी-सी िाख ले आ। ककस बितन
में लाएगा िला ?"
बबंदो अिी बाविचीखाने से िाख ला िी न पाया था कक दिवाज़े पि एक फलवाले ने आवाज़ लगाई
| कलकततया के ले बेचने आया था। उसकी आवाज़ सन
ु कि कुि दे ि तक तो चचा खामोश बैठे हुतका पीते
िहे । कश अलबर्त्ा जल्दी-जल्दी लगा िहे थे । मालम
ू होता था, हदमाग में ककसी ककस्म की कशमकश जािी
है । जब आवाज़ से मालम
ू हुआ कक फलवाला वापस जा िहा है तो जैसे बेबस-से हो गए । बबंदो को आवाज़
दी- “ज़िा जाकि दे णखयो तो, के ले ककस हहसाब से दे ता है ।'
बबंदो ने वापस आकि बताया- “िह आने दजतन ।'
"िह आने दजतन, तो तया मतलब हुआ, चौबीस पैसे के बािह । बािह दन
ू ी चौबीस, यानी दो पैसे का
एक ; ऊँहूँ, महँगे हैं । जाकि कह, तीन के दो दे ता हो, तो दे जाए ।'
दो भमनट बाद बबंदो ने आकि बताया कक वह मान गया औि ककतने के ले लेने हैं, पि
ू िहा है |
फलवाला आसानी से सहमत हो गया तो चचा की नीयत में खोट आ गई । “यानी तीन पैसे के दो ? तया
ख्याल है मँहगे नहीं इस िाव पि ?'
बबंदो बोला – “अब तो उससे िाव का फैसला हो गया ।'
"तो ककसी अदालत का फैसला है कक इतने ही िाव पि के ले भलए जाएँ ? हम तो तीन आने दजतन
लेंग;े दे ता है तो दे , नहीं दे ता है न दे । वह अपने घि खुश, हम अपने घि खुश ।'
बबंदो असमंजस की दशा में खड़ा िहा। चचा बोले, “अब जाकि कह िी तो सही, मान जाएगा।" बबंदो
जाने से कतिा िहा था । बोला, “आप खुद कह दीक्जए।"
चचा ने जबाव में आँखें फाड़कि बबंदो को घिू ा । वह बेचािा डि गया, मगि वहीं खड़ा िहा । चचा
को उसका असमंजस में पड़ना ककसी हद तक उगचत मालम
ू हुआ। उसे तकत का िास्ता समझाने लगे, “तू
जाकि यूँ कह, भमयाँ ने तीन आने दजतन ही कहे थे, मैने आकि गलत िाव कह हदया । तीन आने दजतन
दे ने हों तो दे जा ।'
बबंदो हदल कड़ा किके चला गया । चचा जानते थे, िाव ठहिाकि मक
ु ि जाने पि केलेवाला शोि
मचाएगा । बाहि तनकलना यक्ु ततपण
ू त न मालम
ू होता था । दबे पाँव अंदि गए औि कमिे की जो णखड़की
ड्योढी में खुलती थी उसका पट ज़िा-सा खोलकि बाहि झाँकने लगे । फलवाला गिम हो िहा था, “आप ही
ने तो िाव ठहिाया औि अब आप ही ज़बान से कफि गए । बहाना नौकि की िल
ू का, जैसे हम समझ नहीं
सकते । या बेईमानी, तेिा ही आसिा !' बबंदो गिीब चुप किके खड़ा था । फलवाला बकता-झकता, खोंचा उठा
चलने लगा। बबंदो िी अंदि आने को मड़
ु गया । वह दिवाज़े तक पहुँचने न पाया था कक फलवाला रुक
गया । खोंचा उतािकि बोला - "ककतने लेने हैं ?''
बबंदो अंदि आया तो चचा मोढे पि जैसे ककसी ववचाि में तल्लीन हुतका पी िहे थे। चौंककि बोले-
“मान गया? हम कहते थेन, मान जाएगा। हम तो इन लोगों की नस-नस से वाककफ हैं। तो कै केले लेने
मन
ु ाभसब होंगे?" चचा ने उँ गभलयों के पोिों पि गगन-गगनकि हहसाब लगाया-हम आप, िुट्टन की माँ, लल्ल,ू
दद्द,ू बबन्नो औि िुट्टन । गोया िह, िह दन
ू ी तया हुआ ? खुदा तेिा िला किे , बािह। यानी एक दजतन ।
प्रत्येक आदमी को दो केले बहुत होंगे। फल से पेट तो ििा नहीं जाता । मँह
ु का स्वाद बदल जाता है । पि
दे णखयो, दो-तीन गच्
ु िे अंदि लेकि आना, हम आप उसमें से अच्िे -अच्िे केले िाँट लेंगे।
फलवाले ने भशकायत की सदा लगाते हुए केलों के गच्
ु िे अंदि िेज हदए। चचा ने केलों को दबा-
दबाकि दे खा, उनकी गचवर्त्यों का अध्ययन ककया औि दजतनिि अलग ककए। केलेवाला बाकी केले लेकि
बड़बड़ाता हुआ ववदा हो गया। चचा ने बबंदो की ओि रुख ककया - “ले, इन्हें खाने की डभलया में हहफाज़त से
िख दे । िात के खाने पि लाकि िखना। औि जल्दी से आकि बितन माँजने के भलए िाख ला। बड़ा समय
नष्ट हो गया इस सौदे में ।"
बबंदो केले अंदि िख आया औि बाविचीखाने से िाख लाकि बितन माँजने लगा। “यूँ ..... ज़िा ज़ोि
से । हाँ, ताकक बितन पि िगड़ पडे। इस तिह पीतल के बितन साफ किने के भलए ज़रूित इस बात की
होती है कक इमली के प्रयोग से पहले बितनों को एक बाि खूब अच्िी तिह माँजकि साफ कि भलया जाए।
ऐसे सब बितनों की सफाई के भलए इमली तनहायत लाज़वाब नस्
ु खा है । गगिह में बाँध िख । ककसी िोज़
काम आएगा। औि पीतल ही का तया क्ज़क्र ? धातु के सिी सामान इमली से दमक उठते हैं। अिी-अिी तू
आप दे णखयो कक इन काले-काले बितनों की सिू त तया तनकल आती है ? हाँ, औि वह, मैंने कहा - केले
एहततयात से िख हदए हैं न?.....यूँ बस मँज गया। अब िगड़ उस पि इमली। इस तिह। दे खा, मैल ककस
तिह कटता है, कैसी चमक आती जा िही है । यह इमली सचमच
ु बड़ी चीज़ है । मगि बबंदो मेिे िाई, ज़िा
उहठयो तो। उन केलों से जो दो हमािे हहस्से के हैं, हमें ला दीक्जयो। हम तो अिी ही खाए लेते हैं, बाकी
लोग जब आएँग,े अपना-अपना हहस्सा खाते िहें गे।"
बबंदो ने उठकि दो केले ला हदए । चचा ने मोढे पि उकडूं बैठे-बैठे पैंतिा बदला औि केलों को थोड़ा-
थोड़ा िीलना औि मज़े से खाना शरू
ु ककया। 'अच्िे हैं केले, बस यूँ ही ज़िा ज़ोि से हाथ, इस तिह । िुट्टन
की अम्माँ दे खेंगी तो समझेंगी, आज ही नए बितन खिीद भलए हैं। औि वह मैंने कहा, अब के केले बाकी
िह गए हैं ?
दस ? हूँ । खूब चीज़ है न इमली ? एक टके के खचे में कायापलट हो जाती है । मगि बबंदो, इन
दस के लों का हहसाब बैठेगा ककस तिह ? यानी हम शिीक न हों तब तो हि एक को दो-दो के ले भमल
जाएँगे । लेककन हमािे साझे के बबना शायद दस
ू िों का जी खाने को न चाहे । तयों ? िुट्टन की अम्मी तो
हमािे बगैि नज़ि उठाकि िी न दे खना चाहें गी । तन
ू े खद
ु दे खा होगा, कई बाि ऐसा हो चुका है । औि बच्चों
में िी दस
ू िे हज़ाि ऐब हों, पि इतनी खूबी ज़रूि है कक वे लालची औि स्वाथी नहीं हैं । सबने भमलकि शिीक
होने के भलए हमसे अनिु ोध शरू
ु ककया तो बड़ी मक्ु श्कल होगी । बिाबि-बिाबि बाँटने के भलए के ले काटने
ही पड़ेगे औि कलकततया के ले की बबसात िला तया होती है ? काटने में सबकी भमट्टी पलीद होगी। मगि
हम कहते हैं कक समझो प्रत्येक आदमी एक-एक का हहसाब िख हदया जाए तो ? दो-दो न सही एक-एक ही
हो, मगि खाएँ तो सब हँसी-खश
ु ी से, भमलजल
ु कि । ठीक है ना ? गोया िह िख िोड़ने ज़रूिी हैं। तो इस
सिू त में कै के ले ज़रूित से ज्यादा हुए ? चाि ना ? हूँ, तो मेिे ख्याल से वे चािों ज्यादा के ले ले आना।
बाकी के िह तो अपने ठीक हहसाब के मत
ु ाबबक बँट जाएँगे।"
बबंदो उठकि चाि के ले ले आया । चचा ने इत्मीनान से उन्हें बािी-बािी खाना शरू
ु कि हदया ।
“हाँ, तो तू िी कायल हुआ न इमली की किामात का ? असंख्य लािों की चीज़ है । मगि तया
कीक्जए, इस ज़माने में दे श की चीज़ों की ओि कोई ध्यान नहीं दे ता । यही इमली अगि ववलायत से डडब्बों
में बंद होकि आती तो जनाब लोग इस पि टूट पड़ते । हि घि में इसका एक डडब्बा मौजद
ू िहता।"
“तो अब िह ही बाकी िह गए हैं ना? कुि नहीं, बस ठीक है । सबके हहस्से में एक-एक आ जाएगा।
हमें हमािे हहस्से का भमल जाएगा, दस
ू िों को अपने-अपने हहस्से का। काट-िाँट का तो झगड़ा ख़तम हुआ।
अपने-अपने हहस्से का केला लें औि जो जी चाहे किें । जी चाहे आज खाएँ, आज जी न चाहे, कल खाएँ। औि
तया, होना िी यूँ ही चाहहए । इच्िा के बबना कोई चीज़ खाई जाए तो शिीि का अंश नहीं बनने पाती, यानी
अकािथ चली जाती है । कोई चीज़ आदमी खाए उसी वतत, जब उसके खाने को जी चाहे । िुट्टन की अम्माँ
की हमेशा यही कैकफयत है । जी चाहे तो चीज़ खाती हैं,न चाहे तो किी हाथ नहीं लगातीं। हमािा अपना िी
यही हाल है । ये फुटकि चीजें खाने को किी किाि ही जी चाहता है । होना िी ऐसा ही चाहहए। अब ये ही
केले हैं, बीभसयों मततबा दक
ु ानों पि िखे दे ख,े किी रुगच न हुई । आज जी चाहा तो खाने बैठ गए। अब कफि
न जाने कब जी चाहे । हमािी तो कुि ऐसी ही तबीयत है । न जाने शाम को जब तक सब आएँ, रुगच िहे
या न िहे । तनश्चय से तया कहा जा सकता है ? हदल ही तो है । मम
ु ककन है उस वतत केले के नाम से मन
में घण
ृ ा हो। तो ऐसी सिू त में तया ककया जाए? हम तो बाकी िह केलों में से अपने हहस्से का एक केला
अिी खा लेते हैं। तयों? औि तया ? अपनी-अपनी तबीयत, अपनी-अपनी िख
ू । जब क्जसका जी चाहे, खाए।
उसमें तकल्लफ
ु तया? तकल्लफ
ु में तकलीफ ही तकलीफ है । ऐसे मामलों में तो बेतकल्लफ
ु ी ही अच्िी है ।"
"तो ज़िा उहठयो मेिे िाई ! बस, मेिे ही हहस्से का केला लाना। बाकी के सब वहीं अच्िी तिह िखे
िहें ।" बबंदो ने आज्ञा का पन
ु ुः पालन ककया। चचा केला िीलकि खाने लगे।
“दे ख, तया सिू त तनकल आई बितनों की ? सि
ु ान-अल्लाह। यह इमली का नस्
ु खा भमला ही ऐसा है।
अब इन्हें दे खकि कोई कह सकता है कक पिु ाने बितन हैं! बस, यह इमली की बात आगे न तनकलने पाए।
बच्चों से िी क्ज़क्र न कीक्जयो, विना तनकल जाएगी बात । कब तक आएँगे बच्चे ? लल्लू का मैच तो शायद
शाम से पहले खतम न हो। उसके खाने-पीने का इंतज़ाम टीमवालों ने कि हदया होगा। विना, खाली पेट
कक्रकेट ककससे खेला जाता है ? कोई इंतज़ाम न होता तो वहीं खाना मँगवा सकता था। खूब ति माल उड़ाया
होगा आज । मेव-े भमठाई से ठसाठस पेट िि भलया होगा। चलो, तया हज़त है, यह उमि खाने-पीने की है । औि
कफि घि के दस
ू िे लोग बहढया-बहढया चीजें खाएँ तो वह बेचािा तयों पीिे िहे ? दद्द ू औि िुट्टन तो हटकट
के दाम के साथ खाने-पीने के भलए िी पैसे लेकि गए हैं । औि तया ? वहीं ककसी दक
ु ान पि मेवा-भमठाई
उड़ा िहे होगे । खद
ु ा खैि किे , गरिष्ठ चीजें खा-खाकि कहीं बदहज़मी न कि जाए। साथ में कोई िोक-टोक
किनेवाला नहीं है । तकलीफ होती है । बबन्नो तो माँ के साथ है । वह ख्याल िखेगी कक कहीं ज्यादा न
खा जाए । मगि मैं कहता हूँ कक केले हमने आज बड़े बेमौके भलए। उस वतत ख्याल ही नहीं आया कक
आज तो वे सब बड़ी-बड़ी तनयामतें उड़ा िहे होगे । के लों को कौन पि
ू ने लगा ? औि तन
ू े िी याद न
हदलाया, विना तयों लेते इतने बहुत-से केले? बेकाि नष्ट हो जाएँगे । पि अब खिीद जो भलए। ककसी-न-
ककसी तिह हठकाने तो लगाने ही पड़ेंगे । फें के तो नहीं जा सकते । कफि ले आ यहीं। मज़बिू ी में मैं ही
खतम कि डालँ ू ।"

शब्दार्थः- हिगगज-कदावप, गचलगोजे - एक प्रकाि का फल, जो बदाम जैसा होता है , इर्त्फाक - संयोग, तनवर्त्

- ववितत, अिदली- नौकि, मोढा - माचा, बेत का बना आसन, बाविचीखाने - िसोई घि, अलबर्त्ा - तनस्संदेह,
कश्मकश - असमंजस, वाककफ - जानना, गोया - जैस,े मानों, तनहायत - बहुत अगधक, गगिह - गाँठ, पलीद -
बबगाड़ना, कैकफयत -वणतन, मम
ु ककन - संिव, तकल्लक
ु - भशष्टाचाि, गरिष्ठ - खाद्य पदाथत जो दे ि से पचता
है , तनयामतें - ईश्वि प्रदर्त् वैिव।

अभ्यास
पाठ से
1. बबंदो कौन है? चचा ितकन ने उससे कौन-कौन से कायत किवाए?
2. चचा ितकन घि पि अकेले तयों िह गए थे ?
3. इमली का प्रयोग चचा ने ककस कायत के भलए ककया?
4. फलवाले ने या बेईमानी, तेिा ही आसिा’ तयों कहाँ?
5. कक्रकेट दे खने का मौका ककसे भमलता था औि तयों?
6. चचा ितकन ने एक दजतन केले खाते वतत कौन-कौन से बहाने बनाए?
7. चचा ितकन ने डडब्बा बंद समान के बािे में तया कहा ?
8. दे शी चीजों औि ववदे शी चीजों के ववषय में चचा के तया ख्याल हैं?

पाठ से आगे
1. घि के अभििावक बच्चों को फुसलाने के भलए कई तिह के बहाने बनाते है ।
अपने सागथयों के सहयोग से उन बहानों को सच
ू ीबद्ध कीक्जए।
2. फल वाले ने दोबािा दाम कम किके फल तयों बेच हदया? अपने ववचाि भलणखए।
3. बच्चे जब घि लौटकि आए होंगे तब बबंदो ने केले खिीदे जाने की घटना को बताया होगा। बच्चों
की तया प्रततकक्रया हुई होगी। चचा ितकन ने तया जबाव हदया होगा। सागथयों से चचात किके
भलणखए।
4. चचा ितकन ने एक बाि केले के दाम ठहिा भलए लेककन बाद में बदल गए। उनका इस तिह का
व्यवहाि उगचत था या अनगु चत? कािण दे ते हुए अपना उर्त्ि भलणखए।
5. लेखक ने तकल्लफ
ु में तकलीफ-ही-तकलीफ बताई है । आप लेखक के इस ववचाि से कहाँ तक
सहमत हैं?
6. 'इच्िा के बबना कोई चीज खाई जाए तो शिीि का अंश नहीं बनने पाती' आप इस बात से कहाँ तक
सहमत/असहमत है ? उदाहिण द्वािा स्पष्ट किें ।
7. आजकल लोगों में दे शी वस्तओ
ु ं की अपेक्षा ववदे शी वस्तओ
ु ं के प्रतत ज्यादा रुझान दे खा जा िहा है ।
ऐसी प्रवतृ त कहाँ तक उगचत है ? इससे दे श को होने वाले फायदे -नक
ु सान के आधाि पि अपना तकत
दें ।
8. अतसि तीज-त्यौहाि जैसे अवसिों पि घिों में तिह-तिह के पकवान आहद िोज्य पदाथत बनते हैं, जो
गरिष्ठ होते हैं। उन्हें खाकि बदहजमी हो जाती है । आपके साथ िी ऐसा हुआ होगा। अपना ऐसा
ही कोई अनि
ु व भलणखए।

िाषा से
1. वातय संिचना को समझने के भलए तनम्नभलणखत उदाहिणों को दे णखए –
 बबंदो उठकि चाि केले ले आया।
 जी चाहे आज खाएँ, आज जी न चाहे, कल खाएँ।
 बबंदो केले अंदि िख आया औि बाविचीखाने से िाख लाकि बितन माजने लगा।
पहले वातय में एक कक्रया अथवा एक ही ववधेय है । उसे सिल या साधािण वातय कहते हैं। दस
ू िे
वातय में एक प्रधान उपवातय है औि एक आगश्रत या सहायक उपवातय है । यह संपण
ू त वातय एक
भमश्र वातय है । तीसिे वातय में दो वातय हैं जो औि शब्द से जुड़े हैं औि दोनों स्वतंत्र वातय हैं
क्जन्हें संयत
ु त वातय कहते हैं, पाठ से इस प्रकाि के दो-दो वातयों को चुनकि भलणखए।
2. मदिसा, तिकीब, आसिा, हहफाजत जैसे ववदे शज शब्द (वे शब्द जो ववदे शी िाषाओं से आकि हहन्दी
िाषा में प्रयत
ु त होने लगे हैं) के अथत भलखकि वातयों में प्रयोग कीक्जए?
3. अल्प वविाम (Comma):- 'बोलते या भलखते समय जहाँ थोड़ी दे ि के भलए रूकना पड़ता है । वहाँ इस
वविाम गचह्न (,) का प्रयोग होता है । इस प्रकाि के कुि वविाम गचह्नों का प्रयोग पाठ में हुआ है।
उन्हें पहचानकि भलणखए।
4. तनम्नभलणखत वातयों में िे खांककत शब्दों के स्थान पि ववदे शी शब्दों का प्रयोग किके वातय बनाएँ –
क. औपचारिकता हदखाने की ज़रूित नहीं, इसे अपना घि समणझए ।
ख. एक मामल
ू ी बात पि दोनों िाइयों में बहुत दे ि तक खींचातानी होती िही ।
ग. हमािा िोटा िाई इतना बातन
ू ी है कक ज़िा दे ि चप
ु नहीं बैठ सकता।
घ. आज तो आप मझ
ु े संयोग से यहाँ भमल गए ।
ङ. मैने तो आपकी अनप
ु क्स्थतत में आिाम से बैठकि खाना खाया।
च. अपने शिीि की स्वयं सिु क्षा किनी चाहहए।
5. तनम्नभलणखत शब्दों का इस प्रकाि वातयों में प्रयोग कीक्जए क्जससे उनके अथत में अंति स्पष्ट हो
जाए –
तनयत/नीयत, लोटा/लौटा, गचर्त्/गचवर्त्
6. क. तनम्नभलणखत शब्दों औि मह
ु ाविों का अपने वातयों में प्रयोग कीक्जए -
हठकाने लगाना, हवाला दे ना, नीयत में खोट आना, नस-नस से वाककफ़ होना, काया
पलट होना, भमट्टी पलीद होना, अकािथ चली जाना, ज़बान से कफि जाना।
7. 'अभिमान' शब्द की िचना समणझए। 'मान' शब्द में 'अभि' उपसगत जोड़कि यह शब्द बना है ।
ख. आप िी 'अभि' उपसगत जोडकि दो शब्द बनाइए औि उनका अपने वातयों में प्रयोग कीक्जए।
ग. ऐसे दो शब्द भलणखए क्जनमें 'अन'ु उपसगत लगा हो ।
8. ित
ू काल की चाि कक्रयाओं में वातय-िचना कीक्जए क्जनमें कतात के साथ 'ने' वविक्तत गचह्न का
प्रयोग हुआ हो ।

योग्यता विस्तार

1. हहन्दी साहहत्य में ववभिन्न ववधाएँ है जैसे कहानी, कववता, तनबंध, एकांकी इत्याहद। ऐसी ही एक ववधा
है 'व्यंग्य' | आप अपने भशक्षक के सहयोग से व्यंग्य िचनाओं को पहढए ।
2. चचा ितकन की अन्य कािगज
ु ारियों के संबध
ं में लेखक ने कई अन्य मनोिं जक ववविण भलखे हैं।
भशक्षक की मदद से उन्हें खोजकि पहढए।
3. इमली ककन-ककन कामों में उपयोग में लाई जाती है । जानकािी प्राप्त कीक्जए।
4. उन ववदे शी वस्तओ
ु ं की सच
ू ी बनाएँ क्जन्हें इन हदनों बहुतायत में हि घिों अथवा लोगों के पास
आसानी से दे खी जा सकती है ।
पाठ 17
नीनत के दोहे
-तल
ु सी/रहीि/कबीर

नीतत के इन दोहों में मीठी वाणी, मणु खया के महत्व, संतोष रूपी धन की महर्त्ा, पिोपकाि, कुसंगतत का प्रिाव,
समय तथा िोटी वस्तओ
ु ं की उपयोगगता औि 'अतत' के दष्ु परिणामों को उिािा गया है एवं व्यावहारिक
उदाहिणों के माध्यम से जीवन मल्
ू यों पि बल हदया गया है ।

तल
ु सी मीठे बचन तें, सख
ु उपजत चहुँ ओि।
बसीकिण यह मंत्र है , परिहरि बचन कठोि ।।

मणु खया मख
ु सो चाहहए, खान-पान को एक।
पालै -पोसै सकल अंग, तल
ु सी सहहत बबबेक

आवत हहय हिषै नहीं, नैनन नहीं सनेह ।।


तल
ु सी तहाँ न जाइए, कंचन बिसै मेह ||

तल
ु सी संत सअ
ु ब
ं तरू, फूभल-फलहहं पि हे त ।
इतते ये पाहन हनत, उतते वे फल दे त ॥

तुलसी

तरुवि फल नहहं खात हैं, सिबि वपयहहं न पान ।


कहह िहीम पिकाज हहत, संपतत संचहहं सज
ु ान ।।

िहहमन दे णख बड़ेन को, लघु न दीक्जए डारि ।


जहाँ काम आवै सई
ु , कहाँ किै तलवारि ||

जो िहीम उर्त्म प्रकृतत, का करि सकत कुसंग ।


चंदन बबष व्यापै नहीं, भलपटे िहत िज
ु ंग ॥

िहहमन तनज मन की ब्यथा, मनहीं िाखौ गोय ।


सतु न इठले हैं लोग सब, बाँहट न लैहै कोय ||

रहीि
काल किै सो आज कि, आज किै सो अब ।
पल में पिलय होयगी, बहुरि किे गा कब ।।

माला तौ कि में कफिै , जीि कफिै मख


ु माँहह ।
मनआ
ु तो चहुँ हदभस कफिै , यह तो सभु मिन नाहहं ।।

अतत का िला न बोलना, अतत की िली न चप


ू ।
अतत का िला न बिसना, अतत की िली न धूप ॥

दिु लि मानष
ु जनम है, दे इ न बािं बाि ।
तरूबि ते पर्त्ा झड़े, बहुरि न लागै डाि ||

कबीर

शब्दार्थ:- उपजत - उत्पन्न होना, परिहरि -त्याग किना, परित्याग, कंचन -सोना, मेह-बादल, सअ
ु ब
ं - मीठे
आम के पेड़, पाहन - पत्थि, हनत - मािना, सिबि - तलाब, सिोवि, संचाहह -इकट्ठा किना, सज
ु ान - ज्ञानी,
उर्त्म - बहुत अच्िा, िज
ु ंग - सपत, व्यथा - पीड़ा, ददत, पिलय - प्रलय, बहुरि-पन
ु ुः (कफि), सभु मिन - याद किना
(िजन)।

अभ्यास

पाठ से
1. आम के पेड़ औि संत में तया समानता है ?
2. पिोपकाि के महत्व को िहीम ने ककस प्रकाि समझाया है ?
3. उर्त्म प्रकृतत वाले व्यक्तत कुसंगतत से प्रिाववत नहीं होते हैं। इसे समझाइए।
4. ‘मनष्ु य दे ह नाशवान है ।’ इस कथन को कबीि ने कैसे भसद्ध ककया है ।
5. ’िले लोग हमेशा दस
ू िों के भलए ही कायत किते हैं।’ िहीम जी ने इस बात को ककस तिह समझाया
है ?
6. मानव के रूप में जन्म को दल
ु ि
त तयों बताया गया है?
7. तल
ु सी के मीठे वचन को वशीकिण मंत्र तयों कहा है?
8. तल
ु सी के अनस
ु ाि हमें कैसे स्थान पि नहीं जाना चाहहए?
9. आज का काम कल पि तयों नहीं टालना चाहहए?

10. तनम्नभलणखत दोहों के अथत स्पष्ट कीक्जए -

क. तल
ु सी संत सअ
ु ब
ं तरु, फूभल-फलहहं पि हे त।
इतते ये पाहन हनत, उतते वे फल दे त।।

ख. जो िहीम उर्त्म प्रकृतत, का करि सकत कुसंग।


चंदन ववष व्यापै नहीं, भलपटे िहत िज
ु ंग।।
पाठ से आगे
1. अपने मन की व्यथा दस
ू िों को िी बतानी चाहहए या अपने मन में ही िखनी
चाहहए। अपने ववचाि कािण सहहत भलणखए।
2. तल
ु सीदास जी के अनस
ु ाि मणु खया को मख
ु के समान होना चाहहए। आपके
अनस
ु ाि घि के मणु खया में कौन-कौन से गण
ु होने चाहहए औि तयों?
3. हमें बोलते या बातचीत किते समय ककन चीजों का ध्यान िखना चाहहए।

िाषा से
1. नीचे वातयों के कुि जोड़े हदए गए हैं। उन्हें दे णखए -
(i) हम आप से कहे थे।
(ii) हमने आप से कहा था।

(i) एक फूल की माला दो।


(ii) फूलों की एक माला दो।

(i) मैं गमत गाय का दध


ू पीता हूँ।
(ii) मैं गाय का गमत दध
ू पीता हूँ।

यहाँ हि जोड़े के पहले वातय में अशद्


ु गध है, क्जसे सध
ु ाि कि दस
ू िे वातय में भलखा गया है । जानकािी
के आिाव में वातय िचना में कई प्रकाि की अशद्
ु गधयाँ आ सकती हैं। ये अशद्
ु गधयाँ वचन, भलंग, वविक्तत,
संज्ञा, सवतनाम, ववशेषण, कक्रया, मह
ु ाविे , कक्रया ववशेषण, पदक्रम, पन
ु रूक्तत तथा शब्दों से संबगं धत हो सकती हैं।
नीचे कुि अशद्
ु ध वातय हदए जा िहे हैं। उनमें अशद्
ु गध को पहचातनए औि शद्
ु ध कि के भलणखए-

(1) उसने अनेकों ग्रथ भलखे। (2) वह धीमी स्वि में बोला।
(3) मैं यह काम नहीं ककया हूँ। (4) में िवववाि के हदन जाऊँगा।
(5) गीता आई औि कहा। (6) वह श्याम पि बिस गया।
(7) उसे िािी दख
ु हुआ। (8) मैं दशतन दे ना आया था।
(9) इस क्षेत्र में सवतस्व शांतत है । (10) मैनें ग्रहकायत नहीं ककया है ।
(11) वह बेकफजल
ू की बातें किता है । (12) यहाँ नहीं रूको।

2. इन वातयों को दे णखए -
(i) ’तीि’ एक अस्र है ।
(ii) तलवाि एक शस्र है ।
(ii) ’बाईबबल’ एक ग्रंर् है ।
(ii) हहन्दी की पस्
ु तक दो।
शब्दों के इन जोड़ों में िे खांककत शब्द एक समान अथत दे ने वाले माने जाते हैं पिं तु वास्तव में
उनके अथत औि प्रयोग में सक्ष्
ू म अंति होता है । ऐसे शब्दों को ’सक्ष्
ू म अथतिद
े ी शब्द कहते हैं। इस प्रकाि के
शब्द समानाथी प्रतीत होते हुए िी भिन्न अथत प्रगट किते हैं। नीचे कुि सक्ष्
ू म अथत-िेदी शब्दों के जोड़े हदए
गए है । आप उनका वातयों में इस प्रकाि प्रयोग कीक्जए कक उनमें अंति स्पष्ट हो जाए-

(1) अतनवायत - आवश्यक (2) गहिा - घना

(3) आज्ञा - आदे श (4) प्रणाम - नमस्काि

(5) कहठन - कठोि (6) वध - हत्या

(9) अमल्
ू य - बहुमल्
ू य (10) िाया - पििाई

3. 1. हमने कल कबड्डी खेला।


2. हम कबड्डी खेल िहे हैं।
3. हम कबड्डी खेलेंगे।

उपयत
ुत त वातयों में ’खेला’, खेल िहे हैं’ औि ’खेलेंगे’ तीनों कक्रयाएँ हैं जो अलग-अलग समय में
कायत के होने का बोध किवा िही हैं। कक्रया का वह रूप क्जससे उसके होने या किने के समय का पता चले,
काल कहलाता है । काल के तीन िेद हैं-

1. ित
ू काल:- कक्रया बीते समय में हुए कायत का बोध किाती है । (उदा. हमने पाठ पढ भलया है ।)
2. वततमान:- कक्रया वततमान में चल िहे कायत का बोध किाती है । (उदा. हम पाठ पढ िहे हैं।)
3. िववष्य:- कक्रया िववष्य में होने वाले कायत का बोध किाती है । (उदा. हम पाठ पढें गे।)

नीचे हदए गए िाक्यक का काल पहचान कर भलखखए -


1. शायद चोि पकड़ा जाए।
2. पज
ु ािी पज
ू ा किता है ।
3. मोहन आया।
4. वह दे खता है ।
5. िीता िो िही थी।
6. दीपक अखबाि बेचेगा।
7. मै पढ िहा हूँ।
8. वह आए तो मैं जाऊँ।
9. मैं अिी सोकि उठी हूँ।
10. ककसान बाजाि जा िहा होगा।
11. वह पढता होगा।
12. बस िूट गयी होगी।
13. यहद वषात होती तो ितिी बबकती।
14. संिव है कक वह लौटा हो।
15. महादे वी जी ने संस्मिण भलखे।
4. तनम्नभलणखत के दो-दो पयातयवाची शब्द भलणखए -
साँप, सोना, पेड़, सिोवि, तलवाि ।
5. नीचे भलखे शब्दों के तत्सम रूप भलणखए –
सनेह/ मेह/ धूरि/ ितन/ तिवारि/ पिलय/ दिु लि/ जनम/ हिष ।
6. तनम्नभलणखत शब्दों के ववरुद्धाथी शब्द भलणखए -
कठोि, वववेक, हषत, संतोष, हहत, पिमाथत, लघु ।

योग्यता विस्तार
1. कक्षा में अध्यापक के मागतदशतन में दोहा अंत्याक्षिी का आयोजन कीक्जए ।
2. कबीि दास जी, अब्दिु त हीम खानखाना तथा गोस्वामी तल
ु सीदास का जीवन परिचय खोज कि पहढए।
3. सिू दास औि िसखान की कुि िचनाओं को खोजकि कक्षा में सन
ु ाइए।
4. मीठी वाणी एवं सत्संगतत के महत्व से संबगं धत दोहों का संकलन कीक्जए।
पाठ 18
हिर कतका सुंदर गाूँि

-प्यारे लाल गप्ु त

ये कववता म कवव ह गाँव के सघ


ु िइ के बिनन किे हें । हमि गाँव ह लिमी माता के पाँव सहीं
सग्ु घि हे । लीपे-पोते घि-दव
ु ाि हे ,कोठाि म पहाि सहीं खिही गँजाय हे । तरिया म पतका घाट बने हे,खेत
म वपंयि-वपंयि सिसों फूले हे अउ गाँव के जम्मो मनखे मन आपस म िाजी-खुसी से िहहथें।
अइसने िाव कवव ह ये कववता म पिगट किे हें ।

हमि कतका सद
ुं ि गाँव,
जइसे लतिमी जी के पाँव।
घि उज्जि लीपे - पोते ,
जेला दे ख हवेली िोथे ।
सग्ु घि गचकनाये िइ
ु याँ ,
चाहे िात परुस लय गइ
ुं याँ ।
अँगना मा तल
ु सी घरुवा ,
कोठा मा बइला गरुवा।
लकठा मा कोलाबािी,
जहँ बोथन साग-तिकािी।
ये हि अनपिू ना के ठाँव।

बहहि मा खातू के गड्ढा,


जहँ गोबि होथे एकट्ठा।
धिती ला िसा वपयाथे,
ओला पीके अन उपजाथे।
ल दे खा हमि कोठाि,
जहँ खिही के गंजे पहाि।
गये हे गाड़ा बििा,
जेखि लकठा मा हवे मदिसा।
जहँ तनत कुटें , तनत खायँ।।
जहाँ पतका घाट बँधाये,
चला-चला तिइया नहाये।
ओ हो, करिया सफ्फा जल,
जहँ फूले हे लाल कँवल।
लकठा मा हय अमिइया,
बनबोइि अउि मकैया।
फूले हय सिसों वपंविा,
जइसे नवा बहू के लग
ु िा
जहँ घाम लगे न िाँव।
आपस मा होथन िाजी,
जहँ नइये मक
ु दमाबाजी।
िेदिाव नइ जानन,
ऊँच - नीच नइ मानन।
दख
ु -सख
ु मा एक हो जाथी,
जइसे एक हदया द ू बाती।
जहँ िल-कपट न दिु ाँव,
हमि कतका सद
ुं ि गाँव।।

छत्तीसगढ़ी शब्द िन के हहन्दी अर्थ

उज्जि = उज्जवल, स्वच्ि हवेली = महल


परुस लय = पिोस लें गइ
ु याँ = साथी, सखी
कोठा = गौशाला गरुवा = गाय-बैल आहद जानवि
लकठा = नजदीक,पास कोलाबािी = बाड़ी
खातू = खाद कोठाि = खभलहान
खिही = कटी हुई फसल की ढे िी बििा = गन्ने का खेत
लग
ु िा = साड़ी दिु ाँव = ककसी से बात तिपाकि
तल
ु सी घरुवा = तल
ु सी का चबत
ू िा, तल
ु सी िखने का िाव
चौंिा

अभ्यास

पाठ से
1. कवव ह गाँव मन ल लतिमी जी के पाँव काबि कहे हावय?
2. गाँव के घि मन ल दे ख के हवेली काबि दुःु खी होथे?
3. अनपिू ना के ठाँव कहाँ हावय?
4. धिती ह कइसे ककसम ल अन्न उपजाथे?
5. कोठा मा का-का क्जतनस िखे जाथे?
6. ’’जइसे एक हदया द ू बाती’’ पंक्तत म कवव ह का बतावत हावय?
7. कवव ह नवा बहू के लग
ु िा ल सिसों के फूल के संग तल
ु ना काबि किे हावय।
8. अँगना में तल
ु सी-चौिा लगाय के का कािण होही?

पाठ से आगे

1. ‘अपन गाँव ह सब झन ला सघ्


ु घि लागथे’। ये कहावत हवय। तम
ु न ल अपन
गाँव कोन कािण से सघ्
ु घवि लागथे? सघ
ु िई के बिनन दस वातय म भलखव।
2. गाँव के मनखे मन आपस म भमलजुल के िहहथे अऊ बड़े-बड़े कािज ल घलो
कि लेथे। अऊ वोमा सब झन के सहयोग िहहथे। अपन घि के बड़े मन ल पता लगाके भलखव।

िाषा से

1. ’’हमि कतका सद
ुं ि गाँव’’ कववता में आये वातय सद
ुं ि गाँव की तल
ु ना लतिमी
जी के पाँव ले किे गेहे।
जौन ला उपमा कहहथे। हहन्दी में एला समता या तल
ु ना घलो कहे जाथे।

’’ क्जहाँ दठ
ु न व्यक्तत, समान, गण
ु , धमत, स्वरूप असन ववशेषता के आधाि बिोबि हदखथे, उही ह उपमा
अलंकाि होथे। उपि में दे वातय के जइसन पाठ में आये उपमा अलंकाि के उदाहिण ल िाँटके
भलखव।
2. खाल्हे भलखाय वातय ल ध्यान से पढव ’ मे हा कभलकुन िायपिु गे िहे हँव’ ये वातय ह काम के
होये के बोध किावथे जौन ल ित
ू काल कहहथे। अऊ ’मे हा जावत हँव’, ‘में हा खात हव, ‘‘में हा
नहावत हँव,।‘ सबे वातय म काम होवत हे बताय गेहे। अइसने ककसम ल ’’मे काभल जाहू, खाहूँ,
नहाहूँ आहद शब्द मन ह िववष्य काल के बोध किाये।
उपि दे उदाहिण के आधाि ले पाठ ले ित
ू काल, वततमान काल अऊ िववष्य काल के वातय खोजके
भलखव।

योग्यता विस्तार

1. गाँव ल साफ सथ
ु िा िखे बि तह
ुं ि का-का योगदान होही? ओला भलखव।
2. हमि कतका सद
ुं ि गाँव सहहन अऊ दस
ू ि पाठ ल भशक्षक के सहायता ले पढव।
पाठ 19
हार की जीत
‘हाि की जीत' श्री सद
ु शतन द्वािा िगचत एक कहानी है क्जसमें लेखक ने बाबा िािती के चरित्र का
ऐसा आदशत प्रस्तत
ु ककया है, जो श्रेष्ठ मानवीय गण
ु ों से यत
ु त है । डाकू खड्ग भसंह के िल-कपट को जानकि
िी बाबा िािती का उस अपाहहज बने खड्ग भसंह से यह कहना कक 'मेिी प्राथतना केवल यह है कक इस
घटना को ककसी के सामने प्रकट न किना, लोगों को यहद इस घटना का पता लग गया तो वे ककसी गिीब
पि ववश्वास न किें गे, उसके (खड्ग भसंह के ) हृदय को झकझोि दे ता है । बाबा िािती के इस पववत्र औि
उच्च ववचाि को सन
ु कि उसका हृदय परिवतततत हो जाता है । यही इस कहानी का उद्दे श्य है । सद
ु शतन जी
की यह कहानी मील का पत्थि बनी हुई है ।

माँ को अपने बेटे औि ककसान को अपने लहलहाते खेत दे खकि जो आनंद आता है , वही आनंद बाबा
िािती को अपना घोड़ा दे खकि आता था । वह घोड़ा सद
ुं ि था, बड़ा बलवान था । बाबा िािती उसे 'सल्
ु तान'
कहकि पक
ु ािते, अपने हाथ से खिहिा किते, खुद दाना णखलाते औि दे ख-दे ख प्रसन्न होते थे । आप गाँव से
बाहि िोटे -से मंहदि में िहते थे औि िगवान का िजन किते थे। सल्
ु तान के बबना जीना उनके भलए बहुत
ही कहठन था।
खड्गभसंह उस इलाके का कुख्यात डाकू था । लोग उसका नाम सन
ु कि काँपते थे। होते-होते सल्
ु तान
की कीततत उसके कानों तक िी पहुँची । उसका मन उसे दे खने के भलए अधीि हो उठा । वह एक हदन
दोपहि के समय बाबा िािती के पास जा पहुँचा औि नमस्काि किके बैठ गया।
'कहो, इधि कैसे आ गए ?'
'सल्
ु तान की चाह खींच लाई ।'
'ववगचत्र जानवि है । दे खोगे तो प्रसन्न हो जाओगे ।'
'मैने िी बड़ी प्रशंसा सन
ु ी है ।'
'उसकी चाल तम्
ु हािा मन मोह लेगी।'
'कहते हैं, दे खने में िी बड़ा सद
ंु ि है ।'
'तया कहना ! जो उसे एक बाि दे ख लेता है , उसके हृदय पि उसकी िवव अंककत हो जाती है ।’
'इच्िा तो बहुत हदनों से थी, लेककन आज आ सका।'
बाबा िािती औि खड्गभसंह अस्तबल में पहुँचे । बाबा ने घोड़ा हदखाया घमंड से औि खड्गभसंह ने
घोड़ा दे खा आश्चयत से । वह कुि दे ि तक चुपचाप खड़ा िहा । उसके हृदय में हलचल होने लगी। बालकों
की-सी अधीिता से बोला- "बाबा, इसकी चाल न दे खी, तो तया दे खा ?"
बाबा जी िी मनष्ु य ही थे । अपनी वस्तु की प्रशंसा दस
ू िे के मख
ु से सन
ु ने के भलए उनका हृदय अधीि
हो गया । घोड़े को खोलकि बाहि ले गए । घोड़ा वाय-ु वेग से उड़ने लगा। उसकी चाल दे खकि खड्गभसंह
के हृदय पि साँप लोट गया । वह डाकू था औि जो वस्तु उसे पसंद आ जाए, उस पि वह अपना अगधकाि
समझता था । जाते-जाते उसने कहा – “बाबा जी, मैं यह घोड़ा आपके पास न िहने दं ग
ू ा।"
बाब िािती डि गए । अब उन्हें िात को नींद न आती । सािी िात अस्तबल की िखवाली में कटने
लगी। प्रततक्षण खड्गभसंह का िय लगा िहता । पिं तु कई मास बीत गए औि वह न आया। यहाँ तक कक
बाबा िािती कुि असावधान हो गए औि इस िय को स्वप्न के िय की नाईं भमथ्या समझने लगे ।
संध्या का समय था । बाबा िािती सल्
ु तान की पीठ पि सवाि होकि घम
ू ने जा िहे थे। सहसा एक
ओि से आवाज़ आई - “ओ बाबा, इस कँगले की सन
ु ते जाना।"
आवाज़ में करुणा थी । बाबा ने घोड़े को िोक भलया । दे खा, एक अपाहहज वक्ष
ृ की िाया में पड़ा किाह
िहा है । बोले - “तयों, तम्
ु हें तया कष्ट है ?"
अपाहहज ने हाथ जोड़कि कहा - "बाबा, मैं दणु खया हूँ | मझ
ु पि दया कीक्जए, िामवाला यहाँ से तीन
मील दिू है, मझ
ु े वहाँ जाना है । घोड़े पि चढा लो, पिमात्मा िला किे गा।'
“वहाँ तम्
ु हािा कौन है ?'' “दग
ु ातदर्त् वैद्य का नाम आपने सन
ु ा होगा । मैं उनका सौतेला िाई हूँ ।”
बाबा िािती ने घोड़े से उतिकि अपाहहज को घोड़े पि सवाि ककया औि स्वयं उसकी लगाम पकड़कि
धीिे -धीिे चलने लगे ।
सहसा उन्हें एक झटका-सा लगा औि लगाम हाथ से िूट गई । उनके आश्चयत का हठकाना न िहा,जब
उन्होंने दे खा कक अपाहहज घोड़े की पीठ पि तनकि बैठा है औि घोड़े को दौड़ाए भलए जा िहा है । वह
खड्गभसंह था ।
बाबा िािती कुि दे ि तक चुप िहे औि इसके पश्चात ् कुि तनश्चय किके पिू े बल से गचल्लाकि बोले-
“ज़िा ठहि जाओ।"
खड्गभसंह ने यह आवाज़ सन
ु कि घोड़ा िोक हदया औि उसकी गदत न पि प्याि से हाथ फेिते हुए कहा-
“बाबा जी, यह घोड़ा अब न दं ग
ू ा।"
“पिं तु एक बात सन
ु ते जाओ।” खड्गभसंह ठहि गया। बाबा िािती ने तनकट जाकि उसकी ओि ऐसी
आँखों से दे खा, जैसे बकिा कसाई की ओि दे खता है औि कहा – “यह घोड़ा तम्
ु हािा हो चुका। मैं तम
ु से इसे
वापस किने के भलए न कहूँगा, पिं तु खड्गभसंह केवल एक प्राथतना किता हूँ। इसे अस्वीकाि न किना, नहीं
तो मेिा हदल टूट जाएगा।"
"बाबा जी, आज्ञा कीक्जए। मैं आपका दास हैं, केवल यह घोड़ा न दँ ग
ू ा।"
“अब घोड़े का नाम न लो। मैं तम
ु से इसके ववषय में कुि न कहूँगा। मेिी प्राथतना केवल यह है कक इस
घटना को ककसी के सामने प्रकट न किना।"
खड्गभसंह का मँह
ु आश्चयत से खुला िह गया। उसका ववचाि था कक उसे घोड़े को लेकि यहाँ से िागना
पड़ेगा, पिन्तु बाबा िािती ने स्वयं उससे कहा – “इस घटना को ककसी के सामने प्रकट न किना।” इससे
तया प्रयोजन भसद्ध हो सकता है ? खड्गभसंह ने बहुत सोचा, भसि मािा, पिं तु कुि समझ न सका । हािकि
उसने अपनी आँखें बाबा िािती के मख
ु पि गड़ा दी औि पि
ू ा, “बाबा जी, इसमें आपको तया डि है ?"
सन
ु कि बाबा िािती ने उर्त्ि हदया - “लोगों को यहद इस घटना का पता चल गया, तो वे ककसी गिीब
पि ववश्वास न किें गे।"
यह कहते-कहते उन्होंने सल्
ु तान की ओि से इस तिह मह
ँु मोड़ भलया जैसे उनका उससे किी कोई
संबध
ं ही न िहा हो ।
बाबा िािती चले गए, पिं तु उनके शब्द खड्गभसंह के कानों में उसी प्रकाि गज
ूं िहे थे। सोचताथा - कैसे
ऊँचे ववचाि हैं, कैसा पववत्र िाव है ? इन्हें इस घोड़े से प्रेम था, इसे दे खकि उनका मख
ु फूल की नाईं णखल
जाता था। कहते थे - ‘इसके बबना मैं िह न सकँू गा ।' इसकी िखवाली में वे कई िात सोए नहीं, िजनिक्तत
न कि िखवाली किते िहे । पिन्तु आज उनके मख
ु पि दख
ु की िे खा तक न हदखाई पड़ती थी। उन्हें केवल
यह ख्याल था कक कहीं लोग गिीबों पि ववश्वास किना न िोड़ दें । ऐसा मनष्ु य, मनष्ु य नहीं, दे वता है ।
िाबत्र के अंधकाि में खड्गभसंह बाबा िािती के मंहदि में पहुँचा । चािों ओि सन्नाटा था । आकाश में
तािे हटमहटमा िहे थे। थोड़ी दिू पि गाँव के कुर्त्े िौंक िहे थे। मंहदि के अंदि कोई शब्द सन
ु ाई न दे ता था।
खड्गभसंह सल्
ु तान की बाग पकड़े हुए था। वह धीिे -धीिे अस्तबल के फाटक पि पहुँचा। फाटक खुला पड़ा
था। ककसी समय बाबा िािती स्वयं लाठी लेकि पहिा दे ते थे, पिन्तु आज उन्हें ककसी चोिी, ककसी डाके का
िय न था। खड्गभसंह ने आगे बढकि सल्
ु तान को उसके स्थान पि बाँध हदया औि बाहि तनकलकि सावधानी
से फाटक बंद कि हदया। इस समय उसकी आँखों में नेकी के आँसू थे।
िाबत्र का तीसिा पहि बीत चक
ु ा था। चौथा पहि आिम्ि होते ही बाबा िािती ने अपनी कुहटया से बाहि
तनकल ठं डे जल से स्नान ककया। उसके पश्चात ् इस प्रकाि, जैसे कोई स्वप्न में चल िहा हो, उनके पाँव
अस्तबल की ओि बढे , पिं तु फाटक पि पहुँचकि उनको अपनी िल
ू प्रतीत हुई, साथ ही घोि तनिाशा ने पाँवों
को मन-मनिि का िािी बना हदया । वे वहीं रुक गए । घोड़े ने अपने स्वामी के पाँवों की चाप को पहचान
भलया । वह ज़ोि से हहनहहनाया।
अब बाबा िािती आश्चयत औि प्रसन्नता से दौड़ते अंदि घस
ु े औि अपने प्यािे घोड़े के गले से भलपटकि
इस प्रकाि िोने लगे मानो कोई वपता बहुत हदनों से बबिुड़े हुए पत्र
ु से भमल िहा हो । बाि-बाि उसके मँह

पि थपककयाँ दे त।े
कफि वे संतोष से बोले - “अब कोई गिीबों की सहायता से मँह
ु न मोड़ेगा।"
शब्दार्थ – खिहिा – लकड़ी की कंधी, अधीि – व्याकुल, अंककत – तनशान, प्रयोजन – उद्दे श्य ।

अभ्यास

पाठ से
1. सल्
ु तान कौन था?
2. खड्ग भसंह कौन था? लोग उससे तयों डिते थे?
3. बाबा िािती को अपना घोड़ा दे खकि ककस प्रकाि आनन्द आता था?
4. बाबा िािती का सल्
ु तान के प्रतत ककस प्रकाि का प्रेम था?
5. खड़ग भसंह सल्
ु तान को तयों दे खना चाहता था?
6. बाबा िािती ने खड्ग भसंह से सल्
ु तान के ककन गण
ु ों का बखान ककया।
7. 'बाबा, इसकी चाल न दे खी, तो तया दे खा? खड्ग भसंह ने ऐसा तयों कहा?
8. सल्
ु तान को प्राप्त किने के भलए डाकू खड्ग भसंह ने तया चाल चली?
9. बाबा िािती के ककस कथन को सन
ु कि डाकू खड्ग भसंह का हृदय-परिवततन हुआ?
10. "अब कोई गिीबों की सहायता से मँह
ु न मोड़ेगा।" बाबा िािती ने ऐसा कब औि तयों कहा?
11. तनम्नांककत कथन ककसने, ककससे, कब कहे ?
क. ''सल्
ु तान की चाह खींच लाई ।''
ख. "उसकी चाल तम्
ु हािा मन मोह लेगी।"
ग. "बाबा, मैं दणु खया हूँ, मझ
ु पि दया कीक्जए।''
घ. ''इसके बबना मैं िह न सकँू गा।"
ङ. "अब कोई गिीबों की सहायता से मह
ँु न मोड़ेगा।"

पाठ के आगे
1. बाबा िािती ने खड़्ग भसंह से घटना के बािे में ककसी से न कहने को तयों कहा
होगा? ववचाि कि भलणखए।
2. बाबा िािती का सल्
ु तान के साथ वपता-पत्र
ु की तिह रिश्ता था। वैसे ही माँ-बेटे का िी रिश्ता होता
है । अगि पत्र
ु माँ से अलग हो जाये, तो माँ की मनुः क्स्थतत कैसी होती हे गी। अपनी माँ से चचात
कि भलणखए।
3. ’’हाि की जीत’’ कहानी को पढने के बाद, तया आप ककसी गिीब की सहायता किें ग?े कक्षा में चचात
कि भलणखए।
4. इस कहानी में हाि कि िी कौन जीता औि जीतकि िी कौन हािा औि तयों कािण सहहत भलणखए।

िाषा से
1. हाि की जीत पाठ में ’अस्तबल’ ’आक्स्तक’ आहद शब्दों का प्रयोग हुआ है । घोड़ा बाँधने का स्थान
’अस्तबल’ तथा जो ईश्वि पि ववश्वास किता हो, ’आक्स्तक’ कहलाता है । ठीक इसी तिह अब आप
तनम्न वातयों के भलए एक-एक शब्द बनाइये -
1. घोड़े पि सवािी किने वाला।
2. प्रशंसा किने वाला।
3. पहिा दे ने वाला।
2. इन्हें िी समणझए-
1. योजक गचह्न (-) का प्रयोग बहुतायत होता है जैसे दो शब्दों को जोड़ने के भलए। उदा. -
िजन-पज
ू न
(दोनों शब्द योजक गचह्न से भमलकि पण
ू त पद बनाते हैं।
2. ववपिीताथत शब्दों के बीच जैसे- बिु ाई-िलाई, िले-बिु े , ऊँच-नीच।
3. जब दो शब्दों में एक साथतक औि दस
ू िा तनिथतक हो,जैस-े िोटी-बोटी, अनाप-शनाप।
4. दो कक्रयाओं के बीच - जैस-े भमलना-जुलना, पढना-भलखना।
5. एक ही संज्ञा दो बाि प्रयोग हो- जैस-े द्वाि-द्वाि, नगि-नगि, बात-बात आहद।
ऐसे ही पाठ में आए योजक गचह्न लगे शब्दों को िाँटकि भलणखए।
3. अग्र का पश्च, आकाश का पाताल ववलोम है । क्जसका अथत है ववपिीत या उल्टे क्रम से उत्पन्न।
ककसी शब्द का ववपिीत अथत वाला शब्द ववलोम शब्द कहलाता है ।
सद
ुं ि, पसंद, भमथ्या, िला, ववश्वास, सावधानी, िोना जैसे (पाठ में आए) शब्दों के ववलोम शब्द भलणखये।
4. पाठ में प्रसन्नता शब्द आया है जो कक िाव वाचक संज्ञा है यह शब्द प्रसन्न ववशेषण में ’ता’
प्रत्यय लगाने से बना है अथातत ् खुश होने का िाव। इस प्रकाि ’ता’ प्रत्यय का प्रयोग किते हुए
दस िाववाचक संज्ञा बनाइये।
5. तनम्नांककत वातयों को तनदे शानस
ु ाि बदभलए ।
क. घोड़ा सद
ुं ि था । (वततमान काल)
ख. खड्ग भसंह इस इलाके का कुख्यात डाकू था। (वततमान काल)
ग. वहाँ तम्
ु हािा कौन है ? (ित
ू काल)
घ. घोड़ा हहनहहना िहा होगा। (वततमान काल)
ङ. मैंने िी प्रशंसा सन
ु ी है । (ित
ू काल)
6. पाठ में योजक गचह्न (-) का प्रयोग बहुलता से हुआ है । जो वविाम गचह्न का ही एक प्रकाि है ।
इन्हें दे खे –
क. दो शब्दों को जोड़ने के भलए। दोनों शब्द योजक गचह्न से भमलकि समस्त पद बनाते हैं जैसे
िजन-पज
ू न, जाते-जाते, तन-मन।
ख. दो ववपिीताथतशब्दों के बीच, जैसे - बिु ाई-िलाई, िले-बिु े , ऊँच-नीच आहद।
ग. जब दो शब्दों में एक साथतक औि दस
ू िा तनिथतक हो, जैसे – िोटी-वोटी, अनाप-शनाप आहद।
घ. दो कक्रयाओं के बीच, जैसे भमलना-जुलना, पढना-भलखना, खाना-पीना आहद।
ङ. जब एक ही संज्ञा दो बाि प्रयोग हो, जैसे - द्वाि-द्वाि, नगि-नगि, बात-बात आहद।
च. सा, सी, से के पहले, जैसे बहुत-से लोग, बहुत-सा रुपया, थोड़ा-सा काम आहद।
7. तनम्नभलणखत वातयों में उगचत स्थान पि वविाम गचह्न लगाइए।
क. कामायनी की कथा संक्षप
े में भलणखए
ख. ककशोि िािती का प्रकाशन हि महीने होता है
ग. आप कहाँ से आ िहे हैं
घ. आपकी शतल आपके बड़े िाई से भमलती जुलती है
ङ. जीवन में हािना जीतना तो लगा ही िहता है
8. तनम्नभलणखत अवतिण को पहढए औि रितत स्थानों की पतू तत नीचे हदए गए शब्दों की सहायता
से कीक्जए-
बाबा िािती एक िोटे -से मंहदि .... िहते थे । सल्
ु तान नामक घोड़े .... वे बहुत चाहते थे। उसी क्षेत्र
में खड्गभसंह .... िहता था । वह घोड़ा दे खने के भलए बाबा .... के पास पहुँचा । उसने बाबा िािती
से .... – “मैं यह घोड़ा आपके पास नहीं .... दं ग
ू ा।” बाबा िािती इस धमकी से .... िहने लगे । िह
महीने बीत गए .... खड्गभसंह नहीं आया । एक हदन .... घोड़े पि सवाि .... जा िहे थे। िास्ते में
एक .... के नीचे एक अपाहहज पड़ा था। .... बाबा से ववनती की, “मैं अपाहहज .... | मझ
ु े िामवाला
गाँव जाना है । कृपया .... घोड़े पि चढा लें।" उन्होंने अपाहहज को घोड़े पि चढा .... औि स्वयं
उसकी लगाम पकड़कि चलने .... | अचानक उन्हें झटका लगा। सवाि घोड़े .... िगाए भलए जा िहा
था । वह .... था । उन्होंने उसे िोककि कहा, "घोड़ा .... हो गया। लेककन इस बात की .... ककसी
से नहीं किना।” बाबा िािती .... मंहदि पि वापस आ गए । खड्गभसंह .... कथन पि ववचाि किता
िहा। उसका .... परिवततन हो गया। िाबत्र के अंधकाि .... वह घोड़े को अस्तबल में लाकि बाँध ....|
सब
ु ह बाबा िािती स्नान किने .... । उनके कदम स्वतुः अस्तबल की ओि .... | अस्तबल पि
पहुँचकि उन्हें अपनी गलती ... हुई। घोड़े .... अपने स्वामी की पदचाप पहचान ली। .... हहनहहनाया।
बाबा िािती दौड़कि अस्तबल में .... औि जाकि घोड़े से भलपट गए। .... मँह
ु से तनकल पड़ा, “अब
कोई ... की सहायता से मँह
ु नहीं मोड़ेगा ।" (चचात/बाबा जी/चले/उनके / महसस
ू /लेककन/में /डाकू
/होकि/पेड़/ मझ
ु े / गिीबो/ हृदय / गया/वह/ में /को/गचंततत/उसने /हूँ / तम्
ु हािा/खड्गभसंह/भलया/ लगे
/गए/कहा/िहने /ने/ में /को/िािती/अपने / बढे ।)

योग्यता विस्तार
1. मनष्ु य औि पशु के बीच प्रेम को पाठ में प्रमख
ु ता से हदया गया है । भशक्षक की सहायता से ऐसे
अन्य पाठ ढूँढकि पहढए क्जसमें पशु प्रेम की कहातनयाँ हों। जैसे – महादे वी वमात की कहानी, गौिा,
गगल्लू ।
2. इस कहानी में बाबा िािती औि खड्ग भसंह के बीच जो वातातलाप हुआ, उसका कक्षा में अभिनय
कीक्जए।
3. गौतम बद्
ु ध के साथ बातचीत में अंगभु लमल का हृदय परिवततन हुआ था। यह कहानी खोजकि
पहढए।
4. इस कहानी को संक्षेप में कक्षा में सन
ु ाइए।
पाठ 20
हाना
-लेखक िंडल
िर्त्ीसगढ लोक साहहत्य के ढोली-ढाबा आय। साहहत्य द ू प्रकाि के होथे-भलखे साहहत्य अउ
मँह
ु अँखिा साहहत्य। मँह
ु अँखिा साहहत्य ल लोक-साहहत्य कहहथें। लोककथा, लोकगीत, लोकगाथा, जनौला,
हाना ये जम्मो लोक-साहहत्य आय, जेन ह लोक कंठ म मह
ँु अँखिा हवय।

हाना ल हहंदी म लोकोक्तत कहहथें। लोकोक्तत के मतलब हे लोक + उक्तत, माने लोक-मानस द्वािा
कोनो घटना ल लेके कहे गै बात। इही लोकोक्तत ल िर्त्ीसगढी म हाना कहहथें। हाना म लोक जीवन के
अनि
ु व समाय िहहथे। हाना ह ज्ञान के िंडाि आय। कोनो समस्या ल सल
ु झाय बि हाना ह बड़ काम के
होथे। हमन दे खथन के पढे - भलखे ले जादा गाँव के िहइया अप्पढ मनखे के गोठ-बात म खूबच
े प्रिाव
होथे, ओकि कािन आय हाना।
हाना ह भसखावन, अचाि-बबचाि, नीतत-तनयम के दिपन आय। एकि प्रयोग ले बोलइया के िाशा अउ
िाव म चमत्काि के संगे-संग सग्ु घि प्रिाव पैदा होथे अउ सन
ु इया ह घलो जल्दी प्रिाववत होथे। कइसनो
े़
िी हाना होय, ओ ह कोनो-न-कोनो घटना ले जुडे िहहथे। जइसे -
मही माँगे ल जाय,ठे कवा लक
ु ाय।
भसयान मन बताथें के एक झन माइलोगन ह पिोस म मही माँगे ल जावय फेि का किय, बबचािी
ह संकोच के मािे ठे कवा ल लक
ु ा लय। ये-ला घि के भसयनहा ह दे ख डरिस अउ ओकि मँह
ु ले तनकल
परिस-मही माँगे ल जाय, ठे कवा लक
ु ाय। अइसने एक ठन अउ हाना हे -
अध-जल गगिी, िलकत जाय ।
हमन दे खथन के जेन गगिी ह आधा ििे िहहथे,ओ ला बोह के िें गबे त ओ ह बहुतेच िलकथे। ये
हमि िोज के अनि
ु व आय। अइसने दे खे जाथे के जेखि ज्ञान ह कम िहहथे ओ ह अब्बड़ बोलथे। जीवन के
कतेक सग्ु घि अनि
ु व येमा समाय हे । हाना म ज्ञान के िंडाि िहहथे। एला बोलइया अउ सन
ु इया ह समझ
सकत हे ।
हाना हमि िर्त्ीसगढी िाषा के भसंगाि आय। जेकि ले िाषा के सघ
ु िइ,भमठास अउ प्रिाव बढथे।
िर्त्ीसगढी लोकसाहहत्य म कतको हाना मँह
ु अँखिा बगिे हवय,जेन ल हमन बोल-चाल के िाषा म बउिथन।
िर्त्ीसगढी हाना के गजब अकन ववशेषता हे । जइसे नान्हे पन,लय,तक
ु के भमलान,सिलता, सहजता
अउ मनोिं जन । जइसे -
धीि म खीि ।
साँच ल का आँच ।
उन के दन
ू ।
ये हाना मन िले नान - नान हदखत हवँय, फेि, ईंकि प्रिाव लोक-जीवन म िािी दे खउल दे थे।
कतकोन हाना तो कववता बिोबि लगथें। जइसे -
कलेवा में लाड़ू, नता में साढू ।
जाँगि चले न जँगिोटा ।
खाय बि गहूँ के िोटा ।।
हाना ह बड़ सहज अउ सिल होथे। येला बोले - गोहठयाय म कउनो अड़चन नइ होवय। सिलता ह
एकि ववशेषता ये।
खाय बि जिी, बताय बि बिी ।
मन म आन, मँह
ु म आन ।
िर्त्ीसगढी म हाना ल कोनो-कोनो जघा िाँजिा कहे जाथे। हाना ल कहावत अउ लोकोक्तत घलो
कहहथें। कुल भमलाके येला हाना कहव के िाँजिा कहव,येला कहावत कहव के लोकोक्तत,एकेच बात आय।

अथत के अधाि म हाना ल खाल्हे भलखाय ढं ग ले बाँटे जा सकत हे -

1. ठउर संबध
ं ी हाना - हि गाँव, शहि, नगि ठउि के अपन ववशेषता होथे। ओकि अलगे गचन्हािी होथे। उहाँ
के िहन-सहन के अधाि म ओ ठऊि के गन
ु -अवगन
ु होथे।उही गन
ु -अवगन
ु के अधाि म हाना के चलन दे खे
ल भमलथे । जइसे -
िुईखदान के बस्ती,जय गोपाल के सस्ती ।
िुईखदान के िाजा ह बैिागी िहहस अउ वो ह कृष्ण िगवान के िगत िहहस। उहाँ के िहइया मन
आज ले आपस म ‘जय गोपाल’ कहहके जोहािथें। कहे के मतलब, जेन चीज क्जंहा जादा होथे ओ ह सस्ती
अउ प्रचभलत हो जथे।
िात िि गाड़ी जोते,कुकदा के कुकदा ।
अिििाँठा कुकदा गाँव क्जहाँ कोनो गाड़ी वाले ह िातकन गाड़ी फाँहदस। गाड़ी ह िात िि िाँठा म
घम
ू त िहहगे। एकि अथत हे के बबना सोचे-समझे भमहनत किे ले फल नइ भमलय।
2. खेती संबध
ं ी हाना - िर्त्ीसगढ म 80 प्रततशत मनखे गाँव म िहहथें। इहाँ के प्रमख
ु काम खेती आय।
िर्त्ीसगढ कृभश प्रधान क्षेत्र आय। एला ‘धान के कटोिा‘ घलो कहे जाथे। िर्त्ीसगढी हाना म खेती-ककसानी
के गोठ-बात ह घलो समाय हे । जइसे -
महतािी के पिसे अउ मघा के बिसे ।
महतािी के िोजन पिसे ले जइसे लइका मन अघाथें, वइसने मघा नक्षत्र के बिसा ले खेत-खाि मन
अघाथें।
कोिे गाँथे बेटी अउ नींदे-कोड़े खेती।
मतलब हे,जइसे मड़
ू ी कोिे बेटी ह सग्ु घि हदखथे,वइसने नींदे-कोड़े खेती सग्ु घि हदखथे अउ जादा
उपज दे थे।
3. पश-ु पक्षी संबध
ं ी हाना- पश-ु पक्षी मन मनखे के संगवािी आय, तेकिे सेती ईंकि गन
ु अवगन
ु ह घलो हाना
के ववषय बन गे हे । जइसे -
दगु धयारिन गाय के लात मीठ।
जेकि से हम-ला काम िहहथे ओकि गस्
ु सा अउ माि ह घलो सह
ु ाथे। एक ठन हाना हे
सींका के टूटती अउ बबलई के झपटती।
मतलब हे संजोग से कोई काम बन जाना।
4. प्रकृनत संबध
ं ी हाना - लोक-जीवन प्रकृतत ले जुड़े िहहथे अउ प्रकृतत ह लोक ले। तेकिे सेती प्रकृतत उपि
घलो कोिी-कोिी हाना हे । जइसे -
संझा के पानी, बबहतनया के झगिा।
कोनो हदन जब संझा बेिा झड़ी शरू
ु हो जाथे त िात िि बंद नइ होवय, ठं ेउ
ँ का वइसने जेन घि म
बबहतनया बेिा झगिा शरू
ु हो जाथे त थमे ल नइ धिय ।
हपटे बन के पथिा, फोिे घि के सील।
ये हाना के मतलब हे के दस
ू ि के गस्
ु सा ल दस
ू ि उपि उतािना।
5. अंग संबध
ं ी हाना - मनखे के अंग संबध
ं ी हाना घलो लोक-जीवन म सन
ु े ल भमलथे। जइसे-
मड़
ू के िाहत ले,माड़ी म पागा नइ बँधाय।
एकि मतलब ये हे के भसयान के िहत ले लइका के भसयानी नइ चलय।
मड़
ू ले बड़े पागा।
एकि मतलब हे कोनो क्जतनस के महार्त्म ल जरूित ले जादा बताना।
6. घर-पररिार संबध
ं ी हाना - हाना के ववषय ववववध हे । जेन म घि-परिवाि,नता-रिश्ता के गोठ घलो समाय
िथे । जइसे -
हँडड़या के मँह
ु ल पिई म तोपे,
मनखे के मँह
ु ल कामा ।
एकि सोज-सोज अथत हे,हि मनखे बोले बि सत
ु त्र
ं हे,तनंदा किइया ल कोन िोक सकत हे ।
चलनी म दध
ू दहू य,किम ल दोस दे य।
एकि मतलब हे अंत-े तंते के काम किना अउ अपन किम ल दोस दे ना।
7. नीनत संबध
ं ी हाना - क्जनगी म नीतत-तनयम के बड़ महार्त्म हे,ये नीतत-तनयम ह लोक-जीवन म दे खे बि
भमलथे। नीतत संबध
ं ी हाना ह क्जनगी बि उपदे श के काम किथे। जइसे -
रिस खाय बध
ु , बध
ु खाय पिान।
माने गस्
ु सा किे म बद्
ु गध भसिा जाथे अउ जब बद्
ु गध भसिा जाथे त मनखे पिान ल घलो गँवा
डािथे।
बोंय सोन जामय नहीं, मोती लिु े न डाि,
गै समय बहुिय नहीं, खोजे भमले न उधाि।
ये हाना म कतका सग्ु घि नीतत के गोठ लक
ु ाय हे । सोन ल बो दे बे त वो जामय नहीं,मोती ह कोनो
डािा म फिय नहीं। माने, मनखे ल कुिू पाना हे त ओला मेहनत किना जरूिी हे । वइसने जेन समय ह
नहक जाथे तेन ह लहुट के नइ आवय। न कोनो मेि खोजे म भमलय,न कहूँ उधाि भमलय। कहे के मतलब
हे के समय बड़ कीमती हे,हमला समय के बने उपयोग किना चाही। िर्त्ीसगढी साहहत्य म अतकेच नहीं,हाना
के अउ कतकोन ककसम हे। जइसे जात संबध
ं ी हाना, समाज संबध
ं ी हाना, धन-भसतका संबध
ं ी हाना, हाँसी-
हठठोली के हाना। एला हम ला अपन िाषा-व्यवहाि म बऊिना चाही।
छत्तीसगढ़ी शब्द िन के हहन्दी अर्थ

हाना = लोकोक्तत मँह


ु अँखिा = मौणखक
अप्पढ = अनपढ ठे कवा = भमट्टी का बततन
माइलोगन = औित सघ्
ु घि = सद
ंु ि
गजब अकन = बहुत सािा कलेवा = व्यंजन
जिी = एक प्रकाि की िाजी, आन = दस
ू िा
क्जसकी जड़ें िी खाई ठउि = जगह
जाती है मघा = एक नक्षत्र
कोिी = बीस की संख्या संझा = शाम
माड़ी = घट
ु ना पागा = पगड़ी
सोझ = सीधा अंत-े अंते = इधि-उधि
रिस = गस्
ु सा लहुटके = लौटकि
अतकेच = इतना ही बऊिना = प्रयोग किना

अभ्यास

पाठ से

क - साहहत्य के प्रकाि के होथे ?


ख - हहन्दी म हाना ल का कहहथे ?
ग - हाना के प्रयोग ले िाषा म का-का प्रिाव पैदा होथे ?
घ - ‘अधजल गगिी, िलकत जाय’ के का अथत हे ?
ङ - िर्त्ीसगढी म हाना ल अउ का नाव ले जाने जाथे ?
च - ववषय, िाव अउ -अथत के अधाि म हाना ल के िाग म बाँटे जा सकत हे?

पाठ से आगे

1. हाना के पियोग वातय में नई िहहतीस त वातय में का कमी लगतीस बबचाि कि भलखव।
2. ये पाठ से बाहहि कोनो जगह हाना सन
ु े होहु तेला सकेल के (दस ठन) भलखव।
3. पाठ में हदए िर्त्ीसगढी हाना के हहन्दी लोकोक्तत अपन गरु
ु जी ला पि
ू के भलखव।
4. खाल्हे भलखाय हाना के िाव ला भलखव -
अ - दगु धयारिन गाय के लात मीठ।
ब - कोिे गाँथे बेटी अउ नींदे कोड़े खेती।
स - रिस खाय बध
ु , बध
ु खाय पिान।
5. ‘जाँगि चले न जँगिोटा, खाय बि गहूँ के िोटा’ हाना ल वातय में कैसे पियोग किहु तेला बबचाि
किके भलखव।
िाषा से
1. क - ‘‘दहु ना’’ कक्रया आय। इही ढं ग के पाठ म आय तीन ठन कक्रया शब्द
ल खोजव अउ अपन वातय म पियोग किव।
ख - खाल्हे भलखाय शब्द मन म ‘ना’ प्रत्यय जोड़ के नवा शब्द बनावव
अउ वातय म पियोग किव -
लहुट, तँउि, बऊि, बहुि ।
2. खाल्हे भलखाय शब्द मन के दो-दो ठन हहन्दी पयातयवाची शब्द भलखव -
मनखे, अप्पढ, हाना, गस्
ु सा।
3. खाल्हे भलखाय शब्द मन के उल्टा अथत वाला शब्द भलखव -
भसयान, संगवािी,नान-नान, बबहतनया।

 हाना के हमि क्जनगी म का महत्व हे ?


ये ववषय उपि दस वातय म अपन बबचाि भलखव ।
 दस ठन हाना सकेल के अपन कापी म भलखव ।

योग्यता विस्तार
 ये पाठ म हाना ल क्जनगी बि उपयोगी बताय गेहे। एखि ले हमि तन-मन तनिमल बने िहहथे
अउ चाल-चलन में सध
ु ाि घलो आथे। सहीच म हाना ले जीवन ल सग्ु घि बनाय जा सकत हे ।
अपन बातचीत म अपन क्षेत्र म प्रचभलत हाना के प्रयोग किव ।
 ये पाठ म आय जम्मो हाना ल याद किव।

टीप:- पाठ म बहुत अकन हहंदी के शब्द ल जइसने के तइसने ले ले गे हे , जइसे - प्रिाव, ववशेषता, अनि
ु व,
िाषा आहद। आने पाठ म घलो कतकों, हहंदी अउ आन िाषा के शब्द भमलही। जउन-जउन जघा मानक शब्द
भमलही उहाँ ठहि के थोिकीन सोचहू। एकि िर्त्ीसगढी म कइसन उच्चािण अउ भलवप बनही।
पाठ 21
छत्तीसगढ़ का दशथन
- लेखकगण

िाित का हृदय स्थल िर्त्ीसगढ अपनी प्राकृततक संपदाओं औि लोक-संस्कृतत से समद्


ृ ध है । ‘धान
का कटोिा' कहे जाने वाले इस अंचल की चेतना ववकासोन्मख
ु ी िही है । आयत औि अनायत संस्कृततयों का
संगमस्थल होने के कािण इस क्षेत्र की ऐततहाभसक गरिमा में अभिवद्
ृ गध होती िही । बहुमल्
ू य प्राकृततक
संपदाओं, खतनज पदाथों औि ववभशष्ट लोक संस्कृततयों ने इस िाज्य को एक ववशेष स्थान दे हदया है ।
िर्त्ीसगढ की कला एवं सांस्कृततक वैिव की एक संक्षक्षप्त झाँकी प्रस्तत
ु तनबंध में पहढए ।

िाित के क्षक्षततज पि िर्त्ीसगढ ‘धान का कटोिा', 'दक्षक्षण-कौशल', 'दण्डकािण्य' आहद ववववध नामों से
अपने ऐततहाभसक औि सांस्कृततक गौिव के साथ जगमगाता िहा है । इस वनाच्िाहदत क्षेत्र को महानदी,
इंद्रावती, भशवनाथ, हसदो इत्याहद नहदयाँ अपनी
जलधािा से भसंगचत किती हैं। 1 नवम्बि, 2000 को
एक पण
ू त नए िाज्य के रूप में अक्स्तत्व में आया
िर्त्ीसगढ आज ववकास की ओि अग्रसि है । 1,35,191
वगत ककलोमीटि में फैले इस िाज्य की सीमाएँ
उड़ीसा,उर्त्िप्रदे श, झािखंड, आंध्रप्रदे श, महािाष्र तेलांगना
औि मध्यप्रदे श से भमलती हैं। सन ् 2001 की
जनगणना के अनस
ु ाि यहाँ की जनसंख्या
2,07,95,956 एवं साक्षिता का प्रततशत 65.18 है ।
िर्त्ीसगढ की गौिवशाली औि समद्
ृ ध
सांस्कृततक वविासत क्षेत्रीय िाजवंशों की कला औि
संस्कृतत से जुड़ी हुई है । कलचुिी कालीन िाित की
प्राचीन सांस्कृततक पिम्पिा का प्रिाव यहाँ के
सांस्कृततक व सामाक्जक जनजीवन पि हदखाई पड़ता
है ।
प्राचीन काल से ही िर्त्ीसगढ धाभमतक
गततववगधयों का केन्द्र िहा है । अंबबकापिु का मैनपाट,
क्जसे िर्त्ीसगढ का पचमढी कहा जाता है, बबलासपिु ितनपिु का महामाया दे वी मंहदि, जाँजगीि भशविीनािायण
का लक्ष्मीनािायण मंहदि औि िाजनांदगाँव डोंगिगढ का बम्लेश्विी दे वी का मंहदि प्राचीन काल से आस्था
औि संस्कृतत के केन्द्र िहे हैं । यहाँ के लोगों की धमत में अटूट आस्था है । यहाँ हहन्द,ू मक्ु स्लम,भसख, ईसाई
आहद सिी धमों के लोग तनवास किते हैं । भशव, ववष्ण,ु दग
ु ात आहद दे वी-दे वताओं के मंहदि िी यहाँ ववद्यमान
हैं। वैष्णव, शैव, शक्तत तथा ववववध पंथों के धमातवलंबबयों की यहाँ प्रमख
ु ता है ।
िर्त्ीसगढ का दशतन | 97 कबीिपंथ को अपनाने वाले कबीिपंथी कहलाए । िायपिु क्जले के दामाखेड़ा
एवं कबीिधाम ग्राम में कबीिपंगथयों की प्रभसद्ध गद्दी है । दामाखेड़ा कबीिपंथ अनय
ु ातययों को ववशेष प्रकाि
की भशक्षा संस्काि दे ने का केन्द्र है । मठ का प्रधान गरु
ु औि आचायत होता है ।मठ की व्यवस्था के भलए
दीवान, कोठािी, िंडािी, पज
ु ािी होते हैं। कबीिपंथी आंतरिक शद्
ु धता, पववत्रता औि सदाचिण को महत्व दे ते हैं।
इस पंथ में गरु
ु का स्थान ववशेष िहता है ।
कबीिपंथ की तिह यहाँ एक औि पंथ का ववकास हुआ। इसे 'सतनाम पंथ' कहा जाता है । ‘सतनामी'
का अथत है सत्यनाम को मानने वाला औि उसके अनस
ु ाि आचिण किनेवाला । 'सतनामपंथ' सत्य औि
पववत्रता को महत्व दे ता है । 'सतनामपंथ' के प्रवततक 'गरु
ु घासीदास जी' माने जाते हैं क्जनकी जन्मिभू म एवं
तपोिभू म गगिौधपिु ी ग्राम है । इन्होंने िी कबीि की तिह
मतू ततपज
ू ा, जातत प्रथा का वविोध ककया । इस पंथ के प्रमख

भसद्धांतों में सतनाम पि ववश्वास, मतू ततपज
ू ा का खंडन, जाततिेद
का बहहष्काि, मांस-महदिा का तनषेध ववशेष रूप से उल्लेखनीय
िर्त्ीसगढ लोककला औि संस्कृतत की दृक्ष्ट से अत्यंत
ही समद्
ृ ध िहा है । यहाँ का लोक जीवन उसकी संस्कृतत में
ही गथिकता है । यहाँ की लोक संस्कृतत में संगीत के साथसाथ
लोकगीतों औि लोक नत्ृ यों का िी काफी महत्व है । लोकगीतों
की कुि झलक तनम्नभलणखत पंक्ततयों में परिलक्षक्षत हो िही हैं
ददा िोर कहहर्े कुआूँ ि धभस जाहूँ,
बबा कर्े लेतेंि बैराग।
काबर ददातें कुओं िें धभस जाबे,
काबर बबा लेबे राग।
बालक सअ
ु ना कस तह
ु र दल
ु ौररन,
िटकुन लेहु बल
ु ाय।
आल्हा के वल उर्त्िप्रदे श में ही नहीं गाया जाता िर्त्ीसगढ में िी आल्हा गायन का खूब प्रचलन है ।
चौ मास में यहाँ-वहाँ शहिी औि ग्रामीण लोग आल्हा गाते हदखाई - सन
ु ाई पड़ेगे । महहलाएँ सावन में पेड़
के नीचे जाकि झूला-झूलती है , आनंहदत होती हैं, ददरिया औि िोजली सन
ु ाती हैं ।
िाखी औि तीजा के त्यौहाि के समय बहनें अपने िाइयों से भमलने के भलए व्याकुल िहती हैं। िाई,
बहन को संदेश िेजता है कक तम
ु संशय(शंका) मत किना । गचंता िी मत किना । मैं तीजा की िोहटयाँ
लेकि, तझ
ु े लेने आऊँगा । तनम्नभलणखत पंक्ततयों में ये िाव ककतने माभमतक शब्दों में व्यतत हुए हैं -
संसो त िन कररबे, फफकर त िन कररबे,
तीजा के रोटी धररके, तोला लेबर आहूँ ओ।
उतत गीतों के अततरितत िर्त्ीसगढ में किमा, सआ
ु , पंथी, डंडा, पंडवानी, िाऊत नाचा, ददरिया आहद गीत
नत्ृ य के साथ गाए जाते हैं । िर्त्ीसगढ में संस्काि गीत, अनष्ु ठान गीत, ऋतु गीत तथा धाभमतक पों पि गाए
जानेवाले गीतों की िी बहुलता है । पंडवानी अथातत ् पांडवों की कथा यहाँ की अमल्
ू य धिोहि है । िर्त्ीसगढ
में फागन
ु महीने में लोग नगाड़ा बजाकि होली के गीत गाते औि एक-दस
ू िे को िं ग-गल
ु ाल लगाते हैं, वहीं
दस
ू िी ओि गाँव की िास-मंडभलयाँ िाधा-कृष्ण औि ग्वाल-बाल का रूप धािण किके माँदि के ताल के साथ
नाचते-गाते गथिकते हैं। िर्त्ीसगढ के प्रमख
ु लोक-वाद्यों में माँदि, ढोलक, नगाड़ा, गचकािा, मोहिी, सींगबाजा
प्रमख
ु हैं।
िर्त्ीसगढ की िाषा िर्त्ीसगढी है जो पव
ू ी हहन्दी की उपिाषा है । यह सिस औि प्रवाहमयी तो है
ही, साथ ही ब्रजिाषा की तिह मधिु िी है । यहाँ की 85% जनता यही िाषा बोलती है । इसके अततरितत
हहन्दी औि उडड़या िाषाएँ िी यहाँ प्रचभलत हैं। ववभिन्न बोभलयों के अन्तगतत लरिया, सादिी, कुडुक, उिाँव,
सिगक्ु जया, गौंडी, हल्बी आहद जनमानस पि अगधकाि ककए हुए हैं।
िर्त्ीसगढ में साहहत्य का िी काफी महत्वपण
ू त स्थान है । हहन्दी काव्य, तनबंध, कहानी आहद ववधाओं
में िर्त्ीसगढ के साहहत्यकािों का ववशेष योगदान िहा है । लोचन प्रसाद पांडे य, मक
ु ु टधि पांडय
े , माधव िाव
सप्रे, गजानन माधव मक्ु ततबोध, पदम
ु लाल पन्
ु नालाल बख्शी, हरि ठाकुि, सद
ुं िलाल शमात, नािायण लाल पिमाि,
जगन्नाथ प्रसाद 'िान'ु , द्वारिका प्रसाद ततवािी 'ववप्र', श्रीकांत वमात, लाला जगदलपिु ी, पं. िामदयाल ततवािी,
बाबू प्यािे लाल गप्ु ता, पं. केदािनाथ ठाकुि इत्याहद ऐसे नाम हैं क्जनकी कृततयों से हहन्दी औि िर्त्ीसगढी
साहहत्य की श्री वद्
ृ गध हुई है ।
स्थापत्य कला की दृक्ष्ट से िी िर्त्ीसगढ का अपना वैिवपण
ू त व गौिवपण
ू त इततहास िहा है । िर्त्ीसगढ
के प्राचीन मंहदि, दग
ु ,त भशलालेख, िाजमहल इत्याहद यहाँ की स्थापत्य कला के अनप
ु म उदाहिण हैं। यहाँ के
प्राचीन मंहदिों का तनमातण गप्ु तकाल औि कलचुिीकाल में हुआ है ।
प्राचीन मंहदिों में िाक्जम क्स्थत िाजीवलोचन मंहदि अत्यंत प्रभसद्ध है । मख्
ु य मंहदि ववस्तत
ृ आकाि
के बीच में ऊँची कुसी पि खड़ा है औि उसके चािों ओि चाि िोटे मंहदि बनाए गए हैं। गितगह
ृ में िगवान
ववष्णु की एक चति
ु ज
ुत प्रततमा है । उनके हाथों में शंख, चक्र, गदा औि पद्म ये चाि आयध
ु हैं। यही प्रततमा
िाजीवलोचन के नाम से प्रभसद्ध है । भसिपिु में क्स्थत लक्ष्मण मंहदि स्थापत्य कला की दृक्ष्ट से िर्त्ीसगढ
की धिोहि है । इसका तनमातण पांडुवंश के िाज्यकाल में हुआ। कहा जाता है कक िाजा भशवगप्ु त की िाजमाता
वासटा द्वािा अपने पतत की स्मतृ त में यह मंहदि बनवाया गया था। गितगह
ृ का प्रवेश द्वाि पाषाण से तथा
ऊपि का भशखि पण
ू रू
त पेण ईंटों से बना है ।
बस्ति के बािसिू में भशव जी का एक मंहदि है । यह मंहदि बर्त्ीस खंिों पि क्स्थत है । इन खंिों पि
सद
ुं ि नतकाशी की गई है । खंिों पि नाग औि ववभिन्न दे वी-दे वताओं की प्रततमाएँ उत्कीणत की गई हैं।
बस्ति के कुटुमसि की गफ
ु ाएँ, गचत्रकोट का जल-प्रपात औि दं तश्े विी दे वी का मंहदि दशतनीय हैं। कवधात से
लगिग 16 ककलोमीटि दिू जंगल में िोिमदे व का मंहदि है जो िर्त्ीसगढ का खजिु ाहो के नाम से ववख्यात
है । इस मंहदि की कला उत्कृष्ट है । मंहदि के बाहिी िाग में ववभिन्न मतू ततयाँ तनभमतत हैं, उनमें अंगों की
िाव-िंगगमा इस प्रकाि की है कक उन्हें दे खकि लोग चककत औि ववक्स्मत िह जाते हैं। मख्
ु य द्वाि के
समक्ष भशवभलंग इस बात को प्रमाणणत किता है कक नागवंशी भशव के उपासक थे।
िर्त्ीसगढ की लोक-संस्कृतत में तीज औि पवो की िं ग-िँगीली धािा िची-बसी है । लोक-आस्थाओं औि
लोक-ववश्वासों से जुड़े हुए इन त्यौहािों में सवातगधक लोकवप्रय त्यौहाि हैं-तीजा, पोिा, हिे ली, अतती इत्याहद।तीजा
त्यौहाि के भसलभसले में िर्त्ीसगढ के लोग अपनी बहहन व बेहटयों को उनकी ससिु ाल से मायके भलवा लाते
हैं। इस त्यौहाि में सह
ु ागगन क्स्त्रयाँ ब्रह्ममह
ु ू तत में उठकि ववगध-ववधान से िगवान भशव औि पावतती की पज
ू ा
अपने पतत की दीघातयु के भलए किती हैं। इस हदन वे अन्न, फल, दध
ू औि जल ग्रहण नहीं किती अथातत ्
तनजतला व्रत िखती हैं । कँु वािी कन्याएँ िी श्रेष्ठ वि की कामना से यह व्रत िखती हैं । पोला त्यौहाि के
हदन खेती में काम आनेवाले बैलों की पज
ू ा होती है । हिे ली के हदन हल (नागि) की पज
ू ा की जाती है ।
अतती के हदन भमट्टी के बने गड्
ु डे-गडु ड़यों का वववाह ककया जाता है । इस हदन को वववाह के भलए अत्यंत
शि
ु ततगथ मानते हैं । वववाह, गौना जैसे मांगभलक कायत आज के हदन से आिं ि हो जाते हैं ।
एक नवोहदत िाज्य होने के कािण िर्त्ीसगढ के ववकास की अनंत संिावनाएँ हैं । िर्त्ीसगढ का
प्राकृततक वैिव एवं उसकी सांस्कृततक धिोहि सचमच
ु ही अनठ
ू ी है । िर्त्ीसगढ की इस माटी का शग
ंृ ाि हम
सिी को भमलकि किना है । समद्
ृ ध सांस्कृततक धिोहि ककसी समद्
ृ ध समाज की पहली पहचान है । िर्त्ीसगढ
की सांस्कृततक वविासत यह भसद्ध किती है कक हमािा िाज्य सहदयों से हि क्षेत्र में समद्
ृ ध िहा है । हमािा
दातयत्व है कक हम अपनी इस अमल्
ू य धिोहि को अक्षुण्ण बनाए िखें । यह तिी संिव होगा जब समाज
के लोग भशक्षक्षत हों। हमें अपने िाज्य की आध्याक्त्मक, सांस्कृततक औि प्राकृततक संपदा पि गवत है ।

अभ्यास

पाठ से

1. िर्त्ीसगढ के औि तया-तया नाम हैं ?


1. कबीिपंथी ककन्हें कहते हैं ? इनके मठों का प्रमख
ु कौन होता है ?
2. सतनाम का अथत स्पष्ट किते हुए इसके प्रमख
ु भसद्धातों को भलणखए।
3. बािसिू के भशवमंहदि की ववशेषताएँ भलणखए।
4. िर्त्ीसगढ के साहहत्य में क्जनका योगदान है, उन लेखकों, कववयों के नाम भलणखए।
5. िर्त्ीसगढ के आयत औि अनायत संस्कृततयों का संगम स्थल कहा गया है । तयों ?
6. ववभिन्न िाज्यों की सीमा से लगने वाले िर्त्ीसगढ िाज्य के क्जलों के नाम भलणखए।

पाठ से आगे

1. 'िर्त्ीसगढ का लोक जीवन उसकी संस्कृतत में ही गथिकता है ।' इस कथन को


अपने अनि
ु व के आधाि पि स्पष्ट किें ।
2. िर्त्ीसगढ में मनाये जाने वाले तीज त्योहािों के ववषय में घि के बड़े बज
ु गो से पि
ू कि भलणखए एवं
यह िी भलणखए कक उस अवसि पि तया-तया होता है । ।
3. िर्त्ीसगढ को धान का कटोिा' कहा जाता है ऐसा कहे जाने के पीिे तया कािण है ? ववचाि कि
भलणखए।

िाषा से

1. दो या दो से अगधक पदों का मेल समास कहलाता है । ये मख्


ु यतुः िह प्रकाि के हैं अव्ययी िाव
समास, बहुब्रीहह समास, तत्परु
ु ष समास, कमतधािय समास, द्वंद्व समास औि द्ववगु समास ।
जैस-े िामितत - िाम का ितत (तत्परु
ु ष समास)
िातहदन - िात औि हदन (द्वंद्व समास)
नविाबत्र - नव िाबत्रयों का समह
ू (द्ववगु समास)
यथाशक्तत - शक्तत के अनस
ु ाि (अव्ययीिाव समास)
नीलकमल - नीला कमल (कमतधािय समास)
लंबोदि - लंबा है उदि क्जसका अथातत ् गणेश (बहुब्रीहह समास)

तनम्नभलणखत शब्दों का समास-ववग्रह कि, समास का नाम भलणखए –


िाजपत्र
ु , दाल-िोटी, पंचवटी, दशानन, ििपेट।
2. तनम्नभलणखत शब्दों का संगध-ववच्िे द कीक्जए –
दे शाभिमान, प्रेमानिु ाग, िमेश, कक्षानश
ु ासन, सय
ू ोदय, गगिीश, धमातवलंबी।
3. तनम्नभलणखत वातयों में 'काल' स्पष्ट कीक्जए –
(i) िगवान ववष्णु की एक चति
ु ज
ुत प्रततमा है ।
(ii) प्राचीन मंहदिों का तनमातण कलचिु ीकाल में हुआ था ।
(iii) ववकास की संिावनाएँ िववष्य में िी होंगी।
(iv) गितगह
ृ के प्रवेश द्वाि के सामने भशवभलंग है ।
(v) िर्त्ीसगढ की प्राकृततक समद्
ृ गध हदखाई दे िही है ।
4. िर्त्ीसगढ के तीज-त्यौहािों का संक्षक्षप्त परिचय भलणखए।
5. िर्त्ीसगढ में ववकास की संिावनाएं इस ववषय पि एक अनच्
ु िे द भलणखए।

योग्यता विस्तार

1. िर्त्ीसगढी बोली के कहावतों का संकलन कीक्जए एवं उनके अथत को भशक्षक के सहयोग से
समणझए। |
2. िर्त्ीसगढ में क्स्त्रयाँ (गाँव की) कौन-कौन-से आिष
ू ण पहनती हैं । उनके गचत्र एकत्र कीक्जए एवं
नाम िी भलणखए।
3. िर्त्ीसगढ में बोली जाने वाली बोभलयों की क्षेत्र के आधाि पि सच
ू ी तैयाि कीक्जए।

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