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प्राचीन काल से ही निरं न्तर मानव के सामाजिक एवं आर्थिक जीवन में
अनस
ु ंधान की महती भमि
ू का रही है । प्रत्येक यग
ु में प्रकृति ने मानव के समक्ष
विभिन्न चुनौतियॉ प्रस्तुत की परन्तु मानव में नवीनता खोजने तथा अज्ञात को
क्रान्तिकारी परिवर्तन एवं तकनीकी विकास एवं उन्नति मनमाने ढ़ं ग से नही खोजे
गये बल्कि निरीक्षण, परीक्षण एवं प्रयोग पर आधारित वैज्ञानिक पद्धति द्वारा ही ये
कुछ प्रमख
ु विद्वानो द्वारा शोध को निम्नप्रकार से परिभाषित किया है जिनकी
परिभाषाये निम्नवत है ः
रे डमान एवं मोरी के अनुसार “शोध नवीन ज्ञान अर्जित करने का व्यवस्थित
प्रयत्न है ।”1
अथवा व्यक्ति के विषय में सावधानी से खोज करना, तथ्यो अथवा सिद्धान्तो का
वर्गीकरण, सामान्यीकरण और सत्यापन करते हुये पर्याप्त रुप में वस्तु विषयक
और व्यवस्थित हो।”2
अनस
ु ंधान के मार्गदर्शक भी होते है ।
आधनि
ु क काल के वैज्ञानिक परक यग
ु में विभिन्न समस्या मल
ू क तथ्यों का
परीक्षण का महत्व और भी अधिक बढ़ जाता है , क्योकि इनके तथ्य बड़े ही जटिल,
1. रिसर्च मैथ्योलॉजी, डॉ0 आर 0 एन 0 त्रिवेदी, डा0 डी0 पी0 शुक्ला प0ृ -22
2. रिसर्च मैथ्योलॉजी, डा0 बी0 एम 0 जैन, प0ृ -3
प्रस्तुत शोध ग्रन्थ शीर्षक प्राचीन संस्कार, पुरुषार्थ एवं आश्रम व्यवस्थाः एक
ऐतिहिसिक अध्ययन के अन्तर्गत सोलह संस्कार, चार पुरुषार्थ एवं चार आश्रम के
विस्तारपर्व
ू क, विवेचना, महत्व एवं प्रांसगिकता का गहन अध्ययन कर इसको
साथ-साथ साक्षात्कार विधि का सहारा लिया है । ऐतिहासिक पद्धति में भूतकाल में
घटित घटनाओ, विकास, क्रमो तथा अनुभवो का विशिष्ट अन्वेषण होता है । जिसमें
“ऐतिहासिक पद्धति वह विधि है जिसमें कि वर्तमान काल में घटित होने वाली
घटनाओ को भत
ू काल में घटित हुई घटनाओ के धारा प्रवाह व क्रमिक विकास को
एक नई सझ
ू पैदा करते है जिसका सम्बन्ध वर्तमान तथा भविष्य से होता है ।”
2
गã
ृ सुत्रो में वर्णित विचारो को सम्मिलित करने के साथ-साथ प्राचीन एवं आधनि
ु क
किया है । इन प्राचीन ग्रन्थो एवं धार्मिक एवं सामाजिक चिंतको ने मानव एवं
निर्माण किया। इसके अन्तर्गत संस्कार, पुरुषार्थ एवं आश्रम व्यवस्था प्रमुखतः थे।
आन्तरिक एवं बाह्य रुप से सुदृढ़ तो करते ही साथ ही साथ एक सुव्यवस्थित एवं
सस
ु ंगठित समाज की स्थापना भी करते। शोधार्थी द्वारा प्रस्तत
ु शोध अध्ययन हे तु
शोध सामाग्री
प्राथमिक एवं f}rh;d श्रोतो से प्राप्त होते है। निश्चित रुप से अनस
ु ंधान की
सम्बन्धित है । इसकी प्रकृति मुख्यतः मौलिक होती है । पी0 वी0 येग के अनुसार
श्रोतो के रुप में प्राचीन भारत के धर्म, दर्शन एवं समाज से जुड़े मूल ग्रन्थो(वेद,
स्मति
ृ , उपनिषद, परु ाण, महाभारत, रामायण) में उल्लिखित विचारो को बहुत ही
सावधानी पर्व
ू क अध्ययन कर प्रस्तत
ु करने का प्रयत्न किया है ।
एम 0 एम 0 प्लेयर के अनस
ु ार f}rh;d संमक वे है जो पहले से ही वि|मान है एवं
जिसे विचारधीन प्रश्न का उत्तर प्राप्त करने से भिन्न किसी अन्य उद्देश्य से एकत्र
किया गया है । मुख्यतः शोधपत्रो, पत्रिकाओ, जर्नल, समाचार पत्रो, इन्टरनेट, कार्यालय
सम्प्रतिवार्ताः, सध
ु र्मा) इण्टरनेट (विकिपीडिया, वेब दनि
ु या, हिन्दी कुन्ज.कॉम) में
उपलब्ध शोध प्रबन्धो शोध पत्रिकाओ एवं पुस्तको का गहन किया है । इसके
गया है ।
प्रत्येक शोध के कुछ निश्चित उद्देश्य होते है जिनको ध्यान में रखकर
नवीन ज्ञान एवं विचार को मानव और समाज के लिए उयोग बनाना प्रमुख उद्देश्य
व्यावहारिक है ।
समस्याओ के बारे में वास्तविक ज्ञान प्राप्त कर सके मुख्यतः इसीलिए ही शोध
1. विभिन्न विधियो द्वारा अज्ञात तथ्यो के बारे में वास्तविक जानकारी प्राप्त
करना।
2. शोध अध्ययन के दौरान प्राप्त तथ्यो के विभिन्न पक्षो का सूक्ष्मता से
अवलोकन करना।
3. अलग-अलग प्राप्त तथ्यो के बीच सम्बन्ध स्थापित कर उसको व्यवस्थित
रुप से व्याख्यायित करना।
इस तरह शौध का उद्देश्य न केवल नवीन सिद्धान्तो का प्रतिपादन करना
बल्कि पुराने सिद्धान्तो का वर्तमान स्थितियो में सत्यापन एवं प्रासंगिक करना भी
होता है ।
प्रस्तुत शोध अध्ययन में प्राचीन भारतीय धर्म ग्रन्थो में मानव के लौकिक
विधि द्वारा गहन अध्ययन कर इसके स्वरुप, प्रकार, महत्व एवं प्रासंगिकता पर
प्रकाश डालना है ।
शोधार्थी का उद्देश्य प्रमुखतः प्रचलित सोलह संस्कारो के श्रोत, स्वरुप एवं प्रकार का
एवं समाज में इसका कितना महत्व था। ये मनष्ु य के लिए कितने उपयोगी थे
प्रयत्न किया कि प्राचीन धार्मिक एवं सामाजिक चिंतको ने किस तरह संस्कारो के
माध्यम से मनुष्य को जन्म के पूर्व से लेकर मत्ृ योपरान्त तक बाधे रखा। इन्ही के
सके।
मूलतः उद्देश्य मानव जीवन में इसकी महत्वा को प्रकाशित करना है । शोधार्थी
प्राथमिक एवं f}rh;d सामग्री के आधार पर इसके स्वरुप, प्रकार एवं महत्व को
होता है कि मानव जीवन के समस्त उद्देश्य की पूर्ति में पुरुषार्थ (धर्म, अर्थ, काम,
स्थापना के पिछे क्या उद्देश्य था। इसके लिए शोधार्थी ने प्राचीन धार्मिक एवं
द्वारा गहन अध्ययन कर प्राप्त श्रोत सामग्री के आधार पर उसेक स्वरुप, प्रकार
को स्पष्ट करना।
सम्बन्धित साहित्य का पन
ु रावलोकन
गया है -1-प्रत्यक्षश्रोत, 2-अप्रत्यक्षश्रोत। प्रत्यक्षश्रोत मूल रुप में उपलब्ध होते है यथा
पुस्तके, शोध ग्रन्ध, पत्रिकाओ मे छपे लेख एवं सामग्री, विशिष्ट निबन्ध पुस्तिकाऐ,
बुलेटिन एवं वार्षिक प्रकाशन तथा सरकार द्वारा प्रकाशित प्रतिवेदन एवं नीतियॉ।
(Encyclopedias), सच
ू ीपत्र(Indexes), निर्देशिकाएँ एवं सन्दर्भ ग्रन्थ सच
ू ी (Directories
And Bibliographies).
ज्ञात है कि इस शोध शीर्षक के नाम पर अभी तक न कोई शोध ग्रन्ध, लधु शोध
ग्रन्थ एवं प्रतिवेदन का पूर्व में प्रकाशन हुआ है । अतः शोधार्थी किसी विशेष
प्रस्तुत शोध पत्रो एवं वि}k नो के विचार, शोध संकलनो, शोध संस्थानो द्वारा
प्रकाशित पत्रिकाओ एवं पुस्तको मे दै निक समाचार पत्रो में प्रकाशित लेखो,
परु
ु षार्थ-भगवान दास, हिन्द ू संस्कार-डा0 राजबली पाण्डेय, भारतीय संस्कृति के
मैथ्योलॉजी-आर 0 एन 0 त्रिवेदी, डी0 पी0 शुक्ला के अध्ययन के साथ साथ मुख्य रुप
से अखण्ड ज्योति संस्थान, मथरु ा द्वारा प्रकाशित पुस्तको एवं पत्र पत्रिकाओ का
अध्ययन किया है ।
करके स्वीकृत विधि द्वारा उनसे तर्क पूर्ण अर्थ की प्राप्ति ही समंको का विश्लेषण
अपनाया है -
करना।
3. महत्वपर्ण
ू एवं उपयोगी समंको को सव्ु यवस्थित एवं क्रमबद्ध रुप से प्रस्तत
ु
करना।
के अनरु
ु प शोध कार्य को पर्ण
ू करने का प्रयत्न किया है , परन्तु इस शोध ग्रन्थ की
1. प्रस्तुत शोध ग्रन्थ में ‘प्राचीन भारत’ से आशय मौर्य कालीन भारत तक लिया
संस्कार परु
ु षार्थ एवं आश्रम व्यवस्था का वर्णन है ।
प्रयास नही।
5. संग्रहित शोध सामाग्री प्राप्ति मुख्यतः अखण्ड ज्योति संस्थान, मथरु ा एवं गीता
6. अखण्ड ज्योति संस्थान, गीता प्रेस एवं आर्य समाज द्वारा अनुवादित वैदिक
सकती है ।
महत्व
आधनि
ु क प्रतिस्पर्धी युग में मानव जीवन से सम्बन्धित समस्त क्षेत्रो में इसकी
अत्यन्त महत्वपर्ण
ू भमि
ू का रही है । शोध ही मानव ज्ञान को नवीन दिशा प्रदान
कर, अस्पष्ट ज्ञान को सुस्पष्टीकरण कर ज्ञान के क्षेत्र का विस्तार कर उसका
करता है ।
शोधार्थी का पर्ण
ू विश्वास है कि यह शोध प्रबन्ध भारतीय संस्कृति के
आधारभत
ू तत्वो के अन्तर्गत प्राचीन भारतीय संस्कार, परु
ु षार्थ एवं आश्रम के
नियमो, सिद्धान्तो, विधि-विधानो एवं आदर्शो को पुनर्जीवित करने में सक्षम होगा, और
साथ ही वर्तमान समय में मानव एवं समाज के आवश्यकतता के अनुरुप उसकी
समाज की स्थापना के लिए इस शोध प्रबन्ध में उल्लिखित नियम एवं सिद्धान्त