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Unacademy Art and Culture
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विषय-सूची
04 12 27 39
अध्याय - 1 अध्याय - 2 अध्याय - 3 अध्याय - 4
प्रागैतिहासिक काल में बौद्ध धर्म और जैन धर्म से मंदिर वास्तुकला मध्यकालीन और आधुनिक
कला एवं वास्तुकला जुड़े वास्तुकला के तत्व भारतीय वास्तुकला
54 72 85 90
अध्याय - 5 अध्याय - 6 अध्याय - 7 अध्याय - 8
भारत में यूरोपियों का शास्त्रीय नृत्य भारत में नाट्यकला भारतीय कठपुतली
आगमन
1
94 102 106 116
अध्याय - 9 अध्याय - 10 अध्याय - 11 अध्याय - 12
भारतीय शास्त्रीय संगीत भारत में मार्शल आर्ट भारतीय साहित्य दर्शन के संप्रदाय
2
131 136
अध्याय - 17 विगत वर्षों मे पूछे गए
भारतीय त्यौहार प्रश्न
3
अध्याय - १
in India) अनाज के संग्रहण हेतु प्रयोग किया जाता था। इससे हमें
इस सभ्यता में संग्रहण एवं वितरण की संगठित प्रणाली
• भारत में वास्तुकला काष्ठ एवं साधारण पत्थर पर का पता चलता है।
राजगिरी से अधिक संहत एवं ढांचागत रूप से कठोर
4
पुरापाषाण काल: मध्यपाषाण काल: नवपाषाण काल: ताम्रपाषाण काल:
लोहंडा नाला बेलन घाटी (मिर्जापुर) में कैमूर पहाड़ियों हस्त निर्मि त और पहिया अहार संस्कृति: दक्षिण पूर्वी
देवी माँ में पहला चट्टान मृदभांड दोनों मिले हैं। राजस्थान
कुरनूल में जानवरों के दांत उकेरे गए चित्रकला-सुहागी घाट
मिट्टी के बर्तनों पर अहार मिट्टी के बर्तन पहिए
भीमबेटका (आज के मध्य प्रदेश में) में भीमबेटका चट्टान उत्कीर्णन है लाल और सफेद बर्तन पर
चैलेडोनी से बना एक गोलाकार डिस्क चित्रकला: सोलह बनाए .जाते हैं।
बुदिहाल (आज के
अलग-अलग रंगों की
पटना में क्रिस क्रॉस डिजाइन के दो कर्नाटक का गुलबर्गा टे राकोटा अहार संस्कृति की
पहचान की जा सकती
पैनलों के साथ उकेरा गया शुतुरमुर्ग अंडे जिला) में सामुदायिक अनूठी विशेषता में से एक है
है ले किन लाल और
का खोल भोज के प्रमाण मिलते
सफेद रंग का ज्यादातर दक्कन के ताम्रपाषाण
हैं।
बघोर (म.प्र.) : बलु आ पत्थर के मलबे से इस्तेमाल किया किसान
बना एक मोटा गोलाकार चबूतरा पाया जाता है।
दाइमाबाद संस्कृति
गया है बाघ तेंदआ
ु , हाथी, मृग (अहमदनगर, महाराष्ट्र-अष्ट)
ताल (सबसे अधिक
मुख्य रूप से कांस्य वस्तुएं।
बार) जैसे जानवरों की
29 विभिन्न प्रजातियां इनामगाँव, पुण:े यह बड़ी
हैं। संख्या में बैल की मूर्ति यों की
विशेषता है
समयरेखा
100,0
2.5mn 40,000 ई.पू. 10,000 ई.पू. 7000 ई.पू. 2000 ई.पू. 1500 ई.पू. 1000 ई.पू. 700 ई.पू. (वर्षों
00
पहले )
चित्र 1 .1 : पुरापाषाण काल, मध्यपाषाण काल, नवपाषाण काल एवं ताम्रपाषाण काल की विशेषताएं
महापाषाण
डोलमेन
शिस्ट
कैर्न गोला
5
भारतीय
वास्तुकला
दिल्ली इं डो
हड़प्पा
सल्तनत गोथिक
नियो
मौर्य मुग़ल
क्लासिक
मौर्योत्तर
गुप्त
दक्षिण
भारत
पूर्वी
भारत
7. छोटे एककक्षीय निर्माणों के प्रमाण मिले हैं जो श्रमिक व्यापार सामान्य था।
वर्ग के लोगों के रहने के घर मालू म पड़ते हैं।
12. शहर के आवासीय हिस्सों में एक सुनियोजित ड्रेनेज
8. विशाल स्नानागार: मोहनजोदड़ो में एक सार्वजनिक प्रणाली का पता चला है। घरों से निकलने वाली छोटी
स्नानागार का मिलना दर्शाता है कि हड़प्पा के लोग नालियाँ मुख्य सड़क से लगती एक बड़ी नाली से जुड़ी
महान अभियंता थे। यह अभी भी संचालनशील है और होती थी। नालियाँ अच्छी प्रकार से ढकी गई थी और
इसके ढांचे में कोई छिद्र अथवा दरार नहीं है। सार्वजनिक उनकी सफाई करने के उद्देश्य से नरमोखों (मैनहोल) का
स्नान क्षेत्र की उपस्थिति रीतिगत स्नान के सांस्कृतिक प्रयोग किया गया था।
महत्व एवं स्वच्छता को प्रदर्शि त करती है।
13. आवासीय मकानों को भी बड़ी कुशलता से नियोजित
9. अधिकांश स्थलों पर, मुख्य दुर्ग की खुदाई शहर के पश्चिमी किया गया था। सीढ़ियों के प्रमाण दर्शाते हैं कि मकान
भाग में हुई है जिसमें अनाज कोठार सहित सार्वजनिक प्राय: दो मंजिला थे। भवनों को धूल से दूर रखने के लिए
भवन मौजूद हैं। इसे एक प्रकार से शहरों पर शासन करने दरवाजों को बगल के गलियारों में लगाया गया था।
वाले किसी राजनीतिक प्राधिकार का प्रमाण माना जा
• चूँकि हड़प्पाई बस्तियां नदियों के किनारों पर बसी थी,
सकता है।
अत: ये प्राय: भारी बाढ़ के कारण नष्ट हो जाती थी। आपदा
10. शहर की चारदीवारी के साथ लगते दरवाजों वाली के बावजूद, सिं धु घाटी के लोगों ने उन्हीं स्थानों पर नई
किले बंदी के प्रमाण है जिससे हमला होने के भय का बस्तियां बसाई और यह उत्खनन के दौरान मिली परत
संकेत मिलता है। दर परत बस्तियों और भवनों में स्पष्ट दिखता है। दूसरी
सहस्त्राब्दी ईसा पूर्व में सिं धु घाटी सभ्यता का पतन एवं
11. गुजरात के लोथल में गोदी बाड़ा (डॉकयार्ड) के अवशेष
अंतिम विनाश आज तक एक अनसुलझी पहेली बना
पाए गए हैं जो बताते हैं कि उस समय सामुद्रिक मार्ग से
हुआ है।
6
मुहरें (Seals)
7
शाल ओढ़ रखी है। यह सुमेरिआई स्थलों उर तथा सूसा से
मिली मूर्ति के साथ बेहद मेल रखती है।
मूर्तिकला (Sculpture)
8
चित्र 1.12: मोहनजोदड़ो से बरामद अपने सिर को घुमाने वाला
टे राकोट्टा निर्मि त खिलौना
9
चित्र 1 .15 : कीमती रत्न एवं पत्थर
10
लौह युगीन मिट्टी के बर्तन (Iron Age Pottery) इं द्रप्रस्थ, वैशाली, राजगीर, पाटलिपुत्र, मथुरा, अहिच्छत्र,
अयोध्या, कौशांबी, श्रावस्ती, वाराणसी, उज्जैन, तथा
चित्रित धूसर मृदभांड (Painted Grey-ware Culture) विदिशा।
• मृण (मिट्टी) मूर्ति याँ मानव एवं पशु की हैं। स्त्री मूर्ति याँ
अधिक संख्या में प्राप्त होती है। इनमें नग्न मूर्ति याँ भी है
और मूर्ति याँ आभुषण एवं वस्त्रों से सुसाज्जित भी है। पशु
चित्र 1.17: चित्रित धूसर मृदभांड मूर्ति याँ बहुतायत में है। पक्षियों जल-जन्तुओ ं की मूर्ति याँ
भी हड़प्पा से प्राप्त हुई है।
11
अध्याय - 2
• बौद्ध वास्तुकला ने वह आधारशिला बनायीं जिस • बौद्ध स्तूपों की उपस्थिति के आरंभिक प्रमाण चौथी
पर भारतीय वास्तुकला की अधिकतर उपलब्धियों शताब्दी ई.पू. में देखने को मिलते हैं। भारत में, साँची,
का निर्माण हुआ। जैन धर्म एवं बौद्ध धर्म ने आरंभिक सारनाथ, अमरावती (आंध्रप्रदेश) तथा भरहुत सबसे
वास्तुकला शैली के विकास में मदद की। जहाँ यूनानी प्राचीन ज्ञात स्तूपों में से एक है।
लोग मानव की त्रुटिरहित मूर्ति याँ बनाने के लिए ख्यात • राधाकुमुन्द मुखर्जी के अनुसार, "स्तूप मौर्यकालीन
थे, चीन स्मारकीय ढांचे खड़े करने में व्यस्त था, वहीं भारत की वास्तुकला की एक बहुत महत्वपूर्ण देन हैं।"
भारतीय वास्तुकला सौंदर्यपरक रूप से सुख देने वाली
और आध्यात्मिक रूप से ह्रदय छूने वाले पहलु ओ ं का
मिश्रण बनी। स्तूपों की विशेषताएं (Characteristics of Stupas)
• भारतीय वास्तुकला का एक महत्वपूर्ण युग मौर्यकाल
• आरंभ में, स्तूप के केंद्र को बनाने के लिए मिट्टी के टीलों
के साथ आरंभ हुआ। मौर्यों की समृद्धि तथा नई धार्मि क
का प्रयोग किया जाता है। इस मिट्टी के टीले को तत्पश्चात
जागरूकता का नतीजा सभी क्षेत्रों में उपलब्धियों के रूप
ईंटों से ढक दिया जाता है। ईंटों के आवरण के ऊपर पत्थर
में सामने आया। सेल्युकस निकेटर द्वारा मौर्य दरबार में
का आवरण भी चढ़ाया जाता था।
भेजे गए यूनानी दूत मेगास्थनीज ने चन्द्रगुप्त मौर्य के
महल की प्रशंसा करते हुए इसे वास्तुकला की शानदार • स्तूपों को प्राय: पत्थर अथवा ईंटों की नींव पर निर्मि त
उपलब्धि बताया। यह लकड़ी से निर्मि त एक विशाल किया जाता है। इस आधार के ऊपर एक गोलार्द्धनुमा
महल था। गुंबद का निर्माण किया जाता था।
• स्तूप का अर्थ होता है: कोई ऐसी चीज़ जो उठी हुई हो। • इस ढांचे को बनाने में गारे और बड़ी संख्या में पकी ईंटों
का प्रयोग हुआ था।
• बौद्ध अनुश्रुतियों के अनुसार अशोक ने 84 हज़ार स्तूप
बनवाये थे। स्तूपों का आरंभिक बौद्ध वास्तुकला में सबसे • अशोक के समय में बनाया गया और मौर्य साम्राज्य के
महत्वपूर्ण स्थान हैं। ये बुद्ध के जीवन की महत्वपूर्ण विखंडन के दौरान नष्ट कर दिया गया। इसका दूसरी सदी
घटनाओ ं के साथ जातक कथाओ ं से संबंधित आरंभिक ई.पू. में शुंगों के शासनकाल के दौरान पुनरोद्धार किया
12
गया। भरहुत स्तूप (Bharhut Stupa)
• इस महान स्तूप की पीठिका के चारों ओर रेलिंग लगी है
• यह माना जाता है कि भरहुत स्तूप का निर्माण अशोक
और इसका गुंबद ऊपर से सपाट अर्द्धगोलाकार आकृति
द्वारा तीसरी शताब्दी ई.पूर्व. में करवाया गया किंतु इसके
का है तथा इसके ऊपरी भाग में एक तिहरा छत्र लगा है।
अनेक कलात्मक कार्य (विशेषकर प्रवेशद्वार एवं रेलिंग)
• इसका केंद्र ईंटों से निर्मि त एक अर्द्धगोलाकार ढांचा था दूसरी शताब्दी ई.पूर्व. में शुंग शासनकाल के दौरान जोड़े
जिसे बुद्ध के अवशेषों के ऊपर निर्मि त किया गया था। गए।
• साँची के स्तूप का ऊपरी के साथ-साथ निचला प्रदक्षिणा • इसे बड़े पैमाने पर ध्वस्त कर दिया गया था तथा
पथ भी था। इसमें अलं कृत चित्रण वाले चार तोरण लगे हैं कोलकाता के इं डियन म्यूजियम में वर्तमान में इसकी
जो बुद्ध के जीवन एवं जातक कथाओ ं वाले विभिन्न दृश्य अधिकांश रेलिंग्स और प्रवेश द्वारों को रखा गया है।
दर्शाते हैं।
• ठीक साँची की तरह, इसके केंद्रीय स्तूप के चारों ओर
छत्र (Chhatra)
पत्थर की एक रेलिंग और चार तोरण द्वार बने थे।
प्रदक्षिणा पथ
13
कुम्हरार में उनका एक अन्य महल था।
अबेकस
(abacus)
आधार (उल्टा
कमल ) (base
(inverted
lotus))
• राज्य के प्रतीक के रूप में अशोक के स्तंभों (सामान्यत: » राजाज्ञा स्तंभले ख I: अशोक का लोगों की रक्षा करने का
चुनार बालु का पत्थर से निर्मि त) को संपूर्ण मौर्य साम्राज्य सिद्धांत।
में अत्यंत महत्व प्राप्त हुआ। अशोक के स्तंभों का प्रमुख
» राजाज्ञा स्तंभले ख II: इसमें धम्म को परिभाषित करते हुए
उद्देश्य पूरे मौर्य साम्राज्य में बौद्ध विचारधारा एवं दरबारी
इसके अंतर्गत पापों का अभाव, अनेक सदाचारों, करुणा,
आदेशों का प्रसार करना था। यद्यपि अशोक के अधिकांश
स्वतंत्रता, सत्यता एवं शुद्धता को बताया गया है।
स्तंभों पर लिखी राजाज्ञाएं पालि एवं प्राकृत भाषा में थी,
किंतु कुछ यूनानी एवं अरमाइक भाषा में भी लिखी गई » राजाज्ञा स्तंभले ख III: प्रचंडता, क्रू रता, क्रोध एवं अभिमान
थी। बिना ले ख के भी स्तंभ मिले हैं। कुछ स्तंभों पर दान आदि दुर्गुणों को खारिज करता है।
ले ख उत्तीर्ण हैं।
» राजाज्ञा स्तंभले ख IV: राजुकों के कर्तव्यों को बताता है।
• मौर्य स्तंभों में मुख्यत: चार भाग थे:
» राजाज्ञा स्तंभले ख V: उन जानवरों और पक्षियों की सूची
देता है जिन्हें कुछ विशेष दिनों में नहीं मारना चाहिए तथा
» वेदी (शाफ़्ट): एक लम्बी वेदी जो कि स्तंभ का मुख्य भाग
अन्य सूची में उन जानवरों की बात करता है जिन्हें कभी
है, इसके आधार का निर्माण करती है तथा यह पत्थर के
भी नहीं मारना चाहिए।
एक टु कड़े (एकाश्म पत्थर) से बनी होती थी।
» राजाज्ञा स्तंभले ख VI: धम्म नीति
» शीर्ष: वेदी के सर्वोच्च भाग पर स्तंभ शीर्ष होता है जो कि
या तो कमल के आकार का अथवा घंटे के आकार का » राजाज्ञा स्तंभले ख VII: धम्म नीति के लिए अशोक द्वारा
होता है। किए गए कार्य।
» स्तंभ शीर्ष की मूर्ति याँ: स्तंभ शीर्ष की सभी मूर्ति यों » रुम्मिनदेई स्तंभ ले ख: अशोक की लु म्बिनी यात्रा एवं
(सामान्यत: सिं ह, बैल तथा हाथी जैसे जानवर) को खड़ी लु म्बिनी को कर मुक्त करना।
मुद्रा में एक वर्गाकार अथवा गोलाकार फलक शीर्ष पर » निगाली सागर स्तंभ ले ख, नेपाल: यह ले ख कहता है कि
काटा गया है और ये ओजपूर्ण हैं। अशोक ने कनकमुनि बुद्ध के स्तूप की उं चाई बढ़ाकर इसे
14
दोगुना कर दिया। वास्तुकला की दृष्टि से सबसे महत्वपूर्ण हैं। सुदामा एवं
लोमहर्ष ऋषि गुफा भारत में पत्थर काटकर निर्मि त किए
• प्रमुख स्तंभ अभिले ख गए वास्तुशिल्प का सबसे प्राचीन उदाहरण हैं।
» सारनाथ सिं ह शीर्ष: यह वारणसी के निकट अवस्थित • लोमहर्ष ऋषि गुफा और सुदामा गुफा दोनों में लकड़ी के
है। अशोक ने इसे धम्मचक्रप्रवर्तन अथवा बुद्ध के पहले एक जैसे प्रकोष्ठ बने हैं तथा इनकी दीवारों पर चमकदार
उपदेश की स्मृतिस्वरूप निर्मि त करवाया था। पॉलिश की गई है जिससे ये सीसे की तरह चमकती हैं।
लोमहर्ष ऋषि गुफा का झोपड़ी जैसा प्रवेश द्वार द्विज्या-
» बिहार के वैशाली स्तंभ में एक सिं ह बिना किसी अभिले ख
आकृति वाले “चैत्य मेहराब” के सबसे आरंभिक सुरक्षित
के बनाया गया है।
बचे उदाहरणों में से एक है जो आने वाली शताब्दियों
» उत्तर प्रदेश का संकिसा स्तंभ तक भारतीय शैलकृत वास्तुकला और मूर्ति कला की
» लौरिया नंदनगढ़, चंपारण, बिहार महत्वपूर्ण विशेषता बनी रही।
• बराबर की पहाड़ियों में चार गुफाएं हैं, जिन्हें मौर्यकाल मौर्योत्तर काल (Post Mauryan Period)
{विशेषकर अशोक (273-232 ई.पू.) तथा उसके पौत्र
भाजा गुफाएं (पुणे के लोहागढ़ के निकट) (Bhaja Caves)
दसरथ के शासनकाल के दौरान} के दौरान निर्मि त (Near Lohagad, Pune)
किया गया था।
• 22 शैलकृत गुफाओ ं का यह समूह बौद्ध वास्तुकला के
• इन गुफाओ ं चैत्यकक्षों को मूल रूप से आजीविक संप्रदाय
पारंपरिक आरंभिक चरण को दर्शाता है। इसमें हीनयान
के लिए बनाया गया था किंतु बाद की गुफाओ ं को बौद्धों,
बौद्ध संस्कृति, एक गहरा गजपृष्ठाकार हॉल (जिसे ठोस
जैनों तथा ब्राह्मणीय प्रयोगों हेतु बनाया गया। उदाहरण
चट्टान से काटकर बनाया गया है और दीवारों के निकट
के लिए, बौद्ध, आजीविक, जैन धर्म एवं हिं दू धर्म के लिए।
साधारण अष्टभुजाकर स्तंभों की एक श्रृंखला से अलग
यह दो सम्राटों (अशोक एवं दसरथ) की धार्मि क सहिष्णुता
किया गया है) प्रमुख हैं।
की नीति को दर्शाता है जो स्वयं बौद्ध थे।
• चैत्यगृह, जिसका प्रवेशद्वार एक खुली नालाकार चाप
की भांति है, भाजा गुफाओ ं का सबसे महत्वपूर्ण ढांचा है।
बराबर की पहाड़ियों की चार प्रमुख गुफाएं (Four Major 14 स्तूपों का एक समूह गुफा की एक अन्य महत्वपूर्ण
Caves at Barabar Hills) विशेषता है। स्तूपों में उन सन्यासियों के अस्थि-अवशेष
रखे गए हैं जो यहाँ रहे और अपने प्राण त्यागे।
• सुदामा गुफा (सुदामा की दरी)
• कर्ण चौपड़
• विश्व झोपड़ी
15
चित्र 2 . 6 : भाजा गुफा, पुणे चित्र 2.8: कन्हेरी स्थित चैत्य, ध्यान दें यह कार्ले चैत्य के जैसा
ही है
चित्र 2.7: कार्ले , पुणे स्थित महान चैत्य चित्र 2.9 : उदयगिरी गुफाएं
• कन्हेरी गुफाएं मुंबई के निकट हैं और कन्हेरी चैत्यों को • ये गुफाए ‘पांडवले नी गुफाओ ं' के नाम से भी जाना जाता
कार्ले चैत्यों की तर्ज पर बनाया गया है। है, 24 गुफाओ ं की श्रृंखला है जो पहली सदी के आसपास
बनाई गई थी।
• यहाँ कुल 109 गुफाएं हैं जिन्हें बेसाल्ट चट्टान से काटकर
बनाया गया है। चैत्य सबसे बड़ी गुफाएं थी। तथापि, • इन्हें सातवाहन नरेश कृष्ण के शासनकाल के दौरान
अधिकांश गुफाएं विहार हेतु प्रयोग होती थी। बनाया गया था। बुद्ध एवं बोद्धिसत्व के चित्र इन गुफाओ ं
में पाए जाते हैं। पांडवले नी गुफाएं हीनयान संप्रदाय के
• यहाँ महायान शाखा का प्रभाव भी दृश्यमान है तथा
प्रभाव को दर्शाती हैं क्योंकि यहाँ बुद्ध को केवल प्रतीकों
गुफाओ ं की बाहरी दीवारों पर बुद्ध की प्रतिमाएं बनी हैं।
के माध्यम से दर्शाया गया है।
16
अजंता गुफाएं (महाराष्ट्र के औरंगाबाद के निकट) (Ajanta
Caves) (Near Aurangabad, Maharashtra)
चित्र 2.12: बाघ गुफाओ ं में बने चित्र चित्र 2.13: अजंता में प्रदर्शि त बुद्ध का महापरिनिर्वाण
17
चित्र 2.15: कैलाशनाथ मंदिर, एलोरा
18
• एलिफेंटा में, गुफाओ ं के दो समूह हैं: प्रथम पांच हिं दू है देवी की टे राकोटा यक्षिणी के नाम से जाना जाता है।
गुफाओ ं का एक व्यापक समूह है जिसमें शिव को दर्शाती देवी का यह रूप सभी तीन धर्मों नामत: हिं दू धर्म, बौद्ध
शैलकृत मूर्ति याँ हैं और अन्य समूह दो बौद्ध गुफाओ ं धर्म तथा जैन धर्म में लोकप्रिय है। यक्षिणी की मूर्ति पटना
का एक छोटा समूह है। ये गुफाएं राष्ट्रकूट राजवंश द्वारा संग्रहालय में रखी है और इसका एक हाथ टू टा हुआ है।
निर्मि त कैलाश मंदिर से सादृश्यता रखती हैं जिसे आठवीं यह माना जाता है कि यह एक आदर्श महिला की छवि है,
सदी में बनाया गया था। जिसके एक हाथ में ‘चँवर’ है।
19
• इसके पूर्व गौतम बुद्ध के प्रतीकों की पूजा होती थी। पगड़ी सहित काफी अलं कृत होते हैं और पादुका पहनते
हैं। यहाँ आध्यात्मिक बुद्ध (उदास बुद्ध) के रूप में प्रदर्शि त
• महायान सम्प्रदाय के विकास के कारण गौतम बुद्ध
बुद्ध शांति का प्रतिनिधित्व करते हैं।
की मूर्ति यों का निर्माण आरम्भ हुआ। नई सहस्त्राब्दी के
आगमन एवं विश्व के अन्य हिस्सों से नए तत्वों के आने • मूर्ति याँ अधिकतर भूरे रंग के पत्थर की हैं। कुछ मूर्ति याँ
के साथ भारत में मूर्ति कला की तीन “शैलियाँ” उभरी, काले स्लेटी पत्थर द्वारा निर्मि त है।
जिनकी अपनी विशिष्ट शैली और अंतर था। कला की
• गंधार कला में आध्यात्मिकता और भावुकता का सर्वथा
गांधार, मथुरा एवं अमरावती शैली का नाम उन क्षेत्रों के
अभाव है। ऐसा मालू म पड़ता है की वे किसी सिद्धहस्त्र
नाम पर रखा गया जिन क्षेत्रों में वे फली-फूली।
कलाकार द्वारा निर्मि त न होकर मशीनों से तैयार की गई
हों।
20
प्रतीकों को मानव रूप में परिवर्ति त किया और तदनुसार • बुद्ध को बैठी और खड़ी दोनों मुद्राओ ं में दिखाया गया है।
बुद्ध की प्रथम मूर्ति कनिष्क के शासनकाल में देखी जा बुद्ध को घुंघराले बालों और उषनिशा तथा एक पारदर्शी
सकती है। धोती में देखा जा सकता है जिसके किनारे उनके वक्ष के
चारों ओर लिपटे हैं और उनके बायें कंधे के ऊपर से जा रहे
• यह शैली अपनी आत्मसात करने की भावना हेतु
हैं। दाहिना हाथ अभय मुद्रा में दिखाया गया है।
विख्यात है क्योंकि वैष्णव एवं शैव मत की मूर्ति यों को
बुद्ध मूर्ति यों के साथ देखा जा सकता है जो मथुरा कला • सामान्यत: उनके बगल में बोधिसत्व, वज्रपाणि तथा
शैली के दौरान काफी प्रचलित थी। जैन तीर्थंकरों का पद्मपाणि बने होते हैं।
ले खा-जोखा भी मथुरा कला शैली में स्थापित है। मथुरा
• बुद्ध और बोधिसत्व की मूर्ति याँ आरंभिक दौर में मांसल
कला शैली में निर्मि त बुद्ध मूर्ति यों में बुद्ध पर कई तहों
दिखती हैं जिनमें आध्यात्म कम और सुख (चेहरे
वाला वस्त्र दिखता है तथा उनके सिर के चारों ओर निर्मि त
गोलाकार और मुस्कुराहट भरे हैं) अधिक है, वस्त्र स्पष्ट
आभामंडल काफी अलं कृत है। इसमें अधिकांशतया
रूप से दृश्यमान हैं तथा क्लोज-फिटिंग पूर्णतया लगभग
बालु का पत्थर का प्रयोग हुआ है।
तहों के बिना है। बाद में दूसरी, तीसरी एवं चौथी सदी में
• गंधार कला से मथुरा कला अधिक श्रेष्ठ कही जा सकती गहन मांसलता समाप्त होनी शुरू हुई और मूर्ति याँ अधिक
है। गंधार शैली के विषय केवल बुद्ध तक सीमित है जबकि कामोत्तेजक हो गई। साथ ही, बुद्ध के सिर के चारों ओर
मथुरा कला के मुख्य विषय बौद्ध, हिं दु तथा जैन धर्म की का आभामंडल भी शानदार तरीके से अलं कृत किया
जातक कथाएँ हैं। जाने लगा।
मथुरा कला शैली की विशेषताएं (Characteristics of हिं दू मूर्ति याँ (Hindu Sculptures)
Mathura School of Art)
• शिव और विष्णु के साथ-साथ उनकी पत्नियों पार्वती एवं
• यह मूर्ति याँ लाल और बलु आ पत्थर की बनी हुई हैं। बड़ी
लक्ष्मी की मूर्ति याँ मथुरा कला शैली के अंतर्गत काट कर
मूर्ति यों में दृढ़ता एवं विशालता दिखती है क्योंकि मथुरा
बनाई गई थी। साथ ही यक्षिणी एवं अप्सराओ ं की मूर्ति याँ
कला शैली की पहली मूर्ति बनाने वाले ने स्वत: सटीक
भी सुंदर ढं ग से बनाई गई हैं। यह ध्यान देने योग्य है कि
मानव बुद्ध बनाने का लक्ष्य कभी नहीं रखा था। इस शैली
शिव और विष्णु की मूर्ति याँ उनके अस्त्र-शस्त्र के साथ
में, मुख्य ध्यान शारीरिक भंगिमाओ ं की अपेक्षा आंतरिक
बनाई गई हैं।
सौंदर्य और चेहरे के हाव-भावों पर दिया गया है।
• शिव को नंदी के साथ लिंग स्वरूप में दिखाया गया है।
उदाहरण- सर्वोत्रभद्रा लिंग।
21
अमरावती कला शैली की विशेषताएं (Characteristics
of Amravati School of Art)
22
मूर्ति कला की विशेषताएं • आध्यात्मिक बुद्ध (उदास • प्रसन्न बुद्ध • बुद्ध और जातक कथाओ ं
बुद्ध) में शांति, दाढ़ी एवं पर आधारित विषय को
• सिर मुंडा हुआ और बिना
मूंछें दर्शाई गई हैं। प्रदर्शि त करता है।
बालों का चेहरा
• कम अलं कार • बुद्ध को मानव एवं पशु
• परिधान चुस्त हैं
दोनों रूपों में दर्शाया गया
• घुंघराले बाल
• मुख विनीत भाव प्रदर्शि त है।
• बड़ा मस्तक करता है।
चित्र 2.23 : गांधार बुद्ध चित्र 2.24: मथुरा बुद्ध चित्र 2.25: अमरावती बुद्ध
23
जहाँ श्रद्धालु खड़े होकर मुख्य बिं दु की ओर देख सकते हैं
अथवा तीर्थस्थान की रीतियों में भाग ले सकते हैं।
• ओडिशा में भी शैलकृत वास्तुकला के चिह्न हैं। भुवनेश्वर • इन मंदिर परिसरों की गुंबदें नुकीली है तथा इनमें स्तंभ
के निकट उदयगिरी-खंडगिरी गुफाएं इसके आरंभिक नहीं हैं। भीतरी भाग में अष्टभुजाकर स्थान निर्मि त करने
उदाहरणों में से एक हैं। इन गुफाओ ं में खारवेल राजाओ ं के लिए गुंबद बनाई गई है।
के अभिले ख पाए जा सकते हैं। अभिले खों के अनुसार ये • जैन मंदिर काफी मात्रा में संगमरमर के प्रयोग एवं
गुफाएं जैन सन्यासियों के लिए बनी थी। अलं करण हेतु जाने जाते हैं।
• जैन वास्तुकला मुख्य रूप से हिं दू और बौद्ध शैलियों की • जैन मंदिरों में अनेक स्तंभ हैं जिनका ढांचा विशेष रूप
एक उपशाखा के रूप में विस्तारित हुई । इसे एक अलग से डिज़ाइन किया गया है और जो एक वर्ग का निर्माण
विषय नहीं माना जाना चाहिए करते हैं।
• हिं दू मंदिरों की संख्या के उलट विश्व भर में केवल कुछ ही • मंदिरों के स्तंभों एवं छतों की नक्काशी समृद्ध और अच्छी
जैन मंदिर बने हैं। प्रकार से अलं कृत है तथा इस प्रकार बने वर्ग उन परिसरों
का निर्माण करते हैं जहाँ देवता की मूर्ति रखी गई है।
• मंदिर वास्तुकला की क्षेत्रीय शैलियाँ का विश्व के विभिन्न
हिस्सों में आसानी से अंतर किया जा सकता हैं। • जैन विहार छोटे एवं साधारण हैं जिन्हें जैन सन्यासियों
के कठोर संयम पर नियंत्रण रखने हेतु बनाया गया है।
• आरंभिक जैन मंदिर वास्तुकला मुख्यत: शैलकृत थी
प्रवेश द्वार प्राय: संकरे हैं और किसी प्रकोष्ठ में प्रवेश करते
जिसमें ईंटों का कोई प्रयोग नहीं हुआ था। हालांकि , बाद
समय शरीर को झुकाने की आवश्यकता पड़ती है।
के वर्षों में बड़े स्तर पर ईंटों से मंदिर निर्माण किए गए थे।
ठीक उसी समय, स्वयं के ढांचे निर्मि त करने के लिए ये • जैन मंदिरों का निर्माण अधिकांशतया प्लेटफॉर्म्स अथवा
हिं दू और बौद्ध स्थलों से अलग हो गए। चबूतरों पर किया गया था जिन्हें आमतौर पर “जगती”
अथवा “वेदी” कहकर संदर्भि त किया जाता है। यहाँ तक
• भारत में अधिकांश जैन मंदिर तीन मुख्य अवयवों से बने
कि शैलकृत मंदिरों में भी प्लेटफॉर्म्स हैं। ऐसा मंदिर को
हैं:
आसपास की सतह से ऊँचा उठाने तथा एक भिन्न पवित्र
» मूर्ति परिसर– गर्भगृह क्षेत्र निर्मि त करने के लिए किया गया है।
» बड़ा कक्ष – मंडप • जैन मंदिर मुक्त रूप से खड़ी ऊँची संयोजित दीवारों से घिरे
हैं जिन्हें प्रकार कहा जाता है।
» द्वारमण्डप
• यदि ढांचे की बात की जाए तो एक जैन मंदिर एक
• मूर्ति परिसर और इसके बड़े कक्ष (हॉल) के बीच एक चौथा वर्गाकार योजना पर निर्मि त होता है जिसके द्वार चारों
भाग (जिसे अंतराल के नाम से जाना जाता है) भी देखा दिशाओ ं में खुलते हैं तथा यह प्रत्येक दरवाजा किसी
जा सकता है। जिसे अंतराल एक छोटा गलियारा कहते है तीर्थंकर की मूर्ति तक जाता है। भगवान आदिनाथ का
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चौमुख मंदिर चार-द्वार मंदिर का एक उदाहरण है। रनकपुर मंदिर
दिलवाड़ा मंदिर
• जैन तीर्थंकरों को समर्पि त दिलवाड़ा मंदिर राजस्थान के जैन प्रतिमाएं (Jain Idols)
माउं ट आबू में हैं। इन्हें सोलं की शासकों की सहायता से
श्रवणबेलगोला (Shravanabelagola)
निर्मि त करवाया गया था।
• इन्हें पूरी तरह सफेद संगमरमर से निर्मि त करवाया • कर्नाटक का श्रवणबेलगोला भारत में सर्वाधिक
गया था और उत्कृष्ट मूर्ति कला से सजाया गया था। महत्वपूर्ण जैन तीर्थस्थलों में से एक है, जिसकी यात्रा
इनकी गोटे दार मुखाकृति गहरी गत छपाई सहित समृद्ध पर प्रतिवर्ष लाखों अनुयायियों आते है। क्षेत्र के दोनों ओर
मूर्तिशिल्प सजावट से निर्मि त है। चंद्रगिरी एवं विन्ध्यगिरी नामक दो पथरीले पर्वत एक
दूसरे के सामने खड़े हैं और स्वप्निल दृश्य उत्पन्न करते
• दिलवाड़ा मंदिर प्रत्येक सीलिंग पर अपने विशिष्ट एवं
हैं। विन्ध्यगिरी की चोटी पर भगवान गोमतेश्वर (जिन्हें
अलग प्रारूप तथा गुंबदीय छतों के साथ-साथ बनी
बाहुबली के नाम से भी जाना जाता है और जो पहले
आकर्षक कोष्ठ आकृतियों के लिए भी जाने जाते हैं।
तीर्थंकर आदिनाथ के पुत्र हैं) की 57-फीट ऊँची एकाश्म
प्रतिमा है।
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बावनगजा (Bawangaja)
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अध्याय - 3
मंदिर वास्तुकला
(TEMPLE ARCHITECTURE)
मंदिर वास्तुकला (Temple जैसी विशेषताएं थी) चौथी से पांचवी शताब्दी तक निर्मि त
की गयी।
Architecture) • भारत में हिं दू मंदिरों के वास्तुकला सिद्धांतों का उल्ले ख
शिल्प शास्त्र में किया गया है। शिल्प शास्त्र में तीन मुख्य
• हिं दू मंदिर वास्तुकला में शैलियों की किस्मों की बहुलता प्रकार की मंदिर वास्तुकला का वर्णन है– नागर अथवा
है हालांकि उनकी आधारभूत प्रकृति एक जैसी ही बनी उत्तरी शैली, द्रविड़ अथवा दक्षिणी शैली तथा वेसर अथवा
रहती है। हिं दू मंदिर वास्तुकला कला, धम्म के आदर्शों, मिश्रित शैली।
मान्यताओ ं, मूल्यों एवं हिं दू धर्म में आत्मसात की गई
• एक गर्भगृह, मंडप, शिखर और एक वाहन का होना किसी
जीवन की पद्धति का अनुकरण करती है। स्तूप जैसी
हिं दू मंदिर की आधारभूत विशेषताओ ं में शामिल है। गर्भगृह
आरंभिक बौद्ध संरचनाओ ं से प्रभावित सबसे पहले बने
में देवता का निवास स्थान होता है। मंडप मंदिर तक जाने
हिं दू मंदिर शैलकृत गुफाओ ं से बनाए गए थे।
का प्रवेश मार्ग होता है। शिखर पिरामिडीय वक्ररेखीय
• तत्पश्चात, गुप्त वास्तुकला (जिनमें बुर्ज और उभरे आलों आवृत (चोटी) होता है जो गर्भगृह के ऊपर होता है तथा
देवता का वाहन ही वाहन कहलाता हैं।
गर्भगृह
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• नागर शैली के तीन विशिष्ट गुण हैं- गर्भगृह, शिखर • मुख्य तीर्थस्थान से पहले सभा कक्ष मौजूद होता है।
(वक्ररेखीय बुर्ज) तथा मंडप (प्रवेश हॉल) का होना।
• उदाहरण– विश्वनाथ मंदिर (खजुराहो), दशावतार
• यद्यपि आरंभिक मंदिरों में केवल एक शिखर होता था मंदिर (देवगढ), जगन्नाथ मंदिर (पुरी), लक्ष्मण मंदिर
किंतु पश्चातवर्ती मंदिरों में कई शिखर बनाए जाने लगे। (खजुराहो)।
• गर्भगृह सदैव सबसे ऊँचे बुर्ज के बिल्कु ल नीचे स्थित • इन मंदिरों में आमतौर पर मंदिर निर्माण की पंचायतन
होता है। शैली का अनुकरण किया गया है।
आमलक कलश
खजुराहो मंदिर की वास्तुकला
शिखर उरुश्रीन्गा
अंतराल
गर्भगृह
महा मंडप
मंडप
प्रदक्षिणा
अर्द्धमंडप
जगती पूर्व
अधिस्थान
अनुप्रस्थ भाग
• पंचायतन शब्द पंच (पाँच) और आयतन (मुक्त) से हुआ • इस शैली में बने मंदिरों को उडि़सा में ‘कलिंग’, गुजरात में
है। इसमें मुख्य देवता शिव या अन्य को मुख्य मंदिर में ‘लाट’ और हिमालय क्षेत्र में ‘पर्वतीय’ कहा गया।
स्थापित किया जाता है और उसके चारों ओर निर्मि त गौण
• नागर शैली में शिखर सामान्यतः तीन प्रकार के होते हैं-
मंदिरों में चार अन्य अनुचर देवता रखे जाते थे। उदाहरण –
(1) रेखा प्रसाद (2) फमसाना (3) वल्लभी।
खजुराहो में कंदरिया महादेव मंदिर, भुवनेश्वर में लिंगराज
मंदिर तथा उत्तर प्रदेश के देवगढ़ में दशावतार मंदिर। • रेखा प्रसाद प्रकार अथवा लै टिना प्रकार: इस प्रकार के
मंदिरों के आधार पर बना शिखर वर्गाकार होता है तथा
• नागर शैली के मंदिरों को ऊँचाई में आठ भागों में बाँटा जा
दीवारें भीतर की ओर मुड़कर चोटी पर एक बिं दु पर
सकता है। (1) मूल (आधार) (2) गर्भगृह मसरक (नीव और
मिलती हैं। इन्हें सामान्यत: मुख्य गर्भगृह को सुरक्षित
दीवारों के बीच का भाग) (3) जंघा (दीवार), (4) कपोत
रखने के लिए प्रयोग किया जाता है।
(कार्नि स), (5) शिखर, (6) गल (गर्दन), (7) वर्तुलाकार
आमलक और (8) कुंभ (शूल सहित कलश)।
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• वल्लभी प्रकार: ये आयताकार ढांचे होते हैं जिनकी छत
के सर्वोच्च बिं दु पर गुंबदनुमा चैम्बर होता है। गुंबदनुमा
चैम्बर का किनारा गोल होता है जो प्राचीन समय में बैलों
से खींचे जाने वाले बांस अथवा लकड़ी के कोष की भांति
दिखाई देता है। इन्हें प्राय: शकटाकार भवन (Wagon
Vaulted Building) कहा जाता है।
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• द्रविड शैली के अंतर्गत ही बाद में नायक शैली का विकास अनुसरण करते हैं जो नागर और द्रविड़ दोनों शैलियों को
हुआ। मीनाक्षी मंदिर, रंगनाथ मंदिर और रामेश्वरम मंदिर आपस में जोड़ती हैं।
इसके उदाहरण हैं
• क्षेत्र: बेसर भारतीय हिं दू मंदिर वास्तुकला की एक अलग
Shikhara शैली है जो मुख्यत: दक्कन मध्य भारत (विं ध्य तथा
कृष्णा नदी के बीच) में प्रयोग की जाती है।
नागर द्रविड़
वक्ररेखीय बुर्ज (गर्भगृह के ऊपर निर्मि त शिखर) जो उत्तरोत्तर पीछे हटते अनेक आयामों वाली मंजिलों सहित विमान
भीतर की ओर वक्रता प्राप्त करते हैं। (पिरामिडीय बुर्ज)
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सहायक तीर्थस्थान या तो मुख्य मंदिर बुर्ज में एकीकृत होते
एक से अधिक शिखर हैं या मुख्य मंदिर के साथ-साथ एक अलग, छोटे तीर्थस्थान
के रूप में बने होते हैं।
गोपुरम नहीं मिलते गोपुरम मिलते हैं गोपुरम मिलते और नहीं भी मिलते हैं
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महत्वपूर्ण शब्दावली (Important कलश (Kalasha)
Terminologies)
• बड़े मुख वाला अथवा सजावटी बर्तन जिसे उत्तर भारतीय
गर्भगृह (पवित्र स्थान) (Garbhagriha) (Sanctum मंदिरों में शिखर को सुंदरता प्रदान करने के लिए लगाया
Sanctorum) जाता है।
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• ओडिशा के मंदिरों में युवा एवं आकर्षक महिलाओ ं की की अपेक्षा मूर्ति कला के उत्कृष्ट नमूने कहे जा सकते हैं।
मूर्ति यों (जिनके चेहरे पर एक कामुक मुस्कान है और दिलवाड़ा मंदिर की छत जटिल मूर्ति कला नक्काशी के
उनके सुंदर केशों में आभूषण जड़े हैं) के ऐसे अनेक मामले में एक कलात्मक कार्य है।
उदाहरण पाए जा सकते हैं और इन्हें नायिकाओ ं के नाम
• पश्चिम भारत के गुजरात की संगमरमर मूर्ति कला पद्धति
से जाना जाता है।
की नक्काशीदार मूर्ति या माउं ट आबू, पालीताना तथा
• निचले सीधे भाग को “बाड़ा” (“Bada”) कहा जाता है। गिरनार के जैन मंदिरों में बड़ी संख्या में देखी जा सकती
बीच में बना लं बा भाग “छपरा” (“Chapra”) कहलाता है हैं चतुर्भुज विष्णु (हिं दू धर्म में पालन करने वाले भगवान)
जिसके ऊपर एक सपाट धारीदार चक्रिका होती है जिसे की सुन्दर सुन्दर मूर्ति याँ 13वीं शताब्दी में बनाई गई थी।
“अमला” (“Amla”) कहा जाता है। शिखर को “देउल” कहा
• उदाहरण- मोढे रा का सूर्य मंदिर, माउं ट आबू का दिलवाड़ा
जाता है।
मंदिर, माउं ट आबू का बेमाला मंदिर
• मंडप को “जगमोहन” कहा जाता है।
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वास्तुकला की पाल शैली (Pala school of
Architecture)
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मुखों वाला शिव) शामिल है, भी एक अन्य महान राष्ट्रकूट ओर होने वाले संक्रमण को दर्शाती है।
स्मारक का उदाहरण है।
• कुछ बेहतरीन मूर्ति याँ जिन्हें उनका संरक्षण प्राप्त हुआ,
वे हैं- महिषासुरमर्दि नी, गिरी गोवर्धन पैनल, त्रिविक्रम
विष्णु, अर्जुन की तपस्या अथवा गंगा का अवतरण,
गजलक्ष्मी एवं अनंतसयनम।
• अपराजित शैली।
चित्र 3.12 : रावण कैलाश पर्वत को हिलाते हुए
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3. ढांचागत मंदिर (Structural Temples): इन्हें राजसिं ह प्राप्त की है जो उनकी मूर्ति यों की मनोहरी रेखाओ ं, उनकी
शैली एवं नंदीवर्मन शैली में वर्गीकृत किया जा सकता नियत मुद्राओ ं, प्रसन्नचित चेहरों, मृदु अलं करण तथा
है। आरंभिक पल्लव ढांचागत मंदिरों में कांचीपुरम स्थित ताजगी से समझ में आती है। ये सब चीजें इनके आकर्षक
कैलाशनाथ मंदिर तथा माम्मलपुरम स्थित शोरे मंदिर होने में योगदान देती हैं।
को रखा जा सकता है। इन मंदिरों को बालु का पत्थरों
• गजसूरसंहारमूर्ति ग्यारवीं सदी की चोल शिल्पकारिता
का प्रयोग कर बनाया गया था। इस मंदिर को पल्लव
का एक अनुपम उदाहरण है। यह हाथी रुपी राक्षस को
वास्तुकला का मुकुट भी कहा जाता है। इस मंदिर को
मारने के पश्चात क्रु द्ध हुए भगवान के ओजपूर्ण नृत्य को
राजसिं हवर्मन भी कहा जाता है। माम्मलपुरम स्थित शोरे
दर्शाती है। चोल मंदिरों में पत्थर और धातु की मूर्ति याँ बड़ी
मंदिर भी अनेकों मूर्ति यों से भरा पड़ा है। बाद में नंदीवर्मन
मात्रा में पाई जाती हैं। ये चोल शासनकाल के सामाजिक-
ने कांचीपुरम में वायकुंड पेरूमल मंदिर का निर्माण
धार्मि क विचारों को प्रकट करती हैं। नटराज की मूर्ति न
करवाया था।
केवल अपने सौंदर्य के लिए अपितु अपने आध्यात्मिक
अर्थ के लिए भी विश्व प्रसिद्ध है।
चोल (Cholas)
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होयसल (Hoysalas)
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इस्लामिक शैलियों को मिश्रित करता है। आवश्यक रूप
से चोल आदर्शों से प्रेरित होने तथा उन्हें पुनर्जीवित करने
के सजग प्रयास के बावजूद ये मूर्ति याँ कुछ मौकों पर
विदेशियों की उपस्थिति को भी प्रकट करती हैं।
चित्र 3.21: हम्पी स्थित विरूपाक्ष मंदिर चित्र 3.23: ले पाक्षी मंदिर स्थित एकाश्म नंदी प्रतिमा
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अध्याय - 4
मध्यकालीन भारत में वास्तुकला (Architecture » भवन परिसर में पानी के पूल का उपयोग सजावटी,
in Medieval India) शीतलन और धार्मि क उद्देश्यों के लिए किया गया था।
इं डो-इस्लामिक शैली (Indo-Islamic Style) » चौकोर (मोज़ेक डिज़ाइन) और कठोर चट्टान (पत्थर)
तकनीक का उपयोग सतह की सजावट के लिए किया
• इं डो-इस्लामिक वास्तुकला में विभिन्न पृष्ठभूमि की
गया था, विशेषकर दीवार के उभरे हुए फलको में।
शैलियों की एक विस्तृत श्रृंखला शामिल है, जिसने 7 वीं
शताब्दी के आसपास भारतीय उपमहाद्वीप में इस्लाम • गुलाम वंश की प्रारंभिक इमारतों में वास्तविक इस्लामी
के आगमन से भारतीय उपमहाद्वीप की वास्तुकला भवन शैलियों को नियोजित नहीं किया था और इसमें
को आकार देने में मदद की। इसने आधुनिक भारतीय, कृत्रिम तरीके से गुंबद और मेहराब बनाये गये थे।
पाकिस्तानी और बांग्लादेशी वास्तुकला पर प्रभाव छोड़ा
• बाद में, वास्तविक तरीके से मेहराब और गुंबदों की
है। दोनों धर्मनिरपेक्ष और धार्मि क भवन इं डो-इस्लामिक
शुरूआत दिखाई देने लगती है, जिसका सबसे पहला
वास्तुकला से प्रभावित हैं जो भारतीय, फारसी, अरब और
उदाहरण कुतुब मीनार के किनारे अलाई दरवाजा है।
तुर्की को प्रदर्शि त करते हैं।
• कब्र वास्तुकला भी इस्लामी वास्तुकला की एक और
• हिं दु-मुस्लिम (इं डो-इस्लामिक) वास्तुकला की
विशेषता है इसमें मृतकों को दफनाने की प्रथा को
महत्वपूर्ण विशेषताएं (Important Features of
अपनाया जाता है।
Indo-Islamic Architecture)
• उदाहरण: कुतुबमीनार, अलाई दरवाजा
» इस्लामी वास्तुकला में मुख्य तत्व थे- गुम्बद, ऊँची-ऊँची भारतीय वास्तुकला (ट्रै बीट शैली) इस्लामिक आर्किटे क्चर (आर्कटिक शैली)
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सकता है। धर्मनिरपेक्ष इमारतों में किलों, महलों, स्तंभों,
सरायो और हौज़ (कृत्रिम झील) शामिल हैं जबकि
धार्मि क संरचनाओ ं में मस्जिद, मकबरे, दरगाह और
मदरसे शामिल हैं
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चित्र 4.3: कुव्वत उल इस्लाम मस्जिद
बने हैं। मीनार की पूरी योजना, उसकी रचना और सजावट थी और उसकी आर्थि क स्थिति बहुत अच्छी थी। उनकी
अर्थात् लगभग हर बात पर इस्लामिक प्रभाव है। इमारतों का निर्माण एक आदर्श इस्लामी दृष्टिकोण के
साथ किया गया था।
• बलबन का मकबरा (Balban’s Tomb): बलबन ने
अपना मकबरा बनाया जिसे पहला वास्तविक मेहराब • अलाउददीन खिलजी (Alauddin Khilji): उसने सिरी
माना जाता है। गुलाम वंश के समय की अन्य प्रमुख (दिल्ली में) नामक नया शहर बनाया और जमात खाना
इमारते है- नासिरूद्दीन की स्मृति में सुल्तानगढी का मस्जिद का निर्माण करवाया। उन्होंने अलाई दरवाजा भी
मकबरा, इल्तुतमिश का मकबरा, बदायूं की जामा बनवाया। अलाई दरवाजा, जमात खाना मस्जिद का प्रवेश
मस्जिद, नागौर का आतरकान का दरवाजा, हौज-ए- द्वार है। यह पहला वैज्ञानिक गुंबद है। इमारत में घोड़े की
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और लाल बलु आ पत्थर, एक आश्चर्यजनक विचित्र
प्रभाव बनाते हैं। प्रवेश द्वारों के दोनों किनारों पर लगी
हुई खिड़कियों में जालीदार खिड़की के परदे (जाली) हैं। ये
संगमरमर सतह सुलेख अलं करण की ऊर्ध्वाधर रेखाओ ं
की एकरसता को समाप्त करती हैं।
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1. जौनपुर और मालवा की प्रान्तीय शैली, संरचनाएं आमतौर पर बड़ी और बुलंद निर्मि त हुई हैं।
2. भारत की परम्परगा शैली से प्रभावित कश्मीर, » मुग़ल सम्राट योजना, डिजाइन और निर्माण में व्यक्तिगत
गुजरात और बंगाल की शैलियाँ, तथा रुचि रखते थे। इस प्रकार, आमतौर पर एक केंद्रीकृत
योजना बनाई गई थी जिसमें कलाकारों को बीच में
3. दक्षिण भारत की विशिष्ट शैली।
बदलने की अनुमति नहीं थी।
होशंग शाह का मकबरा, मांडू (मध्य प्रदेश) » खंभे, गुंबद, मेहराब, भित्ति मेहराब और पादांग (स्तम्भ के
नीचे की चौकी) मुख्य विशेषताएं थीं।
• यह 15 वीं शताब्दी में निर्मि त अफगान वास्तुकला का
» सभी इमारतें थीम आधारित थीं। उद्यान में, ज्यामिति और
सबसे अच्छा उदाहरण है और इसे भारत की पहली
डिजाइन के समरूपता पर विशेष जोर दिया गया था। इस
संगमरमर संरचना कहा जाता है।
काल में भवन निर्माण प्रौद्योगिकी का विकास हुआ।
• यह एक शानदार गुंबद, संगमरमर जेल का कार्य,
» भवन निर्माण लौकिक और धार्मि क दोनों प्रकार के
अदालत, पोर्टि कोस (द्वार मंडप/बरामदा) और मीनार
प्रयोजनों के लिए बनाये गए। पहले लाल बलु आ पत्थर
के साथ एक शानदार वास्तुकला है।
का उपयोग इसकी आसान उपलब्धता के कारण किया
• इसे अफगान संरचना का एक उदाहरण माना जाता है, गया था। बाद में संगमरमर का बड़े पैमाने पर उपयोग
ले किन इसके जालीदार काम, तोरण और नक्काशीदार किया गया।
कोष्ठक इसे मृदु गुणवत्ता प्रदान करते हैं।
» चूने का उपयोग महत्वपूर्ण सामग्री के रूप में किया जाता
था।
मुगल वास्तुकला (Mughal Architecture) » कीमती और अर्ध-कीमती पत्थरों का उपयोग सजावट के
लिए किया गया था। उन्हें ईरान और मध्य एशिया से लाया
• मुगल कला और संस्कृति के संरक्षक थे उन्होंने शानदार गया था।
संरचनाओ ं का निर्माण बड़े पैमाने पर किया।
» दीवारों पर, सुलेख (कलात्मक लिपि) और अरबी का
• मुगल वास्तुकला की प्रमुख विशेषताएं (Salient आमतौर पर उपयोग किया जाता था। प्रसिद्ध ताजमहल
features of Mughal Architecture): इसका एक उदाहरण है।
» मिश्रण (Concoction): मुगलो की इमारतें इं डो - » फारसी शैली के दोहरे गुंबद (प्याज के आकार के) बनाए
इस्लामिक शैली का मिश्रण थीं। भारतीय शैलियों में, गए थे।
राजपूत और बौद्ध प्रभाव अधिक प्रभावी हैं। इस्लामी शैली » भवनों को अलं कृत करने के लिए नक्काशी, पच्चीकारी
में, ईरानी और मध्य एशियाई शैली प्रमुख है। और बेलबूटों के काम करवाये।
» साम्राज्य की संपत्ति और ताकत को प्रदर्शि त करते हुए, » भवनों के साथ बगीचे, फव्वारों की कला का विकास हुआ।
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दोहरे गुम्बद (Double Dome)
• एक दोहरा गुंबद दो परतों से बना है। अंदर एक परत है जो इमारत के आंतरिक भाग को छत प्रदान करती है। एक और
परत है जो बाहरी है जो इमारतों का ताज बनाती है। दोहरे गुंबद का आकर अंदर की छत को नीचा दर्शाते हैं और आंतरिक
संरचना की मजबूती प्रदान करते हैं।
• यह बाहरी भाग के खड़े नक्शा के प्रभाव और अनुपात को बिना छे ड़छाड़ के किया जाता है। भारत में आने से पहले कुछ
समय के लिए पूर्वी एशिया में दोहरा गुंबद बनाने की प्रक्रिया का प्रचलन था। प्रारंभिक मुस्लिम वास्तु निर्माताओ ं के लिए
यह मुश्किल था कि वे एक भवन पर प्रभावी ढं ग से गुंबद बनाये। यदि वे उसे ऊँचा उठाते, तो वह उस भवन की छत में अँधेरा
हो सकता था। यदि इसे कमरे के आयामों की तुलना में छोटा रखा, तो यह संरचना के स्मारक को प्रभावित कम कर देगा।
• समाधान एक दोहरे गुंबद के रूप में तैयार किया गया था। चिनाई की एक ही परत से बने होने के बजाय, गुंबद दो अलग-
अलग परतों, एक बाहरी और दूसरे आंतरिक से बना था, जिनके बीच काफी जगह थी।
• ताज खान का मकबरा (1501) और सिकंदर लोदी का मकबरा (1518), दोनों में द्वि गुंबद का प्रयोग दिल्ली में पहला प्रयास
था। दूसरी ओर, डबल गुंबद की पूरी तरह से परिपक्व आकृति, हुमायूँ के मकबरे में भारत में पहली बार देखी गयी थी।
महत्वपूर्ण संरचनाएं (Important Structures): सूरी ने गद्दी से हटा दिया जिसे पुनः हुमायूँ ने हासिल कर
लिया |
बाबर (Babur)
• हुमायूं ने 'दीन पनाह' नामक एक नए महल का निर्माण
• उसे कुछ भी बनाने के लिए ज्यादा समय नहीं मिला। शुरू किया, जिसे बाद में शेरशाह ने पूरा किया। इसे अब
उसके शासनकाल के दौरान 3 मस्जिदों का निर्माण पुराना किला कहा जाता है।
किया गया था। यह निर्माण पानीपत, संभल और अयोध्या
में स्थित हैं। अयोध्या में मस्जिद को ध्वस्त कर दिया गया शेर शाह सूरी (Sher Shah Suri)
है।
• उसने कई स्मारकों का निर्माण किया, जिनमें रोहतास
• उसने आगरा में एक बाग बनाया - अराम बाग़ (जिसे अब का किला (अब पाकिस्तान में स्थित एक यूनस्
े को विश्व
राम बाग़ के नाम से जाना जाता है)। उसे मूल रूप से यहां धरोहर स्थल), पटना में शेरशाह सूरी मस्जिद, बिहार के
दफनाया गया था ले किन अब उसकी कब्र काबुल में है। रोहतासगढ़ किले में कई संरचनाएँ , दिल्ली में पुराण
• स्थापत्य की दृष्टी से बाबर के समय निर्मि त भवनों का किला परिसर और किला-ए-कुहना मस्जिद शामिल हैं।
कोई महत्त्व नहीं है।
• स्थापत्य कला की दृष्टि से उसकी दो इमारतों का उल्ले ख
किया जा सकता है- सासाराम का मकबरा और दिल्ली
के पुराने किले में स्थित किला मस्जिद।
हुमायूं (Humayun)
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अकबर (Akbar) आगरा का लाल किला (Red Fort of Agra):
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• जोधा बाई का महल (Jodha Bai’s Palace): राजपूत
शैली- कृष्ण का एक बड़ा भित्ति चित्र है। छत चौकोर खंभों
के साथ समतल है। छत में छाया प्रदान करने के लिए
एक 'छत्रीरुपी' संरचना है।
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• इसमें सुलेख कार्य, ईरानी गुंबद (प्याज के आकार का)
और संगमरमर की सतह का काम शामिल था।
चित्र 4.16: पित्रा ड्यूरा की कला • दिल्ली के लाल किले में दीवान-ए-आम, दीवान-ए-
खास, रंगमहल और जामा मस्जिद उल्ले खनीय हैं।
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चित्र 4.20: बीबी का मकबरा
• ताज मुगल वास्तुकला के विकास में अंतिम क्षण को • नाव की कील का उपयोग गुंबद में किया गया हैं ।
चिह्नित करता है। ताज सुंदरता की आदर्श अभिव्यक्ति
• मेहराब और स्तंभों का संयोजन।
है और स्मारक का आकर्षक प्रभाव इसके सौंदर्य शास्त्र
में जोड़ता है। • उदाहरण- जहाज़ महल, रानी रूपमती मंडप, हिं डोला
महल।
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बंगाल शैली (Bengal Style) • बल्बनुमा (उभरा हुआ) प्रवेश द्वार ।
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कश्मीर शैली (Kashmir Style) बेहतर दृश्य और सीमा दी।
• लं बी दीवारें मजबूत ग्रेनाइट से बनी थीं और वे आक्रमण • स्मारक में चारों तरफ प्रवेश द्वार हैं और बड़ी खाली जगह
से बचने के लिए बहुत मोटे थे। है। उनके पास एक आम रसोईघर, एक भोजन कक्ष और
एक तालाब है।
• कुम्भलगढ़ किला अपनी दीवार के लिए प्रसिद्ध है। यह
चीन की महान दीवार के बाद दूसरी सबसे लं बी दीवार है। • एक केंद्रीय गुंबद है जिसे चिकने गोल आकार के बजाय
पंखुड़ी के आकार से बंद कर दिया गया है। यह एक पुष्प
• किले और महलों को आमतौर पर सुरक्षा उद्देश्यों के लिए
आधार से बाहर निकलता है। इस पर आमतौर पर सफेद,
हिल टॉप अर्थात पहाड़ की चोटियों पर बनाया गया था।
या सुनहरी परत चढ़ायी जाती है।
एक उच्च सुविधाजनक बिं दु ने हमला करने के लिए
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• केंद्रीय गुंबद के अलावा, कोने में चार कपोल हैं। विभिन्न औपनिवेशिक वास्तुकला शैलियाँ (Different
Colonial Architectural Styles)
• प्रमुख उदाहरण हरमिं दर साहिब या स्वर्ण मंदिर, ननकाना
साहिब आदि हैं। नव-शास्त्रीय शैली (Neo-classical Style)
• अंग्रेजों ने खुद को मुगलों के उत्तराधिकारी के रूप में देखा • इसमें प्राचीन ग्रीस और रोम से भवन निर्माण वास्तुकला
और शक्ति के प्रतीक के रूप में स्थापत्य शैली का उपयोग का, पुनरुद्धार और पुन: संयोजन शामिल था।
किया। • इनमे सामने लम्बे खंभों के साथ ज्यामितीय संरचनाओ ं
• भारत में उनके द्वारा बनाई गयी इमारतें,वास्तुकला के निर्माण की विशेषता थी।
उनकी उपलब्धियों का प्रत्यक्ष प्रतिबिं ब थीं। • बॉम्बे में टाउन हॉल इस शैली का एक प्रारंभिक उदाहरण
• ब्रिटिश शासन के तहत औपनिवेशिक वास्तुकला की है।
आकांक्षा भारतीय साम्राज्य को नियंत्रित करने के लिए
नव-गोथिक शैली (Neo-Gothic Style)
अपने लोगों और उनके संगठनों के घर बनाने के लिए
संरचनाओ ं का निर्माण करना था।
• यह प्रारंभिक गोथिक स्थापत्य शैली का पुनरुद्धार
• औपनिवेशिक वास्तुकला में, शहरों में सिविल लाइं स और था, जिसकी उत्पत्ति मध्यकालीन युग के दौरान उत्तरी
छावनी जैसे नए आवासीय क्षेत्र सामने आए। यूरोपीय इमारतों, विशेष रूप से चर्चों में हुई थी।
• ब्रिटिश भारत में औपनिवेशिक स्थापत्य शैली की एक • इसका निर्माण ऊँची-ऊँची छतों, नुकीले मेहराबों और
और विशेषता पत्थर, विशेष रूप से संगमरमर का विरल विस्तृत सजावट द्वारा किया गया था।
उपयोग था।
• इस शैली को बॉम्बे में बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए
• बाद में, भारत में ब्रिटिश निर्मि त संरचनाओ ं में प्राथमिक संशोधित किया गया था।
निर्माण सामग्री के रूप में ईंट की जगह पत्थर ने ले ली,
• सचिवालय, बॉम्बे विश्वविद्यालय और उच्च न्यायालय
स्लेट, मशीन से बनी टाइलें , और स्टील गर्डर्स प्रचलन में
सहित तटीय नगरभाग की इमारतों का एक प्रेरक समूह
आए, जस्ता लोहे ने एं ग्लो-इं डियन छत निर्माण में क्रांति
सभी इस शैली में बनाया गया था।
ला दी।
• कई भारतीयों व्यापारियों ने इनमें से कुछ इमारतों के
लिए पैसे दिए। वे नव-गॉथिक थीम का उपयोग करने के
लिए उत्साहित थे क्योंकि उन्हें लगा कि यह प्रगतिशील है
51
और बॉम्बे को एक आधुनिक शहर बनाने में मदद करेगा। कला-डेको स्टाइल (Art-Deco Style)
• "इं डो" हिं दू के लिए संक्षिप्त लिपि था और "सारसेन" एक • 2018 में, यूनेस्को की विश्व धरोहर समिति द्वारा ऐसी
शब्द था जिसे यूरोपीय लोग ने मुस्लिमों को प्रदान किया इमारतों की एक टु कड़ी को आधिकारिक तौर पर विश्व
था। विरासत स्थल के रूप में मान्यता दी गई थी।
• देशी इं डो-इस्लामिक वास्तुकला को इं डो-सारसेनिक • रीगल सिनेमा, महालक्ष्मी मंदिर, मुंबई में उच्च न्यायालय
पुनः प्रवर्तन वास्तुकला में शामिल किया गया था और की इमारत प्रमुख उदाहरण हैं।
इसे नव-शास्त्रीय शैलियों के साथ एकजुट किया गया था
जो विक्टोरियन ब्रिटे न में पसंदीदा थे।
52
था। हवादार और गर्मी से राहत की सुविधा अत्यधिक सर एडविन लुटियन (Sir Edwin Lutyens)
आवश्यक थी।
• ब्रिटिश सरकार ने भारत में बढ़ती साम्राज्यवाद विरोधी
लहरों के कारण भविष्यवाणी की भावना का अनुभव
करते हुए, 1911 में दिल्ली को अपनी नई राजधानी घोषित
किया।
53
अध्याय - 5
चित्रकला
(PAINTINGS)
• चित्रकला कला के सबसे नाजुक रूपों में से एक है, जो प्रमुख विशेषताऐ ं (Key Features)
मानव विचारों और भावनाओ ं को रेखा और रंग के माध्यम
• रंजक, जैसे गेरू के लिए खनिजों का उपयोग।
से अभिव्यक्ति देता है। हजारों साल पहले , जब आदमी
केवल एक गुफा में रहने वाला प्राणी था, उसने अपनी • उन्होंने विभिन्न रंगों में खनिजों का उपयोग भी किया।
सौंदर्य संवेदनशीलता और रचनात्मक बदलाव को पूरा • मुख्य विषय-वस्तु: चराई, समूह शिकार, घुड़सवारी के
करने के लिए अपने चट्टानों के आश्रयों को चित्रित किया। दृश्य।
चित्रकला और डिजाइन के प्रति प्रेम हममें इतना गहरा
• चित्रों का रंग और आकार युगों से विकसित हुआ है।
है कि सबसे पुराने समय से, मनुष्य ने चित्रों का निर्माण
किया, यहां तक कि इतिहास की अवधि के दौरान जिसके • उदाहरण: भीमबेटका गुफाएँ (मध्य प्रदेश); जोगीमारा
हमारे पास कोई प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं है। गुफाएं (छत्तीसगढ़); नरसिं हगढ़ (मध्य प्रदेश)।
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• प्रारंभिक चित्रकला कार्य के विषय सरल ज्यामितीय समुदायों के साथ इस क्षेत्र की गुफाओ ं के निवासियों
डिजाइन, मानव गतिविधियों, मानव आंकड़े और प्रतीकों की आवश्यकताओ ं का जुड़ाव, संपर्क और पारस्परिक
तक सीमित हैं। आदान-प्रदान दिखाई देता है।
• भीमबेटका गुफाओ ं की खोज 1957-58 में प्रसिद्ध • भारत में भित्ति चित्रकला लगभग 2 शताब्दी ईसा पूर्व
पुरातत्ववेत्ता वीएस वाकणकर ने की थी। से 10 वीं शताब्दी ईस्वी के बीच शुरू हुई थी, वे मूल रूप
से कटे चट्टानों के कक्ष थे। इनकी उत्पत्ति भी प्राकृतिक
गुफाओ ं में हुई थी। भित्ति चित्रों के उदाहरणों में अजंता की
गुफाएँ , जोगीमारा गुफाएँ आदि शामिल हैं। भारत में वे
मध्य पाषाण काल (Mesolithic Age)
खड़ी आकार की हैं, जो अजंता, एलोरा, गुफाओ ं और मंदिर
• प्रागैतिहासिक चित्रों की सबसे बड़ी संख्या मध्य पाषाण की दीवारों आदि में पाई जाती हैं।
युग से संबंधित है।
• कुछ चित्रों में, विभिन्न जानवर पुरुषों का पीछा कर रहे • विषय: वे मूल रूप से विषय में बौद्ध हैं और एक लं बवत
हैं और दूसरों में, जानवरों को शिकारी पुरुषों द्वारा पीछा चट्टान में खुदी हुई हैं। गुफा संख्या 2 में दीवारों, छतों और
किया जा रहा है। स्तंभ पर चित्रकारी की गई है।
• भले ही जानवरों को एक प्राकृतिक शैली में चित्रित किया • रचना: 4 चैत्य और 25 विहार हैं। इसलिए अजंता में कुल
गया था, मानवों को केवल शैलीगत तरीके से चित्रित 29 गुफाएँ हैं।
किया गया था। • यह वेशभूषा और आभूषणों के साथ सामाजिक ताने-बाने
• सामुदायिक नृत्य एक सामान्य विषय देते हैं। को दर्शाता है।
• कुछ चित्रों (महिला, पुरुष और बच्चे) में पारिवारिक • इन चित्रों में पक्षियों और जानवरों की आकृतियाँ यहाँ पाई
जीवन देखा जा सकता है। जा सकती हैं।
• ताम्र पाषाण युग के चित्रों में मालवा मैदानों में बसे, कृषि • बोधिसत्वों को अजंता की दीवारों पर चित्रित किया गया
है।
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• चित्रकला की एक प्राचीन परंपरा को विष्णुधर्मोत्तर पुराण • इसमें बौद्ध, हिं दू और जैन धर्म का समावेश है।
के चित्रसूत्र के रूप में मान्यता प्राप्त है।
• यह कुल 5 गुफाएँ हैं।
चित्र 5.4: राजा जनक और उनकी पत्नी • चूने का उपयोग भी पाया जाता है।
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चित्र 5.8: सीतनवासन के गुफा चित्र, तमिलनाडु
चित्र 5.6: बोधिसत्व, बाघ गुफा • इन गुफा-मंदिरों में चित्रकारी के रंग अब धुमिल हो गये
हैं।
• सब्जियों और खनिज रंगों का इस्तेमाल किया गया हैं । चित्र 5.9: ले पाक्षी पेंटिंग
• पल्लव काल के दौरान मिली गुफाएँ ।
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सातवीं शताब्दी ईस्वी में बने चित्र मिले हैं। के दौरान, (1451-1526 ई) पांडुलिपि का एक सल्तनत
बुर्जुआ शैली उभरा। सल्तनत, सचित्र पांडुलिपि दरबारी
• रावण की छाया यहाँ बनायी गयी है ।
शैली का प्रतिनिधित्व करती थी। मुगल काल, (1526-
• आधी खुली छतरी की आकृति मिल सकती है। 1757 ई.) में जब शाही दरबार में स्टूडियो स्थापित किए
• रॉयल हंटिंग लॉज देखा जा सकता है। गए तब लघु चित्रों के विकास को देखा था।
बादामी भित्ति चित्र (Badami Mural Paintings) • बंगाल के पाल भारत में लघु चित्रों के संस्थापक थे।
• कर्नाटक में एक गुफा स्थल। • यह पूर्वी भारत के पालों के शासन के तहत निष्पादित बौद्ध
धर्म के धार्मि क ग्रंथों पर और पश्चिमी भारत में निष्पादित
• चालु क्य राजा मंगले श द्वारा संरक्षण।
जैन ग्रंथों के धार्मि क ग्रंथों पर डिजाइन के रूप में मौजूद है।
• गुफा को विष्णु गुफा के रूप में जाना जाता है क्योंकि
• ओदंतपुरी, विक्रमशिला, नालं दा और सोमारूपा के बौद्ध
गुफाओ ं में चित्रण वैष्णव संबद्धता को दर्शाता है।
मठ बौद्ध शिक्षा और कला के विशाल केंद्र थे।
• भारतीय लघु चित्रकला की परंपरा 9 वीं - 10 वीं शताब्दी • इन्हे जैन पेंटिंग के रूप में भी जाना जाता है, वे काफी हद
से पूर्वी भारत के बौद्ध काल में ताड़ के पत्ते की पांडुलिपि तक 12 वीं -16 वीं शताब्दी के जैन धार्मि क ग्रंथों के चित्रण
और पश्चिमी भारत में जैन ताड़ के पत्ते की पांडुलिपि में पता के लिए समर्पि त हैं।
लगाया जा सकता है। मुसलमानों के प्रवेश ने लघु चित्रों
• गुजरात, राजस्थान और मालवा में उल्ले खनीय स्थल
की विशेषताओ ं को काफी हद तक बदल दिया। मुख्य
मौजूद हैं।
परिवर्तन मिट्टी का रंग, प्राथमिक रंगों की अनुपस्थिति,
अलग-अलग बनावट आदि हैं। लघु चित्रकला की • सरल, चमकीले रंग, अत्यधिक परम्परागत चित्रों, और
विशेषताएं देश के विभिन्न क्षेत्रों में भिन्न थीं। लोदी काल लहरदार, कोणीय रेखांकन द्वारा चित्रित।
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चित्र 5.12: निमत्नामा- व्यंजनों का खजाना
चित्र 5.11: पश्चिम भारत की जैन चित्रकला
• मानवाकार चित्रों के खिलाफ इस्लामिक निषेधाज्ञा • दक्कनी चित्रकला अहमदनगर, गोलकुंडा, बीजापुर और
के बावजूद दिल्ली सल्तनत ने कलात्मक काम और बाद में हैदराबाद में मुख्य केंद्रों के साथ उभरी। यह 16 वीं
चित्रकला के एक विशाल वर्ग का संरक्षण किया। वहाँ शताब्दी के उत्तरार्ध के दौरान विकसित हुआ, जो मुगल
स्वदेशी और फारसी तत्वों का एक मुख्य संलयन मनाया कला के लगभग समकालीन था। इन दरबारों में काम
जाता है। दिल्ली सल्तनत चित्रों की मुख्य विशेषताएं करने वाले अधिकांश चित्रकार अनातोलिया (तुर्की),
भारतीय परंपराओ ं पर आधारित हैं जिनमें पंक्तियों और फारस और यूरोप से आए थे। ये कलाकार अपने साथ
समान स्थिति में खड़े लोगों के समूह शामिल हैं, चित्र की अपनी कला के मुहावरे और कौशल ले कर आए थे, ये
चौड़ाई में संकीर्ण सजावट, और उज्ज्वल और असामान्य कलाकार अपने साथ अपनी कला का अलग ढं ग और
रंग। कौशल लाए थे जो उन्होंने तब तक हासिल कर लिए थे।
इसलिए, दक्कनी कला ने मुगल चित्रकला के समान
काफी परिपक्वता, सूक्ष्म परिशोधन और उच्च योग्यता
प्राप्त की।
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अहमदनगर बीजापुर
अहमदनगर के हुसैन निजाम शाह प्रथम मुख्य अली आदिल शाह प्रथम और उनके उत्तराधिकारी
संरक्षक थे। इब्राहिम द्वितीय मुख्य संरक्षक थे
गोलकुंडा हैदराबाद
कुतुब शाही शासक मुख्य संरक्षक थे 18 वीं शताब्दी के अंत में आसफ जाह राजवंश के
तहत उभरा
'मैना पक्षी वाली महिला' और ' हुक्का' का धूम्रपान
करने वाली महिला इसकी उल्ले खनीय कृतियां हैं "नौकरानियों की कंपनी में राजकुमारी" एक प्रसिद्ध
पेंटिंग है
• बीजापुर, इस शैली का प्रमुख केंद्र था, जो इब्राहिम आदिल शानदार ढं ग से बनता था। बिहज़ाद, जिसे बाबर उत्कृष्ट
शाह और इस चित्रकला शैली के तहत प्रमुखता से उभरा, मानता था के साथ, शाह मुजफ्फर का नाम एक महान
हालांकि मुगल शैली के समकालीन, शुरुआत में यह चित्रकार के रूप में जोड़ा जाता है, और इसने केशचित्रण में
स्वतंत्र रूप से विकसित होते रहे। बहुत अच्छा कार्य किया।
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अकबर (Akbar)
• अकबर के काल में फारसी कहानियों को चित्रित करने • जहाँगीर ने एक प्रसिद्ध ईरानी चित्रकार और उनके बेटे
के साथ ही महाभारत तथा अन्य महत्वपूर्ण ग्रंथों से अबुल हसन को चित्रकला में बेमिसाल लालित्य प्राप्त
सम्बन्धित विषयों पर चित्र बनाये गये। करने के लिए अका रिज़ा नियुक्त किया।
• भारतीय रंगों (फिरोजी) तथा लाल रंग का प्रयोग बढ़ा। • एल्बमों में प्रदर्शि त की जाने वाली मुराक़्स व्यक्तिगत
चित्र जहाँगीर के संरक्षण में लोकप्रिय हो गई।
• ईरानी शैली के स्थान पर भारतीय चित्रकला शैली का
प्रभाव बढ़ा। • जहाँगीर स्वयं चित्रों का बड़ा पारखी था। उसके समय को
चित्रकला का स्वर्णयुग कहा जाता है।
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शाहजहाँ (1627-1658) (Shah Jahan)
राजस्थानी चित्रकला
राजपूत चित्रकला (16 वीं - 19 वीं शताब्दी) (Rajput • राजस्थानी चित्रकला की जन्म भूमि मेवाड़ को माना
Painting) जाता है। इसने अजंता चित्रण परम्परा को आगे बढ़ाया।
• भारत में संप्रभु हिं दू सामंती राज्यों की कला। • राजस्थानी चित्रकला को चार शौलियों में विभाजित
किया जा सकता है। प्रत्येक की उपशौलियाँ भी हैं (1)
• राजपूत चित्र मुगल चित्रों के विपरीत शैली में आधुनिक
मेवाड़ शैली (चावंड/उदयपुर/नाथद्वारा, देवगढ़) आदि (2)
थे, राजपूत चित्रकला पारंपरिक और प्रेम प्रसंग युक्त थीं।
मारवाड शैली (जोधपुर, बीकानेर, किशनगढ़, अजमेर,
• राजपूत चित्रकला को राजस्थानी चित्रकला और पहाड़ी नागौर, जैसलमेर) (3) हाडौती शैली- (कोटा, बूंदी), (4)
चित्रकला (हिमालयी राज्यों की कला) से अलग किया ढूंढाड़ शैली (आमेर, जयपुर, अलवर, उनियारा, शेखाबटी)
गया है। कई लोग राजपूत चित्रकला को ही राजस्थानी आदि।
चित्रकला मानते हैं।
• निम्न योग्यता के मुगल कलाकार जिन्हें अब मुगल • इसके व्यक्तिवादी चेहरे के प्रकार और धार्मि क भाव में
सम्राटों की आवश्यकता नहीं थी, वे राजस्थान चले गए। भिन्न हैं।
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• इस शैली पर कांगडा शैली और बल्लभ सम्प्रदाय का मेवाड़ (उदयपुर) चित्रकला (17 वीं -18 वीं शताब्दी) (Mewar
प्रभाव अधिक है। (Udaipur) Paintings)
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बूंदी चित्रकला (17 वीं शताब्दी के उत्तरार्ध) (Bundi
Paintings)
• चित्र में अधिकांश स्थान पहाड़ी जंगल द्वारा लिया गया है।
चित्र 5.17: मारवाड़ (जोधपुर) चित्रकला
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बसोहली (जम्मु -कश्मीर के कठुआ जिले में) चित्रकला (17
वीं - 18 वीं शताब्दी) (Basohli Paintings)
चित्र 5.19: महाराणा राम सिं ह द्वितीय होली खेलते हुए, राजपूत
मिनिएचर, कोटा।
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गुलेर चित्रकला (जम्मू) (Guler Painting) (Jammu) कांगड़ा (हिमाचल क्षेत्र) चित्रकला (18 वीं शताब्दी के
उत्तरार्ध) (Kangra Painting)
• नैनसुख द्वारा डिजाइन किए गए मुख्य रूप से जसरोटा
• कांगड़ा शैली का विस्तार गुलेर शैली से हुआ है और
(जम्मू) के राजा बलवंत सिं ह के चित्रों से युक्त।
इसका मुख्य भाग है। कला और प्रकृतिवाद की नाजुकता
• उपयोग किए गए रंग बसोहली स्कूल के विपरीत नरम जैसी मुख्य विशेषताएं हैं।
और शांत हैं।
• कांगड़ा शैली अलग-अलग स्थानों पर जारी रही, जैसे
• प्रतीत होता है कि यह शैली मुगल चित्रकला की प्राकृतिक कांगड़ा, गुइर, बसोहली, चंबा, जम्मू, नूरपुर और गढ़वाल
शैली से प्रेरित थी और हिं दु धर्म एवं परंपरा से प्रभावित रही आदि।
है।
• फिर भी, कांगड़ा शैली के रूप में नामित, वे कांगड़ा के
राजा संसार चंद के चित्रों के समान हैं।
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विशेषताओ ं के साथ पेंटिंग की एक शैली हैं। इस चित्रकला
शैली का एक विशिष्ट उदाहरण राष्ट्रीय संग्रहालय के
संग्रह में निहित है जिसमें राम का राज्याभिषेक दिखाया
गया है। राम और सीता को सिं हासन पर बैठाया जाता है,
हनुमान, सुग्रीव के साथ उनके भाइयों, ऋषियों, दरबारियों,
राजकुमारों द्वारा उनको सुना जाता हैं, जिन्हें सम्मानित
किया जा रहा है।
दक्षिण भारत में लघु चित्र (Miniature Paintings in • यह मैसूर के शासकों द्वारा समर्थि त था और ब्रिटिश भारत
South India) में भी जारी रहा और मुख्य विषयों में हिं दू भगवान और
देवी देवताओ ं का चित्रण शामिल है।
तंजौर (तमिलनाडू स्थित) चित्रकला (Tanjore Painting)
• नाजुक रेखाएं , वनस्पति रंगों का विवेकपूर्ण उपयोग,
• 18 वीं और 19 वीं शताब्दी के दौरान, तंजौर में संपन्न सुशोभित प्रलाप, चमकदार सोने की पत्ती का उपयोग,
बोल्ड कला, छायांकन और उज्ज्वल रंगों के उपयोग जैसी जटिल ब्रश स्ट्रोक इस शैली की विशेषताएं हैं।
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• कई साहित्यिक कृतियों का आयोजन किया गया था, और मधुबनी चित्रकला (मिथला - बिहार) (Madhubani
सबसे प्रसिद्ध श्रीतत्त्वनिधि, जो कि 1500 पृष्ठों का एक Paintings)
स्वैच्छिक कार्य था।
• महिलाओ ं द्वारा चित्रित अनुष्ठान और उत्सव पर घरों की
• इन चित्रों को गेसो पेस्ट के उपयोग के साथ एक विविध आंतरिक दीवारों पर रंगीन आकर्षक चित्र।
शैली में बनाया गया था1 जो अरबी गोंद के साथ जिं क
• यह प्राचीन परंपरा, विशेष रूप से विवाह के लिए प्रचलित
ऑक्साइड को मिलाकर तैयार किया जाता था।
है, जो अब तक जारी है।
(Kalighat Paintings)
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• सबसे अधिक मान्यता प्राप्त और सबसे बड़ा फड़ -
स्थानीय देवता देवनारायणजी और पाबूजी हैं।
कलमकारी चित्रकला (आंध्र प्रदेश) (Kalamkari भारत में कलामकारी डिजाइन की 2 विशिष्ट शैलियाँ (2
Paintings)
Distinct Styles of Kalamkari Design in India)
• शाब्दिक अर्थ है कलाम (कलम), ज्यादातर आंध्र प्रदेश में
(विजयनगर शासकों के तहत विकसित)। • कलामकारी चित्रकला की मूसलीपट्टनम शैली
फारसी कला से प्रभावित और प्रेरित है। उपयोग किए
• महाकाव्यों रामायण, महाभारत और पुराणों की कहानियों
गए विभिन्न रूपांकनों फूल, पेड़ और पत्ती के पैटर्न
को निरंतर कथाओ ं के रूप में चित्रित किया जाता है।
ब्लॉक का उपयोग करके मुद्रित किए जाते हैं।
• ज्यादातर मंदिर के अंदरूनी हिस्सों को चित्रित कपड़े के
• श्रीकालहस्ती शैली कलामकारी चित्र हिं दू मंदिरों के
पैनल के दृश्य के बाद दृश्य के साथ सजाते है; हर दृश्य
साथ मंदिरों के आसपास फली-फूली और विकसित
पुष्प सजावटी पैटर्न से घिरा हुआ होता है।
हुई, इसलिए इसकी लगभग धार्मि क पहचान है, जिसमें
पेन (कलाम) का उपयोग फ्रीहैंड ड्राइं ग के लिए किया
जाता है और रंगों को भरने के लिए पूरी तरह से हाथ का
उपयोग किया जाता है।
चित्र 5.27: कलमकारी चित्रकला • अन्य जनजातीय कला रूपों के विपरीत, वार्ली चित्रकला
धार्मि क शास्त्र पर कब्जा नहीं करती हैं और एक अधिक
धर्मनिरपेक्ष कला रूप हैं।
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पट्टचित्र (Pattachitra) थंगका (Thangka)
• गहरे रंगीन रूपांकनों और डिजाइनों पर ध्यान देने योग्य। • बौद्ध धर्म का प्रभाव।
कालमेजुथु (Kalamezhuthu)
आधुनिक चित्रकला (Modern Painting)
• केरल में प्रचलित है ।
बंगाल चित्रकला की शैली (Bengal School of
• केरल के मंदिरों और पवित्र घाटों में अनुष्ठानिक कला Painting)
का प्रयोग किया जाता है।
• अबनिं द्रनाथ टै गोर और हैवेल बंगाल स्कूल ऑफ
• माँ काली और भगवान अयप्पा जैसे देवताओ ं का प्रदर्शन
चित्रकला के संस्थापक थे।
सतह पर बने होते हैं।
• खोए हुए मूल्यों को पुनर्जीवित करना इस चित्रकला का
मुख्य उद्देश्य था।
चित्र 5.28: मंजुषा चित्रकला • गुलाम मुहम्मद शेख, सतीश गुजराल, एस.एच रज़ा,
अकबर पदमसी (महिला), तैयब मेहता (बर्ड विद बर्ड),
कृष्णा खन्ना (सेंट फ्रांसिस और वुल्फ) भारत के
समकालीन कला परिदृश्य के कुछ अन्य प्रसिद्ध नाम हैं।
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चित्र 5.29: बंगाल स्कूल ऑफ़ पेंटिंग
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अध्याय - 6
शास्त्रीय नृत्य
(CLASSICAL DANCE)
शांत शांति
शास्त्रीय नृत्य के घटक वर्तमान में, भारत में आठ शास्त्रीय नृत्य शैलियाँ हैं।
(Components of
Classical Dance) भारत के शास्त्रीय नृत्य
तीन प्रमुख घटक इन नृत्यों का आधार निर्मि त करते हैं। (Classical Dances of
• नाट्य, नृत्य का नाटकीय घटक (यानी, चरित्र का India)
नाटकीय रूपांतरण)।
भरतनाट्यम् (Bharat Natyam)
• नृत्त, शुद्ध नृत्य, जिसमें संगीत के लय और भाव शरीर के
हाथों की अलं कृत मुद्राओ ं तथा पद संचालनों में परिलक्षित • स्थान- तमिलनाडु।
होते हैं; तथा
• उत्पत्ति- देवदासी की परंपरा।
• नृ्त्य में मुख अभिनय, हस्त भंगिमाओ ं और पाँव एवं पद
• विषय-वस्तु- रामायण, महाभारत, शैववाद, वैष्णववाद,
के माध्यम से मनोदशा का चित्रण।
शक्तिवाद।
• विशेषताएं :
• तांडव: पुरूषोचित है, इसमें मुद्राओ ं, लय, वीरता को इं गित
किया जाता है।
» भरतनाट्यम को सधिर अटटम भी कहा जाता है।
• लास्य(स्त्री सुलभ लालित्यपूर्ण नृत्य): यह शास्त्रीय नृत्य
» भरतनाट्यम भारत में शास्त्रीय नृत्यों में सबसे प्राचीन
का एक रूप है। इसकी विशेषता हैं स्त्रीयोचित कोमलता,
नृत्य शैली है।
लयात्मकता, मधुर भावों और श्रंगार रस की प्रधानता।
इसमें अनुगृह अभिज्ञान को इं गित किया जाता है। » शिलप्पादिकारम नामक प्राचीन तमिल महाकाव्य में
इसका वर्णन किया गया है।
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» इसके प्रारंभिक साक्ष्य भरत मुनि द्वारा रचित प्राचीन विषयों को अपनाया गया।
संस्कृत ग्रंथ नाट्य शास्त्र से प्राप्त होता है।
• इसमें लास्य प्रधान है।
» यह अपने स्थिर ऊपरी धड़, मुड़े हुए पैर या घुटने, अदभुत
• संगीत: हिं दुस्तानी संगीत।
पद संचालनों तथा हस्त, नेत्रों और चेहरे की मुद्राओ ं के
आधार पर सांकेतिक भाषा की एक परिष्कृ त शब्दावली • विशेषताएं :
के संयोजन हेतु प्रसिद्ध है।
» कथक को प्रसारित करने में प्राचीन उत्तरी भारत के कथा
» शरीर के भार को शरीर के केंद्र में संकेंद्रित करते हुए फर्श वाचन करने वाले लोगों का प्रमुख योगदान रहा है, जिन्हें
पर पैरों से गति करने और छलांग लगाने पर बल दिया कथककारों या कथाकारों के रूप में जाना जाता है।
जाता है, जिसे भ्रामरी कहा जाता है।
» कथक शब्द की उत्पति वैदिक संस्कृत शब्द कथा से हुई है
» इस नृत्यकला में भावम (भ), रागम (र), और तालम (त) जिसका अर्थ "कहानी " है। कथिका का अर्थ " कथा वाचन
= भरत का समावेश होता है। करने वाला", या" कहानियों के साथ अभिनय करने
» यह अपने अभिनय एवं लक्ष्यों दोनों में प्रतीकवाद में है। वाला" होता है।
अभिनय का साक्ष्य नाट्यशास्त्र ग्रन्थ में पाया गया है। » इसमें महाकाव्य और प्राचीन पौराणिक कथाओ ं को नृत्य,
» मूल रूप से नृत्य सामान्यतः सात मुख्य भागों में विभाजित हस्त एवं पाद मुद्राओ ं, चेहरे के भाव, गीत और संगीत के
किया जाता है। माध्यम से प्रदर्शि त किया जाता है।
» अलारिप्पू , जातिस्वरम, शब्दम, वर्णम, पदम्, थिल्लन » कथक का विकास भक्ति आंदोलन के दौरान हुआ। इसमें
और शब्दम। भगवान कृष्ण का बाल्यकाल और कहानियां शामिल हैं।
» उदाहरणस्वरूप कृष्णा अय्यर और रुक्मिणी देवी अरुं डेल » यह मुख्यत तीन भिन्न रूपों में विकसित हुआ है, जिसे
ने इस नृत्य शैली की खोई लोकप्रियता और स्थिति को घराना कहा जाता है - बनारस, लखनऊ और जयपुर।
पुनः प्राप्त करने में करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। कथक में रायगढ़ घराना का भी बड़ा नाम है छत्तीसगढ़
के महाराज चक्रधर सिं ह ने इस घराने को प्रतिस्थापित
» इस नृत्य शैली के प्रेरणा स्रोत चिदम्बरम के प्राचीन मंदिर
किया था।
की मूर्ति याँ हैं।
» यह नृत्य रूप छोटे -छोटे घुंघरूओ ं से सज्जित और संगीत
के साथ लयबद्ध पैरों की गति को प्रदर्शि त करता है।
कथक (kathak)
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कथकली (Kathakali)
• स्थान: केरल
• विशेषताएं :
74
पुनर्जीवित, संरक्षित और पुनः संगठित करने हेतु विभिन्न » यथार्थवादी श्रृंगार और साधारण वस्त्र (केरल के कासवु
प्रयास किए। साड़ी में) का उपयोग किया जाता है।
» यामिनी कृष्णमूर्ति और राजा रेड्डी प्रसिद्ध नर्तक हैं। » इसके गीत मणिप्रावलम (संस्कृत, तमिल और मलयालम
के संयोजन से निर्मि त एक मध्यकालीन दक्षिणी भारतीय
भाषा) में हैं।
• स्थान: केरल।
ओड़ीसी (Odissi)
• उत्पत्ति: भस्मासुर कथा।
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» ओड़ीसी नृत्य में अभिनय और नृत्य सहित नाट्य का • विशेषताएं -
प्रदर्शन किया जाता है।
» मणिपुरी नृत्य की उत्पत्ति पौराणिक है जिसके प्रमाण
» यह लालित्य , विषयासक्ति और सौन्दर्य का अद्वितीय
मणिपुर की घाटी में 'गंधर्व' के साथ-साथ शिव और पार्वती
प्रदर्शन है।
के नृत्य में खोजे जा सकते हैं।
» नर्तक अपने शरीर से ज्यामितीय आकृतियों और पैटर्न
» इस नृत्य को मुख्यत: वैष्णववाद की शुरुआत के बाद
बनाए जाते हैं। इसलिए इसे 'चलायमान शिल्पाकृति'
प्रसिद्धि मिली।
कहा जाता है। और 'चौक' मुद्रा एक वर्ग के समान होती है।
» रवीन्द्र नाथ टै गोर ने शान्तिनिकेतन में इस नृत्य को
प्रस्तुत किया जिससे आधुनिक समय में इस नृत्य की
प्रमुखता को पुन: प्राप्त किया।
• स्थान- मणिपुर।
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• लास्य और तांडव दोनों प्रधान हैं। • कालांतर में स्वर्गीय मणिराम दत्ता मुकतियार बरबायान,
स्वर्गीय डॉ महेश्वर नेग और स्वर्गीय रामेश्वर सैकिया
• संगीत- असमिया स्थानीय संगीत।
बारबयान आदि जैसे प्रमुख व्यक्तित्वों और सुधारकों
• विशेषताएं : ने शास्त्रीय सत्त्रिया नृत्य को बाहरी विश्व में लाने और
विकसित करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
» सत्त्रिया नृत्य रूप का नाम वैष्णव मठों से लिया गया है
जो लोकप्रिय रूप से सत्र के नाम से जाना जाता है।
वर्ष(जिसमें
नाम शामिल विवरण
किया गया)
विश्व में तीर्थयात्रियों का सबसे बड़ा शांतिपूर्ण समागम है, इस समागम के दौरान
तीर्थयात्री स्नान करते हैं।
कुंभमेला 2017
यह त्यौहार प्रत्येक चार वर्ष में 4 स्थानों यथा इलाहाबाद, हरिद्वार, उज्जैन और
नासिक में आयोजित किया जाता है
ईरानी नव वर्ष मुख्य रूप से भारत में पारसी समुदाय द्वारा सामान्यतः 21 मार्च के
नवरोज़ 2016
आसपास मनाया जाता है
यह शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक प्रथाओ ं या सिद्धांतों का एक समूह है
योग 2016
जिसका उद्भव प्राचीन भारत में हुआ था।
पीतल और तांबे के बर्तनों जंडियाला गुरु के ठठे रों द्वारा पीतल और तांबे के बर्तनों के निर्माण की पारंपरिक
2014
के निर्माण की शिल्प कला शिल्प कला स्थापित की।
मणिपुरी संकीर्तन एक निष्पादन कला है जिसमें मंदिरों और घरेलू स्थानों पर
संकीर्तन 2013
अनुष्ठान संबंधी गायन, नृत्य, और ढोल आदि का उपयोग किया जाता है।
लद्दाख क्षेत्र के मठों और गांवों में, बौद्ध लामा (पुजारी) गौतम बुद्ध की आत्मा,
लद्दाख का बौद्ध जप 2012
दर्शन और शिक्षाओ ं का प्रतिनिधित्व करने वाले पवित्र ग्रंथों का जप करते हैं।
युद्ध कला, आदिवासी और लोक परंपराओ ं के साथ अर्ध शास्त्रीय भारतीय नृत्य,
छऊ नृत्य 2010
जिसकी उत्पत्ति पूर्वी क्षेत्र में हुई थी
77
यह नृत्य कालबेलिया जनजाति का एक अभिन्न अंग है और पुरुषों और
कालबेलिया नृत्य 2010
महिलाओ ं द्वारा किया जाता है।
मुडियेट्टू 2010 केरल का अनुष्ठानिक रंगमंच और नृत्य नाटक।
रम्मन 2009 भारत के गढ़वाल हिमालय का धार्मि क उत्सव और अनुष्ठानिक रंगमंच
भारत की सबसे प्राचीन जीवंत नाट्य परंपराओ ं में से एक।
कुट्टीयट्टम 2008
केरल का संस्कृत रंगमंच।
एक हजार से अधिक वैदिक पाठ शाखाओ ं में से केवल 13 शेष हैं।
वैदिक जप की परम्परा 2008 चार प्रसिद्ध सम्प्रदायों - महाराष्ट्र, केरल और कर्नाटक और उड़ीसा को खतरे में
माना जाता है।
रामलीला 2008 अयोध्या, रामनगर और बनारस, वृंदावन, अल्मोड़ा, सत्तना और मधुबनी की
रामलीलाओ ं में सबसे अधिक प्रतिनिधि हैं।
छऊ (Chhau)
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भांगड़ा (Bhangra)
बिहू (Bihu)
घूमर (Ghoomar)
79
रऊफ (Rouff)
• डोलू कुनिथा कर्नाटक की एक असाधारण और गतिशील • कोलाट्टम तमिलनाडु में प्रारंभ हुआ एक लोक नृत्य है।
लोक कला एवं लोक नृत्य है। यह नृत्य रूप पूरे भारत में प्रशंसित है।
• यह नृत्य सुडौल एवं हष्ट पुष्ट पुरुषों द्वारा किया जाता है। • कोलाट्टम शब्द में 'कोल' का अर्थ है एक छड़ी से और
कलाकार की कमर पर एक खोखला ड्रम बंधा होता है। 'आट्टम' का अर्थ है नृत्य से है।
• यह एक धार्मि क और सांस्कृतिक अनुष्ठान है और • यह नृत्य युवा लड़कियों द्वारा भगवान राम के जन्मदिवस
सामान्यतः बीरेश्वरा सम्प्रदाय` के कुरुबा भक्तों द्वारा को एक पर्व के रूप में मनाने के लिए हाथ में रखी छोटी-
किया जाता है। छोटी छड़ियों द्वारा किया जाता है।
• नर्तक एक घेरे में खड़े होकर ढोल बजाना प्रारंभ करते हैं। • पीनल कोलाट्टम कोलाट्टम नृत्य का एक अन्य स्वरूप है
जहाँ नृत्य गाने या सामूहिक गान के साथ किया जाता है
जिसमें छड़ियों को लयबद्ध रूप में प्रयोग किया जाता है।
गिद्दा (Gidha)
• ये सभी अपने हाथों से ताली बजाते हुए छोटे -छोटे दोहे गाते
हैं जो पंजाबी भाषा में और हास्यप्रद होते हैं। फिर उनमें से
दो या तीन केंद्र में आते हैं और नृत्य करते हैं। सामान्यतः,
इसमें ढोलक को छोड़कर, अन्य कोई भी वाद्ययंत्र प्रयोग
नहीं किया जाता है।
80
पदयानी नृत्य (Padayani)
गरबा (Garba)
• गरबा गुजरात क्षेत्र में प्रारंभ किया गया एक नृत्य रूप है।
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मुख्यत: भावनात्मक गीतों का प्रयोग किया जाता है।
रासलीला (Raslila)
झूमर (Jhoomar)
• झूमर पंजाब में फसल कटाई के मौसम के दौरान किया चंगु (Changu)
जाने वाला एक लोक नृत्य है। • चंगु नृत्य उड़ीसा का एक लोकप्रिय लोक नृत्य है।
• यह भांगड़ा का धीमा और अधिक लयबद्ध स्वरूप है। • इसका नामकरण एक प्रकार के ढ़ोल- चंगु, के नाम पर
इसमें प्रयुक्त गीतों की सामग्री विविधतापूर्ण है और इसमें किया गया गया है। इस वाद्य यंत्र का प्रयोग नृत्य के दौरान
82
किया जाता है। मईल अट्टम (Mayilattam)
• नृत्य केवल महिलाओ ं द्वारा किया जाता है। • मईल अट्टम तमिलनाडु के हिं दू मंदिरों में किया जाने वाले
• पुरुष केवल गीत गायन करते हैं, चंगु बजाते हैं तथा नृत्य का एक काल्पनिक और धार्मि क स्वरूप है।
महिलाओ ं के साथ साधारण पद चालन के साथ नृत्य • इसमें नृतक सिर से पैर तक मोर की भांति पोशाक
करते हैं। पहनते हैं, इसमें चोंच के साथ पंख भी शामिल होते है। पंखों
• महिला नर्तक आधे बैठने की स्थिति में लहराते हुए और को एक धागे का उपयोग करके खोला और बंद किया जा
कभी-कभी तीव्र गति के साथ प्रदर्शन करती हैं। सकता है। इसमें नृतक विशिष्ट प्रकार का नृत्य करते हैं।
थेरुकुथु (Therukoothu)
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डांडिया रास (Dandiya Raas)
यक्षगान (Yakshagana)
• एक प्रदर्शन आम तौर पर भारतीय महाकाव्यों और पुराणों • बाँस नृत्य नागालैं ड का आदिवासी नृत्य है।
की कथा को दर्शाता है। • यह नृत्य केवल लड़कियों द्वारा किया जाता है।
• इसमें एक वाचक शामिल होता है जो या तो गायन द्वारा • इसमें क्षैतिज रूप से समानांतर दूरी पर रखी बांस की
कहानी सुनाता है या पात्रों के पूर्व-लिखित संवाद गाता है, छड़ियों की रचना पर नर्तकियाँ मनोहर ढं ग से अंदर और
जो संगीतकारों द्वारा पारंपरिक संगीत बजाए जाने वाले बाहर आती जाती हैं।
वाद्ययंत्र के संगीत पर अभिनेता द्वारा किए गए नृत्य से
• दो महिलाएं , जो भूमि के दोनों ओर बैठती हैं, डंडों को
समर्थि त होता है।
क्षैतिज रूप से रखी बांस की डंडियों को हिलाया जाता हैं।
84
अध्याय - 7
85
द्वारा महिला की विभिन्न भूमिकाओ ं का निष्पादन किया
जाता हैं।
रासलीला (Raasleela)
जात्रा - बंगाल (Jatra –
• विशेष रूप से भगवान कृष्ण की किंवदंतियों पर आधारित
है। Bengal)
• माना जाता है कि कृष्ण के जीवन पर आधारित प्रारंभिक • भगवान के निमित्त मेलों, या धार्मि क अनुष्ठानों और
नाटक नंद दास द्वारा रचित है। समारोहों से संबद्ध नाटय गीत होते हैं जिन्हें जात्रा के रूप
• गद्य में संवाद का कृष्ण की क्रीड़ाओ ं के गीतों और दृश्यों के में जाना जाता है।
साथ आकर्षक ढं ग से उपयोग किया गया है। • कृष्ण जात्रा चैतन्यप्रभु के प्रभाव के कारण लोकप्रिय हुई।
Gujarat)
• मुख्य केंद्र - कच्छ और काठियावाड़। भाओना (अंकिया नाट) -
• प्रयुक्त होने वाले वाद्ययंत्र मूल रूप से हैं: भुंगल, तबला, असम (Bhaona (Ankia
बांसुरी, पखावज, रबाब, सारंगी, मंजीरा, आदि।
86
सांस्कृतिक झलक देखी जा सकती है।
तमाशा - महाराष्ट्र (Tamasha
• इसका सूत्रधार, या कथाकार कथा की शुरुआत पहले
संस्कृत में और फिर ब्रजबोली या असमिया में सुनाता हैं। - Maharashtra)
• गोंधल, जागरण और कीर्तन जैसे लोक रूपों से विकसित।
• संवादों के मध्य गीतों को महत्व दिया जाता है। दशावतार - कोंकण और गोवा
• इस शैली में संवादों को बोल तथा कथा वाचन में छं द को (Dashavatar - Konkan
वणग कहते हैं ।
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कृष्णाट्टम केरल
(Krishnattam – Kerala)
• यह 17वीं शताब्दी के मध्य कालीकट के महाराज मनवेदा
के शासन के अधीन अस्तित्व में आया।
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कूटियाट्टम केरल करयाला- हिमाचल प्रदेश
(Koodiyattam – (Karyala- Himachal
Kerala) Pradesh)
• यह संस्कृत रंगमंच परंपराओ ं पर आधारित है। • जीवन और मृत्यु के गंभीर प्रश्न को संक्षेप में और
अभिव्यक्ति एवं वाचन की सरलता के साथ, हास्यास्पद
• इस नाट्य रूप के पात्र हैं: चाक्यार- अभिनेता, नंबियार-
प्रस्तुति में वर्णि त करता है।
वादक और नांग्यार- जो महिलाओ ं की भूमिका निभाते
हैं। • वास्तव में, दर्शकों को विश्व को हमारी सांस्कृतिक विरासत
के रूप में और धैर्य के साथ जीने वाले एक काल्पनिक
• सूत्रधार या कथावाचक और विदुषक या मनोरंजनकर्ता
तमाशे के रूप में देखने कि भावना प्रदान करता है।
मुख्य नायक होते हैं। विदुषक ही संवाद (डायलॉग्स)
बोलते हैं। • इसमें प्रायः शैलीगत विविधता होती है, जो स्वांग, नौटं की,
भगत आदि से उनकी पहचान को अलग करती है।
• हाथ के इशारों और आंखों की गति पर मुख्य बल इस नृत्य
नाट्य रूप को विशिष्ट बनाता है।
89
अध्याय - 8
भारतीय कठपुतली
(INDIAN PUPPET)
• कठपुतली मनोरंजन के प्राचीन रूपों में से एक है। • सूत्र/धागा कठपुतली: कठपुतली, कुनढे ई, गोम्बायेट्टा,
कलाकारों द्वारा नियंत्रित एक कठपुतली का सांकेतिक बोम्मालट्टम।
तत्व इसे एक मनोरम अनुभव प्रदान करता है, जबकि
• छाया कठपुतली: थोलू बोम्मालट्टम, रावणछाया, तोगलु
इनके निर्माण और प्रदर्शन के सजीवता की निम्न लागत
गोम्बायेट्टा।
इसे स्वतंत्र कलाकारों के बीच लोकप्रिय बनाती है।
कठपुतली का प्रारूप कलाकार को इसके रूप, डिजाइन, • दस्ताना कठपुतली: पावाकुत्थू।
रंग और गति के संबंध में व्यापक स्वतंत्रता प्रदान करता • छड़ कठपुतली: यमपुरी, पुतुल नाच।
है और इसे मानव जाति के सबसे सरल आविष्कारों में से
एक के रूप में स्थापित करता है।
• संपूर्ण युग में कठपुतली कला का पारंपरिक मनोरंजन में धागा कठपुतली (String Puppets)
एक महत्वपूर्ण स्थान रहा है। पारंपरिक रंगमंच की भांति,
• कठपुतलियों को लकड़ी से तराशा जाता है और ये
कठपुतली रंगमंच के विषय अधिकांशतः महाकाव्यों
सामान्यतः 9 इं च लं बे लघुचित्र होते हैं।
और किंवदंतियों पर आधारित होते हैं। कठपुतली की
प्रासंगिकता इसकी उच्च प्रभावशाली क्षमता, विशेष रूप • तेल के रंग का उपयोग लकड़ी को त्वचा के रंग में रंगने
से शिक्षा और सामाजिक मुद्दों से संबंधित जागरूकता के और उस पर आंख, नाक आदि जैसी विशेषताओ ं को
कारण बढ़ी है। चित्रित करने के लिए किया जाता है।
भारत में कठपुतली की उत्पत्ति प्रबंधित किया जाता है। कठपुतलियों को एक यथार्थवादी
एहसास देने के लिए लघु आभूषणों से सुसज्जित किया
(Origin of Puppetry in जाता हैं।
India)
कुछ उदाहरण (Some Examples):
• भारत में कठपुतली दीर्घकाल से ही शिक्षा और मनोरंजन
दोनों उद्देश्यों के लिए रुचिकर विषय बना रहा है। कठपुतली (Kathputli):
हड़प्पा और मोहनजोदड़ो के उत्खनन स्थलों से सॉकेट
• राजस्थान राज्य से पारंपरिक सूत्र या धागा कठपुतली को
युक्त कठपुतलियां प्राप्त हुई हैं जो इस सभ्यता में भी
कठपुतली के रूप में जाना जाता है, जिसका अर्थ है लकड़ी
कठपुतली कला के प्रचलित होने के साक्ष्य प्रदान करते
की गुड़िया।
हैं। कठपुतली का सबसे प्रारंभिक लिखित संदर्भ, तमिल
ग्रंथ सिलप्पादिकारम में पाया गया है, जिसकी रचना • कठपुतलियाँ पारंपरिक चमकीले राजस्थानी पोशाक में
पहली और दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व के आसपास की सुसज्जित होती हैं।
गई थी। कठपुतली का पौराणिक कथाओ ं और कला में
• कतपुटली प्रदर्शन लोक संगीत के साथ होता है।
संदर्भ प्राप्त होने के बावजूद समर्पि त दर्शकों की कमी
और वित्तीय असुरक्षा के कारण, इस कला रूप में निरंतर • इसकी एक महत्वपूर्ण विशेषता पैरों की अनुपस्थिति है।
गिरावट हुई है। कठपुतली के धागे कलाकार की उं गलियों से जुड़े होते हैं।
90
जाती है।
कुनढे ई (Kundhei):
91
चित्र 8.6 थोलू बोम्मालट्टम
चित्र 8.4 तोगलु गोम्बायेट्टा
92
छड़ कठपुतली (Rod Puppets) पुतुल नाच (Putul Nach)
• यह दस्ताना कठपुतलियों का अपेक्षाकृत बड़ा स्वरूप है • यह बंगाल-ओडिशा-असम क्षेत्र में प्रचलित कठपुतली
और यह पूर्वी भारत में लोकप्रिय है। कला का पारंपरिक रूप है।
93
अध्याय - 9
94
हिं दुस्तानी संगीत की शैलियाँ (Styles in ठुमरी (Thumri)
Hindustani Music)
• इसकी उत्पत्ति 18वीं शताब्दी में पूर्वी उत्तर प्रदेश मुख्यतः
ध्रुपद (Dhrupad) लखनऊ और बनारस में हुई।
• ध्रुपद हिं दुस्तानी शास्त्रीय संगीत का सबसे प्राचीन और • गायन की एक रूमानी और कामुक शैली; इसे "भारतीय
शायद सबसे भव्य रूप है। ध्रुपद अनिवार्य रूप से एक शास्त्रीय संगीत के गीत" के रूप में भी जाना जाता है।
काव्यात्मक रूप है, ध्रुपद हिं दुस्तानी गायन संगीत • इसकी रचनाएँ अधिकतर प्रेम, वियोग और भक्ति पर
का सबसे प्राचीन और शायद सबसे भव्य रूप है। ध्रुपद आधारित हैं।
अनिवार्य रूप से एक काव्य रूप है, जिसे एक विस्तारित
• विशेषताएं : प्रेम संबंधी विषय वस्तु को भगवान कृष्ण
प्रस्तुति शैली में शामिल किया गया है, इसमें राग को
और राधा के जीवन के विभिन्न प्रसंगों से चित्रमय रूप से
सटीक और व्यवस्थित विस्तृत रूप में प्रस्तुत किया जाता
चित्रित किया गया है।
है। रचित छं दों से पूर्व के प्रदर्शन को अलाप के रूप में जाना
जाता है और सामान्यतः प्रदर्शन का सबसे लं बा भाग होता • गीत सामान्यतः ब्रज भाषा में होते हैं और रूमानी और
है। 18वीं शताब्दी से ध्रुपद का निरंतर पतन हो रहा है। धार्मि क होते हैं।
तराना (Tarana)
ग़ज़ल (Ghazal)
• इस शैली में लय एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
संरचना में राग भी होता है। • विरह और वियोग की पीड़ा तथा उस पीड़ा के बावजूद प्रेम
• इसमें अनेक शब्दों का उपयोग किया जाता है जिन्हें तेज की सुंदरता की काव्यात्मक अभिव्यक्ति।
गति से गया जाता हैं। • ईरान में 10वीं शताब्दी ई. में उद्भव हुआ।
• यह लयबद्ध विषय के निर्माण पर केंद्रित होता है और • ग़ज़ल में कभी भी 12 आसर या दोह से अधिक नहीं होते।
इसलिए, गायकों को लयबद्ध हेरफेर में विशेष प्रशिक्षण
• 12वीं शताब्दी में इसका प्रसार दक्षिण एशिया में सूफी
और कौशल की आवश्यकता होती है।
रहस्यवादियों और नई इस्लामी सल्तनत के दरबारों के
• वर्तमान में विश्व के सबसे तेज तराना गायक मेवाती प्रभाव के कारण हुआ। मुगल काल में यह अपने चरम पर
घराने के पंडित रतन मोहन शर्मा हैं। पहुंच गई थी।
95
मुहम्मद इकबाल, हाफ़िज़ (14वीं सदी), रूमी (13वीं सदी), संस्कृति के अपने सुदृढ़ उत्पत्ति के लिए जाने जाते हैं।
काज़ी नज़रूल इस्लाम, आदि।
• धमर ताल में गाया जाने वाला यह संगीत मुख्य रूप से • वेंकटमाखी को कर्नाटक संगीत के महान सिद्धांतकार
जन्माष्टमी, रामनवमी और होली जैसे त्योहारों में उपयोग है। 17वीं शताब्दी में, उन्होंने "मलाकार्त" विकसित किया,
किया जाता है। यहां की रचनाएं वसंत ऋतु को दर्शाती हैं। जो दक्षिण भारतीय रागों को वर्गीकृत करने की प्रणाली
है। वर्तमान में 72 मलाकार्त हैं।
• ये रचनाएँ काफी हद तक राधाकृष्ण के प्रेम प्रसंग पर
आधारित हैं। • त्यागराज (1767-1847), उनके समकालीन श्यामा शास्त्री
और मुत्तुस्वामी दीक्षित कर्नाटक संगीत के "त्रिमूर्ति " के
रूप में जाने जाते हैं।
रागसागर (Ragasagar)
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स्वराजति (Svarajati) संगीत में उत्कृ ष्टता और सुन्दरता होती है ।संगीत धीमा
और उत्कृ ष्ट होता है।
• इसे गीतम में कोर्स का अनुसरण करके सीखा जाता है।
गीतों से अधिक जटिल, स्वराजति, वर्णमों के अध्ययन
के लिए मार्ग प्रशस्त करता है। इसकी विषयवस्तु भक्ति,
जावली (Javali)
साहस अथवा प्रेम है।
• जावली सुगम शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र से संबंधित रचना
है। इसे सामूहिक संगीत कार्यक्रमों और नृत्य समारोहों
जतिस्वरम (Jatisvaram) दोनों में गाया जाता है । जावलियो की उन आकर्षक लयों
के लिए प्रशंसा की जाता हैं जिनमें वे रचित हैं। ईश्वरीय प्रेम
• इस संगीत प्रणाली में स्वराजाति के समान ही कोई
को प्रकट करने वाले पदों के विपरीत, जवाली ऐसे गीत
साहित्य या शब्द नहीं होता है। अंशों को केवल सोल्फा
हैं जो अवधारणा और भावना की दृष्टि से इं न्द्रियगत हैं।
अक्षरों के साथ गाया जाता है ।
तिल्लाना (Thillana)
कीर्तनम (Kirtanam)
• हिन्दुस्तानी संगीत में तराना के अनुरूप ही तिल्लाना भी
• कीर्तनम का उद्भव लगभग 14वीं शताब्दी के उत्तरार्ध
एक लघु और संकुचित शैली है। यह मुख्यत: एक नृत्य
में हुआ था। साहित्य की भक्ति भावना के लिए इसकी
शैली है, परन्तु तीव्र और आकर्षक संगीत के कारण इसे
सराहना की जाती है। सरल संगीत में रचित, कीर्तनम
कभी-कभी अन्तिम अंश में शामिल किया जाता है ।
में भक्ति भाव प्रचुर मात्रा में है। यह सामूहिक गायन और
व्यक्तिगत प्रस्तुतिकरण के लिए उपयुक्त है।
पल्लवी (Pallavi)
तनम (Tanam)
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राग छः मुख्य राग 72 राग
समय समयबद्ध समयबद्ध नही
लोक संगीत (Folk Music) • भरत मुनि द्वारा संकलित नाट्य शास्त्र, ध्वनि उत्पन्न
करने की विधि के आधार पर संगीत वाद्ययंत्रों को चार
• बाऊल, वनावन, पंडवानी, आल्हा, पनिहारी, ओवी, पई मुख्य श्रेणियों में विभाजित करता है।
गीत, लावणी, मांड, डांडिया, पोवाड़ा, खोंगजोम पर्व भारत
» तत् वाद्य(Chordophones)- तार वाले वाद्य यंत्र
के कुछ लोकप्रिय लोक संगीत हैं।
» सुषिर वाद्य(Aerophones)- वायु यंत्र
» बाऊल एक धार्मि क संप्रदाय और लोक संगीत परंपरा
» अवनद्ध वाद्या (Membranophones)- आघात वाद्य यंत्र
दोनों है।
» घन वाद्य (Idiophones)- ठोस वाद्य यंत्र।
» वनावन कश्मीर का विवाह समारोहों में गाया जाने वाला
लोक संगीत है।
98
सारंगी (Sarangi) • बांसुरी को क्षैतिज रूप से पकड़कर और नीचे झुकाकर
बजाया जाता है। ध्वनि या स्वर उत्पन्न करने के लिए बाएं
• सारंगी भारत में सबसे प्रसिद्ध और सबसे प्राचीन तत
और दाएं हाथ की उं गलियों के छिद्रों को से ढकना होता है।
अथवा धनुर्वाद्य यंत्रों में से एक है। सारंगी का शरीर
वायु स्तंभ की प्रभावी लं बाई को स्थानांतरित करके पिच
खोखला है और हाथीदांत से अलं कृत सागौन की लकड़ी
में बदलाव उत्पन्न किया जाता है।
से बना होता है। सारंगी में चालीस तार होते हैं जिनमें से
सैंतीस अनुकंपी तार होते हैं। सारंगी को एक ऊर्ध्वाधर • प्रसिद्ध बांसुरी वादक पं. पन्नालाल घोष और पं. हरि
मुद्रा में रखा जाता है और एक धनुष के साथ बजाया जाता प्रसाद चौरसिया हैं।
है। सारंगी बजाने के लिए बाएं हाथ के नाखूनों को तार से
दबाया जाता है।
शहनाई (Carinet)
सरोद (Sarod)
बांसुरी (Flute)
99
तबला (Tabor) हरमोनियम (Harmonium )
• उत्तर भारत में प्रयुक्त होने वाला सबसे प्रसिद्ध वाद्य यंत्र • हारमोनियम भारत का एक पारंपरिक और प्रसिद्ध वाद्य
तबला है। तबले में ढोल (तबला) और बायाँ होते है। यंत्र है। हारमोनियम में ढाई सप्तक से अधिक का स्वर
पटल (कीबोर्ड) होता है और यह धौंकनी की एक विधि पर
• तबला लकड़ी का बना होता है और जबकि इसका ऊपरी
कार्य करता है।
भाग पशुओ ं की खाल से बना होता है। तबले को हथौड़ी से
ऊपरी हिस्से के किनारों को ठोंक कर उपयुक्त स्वर को • स्वर पटल दाहिने हाथ से बजाया जाता है और बाएँ हाथ
मिलाया जा सकता है। का प्रयोग धौंकनी को नियंत्रित करने के लिए किया
जाता है। हारमोनियम दक्षिण की तुलना में उत्तर भारत में
• बांया हिस्सा बास ढोल होता है और सामान्यतः धातु
अधिक प्रसिद्ध है।
से निर्मि त होता है। इसका ऊपरी हिस्सा पशु की खाल
से ढं का जाता है और दोनों ढोल के केंद्र पर काला ले प
लगाया जाता है ताकि इसे मेगनीज़ या लोहे के जंग से
बचाया जा सके।
जलतरंग (Jaltarang)
चित्र 9.5 तबला • जलतरंग में भिन्न-भिन्न आकार के अठारह चीनी मिट्टी
के प्यालों का एक सेट शामिल होता है। इन्हें आकार के
घटते क्रम में, कलाकार के सामने एक अर्धवृत्त में रखा
पखावज (Pakhavaj ) जाता है।
• ऐसा माना जाता है कि तबला का उद्भव पखावज से हुआ • सबसे बड़ा प्याला कलाकार के बायीं ओर है जबकि सबसे
है। पखावज आमतौर पर गायन की ध्रुपद शैली के साथ छोटा प्याला दायीं ओर रखा जाता है। प्याले में जल
उपयोग होता है। पखवाज एक बैरल के आकार का ड्रम है डाला जाता है और जल की मात्रा को समायोजित करके
जिसमें दो शीर्ष होते हैं जो खाल से बने होते हैं। स्वरमान (पिच) को विकृत कर दिया जाता है। प्यालों को
बांस की दो पतली डंडियों से बजाया जाता है।
• पखवाज के शीर्ष चमड़े की पट्टियों से मढ़ा हुआ होता हैं
जो इसके किनारों के साथ छोटे बेलनाकार लकड़ी के
ब्लॉकों पर संचालित होते हैं जो कि फॉर्च्यून का उपयोग
करते हैं।
100
मृदंगम (Mradgam) घटम (Ghatam)
• मृदंगम दक्षिण भारत के सबसे स्वीकृत शास्त्रीय वाद्ययंत्रों • घटम दक्षिण भारत के सबसे पुराने ढोल वाद्ययंत्रों में से
में से एक है। मृदंगम मुखर, वाद्य और नृत्य दिनचर्या के एक है। घटम मटके के आकार का मिट्टी यंत्र होता है और
साथ आता है। वर्तमान समय में मृदंगम लकड़ी के एक ही इसका मुख संकीर्ण होता है। अपने मुंह से, यह एक रिज
टु कड़े से तैयार किया जाता है। यह एक बैरल के आकार बनाने के लिए ऊपर की ओर झुकता है। घटम मुख्य रूप
का द्विपृष्ठीय ढोल होता है, जिसका दाहिना शीर्ष बायें से से पीतल या तांबे के बुरादे के साथ पकी हुई मिट्टी से बना
छोटा होता है। दोनों शीर्षों पर चमडा लगा होता है। होता है जिसमें कम मात्रा में लोहे का भी उपयोग हुआहै।
घटम तीव्र लयबद्ध पैटर्न बनाता है। घटम आमतौर पर
मृदंगम के साथ उपयोग होने वाला एक द्वितीयक वाद्य
यंत्र है।
101
अध्याय - 10
कलारीप्पयाट्टू
(Kalarippayattu)
• कलारीप्पयाट्टू केरल की एक प्रसिद्ध भारतीय मार्शल
आर्ट है और यह सबसे प्राचीन युद्ध प्रणालियों में से एक है।
इसका अभ्यास दक्षिण भारत के अधिकांश भागों में किया
जाता है।
102
चित्र 10.4 थांग टा
लाठी (Lathi)
• लाठी भारत की सबसे प्रारंभिक सशस्त्र मार्शल आर्ट है।
10.3 गटका
• लाठी को मार्शल आर्ट में इस्तेमाल होने वाले विश्व के
सबसे पुराने हथियारों में से एक के रूप में भी जाना जाता
है।
मुष्टि युद्ध (Musti Yuddha) • भारत के पंजाब और बंगाल क्षेत्र में लाठी या स्टिक मार्शल
आर्ट का प्रदर्शन किया जाता है। यह भारतीय गांवों में एक
• यह "वाराणसी" में प्रचलित बिना हथियारों के किया जाने प्रसिद्ध खेल है।
वाला एक मार्शल आर्ट रूप है।
103
परी-खंडा (Pari-Khanda)
• परी-खंडा बिहार में तलवार और ढाल से की जाने वाली
विधा है।
काथी सामु (Kathi Samu) • इसमें तलवार और ढाल का उपयोग किया जाता है।
थोडा (Thoda)
बाहर निकलने और घुटनों को मोड़ने के संबंध में सख्त
नियम बनाए गए हैं।
• नियमों का कड़ाई से पालन करते हुए प्रतिद्वंद्वी को अपने • यह हिमाचल प्रदेश में महाभारत काल में उत्पन्न एक
पैरों से उठाने का प्रयास किया जाता है। हथियार आधारित मार्शल आर्ट है।
• कमर के चारों ओर पहलवान द्वारा पहनी जाने वाली बेल्ट • आम तौर पर तीरंदाजी कौशल पर आधारित है।
को पकड़ना होता है।
• "थोडा" लकड़ी का गोल टु कड़ा होता है जो तीर के सिरे पर
लगा होता है।
104
मुकना (Mukna) लकन-फनोबा (Lakna-
• यह मणिपुर की एक बिना हथियारों के की जाने वाली Phanaba)
एक प्रकार की कुश्ती है।
• यह मणिपुर की बिना हथियारों के की जाने वाली कुश्ती
• हाथ पकड़े हुए दो प्रतियोगी एक-दूसरे की कमर पर बंधी है।
पट्टी को पकड़कर कुश्ती लड़ते हैं और दूसरे को नीचे
गिराने का प्रयास करते हैं और विजेता को हमेशा गिरने
वाले के ऊपर होना चाहिए।
कर्रा सामू (Karra Samu)
• यह मूल रूप से आंध्र प्रदेश में प्रचलित एक लाठी मार्शल
आर्ट है।
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अध्याय - 11
भारतीय साहित्य
(INDIAN LITERATURE)
» ब्राह्मण काल वह काल है जब ब्राह्मण, उपनिषद और • मंत्रों को 'सूक्त' के रूप में जाना जाता है जो आमतौर पर
आरण्यक की रचना की गई थी। अनुष्ठानों में उपयोग किए जाते हैं।
» सूत्र काल। • इं द्र ऋग्वेद के मंत्रों में उद्धृत प्रमुख देवता (स्वर्ग का राजा)
हैं।
• वैदिक साहित्य का अर्थ वेदों पर आधारित या से प्राप्त • आकाश देव-वरुण, अग्नि देव अग्नि, और सूर्य देव सूर्य
साहित्य से है। वैदिक साहित्य का निर्माण करने वाले ग्रंथ ऋग्वेद के विभिन्न मंत्रों में वर्णि त कुछ अन्य प्रमुख देवता
हैं: हैं।
» चार वेद अर्थात, संहिता • इसमें प्रसिद्ध पुरुष सूक्त शामिल है जो वर्णि त करता है
कि चार वर्णों (जातियों) (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र)
» प्रत्येक संहिता से जुड़े ब्राह्मण
का जन्म सृष्टिकर्ता के मुख, हाथ, उदर और पैरों से हुआ
106
था। यह जाति व्यवस्था का उद्गम स्रोत था जो अभी भी अथर्ववेद (Atharva Veda)
आधुनिक हिं दू समाज में कुछ संशोधनों के साथ प्रचलित
• यह 'अथर्वों का ज्ञान भंडार', 'दैनिक जीवन के लिए
है।
प्रक्रियाएं ' है।
• इसे वेदों में बाद में अर्थात उत्तरवैदिक युग में शामिल
सामवेद (Sama Veda) किया गया था।
• सामवेद को प्रार्थना की पुस्तक या "मंत्रों के ज्ञान का • अथर्ववेद की रचना वैदिक संस्कृत में की गई है और इसमें
भंडार" भी कहा जाता है। लगभग 6,000 मंत्रों के साथ 730 सूक्त शामिल हैं जिन्हें
20 खंडों में विभाजित किया गया है।
• यह काव्य और पद्य का मिश्रण है।
• इस वेद के पैप्पलद और शौनक नामक दो अलग-अलग
• इसे भारत में संगीत और नृत्य की उत्पत्ति का स्रोत माना
पाठ संरक्षित हैं।
जाता है।
• केनेथ ज़िस्क, का मत है कि यह पाठ धार्मि क चिकित्सा में
• इसमें लगभग 1549 श्लोक हैं (75 श्लोकों को छोड़कर,
विकासवादी प्रथाओ ं के शुरुआती उपलब्ध अभिले खों में
शेष सभी ऋग्वेद से लिए गए हैं)।
से एक है और "इं डो-यूरोपीय पुरातनता के लोक उपचार
• उदगात्री के नाम से जाने जाने वाले ब्राह्मणों की एक के प्रारंभिक रूपों" को प्रकट करता है।
विशिष्ट श्रेणी द्वारा सोम यज्ञ में इन भजनों का जाप किया
• इसे ब्रह्मवेद के नाम से भी जाना जाता है। अथर्ववेद मुख्य
जाता है।
रूप से 'अथर्वों' और 'अंगिरा' के नामक ऋषियों के दो
समूहों द्वारा रचित था, इसलिए इसका सबसे पुराना नाम
'अर्थवांगिरा' है।
यजुर्वेद (Yajur Veda)
• मुंडकोपनिषद और माण्डू क्योपनिषद अथर्ववेद में
• अध्वुर्य पुजारी द्वारा उपयोग की जाने वाली बलि की सन्निहित हैं।
प्रार्थनाओ ं (यजुष ) का वैदिक संग्रह है। गद्य को 'यजुष'
• यह विनम्र लोगों की लोकप्रिय मान्यताओ ं और
कहा गया है। चरों वेदों में से, यह अधिकांशतः वैदिक
अंधविश्वासों का वर्णन करता है।
बलिदान को इसके अनुष्ठानिक चरित्र और पूर्ण दायरे में
दर्शाता है। यजुर्वेद के मंत्रों का उच्चारण 'अध्वुर्य' नामक • इसमें रोगों और बुराइयों को दूर करने के लिए मंत्र और
पुरोहित करता था। छं द शामिल हैं।
• यजुर्वेद विभिन्न यज्ञों को करते समय अपनाई जाने • वैदिक यज्ञों में भाग ले ने वाले पुजारी आमतौर पर संख्या
वाली प्रक्रियाओ ं को निर्धारित करता है। में चार होते थे। चार वेद ऋग्वे, यजु, साम और अथर्व के
अनुरूप इन्हें होति, अध्वर्यु, उदगत्री एवं ब्राह्मण कहा जाता
• यजुर्वेद के दो प्रमुख विभाग हैं: काला यजुर्वेद (कृष्ण
है।
यजुर्वेद) चार संस्करणों में विद्यमान है और श्वेत यजुर्वेद
(शुक्ल यजुर्वेद) दो संस्करणों में विद्यमान है। 'काला ' शब्द
में श्लोकों का 'अव्यवस्थित संग्रह' शामिल होता है 'श्वेत'
सुव्यवस्थित और स्पष्ट यजुर्वेद है। आरण्यक (Aranyaka)
• शुक्ल यजुर्वेद में शामिल संहिता को 'वाजसनेयी संहिता'
भी कहा जाता है। शुक्ल यजुर्वेद के 16 में से, केवल दो पाठ • आरण्यक वैदिक साहित्य के विकास का तीसरा चरण है।
ही शेष हैं, मध्यमा और कण्व दोनों ही कुछ मामूली भेदों • इन्हे ब्राह्मणों और उपनिषदों के मध्य के काल में रखा
को छोड़कर लगभग समान हैं। गया है।
• तैत्तिरीय संहिता, मैत्रायणी संहिता, कपिष्ठल संहिता और • वैदिक साहित्य में उनके निहितार्थ को महाभारत में यह
काठक संहिता कृष्ण यजुर्वेद के 4 सर्वाधिक ज्ञात एवं कहकर इं गित किया गया है कि आरण्यक वेदों का सार हैं।
उपलब्ध पाठ हैं ये एक दूसरे से भिन्न हैं।
• ले किन अब तक वैदिक साहित्य में उनकी सटीक भूमिका
• इन अभिले खों में सर्वाधिक ज्ञात और सबसे अच्छी तरह से स्पष्ट नहीं है।
संरक्षित तैत्तिरीय संहिता है, जो यक्ष के एक शिष्य तित्तिरी
• सामान्यतः, 'आरण्यक' शब्द वनों से संबंधित होता है और
द्वारा रचित और पाणिनी द्वारा वर्णि त है। सबसे पुरानी
आरण्यक 'वन ग्रंथ' के रूप में जाने जाते हैं, जिसमें वनों में
संहिता मैत्रायणी संहिता है।
तपस्वियों के ध्यान लगाने और ईश्वर, मानव और सृष्टि से
• यह यज्ञ के समय पुजारियों के एक निश्चित वर्ग द्वारा संबंधित आध्यात्मिक विषयों का वर्णन है।
उपयोग किए जाने वाले लघु जादू मंत्रों का संग्रह है।
• वैदिक साहित्य के चार ग्रंथ अर्थात् संहिता, ब्राह्मण,
107
आरण्यक और उपनिषद वेदों के पृथक और विशिष्ट भाग कथाओ ं, दर्शन और अंधविश्वासों, त्योहारों और समारोहों
नहीं हैं, ले किन वे वैदिक विचार के विकास के क्रम और और इसकी नैतिकता के बारे में महान अंतर्दृष्टि प्रदान
विस्तार का प्रतीक हैं। करते हैं जो किसी भी अन्य धार्मि क कार्य से अलग हैं। .
• आरण्यकों के महत्व को केवल 'वन ग्रंथ' कहकर कम • पुराणों की कुल संख्या 18 हैं। इनके 18 सहायक पुराण
नहीं किया जा सकता है। और कई अन्य संबंधित पुस्तकें हैं। प्रत्येक पुराण पांच
विषयों से संबंधित है, जैसे।
• महान व्याकरणविद् पाणिनि आरण्यक शब्द की व्याख्या
वन से संबंधित मनुष्य के रूप में करते हैं, कात्यायन ने • सर्ग जो सृष्टि के सृजन से संबंधित है।
वन से संबंधित एक अध्याय या ग्रंथ के अर्थ में इस शब्द
• प्रति सर्ग जो सृष्टि के सृजन एवं पतन से संबंधित है।
को चित्रित किया है।
• मन्वंतर अलग-अलग युगों का अंतरिक्षीय चक्र से
• आरण्यक न केवल प्रतीकों बल्कि अन्य पहलु ओ ं को
संबंधित है।
भी धारण करते हैं, ले किन प्रतीकवाद को उनकी मुख्य
विशेषता माना जाता है क्योंकि उनमें अधिकांशतः प्रतीकों • वंश में ऋषियों और राजाओ ं की वंशावली है।
हैं, बल्कि एक आम व्यक्ति या गृहस्थ के लिए दैनिक • पुराणों का आरंभ सूर्य और चंद्रमा वंश से संबंधित शासकों
अनुष्ठान जैसे संध्यापसनम, पंचमहायज्ञ, ब्रह्मोपासनम से माना जाता हैं। ये मध्यदेश में शासन करने वाले
आदि का भी चित्रण करते हैं। विभिन्न राजाओ ं का वर्णन करते हैं। वे हस्तिनापुर के
• वेदों की आरण्यक के रूप में मान्यता प्राप्त इन शिक्षाओ ं पुरु राजाओ ं और कोसल के इक्ष्वाकु राजा के मध्य के
का अध्ययन विशेष रूप से हितकारी होता है। इतिहास का वर्णन करते हैं। इनसे शिशुनाग राजाओ ं और
नंद राजाओ ं का विवरण प्राप्त होता हैं।
• इनमें से कुछ को राजनीतिक इतिहास के स्रोतों के रूप में • हालांकि, पुराणों की आलोचना सत्यापन सहित भाषा के
महत्वपूर्ण माना गया है। निम्न स्तरीय उपयोग के कारण की जाती है, जिसका
परिणाम खराब व्याकरण है। ये घटनाओ ं की अत्यधिक
• धार्मि क कार्यों के रूप में, पुराण हिं दू धर्म के सभी पहलु ओ ं
अतिशयोक्ति और विषयवस्तु के भ्रमित मिश्रण के रूप
और चरणों, इसकी आस्तिकता, मूर्ति पूजा, पौराणिक
में जाने जाते हैं। वर्तमान समय में पुराणों को ले कर
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इतिहासकारों में आम सहमति है। इन्हें न तो पूर्वाग्रह से है।
समझा जाना चाहिए और न ही ऐतिहासिक सत्य के रूप
• राजतरंगिणी (Rajatarangini): पंडित कल्हण की
में। इसके लिए मध्यम मार्ग अपनाना चाहिए और पुराणों
राजतरंगिणी या "राजाओ ं की नदी" कश्मीर का सबसे
के केवल वही पहलू स्वीकार किए जाने चाहिए जो उचित
प्राचीन इतिहास है। यह एक ऐतिहासिक कविता है, जो
हों।
1148 और 1150 ईस्वी के मध्य लिखी गई थी। यह पुस्तक
कश्मीर और शेष भारत के बारे में बहुमूल्य सामाजिक
और राजनीतिक जानकारी प्रदान करती है। यह पुस्तक
संस्कृत साहित्य (Sanskrit संस्कृत भाषा में लिखी गई है तथा विभिन्न विद्वानों और
अनुवादकों द्वारा विभिन्न भाषाओ ं में इसका अनुवाद
Literature) किया गया है। राजतरंगिणी के एक खंड का प्रथम अनुवाद
फारसी भाषा में कश्मीर के सुल्तान ज़ैन-उल-आबिदीन
• अष्टाध्यायी (Ashtadhyayi): पाणिनि द्वारा छठी से (1421-1472) ईस्वी के आदेश पर किया गया था। इस
पांचवीं शताब्दी ईसा पूर्व के मध्य रचित व्याकरण पर संस्करण का नाम बहरुल -असमार (या कहानियों का
संस्कृत ग्रंथ। इससे शास्त्रीय संस्कृत के भाषाई मानकों समुद्र था)।
का विकास हुआ।
• कथासरितसागर (Kathāsaritsāgara):
• कालिदास एक शास्त्रीय संस्कृत ले खक थे, जिन्हें कथासरितसागर ("कहानियों का सागर") भारतीय
आमतौर पर संस्कृत भाषा का भारत का सबसे महान किंवदंतियों, पकाल्पनिक कथाओ ं और लोक कथाओ ं
कवि और नाटककार माना जाता है। पर 11वीं शताब्दी का एक प्रसिद्ध संग्रह है, जइसकी रचना
• कालिदास द्वारा किए गए कुछ प्रमुख कार्य सोमदेव नामक शैव द्वारा संस्कृत में की गयी है।
मालविकाग्निमित्र, विक्रमोर्वशीयम्, अभिज्ञान • विक्रमांकदेवचरित (Vikramankadevacharita):
शाकुंतलम, रघुवंश और मेघदूत आदि हैं। यह विक्रमादित्य की प्रशंसा में बिल्हण द्वारा रचित एक
• कथा कोश (Katha Kosa): हरिषेण की कथा कोश प्रशस्ति ग्रन्थ है।
संस्कृत में जैन लघु कथाओ ं का सबसे उत्कृष्ट उदाहरण
विदेशी यात्रियों के
संबंधित विवरण
नाम
• पश्चिम एशिया के यूनानी शासक सेल्यूकस निकेटर ने मेगस्थनीज को राजदूत के रूप में
चंद्रगुप्त के दरबार में भेजा।
• इसने लगभग 300 ईसा पूर्व पटना में चंद्रगुप्त मौर्य के दरबार का दौरा किया।
मेगस्थनीज
• मेगस्थनीज ने ‘इं डिका' पुस्तक की रचना की।
• यूनानियों को भूगोल में रूचि थी और ऐसा प्रतीत होता है कि मेगस्थनीज द्वारा वर्णि त भारत की
अवस्थिति, माप, और स्थलाकृति इं डिका का सबसे पुनर्प्रकाशित खंड है।
• चीनी यात्री जो चन्द्रगुप्त द्वितीय के शासनकाल के दौरान लगभग 400 ई. में भारत आया था।
• उसके द्वारा अपने महत्वपूर्ण यात्रा वृतांत 'बौद्ध राज्यों का एक अभिले ख' में अपनी यात्रा का
फाह्यान
वर्णन किया गया है।
• उसके विवरण में गुप्त काल के प्रशासन और आर्थि क समृद्धि का वर्णन किया गया हैं।
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• भारत में वास की अवधि: - 630 ई. - 645 ई।
ह्वेन त्सांग • अपनी यात्रा के दौरान उसने कई स्थानों का दौरा किया और देश की सामाजिक, धार्मि क,
राजनीतिक, सांस्कृतिक और आर्थि क स्थितियों का ध्यानपूर्वक अवलोकन किया।
• अपनी पुस्तक 'सी-यू-की' या 'रिकॉर्ड ऑफ द वेस्टर्न कंट्रीज' में उसने भारत का विस्तृत विवरण
लिखा।
• यह उज्बेकिस्तान (11वीं शताब्दी) से आया था।
• इसने 1332-33 में भारत के लिए प्रस्थान करने से पहले मक्का की तीर्थयात्रा की थी।
• इब्न बतूता 1333 में मध्य एशिया से होते हुए स्थलमार्ग से सिं ध पहुंचा।
इब्न बतूता
• मुहम्मद बिन तुगलक के शासनकाल के दौरान भारत का दौरा किया।
• इब्न बतूता की यात्रा पुस्तक, रिहला, अरबी में लिखी गई है और इसमें चौदहवीं शताब्दी में
उपमहाद्वीप के लोगों के सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन के बारे में वर्णन किया गया है।
• इसने 1440 के दशक में दक्षिण भारत का दौरा किया।
अब्दुर रज्जाक
• इसने पंद्रहवीं शताब्दी में विजयनगर के सबसे मूल्यवान विवरणों में से एक लिखा था।
• वह एक फ्रांसीसी चिकित्सक, राजनीतिक दार्शनिक और इतिहासकार थे।
• 1656 से 1668 तक, वह बारह वर्षों तक भारत में रहा और मुगल दरबार से निकटता से जुड़ा रहा,
पहले राजकुमार दारा शुकोह, सम्राट शाहजहाँ के सबसे बड़े बेटे के एक चिकित्सक के रूप में,
फ्रांकोइस बर्नि यर
और बाद में एक अर्मेनियाईकुलीन दानिशमंद खान के साथ एक बौद्धिक और वैज्ञानिक के
रूप में मुगल दरबार में रहा।
भक्ति साहित्य (Bhakti • अलवार, जो 'भगवान विष्णु' के भक्त थे, ने अपनी भक्ति
कविता के माध्यम से वैष्णववाद का विस्तार करना
Literature) प्रारंभ किया। इसकी पहचान दिव्य प्रबन्धम् के रूप में
की गई। अलवार संतों की संख्या 12 थी। नम्मालवर द्वारा
• मध्यकालीन भारत के इतिहास में भक्ति आंदोलन को रचित तिरुवाय्मोलि, वैष्णव सम्प्रदाय का एक सम्मानित
एक सांस्कृतिक क्रांति माना जाता है। इस अवधि के ग्रंथ है। अंडाल एकमात्र महिला अलवार संत थी। इनका
दौरान रचित साहित्यिक ग्रंथों पर इसका अत्यधिक प्रभाव तिरुप्पवई नामक कविता संग्रह, अपने मार्मि क उत्साह
पड़ा। भक्ति साहित्य ईश्वर के प्रति नए प्रकार की भक्ति और सादगी के लिए वर्तमान समय में भी बहुत लोकप्रिय
अर्थात भक्त और ईश्वर के बीच एक व्यक्तिगत बंधन को है।
प्रतिबिं बित करता है।
• नयनार भगवान शिव के उपासक थे। नयनार संतों की
संख्या 63 थी और उनकी सामूहिक भक्ति कविता को
थिरुमुरई के नाम से जाना जाता है। इसे तमिल वेद भी
अलवार और नयनार (Alvars And Nayanars)
कहा जाता है। इसके 12 खंड है जिनमे भगवान शिव की
• सर्वप्रथम भक्ति साहित्य की रचना दक्षिण भारत में तमिल स्तुति में लिखे गए गीत और भजन संकलित हैं। इनमें से
कवि-संतों द्वारा छठी शताब्दी ई. में की गई। पहले सात खंडों को थेवरम के रूप में स्वीकार किया गया
है।
110
उत्तर भारत में भक्ति आंदोलन का योगदान (Bhakti • शंकरदेव और माधवदेव असम के दो प्रमुख वैष्णव कवि-
Movement's Contribution in North India) संत थे। कीर्तन-घोष इनके द्वारा रचित भक्ति गीतों का
एक संकलन है ले किन इसमें ज्यादातर शंकरदेव की
• उत्तर भारत में 12वीं शताब्दी ईस्वी में रामानंद द्वारा भक्ति
रचनाएं शामिल हैं। भट्टदेव एक असमिया कवि थे, जिससे
आंदोलन को प्रारंभ किया गया था। इससे हिं दी, मराठी,
असमिया गद्य का संवर्धन हुआ।
बंगाली, गुजराती, पंजाबी आदि भाषाओ ं में साहित्यिक
ग्रंथों की रचना हुई। • नरसिं ह मेहता, अखो और भलाना की रचनाओ ं ने वैष्णव
भक्ति के प्रभाव में गुजराती साहित्य का विकास किया।
• रामचरितमानस और हनुमान चालीसा तुलसीदास की
नरसिं ह मेहता को गुजराती कविता का जनक माना
कुछ सबसे प्रसिद्ध कृतियाँ हैं। तुलसीदास ने 'रामायण'
जाता है।
और अन्य भक्ति साहित्य के महाकाव्य को जनसामान्य
के लिए अधिक सुलभ बनाया। यह संस्कृत में भक्ति • मराठी में, ज्ञानदेव की रचनाएँ , 'भावार्थ दीपिका' (जिसे
साहित्य की रचना के विराम का भी प्रतिनिधित्व करता 'ज्ञानेश्वरी' भी कहा जाता है) और अमृतानुभव पवित्र
है। तुलसीदास की कृतियों में प्रयुक्त अनेक श्लोक और पुस्तकों के रूप में पूजनीय हैं। मराठी में भक्ति साहित्य
पद अब हिन्दी भाषी क्षेत्रों की सामान्य बोली का अंग बन लिखने के लिए संस्कृत अभिजात वर्ग को चुनौती देने
गए हैं। वाले नामदेव और तुकाराम की रचनाएँ भी वर्तमान
समय में बहुत प्रसिद्ध हैं।
• कबीर, जो उत्तर भारत के हिं दुओ ं, मुसलमानों के साथ-
साथ सिखों में भी लोकप्रिय थे, ने स्थानीय भाषाओ ं
में अपनी कृतियों की रचना की। इन्होंने इस काल में
प्रचलित व्याकरण के कड़े नियमों का अधिक कठोरता
तेलुगु और कन्नड़ के विकास में भक्ति आंदोलन
की भूमिका (Bhakti Movement's Role to The
से अनुपालन नहीं किया। उनकी रचनाओ ं में अधिकांशतः
Development of Telugu And Kannada)
दो-पंक्ति के वाक्य लिखे गए थे, जिन्हें 'दोहे' के नाम से
जाना जाता है। ये दैनिक जीवन के रूपकों और उपमाओ ं • भक्ति आंदोलन ने दक्षिण में तेलुगु और कन्नड़ जैसी
से भरे हुए थे, जिसके माध्यम से उन्होंने अपने दर्शन का अन्य क्षेत्रीय भाषाओ ं के विकास को भी गति प्रदान की।
प्रसार किया। गुरु ग्रंथ साहिब- सिखों की पवित्र पुस्तक,
• 11वीं शताब्दी ईस्वी में, नन्नया ने महाभारत का तेलुगु
में उनके कई छं दों को शामिल किया गया है।
में अनुवाद किया। इसे तेलुगु में साहित्यिक रचनाओ ं
• मीराबाई भक्ति आंदोलन की सबसे प्रसिद्ध महिला संतों की शुरुआत के रूप में माना जाता था। कवि-संत
में से एक थीं। उन्होंने भगवान कृष्ण की आराधना में गीत 'अन्नमाचार्य' द्वारा भगवान विष्णु पर लिखे गए कीर्तन
गाए जो भजन के रूप में लोकप्रिय हुए। मीरा के भजन से तेलुगु की लोकप्रियता में वृद्धि हुई। वल्लभाचार्य ने
अभी भी एक उच्च साहित्यिक मूल्य की भक्ति रचनाओ ं भागवत टीका, सुबोधनी जैसी अपनी कृतियों से तेलुगु
के रूप में माने जाते हैं। इनकी रचनाओ ं में 1300 से अधिक साहित्य के विकास में योगदान दिया।
भजन शामिल हैं जो अपने आराध्य ईश्वर कृष्ण के प्रति
• कन्नड़ में, पम्पा, पोन्ना और रन्ना की तिकड़ी ने अपनी
अनुराग, रत्यात्मकता और पूर्ण समर्पण का प्रतीक हैं।
रचनाओ ं का निर्माण किया था जिससे भाषा के विकास
• सूरदास नेत्रहीन कवि थे, उन्होंने भगवान कृष्ण की में वृद्धि हुई।
आराधना में गीतों की रचना की थी। लगभग 100000
• 12वीं शताब्दी ईस्वी में वीरशैव धार्मि क आंदोलन को
कविताओ ं के उनके कुल संकलन में से, केवल 8000
बासवन्ना (बसवेश्वर) के नेतृत्व में लोकप्रियता प्राप्त
ही उपलब्ध हैं। उनकी रचनाएँ 'ब्रज भाषा' - हिं दी की एक
होने लगी। उन्होंने शिक्षा के माध्यम के रूप में सरल
बोली, में लिखी गई हैं। ब्रज भाषा को अंततः साहित्यिक
कन्नड़ के उपयोग को बढ़ावा दिया, जिससे आम लोगों
भाषा का दर्जा प्राप्त हुआ।
तक पहुंच में भी वृद्धि हुई। अल्लामा प्रभु और अक्का
• जयदेव की 'गीतगोविन्द' भगवान कृष्ण को समर्पि त महादेवी जैसे उनके समकालीनों ने एक नई तरह की
एक लोकप्रिय भक्ति रचना है। इसे भक्ति काल की सबसे गद्य रचना का आविष्कार किया जिसे वचन कहा जाता
संस्कृतमय गीतात्मक रचना माना जाता है। इसका विषय है। ये अपनी प्रत्यक्षता, सहजता और काव्यात्मक सुंदरता
भगवान कृष्ण और राधा को जोड़ने वाला प्रेम है। इसने के लिए प्रसिद्ध थे। इन्होंने कन्नड़ साहित्य के संवर्धन में
बंगाली साहित्य के विकास की नींव रखी। इनकी रचनाएं महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
अनुराग, भक्ति और गीतात्मकता के मिश्रण का प्रतीक है।
• भक्ति साहित्य ने भक्ति पंथ को लोकप्रिय बनाने में
• चैतन्य और चंडीदास बंगाल के प्रसिद्ध वैष्णव कवियों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यह संस्कारों एवं अनुष्ठानों
से थे। उन्होंने वैष्णव साहित्य में महत्वपूर्ण योगदान किया, पर केंद्रित और अधिकांशतः संस्कृत में रचित पूर्ववर्ती
इनकी अधिकांश कविताएं प्रेम और आध्यात्मिक उत्साह भक्ति साहित्य से एक महत्वपूर्ण विराम का प्रतिनिधित्व
के मिश्रण का प्रतिनिधित्व करती है।
111
करता था। भक्ति साहित्य ने भी जनसामान्य के बीच के दरबारी कवि थे।
आध्यात्मिकता को लोकप्रिय बनाया।
पद्मावत (Padmavat)
हिंदी साहित्य (Hindi • 1303 ई. में अलाउद्दीन खिलजी द्वारा चित्तौड़ की ऐतिहासिक
तारीख ए मुबारक शाही याहिया बिन अहमद सैय्यद वंश के मुबारक शाह के शासनकाल का विस्तृत विवरण
तुज़्क-ए-बाबरी/ यह तुर्की में लिखी गयी थी और अकबर के काल में फारसी में
बाबर
बाबरनामा अनुवादित।
हुमायूँनामा गुलबदन बेगम मुगल सम्राट हुमायु के जीवन संबंधी विस्तृत विवरण
अमुक्त माल्यद,
कृष्णदेवराय अल्लासानी पेद्दन्ना हरिकथा सारम विजयनगर शासकों द्वारा
तेलुगु
तेनाली रामकृष्ण मनुचरितम् विस्तारित संरक्षण।
पांडुरंग महात्म्य'
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प्रारम्भिक मराठी रचनाएँ
(Modern History
Literature) विविध कार्य (Miscellaneous Work)
113
शासन के तहत शहरी भारत (प्रशासनिक अक्षमता, • रवींद्रनाथ टै गोर ने अपनी रचनाओ ं में संघवाद के
भ्रष्टाचार, आदि) की निम्न स्तरीय स्थिति पर एक नाटक महत्व पर बल दिया और उद्धृत किया कि भारत की
लिखा। उन्होंने भारत दुर्दशा की भी रचना की, जो एक एकता विविधता में एकता के माध्यम से ही प्राप्त की
प्रसिद्ध राष्ट्रवादी कृति बन गई। जा सकती है। अपने उपन्यास गोरा के माध्यम से टै गोर
ने औपनिवेशिक शासन को चुनौती दी थी और राष्ट्रीय
• मुंशी प्रेमचंद (गोदान), दीनबंधु मित्र (नील दर्पण) की
आंदोलन को प्रेरित किया। हमारा राष्ट्रगान, जन गण
रचनाओ ं ने भारत में गरीबों के संघर्षों पर बल दिया था।
मन उनके राष्ट्रवादी साहित्य की देन है।
• राजा राममोहन राय ने अनेक रचनाएँ लिखीं, जो उनके
• शरत चंद्र चटर्जी, आर.सी. दत्त ने भी अपने साहित्य के
सुधार के एजेंडे का आधार बनीं। ये रचनाएँ आधुनिक
माध्यम से राष्ट्रवादी आंदोलन में योगदान करते हुए
पश्चिमी विचारों से प्रभावित थीं। एकेश्वरवादियों को अपने
बंगाली साहित्य में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
उपहार के रूप में में, रॉय ने एकेश्वरवाद पर बल दिया। राय
ने जनमत को शिक्षित करने और जनता की शिकायतों
को सरकार तक पहुंचाने के लिए अंग्रेजी, हिं दी, बंगाली
आर्थि क आलोचना (Economic Critique)
और फारसी में कई पत्रिकाएँ भी प्रकाशित की।
• देवेन्द्रनाथ टै गोर ने तत्त्वबोधिनी पत्रिका प्रकाशित की, • एक अन्य प्रकार का राष्ट्रवादी साहित्य का उदारवादी
जिसमें तर्क संगत दृष्टिकोण और भारत के अतीत का राष्ट्रवादियों द्वारा ब्रिटिश शासन की आर्थि क आलोचना
व्यवस्थित अध्ययन का समर्थन किया गया। के रूप में उद्भव हुआ।
• हेनरी विवियन डेरोजियो को आधुनिक भारत का प्रथम • दादाभाई नौरोजी ने धन निष्कासन का सिद्धांत (पावर्टी
राष्ट्रवादी कवि माना जाता है। उन्होंने अपने विद्यार्थि यों ऐ ंड अनब्रिटिश रूल इन इं डिया) दिया, जिसमें बताया गया
को स्वतंत्र एवं तर्क संगत रूप से सोचने, किसी भी कि ब्रिटिश आर्थि क नीतियों का प्रत्यक्ष परिणाम भारत से
पतनशील परंपराओ ं या रीति-रिवाजों का विरोध करने वार्षि क राष्ट्रीय धन का एक महत्वपूर्ण बहिर्वाह था। यह
के लिए प्रेरित किया था। उसने महिलाओ ं की समानता, एक ऐसा निष्कासन था जिसमें भारत को इस बहिर्वाह के
अधिकारों और शिक्षा का भी समर्थन किया। प्रतिफल के रूप में कुछ प्राप्त नही होता।
• बाल शास्त्री जांभेकर ने अपने साप्ताहिक दर्पण के • रोमेश चंद्र दत्त ने अपनी कृति 'द इकोनॉमिक हिस्ट्री ऑफ
माध्यम से ब्राह्मणवादी धर्म में रूढ़िवादिता की निं दा की इं डिया' में, अंग्रेजों के अधीन हुई आर्थि क पूंजी की निकासी
और हिं दू धर्म में सुधार का प्रयास किया। की मात्रा की गणना की थी।
• गुलामगिरी ब्राह्मणवादी वर्चस्व और शूद्रों के साथ • ब्रिटिश शासन की आर्थि क आलोचना ने औपनिवेशिक
भेदभाव पर ज्योतिबा फुले की रचना है। अपनी रचना शासन में फैले प्रचार को समाप्त कर दिया था। अंग्रेजों
के माध्यम से, उन्होंने जाति व्यवस्था और सामाजिक- के लिए भारत पर अपने शासन को व्हाइट मैन्स बर्डन
आर्थि क असमानताओ ं के पूर्ण उन्मूलन को बढ़ावा दिया को उचित ठहराना, देश को सभ्य बनाना और अपने लाभ
था। गुलामगिरी ने पिछड़े वर्ग के शक्तिशाली आंदोलन हेतु शासन करना अब संभव नहीं था। आर्थि क आलोचना
को प्रेरित किया था जो 20वीं शताब्दी की शुरुआत में ने स्वदेशी और बहिष्कार जैसे विरोध के साधनों का
उभरा था। आविष्कार करके राष्ट्रवादी नेताओ ं को स्वतंत्रता संग्राम
को आगे ले जाने में सहायता प्राप्त हुई।
• सत्यार्थ प्रकाश दयानंद सरस्वती की एक अग्रणी कृति है
जिसमें उन्होंने एक वर्गहीन और जातिविहीन समाज के
अपने दृष्टिकोण को चित्रित किया। उन्होंने संगठित और
स्वतंत्र भारत (विदेशी शासन से) के लिए भी प्रचार किया। अन्य विद्वानों का योगदान (Contribution by
Other)
• मुस्लिम ले खक सर सैयद अहमद खान ने तहजीब-उल-
अखलाक नामक एक पत्रिका आरंभ की थी जिसमें महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi)
शिक्षा के माध्यम से महिलाओ ं की स्थिति में सुधार, पर्दा • गांधी की अंग्रेजी पर आपत्ति यह थी कि यह अंग्रेजी जानने
एवं बहुविवाह का विरोध आदि जैसे प्रगतिशील विचार वालों (ज्यादातर विशेषाधिकार प्राप्त वर्ग) और न जाननेे
शामिल थे। वालों (विशाल बहुमत) को अलग-थलग कर रही थी और
• बंकिम चंद्र चटर्जी द्वारा लिखित सबसे प्रसिद्ध राष्ट्रवादी इनके मध्य विभाजन उत्पन्न कर रही थी।
साहित्यिक कृतियों में से एक आनंद मठ थी। इस उपन्यास • महात्मा गांधी ने अंग्रेजी भाषा को एक प्रभावी और मजबूत
में उनके द्वारा रचित वन्दे मातरम् हमारा राष्ट्रीय गीत है उपकरण के रूप में भी प्रयोग किया। इन्होंने 'यंग इं डिया'
और उसी का एक खंड है। बंकिम ने अपनी रचनाओ ं में और 'हरिजन' जैसे पत्रों का संपादन और ले खन किया।
उपनिवेशवाद की निं दा की है और भारतीय साहित्य के
• गांधीजी ने अपनी आत्मकथा 'माई एक्सपेरिमेंट्स विद
राष्ट्रवादी ले खन में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त किया।
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ट्रुथ' भी लिखी, जो अपने साहित्यिक स्वभाव के लिए • उनके उपन्यास कुली (1933), अनटचेबल (1935), और द
प्रसिद्ध है। वूमन एं ड द काउ (1960) भारत में दलितों और वंचितों के
लिए उनकी चिं ता को प्रकट करते हैं।
115
अध्याय - 12
दर्शन के संप्रदाय
(SCHOOLS OF PHILOSOPHY)
I. रूढ़िवादी दर्शन (Orthodox प्रकृति तीन मुख्य विशेषताओ ं से बनी है: विचार, गति और
परिवर्तन।
School)
• इस दर्शन के अनुसार, वेद सर्वोच्च शास्त्र हैं, जिनमें मोक्ष योग दर्शन (Yoga School)
के रहस्य हैं। उन्हें वेदों की सत्यता पर कोई संदेह नहीं था।
उनके छह उप-दर्शन ( षड्दर्शन) थे: योग, सांख्य, न्याय, • योग का शाब्दिक अर्थ है "दो बड़ी पदार्थों का मिलन।"
मीमांसा, वैशेषिका और वेदांत। उनका दावा है कि योग विधियों के शारीरिक अभ्यास
के साथ ध्यान को शामिल करके मनुष्य मोक्ष प्राप्त कर
सकता है। ऐसा कहा जाता है कि ये तकनीकें, पुरुष को
प्रकृति से मुक्ति दिलाती हैं और परिणामस्वरूप, मोक्ष की
II. पाषंड का दर्शन ओर ले जाती हैं।
116
तर्क संगत और अनुभवजन्य तर्क द्वारा समझा जा सकता मीमांसा दर्शन (Mimamsa School)
है। कहा जाता है कि गौतम, जिन्हें न्याय सूत्र के ले खक के
रूप में भी जाना जाता है, इनके बारे में कहा जाता है कि • मीमांसा का शाब्दिक अर्थ "तर्क , व्याख्या और अनुप्रयोग
उन्होंने इस विचारधारा का निर्माण किया था। की कला हैं।" यह दर्शन संहिता और ब्राह्मण जैसे वैदिक
ग्रंथों की व्याख्या पर केंद्रित है। वे कहते हैं कि वेद सभी
• दर्शन यह मानता है कि एक इं सान अनुमान, सुनने और
ज्ञान का भंडार हैं और यह शाश्वत सत्य है। यदि कोई
सादृश्य जैसे तार्कि क तरीकों का उपयोग करके किसी
धार्मि क योग्यता, स्वर्ग और मोक्ष प्राप्त करना चाहता है तो
प्रस्ताव या तर्क की वैधता को सत्यापित कर सकता
उन्हें वेदों द्वारा निर्धारित सभी कर्तव्यों का पालन करना
है। इसमें माना गया है कि ईश्वर ने न केवल दुनिया को
चाहिए। जैमिनी के सूत्र, जिन्हें तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व
बनाया, बल्कि दुनिया का पालन-पोषण और विनाश भी
में संकलित किया गया था, वे ग्रंथ हैं जो मीमांसा दर्शन
किया है। इस सिद्धांत में हमेशा व्यवस्थित तर्क और विचार
की विस्तार से व्याख्या करते हैं। उनके दो सबसे प्रबल
पर जोर दिया गया है।
समर्थकों, सबर स्वामी और कुमारिला भट्टा ने दर्शनशास्त्र
में और अधिक पैठ बनाई।
» वे ईश्वर में विश्वास करते हैं और वैज्ञानिक तर्क के बावजूद वेदांत दर्शन (Vedanta School)
उन्हें मार्गदर्शक शक्ति मानते हैं।
• वेदांत दो शब्दों से बना है: वेद और अंत, जो वेदों के अंत
» वे यह भी मानते हैं कि कर्म के नियम इस ब्रह्मांड को
को दर्शाता है। यह दर्शन उपनिषदों में उल्लिखित जीवन
नियंत्रित करते हैं और यह सब कुछ मानव व्यवहार से
दर्शन का पालन करता है। बदरायण का ब्रह्मसूत्र सबसे
निर्धारित होता है। हमारे कार्य निर्धारित करते हैं कि हमारी
पुराना ग्रंथ है जिस पर यह दर्शन आधारित है। सिद्धांत के
प्रशंसा की जाएगी या दंडित किया जायेगा ।
अनुसार ब्रह्म ही सृष्टि का सत्य है जबकि बाकी सब कुछ
» भगवान हमारे कर्मों के गुण और दोषों को स्थापित करते काल्पनिक या माया है।
हैं और इसके परिणामस्वरूप मनुष्य को स्वर्ग या नरक
• इसके अलावा, आत्मा या आत्म-चेतना, ब्रह्म के समान है।
की सजा दी जाती है।
यह दावा आत्मा और ब्रह्म की बराबरी करता है, जिसका
» वे मोक्ष में विश्वास करते थे, ले किन यह ब्रह्मांड के निर्माण अर्थ है कि यदि कोई व्यक्ति आत्म-ज्ञान प्राप्त करता है
और मृत्यु की चक्रीय प्रक्रिया के अनुरूप था, जो ईश्वर की तो वह ब्रह्म को समझ जाएगा और मोक्ष प्राप्त कर ले गा।
इच्छा से तय होता था।
• यह तर्क ब्रह्म और आत्मा को अमर और अविनाशी बना
देगा। इस सिद्धांत के सामाजिक परिणाम थे, जिसमें सच्ची
117
आध्यात्मिकता, अपरिवर्तनीय सामाजिक और भौतिक लोकायत दर्शन या चार्वाक विचारधारा (Lokayata
परिस्थितियां थी तथा जिसमें एक व्यक्ति का जन्म और Philosophy or Charvaka School)
स्थापना निहित था।
• बृहस्पति ने इस विचारधारा की आधारशिला रखी, जिसे
• ले किन, शंकराचार्य के दार्शनिक हस्तक्षेप के लिए दार्शनिक सिद्धांत स्थापित करने वाले पहले लोगों में
धन्यवाद, जिन्होंने 9वीं शताब्दी ईस्वी में उपनिषदों और से एक माना जाता है। लोकायत अक्सर भौतिक और
भगवद गीता पर टिप्पणियां लिखीं और इस दर्शन का वस्तुगत दुनिया (लोक) के साथ एक मजबूत संबंध को
विकास हुआ। उनके परिवर्तनों से अद्वैत वेदांत का उदय दर्शाता है। उन्होंने तर्क दिया कि मानव आबादी वाले इस
हुआ। रामानुजन, जो 12वीं शताब्दी ई. में रहते थे, इस ब्रह्मांड के बाहर प्रत्येक ब्रह्मांड को पूरी तरह से अनदेखा
विचारधारा के एक अन्य महत्वपूर्ण दार्शनिक थे। किया जाना चाहिए। उन्होंने इस दुनिया पर हमारे कार्यों
को विनियमित करने में सक्षम किसी भी अलौकिक या
आध्यात्मिक कारक की उपस्थिति को खारिज कर दिया।
शंकराचार्य का मत (Shankaracharya’s View) उन्होंने दावा किया कि मोक्ष अनावश्यक था और ब्रह्म
तथा भगवान की उपस्थिति को खारिज कर दिया। वे हर
• उनका मानना है कि ब्रह्म सभी गुणों से रहित है। वह
उस चीज़ में विश्वास रखते थे जिसे मानवीय इं द्रियों के
जानना/ज्ञान या ज्ञान को मोक्ष का प्राथमिक साधन
माध्यम से छुआ और महसूस किया जा सकता था। उनकी
मानते है।
कुछ प्रमुख शिक्षाएँ हैं:
पाषंड का दर्शन (Heterodox » चूंकि ईथर (आकाश) को विचार से नहीं देखा जा सकता
है, इसलिए चार्वाक इसे पांच मूलभूत तत्वों में से एक नहीं
School) मानते हैं। नतीजतन, वे मानते हैं कि ब्रह्मांड केवल चार
तत्वों से बना है: अग्नि, पृथ्वी, जल और वायु।
पाषंड दर्शन के तीन मुख्य उप-भाग हैं: » इस दर्शन का तर्क है कि इस से परे कोई अन्य ब्रह्मांड नहीं
1. बौद्ध दर्शन है, मृत्यु जीवन का अंतिम लक्ष्य है, और खुशी जीवन का
अंतिम लक्ष्य होना चाहिए। इसलिए, उन्होंने 'खाओ, पियो
2. जैन दर्शन
और मौज करो' का सिद्धांत तैयार किया।
3. चार्वाक विचारधारा या लोकायत दर्शन
118
अध्याय - 13
• धर्म मानव आत्मा का विज्ञान है। धर्म नैतिकता और सहस्राब्दी ईसा पूर्व में शैववाद का पता वैदिक भगवान
आचार विचार की आधारशिला है। शुरू से ही, आस्था ने रुद्र से लगाया जा सकता है
भारतीयों के जीवन में एक प्रमुख भूमिका निभाई। इन
• शक्तिवाद (Shaktism): शक्तिवाद, देवी या देवी की
समुदायों की अलग-अलग धार्मि क मान्यताएं , विचार
सर्वोच्चता में विश्वास करता है। यह अपनी तंत्र उप-
और प्रथाएं थीं, और विभिन्न धार्मि क रूपों में समय के
परंपराओ ं के लिए प्रसिद्ध है।
साथ परिवर्तन और नवाचार हुए। भारत में, आस्था कभी
भी एक स्थिर इकाई नहीं थी, बल्कि एक अंतर्निहित • स्मार्तवाद (Smartism): यह पुराणों की शिक्षाओ ं पर
गतिशील शक्ति से प्रेरित थी। आधारित है। ये पाँच देवताओ ं की घरेलू पूजा में विश्वास
करते हैं, जिनमें से प्रत्येक में पाँच देवता हैं: शिव, शक्ति,
• भारत में प्रचलित प्रमुख धर्म निम्नलिखित हैं:
गणेश, विष्णु और सूर्य, जिन्हें सभी समान रूप से पूजते
है। स्मार्तवाद: सगुण ब्राह्मण, या ब्राह्मण विशेषताओ ं के
» हिन्दू धर्म
साथ, और निर्गुण ब्राह्मण, या ब्राह्मण बिना विशेषताओ ं
» बौद्ध धर्म के।
» जैन धर्म
» इस्लाम
वैष्णववाद के तहत प्रमुख संप्रदाय (Prominent
» ईसाई धर्म Sect Under Vaishnavism)
» सिख धर्म
• वारकरी संप्रदाय या वारकरी पंथ (Warkari Sector
» पारसी धर्म Warkari Cult): इस समुदाय के सदस्य विठोबा के रूप
» यहूदी धर्म में भगवान विष्णु के भक्त हैं, और उनकी पूजा महाराष्ट्र
के पंढरपुर में विठोबा के मंदिर पर आधारित है। वारी
संप्रदाय में सिगरेट और शराब का सख्त निषेध है, इनकी
वार्षि क तीर्थयात्रा रोमांचक गतिविधियों से भरी होती है।
हिंदू धर्म (Hinduism) इस संप्रदाय के तहत प्रमुख शख्सियतों में नामदेव (1270-
1350), ज्ञानेश्वर (1275-1296), तुकाराम (1598-1650),
• हिं दू धर्म भारत में सबसे प्रमुख धर्मों में से एक है, ले किन और एकनाथ (1533-1599) शामिल हैं।
इसमें कई तरह के पंथ और संप्रदाय शामिल हैं। हिं दू धर्म
• रामानंदी संप्रदाय (Ramanandi Sect) वे अद्वैत विद्वान
'हिं दू' शब्द से लिया गया है, जिसका मूल रूप से सिं धु नदी
रामानंद की शिक्षाओ ं का पालन करते हैं। हिं दू धर्म में, यह
के आसपास के क्षेत्र में रहने वाले लोगों को संदर्भि त
सबसे बड़ा मठवासी अनुक्रम है, और इन वैष्णव भिक्षुओ ं
करने के लिए इस्तेमाल किया गया था। हिं दू धर्म अपनी
को वैरागी, रामानंदी, या बैरागी के रूप में वर्णि त किया
मौलिक अवधारणाओ ं को पूर्व-वैदिक और वैदिक धार्मि क
गया है। वे विष्णु के दस अवतारों में से एक राम की पूजा
सिद्धांतों से सबसे मौलिक स्तर पर उद्धृत करता है।
करते हैं। ये तपस्वी तपस्या करते हैं और कठोर कर्मकांडो
का पालन करते हैं, ले किन वे अभी भी मानते हैं कि
केवल भगवान की कृपा ही उन्हें मोक्ष प्रदान करेगी। वे
हिं दू धर्म के अंतर्गत चार संप्रदाय (Four sects ज्यादातर गंगा के मैदानी इलाकों में रहते हैं। त्यागी और
under Hinduism)
नागा इसके दो उपसमूह हैं।
• वैष्णववाद (Vaishnavism): विष्णु अपने भक्तों द्वारा • ब्रह्म संप्रदाय: (Brahma Sect) यह भगवान विष्णु,
सर्वोच्च भगवान के रूप में पूज्यनीय भागवत, जिसे परम निर्माता, या परब्रह्म (ब्रह्म देवता के साथ भ्रमित
कृष्णवाद के रूप में भी जाना जाता है, का पता पहली नहीं होना) से संबंधित है। माधवाचार्य संस्थापक थे।
सहस्राब्दी ईसा पूर्व में लगाया जा सकता है। वैष्णव परंपरा चैतन्य महाप्रभु का गौड़ीय वैष्णववाद, ब्रह्म सम्प्रदाय से
के भीतर विभिन्न संप्रदाय, या उप-सम्प्रदाय है। जुड़ा है। इस सम्प्रदाय में इस्कॉन शामिल है।
• शैववाद (Shaivism): शिव को सर्वोच्च भगवान के रूप • पुष्टि मार्ग संप्रदाय (Confirmation Route Sect):
में सम्मानित किया जाता है। वैष्णववाद से पहले दूसरी वल्लभाचार्य ने 1500 ईस्वी के आसपास वैष्णव संप्रदाय
119
की स्थापना की। उनके दर्शन के अनुसार परम सत्य एक सांसों की संख्या को काफी कम कर देता है। कहा जाता
और केवल एक ब्रह्म है। भगवान कृष्ण भक्ति के लक्ष्य हैं, है कि सिद्धों में आठ अद्वितीय क्षमताएं थीं। वे वर्मम के
जो शुद्ध प्रेम पर आधारित है। सभी कृष्ण भक्तों से अपेक्षा संस्थापक माने जाते थे - जो एक ही समय में आत्मरक्षा
की जाती है कि वे अपनी व्यक्तिगत कृष्ण मूर्ति के लिए और चिकित्सा उपचार के लिए मार्शल कला
सेवा करें।
120
लोकायत दर्शन या चार्वाक संप्रदाय (Lokayat Darshan या जन्नत में भेज दिया जाएगा। मुसलमानों को दिन
or Charwak Sect) में पांच बार नमाज अदा करनी चाहिए। जुमा नमाज, या
जुमे की नमाज, सामूहिक रूप से मस्जिद में आयोजित
• बृहस्पति ने इस संप्रदाय की आधारशिला रखी, जिसे
होने चाहिए। रमजान महीने के दौरान, जो अगले महीने
दार्शनिक सिद्धांत स्थापित करने वाले पहले लोगों में
के पहले दिन ईद समारोह के साथ समाप्त होता है,
से एक माना जाता है। वेद और बृहदारण्य उपनिषद भी
मुसलमानों को सूर्योदय से सूर्यास्त तक उपवास करना
दर्शन का संदर्भ देते हैं। चार्वाक विचारधारा मोक्ष के लिए
चाहिए। पैगंबर के अनुसार, सभी को अपनी कमाई का
भौतिकवादी दृष्टिकोण का सबसे प्रभावशाली समर्थक
एक हिस्सा जरूरतमंद और गरीबों को देना चाहिए और
था। विचारधारा को शीघ्र ही लोकायत कहा जाता था,
इसे जकात या दान कहा जाता है।
या सामान्य लोगों से उत्पन्न हुआ, क्योंकि यह सामान्य
लोगों की ओर उन्मुख था। इस विचारधारा का तर्क है कि • जबकि इस्लाम कई संप्रदायों में विभाजित है, दो मुख्य
मृत्यु जीवन का अंतिम लक्ष्य है, और खुशी जीवन का उप-विभाजन हैं: शिया (जो अली का समर्थन करते हैं)
अंतिम लक्ष्य होना चाहिए चूंकि इसके बाद कोई अन्य और सुन्नी (जो सुन्नत का पालन करते हैं)। दोनों के बीच
ब्रह्मांड नहीं है । असमानता इस बात पर आधारित है कि पैगंबर मुहम्मद
का उत्तराधिकारी कौन होना चाहिए। सुन्नियों ने दावा
किया कि यह उन लोगों के खून का चाहिए जो पैगंबर
और उनके पहले अनुयायियों जैसे अबू बक्र के सबसे
इस्लाम धर्म (Islam Religion) करीबी थे। दूसरी ओर, शियाओ ं का मानना था कि पैगंबर
का उत्तराधिकारी उनके अपने खून का होना चाहिए और
• 'इस्लाम' शब्द का अर्थ है 'ईश्वर के प्रति समर्पण'।
अली ने अपने दामाद के दावे का समर्थन किया। जबकि
मुसलमान वे हैं जो ईश्वर से प्रार्थना करते हैं और पैगंबर
सुन्नी मुसलमान भारत में मुसलमानों का बहुमत बनाते
मुहम्मद की शिक्षाओ ं का पालन करते हैं। पैगंबर मुहम्मद,
हैं, शिया मुहर्रम के दौरान ध्यान देने योग्य होते हैं जब वे
इब्राहीम, मूसा और अन्य सहित भगवान के दूतों में अंतिम
इमाम हुसैन की भीषण मृत्यु (अली के छोटे बेटे) को फिर
थे। इब्राहीम, ईसाइयों और मुसलमानों के लिए समान रूप
से अधिनियमित करते हैं। इतिहास में ऐसे अवसर आए
से सहभाजीत पूर्वज है। माना जाता है कि पहाड़ों पर एक
हैं जब धर्म ने भारतीय उपमहाद्वीप में इस्लाम के रूप पर
देवदूत द्वारा पैगंबर मुहम्मद को भगवान का संदेश प्राप्त
प्रभाव डालने वाले परिवर्तनों और आंदोलनों का अनुभव
हुआ था। अपने अनुयायियों को, उन्होंने इन आदेशों का
किया है।
वर्णन किया। प्रारंभ में, उन्हें कई कठिनाइयों का सामना
करना पड़ा और उन्हें मक्का से मदीना भागने के लिए
मजबूर होना पड़ा। वह एक सफल तख्तापलट के बाद
मक्का लौटने में सक्षम थे। मक्का की इस यात्रा को ईसाई धर्म (Christianity)
हज (पवित्र तीर्थ) के रूप में जाना जाता है, और प्रत्येक
मुसलमान से अपने जीवनकाल में कम से कम एक बार • विश्व के सबसे बड़े धर्म, ईसाई धर्म के अनुयायी भारत में
इसे करने की उम्मीद की जाती है। अधिक हैं। यह यीशु मसीह द्वारा यरूशले म में स्थापित
किया गया था, और उसके विचारण और तीन दिवसीय
• पैगंबर मुहम्मद की बातें एवं दिन-प्रतिदिन की शिक्षाएं
पुनरुत्थान के बाद, यह अधिक से अधिक अनुयायियों
उनकी मृत्यु के बाद उनके अनुयायियों द्वारा एकत्र की गईं
को आकर्षि त करना शुरू कर दिया। कुछ समय बाद, यह
और हदीस के रूप में जानी जाती हैं, हदीस के जानकार
रोमन साम्राज्य का आधिकारिक धर्म बन गया और तेजी
इमामों ने इन हदीसों को संगृहित कर पुस्तकों का रूप
से विस्तार होने लगा। वेटिकन सिटी, रोमन कैथोलिक
दिया। कुरान की प्रामाणिक व्याख्या हदीस में की गयी।
ईसाई धर्म का केंद्र है। समय के साथ, कई ईसाई सुधार
पैगंबर की मृत्यु से पहले , कुरान की पवित्र पुस्तक को
आंदोलन का आविर्भाव हुआ, और प्रोटे स्टेंट, मेथोडिस्ट
संकलित किया गया था, और उनकी मृत्यु के बाद पुस्तक
और अन्य संप्रदायो की लोकप्रियता बढ़ी।
के रूप में अनुवादित होने से पहले उनकी दो बार पुष्टि
की गई थी। इस्लामी नियम, या शरीयत, इस किताब और • ब्रह्मांड की रचना करने वाले एक ईश्वर की उपस्थिति
सुन्नत पर आधारित हैं। ईसाई धर्म की विचारधारा का केंद्र है। जब आवश्यक हो,
भगवान अपनी सृजन की सहायता के लिए दूत या मसीहा
• इस्लाम के मूल सिद्धांत यह हैं कि केवल एक अल्लाह
भेजता है। यीशु एक संदेशवाहक था जो लोगों को परमेश्वर
(ईश्वर की अभिव्यक्ति) है जिसने पृथ्वी के लोगों की
की खोज करने और उनके "उद्धारकर्ता" होने में सहायता
सहायता के लिए अपना दूत भेजा, और पैगंबर मुहम्मद
करने के लिए भेजा गया था। वे अब भी मानते हैं कि यीशु
अंतिम पैगंबर थे। वे क़यामत के दिन में भी विश्वास करते
के मरने के बाद, पवित्र आत्मा के रूप में, पृथ्वी पर परमेश्वर
हैं जहां किसी के अच्छे और बुरे कर्मों का न्याय किया
का प्रभाव संरक्षित है । ईसाई, पवित्र त्रिमूर्ति की पूजा करते
जाएगा, और किसी को उनके कार्यों के आधार पर दोज़ख
121
हैं, जो पिता (परमेश्वर), पुत्र (यीशु), और पवित्र आत्मा से • 'वे जो अपने श्रम का फल खाते हैं, नानक, सही तरीके को
मिलकर बना है। बाइबिल ईसाइयों की पवित्र पुस्तक है। पहचानते हैं,' उनका एक प्रमुख दोहा कहता है, अनुयायी
इसमें रोमन कैथोलिक चर्च के साथ-साथ यहूदी के पुराने को अपनी आजीविका को खतरे में डाले बिना भगवान के
नियम के कुछ हिस्सों द्वारा परिभाषित नए ले खों की एक करीब जाने में सक्षम होना चाहिए। यह खट्टर व्यापारियों
श्रृंखला शामिल है। नया नियम इस संग्रह को दिया गया और व्यापारी वर्ग के लिए प्रमुख आकर्षणों में से एक लग
नाम था, और इसे बाइबिल बनाने के लिए पुराने नियम रहा था, जो सबसे उत्साही समर्थकों में से एक थे।
के साथ मिला दिया गया था। क्रिसमस पर, वे ईसा मसीह
• मुगल-सिख संबंध शुरू में मैत्रीपूर्ण थे, ले किन जहांगीर के
लोगों को चर्च जैसे पवित्र पूजा स्थल में इकट्ठा होने के
आदेश पर गुरु अर्जुन देव के वध के कारण दरार आ गई।
लिए आमंत्रित करते हैं। बपतिस्मा (ईसाई दीक्षा), उनके
खुशवंत सिं ह जैसे कुछ विद्वानों ने इस घटना को "सिखों
प्राथमिक अनुष्ठानों में से एक है, जिसमें एक शिशु, चर्च
की पहली शहादत" करार दिया था। गुरु हरगोबिं द (1595-
की सेवा में शामिल है। एक अन्य संस्कार यूचरिस्ट है,
1644) ने अंग्रेजों से लड़ने के लिए रामदासपुर में अपनी
जिसमें ब्रह्मांड के साथ शांति का प्रतीक भगवान को रोटी
सेना बनाकर उग्रवाद की प्रवृत्ति शुरू की। गुरु ने सिख
और शराब का अभिषेक शामिल है।
पंथ को सिख सैन्य-दल में परिवर्ति त कर दिया, जिसमें
अनुयायी "संत योद्धा" या "सैनिक संत" के रूप में सेवा
करेंगे जो अंततः स्वर्ग में प्रवेश करेंगे।
सिख धर्म (Sikhism) • गुरु हर राय और गुरु हर कृष्ण, अगले दो गुरु, लगातार
बाधाओ ं में थे और अंततः औरंगजेब द्वारा कैद कर लिए
• गुरु नानक (1469-1539) का जीवन, समय और शिक्षाएं गए थे। गुरु तेग बहादुर भी प्रभुत्व में सिखों के संप्रभु
सिख धर्म की संस्कृति की नींव हैं। वह एक अद्वितीय अधिकार बनाने वाले पहले लोगों में से थे। वह मुगल
दृष्टिकोण के साथ एक गैर-अनुरूपतावादी थे। उन्होंने हिं दू सम्राट औरंगजेब के समय मे भी थे और 1675 में दिल्ली
धर्म के खिलाफ एक व्यवस्थित लड़ाई शुरू की। उन्होंने में उसे मार डाला गया था। गुरु गोबिं द सिं ह अंतिम भौतिक
न केवल पंजाब की वर्तमान जीवन शैली की लोगों की गुरु थे, और उनकी मृत्यु के बाद, "व्यक्तिगत गुरुत्व"
आलोचना की, बल्कि उन्होंने अपने अनुयायियों को की व्यवस्था समाप्त हो गई, गुरु ग्रंथ के लिए गुरुओ ं के
सामाजिक-धार्मि क संगठन का एक वैकल्पिक तरीका अधिकार को स्थानांतरित कर दिया गया।
भी पेश किया। उन्होंने लोगों को एक साथ लाने के लिए
• ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि गुरु गोबिं द सिं ह ने
एक धर्मशाला और सांप्रदायिक भोजन में सामूहिक पूजा
मुगलों और पहाड़ी प्रमुखों के साथ मुठभेड़ में चार पुत्रों
की स्थापना करके अपने अनुयायियों के समूह जीवन
को खो दिया, और यह पद्धति उनके बाद समाप्त हो गई।
को नियंत्रित किया।
अपनी मृत्यु से ठीक पहले , उन्होंने गुरु ग्रंथ साहिब/आदि
• गुरु नानक ने केवल वर्तमान सामाजिक व्यवस्था का ग्रंथ दिया, जो सिख संतों की बानी थे और इस प्रकार
विरोध या अस्वीकार नहीं किया; उन्होंने एक विकल्प की उनकी आध्यात्मिक सहायता, सिखों के लिए निर्णय ले ने
पेशकश की। उनके अनुसार, मानव जीवन का अंतिम का अधिकार था। गुरु गोबिं द सिं ह ने खालसा सिख योद्धा
उद्देश्य मोक्ष, जिसे जन्म और पुनर्जन्म के अंतहीन चक्रों समुदाय की भी स्थापना की, जो गैर-खालसा सिखों से
से मुक्त करके प्राप्त किया जा सकता है। मोक्ष, धर्म, जाति अलग था, जिन्हें सहजधारी सिखों के रूप में जाना जाता
या लिंग की परवाह किए बिना सभी के लिए खुला है। था, और इसमें नानक-पंथी, भल्ला और उदासी शामिल
यह मोक्ष देवताओ ं की पूजा या पंडित मौलवियों द्वारा थे।
मध्यस्थता के रूप में पुस्तक पढ़ने से नहीं हो सकता है।
• बपतिस्मा ले ने वाले सिखों को 'सिं ह' कहा जाता था,
यह गुरु के सही विश्वास, पूजा और कर्म की शिक्षाओ ं के
जबकि महिलाओ ं को 'कौर' कहा जाता था। उन्होंने एक
माध्यम से किया जा सकता है। उन्होंने नए प्रकार की
समान बाहरी रूप के लिए वर्दी को अपनाकर एक और
पूजा का निर्माण किया, जैसे सामुदायिक रसोई (लं गर)।
एकरूपता हासिल की। खालसा सिखों को अपने बाल
• नानक का विश्वास उचित रूप से व्यावहारिक है; वह काटने से मना किया गया था और उन्हें पांच "क" (कच्चा,
तपस्या या गृहस्थी का परित्याग और मोक्ष के साधन के केश, कंघा, कृपाण, कड़ा) पहनना आवश्यक था। इस
रूप में आराम की जिज्ञासा नहीं करते है। इसके विपरीत, प्रकार के भौतिक भेद ने आंदोलन को एकरूपता प्रदान
वह अपने अनुयायियों से एक आदर्श व्यक्ति का जीवन की और उन्हें अपने सह-धर्मवादियों से अलग किया।
जीने का आग्रह करते हैं, जो अपने हाथों से अपना घर
चलाता है, गुरुद्वारे में संगत (सामुदायिक सभा) और
कीर्तन (भगवान की स्तुति के लिए सामूहिक गायन) में
भाग ले ता है।
122
पारसी धर्म की तुलना में नए हैं।
123
अध्याय - 14
भारतीय पंचांग
(INDIAN CALENDAR)
प्रत्येक वर्ष सूर्य जिन बारह राशियों से होकर गुजरता है, उनका
» चंद्र प्रणाली
नाम तारामंडल के एक नक्षत्र के नाम पर रखा गया है।
» सौर प्रणाली
कुल 28 नक्षत्र या तारामंडल हैं। अपने विभिन्न आकारों
» चन्द्र-सौर प्रणाली के कारण, सभी नक्षत्रों में समान संख्या में तारे नहीं होते
हैं; कुछ के पास केवल एक या दो हैं। प्रत्येक राशि में दो से
ये सिस्टम खगोलीय वर्षों पर आधारित हैं, जो आकाशीय पिं डों के तीन नक्षत्र होते हैं। हिं दू कैलें डर सौर वर्ष को दो हिस्सों में
मार्गो का निरीक्षण करते हैं, और विभिन्न पंचांग में उपयोग किए विभाजित करता है:
जाते हैं। ये सिस्टम निम्नलिखित नामों के लिए जिम्मेदार हैं:
उत्तरायण: भगवान का दिन, मकर संक्रांति से कारक
• सौर वर्ष (Solar Year): संक्रांति तक, या पौष (जनवरी) से आषाढ़ (जून) तक छह
महीने तक रहता है।
» यह उस समय को दर्शाता है जब पृथ्वी सूर्य के चारों ओर
दक्षिणायन: भगवान की रात, छह महीने तक रहती है,
अपनी कक्षा में एक बिं दु पर अण्डाकार घूमती है,जैसे कि
जुलाई से दिसंबर तक। नतीजतन, एक सौर वर्ष भगवान के
संक्रांति या विषुव, जिस पर वह अपनी यात्रा पूरी होने के
समय में एक दिन और एक रात के बराबर होता है।
बाद वापस आती है। एक सौर वर्ष में 365 दिन, 5 घंटे, 48
मिनट और 46 सेकंड होते हैं। इस पद्धति द्वारा वर्ष और
ऋतुओ ं के बीच सावधानीपूर्ण सामंजस्य बनाए रखा जाता
है। सौर वर्ष में कुल 12 महीने होते हैं। भारतीय पंचांगो का वर्गीकरण
• चंद्र वर्ष (Lunar Year): (Classification of Indian
» चंद्र वर्ष 12 महीनों या चंद्रमास से बना होता है, जो सौर वर्ष Calendar Forms)
की तरह ही होता है। दूसरी ओर, प्रत्येक चंद्र एक सिनोडिक
महीना है, जैसा कि लगातार दो पूर्ण चंद्रमाओ ं या नए • भारत में विभिन्न युगों के आधार पर विभिन्न प्रकार के
चंद्रमाओ ं के बीच के समय से परिभाषित होता है। पंचांगो का आविर्भाव हुआ, जिनसे वे संबंधित हैं। उनमें से
कुछ निम्नलिखित हैं:
» चूंकि एक चंद्र मास की अवधि 29.26 से 29.80 दिनों तक
होती है, इसलिए इसकी अवधि 354 दिन होती है, जो सौर 1. विक्रम संवत शक संवत, 2. हिजरी कैलें डर, 3. ग्रेगोरियन
वर्ष से 11 दिन कम है। इस विषमता की आपूर्ति , अंतनिवेश कैलें डर
या स्तंभन द्वारा की जाती है, जो चंद्र और सौर कैलें डर को
विक्रम संवत (Vikram Era):
संरखि
े त करता है। हर 2 साल और 6 महीने में, चंद्र कैलें डर
में सौर कैलें डर के साथ मिलान करने के लिए एक अंतराल • विक्रम युग 56 ईसा पूर्व में शुरू हुआ था, और अभी भी
महीना जोड़ा जाता है। अधिक मास इस अतिरिक्त महीने को बंगाल क्षेत्र को छोड़कर लगभग पूरे भारत में मौजूद है।
दिया गया नाम है, जिसे एक अंतःविषय मास भी कहा जाता है। इतिहासकारों के अनुसार, इस कैलें डर को उज्जैन के राजा
124
विक्रमादित्य ने शक शासकों पर अपनी जीत के उपलक्ष्य • यह कैलें डर एक चंद्र वर्ष का उपयोग करता है, जिसे 12
में बनाया था। हालांकि, कई इतिहासकारों का मानना है महीनों में विभाजित किया जाता है और इसमें 354 दिन
कि विक्रम संवत की स्थापना मालवा गणराज्य द्वारा की होते हैं। इस्लामी दिन सूर्यास्त के समय शुरू होता है
गई थी, और इस प्रकार मालवा गण काल के रूप में भी क्योंकि कैलें डर चंद्र होता है और महीने सूर्यास्त के तुरत
ं
जाना जाता है, और इसका नाम चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के बाद वर्धमान दिखने के साथ शुरू होते हैं। भारत में मुस्लिम
नाम पर रखा गया था जब उन्होंने लगभग 400 ईस्वी में शासनकाल के दौरान, इस कैलें डर को अपनाया गया था।
मालवा पर विजय प्राप्त की थी। यह अतीत से हिं दू रीति- मुहर्रम हिजरी अवधि का पहला महीना है, जिसके दौरान
रिवाजों पर आधारित एक चंद्र-सौर कैलें डर है। किसी भी व्यवसाय या यात्रा की अनुमति नहीं है। मुहर्रम
का पहला दिन इस्लामिक नया साल है।
• सौर ग्रेगोरियन कैलें डर, विक्रम संवत से 56.7 वर्ष पीछे है।
नया साल चैत्र के महीने में अमावस्या के बाद पहले दिन
से शुरू होता है, जो ग्रेगोरियन कैलें डर में मार्च-अप्रैल के
महीनों में आता है। यह अप्रैल के मध्य नेपाल में शुरू होता ग्रेगोरियन कैलें डर (Gregorian Calendar):
है, जो सौर नव वर्ष की शुरुआत का प्रतीक है। एक वर्ष में
• यह ईसाई धर्म के पिता ईसा मसीह के जन्मदिन पर
354 दिन होते हैं, जो 12 महीनों में विभाजित होते हैं। विक्रम
अपनाया गया है । यह एक सौर वर्ष है जो 1 जनवरी से शुरू
काल भारतीय क्षेत्र के अधिकांश हिस्सों में पहले वर्ष के
होता है और 365 दिन, 5 घंटे, 48 मिनट और 46 सेकंड तक
रूप में कार्ति क के साथ शुरू होता है।
चलता है। चूकि
ं कैलें डर में एक वर्ष के लिए अतिरिक्त घंटों
• हर महीना उजाला और अंधेरा दो हिस्सों (पखवाड़े) में का उपयोग नहीं किया जा सकता था, इसलिए अंतर्संबंध
विभाजित होता है। सौर वर्ष के साथ 11 दिनों की विसंगति (इं टरकले शन) उपकरण का उपयोग किया गया है, और
की प्रतिपूर्ति के लिए विक्रम संवत में एक अतिरिक्त हर चार साल में फरवरी के महीने में एक दिन जोड़ने की
महीना होता है जिसे अधिक मास के रूप में जाना जाता है, प्रथा शुरू की गई थी। एक नागरिक वर्ष एक ऐसा वर्ष है जो
हर 3 साल और हर 5 साल,13 महीने में इसमें जोड़ा जाता इस कैलें डर प्रारूप का अनुसरण करता है।
है। विक्रम संवत के अनुसार शून्य वर्ष, 56 ईसा पूर्व है।
125
अध्याय - 15
पुरस्कार और सम्मान
(AWARDS AND HONORS)
• व्यक्ति, सामुदायिक पुरस्कार और सम्मान असाधारण व्यापार और उद्योग, और अन्य क्षेत्रों में उनकी उत्कृष्ट
कार्य हेतु कृतज्ञता या मान्यता के प्रतीक के रूप में उपलब्धियों के लिए दिए जाते हैं। हर साल गणतंत्र दिवस
दिए जाते हैं। हर साल, भारत सरकार उन लोगों को कई पर पुरस्कार पाने वालों के नाम सामने आते हैं।
सम्मान प्रदान करती है जिन्होंने अपने क्षेत्र में उत्कृष्ट
• पद्म पुरस्कार निम्नलिखित कई नियमों के अधीन हैं:
प्रदर्शन किया है।
1. अगर किसी ने कम स्तर का पद्म पुरस्कार प्राप्त किया
है, और पुरस्कार के बाद से पांच साल या उससे अधिक
हो गए हैं तो वे केवल उच्च स्तर का पुरस्कार प्राप्त कर
भारत सरकार द्वारा दिया सकते हैं।
जाने वाला पुरस्कार 2. पुरस्कार शायद ही कभी मरणोपरांत दिए जाते हैं, ले किन
यदि मामला विशेष रूप से सम्मोहक हो तो अपवाद हो
(Award Given by the सकता हैं।
Government of India) 3. चुने जाने वाले व्यक्ति की उपलब्धियों में लोक सेवा का
एक घटक शामिल होना चाहिए। यह केवल किसी भी क्षेत्र
भारत रत्न (Bharat Ratna) में असाधारण प्रदर्शन पर केंद्रित नहीं होना चाहिए, बल्कि
असाधारण प्रदर्शन और सार्वजनिक सेवा के एक घटक
• भारत रत्न शीर्षक का शाब्दिक अर्थ "भारत का गहना" है
पर केंद्रित होना चाहिए।
और यह भारत गणराज्य का सर्वोच्च नागरिक सम्मान है।
4. सरकारी कर्मचारी, जिनमें सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों
• भारत रत्न उन उत्कृष्ट लोगों को दिया जाता है जिन्होंने
में कार्यरत कर्मचारी भी शामिल हैं, चिकित्सकों और
अपने क्षेत्रों में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया है। यह पहली बार
वैज्ञानिकों को छोड़कर, इन सम्मानों के लिए पात्र नहीं हैं।
1954 में जारी किया गया था। मूल रूप से, यह पुरस्कार
उन कलाकारों को प्रदान किया गया था जिन्होंने कला, • भारत सरकार के अनुसार, पुरस्कार तीन श्रेणियों के होते
अनुसंधान, साहित्य या सार्वजनिक सेवा में महत्वपूर्ण हैं:
योगदान दिया था, हालांकि, मानव प्रयास के किसी भी
क्षेत्र को शामिल करने के लिए मानकों को दिसंबर 2011
में बढ़ा दिया गया था। पद्म विभूषण (Padma Vibhushan)
• भारत के प्रधान मंत्री, भारत के राष्ट्रपति को सिफारिशें • यह भारत गणराज्य का दूसरा सबसे प्रतिष्ठित नागरिक
करते हैं, जो किसी भी वर्ष पुरस्कार के लिए तीन से पुरस्कार है। जिन लोगों को पुरस्कार से सम्मानित किया
अधिक व्यक्तियों का चयन नहीं करते हैं। हालांकि जाता है, उन्हें एक प्रशस्ति पत्र और केंद्र में कमल फूल
पुरस्कार विजेताओ ं को कोई पैसा नहीं मिलता है, ले किन के साथ एक बैज जिसमे अग्रभाग पर "देश सेवा" शब्द
उन्हें एक पीपल के पत्ते के आकार का पदक और एक समुद्भृत होता है।
प्रमाण पत्र (सनद) मिलता है।
126
पद्म श्री (Padma Shri) हैं। हर साल, अकादमी उन ले खकों का चयन करती
है जिन्होंने साहित्य अकादमी पुरस्कार के साथ-साथ
• यह भारत गणराज्य का चौथा सर्वोच्च नागरिक सम्मान शास्त्रीय और मध्यकालीन साहित्य में संरक्षित 24
है, जो सरकार द्वारा साहित्य, कला, राजनीति, खेल, प्रमुख भाषाओ ं के अलावा भारतीय भाषाओ ं में महत्वपूर्ण
उद्योग, समाज सेवा, चिकित्सा आदि जैसे विभिन्न क्षेत्रों में योगदान दिया है।
उत्कृष्ट योगदान के लिए दिया जाता है। पुरस्कार प्राप्त
• भाषा सम्मान में एक पट्टिका और एक लाख रुपये का
करने वाले को एक प्रमाण पत्र और एक पदक प्राप्त होता
नकद इनाम शामिल है।
है जिसके एक तरफ तीन पत्तों वाला फूल होता है और
दूसरी तरफ देवनागरी लिपि में पद्म (कमल) और श्री (श्री
या सुश्री) लिखा होता है।
ज्ञानपीठ पुरस्कार (Gyanpith Award)
• प्रतियोगिता में 1 लाख रुपये का नकद पुरस्कार और • यह उत्कृष्ट गद्य या काव्य साहित्यिक कार्यों के लिए
देवनागरी लिपि में एक पट्टिका शामिल है जिसमें साहित्य भारतीय संविधान की अनुसूची VIII में निर्दिष्ट 22
लिखा होता है। पट्टिका को एक प्रसिद्ध भारतीय फिल्म भारतीय भाषाओ ं में से किसी एक में दिया जाने वाला
निर्माता सत्यजीत रे द्वारा डिजाइन किया गया था। वार्षि क पुरस्कार है।
127
अध्याय - 16
• इस विविधता को पाठ्यक्रम में व्यक्त किया जाना चाहिए • आईसीसीआर विभिन्न प्रकार के दृश्य और प्रदर्शन कला
और आधुनिक और रचनात्मक शिक्षण विधियों द्वारा कार्यक्रमों का समर्थन करता है जिनकी वैश्विक पहुंच है।
मजबूत किया जाना चाहिए। वे नई दिल्ली, जैज़ फेस्टिवल और गुवाहाटी, नॉर्थ-ईस्ट
म्यूजिक फेस्टिवल जैसे कार्यक्रमों के लिए फंड देते हैं।
129
साहित्य अकादमी (Sahitya
कलाओ ं के लिए देश का मुख्य प्रदर्शन होना था, उनके
पास भारत की विशाल अमूर्त विरासत को बढ़ावा देने का
Academy) कठिन कार्य भी था, जो संगीत, नृत्य और नाटक के रूपों
में प्रकट हुआ था।
• 1954 में, भारत सरकार ने "नेशनल एकेडमी ऑफ ले टर्स" • यह न केवल हमारी सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण की
या साहित्य अकादमी की स्थापना की। देखरेख के प्रभारी केंद्रीय निकाय होने के लिए हैं, बल्कि
• इस संगठन का प्राथमिक लक्ष्य भारत में साहित्यिक उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर अपनी संस्कृतियों के संरक्षण और
संस्कृति को बढ़ावा देने के साथ-साथ सभी भारतीय प्रोत्साहन के लिए राज्य और केंद्र शासित प्रदेश की
भाषाओ ं में साहित्य को बढ़ावा देने, समन्वय करने और सरकारों के साथ भी काम करने के लिए है।
देश की समग्र राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देने के लिए • संगीत नाटक अकादमी नृत्य, संगीत या नाटक में
समर्पि त एक राष्ट्रीय संगठन के रूप में सेवा करना था विशेषज्ञता रखने वाले विभिन्न संस्थानों की भी देखरेख
• यह एक स्वशासी निकाय है जो 24 से अधिक भारतीय करती है।
भाषाओ ं में साहित्यिक गतिविधियों में संलग्न है।
130
अध्याय - 17
भारतीय त्यौहार
(INDIAN FESTIVAL)
Festivals) • दुर्गा पूजा हिं दू त्योहार है जो देवी दुर्गा की याद में मनाया
जाता है यह मुख्य रूप से भारत के पूर्वी क्षेत्रों (विशेषकर
• यह त्योहार विशिष्ट समूहों द्वारा मनाया जाता है जो एक पश्चिम बंगाल) में मनाया जाता है। यह पर्व राक्षस
विशिष्ट विश्वास प्रणाली का अनुसरण करते हैं। जबकि महिषासुर पर देवी दुर्गा की जीत की याद दिलाता है।
विभिन्न धर्मों के लोगों का उत्सव में भाग ले ने हेतु कोई
प्रतिबंध नहीं है। उदाहरण के लिए, होली मुख्य रूप से एक
हिं दू धार्मि क त्योहार है, ले किन भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष 4. गणेश चतुर्थी (Ganesh Chaturthi)
देश में गैर-हिं दुओ ं द्वारा भी इसका आनंद लिया जाता है।
हमने दुनिया भर के समूहों द्वारा मनाए जाने वाले त्योहारों • गणेश चतुर्थी एक हिं दू त्योहार है जो भगवान गणेश
की एक सूची बनाई है। जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है, ले किन यह विशेष
रूप से महाराष्ट्र में मनाया जाता है क्योंकि यह राज्य का
मुख्य त्योहार है।
• कुछ प्रमुख हिं दू त्योहार निम्नलिखित हैं: मुस्लिम त्यौहार (Muslim Festival)
1. ईद-उल-फितर (Eid-ul-Fitr)
131
समाप्त होता है। शव्वाल के महीने का पहला दिन और संयोग से, इस्लामिक कैलें डर के पहले महीने के पहले
रमजान महीने के अंत में चंद्रमा की उपस्थिति के बाद दिन होता है। मुहर्रम के 10वें दिन को यम-अल-अशूरा के
ईद-उल-फितर त्योहार की तारीखों का निर्धारण किया नाम से जाना जाता है, जिसे मुसलमान शोक दिन के रूप
जाता है, जो एक जटिल प्रक्रिया के माध्यम से निर्धारित में मनाते हैं।
होता है।
132
लोहड़ी (Lohri) करते हैं । मूर्ति को दूध, गन्ने के रस और केसर के पेस्ट से
नहलाया जाता है, और ऊपर से चंदन, हल्दी और सिं दूर का
• मकर संक्रांति से एक दिन पहले माघ मास में 13 जनवरी
पाउडर छिड़का जाता है।
को यह पर्व मनाया जाता है। लोहड़ी एक हिं दू त्योहार है
जो उर्वरता क्षमता और सृजन उत्साह का सम्मान करता
है। लोग अलाव के आसपास इकट्ठा होते हैं, कैंडी, फूला
ज्ञान पंचमी (Gyan Panchami)
हुआ चावल और पॉपकॉर्न आग की लपटों में फेंकते हैं,
सार्वजनिक गीत गाते हैं, और बधाई देते हैं। यह अंधकार • "ज्ञान पंचमी" कार्ति क के पांचवें दिन को दिया गया नाम
पर प्रकाश की विजय का भी प्रतिनिधित्व करता है। है। इसे "जागरूकता दिवस" के रूप में जाना जाता है। जैन
धर्म के तहत इस दिन पवित्र शास्त्रों को दिखाया और पूजा
जाता है।
वैशाख/वैशाखी (Vaishakh/Vaishakhi)
सोनक्रान (Sonkran)
पर्यूषण पर्व (Paryshoon Festival) • यह बौद्ध त्योहार उसी तरह मनाया जाता है जैसे वसंत
ऋतु में सफाई होती है। अप्रैल के मध्य में, यह कई दिनों
• पर्यूषण जैनियों के वार्षि क उत्सव का नाम है। श्वेतांबर
तक मनाया जाता है। लोग अपने घरों की सफाई करते
संप्रदाय भाद्रपद (अगस्त / सितंबर) के महीने में आठ
हैं, अपने कपड़े धोते हैं और भिक्षुओ ं पर सुगंधित जल
दिनों तक इसे मनाते है तथा दिगंबर संप्रदाय द्वारा दस
छिड़कना एक सामान्य कार्य है।
दिनों तक आयोजित किया जाता है।
133
महीने में मनाया जाता है। • इस महोत्सव की स्थापना 1975 में भारत सरकार द्वारा
मध्य प्रदेश कला परिषद के सहयोग से की गई थी। इस
नृत्य उत्सव का उद्देश्य खजुराहो मंदिरों की सुंदरता और
उलम्बाना (Ulmbana) कामुकता को उजागर करते हुए राज्य में पर्यटन को
प्रोत्साहित करना था।
• यह पर्व आठवें चंद्र मास के पहले से पन्द्रहवें दिन तक
चलता है। कहा जाता है कि नरक के द्वार पहले दिन खुलते
हैं, जिससे आत्माओ ं को पंद्रह दिनों के लिए पृथ्वी में प्रवेश
करने की अनुमति मिलती है। इस दौरान आत्मा के दर्द
त्यागराज आराधना (Tyagraj Aradhana)
को कम करने के लिए भोजन का प्रसाद चढ़ाया जाता है। • यह हर साल प्रसिद्ध तेलुगु संत और संगीतकार की स्मृति
लोग 15वें दिन (उलम्बाना या पूर्वज दिवस) पर कब्रिस्तान में आयोजित किया जाता है
जाते हैं और दिवंगत आत्माओ ं को प्रसाद चढ़ाते हैं।
• त्यागराज का 'समाधि' दिवस। यह मुख्य रूप से तिरुवयारु,
आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु (जहां उन्होंने समाधि प्राप्त की)
में आयोजित किया जाता है। कर्नाटक संगीत के प्रमुख
सिं धी त्यौहार (Sindhi Festival) प्रतिपादक संत को सम्मान देने के लिए उत्सव में शामिल
चालिहो साहिब (Chaliho Sahib) होते हैं। कर्नाटक संगीत की त्रिमूर्ति में संत त्यागराज,
मुथुस्वामी दीक्षितार और श्यामा शास्त्री शामिल हैं।
• जुलाई और अगस्त के महीनों में, सिं धी 40 दिन का
उपवास रखते हैं। वे भगवान झूलेलाल से प्रार्थना करने
के लिए 40 दिनों तक उपवास करते हैं, और फिर वे दिन
को धन्यवाद दिवस के रूप में मनाते हैं। थट्टा के लोग सिं ध
ओणम (Onam)
के एक मुस्लिम आक्रमणकारी मिर्कशाह बादशाह से • ओणम, केरल का राज्य उत्सव, मलयालम कैलें डर के
परेशान थे, जो चाहता था कि वे इस्लाम में परिवर्ति त हो पहले महीने, चिगम की शुरुआत में होता है। यह मुख्य रूप
जाएं । वरुण देवता, या जल के देवता से प्रार्थना करने के से एक फसल उत्सव है, ले किन यह पाताल (भूमिगत)
लिए लोगों ने 40 दिनों तक नदी के तट पर तपस्या की। से शक्तिशाली असुर राजा महाबली की वापसी की भी
40 वें दिन वरुण देवता ने उनकी प्रार्थना सुनी और उन्हें याद दिलाता है। ओणम के रंगीन और जीवंत त्योहार
अत्याचारी से मुक्ति दिलाने की कसम खाई। झूलेलाल में विस्तृत दावतें, नृत्य, फूल, बर्तन और हाथी शामिल
उनकी प्रार्थनाओ ं का उत्तर थे। हैं। वल्लम काली ओणम (स्नेक बोट रेस) की एक
लोकप्रिय विशेषता है। नेहरू नाव रेस पदक सबसे प्रसिद्ध
वल्लमकली के विजेताओ ं को प्रदान की जाती है, जो
पारसी त्योहार (Parsi Festival) पुन्नमदा झील में आयोजित की जाती है।
Festival)
खजुराहो नृत्य महोत्सव (Khajuraho Dance
Festival)
134
उत्तर पूर्व भारत के त्यौहार हर साल 1 दिसंबर को दस दिवसीय उत्सव शुरू होता है।
यह त्यौहार सभी बड़ी नागा जनजातियों को एक साथ
(Festivals of North East लाता है, जो किसामा हेरिटे ज विले ज में एकत्र होते हैं।
सभी जनजातियों द्वारा अपनी प्रतिभा और सांस्कृतिक
India) जीवंतता दिखाने के लिए वेशभूषा, हथियार, धनुष और
तीर और कबीले की टोपी का उपयोग किया जाता है। यह
सागा दावा (त्रिपक्षीय समृद्ध महोत्सव) (Saga सभी जनजातियों के साथ-साथ युवा पीढ़ी के लिए भी
Claims) (Tripartite Prosperous Festival)
एक साथ आने का एक उत्कृष्ट अवसर है।
• यह मुख्य रूप से सिक्किम राज्य में बौद्ध समूहों द्वारा
मनाया जाता है। यह पूर्णि मा के दिन मनाया जाता है जो
तिब्बती चंद्र महीने सागा दावा में पड़ता है, जो तिब्बती चंद्र मोत्सु मोंग त्योहार (Motsu Mong Festival)
महीने के मध्य में होता है। तिब्बती समूह आज को काफी
• यह नागालैं ड की एओ जनजाति द्वारा बुवाई के पूरा होने
शुभ दिन मानता है। यह महीना, जो मई और जून के बीच
के बाद मई के पहले सप्ताह में मनाया जाता है। जंगलों
पड़ता है, सागा दावा या "महीने का गुण" के रूप में जाना
को जलाने, खेतों को साफ करने, बीज बोने आदि
जाता है। इस त्योहार में बुद्ध के जन्म, ज्ञान और मृत्यु
के तनावपूर्ण काम के बाद, त्योहार उन्हें विश्राम और
(परिनिर्वाण) का स्मरण किया जाता है।
मनोरंजन का समय प्रदान करता है। इस अवसर को
चिह्नित करने के लिए गीत और नृत्य का उपयोग किया
जाता है। संगपांगटू त्योहार का एक हिस्सा है, जहां एक
लोसूंग महोत्सव (Losung Festival)
बड़ी आग जलाई जाती है और इसके चारों ओर महिलाएं
• सिक्किम के नववर्ष को लोसूंग के नाम से जाना जाता और पुरुष बैठते हैं।
है। हर साल दिसंबर के महीने में यह सिक्किम में मनाया
जाता है। जैसा कि पहले उल्ले ख किया गया है, सिक्किम
राज्य में कृषि मुख्य व्यवसाय है, और फसल का मौसम खारची पूजा (Kharchi Puja)
किसानों और अन्य व्यावसायिक समूहों द्वारा मनाया
• इसकी उत्पत्ति त्रिपुरा में हुई। हालाँकि यह त्रिपुरा के त्योहार
जाता है।
के शाही परिवार के रूप में शुरू हुआ था, ले किन अब इसे
आम लोग भी मनाते हैं। यह जुलाई के महीने में होता है
और एक सप्ताह तक चलता है। त्योहार पृथ्वी के सम्मान
बिहू महोत्सव (Bihu Festival)
के साथ-साथ 14 अन्य देवताओ ं का सम्मान करने के
• यह तीन प्रमुख असमिया गैर-धार्मि क त्योहारों का एक लिए आयोजित किया जाता है।
समूह है: अप्रैल में रोंगाली या बोहाग बिहू, अक्टू बर में
कोंगाली या कटि बिहू और जनवरी में भोगली बिहू। तीनों
में सबसे महत्वपूर्ण रोंगाली बिहू है, जो असमिया नव वर्ष ड्री त्योहार (Dre Festival)
पर पड़ता है। बिहू के दौरान, मुख्य आकर्षण गीत और नृत्य
• यह त्योहार मुख्य रूप से अरुणाचल प्रदेश की अपतानी
हैं।
जनजाति द्वारा मनाया जाता है। ड्री त्योहार की परंपराएं
अब जनजातियों की बढ़ती संख्या द्वारा मनायी जा रही है।
यह जीरो घाटी में सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है।
हॉर्नबिल महोत्सव (Hornbill Festival)
135
विगत वर्षों मे
पूछे गए प्रश्न
(PREVIOUS
YEAR
QUESTIONS)
136
मुख्य परीक्षा के प्रश्न (Main 11. भारत की प्राचीन सभ्यता, मिस्र, मेसोपोटामिया और
ग्रीस की सभ्यताओ ं से, इस बात में भिन्न है कि भारतीय
Exam Questions) उपमहाद्वीप की परंपराएं आज तक भंग हुए बिना
परिरक्षित की गई है। टिप्पणी कीजिए। (2015)
1. शैलकृत स्थापत्य प्रारंभिक कला एवं इतिहास के ज्ञान के
अति महत्वपूर्ण स्रोतों में से एक का प्रतिनिधित्व करता है।
12. भारत की मध्यपाषाण शिला-कला न केवल उस
विवेचना कीजिए। (2020)
काल के सांस्कृतिक जीवन को, बल्कि आधुनिक
चित्र-कला से तुलनीय परिष्कृ त सौंदर्य बोध को भी,
2. भारतीय दर्शन एवं परंपरा नें भारतीय स्मारकों की प्रतिबिं बित करती है। इस टिप्पणी का समालोचनात्मक
कल्पना और आकार देने एवं उनकी कला में महत्वपूर्ण मूल्यांकन कीजिए। (2015)
भूमिका निभाई है।विवेचना कीजिए। (2020)
4. भारतीय कला विरासत का संरक्षण वर्तमान समय की 14. गांधार मूर्ति कला रोमनिवासियों की उतनी ही ऋणी थी
आवश्यकता है। चर्चा कीजिए। (2018) जितनी कि वह यूनानियों की थी । स्पष्ट कीजिए। (2014)
5. भारत के इतिहास के पुनर्निर्माण में चीनी और अरब 15. तक्षशिला विश्वविद्यालय विश्व के प्राचीनतम विश्वविद्यालयों
यात्रियो वृतान्तों के महत्व का आकलन कीजिए। (2018) में से एक था जिसके साथ विभिन्न शिक्षण-विषयों
(डिसीप्लिं स) के अनेक विख्यात विद्वानी व्यक्तित्व सम्धबं ित
थे। उसकी रणनीतिक अवस्थिति के कारण उसकी कीर्ति
6. श्री चैतन्य महाप्रभु के आगमन से भक्ति आंदोलन को फैली, ले किन नालं दा के विपरीत, उसे आधुनिक अभिप्राय
असाधारण नई दिशा मिली थी । चर्चा करें। (2018) में विश्वविद्यालय नहीं समझा जाता। चर्चा कीजिए । (2014)
7. आप इस दृष्टिकोण को, कि गुप्तकालीन मुद्राशास्त्रीय 16. सूफी और मध्यकालीन रहस्यवादी सिद्ध पुरुष (संत) हिं दू
कला की उत्कृष्टता का स्तर बाद के समय में नितांत / मुसलमान समाजों के धार्मि क विचारों और रीतियों को
दर्शनीय नहीं है, किस प्रकार सही सिद्ध करेंगे ? (2017) या उनकी वाह्य संरचना को पर्याप्त सीमा तक रूपांतरित
करने में विफल रहे । टिप्पणी कीजिए। (2014)
137
प्रारंभिक परीक्षा के प्रश्न (Pre- 5. निम्नलिखित युग्मों पर विचार करें: 2018
परंपरा राज्य
lims Questions) 1. चपचार कुट महोत्सव - मिजोरम
1. भारत के सांस्कृतिक इतिहास के संदर्भ में, निम्नलिखित 2. खोंगजोम परबा गाथागीत - मणिपुर
में से कौन सा 'परामिता' शब्द का सही विवरण है? 2020 3. थांग-टा नृत्य - सिक्किम
(a) प्राचीनतम धर्मशास्त्र ग्रंथ सूत्र पद्धति में लिखे गए हैं। उपर्युक्त युग्मों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(b) दार्शनिक जो वेदों के प्राधिकार को अस्वीकार करने (a) केवल 1
वाले दार्शनिक संप्रदाय।
(b) 1 और 2
(c) परिपूर्णताये जिनकी प्राप्ति बोधिसत्व पथ की ओर ले
(c) 1 और 2
जाती है।
(d) 2 और 3
(d) आरंभिक मध्यकालीन दक्षिण भारत की शक्तिशाली
व्यापारी श्रेणियाँ।
6. भारत के सांस्कृतिक इतिहास के संदर्भ में
निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिएः 2018
2. भारत के सांस्कृतिक इतिहास के संदर्भ में निम्नलिखित
युग्मों पर विचार कीजिए। 2020 1. त्यागराज की अधिकांश कृतियां भगवान कृष्ण की
स्तुति के भक्ति गीत हैं।
1. परिव्राजक - परित्यागी व भ्रमणकारी
2. त्यागराज ने अनेक नए रागों का सृजन किया ।
2. श्रमण - उच्च पद प्राप्त पुजारी
3. अन्नामाचार्य और त्यागराज समकालीन हैं।
3. उपासक - बौद्ध धर्म के अनुयायी
4. अन्नमाचार्य कीर्तन भगवान वेंकटे श्वर की स्तुति के
ऊपर दिए गए युग्मों में से कौन-सा सही सुमेलित है?
भक्ति गीत हैं।
(a) केवल 1 और 2
उपर्युक्त कथनों में से कौन सा सही है?
(b) केवल 1 और 3
(a) केवल 1 और 3
(c) केवल 2 और 3
(b) केवल 2 और 4
(d) 1, 2 और 3
(c) 1, 2 और 3
(d) 2, 3 और 4
3. निम्नलिखित में से किस उभारदार मूर्तिशिल्प(रिलीफ
स्कल्पचर ) शिलाले ख में अशोक के प्रस्तर रूपचित्र के
साथ 'राण्यो अशोक' (राजा अशोक) का उल्ले ख है? 2019 7. भारत के सांस्कृतिक इतिहास के संदर्भ में निम्नलिखित
कथनों पर विचार कीजिएः 2018
(a) कंगनहल्ली
1. फतेहपुर सीकरी स्थित बुलंद दरवाजा तथा खानकाह
(b) सांची
के निर्माण में सफेद संगमरमर का प्रयोग हुआ था।
(c) शाहबाजगढ़ी
2. लखनऊ में बड़ा इमामबाड़ा और रूमी दरवाजा बनाने
(d) सोहगौरा में लाल बलु आ पत्थर और संगमरमर का प्रयोग हुआ था।
(d) विजयनगर
8. सुप्रसिद्ध चित्र "बाणी-ठणी" किस शैली का है 2018
138
(b) जयपुर शैली (c) केवल 1 और 3
(b) केवल 1 और 3
10. बोधिसत्व पद्मपाणि की चित्रकारी सबसे प्रसिद्ध
(c) केवल 2 और 3
और अक्सर सचित्र चित्रों में से एक है: 2017
(d) केवल 1
(a) अजंता
(b) बादामी
14. भारत के सांस्कृतिक इतिहास के संदर्भ में, कालक्रम,
(c) बाघ
राजवंशीय इतिहासो तथा वीरगाथाओ ं को कंठस्थ करना
(d) एलोरा निम्नलिखित में से किसका व्यवसाय था? 2016
(a) श्रमण
11. निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजिए : 2017 (b) परिव्राजक
परंपराए समुदाय (c) अग्रहारिका
1. चालिहा साहिब महोत्सव - सिं धी का (d) मगध
2. नंदा राज जात यात्रा - गोंडो का
3. वारी- वारकरी - संथालो का 15. मध्यकालीन भारत के सांस्कृतिक इतिहास के संदर्भ में
उपर्युक्त युग्मों में से कौन-सा/से सही सुमेलित है/हैं? निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिएः 2016
139
2. दोनों एक ही धार्मि क संप्रदाय के हैं। 20. निम्नलिखित में से किसे हाल ही में शास्त्रीय भाषा का
दर्जा दिया गया है? 2015
3. दोनों में शिलाकृत स्मारक हैं।
(a) उड़िया
नीचे दिए गए कोड का प्रयोग कर सही उत्तर चुनें।
(b) कोंकणी
(a) केवल 1 और 2
(c) भोजपुरी
(b) केवल 3
(d) असमिया
(c) केवल 1 और 3
3. तेलुगु
19. भारत के कला और पुरातात्विक इतिहास के संदर्भ में, उपरोक्त में से किसे सरकार द्वारा 'शास्त्रीय भाषा घोषित
निम्नलिखित में से किस एक का सबसे पहले निर्माण किया गया है?
किया गया? 2015
(a) केवल 1 और 2
(a) भुवनेश्वर में लिंग राजा मंदिर
(b) केवल 3
(b) धौली स्थित शैलकृत हाथी
(c) केवल 2 और 3
(c) महाबलीपुरम स्थित शैलकृत स्मारक
(d) 1, 2 और 3
(d) उदयगिरी स्थित मूर्ति
140
पर विचार कीजिएः 2014 कुछ हिस्सों में एक जीवंत परंपरा है।
2. यह असम के वैष्णवों की शताब्दियों पुरानी जीवंत 27. निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजिए : 2014
परंपरा है।
1. गरबा: गुजरात
3. यह तुलसीदास, कबीर और मीराबाई द्वारा रचित भक्ति
2. मोहिनीअट्टम: उड़ीसा
गीतों के शास्त्रीय रागों और तालों पर आधारित है।
3. यक्षगान: कर्नाटक
उपरोक्त में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं?
उपर्युक्त युग्मों में से कौन-सा/से सही सुमेलित है/हैं?
(a) केवल 1
(a) केवल 1
(b) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
(d) 1, 2 और 3
(a) केवल 1 और 2
29. मंगनियार नामक लोगों का एक समुदाय प्रसिद्ध है: 2014
(b) केवल 3
(a) उत्तर-पूर्वी भारत में मार्शल आर्ट
(c) केवल 1 और 3
(b) उत्तर-पश्चिम भारत में संगीत परंपरा
(d) 1, 2 और 3
(c) दक्षिण भारत में शास्त्रीय गायन संगीत
141
अन्य को विहार कहा जाता है। दोनों के बीच क्या अंतर 1. अजंता की गुफाएं
है? 2013
2. ले पाक्षी मंदिर
(a) विहार पूजा का स्थान है, जबकि चैत्य भिक्षुओ ं का
3. सांची स्तूप
निवास स्थान है
उपरोक्त में से कौन-सा/से स्थान भित्ति चित्रों के लिए
(b) चैत्य पूजा का स्थान है, जबकि विहार भिक्षुओ ं का
जाना जाता है/हैं?
निवास स्थान है
(a) केवल 1
(c) चैत्य गुफा के सबसे दूर स्थित स्तूप है, जबकि विहार
अक्षीय हॉल है (b) केवल 1 और 2
2. बराबर शैलकृत गुफाएं मूल रूप से सम्राट चंद्रगुप्त 1. सांख्य आत्मा के पुनर्जन्म या स्थानांतरगमन के
मौर्य द्वारा आजीविकों के लिए बनाई गई थीं सिद्धांत को स्वीकार नहीं करता है।
3. एलोरा में विभिन्न धर्मों के लिए गुफाएं बनाई गईं। 2. सांख्य का मानना है कि यह आत्म-ज्ञान है जो मुक्ति
की ओर ले जाता है न कि कोई बाहरी प्रभाव अथवा
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
कारक।
(a) केवल 1
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(b) केवल 2 और 3
(a) केवल 1
(c) केवल 3
(b) केवल 2
(d) 1, 2 और 3
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1, न ही 2
33. भारत के सांस्कृतिक इतिहास के संदर्भ में, 'त्रिभंगा'
नामक नृत्य और नाट्य में एक मुद्रा प्राचीन काल से आज
तक भारतीय कलाकारों की अतिप्रिय रही है। 36. भगवान बुद्ध की प्रतिमा को कभी-कभी एक हस्त मुद्रा
युक्त दिखाई गई है जिसे भूमि स्पर्श मुद्रा कहा जाता है। यह
निम्नलिखित में से कौन-सा एक कथन इस मुद्रा को
प्रतीक है 2012
सर्वोत्तम रूप से वर्णि त करता है?2013
(a) मार पर दृष्टि रहने एवं अपने ध्यान में विन डालने से
(a) एक पाँव मोड़ा जाता है और देह थोड़ी किन्तु विपरीत
मान को रोकने के लिए बुद्ध का धरती का आह्नान
दिशा में कटि एवं ग्रीवा पर वक्र की जाती है।
(b) मार के प्रलोभनों के बावजूद अपनी शुचिता और
(b) मुख अभिव्यंजनाएँ , हस्तमुद्राएँ एवं आसज्जा कतिपय
शुद्धता और साक्षी होने के लिए बुद्ध का धरती का
महाकाव्य अथवा ऐतिहासिक पात्रें को प्रतीकात्मक
आह्नान
रूप में व्यक्त करने के लिए संयोजित की जाती है
(c) बुद्ध का अपने अनुयायियों को स्मरण कराना कि वे
(c) देह, मुख एवं हस्तों की गति का प्रयोग स्वयं को
सभी धरती से उत्पन्न होते है और अन्ततः धरती में
अभिव्यक्त करने अथवा एक कथा कहने के लिए
विलीन हो जाते है, अतः जीवन संक्रमणशील है
किया जाता है
(d) इस सन्दर्भ में दोनो ही कथन (a) एवं (b) सही
(d) मंद स्मिति, थोड़ी वक्र कटि एवं कतिपय हस्तमुद्राओ ं
हैं
पर बल दिया जाता है, प्रेम एवं श्रृंगार की अनुभूतियों
को अभिव्यक्त करने के लिए
37. नागर, द्रविड़ और वेसर हैं 2012
34. निम्नलिखित ऐतिहासिक स्थलों पर विचार कीजिए : (a) भारतीय उपमहाद्वीप के तीन मुख्य जातीय समूह।
2013 (b) तीन मुख्य भाषा वर्ग जिनमें भारत की भाषाओ ं को
142
विभक्त किया जा सकता है संरक्षण दिया
(c) भारतीय मंदिर वास्तुकला की तीन मुख्य शैलियाँ। (c) बंगाल की खाड़ी में मानसूनी हवाओ ं ने समुद्री
यात्राओ ं को सुगम बनाया
(d) भारत में प्रचलित तीन मुख्य संगीत घराने।
(d) इस संबंध में (a) तथा (b) दोनों विश्वसनीय
व्याख्याएं हैं
38. सदियों से भारत में में जीवित रही एक प्रमुख परंपरा
"ध्रुपद" के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन सा कथन
सही है? 2012 41. निम्नलिखित में से कौन भक्ति पंथ का समर्थक नहीं
था? 2010
1. ध्रुपद की उत्पत्ति और विकास मुगल काल के दौरान
राजपूत राज्यों में हुआ था। (a) नागार्जुन
(a) केवल 1 और 2
42. बौद्ध स्थल “ताबो मठ” किस राज्य में स्थित है? 2009
(b) केवल 2 और 3
(a) अरुणाचल प्रदेश
(c) 1, 2 और 3
(b) हिमाचल प्रदेश
(d) उपरोक्त में से कोई भी सही नहीं है
(c) सिक्किम
(d) उत्तराखंड
39. कुचिपुड़ी और भारतनाट्यम नृत्यों में क्या भेद हैं? 2012
(a) अन्य देशों की तुलना में, भारत में प्राचीन और (b) केवल 3
मध्ययुगीन काल में उत्तम पोत निर्माण तकनीक थी (c) केवल 2 और 3
(b) दक्षिणी भारत के शासकों ने हमेशा इस संदर्भ में (d) 1, 2 और 3
व्यापारियों, ब्राह्मण पुजारियों और बौद्ध भिक्षुओ ं को
143
45. प्रसिद्ध विरुपाक्ष मंदिर कहाँ स्थित है? 2009 सूची-I सूची-II
(b) 2 3 4 1
(c) 1 4 3 2
(d) 1 3 4 2
उत्तर कुंजी:
144
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UPSC | कला और संस्कृति