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MVA 020 Block-4 - POST INDEPENDENCE MODERN ART MOVEMENTS
MVA 020 Block-4 - POST INDEPENDENCE MODERN ART MOVEMENTS
एमवीए
दशन और य कला कू ल
इं दरा गांधी रा ीय मु व व ालय
खंड
यू नट
यु नट
इकाई
भारत के ट मे कग और ट मेक स
इकाई
य श ाथ
एमवीए के खंड म हम वतं ता के बाद भारत म ए कला आंदोलन के बारे म समझगे। उस आधु नकता को
के वल काल सूचक नह माना गया है ब क इसे मानव चेतना के संवहन से जोड़ा गया है। फर भी कला के इ तहास
को यान म रखते ए आधु नक च कला के काल को अपनाते ए लोक कलाकार कला सं ान च कार और
च को दे ख ते ए उनक वृ य के भाव के संके त मलते ह। बंगाल के वक सत कला प और वशेष प से
शां त नके तन का अ ययन हम आधु नक समय क कला पर चचा करने के लए टश कू ल और राजा र व वमा को
फर से दे ख ने क दशा दे ता है। इसके बाद वतं ता आंदोलन और गांधीवाद आंदोलन के भाव से आगे बढ़ते ए
आधु नक कला कई गत भाव के साथ सामने आती है।
यह खंड इकाइय म वभा जत है। इकाई म कला सं ान के संदभ और भारतीय कला प र य म इसके मह व पर
वभ ब के मा यम से चचा क गई है जसम कला सं ान के उ े य और उन पर आधु नक वृ य के भाव
को महसूस कया जा सकता है। इकाई इस बात पर यान क त करती है क वतं ता के बाद क कला पर लोक
और आ दवासी कला का भाव आधु नक श द म कै से प रल त होता है साथ ही यह जानने का यास कर क लोक
और आ दवासी कला का वकास कस म म आ था। भारत म व भ लोक एवं जनजातीय कलाएँ कौन सी ह
जनका कला प र य म मह वपूण ान है और वतं ता के बाद क आधु नक कला म लोक और जनजातीय कला
का भाव कै से दखाई दे ता है। और मुख के संदभ म कला का मह व आधु नक कलाकार इससे भा वत ह।
इकाई म भारतीय ट कला के ऐ तहा सक संदभ और इससे ा त वषय क ामा णकता के दशन भारतीय ट
कला क पृ भू म के मा यम से इसके इ तहास और वकास ृंख ला पर चचा क गई है। भारत म मु ण क ारं भक
अव ा और उसके बाद कॉरपोरेट काल तक भारतीय मु ण या का वकास व शता द के अंत से व शता द
के ारंभ तक कै से बढ़ना शु आ। इस इकाई म यह भी चचा क गई है क वतं ता के बाद के भारतीय कला
प र य म मु ण का भाव कै से प रल त होता है जसके मा यम से मुख कला सं ान का समेक न आ और साथ
ही वतं ता के बाद मु ण क मह वपूण भू मका और व तार आ। आधु नक कला ई है। इस इकाई म हम वृ
और समय च दोन से आधु नकता को समझने का यास करगे। साथ ही इस काल क समी ा कला म भी रदश
कोण को ाथ मकता द गई है।
इकाई भारत के मुख च कार और मू तकार और कला तकनीक आ द म उनके योगदान के बारे म बताएगी।
भारतीय कला के इ तहास म प रवतन का म आगे बढ़ता रहा जसम कलाकार ब त ही रचना मक तरीके से नवाचार
करता है और उसी समय आधु नक कलाकार के प म भी एक व श पहचान बनाई।
भारतीय कला प र य पर
. उ े य . सीखने
के प रणाम
. प रचय
. . रा ीय सं हालय
. . ल लत कला अकादमी
. . रा य व व ालय कला सं ान
. . दद
. . तमा
. . ा फक आट ट मे कग
. . अनु यु कला
. आइए सं ेप कर
. अपनी ग त क जाँच कर .
. उ े य
. सीखने के प रणाम
आधु नक कला का व तार करने वाले व भ व व ालय के बारे म अपने सहपा ठय श क और कला
जगत से जुड़े लोग से बात कर।
. प रचय
य श ाथ इस इकाई म समय समय पर और एक वृ से आधु नकता को समझने का यास कया गया है साथ
ही साथ आधु नक कला क इस अव ध क समी ा के साथ साथ को धानता भी द गई है। आधु नकता के प रचय
और वकास के अलावा समकालीन च कला के प रचय का भी प रचया मक ववरण दया गया है और व ान क राय
म आधु नक काल क कला के व भ पहलु को प रचय म एक कृ त कया गया है।
पर य
तकनीक और कला शै लय जसके प रणाम व प त काल शासन ारा प मी तकनीक का परी ण करने के लए कला सं ान और भारतीय कला प र य
पर इसका भाव
कला सं ान क ापना ई। भारतीय औपचा रक कला श ण म म ास कोलकाता और मुंबई कला व ालय
मुख हो गए। इसी मम वभ श ा नी तय ारा नधा रत समय क आव यकता के अनुसार नवीन कला सं ान
सं हालय आट गैलरी आ द खोले गए। तेज ी से बदलाव और वकास के दौर म इन सं ा ारा नई ग त व धय को
लागू कया जाने लगा। जससे परंपरागत अतीत क जाग कता को इन कला सं ान के नवीन वचार के साथ समेक न
के प म दे ख ा जाता है। प रवतन क या के तहत यह समेक न आधु नक संदभ म सृज ना मक और सृज न का दे श
है जो परंपरा को एक मह वपूण ान दे ता है जसक समाज म कला के त च और चेतना को नया अथ दे ने और
जागृत करने क दशा म एक अतुलनीय भू मका है।
सुनील कु मार आ द और रा ीय और अंतररा ीय तर पर मा यता ा त कलाकार क सूची वतमान पीढ़ तक जाती है।
वतमान म नए ल य को ा त करने वाले काय म म कला इ तहास ा फक कला नातक और नातको र म य
संचार के साथ साथ पीएचडी तर के काय म शा मल ह।
पंज ाब क पूव राजधानी शमला म म एक टे ट आट् स एंड ा ट कॉलेज क ापना क गई थी जसे मेयो
कू ल ऑफ आट लाहौर पा क तान से ानांत रत कर दया गया था और बाद म अग त को पंज ाब सरकार
ारा चंडीगढ़ ानांत रत कर दया गया था। इस सं ान क ापना भारतीय और प मी परंपरा के आधु नक ान के
मा यम से कला मकता और रचना मकता के प म मील का प र सा बत आ। इस सं ान म कला श ा के
पा म को इस वचार के साथ डजाइन कया गया था क कला के स दय रचना मक कला मक अ भ को
यान म रखते ए भारतीय एकता को समझने क को शश क जा रही है। अ य दे श क भारतीय कला और कला
का तुलना मक अ ययन कया जा सकता है। ता क नए योग और व भ मा यम और साम य को प र कृ त करने
और जानकारी ा त करने का अवसर मल सके ।
. . रा ीय सं हालय
म मुकु ल डे।
. . ल लत कला अकादमी
आजाद के बाद आधु नक सं ान ारा वष भर दश नय और शै क काय म का आयोजन कया जाता रहा है। अकादमी ारा आयो जत
कला आंदोलन
वा षक रा ीय दशनी क शु आत म ई थी और यह काय म साल दर साल इसी म म होता रहा है। इस
दशनी के अलावा वा षक भारत के प म जानी जाने वाली अंतरा ीय कला दशनी व स है। म शु
ई यह दशनी हर साल म आयो जत क जाती है जसके मा यम से अंतररा ीय तर पर कला और सं कृ त का
आदान दान होता है और इसम भाग लेने वाले दे श और कलाकार के बीच सामंज य ा पत होता है।
भारतीय कला को आधु नकता का बोध कराने म कला सं ा ने मह वपूण भू मका नभाई है। इन सं ा ने दे श के
मुख शहर और क ब म कलाकार और बु वग को एक सतह पर लामबंद कया और एक ऐसी संरचना का नमाण
कया जसम कला श ा क कृ त नधा रत क जा सके । इन सं ा ने दे श के मुख शहर और क ब म कलाकार
और बु वग को एक सतह पर लामबंद कया और एक ऐसी संरचना का नमाण कया जसम कला श ा क कृ त
नधा रत क जा सके । और उसम नया योग कया। कला व ालय म पु तकालय कला द घा एवं सं हालय आ द को
समझने क सु वधा मलने लगी।
जससे भा वत होकर असं य युवा इन वषय म दा खला लेने और उनका पालन करने और उनका अ ययन करने क
उ सुक ता दखा रहे ह। अत कला सं ान के मा यम से भारतीय कला का व तार हो रहा है।
रा य के व व ालय के अंतगत कला सं ान पूव से ही आयोजन करते रहे ह। ले कन आज दे श म कला के त बढ़ते झान
को यान म रखते ए भारत म नय मत कला सं ान भी शु हो रहे ह जनका योगदान आजाद के बाद के समकालीन कला
प र य को रेख ां कत करता है। सं कृ त और रचना मक अ भ को दशा दे ने के लए च कला मू तकला ा फक कला
कला का इ तहास य शासन फै शन डजाइ नग फोटो ाफ आ द जैसे छा क च को यान म रखते ए कई पा म
शु कए गए ह। बीए बीएफए व भ वषय के लए ड लोमा स ट फके ट रसच पीएच.डी शु कया गया है। तदनुसार
व व ालय और कॉलेज के व भ वभाग बीए बीएफए बीवीए एमएफए एमवीए और अनुसंधान काय म म पा म
संचा लत कर रहे ह। समकालीन कला ग त के पथ पर अ सर है। इस संदभ म हम वतं ता के बाद छ ीसगढ़ रा य क
भू मका को एक अतुलनीय शैली म पाते ह। इं दरा कला और संगीत व व ालय खैरागढ़ प मी भारत म कला को बढ़ावा दे ने
म मह वपूण भू मका नभा रहा है। कोलकाता टे ट यू नव सट ऑफ आट एंड ा ट पटना का आट एंड ा ट कॉलेज फै क ट
ऑफ फाइन आट् स गुवाहाट यू नव सट असम सर जेज े कॉलेज ऑफ आट् स मुंबई महारा भारती आट कॉलेज पुण े फाइन
आट् स कॉलेज गोवा पणजी गवनमट दे वललीकर इं ट ूट ऑफ फाइन आट् स इंदौर म य दे श राजा मान सह तोमर संगीत
एवं कला व व ालय वा लयर रा य ल लत कला सं ान म य दे श। ल लत कला महा व ालय लखनऊ व व ालय
य कला संक ाय एमएल सुख ा ड़या व व ालय उदयपुर ल लत कला संक ाय राज ान व व ालय जयपुर सरकारी कला
और श प महा व ालय म ास चे ई जवाहरलाल नेह वा तुक ला और ल लत कला
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यू नव सट हैदराबाद आं दे श और ेम राज गवनमट वजुअ ल आट कॉलेज मैसूर कनाटक आट काउं सल कॉलेज कला सं ान और भारतीय कला प र य
पर इसका भाव
ऑफ फाइन आट् स कनाटक बगलोर गवनमट फाइन आट् स कॉलेज व म के रल वजुअ ल आट् स वभाग मह ष
दयानंद यू नव सट ह रयाणा प टग वभाग कु े यू नव सट ह रयाणा फै क ट ऑफ फाइन आट् स ल लत कला
कला वभाग कु माऊं व व ालय डॉ जे जयल लता संगीत और ल लत कला व व ालय चे ई वन ली व ापीठ
राज ान कला वभाग महाराजा सूरजमल बृज व व ालय भरतपुर राज ान ल लत कला वभाग छ प त शा जी
महाराज व व ालय कानपुर कला वभाग चौधरी चरण सह व व ालय मेरठ उ र दे श ल लत कला सं ान डॉ.
भीमराव अंबेडकर व व ालय आगरा ल लत कला संक ाय द न दयाल उपा याय व व ालय गोरखपुर और पं डत
लखमीचंद टे ट यू नव सट ऑफ परफॉ मग एंड वजुअ ल आट रोहतक आ द भी व भ पा म के मा यम से कला
के व तार म मह वपूण भू मका नभा रहे ह। अ भनव तरीक के साथ।
कला सं ान पर
बंगाल कू ल ढ़वाद होने के कारण भारतीय कला को एक नया वातावरण दे ने म असफल रहा। इसके वपरीत कु छ
मुख कलाकार ने भारतीय कला को आधु नक होने के लए े रत कया। इसने लोग के समथन से माग श त करने
म मह वपूण भू मका नभाई। उनके नाम इस कार ह रव नाथ टै गोर गगन नाथ टै गोर अमृता शेर गल या मनी रॉय
जॉज क ट नकोलस रो रक आ द। साथ ही अ तयथाथवाद अ भ वाद भाववाद और घनवाद आ द जैसे
यूरोपीय आधु नक झान का भाव प रल त होने लगा। भारतीय कला सं ान के काय म और कलाकार ने अपने
काम म सुधार कया।
न न ल खत यूरोपीय कला वृ य के संदभ म भारत म भाववाद घनवाद अ तयथाथवाद आ द का कोई उ लेख नीय
कलाकार नह था। भारतीय कलाकार का झुक ाव अ भ वाद क ओर सही था। हालां क भारतीय कलाकार ने
अपने तर पर इन वाद म यादा दलच ी नह दखाई। इस दशा म कलाकार ने वदे शी कला था को वक सत
करने का भी यास कया जसम लोक कला आ दम कला लघु च अजंता भ च और तां क कला के मह व
को पूरी तरह से समा हत कया गया है। ऐसे म कला क उ त और कलाकार का उ े य इस काल क कु छ नई
पर तय का व ेषण करना था। ऐसे कलाकार का सबसे भावशाली वग वह था जसने कला को दे श क सीमा
से उभारा और उसे एक बु नयाद और सव ाकृ तक प दया। यह समकालीन कलाकार का एक वग है स
भारतीय च कार सैयद हैदर रज़ा क एक अ भ कला के े म मह वपूण काय करने वाले दे श क सूची य द
आज बनाई जाए तो न त प से भारत का नाम होगा।
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वतं ता के बाद भारतीय कला श ा े म नए प रवतन ए ह। चूं क सभी कला सं ान के तहत ड ी कोस चलाए
जा रहे ह और उनके पास व भ कार के कला सं ान ह ज ह पा म के अनुसार नातक नातको र तर पर
पा म के अनुसार लागू कया गया है। और इन कला के ान को बढ़ाने के लए पीएचडी का भी ावधान कया
गया है। वषय और कला इ तहास वषय से संबं धत ौ ो गक और साम ी का सै ां तक अ ययन भी पा म का
एक अ भ अंग है। छा और कलाकार इन वषय को अपनी गत च के अनुसार चुनते ह। और कला सं ान
के मा यम से व भ तकनीक और मा यम से आधु नक और योग कए गए ह। कु छ मुख लोक य वषय क चचा
इस कार है
. . च कारी
वतं ता के बाद क आधु नक कला के संदभ म च कला पर आधु नक भाव इस तरह प रल त होता है क भारतीय
वतं ता चेतना अपनी वैचा रक मता के मा यम से जनता के भीतर एक ऊजा का संचार कर रही थी। उस ऊजा
का आधु नक भाव सीधे उन लोग पर दे ख ा गया जो कसी भी तरह से संबं धत नह थे जैसा क पहले चचा क जा
चुक है। कलाकार को अपने काम म यूरोपीय कला वाद क एक झलक दखाई द जसके प रणाम व प च कला
क आधु नक शैली सामने आई। उनक परंपरा दै नक सामा जक वषय को शा मल करते ए एक गत शैली के
प म तीत होती है जसके लए कलाकार ने अमूत भाव के साथ स दय शा ीय उ पादन के मा यम से नणय
लया। जसम कलाकार ने आधु नक शैली और य भाषा के सौ दयपरक पहलू के मा यम से तीक छ व आकृ त
अमूत भाव का चयन करने का नणय लया।
. . मू तकला
भारतीय कला म मू त कला का एक व णम इ तहास है जो सधु स यता काल से व भ युग म दखाई दे ता है। वषय
धा मक रहे ह जो ाप य अलंक रण ह चाहे वह द ण भारत का मं दर हो या तूप या
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मथुरा या मौय तंभ और कु छ कलाकृ तयाँ सं हालय म संर त ह। अतीत म मू तय को बनाने वाले कलाकार को कला सं ान और भारतीय कला प र य
पर इसका भाव
श पी कहा जाता है। भारतीय मू तकला टे राकोटा फाइबर हाथ क बुनाई म के बतन पेपर माचे कां य आ द म
आधु नक भाव के वकास को आधार बनाने के लए श प कौशल का वकास जारी रहा। आज मू तकला का व तृत
वकास प से इस वकास के लए एक सेतु के प म दे ख ा जाता है।
अब सीमट कांसे धातु क लेट ला टर फाइबर और असब लग इं टालेशन आ द के लए इ तेमाल होने वाले अ य
म त मी डया का उपयोग करके सभी कार के योग कए जा रहे ह।
. . ा फक कला मु ण बनाना
वतं आधु नक भारतीय ट कला के वकास म तीन चरण ह। पहला चरण का बेहद खास दौर था जसक
शु आत कं वल कृ णा ने द ली म क थी। यह चरण उस समय ट कला म एक अ णी और शायद सबसे उ ेज क था
जब यह कला का एक नया े था। जस समय यह एक नया े था यह कला प रणाम के चरम पर प ंच गई य क
कलाकार ने अपना समपण और वचार को उसम डाल दया। यह कला उ पाद और क पना श से भरपूर थी जसने
दबाव क भावना पैदा क और वतमान सफलता का आधार बनाया। इसके बाद दोन चरण आपस म जुड़े ए ह। वष
जो म य और शै क काल है और इसके क म कला कॉलेज द ली है। यहां सोमनाथ होरे शां त और सादगी
को यान म रखते ए श क होने क इस कला का अ यास कर रहे थे। जैसा क उ ह ने छा को एक असमान तभा
टम ौ ो गक म पूण तावाद ले कन ट क कला म कु छ हद तक ढ़वाद के पम श त कया और अपने छा
को उ ह ट नमाता बनाने के लए े रत कर रहे थे। तीसरे चरण को हम अ सीव और उ ीसव भाग म वभा जत कर
सकते ह। जब व भ संक ाय वतं समूह ट कायशालाएं दश नयां और कला मेले अ त व म आ रहे थे और अपनी
पहचान बना रहे थे।
. . अनु यु कला
आजाद के बाद पूरे भारत म उ साह क लहर दौड़ गई जहां उ ोग और कं प नय ारा पो टर और व ापन छापे गए।
जसम कला मक ढं ग से क गई प टग आधु नक मुक दमेबाजी का असर दखाती ह। जंगम
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. योग कर
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वतं ता के बाद कस भारतीय कला ने बातचीत को आधु नक नए प म शा मल कया। अपने वचार लख।
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आजाद के बाद आधु नक भार ाज वनोद रामचं न आट व फ ट ए डशन नई द ली टडड बुक एजसी ।
कला आंदोलन
सं कृ त नमाण और भारतीयता कला भारती खंड दो। पीयूष दै या नई द ली ल लत कला अकादमी ारा संपा दत।
डॉ. आर.ए. अ वाल कला वलास भारतीय छा कला का वकास अंतरा ीय काशन गृह मेरठ
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कपूर गीता. आधु नकतावाद कब था भारत म समकालीन सां कृ तक अ यास पर नबंध। नई द ली तू लका .
कु मार डॉ. सुनील भारतीय छप च कला आ द से आधु नक कल तक भारतीय कला काश एनबीट नई द ली ।
वमा अ वनाश बहा र भारतीय च कला का इ तहास। बरेली काश बुक डपो ।
वमा नमल भारतीय परंपरा और समकालीन जीवन। भारतीय कला अनजाने से। नई द ली। स ता
सा ह य मंडल ।
. उ े य .
सीखने के प रणाम
. प रचय
. . मधुबनी कला
. . ग ड कला
. . भील कला
. . तंज ौर कला
. . ॉल प टग
. . कालीघाट प टग
. वतं ता के बाद क आधु नक कला म लोक और जनजातीय कला का भाव . मुख कलाकार
. सारांश . अपनी ग त
क जाँच कर
. संदभ और आगे क री डग
. उ े य
इस इकाई के उ े य ह
स च कार मू तकार का वणन कर सकगे जनक कलाकृ तयाँ लोक और जनजातीय कला के पम
उभरी ह।
. सीखने के प रणाम
भारतीय लोक और जनजातीय कला के इ तहास और सं कृ त का उपयोग कर और अपने जीवन म इसका उपयोग कर।
लोक कला क तकनीक और वधा से ेरणा लेक र लोक कला का सृज न कर।
. लोक क उ प और वकास और
जनजातीय कला
कला और जातीय समाज का गहरा अंतसबंध है जब क मानव लोक क एक इकाई है और उसका अपना गठन है।
अनुभू त और चेतना का वकास समाज और सं कृ त से भी जुड़ा है। और कला को सामा जक सं कृ त अनुभू त का
अंग माना गया है। इस लए जब भावना के संके त कए जाते ह तो कला संके त सामने आते ह। लोक और आ दवासी
कलाएं कृ त से जुड़ी ई ह और इसक ा या करना संभव है या जसके मा यम से कलाकृ त संभव है।
भारतीय लोक और जनजातीय कला के इ तहास और वकास पर एक वहंगम अ नवाय है। एक साथी के पम
अपने सहज प म भारतीय च कला
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आजाद के बाद आधु नक मनु य के वकास के आ दम सं कार ा त होते ह। आ दम कलाकार ौ ो गक के साथ अ धक सहज ह य क
कला आंदोलन
उनके अमूत लोक भाव कट करण क ओर अ धक उ मुख थे। उ ह ने अनंत संभावना को आकार दे ने के लए
उसी के अनु प पृ भू म का उपयोग कया। जहां मानव क इस अ भ के पीछे प टग क उ प के ारं भक
ोत छपे ह। सरी ओर लोग अ यास क सहायता से रेख ा च और अमूतन का उपयोग करते ह। उनके जीवन
क कोमलता भावना और संघषपूण जीवन क जीवंत झांक । मानव कलाकृ तयां आज भी सुर त ह। शु से
लेक र आज तक मन क रेख ा और आकार टकटक और कषण के मा यम से अपनी भावना को करते रहे
ह।
गुफ ा म ागै तहा सक और ाचीन से लेक र बौ लोक और जनजातीय कला भाव काल तक च त कला का एक य बौ च कला से उ लेख नीय है जो
गुफ ा और मं दर म वक सत आ और इन मानवीय अ भ य को भ च म उ कृ ता के साथ कया गया है। अजंता के च म साम ी मु य
प से बौ धम से संबं धत है और जातक कथाएँ उनका क ह। बु क ज म लोककथा को बौ काल के बौ भ ु ारा खूबसूरती से च त कया
गया है प टग चार का मा यम बन गई। कला तीका मक है और लोक य भाषा भी अ भ का एक वाभा वक साधन था। अजंता प टग के साथ साथ
बाग गुफ ा प टग जनक मौ लकता और वशेषताएं ह। इनम बौ धम के साथ साथ समाज और लोक जीवन को भी तुत कया गया है। इस संबंध म एएल
ीवा तव का मानना है क बाग का च ण अंज ता के त कालीन च से मेल खाता है।
एक गुफ ा म अपना मुंह ढँ क ती रोती ई म हला च ब त भावुक कर दे ने वाले ह। इसी तरह च म च और भाव
क अभ लोककथा के पूववृ को मा णत करती तीत होती है। इतने कम समय म अगर हम अलग अलग
तरह क प ट स पर नजर डाल तो हम पाते ह क अलग अलग म ययुगीन प ट स क अपनी अलग अलग शै लयां ह
जनक एक अलग पहचान है। य द म यकालीन जैन शैली क बात कर तो इसम महावीर और लोक सरोकार से संबं धत
च मलते ह। एक अ य गुज रात शैली को जैन शैली माना जाता है। कु मार वामी क राय म म यकालीन लघु च कला
परंपरा ाचीन शा ीय परंपरा से अलग एक उ वग क लोक कला थी।
जस अनुपात म लोक पैटन और तीक को एपो ोफ क शैली म गढ़ा गया था उसे दे ख ते ए हम पाते ह क इन
च म मानव आकृ तय के चेहरे ह और एक ही शैली से बने ह। नाक ल बी और अनुपात से अ धक नुक ली होती
है। प र ध गाल क सीमा रेख ा को पार कर गई है। चेहरा एक ही पहलू और एक ही आकार कार से बना है। चबुक
चपट और छोट होती है आम क गुठली क तरह आंख करीब और बड़ी ख ची जाती ह। और वे दो व ारा र चत
ह। पुतली बनाने के लए इन व के बीच एक ब रखा जाता है जो अनुपातहीन और गोल होता है। आंख के चेहरे क
सीमा से बाहर और बाहर क ओर होने के कारण आंख म उ ता का आभास होता है। आकृ तय का अ तर कठोर
कमजोर और अ य धक अलंकृ त है। पेट का ह सा ब त बड़ा होता है और छाती ए बॉ सग से बनी होती है। पशु प ी
और मानव आकृ तयाँ कपास के पोखर या गुज राती कठपुतली से मलती जुलती ह। ये पांक न लोग क लोक
भावना क ओर वृ होते ह इस लए वे आम जनता क अ भ को दशाते ह।
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राज ानी च कला ने अपनी मौ लकता को बरकरार रखते ए लोक और जनजातीय कला क व श अ भ के
लए कई तरह के तौर तरीक का इ तेमाल कया है। इसक ेरणा मूल प से लोक कला है फर भी यह माना जाता है
क आ दपुराण जैसे ंथ ने राज ानी च कला का माग श त कया है। राज ानी च कला भी शाही दरबार से
ेरणा लेती है। दरबारी जीवन के साथ साथ संगीत और नृ य के व भ च का उ लेख कया गया है। इन प ट स ने
पट श से राग रा ग नय क रंगत को संपूण सं कृ त तरीके से नकालने का काम कया है। राज ानी च कला म इन
च ारा लोक आकृ तय के च ण म एक संपूण परंपरा के लोक च ह।
यही कारण है क इस प टग को इसके व श आकार प से अलग कया जा सकता है। इस से इसे अजंता के
हाथ इशार और अंग का उ रा धकार कहा गया है। अजंता के च वतः ही लोक मा यता क पृ भू म पर आधा रत
ह। व भ संघ म न मत कलाएँ वयं को लोक था से जोड़ती रही ह। इसी म म मुगल कला च कला म लोक
तीक को द शत कए बना शखर को नह छू सकती थी। मुगल शैली से संबं धत लोक पारंप रक च कार ने
राजघराने से संबं धत च म ानीयता को प रभा षत और त ब बत कया।
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पहाड़ी लोक कला का भी भारतीय च कला म मह वपूण योगदान है। भारत का भ लोक और जनजातीय कला भाव आंदोलन उस युग म पहाड़ी च कला
का वषय बन गया जसम यह पूरे दे श म फै ल गया। इस मामले म यह माना जाता है क वै णववाद राज ान और उ री भारत के मैदानी इलाक तक ही
सी मत नह था ब क पहाड़ी े तक भी प ंच गया और पहाड़ी च कार क ेरणा बन गया। बसोली शैली म वै णववाद क वचारधारा और भ भावना इस
शैली म दखाई दे ती है इसम व णु और उनके दस अवतार के च ह।
भारतीय कला के वकास म लोक कला का वशेष ान है। कला का वकास दरबार म पेशेवर कलाकार के हाथ से
आ है। ले कन गांव म लोक कला दै नक धा मक सां कृ तक पा रवा रक और आम लोग के घर आंगन अ श त
जा तय का वकास बना कसी धूमधाम के आ है। इ तहास शांत और वा य द प म चलता रहा है य क राज
दरबार म जन कलाकार को रखा गया है उनक पृ भू म भी सामा जक और लोक सां कृ तक रही है। इस लए लोक
तीक क उ प भी शाही दरबार से संबं धत च म वाभा वक है।
भारत म लोक कलाकार ारा लोककथा क रचना को ृ ा के सहयोग से अलंकृ त पम तुत कया गया है।
जसके अंतगत भारत के व भ रा य म व भ लोक कलाएँ मौजूद ह जैसे महारा क रंगोली और आज के संदभ
म वाल कला गुज रात क सा थया और राज ान क लोक य लोक कला मंदाना चौक पूण उ र दे श म
सांझ ी और बहार म अहपन और मधुबनी बंगाल क अ पना और गढ़वाल और अ मोड़ा क अपना और
म ास कोलम आ द। इन पारंप रक लोक कला म लेख न जमीन पर घर के दरवाजे पर और अंदर कया जाता है।
ाकृ तक रंग और उनक रंगीन साम ी के साथ पूज ा ल आ द। जो कसी शा ीय या अकाद मक शैली म नह कया
जाता है ब क परंपरागत प से सीखने क या को मब तरीके से द शत कया जाता है। लोक कला का
वकास लोग से सीखने के बाद ही होता रहा यह कला सरल प म कट होती रही है।
लेख क भव भू त का यह कथन लोक कला और कलाकार के संदभ म एक मह वपूण वचार तुत करता है जो हम
द शत करते ह वे जानते ह क हम उ ह स करने के लए यह रचना नह बना रहे ह । लोक कलाकार आलोचक क
है सयत और अ त व को वीकार नह करता लोक कलाकार बना कसी वाथ के आ म सुख करता है। लोक य
लोक उ सव लोक कला को कस कार मह वपूण ान दान करते रहे ह इसे दे ख ते ए हम दे ख सकते ह क दे श
के व भ योहार पर अनेक कार के शुभ काय कए जाते ह। और इन शुभ योहार को स करने के लए अनेक
कला का वकास कया गया है जैसे गोबर और म क मू त बनाना
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रंगोली महारा क एक लोक य लोक कला है। गुज रात म इसे राज ान म सा थया और मंदाना उ र दे श म चौक
पूण बहार म अहपन बंगाल म अ पना गढ़वाल म अपना और द ण भारत म कोलम कलामेझ ुथु के नाम से जाना
जाता है।
सूख े रंग क साम ी से व भ कार के लेख न का नमाण कया जाता है जसम लोक और धा मक योहार का दै नक
जीवन म उपयोग कया जाता है और साथ ही शुभ अवसर पर आधार के प म भू म का उपयोग कया जाता है।
आलेख न और अलंक रण म मु य प से फू ल क प य वा तक ओम और ॉस लो पग लाइन के मा यम से
उम संके त का उपयोग करके क याण क कामना क जाती है। इसका मह व उनक लोक परंपरा और लोक
जीवन अलंक रण से होता है।
और आज के संदभ म रंगोली के मा यम से मोर गणेश और भारतीय रा वाद जैसी कई आकृ तयां खुद ई ह। भारत
का तीक अशोक तरंगा गांधी आ द वषय के साथ ये लोक कलाकार वतमान समय म सां कृ तक वातावरण का
प रचय दे ते नजर आते ह। इन लोककथा ारा भू म को सजीव बनाने के लए सुंदर ढं ग से बनाया गया अलंक रण।
कोई शा ीय प त नह है इसके वपरीत परंपरा के प म जारी यह शैली लोक अतीत से भा वत और श त है।
ये लोक काय पूरे भारत म लगभग हर घर म कए जाते ह। य प प और आकार और अंक न शैली म अंतर प
से दखाई दे ता है इस लोकगीत के मा यम से भू म पूज न चौक पूण को धा मक भावना से ेरणा लेक र ा से जगाया
जाता है। इस परंपरा का उ े य वंशानुगत म म पाया जाता है जसका मूल उ े य एक सुंदर और सुलभ माग बनाना
और आ या मक और परो अ धकार क पूज ा करना है।
. . वाल कला
म क एक साधारण द वार पर सतह। कभी कभी इन च म कु छ लाल और पीले रंग के च ह लगाए जाते ह लोक और जनजातीय कला भाव
सफे द रंग का महीन पाउडर चावल को पीसकर बनाया जाता है। इन लोक कलाकार ने मु य प से या मतीय
आकृ तय को अपनाया है और अपने च को ान दया है। आज के प र े य म वाल लोक कलाकार ारा
सामा जक वषय पर लगातार प टग बनाई जा रही ह।
. . मधुबनी कला
. . ग ड कला
आजाद के बाद आधु नक दाश नक और ववेक को समझने वाले कलाकार अपने कौशल के मा यम से जानवर को रंग दे सकते ह और कृ त को
कला आंदोलन
रंग दे ने क उ कट भावना कर सकते ह। उनके ारा बनाई गई प टग म धा रय को कह ले जाया जाता है और
छोटे छोटे ब को अचानक लया जाता है। इन च के प या मतीय आकृ तय के साथ साथ एक वतं आकार
म पांत रत होते तीत होते ह जनम कोई अकाद मक और शा ीय अनुपात नह दखता है। च का मु य वषय
सामा जक सां कृ तक पौरा णक मौसम से संबं धत फसल क बुवाई और कटाई पर आधा रत है।
ाकृ तक रंग का योग मु य प से इनके ारा कया गया है और वतमान तकनीक पो टर रंग या कपड़े क सहायता
लेने के बाद भी इन कलाकार ारा ए े लक रंग का योग कया गया है।
च . ग ड च कला
. . भील कला
भारत का एक अ य मुख आ दवासी समुदाय भील जनजा त म य दे श गुज रात राज ान और महारा से संबं धत
है। उनके बारे म हम छोटे उं डारी और बड़े उं डारी भील आ दवा सय के कलाकार पर यान क त करते ए झाबुआ
म य दे श और राज ान म उदयपुर के पास दे ख गे। जो अपनी कला के मा यम से अपनी पारंप रक सं कृ त का प रचय
दे ते ह। म य दे श त झाबुआ के भील म पथौरा प टग एक जो अ य धक स मा नत है। पठाड़ा के घोड़े उदार
होते ह ज ह पारंप रक च कार ारा च त कया जाता है और उ ह भगवान को अ पत कया जाता है। जैसे जैसे
कहानी च लत होती गई लोग धम राजा के शासन म हंसना गाना और नाचना भूल गए। उसके बाद राजकु मार
पथौरा घोड़े पर सवार होकर दे वी हमालय के धाम म चले गए
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हरदा। दे वी दे वता ने उनक हँसी गीत और नृ य उ ह लौटा दया। भील क उ प क पौरा णक लोक और जनजातीय कला भाव गाथा पथौरा भ
च कार म च त क गई है। भील जा त के ऐ तहा सक जीवन से संबं धत येक संग को न न ल खत तीक का उपयोग करके च त कया गया है
सूय चं मा पशु पेड़ क ड़े न दयाँ मैदान पौरा णक दे वता भलावत दे व बाराम य जनके बारह सर ह एकल आ द।
ोत https en.wikipedia.org wiki Bhuri Bai media File Sarmaya Arts Foundation Bhuri Bai
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. . तंज ौर कला
द ण भारतीय लोक कला के लोक य प म तंज ौर प टग धा मक वषय और पांक न क एक झांक दशाती
है। इस लोक कला म रंग बरंगे प र चटाइय और कांच के टु क ड़ का योग कया जाता है जो इ ह और भी
आकषक बनाते ह। व ान का मानना है क इस कला क ापना व शता द म चोल शासन काल म ई थी।
. . ॉल प टग प च
. . कालीघाट प टग
वतं ता ा त के बाद एक कला चेतना का उदय आ। जसम भारतीय परंपरा पौरा णक संदभ ामीण
आ दवासी और लोक सं कृ त के वषय से संबं धत कला जगत म पुनजागरण आ। लोक कला को आधु नक कला
के प रवेश म ान मलना शु आ और उ ह ो सा हत कया गया। लोक कला का स मान लगभग सभी े म
ा पत कया गया है। वतमान आधु नक युग म हर चीज का आधु नक करण दे ख ने को मलता है जसम लोक कला
क पारंप रक शैली व तृत और प र कृ त पम मक प म उभर रही है। लोक कला का सां कृ तक पम
दशन कसी दे श या रा य क लोक आ मा को वहां तुत करने म मह वपूण भू मका नभाता है। इन सभी त य से यह
होता है क लोक कला पुन ान और जनजागरण का वशेष उदाहरण समाज म त ब बत हो रहा है।
आजाद के बाद आधु नक कई गाँव म गए जहाँ वे कु हार बुनकर गु ड़य और खलौना बनाने वाल आ द क रचना को दे ख ते समझते और
कला आंदोलन
रेख ां कत करते थे। ामीण लोक कला का अ ययन करके उ ह यह पता चला। क इन पारंप रक ामीण कलाकार
को रह य के रंग आकार और छं द वतः ा त हो गए ह। ले कन उसका खोजी मन असंतु रहा। उ ह ने और भी आगे
बढ़कर रेख ा आरेख ण प त का उपयोग करते ए सपाट रंग क तकनीक को एक कृ त करके एक नवीन शैली वक सत
क । उ ह ने लोक खलौन म यु आकृ तय और त व को अपनाकर च त कया जै मनी राय क प टग आज पूरी
नया म फै ली ई ह। तीन पुज ारी बैठे म हला मां और ब े संथाल बाला नीला आकाश ाथना साधु ब ली
और झ गा रामायण कृ ण लीला और ईसा मसीह क उ लेख नीय त वीर नेशनल गैलरी ऑफ मॉडन आट नई द ली
म संर त ह। .
ोत https en.wikipedia.org wiki Jamini Roy media File Two cats holding a large झ गे .jpg
इसके साथ ही लोक जीवन पर आधा रत वषय से नंदलाल बोस और बनोद बहारी मुख ज को ेरणा मली। इस संदभ
म य द अ य मुख कलाकार का नाम लया जाए तो मनीषी डे सुधीर रंज न ख तागीर अ सत हलदर राम नाथ
च वत मुकु ल डे आ द ने पारंप रक कला को पुनज वत करने के मह वपूण यास कए। जनके मा यम से लोक कला
से ाचीन कला क वशेषता को आ मसात कर लोक वृ य को अपनाने का यास कया गया। शालोज मुख ज
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चावड़ा र थन पा ा और नीरोद मजूमदार कलाकार के प म जो नए झान को वीकार करते ह लोक और जनजातीय कला भाव लैट आयामी
पांक न के मा यम से तुत कए जाते ह लोक शै लय से भा वत होते ह और लोक परंपरा से भा वत होते ह ज ह द ण भारतीय मुख कलाकार
ारा जाना जाता है।
ए.ए. अमेलकर राज या प दराजू ी नवासुलु ज ह ने त मलनाडु के लोक टे राकोटा क बारीक रेख ीय प तम
काम कया। इसी म म लोक तीक को आ मसात कर उनक कला मक तमा म लोकायत के साथ संबंध
ा पत कया जाता है। जे। सु तान अली का काम आ दम और आ दवासी है कला ोत क गहरी छाप दखाई
दे ती है। मु य प से उनके ारा बनाए गए मुख ौटे उनक लकड़ी क न काशी म यु सरलीकृ त तीक के पम
दखाई दे ते ह।
से क अव ध म वजय हागरगुंडी पी. वजय खेमराज खोड़ी दास परमार आरडी रावल सर वती
वासवराजू कु मार मंगल सहजी आ द मुख कलाकार थे ज ह ने लघु शैली के प म पारंप रक शैलीगत डजाइन
का उपयोग कया था। इन कलाकार ने व श आलंक ा रक च म जीवन के भारतीय मू य से भा वत धा मक
और धम नरपे वषय को रखा। और का दशक एक ऐसा दशक था जसम अमूत शैली हावी हो गई।
वह कु छ मुख कलाकार लोक पैटन के आधार पर रेख ीय प त से तीक का च ण कर रहे थे। मु य प से ब
नारायण के च जनका घनी रेख ा के ाकृ तक करण के कारण वशेष मह व है जसने लोक च कला म ऐसी
आ मा ेरणादायक क पना का नमाण कया जो लोककथा और पौरा णक कथा को दशाती है।
आजाद के बाद आधु नक कलाकार यो त भ भगवान कपूर ल मण पाई डी. ब शीला ओडेन दे वयानी कृ णा सुनील माधव सेन जयराम
कला आंदोलन
पटे ल मकबूल फ़दा सैन पी.
खेमराज नवे दता परमानंद कमला म ल रतेश दास गु ता प रतोष सेन और गौतम वाघेला क कलाकृ तय को
लोक और आ दवासी भाव अतीत के ोत म तीक आ द के मा यम से दे ख ा जाता है। व भ आव धक खंड म
अतीत से ेरणा के साथ साथ समकालीन संदभ भी शा मल ह। . इसी म म अ य समकालीन कलाकार के च म
हम तं मं क झलक भी दे ख सकते ह।
लोक और आ दवासी कला क भावना को परंपरा से जुड़े कलाकार के डजाइन ारा ढ़ता से प रभा षत कया गया
है बीरेन डे जीआर संतोष आर. राजैया मोह मद यासीन ओम काश शमा व नाथ मुख ज जय झरो टया सुनील
दास सोमनाथ होरे भूप दे साई और जीवन अदलजा। कलाकार क सूची म कु छ अ य समकालीन नाम जो अपनी
कला म लोक तमान का आधार रखते ह पारंप रक मू य से ेरणा लेक र आधु नकता का प रचय दे ते ह जनम
जयदे व ठाकु र माधुरी पारेख और मंज ीत बाबा आ द शा मल ह। उनके च म सरलीकृ त प ह। इसके साथ ही कु छ
अ य कलाकार के नाम भी उ लेख नीय ह ज ह ने लोक और आ दवासी कला तकनीक से ेरणा लेक र रचना मक
दशन कया। वे ह एसएल पाराशर धनराज भगत ए. रामचं न दे वयानी कृ णा सतीश गुज राल गोगी सरोज पाल
आ द।
च कार के साथ साथ मू तकार भी भारतीय लोक और जनजातीय कला शै लय से भा वत रहे ह। संदभ म मुख
मू तकार राम ककर बैज मीरा मुख ज के जी सु म यम जानक राम नंद गोपाल मृण ा लनी मुख ज और ल मण गौड़
आ द शा मल ह। उ ह ने सीमट धातु का टग मी डया खोई ई मोम या टे राकोटा और टे राकोटा राहत कांच
च ण आ दवासी और वे ग फाइबर और म त मू तकला तकनीक के मा यम से लोक परंपरा को उनके मू त
श प म शा मल कया गया है।
तुत इकाई के मा यम से भारतीय लोक और आ दवासी कला क पृ भू म और उसके सां कृ तक संदभ को जानने का यास
कया गया है। लोक कला शैली जो भारत के व भ े म फली फू ली और व भ कलाकार के साथ गाँव कई प का
उ लेख करते ह। जनक थीम लगभग एक जैसी होती है जो उनके कबीले समुदाय और दै नक कमकांड को दशाती है। मु य
वषय भारतीय पौरा णक मानदं ड से एक नराकार श और पा के प म आ ान करते ह। साथ ही प टग क डजाइन और
शैली उ ह अलग बनाती है इसी म म लोक और आ दवासी कला के आधु नक कला प और उनक आकषक शैली क छाप
क भी काफ व तार से चचा क गई है। आधु नक भारतीय कला के मुख च कार और मू तकार को अपनी कलाकृ तय म
लोक और आ दवासी कला को अपनी गत शैली के प म इ तेमाल करते दे ख ा जाता है। जससे पार रक कला को
आदश मानकर समकालीन कला को एक मह वपूण दशा मली है जसने एक मह वपूण ान रखा है।
. अपनी ग त क जाँच कर
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कह आधु नक मू तकार के बारे म अपने वचार तुत कर जनक कृ तय म लोक और जनजातीय कला का भाव दखाई
दे ता है।
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सं कृ त नमाण और भारतीयता कला भारती खंड दो। पीयूष दै या नई द ली ल लत कला अकादमी ारा संपा दत।
डॉ. आर.ए. अ वाल कला वलास भारतीय छा कला का वकास अंतरा ीय काशन गृह मेरठ गरोला वाच त
भारतीय च कला का सं त इ तहास लोकभारती काशन इलाहाबाद । http nationalcraftsmuseum.nic.in
https knowindia.gov.in hindi culture and heritage folk and tribal art.php
जैन गुलाबचं भारतीय च कला और श ण साम ी मेरठ जैन गुलाबचं लोक कथा व ान मंगल काशन जयपुर
सह डॉ ममता य कला या लोक कला के मूलत व एवं स ांत जयपुर राज ान हद ंथ अकादमी ीवा तव
एएल इं डयन आट। इलाहाबाद कताब महल स सेना डॉ. एस.एन. भारतीय च लका सेक ड सं करण मनोरमा
काशन
वमा नमल भारतीय परंपरा और समकालीन जीवन। भारतीय कला अनजाने से। नई द ली। स ता सा ह य मंडल
।
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और ट नमाता
. उ े य
. सीखने के प रणाम
. प रचय
. ट बनाना
. . टकट ल पय और पांडु ल पय का अ यास
. . पा डु ल पय का नमाण
. . भारत म मु ण क ारं भक त
. आइए सं ेप कर
. अपनी ग त क जाँच कर
. संदभ और आगे क री डग
. उ े य
इस इकाई के उ े य ह
. सीखने के प रणाम
. प रचय
इस इकाई म हम इस बात पर चचा करगे क ट बनाने क कला ने वतं ता के बाद के भारतीय कला प र य को कै से
भा वत और त ब बत करना शु कया जसके मा यम से मुख कला सं ान का समेक न आ और साथ ही साथ
मु ण क कला क पृ भू म और इसक मह वपूण भू मका वतं ता के बाद आधु नक कला म मु ण। और इसका
व तार कै से आ है या हो रहा है। कला सं ान पर आधु नक वृ य का भाव ट क कला कै से ई और कै से
भारत के मुख ट कलाकार आधु नक कला को संद भत करते ह।
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मु ण कला क पृ भू म क चचा करते समय यह यान म आता है क भारत क आधु नक कला और इसक पृ भू म
का वणन वतमान पा म के व भ खंड म कया गया है अतीत म यह पाया गया है क कला क उ प मु ण
का संबंध ाचीन सं कृ त और स यता से रहा है जसके उदाहरण गुफ ा म उपल ह। मानव ने कला को अ भ
के मा यम के प म इ तेमाल कया और इसके मा यम से उ ह ने अपने वचार को कया जसका प
भ च शलालेख मुहर मु ा आ द के सा य म पाया गया है। भारतीय ागै तहा सक लेख और छ वय के
व ान के पयवे क म से। एलन होटन ै डक टु अ ट पगट ो डीएच गॉडन एडम म टर एंड मसेज एफआर
अल चन सीए स वे लॉड पंचानन म ा और मनोरंज न घोष मुख नाम ह। ै डक क पु तक ी ह टो रक प टग
और पगट क कताब ी ह टो रया इं डया तुत वषय को ामा णकता दे ती तीत होती है। भारतीय ागै तहा सक
च क ाचीनता का व ेषण पहले तुत कए गए खंड और इकाइय के मा यम से कया गया है। ज ह कह न
कह इ तहासकार ने अमे रका और यूरोप के समक स कया है। इसके उदाहरण ह भीमबेठका म य दे श
और रायगढ़ बहार के च धरपुर सघनपुर होशंगाबाद और मजापुर के लेख ु नया कोहबर और भदे रया आ द ुप
ह।
स ु युग क स यता म सामा जक सरोकार वहाँ के दै नक जीवन म यु होने वाली व तुए ँ रहे ह। जो छपाई क कला
क ओर इशारा करता तीत होता है य क आधु नक समय म जहां शास नक काय म डाक टकट का योग दे ख ने
को मलता है वह सधु काल क स यता म भी उस समय म यु मु ा और डाक टकट इ ह टु क ड़ के समान पाए
जाते थे। जनम से अ धकांश लाह ले चीनी म के बरतन और हाथीदांत से बने टु क ड़ पर उ क णन के पम
पाए गए ह और कु छ सं त लेख तांबे के टकट पर भी पाए गए ह जो उभरा आ आंक ड़े और चौकोर आकार क
ल पय को च त करते ह। इसके संबंध म पता चलता है क सधु काल क स यता क ल प ईसा पूव म
वक सत ई थी। और इसक अंत रम अव ध ई वी पूव मानी गई है। सधु काल क स यता के नमूने और अवशेष
पा क तान और भारत के व भ ांत म खोजे गए ह। जसम मु ा और टा के पम ट संबंधी सा य ा त ए
ह ज ह हम रा ीय सं हालय म दे ख सकते ह।
युग क ओर उ मुख होने के कारण यह पाया जाता है क वहां क परंपरा मौ खक ान या मरण पर आधा रत थी
जसके तहत का धा मक परंपरा और सा ह य को वंशानुगत और पारंप रक म म मौ खक प से आगे बढ़ाया गया
था। तीसरी शता द ई वी के दौरान स ाट अशोक के शला लेख म ा ी द ल प का उपयोग कया जाता है जो
पूरे उपमहा प म पाया जाता है। इससे भारत म कई ल पय का वकास आ और इन ल पय क शाखाएँ म य
ए शया त बत और द ण पूव ए शया म फै ल ग । दे वनागरी ल प ाचीन ा ी ल प से वक सत ई है। गु त और
कु टल ल पय ने भी इसके वकास म योगदान दया है। यह मूल प से एक उ र भारतीय ल प है ले कन द ण
भारत म कु छ ान पर इसका योग भी कया जाता है। आठव शता द के आसपास इसके योग के माण मलने
लगते ह। द ण म इसे नंद नगरी कहा जाता है। दसव शता द तक ल प म पूण ता थी। दे वनागरी श द का योग
पहली बार नौव शता द म आ है। दे वनागरी का शा दक अथ दे व ल प या दे वता के शहर क ल प है। नगर म
च लत होने के कारण इसे नागरी भी कहा जाता था
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ट बनाना और ट करना
ा ण। नगर म इसक ापकता के कारण शहर श द इसक पहचान बना। काशी को दे वनागरी कहा जाता है। चूं क
भारत के नमाता
यह ल प इस े म अ धक च लत थी इस लए इसे दे वनागरी भी कहा जाता है। डॉ. उदयनारायण तवारी का मत है
क सं कृ त भाषा को दे वभाषा कहा जाता है इस भाषा को लखने के लए जस ल प का योग कया जाता था उसे
दे वनागरी कहा जाता था। यह ल प व शता द तक प रप वता पूण प से ा त हो चुक थी और व शता द
तक ल प अपने चरमो कष पर प ँच गई थी ल प को सरल बनाने के लए उसम प रवतन और संशोधन कए गए।
. . पा डु ल पय का नमाण
ल प वकास के म म भारतीय इ तहास म पा डु ल पयाँ पाई जाती ह। जसका सबसे ाचीन उदाहरण ताड़ के प
पर लखी पांडु ल पय के प म है। पहली या सरी शता द म बोध स और कु सुमांज ल ट का नामक
पांडु ल पय का नमाण आचाय रामे र वज कृ त ने ताड़ के कागज पर कया है। वह पा ल भाषा क ा ी लपम
र चत बौ ंथ उपल ह य क ार क पा डु ल प के योग के पमउ ंथ म पाली भाषा का योग कया
गया है। और उ ह प लकड़ी बांस क टाइल और धातु पर उके रा गया था। इसी म म छठ शता द म जापान के
हो रयुज ी मठ म बौ ंथ ापार मता दयसू और उ ांश वजय धरणी ा पत है जसके संबंध म यह
म य भारत से लया गया है।
. . भारत म मु ण क ारं भक त
आजाद के बाद आधु नक युग यादातर मोनो ोमै टक थे ले कन लथो ाफ रंगीन थे। मु ण के लए मु णालय मुंबई ढाका पूना लखनऊ
कला आंदोलन
कोलकाता म ास द ली मैसूर और पंज ाब म ा पत कए गए। आधु नकता के े म म वेश करते ए राजा र व
वमा ने खुद मुंबई म एक अलग लथो ा फक ेस घाटकोपर क ापना क । अपने च क बढ़ती मांग को छापने
क मदद से वह आसानी से अपने च क तयां ओलेओ ाफ के प म आम जनता तक प ंचा सकते ह।
से भारतीय कला जगत से जुड़े कलाकार के मन म रचना मकता के बीज उभरे ह। और वे मु ण कला के
रचना मक प को एक रचना मक अ भ के प म दे ख ने लगे तकृ त के बजाय। म कला भवन क
ापना के बाद मु ण ा फक कला को कला मक अ भ का एक अ भ अंग माना जाता था और कलाकार ने
इस प त म उ साहपूवक काम कया। मु य प से जाने जाने वाले मुख कलाकार राम नाथ च वत मन भूषण
गु ता और व प बॉस ह। कसके ारा वुडकट लीनो कट और समामेलन को मु य मा यम के प म चुना गया।
इसके साथ ही कई मुख कलाकार को छपाई कला क राह पर चलते ए दे ख ा जा सकता है। जब हम नंदलाल बोस
और भारत के अ य मु ण क के बारे म बात करते ह तो हम पाते ह क जेडी ग धलेक र और वाईके शु ला लखनऊ
टग कू ल म एल. सेन और लाहौर टग कू ल म एआर चुगताई आ द।
. पो ट म ट बनाने क भू मका
आजाद के बाद क आधु नक कला म कला क भू मका के दशक म मुख ता से दखाई दे ती है। जब च कला
और मू तकला के साथ साथ ा फक कला का भी वकास आ। च कारी और मू तकला क तरह ही कलाकार ने
ा फक कला को अपनाया। जसका मु य उ े य वतं वधा म मुख ता से काम करना था गत रचना मकता
को इसके ट क च भाषा म पांत रत कया गया था। कोलकाता के हर और च साद उन मुख कलाकार म
से थे ज ह ने इस दशक म ट प टग को पूरी तरह से अपना लया था। उनक लकड़ी मु त प टग म गत शैली
के दशन ह जनके मु य वषय ामीण य नृ य और लोक सं कृ त से भरे ए तीत होते ह। सरी ओर हर के
च म बतन बनावट क ब लता दखाई दे ती है।
ट बनाना और ट करना
के दशक म ट क कला म कलाकार क च ती सा बत ई और नए योग सामने आए। के दशक
भारत के नमाता
म सॉ ट ाउं ड या के योग के प म जोरदार योग के उदाहरण सामने आए जसके लए मु य योग धम
कलाकार कं वल कृ ण और दे वयानी कृ ण सा बत ए।
जब क लेख क क राय कला पर नवीन काश डालती है जगमोहन चोपड़ा द ली म आगे बढ़ते ह। सुनील कु मार
अपनी पु तक म वतं ता के बाद तीन चरण म आधु नक भारतीय ट प टग के वकास को दे ख ते ह और से
तक पहला चरण लखते ह जसे कं वल कृ ण ने द ली म शु कया था। यह चरण ट कला म एक अ णी
और शायद सबसे उ ेज क था ऐसे समय म जब यह कला एक नया े था छपा ारा कला और इसके व तार के
साथ यह कला प रणाम के चरम पर प ंच गई। यह कला उ पाद और क पना क श से भरा था जसने दबाव क
भावना पैदा क और वतमान सफलता पठार का आधार बनाया।
आजाद के बाद आधु नक दशनी सतंबर के महीने म आयो जत क गई थी। समूह ने द ली मुंबई लखनऊ हैदराबाद और चंडीगढ़
कला आंदोलन
स हत भारत के व भ े म दश नय का आयोजन कया।
कं वल कृ णा
ट बनाना और ट करना
एटली के तहत ल लत कला। वदे श लौटने के बाद कृ णा ने द ली के श पी च समूह के अ य क भू मका भी
भारत के नमाता
नभाई और के बाद वदे श या ा के साथ साथ वदे श म कई दश नयां करना जारी रखा। ये मु य प से रोम
नॉव टॉकहोम कोपेनहेगन लंदन रोमा नया द हेग प म जमनी आ द ह। कं वल कृ णा को त त पुर कार से भी
स मा नत कया गया है उनके ट कृ त के त ेम और गत शैली के प म एक गहरी भावना को दशाते ह।
उ ह ने स कम त बत हमालय के पवतीय े का शानदार दौरा कया है जो उनक कलाकृ तय म प रल त
होता है। व भ रंग योजना के मा यम से उनके काम म एक अनूठ चमक और काश द शत होता है जो एक
अ व मरणीय ग तशीलता सा बत ई। वयं कं वल कृ ण के अनुसार काश हम का शत करता है अंधकार हम सचेत
करता है। या काश अँधेरे क गोद म व ाम नह कर रहा है काश क तरह म भी उस अंधेरे के बारे म सोचता ं
जो हम पर चमक रहा है । क मीर यु के दौरान कं वल कृ ण ारा एक ृंख ला बनाई गई थी। इस सीरीज से जुड़ी
त वीर र ा मं ालय ने म खरीद थ ।
सोमनाथ होरे
सोमनाथ होरे का ज म म वतमान बां लादे श म चटगांव नामक ान पर आ था। बचपन से ही कला म च
रखने वाले सोमनाथ ने म कोलकाता आट् स कॉलेज से कला का ान ा त कया। से तक द ली
आट् स कॉलेज म ा फक वभाग के मुख होने के साथ साथ उ ह ने बड़ौदा के व ज टग ोफे सर के प म भी काम
कया। आट् स कॉलेज जसके बाद वे म कला भवन शां त नके तन के तहत और कु छ समय के लए ा फक
वभाग के अ य बने। उ ह ने व भारती व व ालय के मुख क ज मेदारी भी संभाली और तक सेवा
करते रहे। सोमनाथ कई दश नय म भागीदार रहे ह और उ ह पुर कार से स मा नत कया गया है। और
म लूगानो वा षक ा फक दशनी के अलावा टो यो म आयो जत वा षक दशनी का वे नस
वा षक का साओ पाउलो वा षक म नई द ली म पहली अंतरा ीय ा फक दशनी उ ह ने वदे श
म कई दश नय का दशन कया है। दे श मु य प से यूगो ला वया पोलड चेक ो लोवा कया बु गा रया और म
शा मल ह। सोमनाथ को तीन बार और रा ीय पुर कार से भी नवाजा जा चुक ा है। से वे
ल लत कला अकादमी के सद य भी रहे ह और उनक कृ तय को वदे श म सं हत कया गया है। सोमनाथ क कला
पर बंगाल के अकाल का ब त गहरा भाव है। उ ह ने ा फक पटर के प म उ कृ योगदान दया है। उनक कला
और उनसे सीखने क कला से े रत होकर कई ा फक च कार ने भारत म एक मह वपूण ान बनाया है।
कृ णा रे ी
द ण भारत म ज मे कृ ण रे ी क कला श ा नंदलाल बोस और वनोद बहारी मुख ज जैसे कलाकार के त वावधान
म शां त नके तन म ई।
फर रे ी पढ़ने के लए लंदन के लेड कू ल गए। और वहाँ से उ ह ने छाप कला तकनीक का अ ययन कया और
न क़ाशी मू यांक न म महारत हा सल क । कृ णा रे ी का तकनीक वकास भारतीय ट उ ोग म योगदान के पम
उभरा है। इमेज री ाफ के साथ साथ फोटो सथे सस आ द म नई तकनीक का उनका उपयोग मुख ता से दखाई दे ता
है। अपने ट के बारे म उ लेख करते ए ाण नाथ मागो लखते ह उनक कु छ ट छ वयां ब त बो और
श शाली ह और उनके कु छ त ब बत और पारदश डज़ाइन श शाली या म त क बनावट से तरल और
काब नक डज़ाइन तक दे ख े जा सकते ह। वह कृ त क नकल नह करता ब क उसक ऊजा और श क ा या
वभ दशा मक रेख ा या ऊ वाधर वकृ तय या गोलाकार और स पल श शाली रै खक ग तय ारा क जाती है।
वह संरचना भरता है
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आजाद के बाद आधु नक व तृत रेख ीय ववरण और बनावट म रंग क व वधता के साथ उनक त वीर म म शंसा क भावना महसूस करता
कला आंदोलन
ं और फर आनं दत होता ं जसे करीब से दे ख ा जाता है।
यो त मानशंक र भ
भावनगर गुज रात म ज मे यो त भ के नाम से लोक य महाराजा सयाजीराव व व ालय बड़ौदा म अ ययन
कया। भ को से और से म भारत सरकार से रा ीय सां कृ तक छा वृ ा त करने का
सौभा य ा त आ और इटली सरकार से अंतरा ीय छा वृ भी ा त ई। जसके मा यम से वे छपाई क कला का
अ ययन करने म स म ए और म यूयॉक म फु ल ाइट कॉलर शप ा त क । उ ह ने म
रॉकफे लर फाउं डेशन ै वल ांट और म जेडीआर थड फाउं डेशन अवाड जैसे अ य अनुदान और पुर कार
ा त करना जारी रखा। उ ह ने दे श और वदे श म कई दश नयां क ह।
वतमान इकाई के मा यम से हमने भारतीय टमे कग कला और कलाकार के बारे म चचा क । आधु नक काल के आंदोलन म
च त कलाकार का मह व और भू मका आजाद के बाद अपने चरम पर कै से प ंच गई। इस इकाई म व भ टमेक र और
उनके काय पर चचा क गई है। व शता द के अंत और व शता द क शु आत म खोजा गया मा यम शै णक श ा
और तकनीक ान के लए कला व ालय म समे कत आ। आधु नक कला कै से आंदोलन सा बत होती है और यह समकालीन
कला को कै से संद भत करती है। साथ ही साथ यह भी व ेषण कया गया क कलाकार ारा मु त कला के चार सार म
कला समूह का नमाण और इसके मा यम से मु त कला का चार सार और उसे कला मक अ भ का सम व प दान
करना।
. अपनी ग त क जाँच कर
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ट मे कग क पृ भू म का सं ेप म वणन कर।
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कपूर गीता. आधु नकतावाद कब था भारत म समकालीन सां कृ तक अ यास पर नबंध। नई द ली तू लका
.
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ट बनाना और ट करना
इकाई यात च कार और भारत के नमाता
भारत के मू तकार
. उ े य
. सीखने के प रणाम
. प रचय
. योग कर
. अपनी ग त क जाँच कर
. संदभ और आगे क री डग
. उ े य
. सीखने के प रणाम
वतं ता के बाद के भारतीय आधु नक कला के स च कार और मू तकार के बारे म व ास के साथ चचा
कर।
आधु नक युग के कला मक प पर सहपा ठय और श क के साथ चचा कर।
. प रचय
कला और कलाकार क आधु नक प रवतनकारी सोच और उसका दशन करने क वृ आधु नकता क नशानी है।
जैसा क इकाई और म चचा क गई है बीसव शता द म आंदोलन क एक प रचया मक कला भी रही है जसे
आधु नक कला के प म संबो धत कया गया था जसम भाववाद उ र भाववाद फ़े वज़म यू ब म
अ तयथाथवाद अ भ वाद और अमूत कला का मक प रवतन आ। परंपरा दखाई दे ती है। इस लए इन
प रवतन को दे ख ते ए वशेष प से भारतीय आधु नक कला म च कार और मू तकार का एक मह वपूण ान है।
जो भारत के आधु नक युग के कला मक पहलु का प रचय दे ता है जनक शैली म अजंता जैन राजपूत
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आजाद के बाद आधु नक मुग़ल टू कं पनी काल ने पूव तारीख के प म कई आधु नक कलाकार को भी े रत कया है जसके प रणाम व प
कला आंदोलन
आधु नक च कार और मू तकार ने भारतीय कला से ेरणा लेक र अपनी समझ और गत शैली वक सत क है।
इस इकाई के मा यम से हम इन ब पर चचा करने जा रहे ह वतं ता के बाद के आधु नक कला आंदोलन म
आधु नक च कार और मू तकार ने या भू मका नभाई और उनके काम म या बदलाव आए और उ ह ने आ मसात
करके कौन से नए बदलाव कए
युग
इस समूह म वेश करने वाले सबसे पहले कलाकार थे नरोद मजूमदार शुभो टै गोर गोपाल घोष प रतोष सेन र थन
म ा ाण कृ ण पाल और दोष दासगु ता और कमला दास गु त। इस समूह क पहली दशनी म मुंबई म
आयो जत क गई थी और अ य कलाकार भी समूह म शा मल ए। एक अ य समूह के प म मुंबई के तभाशाली
युवा कलाकार ारा अ भनव वचार से े रत होकर ग तशील कलाकार समूह क ापना म FN सूज ा
एमएफ सैन के . चौथा वग सीधे ग तशील कलाकार समूह से संबं धत था। अतीत म भारतीय कला परंपरा और
रा ीयता के वचार को इसक कला म मुख ता से रखा गया था। आजाद के बाद यह वचार एक नई दशा म आगे बढ़ने
लगा यह वग प मी कला सं कृ त और योग से े रत था। समकालीन कला और कलाकार जो मु य प से पे रस
क कलाकृ तय से भा वत थे और वदे शी परंपरा को वीकार करते थे ने कला बनाना शु कर दया और कु छ
कलाकार पे रस के ग लयार म भी प ँच गए। तो कु छ अ य समूह मुंबई समूह द ली श पी च समूह म ास और
चोल के मा यम से
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यात च कार और
मंडल समूह ग तशील कलाकार स म त ीनगर समूह आ द ने आधु नक वृ य को अपने तर पर रखते
भारत के मू तकार
ए समकालीन संदभ के साथ तुत करना शु कया। इस समकालीन कला वग म सैक ड़ चेहरे उभर कर सामने आते
ह जनका वणन करना संभव नह है। और यह इकाई वतं ता के बाद के आधु नक आंदोलन म स च कार और
मू तकार के योगदान पर क त है।
वतं ता के बाद क कला कलाकार के ां तकारी उदय का त बब रही है। प रवतन के आलोक म नई चेतना
अभ और शैली गत तीक वयं च कार ारा न मत सामा जक पहलु के प म वक सत होने लगी।
जसके मा यम से कलाकार ने नई नई तकनीक का योग करते ए व भ प का योग योगा मक प से कया।
और उनक कला म व भ तीक के साथ साथ आधु नक क पना और व वधता दखाई दे ने लगी।
सेलोज़ मुख ज
ोत एनजीएमए
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म य भारत के इंदौर म ज मे ब े ने आगरा व व ालय से नातक क ड ी ा त क और डीडी के साथ गवनमट आट् स कॉलेज
इंदौर म कला क श ा ा त क ।
दे वलालीकर। इसके बाद उ ह ने म मुंबई से प टग म ड लोमा ा त कया। कला अ यास के शु आती दन म यूरोपीय
यथाथवाद से भा वत होकर उ ह ने अपने च म छाया और काश के तकनीक पहलू को मजबूत कया और तेल च कला
तकनीक म कु शल बन गए। के दौरान क मीर म रहते ए उ ह ने ाइंग यूरल प टग गौचे तकनीक आ द म काम
कया। उनके च ब त धम तीत होते ह जनका प रचय क पना और चतन म यथाथवाद से लेक र भाववाद और अ भ वाद
तक था। ब े ने म मुंबई आट् स सोसाइट ारा वण पदक ा त कया। और के बीच ब े ने वै क कला दशन
के लए दौरा कया। उ ह ने वडोदरा के एमएस व व ालय म आचाय का पद भी संभाला। ब े को म भारत सरकार ारा
प ी पुर कार से स मा नत कया गया था। और इसी मम उह म रा ीय ल लत कला अकादमी ारा इस सं ा के पहले
के प म भी चुना गया था।
ब मुख ी तभा के धनी ब े ने व भ शै लय और तकनीक म उ साहपूवक योग करना जारी रखा। अपने च मप मी उ र
आधु नकतावाद च कार सीज़ेन मरो और गाउ गन के भाव को लेते ए बंगाल शैली क व ता क शैली ब त ही
संवेदनशील अ भ य म लघु च लघु च क मुख रता और टश शै णक परंपरा के मह व को दशाती है। च म रंग
योजना और वषय पूरी तरह से वदे शी थे। ब े के आकार सरल और व दखते ह। कला क आधु नक नया म ब े क गनती
एक रोमां टक कलाकार के प म क जाती है। उनक प टग कृ तय म वशेष प से म हला का च ण लंबे बाल लंबी आंख
हाथ साड़ी एक अलग तरह से सुंदरता दे ते ह।
उनका कथन म इस धरती का नवासी ं। म इस धरती पर चलता ं। म इस धरती के अलावा और कु छ नह सोचता। यहाँ उपल
व तुए ँ मेरे लए एक कार क पु तकालय ह। मुझ े इसके अलावा कसी और चीज म दलच ी नह है। यही कारण है क म व
च नह बनाता। म के वल वही दखाता ं जो म इस नया म अनुभव करता ं। बाक मेरे लए मह वपूण नह है। ब े एक
मह वपूण और साथक च कार होने के साथ साथ सफल श क भी थे। और उनके मुख छा यो त भ लोक कौल शां त
दवे जीआर संतोष रतन प रमू वनोद शाह गुलाम मोह मद शेख और ह मत शाह ह।
के . ी नवासुलु
कृ णा वामी ी नवासुलु का बचपन नंगलपुरम के ाकृ तक वातावरण म बीता और उनके बचपन म लोक सं कृ त के संदभ शा मल
थे। म ास कला व ालय म उ ह ने वेश लया और नई आधु नक शैली ारा उनका सा ा कार लया गया जो टश
प त से संबं धत है। कृ ण वामी ने इस आधु नक प रवेश म लोक परंपरा को समा हत कर अपनी तभा का जीवंत प रचय
दया।
यात च कार और
उनके शु आती च म मजबूत ग तशील रेख ा का उपयोग कथा को सुंदर और भावी बनाता है मानव तमा के नयम
भारत के मू तकार
का प रचय दे ता है जो कम आदश और अ तरं जत ह। इसी मम के आसपास के उनके च म नए योग भी
प से प रल त होते ह जसम जल रंग के साथ साथ े यॉन और म त मी डया का उपयोग कया गया था। और नए
अंदाज म अलंकृ त होने लगा। वही आंक ड़े भी कु छ आ दम दखने लगे जसम रेख ा का योग सट क और मोट रेख ा
म बदल गया और आधु नक संके त दखाई दे ने लगे। उनके कु छ काय को वदे श म द शत कया गया था। उनके कु छ मुख
च मछु आरे नाद वरम उ ताद कृ ण लीला कमल का हार और अलंक रण ह
आ द।
बीरेन डे
बीरेन डे का ज म बंगाल म आ था और गवनमट कॉलेज ऑफ आट् स एंड ा ट् स कोलकाता से कला क श ा पूरी करने
के बाद उ ह ने ई वी से ई वी तक द ली पॉ लटे नक के कला वभाग म काम कया। क य ल लत कला
अकादमी नई द ली ारा बीरेन डे को रा ीय पुर कार दया गया। अपनी पूण उ वल श ा ा त करने के बाद वे यूयॉक
चले गए। बीरेन डे को मूल प से एक तां क कलाकार के प म दे ख ा गया है ले कन उ ह ने इसे कभी वीकार नह कया।
इस कलाकार का मु य ल य आसपास क चीज क वा त वक कृ त को समझना और उनका सा ा कार करना और
कृ त के साथ संबंध ा पत करना है। उ ह ने आ या मक चेतना क अ भ और द काश क अनुभू त क रचना
क है।
ल मण पाई
आजाद के बाद आधु नक ाथ मक ान के प म रंग का उपयोग करने के लए काश और अंधेरे का उपयोग कया जो बाद म उनक गत
कला आंदोलन
नवीन शैली म वक सत आ।
शां त दवे
कई योग के बाद डेव ने से योगा मक साम य और अनूठ तकनीक का उपयोग करना शु कया। कला अ यास
के दौरान डेव ने कहानी के बजाय च म डजाइन के मह व को मुख ता से रखा। नतीजतन च संयोजन को आनुपा तक
प से वभा जत कया गया था जसम डेव ारा आकार और रंग को संतु लत त द गई थी। उनके ारं भक च मूल प
थे ले कन बाद म उ ह एक अमूत च कार के प म जाना जाने लगा। उनक अमूत शैली म भारतीय सं कृ त और जीवन के
रंग क एक वशेष सुगंध समा हत है।
शां त दवे को रा ीय और अंतररा ीय स मान से नवाजा जा चुक ा है। जसम उ ह प ी से स मा नत कया गया और ल लत
कला अकादमी ारा तीन पुर कार से भी स मा नत कया गया और टो यो वा षक म भी। उनके ारा न मत भ च
यूयॉक म हवाई अ े के वीआईपी लाउं ज म द शत ह। उ ह ने रा ीय और अंतररा ीय तर पर स कलाकार के पम
कई एकल और सामू हक कला दश नय का दशन कया है।
भूपेन खाखर
यात च कार और
उनके च म वग जीवन दखाई दे ता था। और इसके बाद भूपेन ने समाज के उस वग को च त करना शु कया
भारत के मू तकार
जसे च म कभी वशेष ान नह मला था। के बाद उनके च के रंग का योग आम जनता और उनसे
संबं धत दर के अनुसार कया जाने लगा। भूपेन ने कई मह वपूण अंतररा ीय दशन म भाग लया। उ ह ने गुज राती
भाषा म कहा नयाँ लखी ह। और सा ह य से उनका वशेष लगाव है। उ ह म य दे श सरकार क ओर से का लदास
पुर कार से नवाजा जा चुक ा है।
ए. रामचं न
रामचं न क प टग भारतीय लघु परंपरा से नकटता से संबं धत ह जसे कृ ण चैत य के के नायर ने इस तरह से बु
कया है क उनक पूरी ृंख ला म एक तरफ उनके पास मुगल या राजपूत लघु च कार क तरह उ कृ नरम रेख ाएं
ह और सरी ओर माइकल एंज ेलो क तरह डजाइन और शरीर रचना व ान का एक बड़ा उपयोग है। रामचं न को
इस ृंख ला म प भूषण रा ीय ल लत कला अकादमी नई द ली और के रल ल लत कला अकादमी और व भ
रा य के भीतर रा ीय और अंतरा ीय तर पर कई अ य सं ान के साथ वशेष स मान से स मा नत कया गया है।
उनक प टग रा य स हत कई नजी रा ीय और अंतररा ीय तर के सं हालय के सं ह म ह
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च . रामचं न नायर
परमजीत सह
यात च कार और
च । ले कन इसे दे ख ते ए इसे महसूस कया जा सकता है। ऐसा माना जाता है क परमजीत सह अपने च से भी
भारत के मू तकार
कृ त को रह यमयी बना दे ते ह और वह अपने प म एक नई नया दखाते नजर आते ह। डॉ. ग रराज कशोर
अ वाल परमजीत के बारे म लखते ह उनक कला प मी अ भ वाद कलाकार से भा वत रही है। ै तक
आकृ तयाँ काश क नाटक य कृ तयाँ ह। उनक कलाकृ तयां आ द क अमूत बनावट म चे रको के समान है। ठोस
आकार क व तुए ं शू य म भ होती ह ले कन उन पर पड़ने वाला काश र रहता है। उ ह ने व तु के ा य व से
युग के ा य व को कया है। यह उ ह शा त करना चाहता है। रता के कारण इनका आसमान ब त
भारी लगता है। प र तयाँ हम अ तयथाथवाद से योजना क नया म ले जाती ह। इससे अंदाजा लगाया जा
सकता है क उनक त वीर दे ख ी जा सकती है.
जोगेन चौधरी
जोगेन चौधरी के बारे म समकालीन कला जगत क अनुभू त इस कार है जोगेन कला म वष से कु छ चेहर
आकृ तय मीठे और कड़वे चुटकु ल के मा यम से मा णत कया गया है। नेता ापा रय और स न वह इन
आंक ड़ का आकलन इस तरह से कर रहा है क अंक न शैली से के वल ं या मक हा य ही नकलता है। जब हम
कं ट ली आकृ तय और अजीबोगरीब नुक ले दांत को दे ख ते ह
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आजाद के बाद आधु नक इन काय म चेहरे इक े ए फर समकालीन यथाथवाद का अ तयथाथवाद च ण। जोगेन ने ं यपूण हा य च के
कला आंदोलन
साथ साथ दद और क णा से भरे कई चेहर को भी हा सल कया है जो समाज क मासू मयत और सादगी के अ य
पहलु का भी त न ध व करते ह। डॉ. ग रराज कशोर कहते ह क उ ह ने समकालीन प रवेश म मनु य के चेहरे
को बदलने क भयानक त को बड़ी मा मकता से च त कया है ले कन फर भी वे मनु य म कु छ अ ाई दशाते
ह। वे सभी आंक ड़ को सामा य या व श लोग म ब त संवेदनशील प से च त करते ह । उ ह व भ सं ान
ारा स मा नत कया गया है और उनक प टग नेशनल गैलरी ऑफ मॉडन आट नई द ली और दे श और वदे श क
व भ कला द घा और सं हालय के सं ह म ह। उ ह ने रा प त भवन म कलाकृ तय के लए यूरेटर का पद भी
संभाला और गैलरी के सं ापक सद य थे। उनक कला क कृ तयाँ ह लेडी वद अनकै ड हेयर नाट वनो दनी
और टाइगर इन मूनलाइट नाइट आ द।
अंज ल इला मेनन का ज म प म बंगाल के बनपुर म आ था। वह से अपनी ारं भक श ा ा त करने के बाद
उ ह ने कु छ समय के लए सर जेज े कू ल ऑफ आट् स मुंबई म भी अ ययन कया और पे रस से े को प टग तकनीक
ा त क । अंज ोली ारा र चत संयोजन प का आकार ाचीन कलाकार क तकनीक का प रचय दे ता तीत होता है
जसके तहत अंतराल और सामा य मनोदशा दखाई दे ती है। ारं भक काय के बाद अंज ोली के च गहराई रता
प रप वता के साथ साथ पीड़ा और व सनीयता को दशाते ह। उनके कला अनुभव बताते ह क उनक सृज न या ा ने
एक भ ल य हा सल कर लया है और यह अनुभव उनके च म एक लंबा सफर तय करने के बाद प रल त आ
है। उनके च म हाड बोड को मु य प से आधार के प म बनाया गया है और इस हाड बोड क सतह अंज ोली
रह यमय डजाइन से सुस त है। रह य म स हत उनके च सरल तीत होते ह। जसम उनका प एक छतरी
ई आकृ त के आकार का है जो पुरातनता का श दे ता तीत होता है जो इसे दे ख कर संतु और न य तीत
होता है। और वह भी अ सर अंज ल खुद को इन डजाइन के साथ एक कृ त करती है खुद को संयोजन म पूरी तरह से
लीन दखाती है। त वीर के नकल करने के बजाय च मॉडल के अंद नी ह स को कट करते ए दखाई दे
रहे ह। इस वषय म वह खुद कहती ह क पो ट सफ एक पो ट नह है इसके लए सटर का बाहरी प दे ख ना ज री
है ।
अंज ल इला मेनन द व ग वग यू मी नग टू कं टे ररी नेस लेख म डॉ. यो तष जोशी लखते ह जसम
समकालीन कलाकार के पक तीक आ द को आकृ तय के संयोजन के साथ उपयोग कया जाता है आ द।
यु य म रचनाएँ खुलती ह पक और तीक के बीच। यहाँ ी पु ष पुरो हत कौवे पतंग जैसे तीक नए अथ
और आयाम के वाहक ह। उसक जा कह न कह सामा जक यथाथ क खड़ कयाँ खोलती है। उनक कलाकृ तयाँ
नेशनल गैलरी ऑफ़ मॉडन आट नई द ली ल लत कला अकादमी नई द ली श प और कला बड़ला अकादमी
कोलकाता चंडीगढ़ सं हालय समरोजा कला व थका मुंबई फु कु ओका सं हालय जापान बजा मन गे यू ज़यम
यूयॉक म सं ह म ह। रदशन क एक कथा फ म भी अंज ल इला मेनन पर बनी है।
बकाश भ ाचाजी
मनोरम च के साथ च म वषय। उनक प टग यथाथवाद और च ण ह। आधु नक कला म सामा जक वषय के यात च कार और
भारत के मू तकार
मा यम से च म संदेश बनाए गए ह जनम से मु य वषय ह बुरी खबर बुरी याद सामा जक वा त वकता पर कटा
स ाई म छपा झूठ आशा म नराशा आ द। गु ड़या प टग ृंख ला ूब का उ ाटन कु एँ आ द उनक स कृ तयाँ
ह। जो अ त यथाथवाद शैली के घोषणाकता ह। कला समी क शांतो द के अनुसार बकाश आधु नक भारतीय
कलाकार म से एक ह जनक मान सकता मूल प से नाग रक या शहरी है। जीवन के त उनका बौ क और
भावना मक रवैया भी उनक अपनी शहरी जीवन तय का आधार है और उ ह ने सावज नक आ दवासी या ामीण
कला परंपरा को सावज नक कया है और इसम जड़ खोजने क कभी को शश नह क है। उनक अ धकांश प टग
अ तयथाथवाद और व ल दखती ह। शायद यही कारण है क वकास को लोक य सावज नक और आ दवासी
बना दया और ामीण कला परंपरा से र रखा। ले कन वकास क कला म मानव और अमानवीय प के उपयोग
के बावजूद जो आधु नक च कला म आसानी से मल जाता है उसे समझा जा सकता है। बकाश का भारतीय आधु नक
कला म भी मह वपूण ान है उनक आकृ तयां सामा जक संदभ से जुड़ी ई तीत होती ह।
उड़ीसा के मयूर गंज म ज मे ज तन दास का बचपन से ही कला क ओर झान था। जेज े कू ल ऑफ आट् स मुंबई से कला म
ड लोमा ा त कया। ज तन दास को भारत सरकार ारा वा षक कला दशनी एआईएफएसीएस नई द ली बॉ बे आट
सोसाइट मुंबई पुर कार भारत भवन प भूषण और व र फै लो शप ा त ई है। रदशन ने उनके कला अनुभव के आधार पर
एक फ म भी बनाई है। उनके च का मु य वषय म हला च का संयोजन है। उ ह ने कै नवास पर मानव प को व भ प
म बदल दया है और गत शैली वक सत करने के लए व पण पर आधा रत प टग ृंख ला बनाई है। इसके बाद म हला
च ांक न न न म हला आकृ तय को च त करना ा य य नय और शलभं जका के साथ सामंज य ा पत करता तीत होता
है। यह भी माना जा सकता है क दास क कला म पु ष और म हला के बीच संबंध मु य प से क त ह।
ज तन दास ने भाव क अ भ ंज क गूढ़ता को महसूस कया है और अपनी क मय के साथ अनुभव कया है क उनके च म
इशार और श के रंग का संयोजन दशक के मन म एक तरह क सनसनीखेज त पैदा करता है। यह भावशाली अ भ
उनके च म उभरती है। ज तन दास क शैली को इस कार व ान का समथन ा त आ है वह युवा म हला क लोच के
मा यम से पु ष क सुंदरता और वशालता के मा यम से अपने उ साह को करता है। उ ह ने इस अनुभवा मक अमूत अंत
को महसूस करने और अपनी कलाकृ तय के मा यम से इसे करने का यास कया है। इसके लए वह फोकस के क के साथ
एक रंगीन बैले बनाता है और व भ रंग और मोट रेख ा का उपयोग करता है। ी और पु ष क भावना ारा आ व कृ त
अ आकृ तयाँ संपक के ब के नकट आती ह और मानवीय भावना क एक ब त ही भावशाली च मय अ भ ह।
इन च से हाथ के इशार पर वशेष यान दया जाता है।
मंज ीत बावा
पंज ाब रा य के री म पैदा ए मंज ीत बावा ने सोमनाथ होरे धनराज भगत और बीसी सा याल क दे ख रेख म कॉलेज ऑफ आट
नई द ली से कला क श ा पूरी क । मंज ीत बावा क प टग का अपना वषय और च ण का एक अलग तरीका है। उ ह ने
भारतीय पौरा णक कथा और सूफ क वता के वचार को च म च त करने का यास कया है। मंज ीत बावा के च म
चमक ले रंग का एक अनूठा मह व है। जसम कृ त पशु ेम और बांसुरी क दौलत उ ह लगातार मो हत करती नजर आ रही है।
उनके च म कृ ण हीर रांझ ा और शेफ ड रांझ ा को च त कया गया है साथ ही उ ह ने कई च म कृ ण को बांसुरी बजाते ए
च त कया है। ऐसा तीत होता है क बावा क कला के तीन चरण ह जनम पहले तर पर रचना मक च मानव और पशु
आकृ तयाँ ह। सरे चरण दलच हड लग के साथ गुलाबी मौवे हरे रंग के शु प ह। वह तीसरे चरण म अ त वकृ त ेण ीकृ त
प ा त होते ह जो पक के संयोजन म मह वपूण प से उपयोग कए गए ह जनम पूरक रंग पीले नारंगी गुलाबी लाल हरे
नीले आ द का शु प म उपयोग कया गया है। रंग णाली। कह झूलते समय उनके च क आकृ तयाँ दखाई दे ती ह और
ऐसा लगता है क उनक प टग बना ह ी के जीवंत ह ले कन उ ह ने इन डज़ाइन म हावभाव और मु ा का ब त समायोजन कया
है। बावा अपनी जीवंत च ण शैली और आ या मकता ेम और वशेष प से सूफ दशन के लए भी जाने जाते ह। मनजीत
बावा ने मानव ांड को अ भ दे ते ए एक का प नक लोक क रचना क है जसम मानव और गैर मानव आकृ तय को
आसानी से आ मसात कया जा सकता है। उनके च के अ भाग मासू मयत क एक अनूठ भावना कट करते ह। मदन सह
राठौर मंज ीत के च म त मानव आकृ तय का आ यान इस कार तुत करते ह मंज ीत क रचना म दो त य को दशाया
गया है
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यात च कार और
अपने काय म एक साथ हरकत । उनके च च मूडी और च तत दोन ह .... अपने एक काम म तलवार चलाते ए वह जस
भारत के मू तकार
यो ा को दे ख ता है वह हसक यो ा नह है ब क वह एक उदास यो ा है जो हमारे समय म हो रही कई चीज से असहमत है
उसका ःख और हाँ वह गु सा भी कट कर रहा है।
फ म मी टग मंज ीत को रा ीय पुर कार मला। उ ह वशेष स मान के प म रा ीय पुर कार ल लत कला अकादमी नई
द ली सैलोज पुर कार नई द ली और भारत भवन से पांक र बएननेल पुर कार आ द ा त ए। और बावा के च को
दे श वदे श म द शत कया गया है उनक रचनाएँ रा ीय आधु नक कला सं हालय नई द ली और चंडीगढ़ व व ालय और
भारत भवन भोपाल और अ य कला सं ान के सं ह म ह।
के जी सु म यम लॉक यू नट दे ख
मू तकार वतं ता के बाद के ां तकारी अनुभव को भी अपनी कला म ान दे ते ह। इनके मा यम से श प क रचना जीवन
के साथ साथ जीवन को स दय म बदलने आंत रक अ भ आ म सा ा कार आ द से े रत होकर े रत ई है। सधु काल
क स यता से लेक र स दय को व मयकारी तरीके से तुत कया गया है आधु नक कला म मू तकार म ययुगीन काल के ह।
भारत के ाचीन श प कौशल को धम के तहत पो षत कया गया था जसका प रचय मं दर और कला मक मू तय म मलता
है। भारतीय श प कौशल क अ त या ा व भ चरण से गुज री है। वतं ता के बाद क मू तकला ने दे वी साद राय चौधरी
राम ककर बैज ारा उ प वचन के वषय के अनुसार एक सवागीण वकास दे ख ा है। और उनके ारा श त आने वाली
पी ़ढयां व भ मा यम से भारत क आधु नक और समकालीन मू तकला को वक सत और पो षत कर रही ह। इससे संबं धत
मू तकार का ववरण इस कार है
अमरनाथ सहगल
अमरनाथ सहगल का ज म उ री पंज ाब वतमान म पा क तान म त म आ था जसे अटॉक कहा जाता है। म
सहगल गवनमट कॉलेज लाहौर म अपनी नातक क ड ी के लए अ ययन करने आए और म उ ह ने अपने ान से
नातक क पढ़ाई पूरी क जसके बाद उ ह ने बनारस ह व व ालय म भी अ ययन कया और एक इंज ी नयर के पम
लाहौर म काम कया। भारत पा क तान के वभाजन के समय सहगल प म पंज ाब आए और उ ह ने अपने जीवन का कु छ
समय प मी पंज ाब के साथ साथ कांगड़ा कु लू के वाद म बताया य क उनक भी कला म च थी इस लए कु छ समय
बाद वे द ली प ंचे और एक नया उनके जीवन का संघष शु आ। उ ह ने म यूयॉक यू नव सट ऑफ एजुके शन कू ल
म कला श ा का अ ययन कया। इस दौरान उ ह ने कला को समझने और व तार करने के लए या ा क और वह हेनरी मै टस
से भा वत थे।
सहगल क पहली कला दशनी म यूयॉक म आयो जत क गई थी और उ ह ने भारत का नेतृ व कया था। वदे श से
लौटने के बाद सहगल ने ल लत कला कॉलेज नई द ली म एक श क के प म पढ़ाना शु कया। कांसे और म से
सहगल क गढ़ ई श पकला का मु य वषय यातना आ द से भा वत आम आदमी क सम या थी। उनका श प और दशक
एक पहचान ा पत करता है। सहगल के साथ जुड़ाव महसूस करता है दशक
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आजाद के बाद आधु नक मू त श प जो मानवता के त सम पत तीत होते ह। सहगल को ल लत कला अकादमी नई द ली ारा वण पदक और रा ीय
कला आंदोलन
पुर कार से स मा नत कया गया है। वह ल लत कला अकादमी और फोड फाउं डेशन के फे लो रह चुके ह। और भारत सरकार ारा
प भूषण से भी अलंकृ त है और उनक मू तयां नेशनल गैलरी ऑफ मॉडन आट नई द ली और दे श और वदे श क व भ
जनालय पुर कार बुडापे ट से भी पुर कार ा त होते ह। उनक कला दशनी के आदे श वदे श म आयो जत कए गए ह और
उनका नाम आधु नक कला मू तकार म अ णी है।
यात च कार और
. योग करने द भारत के मू तकार
इस इकाई म हमने भारत के स च कार और मू तकार के बारे म चचा क जसम उ ह ने जीवनी कला या ा
कला तकनीक आ द हा सल क । भारतीय कला के इ तहास म बदलाव का म लगातार आगे बढ़ता रहा जसम
कलाकार ने न के वल नए नवाचार कए। अ यंत रचना मक ले कन साथी आधु नक कला के प म एक व श
पहचान भी दज क । कलाकार ने अपनी भारतीय सं कृ त और ऐ तहा सक से े रत होकर कला को आधु नकता
के प म एक नई दशा द । कल जहां भारतीय कला और कलाकार कं पनी तंग महसूस कर रही थी और उससे कु छ
समय पहले वतं ता के साथ साथ कलाकार और उसक कला भी मानव वतं हो गई और एक नई रोशनी क ओर
बढ़ गई भारतीय कलाकार प मी कला से े रत थे आंदोलन ले कन वे उनक नकल के पयाय नह थे उ ह ने अपनी
वपरीत शैली वक सत क और समाज के सामने नए योग तुत कए जसके प रणाम व प समाज ने भी
भारतीय कलाकार और उनक कला को आधु नकता के साथ वीकार कया।
कलाकार के समूह ने भारतीय कला परंपरा और रा ीयता को आगे बढ़ाया। जसके तहत समसाम यक ेण ी म
सैक ड़ चेहरे उभर कर सामने आए ज ह इस इकाई के मा यम से आधु नक च कार और मू तकार के आधु नक
कला आंदोलन को तुत कया गया।
. अपनी ग त क जाँच कर
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Machine Translated by Google
आजाद के बाद आधु नक मीरा मुख ज ने कस कला से भा वत होकर एक नई न न शैली का प रचय दया
कला आंदोलन
चचा करना।
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