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अनुच्छेद लेखन
अनुच्छेद लेखन
किसी विषय पर थोड़े, किन्तु चुने हुए शब्दों में अपने विचार प्रिट िरने िे प्रयास
िो अनुछेद लेखन िहा जाता है । यह किसी लेख, नन िंध या रचना िा अिंश भी हो सिता
है किन्तु स्ियिं में पूर्क होना चाहहए। डॉ॰ किरर् नन्दा िे शब्दों में अनुच्छे द िो इस
प्रिार पररभावषत किया जा सिता है - “किसी भी शब्द, िाक्य, सत्र
ू से सम् द्ध विचार
एििं भािों िो अपने अर्जकत ज्ञान, ननजी अनुभूनत से सिंजोिर प्रिाहमयी शैली िे माध्यम
से गद्यभाषा में अमभव्यक्त िरना अनच्
ु छे द िहलाता है ।”
(१) नन िंध में भूममिा, वििास तथा उपसिंहार होता है किन्तु लघु रचना होने िे िारर्
अनुच्छे द में लेखि प्रथम िाक्य से ही विषय िा प्रनतपादन आरिं भ िर दे ता है ।
(२) नन िंध में मूल विचार िा विस्तार उसिे सभी आयामों िे साथ होता है ज कि
अनुच्छे द में एि ही विचार ब न्द ु िा प्रनतपादन होता है ।
(३) नन िंध में विषय िे सभी पहलुओिं िो प्रस्तुत किया जाता है ज कि अनुच्छे द में
लेखि मूल विषय िे साथ ही जुड़ा रहता है और सिंिेप में अपनी ात प्रस्तुत िरता है ।
अनुच्छे द-लेखन िी विधध
हदए गए विषय पर लेखि अपने अर्जकत ज्ञान, ननजी अनुभूनत तथा सशक्त भाषा िे
द्िारा अपने विचारों िो अनुच्छे द िे रूप में अमभव्यक्त िरता है । एि अच्छे अनुच्छे द
िे मलए ननम्न ातों िो ध्यान में रखना चाहहए-
(1) चुने हुए विषय पर थोड़ा धचन्तन-मनन आिश्यि है ताकि मूल भाि भली-भााँनत
स्पष्ट हो जाए।
(2) मूलभाि से सिं द्ध विविध आयामों िे ारे में सोचिर एि रूपरे खा ना लेनी चाहहए
र्जससे विषय िा विस्तार किया जा सिे।
(5) अनच्
ु छे द में अप्रािंसधगि या अनािश्यि ातों िा उल्लेख नहीिं िरना चाहहए। (6)
विषय िो प्रस्तुत िरने िी शैली अथिा पद्धनत तय िरनी चाहहए।
(7) अनच्
ु छे द िी भाषा सरल, सु ोध एििं विषय िे अनि
ु ूल होनी
चाहहए। मुहािरे , लोिोर्क्तयों आहद िा प्रयोग िरिे भाषा िो सुिंदर एििं व्यािहाररि
नाया जा सिता है ।
(8) मलखने िे ाद पुनः उसिा अध्ययन िरना चाहहए तथा छूट गए दोषों िा ननरािरर्
िरना चाहहए कि िहीिं िोई सामग्री छूट तो नहीिं गई है ? िहीिं अनुच्छे द में ब खराि तो
नहीिं आ गया है ? िहीिं अनुच्छे द में विरोधी ातें तो नहीिं आ रही हैं? िहीिं विरामधचह्न,
ितकनी, िाक्य-रचना, शब्द-प्रयोग आहद िी दृर्ष्ट से िोई सिंशोधन िरने िी आिश्यिता
तो नहीिं है ? यहद ऐसा िोई दोष रह गया है तो उसे ठीि िर लेना चाहहए।
भाषा तथा साहहत्य िो जोड़ने िाली सिंिल्पना िो 'शैली' िहा जाता है । शैली िो सहे ति
ु
भाषा-पद्धनत िहा जाता है । भाषा िी प्रयुर्क्त विशेष, विधा विशेष तथा प्रयोक्ता विशेष
िे अनस
ु ार भाषा में जो विमभन्नताएाँ हदखाई दे ती हैं, उन्हें भाषा िी शैमलयााँ िहा जाता
है । अनुच्छे द लेखन मे प्रायः ननम्नमलखखत शैमलयों िा प्रयोग होता है -
• भािात्मि शैली
• समास शैली
• व्यिंग्य शैली
• तरिं ग शैली
• धचत्र शैली
• व्यास-शैली
अच्छे अनच्
ु छे द िी विशेषताएाँ (१) पर्
ू तक ा - स्ितिंत्र अनच्
ु छे द िी रचना िे समय ध्यान
रहे कि उसमें सिं िंधधत विषय िे सभी पिों िा समािेश हो जाए। विषय सीममत आयामों
िाला होना चाहहए, र्जसिे सभी पिों िो अनुच्छे द िे सीममत आिार में सिंयोर्जत किया
जा सिे।
(२) क्रम द्धता - अनुच्छे द-लेखन में विचारों िो क्रम द्ध एििं तिकसिंगत विधध से प्रिट
िरना चाहहए। अनुच्छे द िे मलए आिश्यि है कि िह सुगहठत हो तथा उसमें विचारों और
तिों िा ऐसा सवु िचाररत पि
ू ाकपर क्रम हो कि िाक्य एि दस
ू रे से जड़
ु ते चले जाएाँ और
विषय िो वििमसत िर सिें।
(६) सीममत/सिंतुमलत आिार - सामान्यतः अनुच्छे द 300 से 350 शब्दों िे मध्य होना
चाहहए। सिंतुमलत िर्कन िे मलए आिार-प्रिार भी सिंतुमलत अपनाना चाहहए। विषयानुसार
यह सिंख्या िुछ िम या अधधि भी हो सिती है । अनच्
ु छे द लेखन िे समय पहले
अनुच्छे द िा एि प्रारूप तैयार िर लेना चाहहए। शब्द-सिंख्या, मुहािरे , लोिोर्क्तयों से
सिं िंधी सभीातों िा ध्यान रखते हुए अनािश्यि ातों िो हटा दे ना चाहहए। यह ध्यान
रहे कि किसी भी र्स्थनत में अनुच्छे द लघु नन िंध िा आिार न ग्रहर् िरे ।
(७) स्ितिंत्र लेखन िला - प्रत्येि अनुच्छे द अपने आप में स्ितिंत्र होता है । िुछ अथों में
समानता रखते हुए भी िह नन िंध और पल्लिन से मभन्न है । विषय िे अनुरूप ही शैली
िा भी चयन हो जाता है
समय िा एि-एि पल हुत मूल्यिान है और ीता हुआ पल िापस लौटिर नहीिं आता।
इसमलए समय िा महत्ि पहचानिर प्रत्येि विद्याथी िो ननयममत रूप से अध्ययन
िरना चाहहए और अपने लक्ष्य िी प्रार्प्त िरनी चाहहए। जो समय ीत गया उस पर
ितकमान समय र ाद न िरिे आगे िी सुध लेना ही ुद्धधमानी