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AJAY JAIN 9971313179

BHDLA 136 2020 TERM END ASSIGNMENT

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1 समाचार ले खन क ि या

उ र- समाचार लेखन क ि या - उ ा िपरािमड स ध त समाचार लेखन का बुिनयादी स ध त है।

यह समाचार लेखन का सबसे सरल, उपयोगी और ावहा रक स ध त है। समाचार लेखन का यह

स ध त कथा या कहानी लेखन क ि या के ठ क उलट है। इसम िकसी घटना, िवचार या सम ा के

सबसे मह पूण त या जानकारी को सबसे पहले बताया जाता है, जबिक कहानी या उप ास म

ाइमे सबसे अ
ं त म आता है। इसे उ ा िपरािमड इस लये कहा जाता है िक इसम सबसे

मह पूण त या सूचना सबसे पहले आती है जबिक िपरािमड के िनचले िह े म मह पूण त या

सूचना होती है। इस शैली म िपरािमड को उ ा कर िदया जाता है। इसम सबसे मह पूण सूचना िपरािमड

के सबसे उपरी िह े म होती है आरै घटते ये म म सबसे कम मह क सूचनाये सबसे िनचले िह ेम

होती है। समाचार लेखन क उ ा िपरािमड शैली के तहत लखे गये समाचार के सुिवधा क ि से

मु त: तीन िह म िवभा जत िकया जाता है- मुखड़ा या इं ो या लीड, बाडी और िन ष या समापन।

इसम मुखड़ा याइटं◌्रो समाचार के पहले आरै कभी-कभी पहले और सरे दोन पैरागा्रफ को कहा

जाता है। मुखड़ा िकसी भी समाचार का सबसे मह पूर ्ण िह ा होता है िक इसम सबसे मह पूण

त और सूचनाओं को लखा जाता है। इसके बाद समाचार क बाडी आती है, जसम मह के

अनुसार घटते ये म म सूचनाओं और ौरा दे ने के अलावा उसक पृ भूिम का भी ज िकया जाता

है। सबसे अ
ं त म िन ष या समापन आता है। समाचार लेखन म िन ष जैसी कोई चीज नह होती है

और न ही समाचार के अ
ं त म यह बताया जाता है िक यह समाचार का समापन हो गया है।

मुखड़ा या इं ो या लीड - उ ा िपरािमड शैली म समाचार लेखन का सबसे मह पूण पहलूमुखड़ा लेखन

या इं ो या लीड लेखन है। मुखड़ा समाचार का पहला पैरा ाफहोता है जह से कोई समाचार शु होता है।

मुखड़े के आधार पर ही समाचार क गुणव ा का िनध रण होता है। एक आदश मुखड़ा म िकसी समाचार

क सबसे मह पूण सूचना आ जानी चािहये और उसे िकसी भी हालत म 35 से 50 श से अ धक नह

होना चािहये िकसी मुखड़े म मु त: छह सवाल का जवाब दे ने क को शश क जाती है – ा आ,

िकसके साथ आ, कह आ, कब आ, और कैसे आ है। आमतौर पर माना जाता है िक एक

आदश मुखड़े म सभी छहककार का जवाब दे ने के बजाये िकसी एक मुखड़े को ाथिमकता दे नी चािहये।

बाडी - समाचार लेखन क उ ा िपरािमड लेखन शैली म मुखड़े म उ खतत क ा ा और

िव लेषण समाचार क बाडी म होती है। िकसी समाचार लेखन का आदश िनयम यह है िक िकसी

समाचार को ऐसे लखा जाना चािहये, जससे अगर वह िकसी भी िब ु पर समा हो जाये तो उसके

बाद के पैरा ाफ म एसे कोई त नह रहना चािहये, जो उस समाचार के बचे ऐ िह े क तुलना म

ादा मह पूण हो। अपने िकसी भी समापन िब ु पर समाचार को पूण, पठनीय और भावशाली होना

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चािहये। समाचार क बाडीम छह ककारो म से दो ो और कैसे का जवाब दे ने क को शश क जाती है।

कोई घटना कैसे और ो ई, यह जानने के लये उसक पृ भूिम,प रपे और उसके ापक संदभ

को ख
ं गालने क को शश क जाती है। इसके ज़ रये ही िकसी समाचार के वा िवक अथ और असर को

िकया जा सकता है।

िन ष या समापन - समाचार का समापन करते समय यह ान रखना चािहये िक न सफ उस समाचार

के मुख त आ गये ह ब समाचार के मुखड़े और समापन के बीच एक तारत ता भी होनी चािहये

समाचार म त और उसके िव भ पहलुओं को इस तरह से पेश करना चािहये िक उससे पाठक को

िकसी िनणय या िन ष पर प ं चने म मदद िमले।

भाषा और शैली - प कार के लए समाचार लेखन और संपादन के बारे म जानकारी होना तो आव यक

है। इस जानकारी को पाठक तक प ं चाने के लए एक भाषा क ज रत होती है। आमतौर पर समाचार

लोग पढ़ते ह या सुनते-दे खते ह और इनका अ यन नह करते। हाथ म श कोष लेकर समाचार प नह

पढ़े जाते। इस लए समाचार क भाषा बोलचाल क होनी चािहए। सरल भाषा,छोटे वा और सं

पैरा ाफ। एक प कार को समाचार लखते व इसबात का हमेशा ान रखना होगा िक भले ही इस

समाचार के पाठक/उपभे ा लाख ह लेिकन वा िवक प से एक ि अकेले ही इस समाचार

का उपयोग करेगा। इस ि से जन संचार मा म म समाचार एक बड़े जन समुदाय के लए लखे जाते

ह लेिकन समाचार लखने वाले को एक ि को के ं म रखना होगा जसके लए वह संदे श लख रहा

है जसके साथ वह संदे श का आदान- दान कर रहा है। िफर प कार को इस पाठक या उपभे ाक

भाषा,मू , सं ृ त, ान और जानकारी का र आिद आिद के बारे म भी मालूम होना ही चािहए। इस

तरह हम कह सकते ह िक यह प कार और पाठक के बीच सबसे बेहतर संवाद क थ त है। प कार को

अपने पाठक समुदाय के बारे म पूरी जानकारी होनी चािहए। दरअसल एक समाचार क भाषा का हर

श पाठक के लए ही लखा जा रहा है और समाचार लखने वाले को पता होना चािहए िक वह जब

िकसी श का इ ेमाल कर रहा है तो उसका पाठक वग इससे िकतना वािकफ है और िकतना नह ।

उदाहरण के लए अगर कोई प कार ‘इकनािमक टाइ ’ जैसे अ


ं ेजीके आ थक समाचार प के लए

समाचार लख रहा है तो उसे मालूम होता हैिक इस समाचार प को िकस तरह के लोग पढ़ते ह। उनक

भाषा ा है,उनके मू ा ह, उनक ज रते ा ह, वे ा समझते ह आरै ा नह ? ऐसे अनेक श

हो सकते ह जनक ा ा करना ‘इकनािमक टाइ ’ केपाठको के लए आव यक न हो लेिकन अगर

इ श का इ ेमाल ‘नवभारत टाइ ’ म िकया जाए तो शायद इनक ा ा करने क ज रतपड़े

िक ‘नवभारत टाइ ’ के पाठक एक भ सामा जक समूह से आते ह। अनेक ऐसे श हो सकते ह

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जनसे नवभारत टाइ के पाठक अवगत ह लेिकन इ का इ ेमाल जब ‘इकनािमक टाइ ’ म

िकया जाए तो शायद ा ा करने क ज रत पड़े िक उस पाठक समुदाय क

सामा जक,स स् तक और शै क पृ भूिम भ है। अ


ं ेजी भाषा म अनेक श का इ ेमाल मु

प से कर लया जाता है जबिक हंदी भाषा का िमजाज मीिडया म इस तरह के गाली-गलौज के श को

दे खने का नह है भले ही बातचीत म इनका िकतना ही इ ेमाल न हो। भाषा और साम ी के चयन म

पाठक या उपभे ा वग क संवेदनशीलताओं का भी ान रखा जाता है आरै ऐसी सूचनाओं के

काशन या सारण म िवशेष सावधानी बरती जाती है जससे हमारी सामा जक एकता पर नकारा क

भाव पड़ता हो। समाचार लेखक का भाषा पर सहज अ धकार होना चािहए। भाषा पर अ धकार होने के

साथ साथ उसे यह भी जानना चािहए िक उसके पाठक वग िकस कार के ह। समाचार प म समाचार के

िव भ कार म भाषा के अलग अलग र िदखाई पड़ते ह। अपराध समाचार क भाषा का प वह

नह होता है जो खेल समाचार क भाषा का होता है। पर एक बात उनम समान होती है वह यह िक सभी

कार के समाचार म सीधी, सरल आरै बोधग भाषा का योग िकया जाता है। सरी बात यह िक

समाचार लेखक को अपनी िवशेषता का े िनध रत कर लेना चािहए। इससे उस िवषय िवशेष से

संब ध श ावली से यह प र चत हो जाता है और ज रत पड़ने पर नये श ो का िनम ण करता चलता

है।

2 भावी ले खन के गु ण

उ र- जस तरह से हमारे आस-पास क िनया म बदलाव आया है आजकल ेक ि को चाहे वो

िकसी भी उ का हो, या िकसी भी तरह क नौकरी करता हो या िकसी भी पद पर हो - उसे लखना पड़ता

है। चाहे वो ू ल म िदये जाने वाले काम ह , कोई रपोट बानानी हो या िफर िबल पर ह ा र करना हो -

सभी लखते ह।

उनम से कुछ लोग ज लखना पड़ता है वह वा व म लखने का आनंद लेते ह लेिकन कई लोग के

लए लेखन सफ िदनचय के काम से ादा कुछ भी नह ह। इन लोग के साथ सम ा यह है िक वे

इसके बारे म िब ु ल भी नह सोचते िक िकस तरह लखना चािहये। जसके प रणाम प उनक

लेखन शैली अ धक समय लेने वाली, गलत और असंतोषजनक होती है।

जस तरह बीजग णत के एक को हल करने के लए िनयम बने ए ह उसी तरह बेहतर लेखन के लए

भी कई िनयम का पालन िकया जा सकता है। इस अ ाय म हम ये जानगे िक एक भावी ावसाियक

द ावेज़ लखने क ि या क शु आत वा व म िकस तरह होनी चािहये।

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सभी चरण म सबसे मुि कल (और सबसे अिधक दमाग खपाने वाला ) काम कसी लेखन क शु आत करना है। यहां

कु छ ऐसी युि यां दी गई ह िजससे आपको लेखन काय ज दी शु करने म मदद िमलेगी −

● िवषय के बारे म जानकारी ा करने के लये अ धक से अ धक सूचना एकि त कर

● सभी या िवचर को सं ेप म लखने के लए मंथन कर।

● इस अपूण ा पर अपने सहकम क राय ल।

● सरल और शीलव भाव से लखे।

● पाठक के साथ सहानुभू त रख।

● इसे ज च और इस पर िवचार कर।

● योजना और संरचना

कं पिनयां िनयिमत प से द तावेज जारी करती रहती ह जैसे शेयरधारक के िलए वा षक रपोट, ाहक के िलए

मािसक यूज़लेटस और कमचा रय के िलए संपादक य। आपने कसी िवषय व तु के िलये जो ा ट तैयार कया है
उसके आधार पर आपको अपने डेटा को तीन खाक म बाँटना पड़ सकता ह। −

समय पर आधा रत संरचना

इस संरचना का योग एजडा, िमनट, या रपोट लखते समय िकया जाता है जह काय स पे जाते ह और

प रणाम को कालानु िमक अनु म म लखा जाता है।

वण मानुसार संरचना

जब द ावेज म कई अलग-अलग िवषय होते ह तब िवषय को िव श वण मानुसार (A से Z तक)

सूचीब ध करने के लये इस संरचना का योग िकया जाता है। उदाहरण के लये श कोष या फल और

कैलोरीज़ वाली पु क को दे खा जा सकता है जसम श या फल के नाम वण मानुसार सूचीब ध

होते ह।

िवषय संरचना

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सबसे अ धक इ ेमाल क जाने वाली संरचना म संरचना का िवभाजन िवषयानुसार होता है। उदाहरण

के तौर पर िकसी भी वेबसाइट पर 'ब धा पूछे गए ' वाले पेज को इस तरह से िडज़ाइन (को

िडजाइन) िकया जाता है िक उसम चुनने के लए तीन िवषय - "िडलीवरी ेटस", " शकायत" और

"भुगतान और धनवापसी" होते ह और ेक िवषय म उससे जुड़े नाना कार के होते ह।

िवषय व ु को संजोने के लए भावी कदम

कु छ ऐसे भावी कदम ह जो िवषय व तु को उिचत संरचना म वि थत करने तथा ता कक वाह के साथ-साथ

िववरण का िव तृत ौरा देने म आपक सहायता करगे िजसक वजह से समूचा डॉ यूमे ट समकािलक और पूण

लगेगा। वे कदम इस कार ह −

● डॉ ूमे का आरंभ, म तथा अ


ं तम भाग ता कक होना चािहए।

● अपने संदे श को सं और छोटे (अ धकतम 45) पैरा ाफ म सुिनयो जत कर।

● साम ी को अपने पाठक के अनु प बनाने के लये इसम म संसोधन कर।

● लखते समय आपका ान प के क बं और व छत प रणाम से कदािप नह भटकना

चािहये।

● लखते समय कोई भी सुधार न कर और यिद कोई संपादन करना है तो सोच-समझकर कर

● संपादन शु करने से पहले कुछ समय का अव य अ


ं तराल ल।

सबसे मह पूण बात यह है िक ावसाियक डॉ ूमे लखते समय हमेशा एक ता कक अनु म का

पालन िकया जाना चािहये तािक यह सुिन चत िकया जा सके िक डॉ ूमे के मा म से सही संदे श

स ेिषत हो रहा है।

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3 सरकारी प का ा प

उ र-

सरकारी प
सं ा : ………………

भारत सरकार
िनम ण तथा आवास मं ालय
नई िद ी

िद ……………….
सेवा म

उप स चव

संघ लोक सेवा आयोग

नई िद ी

िवषय:- ि तीय ेणी के राजपि त अ धका रय क तदथ िनयुि य के संबंध म।

संदभ:- आपके काय लय का प सं ………….. िद ………………… ।

महोदय,

उपयु िवषय पर मुझे आपके काय लय के प सं ………….. िद0 ……….. क पावती भेजने तथा यह

कहने िनदे श आ है िक आपने जो सूचनाएं म गी ह, वे सूचनाएं अधीन थ तथा स ध काय लय से

ा क जानी ह। ये काय लय र- र थत ह। अत: सूचना एक करने म अ धक समय लगने क

संभावना है। िनध रत अव ध म पूरी सूचना भेज पाना संभव नह है। अधीन थ तथा स ध काय लय

से सूचनाएं ा होने पर त ाल आपको भेज दी जाए


ँ गी ।

भवदीय

कखग

उपस चव

टेली सं.

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4स
ं पादक य ले खन के मु ख बं

उ र- संपादक य लखने का कोई पूविनध रत मापदंड नह है, िफर भी संपादक य लखते ए िवषय

चयन, साम ी एक ण, परेखा िनम ण, िवषय के िवकास एवं िन ष का ान रखना चािहए। इसके

अतर भाषा का ान रखना भी संपादक य लेखन का एक मह पूण अवयव है।

संपादक य संपादक क चेतना, सजगता, िनणय मता तथा थ ि कोण का सूचक होता है।

इस लए संपादक य के अ
ं तगत व णत त से िन ष िनकलने म सदै व िन रहना चािहए।

संपादक य लखने वाले को िनयिमत प से अपने िन ष पर िवचार करना चािहए तथा दे श , काल एवं

प र थ तय के अनुसार उसमे प रवतन करते रहना चािहए।

संपादक य पृ िकसी भी समाचार प का सबसे मुख पृ होता है। इस पृ को समाचार प क आवाज

कहा जाता है िक यह पृ समाचार प का िवचार पेज कहलाता है जो समाचार प क राय ुत

करता है।

अ लेख या संपादक य लेख के मुख चरण इस कार ह-

िवषय का चयन- कुछ भी लखने के लए सबसे पहले िवषय का चयन होना ज री है। संपादक य लेखन

के लए ायः उस समय का मह पूण और चकर िवषय चुना जाता है। िवषय ऐसा होता है जससे

ादा से ादा लोग के िहत जुड़े होते ह।

साम ी संकलन- िवषय के चुनाव के बाद उससे संबं धत साम ी के संकलन का चरण आता है। इसके

लए पु कालय से, समाचार प क िवषयवार कतरन से और आजकल इंटरनेट से साम ी संकलन

िकया जाता है।

परेखा िनम ण- साम ी संकलन के बाद लखने से पहले एक परेखा बनाई जाती है, जससे हो

जाता है िक लेख का ढ चा िकस कार का होगा।

िवषय वेश- इस चरण म लेखन शु हो जाता है। िवषय वेश के तहत लेखन का पहला पैरा ाफ आता

है। इसम पाठक को िवषय का ान कराया जाता है।

िवषय का िव ार- लेख क शु आत करने के बाद िकसी के व , मत, तक और कथन के ज रये उस

िवषय का िमक िव ार िकया जाता है।

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िन ष- इस चरण म कोई िवचार तपािदत करके, कोई परामश दे कर या आदे श दे कर लेखक िकसी

िन ष पर प ं चता है। िन ष नपा-तुला और संतु लत होना चािहए।

शीषक- लेखन पूरा होने का बाद शीषक का नंबर आता है। हाल िक शीषक पहले भी लखा जा सकता

है। यह लेखक क च और सुिवधा पर िनभर करता है। शीषक ब त मह पूण होता है। यह लेख के लए

शो वंडो के समान होता है, इस लए इसे र से ही आक षत करने वाला होना चािहए।

भाषा- संपादक य या अ लेख क भाषा जीवंत होनी चािहए। यह घसी-िपटी और नीरस नह होनी

चािहए।

5 हंदी भाषा के श भ
ं डार के ोत

उ र- भाषा क समृ ध तथा ग ा क िवकास के लए उसका श -समूह िवशेष मह रखता है।

भाषा-िवकास के साथ उसक अ भ ि शि म भी वृ द होती है। इस कार भाषा म िन प रवतन

होता रहता है। भाषा का स िव व भर क भाषाओं से होता है। िव भ भाषा-भाषाओं के िवचार ,

भाव के आदान- दान से भाषाओं के िव श श का भी िविनमय होता है। इस कार भाषाओं के

श -भ डार को उस भाषा का श -समूह कहा जाता है। िव व भर क अ भाषाओं क तरह िह ी के

श -समूह को तीन भाग म िवभा जत िकया जा सकता है-- १) पर रागत श २) दे शज(दे शी) श ३)

िवदे शी श ।

१) पर रागत श :- पर रागत श भाषा को िवरासत म िमलते ह। िह ी म ये श सं ृ त, ाकृत

तथा अप ं श क पर रा से आए ह। ये श तीन कार के ह- १)त म श , २)अ ध त म, ३)त भव

श ।

१) त म श :- त मश का अथ सं ृ त के समान - समान ही नह , अिपतु शु द सं ृ त के श जो

िह ी म के च लत ह। िह ी म ोत क ि से त म के चार कार ह--

१) सं ृ त से ाकृत, अप ं श से होते ए िह ी म आये ए त म श ; जैस-े अचल, अध, काल, द ड

आिद।

२) सं ृ त से सीधे िह ी म भि , आधुिनक आिद िव भ काल के लए गए श ; जैस-े कम, िवधा,

ान, े , कृ , पु क आिद।

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३) सं ृ त के ाक रणक िनयम के आधार पर िह ी काल म िन मत त म श ; जैस-े जलवायु(आब

हवा), वायुयान(ऐरो ेन), ा ापक (Lecturer) आिद।

४) अ भाषा से आए त म श । इस वग के श क सं ाअ है। कुछ थोडे श


़ बंगाली तथा

मराठ के मा म से िह ी म आए ह। जैस-े उप ास, ग , किवराज, स ेश, ध वाद आिद बंगाली

श है।, ग त, वा मय आिद मराठ श है।

२) अधद त म श :- त म और त भव के बीच क थ त के श अथ त् जो पूरी तरह त भव भी

नह है और पूरी तरह से त म भी। ऐसे श को डा. ि यसन, डा. चटज आिद भाषािवद ने 'अ द

त म' क सं ा दी है; जैस-े 'कृ 'त मश है, का ा, क ैया उसके त दव प ह, पर ु िकशुन,

िकशन न तो त म है और न त भव; अत: इ अ दत म कहा गया है।

३) त भव श :- त भव श का अथ सं ृ त से उ या िवक सत श , अनेक कारण से सं ृ त,

ाकृत आिद क िनय घस-पीट कर िह ी तक आते-आते प रव तत हो गयी है। प रणामत: पूववती

आय भाषाओं के श के जो प हम ा ए ह, उ त भव कहा जाता है। िह ी म ाय: सभी त भव

ह। सं ापद क सं ा सबसे अ धक है, िक ु इनका वहार दे श, काल, पा आिद के अनुसार थोडा़

ब त घटता-बढ़ता रहता है। जैस-े अ


ं धकार से अ
ं धेरा, अि से आग, अ ा लका से अटारी, राि से रात,

स से सच आिद।

२) '''दे शज(दे शी)''':- दे शी श का अथ है अपने दे श म, उ जो श न िवदे शी है, न त म ह और न

त भव ह। दे शज श के नामकरण के िवषय म िव ान म पय मतभेद है। भरतमुिन ने इसे 'दे शीमत' ,

च ड ने 'दे शी स द' तथा माक डेय तथा हेमच ने इसे 'दे शा' या दे शी कहा है। डा. शयामसु रदास तथा

डा. भोलानाथ तवारी ने इसे 'अ ात ु क' कहा है। अत: दे शज श दो कार के ह-- १) एक वे जो

अनाय भाषाओं ( िवड़ भाषाओं ) से अपनाये गये ह और सरे २) वे जो लोग ने िनय क नकल म गढ़

लये गए ह।

(क) िवड़ भाषाओं से-- उड़द, ओसारा, क ा, कटोरा कुटी आिद।

(ख) अपनी गठन से-- अ


ं डबंड, ऊटपट ग, िकलकारी, भ पू आिद।

३) '''िवदे शी श ''':- जो श िह ी म िवदे शी भाषाओं से लये गये ह अथवा आ गये ह, वे िवदे शी श

कहलाते ह। मु म तथा अ
ं ेज शासक के कारण उनक भाषाओं के श िह ी म अ ा धक मा ा म

आये ह। फारसी, अरबी तथा तुक श भी िह ी म अपनाये गये ह। वा ण , वसाय, शासन, ान-

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िव ान तथा भौगो लक सािम आिद इसके कारण हो सकते ह, साथ ही ऐ तहा सक,स ृ तक,

आ थक कारण भी हो सकते ह। डा. धीरे वम ने ऐसे श के लए 'उ दत श ' का योग िकया है।

और डा. हरदे व बाहरी ने इ 'आयात' श कहा है। िह ी म इसके लए 'िवदे शी श ' सं ा ब यु

होती रही है, यह श तुक , अरबी, फारसी आिद ए शया क भाषाओं से, और अ
ं ेजी, च, पुतगाली

आिद यूरोपीय भाषाओं से आये ह। उदाहरण--

(क) तुक से:- तुक ान, िवशेषत: पूव दे श से भी भारत का स ाचीन है। यह स धम, ापार

तथा राजनी त आिद र पर था। ई.स. १०० के बाद तुक बादशाह के रा थापना के कारण िह ी म

तुक से ब त से श आए
ँ । डा. चटज , डा. वम तुक श का ाय: फारसी मा म से आया मानते ह,

िक ु डा.भोलानाथ तवारी जी तुक से आया मानते है। िह ी म तुक श िकतने ह, इस स भ म

मतभेद ह। डा. चटज के अनुसार लगभग 100 है। जैस-े उ , कालीन, काबू, कची, कुली, चाकू, च च,

चेचक, तोप, दरोगा, बा द, बेगम, लाश, बहा र आिद।

(ख) अरबी से:- १००० ई. के बाद मुसलमान शासक के साथ फारसी भारत म आई और उसका अ यन-

अ ापन होने लगा। कचह रय म भी थान िमला। इसी कार उसका िह ी पर ब त गहरा भाव पडा़ ।

िह ी म जो फारसी श आए, उनम काफ श अरबी के भी थे। अरब से कभी भारत का सीधा स

था, िक ु जो श आज हमारी भाषाओं के अ


ं ग बन चुके ह, डा. भोलानाथ तवारी के अनुसार छ: हजार

श फारसी के है जनम 2500 अरबी के है। जैस-े - अजब, अजीब, अदालत, अ ,अ ाह, आ खर,

आदमी, इनाम,एहसान, िकताब, ईमान आिद।

(ग) सीसी से:- भारत और ईरान के स ब त पुराने ह। भाषा िव ान जगत इस बात से पूणत:

अवगत है िक ईरानी और भारतीय आय भाषाए


ँ एक ही मूल भारत-ईरानी से िवक सत है। यही कारण है

िक अनेकानेक श कुछ थोडे प


़ रवतन के साथ सं ृ त और फारसी दोन म िमलते है; डा. भोलानाथ

तवारी के अनुसार िह ी म छ: हजार श फारसी के माने है। अ


ं ेजी के मा म से ब त सारे सीसी

श िह ी म आ गये ह; जैस-े आब , आ तशबाजी, आमदनी, खत, खुदा, दरवाजा, जुकाम, मजबूर,

फ र ता लै , टेबुल आिद।

(घ) अ
ं ेजी से:- लगभग ई.स. १५०० से यूरोप के लोग भारत म आते-जाते रहे ह, िक ु करीब तीन सौ वष

तक िह ी भाषी इनके स क म नह आए, ोिक यूरोपीय लोग समु के रा े से भारत म आये थे;

अत: इनका काय े ार म समु तटवत दे श म ही रहा है, लेिकन १८ वी. शती के उ रा द से अ
ं ेज

समूचे दे श म फैलने लगे। ई.स. १८०० के लगभग िह ी भाषा दे श मुगल के हाथ से िनकलकर अ
ं ेजी

शासन म चला गया। तब से लेकर ई.स. १९४७ तक अ


ं ेज का शासन रहा। इस शासन काल के दौरान

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ं ेजी भाषा और स ता को धानता ा ई। ाधीनता ाि के बाद भी अ
ं ेजी भाषा का मह

कम नह आ। प रणाम प सभी भारतीय भाषा म अ


ं ेजी के बेशुमार श का योग होता आ रहा

है। यधिप डा. हरदे व बाहरी के अनुसार अ


ं ेजी के िह ी म च लत श क सं ा चार-प च सौ अ धक

नह है, लेिकन वा व म यह सं ा तीन हजार से कम नह होगी। तकनीक श को जोड़ने पर यह

सं ा गुनी हो जायेगी। जैस-े अपील, कोट, म ज ेट, जज, पु लस, पेपर, ू ल, टेबुल, पेन, मोटर,

इं जन आिद। इस कार िह ी भाषा ने दे श-िवदे श क अनेक भाषाओं से श हणकर अपने श

भ डार म मह पूण वृ द कर ली है।

6 रचना क तैयारी

उ र-

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7 िवराम च

उ र- िवराम श िव + रम् + घं से बना है और इसका मूल अथ है "ठहराव", "आराम" आिद के लए। जन

सवसंमत च ारा, अथ क ता के लए वा को भ भ भाग म ब टते ह, ाकरण या

रचनाशा मउ "िवराम" कहते ह। "िवराम" का ठ क अ


ं ेजी समानाथ " ॉप" है, क
ं तु योग म इस

अथ म "पं ुएशन" श िमलता है। "पं ुएशन" का संबंध लैिटन श से है, जसका अथ " बं " है।

इस कार "पं ुएशन" का यथाथ अथ बं रखना" या "वा म बं रखना" है।

हंदी म खड़ी पाई या पूण िवराम भारतीय परंपरा का है, जसका ाचीन नाम "दंड" था। शेष च अ
ं ेजी

के मा म से यूरोप से आए ह। अ धक श िवराम च (. :, ;) मूलत: बं पर आधा रत ह। लखते समय

कने पर कलम कागज पर रखने से बं सहज ही बन जाता था। इस कार पूण िवराम के प म अ
ं े जी

आिद का बं सहज ही पूण िवराम का ोतक बन बैठा। कामा, पूण िवराम या बं म ही नीचे क ओर

एक शोशा बढ़ा दे ने से बना है। वाचक या आ चयसूचक च का िवकास तं प से आ है।

इसक उ के बारे म मतभेद है। लगता है वाचक च लैिटन भाषा के ाथ श Quaestio का

सं प (Qo) है, जसम (Q) ऊपर तथा o नीचे (?) है। इसी कार आ चयसूचक च (!) लैिटन भाषा

का स ाथ श Io है जसम आइ और ओ ऊपर नीचे ह।

8 अध सरकारी प क िवशे षताए


उ र- जब िकसी आव यक काम क ओर संबं धत अ धकारी का ान तुरंत आकृ कराना हो,

सरकार के िकसी आदे श का प रपालन शी ता से कराना हो, िकसी िवभाग से कोई जानकारी अ भल
ं ब

लेना हो तब अध सरकारी प भेजे जाते ह।

अध सरकारी प क िवशेषताए
ँ -

1. सरकारी प का एक उपभेद है, सरकारी कामकाज के संबंध म इनका योग होता है।

2. शी कारवाई या अ भल
ं ब जानकारी ा करने के लए इनका योग िकया जाता है।

3. ि गत और आ ीय शैली म लखे जाते ह।

4. इनम उ म पु ष का योग होता है।

5. ि गत पहचान के साथ भेजे जाते ह।

6. औपचा रकता का पालन नह िकया जाता है।

7. सामान र के अ धका रय के बीच म अ धक च लत है।

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9 बक धोखाधडी क बढती सम ा पर रपोट

उ र- बक
ं ग व था म सध लगाने वाले हैकस और साइबर अपरा धय से आम नाग रक को होने

वाले आ थक नुकसान से बचाने के लए िवशेष उपाय खोजने क ज रत भी है। ब क


ं ग सेवाओं से जुड़े

कमचा रय और अफसर क कुछ सम ाएं भी ह, जनका समाधान होना अिनवाय है।

िहमाचल दे श के हमीरपुर जले म नादौन के ग व कुलहेड़ा क मिहला के बक खाते से शा तर ने करीब

पौने सात लाख पए उड़ा लए, तो िदसंबर 2018 म बैजनाथ म सुशीला नामक मिहला ारा एटीएम

िनकासी के कुछ दे र बाद ही 47 हजार पए क िनकासी हो गई। बक ॉड के ऐसे अनेक मामल क

खबर आए िदन समाचार प म पढ़ने को िमलती ह, लेिकन नाग रक को िफर भी ठगी से राहत िमलती

नह िदखती। 2017 म 18 फ सदी भारतीय ऑनलाइन ठगी के शकार ए थे। सरकार चाहती है िक

िड जटल लेन-दे न बढ़े, लेिकन इले ॉिनक ब क


ं ग क बारीिकय से अनजान अ धक श भारतीय जगह-

जगह रोजाना लूटे-ठगे जा रहे ह। 2014 से 2017 के बीच ही ाइवेट बक म 4156 और सरकारी बक म

धोखाधड़ी के कुल 8622 मामले सामने आ चुके ह। आम भारतीय नाग रक बक म खाता इस लए

खोलते ह, तािक उनक जमा पू ं जीसुर त भी रहे और उ उस पर कुछ ाज भी िमल जाए, लेिकन

बढ़ते ब क
ं ग साइबर धोखाधड़ी के मामल के चलते आम ाहक क न द उड़ी ई है। िव ीय समावेशन

को लेकर शु क गई धानमं ी जन-धन योजना के अ


ं तगत अभी तक कुल 35 करोड़ 39 लाख खाते

खुल चुके ह और लगभग 97 हजार 665 करोड़ पए इन बक खात म जमा ए ह। 2014 म भारत म 53

तशत लोग के बक खाते थे और उनम से भी मा 15 फ सदी खात से ही िव ीय लेन-दे न होता था,

लहाजा इसम भी सुधार क गु ं जाइश


है।

िपछले कुछ वष से सभी कार क अनुदान योजनाओं के पए, िव ा थय क छा वृ य और

सामा जक सुर ा पशन आिद सीधे लाभा थय के बक खात म ह त रत िकए जा रहे ह, जो एक

सराहनीय कदम है। कुछ मामल म कम आय वग के नाग रक एवं िव ा थय के लए ब क


ं ग स म

बेहद घाटे का सौदा सािबत हो रहा है, िक बक ारा खात म ूनतम धनरा श रखने क बा ता के

कारण वसूले जाने वाले जुम ने के चलते नाग रक के खात से बक ारा जमकर लूटपाट क जा रही है।

3 अग , 2018 को िव मं ालय ारा लोकसभा म िदए गए जवाब के अनुसार वष 2017-18 क अव ध

म खात म ूनतम धनरा श न रहने पर जुम ने के प म अकेले भारतीय ेट बक ारा 2433.9 करोड़

पए, एफडीएफसी ारा 590.8 करोड़, एि स बक ने 530 करोड़, आईसीआईसीआई बक ने 317.6

करोड़, पंजाब नेशनल बक ारा 210.8 करोड़ पए, तो स ल बक ऑफ इंिडया ारा 173.9 करोड़ पए

सिहत भारत के मुख बक ारा लगभग 5000 करोड़ पए क मोटी रकम आम गरीब खाताधारक के

खात से उड़ा ली गई। इतना ही नह , एटीएम से लोग ारा िकए जाने वाले अ त र जे न के नाम

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पर 4145 करोड़ पए क वसूली भारतीय बक ारा क गई है और यह मार भी गरीब एवं म म वग य

लोग पर ही पड़ती है। इसके अलावा इस समय स वस एवं वा षक शु और रख-रखाव के नाम पर

तमाही, अधवा षक और वा षक शु के नाम पर भी सभी बक ारा सालाना करोड़ पए क िबना

बताए उगाही कर गरीब जनता और िव ा थय के खात को शू पर लाकर रख िदया जाता है, तो वह

एसएमएस एवं अ सेवाएं भी पूरी तरह से नह िमलती ह। सरकार ारा शकायत एवं िनगरानी को

क व था भी क गई है, लेिकन इस बात से सभी भलीभ त प र चत ह िक भारत म ल


ं बी कागजी

ि या के चलते लोग को ाय नह िमलता है। भारतीय अथ व था म ब क


ं ग उ ोग का ब त

मह पूण थान है। िव वभर म सबसे ादा बक शाखाएं भारत म ह। क सरकार और िवत्त मं ालय

के उ अ धका रय को यह सुिन चत बनाना होगा िक भारत म अमीर-गरीब के बीच बढ़ती खाई को

कैसे पाटा जाए और बढ़ती आ थक असमानता पर कैसे रोक लगाई जा सकती है। िव मं ालय को

बक क लूट और मनमानी पर रोक लगाने के साथ-साथ पू ं जीप तयऔर बड़े उ ोगप तय ारा बक से

उठाए गए मोटे ऋण क वसूली पर भी ान दे ना चािहए, तािक बक के बढ़ते एनपीए पर लगाम

लगाई जा सके। रजव बक ऑफ इंिडया को गम और ामीण आबादी वाले े म रा ीयकृत बक

क शाखाओं क सं ा बढ़ाने क ज रत है। िहमाचल दे श म तो ायः एटीएम को लूटने क वारदात

सामने आती ही रहती ह, इस लए उनक सुर ा के उपाय भी करने ह गे। बक क नई शाखाएं खोलने के

साथ ही अ धका रय और कमचा रय क नई िनयुि य करने क भी िनत त आव यकता है। क एवं

रा सरकार को अध श त एवं अपना अ धकतर लेन-दे न नकदी म करने वाले नाग रक को

कैशलेस व था अपनाने के लए े रत करने को िवशेष अ भयान शु करने क ज रत है।

साथ ही ब क
ं ग व था म सध लगाने वाले हैकस और साइबर अपरा धय से आम नाग रक को होने

वाले आ थक नुकसान से बचाने के लए िवशेष उपाय खोजने क ज रत भी है। ब क


ं ग सेवाओं से जुड़े

कमचा रय और अफसर क कुछ सम ाएं भी ह, जनका समाधान होना अिनवाय है। कमचा रय को

नवंबर 2017 से िमलने वाले वेतन रवीजन का लाभ अभी तक नह िमला है।

हाल ही म िदसंबर 2018 म यूनाइटेड फोरम ऑफ बक यूिनयन ने बक के पार रक िवलय के िवरोध म,

पे- रवीजन म दे री और बक म बढ़ते कामकाज के दबाव के िवरोध म हड़ताल क थी। आज भी बड़ी

सं ा म रा एवं क सरकार के पशनस पहली तारीख को सुबह ही बक के दरवाज पर यं अपनी

पशन का भुगतान ा करने के लए लाइन म खड़े िमल जाएंगे, िक उ िव ीय असुर ा के चलते

एटीएम काड जैसी सामा सुिवधाओं पर भी भरोसा नह है। उनम इस भरोसे को बहाल करने क

आव यकता है। अ ीबक


ं ग सेवाएं एवं स लयत आज समृ ध भारत और भारतीय क आ थक

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मजबूती के लए अ ं त आव यक ह, लहाजा इन सेवाओं को िकस कार से और आकषक बनाया जा

सकता है, इस पर रत कारवाई क ज रत है।

10 ता कक ले खन

उ र- लेखन एक ि या है जसम कम से कम चार अलग-अलग चरण शािमल ह: अ धलेखन,

ा पण, संशोधन और संपादन यह एक रक सव ि या के प म जाना जाता है जब आप संशोधन

कर रहे ह, तो आपको अपने िवचार को िवक सत और िव ा रत करने के लए अ धलेखन चरण म

वापस लौटना पड़ सकता है ता कक वाद (या ता कक व ुिन ावाद या ता कक भाववाद /

logical positivism) ूम के अनुभववाद, कॉ के व ुिन ावाद तथा ाइटहेड रसेल के ता कक

िव लेषण का िव च सि ण है। िव ान को िनरापद आधार दान तथा अत ि य त िव ान क

िनरथकता के युगल उ े य क पू त के हेतु वह भाषा के ता कक िव लेषण क िव ध अपनाता है।

स ापन क ि या को ही िकसी ावना का अथ मानकर ता कक व ुिन ावादी परंपरागत

दाशिनक को िनरथक मानते ह िक इस नवीन ा ा के अनुसार इंि यातीत िवषय से संबं धत

होने के कारण वे कोई अर्थ नह रखते।

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