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Shikshan Sanshodhan : Journal of Arts, Humanities and Social Sciences ISSN: 2581-6241 Volume - 4, Issue - 9, Sept - 2021

Monthly, Peer-Reviewed, Refereed, Indexed Journal Impact Factor: 5.146


Received on : 05/09/2021 Accepted on : 20/09/2021 Publication Date: 30/09/2021

ह िंदी में वैज्ञाहिक एविं व्यवसाहिक लेखि: समाजभाषावैज्ञाहिक प लू

डॉ. रणजीत भारती


सहायक प्रोफेसर, भाषाविज्ञान विभाग, डॉ .बी .आर .आं बेडकर वि .वि., आगरा, भारत
ईमे ल - ranjeet.dbrau@gmail.com

सािािंश (Abstract) :प्रस्तु त प्रपत् में वहं िी में पटकिा, लघुकिा, संस्मरण आवि व्यिसावयक ले खन के वलए भाषा एिं
उसके सामावजक एिं सां स्कृवतक ज्ञान की आिश्यकता और उपयोवगता के साि-साि वहं िी में िैज्ञावनक लेखन की
सोिाहरण चचाग की गई है । इसके माध्यम से हम समाजभाषािैज्ञावनक ज्ञान के बारे में जानें गे वजसका उपयोग कर हम
वहं िी में व्यिसावयक ले खन को और अवधक प्रभािी बना सकते हैं । इसके अलािा इस प्रपत् में वहं िी में िैज्ञावनक लेखन की
विशे षताओं की भी चचाग की गई है और वहं िी में व्यिसावयक ले खन एिं िैज्ञावनक (अकािवमक) ले खन के अंतर को स्पष्ट
वकया गया है । इसमें वहं िी भाषा के सामावजक जु ड़ाि को ले खनी के द्वारा उजागर करने के वलए भाषािैज्ञावनक ज्ञान की
आधारभू त जानकारी की उपयोवगता एिं भाषा के द्वारा उसकी संस्कृवत को उजागर करने एिं अलग-अलग समाज के
भाषाई स्वरूप को लेखनी में समावहत कर पटकिा, लघुकिा आवि लेखन में जीिंतता लाने की कला का विश्लेषण भी
वकया गया है । जो वहं िी में लेखन के िो स्वरूपों िैज्ञावनक (अकािवमक) और व्यिसावयक ले खन के बीच के अंतर को
समझने में सहायक होंगे ।

मुख्य शब्द (Key Words) : (समाजभाषािैज्ञावनक ज्ञान, वहंिी, भाषा, व्यिसावयक एिं िैज्ञावनक ले खन ।

1. परिचि (Introduction) :
व्यिसावयक ले खन की अने क विधाएं होती हैं , जै से; विएटर, समाचार, डरामा, नाटक, गीत आवि। इन सभी विधाओं से जुड़े
पात्ों का संबंध वकसी न वकसी समाज और उसकी भाषा से जु ड़ा होता है । वकसी भी समाज की पहचान उसके भाषा और संस्कृवत
से पता लगता है । एक पटकिा ले खक अपनी ले खनी के माध्यम से भाषा एिं संस्कृवत में सामं जस्य स्िावपत करने का प्रयास करता
है । पटकिा िही अच्छी मानी जाती है वजसकी भाषा विषयिस्तु को उसके उसी रूप में व्याख्यावयत करने में सक्षम हो। पटकिा
ले खन के वलए वकसी भाषा का उस समाज पर प्रभाि एिं वकसी समाज का भाषा पर पड़ने िाले प्रभाि को जानना जरूरी होता है ।
इसका अध्ययन समाजभाषाविज्ञान के अंतगगत वकया जाता है । समाजभाषािैज्ञावनक ज्ञान लेखक की कल्पना को भाषाबद्ध करने में
सहयोगी होती है । समाजभाषािैज्ञावनक ज्ञान का वनधाग रण समाज में मौजू ि विवभन्न चरों (िैररएबल्स) के आधार पर वकया जाता है ।
सामावजक चर िे भावषक ईकाइयां होती हैं जो िो या िो से अवधक भागों में विभावजत की जा सकें। इन चरों के वनधाग रण में समाज
के बारे में जानकारी तिा उनके ले खन में जीिंतता लाने एिं व्यिसावयक रूप में प्रस्तु त करने के वलए उस समाज विशे ष की भाषा
और उसकी समाजभाषािैज्ञावनकता की जानकारी होना आिश्यक होता है । जो पटकिा ले खन को जीिंत बनाता है ।
िैज्ञावनक ले खन का संबंध अविधापरक ले खन से होता है । इसमें सावहत्यिक विशेषताओं जैसे; छं ि, अलं कार एिं लक्षणा एिं
व्यं जना का प्रयोग नहीं वकया जाता है । इसमें वकसी बात को बताने के वलए अनािश्यक विशे षण का प्रयोग न करके सीधे मु द्दे की
बात की जाती है । इस तरह के ले खन का प्रयोग सावहि से इतर विषयों जै से; विज्ञान, सामावजक विज्ञान, मानिीकी, तकनीकी, एिं
अकािवमक ले खन में वकया जाता है ।

2. साह त्यिक सवे (Literature Review):


पटकिा ले खक पत्कार एिं सावहिकार मनोहर श्याम जोशी ने अपनी पुस्तक पटकिा ले खन-एक पररचय में वलखा है –
“पटकिा कुछ और नहीं कैमरे से वफल्म के पिे पर विखाए जाने के वलए वलखी गई किा है ।” डॉ .विजय वशं िे ने अपनी पुस्तक
“पटकिा कैसे वलखे ”में पटकिा ले खन के िो तररकों -दृश्य एिं श्रव्य या ध्ववन की चचाग की है । इसके अलािा उन्ोंने पटकिा
ले खक के गुणों को िो भागों में बां टा है -1 .स्वाध्याय श्रे णी के गुण 2. व्यािसावयक श्रे णी के गुण। इसके अंतगगत उन्ोंने भाषा पर
असाधारण पकड़ की चचाग की है । अिाग त भाषा की समझ का व्यिसावयक पटकिा लेखक बनने में महत्वपूणग योगिान होता है ।
उपरोक्त पुस्तकों में पटकिा ले खक के वलए समाज के भाषाई रूप को समझने की बात नहीं की गई है । अतः इस प्रपत् में वहं िी
भाषा की समझ एिं उसके सामावजक स्वरूप की चचाग की गई है । जो पटकिा ले खन में महत्वपूणग भू वमका का वनिगहन करती है ।
िैज्ञावनक लेखन या सावहि से अलग वहं िी में ले खन के वलए भारत सरकार के वशक्षा मं त्ालय के केंद्रीय वहं िी वनिे शालय द्वारा बनाएं
गए विशावनिे शों के प्रवत अभी भी बहुत से वहं िी ले खक सजग नहीं है । वनिे शालय द्वारा वहं िी ितगनी को ले कर एक पुत्यस्तका बनाई है
वजसे वनिे शालय की िेबसाइट से वनशु ल्क डाउनलोड वकया जा सकता है । इसका उपयोग हमें समस्त भारतीयों को ले खन में करना
चावहए क्ोंवक यह आधुवनक कम्प्यूटर आधाररत टं कण पर आधाररत है । जै से; वहं न्दी की जगह वहं िी का ले खन, विद्या जै से शब्ों में
हलं त का प्रयोग आवि।
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3. सामग्री (Materials):
इस प्रपत् ले खन में केंद्रीय वहंिी वनिे शालय द्वारा िैज्ञावनक वहं िी ले खन के वलए बनाएं गए विशावनिे शों को सामग्री के तौर
पर प्रयोग वकया गया है । इसके अलािा विवभन्न सामावजक पृष्ठभू वम पर बनीं वहं िी वफल्मों के ले खन की संरचना का भी प्रयोग वकया
गया है ।

4. प्रहवहि (Method):
इस प्रपत् में समाजभाषािैज्ञावनक अध्ययन में प्रयुक्त वद्वपक्षीय चरों (बाइनरी िैररएबल्स) को प्रविवध के रूप में प्रयुक्त वकया
गया है । वहं िी की अलग-अलग बोवलयों के मातृभावषयों का वहंिी बोलने में उच्चारणात्मक, शब् चयन एिं व्याकरवणक वभन्नता संबंधी
डाटा (उिाहरणों) के चुनाि के वलए अिलोकन विवध का प्रयोग वकया गया है । इसके भोजपुरी, गढ़िाली, ब्रज एिं हररयाणिी के
मातृभाषी को आधार बनाया गया है ।

5. चचाा (Discussion):
वहं िी ले खन को िो भागों में बां टा जा सकता है :
अ. िैज्ञावनक लेखन आ. व्यािसावयक ले खन।
अ. वैज्ञाहिक लेखि- िैज्ञावनक ले खन व्यिसावयक लेखन (पटकिा, संिाि आवि) लेखन से वभन्न होता है । व्यिसावयक ले खन से
पूिग वहं िी भाषा के िैज्ञावनक ले खन के स्वरूप को जानना जरूरी होता तावक हम िोनों के अंतर को समझ सकें। वहं िी में िैज्ञावनक
ले खन करते समय वनम्नवलत्यखत वबंिुओं को ध्यान में रखना जरुरी होता है :-
भाषा-शैली -िैज्ञावनक ले खन में वनम्नवलत्यखत शैलीगत वनिे शों को ध्यान में रखना चावहए -
 िैज्ञावनक लेखन में िस्तु वनष्ठता होना चावहए जै से- उसमें व्यत्यक्तगत सिगनामों ‘मैं ’, मु झे आवि का कम से कम प्रयोग हो।
 ले खन में भािनात्मक एिं अलंकाररक अवभव्यत्यक्तयों के प्रयोग से बचना चावहए। जै से- ‘बड़े ही िु ः ख के साि कहना पड़ रहा है वक
भारत में बाल मजिू री विन ब विन बढ़ती जा रही है ...’, ‘इस तथ्य के बारे में कुछ कहना सूरज को विया विखाने जै सा है ’ आवि।
 तथ्य को संक्षेप, त्ु वटहीन एिं औपचाररक भाषा में प्रस्तु त करना चावहए।
 स्पष्ट, तावकगक एिं क्रमबद्ध शैली का प्रयोग करना चावहए। अिाग त ले खन की शै ली भाषण जै सा या पत्कार के ले खन शैली के जै सा
न हो। जै से- ‘इन तथ्यों से ऐसा लगता है वक...’, ‘इससे ऐसा कहा जा सकता है वक...’ आवि। इस प्रकार का ले खन विश्लेषण में
स्पष्टता के अभाि को िशाग ता है । इसे वनम्नवलत्यखत रूप में (इन तथ्यों से इस बात की पुवष्ट होती है वक... ) होने से विश्लेषण में स्पष्टता
स्वतः ही उजागर होती है ।
 उहचत शब्ददिं का चिि प्रिे क अनु शासन की अपनी विवशष्ट शब्ािवलयााँ होती हैं , और उनके प्रयोग की विवशष्टता भी अलग-
अलग होती हैं । मु ख्य रूप से समानािी शब्ों के चयन को ले कर सतकग रहना चावहए क्ोंवक िे समानािी तो होते हैं ले वकन उनमें
सूक्ष्म अंतर होता है जो उनके प्रयोग से पता चलता है । जै से -अनु पम, अवद्वतीय में सामान्य स्तर पर एक ‘सबसे बवढ़या’ वलया जाता
है ले वकन इनके अिग में सूक्ष्म अंतर होता है । अनु पम का अिग है -‘वजसकी तुलना नहीं हो सकती’ जबवक अवद्वतीय का अिग ‘वजस
जै सा कोई नहीं’ होता है । इसके अलािा वकसी िू सरे भाषा के शब्ों का वहं िीकरण करते समय हमें सिगप्रिम ‘िैज्ञावनक तिा
तकनीकी शब्ािली आयोग’ द्वारा वनवमग त शब्ों का अनु करण करना चावहए, यवि इसमें वकसी शब् का वहं िी न वमले तो ले खक
को अपने तरफ से वहं िीकरण स्िानीय भाषा संरचना के अनुरूप करना चावहए, और उसे पररवशष्ट के रूप में िशगना चावहए।
 शब्ददिं की एकरूपता : लेखन करते समय यह भी ध्यान िे ना चावहए की यवि वकसी शब् के एक से अवधक रूप प्रचवलत हैं तो
उनके वकसी एक रूप को ही पूरे शोध में वलखें , न वक एकावधक रूप को। जै से -वहं िी/वहन्दी आवि में से या तो ‘वहन्दी’ का प्रयोग
पूरे ले ख में वकया जाना चावहए या वफर ‘वहं िी’ का।
 कथ्य की सिंशत्यि : वकए गए कायों को सहज बोध कराने के वलए कथ्यों को व्यित्यस्ित रूप में संपावित करना जरुरी होता है ।
ऐसा न करने पर ले खन द्वारा प्रकट विचारों की संशत्यक्त भं ग होती है । अतः कथ्य को सहज बनाने के वलए उन्ें व्यित्यस्ित क्रम में
वलखना आिश्यक होता है । जैसे; कम्प्यूटर जै से तकनीकी विषयों को बताते समय आत्मा-परमात्मा की बाते नहीं वलखनी चावहए।

आ. व्यवसायिक लेखन :
इस प्रकार के ले खन के वलए भाषा के द्वारा दृश्य एिं श्रव्य िोनों स्वरूप को ध्यान में रखना होता है । इसके अलािा पटकिा
में अवभनय करने िाले पात्ों के सामावजक पररिेश के अनु रूप भाषा एिं भाषाशै ली का चयन करना होता है । अत : इसकी संरचना
िैज्ञावनक ले खन की भाषा से वबल्कुल वभन्न होती है , क्ोवक यह समाज में प्रचवलत भाषा के अनु रूप रची जाती है। इसके वलए
पटकिा ले खक को समाजभाषाविज्ञान की जानकारी का होना सहायक वसद्ध होता है । प्रवसद्ध अमे ररकन समाजभाषाविि ‘विवलयम

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ले बि’ ने अपनी पुस्तक ‘सोवसयोवलं त्यित्यिक पैटर्न्ग ’ में सबसे पहले समाजभाषाविज्ञान की महत्ता को उजागर करते हुए कहा है
वक -‘अब तक के भाषािैज्ञावनक अध्ययन में भावषक िैररएं ट का सामावजक दृवष्ट से विचार एिं मू ल्ां कन नहीं वकया गया है । इसमें
उन्ोंने यह क्लेम वकया वकया वक भाषा के अध्ययन में भाषे त्तर इकाइयों का भी प्रयोग करना चावहए।’ समाजभाषाविज्ञान के
अंतगगत समाज का भाषा पर एिं भाषा के समाज पर प्रभाि का अध्ययन वकया जाता है । यह भाषािैज्ञावनक अध्ययन का अनु प्रयुक्त
क्षे त् है जो समाज के विवभन्न स्तरों, िगों, व्यिसावययों आवि द्वारा बोली जाने िाली भाषा के स्वरूपों का अध्ययन विश्लेषण करता
है ।
आज के िौर में पटकिा ले खन में वहं िी की उपभाषाओं या लोकभाषाओं के प्रयोग में तेजी आयी है । लोक भाषा सिगसाधारण
जन की भाषा होती है । इस भाषा के मौत्यखक रूप का चलन ज्यािा होता है । यह उन लोगों की भाषा है वजन पर भाषाई बाजारिाि
हािी नहीं है । इसे कम पढ़े -वलखे लोगों की भाषा भी कह सकते हैं । इसकी सबसे बड़ी खावसयत है वक यह लोक संस्कृवत एिं
संस्कार से जु ड़ी होती है । वहं िी की उपभाषाएाँ जै से -भोजपुरी, अिधी, ब्रज, बुंिेली, मारिाड़ी, राजस्िानी आवि को लोकभाषा या
बोली कहा जा सकता है । यवि भाषािैज्ञावनक दृवष्टकोण से िे खा जाए तो उपभाषा और लोकभाषा एक सामावजक या राजनै वतक
शब् है । िैसे सभी को भाषा ही कहते है ले वकन अलग-अलग लोग उसके बोलने िालों की संख्या, भौगोवलक पररिेश, राजनै वतक
कारण आवि के आधार पर उपभाषा या जनभाषा आवि नाम िे िे ते हैं । वहं िी भाषा के विस्तार को इससे वमलती जु लती भाषाओं
को ध्यान में रखकर पााँ च उपभाषाओं एिं 17 बोवलयों में िगीकृत वकया गया है । वजनमें से कुछ भाषाओं का मौत्यखक रूप ज्यािा
प्रयुक्त होता है ऐसी भाषाओं को लोक भाषा की श्रे णी में रखा जा सकता है । भाषा का कोई भी रूप हो उसका प्रमु ख कायग संप्रेषण
होता है । भाषा के वकस रूप से संप्रेषणीयता अवधक होती है , यह समाज और उसमें प्रयुक्त भाषा के स्वरूप पर वनभग र करता हैं ।

6. हवश्लेषण (Analysis):
समाजभाषािैज्ञावनक विश्लेषण को वनम्नवलत्यखत स्तरों पर वकया गया है -
सामाहजक स्ति का ज्ञाि- समाजभाषाविज्ञान में समाज को अलग-अलग स्तरों जैसे; व्यिसाय- डॉक्टर, इं वजनीयर, वशक्षक,
पुवलस, फौजी आवि, जावत/िगग - उच्च िगग, मध्यम िगग, वनम्न िगग, वपछड़ा िगग आवि, वशक्षा- मै वटर क, स्नातक, डॉक्टरे ट आवि, भाषा-
तवमल, वहं िी, मराठी, गुजराती आवि के आधार पर िगीकृत कर उनके द्वारा बोली गई भाषा के बीच के अंतर को भाषाविज्ञान के
विविध स्तरों -ध्ववन, शब्, िाक् (व्याकरण) एिं अिग पर विश्लेवषत वकया जाता है । उिाहरण के तौर पर शावहि कपूर और श्रद्धा
कपूर की वफल्म 'बत्ती गुल और मीटर चालू ' का टर े लर ररलीज हो गया है । वसतंबर 2018 को ररलीज हुई वफल्म के डायलॉग बेहि
वझलाऊ हैं। उत्तराखं ड को बैकडरॉप में रखकर तैयार की गई इस वफल्म में श्रद्धा और शावहि स्िानीय एक्सेंट को कॉपी करने में बुरी
तरह फेल नजर आ रहे हैं। वफल्म के अवधकतर डायलॉग्स में उत्तराखं ड की िो अलग-अलग बोवलयों के तवकया कलाम के शब्
का यूज बेिजह वकया गया है । कहना गलत नहीं होगा वक वफल्म को आधी-अधूरी ररसचग के आधार पर जल्दबाजी में बनाया गया
है । (िै वनक भाष्कर) यह पटकिा लेखन में समाजभाषािैज्ञावनक ज्ञान के प्रयोग अभाि के कारण हुआ है ।
उच्चािण हभन्नता का ज्ञाि -समाजभाषाविज्ञान समाज में भाषाई विवभन्नता का अध्ययन करता हैं । जै से; यवि हम वहं िी का शब्
‘प्रणाम’ के उच्चारण को िे खे तो इसके कई उच्चारण -‘परनाम’, पड़ाम, प्रनाम और प्रणाम वमलते हैं। इन अलग-अलग उच्चारणों
के जररए इसके बोलने िाले लोगों के भावषक स्तर एिं सामावजक त्यस्िवत का पता लगाया जा सकता है । वकसी व्यत्यक्त के उच्चारण
का तरीका उसकी सामावजक पहचान को िशाग ता है । पटकिा लेखक को वहं िी के बोवलयों में बिलाि के तरीके का जानना जरुरी
होता है । वहं िी की बोवलयों के उच्चारण िाताग लाप के तौर तरीके में वहं िी से वभन्न होते हैं । जैसे; अिधी, ब्रज, भोजपुरी मातृभावषयों के
वहं िी उच्चारण में वभन्नता। ब्रज भाषी ‘ए’ की मात्ा को ‘ऐ’ के रूप में उच्चररत करता है । वहं िी भाषी के ‘सेल’ ब्रज भाषा (बोली) में
उच्चारण ‘सैल’ के रूप में वकया जाता है । इसी प्रकार भोजपुरी भाषी अक्सर ‘स’ का उच्चारण ‘श’ के रूप में करता है । इसी प्रकार
हररयाणिी में ‘र’ का उच्चारण ‘ण’ के रूप में वकया जाता है ।
उच्चािण िजरििा (एहिट्यू ड) का ज्ञाि -उच्चारण के तरीके से नजररया का पता चलता है । वजसे ले खन में समावहत करने से
समाज का िास्तविक रूप शब्ों में विखने लगता है । इसकी समझ लेखन को िास्तविक रूप िे ने में सहायक होता है । क्ोंवक ये
नजररया) एवटट्यूड (सामावजक नामग के रूप में कायग करते हैं । वजनका संबंध व्यत्यक्तवनष्ठता ( सब्जेत्यक्टविटी) से होता है , न वक
िस्तु वनष्ठता से। पटकिा का मूल आधार व्यत्यक्तगत नजररया होता है पटकिा लेखन एिं वफल्मां कन में इसकी महत्वपूणग भू वमका
होती है । एक ही बात को एक इं सान अलग-अलग तरीकों से बोलता है । जो उसके द्वारा व्यक्त अिग को प्रिवशग त करता है । इसे
भाषाविज्ञान में सुपरावसगमें टल फीचर कहते हैं । वजसके अंतगगत सुर, लय, ताल, बलाघात आते हैं ।
शात्यब्दक हभन्नता का ज्ञाि -शब् के स्तर पर भी वहं िी भाषा और उसकी बोवलयों में अंतर वमलता है । इसको समझने के वलए हमें
सबसे पहले वकसी भाषा में प्रयुक्त ऐसे शब् को जानना जरुरी होता है जो उस भाषाई समाज के लोगों की पहचान के रूप में
स्िावपत होता है । इसे आम भाषा में ‘तवकया कलाम’ भी कहते हैं । जै से; मराठी भाषी वहं िी बोलते समय ‘बराबर है ’ शब् पुंज का
अक्सर इस्ते माल करता है , इसी प्रकार गुजराती ‘जय श्रीकृष्ण’ का इस्ते माल करता है । इसी प्रकार ब्रज भाषी ‘राधे-राधे’ तो गढ़िाली
में ‘ठहरा’ शब् को तवकया कलाम के रूप में प्रयोग वकया जाता है ।

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व्याकिहणक हभन्नता का ज्ञाि -वहं िी भाषा में लेखन करते समय वकसी पात् के सामावजक स्तर के आधार ही उसकी भाषा के
व्याकरवणक स्वरूप की रचना होती है । जै से; ‘चेन्नई एक्प्रे स’ वफल्म की व्याकरवणक संरचना वफल्म की नावयका के वहं िी भाषाई
व्याकरण के अनु रूप वलखी गई, वजससे हमें यह पता चलता है वक एक तवमल भाषी वहं िी बोलते समय वलं ग, िचन एिं िाक् संरचना
में वकस प्रकार अशुत्यद्धयां करते हुए बोलता है । इसी वफल्म ‘विल्लगी’ के नायक द्वारा संस्कृत अध्यापक की भू वमका में संस्कृतवनष्ठ
भाषा का प्रयोग कर लेखक ने पटकिा को जीिंत बना विया है ।

7. उपलत्यििािं (Findings):
इस प्रपत् के माध्यम से हमें इस बात का पता चलता है वक िै ज्ञावनक लेखन जहां बात को सीधे अिो में या वफर अविधापरक
भाषा का प्रयोग वकया जाता है जबवक व्यिसावयक ले खन या पटकिा ले खन में भाषा के सामावजक पररिेश के अनु सार व्यत्यक्तवनष्ठ
भाषा और लक्षणा, व्यंजना का प्रयोग वकया जाता है । वजससे हम पटकिा में अवभवनत पात्ों के अलग-अलग सामावजक नजररया
(एवटट्यूड) को वचवत्त वकया जा सके।

8. परिणाम (Result):
िैज्ञावनक या अकािवमक वहं िी की संरचना एिं व्यिसावयक वहं िी की संरचना को के अंतर को हम वनम्नवलत्यखत प्रकार से समझ
सकते हैं :

वै ज्ञाहिक िा अकादहमक ह िं दी की सिंिचिा व्यवसाहिक ह िं दी की सिंिचिा


अविधापरक भावषक संरचना लक्षणा एिं व्यंजना युक्त भावषक संरचना
मानक ितगनीयुक्त संरचना सामाज विशेष के उच्चारण के अनु रूप संरचना
शब् के लेखन में समानता शब् के लेखन में समाज के अनु रूप वभन्नता
िाक् का व्याकरण सम्मत प्रयोग िाक् में व्याकरणगत त्ु वटयां आवि
सारणी 1.1

9. हिष्कषा (Conclusion) :
वहं िी ले खन का सावहत्यिक स्वरूप अिंत ही विकवसत एिं समृ द्ध है । जबवक वहं िी में व्यिसावयक ले खन अभी भी ज्यािातर
वफल्मों तक ही सीवमत है । वहं िी में िैज्ञावनक या अकािवमक ले खन की त्यस्िवत भी बहुत अच्छी नहीं है । इन सभी विधाओं में वहं िी
ले खन करने के वलए वहं िी के विविध लेखन स्वरूप को स्पष्ट करने में यह प्रपत् उपयोगी होगा। वहं िी भाषा के व्याकरण पर पयाग प्त
चचाग वमलती है ले वकन इस व्यिसावयक एिं अकािवमक संरचना को अलग िे खने की आिश्यकता है वजससे वक वहं िी न केिल
मनोरं जन एिं अनु िाि की भाषा न रहे बत्यल्क ज्ञान-विज्ञान की भाषा के रूप में भी स्िावपत हो सके।

सिंदभा सूची (References):


1. जोशी, मनोहर श्याम, पटकिा लेखन एक पररचय; राजकमल प्रकाशन, नई विल्ली, प्रिम संस्करण (2000)
2. Hudson, RA, Sociolinguistics, Cambridge University Press, UK, 2nd edition (1996)
3. Labov, William, Sociolinguistic patterns, University of Pennsylvania Press, USA, (1972)

वेबसाइिें (Websites):
 https://www.bhaskar.com/news/trailer-of-batti-gul-meter-chalu-wrong-use-words-of-dialect-with-
thahra-and-bal-.5935478html
 http://www.chdpublication.mhrd.gov.in/
 https://www.rachanakar.org//02/2020script-writing.html

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