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अस्वीकरण

इस नोट्स में प्रदान की गई सामग्री, ले खकों द्वारा बनाई गई तथा उनके स्वामित्व में है, तथा जिसका लाइसेंस सॉर्टिंग हैट
टे क्नोलॉजीज प्राइवेट लिमिटे ड (कंपनी) को कंपनी के प्लेटफॉर्म से जुड़े शिक्षार्थि यों तक पहुंच प्रदान करने के एकमात्र
उद्देश्य दिया गया है। कंपनी, नोट्स की सामग्री, छवियों या किसी भी अन्य सामग्री के संबंध में सभी अधिकारों और देनदारियों
को अस्वीकृति करती है। ले खकों का सामग्री पर एकमात्र स्वामित्व हैं, और अंतिम रुप, बिना किसी सीमा के इस नोट्स की
सामग्री के संबंध में उत्पन्न होने वाले किसी भी दावे, देनदारियों, क्षति, नुकसान या वाद के लिए पूरी तरह से जिम्मेदार होंगे।
विषय-सूची

04 12 27 39
अध्याय - 1 अध्याय - 2 अध्याय - 3 अध्याय - 4
प्रागैतिहासिक काल में बौद्ध धर्म और जैन धर्म से मंदिर वास्तुकला मध्यकालीन और आधुनिक
कला एवं वास्तुकला जुड़े वास्तुकला के तत्व भारतीय वास्तुकला

54 72 85 90
अध्याय - 5 अध्याय - 6 अध्याय - 7 अध्याय - 8
भारत में यूरोपियों का शास्त्रीय नृत्य भारत में नाट्यकला भारतीय कठपुतली
आगमन

1
94 102 106 116
अध्याय - 9 अध्याय - 10 अध्याय - 11 अध्याय - 12
भारतीय शास्त्रीय संगीत भारत में मार्शल आर्ट भारतीय साहित्य दर्शन के संप्रदाय

119 124 126 128


अध्याय - 13 अध्याय - 14 अध्याय - 15 अध्याय - 16
भारत में धर्म भारतीय पंचांग पुरस्कार और सम्मान भारत में सांस्कृतिक संस्थान

2
131 136
अध्याय - 17 विगत वर्षों मे पूछे गए
भारतीय त्यौहार प्रश्न

3
अध्याय - १

प्रागैतिहासिक काल में कला एवं वास्तुकला


(ART AND ARCHITECTURE IN PREHISTORIC TIMES)

एवं सौंदर्यपरक संस्करणों की ओर उत्तरोतर विकास


परिचय (Introduction) को दर्शाती है। यह परिवर्तन प्रौद्योगिकी के उन्नतिकरण
तथा विश्व के अन्य स्थानों से प्रविष्ट हो रहे नए तत्वों
• याद कीजिए कि पिछली बार कब आप किसी ऐतिहासिक दोनों के कारण होता है। अधिकांश स्थानों पर, प्राचीन
स्मारक अथवा किसी ऐतिहासिक ढांचे को देखने हेतु का नूतन तथा स्थानीय का दूरस्थ के साथ समागम हुआ
यात्रा पर निकले थे। आपने उस स्थान के बारे में किस है। भारतीय वास्तुकला की कथा वर्तमान की सिं धु नदी
विशेष बात पर गौर किया? क्या आपने मेहराब, गुंबद एवं इसकी सहायक नदियों के समतल मैदानों में उभरी
तथा बगीचे पर ध्यान दिया? क्या वहां पर एक प्रांगण था? विशाल सभ्यता के साथ शुरू होती है।
क्या इसे एक ऊँची इमारत पर निर्मि त किया गया था?
क्या इसका विन्यास बहुभुजाकार अथवा गोलाकार था?
किस प्रकार सममिति ने ढाँचे को सुंदर बनाने में भूमिका
हड़प्पाई कला एवं वास्तुकला (3300 – 1300 ई.पू.)
निभाई थी? वास्तुकला के बारे में इन पहलु ओ ं को जानना (Harappan Art and Architecture)
किसी युग की संस्कृति की सही छाप को समझने में मदद
करेगा क्योंकि ये सब उस समाज के मस्तिष्क एवं उपागम • हड़प्पाई स्थलों पर हुए उत्खनन से विशेज्ञतापूर्ण शहरी
को प्रतिबिं बित करते हैं। यहीं पर किसी समाज के विचारों नियोजन तथा अभियांत्रिकीय कौशल युक्त आधुनिक
एवं तकनीकों को दृश्यमान अभिव्यक्ति मिलती है। शहरी सभ्यता का पता चलता है। उत्खनन स्थलों से
अनेकों मूर्ति याँ, मुहरें, मिट्टी के बर्तन, गहने बरामद हुए हैं।
• भारत का इतिहास अनेक साम्राज्यों के उत्थान एवं पतन
सड़कें, जल निकास प्रणाली एवं घर एक केंद्रीय नागरिक
तथा उन विदेशी तत्वों के आगमन से भरा पड़ा है जो या
नियोजन की ओर संकेत करते हैं।
तो एक हमलावर के रूप में आए अथवा सत्य व ज्ञान
की खोज में आए। अनेक संस्कृतियों का यह समागम, • भारतीय वास्तुकला के सबसे प्राचीन अवशेष हड़प्पा,
अनेक शैलियों का अनुप्रयोग, भिन्न-भिन्न प्रकार के मोहनजोदड़ो, रोपड़, कालीबंगन, लोथल एवं रंगपुर में
कलाकारों की अभिव्यक्ति का परिणाम वास्तुकला की पाए गए हैं जो उस सभ्यता से मिले हैं जिसे सिं धु घाटी
शैलियों में परिवर्तन के रूप में सामने आया है जो स्थान सभ्यता अथवा हड़प्पा सभ्यता कहते हैं।
की दृष्टि से एवं अस्थायी रूप से बदलती रही।

• भारत के अनेक स्मारक यद्यपि समय के थपेड़ों के चलते


हड़प्पाई वास्तुकला की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं
जमींदोज हो गए हैं। वास्तुकला भवनों की उपलब्धता (Main Features of Harappan Architecture are):
काफी हद तक उनमें प्रयुक्त सामग्री पर निर्भर करती है।
यदि निर्माण शीघ्र नष्ट होने वाली सामग्री (जैसे काष्ठ) से 1. सभी शहरों के चारों ओर चारदीवारी थी।
किया गया है, उस दशा में उसके लं बे समय तक बने रहने 2. हड़प्पा शहर का अपना दुर्ग था जहाँ संभवत: शासक वर्ग
की संभावना कम होती हैं, जबकि यदि प्रयुक्त सामग्री निवास करते थे। प्रत्येक शहर में दुर्ग के नीचे निम्न स्तर
अनष्टनीय (जैसे पत्थर) है, उस दशा में यह लं बे समय के शहर स्थित थे जहाँ ईंटों (पकी ईंटों) से निर्मि त घर
तक बनी रहेगी। समय के साथ क्षरण होने के बावजूद मिलते थे जिसमें आम आदमी रहते थे।
काफी कुछ बचा रह गया है और इसमें समय के साथ
3. मिट्टी की बनी मानकीकृत पकी ईंटों को निर्माण सामग्री
शैलियों में हुआ विकास स्पष्ट दिखाई देता है।
के रूप में प्रयोग किया गया है।

4. सड़कों को आयताकार जालनुमा प्रारूप में बिछाया गया


है जो एक दूसरे को समकोण पर काटती हैं।
भारत में वास्तुकला का विकास 5. हड़प्पा सभ्यता में मंदिरों के कोई प्रमाण नहीं मिलते।
(Evolution of Architecture 6. सार्वजनिक इमारतों में अनाज भंडारगृह शामिल हैं जिन्हें

in India) अनाज के संग्रहण हेतु प्रयोग किया जाता था। इससे हमें
इस सभ्यता में संग्रहण एवं वितरण की संगठित प्रणाली
• भारत में वास्तुकला काष्ठ एवं साधारण पत्थर पर का पता चलता है।
राजगिरी से अधिक संहत एवं ढांचागत रूप से कठोर

4
पुरापाषाण काल: मध्यपाषाण काल: नवपाषाण काल: ताम्रपाषाण काल:
लोहंडा नाला बेलन घाटी (मिर्जापुर) में कैमूर पहाड़ियों हस्त निर्मि त और पहिया अहार संस्कृति: दक्षिण पूर्वी
देवी माँ में पहला चट्टान मृदभांड दोनों मिले हैं। राजस्थान
कुरनूल में जानवरों के दांत उकेरे गए चित्रकला-सुहागी घाट
मिट्टी के बर्तनों पर अहार मिट्टी के बर्तन पहिए
भीमबेटका (आज के मध्य प्रदेश में) में भीमबेटका चट्टान उत्कीर्णन है लाल और सफेद बर्तन पर
चैलेडोनी से बना एक गोलाकार डिस्क चित्रकला: सोलह बनाए .जाते हैं।
बुदिहाल (आज के
अलग-अलग रंगों की
पटना में क्रिस क्रॉस डिजाइन के दो कर्नाटक का गुलबर्गा टे राकोटा अहार संस्कृति की
पहचान की जा सकती
पैनलों के साथ उकेरा गया शुतुरमुर्ग अंडे जिला) में सामुदायिक अनूठी विशेषता में से एक है
है ले किन लाल और
का खोल भोज के प्रमाण मिलते
सफेद रंग का ज्यादातर दक्कन के ताम्रपाषाण
हैं।
बघोर (म.प्र.) : बलु आ पत्थर के मलबे से इस्तेमाल किया किसान
बना एक मोटा गोलाकार चबूतरा पाया जाता है।
दाइमाबाद संस्कृति
गया है बाघ तेंदआ
ु , हाथी, मृग (अहमदनगर, महाराष्ट्र-अष्ट)
ताल (सबसे अधिक
मुख्य रूप से कांस्य वस्तुएं।
बार) जैसे जानवरों की
29 विभिन्न प्रजातियां इनामगाँव, पुण:े यह बड़ी
हैं। संख्या में बैल की मूर्ति यों की
विशेषता है

समयरेखा
100,0
2.5mn 40,000 ई.पू. 10,000 ई.पू. 7000 ई.पू. 2000 ई.पू. 1500 ई.पू. 1000 ई.पू. 700 ई.पू. (वर्षों
00
पहले )

निम्न मध्य उच्च


पुरापाषाण काल मध्यपाषाण काल नवपाषाण काल ताम्रपाषाण काल

चित्र 1 .1 : पुरापाषाण काल, मध्यपाषाण काल, नवपाषाण काल एवं ताम्रपाषाण काल की विशेषताएं

महापाषाण

उस स्थान पर एक मृत शरीर को ये कब्रें एक यह दर्शाता है कि


मेन्हिर

डोलमेन

शिस्ट

कैर्न गोला

कब्र की उपस्थिति पत्थर खंड पर एक निर्धारित पैटर्न पहले मृत शरीर को


का कुछ सुराग देने उठे हुए चबूतरे पर का पालन करती लोहे के औजारों,
के लिए बड़े और रखा जाता था, जो हैं। शव को पहले मिट्टी के बर्तनों या
ऊंचे स्मारक पत्थर चारों ओर से एक दफना दिया जाता कलशों और पालतू
खड़े किए गए सपाट पत्थर खंड है और उसके चारों जानवरों की हड्डियों
से घिरा होता था, ओर छोटे -छोटे के साथ दफनाया
लं बाई: डेढ़ से
पत्थर खड़े कर दिए जाता था और फिर
लगभग साढ़े पांच उत्पत्ति: कर्नाटक
जाते हैं कब्र के चारों ओर
मीटर में ब्रह्मगिरी क्षेत्र
गोल पत्थर लगाए
और तमिलनाडु के मिला है : उत्तर
पाया गया: जाते थे।
चिं गेलपुर क्षेत्र प्रदेश के बांदा और
कर्नाटक के
मिर्जापुर मिला है :
मस्की और
नायककुंड और
गुलबर्गा क्षेत्र
बोरगांव (महाराष्ट्र)
और चिं गेलपुर
(तमिलनाडु)

चित्र 1.2: महापाषाण के प्रकार

5
भारतीय
वास्तुकला

प्राचीन मध्यकाल आधुनिक

दिल्ली इं डो
हड़प्पा
सल्तनत गोथिक

नियो
मौर्य मुग़ल
क्लासिक

मौर्योत्तर

गुप्त

दक्षिण
भारत

पूर्वी
भारत

चित्र 1.3: भारतीय वास्तुकला के महत्वपूर्ण प्रकार

7. छोटे एककक्षीय निर्माणों के प्रमाण मिले हैं जो श्रमिक व्यापार सामान्य था।
वर्ग के लोगों के रहने के घर मालू म पड़ते हैं।
12. शहर के आवासीय हिस्सों में एक सुनियोजित ड्रेनेज
8. विशाल स्नानागार: मोहनजोदड़ो में एक सार्वजनिक प्रणाली का पता चला है। घरों से निकलने वाली छोटी
स्नानागार का मिलना दर्शाता है कि हड़प्पा के लोग नालियाँ मुख्य सड़क से लगती एक बड़ी नाली से जुड़ी
महान अभियंता थे। यह अभी भी संचालनशील है और होती थी। नालियाँ अच्छी प्रकार से ढकी गई थी और
इसके ढांचे में कोई छिद्र अथवा दरार नहीं है। सार्वजनिक उनकी सफाई करने के उद्देश्य से नरमोखों (मैनहोल) का
स्नान क्षेत्र की उपस्थिति रीतिगत स्नान के सांस्कृतिक प्रयोग किया गया था।
महत्व एवं स्वच्छता को प्रदर्शि त करती है।
13. आवासीय मकानों को भी बड़ी कुशलता से नियोजित
9. अधिकांश स्थलों पर, मुख्य दुर्ग की खुदाई शहर के पश्चिमी किया गया था। सीढ़ियों के प्रमाण दर्शाते हैं कि मकान
भाग में हुई है जिसमें अनाज कोठार सहित सार्वजनिक प्राय: दो मंजिला थे। भवनों को धूल से दूर रखने के लिए
भवन मौजूद हैं। इसे एक प्रकार से शहरों पर शासन करने दरवाजों को बगल के गलियारों में लगाया गया था।
वाले किसी राजनीतिक प्राधिकार का प्रमाण माना जा
• चूँकि हड़प्पाई बस्तियां नदियों के किनारों पर बसी थी,
सकता है।
अत: ये प्राय: भारी बाढ़ के कारण नष्ट हो जाती थी। आपदा
10. शहर की चारदीवारी के साथ लगते दरवाजों वाली के बावजूद, सिं धु घाटी के लोगों ने उन्हीं स्थानों पर नई
किले बंदी के प्रमाण है जिससे हमला होने के भय का बस्तियां बसाई और यह उत्खनन के दौरान मिली परत
संकेत मिलता है। दर परत बस्तियों और भवनों में स्पष्ट दिखता है। दूसरी
सहस्त्राब्दी ईसा पूर्व में सिं धु घाटी सभ्यता का पतन एवं
11. गुजरात के लोथल में गोदी बाड़ा (डॉकयार्ड) के अवशेष
अंतिम विनाश आज तक एक अनसुलझी पहेली बना
पाए गए हैं जो बताते हैं कि उस समय सामुद्रिक मार्ग से
हुआ है।

6
मुहरें (Seals)

• हड़प्पा की मुहरें चित्रात्मक लिपि वाले वर्गाकार,


आयताकार, गोलाकार अथवा त्रिभुजाकार आकारों में
बनाई गई थी। इन्हें बनाने में सेलखड़ी1, चर्ट, तांबा, फयांस,
हाथी दांत तथा टे राकोटा जैसी सामग्री का प्रयोग किया
गया है। तांबे एवं सोने की मुहरें भी बरामद हुई हैं। इसकी
चित्रात्मक लिपि को अभी तक पढ़ा नहीं जा सकता है जो
अधिकांश स्थानों पर हलावर्त2 शैली में है।

• रूपांकन के अनेक किस्मों में गेंडा/एक सींग वाला


जानवर, सांड, हाथी, बाघ, बकरी, राक्षस, वृक्ष, मानव चित्र
मुहरों पर दर्शायें गए हैं। पशुपति मुहर एवं एक सींग वाले
जानवर वाली मुहर सर्वाधिक महत्व और काफी ख्यात
चित्र 1.4: मोहनजोदड़ो स्थित विशाल स्नानागार मुहरों में से एक है। पशुपति मुहर मोहनजोदड़ो में मिली
और सेलखड़ी से निर्मि त है। यह असामान्य मुहर योगी
मुद्रा में विराजमान चित्र (जिसके काफी हद तक शिव
होने की संभावना है तथा जिसे पशुपति के नाम से भी
जाना जाता है) को दर्शाती है। इस “देवता” के दोनों तरफ
पशुओ ं का चित्रण हुआ है – जिनमें एक हाथी, एक बाघ,
एक गैंडा, एक व्यक्ति एवं एक भैंसा है।

चित्र 1.5: लोथल की ड्रेनेज प्रणाली

चित्र 1.7: पशुपतिनाथ, मोहनजोदड़ो

चित्र 1.6: हड़प्पा स्थित अनाज के कोठार

1 सेलखड़ी आसानी से टू ट जाने वाला एक मृदु पत्थर होता है


जो आग में पकाने के बाद सख्त हो जाता है।
2 हलावर्त विधि (Boustrophedon) एक द्विदिशीय ले खन
होता है जिसे वैकल्पिक रेखाओ ं में पहले दायें से बायें तथा फिर
बायें से दायें लिखा जाता है।

7
शाल ओढ़ रखी है। यह सुमेरिआई स्थलों उर तथा सूसा से
मिली मूर्ति के साथ बेहद मेल रखती है।

• कालीबंगन तथा दैमाबाद ने धातु ढलाई मूर्ति कला के


श्रेष्ठ उदाहरण प्रस्तुत किए हैं। कांस्य से निर्मि त मूर्ति यों
में उठे सिर, कमर तथा बड़े सींगों वाला भैंसा, तथा बकरी
कलाकारी के सर्वोत्तम नमूने हैं।

चित्र 1.8: एक सींग वाले जानवर वाली मुहर

मुहरों का महत्व (Significance of Seals)

• इन मुहरों का प्रयोग मुख्यत: व्यापार एवं वाणिज्य की


इकाइयों के रूप में हुआ था।
चित्र 1.9: नर्तकी की कांसे की मूर्ति
• इन्हें भूत-प्रेत भगाने वाले एक ताबीज के रूप में भी प्रयोग
किया गया था।

• इन मुहरों को शिक्षा के एक उपकरण के रूप में भी प्रयोग


किया गया था।

• मुहरों पर हुआ रूपांकन उस दौर के पादपजात, प्राणिजात,


सामाजिक एवं धार्मि क मान्यताओ ं पर प्रकाश डालता है।

• कुछ इतिहासकारों का मानना है कि लोगों की विभिन्न


श्रेणियां विभिन्न प्रकार की मुहरें धारण किया करती थी।

मूर्तिकला (Sculpture)

• हड़प्पा और मोहनजोदड़ो में मिली पत्थर की मूर्ति याँ


त्रिविमीय परिमाण में महारत का बेहतरीन उदाहरण है।
मधूच्छिस्ट (वह चिकना और कोमल पदार्थ जिससे शहद
की मक्खियों का छत्ता बना होता है।) विधि (लॉस्ट वैक्स
टे क्नीक) से कांसे को ढाले जाने का कार्य व्यापक स्तर
पर किया जाता था। मोहनजोदड़ो की कांसे की नर्तकी,
कालीबंगन का कांसे से निर्मि त सांड इसके प्रमुख
उदाहरण हैं।

• दो पुरुष मूर्ति याँ, जिनमें से एक हड़प्पा से बरामद लाल


बालु आ पत्थर से निर्मि त धड़ है और अन्य मोहनजोदड़ो
में मिला सेलखड़ी से निर्मि त दाढ़ी युक्त व्यक्ति है, इसकी
प्रसिद्ध कलाकृतियाँ हैं। दाढ़ी युक्त कुलीन व्यक्ति अथवा
उच्च दर्जे के पुरोहित ने एक त्रिपर्ण (Trifol) प्रारूप की
चित्र 1 .10: हड़प्पा से बरामद टे राकोट्टा निर्मि त पुरुष मूर्ति

8
चित्र 1.12: मोहनजोदड़ो से बरामद अपने सिर को घुमाने वाला
टे राकोट्टा निर्मि त खिलौना

• उत्खनन से बरामद हुआ सर्वाधिक आकर्षक शिल्प है


मोहनजोदड़ो का अपने सिर को घुमाने वाला टे राकोटा
निर्मि त खिलौना जो लगभग उसी समय (अर्थात 2500
ई.पू.) से संबंधित है। यह दर्शाता है कि किस प्रकार बच्चों
चित्र 1.11: मोहनजोदड़ो का दाढ़ी युक्त पुरुष
का ऐसे खिलोनों से मन बहलाया जाता एवं उन्हें ख़ुश
रखा जाता था जिनका सिर तार की सहायता से घुमाया
जा सकता था।
• पत्थर एवं कांसे की मूर्ति यों से तुलना करने पर टे राकोट्टा
से बनी मूर्ति याँ थोड़ी फीकी दिखाई देती हैं। टे राकोट्टा
से बनी मूर्ति यों के कुछ जानेमाने उदाहरण हैं मातृदेवी,
पहियों वाली खिलौना गाडी, सीटी, पक्षी, तथा पशु आदि।

• मातृदेवी की मूर्ति अनेक सिं धु स्थलों से बरामद हुई है।


यह एक आदिम मूर्ति है जिसमें एक महिला को खड़ी
अवस्था में हार (जो उसके बड़े वक्षस्थल से नीचे लटक
रहा है) से सुसज्जित दर्शाया गया है। उन्होंने एक लं गोट
एवं कमरबंद पहना है। टे राकोटा से निर्मि त मातृदेवी की
यह बड़ी मूर्ति मोहनजोदड़ो में बेहतरीन ढं ग से संरक्षित
है। मातृदेवी को संभवत: उर्वरता और समृद्धि दायक के
रूप में पूजा जाता था। यह ये भी बताता है सिं धु घाटी के
निवासियों द्वारा नारी देवता की पूजा वर्तमान की उस
कृषि जनसँख्या के जैसी ही थी जो उर्वरता और समृद्धि के चित्र 1.13: एक छकड़ा गाडी दर्शाता खिलौना
देवी-देवताओ ं को प्राकृतिक रूप से पूजते हैं।

9
चित्र 1 .15 : कीमती रत्न एवं पत्थर

मिट्टी के बर्तन (Pottery)

• मिट्टी के बर्तन रंग में मुख्यत: या तो साधारण अथवा लाल


और काले हैं। सामान्यत:, लाल रंग का प्रयोग पृष्ठभूमि
को रंगने हेतु किया जाता था। सिं धु घाटी के मिट्टी के
बर्तन मुख्यत: चाक पर निर्मि त होते थे जिनमें केवल कुछ
चित्र 1.14: मातृदेवी अपवादस्वरूप हाथ से निर्मि त थे। मिट्टी के चित्रित बर्तनों
में कुछ ज्यामितीय आकृतियाँ थी जबकि कुछ छिद्रित थे।
मिट्टी के बर्तनों का प्रयोग मुख्यत: घरेलु उद्देश्यों जैसे जल,
आभूषण (Ornaments) खाद्य अनाज एकत्र करने आदि के लिए किया जाता था।
बेहतरीन ढं ग की कारीगरी वाले कुछ बर्तनों का प्रयोग
• आभूषण हड़प्पाई समाज के सर्वाधिक मात्रा में पाए गए
सजावटी उद्देश्यों के लिए भी होता होगा। संभव है कि
अवशेषों और शिल्पकृतियों में से एक हैं।
छिद्रित बर्तनों का प्रयोग रस अथवा शराब छानने हेतु
• आभूषणों को अनेक प्रकार की सामग्रियों (जैसे रत्न, होता होगा।
कीमती धातु, हड्डी तथा पकी मिट्टी) से निर्मि त किया जाता
था। हार, बाजूबंद तथा अंगूठियाँ पुरुषों और महिलाओ ं
दोनों द्वारा पहनी जाती थी। कुंडल एवं कमरबंद केवल
महिलाओ ं द्वारा पहने जाते थे। मृत शरीरों को आभूषणों के
साथ दफनाने के प्रमाण मिले हैं। लोग फैशन को ले कर
जागरूक थे जो सिं दूर, फेस पेंट तथा आईलाइनर जैसे
सौन्दर्य प्रसाधनों के प्रयोग से परिलक्षित होता है।

• हड़प्पाई समाज से मिले स्वर्ण आभूषणों में कंगन, हार,


चूड़ियाँ, कान के आभूषण, अंगूठियाँ, सिर के आभूषण,
जडाऊ पिन, कमरबंद आदि शामिल हैं। यहाँ मनकों का
व्यापार पूरे जोर-शोर से होता था और इन्हें साधारण
तकनीक का प्रयोग कर बनाया जाता था। वस्त्रों के चित्र 1.16: मिट्टी की शिल्पकृतियाँ
मामले में अमीर और गरीब लोगों द्वारा समान रूप से
बुनी जाने वाली कपास और ऊन हड़प्पाई लोगों के प्रमुख • हड़प्पाई स्थलों से उत्खनन उच्च दर्जे की जटिल कारीगरी
परिधान थे। को दिखाते हैं जो मूर्ति कला में प्रयुक्त कला-कौशल को
अचंभित कर देने वाले उदाहरण हैं। कला का ऐसा उत्कृष्ट
कार्य स्पष्ट रूप से एक लं बी प्राचीन परंपरा का द्योतक है।

10
लौह युगीन मिट्टी के बर्तन (Iron Age Pottery) इं द्रप्रस्थ, वैशाली, राजगीर, पाटलिपुत्र, मथुरा, अहिच्छत्र,
अयोध्या, कौशांबी, श्रावस्ती, वाराणसी, उज्जैन, तथा
चित्रित धूसर मृदभांड (Painted Grey-ware Culture) विदिशा।

• पश्चिमी गंगा मैदान (घग्गर-हकरा घाटी) में काले एवं


लाल मृदभांडो (Black and Red-ware Culture) ने
चित्रित धूसर मृदभांडो के लिए मार्ग प्रशस्त किया।

• ग्रामीण व कस्बाई बस्तियों, हाथी दांत कारीगरी, पालतू


घोड़ों, लौह धातुकर्म की शुरुआत के साथ रंगीन ग्रे वेयर
संस्कृति (PGW) एक लौह युगीन संस्कृति थी। संस्कृति
में महीन, धूसर मिट्टी के बर्तन देखने को मिलते हैं जिन
पर काले रंग के ज्यामितीय प्रारूप में चित्रकारी की गई
थी।

चित्र 1.18: उत्तरी काले पॉलिशदार मृदभांड

• हड़प्‍पा सभ्‍यता के विभिन्‍न पुरास्‍थलों से कला के विशिष्‍ट


एवं उत्तम नमूने उपलब्‍ध हुये हैं। यह कलात्‍मक प्रमाण
अलं करण, एवं उपकरणों के साथ-साथ मूर्ति यों, मृदभाण्‍डों
आदि के रूप में प्राप्‍त हुये हैं। प्रमुख विशेषताएँ हैं-

• मोहनजोदड़ो एवं हड़प्‍पा से प्राप्‍त प्रस्‍तर मूर्ति याँ अधिक


कलात्‍मक एवं कल्‍पनापूर्ण हैं।

• धातू से निर्मि त मूर्ति याँ भी प्राप्‍त हुई हैं। मोहनजोदड़ो से


प्राप्‍त 11 से.मी. ऊँची मूर्ति नृत्‍यांगना की है।

• मृण (मिट्टी) मूर्ति याँ मानव एवं पशु की हैं। स्‍त्री मूर्ति याँ
अधिक संख्‍या में प्राप्‍त होती है। इनमें नग्‍न मूर्ति याँ भी है
और मूर्ति याँ आभुषण एवं वस्‍त्रों से सुसाज्जित भी है। पशु
चित्र 1.17: चित्रित धूसर मृदभांड मूर्ति याँ बहुतायत में है। पक्षियों जल-जन्‍तुओ ं की मूर्ति याँ
भी हड़प्‍पा से प्राप्‍त हुई है।

• हड़प्‍पाकालीन मुहरें अधिक गोलाकार है। पालिश कर


उत्तरी काले पॉलिशदार मृदभांड (Northern Black
और चमक लायी गयी है। इनमें पशु आकृतियाँ भी हैं और
Polished Ware) (NBPW)
ले खयुक्‍त भी हैं। मुद्रांक (सील) भी प्राप्‍त हुये हैं।
• यह 700 ई.पू. की शुरुआत में उत्तर वैदिक काल {वैदिक • आभूषण बनाने की कला के प्रमाण उपलब्‍ध हुये हैं।
काल (500 – 600 ई.पू.)} में शहरीकृत हुआ और यह मनके बनाने वाले औजार प्राप्‍त हुये है।
भारतीय उपमहाद्वीप की शहरी लौहयुगीन संस्कृति थी।
• लाल एवं काले रंग के मृद भाण्‍ड प्राप्‍त हुये हैं।
उत्तरी काले पॉलिशदार मृदभांड (NBPW) भली प्रकार
निर्मि त मिट्टी के बर्तनों की भव्य शैली थी जिसका प्रयोग • अनेक मृदभाण्‍ड चित्रित है।
उच्च वर्गों द्वारा किया जाता था। महाजनपदों से जुड़े कुछ • ताम्र पत्रों और मिट्टी के बरतनों पर ले ख मिले हैं परन्‍तु
महत्वपूर्ण NBPW स्थल हैं – दिल्ली अथवा प्राचीन इस लिपि को अभी तक पढ़ा नहीं जा सका है।

11
अध्याय - 2

बौद्ध धर्म और जैन धर्म से जुड़े वास्तुकला के तत्व


(ELEMENTS OF ARCHITECTURE ASSOCIATED WITH BUDDHISM AND JAINISM)

मूर्ति कला को प्रदर्शि त करते हैं। स्तूप ईंटों से निर्मि त एक


बौद्ध वास्तुकला (Buddhist गुंबदनुमा पवित्र समाधि टीला होता है जिसका प्रयोग बुद्ध

Architecture) से जुड़ी वस्तुएं रखने अथवा बौद्ध धर्म से जुड़ी महत्वपूर्ण


घटनाओ ं को याद करने के लिए किया जाता है।

• बौद्ध वास्तुकला ने वह आधारशिला बनायीं जिस • बौद्ध स्तूपों की उपस्थिति के आरंभिक प्रमाण चौथी
पर भारतीय वास्तुकला की अधिकतर उपलब्धियों शताब्दी ई.पू. में देखने को मिलते हैं। भारत में, साँची,
का निर्माण हुआ। जैन धर्म एवं बौद्ध धर्म ने आरंभिक सारनाथ, अमरावती (आंध्रप्रदेश) तथा भरहुत सबसे
वास्तुकला शैली के विकास में मदद की। जहाँ यूनानी प्राचीन ज्ञात स्तूपों में से एक है।
लोग मानव की त्रुटिरहित मूर्ति याँ बनाने के लिए ख्यात • राधाकुमुन्द मुखर्जी के अनुसार, "स्तूप मौर्यकालीन
थे, चीन स्मारकीय ढांचे खड़े करने में व्यस्त था, वहीं भारत की वास्तुकला की एक बहुत महत्वपूर्ण देन हैं।"
भारतीय वास्तुकला सौंदर्यपरक रूप से सुख देने वाली
और आध्यात्मिक रूप से ह्रदय छूने वाले पहलु ओ ं का
मिश्रण बनी। स्तूपों की विशेषताएं (Characteristics of Stupas)
• भारतीय वास्तुकला का एक महत्वपूर्ण युग मौर्यकाल
• आरंभ में, स्तूप के केंद्र को बनाने के लिए मिट्टी के टीलों
के साथ आरंभ हुआ। मौर्यों की समृद्धि तथा नई धार्मि क
का प्रयोग किया जाता है। इस मिट्टी के टीले को तत्पश्चात
जागरूकता का नतीजा सभी क्षेत्रों में उपलब्धियों के रूप
ईंटों से ढक दिया जाता है। ईंटों के आवरण के ऊपर पत्थर
में सामने आया। सेल्युकस निकेटर द्वारा मौर्य दरबार में
का आवरण भी चढ़ाया जाता था।
भेजे गए यूनानी दूत मेगास्थनीज ने चन्द्रगुप्त मौर्य के
महल की प्रशंसा करते हुए इसे वास्तुकला की शानदार • स्तूपों को प्राय: पत्थर अथवा ईंटों की नींव पर निर्मि त
उपलब्धि बताया। यह लकड़ी से निर्मि त एक विशाल किया जाता है। इस आधार के ऊपर एक गोलार्द्धनुमा
महल था। गुंबद का निर्माण किया जाता था।

• बौद्ध वास्तुकला बुद्ध के जीवन के विविध पहलु ओ ं, बुद्ध


» समय गुजरने के साथ-साथ स्तूप नली बड़ी होती चली
से जुड़े प्रतीकों तथा उनसे जुड़ी कथाओ ं एवं कहानियों से
गई। अब यह एक बेलननुमा बर्तन की भांति दिखने लगी।
प्रेरणा पाती है। मौर्य सम्राट अशोक बौद्ध वास्तुकला का
सबसे महान निर्माता था। उसके शासनकाल में बुद्ध की » इस गोलार्द्धनुमा गुंबद के शिखर पर एक हर्मि का स्थिर
स्मृतिस्वरूप अनेक स्तूप एवं ईंटों के टीले निर्मि त किए की जाती थी जो चारों ओर से एक रेलिंग से घिरी होती थी।
गए। » स्तूप के चारों ओर एक वेदिका होती है। भरहुत, साँची तथा
• बौद्ध वास्तुकला की कुछ महत्वपूर्ण विशेषताएं हैं अमरावती में बनी वेदिका तीन अनुप्रस्थ छड़ों एवं तीन
एकाश्म (एक पत्थर से काट कर बनाए गए) स्तंभ, अति सीधे स्तंभों से निर्मि त है। रेलिंग में चार प्रवेश द्वारों का
पॉलिशदार सतहें, सपाट एवं अनलं कृत स्तंभ तथा स्तंभ प्रयोग हुआ हैं।
के ऊपरी भाग पर बने उत्कृष्ट शिखर। » स्तूप के चारों ओर रेलिंग के भीतर जमीन पर एक
• चैत्य, विहार तथा स्तूप बौद्ध वास्तुकला के सबसे प्रदक्षिणा पथ बनाया गया है।
लोकप्रिय प्रकार हैं। » स्तूप के चारों ओर बने तोरण सुसज्जित प्रवेश द्वार होते थे।

स्तूप (Stupas) महान स्तूप (साँची) (The Great Stupa) (Sanchi)

• स्तूप का अर्थ होता है: कोई ऐसी चीज़ जो उठी हुई हो। • इस ढांचे को बनाने में गारे और बड़ी संख्या में पकी ईंटों
का प्रयोग हुआ था।
• बौद्ध अनुश्रुतियों के अनुसार अशोक ने 84 हज़ार स्तूप
बनवाये थे। स्तूपों का आरंभिक बौद्ध वास्तुकला में सबसे • अशोक के समय में बनाया गया और मौर्य साम्राज्य के
महत्वपूर्ण स्थान हैं। ये बुद्ध के जीवन की महत्वपूर्ण विखंडन के दौरान नष्ट कर दिया गया। इसका दूसरी सदी
घटनाओ ं के साथ जातक कथाओ ं से संबंधित आरंभिक ई.पू. में शुंगों के शासनकाल के दौरान पुनरोद्धार किया

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गया। भरहुत स्तूप (Bharhut Stupa)
• इस महान स्तूप की पीठिका के चारों ओर रेलिंग लगी है
• यह माना जाता है कि भरहुत स्तूप का निर्माण अशोक
और इसका गुंबद ऊपर से सपाट अर्द्धगोलाकार आकृति
द्वारा तीसरी शताब्दी ई.पूर्व. में करवाया गया किंतु इसके
का है तथा इसके ऊपरी भाग में एक तिहरा छत्र लगा है।
अनेक कलात्मक कार्य (विशेषकर प्रवेशद्वार एवं रेलिंग)
• इसका केंद्र ईंटों से निर्मि त एक अर्द्धगोलाकार ढांचा था दूसरी शताब्दी ई.पूर्व. में शुंग शासनकाल के दौरान जोड़े
जिसे बुद्ध के अवशेषों के ऊपर निर्मि त किया गया था। गए।

• साँची के स्तूप का ऊपरी के साथ-साथ निचला प्रदक्षिणा • इसे बड़े पैमाने पर ध्वस्त कर दिया गया था तथा
पथ भी था। इसमें अलं कृत चित्रण वाले चार तोरण लगे हैं कोलकाता के इं डियन म्यूजियम में वर्तमान में इसकी
जो बुद्ध के जीवन एवं जातक कथाओ ं वाले विभिन्न दृश्य अधिकांश रेलिंग्स और प्रवेश द्वारों को रखा गया है।
दर्शाते हैं।
• ठीक साँची की तरह, इसके केंद्रीय स्तूप के चारों ओर
छत्र (Chhatra)
पत्थर की एक रेलिंग और चार तोरण द्वार बने थे।

• स्तूप की रेलिंग काट कर बनाई गई है और इसमें यक्षों


और यक्षिणियों के अनेक चित्रण हैं।
हर्मि का (Harmika)

प्रदक्षिणा पथ

अमरावती स्तूप (Amaravati Stupa)


अंड (Anda)

• प्राचीन अभिले खों के अनुसार, आंध्र क्षेत्र में अमरावती


स्तूप सबसे बड़ा था और महाचैत्य के नाम से जाना जाता
मेधि (Medhi)
था।

• यह आंध्रप्रदेश के अमरावती में एक जर्जर बौद्ध स्मारक है


वेदिका (Vedika)
जिसके तीसरी शताब्दी ई.पू. से 250 ई. के बीच कई चरणों
तोरण (Torana)
में बनाए जाने की संभावना है।

• अमरावती स्तूप को काटी गई चूने की स्लै ब्स से ढकने से


पूर्व मूल रूप से ईंटों से पक्का किया गया था। जैसा साँची
चित्र 2.1: साँची के स्तूप की निर्माण योजना में किया गया था, ठीक उसी तरह इसकी रेलिंग तथा प्रवेश
द्वार को समय बीतने के साथ-साथ मुख्य ढाँचे के चारों
ओर बनाया गया था।
धामेख स्तूप (सारनाथ) (Dhamek Stupa) (Sarnath)
• अमरावती स्तूप की रेलिंग, प्रवेश द्वार तथा गुंबद बड़े
• माना जाता है कि उत्तर प्रदेश के सारनाथ में स्थित धामेख पैमाने पर उत्कृष्ट उभरी कलाकृतियों से अलं कृत थे।
स्तूप का निर्माण अशोक ने करवाया तथा बाद में शहर
में बुद्ध की गतिविधियों के स्मृतिस्वरूप गुप्तों ने इसका
पुनर्निर्माण करवाया।

• चूँकि इस स्तूप में बुद्ध के अवशेष रखे हैं, अत: यह एक


प्रसिद्ध बौद्ध तीर्थस्थल है।

• यह स्तूप उस स्थान पर निर्मि त है जहाँ ज्ञान प्राप्ति के


पश्चात बुद्ध ने अपने पहले पांच अनुयायियों को अपना
पहला उपदेश दिया था तथा “निर्वाण प्राप्ति तक ले जाने
वाले अपने आष्टांगिक मार्ग का रहस्योद्घाटन किया था"।

• इस स्तूप की वर्तमान आकृति ईंटो और पत्थर से निर्मि त


ठोस बेलनाकार प्रकार की है।
चित्र 2.2: अमरावती स्तूप
• माना जाता है कि गुप्त काल में पत्थर से निर्मि त इसके
तलघर को ऊँचा उठाया गया जिसमें सुंदर फूलदार एवं
ज्यामितीय रचना वाली आठ उभरी मुखाकृतियाँ हैं। महल (Palaces)

• मौर्यों ने अपनी राजधानी पाटलिपुत्र को बनाया तथा

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कुम्हरार में उनका एक अन्य महल था।

• ये ढाँचे साम्राज्य की भव्यता को दर्शाते हैं। कुमारहार


में अशोक का महल एक अन्य भव्य ढांचा है जिसमें कैपिटल
जानवर
नक्काशीदार तथा मूर्ति यों वाले ऊँचे अलं कृत स्तंभ लगे चित्र
हैं। (capital
animal
• फाय्हान के अनुसार यह मानवीय कृति नहीं है बल्कि figure)

देवों द्वारा निर्मि त है।

अबेकस
(abacus)

आधार (उल्टा
कमल ) (base
(inverted
lotus))

चित्र 2.4: सारनाथ स्थित सिं हशीर्ष

स्तंभों पर लिखी राजाज्ञाएं एवं शिलाले ख (Pillar Edicts


and Inscriptions)
चित्र 2.3: कुमारहार महल के अवशेष
• अशोक की स्तंभों पर लिखी 7 राजाज्ञाएं : ये टोपरा
(दिल्ली), मेरठ, कौशाम्बी, रामपूर्वा, चंपारण, महरौली में
स्तंभ (Pillars) पाई गई हैं।

• राज्य के प्रतीक के रूप में अशोक के स्तंभों (सामान्यत: » राजाज्ञा स्तंभले ख I: अशोक का लोगों की रक्षा करने का
चुनार बालु का पत्थर से निर्मि त) को संपूर्ण मौर्य साम्राज्य सिद्धांत।
में अत्यंत महत्व प्राप्त हुआ। अशोक के स्तंभों का प्रमुख
» राजाज्ञा स्तंभले ख II: इसमें धम्म को परिभाषित करते हुए
उद्देश्य पूरे मौर्य साम्राज्य में बौद्ध विचारधारा एवं दरबारी
इसके अंतर्गत पापों का अभाव, अनेक सदाचारों, करुणा,
आदेशों का प्रसार करना था। यद्यपि अशोक के अधिकांश
स्वतंत्रता, सत्यता एवं शुद्धता को बताया गया है।
स्तंभों पर लिखी राजाज्ञाएं पालि एवं प्राकृत भाषा में थी,
किंतु कुछ यूनानी एवं अरमाइक भाषा में भी लिखी गई » राजाज्ञा स्तंभले ख III: प्रचंडता, क्रू रता, क्रोध एवं अभिमान
थी। बिना ले ख के भी स्तंभ मिले हैं। कुछ स्तंभों पर दान आदि दुर्गुणों को खारिज करता है।
ले ख उत्तीर्ण हैं।
» राजाज्ञा स्तंभले ख IV: राजुकों के कर्तव्यों को बताता है।
• मौर्य स्तंभों में मुख्यत: चार भाग थे:
» राजाज्ञा स्तंभले ख V: उन जानवरों और पक्षियों की सूची
देता है जिन्हें कुछ विशेष दिनों में नहीं मारना चाहिए तथा
» वेदी (शाफ़्ट): एक लम्बी वेदी जो कि स्तंभ का मुख्य भाग
अन्य सूची में उन जानवरों की बात करता है जिन्हें कभी
है, इसके आधार का निर्माण करती है तथा यह पत्थर के
भी नहीं मारना चाहिए।
एक टु कड़े (एकाश्म पत्थर) से बनी होती थी।
» राजाज्ञा स्तंभले ख VI: धम्म नीति
» शीर्ष: वेदी के सर्वोच्च भाग पर स्तंभ शीर्ष होता है जो कि
या तो कमल के आकार का अथवा घंटे के आकार का » राजाज्ञा स्तंभले ख VII: धम्म नीति के लिए अशोक द्वारा
होता है। किए गए कार्य।

» शीर्ष फलक: शीर्ष फलक एक गोलाकार एवं आयताकार


• लघु स्तंभ ले ख
होता था जिसे स्तंभ शीर्ष के ऊपर लगाया जाता था।

» स्तंभ शीर्ष की मूर्ति याँ: स्तंभ शीर्ष की सभी मूर्ति यों » रुम्मिनदेई स्तंभ ले ख: अशोक की लु म्बिनी यात्रा एवं
(सामान्यत: सिं ह, बैल तथा हाथी जैसे जानवर) को खड़ी लु म्बिनी को कर मुक्त करना।
मुद्रा में एक वर्गाकार अथवा गोलाकार फलक शीर्ष पर » निगाली सागर स्तंभ ले ख, नेपाल: यह ले ख कहता है कि
काटा गया है और ये ओजपूर्ण हैं। अशोक ने कनकमुनि बुद्ध के स्तूप की उं चाई बढ़ाकर इसे

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दोगुना कर दिया। वास्तुकला की दृष्टि से सबसे महत्वपूर्ण हैं। सुदामा एवं
लोमहर्ष ऋषि गुफा भारत में पत्थर काटकर निर्मि त किए
• प्रमुख स्तंभ अभिले ख गए वास्तुशिल्प का सबसे प्राचीन उदाहरण हैं।

» सारनाथ सिं ह शीर्ष: यह वारणसी के निकट अवस्थित • लोमहर्ष ऋषि गुफा और सुदामा गुफा दोनों में लकड़ी के
है। अशोक ने इसे धम्मचक्रप्रवर्तन अथवा बुद्ध के पहले एक जैसे प्रकोष्ठ बने हैं तथा इनकी दीवारों पर चमकदार
उपदेश की स्मृतिस्वरूप निर्मि त करवाया था। पॉलिश की गई है जिससे ये सीसे की तरह चमकती हैं।
लोमहर्ष ऋषि गुफा का झोपड़ी जैसा प्रवेश द्वार द्विज्या-
» बिहार के वैशाली स्तंभ में एक सिं ह बिना किसी अभिले ख
आकृति वाले “चैत्य मेहराब” के सबसे आरंभिक सुरक्षित
के बनाया गया है।
बचे उदाहरणों में से एक है जो आने वाली शताब्दियों
» उत्तर प्रदेश का संकिसा स्तंभ तक भारतीय शैलकृत वास्तुकला और मूर्ति कला की
» लौरिया नंदनगढ़, चंपारण, बिहार महत्वपूर्ण विशेषता बनी रही।

» लौरिया अरेराज, चंपारण, बिहार

» इलाहाबाद स्तंभ, उत्तर प्रदेश

• अशोक के समय के स्तंभ आकृति, बनावट तथा सजावट


से अत्यंत उच्च कोटि के हैं।

• स्मिथ के अनुसार इन स्तंभों का निर्माण, स्थानांतरण


स्थापना अद्भुत है।

गुफा वास्तुकला (Cave Architecture)


बराबर गुफाएं (वर्तमान बिहार में स्थित)
(Barabar Caves) (Located in Present day
Bihar)
चित्र 2.5: अलं कृत द्वार, लोमहर्ष ऋषि गुफा
• माना जाता है कि ये भारत में शैलकृत वास्तुशिल्प का
सबसे प्राचीन उदाहरण हैं।

• बराबर की पहाड़ियों में चार गुफाएं हैं, जिन्हें मौर्यकाल मौर्योत्तर काल (Post Mauryan Period)
{विशेषकर अशोक (273-232 ई.पू.) तथा उसके पौत्र
भाजा गुफाएं (पुणे के लोहागढ़ के निकट) (Bhaja Caves)
दसरथ के शासनकाल के दौरान} के दौरान निर्मि त (Near Lohagad, Pune)
किया गया था।
• 22 शैलकृत गुफाओ ं का यह समूह बौद्ध वास्तुकला के
• इन गुफाओ ं चैत्यकक्षों को मूल रूप से आजीविक संप्रदाय
पारंपरिक आरंभिक चरण को दर्शाता है। इसमें हीनयान
के लिए बनाया गया था किंतु बाद की गुफाओ ं को बौद्धों,
बौद्ध संस्कृति, एक गहरा गजपृष्ठाकार हॉल (जिसे ठोस
जैनों तथा ब्राह्मणीय प्रयोगों हेतु बनाया गया। उदाहरण
चट्टान से काटकर बनाया गया है और दीवारों के निकट
के लिए, बौद्ध, आजीविक, जैन धर्म एवं हिं दू धर्म के लिए।
साधारण अष्टभुजाकर स्तंभों की एक श्रृंखला से अलग
यह दो सम्राटों (अशोक एवं दसरथ) की धार्मि क सहिष्णुता
किया गया है) प्रमुख हैं।
की नीति को दर्शाता है जो स्वयं बौद्ध थे।
• चैत्यगृह, जिसका प्रवेशद्वार एक खुली नालाकार चाप
की भांति है, भाजा गुफाओ ं का सबसे महत्वपूर्ण ढांचा है।
बराबर की पहाड़ियों की चार प्रमुख गुफाएं (Four Major 14 स्तूपों का एक समूह गुफा की एक अन्य महत्वपूर्ण
Caves at Barabar Hills) विशेषता है। स्तूपों में उन सन्यासियों के अस्थि-अवशेष
रखे गए हैं जो यहाँ रहे और अपने प्राण त्यागे।
• सुदामा गुफा (सुदामा की दरी)

• लोमहर्ष ऋषि गुफा

• कर्ण चौपड़

• विश्व झोपड़ी

• इन चार गुफाओ ं में से सुदामा और लोमहर्ष ऋषि गुफा

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चित्र 2 . 6 : भाजा गुफा, पुणे चित्र 2.8: कन्हेरी स्थित चैत्य, ध्यान दें यह कार्ले चैत्य के जैसा
ही है

कार्ले गुफाएं (पुणे के निकट) (Karle Caves) (Near


Pune) उदयगिरी एवं खंडगिरी गुफाएं (Udayagiri and
Khandagiri Caves)
• कार्ले गुफाएं पहली सदी ईस्वी में बनाई गई थी और
इनका प्रारूप भाजा गुफाओ ं जैसा ही है। किंतु ये बेहद बड़ी • उदयगिरी एवं खंडगिरी गुफाएं ओडिशा के भुवनेश्वर के
और अधिक शानदार हैं। निकट स्थित हैं तथा दूसरी सदी ई.पू. में खारवेल नरेश के
शासनकाल के दौरान बनाई गई थी। माना जाता है कि ये
• कार्ला स्थित चैत्य को 124 फीट गहरी चट्टान काटकर
गुफाएं जैन सन्यासियों के निवास कक्षों के रूप में प्रयुक्त
बनाया गया है तथा यह मुंबई-पुणे राजमार्ग पर दो मील
होती थी।
उत्तर में अवस्थित है।
• उदयगिरी में 18 गुफाएं हैं जिसमें रानी गुम्फा, गणेश
• महान चैत्य सर्वाधिक जानीमानी गुफा (गुफा सं. 8) है।
गुम्फा, हाथीगुम्फा, व्याघ्र गुम्फा आदि हैं जिनमें रानी
यह भारत का सबसे बड़ा शैलकृत चैत्य है।
गुम्फा सबसे बड़ी गुफा है। खंडगिरी में 15 गुफाएं हैं जिनमें
नवगिरी, देवसभा और अनंत गुम्फा आदि शामिल हैं।

चित्र 2.7: कार्ले , पुणे स्थित महान चैत्य चित्र 2.9 : उदयगिरी गुफाएं

कन्हेरी गुफाएं (Kanheri Caves) नासिक गुफाएं (Nasik Caves)

• कन्हेरी गुफाएं मुंबई के निकट हैं और कन्हेरी चैत्यों को • ये गुफाए ‘पांडवले नी गुफाओ ं' के नाम से भी जाना जाता
कार्ले चैत्यों की तर्ज पर बनाया गया है। है, 24 गुफाओ ं की श्रृंखला है जो पहली सदी के आसपास
बनाई गई थी।
• यहाँ कुल 109 गुफाएं हैं जिन्हें बेसाल्ट चट्टान से काटकर
बनाया गया है। चैत्य सबसे बड़ी गुफाएं थी। तथापि, • इन्हें सातवाहन नरेश कृष्ण के शासनकाल के दौरान
अधिकांश गुफाएं विहार हेतु प्रयोग होती थी। बनाया गया था। बुद्ध एवं बोद्धिसत्व के चित्र इन गुफाओ ं
में पाए जाते हैं। पांडवले नी गुफाएं हीनयान संप्रदाय के
• यहाँ महायान शाखा का प्रभाव भी दृश्यमान है तथा
प्रभाव को दर्शाती हैं क्योंकि यहाँ बुद्ध को केवल प्रतीकों
गुफाओ ं की बाहरी दीवारों पर बुद्ध की प्रतिमाएं बनी हैं।
के माध्यम से दर्शाया गया है।

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अजंता गुफाएं (महाराष्ट्र के औरंगाबाद के निकट) (Ajanta
Caves) (Near Aurangabad, Maharashtra)

• अजंता में 29 पूर्णत: बौद्ध गुफाएं हैं। इन्हें पहाड़ी के घुड़नाल


घुमाव वाले स्थान पर खोजा गया था। कुछ गुफाएं दूसरी
सदी ई.पू. की हैं जबकि अन्य सातवीं सदी की बनी हैं।
अजंता की गुफाएं दो चरणों में बांटी जा सकती हैं अर्थात
सातवाहन चरण तथा वाकाटक चरण।

• पहले चरण में, दूसरी सदी ई.पू. के दौरान सातवाहन


राजाओ ं के संरक्षण में विहार और चैत्य स्थापित किए गए
थे तथा इस चरण को प्राय: हीनयान चरण माना जाता है
क्योंकि बुद्ध को प्रतीकों के माध्यम से दर्शाया गया है। इस
समय के दौरान, स्तूपों पर अधिक ध्यान दिया गया तथा
साकार मूर्ति कला की उपेक्षा की गई।
चित्र 2.10: पांडवले नी गुफाएं , नासिक
• निर्माण का दूसरा चरण गुप्त और गुप्तोत्तर काल (पांचवी
व छठी सदी में) में वाकाटक राजाओ ं के शासनकाल में
बाघ गुफाएं (मध्य प्रदेश) (Bagh Caves) (Madhya हुआ। चूँकि बुद्ध को इस अवधि के दौरान एक मानव के
Pradesh) रूप में दर्शाया गया था, इसे महायान चरण के नाम से भी
जाना जाता है।
• ये गुफाएं नौ शैलकृत स्मारकों की एक श्रृंखला हैं जो
• इन गुफाओ ं में चित्र और शैलकृत मूर्ति यां मिलती हैं।
अजंता से लगभग सौ मील दूर मध्य प्रदेश में अवस्थित हैं।
भित्तिचित्र काफी भावपूर्ण हैं तथा ये विभिन्न आकृतियों,
• सभी गुफाएं विहार हैं और नौ में से केवल पांच अभी बची मुद्राओ ं एवं भंगिमाओ ं के माध्यम से भावों की एक
हुई हैं। रंग महल गुफा सबसे ख्यात गुफा (गुफा सं. 4) है। व्यापक श्रृंखला को प्रदर्शि त करती हैं। ये बुद्ध के पूर्वजन्मों
• ये गुफाएं अपने भित्तिचित्रों हेतु जानी जाती हैं जैसे हाथियों की अनेक जातक कथाओ ं पर आधारित हैं।
का जुलूस तथा गुफा के बरामदे की दीवार पर बनाया • अजंता गुफाओ ं के चित्रों में फ्रेस्को तकनीक का प्रयोग
गया नृतकी एवं महिला संगीतकारों का एक दृश्य। किया गया है। फ्रेस्को तकनीक में, चित्रों को चूना प्लास्टर
की एक पतली परत पर जलवर्ण (वाटरकलर) से बनाया
जाता है तथा इसके गीले रहते इसे सतह पर लगा दिया
जाता है।

» अजंता की गुफा सं. 1 में बना बोद्धिसत्व पद्मपाणि का चित्र


एक प्रसिद्ध श्रेष्ठ कृति है।

» 1983 में, यूनेस्कों ने अजंता गुफा को एक विश्व विरासत


स्थल नामित किया तथा यूनेस्कों के अनुसार ये गुफाएं
बौद्ध धार्मि क कला की ऐसी श्रेष्ठ कृति हैं जिन्होंने
पश्चातवर्ती भारतीय कला को प्रेरित किया।
चित्र 2.11: बाघ गुफाएं

चित्र 2.12: बाघ गुफाओ ं में बने चित्र चित्र 2.13: अजंता में प्रदर्शि त बुद्ध का महापरिनिर्वाण

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चित्र 2.15: कैलाशनाथ मंदिर, एलोरा

बादामी गुफा मंदिर (Badami Cave temples)

• बादामी (उत्तरी कर्नाटक में) गुफा मंदिर चालु क्य


चित्र 2.14: अजंता की गुफा सं. 1 में बना बोद्धिसत्व पदमपाणि वास्तुकला का एक श्रेष्ठ उदाहरण हैं जिनमें अलं कृत
का चित्र दीवारें, सजावटी कोष्ठक, महीन तरीके से काट कर
बनाई गई मूर्ति याँ और बारीकी से तराशे गए फलक हैं
जो छठी शताब्दी के हैं। इनमें चार शैलकृत गुफा मंदिर हैं
एलोरा गुफाएं (औरंगाबाद, महाराष्ट्र) (Ellora Caves) जिनमें से तीन ब्राह्मणीय, और एक जैन धर्म से संबंधित
(Aurangabad, Maharashtra) है। आरंभिक मंदिर के लगभग एक सदी पश्चात, जैन मंदिर
का निर्माण किया गया था।
• एलोरा गुफाएं पांचवी से आठवीं सदी के दौरान चालु क्य,
कलचुरी एवं राष्ट्रकूट राजवंशों द्वारा बनाई गई 34 • गुफा सं. 3, जो कि भगवान विष्णु को समर्पि त है, सबसे
गुफाओ ं का एक समूह है। यह हिं दू धर्म, बौद्ध धर्म और जैन बड़ी गुफा है। यह बादामी की सबसे प्राचीन गुफा भी है।
धर्म को समर्पि त गुफा मंदिरों वाला यूनेस्कों का एक विश्व • आधुनिक कर्नाटक में, चालु क्यों द्वारा निर्मि त मंदिर
विरासत स्थल है। एहोल, बादामी, पट्टडकल और महाकूट में वितरित हैं।
• ये 17 हिं दू (गुफा सं. 13 से 29, गुफा सं. 14 से 15 प्रसिद्ध
हैं तथा क्रमश: रावण की खाई एवं दशावतार गुफाएं
कहलाती हैं), 12 बौद्ध (गुफा सं. 1 से 12) तथा 5 जैन (गुफा एलिफेंटा गुफाएं (Elephanta Caves)
सं. 3 से 34) गुफाएं भारतीय इतिहास के उस समय में
• एलिफेंटा के गुफा मंदिर (मुंबई के तट से दूर एक छोटा
प्रचलित धार्मि क सौहार्द को दर्शाती हैं तथा यह इस बात
सा द्वीप) आठवीं सदी के हैं और ये भी उसी शैली से बने हैं
से भी सिद्ध होता है कि इन्हें एक दूसरे के निकट निर्मि त
जिससे एलोरा के मंदिर।
किया गया है।
• एलिफेंटा गुफाएं मूल रूप से बौद्ध स्थल के रूप में बनाई
• कैलाश मंदिर: कैलाश मंदिर एकाश्म पत्थर से बनी विश्व
जानी थी किंतु बाद में इन पर शैव धर्म का वर्चस्व हो गया।
की सबसे बड़ी एकमात्र खोज है। कैलाशनाथ मंदिर का
निर्माण राष्ट्रकूट राजवंश के कृष्णI (757-773) द्वारा • ये अपनी मूर्ति कला के लिए प्रसिद्ध हैं (जिनमें स्पष्ट रूप से
करवाया गया था और यह राष्ट्रकूट वास्तुकला की हल्के एवं गहरे प्रभावों सहित शरीर में छरहरापन दर्शाया
शानदार उपलब्धि है। गया हैं) जिसमें शिव की महान त्रिमूर्ति प्रतिमा (इसमें शिव
ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश की त्रिमूर्ति प्रतिमा के निकट मौजूद
हैं) विशिष्ट है तथा अन्य महत्वपूर्ण मूर्ति यों में कैलाश को
हिलाते रावण की मूर्ति , शिव का तांडव नृत्य, अर्द्धनारीश्वर
आदि हैं। इसके अतिरिक्त, 1987 में इसे यूनस्
े कों द्वारा एक
विश्व विरासत स्थल घोषित किया गया था।

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• एलिफेंटा में, गुफाओ ं के दो समूह हैं: प्रथम पांच हिं दू है देवी की टे राकोटा यक्षिणी के नाम से जाना जाता है।
गुफाओ ं का एक व्यापक समूह है जिसमें शिव को दर्शाती देवी का यह रूप सभी तीन धर्मों नामत: हिं दू धर्म, बौद्ध
शैलकृत मूर्ति याँ हैं और अन्य समूह दो बौद्ध गुफाओ ं धर्म तथा जैन धर्म में लोकप्रिय है। यक्षिणी की मूर्ति पटना
का एक छोटा समूह है। ये गुफाएं राष्ट्रकूट राजवंश द्वारा संग्रहालय में रखी है और इसका एक हाथ टू टा हुआ है।
निर्मि त कैलाश मंदिर से सादृश्यता रखती हैं जिसे आठवीं यह माना जाता है कि यह एक आदर्श महिला की छवि है,
सदी में बनाया गया था। जिसके एक हाथ में ‘चँवर’ है।

• यक्षों तथा यक्षिणियों की मूर्ति याँ बड़ी संख्या में पटना,


मथुरा तथा विदिशा जैसे अनेक स्थानों से मिली हैं। ये बड़ी
मूर्ति याँ सामान्यत: खड़ी मुद्रा में पाई जाती हैं। पॉलिशदार
सतह का होना इन सभी मूर्ति यों की एक अनूठी विशेषता
है। मूर्ति में चेहरे को आकर्षक गालों एवं रूपाकृतिक
विवरण के साथ पूर्णत: गोल दर्शाया गया है।

चित्र 2.16: एलिफेंटा में मौजूद त्रिमूर्ति

चित्र 2.18: यक्षिणी, पटना म्यूजियम

» मौर्य लोग ईंटों का प्रयोग कर कुएं बनाना भी जानते थे


चित्र 2.17: एलिफेंटा गुफाएं जिसने उनके लिए नदियों से दूर रहना संभव बनाया तथा
आंतरिक भागों में अधिक निवासयोग्य क्षेत्रों का विकास
हुआ।
मिट्टी के बर्तन एवं मूर्ति कला (Pottery &
Sculpture)
मौर्य युग (Mauryan Era) कला शैलियाँ (मौर्योत्तर युग)
• तीसरी सदी ई.पू. से संबंधित यक्षों, यक्षिणी एवं पशुओ ं की (Schools of Art) (Post
बड़ी मूर्ति याँ, स्तंभ शीर्ष पर बनी मूर्ति यों से जुड़ी स्तंभ
कतारें तथा शैलकृत गुफाएं भारत के अनेक भागों से Mauryan Era)
खोजी गई हैं।
• मोर्योत्तर युग में (कनिष्क के समय से) गौतम बुद्ध की
• इसका सर्वोत्तम नमूना जो अभी तक बचा रहा गया है, वह
मूर्ति यों के निर्माण का प्रचलन आरम्भ हुआ।

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• इसके पूर्व गौतम बुद्ध के प्रतीकों की पूजा होती थी। पगड़ी सहित काफी अलं कृत होते हैं और पादुका पहनते
हैं। यहाँ आध्यात्मिक बुद्ध (उदास बुद्ध) के रूप में प्रदर्शि त
• महायान सम्प्रदाय के विकास के कारण गौतम बुद्ध
बुद्ध शांति का प्रतिनिधित्व करते हैं।
की मूर्ति यों का निर्माण आरम्भ हुआ। नई सहस्त्राब्दी के
आगमन एवं विश्व के अन्य हिस्सों से नए तत्वों के आने • मूर्ति याँ अधिकतर भूरे रंग के पत्थर की हैं। कुछ मूर्ति याँ
के साथ भारत में मूर्ति कला की तीन “शैलियाँ” उभरी, काले स्लेटी पत्थर द्वारा निर्मि त है।
जिनकी अपनी विशिष्ट शैली और अंतर था। कला की
• गंधार कला में आध्यात्मिकता और भावुकता का सर्वथा
गांधार, मथुरा एवं अमरावती शैली का नाम उन क्षेत्रों के
अभाव है। ऐसा मालू म पड़ता है की वे किसी सिद्धहस्त्र
नाम पर रखा गया जिन क्षेत्रों में वे फली-फूली।
कलाकार द्वारा निर्मि त न होकर मशीनों से तैयार की गई
हों।

• गंधार शैली के परिधान मोटे हैं।


गांधार (Gandhara)
• गंधार शैली की मूर्ति यों में बना प्रभा चक्र साज-सज्जा से
• कला की गांधार शैली यूनानी, रोमन तथा भारतीय शून्य है। पशुओ ं का चित्रण सजीव नहीं है।
शैलियों का मिश्रण है। यह यूनानी प्रभाव से प्रेरित थी।
इसमें धूसर बलु आ पत्थर, गीली मिट्टी, चूना प्लास्टर तथा
टे राकोट्टा का प्रयोग किया जाता था।

• यह हिं द-यूनानी शासकों के दौरान पेशावर (पाकिस्तान)


के आसपास उत्तरपश्चिमी भारत में विकसित हुई किंतु
गांधार कला शैली के सच्चे संरक्षक शक तथा कुषाण
(विशेषकर कनिष्क) थे।

• मुख्य विषय: इनके विषय मुख्यत: बौद्ध धर्म से संबंधित थे


और इनमें बुद्ध और बोधिसत्व की अनेक कहानियों का
चित्रण किया गया।

• इसे यूनानी-बौद्ध कला शैली भी कहा जाता है क्योंकि


इसके अंतर्गत बौद्ध विषयों (बुद्ध और बोधिसत्व का सुंदर
चित्रण) को यूनानी तकनीकों के प्रयोग से प्रदर्शि त किया
जाता था।

• गांधार कला शैली में लगभग सभी प्रकार के विदेशी


प्रभावों (जैसे यूनानी, रोमन, फ़ारसी, शक एवं कुषाण)
को एकीकृत किया गया था।

गांधार कला शैली की विशेषताएं (Characteristics of


Gandhara Art)

• बुद्ध की मूर्ति याँ संरचनात्मक सटीकता के साथ बनाई


जाती थी। बुद्ध पर यूनानी प्रभाव– बुद्ध को एक यूनानी
देवता के रूप में चित्रित किया जाता था जिसके घुंघराले चित्र 2.19: बुद्ध, गांधार शैली
बाल (नीचे दिया गया चित्र देखें) एवं सिर के ऊपर जूड़ा
होता था। आभामंडल बुद्ध की बौद्धिक शक्तियों को दर्शाता
है। इसमें वज्रपाणि बुद्ध के दायीं ओर मिलता है क्योंकि मथुरा कला शैली (Mathura School of Art)
यूनानी लोग रक्षक को देवता के दायीं ओर रखते हैं।
• प्रतीत होता है कि प्रथम शताब्दी ईसा पूर्व के लगभग
• रोमन प्रभाव भी दृष्टिगोचर था जैसा कि रोमन कला के मथुरा में मूर्ति -निर्माण की एक विशिष्ट कला शैली का
विभिन्न रूपांकनों और तकनीकों (जैसे लटकती बेलें, विकास हुआ।
माला पहने देवदूत आदि) में दिखाई देता है। इसमें शारीरिक
• मथुरा कला शैली में निर्मि त अनेक तोरण, वेदिका, स्तम्भ
मुद्राओ ं (मुख्यत: अभय मुद्रा, ध्यान मुद्रा, धर्मचक्र प्रवर्तन
तथा विविध मूर्ति याँ मिली हैं।
मुद्रा आदि) को महत्व दिया गया है।
• मथुरा कला शैली ने गांधार शैली से हटकर बुद्ध से जुड़े
• बुद्ध से भिन्न, बोधिसत्व प्राय: व्यापक केशसज्जा एवं

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प्रतीकों को मानव रूप में परिवर्ति त किया और तदनुसार • बुद्ध को बैठी और खड़ी दोनों मुद्राओ ं में दिखाया गया है।
बुद्ध की प्रथम मूर्ति कनिष्क के शासनकाल में देखी जा बुद्ध को घुंघराले बालों और उषनिशा तथा एक पारदर्शी
सकती है। धोती में देखा जा सकता है जिसके किनारे उनके वक्ष के
चारों ओर लिपटे हैं और उनके बायें कंधे के ऊपर से जा रहे
• यह शैली अपनी आत्मसात करने की भावना हेतु
हैं। दाहिना हाथ अभय मुद्रा में दिखाया गया है।
विख्यात है क्योंकि वैष्णव एवं शैव मत की मूर्ति यों को
बुद्ध मूर्ति यों के साथ देखा जा सकता है जो मथुरा कला • सामान्यत: उनके बगल में बोधिसत्व, वज्रपाणि तथा
शैली के दौरान काफी प्रचलित थी। जैन तीर्थंकरों का पद्मपाणि बने होते हैं।
ले खा-जोखा भी मथुरा कला शैली में स्थापित है। मथुरा
• बुद्ध और बोधिसत्व की मूर्ति याँ आरंभिक दौर में मांसल
कला शैली में निर्मि त बुद्ध मूर्ति यों में बुद्ध पर कई तहों
दिखती हैं जिनमें आध्यात्म कम और सुख (चेहरे
वाला वस्त्र दिखता है तथा उनके सिर के चारों ओर निर्मि त
गोलाकार और मुस्कुराहट भरे हैं) अधिक है, वस्त्र स्पष्ट
आभामंडल काफी अलं कृत है। इसमें अधिकांशतया
रूप से दृश्यमान हैं तथा क्लोज-फिटिंग पूर्णतया लगभग
बालु का पत्थर का प्रयोग हुआ है।
तहों के बिना है। बाद में दूसरी, तीसरी एवं चौथी सदी में
• गंधार कला से मथुरा कला अधिक श्रेष्ठ कही जा सकती गहन मांसलता समाप्त होनी शुरू हुई और मूर्ति याँ अधिक
है। गंधार शैली के विषय केवल बुद्ध तक सीमित है जबकि कामोत्तेजक हो गई। साथ ही, बुद्ध के सिर के चारों ओर
मथुरा कला के मुख्य विषय बौद्ध, हिं दु तथा जैन धर्म की का आभामंडल भी शानदार तरीके से अलं कृत किया
जातक कथाएँ हैं। जाने लगा।

मथुरा कला शैली की विशेषताएं (Characteristics of हिं दू मूर्ति याँ (Hindu Sculptures)
Mathura School of Art)
• शिव और विष्णु के साथ-साथ उनकी पत्नियों पार्वती एवं
• यह मूर्ति याँ लाल और बलु आ पत्थर की बनी हुई हैं। बड़ी
लक्ष्मी की मूर्ति याँ मथुरा कला शैली के अंतर्गत काट कर
मूर्ति यों में दृढ़ता एवं विशालता दिखती है क्योंकि मथुरा
बनाई गई थी। साथ ही यक्षिणी एवं अप्सराओ ं की मूर्ति याँ
कला शैली की पहली मूर्ति बनाने वाले ने स्वत: सटीक
भी सुंदर ढं ग से बनाई गई हैं। यह ध्यान देने योग्य है कि
मानव बुद्ध बनाने का लक्ष्य कभी नहीं रखा था। इस शैली
शिव और विष्णु की मूर्ति याँ उनके अस्त्र-शस्त्र के साथ
में, मुख्य ध्यान शारीरिक भंगिमाओ ं की अपेक्षा आंतरिक
बनाई गई हैं।
सौंदर्य और चेहरे के हाव-भावों पर दिया गया है।
• शिव को नंदी के साथ लिंग स्वरूप में दिखाया गया है।
उदाहरण- सर्वोत्रभद्रा लिंग।

• भगवान वासुदेव को उनके भाई के साथ दर्शाया गया है।


बलदेव को गरुड़, वराह मूर्ति यों में नररूप में दर्शाया गया
है।

अमरावती कला शैली (Amravati School of


Art)

• इसका उद्गम अमरावती (आंध्रप्रदेश) में हुआ और इसे सबसे


पहले सातवाहनों और उसके बाद इक्ष्वाकु और अन्य
राजवंशों द्वारा संरक्षण दिया गया। यह 200 से 100 ई.पू. के
बीच लगभग छ: शताब्दियों तक फली-फूली। अमरावती
के आसपास बौद्ध कला और एक व्यापक बौद्ध धार्मि क
परिसर विकसित हुआ जो एक अलग क्षेत्रीय कला शैली
के पुनर्जीवन की ओर संकेत करता है। अमरावती कला
शैली के विकास को बनते बिगड़ते राजवंशों द्वारा प्रेरित
किए जाने के कारण बौद्ध धर्म में सिद्धांत भली प्रकार
रूपांतरित हुए। इनका विषय प्रमुख रूप से बौद्ध धर्म से
जुड़ा था।

चित्र 2.20: मथुरा कला शैली

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अमरावती कला शैली की विशेषताएं (Characteristics
of Amravati School of Art)

• अमरावती स्तूपों में सामग्री के रूप में पूर्णत: सफेद


संगमरमर का प्रयोग हुआ है तथा अमरावती कला
के मानव, पशु एवं पुष्प मूर्ति प्रकारों में गहन व शांत
यथार्थवाद के साथ गति और उर्जा का भाव है।

• अमरावती, नागार्जुनकोंडा, गोली, घंटशाला और वेंगी वे


प्रमुख स्थान हैं जहाँ यह शैली विस्तारित हुई।

• बुद्ध के जीवन को प्रतीक रूप में दर्शाया गया है। बुद्ध को


लगभग हर बार एक प्रतीक के माध्यम से प्रतिनिधित्व
प्रदान किया गया है किंतु ऐसा दो अथवा तीन स्थानों पर
किया गया है।

• साँची स्तूप की भांति अमरावती स्तूप में एक प्रदक्षिणा


पथ है जिसे एक वेदिका (जिस पर बुद्ध के जीवन और
चित्र 2.21: अमरावती कला शैली
बोधिसत्व की विभिन्न कहानियां चित्रित की गई हैं और
इनमें उनके जन्म, चमत्कारों, ज्ञान प्राप्ति तथा मार,
सुंदरी, नंद, तुशिता स्वर्ग तथा अंगुलिमाल पर विजय के
किस्सों की बहुलता है) के भीतर बनाया गया है।

• अमरावती कला शैली के मूर्ति कला रूप में अनेक भाव


दिखाई देते हैं क्योंकि इसमें मूर्ति याँ छरहरी हैं, वे काफी
गतिमान हैं, शरीर को तीन झुकावों (अर्थात त्रिभंग) के
साथ दिखाया गया है तथा मूर्ति की शरीर रचना साँची के
स्तूप की अपेक्षा अधिक मिश्रित है।

• इस शैली में धार्मि क और धर्मनिरपेक्ष दोनों मूर्ति याँ बनाई


गई हैं।

• बाद में, यह शैली परिवर्ति त होकर पल्लव और चोल


शिल्पकला में बदल गई।

चित्र 2.22: रानी महामाया का स्वपन

आधार गांधार मथुरा वेंगी (अमरावती)


प्रभाव यूनानी प्रभाव जिसे हिं द- कोई बाह्य प्रभाव नहीं, स्वदेशी स्वदेशी
यूनानी प्रभाव भी कहते हैं
बालु का पत्थर के प्रकार धूसर/नीला धूसर बालु का चित्तीदार लाल बालु का पत्थर सफेद संगमरमर
पत्थर
धार्मि क प्रभाव मुख्यत: बौद्ध सभी 3 धर्म– जैन, बौद्ध, हिं दू मुख्यत: बौद्ध
धर्म
संरक्षण कुषाण कुषाण सातवाहन एवं इक्ष्वाकु
क्षेत्र उत्तर पश्चिम सीमांत मथुरा, सोंख, कंकालीटीला कृष्णा-गोदावरी निचली घाटी
(मुख्यत: जैन)

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मूर्ति कला की विशेषताएं • आध्यात्मिक बुद्ध (उदास • प्रसन्न बुद्ध • बुद्ध और जातक कथाओ ं
बुद्ध) में शांति, दाढ़ी एवं पर आधारित विषय को
• सिर मुंडा हुआ और बिना
मूंछें दर्शाई गई हैं। प्रदर्शि त करता है।
बालों का चेहरा
• कम अलं कार • बुद्ध को मानव एवं पशु
• परिधान चुस्त हैं
दोनों रूपों में दर्शाया गया
• घुंघराले बाल
• मुख विनीत भाव प्रदर्शि त है।
• बड़ा मस्तक करता है।

• आंखें आधी खुली हुई • सिर पर उभार (जूड़ा)

चित्र 2.23 : गांधार बुद्ध चित्र 2.24: मथुरा बुद्ध चित्र 2.25: अमरावती बुद्ध

जैन वास्तुकला (Jain • एलोरा, जो कि 5वीं शताब्दी से ले कर 11वीं शताब्दी तक


के दौर का है, महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में स्थित
Architecture) एक गुफा स्थल है। यह एक विशिष्ट ऐतिहासिक स्थल है
क्योंकि इसमें तीन धर्मों (बौद्ध धर्म, ब्राह्मण धर्म एवं जैन
• जैन वास्तुकला का मुख्य उद्देश्य संस्कृति को व्यापक रूप धर्म) से जुड़े मठ मौजूद हैं।
से बनाए रखना, संरक्षित करना तथा महिमामंडित करना
है। भारत में जैन वास्तुकला, विशेषकर मंदिर वास्तुकला
विशिष्ट है। महाराष्ट्र, कर्नाटक, और राजस्थान अपने
भव्य जैन मंदिरों तथा पत्थर की मूर्ति यों वाले स्मारकों
हेतु जाने जाते हैं। राजस्थान के रनकपुर तथा माउं ट आबू
के जैन मंदिर सबसे शानदार मंदिरों में से एक हैं।

• मथुरा, बुंदेलखंड, मध्यप्रदेश तथा ओडिशा की गुफाओ ं


में भी शानदार शैलकृत वास्तुकला देखी जा सकती है।
उदयगिरी एवं खंडगिरी तथा एलोरा (महाराष्ट्र) में भी
अनेक शैलकृत गुफाएं साकार रूप में हैं।

• शैलकृत गुफा मंदिर (Rock-Cut Cave Temples)

• आरंभिक वर्षों में जैन मंदिरों को बौद्ध शैलकृत शैली का


प्रयोग कर बौद्ध स्थलों के निकट बनाया गया था। पश्चिम
भारत के आरंभिक गुफा स्थल जैन सन्यासियों द्वारा चित्र 2.26: जैन वास्तुकला, एलोरा
पूजास्थलों एवं निवास के रूप में प्रयोग किए गए थे।

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जहाँ श्रद्धालु खड़े होकर मुख्य बिं दु की ओर देख सकते हैं
अथवा तीर्थस्थान की रीतियों में भाग ले सकते हैं।

जैन मंदिरों की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं (Some


of the Rominent Features of Jain Temples are
Listed Below)

• हिं दू मंदिर वास्तुकला से भिन्न, जैन मंदिर वास्तुकला


अधिकांशतया ‘मंदिर-शहरों’ के रूप में पाई जाती है।
‘मंदिर-शहर’ बड़े मंदिर परिसर होते हैं जिसमें बड़ी संख्या
में अलग अथवा आपस में जुड़े मंदिर और तीर्थस्थान होते
हैं।

• अधिकांश जैन तीर्थस्थल पहाड़ियों की चोटी पर निर्मि त


चित्र 2.27: एलोरा में जैन तीर्थंकर
किए गए थे जिसमें गुजरात का पलिताना मंदिर, मध्य
प्रदेश का सोनागिरी मंदिर आदि शामिल हैं।

• ओडिशा में भी शैलकृत वास्तुकला के चिह्न हैं। भुवनेश्वर • इन मंदिर परिसरों की गुंबदें नुकीली है तथा इनमें स्तंभ
के निकट उदयगिरी-खंडगिरी गुफाएं इसके आरंभिक नहीं हैं। भीतरी भाग में अष्टभुजाकर स्थान निर्मि त करने
उदाहरणों में से एक हैं। इन गुफाओ ं में खारवेल राजाओ ं के लिए गुंबद बनाई गई है।
के अभिले ख पाए जा सकते हैं। अभिले खों के अनुसार ये • जैन मंदिर काफी मात्रा में संगमरमर के प्रयोग एवं
गुफाएं जैन सन्यासियों के लिए बनी थी। अलं करण हेतु जाने जाते हैं।

• शिखरों की सर्वोच्च गुंबद हिं दू मंदिरों की अपेक्षा छोटी हैं।


अनेक गुंबद बिं दुओ ं की उपस्थिति जो कि आकाश की
जैन मंदिरों की विशेषताएं (Features of Jain ओर विस्तारित होते हैं, भवन को एक अलग आभा प्रदान
Temples) करते हैं।

• जैन वास्तुकला मुख्य रूप से हिं दू और बौद्ध शैलियों की • जैन मंदिरों में अनेक स्तंभ हैं जिनका ढांचा विशेष रूप
एक उपशाखा के रूप में विस्तारित हुई । इसे एक अलग से डिज़ाइन किया गया है और जो एक वर्ग का निर्माण
विषय नहीं माना जाना चाहिए करते हैं।

• हिं दू मंदिरों की संख्या के उलट विश्व भर में केवल कुछ ही • मंदिरों के स्तंभों एवं छतों की नक्काशी समृद्ध और अच्छी
जैन मंदिर बने हैं। प्रकार से अलं कृत है तथा इस प्रकार बने वर्ग उन परिसरों
का निर्माण करते हैं जहाँ देवता की मूर्ति रखी गई है।
• मंदिर वास्तुकला की क्षेत्रीय शैलियाँ का विश्व के विभिन्न
हिस्सों में आसानी से अंतर किया जा सकता हैं। • जैन विहार छोटे एवं साधारण हैं जिन्हें जैन सन्यासियों
के कठोर संयम पर नियंत्रण रखने हेतु बनाया गया है।
• आरंभिक जैन मंदिर वास्तुकला मुख्यत: शैलकृत थी
प्रवेश द्वार प्राय: संकरे हैं और किसी प्रकोष्ठ में प्रवेश करते
जिसमें ईंटों का कोई प्रयोग नहीं हुआ था। हालांकि , बाद
समय शरीर को झुकाने की आवश्यकता पड़ती है।
के वर्षों में बड़े स्तर पर ईंटों से मंदिर निर्माण किए गए थे।
ठीक उसी समय, स्वयं के ढांचे निर्मि त करने के लिए ये • जैन मंदिरों का निर्माण अधिकांशतया प्लेटफॉर्म्स अथवा
हिं दू और बौद्ध स्थलों से अलग हो गए। चबूतरों पर किया गया था जिन्हें आमतौर पर “जगती”
अथवा “वेदी” कहकर संदर्भि त किया जाता है। यहाँ तक
• भारत में अधिकांश जैन मंदिर तीन मुख्य अवयवों से बने
कि शैलकृत मंदिरों में भी प्लेटफॉर्म्स हैं। ऐसा मंदिर को
हैं:
आसपास की सतह से ऊँचा उठाने तथा एक भिन्न पवित्र
» मूर्ति परिसर– गर्भगृह क्षेत्र निर्मि त करने के लिए किया गया है।

» बड़ा कक्ष – मंडप • जैन मंदिर मुक्त रूप से खड़ी ऊँची संयोजित दीवारों से घिरे
हैं जिन्हें प्रकार कहा जाता है।
» द्वारमण्डप
• यदि ढांचे की बात की जाए तो एक जैन मंदिर एक
• मूर्ति परिसर और इसके बड़े कक्ष (हॉल) के बीच एक चौथा वर्गाकार योजना पर निर्मि त होता है जिसके द्वार चारों
भाग (जिसे अंतराल के नाम से जाना जाता है) भी देखा दिशाओ ं में खुलते हैं तथा यह प्रत्येक दरवाजा किसी
जा सकता है। जिसे अंतराल एक छोटा गलियारा कहते है तीर्थंकर की मूर्ति तक जाता है। भगवान आदिनाथ का

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चौमुख मंदिर चार-द्वार मंदिर का एक उदाहरण है। रनकपुर मंदिर

• कुछ सर्वाधिक महत्वपूर्ण जैन स्थल एलोरा तथा


• पन्द्रवीं शताब्दी में निर्मि त रनकपुर जैन मंदिर जैन
दक्कन के एहोल में देखे जा सकते हैं। कर्नाटक के
वास्तुकला के सर्वाधिक प्रभावी उदाहरणों में से एक है।
श्रवणबेलगोला में महत्वपूर्ण गोमतेश्वर प्रतिमा उस क्षेत्र
यह भगवान आदिनाथ (पहले जैन तीर्थंकर) के सम्मान
की समृद्ध जैन वास्तुकला विरासत का एक उदाहरण है।
में बनाया गया है। इस मंदिर की योजना चौमुख है जिसमें
मध्य भारत में, देवगढ, खजुराहो, चंदेरी तथा ग्वालियर
चार मुख हैं और सभी प्रतिमाएं एक दूसरे की ओर मुँह
में जैन वास्तुकला के कुछ शानदार उदाहरण मौजूद
किए हुए हैं।
हैं। पश्चिम में गुजरात तथा राजस्थान में लं बे समय से
जैन धर्म के मजबूत स्तंभ रहे हैं। जैन धर्म से जुडी कांस्य • इस विशाल मंदिर के निर्माण हेतु हल्के रंग के संगमरमर
प्रतिमाएं गुजरात के अकोटा (बड़ौदा के बाहरी भागों में का उपयोग किया गया है। अपने विशिष्ट गुम्बदों के साथ
अवस्थित) में जानी-मानी प्रतिमा है। यह मंदिर भव्य ढं ग से पहाड़ी की ढलान से ऊपर उठता
दिखाई देता है। यह मंदिर 1444 से अधिक संगमरमर
स्तंभों पर खड़ा है जिन्हें उत्कृष्ट स्तर की बारीकी के साथ
कुछ सर्वाधिक महत्वपूर्ण जैन मंदिर निम्नलिखित हैं साफ़-सुथरे ढं ग से काटा गया है। सभी स्तंभों का आकार
(Some of Most Important Jain Temples are as अलग प्रकार का है और कोई भी दो स्तंभ एक जैसे नहीं हैं।
Follows) यह माना जाता है कि स्तंभों की गिनती करना असंभव है।

दिलवाड़ा मंदिर

• जैन तीर्थंकरों को समर्पि त दिलवाड़ा मंदिर राजस्थान के जैन प्रतिमाएं (Jain Idols)
माउं ट आबू में हैं। इन्हें सोलं की शासकों की सहायता से
श्रवणबेलगोला (Shravanabelagola)
निर्मि त करवाया गया था।

• इन्हें पूरी तरह सफेद संगमरमर से निर्मि त करवाया • कर्नाटक का श्रवणबेलगोला भारत में सर्वाधिक
गया था और उत्कृष्ट मूर्ति कला से सजाया गया था। महत्वपूर्ण जैन तीर्थस्थलों में से एक है, जिसकी यात्रा
इनकी गोटे दार मुखाकृति गहरी गत छपाई सहित समृद्ध पर प्रतिवर्ष लाखों अनुयायियों आते है। क्षेत्र के दोनों ओर
मूर्तिशिल्प सजावट से निर्मि त है। चंद्रगिरी एवं विन्ध्यगिरी नामक दो पथरीले पर्वत एक
दूसरे के सामने खड़े हैं और स्वप्निल दृश्य उत्पन्न करते
• दिलवाड़ा मंदिर प्रत्येक सीलिंग पर अपने विशिष्ट एवं
हैं। विन्ध्यगिरी की चोटी पर भगवान गोमतेश्वर (जिन्हें
अलग प्रारूप तथा गुंबदीय छतों के साथ-साथ बनी
बाहुबली के नाम से भी जाना जाता है और जो पहले
आकर्षक कोष्ठ आकृतियों के लिए भी जाने जाते हैं।
तीर्थंकर आदिनाथ के पुत्र हैं) की 57-फीट ऊँची एकाश्म
प्रतिमा है।

• इसे विशेष रूप से मैसूर के गंग राजाओ ं के प्रधान सेनापति


चामुंडराय द्वारा बनवाया गया था। यह प्रतिमा जिसे एक
हजार वर्ष से भी पहले काट कर बनाया गया था, भगवान
बाहुबली को दर्शाती है: उन्होंने सीधे खड़े रहकर तब तक
ध्यान लगाया था जब तक कि उनकी टांगों पर बेलें
(जाले ) नहीं चढ़ गए और उनके पंजे पर चींटियों ने घेरा
नहीं बना लिया।

चित्र 2.28: दिलवाड़ा मंदिर, माउं ट आबू

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बावनगजा (Bawangaja)

• बावनगजा मध्य प्रदेश के बड़वानी जिले में एक प्रसिद्ध


जैन तीर्थस्थल है। यहाँ पहले जैन तीर्थंकर भगवान
आदिनाथ की विश्व में सबसे बड़ी विशाल पाषाण प्रतिमा
(जिसे पर्वत काटकर बनाया गया) है। यह प्रतिमा 84
फीट ऊँची है। इसे 12वीं सदी के आरंभिक काल में निर्मि त
किया गया था।

चित्र 2.29: श्रवणबेलगोला

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अध्याय - 3

मंदिर वास्तुकला
(TEMPLE ARCHITECTURE)

मंदिर वास्तुकला (Temple जैसी विशेषताएं थी) चौथी से पांचवी शताब्दी तक निर्मि त
की गयी।
Architecture) • भारत में हिं दू मंदिरों के वास्तुकला सिद्धांतों का उल्ले ख
शिल्प शास्त्र में किया गया है। शिल्प शास्त्र में तीन मुख्य
• हिं दू मंदिर वास्तुकला में शैलियों की किस्मों की बहुलता प्रकार की मंदिर वास्तुकला का वर्णन है– नागर अथवा
है हालांकि उनकी आधारभूत प्रकृति एक जैसी ही बनी उत्तरी शैली, द्रविड़ अथवा दक्षिणी शैली तथा वेसर अथवा
रहती है। हिं दू मंदिर वास्तुकला कला, धम्म के आदर्शों, मिश्रित शैली।
मान्यताओ ं, मूल्यों एवं हिं दू धर्म में आत्मसात की गई
• एक गर्भगृह, मंडप, शिखर और एक वाहन का होना किसी
जीवन की पद्धति का अनुकरण करती है। स्तूप जैसी
हिं दू मंदिर की आधारभूत विशेषताओ ं में शामिल है। गर्भगृह
आरंभिक बौद्ध संरचनाओ ं से प्रभावित सबसे पहले बने
में देवता का निवास स्थान होता है। मंडप मंदिर तक जाने
हिं दू मंदिर शैलकृत गुफाओ ं से बनाए गए थे।
का प्रवेश मार्ग होता है। शिखर पिरामिडीय वक्ररेखीय
• तत्पश्चात, गुप्त वास्तुकला (जिनमें बुर्ज और उभरे आलों आवृत (चोटी) होता है जो गर्भगृह के ऊपर होता है तथा
देवता का वाहन ही वाहन कहलाता हैं।

मंदिर वास्तुकला के प्रकार (Types of Temple Architecture)


मंदिर
वास्तुकला

नागर द्रविड़ वेसर नायक विजयनगर पाल

ओडिशा खजुराहो सोलं की पल्लव चोल चालु क्य होयसल राष्ट्रकूट

नागर शैली (Nagara Style) कलश


आमलक
• मंदिर वास्तुकला की वह शैली जो उत्तर भारत में लोकप्रिय शिखर
मंडप
हुई, नागर शैली के नाम से जानी जाती है। नागर शैली
क्षेत्रीय रूप से निर्मि त की गई थी जिसमें प्रत्येक क्षेत्र की अर्द्धमंडप
अपनी अलग विशेषताएं थी। नागर शैली, सोलं की शैली,
ओडिशा शैली तथा खजुराहों शैली जैसी विभिन्न उप-
शैलियाँ देखी जा सकती हैं।

गर्भगृह

चित्र 3.1: वास्तुकला की नागर शैली, (ओडिशा प्रकार की)

• नागर शैली में, पूरे मंदिर को एक पाषाण प्लेटफ़ॉर्म पर


निर्मि त करना (जिसमें उस तक पहुँचने हेतु सीढियां लगी
हों) एक सामान्य बात है।

• दक्षिण भारतीय मंदिरों से अलग इसमें आमतौर पर


व्यापक चाहरदीवारी अथवा प्रवेश द्वार नहीं होते।

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• नागर शैली के तीन विशिष्ट गुण हैं- गर्भगृह, शिखर • मुख्य तीर्थस्थान से पहले सभा कक्ष मौजूद होता है।
(वक्ररेखीय बुर्ज) तथा मंडप (प्रवेश हॉल) का होना।
• उदाहरण– विश्वनाथ मंदिर (खजुराहो), दशावतार
• यद्यपि आरंभिक मंदिरों में केवल एक शिखर होता था मंदिर (देवगढ), जगन्नाथ मंदिर (पुरी), लक्ष्मण मंदिर
किंतु पश्चातवर्ती मंदिरों में कई शिखर बनाए जाने लगे। (खजुराहो)।

• गर्भगृह सदैव सबसे ऊँचे बुर्ज के बिल्कु ल नीचे स्थित • इन मंदिरों में आमतौर पर मंदिर निर्माण की पंचायतन
होता है। शैली का अनुकरण किया गया है।

आमलक कलश
खजुराहो मंदिर की वास्तुकला

शिखर उरुश्रीन्गा

अंतराल

गर्भगृह
महा मंडप

मंडप

प्रदक्षिणा
अर्द्धमंडप

जगती पूर्व

अधिस्थान

अनुप्रस्थ भाग

चित्र 3.2: खजुराहो मंदिर वास्तुकला

• पंचायतन शब्‍द पंच (पाँच) और आयतन (मुक्‍त) से हुआ • इस शैली में बने मंदिरों को उडि़सा में ‘कलिंग’, गुजरात में
है। इसमें मुख्‍य देवता शिव या अन्‍य को मुख्‍य मंदिर में ‘लाट’ और हिमालय क्षेत्र में ‘पर्वतीय’ कहा गया।
स्‍थापित किया जाता है और उसके चारों ओर निर्मि त गौण
• नागर शैली में शिखर सामान्यतः तीन प्रकार के होते हैं-
मंदिरों में चार अन्‍य अनुचर देवता रखे जाते थे। उदाहरण –
(1) रेखा प्रसाद (2) फमसाना (3) वल्लभी।
खजुराहो में कंदरिया महादेव मंदिर, भुवनेश्‍वर में लिंगराज
मंदिर तथा उत्तर प्रदेश के देवगढ़ में दशावतार मंदिर। • रेखा प्रसाद प्रकार अथवा लै टिना प्रकार: इस प्रकार के
मंदिरों के आधार पर बना शिखर वर्गाकार होता है तथा
• नागर शैली के मंदिरों को ऊँचाई में आठ भागों में बाँटा जा
दीवारें भीतर की ओर मुड़कर चोटी पर एक बिं दु पर
सकता है। (1) मूल (आधार) (2) गर्भगृह मसरक (नीव और
मिलती हैं। इन्हें सामान्यत: मुख्य गर्भगृह को सुरक्षित
दीवारों के बीच का भाग) (3) जंघा (दीवार), (4) कपोत
रखने के लिए प्रयोग किया जाता है।
(कार्नि स), (5) शिखर, (6) गल (गर्दन), (7) वर्तुलाकार
आमलक और (8) कुंभ (शूल सहित कलश)।

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• वल्लभी प्रकार: ये आयताकार ढांचे होते हैं जिनकी छत
के सर्वोच्च बिं दु पर गुंबदनुमा चैम्बर होता है। गुंबदनुमा
चैम्बर का किनारा गोल होता है जो प्राचीन समय में बैलों
से खींचे जाने वाले बांस अथवा लकड़ी के कोष की भांति
दिखाई देता है। इन्हें प्राय: शकटाकार भवन (Wagon
Vaulted Building) कहा जाता है।

द्रविड़ शैली (Dravida Style)

• द्रविड़ शैली में मंदिर वास्तुकला दक्षिण भारत में लोकप्रिय


बनी। कृष्णा नदी से ले कर कन्याकुमारी तक द्रविड शैली
के मंदिर पाये जाते हैं। द्रविड़ मंदिर डिज़ाइन राजवंशीय
आधार पर विकसित हुए, पल्लवों ने द्रविड शैली को जन्म
दिया, किन्तु इन मंदिरों की प्रमुख विशेषताएं एक के बाद
एक आए राजवंशों में संगत बनी रही। चोल काल में द्रविड
शैली ने ऊंचाईयां प्राप्त कीं।

द्रविड़ शैली की पृथक विशेषताएं (Distinct Features of


Dravida Style)

• द्रविड शैली के मंदिरों की पहचान हैं- चहारदीवारी, गोपुरम,


वर्गाकार या अष्टकोणीय गर्भगृह (रथ), पिरामिडनुमा
चित्र 3.3: रेखा प्रसाद शैली शिखर, मंडप, विशाल सकेंद्रित प्रांगण तथा अष्टकोणीय
मंदिर संरचना।

• द्रविड़ मंदिरों के चारों ओर एक चहारदीवारी होती है तथा


• फमसाना प्रकार: फमसाना भवन लै टिना भवनों की मध्य में एक प्रवेशद्वार होता है जिसे गोपुरम कहते हैं।
अपेक्षा अधिक चौड़े और ऊंचाई में कुछ छोटे होते हैं। उनकी
• मध्य भाग के मंदिर बुर्ज की आकृति को विमान कहा
छतें अनेक फलकों पर संतुलित होती हैं जो भवन के केंद्र
जाता है जो एक सीढ़ीदार पिरामिड की भांति होता है। यह
पर निर्मि त एक एकल बिं दू की ओर सरलता से ऊपर उठी
उत्तर भारत के वक्रीय शिखर से अलग ज्यामितीय ढं ग से
होती हैं। यह लै टिना से भिन्न होती है जो तीक्ष्णता से ऊपर
ऊपर उठा होता है।
उठते लं बे बुर्जों की भांति दिखाई देते हैं।
• शिखर शब्द मंदिर के ऊपरी भाग पर स्थित मुकुटीय
• इसकी बजाए, इनकी ऊपर की ओर सीधी ढाल होती है।
हिस्से के लिए प्रयोग किया जाता है जो उत्तर भारतीय
इनके मंडप फमसाना शैली में बनाए जाते हैं।
मंदिरों के आमलक तथा कलश का ही समकक्ष होता है।
यह पिरामिडनुमा होता है।

• भयानक दिखने वाले द्वारपालों का मूर्ति यों के माध्यम से


दर्शाया जाता है।

• सहायक तीर्थस्थान या तो मुख्य मंदिर बुर्ज में एकीकृत


होते हैं या मुख्य मंदिर के साथ-साथ एक अलग, छोटे
तीर्थस्थान के रूप में बने होते हैं।

• नागर शैली से भिन्न, दक्षिण भारत के कुछ सर्वाधिक


पवित्र मंदिरों में मुख्य मंदिर (जिसमें गर्भगृह स्थित होता
है) सबसे छोटे बुर्ज में बना होता है।

• परिसर के भीतर एक बड़ा जलाशय पाया जाता है जो


सामान्यत: नागर शैली से संबंधित नहीं है।

• बृहदेश्वर मंदिर (तंजावुर), शोरे मंदिर (महाबलीपुरम),


चित्र 3.4: फमसाना शैली
मीनाक्षी मंदिर (मदुर)ै इसके कुछ उदाहरण हैं।

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• द्रविड शैली के अंतर्गत ही बाद में नायक शैली का विकास अनुसरण करते हैं जो नागर और द्रविड़ दोनों शैलियों को
हुआ। मीनाक्षी मंदिर, रंगनाथ मंदिर और रामेश्वरम मंदिर आपस में जोड़ती हैं।
इसके उदाहरण हैं
• क्षेत्र: बेसर भारतीय हिं दू मंदिर वास्तुकला की एक अलग
Shikhara शैली है जो मुख्यत: दक्कन मध्य भारत (विं ध्य तथा
कृष्णा नदी के बीच) में प्रयोग की जाती है।

» समागम: बेसर शैली में द्रविड़ और नागर दोनों शैलियों


के तत्व हैं। उदाहरण के लिए, बादामी में नागर और द्रविड़
गोपुरम मंडप विमान
मंदिर साथ-साथ बनाए जाते हैं।

» उदगम: कुछ लोगों के अनुसार, यह शैली बादामी


गर्भगृह
के चालु क्यों द्वारा आरंभ की गई थी। अत: इसे मंदिर
चित्र 3.5: द्रविड़ शैली की योजना वास्तुकला की “कर्नाटक शैली” अथवा “चालु क्य शैली”
आकार के आधार पर द्रविड़ मंदिरों का उप-विभाजन (Sub- भी कहा जाता है।
Divisions of Dravida Temples Based on Shapes) » आकार: अपने नागर तथा द्रविड़ पूर्ववर्ति यों की तुलना में,
इन मंदिरों की ऊंचाई घटाई गई थी। गर्भगृह के ऊपर बना
• मुख्यत: कुल पांच अलग-अलग आकार हैं:
बुर्ज द्रविड़ मंदिरों में बने विमानों की अपेक्षा सामान्यत:
1. वर्ग, जिसे सामान्तय: चतुरसरा अथवा कुटा (Caturasra छोटा होता है। इन्हें लघु विमान कहा जाता है। प्रारूप के
or Kuta) कहते हैं हिसाब से इन बुर्जों का आकार पिरामिडय है। यह आधार
से शिखर तक वृत्ताकार या अर्द्ध वृत्ताकार होता है।
2. आयाताकार अथवा आयतसरा अथवा शाला (Ayatasra
or Shala) » विमान: विमान को गर्दन के ऊपर एक वृत्ताकार शिखर
का मुकुट पहनाया जाता है।
3. वृत्तआयत (Vrittayata) अथवा दीर्घवृत्ताकार जिसे गज-
पृष्ठ भी कहा जाता है » दुर्गा मंदिर (एहोल), बादामी मंदिर (कर्नाटक), केशव
मंदिर (सोमनाथपुर), विरूपाक्ष मंदिर (पट्टडकल) इसके
4. वृत्त (Vritta)
कुछ उदाहरण हैं।
5. अष्टसरा (Ashtasra)

• हालांकि उपविभाजनों में यह एक सरल विभाजन है।


अपना स्वयं का अलग स्वरूप निर्मि त करने के लिए
अनेक भिन्न-भिन्न आकारों को विभिन्न समयों पर
तथा विभिन्न स्थानों में संयोजित किया जा सकता है।

बेसर शैली (Vesara Style)

• चालु क्य राजाओ ं के संरक्षण में, सातवीं शताब्दी के मध्य


में कर्नाटक क्षेत्र में मंदिर वास्तुकला की एक अलग शैली
विकसित हुई। इस क्षेत्र के मंदिर एक मिश्रित शैली का चित्र 3.6: बादामी मंदिर

मंदिर वास्तुकला की शैलियाँ- एक तुलना

नागर द्रविड़

उत्तरी भारत दक्षिणी भारत

क्षेत्रीय रूप से विकसित जिसमें प्रत्येक भाग अपनी अलग


राजवंशीय आधार पर विकसित
विशेषताएं प्रदर्शि त करता है।

वक्ररेखीय बुर्ज (गर्भगृह के ऊपर निर्मि त शिखर) जो उत्तरोत्तर पीछे हटते अनेक आयामों वाली मंजिलों सहित विमान
भीतर की ओर वक्रता प्राप्त करते हैं। (पिरामिडीय बुर्ज)

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सहायक तीर्थस्थान या तो मुख्य मंदिर बुर्ज में एकीकृत होते
एक से अधिक शिखर हैं या मुख्य मंदिर के साथ-साथ एक अलग, छोटे तीर्थस्थान
के रूप में बने होते हैं।

नागर द्रविड़ बेसर शैली

दक्षिण भारत के कुछ सर्वाधिक पवित्र


गर्भगृह सामान्यत: सबसे ऊँचे बुर्ज मंदिरों में मुख्य मंदिर (जिसमें गर्भगृह
(शिखर) के नीचे स्थित होता है स्थित होता है) सबसे छोटे बुर्ज में बना
होता है।

मंदिर के अग्रभाग पर, भयानक दिखने


बाहरी दीवारों पर टे राकोट्टा पेनल्स
वाले द्वारपालों की मूर्ति यां निर्मि त की
तथा मूर्ति याँ
गई थी।

वर्गाकार हॉल वर्गाकार हॉल वर्गाकार हॉल

पवित्र स्थान – गर्भगृह पवित्र स्थान – गर्भगृह पवित्र स्थान – गर्भगृह

गोपुरम नहीं मिलते गोपुरम मिलते हैं गोपुरम मिलते और नहीं भी मिलते हैं

मंदिर के अग्रभाग में, एक जलाशय


जलाशय हो भी सकता है और नहीं भी होता है जहाँ से पवित्र जल लिया जाता जलाशय हो भी सकता है और नहीं भी
है

द्रविड़ मंदिर एक परिसर की दीवार के परिसर की दीवार हो भी सकती हैं और


कंपाउं ड वाल्स नहीं मिलती
भीतर ही होता है नहीं भी

उदाहरण- दुर्गा मंदिर (एहोल), बादामी


उदाहरण- विश्वनाथ मंदिर मंदिर, विरूपाक्ष मंदिर
उदाहरण- बृहदेश्वर मंदिर (तंजावुर),
(खजुराहो), दशावतार मंदिर (देवगढ़),
शोरे मंदिर (महाबलीपुरम), मीनाक्षी (पट्टडकल), केशव मंदिर
जगन्नाथ मंदिर (पुरी), लक्ष्मण मंदिर
मंदिर (मदुर)ै (सोमनाथपुर)
(खजुराहो),

नागर द्रविड़ बेसर शैली

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महत्वपूर्ण शब्दावली (Important कलश (Kalasha)
Terminologies)
• बड़े मुख वाला अथवा सजावटी बर्तन जिसे उत्तर भारतीय
गर्भगृह (पवित्र स्थान) (Garbhagriha) (Sanctum मंदिरों में शिखर को सुंदरता प्रदान करने के लिए लगाया
Sanctorum) जाता है।

• यह एक गुफानुमा एकांत कक्ष होता है जिसका शाब्दिक


अर्थ होता है “गर्भ-घर”।
अंतराल (गलियारा) (Antarala) (Vestibule)
• आरंभिक मंदिरों में यह एक छोटा घनाकार ढांचा होता था
• अंतराल एक संक्रमण क्षेत्र होता है जिसके साथ गर्भगृह
जिसमें एकल प्रवेश द्वार होता था।
और मंदिर का केंद्रीय हॉल (मंडप) बना होता है।
• समय बीतने के साथ, यह विस्तारित होकर बड़े परिसरों
में तब्दील हो गया।

• गर्भगृह मुख्य देवता को रखने के लिए बनाया जाता है जगती (Jagati)


जहाँ बहुत सारे रीति-रिवाज किए जाते हैं।
• यह बैठने और प्रार्थना करने हेतु निर्मि त एक उठा हुआ
प्लेटफ़ॉर्म होता है जो उत्तर भारतीय मंदिरों में आमतौर पर
मिलता है।
मंडप (Mandapa)

• यह मंदिर का मुख्य द्वार होता है।


मध्यकाल के दौरान मंदिर वास्तुकला की विभिन्न
• यह स्तंभों (जिसमें एक निश्चित अंतराल पर अनेक
शैलियाँ (Various Schools of Temple
स्तंभ लगे रहते हैं) से निर्मि त हॉल होता है जिसमें अनेक
Architecture During Medieval Period)
श्रद्धालु ओ ं के बैठने की व्यवस्था होती है।
मंदिर वास्तुकला की ओडिशा शैली (Odisha School of
• कुछ मंदिरों में विविध आकार के एक से अधिक मंडप Temple Architecture)
(जैसे अर्द्धमंडप, मंडप तथा महा मंडप) होते हैं।
• ओडिशा के मंदिरों की प्रमुख वास्तुकला तत्व के तीन
क्रम हैं अर्थात रेखापीड, पीढ़ादेउल और खाकरा। अधिकांश
शिखर अथवा विमान (Shikhara or Vimana) प्रमुख मंदिर स्थल प्राचीन कलिंग (वर्तमान का पुरी
जिला जिसमें भुवनेश्वर भी शामिल है अथवा प्राचीन
• ये किसी पर्वत पर स्थित मुक्त रूप से खड़े एक मंदिर के त्रिभुवनेश्वर) तथा कोणार्क में पाए जाते हैं।
शिखर की भांति दिखाई देते हैं।
• ओडिशा के मंदिर, मंदिर-वास्तुकला की नागर शैली में
• उत्तर भारत के मंदिरों में शिखर जबकि दक्षिण भारत के अलग उपप्रकार का प्रतिनिधित्व करते हैं। सामान्यत:
मंदिरों में विमान पाया जाता है। यहाँ शिखर (जिन्हें ओडिशा में देउल के नाम से जाना
• शिखर एक वक्राकार ढांचा होता है जबकि विमान एक जाता है) लगभग चोटी तक लं बवत रहते हैं तथा उसके
पिरामिडीय ढांचा होता है। बाद नाटकीय रूप से भीतर की ओर वक्रता प्राप्त कर ले ते
हैं। आमतौर पर, देउल से पहले मंडप बना होता है जिसे
ओडिशा में जगमोहन कहते हैं।
वाहन (Vahana) • ओडिशा के प्रमुख मंदिरों की धरातलीय योजना सदैव
लगभग वर्गाकार रहती है, किंतु मुकुटीय मस्तक इसकी
• यह मंदिर के मुख्य देवता का वाहन होता है जिसे मानक
अटारी के ऊपरी भागों में गोलाकार बन जाता है। यह एक
स्तंभ अथवा ध्वज (जिसे गर्भगृह से पहले स्थापित किया
आवर्त का निर्माण करता है जो कि दिखने में लगभग
गया होता है) सहित बनाया जाता है।
बेलनाकार रहता है।

• जटिल नक्काशी वाली बाहरी दीवारें तथा अनलं कृत


आमलक (Amalaka) भीतरी दीवारें इस शैली की महत्वपूर्ण विशेषता है।

• नौवीं सदी के मध्य तक आते-आते, मूर्ति कला की एक


• यह एक पत्थर की चक्रिका जैसी चीज होती है जो उत्तर
शैली ओडिशा में उभर चुकी थी जो अन्य बातों
भारतीय शैली में निर्मि त शिखर के सर्वोच्च बिं दु पर स्थित
के साथ-साथ महिलाओ ं के सुदंर प्रारूपों पर गर्व करती
होती है।
है। दीवारों के मुख पर सुंदर महिलाओ ं की अनेक मूर्ति याँ
बनी हुई हैं।

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• ओडिशा के मंदिरों में युवा एवं आकर्षक महिलाओ ं की की अपेक्षा मूर्ति कला के उत्कृष्ट नमूने कहे जा सकते हैं।
मूर्ति यों (जिनके चेहरे पर एक कामुक मुस्कान है और दिलवाड़ा मंदिर की छत जटिल मूर्ति कला नक्काशी के
उनके सुंदर केशों में आभूषण जड़े हैं) के ऐसे अनेक मामले में एक कलात्मक कार्य है।
उदाहरण पाए जा सकते हैं और इन्हें नायिकाओ ं के नाम
• पश्चिम भारत के गुजरात की संगमरमर मूर्ति कला पद्धति
से जाना जाता है।
की नक्काशीदार मूर्ति या माउं ट आबू, पालीताना तथा
• निचले सीधे भाग को “बाड़ा” (“Bada”) कहा जाता है। गिरनार के जैन मंदिरों में बड़ी संख्या में देखी जा सकती
बीच में बना लं बा भाग “छपरा” (“Chapra”) कहलाता है हैं चतुर्भुज विष्णु (हिं दू धर्म में पालन करने वाले भगवान)
जिसके ऊपर एक सपाट धारीदार चक्रिका होती है जिसे की सुन्दर सुन्दर मूर्ति याँ 13वीं शताब्दी में बनाई गई थी।
“अमला” (“Amla”) कहा जाता है। शिखर को “देउल” कहा
• उदाहरण- मोढे रा का सूर्य मंदिर, माउं ट आबू का दिलवाड़ा
जाता है।
मंदिर, माउं ट आबू का बेमाला मंदिर
• मंडप को “जगमोहन” कहा जाता है।

• कोणार्क का सुप्रसिद्ध मंदिर नरसिं हवर्मन द्वारा 12वीं


शताब्दी के मध्य में बनाया गया था और सूर्य देवता को
समर्पि त है। इसे एक विशाल पाषाण रथ के रूप में बनाया
गया है जिसके बड़े-बड़े पहिये हैं और जिसे सात घोड़ों द्वारा
खींचा जा रहा है।

• इसके अधिष्ठातृ देवता (presiding deity) सूर्य भगवान


को यहाँ पारंपरिक उत्तर भारत शैली में प्रदर्शि त किया
गया है जो जूते, जंजीर का कवच पहना है और जो दोनों
हाथों में एक कमल लिए हैं। वह एक रथ की सवारी कर
रहे हैं जिसे सात घोड़े खींच रहे हैं।

चित्र 3.8: सूर्य मंदिर, मोढे रा

चित्र 3.7 : मुक्ते श्वर मंदिर, भुवनेश्वर

• उड़ीसा शैली के प्रमुख मंदिर हैं- लिंगराज मंदिर


(भुवनेश्वर), जगन्नाथ मंदिर (पुरीं), वैताल देउल मंदिर
(भुवनेश्वर), राजरानी मंदिर (भुवनेश्वर), परशुरामेश्वर
मंदिर (भुवनेश्वर), ब्र्म्हेश्वर मंदिर, कोणार्क का सूर्य मंदिर।

सोलं की शैली (Solanki School)

• पश्चिमी भारत और राजस्थान में मूर्ति याँ बेहद अलं कृत थी


जिसमें माउं ट आबू स्थित जैन दिलवाड़ा मंदिर पत्थर से
निर्मि त शानदार वास्तुकला की परिपूर्णता लिए हुए है।
इसे सोलं की शासकों ने बनाया था।

• माउं ट आबू के दिलवाड़ा मंदिर जैन परंपरा की पश्चिमी


शैली के शानदार उदाहरण हैं। वे वास्तुकला स्मारकों चित्र 3.9: दिलवाड़ा मंदिर के भीतर का दृश्य, माउं ट आबू

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वास्तुकला की पाल शैली (Pala school of
Architecture)

• 9वीं से 11वीं शताब्दी के बीच बंगाल (बांग्लादेश सहित)


तथा बिहार क्षेत्र में मूर्ति कला की शैली को पाल शैली
(जिसे उस समय के शासक राजवंश के चलते यह नाम
मिला) के रूप में मान्यता दी जाती है जबकि 11वीं शताब्दी
के मध्य से 13वीं शताब्दी के मध्य के बीच रही वास्तुकला
शैली का नामकरण सेन राजाओ ं के नाम पर किया जाता
है।

• जहाँ पाल शासकों को अनेक बौद्ध मठों के संरक्षक के


रूप में जाना जाता है वहीं इस क्षेत्र में निर्मि त मंदिर वंगा
शैली में बने हैं। बर्दवान जिले के बराकर में स्थित 9वीं चित्र 3.10: विरुपाक्ष मंदिर, पट्टदकल
शताब्दी का सिद्धेश्वर मंदिर आरंभिक पाल शैली मंदिर
का एक उदाहरण है जिसमें एक लं बा वक्राकार शिखर है
जिसके ऊपर एक बड़ा आमलक सुशोभित है।

• यह एक समसामयिक ओडिशा मंदिर जैसा है। समय के


साथ-साथ यह साधारण स्वरूप उत्कृष्ट होता चला गया।
नौवीं से बाहरवीं सदी के बीच के अनेक मंदिर पुरुलिया
जिले में पाए गए हैं। जब इस इलाके में बाँध निर्मि त हुए,
तब ये जलमग्न हो गए।

चालुक्य शैली (Chalukyas School)

• मंदिर निर्माण की आर्य शैली और द्रविड शैली का समन्वय


चालु क्य स्थापत्य कला में दृष्टीगोचर होता है। आरंभिक
चित्र 3.11: रावण पहाड़ी गुफा, ऐहोल
चालु क्य गतिविधि में शैलकृत गुफाएं शामिल हैं तथा बाद
की गतिविधि में ढांचागत मंदिर आते हैं। चालु क्यों द्वारा
निर्मि त कुछ श्रेष्ठ मंदिरों में बादामी और एहोल में विष्णु
राष्ट्रकूट (Rashtrakutas)
मंदिर तथा पट्टडकल में संगमेश्वर और विरूपाक्ष शिव
मंदिर आते हैं। गुफा मंदिरों (मुख्यत: वे जो बादामी में हैं) में • राष्ट्रकूटों ने एलोरा स्थित अपने कैलाश मंदिर (जो कि एक
विष्णु की बढ़िया मूर्ति याँ हैं। एकाश्म शैलकृत वास्तुकला है) के रूप में मध्यकालीन
• चालु क्य स्थापत्य में चट्टानों को काटकर मंदिरों का भारतीय कला के महानतम आश्चर्य को आकार दिया।
निर्माण हुआ। चालु क्य कला का आरंभिक उदाहरण है इस मंदिर की बेबाक एवं शानदार नक्काशी लं बी तथा
एहोल की रावण फाड़ी गुफा जो अपनी अलग मूर्ति कला शक्तिशाली ढं ग से निर्मि त मूर्ति यों की राष्ट्रकूट शैली को
शैली के लिए जानी जाती है। इस स्थल पर नटराज की प्रदर्शि त करती है जो आध्यात्मिक एवं भौतिक संतुलन
मूर्ति सर्वाधिक विशेष मूर्ति यों में एक है जिसके चारों ओर को प्रतिबिं बित करती हैं।
मानव के आकार से भी बड़ी सप्तमातृकाओ ं का चित्रण • एलोरा की राष्ट्रकूट अवधि के दौरान बनी मूर्ति याँ
(तीन शिव के बायीं ओर तथा चार उनके दायीं ओर) है। समकालीन क्षेत्रीय शैलियों से जटिल एवं भिन्न हैं। ये
एहोल को मंदिरों का नगर कहा जाता है। मूर्ति याँ प्राय: मानव आकार से बड़ी हैं जिनमें अभूतपूर्व
• चालु क्य मूर्ति याँ अपने छरहरे शरीर, सुडौल लं बे, अंडाकार भव्यता तथा सर्वाधिक वर्चस्वपूर्ण उर्जा भरी हुई है। इसका
चेहरों के चलते अलग दिखाई पड़ती हैं; वे समकालीन एक उदाहरण है- कैलाश मंदिर का नंदी तीर्थस्थान।
पश्चिमी दक्कन अथवा वाकाटक शैलियों से भिन्न हैं। • एलोरा की एक अन्य शानदार मूर्ति में रावण को कैलाश
पर्वत हिलाते हुए दिखाया गया है। इस अद्भुत दृश्य में,
पर्वत की कंपन को महसूस किया जा सकता है तथा
पार्वती को अत्यंत क्रु द्ध एवं शिव की ओर मुड़कर डर से
उनका हाथ पकड़ते हुए दिखाया गया है।

• एलिफेंटा गुफा तीर्थस्थान जिसमें प्रसिद्ध महेशमूर्ति (तीन

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मुखों वाला शिव) शामिल है, भी एक अन्य महान राष्ट्रकूट ओर होने वाले संक्रमण को दर्शाती है।
स्मारक का उदाहरण है।
• कुछ बेहतरीन मूर्ति याँ जिन्हें उनका संरक्षण प्राप्त हुआ,
वे हैं- महिषासुरमर्दि नी, गिरी गोवर्धन पैनल, त्रिविक्रम
विष्णु, अर्जुन की तपस्या अथवा गंगा का अवतरण,
गजलक्ष्मी एवं अनंतसयनम।

पल्लव वास्तुकला की चार प्रमुख शैलियाँ हैं (Four Major


School of Pallava Architectures)

• महेंद्र वर्मन शैली

• नरसिं ह वर्मन शैली

• राजसिं ह शैली एवं

• अपराजित शैली।
चित्र 3.12 : रावण कैलाश पर्वत को हिलाते हुए

पल्लव वास्तुकला के विकास के तीन चरण निम्नलिखित हैं


(The Three Stages of Pallava Architectures are)

• दरी मंदिर (त्रिचनापल्ली),

• रथ मंदिर (महाबलिपुरम) एवं

• शोर मंदिर (महाबलिपुरम)

1. शैलकृत मंदिर (Rock-Cut Temples): इसे महेंद्रवर्मन


शैली (600-630 शताब्दी) भी कहा जाता है। मंदिरों को
चट्टान काट कर बनाया गया था, अत: उन्हें शैलकृत मंदिर
कहा जाता है।

चूँकि किसी अन्य निर्माण सामग्री का प्रयोग नहीं किया


गया, अत: यह वास्तव में वास्तुकला के क्षेत्र में एक
आविष्कार के समान था। स्तंभों को इस प्रकार काटा गया
है कि वे शेरों के सिर पर खड़े प्रतीत होते हैं। महेंद्रवर्मन
शैलकृत मंदिर तमिलनाडु में देखे जा सकते हैं। इनमें
सर्वाधिक महत्वपूर्ण हैं- मामंदर
ु , पल्लवरम, वल्लम तथा
थलावनूर।

2. अखंड रथ एवं मुर्तिनुमा मंडप (Monolithic Rathas


चित्र 3.13: एलिफेंटा में महेशमूर्ति and Sculptural Mandapas): इसे वास्तुकला की
माम्मल शैली भी कहा जाता है क्योंकि पल्लव नरेश
नरसिं हवर्मन को माम्मल के नाम से भी जाना जाता था।
पल्लव (तीसरी से नौवीं शताब्दी) (Pallavas) माम्मलपुरम के बंदरगाह शहर को कला एवं वास्तुकला
के एक सुंदर शहर में तब्दील किया गया था।
• पल्लव राजाओ ं जिन्होंने अपने पीछे शानदार मूर्ति याँ और
माम्मलपुरम के एकाश्म रथों को वर्तमान में पंच पांडव
मंदिर छोड़े हैं, ने मध्यकालीन दक्षिण भारतीय वास्तुकला
रथों के नाम से जाना जाता है। एकाश्म से अर्थ है कि
की नींव रखने की शुरुआत की। कांची के पल्लव
प्रत्येक रथ को एकल चट्टान से काट कर बनाया गया है।
शासकों के अंतर्गत, एक महत्वपूर्ण कलात्मक आंदोलन
इन रथों में पांच अलग-अलग प्रकार की मंदिर वास्तुकला
फला-फूला और उन्हें महाबलीपुरम में एकाश्म पैगोड़ा
को दर्शाया गया है। प्रत्येक मंडप को एकल चट्टान से काट
(जिन्हें रथ कहा जाता है) के निर्माण का श्रेय दिया जाता
कर बनाया गया था। महिषासुरमर्दि नी मंडप में, देवी दुर्गा
है। महाबलीपुरम में, उत्खनित स्तंभ हॉल और एकाश्म
द्वारा महिषासुर पर आक्रमण करने के दृश्य को देखा जा
तीर्थस्थान हैं जिन्हें रथों के नाम से जाना जाता है। पल्लव
सकता है।
वास्तुकला शैलकृत मंदिरों से पत्थर निर्मि त मंदिरों की

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3. ढांचागत मंदिर (Structural Temples): इन्हें राजसिं ह प्राप्त की है जो उनकी मूर्ति यों की मनोहरी रेखाओ ं, उनकी
शैली एवं नंदीवर्मन शैली में वर्गीकृत किया जा सकता नियत मुद्राओ ं, प्रसन्नचित चेहरों, मृदु अलं करण तथा
है। आरंभिक पल्लव ढांचागत मंदिरों में कांचीपुरम स्थित ताजगी से समझ में आती है। ये सब चीजें इनके आकर्षक
कैलाशनाथ मंदिर तथा माम्मलपुरम स्थित शोरे मंदिर होने में योगदान देती हैं।
को रखा जा सकता है। इन मंदिरों को बालु का पत्थरों
• गजसूरसंहारमूर्ति ग्यारवीं सदी की चोल शिल्पकारिता
का प्रयोग कर बनाया गया था। इस मंदिर को पल्लव
का एक अनुपम उदाहरण है। यह हाथी रुपी राक्षस को
वास्तुकला का मुकुट भी कहा जाता है। इस मंदिर को
मारने के पश्चात क्रु द्ध हुए भगवान के ओजपूर्ण नृत्य को
राजसिं हवर्मन भी कहा जाता है। माम्मलपुरम स्थित शोरे
दर्शाती है। चोल मंदिरों में पत्थर और धातु की मूर्ति याँ बड़ी
मंदिर भी अनेकों मूर्ति यों से भरा पड़ा है। बाद में नंदीवर्मन
मात्रा में पाई जाती हैं। ये चोल शासनकाल के सामाजिक-
ने कांचीपुरम में वायकुंड पेरूमल मंदिर का निर्माण
धार्मि क विचारों को प्रकट करती हैं। नटराज की मूर्ति न
करवाया था।
केवल अपने सौंदर्य के लिए अपितु अपने आध्यात्मिक
अर्थ के लिए भी विश्व प्रसिद्ध है।

चित्र 3.14: महाबलीपुरम में पंचरथ

चित्र 3.16: गंगईकोण्डचोलपुरम मंदिर

• पत्थरों को काट-छाटकर एवं तराशकर इसे मात्र एक ही


• चोलकालीन स्‍थापत्‍य कला के प्रमुख मंदिर है- तंजौर,
पत्थर में बिना किसी जोड़ आदि के स्थापत्य का निर्माण
गंगईकोण्‍डचोलपुरम और कांची की नगर निर्माण
एकारम स्थापत्य कला कहा जाता है।
कला, नारट्टामलई का विजयालय चोले श्‍वर का मंदिर,
त्रिचनापल्‍ली जिले में कोरंगनाथ का मंदिर, तंजौर
का वृहदेश्‍वर का मंदिर, गंगईकोण्‍डचोलपुरम का
मंदिर दारासुरम का एरावतेश्‍वर मंदिर, त्रिभुवनम् का
त्रिभुवनेश्‍वर मंदिर।

चित्र 3.15: अर्जुन की तपस्या

चोल (Cholas)

• पल्लव राजवंश के बाद चोलों ने उनका स्थान


लिया और नौवीं शताब्दी से 13वीं शताब्दी के दौरान
गंगईकोण्डचोलपुरम, तंजावुर कांची तथा दारासुरम
में महान मंदिर बनवाए जो कि उनकी कला के मूल
कोषागार हैं। उन्होंने द्रविड शैली विकसित की।

• तंजावुर का बृहदेश्वर मंदिर जो कि चोल मंदिरों में सबसे


परिपक्व एवं राजसी है, ने एक नए स्तर की परिपक्वता चित्र 3.17: बृहदेश्वर मंदिर, तंजावुर

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होयसल (Hoysalas)

• होयसल एक दक्षिण भारतीय राजवंश था जो कि 12वीं


शताब्दी के आसपास मैसूर क्षेत्र में उभरा। उन्होंने हेलबिड
तथा बेलूर में मंदिरों को डिज़ाइन किया जो पाषाण में
किए गए फीताबंदी (ले सवर्क ) कार्य की भांति प्रतीत होते
हैं। ये अधिकांश मूर्ति याँ सेलखड़ी पत्थर से बनाई गई हैं
जिससे कलाकार को जटिल नक्काशी करने का मौका
मिला है। मंदिर की योजना तारककार थी। मंदिर की
दीवारें टे ढ़े-मेढ़े डिज़ाइन में बनी हैं। छत पर मंदाकिनी की
मूर्ति बनी है।

• इस प्रकार के कार्य को मंदिर दीवार पर बने देवता के


अलं करणों में देखा जा सकता है। अलं करण जटिल है
जिसमें मानव शरीर की गतिविधि एवं सौम्यता की बजाए
अलं करण पर ही ध्यान दिया गया है। होयसल मूर्ति याँ
नाटी और छोटी हैं, काफी सजावटी हैं अथवा अत्यधिक
अलं करण युक्त हैं। किंतु वे देखने में सुंदर हैं। उदाहरण-
बेलूर का केशव मंदिर, हैलेबिडु का होयसले श्वर मंदिर
तथा नटराज की मूर्ति ।

चित्र 3.18: नटराज की कांस्य मूर्ति

नटराज की विशेषताएं (Features of Nataraj)

• देवता: नटराजन हिं दू देवता शिव के ब्रह्माण्डीय नृतक के


रूप का प्रतिनिधित्व करता है। वह क्षीण होते ब्रह्माण्ड को
नष्ट करने और भगवान ब्रह्मा को सृष्टि के सृजन की
प्रक्रिया शुरू करने के लिए तैयार करने हेतु दिव्य नृत्य
करते हैं। चित्र 3.19: बेलूर स्थित केशव मंदिर

• “ब्रह्माण्डीय नृतक के रूप में भगवान” की मूर्ति


तमिलनाडु के चिदंबरम मंदिर में रखी है।
विजयनगर (Vijayanagar)
• वे अग्नि-ज्वाला के वृत्ताकार भाग के भीतर नृत्य करते
हैं। • विजयनगर दक्षिण भारत का अंतिम महान हिं दू साम्राज्य
था। विजयनगर साम्राज्य के दौरान कांचीपुरम, हम्पी तथा
• चारों ओर की ज्वाला सुबोध ब्रह्माण्ड का प्रतीक हैं।
अन्य स्थानों पर अनेकों सुंदर मंदिरों की स्थापना की गई
• उनकी कमर के चारों ओर एक सर्प लिपटा है तथा उनके थी।
चार हाथ दर्शाए गए हैं।
• विजयनगर सम्राटों ने मूर्ति कारों से अपनी शानदार
• उनके ऊपरी बाएं हाथ में अग्नि है जो विनाश का मूर्ति याँ बनवाई ताकि उन्हें अपने प्रिय देवताओ ं के बगल
प्रतिनिधित्व करती है। में रख कर अमरत्व को प्राप्त किया जा सके।
• दूसरा बायाँ हाथ जो उठे हुए पैर की ओर संकेत कर रहा है, • ऐसा ही एक शानदार उदाहरण चिदंबरम के गोपुरम में
उत्थान और मुक्ति का प्रतीक है। लगी कृष्णदेवराय की मूर्ति में देखा जा सकता है। इस
• ऊपरी दायें हाथ में डमरू है। अवधि के दौरान अपने विवरणात्मक रूपों में रामायण
और कृष्ण बाल लीला पसंदीदा विषय बन गए।
• दूसरा दायाँ हाथ अभय मुद्रा में है।
• इनकी मंदिर संरचना में विशाल गोपुरम हैं जिन्हें “राया
• अपस्मार एक बौना राक्षस है जिस पर नटराज नृत्य करते
गोपुरम” कहा जाता है। इसके साथ देवी-देवताओ ं के
हैं।
विवाह कराने हेतु एक कल्याण मंडप को भी जोड़ा गया।
• नटराज तांडव करते हैं जो कि ब्रह्माण्ड के निर्माण, पोषण वास्तुकला के मामले में, विजयनगर सदियों पुरानी
और समाप्ति के लिए है। द्रविड़ मंदिर वास्तुकला तथा पडोसी सल्तनतों में प्रदर्शि त

37
इस्लामिक शैलियों को मिश्रित करता है। आवश्यक रूप
से चोल आदर्शों से प्रेरित होने तथा उन्हें पुनर्जीवित करने
के सजग प्रयास के बावजूद ये मूर्ति याँ कुछ मौकों पर
विदेशियों की उपस्थिति को भी प्रकट करती हैं।

• वसंत मंडप श्रद्धालु ओ ं के एकत्र होने के लिए जोड़ा गया


था और ले पाक्षी में एक नृत्य हॉल जोड़ा गया।

• इस स्थल को यूनेस्कों द्वारा एक विश्व विरासत स्थल


घोषित किया गया है।

• उदाहरण– हम्पी का हजारा राम मंदिर, हम्पी का विरूपाक्ष


मंदिर, ले पाक्षी का वीरभद्रेश्वर मंदिर।
चित्र 3.22: विट्ठल मंदिर परिसर में पाषाण रथ

चित्र 3.20: हम्पी का हजारा राम मंदिर

चित्र 3.21: हम्पी स्थित विरूपाक्ष मंदिर चित्र 3.23: ले पाक्षी मंदिर स्थित एकाश्म नंदी प्रतिमा

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अध्याय - 4

मध्यकालीन और आधुनिक भारतीय वास्तुकला


(MEDIEVAL AND MODERN INDIAN ARCHITECTURE)

मध्यकालीन भारत में वास्तुकला (Architecture » भवन परिसर में पानी के पूल का उपयोग सजावटी,
in Medieval India) शीतलन और धार्मि क उद्देश्यों के लिए किया गया था।

इं डो-इस्लामिक शैली (Indo-Islamic Style) » चौकोर (मोज़ेक डिज़ाइन) और कठोर चट्टान (पत्थर)
तकनीक का उपयोग सतह की सजावट के लिए किया
• इं डो-इस्लामिक वास्तुकला में विभिन्न पृष्ठभूमि की
गया था, विशेषकर दीवार के उभरे हुए फलको में।
शैलियों की एक विस्तृत श्रृंखला शामिल है, जिसने 7 वीं
शताब्दी के आसपास भारतीय उपमहाद्वीप में इस्लाम • गुलाम वंश की प्रारंभिक इमारतों में वास्तविक इस्लामी
के आगमन से भारतीय उपमहाद्वीप की वास्तुकला भवन शैलियों को नियोजित नहीं किया था और इसमें
को आकार देने में मदद की। इसने आधुनिक भारतीय, कृत्रिम तरीके से गुंबद और मेहराब बनाये गये थे।
पाकिस्तानी और बांग्लादेशी वास्तुकला पर प्रभाव छोड़ा
• बाद में, वास्तविक तरीके से मेहराब और गुंबदों की
है। दोनों धर्मनिरपेक्ष और धार्मि क भवन इं डो-इस्लामिक
शुरूआत दिखाई देने लगती है, जिसका सबसे पहला
वास्तुकला से प्रभावित हैं जो भारतीय, फारसी, अरब और
उदाहरण कुतुब मीनार के किनारे अलाई दरवाजा है।
तुर्की को प्रदर्शि त करते हैं।
• कब्र वास्तुकला भी इस्लामी वास्तुकला की एक और
• हिं दु-मुस्लिम (इं डो-इस्लामिक) वास्तुकला की
विशेषता है इसमें मृतकों को दफनाने की प्रथा को
महत्वपूर्ण विशेषताएं (Important Features of
अपनाया जाता है।
Indo-Islamic Architecture)
• उदाहरण: कुतुबमीनार, अलाई दरवाजा
» इस्लामी वास्तुकला में मुख्य तत्व थे- गुम्‍बद, ऊँची-ऊँची भारतीय वास्तुकला (ट्रै बीट शैली) इस्लामिक आर्किटे क्चर (आर्कटिक शैली)

मीनारें, मेहराब और मेहराबी डाटदार छतें। इस्‍लामी शैली सरदल मेहराब


प्रवेश
की अन्‍य विशेषताएँ थीं- कठोरता, सादगी और सामग्री के
उपयोग में मितव्‍ययिता और क्रमबद्ध निर्माण। पारंपरिक शिखर गुंबद

भारतीय इमारत शैली में स्तंभ, बीम और लिंटल्स ऊपर

का उपयोग देखने को मिलता हैं| भारतीय शिल्‍पकार


अलं करण, सजधज और श्रंगार पर विशेष बल देते थे। मीनारें अनुपस्थित वर्तमान

उपयोग की गई ईंट चूना और मोर्टार मोर्टार


» भारत में अत्‍यन्‍त सजीव एवं सुदृढ़ स्‍थापत्‍य शैली प्रचालित सामग्री
पत्थर
(प्रथम सीमेंट एजेंट)

थी। अतएव इस्‍लामी शैली पर भारतीय शैली का प्रभाव


पढ़ना स्‍वाभाविक था।
• स्थापत्य के इस्लामी प्रतिमान और विचार हिं दु सामग्री
» मुस्लिम शासकों का स्‍थापत्‍य कार्य में भारतीय से निर्मि त होकर नए रूप में प्रकट हुए, जिसकी प्रमुख
शिल्‍पकारों का सहयोग ले ने की विवशता, सामग्री चयन विशेषताएं थीं- गुम्बदों का प्रयोग, ऊँची मीनारें, मेहराब
में मन्दिरों के ध्‍वंसावशेषों के उपयोग ने भी इस्‍लामी और तहखाने।
स्‍थापत्‍य पर भारतीय प्रभाव डाला।
• मध्ययुगीन वास्तुकला को मोटे तौर पर दो चरणों में
» गारा एक सीमेंट एजेंट है जो उनके निर्माण में उपयोग वर्गीकृत किया जा सकता है - दिल्ली सल्तनत और
किया जाता है। मुगल काल ।
» निर्माण में प्राकृतिक वस्तुओ ं को शामिल किया गया था।
जानवरों और मनुष्यों की मूर्ति यों से परहेज किया गया।

» सुलेख की कला का इस्तेमाल अरबी तकनीक के दिल्ली सल्तनत (Delhi Sultanate)


साथ सजावट के लिए किया गया था जिसमें ज्यामितीय
दिल्ली सल्तनत वास्तुकला की सामान्य विशेषताएं :
अलं करण का उपयोग शामिल था। इसके अलावा,
(General Features of Delhi Sultanate
सजावट एक सममित रूप से व्यवस्थित की गई थी।
Architecture)
» जाली काम, संरचनाओ ं में प्रकाश के आगमन की एक
सुविधा। • वास्तुकला को मोटे तौर पर लौकिक (धर्मनिरपेक्ष)
इमारतों और धार्मि क इमारतों में वर्गीकृत किया जा

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सकता है। धर्मनिरपेक्ष इमारतों में किलों, महलों, स्तंभों,
सरायो और हौज़ (कृत्रिम झील) शामिल हैं जबकि
धार्मि क संरचनाओ ं में मस्जिद, मकबरे, दरगाह और
मदरसे शामिल हैं

• समामेलन (Amalgamation): सुल्तानों ने स्वतंत्र


रूप से भारतीय वास्तुकार, राजमिस्त्री और श्रमिकों को
रोजगार दिया। उन्होंने मध्य एशियाई वास्तुकला के
विचारों को भी पेश किया। इसने सल्तनत वास्तुकला
और इस्लामी और भारतीय शैली का समामेलन किया।

• पिछली संरचनाओ ं को नष्ट करने और उनसे कच्चे माल


का उपयोग करके अधिकांश प्रारंभिक इमारतें बनाई गईं।
कहा जाता है कि दिल्ली में कुवत-उल-इस्लाम मस्जिद
कुतुब-उद-दीन ऐबक द्वारा एक हिं दू मंदिर को ध्वस्त चित्र 4.2: आर्कु आट स्टाइल
करके बनाया गया था, जिसे जैन मंदिर के ऊपर बनाया
गया था। इसी तरह, अजमेर में एक मस्जिद 'अढाई-दीन-
का झोपडा', दो दिनों में बना जो एक हिं दू इमारत के
• प्रतीक और प्रतिरूप (Symbols and Patterns) स्वदेशी
अवशेष पर बनाया गया था।
संरचनाओ ं ने इमारतों को सजाने के लिए प्राकृतिक
• सल्तनत शासकों द्वारा मेहराब और मीनारों को पेश रूपांकनों और मानवजनित रूपों का उपयोग किया,
किया गया था (Arches (Mehrab), Domes and जबकि सल्तनत शैली ने जीवित प्राणियों की मूर्ति यों
Minarets were Introduced by Sultanate के प्रतिनिधित्व से परहेज किया और अरबी, ज्यामितीय
Rulers): पिछली स्वदेशी वास्तुकला बीम और कोष्ठक डिजाइन और पुष्प पैटर्न का इस्तेमाल किया।
पर आधारित थी जिसे 'ट्रै बेटेड' शैली कहा जाता था।
• सल्तनत काल के दौरान लाल, हल्के काले , पीले
दूसरी ओर, इस्लामी वास्तुकला 'आर्किट(धनुषाकार)'
और सफेद पत्थर जैसे कई प्रकार के रंगीन पत्थरों का
थी जिसने रिक्त स्थान को पाटने के लिए मेहराबों और
इस्तेमाल किया गया था। इमारतों को मजबूत बनाने के
वाल्टों (मेहराबी छत/फर्श) का उपयोग किया था और
लिए पत्थर की बहुत अच्छी गुणवत्ता का उपयोग किया
सपाट छतों के बजाय सुंदर गुंबदों के निर्माण का समर्थन
गया था। अन्य हिस्सों में चूने के गारे का उपयोग महत्वपूर्ण
किया था।
सामग्री के रूप में किया गया था।

सम्बन्धित राजवंशों के महत्वपूर्ण स्मारक (Important


Monuments of Respective Dynasties)

गुलाम वंश (Slave Dynasty)

• गुलाम वंश सल्तनत काल का पहला राजवंश था। उनके


द्वारा बनाई गई प्रारंभिक इमारतों में वास्तविक इस्लामी
विशेषताएं नहीं थीं। उनके मेहराब और गुंबद योजना ठीक
नहीं थी।
चित्र 4.1: 'ट्बेरेड' शैली • कुवत उल इस्लाम मस्जिद (महरौली), दिल्ली और
अजमेर मे अढाई दिन का झोपड़ा मस्जिद में हिं दू और
मुस्लिम कला का प्रभाव हैं।

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चित्र 4.3: कुव्वत उल इस्लाम मस्जिद

कुतुब मीनार (Qutub Minar)

• यह संभवतः सल्तनत काल की सबसे महत्वपूर्ण संरचना


है। इसे सूफी संत कुतुब-उद दीन बख्तियार काकी के
सम्मान में बनाया गया था।

• संरक्षक (Patron): निर्माण कुतुब उद दीन ऐबक


द्वारा शुरू किया गया था, शीर्ष मंजिल के बिजली द्वारा
नष्ट होने के बाद अगली तीन मंजिल इल्तुतमिश द्वारा
बनवायी गयी थी और अंतिम दो मंजिलों का पुनर्निर्माण
फिरोज शाह तुगलक द्वारा किया गया था।

• आकार (Size): मीनार 73 मी ऊँची है और 5 मंजिला है।


उनके पास सुद
ं र ज्यामितीय और अरबी डिजाइन उपस्थित हैं

• प्रत्येक मंजिल पर बालकनियों को फूलों और ज्यामितीय


चित्र 4.4: क़ुतुब मीनार, नई दिल्ली
डिजाइनों के साथ जटिल रूप से उकेरा गया है। वे भी इस
तरह से डिज़ाइन किए गए हैं जैसे कि वे अगली मंजिल
को पकडे हुए हों। खिलजी वंश (Khilji Dynasty)
• सामग्री (Material): पहले तीन मंजिला का निर्माण
लाल बलु आ पत्थर से हुआ है और अंतिम दो संगमरमर से • इस समय तक दिल्ली सल्तनत की स्थापना हो चुकी

बने हैं। मीनार की पूरी योजना, उसकी रचना और सजावट थी और उसकी आर्थि क स्थिति बहुत अच्छी थी। उनकी

अर्थात् लगभग हर बात पर इस्‍लामिक प्रभाव है। इमारतों का निर्माण एक आदर्श इस्लामी दृष्टिकोण के
साथ किया गया था।
• बलबन का मकबरा (Balban’s Tomb): बलबन ने
अपना मकबरा बनाया जिसे पहला वास्तविक मेहराब • अलाउददीन खिलजी (Alauddin Khilji): उसने सिरी

माना जाता है। गुलाम वंश के समय की अन्‍य प्रमुख (दिल्ली में) नामक नया शहर बनाया और जमात खाना

इमारते है- नासिरूद्दीन की स्‍मृति में सुल्‍तानगढी का मस्जिद का निर्माण करवाया। उन्होंने अलाई दरवाजा भी

मकबरा, इल्‍तुतमिश का मकबरा, बदायूं की जामा बनवाया। अलाई दरवाजा, जमात खाना मस्जिद का प्रवेश

मस्जिद, नागौर का आतरकान का दरवाजा, हौज-ए- द्वार है। यह पहला वैज्ञानिक गुंबद है। इमारत में घोड़े की

शम्‍सी, शम्‍सी ईदगाह आदि। नाल का उपयोग किया गया था।

• अलाई दरवाजा की कुछ महत्वपूर्ण विशेषताएं (Some


Important Features of Alai Darwaja): इसमें एक
गुंबददार प्रवेश द्वार है जो सफेद संगमरमर और लाल
बलु आ पत्थर से बना है। यहा दोनों में नक्काशी हुई है

• पुष्प और ज्यामितीय डिजाइन के साथ सफेद संगमरमर

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और लाल बलु आ पत्थर, एक आश्चर्यजनक विचित्र
प्रभाव बनाते हैं। प्रवेश द्वारों के दोनों किनारों पर लगी
हुई खिड़कियों में जालीदार खिड़की के परदे (जाली) हैं। ये
संगमरमर सतह सुलेख अलं करण की ऊर्ध्वाधर रेखाओ ं
की एकरसता को समाप्त करती हैं।

• अलाउद्दीन ने दिल्ली में हौज खास का निर्माण करवाया।


हौज का अर्थ होता है एक कृत्रिम झील। खिलजी के समय
में यह शहर के लिए पानी का मुख्य स्रोत था। यह अभी भी
एक बहुत प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है।

• जमाअत खाना मस्जिद सबसे पुरानी मस्जिद है जिसे


चित्र 4.6: दौलाताबाद किला
अभी भी इस्तेमाल किया जा रहा है और यह उसी परिसर
में है जहां निजामउददीन औलिया की दरगाह है।

लोदी वंश (Lodhi Dynasty)

• लोदी का कार्यकाल काफी सुरक्षित था, इसलिए वे


वास्तुकला विकसित करने में सक्षम थे।

• महत्वपूर्ण विशेषताएं (Important Features):

» इमारतों को उनके चारों ओर बगीचों के साथ एक उभरे


हुए मंच पर बनाया गया था: यह स्वर्ग के विषय (थीम)
की नकल करने के लिए बनाया गया था, बाद में, मुगलों
ने अपनी इमारतों में इसी अवधारणा का उपयोग किया।

» कब्रों को अष्टकोणीय आकार में बनाया गया था। इस


विशेषता को मुगलों ने भी अपनाया था।
चित्र 4.5: निजामुद्दीन दरगाह
» पहली बार सिकंदर लोदी की कब्र में एक दोहरे गुंबद पेश
किया गया था।
तुगलक वंश (Tughlaq Dynasty)

• गियासउददीन तुगलक ने तुगलकाबाद नाम के नए


शहर का निर्माण किया।

• इसी अवधि में तुगलकाबाद किला बनाया गया था। यह


ग्रेनाइट से बना है क्योंकि यह वहा आसानी से उपलब्ध
था। चूंकि ग्रेनाइट की बनावट को चमकाना मुश्किल
है, इसलिए भवन की बनावट खुरदरी है। इस किले की
चारदीवारी सीधी की बजाय ढलान वाली है।

• मोहम्‍मद तुगलक के उत्तराधिकारी फीरोज तुगलक ने


अनेक मस्जिदों, मकबरों, दुर्गो, मदरसों, सरायों, नहरों,
तालाबों अस्‍पतालों आदि का निर्माण करवाया तथा
नगरों की स्‍थापना की। फीरोज तुगलक का मकबरा और
चित्र 4.7: सिकंदर लोदी का मकबरा
खानजहाँ तिलं गानी का मकबरा उल्‍ले खनीय है।
• स्‍थापत्‍य की दृष्टि से सबसे उल्‍ले खनीय इमारत ‘सिकन्‍दर
लोदी का मकबरा’ है।

• सिकन्‍दर लोदी के मन्‍त्री द्वारा निर्मि त मोठ की मस्जिद


इस युग की स्‍थापत्‍य का एक श्रेष्‍ठ उदाहरण है।

• सल्‍तनत काल में दिल्‍ली की शाही शैली से पृथक प्रान्‍तीय


शैलियों का विकास हुआ।

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1. जौनपुर और मालवा की प्रान्‍तीय शैली, संरचनाएं आमतौर पर बड़ी और बुलंद निर्मि त हुई हैं।

2. भारत की परम्‍परगा शैली से प्रभावित कश्‍मीर, » मुग़ल सम्राट योजना, डिजाइन और निर्माण में व्यक्तिगत
गुजरात और बंगाल की शैलियाँ, तथा रुचि रखते थे। इस प्रकार, आमतौर पर एक केंद्रीकृत
योजना बनाई गई थी जिसमें कलाकारों को बीच में
3. दक्षिण भारत की विशिष्‍ट शैली।
बदलने की अनुमति नहीं थी।

होशंग शाह का मकबरा, मांडू (मध्य प्रदेश) » खंभे, गुंबद, मेहराब, भित्ति मेहराब और पादांग (स्तम्भ के
नीचे की चौकी) मुख्य विशेषताएं थीं।
• यह 15 वीं शताब्दी में निर्मि त अफगान वास्तुकला का
» सभी इमारतें थीम आधारित थीं। उद्यान में, ज्यामिति और
सबसे अच्छा उदाहरण है और इसे भारत की पहली
डिजाइन के समरूपता पर विशेष जोर दिया गया था। इस
संगमरमर संरचना कहा जाता है।
काल में भवन निर्माण प्रौद्योगिकी का विकास हुआ।
• यह एक शानदार गुंबद, संगमरमर जेल का कार्य,
» भवन निर्माण लौकिक और धार्मि क दोनों प्रकार के
अदालत, पोर्टि कोस (द्वार मंडप/बरामदा) और मीनार
प्रयोजनों के लिए बनाये गए। पहले लाल बलु आ पत्थर
के साथ एक शानदार वास्तुकला है।
का उपयोग इसकी आसान उपलब्धता के कारण किया
• इसे अफगान संरचना का एक उदाहरण माना जाता है, गया था। बाद में संगमरमर का बड़े पैमाने पर उपयोग
ले किन इसके जालीदार काम, तोरण और नक्काशीदार किया गया।
कोष्ठक इसे मृदु गुणवत्ता प्रदान करते हैं।
» चूने का उपयोग महत्वपूर्ण सामग्री के रूप में किया जाता
था।
मुगल वास्तुकला (Mughal Architecture) » कीमती और अर्ध-कीमती पत्थरों का उपयोग सजावट के
लिए किया गया था। उन्हें ईरान और मध्य एशिया से लाया
• मुगल कला और संस्कृति के संरक्षक थे उन्होंने शानदार गया था।
संरचनाओ ं का निर्माण बड़े पैमाने पर किया।
» दीवारों पर, सुलेख (कलात्मक लिपि) और अरबी का
• मुगल वास्तुकला की प्रमुख विशेषताएं (Salient आमतौर पर उपयोग किया जाता था। प्रसिद्ध ताजमहल
features of Mughal Architecture): इसका एक उदाहरण है।

» मिश्रण (Concoction): मुगलो की इमारतें इं डो - » फारसी शैली के दोहरे गुंबद (प्याज के आकार के) बनाए
इस्लामिक शैली का मिश्रण थीं। भारतीय शैलियों में, गए थे।
राजपूत और बौद्ध प्रभाव अधिक प्रभावी हैं। इस्लामी शैली » भवनों को अलं कृत करने के लिए नक्काशी, पच्चीकारी
में, ईरानी और मध्य एशियाई शैली प्रमुख है। और बेलबूटों के काम करवाये।
» साम्राज्य की संपत्ति और ताकत को प्रदर्शि त करते हुए, » भवनों के साथ बगीचे, फव्वारों की कला का विकास हुआ।

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दोहरे गुम्बद (Double Dome)

• एक दोहरा गुंबद दो परतों से बना है। अंदर एक परत है जो इमारत के आंतरिक भाग को छत प्रदान करती है। एक और
परत है जो बाहरी है जो इमारतों का ताज बनाती है। दोहरे गुंबद का आकर अंदर की छत को नीचा दर्शाते हैं और आंतरिक
संरचना की मजबूती प्रदान करते हैं।

• यह बाहरी भाग के खड़े नक्शा के प्रभाव और अनुपात को बिना छे ड़छाड़ के किया जाता है। भारत में आने से पहले कुछ
समय के लिए पूर्वी एशिया में दोहरा गुंबद बनाने की प्रक्रिया का प्रचलन था। प्रारंभिक मुस्लिम वास्तु निर्माताओ ं के लिए
यह मुश्किल था कि वे एक भवन पर प्रभावी ढं ग से गुंबद बनाये। यदि वे उसे ऊँचा उठाते, तो वह उस भवन की छत में अँधेरा
हो सकता था। यदि इसे कमरे के आयामों की तुलना में छोटा रखा, तो यह संरचना के स्मारक को प्रभावित कम कर देगा।

• समाधान एक दोहरे गुंबद के रूप में तैयार किया गया था। चिनाई की एक ही परत से बने होने के बजाय, गुंबद दो अलग-
अलग परतों, एक बाहरी और दूसरे आंतरिक से बना था, जिनके बीच काफी जगह थी।

• ताज खान का मकबरा (1501) और सिकंदर लोदी का मकबरा (1518), दोनों में द्वि गुंबद का प्रयोग दिल्ली में पहला प्रयास
था। दूसरी ओर, डबल गुंबद की पूरी तरह से परिपक्व आकृति, हुमायूँ के मकबरे में भारत में पहली बार देखी गयी थी।

महत्वपूर्ण संरचनाएं (Important Structures): सूरी ने गद्दी से हटा दिया जिसे पुनः हुमायूँ ने हासिल कर
लिया |
बाबर (Babur)
• हुमायूं ने 'दीन पनाह' नामक एक नए महल का निर्माण
• उसे कुछ भी बनाने के लिए ज्यादा समय नहीं मिला। शुरू किया, जिसे बाद में शेरशाह ने पूरा किया। इसे अब
उसके शासनकाल के दौरान 3 मस्जिदों का निर्माण पुराना किला कहा जाता है।
किया गया था। यह निर्माण पानीपत, संभल और अयोध्या
में स्थित हैं। अयोध्या में मस्जिद को ध्वस्त कर दिया गया शेर शाह सूरी (Sher Shah Suri)
है।
• उसने कई स्मारकों का निर्माण किया, जिनमें रोहतास
• उसने आगरा में एक बाग बनाया - अराम बाग़ (जिसे अब का किला (अब पाकिस्तान में स्थित एक यूनस्
े को विश्व
राम बाग़ के नाम से जाना जाता है)। उसे मूल रूप से यहां धरोहर स्थल), पटना में शेरशाह सूरी मस्जिद, बिहार के
दफनाया गया था ले किन अब उसकी कब्र काबुल में है। रोहतासगढ़ किले में कई संरचनाएँ , दिल्ली में पुराण
• स्थापत्य की दृष्टी से बाबर के समय निर्मि त भवनों का किला परिसर और किला-ए-कुहना मस्जिद शामिल हैं।
कोई महत्त्व नहीं है।
• स्‍थापत्‍य कला की दृष्टि से उसकी दो इमारतों का उल्‍ले ख
किया जा सकता है- सासाराम का मकबरा और दिल्‍ली
के पुराने किले में स्थित किला मस्जिद।
हुमायूं (Humayun)

• हुमायूँ का शासन उथल-पुथल से भरा था जहाँ उसे शेरशाह

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अकबर (Akbar) आगरा का लाल किला (Red Fort of Agra):

• अकबर कला और वास्तुकला का एक महान संरक्षक


था। उनकी इमारतों में भव्यता और शक्ति दिखाई देती हैं।

• अकबर कालीन इमारतें हिन्‍दू-मुस्लिम शैली के सुन्‍दर


समन्‍वय को प्रदर्शि त करती है।

• इसके गुम्‍बद और महराब मुस्लिम शैली के हैं और स्‍तम्‍भ,


तीरा, ब्रेकेट और पटी छतें हिन्‍दू स्‍थापत्‍य शैली से प्रभावित
हैं।

• इन पर नक्‍काशी, पच्‍चीकारी, खुदाई और जड़ाई के काम


सुन्‍दर ढं ग से किये गये हैं।

चित्र 4.9: लाल किला, आगरा

• इसका दीवान-ए-आम, लाल बलु आ पत्थर में अकबर


द्वारा निर्मि त है। लाल पत्‍थरों की इतनी बारीकी से चुनाई
की गयी है कि उसके जोड़ों से बाल भी नहीं जा सकता है।

• जहाँगीर महल राजपूत शैली पर आधारित है- इसमें छोटे


दरवाजे हैं और भित्ति चित्र हैं।

• अकबर के शासनकाल के दौरान बनाया गया एक और


चमत्कार फतेहपुर सीकरी का शहर था।
चित्र 4.8: हुमायूँ का मकबरा, नई दिल्ली

फतेहपुर सीकरी (Fatehpur Sikri):


हुमायूँ का मकबरा (Humayun’s Tomb):

• यह हाजी बेगम (हुमायूँ की पत्नी और अकबर की माँ)


द्वारा निर्मि त पहली प्रमुख मुगल संरचना थी।

• इसका प्रमुख शिल्‍पकार ईरान का निवासी मिर्जा गियास


बेग था।

• यह 'जन्नत उल फिरदौस' (सातवें आसमान) की थीम पर


आधारित है।

• मकबरा अष्टकोणीय है और एक उच्च मंच पर बनाया


गया है। यह बगीचों और पानी की नहरों से घिरा हुआ है।

• रास्तों पर पेड़ लगाए गए थे। ऐसा प्रतीत होता है जैसे


पहरेदार राजा को सम्मान देने के लिए खड़े हैं। चित्र 4.10: फतेहपुर सीकरी
• यह एक सफेद संगमरमर के गुंबद के साथ लाल बलु आ
पत्थर से बना है। गुम्‍बद के चारों ओर खम्‍भों के सहारे
• आगरा से 26 मील दूर स्थित सीकरी गांव में अकबर ने
गुम्‍बदनुमा छतारियाँ बनी हैं।
स्‍थापत्‍य के बेजोड़ नमूने बनवाये।
• यह एक विश्व धरोहर स्थल है और ताजमहल के एक
• फतेहपुर सीकरी में बनी इमारतों में विशाल राजप्रसाद,
प्रारूप के रूप में जाना जाता है।
निवास स्‍थान, कार्यालय, धार्मि क स्‍थान, सरायें, मीनार
• अकबर का लाल किला स्‍थापत्‍य कला का पहला नमूना और विशाल प्रवेश द्वार प्रमुख हैं। जामा मास्जिद, बुलन्‍द
है। दरवाजा, सलीम चिश्‍ती का मकबरा उल्‍ले खनीय हैं।

• दीवान-ए-ख़ास (Diwan I Khas): ईरानी शैली - इसमें


फूलों के सूक्ष्म शिल्प और हवाई पूल के साथ ज्यामितीय
प्रारूप के साथ एक प्रसिद्ध स्तंभ है।

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• जोधा बाई का महल (Jodha Bai’s Palace): राजपूत
शैली- कृष्ण का एक बड़ा भित्ति चित्र है। छत चौकोर खंभों
के साथ समतल है। छत में छाया प्रदान करने के लिए
एक 'छत्रीरुपी' संरचना है।

चित्र 4.13: जामा मस्जिद (फतेहपुर सीकरी)

• शेख सलीम चिश्ती का मकबरा मस्जिद के अंदर है।

• अकबर का मकबरा (आगरा) (Tomb of Akbar)


(Agra): जहाँगीर द्वारा पूर्ण-बौद्ध शैली के आधार पर,
चित्र 4.11: जोधाबाई का महल इसमें गुंबद नहीं है चार मीनार हैं।

• मरयम पैलेस (Maryam Palace) (मरयम अकबर की


ईसाई पत्नी थी): इसमें भित्ति चित्र हैं।

• बीरबल का महल (Birbal’s Palace): बौद्ध विहार के


प्रारूप के आधार पर।

• पंच महल (Panch Mahal): बहुमंजिला इमारत- बौद्ध


शैली के आधार पर। इसमें केवल खंभे व छत हैं और दीवारें
नहीं हैं।

चित्र 4.14: अकबर का मकबरा (आगरा)

• जहांगीर (Jahangir): जहांगीर को इमारतों के बजाय


कला और चित्रकला में अधिक रुचि थी। अधिकांश समय
उन्होंने पिछली इमारतों में कुछ विशेषताएं जोड़ीं थी।
चित्र 4.12: पंचमहल, फतेहपुर सीकरी

जहांगीर के समय निम्नलिखित महत्वपूर्ण इमारतें बनीं-


• जामा मस्जिद (फतेहपुर सीकरी) (Jama Masjid)
इतिमद - उद – दौला का मकबरा (Tomb of Itimad – ud
(Fatehpur Sikri): यह 176 फीट लम्बा हैं जिसे महल
– Daulah):
के पश्चिमी हिस्से में बनाया गया हैं। इसका दक्षिणी द्वार
बुलंद द्वार कहा जाता है जिसे गुजरात विजय के उपलक्ष्य
• अकबर का मकबरा (सिकंदरा)।
में बनाया गया है।
• मरियम उज जमानी का मकबरा।

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• इसमें सुलेख कार्य, ईरानी गुंबद (प्याज के आकार का)
और संगमरमर की सतह का काम शामिल था।

• शाहजहाँ ने इमारतों में , अकबर के विपरीत, भव्यता के


बजाय, विनम्रता और परिष्कार दिखाया। उन्होंने सत्ता से
अधिक विलासिता का चित्रण किया।

• उसने कठोर पत्थरों का बड़े पैमाने पर उपयोग किया।


इसके अलावा, छत और दीवारों में सोने का उपयोग
करवाया था।

• शहजहाँ ने लाल पत्‍थरों की दुनिया को श्‍वेत एवं निर्मल


संगमरमर की दुनिया में बदल दिया।
चित्र 4.15: इतिमद-उद-दौलाह का मकबरा

महत्वपूर्ण कार्य (Important Works):


• इतिमद - उद - दौला जहाँगीर के ससुर थे और उनके
वज़ीर भी थे। • उसने शाही राजधानी शाहजहानाबाद (अब पुरानी दिल्ली)
• मुगलों द्वारा पहली बार कठोर पत्थर तकनीक का नामक नगर का निर्माण 1639 और 1648 के बीच किया
उपयोग किया गया ,पिएट्रा ड्यूरा(कठोर पत्थर)तकनीक था। यहाँ तीन स्थल चिन्ह हैं:
का उपयोग इससे पहले राजपूतो द्वारा किया गया था। • दिल्ली का लाल किला (Red Fort of Delhi): 1857 के
विद्रोह के दौरान 80% इमारत को अंग्रेजों ने नष्ट कर
दिया था।

चित्र 4.17: दिल्ली का लाल किला

चित्र 4.16: पित्रा ड्यूरा की कला • दिल्‍ली के लाल किले में दीवान-ए-आम, दीवान-ए-
खास, रंगमहल और जामा मस्जिद उल्‍ले खनीय हैं।

• आगरा में अनेक इमारतें बनवायीं- आगरा के किले में


• उसके शासनकाल में अधिकतम उद्यान बनाए गए थे। उसने दीवान-ए-आम, दीवान-ए-खास, खास महल,
उनमें से सबसे महत्वपूर्ण कश्मीर के शालीमार बाग और अंगूरी बाग, शीश महल, मोती मस्जिद का निर्माण कराया।
निशात बाग हैं।
• ताजमहल मुगल स्‍थापत्‍य शैली की अनुपम कृति है। यह
मुमताज महल की स्‍मृति में बनवाया गया था। यमुना के
किनारे आगरा में निर्मि त यह मकबरा संगमरमर की बनी
शाहजहाँ (Shah Jahan):
गुम्‍बदाकार वर्गाकार इमारत है। मकबरा पाँच गुम्‍बदों से
आच्‍छादित है। इसकी कब्रें जालीदार संगमरमर के सुन्‍दर
• उसके शासनकाल के दौरान मुगल वास्तुकला अपने
परदों से घिरी हुई है।
चरम पर पहुंच गयी। यह दो प्रमुख कारणों से सम्भव हुआ
- उसके व्यक्तिगत रुचि और अपेक्षाकृत शांतिपूर्ण अवधि।

• ईरानी शैली अधिक प्रभावी थी।

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चित्र 4.20: बीबी का मकबरा

प्रांतीय वास्तुकला (Provincial Architecture)


चित्र 4.18: जामा मस्जिद, दिल्ली
मालवा शैली (Malwa Style)

• मालवा शैली में मीनारों की अनुपस्थिति।


• ताजमहल को मुग़ल वास्तुकला का गौरव कहा जा
सकता है। • इसमें राजपूत ख़ेमे जैसे बहुत सारे गुण शामिल हैं।

• ताज मुगल वास्तुकला के विकास में अंतिम क्षण को • नाव की कील का उपयोग गुंबद में किया गया हैं ।
चिह्नित करता है। ताज सुंदरता की आदर्श अभिव्यक्ति
• मेहराब और स्तंभों का संयोजन।
है और स्मारक का आकर्षक प्रभाव इसके सौंदर्य शास्त्र
में जोड़ता है। • उदाहरण- जहाज़ महल, रानी रूपमती मंडप, हिं डोला
महल।

चित्र 4.19: ताज महल

चित्र 4.21: जहाज महल


औरंगजेब (Aurangzeb)

• औरंगजेब ने निर्माण में बहुत अधिक समय और धन का


निवेश नहीं किया। अतः, उसके साथ बहुत कम इमारतें
जुड़ी हैं। औरंगाबाद में उसके समय के सबसे प्रसिद्ध
स्मारकों में से एक है 'बीबी का मकबरा' (औरंगज़ेब की
पत्नी का मकबरा) । यह ताजमहल का एक नमूना है और
यह कीमती पत्थरों और महंगी निर्माण सामग्री से नहीं
बना है। इसे ताजमहल की फूहड़ नकल भी कहा जाता हैं |

चित्र 4.22: हिं डोला महल

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बंगाल शैली (Bengal Style) • बल्बनुमा (उभरा हुआ) प्रवेश द्वार ।

• गोल गुम्बज दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा गुंबद है।


• इलियास शाही वंश:- इलियास शाह ने इं डो-तुर्कि क
इलियास शाही वंश की स्थापना की जिसने पंद्रह दशकों • यह मुख्य संरचना के एक भाग के रूप में मीनारों का
तक बंगाल पर शासन किया। । इस शैली में मीनार मुख्य उपयोग करता था और पत्थर की नक्काशी से भी समृद्ध
संरचना से छोटी होती हैं। सजावट पर ध्यान केंद्रित नहीं था।
था, ले किन बड़े पैमाने पर संरचना पर ध्यान दिया गया
था। ईंट और काले संगमरमर का उपयोग किया गया था।

• उदाहरण: अदीना मस्जिद (Adina Mosque)।

चित्र 4.23: अदीना मस्जिद


चित्र 4.25: गोल गुम्बद

जौनपुर शैली (Jaunpur Style)


गोलकुंडा शैली (Golconda School)

• इसे शर्की शैली के नाम से भी जाना जाता है। इसमें मीनारों


• रूपांकनों में हिं दू प्रभाव देखा गया ।
की अनुपस्थिति है जो बड़े पैमाने पर संरचना के लिए
महत्वपूर्ण है। उदाहरण- अटाला मस्जिद- इब्राहिम शाह • उनके मुखौटे को खूबसूरती से उकेरा गया था।
शर्की द्वारा निर्मि त। • उदाहरण के लिए, चारमीनार।

चित्र 4.24: अटाला मस्जिद जौनपुर

दक्कन शैली (Deccan Style)


चित्र 4.26: चारमीनार
बीजापुर शैली (Bijapur School)

• तीन मेहराब अग्रभाग में हैं।

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कश्मीर शैली (Kashmir Style) बेहतर दृश्य और सीमा दी।

• उन्होंने इमारतों का सहारा देने के लिए बीम और स्तंभ


• इसमें लकड़ी की वास्तुकला और बौद्ध प्रभाव का सादृश्य
संरचना का उपयोग किया।
है।
• खंभे मुगल स्तंभों के विपरीत जटिल नक्काशी वाली
• एक चौकोर बरामदा (हाल) मौलिक/आद्य छत लम्बे
श्रेणी के थे जो बेलनाकार और चौकोर थे।
पतले शिखर के साथ ताज पहनाया हुआ।
• वे अपनी संरचनाओ ं में चित्रों का उपयोग करते थे। यह
• उदाहरण के लिए, खानकाह मस्जिद।
खिड़की से दूर एक बाहरी फैला हुआ स्लै ब (पत्थर की
पट्टी) है।

• उन्होंने हवादार का ख्याल रखा। भले ही गर्मी के दौरान


बाहर का तापमान अधिक हो जाता है, ले किन महल के
अंदर की हवा ठं डी और निरंतर चलती रहती है।

• बाद में राजपूत वास्तुकला के हिस्से में मुग़ल प्रभाव


मजबूत था और उन्होंने गुंबदों और मेहराबों का निर्माण
शुरू कर दिया।

सिख शैली की वास्तुकला (Sikh Style of


Architecture):

• थीम/विषय: यह मुख्य रूप से धार्मि क था जो गुरुद्वारों


और अन्य स्मारकों के निर्माण का परिचायक था।
चित्र 4.27: खानकाह मस्जिद

राजपूत वास्तुकला (Rajput Architecture):

• राजस्थान के मूल निवासी राजपूत अपने मजबूत


गौरवशाली और शानदार किलों और शानदार महलों के
लिए प्रसिद्ध हैं।

चित्र 4.29: अमृतसर में स्वर्ण मंदिर

• यह मुगल शैली और वास्तुकला की राजपूत शैली से


चित्र 4.28: कुम्भलगढ़ का किला
अत्यधिक प्रभावित था।

• गुरुद्वारों में और उसके आसपास की संरचना किसी भी


राजपूतों की अनूठी शैली (Unique Style of the Rajputs): मूर्ति कार और चित्रों से रहित हैं।

• लं बी दीवारें मजबूत ग्रेनाइट से बनी थीं और वे आक्रमण • स्मारक में चारों तरफ प्रवेश द्वार हैं और बड़ी खाली जगह
से बचने के लिए बहुत मोटे थे। है। उनके पास एक आम रसोईघर, एक भोजन कक्ष और
एक तालाब है।
• कुम्भलगढ़ किला अपनी दीवार के लिए प्रसिद्ध है। यह
चीन की महान दीवार के बाद दूसरी सबसे लं बी दीवार है। • एक केंद्रीय गुंबद है जिसे चिकने गोल आकार के बजाय
पंखुड़ी के आकार से बंद कर दिया गया है। यह एक पुष्प
• किले और महलों को आमतौर पर सुरक्षा उद्देश्यों के लिए
आधार से बाहर निकलता है। इस पर आमतौर पर सफेद,
हिल टॉप अर्थात पहाड़ की चोटियों पर बनाया गया था।
या सुनहरी परत चढ़ायी जाती है।
एक उच्च सुविधाजनक बिं दु ने हमला करने के लिए

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• केंद्रीय गुंबद के अलावा, कोने में चार कपोल हैं। विभिन्न औपनिवेशिक वास्तुकला शैलियाँ (Different
Colonial Architectural Styles)
• प्रमुख उदाहरण हरमिं दर साहिब या स्वर्ण मंदिर, ननकाना
साहिब आदि हैं। नव-शास्त्रीय शैली (Neo-classical Style)

• यह वास्तुकला शैली ब्रिटिश भारत में 19 वीं शताब्दी के


आधुनिक भारत में वास्तुकला (Architecture in अंत की संरचनाओ ं में दोहराई गई है।
Modern India) • यह वास्तुकला की शास्त्रीय ग्रीक रोमन शैली की
प्रतिकृति है।
औपनिवेशिक वास्तुकला (Colonial Architecture)

• ब्रिटिश साम्राज्य के तहत लगभग 150 से 200 वर्षों तक


चली औपनिवेशिक वास्तुकला ने 19 वीं शताब्दी के
उत्तरार्ध में अपना स्वर्णि म काल प्राप्त किया, जो देश के
आधुनिकीकरण में एक महत्वपूर्ण चरण का प्रतिनिधित्व
करते हुए, एक मजबूत मध्यकालीन जीवन शैली में
परिवर्तन अंततः 1947 में स्वतन्त्रता की सुबह के साथ
हुआ ।

• भारत में औपनिवेशिक वास्तुकला औपनिवेशिक विचारों


/ नीतियों और स्थानीय संस्थानों, जीवन और निर्माण
प्रक्रियाओ ं के तरीकों पर उनके प्रभाव को प्रदान करता
है जिसने विदेशी और स्वदेशी मूल्यों के बीच टकराव की
स्थितियों का निर्माण किया।
चित्र 4.30: टाउन हॉल, मुंबई

औपनिवेशिक वास्तुकला के लक्षण (Characteristics of • इस वास्तुकला की भूमध्यसागरीय जड़ें भारतीय


Colonial Architecture) उष्णकटिबंधीय जलवायु के लिए आदर्श मानी जाती थीं।

• अंग्रेजों ने खुद को मुगलों के उत्तराधिकारी के रूप में देखा • इसमें प्राचीन ग्रीस और रोम से भवन निर्माण वास्तुकला
और शक्ति के प्रतीक के रूप में स्थापत्य शैली का उपयोग का, पुनरुद्धार और पुन: संयोजन शामिल था।
किया। • इनमे सामने लम्बे खंभों के साथ ज्यामितीय संरचनाओ ं
• भारत में उनके द्वारा बनाई गयी इमारतें,वास्तुकला के निर्माण की विशेषता थी।
उनकी उपलब्धियों का प्रत्यक्ष प्रतिबिं ब थीं। • बॉम्बे में टाउन हॉल इस शैली का एक प्रारंभिक उदाहरण
• ब्रिटिश शासन के तहत औपनिवेशिक वास्तुकला की है।
आकांक्षा भारतीय साम्राज्य को नियंत्रित करने के लिए
नव-गोथिक शैली (Neo-Gothic Style)
अपने लोगों और उनके संगठनों के घर बनाने के लिए
संरचनाओ ं का निर्माण करना था।
• यह प्रारंभिक गोथिक स्थापत्य शैली का पुनरुद्धार
• औपनिवेशिक वास्तुकला में, शहरों में सिविल लाइं स और था, जिसकी उत्पत्ति मध्यकालीन युग के दौरान उत्तरी
छावनी जैसे नए आवासीय क्षेत्र सामने आए। यूरोपीय इमारतों, विशेष रूप से चर्चों में हुई थी।

• ब्रिटिश भारत में औपनिवेशिक स्थापत्य शैली की एक • इसका निर्माण ऊँची-ऊँची छतों, नुकीले मेहराबों और
और विशेषता पत्थर, विशेष रूप से संगमरमर का विरल विस्तृत सजावट द्वारा किया गया था।
उपयोग था।
• इस शैली को बॉम्बे में बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए
• बाद में, भारत में ब्रिटिश निर्मि त संरचनाओ ं में प्राथमिक संशोधित किया गया था।
निर्माण सामग्री के रूप में ईंट की जगह पत्थर ने ले ली,
• सचिवालय, बॉम्बे विश्वविद्यालय और उच्च न्यायालय
स्लेट, मशीन से बनी टाइलें , और स्टील गर्डर्स प्रचलन में
सहित तटीय नगरभाग की इमारतों का एक प्रेरक समूह
आए, जस्ता लोहे ने एं ग्लो-इं डियन छत निर्माण में क्रांति
सभी इस शैली में बनाया गया था।
ला दी।
• कई भारतीयों व्यापारियों ने इनमें से कुछ इमारतों के
लिए पैसे दिए। वे नव-गॉथिक थीम का उपयोग करने के
लिए उत्साहित थे क्योंकि उन्हें लगा कि यह प्रगतिशील है

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और बॉम्बे को एक आधुनिक शहर बनाने में मदद करेगा। कला-डेको स्टाइल (Art-Deco Style)

• ब्रिटिश ने इस शैली में रेलवे स्टेशनों के डिजाइन और


• भारत में कला डेको ( विशेष रूप से मुंबई में) एक अनूठी
संरचना में बहुत निवेश किया, जिसका एक उदाहरण
शैली में विकसित हुई जिसे डेको सारसेनिक के रूप में
मुंबई में छत्रपति शिवाजी टर्मि नल है।
जाना जाता है।

• अनिवार्य रूप से, यह इस्लामी और हिं दू स्थापत्य शैली का


एक समायोजन था।

• कला डेको मुंबई की सबसे कम देखी जाने वाली स्थापत्य


शैली में से एक है, हालांकि मुंबई और इसके उपनगरों में
संभवतः दुनिया में सबसे अधिक कला डेको इमारतें हैं।

• डेको विवरण प्रत्येक वास्तुशिल्प पहलू को छूता है –फर्श,


लकड़ी की चौखट, रेलिंग, मौसम की छाया, बरामदे,
बालकनियां, और मुख्यभाग जो बहुत हवादार हैं चरणबद्ध
शैली में निर्मि त हैं, आदि।

• अंदरूनी हिस्से में विक्टोरियन प्रभाव है जबकि बाहरी


चित्र 4.31: छत्रपाती शिवाजी टर्मि नस मुंबई
हिस्से में भारतीय प्रभाव हैं।

• मुम्बई में, कला डेको वास्तुकला 1930 के दशक में उभरी,


इं डो-सारसेनिक पुनः प्रवर्तन शैली (Indo-Saracenic जिसके परिणामस्वरूप कोणीय आकार की इमारतें थीं।
Revival Style)
• कला डेको शैली कई सिनेमा हॉलों में बहुत प्रमुख है,
• यूरोपीय और भारतीय शैली में विलय जो बीसवीं शताब्दी जो बीसवीं शताब्दी के मध्य में शुरू हुए थे, जैसे कि मेट्रो
की शुरुआत में विकसित हुई। सिनेमा और इरोस सिनेमा।

• "इं डो" हिं दू के लिए संक्षिप्त लिपि था और "सारसेन" एक • 2018 में, यूनेस्को की विश्व धरोहर समिति द्वारा ऐसी
शब्द था जिसे यूरोपीय लोग ने मुस्लिमों को प्रदान किया इमारतों की एक टु कड़ी को आधिकारिक तौर पर विश्व
था। विरासत स्थल के रूप में मान्यता दी गई थी।

• देशी इं डो-इस्लामिक वास्तुकला को इं डो-सारसेनिक • रीगल सिनेमा, महालक्ष्मी मंदिर, मुंबई में उच्च न्यायालय
पुनः प्रवर्तन वास्तुकला में शामिल किया गया था और की इमारत प्रमुख उदाहरण हैं।
इसे नव-शास्त्रीय शैलियों के साथ एकजुट किया गया था
जो विक्टोरियन ब्रिटे न में पसंदीदा थे।

• इस शैली की प्रेरणा भारत में मध्ययुगीन इमारतो के


गुंबदों, छत्रियों, जालियो और मेहराबों आदि से स्थानांतरित
हुई।

• 'चेपक महल' चेन्नई (तत्कालीन मद्रास) में स्थित पहली


इं डो सारसेनिक पुनः प्रवर्तन इमारत थी।

• गेटवे ऑफ इं डिया इस शैली की सबसे प्रसिद्ध उदाहरण है।

चित्र 4.33: बंबई उच्च न्यायालय

प्रसिद्ध वास्तुकार (Famous Architects):

• लॉरी बेकर(Laurie Baker): यह केरल में सामूहिक


आवास धारणा के लिए जिम्मेदार था। संरचनाएं स्थानीय
रूप से उपलब्ध सामग्री से बने पर्यावरण के अनुकूल थीं।
चित्र 4.32: चेपॉक पैलेस पत्थर की पट्टियों से भराव निर्माण का उपयोग स्टील
और सीमेंट की खपत को कम करने के लिए किया गया

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था। हवादार और गर्मी से राहत की सुविधा अत्यधिक सर एडविन लुटियन (Sir Edwin Lutyens)
आवश्यक थी।
• ब्रिटिश सरकार ने भारत में बढ़ती साम्राज्यवाद विरोधी
लहरों के कारण भविष्यवाणी की भावना का अनुभव
करते हुए, 1911 में दिल्ली को अपनी नई राजधानी घोषित
किया।

• वास्तुकारों ने एक स्मारकीय शहरी सड़क परिसर की


योजना बनाई जो भारतीय शहरों के लिए बहुत ही अलग-
थलग था।

• उनकी स्थापत्य शैली ने भारतीय तत्वों और शास्त्रीय


यूरोपीय के संयोजन में प्रवेश किया।

• खुले बरामदे, भव्य उपनिवेश, लम्बी, पतली खिड़कियाँ,


कोर्नि याँ जालियाँ (गोलाकार पत्थर के छिद्र), छज्जे (चौड़ी
छत के ऊपर की ओर) और छत्रियाँ (मुक्त खड़े मंडप) का
उपयोग ठे ठ ऐतिहासिक भारतीय वास्तुकला के सजावटी
तत्वों के रूप में एक ही समय में किया गया था।

• राष्ट्रपति भवन, जो पहले वायसराय का घर था, लु टियन


द्वारा डिजाइन किया गया था। यह बलु आ पत्थर से बना
है और इसमें राजस्थानी डिजाइन तत्व जैसे कि कैनोपी
चित्र 4.34: लॉरी बेकर होम्स और जाली हैं।

• इं डिया गेट के अलावा, लु टियन ने दिल्ली में कई अन्य


स्मारकों को डिजाइन किया। नई दिल्ली को उनके
• चार्ल्स-कोरीया (Charles-Correa): स्वतंत्रता के बाद योगदान के सम्मान में लु टियन दिल्ली के नाम से भी
के युग में यह गोअन वास्तुकला महत्वपूर्ण थी। उनकी जाना जाता है।
उल्ले खनीय वास्तुकला में मध्य प्रदेश विधानसभा हॉल
और ब्रिटिश काउं सिल बिल्डिं ग शामिल हैं। उन्होंने शहरी
मामलों में काम किया और तीसरी दुनिया में कम लागत
वाले आश्रय विकसित किए।

• ले करबुसिएर (Le-Corbusier): वह एक फ्रांसीसी


वास्तुकार था। एक नियोजित शहर का विचार रखते हुए,
उन्होंने चंडीगढ़ शहर को एक सुव्यवस्थित मैट्रिक्स के
पैटर्न पर डिज़ाइन किया। भारत में सेक्टरस का विचार
उनके द्वारा शुरू किया गया था। सेक्टर एक आत्मनिर्भर
ग्रीन बेल्ट थे। तेज यातायात के लिए एक नियमित ग्रिड
था।

चित्र 4.35: राष्ट्रपति भवन

53
अध्याय - 5

चित्रकला
(PAINTINGS)

• चित्रकला कला के सबसे नाजुक रूपों में से एक है, जो प्रमुख विशेषताऐ ं (Key Features)
मानव विचारों और भावनाओ ं को रेखा और रंग के माध्यम
• रंजक, जैसे गेरू के लिए खनिजों का उपयोग।
से अभिव्यक्ति देता है। हजारों साल पहले , जब आदमी
केवल एक गुफा में रहने वाला प्राणी था, उसने अपनी • उन्होंने विभिन्न रंगों में खनिजों का उपयोग भी किया।
सौंदर्य संवेदनशीलता और रचनात्मक बदलाव को पूरा • मुख्य विषय-वस्तु: चराई, समूह शिकार, घुड़सवारी के
करने के लिए अपने चट्टानों के आश्रयों को चित्रित किया। दृश्य।
चित्रकला और डिजाइन के प्रति प्रेम हममें इतना गहरा
• चित्रों का रंग और आकार युगों से विकसित हुआ है।
है कि सबसे पुराने समय से, मनुष्य ने चित्रों का निर्माण
किया, यहां तक कि इतिहास की अवधि के दौरान जिसके • उदाहरण: भीमबेटका गुफाएँ (मध्य प्रदेश); जोगीमारा
हमारे पास कोई प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं है। गुफाएं (छत्तीसगढ़); नरसिं हगढ़ (मध्य प्रदेश)।

• भारत में चित्रकला प्रागैतिहासिक काल से शुरू हुई थी।


चित्रकला का इतिहास शैल चित्रों से शुरू हुआ है और
मिट्टी के बर्तनों के माध्यम से, कपड़ा, लघु चित्रों में और
अंत में आधुनिक चित्रों के साथ शुरू हुआ है। देश के कुछ
हिस्सों में चित्रों की शैली में विविधता बहुत विविध है, जो
संस्कृति और आजीविका में विविधता का संकेत देती है
जिसमें चित्रों का विषय है और बाद में आध्यात्मिकता का
प्रभुत्व है। भारत में चित्रों के लिए प्रमुख प्रेरणा तीन धर्मों
हिं दू, बौद्ध और जैन धर्म का जन्म से मिलता था। प्रमुख
प्रभाव इतिहास, संस्कृति और विदेशी नस्लों आदि का रहा
है, भारत में पेंटिंग आध्यात्मिक सामग्री, उच्च आदर्शों और
लोगों के सार्वभौमिक विश्वास को जोड़ती हैं।
चित्र 5.1: आदमी, और हाथी, भीमबेटका

चित्रकला के प्रकार (Types of


Paintings)
प्रागैतिहासिक चित्रकला (Prehistoric
Paintings)

• भारत में चित्रकला का इतिहास भीमबेटका की गुफाओ ं


(मध्य प्रदेश) में प्रागैतिहासिक शैल चित्रकला से शुरू
होता है।

• भीमबेटका में, हमारे पास जानवरों के चित्र हैं। नरसिं हगढ़


(मध्य प्रदेश) की पेंटिंग में धब्बेदार हिरणों की खाल सूखती चित्र 5.2: भीमबेटका पेंटिंग, जीवन के तरीके को दर्शाती है
हुई दिखाई देती है। प्रागैतिहासिक चित्रों को आमतौर पर
गुफाओ ं में चट्टानों में निष्पादित किया जाता है। चित्रों के
मुख्य विषय पशु (जैसे गैंडे, हाथी, मवेशी, हिरण, सांप आदि) पुरापाषाण युग (Paleolithic Age)
और प्रकृति के अन्य तत्व हैं, जैसे पौधे। प्रागैतिहासिक
• फिर भी, हमें मध्यम पाषण युग से चित्रकला कला
चित्रों को तीन चरणों में विभाजित किया गया है -
के अधिक प्रमाण नहीं मिले । हालांकि, साक्ष्य ऊपरी
पैलियोलिथिक, मेसोलिथिक और चालकोलिथिक।
पुरापाषाण काल में कलात्मक गतिविधियों के प्रसार को
दर्शाता है।

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• प्रारंभिक चित्रकला कार्य के विषय सरल ज्यामितीय समुदायों के साथ इस क्षेत्र की गुफाओ ं के निवासियों
डिजाइन, मानव गतिविधियों, मानव आंकड़े और प्रतीकों की आवश्यकताओ ं का जुड़ाव, संपर्क और पारस्परिक
तक सीमित हैं। आदान-प्रदान दिखाई देता है।

• कई बार ताम्र पाषाण सिरेमिक और रॉक पेंटिंग सामान्य


शुरुआती चित्रकला की कुछ महत्वपूर्ण विशेषताएं हैं
विषयों, उदाहरण के लिए, क्रॉस-हैटेड वर्गों, जाली को
(Some of the Important Features of These Early
पकड़ते हुए दिखाए गये हैं।
Paintings are):
• हालांकि, पहले की अवधि की जीवंतता और जीवन शक्ति
• मनुष्य को एक छड़ी के रूप में दर्शाया जाता है। इन चित्रों से दूर हो जाती है।
• एक लम्बा सूँघने वाला जानवर, बहु-पैर वाली छिपकली
और एक लोमड़ी शुरुआती चित्रों में प्रमुख महत्वपूर्ण पशु
रूपांकन हैं (कुछ समय बाद कई जानवरों को चित्रित दीवार चित्रकला या भित्ति चित्र (Wall Paintings
किया गया था)। or Mural Paintings)
• ये पेंटिंग लहराती लाइनों, डॉट्स और आयताकार भरे • म्यूरल शब्द लै टिन शब्द 'म्यूरस' से आया है, जिसका अर्थ
ज्यामितीय डिजाइनों के समूह से भी जुड़ी हैं। है दीवार। भित्ति चित्र उल्ले खनीय हैं क्योंकि वे कला को
• प्रारंभिक चित्रों के दो महत्वपूर्ण स्थल भीमबेटका गुफाओ ं एक बड़े सार्वजनिक क्षेत्र में लाते हैं क्योंकि उन्हें एक बड़ी
(विं ध्य, मध्य प्रदेश) और जोगीमारा गुफाओ ं (सरगुजा- दीवार पर रखा जाता है और इसलिए यह सामाजिक मुक्ति
अम्बिकापुर, छत्तीसगढ़) में पाए जाते हैं। इन गुफाओ ं की के लिए एक प्रभावी उपकरण है। भित्ति चित्र उस जगह की
दीवारों पर विभिन्न चित्र अंकित हैं। प्राकृतिक सुंदरता में जोड़ सकते हैं जहां वे चित्रित हैं।

• भीमबेटका गुफाओ ं की खोज 1957-58 में प्रसिद्ध • भारत में भित्ति चित्रकला लगभग 2 शताब्दी ईसा पूर्व
पुरातत्ववेत्ता वीएस वाकणकर ने की थी। से 10 वीं शताब्दी ईस्वी के बीच शुरू हुई थी, वे मूल रूप
से कटे चट्टानों के कक्ष थे। इनकी उत्पत्ति भी प्राकृतिक
गुफाओ ं में हुई थी। भित्ति चित्रों के उदाहरणों में अजंता की
गुफाएँ , जोगीमारा गुफाएँ आदि शामिल हैं। भारत में वे
मध्य पाषाण काल (Mesolithic Age)
खड़ी आकार की हैं, जो अजंता, एलोरा, गुफाओ ं और मंदिर
• प्रागैतिहासिक चित्रों की सबसे बड़ी संख्या मध्य पाषाण की दीवारों आदि में पाई जाती हैं।
युग से संबंधित है।

• पेंटिंग में शिकार की घटनाओ ं की प्रमुखता है।


अजंता गुफा चित्रकला (Ajanta Cave Paintings)
• पेंटिंग में दिखाए गए समूहों में शिकारी तीर, कांटेदार
भाले , नुकीले डंडे और धनुष से लै स हैं। • चौथी शताब्दी ईसा पूर्व की तारीखें और 1819 में औरंगाबाद
में फिर से खोजा गया था।
• मध्य पाषाण युग से संबंधित लोग जानवरों को चित्रित
करना पसंद करते थे। • वे घोड़े की नाल के आकार की गुफाएँ हैं।

• कुछ चित्रों में, विभिन्न जानवर पुरुषों का पीछा कर रहे • विषय: वे मूल रूप से विषय में बौद्ध हैं और एक लं बवत
हैं और दूसरों में, जानवरों को शिकारी पुरुषों द्वारा पीछा चट्टान में खुदी हुई हैं। गुफा संख्या 2 में दीवारों, छतों और
किया जा रहा है। स्तंभ पर चित्रकारी की गई है।

• भले ही जानवरों को एक प्राकृतिक शैली में चित्रित किया • रचना: 4 चैत्य और 25 विहार हैं। इसलिए अजंता में कुल
गया था, मानवों को केवल शैलीगत तरीके से चित्रित 29 गुफाएँ हैं।
किया गया था। • यह वेशभूषा और आभूषणों के साथ सामाजिक ताने-बाने
• सामुदायिक नृत्य एक सामान्य विषय देते हैं। को दर्शाता है।

• कुछ चित्रों (महिला, पुरुष और बच्चे) में पारिवारिक • इन चित्रों में पक्षियों और जानवरों की आकृतियाँ यहाँ पाई
जीवन देखा जा सकता है। जा सकती हैं।

• महिला - चित्रों में विशिष्ट केश विन्यास थे।

• रूपरेखा में लाल गेरू था जबकि आकृति भूर,े काले आदि


ताम्र पाषाण युग (Chalcolithic Age)
रंग की थी।

• ताम्र पाषाण युग के चित्रों में मालवा मैदानों में बसे, कृषि • बोधिसत्वों को अजंता की दीवारों पर चित्रित किया गया
है।

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• चित्रकला की एक प्राचीन परंपरा को विष्णुधर्मोत्तर पुराण • इसमें बौद्ध, हिं दू और जैन धर्म का समावेश है।
के चित्रसूत्र के रूप में मान्यता प्राप्त है।
• यह कुल 5 गुफाएँ हैं।

• कैलाश मंदिर उनमें से एक हैं।

• शिव को कई रूपों में दर्शाया गया है।

• विष्णु, लक्ष्मी, गरुड़ भी पाए जाते हैं।

चित्र 5.5: भित्ति चित्र, एलोरा

बाघ गुफा चित्र (Bagh Cave Paintings)


चित्र 5.3: पद्मापानी, अजंता की गुफाएं
• यह अजंता शैली का विस्तार है, जो मुख्य रूप से मध्य
प्रदेश में पाया जाता है।

• यहां चट्टानों को काटकर बनाई गई नौ गुफाएं हैं।

• ये अधिक पार्थि व, मानवीय हैं, और आधुनिक रूप से


तैयार किए गए हैं।

• चित्रों की विशेषताएँ अजंता की गुफाओ ं जैसी हैं। तैयार की


गई जमीन एक लाल-भूरे रंग की खुरदरी थी और दीवारों
और छतों पर मिट्टी का गाढ़ा प्लास्टर लगाया गया था। ये
चित्र आध्यात्मिकता के बजाय भौतिकवादी हैं।

• इन चित्रों में लाल-भूरे रंग का किरकिरापन और मोटी


मिट्टी और प्लास्टर पाए जाते हैं।

चित्र 5.4: राजा जनक और उनकी पत्नी • चूने का उपयोग भी पाया जाता है।

• इसमें बौद्ध और जातक कथाएँ (बोधिसत्व)चित्रित हैं।

• चित्र धर्मनिरपेक्ष और धार्मि क दोनों हैं।


एलोरा गुफा चित्रकला (Ellora Cave Paintings)
• इन गुफाओ ं में बनी चित्रकारी मनुष्य को आश्चर्य में
• ये 34 गुफाओ ं के साथ सबसे बड़ी चट्टान से कटी डालती हैं।
चित्रकला हैं।

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चित्र 5.8: सीतनवासन के गुफा चित्र, तमिलनाडु

ले पाक्षी पेंटिंग (Lepakshi Paintings)

• ले पाक्षी (आन्‍ध्रप्रदेश) के अनंतपुर जिले के मंदिरों और


गुफा-मंदिरों की चित्रकारी प्रसिद्ध है। यहाँ से आदिमानव
निर्मि त भित्तिचित्र मिले हैं।

चित्र 5.6: बोधिसत्व, बाघ गुफा • इन गुफा-मंदिरों में चित्रकारी के रंग अब धुमिल हो गये
हैं।

• ले पाक्षी के चित्रों में ताडपत्रों पर लिखे कल्‍पसूत्र और उनमें


उकेरी जैन चित्रकला का प्रभाव है।

• ये मुराल चित्रकला विजयनगर काल की थीं और एशिया


में सबसे बड़ी हैं।

• प्राथमिक रंगों की अनुपस्थिति यहां देखी जा सकती है।

• छतों पर भी रामायण, महाभारत और पौराणिक कथाओ ं


के चित्र अंकित हैं।

चित्र 5.7: बाग गुफाओ ं में अन्य पेंटिंग

सित्तनवासल गुफाएँ (Sittanavasal Caves)

• यह गुफाएं तमिलनाडु के पुदक


ु ोटै जिले के सित्तनवासल
गाँव में स्थित हैं।

• जैन मंदिर यहाँ की मुख्य विशेषताएं हैं।

• सब्जियों और खनिज रंगों का इस्तेमाल किया गया हैं । चित्र 5.9: ले पाक्षी पेंटिंग
• पल्लव काल के दौरान मिली गुफाएँ ।

रावण छाया चित्र (Ravan Chaya Paintings)

• रावण छाया ओडिया के कंदुझार जिले में स्थित एक


प्राकृतिक गुफा आवास है। इसकी दीवारों और छतों पर

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सातवीं शताब्‍दी ईस्‍वी में बने चित्र मिले हैं। के दौरान, (1451-1526 ई) पांडुलिपि का एक सल्तनत
बुर्जुआ शैली उभरा। सल्तनत, सचित्र पांडुलिपि दरबारी
• रावण की छाया यहाँ बनायी गयी है ।
शैली का प्रतिनिधित्व करती थी। मुगल काल, (1526-
• आधी खुली छतरी की आकृति मिल सकती है। 1757 ई.) में जब शाही दरबार में स्टूडियो स्थापित किए
• रॉयल हंटिंग लॉज देखा जा सकता है। गए तब लघु चित्रों के विकास को देखा था।

• यह चोल काल के दौरान निर्मि त किये गये थे।

• शाही शोभायात्रा यहाँ पाया जा सकता है।


पूर्वी भारत (Eastern India)

पाल शैली (11 वीं - 12 वीं शताब्दी) (The Pala School)

बादामी भित्ति चित्र (Badami Mural Paintings) • बंगाल के पाल भारत में लघु चित्रों के संस्थापक थे।

• कर्नाटक में एक गुफा स्थल। • यह पूर्वी भारत के पालों के शासन के तहत निष्पादित बौद्ध
धर्म के धार्मि क ग्रंथों पर और पश्चिमी भारत में निष्पादित
• चालु क्य राजा मंगले श द्वारा संरक्षण।
जैन ग्रंथों के धार्मि क ग्रंथों पर डिजाइन के रूप में मौजूद है।
• गुफा को विष्णु गुफा के रूप में जाना जाता है क्योंकि
• ओदंतपुरी, विक्रमशिला, नालं दा और सोमारूपा के बौद्ध
गुफाओ ं में चित्रण वैष्णव संबद्धता को दर्शाता है।
मठ बौद्ध शिक्षा और कला के विशाल केंद्र थे।

• इन केंद्रों पर बौद्ध देवताओ ं की छवियों के साथ चित्रित,


तंजोर भित्ति चित्रकला (Tanjore Mural Painting) बौद्ध विषयों से संबंधित पांडुलिपियां ताड़ के पत्तों पर बड़ी
संख्या में लिखी गईं।
• तमिलनाडु के तंजोर (तंजावुर) के राजराजेश्वर मंदिर में
• पाल पेंटिंग को लहरदार रेखाओ ं और मनमोहक रंगो द्वारा
नृत्य करती हुई आकृतियों के चित्र ग्यारहवीं शताब्दी के
विशिष्ट बनाया जाता है।
हैं।

लघु चित्र (Miniature Paintings)

• लघु चित्रों का वर्णन छोटे और विस्तृत चित्रों के साथ किया


जाता है। ये पेंटिंग हस्तनिर्मि त, छोटे आकार की और बहुत
रंगीन हैं। इन लघु चित्रों की प्राथमिक विशेषता यह है कि
वे जटिल और कोमल ब्रश काम में शामिल करते हैं, जो
उन्हें एक अद्वितीय चरित्र प्रदान करता है।

• मानव आकृतियाँ आम तौर पर पार्श्वचित्र , उभरी हुई आँखें,


पतली कमर, नुकीली नाक आदि के अंदर देखी जाती चित्र 5.10: ग्रीन तारा, पाल शैली
हैं। विविध रंगों का उपयोग विभिन्न वर्णों के लिए किया
जाता था और आधार की विविधता का उपयोग किया
चित्रकला की पश्चिम भारतीय शैली (Western Indian
जाता था। कागज, कपड़े, ताड़ के पत्ते, आदि पर नियमित
School of Painting)
रूप से चित्रित।

• भारतीय लघु चित्रकला की परंपरा 9 वीं - 10 वीं शताब्दी • इन्हे जैन पेंटिंग के रूप में भी जाना जाता है, वे काफी हद
से पूर्वी भारत के बौद्ध काल में ताड़ के पत्ते की पांडुलिपि तक 12 वीं -16 वीं शताब्दी के जैन धार्मि क ग्रंथों के चित्रण
और पश्चिमी भारत में जैन ताड़ के पत्ते की पांडुलिपि में पता के लिए समर्पि त हैं।
लगाया जा सकता है। मुसलमानों के प्रवेश ने लघु चित्रों
• गुजरात, राजस्थान और मालवा में उल्ले खनीय स्थल
की विशेषताओ ं को काफी हद तक बदल दिया। मुख्य
मौजूद हैं।
परिवर्तन मिट्टी का रंग, प्राथमिक रंगों की अनुपस्थिति,
अलग-अलग बनावट आदि हैं। लघु चित्रकला की • सरल, चमकीले रंग, अत्यधिक परम्परागत चित्रों, और
विशेषताएं देश के विभिन्न क्षेत्रों में भिन्न थीं। लोदी काल लहरदार, कोणीय रेखांकन द्वारा चित्रित।

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चित्र 5.12: निमत्नामा- व्यंजनों का खजाना
चित्र 5.11: पश्चिम भारत की जैन चित्रकला

• शुरुआती उदाहरण 15 वीं शताब्दी के थे, जिसमें लोदी


अपभ्रंश शैली (Apabhramsa School) शासन के तहत बनाई गई शाहनामा, या बुक ऑफ किंग्स
की एक प्रति शामिल थी। कला का यह काम समकालीन
• 11 वीं से 15 वीं शताब्दी के दौरान यह चित्रकला शैली जैन चित्रों के लिए एक घनिष्ठ संबध
ं रखता है। अन्य
गुजरात और मेवाड़ क्षेत्र में थी । उल्लेखनीय कार्यों में दिल्ली के अमीर खुसरो का खामसे
• शुरुआत में यह पेंटिंग ताड़ के पत्तों पर की गई थी ("पंचक"), मांडू में चित्रित बोसान, और 16 वीं शताब्दी के
ले किन कुछ समय बाद यह कागज पर की गई । शुरुआती वर्षों में मालवा के सुल्तान के लिए चित्रित
नीमत-नाम की एक पांडुलिपि शामिल हैं। नीमत नाम की
• प्राकृतिक दृश्यों की कमी, कोणीय चेहरे, उभरी हुई आँखें
पांडुलिपि के चित्र शिराज की तुर्क मेन शैली से लिए गए
और हाशिये इस चित्रकला शैली के कुछ महत्वपूर्ण
हैं, ले किन पश्चिमी भारतीय शैली के स्थानीय संस्करण से
तत्व हैं।
अनुकूलित स्पष्ट भारतीय विशेषताओ ं को दिखाते हैं।

दिल्ली सल्तनत काल (13 वीं -16 वीं ईस्वी) (Delhi


Sultanate Period) दक्कन शैली (Deccan School)

• मानवाकार चित्रों के खिलाफ इस्लामिक निषेधाज्ञा • दक्कनी चित्रकला अहमदनगर, गोलकुंडा, बीजापुर और
के बावजूद दिल्ली सल्तनत ने कलात्मक काम और बाद में हैदराबाद में मुख्य केंद्रों के साथ उभरी। यह 16 वीं
चित्रकला के एक विशाल वर्ग का संरक्षण किया। वहाँ शताब्दी के उत्तरार्ध के दौरान विकसित हुआ, जो मुगल
स्वदेशी और फारसी तत्वों का एक मुख्य संलयन मनाया कला के लगभग समकालीन था। इन दरबारों में काम
जाता है। दिल्ली सल्तनत चित्रों की मुख्य विशेषताएं करने वाले अधिकांश चित्रकार अनातोलिया (तुर्की),
भारतीय परंपराओ ं पर आधारित हैं जिनमें पंक्तियों और फारस और यूरोप से आए थे। ये कलाकार अपने साथ
समान स्थिति में खड़े लोगों के समूह शामिल हैं, चित्र की अपनी कला के मुहावरे और कौशल ले कर आए थे, ये
चौड़ाई में संकीर्ण सजावट, और उज्ज्वल और असामान्य कलाकार अपने साथ अपनी कला का अलग ढं ग और
रंग। कौशल लाए थे जो उन्होंने तब तक हासिल कर लिए थे।
इसलिए, दक्कनी कला ने मुगल चित्रकला के समान
काफी परिपक्वता, सूक्ष्म परिशोधन और उच्च योग्यता
प्राप्त की।

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अहमदनगर बीजापुर
अहमदनगर के हुसैन निजाम शाह प्रथम मुख्य अली आदिल शाह प्रथम और उनके उत्तराधिकारी
संरक्षक थे। इब्राहिम द्वितीय मुख्य संरक्षक थे

तारिफ-ए-हुसैन शाही महत्वपूर्ण पांडुलिपि है जो नजुम-अल-उलु म (विज्ञान का सितारा) एक प्रमुख


परिदृश्य, सोने के आकाश और उच्च क्षितिज जैसे कार्य है
फारसी प्रभावों को प्रदर्शि त करती है
सोने के रंग का उदारतापूर्वक
उपयोग किया जाता है
डेक्कन पेंटिंग

गोलकुंडा हैदराबाद

कुतुब शाही शासक मुख्य संरक्षक थे 18 वीं शताब्दी के अंत में आसफ जाह राजवंश के
तहत उभरा
'मैना पक्षी वाली महिला' और ' हुक्का' का धूम्रपान
करने वाली महिला इसकी उल्ले खनीय कृतियां हैं "नौकरानियों की कंपनी में राजकुमारी" एक प्रसिद्ध
पेंटिंग है

• बीजापुर, इस शैली का प्रमुख केंद्र था, जो इब्राहिम आदिल शानदार ढं ग से बनता था। बिहज़ाद, जिसे बाबर उत्कृष्ट
शाह और इस चित्रकला शैली के तहत प्रमुखता से उभरा, मानता था के साथ, शाह मुजफ्फर का नाम एक महान
हालांकि मुगल शैली के समकालीन, शुरुआत में यह चित्रकार के रूप में जोड़ा जाता है, और इसने केशचित्रण में
स्वतंत्र रूप से विकसित होते रहे। बहुत अच्छा कार्य किया।

मुगल चित्रकला (16 वीं - 19 वीं शताब्दी) (Mughal हुमायूँ (Humanyun)


Paintings)
• जब यह शाह तहमास (सफावद फारसी शासक) दरबार
• मुगल साम्राज्य (16 वीं - 19 वीं शताब्दी) की अवधि के
में अपने निर्वासन के दौरान था तब हुमायूँ ने लघु चित्रों
दौरान मुगल चित्रकला का उदय,तथा विकास हुआ,
और पांडुलिपियों की शानदार कलात्मक परंपरा का
विकास विशेष रूप से दरबारी कला के रूप में हुआ। इसका
अनुभव किया।
विकास बहुत हद तक शासक के संरक्षक और उत्साह पर
निर्भर करता था। • हुमायूँ के निर्वासन से लौटने के बाद, इसने सूरी शासक
को हराकर अप,ने सिं हासन पर फिर से कब्जा कर लिया,
• मुगलकालीन चित्रकला पर ईरानी और फारसी प्रभाव
वह दो महान गुरुओ ं मीर सैय्यद अली और अब्दुस समद
स्पष्ट रूप से दिखायी देता है। मुगलकालीन चित्रकारों ने
को लाया। फ़ारसी दरबार में प्रशिक्षित ये दो महान स्वामी
राजदरबार,शिकारी तथा युद्ध के दृश्यों को खूब चित्रित
भारत में चित्रकला के पहले शिल्पशाला की स्थापना के
किया तथा नए रंगों और आकारों की शुरुआत की।
लिए उत्तरदायी थे।

• उन्होंने निगार खाना (चित्रकला कार्यशाला) की स्थापना


बाबर (Babur) की, जो उनके पुस्तकालय का एक भाग भी था। भारत में
हुमायूँ की कार्यशाला की रचना और आकार से संबंधित
• बाबर ने संस्मरण रखने की परंपरा को स्थापित किया बहुत कुछ ज्ञात नहीं है।
और विभिन्न प्रकार के एल्बम और किताबें जो शाही
• पेड़ों और फूलों के साथ खुली हवा की पेंटिंग, और शाही
शान में बनाई गई थीं, न केवल सुलेखित थीं, बल्कि
उत्सव्, जो मुगल साम्राज्य के पैतृक प्रतिनिधियों को
चित्रित भी थीं।
दर्शाती है, का पालन हुमायूँ के बाद किया गया, जो इस
• बाबर के संस्मरणों में जिन कलाकारों का उल्ले ख प्रकार की पेंटिंग और कलाकृति केसंरक्षक था। आंकड़े,
मिलता है, उनमें बिहजाद (फारसी स्कूल ऑफ पेंटिंग के प्रारूप, रंग पैलेट और थीम जैसी महत्वपूर्ण विशेषताएं
मास्टर कलाकार) हैं। बिहजाद की कला तो सुन्दर थी पर उल्ले खनीय रूप से फारसी हैं।
वह चेहरे को ठीक से नहीं बनता था। वह डबल चिन (गब-
गब) को काफी लं बा बनता था; और दाढ़ी वाले चेहरों को

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अकबर (Akbar)

• 1556 में, अपने पिता के नक्शेकदम पर अकबर ने मुगल


चित्रकला, फारसी, भारतीय और यूरोपीय कला के अनूठे
संगम की नींव रखी। स्टूडियो स्थापित किए गए थे, और
कार्यशालाओ ं (कारखाना) को सहयोगी निर्माताओ ं के
रूप में स्थापित किया गया था, जिसमें कागज बनाने
वाले , सुलेखक, प्रकाशक, गिल्डर, चित्रकार और बाइं डर्स,
सभी की देखरेख एक मास्टर द्वारा की जाती थी।

• 1560 और 1577 के बीच, उन्होंने बड़े पैमाने पर कई


प्रोजेक्ट शुरू किए। अकबर द्वारा शुरू की गई सबसे
शुरुआती चित्रकला परियोजनाओ ं में से एक 'तूतिनामा'
थी जिसका शाब्दिक अनुवाद 'टे ल्स ऑफ ए पैरट' है।
'तूतिनामा' एक एपिसोडिक फ़ारसी कहानी है जिसे 52
भागों में अनुवादित किया गया है। अकबर द्वारा कमीशन
की गई दूसरी बड़ी परियोजना 'हम्ज़नामा' थी, (उनके
पिता की रचनात्मक और कलात्मक विरासत हमजा
नाम की निरंतरता) जिसने अमीर हम्ज़ की कथा सुनाई।
हम्ज़नामा के चित्र बड़े आकार के हैं और यह,
चित्र 5.13: अकबर काल की मुगल पेंटिंग
• "20 x 27” आकार के हैं और कपड़े पर चित्रित किए गए हैं।
वे फारसी सफ़वी शैली में हैं, जिनमें लाल, नीला और हरा
रंगों का उपयोग है। जहांगीर (Jahangir)
• अकबर द्वारा कमीशन किए गए अन्य प्रसिद्ध चित्रों
• दरबार में अपनी चरम सीमा तक पहुंची, जो स्वयं एक
में 'गुलिस्तान', 'दरब नाम', 'निजामी का खमसा',
प्रसिद्ध चित्रकार था। जहाँगीर ने कलाकारों को चित्रों और
'बहारिस्तान', आदि 'गुलिस्तान' शामिल हैं, जो सादी
दरबार के दृश्यों को चित्रित करने के लिए प्रोत्साहित किया।
शिराज़ी की उत्कृष्ट कृति थी, जिसे फतेहपुर सीकरी में
चूंकि, जहाँगीर यूरोपीय चित्रकला से काफी प्रभावित
बनाया गया था।
था, उसने अपने चित्रकारों को यूरोपीय कलाकारों द्वारा
• सैय्यद अली, ख्वाजा अब्दुस समद, बसवान जसबंत और इस्तेमाल किए गए एकल बिं दु परिप्रेक्ष्य का पालन करने
दासवानथ सबसे प्रमुख कलाकार थे। का आदेश दिया। 'जहाँगीरनामा', जहाँगीर की आत्मकथा,
• अबुलफजल ने आइने अकबरी में 15 चित्रकारों का में कई चित्र शामिल थे, जिनमें असामान्य विषय शामिल
उल्‍ले ख किया है। थे, जैसे मकड़ियों के बीच लड़ाई।

• अकबर के काल में फारसी कहानियों को चित्रित करने • जहाँगीर ने एक प्रसिद्ध ईरानी चित्रकार और उनके बेटे
के साथ ही महाभारत तथा अन्‍य महत्‍वपूर्ण ग्रंथों से अबुल हसन को चित्रकला में बेमिसाल लालित्य प्राप्त
सम्‍बन्धित विषयों पर चित्र बनाये गये। करने के लिए अका रिज़ा नियुक्त किया।

• भारतीय रंगों (फिरोजी) तथा लाल रंग का प्रयोग बढ़ा। • एल्बमों में प्रदर्शि त की जाने वाली मुराक़्स व्यक्तिगत
चित्र जहाँगीर के संरक्षण में लोकप्रिय हो गई।
• ईरानी शैली के स्‍थान पर भारतीय चित्रकला शैली का
प्रभाव बढ़ा। • जहाँगीर स्‍वयं चित्रों का बड़ा पारखी था। उसके समय को
चित्रकला का स्‍वर्णयुग कहा जाता है।

• मुगल शैली में मनुष्‍य का चित्र बनाते समय एक ही चित्र


को विभिन्‍न चित्रकारों द्वारा चित्रित करने का रिवाज था।

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शाहजहाँ (1627-1658) (Shah Jahan)

• शाहजहाँ ने चित्रकला का संरक्षण जारी रखा। उसके


शासनकाल के दौरान, मुगल चित्रकला के सौंदर्यशास्त्र
को बनाए रखा गया था, जिसने मुगल चित्रों के विकास
में योगदान दिया। हालाँकि, ललित कलाओ ं के लिए
औरंगजेब की अरुचि के कारण चित्रों को नुकसान
उठाना पड़ा।

चित्र 5.14: जहांगीर के काल की मुगल पेंटिंग

चित्रकला के विभिन्‍न रूप (Different Forms of Painting):

राजस्थानी चित्रकला

मालवा किशनगढ़ मेवाड़ मारवाड़ बूंदी कोटा

राजपूत चित्रकला (16 वीं - 19 वीं शताब्दी) (Rajput • राजस्‍थानी चित्रकला की जन्‍म भूमि मेवाड़ को माना
Painting) जाता है। इसने अजंता चित्रण परम्‍परा को आगे बढ़ाया।

• भारत में संप्रभु हिं दू सामंती राज्यों की कला। • राजस्‍थानी चित्रकला को चार शौलियों में विभाजित
किया जा सकता है। प्रत्‍येक की उपशौलियाँ भी हैं (1)
• राजपूत चित्र मुगल चित्रों के विपरीत शैली में आधुनिक
मेवाड़ शैली (चावंड/उदयपुर/नाथद्वारा, देवगढ़) आदि (2)
थे, राजपूत चित्रकला पारंपरिक और प्रेम प्रसंग युक्त थीं।
मारवाड शैली (जोधपुर, बीकानेर, किशनगढ़, अजमेर,
• राजपूत चित्रकला को राजस्थानी चित्रकला और पहाड़ी नागौर, जैसलमेर) (3) हाडौती शैली- (कोटा, बूंदी), (4)
चित्रकला (हिमालयी राज्यों की कला) से अलग किया ढूंढाड़ शैली (आमेर, जयपुर, अलवर, उनियारा, शेखाबटी)
गया है। कई लोग राजपूत चित्रकला को ही राजस्‍थानी आदि।
चित्रकला मानते हैं।

• भारतीय पुराणों, महाकाव्यों, प्रेम कविताओ ं और भारतीय


लोककथाओ ं से प्रेरणा ले ते हुए, भारतीय परंपराओ ं में किशनगढ़ चित्रकला (18 वीं शताब्दी) (Kishangarh
गहराई से निहित है। Paintings)

• निम्न योग्यता के मुगल कलाकार जिन्हें अब मुगल • इसके व्यक्तिवादी चेहरे के प्रकार और धार्मि क भाव में
सम्राटों की आवश्यकता नहीं थी, वे राजस्थान चले गए। भिन्न हैं।

• मास्टर कलाकार निहाल चंद द्वारा राजा सावंत सिं ह


(1748-1757 ई.) के संरक्षण में विकसित किया गया।
राजस्थानी चित्रकला (Rajasthani Painting)
• मुगल और स्थानीय शैली का मिश्रण।
• राजपूत या राजस्‍थानी चित्र शैली का क्षेत्र अत्‍यन्‍त व्‍यापक
• किशनगढ़ शैली अपनी बानी-थानी (बणी-ठणी)
और समृद्ध है।
चित्रकला के लिए जाना जाती है।

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• इस शैली पर कांगडा शैली और बल्लभ सम्प्रदाय का मेवाड़ (उदयपुर) चित्रकला (17 वीं -18 वीं शताब्दी) (Mewar
प्रभाव अधिक है। (Udaipur) Paintings)

• गहरे चटकीले विषम रंग (लाल व पीले ) और प्रत्यक्ष


भावनात्मक विशिष्टता।

• सबसे पुराने उदाहरण 1605 में चित्रित रागमाला (संगीत


विधा) श्रृंखला से आते हैं।

• धार्मि क विषयों के साथ-साथ चित्रांकन और शासक के


जीवन को दर्शाता है।

चित्र 5.16: रागमाला, असावरी रागिनी

मारवाड़ (जोधपुर) चित्रकला (Marwar (Jodhpur)


Paintings)

• एक प्राचीन और ऊर्जावान लोक शैली में प्रदर्शि त किया।

• मुगल शैली की चित्रकला से प्रभावित नहीं थे।

• यह दरबार के दृश्यों, रागमाला और बारामासा की श्रृंखला


को चित्रित करता है।

चित्र 5.15: बानी थानी, किशनगढ़ स्कूल

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बूंदी चित्रकला (17 वीं शताब्दी के उत्तरार्ध) (Bundi
Paintings)

• मेवाड़ शैली के बहुत करीब, ले किन पूर्व गुणवत्ता में बाद


में उत्कृष्टता प्राप्त करता है।

• प्रमुख विशेषताएं समृद्ध और चमकदार रंग , सुनहरे रंग में


उगता सूरज, लाल-लाल क्षितिज, शानदार लाल रंग का
किनारा (रसिकाप्रिया श्रृंखला में) हैं।

• उल्ले खनीय उदाहरण हैं भैरवी रागिनी (इलाहाबाद


संग्रहालय), भागवत पुराण (कोटा संग्रहालय) की सचित्र
पांडुलिपि और रसिकप्रिया (राष्ट्रीय संग्रहालय, दिल्ली)
की एक श्रृंखला।

चित्र 5.18: बूंदी चित्रकला की शैली

कोटा चित्रकला (18 वीं - 19 वीं शताब्दी) (Kota


Paintings)

• चित्रों की बूंदी शैली के लगभग समरूप है।

• बाघ और भालू के शिकार के विषय लोकप्रिय थे।

• चित्र में अधिकांश स्थान पहाड़ी जंगल द्वारा लिया गया है।
चित्र 5.17: मारवाड़ (जोधपुर) चित्रकला

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बसोहली (जम्‍मु -कश्‍मीर के कठुआ जिले में) चित्रकला (17
वीं - 18 वीं शताब्दी) (Basohli Paintings)

• बसोहली चित्रकला का जन्‍म हिन्‍दू, मुगल तथा पहाड़ी


शैलियों के समन्‍वय से हुआ है।

• रंग, रेखाओ ं और लाल किनारियों की कला अपनी साहसी


जीवन शक्ति के लिए जाना जाता है।

• "रासमंजरी" नामक कृष्ण कथा के पाठ के भावपूर्ण दृश्य।

• आमतौर पर वास्तुशिल्प विवरण द्वारा चित्रित चित्र स्थान


के साथ पसंदीदा आयताकार प्रारूप, जो अक्सर विशिष्ट
लाल किनारियों में टू ट जाता है।

• शैली में चेहरे का प्रकार, जो पार्श्वचित्र में दिखाया गया है,


बड़ी, पेनी आंखों से सुशोभित है।

चित्र 5.19: महाराणा राम सिं ह द्वितीय होली खेलते हुए, राजपूत
मिनिएचर, कोटा।

मालवा चित्रकला (17 वीं शताब्दी) (Malwa Paintings)

• ये चित्रकला बड़े पैमाने पर मालवा और बुंदेलखंड क्षेत्र में


केंद्रित हैं।

• कभी-कभी इसे भौगोलिक वितरण के कारण एक मध्य


भारतीय चित्रकला के रूप में जाना जाता है।

• समतल रचनाएँ , काले और चॉकले ट-भूरे रंग की

• पृष्ठभूमि, एक ठोस रंग पैच के खिलाफ दिखाए गए

• आंकड़े, और जीवंत रंग में चित्रित वास्तुकला।

• इस शैली की सबसे आकर्षक विशेषताएं इसकी आदिम


आकर्षण और एक साधारण बच्चे जैसी दृष्टि हैं।

पहाड़ी शैली (17 वीं - 19 वीं शताब्दी) (The Pahari


Schools)

• हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर के उप-हिमालयी


राज्यों के क्षेत्र में जो चित्रकला मुगलों के संरक्षण में
थी, उन्हें पहाड़ी चित्रकला कहा जाता है। राजस्थान के
राजपूत राजाओ ं के पहाड़ी राजाओ ं के पारिवारिक संबंधों
के कारण, इन चित्रों पर राजपूत शैली के चित्रों का गहरा
प्रभाव था।

• 17 वीं और 19 वीं शताब्दी के दौरान समृद्ध हुए इस शैली


की चित्रकला और चित्रों को उनकी भौगोलिक सीमा के
आधार पर दो अलग-अलग श्रेणियों में विभाजित किया चित्र 5.20: बसोहली चित्रकला
जा सकता है बशोली और कुल्लू शैली, गुलेर और कांगड़ा
शैली।

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गुलेर चित्रकला (जम्मू) (Guler Painting) (Jammu) कांगड़ा (हिमाचल क्षेत्र) चित्रकला (18 वीं शताब्दी के
उत्तरार्ध) (Kangra Painting)
• नैनसुख द्वारा डिजाइन किए गए मुख्य रूप से जसरोटा
• कांगड़ा शैली का विस्तार गुलेर शैली से हुआ है और
(जम्मू) के राजा बलवंत सिं ह के चित्रों से युक्त।
इसका मुख्य भाग है। कला और प्रकृतिवाद की नाजुकता
• उपयोग किए गए रंग बसोहली स्कूल के विपरीत नरम जैसी मुख्य विशेषताएं हैं।
और शांत हैं।
• कांगड़ा शैली अलग-अलग स्थानों पर जारी रही, जैसे
• प्रतीत होता है कि यह शैली मुगल चित्रकला की प्राकृतिक कांगड़ा, गुइर, बसोहली, चंबा, जम्मू, नूरपुर और गढ़वाल
शैली से प्रेरित थी और हिं दु धर्म एवं परंपरा से प्रभावित रही आदि।
है।
• फिर भी, कांगड़ा शैली के रूप में नामित, वे कांगड़ा के
राजा संसार चंद के चित्रों के समान हैं।

• इन चित्रों में, पार्श्वचित्र में महिलाओ ं के चेहरे लगभग माथे


के अनुरूप नाक, आँखें लं बी और संकीर्ण हैं, और ठोड़ी
नुकीली है।

• हालांकि, चित्रों में मॉडल को नहीं दिखाया है और बालों


को चपटे रूप में दिखाया है।

• कांगड़ा शैली की चित्रकला मुख्य रूप से नैनसुख परिवार


के समर्पि त किया हैं।

कुल्लू-मंडी (हिमाचल क्षेत्र) चित्रकला (Kullu-Mandi


Painting)

• कुल्लू -मंडी क्षेत्र में चित्रकला की एक लोक शैली, अक्सर


स्थानीय परंपरा से प्रेरित होती है

• शैली बोल्ड ड्राइं ग और गहरे और हल्के रंगों के उपयोग से


प्रकट होती है।

चित्र 5.21: गुलेर चित्रकला

66
विशेषताओ ं के साथ पेंटिंग की एक शैली हैं। इस चित्रकला
शैली का एक विशिष्ट उदाहरण राष्ट्रीय संग्रहालय के
संग्रह में निहित है जिसमें राम का राज्याभिषेक दिखाया
गया है। राम और सीता को सिं हासन पर बैठाया जाता है,
हनुमान, सुग्रीव के साथ उनके भाइयों, ऋषियों, दरबारियों,
राजकुमारों द्वारा उनको सुना जाता हैं, जिन्हें सम्मानित
किया जा रहा है।

• तंजौर लघु चित्रकला की एक विशिष्ट विशेषता एक


शंक्वाकार ताज का वर्णन करती है।

• चित्रकला इस मायने में अनन्य हैं कि वे उत्तर भारत में


कपड़े और चर्मपत्र के विपरीत कांच और बोर्ड पर बनाई
गई हैं।

• वर्तमान में चित्रकला की यह शैली अभी भी चल रही है।

चित्र 5.23: तंजौर चित्रकला

चित्र 5.22: कुल्लू -मंडी चित्रकला

मैसूर चित्रकला (Mysore Painting)

दक्षिण भारत में लघु चित्र (Miniature Paintings in • यह मैसूर के शासकों द्वारा समर्थि त था और ब्रिटिश भारत
South India) में भी जारी रहा और मुख्य विषयों में हिं दू भगवान और
देवी देवताओ ं का चित्रण शामिल है।
तंजौर (तमिलनाडू स्थित) चित्रकला (Tanjore Painting)
• नाजुक रेखाएं , वनस्पति रंगों का विवेकपूर्ण उपयोग,
• 18 वीं और 19 वीं शताब्दी के दौरान, तंजौर में संपन्न सुशोभित प्रलाप, चमकदार सोने की पत्ती का उपयोग,
बोल्ड कला, छायांकन और उज्ज्वल रंगों के उपयोग जैसी जटिल ब्रश स्ट्रोक इस शैली की विशेषताएं हैं।

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• कई साहित्यिक कृतियों का आयोजन किया गया था, और मधुबनी चित्रकला (मिथला - बिहार) (Madhubani
सबसे प्रसिद्ध श्रीतत्त्वनिधि, जो कि 1500 पृष्ठों का एक Paintings)
स्वैच्छिक कार्य था।
• महिलाओ ं द्वारा चित्रित अनुष्ठान और उत्सव पर घरों की
• इन चित्रों को गेसो पेस्ट के उपयोग के साथ एक विविध आंतरिक दीवारों पर रंगीन आकर्षक चित्र।
शैली में बनाया गया था1 जो अरबी गोंद के साथ जिं क
• यह प्राचीन परंपरा, विशेष रूप से विवाह के लिए प्रचलित
ऑक्साइड को मिलाकर तैयार किया जाता था।
है, जो अब तक जारी है।

• कमरे की दीवारों को चित्रित करने के लिए इस्तेमाल


किया जाता है, जिसे कोहबर घार कहा जाता है जिसमें
लोक चित्रकला (Folk Paintings)
नवविवाहित जोड़े पहली बार मिलते हैं।
• लोक चित्रों में आमतौर पर विभिन्न प्राकृतिक भू पदार्थों
• बहुत सैद्धांतिक, पहले , चित्रकार सोचता है और फिर "
के साथ जीवंत और प्राकृतिक रंगों का उपयोग किया
अपने विचार चित्रित करता है।"
जाता है।

• वे प्राचीन काल से ही विद्यमान हैं और देश के विभिन्न


क्षेत्रों में शैलियों और प्रतिमानों में भारी विविधता है।

• अधिकांश लोक चित्र प्रतीकात्मक निरूपण हैं और यह


विषय धर्म से ले कर प्राकृतिक चीजों और दिन-प्रतिदिन
की गतिविधियों में भिन्न है।

कालीघाट चित्रकला (कोलकाता - 19 वीं शताब्दी)

(Kalighat Paintings)

• पटु आ चित्रकार ग्रामीण बंगाल से थे, वे 19 वीं शताब्दी की


शुरुआत में देवी-देवताओ ं की छवियों को बनाने के लिए
कालीघाट आए।

• उन्होंने मिल-निर्मि त कागज पर पेंटिंग का एक त्वरित


तरीका विकसित किया।

• लैं प की कालिख ,ब्रश और स्याही का उपयोग किया जाता


है।

चित्र 5.25: मधुबनी चित्रकला

फड़ चित्रकला (भीलवाड़ा, राजस्थान) (Phad Paintings)

• फड़ एक चित्रित सूंची है, जो स्थानीय देवताओ ं और


पौराणिक नायकों के बारे में महाकाव्य आयामों की
कहानियों का प्रतिनिधित्व करता है।

• भोपा (स्थानीय पुजारी) इन सूचियो को प्रदर्शन के लिए


अपने कंधे से कंधा मिलाकर गांव-गांव पहुंचाते हैं।

• यह देवता के चलते हुए मंदिर का प्रतिनिधित्व करता है


और पूजा का एक उद्देश्य है।
चित्र 5.24: कालीघाट चित्रकला

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• सबसे अधिक मान्यता प्राप्त और सबसे बड़ा फड़ -
स्थानीय देवता देवनारायणजी और पाबूजी हैं।

चित्र 5.26: फड़ पैटिंग्स

कलमकारी चित्रकला (आंध्र प्रदेश) (Kalamkari भारत में कलामकारी डिजाइन की 2 विशिष्ट शैलियाँ (2
Paintings)
Distinct Styles of Kalamkari Design in India)
• शाब्दिक अर्थ है कलाम (कलम), ज्यादातर आंध्र प्रदेश में
(विजयनगर शासकों के तहत विकसित)। • कलामकारी चित्रकला की मूसलीपट्टनम शैली
फारसी कला से प्रभावित और प्रेरित है। उपयोग किए
• महाकाव्यों रामायण, महाभारत और पुराणों की कहानियों
गए विभिन्न रूपांकनों फूल, पेड़ और पत्ती के पैटर्न
को निरंतर कथाओ ं के रूप में चित्रित किया जाता है।
ब्लॉक का उपयोग करके मुद्रित किए जाते हैं।
• ज्यादातर मंदिर के अंदरूनी हिस्सों को चित्रित कपड़े के
• श्रीकालहस्ती शैली कलामकारी चित्र हिं दू मंदिरों के
पैनल के दृश्य के बाद दृश्य के साथ सजाते है; हर दृश्य
साथ मंदिरों के आसपास फली-फूली और विकसित
पुष्प सजावटी पैटर्न से घिरा हुआ होता है।
हुई, इसलिए इसकी लगभग धार्मि क पहचान है, जिसमें
पेन (कलाम) का उपयोग फ्रीहैंड ड्राइं ग के लिए किया
जाता है और रंगों को भरने के लिए पूरी तरह से हाथ का
उपयोग किया जाता है।

वर्ली चित्रकला (Warli Painting)

• महाराष्ट्र के आदिवासी क्षेत्रों में, मुख्यतः धर्मनिरपेक्ष


विषयों के साथ प्रदर्शन किया गया।

• अनुष्ठान चित्रों का केंद्रीय रूप शिकार, खेती, मछली


पकड़ने, त्योहारों, नृत्यों, वृक्षों, वनस्पतियों और जीव-
जंतुओ ं - गतिविधियों, घटनाओ ं, उनके दैनिक जीवन से
जुड़ी वस्तुओ ं को चित्रित करने वाले दृश्यों से घिरा हुआ है।

• 'गोंड' और 'कोल' जनजाति के घरों और पूजा स्थलों के


फर्श और दीवारों पर सजावटी चित्रकला बनाई जाती है ।

• इसे एक ज्यामितीय मॉडल में बनाया गया है जैसे त्रिकोण,


वर्ग और वृत्त।

चित्र 5.27: कलमकारी चित्रकला • अन्य जनजातीय कला रूपों के विपरीत, वार्ली चित्रकला
धार्मि क शास्त्र पर कब्जा नहीं करती हैं और एक अधिक
धर्मनिरपेक्ष कला रूप हैं।

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पट्टचित्र (Pattachitra) थंगका (Thangka)

• ओडिशा में प्रचलित है । • स्थान: सिक्किम।

• कैनवास पर की गई पेंटिंग। • आधार के रूप में कपास कैनवास।

• गहरे रंगीन रूपांकनों और डिजाइनों पर ध्यान देने योग्य। • बौद्ध धर्म का प्रभाव।

• सामान्यतः पौराणिक चित्रण। • अलग-अलग दृश्यों के लिए अलग-अलग रंगों का


उपयोग।

कालमेजुथु (Kalamezhuthu)
आधुनिक चित्रकला (Modern Painting)
• केरल में प्रचलित है ।
बंगाल चित्रकला की शैली (Bengal School of
• केरल के मंदिरों और पवित्र घाटों में अनुष्ठानिक कला Painting)
का प्रयोग किया जाता है।
• अबनिं द्रनाथ टै गोर और हैवेल बंगाल स्कूल ऑफ
• माँ काली और भगवान अयप्पा जैसे देवताओ ं का प्रदर्शन
चित्रकला के संस्थापक थे।
सतह पर बने होते हैं।
• खोए हुए मूल्यों को पुनर्जीवित करना इस चित्रकला का
मुख्य उद्देश्य था।

मंजूषा (Manjusha) • यह चित्रों के पश्चिमी अधिकार के खिलाफ था।

• सीमित भारतीय परंपरा के आधार पर।


• स्थान: बिहार।
• चित्रों की राजा रवि वर्मा कला से अलग हो गए क्योंकि
• जिसे सर्प चित्र (साँप आकृति का उपयोग) भी कहा जाता
इसे पश्चिमी शैली में बनाया गया था।
है।
• ऐतिहासिक और धार्मि क विषयों पर आधारित, सामाजिक
• पेंटिंग को जूट और कागज पर प्रदर्शि त किया जाता हैं।
और दैनिक जीवन के दृश्य।

• रंगों में हल्का रंग था।

• अजंता के चित्रों को यहाँ भव्य रूप से चित्रित किया गया


था।

• इसमें मुगल और राजस्थानी शैली का प्रभाव था।

• अबनिं द्रनाथ टै गोर की अरेबियन नाइट्स श्रृंखला (1930)


उनकी प्रसिद्ध रचनाओ ं में से है।

• अन्य प्रसिद्ध चित्रकार जैसे नंदलाल बोस, जैमिनी रॉय,


देवी प्रसाद रॉय, शारदा चरण उकील, और असित कुमार
हलधर भी इसी स्कूल के थे।

• वी.एस गायतोंडे, बलराज खन्ना और जे. स्वामीनाथन


जैसे सार चित्रकार इसी श्रृंखला में दिखाई दिए।

चित्र 5.28: मंजुषा चित्रकला • गुलाम मुहम्मद शेख, सतीश गुजराल, एस.एच रज़ा,
अकबर पदमसी (महिला), तैयब मेहता (बर्ड विद बर्ड),
कृष्णा खन्ना (सेंट फ्रांसिस और वुल्फ) भारत के
समकालीन कला परिदृश्य के कुछ अन्य प्रसिद्ध नाम हैं।

• फैशनेबल आधुनिक भारतीय महिला चित्रकारों में,


अर्पणा कौर, बी. प्रभा, कमला दास, अंजलि इला मेनन
और ललिता लाजमी का उल्ले ख किया जा सकता है।

• दक्षिण भारत ने के.सी.एस. पन्निककर, के.माधव


मेनन, एल.नरसिम्हामूर्ति , आदि जैसे अच्छे समकालीन
चित्रकारों को देखा गया।

70
चित्र 5.29: बंगाल स्कूल ऑफ़ पेंटिंग

रविं द्रनाथ टै गोर (Rabindranath Tagore)

• सजीव चित्र उनके मुख्य विषय थे।

• उनके द्वारा बनाई गई चित्रकला छोटी थी।

• उनके चित्रों में सरल बोल्ड रूप देखे जा सकते हैं।

• परिदृश्य विषयों का उपयोग किया गया था।

• उनके काम अत्यधिक कल्पनाशील और रचनात्मक थे।

• चित्रकला उनके ले खन से सीधे जुड़ी हुई थी।

• काली स्याही का उपयोग चित्रों के लिए किया जाता था।

चित्र 5.30: रवीन्द्रनाथ टै गोर की चित्रकला

71
अध्याय - 6

शास्त्रीय नृत्य
(CLASSICAL DANCE)

• भारत में प्राचीन काल से ही नृत्य की समृद्ध एवं विस्तृत रसानुभूति: नव रस


परम्परा प्रचलित रही है। विभिन्न कालों से उत्खनन,
रसानुभूति इन नृत्य रूपों का परम लक्ष्य है। नाट्य शास्त्र आठ
शिलाले ख, ऐतिहासिक वृतांत, राजाओ ं और कलाकारों
रसों का वर्णन करता है। ये निम्नलिखित हैं:
की वंशावली, साहित्यिक स्रोत, मूर्ति कला और चित्रकला
से ले कर सभी प्रमुख ऐतिहासिक स्रोत नृत्य से संबंधित श्रृंगार प्रेम
व्यापक प्रमाण प्रदान करते हैं। नृत्य का भारतीय लोगों
के धार्मि क एवं सामाजिक जीवन में महत्वपूर्ण स्थान था। हास्य विनोद

• भारतीय शास्त्रीय नृत्य की छः प्रसिद्ध शैलियाँ धार्मि क करुणा दुःख


अनुष्ठान के एक भाग के रूप में विकसित हुई, जिनमें
नर्तकों द्वारा अपने जीवन और गतिविधियों का वर्णन रौद्र क्रोध
करते हुए देवताओ ं की पूजा की गयी है। भारतीय शास्त्रीय
वीर शूरता
नृत्य के सिद्धांत भरत मुनि द्वारा रचित नाट्य शास्त्र’ से
उत्पन्न हुए हैं। उन्होंने भगवान ब्रह्मा को इसका स्रोत भयानक भय
बताया है। भगवान ब्रह्मा ने पाँचवें वेद का निर्माण किया
जिसे 'नाट्यवेद’ कहा जाता है, जो चार मौजूदा वेदों के सार वीभत्स घृणा
का प्रतिनिधित्व करते है।
अदभुत आश्चर्य

शांत शांति

शास्त्रीय नृत्य के घटक वर्तमान में, भारत में आठ शास्त्रीय नृत्य शैलियाँ हैं।

(Components of
Classical Dance) भारत के शास्त्रीय नृत्य
तीन प्रमुख घटक इन नृत्यों का आधार निर्मि त करते हैं। (Classical Dances of
• नाट्य, नृत्य का नाटकीय घटक (यानी, चरित्र का India)
नाटकीय रूपांतरण)।
भरतनाट्यम् (Bharat Natyam)
• नृत्त, शुद्ध नृत्य, जिसमें संगीत के लय और भाव शरीर के
हाथों की अलं कृत मुद्राओ ं तथा पद संचालनों में परिलक्षित • स्थान- तमिलनाडु।
होते हैं; तथा
• उत्पत्ति- देवदासी की परंपरा।
• नृ्त्य में मुख अभिनय, हस्त भंगिमाओ ं और पाँव एवं पद
• विषय-वस्तु- रामायण, महाभारत, शैववाद, वैष्णववाद,
के माध्यम से मनोदशा का चित्रण।
शक्तिवाद।

नृत्य के दो पहलू हैं। • लास्य और तांडव दोनों प्रमुख हैं।

• विशेषताएं :
• तांडव: पुरूषोचित है, इसमें मुद्राओ ं, लय, वीरता को इं गित
किया जाता है।
» भरतनाट्यम को सधिर अटटम भी कहा जाता है।
• लास्य(स्‍त्री सुलभ लालित्‍यपूर्ण नृत्‍य): यह शास्‍त्रीय नृत्‍य
» भरतनाट्यम भारत में शास्त्रीय नृत्यों में सबसे प्राचीन
का एक रूप है। इसकी विशेषता हैं स्त्रीयोचित कोमलता,
नृत्य शैली है।
लयात्‍मकता, मधुर भावों और श्रंगार रस की प्रधानता।
इसमें अनुगृह अभिज्ञान को इं गित किया जाता है। » शिलप्पादिकारम नामक प्राचीन तमिल महाकाव्य में
इसका वर्णन किया गया है।

72
» इसके प्रारंभिक साक्ष्य भरत मुनि द्वारा रचित प्राचीन विषयों को अपनाया गया।
संस्कृत ग्रंथ नाट्य शास्त्र से प्राप्त होता है।
• इसमें लास्य प्रधान है।
» यह अपने स्थिर ऊपरी धड़, मुड़े हुए पैर या घुटने, अदभुत
• संगीत: हिं दुस्तानी संगीत।
पद संचालनों तथा हस्त, नेत्रों और चेहरे की मुद्राओ ं के
आधार पर सांकेतिक भाषा की एक परिष्कृ त शब्दावली • विशेषताएं :
के संयोजन हेतु प्रसिद्ध है।
» कथक को प्रसारित करने में प्राचीन उत्तरी भारत के कथा
» शरीर के भार को शरीर के केंद्र में संकेंद्रित करते हुए फर्श वाचन करने वाले लोगों का प्रमुख योगदान रहा है, जिन्हें
पर पैरों से गति करने और छलांग लगाने पर बल दिया कथककारों या कथाकारों के रूप में जाना जाता है।
जाता है, जिसे भ्रामरी कहा जाता है।
» कथक शब्द की उत्पति वैदिक संस्कृत शब्द कथा से हुई है
» इस नृत्‍यकला में भावम (भ), रागम (र), और तालम (त) जिसका अर्थ "कहानी " है। कथिका का अर्थ " कथा वाचन
= भरत का समावेश होता है। करने वाला", या" कहानियों के साथ अभिनय करने
» यह अपने अभिनय एवं लक्ष्यों दोनों में प्रतीकवाद में है। वाला" होता है।
अभिनय का साक्ष्य नाट्यशास्त्र ग्रन्थ में पाया गया है। » इसमें महाकाव्य और प्राचीन पौराणिक कथाओ ं को नृत्य,
» मूल रूप से नृत्य सामान्यतः सात मुख्य भागों में विभाजित हस्त एवं पाद मुद्राओ ं, चेहरे के भाव, गीत और संगीत के
किया जाता है। माध्यम से प्रदर्शि त किया जाता है।

» अलारिप्‍पू , जातिस्वरम, शब्दम, वर्णम, पदम्, थिल्लन » कथक का विकास भक्ति आंदोलन के दौरान हुआ। इसमें
और शब्दम। भगवान कृष्ण का बाल्यकाल और कहानियां शामिल हैं।

» उदाहरणस्वरूप कृष्णा अय्यर और रुक्मिणी देवी अरुं डेल » यह मुख्यत तीन भिन्न रूपों में विकसित हुआ है, जिसे
ने इस नृत्य शैली की खोई लोकप्रियता और स्थिति को घराना कहा जाता है - बनारस, लखनऊ और जयपुर।
पुनः प्राप्त करने में करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। कथक में रायगढ़ घराना का भी बड़ा नाम है छत्तीसगढ़
के महाराज चक्रधर सिं ह ने इस घराने को प्रतिस्थापित
» इस नृत्य शैली के प्रेरणा स्रोत चिदम्बरम के प्राचीन मंदिर
किया था।
की मूर्ति याँ हैं।
» यह नृत्य रूप छोटे -छोटे घुंघरूओ ं से सज्जित और संगीत
के साथ लयबद्ध पैरों की गति को प्रदर्शि त करता है।

» पैर और धड़ सामान्यतः सीधे होते हैं और कहानी का वाचन


एक विकसित शब्दावली के माध्यम से किया जाता है जो
हस्त मुद्राओ ं और ऊपरी शरीर की गति, पाद गति, चेहरे के
भाव, झुकाव और मोड़ आदि पर आधारित होता है।

» नृत्य का मुख्य बल आँखों और पैरों की गतियों पर होता हैं।

» ले डी लीला सोखी (मेनका) ने कथक की शास्त्रीय शैली


को पुनर्जीवित किया। कुछ प्रमुख नर्तक बिरजू महाराज
और सितार देवी आदि हैं।

चित्र 6.1: भरतनाट्यम

कथक (kathak)

• स्थान: उत्तर प्रदेश और मध्य भारत।

• उत्पत्ति: मुगल दरबार में देवदासियों से।


चित्र 6.2 : कथक
• विषय वस्तु: राधा-कृष्ण ले किन कालांतर में धर्मनिरपेक्ष

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कथकली (Kathakali)

• स्थान: केरल

• मूल: रामानाट्टम गाँव

• विषयवस्तु: रामायण और महाभारत

• इसमें तांडव की प्रधानता होती है।

• संगीत: कर्नाटक संगीत

• विशेषताएं :

» पीतल का दीपक "निलाविल्लकु" के रूप में जाना जाता


है, के सामने भोर के बाद खुले मंच पर नृत्य।

» कथकली के पारंपरिक विषय हिन्दू महाकाव्यों और


पुराणों से सम्बंधित हैं।

» चाकियारकुत्‍त्, कृष्‍णानाट्टम, कूडियाट्टम और रामानाट्टम


केरल की कुछ अनुष्ठानिक निष्पादन कलाएं हैं जिनका
कथकली के प्रारूप और तकनीक पर प्रत्यक्ष प्रभाव है।
चित्र 6.3 : कथकली
» कथकली नृत्‍य, संगीत और अभिनय का मिश्रण है और
इसमें अधिकतर भारतीय महाकाव्‍यों से ली गई कथाओ ं
का नाटकीकरण किया जाता है।
कुचिपुड़ी (Kuchipudi)
» अत्यधिक श्रृंगार और आकर्षक पोशाक (विस्तृत मुखौटे ,
विशाल मुकुट और विशाल स्कर्ट) का उपयोग किया • स्थान: आंध्र प्रदेश।
जाता है।
• उत्पत्ति: भगवथुलु द्वारा मंदिर में नृत्य किया जाता है।
» चहरे पर आंखों के चारों ओर लाल सफेद रंग कथकली
• विषयवस्तु: भागवत पुराण
की मुख्य विशेषता है।
• लस्या और तांडव दोनों प्रमुख हैं।
» नर्तक की वेषभूषा श्रृंगार के साथ कथा की भूमिकाओ ं
(देवताओ ं, राजाओ ं, राक्षसों आदि) को प्रदर्शि त करती है • संगीत: कर्नाटक संगीत।
और गायक कथा वाचन करते हैं और संगीतकार वाद्य • विशेषताएं :
यंत्र बजाते हैं।
» कुचिपुड़ी आंध्र प्रदेश के कृष्णा जिले का एक गाँव है
» विभिन्न चेहरे के रंग एक अलग मानसिक चरणों और
जिसमें नृत्य-नाट्य की अत्यधिक प्राचीन परंपरा है। यह
चरित्र को इं गित करते हैं, जैसे, काला - दुष्टता, हरा -
यक्षगान के व्यापक नाम के तहत लोकप्रिय था।
कुलीनता, लाल धब्बे - राजसी और बुराई का संयोजन।
» 17वीं शताब्दी में, यक्षगान की कुचिपुड़ी शैली की कल्पना
» चेहरे के भाव, हाथ के संकेत और आंखों की गति भी
सिद्धेंद्र योगी द्वारा की गयी थी। वह संस्‍कृ त में कृष्‍ण-
महत्वपूर्ण होती हैं।
लीला-तरंगिणी नामक काव्‍य के रचयिता, अपने गरु
» शरीर का सारा भार पैरों के बाहरी किनारों पर होता है, जो तीर्थनारायण योगी द्वारा मार्गदर्शन प्राप्‍त करके यक्षगान
थोड़े झुके हुए और मुड़े हुए होते हैं। की साहित्यिक परंपरा में शामिल हो गए ।
» वल्लथोल नारायण मेनन ने 1930 में केरल कलामंडलम » यह नृत्य नाटक के रूप में अर्थात प्रदर्शन समूहों और
की स्थापना की और इसे शास्त्रीय केरल नृत्य शैली एकल तत्व के रूप में किया जाता है।
कथकली को पुनर्जीवित करने का श्रेय दिया जाता है।
» श्रृंगार, पोशाक और गहनों का मुख्य स्थान हैं।
» रमणकुट्टी नायर और कलामंडलम गोपी इसके प्रमुख
» एकल तत्व बालगोपाल तरंगम (सिर पर जल से भरे घड़े
कलाकार थे।
के साथ पीतल की थाली के किनारों पर नृत्य), मंडुका
शब्दम (मेंढक की कहानी), और तल्ला चित्रा नृत्य (नृत्य
करते हुए पैर के अंगूठे से चित्र बनाया जाता है) हैं।

» वेदांतम लक्ष्मीनारायण शास्त्री (1886-1956) वह प्रमुख


व्यक्ति थे जिन्होंने शास्त्रीय कुचिपुड़ी नृत्य के रूप को

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पुनर्जीवित, संरक्षित और पुनः संगठित करने हेतु विभिन्न » यथार्थवादी श्रृंगार और साधारण वस्त्र (केरल के कासवु
प्रयास किए। साड़ी में) का उपयोग किया जाता है।

» यामिनी कृष्णमूर्ति और राजा रेड्डी प्रसिद्ध नर्तक हैं। » इसके गीत मणिप्रावलम (संस्कृत, तमिल और मलयालम
के संयोजन से निर्मि त एक मध्यकालीन दक्षिणी भारतीय
भाषा) में हैं।

» सुनंदा नायर और पल्लवी कृष्णन प्रसिद्ध कलाकार हैं।

चित्र 6.4 कुचिपुड़ी

चित्र 6.5 : मोहनियाट्टम


मोहिनीअट्टम (Mohiniyattam)

• स्थान: केरल।
ओड़ीसी (Odissi)
• उत्पत्ति: भस्मासुर कथा।

• विषयवस्तु: विष्णु और भगवान कृष्ण के प्रति समर्पण। • स्थान: ओडिशा।

• लास्य की प्रधानता है। • उत्पत्ति: महरिज, नर्तकी, गोटीपुआ, देवदासी परंपरा।

• संगीत: कर्नाटक संगीत • विषय वस्तु: पौराणिक कथाएं ।

• विशेषताएं • लास्य और तांडव दोनों प्रमुख हैं।

• संगीत: हिं दुस्तानी संगीत


» मोहिनीअट्टम का उल्ले ख मज्हमंगलम नारायणन
• विशेषताएं :
नम्बु‍तिरि द्वारा 1709 में रचित ‘‘व्यवहारमाला’’ ग्रंथों
और बाद में महान कवि कुंजन नम्बियार द्वारा लिखित
» ओड़ीसी का नाम नाट्य शास्त्र में वर्णित 'ओड्रा नृत्य' से
‘‘घोषयात्रा’’ में पाया जाता है ।
लिया गया है। खंडगिरि-उदयगिरी गुफाएं ओड़ीसी नृत्य के
» इसे त्रावणकोर राजा, महाराजा कार्ति का तिरुनल और कुछ प्रारंभिक उदाहरण प्रस्तुत करती हैं।
उनके उत्तराधिकारी महाराजा स्वाति तिरुनल (18- 19 वीं
» इसे जैन राजा खारवेल का संरक्षण प्राप्त था और मुख्यतः
शताब्दी) ने समकालीन शास्त्रीय रूप में संरचित किया
महरियों द्वारा निष्पादित किया जाता था।
था।
» कविचंद कालीचरण पटनायक ने ओड़ीसी नृत्य शैली
» यह अधिकांश एकल नर्तकी द्वारा घूमते हुए, सुंदर मुख
को पुनर्जीवित किया। बाद में इं द्राणी रहमान और चार्ल्स
अभिव्यक्तियों और सौम्य पद संचालनों से किया जाता है।
फैब्री के प्रयासों ने इस नृत्य रूप को अंतर्राष्ट्रीय स्वीकृति
» मोहनियाट्टम में गति नांगियार कुथु और महिला लोक दिलाई।
नृत्य तिरुवतिराकली और कईकोत्तीकली से ली गयी है।
» भावों को अभिव्यक्त करने के लिए मुद्राओ ं और भंगिमाओ ं
» इस नृत्य में भरतनाट्यम (अनुग्रह और लालित्य) और का उपयोग भरतनाट्यम के समान होता हैं।
कथकली (बल) के तत्व समाहित हैं, परन्तु यह अधिक
» त्रिभंग मुद्रा: त्रिभंग नृत्य का रूप ओड़ीसी की एक
श्रृंगारिक, सौम्य और लयात्मक है।
महत्वपूर्ण विशेषता है।

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» ओड़ीसी नृत्य में अभिनय और नृत्य सहित नाट्य का • विशेषताएं -
प्रदर्शन किया जाता है।
» मणिपुरी नृत्य की उत्पत्ति पौराणिक है जिसके प्रमाण
» यह लालित्य , विषयासक्ति और सौन्दर्य का अद्वितीय
मणिपुर की घाटी में 'गंधर्व' के साथ-साथ शिव और पार्वती
प्रदर्शन है।
के नृत्य में खोजे जा सकते हैं।
» नर्तक अपने शरीर से ज्यामितीय आकृतियों और पैटर्न
» इस नृत्य को मुख्यत: वैष्णववाद की शुरुआत के बाद
बनाए जाते हैं। इसलिए इसे 'चलायमान शिल्पाकृति'
प्रसिद्धि मिली।
कहा जाता है। और 'चौक' मुद्रा एक वर्ग के समान होती है।
» रवीन्द्र नाथ टै गोर ने शान्तिनिकेतन में इस नृत्य को
प्रस्तुत किया जिससे आधुनिक समय में इस नृत्य की
प्रमुखता को पुन: प्राप्त किया।

» मणिपुरी भक्ति पर बल देता है। इसमें तांडव और लास्य


दोनों शामिल हैं जिसमें लास्य पर प्रमुख बल दिया जाता
है।

» नागबंधा मुद्रा इस नृत्य की मुख्य विशेषता है जिसमे


शरीर को 8’ के आकार में संयोजित किया जाता है।

» रास लीला’ मणिपुरी नृत्य की एक पुनरावर्ती विषयवस्तु


है।

» मणिपुरी नृत्य में प्रयुक्त ड्रम, बांसुरी, सींग, तम्बूरा, इसराज,


झांझ और मृदंग कुछ प्रमुख वाद्ययंत्र हैं।

» झावेरी बहनें, गुरु बिपिन सिं ह मणिपुरी नृत्य के प्रसिद्ध


कलाकार हैं।

चित्र 6.6 ओड़िसी

ओड़िसी के तत्वों में शामिल हैं (Elements of Odissi


Include)

• मंगलाचरण: यह नृत्य का आरंभ है।

• बटु नृत्य: इसमें नृत्य शामिल है।

• पल्लवी: इसमें मुखाभिव्यक्तियां और गीत की प्रस्तुती


शामिल है।

• थारिझाम: समापन से पहले शुद्ध नृत्य का समापन।

• ओड़िसी नृत्य रूप में जल को निरूपित किया जाता है।

• गुरु पंकज चरण दास, गुरु केलू चरण महापात्र इस नृत्य


शैली के प्रमुख समर्थक हैं।

मणिपुरी (Manipuri) चित्र 6.7: मणिपुरी

• स्थान- मणिपुर।

• उत्पत्ति- सामाजिक-सांस्कृतिक समारोह।


सत्त्रिया नृत्य (Sattriya)
• विषयवस्तु- रासलीला।
• स्थान -असम।
• लास्य और तांडव दोनों प्रधान हैं।
• उत्पत्ति- शंकरदेव- सत्र।
• संगीत- मणिपुरी संगीत।
• विषयवस्तु- विष्णु और कृष्ण की भक्ति।

76
• लास्य और तांडव दोनों प्रधान हैं। • कालांतर में स्वर्गीय मणिराम दत्ता मुकतियार बरबायान,
स्वर्गीय डॉ महेश्वर नेग और स्वर्गीय रामेश्वर सैकिया
• संगीत- असमिया स्थानीय संगीत।
बारबयान आदि जैसे प्रमुख व्यक्तित्वों और सुधारकों
• विशेषताएं : ने शास्त्रीय सत्त्रिया नृत्य को बाहरी विश्व में लाने और
विकसित करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
» सत्त्रिया नृत्य रूप का नाम वैष्णव मठों से लिया गया है
जो लोकप्रिय रूप से सत्र के नाम से जाना जाता है।

» यह नृत्य के भक्ति पक्ष पर अधिक बल देता है और विष्णु


की पौराणिक कथाओ ं पर आधारित है।

» सत्त्रिया को भोकोत्स के रूप में जाने जाने वाले पुरुष


संन्यासियों द्वारा अपने दैनिक अनुष्ठान के भाग के रूप
में किया जाता है।

» खोल और बाँसुरी सत्त्रिया नृत्य में बजाए जाने वाले


प्रमुख वाद्य यंत्र हैं।

» इसमें पद चालन के साथ साथ लयबद्ध शब्दांश और नृत्य


मुद्राओ ं पर अधिक बल दिया जाता है।

» सत्त्रिया नृत्य में पद चालन और हस्त मुद्राओ ं के संबंध में


कठोर नियम बनाए गए हैं।

» गायन-भयानार नाच और खरमार नाच आधुनिक समय


में विकसित इसकी दो धाराएँ हैं।

» 15वीं और 16वीं शताब्दी में श्रीमंत शंकरदेव द्वारा स्थापित


'सत्र' सत्त्रिया नृत्य की उत्पत्ति का स्रोत है।
चित्र 6.8: सत्त्रिया

मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की प्रतिनिधि सूची

वर्ष(जिसमें
नाम शामिल विवरण
किया गया)
विश्व में तीर्थयात्रियों का सबसे बड़ा शांतिपूर्ण समागम है, इस समागम के दौरान
तीर्थयात्री स्नान करते हैं।
कुंभमेला 2017
यह त्यौहार प्रत्येक चार वर्ष में 4 स्थानों यथा इलाहाबाद, हरिद्वार, उज्जैन और
नासिक में आयोजित किया जाता है
ईरानी नव वर्ष मुख्य रूप से भारत में पारसी समुदाय द्वारा सामान्यतः 21 मार्च के
नवरोज़ 2016
आसपास मनाया जाता है
यह शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक प्रथाओ ं या सिद्धांतों का एक समूह है
योग 2016
जिसका उद्भव प्राचीन भारत में हुआ था।
पीतल और तांबे के बर्तनों जंडियाला गुरु के ठठे रों द्वारा पीतल और तांबे के बर्तनों के निर्माण की पारंपरिक
2014
के निर्माण की शिल्प कला शिल्प कला स्थापित की।
मणिपुरी संकीर्तन एक निष्पादन कला है जिसमें मंदिरों और घरेलू स्थानों पर
संकीर्तन 2013
अनुष्ठान संबंधी गायन, नृत्य, और ढोल आदि का उपयोग किया जाता है।
लद्दाख क्षेत्र के मठों और गांवों में, बौद्ध लामा (पुजारी) गौतम बुद्ध की आत्मा,
लद्दाख का बौद्ध जप 2012
दर्शन और शिक्षाओ ं का प्रतिनिधित्व करने वाले पवित्र ग्रंथों का जप करते हैं।
युद्ध कला, आदिवासी और लोक परंपराओ ं के साथ अर्ध शास्त्रीय भारतीय नृत्य,
छऊ नृत्य 2010
जिसकी उत्पत्ति पूर्वी क्षेत्र में हुई थी

77
यह नृत्य कालबेलिया जनजाति का एक अभिन्न अंग है और पुरुषों और
कालबेलिया नृत्य 2010
महिलाओ ं द्वारा किया जाता है।
मुडियेट्टू 2010 केरल का अनुष्ठानिक रंगमंच और नृत्य नाटक।
रम्मन 2009 भारत के गढ़वाल हिमालय का धार्मि क उत्सव और अनुष्ठानिक रंगमंच
भारत की सबसे प्राचीन जीवंत नाट्य परंपराओ ं में से एक।
कुट्टीयट्टम 2008
केरल का संस्कृत रंगमंच।
एक हजार से अधिक वैदिक पाठ शाखाओ ं में से केवल 13 शेष हैं।
वैदिक जप की परम्परा 2008 चार प्रसिद्ध सम्प्रदायों - महाराष्ट्र, केरल और कर्नाटक और उड़ीसा को खतरे में
माना जाता है।
रामलीला 2008 अयोध्या, रामनगर और बनारस, वृंदावन, अल्मोड़ा, सत्तना और मधुबनी की
रामलीलाओ ं में सबसे अधिक प्रतिनिधि हैं।

लोक नृत्य (Folk Dances)

• लोक नृत्य भारत के समृद्ध सांस्कृतिक परिदृश्य की


खोज में सहायता करते हैं। प्रत्येक राज्य या क्षेत्र का उस
राज्य या क्षेत्र के मिथकों और किंवदंतियों पर आधारित
एक विशिष्ट लोक-नृत्य होता है। यह जटिल कला का
एक समृद्ध मिश्रण होता है। शास्त्रीय नृत्य के विपरीत,
लोक नृत्य स्थानीय लोगों द्वारा सहज रूप में और बिना
किसी उचित प्रशिक्षण के किया जाता है। लोक नृत्य लोगों
या एक विशेष क्षेत्र के एक निश्चित हिस्से तक ही सीमित
होता है। इसके ज्ञान को पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित किया
जाता है।

छऊ (Chhau)

• छऊ पश्चिम बंगाल, झारखंड और ओडिशा में लोकप्रिय


एक आदिवासी मार्शल आर्ट है।

• छऊ की उत्पति छाया शब्द से हुई है जिसका अर्थ परछाई चित्र 6.9: छऊ


है।

• इसमें पौराणिक कहानियों का वर्णन है। यह एक प्रकार


का मुखौटा नृत्य है जिसमें कहानियों का वर्णन करने के कालबेलिया (Kalbelia)
लिए युद्धक मुद्राओ ं का उपयोग किया जाता है।
• कालबेलिया राजस्थान के कालबेलिया समुदाय की
• सर्प नृत्य, मयूर नृत्य, आदि कुछ स्वाभाविक विषय हैं महिलाओ ं द्वारा किया जाने वाला एक लोक नृत्य है।
जिनका प्रयोग छऊ नृत्य में किया जाता है।
• नृत्य की मुद्राएं और वेशभूषा एक सर्प जैसी होती हैं।
• झारखंड में सरायकेला छऊ, पश्चिम बंगाल में ओडिशा में
• इस नृत्य रूप का सबसे मुख्य संगीत वाद्ययंत्र ’बीन’
मयूरभंज छऊ (इसमें मास्क का प्रयोग नहीं किया जाता
(सपेरों द्वारा बजाया गया स्वर वाद्य यंत्र) है।
है) और पश्चिम बंगाल में पुरुलिया छऊ छऊ नृत्य की
तीन प्रमुख विधियाँ हैं। • 2011 में, यूनेस्को ने कालबेलिया लोक गीतों और
मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की प्रतिनिधि
• छऊ नृत्य को 2011 में यूनेस्को द्वारा अपनी मानवता की
सूची में शामिल किया गया।
अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की प्रतिनिधि सूची में शामिल
किया गया था।

78
भांगड़ा (Bhangra)

• भांगड़ा पंजाब का एक प्रसिद्ध लोक नृत्य है। यह प्रत्येक


उत्सव के अवसर पर किया जाता है।

• इस लोक नृत्य में उत्सव एवं परिस्थिति के अनुसार


अधिक से अधिक प्रतिभागी शामिल होते है और एक बड़ा
घेरा बना बनाकर नृत्य करते हैं।

• नर्तक की गति और मुद्राएं , नृतकों के घेरे के बीच में रखे


ढ़ोल की थापों पर निर्भर करती है।

• नृत्य की भावना तक पहुँचने पर नर्तकियों द्वारा तालबद्ध


दुख या खुशी को प्रकट किया जाता है।

चित्र 6.10: कालबेलिया

बिहू (Bihu)

• बिहू असम का एक फैशनेबल नृत्य है। इसे पुरुषों और


महिलाओ ं दोनों द्वारा एक समूह में निष्पादित किया जाता
है। नर्तकियों द्वारा नृत्य द्वारा रंगीन पारंपरिक पोशाक
पहनकर धूमधाम और उल्लास को प्रदर्शि त किया जाता
है।

• तीव्र हस्त मुद्राएं , सामूहिक विन्यास और तीव्र पद चालन


बिहू नृत्य के विशिष्ट पहलू हैं। चित्र 6.12 भांगड़ा

घूमर (Ghoomar)

• घूमर मुख्य रूप से राजस्थान का एक लोकप्रिय लोक-


नृत्य है।

• यह मुख्य रूप से 'घाघरा' नामक घूंघट युक्त पोशाक पहने


हुई महिलाओ ं द्वारा किया जाता है।

• यह प्रेम, महिमामंडन या पराजय आदि सभी के गीतों पर


किया जाता है।
चित्र 6.11 बिहू • यह सभी मौसमों में किया जाता है।

• पुरुष भी घूमर प्रस्तुत करते हैं। पुरुष और महिलाएं एक


घेरे में नृत्य करते हैं जिसके आधे भाग को पुरुषों और
दूसरे आधे भाग को महिलाओ ं द्वारा बनाया जाता है।

• यह नृत्य वाद्य यंत्रों और मुखर संगीत के साथ किया जाता


है।

79
रऊफ (Rouff)

• रऊफ जम्मू और कश्मीर का एक लोक नृत्य है जो मुख्य


रूप से महिलाओ ं द्वारा फसल के मौसम के दौरान किया
जाता है।

• महिलाएं दो पंक्तियों में नृत्य करती हैं। महिलाओ ं द्वारा


नृत्य के दौरान अपने हाथों को एक दूसरे को कमर पर
रखकर एक श्रृंखला का निर्माण करते है।

• इस नृत्य की वेशभूषा में चांदी के आभूषणों के साथ


चमकदार घाघरा और ड्रेपरियां शामिल होते हैं।

• नर्तकियों का मुख मुस्कुराहट और भावों से परिपूर्ण होता


है।

• नर्तक अत्यधिक आकर्षण और उल्लास के साथ यह नृत्य


चित्र 6.13 घूमर करते हैं।

डोलू कुनिथा (Dollu Kunitha) कोलाट्टम (Kolattam)

• डोलू कुनिथा कर्नाटक की एक असाधारण और गतिशील • कोलाट्टम तमिलनाडु में प्रारंभ हुआ एक लोक नृत्य है।
लोक कला एवं लोक नृत्य है। यह नृत्य रूप पूरे भारत में प्रशंसित है।

• यह नृत्य सुडौल एवं हष्ट पुष्ट पुरुषों द्वारा किया जाता है। • कोलाट्टम शब्द में 'कोल' का अर्थ है एक छड़ी से और
कलाकार की कमर पर एक खोखला ड्रम बंधा होता है। 'आट्टम' का अर्थ है नृत्य से है।

• यह एक धार्मि क और सांस्कृतिक अनुष्ठान है और • यह नृत्य युवा लड़कियों द्वारा भगवान राम के जन्मदिवस
सामान्यतः बीरेश्वरा सम्प्रदाय` के कुरुबा भक्तों द्वारा को एक पर्व के रूप में मनाने के लिए हाथ में रखी छोटी-
किया जाता है। छोटी छड़ियों द्वारा किया जाता है।

• नर्तक एक घेरे में खड़े होकर ढोल बजाना प्रारंभ करते हैं। • पीनल कोलाट्टम कोलाट्टम नृत्य का एक अन्य स्वरूप है
जहाँ नृत्य गाने या सामूहिक गान के साथ किया जाता है
जिसमें छड़ियों को लयबद्ध रूप में प्रयोग किया जाता है।

गिद्दा (Gidha)

• गिद्दा पंजाब में महिलाओ ं का एक प्रसिद्ध लोक नृत्य है।


इस नृत्य में, लड़कियां या महिलाएं एक घेरा बनाकर
गिद्दा प्रदर्शन शुरू करती हैं।

• ये सभी अपने हाथों से ताली बजाते हुए छोटे -छोटे दोहे गाते
हैं जो पंजाबी भाषा में और हास्यप्रद होते हैं। फिर उनमें से
दो या तीन केंद्र में आते हैं और नृत्य करते हैं। सामान्यतः,
इसमें ढोलक को छोड़कर, अन्य कोई भी वाद्ययंत्र प्रयोग
नहीं किया जाता है।

चित्र 6.14 डोलू कुनिथा

80
पदयानी नृत्य (Padayani)

• पदयानी केरल में प्रदर्शि त किया जाने वाला एक युद्ध


कला संबंधी लोक नृत्य है।

• पदयानी का अर्थ है पैदल सेना की एक पंक्ति होता है। यह


बहुत समृद्ध और रंगीन नृत्य होता है।

• नर्तकियों द्वारा ‘कोलम’ नामक विशाल मुखौटा पहना


जाता हैं।

• नृत्य में दिव्य और अर्ध-दिव्य कथाओ ं का वर्णन किया


जाता है।
चित्र 6.15 गिद्दा
• पदयानी में भैरवी, यक्षी, कलन, आदि कुछ प्रशंसित पात्र
हैं।

गरबा (Garba)

• गरबा गुजरात क्षेत्र में प्रारंभ किया गया एक नृत्य रूप है।

• परंपरागत रूप से इसे नौ दिवसीय हिं दू त्योहार नवरात्रि के


दौरान किया जाता है।

• इसे या तो दीपक (गर्भ दीप) या देवी दुर्गा की एक छवि


को केंद्र में रखकर उसके चारों ओर नृत्य करते हैं। इसके
के दौरान प्रत्येक कदम पर बग़ल में झुकते हुए लयबद्ध
तालियों के साथ चक्राकार रूप में नृत्य प्रदर्शि त किया
जाता है।

चित्र 6.17 पदायनी

पट कुनिथा (Pata Kunitha)

• पट कुनिथा कर्नाटक विशेषकर मैसूर क्षेत्र, का एक


प्रसिद्ध लोक नृत्य है। यह पुरुषों द्वारा किया जाने वाला
एक धार्मि क नृत्य है।

• नर्तक रंग-बिरंगे रिबन से सजे लं बे बांस के खंभों का


उपयोग करते हैं, जिन्हें पट के नाम से जाना जाता है।

• यह सभी धर्मों में काफी लोकप्रिय है।


चित्र 6.16 गरबा
• पट कुनिथा का एक अन्य रूप पूजा कुनिथा बेंगलु रु और
मांड्या क्षेत्र में प्रचलित है।

81
मुख्यत: भावनात्मक गीतों का प्रयोग किया जाता है।

• झूमर खुशी एवं उल्लास का नृत्य है। यह नृत्य भावनात्मक


गीतों की धुन पर एक घेरा बनाकर किया जाता है।

चित्र 6.18 पट कुनिथा

रासलीला (Raslila)

• रासलीला उत्तर प्रदेश राज्य के मथुरा और वृंदावन में


किया जाने वाला एक लोकप्रिय नृत्य शैली है।
चित्र 6.20 झूमर
• यह नृत्य राधा और कृष्ण की प्रेम कथाओ ं पर आधारित है।

• इस नृत्य की मुद्राएं लगभग कथक के सामान हैं।


कुम्मी (Kummi)
• यह नृत्य आकर्षण और जोश से भरा होता है।
• कुम्मी तमिलनाडु का लोक नृत्य है।

• इसे महिलाओ ं द्वारा प्रदर्शि त किया जाता है। इस नृत्य


में, महिलाएं एक घेरे में खड़ी होती हैं और अपने हाथों से
लयबद्ध रूप में ताली बजाते हुए नृत्य करती हैं।

• महिलाओ ं में से एक अनुकूल गीत का गायन प्रारंभ


करती जबकि अन्य बाद में उसका साथ देती हैं।

• यह नृत्य आमतौर पर मंदिर त्योहारों, पोंगल, पारिवारिक


उत्सवों आदि के दौरान किया जाता है।

चित्र 6.19 रासलीला


चित्र 6.21 कुम्मी

झूमर (Jhoomar)

• झूमर पंजाब में फसल कटाई के मौसम के दौरान किया चंगु (Changu)

जाने वाला एक लोक नृत्य है। • चंगु नृत्य उड़ीसा का एक लोकप्रिय लोक नृत्य है।
• यह भांगड़ा का धीमा और अधिक लयबद्ध स्वरूप है। • इसका नामकरण एक प्रकार के ढ़ोल- चंगु, के नाम पर
इसमें प्रयुक्त गीतों की सामग्री विविधतापूर्ण है और इसमें किया गया गया है। इस वाद्य यंत्र का प्रयोग नृत्य के दौरान

82
किया जाता है। मईल अट्टम (Mayilattam)

• नृत्य केवल महिलाओ ं द्वारा किया जाता है। • मईल अट्टम तमिलनाडु के हिं दू मंदिरों में किया जाने वाले
• पुरुष केवल गीत गायन करते हैं, चंगु बजाते हैं तथा नृत्य का एक काल्पनिक और धार्मि क स्वरूप है।
महिलाओ ं के साथ साधारण पद चालन के साथ नृत्य • इसमें नृतक सिर से पैर तक मोर की भांति पोशाक
करते हैं। पहनते हैं, इसमें चोंच के साथ पंख भी शामिल होते है। पंखों
• महिला नर्तक आधे बैठने की स्थिति में लहराते हुए और को एक धागे का उपयोग करके खोला और बंद किया जा
कभी-कभी तीव्र गति के साथ प्रदर्शन करती हैं। सकता है। इसमें नृतक विशिष्ट प्रकार का नृत्य करते हैं।

• नर्तकी अपने नंगे पैर पर नहीं बल्कि अपने पैरों के नीचे


बंधे लकड़ी के एक लं बे टु कड़े पर नृत्य करती है।

चित्र 6.22 चंगु

थेरुकुथु (Therukoothu)

• थेरुकुथु तमिलनाडु का एक लोकप्रिय लोक नृत्य है।

• थेरुकुथु सामान्यतः गांवों के उत्सवों के दौरान किया है


और स्थानीय लोगों के सभी मनोरंजन , उल्लास और
जागरूकता का केंद्र बन जाता है।

• थेरुकूथु को गांवों के जंक्शनों में निष्पादित किया जाता


है। थेरुकुथु में केवल पुरुष भाग ले ते हैं और यहां तक कि चित्र 6.24 मईल अट्टम
महिला भूमिकाएं भी पुरुषों द्वारा निभाई जाती हैं

कावड़ी अट्टम (Kavadiyattam)

• कावड़ी अट्टम युद्ध के तमिल देवता मुरुगन की


आनुष्ठानिक पूजा के दौरान भक्तों द्वारा किया जाने वाला
नृत्य है।

• कावड़ी स्वयं में एक भौतिक भार है, जिसके माध्यम से


भक्त भगवान मुरुगन से सहायता के लिए प्रार्थना करते हैं।

चित्र 6.23 थेरुकुथु चित्र 6.25 कावड़ी अट्टम

83
डांडिया रास (Dandiya Raas)

• रास या डांडिया रास गुजरात, भारत का पारंपरिक नृत्य है।

• यह कृष्ण और राधा के होली एवं लीला के दृश्यों का


वर्णन करते हुए किया जाता है।

• इसे नवरात्रि के सांयकाल के दौरान निष्पादित किया


जाता है।

यक्षगान (Yakshagana)

• यक्षगान कर्नाटक में लोकप्रिय एक संगीतमय नृत्य-


नाटक है। चित्र 6.26 यक्षगान

• मंच पर अभिनेताओ ं ’के आने से पूर्व एक घंटे तक ढोल


पर अनेक निश्चित रचनाओ ं के साथ यक्षगान प्रदर्शन शुरू
बाँस नृत्य (Bamboo Dance)
होता है।

• एक प्रदर्शन आम तौर पर भारतीय महाकाव्यों और पुराणों • बाँस नृत्य नागालैं ड का आदिवासी नृत्य है।
की कथा को दर्शाता है। • यह नृत्य केवल लड़कियों द्वारा किया जाता है।
• इसमें एक वाचक शामिल होता है जो या तो गायन द्वारा • इसमें क्षैतिज रूप से समानांतर दूरी पर रखी बांस की
कहानी सुनाता है या पात्रों के पूर्व-लिखित संवाद गाता है, छड़ियों की रचना पर नर्तकियाँ मनोहर ढं ग से अंदर और
जो संगीतकारों द्वारा पारंपरिक संगीत बजाए जाने वाले बाहर आती जाती हैं।
वाद्ययंत्र के संगीत पर अभिनेता द्वारा किए गए नृत्य से
• दो महिलाएं , जो भूमि के दोनों ओर बैठती हैं, डंडों को
समर्थि त होता है।
क्षैतिज रूप से रखी बांस की डंडियों को हिलाया जाता हैं।

• नृत्य एक लयबद्ध संगीत के साथ होता है जिसके अनुसार


नर्तक अपने कदमों को समायोजित करते हैं।

84
अध्याय - 7

भारत में नाट्यकला


(DRAMATICS IN INDIA)

• भारतीय सामाजिक व्यवस्था में जीवंत पारंपरिकता


का महत्वपूर्ण स्थान है। किसी भी जीवंत परंपरा का
स्वांग - हरियाणा (Swang -
एक सहज प्रवाह होता है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि Haryana)
पारंपरिक कला रूप समाज के आदर्शों, जीवित रहने हेतु
दृढ़ संकल्प, लोकाचार/प्रकृति, भावनाओ ं, संवेदना आदि • मुख्यतः संगीत आधारित।
को अभिव्यक्त करते हैं। नाट्य कला स्वयं में पूर्ण विधा है।
• बाद में, गद्य ने भी संवादों में भूमिका निभाई।
जिसमे अभिनय, कविता, संवाद संगीत आदि शामिल हैं।
• भावों की कोमलता, रससिद्धि के साथ-साथ चरित्र का
• लोकजीवन में गायन की कला का अपना विशेष महत्व
विकास भी होता है।
है। सभी पारंपरिक रंगमंच कलाओ ं में, गीतों और गायन
की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। रंगमंच का पारंपरिक • रोहतक और हाथरस इसकी दो महत्वपूर्ण शैलियाँ हैं।
संगीत समुदाय की संवेदना की अभिव्यक्ति है। • रोहतक की इस शैली में हरियाणवी (बांगरू) और हाथरस
में ब्रजभाषा का उपयोग किया गया है।

भांड पाथर (जशिन) - कश्मीर


(Bhand Pather (Jashin) –
Kashmir)
• नृत्य, संगीत और अभिनय का अद्वितीय संयोजन।

• हंसाने हेतु व्यंग्य, वाक् पटु ता और हास्यपूर्ण व्यंग्य को


प्राथमिकता दी गयी है।

• संगीत के लिए सुरनाई, नगाड़ा और ढोल का उपयोग


किया जाता है।

• चूंकि अभिनेता मुख्य रूप से कृषक वर्ग से हैं, इसलिए


चित्र 7.2 स्वांग
इस नाट्यकला पर इनके रहन-सहन, आदर्शों और
संवेदनशीलता का गहरा प्रभाव है।

नौटं की - उत्तर प्रदेश


(Nautanki - Uttar
Pradesh)
• सबसे लोकप्रिय शैलियाँ/केंद्र - कानपुर, लखनऊ और
हाथरस।

• इसमें दोहा, चौबोला, छप्‍पय, बहर-ए-तबील छं दों का


उपयोग किया जाता है।

• वर्तमान में महिलाएं भी इसमें भाग ले ने लगी है।

चित्र 7.1 भांड पाथर

85
द्वारा महिला की विभिन्न भूमिकाओ ं का निष्पादन किया
जाता हैं।

चित्र 7.3 नौटं की


चित्र 7.5 भवाई

रासलीला (Raasleela)
जात्रा - बंगाल (Jatra –
• विशेष रूप से भगवान कृष्ण की किंवदंतियों पर आधारित
है। Bengal)
• माना जाता है कि कृष्ण के जीवन पर आधारित प्रारंभिक • भगवान के निमित्‍त मेलों, या धार्मि क अनुष्ठानों और
नाटक नंद दास द्वारा रचित है। समारोहों से संबद्ध नाटय गीत होते हैं जिन्हें जात्रा के रूप
• गद्य में संवाद का कृष्ण की क्रीड़ाओ ं के गीतों और दृश्यों के में जाना जाता है।
साथ आकर्षक ढं ग से उपयोग किया गया है। • कृष्ण जात्रा चैतन्यप्रभु के प्रभाव के कारण लोकप्रिय हुई।

• जात्रा के प्रारंभिक स्वरूप संगीतमय रहे हैं और बाद के


चरणों में संवाद जोड़े गए।

• अभिनेताओ ं द्वारा स्वयं दृश्य के परिवर्तन, क्रिया के स्थान


आदि को चित्रित किया जाता है।

चित्र 7.4 रासलीला

भवाई - गुजरात (Bhavai – चित्र 7.6 जात्रा

Gujarat)
• मुख्य केंद्र - कच्छ और काठियावाड़। भाओना (अंकिया नाट) -
• प्रयुक्त होने वाले वाद्ययंत्र मूल रूप से हैं: भुंगल, तबला, असम (Bhaona (Ankia
बांसुरी, पखावज, रबाब, सारंगी, मंजीरा, आदि।

• भक्ति और रूमानी भावनाओ ं का उद्भुत मेल है। Naat) - Assam)


• यह केवल पुरुषों द्वारा किया जाता है और इसलिए पुरुषों
• इसमें असम, बंगाल, उड़ीसा, मथुरा और वृंदावन की

86
सांस्कृतिक झलक देखी जा सकती है।
तमाशा - महाराष्ट्र (Tamasha
• इसका सूत्रधार, या कथाकार कथा की शुरुआत पहले
संस्कृत में और फिर ब्रजबोली या असमिया में सुनाता हैं। - Maharashtra)
• गोंधल, जागरण और कीर्तन जैसे लोक रूपों से विकसित।

• इस नाटक में नृत्‍य क्रिया की प्रमुख प्रतिपादिका स्‍त्री


कलाकार होती है है। उसे मुरकी के नाम से जाना जाता है।

नृत्‍य के माध्‍यम से शास्‍त्रीय संगीत, वैद्युतिक गति के


पदचाप, विविध मुद्राओ ं द्वारा सभी भावनाएं दर्शायी जाती हैं।

चित्र 7.7 भाओना

माच- मध्य प्रदेश (Maach -


Madhya Pradesh) चित्र 7.9 तमाशा

• माच’ शब्‍द मंच और नाटक दोनों के लिए उपयोग किया


जाता है ।

• संवादों के मध्य गीतों को महत्व दिया जाता है। दशावतार - कोंकण और गोवा
• इस शैली में संवादों को बोल तथा कथा वाचन में छं द को (Dashavatar - Konkan
वणग कहते हैं ।

• इस नाट्य रूप की धुनों को रंगत कहा जाता है।


And Goa)
• प्रस्तुतकर्ता पालन व सृजन के देवता-भगवान विष्‍णु के
दस अवतारों को प्रस्‍तुत करते हैं। दस अवतार हैं- मत्‍स्‍य,
कूर्म, वराह, नरसिं ह, वामन, परशुराम, राम, कृष्‍ण (या
बलराम), बुद्ध व कल्कि ।

• शैलीगत श्रृंगार के अतिरिक्त दशावतार का प्रदर्शन करने


वाले लकड़ी व पेपरमेशे का मुखौटा पहनते हैं ।

चित्र 7.8 माच

चित्र 7.10 दशावतार

87
कृष्णाट्टम केरल
(Krishnattam – Kerala)
• यह 17वीं शताब्‍दी के मध्‍य कालीकट के महाराज मनवेदा
के शासन के अधीन अस्तित्‍व में आया।

• कृष्णट्टम आठ नाटकों का समूह है जो क्रमागत आठ


दिनों तक प्रस्तुत किया जाता है।

• यह नाटक हैं-अवतारम्, कालियमर्दन, रासक्रीड़ा,


कंसवधाम् स्‍वयंवरम्, वाणयुद्धम्, विविधविधम्,
स्‍वर्गारोहण।
चित्र 7.12 मुडियेट्टु
• वृत्‍तांत भगवान कृष्‍ण की विषय वस्तु पर आधारित हैं-
श्रीकृष्‍ण जन्‍म, बाल्‍यकाल तथा बुराई पर अच्‍छाई के
विजय को चित्रित करते विविध कार्य ।
थेय्यम - केरल (Theyyam -
Kerala)
• 'थेय्यम' संस्कृत शब्द 'दैवम' से बना है जिसका अर्थ है
ईश्वर।

• इसलिए इसे भगवान के नृत्य के रूप में जाना जाता है।

• आत्माओ ं को खुश करने और उनकी पूजा करने के लिए


विभिन्न जातियों द्वारा निष्पादित किया जाता है।

• निर्णायक विशेषताएं : रंगीन पोशाक और अद्वितीय


हेडगियर (मुडी) लगभग 5 से 6 फीट ऊंचे सुपारी, बांस
और लकड़ी के तख्तों से बने होते हैं और हल्दी, मोम और
अरक का उपयोग करके विभिन्न मजबूत रंगों में रंगे
चित्र 7.11 कृष्णट्टम जाते हैं।

मुडियेट्टु- केरल (Mudiyettu


– Kerala)
• वृश्चिकम् (नवंबर-दिसंबर) के मास में मनाया जाता है।
यह केवल के काली मंदिरों में देवी को आहुति के रूप में
प्रस्तुत किया जाता है।

• असुर दारिका पर देवी भद्रकाली की विजय का


प्रतिनिधित्व करता है।

• मुडियेट्टु में सात पात्र- शिव, दारिका, नारद, दानवेंद्र,


भद्रकाली, कुली और कोइम्बिदार (नंदिकेश्वर) सभी वृहत चित्र 7.13 'थेय्यम'
स्तर पर बनाए गए हैं।

88
कूटियाट्टम केरल करयाला- हिमाचल प्रदेश
(Koodiyattam – (Karyala- Himachal
Kerala) Pradesh)
• यह संस्कृत रंगमंच परंपराओ ं पर आधारित है। • जीवन और मृत्यु के गंभीर प्रश्न को संक्षेप में और
अभिव्यक्ति एवं वाचन की सरलता के साथ, हास्यास्पद
• इस नाट्य रूप के पात्र हैं: चाक्यार- अभिनेता, नंबियार-
प्रस्तुति में वर्णि त करता है।
वादक और नांग्यार- जो महिलाओ ं की भूमिका निभाते
हैं। • वास्तव में, दर्शकों को विश्व को हमारी सांस्कृतिक विरासत
के रूप में और धैर्य के साथ जीने वाले एक काल्पनिक
• सूत्रधार या कथावाचक और विदुषक या मनोरंजनकर्ता
तमाशे के रूप में देखने कि भावना प्रदान करता है।
मुख्य नायक होते हैं। विदुषक ही संवाद (डायलॉग्स)
बोलते हैं। • इसमें प्रायः शैलीगत विविधता होती है, जो स्वांग, नौटं की,
भगत आदि से उनकी पहचान को अलग करती है।
• हाथ के इशारों और आंखों की गति पर मुख्य बल इस नृत्य
नाट्य रूप को विशिष्ट बनाता है।

चित्र 7.14 कूटियाट्टम चित्र 7.15 करयाला

89
अध्याय - 8

भारतीय कठपुतली
(INDIAN PUPPET)

• कठपुतली मनोरंजन के प्राचीन रूपों में से एक है। • सूत्र/धागा कठपुतली: कठपुतली, कुनढे ई, गोम्बायेट्टा,
कलाकारों द्वारा नियंत्रित एक कठपुतली का सांकेतिक बोम्मालट्टम।
तत्व इसे एक मनोरम अनुभव प्रदान करता है, जबकि
• छाया कठपुतली: थोलू बोम्मालट्टम, रावणछाया, तोगलु
इनके निर्माण और प्रदर्शन के सजीवता की निम्न लागत
गोम्बायेट्टा।
इसे स्वतंत्र कलाकारों के बीच लोकप्रिय बनाती है।
कठपुतली का प्रारूप कलाकार को इसके रूप, डिजाइन, • दस्ताना कठपुतली: पावाकुत्थू।
रंग और गति के संबंध में व्यापक स्वतंत्रता प्रदान करता • छड़ कठपुतली: यमपुरी, पुतुल नाच।
है और इसे मानव जाति के सबसे सरल आविष्कारों में से
एक के रूप में स्थापित करता है।

• संपूर्ण युग में कठपुतली कला का पारंपरिक मनोरंजन में धागा कठपुतली (String Puppets)
एक महत्वपूर्ण स्थान रहा है। पारंपरिक रंगमंच की भांति,
• कठपुतलियों को लकड़ी से तराशा जाता है और ये
कठपुतली रंगमंच के विषय अधिकांशतः महाकाव्यों
सामान्यतः 9 इं च लं बे लघुचित्र होते हैं।
और किंवदंतियों पर आधारित होते हैं। कठपुतली की
प्रासंगिकता इसकी उच्च प्रभावशाली क्षमता, विशेष रूप • तेल के रंग का उपयोग लकड़ी को त्वचा के रंग में रंगने
से शिक्षा और सामाजिक मुद्दों से संबंधित जागरूकता के और उस पर आंख, नाक आदि जैसी विशेषताओ ं को
कारण बढ़ी है। चित्रित करने के लिए किया जाता है।

• धागे को शरीर के हाथों, सिर और पीठ में छोटे -छोटे छे दों


से जोड़ा जाता है, जिन्हें बाद में कठपुतली चालक द्वारा

भारत में कठपुतली की उत्पत्ति प्रबंधित किया जाता है। कठपुतलियों को एक यथार्थवादी
एहसास देने के लिए लघु आभूषणों से सुसज्जित किया
(Origin of Puppetry in जाता हैं।

India)
कुछ उदाहरण (Some Examples):
• भारत में कठपुतली दीर्घकाल से ही शिक्षा और मनोरंजन
दोनों उद्देश्यों के लिए रुचिकर विषय बना रहा है। कठपुतली (Kathputli):
हड़प्पा और मोहनजोदड़ो के उत्खनन स्थलों से सॉकेट
• राजस्थान राज्य से पारंपरिक सूत्र या धागा कठपुतली को
युक्त कठपुतलियां प्राप्त हुई हैं जो इस सभ्यता में भी
कठपुतली के रूप में जाना जाता है, जिसका अर्थ है लकड़ी
कठपुतली कला के प्रचलित होने के साक्ष्य प्रदान करते
की गुड़िया।
हैं। कठपुतली का सबसे प्रारंभिक लिखित संदर्भ, तमिल
ग्रंथ सिलप्पादिकारम में पाया गया है, जिसकी रचना • कठपुतलियाँ पारंपरिक चमकीले राजस्थानी पोशाक में
पहली और दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व के आसपास की सुसज्जित होती हैं।
गई थी। कठपुतली का पौराणिक कथाओ ं और कला में
• कतपुटली प्रदर्शन लोक संगीत के साथ होता है।
संदर्भ प्राप्त होने के बावजूद समर्पि त दर्शकों की कमी
और वित्तीय असुरक्षा के कारण, इस कला रूप में निरंतर • इसकी एक महत्वपूर्ण विशेषता पैरों की अनुपस्थिति है।
गिरावट हुई है। कठपुतली के धागे कलाकार की उं गलियों से जुड़े होते हैं।

• सामान्यतः, इस प्रदर्शन में एक से अधिक कठपुतली


चालक होते है जो एक दूसरे की कठपुतली के साथ संपर्क
स्थापित करते हैं।
कठपुतली का वर्गीकरण
(Categorisation of
Puppetry)

90
जाती है।

• बोम्मलट्टम कठपुतली भारत की सबसे बड़ी और सबसे


भारी कठपुतली हैं।

• इनमें से कुछ की ऊंचाई 5 फीट और वजन 10 किलो होता


है।

चित्र 8.1 कठपुतली

कुनढे ई (Kundhei):

• यह ओडिशा में प्रचलित एक सूत्र/धागा कठपुतली है।


चित्र 8.3 बोम्मलट्टम
• ये हल्की लकड़ी से तैयार की जाती हैं और इन्हें छोटी
स्कर्ट पहनाई जाती हैं।

• इन कठपुतलियों में अधिक जोड़ होते हैं जो कठपुतली को गोम्बायेट्टा (Gombayetta):


चलाने के लिए अधिक लचीलापन प्रदान करते हैं।
• यह कर्नाटक राज्य की पारंपरिक कठपुतली कला है।
• इसके धागे एक त्रिकोणीय आधार से जुड़े होते हैं।
• इस पर कर्नाटक के यक्षगान नाट्यकला का व्यापक
प्रभाव है।

• सामान्यतः प्रत्येक पुतली के संचालन हेतु एक से अधिक


संचालक होते हैं।

छाया कठपुतलियां (Shadow Puppets)

• ये चमड़े से काट कर बनाई गई सपाट आकृतियां होती हैं।


चमड़े के दोनों ओर आकृतियों को चित्रित किया जाता है।

• कठपुतलियों को श्वेत स्क्रीन पर रखा जाता है, जिसमें पीछे


से रोशनी डाली जाती है। इस रोशनी के कारण स्क्रीन पर
कठपुतली की छाया चित्रित होती है।

• आकृति को इस प्रकार संचालित किया जाता है कि


रिक्त स्क्रीन पर पड़ने वाली छाया एक कथावाचक छवि
प्रदर्शि त करती है।

• इसके कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं:


चित्र 8.2 कुनढे ई

तोगलु गोम्बायेट्टा (Togalu Gombeyaata)


बोम्मालट्टम (Bommalattam):
• यह कर्नाटक राज्य का लोकप्रिय कठपुतली प्रदर्शन है।
• यह तमिलनाडु की स्वदेशी प्रकार की कठपुतली कला है।
• इसमें कठपुतलियों का आकार चरित्र की सामाजिक
• कठपुतली के सिर पर एक लोहे का छल्ला लगा होता है स्थिति के साथ बदलता रहता है।
जिससे कठपुतली के धागे जुड़े होते हैं।
• इसलिए, राजाओ ं को आम लोगों की तुलना में अधिक बड़े
• यह उपरोक्त अंगूठी कठपुतली द्वारा अपने सिर पर पहनी आकार में दिखाया जाता है।

91
चित्र 8.6 थोलू बोम्मालट्टम
चित्र 8.4 तोगलु गोम्बायेट्टा

दस्ताना कठपुतली (Glove Puppets)


रावण छाया (Ravan Chhaya)
• दस्ताना कठपुतली को कठपुतली संचालक द्वारा हाथों
• यह ओडिशा में प्रचलित एक लोकप्रिय कठपुतली कला
में दस्ताने की भांति पहना जाता है। कठपुतली संचालक
है।
अपनी बीच की उं गली एवं अंगूठे का उपयोग करके
• इनमें बिना जोड़ वाली कठपुतलियों का उपयोग किया कठपुतली का संचालन करता है। इसका प्रदर्शन ढोलक
जाता है और इनके संचालन के लिए विशिष्ट कौशल की लयबद्ध ताल के साथ किया जाता है।
आवश्यकता होती है।

• अमानवीय कठपुतलियों जैसे वृक्ष, जानवर आदि का


प्रयोग भी देखने को मिलता है। पावाकूत्थू (Pavakoothu)

• यह केरल का एक पारंपरिक कठपुतली प्रदर्शन है।

• इस कला रूप पर कथकली नृत्य शैली का प्रभाव स्पष्ट


रूप से प्रदर्शि त होता है।

• इसके प्रदर्शन सामान्यतः रामायण और महाभारत की


विषयवस्तु पर आधारित होते हैं।

चित्र 8.5 रावण छाया

थोलू बोम्मालट्टम (Tholu Bomayatta)

• यह छाया कठपुतली आंध्र प्रदेश की लोकप्रिय शैली है।

• इसका प्रदर्शन शास्त्रीय संगीत के साथ और पौराणिक


भक्ति कथाओ ं पर आधारित होता है। चित्र 8.7 पावाकूत्थू

कठपुतली आकार में बड़ी और दोनों तरफ रंगीन होती हैं।

92
छड़ कठपुतली (Rod Puppets) पुतुल नाच (Putul Nach)

• यह दस्ताना कठपुतलियों का अपेक्षाकृत बड़ा स्वरूप है • यह बंगाल-ओडिशा-असम क्षेत्र में प्रचलित कठपुतली
और यह पूर्वी भारत में लोकप्रिय है। कला का पारंपरिक रूप है।

• कठपुतली संचालक कठपुतली की कमर से जुड़ी एक


छड़ का उपयोग करके इसे नियंत्रित करता है।
यमपुरी (Yampuri)
• इसे संगीत के साथ प्रदर्शि त किया जाता है।
• यह बिहार की पारंपरिक छड़ी कठपुतली कला है।

• कठपुतली लकड़ी से बनी होती हैं और इनमें कोई जोड़


नहीं होता है।

• उन्हें लकड़ी पर उकेरा गया है और चमकीले रंगों से रंगा


और तैयार किया जाता है।

चित्र 8.9 पुतुल नाच

चित्र 8.8 यमपुरी

93
अध्याय - 9

भारतीय शास्त्रीय संगीत


(INDIAN CLASSICAL MUSIC)

• हमारे देश के प्राचीन साहित्य जैसे वेद, आगम, उपनिषद,


वायु पुराण, रामायण, महाभारत, भागवत, बृहद धर्म पुराण
हिंदुस्तानी संगीत
और शिक्षा ग्रंथ आदि में शास्त्रीय संगीत के मूल सिद्धांतों (Hindustani Music)
के अमूल्य संदर्भ शामिल हैं। ये संदर्भ है - सात स्वर, तीन
ग्राम, तीन लय (गति), नौ रस, इक्कीस मूर्च्छ न, तीन स्थई • हिं दुस्तानी संगीत भारतीय शास्त्रीय संगीत के दो पृथक
(सप्तक) और श्रुति आदि। शैलियों में से एक है। यह जो मुख्य रूप से उत्तर भारत में
• वेद सभी प्राचीन भारतीय ज्ञान और संस्कृति का कोष हैं। प्रचलित है।
चार वेदों में से, साम वेद को मुख्य रूप से भारतीय संगीत • भारतीय शास्त्रीय संगीत की दूसरी शैली कर्नाटक संगीत
का प्रवर्तक माना जाता है है जो अधिकांशतः दक्षिणी भारत में प्रचलित है।
• मातंग द्वारा रचित बृहददेशी 'राग' शब्द की परिभाषा पर
केंद्रित है। नंद द्वारा रचित संगीत मकरंद में 93 रागों की
गणना की और उन्हें स्त्रीलिंग और पुलिंग रूपों में वर्गीकृत हिं दुस्तानी संगीत से संबंधित तथ्य (About Hindustani
किया गया। संगीतशास्त्र पर एक अन्य महत्वपूर्ण पुस्तक Music)
चातुर्दंडी-प्रकाशिका थी। 17वीं शताब्दी की यह पुस्तक
वेकंटमुखी द्वारा लिखी गई थी। • हालांकि दोनों संगीत शैलियों की ऐतिहासिक जड़ें भरत
के नाट्यशास्त्र से संबंधित हैं किंतु ये 14वीं शताब्दी से
• स्वरमेला-कलानिधि की रचना 16वीं शताब्दी में
परस्पर पृथक हो गए थे। संगीत की हिं दुस्तानी शाखा
रामामात्य ने की थी। संगीत में मूलभूत पैमाना निर्मि त
संगीत संरचना और उसमें सुधार की संभावनाओ ं पर
वाले सात स्वर हैं सा (षड्ज), रे (ऋषभ), गा (गंधर्व), मा
अधिक बल देती है। हिं दुस्तानी शाखा में शुद्ध स्वर सप्तक
(मध्यम), पा (पंचम), ध (धैवत) और नि (निषाद)। रागों
या 'प्राकृतिक स्वरों के सप्तक' का पैमाना ग्रहण किया
को दिन या रात के सूक्ष्म समय (उपयोग किए जाने के
गया है।
समय) के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है।
• हिं दुस्तानी संगीत में प्राचीन हिं दू परंपरा, वैदिक दर्शन
• ताल (लय) धुनों की आधारभूत प्रणाली है। राग में स्वरों
और फारसी परंपरा के तत्व भी शामिल हैं। यह अरब,
की संख्या के अनुसार राग को तीन प्रमुखों में वर्गीकृत
अफगान और फारसी आदि विभिन्न तत्वों से प्रभावित
किया जा सकता है।
रहा है जिन्होंने हिं दुस्तानी संगीत में एक नए आयाम को
• प्रकार: ओढ़व राग, शाढ़व राग, संपूर्ण राग। राग भेद या राग शामिल किया है।
तीन प्रकार के होते हैं, शुद्ध राग, छायालग राग, संकीर्न
• प्राचीन काल में इसे गुरु-शिष्य परम्परा के माध्यम से
राग। शुद्ध राग की प्रकृति और रूप में भिन्नता नहीं होती
एक से दूसरे को हस्तांतरित किया जाता था।
है; छायालाग राग का प्रकृति और स्वरूप में परिवर्तन
होता है जबकि संकीर्ण दो या दो से अधिक रागों का मेल • हिं दुस्तानी संगीत में प्रयोग होने वाले वाद्य यंत्र
होता है। ओढ़व राग 'पेंटाटॉनिक' राग है, जिसमें पाँच स्वर निम्नलिखित हैं: तबला, सारंगी, सितार, संतूर, बांसुरी और
हैं; शाढ़व राग 'हेक्साटॉनिक' राग है, जिसमें 6 स्वर हैं, वायलिन।
जबकि 'संपूर्ण राग' एक 'हेप्टाटोनिक' राग है जिसमें सात • यह राग व्यवस्था पर आधारित है। राग एक मधुर पैमाना
स्वर हैं। यह माना जाता है कि इसमें सौ से अधिक ताल हैं, है जिसमें मूल सात स्वर शामिल हैं।
ले किन वर्तमान में केवल तीस ताल ज्ञात हैं, और इसमें से
• हिं दुस्तानी संगीत गायन केंद्रित है। हिं दुस्तानी शास्त्रीय
केवल 10 से 12 ताल का उपयोग किया जाता है। विभिन्न
संगीत से संबद्ध प्रमुख गायन रूप हैं ख्याल, ध्रुपद, गज़ल,
प्रकार के मान्यता प्राप्त और प्रयुक्त ताल हैं दादरा, रूपक,
धमार, ठु मरी और तराना।
एकताल, झपटताल, तीन-ताल और आधा-चौताल।
• अधिकांश हिं दुस्तानी संगीतकार तानसेन से संबंधित हैं।

• हिं दुस्तानी संगीत में गायन की दस प्रमुख शैलियाँ हैं जैसे


ध्रुपद, ख्याल, टप्पा, चतुरग
ं , तराना, सरगम, ठु मरी और
रागसागर, होरी और धमार।

94
हिं दुस्तानी संगीत की शैलियाँ (Styles in ठुमरी (Thumri)
Hindustani Music)
• इसकी उत्पत्ति 18वीं शताब्दी में पूर्वी उत्तर प्रदेश मुख्यतः
ध्रुपद (Dhrupad) लखनऊ और बनारस में हुई।

• ध्रुपद हिं दुस्तानी शास्त्रीय संगीत का सबसे प्राचीन और • गायन की एक रूमानी और कामुक शैली; इसे "भारतीय
शायद सबसे भव्य रूप है। ध्रुपद अनिवार्य रूप से एक शास्त्रीय संगीत के गीत" के रूप में भी जाना जाता है।
काव्यात्मक रूप है, ध्रुपद हिं दुस्तानी गायन संगीत • इसकी रचनाएँ अधिकतर प्रेम, वियोग और भक्ति पर
का सबसे प्राचीन और शायद सबसे भव्य रूप है। ध्रुपद आधारित हैं।
अनिवार्य रूप से एक काव्य रूप है, जिसे एक विस्तारित
• विशेषताएं : प्रेम संबंधी विषय वस्तु को भगवान कृष्ण
प्रस्तुति शैली में शामिल किया गया है, इसमें राग को
और राधा के जीवन के विभिन्न प्रसंगों से चित्रमय रूप से
सटीक और व्यवस्थित विस्तृत रूप में प्रस्तुत किया जाता
चित्रित किया गया है।
है। रचित छं दों से पूर्व के प्रदर्शन को अलाप के रूप में जाना
जाता है और सामान्यतः प्रदर्शन का सबसे लं बा भाग होता • गीत सामान्यतः ब्रज भाषा में होते हैं और रूमानी और
है। 18वीं शताब्दी से ध्रुपद का निरंतर पतन हो रहा है। धार्मि क होते हैं।

• ठु मरी आमतौर पर ख्याल संगीत कार्यक्रम के अंतिम


प्रदर्शन के रूप में प्रस्तुत की जाती है।
ख्याल (Khayal)
• ठु मरी के तीन प्रमुख घराने - बनारस, लखनऊ और
• ख्याल का अर्थ है 'एक विचार', 'एक गीत' और 'एक पटियाला।
कल्पना'।
• बेगम अख्तर ठु मरी शैली की सबसे प्रसिद्ध गायिकाओ ं
• यह हिं दुस्तानी गायन की सबसे महत्वपूर्ण शैली है, जो में से एक है।
गायन की रोमानी शैली को दर्शाती है। ख्याल कलाकार
की कल्पना और उसके द्वारा शामिल किए जा सकने
वाले सुधारों पर निर्भर होता है। टप्पा (Tappa)
• इसकी रचना भी एक विशेष राग और ताल में की गयी है
• इस शैली में, लय एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है
और इसमें एक संक्षिप्त ग्रन्थ है। ख्याल ग्रंथों में राजा या
क्योंकि रचनाएँ तेज़, सूक्ष्म और जटिल संरचनाओ ं पर
ऋतु की स्तुति, ऋतुओ ं का वर्णन से ले कर भगवान कृष्ण
आधारित होती हैं।
की लीलाओ ं, दिव्य प्रेम और वियोग का दुख शामिल है।
• इसका विकास उत्तर-पश्चिम भारत के ऊंट सवारों के
• ख्याल में छह प्रमुख घराने हैं: दिल्ली, पटियाला, आगरा,
लोक गीतों से 18वीं शताब्दी के अंत में हुआ।
ग्वालियर, किराना और अतरौली-जयपुर। ग्वालियर
घराना सबसे प्राचीन घराना है जिसे अन्य सभी घरानों की • भाव अभिव्यक्ति के तीव्र परिवर्तन का बेहतर उपयोग।
जननी भी माना जाता है। • इस शैली के कुछ प्रस्तुतकर्ता: मियां सोदी, ग्वालियर के
पंडित लक्ष्मण राव और शन्नो खुराना।

तराना (Tarana)
ग़ज़ल (Ghazal)
• इस शैली में लय एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
संरचना में राग भी होता है। • विरह और वियोग की पीड़ा तथा उस पीड़ा के बावजूद प्रेम
• इसमें अनेक शब्दों का उपयोग किया जाता है जिन्हें तेज की सुंदरता की काव्यात्मक अभिव्यक्ति।
गति से गया जाता हैं। • ईरान में 10वीं शताब्दी ई. में उद्भव हुआ।
• यह लयबद्ध विषय के निर्माण पर केंद्रित होता है और • ग़ज़ल में कभी भी 12 आसर या दोह से अधिक नहीं होते।
इसलिए, गायकों को लयबद्ध हेरफेर में विशेष प्रशिक्षण
• 12वीं शताब्दी में इसका प्रसार दक्षिण एशिया में सूफी
और कौशल की आवश्यकता होती है।
रहस्यवादियों और नई इस्लामी सल्तनत के दरबारों के
• वर्तमान में विश्व के सबसे तेज तराना गायक मेवाती प्रभाव के कारण हुआ। मुगल काल में यह अपने चरम पर
घराने के पंडित रतन मोहन शर्मा हैं। पहुंच गई थी।

• अमीर खुसरो ग़ज़ल निर्माण कला के पहले प्रतिपादकों


में से एक थे।

• ग़ज़लों से जुड़े कुछ सबसे प्रसिद्ध व्यक्तित्व: मिर्ज़ा ग़ालिब,

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मुहम्मद इकबाल, हाफ़िज़ (14वीं सदी), रूमी (13वीं सदी), संस्कृति के अपने सुदृढ़ उत्पत्ति के लिए जाने जाते हैं।
काज़ी नज़रूल इस्लाम, आदि।

कर्नाटक संगीत का विकास (Evolution of


दादर (Dadra) Carnatic Music)
• दादरा और ठु मरी में अत्यधिक समानताएं है। इसकी • भारतीय संगीत के विकास के रूप में हिं दुस्तानी और
रचनाएं ठु मरी के समान ही प्रेमपूर्ण हैं। कर्नाटक संगीत भिन्न-भिन्न उप-प्रणालियों का विकास
• मुख्य अंतर यह है कि दादरा में एक से अधिक अंतरा होते हुआ। दोनों शब्दों का उल्ले ख पहली बार 14वीं शताब्‍दी
हैं और दादरा ताल में गायक आमतौर पर ठु मरी के बाद ई.प. में रचित हरिपाल की "संगीता सुधाकर" में हुआ।
दादरा गाते हैं। • दो भिन्न-भिन्न शैलियाँ, हिन्दुस्तानी और कर्नाटक,
मुसलमानों के आगमन के बाद, विशेष रूप से मुगल
सम्राटों के शासनकाल के दौरान प्रचलन में आई।
धमर-होरी (Dhamar-Hori)
• पुरद
ं रदास (1484-1564), एक उच्च कोटि के कवि-
• ये रचनाएँ ध्रुपद की भांति होती हैं ले किन मुख्य रूप से संगीतकार और विजयनगर के रहस्यवादी, कर्नाटक
होली के त्योहार से संबंधित हैं। यहाँ रचनाएँ विशेष रूप से संगीत (कर्नाटक संगीता पितामह) के जनक माने जाते
भगवान कृष्ण की स्तुति में निर्मि त हैं। हैं।

• धमर ताल में गाया जाने वाला यह संगीत मुख्य रूप से • वेंकटमाखी को कर्नाटक संगीत के महान सिद्धांतकार
जन्माष्टमी, रामनवमी और होली जैसे त्योहारों में उपयोग है। 17वीं शताब्दी में, उन्होंने "मलाकार्त" विकसित किया,
किया जाता है। यहां की रचनाएं वसंत ऋतु को दर्शाती हैं। जो दक्षिण भारतीय रागों को वर्गीकृत करने की प्रणाली
है। वर्तमान में 72 मलाकार्त हैं।
• ये रचनाएँ काफी हद तक राधाकृष्ण के प्रेम प्रसंग पर
आधारित हैं। • त्यागराज (1767-1847), उनके समकालीन श्यामा शास्त्री
और मुत्तुस्वामी दीक्षित कर्नाटक संगीत के "त्रिमूर्ति " के
रूप में जाने जाते हैं।
रागसागर (Ragasagar)

• रागसागर में एक गीत रचना के रूप में विभिन्न रागों


में संगीतमय अंशों के विभिन्न भाग शामिल होते हैं।
कर्नाटक संगीत की शैलियाँ (Styles of Carnatic
Music)
इन रचनाओ ं में 8 से 12 अलग-अलग राग हैं और गीत
रागों के परिवर्तन की ओर संकेत करते हैं। इस शैली गीतम (Gitam)
की विशिष्टता इस बात पर निर्भर करती है कि रागों के
• गीतम सरलतम शैली की रचना है। संगीत के नए
परिवर्तन के साथ-साथ संगीत के अंश कितनी सहजता
कलाकारों को सिखाया जाने वाला गीतम रचना में बहुत
से परिवर्ति त होते हैं।
सरल है, जिसमें संगीत का एक सहज और मधुर प्रवाह है।

कर्नाटक संगीत (Carnatic सुलादी (Suladi)

Music) • संगीत की प्रणाली और व्यवस्था में गीतम की भांति,


सुलादि गीतम की तुलना में उच्च स्तर के हैं।
कर्नाटक संगीत से संबंधित तथ्य (About
Carnatic Music)
वर्णम (Varnam)
• कर्नाटक संगीत संस्कृत शब्द कर्नाटक संगीतम से
लिया गया है है जो "पारंपरिक" या "संहिताबद्ध" संगीत • वर्णम उच्‍च किस्‍म की एक संगीत शिल्‍पकारी की सुन्‍दर
को इं गित करता है। रचना है, जिसमें राग की सभी विशिष्ट विशेषताओ ं को
शामिल किया गया है जिसमें इसकी रचना की गई है।
• रागम (राग) और थालम (ताला) से निर्मि त है, इसका एक
वर्णम गायन में अभ्‍यास से संगीतकार को प्रस्‍तुतिकरण
समृद्ध इतिहास और परंपरा है।
में निपुणता तथा राग, ताल और भाव पर नियंत्रण प्राप्त
• कर्नाटक संगीत दक्षिणी भारतीय राज्यों तमिलनाडु, केरल, करने में सहायता मिलती है ।
आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में विकसित हुआ है। ये राज्य द्रविड़

96
स्वराजति (Svarajati) संगीत में उत्‍कृ ष्‍टता और सुन्‍दरता होती है ।संगीत धीमा
और उत्‍कृ ष्‍ट होता है।
• इसे गीतम में कोर्स का अनुसरण करके सीखा जाता है।
गीतों से अधिक जटिल, स्‍वराजति, वर्णमों के अध्‍ययन
के लिए मार्ग प्रशस्‍त करता है। इसकी विषयवस्तु भक्ति,
जावली (Javali)
साहस अथवा प्रेम है।
• जावली सुगम शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र से संबंधित रचना
है। इसे सामूहिक संगीत कार्यक्रमों और नृत्‍य समारोहों
जतिस्वरम (Jatisvaram) दोनों में गाया जाता है । जावलियो की उन आकर्षक लयों
के लिए प्रशंसा की जाता हैं जिनमें वे रचित हैं। ईश्वरीय प्रेम
• इस संगीत प्रणाली में स्‍वराजाति के समान ही कोई
को प्रकट करने वाले पदों के विपरीत, जवाली ऐसे गीत
साहित्‍य या शब्द नहीं होता है। अंशों को केवल सोल्‍फा
हैं जो अवधारणा और भावना की दृष्टि से इं न्द्रियगत हैं।
अक्षरों के साथ गाया जाता है ।

तिल्‍लाना (Thillana)
कीर्तनम (Kirtanam)
• हिन्‍दुस्‍तानी संगीत में तराना के अनुरूप ही तिल्‍लाना भी
• कीर्तनम का उद्भव लगभग 14वीं शताब्दी के उत्तरार्ध
एक लघु और संकुचित शैली है। यह मुख्‍यत: एक नृत्‍य
में हुआ था। साहित्य की भक्ति भावना के लिए इसकी
शैली है, परन्तु तीव्र और आकर्षक संगीत के कारण इसे
सराहना की जाती है। सरल संगीत में रचित, कीर्तनम
कभी-कभी अन्तिम अंश में शामिल किया जाता है ।
में भक्ति भाव प्रचुर मात्रा में है। यह सामूहिक गायन और
व्यक्तिगत प्रस्‍तुतिकरण के लिए उपयुक्‍त है।

पल्लवी (Pallavi)

कृति (Kriti) • यह रचनात्मक संगीत की सबसे महत्वपूर्ण शाखा


है।मनोधर्म संगीत की इस शाखा में ही संगीतज्ञों के लिए
• कृति कीर्तन का विकसित रूप है। यह अत्यधिक विकसित
अपनी रचनात्‍मक प्रतिभा, विचारात्‍मक दक्षता और
संगीत शैली है। सौंदर्य उत्कृष्टता की उच्चतम सीमा कृति
संगीत प्रबुद्धता प्रदर्शि त करने का पर्याप्‍त अवसर होते हैं।
रचना में प्राप्त होती है। इस शैली में समृद्ध और विविध
सभी राग भावों को प्रस्तुत किया जाता है।

तनम (Tanam)

पद (Pada) • यह राग अल्पना का एक भाग है। यह मध्‍यमाकला अथवा


मध्‍यम गति में राग अल्‍पना है। इसमें एक बोधगम्य लय
• पद तेलुगु और तमिल में बौद्धिक रचनाएँ हैं। यद्यपि
है। संगीत का लयबद्ध प्रवाह, मनोहर और आकर्षक
ये मुख्‍यत: नृत्‍य रूपों में रचित होती हैं परन्तु ये संगीत
पद्धतियां, तनम गायन को राग प्रदर्शनी का मुख्य
कार्यक्रमों में भी गाई जाती हैं इसका कारण इनकी
मनोरम हिस्सा बनाता है।

हिं दुस्तानी और कर्नाटक संगीत में तुलना

कारक हिन्दुस्तानी संगीत कर्नाटक संगीत


उत्तरी भारत तथा कर्नाटक और आंध्र दक्षिण भारत तक सीमित
क्षेत्र
प्रदेश के भागों में प्रचलित।
फारसी, अरब और अफगान कारकों का मुख्यतः स्वदेशी
प्रभाव
प्रभाव
इसमें अनेक उप शैलियाँ है जिन्हें घरानों गायन की केवल एक शैली, कोई उप
उप शैलियाँ
में विभाजित किया गया है शैली नहीं है
गायकों के लिए सुधार की अत्यधिक सुधार की कम संभावनाएं विद्यमान है
सुधार संभावनाएं विद्यमान है इसके अनेक
प्रकार है

97
राग छः मुख्य राग 72 राग
समय समयबद्ध समयबद्ध नही

लोक संगीत (Folk Music) • भरत मुनि द्वारा संकलित नाट्य शास्त्र, ध्वनि उत्पन्न
करने की विधि के आधार पर संगीत वाद्ययंत्रों को चार
• बाऊल, वनावन, पंडवानी, आल्हा, पनिहारी, ओवी, पई मुख्य श्रेणियों में विभाजित करता है।
गीत, लावणी, मांड, डांडिया, पोवाड़ा, खोंगजोम पर्व भारत
» तत् वाद्य(Chordophones)- तार वाले वाद्य यंत्र
के कुछ लोकप्रिय लोक संगीत हैं।
» सुषिर वाद्य(Aerophones)- वायु यंत्र
» बाऊल एक धार्मि क संप्रदाय और लोक संगीत परंपरा
» अवनद्ध वाद्या (Membranophones)- आघात वाद्य यंत्र
दोनों है।
» घन वाद्य (Idiophones)- ठोस वाद्य यंत्र।
» वनावन कश्मीर का विवाह समारोहों में गाया जाने वाला
लोक संगीत है।

» पंडवानी धार्मि क ग्रंथ महाभारत पर आधारित है।


कुछ महत्वपूर्ण संगीत वाद्ययंत्र इस प्रकार हैं (Few
» आल्हा ब्रज, अवधी और भोजपुरी जैसी विभिन्न भाषाओ ं of the Important Music Instruments are
में गाया जाता है, और मध्य प्रदेश में सर्वाधिक लोकप्रिय as Follows)
है। सितार (Sitar)
» पनिहारी एक राजस्थानी लोक संगीत है जो महिलाओ ं
• सितार उत्तर भारत के सबसे प्रसिद्ध संगीत वाद्ययंत्रों में
को पास के कुएं से पानी भरकर अपने घरों में ले जाने
से एक है। सितार की एक लं बी गर्दन होती है जिसमें 20
वाली महिलाओ ं से संबंधित है।
धातु के पर्दे और छह से सात मुख्य तार होते हैं। सितार के
» ओवी भी महिलाओ ं का गीत है और इसकी उत्पत्ति झरोखों के नीचे तेरह अनुकंपी तार होते हैं जो राग के स्वरों
महाराष्ट्र और गोवा राज्यों में हुई है। से जुड़े होते हैं।
» पई गीत अधिकांशतः मध्य प्रदेश में प्रचलित हैं। • एक लौकी, जो तारों के लिए गुंजयमान यंत्र का काम
» भगवती भावनात्मक गीत हैं जो कर्नाटक और महाराष्ट्र करती है, सितार के निचले सिरे पर लगी होती है। स्वरों
में अधिक लोकप्रिय हैं। को विनियमित करने के लिए पर्दों को ऊपर और नीचे ले
जाया जाता है।
» सुगम संगीत, जो शास्त्रीय और लोक संगीत को एक
साथ लाता है, की विभिन्न उपश्रेणियाँ हैं। इसकी प्रमुख • कुछ प्रसिद्ध सितार वादक उस्ताद विलायत खान, पं.
उपश्रेणियाँ हैं: भजन, शबद और कव्वाली। रविशंकर, उस्ताद इमरात खान, उस्ताद अब्दुल हलीम
जफर खान, उस्ताद रईस खान, पं. देबू चौधरी हैं।
» मीराबाई, तुलसीदास, सूरदास, कबीर भजन के प्रमुख
प्रतिपादक थे। भजन में प्रयुक्त संगीत वाद्ययंत्रों में चिम्टा,
ढोलक, ढपली, मंजीरा शामिल हैं।

» गुरुद्वारों में सिख धार्मि क गुरुओ ं को समर्पि त भक्ति गीत


'शबद' के रूप में जाने जाते हैं।

» कव्वाली भी एक प्रकार का भक्ति संगीत है क्योंकि गीत


अल्लाह या पैगंबर मुहम्मद या किसी अन्य प्रमुख सूफी
या इस्लामी संत की प्रशंसा में गाए जाते हैं।

भारत के संगीत वाद्ययंत्र


(Musical Instruments
of India)
चित्र 9.1 सितार (Sitar)

98
सारंगी (Sarangi) • बांसुरी को क्षैतिज रूप से पकड़कर और नीचे झुकाकर
बजाया जाता है। ध्वनि या स्वर उत्पन्न करने के लिए बाएं
• सारंगी भारत में सबसे प्रसिद्ध और सबसे प्राचीन तत
और दाएं हाथ की उं गलियों के छिद्रों को से ढकना होता है।
अथवा धनुर्वाद्य यंत्रों में से एक है। सारंगी का शरीर
वायु स्तंभ की प्रभावी लं बाई को स्थानांतरित करके पिच
खोखला है और हाथीदांत से अलं कृत सागौन की लकड़ी
में बदलाव उत्पन्न किया जाता है।
से बना होता है। सारंगी में चालीस तार होते हैं जिनमें से
सैंतीस अनुकंपी तार होते हैं। सारंगी को एक ऊर्ध्वाधर • प्रसिद्ध बांसुरी वादक पं. पन्नालाल घोष और पं. हरि
मुद्रा में रखा जाता है और एक धनुष के साथ बजाया जाता प्रसाद चौरसिया हैं।
है। सारंगी बजाने के लिए बाएं हाथ के नाखूनों को तार से
दबाया जाता है।

• प्रसिद्ध सारंगी वादक रहमान बख्श, पं. राम नारायण,


गुलाम सबीर और उस्ताद सुल्तान खान है।

चित्र 9.3 बांसुरी

शहनाई (Carinet)

• शहनाई एक पारंपरिक संगीत वाद्ययंत्र है, जिसे विवाह


और मंदिर के उत्सवों जैसे शुभ अवसरों पर बजाया जाता
है।

• शहनाई एक दोहरी कम्पिका युक्त वाद्य यंत्र है जिसमें एक


पतली नलिका होती है जो धीरे-धीरे नीचे की ओर बढ़ता
है। शहनाई में सेमी, क्वार्टर और माइक्रो-टोन बनाने के
लिए फिंगर-होल होते हैं।

• उस्ताद बिस्मिल्लाह खान शहनाई के महान वादक हैं।


चित्र 9.2 सारंगी

सरोद (Sarod)

• सरोद में चमड़े के लिपटा हुआ एक छोटा लकड़ी का


हिस्सा और स्टील से ढका हुआ एक अंगुलिपटल होता है।
सरोद में पर्दे नहीं होते, साथ ही इसमें 25 तार होते हैं जिनमें
से 15 अनुकंपी तार हैं। स्टील युक्त लौकी अनुनादक यंत्र
के रूप में कार्य करती है। तारों को त्रिकोणीय पल्ट्रम के
साथ तोड़ा जाता है।

• सरोद के प्रमुख प्रतिपादक उस्ताद अली अकबर खान,


उस्ताद अमजद अली खान, पं. बुद्धदेव दास गुप्ता, जरीन
दारूवाला और ब्रिज नारायण हैं।

बांसुरी (Flute)

• बांसुरी एक समान दूरी पर किए गए छिद्रों युक्त एक


साधारण बेलनाकार ट्यूब है और प्राचीन काल से भारतीय चित्र 9.4 शहनाई
संगीत से संबंधित है। बांसुरी आकार में भिन्न होती है।

99
तबला (Tabor) हरमोनियम (Harmonium )

• उत्तर भारत में प्रयुक्त होने वाला सबसे प्रसिद्ध वाद्य यंत्र • हारमोनियम भारत का एक पारंपरिक और प्रसिद्ध वाद्य
तबला है। तबले में ढोल (तबला) और बायाँ होते है। यंत्र है। हारमोनियम में ढाई सप्तक से अधिक का स्वर
पटल (कीबोर्ड) होता है और यह धौंकनी की एक विधि पर
• तबला लकड़ी का बना होता है और जबकि इसका ऊपरी
कार्य करता है।
भाग पशुओ ं की खाल से बना होता है। तबले को हथौड़ी से
ऊपरी हिस्‍से के किनारों को ठोंक कर उपयुक्‍त स्‍वर को • स्वर पटल दाहिने हाथ से बजाया जाता है और बाएँ हाथ
मिलाया जा सकता है। का प्रयोग धौंकनी को नियंत्रित करने के लिए किया
जाता है। हारमोनियम दक्षिण की तुलना में उत्तर भारत में
• बांया हिस्‍सा बास ढोल होता है और सामान्यतः धातु
अधिक प्रसिद्ध है।
से निर्मि त होता है। इसका ऊपरी हिस्‍सा पशु की खाल
से ढं का जाता है और दोनों ढोल के केंद्र पर काला ले प
लगाया जाता है ताकि इसे मेगनीज़ या लोहे के जंग से
बचाया जा सके।

चित्र 9.6 हारमोनियम

जलतरंग (Jaltarang)

चित्र 9.5 तबला • जलतरंग में भिन्न-भिन्न आकार के अठारह चीनी मिट्टी
के प्यालों का एक सेट शामिल होता है। इन्हें आकार के
घटते क्रम में, कलाकार के सामने एक अर्धवृत्त में रखा
पखावज (Pakhavaj ) जाता है।

• ऐसा माना जाता है कि तबला का उद्भव पखावज से हुआ • सबसे बड़ा प्याला कलाकार के बायीं ओर है जबकि सबसे
है। पखावज आमतौर पर गायन की ध्रुपद शैली के साथ छोटा प्याला दायीं ओर रखा जाता है। प्याले में जल
उपयोग होता है। पखवाज एक बैरल के आकार का ड्रम है डाला जाता है और जल की मात्रा को समायोजित करके
जिसमें दो शीर्ष होते हैं जो खाल से बने होते हैं। स्वरमान (पिच) को विकृत कर दिया जाता है। प्यालों को
बांस की दो पतली डंडियों से बजाया जाता है।
• पखवाज के शीर्ष चमड़े की पट्टियों से मढ़ा हुआ होता हैं
जो इसके किनारों के साथ छोटे बेलनाकार लकड़ी के
ब्लॉकों पर संचालित होते हैं जो कि फॉर्च्यून का उपयोग
करते हैं।

100
मृदंगम (Mradgam) घटम (Ghatam)

• मृदंगम दक्षिण भारत के सबसे स्वीकृत शास्त्रीय वाद्ययंत्रों • घटम दक्षिण भारत के सबसे पुराने ढोल वाद्ययंत्रों में से
में से एक है। मृदंगम मुखर, वाद्य और नृत्य दिनचर्या के एक है। घटम मटके के आकार का मिट्टी यंत्र होता है और
साथ आता है। वर्तमान समय में मृदंगम लकड़ी के एक ही इसका मुख संकीर्ण होता है। अपने मुंह से, यह एक रिज
टु कड़े से तैयार किया जाता है। यह एक बैरल के आकार बनाने के लिए ऊपर की ओर झुकता है। घटम मुख्य रूप
का द्विपृष्ठीय ढोल होता है, जिसका दाहिना शीर्ष बायें से से पीतल या तांबे के बुरादे के साथ पकी हुई मिट्टी से बना
छोटा होता है। दोनों शीर्षों पर चमडा लगा होता है। होता है जिसमें कम मात्रा में लोहे का भी उपयोग हुआहै।
घटम तीव्र लयबद्ध पैटर्न बनाता है। घटम आमतौर पर
मृदंगम के साथ उपयोग होने वाला एक द्वितीयक वाद्य
यंत्र है।

चित्र 9.7 मृदंगम

चित्र 9.8 घटम

101
अध्याय - 10

भारत में मार्शल आर्ट


(MARTIAL ARTS IN INDIA)

• विश्व की अधिकांश प्राचीन सभ्यताओ ं में एक अनुशासित


और युद्ध-प्रशिक्षित युद्ध सेना(मिलिशिया) होती थी।
सिलं बम (Silambam)
मार्शल आर्ट का ज्ञान स्थानीय संस्कृतियों के संरक्षण और • सिलं बम तमिलनडु की एक हथियार आधारित भारतीय
सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण था। शओलिन मठ को डाकुओ ं मार्शल आर्ट है। सिलं बम में कई प्रकार के हथियारों का
से बचाने के लिए प्राचीन चीन में 'शाओलिन' विकसित उपयोग किया जाता है और इनमें से कुछ विश्व में किसी
किया गया था। जापान में, समुरई को अनेक हथियारों के अन्य स्थान पर नही पाए जाते हैं।
साथ-साथ निशस्त्र युद्ध में कुशल होने और युद्ध कौशल
• सिलं बम कला का उपयोग पशुओ ं की गतिविधियों जैसे
की अत्यधिक संभावित निपुणता हेतु प्रशिक्षित किया
सांप, बाघ, और चील के आकार, और क़दमों के उपयोग
जाता था। तलवार, भाले और ढाल में युद्ध के अपने ज्ञान
की पद्धतियों में भी किया जाता है। कुट्टू वारिसाई (सिलं बम
के साथ ग्लेडियेटर्स रोम में प्रसिद्ध थे। भारत में भी उस
का हिस्सा), निशस्त्र प्रकार का मार्शल आर्ट है।
समय कई मार्शल आर्ट थे, जिनमें से अनेक आवश्यकता
के समय उपयोगी सिद्ध हुए हैं।

कलारीप्पयाट्टू
(Kalarippayattu)
• कलारीप्पयाट्टू केरल की एक प्रसिद्ध भारतीय मार्शल
आर्ट है और यह सबसे प्राचीन युद्ध प्रणालियों में से एक है।
इसका अभ्यास दक्षिण भारत के अधिकांश भागों में किया
जाता है।

• कलारी वह पाठशाला या प्रशिक्षण कक्ष या स्थान है जहाँ


मार्शल आर्ट का अभ्यास किया जाता है। इसमें प्रहार,
पदाघात और कुछ हथियार आधारित अभ्यास शामिल चित्र 10.2 सिलं बम
हैं। कलारीप्पयाट्टू में कदमों का उपयोग सबसे महत्वपूर्ण
होता है।

• यह सबसे बेहतर भारतीय मार्शल आर्ट है इसका कई


फिल्मों जैसे अशोक और द मिथ में उपयोग किया गया है।
गटका (Gatka)
• गतका एक हथियार आधारित भारतीय मार्शल आर्ट है
जिसका उद्भव पंजाब के सिखों द्वारा किया गया है।

• गतका में उपयोग होने वाले हथियार हैं, छड़ी, तलवार,


कृपाण और कटार।

• हमला करने और बचाव करने के तरीके हाथों, पैरों की


स्थिति और उपयोग किए गए हथियारों की प्रकृति पर
निर्भर करते हैं। यह पंजाब में विभिन्न समारोहों या मेलों
के दौरान भी प्रदर्शि त किया जाता है।

चित्र 10.1 कलारीप्पयाट्टू

102
चित्र 10.4 थांग टा

लाठी (Lathi)
• लाठी भारत की सबसे प्रारंभिक सशस्त्र मार्शल आर्ट है।
10.3 गटका
• लाठी को मार्शल आर्ट में इस्तेमाल होने वाले विश्व के
सबसे पुराने हथियारों में से एक के रूप में भी जाना जाता
है।

मुष्टि युद्ध (Musti Yuddha) • भारत के पंजाब और बंगाल क्षेत्र में लाठी या स्टिक मार्शल
आर्ट का प्रदर्शन किया जाता है। यह भारतीय गांवों में एक
• यह "वाराणसी" में प्रचलित बिना हथियारों के किया जाने प्रसिद्ध खेल है।
वाला एक मार्शल आर्ट रूप है।

• यहां इस्तेमाल की जाने वाली तकनीक पंच, किक, घुटने


और कोहनी की प्रहार है।

• यह शैली शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक विकास


की कला का पूर्ण संयोजन है।

• वर्तमान में यह कला अधिक प्रचलित नहीं है ले किन मध्य


युग में बहुत लोकप्रिय थी।

थांग टा (Thang Ta)


10.5 लाठी कला
• थांग टा के लिए एक प्रसिद्ध शब्द है।

• प्राचीन मणिपुरी मार्शल आर्ट को ह्यूएन लालोंग भी कहा


जाता है। तलवार और भाले के साथ मणिपुरी मार्शल आर्ट, मर्दानी खेल (Mardani Khel)
एक सुदृढ़ ले किन सुंदर रूप से परिष्कृ त कला है।
• मर्दानी खेल मराठाओ ं द्वारा निर्मि त मार्शल आर्ट की एक
सशस्त्र तकनीक है। महाराष्ट्र की यह पारंपरिक मार्शल
आर्ट कोल्हापुर में की जाती है।

103
परी-खंडा (Pari-Khanda)
• परी-खंडा बिहार में तलवार और ढाल से की जाने वाली
विधा है।

• यह कला राजपूतों द्वारा निर्मि त की गई है। छऊ नृत्य में


परिखंड के चरणों और तकनीकों का भी प्रयोग किया
जाता है।

10.7 इं बुआन कुश्ती

चेबी गद-गा (Cheibi Gadga)


10.6 परी खंडा
• यह मणिपुर में प्रचलित एक हथियार आधारित मार्शल
आर्ट है।

काथी सामु (Kathi Samu) • इसमें तलवार और ढाल का उपयोग किया जाता है।

• विजय बाहुबल की तुलना में कौशल पर अधिक निर्भर


• काथी सामु आंध्र प्रदेश में प्रचलित एक प्राचीन भारतीय करती है।
मार्शल आर्ट है और इसका उपयोग आंध्र प्रदेश की शाही
सेनाओ ं के योद्धाओ ं द्वारा किया जाता था।

• मार्शल आर्ट को तलवारबाज़ के रूप में भी स्वीकार किया


जाता है।
सरित-सरक (Sarit-Sarak)
• यह मणिपुर की बिना हथियार के की जाने वाली एक
प्रकार की मार्शल आर्ट है।
इं बुआन कुश्ती (Inbuan • पूर्व में योद्धा सशस्त्र या निहत्थे प्रतिद्वंद्वी से लड़ते थे।

Wrestling) • ये अपनी कुटिल और आक्रामक कार्रवाई में बिल्कु ल


सही होते हैं।
• यह मिजोरम में एक बिना हथियारों के की जाने वाली
एक प्रकार की कुश्ती है। इसके तहत पदाघात, घेरे से

थोडा (Thoda)
बाहर निकलने और घुटनों को मोड़ने के संबंध में सख्त
नियम बनाए गए हैं।

• नियमों का कड़ाई से पालन करते हुए प्रतिद्वंद्वी को अपने • यह हिमाचल प्रदेश में महाभारत काल में उत्पन्न एक
पैरों से उठाने का प्रयास किया जाता है। हथियार आधारित मार्शल आर्ट है।
• कमर के चारों ओर पहलवान द्वारा पहनी जाने वाली बेल्ट • आम तौर पर तीरंदाजी कौशल पर आधारित है।
को पकड़ना होता है।
• "थोडा" लकड़ी का गोल टु कड़ा होता है जो तीर के सिरे पर
लगा होता है।

104
मुकना (Mukna) लकन-फनोबा (Lakna-
• यह मणिपुर की एक बिना हथियारों के की जाने वाली Phanaba)
एक प्रकार की कुश्ती है।
• यह मणिपुर की बिना हथियारों के की जाने वाली कुश्ती
• हाथ पकड़े हुए दो प्रतियोगी एक-दूसरे की कमर पर बंधी है।
पट्टी को पकड़कर कुश्ती लड़ते हैं और दूसरे को नीचे
गिराने का प्रयास करते हैं और विजेता को हमेशा गिरने
वाले के ऊपर होना चाहिए।
कर्रा सामू (Karra Samu)
• यह मूल रूप से आंध्र प्रदेश में प्रचलित एक लाठी मार्शल
आर्ट है।

105
अध्याय - 11

भारतीय साहित्य
(INDIAN LITERATURE)

• मानव की स्वयं के विचारों को अभिव्यक्त करने और » आरण्यक


अन्य के विचारों को प्रभावित करने की इच्छा विभिन्न
» उपनिषद
रूपों में विकसित हुई है। इस प्रकार की अभिव्यक्ति का
सबसे परिष्कृ त रूप ले खन के माध्यम से अभिव्यक्ति है।
जब से मानव ने लिपियों का आविष्कार किया है, ले खन
वेद (Vedas)
ने समाज के विभिन्न महत्वपूर्ण पहलु ओ ं जैसे संस्कृति,
जीवन शैली और राजनीति आदि को प्रतिबिं बित किया वेद संभवतः मानव बुद्धि के प्रारंभिक दस्तावेज हैं और
है। इस प्रक्रिया में, प्रत्येक संस्कृति ने अपना साहित्य, मान्यताओ ं के अनुसार रहस्योद्घाटन से संबंधित हैं। इन्हे
भाषा और दर्शन विकसित किया। भारत में धार्मि क और निम्नानुसार विभाजित किया गया हैं:
धर्मनिरपेक्ष दोनों प्रकार के साहित्य का विकास हुआ है,
अधिकांश मामलों में इनका विषय उपदेशात्मक होता है,
जो पाठकों को आनंदमय जीवन के लिए धर्म के मार्ग के ऋग्वेद (Rig Veda)
अनुसरण के लिए प्रेरित करता है। भारतीय साहित्य का
इतिहास वेदों से प्रारंभ होता है - जिनका अनेक वर्षों तक • ऋग्वेद को हिं दू धर्म का पवित्र ग्रंथ माना जाता है। इसने
मौखिक संरक्षण किया गया था। अपने महत्व के कारण विद्वानों और इतिहासकारों को
अत्यधिक प्रभावित किया है। यह वैदिक संस्कृत सूक्तियों/
मंत्रों के प्राचीन भारतीय संग्रह का संकलन है।

• ऋग्वेद को 10 भागों में विभाजित किया गया है जिन्हें


वैदिक साहित्य (Vedic मंडल के नाम से जाना जाता है।

Literature) • इसमें 10600 श्लोकों और 1028 सूक्तियों का संग्रह है।

• यह किसी भी इं डो-यूरोपीय भाषा में संकलित प्राचीनतम


• वेद शब्द की उत्पत्ति 'विद्' धातु से हुई है, जिसका अर्थ है
पाठ है।
जानना। इस प्रकार, वेद शब्द 'श्रेष्ठ ज्ञान' का प्रतीक है।
• इसकी उत्पत्ति का काल 1700 ईसा पूर्व-1100 ईसा पूर्व
• वैदिक साहित्य को दो भागों में विभाजित किया गया है:
माना जा सकता है।
श्रुति और स्मृति।
• इसमें संकलित 35% सूक्तों की रचना अंगिरा के ऋषि
• श्रुति के अंतर्गत चार वेद यथा ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद,
परिवार द्वारा जबकि 25% सूक्तों की रचना कण्व परिवार
अथर्ववेद और उपनिषद् शामिल हैं जबकि स्मृति के
द्वारा की गई है।
अंतर्गत पुराण जैसे महाभारत, भगवद-गीता आदि शामिल
हैं। • ऋग्वेदिक सूक्तों के अनुसार, संपूर्ण ब्रह्मांड की उत्पत्ति
'प्रजापति' से हुई है, (यूनानी पौराणिक कथाओ ं में प्रारंभिक
• वैदिक साहित्य सामान्यतः 3 अवधियों में विभाजित है:
ईश्वर की तुलना ज्यूस से की जा सकती है) और यह सृष्टि
» मंत्र काल जब संहिताओ ं का संग्रह किया गया। का प्रमुख आधार है।

» ब्राह्मण काल वह काल है जब ब्राह्मण, उपनिषद और • मंत्रों को 'सूक्त' के रूप में जाना जाता है जो आमतौर पर
आरण्यक की रचना की गई थी। अनुष्ठानों में उपयोग किए जाते हैं।

» सूत्र काल। • इं द्र ऋग्वेद के मंत्रों में उद्धृत प्रमुख देवता (स्वर्ग का राजा)
हैं।
• वैदिक साहित्य का अर्थ वेदों पर आधारित या से प्राप्त • आकाश देव-वरुण, अग्नि देव अग्नि, और सूर्य देव सूर्य
साहित्य से है। वैदिक साहित्य का निर्माण करने वाले ग्रंथ ऋग्वेद के विभिन्न मंत्रों में वर्णि त कुछ अन्य प्रमुख देवता
हैं: हैं।

» चार वेद अर्थात, संहिता • इसमें प्रसिद्ध पुरुष सूक्त शामिल है जो वर्णि त करता है
कि चार वर्णों (जातियों) (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र)
» प्रत्येक संहिता से जुड़े ब्राह्मण
का जन्म सृष्टिकर्ता के मुख, हाथ, उदर और पैरों से हुआ

106
था। यह जाति व्यवस्था का उद्गम स्रोत था जो अभी भी अथर्ववेद (Atharva Veda)
आधुनिक हिं दू समाज में कुछ संशोधनों के साथ प्रचलित
• यह 'अथर्वों का ज्ञान भंडार', 'दैनिक जीवन के लिए
है।
प्रक्रियाएं ' है।

• इसे वेदों में बाद में अर्थात उत्तरवैदिक युग में शामिल
सामवेद (Sama Veda) किया गया था।

• सामवेद को प्रार्थना की पुस्तक या "मंत्रों के ज्ञान का • अथर्ववेद की रचना वैदिक संस्कृत में की गई है और इसमें
भंडार" भी कहा जाता है। लगभग 6,000 मंत्रों के साथ 730 सूक्त शामिल हैं जिन्हें
20 खंडों में विभाजित किया गया है।
• यह काव्य और पद्य का मिश्रण है।
• इस वेद के पैप्पलद और शौनक नामक दो अलग-अलग
• इसे भारत में संगीत और नृत्य की उत्पत्ति का स्रोत माना
पाठ संरक्षित हैं।
जाता है।
• केनेथ ज़िस्क, का मत है कि यह पाठ धार्मि क चिकित्सा में
• इसमें लगभग 1549 श्लोक हैं (75 श्लोकों को छोड़कर,
विकासवादी प्रथाओ ं के शुरुआती उपलब्ध अभिले खों में
शेष सभी ऋग्वेद से लिए गए हैं)।
से एक है और "इं डो-यूरोपीय पुरातनता के लोक उपचार
• उदगात्री के नाम से जाने जाने वाले ब्राह्मणों की एक के प्रारंभिक रूपों" को प्रकट करता है।
विशिष्ट श्रेणी द्वारा सोम यज्ञ में इन भजनों का जाप किया
• इसे ब्रह्मवेद के नाम से भी जाना जाता है। अथर्ववेद मुख्य
जाता है।
रूप से 'अथर्वों' और 'अंगिरा' के नामक ऋषियों के दो
समूहों द्वारा रचित था, इसलिए इसका सबसे पुराना नाम
'अर्थवांगिरा' है।
यजुर्वेद (Yajur Veda)
• मुंडकोपनिषद और माण्डू क्योपनिषद अथर्ववेद में
• अध्वुर्य पुजारी द्वारा उपयोग की जाने वाली बलि की सन्निहित हैं।
प्रार्थनाओ ं (यजुष ) का वैदिक संग्रह है। गद्य को 'यजुष'
• यह विनम्र लोगों की लोकप्रिय मान्यताओ ं और
कहा गया है। चरों वेदों में से, यह अधिकांशतः वैदिक
अंधविश्वासों का वर्णन करता है।
बलिदान को इसके अनुष्ठानिक चरित्र और पूर्ण दायरे में
दर्शाता है। यजुर्वेद के मंत्रों का उच्चारण 'अध्वुर्य' नामक • इसमें रोगों और बुराइयों को दूर करने के लिए मंत्र और
पुरोहित करता था। छं द शामिल हैं।

• यजुर्वेद विभिन्न यज्ञों को करते समय अपनाई जाने • वैदिक यज्ञों में भाग ले ने वाले पुजारी आमतौर पर संख्या
वाली प्रक्रियाओ ं को निर्धारित करता है। में चार होते थे। चार वेद ऋग्वे, यजु, साम और अथर्व के
अनुरूप इन्हें होति, अध्वर्यु, उदगत्री एवं ब्राह्मण कहा जाता
• यजुर्वेद के दो प्रमुख विभाग हैं: काला यजुर्वेद (कृष्ण
है।
यजुर्वेद) चार संस्करणों में विद्यमान है और श्वेत यजुर्वेद
(शुक्ल यजुर्वेद) दो संस्करणों में विद्यमान है। 'काला ' शब्द
में श्लोकों का 'अव्यवस्थित संग्रह' शामिल होता है 'श्वेत'
सुव्यवस्थित और स्पष्ट यजुर्वेद है। आरण्यक (Aranyaka)
• शुक्ल यजुर्वेद में शामिल संहिता को 'वाजसनेयी संहिता'
भी कहा जाता है। शुक्ल यजुर्वेद के 16 में से, केवल दो पाठ • आरण्यक वैदिक साहित्य के विकास का तीसरा चरण है।
ही शेष हैं, मध्यमा और कण्व दोनों ही कुछ मामूली भेदों • इन्हे ब्राह्मणों और उपनिषदों के मध्य के काल में रखा
को छोड़कर लगभग समान हैं। गया है।
• तैत्तिरीय संहिता, मैत्रायणी संहिता, कपिष्ठल संहिता और • वैदिक साहित्य में उनके निहितार्थ को महाभारत में यह
काठक संहिता कृष्ण यजुर्वेद के 4 सर्वाधिक ज्ञात एवं कहकर इं गित किया गया है कि आरण्यक वेदों का सार हैं।
उपलब्ध पाठ हैं ये एक दूसरे से भिन्न हैं।
• ले किन अब तक वैदिक साहित्य में उनकी सटीक भूमिका
• इन अभिले खों में सर्वाधिक ज्ञात और सबसे अच्छी तरह से स्पष्ट नहीं है।
संरक्षित तैत्तिरीय संहिता है, जो यक्ष के एक शिष्य तित्तिरी
• सामान्यतः, 'आरण्यक' शब्द वनों से संबंधित होता है और
द्वारा रचित और पाणिनी द्वारा वर्णि त है। सबसे पुरानी
आरण्यक 'वन ग्रंथ' के रूप में जाने जाते हैं, जिसमें वनों में
संहिता मैत्रायणी संहिता है।
तपस्वियों के ध्यान लगाने और ईश्वर, मानव और सृष्टि से
• यह यज्ञ के समय पुजारियों के एक निश्चित वर्ग द्वारा संबंधित आध्यात्मिक विषयों का वर्णन है।
उपयोग किए जाने वाले लघु जादू मंत्रों का संग्रह है।
• वैदिक साहित्य के चार ग्रंथ अर्थात् संहिता, ब्राह्मण,

107
आरण्यक और उपनिषद वेदों के पृथक और विशिष्ट भाग कथाओ ं, दर्शन और अंधविश्वासों, त्योहारों और समारोहों
नहीं हैं, ले किन वे वैदिक विचार के विकास के क्रम और और इसकी नैतिकता के बारे में महान अंतर्दृष्टि प्रदान
विस्तार का प्रतीक हैं। करते हैं जो किसी भी अन्य धार्मि क कार्य से अलग हैं। .

• आरण्यकों के महत्व को केवल 'वन ग्रंथ' कहकर कम • पुराणों की कुल संख्या 18 हैं। इनके 18 सहायक पुराण
नहीं किया जा सकता है। और कई अन्य संबंधित पुस्तकें हैं। प्रत्येक पुराण पांच
विषयों से संबंधित है, जैसे।
• महान व्याकरणविद् पाणिनि आरण्यक शब्द की व्याख्या
वन से संबंधित मनुष्य के रूप में करते हैं, कात्यायन ने • सर्ग जो सृष्टि के सृजन से संबंधित है।
वन से संबंधित एक अध्याय या ग्रंथ के अर्थ में इस शब्द
• प्रति सर्ग जो सृष्टि के सृजन एवं पतन से संबंधित है।
को चित्रित किया है।
• मन्वंतर अलग-अलग युगों का अंतरिक्षीय चक्र से
• आरण्यक न केवल प्रतीकों बल्कि अन्य पहलु ओ ं को
संबंधित है।
भी धारण करते हैं, ले किन प्रतीकवाद को उनकी मुख्य
विशेषता माना जाता है क्योंकि उनमें अधिकांशतः प्रतीकों • वंश में ऋषियों और राजाओ ं की वंशावली है।

की ही चर्चा की गई है। • वंशानुचरित कुछ चयनित पात्रों की जीवन कथाओ ं से

• ये न केवल गुप्त या रहस्यवादी विषयों का चित्रण करते संबंधित है।

हैं, बल्कि एक आम व्यक्ति या गृहस्थ के लिए दैनिक • पुराणों का आरंभ सूर्य और चंद्रमा वंश से संबंधित शासकों
अनुष्ठान जैसे संध्यापसनम, पंचमहायज्ञ, ब्रह्मोपासनम से माना जाता हैं। ये मध्यदेश में शासन करने वाले
आदि का भी चित्रण करते हैं। विभिन्न राजाओ ं का वर्णन करते हैं। वे हस्तिनापुर के

• वेदों की आरण्यक के रूप में मान्यता प्राप्त इन शिक्षाओ ं पुरु राजाओ ं और कोसल के इक्ष्वाकु राजा के मध्य के

का अध्ययन विशेष रूप से हितकारी होता है। इतिहास का वर्णन करते हैं। इनसे शिशुनाग राजाओ ं और
नंद राजाओ ं का विवरण प्राप्त होता हैं।

• पुराणों में तीर्थों, तीर्थों के पवित्र स्थानों, और उनके


वैदिक साहित्य में आरण्यकों की भूमिका (Role of महात्म्य, या उनके धार्मि क महत्व का भी वर्णन है।
Aranyakas in Vedic Literature) • ये हिं दू धर्म के चार युगों अर्थात कृत, त्रेता, द्वापर और कलि
का उल्ले ख करते हैं। समय के साथ प्रत्येक युग सामाजिक
• वैदिक साहित्य का सामान्य दृष्टिकोण यह है कि
संस्थाओ ं और समाज में प्रचलित नैतिक मूल्यों के संदर्भ
आरण्यक व्यावहारिक हैं और कर्मकांड से दर्शन तक के
में अपने पिछले युग से भी निम्न स्तर का होता है।
संक्रमणकालीन चरण को प्रदर्शि त करते हैं।
• श्रीमद्भागवत पुराण सभी पुराणों में सबसे लोकप्रिय
• आरण्यकों की रचना वनों में की गई थी और ये ब्राह्मणों
है। इसमें 18000 श्लोक हैं और इसमें भगवान विष्णु के
के अंतिम भाग हैं। ये वनों में रहने वाले ऋषियों की
दस अवतारों के दशावतार का वर्णन है। पुराण का दसवां
जानकारी भी प्रदान करते हैं।
अध्याय भगवान कृष्ण के बाल्यकाल के दौरान किए गए
• ये आरण्यक यज्ञों को नहीं बल्कि ध्यान को महत्व देते कार्यों और लीलाओ ं से संबंधित है। यह पुराण का सबसे
हैं और प्रारंभिक अनुष्ठानों के विरोधी हैं। उनका मुख्य लं बा अध्याय है और इसमें एक विषय शामिल है जिसे बाद
बल नैतिक मूल्यों पर है। इस प्रकार, ये कर्म मार्ग (जो में कई भक्ति संतों द्वारा विस्तृत रूप से वर्णि त किया गया
ब्राह्मणों का प्रमुख बिं दु था) और ज्ञान मार्ग (जिसका था।
समर्थन उपनिषदों में किया गया है) के मध्य एक सेतु का
• पुराण राजनीतिक इतिहास का स्रोत होने के साथ-साथ
निर्माण करते हैं।
प्राचीन भारतीय भूगोल का एक महत्वपूर्ण स्रोत भी हैं।
इनमें अनेक प्राचीन समय में विद्यमान शहरों के नाम
मिलते हैं। वर्णि त विभिन्न शहरों के बीच की दूरी लगभग
पुराण (Puranas) पुराणों में निहित जानकारी से निर्धारित की जा सकती
है। पुराणों में उल्लिखित क्षेत्र विशेष के शहरों, नदियों और
• पुराण भारत में प्राचीन संस्कृत साहित्य के महत्वपूर्ण पहाड़ों के प्राचीन नामों को जानने में भी सहायता मिलती
कार्य हैं। हैं।

• इनमें से कुछ को राजनीतिक इतिहास के स्रोतों के रूप में • हालांकि, पुराणों की आलोचना सत्यापन सहित भाषा के
महत्वपूर्ण माना गया है। निम्न स्तरीय उपयोग के कारण की जाती है, जिसका
परिणाम खराब व्याकरण है। ये घटनाओ ं की अत्यधिक
• धार्मि क कार्यों के रूप में, पुराण हिं दू धर्म के सभी पहलु ओ ं
अतिशयोक्ति और विषयवस्तु के भ्रमित मिश्रण के रूप
और चरणों, इसकी आस्तिकता, मूर्ति पूजा, पौराणिक
में जाने जाते हैं। वर्तमान समय में पुराणों को ले कर

108
इतिहासकारों में आम सहमति है। इन्हें न तो पूर्वाग्रह से है।
समझा जाना चाहिए और न ही ऐतिहासिक सत्य के रूप
• राजतरंगिणी (Rajatarangini): पंडित कल्हण की
में। इसके लिए मध्यम मार्ग अपनाना चाहिए और पुराणों
राजतरंगिणी या "राजाओ ं की नदी" कश्मीर का सबसे
के केवल वही पहलू स्वीकार किए जाने चाहिए जो उचित
प्राचीन इतिहास है। यह एक ऐतिहासिक कविता है, जो
हों।
1148 और 1150 ईस्वी के मध्य लिखी गई थी। यह पुस्तक
कश्मीर और शेष भारत के बारे में बहुमूल्य सामाजिक
और राजनीतिक जानकारी प्रदान करती है। यह पुस्तक

संस्कृत साहित्य (Sanskrit संस्कृत भाषा में लिखी गई है तथा विभिन्न विद्वानों और
अनुवादकों द्वारा विभिन्न भाषाओ ं में इसका अनुवाद
Literature) किया गया है। राजतरंगिणी के एक खंड का प्रथम अनुवाद
फारसी भाषा में कश्मीर के सुल्तान ज़ैन-उल-आबिदीन
• अष्टाध्यायी (Ashtadhyayi): पाणिनि द्वारा छठी से (1421-1472) ईस्वी के आदेश पर किया गया था। इस
पांचवीं शताब्दी ईसा पूर्व के मध्य रचित व्याकरण पर संस्करण का नाम बहरुल -असमार (या कहानियों का
संस्कृत ग्रंथ। इससे शास्त्रीय संस्कृत के भाषाई मानकों समुद्र था)।
का विकास हुआ।
• कथासरितसागर (Kathāsaritsāgara):
• कालिदास एक शास्त्रीय संस्कृत ले खक थे, जिन्हें कथासरितसागर ("कहानियों का सागर") भारतीय
आमतौर पर संस्कृत भाषा का भारत का सबसे महान किंवदंतियों, पकाल्पनिक कथाओ ं और लोक कथाओ ं
कवि और नाटककार माना जाता है। पर 11वीं शताब्दी का एक प्रसिद्ध संग्रह है, जइसकी रचना
• कालिदास द्वारा किए गए कुछ प्रमुख कार्य सोमदेव नामक शैव द्वारा संस्कृत में की गयी है।
मालविकाग्निमित्र, विक्रमोर्वशीयम्, अभिज्ञान • विक्रमांकदेवचरित (Vikramankadevacharita):
शाकुंतलम, रघुवंश और मेघदूत आदि हैं। यह विक्रमादित्य की प्रशंसा में बिल्हण द्वारा रचित एक
• कथा कोश (Katha Kosa): हरिषेण की कथा कोश प्रशस्ति ग्रन्थ है।
संस्कृत में जैन लघु कथाओ ं का सबसे उत्कृष्ट उदाहरण

भारत में आने वाले महत्वपूर्ण विदेशी आगंतुकों के ले खे


(Accounts of Important Foreign Visitors to India)
• भारतीय इति हास का निर्धा रण करने में, विशेष रूप से प्राचीन और मध्यकालीन भारत में, विदेशी यात्रियों के विवरण
महत्वपूर्ण हैं। उनकी यात्रा के दौरान, उनके द्वारा दिए गए विवरण प्रशासन, सामाजिक जी वन, वित्तीय स्थिति और सामान्य
प्रथाओ ं जैसे विभि न्न पहलु ओ पर प्रकाश डालने में सहायक थे।

विदेशी यात्रियों के
संबंधित विवरण
नाम
• पश्चिम एशिया के यूनानी शासक सेल्यूकस निकेटर ने मेगस्थनीज को राजदूत के रूप में
चंद्रगुप्त के दरबार में भेजा।

• इसने लगभग 300 ईसा पूर्व पटना में चंद्रगुप्त मौर्य के दरबार का दौरा किया।
मेगस्थनीज
• मेगस्थनीज ने ‘इं डिका' पुस्तक की रचना की।

• यूनानियों को भूगोल में रूचि थी और ऐसा प्रतीत होता है कि मेगस्थनीज द्वारा वर्णि त भारत की
अवस्थिति, माप, और स्थलाकृति इं डिका का सबसे पुनर्प्रकाशित खंड है।
• चीनी यात्री जो चन्द्रगुप्त द्वितीय के शासनकाल के दौरान लगभग 400 ई. में भारत आया था।

• उसके द्वारा अपने महत्वपूर्ण यात्रा वृतांत 'बौद्ध राज्यों का एक अभिले ख' में अपनी यात्रा का
फाह्यान
वर्णन किया गया है।

• उसके विवरण में गुप्त काल के प्रशासन और आर्थि क समृद्धि का वर्णन किया गया हैं।

109
• भारत में वास की अवधि: - 630 ई. - 645 ई।

• यह चीनी यात्री हर्षवर्धन के शासनकाल में भारत आया था।

ह्वेन त्सांग • अपनी यात्रा के दौरान उसने कई स्थानों का दौरा किया और देश की सामाजिक, धार्मि क,
राजनीतिक, सांस्कृतिक और आर्थि क स्थितियों का ध्यानपूर्वक अवलोकन किया।

• अपनी पुस्तक 'सी-यू-की' या 'रिकॉर्ड ऑफ द वेस्टर्न कंट्रीज' में उसने भारत का विस्तृत विवरण
लिखा।
• यह उज्बेकिस्तान (11वीं शताब्दी) से आया था।

• वह कई भाषाओ ं में पारंगत थे: सिरिएक, अरबी, फारसी, हिब्रू और संस्कृत।


अल-बिरूनी
• अल-बिरूनी द्वारा अरबी में लिखी गई किताब-उल-हिं द में धर्म और दर्शन, सामाजिक जीवन,
त्योहारों, खगोल विज्ञान, रसायन विद्या, भार और माप/ मूर्ति कला, कानून मापतंत्र विज्ञान
विषयों को कवर करने वाले 80 अध्याय शामिल हैं।
• मोरक्को के इस यात्री का जन्म टैं जियर में हुआ था।

• इसने 1332-33 में भारत के लिए प्रस्थान करने से पहले मक्का की तीर्थयात्रा की थी।

• इब्न बतूता 1333 में मध्य एशिया से होते हुए स्थलमार्ग से सिं ध पहुंचा।
इब्न बतूता
• मुहम्मद बिन तुगलक के शासनकाल के दौरान भारत का दौरा किया।

• इब्न बतूता की यात्रा पुस्तक, रिहला, अरबी में लिखी गई है और इसमें चौदहवीं शताब्दी में
उपमहाद्वीप के लोगों के सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन के बारे में वर्णन किया गया है।
• इसने 1440 के दशक में दक्षिण भारत का दौरा किया।
अब्दुर रज्जाक
• इसने पंद्रहवीं शताब्दी में विजयनगर के सबसे मूल्यवान विवरणों में से एक लिखा था।
• वह एक फ्रांसीसी चिकित्सक, राजनीतिक दार्शनिक और इतिहासकार थे।

• 1656 से 1668 तक, वह बारह वर्षों तक भारत में रहा और मुगल दरबार से निकटता से जुड़ा रहा,
पहले राजकुमार दारा शुकोह, सम्राट शाहजहाँ के सबसे बड़े बेटे के एक चिकित्सक के रूप में,
फ्रांकोइस बर्नि यर
और बाद में एक अर्मेनियाईकुलीन दानिशमंद खान के साथ एक बौद्धिक और वैज्ञानिक के
रूप में मुगल दरबार में रहा।

• उसने 'ट्रै वल्स इन द मुगल एम्पायर' लिखी।

भक्ति साहित्य (Bhakti • अलवार, जो 'भगवान विष्णु' के भक्त थे, ने अपनी भक्ति
कविता के माध्यम से वैष्णववाद का विस्तार करना
Literature) प्रारंभ किया। इसकी पहचान दिव्य प्रबन्धम् के रूप में
की गई। अलवार संतों की संख्या 12 थी। नम्मालवर द्वारा
• मध्यकालीन भारत के इतिहास में भक्ति आंदोलन को रचित तिरुवाय्मोलि, वैष्णव सम्प्रदाय का एक सम्मानित
एक सांस्कृतिक क्रांति माना जाता है। इस अवधि के ग्रंथ है। अंडाल एकमात्र महिला अलवार संत थी। इनका
दौरान रचित साहित्यिक ग्रंथों पर इसका अत्यधिक प्रभाव तिरुप्पवई नामक कविता संग्रह, अपने मार्मि क उत्साह
पड़ा। भक्ति साहित्य ईश्वर के प्रति नए प्रकार की भक्ति और सादगी के लिए वर्तमान समय में भी बहुत लोकप्रिय
अर्थात भक्त और ईश्वर के बीच एक व्यक्तिगत बंधन को है।
प्रतिबिं बित करता है।
• नयनार भगवान शिव के उपासक थे। नयनार संतों की
संख्या 63 थी और उनकी सामूहिक भक्ति कविता को
थिरुमुरई के नाम से जाना जाता है। इसे तमिल वेद भी
अलवार और नयनार (Alvars And Nayanars)
कहा जाता है। इसके 12 खंड है जिनमे भगवान शिव की
• सर्वप्रथम भक्ति साहित्य की रचना दक्षिण भारत में तमिल स्तुति में लिखे गए गीत और भजन संकलित हैं। इनमें से
कवि-संतों द्वारा छठी शताब्दी ई. में की गई। पहले सात खंडों को थेवरम के रूप में स्वीकार किया गया
है।

110
उत्तर भारत में भक्ति आंदोलन का योगदान (Bhakti • शंकरदेव और माधवदेव असम के दो प्रमुख वैष्णव कवि-
Movement's Contribution in North India) संत थे। कीर्तन-घोष इनके द्वारा रचित भक्ति गीतों का
एक संकलन है ले किन इसमें ज्यादातर शंकरदेव की
• उत्तर भारत में 12वीं शताब्दी ईस्वी में रामानंद द्वारा भक्ति
रचनाएं शामिल हैं। भट्टदेव एक असमिया कवि थे, जिससे
आंदोलन को प्रारंभ किया गया था। इससे हिं दी, मराठी,
असमिया गद्य का संवर्धन हुआ।
बंगाली, गुजराती, पंजाबी आदि भाषाओ ं में साहित्यिक
ग्रंथों की रचना हुई। • नरसिं ह मेहता, अखो और भलाना की रचनाओ ं ने वैष्णव
भक्ति के प्रभाव में गुजराती साहित्य का विकास किया।
• रामचरितमानस और हनुमान चालीसा तुलसीदास की
नरसिं ह मेहता को गुजराती कविता का जनक माना
कुछ सबसे प्रसिद्ध कृतियाँ हैं। तुलसीदास ने 'रामायण'
जाता है।
और अन्य भक्ति साहित्य के महाकाव्य को जनसामान्य
के लिए अधिक सुलभ बनाया। यह संस्कृत में भक्ति • मराठी में, ज्ञानदेव की रचनाएँ , 'भावार्थ दीपिका' (जिसे
साहित्य की रचना के विराम का भी प्रतिनिधित्व करता 'ज्ञानेश्वरी' भी कहा जाता है) और अमृतानुभव पवित्र
है। तुलसीदास की कृतियों में प्रयुक्त अनेक श्लोक और पुस्तकों के रूप में पूजनीय हैं। मराठी में भक्ति साहित्य
पद अब हिन्दी भाषी क्षेत्रों की सामान्य बोली का अंग बन लिखने के लिए संस्कृत अभिजात वर्ग को चुनौती देने
गए हैं। वाले नामदेव और तुकाराम की रचनाएँ भी वर्तमान
समय में बहुत प्रसिद्ध हैं।
• कबीर, जो उत्तर भारत के हिं दुओ ं, मुसलमानों के साथ-
साथ सिखों में भी लोकप्रिय थे, ने स्थानीय भाषाओ ं
में अपनी कृतियों की रचना की। इन्होंने इस काल में
प्रचलित व्याकरण के कड़े नियमों का अधिक कठोरता
तेलुगु और कन्नड़ के विकास में भक्ति आंदोलन
की भूमिका (Bhakti Movement's Role to The
से अनुपालन नहीं किया। उनकी रचनाओ ं में अधिकांशतः
Development of Telugu And Kannada)
दो-पंक्ति के वाक्य लिखे गए थे, जिन्हें 'दोहे' के नाम से
जाना जाता है। ये दैनिक जीवन के रूपकों और उपमाओ ं • भक्ति आंदोलन ने दक्षिण में तेलुगु और कन्नड़ जैसी
से भरे हुए थे, जिसके माध्यम से उन्होंने अपने दर्शन का अन्य क्षेत्रीय भाषाओ ं के विकास को भी गति प्रदान की।
प्रसार किया। गुरु ग्रंथ साहिब- सिखों की पवित्र पुस्तक,
• 11वीं शताब्दी ईस्वी में, नन्नया ने महाभारत का तेलुगु
में उनके कई छं दों को शामिल किया गया है।
में अनुवाद किया। इसे तेलुगु में साहित्यिक रचनाओ ं
• मीराबाई भक्ति आंदोलन की सबसे प्रसिद्ध महिला संतों की शुरुआत के रूप में माना जाता था। कवि-संत
में से एक थीं। उन्होंने भगवान कृष्ण की आराधना में गीत 'अन्नमाचार्य' द्वारा भगवान विष्णु पर लिखे गए कीर्तन
गाए जो भजन के रूप में लोकप्रिय हुए। मीरा के भजन से तेलुगु की लोकप्रियता में वृद्धि हुई। वल्लभाचार्य ने
अभी भी एक उच्च साहित्यिक मूल्य की भक्ति रचनाओ ं भागवत टीका, सुबोधनी जैसी अपनी कृतियों से तेलुगु
के रूप में माने जाते हैं। इनकी रचनाओ ं में 1300 से अधिक साहित्य के विकास में योगदान दिया।
भजन शामिल हैं जो अपने आराध्य ईश्वर कृष्ण के प्रति
• कन्नड़ में, पम्पा, पोन्ना और रन्ना की तिकड़ी ने अपनी
अनुराग, रत्यात्मकता और पूर्ण समर्पण का प्रतीक हैं।
रचनाओ ं का निर्माण किया था जिससे भाषा के विकास
• सूरदास नेत्रहीन कवि थे, उन्होंने भगवान कृष्ण की में वृद्धि हुई।
आराधना में गीतों की रचना की थी। लगभग 100000
• 12वीं शताब्दी ईस्वी में वीरशैव धार्मि क आंदोलन को
कविताओ ं के उनके कुल संकलन में से, केवल 8000
बासवन्ना (बसवेश्वर) के नेतृत्व में लोकप्रियता प्राप्त
ही उपलब्ध हैं। उनकी रचनाएँ 'ब्रज भाषा' - हिं दी की एक
होने लगी। उन्होंने शिक्षा के माध्यम के रूप में सरल
बोली, में लिखी गई हैं। ब्रज भाषा को अंततः साहित्यिक
कन्नड़ के उपयोग को बढ़ावा दिया, जिससे आम लोगों
भाषा का दर्जा प्राप्त हुआ।
तक पहुंच में भी वृद्धि हुई। अल्लामा प्रभु और अक्का
• जयदेव की 'गीतगोविन्द' भगवान कृष्ण को समर्पि त महादेवी जैसे उनके समकालीनों ने एक नई तरह की
एक लोकप्रिय भक्ति रचना है। इसे भक्ति काल की सबसे गद्य रचना का आविष्कार किया जिसे वचन कहा जाता
संस्कृतमय गीतात्मक रचना माना जाता है। इसका विषय है। ये अपनी प्रत्यक्षता, सहजता और काव्यात्मक सुंदरता
भगवान कृष्ण और राधा को जोड़ने वाला प्रेम है। इसने के लिए प्रसिद्ध थे। इन्होंने कन्नड़ साहित्य के संवर्धन में
बंगाली साहित्य के विकास की नींव रखी। इनकी रचनाएं महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
अनुराग, भक्ति और गीतात्मकता के मिश्रण का प्रतीक है।
• भक्ति साहित्य ने भक्ति पंथ को लोकप्रिय बनाने में
• चैतन्य और चंडीदास बंगाल के प्रसिद्ध वैष्णव कवियों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यह संस्कारों एवं अनुष्ठानों
से थे। उन्होंने वैष्णव साहित्य में महत्वपूर्ण योगदान किया, पर केंद्रित और अधिकांशतः संस्कृत में रचित पूर्ववर्ती
इनकी अधिकांश कविताएं प्रेम और आध्यात्मिक उत्साह भक्ति साहित्य से एक महत्वपूर्ण विराम का प्रतिनिधित्व
के मिश्रण का प्रतिनिधित्व करती है।

111
करता था। भक्ति साहित्य ने भी जनसामान्य के बीच के दरबारी कवि थे।
आध्यात्मिकता को लोकप्रिय बनाया।

पद्मावत (Padmavat)

हिंदी साहित्य (Hindi • 1303 ई. में अलाउद्दीन खिलजी द्वारा चित्तौड़ की ऐतिहासिक

Literature) घेराबंदी की कथा का वर्णन करने वाली एक कविता,


जिसने राजा रावल रतन सिं ह की पत्नी रानी पद्मिनी की
सुंदरता के बारे में जान कर चित्तौड़ पर हमला किया। यह
पृथ्वीराज रासो (Prithviraj Raso)
पुस्तक अवधी में मलिक मुहम्मद जायसी द्वारा लिखी
• इसे हिन्दी भाषा की प्रथम पुस्तक माना जाता है। यह गई थी। उनकी अन्य महत्वपूर्ण कृतियाँ अखरावत और
पृथ्वीराज चौहान के वीर कृत्यों का विवरण है। इसका श्रेय अखिरी कलाम हैं।
चंद बरदाई को दिया जाता है, जो ग्रन्थ के अनुसार राजा

मुगलकालीन साहित्य (Mughal Period Literature)


पुस्तक ले खक टिप्पणी

मुख्य रूप से घुरिद वंश और प्रारंभिक सल्तनत (इलबरी वंश) से


तबकात-ए-नसीरी मिन्हाज उस सिरोज
संबंधित विवरण।

बलबन के शासनकाल से फिरोज शाह तुगलक के शासन के छह


तारीख ए फिरोजशाही जियाउद्दीन बरनी
वर्षों तक की अवधि का विवरण।

किताब-उल-रेहला इब्न बतूता मोहम्मद तुगलक का इतिहास

तारीख ए मुबारक शाही याहिया बिन अहमद सैय्यद वंश के मुबारक शाह के शासनकाल का विस्तृत विवरण

तुज़्क-ए-बाबरी/ यह तुर्की में लिखी गयी थी और अकबर के काल में फारसी में
बाबर
बाबरनामा अनुवादित।

हुमायूँनामा गुलबदन बेगम मुगल सम्राट हुमायु के जीवन संबंधी विस्तृत विवरण

अकबरनामा को तीन पुस्तकों में विभाजित किया गया है: (i)


अकबर के पूर्वजों से संबंधित, (ii) अकबर के शासनकाल की
अकबरनामा/आइन-ए अबुल फजल (1551- घटनाओ ं का विवरण, और (iii) आइन-ए अकबरी।
अकबरी 1602)
आइन-ए-अकबरी फारसी भाषा में 16वीं शताब्दी का एक दस्तावेज
है। यह मुगल सम्राट अकबर के प्रशासन से संबंधित है।

अन्य क्षेत्रीय भाषाएँ (Other Regional Languages)


भाषा ले खक (अवधि) रचनाएँ टिप्पणी

अमुक्त माल्यद,
कृष्णदेवराय अल्लासानी पेद्दन्ना हरिकथा सारम विजयनगर शासकों द्वारा
तेलुगु
तेनाली रामकृष्ण मनुचरितम् विस्तारित संरक्षण।
पांडुरंग महात्म्य'

112
प्रारम्भिक मराठी रचनाएँ

वारकरी, विठ्ठल भक्‍त,


ज्ञानेश्वर (1275-96) वैषण
्‍ ववादी संत,
आमृतानुभव,
नामदेव (1270-1350) प्रथम कवि जिन्‍होंने लोकभाषा में
ज्ञानेश्‍वरी (भावार्थ रामायण पर वृहत ग्रंथ की रचना
मराठी एकनाथ (1533-1599)
दीपिका), की
तुकाराम (1598-1650)
हरिपथ आदि सर्वेश्व
‍ ारवादी वेदांतिक दृष्टिकोण
रामदास (1608-81)
अद्वैत वेदांती एवं भक्तिमार्गी संत।
शिवाजी के गुरू। मठों और अखाड़ों
की स्थ
‍ ापना।

10वीं शताब्दी ई. के बाद भाषा का


राष्ट्रकूट राजा 'नृपतुंग' अमोघवर्ष पूर्ण विकास हुआ।
प्रथम, पम्पा, पोन्ना और रन्ना - प्रारंभिक उपलब्ध कन्नड़
कविराजमार्ग साहित्यिक कृति (850 सीई)।
होयसल के अंतर्गत बसवा और
कन्नड़ गिरिजा कल्याण
अक्का महादेवी (लगभग 1200 - कन्नड़ साहित्य के तीन रत्न
हरिश्चंद्र काव्य
सीई)
-वीर शैव भक्ति आंदोलन के नेता,
हरिश्वर राघवंका अपने वचनों के माध्यम से, एक
प्रकार की कविता

भजन "वैष्णव जन तो" उनकी


गुजराती नरसिं ह महतो (1414-1481) वैष्णव कविता
कृति है।
वाल्मीकि रामायणम का अनुवाद।
कंबन (12वीं शताब्दी) कम्ब रामायणम
12 अलवर थे, जो समान रूप से
तमिल अलवर (विष्णु को समर्पि त संत) भक्ति गीत भिन्न पृष्ठभूमि से आए थे।

नयनार (शिव को समर्पि त संत) भक्ति कवि 63 नयनार थे, जो भिन्न-भिन्न


जाति पृष्ठभूमि थे।
अध्यात्म रामायणम
मलयालम (14वीं शताब्दी एज़ूत्‍तच्‍चन पून्थानम चेरुस्सेरी - मलयालम भाषा के जनक।
महाभारतम
तक विकसित) (1375-1475) -भक्ति परंपरा में भजन।
नजनप्पन कृष्णगढ़
अनुवादित महाभारत
सारला दास (15वीं शताब्दी) ओड़ि‍या साहित्य की प्रथम कृतियाँ।
ओड़ि‍या बैदिशा बिलासा
उपेंद्र भांजा -ओड़ि‍या का नया युग।
लबनायति

साथ-साथ भारतीय लोगों के विभिन्न वर्गों में राष्ट्रवादी


आधुनिक इतिहास साहित्य भावनाओ ं के विकास एवं प्रसार में योगदान दिया।

(Modern History
Literature) विविध कार्य (Miscellaneous Work)

• स्वतंत्रता संग्राम के अतिरिक्त, 19वीं शताब्दी की शुरुआत


• 19वीं सदी में भारत में ब्रिटिश शासन के विरुद्ध बढ़ते
से भारतीय समाज में हो रहे सामाजिक और धार्मि क
असंतोष का आरंभ हुआ। इससे एक नियोजित राष्ट्रीय
सुधारों ने भी राष्ट्रवादी साहित्य को बढ़ावा दिया।
आंदोलन का उद्भव हुआ। इस आंदोलन से प्रेरित साहित्य
का एक संग्रह निर्मि त हुआ जिसने देश के विभिन्न क्षेत्रों के • भारतेंदु हरिश्चंद्र ने अंधेर नगरी (अंधेरे का शहर), ब्रिटिश

113
शासन के तहत शहरी भारत (प्रशासनिक अक्षमता, • रवींद्रनाथ टै गोर ने अपनी रचनाओ ं में संघवाद के
भ्रष्टाचार, आदि) की निम्न स्तरीय स्थिति पर एक नाटक महत्व पर बल दिया और उद्धृत किया कि भारत की
लिखा। उन्होंने भारत दुर्दशा की भी रचना की, जो एक एकता विविधता में एकता के माध्यम से ही प्राप्त की
प्रसिद्ध राष्ट्रवादी कृति बन गई। जा सकती है। अपने उपन्यास गोरा के माध्यम से टै गोर
ने औपनिवेशिक शासन को चुनौती दी थी और राष्ट्रीय
• मुंशी प्रेमचंद (गोदान), दीनबंधु मित्र (नील दर्पण) की
आंदोलन को प्रेरित किया। हमारा राष्ट्रगान, जन गण
रचनाओ ं ने भारत में गरीबों के संघर्षों पर बल दिया था।
मन उनके राष्ट्रवादी साहित्य की देन है।
• राजा राममोहन राय ने अनेक रचनाएँ लिखीं, जो उनके
• शरत चंद्र चटर्जी, आर.सी. दत्त ने भी अपने साहित्य के
सुधार के एजेंडे का आधार बनीं। ये रचनाएँ आधुनिक
माध्यम से राष्ट्रवादी आंदोलन में योगदान करते हुए
पश्चिमी विचारों से प्रभावित थीं। एकेश्वरवादियों को अपने
बंगाली साहित्य में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
उपहार के रूप में में, रॉय ने एकेश्वरवाद पर बल दिया। राय
ने जनमत को शिक्षित करने और जनता की शिकायतों
को सरकार तक पहुंचाने के लिए अंग्रेजी, हिं दी, बंगाली
आर्थि क आलोचना (Economic Critique)
और फारसी में कई पत्रिकाएँ भी प्रकाशित की।

• देवेन्द्रनाथ टै गोर ने तत्त्वबोधिनी पत्रिका प्रकाशित की, • एक अन्य प्रकार का राष्ट्रवादी साहित्य का उदारवादी
जिसमें तर्क संगत दृष्टिकोण और भारत के अतीत का राष्ट्रवादियों द्वारा ब्रिटिश शासन की आर्थि क आलोचना
व्यवस्थित अध्ययन का समर्थन किया गया। के रूप में उद्भव हुआ।

• हेनरी विवियन डेरोजियो को आधुनिक भारत का प्रथम • दादाभाई नौरोजी ने धन निष्कासन का सिद्धांत (पावर्टी
राष्ट्रवादी कवि माना जाता है। उन्होंने अपने विद्यार्थि यों ऐ ंड अनब्रिटिश रूल इन इं डिया) दिया, जिसमें बताया गया
को स्वतंत्र एवं तर्क संगत रूप से सोचने, किसी भी कि ब्रिटिश आर्थि क नीतियों का प्रत्यक्ष परिणाम भारत से
पतनशील परंपराओ ं या रीति-रिवाजों का विरोध करने वार्षि क राष्ट्रीय धन का एक महत्वपूर्ण बहिर्वाह था। यह
के लिए प्रेरित किया था। उसने महिलाओ ं की समानता, एक ऐसा निष्कासन था जिसमें भारत को इस बहिर्वाह के
अधिकारों और शिक्षा का भी समर्थन किया। प्रतिफल के रूप में कुछ प्राप्त नही होता।

• बाल शास्त्री जांभेकर ने अपने साप्ताहिक दर्पण के • रोमेश चंद्र दत्त ने अपनी कृति 'द इकोनॉमिक हिस्ट्री ऑफ
माध्यम से ब्राह्मणवादी धर्म में रूढ़िवादिता की निं दा की इं डिया' में, अंग्रेजों के अधीन हुई आर्थि क पूंजी की निकासी
और हिं दू धर्म में सुधार का प्रयास किया। की मात्रा की गणना की थी।

• गुलामगिरी ब्राह्मणवादी वर्चस्व और शूद्रों के साथ • ब्रिटिश शासन की आर्थि क आलोचना ने औपनिवेशिक
भेदभाव पर ज्योतिबा फुले की रचना है। अपनी रचना शासन में फैले प्रचार को समाप्त कर दिया था। अंग्रेजों
के माध्यम से, उन्होंने जाति व्यवस्था और सामाजिक- के लिए भारत पर अपने शासन को व्हाइट मैन्स बर्डन
आर्थि क असमानताओ ं के पूर्ण उन्मूलन को बढ़ावा दिया को उचित ठहराना, देश को सभ्य बनाना और अपने लाभ
था। गुलामगिरी ने पिछड़े वर्ग के शक्तिशाली आंदोलन हेतु शासन करना अब संभव नहीं था। आर्थि क आलोचना
को प्रेरित किया था जो 20वीं शताब्दी की शुरुआत में ने स्वदेशी और बहिष्कार जैसे विरोध के साधनों का
उभरा था। आविष्कार करके राष्ट्रवादी नेताओ ं को स्वतंत्रता संग्राम
को आगे ले जाने में सहायता प्राप्त हुई।
• सत्यार्थ प्रकाश दयानंद सरस्वती की एक अग्रणी कृति है
जिसमें उन्होंने एक वर्गहीन और जातिविहीन समाज के
अपने दृष्टिकोण को चित्रित किया। उन्होंने संगठित और
स्वतंत्र भारत (विदेशी शासन से) के लिए भी प्रचार किया। अन्य विद्वानों का योगदान (Contribution by
Other)
• मुस्लिम ले खक सर सैयद अहमद खान ने तहजीब-उल-
अखलाक नामक एक पत्रिका आरंभ की थी जिसमें महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi)

शिक्षा के माध्यम से महिलाओ ं की स्थिति में सुधार, पर्दा • गांधी की अंग्रेजी पर आपत्ति यह थी कि यह अंग्रेजी जानने
एवं बहुविवाह का विरोध आदि जैसे प्रगतिशील विचार वालों (ज्यादातर विशेषाधिकार प्राप्त वर्ग) और न जाननेे
शामिल थे। वालों (विशाल बहुमत) को अलग-थलग कर रही थी और
• बंकिम चंद्र चटर्जी द्वारा लिखित सबसे प्रसिद्ध राष्ट्रवादी इनके मध्य विभाजन उत्पन्न कर रही थी।
साहित्यिक कृतियों में से एक आनंद मठ थी। इस उपन्यास • महात्मा गांधी ने अंग्रेजी भाषा को एक प्रभावी और मजबूत
में उनके द्वारा रचित वन्दे मातरम् हमारा राष्ट्रीय गीत है उपकरण के रूप में भी प्रयोग किया। इन्होंने 'यंग इं डिया'
और उसी का एक खंड है। बंकिम ने अपनी रचनाओ ं में और 'हरिजन' जैसे पत्रों का संपादन और ले खन किया।
उपनिवेशवाद की निं दा की है और भारतीय साहित्य के
• गांधीजी ने अपनी आत्मकथा 'माई एक्सपेरिमेंट्स विद
राष्ट्रवादी ले खन में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त किया।

114
ट्रुथ' भी लिखी, जो अपने साहित्यिक स्वभाव के लिए • उनके उपन्यास कुली (1933), अनटचेबल (1935), और द
प्रसिद्ध है। वूमन एं ड द काउ (1960) भारत में दलितों और वंचितों के
लिए उनकी चिं ता को प्रकट करते हैं।

अरबिं दो घोष (Aurobindo Ghosh)


आर के नारायण (R. K. Narayan)
• अरबिं दो घोष (1872-1950) एक कवि-दार्शनिक और
आध्यात्मिक व्यक्ति थे। इनके अनुसार कविता मध्यस्थता • आर.के. नारायण भारतीय अंग्रेजी ले खन में एक
के समान थी। रचनात्मक व्यक्तित्व हैं। उनके पहले उपन्यास स्वामी
एं ड फ्रेंड्स (1935) से प्रारंभ उनकी अधिकांश साहित्यिक
• उनका महाकाव्य, सावित्री और लाइफ डिवाइन (दो खंड)
रचनाएं मालगुडी के काल्पनिक शहर पर आधारित हैं, जो
अंग्रेजी साहित्य में उत्कृष्ट रचनाएं हैं।
अपनी विशिष्ट पहचान रखते हुए भारतीय लोकाचार को
पूर्णतः समाहित करता है।
सरोजिनी नायडू (Sarojini Naidu) • मालगुडी डेज संभवतः आर.के. नारायण द्वारा रचित
सबसे आकर्षक कृति है। बैचलर ऑफ आर्ट्स (1937),
• सरोजिनी नायडू (1879-1949) एक प्रसिद्ध कवयित्री थीं,
द फाइनेंशियल एक्सपर्ट (1952), द गाइड (1959),
जिनके स्वच्छंदतावाद ने भारत और यूरोप के पाठकों को
और वेटिंग फॉर द महात्मा (1955) उनके अन्य प्रसिद्ध
आकर्षि त किया।
उपन्यास हैं।
• उनकी गोल्डन थ्रेसहोल्ड (1905) और द ब्रोकन विं ग
(1917) महान साहित्यिक कृतियां हैं। भारत में शास्त्रीय भाषाएँ (Classical Languages in
India)

वर्तमान में, छह भाषाओ ं को 'शास्त्रीय' भाषाओ ं का दर्ज़ा दिया


जवाहर लाल नेहरू (Jawaharlal Nehru)
गया है:
• जवाहरलाल नेहरू (1889-1964) एक अन्य प्रसिद्ध नेता तमिल (2004), संस्कृत (2005), कन्नड़
के रूप में सामने आए, जिन्होंने गद्य ले खन में उत्कृष्ट
(2008), तेलुगु (2008), मलयालम (2013),
कृतियों की रचना की।
और उड़िया (2014)।
• उन्हें मुख्य रूप से विश्व इतिहास की झलक (ग्लिंप्सेज ऑफ़
वर्ल्ड हिस्ट्री), भारत की खोज (दि डिस्कवरी ऑफ इं डिया) किसी भाषा को 'शास्त्रीय' के रूप में वर्गीकृत करने हेतु
और एक आत्मकथा के लिए स्मरण किया जाता है। मानदंड इस प्रकार हैं:

• इसका लगभग 1500-2000 वर्षों प्राचीन प्रारंभिक


भगत सिं ह (Bhagat Singh) ग्रंथ/लिखित इतिहास हो।

• इसका प्राचीन साहित्य/ग्रंथो का एक समूह, जिसे उस


• 'मैं नास्तिक क्यों हूँ' 1930 में लाहौर सेंट्रल जेल में भारतीय
भाषा को बोलने वाले की पीढ़ियों द्वारा एक मूल्यवान
क्रांतिकारी भगत सिं ह द्वारा लिखा गया एक निबंध है। यह
विरासत माना जाता है।
निबंध एक धार्मि क व्यक्ति को दिया गया उत्तर था जिसने
भगत सिं ह को अपने अभिमान के कारण नास्तिक कहा • साहित्यिक परंपरा मौलिक और अद्वितीय होनी चाहिए,
था। और किसी अन्य भाषण समुदाय से नहीं ली जानी
चाहिए।

• शास्त्रीय साहित्य और भाषा आधुनिक से भिन्न होने


मुल्क राज आनंद (Mulk Raj Anand) के कारण, शास्त्रीय भाषा और उसके बाद के रूपों या
• मुल्क राज आनंद , जो अपनी लघु कहानी 'द लॉस्ट शाखाओ ं की निरन्तरता न बनी रहे
चाइल्ड' के लिए लोकप्रिय हैं, ने गद्य, कविता और नाटक
के रूप में कई रचनाएँ लिखी हैं।

115
अध्याय - 12

दर्शन के संप्रदाय
(SCHOOLS OF PHILOSOPHY)

• प्राचीन भारतीय साहित्य में दर्शन का एक लं बा इतिहास सकता है। वो हैं-


रहा है। कई विचारक जीवन और मृत्यु के रहस्यमय
अस्तित्व के साथ-साथ उनसे परे शक्तियों में रुचि रखते » प्रत्यक्ष:धारणा
थे। कभी-कभी धार्मि क संप्रदायों और उनके सिद्धांतो के » अनुमान: अनुमान
बीच अधिव्यापन होता हैं, जिसका वे समर्थन करते हैं।
» शब्द: श्रवण
जब राज्य और वर्ण ने सामाजिक व्यवस्था को विभाजित
किया तो विभिन्न दार्शनिक सिद्धांतों के बीच मतभेद • यह दर्शन अपनी वैज्ञानिक जांच पद्धति के लिए प्रसिद्ध
उभर गए और भारतीय उपमहाद्वीप का मुख्य आधार बन है। अंतिम दर्शन में दावा किया गया कि प्रकृति और पुरुष
गए। सत्य की पूर्ण और स्वतंत्र नींव हैं। पुरुष चेतना से जुड़ा हुआ
है और इसे संशोधित या बदला नहीं जा सकता क्योंकि
यह पुरुष विशेषताओ ं से मिलता जुलता है। दूसरी ओर,

I. रूढ़िवादी दर्शन (Orthodox प्रकृति तीन मुख्य विशेषताओ ं से बनी है: विचार, गति और
परिवर्तन।
School)
• इस दर्शन के अनुसार, वेद सर्वोच्च शास्त्र हैं, जिनमें मोक्ष योग दर्शन (Yoga School)
के रहस्य हैं। उन्हें वेदों की सत्यता पर कोई संदेह नहीं था।
उनके छह उप-दर्शन ( षड्दर्शन) थे: योग, सांख्य, न्याय, • योग का शाब्दिक अर्थ है "दो बड़ी पदार्थों का मिलन।"
मीमांसा, वैशेषिका और वेदांत। उनका दावा है कि योग विधियों के शारीरिक अभ्यास
के साथ ध्यान को शामिल करके मनुष्य मोक्ष प्राप्त कर
सकता है। ऐसा कहा जाता है कि ये तकनीकें, पुरुष को
प्रकृति से मुक्ति दिलाती हैं और परिणामस्वरूप, मोक्ष की
II. पाषंड का दर्शन ओर ले जाती हैं।

(Heterodox School) • पतंजलि का योगसूत्र, जो अस्थायी रूप से दूसरी शताब्दी


ईसा पूर्व का है और योग तथा दर्शन की उत्पत्ति का वर्णन
• उन्होंने भगवान की उपस्थिति पर संदेह किया और वेदों करता है। इस दर्शन का भौतिक घटक विभिन्न मुद्राओ ं
की मौलिकता में विश्वास नहीं किया। बौद्ध और जैन धर्म में व्यायाम पर केंद्रित है, जिसे आसन भी कहा जाता है।
तथा लोकायत तीन मुख्य उप- दर्शन हैं। "प्राणायाम" शब्द कई श्वास अभ्यासों को संदर्भि त करता
है।
रूढ़िवादी दर्शन के छह प्रमुख उप- दर्शन हैं:-
• इन अभ्यासों को योग दर्शन द्वारा अभ्यास किया जाता
है, क्योंकि ये मन, शरीर और संवेदी अंगों के नियंत्रण में
सहायता करते हैं। उनका दावा है यदि कोई ईश्वर को एक
सांख्य दर्शन (Samkhya School) मार्गदर्शक, शिक्षक और प्रशिक्षक के रूप में मानता है तो
ये अभ्यास फायदेमंद हो सकते हैं। वे सांसारिक चीजों से
• यह कपिल मुनि द्वारा स्थापित सबसे पुराना दर्शन है,
दूर जाने और मोक्ष के लिए आवश्यक ध्यान को प्राप्त
जिन्हें सांख्य सूत्र लिखने का श्रेय दिया जाता है। संस्कृत
करने में प्रत्येक की सहायता करेंगे।
में 'सांख्य' या 'सांख्य' शब्द का अर्थ 'गिनती' है। ज्ञान प्राप्त
करने से मोक्ष की प्राप्ति संभव है। मनुष्य के दुखों का मूल
कारण समझ का अभाव माना जाता है।
न्याय दर्शन (Nyaya School)
• यह दर्शन द्वैतवाद में विश्वास करता था, जिसमें आत्मा
और पदार्थ दो अलग-अलग अस्तित्व हैं। यह विचार सभी • वे मोक्ष प्राप्त करने के लिए महत्वपूर्ण तर्क की पद्धति में
वास्तविक ज्ञान की आधारशिला है। इस ज्ञान को प्राप्त विश्वास करते हैं, जैसा कि दर्शन के नाम से पता चलता है।
करने के लिए तीन प्रमुख सिद्धांतों का उपयोग किया जा वे जीवन, मृत्यु और मोक्ष को एक पहेली मानते हैं जिसे

116
तर्क संगत और अनुभवजन्य तर्क द्वारा समझा जा सकता मीमांसा दर्शन (Mimamsa School)
है। कहा जाता है कि गौतम, जिन्हें न्याय सूत्र के ले खक के
रूप में भी जाना जाता है, इनके बारे में कहा जाता है कि • मीमांसा का शाब्दिक अर्थ "तर्क , व्याख्या और अनुप्रयोग
उन्होंने इस विचारधारा का निर्माण किया था। की कला हैं।" यह दर्शन संहिता और ब्राह्मण जैसे वैदिक
ग्रंथों की व्याख्या पर केंद्रित है। वे कहते हैं कि वेद सभी
• दर्शन यह मानता है कि एक इं सान अनुमान, सुनने और
ज्ञान का भंडार हैं और यह शाश्वत सत्य है। यदि कोई
सादृश्य जैसे तार्कि क तरीकों का उपयोग करके किसी
धार्मि क योग्यता, स्वर्ग और मोक्ष प्राप्त करना चाहता है तो
प्रस्ताव या तर्क की वैधता को सत्यापित कर सकता
उन्हें वेदों द्वारा निर्धारित सभी कर्तव्यों का पालन करना
है। इसमें माना गया है कि ईश्वर ने न केवल दुनिया को
चाहिए। जैमिनी के सूत्र, जिन्हें तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व
बनाया, बल्कि दुनिया का पालन-पोषण और विनाश भी
में संकलित किया गया था, वे ग्रंथ हैं जो मीमांसा दर्शन
किया है। इस सिद्धांत में हमेशा व्यवस्थित तर्क और विचार
की विस्तार से व्याख्या करते हैं। उनके दो सबसे प्रबल
पर जोर दिया गया है।
समर्थकों, सबर स्वामी और कुमारिला भट्टा ने दर्शनशास्त्र
में और अधिक पैठ बनाई।

• उनका तर्क है कि अनुष्ठान करने से मोक्ष की प्राप्ति हो


वैशेषिक दर्शन (Vaisheshika School)
सकती है, ले किन वैदिक अनुष्ठानों के औचित्य और तर्क
• वैशेषिक दर्शन एक तार्कि क और तर्क संगत दर्शन है जो को समझने की भी आवश्यकता है। इस तर्क को समझना
ब्रह्मांड पर शासन करता है। यह ब्रह्मांड की भौतिकता में महत्वपूर्ण था यदि कोई अनुष्ठान को निष्कलं क रूप से
विश्वास करता है। वैशेषिक दर्शन को विनियमित करने निष्पादित करता हैं तो वह इस तरह मोक्ष प्राप्त सकता
वाला मूल पाठ कोनाडा द्वारा लिखा गया था, जिसे दर्शन हैं । किसी व्यक्ति के गुण और अवगुण उनके कर्मों से
का संस्थापक भी माना जाता है। वे कहते हैं कि अग्नि, निर्धारित होते हैं और जब तक उनके पुण्य कर्म चलते
वायु, जल, पृथ्वी और आकाश के पांच प्राथमिक तत्वों ने हैं, तब तक एक व्यक्ति स्वर्ग के सुख का आनंद ले ता है।
ब्रह्मांड (आकाश) में सब कुछ बनाया है, द्रव्य इन भौतिक हालांकि, वे जीवन और मृत्यु के चक्र से मुक्त नहीं होंगे। वे
तत्वों का दूसरा नाम है। वे यह भी कहते हैं कि सत्य को इस कभी न खत्म होने वाले पाश से तब तक मुक्त नहीं हो
विभिन्न श्रेणियों में विभाजित किया जाता है, जैसे कि गुण, सकेंगे जब तक उन्हें मोक्ष नहीं मिल जाता।
व्यवहार, वंश , वंशानुक्रम, पदार्थ और विशिष्ट संगति। • इस दर्शन का मुख्य जोर वैदिक कर्मकांडीय पहलू पर
• इस दर्शन के वैज्ञानिक झुकाव के कारण, इसने परमाणु था यानी मोक्ष प्राप्त करने के लिए वैदिक अनुष्ठान
सिद्धांत भी स्थापित किया, जो दावा करता है कि सभी करना। चूंकि अधिकांश लोग संस्कारों को नहीं समझते
भौतिक वस्तुएं परमाणुओ ं से बनी होती हैं।इस दुनिया की थे, इसलिए उन्हें पुजारियों की सहायता ले नी पड़ती थी।
घटनाओ ं की व्याख्या करने के लिए, इसमें कहा गया है नतीजतन, इस दर्शन ने अप्रत्यक्ष रूप से समूहों के बीच
कि परमाणु और अणु मिलकर पदार्थ बनाते हैं तथा उन सामाजिक विभाजन को वैध बना दिया। ब्राह्मणों ने इसे
सभी के लिए आधार है जिन्हें अवलोकित या शारीरिक नागरिकों पर अपनी शक्ति बनाए रखने के लिए एक
रूप से छुआ जा सकता है। इस दर्शन भारतीय उपमहाद्वीप रणनीति के रूप में इस्तेमाल किया, और इस तरह उन्होंने
में भौतिकी का जन्मस्थान भी था। इनको ब्रह्मांड की सामाजिक पदानुक्रम पर शासन करना जारी रखा ।
यांत्रिक निर्माण प्रक्रिया के प्रवर्तक माना जाता है।

» वे ईश्वर में विश्वास करते हैं और वैज्ञानिक तर्क के बावजूद वेदांत दर्शन (Vedanta School)
उन्हें मार्गदर्शक शक्ति मानते हैं।
• वेदांत दो शब्दों से बना है: वेद और अंत, जो वेदों के अंत
» वे यह भी मानते हैं कि कर्म के नियम इस ब्रह्मांड को
को दर्शाता है। यह दर्शन उपनिषदों में उल्लिखित जीवन
नियंत्रित करते हैं और यह सब कुछ मानव व्यवहार से
दर्शन का पालन करता है। बदरायण का ब्रह्मसूत्र सबसे
निर्धारित होता है। हमारे कार्य निर्धारित करते हैं कि हमारी
पुराना ग्रंथ है जिस पर यह दर्शन आधारित है। सिद्धांत के
प्रशंसा की जाएगी या दंडित किया जायेगा ।
अनुसार ब्रह्म ही सृष्टि का सत्य है जबकि बाकी सब कुछ
» भगवान हमारे कर्मों के गुण और दोषों को स्थापित करते काल्पनिक या माया है।
हैं और इसके परिणामस्वरूप मनुष्य को स्वर्ग या नरक
• इसके अलावा, आत्मा या आत्म-चेतना, ब्रह्म के समान है।
की सजा दी जाती है।
यह दावा आत्मा और ब्रह्म की बराबरी करता है, जिसका
» वे मोक्ष में विश्वास करते थे, ले किन यह ब्रह्मांड के निर्माण अर्थ है कि यदि कोई व्यक्ति आत्म-ज्ञान प्राप्त करता है
और मृत्यु की चक्रीय प्रक्रिया के अनुरूप था, जो ईश्वर की तो वह ब्रह्म को समझ जाएगा और मोक्ष प्राप्त कर ले गा।
इच्छा से तय होता था।
• यह तर्क ब्रह्म और आत्मा को अमर और अविनाशी बना
देगा। इस सिद्धांत के सामाजिक परिणाम थे, जिसमें सच्ची

117
आध्यात्मिकता, अपरिवर्तनीय सामाजिक और भौतिक लोकायत दर्शन या चार्वाक विचारधारा (Lokayata
परिस्थितियां थी तथा जिसमें एक व्यक्ति का जन्म और Philosophy or Charvaka School)
स्थापना निहित था।
• बृहस्पति ने इस विचारधारा की आधारशिला रखी, जिसे
• ले किन, शंकराचार्य के दार्शनिक हस्तक्षेप के लिए दार्शनिक सिद्धांत स्थापित करने वाले पहले लोगों में
धन्यवाद, जिन्होंने 9वीं शताब्दी ईस्वी में उपनिषदों और से एक माना जाता है। लोकायत अक्सर भौतिक और
भगवद गीता पर टिप्पणियां लिखीं और इस दर्शन का वस्तुगत दुनिया (लोक) के साथ एक मजबूत संबंध को
विकास हुआ। उनके परिवर्तनों से अद्वैत वेदांत का उदय दर्शाता है। उन्होंने तर्क दिया कि मानव आबादी वाले इस
हुआ। रामानुजन, जो 12वीं शताब्दी ई. में रहते थे, इस ब्रह्मांड के बाहर प्रत्येक ब्रह्मांड को पूरी तरह से अनदेखा
विचारधारा के एक अन्य महत्वपूर्ण दार्शनिक थे। किया जाना चाहिए। उन्होंने इस दुनिया पर हमारे कार्यों
को विनियमित करने में सक्षम किसी भी अलौकिक या
आध्यात्मिक कारक की उपस्थिति को खारिज कर दिया।
शंकराचार्य का मत (Shankaracharya’s View) उन्होंने दावा किया कि मोक्ष अनावश्यक था और ब्रह्म
तथा भगवान की उपस्थिति को खारिज कर दिया। वे हर
• उनका मानना है कि ब्रह्म सभी गुणों से रहित है। वह
उस चीज़ में विश्वास रखते थे जिसे मानवीय इं द्रियों के
जानना/ज्ञान या ज्ञान को मोक्ष का प्राथमिक साधन
माध्यम से छुआ और महसूस किया जा सकता था। उनकी
मानते है।
कुछ प्रमुख शिक्षाएँ हैं:

» उन्होंने देवताओ ं और उनके सांसारिक नेताओ ं, पुरोहित


रामानुजन का मत (Ramanujan’s View) वर्ग से याचना की। उन्होंने कहा कि एक ब्राह्मण अपने
भक्तों से उपहार (दक्षिणा) प्राप्त करने के लिए झूठे
• वे ब्रह्म को कुछ गुणों से युक्त मानते हैं। उनका मानना है
कर्मकांडीय अनुष्ठान करता है।
कि मोक्ष की कुंजी विश्वास से प्रेम करना और आज्ञाकारिता
का पालन करना है। » मनुष्य सभी चीजों के केंद्र में है और वह जीवन भर आनंद
ले सकता है। उसे ग्रह पर सब कुछ खाना चाहिए और
भौतिक सुखों का आनंद ले ना चाहिए।

पाषंड का दर्शन (Heterodox » चूंकि ईथर (आकाश) को विचार से नहीं देखा जा सकता
है, इसलिए चार्वाक इसे पांच मूलभूत तत्वों में से एक नहीं
School) मानते हैं। नतीजतन, वे मानते हैं कि ब्रह्मांड केवल चार
तत्वों से बना है: अग्नि, पृथ्वी, जल और वायु।
पाषंड दर्शन के तीन मुख्य उप-भाग हैं: » इस दर्शन का तर्क है कि इस से परे कोई अन्य ब्रह्मांड नहीं
1. बौद्ध दर्शन है, मृत्यु जीवन का अंतिम लक्ष्य है, और खुशी जीवन का
अंतिम लक्ष्य होना चाहिए। इसलिए, उन्होंने 'खाओ, पियो
2. जैन दर्शन
और मौज करो' का सिद्धांत तैयार किया।
3. चार्वाक विचारधारा या लोकायत दर्शन

(1 और 2 की चर्चा प्राचीन भारत पुस्तक में की गई है)।

118
अध्याय - 13

भारत में धर्म


(RELIGIONS IN INDIA)

• धर्म मानव आत्मा का विज्ञान है। धर्म नैतिकता और सहस्राब्दी ईसा पूर्व में शैववाद का पता वैदिक भगवान
आचार विचार की आधारशिला है। शुरू से ही, आस्था ने रुद्र से लगाया जा सकता है
भारतीयों के जीवन में एक प्रमुख भूमिका निभाई। इन
• शक्तिवाद (Shaktism): शक्तिवाद, देवी या देवी की
समुदायों की अलग-अलग धार्मि क मान्यताएं , विचार
सर्वोच्चता में विश्वास करता है। यह अपनी तंत्र उप-
और प्रथाएं थीं, और विभिन्न धार्मि क रूपों में समय के
परंपराओ ं के लिए प्रसिद्ध है।
साथ परिवर्तन और नवाचार हुए। भारत में, आस्था कभी
भी एक स्थिर इकाई नहीं थी, बल्कि एक अंतर्निहित • स्मार्तवाद (Smartism): यह पुराणों की शिक्षाओ ं पर
गतिशील शक्ति से प्रेरित थी। आधारित है। ये पाँच देवताओ ं की घरेलू पूजा में विश्वास
करते हैं, जिनमें से प्रत्येक में पाँच देवता हैं: शिव, शक्ति,
• भारत में प्रचलित प्रमुख धर्म निम्नलिखित हैं:
गणेश, विष्णु और सूर्य, जिन्हें सभी समान रूप से पूजते
है। स्मार्तवाद: सगुण ब्राह्मण, या ब्राह्मण विशेषताओ ं के
» हिन्दू धर्म
साथ, और निर्गुण ब्राह्मण, या ब्राह्मण बिना विशेषताओ ं
» बौद्ध धर्म के।
» जैन धर्म

» इस्लाम
वैष्णववाद के तहत प्रमुख संप्रदाय (Prominent
» ईसाई धर्म Sect Under Vaishnavism)
» सिख धर्म
• वारकरी संप्रदाय या वारकरी पंथ (Warkari Sector
» पारसी धर्म Warkari Cult): इस समुदाय के सदस्य विठोबा के रूप
» यहूदी धर्म में भगवान विष्णु के भक्त हैं, और उनकी पूजा महाराष्ट्र
के पंढरपुर में विठोबा के मंदिर पर आधारित है। वारी
संप्रदाय में सिगरेट और शराब का सख्त निषेध है, इनकी
वार्षि क तीर्थयात्रा रोमांचक गतिविधियों से भरी होती है।
हिंदू धर्म (Hinduism) इस संप्रदाय के तहत प्रमुख शख्सियतों में नामदेव (1270-
1350), ज्ञानेश्वर (1275-1296), तुकाराम (1598-1650),
• हिं दू धर्म भारत में सबसे प्रमुख धर्मों में से एक है, ले किन और एकनाथ (1533-1599) शामिल हैं।
इसमें कई तरह के पंथ और संप्रदाय शामिल हैं। हिं दू धर्म
• रामानंदी संप्रदाय (Ramanandi Sect) वे अद्वैत विद्वान
'हिं दू' शब्द से लिया गया है, जिसका मूल रूप से सिं धु नदी
रामानंद की शिक्षाओ ं का पालन करते हैं। हिं दू धर्म में, यह
के आसपास के क्षेत्र में रहने वाले लोगों को संदर्भि त
सबसे बड़ा मठवासी अनुक्रम है, और इन वैष्णव भिक्षुओ ं
करने के लिए इस्तेमाल किया गया था। हिं दू धर्म अपनी
को वैरागी, रामानंदी, या बैरागी के रूप में वर्णि त किया
मौलिक अवधारणाओ ं को पूर्व-वैदिक और वैदिक धार्मि क
गया है। वे विष्णु के दस अवतारों में से एक राम की पूजा
सिद्धांतों से सबसे मौलिक स्तर पर उद्धृत करता है।
करते हैं। ये तपस्वी तपस्या करते हैं और कठोर कर्मकांडो
का पालन करते हैं, ले किन वे अभी भी मानते हैं कि
केवल भगवान की कृपा ही उन्हें मोक्ष प्रदान करेगी। वे
हिं दू धर्म के अंतर्गत चार संप्रदाय (Four sects ज्यादातर गंगा के मैदानी इलाकों में रहते हैं। त्यागी और
under Hinduism)
नागा इसके दो उपसमूह हैं।
• वैष्णववाद (Vaishnavism): विष्णु अपने भक्तों द्वारा • ब्रह्म संप्रदाय: (Brahma Sect) यह भगवान विष्णु,
सर्वोच्च भगवान के रूप में पूज्यनीय भागवत, जिसे परम निर्माता, या परब्रह्म (ब्रह्म देवता के साथ भ्रमित
कृष्णवाद के रूप में भी जाना जाता है, का पता पहली नहीं होना) से संबंधित है। माधवाचार्य संस्थापक थे।
सहस्राब्दी ईसा पूर्व में लगाया जा सकता है। वैष्णव परंपरा चैतन्य महाप्रभु का गौड़ीय वैष्णववाद, ब्रह्म सम्प्रदाय से
के भीतर विभिन्न संप्रदाय, या उप-सम्प्रदाय है। जुड़ा है। इस सम्प्रदाय में इस्कॉन शामिल है।
• शैववाद (Shaivism): शिव को सर्वोच्च भगवान के रूप • पुष्टि मार्ग संप्रदाय (Confirmation Route Sect):
में सम्मानित किया जाता है। वैष्णववाद से पहले दूसरी वल्लभाचार्य ने 1500 ईस्वी के आसपास वैष्णव संप्रदाय

119
की स्थापना की। उनके दर्शन के अनुसार परम सत्य एक सांसों की संख्या को काफी कम कर देता है। कहा जाता
और केवल एक ब्रह्म है। भगवान कृष्ण भक्ति के लक्ष्य हैं, है कि सिद्धों में आठ अद्वितीय क्षमताएं थीं। वे वर्मम के
जो शुद्ध प्रेम पर आधारित है। सभी कृष्ण भक्तों से अपेक्षा संस्थापक माने जाते थे - जो एक ही समय में आत्मरक्षा
की जाती है कि वे अपनी व्यक्तिगत कृष्ण मूर्ति के लिए और चिकित्सा उपचार के लिए मार्शल कला
सेवा करें।

• निम्बार्क संप्रदाय (Nimbark Sect:) कुमार संप्रदाय या


हंस संप्रदाय या निम्बार्क संप्रदाय के अनुयायी कृष्ण और नास्तिक या दर्शनशास्त्र के विधर्मि क (हेटेरोडॉक्स)
राधा की पूजा करते हैं। । संप्रदाय (Atheist or Heterodox Sect of
Philosophy)

बौद्ध धर्म, जैन धर्म, आजिविका और चार्वाक इसी मत के हैं।


शैव धर्म के तहत प्रमुख संप्रदाय (Major Sect प्राचीन भारत में बौद्ध धर्म और जैन धर्म दोनों की संक्षेप में
Under Shaiva Dharma) चर्चा की गई है।

• नाथपंथी (Nathpanthi): वे गोरखनाथ और


मत्स्येंद्रनाथ की शिक्षाओ ं का पालन करते हैं और
आजीवक (Ajivikas)
आदिनाथ, एक प्रकार से शिव की पूजा करते हैं, और उन्हें
सिद्ध सिद्धांत के रूप में जाना जाता है। वे हठ योग को • मक्खली गोशाल ने 5वीं शताब्दी ईसा पूर्व में संप्रदाय की
एक ऐसी तकनीक के रूप में इस्तेमाल करते हैं, जिससे स्थापना की थी। नियति (भाग्य) पूर्ण नियतत्ववाद का
व्यक्ति के शरीर को पूर्ण सत्य के साथ पूरी तरह से जागृत सिद्धांत संप्रदाय के लिए आधारभूत है।
आत्म-पहचान की स्थिति में रूपांतरित कर दिया जाता है।
• यह मानता है कि स्वतंत्र इच्छा जैसी कोई चीज नहीं है,
भिक्षु पथिकों का एक घूमने वाला समूह है जो कभी भी
और जो कुछ भी हुआ है, हो रहा है, या होगा वह पूरी तरह
एक स्थिति में लं बे समय तक नहीं रहता है। वे धोती और
से पूर्व निर्धारित और ब्रह्मांडीय अवधारणाओ ं पर निर्भर
लं गोटी पहनते हैं और खुद को राख से ढक ले ते हैं, अपने
है। इसके फलस्वरूप, कर्म की कोई आवश्यकता नहीं है।
बालों को जटा, और जब वे चलना बंद कर देते हैं, तो वे
धूनी नामक एक पवित्र अग्नि रखते हैं। • यह परमाणु सिद्धांत पर आधारित है, जिसमें कहा गया
है कि सब कुछ परमाणुओ ं से बना है, और विभिन्न गुण
• लिंगायतवाद (Lingayism): यह एक विशिष्ट शैव
परमाणुओ ं के पूर्व निर्धारित समुच्चय से उत्पन्न होते हैं।
परंपरा है जो लिंग के रूप में भगवान शिव की पूजा के
माध्यम से एकेश्वरवाद में विश्वास करती है। इसे वीरशैववाद • आजिविका ने बिना कपड़ों या भौतिक संपत्ति के एक
के नाम से भी जाना जाता है। यह वेदों के अधिकार के सादा तपस्वी जीवन जिया; वे नास्तिक थे जिन्होंने बौद्ध
साथ-साथ जाति व्यवस्था का भी विरोध करता है। बसवा और जैन धर्म को नकार दिया।
(एक कन्नड़ कवि) ने इस प्रथा को 12 वीं शताब्दी ई. में • जैन धर्म और बौद्ध धर्म के विपरीत, वे कर्म सिद्धांत में
विकसित किया। विश्वास नहीं करते थे। वे कर्म को एक झूठ मानते हैं।
• दशनामी संन्यासी (Dashnami Sanyasi): वे आदि • उन्होंने बौद्ध धर्म और जैन धर्म सहित, वेदों के प्रमाण से
शंकराचार्य के अद्वैत वेदांत शिष्य हैं और अद्वैत वेदांत इनकार किया, ले किन वे प्रत्येक जीवित प्राणी में एक
परंपरा से संबंधित हैं। उन्हें "दश नाम संन्यासी" के रूप में आत्मा (आत्मान) की उपस्थिति में विश्वास करते थे।
भी जाना जाता है क्योंकि वे दस वर्गों में विभाजित हैं। हालांकि, वे एक भौतिक आत्मा की उपस्थिति में विश्वास
• अघोरी (Aghori) वे भैरव भक्त हैं जो श्मशान भूमि में करते थे, जबकि जैन धर्म एक निराकार आत्मा का
साधना के माध्यम से पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति चाहते हैं समर्थन करता है।
और अपने जीवन से कामुक संतुष्टि, क्रोध, लालच, जुनून, • इसके अनुयायियों में से एक बिं दुसार (चौथी शताब्दी ईसा
भय और घृणा जैसे बंधनों को दूर करते हैं। वे तामसिक पूर्व) था।
अनुष्ठान गतिविधियों में चरम सीमा तक भाग ले ते हैं।
• उत्तर प्रदेश में आजिविका का केंद्र सावती (श्रावस्ती) माना
• सिद्धर या सिद्ध (Siddhar or Siddha): सिद्धर जाता है।
तमिलनाडु के संत, चिकित्सक, रसायनविद् और
• अशोक के सातवें स्तंभ शिलाले खों में आजिविका का
रहस्यवादी सभी एक ही थे। वे लं बे समय तक ध्यान
उल्ले ख है, ले किन संप्रदाय के ग्रंथ वर्तमान में उपलब्ध
करने में सक्षम होने के लिए अपने शरीर को परिपूर्ण
नहीं हैं। आज की दुनिया में यह संप्रदाय भी अपना
करने हेतु गुप्त रसायनों का प्रदर्शन करके आध्यात्मिक
आकर्षण खो चुका है।
पूर्णता प्राप्त करते हैं, साथ ही एक प्रकार के प्राणायाम
का अभ्यास भी करते हैं जो उनके द्वारा ली जाने वाली

120
लोकायत दर्शन या चार्वाक संप्रदाय (Lokayat Darshan या जन्नत में भेज दिया जाएगा। मुसलमानों को दिन
or Charwak Sect) में पांच बार नमाज अदा करनी चाहिए। जुमा नमाज, या
जुमे की नमाज, सामूहिक रूप से मस्जिद में आयोजित
• बृहस्पति ने इस संप्रदाय की आधारशिला रखी, जिसे
होने चाहिए। रमजान महीने के दौरान, जो अगले महीने
दार्शनिक सिद्धांत स्थापित करने वाले पहले लोगों में
के पहले दिन ईद समारोह के साथ समाप्त होता है,
से एक माना जाता है। वेद और बृहदारण्य उपनिषद भी
मुसलमानों को सूर्योदय से सूर्यास्त तक उपवास करना
दर्शन का संदर्भ देते हैं। चार्वाक विचारधारा मोक्ष के लिए
चाहिए। पैगंबर के अनुसार, सभी को अपनी कमाई का
भौतिकवादी दृष्टिकोण का सबसे प्रभावशाली समर्थक
एक हिस्सा जरूरतमंद और गरीबों को देना चाहिए और
था। विचारधारा को शीघ्र ही लोकायत कहा जाता था,
इसे जकात या दान कहा जाता है।
या सामान्य लोगों से उत्पन्न हुआ, क्योंकि यह सामान्य
लोगों की ओर उन्मुख था। इस विचारधारा का तर्क है कि • जबकि इस्लाम कई संप्रदायों में विभाजित है, दो मुख्य
मृत्यु जीवन का अंतिम लक्ष्य है, और खुशी जीवन का उप-विभाजन हैं: शिया (जो अली का समर्थन करते हैं)
अंतिम लक्ष्य होना चाहिए चूंकि इसके बाद कोई अन्य और सुन्नी (जो सुन्नत का पालन करते हैं)। दोनों के बीच
ब्रह्मांड नहीं है । असमानता इस बात पर आधारित है कि पैगंबर मुहम्मद
का उत्तराधिकारी कौन होना चाहिए। सुन्नियों ने दावा
किया कि यह उन लोगों के खून का चाहिए जो पैगंबर
और उनके पहले अनुयायियों जैसे अबू बक्र के सबसे
इस्लाम धर्म (Islam Religion) करीबी थे। दूसरी ओर, शियाओ ं का मानना था कि पैगंबर
का उत्तराधिकारी उनके अपने खून का होना चाहिए और
• 'इस्लाम' शब्द का अर्थ है 'ईश्वर के प्रति समर्पण'।
अली ने अपने दामाद के दावे का समर्थन किया। जबकि
मुसलमान वे हैं जो ईश्वर से प्रार्थना करते हैं और पैगंबर
सुन्नी मुसलमान भारत में मुसलमानों का बहुमत बनाते
मुहम्मद की शिक्षाओ ं का पालन करते हैं। पैगंबर मुहम्मद,
हैं, शिया मुहर्रम के दौरान ध्यान देने योग्य होते हैं जब वे
इब्राहीम, मूसा और अन्य सहित भगवान के दूतों में अंतिम
इमाम हुसैन की भीषण मृत्यु (अली के छोटे बेटे) को फिर
थे। इब्राहीम, ईसाइयों और मुसलमानों के लिए समान रूप
से अधिनियमित करते हैं। इतिहास में ऐसे अवसर आए
से सहभाजीत पूर्वज है। माना जाता है कि पहाड़ों पर एक
हैं जब धर्म ने भारतीय उपमहाद्वीप में इस्लाम के रूप पर
देवदूत द्वारा पैगंबर मुहम्मद को भगवान का संदेश प्राप्त
प्रभाव डालने वाले परिवर्तनों और आंदोलनों का अनुभव
हुआ था। अपने अनुयायियों को, उन्होंने इन आदेशों का
किया है।
वर्णन किया। प्रारंभ में, उन्हें कई कठिनाइयों का सामना
करना पड़ा और उन्हें मक्का से मदीना भागने के लिए
मजबूर होना पड़ा। वह एक सफल तख्तापलट के बाद
मक्का लौटने में सक्षम थे। मक्का की इस यात्रा को ईसाई धर्म (Christianity)
हज (पवित्र तीर्थ) के रूप में जाना जाता है, और प्रत्येक
मुसलमान से अपने जीवनकाल में कम से कम एक बार • विश्व के सबसे बड़े धर्म, ईसाई धर्म के अनुयायी भारत में
इसे करने की उम्मीद की जाती है। अधिक हैं। यह यीशु मसीह द्वारा यरूशले म में स्थापित
किया गया था, और उसके विचारण और तीन दिवसीय
• पैगंबर मुहम्मद की बातें एवं दिन-प्रतिदिन की शिक्षाएं
पुनरुत्थान के बाद, यह अधिक से अधिक अनुयायियों
उनकी मृत्यु के बाद उनके अनुयायियों द्वारा एकत्र की गईं
को आकर्षि त करना शुरू कर दिया। कुछ समय बाद, यह
और हदीस के रूप में जानी जाती हैं, हदीस के जानकार
रोमन साम्राज्य का आधिकारिक धर्म बन गया और तेजी
इमामों ने इन हदीसों को संगृहित कर पुस्तकों का रूप
से विस्तार होने लगा। वेटिकन सिटी, रोमन कैथोलिक
दिया। कुरान की प्रामाणिक व्याख्या हदीस में की गयी।
ईसाई धर्म का केंद्र है। समय के साथ, कई ईसाई सुधार
पैगंबर की मृत्यु से पहले , कुरान की पवित्र पुस्तक को
आंदोलन का आविर्भाव हुआ, और प्रोटे स्टेंट, मेथोडिस्ट
संकलित किया गया था, और उनकी मृत्यु के बाद पुस्तक
और अन्य संप्रदायो की लोकप्रियता बढ़ी।
के रूप में अनुवादित होने से पहले उनकी दो बार पुष्टि
की गई थी। इस्लामी नियम, या शरीयत, इस किताब और • ब्रह्मांड की रचना करने वाले एक ईश्वर की उपस्थिति
सुन्नत पर आधारित हैं। ईसाई धर्म की विचारधारा का केंद्र है। जब आवश्यक हो,
भगवान अपनी सृजन की सहायता के लिए दूत या मसीहा
• इस्लाम के मूल सिद्धांत यह हैं कि केवल एक अल्लाह
भेजता है। यीशु एक संदेशवाहक था जो लोगों को परमेश्वर
(ईश्वर की अभिव्यक्ति) है जिसने पृथ्वी के लोगों की
की खोज करने और उनके "उद्धारकर्ता" होने में सहायता
सहायता के लिए अपना दूत भेजा, और पैगंबर मुहम्मद
करने के लिए भेजा गया था। वे अब भी मानते हैं कि यीशु
अंतिम पैगंबर थे। वे क़यामत के दिन में भी विश्वास करते
के मरने के बाद, पवित्र आत्मा के रूप में, पृथ्वी पर परमेश्वर
हैं जहां किसी के अच्छे और बुरे कर्मों का न्याय किया
का प्रभाव संरक्षित है । ईसाई, पवित्र त्रिमूर्ति की पूजा करते
जाएगा, और किसी को उनके कार्यों के आधार पर दोज़ख

121
हैं, जो पिता (परमेश्वर), पुत्र (यीशु), और पवित्र आत्मा से • 'वे जो अपने श्रम का फल खाते हैं, नानक, सही तरीके को
मिलकर बना है। बाइबिल ईसाइयों की पवित्र पुस्तक है। पहचानते हैं,' उनका एक प्रमुख दोहा कहता है, अनुयायी
इसमें रोमन कैथोलिक चर्च के साथ-साथ यहूदी के पुराने को अपनी आजीविका को खतरे में डाले बिना भगवान के
नियम के कुछ हिस्सों द्वारा परिभाषित नए ले खों की एक करीब जाने में सक्षम होना चाहिए। यह खट्टर व्यापारियों
श्रृंखला शामिल है। नया नियम इस संग्रह को दिया गया और व्यापारी वर्ग के लिए प्रमुख आकर्षणों में से एक लग
नाम था, और इसे बाइबिल बनाने के लिए पुराने नियम रहा था, जो सबसे उत्साही समर्थकों में से एक थे।
के साथ मिला दिया गया था। क्रिसमस पर, वे ईसा मसीह
• मुगल-सिख संबंध शुरू में मैत्रीपूर्ण थे, ले किन जहांगीर के
लोगों को चर्च जैसे पवित्र पूजा स्थल में इकट्ठा होने के
आदेश पर गुरु अर्जुन देव के वध के कारण दरार आ गई।
लिए आमंत्रित करते हैं। बपतिस्मा (ईसाई दीक्षा), उनके
खुशवंत सिं ह जैसे कुछ विद्वानों ने इस घटना को "सिखों
प्राथमिक अनुष्ठानों में से एक है, जिसमें एक शिशु, चर्च
की पहली शहादत" करार दिया था। गुरु हरगोबिं द (1595-
की सेवा में शामिल है। एक अन्य संस्कार यूचरिस्ट है,
1644) ने अंग्रेजों से लड़ने के लिए रामदासपुर में अपनी
जिसमें ब्रह्मांड के साथ शांति का प्रतीक भगवान को रोटी
सेना बनाकर उग्रवाद की प्रवृत्ति शुरू की। गुरु ने सिख
और शराब का अभिषेक शामिल है।
पंथ को सिख सैन्य-दल में परिवर्ति त कर दिया, जिसमें
अनुयायी "संत योद्धा" या "सैनिक संत" के रूप में सेवा
करेंगे जो अंततः स्वर्ग में प्रवेश करेंगे।

सिख धर्म (Sikhism) • गुरु हर राय और गुरु हर कृष्ण, अगले दो गुरु, लगातार
बाधाओ ं में थे और अंततः औरंगजेब द्वारा कैद कर लिए
• गुरु नानक (1469-1539) का जीवन, समय और शिक्षाएं गए थे। गुरु तेग बहादुर भी प्रभुत्व में सिखों के संप्रभु
सिख धर्म की संस्कृति की नींव हैं। वह एक अद्वितीय अधिकार बनाने वाले पहले लोगों में से थे। वह मुगल
दृष्टिकोण के साथ एक गैर-अनुरूपतावादी थे। उन्होंने हिं दू सम्राट औरंगजेब के समय मे भी थे और 1675 में दिल्ली
धर्म के खिलाफ एक व्यवस्थित लड़ाई शुरू की। उन्होंने में उसे मार डाला गया था। गुरु गोबिं द सिं ह अंतिम भौतिक
न केवल पंजाब की वर्तमान जीवन शैली की लोगों की गुरु थे, और उनकी मृत्यु के बाद, "व्यक्तिगत गुरुत्व"
आलोचना की, बल्कि उन्होंने अपने अनुयायियों को की व्यवस्था समाप्त हो गई, गुरु ग्रंथ के लिए गुरुओ ं के
सामाजिक-धार्मि क संगठन का एक वैकल्पिक तरीका अधिकार को स्थानांतरित कर दिया गया।
भी पेश किया। उन्होंने लोगों को एक साथ लाने के लिए
• ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि गुरु गोबिं द सिं ह ने
एक धर्मशाला और सांप्रदायिक भोजन में सामूहिक पूजा
मुगलों और पहाड़ी प्रमुखों के साथ मुठभेड़ में चार पुत्रों
की स्थापना करके अपने अनुयायियों के समूह जीवन
को खो दिया, और यह पद्धति उनके बाद समाप्त हो गई।
को नियंत्रित किया।
अपनी मृत्यु से ठीक पहले , उन्होंने गुरु ग्रंथ साहिब/आदि
• गुरु नानक ने केवल वर्तमान सामाजिक व्यवस्था का ग्रंथ दिया, जो सिख संतों की बानी थे और इस प्रकार
विरोध या अस्वीकार नहीं किया; उन्होंने एक विकल्प की उनकी आध्यात्मिक सहायता, सिखों के लिए निर्णय ले ने
पेशकश की। उनके अनुसार, मानव जीवन का अंतिम का अधिकार था। गुरु गोबिं द सिं ह ने खालसा सिख योद्धा
उद्देश्य मोक्ष, जिसे जन्म और पुनर्जन्म के अंतहीन चक्रों समुदाय की भी स्थापना की, जो गैर-खालसा सिखों से
से मुक्त करके प्राप्त किया जा सकता है। मोक्ष, धर्म, जाति अलग था, जिन्हें सहजधारी सिखों के रूप में जाना जाता
या लिंग की परवाह किए बिना सभी के लिए खुला है। था, और इसमें नानक-पंथी, भल्ला और उदासी शामिल
यह मोक्ष देवताओ ं की पूजा या पंडित मौलवियों द्वारा थे।
मध्यस्थता के रूप में पुस्तक पढ़ने से नहीं हो सकता है।
• बपतिस्मा ले ने वाले सिखों को 'सिं ह' कहा जाता था,
यह गुरु के सही विश्वास, पूजा और कर्म की शिक्षाओ ं के
जबकि महिलाओ ं को 'कौर' कहा जाता था। उन्होंने एक
माध्यम से किया जा सकता है। उन्होंने नए प्रकार की
समान बाहरी रूप के लिए वर्दी को अपनाकर एक और
पूजा का निर्माण किया, जैसे सामुदायिक रसोई (लं गर)।
एकरूपता हासिल की। खालसा सिखों को अपने बाल
• नानक का विश्वास उचित रूप से व्यावहारिक है; वह काटने से मना किया गया था और उन्हें पांच "क" (कच्चा,
तपस्या या गृहस्थी का परित्याग और मोक्ष के साधन के केश, कंघा, कृपाण, कड़ा) पहनना आवश्यक था। इस
रूप में आराम की जिज्ञासा नहीं करते है। इसके विपरीत, प्रकार के भौतिक भेद ने आंदोलन को एकरूपता प्रदान
वह अपने अनुयायियों से एक आदर्श व्यक्ति का जीवन की और उन्हें अपने सह-धर्मवादियों से अलग किया।
जीने का आग्रह करते हैं, जो अपने हाथों से अपना घर
चलाता है, गुरुद्वारे में संगत (सामुदायिक सभा) और
कीर्तन (भगवान की स्तुति के लिए सामूहिक गायन) में
भाग ले ता है।

122
पारसी धर्म की तुलना में नए हैं।

• उनका पवित्र पाठ, ज़ेंड अवेस्ता, ओल्ड अवेस्तान में लिखा


(Zoroastrianism) गया है और इसमें 17 पवित्र गीत (गाथा) के साथ-साथ
एथेना वैर्यो (पवित्र मंत्र) भी शामिल है, जिसके बारे में
• 7 वीं शताब्दी ईसा पूर्व के आसपास, पैगंबर जराथुस्त्र ने कहा जाता है कि इसे स्वयं जराथुस्त्र ने लिखा था। ज़ेंड इन
फारस में इस धर्म की स्थापना की थी। ये एक एकेश्वरवादी ग्रंथों के अनुवादों के साथ-साथ एकत्रित शब्दावलियों पर
धर्म हैं जो एक सर्वोच्च देवता, अहुरा मज़्दा में विश्वास करते भी लागू होता है।
हैं, जो न्याय और अच्छाई की पहचान है। दुष्ट और बुरे
• वे आग की पूजा करते हैं और इसे पृथ्वी के साथ-साथ
आचरण की आत्मा अंगरा मैन्यु मौजूद है।
एक पवित्र विशेषता मानते हैं। वे मानते हैं कि मृत पदार्थ
• ये दोनों आपस में लड़ते रहते हैं, और यह एक चिरस्थायी हर चीज में एक दूषित कारक है, इसलिए वे गिद्धों के खाने
लड़ाई है। एक दिन, बुराई पर अच्छाई की जीत होगी, और के लिए शरीर को खुले में छोड़ देते हैं। इन खुले स्थानों को
यह आखिरी दिन होगा। पारसी लोग पहली बार 8वीं- दखमा या साइलें ट टावर्स के रूप में जाना जाता है, और जो
10वीं शताब्दी ईस्वी के दौरान भारत के संपर्क में आए, गिद्ध उनको खाते हैं उन्हें दखमा नाशिनी के रूप में जाना
जब वे इस्लामी आक्रमणों के कारण ईरान से भाग गए। जाता है। 'मुंबई में टावर्स ऑफ साइलें स, भारत में एकमात्र
उन्हें पारसी और ईरानी के रूप में जाना जाता है, और वे ज्ञात स्थान है जहां वे रहते हैं। भारतीय गिद्ध महामारी के
वर्तमान में भारत में सबसे छोटे (और तेजी से कम होते कारण लोगों ने अपने मृतकों को दफनाना भी शुरू कर
हुए ) समुदायों में से हैं। वे मुख्य रूप से गोवा, मुंबई और दिया है, जिसने लाशों के सड़ने की गति को धीमा कर
अहमदाबाद शहरों में रहते हैं। पारसियों की तुलना में दिया है।
ईरानी भारत में एक छोटा पारसी समूह हैं, और वे पारसियों

123
अध्याय - 14

भारतीय पंचांग
(INDIAN CALENDAR)

• पंचांग सामाजिक, धार्मि क, वाणिज्यिक या प्रशासनिक • चंद्र-सौर वर्ष (Lunar-Solar Year):


उद्देश्यों के लिए दिनों का रिकॉर्ड रखने की एक विधि है।
यह समय चक्रों के नामकरण द्वारा प्राप्त किया जाता » जैसा कि हिं दू कैलें डर में, वर्ष सौर चक्र द्वारा निर्धारित
है, जो आमतौर पर दिन, सप्ताह, महीने और वर्ष होते हैं। किया जाता है, और महीनों की गणना चंद्र विभाजनों द्वारा
ऐसी योजना के तहत, एक तिथि, एक अद्वितीय दिन का की जाती है; दोनों के बीच में परिवर्तन दिनों और महीनों
पदनाम है। एक पंचांग इस तरह की विधि (अक्सर कागज के अंतनिवेश और स्तंभन से होता है।
से बना) का एक वास्तविक रिकॉर्ड है।
हिं दू पंचांग (Hindu calendar)
• भारत में नए साल की शुरुआत को चिह्नित करने के
लिए विभिन्न प्रणालियां प्रयोग की गई हैं। भारत के पंचांग, या हिं दू पंचांग द्वारा वर्ष, माह, पक्ष, तिथि, और घटिका,
विभिन्न हिस्सों में पंचांग बनाने के लिए इस्तेमाल की या वैकल्पिक रूप से, तिथि, वार, नक्षत्र, योग और करण
जाने वाली विधि तीन श्रेणियों में है: सभी पर विचार किया जाता है।

प्रत्येक वर्ष सूर्य जिन बारह राशियों से होकर गुजरता है, उनका
» चंद्र प्रणाली
नाम तारामंडल के एक नक्षत्र के नाम पर रखा गया है।
» सौर प्रणाली
कुल 28 नक्षत्र या तारामंडल हैं। अपने विभिन्न आकारों
» चन्द्र-सौर प्रणाली के कारण, सभी नक्षत्रों में समान संख्या में तारे नहीं होते
हैं; कुछ के पास केवल एक या दो हैं। प्रत्येक राशि में दो से
ये सिस्टम खगोलीय वर्षों पर आधारित हैं, जो आकाशीय पिं डों के तीन नक्षत्र होते हैं। हिं दू कैलें डर सौर वर्ष को दो हिस्सों में
मार्गो का निरीक्षण करते हैं, और विभिन्न पंचांग में उपयोग किए विभाजित करता है:
जाते हैं। ये सिस्टम निम्नलिखित नामों के लिए जिम्मेदार हैं:
उत्तरायण: भगवान का दिन, मकर संक्रांति से कारक
• सौर वर्ष (Solar Year): संक्रांति तक, या पौष (जनवरी) से आषाढ़ (जून) तक छह
महीने तक रहता है।
» यह उस समय को दर्शाता है जब पृथ्वी सूर्य के चारों ओर
दक्षिणायन: भगवान की रात, छह महीने तक रहती है,
अपनी कक्षा में एक बिं दु पर अण्डाकार घूमती है,जैसे कि
जुलाई से दिसंबर तक। नतीजतन, एक सौर वर्ष भगवान के
संक्रांति या विषुव, जिस पर वह अपनी यात्रा पूरी होने के
समय में एक दिन और एक रात के बराबर होता है।
बाद वापस आती है। एक सौर वर्ष में 365 दिन, 5 घंटे, 48
मिनट और 46 सेकंड होते हैं। इस पद्धति द्वारा वर्ष और
ऋतुओ ं के बीच सावधानीपूर्ण सामंजस्य बनाए रखा जाता
है। सौर वर्ष में कुल 12 महीने होते हैं। भारतीय पंचांगो का वर्गीकरण
• चंद्र वर्ष (Lunar Year): (Classification of Indian
» चंद्र वर्ष 12 महीनों या चंद्रमास से बना होता है, जो सौर वर्ष Calendar Forms)
की तरह ही होता है। दूसरी ओर, प्रत्येक चंद्र एक सिनोडिक
महीना है, जैसा कि लगातार दो पूर्ण चंद्रमाओ ं या नए • भारत में विभिन्न युगों के आधार पर विभिन्न प्रकार के
चंद्रमाओ ं के बीच के समय से परिभाषित होता है। पंचांगो का आविर्भाव हुआ, जिनसे वे संबंधित हैं। उनमें से
कुछ निम्नलिखित हैं:
» चूंकि एक चंद्र मास की अवधि 29.26 से 29.80 दिनों तक
होती है, इसलिए इसकी अवधि 354 दिन होती है, जो सौर 1. विक्रम संवत शक संवत, 2. हिजरी कैलें डर, 3. ग्रेगोरियन
वर्ष से 11 दिन कम है। इस विषमता की आपूर्ति , अंतनिवेश कैलें डर
या स्तंभन द्वारा की जाती है, जो चंद्र और सौर कैलें डर को
विक्रम संवत (Vikram Era):
संरखि
े त करता है। हर 2 साल और 6 महीने में, चंद्र कैलें डर
में सौर कैलें डर के साथ मिलान करने के लिए एक अंतराल • विक्रम युग 56 ईसा पूर्व में शुरू हुआ था, और अभी भी
महीना जोड़ा जाता है। अधिक मास इस अतिरिक्त महीने को बंगाल क्षेत्र को छोड़कर लगभग पूरे भारत में मौजूद है।
दिया गया नाम है, जिसे एक अंतःविषय मास भी कहा जाता है। इतिहासकारों के अनुसार, इस कैलें डर को उज्जैन के राजा

124
विक्रमादित्य ने शक शासकों पर अपनी जीत के उपलक्ष्य • यह कैलें डर एक चंद्र वर्ष का उपयोग करता है, जिसे 12
में बनाया था। हालांकि, कई इतिहासकारों का मानना है महीनों में विभाजित किया जाता है और इसमें 354 दिन
कि विक्रम संवत की स्थापना मालवा गणराज्य द्वारा की होते हैं। इस्लामी दिन सूर्यास्त के समय शुरू होता है
गई थी, और इस प्रकार मालवा गण काल के रूप में भी क्योंकि कैलें डर चंद्र होता है और महीने सूर्यास्त के तुरत

जाना जाता है, और इसका नाम चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के बाद वर्धमान दिखने के साथ शुरू होते हैं। भारत में मुस्लिम
नाम पर रखा गया था जब उन्होंने लगभग 400 ईस्वी में शासनकाल के दौरान, इस कैलें डर को अपनाया गया था।
मालवा पर विजय प्राप्त की थी। यह अतीत से हिं दू रीति- मुहर्रम हिजरी अवधि का पहला महीना है, जिसके दौरान
रिवाजों पर आधारित एक चंद्र-सौर कैलें डर है। किसी भी व्यवसाय या यात्रा की अनुमति नहीं है। मुहर्रम
का पहला दिन इस्लामिक नया साल है।
• सौर ग्रेगोरियन कैलें डर, विक्रम संवत से 56.7 वर्ष पीछे है।
नया साल चैत्र के महीने में अमावस्या के बाद पहले दिन
से शुरू होता है, जो ग्रेगोरियन कैलें डर में मार्च-अप्रैल के
महीनों में आता है। यह अप्रैल के मध्य नेपाल में शुरू होता ग्रेगोरियन कैलें डर (Gregorian Calendar):
है, जो सौर नव वर्ष की शुरुआत का प्रतीक है। एक वर्ष में
• यह ईसाई धर्म के पिता ईसा मसीह के जन्मदिन पर
354 दिन होते हैं, जो 12 महीनों में विभाजित होते हैं। विक्रम
अपनाया गया है । यह एक सौर वर्ष है जो 1 जनवरी से शुरू
काल भारतीय क्षेत्र के अधिकांश हिस्सों में पहले वर्ष के
होता है और 365 दिन, 5 घंटे, 48 मिनट और 46 सेकंड तक
रूप में कार्ति क के साथ शुरू होता है।
चलता है। चूकि
ं कैलें डर में एक वर्ष के लिए अतिरिक्त घंटों
• हर महीना उजाला और अंधेरा दो हिस्सों (पखवाड़े) में का उपयोग नहीं किया जा सकता था, इसलिए अंतर्संबंध
विभाजित होता है। सौर वर्ष के साथ 11 दिनों की विसंगति (इं टरकले शन) उपकरण का उपयोग किया गया है, और
की प्रतिपूर्ति के लिए विक्रम संवत में एक अतिरिक्त हर चार साल में फरवरी के महीने में एक दिन जोड़ने की
महीना होता है जिसे अधिक मास के रूप में जाना जाता है, प्रथा शुरू की गई थी। एक नागरिक वर्ष एक ऐसा वर्ष है जो
हर 3 साल और हर 5 साल,13 महीने में इसमें जोड़ा जाता इस कैलें डर प्रारूप का अनुसरण करता है।
है। विक्रम संवत के अनुसार शून्य वर्ष, 56 ईसा पूर्व है।

शक संवत (Saka Era): भारत का राष्ट्रीय कैलें डर


• वर्ष 78 ई. में राजा शालीवाहन ने इस कैलें डर का विकास (National Calendar of
किया। शक काल को शालीवाहन युग के रूप में भी
India)
जाना जाता था क्योंकि शालीवाहन इसी जनजाति का
था। इतिहासकार इस बात से असहमत हैं कि शालीवाहन • यह शक कैलें डर के आधार पर तैयार किया गया है, जिसका
शक था या पराजित शक। शक कैलें डर, विक्रम संवत की उपयोग देश के आधिकारिक नागरिक कैलें डर के रूप में
तरह है, जिसमें चंद्र महीने और सौर वर्ष हैं, सौर और चंद्र किया जाता है। इसका उपयोग ऑल इं डिया रेडियो द्वारा
है, और विक्रम काल के समान महीने हैं। दूसरी ओर, इस समाचार प्रसारण, भारत सरकार के नियंत्रण में प्रकाशित
देश में महीने अलग-अलग समय पर शुरू होते हैं। इसका पत्राचार दस्तावेजों के साथ-साथ आधिकारिक राजपत्र
शून्य वर्ष 78 ईस्वी के आसपास, वर्णाल विषुव के पास में अधिसूचना के माध्यम से किया जाता है। शक संवत,
शुरू होता है। हर साल, शक कैलें डर 22 मार्च को शुरू होता शक कैलें डर का मूल नाम है, जो एक हिं दू कैलें डर है। हिं दू
है, ग्रेगोरियन लीप वर्ष को छोड़कर, जब यह 21 मार्च को धर्म में, इसका उपयोग अक्सर धार्मि क महत्व के दिनों की
शुरू होता है। शक कैलें डर के हर महीने में दिनों की एक गणना के लिए किया जाता है।
निश्चित संख्या होती है। एक शक वर्ष में 365 दिन होते हैं।
• भारत सरकार द्वारा स्थापित कैलें डर सुधार समिति
ने 1957 में शक कैलें डर को राष्ट्रीय कैलें डर के रूप में
अपनाया। कुछ स्थानीय त्रुटियों को ठीक करने के बाद,
हिजरी कैलें डर (Hijri Calendar): समिति ने खगोलीय डेटा को संरखि
े त करने और इस
• यह कैलें डर अरबी में तैयार किया गया था। मूल रूप से कैलें डर के उपयोग में सामंजस्य स्थापित करने का काम
अमूलफिल के रूप में जाना जाता है, पैगंबर मोहम्मद की किया। इसका उपयोग पहली बार 22 मार्च, 1957 को
मृत्यु के बाद, या मक्का से मदीना की यात्रा, जो 622 ईस्वी ग्रेगोरियन कैलें डर के अनुसार किया गया था, जो शक
में उनके जीवन के 52 वें वर्ष में हुई थी, की याद में इसका संवत में चैत्र 1, 1879 के अनुरूप था। उस समय देश में
नाम बदलकर हिजरी या हेजिरा कर दिया गया था। इस 30 विभिन्न प्रकार के कैलें डर के उपयोग में सामंजस्य
वर्ष को हिजरी युग का शून्य वर्ष घोषित किया गया था। स्थापित करने के लिए इसे भारत के राष्ट्रीय कैलें डर के
रूप में चुना गया था।

125
अध्याय - 15

पुरस्कार और सम्मान
(AWARDS AND HONORS)

• व्यक्ति, सामुदायिक पुरस्कार और सम्मान असाधारण व्यापार और उद्योग, और अन्य क्षेत्रों में उनकी उत्कृष्ट
कार्य हेतु कृतज्ञता या मान्यता के प्रतीक के रूप में उपलब्धियों के लिए दिए जाते हैं। हर साल गणतंत्र दिवस
दिए जाते हैं। हर साल, भारत सरकार उन लोगों को कई पर पुरस्कार पाने वालों के नाम सामने आते हैं।
सम्मान प्रदान करती है जिन्होंने अपने क्षेत्र में उत्कृष्ट
• पद्म पुरस्कार निम्नलिखित कई नियमों के अधीन हैं:
प्रदर्शन किया है।
1. अगर किसी ने कम स्तर का पद्म पुरस्कार प्राप्त किया
है, और पुरस्कार के बाद से पांच साल या उससे अधिक
हो गए हैं तो वे केवल उच्च स्तर का पुरस्कार प्राप्त कर
भारत सरकार द्वारा दिया सकते हैं।

जाने वाला पुरस्कार 2. पुरस्कार शायद ही कभी मरणोपरांत दिए जाते हैं, ले किन
यदि मामला विशेष रूप से सम्मोहक हो तो अपवाद हो
(Award Given by the सकता हैं।

Government of India) 3. चुने जाने वाले व्यक्ति की उपलब्धियों में लोक सेवा का
एक घटक शामिल होना चाहिए। यह केवल किसी भी क्षेत्र
भारत रत्न (Bharat Ratna) में असाधारण प्रदर्शन पर केंद्रित नहीं होना चाहिए, बल्कि
असाधारण प्रदर्शन और सार्वजनिक सेवा के एक घटक
• भारत रत्न शीर्षक का शाब्दिक अर्थ "भारत का गहना" है
पर केंद्रित होना चाहिए।
और यह भारत गणराज्य का सर्वोच्च नागरिक सम्मान है।
4. सरकारी कर्मचारी, जिनमें सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों
• भारत रत्न उन उत्कृष्ट लोगों को दिया जाता है जिन्होंने
में कार्यरत कर्मचारी भी शामिल हैं, चिकित्सकों और
अपने क्षेत्रों में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया है। यह पहली बार
वैज्ञानिकों को छोड़कर, इन सम्मानों के लिए पात्र नहीं हैं।
1954 में जारी किया गया था। मूल रूप से, यह पुरस्कार
उन कलाकारों को प्रदान किया गया था जिन्होंने कला, • भारत सरकार के अनुसार, पुरस्कार तीन श्रेणियों के होते
अनुसंधान, साहित्य या सार्वजनिक सेवा में महत्वपूर्ण हैं:
योगदान दिया था, हालांकि, मानव प्रयास के किसी भी
क्षेत्र को शामिल करने के लिए मानकों को दिसंबर 2011
में बढ़ा दिया गया था। पद्म विभूषण (Padma Vibhushan)
• भारत के प्रधान मंत्री, भारत के राष्ट्रपति को सिफारिशें • यह भारत गणराज्य का दूसरा सबसे प्रतिष्ठित नागरिक
करते हैं, जो किसी भी वर्ष पुरस्कार के लिए तीन से पुरस्कार है। जिन लोगों को पुरस्कार से सम्मानित किया
अधिक व्यक्तियों का चयन नहीं करते हैं। हालांकि जाता है, उन्हें एक प्रशस्ति पत्र और केंद्र में कमल फूल
पुरस्कार विजेताओ ं को कोई पैसा नहीं मिलता है, ले किन के साथ एक बैज जिसमे अग्रभाग पर "देश सेवा" शब्द
उन्हें एक पीपल के पत्ते के आकार का पदक और एक समुद्भृत होता है।
प्रमाण पत्र (सनद) मिलता है।

• भारत रत्न प्राप्त करने वालों को भारतीय वरीयता क्रम


में सातवें स्थान पर रखा गया है। संविधान के अनुच्छे द पद्म भूषण (Padma Bhushan)
18(1) के अनुसार, पुरस्कार प्राप्तकर्ता के नाम के उपसर्ग
• यह भारत सरकार का तीसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान
या प्रत्यय के रूप में उपयोग नहीं किया जा सकता है।
है, जो उन लोगों को दिया जाता है जिन्होंने भारत की
अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा में योगदान दिया है। मार्च या अप्रैल
में, भारत के राष्ट्रपति, राष्ट्रपति भवन के एक भव्य
पद्म पुरस्कार (Padma Award)
समारोह में पुरस्कार प्रदान करते हैं।
• ये पुरस्कार, जो 1954 में स्थापित किए गए थे, योग्य
व्यक्तियों को सामाजिक कार्य, कला, खेल, सिविल
सेवा, शिक्षा, जनसंपर्क , साहित्य, विज्ञान और प्रौद्योगिकी,

126
पद्म श्री (Padma Shri) हैं। हर साल, अकादमी उन ले खकों का चयन करती
है जिन्होंने साहित्य अकादमी पुरस्कार के साथ-साथ
• यह भारत गणराज्य का चौथा सर्वोच्च नागरिक सम्मान शास्त्रीय और मध्यकालीन साहित्य में संरक्षित 24
है, जो सरकार द्वारा साहित्य, कला, राजनीति, खेल, प्रमुख भाषाओ ं के अलावा भारतीय भाषाओ ं में महत्वपूर्ण
उद्योग, समाज सेवा, चिकित्सा आदि जैसे विभिन्न क्षेत्रों में योगदान दिया है।
उत्कृष्ट योगदान के लिए दिया जाता है। पुरस्कार प्राप्त
• भाषा सम्मान में एक पट्टिका और एक लाख रुपये का
करने वाले को एक प्रमाण पत्र और एक पदक प्राप्त होता
नकद इनाम शामिल है।
है जिसके एक तरफ तीन पत्तों वाला फूल होता है और
दूसरी तरफ देवनागरी लिपि में पद्म (कमल) और श्री (श्री
या सुश्री) लिखा होता है।
ज्ञानपीठ पुरस्कार (Gyanpith Award)

• ज्ञानपीठ पुरस्कार (ज्ञान की सीट) उत्कृष्ट साहित्यिक


साहित्य अकादमी पुरस्कार (Sahitya Academy उपलब्धि के लिए दिया जाता है। टाइम्स ऑफ इं डिया
Award) अखबार की स्थापना के लिए प्रसिद्ध जैन परिवार द्वारा
संचालित भारतीय ज्ञानपीठ एक ट्रस्ट है जिसकी स्थापना
• यह पुरस्कार उन लोगों को दिया जाता है जो साहित्य
1961 में हुई थी।
के क्षेत्र में सफल होते हैं। यह पुरस्कार 1954 में स्थापित
किया गया था और 'साहित्य अकादमी' द्वारा प्रदान किया • यह उन भारतीय लोगों को प्रदान किया जाता है जो
जाता है, जो हमारे देश की राष्ट्रीय साहित्य अकादमी है। भारतीय संविधान की अनुसूची VIII में उल्लिखित 22
भाषाओ ं के साथ-साथ अंग्रेजी में भी साहित्य लिखते हैं।
• यह अकादमी की 24 प्रमुख भाषाओ ं में से किसी एक में,
चाहे गद्य हो या कविता, अपनी कृतियों को प्रकाशित करके • विजेता को एक पट्टिका के अलावा देवी सरस्वती की
साहित्यिक योग्यता हासिल करने और नई प्रवृत्तियों को एक कांस्य प्रतिमा और 11 लाख रुपये का नकद इनाम
विकसित करने वालों को प्रतिवर्ष प्रदान किया जाता है। मिलता है। यह पुरस्कार उन लोगों को नहीं दिया जाता है
जिनका निधन हो गया है।
• साहित्य अकादमी ने भारतीय संविधान में उल्लिखित
22 भाषाओ ं के अलावा अंग्रेजी और राजस्थानी को उन
भाषाओ ं के रूप में मान्यता दी है जिन पर पुरस्कार के
सरस्वती सम्मान (Saraswati Samman)
लिए विचार किया जा सकता है।

• प्रतियोगिता में 1 लाख रुपये का नकद पुरस्कार और • यह उत्कृष्ट गद्य या काव्य साहित्यिक कार्यों के लिए
देवनागरी लिपि में एक पट्टिका शामिल है जिसमें साहित्य भारतीय संविधान की अनुसूची VIII में निर्दिष्ट 22
लिखा होता है। पट्टिका को एक प्रसिद्ध भारतीय फिल्म भारतीय भाषाओ ं में से किसी एक में दिया जाने वाला
निर्माता सत्यजीत रे द्वारा डिजाइन किया गया था। वार्षि क पुरस्कार है।

• इसे भारत के शीर्ष साहित्यिक पुरस्कारों में से एक माना


जाता है और इसका नाम भारतीय विद्या की देवी के नाम
अन्य साहित्यिक सम्मान (Other Literary पर रखा गया है।
Honour)
साहित्य अकादमी फैलोशिप (Sahitya Academy
Fellowship) दादा साहब फाल्के पुरस्कार (Dada Saheb Phalke
Award)
• साहित्य अकादमी फैलोशिप, अकादमी द्वारा दी जाने
• दादा साहब फाल्के पुरस्कार 1969 में दादा साहब फाल्के
वाली एक प्रतिष्ठित फेलोशिप है। अकादमी का सर्वोच्च
(1870-1944) को सम्मानित करने के लिए बनाया गया
सम्मान 'शोध छात्रों और मानद शोध छात्रों' को दिया जाता
था, जो महान फिल्म निर्देशक थे, जिन्होंने भारत की
है, जिन्हें केवल साहित्यिक कलाओ ं में उनके असाधारण
पहली पूर्ण फीचर फिल्म, राजा हरिश्चंद्र (1913) का निर्माण
योगदान के लिए चुना जाता है।
किया था।
• साहित्य अकादमी का फेलो नामित होना साहित्य
• फिल्म समारोह निदेशालय, जो सूचना और प्रसारण
अकादमी पुरस्कार जीतने से बड़ा सम्मान है।
मंत्रालय का हिस्सा है, पुरस्कार प्रदान करता है।

• यह पुरस्कार भारतीय सिनेमा के विकास और उन्नति में


भाषा सम्मान (Language Honours) उत्कृष्ट योगदान के लिए दिया जाता है और इसे प्रतिष्ठित
फिल्म उद्योग के आंकड़ों की एक समिति द्वारा चुना जाता है।
• ये पुरस्कार भी साहित्य अकादमी द्वारा जारी किए जाते

127
अध्याय - 16

भारत में सांस्कृतिक संस्थान


(CULTURAL INSTITUTIONS IN INDIA)

भारतीय संविधान ने भारत सरकार को भारतीय संस्कृति


के संरक्षण और प्रसार का कार्य सौंपा है, और भारत की लं बी
ऑल इं डिया रेडियो (All India
सांस्कृतिक परंपराओ ं को संरक्षित करने के लिए समर्पि त कई Radio)
सरकारी और गैर-सरकारी संगठन हैं। निम्नलिखित कुछ
सबसे प्रसिद्ध संस्थान हैं: • ऑल इं डिया रेडियो देश का सबसे प्रसिद्ध सार्वजनिक
सेवा रेडियो स्टेशन है। यह भारत सरकार के सूचना और
प्रसारण मंत्रालय द्वारा चलाया जाता है। इसका नारा

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण


है "बहुजन हिताय: बहुजन सुखाय", जिसका शाब्दिक
अर्थ है "सेवा, शिक्षा और दर्शकों का मनोरंजन करना"।
(Archaeological Survey जनसांख्यिकी के मामले में AIR लगभग 99.19 प्रतिशत
आबादी को अपनी सेवा प्रदान करता है।
of India) • अपनी स्थापना के बाद से, AIR ने नागरिकों के हितों
की रक्षा के लिए उन्हें सार्वजनिक हित के सभी मामलों
• भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) भारत में पुरातात्विक
से अवगत कराते हुए काम किया है। यह उन्हें सूचना के
अनुसंधान के लिए अग्रणी संस्थान है, और यह सीधे
उचित और संतुलित प्रवाह की आपूर्ति करके ही किया जा
संस्कृति मंत्रालय के तत्वावधान में है।
सकता है।
• प्राचीन खंडहरों और पुरातात्विक स्थलों में संचित भौतिक
• वे लगभग 23 भाषाओ ं में कार्यक्रम का प्रसार करते हैं।
और मूर्त विरासत की सुरक्षा इसकी मुख्य प्राथमिकता है।
प्रसार भारती अधिनियम, जिसे 1990 में संशोधित किया
• एएसआई को 1958 के प्राचीन स्मारक और पुरातत्व गया था, आकाशवाणी की सामग्री, लक्ष्यों और उद्देश्यों को
स्थल और अवशेष अधिनियम द्वारा नियंत्रित किया नियंत्रित करता है। अधिनियम के अनुसार एआईआर के
जाता है। एं टिक्विटीज एं ड आर्ट ट्रेजर एक्ट 1972 एक प्रमुख लक्ष्य हैं:
अन्य महत्वपूर्ण कानून है जो एएसआई के संचालन को
नियंत्रित करता है। » शिक्षा और साक्षरता, पर्यावरण, स्वास्थ्य और परिवार
कल्याण, कृषि, ग्रामीण विकास और अन्य मुद्दों पर
• इस अधिनियम के तहत एएसआई का अधिदेश भारतीय
अधिक ध्यान दें जो राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देते हैं और
पुरावशेषों के अवैध निर्यात से बचना है।
भारतीय संविधान में निहित मूल्यों को बनाए रखते हैं।

» प्रसारण तकनीक का अध्ययन और विस्तार करने के


साथ-साथ नई प्रसारण तकनीक बनाने का प्रयास।
इं दिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र » महिलाओ ं की समस्याओ ं के साथ-साथ बच्चों, विकलांगों,
(Indira Gandhi National अल्पसंख्यक समुदाय, आदिवासी, या समाज के किसी
अन्य वंचित वर्ग की समस्याओ ं पर ध्यान देना।
Art Centre) (IGNCA)
» भारतीय संस्कृति की विविधता का जश्न मनाने और
• 1985 में, आईजीएनसीए बनाया गया था। आईजीएनसीए अन्य खेलों जैसे युवा गतिविधियों को बढ़ावा देने पर
एक स्व-निहित एजेंसी है जो कला अनुसंधान, पूर्वावस्था ध्यान देना।
की प्रप्ति, प्रदर्शनी और प्रसार पर ध्यान केंद्रित करती है।

• दृश्य और प्रदर्शन कलाओ ं पर जोर देने के बावजूद, वे


आलोचनात्मक और रचनात्मक ले खन को भी प्रोत्साहित सांस्कृतिक संसाधन और
करते हैं। आईजीएनसीए का मुख्य उद्देश्य भारत के
मौखिक और दृश्य कला रूपों के लिए एक प्रमुख संसाधन प्रशिक्षण केंद्र (Cultural
केंद्र बनाना है।
Resources and Training
Centres)
128
• सांस्कृतिक संसाधन और प्रशिक्षण केंद्र (सीसीआरटी)
की स्थापना भारत के संस्कृति मंत्रालय ने शिक्षा और
भारतीय सांस्कृतिक संबंध
संस्कृति को जोड़ने के लिए की थी। परिषद (Indian Council of
• इसकी स्थापना 1979 में डॉ. कपिला वात्स्यायन और
श्रीमती कमला देवी चट्टोपाध्याय ने उनके अनुरोध पर
Cultural Relations) (ICCR)
की थी।
• वैश्विक स्तर पर भारतीय संस्कृति को बढ़ावा देने वाले
• इस तथ्य के बावजूद कि यह एक स्वायत्त इकाई है, कार्यक्रमों के संचालन के लिए संस्कृति मंत्रालय के
सरकार को राष्ट्र की संरचना को सुदृढ़ करने के लिए तत्वावधान में आईसीसीआर की स्थापना की गई थी।
सीसीआरटी की आवश्यकता है। इसकी स्थापना 1950 में मौलाना अबुल कलाम आज़ाद
• भारतीय कला और संस्कृति के व्यापक प्रसार को बढ़ावा ने की थी, जो अन्य देशों और उनकी संस्कृतियों के साथ
देने के लिए, सीसीआरटी का मुख्यालय नई दिल्ली में है सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देने में दृढ़ता से
और इसके तीन क्षेत्रीय केंद्र पश्चिम में उदयपुर, दक्षिण में विश्वास करते थे।
हैदराबाद और उत्तर-पूर्व में गुवाहाटी में हैं। • आईसीसीआर उन कार्यक्रमों और नीतियों के विकास
• सीसीआरटी न केवल छात्रों पर ध्यान केंद्रित करता है, और कार्यान्वयन पर ध्यान केंद्रित करता है जो भारत के
बल्कि शिक्षकों, प्रधानाचार्यों और गैर-शिक्षण/प्रशासनिक अंतरराष्ट्रीय सांस्कृतिक संबंधों में गहराई से अंतर्निहित
अभिनेताओ ं के बीच भारत में क्षेत्रीय संस्कृतियों और हैं। वैश्वीकरण ने राष्ट्रों के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान
भाषाओ ं की विविधता के बारे में जागरूकता बढ़ाता है। के लिए कई मंचों का निर्माण किया है।

• इस विविधता को पाठ्यक्रम में व्यक्त किया जाना चाहिए • आईसीसीआर विभिन्न प्रकार के दृश्य और प्रदर्शन कला
और आधुनिक और रचनात्मक शिक्षण विधियों द्वारा कार्यक्रमों का समर्थन करता है जिनकी वैश्विक पहुंच है।
मजबूत किया जाना चाहिए। वे नई दिल्ली, जैज़ फेस्टिवल और गुवाहाटी, नॉर्थ-ईस्ट
म्यूजिक फेस्टिवल जैसे कार्यक्रमों के लिए फंड देते हैं।

• सेवाएं , सांस्कृतिक क्षेत्र में अन्य राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय


संगठनों के साथ साझेदारी बनाने और बनाए रखने का
भारत के राष्ट्रीय अभिले खागार एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।

(National Archives of • आईसीसीआर का मुख्य उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय दोस्ती, राष्ट्रों

India) (NAI) के बीच सांस्कृतिक संपर्क , स्वस्थ प्रतिस्पर्धा और आदान-


प्रदान को बढ़ावा देना है, और इसके परिणामस्वरूप
भारतीय संस्कृति के नए और पुराने पहलु ओ ं को जोड़ना
• यह सबसे पुराने ब्रिटिश संस्थानों में से एक है, जिसकी
है।
स्थापना भारतीय राज्य के प्रशासनिक रिकॉर्ड रखने के
लिए की गई थी। भारत के राष्ट्रीय अभिले खागार पर
संस्कृति मंत्रालय के ज्ञापन के अनुसार एनएआई के
मुख्य लक्ष्य इस प्रकार हैं: भारतीय ऐतिहासिक अनुसंधान
» भारतीय दस्तावेजी सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण में परिषद (Indian Council
सहायता करना और यह सुनिश्चित करना कि यह भविष्य
की पीढ़ियों को, अभिले खीय स्वामित्व तक अधिक पहुंच of Historical Research)
के साथ पारित हो।
(ICHR)
» बड़ी संख्या में अभिले ख एकत्र करना और उनका
वैज्ञानिक रूप से प्रबंधन करना। • भारतीय ऐतिहासिक अनुसंधान परिषद (ICHR) की
स्थापना 1972 में सोसायटी पंजीकरण अधिनियम पारित
» विशेष रूप से राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर
होने के बाद की गई थी।
अभिले खीय संस्थानों और अभिले खाध्यक्ष के बीच घनिष्ठ
संबंधों को बढ़ावा देना। • यह एक स्वावलं बी समूह है जो विश्वविद्यालय अनुदान
आयोग (यूजीसी) से धन प्राप्त करता है। इसकी स्थापना
» अंततः, भारत की समृद्ध वृत्तचित्र विरासत के बारे
भारतीय संस्कृति को बढ़ावा देने और संरक्षित करने के
में अभिले खाध्यक्षो, संरक्षकों और अभिले खों के
उद्देश्य से की गई थी। इसने इतिहासकारों के लिए नए
उपयोगकर्ताओ ं के बीच वैज्ञानिक मानसिकता को
विचारों का पता लगाने हेतु एक सभा स्थल के रूप में
बढ़ावा देना।
कार्य किया।

129
साहित्य अकादमी (Sahitya
कलाओ ं के लिए देश का मुख्य प्रदर्शन होना था, उनके
पास भारत की विशाल अमूर्त विरासत को बढ़ावा देने का
Academy) कठिन कार्य भी था, जो संगीत, नृत्य और नाटक के रूपों
में प्रकट हुआ था।
• 1954 में, भारत सरकार ने "नेशनल एकेडमी ऑफ ले टर्स" • यह न केवल हमारी सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण की
या साहित्य अकादमी की स्थापना की। देखरेख के प्रभारी केंद्रीय निकाय होने के लिए हैं, बल्कि
• इस संगठन का प्राथमिक लक्ष्य भारत में साहित्यिक उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर अपनी संस्कृतियों के संरक्षण और
संस्कृति को बढ़ावा देने के साथ-साथ सभी भारतीय प्रोत्साहन के लिए राज्य और केंद्र शासित प्रदेश की
भाषाओ ं में साहित्य को बढ़ावा देने, समन्वय करने और सरकारों के साथ भी काम करने के लिए है।
देश की समग्र राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देने के लिए • संगीत नाटक अकादमी नृत्य, संगीत या नाटक में
समर्पि त एक राष्ट्रीय संगठन के रूप में सेवा करना था विशेषज्ञता रखने वाले विभिन्न संस्थानों की भी देखरेख
• यह एक स्वशासी निकाय है जो 24 से अधिक भारतीय करती है।
भाषाओ ं में साहित्यिक गतिविधियों में संलग्न है।

• साहित्य अकादमी भारतीय संविधान में शामिल 22


भाषाओ ं के अलावा दो अतिरिक्त भाषाओ ं, अंग्रेजी और ललित कला अकादमी (Lalit
राजस्थानी को मान्यता देती है। उनके पास विभिन्न
प्रकार के पुरस्कार और फैलोशिप हैं जो भाषाई प्रगति में Kala Akademi)
ले खकों के महत्वपूर्ण योगदान को स्वीकार करते हैं
• भारत सरकार ने भारत में ललित कला को बढ़ावा देने
के एकमात्र उद्देश्य से 1954 में राष्ट्रीय कला अकादमी की
स्थापना की।
संगीत नाटक अकादमी • अकादमी संस्कृति मंत्रालय द्वारा प्रायोजित एक स्वशासी
(Music Drama Academy) निकाय है। ये ललित कलाओ ं की प्रशंसा और समझ को
बढ़ावा देते हैं। इस तथ्य के बावजूद कि ये राष्ट्रीय और
• भारत सरकार ने 1952 में कला के लिए पहली राष्ट्रीय विदेशी दोनों कलाओ ं से संबंधित हैं, ये मुख्य रूप से
अकादमी के रूप में संगीत नाटक अकादमी (एसएनए) भारतीय कला के प्रचार और संरक्षण से संबंधित हैं।
की स्थापना की। इसका उद्घाटन भारत के पहले राष्ट्रपति • इनका मुख्य केंद्र दिल्ली में है और इसके क्षेत्रीय केंद्र
डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने किया था। कोलकाता, चेन्नई, लखनऊ, शिलांग, शिमला और
• अकादमी का मुख्य उद्देश्य भारतीय संगीत, नाटक भुवनेश्वर में हैं।
और नृत्य के लिए एक परिवेश बनाना था। यह प्रदर्शन

130
अध्याय - 17

भारतीय त्यौहार
(INDIAN FESTIVAL)

• त्यौहार भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, होता है।


जो हमारे मूल्यों और भावनाओ ं की प्रस्तुति के लिए एक
माध्यम के रूप में कार्य करते हैं। जबकि प्रत्येक समुदाय
के अपने त्यौहार और पवित्र दिन होते हैं, इन समारोहों
2. होली (Holi)
में भाग ले ने के लिए सभी धार्मि क समूहों का स्वागत है।
भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है, और विभिन्न धार्मि क और • होली भारत में मनाया जाने वाला एक हिं दू त्योहार है। इसे
सामुदायिक समारोहों के लिए छुट्टियां मनाई जाती हैं। रंगों के त्योहार के रूप में जाना जाता है, और यह सभी
धर्मों के नागरिकों द्वारा मनाया जाता है। यह फाल्गुन
राष्ट्रीय उत्सव (National festival) (फरवरी-मार्च) महीने में मनाया जाता है। यह बुराई पर
अच्छाई की जीत का प्रतिनिधित्व करता है, यानी होलिका
राष्ट्रीय महत्व की प्रमुख ऐतिहासिक घटनाओ ं के अवसर
दहन और भक्त प्रह्लाद का बचाव। इसे पश्चिम बंगाल और
पर राष्ट्रीय अवकाश मनाया जाता है। इन त्योहारों के
असम के कुछ हिस्सों में दोल जात्रा के नाम से जाना जाता
माध्यम से भारतीयों में देशभक्ति की गहरी भावना पैदा होती
है।
है। भारत तीन राष्ट्रीय त्योहार मनाता है -

1. गणतंत्र दिवस - 26 जनवरी

2. स्वतंत्रता दिवस - 15 अगस्त 3. दशहरा (Dussehra)


3. गांधी जयंती - 2 अक्टू बर • दशहरा एक हिं दू अवकाश है। इसे विजय दशमी के रूप में
भी जाना जाता है, और यह पूरे भारत में भगवान राम की
रावण पर जीत के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। इस दिन
विशेष रूप से उत्तर भारत में रावण दहन एक लोकप्रिय
धार्मिक त्यौहार (Religious दृश्य है।

Festivals) • दुर्गा पूजा हिं दू त्योहार है जो देवी दुर्गा की याद में मनाया
जाता है यह मुख्य रूप से भारत के पूर्वी क्षेत्रों (विशेषकर
• यह त्योहार विशिष्ट समूहों द्वारा मनाया जाता है जो एक पश्चिम बंगाल) में मनाया जाता है। यह पर्व राक्षस
विशिष्ट विश्वास प्रणाली का अनुसरण करते हैं। जबकि महिषासुर पर देवी दुर्गा की जीत की याद दिलाता है।
विभिन्न धर्मों के लोगों का उत्सव में भाग ले ने हेतु कोई
प्रतिबंध नहीं है। उदाहरण के लिए, होली मुख्य रूप से एक
हिं दू धार्मि क त्योहार है, ले किन भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष 4. गणेश चतुर्थी (Ganesh Chaturthi)
देश में गैर-हिं दुओ ं द्वारा भी इसका आनंद लिया जाता है।
हमने दुनिया भर के समूहों द्वारा मनाए जाने वाले त्योहारों • गणेश चतुर्थी एक हिं दू त्योहार है जो भगवान गणेश

की एक सूची बनाई है। जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है, ले किन यह विशेष
रूप से महाराष्ट्र में मनाया जाता है क्योंकि यह राज्य का
मुख्य त्योहार है।

हिं दू त्योहार (Hindu Festival):

• कुछ प्रमुख हिं दू त्योहार निम्नलिखित हैं: मुस्लिम त्यौहार (Muslim Festival)
1. ईद-उल-फितर (Eid-ul-Fitr)

• यह दुनिया भर के मुसलमानों द्वारा मनाए जाने वाले


1. दीपावली या होली दीपावली (Deepawali or Holi
Deepawali): कई त्योहारों में से एक है। यह त्योहार इस्लामिक पवित्र
महीने रमजान (रमजान) की समाप्ति के बाद होता है, जो
• यह कार्ति क मास की अमावस्या (अमावस्या) के दिन कैलें डर का नौवां महीना है। लोग रमजान के पूरे महीने में
मनाया जाने वाला प्रकाश पर्व है, जो अक्टू बर से नवंबर उपवास रखते हैं, जो सूर्योदय से शुरू होकर सूर्यास्त तक
के बीच पड़ता है। नरक चतुर्दशी त्योहार से एक दिन पहले

131
समाप्त होता है। शव्वाल के महीने का पहला दिन और संयोग से, इस्लामिक कैलें डर के पहले महीने के पहले
रमजान महीने के अंत में चंद्रमा की उपस्थिति के बाद दिन होता है। मुहर्रम के 10वें दिन को यम-अल-अशूरा के
ईद-उल-फितर त्योहार की तारीखों का निर्धारण किया नाम से जाना जाता है, जिसे मुसलमान शोक दिन के रूप
जाता है, जो एक जटिल प्रक्रिया के माध्यम से निर्धारित में मनाते हैं।
होता है।

ईसाई का त्योहार (Festival of Christian)


2. ईद-उल-जुहा या ईद-उल-अधा (Eid-ul-Juha or 1. क्रिसमस (Christmas)
Eid-ul-Adha)
• हर साल 25 दिसंबर को पूरी दुनिया में ईसा मसीह की
• इसका दूसरा नाम बकरीद, या ईद है जिसमें बकरी या
जयंती के रूप में मनाया जाता है ।उत्सव की शुरुआत
बकरे की कुर्बानी शामिल है,। यह इस्लामिक कैलें डर के
मध्यरात्रि से होती है, जो 24-25 दिसंबर की रात को सभी
12वें महीने धू-अल-हिज्जा के दसवें दिन मनाया जाता
चर्चों में आयोजित की जाती है।और आधी रात को ईसा
है। यह पैगंबर इब्राहिम की अल्लाह के प्रति अटू ट भक्ति
मसीह के जन्म की याद दिलाता है। लोग चर्च में आते हैं,
की याद दिलाता है, जिसकी परीक्षा तब हुई जब अल्लाह
जहां भक्तों को ईसा मसीह के अच्छे कार्यों की याद दिलाने
ने उसे अपने बेटे की बलि देने के लिए कहा। कहा जाता
के लिए कई गतिविधियों का आयोजन किया जाता है।
है कि इब्राहिम अपने बेटे का सिर काटने के लिए तैयार
हो गया था, ले किन अल्लाह दयालु थे और उन्होंने बकरी • लोग उपहारों का आदान-प्रदान करते हैं और एक-दूसरे
के सिर की पेशकश को स्वीकार कर लिया। फलस्वरूप, के घरों में जाते हैं। क्रिसमस ट्री, जिसे हर किसी के घर में
ईद-उल-अजहा के दिन एक बकरी के सिर की बलि दी सजाया जाता है, त्योहार से जुड़ी दो परंपराओ ं में से एक है।
जाती है, और मांस को परिवार के सदस्यों और पड़ोसियों पहला. दीपक और रोशनी से कमरे को सजाते हैं। दूसरी
के बीच अनुष्ठान विशिष्ट भोज के रूप में वितरित किया किंवदंती सांता क्लॉज़ की है, जिसे उपहार लाने वाला
जाता है। बलि का एक तिहाई मांस जरूरतमंदों को भी कहा जाता है। इस दिन लोग कैरल गाते है, मिठाई और
बांटा जाता है। ईद पवित्र समय की शुरुआत का भी प्रतीक केक बांटते हैं।
है, जिसके दौरान कई लोग हज करते हैं, या मक्का की
तीर्थ यात्रा करते हैं।
2. ईस्टर और गुड फ्राइडे (Easter and Good Friday)

• इस दिन को ईसा मसीह के पुनरुत्थान की याद में मनाया


3. मिलाद-उन-नबी (Milad-un-Nabi) जाता है। बाइबिल के अनुसार, सूली पर चढ़ाए जाने के
• यह त्योहार, जिसे बराह वफ़ात के नाम से भी जाना जाता तीन दिन बाद यीशु का पुनर्जन्म हुआ था, इसलिए ईस्टर,
है, पैगंबर मुहम्मद की जयंती के रूप में मनाया जाता है। मृत्यु पर जीवन की जीत का प्रतिनिधित्व करता है।
कुरान के अनुसार, पैगंबर का जन्म मुस्लिम कैलें डर के
तीसरे महीने रबी-अल-अव्वल के 12वें दिन हुआ था। यह
वह दिन भी है जब माना जाता है कि पैगंबर ने दुनिया सिख त्योहार (Sikh Festival)
छोड़ दी थी, इसलिए इस दिन उत्सव बहुत कम महत्वपूर्ण
गुरु पर्व (Guru Festival)
होते हैं। यह दिन राष्ट्रीय अवकाश की श्रेणी में आता है।
इसे धूमधाम और सम्मान के साथ मनाया जाता है। पवित्र • यह पूरे विश्व में सिख समुदाय द्वारा मनाया जाता है। सभी
कुरान को पढ़ने के लिए लोग मस्जिदों में मिलते हैं। विशेष दस सिख गुरुओ ं की जयंती गुरु पर्व के रूप में मनाई
सभाओ ं में धार्मि क विद्वान, क़ासिदा अल-बुरदा शरीफ़ का जाती है, ले किन गुरु नानक और गुरु गोबिं द सिं ह सबसे
पाठ करते हैं, जो 13वीं शताब्दी में अरबी सूफ़ी' बुसिरी' द्वारा उल्ले खनीय हैं। अन्य महत्वपूर्ण गुरु पर्व, गुरु अर्जन देव
लिखी गई एक बहुत ही पवित्र कविता है। वे नट भी करते और गुरु तेग बहादुर की मृत्यु का स्मरण करते हैं, दोनों
हैं, जो पैगंबर के सम्मान में लिखी गई पारंपरिक कविताएं को मुगलों द्वारा मार दिया गया था।
हैं और उनके अच्छे कार्यों को चित्रित करती हैं। • गुरु नानक के जन्मदिन के अवसर पर, सिख समुदाय
गुरु नानक जयंती मनाते है। इस दिन, सभी गुरुद्वारों में
विशेष सेवाएं होती हैं और जनता को लं गर वितरित किया
4. मुहर्रम (Muharram) जाता है। सभी गुरु पर्व आनन्दित होने और प्रभु को याद
• मुहर्रम एक दुखद त्योहार है क्योंकि यह अली के बेटे करने के कारण हैं। इसलिए, अखंड पाठ आयोजित किया
हुसैन की मृत्यु की याद दिलाता है। यह त्योहार इस्लामिक जाता है, और लोग प्रभात फेरी या प्रभु की स्तुति का
कैलें डर के पहले महीने में होता है। इस्लामिक नया साल, सामूहिक गायन करते हैं।

132
लोहड़ी (Lohri) करते हैं । मूर्ति को दूध, गन्ने के रस और केसर के पेस्ट से
नहलाया जाता है, और ऊपर से चंदन, हल्दी और सिं दूर का
• मकर संक्रांति से एक दिन पहले माघ मास में 13 जनवरी
पाउडर छिड़का जाता है।
को यह पर्व मनाया जाता है। लोहड़ी एक हिं दू त्योहार है
जो उर्वरता क्षमता और सृजन उत्साह का सम्मान करता
है। लोग अलाव के आसपास इकट्ठा होते हैं, कैंडी, फूला
ज्ञान पंचमी (Gyan Panchami)
हुआ चावल और पॉपकॉर्न आग की लपटों में फेंकते हैं,
सार्वजनिक गीत गाते हैं, और बधाई देते हैं। यह अंधकार • "ज्ञान पंचमी" कार्ति क के पांचवें दिन को दिया गया नाम
पर प्रकाश की विजय का भी प्रतिनिधित्व करता है। है। इसे "जागरूकता दिवस" के रूप में जाना जाता है। जैन
धर्म के तहत इस दिन पवित्र शास्त्रों को दिखाया और पूजा
जाता है।
वैशाख/वैशाखी (Vaishakh/Vaishakhi)

• प्रत्येक वर्ष 13 या 14 अप्रैल को एक धार्मि क उत्सव का


बौद्ध त्यौहार (Buddhist Festivals)
आयोजन किया जाता है। यह त्योहार सिख नव वर्ष के
साथ-साथ खालसा पंथ के जन्मदिन के उपलक्ष्य में बुद्ध पूर्णिमा (Buddha Purnima)
मनाया जाता है। सिखों के लिए, यह वसंत फसल का
• बुद्ध पूर्णि मा, जिसे बुद्ध जयंती के रूप में भी जाना जाता
त्योहार है। गुरुद्वारों को सजाया जाता है और वहां कीर्तन
है, भगवान बुद्ध के जन्म की याद में मनाया जाता है। यह
रखे जाते हैं। सिख पवित्र नदी में स्नान करते हैं, मंदिरों में
अप्रैल/मई के महीनों में होता है और आमतौर पर उत्तर-
जाते हैं, रिश्तेदारों से मिलते हैं और उत्सव के भोजन का
पूर्वी भारत में मनाया जाता है। सिक्किम में, इसे सागा
आनंद ले ते हैं।
दावा (दास) के रूप में जाना जाता है, और थेरवाद परंपरा
में, इसे विशाखा पूजा के रूप में जाना जाता है। बिहार
में बोधगया और उत्तर प्रदेश में सारनाथ उत्तरी भारत में
जैन त्यौहार (Jain Festival) प्रमुख उत्सव केंद्र हैं।
महावीर जयंती (Mahavir Jayanti)
• गौतम बुद्ध के जीवन पर अनुष्ठानिक प्रार्थना और उपदेश
• यह त्योहार जैन समुदाय द्वारा मनाया जाता है। भगवान समारोह का हिस्सा हैं। इसी दिन बौद्ध धर्मग्रंथ गायन, बुद्ध
महावीर की जयंती को 24 वें तीर्थंकर एवं जैन धर्म के की छवि और बोधि वृक्ष की पूजा और ध्यान भी शामिल है।
संस्थापक के रूप में मनाने के लिए आयोजित किया विभिन्न संप्रदायों के अपने नियम हैं, जैसे:
जाता है। यह उगते चंद्रमा के महीने, चैत्र के 13 वें दिन होता • महायान बौद्धों द्वारा संगीत वाद्ययंत्रों का एक बड़ा जुलूस,
है। त्योहार धूमधाम और परिस्थितियों से चिह्नित होता जैसे कि ग्यालिंग का आयोजन किया जाता है।
है, जिसमें सभी जैन मंदिरों पर भगवा झंडा फहराता है।
• थेरवाद बौद्ध केवल बुद्ध की मूर्ति यों की पूजा करने पर
महावीर की मूर्ति को दूध में धोया जाता है और औपचारिक
ध्यान केंद्रित करते हैं, और वे कांग्यूर पाठ भी पढ़ते हैं।
स्नान (अभिषेक) किया जाता है। इसके बाद जुलूस
निकाला जाता है।

सोनक्रान (Sonkran)

पर्यूषण पर्व (Paryshoon Festival) • यह बौद्ध त्योहार उसी तरह मनाया जाता है जैसे वसंत
ऋतु में सफाई होती है। अप्रैल के मध्य में, यह कई दिनों
• पर्यूषण जैनियों के वार्षि क उत्सव का नाम है। श्वेतांबर
तक मनाया जाता है। लोग अपने घरों की सफाई करते
संप्रदाय भाद्रपद (अगस्त / सितंबर) के महीने में आठ
हैं, अपने कपड़े धोते हैं और भिक्षुओ ं पर सुगंधित जल
दिनों तक इसे मनाते है तथा दिगंबर संप्रदाय द्वारा दस
छिड़कना एक सामान्य कार्य है।
दिनों तक आयोजित किया जाता है।

जुताई उत्सव (Ploughing Festival)


महामस्तकाभिषेक (Mahamastakabhishek)
• यह त्योहार बुद्ध के पहले ज्ञानोपदेश की याद दिलाता है,
• यह कर्नाटक शहर श्रवणबेलगोला में हर 12 साल में होता
जो तब हुआ था जब वे सात साल के थे और अपने पिता
है। इस उत्सव के दौरान ऋषभदेव के पुत्र सिद्ध बाहुबली
को हल जोतते हुए देख रहे थे। दो सफेद बैल सोने के
का पवित्र स्नान समारोह आयोजित किया जाता है। भक्त,
रंग का हल खींचते हैं, उसके बाद चार सफेद लड़कियां
विशेष रूप से तैयार बर्तन में से पवित्र जल का छिड़काव
टोकरियों से चावल के बीज फेंकती हैं, और यह मई के

133
महीने में मनाया जाता है। • इस महोत्सव की स्थापना 1975 में भारत सरकार द्वारा
मध्य प्रदेश कला परिषद के सहयोग से की गई थी। इस
नृत्य उत्सव का उद्देश्य खजुराहो मंदिरों की सुंदरता और
उलम्बाना (Ulmbana) कामुकता को उजागर करते हुए राज्य में पर्यटन को
प्रोत्साहित करना था।
• यह पर्व आठवें चंद्र मास के पहले से पन्द्रहवें दिन तक
चलता है। कहा जाता है कि नरक के द्वार पहले दिन खुलते
हैं, जिससे आत्माओ ं को पंद्रह दिनों के लिए पृथ्वी में प्रवेश
करने की अनुमति मिलती है। इस दौरान आत्मा के दर्द
त्यागराज आराधना (Tyagraj Aradhana)
को कम करने के लिए भोजन का प्रसाद चढ़ाया जाता है। • यह हर साल प्रसिद्ध तेलुगु संत और संगीतकार की स्मृति
लोग 15वें दिन (उलम्बाना या पूर्वज दिवस) पर कब्रिस्तान में आयोजित किया जाता है
जाते हैं और दिवंगत आत्माओ ं को प्रसाद चढ़ाते हैं।
• त्यागराज का 'समाधि' दिवस। यह मुख्य रूप से तिरुवयारु,
आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु (जहां उन्होंने समाधि प्राप्त की)
में आयोजित किया जाता है। कर्नाटक संगीत के प्रमुख
सिं धी त्यौहार (Sindhi Festival) प्रतिपादक संत को सम्मान देने के लिए उत्सव में शामिल
चालिहो साहिब (Chaliho Sahib) होते हैं। कर्नाटक संगीत की त्रिमूर्ति में संत त्यागराज,
मुथुस्वामी दीक्षितार और श्यामा शास्त्री शामिल हैं।
• जुलाई और अगस्त के महीनों में, सिं धी 40 दिन का
उपवास रखते हैं। वे भगवान झूलेलाल से प्रार्थना करने
के लिए 40 दिनों तक उपवास करते हैं, और फिर वे दिन
को धन्यवाद दिवस के रूप में मनाते हैं। थट्टा के लोग सिं ध
ओणम (Onam)
के एक मुस्लिम आक्रमणकारी मिर्कशाह बादशाह से • ओणम, केरल का राज्य उत्सव, मलयालम कैलें डर के
परेशान थे, जो चाहता था कि वे इस्लाम में परिवर्ति त हो पहले महीने, चिगम की शुरुआत में होता है। यह मुख्य रूप
जाएं । वरुण देवता, या जल के देवता से प्रार्थना करने के से एक फसल उत्सव है, ले किन यह पाताल (भूमिगत)
लिए लोगों ने 40 दिनों तक नदी के तट पर तपस्या की। से शक्तिशाली असुर राजा महाबली की वापसी की भी
40 वें दिन वरुण देवता ने उनकी प्रार्थना सुनी और उन्हें याद दिलाता है। ओणम के रंगीन और जीवंत त्योहार
अत्याचारी से मुक्ति दिलाने की कसम खाई। झूलेलाल में विस्तृत दावतें, नृत्य, फूल, बर्तन और हाथी शामिल
उनकी प्रार्थनाओ ं का उत्तर थे। हैं। वल्लम काली ओणम (स्नेक बोट रेस) की एक
लोकप्रिय विशेषता है। नेहरू नाव रेस पदक सबसे प्रसिद्ध
वल्लमकली के विजेताओ ं को प्रदान की जाती है, जो
पारसी त्योहार (Parsi Festival) पुन्नमदा झील में आयोजित की जाती है।

जमशेदी नवरोजी (Jamshed Navroji)

• पारसी समुदाय नवरोज के त्योहार को नए साल के जश्न पोंगल (Pongal)


के रूप में मनाता है। यह रोज होर्मुजद या शहंशाही कैलें डर
के पहले महीने (महफ्रावर्डि न) के पहले दिन होता है। • पोंगल एक चार दिवसीय फसल उत्सव है जिसे पूरी
चूंकि यह सर्दि यों का अंत और नए साल की शुरुआत है, दुनिया में तमिल मनाते हैं। यह जनवरी में मनाया जाता
इसलिए इसे यूनिवर्सल डॉन की शुरुआत माना जाता है। है और उत्तरायण की शुरुआत का प्रतीक है, सूर्य की उत्तर
दो खगोलीय प्राणी, जो प्रकाश के अग्रदूत हैं, खोर्शेड और की ओर छह महीने की यात्रा। तमिल में, पोंगल शब्द का
मेहरयाज़ाद, पारसियों द्वारा पूजे जाते हैं। लोग एक-दूसरे अर्थ है 'उबालना', और पहले चावल को उबालना त्योहार
से मिलते हैं और अग्नि मंदिर के दर्शन करते हैं। के दौरान मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान है।
यह थाई महीने में होता है, जब चावल, गन्ना और तारपीन
जैसी विभिन्न फसलों की कटाई की जाती है। यह सूर्य
भगवान को धन्यवाद देने और जीवन चक्र का जश्न
धर्मनिरपेक्ष त्यौहार (Secular मनाने का समय है जो हमें अनाज प्रदान करता है।

Festival)
खजुराहो नृत्य महोत्सव (Khajuraho Dance
Festival)

134
उत्तर पूर्व भारत के त्यौहार हर साल 1 दिसंबर को दस दिवसीय उत्सव शुरू होता है।
यह त्यौहार सभी बड़ी नागा जनजातियों को एक साथ
(Festivals of North East लाता है, जो किसामा हेरिटे ज विले ज में एकत्र होते हैं।
सभी जनजातियों द्वारा अपनी प्रतिभा और सांस्कृतिक
India) जीवंतता दिखाने के लिए वेशभूषा, हथियार, धनुष और
तीर और कबीले की टोपी का उपयोग किया जाता है। यह
सागा दावा (त्रिपक्षीय समृद्ध महोत्सव) (Saga सभी जनजातियों के साथ-साथ युवा पीढ़ी के लिए भी
Claims) (Tripartite Prosperous Festival)
एक साथ आने का एक उत्कृष्ट अवसर है।
• यह मुख्य रूप से सिक्किम राज्य में बौद्ध समूहों द्वारा
मनाया जाता है। यह पूर्णि मा के दिन मनाया जाता है जो
तिब्बती चंद्र महीने सागा दावा में पड़ता है, जो तिब्बती चंद्र मोत्सु मोंग त्योहार (Motsu Mong Festival)
महीने के मध्य में होता है। तिब्बती समूह आज को काफी
• यह नागालैं ड की एओ जनजाति द्वारा बुवाई के पूरा होने
शुभ दिन मानता है। यह महीना, जो मई और जून के बीच
के बाद मई के पहले सप्ताह में मनाया जाता है। जंगलों
पड़ता है, सागा दावा या "महीने का गुण" के रूप में जाना
को जलाने, खेतों को साफ करने, बीज बोने आदि
जाता है। इस त्योहार में बुद्ध के जन्म, ज्ञान और मृत्यु
के तनावपूर्ण काम के बाद, त्योहार उन्हें विश्राम और
(परिनिर्वाण) का स्मरण किया जाता है।
मनोरंजन का समय प्रदान करता है। इस अवसर को
चिह्नित करने के लिए गीत और नृत्य का उपयोग किया
जाता है। संगपांगटू त्योहार का एक हिस्सा है, जहां एक
लोसूंग महोत्सव (Losung Festival)
बड़ी आग जलाई जाती है और इसके चारों ओर महिलाएं
• सिक्किम के नववर्ष को लोसूंग के नाम से जाना जाता और पुरुष बैठते हैं।
है। हर साल दिसंबर के महीने में यह सिक्किम में मनाया
जाता है। जैसा कि पहले उल्ले ख किया गया है, सिक्किम
राज्य में कृषि मुख्य व्यवसाय है, और फसल का मौसम खारची पूजा (Kharchi Puja)
किसानों और अन्य व्यावसायिक समूहों द्वारा मनाया
• इसकी उत्पत्ति त्रिपुरा में हुई। हालाँकि यह त्रिपुरा के त्योहार
जाता है।
के शाही परिवार के रूप में शुरू हुआ था, ले किन अब इसे
आम लोग भी मनाते हैं। यह जुलाई के महीने में होता है
और एक सप्ताह तक चलता है। त्योहार पृथ्वी के सम्मान
बिहू महोत्सव (Bihu Festival)
के साथ-साथ 14 अन्य देवताओ ं का सम्मान करने के
• यह तीन प्रमुख असमिया गैर-धार्मि क त्योहारों का एक लिए आयोजित किया जाता है।
समूह है: अप्रैल में रोंगाली या बोहाग बिहू, अक्टू बर में
कोंगाली या कटि बिहू और जनवरी में भोगली बिहू। तीनों
में सबसे महत्वपूर्ण रोंगाली बिहू है, जो असमिया नव वर्ष ड्री त्योहार (Dre Festival)
पर पड़ता है। बिहू के दौरान, मुख्य आकर्षण गीत और नृत्य
• यह त्योहार मुख्य रूप से अरुणाचल प्रदेश की अपतानी
हैं।
जनजाति द्वारा मनाया जाता है। ड्री त्योहार की परंपराएं
अब जनजातियों की बढ़ती संख्या द्वारा मनायी जा रही है।
यह जीरो घाटी में सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है।
हॉर्नबिल महोत्सव (Hornbill Festival)

• यह नागालैं ड के सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है।

135
विगत वर्षों मे
पूछे गए प्रश्न
(PREVIOUS
YEAR
QUESTIONS)

136
मुख्य परीक्षा के प्रश्न (Main 11. भारत की प्राचीन सभ्यता, मिस्र, मेसोपोटामिया और
ग्रीस की सभ्यताओ ं से, इस बात में भिन्न है कि भारतीय
Exam Questions) उपमहाद्वीप की परंपराएं आज तक भंग हुए बिना
परिरक्षित की गई है। टिप्पणी कीजिए। (2015)
1. शैलकृत स्थापत्य प्रारंभिक कला एवं इतिहास के ज्ञान के
अति महत्वपूर्ण स्रोतों में से एक का प्रतिनिधित्व करता है।
12. भारत की मध्यपाषाण शिला-कला न केवल उस
विवेचना कीजिए। (2020)
काल के सांस्कृतिक जीवन को, बल्कि आधुनिक
चित्र-कला से तुलनीय परिष्कृ त सौंदर्य बोध को भी,
2. भारतीय दर्शन एवं परंपरा नें भारतीय स्मारकों की प्रतिबिं बित करती है। इस टिप्पणी का समालोचनात्मक
कल्पना और आकार देने एवं उनकी कला में महत्वपूर्ण मूल्यांकन कीजिए। (2015)
भूमिका निभाई है।विवेचना कीजिए। (2020)

13. सिं धु घाटी सभ्यता की नगरीय आयोजना और संस्कृति ने


3. गांधाराई कला में मध्य एशियाई एवं यूनानी-बैक्ट्रियाई किस सीमा तक वर्तमान युगीन नगरीकरण को निवेश
तत्वों को उजागर कीजिए। (2019) (इनपुट) प्रदान करती है? चर्चा कीजिए। (2014)

4. भारतीय कला विरासत का संरक्षण वर्तमान समय की 14. गांधार मूर्ति कला रोमनिवासियों की उतनी ही ऋणी थी
आवश्यकता है। चर्चा कीजिए। (2018) जितनी कि वह यूनानियों की थी । स्पष्ट कीजिए। (2014)

5. भारत के इतिहास के पुनर्निर्माण में चीनी और अरब 15. तक्षशिला विश्वविद्यालय विश्व के प्राचीनतम विश्वविद्यालयों
यात्रियो वृतान्तों के महत्व का आकलन कीजिए। (2018) में से एक था जिसके साथ विभिन्न शिक्षण-विषयों
(डिसीप्लिं स) के अनेक विख्यात विद्वानी व्यक्तित्व सम्धबं ित
थे। उसकी रणनीतिक अवस्थिति के कारण उसकी कीर्ति
6. श्री चैतन्य महाप्रभु के आगमन से भक्ति आंदोलन को फैली, ले किन नालं दा के विपरीत, उसे आधुनिक अभिप्राय
असाधारण नई दिशा मिली थी । चर्चा करें। (2018) में विश्वविद्यालय नहीं समझा जाता। चर्चा कीजिए । (2014)

7. आप इस दृष्टिकोण को, कि गुप्तकालीन मुद्राशास्त्रीय 16. सूफी और मध्यकालीन रहस्यवादी सिद्ध पुरुष (संत) हिं दू
कला की उत्कृष्टता का स्तर बाद के समय में नितांत / मुसलमान समाजों के धार्मि क विचारों और रीतियों को
दर्शनीय नहीं है, किस प्रकार सही सिद्ध करेंगे ? (2017) या उनकी वाह्य संरचना को पर्याप्त सीमा तक रूपांतरित
करने में विफल रहे । टिप्पणी कीजिए। (2014)

8. परीक्षण कीजिए कि औपनिवेशिक भारत में पारंपरिक


शिल्प उद्योग के पतन ने किस प्रकार ग्रामीण 17. दक्षिण भारत के राजनैतिक इतिहास की दृष्टि से बहुत
अर्थव्यवस्था को अपंग बना दिया। (2017) उपयोगी न होते हुए भी संगम साहित्य उस समय की
सामाजिक और आर्थि क स्थिति का अत्यंत प्रभावी शैली
में वर्णन करता है। टिप्पणी कीजिए । (2013)
9. प्रारंभिक बौद्ध स्तूप-कला, लोक वर्ण्य- विषयों
एवं कथानकों को चित्रित करते हुए, बौद्ध आदर्शों
की सफलतापूर्वक व्याख्या करती है। विशदीकरण 18. a) आरम्भिक भारतीय भारतीय शिलाले खों में अंकित
कीजिए । (2016) 'तांडव' नृत्य की विवेचना कीजिए।

b) मंदिर वास्तुकला के विकास में चोल वास्तुकला


10. विजयनगर नरेश कृष्ण देव राय न केवल स्वयं का उच्च स्थान है। विवेचना कीजिए। (2013)
एक कुशल विद्वान थे अपितु शिक्षा और साहित्य के
महान संरक्षक भी थे। विवेचना कीजिए। (2016)

137
प्रारंभिक परीक्षा के प्रश्न (Pre- 5. निम्नलिखित युग्मों पर विचार करें: 2018

परंपरा राज्य
lims Questions) 1. चपचार कुट महोत्सव - मिजोरम

1. भारत के सांस्कृतिक इतिहास के संदर्भ में, निम्नलिखित 2. खोंगजोम परबा गाथागीत - मणिपुर
में से कौन सा 'परामिता' शब्द का सही विवरण है? 2020 3. थांग-टा नृत्य - सिक्किम
(a) प्राचीनतम धर्मशास्त्र ग्रंथ सूत्र पद्धति में लिखे गए हैं। उपर्युक्त युग्मों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(b) दार्शनिक जो वेदों के प्राधिकार को अस्वीकार करने (a) केवल 1
वाले दार्शनिक संप्रदाय।
(b) 1 और 2
(c) परिपूर्णताये जिनकी प्राप्ति बोधिसत्व पथ की ओर ले
(c) 1 और 2
जाती है।
(d) 2 और 3
(d) आरंभिक मध्यकालीन दक्षिण भारत की शक्तिशाली
व्यापारी श्रेणियाँ।
6. भारत के सांस्कृतिक इतिहास के संदर्भ में
निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिएः 2018
2. भारत के सांस्कृतिक इतिहास के संदर्भ में निम्नलिखित
युग्मों पर विचार कीजिए। 2020 1. त्यागराज की अधिकांश कृतियां भगवान कृष्ण की
स्तुति के भक्ति गीत हैं।
1. परिव्राजक - परित्यागी व भ्रमणकारी
2. त्यागराज ने अनेक नए रागों का सृजन किया ।
2. श्रमण - उच्च पद प्राप्त पुजारी
3. अन्नामाचार्य और त्यागराज समकालीन हैं।
3. उपासक - बौद्ध धर्म के अनुयायी
4. अन्नमाचार्य कीर्तन भगवान वेंकटे श्वर की स्तुति के
ऊपर दिए गए युग्मों में से कौन-सा सही सुमेलित है?
भक्ति गीत हैं।
(a) केवल 1 और 2
उपर्युक्त कथनों में से कौन सा सही है?
(b) केवल 1 और 3
(a) केवल 1 और 3
(c) केवल 2 और 3
(b) केवल 2 और 4
(d) 1, 2 और 3
(c) 1, 2 और 3

(d) 2, 3 और 4
3. निम्नलिखित में से किस उभारदार मूर्तिशिल्प(रिलीफ
स्कल्पचर ) शिलाले ख में अशोक के प्रस्तर रूपचित्र के
साथ 'राण्यो अशोक' (राजा अशोक) का उल्ले ख है? 2019 7. भारत के सांस्कृतिक इतिहास के संदर्भ में निम्नलिखित
कथनों पर विचार कीजिएः 2018
(a) कंगनहल्ली
1. फतेहपुर सीकरी स्थित बुलंद दरवाजा तथा खानकाह
(b) सांची
के निर्माण में सफेद संगमरमर का प्रयोग हुआ था।
(c) शाहबाजगढ़ी
2. लखनऊ में बड़ा इमामबाड़ा और रूमी दरवाजा बनाने
(d) सोहगौरा में लाल बलु आ पत्थर और संगमरमर का प्रयोग हुआ था।

उपर्युक्त कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं?


4. किसके राज्य में 'कल्याण मंडप' की रचना मंदिर (a) केवल 1
निर्माण का एक विशिष्ट अभिलक्षण था। 2019
(b) केवल 2
(a) चालु क्य
(c) 1 और 2 दोनों
(b) चंदेल
(d) न तो 1, न ही 2
(c) राष्ट्रकूट

(d) विजयनगर
8. सुप्रसिद्ध चित्र "बाणी-ठणी" किस शैली का है 2018

(a) बूंदी शैली

138
(b) जयपुर शैली (c) केवल 1 और 3

(c) कांगड़ा शैली (d) 1, 2 और 3

(d) किशनगढ़ शैली

13. मणिपुरी संकीर्तन के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर


विचार कीजिएः 2017
9. भारत में धार्मि क प्रथाओ ं के संदर्भ में, "स्थानकवासी"
संप्रदाय का संबंध है 1. यह गीत और नृत्य का प्रदर्शन है।

2018 2. केवल करताल(सिम्बल) ही एकमात्र वाद्ययंत्र है जो


इस प्रदर्शन में प्रयुक्त होता है
(a) बौद्ध धर्म
3. यह भगवान कृष्ण के जीवन और लीलाओ ं का वर्णन
(b) जैन धर्म
करने के लिए प्रदर्शि त किया जाता है।
(c) वैष्णववाद
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(d) शैववाद
(a) 1, 2 और 3

(b) केवल 1 और 3
10. बोधिसत्व पद्मपाणि की चित्रकारी सबसे प्रसिद्ध
(c) केवल 2 और 3
और अक्सर सचित्र चित्रों में से एक है: 2017
(d) केवल 1
(a) अजंता

(b) बादामी
14. भारत के सांस्कृतिक इतिहास के संदर्भ में, कालक्रम,
(c) बाघ
राजवंशीय इतिहासो तथा वीरगाथाओ ं को कंठस्थ करना
(d) एलोरा निम्नलिखित में से किसका व्यवसाय था? 2016

(a) श्रमण
11. निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजिए : 2017 (b) परिव्राजक
परंपराए समुदाय (c) अग्रहारिका
1. चालिहा साहिब महोत्सव - सिं धी का (d) मगध
2. नंदा राज जात यात्रा - गोंडो का

3. वारी- वारकरी - संथालो का 15. मध्यकालीन भारत के सांस्कृतिक इतिहास के संदर्भ में
उपर्युक्त युग्मों में से कौन-सा/से सही सुमेलित है/हैं? निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिएः 2016

(a) केवल 1 1. तमिल क्षेत्र के सिद्ध (सित्तर) एकेश्वरवादी थे तथा


मूर्ति पूजा की निं दा करते थे।
(b) केवल 2 और 3
2. कन्नड़ क्षेत्र के लिंगायत, पुनर्जन्म के सिद्धांत
(c) केवल 1 और 3
पर प्रश्न चिन्ह लगाते थे तथा जाति अधिक्रम को
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं अस्वीकार करते थे ।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?


12. निम्नलिखित में से कौन-सा/ से सूर्य मंदिरों के लिए (a) केवल 1
प्रसिद्ध है/हैं? 2017
(b) केवल 2
1. अरसवल्ली
(c) 1 और 2 दोनों
2. अमरकंटक
(d) न तो 1, न ही 2
3. ओ ंकारेश्वर

नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:


16. अजंता और महाबलीपुरम के नाम से ज्ञात दो ऐतिहासिक
(a) केवल 1 स्थानों में कौन-सी बात/बातें समान है /हैं ? 2016
(b) केवल 2 और 3 1. दोनों एक ही समयकाल में निर्मि त हुए थे ।

139
2. दोनों एक ही धार्मि क संप्रदाय के हैं। 20. निम्नलिखित में से किसे हाल ही में शास्त्रीय भाषा का
दर्जा दिया गया है? 2015
3. दोनों में शिलाकृत स्मारक हैं।
(a) उड़िया
नीचे दिए गए कोड का प्रयोग कर सही उत्तर चुनें।
(b) कोंकणी
(a) केवल 1 और 2
(c) भोजपुरी
(b) केवल 3
(d) असमिया
(c) केवल 1 और 3

(d) उपर्युक्त कथनों में से कोई भी सही नहीं है


21. निम्नलिखित युग्मों में से कौन सा एक भारतीय षडदर्शन
का भाग नहीं है? 2014
17. भारतीये इतिहास के संदर्भ में निम्नलिखित युग्मों पर
(a) मीमांसा और वेदांत
विचार कीजिएः 2016
(b) न्याय और वैशेषिक
1. एरीपट्टी: भूमि, राजस्व जिससे गांव के तालाब के
रखरखाव के लिए अलग रखा गया था (c) लोकायत और कापालिका

2. तनियूर: एक ब्राह्मण या ब्राह्मणों के समूह को दान (d) सांख्य और योग


किए गए गांव

3. घाटिका: आमतौर पर मंदिरों से जुड़े कॉले ज


22. भारत के निम्नलिखित शहरों पर विचार करें: 2014
उपर्युक्त युग्मों में से कौन-सा/से सही सुमेलित है/हैं?
1. भद्राचलम
(a) 1 और 2
2. चंदेरी
(b) केवल 3
3. कांचीपुरम
(c) 2 और 3
4. करनाल
(d) 1 और 3
उपरोक्त में से कौन पारंपरिक साड़ियों/कपड़े के उत्पादन
के लिए प्रसिद्ध हैं?

18. कलमकारी चित्रकला को संदर्भि त करती है 2015 (a) केवल 1 और 2

(a) दक्षिण भारत में सूती वस्त्र पर हाथ से की गई (b) केवल 2 और 3


चित्रकारी
(c) 1, 2 और 3
(b) पूर्वोत्तर भारत में बांस के हस्तशिल्प पर हस्तनिर्मि त
(d) 1, 3 और 4
चित्र

(c) भारत के पश्चिमी हिमालयी क्षेत्र में ऊनी वस्त्र पर


ठप्पे (ब्लाक) से की गई चित्रकारी 23. निम्नलिखित भाषाओ ं पर विचार करें 2014

(d) उत्तर-पश्चिमी भारत में चित्रित सजावटी रेशमी वस्त्र 1. गुजराती


हाथ से की गई चित्रकारी 2. कन्नड़

3. तेलुगु
19. भारत के कला और पुरातात्विक इतिहास के संदर्भ में, उपरोक्त में से किसे सरकार द्वारा 'शास्त्रीय भाषा घोषित
निम्नलिखित में से किस एक का सबसे पहले निर्माण किया गया है?
किया गया? 2015
(a) केवल 1 और 2
(a) भुवनेश्वर में लिंग राजा मंदिर
(b) केवल 3
(b) धौली स्थित शैलकृत हाथी
(c) केवल 2 और 3
(c) महाबलीपुरम स्थित शैलकृत स्मारक
(d) 1, 2 और 3
(d) उदयगिरी स्थित मूर्ति

24. प्रसिद्ध सत्रीया नृत्य के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों

140
पर विचार कीजिएः 2014 कुछ हिस्सों में एक जीवंत परंपरा है।

1. सत्रीया संगीत, नृत्य तथा अभिनय का सम्मिश्रण है।

2. यह असम के वैष्णवों की शताब्दियों पुरानी जीवंत 27. निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजिए : 2014
परंपरा है।
1. गरबा: गुजरात
3. यह तुलसीदास, कबीर और मीराबाई द्वारा रचित भक्ति
2. मोहिनीअट्टम: उड़ीसा
गीतों के शास्त्रीय रागों और तालों पर आधारित है।
3. यक्षगान: कर्नाटक
उपरोक्त में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं?
उपर्युक्त युग्मों में से कौन-सा/से सही सुमेलित है/हैं?
(a) केवल 1
(a) केवल 1
(b) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
(d) 1, 2 और 3

25. कला और संस्कृति के भारतीय इतिहास के संदर्भ में,


निम्नलिखित युग्मों पर विचार करें: 2014 28. भारत में बौद्ध इतिहास, परंपरा और संस्कृति के संदर्भ में,
निम्नलिखित युग्मों पर विचार करें: 2014
विख्यात मूर्तिशिल्पकला स्थल
प्रसिद्ध तीर्थ स्थान
1. बुद्ध के महापरिनिर्वाण की एक भव्य अजंता
प्रतिमा जिसमे ऊपर की ओर अनेको 1. ताबो मठ और मंदिर परिसर स्पीति घाटी
देवी संगीतज्ञ नीचे की ओर उनके 2. लोत्सव लखंग मंदिर, नाकोस जांस्कर घाटी
अनुयायियों की दुखी आकृतियाँ 3. अलची मंदिर परिसर लद्दाख
2. प्रस्तर पर उत्कीर्ण विष्णु के वराह माउं ट आबू उपर्युक्त युग्मों में से कौन-सा/से सही सुमेलित है/हैं?
अवतार की विशाल प्रतिमा जिसमे
वह देवी पृथ्वी को गहरे विछुब्ध सागर (a) केवल 1

से उबारते हुए दर्शाए गए है (b) केवल 2 और 3


3. विशाल गोलाश्मों पर उत्कीर्ण "अर्जुन मामल्ला पुरम (c) केवल 1 और 3
की तपस्या" / "गंगा का अवतरण"
(d) 1, 2 और 3
उपर्युक्त युग्मों में से कौन-सा/से सही सुमेलित है/हैं?

(a) केवल 1 और 2
29. मंगनियार नामक लोगों का एक समुदाय प्रसिद्ध है: 2014
(b) केवल 3
(a) उत्तर-पूर्वी भारत में मार्शल आर्ट
(c) केवल 1 और 3
(b) उत्तर-पश्चिम भारत में संगीत परंपरा
(d) 1, 2 और 3
(c) दक्षिण भारत में शास्त्रीय गायन संगीत

(d) मध्य भारत में पिएत्रा ड्यूरा परंपरा


26. भारत की संस्कृति और परंपरा के संदर्भ में 'कलरिप्पयट्टू'
क्या है? 2014
30. भारत के सांस्कृतिक इतिहास के संदर्भ में, 'पंचायतन'
(a) यह शैव धर्म का एक प्राचीन भक्ति पंथ है जो अभी भी
शब्द को संदर्भि त करता है
दक्षिण भारत के कुछ हिस्सों में प्रचलित है।
(a) गांव के बुजुर्गों की एक सभा
(b) यह कांसे और पीतल के काम की एक प्राचीन शैली
है जो अभी भी कोरोमंडल क्षेत्र के दक्षिणी भाग में (b) एक धार्मि क संप्रदाय
पाया जाता है। (c) मंदिर निर्माण की एक शैली
(c) यह नृत्य-नाटिका का एक प्राचीन रूप है और (d) एक प्रशासनिक अधिकारी
मालाबार के उत्तरी भाग में एक जीवंत परंपरा है।

(d) यह एक प्राचीन मार्शल आर्ट है और दक्षिण भारत के


31. कुछ बौद्ध शैलकृत गुफाओ ं को चैत्य कहा जाता है, जबकि

141
अन्य को विहार कहा जाता है। दोनों के बीच क्या अंतर 1. अजंता की गुफाएं
है? 2013
2. ले पाक्षी मंदिर
(a) विहार पूजा का स्थान है, जबकि चैत्य भिक्षुओ ं का
3. सांची स्तूप
निवास स्थान है
उपरोक्त में से कौन-सा/से स्थान भित्ति चित्रों के लिए
(b) चैत्य पूजा का स्थान है, जबकि विहार भिक्षुओ ं का
जाना जाता है/हैं?
निवास स्थान है
(a) केवल 1
(c) चैत्य गुफा के सबसे दूर स्थित स्तूप है, जबकि विहार
अक्षीय हॉल है (b) केवल 1 और 2

(d) दोनों के बीच कोई भौतिक अंतर नहीं है (c) 1, 2 और 3

(d) कोई नहीं

32. भारतीय शैलकृत वास्तुकला इतिहास के संदर्भ में,


निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए: 2013 35. भारत में दार्शनिक विचार के इतिहास के संदर्भ में सांख्य
1. बादामी गुफाएं भारत की सबसे प्राचीन जीवंत शैलकृत संप्रदाय से सम्बंधित निम्नलिखित कथनों पर विचार
गुफाएं हैं कीजिएः

2. बराबर शैलकृत गुफाएं मूल रूप से सम्राट चंद्रगुप्त 1. सांख्य आत्मा के पुनर्जन्म या स्थानांतरगमन के
मौर्य द्वारा आजीविकों के लिए बनाई गई थीं सिद्धांत को स्वीकार नहीं करता है।

3. एलोरा में विभिन्न धर्मों के लिए गुफाएं बनाई गईं। 2. सांख्य का मानना है कि यह आत्म-ज्ञान है जो मुक्ति
की ओर ले जाता है न कि कोई बाहरी प्रभाव अथवा
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
कारक।
(a) केवल 1
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(b) केवल 2 और 3
(a) केवल 1
(c) केवल 3
(b) केवल 2
(d) 1, 2 और 3
(c) 1 और 2 दोनों

(d) न तो 1, न ही 2
33. भारत के सांस्कृतिक इतिहास के संदर्भ में, 'त्रिभंगा'
नामक नृत्य और नाट्य में एक मुद्रा प्राचीन काल से आज
तक भारतीय कलाकारों की अतिप्रिय रही है। 36. भगवान बुद्ध की प्रतिमा को कभी-कभी एक हस्त मुद्रा
युक्त दिखाई गई है जिसे भूमि स्पर्श मुद्रा कहा जाता है। यह
निम्नलिखित में से कौन-सा एक कथन इस मुद्रा को
प्रतीक है 2012
सर्वोत्तम रूप से वर्णि त करता है?2013
(a) मार पर दृष्टि रहने एवं अपने ध्यान में विन डालने से
(a) एक पाँव मोड़ा जाता है और देह थोड़ी किन्तु विपरीत
मान को रोकने के लिए बुद्ध का धरती का आह्नान
दिशा में कटि एवं ग्रीवा पर वक्र की जाती है।
(b) मार के प्रलोभनों के बावजूद अपनी शुचिता और
(b) मुख अभिव्यंजनाएँ , हस्तमुद्राएँ एवं आसज्जा कतिपय
शुद्धता और साक्षी होने के लिए बुद्ध का धरती का
महाकाव्य अथवा ऐतिहासिक पात्रें को प्रतीकात्मक
आह्नान
रूप में व्यक्त करने के लिए संयोजित की जाती है
(c) बुद्ध का अपने अनुयायियों को स्मरण कराना कि वे
(c) देह, मुख एवं हस्तों की गति का प्रयोग स्वयं को
सभी धरती से उत्पन्न होते है और अन्ततः धरती में
अभिव्यक्त करने अथवा एक कथा कहने के लिए
विलीन हो जाते है, अतः जीवन संक्रमणशील है
किया जाता है
(d) इस सन्दर्भ में दोनो ही कथन (a) एवं (b) सही
(d) मंद स्मिति, थोड़ी वक्र कटि एवं कतिपय हस्तमुद्राओ ं
हैं
पर बल दिया जाता है, प्रेम एवं श्रृंगार की अनुभूतियों
को अभिव्यक्त करने के लिए
37. नागर, द्रविड़ और वेसर हैं 2012

34. निम्नलिखित ऐतिहासिक स्थलों पर विचार कीजिए : (a) भारतीय उपमहाद्वीप के तीन मुख्य जातीय समूह।
2013 (b) तीन मुख्य भाषा वर्ग जिनमें भारत की भाषाओ ं को

142
विभक्त किया जा सकता है संरक्षण दिया

(c) भारतीय मंदिर वास्तुकला की तीन मुख्य शैलियाँ। (c) बंगाल की खाड़ी में मानसूनी हवाओ ं ने समुद्री
यात्राओ ं को सुगम बनाया
(d) भारत में प्रचलित तीन मुख्य संगीत घराने।
(d) इस संबंध में (a) तथा (b) दोनों विश्वसनीय
व्याख्याएं हैं
38. सदियों से भारत में में जीवित रही एक प्रमुख परंपरा
"ध्रुपद" के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन सा कथन
सही है? 2012 41. निम्नलिखित में से कौन भक्ति पंथ का समर्थक नहीं
था? 2010
1. ध्रुपद की उत्पत्ति और विकास मुगल काल के दौरान
राजपूत राज्यों में हुआ था। (a) नागार्जुन

2. ध्रुपद मुख्य रूप से भक्ति और आध्यात्मिक संगीत है। (b) तुकाराम

3. ध्रुपद आलाप मंत्रे से लिए गए संस्कृत अक्षरों पर (c) त्यागराज


आधारित है।
(d) वल्लभाचार्य
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:

(a) केवल 1 और 2
42. बौद्ध स्थल “ताबो मठ” किस राज्य में स्थित है? 2009
(b) केवल 2 और 3
(a) अरुणाचल प्रदेश
(c) 1, 2 और 3
(b) हिमाचल प्रदेश
(d) उपरोक्त में से कोई भी सही नहीं है
(c) सिक्किम

(d) उत्तराखंड
39. कुचिपुड़ी और भारतनाट्यम नृत्यों में क्या भेद हैं? 2012

1. कूचिपूडी नृत्य में नर्तक प्रासंगिक रूप से कथोपकथन


43. महामस्तकाभिषेक, एक महान धार्मि क आयोजन,
का प्रयोग करते हैं जबकि भारतनाट्यम में
निम्नलिखित में से किसके साथ जुड़ा हुआ है और किसके
कथोपकथन प्रयोग नहीं किया जाता है।
लिए किया जाता है? 2009
2. पीतल की तश्तरी की धार पर पाद रख नृत्य करने
(a) बाहुबली
की परम्परा भारतनाटयम की विशिष्टता है, जबकि
कूचिपूडि़ नृत्य में इस प्रकार की क्रियाओ ं का कोई (b) बुद्ध
स्थान नही है। (c) महावीर
उपरोक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (d) नटराज
(a) केवल 1

(b) केवल 2 44. निम्नलिखित युग्मों पर विचार करें: 2009


(c) 1 और 2 दोनों परंपराएं - राज्य
(d) न तो 1, न ही 2 1) गतका, एक पारंपरिक मार्शल आर्ट: -केरल

2) मधुबनी, एक पारंपरिक पेंटिंग: -बिहार


40. भारत ने दक्षिणपूर्वी एशिया के साथ अपने आरंभिक 3) सिं घे खबास सिं धु दर्शन उत्सव: -जम्मू और
सांस्कृतिक संपर्क तथा व्यापारिक संबंध बंगाल की खाड़ी कश्मीर
के पार बना रखे थे। निम्नलिखित में से कौन-सी बंगाल
उपर्युक्त युग्मों में से कौन-सा/से सही सुमेलित है/हैं?
की खाड़ी के इस उत्कृष्ट आरंभिक समुद्री इतिहास की
सबसे विश्वसनीय व्याख्या/व्याख्याएं हो सकती है/हैं? 2011 (a) केवल 1 और 2

(a) अन्य देशों की तुलना में, भारत में प्राचीन और (b) केवल 3
मध्ययुगीन काल में उत्तम पोत निर्माण तकनीक थी (c) केवल 2 और 3
(b) दक्षिणी भारत के शासकों ने हमेशा इस संदर्भ में (d) 1, 2 और 3
व्यापारियों, ब्राह्मण पुजारियों और बौद्ध भिक्षुओ ं को

143
45. प्रसिद्ध विरुपाक्ष मंदिर कहाँ स्थित है? 2009 सूची-I सूची-II

(a) भद्राचलम (प्रसिद्ध मंदिर) (राज्य)

(b) चिदंबरम A विद्याशंकर मंदिर 1. आंध्र प्रदेश

(c) हम्पी B राजारानी मंदिर 2. कर्नाटक

(d) श्रीकालहस्ती C कंदरिया महादेव मंदिर 3. मध्य प्रदेश

D भीमसेवर मंदिर 4. उड़ीसा

46. सूची-I को सूची-II के साथ सुमेलित करें और सूचियों के नीचे A B C D


दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर का चयन करें: 2009
(a) 2 4 3 1

(b) 2 3 4 1

(c) 1 4 3 2

(d) 1 3 4 2

उत्तर कुंजी:

1. (c) 13. (b) 25. (c) 37. (c)


2. (b) 14. (d) 26. (c) 38. (b)
3. (a) 15. (c) 27. (c) 39. (c)
4. (d) 16. (a) 28. (c) 40. (d)
5. (b) 17. (d) 29. (d) 41. (a)
6. (b) 18. (a) 30. (a) 42. (b)
7. (d) 19. (b) 31. (b) 43. (a)
8. (d) 20. (a) 32. (c) 44. (c)
9. (b) 21. (c) 33. (a) 45. (c)
10. (a) 22. (b) 34. (c) 46. (a)
11. (a) 23. (c) 35. (b)
12. (a) 24. (b) 36. (b)

144
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Ardhamandapa,_Mandapa,_Garbha_Griya,_
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Medallion_-_2nd_Century_BCE_-_Red_ Image 3.7:
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Kolkata_2012-11-16_1834.JPG

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Ganges_(Mahabalipuram)
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UPSC | कला और संस्कृति

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