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1॰ लोक कला का तात्पर्य इसके शब्दो ‘लोक’ और ‘कला’ में निहित है लोक-
कला अर्थात लोक की कला

२. डाo श्याम परमाकर के अनुसार ‘लोक कला’ का अर्थ लोकमन अथवा जन-
जीवन की सहज अभिव्यक्ति से है।
भारतीय आधुनिक कला में महिला लोक कलाकारो की भूमिका।
मंजु रानी
विधार्थी- M॰F॰A॰
श्री राम कॉलेज मुजफ्फरनगर

भारतीय आधुनिक युग में ललित कलाओ के साथ-साथ संगीत कला, चित्रकला, न्रत्यकला व
लोक कला का तीव्र विकास हुआ।
लोक कला जाती धर्म से ऊपर उठकर व्यवहार मे आने वाली कला है। लोक-कला को थोपा नहीं
सकता। भारत मे महिलाए आँगन व दीवारों,मांगलिक अवसरो पर परम्परिक रूप से प्रयोग में
लाती है। सिंधु नदी की सभ्यता मे मिलने वाले म्रदु-पात्रो पर लिखित लोक कला मिली।
ब्रिटिश शासन कला मे धलकत्रा में सन १८७९ मे युवा महिला कलाकारो की एक
प्रदर्शनी का आयोजन किया गया। जिसमे यमुना देवी को लोक कला (छंप अम एवं
नज) के लिए सेली ब्रेटी स्टेटस दिया गया। ऐसी अनेक कलाकार हुई, प्रतिभा,
टैगोर, लीला महेता, सुकु मारी देवी, सविता टैगोर, व सुशीला आदि। महिला
कलाकार है।
आज महिलाएं टैक्सटाइल, डिजाइनिंग प्रिंट, मेकिं ग इंटीरियर, मॉडलिंग, फै शन
डिजाइनिंग व ज्वेलरी डिजाइनिंग, मेहंदी डिजाइनिंग मे अपनी पहेछन बनाई है।
भारतीय महिला कलाकारो में अंजलि लजेमन, अर्पणा गौर, मीरा मुखर्जी,
अम्रता शेरगिल, सरोजपाल, देवयानी कृ ष्ण, माधवी पोरख, नलिनी, अर्पिता
सिंह व नीलम सेख आदि है।
अपर्णा गौर अंतराष्ट्रीय आधुनिक महिला चित्रकारों मे एक है। नोकरनी माया त्यागी
रेप काण्ड, पुलिस वालो ने किया।
इस समस्या को ध्यान में रखते हुए रक्षक ही भक्षक चित्रो की श्रंखला तैयार की।
इसको अपनी तूलिका से बनाई है। इन्होने मनवाकृ तियो की कल्पना के आधार
पर चित्रित किया है।
आपने कैं ची व धागे का प्रयोग कलाकृ तियों मे अधिक किया है जिस कारण अनेक
कलाकार कैं ची कहकर सम्बोधित करते है इन्होने सामाजिक कु रुतियों व जीवन
संघर्ष को अपना उद्धेश्य मानकर आवाज उठाने की हिम्मत की। इस मतलवी व
सामाजिक समस्याओ से ग्रसित संसार पर एक कटाक्ष किया है।
विधि:-
लोक-कला रेखाओ ओर नियम व सिद्धांतों से दूर होती है। लोक कला ह्रदय व
सरलता से अभिव्यक्त होती है।
लोक-कलाकार अपने चित्रण में वही आनंद प्राप्त करता है, जो एक बाल कलाकार
पता है।
भारत में लोक-कला को स्त्रियो ने ही जीवित रखता है।
मेहंदी मे आज कलर मेहंदी का प्रचलन है, पोशाक व व्यक्तित्व के अनुरूप प्रयोग की
जाती है।
वास्तविक रंग की झलक सूखने पर उभर कर आती है।
गोवर्धन पूजा मे सम्पूर्ण भारत में गोबर व मिट्टी की मूर्तियां बनाई जाती है, कु मायूं
की पहाड़ियो मे कार्तिक महीने में शिव और उनके परिवार की मूर्ति बनाई जाती
है।
बंगाल में शुभ अवसरो पर अतपना सजाई जाती है।
बिहार में मधुबनी चित्र, राजस्थान व मध्य प्रदेश के मॉडलो व पगलिया, उत्तर-
प्रदेश में आलेखन व चौंक पूजन आदि कला प्रचलित है।
नवरात्रि मे सांझी, दशहरे पर पायता, रक्षा-बंधन, कार्वा चौथ, अहोई अष्टमी व
दीपावली पर भिन्न चित्र व चौक सजाना बहुत प्रिय है।
इसमे के ला वृक्ष, पीपल-वृक्ष, चक्र, सूरज तोरणद्वार, चाँद, तारा, मछली,
जल धत, कं घी, त्रिभुज पत्र त्रिकोण उनाम, त्रिभुज तथा वर्गो से बनी उनाड़ी,
तिरछी रेखाए, ज्यामितिए मानव आकर्तियों, घोड़े, हाथी, तलवार, भला
आदि उके रा जाता था। लोक कला मे कोई भी बंधन नहीं है।
उपंसहार:-

महिलाओ को सम्मान की दृष्टि से देखा जाने लगा है। महिलाओ ने ही परम्पराओ और


त्यौहारो, संस्कारो व उत्सवो के माध्यम से लोक-कला को जीवित रखा है। इस
कला के विशेष संस्थान नहीं होते है। लोक-कला में हल्दी, आटा, मिट्टी, रोली,
व रंगो का प्रयोग किया जाता है।
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