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शोध-आलेख लेखन Shodh Aalekh Lekhan

शोध-आलेख लेखन का परिचय: Research Paper Writing


मनुष्य प्राचीन काल से ही कुछ न कुछ खोजने का प्रयास करता रहा है । मनुष्य की इसी
खोज को अनस
ु ंधान, खोज, अन्वेषण तथा शोध आदि कहा जाता है । शोध के अंतर्गत ककसी
ववद्यमान सत्य को पुनः स्थावपत ककया जाता है अथवा उसे किर से नए रूप में समाज के
समक्ष लाया जाता है । शोध करने वाला व्यक्तत (शोधाथी) ववभिन्न तत्वों के आधार पर
अपनी समझ, प्रततिा, अभ्यास एवं सूक्ष्म दृक्ष्ि के द्वारा नए तनष्कषग समाज के समक्ष
रखता है ।

शोध-आलेख लेखन की परिभाषाएँ:


● पी. एन. कुक के अनुसाि: “अनुसंधान ककसी समस्या के प्रतत ईमानिारी एवं व्यापक
रूप में समझिारी के साथ की र्ई खोज है , क्जसमें तथ्यों भसद्धांतों तथा अथों की
जानकारी िी जाती है । अनुसंधान की उपलक्धध तथा तनष्कषग प्रमाणणक तथा पुक्ष्ि
योग्य होते हैं, क्जससे ज्ञान वद्
ृ धध होती है ।”
● जॉजज जे. मुले के अनुसाि: “समस्याओं के समाधान के भलए व्यवक्स्थत रूप में
बुद्धध और वैज्ञातनक ववधध के प्रयोर् तथा अथग घिक को अनुसंधान कहते हैं।”
● मैकग्रेथ एवं वॉटसन के अनुसाि: “अनुसंधान एक प्रकिया है , क्जसमें शोध प्रववधध
का प्रयोर् ककया जाता है । इसके तनष्कषग की उपयोधर्ता होती है जो ज्ञान बद्
ु धध में
सहायक है ।प्रर्तत के भलए प्रोत्सादहत करें , समाज के भलए सहायक हो तथा मनुष्य
को अधधक प्रिावशाली बना सके और मनुष्य अपनी समस्याओं को प्रिावशाली
ढं र् से हल कर सके।”

शोध-आलेख लेखन में शोधाथी की रुचच का महत्व:


यदि शोध लेखन का ववषय शोधाथी की रुधच के अनुरूप हो तो शोध कायग में उस रुधच का
प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से सकारात्मक प्रिाव पड़ता है । शोधाथी अपनी रुधच का ववषय
होने के कारण ववषय की ववववधता एवं ववभिन्न पहलुओं का अध्ययन मन लर्ाकर करता
है । िलत: उसके शोध आलेख में र्हन अध्ययन के लक्षण अनायास रूप से पररलक्षक्षत होते
हैं।
शोध ववषय क्जतना रुधचकर होर्ा उतना ही शोध कायग तथ्यपरख, र्हन ववश्लेषणात्मक
तथा वैज्ञातनक होर्ा।

शोध-आलेख हे तु ववषय चयन किते समय ध्यान िखने योग्य ब द


ं :ु
● ववषय शोध करने योग्य होना आवश्यक है ।
● शोध ववषय यदि अपने रुधच के अनरू
ु प हो तब वह कायग अधधक र्हनतापूणग होता
है ।
● ववषय से संबधं धत ववभिन्न प्रकार की सामग्री उपलधध है अथवा नहीं इस पर ववचार
कर लेना आवश्यक है ।
● ववषय की उपयोधर्ता एवं प्रासंधर्कता पर िी ववचार कर लेना आवश्यक होता है ।
● ववषय पर अन्य शोध कायों की जानकारी प्राप्त करना तयोंकक ववषय तथा शोध
कायग की पन
ु राववृ ि न हो सके।
● तनधागररत समय सीमा के िीतर तया शोध आलेख भलखा जा सकता है ? इस बात का
िी ध्यान रखना चादहए।
● ववषय से संबंधधत ववशेषज्ञों की राय लेना िी आवश्यक होता है ।
● शोध-आलेख का ववषय अतत व्यापक अथवा अतत संक्षक्षप्त न हो तयोंकक लघु ववषय
शोध कायग हे तु स्वीकारने योग्य नहीं होता है और अतत ववस्तत
ृ ववषय पर शोध कायग
तनधागररत समय पर संपन्न नहीं हो पता है । इसभलए ववषय संतुभलत होना आवश्यक
है ।
● ववश्वववद्यालय अनुिान आयोर् द्वारा तनधागररत शोध संबंधी तनयमों का अध्ययन
आवश्य कर लेना चादहए।
● शोध-आलेख लेखन से पूवग ववषय ववशेषज्ञ का मार्गिशगन प्राप्त कर लेना आवश्यक
होता है ।
● शोधाथी को वववािास्पि ववषयों को सामान्य तौर पर नहीं चुनना चादहए तयोंकक
वववाि की क्स्थतत में शोध कायग संपन्न नहीं हो पाता है ।
● कोई ऐसे ववषय का चन
ु ाव नहीं करना चादहए क्जस पर शोध आलेख लेखन के
पश्चात धाभमगक िावनाओं को ठे स पहुुँचती हो अथवा सांप्रिातयक तनाव जैसी
क्स्थतत उत्पन्न होने की संिावना हो।
● ववषय का चुनाव तिस्थ दृक्ष्िकोण से करना चादहए तयोंकक तिस्थता ही शोधाथी
के ववचारों को तथ्यपरख, प्रामाणणक एवं वैज्ञातनक बनाती है ।

शोध-आलेख हे तु ववषय चयन का उद्दे श्य:


● शोध-आलेख लेखन से पव
ू ग एक समस्या अथवा ऐसे ववषय का चयन करना चादहए
क्जसका उद्िे श्य समाज, प्रकृतत अथवा जड़-चेतन तत्व के भलए उपयोर्ी हो सके।
● नवीन धारणाओं ववचारों दृक्ष्िकोणों अथवा तनष्कषग को समाज के समक्ष रखना
शोध आलेख लेखन का प्राथभमक उद्िे श्य होना चादहए।
● ववषय से संबधं धत प्राप्त मान्यताओं अथवा धारणाओं को अधधक सरल एवं सुर्म
बनाने का प्रयास शोध आलेख एक और उद्िे श्य है।
● समाज, पयागवरण, प्रकृतत, जीव-जंतु के संििग में कुछ सकारात्मक नवीन
अवधारणाओं की स्थापना करना शोध आलेख का मुख्य उद्िे श्य होता है ।
● सादहत्य, नत्ृ य, र्ायन, धचत्रकला आदि कलाओं से संबंधधत शोध-आलेख लेखन का
उद्िे श्य यह होना चादहए कक वह आलेख इन कलाओं की ववशेषताओं, सक्ष्
ू म तत्वों,
प्रासंधर्कता, सौंियग तथा आनंिमय तत्वों आदि के संििग में सूक्ष्मता एवं
र्ंिीरताओं को साधारण जनता को समझने में सहायक भसद्ध हो सके। यह िी
शोधन लेखन का उद्िे श्य होता है ।

शोध-आलेख में ववषय अथवा शोध की मौललकता अननवायज होती है :


कोई ववषय पूणगतः मौभलक हो सकता है अथवा मौभलक नहीं िी हो सकता है । ककसी ववषय
पर पूवगकाल में शोध कायग हो िी सकते हैं अथवा नहीं िी हो सकते हैं। ककं तु जो शोध-आलेख
आप भलखना चाहते हैं उसकी मौभलकता अतनवायग होती है । शोध कायग पन
ु ः पुनः हो सकते
हैं ककं तु सिी कायों में नए-नए दृक्ष्िकोण, ववचार, नूतन धारणाएुँ हो सकती हैं।
मौभलकता शोध-आलेख की आत्मा होती है । मौभलकता के अिाव में शोध-आलेख शोध
कायग नहीं बक्कक ककसी अन्य शोधाथी का चुराया हुआ दृक्ष्िकोण है । इस प्रकार का कायग
ककसी िी दृक्ष्ि से उधचत या नैततक नहीं होता है । इसभलए शोधाथी को मौभलकता पर ववशेष
ध्यान िे ना आवश्यक होता है ।
बबना मौभलकता के कोई िी शोध, शोध कायग कहलाने योग्य िी नहीं होता है ।
यदि ककसी ववषय पर पूवग काल में शोध कायग हो चुके हैं तो शोधाथी को यह ववचार कर लेना
आवश्यक है कक वह अपने शोध-आलेख में स्वयं की मौभलकता प्रिान कर सकता है अथवा
नहीं।
यदि मौभलकता प्रिान कर सकता है तिी वह अपना शोध-आलेख लेखन करें अन्यथा न
करें तो ही उधचत होता है ।
ककसी ववषय की मौभलकता की जानकारी संििग ग्रंथों एवं ववषय सधू चयों से प्राप्त की जा
सकती है ।
शोधाथी अपने शोध-आलेख में ववज्ञान संबंधी ववषयों में ककसी वस्तु अथवा नई ववशेषताओं
की खोज, सादहत्य के क्षेत्र में नई ववचारधाराओं, धारणाओं के दृक्ष्िकोण से समीक्षा करना,
कला के क्षेत्र में ककसी भसद्धांत की स्थापना करना आदि मौभलकताओं को स्थावपत कार
सकता है अथवा ववश्लेषण कर सकता है ।
भलखा र्या शोध-आलेख पौराणणक, ऐततहाभसक मान्यताओं को नए दृक्ष्िकोण से समझने,
वतगमान अथवा िववष्य में मार्गिशगन करने में सक्षम हो। उस शोध-आलेख की सामाक्जक
सांस्कृततक आधथगक अथवा सादहक्त्यक उपयोधर्ता हो।

शोध-आलेख की ववशेषताएँ:
1. शोध-आलेख मौभलक होता है ।
2. शोध-आलेख की िाषा सरल, सुर्म और संतुभलत होती है ।
3. शोध-आलेख में कई मुख्य और उपमुख्य िार् होते हैं।
4. शोध-आलेख एक शीषगक और अनेक उपशीषगकों में वविाक्जत होता है ।
5. शोध-आलेख प्रामाणणक और तथ्यपरक होता है ।
6. शोध-आलेख लेखन में ववभिन्न सहायक सामधग्रयों का अध्ययन और उपयोर्
ककया जाता है ।
7. शोध-आलेख में नवीन अवधारणाओं, ववचारधाराओं, मान्यताओं तथा भसद्धांतों
को स्थावपत ककया जाता है ।
नोट: ववभिन्न ववशेषताओं के संििग में यदि ववस्तार से समझना और भलखना हो तो इस
सामग्री में ववभिन्न स्थानों पर इन ववशेषताओं पर प्रकाश डाला र्या है । आप उसे िे ख
सकते हैं।

शोधाथी की योग्यता अथवा ववशेषताएँ:


िारतीय काव्यशास्त्र में काव्य के मुख्यतः तीन हे तु स्वीकार ककए र्ए हैं। प्रततिा, व्यत्ु पवि
(तनपुणता) और अभ्यास। यह तीनों हे तु काव्य रचना के भलए अतनवायग हैं ककं तु यही तीनों
हे तु ककसी शोधाथी के भलए िी महत्वपूणग हैं।

शोधाथी के ललए इन तीनों काव्य हे तु का महत्व:


प्रनतभा:
● ककसी शोधाथी में ववषय को सक्ष्
ू म दृक्ष्ि और दृक्ष्िकोण से पढ़ने, समझने तथा
ववश्लेषण करने की प्रततिा होना आवश्यक है ।
व्युत्पवि (ननपुणता):
● शोधाथी ववषय की र्हराई, सूक्षमताओं, महत्व एवं प्रासंधर्कता को समझने में
तनपुण हो तथा ववषय के सिी पहलुओं को समझकर नहीं मान्यताएुँ स्थावपत करने,
नये भसद्धांतों को र्ढ़ने, नए ववचार प्रिान करने तथा नए दृक्ष्िकोण प्रिान करने
में तनपण
ु हो।
अभ्यास:
● शोधाथी अभ्यासु हो ववषय से संबंधधत ववभिन्न जानकाररयाुँ, तथ्यात्मक प्रलेखों
तथा ववभिन्न शोध कायों का अभ्यास करें और अपनी प्रततिा, व्युत्पवि को उिरोिर
ववकभसत करें ।

शोध-आलेख लेखन की भाषा:


शोध-आलेख की िाषा सरल, सुर्म एवं प्रिावपूणग होनी चादहए।
िाषा में पांडडत्यपण
ू गता, अस्पष्िता, अलंकाररकता, श्लेषयत
ु त कदठनता नहीं होनी चादहए।
िाषा शोध ववषय के अनुरूप सहज, सरल एवं बोधर्म्य होनी चादहए।
िाषा में वववािास्पि वातय, शधिों एवं अवधारणाओं का प्रयोर् करने से बचना चादहए
तयोंकक शोध-आलेख में पाठकों की रुधच बनी रहे और बढ़ती रहे ।

शोध-आलेख का स्वरूप:
शोध-आलेख के अनेक स्वरूप हो सकते हैं। जैसे ववषय के अनरू
ु प धचंतन करने के पश्चात
बबना शीषगकों, उपशीषगकों के ही अपने ववचार व्यतत करना। ववषय का छोिे -छोिे अध्याय
बनाकर ववश्लेषण करना। संििों को व्यतत करके उन संििों का ही ववश्लेषण करना
आदि।
साधािण रूप से शोध-आलेख का मान्य स्वरूप:
● एक उिम और व्यवक्स्थत शोध-आलेख, एक मुख्य शीषगक के साथ कई उपशीषगकों
में वविाक्जत होता है । जैसे शोध-सार (अमत
ू ग) Abstract, बीज-शधि Keywords,
ववषय का पररचय Introduction of subject, ववषय का ववश्लेषण Analysis of
Topic, तनष्कषग Conclusion, संििग ग्रंथ सूची List of References आदि।
शोध-साि (अमूतज): Abstract
● शोध-सार, शोध-आलेख लेखन का मख्
ु य द्वार होता है । इसके अंतर्गत शोध आलेख
का उद्िे श्य, महत्व एवं शोध-आलेख की प्रमुख स्थापनाओं का पररचय दिया जाता
है । शोध-सार के अंतर्गत शोध-आलेख में धचबत्रत मुख्य शीषगक उपशीषगकों एवं
ववशेषताओं का िी संक्षक्षप्त पररचय दिया जाता है।
ीज शब्द: Keywords
● शोध-आलेख में पररिावषत अथवा व्याख्यातयत ऐसे शधि क्जनसे शोध को बल
प्राप्त होता है । ये बीज-शधि ववषय से संबधं धत ऐसे शधि होते हैं क्जनके द्वारा
शोधाथी अपनी स्थापनाओं, धारणाओं तथा मान्यताओं को स्थावपत करता है ।
शोध ववषय का परिचय: Introduction of subject
● शोध-आलेख के इस अंर् में शोधाथी ववषय संबंधी सामाक्जक, ऐततहाभसक, अथवा
उद्िे श्य के अनरू
ु प पररचय िे ता है । इस अंर् को पढ़कर पाठक शोध ववषय का
महत्व, र्ंिीरता एवं प्रासंधर्कता के संििग में जानकारी प्राप्त करता है । शोधाथी
पररचय में प्रस्तुत शोध आलेख की संक्षक्षप्त जानकारी िी प्रिान कर सकता है ।
शोध ववषय का ववश्लेषण या समीक्षा: Analysis of Topic
● यह शोध-आलेख का सवागधधक महत्वपण
ू ग िार् होता है । इसी िार् में शोधाथी अपने
शोध की प्राण प्रततष्ठा करता है । शोधाथी का मख्
ु य उद्िे श्य िी इसी िार् में
स्थावपत होते हैं। शोध-आलेख के अन्य िार् इसी मुख्य िार् पर आधाररत होते हैं।
इस िार् में शोधाथी तनम्नभलणखत पहलुओं को सक्म्मभलत करता है ।
1. नवीन धािणाओं या अवधािणाओं की स्थापना:
● शोधाथी ववषय से संबंधधत ववभिन्न स्रोतों का अध्ययन करता है तथा ववश्लेषण या
समीक्षा के द्वारा प्रमाण सदहत नवीन अवधारणाओं, ववचारधाराओं तथा नए
दृक्ष्िकोण को स्थावपत करता है । ववभिन्न तथ्यों की प्रामाणणकता के आधार पर
शोधाथी नवीन भसद्धांतों की िी स्थापना कर सकता है ।
2. सामग्री अथवा सच
ू नाओं के संकलन द्वािा अवधािणा का सज
ृ न:
● हो सकता है कक पव
ू ग काल में ककए र्ए शोध कायों में ववषय से संबंधधत कुछ
सामधग्रयों एवं सूचनाओं को शाभमल नहीं ककया र्या हो अथवा ककसी तथ्य को
महत्व न दिया र्या हो। ऐसी क्स्थतत में शोधाथी उन अपेक्षक्षत या महत्व न दिए र्ए
तत्वों और सामधग्रयों, सच
ू नाओं के आधार पर अपनी नई अवधारणा को स्थावपत
कर सकता है ।
● शोधाथी को अपनी स्थावपत अवधारणा के संििग में स्रोत के ववभिन्न प्रमाणों का
उकलेख करना आवश्यक होता है ।
3. स्थावपत दृष्टटकोण अथवा अवधािणा को पाठकों के दृष्टटकोण से सिल एवं
रुचचकि नाना:
● शोधाथी पाठकों की रुधच बढ़ाने हे तु अपने शोध कायग में स्थावपत नवीनता और
मौभलकता को ववभिन्न शीषगकों उपशीषगकों एवं बीज-शधिों में वविाक्जत कर सकता
है ककं तु इस वविाजन में ववषय तथा वणणगत, समीक्षक्षत या ववश्लेषण की र्ई
अवधारणाओं के बीच एकरूपता एवं अंतसंबंध होना आवश्यक है । अन्यथा शीषगकों,
उपशीषगकों में पथ
ृ कता शोध कायग की संप्रष
े ण शक्तत को कम कर िे ती है ।
4. स्पटट संदेश:
● जहाुँ ववचार, अवधारणा, दृक्ष्िकोण की स्थापना समाप्त होती है , उसके पश्चात
शोधाथी का दृक्ष्िकोण, समाज के भलए संिेश, सलाह अथवा तनवेिन स्पष्ि रूप से
भलखा जाना आवश्यक होता है ।
● यह संिेश शोधाथी की इच्छाशक्तत, ज्ञानशक्तत, वववेचना कौशल तथा प्रततपािन
(ववश्लेषण करने की योग्यता) पर तनिगर होता है ।
ननटकषज:
● शोध-आलेख का यह अंततम िार् होता है । इसके अंतर्गत शोधाथी अपने शोध-
आलेख में स्थावपत नवीनता एवं मौभलकता के प्रमुख बबंिओ
ु ं एवं मान्यताओं के
महत्व को संक्षक्षप्त रूप में भलखने का प्रयास करता है । पाठक तनष्कषग पढ़ने के
पश्चात यह समझने में सक्षम हो जाता है कक प्रस्तत
ु शोध-आलेख में तया और ककस
प्रकार का नया है और यह तयों महत्वपूणग है ।
शोध आलेख के साधनों का उल्लेख अथवा संदभज ग्रंथ सूची:
● शोध आलेख लेखन की प्रकिया में क्जन-क्जन सहायक साधनों, सामधग्रयों
तकनीककयों का प्रयोर् हुआ है अथवा क्जन साधनों से सहायता प्राप्त की र्ई है , उन
सिी साधनों का उकलेख करना आवश्यक होता है ।
● शोध-आलेख में इन सहायक सामधग्रयों का उकलेख जहाुँ िी आवश्यक हो वहाुँ
अवश्य करना चादहए। जैसे संििों और दिप्पणणयों का उकलेख करना।
● संििग पंक्ततयाुँ अथवा शधि जहाुँ से भलया र्या है , वही का वववरण िे ना आवश्यक
है । ककसी अन्य के ववचारों, पंक्ततयों अथवा शधिों के संििग में स्वयं का नाम नहीं
बताना चादहए। क्जसके िी ववचार, अवधारणा अथवा शधि हैं उनका सही संििग िे ना
शोध-आलेख हे तु दहतकर होता है ।
● संििग ग्रंथ सच
ू ी का वववरण िे ते समय सवगप्रथम रचनाकार, समीक्षक अथवा
संपािक का नाम हो, उसके पश्चात रचना अथवा साधन का नाम हो, उसके पश्चात
प्रकाशन संस्था, प्रकाशन वषग, प्रशासन का संस्करण के साथ अंत में पष्ृ ठ संख्या का
िी उकलेख करना आवश्यक होता है ।

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