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Book · November 2015


DOI: 10.13140/RG.2.1.2759.9843

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Dr. Akhilesh Kumar


Vardhaman Mahaveer Open University
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निर्देनिका BED-14

नाट्य एवं कला शिक्षा


Drama & Art Education
BED14
BED

BED-14

निर्देनिका
िाट्य एवं कला निक्षा
(Drama & Art Education)
लेखि एवं सपं ार्दि
डॉ अनखलेि कुमार
सहायक आचायय
वर्यमाि महावीर खुला नवश्वनवद्यालय, कोटा

1
अिुक्रमनिका

क्रम िीर्यक पृष्ठ संख्या


सख्ं या
1. शनर्देशिका का प्रयोजन एवं उद्देश्य 3-4

2. कला: सक ं ल्पना, परिभाषाएं एवं शविेषताए,ं उनके प्रकाि एवं 4-7


समान्य लक्ष्य
खंड ‘A’ िाट्य निक्षि 8-20
3. नाटक एवं नाट्य शिक्षा परिभाषा एवं महत्व 8-10

4. नाट्य शिक्षा की कक्षा के आयोजन के प्रमख


ु तत्व 10-16

5. नाट्य शिक्षा की कक्षा के उर्दहािण 16-20


खंड ‘B’ दृश्य कला निक्षि 21-35

6. शित्रकला शिक्षण: परिभाषा एवं महत्व 21-23

7. बच्िो में शित्रकला के शवकास का ििण : लान्फे ल्ड का शसद्ांत 23-30

8. शवशभन्न स्तिों पि शित्रकला / दृश्य कला शिक्षण के उद्देश्य 31-32

9. शित्रकला शिक्षण की कक्षा का आयोजन के प्रमख


ु तत्व 32-34

10. शित्र कला शिक्षण का एक उर्दहािण 34-35


खंड ‘C’ आवश्यक निर्देि 36-37

11. प्रोजेक्ट रिपोटट जमा किने हेतु आवश्यक शनर्देि 36

12. सन्र्दभट ग्रन्थ एवं अन्य अध्ययन 37

2
िाट्य एवं कला निक्षा
(Drama & Art Education)
1. निर्देनिका का प्रयोजि एवं उद्देश्य

सप्रु शसद् शिक्षाशवर्द जैकस डेलसट की अध्यक्षता में गशित ‘21वीं सर्दी में शिक्षा’ का अतं िाटष्ट्रीय आयोग
(Intrnational Commission on Education in Twenty First Century) शजसकी रिपोटट ‘लशनिंग र्द रेजि
शवर्द इन’ (Learning the Treasure Within) िीषटक से यनू ेस्को द्वािा 1996 में प्रकाशित शकया गया, के
अनसु ाि 21वीं सर्दी में शिक्षा के शनम्नाशकत िाि आधाि स्तम्भ होने िाशहए:
1. ज्ञाि के नलए सीखिा (Learning to Know):यह स्तम्भ इस बात पि जोि र्देता है शक हमे
ज्ञान के शलए सीखना िाशहए ।
2. करिे के नलए सीखिा(Learning to do): यह स्तम्भ इस बात पि जोि र्देता है शक शिक्षा
का उद्देश्य शकसी व्यवसाय के शलए व्यशि में उपयि ु कौसहलों का शवकास किना होना िाशहए।
3. होिे के नलए सीखिा(Learning to be) : यह यनू ेस्को की रिपोटट का मख्ु य थीम है जो
शिक्षा का उद्देश्य व्यशि की स्वतंत्रता एवं उसके संपणू ट शवकास एवं सामाशजक / सामर्दु ाशयक
शहतों के शलए व्यशिगत शजम्मेर्दारियों को समझने पि पि जोि र्देता है।
4. साथ रहिे के नलए सीखिा (Learning to Live Together): साथ िहने के शलए सीखना
(Learning to Live Together) यह बताता है शक २१वीं सर्दी में शिक्षा का उद्देश्य र्दसू िों की
समझ शवकशसत किना भी होना िाशहए ताशक िांशत पणू ट वाताविण में जीवन व्यतीत शकया जा
सके । इसके अतं गटत र्दसू िों के दृशिकोण को समझना, समाज को समझना, समाज के शनयम
कायर्दे औि िीशत रिवाज आशर्द को समझना भी िाशमल है।
यनू ेस्को द्वािा प्रकाशित यह रिपोटट एक क्रशन्तकािी रिपोटट है शजसने संपणू ट शवश्व की शिक्षा व्यवस्था में क्रांशतकािी
परिवतटन कि शर्दया। यशर्द हम र्देखें तो इसके िाि स्तंभों में से र्दो स्तम्भ: ‘होने के शलए सीखना (Learning to be)’
एवं ‘साथ िहने के शलए सीखना (Learning to Live Together)’ शिक्षा में कलाओ ं के उपयोग का एक
मजबतू पैिोकाि है। आपना अशस्तत्व बनाये िखने के शलए जीवन में स्वतंत्रता एवं आनंर्द का महत्त्वपणू ट स्थान है जो
हमें शवशभन्न कलाओ ं के मध्य से सहज प्राप्य हो सकती है। अतः शिक्षा के इस उद्देश्य की पतू ी हेतु कला शिक्षा
एक प्रमख ु साधन हो सकती है। साथ ही, साथ िहने के शलए सीखना अथाटत र्दसू िों की समझ शवकशसत किना,
अन्य व्यशियों से प्रभावी सम्प्रेषण, समाज को समझना, समाज के शनयम कायर्दे औि िीशत रिवाज आशर्द को
समझना भी िाशमल है औि इनके शलए भी शवशभन्न कलाएं एक सिि माध्यम हो सकती हैं, क्योंशक शवशभन्न
कलाओ ं का सामान्य उद्देश्य है सम्प्रेषण, शवशभन्न अतं द्विंद्वों का उद्घाटन एवं आनंर्द की प्राशि। शिक्षा के इन्ही उद्देश्यों
की प्राशि हेतु सपं णू ट शवश्व में कला शिक्षण पि कफी जोि शर्दया जा िहा है औि तर्दनसु ाि आपके बी एड के नवीन
3
पाि्यक्रम में कला एवं िाट्य निक्षा एक अशनवायट पत्र / पाि के रूप में िाशमल शकया गया है जो ५० अक ं ों का
है। इसके बी एड के पाि्य क्रम में िाशमल शकये जाने का उद्देश्य अत्यंत व्यापक है। वस्ततु ः समाज में हो िहे मल्ू यों
का ह्रास शिक्षाशवर्दों की शितं ा का वैशश्वक शवषय है। वतटमान शिक्षा पद्शत सिू ना का भडं ाि तो है पिन्तु वह कहीं न
कहीं एक बच्िा जो िाष्ट्र का भशवष्ट्य होता है,उसमे सामाशजक एवं नैशतक मल्ू य को शवकशसत किने में सक्षम नहीं
साशबत हो पा िहा है। शजसके कािणों में प्रमख ु है छात्रों का आपने समाज, अपनी संस्कृ शत, अपने िीशत रिवाज से
परििय न हो पाना, शिक्षा का मल्ू य भौशतक सख ु सशु वधाओ ं की उपलशधध एवं पैसों से जोड़ा जाना, बच्िों में ज्ञान
की बजाए पिीक्षा में अशधक अक ं लेन की अधं ी होड़, माता शपता द्वािा बच्िों की सफलता की अन्य बच्िों से
तलु ना एवं इस कािण बच्िों में बढता तनाव (जो कई बाि बच्िों की बढती आत्महत्या की घटनाओ ं के रूप में
सामने आता है) पढाई औि बस्ते का बढता बोझ औि बच्िों से शछनता बिपन, धन कमाने के क्रम में कहीं पीछे
छूटते रिश्ते एवं टूटते शबखिते परिवाि आशर्द हैं। मानशसक तनाव के इस बढ़ते यगु में कला एवं नाट्य शिक्षा यशर्द
बच्िों का कला प्रेम जागरूक कि सके तो न के वल बच्िों के मानशसक तनाव को कम किने में मर्दर्द शमलेगी
बशल्क बच्िों के अन्र्दि नैशतक एवं सामाशजक मल्ू यों को स्थाशपत किने में भी मर्दर्द शमलेगी जो प्रकािांति से एक
उन्नत समाज, एक उन्नत िाष्ट्र एवं एक िाशं तपणू ट शवश्व की स्थापना कि सकने में सहायक होगी। नाट्य एवं कला
शिक्षा के बालक की शिक्षा में महत्व के बािे में इस शनर्देशिका में आगे शवस्ताि से ििाट की जाएगी। आइये
सवटप्रथम हम इस शनर्देशिका के उद्देश्यों पि ििाट किें:
इस शनर्देशिका के शनम्नांशकत उद्देश्य हैं:

 कला एवं कला शिक्षा की सक ं ल्पना से अवगत किना


 नाटक एवं नाट्य शिक्षा की सक ं ल्पना से अवगत किाना
 कला एवं कला शिक्षा की शिक्षण अशधगम प्रशक्रया एवं जीवन में महत्व को समझना
 नाटक एवं नाट्य शिक्षा की शिक्षण अशधगम प्रशक्रया एवं जीवन में महत्व को समझना
 कला एवं नाट्य शिक्षा की शवशभन्न स्ति की कक्षाओ ं के प्रभावी आयोजन के तिीकों के समझना

2. कला: सक
ं ल्पिा, पररभार्ाएं एवं नविेर्ताए,ं उिके प्रकार एवं समान्य लक्ष्य

2.1 कला की पररभार्ा एवं नविेर्ताएं (Definition & Nature of Arts)

र्दशु नया में सभी व्यशियों का अशभव्यशि का तिीका प्रायः अलग- अलग होता है। शकसी की अशभव्यशि दृश्य हो
सकती है, शकसी की श्रव्य, शकसी की स्पिाटत्मक । जब एक शिक्षक इन शभन्न – शभन्न अशभव्यशि के माध्यम को
अपनी शिक्षण प्रशक्रया में िाशमल कि लेते हैं तब वे व्यशि की संप्रेषण क्षमता को औि प्रभावी बनाने में सक्षम हो
जाते हैं। अशभव्यशि कला शिक्षण (Expressive Art Education) का तात्पयट कला (Art),सगं ीत (Music),

4
नृत्य (Dance), ड्रामा (Drama), कशवता (Poetry), ििनात्मक लेखन (Creative Witing), खेल (Play), िे त
शित्र (Sand Tray) आशर्द शवधाओ ं के शिक्षण अशधगम की प्रशक्रया में उपयोग से है ताशक ये प्रशक्रयाएं औि
प्रभावी हो सकें औि बच्िों के सवािंगीण शवकास में मर्दर्द कि सकें ।
कलाओ ं का तात्पयट शविािों, अनभु वों एवं भावनावों की संगीत, शित्र, भाषा, मद्रु ा, गशत एवं भाव भशं गमाओ ं के
माध्यम से सशु नयोशजत अशभव्यशि है । कलाएं बच्िे को संवर्दे ी, भावनात्मक, बौशद्क एवं ििनात्मक रूप से समृद्
किती हैं औि उसके सवािंगीण शवकास में मर्दर्द किती हैं । समाज में उपलधध कई स्तिीय वस्तयु ें कई प्रकाि के
कलाओ ं से शवकशसत हुई हैं औि वे सांस्कृ शतक शवकास में सहायक एवं समाज कल्याण की भावना के शवकास में
सहायक हैं । कला शिक्षा छात्रों को सम्प्रेषण के वैकशल्पक तिीके सीखने मर्दर्द किता है । यह शवशभन्न व्यशिगत
एवं नवीन शविािों को प्रोत्साशहत भी किता है औि बच्िे में बहुबशु द् (Multiple Intelligence) के शवकास में
अत्यंत सहायक है । प्राथशमक स्ति पि एक उद्देश्य पणू ट कला शिक्षा (Purposeful Art Education) जीवन को
उन्नत किने एवं ििनात्मक क्षमता को उत्तेशजत किने, शवशभन्न कौिलों को बढ़ाने एवं बालक के समायोजन
(Adjustment) में सहायक होती हैं ।
सप्रु शसद् प्रयोजनवार्दी िैशक्षक र्दािटशनक जॉन डीवी (1906) के अनसु ाि, “कोई व्यशि क्या कि िहा है, इसका
अनभु व किना एवं उस अनभु व का आनंर्द उिाना, उस संगामी अन्तजीवन की प्रशक्रया के एक पक्ष में खो जाना
औि सामग्री सन्र्दभों का तर्दनसु ाि सशु नयोशजत शवकास किना ही कला है”।
यशर्द उपिोि परिभाषा के शवश्ले षण किें तो पाएगं े शक कला में शनम्नांशकत शविेषताएं होती हैं:

 एक नवीन शनमाटण किना


 उस नवीन शनमाटण का अनभु व किना
 उस नवीन शनमाटण के अनभु व की अशभव्यशि
 कलाकाि का कला शनमाटण की प्रशक्रया में खो जाना
 कलाकाि के द्वािा कला-प्रशक्रया का आनर्दं उिाना
 कला प्रशक्रया के एक पक्ष में खो जाना
 कलात्मक सामग्री का सशु नयोशजत शवकास
 कला शनमाटण के र्दौिान कलाकाि की शक्रयािीलता

2.2 कलाओ ं की अनितीय नविेर्ताएं :


कलाओ ं की कुछ अशद्वतीय शविेषताएं हैं जो िाशधर्दक अशभव्यशि में नहीं पाई जाती। इनमें से प्रमख
ु हैं:

 स्व अशभव्यशि (Self Expresion)


 सशक्रय सहभाशगता (Active Paticipation)
 कल्पनािीलता (Imagination)

5
 मन एवं ििीि का सबं धं (Mind Body connections)
 समहू गत्यात्मकता (Group Dynamics)
 समहू भावना का शवकास (Development of Team Spirit)
 नेतत्ृ व क्षमताओ ं का शवकास
 सामाशजक समायोजन (Social Adjustment)
 सहनिीलता (Tolerance)
 धैयट एवं शस्थिता (Patience and Persistence)
2.3 कलाओ ं के प्रकार(Varients of Arts):

यूँू तो कला को शवशभन्न प्रकािों एवं रूपों में बांधना संभव नहीं है, पिन्तु अपने अध्ययन की सशु वधा के शलए कला
एवं नाट्य शिक्षा के क्षेत्र में प्रिशलत उपागमों को र्दो बड़े भागों प्रर्दिटन कला एवं दृश्य कला में बाूँटा जा सकता है;
शजनका सशं क्षि शवविण शनम्नाशं कत है:
1. प्रर्दियि कला (Performing Arts): दृश्य कला से इति प्रर्दिटन कला, कला का वह प्रकाि है शजसमे
िािीरिक भाव भशं गमा, आवाज, संवार्दों एवं िािीरिक शक्रयाओ ं के माध्यम से शकसी शविाि अथवा भाव
को अशभव्यि शकया जाता है। प्रर्दिटन कला के र्दौिान भाव / शविाि / कहानी आशर्द का सम्प्रेषण शथयेटि
के शवशभन्न अवयवों, यथा अशभनय, पहनावा, दृश्यों, प्रकाि , संगीत, आवाज एवं संवार्द के माध्यम से
शकया जाता है।
प्रर्दियि कला के प्रकार:

 िंग कला (Drama)


 नृत्य कला (Dance)
2. दृश्य कला (Visual Arts)

दृश्य कला शित्रात्मक शनमाटण के द्वािा ििना एवं सम्प्रेषण का एक सिि माध्यम है । यह एक अशद्वतीय
सांकेशतक क्षेत्र है एवं एक ऐसा शवषय है शजसकी अपनी शविेष अपेक्षाएं एवं अशधगम हैं । दृश्य कला
बच्िे को काल्पशनक जीवन एवं वास्तशवक ससं ाि के बीि स्वस्थ सम्बन्ध बनाने में एवं अपने शविािों
भावनाओ ं एवं अनभु वों को दृश्य रूप में को शनयोशजत किने एवं अशभव्यि किने में मर्दर्द किता है ।
शित्रकािी, पेंशटंग आशर्द की ििना किते हुए बालक नए ज्ञान को पिु ाने अनभु वों से जोड़कि उनकी
अथटपणू तट ा को समझने का प्रयास कताट है दृश्य कला शिक्षण खोज, अन्वेषण, प्रयोग आशर्द के माध्यम से
बच्िे की ििनात्मकता एवं सौन्र्दयटनभु व को बढाता है।
दृश्य कला के शवशभन्न प्रकाि:

6
 शित्रकला (Drawing)
 िंग एवं पेंशटंग (Colour & Painting)
 शप्रंट (Print)
 मृशत्त कला / मशू तटकला (Clay & Sculpture)
 िे त शित्र कला (Sand Tray Art)

2.4 कला निक्षा के सामान्य लक्ष्य (General Aims of Drama & Art Education)

िाट्य एवं कला निक्षा के निमिांनकत सामान्य लक्ष्य हैं:


 बालक को शवशभन्न कलाओ ं द्वािा अपने शविाि, भावनाओ ं एवं अनभु वों की खोज, स्पिता एवं
अशभव्यशि का अवसि प्रर्दान किना,
 बालको को सौन्र्दयटनभू शू त प्रर्दान किना एवं बालक में दृश्य कलाओ,ं सगं ीत ड्रामा, नृत्य, साशहत्य के प्रशत
सौंर्दयट िेतना शवकशसत किना,
 बालकों में वाताविण के दृश्य, मौशखक, स्पिट, स्थाशनक गणु ों के प्रशत जागरूकता एवं संवर्दे न िीलता
शवकशसत किना,
 बालक में ििनात्मक अशभव्यशि की योग्यता एवं क्षमता शवकशसत किना जो आनंर्द पणू ट हो,
 बालक को र्दैशनक जीवन की शवशभन्न समस्याओ ं को उपयि ु कल्पनािीलता का प्रयोग किते हुए
ििनात्मक रूप से हल किने में सक्षम बनाना औि उसकी मौशलकता को बढ़ावा र्देना,
 बच्िे के स्व अशभव्यशि के माध्यम से उसमे आत्म शवश्वास एवं आत्म सम्मान की भावना को बढ़ाना,
 बच्िे को शवशभन्न संसकृ शतयों से परिशित किाना एवं उसमे आपने िाष्ट्र, अपनी संस्कृ शत आशर्द के प्रशत
सम्मान एवं श्रेष्ठता का भाव शवकशसत किना ।

वतटमान शनर्देशिका में कला शिक्षा के अतं गटत हम शसफट र्दो कलाओ:ं नाटक / िंग कला जोशक एक प्रर्दिटन कला है
औि शित्रकािी एवं पेंशटंग जो शक एक दृश्य कला है, के बािे में ििाट किें गे। सशु वधा के शलए इस शनर्देशिका को तीन
खण्डों में बाूँट शर्दया गया है: खंड A में नाट्य शिक्षा के बािे में ििाट की गयी है औि खडं B में दृश्य कला का वणटन
है । इस शनर्देशिका के खडं C में प्रोजेक्ट रिपोटट से सम्बंशधत आवश्यक शनर्देि शर्दए गए हैं शजन्हें प्रोजेक्ट रिपोटट
बनाने से पवू ट अवश्य पढ़ें। िूँशू क बी एड के नवीन पाि्य क्रम पि आधारित स्व अध्ययन सामग्री का यह प्रथम
प्रकािन है, अतः इसके प्रशत आप अपना फीडबैक हमें अवश्य भेजें जो अत्यंत महत्त्वपणू ट है औि वह इस
मागटर्दशिटका को उन्नत बनाने में हमािी मर्दर्द किे गा। आपके फीडबैक एवं आपके महत्त्वपणू ट सझु ावों का हम हाशर्दटक
स्वागत किते हैं।

7
Part-A
िाट्य निक्षा
(Drama Education)
3. िाटक एवं िाट्य निक्षा पररभार्ा एवं महत्व

3.1 िाटक क्या है? (What is Drama?)

नाटक कला का एक रूप है, जो व्यशि के तनाव एवं द्वद्वं की खोज किती है। यह सामान्यत: कला का वह रूप है
शजसमें र्दिटकों के बीि एक कहानी का प्रस्ततु ीकिण, संवार्दों एवं िािीरिक शक्रयाओ ं के माध्यम से शकया जाता
है। नाटक के र्दौिान कहानी का सम्प्रेषण शथयेटि के शवशभन्न अवयवों, यथा अशभनय, पहनावा, दृश्यों, प्रकाि ,
संगीत, आवाज एवं संवार्द के माध्यम से शकया जाता है। नाटक एवं उसके द्वािा संप्रेशषत सन्र्देि का बौशद्क एवं
भावनात्मक प्रभाव नाटक के कलाकािों एवं र्दिटकों/श्रोताओ ं र्दोनों पि होता है। नाटक एक र्दपटण के समान है
शजसमें हम अपनी छशव का मल्ू याक ं न कि सकते हैं एवं मानव व्यवहाि तथा भावनाओ ं को गहिाइट से समझ सकते
हैं। नाटक, जीवन के सत्यों को उद्घाशटत किती कहाशनयाूँ के द्वािा, उन पि शवशभन्न समय एवं सांस्कृ शतक दृशिकोणों
को प्रर्दशिटत किते हुए, हमािे दृशिकोण को वृहत बनाती है।
3.2 िाट्य निक्षा क्या है? (What is Drama Education?)

नाट्य शिक्षा, कला के नाटक रूप का िैशक्षक-ससं ाधन के रूप में उपयोग किता है। इसमें अशभनयकताट का
प्रशिक्षण भी समाशहत है जो बच्िों के भौशतक, सामाशजक, भावनात्मक एवं संज्ञानात्मक शवकास को बढ़ावा र्देती
है। यह एक बहुसंवर्दे ी उपागम है जो शनम्नांशकत उद्देश्यों की प्राशि के शलए उन्मख
ु होता है -
1- आत्म िेतना में वृशद् (मन, ििीि, आवाज) एवं समन्वय एवं समानभु शू त
2- शविािों के िाशधर्दक एवं अिाशधर्दक सम्प्रेषण में ििनात्मक एवं स्पिता को बढ़ावा।
3- मानव व्यवहाि अशभप्रेिणा, शवशवधता, संस्कृ शत एवं इशतहास की गहिी समझ में बढ़ावा।
नाट्य शिक्षा शथयेटि के अवयवों यथा पहनावे, दृश्य, प्रकाि, सगं ीत, सवं ार्द, ध्वशनयाूँ, कहाशनयां की पनु िावृशत्त
आशर्द का प्रयोग बच्िों के अशधगम अनभु वों, को बढ़ाने के शलए शकया जाता है। नाट्य शिक्षा नाट्य शक्रयाओ ं के
र्दौिान छात्रों को शवशभन्न भशू मकाओ ं का अनभु व किाता है, जो उसके बार्द के जीवन में काम आते हैं।
3.3िाट्य निक्षा के लाभ/महत्व (Importance / Benefits of Drama Education):
1. छात्रों के आत्मनवश्वास में वृनि :

8
कक्षा में एक नयी भशू मका को स्वीकाि किना एवं र्दिटकों के सामने मिं पि एक पात्र शविेष की भशू मका
अर्दा किना बच्िों को उनके शविािों औि योग्यताओ ं पि शवश्वास किने में मर्दर्द किता है। नाटक की
शक्रयाओ ं द्वािा प्राि आत्मशवश्वास बार्द के जीवन में उनके कायट, उनके शवद्यालय एवं उनके जीवन के
शवशभन्न पहलओ ु ं में िाशमल हो जाता है।
2. छात्रों की कल्पिािीलता में वृनि
नाटक के क्रम में ििनात्मक शवकल्पों की तलाि, नये शविािों को सोिना, परिशित वस्तओ ु ं को नवीन
तिीकों से र्दिटकों के सामने िखना आशर्द शक्रयाओ ं बच्िों की कल्पनािीलता में वृशद् किती हैं। औि जैसा
शक आइस्ं टीन ने कहा है कल्पनािीलता, ज्ञान से अशधक महत्वपणू ट है।
3. समािुभूनत का नवकास : शभन्न शभन्न परिशस्थशतयों में, शवशभन्न संस्कृ शत के कलाकािों के बीि अलग
अलग शकिर्दािों को शनभाते हुए बच्िे में र्दसू िों के दृशिकोण को समझने में, औि उनके प्रशत सहनिील
बनाने में मर्दर्द किता है तथा इस प्रकाि प्रकािाति से उनकी समानभु शू त को बढ़ाता है।
4. सहयोग भाव/सामूनहकत भाव को बढावा : नाट्य कला प्रशतभाशगयों के शविािों एवं योग्यताओ ं को
जोड़ता है। इस सहयोगात्मक प्रशक्रया में पािंपरिक वैिारिक आर्दान-प्रर्दान, पवू ाटभ्यास, प्रस्तशु तकिण आशर्द
िाशमल हैं। ये शक्रयायें बालकों मे सहयोग की भावना एवं समहू की भावना का शवकास किता है। जो
जीवन में अत्यन्त महत्वपणू ट है।
5. एकाग्रता को बढावा - नाट्य कला एक बड़े र्दिटक समहू के सामने प्रस्ततु शकया जाता है। ऐसे में इसके
पवू ािंभ्यास, प्रस्ततु ीकिण । प्रशतभाशगयों से उच्ि स्ति की एकाग्रता अपेशक्षक होती है। यह एकाग्रता
शविािों, िािीरिक शक्रयाओ आशर्द सभी ििणों पि।
6. संप्रेर्ि कौिल में वृनि एवं वािी सभी के स्ति पि आवश्यक होती है। एकाग्रता का यह अभ्यास बार्द
के जीवन में सभी स्तिों पि बालक की मर्दर्द किता है।
7. समस्या समार्ाि कौिलों का नवकास - नाटक में भाग लेते हुए बच्िे कै से, शकससे, कब, शकतना
औि कै से सम्प्रेषण किना है यह सीखते हैं साथ ही कइट बाि नाटक के बीि में आयी अप्रत्याशित
परिशस्थशतयों को सभं ालने के शलये त्वरित सोि एवं त्वरित समस्या समाधान में मर्दर्द किता है।
8. खेल/मस्ती/मिोरंजि
नाटक बालकों के शलए खेल, मस्ती, एवं मनोिंजन का कायट है। जो बच्िों की अशभप्रेिणा को बढ़ाता है
एवं उनका तनाव कम किता है।
9. भाविात्मक अनभव्यनि का एक सिि माध्यम : नाटक शक्रयायें बच्िे को शवशभन्न प्रकाि की
भावनाओ ं एवं र्दशमत इच्छाओ ं को अशभव्यि किने किने का एक माध्यम प्रर्दान किती है। यह बालकों
की आक्रामकता एवं तनाव को सिु शक्षत ििनात्मक तिीके से कम किने में मर्दर्द किती है एवं प्रकािातं ि से
उनमें असामाशजक व्यवहािों की संभावना को कम कि र्देती है।
10. आरामर्दायी
कइट नाट्य शक्रयायें बच्िों को िािीरिक, मानशसक एवं भावनात्मक तनावों को अशभव्यशि किने एवं
उत्पन्न तनावों को कम किने में महत्वपणू ट भशू मका शनभाती हैं।
9
11. आत्मािि
ु ासि को बढावा:
नाटक शविािों के शक्रयाओ ं एवं शक्रयाओ ं के प्रस्ततु किण के रूप में प्रशतफलन है जो बच्िों को अभ्यास
एवं धैयट की कीमत बताती है। नाटयकला एवं ििनात्मक गशतिीलता बच्िों के आत्मशनयंत्रण को बढ़ाता
है।
12. पारस्पररक नवश्वास को बढावा
नाटक की शवशभन्न प्रशक्रया के र्दौिान प्रशतभाशगयों के बीि होने वाली अतं : शक्रया प्रशतभाशगयों का नाटक
की शक्रयाओ ं में िािीरिक गशतिीलता होती है जो बच्िे के ििीि को शक्रयािील िखते हुए उनमें
लिीलापन समन्वय संतल ु न एवं शनयंत्रण को बढ़ाती हैं।
13. िारीररक स्वास््य लाभ
अपने प्रशत, र्दसू िों के प्रशत औि उस प्रशक्रया के प्रशत शवश्वास बढ़ाता है। नाटक की शक्रयाओ ं में िािीरिक
गशतिीलता होती है, जो बच्िे के ििीि को शक्रयािील िखते हुए उनमें लिीलापन समन्वय, संतल ु न एवं
शनयंत्रण को बढ़ाती हैं।
14. स्मरि िनि में वृनि
नाटक की शक्रयाओ ं के पवू ाटभ्यास एवं पनु िाभ्यास के र्दौिान बालक को िधर्द, भाव भशं गतायें, िािीरिक
शस्थशत आशर्द सभी का स्मिण िखना होता है एवं उन्हें बाि बाि र्दहु िाना होता है। जो बच्िे की स्मिण िशि
बढ़ाने में मर्दर्दगाि है।
15. समानजक रूप से जागरूक बििा
नाटक की शक्रयायें, यथा कहानी, कशवतायें, र्दतं कथाए,ं खेल आशर्द बालक को शवशभन्न सामाशजक
आयामों, समस्याओ,ं सस्ं कृ शतयां के बीि के द्वद्वं आशर्द के बािे में शसखा र्देती है जो बच्िों की सामाशजक,
सांस्कृ शतक जागरूकता को बढ़ाने एवं उन्हें सझने में उनकी मर्दर्द किती है।
16. सौन्र्दयय बोर् में वनृ ि
नाटक में भाग लेना एवं नाटक र्देखना र्दोनों ही शक्रयायें बच्िों में आलोिनात्मक शिंतन एवं उनके सौंर्दयट
बोध को बढ़ाती है। इस प्रकाि यह कहा जा सकता है शक नाट्य शिक्षा बालक के सवािंगीण शवकास के
शलए अत्यन्त महत्वपणू ट है।

4. िाट्य निक्षा की कक्षा के आयोजि के प्रमुख तत्व

4.1 निक्षकों से:


यह मागटर्दशिटका शसफट आपके मागटर्दिटन के शलए है। प्रत्येक कक्षा अपने आप में अशद्वतीय होती है शजसका नेतत्ृ व
शिक्षक के हाथ में होता है। न तो नाटकों के शलए औि न ही शकस दृश्य कलाओ ं के शलए कोई शनशित कायट कलाप
प्रस्ताशवत है। आपसे अपेशक्षत है शक आप शर्दए गए उर्दाहिणों के आधाि पि नवीन कायट कलापों का सृजन किें

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औि बच्िों की आय,ु सामाशजक आशथटक शस्थशत, उनकी संस्कृ शत, उनकी रूशि के आधाि पि नवीन शक्रयाकलापों
का ियन किें । ध्यान िशखये शक कला शकसी सीमा में नहीं बंध कि िहती है तथा साथ ही कला का आनंर्द तभी है
जब उसमे स्वतत्रं ता िाशमल है। बच्िों को अपेशक्षत स्वतत्रं ता र्दीशजये ताशक उनकी कला को उसके सपं णू ट रूप में
प्रस्फुशटत होने का मौका शमले। बच्िों के शलए इस शकताब में र्दी गयी लगभग सभी गशतशवशधयां प्रायः प्राथशमक
एवं शनम्न माध्यशमक स्ति के बालकों को ध्यान में िखकि र्दी गयी है शजसमे आप आवश्यक परिवतटन कि सकते हैं,
या कोई नवीन गशतशवशध भी प्रयोग कि सकते हैं। शवशभन्न शक्रया कलापों की बच्िों के शलये उपयि ु ता अन्य
कािकों को भी प्रभाशवत किती है। इन कािकों में कुछ प्रमख ु किक हैं कला शविेष में उनका पवू ाटनभु व, उनका
कक्षा का वाताविण, कला शविेष के प्रशत उस समाज एवं समर्दु ाय का दृिीकोण आशर्द। वस्ततु ः शिक्षक यह तय
किने के शलये सबसे उपयि ु होता है शक उनकी कक्षा को ये कािक कै से प्रभाशवत किते हैं। इसशलये, इस शकताब
में सझु ाई गयी गशतशवशधयाूँ एवं उनके उम्र औि स्ति के वल मागटर्दिटन के शलये हैं।
यह मागटर्दशिटका सभी स्ति के शिक्षकों के शलये है शजन्हें नाटक को अपने शिक्षण के एक अशतरिि आयाम के रूप
में िाशमल किने या शवकशसत किने में रुशि है। यह मागटर्दशिटका शिक्षकों को प्रािंशभक स्ति की प्रायोशगक
गशतशवशधयां सझु ाती हैं, शजन्होंने इससे पहले अपनी कक्षाओ ं में नाटक का कभी इस्तेमाल नही शकया है। इसके
अलावा इसमें उन लोगों के शलये, जो नाट्यकला को अपनी शिक्षा के अशभन्न शहस्से के रूप में इस्तेमाल किने के
प्रशत ज्यार्दा आश्वस्त हो या जो सत्र के अतं में होने वाले कायटक्रमों जैसे शकसी प्रर्दिटन की तैयािी किना िाहते हों,
उनके शलए भी महत्त्वपणू ट है। इस शकताब का लक्ष्य कक्षा में नाट्य कला एवं शित्रकला के कक्षा कक्ष में प्रभावी
प्रयोग से सम्बंशधत मागटर्दिटन से है शजसमे आपके प्रत्यत्ु पन्नमशत का योगर्दान भी होगा ताशक शिक्षक कक्षा कक्ष
की परिशस्थशतयों के अनसु ाि उपयक ु शक्रयाकलापों को शवकशसत कि सकें ।

4.2 िाटक की गनतनवनर्यों का उपयोग क्यों करें?


नाटक का तात्पयट शसफट उसका उत्पार्द (प्रर्दिटन) ही नही होता, बशल्क यह सतत अशधगम की प्रशक्रया का एक
शहस्सा है। नाटक औि नाटक की शवशभन्न गशतशवशधयों के इस्तेमाल का भाषा सीखने में शनशित लाभ तो शमलता ही
है साथ ही इससे बच्िों को मौका शमलता है शक वे सीशमत भाषा के साथ, अमौशखक सवं ार्द-साधनों, जैसे शक
िािीरिक गशतशवशधयों औि िेहिे के हाव-भावों का इस्तेमाल किते हुए अपनी बात को संप्रेशषत कि सकें । इसके
अलावा ऐसे बहुत से अन्य कािक भी हैं जो नाटक को संपणू ट अशधगम में एक बहुत सिि उपकिण बनाते हैं।
उर्दहािण स्वरुप आपने प्राथशमक कक्षाओ ं में र्देखा होगा शक कक्षा में पढ़ने की बजाए लयबद् एवं सस्वि शगनती /
कशवताये ूँ आशर्द छात्रों को अपेक्षाकृ त जल्र्दी स्मिण हो जाती हैं। नाटक के माध्यम से अशधगम की योजना बनाने से
पवू ट आप शनम्नांशकत बातों पि शविाि किें एवं उसकी शवस्तृत योजना बनाइये ताशक आप आपने शिक्षण लक्ष्यों को
प्राि कि सकें :
िाटक से पूवय
4.3 िाटक का कोई भी काययकलाप आरमभ करिे से पूवय बच्चों का उत्साहवर्यि करें:

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आप से अनिु ोध है शक नाटक का कोई भी कायटकलाप आिम्भ किने से पवू ट बच्िों का उत्साहवधटन किें । वास्तव
में शकसी पाि का नाटकीकिण अत्यंत उत्साहवधटक होता है औि बालकों को इसे पिू ा किने में आनंर्द आता है।
इसके अलावा, एक ही गशतशवशध एक ही समय पि शवशभन्न स्तिों पि की जा सकती है। नाटक का प्रर्दिटन
प्रशतभाशगयों को स्पि िहता है, इसशलये वे आश्वस्त महससू किते हैं औि उनके पास पाने के शलये एक लक्ष्य होता
है । यशर्द बच्िों को आिंभ मही यह पता हो शक उनके एक या र्दो समहू ों से उनके द्वािा तैयाि शकये गये नाटक को
मशं ित किने के शलये कहा जायेगा या शक उनका वीशडयो बनाया जा िहा हो, या उन्हें शकसी सावटजशनक कायटक्रम में
िाशमल शकया जा िहा हो तब उनका नाटक के प्रशत उत्साह र्दगु नु ा हो जायेगा।
4.4 छात्रों की उम्र के अिुसार पररनचत गनतनवनर्यों को चुिें
नाटकीकिण छोटी उम्र से बच्िों के जीवन का अशभन्न अंग होता। बच्िे लगभग तीन या िाि साल की उम्र से
दृश्यों औि कहाशनयों का अशभनय किने लगते है वे खिीर्दािी किने या शफि डॉक्टि के पास जाने जैसी उन शस्थशतयों
में वयस्कों का अशभनय किते हैं, जो उनकी शजर्दं शगयों का शहस्सा होती हैं।िोजमिाट के जीवन में ऐसी कइट सभं ाशवत
शस्थशतयाूँ होती हैं। बच्िे कई बाि र्दसू िों की नक़ल / शनरिक्षण किते हुए (िोल प्ले) किते हुए अलग-अलग
भशू मकाएूँ शनभाते हैं। वे उस शस्थशत की भाषा औि पटकथा का अभ्यास किते हैं औि उसमें िाशमल भावों को
अनभु व किते हैं, यह जानते हुए शक वे जब िाहें तो वास्तशवकता में लौट सकते हैं।ऐसे स्वांग बच्िों को उनकी
शजर्दं गी में आगे आने वाली वास्तशवक परिशस्थशतयों के शलये तैयाि किते हैं। यह वास्तशवक जीवन का पवू ाटभ्यास
है। इस तिह के स्वांग उनकी सृजनात्मकता को बढ़ावा र्देते हैं औि उनकी कल्पनािीलता को शवकशसत किते हैं
औि साथ ही उस भाषा को इस्तेमाल किने का मौका र्देते हैं, जो उनकी िोजमिाट की जरूितों से बाहि की होती है।
आप उनसे पिं तत्रं का बर्दं ि या खिगोि या बद् ु ु िेि, अलार्दीन का जार्दइु ट कालीन, या एक डाकू होने के शलये कह
सकते हैं, औि शफि उस व्यशित्व या भशू मका को शवकशसत किने वाली उपयि ु भाषा का उपयोग कि सकते हैं।
4.5 िाट्य नक्रया के सन्र्दभय में आरमभ हमेिा अल्प समयावनर् के िाटकों से करें
छोटे -छोटे ििणों के साथ अपनी कक्षा में नाटक से बच्िों का परििय किाएं जो सिल हों। उर्दहािण के शलए
शकसी र्दानव की नकल किो, आपने शकसी िोल मॉडल की नक़ल किो, बन्र्दि की भालू की नक़ल किो आशर्द औि
शफि जैसे-जैसे बच्िों का आत्मशवश्वास बढ़ता जाये आशल्प्नयत्रं ण यिु गशतशवशधयों जैसे- नाटक की ओि बढ़ें।
नाटक शसखाने के क्रम में हो सकता है शक आपको उन्हें साधािण सी िीजें जैसे-अपने हाथों को फै लाना, छोटे औि
बड़े कर्दम लेना, मनोभावों को प्रर्दशिटत किने के शलये अपने िेहिे औि पिू े ििीि का इस्तेमाल किना, शवशभन्न
मख्ु मद्रु ाएूँ, शवशभन्न भाव भंशगमाएं आशर्द भी शसखानी पड़ सकती है। बच्िों का भाषा के प्रशत अपने िािीरिक
अशभव्यशि अशभनय की तिफ पहला कर्दम है। बच्िों को अक्सि यह आभास नही होता शक वे िीजों को अलग-
अलग ढंग से कह सकते हैं। उनसे िधर्दों या वाक्यों को जोि से, धीमे से, क्रोधी स्वि में या र्दख
ु ी स्वि में बोलने के
शलये कहना भी उनके शलये आवाज के उताि िढाव के द्वािा शवशभन्न प्रकाि की भावाशभव्यशि शसखाने का
अच्छा तिीका हो सकता है।

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4.6 बच्चों के आयु वगय के सज्ञं ािात्मक, िारीररक एवं भाविात्मक नवकास को ध्याि में रखते हुए
िाटक के नवर्य का चयि करें
 पवू ट प्राथशमक स्ति: पवू ट प्राथशमक स्ति के बच्िे सामान्यतः िंगों की पहिान, अक ं ों की पहिान होती है
एवं भाषा वाक्यांिों के रूप में बोल भी लेते हैं औि समझ भी लेते हैं पिन्तु उनमें भाषा का सशक्रय
इस्तेमाल बहुत सीशमत होता है अतः इस स्ति पि किायी जानेवाली नाट्य शक्रयाएं िाशधर्दक कम औि
िािीरिक शक्रयाओ ं वाली ज्यार्दा होनी िाशहए साथ ही नाटक का शवषय उनके तात्काशलक आस पास के
वाताविण से जड़ु ा होना िाशहए।
 प्राथशमक स्ति के बच्िे पवू ट प्राथशमक बालकों की तल ु ना में भाषा का इस्तेमाल ज्यार्दा सशक्रय रूप से कि
सकते हैं औि सिल वाक्य व प्रश्न बना पाते हैं। उनके पास ज्यार्दा बड़ी िधर्दावली होती है। उर्दाहिण के
शलये, कपड़े, र्दकु ानें, ििीि के अगं , िोजमिाट में इस्तेमाल होने वाली शक्रयाएं औि समय बता पाना आशर्द
शक्रयाएं वे कि सकते हैं अतः उनके शलए नाट्य शक्रयाओ ं में तर्दनसु ाि शवशभन्न कायट कलाप समाशहत शकये
जाने िाशहए।
 पवू -ट माध्यशमक स्ति के बच्िे वाक्यों की संििन को पहिानने औि अपनी खर्दु की भाषा ििने में ज्यार्दा
सक्षम हो जाते हैं। वे सामान्य भतू काल, तल ु नात्मक िधर्द तथा आभाि, शनवेर्दन या सझु ाव व्यि किने
जैसे भाषायी बािीशकयों को सीखने के शलये तैयाि होते हैं।साथ ही इस स्ति पि उन्हें शवशभन्न शवषयों का
ज्ञान भी होने लगता है औि सामाशजक रूप से स्वीकृ त एवं सामाशजक रूप से अस्वीकृ त व्यवहाि भी उन्हें
समझ में आने लगता है। इस स्ति पि शवशभन्न शवषयों के महत्व, शवशभन्न महापरुु षों की जीवनी शवशभन्न
नैशतक आर्दिों से जडु ी कहाशनयां, वाताविण के शवशभन्न अवयव आशर्द से सम्बंशधत नाटकों को िनु ा जा
सकता है।
यहाूँ यह उल्लेखनीय है शक इन स्तिों को उम्र के वषों से जोड़कि न र्देखा जाये क्योंशक आिंशभक वषों में बच्िे बहुत
तीव्रता से सीखते हैं औि एक वषट जैसे कम समय में भी उसकी क्षमता में बहुत फकट आ जाता है। थोड़ा बड़ा बच्िा
एक ही साल में र्दसू िे स्ति पि पहुिं सकता है, जबशक छोटे बच्िों को धीिे -धीिे आगे बढ़ना होता है।

4.7 आप स्वयं बच्चों के नलए संरनचत िाटकों में सक्रीय रूप से भागीर्दार बिें:
शिक्षक यशर्द नाट्य कला शसखाते हुए छात्रों के शक्रया कलापों में सक्रीय रूप से भागीर्दाि नहीं िहता हो अथवा
उजाटवान नहीं बना िहता हो तो छात्रों की उसके प्रशत रुशि कम हो सकती है अतः बच्िों को यह महससू होना
जरूिी है शक आपके भीति प्रस्ताशवत नाटक एवं नाटकीकिण के प्रशत जोि है औि आप अपने द्वािा प्रस्ताशवत
गशतशवशधयों को बच्िों के साथ किने में आनंर्द का अनभु व किते हैं। आपकी सक्रीय भागीर्दािी एवं आपका
उजाटवान बने िहना उनके शलये एक प्रारूप या आर्दिट की तिह काम किता है औि उन्हें कक्षा में सशक्रय िहने के
शलए प्रोत्साशहत किता है।
4.8 बालकों की रुनच का नविेर् ध्याि रखें:

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सभी बच्िे नाटक के सभी शक्रयाकलापों न अच्छे हो सकते हैं औि न ही उनकी रूशि हो सकती है। ऐसे में यह
आवश्यक है शक आप छात्रों की रूशि एवं उनकी एक शविेष भशू मका के शलए उनकी योग्यता का ध्यान अवश्य
िखें। जैसे हो सकता शक शकसी बच्िे की अशभनय में रुशि न हो पि उसका मिं का सञ्िालन कौिल अथवा मिं
की साज सज्जा का कौिल अच्छा हो, ऐसे में आप उसे कोई अन्य कायट र्देने की बजाए अच्छा हो यशर्द उसकी
रूशि का कायट सौंपें एवं उस कायट शविेष में आपनी प्रशतभा शर्दखने का मौका र्दें। शकसी भशू मका को शनभाने में
बच्िे अपनी िोजमिाट की पहिान से बाहि शनकल सकते हैं औि अपने सक ं ोि से छुटकािा पा सकते हैं। यह उन
बच्िों के शलये उपयोगी होता है, जो सामशू हक गशतशवशधयों में िाशमल होने से बिते हैं। यशर्द आप उन्हें कोइट
शवशिि भशू मका र्दे र्दें, तो उससे उन्हें उस िरित्र को अपनाने का औि अपने सामाशजक भय (Social Anxiety/
Phobia) को तोड़ने का प्रोत्साहन शमलता है। शिक्षक नाटक की शवशभन्न भशू मकाओ ं का उपयोग उन बच्िों को
प्रोत्साशहत किने के शलये कि सकते हैं, जो कक्षा में संकोिी होते हैं औि खर्दु को हमेिा पीछे िखते हैं साथ ही उन
बच्िों पि शनयंत्रण िखने के शलये भी कि सकते हैं जो कक्षाओ ं में समस्यात्मक व्यवहाि प्रर्दशिटत किते है या
शजनका सामाशजक समायोजन उपयि ु नहीं है या जो अन्य बच्िों को पिे िान किते हैं।
4.9 िाटक की नक्रया के र्दौराि छात्रों की व्यनिगत एवं सामूनहक र्दोिों प्रकार की नजममेर्दाररयां तय
करें:
एक नाटक में कई प्रकाि की शक्रयाएं िाशमल होती हैं शजसमे से कुछ व्यशिगत होती हैं। बच्िों को उनकी योग्यता
के अनसु ाि व्यशिगत एवं सामशू हक र्दोनों प्रकाि की गशतशवशधयों में िाशमल किें औि उनकी र्दोनों प्रकाि की
शजम्मेर्दारियों को सशु नशित किें । नाटक की शवशभन्न शक्रयाओ ं के र्दौिान बच्िों को एक सामशू हक शनणटय लेना
पड़ता हैं, एक-र्दसू िे की बातें सनु नी पड़ती है औि एक-र्दसू िे के सझु ावों को महत्व र्देना पड़ता है। अपने लक्ष्यों को
पिु ा किने के शलये उनका पािस्परिक सहयोग जरूिी होता है, उन्हें अपने मतभेर्दों को र्दरू ू ि किने के तिीके ढ़ंढ़ना
होते हैं औि समहू के प्रत्येक सर्दस्य के मजबतू पहलओ ु ं का उपयोग किना होता है जो उनका सामाशजक
समायोजन बढ़ाता है, उनका र्दसू िों का दृशिकोण समझने की क्षमता का शवकास किता है औि व्यशिगत
शभन्नताओ ं को समझने में उनकी मर्दर्द किता है।
4.10 भार्ा का आत्मीयकरि करिे का प्रयास करें
यशर्द संभव हो तो नाटक की िाशधर्दक भाषा स्थानीय भाषा को िनु ें। स्थानीय भाषा के प्रयोग से बच्ि सहजता
महससू किें गे औि नाटक प्राकृ शतक लगेगा । नाटकीकिण बच्िों को यह मौका र्देता है शक वे उनके द्वािा पढ़े गये या
सनु े गये शकसी पाि में कोइट भावना या व्यशित्व जोड़ सकें । कोइ भी िधर्द, वाक्य या लघु संवार्द (र्दो से िाि लाइनों
का) लें, औि बच्िों से उसे िरित्र में की गहिाई में जाकि उपयि ु स्वि एवं भाव बश्न्गमाओ ं के साथ उसका
अभ्यास किने को कहें। उर्दहािण के शलए इस सिल प्रश्न ‘तम्ु हािा नाम क्या है’ का मतलब भी उसको कहने के ढंग
औि भाव भशं गमाओ ं से, नाटक की परिशस्थशत की मांग के अनसु ाि अलग अलग अथट एवं अशभव्यशि हो सकती
है। आप सोि कि र्देशखये शक एक लड़का शकसी नए लड़के से र्दोस्ती किना िाहता है तो यह प्रश्न कै से पछ ू े गा?
सोशिये शक यही प्रश्न एक संर्दहे ास्पर्द से शर्दकने वाले व्यशि से कै से पछ
ु ा जायेगा औि इसी सवाल को कोई अच्छा

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कम किने वाले बच्िे से शिक्षक कै से पछू े गा? यह अभ्यास बच्िों को यह समझने मर्दर्द किे गी शक भाषा, विा के
स्वि औि परिशस्थशतयों पि कै से शनभटि किती है।
4.11 बहु-नवर्यी सामग्री का चयि करें
नाटक को इस्तेमाल किते समय आपके लक्ष्य बहुशवषयी होना िाशहए। आप अन्य शवषयों से शलए गए तथ्यों एवं
सक ं ल्पनाओ ं को आपने नाटक में सशम्मशलत कि सकते हैं जो आपके नाटक को औि प्रभावी बना र्देगा। जैसे
बच्िों को शवशभन्न ऐशतहाशसक दृश्यों का अशभनय किने को कहा जा सकता है या शफि शकसी जीव के जीवन
िक्र का अशभनय कि सकते हैं, शकसी संस्कृ शत शविेष के पहनावे औि शवशभन्न िीशत रिवाजों की नक़ल कि सकते
हैं । आप 21वीं सर्दी के शवशभन्न ज्वलतं मद्दु े जैसे लैंशगक भेर्दभाव, पयाटविण , सड़कों सिु क्षा, बाल एवं
मानवाशधकाि परिशस्थशत शविेष के नैशतक मल्ू यों आशर्द पि भी प्रभावी नाट्य मिं न कि सकते हैं। प्रहसनों औि
स्वांगों के द्वािा महत्वपणू ट संर्दि
े ों का संप्रेषण शकया जा सकता है औि उनकी पड़ताल की जा सकती है। शकसी
सर्दं भट के साथ नाट्य कला का इस्तेमाल शवशभन्न प्रकाि के मानवीय व्यवहािों पि काम किने के शलये भी शकया जा
सकता है।
4.12 िाटक की गनत एवं उसके छात्र के नन्ित होिे का ध्याि रखें
नाटक कक्षा की गशत छात्रों की मनोर्दिा में बर्दलाव ला सकता है। नाटकीकिण शवद्याथी-के शन्द्रत होना िाशहए
ताशक आप उसका इस्तेमाल अपने पाि के शिक्षक-के शन्द्रत भागों से अतं िसम्बन्ध स्थाशपत किने के शलये कि
सकें । यह एकसशक्रय गशतशवशध है, इसशलये आप इसका उपयोग िांशतपवू क ट शकये जाने वाले शकये जाने वाले
वैयशिक कायट के बार्द कक्षा को अशधक जीवतं बनाने के शलये कि सकते हैं।
4.13 उपयुि नवर्यों एवं गनतनवनर्यों का चयि करें
शिक्षण अशधगम की प्रशक्रया को उन्नत बनाने के शलए नाटक हेतु उपयि ु शवषय एवं गशतशवशध िनु ।ें जब आप
शकसी नाटक सम्बंधी गशतशवशध की योजना बनाते हैं तो आपको अपना लक्ष्य पता होना िाशहये। कुछ गशतशवशधयां
सटीकता औि प्रवाह पैर्दा किने वाले कामों के शलये हो सकती हैं औि कुछ भाषायी कौिल का अभ्यास किने के
शलये। आपका लक्ष्य शपछले पािों को र्दोहिाना या उसका अभ्यास किाना भी हो सकता है या शफि आपका लक्ष्य
पाि की गशत को बर्दलना हो सकता है। उर्देश्यों से ताितम्यता िकने वाले गशतशवशधयों को िुनें।
4.14 कक्षा को व्यवनस्थत करें
नाटक एवं उसके पवू ाटभ्यास के र्दौिान कक्षा को उसके अनरू ु प व्यवशस्थत किना न भल
ू ें। स्थान को बाधा मि
ु िखें।
यशर्द कुशसटओ ं मेजों को हटाने की जरुित हो तो बेसक उन्हें या तो कक्षा में एक शकनािे कि र्दें या बाहि कि र्दें।
प्रर्दिटन कला की अशधकाि ं गशतशवशधयाूँ बच्िे खड़े िहकि किते हैं औि आमतौि पि कक्षा की सामने वाली जगह
पयाटि होती है। यशर्द बच्िे गोले में खड़े हों या समहू ों में काम कि िहे हों तो आपको ज्यार्दा जगह की जरूित होगी।
टेबल औि कुशसटयों को कक्षा के एक कोने में सिका र्दें या शफि बच्िों को बाहि शकस शवद्यालय के ऑशडटोरियम
या कॉमन हॉल में उपयि ु व्यवस्था किें ।

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4.15 प्रनतनक्रया (फीडबैक) र्दें
फीडबैक र्देते समय ध्यान िखें शक आप नाट्य कला का कोई शकन्ही व्यावसाशयक प्रशिक्षण नही र्दे िहे हैं बशल्क
बच्िों को के प्रभावी अशधगम के शलए शसफट नाट्य कला का इस्तेमाल कि िहे हैं औि बच्िों को अशधगम का एक
िोिक तिीका शसखा िहे हैं। बच्िों के द्वािा शकये गए कायट, नाटक की पिू ी प्रशक्रया,नाटक की तयािी से लेकि
आशखि तक का उनका आपसी सहयोग, उनके द्वािा शलए गए शनणटय , उनके संवार्द एवं नाटक के मिं न के र्दौिान
उनका आपसी समन्वय इस सबका शवश्लेषण किते हुए अपनी प्रशतशक्रया र्दें। शकये हुए हि अच्छे कायट को
प्रोत्साशहत किें एवं उसकी प्रिंसा किें । इसके शलए आपको िाशहए शक जब बच्िे गशतशवशध में संलग्न हों तो उन्हें
ध्यान से र्देखें औि सनु ें, र्दखल न र्देने की कोशिि किें औि जो आप र्देखें उसके नोट्स बनाते जाए।ं जब वे अपना
काम खत्म कि लें, तो आप कुछ समहू ों से अपना काम शर्दखाने को कह सकते हैं औि शफि उन्हें अपनी प्रशतशक्रया
र्दे सकते हैं। ऐसा किने के कइट तिीके हो सकते हैं। आप उनके किने के शलये एक प्रशतशक्रया िीट तैयाि कि सकते हैं
औि उसका उपयोग कि सकते हैं। आप एक प्रश्नावली के द्वािा (यशर्द संभव हो तो) र्दिटकों की प्रशतशक्रया भी ले
सकते हैं । कुछ भी नकािात्मक शर्दखे तो उसकी सकािात्मक िधर्दों में आलोिना किें यशर्द ििनात्मक प्रशतशक्रया
नाटकीकिण की गशतशवशधयों का शनयशमत शहस्सा बन जाए, तो बच्िे धीिे -धीिे नाटकीकिण की अपनी क्षमताओ ं
औि अपनी भाषा में सधु ाि कि लेंगे औि साथ ही अपने र्दैशनक जीवन में भी ििनात्मक आलोिना सनु ने औि
आपने में उन कशमओ ं को र्दिू किने के अभ्यस्त हो जायेंग।े

5. िाट्य निक्षा के नवनभन्ि कायय कलापों के उर्दहारि**:

(**नाट्य कला की एक कक्षा के आयोजन की योजना के शनम्नांशकत िाि उर्दहािण िाज्य शिक्षण प्रशिक्षण एवं अनुसन्धान संसथान, िायपिु छत्तीसगढ़
द्वाि डी.एड. (र्दिू स्थ शिक्षा) के स्व अशधगम सामग्री से साभाि उद्तृ है। इस प्रकाि की अन्य शक्रयाकलापों की जानकािी के शलए र्देखें:
http://www.scert.cg.gov.in/pdf/dedfirst2013/kalashikshan.pdf )

शनर्देशिका के इस खडं में कुछ कायट कलापों के उर्दहािण आपके मागटर्दिटन के शलए शर्दए गए हैं शजनके आधाि पि
आप नाट्य शक्रयाएं कि सकते हैं अथवा नवीन शक्रया का शनमाटण किसकते हैं ये सभी गशतशवशधयां छोटी हैं, औि
बच्िों के स्ताके अनरूु प हैं अतः बच्िे इन्हें किने में आनंर्द का अनभु व किें गे साथ ही इन्हें आयोशजत किना
आसान है क्यों शक इनके शलए आपको शकस भी प्रकाि की शविेष व्यवस्था या सामग्री की आवश्यकता नहीं होगी।
यशर्द आप इस प्रकाि की गशतशवशधयों का अपनी कक्षाओ ं के र्दौिान उपयि
ु प्रयोग किें गे तो बच्िे नाटकीकिण की
प्रशक्रया के साथ सहज महससू किने लगेंग।े
5.1 गनतनवनर् 1
राक्षस की िकल करो
इस गशतशवशध को अल्प समय के शलए सभी स्ति के बालकों को किाया जा सकता है

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उद्देश्य:
 िािीरिक अगं ों की िधर्दावली औि धयौिे के शलये सनु ना।
 समहू में समन्वय के साथ काम किना या िािीरिक संयोजन पि काम किना।
पूवय तैयारी: र्दानवों के शवविणों को तैयाि किें । उर्दाहिण के शलये र्दस शसि बीस आूँख,ें र्दो हाथ आशर्द का
िावण बना सकते हैं। िावण का नाम लेने का उद्देश्य यह है शक बहुत संभव है शक बच्िों को इसकी
जानकािी हो।
कक्षा में निक्षक की भूनमका
 ििीि के उन शवशभन्न अगं ों की ओि इिािा किें शजनका आप उपयोग किने जा िहे हों औि यह
र्देखने के शलये शक बच्िे उनसे परिशित हैं शक नही उनसे उनके नाम बोलने को कहें।
 र्दो इच्छुक बच्िों से कक्षा के आगे आकि खड़े होने को कहें। उन्हें समझाएं शक उन्हें आपके
शनर्देिानसु ाि िाक्षस बनाने के शलये इनको शमलकि काम किना होगा।
 िाक्षस का शवविण बताएं औि इन बच्िों की मर्दर्द किें ताशक वे अपने हाथों, पैिों औि ििीि के
र्दसू िे अगं ों से उसे बना पाए।ं कक्षा से शटप्पशणयां मांगें औि सकािात्मक प्रशतशक्रया र्दें शजससे र्दसू िे
बच्िों को मर्दर्द शमलेगी
 पिू ी कक्षा के साथ यह प्रशक्रया र्दोहिाए।ं
 उन समहू ों पि पि ध्यान र्दें शजन्होंने िोिक र्दानव बनाए हैं। उनसे अपने र्दानवों को पिू ी कक्षा को
शर्दखाने को कहें।
बार्द की गनतनवनर्- बच्िों से िाक्षसों के शित्र बनाने को कहें औि एक शित्र प्रर्दिटनी या एक िाक्षस सिू ी
बनाए।ं

5.2 गनतनवनर् 2
इस गशतशवशध को अल्प समय के शलए सभी स्ति के बालकों को किाया जा सकता है पिन्तु प्राथशमक
स्ति के बालकों के शलए ज्यार्दा उपयि
ु हो सकता है
उद्देश्य:
 पाि्यपस्ु तक के वाक्याि
ं ों को र्दोहिाना।
 बच्िों को समहू में काम किने के शलये प्रोत्साशहत किना, सयं ोजन पि काम किना औि बच्िों
को प्रेरित किना शक वे पाि्यपस्ु तक में से भाषा को र्दोहिाए।ं
सामग्री- आपकी पाि्यपस्ु तक।
तैयािी- पाियपस्ु तक के शकसी यार्दगाि दृश्य पि एक सिल स्वांग की तैयािी किें ।
17
कक्षा में
 बच्िों से उनकी शकताब के िरित्रों के नाम पछ ू े जैसे पिओ ु ं के इत्याशर्द।
 बच्िों को अपना स्वांग शर्दखाए।ं उनसे पछ ू ें शक क्या वे पहिाने शक आप कौन हैं। क्या वे यह यार्द
कि पाते हैं शक वह िरित्र उस समय क्या कह िहा था।
 बच्िों को बता र्दें शक उन्हें शकताब में से एक स्वांग तैयाि किने के शलये जोड़ों में काम किना
होगा। उन्हें जोडों में या शतकशड़यों में बांट र्दें औि उन्हें समय र्दें ताशक वे शकताब को शफि र्देख
जाएं, उसमें से एक दृश्य िनु ,ें औि शफि उसे तैयाि किें । यह जरूिी नही शक दृश्य शस्थि हो, वे
उसमें गशतशवशध कि सकते हैं।
 जब अशधकांि जोड़ें तैयाि हों, तो तैयािी को िोक र्दें औि कुछ समहू ों से अपना दृश्य शर्दखाने को
कहें। र्दसू िे बच्िों को यह अनमु ान लगाना होगा शक वे कौन हैं औि उनके िरित्र क्या कह िहे हैं।
बार्द की गशतशवशध आप या कोइट बच्िा इन दृश्यों की तस्वीि ले सकते हैं। बच्िे इन तस्वीिों में
कथनों के गोले बना सकते हैं औि शफि उन्हें र्दीवाि पि प्रर्दशिटत कि सकते हैं।
5.3 गनतनवनर् 3
नलखे हुए िब्र्द से निरुनपत वस्तु को पहचािो और उसकी तस्वीर बिाओ
उद्देश्य
 िधर्दावली को र्दोहिाना।
 बच्िों को जोड़ो में शमलकि काम किने के शलये प्रोत्साशहत किना
 कल्पनािशि औि सृजनिीलताको प्रेरित किना औि
 िािीरिक संयोजन पि काम किना।
वियि- बच्िे समहू में काम किते हुए शकसी िधर्द-परिवाि में से शकसी एक ऐसे िधर्द का स्वांग किें गे शजस पि
उन्होंने काम शकया हो। उर्दाहिण के शलये पेंशसल, पेन औि पेंशसल बॉक्स। वे इसे बाकी कक्षा को शर्दखाते हैं शजन्हें
अनमु ान लगाना होता है शक वह क्या है।
कक्षा में
 बच्िों को िधर्द-परिवािों के शविाि से परिशित किाए।ं आप बच्िों से पछ ू सकते हैं शक वे उन
शवषयों के बािे में बताएं शजन पि वे हाल में काम कि िहे थे औि उनसे वे िधर्द बताने को कहें
शजन्हें वे उन शवषयों से जोड़ कि र्देखते हैं। उर्दाहिण के शलये- काि, रेन, औि एक बस। इसके
अलावा, आप प्रत्येक शवषय से कुछ िधर्द शलख सकते हैं औि शफि बच्िों से उन िधर्दों को
शवशभन्न िाशधर्दक परिवािों में िखने के शलये कहें औि उनसे उनके वगीकिण का कािण पछ ू ें ।

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 बोडट पि शलखे इन िधर्द परिवािों में से शकसी एक परिवाि में से एक िधर्द िनु ें। बच्िों से कहें शक
शकसी एक िधर्द को प्रर्दशिटत किने वाली मशू तट बनने जा िहे हैं औि उन्हें वह परिवाि बता र्दें जहाूँ
से आपने वह िधर्द शलया है। उस िधर्द का स्वांग किें औि बच्िों से अनमु ान लगवाएं शक वह
िधर्द कौन सा है।
 बच्िों को जोड़ों में बाटं र्दें। उनसे बोडट पि शलखे िधर्द परिवािों में से शकसी एक परिवाि में से एक
िधर्द िनु ने को कहें।
 बच्िों की आवश्यकतानसु ाि मर्दर्द किें व उनको प्रोत्साशहत किें ।
 अब तैयािी को िोक र्दें। जोड़ों से आपना शित्र कक्षा के समक्ष शर्दखाने को कहें औि शफि वे लोग
अनमु ान लगाएं शक वह क्या है। यशर्द कोइट बच्िे अपनी मशू तट शर्दखाने के शलए शबलकुल
अशनच्छुक हों, तो उनके साथ जबिर्दस्ती न किें ।
 बर्दलाव- बच्िे आपने शित्र बनाने के शलये समहू में भी काम कि सकते हैं।
5.4 गनतनवनर् 4
सुिो और स्वांग करो
उद्देश्य:
शकसी कहानी को सनु ना औि खास िधर्दों औि वाक्यांिों पि ध्यान र्देना।
शकसी कहानी का शित्रण किने के शलए िािीरिक गशतशवशधयों का उपयोग किना।
वणटन-बच्िे कोइट कहानी सनु ते हैं, औि शवशभन्न िधर्दों को सनु ने पि अलग-अलग िािीरिक गशतशवशध कितेह।ैं
सामग्री-एक कहानी, उर्दाहिण के शलये, शविाल हाथी की कहानी।
पूवय तैयारी:
 एक कहानी िनु ें औि उसकी एक रूपिे खा शलख लें।
 इसे कहने का अभ्यास किें , सभं व हो तो शकसी साथी को सनु ाएूँ।
 कहानी से कुछ अहम िधर्द िनु ें औि इन िधर्दों का शित्रण किने वाली िािीरिक भशं गमाओ ं के
बािे में सोिें।
 ये िािीरिक भशं गमाएं किते हुए कहानी कहने का अभ्यास किें ।
कक्षा में
कहािी के पहले
 बच्िों को बता र्दें शक आप उन्हें एक कहानी सनु ाने वाले हैं, पि उन्हें पहले कुछ भशं गमाएं
सीखनी पड़ेगी।

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 बच्िों से खड़े होने को कहें, सभं व हो तो एक गोले में खड़ा किवाए।ं गोले में उनके साथ खड़े हो
जाएं उन्हें र्दो या तीन िधर्द औि भशं गमाएं शसखाते हुए िरुु आत किें । शफि बर्दले हुए क्रम में इन्हें
िधर्दों को र्दोहिाएं औि बच्िों से संबद् भशं गमाएं किवाएं (बच्िों को िधर्दों को कहने की
जरूित नहीं है)।
 कुछ औि िधर्द औि भशं गमाएं शसखाए।ं बच्िों से इन नये िधर्दों से जड़ु ी भशं गमाएं औि शपछले
िधर्दों की भशं गमाएं एक साथ किवाए।ं एक-एक किके कुछ औि िधर्द औि भशं गमाएं शसखाते
जाएं जब तक शक आप उन सबका प्रर्दिटन औि अभ्यास न कि लें।
उर्दाहरि-
स्वांग के नलये िब्र्द भंनगमाएँ
 शविाल- अपने शसि के ऊपि से िरू ु किते हुए अपने हाथों से एक शविाल गोला बनाए।ं
 हाथी- हाथी की संडू के माशफक अपनी नाक के सामने एक हाथ शहलाए।ं
 ऊब- हाथ पि शसि शटकाकि बैि जाएं औि िेहिे पि बोरियत का भाव हो।
 नया शविाि- िेहिे पि अिानक आये खि ु ी के भाव के साथ अपने शसि की ओि इिािा किें ।
 िलना- उस स्थान पि कुछ कर्दम िलें।
 िहि- र्दोनों हाथ शसि के ऊपि किें जो गगनिंबु ी इमाित का इिािा होंगे।
 शकसी से शमलना- अपने बगल में खड़े शकसी व्यशि की ओि मड़ु ें औि हाथ शमलाएूँ।
 जार्द-ू - अपने हाथ उिाएं औि उन्हें जार्दइु ट धल
ू शबखेिने की तिह हवा में लहिाएूँ।
 बंर्दि- एक हाथ से अपना शसि खजु लाएूँ औि एक हाथ से र्दसू िे हाथ के नीिे वाली कांख को
खजु लाएं।
 क्या माजिा है? अपने हाथ खोल र्दें औि प्रश्न पछ ू ने की मद्रु ा में अपने कंधे उिकाएूँ।
 िीक है (सहमत होना) स्थानीय स्ति पि सहमत होने के शलये जो भी प्रिशलत िािीरिक मद्रु ा हो।
 पागल- स्थानीय स्ति पि में जो भी प्रिशलत िािीरिक मद्रु ा हो।
 मगिमच्छ- अपने फै ली हुइट बाहों से खटाक से बंर्द होने वाले मगिमच्छ के जबड़े बनाए।ं
 थकान- अपने ििीि को झक ु ा लें।
 सोना- अपने शसि को अपने र्दोनों हाथों में िख र्दें।
नाट्य शिक्षा के शलए बताई गयी उपिोि गशतशवशधयाूँ शसफट आपके मागटर्दिटन के शलए हैं शजसके आधाि पि आप
आपनी कक्षा के शलए नयी गशतशवशध तय कि सकते हैं

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Part-B
कला निक्षा
(Art Education)
सस्ं कृ शतयों का मल्ू यांकन उनकी कला द्वािा होता है। अशधकांि संस्कृ शतयों एवं ऐशतहाशसक यगु ों ने बच्िों की
शिक्षा में कला के महत्व को अस्वीकाि नहीं शकया है। कला अशधगम , ज्ञान एवं अशभव्यशि का एक समयानक ु ूल
माध्यम है। -लइु स-हेटलैंड

6. नचत्रकला निक्षि: पररभार्ा एवं महत्व

6.1 कला क्या है?

जॉन डीवी (1906) के अनसु ाि


कोई व्यशि क्या कि िहा है, इसका अनभु व किना एवं उस अनभु व का आनंर्द उिाना, उस संगामी अन्तजीवन की
प्रशक्रया के एक पक्ष में खो जाना औि सामग्री सन्र्दभों का तर्दनसु ाि सशु नयोशजत शवकास किना ही कला है।
जैसा शक इस शनर्देशिका के आिम्भ में बताया गया शक कला, शविािों भावनाओ ं एवं अनभु वों की, संगीत, शित्र,
भाषा, भाव भशं गमाओ ं एवं गशत के माध्यम से एक व्यय्वशस्थत अशभव्यशि है। कलाएं बच्िों की संवर्दे ी,
भावनात्मक, बौशद्क एवं ििनात्मक क्षमता को समृद् बनाती हैं औि बालकों के समग्र शवकास में आपना योगर्दान
र्देती हैं। कला के कई प्रकाि हैं शजनमे प्रर्दिटन कला एवं दृश्य कला प्रमख ु हैं । दृश्य कला शित्रात्मक शनमाटण के द्वािा
ििना एवं सम्प्रेषण का एक सिि माध्यम है। यह एक अशद्वतीय साक ं े शतक क्षेत्र है एवं एक ऐसा शवषय है शजसकी
अपनी शविेष अपेक्षाएं एवं अशधगम हैं दृश्य कला का तात्पयट उन कलाओ ं से है जो मख्ु यतः दृश्य प्रत्यक्षण के
शलए बनायीं जाती हैं:यथा शित्र, पेंशटंग, सजावट, िे त शित्र, मतू ी आशर्द। कला शिक्षा बालकों को सम्प्रेषण के
वैकशल्पक माध्यमों की खोज में मर्दर्द किती हैं। कलाएं बच्िों में व्यशिगत एवं नवीन शविािों को प्रोत्साशहत किती
हैं। दृश्य कला बच्िे को काल्पशनक जीवन एवं वास्तशवक संसाि के बीि स्वस्थ सम्बन्ध बनाने में एवं अपने
शविािों भावनाओ ं एवं अनुभवों को दृश्य रूप में को शनयोशजत किने एवं अशभव्यि किने में मर्दर्द किता है।
शित्रकािी, पेंशटंग आशर्द की ििना किते हुए बालक नए ज्ञान को पिु ाने अनभु वों से जोड़कि उनकी अथटपणू तट ा को
समझने का प्रयास किता है। दृश्य कला शिक्षण (Visual Art Education) खोज, अन्वेषण, प्रयोग आशर्द के
माध्यम से बच्िे की ििनात्मकता एवं सौन्र्दयटनभु व को बढाता है।

21
6.2 कला निक्षा का महत्व :
1. आवश्यकता पर आर्ाररत (Need based) : कला शिक्षा की शविेषता यह है शक यह व्यशि की
आवश्यकता एवं उसके गणु ों के अनसु ाि संिशित शकया जा सकता है। यथा उन्हें परिवाि, क्रोध, पहिान
शमत्रता आशर्द शवशिि थीमो के (जो व्यशि की शवशिि आवश्यकताओ ं को प्रशतशवशम्बत किते हैं) के
अनसु ाि शनधाटरित कि सकते हैं।
2. बालकों हेतु नमत्रवत / बाल मैत्री पि ू य (Child Friendly): कला शिक्षा बच्िों को उनके शविाि
उनकी भावनाएं औि उनके अनभु वों को मैत्रीपणू ट िोिक तिीके से अशभव्यि किने में मर्दर्द किता जो
आिाम र्दायक, िोिक एवं प्रसन्नतार्दायक है।
3. कला निक्षा िब्र्दों की सीमा से परे है (Beyond the boundaries of words): अल्प भाषा,
सीशमत िधर्दावली, वाणी र्दोष यि ु बच्िों के शलए कलात्मक शनमाटण अिाशधर्दक अशभव्यशि का एक
सिि माध्यम प्रर्दान किता है।
4. सपं ि ू य िरीर के माध्यम से अनर्गम (Learning from Whole Body): कला शिक्षा के माध्यम
से बच्िे अपने एवं अन्य व्यशियों के बािे में शवशभन्न अन्य शवषयों के बािे में संपूणट ििीि की शवशभन्न
शक्रयाओ ं के द्वािा सीखते हैं।
5. आत्मनवश्वास का निमायि/ उत्थाि (Improvement in Self Confidence): बहुत सािे
कलात्मक शनमाटण के अभ्यास जो शक शकसी अन्य लक्ष्य को प्राि किने के शलए बनाए जाते हैं वे बच्िों
में स्वि, ििीि एवं ििनात्मकता के प्रयोग से आत्मशवश्वास का उत्थान भी किते हैं।
6. अचेति की प्रनक्रयाओ ं के उद्घाटि में सहायक (Helpful in Exploring Unconscious
Thoughts): कलात्मक शनमाटण यशर्द सशु नयोशजत एवं व्यवशस्थत हो तो बालक की ििनात्मक
अशभव्यशि को प्रोत्साशहत किते हुए उसके अिेतन की प्रशक्रयाओ,ं कंु िाओ ं आशर्द को समझने में अत्यंत
सहायक है।
7. समस्या समार्ाि में सहायक एवं पररवतयि के नलए पवू ायभ्यास( Rehearsal for Change):
कला शिक्षा बालकों को समस्याओ ं के वैकशल्पक हल खोजने औि उसकी वजह से जीवन में आने वाले
परिवतटन के शलए पवू ाटभ्यास का काम भी किता है। जैसे एक बच्िा जो कक्षा में अत्याशधक समस्याओ ं
का सामना किता है उससे सपु ि हीिो की तस्वीि जो सबकी समस्या का समाधान िटु शकयों में कि र्देता है
का शित्र / पेंशटंग बनवाया जा सकता है जो सबकी िक्षा किता है औि सबकी प्रसंिा का पात्र है।
8. मिोरंजक (Entertainment): कला शिशकत्सा की सबसे बड़ी शविेषता औि सौंर्दयट उसके मनोिंजक
होने में है। कला शिक्षा को ‘खेल शवशध’ के रूप में समझा जा सकता है शजसमे शबना शकसी गभं ीि ििाट
के बालक बहुत कुछ सीख लेता है औि बहुत कुछ अशभव्यि कि र्देता है।
9. सोचिे की एवं तकय करिे की क्षमता में वृनि: (Improves Tinking & Reasoning): दृश्य कला
शनमाटण बच्िों की सोिने एवं तकट किने की क्षमता को बढाता है क्योंशक कोई भी दृश्य कला शनमाटण में

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सवटप्रथम बच्िे को उसका आउटलाइन औि उसे से प्रशतशवशम्बत भाव सोिना होता है औि तर्दनसु ाि िंग
िे खाओ ं आशर्द को समायोशजत किना पड़ता है।
10. एकाग्रता को बढावा - दृश्य कला एक बड़े र्दिटक समहू के सामने प्रर्दशिटत की जाती हैं ऐसे में एक
स्तिीय दृश्य कलात्मक शनमाटण में प्रशतभाशगयों से उच्ि स्ति की एकाग्रता अपेशक्षत होती है। यह एकाग्रता
शविािों, िंगों, िे खाओ,ं शवन्र्दओ
ु ं आशर्द सभी ििणों पि आवश्यक होती है बालक की यह एकाग्रता बार्द
के जीवन में भी शवशभन कायों में काम आती है।
11. सौन्र्दयय बोर् में वृनि
दृश्य कलात्मक शनमाटण एवं उन्जे र्देखना एवं उनका शवश्ले षण किना र्दोनों ही शक्रयायें बच्िों में
आलोिनात्मक शितं न एवं उनके सौंर्दयट बोध को बढ़ाती है। इस प्रकाि यह कहा जा सकता है शक दृश्य
कलाएं बालक के सवािंगीण शवकास के शलए अत्यन्त महत्वपूणट है।

7. बच्चो में नचत्रकला के नवकास का चरि : लान्फे ल्ड का नसिांत

कलात्मक नवकास की अवस्था का नवक्टर लान्फे ल्ड का नसिांत:


कलात्मक शवकास की अवस्थाएूँ आपको कला शिक्षा के बािे में शवस्ताि से जानने में मर्दर्द किें गी औि इस से
आपकी कला शिक्षण के कौिल उन्नत होंगे कला शिक्षा के शवकासात्मक परिप्रेक्ष्य का अध्ययन सवटप्रथम डॉ
शवक्टि लान्फे ल्ड (Dr. Viktor Lowenfeld, १९४७) ने १९४७ में प्रकाशित अपनी पस्ु तक ििनात्मक एवं
मानशसक शवकास (Creative and Mental Growth) प्रकािन के बार्द यह पस्ु तक कला शिक्षकों के शलए
अत्यतं महत्त्वपणू ट बन गया
आपने अद्यायनों के आधाि पि लान्फे ल्ड ने बताया शक कला का शवकास छह स्पि ििणों में होता है शजन्हें बच्िों
के द्वािा शनशमटत कला कृ शतयों के आधाि पि समझा एवं स्पि रूप से र्देखा जा सकता है लान्फे ल्ड के अनसु ाि कला
शवकास की छह अवस्थाएूँ शनम्नांशकत हैं:
 अस्पि लेख / घसीटने की अवस्था (१-३ साल) Scribble Stage- (1-3 years old)
 पवू ट शनयोजन अवस्था (३-४ साल )Preschematic Stage-(3-4 years old)
 शनयोजन अवस्था ५-६ साल The Schematic Stage-(5-6 years old)
 यथाथट अरुणोर्दय की अवस्था ७-९ साल The Dawning Realism-(7-9 years old)
 छद्म प्राकृ शतक अवस्था १०-१३ साल The Pseudo-Naturalistic Stage-(10-13 years old)
 शनणटय अवस्था(13-16 साल ) (The Decision Stage 13-16 Years)

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1. अस्पष्ट लेख / घसीटिे की अवस्था (१-३ साल) Scribble Stage- (1-3 years old)
अस्पि लेखन वस्ततु ः एक परिवतटक कौिल है शजसमे मख्ु यतः हाथों एवं उूँ गशलयों का आूँखों के समन्वय
के साथ र्दक्षता पूणट प्रयोग िाशमल है इस स्ति पि बच्िे शित्रांकन की िािीरिक शक्रयाओ ं में संलंग्न होते
हैं इस स्ति पि उनके द्वािा अशं कत शिन्हों एवं शवशभन्न शनरूपणों न तो कोई अथट होता है औि न ही उनमे
कोई ताितम्यता होती है यह अवस्था लगभग 3 वषट की आयु तक िलती है इस अवस्था के अतं तक
बच्िों के घसीटने / अस्पि लेखन के क्षेत्र में परिमाजटन हो जाता है आिंशभक र्दौि में जहाूँ उनके अस्पि
लेखन पिू े पेज औि कई बाि पेज से बाहि भी िले जाते हैं, वह शनर्देशित क्षेत्र शविेष पि सीशमत होने
लगता है यह अवस्था शित्रकला के सन्र्दभट में शसफट शिन्हांकन एवं आनंर्द प्राशि की अवस्था है इस
अवस्था में शनयंशत्रत शिन्हांकन की न तो बच्िे की इच्छा होती है न उसमे इसकी क्षमता होती है र्दसू िे
िधर्दों में इस अवस्था में बच्िे शित्रांकन के शलए आवश्यक पवू ट कौिलों का अभ्यास किते हैं

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चित्र 1 अस्पष्ट लेखन की अवस्था के बालक के चित्राांकन का एक उदहारण

2. पवू य नियोजि अवस्था (३-४ साल )Preschematic Stage-(3-4 years old)


कलात्मक शवकास के इस ििण में बच्िे आपने द्वािा उके िी गयी आकृ शत एवं अपने आसपास के भौशतक
वाताविण में सम्बन्ध स्थाशपत किने में सक्षम होने लगते हैं शवशभन्न गोलों, िे खाओ ं एवं आकृ शतयों की
व्याख्या व्यशि औि आस पास में मौजर्दू शवशभन्न वस्तुओ ं के रूप में की जा सकती है यह अथट पणू ट
शित्राकं न का आिम्भ होता है औि इस स्ति पि बच्िा वाताविण एवं अपने शित्राक ं न में सम्बन्ध स्थाशपत
किने में सक्षम हो जाता है औि शित्रों के माध्यम से सम्प्रेषण सीखना आिम्भ कि र्देता है हाथ िलाने की
िरूु आत किने के बार्द वह बाहि की र्दशु नया के आकािों से संबंध िखने वाले शित्र बनाना िरू ु कि र्देता
है। वह कुछ खास तिह के आकािों के द्वािा अपने अनभु वों को प्रकट किता है। ये आकाि बच्िे के अपने
अनभु व के द्वािा शनशमटत, शर्दखनेवाली वस्तओ
ु ं के आकाि होते हैं शकंतु वे वस्तु के वास्तशवक आकाि जैसे
नहीं होते। वस्ततु ः इस आयु के बच्िे प्रायः आत्म के शन्द्रत होते हैं औि उनकी सोि भी आत्म के शन्द्रत
होती है इस कािण इसमें बच्िा वस्तु को ‘जैसा जानता है’ या ‘जैसा अनभु व किता है’, वैसा शित्र
बताता है; वस्तु ‘जैसी शर्दखती है’, वैसा नहीं। वह अपने मन में िीजों के ‘प्रतीक’ बना लेता है।
उर्दाहिणाथट, आर्दमी के िेहिे के शलए एक गोला औि उसके अर्दं ि तीन-िाि छोटे-छोटे गोले (र्दो आख ं ें,
एक नाक की लकीि या गोला औि एक महंु ) यह उसका िेहिे का प्रतीक है इसी तिह हि िीज के प्रतीक
नए-नए अनभु वों के आधाि पि उसके शर्दमाग में बनते औि बर्दलते िहते है। इस अवस्था के शित्र प्रतीक-
प्रधान होते हैं क्योंशक बच्िा अभी तक अतं मख टु ी होता है।

25
चित्र 2 पव
ू व ननयोजन अवस्था के बालक द्वारा ननर्मवत एक चित्र का उदहारण

3. नियोजि अवस्था ५-६ साल The Schematic Stage-(5-6 years old)


इस अवस्था में बच्िों की शित्र कला में वस्तवु ों एवं आकृ शतयों के बीि के सम्बन्ध स्पि हो जाते हैं औि
वे शित्रों के माध्यम से सम्प्रेषण किने का प्रयास आिम्भ कि र्देते हैं प्रायः इस अवस्था तक बच्िे शित्र
शनमाटण का एक ‘स्कीमा’ (मानशसक संििना ) शवकशसत कि लेते हैं इस स्ति पि बच्िों के शित्रों में एक
शनधाटरित क्रम र्देखने को शमलता है उर्दहािण के शलए इस स्ति पि बच्िों की शित्रकािी में आकाि औि
धिती का स्पि अतं ि र्देकने को शमलता है आकाि प्रायः कागज की ऊपि नीले िंग में शिशत्रत होता है
जबशक धिती कागज के नीिे हिे िंगों से वस्तएु ं धिती पि िखी शिशत्रत की जाती हैं न शक आकाि में तैिती
हुई महत्वपणू ट वस्तएु ं प्रायः बड़े आकि में शिशत्रत की जाती हैं औि गैि महत्व की वस्तएु ं छोटे आकाि में
शिशत्रत की जाती हैं

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चित्र 3 ननयोजन अवस्था के बालक द्वारा ननर्मवत चित्र का एक उदहारण

4. यथाथय अरुिोर्दय की अवस्था ७-९ साल The Dawning Realism-(7-9 years old)
शित्र शनमाटण के शवकास की िौथी अवस्था यथाथट अरुणोर्दय की अवस्था है शजसका आिम्भ 7 वषट में हो
जाता है इस अवस्था में बच्िे आपने शित्रों के सन्र्दभट में आलोिनात्मक हो जाते हैं उन्हें यह स्पि प्रतीत
होने लगता है शक शवशभन्न वस्तओ ु ं के शित्रों का एक संिशित क्रम काफी नहीं है औि उनकी शित्रकािी
पहले से अशधक जशटल एवं सक्ष्ू म होती जाती है इस स्ति पि भी हालाूँशक वे स्कीमा का प्रयोग कितेहैं पि
वह एक पहले के अवस्थाओ ं जैसी एक सामान्य स्कीमा न होकि एक जशटल स्कीमा होती है इस
अवस्था में उनके शित्रों में अशत-आच्छार्दन (Overlapping) प्रायः र्देखने को शमलने लगता है साथ ही
उनके शित्रों में स्थाशनक (Spatial) सम्बन्ध औि स्पि हो जाते हैं

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चित्र 4 यथाथव अरुणोदय की अवस्था के ब्लाक द्वारा ननर्मवत एक चित्र का उदहारण

5. छद्म प्राकृनतक अवस्था १०-१३ साल The Pseudo-Naturalistic Stage-(10-13 years


old)
लान्फे ल्ड के कलात्मक शवकास की पांिवीं अवस्था है छद्म प्राकृ शतक अवस्था जो 9 साल के आयु से
आिम्भ होती है इस अवस्था में मल्ू यों एवं प्रकाि का शित्रण उनके शित्रों में शर्दखाई र्देने लगता है इस स्ति
पि बच्िे अपने शित्रों के प्रशत अत्यतं सवं र्दे न िील एवं शववेिनात्मक हो जाते हैं कलात्मकता के शवकास
के इस ििण में बच्िे आपनी सफलता के प्रशत सजग हो जाते हैं औि शित्रांकन के सन्र्दभट में सफलता का
शनधाटिण उनके शित्र में प्राि वास्तशवकता का स्ति होता है इस स्ति पि शित्रांकन का अपेशक्षत
वास्तशवकता स्ति प्राि न होने पि वे कंु िा ग्रस्त होने लगते हैं इस अवस्था में यह अत्यतं आवश्यक है शक
उन्हें उपयिु प्रोत्साहन एवं बढ़ावा शर्दया जाये शित्रकला के शवकास में इस अवस्था का शविेष महत्व है
इसमें बालक की कल्पना-िशि का प्राधान्य न िहकि उसकी शववेिनात्मक िशि का प्राधान्य िहता है।
िाक्षि ु अनभु वों का अशधक असि होने के कािण बािीशकयों पि नजि पड़ती है । इसी कािण वह अपने
शित्र में भी उन बािीशकयों को शर्दखाना िाहता है। उसकी पिू ी दृशि ही िाक्षषु -प्रधान हो जाती है। इस
अवस्था में बच्िा हि काम को बड़ों की तिह किने की कोशिि किता है। वह कभी यह महससू नहीं

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किता शक वह बड़ों जैसा नहीं है। जैसा बड़ों को किते र्देखता है, वैसा ही वह भी किना िाहता है। कला में
भी यही बात लागू होती है। कला में समाज की साधािण रुशि का झक ु ाव वास्तशवकता की तिफ िहा है।
कुछ कलाकािों को औि शविेषज्ञों को छोड़कि अशधकति व्यशि ऐसी ही तस्वीिें या मशू तट पसर्दं किते हैं,
जो वास्तशवकता-प्रधान हों। घिों में, पस्ु तकों में औि सब जगह अशधकति शित्र वास्तशवक (रियशलशस्टक)
ही िहते हैं। बच्िे अगि शकसी को शित्र बनाते हुए भी र्देखते हैं तो वे भी अक्सि ऐसे ही शित्र बनानेवालों
को र्देखते हैं, जो
वास्तशवक शित्र बनाते हों।

चित्र 5 छद्म प्राकृनतक अवस्था के बालक द्वारा ननर्मवत चित्र का एक उदहारण

6. निियय अवस्था (13-16 साल ) (The Decision Stage-13-16 years)


शित्रकला शवकास की आशखिी पिन्तु महत्त्वपणू ट अवस्था शनणटयात्मक अवस्था है शजसमें बच्िे या तो
अपनी शित्रकला जािी िखने का शनणटय किते हैं या वे शित्रकला को शबना योग्यता के एक कायट के रूप
29
में आकं ने लगते हैं इस अवस्था में स्व शववेिना एक अन्तशनटशहत शक्रया होती है, कई शकिोि यह शवश्वास
किने लगते हैं शक उनमे शित्रकला के आवश्यक कौिल नहीं हैं या शफि कई शकिोि अपने शित्रकला
कौिलों को उन्नत किने में लगे िहते हैं वास्तशवकता के बािे में सिेत औि सज्ञं ान होने पि जब वह एक
शित्र बनाने जाता है, शकंतु शित्र उतना वास्तशवक नहीं बनता, शजतना उसे शर्दखता है उसकी आख ं ें वस्तु में
औि उसके शित्र में कोइट भी फकट नहीं िाहतीं, पिन्तु ऐसा न होने पि उसे नैिाश्य का अनभु व होता है औि
कला की तिफ से उसका शर्दल हटने लगता है।
कला-शिक्षकों का मानना है शक कुछ जन्मजात कलाकािों को छोड़कि यह अवस्था हि व्यशि के जीवन
में आती ही है। उनका कहना है शक यह शवकास की एक प्राकृ शतक सीढ़ी है। हि एक बालक को इस
सक ं ट-काल से गजु िना ही पड़ता है। इस शनणटयात्मक अवस्था में उपयि ु सहयोग शमलने पि बालक
आपना शित्रांकन कायट जििी िखते हैं अन्यथा उस से शवमख ु हो जाते हैं इस शनणटयात्मक अवस्था पि
बच्िों को उपयि ु पिामिट शर्दया जाये औि यह बताया जाये शक वे शित्रांकन को कौिल के स्ति की
पिवाह शकये शबना जािी िखें औि यह समझाया जाये शक अभ्यास द्वािा प्रखिता का कोई भी स्ति प्राप्य है
तब बच्िों की रूशि आगे भी शित्रकला में बनी िह सकती है अन्यथा वे धीिे धीिे इस से र्दिू हो जाते हैं
यशर्द र्देखा जाये तो शित्रकला शवकास की यह आशखिी अवस्था भशवष्ट्य के एक शित्रकाि के शलए अत्यंत
महत्वपणू ट होती है औि एक संपणू ट कलाकाि के उद्भव की अवस्था है

चित्र 6 ननणवय अवस्था के बालक द्वारा ननर्मवत एक चित्र का उदहारण

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8. नवनभन्ि स्तरों पर नचत्रकला / दृश्य कला निक्षि के उद्देश्य

िाष्ट्रीय िैशक्षक अनसु न्धान एवं प्रशिक्षण परिषर्द के अनसु ाि पूवट प्राथशमक स्ति पि कला शिक्षण के उद्देश्य
शनम्नांशकत हैं:
8.1 कला निक्षा के उद्देश्य (पूवय प्राथनमक स्तर)

1. आनंर्द का अनभु व ।
2. वाताविण के प्रशत बच्िे की आतं रिक सवं र्दे निीलता जागरूक किना ।
3. प्राकृ शतक सामशग्रयों के साथ स्वतंत्र रूप से खेलते हुए अशधगम को नृत्य एवं गीत के रूप में, गशत
एवं आवाज के माध्यम से, प्राकृ शतक ज्ञान के द्वािा, िंगों, प्रारूपों, शवशभन्न लयों आशर्द का
आनर्दं उिाना।
8.2 कला निक्षा के उद्देश्य (प्राथनमक स्तर)

1. एकीकृ त अशधगम के माध्यम से आनंर्द का अनभु व ।


2. वाताविण के प्रशत सौंर्दयट बोध (शजसमे कक्षा, घि, शवद्यालय,समर्दु ाय) ।
3. जीवन के शवशभन्न पहलओ ु ं के संर्दभट में शविािों एवं भावनाओ ं की स्वतंत्र अशभव्यशि ।
4. बच्िे के सभी संवर्दे नाओ ं का शवकास शनिीक्षण , खोज एवं अशभव्यशि के माध्यम से ।
8.3 कला निक्षा के उद्देश्य (उच्च प्राथनमक स्तर)

1. आनर्दं का अनभु व ।
2. सौंर्दयट बोध एवं संवर्दे ना के प्रशत अतं दृशि का शवकास ।
3. कला ज्ञान, र्दैशनक जीवन एवं उच्ि शवषयों का एकीकिण ।
4. ििनात्मकता को बढ़ावा ।
5. छात्रों को वृहत संस्कृ शत, धिोहिों एवं िाष्ट्र के प्रशत िैतन्य बनाना ।
8.4 कला निक्षा के उद्देश्य (माध्यनमक स्तर)

1. आनर्दं का अनभु व ।
2. ििनात्मक अशभव्यशि एवं र्दैशनक प्रयोग हेतु वस्तओु ं का शनमाटण हेतु नशवन माध्यमों एवं
तकनीकों से परििय किाना ।
3. सांस्कृ शतक शवशवधता एवं िाष्ट्रीय धिोहिों तथा लोक कलाओ ं एवं लोक संस्कृ शतयों के प्रशत
जागरूकता का शवकास किना ।

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4. र्दैशनक जीवन में छात्रों को कलात्मकता एवं सौंर्दयट बोध के प्रशत संवर्दे निीलता का शवकास
किना ।
5. स्थानीय कलाओ ं एवं कलाकािों से परििय किाना ।
6. स्थानीय स्ति पि उपलधध सामशग्रयों एवं सामर्दु ाशयक सहयोग के द्वािा ििनात्मकप्रकृ शत के प्रशत
एवं शवशभन्न कलाओ ं के प्रशत प्रिसं ा भाव को उन्नत किना ।

9. नवनभन्ि स्तरों पर नचत्रकला / दृश्य कला निक्षि के उद्देश्य

शित्रकला शिक्षण की कक्षा का आयोजन के प्रमख


ु तत्व
प्रभावी कला निक्षा का आयोजि (Organization of an Effective Class of Visual Art
Education)

कला शिक्षा कक्षा की सफलता में प्रभावी कक्षा व्यवस्था की अहम भशू मका है । एक शिक्षक को इसके शलए
उपयि
ु कक्षा व्यवस्था किनी िाशहए | प्रभावी कक्षा व्यवस्था शनम्नांशकत तीन वृहत श्रेशणयों के अतं गटत की जा
सकती है :
1. शिक्षक की योजना
2. कक्षा व्यवस्था
3. कायट इकाई की योजना
4. बच्िों के कायट का मल्ू याङ्कन एवं उसकी समालोिना

9.1 निक्षक की योजिा


 शिक्षक को बच्िों की दृश्यात्मक कल्पनािीलता का अनभु व होना िाशहए ।
 शिक्षक को कला शनमाटण प्रशक्रया एवं उसमें प्रयि
ु सामशग्रयों की सामान्य जानकािी होनी
िाशहए।
 बच्िों की शवकासात्मक अवस्थाओ ं की जानकािी शिक्षक को व्यशिगत शभन्नताओ ं एवं
आवश्यकताओ ं को समझने में मर्दर्द किे गा ।
 दृश्य कला शनमाटण का प्रायोशगक अनभु व शिक्षक को शवशभन्न कला सामशग्रयों की अशभव्यशि
सभं ावनाओ ं को समझने में मर्दर्द किे गा ।
 कला अशभव्यशि का थीम/ शवषय बच्िों के उपयि ु अनभु वों पि आधारित होना िाशहए ।
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 बच्िों के अनभु व के वृहत क्षेत्र शनम्नाशं कतहो सकते है –
 आसपास का वाताविण
 आसपास के व्यशि एवं अन्य जीव
 शवलक्षणताएं एवं िहस्य
इस प्रकाि के थीम/ शवषयों का ियन बच्िों को सजीव अनभु व (Life experience) में मर्दर्द किता है।
एक शिक्षक के शलए यह महत्वपणू ट है शक एक शविेष कलात्मक कायटकलाप का रुशिकि तिीके से परििय
कै से किाया जाये। इसके शलए एक शिक्षक शनम्नाशं कत कायट कि सकता है:-

 बच्िों के अनभु व व कल्पनािीलता पि आधारित शवषय का ियन ।


उर्दाहिण के शलए बच्िों को इस प्रकाि के शवषय शर्दए जा सकते हैं:-
शमत्रों के साथ खेलना, मेिा मोहल्ला, मेिा घि, मेिा कमिा आशर्द ।
 उपकिणों एवं सामशग्रयों का अशभप्रेिक के रूप में प्रयोग ।
 बच्िों के शनरिक्षण एवं उने उत्साह के अनसु ाि कायट कलाप ।
 शवशभन्न कलाकािों की कलाकृ शतयों का अशभप्रेिक के रूप में प्रयोग।

9.2 कक्षा व्यवस्था (Class Room Organization)


 कक्षा का एक सकािात्मक एवं सहयोगपणू ट वाताविण जहाूँ बच्िों को अशभव्यशि की स्वतंत्रता
हो
 कक्षा में कला सामशग्रयों एवं उपकिणों की उपयि ु व्यवस्था ।
 कलात्मकता की आवश्यकता के अनसु ाि स्थान की उपलधधता ।
 एक अशधगमपणू ट वाताविण ।
 प्रर्दिटन स्थान ।
 समय प्रबंधन ।
 साफ सफाई की व्यवस्था की अशग्रम योजना ।
 आिामर्दायक स्थान का ियन ।
 उपयि ु फनीिि शजसमें छात्रों को आने-जाने में असशु वधा न हो ।
 पानी की सल ु भता ।

9.3 कायय इकाई की योजिा (Unit Planning)


 आवश्यक सामशग्रयों की सिू ी तैयाि किें ।

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 सामशग्रयों की उपयि ु एवं उपलधधता की अशग्रम जाूँि हो ।
 सामग्री आकषटक होने िाशहए ।
 उपयि ु सिु क्षा व्यवस्था ।
 कक्षा की आकषटक सजावट ।
 सम्पणू ट शवद्यालय भवन में प्रर्दिटन की उपयि
ु व्यवस्था ।

9.4 बच्चों के कायय का मूल्याङ्कि एवं उसकी समालोचिा

कला शिक्षण कक्षा की समाशि के उपिांत शिक्षक पवू ट शनधाटरित मानर्दडं ों के आधाि पि उसका
मल्ू याङ्कन कि सकता है पिन्तु शिक्षक द्वािा की गयी समालोिना बालक पि अनावश्यक र्दबाव बना
सकता है। ऐसे में यशर्द शिक्षक बच्िों को पािस्परिक आलोिना (Peer Evaluation) एवं शनधाटरित
मानर्दडं ों पि स्व-आलोिना एवं मल्ू याङ्कन को प्राथशमकता र्दें तो बेहति होगा। इसके शलए कक्षा के
उपिांत आशखि के कुछ शमनटों में बालकों को अपने-अपने शित्र र्दीवाि पि सजाकि लगा र्देने के शलए
कहा जा सकता है। एक-एक किके सभी प्रशतभागी अपना मत हि शित्र के बािे में र्दें। इससे शित्रकाि
अपनी गलशतयों को समझेगा। बालक, बालकोशित समालोिना किें गे जो स्वाभाशवक भी है औि उनके
सहपाशियों को स्वीकायट है । यशर्द यह संभव नहो तो प्रस्ततु शकये गए शित्र की समालोिना सकािात्मक
भाषा में किें अथाटत यशर्द कुछ अच्छा न लगे तो यह न कहे शक यह िीक नहीं है बशल्क उसके शित्र के
सकािात्मक पहलओ ु ं की प्रिसं ा किते हुए उसे यह बताएं शक यशर्द आप ऐसा किें तो आपका शित्र औि
प्रभावी हो सकता है ।
10. नचत्र कला / दृश्य कला के आयोजि की योजिा का एक उर्दहारि**

(**दृश्य कला की एक कक्षा के आयोजन की योजना का एक उर्दहािण िाज्य शिक्षण प्रशिक्षण एवं अनसु न्धान संसथान, िायपिु
छत्तीसगढ़ द्वाि डी.एड. (र्दिू स्थ शिक्षा) के स्व अशधगम सामग्री से साभाि उद्तृ है इस प्रकाि की अन्य शक्रयाकलापों की जानकािी
के शलए र्देखें: http://www.scert.cg.gov.in/pdf/dedfirst2013/kalashikshan.pdf )

इकाई की कायट योजना जो बच्िों की संकल्पना, कौिल एवं अशभवृशत्त पि आधारित है औि पिीक्षण एवं
मल्ू यांकन योग्य है ।
कलात्मक नवर्य: उि व्यनियों के नलए उपहार जो मेरी र्देखभाल करते हैं ।

क्षेत्र:घि/शवद्यालय में सहयोग


शक्रया : शित्र शनमाटण

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प्रथम चरि : अनभप्रेरि

बच्िों से बात किते हुए उन्हें प्रेरित किना


1. घि पि कौन आपकी र्देखभाल किता है ?
2. क्या घि पि बहुत सािे काम होते हैं ?
3. क्या आप उन कायों में माता-शपता की मर्दर्द किते हैं ?
4. आप सबसे अच्छे से कौन सा कायट कि लेते हैं ?
5. क्या आप उसकी एक तस्वीि बना िाहेंगे ?
र्दूसरा चरि : कायय

सामग्री उपलधध किाना एवं उन्हें उनके द्वािा शकये जाने वाले कायट को शित्र में उके िने के शलए कहना यथा: साफ़-
सफाई में सहयोग, शबस्ति लगाने में सहयोग, खाना बनाने में सहयोग आशर्द |
तीसरा चरि : मूल्यांकि

बच्िों से बात किते हुए पछ


ू ना
1. तस्वीि में क्या प्रर्दशिटत है ?
2. क्या सामग्री प्रयोग की गई ?
3. तस्वीि/शित्र का सबसे सफल भाग ?
निक्षा उपागम : बच्िों के जीवन से सम्बशन्धत जाकािी आशर्द र्देते हुए शवशभन्न शिन्हों, िे खाओ,ं आकृ शतयों की
गणु वत्ता के बािे में बताये ।
मूल्यांकि : बच्िे के अशभव्यशि संकेतों को समझें जो उनके सहयोग सम्बन्धी शविाि एवं भावनाओ ं को
अशभव्यि किता हो ।
कोई स्पि समस्या शर्दखे तो उससे बाते किें ।

35
खंड C
प्रोजेक्ट ररपोटय नलखिे समबन्र्ी आवश्यक निर्देि

11. प्रोजेक्ट ररपोटय नलखिे समबन्र्ी आवश्यक निर्देि

 नाट्य एवं कला शिक्षण का यह कायट कुल 50 अक ं ों का है ।


 सामान्य शवषयों के शलए बनायी जानेवाली पाि योजना के फॉमेट के अनसु ाि ही नाट्य एवं कला के पािों
के शिक्षण के शलए भी एक शवस्तृत कायट योजना बनाइये ।
 शनधाटरित पाि योजना के अनसु ाि आप कला एवं नाट्य शिक्षण की कक्षाओ ं को शवद्यालय में पढ़ायें एवं
उसकी एक रिपोटट प्रस्ततु किें । प्रत्येक कक्षा की अवशध न्यनू तम 45 शमनट की होनी िाशहए ।
 आप कलात्मक शिक्षण के शलए 4 पािों का ियन कीशजये शजसमे से र्दो नाट्य कला से सम्बंशधत हों
औि र्दो शित्रकला से सम्बशं धत पाि हों ।
 आपके प्रोजेक्ट रिपोटट के मल्ू याङ्कन में िािों पािों को 10-10 अक ं कुल 40 अक ं शर्दए जायेंग,े 10 अक

आपके सम्पणू ट रिपोशटिंग स्टाइल (शजसमे आपकी हस्तशलशप, आपका प्रस्ततु ीकिण, आपकी मौशलकता
एवं आपकी लेखन िैली िैली िाशमल है) के शलए शर्दया जायेगा इस प्रकाि कुल 50 अक ं आपके नाट्य
एवं कला शिक्षण के प्रायोशगक कायट के शलए शनधाटरित होगा।
 पढ़ाये गए पािों के आधाि पि आप नाट्य एवं कला शिक्षण का एक रिपोटट तैयाि किें शजसमें आपके द्वािा
तैयाि शकये गए पाि योजनायें एवं अन्य आवश्यक सामशग्रयां सशम्मशलत होंगी ।
 आपका प्रोजेक्ट रिपोटट आपकी हस्त शलशप में शलखा होना िाशहए ।
 उपिोि अनसु ाि िाि कक्षा पािन रिपोटट न होने की सिू त में आपका प्रोजेक्ट / प्रायोशगक कायट अधिू ा
माना जायेगा एवं तर्दनसु ाि आपको िन्ू य अक ं प्रर्दान शकया जायेगा ।
 शित्रकला / पेंशटंग के सन्र्दभट में तीन बच्िों के द्वािा शनशमटत शित्र उनके नाम, शवद्यालय के नाम एवं कक्षा
के शवविण सशहत आपके रिपोटट में सल ं ग्न शकया जाना अपेशक्षत है । नाट्य कक्षा के शिक्षण के सन्र्दभट में
नाट्य कक्षा के उपिांत (यशर्द संभव हो तो) तीन प्रशतभाशगयों के संशक्षि अनभु व उनकी हस्तशलशप में संलग्न
शकये जाने िाशहए ।
 आप अपना कला एवं नाट्य शिक्षण का प्रोजेक्ट रिपोटट अपने निर्ायररत अध्ययि कें ि पर सपं कय
कक्षाओ ं के र्दौराि जमा करें उसे सीधे शवशश्वद्यालय को नहीं भेजें ।
 इस शनर्देशिका के सन्र्दभट में आपके सझु ावों का हम स्वागत किते हैं । यह सझु ाव इस शनर्देशिका में प्रर्दत्त
सामग्री के सन्र्दभट में हो सकती है या शफि आप कुछ नए शक्रया कलाप सझु ाना िाहते हैं तो शिक्षा
शवद्यापीि, वधटमान महावीि खल ु ा शवशश्वद्यालय, कोटा के पते पि भेज सकते हैं या शफि उन्हें शिक्षा
शवद्यापीि, वधटमान महावीि खल ु ा शवशश्वद्यालय, कोटा को soe@vmou.ac.in पि ई मेल कि सकते हैं ।

36
12. सन्र्दभय ग्रन्थ / अन्य अध्ययि :

Birnbaum, A. (2012). Education for Creative Living: Ideas & Prposals of Tsunesaburo
Makiguchi, National Book trust, New Delhi
NCERT (2006) Poition Paper: National Focus Group on Art, Music, Dance &
Theatre,NCERT, New Delhi
NCERT (2008) Syllabus of Art Education, NCERT, New Delhi
NCERT (2010) Country Report: Art Education in India, NCERT, New Delhi
Contractor, M.R. (2011). Creative Drama & Puppetry in Education, National Book Trust,
New Delhi
NCERT (2015) Training Package in Art Education, NCERT, New Delhi
Prasad, D. (2014) Ravindranath Tagore: Philosophy of Education& painting, National
Book Trust, New Delhi
SCERT (2013) कला एवं कला शिक्षण: र्दिू स्थ डी एड हेतु स्व अध्ययन सामग्री, SCERT, छत्तीसगढ़ द्वािा
प्रकाशित
http://www.scert.cg.gov.in/pdf/dedfirst2013/kalashikshan.pdf
http://www.ncca.ie/uploadedfiles/Curriculum/Primary_Drama_Guidelines.pdf
http://www.creativitycultureeducation.org/wp-content/uploads/arts-in-education-and-
creativity-2nd-edition-91.pdf
http://steam-notstem.com/wp-content/uploads/2010/11/finalreport.pdf
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