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मुखड़ा या इंट्रो या लीड - उल्टा पिरामिड शै लीमें समाचार लेखन का सबसे महत्वपूर्ण
पहलूमुखड़ा लेखन या इंट्रो या लीड लेखन है। मुखड़ा समाचार का पहला पैराग्राफहोता है
जहां से कोई समाचार शु रु होता है। मुखड़े के आधार पर ही समाचार की गुणवत्ता का निर्धारण
होता है। एक आदर् र्शमुखड़ा में किसी समाचार की सबसे महत्वपूर्ण सूचना आ जानी चाहिये और
उसे किसी भी हालत में 35 से 50 शब्दों से अधिक नहीं होना चाहिये किसी मुखड़े में मुख्यत: छह सवाल का जवाब
देने की कोशिश की जाती है – क्या हुआ, किसके साथ हुआ, कहां हुआ, कब हुआ, क्यों और कैसे हुआ है।
आमतौर पर मानाजाताहैकि एक आदर् र्शमुखड़े में
सभीछहककार का जवाब देनेकेबजायेकिसी एक मुखड़े को प्रा
थमिकता
देनी चाहिये।
बाडी - समाचार लेखन की उल्टा पिरामिड लेखन शै लीमें मुखड़े में उल्लिखिततथ्यों की
व्याख्या और विलेषसण श्ले
माचार की बाडी में होती है। किसी समाचार लेखन का आदर् र्शनियम यह
है कि किसी समाचार को ऐसे लिखा जाना चाहिये, जिससे अगर वह किसी भी बिन्दु पर समाप्त हो
जाये तो उसके बाद के पैराग्राफ में एसे कोई तथ्य नहीं रहना चाहिये, जो उस समाचार के
बचे हुऐ हिस्से की तुलना में ज्यादा महत्वपूर्ण हो। अपने किसी भी समापन बिन्दुपर समाचार को
पूर्ण, पठनीय और प्रभाव लीहोशाना चाहिये। समाचार की बाडीमें छह ककारो में से दो क्यो और
कैसे का जवाब देने की को शिशकी जाती है। कोई घटना कैसे और क्यो हुई, यह जानने के
लिये उसकी पृष्ठभूमि,परिपेक्ष्य और उसके व्यापक संदर्भ को खंगालने की को शिश की जाती है।
इसकेज़रियेहीकिसीसमाचार केवास्तविक अर्थऔर असर को स्पष् टकियाजासकताहै
।
निष्कर्ष या समापन - समाचार का समापन करते समय यह ध्यान रखना चाहिये कि न सिर्फ उस
समाचार के प्रमुख तथ्य आ गये हैं बल्कि समाचार के मुखड़े और समापन के बीच एक
तारतम्यता भी होनी चाहिये समाचार में तथ्यों और उसके विभिन्न पहलुओं को इस तरह से
पेश करना चाहिये कि उससे पाठक को किसी निर्णय या निष्कर्ष पर पहुंचने में मदद मिले।
भाषा और शैली - पत्रकार के लिए समाचार लेखन और संपादन के बारे में जानकारी होना तो
आवयकहै श्य
। इस जानकारीको पाठक तक पहुं चानेकेलिएएक भाषाकी जरू रत होतीहै । आमतौर पर समाचार लोग पढ़तेहैं
या सुनते-देखते हैं और इनका अध्ययन नहीं करते। हाथ में शब्दकोष लेकर समाचार पत्र नहीं पढ़े जाते। इसलिए समाचारों
की भाषा बोलचाल की होनी चाहिए। सरल भाषा,छोटेवाक्य और संक्षि प्त पै
राग्रा
फ। एक पत्र कार को समाचार लिखते
उदाहरण के लिए अगर कोई पत्रकार ‘इकनामिक टाइम्स’ जैसे अंग्रेजीके आर्थिक समाचार
पत्र के लिए समाचार लिख रहा है तो उसे मालूम होता हैकि इस समाचार पत्र को किस तरह के
लोग पढ़ते हैं। उनकी भाषा क्या है,उनके मूल्य क्या हैं, उनकी जरूरते क्या हैं, वे क्या
समझते हैं आरै क्या नहीं? ऐसे अनेक शब्द हो सकते हैं जिनकी व्याख्या करना ‘इकनामिक टाइम्स’ के पाठको के
लिए आवयकन श्य हो लेकिन अगर इन्हीं शब्दों का इस्तेमाल ‘नवभारत टाइम्स’ में किया जाए तो
शायद इनकी व्याख्या करने की जरूरतपड़े क्योंकि ‘नवभारत टाइम्स’ के पाठक एक भिन्न सामाजिक समूह से आते हैं। अनेक
ऐसे शब्द हो सकते हैं जिनसे नवभारत टाइम्स के पाठक अवगत हों लेकिन इन्हीं का इस्तेमाल जब ‘इकनामिक टाइम्स’ में किया
जाए तो शा यदव्याख्या करने की जरूरत पड़े क्योंकि उस पाठक समुदाय की सामाजिक,सांस्‟तिक
और शैक्षिक पृष्ठभूमि भिन्न है। अंग्रेजी भाषा में अनेक शब्दों का इस्तेमाल मुक्त रूप से कर लिया जाता है जबकि हिंदी भाषा का
मिजाज मीडिया में इस तरह के गाली-गलौज के शब्दों को देखने का नहीं है भले ही बातचीत में इनका कितना ही
इस्ते
माल क्योंन हो। भाषाऔर सामग्री केचयन में पाठक याउपभे क्तावर्गकी संवेदन लता
काओंशी भीध्यान रखा जाताहैआरै
ऐसी सूचनाओं के प्रकाशन या प्रसारण में विशेष सावधानी बरती जाती है जिससे हमारी सामाजिक एकता पर नकारात्मक प्रभाव
पड़ता हो। समाचार लेखक का भाषा पर सहज अधिकार होना चाहिए। भाषा पर अधिकार होने के
साथ साथ उसे यह भी जानना चाहिए कि उसके पाठक वर्ग किस प्रकार के हैं। समाचार पत्र में
समाचार के विभिन्न प्रकारों में भाषा के अलग अलग स्तर दिखाई पड़ते हैं। अपराध समाचार
की भाषा का स्वरूप वहीं नहीं होता है जो खेल समाचार की भाषा का होता है। पर एक बात उनमें
समान होती है वह यह कि सभी प्रकार के समाचारों में सीधी, सरल आरै बोधगम्य भाषा का
प्रयोग किया जाता है। दूसरी बात यह कि समाचार लेखक को अपनी वि षता का शे क्षेत्र निर्धारित
कर लेना चाहिए। इससे उस विषय वि ष से
शे संबद्ध शब्दावली से यह परिचित हो जाता है और
जरूरत पड़ने पर नये शब्दो का निर्माण करता चलता है।
उनमें से कुछ लोग जिन्हें लिखना पड़ता है वह वास्तव में लिखने का आनंद लेते हैं
लेकिन कई लोग के लिए लेखन सिर्फ दिनचर्या के काम से ज्यादा कुछ भी नहीं हैं। इन लोगों
के साथ समस्या यह है कि वे इसके बारे में बिल्कुल भी नहीं सोचते कि किस तरह लिखना
चाहिये। जिसके परिणामस्वरूप उनकी लेखन शै लीअधिक समय लेने वाली , गलत और असंतोषजनक
होती है।
जिस तरह बीजगणित के एक प्रन श्नको हल करने के लिए नियम बने हुए हैं उसी तरह बेहतर
लेखन के लिए भी कई नियमों का पालन किया जा सकता है। इस अध्याय में हम ये जानेंगे कि
एक प्रभावी व्यावसायिक दस्तावेज़ लिखने की प्रक्रिया की शुरुआत वास्तव में किस तरह होनी चाहिये।
सभी चरणों में सबसे मुकिल ल श्कि(और सबसे अधिक दिमाग खपाने वाला ) काम किसी लेखन की शु रुआत
करना है। यहां कुछ ऐसी युक्तियां दी गई हैं जिससे आपको लेखन कार्य जल्दी शुरू करने में
मदद मिलेगी −
● विषय के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिये अधिक से अधिक सूचना एकत्रित
करें
● इस अपूर्णड् रा
फ्ट पर अपनेसहकर् मी
की राय लें
।
● इसेजां
चें
और इस पर विचार करें
।
● योजना और संरचना
कंपनियां नियमित रुप से दस्तावेज जारी करती रहती हैं जैसे शे यरधारकोंके लिए वार्षिक
रिपोर्ट, ग्राहकों के लिए मासिक न्यूज़लेटर्स और कर्मचारियों के लिए संपादकीय। आपने किसी विषय वस्तु के लिये जो ड्राफ़्ट
तैयार किया है उसके आधार पर आपको अपने डेटा को तीन खाकों में बाँटना पड़ सकता हैं।
−
इस संरचनाका प्र
योग एजें
डा, मिनट, या रिपोर्ट लिखते समय किया जाता है जहाँ कार्य सौंपे जाते
हैं और परिणामों को कालानुक्रमिक अनुक्रम में लिखा जाता है।
वर्णक्रमानुसार संरचना
विषय संरचना
सबसे अधिक इस्तेमाल की जाने वाली संरचना में संरचना का विभाजन विषयानुसार होता है।
उदाहरण के तौर पर किसी भी वेबसाइट पर 'बहुधा पूछे गए प्रन श्न' वाले पेज को इस तरह से
इन (कोल्ड डिजाइन) किया जाता है कि उसमें चुनने के लिए तीन विषय - "डिलीवरी स्टे
डिज़ा टस",
"शिकायत" और "भुगतान और धनवापसी" होते हैं और प्रत्येक विषय में उससे जुड़े नाना प्रकार
के प्रन श्नहोते हैं।
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि व्यावसायिक डॉक्यूमेन्ट लिखते समय हमे शाएक तार्किक
अनुक्रम का पालन किया जाना चाहिये ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि डॉक्यूमेन्ट के माध्यम से सही संदेश सम्प्रेषित हो
रहा है।
भारत सरकार
निर्माण तथा आवास मंत्रालय
नई दिल्ली
दि
……………….
सेवा में
उप सचिव
संघ लोक सेवा आयोग
नई दिल्ली
लय का पत्रसं………….. दि ………………… ।
संदर्भ:- आपकेकार् या
महोदय,
उपर्युक्त विषय पर मुझे आपके कार्यालय के पत्र सं ………… .. दि0 ……….. की पावती
भेजने तथा यह कहने निदेश हुआ है कि आपने जो सूचनाएं मांगी हैं, वे सूचनाएं अधीनस्थ तथा सम्बद्ध
कार्यालयों से प्राप्त की जानी हैं। ये कार्यालय दूर-दूर स्थित हैं। अत: सूचना एकत्र करने में
अधिक समय लगने की संभावना है। निर्धारित अवधि में पूरी सूचना भेज पाना संभव नहीं है। अधीनस्थ तथा सम्बद्ध कार्यालयों
से सूचनाएं प्राप्त होने पर तत्काल आपको भेज दी जाएँगी ।
भवदीय
कखग
उपसचिव
टेली सं.
संपादकीय संपादक की चेतना, सजगता, निर्णय क्षमता तथा स्वस्थ द्रष्टिकोण का सूचक होता है।
इसलिए संपादकीय केअं तर्ग
त वर् णि
त तथ्योंसेनिष्कर्षनिकलनेमें
सदै
व निष्पक्षरहना चाहिए। संपादकीय लिखनेवालेको
नियमित रूप से अपने निष्कर्षों पर विचार करना चाहिए तथा देश , काल एवं परिस्थितियों के
अनुसार उसमे परिवर्तन करते रहना चाहिए।
संपादकीय पृष्ठ किसी भी समाचार पत्र का सबसे प्रमुख पृष्ठ होता है। इस पृष्ठ को समाचार पत्र
की आवाज कहा जाता है क्योंकि यह पृष्ठ समाचार पत्र का विचार पेज कहलाता है जो समाचार
पत्र की राय प्रस्तुत करता है।
विषय का चयन- कुछ भी लिखने के लिए सबसे पहले विषय का चयन होना जरूरी है। संपादकीय
लेखन के लिए प्रायः उस समय का महत्वपूर्ण और रुचिकर विषय चुना जाता है। विषय ऐसा होता
है जिससे ज्यादा से ज्यादा लोगों के हित जुड़े होते हैं।
सामग्री संकलन- विषय के चुनाव के बाद उससे संबंधित सामग्री के संकलन का चरण आता है।
, समाचार पत्रों की विषयवार कतरनों से और आजकल इंटरनेट से सामग्री
इसकेलिएपुस्तकालय से
संकलन किया जाता है।
रूपरेखा निर्माण- सामग्री संकलन के बाद लिखने से पहले एक रूपरेखा बनाई जाती है,
जिससे स्पष्ट हो जाता है कि लेख का ढांचा किस प्रकार का होगा।
विषय का विस्तार- लेख की शु रुआत करने के बाद किसी के वक्तव्य, मत, तर्क और कथनों के
जरिये उस विषय का क्रमिक विस्तार किया जाता है।
निष्कर्ष- इस चरण मेंकोई विचार प्र , कोई परामर् र्शदेकर या आदेश देकर लेखक किसी
तिपादित करके
निष्कर्ष पर पहुंचता है। निष्कर्ष नपा-तुला और संतुलित होना चाहिए।
शीर्षक- लेखन पूरा होने का बाद शी र्षकका नंबर आता है। हालांकि शी र्षकपहले भी लिखा जा सकता
है। यह लेखक की रुचि और सुविधा पर निर्भर करता है। शी र्षकबहुत महत्वपूर्ण होता है। यह लेख
के लिए शो विंडोके समान होता है, इसलिएइसेदूर सेहीआकर् षित करनेवालाहोनाचाहिए।
भाषा- संपादकीय या अग्रलेख की भाषा जीवंत होनी चाहिए। यह घिसी-पिटी और नीरस नहीं होनी
चाहिए।
१) परम्परागत शब्द:- परम्परागत शब्द भाषा को विरासत में मिलते हैं। हिन्दी में ये शब्द
संस्कृत, प्राकृत तथा अपभ्रंश की परम्परा से आए हैं। ये शब्द तीन प्रकार के हैं - १)तत्सम
शब्द, २)अर्द्ध तत्सम, ३)तद्भव शब्द।
१) तत्सम शब्द:- तत्सम शब्द का अर्थ संस्कृत के समान - समान ही नहीं , अपितु शुध्द संस्कृ त के शब्द जो
हिन्दी में ज्यों के त्यों प्रचलित हैं। हिन्दी में स्त्रोत की दृष्टि से तत्सम के चार प्रकार
हैं--
१) संस्कृत से प्राकृत, अपभ्रंश से होते हुए हिन्दी में आये हुए तत्सम शब्द; जैसे- अचल, अध, काल, दण्ड आदि।
२) संस्कृत से सीधे हिन्दी में भक्ति, आधुनिक आदि विभिन्नकालोंकेलिए गए शब्द; जैसे- कर्म, विधा,
ज्ञान, क्षेत्र, कृष्ण, पुस्तक आदि।
३) संस्कृत के व्याकरिणक नियमों के आधार पर हिन्दी काल में निर्मित तत्सम शब्द ; जैसे-
जलवायु(आब हवा), वायुयान(ऐरोप्लेन),प्राध्यापक (Lecturer) आदि।
४) अन्य भाषा से आए तत्सम शब्द। इस वर्ग के शब्दों की संख्या अत्यल्प है। कु छ थोडे़ शब्द बंगाली तथा मराठी के माध्यम से
हिन्दी में आए हैं। जैसे- उपन्यास, गल्प, कविराज, सन्देश, धन्यवाद आदि बंगाली शब्द है।, प्रगति,
वाड्मय आदि मराठी शब्द है।
२) अधर्द तत्सम शब्द:- तत्सम और तद्भव के बीच की स्थिति के शब्द अर्थात् जो पूरी तरह तद्भव भी
नहीं है और पूरी तरह से तत्सम भी। ऐसे शब्दों को डा. ग्रियर्सन, डा. चटर्जी आदि भाषाविदों ने
'अध्र्द तत्सम' की संज्ञा दी है; जैसे- 'कृष्ण' तत्सम शब्द है, कान्हा, कन्हैया उसके तध्दव रूप
हैं, परन्तु किननशु , किशन न तो तत्सम है और न तद्भव; अत: इन्हें
अध्र्
द तत्समकहागयाहै
।
३) तद्भव शब्द:- तद्भव शब्द का अर्थ संस्कृत से उत्पन्न या विकसित शब्द , अनेक कारणों से संस्कृ त,
प्राकृत आदि की ध्वनियाँ घिस-पीट कर हिन्दी तक आते-आतेपरिवर् ति त हो गयी है। परिणामत: पूवर्वती
आर्यभाषाओंकेशब्दोंकेजोरू प हमें
प्रा , उन्हें तद्भव कहा जाता है। हिन्दी में प्राय: सभी तद्भव
प्त हुएहैं
हैं। संज्ञापदों की संख्या सबसे अधिक है, किन्तु इनका व्यवहार देश, काल, पात्र आदि के
अनुसार थोडा़ बहुत घटता-बढ़ता रहता है। जैसे- अंधकार से अंधेरा, अग्नि से आग, अट्टालिका से अटारी, रात्रि
से रात, सत्य से सच आदि।
२) '''देशज(देशी)''':- देशी शब्द का अर्थ है अपने देश में, उत्पन्न जो शब्द न विदे शी है, न तत्सम हैं और न
तद्भव हैं। देशज शब्द के नामकरण के विषय में विद्दानों में पर्याप्त मतभेद है। भरतमुनि
ने इसे 'देशीमत' , चण्ड ने 'देशी प्रसिध्द' तथा मार्कण्डेय तथा हेमचन्द्र ने इसे 'देशा' या दे शी कहा
है। डा. शयामसुन्दरदास तथा डा. भोलानाथ तिवारी ने इसे 'अज्ञात व्युत्पत्तिक' कहा है। अत: देशज शब्द दो प्रकार के हैं--
१) एक वे जो अनार्य भाषाओं(द्रविड़ भाषाओं) से अपनाये गये हैं और दूसरे २) वे जो लोगों ने ध्वनियों
की नकल में गढ़ लिये गए हैं।
(क) द्रविड़ भाषाओं से-- उड़द, ओसारा, कच्चा, कटोरा कुटी आदि।
(ख) अरबी से:- १००० ई. के बाद मुसलमान शा सकोंके साथ फारसी भारत में आई और उसका अध्ययन-
अध्यापन होने लगा। कचहरियों में भी स्थान मिला। इसी प्रकार उसका हिन्दी पर बहुत गहरा प्रभाव पडा़ । हिन्दी में जो फारसी
शब्द आए, उनमें काफी शब्द अरबी के भी थे। अरब से कभी भारत का सीधा सम्बन्ध था , किन्तु जो
शब्द आज हमारी भाषाओं के अंग बन चुके हैं, डा. भोलानाथ तिवारी के अनुसार छ: हजार शब्द फारसी के है जिनमें
2500 अरबी के है। जैसे-- अजब, अजीब, अदालत, अक्ल, अल्लाह, आखिर, आदमी, इनाम,एहसान, किताब, ईमान आदि।
(ग) फ्रांसीसी से:- भारत और ईरान के सम्बन्ध बहुत पुराने हैं। भाषा विज्ञान जगत इस बात से पूर्णत: अवगत है कि ईरानी
और भारतीय आर्य भाषाएँ एक ही मूल भारत-ईरानी से विकसित है। यही कारण है कि अनेकानेक शब्द कु छ थोडे़ परिवर्तनों के
साथ संस्कृत और फारसी दोनों में मिलते है; डा. भोलानाथ तिवारी के अनुसार हिन्दी में छ: हजार शब्द
फारसी के माने है। अंग्रेजी के माध्यम से बहुत सारे फ्रांसीसी शब्द हिन्दी में आ गये
हैं; जैसे- आबरू , आतिशबाजी, आमदनी, खत, खुदा, दरवाजा, जुकाम, मजबूर, फरिता श्ता लैम्प, टेबुल आदि।
(घ) अंग्रेजी से:- लगभग ई.स. १५०० से यूरोप के लोग भारत में आते-जाते रहे हैं, किन्तु करीब
तीन सौ वर्षों तक हिन्दी भाषी इनके सम्पर्क में नहीं आए, क्योकि यूरोपीय लोग समुद्र के
रास्ते से भारत में आये थे; अत: इनका कार्य क्षे
त्रप्रा
रम्भ में
समुद्रतटवर् ती
प्र
दे शों
में , लेकिन १८ वी.
हीरहाहै
शती के उत्तराध्र्द से अंग्रेज समूचे देश में फै लने लगे। ई.स. १८०० के लगभग हिन्दी भाषा प्रदेश मुगलों के हाथ
से निकलकर अंग्रेजी शा सनमें चला गया। तब से लेकर ई.स. १९४७ तक अंग्रेजों का शा सन
रहा। इस शा सनकाल के दौरान अंग्रेजी भाषा और सभ्यता को प्रधानता प्राप्त हुई। स्वाधीनता
प्राप्ति के बाद भी अंग्रेजी भाषा का महत्व कम नहीं हुआ। परिणामस्वरूप सभी भारतीय भाषा में
अंग्रेजी के बेशुमार शब्दों का प्रयोग होता आ रहा है। यधपि डा. हरदेव बाहरी के अनुसार अंग्रेजी के हिन्दी
में प्रचलित शब्दों की संख्या चार-पाँच सौ अधिक नहीं है, लेकिन वास्तव में यह संख्या तीन
हजार से कम नहीं होगी। तकनीकी शब्दों को जोड़ने पर यह संख्या दुगुनी हो जायेगी। जैसे-
अपील, कोर्ट, मजिस्टेट, जज, पुलिस, पेपर, स्कूल, टेबुल, पेन, मोटर, इंजिन आदि। इस प्र कार हिन्दी भाषाने
देश-विदेश की अनेक भाषाओं से शब्द ग्रहणकर अपने शब्द भण्डार में महत्वपूर्ण वृध्दि कर ली
है।
6 रचना की तैयारी
उत्तर-
हिंदी में खड़ी पाई या पूर्ण विराम भारतीय परंपरा का है, जिसका प्राचीन नाम "दंड" था। शे ष
चिन्ह अंग्रेजी के माध्यम से यूरोप से आए हैं। अधिकांश विरामचिह्न (. :, ;) मूलत: बिंदु पर
आधारित हैं । लिखतेसमय रुकनेपर कलमकागज पर रखनेसेबिं दु सहज हीबन जाताथा। इस प्र कार पूर्णविरामकेरू प में
अंग्रेजी आदि का बिंदु सहज ही पूर्ण विराम का द्योतक बन बैठा। कामा, पूर्ण विराम या बिंदु में ही नीचे की ओर
एक शोशा बढ़ा देने से बना है। प्रश्नवाचक या आश्चर्यसूचक चिह्नों का विकास स्वतंत्र रूप से हुआ है। इसकी उत्पत्ति के बारे में
मतभेद है। लगता है प्रनवाचक चिह्न श्न लैटिन भाषा के प्रनार्थी ब्द श्ना
श Quaestio का संक्षिप्त
रूप (Qo) है, जिसमें (Q) ऊपर तथा o नीचे (?) है। इसी प्रकार आचर्यसूचक चिह्न श्च (!) लैटिन
भाषा का प्रसन्नार्थी शब्द Io है जिसमें आइ और ओ ऊपर नीचे हैं।
1. सरकारी पत्र का एक उपभेद है, सरकारी कामकाज के संबंध में इनका प्रयोग होता है।
2. शीघ्र कार्रवाई या अभिलंब जानकारी प्राप्त करने के लिए इनका प्रयोग किया जाता है।
3. व्यक्तिगत और आत्मीय शै लीमें लिखे जाते हैं।
4. इनमें उत्त म पुरुष का प्र
योगहोताहै
।
5. व्यक्तिगत पहचान के साथ भेजे जाते हैं।
6. औपचारिकता का पालन नहीं किया जाता है।
7. सामान स्तर के अधिकारियों के बीच में अधिक प्रचलित है।
हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर जिले में नादौन के गांव कुलहेड़ा की महिला के बैंक खाते से
शातिरों ने करीब पौने सात लाख रुपए उड़ा लिए, तो दिसंबर 2018 में बैजनाथ में सु लानाशीमक महिला
द्वारा एटीएम निकासी के कु छ देर बाद ही 47 हजार रुपए की निकासी हो गई। बैंक फ्रॉड के ऐसे अनेक
मामलों की खबरें आए दिन समाचार पत्रों में पढ़ने को मिलती हैं, लेकिन नागरिकों को फिर
भी ठगी से राहत मिलती नहीं दिखती। 2017 में 18 फीसदी भारतीय ऑनलाइन ठगी के शि कारहुए थे। सरकार
चाहती है कि डिजिटल लेन-देन बढ़े, लेकिन इलेक्ट्रॉनिक बैंकिंग की बारीकियों से अनजान
अधिकांश भारतीय जगह-जगह रोजाना लूटे-ठगे जा रहे हैं। 2014 से 2017 के बीच ही प्राइवेट बैंकों
में 4156 और सरकारी बैंकों में धोखाधड़ी के कु ल 8622 मामले सामने आ चुके हैं। आम भारतीय नागरिक
बैंकों में खाता इसलिए खोलते हैं, ताकि उनकी जमा पूंजी सुरक्षित भी रहे और उन्हें उस पर
साथ ही बैंकिंग व्यवस्था में सेंध लगाने वाले हैकर्स और साइबर अपराधियों से आम
नागरिकों को होने वाले आर्थिक नुकसान से बचाने के लिए वि ष उ शेपाय खोजने की जरूरत भी
है। बैंकिंग सेवाओं से जुड़े कर्मचारियों और अफसरों की कुछ समस्याएं भी हैं, जिनका
समाधान होना अनिवार्य है। कर्मचारियों को नवंबर 2017 से मिलने वाले वेतन रिवीजन का
लाभ अभी तक नहीं मिला है।
हाल ही में दिसंबर 2018 में यूनाइटेड फोरम ऑफ बैंक यूनियन ने बैंकों के पारस्परिक
विलय के विरोध में, पे-रिवीजन में देरी और बैंकों में बढ़ते कामकाज के दबाव के
विरोध में हड़ताल की थी। आज भी बड़ी संख्या में राज्य एवं केंद्र सरकारों के पेंशनर्स
पहली तारीख को सुबह ही बैंकों के दरवाजों पर स्वयं अपनी पेंशन का भुगतान प्राप्त करने
के लिए लाइन में खड़े मिल जाएंगे, क्योंकि उन्हें वित्तीय असुरक्षा के चलते एटीएम
10 तार्किक लेखन
उत्तर- लेखन एक प्रक्रिया है जिसमें कम से कम चार अलग-अलग चरण शामिल हैं: अधिलेखन,
प्रारूपण, सं धन औ शो र संपादन यह एक रिकर्सिव प्रक्रिया के रूप में जाना जाता है जब आप
सं धन क शोर रहे हैं, तो आपको अपने विचारों को विकसित और विस्तारित करने के लिए
अधिलेखन चरण में वापस लौटना पड़ सकता है तार्किक प्रत्यक्षवाद (या तार्किक वस्तुनिष्ठावाद या तार्किक
भाववाद / logical positivism) ह्यूम के अनुभववाद, कॉन्त के वस्तुनिष्ठावाद तथा ह्वाइटहेड रसेल
के तार्किक विले षका
ण श्ले विचित्र सम्मिरण है श्र । विज्ञानों को निरापद आधारप्रदान तथा
अतींद्रिय तत्वविज्ञान की निरर्थकता के युगल उद्देश्यों की पूर्ति के हेतु वह भाषा के तार्किक विश्लेषण की विधि अपनाता है।
सत्यापन की प्रक्रिया को ही किसी प्रस्तावना का अर्थ मानकर तार्किक वस्तुनिष्ठावादी परंपरागत
दार्शनिक प्रश्नों को निरर्थक मानते हैं क्योंकि इस नवीन व्याख्या के अनुसार इंद्रियातीत विषयों से संबंधित होने के कारण वे कोई
अर्थ नहीं रखते।