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एमवीए

भारत क आधु नक कला

दशन और य कला कू ल
इं दरा गांधी रा ीय मु व व ालय

खंड

वतं ता के बाद आधु नक कला आंदोलन

यू नट

कला सं ान और भारतीय कला प र य पर इसका भाव

यु नट

लोक और जनजातीय कला भाव

इकाई

भारत के ट मे कग और ट मेक स

इकाई

भारत के यात च कार और मू तकार


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आजाद के बाद आधु नक


कला आंदोलन खंड प रचय

य श ाथ

एमवीए के खंड म हम वतं ता के बाद भारत म ए कला आंदोलन के बारे म समझगे। उस आधु नकता को
के वल काल सूचक नह माना गया है ब क इसे मानव चेतना के संवहन से जोड़ा गया है। फर भी कला के इ तहास
को यान म रखते ए आधु नक च कला के काल को अपनाते ए लोक कलाकार कला सं ान च कार और
च को दे ख ते ए उनक वृ य के भाव के संके त मलते ह। बंगाल के वक सत कला प और वशेष प से
शां त नके तन का अ ययन हम आधु नक समय क कला पर चचा करने के लए टश कू ल और राजा र व वमा को
फर से दे ख ने क दशा दे ता है। इसके बाद वतं ता आंदोलन और गांधीवाद आंदोलन के भाव से आगे बढ़ते ए
आधु नक कला कई गत भाव के साथ सामने आती है।

यह खंड इकाइय म वभा जत है। इकाई म कला सं ान के संदभ और भारतीय कला प र य म इसके मह व पर
वभ ब के मा यम से चचा क गई है जसम कला सं ान के उ े य और उन पर आधु नक वृ य के भाव
को महसूस कया जा सकता है। इकाई इस बात पर यान क त करती है क वतं ता के बाद क कला पर लोक
और आ दवासी कला का भाव आधु नक श द म कै से प रल त होता है साथ ही यह जानने का यास कर क लोक
और आ दवासी कला का वकास कस म म आ था। भारत म व भ लोक एवं जनजातीय कलाएँ कौन सी ह
जनका कला प र य म मह वपूण ान है और वतं ता के बाद क आधु नक कला म लोक और जनजातीय कला
का भाव कै से दखाई दे ता है। और मुख के संदभ म कला का मह व आधु नक कलाकार इससे भा वत ह।

इकाई म भारतीय ट कला के ऐ तहा सक संदभ और इससे ा त वषय क ामा णकता के दशन भारतीय ट
कला क पृ भू म के मा यम से इसके इ तहास और वकास ृंख ला पर चचा क गई है। भारत म मु ण क ारं भक
अव ा और उसके बाद कॉरपोरेट काल तक भारतीय मु ण या का वकास व शता द के अंत से व शता द
के ारंभ तक कै से बढ़ना शु आ। इस इकाई म यह भी चचा क गई है क वतं ता के बाद के भारतीय कला
प र य म मु ण का भाव कै से प रल त होता है जसके मा यम से मुख कला सं ान का समेक न आ और साथ
ही वतं ता के बाद मु ण क मह वपूण भू मका और व तार आ। आधु नक कला ई है। इस इकाई म हम वृ
और समय च दोन से आधु नकता को समझने का यास करगे। साथ ही इस काल क समी ा कला म भी रदश
कोण को ाथ मकता द गई है।

ट कला क शु आत और वकास क जांच के अलावा वतं ता के बाद ट कला भी पेश क गई है और आधु नक


ट कला के व भ आयाम को व ान क राय के संदभ म एक कृ त कया गया है।

इकाई भारत के मुख च कार और मू तकार और कला तकनीक आ द म उनके योगदान के बारे म बताएगी।
भारतीय कला के इ तहास म प रवतन का म आगे बढ़ता रहा जसम कलाकार ब त ही रचना मक तरीके से नवाचार
करता है और उसी समय आधु नक कलाकार के प म भी एक व श पहचान बनाई।

भारतीय सं कृ त और उसके ऐ तहा सक कोण से े रत कलाकार ने आधु नकता के प म कला को एक नई दशा


दान क । जहां वे कह न कह आधु नक आंदोलन और वृ य से भा वत ह ले कन उनक नकल का पयाय नह
ह। इस लए उ ह ने अपनी वपरीत शैली वक सत क और समाज के सामने नए योग तुत कए। इस खंड म
अ ययन के साथ तुत कए गए वषय को समझने और व मू यांक न के लए अ यास को व त करने और
चचा करने के लए भी पया त ान दया गया है। ता क आप वयं क ग त और सीखने के प रणाम को भी माप
सक। लॉक म न न ल खत चार इकाइयाँ ह।
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कला सं ान और उसका भाव


इकाई कला सं ान और भारतीय कला प र य पर इसका भाव

भारतीय कला प र य पर

. उ े य . सीखने

के प रणाम
. प रचय

. भारतीय कला प र य म कला समेक न के लए मुख कला सं ान क भू मका

. . कला महा व ालय द ली

. . ल लत कला संक ाय एमएस व व ालय बड़ौदा

. . गवनमट आट एंड ा ट यू नव सट चंडीगढ़

. . नेशनल गैलरी ऑफ़ मॉडन आट

. . रा ीय सं हालय

. . ल लत कला अकादमी

. आधु नक कला के व तार म कला सं ान क भू मका

. . क य व व ालय के तहत कला सं ान

. . रा य व व ालय कला सं ान

. कला सं ान पर यूरोपीय आधु नक वृ य का भाव . मुख पा चया

वषय और आधु नक कला का भाव

. . दद

. . तमा

. . ा फक आट ट मे कग

. . अनु यु कला

. आइए सं ेप कर

. अपनी ग त क जाँच कर .

संदभ और आगे के अ ययन

. उ े य

इस इकाई को पढ़ने के बाद आप

भारतीय कला प र य म कला सं ान क भू मका के मह व को समझ।

वतं ता ा त के बाद के मुख कला सं ान के बारे म जानकारी ा त कर।

आधु नक कला के व तार म व भ भारतीय व व ालय के योगदान के बारे म जान।

वभ कार के कला प क जानकारी और सूची तैयार कर।

च कारी मू तकला मु ण और अनु यु कला पर आधु नक और उ र आधु नक काल के भाव को जान।

. सीखने के प रणाम

इस इकाई को पढ़ने के बाद आप स म ह गे


कला से संबं धत बहस पर चचा कर।
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आजाद के बाद आधु नक


वतं ता के बाद भारत के कला सं ान का दौरा कर और अपने ान का व तार कर।
कला आंदोलन

साम ी पढ़ने पर चतन कर आप समाज के लए तैयार कर सकते ह और समाधान ढूं ढ सकते ह।

आधु नक कला का व तार करने वाले व भ व व ालय के बारे म अपने सहपा ठय श क और कला
जगत से जुड़े लोग से बात कर।

अपने प रवेश म कला के बारे म जानकारी ा त कर और ा यान तुत कर।

च कला मू तकला मु ण वा ण यक कला आ द व भ कला के बारे म पढ़कर भा वत होकर इस े


को वसाय के प म चुन।

. प रचय

य श ाथ इस इकाई म समय समय पर और एक वृ से आधु नकता को समझने का यास कया गया है साथ
ही साथ आधु नक कला क इस अव ध क समी ा के साथ साथ को धानता भी द गई है। आधु नकता के प रचय
और वकास के अलावा समकालीन च कला के प रचय का भी प रचया मक ववरण दया गया है और व ान क राय
म आधु नक काल क कला के व भ पहलु को प रचय म एक कृ त कया गया है।

आजाद के बाद यानी आजाद के बाद गत वैचा रक अ भ आ द को पहचानने और लखने क आजाद


जब मानव ने समाज क ाचीन या पुरानी नी तय से छु टकारा पाने या नए बदलाव लाने के लए यास और आंदोलन
कए। उसी बौ क प रवतन को हम आज आधु नकतावाद के नाम से जानते ह। इस युग क कला म ढ़वाद परंपरा
या का भी यह ान नह है जो बु वाद या तक के कारण है। औ ो गक शहरी जीवन के शोर और घमंड के
कारण आधु नक कलाकार को जन चुनौ तय का सामना करना पड़ा वे थे व च ता का अहसास वक
अ वीकृ त और चेतना क कमी। इस लए कलाकार ने अ भ ंज क इमेज री ए स ै ट के मा यम से उनका जवाब दया।

इस इकाई म हम चचा करगे क कै से कला सं ान ने भारतीय कला प र य म अपने भाव को त ब बत करना शु


कया जसके मा यम से मुख कला सं ान का समेक न आ और साथ ही क य और भीतर कलाकार के संक ाय के
मा यम से आधु नक कला क मह वपूण भू मका नभाई। रा य व व ालय और यह कै से व तार और हो रहा है।
कला सं ान पर आधु नक वृ य का कै से भाव पड़ता है हम सं ागत कला के मा यम से उनके कार पर
आधु नक भाव को कै से समझते ह

. मुख कला सं ान क भू मका

भारतीय कला म कला समेक न

पर य

भारतीय कला के लए कला सं ान का समेक न कला श ा को नवाचार क ओर ले जाता है। जैसा क हम पा म


के व भ वग और इकाइय के मा यम से पता चला है क भारत म वदे शी भाव कै सा था जसने कला को भी वशेष
प से वशेष बना दया। इस लए ाचीन काल से ही भारतीय सं कृ त म आया तत सं कृ तय का समेक न दे ख ा गया
है। वा तव म भारतीय कला म यूरोपीय शैली का भाव व शता द से ही दखने लगा था। और उसी कला के े म
यह ंख ला ाचीन पर रा के ान पर पा ा य तकनीक म प रल त होने लगी। प मी शासक के समकालीन
भारतीय ने भी प मी और अं ेज ी भाषा सीखना शु कर दया। और भारतीय कलाकार ने भी दखाया नया सीखने
क ललक
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तकनीक और कला शै लय जसके प रणाम व प त काल शासन ारा प मी तकनीक का परी ण करने के लए कला सं ान और भारतीय कला प र य
पर इसका भाव
कला सं ान क ापना ई। भारतीय औपचा रक कला श ण म म ास कोलकाता और मुंबई कला व ालय
मुख हो गए। इसी मम वभ श ा नी तय ारा नधा रत समय क आव यकता के अनुसार नवीन कला सं ान
सं हालय आट गैलरी आ द खोले गए। तेज ी से बदलाव और वकास के दौर म इन सं ा ारा नई ग त व धय को
लागू कया जाने लगा। जससे परंपरागत अतीत क जाग कता को इन कला सं ान के नवीन वचार के साथ समेक न
के प म दे ख ा जाता है। प रवतन क या के तहत यह समेक न आधु नक संदभ म सृज ना मक और सृज न का दे श
है जो परंपरा को एक मह वपूण ान दे ता है जसक समाज म कला के त च और चेतना को नया अथ दे ने और
जागृत करने क दशा म एक अतुलनीय भू मका है।

. . कला महा व ालय द ली

म क मीरी गेट वतमान म चुनाव आयोग का कायालय द ली म त द ली पॉ लटे नक जसे बाद म


द ली कॉलेज ऑफ इंज ी नय रग और अब द ली टे नोलॉ जकल यू नव सट के प म जाना जाता है के तहत
वा ण यक कला प टग और मू तकला के साथ एक कला वभाग ा पत कया गया था । कला वभाग क मीरी गेट
पर तक तकनीक वभाग म जारी रहा। भारत सरकार क तीसरी पंचवष य योजना के काया वयन
के साथ ावसा यक श ा और सं कृ त को बढ़ावा दे ने और ल लत कला अकादमी रा ीय क ापना स हत व भ
पा चया े पर यान क त कया गया। सं हालय और नेशनल गैलरी ऑफ मॉडन आट कला वभाग को
तलक माग त पे मला कॉलेज अब नॉथ कपस म दौलत राम कॉलेज प रसर म ानांत रत कर दया गया था
जसम स ांत क ाएं और स ांत का कायालय था। ावहा रक क ा के लए सु वधाएं द ली शासन के तहत
बरला मंडप पहले भारतीय ापार मेला ा धकरण और अब भारत ापार संवधन संगठन ग त मैदान म उपल
कराई ग और इसे कला महा व ालय के प म ना मत कया गया।

कॉलेज येक बैच म छा के साथ वा ण यक कला च कला और मू तकला म शाम के पा म के पम


पूण का लक के पम वष य ड लोमा और वष य ड लोमा काय म क पेशकश कर रहा था। के दौरान
कॉलेज द ली व व ालय से संब था और ल लत कला वभाग के प म संगीत और ल लत कला संक ाय से जुड़ा
था। संब ता के साथ सभी ड लोमा काय म को नातक ड ी काय म वष और शाम के काय म चरणब म
अप ेड कर दया गया। कम शयल आट म ड लोमा को ए लाइड आट् स कहा जाता था और ावहा रक क ाएं मु य
प रसर से शु होती थ । म भारत सरकार ने कू ली श ा णाली का एक नया पैटन पेश कया। नई
णाली के काया वयन के साथ सभी नातक ड ी काय म को एक रा ीय नी त के प म चार साल के श ण के
लए कम कर दया गया था।

म श ण और तकनीक श ा नदे शालय के तहत कायरत कला कॉलेज को तलक माग तक व ता रत


कया गया था और अब इसका पता तलक माग नई द ली के प म पूरी तरह काया मक है।
तब से नातक और परा नातक तर पर पीएचडी स हत कई नए काय म शु कए गए ह।

D और लगभग छा को रखा। माच म कॉलेज ऑफ आट को द ली व व ालय से असंब कर दया


गया और डॉ. बीआर म डजाइन संक ाय के साथ वलय कर दया गया।
अ बेडकर व व ालय द ली द ली सरकार के मं मंडल ारा अनुमो दत उ श ा नदे शालय के तहत काय कर
रहा है।

ी रामे नाथ च वत प भूषण ो. बी.सी. जैसे कला के द गज


सा याल ो. व नाथ मुख ज ो. ओपी शमा ने अपनी ापना के समय से ही इस त त सं ान का नेतृ व और
पोषण कया है। कॉलेज ने भी कया है
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आजाद के बाद आधु नक श ा वद और ी सैलोज मुख ज ो के एस कु लकण ी जी.आर.


कला आंदोलन

संतोष ी बमल दास गु ता ी धनराज भगत सु ी जया अ पा वामी ो.


दनकर कौ शक ी सोमनाथ होरे ी बीरेन डे प वभूषण डॉ. सतीश गुज राल ी अमरनाथ सहगल ो. पी.डी.
अभयंक र ो. पीएन मागो ो. एस.
एस वोहरा ो. धीरज चौधरी ो. एसके भ ाचाय ो. एनसी सेन गु ता ो. जगमोहन चोपड़ा ो. परमजीत सह।
और ी मंज ीत बावा ो. बमान दास ो. जय झरो टया सु ी अनुपम सूद ी कृ ण आ जा कं चन चंदर ो.

सुनील कु मार आ द और रा ीय और अंतररा ीय तर पर मा यता ा त कलाकार क सूची वतमान पीढ़ तक जाती है।
वतमान म नए ल य को ा त करने वाले काय म म कला इ तहास ा फक कला नातक और नातको र म य
संचार के साथ साथ पीएचडी तर के काय म शा मल ह।

. . ल लत कला संक ाय एमएस व व ालय बड़ौदा

एमएस व व ालय बड़ौदा के ल लत कला संक ाय क ापना वष म ई थी और संभवत वतं ता के बाद


इसे पूरे दे श म एक व व ालय म कला के पहले संक ाय के पम ा पत कया गया था। बड़ौदा व व ालय के
ल लत कला संक ाय के पूव छा डॉ रतन प रमू कहते ह यह न के वल एक े ीय क है ब क इसका अ खल
भारतीय मह व है जैसा क शां त नके तन ने वतं ता से पहले के दशक म ा त कया था। ारं भक चरण म कला
श क के प म एस.एन. ब े सांख ो चौधरी के साथ के जी सु म यम जयराम पटे ल और गुलाम मोह मद शेख को
इस कला संक ाय म शा मल कया गया था। ारंभ म आधु नक कला को अ धक मह व दया गया जो मु य प से उस
समय के कु छ मुख कलाकार के काय म प रल त होता है। इस सं ा म आधु नकता के साथ समसाम यक वषय
का त बब है जसे आने वाली पीढ़ ने दै नक जीवन के प म वध शैली म ा पत कया। वतं ता के बाद आधु नक
कला को आगे बढ़ाने म बड़ौदा व व ालय के कला संक ाय का मह वपूण योगदान रहा है।

. . गवनमट आट् स एंड ा ट कॉलेज चंडीगढ़

पंज ाब क पूव राजधानी शमला म म एक टे ट आट् स एंड ा ट कॉलेज क ापना क गई थी जसे मेयो
कू ल ऑफ आट लाहौर पा क तान से ानांत रत कर दया गया था और बाद म अग त को पंज ाब सरकार
ारा चंडीगढ़ ानांत रत कर दया गया था। इस सं ान क ापना भारतीय और प मी परंपरा के आधु नक ान के
मा यम से कला मकता और रचना मकता के प म मील का प र सा बत आ। इस सं ान म कला श ा के
पा म को इस वचार के साथ डजाइन कया गया था क कला के स दय रचना मक कला मक अ भ को
यान म रखते ए भारतीय एकता को समझने क को शश क जा रही है। अ य दे श क भारतीय कला और कला
का तुलना मक अ ययन कया जा सकता है। ता क नए योग और व भ मा यम और साम य को प र कृ त करने
और जानकारी ा त करने का अवसर मल सके ।

. . रा ीय सं हालय

रा ीय सं हालय भारतीय सं कृ त और कला के उ कृ सं ान म एक मह वपूण ान रखता है। इस सं ान का


उ ाटन अग त को रा प त भवन म आ था और आज हम जो भवन दे ख ते ह उसक आधार शला मई
को रखी गई थी। वतमान त क बात कर तो इस सं ान म लगभग व तु को संर त कया
गया है जसम सभी कला मक सां कृ तक ऐ तहा सक और भारतीय और साथ ही वदे शी वषय। सां कृ तक वरासत
क ये ब मू य व तुए ं करीब साल पुरानी ह। सं हालय अपने व भ काय म के मा यम से क ओर बढ़ा
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कला सं ान और भारतीय कला प र य


ल य और सं ह संर ण और समाज। रा ीय सं हालय अपने सं ह वभाग और श ा दशनी काशन संर ण पर इसका भाव
और अ य वभाग के साथ घ न सहयोग के साथ सम पत भावना के साथ अपने ल य क ओर उ मुख है।

इस सं ान के सं ह म पूव ऐ तहा सक उ मुख कला पुरात व भौ तक सां कृ तक र ा स यता सं कृ त सं कृ त का


संर ण कला इ तहास और च संर ण जैसे वषय पर पु तक और प काएँ उपल ह। भारतीय दशन और धम क
अ पु तक और व कोश के अलावा अ य संदभ पु तक भी शोध और संदभ उ े य के लए संक लत क जाती
ह। जसके मा यम से छा छा ा और वसा यय और कला े मय क अपनी कला मक वचारधारा थी और शोध
को दशा दे ने म लाभ मलता था। रा ीय सं हालय म कला संर ण और सं हालय के इ तहास का रा ीय सं हालय
सं ान है जसका गठन और पंज ीकरण जनवरी को सोसायट पंज ीकरण अ ध नयम के तहत
कया गया था और इसे अ ैल को डी ड टू बी यू नव सट का दजा दया गया था। अपनी ापना के बाद
से सं ान कला और सां कृ तक वरासत के े म श ण और अनुसंधान के लए दे श म अ णी क म से एक रहा
है। रा ीय सं हालय के प रसर के भीतर त सं ान इस उ े य के साथ है क छा को कला और सां कृ तक
वरासत क उ कृ कृ तय के साथ सीधा संपक हो और रा ीय सं हालय क सु वधा जैसे क इसक योगशाला
पु तकालय भंडारण आर त सं ह और आसानी से उपल हो सके । सम श ा के लए तकनीक सहायता
अनुभाग।

. . आधु नक कला क रा ीय गैलरी

नेशनल गैलरी ऑफ़ मॉडन आट क ापना के दशक म माच को ई थी। इसका उ ाटन नई द ली


म जयपुर हाउस इं डया गेट के पास आ था और डॉ.
भारतीय कला जगत के एक त त व ान हरमन गोएट् ज़ को पहले सं ह अ य के प म नयु कया गया था।
ी गोएट् ज़ ारा ारं भक तैयारी और गैलरी के सफल संचालन के बाद। इसका काय ी को स पा गया।

म मुकु ल डे।

लगभग वष से से शु सं ान व भ च और मू तय का एक साथ सं ह कर रहा है। यह सं ान


कं पनी काल से पुनजागरण काल तक बंगाल कला व ालय ग तशील कलाकार समूह और अ य समूह के साथ साथ
आधु नक और समकालीन कला जगत के मु य कलाकार के काम का एक सफल दशन रहा है। वह समय समय पर
व श कला कृ तय क दशनी का आयोजन कर सभी वग के लए रचना मकता के ार भी खुलते ह। सं हालय
वशेष दश नय व भ दे श से समकालीन कला के आदान दान के आधार पर आयो जत करता है। जससे इस
जगह ने अंतररा ीय तर पर अपनी अलग पहचान बनाई है। भारतीय कला े मय क वृ को दे ख ते ए रा ीय
आधु नक कला सं हालय ने मुंबई और बगलोर म दो नई शाखाएँ ा पत क ह।

. . ल लत कला अकादमी

यह सं ान अग त को ा पत कया गया था जब अकादमी के अ धकारी और कामकाज आधु नक कला


सं हालय के भवन म चलते थे। स मू तकार दे वी साद राय चौधरी ने इस सं ान के पहले अ य के प म काय
कया जनका कायकाल से तक रहा। इसके बाद सं ान को म मंडी हाउस म रव भवन म
ानांत रत कर दया गया। यह सं ान शु से ही एक मह वपूण भू मका नभा रहा है। ापना के चरण। भारतीय
कला को वै क तर पर लाने म ल लत कला अकादमी ने मह वपूण योगदान दया है। ज री
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आजाद के बाद आधु नक सं ान ारा वष भर दश नय और शै क काय म का आयोजन कया जाता रहा है। अकादमी ारा आयो जत
कला आंदोलन
वा षक रा ीय दशनी क शु आत म ई थी और यह काय म साल दर साल इसी म म होता रहा है। इस
दशनी के अलावा वा षक भारत के प म जानी जाने वाली अंतरा ीय कला दशनी व स है। म शु
ई यह दशनी हर साल म आयो जत क जाती है जसके मा यम से अंतररा ीय तर पर कला और सं कृ त का
आदान दान होता है और इसम भाग लेने वाले दे श और कलाकार के बीच सामंज य ा पत होता है।

इस सं ा क अ य रा य शाखाएं भी े ीय तर पर काय कर रही ह जो नए कलाकार और कला परंपरा को आगे


बढ़ाने म मह वपूण भू मका नभा रही ह।
ये े ीय शाखाएं वतं प से संचा लत होती ह जनम मु य क चे ई भुवने र कोलकाता लखनऊ शमला
जयपुर आ द ह।

. आधु नक कला के व तार म कला सं ान क भू मका

भारतीय कला को आधु नकता का बोध कराने म कला सं ा ने मह वपूण भू मका नभाई है। इन सं ा ने दे श के
मुख शहर और क ब म कलाकार और बु वग को एक सतह पर लामबंद कया और एक ऐसी संरचना का नमाण
कया जसम कला श ा क कृ त नधा रत क जा सके । इन सं ा ने दे श के मुख शहर और क ब म कलाकार
और बु वग को एक सतह पर लामबंद कया और एक ऐसी संरचना का नमाण कया जसम कला श ा क कृ त
नधा रत क जा सके । और उसम नया योग कया। कला व ालय म पु तकालय कला द घा एवं सं हालय आ द को
समझने क सु वधा मलने लगी।

इन कू ल म कला अ यास के लए उ तम पा म शा मल कया गया था। जसके तहत नई प त क ओर


आक षत होकर कलाकार ने न न ल खत े आदश और च क भाषा ा त क । ये कला व ालय क य
व व ालय के तहत कला संक ाय के प म और कला संक ाय के प म सरकारी कला महा व ालय व व ालय के
तहत ा पत कए गए थे। जसके तहत व भ कला वषय म कला श ा शु क गई। य कला श ा को मु य
प से रचना मकता को करने क पारंप रक और नवीन शैली के संयोजन के प म दे ख ा जाता है जो व भ
योग के मा यम से कलाकार या छा ारा अपने वयं के वचार भावना और संवेदना को सरल और आकषक
पम तुत करना है। कु छ समय पहले औपचा रक श ा अ यापन के प म कला को अकाद मक के प म अ धक
मह व नह दया जाता था। ले कन आज वै ीकरण के कारण त बदल गई है व भ कला महा व ालय के मा यम
से प टग मू तकला छपाई कला इ तहास एनीमेशन फोटो ाफ आ द अ य श ण पा म का ह सा बन गए ह।

जससे भा वत होकर असं य युवा इन वषय म दा खला लेने और उनका पालन करने और उनका अ ययन करने क
उ सुक ता दखा रहे ह। अत कला सं ान के मा यम से भारतीय कला का व तार हो रहा है।

. . क य व व ालय के अंतगत कला सं ान

व भारती व व ालय शां त नके तन प म बंगाल के तहत एक ल लत कला सं ान है।


जहां कला भवन म समय के अनुसार कला संगीत श प आ द के पा म संचा लत होते ह।
इसक ापना म ई थी और इसके सं ापक स क व च कार रव नाथ टै गोर रहे ह। इस ान पर व
भारती व व ालय क ापना ई थी और इस व व ालय म भारत के पहले ल लत कला संक ाय क ापना क
गई थी। आर।
कला भवन म श त शवकु मार यहां मुख पद के प म शा मल ए और कला इ तहास और दशनी आ द को एक
नई दशा दे ने म अ णी थे। आज मु य पा म जो पेश कए जा रहे ह वे प टग मू तकला डजाइन ा फक कला
और कला इ तहास दोन ह। पीएचडी स हत ड ी और ड लोमा तर। जय ी बमन जोगेन चौधरी प भूषण सोमनाथ
होरे प ी कै लाश चं
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कला सं ान और भारतीय कला प र य


लोक और आ दवासी शैली से े रत मेहर प भूषण ए. रामचं न ट नमाता कृ णा रे ी प भूषण के जी सु म यम पर इसका भाव
राम ककर बैज वनोद बहारी मुख ज शंख ो चौधरी नंदलाल बोस आ द पूव छा ह। इस सं ा से जुड़े कई नाम
भारतीय कला के दपण के प म दे ख े जाते ह ले कन सभी को रेख ां कत करना संभव नह है।

बनारस ह व व ालय के तहत य कला संक ाय म ा पत कया गया था।


इस सं ा म नातक और नातको र तर पर प टग टे सटाइल डजाइन मू तकला और सरे मक काय म पेश कए
जाते ह और साथ ही साथ शोध के अवसर भी यहां दान कए जाते ह। इस संक ाय म ी राय कृ ण दास क सेवाएं
मह वपूण थ जो व व ालय म कला भवन क ापना म भी मह वपूण ह। पूव म स कलाकार ी के .एस. ारा
योगदान दया गया था

कु लकण जो इस संक ाय के अ य रहे ह। वतमान संदभ क बात कर तो छा म रचना मक वचार को वक सत करने


के साथ साथ उ मता को बढ़ावा दे ने के लए नरंतर यास कया जा रहा है। ऐसा होता आया है क छा समाज म
सकारा मक भू मका नभा रहे ह और पूरे दे श क कला मक ग त व धय म सामंज य ा पत कर रहे ह।

जा मया म लया इ ला मया व व ालय म ल लत कला और कला श ा वभाग क ापना म ीअ ल


कलाम ारा कला के एक सं ान के प म क गई थी जो कल को एक आव यक और साथ ही आधु नक कला बनाने
के उ े य से वतं भारत के वतं वचार से भरा था। आधु नक भारत म श ा आम आदमी को लाभ प ँचाने के
लए। नरंतर यास के बाद म इस कला सं ान और श प श ा वभाग को श ण श ण संक ाय के
अंतगत शा मल कया गया। म एक लंबे अंतराल के बाद इस वभाग को नातक तर और नातको र तर पर
च कला मू तकला कला इ तहास कला श ा ा फक कला स हत वतं ल लत कला संक ाय के प म वीकृ त
मली। संक ाय ी रामचं नायर ज तदास ववान सुंदरम और परमजीत सह आ द जैसे स कलाकार से सुस त
है।

अलीगढ़ मु लम व व ालय म म म हला कॉलेज के नाम से एक कॉलेज था जसम मु य प से ल लत कला


का वषय पढ़ाया जाता था। बाद म म प टग म नातको र काय म के वल म हला छा के लए शु कया गया
था। कला संक ाय के तहत ल लत कला वभाग वष म ा पत कया गया था और वभाग ारा दो ावसा यक
पा म शु कए गए थे म एमएफए और म बीएफए एम. फल और पीएचडी के साथ। म।

इलाहाबाद क य व व ालय क शु आत म प टग म ड लोमा तर के पा म के साथ उस समय कलाकार


और के एन के मागदशन म ई थी।
मजूमदार क ापना क । नातक तर पर काय म म शु आ और दस साल बाद म एमएफए शु
कया गया था। वतमान म प टग ावहा रक कला मू तकला और ा फक कला म पीएचडी एमएफए बीएफए
वशेष प से म हला के लए साल के पेशेवर श ण श ण क पेशकश क जा रही है।

म हेमवती नंदन ब गुण ा गढ़वाल व व ालय म ाइंग और प टग वभाग के नाम से एक नातक तर का


पा म शु कया गया था। इसके बाद म मा टर तर का पा म शु कया गया था। आज कला वषय
म पीएचडी काय म भी अनुसंधान को मजबूत करने के लए आयो जत कया जाता है। असम व व ालय म सतत
कला वभाग जसे उ र पूव भारत म पहले व व ालय के प म जाना जाता है। इस वभाग ारा लगातार बीवीए
चलाया जा रहा है वजुअ ल आट् स वभाग के तहत नातक काय म के प म और बजनेस आट प टग के लए
एमवीए काय म और कला का े मू तकला म अनुसंधान म भी पीछे नह है और पीएचडी के प म अपनी मह वपूण
भू मका नभा रहा है। अव ध।
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आजाद के बाद आधु नक


इं दरा गांधी रा ीय मु व व ालय नई द ली म कू ल ऑफ परफॉ मग एंड वजुअ ल आट् स क ापना सतंबर
कला आंदोलन
को ई थी। यह कला सं ान फरवरी के बाद व व ालय के मु यालय म स य प से काय कर रहा है जसम
ोफे सर डॉ। सुनील कु मार के सं ापक नदे शक ह। व ालय। ारंभ म कू ल ने ओपन और ड टस मोड के मा यम से प टग
ए लाइड आट ह तानी और कनाटक संगीत भरतना म डांस और थएटर आट् स म स ट फके ट ो ाम क पेशकश क ।
म प टग ह तानी संगीत और रंगमंच कला म तीन नातको र काय म नय मत प से कपस काय म के पम
पेश कए गए थे। दो बैच के बाद इन काय म को बंद कर दया गया। वतमान म कू ल ल लत कला संगीत और रंगमंच
वशेष ता एमए ाइंग और प टग बीए संगीत थएटर कला म ड लोमा और अ य माणप काय म म दशन और
य कला म पीएचडी क पेशकश कर रहा है।

पुरा व व ालय जो ल लत कला वभाग का गठन करता है से ल लत कला ाइंग और प टग मू तकला म ड ी


तर पर कला परंपरा को आगे बढ़ा रहा है और से अनुसंधान क ड ी। राजीव गांधी क य व व ालय म ल लत
कला और संगीत वभाग क ापना क गई थी शै णक स और संगीत और ल लत कला म नातक तर क
ड ी दान करना। इसी ंख ला के व तार म हमाचल दे श क य व व ालय ारा धमशाला हमाचल दे श म म
ल लत कला एवं कला श ा संक ाय क ापना क गई है और शै णक काय म म शु आ। ल लत कला वभाग
मक य व व ालय म शु आ। म णपुर। भारत के उ र पूव े क आव यकता को पूरा करने के लए कू ल
ऑफ मै नट ज कू ल जसम वभाग है प टग ावहा रक कला मू तकला और ा फक कला क पेशकश कर रहा है। उ र
भारत के बाद म य भारत म त म य दे श म तक य व व ालय सागर और डॉ. ह र सह गौर व व ालय को भी
ल लत कला और दशन कला से संबं धत वभाग और पा म क ापना के लए वीकृ त मली है। व व ालय से संब
कई कॉलेज पहले से ही कला से संबं धत काय म आयो जत कर रहे ह।

. . रा य सरकार के अधीन कला सं ान

रा य के व व ालय के अंतगत कला सं ान पूव से ही आयोजन करते रहे ह। ले कन आज दे श म कला के त बढ़ते झान
को यान म रखते ए भारत म नय मत कला सं ान भी शु हो रहे ह जनका योगदान आजाद के बाद के समकालीन कला
प र य को रेख ां कत करता है। सं कृ त और रचना मक अ भ को दशा दे ने के लए च कला मू तकला ा फक कला
कला का इ तहास य शासन फै शन डजाइ नग फोटो ाफ आ द जैसे छा क च को यान म रखते ए कई पा म
शु कए गए ह। बीए बीएफए व भ वषय के लए ड लोमा स ट फके ट रसच पीएच.डी शु कया गया है। तदनुसार
व व ालय और कॉलेज के व भ वभाग बीए बीएफए बीवीए एमएफए एमवीए और अनुसंधान काय म म पा म
संचा लत कर रहे ह। समकालीन कला ग त के पथ पर अ सर है। इस संदभ म हम वतं ता के बाद छ ीसगढ़ रा य क
भू मका को एक अतुलनीय शैली म पाते ह। इं दरा कला और संगीत व व ालय खैरागढ़ प मी भारत म कला को बढ़ावा दे ने
म मह वपूण भू मका नभा रहा है। कोलकाता टे ट यू नव सट ऑफ आट एंड ा ट पटना का आट एंड ा ट कॉलेज फै क ट
ऑफ फाइन आट् स गुवाहाट यू नव सट असम सर जेज े कॉलेज ऑफ आट् स मुंबई महारा भारती आट कॉलेज पुण े फाइन
आट् स कॉलेज गोवा पणजी गवनमट दे वललीकर इं ट ूट ऑफ फाइन आट् स इंदौर म य दे श राजा मान सह तोमर संगीत
एवं कला व व ालय वा लयर रा य ल लत कला सं ान म य दे श। ल लत कला महा व ालय लखनऊ व व ालय
य कला संक ाय एमएल सुख ा ड़या व व ालय उदयपुर ल लत कला संक ाय राज ान व व ालय जयपुर सरकारी कला
और श प महा व ालय म ास चे ई जवाहरलाल नेह वा तुक ला और ल लत कला
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यू नव सट हैदराबाद आं दे श और ेम राज गवनमट वजुअ ल आट कॉलेज मैसूर कनाटक आट काउं सल कॉलेज कला सं ान और भारतीय कला प र य
पर इसका भाव
ऑफ फाइन आट् स कनाटक बगलोर गवनमट फाइन आट् स कॉलेज व म के रल वजुअ ल आट् स वभाग मह ष
दयानंद यू नव सट ह रयाणा प टग वभाग कु े यू नव सट ह रयाणा फै क ट ऑफ फाइन आट् स ल लत कला
कला वभाग कु माऊं व व ालय डॉ जे जयल लता संगीत और ल लत कला व व ालय चे ई वन ली व ापीठ
राज ान कला वभाग महाराजा सूरजमल बृज व व ालय भरतपुर राज ान ल लत कला वभाग छ प त शा जी
महाराज व व ालय कानपुर कला वभाग चौधरी चरण सह व व ालय मेरठ उ र दे श ल लत कला सं ान डॉ.
भीमराव अंबेडकर व व ालय आगरा ल लत कला संक ाय द न दयाल उपा याय व व ालय गोरखपुर और पं डत
लखमीचंद टे ट यू नव सट ऑफ परफॉ मग एंड वजुअ ल आट रोहतक आ द भी व भ पा म के मा यम से कला
के व तार म मह वपूण भू मका नभा रहे ह। अ भनव तरीक के साथ।

. यूरोपीय आधु नक वृ य का भाव

कला सं ान पर

कला म आधु नक युग न के वल नई संवेदना और उ ह करने क नई तकनीक के वकास के साथ शु होता है


ब क नई आ या मक खोज और उ ह स पने के नयम के साथ भी शु होता है। य क अ य धक प र म क
दासता से मु होकर मनु य का मन जी वकोपाजन के लए आधु नक नया म का प नक े म भटकता रहता है
इस लए कल भी ापक और व वधता ा त ई है जो अभूतपूव है। जैसा क पछले खंड म चचा क गई है
य क यह खंड वतं ता के बाद क अव ध पर आधा रत है। भारतीय कला क शा ीय वृ य म च न होने के
कारण भारतीय कला को अ तरा ीय तर पर वाद के साये म कह न कह वयं को त ब बत करना पड़ता है।
भारतीय कलाकार अपने ववेक से तकनीक योग म वयं को अ भ करने म लगे ए थे। जसका साफ असर
के दशक म दखने लगा। ले कन इस काल म भारतीय कला क दो वपरीत दशाएँ कला को त ब बत कर रही
थ पहला यूरोपीय कलाकार और सरा बंगाल कू ल।

बंगाल कू ल ढ़वाद होने के कारण भारतीय कला को एक नया वातावरण दे ने म असफल रहा। इसके वपरीत कु छ
मुख कलाकार ने भारतीय कला को आधु नक होने के लए े रत कया। इसने लोग के समथन से माग श त करने
म मह वपूण भू मका नभाई। उनके नाम इस कार ह रव नाथ टै गोर गगन नाथ टै गोर अमृता शेर गल या मनी रॉय
जॉज क ट नकोलस रो रक आ द। साथ ही अ तयथाथवाद अ भ वाद भाववाद और घनवाद आ द जैसे
यूरोपीय आधु नक झान का भाव प रल त होने लगा। भारतीय कला सं ान के काय म और कलाकार ने अपने
काम म सुधार कया।

न न ल खत यूरोपीय कला वृ य के संदभ म भारत म भाववाद घनवाद अ तयथाथवाद आ द का कोई उ लेख नीय
कलाकार नह था। भारतीय कलाकार का झुक ाव अ भ वाद क ओर सही था। हालां क भारतीय कलाकार ने
अपने तर पर इन वाद म यादा दलच ी नह दखाई। इस दशा म कलाकार ने वदे शी कला था को वक सत
करने का भी यास कया जसम लोक कला आ दम कला लघु च अजंता भ च और तां क कला के मह व
को पूरी तरह से समा हत कया गया है। ऐसे म कला क उ त और कलाकार का उ े य इस काल क कु छ नई
पर तय का व ेषण करना था। ऐसे कलाकार का सबसे भावशाली वग वह था जसने कला को दे श क सीमा
से उभारा और उसे एक बु नयाद और सव ाकृ तक प दया। यह समकालीन कलाकार का एक वग है स
भारतीय च कार सैयद हैदर रज़ा क एक अ भ कला के े म मह वपूण काय करने वाले दे श क सूची य द
आज बनाई जाए तो न त प से भारत का नाम होगा।
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आजाद के बाद आधु नक


उनम शा मल ह । रजा के मत से है क आधु नक वृ य का सं ा और कलाकार पर भारतीय भाव का
कला आंदोलन
अ ययन वकासशील म म कया जा सकता है। जससे आज भारतीय कला सं ान और कलाकार ने अंतररा ीय
तर पर अपनी धाक जमाई। आधु नक युग म कला सं ान दे ख रहे ह नए योग कला सं ान जो पहले ड लोमा तक
सी मत थे को आगे के शोध के लए नातक नातको र और पीएचडी स हत ड ी तर के पा म के साथ अप ेड
कया गया है। पहले जहां कला सं ान सफ एक इकाई थे आज दे श म कला के वकास के लए रा य और क य
व व ालय को एक मह वपूण सं ान के प म जोड़ा जा रहा है। कला के मह व को कला नमाण और सां कृ तक
वरासत को मजबूत करने के लए सरकार क नी तय से भी महसूस कया जा रहा है।

. मुख पा चया वषय और

आधु नक कला के भाव

वतं ता के बाद भारतीय कला श ा े म नए प रवतन ए ह। चूं क सभी कला सं ान के तहत ड ी कोस चलाए
जा रहे ह और उनके पास व भ कार के कला सं ान ह ज ह पा म के अनुसार नातक नातको र तर पर
पा म के अनुसार लागू कया गया है। और इन कला के ान को बढ़ाने के लए पीएचडी का भी ावधान कया
गया है। वषय और कला इ तहास वषय से संबं धत ौ ो गक और साम ी का सै ां तक अ ययन भी पा म का
एक अ भ अंग है। छा और कलाकार इन वषय को अपनी गत च के अनुसार चुनते ह। और कला सं ान
के मा यम से व भ तकनीक और मा यम से आधु नक और योग कए गए ह। कु छ मुख लोक य वषय क चचा
इस कार है

. . च कारी

वतं ता के बाद क आधु नक कला के संदभ म च कला पर आधु नक भाव इस तरह प रल त होता है क भारतीय
वतं ता चेतना अपनी वैचा रक मता के मा यम से जनता के भीतर एक ऊजा का संचार कर रही थी। उस ऊजा
का आधु नक भाव सीधे उन लोग पर दे ख ा गया जो कसी भी तरह से संबं धत नह थे जैसा क पहले चचा क जा
चुक है। कलाकार को अपने काम म यूरोपीय कला वाद क एक झलक दखाई द जसके प रणाम व प च कला
क आधु नक शैली सामने आई। उनक परंपरा दै नक सामा जक वषय को शा मल करते ए एक गत शैली के
प म तीत होती है जसके लए कलाकार ने अमूत भाव के साथ स दय शा ीय उ पादन के मा यम से नणय
लया। जसम कलाकार ने आधु नक शैली और य भाषा के सौ दयपरक पहलू के मा यम से तीक छ व आकृ त
अमूत भाव का चयन करने का नणय लया।

टस यू ब म ए स ेश न म अनुवाद से े रत लगता है ले कन वषय का चुनाव पूण भारतीय रहा। इस लए यह


माना जा सकता है क कला सं ान म अ ययन के लए अकाद मक पा म म आधु नक भाव ने अपना ान
सुर त करना जारी रखा है। इसके प रणाम व प वतं ता के बाद क अव ध के बाद से समकालीन प र य म रंग
क एक अलग पहचान बन गई है। अमूत वकृ त के आकार म वचार और वषय को च त करने म आधार ा त
होता है साथ ही व भ मा यम जैसे तेल रंग जल रंग वभाव लकड़ी का कोयला ए लक रंग आ द म प रवतन
होता है जो आधु नक भाव को और अ धक मजबूत बनाता है।

. . मू तकला

भारतीय कला म मू त कला का एक व णम इ तहास है जो सधु स यता काल से व भ युग म दखाई दे ता है। वषय
धा मक रहे ह जो ाप य अलंक रण ह चाहे वह द ण भारत का मं दर हो या तूप या
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मथुरा या मौय तंभ और कु छ कलाकृ तयाँ सं हालय म संर त ह। अतीत म मू तय को बनाने वाले कलाकार को कला सं ान और भारतीय कला प र य
पर इसका भाव
श पी कहा जाता है। भारतीय मू तकला टे राकोटा फाइबर हाथ क बुनाई म के बतन पेपर माचे कां य आ द म
आधु नक भाव के वकास को आधार बनाने के लए श प कौशल का वकास जारी रहा। आज मू तकला का व तृत
वकास प से इस वकास के लए एक सेतु के प म दे ख ा जाता है।

दे वी साद राय चौधरी के मू त श प का कला मक सौ दय दशनीय है। वह ांसीसी भाववाद मू तकार रो डन के


तरीक से भा वत थे। उनक रचनाएँ भारतीय सामा जक संदभ म ह। उ ह ने अपने श प को अपने श य को दान
कया और अपनी शैली बनाने के लए माग श त कया जो कसी वशेष वचार या वचारधारा से जुड़ा नह था।
शां त नके तन के राम ककर बैज पहले आधु नक मू तकार के प म और चे ई के सु यालु धनपाल अपने अकाद मक
यथाथवाद के लए जाने जाते ह। जसके बाद कई मू तकार जो उनके श य भी थे ने आधु नक परंपरा को आगे बढ़ाने
का काम कया। और भारतीय मू तकला म नए आंदोलन का प मू त से रचना मक अ भ क ओर चला गया है
और साम ी भी बदल गई है।

अब सीमट कांसे धातु क लेट ला टर फाइबर और असब लग इं टालेशन आ द के लए इ तेमाल होने वाले अ य
म त मी डया का उपयोग करके सभी कार के योग कए जा रहे ह।

. . ा फक कला मु ण बनाना

जब हम आजाद के बाद क आधु नक कला क बात करते ह तो रचना मक अ भ का एक उभरता आ मा यम


दखाई दे ता है। ारं भक छपाई ने एक प लया जसम कलाकार ने कला के काम को बनाने के लए तकनीक का
इ तेमाल कया। जैसा क हम सभी जानते ह ट बनाना पूव काल म अपने आप को एक संक ण वातावरण म समे कत
करता था जो मानव आ मा को आनंद लेने के लए पया त नह था। इस लए इसने अभूतपूव वै ा नक उतार चढ़ाव दे ख े
और खुद को ग त के पथ क ओर धके ल दया जहां शु म लोग लकड़ी के लॉक या लनो कट का उपयोग करते थे।
माग श त करते ए ट मे कग लेटर ेस लथो ाफ ऑफसेट े ोर न ट ले सो ाफ लानो ाफ
न क़ाशी इंटै लयो और ॉस है चग ने इसका अथ ढूं ढ लया है। इन तकनीक का उपयोग करके आधु नक नया के
छा और कलाकार ग त के नए रा ते ा पत कर रहे ह।

वतं आधु नक भारतीय ट कला के वकास म तीन चरण ह। पहला चरण का बेहद खास दौर था जसक
शु आत कं वल कृ णा ने द ली म क थी। यह चरण उस समय ट कला म एक अ णी और शायद सबसे उ ेज क था
जब यह कला का एक नया े था। जस समय यह एक नया े था यह कला प रणाम के चरम पर प ंच गई य क
कलाकार ने अपना समपण और वचार को उसम डाल दया। यह कला उ पाद और क पना श से भरपूर थी जसने
दबाव क भावना पैदा क और वतमान सफलता का आधार बनाया। इसके बाद दोन चरण आपस म जुड़े ए ह। वष
जो म य और शै क काल है और इसके क म कला कॉलेज द ली है। यहां सोमनाथ होरे शां त और सादगी
को यान म रखते ए श क होने क इस कला का अ यास कर रहे थे। जैसा क उ ह ने छा को एक असमान तभा
टम ौ ो गक म पूण तावाद ले कन ट क कला म कु छ हद तक ढ़वाद के पम श त कया और अपने छा
को उ ह ट नमाता बनाने के लए े रत कर रहे थे। तीसरे चरण को हम अ सीव और उ ीसव भाग म वभा जत कर
सकते ह। जब व भ संक ाय वतं समूह ट कायशालाएं दश नयां और कला मेले अ त व म आ रहे थे और अपनी
पहचान बना रहे थे।

. . अनु यु कला

आजाद के बाद पूरे भारत म उ साह क लहर दौड़ गई जहां उ ोग और कं प नय ारा पो टर और व ापन छापे गए।
जसम कला मक ढं ग से क गई प टग आधु नक मुक दमेबाजी का असर दखाती ह। जंगम
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आजाद के बाद आधु नक


कला आंदोलन
धातु के कार ने संचार के ापक चार के लए मा यम को पंख दए।
के दशक म फोटो कं पो ज टग का उपयोग कया जाने लगा और बीसव शता द के अंत तक कं यूटर ारा
टाइपो ाफ ा फक डजाइ नग के प म अ त व म आई जसने वतमान प र य म अपना रा ता बना लया। वष
को भारतीय डजाइन इ तहास का व णम काल माना जाता है। म ई स दं प ने भारत सरकार को
भारतीय डजाइन संबंधी सम या और डजाइन काय म के बारे म एक रपोट तुत क । ए स क सलाह के आधार
पर अहमदाबाद गुज रात रा य म रा ीय डजाइन सं ान एनआईडी को डजाइन और य संचार डजाइन के
अनुसंधान काय और श ण के लए उ ोग मं ालय भारत सरकार ारा एक वाय संगठन के पम ा पत कया
गया था। भारतीय उ ोग जगत म इस सं ा के स चव मू तकार दशरथ पटे ल क पहली नयु ई थी। डजाइन
अ त व को एक मह वपूण ान के प म रखने के लए इस सं ान ने औ ो गक डजाइन और य संचार डजाइन
के श ण म मह वपूण भू मका नभाई और ा फक डजाइनर और व ापन क नया म भू मका नभाई। इसी तरह
कई कला वभाग ने ावसा यक कला म पा म शु कए ज ह बाद म अनु यु कला कहा गया। इस संदभ म
कला सं ान का उ े य औ ो गक के सामा जक वकास के संबंध म कला और डजाइन के स ांत और वहार पर
वशेष प से लागू करना और सीखने और सखाने के लए नरंतर या ान क मता होने से रचना मकता को
बढ़ाना था। कला का े । रंग और डजाइन से संबं धत अनुशासन के लए ौ ो ग कय और या के नवीन
अनु योग का पता लगाना। अनु यु कला के तहत व भ े म अवसर ा त कए जा सकते ह सूचना
ा फक व ापन डजाइ नग पैके जग कॉप रेट पहचान डे कटॉप काशन ान काशन टाइपो ाफ फोटो ाफ
और य अ ययन ा फक का इ तहास टोरीबोड के लए ाइंग एनीमेशन च ण बाहरी मी डया काटू न बनाना
उ पाद डजाइ नग लोगो डजाइ नग ा फक आ द।

. योग कर

इस इकाई म हमने कला सं ान के संदभ म व भ ब और भारतीय कला प र य म इसके मह व पर चचा क


है। जो कला सं ान के उ े य और उन पर आधु नक कला वृ य के भाव को दशाता है। इसके साथ ही आधु नक
कला के व तार म कला सं ान क भू मका सं ान पर यूरोपीय आधु नक वृ य के भाव को दशाते ए और
रचना मकता और अ भ के व भ प और आ म सा ा कार के मह व पर आधु नकता क झलक को त ब बत
करने के लए चचा क गई है। नया के अनुसार व भ वषय । कला के सै ां तक और ावहा रक पहलु को
वशेष प से लागू कया जाना है जो कला के े म सीखने और सखाने के लए या मक ान क मता रखते
ए रचना मकता पैदा कर रहे ह। कला को कृ त से जोड़ती है जसम वह संवेदना और सामा जक वृ य
को अंकु रत करने म मदद करती है। कला म आधु नक युग क शु आत न के वल नई संवेदना और उ ह करने
क नई तकनीक के वकास से होती है ब क उ ह नद शत करने के लए नई आ या मक खोज और नयम से भी
होती है। इसके व भ पहलु को यान म रखते ए इस इकाई के मा यम से हमने यह पता लगाने क को शश क है
क वतं ता के बाद के भारतीय आधु नक कला आंदोलन म कला सं ान ने इसे कै से भा वत और समृ कया।
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कला सं ान और भारतीय कला प र य


. अपनी ग त क जांच कर पर इसका भाव

वतं ता के बाद के मुख कला सं ान के बारे म सं त लेख लख।


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चचा कर क वतं ता से पहले भारतीय कला पर आधु नक भाव कै से दखाई दे ने लगे।

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वतं ता के बाद कस भारतीय कला ने बातचीत को आधु नक नए प म शा मल कया। अपने वचार लख।

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भारतीय कला सं ान म मु य प से कौन से वषय पढ़ाए जाते ह उस पर एक नोट लख।


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. संदभ और आगे क पढ़ाई

अ वाल डॉ. गरराज कशोर मॉडन प टग अलीगढ़ ल लत कला काशन ।

बलराज ख ा अजीज कु था। आधु नक भारत क कला। लंदन थे स एंड हडसन .


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आजाद के बाद आधु नक भार ाज वनोद रामचं न आट व फ ट ए डशन नई द ली टडड बुक एजसी ।
कला आंदोलन

चतुवद डॉ. ममता समकालीन भारतीय कला जयपुर राज ान हद ंथ अकादमी ।

समकालीन कला अंक नवंबर ल लत कला अकादमी संपादक डॉ. यो तष जोशी।

सं कृ त नमाण और भारतीयता कला भारती खंड दो। पीयूष दै या नई द ली ल लत कला अकादमी ारा संपा दत।

डॉ. आर.ए. अ वाल कला वलास भारतीय छा कला का वकास अंतरा ीय काशन गृह मेरठ

गरोला वाच त भारतीय च कला का सं त इ तहास लोकभारती काशन इलाहाबाद ।

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कपूर गीता. आधु नकतावाद कब था भारत म समकालीन सां कृ तक अ यास पर नबंध। नई द ली तू लका .

ख ा बलराज अजीज कु था। आधु नक भारत क कला। लंदन थे स एंड हडसन .

कृ णदास। राय भारतीय च कला इलाहाबाद भारती भंडार डीसी

कु मार डॉ. सुनील भारतीय छप च कला आ द से आधु नक कल तक भारतीय कला काश एनबीट नई द ली ।

लाज मॉडन आट ड नरी नई द ली वाणी काशन ।

मागो ाण नाथ। समकालीन कला का रा ीय व तार। नई द ली एनजीएमए ।

मागो ाण नाथ भारत क समकालीन कला एक प र े य। द ली नेशनल बुक ट ।

मॉडन इं डयन प टग आगरा संज य काशन ।

राठौर मदन सह आधु नक भारतीय च कला म अ तयथाथवाद जयपुर शमा प ल शग हाउस।

साखलकर आरएस ह ऑफ मॉडन प टग जयपुर राज ान हद ंथ अकादमी ।

साखलकर आरएस इंटर टे शन ऑफ आट् स जयपुर राज ान हद ंथ अकादमी ।


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स हा स दानंद अ प और आकार नई द ली ल लत कला अकादमी । कला सं ान और भारतीय कला प र य


पर इसका भाव

ीवा तव एएल इं डयन आट। इलाहाबाद कताब महल ।

वमा अ वनाश बहा र भारतीय च कला का इ तहास। बरेली काश बुक डपो ।

वमा नमल भारतीय परंपरा और समकालीन जीवन। भारतीय कला अनजाने से। नई द ली। स ता
सा ह य मंडल ।

यादव नर सह व ापन तकनीक और स ांत जयपुर राज ान हद ंथ अकादमी ।

यादव नर सह ा फक डजाइ नग जयपुर राज ान हद ंथ अकादमी ।


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आजाद के बाद आधु नक


कला आंदोलन इकाई लोक और जनजातीय का भाव
भारतीय कला पर कला

. उ े य .

सीखने के प रणाम
. प रचय

. लोक और जनजातीय कला क उ प और वकास

. भारत क मुख लोक और जनजातीय कला


. . वाल कला

. . मधुबनी कला

. . ग ड कला

. . भील कला

. . तंज ौर कला

. . ॉल प टग

. . कालीघाट प टग

. वतं ता के बाद क आधु नक कला म लोक और जनजातीय कला का भाव . मुख कलाकार

का लोक और जनजातीय कला से भाव

. सारांश . अपनी ग त

क जाँच कर

. संदभ और आगे क री डग

. उ े य

इस इकाई के उ े य ह

भारतीय लोक और जनजातीय कला क पृ भू म और उसके सां कृ तक पहलू को जान।

भारत के व भ े ीय लोक और जनजातीय कला के दशन का वणन कर।

इन कला क वशेष शैली और तकनीक पहलु को समझ।


आधु नक कला पर लोक कला के भाव और उसके आशय का वणन क जए।

स च कार मू तकार का वणन कर सकगे जनक कलाकृ तयाँ लोक और जनजातीय कला के पम
उभरी ह।

. सीखने के प रणाम

इस इकाई का अ ययन करने के बाद आप स म ह गे

भारतीय लोक और जनजातीय कला के इ तहास और सं कृ त का उपयोग कर और अपने जीवन म इसका उपयोग कर।

भारत क व भ े ीय लोक और जनजातीय कला का व ेषण क जए।

लोक कला क तकनीक और वधा से ेरणा लेक र लोक कला का सृज न कर।

लोग और कलाकार से भा वत होकर उनसे लोक कला क बारी कय का अनुसरण कर सकगे।

लोक तीक और छ वय का अनुसंधान और उपयोग कर।


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लोक और जनजातीय कला भाव


. प रचय

अगर हम कसी दे श क आ मा को जानना चाहते ह तो उसक सं कृ त और स यता ही उसके बारे म समझने का


एकमा वक प है। इ तहासकार एमसी व कट के अनुसार कसी भी दे श क स यता उसक जनसं या और सं कृ त से
प रल त होती है। सहायता के प म मागदशन ा त करना नतांत आव यक बनाता है। कला अ ययन के
प रणाम व प उनके रहन सहन के री त रवाज को अ धक सू मता से जाना जाता है और इस लए कला कसी भी
दे श क लोक सं कृ त परंपरा का त बब है। भारतीय सं कृ त क जा तय और जनजा तय म पारंप रक कला
क आ या मक और भावना मक एकता को दशाने वाला अतीत अ ु ण पम ा पत आ है। भारतीय जनता और
आ दवासी कलाएँ इतनी जीवंत और भावशाली ह पारंप रक और सरल होते ए भी दे श क समृ स यता क समृ
का अनुमान उ ह से लगाया जाता है। लोग समाज क धा मक मा यता का पालन करते ह सामा जक वहार णाली
और अनु ान का अ यास कया जाता है यह एक सां कृ तक पहचान बनाता है। लोक कला मअभ के लए
यु संसाधन प रवेश से संबं धत होते ह। प टग के लए कृ त से म चाक पेड़ और फू ल के प आ द से रंग
नकाले जाते ह। यह उन वषय म च लत है जो वतं ता के बाद आधु नक कला से भा वत नह ए ह। भारत के
आधु नक कलाकार लोक और आ दवासी कला के वषय और च से े रत ए ह।

. लोक क उ प और वकास और
जनजातीय कला

कला और जातीय समाज का गहरा अंतसबंध है जब क मानव लोक क एक इकाई है और उसका अपना गठन है।
अनुभू त और चेतना का वकास समाज और सं कृ त से भी जुड़ा है। और कला को सामा जक सं कृ त अनुभू त का
अंग माना गया है। इस लए जब भावना के संके त कए जाते ह तो कला संके त सामने आते ह। लोक और आ दवासी
कलाएं कृ त से जुड़ी ई ह और इसक ा या करना संभव है या जसके मा यम से कलाकृ त संभव है।

च . पंचमनी हल पर ागै तहा सक प टग ोत http

www.bradshawfoundation.com india pachmarhi index.php

भारतीय लोक और जनजातीय कला के इ तहास और वकास पर एक वहंगम अ नवाय है। एक साथी के पम
अपने सहज प म भारतीय च कला
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आजाद के बाद आधु नक मनु य के वकास के आ दम सं कार ा त होते ह। आ दम कलाकार ौ ो गक के साथ अ धक सहज ह य क
कला आंदोलन
उनके अमूत लोक भाव कट करण क ओर अ धक उ मुख थे। उ ह ने अनंत संभावना को आकार दे ने के लए
उसी के अनु प पृ भू म का उपयोग कया। जहां मानव क इस अ भ के पीछे प टग क उ प के ारं भक
ोत छपे ह। सरी ओर लोग अ यास क सहायता से रेख ा च और अमूतन का उपयोग करते ह। उनके जीवन
क कोमलता भावना और संघषपूण जीवन क जीवंत झांक । मानव कलाकृ तयां आज भी सुर त ह। शु से
लेक र आज तक मन क रेख ा और आकार टकटक और कषण के मा यम से अपनी भावना को करते रहे
ह।

लोक कला के इ तहास और वकास के स दभ म कसी दे श काल क सं कृ त एक मह वपूण भू मका नभाती है


जसम कहा गया है क कसी भी दे श क सं कृ त उसक अपनी आ मा होती है जो उसके संपूण मान सक कोष को
सू चत करती है। यह ागै तहा सक युग क आ या मक श पर भी जी वत रहने म स म है और परक
अभ य और आकार के मा यम से कृ त को च त करने के लए उपयोग कए जाने वाले परक भाषा
संके त का अ ययन करने के लए अ ययन म आता है क के आसपास के पयावरण क मृ त को बनाए रखने के
लए पाषाण युग म मनु य ने अपनी वजय और अपनी गुफ ा के इ तहास को करने क भावना से इन च का
नमाण कया। गुफ ा वासी क अपनी भावना को मूत प दे ने क वृ । जस कारण जा टोना आधे म आता
है अ धकांश च क रचना क गई है यही संपूण मानव जा त का ेरक या ग त है ।

च . बो धस व प पानी गुफ ा नं। अजंता

ोत https commons.wikimedia.org wiki File Bodhisattva Padmapani cave अजंता


भारत.जेपीजी
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गुफ ा म ागै तहा सक और ाचीन से लेक र बौ लोक और जनजातीय कला भाव काल तक च त कला का एक य बौ च कला से उ लेख नीय है जो
गुफ ा और मं दर म वक सत आ और इन मानवीय अ भ य को भ च म उ कृ ता के साथ कया गया है। अजंता के च म साम ी मु य
प से बौ धम से संबं धत है और जातक कथाएँ उनका क ह। बु क ज म लोककथा को बौ काल के बौ भ ु ारा खूबसूरती से च त कया
गया है प टग चार का मा यम बन गई। कला तीका मक है और लोक य भाषा भी अ भ का एक वाभा वक साधन था। अजंता प टग के साथ साथ
बाग गुफ ा प टग जनक मौ लकता और वशेषताएं ह। इनम बौ धम के साथ साथ समाज और लोक जीवन को भी तुत कया गया है। इस संबंध म एएल
ीवा तव का मानना है क बाग का च ण अंज ता के त कालीन च से मेल खाता है।

च . महावीर नवाण पर क पसू फो लयो

ोत https en.wikipedia.org wiki Kalpa S C ABtra media File Kalpasutra


महावीर नवाण.jpg

एक गुफ ा म अपना मुंह ढँ क ती रोती ई म हला च ब त भावुक कर दे ने वाले ह। इसी तरह च म च और भाव
क अभ लोककथा के पूववृ को मा णत करती तीत होती है। इतने कम समय म अगर हम अलग अलग
तरह क प ट स पर नजर डाल तो हम पाते ह क अलग अलग म ययुगीन प ट स क अपनी अलग अलग शै लयां ह
जनक एक अलग पहचान है। य द म यकालीन जैन शैली क बात कर तो इसम महावीर और लोक सरोकार से संबं धत
च मलते ह। एक अ य गुज रात शैली को जैन शैली माना जाता है। कु मार वामी क राय म म यकालीन लघु च कला
परंपरा ाचीन शा ीय परंपरा से अलग एक उ वग क लोक कला थी।

जस अनुपात म लोक पैटन और तीक को एपो ोफ क शैली म गढ़ा गया था उसे दे ख ते ए हम पाते ह क इन
च म मानव आकृ तय के चेहरे ह और एक ही शैली से बने ह। नाक ल बी और अनुपात से अ धक नुक ली होती
है। प र ध गाल क सीमा रेख ा को पार कर गई है। चेहरा एक ही पहलू और एक ही आकार कार से बना है। चबुक
चपट और छोट होती है आम क गुठली क तरह आंख करीब और बड़ी ख ची जाती ह। और वे दो व ारा र चत
ह। पुतली बनाने के लए इन व के बीच एक ब रखा जाता है जो अनुपातहीन और गोल होता है। आंख के चेहरे क
सीमा से बाहर और बाहर क ओर होने के कारण आंख म उ ता का आभास होता है। आकृ तय का अ तर कठोर
कमजोर और अ य धक अलंकृ त है। पेट का ह सा ब त बड़ा होता है और छाती ए बॉ सग से बनी होती है। पशु प ी
और मानव आकृ तयाँ कपास के पोखर या गुज राती कठपुतली से मलती जुलती ह। ये पांक न लोग क लोक
भावना क ओर वृ होते ह इस लए वे आम जनता क अ भ को दशाते ह।
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आजाद के बाद आधु नक


कला आंदोलन

च . बानी थानी नहाल चंद कशनगढ़ लघु च कला

ोत https en.wikipedia.org wiki Bani Thani media File Radha Bani


थानी कशनगढ़ ca. National Museum New Delhi.jpg

राज ानी च कला ने अपनी मौ लकता को बरकरार रखते ए लोक और जनजातीय कला क व श अ भ के
लए कई तरह के तौर तरीक का इ तेमाल कया है। इसक ेरणा मूल प से लोक कला है फर भी यह माना जाता है
क आ दपुराण जैसे ंथ ने राज ानी च कला का माग श त कया है। राज ानी च कला भी शाही दरबार से
ेरणा लेती है। दरबारी जीवन के साथ साथ संगीत और नृ य के व भ च का उ लेख कया गया है। इन प ट स ने
पट श से राग रा ग नय क रंगत को संपूण सं कृ त तरीके से नकालने का काम कया है। राज ानी च कला म इन
च ारा लोक आकृ तय के च ण म एक संपूण परंपरा के लोक च ह।

यही कारण है क इस प टग को इसके व श आकार प से अलग कया जा सकता है। इस से इसे अजंता के
हाथ इशार और अंग का उ रा धकार कहा गया है। अजंता के च वतः ही लोक मा यता क पृ भू म पर आधा रत
ह। व भ संघ म न मत कलाएँ वयं को लोक था से जोड़ती रही ह। इसी म म मुगल कला च कला म लोक
तीक को द शत कए बना शखर को नह छू सकती थी। मुगल शैली से संबं धत लोक पारंप रक च कार ने
राजघराने से संबं धत च म ानीयता को प रभा षत और त ब बत कया।
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पहाड़ी लोक कला का भी भारतीय च कला म मह वपूण योगदान है। भारत का भ लोक और जनजातीय कला भाव आंदोलन उस युग म पहाड़ी च कला
का वषय बन गया जसम यह पूरे दे श म फै ल गया। इस मामले म यह माना जाता है क वै णववाद राज ान और उ री भारत के मैदानी इलाक तक ही
सी मत नह था ब क पहाड़ी े तक भी प ंच गया और पहाड़ी च कार क ेरणा बन गया। बसोली शैली म वै णववाद क वचारधारा और भ भावना इस
शैली म दखाई दे ती है इसम व णु और उनके दस अवतार के च ह।

लोक कला का वकास अ तीय प म कट आ है और एक प है दै वीय संके त और परंपरा पर आधा रत


आ ा। उसी के समानांतर सरा प सामा जक था और री त रवाज को दशाता है। तीका मक प म तीक का
समायोजन लोक कला म च के साथ साथ भावना म भी दै वीय श य को प रभा षत करता रहा है। सामा जक
री त रवाज के मा यम से च म चता के और सरल प प रल त ए ह।

भारतीय कला के वकास म लोक कला का वशेष ान है। कला का वकास दरबार म पेशेवर कलाकार के हाथ से
आ है। ले कन गांव म लोक कला दै नक धा मक सां कृ तक पा रवा रक और आम लोग के घर आंगन अ श त
जा तय का वकास बना कसी धूमधाम के आ है। इ तहास शांत और वा य द प म चलता रहा है य क राज
दरबार म जन कलाकार को रखा गया है उनक पृ भू म भी सामा जक और लोक सां कृ तक रही है। इस लए लोक
तीक क उ प भी शाही दरबार से संबं धत च म वाभा वक है।

जब हम वतं लोक कला को दे ख ते ह तो यह हमेशा मौ लक और याग के साथ ग त के पथ पर रही है। जैसा क


ऊपर चचा क गई है लोक कला ागै तहा सक कला जा टोना टोटका तं मं और दै वीय काय आ द के
समानांतर वकास से संबं धत रही है और ाचीन गुफ ा च म पौरा णक सा ह य से संबं धत संके त मले ह जैसे क
वा तक तीक जसे पारंप रक प से लोक कला म दशाया गया है। तो यह माना जा सकता है क आधु नक
पयावरण क लोक कला अना द काल से वक सत हो रही है।

भारत म लोक कलाकार ारा लोककथा क रचना को ृ ा के सहयोग से अलंकृ त पम तुत कया गया है।
जसके अंतगत भारत के व भ रा य म व भ लोक कलाएँ मौजूद ह जैसे महारा क रंगोली और आज के संदभ
म वाल कला गुज रात क सा थया और राज ान क लोक य लोक कला मंदाना चौक पूण उ र दे श म
सांझ ी और बहार म अहपन और मधुबनी बंगाल क अ पना और गढ़वाल और अ मोड़ा क अपना और
म ास कोलम आ द। इन पारंप रक लोक कला म लेख न जमीन पर घर के दरवाजे पर और अंदर कया जाता है।
ाकृ तक रंग और उनक रंगीन साम ी के साथ पूज ा ल आ द। जो कसी शा ीय या अकाद मक शैली म नह कया
जाता है ब क परंपरागत प से सीखने क या को मब तरीके से द शत कया जाता है। लोक कला का
वकास लोग से सीखने के बाद ही होता रहा यह कला सरल प म कट होती रही है।

लेख क भव भू त का यह कथन लोक कला और कलाकार के संदभ म एक मह वपूण वचार तुत करता है जो हम
द शत करते ह वे जानते ह क हम उ ह स करने के लए यह रचना नह बना रहे ह । लोक कलाकार आलोचक क
है सयत और अ त व को वीकार नह करता लोक कलाकार बना कसी वाथ के आ म सुख करता है। लोक य
लोक उ सव लोक कला को कस कार मह वपूण ान दान करते रहे ह इसे दे ख ते ए हम दे ख सकते ह क दे श
के व भ योहार पर अनेक कार के शुभ काय कए जाते ह। और इन शुभ योहार को स करने के लए अनेक
कला का वकास कया गया है जैसे गोबर और म क मू त बनाना
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आजाद के बाद आधु नक


भारतीय उ री े म गोवधन पूज ा । कु माऊं क पहा ड़य म का तक मास के दन शव और उनके प रवार क
कला आंदोलन
तमा और गणगौर तीज क मू तय का नमाण मु य प से राज ान क सं कृ त को प रभा षत करता है। इसी
म म बंगाल म गा पूज ा से संबं धत तमा का नमाण उ र बहार म याम च म थला का मुख पव है। और
उ र दे श म सांझ ी कला करवाचौथ अहोई अ मी र ाबंधन और अ य शुभ अवसर जैसे अ य योहार के साथ
अ पना और लोक तीक को आम लोग ारा बनाया जाता है जो ब कु ल न वाथ और पारंप रक है।

. भारत क मुख लोक और जनजातीय कलाएं

रंगोली महारा क एक लोक य लोक कला है। गुज रात म इसे राज ान म सा थया और मंदाना उ र दे श म चौक
पूण बहार म अहपन बंगाल म अ पना गढ़वाल म अपना और द ण भारत म कोलम कलामेझ ुथु के नाम से जाना
जाता है।
सूख े रंग क साम ी से व भ कार के लेख न का नमाण कया जाता है जसम लोक और धा मक योहार का दै नक
जीवन म उपयोग कया जाता है और साथ ही शुभ अवसर पर आधार के प म भू म का उपयोग कया जाता है।
आलेख न और अलंक रण म मु य प से फू ल क प य वा तक ओम और ॉस लो पग लाइन के मा यम से
उम संके त का उपयोग करके क याण क कामना क जाती है। इसका मह व उनक लोक परंपरा और लोक
जीवन अलंक रण से होता है।
और आज के संदभ म रंगोली के मा यम से मोर गणेश और भारतीय रा वाद जैसी कई आकृ तयां खुद ई ह। भारत
का तीक अशोक तरंगा गांधी आ द वषय के साथ ये लोक कलाकार वतमान समय म सां कृ तक वातावरण का
प रचय दे ते नजर आते ह। इन लोककथा ारा भू म को सजीव बनाने के लए सुंदर ढं ग से बनाया गया अलंक रण।
कोई शा ीय प त नह है इसके वपरीत परंपरा के प म जारी यह शैली लोक अतीत से भा वत और श त है।
ये लोक काय पूरे भारत म लगभग हर घर म कए जाते ह। य प प और आकार और अंक न शैली म अंतर प
से दखाई दे ता है इस लोकगीत के मा यम से भू म पूज न चौक पूण को धा मक भावना से ेरणा लेक र ा से जगाया
जाता है। इस परंपरा का उ े य वंशानुगत म म पाया जाता है जसका मूल उ े य एक सुंदर और सुलभ माग बनाना
और आ या मक और परो अ धकार क पूज ा करना है।

. . वाल कला

महारा क मुख जनजा त वाल


क जी वत जनजा त आज भी
अपनी लोक परंपरा पर
आधा रत है। और इस जनजा त
क लोक कला को ही वाल लोक
कला के नाम से जाना जाता है।
यह प टग आ दवा सय ारा
अपने म से बने घर क द वार
को सजाने के लए बनाई गई थी
इस कला म सामा जक जीवन
और संबं धत वषय को आम
जनता ारा य प से वहां
क दै नक घटना के आधार पर च . वारली प टग ठाणे जला ोत https

मनु य और जानवर के प से en.wikipedia.org wiki Warli painting media


फ़ाइल A Warli painting by Jivya Soma Mashe Thane
संबं धत दखाया गया है। यह
District.jpg
डजाइन म कया गया है।
तकनीक पहलू क बात क जाए तो गे पर सफे द रंग से फाम बनाए जाते ह
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म क एक साधारण द वार पर सतह। कभी कभी इन च म कु छ लाल और पीले रंग के च ह लगाए जाते ह लोक और जनजातीय कला भाव

सफे द रंग का महीन पाउडर चावल को पीसकर बनाया जाता है। इन लोक कलाकार ने मु य प से या मतीय
आकृ तय को अपनाया है और अपने च को ान दया है। आज के प र े य म वाल लोक कलाकार ारा
सामा जक वषय पर लगातार प टग बनाई जा रही ह।

. . मधुबनी कला

बहार क मधुबनी प टग जसे म थला क कला भी कहा जाता है। प टग क वशेषता सट क और ढ़ च के


साथ बनाए गए डजाइन म व भ वलंत रंग का समायोजन रहा है। लोक कलाकार ारा इस कला म मु य प
से ख नज रंग साम ी का उपयोग कया जाता है। यह प टग वतमान म कागज कै नवास कपड़े आ द पर क जा
रही है। ले कन इसका मूल प ामीण और लोक सां कृ तक वातावरण म ताजा च त क ी म क द वार पर
दे ख ा जा सकता है। मधुबनी लोक कला प सामा जक वषय के साथ साथ पौरा णक कथा और कृ त पर
आधा रत ह।

जसम मु य वषय के प म ह दे वी दे वता को सर वती शव गा ल मी राम कृ ण सूय चं मा तुलसी


के पौध जानवर और शुभ अवसर सामा जक समारोह आ द के पम कया जाता है। इसे पूण ता द। यह
परंपरागत प से पीढ़ से पीढ़ तक पा रत कया गया है।

च . मधुबनी प टग ठाणे जला

ोत http www.arteducation.in on teaching learning folk arts madhubani


. . ग ड कला

म य भारत के े म य दे श और कु छ आसपास के े म हम सभी स जनजा त ग ड ारा बनाई गई लोक


कला क व श शैली को ग ड च कला शैली के प म जानते ह। इस कला क मु य वशेषता सामा जक और
शुभ अवसर के लए जानी जाने वाली अ य लोक और आ दवासी कला क तरह पौरा णक है जो लोक कलाकार
क सादगी का तीक है। इन कलाकार क क पना उनके ारा चमक ले रंग और सरल आकृ तय के उपयोग म
न हत है ये लोग रंग म कृ त क मदद से फ के च को भी जीवंत प दे ते ह। उदाहरण के लए छपकली को
बेहद भीषण ाणी के प म दे ख ा जाता है जसे कलाकार शायद ही कभी अपने च म जगह दे पाता है ले कन
ग ड कलाकार भी अपने च म ऐसे च को तीखे रंग का उपयोग करके स दय क से कला के नमूने म बदल
दे ता है। अगर हम को शश कर
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आजाद के बाद आधु नक दाश नक और ववेक को समझने वाले कलाकार अपने कौशल के मा यम से जानवर को रंग दे सकते ह और कृ त को
कला आंदोलन
रंग दे ने क उ कट भावना कर सकते ह। उनके ारा बनाई गई प टग म धा रय को कह ले जाया जाता है और
छोटे छोटे ब को अचानक लया जाता है। इन च के प या मतीय आकृ तय के साथ साथ एक वतं आकार
म पांत रत होते तीत होते ह जनम कोई अकाद मक और शा ीय अनुपात नह दखता है। च का मु य वषय
सामा जक सां कृ तक पौरा णक मौसम से संबं धत फसल क बुवाई और कटाई पर आधा रत है।

ाकृ तक रंग का योग मु य प से इनके ारा कया गया है और वतमान तकनीक पो टर रंग या कपड़े क सहायता
लेने के बाद भी इन कलाकार ारा ए े लक रंग का योग कया गया है।

च . ग ड च कला

ोत https indianculture.gov.in paintings gond paintings

. . भील कला

भारत का एक अ य मुख आ दवासी समुदाय भील जनजा त म य दे श गुज रात राज ान और महारा से संबं धत
है। उनके बारे म हम छोटे उं डारी और बड़े उं डारी भील आ दवा सय के कलाकार पर यान क त करते ए झाबुआ
म य दे श और राज ान म उदयपुर के पास दे ख गे। जो अपनी कला के मा यम से अपनी पारंप रक सं कृ त का प रचय
दे ते ह। म य दे श त झाबुआ के भील म पथौरा प टग एक जो अ य धक स मा नत है। पठाड़ा के घोड़े उदार
होते ह ज ह पारंप रक च कार ारा च त कया जाता है और उ ह भगवान को अ पत कया जाता है। जैसे जैसे
कहानी च लत होती गई लोग धम राजा के शासन म हंसना गाना और नाचना भूल गए। उसके बाद राजकु मार
पथौरा घोड़े पर सवार होकर दे वी हमालय के धाम म चले गए
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हरदा। दे वी दे वता ने उनक हँसी गीत और नृ य उ ह लौटा दया। भील क उ प क पौरा णक लोक और जनजातीय कला भाव गाथा पथौरा भ
च कार म च त क गई है। भील जा त के ऐ तहा सक जीवन से संबं धत येक संग को न न ल खत तीक का उपयोग करके च त कया गया है
सूय चं मा पशु पेड़ क ड़े न दयाँ मैदान पौरा णक दे वता भलावत दे व बाराम य जनके बारह सर ह एकल आ द।

च . भील प टग भूरी बाई

ोत https en.wikipedia.org wiki Bhuri Bai media File Sarmaya Arts Foundation Bhuri Bai
Bhil.jpg

. . तंज ौर कला
द ण भारतीय लोक कला के लोक य प म तंज ौर प टग धा मक वषय और पांक न क एक झांक दशाती
है। इस लोक कला म रंग बरंगे प र चटाइय और कांच के टु क ड़ का योग कया जाता है जो इ ह और भी
आकषक बनाते ह। व ान का मानना है क इस कला क ापना व शता द म चोल शासन काल म ई थी।

इन च के संर क के प म तंज ौर और ची के मराठा शासक नायक राजा के समुदाय और म रै के नायडू


ने अपनी भू मका नभाई। इन च के वषय ह दे वता और संत के इद गद घूमते ह। कु छ च मप य
जानवर और फू ल के पैटन भी होते ह। ये प टग ठोस लकड़ी के त त पर बनाई गई ह और मु य आकृ तय को
क म दशाया गया है। इन च को पलगाई पदम भी कहा जाता है। कलाकार क मती प र और रंगीन फ त
का भी उपयोग करते ह
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आजाद के बाद आधु नक


तंज ौर च क सुंदरता म वृ । अं तम चरण म कु छ प टग सोने के वेफ र पे ट क एक पतली परत जब क शेष
कला आंदोलन
भाग पर चमक ले रंग का उपयोग कया जाता है। इन प ट स म इ तेमाल कया गया सोना कै रेट का है और
कई साल तक बरकरार रहता है। तंज ौर कला का मु य वषय ह दे वी दे वता ह। कृ ण को उनके य दे वता के
प म दे ख ा जाता है जनके च व भ बाल प और मु ा म बनाए गए ह जो उनके जीवन के व भ चरण
को दशाते ह।

. . ॉल प टग प च

ॉल प टग को पा च और उ ड़या लोक कला के प म भी जाना जाता है। पूव म राजा के संर ण म


व यात। अ य कला क तुलना म टश शासन काल म कला क इस शैली को ब त नुक सान आ।
इ तहासकार के अनुसार व और व शता द म जग ाथजी को बढ़ावा दे ने के उ े य से इस कला को बढ़ावा
मला। मु य प से तीन कार के होते ह द वार पर काम कपड़े पर प टग और पैलेट या ताड़ के प पर प टग।
पूरे भारत म प टग के लए ताड़ के प का उपयोग कया जाता है ले कन उड़ीसा के लोक कलाकार म प य को
जोड़कर एक चौकोर आकार दया जाता है और फर प टग बनाई जाती है।

इनका मु य वषय रामायण भगवद पर आधा रत है और परंपरागत प से राधा कृ ण सर वती गा गणेश


आ द को च म ान दया गया है।

. . कालीघाट प टग

इस प टग क उ प मु य प से व शता द म कोलकाता के कालीघाट मं दर से जुड़ी ई है। इस कला म ह


दे वता और पारंप रक पौरा णक पा को दशाया गया है। ाचीन काल म च कार ारा कपड़ और ताड़ के
प पर व भ द च ण कए जाते थे। कं पनी काल का भाव कोलकाता के पारंप रक पटवा और अ य
कारीगर समुदाय पर पड़ने लगा जसके कारण इन कलाकार ने मल म कागज पर प टग का नमाण कया और
एक नई प त वक सत क गई। जसम दे वी दे वता ने ह त च कला शैली म कु लीन और सामा य समाज को
बारीक से वक सत कया और म हला उ मय मज र आ द जैसे व भ वग को भी समकालीन वषय पर
मुख ता से च त कया गया। प म बंगाल क पटवा प टग को इसी ृंख ला क अगली कड़ी के प म दे ख ा
जाता है। प टग क इस शैली म कलाकार रामायण महाभारत और अ य पौरा णक वषय पर आधा रत य को
लंबे कागज म च त करते ह। और आधु नक कला म वतं ता के बाद इस कला शैली का भाव कई आधु नक
कलाकार क कला म दे ख ने को मलता है।

च . गा और म हषासुर कालीघाट प टग ोत https


en.wikipedia.org wiki Kaliघाट प टग मी डया

फाइल द दे वी गा उस सह क स द दानव म हषासुर कालीघाट


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लोक और जनजातीय कला भाव


. लोक और जनजातीय कला का भाव

वतं ता के बाद आधु नक कला

वतं ता ा त के बाद एक कला चेतना का उदय आ। जसम भारतीय परंपरा पौरा णक संदभ ामीण
आ दवासी और लोक सं कृ त के वषय से संबं धत कला जगत म पुनजागरण आ। लोक कला को आधु नक कला
के प रवेश म ान मलना शु आ और उ ह ो सा हत कया गया। लोक कला का स मान लगभग सभी े म
ा पत कया गया है। वतमान आधु नक युग म हर चीज का आधु नक करण दे ख ने को मलता है जसम लोक कला
क पारंप रक शैली व तृत और प र कृ त पम मक प म उभर रही है। लोक कला का सां कृ तक पम
दशन कसी दे श या रा य क लोक आ मा को वहां तुत करने म मह वपूण भू मका नभाता है। इन सभी त य से यह
होता है क लोक कला पुन ान और जनजागरण का वशेष उदाहरण समाज म त ब बत हो रहा है।

वतं भारत म रचना मक वृ य को पूरे ामीण प रवेश म उ साहपूवक पुनज वत करना शु आ मु य प से


भारतीय जीवन के मू य म वृ और पूरे व म ाचीन पारंप रक और स दय शा ीय उ पाद वशेष प से प मी
दे श म और भारतीय कलाकार भी भा वत ए। इस भावशीलता से। लोक कला ने वतं ता के बाद क कला को
आधार दया है। और इसी आधार पर हमारी शैली भारतीय परंपरा क ओर इशारा करते ए कलाकार को दखाई दे ती
है।

भारतीय समकालीन भू म को समझने के लए उन पर लोक और आ दवासी कला के भाव को समझना आव यक


है। समृ कु लीन और महान लोक परंपरा से े रत कई भारतीय कलाकार थे ज ह ने लोक और लघु च ारा
कला को एक नई दशा द पारंप रक रेख ाएं रंग पांडु ल पय के च म प रल त होते ह और व भ आ दवासी
परंपरा को लगातार खोजते ए च त कया जाता है। आंत रक प वह वषय जसम गु अर वद घोष इस कार
काश डालते ह। वह भारत क सम त कला सू म अ त का व तार है। यह डजाइन और उप त के महान
मह व को समझने के लए अवरोही का प रणाम है अपने आंत रक अ त व म एक वषय खोजने का प रणाम है।
उनका यह भी मानना है क भारतीय कला परंपरा म न हत जीवंत भौ तकता के दशन दखाने के लए तीत होता है
ब दे ववाद और जीवंत आंत रक दे वी के त न ध व क ओर बाहरी भौ तकता के लए नह ।

वह समकालीन कला म ाण नाथ मागो ने लोक और आ दवासी और पूज ा आ द के वचार को फै शन के एक तरीके के


प म दे ख ा है। के दशक म लोक कला भारतीय कलाकार के आकषण का क बन गई य क वे अपने काय
म गत पहचान या भारतीयता दखाने क इ ा रखते थे वा तव म लोक कला के त व को लोक जनजातीय और
पूज ा क समकालीन आ दवासी शै लय के आकार म शा मल करना वचार को शा मल करना एक फै शन बन गया था।
कला वृ य के उपयोग को यान म रखते ए भारत म अ धकांश च कार ने अ भ वाद वीकार कया जसके
साथ भारतीय कलाकार ने अपने तर पर उप यास भाषा वक सत करने के लए ब त यास कए। इस यास म
वदे शी कला ोत को अपनाते ए मु य प से लोक च कला लघु च अजंता और तां क आ दवासी कला का
योग कया गया है।

. मुख आधु नक कलाकार भाव

लोक और जनजातीय कला के साथ

आजाद के बाद लोक और आ दवासी कला से भा वत कला नमाण म एक नए योगा मक कलाकार के पम


जा मनी रॉय का मह वपूण ान है। कालीघाट क ॉल प टग शैली से भा वत होकर उ ह ने एक नजी मूल शैली म
लगातार अ यास कया। वह
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आजाद के बाद आधु नक कई गाँव म गए जहाँ वे कु हार बुनकर गु ड़य और खलौना बनाने वाल आ द क रचना को दे ख ते समझते और
कला आंदोलन
रेख ां कत करते थे। ामीण लोक कला का अ ययन करके उ ह यह पता चला। क इन पारंप रक ामीण कलाकार
को रह य के रंग आकार और छं द वतः ा त हो गए ह। ले कन उसका खोजी मन असंतु रहा। उ ह ने और भी आगे
बढ़कर रेख ा आरेख ण प त का उपयोग करते ए सपाट रंग क तकनीक को एक कृ त करके एक नवीन शैली वक सत
क । उ ह ने लोक खलौन म यु आकृ तय और त व को अपनाकर च त कया जै मनी राय क प टग आज पूरी
नया म फै ली ई ह। तीन पुज ारी बैठे म हला मां और ब े संथाल बाला नीला आकाश ाथना साधु ब ली
और झ गा रामायण कृ ण लीला और ईसा मसीह क उ लेख नीय त वीर नेशनल गैलरी ऑफ मॉडन आट नई द ली
म संर त ह। .

च . दो ब लयाँ एक बड़े झ गे को पकड़े ए जै मनी रॉय

ोत https en.wikipedia.org wiki Jamini Roy media File Two cats holding a large झ गे .jpg

इसके साथ ही लोक जीवन पर आधा रत वषय से नंदलाल बोस और बनोद बहारी मुख ज को ेरणा मली। इस संदभ
म य द अ य मुख कलाकार का नाम लया जाए तो मनीषी डे सुधीर रंज न ख तागीर अ सत हलदर राम नाथ
च वत मुकु ल डे आ द ने पारंप रक कला को पुनज वत करने के मह वपूण यास कए। जनके मा यम से लोक कला
से ाचीन कला क वशेषता को आ मसात कर लोक वृ य को अपनाने का यास कया गया। शालोज मुख ज
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चावड़ा र थन पा ा और नीरोद मजूमदार कलाकार के प म जो नए झान को वीकार करते ह लोक और जनजातीय कला भाव लैट आयामी
पांक न के मा यम से तुत कए जाते ह लोक शै लय से भा वत होते ह और लोक परंपरा से भा वत होते ह ज ह द ण भारतीय मुख कलाकार
ारा जाना जाता है।
ए.ए. अमेलकर राज या प दराजू ी नवासुलु ज ह ने त मलनाडु के लोक टे राकोटा क बारीक रेख ीय प तम
काम कया। इसी म म लोक तीक को आ मसात कर उनक कला मक तमा म लोकायत के साथ संबंध
ा पत कया जाता है। जे। सु तान अली का काम आ दम और आ दवासी है कला ोत क गहरी छाप दखाई
दे ती है। मु य प से उनके ारा बनाए गए मुख ौटे उनक लकड़ी क न काशी म यु सरलीकृ त तीक के पम
दखाई दे ते ह।

च . मज र जल रंग बनोद बहारी मुख ज ोत https prabook.com web


binod.mukherjee

से क अव ध म वजय हागरगुंडी पी. वजय खेमराज खोड़ी दास परमार आरडी रावल सर वती
वासवराजू कु मार मंगल सहजी आ द मुख कलाकार थे ज ह ने लघु शैली के प म पारंप रक शैलीगत डजाइन
का उपयोग कया था। इन कलाकार ने व श आलंक ा रक च म जीवन के भारतीय मू य से भा वत धा मक
और धम नरपे वषय को रखा। और का दशक एक ऐसा दशक था जसम अमूत शैली हावी हो गई।
वह कु छ मुख कलाकार लोक पैटन के आधार पर रेख ीय प त से तीक का च ण कर रहे थे। मु य प से ब
नारायण के च जनका घनी रेख ा के ाकृ तक करण के कारण वशेष मह व है जसने लोक च कला म ऐसी
आ मा ेरणादायक क पना का नमाण कया जो लोककथा और पौरा णक कथा को दशाती है।

च . महाभारत एमएफ सैन कै नवास पर तेल ोत https


art cuestacollege.wordpress.com slides feb
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आजाद के बाद आधु नक कलाकार यो त भ भगवान कपूर ल मण पाई डी. ब शीला ओडेन दे वयानी कृ णा सुनील माधव सेन जयराम
कला आंदोलन
पटे ल मकबूल फ़दा सैन पी.
खेमराज नवे दता परमानंद कमला म ल रतेश दास गु ता प रतोष सेन और गौतम वाघेला क कलाकृ तय को
लोक और आ दवासी भाव अतीत के ोत म तीक आ द के मा यम से दे ख ा जाता है। व भ आव धक खंड म
अतीत से ेरणा के साथ साथ समकालीन संदभ भी शा मल ह। . इसी म म अ य समकालीन कलाकार के च म
हम तं मं क झलक भी दे ख सकते ह।

लोक और आ दवासी कला क भावना को परंपरा से जुड़े कलाकार के डजाइन ारा ढ़ता से प रभा षत कया गया
है बीरेन डे जीआर संतोष आर. राजैया मोह मद यासीन ओम काश शमा व नाथ मुख ज जय झरो टया सुनील
दास सोमनाथ होरे भूप दे साई और जीवन अदलजा। कलाकार क सूची म कु छ अ य समकालीन नाम जो अपनी
कला म लोक तमान का आधार रखते ह पारंप रक मू य से ेरणा लेक र आधु नकता का प रचय दे ते ह जनम
जयदे व ठाकु र माधुरी पारेख और मंज ीत बाबा आ द शा मल ह। उनके च म सरलीकृ त प ह। इसके साथ ही कु छ
अ य कलाकार के नाम भी उ लेख नीय ह ज ह ने लोक और आ दवासी कला तकनीक से ेरणा लेक र रचना मक
दशन कया। वे ह एसएल पाराशर धनराज भगत ए. रामचं न दे वयानी कृ णा सतीश गुज राल गोगी सरोज पाल
आ द।

च कार के साथ साथ मू तकार भी भारतीय लोक और जनजातीय कला शै लय से भा वत रहे ह। संदभ म मुख
मू तकार राम ककर बैज मीरा मुख ज के जी सु म यम जानक राम नंद गोपाल मृण ा लनी मुख ज और ल मण गौड़
आ द शा मल ह। उ ह ने सीमट धातु का टग मी डया खोई ई मोम या टे राकोटा और टे राकोटा राहत कांच
च ण आ दवासी और वे ग फाइबर और म त मू तकला तकनीक के मा यम से लोक परंपरा को उनके मू त
श प म शा मल कया गया है।

च . धातु मीरा मुख ज

ोत https www.sundayguardianlive.com culture using symbols ordinary life meera


मुख ज न मत कला उ कृ
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लोक और जनजातीय कला भाव


. योग कर

तुत इकाई के मा यम से भारतीय लोक और आ दवासी कला क पृ भू म और उसके सां कृ तक संदभ को जानने का यास
कया गया है। लोक कला शैली जो भारत के व भ े म फली फू ली और व भ कलाकार के साथ गाँव कई प का
उ लेख करते ह। जनक थीम लगभग एक जैसी होती है जो उनके कबीले समुदाय और दै नक कमकांड को दशाती है। मु य
वषय भारतीय पौरा णक मानदं ड से एक नराकार श और पा के प म आ ान करते ह। साथ ही प टग क डजाइन और
शैली उ ह अलग बनाती है इसी म म लोक और आ दवासी कला के आधु नक कला प और उनक आकषक शैली क छाप
क भी काफ व तार से चचा क गई है। आधु नक भारतीय कला के मुख च कार और मू तकार को अपनी कलाकृ तय म
लोक और आ दवासी कला को अपनी गत शैली के प म इ तेमाल करते दे ख ा जाता है। जससे पार रक कला को
आदश मानकर समकालीन कला को एक मह वपूण दशा मली है जसने एक मह वपूण ान रखा है।

. अपनी ग त क जाँच कर

लोक कला या है यह कला ामीण समाज को कस कार प रभा षत करती है

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महारा का लोक कौन सा है इसके बारे म अपने वचार कर।

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म थला लोक कला के बारे म कु छ मु य ब पर काश डा लए।

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या मनी के च म कस लोक कला का भाव मु य प से दे ख ने को मलता है। वणन करना।

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आजाद के बाद आधु नक


कह आधु नक च कार का वणन क जए जो लोक और जनजातीय कला से भा वत थे।
कला आंदोलन

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कह आधु नक मू तकार के बारे म अपने वचार तुत कर जनक कृ तय म लोक और जनजातीय कला का भाव दखाई
दे ता है।

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. संदभ और आगे के पाठ

भार ाज वनोद बृहद कला कोष वाणी काशन नई द ली

सं कृ त नमाण और भारतीयता कला भारती खंड दो। पीयूष दै या नई द ली ल लत कला अकादमी ारा संपा दत।

डॉ. आर.ए. अ वाल कला वलास भारतीय छा कला का वकास अंतरा ीय काशन गृह मेरठ गरोला वाच त
भारतीय च कला का सं त इ तहास लोकभारती काशन इलाहाबाद । http nationalcraftsmuseum.nic.in

page id कै फे https www.hisour.com hi folk art http


ignca.gov.in hi divisionss janapada sampada आ दवासी कला सं कृ त

https knowindia.gov.in hindi culture and heritage folk and tribal art.php

जैन गुलाबचं भारतीय च कला और श ण साम ी मेरठ जैन गुलाबचं लोक कथा व ान मंगल काशन जयपुर

कृ णदास। राय भारतीय च कला इलाहाबाद भारती भंडार डीसी

मागो ाण नाथ भारत क समकालीन कला एक प र े य। द ली नेशनल बुक ट ।

स हा स दानंद अ प और आकार नई द ली ल लत कला अकादमी ।

सह डॉ ममता य कला या लोक कला के मूलत व एवं स ांत जयपुर राज ान हद ंथ अकादमी ीवा तव
एएल इं डयन आट। इलाहाबाद कताब महल स सेना डॉ. एस.एन. भारतीय च लका सेक ड सं करण मनोरमा

काशन

समका लन कला अंक और ल लत कला अकादमी काशन संपादक डॉ.


यो तष जोशी वमा

अ वनाश बहा र भारतीय च कला का इ तहास बरेली काश बुक डपो ।

वमा नमल भारतीय परंपरा और समकालीन जीवन। भारतीय कला अनजाने से। नई द ली। स ता सा ह य मंडल

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लोक और जनजातीय कला भाव


इकाई भारतीय मु ण कला

और ट नमाता

. उ े य

. सीखने के प रणाम
. प रचय

. ट बनाना
. . टकट ल पय और पांडु ल पय का अ यास

. . पा डु ल पय का नमाण

. . भारत म मु ण क ारं भक त

. वतं ता के बाद क आधु नक कला म ट बनाने क भू मका

. भारत के मुख ट बनाने वाले कलाकार

. आइए सं ेप कर

. अपनी ग त क जाँच कर

. संदभ और आगे क री डग

. उ े य

इस इकाई के उ े य ह

भारतीय ट कला और ट नमाता के मह व को समझ।

वतं ता पूव मु ण के बारे म जानकारी ा त कर।

वतं ता के बाद कालीन छपाई कला के बारे म जानकारी ा त कर।

मु ण क कला पर उ र आधु नक काल के भाव को जान।

मुख ट कलाकार और कला समूह के बारे म जान।

. सीखने के प रणाम

इस इकाई का अ ययन करने के बाद आप स म ह गे

वषय क समझ के साथ अपने श द म तुत कर।

वतं ता पूव ट कला और उससे संबं धत तकनीक का व ेषण कर।

मुख मु ण कलाकार और ट कला से संबं धत उनके काय का वणन कर।

ट कला क तकनीक का वयं उपयोग कर।

. प रचय

इस इकाई म हम इस बात पर चचा करगे क ट बनाने क कला ने वतं ता के बाद के भारतीय कला प र य को कै से
भा वत और त ब बत करना शु कया जसके मा यम से मुख कला सं ान का समेक न आ और साथ ही साथ
मु ण क कला क पृ भू म और इसक मह वपूण भू मका वतं ता के बाद आधु नक कला म मु ण। और इसका
व तार कै से आ है या हो रहा है। कला सं ान पर आधु नक वृ य का भाव ट क कला कै से ई और कै से
भारत के मुख ट कलाकार आधु नक कला को संद भत करते ह।
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आजाद के बाद आधु नक


कला आंदोलन . ट बनाना

मु ण कला क पृ भू म क चचा करते समय यह यान म आता है क भारत क आधु नक कला और इसक पृ भू म
का वणन वतमान पा म के व भ खंड म कया गया है अतीत म यह पाया गया है क कला क उ प मु ण
का संबंध ाचीन सं कृ त और स यता से रहा है जसके उदाहरण गुफ ा म उपल ह। मानव ने कला को अ भ
के मा यम के प म इ तेमाल कया और इसके मा यम से उ ह ने अपने वचार को कया जसका प
भ च शलालेख मुहर मु ा आ द के सा य म पाया गया है। भारतीय ागै तहा सक लेख और छ वय के
व ान के पयवे क म से। एलन होटन ै डक टु अ ट पगट ो डीएच गॉडन एडम म टर एंड मसेज एफआर
अल चन सीए स वे लॉड पंचानन म ा और मनोरंज न घोष मुख नाम ह। ै डक क पु तक ी ह टो रक प टग
और पगट क कताब ी ह टो रया इं डया तुत वषय को ामा णकता दे ती तीत होती है। भारतीय ागै तहा सक
च क ाचीनता का व ेषण पहले तुत कए गए खंड और इकाइय के मा यम से कया गया है। ज ह कह न
कह इ तहासकार ने अमे रका और यूरोप के समक स कया है। इसके उदाहरण ह भीमबेठका म य दे श
और रायगढ़ बहार के च धरपुर सघनपुर होशंगाबाद और मजापुर के लेख ु नया कोहबर और भदे रया आ द ुप
ह।

. . टकट ल पय और पांडु ल पय आ द का अ यास।

स ु युग क स यता म सामा जक सरोकार वहाँ के दै नक जीवन म यु होने वाली व तुए ँ रहे ह। जो छपाई क कला
क ओर इशारा करता तीत होता है य क आधु नक समय म जहां शास नक काय म डाक टकट का योग दे ख ने
को मलता है वह सधु काल क स यता म भी उस समय म यु मु ा और डाक टकट इ ह टु क ड़ के समान पाए
जाते थे। जनम से अ धकांश लाह ले चीनी म के बरतन और हाथीदांत से बने टु क ड़ पर उ क णन के पम
पाए गए ह और कु छ सं त लेख तांबे के टकट पर भी पाए गए ह जो उभरा आ आंक ड़े और चौकोर आकार क
ल पय को च त करते ह। इसके संबंध म पता चलता है क सधु काल क स यता क ल प ईसा पूव म
वक सत ई थी। और इसक अंत रम अव ध ई वी पूव मानी गई है। सधु काल क स यता के नमूने और अवशेष
पा क तान और भारत के व भ ांत म खोजे गए ह। जसम मु ा और टा के पम ट संबंधी सा य ा त ए
ह ज ह हम रा ीय सं हालय म दे ख सकते ह।

युग क ओर उ मुख होने के कारण यह पाया जाता है क वहां क परंपरा मौ खक ान या मरण पर आधा रत थी
जसके तहत का धा मक परंपरा और सा ह य को वंशानुगत और पारंप रक म म मौ खक प से आगे बढ़ाया गया
था। तीसरी शता द ई वी के दौरान स ाट अशोक के शला लेख म ा ी द ल प का उपयोग कया जाता है जो
पूरे उपमहा प म पाया जाता है। इससे भारत म कई ल पय का वकास आ और इन ल पय क शाखाएँ म य
ए शया त बत और द ण पूव ए शया म फै ल ग । दे वनागरी ल प ाचीन ा ी ल प से वक सत ई है। गु त और
कु टल ल पय ने भी इसके वकास म योगदान दया है। यह मूल प से एक उ र भारतीय ल प है ले कन द ण
भारत म कु छ ान पर इसका योग भी कया जाता है। आठव शता द के आसपास इसके योग के माण मलने
लगते ह। द ण म इसे नंद नगरी कहा जाता है। दसव शता द तक ल प म पूण ता थी। दे वनागरी श द का योग
पहली बार नौव शता द म आ है। दे वनागरी का शा दक अथ दे व ल प या दे वता के शहर क ल प है। नगर म
च लत होने के कारण इसे नागरी भी कहा जाता था
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ट बनाना और ट करना
ा ण। नगर म इसक ापकता के कारण शहर श द इसक पहचान बना। काशी को दे वनागरी कहा जाता है। चूं क
भारत के नमाता
यह ल प इस े म अ धक च लत थी इस लए इसे दे वनागरी भी कहा जाता है। डॉ. उदयनारायण तवारी का मत है
क सं कृ त भाषा को दे वभाषा कहा जाता है इस भाषा को लखने के लए जस ल प का योग कया जाता था उसे
दे वनागरी कहा जाता था। यह ल प व शता द तक प रप वता पूण प से ा त हो चुक थी और व शता द
तक ल प अपने चरमो कष पर प ँच गई थी ल प को सरल बनाने के लए उसम प रवतन और संशोधन कए गए।

. . पा डु ल पय का नमाण

ल प वकास के म म भारतीय इ तहास म पा डु ल पयाँ पाई जाती ह। जसका सबसे ाचीन उदाहरण ताड़ के प
पर लखी पांडु ल पय के प म है। पहली या सरी शता द म बोध स और कु सुमांज ल ट का नामक
पांडु ल पय का नमाण आचाय रामे र वज कृ त ने ताड़ के कागज पर कया है। वह पा ल भाषा क ा ी लपम
र चत बौ ंथ उपल ह य क ार क पा डु ल प के योग के पमउ ंथ म पाली भाषा का योग कया
गया है। और उ ह प लकड़ी बांस क टाइल और धातु पर उके रा गया था। इसी म म छठ शता द म जापान के
हो रयुज ी मठ म बौ ंथ ापार मता दयसू और उ ांश वजय धरणी ा पत है जसके संबंध म यह
म य भारत से लया गया है।

. . भारत म मु ण क ारं भक त

जहाँ ह त ल पय का योग ह त ल प नमाण के प म कया जाता था और इस शा दक रचना के साथ साथ रेख ीय


आकृ तय क कृ तवाद कृ त म यकालीन दे ती है। ट कला क ऐ तहा सक पृ भू म अपने वकास मक
ओर बढ़ने के साथ आकार लेती दख रही है। और हम भारत म छपाई क ारं भक त को इस तरह से समझ सकते
ह क से पहले भारत म मशीन ारा कागज पर छपाई का कोई सबूत नह मला था। मु ण ग त व धय क ग त
म ास और मुंबई म व शता द के म य से व शता द के अंत तक महसूस क जा सकती है जहां पुतगा लय ने
मशीन से कताब छापना शु कया जब क पु तक च ण और च छपाई व सद म शु ई। सद के उ राध
तक इस पर अं ेज ारा कर लगाया गया था। य द भारत म मु ण कला क प रक पना कसी के पास मानी जाती है
तो इसके मुख नाम व लयम डे नयल और थॉमस डे नयल ह। वह म भारत आया था। और उनके
ारा ए सटनल ूज ऑफ कोलकाता नामक एक सं ह पु तक का शत क गई। जसम छपे ए च का शत
कए गए थे और इस पु तक म अमलंक न तुत कए गए थे जो कोलकाता म ही तैयार और मु त कए गए थे। इस
कृ त का नमाण उनके ारा से क अव ध म कया गया था।

व सद के अंत और व सद के उदय के साथ ट कला क नया म कई तरह के योग ए। उसी समय दे श के


वभ ांत म असं य नजी ेस खोले गए यह सारी ग त एक ावसा यक प म प रल त ई जो के
बाद ग त म दखाई द । इस अव ध म यह भी माना जाता था क भारत का पहला लथो ाफ ेस ा पत कया गया
था कोलकाता। दो ांसीसी कलाकार जीन जै वेस बेलनोस और डी स व हाक ने कलक ा म लथो ाफ क शु आत
क। के बाद मु ण क ग तशील नया म ानीय बाजार म धा मक और गैर धा मक वषय को मु त कया
गया आसानी से उपल होना शु हो गया। लोक यता के कारण मांग बढ़ गई। इसके तहत वुडकट ट् स
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आजाद के बाद आधु नक युग यादातर मोनो ोमै टक थे ले कन लथो ाफ रंगीन थे। मु ण के लए मु णालय मुंबई ढाका पूना लखनऊ
कला आंदोलन
कोलकाता म ास द ली मैसूर और पंज ाब म ा पत कए गए। आधु नकता के े म म वेश करते ए राजा र व
वमा ने खुद मुंबई म एक अलग लथो ा फक ेस घाटकोपर क ापना क । अपने च क बढ़ती मांग को छापने
क मदद से वह आसानी से अपने च क तयां ओलेओ ाफ के प म आम जनता तक प ंचा सकते ह।

भारत म मु ण कला सखाने के लए उ क णन न क़ाशी और लथो ाफ का तकनीक ान दान करने के लए


व शता द के म य म कला व ालय क ापना क गई थी।
जसम म ास कोलकाता मुंबई और लाहौर के तहत कला व ालय ा पत कए गए। व च लब क ापना
टै गोर प रवार ने म जोडासंक ो कोलकाता म क थी ज ह ने अपनी कला को न क़ाशी और उ क णन के मा यम
से कया था।
मुकु ल चं डे म वदे श या ा करने वाले पहले भारतीय कलाकार थे। छपाई क तकनीक और बारी कय को
सीखने क उ सुक ता उ ह म फर से वदे श ले गई। उसी समय टै गोर प रवार के मु य सद य गगन नाथ टै गोर
जो मु य प से थे लथो ाफ म च। जसके चलते उ ह ने एक ाइवेट ेस लगाई और इसके ज रए उ ह ने अपने
कै रके चर का एक ए बम भी तैयार कया।

से भारतीय कला जगत से जुड़े कलाकार के मन म रचना मकता के बीज उभरे ह। और वे मु ण कला के
रचना मक प को एक रचना मक अ भ के प म दे ख ने लगे तकृ त के बजाय। म कला भवन क
ापना के बाद मु ण ा फक कला को कला मक अ भ का एक अ भ अंग माना जाता था और कलाकार ने
इस प त म उ साहपूवक काम कया। मु य प से जाने जाने वाले मुख कलाकार राम नाथ च वत मन भूषण
गु ता और व प बॉस ह। कसके ारा वुडकट लीनो कट और समामेलन को मु य मा यम के प म चुना गया।
इसके साथ ही कई मुख कलाकार को छपाई कला क राह पर चलते ए दे ख ा जा सकता है। जब हम नंदलाल बोस
और भारत के अ य मु ण क के बारे म बात करते ह तो हम पाते ह क जेडी ग धलेक र और वाईके शु ला लखनऊ
टग कू ल म एल. सेन और लाहौर टग कू ल म एआर चुगताई आ द।

. पो ट म ट बनाने क भू मका

वतं ता आधु नक कला

आजाद के बाद क आधु नक कला म कला क भू मका के दशक म मुख ता से दखाई दे ती है। जब च कला
और मू तकला के साथ साथ ा फक कला का भी वकास आ। च कारी और मू तकला क तरह ही कलाकार ने
ा फक कला को अपनाया। जसका मु य उ े य वतं वधा म मुख ता से काम करना था गत रचना मकता
को इसके ट क च भाषा म पांत रत कया गया था। कोलकाता के हर और च साद उन मुख कलाकार म
से थे ज ह ने इस दशक म ट प टग को पूरी तरह से अपना लया था। उनक लकड़ी मु त प टग म गत शैली
के दशन ह जनके मु य वषय ामीण य नृ य और लोक सं कृ त से भरे ए तीत होते ह। सरी ओर हर के
च म बतन बनावट क ब लता दखाई दे ती है।

इस अव ध के बारे म जया अ पासामी क राय है क के दशक को भारतीय कला के उ साह और पुन ार के


युग के प म माना जाना चा हए। प टग म व भ कार क छ वय के साथ एक मजबूत आंदोलन वक सत नई
साम ी और मू तकला म वाइ स ा फक कला म वकास के लए नई जमीन तैयार क जा रही थी । म
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ट बनाना और ट करना
के दशक म ट क कला म कलाकार क च ती सा बत ई और नए योग सामने आए। के दशक
भारत के नमाता
म सॉ ट ाउं ड या के योग के प म जोरदार योग के उदाहरण सामने आए जसके लए मु य योग धम
कलाकार कं वल कृ ण और दे वयानी कृ ण सा बत ए।

जब क लेख क क राय कला पर नवीन काश डालती है जगमोहन चोपड़ा द ली म आगे बढ़ते ह। सुनील कु मार
अपनी पु तक म वतं ता के बाद तीन चरण म आधु नक भारतीय ट प टग के वकास को दे ख ते ह और से
तक पहला चरण लखते ह जसे कं वल कृ ण ने द ली म शु कया था। यह चरण ट कला म एक अ णी
और शायद सबसे उ ेज क था ऐसे समय म जब यह कला एक नया े था छपा ारा कला और इसके व तार के
साथ यह कला प रणाम के चरम पर प ंच गई। यह कला उ पाद और क पना क श से भरा था जसने दबाव क
भावना पैदा क और वतमान सफलता पठार का आधार बनाया।

ोफे सर कु मार पहले चरण के बाद के चरण को एक ॉस से न के प म दे ख ते ह जसम वे गत शैली को


कलाकार ारा कला मकता के शां तपूण और सरलीकृ त अ यास के प म पाते ह जसम ट बनाने के अकाद मक
प पर जोर दया जाता है जहां कलाकार और श क अपनी तकनीक का उपयोग करते ह। पूण तावाद छ व म अं कत
हो। साथ ही श क अपने छा को मु ण क कला के लए कु छ ढ़वाद शैली का उपयोग करने के लए अ धक से
अ धक ेरणा दे ते तीत होते ह। वह ोफे सर सुनील कु मार तीसरे चरण को आठव और नौव दशक म रखते ह और
लखते ह क जब पूरे दे श म व भ संक ाय वतं समूह ट कायशालाएं दश नयां और कला मेले अ त व म आ
रहे थे और अपनी पहचान बना रहे थे .

नए योग के साथ कलाकार को एक नए अनुभव के लए ह त ेप कया गया। जसम स क न कलर लथो ाफ


और म स मी डया जैसी आधु नक तकनीक को भी जोड़ा गया। शै णक सं ान म व ा थय को प टग मू तकला
के साथ साथ छपाई के वषय भी पढ़ाए जाते थे जसम छा ने उ सुक ता से इस वषय को अपनाया और एक नए
चरण क शु आत क । उस समय क खड़क म हम कु छ मुख ट नमाता के नाम आसानी से मल जाते ह।
यो त भ शां त दवे ल मण पाई यामल द ा रे जय कृ ण अ ण बोस सुहास रे मनहर मकवाना नन गांगुली
सुनीरमल चटज दलीप ब ी अ मताभ बनज पलानीअ पन जीवन अदलजा जीएलएन रे ी ल मा गौड़ा दे वराज
जय झरो टया परमजीत सह आरबी भा करन याग झा और पु पा राव आ द।

ाण नाथ मागो के अनुसार अ खल भारतीय ा फक दशनी का आयोजन म द ली श पी च समूह ारा एक


मुख कलाकार समूह के प म कया गया था। जसम कृ णा रे ी कं वल कृ णा दे वयानी कृ णा अकबर पदमसी
सोमनाथ होरे भूप क रया मनहर मकवाना जयंत पा रख और जगमोहन चोपड़ा श पी च समूह ने अपना खुद का
टग ेस और लथो ेस खरीदा था और सभी सद य इसका फायदा उठा रहे थे यह सु वधा ।

म एक सम पत ग तशील कायशैली के साथ ुप नामक कलाकार का एक समूह जसने ा फक कला


क दशा का बीड़ा उठाया द ली म ग ठत कया गया। जगमोहन चोपड़ा का नाम इसके मु य सद य के प म गना
जाता है। इस समूह म ग तशील कलाकार के साथ साथ तभावान व ाथ भी इसके सद य बने जो कला
महा व ालय के थे। सं ापक सद य क सूची म जगमोहन चोपड़ा जीवन अदलजा उमेश वमा योगश चोपड़ा
ल मी द ा जगद श डे वजय शमा शांत व च और अनुपम सूद शा मल ह। कसके ारा थम
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आजाद के बाद आधु नक दशनी सतंबर के महीने म आयो जत क गई थी। समूह ने द ली मुंबई लखनऊ हैदराबाद और चंडीगढ़
कला आंदोलन
स हत भारत के व भ े म दश नय का आयोजन कया।

भारतीय ट कला म ऊजा का संचार तब दे ख ा गया जब फरवरी म द ली म एक स अमे रक ट


डजाइनर पॉल ल ान ारा महीने क कायशाला का आयोजन कया गया। कायशाला यूनाइटे ड टू डट इंफ ॉमशन
स वस यूएसआईएस नई द ली पर आधा रत थी और मथसो नयन इं ट ूट वा शगटन के मा यम से ायो जत
थी। इस कायशाला म शा मल कलाकार ने ट कला क व भ तकनीक और व धय को ट के स दय मह व से
जाना और समझा और पूरे भारत के लगभग कलाकार ने इस कायशाला म भाग लया। उस समय के उ मी
कलाकार म ल मण पाई कृ ण ख ा और जगमोहन चोपड़ा के साथ साथ व ाथ भी शा मल थे। कायशाला
का यह सल सला उस दौर तक चलता रहा जसम कलाकार ने नए नए योग कए और तकनीक च के साथ
साथ अ भ म भी अपनी कला का प रचय दया। यूएसआईएस ारा सरी कायशाला म आयो जत क
गई थी जसम अमे रक कलाकार और ट नमाता कै रल समरगे ारा श ण दया गया था। जनके काय म
भारत के व भ रा य जैसे द ली कोचीन मुंबई हैदराबाद वाराणसी बड़ौदा कोलकाता आ द म आयो जत
कए गए थे। इस कायशाला के बारे म जगमोहन चोपड़ा के अनुसार वे ऐसे समय म आए थे जब पारंप रक ा फक
प टग व धयां ठप हो गई थ महंगा और समय लेने वाला होने के अलावा। समरगे ने हम इससे बाहर नकलने का
रा ता दखाया।

इसी म म सतंबर म लगारण ारा ल लत कला अकादमी द ली क गढ़ कायशाला म एक अ य


कायशाला का आयोजन कया गया जसका आयोजन ल लत कला अकादमी और अमे रकन सटर के संयु
त वावधान म कया गया था। जसके तहत भारत के व भ कला क के ट कलाकार ने इस कायशाला म
भाग लया। ोफे सर चा स ोह के त वावधान म जनवरी म राज ान के उदयपुर म एक लथो ाफ
कायशाला आयो जत क गई थी। कायशाला म सुर च ा शुभा घोष शु ला सावंत रनी धूमल और हेमलता चौहान
के अलावा आठ अ य कलाकार ने भाग लया। उ ह ने अपने कला अनुभव को साझा कया और लथो ाफ कला
कौशल को अ धक बारीक से समझा। द ली के गढ़ टू डयो म लगे कलाकार ने द इं डयन ट मेक स ग क
ापना क य क इसके मु य सं ापक सद य आनंदमय बनज बुला भ ाचाय द ा ेय आ टे जयंत गजेरा
क वता नायर के आर सुब ा कं चन चंदर मोती झरो टया शु ला सावंत सुशांत गुहा थे। सुख वदर सह और शुभा
घोष।

. भारत के मुख ट बनाने वाले कलाकार

वतं ता के बाद के काल के कु छ मुख ट कलाकार और उनक कला उपल य के बारे म सं त ट प णय


के मा यम से कला आंदोलन के प म उनके कला मक यास और तकनीक। य और वैचा रक खोज के साथ
वणन कया जाना है। इन कलाकार के यास ने भारतीय आधु नक कला को एक नई दशा द है और उ ह ने कला
जगत म नए तमान गढ़े ह।

कं वल कृ णा

जनवरी को मातंगुमरी नामक ान पर ज मे कं वल कृ ण ने कोलकाता कू ल ऑफ आट से जल रंग और


ा फ स म श ा ा त क थी और पे रस म हैटर के कु शल मागदशन म । उ ह ने नवीन ा फक तकनीक
का एक वशेष अ ययन कया। अकादमी क फे लो शप के मा यम से
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ट बनाना और ट करना
एटली के तहत ल लत कला। वदे श लौटने के बाद कृ णा ने द ली के श पी च समूह के अ य क भू मका भी
भारत के नमाता
नभाई और के बाद वदे श या ा के साथ साथ वदे श म कई दश नयां करना जारी रखा। ये मु य प से रोम
नॉव टॉकहोम कोपेनहेगन लंदन रोमा नया द हेग प म जमनी आ द ह। कं वल कृ णा को त त पुर कार से भी
स मा नत कया गया है उनके ट कृ त के त ेम और गत शैली के प म एक गहरी भावना को दशाते ह।
उ ह ने स कम त बत हमालय के पवतीय े का शानदार दौरा कया है जो उनक कलाकृ तय म प रल त
होता है। व भ रंग योजना के मा यम से उनके काम म एक अनूठ चमक और काश द शत होता है जो एक
अ व मरणीय ग तशीलता सा बत ई। वयं कं वल कृ ण के अनुसार काश हम का शत करता है अंधकार हम सचेत
करता है। या काश अँधेरे क गोद म व ाम नह कर रहा है काश क तरह म भी उस अंधेरे के बारे म सोचता ं
जो हम पर चमक रहा है । क मीर यु के दौरान कं वल कृ ण ारा एक ृंख ला बनाई गई थी। इस सीरीज से जुड़ी
त वीर र ा मं ालय ने म खरीद थ ।

सोमनाथ होरे

सोमनाथ होरे का ज म म वतमान बां लादे श म चटगांव नामक ान पर आ था। बचपन से ही कला म च
रखने वाले सोमनाथ ने म कोलकाता आट् स कॉलेज से कला का ान ा त कया। से तक द ली
आट् स कॉलेज म ा फक वभाग के मुख होने के साथ साथ उ ह ने बड़ौदा के व ज टग ोफे सर के प म भी काम
कया। आट् स कॉलेज जसके बाद वे म कला भवन शां त नके तन के तहत और कु छ समय के लए ा फक
वभाग के अ य बने। उ ह ने व भारती व व ालय के मुख क ज मेदारी भी संभाली और तक सेवा
करते रहे। सोमनाथ कई दश नय म भागीदार रहे ह और उ ह पुर कार से स मा नत कया गया है। और
म लूगानो वा षक ा फक दशनी के अलावा टो यो म आयो जत वा षक दशनी का वे नस
वा षक का साओ पाउलो वा षक म नई द ली म पहली अंतरा ीय ा फक दशनी उ ह ने वदे श
म कई दश नय का दशन कया है। दे श मु य प से यूगो ला वया पोलड चेक ो लोवा कया बु गा रया और म
शा मल ह। सोमनाथ को तीन बार और रा ीय पुर कार से भी नवाजा जा चुक ा है। से वे
ल लत कला अकादमी के सद य भी रहे ह और उनक कृ तय को वदे श म सं हत कया गया है। सोमनाथ क कला
पर बंगाल के अकाल का ब त गहरा भाव है। उ ह ने ा फक पटर के प म उ कृ योगदान दया है। उनक कला
और उनसे सीखने क कला से े रत होकर कई ा फक च कार ने भारत म एक मह वपूण ान बनाया है।

कृ णा रे ी

द ण भारत म ज मे कृ ण रे ी क कला श ा नंदलाल बोस और वनोद बहारी मुख ज जैसे कलाकार के त वावधान
म शां त नके तन म ई।
फर रे ी पढ़ने के लए लंदन के लेड कू ल गए। और वहाँ से उ ह ने छाप कला तकनीक का अ ययन कया और
न क़ाशी मू यांक न म महारत हा सल क । कृ णा रे ी का तकनीक वकास भारतीय ट उ ोग म योगदान के पम
उभरा है। इमेज री ाफ के साथ साथ फोटो सथे सस आ द म नई तकनीक का उनका उपयोग मुख ता से दखाई दे ता
है। अपने ट के बारे म उ लेख करते ए ाण नाथ मागो लखते ह उनक कु छ ट छ वयां ब त बो और
श शाली ह और उनके कु छ त ब बत और पारदश डज़ाइन श शाली या म त क बनावट से तरल और
काब नक डज़ाइन तक दे ख े जा सकते ह। वह कृ त क नकल नह करता ब क उसक ऊजा और श क ा या
वभ दशा मक रेख ा या ऊ वाधर वकृ तय या गोलाकार और स पल श शाली रै खक ग तय ारा क जाती है।
वह संरचना भरता है
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आजाद के बाद आधु नक व तृत रेख ीय ववरण और बनावट म रंग क व वधता के साथ उनक त वीर म म शंसा क भावना महसूस करता
कला आंदोलन
ं और फर आनं दत होता ं जसे करीब से दे ख ा जाता है।

कृ णा रे ी ने दे श वदे श म अन गनत एकल दश नयां क ह और भारतीय वा षक और ाइनेले क सामू हक


दश नय म भाग लया है साथ ही रा ीय कला दशनी भारत और कला भवन आ द म खुद को पंज ीकृ त कया है।
कृ णा रे ी को फलाडे फया म कला उ सव म स मा नत कया गया है। वीडन मोर को आ द और म भारत
सरकार ारा प ी से भी स मा नत कया गया है।

च . हलपूल कृ णा रे ी रंग न क़ाशी ए वा टट और ए बॉ सग

ोत https www.theguardian.com artanddesign aug Krishna reddy obituary

यो त मानशंक र भ

भावनगर गुज रात म ज मे यो त भ के नाम से लोक य महाराजा सयाजीराव व व ालय बड़ौदा म अ ययन
कया। भ को से और से म भारत सरकार से रा ीय सां कृ तक छा वृ ा त करने का
सौभा य ा त आ और इटली सरकार से अंतरा ीय छा वृ भी ा त ई। जसके मा यम से वे छपाई क कला का
अ ययन करने म स म ए और म यूयॉक म फु ल ाइट कॉलर शप ा त क । उ ह ने म
रॉकफे लर फाउं डेशन ै वल ांट और म जेडीआर थड फाउं डेशन अवाड जैसे अ य अनुदान और पुर कार
ा त करना जारी रखा। उ ह ने दे श और वदे श म कई दश नयां क ह।

उ ह ने बड़ौदा व व ालय के ा फक वभाग म जमकर हंगामा कया। भ एक ब मुख ी कलाकार ह और प टग और


टमे कग म उनके आधु नकतावाद काम के लए जाने जाते ह जसका उ ह ने ब े और सु म यन के अधीन अ ययन
कया। उ ह ने बन ली व ापीठ म े को का भी अ ययन कया। मूल प से एक यू ब ट कलाकार ने अपने ट
से अं तम छाप छोड़ी। भ का काम रा ीय आधु नक कला सं हालय नई द ली हैदराबाद सं हालय वडोदरा
सं हालय टश सं हालय लंदन आधु नक कला सं हालय डफ गी ट गैलरी लोरस आ द म सं ह म है।
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अनुपम सूद ट बनाना और ट करना


भारत के नमाता
हो शयारपुर म ज मी सूद ने म कॉलेज ऑफ आट द ली म प टग क पढ़ाई क । सूद का झुक ाव प टग क ओर
था बाद म ा फक मा यम म उनक च दन ब दन बढ़ती गई। के दौरान टश काउं सल
कॉलर शप के तहत वह अपनी ट श ा ा त करने के लए लेड कू ल ऑफ आट लंदन गई। जहां उ ह ने कला
उ और नई तकनीक क बारी कय को आ मसात कया। वहां उ ह व भ तरीक मा यम और कला साम ी के
साथ योग करने के कई अवसर मले। जो उस समय भारत म संभव नह था। घर लौटने पर उसने कई कायशाला
और दश नय म भाग लया। उसने मु य प से इंटै लयो प त को अपनाया जसम न क़ाशी शु क ब मेज़ ो टट
ए वा टट जैसे मा यम शा मल ह। उनके बारे म ाणनाथ मागो क राय है वह अ सर पृ भू म और अ भू म को सरल
बनाकर तुत करती ह और अनाव यक ववरण को छोड़ दे ती ह हाँ उनके आंक ड़ म मांसपे शय क संरचना पर
न त प से जोर दया गया है। ये आंक ड़े क े त पण के पम तुत कए गए ह हालां क उनक रेख ाएं न त
प से नरम ह। वह छाया और काश का ब त नाटक य उपयोग करती है। चेहर क अ भ चाहे मुख ौटे के साथ
हो या बना मुख ौटे के ब त भावशाली है जैसे क आदम और ह वा और पु ष और कृ त म उनके ट च
ह। यह ऐसा है जैसे बना मा क के चेहरे को वचा क ऊपरी परत को उजागर करके अंदर क चताजनक त को
उजागर कर दया गया हो। अनुपम के छाप म तकनीक कौशल के बावजूद यह तकनीक से काफ ऊपर लगता है।
वचार के सामने तभा सकु ड़ जाती है जो वा तव म आज के मनु य क खद त और उ रजीवी होने से संबं धत
उसक सम या का संके त है।

च . ांज ल अनुपम सूद न क़ाशी

ोत https www.saffronart.com fixed ItemDetails.aspx iid &a Anupam Sud&pt &eid

अनुपम को म ल लत कला अकादमी ारा रा ीय पुर कार से स मा नत कया गया और उ ह म रा प त


पुर कार और कई पुर कार मले। ुप बी और श पी च क सं ापक सद य वह कॉलेज ऑफ आट नई द ली
से ोफे सर के प म सेवा नवृ ।
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आजाद के बाद आधु नक


कला आंदोलन . योग कर

वतमान इकाई के मा यम से हमने भारतीय टमे कग कला और कलाकार के बारे म चचा क । आधु नक काल के आंदोलन म
च त कलाकार का मह व और भू मका आजाद के बाद अपने चरम पर कै से प ंच गई। इस इकाई म व भ टमेक र और
उनके काय पर चचा क गई है। व शता द के अंत और व शता द क शु आत म खोजा गया मा यम शै णक श ा
और तकनीक ान के लए कला व ालय म समे कत आ। आधु नक कला कै से आंदोलन सा बत होती है और यह समकालीन
कला को कै से संद भत करती है। साथ ही साथ यह भी व ेषण कया गया क कलाकार ारा मु त कला के चार सार म
कला समूह का नमाण और इसके मा यम से मु त कला का चार सार और उसे कला मक अ भ का सम व प दान
करना।

. अपनी ग त क जाँच कर

वतं ता के बाद आधु नक कला को प रभा षत करने वाले ट मे कग क चचा क जए।

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ट मे कग क पृ भू म का सं ेप म वणन कर।

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लगेरन ारा भारत म दए गए श ण क चचा क जए।

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ट मे कग से संबं धत समूह पर चचा कर। ट बनाना और ट करना


भारत के नमाता
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वतं ता के बाद भारत के दो मुख ट नमाता म से कसी के बारे म ल खए।

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. संदभ और आगे के पाठ

अ वाल डॉ. गरराज कशोर मॉडन प टग अलीगढ़ ल लत कला काशन ।

भार ाज वनोद रामचं न आट व फ ट ए डशन नई द ली टडड बुक एजसी ।

चतुवद डॉ. ममता समकालीन भारतीय कला जयपुर राज ान हद ंथ अकादमी ।

समकालीन कला अंक नवंबर ल लत कला अकादमी संपादक डॉ. यो तष जोशी।

कपूर गीता. आधु नकतावाद कब था भारत म समकालीन सां कृ तक अ यास पर नबंध। नई द ली तू लका
.

ख ा बलराज अजीज कु था। आधु नक भारत क कला। लंदन थे स एंड हडसन .

कु मार डॉ. सुनील भारतीय छप च कला आ द से आधु नक कल तक भारतीय कला काशन नई द ली


इं डयन ट आट ।

मागो ाण नाथ। समकालीन कला का रा ीय व तार। नई द ली एनजीएमए ।

राठौर मदन सह आधु नक भारतीय च कला म अ तयथाथवाद जयपुर शमा प ल शग हाउस।


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आजाद के बाद आधु नक


http webneel.com mf husain paintings art controversy indian artist
कला आंदोलन

https openthemagazine.com art culture oscope the primeval and the आधु नक

https www.frieze.com article santhal family

https jnaf.org wp content uploads Somnath Hore .jpg

https in.pinterest.com pin nic v a ASyChl


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ट बनाना और ट करना
इकाई यात च कार और भारत के नमाता

भारत के मू तकार

. उ े य

. सीखने के प रणाम
. प रचय

. भारतीय आधु नक युग के कला मक पहलू

. आधु नक भारत के मुख च कार

. आधु नक भारत के मुख मू तकार

. योग कर

. अपनी ग त क जाँच कर

. संदभ और आगे क री डग

. उ े य

इस इकाई को पढ़ने के बाद आप स म ह गे

जा नए आजाद के बाद के आधु नक युग के स च कार और मू तकार के बारे म।

भारतीय आधु नक युग के कला मक प को समझ। भारतीय कलाकार के गत अनुभव को जान।

भारतीय च कार क आधु नक शैली को जान।

भारतीय मू तकार क आधु नक शैली से प र चत ह ।

. सीखने के प रणाम

इस इकाई का अ ययन करने के बाद आप स म ह गे

वतं ता के बाद के भारतीय आधु नक कला के स च कार और मू तकार के बारे म व ास के साथ चचा
कर।
आधु नक युग के कला मक प पर सहपा ठय और श क के साथ चचा कर।

वभ च कार के गत अनुभव से े रत नई रचनाएँ बनाएँ।

अ धक जानने और व भ मू तकला तकनीक पर शोध करने के लए े रत कर।

कला इ तहास के अ ययन के साथ कला के सै ां तक पहलु का पालन कर।

. प रचय

कला और कलाकार क आधु नक प रवतनकारी सोच और उसका दशन करने क वृ आधु नकता क नशानी है।
जैसा क इकाई और म चचा क गई है बीसव शता द म आंदोलन क एक प रचया मक कला भी रही है जसे
आधु नक कला के प म संबो धत कया गया था जसम भाववाद उ र भाववाद फ़े वज़म यू ब म
अ तयथाथवाद अ भ वाद और अमूत कला का मक प रवतन आ। परंपरा दखाई दे ती है। इस लए इन
प रवतन को दे ख ते ए वशेष प से भारतीय आधु नक कला म च कार और मू तकार का एक मह वपूण ान है।
जो भारत के आधु नक युग के कला मक पहलु का प रचय दे ता है जनक शैली म अजंता जैन राजपूत
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आजाद के बाद आधु नक मुग़ल टू कं पनी काल ने पूव तारीख के प म कई आधु नक कलाकार को भी े रत कया है जसके प रणाम व प
कला आंदोलन
आधु नक च कार और मू तकार ने भारतीय कला से ेरणा लेक र अपनी समझ और गत शैली वक सत क है।
इस इकाई के मा यम से हम इन ब पर चचा करने जा रहे ह वतं ता के बाद के आधु नक कला आंदोलन म
आधु नक च कार और मू तकार ने या भू मका नभाई और उनके काम म या बदलाव आए और उ ह ने आ मसात
करके कौन से नए बदलाव कए

. भारतीय आधु नकता के कला मक पहलू

युग

य द हम भारतीय संदभ म आधु नक युग क शु आत क बात कर तो व सद क शु आत का ही पता चलता है।


ऊपर व णत कला व ालय के साथ साथ द ली म कला व ालय का नाम भी आधु नक युग म आधु नक कला का
तीक बन गया है। इस समय के कलाकार क पीढ़ ने उसी समय क प र तय क चता कए बना इतने कम
समय म ग त क और अपनी कला था को नबाध प से ा पत कया इस लए इन कलाकार को संबं धत कला
व ालय के आधार पर व भ वग म दे ख ा जा सकता है।

य द सभी को वग वभाजन के प म वभा जत कया जाता है तो थम ेण ी के अनुसार हम उन कलाकार को पाते


ह ज ह टै गोर भाइय और बंगाल कू ल के मा यम से श त कया गया था। बंगाल कू ल शैली के अलावा अपनी
वचारधारा को अलग करने वाले कु छ कलाकार एक अलग दशा म चले गए। ले कन बंगाल कू ल का मह व भी कम
नह आ और इस कू ल म अपने पारंप रक गौरव को बनाए रखा। इस परंपरा को अब न नाथ टै गोर गगन नाथ टै गोर
नंदलाल बोस सैलोज मुख ज धनराज भगत त नाथ मजूमदार अ सत कु मार हलदर शैल नाथ डे और डीपी राय
चौधरी ारा पो षत और सम थत कया गया था।

वह तीय ेण ी के कलाकार के मामले म हम पाते ह क बंगाली कू ल क परंपरा को यागकर आ म अ भ


क नई भावना के अनुसार बंगाल कू ल प मी संदभ से े रत था। और वदे शी सं कृ त और परंपरा को दे ख कर
यूरोपीय शै लय क नकल कर रहा था। इन सभी पहलु के बजाय भारतीय आधु नक कला को अपने वदे शी शा ीय
संवैधा नक सां कृ तक और पारंप रक मू य को अपनाकर ग त करना संभव हो सकता है इस वचारधारा के
कलाकार म या मनी राय अमृता शेर गल को मु य प से रेख ां कत कया जा सकता है। ले कन साथ ही यह महसूस
कया गया क कलाकार का एक वग और उनक वचारधारा होनी चा हए। भारतीयता क चता समय के साथ सभी
क कला म प रल त होती थी।

इस समूह म वेश करने वाले सबसे पहले कलाकार थे नरोद मजूमदार शुभो टै गोर गोपाल घोष प रतोष सेन र थन
म ा ाण कृ ण पाल और दोष दासगु ता और कमला दास गु त। इस समूह क पहली दशनी म मुंबई म
आयो जत क गई थी और अ य कलाकार भी समूह म शा मल ए। एक अ य समूह के प म मुंबई के तभाशाली
युवा कलाकार ारा अ भनव वचार से े रत होकर ग तशील कलाकार समूह क ापना म FN सूज ा
एमएफ सैन के . चौथा वग सीधे ग तशील कलाकार समूह से संबं धत था। अतीत म भारतीय कला परंपरा और
रा ीयता के वचार को इसक कला म मुख ता से रखा गया था। आजाद के बाद यह वचार एक नई दशा म आगे बढ़ने
लगा यह वग प मी कला सं कृ त और योग से े रत था। समकालीन कला और कलाकार जो मु य प से पे रस
क कलाकृ तय से भा वत थे और वदे शी परंपरा को वीकार करते थे ने कला बनाना शु कर दया और कु छ
कलाकार पे रस के ग लयार म भी प ँच गए। तो कु छ अ य समूह मुंबई समूह द ली श पी च समूह म ास और
चोल के मा यम से
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यात च कार और
मंडल समूह ग तशील कलाकार स म त ीनगर समूह आ द ने आधु नक वृ य को अपने तर पर रखते
भारत के मू तकार
ए समकालीन संदभ के साथ तुत करना शु कया। इस समकालीन कला वग म सैक ड़ चेहरे उभर कर सामने आते
ह जनका वणन करना संभव नह है। और यह इकाई वतं ता के बाद के आधु नक आंदोलन म स च कार और
मू तकार के योगदान पर क त है।

. आधु नक भारत के यात च कार

वतं ता के बाद क कला कलाकार के ां तकारी उदय का त बब रही है। प रवतन के आलोक म नई चेतना
अभ और शैली गत तीक वयं च कार ारा न मत सामा जक पहलु के प म वक सत होने लगी।
जसके मा यम से कलाकार ने नई नई तकनीक का योग करते ए व भ प का योग योगा मक प से कया।

और उनक कला म व भ तीक के साथ साथ आधु नक क पना और व वधता दखाई दे ने लगी।

यहां नए बदलाव पर च कार और उनके कला खात के मा यम से चचा क जानी है जो इस कार है

सेलोज़ मुख ज

मुख ज का ज म नवंबर को कोलकाता म आ था। म उ ह ने टे ट कॉलेज ऑफ़ आट् स कोलकाता म


वेश लया। बंगाल कू ल म पढ़ने के बावजूद उ ह बंगाल शैली क धोने क तकनीक नापसंद थी। इस लए भारतीय
लोक और लघु च क गीता मक और आकषक रंग योजना को साकार करते ए उ ह ने अपने च को नई दशा द ।
म कोलकाता म एक एकल दशनी के आयोजन के साथ साथ उ ह ने कई कला दश नय म भाग लया और
उनक कृ तय को म पे रस क त त कला दशनी सेलो द माई म शा मल कया गया। इसी म म वे इस
दशनी के सद य भी थे। . सेलोज़ मुख ज म शारदा उ कल आट् स कॉलेज द ली म श क बने। उनक
प ट स को यूने को के त वावधान म म पे रस म आयो जत अंतरा ीय दशनी म भी द शत कया गया था।
उ ह ने द ली पॉ लटे नक के कला वभाग म कला श क के प म भी काम कया। हम पाते ह क रोजमरा क
जदगी से े रत होकर उ ह ने अपने च म व तृत प से तैयार कए गए ाकृ तक य और जानवर के सजावट
च बनाए। अपनी कला म प मी कलाकार मै टस के भाव को त ब बत करने के बावजूद उनका डजाइन भारतीय
भावना से भरा है।

च . झेलम म सूया त। शैलोज मुख ज कै नवास पर तेल

ोत एनजीएमए
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आजाद के बाद आधु नक नारायण ीधर ब े


कला आंदोलन

म य भारत के इंदौर म ज मे ब े ने आगरा व व ालय से नातक क ड ी ा त क और डीडी के साथ गवनमट आट् स कॉलेज
इंदौर म कला क श ा ा त क ।
दे वलालीकर। इसके बाद उ ह ने म मुंबई से प टग म ड लोमा ा त कया। कला अ यास के शु आती दन म यूरोपीय
यथाथवाद से भा वत होकर उ ह ने अपने च म छाया और काश के तकनीक पहलू को मजबूत कया और तेल च कला
तकनीक म कु शल बन गए। के दौरान क मीर म रहते ए उ ह ने ाइंग यूरल प टग गौचे तकनीक आ द म काम
कया। उनके च ब त धम तीत होते ह जनका प रचय क पना और चतन म यथाथवाद से लेक र भाववाद और अ भ वाद
तक था। ब े ने म मुंबई आट् स सोसाइट ारा वण पदक ा त कया। और के बीच ब े ने वै क कला दशन
के लए दौरा कया। उ ह ने वडोदरा के एमएस व व ालय म आचाय का पद भी संभाला। ब े को म भारत सरकार ारा
प ी पुर कार से स मा नत कया गया था। और इसी मम उह म रा ीय ल लत कला अकादमी ारा इस सं ा के पहले
के प म भी चुना गया था।

ब मुख ी तभा के धनी ब े ने व भ शै लय और तकनीक म उ साहपूवक योग करना जारी रखा। अपने च मप मी उ र
आधु नकतावाद च कार सीज़ेन मरो और गाउ गन के भाव को लेते ए बंगाल शैली क व ता क शैली ब त ही
संवेदनशील अ भ य म लघु च लघु च क मुख रता और टश शै णक परंपरा के मह व को दशाती है। च म रंग
योजना और वषय पूरी तरह से वदे शी थे। ब े के आकार सरल और व दखते ह। कला क आधु नक नया म ब े क गनती
एक रोमां टक कलाकार के प म क जाती है। उनक प टग कृ तय म वशेष प से म हला का च ण लंबे बाल लंबी आंख
हाथ साड़ी एक अलग तरह से सुंदरता दे ते ह।

उनका कथन म इस धरती का नवासी ं। म इस धरती पर चलता ं। म इस धरती के अलावा और कु छ नह सोचता। यहाँ उपल

व तुए ँ मेरे लए एक कार क पु तकालय ह। मुझ े इसके अलावा कसी और चीज म दलच ी नह है। यही कारण है क म व
च नह बनाता। म के वल वही दखाता ं जो म इस नया म अनुभव करता ं। बाक मेरे लए मह वपूण नह है। ब े एक
मह वपूण और साथक च कार होने के साथ साथ सफल श क भी थे। और उनके मुख छा यो त भ लोक कौल शां त
दवे जीआर संतोष रतन प रमू वनोद शाह गुलाम मोह मद शेख और ह मत शाह ह।

के . ी नवासुलु

कृ णा वामी ी नवासुलु का बचपन नंगलपुरम के ाकृ तक वातावरण म बीता और उनके बचपन म लोक सं कृ त के संदभ शा मल
थे। म ास कला व ालय म उ ह ने वेश लया और नई आधु नक शैली ारा उनका सा ा कार लया गया जो टश
प त से संबं धत है। कृ ण वामी ने इस आधु नक प रवेश म लोक परंपरा को समा हत कर अपनी तभा का जीवंत प रचय
दया।

के . ी नवासुलु ने एक च कार के प म अपनी पहचान ा पत क । कृ णा वामी को ाचीन कला क नकल करने के लए


आमं त कया गया था जसे मु य प से के बीच लेपा ी के च और ीलंक ा म स ग रया और तंज ावुर के मं दर
के चोल काल के दौरान न मत च क एक त बनाने का काम स पा गया था। वे या मनी राय क कला से भी भा वत थे। आं
दे श क लोक कला और द ण भारत के व भ े क कला भारतीय परंपरा और लोक सं कृ त क छाप वाली उनक कला
म दखाई दे ती है और उनके काम म सजावट अलंक रण ब त अ धक दखाई दे ता है।
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यात च कार और
उनके शु आती च म मजबूत ग तशील रेख ा का उपयोग कथा को सुंदर और भावी बनाता है मानव तमा के नयम
भारत के मू तकार
का प रचय दे ता है जो कम आदश और अ तरं जत ह। इसी मम के आसपास के उनके च म नए योग भी
प से प रल त होते ह जसम जल रंग के साथ साथ े यॉन और म त मी डया का उपयोग कया गया था। और नए
अंदाज म अलंकृ त होने लगा। वही आंक ड़े भी कु छ आ दम दखने लगे जसम रेख ा का योग सट क और मोट रेख ा
म बदल गया और आधु नक संके त दखाई दे ने लगे। उनके कु छ काय को वदे श म द शत कया गया था। उनके कु छ मुख
च मछु आरे नाद वरम उ ताद कृ ण लीला कमल का हार और अलंक रण ह

आ द।

बीरेन डे

बीरेन डे का ज म बंगाल म आ था और गवनमट कॉलेज ऑफ आट् स एंड ा ट् स कोलकाता से कला क श ा पूरी करने
के बाद उ ह ने ई वी से ई वी तक द ली पॉ लटे नक के कला वभाग म काम कया। क य ल लत कला
अकादमी नई द ली ारा बीरेन डे को रा ीय पुर कार दया गया। अपनी पूण उ वल श ा ा त करने के बाद वे यूयॉक
चले गए। बीरेन डे को मूल प से एक तां क कलाकार के प म दे ख ा गया है ले कन उ ह ने इसे कभी वीकार नह कया।
इस कलाकार का मु य ल य आसपास क चीज क वा त वक कृ त को समझना और उनका सा ा कार करना और
कृ त के साथ संबंध ा पत करना है। उ ह ने आ या मक चेतना क अ भ और द काश क अनुभू त क रचना
क है।

बीरेन के च ने व करण के स ांत के आधार पर कई रंग वक सत कए ह और इन आकृ तय म चमक ले रंग का


उपयोग कया गया है। कलाकार ने काश को मु य म य ब के प म दे ख ा है जो मु य प से दखाई दे ता है और एक
व ता रत प से घर पर न का सत तीत होता है और व करण प रवतन के बाद मु य म य ब पर वापस आ जाता है।
छ वय के त व को समझने के लए उनके पास एक ल लत कला को समझने क होनी चा हए। उनके च म तीक
और छ वय का उपयोग आकार को मूल प म बदलता तीत होता है जसम कमल या ाउट् स तीक तीत होते ह।
भारत और वदे श म बीरेन दवस क कई एकल और समूह कला दश नयां आयो जत क गई ह।

ल मण पाई

ल मण पई का ज म गोवा म आ था और उ ह ने से तक सर जेज े कू ल ऑफ आट मुंबई म कला क श ा


ा त क और भारतीय सं कृ त और भारतीय लघु च से े रत गत शैली म काम कया। सीधे धा मक ामीण लोक
जीवन म सामा जक संदभ से े रत उनके च को धोने क तकनीक के मा यम से ान मला। ल मण के च क
गीता मक रेख ा संवेदना के साथ साथ अलंकृ त त व से सुस त तीत होती है। के दशक के च क दशनी म
ल मण के च के संयोजन को मु य प से संयोजन म द शत कया गया है।

इस अव ध के दौरान ल मण ने कु छ समय के लए सर जेज े कू ल म श क के प म भी काम कया और इसके बाद


तक ल मण लंदन और यूरोप के व भ बड़े शहर म रहे और या ा क । ले कन प मी दे श म इतना समय
बताने के बाद भी उनके च क शैली और वषयव तु भारतीय बनी रही और वदे शी भाव नग य रहा। संयोजन म च
म आधु नकता का त बब न त प से प रल त होता है। ले कन सपाट रंग रेख ा और अलंक रण का चलन वही रहा।
एक संयोजन के प म कु छ या मतीय डजाइन और बनावट योग क वृ दखाई दे ने लगी। ले कन एक वषय के
प म गोवा क सां कृ तक झलक पर काश डाला जाना जारी रहा। ल मण ने यादातर जलरंग म काम कया ले कन
पे रस म रहते ए उ ह ने तेल रंग के मा यम को भी गंभीरता से अपनाया और इस नए मा यम म उ ह ने य च बनाए
जसम ल मण ने
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आजाद के बाद आधु नक ाथ मक ान के प म रंग का उपयोग करने के लए काश और अंधेरे का उपयोग कया जो बाद म उनक गत
कला आंदोलन
नवीन शैली म वक सत आ।

ल मण को म गोवा के कला महा व ालय म धानाचाय के पद पर नयु कया गया और उ ह ने रा य के कला छा


का नए योग के साथ सा ा कार कया। ल मण के च वषय को व भ े म पाया जा सकता है शां त लाओ
म गीत गो वद म रामायण और महा मा गांधी म बु का जीवन म अनु ान
म पवतीय य और म राज ान के लोक सं कृ त रहन सहन और सामा जक प रवेश से संबं धत
व भ मा यम म मा सक च ृंख ला का नमाण कया गया। ल मण क प ट स दश नय म या वदे श म आयो जत क
गई ह और उ ह त त पुर कार से भी स मा नत कया गया है मु य प से प भूषण प ी नेह पुर कार गोवा रा य
पुर कार रा ीय पुर कार ल लत कला अकादमी ारा मेयो पदक पुर कार आ द।

शां त दवे

गुज रात रा य के अहमदाबाद म ज मे शां त दवे ने एमएस यू नव सट बड़ौदा से प टग म एमए क ड ी ा त क और उनका


शु आती काम लघु च से े रत था और इस पर आधा रत च बनाने के शु आती दन म जसम एक झलक भी है। धन
वाह क वकृ त। उनके मु य वषय खेत झोपड़ी कसान बैलगाड़ी पनघाट आ द के प म दखाई दे ते ह जनक सजावट
पृ भू म जो रंगीन लोक सं कृ त से संबं धत प रधान को कामुक वनय म सपाट रंग के मा यम से द शत करती दखाई दे ती
है। शां त दवे क संवेदनाएं उ ह गुज रात के ामीण प रवेश क गहरी छाप रखने वाले एक स ट नमाता के प म भी पेश
करती ह। उ ह ने च के साथ साथ छाप च के असं य योग भी कए ह।

कई योग के बाद डेव ने से योगा मक साम य और अनूठ तकनीक का उपयोग करना शु कया। कला अ यास
के दौरान डेव ने कहानी के बजाय च म डजाइन के मह व को मुख ता से रखा। नतीजतन च संयोजन को आनुपा तक
प से वभा जत कया गया था जसम डेव ारा आकार और रंग को संतु लत त द गई थी। उनके ारं भक च मूल प
थे ले कन बाद म उ ह एक अमूत च कार के प म जाना जाने लगा। उनक अमूत शैली म भारतीय सं कृ त और जीवन के
रंग क एक वशेष सुगंध समा हत है।

शां त दवे को रा ीय और अंतररा ीय स मान से नवाजा जा चुक ा है। जसम उ ह प ी से स मा नत कया गया और ल लत
कला अकादमी ारा तीन पुर कार से भी स मा नत कया गया और टो यो वा षक म भी। उनके ारा न मत भ च
यूयॉक म हवाई अ े के वीआईपी लाउं ज म द शत ह। उ ह ने रा ीय और अंतररा ीय तर पर स कलाकार के पम
कई एकल और सामू हक कला दश नय का दशन कया है।

भूपेन खाखर

भूपेन खाखर का ज म मुंबई म आ था और उ ह ने अथशा और वा ण य म नातक क श ा ा त क । इसके बाद उ ह ने


मुंबई म चाटड एकाउं टट के प म काम करना शु कया। इसके साथ ही वे नय मत शाम के समय कला क श ा भी ा त
करते रहे। इस बीच म उ ह ने अपनी नौकरी छोड़ द और बड़ौदा एमएस यू नव सट ऑफ आट कू ल चले गए और
एमए कला समी ा म वेश लया। इसके बाद उ ह ने कला का नमाण भी जारी रखा जसम मु य प से दै नक जीवन के
च को सामा य शैली म च त कया जाने लगा। उ ह ने दे वता क छपी ई छ वय और कै लडर से बाजार क मू त और
कोलाज बनाए। भूपेन ने कसी तरह के योग से व भ कान म पो टकाड कै लडर म नएचर सनेमा दं गा च आ द का
खूब उपयोग कया। म भूपेन क पहली दशनी का आयोजन कया गया था। उ ह ने अपने च म दै नक जीवन से जुड़े
पहलु को च त कया जसके बाद म य
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यात च कार और
उनके च म वग जीवन दखाई दे ता था। और इसके बाद भूपेन ने समाज के उस वग को च त करना शु कया
भारत के मू तकार
जसे च म कभी वशेष ान नह मला था। के बाद उनके च के रंग का योग आम जनता और उनसे
संबं धत दर के अनुसार कया जाने लगा। भूपेन ने कई मह वपूण अंतररा ीय दशन म भाग लया। उ ह ने गुज राती
भाषा म कहा नयाँ लखी ह। और सा ह य से उनका वशेष लगाव है। उ ह म य दे श सरकार क ओर से का लदास
पुर कार से नवाजा जा चुक ा है।

ए. रामचं न

यात कलाकार ए. रामचं न अ युतन रामचं न नायर का ज म के रल रा य के अ गल म आ था। ज ह ने कला


भवन शां त नके तन बंगाल से कला क श ा पूरी क थी और स कला गु राम ककर बैज और बनोद बहारी
मुख ज का वशेष मागदशन ा त कया था। बाद म नायर ने ले प टग के वषय म के रल से डॉ टरेट क उपा ध ा त
क । अपनी औपचा रक कला श ा ा त करने के बाद वे द ली म बस गए और यहाँ वे जा मया म लया इ ला मया
व व ालय के ल लत कला वभाग म डीन के पद पर थे।

रामचं न नायर को आधु नक कला जगत म एक ा पत च कार के प म जाना जाता है।


उनके च क आधु नक शैली रंग और डजाइन क व भ कार क अ भ य को दशाती तीत होती है जो
भारतीय सं कृ त और मथक से भरपूर है वे सामा जक और पौरा णक संदभ को भी करते ह। यह दशाता है क
आधु नक च कार परंपरा और पौरा णक चेतना को पूरी तरह से नह छोड़ता है और इसे सीधे या पुरातन प म वीकार
नह करता है। इस लए रामचं न नायर के च क भाषा भी दशक को अ तयथाथवाद शैली से प र चत कराती है।
रामचं न का मानना है क कला एक ब त ही नजी बयान है। यह अपने आसपास के जीवन के त कलाकार क
त या है। एक कलाकृ त एक झल मलाहट पैदा करती है एक ऐसा ण जब हम आ या मक अनुभव क तरह एक
स दय शा ीय अनुभव मलता है।

रामचं न न के वल मानव प से ब क अमानवीय प से भी आक षत थे उ ह ने क ड़ को भी यथाथवाद पम


च त कया है। व ान क व और कला समी क याग शु ल रामचं न के बारे म कहते ह क रामचं न लोक राग से
बंधे एक आधु नक कलाकार ह। .... उनक प टग कह रही ह क हम दे ख ो हम व सनीय दखावे ह। और वह यह भी
याद दला रहे ह क संपूण भारतीय कला परंपरा के संबंध म आधु नकतावाद के इस प क प रण त अपने आप म
एक सरल ले कन उ लेख नीय घटना है। हमारे श प और कला कौशल म एक लोक राग समान प से समाया आ है।
और हमेशा कृ त क एक मह वपूण उप त होती है जसे सु र पूव क सं कृ त और कला कहा जाता है। इस लए
चाहे भारतीय कला परंपरा हो चीनी जापानी या द ण पूव ए शया के दे श म फल प े प ी नद के फ वारे बादल
आकाश वा नक आ द क ंख लाएं बार बार लौट रही ह। और इन परंपरा म श प क भी जबरद त उप त रही
है जो च कला के साथ साथ मू तकला और वा तुक ला को भी लाभ दान करते ह। रामचं न क कला क वा तुक ला
इसक संरचना अंक न के कौशल क मजबूत म पर टक ई है।

रामचं न क प टग भारतीय लघु परंपरा से नकटता से संबं धत ह जसे कृ ण चैत य के के नायर ने इस तरह से बु
कया है क उनक पूरी ृंख ला म एक तरफ उनके पास मुगल या राजपूत लघु च कार क तरह उ कृ नरम रेख ाएं
ह और सरी ओर माइकल एंज ेलो क तरह डजाइन और शरीर रचना व ान का एक बड़ा उपयोग है। रामचं न को
इस ृंख ला म प भूषण रा ीय ल लत कला अकादमी नई द ली और के रल ल लत कला अकादमी और व भ
रा य के भीतर रा ीय और अंतरा ीय तर पर कई अ य सं ान के साथ वशेष स मान से स मा नत कया गया है।
उनक प टग रा य स हत कई नजी रा ीय और अंतररा ीय तर के सं हालय के सं ह म ह
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आजाद के बाद आधु नक अकाद मय और रा ीय आधु नक कला क नई द ली।


कला आंदोलन

च . रामचं न नायर

ोत http www.artoframaचं न. com gallery watercolors page

परमजीत सह

यात च कार परमजीत सह जनका ज म पंज ाब के अमृतसर रा य म आ था जनक श ा ड लोमा कला के पम


द ली पॉ लटे नक नई द ली से ई थी। उ ह ने सैलोज मुख ज के अधीन कला के रह य को समझा। और लगभग तीन
दशक तक अपनी व णम लोक कला म परमजीत सह ने जा मया म लया इ ला मया व व ालय के ल लत कला और
कला श ा वभाग म मटर के प म अकाद मक सेवा द है। व र और व यात च कार परमजीत सह को वशेष प से
कृ त के रह य के च कार के प म जाना जाता है। उ ह ने लड के प को खास तरीके से एक नया और अ त ववरण दया
है। उनके च के वल कृ त और कसी भी य का च ण नह ह ब क वे अपने च ण से परे जाते ह ाकृ तक य के
अन गनत बदलते रंग म उनके संयोजन वशेष रंग का चयन करते ह। उनके ारा बनाए गए च बड़े आकार के ह वे रंग
फै लाते ह जससे रंग क वाभा वकता समा त हो जाती है। और संपूण य च एक कामो पक रंग रता का एक अमूत
संयोजन तीत होता है। इन यास से च मअतर रंग और मा यम से अ भ उ कृ है। परमजीत के च म दो
अनुगामी घास पीले वृ ात काल क सं या और काश को अ य धक मह व दया गया है। उनके म ापक प से कु छ भी
दखाई नह दे ता है
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यात च कार और
च । ले कन इसे दे ख ते ए इसे महसूस कया जा सकता है। ऐसा माना जाता है क परमजीत सह अपने च से भी
भारत के मू तकार
कृ त को रह यमयी बना दे ते ह और वह अपने प म एक नई नया दखाते नजर आते ह। डॉ. ग रराज कशोर
अ वाल परमजीत के बारे म लखते ह उनक कला प मी अ भ वाद कलाकार से भा वत रही है। ै तक
आकृ तयाँ काश क नाटक य कृ तयाँ ह। उनक कलाकृ तयां आ द क अमूत बनावट म चे रको के समान है। ठोस
आकार क व तुए ं शू य म भ होती ह ले कन उन पर पड़ने वाला काश र रहता है। उ ह ने व तु के ा य व से
युग के ा य व को कया है। यह उ ह शा त करना चाहता है। रता के कारण इनका आसमान ब त
भारी लगता है। प र तयाँ हम अ तयथाथवाद से योजना क नया म ले जाती ह। इससे अंदाजा लगाया जा
सकता है क उनक त वीर दे ख ी जा सकती है.

क पना लोक योजनाब म म वक सत ए ह। जसका भाव अ भ वाद प मी कलाकार क कला प म


दे ख ा जा सकता है जो नाटक य काश और रंग ारा उपयोग कए गए पोत के मा यम से अपने च म अमूत
अभ करते ह। परमजीत सह को व भ स कला सं ान से स मा नत कया गया है। इसे म
ा त ल लत कला अकादमी नई द ली ारा रा ीय पुर कार म भी शा मल कया गया है। उनके च को रा ीय
आधु नक कला गैलरी नई द ली और दे श और वदे श क व भ कला द घा और सं हालय म सं हीत कया जाता
है।

जोगेन चौधरी

फरीदाबाद वतमान म बां लादे श म त म ज मे जोगेन चौधरी ने म कला और श प कॉलेज कोलकाता से


ल लत कला म नातक क उपा ध ा त क । और आगे कला अ ययन के लए ांस सरकार से छा वृ ा त करने
पर वे तक ांस म रहे। . इसके बाद घर वापस आकर उ ह अपनी गत शैली के वकास के बारे म
पता चला। उनके शु आती च म कलक ा के ामीण जीवन को दे ख ा जा सकता है ले कन कु छ समय बाद उनके
च म बदलाव आया। जनम मु य प से ततली सांप मछली आ द का समावेश होता है उ ह अ भ ंज क तरीके
से च त कया जाने लगा। वन त और कृ त को भी उनके च म मु य प से दे ख ा जा सकता है ज ह सैसी
मुरझाया आ आधा पका आ ताजा आ द के साथ च त कया गया है। जोगेन ने कागज पर च बनाने के लए
तेल च के बजाय काले और रंगीन गहरे और मोमी रंग का उपयोग कया है अ सर संदभ के साथ च म वा त वक
वषय के लए। उनके च के प क क पना वकृ त शैली म क गई है और उनम और व क गहरी उदासी है।

च . सरे के सामने रोता आ आदमी जोगेन चौधरी कागज पर सूख ा पे टल

ोत http www.archerindia.com jogen chowdhury

जोगेन चौधरी के बारे म समकालीन कला जगत क अनुभू त इस कार है जोगेन कला म वष से कु छ चेहर
आकृ तय मीठे और कड़वे चुटकु ल के मा यम से मा णत कया गया है। नेता ापा रय और स न वह इन
आंक ड़ का आकलन इस तरह से कर रहा है क अंक न शैली से के वल ं या मक हा य ही नकलता है। जब हम
कं ट ली आकृ तय और अजीबोगरीब नुक ले दांत को दे ख ते ह
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आजाद के बाद आधु नक इन काय म चेहरे इक े ए फर समकालीन यथाथवाद का अ तयथाथवाद च ण। जोगेन ने ं यपूण हा य च के
कला आंदोलन
साथ साथ दद और क णा से भरे कई चेहर को भी हा सल कया है जो समाज क मासू मयत और सादगी के अ य
पहलु का भी त न ध व करते ह। डॉ. ग रराज कशोर कहते ह क उ ह ने समकालीन प रवेश म मनु य के चेहरे
को बदलने क भयानक त को बड़ी मा मकता से च त कया है ले कन फर भी वे मनु य म कु छ अ ाई दशाते
ह। वे सभी आंक ड़ को सामा य या व श लोग म ब त संवेदनशील प से च त करते ह । उ ह व भ सं ान
ारा स मा नत कया गया है और उनक प टग नेशनल गैलरी ऑफ मॉडन आट नई द ली और दे श और वदे श क
व भ कला द घा और सं हालय के सं ह म ह। उ ह ने रा प त भवन म कलाकृ तय के लए यूरेटर का पद भी
संभाला और गैलरी के सं ापक सद य थे। उनक कला क कृ तयाँ ह लेडी वद अनकै ड हेयर नाट वनो दनी
और टाइगर इन मूनलाइट नाइट आ द।

अंज ल इला मेनन

अंज ल इला मेनन का ज म प म बंगाल के बनपुर म आ था। वह से अपनी ारं भक श ा ा त करने के बाद
उ ह ने कु छ समय के लए सर जेज े कू ल ऑफ आट् स मुंबई म भी अ ययन कया और पे रस से े को प टग तकनीक
ा त क । अंज ोली ारा र चत संयोजन प का आकार ाचीन कलाकार क तकनीक का प रचय दे ता तीत होता है
जसके तहत अंतराल और सामा य मनोदशा दखाई दे ती है। ारं भक काय के बाद अंज ोली के च गहराई रता
प रप वता के साथ साथ पीड़ा और व सनीयता को दशाते ह। उनके कला अनुभव बताते ह क उनक सृज न या ा ने
एक भ ल य हा सल कर लया है और यह अनुभव उनके च म एक लंबा सफर तय करने के बाद प रल त आ
है। उनके च म हाड बोड को मु य प से आधार के प म बनाया गया है और इस हाड बोड क सतह अंज ोली
रह यमय डजाइन से सुस त है। रह य म स हत उनके च सरल तीत होते ह। जसम उनका प एक छतरी
ई आकृ त के आकार का है जो पुरातनता का श दे ता तीत होता है जो इसे दे ख कर संतु और न य तीत
होता है। और वह भी अ सर अंज ल खुद को इन डजाइन के साथ एक कृ त करती है खुद को संयोजन म पूरी तरह से
लीन दखाती है। त वीर के नकल करने के बजाय च मॉडल के अंद नी ह स को कट करते ए दखाई दे
रहे ह। इस वषय म वह खुद कहती ह क पो ट सफ एक पो ट नह है इसके लए सटर का बाहरी प दे ख ना ज री
है ।

अंज ल इला मेनन द व ग वग यू मी नग टू कं टे ररी नेस लेख म डॉ. यो तष जोशी लखते ह जसम
समकालीन कलाकार के पक तीक आ द को आकृ तय के संयोजन के साथ उपयोग कया जाता है आ द।
यु य म रचनाएँ खुलती ह पक और तीक के बीच। यहाँ ी पु ष पुरो हत कौवे पतंग जैसे तीक नए अथ
और आयाम के वाहक ह। उसक जा कह न कह सामा जक यथाथ क खड़ कयाँ खोलती है। उनक कलाकृ तयाँ
नेशनल गैलरी ऑफ़ मॉडन आट नई द ली ल लत कला अकादमी नई द ली श प और कला बड़ला अकादमी
कोलकाता चंडीगढ़ सं हालय समरोजा कला व थका मुंबई फु कु ओका सं हालय जापान बजा मन गे यू ज़यम
यूयॉक म सं ह म ह। रदशन क एक कथा फ म भी अंज ल इला मेनन पर बनी है।

बकाश भ ाचाजी

बकाश भ ाचाज का ज म कलक ा प म बंगाल म आ था और उ ह ने इं डयन कॉलेज ऑफ़ आट एंड ा ट् स


कलक ा से कला म ड लोमा ा त कया और उसके बाद उ ह ने लगभग छह वष तक श ण काय कया। उ ह ने
अपने च म यथाथवाद च ण शैली का उपयोग करके एक औसत म यमवग य बंगाली जीवन का च ण कया
जसम उनक आशाएँ अंध व ास पाखंड ाचार और हसा आ द मु य प से दखाई दे ती ह। उ ह ने च ण के
लए व भ मा यम जैसे तेल ए े लक वाटर कलर आ द म काम कया है और सामा जक समकालीन और
वचारो ेज क को शा मल कया है।
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मनोरम च के साथ च म वषय। उनक प टग यथाथवाद और च ण ह। आधु नक कला म सामा जक वषय के यात च कार और
भारत के मू तकार
मा यम से च म संदेश बनाए गए ह जनम से मु य वषय ह बुरी खबर बुरी याद सामा जक वा त वकता पर कटा
स ाई म छपा झूठ आशा म नराशा आ द। गु ड़या प टग ृंख ला ूब का उ ाटन कु एँ आ द उनक स कृ तयाँ
ह। जो अ त यथाथवाद शैली के घोषणाकता ह। कला समी क शांतो द के अनुसार बकाश आधु नक भारतीय
कलाकार म से एक ह जनक मान सकता मूल प से नाग रक या शहरी है। जीवन के त उनका बौ क और
भावना मक रवैया भी उनक अपनी शहरी जीवन तय का आधार है और उ ह ने सावज नक आ दवासी या ामीण
कला परंपरा को सावज नक कया है और इसम जड़ खोजने क कभी को शश नह क है। उनक अ धकांश प टग
अ तयथाथवाद और व ल दखती ह। शायद यही कारण है क वकास को लोक य सावज नक और आ दवासी
बना दया और ामीण कला परंपरा से र रखा। ले कन वकास क कला म मानव और अमानवीय प के उपयोग
के बावजूद जो आधु नक च कला म आसानी से मल जाता है उसे समझा जा सकता है। बकाश का भारतीय आधु नक
कला म भी मह वपूण ान है उनक आकृ तयां सामा जक संदभ से जुड़ी ई तीत होती ह।

बकाश को भारत सरकार ारा प ी से स मा नत कया गया है और ल लत कला अकादमी नई द ली ारा व श


स मान क एक ृंख ला और रा ीय पुर कार से स मा नत कया गया है उनके च को भारत और वदे श म द शत
कया गया है। और उनक रचनाएँ रा ीय आधु नक कला सं हालय नई द ली चंडीगढ़ व व ालय भारत भवन
भोपाल और अ य त त कला सं ान के सं ह म ह।

च . माँ बकाश भ ाचाज कै नवास पर तेल

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आजाद के बाद आधु नक ज तन दास


कला आंदोलन

उड़ीसा के मयूर गंज म ज मे ज तन दास का बचपन से ही कला क ओर झान था। जेज े कू ल ऑफ आट् स मुंबई से कला म
ड लोमा ा त कया। ज तन दास को भारत सरकार ारा वा षक कला दशनी एआईएफएसीएस नई द ली बॉ बे आट
सोसाइट मुंबई पुर कार भारत भवन प भूषण और व र फै लो शप ा त ई है। रदशन ने उनके कला अनुभव के आधार पर
एक फ म भी बनाई है। उनके च का मु य वषय म हला च का संयोजन है। उ ह ने कै नवास पर मानव प को व भ प
म बदल दया है और गत शैली वक सत करने के लए व पण पर आधा रत प टग ृंख ला बनाई है। इसके बाद म हला
च ांक न न न म हला आकृ तय को च त करना ा य य नय और शलभं जका के साथ सामंज य ा पत करता तीत होता
है। यह भी माना जा सकता है क दास क कला म पु ष और म हला के बीच संबंध मु य प से क त ह।

ज तन दास ने भाव क अ भ ंज क गूढ़ता को महसूस कया है और अपनी क मय के साथ अनुभव कया है क उनके च म
इशार और श के रंग का संयोजन दशक के मन म एक तरह क सनसनीखेज त पैदा करता है। यह भावशाली अ भ
उनके च म उभरती है। ज तन दास क शैली को इस कार व ान का समथन ा त आ है वह युवा म हला क लोच के
मा यम से पु ष क सुंदरता और वशालता के मा यम से अपने उ साह को करता है। उ ह ने इस अनुभवा मक अमूत अंत
को महसूस करने और अपनी कलाकृ तय के मा यम से इसे करने का यास कया है। इसके लए वह फोकस के क के साथ
एक रंगीन बैले बनाता है और व भ रंग और मोट रेख ा का उपयोग करता है। ी और पु ष क भावना ारा आ व कृ त
अ आकृ तयाँ संपक के ब के नकट आती ह और मानवीय भावना क एक ब त ही भावशाली च मय अ भ ह।
इन च से हाथ के इशार पर वशेष यान दया जाता है।

मंज ीत बावा

पंज ाब रा य के री म पैदा ए मंज ीत बावा ने सोमनाथ होरे धनराज भगत और बीसी सा याल क दे ख रेख म कॉलेज ऑफ आट
नई द ली से कला क श ा पूरी क । मंज ीत बावा क प टग का अपना वषय और च ण का एक अलग तरीका है। उ ह ने
भारतीय पौरा णक कथा और सूफ क वता के वचार को च म च त करने का यास कया है। मंज ीत बावा के च म
चमक ले रंग का एक अनूठा मह व है। जसम कृ त पशु ेम और बांसुरी क दौलत उ ह लगातार मो हत करती नजर आ रही है।
उनके च म कृ ण हीर रांझ ा और शेफ ड रांझ ा को च त कया गया है साथ ही उ ह ने कई च म कृ ण को बांसुरी बजाते ए
च त कया है। ऐसा तीत होता है क बावा क कला के तीन चरण ह जनम पहले तर पर रचना मक च मानव और पशु
आकृ तयाँ ह। सरे चरण दलच हड लग के साथ गुलाबी मौवे हरे रंग के शु प ह। वह तीसरे चरण म अ त वकृ त ेण ीकृ त
प ा त होते ह जो पक के संयोजन म मह वपूण प से उपयोग कए गए ह जनम पूरक रंग पीले नारंगी गुलाबी लाल हरे
नीले आ द का शु प म उपयोग कया गया है। रंग णाली। कह झूलते समय उनके च क आकृ तयाँ दखाई दे ती ह और
ऐसा लगता है क उनक प टग बना ह ी के जीवंत ह ले कन उ ह ने इन डज़ाइन म हावभाव और मु ा का ब त समायोजन कया
है। बावा अपनी जीवंत च ण शैली और आ या मकता ेम और वशेष प से सूफ दशन के लए भी जाने जाते ह। मनजीत
बावा ने मानव ांड को अ भ दे ते ए एक का प नक लोक क रचना क है जसम मानव और गैर मानव आकृ तय को
आसानी से आ मसात कया जा सकता है। उनके च के अ भाग मासू मयत क एक अनूठ भावना कट करते ह। मदन सह
राठौर मंज ीत के च म त मानव आकृ तय का आ यान इस कार तुत करते ह मंज ीत क रचना म दो त य को दशाया
गया है
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यात च कार और
अपने काय म एक साथ हरकत । उनके च च मूडी और च तत दोन ह .... अपने एक काम म तलवार चलाते ए वह जस
भारत के मू तकार
यो ा को दे ख ता है वह हसक यो ा नह है ब क वह एक उदास यो ा है जो हमारे समय म हो रही कई चीज से असहमत है
उसका ःख और हाँ वह गु सा भी कट कर रहा है।

फ म मी टग मंज ीत को रा ीय पुर कार मला। उ ह वशेष स मान के प म रा ीय पुर कार ल लत कला अकादमी नई
द ली सैलोज पुर कार नई द ली और भारत भवन से पांक र बएननेल पुर कार आ द ा त ए। और बावा के च को
दे श वदे श म द शत कया गया है उनक रचनाएँ रा ीय आधु नक कला सं हालय नई द ली और चंडीगढ़ व व ालय और
भारत भवन भोपाल और अ य कला सं ान के सं ह म ह।

के जी सु म यम लॉक यू नट दे ख

परमानंद चोयल लॉक यू नट दे ख

बमल दासगु ता दे ख खंड इकाई

रनबीर सह ब लॉक इकाई दे ख

गुलाम रसूल संतोष दे ख खंड इकाई

. आधु नक भारत के मुख मू तकार

मू तकार वतं ता के बाद के ां तकारी अनुभव को भी अपनी कला म ान दे ते ह। इनके मा यम से श प क रचना जीवन
के साथ साथ जीवन को स दय म बदलने आंत रक अ भ आ म सा ा कार आ द से े रत होकर े रत ई है। सधु काल
क स यता से लेक र स दय को व मयकारी तरीके से तुत कया गया है आधु नक कला म मू तकार म ययुगीन काल के ह।
भारत के ाचीन श प कौशल को धम के तहत पो षत कया गया था जसका प रचय मं दर और कला मक मू तय म मलता
है। भारतीय श प कौशल क अ त या ा व भ चरण से गुज री है। वतं ता के बाद क मू तकला ने दे वी साद राय चौधरी
राम ककर बैज ारा उ प वचन के वषय के अनुसार एक सवागीण वकास दे ख ा है। और उनके ारा श त आने वाली
पी ़ढयां व भ मा यम से भारत क आधु नक और समकालीन मू तकला को वक सत और पो षत कर रही ह। इससे संबं धत
मू तकार का ववरण इस कार है

अमरनाथ सहगल

अमरनाथ सहगल का ज म उ री पंज ाब वतमान म पा क तान म त म आ था जसे अटॉक कहा जाता है। म
सहगल गवनमट कॉलेज लाहौर म अपनी नातक क ड ी के लए अ ययन करने आए और म उ ह ने अपने ान से
नातक क पढ़ाई पूरी क जसके बाद उ ह ने बनारस ह व व ालय म भी अ ययन कया और एक इंज ी नयर के पम
लाहौर म काम कया। भारत पा क तान के वभाजन के समय सहगल प म पंज ाब आए और उ ह ने अपने जीवन का कु छ
समय प मी पंज ाब के साथ साथ कांगड़ा कु लू के वाद म बताया य क उनक भी कला म च थी इस लए कु छ समय
बाद वे द ली प ंचे और एक नया उनके जीवन का संघष शु आ। उ ह ने म यूयॉक यू नव सट ऑफ एजुके शन कू ल
म कला श ा का अ ययन कया। इस दौरान उ ह ने कला को समझने और व तार करने के लए या ा क और वह हेनरी मै टस
से भा वत थे।

सहगल क पहली कला दशनी म यूयॉक म आयो जत क गई थी और उ ह ने भारत का नेतृ व कया था। वदे श से
लौटने के बाद सहगल ने ल लत कला कॉलेज नई द ली म एक श क के प म पढ़ाना शु कया। कांसे और म से
सहगल क गढ़ ई श पकला का मु य वषय यातना आ द से भा वत आम आदमी क सम या थी। उनका श प और दशक
एक पहचान ा पत करता है। सहगल के साथ जुड़ाव महसूस करता है दशक
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आजाद के बाद आधु नक मू त श प जो मानवता के त सम पत तीत होते ह। सहगल को ल लत कला अकादमी नई द ली ारा वण पदक और रा ीय
कला आंदोलन
पुर कार से स मा नत कया गया है। वह ल लत कला अकादमी और फोड फाउं डेशन के फे लो रह चुके ह। और भारत सरकार ारा
प भूषण से भी अलंकृ त है और उनक मू तयां नेशनल गैलरी ऑफ मॉडन आट नई द ली और दे श और वदे श क व भ

कला द घा और सं हालय म सं हीत ह।

पीवी जानक राम

पीवी जानक राम का ज म द ण भारत म आ था और उ ह ने म चे ई म कला और श प कॉलेज से मू तकला क श ा


ा त क और उ ह ने म हंगरी सरकार ारा मू तकला म ड लोमा भी ा त कया। जानक राम का नाम मु य प से धातु
क मू त बनाने वाले कलाकार म गना जाता है। कॉलेज म एक श क के प म। उ ह ने द ण भारतीय ाचीन मू तकला से
ेरणा लेक र भारतीय सं कृ त को और वक सत कया। लेट ारा वतं आकृ तय को एक नए प म बदल दया गया जसम
एक मजबूत रेख ा आकार और अ भ है। उनके मु य वषय ग के प म बने ह जीसस उ लू दे वी दे वता आ द को
सजाया गया है जो एक कु शलता से अलंकृ त अवतार और भारतीय सं कृ त क कहावत तीत होता है। जानक राम को ल लत
कला अकादमी ारा रा ीय पुर कार और हैदराबाद आट् स सोसाइट ारा रजत पदक इसी म म म ास ल लत कला अकादमी
ारा रा य को दान कया गया है।

जनालय पुर कार बुडापे ट से भी पुर कार ा त होते ह। उनक कला दशनी के आदे श वदे श म आयो जत कए गए ह और
उनका नाम आधु नक कला मू तकार म अ णी है।

राघव कने रया

राघव कने रया का ज म गुज रात म आ था और उ ह ने MS . म अपनी कला क श ा पूरी क


व व ालय बड़ौदा और वह दो साल के लए सं कृ त मं ालय भारत सरकार के व ान भी थे और एमएस
व व ालय बड़ौदा म कने रया वभाग के मुख के प म काम कया।

राघव के मू त श प के संयोजन व भ मा यम जैसे म के बतन लकड़ी धातु म आ द म बनाए गए थे जसम राघव ने


आ मा को आ या मक और समृ लय के साथ के एक करण के साथ तुत कया है जानवर और मानव आकृ तय का
एक वशेष ान है। उनके आंक ड़ म। राघव ने वदे शी कलाकार से े रत होकर अपनी खुद क एक गत शैली वक सत
क जसम उ ह ने म स मी डया के बेक ार ह स जैसे क एक जंक ट ल मशीन से ेरक आकार बनाया उनक कई योजना
म ब त ही बनावट वाली रेख ाएँ आकार और मा ाएँ ह। दलच तरीके । वशेष आकार म टे राकोटा से बना सांड और बछड़ा
धातु से बने लाल पंख वाले जीवंत मुगा का एक जीवंत उदाहरण है एक उ कृ उदाहरण है। राघव को ल लत कला अकादमी
ारा रा ीय पुर कार मुंबई आट सोसाइट ारा वण पदक और के वल रा य कला दशनी म मुंबई ारा स मा नत कया गया है।
म उ ह ऑल इं डया फाइन आट एंड ा ट सोसाइट ारा स वर मेडल और अ य व श पुर कार से स मा नत कया
गया। राघव क कलाकृ तयां ल लत कला अकादमी और अ य त त सं ान म सं ह म ह।

दोष दास गु ता दे ख खंड इकाई

संख ो चौधरी लॉक यू नट दे ख

धनराज भगत दे ख खंड इकाई

सोमनाथ होरे दे ख खंड इकाई

मीरा मुख ज लॉक यू नट दे ख


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यात च कार और
. योग करने द भारत के मू तकार

इस इकाई म हमने भारत के स च कार और मू तकार के बारे म चचा क जसम उ ह ने जीवनी कला या ा
कला तकनीक आ द हा सल क । भारतीय कला के इ तहास म बदलाव का म लगातार आगे बढ़ता रहा जसम
कलाकार ने न के वल नए नवाचार कए। अ यंत रचना मक ले कन साथी आधु नक कला के प म एक व श
पहचान भी दज क । कलाकार ने अपनी भारतीय सं कृ त और ऐ तहा सक से े रत होकर कला को आधु नकता
के प म एक नई दशा द । कल जहां भारतीय कला और कलाकार कं पनी तंग महसूस कर रही थी और उससे कु छ
समय पहले वतं ता के साथ साथ कलाकार और उसक कला भी मानव वतं हो गई और एक नई रोशनी क ओर
बढ़ गई भारतीय कलाकार प मी कला से े रत थे आंदोलन ले कन वे उनक नकल के पयाय नह थे उ ह ने अपनी
वपरीत शैली वक सत क और समाज के सामने नए योग तुत कए जसके प रणाम व प समाज ने भी
भारतीय कलाकार और उनक कला को आधु नकता के साथ वीकार कया।

कलाकार के समूह ने भारतीय कला परंपरा और रा ीयता को आगे बढ़ाया। जसके तहत समसाम यक ेण ी म
सैक ड़ चेहरे उभर कर सामने आए ज ह इस इकाई के मा यम से आधु नक च कार और मू तकार के आधु नक
कला आंदोलन को तुत कया गया।

. अपनी ग त क जाँच कर

कला व ालय के आधार पर कलाकार ने कतनी क ाएं दे ख इसका वणन क जए।


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तां क त व को शा मल करने वाले च कार के बारे म अपने वचार तुत कर


उसक कला।

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भारत के शीष आधु नक मू तकार के नाम ल खए और उनक चचा क जए


सं ेप म।

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मनजीत बावा और रामचं न नायर के च पर एक तुलना मक कोण तुत कर।

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Machine Translated by Google

आजाद के बाद आधु नक मीरा मुख ज ने कस कला से भा वत होकर एक नई न न शैली का प रचय दया
कला आंदोलन
चचा करना।

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. संदभ और आगे के पाठ

अ वाल डॉ. गरराज कशोर मॉडन प टग अलीगढ़ ल लत कला काशन ।

भार ाज वनोद रामचं न आट व फ ट ए डशन नई द ली टडड बुक एजसी ।

चतुवद डॉ. ममता समकालीन भारतीय कला जयपुर राज ान हद ंथ अकादमी ।

समकालीन कला अंक नवंबर ल लत कला अकादमी संपादक डॉ. यो तष जोशी।

कपूर गीता. आधु नकतावाद कब था भारत म समकालीन सां कृ तक अ यास पर नबंध। नई द ली


तू लका .
कु मार डॉ. सुनील भारतीय छप च कला आ द से आधु नक कल तक भारतीय कला काशन नई द ली
इं डयन ट आट ।
मागो ाण नाथ। समकालीन कला का रा ीय व तार। नई द ली एनजीएमए ।

मॉडन इं डयन प टग आगरा संज य काशन ।


राठौर मदन सह आधु नक भारतीय च कला म अ तयथाथवाद जयपुर शमा प ल शग हाउस।

साखलकर आरएस ह ऑफ मॉडन प टग जयपुर राज ान हद ंथ अकादमी ।

साखलकर आरएस इंटर टे शन ऑफ आट् स जयपुर राज ान हद ंथ अकादमी ।

यादव नर सह ा फक डजाइ नग जयपुर राज ान हद ंथ अकादमी ।

मागो ाण नाथ। समकालीन कला का रा ीय व तार। नई द ली एनजीएमए ।

ख ा बलराज अजीज कु था। आधु नक भारत क कला। लंदन थे स एंड हडसन .

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