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Wa0010.
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शोध-आलेख की ववशेषताएँ:
1. शोध-आलेख मौभलक होता है ।
2. शोध-आलेख की िाषा सरल, सुर्म और संतुभलत होती है ।
3. शोध-आलेख में कई मुख्य और उपमुख्य िार् होते हैं।
4. शोध-आलेख एक शीषगक और अनेक उपशीषगकों में वविाक्जत होता है ।
5. शोध-आलेख प्रामाणणक और तथ्यपरक होता है ।
6. शोध-आलेख लेखन में ववभिन्न सहायक सामधग्रयों का अध्ययन और उपयोर्
ककया जाता है ।
7. शोध-आलेख में नवीन अवधारणाओं, ववचारधाराओं, मान्यताओं तथा भसद्धांतों
को स्थावपत ककया जाता है ।
नोट: ववभिन्न ववशेषताओं के संििग में यदि ववस्तार से समझना और भलखना हो तो इस
सामग्री में ववभिन्न स्थानों पर इन ववशेषताओं पर प्रकाश डाला र्या है । आप उसे िे ख
सकते हैं।
शोध-आलेख का स्वरूप:
शोध-आलेख के अनेक स्वरूप हो सकते हैं। जैसे ववषय के अनरू
ु प धचंतन करने के पश्चात
बबना शीषगकों, उपशीषगकों के ही अपने ववचार व्यतत करना। ववषय का छोिे -छोिे अध्याय
बनाकर ववश्लेषण करना। संििों को व्यतत करके उन संििों का ही ववश्लेषण करना
आदि।
साधािण रूप से शोध-आलेख का मान्य स्वरूप:
● एक उिम और व्यवक्स्थत शोध-आलेख, एक मुख्य शीषगक के साथ कई उपशीषगकों
में वविाक्जत होता है । जैसे शोध-सार (अमत
ू ग) Abstract, बीज-शधि Keywords,
ववषय का पररचय Introduction of subject, ववषय का ववश्लेषण Analysis of
Topic, तनष्कषग Conclusion, संििग ग्रंथ सूची List of References आदि।
शोध-साि (अमूतज): Abstract
● शोध-सार, शोध-आलेख लेखन का मख्
ु य द्वार होता है । इसके अंतर्गत शोध आलेख
का उद्िे श्य, महत्व एवं शोध-आलेख की प्रमुख स्थापनाओं का पररचय दिया जाता
है । शोध-सार के अंतर्गत शोध-आलेख में धचबत्रत मुख्य शीषगक उपशीषगकों एवं
ववशेषताओं का िी संक्षक्षप्त पररचय दिया जाता है।
ीज शब्द: Keywords
● शोध-आलेख में पररिावषत अथवा व्याख्यातयत ऐसे शधि क्जनसे शोध को बल
प्राप्त होता है । ये बीज-शधि ववषय से संबधं धत ऐसे शधि होते हैं क्जनके द्वारा
शोधाथी अपनी स्थापनाओं, धारणाओं तथा मान्यताओं को स्थावपत करता है ।
शोध ववषय का परिचय: Introduction of subject
● शोध-आलेख के इस अंर् में शोधाथी ववषय संबंधी सामाक्जक, ऐततहाभसक, अथवा
उद्िे श्य के अनरू
ु प पररचय िे ता है । इस अंर् को पढ़कर पाठक शोध ववषय का
महत्व, र्ंिीरता एवं प्रासंधर्कता के संििग में जानकारी प्राप्त करता है । शोधाथी
पररचय में प्रस्तुत शोध आलेख की संक्षक्षप्त जानकारी िी प्रिान कर सकता है ।
शोध ववषय का ववश्लेषण या समीक्षा: Analysis of Topic
● यह शोध-आलेख का सवागधधक महत्वपण
ू ग िार् होता है । इसी िार् में शोधाथी अपने
शोध की प्राण प्रततष्ठा करता है । शोधाथी का मख्
ु य उद्िे श्य िी इसी िार् में
स्थावपत होते हैं। शोध-आलेख के अन्य िार् इसी मुख्य िार् पर आधाररत होते हैं।
इस िार् में शोधाथी तनम्नभलणखत पहलुओं को सक्म्मभलत करता है ।
1. नवीन धािणाओं या अवधािणाओं की स्थापना:
● शोधाथी ववषय से संबंधधत ववभिन्न स्रोतों का अध्ययन करता है तथा ववश्लेषण या
समीक्षा के द्वारा प्रमाण सदहत नवीन अवधारणाओं, ववचारधाराओं तथा नए
दृक्ष्िकोण को स्थावपत करता है । ववभिन्न तथ्यों की प्रामाणणकता के आधार पर
शोधाथी नवीन भसद्धांतों की िी स्थापना कर सकता है ।
2. सामग्री अथवा सच
ू नाओं के संकलन द्वािा अवधािणा का सज
ृ न:
● हो सकता है कक पव
ू ग काल में ककए र्ए शोध कायों में ववषय से संबंधधत कुछ
सामधग्रयों एवं सूचनाओं को शाभमल नहीं ककया र्या हो अथवा ककसी तथ्य को
महत्व न दिया र्या हो। ऐसी क्स्थतत में शोधाथी उन अपेक्षक्षत या महत्व न दिए र्ए
तत्वों और सामधग्रयों, सच
ू नाओं के आधार पर अपनी नई अवधारणा को स्थावपत
कर सकता है ।
● शोधाथी को अपनी स्थावपत अवधारणा के संििग में स्रोत के ववभिन्न प्रमाणों का
उकलेख करना आवश्यक होता है ।
3. स्थावपत दृष्टटकोण अथवा अवधािणा को पाठकों के दृष्टटकोण से सिल एवं
रुचचकि नाना:
● शोधाथी पाठकों की रुधच बढ़ाने हे तु अपने शोध कायग में स्थावपत नवीनता और
मौभलकता को ववभिन्न शीषगकों उपशीषगकों एवं बीज-शधिों में वविाक्जत कर सकता
है ककं तु इस वविाजन में ववषय तथा वणणगत, समीक्षक्षत या ववश्लेषण की र्ई
अवधारणाओं के बीच एकरूपता एवं अंतसंबंध होना आवश्यक है । अन्यथा शीषगकों,
उपशीषगकों में पथ
ृ कता शोध कायग की संप्रष
े ण शक्तत को कम कर िे ती है ।
4. स्पटट संदेश:
● जहाुँ ववचार, अवधारणा, दृक्ष्िकोण की स्थापना समाप्त होती है , उसके पश्चात
शोधाथी का दृक्ष्िकोण, समाज के भलए संिेश, सलाह अथवा तनवेिन स्पष्ि रूप से
भलखा जाना आवश्यक होता है ।
● यह संिेश शोधाथी की इच्छाशक्तत, ज्ञानशक्तत, वववेचना कौशल तथा प्रततपािन
(ववश्लेषण करने की योग्यता) पर तनिगर होता है ।
ननटकषज:
● शोध-आलेख का यह अंततम िार् होता है । इसके अंतर्गत शोधाथी अपने शोध-
आलेख में स्थावपत नवीनता एवं मौभलकता के प्रमुख बबंिओ
ु ं एवं मान्यताओं के
महत्व को संक्षक्षप्त रूप में भलखने का प्रयास करता है । पाठक तनष्कषग पढ़ने के
पश्चात यह समझने में सक्षम हो जाता है कक प्रस्तत
ु शोध-आलेख में तया और ककस
प्रकार का नया है और यह तयों महत्वपूणग है ।
शोध आलेख के साधनों का उल्लेख अथवा संदभज ग्रंथ सूची:
● शोध आलेख लेखन की प्रकिया में क्जन-क्जन सहायक साधनों, सामधग्रयों
तकनीककयों का प्रयोर् हुआ है अथवा क्जन साधनों से सहायता प्राप्त की र्ई है , उन
सिी साधनों का उकलेख करना आवश्यक होता है ।
● शोध-आलेख में इन सहायक सामधग्रयों का उकलेख जहाुँ िी आवश्यक हो वहाुँ
अवश्य करना चादहए। जैसे संििों और दिप्पणणयों का उकलेख करना।
● संििग पंक्ततयाुँ अथवा शधि जहाुँ से भलया र्या है , वही का वववरण िे ना आवश्यक
है । ककसी अन्य के ववचारों, पंक्ततयों अथवा शधिों के संििग में स्वयं का नाम नहीं
बताना चादहए। क्जसके िी ववचार, अवधारणा अथवा शधि हैं उनका सही संििग िे ना
शोध-आलेख हे तु दहतकर होता है ।
● संििग ग्रंथ सच
ू ी का वववरण िे ते समय सवगप्रथम रचनाकार, समीक्षक अथवा
संपािक का नाम हो, उसके पश्चात रचना अथवा साधन का नाम हो, उसके पश्चात
प्रकाशन संस्था, प्रकाशन वषग, प्रशासन का संस्करण के साथ अंत में पष्ृ ठ संख्या का
िी उकलेख करना आवश्यक होता है ।