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04 Transcript
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नमस्कार, मेरा नाम प्रियंका चोडणकर है। मैं शासकीय महाविद्यालय सांखळी में
सहायक प्राद्यापिका के रूप में कार्यरत हूँ। आज के इस व्याख्यान में हम तृतीय
वर्ष कला षष्टम सत्र के HND-105 ‘भारतीय साहित्य’ इस पेपर के अंतर्गत
आज ‘भारतीय साहित्य के अध्ययन की समस्याएँ ’ इस विषय पर चर्चा करेंगे। इस
व्याख्यान के माध्यम से विद्यार्थी भारतीय साहित्य के अध्ययन में आने वाली
कठिनाईयों से परिचित होंगे।
भारतीय साहित्य से तात्पर्य अखिल भारतीय स्तर पर विभिन्न भारतीय भाषाओं में
अब तक लिखे जा रहे साहित्य से है। जिन भारतीय भाषाओं में यह साहित्य
लिखा जा रहा है उन्हें हम मोटे तौर पर आधुनिक आर्य भाषाएँ और द्रविड भाषाएँ
जैसे दो वर्गों में बाँट सकते हैं। जहाँ तक प्राचीन साहित्य का संबंध है वह पीछले
दो हज़ार वर्षों पुराना साहित्य है जो मुख्यत: संस्कृत, प्राकृत, द्रविड भाषाओं में
और विशेष कर तमिल में उपलब्ध है।
भारतीय साहित्य के अध्ययन की समस्याएँ ।
1. बहु सांस्कृतिकता की समस्या।
भारतीय समाज सदियों से न केवल बहुभाषिक वरन् बहुसांस्कृतिक भी रहा है।
आर्य संस्कृति, द्रविड संस्कृति, कोल, भील संस्कृति, मोट वर्मी या किरात
संस्कृति। ऐसी स्थिति में एक भाषाई समाज की संकल्पना निराधार है। हमारे देश
में संस्कृति शब्द का प्रयोग सामान्यत: मानवीय आचरण और सामाजिक व्यवहार
के संदर्भ में किया जाता है। यह बहु सांस्कृतिकता भी एक समस्या के रूप में
सामने आती है जिसमें प्रत्येक प्रांत अपनी अलग संस्कृति ओढे हुए नजर आता
है।
किसी भी देश का साहित्य उस देश की समस्याओं के चित्रण पर केंद्रीत होता है।
भारत जैसे बडे देश में राष्ट्रीय स्तर की समस्याएँ नि:संदेह एक समान है। परंतु
प्रांतीय आधार पर इन समस्याओं में भिन्नता दिखाई पडती है। यह भिन्नता रहन-
सहन, रीति-रिवाज़ों तथा आर्थिक और राजनीतिक आधारों पर स्पष्ट देखी जा
सकती है। दिल्ली और मुंबई जैसे महानगरों की समस्याएँ भारत के नगर कस्बों और
ग्रामीण अंचल से भिन्न है। इसलिए विभिन्न भाषाओं में लिखित यह समूचा भारतीय
साहित्य एक ही काल में एक जैसी बात नहीं करता। हम यह नहीं कह सकते कि
अमुक साहित्य में वर्णित समस्याएं भारतीय नहीं है। कुल मिलाकर भारतीय
साहित्य को जानने के लिए सभी भारतीय भाषाओं के साहित्य की समस्याओं को
समझना होगा। भारतीय साहित्य को आत्मसात करने के लिए जैसे उसकी
संस्कृति का ज्ञान अवश्यक है, वैसे ही इसके भाषाओं का ज्ञान रहना ज़रूरी है।