You are on page 1of 2

सम्पादकीय पष्ृ ठ की रचना :

ु य रूप से सबसे अन्त में पढ़ते हैं,


सम्पादकीय पष्ृ ठ समाचार पत्र का एक ऐसा पष्ृ ठ होता है जिसे पाठक मख्
क्योंकि औसत के अनुसार पत्र में इस महत्वपूर्ण पष्ृ ठ का स्थान पाठकों के रूचि के आधार पर अंतिम होता है ।
सम्पादकीय पष्ृ ठ सामान्य रूप से समाचार पत्र के बीच में होता है । अब अनेक समाचार पत्रों ने इस परम्परा को
बदल दिया है , कुछ समाचार पत्रों ने तो संपादकीय पष्ृ ठ का मल
ू स्वरूप ही बदल दिया है । फिर भी यदि
समाचार पत्र का प्रमुख समाचार पष्ृ ठ उसकी दक
ु ान की खिड़की है तो सम्पादकीय पष्ृ ठ समाचार पत्र की आत्मा
से भी बहुत कुछ अधिक होता है। यह पष्ृ ठ केवल समाचार पत्र के स्वामियों के संकीर्ण हितों तथा उसके
सम्पादक की पूर्वधारणाओं के संवर्धन का माध्यम मात्र नहीं होता बल्किसमपूर्ण समाचार पत्र का आधार स्तम्भ
तथा उसका निचोड़ होता है ।

इस पष्ृ ठ में जो भी सामग्री सम्मिलित की जाती है वह औसत पाठकों के दृष्टिकोण से तैयार नहीं की जाती।
अनेक पाठक तो ऐसे भी होते हैं कि वे इस पष्ृ ठ को पढ़ने का महत्व ही नहीं जानते। सम्पादक इस बात से
भली-भांति परिचित होते हैं तथा वे अच्छी तरह पाठकों के दृष्टिकोण को जानते हैं। अतः वे अपने लेख को इस
तरह लिखते हैं कि वे जनमत के निर्माताओं और उन व्यक्तियों को प्रभावित कर सकें जो कि नीति के सन्दर्भ
में वास्तविक अर्थों में महत्वपूर्ण होते है और नीति निर्माण और कार्यान्वयन करते हैं।

किसी भी समाचार पत्र के लिए सम्पादकीय पष्ृ ठ ही उसकी आत्मा होती है । वस्तुतः सम्पादकीय पष्ृ ठ ही वह
आधार है जिसने प्रेस को प्रजातंत्र के चौथे स्तम्भ की मान्यता दिलाई है । जनमत को जाग्रत करना, दिशा दे ना
और जनता की राय कायम करने में सम्पादकीय पष्ृ ठ की ही भूमिका सबसे महत्वपूर्ण हे। सामन्यतः
सम्पादकीय पष्ृ ठ पर निम्न तरह की विषयवस्तु दे खने को मिलती है : सम्पादकीय, सामयिक आलेख, सम्पादक के
नाम पत्र, सूक्तियां, अन्य स्तम्भ व कार्टून या व्यंग्य स्तम्भ। सभी बड़े समाचार पत्रों ने सम्पादकीय पष्ृ ठ की
अपनी-अपनी मान्यताएं भी तय कर रखी हैं। कई पत्र सप्ताह के छह दिन अलग-अलग तय विषयों पर
सम्पादकीय दे ते हैं व कई सामयिक विषयों को सम्पादकीय का आधार बनाते हैं। भाषाइ समाचार पत्रों में
राष्ट्रीय विषयों पर ज्यादा जोर दिया जाता है जबकि अंग्रेजी पत्रों में अन्तर्राष्ट्रीय विषयों पर जोर दिया जाता है।
सम्पादकीय पष्ृ ठ में मुख्यतः निम्नलिखत सामग्री आती है 1. सम्पादकीय : अग्रलेख या सम्पादकीय का
सामान्य अर्थ सम्पादक की राय अथवा उसका विचार माना जाता है । ऐसी मान्यता है कि किसी भी समाचार
पत्र में सम्पादकीय का होना नितान्त आवश्यक है। हमारे दे श में अखबारों को विज्ञापन सम्बन्धी मान्यता दे ते
समय यह दे खा जाता है कि पत्र में सम्पादकीय छपता है या नहीं। सम्पादकीय का दस
ू रा अर्थ यह भी है कि
उसके द्वारा यह

पता चलता है कि समाज में घटी किसी घटना राजनीतिक उथल-पथल कोईगतिविधि अथवा विषय पर उस
समाचार पत्र के क्या विचार हैं। सम्पादकीय का सामान्य विषय ज्वलंत विषय या नवीन घटना होती है । प्रायः
दे खा गया है कि समाचार पत्रों के सम्पादकीय विभाग में सम्पादकीय लिखने वालों की एक टीम होती है । इस
ृ क-पथ
टीम में पथ ृ क विषयों के ज्ञाता होते हैं। साथ ही एक पूरा पुस्तकालय व सन्दर्भ विभाग होता है जहां से
वह उस विषय से सम्बन्धित अन्य सूचनाओं को प्राप्त की जाती हैं। सम्पादक के विचारों की अभिव्यक्ति के
कारण यह स्तम्भ समाचार पत्र की नीति का प्रतीक माना जाता है । सम्पादकीय का तात्पर्य महज घटना की
जानकारी दे ना नहीं है वरन ् उसकी पष्ृ ठभूमि में उसका विश्लेषण करना है । उसे सम्पादक की विचार दृष्टि को
भी प्रकट करना होता है । उसे पढकर ही पाठक अपना मत बनाता है अतः उसमें व्यक्त विचार ताकि र्क ता की
कसौटी पर कसे होने चाहिए। भाषा की शिथिलता विचार अभिव्यक्ति को बेजान तथा विकलांग बना दे ती है ।
अतः सम्पादक की भाषा में कसावट, विचारों में परिपक्वता तथा व्यक्तित्व में दृढ़ता होनी चाहिए। सम्पादकीय,
सम्पादकीय पष्ृ ठ का सबसे महत्वपूर्ण भाग या यों कहें 'आत्मा' होती है तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। समाचार
पत्र में जो कुछ छपता है , हालांकि उसका सारा दारोमदार सम्पादक पर ही होता है पर जो सम्पादकीय में छपता
है वह वस्तत
ु ः समाचार पत्र की नीति व विचारों का दर्पण होता है । इसी कारण सम्पादकीय पष्ृ ठ को समाचार
पत्र का दर्पण भी कहते हैं। किसी राष्ट्रीय दःु ख में सम्पादकीय कालम को खाली या रिक्त छोड़ने की परम्परा
रही है। जैसे नेहरू व इन्दिरा गांधी के निधन पर सम्पादकीय कालमों को रिक्त छोड़ा गया था यह दर्शाता है
कि अपार दख
ु की घड़ी में संपादक कलम नहीं उठा सकता। यदि सम्पादकीय मख्
ु य पष्ृ ठ पर छपे तो यह विषय
की अत्यधिक महत्वता को दर्शाता है ।

2. सामयिक आलेख : इसमें विशिष्ट विषय पर विशिष्ट व्यक्ति का मत होता है । यह ध्यान रखा जाता है कि
इस प रकार के सामयिक लेख लिखने वाला न केवल प्रतिष्ठित हो बल्कि वह अपने विषय में पारं गत भी हो ।
इन लेखों का लक्ष्य जनमत जाग्रत करना, दिशा दे ना व राय बनाने में मदद करना होना चाहिए।

3. सम्पादक के नाम पत्र : किसी समाचार पत्र की लोकप्रियता उसके यहां आने वाले पाठकों के पत्रों से स्वयं ही
मालूम चल जाती है। इसमें पाठक प्रशंसा भी कर सकता है व आलोचना भी। आलोचना को स्थान दे ना अपने
आप में एक स्वस्थ परम्परा है । यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि अग्रलेख व सम्पादकीयआलेख का जो मूल्य है
वही पाठक के पत्रों का भी है । कभी-कभी किसी विषय पर सम्पादकीय विभाग स्वयं राय आमन्त्रित करता है व
पाठकों के पक्ष-विपक्ष में पत्र आना शुरू हो जाते हैं। अखबार में छपे इस तरह के शिकायती पत्रों का क्या कुछ
प्रभाव भी होता है। जो समाचार पत्र जितना प्रतिष्ठित होता है व जिसकी ज्यादा प्रसार-संख्या होती है उसमें
छपे पत्र का उतने ही बड़े पैमाने पर असर होता है।

4. अन्य स्तम्भ : सम्पादकीय पष्ृ ठ पर प्रकाशित स्तम्भ नियमित व समयबद्ध दोनों प्रकार के हो सकते हैं, जैसे
दरू दर्शन व आकाशवाणी की समीक्षा के स्तम्भ या धर्म, आध्यात्म, ज्योतिष आदि के स्तम्भ। इन स्तम्भों के
माध्यम श्रेणी विशेष के पाठकों की रूचि से संतुष्ट किया जाता है।

5. व्यंग्य स्तम्भ : इसमें लेखक विनोदपूर्ण भाषाशैली में अपने विचार रखता है । पाठक को गुदगुदाता है व मुख्य
समस्या की तरफ ध्यान आकर्षित करता है । इस स्तम्भ से सम्पादकीय पष्ृ ठ की नीरसता दरू होती है , पाठक
तरोताजा होता है । ऐसे स्तम्भों के पाठकों की संख्या अग्रलेखों के पाठकों की संख्या से ज्यादा होती है । इनमें
प्रायः दै निक जीवन की घटनाओं से सम्बन्धित व्यंग्यपूर्ण र् वणर्न होता है । एक तरह से यह साहित्यिक
रचनाओं की कोटि में आता हे । कार्टून कोना ऐसे स्तम्भ की एक लोकप्रिय विधा है ।

You might also like