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द्वितीय-अध्याय

पूर्ववर्ती शोध कार्यो का विवरण


2.1 परिचय
कोई भी शोध परक अध्ययन पर्णू स्वतंत्र रहकर गणवेषणात्मक नहीं हो सकता है । किसी कार्य की समीक्षा
पर्वू वर्ती ज्ञान के आधार पर हो पाती है । प्राचीनकाल के ज्ञान को सम्प्रति आधनि
ु क ज्ञान के आधार का तत्व माना
जाता है । ज्ञान की कोई भी शाखा संयक्त ु रूप से विकसित नहीं हो सकती । पर्वू वर्ती ज्ञान की शाखाओ ं एवं
उपशाखाओ ं को विवर्धित करके नवीन समयोपयोगी शोध किये जा सकते है ।
सबं धि
ं त साहित्य से तात्पर्य अनसु धं ान की समस्या से सबं धि
ं त उन सभी पस्ु तको, ज्ञानकोषों, पत्र-पत्रिकाओ ं
में प्रकाशित तथा अप्रकाशित शोध प्रबन्धों से है जिनके अध्ययन से अनसु ंधानकर्ता को अपनी समस्या के चयन,
परिकल्पनाओ ं के निर्माण में अध्ययन की रूपरे खा तैयार करने एवं कार्य को आगे बढ़ाने में सहायता मिलती है ।
सबं धि
ं त साहित्य की आवश्यकता पर प्रकाश डालते हुए चार्टर बी. गुड ने लिखा है कि- ‘‘मद्रि ु त साहित्य
के अपार भण्डार की कंु जी अर्थपर्णू समस्या और विश्ले षणीय परिकल्पना के स्रोत का द्वार खोल देती है तथा
समस्या के परिभाषीकरण, अध्ययन की विधि के चनु ाव तथा प्राप्त सामग्री के तल ु नात्मक विश्ले षण में सहायता
करती है ।” वास्तव में रचनात्मकता, मौलिकता तथा चितं न के विकास हेतु विस्तृत एवं गम्भीर अध्ययन आवश्यक
है ।
एक प्रभावपर्णू एवं सार्थक शोधकार्य सबं धि
ं त साहित्य के अभाव में असभं व है क्योंकि इसी माध्यम से
किसी भी अनसु धं ान का गणु ात्मक स्तर निर्धारित नहीं होता है । डब्लू. आर. बोर्ग के अनसु ार, ‘किसी भी क्षेत्र का
शोध साहित्य उस आधार शिला के समान है । जिस पर सपं र्णू भावी कार्य सपं ादित होता है । यदि सबं धि ं त साहित्य
के सर्वेक्षण द्वारा इस नींव को दृढ़ नही कर लिया जाता है तो शोधकार्य के प्रभावहीन व महत्त्वहीन होने की
सभं ावना है’।

2.2 सबं ंधित साहित्य के पुनरावलोकन का अर्थ


साहित्य का पनु रावलोकन में दो शब्द है ‘साहित्य’ और ‘पनु रावलोकन’। साहित्य शब्द परंपरागत अर्थ से
भिन्न अर्थ प्रदान करता है । यह भाषा के संदर्भ में प्रयोग किया जाता है जैसे हिन्दी साहित्य, आग्ं ल साहित्य,
संस्कृ त साहित्य, आदि । अनसु ंधान विधि में साहित्य शब्द किसी विषय के अनसु ंधान के विशेष क्षेत्र के ज्ञान की
और संकेत करता है । जिसके अतं र्गत सैद्धांतिक, व्यावहारिक और शोध अध्ययन आते हैं ।
जे. डब्ल्यू. बेस्ट के अनसु ार, ‘व्यावहारिक रूप में सपं र्णू मानव ज्ञान पस्ु तकों और पस्ु तकालयों में मिल
सकता है । अन्य प्राणियो से भिन्न मानव की अतीत से प्राण ज्ञान को प्रत्येक पीढ़ी के साथ नये ज्ञान के रूप में प्रारं भ
करना चाहिए । ज्ञान के विस्तृत भडं ार में उसका निरूत्तर योगदान प्रत्येक क्षेत्र में किये गये विस्तृत प्रयासों को,
सफलता को सभं व बनाता है’।

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2.3 संबंधित साहित्य के पुनरावलोकन का महत्त्व
अनसु ंधानकर्ता एक पग भी सही दिशा में आगे नहीं बढ़ सकता है जब तक उसे यह ज्ञान नहीं होगा कि उस
क्षेत्र में कितना कार्य हो चक ु ा है । किसी विधि से कार्य किया गया है तथा उससे क्या निष्कर्ष प्राप्त हुए तब तक वह
किसी समस्या का निर्धारण नहीं कर सकता है । न हीं वह किसी समस्या की रूपरे खा तैयार कर कार्य को सम्पन्न
कर सकता है ।
गडु , बार स्के टस ने सबं धि
ं त साहित्य का महत्त्व निम्न प्रकार बताया है -
1. यह सर्वेक्षण उन सद्धातं ों व्याख्याओ ं तथा परिकल्पनाओ ं को विचार प्रदान करता है, जो अपने अध्ययन की
समस्या के निर्माण के लिए महत्त्वपर्णू होते है ।
2. यह अपने अध्ययन की समस्या के समाधान हेतु अनसु ंधान की समचि ु त विधि का सझु ाव देता है। यह उपलब्ध
प्रमाण समस्या का समचि ु त समाधान प्रस्ततु करता है।
3. संबंधित साहित्य का गंभीर अध्ययन अनसु ंधानकर्ता के ज्ञानकोष में वृद्धि करता है ।

2.4 साहित्य समीक्षा की आवश्यकता


साहित्य समीक्षा के दो महत्त्वपर्णू पक्ष माने जाते है-
1. प्रथम पक्ष के अतं र्गत समस्या से संबधि ं त क्षेत्र में प्रकाशित सामग्री को पहचानना तथा जिस भाग से हम परू ी
तरह अवगत नही हुए है उसको पढ़ना या अध्ययन करना है।
2. दसू रे पक्ष में शोध अभिलेख के भाग में इन विचारों को लिखना निहित है । अतः इन दोनों पक्षों को समझने के
लिए शोध साहित्य की समीक्षा की आवश्यकता होती है । जो निम्न बिन्दओ ु ं से अधिक स्पष्ट किया जा सकता है-
(क) शोधकर्ता सबं धि ं त साहित्य की समीक्षा के आधार पर अपनी परिकल्पनायें बनाता है तथा शोधकर्ता
को अपने विषय से सबं धि ं त ज्ञान का अध्ययन करने से समस्या चनु ने तथा नामकरण में सवि ु धा रहती है ।
(ख) शोधार्थी को अपने विषय से सबं धि ं त क्षेत्र में एक सझू पैदा होती है । जिसके आधार पर वह अपने
शोधकार्य को सरलतापर्वू क सम्पन्न कर सकता है तथा साहित्य का अध्ययन शोधार्थी को यह अवगत कराता है
कि किन किन क्षेत्रों में कार्य हो चक
ु ा है ।

2.5 साहित्य समीक्षा के उद्देश्य


शोधकर्ता सबं ंधित साहित्य के अध्ययन से अपने ज्ञान में वृद्धि करता है जिससे उसे शोध अध्ययन में धन,
समयव श्रम की बचत होती है तथा अपने उद्देश्य की प्राप्ति के लिए सही मार्गदर्शन प्राप्त होता है । साहित्य समीक्षा
के उद्देश्य को हम निम्न बिन्दओु ं द्वारा और अधिक स्पष्ट कर सकते हैं-
1. साहित्य की समीक्षा शोधकर्ता में यह समझ विकसित करती है कि किन बिन्दओ ु ं पर कार्य हो चक
ु ा है
जिससे शोधकार्य की अनावश्यक पनु रावृत्ति से बचा जा सकता है ।

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2. शोध साहित्य की समीक्षा से शोधकर्ता को अपने शोध कार्य के महत्त्वपर्णू बिन्दओ
ु ं के विषय में ज्ञान
प्राप्त होता है तथा साहित्य की समीक्षा से परिकल्पना बनाने में मदद मिलती है ।
3. समीक्षा वर्तमान अध्ययन के लिए शोध विधियों का सझु ाव दे सकती है तथा शोधकर्ता को शोध
परिणामों का विश्ले षण और व्याख्या करने में साहित्य समीक्षा सहायक सिद्ध होती है ।

2.6 संबंधित साहित्य के अध्ययन की सीमाएँ


सबं धि
ं त साहित्य का अध्ययन जहाँ अनसु धं ान कार्य के लिए सही मार्गदर्शन प्रदान करता है तथा अनसु धं ान
कार्य के लिए अत्यतं महत्त्वपर्णू है । वहीं इसकी कुछ सीमाएं है:-
1. सबं धिं त साहित्य का अध्ययन शोधार्थी में समस्या के प्रति एक झक ु ाव एवं पक्षपात का भाव उत्पन्न करता है ।
2. पर्वू में हुए शोधों क अध्ययन से प्राप्त परिणामों से अपने अध्ययन से प्राप्त परिणामों की तल ु ना करते समय
शोधकर्ता निम्न तथ्यों की अपेक्षा कर देते है जैसे पर्वू अनसु धं ान की अवधारणायें आदि ।

शोधार्थी द्वारा चयनित शोध से सबं धं ी पर्वू किए गए शोध अध्ययन का सक्षि
ं प्त विवरण निम्नानसु ार हैः-

नवीन(2021) ने अपने लेख ‘विद्यालयी शिक्षा पर ऑनलाइन सीखने का प्रभाव’ में लिखा है, एक विद्यालय
अपने छात्रों को तैयार करने के लिए संरचना, सहायता और परु स्कार और दडं की एक प्रणाली प्रदान करता है ।
पारंपरिक कक्षा शिक्षा साथियों के साथ आमने-सामने बातचीत का लाभ प्रदान करती है जिसे आमतौर पर एक
शिक्षक द्वारा संचालित किया जाता है । यह बच्चों को, विशेष रूप से उनके प्रारंभिक विकास के वर्षों में, सामाजिक
बातचीत के लिए एक स्थिर वातावरण प्रदान करता है, जिससे उन्हें सीमा निर्धारण, सहानभु ति ू और सहयोग जैसे
कौशल विकसित करने में मदद मिलती है । यह वर्चुअल लर्निंग सेटअप के विपरीत, सहजता के लिए बहुत जगह
देता है ।

कुमार कौशलेन्द्र (2020) ने अपने लेख ‘ऑनलाइन शिक्षा और हमारे बच्चे’ में लिखा है, कोरोना ने जब भारत
में दस्तक दी तब तक स्कूलों में वार्षिक परीक्षाएं खत्म हो गई थी और ये बच्चों समेत परू े समाज के लिए राहत की
बात थी । परंतु जब कोरोना का संकट गहराता गया और यह प्रतीत होने लगा कि यह अभी नहीं जाने वाला है तब
बच्चों की शिक्षा को सक्रिय करने की योजना बनने लगी । ऑनलाइन शिक्षण द्वारा बच्चों को पनु ः स्कूल व
शिक्षकों से जोड़ा गया । शैक्षिक गतिविधियां रुक जाने से बच्चों के दैनन्दिन जीवन शैली प्रभावित हो रही थी । देर
से सोना, देर तक सोना, कुछ भी समय से नहीं करना आदि जैसी प्रवृतियां बढ़ती जा रही थी । जाहिर सी बात है घर
के अभिभावक भी बच्चों के इन व्यवहारों से खश ु नहीं थे । कोरोना के खौफ के साथ-साथ बच्चे की बदलती
प्रवृति भी उन्हें चिति
ं त कर रही थी । स्कूलों ने जब घर में बैठे बच्चों को ऑनलाइन शिक्षा के माध्यम से जोड़ा तब

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सबसे ज्यादा संतोष घर के इन्हीं अभिभावकों को हुआ । स्कूल प्रबंधन ने एक दिनचर्या के तहत बच्चों को घर में
ही पढ़ाने की शरुआत की ।
शिक्षण की इस नवीन पद्धति में सबसे बड़ा खतरा बच्चों के स्क्रीन टाइम बढ़ना है । अमेरिकन अकादमी ऑफ
पीडियोट्रिक्स ने बच्चो के स्क्रीन टाइम पर एक शोध रिपोर्ट प्रस्ततु की है जिसके अनसु ार 2 से 5 साल के बच्चे
एक घंटे से ज्यादा स्क्रीन का उपयोग न करें । छः साल या उससे ज्यादा बड़े बच्चों का स्क्रीन टाइम सीमित रखें
तथा बच्चों को खेलने या अन्य क्रियाओ ं के लिए पर्याप्त समय दे । स्मार्ट फोन के साथ बच्चों का लगाव तो
सर्वविदित है । दिन का एक बड़ा समय वे स्मार्ट फोन पर खर्च करते हैं । फोन के साथ साथ टी.वी पर भी उनकी
नजरे होती ही हैं । कुल मिलाकर यह देखा जा सकता है कि कोरोना सक ं ट में ऑनलाइन शिक्षा प्राप्त करने के पर्वू
भी बच्चों का स्क्रीन टाइम कुछ कम नहीं था। अतः यह देखा जा सकता है कि शिक्षण की इस नवीन पद्धति से
बच्चों की आख ं ों पर दष्ु प्रभाव तो अवश्य ही पड़ेगा । इससे बच्चों को कुछ शारीरिक व मानसिक परे शानियां हो
सकती है ।

मुथूप्रसाद(2020) ने ‘COVID-19 महामारी के दौरान भारत में ऑनलाइन शिक्षा के लिए छात्रों की धारणा और
प्राथमिकता’ विषय पर अध्धयन किया । इस अध्ययन के लिए कृ षि स्नातकों को प्रशिक्षु के रूप में चनु ा गया था
क्योंकि कृ षि सबसे विविध विषय है जिसमें जीवन विज्ञान से लेकर सामाजिक विज्ञान तक के विषय शामिल हैं
जहां छात्र प्रयोगशाला से लेकर जमीन तक काम करते हैं । इस शोध अध्ययन में कई प्रतिभागियों ने बताया कि
तकनीकी बाधा, विकर्षण, प्रशिक्षक की अक्षमता, शिक्षार्थी की अक्षमता और स्वास्थ्य सबं ंधी समस्याएं उनके
ऑनलाइन सीखने के अनभु व में चनु ौतियां थीं।
प्रतिभागियों द्वारा बताई गई सबसे बड़ी चनु ौती तकनीकी बाधाएं थीं । तकनीकी बाधाओ ं पर चितं ा भी सभी
प्रतिक्रियाओ ं में परिलक्षित हुई । इटं रनेट तक पहुचं की कमी कुछ शिक्षार्थियों को ऑनलाइन कक्षाओ ं से बाहर कर
देगी । धीमे कनेक्शन भी एक्सेस कोर्स प्लेटफॉर्म और सामग्री को निराशाजनक बना सकते हैं । ऑनलाइन कक्षाएं
तभी सफल होंगी जब सभी को समान और किफायती बनाकर इटं रनेट की सवि ु धा प्रदान की जाएगी ।
उत्तरदाताओ ं द्वारा समदु ाय की कमी पर चितं ा भी व्यक्त की गई । ऑनलाइन वातावरण में सीखने या समदु ाय की
भावना के लिए एक आरामदायक वातावरण बनाना चनु ौतीपर्णू है । उन तरीकों के बारे में सोचना महत्त्वपर्णू होगा
जिनसे छात्र और शिक्षक एक-दसू रे को जान सकते हैं और जड़ु े रह सकते हैं ।
सर्वे में शिक्षकों की लापरवाही भी सामने आई है । शिक्षार्थी की रुचि को बनाए रखने के लिए कक्षाओ ं को रोचक
और प्रभावी बनाने के लिए प्रशिक्षक द्वारा प्रयास किए जाने चाहिए । कंप्यटू र का उपयोग करने और इटं रनेट पर
नेविगेट करने में सहज महससू करना भी महत्त्वपर्णू है ।

राष्ट्रीय सैंपल सर्वेक्षण रिपोर्ट (2021)- लोकल सर्क ल नाम की एक गैर सरकारी संस्था ने एक सर्वेक्षण किया है
जिसमें 203 ज़िलों के 23 हज़ार लोगों ने हिस्सा लिया । जिनमें से 43% लोगों ने कहा कि बच्चों की ऑनलाइन
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क्लासेस के लिए उनके पास कम्प्यटू र, टेबलेट, प्रिंटर, राउटर जैसी चीज़ें नहीं है। ग्लोबल अध्ययन से पता चलता है
कि के वल 24% भारतीयों के पास स्मार्टफोन है। राष्ट्रीय सैंपल सर्वेक्षण रिपोर्ट 17-18 के अनसु ार 11% परिवारों
के पास डेस्कटॉप कंप्यटू र/ लैपटॉप/नोटबक ु / नेटबकु / पामटॉप्स या टैबलेट हैं। इस सर्वे के अनसु ार के वल 24%
भारतीय घरों में इटं रनेट की सविु धा है, जिसमें शहरी घरों में इसका प्रतिशत 42 और ग्रामीण घरों में के वल 15% ही
इटं रनेट सेवाओ ं की पहुचँ है ।
इस सर्वक्षण के आधर पर कुछ निष्कर्ष निकाले गए जो इस प्रकार हैं-
1. ऑनलाइन पढाई पर छात्र प्रतिक्रिया सीमित है ।
2. ऑनलाइन पढ़ाई सामाजिक अलगाव का कारण बनता है ।
3. ऑनलाइन पढ़ाई समय प्रबधं न कौशल में बाधक होती है ।
4. ऑनलाइन पढ़ाई में सचं ार कौशल विकास का अभाव है ।
5. ऑनलाइन पढ़ाई में धोखाधड़ी जैसी घटना अधिक होती है ।
6. ऑनलाइन पढ़ाई में अभ्यास सिद्धातं कम होता है ।
7. ऑनलाइन पढ़ाई में आमने-सामने सचं ार का अभाव है ।
8. ऑनलाइन पढ़ाई कुछ विषयों तक ही सीमित होती है ।
9. ऑनलाइन पढ़ाई कंप्यटू र निरक्षर आबादी में मश्कि ु ल है ।
10. ऑनलाइन पढ़ाई में शिक्षा मान्यता गणु वत्ता का अभाव है ।

साल्सेडो (2010) ने ‘आमने-सामने विदेशी भाषा कक्षाओ ं एवं भाषा लैब और ऑनलाइन में सीखने के परिणामों
का तल ु नात्मक विश्ले षण’ विषय पर अध्धयन किया और निष्कर्ष प्राप्त किया कि छात्र और प्रशिक्षक इस बात से
सहमत हैं कि विदेशी भाषा के छात्रों को विदेशी भाषा बोलने की चितं ा को दरू करने और मॉडलिंग द्वारा उच्चारण
में महारत हासिल करने के लिए व्यक्तिगत बातचीत की आवश्यकता होती है ।

पॉल और जेफ़रसन (2019) ने 2009 से 2016 तक ऑनलाइन एवं आमने-सामने पर्यावरण विज्ञान पाठ्यक्रम में
छात्र के प्रदर्शन का तल
ु नात्मक विश्ले षण किया । अध्ययन के प्रशिक्षु में 548 FVSU छात्र शामिल थे जिन्होंने
2009 और 2016 के बीच पर्यावरण विज्ञान का अध्धयनपरू ा किया । प्रतिभागियों के अति ं म पाठ्यक्रम ग्रेड ने
ऑनलाइन और आमने-सामने निर्देश के बीच प्रदर्शन अतं र का आकलन करने में प्राथमिक तल ु नात्मक कारक के
रूप में कार्य किया । कुल 548 प्रतिभागियों में से 147 ऑनलाइन छात्र थे जबकि 401 पारंपरिक छात्र थे ।
अध्धयन में इन तत्थ्यों को ज्ञात किया गया कि पारंपरिक कक्षा शिक्षण में कक्षा निर्देश अत्यतं गतिशील हैं ।
पारंपरिक कक्षा शिक्षण वास्तविक समय में आमने-सामने निर्देश प्रदान करता है और नवीन प्रश्नों को जन्म देता है ।
यह तत्काल शिक्षक प्रतिक्रिया और अधिक लचीली विषयवस्तु वितरण की भी अनमु ति देता है ।

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