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Modern College of Education

Kurauni, Banthra, Lucknow, Uttar Pradesh 226401

नाम :- विनय त्रिवेदी


कक्षा :– ृ ीय सेमस्े टर
डी०एल०एड तत
विषय :- हिंदी

असाइनमेंट प्रकरण
आचार्य राम चन्द्र शक्
ु ल
विशेष आभार

श्री अनपू शुक्ला

हिंदी विषय विशेषज्ञ


आचार्य रामचन्द्र शक्
ु ल
आचार्य रामचन्द्र शक्
ु ल का जीवन
परिचय
आचार्य रामचंद्र शुक्ल का जन्म सन 1884 में बस्ती जिले के अगोना
नामक ग्राम में हु आ था. उनके पिता का नाम चंद्रबली शक् ु ल था. इनकी
प्रारं भिक शिक्षा दीक्षा इनके पिता के पास राठ तहसील नामक स्थान पर हु ई
थी. इंटरमीडिएट में आने पर इनकी शिक्षा में बाधा उत्पन्न हो गई तथा
गणित में कमजोर होने के कारण यह आगे नहीं पढ़ सके. उसके बाद
इन्होंने सरकारी नौकरी की, किंतु स्वाभिमान के कारण इन्होंने सरकारी
नौकरी छोड़कर थोड़े समय के लिए मिर्जापुर के मिशन स्कूल में चित्रकला
के अध्यापक के रूप में कार्य किया.
मिर्जापुर के पंडित केदार नाथ पाठक एवं प्रेमघन के संपर्क में आकर इन्होंने
हिंदी, उर्दू, बांग्ला, संस्कृत, अंग्रेजी आदि कई भाषाओं का ज्ञान अर्जित किया.
आनंद कादम्बिनी नामक पत्रिका में इनकी रचनाएं प्रकाशित होने लगी.
उन्होंने 19 वर्ष तक ”नागरी प्रचारिणी सभा” में हिंदी शब्द सागर के सहायक
संपादक का पदभार ग्रहण किया. यह “काशी हिंदू विश्वविद्यालय” में हिंदी के
प्राध्यापक पी रहे . बाबू श्याम संुदर दास के अवकाश ग्रहण करने के बाद हिंदी
विभाग के अध्यक्ष हो गए तथा इनकी गिनती उच्च कोटि के विद्वान में होने
लगी.

मत्ृ यु
साहित्य लेखन में दक्ष शुक्ल जी ने जीवन के अंतिम पड़ाव में भी साहित्य
साधना का साथ नहीं छोड़ा तथा लेखन कार्य करते हु ए इस महापुरुष का
सन 1941 में स्वर्गवास हो गया.
शुक्ल जी का साहित्यिक परिचय

ू जीवन को साहित्य के प्रति समर्पित किया. हिंदी साहित्य


शुक्ल जी ने अपने संपर्ण
को विश्व स्तरीय पहचान दिलाने में आचार्य रामचंद्र शुक्ल की साहित्यिक सेवाओं
का योगदान अविस्मरणीय है. आरं भिक साहित्य जीवन काव्य रचना से प्रारं भ
करने के पश्चात इन्होंने गद्य विधा के क्षेत्र में अधिक कार्य कर अपनी पहचान
निबंधकार, अनुवादक, संपादक एवं आलोचक के रूप में बनाई तथागत क्षेत्र में
अपार ख्याति प्राप्त की. यह हिंदी के युग प्रवर्तक आलोचक हैं. इन्होंने सैद्धांतिक
तथा व्यावहारिक दोनों प्रकार की आलोचनाओं की रचना की है. इन्होंने “हिंदी
साहित्य का इतिहास” रचकर, इतिहास लेखन में सर्वश्रेष्ठ भमि ू का प्राप्त की.
इन्होंने “हिंदी शब्द सागर” का संपादन कार्य पर्ण ू किया तथा “नागरी प्रचारिणी
पत्रिका” एवं “आनंद कादम्बिनी” जैसी पत्रिकाओं का प्रभाव और संपादन किया
रामचंद्र शुक्ल जी की रचनाएं

इनकी शैक्षिक, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, दार्शनिक एवं साहित्य विषय


में इनकी बहु त सी कृतियां है जिनमें से कुछ मुख्य इस प्रकार हैं-

शुक्ल जी ने भाव प्रधान तथा समीक्षात्मक दोनों प्रकार के निबंधों


निबंध- की रचना की है जैसे “चिंतामणि” एवं “विचारवीथी”.

आलोचना- “रसमीमांसा” एवं “त्रिवेणी” (सूर, तल


ु सी और जायसी पर
आलोचना)
रामचंद्र शुक्ल जी की रचनाएं

इतिहास- हिंदी साहित्य का इतिहास (1929)

संपादन- तुलसी ग्रंथावली, जायसी ग्रंथावली, हिंदी


शब्द सागर, नागरी प्रचारिणी पत्रिका,
भ्रमरगीत सार एवं आनंद कादंबिनी.

काव्य रचना- अभिमन्यु वध एवं 11 वर्ष का समय.


आचार्य रामचंद्र शक्
ु ल की भाषा शैली
शुक्ल जी का भाषा पर पर्ण
ू अधिकार था. इन्होंने एक ओर
अपनी रचनाओं में शुद्ध साहित्यिक भाषा का प्रयोग किया
तथा संस्कृत के तत्सम शब्दावली को प्रधानता दी, तो
दूसरी ओर इन्होंने सरल एवं व्यवहारिक भाषा का प्रयोग
किया, जिसमें संस्कृत भाषा के स्थान पर हिंदी की
प्रचलित शब्दावली का प्रयोग किया. इसके अतिरिक्त
इनकी रचनाओं में उर्दू, फारसी और अंग्रेजी के शब्द भी
प्रयोग किए गए हैं.
आचार्य रामचंद्र शक्
ु ल की भाषा शैली

आचार्य रामचंद्र शुक्ल की शैली विवेक आत्मक और संयत है.


इनकी शैली निगमन शैली भी कहलाती है. इन्होंने
सामासिक शैली का प्रयोग किया शुक्ल जी की सबसे प्रमुख
विशेषता यह है की वे कम से कम शब्दों मैं अधिक से अधिक
बात कहने में सक्षम थे. इनकी रचनाओं में प्राय: वर्णनात्मक
शैली, विवेकआत्मक शैली, व्याख्यानत्मक शैली,
आलोचनात्मक शैली, भावनात्मक शैली तथा हादसे
व्यंगात्मक शैली आदि सभी शैलियों के दर्शन होते हैं.
रामचंद्र शुक्ल का हिंदी साहित्य में स्थान

रामचंद्र शुक्ल हिंदी साहित्य के महानायकों में से एक हैं। उन्होंने हिंदी साहित्य के विकास में
अहम भमि
ू का निभाई है। वे नाटक, कहानी, उपन्यास, आलोचना और कविता जैसी विभिन्न
शैलियों में शानदार योगदान दिए हैं। उनके लेखन में शुद्ध हिंदी व संक्षिप्त भाषा का प्रयोग किया
गया है। उनकी कविताएं अद्भुत विविधता और भावनात्मक गहराई से भरी हु ई हैं। उनकी
कहानियां और उपन्यास उनके समय के समाज के मल्ू यों और उनके जीवन के अनुभवों का
अभिव्यक्ति करते हैं। उनका दृष्टिकोण समाज की समस्याओं पर ध्यान केंद्रित करता था। . इनकी
विशिष्ट दीप्ति के कारण इनके समकालीन हिंदी गद्य के युग को ‘शुक्ल युग’ के नाम से पुकारा
जाता है.
धन्यवाद

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