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Paragraph Writing in Hindi (अनुच्छे द-

लेखन), Definition, Tips, Examples


 

Paragraph Writing Definition, Tips,


Examples, अनच्
ु छे द-लेखन की परिभाषा, अनच्
ु छे द-
लेखन के उदाहरण
Paragraph Writing (अनच्
ु छे द-लेखन) - इस लेख में हम अनच्
ु छे द-लेखन के बारे में
जानेंगे। अनुच्छे द-लेखन होता क्या है ? अनुच्छे द लिखते समय किन-किन बातों का
ध्यान रखना चाहिए? अनच्
ु छे द की प्रमख
ु विशेषताएँ कौन-कौन से हैं? और साथ ही इस
लेख में हम कुछ अनुच्छे द अदाहरण के रूप में भी दे रहे हैं -
 

अनच्
ु छे द-लेखन की परिभाषा - Definition
 

किसी एक भाव या विचार को व्यक्त करने के लिए लिखे गये सम्बद्ध और लघु
वाक्य-समह
ू को अनच्
ु छे द-लेखन कहते हैं।

दस
ू रे शब्दों में  - किसी घटना, दृश्य अथवा विषय को संक्षिप्त (कम शब्दों में ) किन्तु
सारगर्भित (अर्थपूर्ण) ढं ग से जिस लेखन-शैली में प्रस्तुत किया जाता है , उसे अनुच्छे द-
लेखन कहते हैं।

'अनुच्छे द' शब्द अंग्रेजी भाषा के 'Paragraph' शब्द का हिंदी पर्याय है । अनुच्छे द
'निबंध' का संक्षिप्त रूप होता है । इसमें किसी विषय के किसी एक पक्ष पर 80 से 100
शब्दों में अपने विचार व्यक्त किए जाते हैं।

अनच्
ु छे द अपने-आप में स्वतन्त्र और पर्ण
ू होते हैं। अनच्
ु छे द का मख्
ु य विचार या भाव
की कंु जी या तो आरम्भ में रहती है या अन्त में । एक अच्छे अनुच्छे द-लेखन में मुख्य
विचार अन्त में दिया जाता है ।
 

अनुच्छे द लिखते समय निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखना चाहिए -

(1) अनच्
ु छे द लिखने से पहले रूपरे खा, संकेत-बिंद ु आदि बनानी चाहिए। (कुछ प्रश्न-पत्रों
में पहले से ही रूपरे खा, संकेत-बिंद ु आदि दिए जाते हैं। आपको उन्हीं रूपरे खा, संकेत-
बिंद ु आदि को ध्यान में रखते हुए अनच्
ु छे द लिखना होता है ।)

(2) अनुच्छे द में विषय के किसी एक ही पक्ष का वर्णन करें । (ऐसा इसलिए करना
आवश्यक हो जाता है क्योंकि अनुच्छे द में शब्द सिमित होते हैं और हमें अनुच्छे द
संक्षेप में लिखना होता है ।)

(3) भाषा सरल, स्पष्ट और प्रभावशाली होनी चाहिए। ताकि समीक्षक या पढ़ने वाला
आपके अनुच्छे द से प्रभावित हो सके।

(4) एक ही बात को बार-बार न दोहराएँ। क्योंकि एक ही बात को बार-बार दोहराने से


आप अपने अनुच्छे द को दिए गए सिमित शब्दों में पूरा नहीं कर पाएँगे और अपने
सन्दे श को लोगों तक नहीं पहुँचा पाएँगे।

(5) अनावश्यक विस्तार से बचें , लेकिन विषय से न हटें । आपको भले ही संक्षेप में
अपने अनुच्छे द को पूरा करना है , परन्तु आपको ये भी ध्यान रखना है कि आप अपने
विषय से न भटक जाएँ।

(6) शब्द-सीमा को ध्यान में रखकर ही अनुच्छे द लिखें । ऐसा करने से आप अपने
अनुच्छे द में ज्यादा-से-ज्यादा महत्वपूर्ण बात लिखने की ओर ध्यान दे पाएँगे।

(7) परू े अनच्


ु छे द में एकरूपता होनी चाहिए। ऐसा नहीं होना चाहिए कि कही कोई बात
विषय से अलग लगे और पढ़ने वाले का ध्यान विषय से भटक जाए।

(8) विषय से संबधि


ं त सूक्ति अथवा कविता की पंक्तियों का प्रयोग भी कर सकते हैं।
इससे आपका अनच्
ु छे द बहुत अधिक प्रभावशाली और रोचक लगेगा।

(9) अनुच्छे द के अंत में निष्कर्ष समझ में आ जाना चाहिए यानी विषय समझ में आ
जाना चाहिए।
अनुच्छे द की प्रमुख विशेषताएँ -

(1) अनुच्छे द किसी एक भाव या विचार या तथ्य को एक बार, एक ही स्थान पर


व्यक्त करता है । इसमें अन्य विचार नहीं रहते।

(2) अनच्
ु छे द के वाक्य-समह
ू में उद्देश्य की एकता रहती है । अप्रासंगिक बातों को हटा
दिया जाता है । केवल बहुत अधिक महत्वपूर्ण बातों को ही अनुच्छे द में रखा जाता है ।

(3) अनुच्छे द के सभी वाक्य एक-दस


ू रे से गठित और सम्बद्ध होते है । वाक्य छोटे तथा
एक दस
ु रे से जुड़े होते हैं।

(4) अनुच्छे द एक स्वतन्त्र और पूर्ण रचना है , जिसका कोई भी वाक्य अनावश्यक नहीं
होता।

(5) उच्च कोटि के अनच्


ु छे द-लेखन में विचारों को इस क्रम में रखा जाता है कि उनका
आरम्भ, मध्य और अन्त आसानी से व्यक्त हो जाए और किसी को भी समझने में
कोई परे शानी न हो।

(6) अनुच्छे द सामान्यतः छोटा होता है , किन्तु इसकी लघुता या विस्तार विषयवस्तु पर
निर्भर करता है । लेखन के संकेत बिंद ु के आधार पर विषय का क्रम तैयार करना
चाहिए।

(7) अनुच्छे द की भाषा सरल और स्पष्ट होनी चाहिए।


 

अनच्
ु छे दों के कुछ उदाहरण
 

(1)समय किसी के लिए नहीं रुकता

'समय' निरं तर बीतता रहता है , कभी किसी के लिए नहीं ठहरता। जो व्यक्ति समय के
मोल को पहचानता है , वह अपने जीवन में सफलता प्राप्त करता है । समय बीत जाने
पर किए गए कार्य का कोई फल प्राप्त नहीं होता और पश्चाताप के अतिरिक्त कुछ
हाथ नहीं आता। जो विद्यार्थी सुबह समय पर उठता है , अपने दै निक कार्य समय पर
करता है तथा समय पर सोता है , वही आगे चलकर सफल व उन्नत व्यक्ति बन पाता
है । जो व्यक्ति आलस में आकर समय गँवा दे ता है , उसका भविष्य अंधकारमय हो
जाता है । संतकवि कबीरदास जी ने भी अपने दोहे में कहा है -

''काल करै सो आज कर, आज करै सो अब।


पल में परलै होइगी, बहुरि करे गा कब।।''

समय का एक-एक पल बहुत मूल्यवान है और बीता हुआ पल वापस लौटकर नहीं


आता। इसलिए समय का महत्व पहचानकर प्रत्येक विद्यार्थी को नियमित रूप से
अध्ययन करना चाहिए और अपने लक्ष्य की प्राप्ति करनी चाहिए। जो समय बीत
गया उस पर वर्तमान समय में सोच कर और अधिक समय बरबाद न करके आगे
अपने कार्य पर विचार कर-लेना ही बद्धि
ु मानी है ।
 

(2) अभ्यास का महत्त्व

यदि निरं तर अभ्यास किया जाए, तो किसी भी कठिन कार्य को किया जा सकता है ।
ईश्वर ने सभी मनुष्यों को बद्धि
ु दी है । उस बुद्धि का इस्तेमाल तथा अभ्यास करके
मनुष्य कुछ भी सीख सकता है । अर्जुन तथा एकलव्य ने निरं तर अभ्यास करके
धनर्वि
ु द्या में निपुणता प्राप्त की। उसी प्रकार वरदराज ने, जो कि एक मंदबुद्धि बालक
था, निरं तर अभ्यास द्वारा विद्या प्राप्त की और ग्रंथों की रचना की। उन्हीं पर एक
प्रसिद्ध कहावत बनी -

''करत-करत अभ्यास के, जड़मति होत सज


ु ान।
रसरि आवत जात तें , सिल पर परत निसान।।''

यानी जिस प्रकार रस्सी की रगड़ से कठोर पत्थर पर भी निशान बन जाते हैं, उसी
प्रकार निरं तर अभ्यास से मूर्ख व्यक्ति भी विद्वान बन सकता है । यदि विद्यार्थी
प्रत्येक विषय का निरं तर अभ्यास करें , तो उन्हें कोई भी विषय कठिन नहीं लगेगा
और वे सरलता से उस विषय में कुशलता प्राप्त कर सकेंगे।

कहा भी गया है कि,"परिश्रम ही सफलता की कुँजी है ।"


 

(3) मित्र के जन्म दिन का उत्सव

मेरे मित्र रोहित का जन्म-दिन था। उसने अन्य मित्रों के साथ मुझे भी बुलाया। रोहित
के कुछ रिश्तेदार भी आए हुए थे, किन्तु अधिकतर मित्र ही उपस्थित थे। घर के
आँगन में ही समारोह का आयोजन किया गया था। उस स्थान को बहुत ही सुंदर ढं ग
से सजाया गया था। हर जगह झण्डियाँ और गब्ु बारे थे। आँगन में लगे एक पेड़ पर
रं ग-बिरं गे बल्ब जगमग कर रहे थे। जब मैं पहुँचा तो मेहमान आने शुरू ही हुए थे।
मेहमान रोहित के लिए कोई-न-कोई उपहार लेकर आते, उसके निकट जाकर बधाई दे ते
और रोहित उनका धन्यवाद करता। क्रमशः लोग छोटी-छोटी टोलियों में बैठकर गपशप
करने लगे। संगीत की मधरु ध्वनियाँ गँज
ू रही थी। एक-दो मित्र उठकर नत्ृ य करने
लगे। कुछ मित्र तालियों बजा कर अपना योगदान दे ने लगे। चारों ओर उल्लास का
वातावरण था।

सात बजे के लगभग केक काटा गया। सब मित्रों ने तालियाँ बजाई और मिलकर
जन्मदिन की बधाई का गीत गाया। माँ ने रोहित को केक खिलाया। अन्य लोगों ने
भी केक खाया। फिर सभी खाना खाने लगे। खाने में अनेक प्रकार की मिठाइयाँ और
नमकीन थे। तब हमने रोहित को एक बार फिर बधाई दी, उसकी दीर्घायु की कामना
की और अपने-अपने घर को चल दिए। वह कार्यक्रम इतना अच्छा था कि अब भी
स्मरण हो आता है ।
 

(4) वन और पर्यावरण का सम्बन्ध


 
संकेत-बिंद ु -

वन प्रदष
ु ण-निवारण में सहायक,
वनों की उपयोगिता,
वन संरक्षण की आवश्यकता,
वन संरक्षण के उपाय।

वन और पर्यावरण का बहुत गहरा सम्बन्ध है । प्रकृति के संतुलन को बनाये रखने के


लिए पथ्
ृ वी के 33% भाग को अवश्य हरा-भरा होना चाहिए। वन जीवनदायक हैं। ये
वर्षा कराने में सहायक होते हैं। धरती की उपजाऊ शक्ति को बढ़ाते हैं। वनों से भूमि
का कटाव रोका जा सकता है । वनों से रे गिस्तान का फैलाव रुकता है , सख
ू ा कम पड़ता
है । इससे ध्वनि प्रदष
ु ण की भयंकर समस्या से भी काफी हद तक नियंत्रण पाया जा
सकता है । वन ही नदियों, झरनों और अन्य प्राकृतिक जल स्रोतों के भण्डार हैं। वनों से
हमें लकड़ी, फल, फूल, खाद्य पदार्थ, गोंद  तथा अन्य सामान प्राप्त होते हैं। आज भारत
में दर्भा
ु ग्य से केवल 23 % वन बचे हैं। जैसे-जैसे उद्योगों को संख्या बढ़ रही है ,
शहरीकरण हो रहा है , वाहनों की संख्या बढ़ती जा रही है , वैसे-वैसे वनों की आवश्यकता
और बढ़ती जा रही है । वन संरक्षण एक कठिन एवं महत्वपर्ण
ू काम है । इसमें हर
व्यक्ति को अपनी जिम्मेदारी समझनी पड़ेगी और अपना योगदान दे ना होगा। अपने
घर-मोहल्ले, नगर में अत्यधिक संख्या में वक्ष
ृ ारोपण को बढाकर इसको एक आंदोलन
के  रूप में आगे बढ़ाना होगा। तभी हम अपने पर्यावरण को स्वच्छ रख पाएँगे। 
 

(5) कम्प्यूटर एक जादई


ु पिटारा

आज का युग विज्ञान का युग है । वर्तमान समय में विज्ञान ने हमें कम्प्यट


ू र के रूप
में एक अनमोल उपहार दिया है । आज जीवन के हर क्षेत्र में कम्प्यूटर का उपयोग हो
रहा है । जो काम मनुष्य द्वारा पहले बड़ी कठिनाई के साथ किया जाता था, आज वही
काम कम्प्यट
ू र द्वारा बड़े ही आराम से किये जा रहे हैं। कंप्यट
ू र का उपयोग दिनो-
दिन बढ़ता जा रहा है । कम्प्यूटर ने दनि
ु या को बहुत छोटा कर दिया है । इंटरनेट
द्वारा गग
ू ल, याहू एवं बिंग आदि वेबसाइट पर दनिु याभर की जानकारी घर बैठे ही
प्राप्त की जा सकती है । इंटरनेट पर ई-मेल के द्वारा विश्व में किसी भी जगह बैठे
व्यक्ति से संपर्क किया जा सकता है । इसके लिए केवल ई-मेल अकाउं ट और पासवर्ड
का होना आवश्यक होता है । कम्प्यूटर मनोरं जन का भी महत्वपूर्ण साधन है । इस पर
अनेक खेल भी खेले जा सकते हैं। कुल मिलकर कहें तो कम्प्यूटर ने मानव जीवन को
बहुत सरल बना दिया है । कम्प्यट
ू र सचमच
ु एक जादई
ु पिटारा है ।
 

(6) ग्लोबल वार्मिंग

ग्लोबल वार्मिंग शब्द पथ्


ृ वी के तापमान में होने वाली वद्धि
ृ को दर्शाता है । यह एक
ऐसी समस्या है जिस पर अगर काबू नहीं किया गया तो यह परू ी पथ्
ृ वी को ही नष्ट
कर दे गा। सीएफसी-11 और सीएफसी-12 जैसी ग्रीन हाउस गैसों ने सूरज के थर्मल
विकिरण को अवशोषित करके पथ्
ृ वी के वातावरण को गर्म बना दिया। ये गैसें सर्य
ू की
किरणों को वायुमंडल में प्रवेश तो करने दे ती हैं, लेकिन उससे होने वाले विकिरण को
वायम
ु ंडल से बाहर नहीं जाने दे ती हैं। इसी को ग्रीनहाउस प्रभाव कहा जाता है , जो परू े
विश्व में तापमान में वद्धि
ृ के लिए जिम्मेदार है । तापमान में वद्धि
ृ से वर्षा चक्र,
पारिस्थितिक संतुलन, मौसम का चक्र आदि प्रभावित होते हैं। यह वनस्पति और कृषि
को भी प्रभावित करता है । जिसके कारण हमें दनि
ु या भर में लगातार बाढ़ और सूखे
जैसी परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है । तापमान में वद्धि
ृ और ग्लेशियरों के
पिघलने के कारण बर्फ़ बारी जैसी घटनाओं में भी कमी आयी है । तापमान में वद्धि
ृ से
आद्रता में भी वद्धि
ृ हुई है क्योंकि तापमान में वद्धि
ृ से वाष्पीकरण की दर में वद्धि
ृ हुई
है । स्थानीय सरकारों को चाहिए की वह लोगों के बीच जागरूकता पैदा करे तथा ऐसे
उपकरणों और वाहनों की बिक्री को प्रोत्साहित करे जो पर्यावरण के अनक
ु ू ल हो। पेपर,
प्लास्टिक और अन्य सामग्रियों की रीसाइक्लिंग को प्रोत्साहित करना चाहिए। ऐसे
प्रयासों को लोगों द्वारा जमीनी स्तर पर करना अत्यंत आवश्यक है , तभी हम एक
प्रभावी तरीके से इस भयानक समस्या का मुकाबला कर सकते हैं।

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