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अनुच्छे द लेखन

किसी भी विषय िे मुख्य ब द


िं ओ
ु िं िो ममलािर सीममत शब्दों में अपने विचार प्रिट िरने
िो लेखन िहते हैं। अनच्
ु छे द में छोटे -छोटे िाक्य होते हैं जो विषय आधार पर एि दस
ु रे
से जुड़े होते हैं। अनुच्छे द लेखन िो अिंग्रेजी में Paragraph Writing भी िहते हैं।
अनुच्छे द िो एि सिंक्षिप्त नन िंध िी सिंज्ञा भी दी जा सिती है परन्तु नन िंध में विषय िे
पि-विपि तथा सिं िंधधत सभी ब द
िं ओ
ु िं िा समािेश होता है , किन्तु अनुच्छे द मलखते समय
किसी प्रिार िी भूममिा, तिक-वितिक या पि-विपि िो सिंमममलत नहीिं किया जाता।

किसी विषय पर थोड़े, किन्तु चुने हुए शब्दों में अपने विचार प्रिट िरने िे प्रयास
िो अनुछेद लेखन िहा जाता है । यह किसी लेख, नन िंध या रचना िा अिंश भी हो सिता
है किन्तु स्ियिं में पूर्क होना चाहहए। डॉ॰ किरर् नन्दा िे शब्दों में अनुच्छे द िो इस
प्रिार पररभावषत किया जा सिता है - “किसी भी शब्द, िाक्य, सत्र
ू से सम् द्ध विचार
एििं भािों िो अपने अर्जकत ज्ञान, ननजी अनुभूनत से सिंजोिर प्रिाहमयी शैली िे माध्यम
से गद्यभाषा में अमभव्यक्त िरना अनच्
ु छे द िहलाता है ।”

उक्त पररभाषा िे आधार पर स्पष्ट है कि अनच्


ु छे द लेखन िा िोई भी विषय हो सिता
है , िह शब्द, िाक्य, सूत्र रूप में भी हो सिता है । उसिा विस्तार स्ितिंत्र रूप में
प्रिाहमयी शैली में होना चाहहए तथा गद्य भाषा में अमभव्यक्त होना चाहहए। ज हम
किसी विषय, विचार या शीषकि िो विस्तारपूिि
क मलखें कि एि अनुच्छे द तैयार हो जाए
तो इसे 'अनुच्छे द लेखन' िहा जाता है । 'अनुच्छे द-लेखन' और 'नन िंध-लेखन' में अन्तर
है । इनिे पारस्पररि अिंतर िो समझ लेना आिश्यि है । दोनों विधाओिं में लेखि अपने
भािों एििं विचारों िो वििमसत िरता है किर भी दोनों में पयाकप्त अन्तर है ।

(१) नन िंध में भूममिा, वििास तथा उपसिंहार होता है किन्तु लघु रचना होने िे िारर्
अनुच्छे द में लेखि प्रथम िाक्य से ही विषय िा प्रनतपादन आरिं भ िर दे ता है ।

(२) नन िंध में मूल विचार िा विस्तार उसिे सभी आयामों िे साथ होता है ज कि
अनुच्छे द में एि ही विचार ब न्द ु िा प्रनतपादन होता है ।

(३) नन िंध में विषय िे सभी पहलुओिं िो प्रस्तुत किया जाता है ज कि अनुच्छे द में
लेखि मूल विषय िे साथ ही जुड़ा रहता है और सिंिेप में अपनी ात प्रस्तुत िरता है ।
अनुच्छे द-लेखन िी विधध

हदए गए विषय पर लेखि अपने अर्जकत ज्ञान, ननजी अनुभूनत तथा सशक्त भाषा िे
द्िारा अपने विचारों िो अनुच्छे द िे रूप में अमभव्यक्त िरता है । एि अच्छे अनुच्छे द
िे मलए ननम्न ातों िो ध्यान में रखना चाहहए-

(1) चुने हुए विषय पर थोड़ा धचन्तन-मनन आिश्यि है ताकि मूल भाि भली-भााँनत
स्पष्ट हो जाए।

(2) मूलभाि से सिं द्ध विविध आयामों िे ारे में सोचिर एि रूपरे खा ना लेनी चाहहए
र्जससे विषय िा विस्तार किया जा सिे।

(3) अनुच्छे द मलखते समय क्रम द्धता नी रहनी चाहहए।

(4) अनुच्छे द मलखते समय पुनरािवृ ि दोष से चना चाहहए।

(5) अनच्
ु छे द में अप्रािंसधगि या अनािश्यि ातों िा उल्लेख नहीिं िरना चाहहए। (6)
विषय िो प्रस्तुत िरने िी शैली अथिा पद्धनत तय िरनी चाहहए।

(7) अनच्
ु छे द िी भाषा सरल, सु ोध एििं विषय िे अनि
ु ूल होनी
चाहहए। मुहािरे , लोिोर्क्तयों आहद िा प्रयोग िरिे भाषा िो सुिंदर एििं व्यािहाररि
नाया जा सिता है ।

(8) मलखने िे ाद पुनः उसिा अध्ययन िरना चाहहए तथा छूट गए दोषों िा ननरािरर्
िरना चाहहए कि िहीिं िोई सामग्री छूट तो नहीिं गई है ? िहीिं अनुच्छे द में ब खराि तो
नहीिं आ गया है ? िहीिं अनुच्छे द में विरोधी ातें तो नहीिं आ रही हैं? िहीिं विरामधचह्न,
ितकनी, िाक्य-रचना, शब्द-प्रयोग आहद िी दृर्ष्ट से िोई सिंशोधन िरने िी आिश्यिता
तो नहीिं है ? यहद ऐसा िोई दोष रह गया है तो उसे ठीि िर लेना चाहहए।

अनुच्छे द-लेखन िी शैमलयााँ

भाषा तथा साहहत्य िो जोड़ने िाली सिंिल्पना िो 'शैली' िहा जाता है । शैली िो सहे ति

भाषा-पद्धनत िहा जाता है । भाषा िी प्रयुर्क्त विशेष, विधा विशेष तथा प्रयोक्ता विशेष
िे अनस
ु ार भाषा में जो विमभन्नताएाँ हदखाई दे ती हैं, उन्हें भाषा िी शैमलयााँ िहा जाता
है । अनुच्छे द लेखन मे प्रायः ननम्नमलखखत शैमलयों िा प्रयोग होता है -

• भािात्मि शैली

• समास शैली
• व्यिंग्य शैली

• तरिं ग शैली

• धचत्र शैली

• व्यास-शैली

इनिे अनतररक्त लेखि अनेि प्रिार िी शैमलयों जैसे िर्कनात्मि, वििरर्ात्मि,


विचारात्मि, सामान्य ोलचाल िी शैली िा प्रयोग िर सिता है । अपनी रूधच और
विषय िे अनुिूल शैली िे प्रयोग से अनुच्छे द में सजीिता आ जाती है । िर्कन, विचार
और भाि िे अनुिूल शैली िा प्रयोग होना चाहहए र्जससे अनुच्छे द में यथेष्ट प्रिाह,
रमर्ीयता आहद गुर् समाविष्ट हो जाते हैं।

अच्छे अनच्
ु छे द िी विशेषताएाँ (१) पर्
ू तक ा - स्ितिंत्र अनच्
ु छे द िी रचना िे समय ध्यान
रहे कि उसमें सिं िंधधत विषय िे सभी पिों िा समािेश हो जाए। विषय सीममत आयामों
िाला होना चाहहए, र्जसिे सभी पिों िो अनुच्छे द िे सीममत आिार में सिंयोर्जत किया
जा सिे।

(२) क्रम द्धता - अनुच्छे द-लेखन में विचारों िो क्रम द्ध एििं तिकसिंगत विधध से प्रिट
िरना चाहहए। अनुच्छे द िे मलए आिश्यि है कि िह सुगहठत हो तथा उसमें विचारों और
तिों िा ऐसा सवु िचाररत पि
ू ाकपर क्रम हो कि िाक्य एि दस
ू रे से जड़
ु ते चले जाएाँ और
विषय िो वििमसत िर सिें।

(३) विषय-िेर्न्िता - अनुच्छे द िे प्रारिं भ से अिंत ति उसिा एि सत्र


ू में िंधा होना
परमािश्यि है । अनुच्छे द मूल विषय से इस प्रिार िंधा होना चाहहए कि पूरे अनुच्छे द िो
पढ़ने िे ाद पाठि सारािंश में उसिे शीषकि िो ननतािंत सिंगत एििं उपयक्
ु त माने।
(४) सामामसिता - सीममत शब्दों में यथासिंभि पूरी ात िहने िा प्रयास रहता है । यह
गागर में सागर भरने िे समान है । अनुच्छे द में अनािश्यि ातें न िरिे िेिल विषय
से सिं द्ध िर्कन-वििेचन किया जाना चाहहए।

(५) विषयानुिूल भाषा-शैली - अनुच्छे द िी भाषा-शैली विषयानुिूल होनी चाहहए। प्रायः


अनुच्छे द शाश्ित महत्त्ि िे विषयों पर मलखे जाते हैं। अतः उसिी भाषा भी विषय िे
अनुरूप गिंभीर एििं पररमार्जकत होनी चाहहए। अप्रचमलत शब्द-प्रयोग से चना चाहहए।
भाषा यथासिंभि सरल, सरस, सु ोध हो। आिश्यितानुसार उसमें मुहािरे ,
लोिोर्क्त, सूर्क्त आहद िा भी उपयोग किया जा सिता है । भाषा गत्यात्मि हो। िाक्यों
िे क्रम में तारतम्य हो। शैली भी एि िथन भिंधगमा है । िभी लेखि विशेष िो सामान्य
रूप प्रदान िरता है तो िभी सामान्य िो विशेष रूप में प्रस्तत
ु िरता है । इन्हीिं िो
आगमन-ननगमन शैली िहा जाता है ।

(६) सीममत/सिंतुमलत आिार - सामान्यतः अनुच्छे द 300 से 350 शब्दों िे मध्य होना
चाहहए। सिंतुमलत िर्कन िे मलए आिार-प्रिार भी सिंतुमलत अपनाना चाहहए। विषयानुसार
यह सिंख्या िुछ िम या अधधि भी हो सिती है । अनच्
ु छे द लेखन िे समय पहले
अनुच्छे द िा एि प्रारूप तैयार िर लेना चाहहए। शब्द-सिंख्या, मुहािरे , लोिोर्क्तयों से
सिं िंधी सभीातों िा ध्यान रखते हुए अनािश्यि ातों िो हटा दे ना चाहहए। यह ध्यान
रहे कि किसी भी र्स्थनत में अनुच्छे द लघु नन िंध िा आिार न ग्रहर् िरे ।

(७) स्ितिंत्र लेखन िला - प्रत्येि अनुच्छे द अपने आप में स्ितिंत्र होता है । िुछ अथों में
समानता रखते हुए भी िह नन िंध और पल्लिन से मभन्न है । विषय िे अनुरूप ही शैली
िा भी चयन हो जाता है

यहााँ ननम्नमलखखत अनुच्छे द हदया जा रहा है -


(1)समय किसी िे मलए नहीिं रुिता
'समय' ननरिं तर ीतता रहता है , िभी किसी िे मलए नहीिं ठहरता। जो व्यर्क्त समय िे
मोल िो पहचानता है , िह अपने जीिन में उन्ननत प्राप्त िरता है । समय ीत जाने पर
िायक िरने से भी िल िी प्रार्प्त नहीिं होती और पश्चािाप िे अनतररक्त िुछ हाथ नहीिं
आता। जो विद्याथी सु ह समय पर उठता है , अपने दै ननि िायक समय पर िरता है
तथा समय पर सोता है , िही आगे चलिर सिलता ि उन्ननत प्राप्त िरता है । जो
व्यर्क्त आलस में आिर समय गाँिा दे ता है , उसिा भविष्य अिंधिारमय हो जाता है ।
सिंतिवि ि ीरदास जी ने भी िहा है :
''िाल िरै सो आज िर, आज िरै सो अ ।
पल में परलै होइगी, हुरर िरे गा ि ।।''

समय िा एि-एि पल हुत मूल्यिान है और ीता हुआ पल िापस लौटिर नहीिं आता।
इसमलए समय िा महत्ि पहचानिर प्रत्येि विद्याथी िो ननयममत रूप से अध्ययन
िरना चाहहए और अपने लक्ष्य िी प्रार्प्त िरनी चाहहए। जो समय ीत गया उस पर
ितकमान समय र ाद न िरिे आगे िी सुध लेना ही ुद्धधमानी

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