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1. हड़प्पा सभ्यता की खोज कब हुई ? किन विद्वानों के नेतत्ृ व में इसकी खोज हुई ?
When was the search of Harappa civilization? Which scholars led to the discovery of this?
उ. (i) हड़प्पा सभ्यता की खोज सन ् 1924 में हुई । इसे सिंधु घाटी सभ्यता भी कहा गया ।
(ii) इस सभ्यता की खोज भारतीय परु ातात्विक सर्वेक्षण के जनरल जॉन मार्शल ने की। इन्ही के साथ कनिंघम,
दया-राम सहनी और आर. ई. एम. व्हीलर जैसे परु ातत्वीदो ने भी इसका नेतत्ृ व किया ।
2. हड़प्पा –पर्व
ू की बस्तियों की क्या विशेषताएँ थी?
What were the characteristics of Harappan-East settlements?
उ. (i)
(ii)
(ii) इन्होने परू े विश्व के समक्ष सिंधु घाटी में हड़प्पा सभ्यता की खोज की घोषणा की।
5. हड़प्पावासियों द्वारा सिंचाई के लिए प्रयोग में लाए जाने वाले साधनों के नामों का उल्लेख कीजिए?
Name the resources of the means to be used for irrigation by Harappans.
उ. (i) नहरों का प्रयोग – अफग़ानिस्तान में शोर्तुघई नामक हड़प्पा स्थल से नहरों के अवशेष मिले है ।
(ii) कुओं का प्रयोग – कुओं से प्राप्त पानी का उपयोग भी कृषि में किया जाता था ।
6. फर्योंस क्या होता है ? इससे बने छोटे पात्रो को कीमती क्यों माना जाता था ?
What happens to the firion? Why were the little pots made from it valuable?
उ. (i) घिसी हुई रे त अथवा बालू तथा रं ग और चिपचिपे पदार्थ के मिश्रण को पका कर बनाया गया पदार्थ फर्योंस
कहलाता है |
(ii) फर्योंस के छोटे पात्र संभवतः कीमती माने जाते थे क्योंकि इन्हें बनाना कठिन था |
उ. (i) मेसोपोटामिया – मेसोपोटामिया में हड़प्पा सभ्यता के संपर्क की अनेक परु ातात्विक खोजें मिली जिसमें
हड़प्पाई मोहरे , बाट , पासे तथा मनके सम्मिलित थे ।
(ii) ओमान – हड़प्पा सभ्यता में तांबा संभवतः अरब प्रायद्वीप के दक्षिण पश्चिमी छोर पर स्थित ओमान से
भी लाया जाता था ।
उ. (i) प्रकृति की पज
ू ा- हड़प्पाई स्भयता में लोग कई पेड़-पौधें तथा पशओ ु ं को धार्मिक दे वी-दे वताओंका प्रतीक
मानते थे। यह हड़प्पाई मोहरों में उत्कीर्ण चित्रों से पता चला हैं ।
(ii) ऋग्वेद में ' रूद्र ' नामक एक दे वता का उल्लेख हैं जो ' शिव ' का रुप माने गए हैं ।
उ. (i) दर्ग
ु में विशाल स्नानागार आंगन में बना एक आयताकार जलाशय था जो चारों ओर से एक गलियारे
से घिरा हुआ था।
(ii) जलाशय के तल तक जाने के लिए इसके उत्तरी तथा दक्षिणी भागों में सीढ़ियाँ बनी थी।
(iii) जलाशय के तीनों ओर कक्ष बने हुए थे। जिसमें से एक में बड़ा कुआँ था।
(vi) प्रत्येक स्नानागार से नालियाँ, गलियारे के साथ-साथ बने एक नाले में बनी थी।
(vii) इस स्नानागार का प्रयोग विशेष अनष्ु ठाणिक स्थान के लिए किया जाता था।
उ. (i) कृषि- हड़प्पावासियों की आर्थिक गतिविधियों में कृषि करना तथा मछलीपालन शामिल हैं ।
(ii) पशप
ु ालन- गाय , भैंस , बैल आदि को पालना तथा बैलों का उपयोग खेत जोतने में किया जाता था।
(v) माप- तौल, बाट- व्यापार में तोलने के लिए बाटो का प्रयोग किया जाता था । 2,4,6……. के माप होते थे।
12. हड़प्पाई समाज में सामाजिक आर्थिक भिन्नताओं का अवलोकन करने के लिए परु ातत्वविद किन
विधियों का प्रयोग करते थे ?
What methods did archaeologists use to observe social economic differences in Harappan
society?
उ. (i) शवाधानो का अध्ययन- हड़प्पा सभ्यता में मतृ कों को गर्तो में दफनाया जाता था। ये कई बार अलग-अलग
आकृति के होते थे। कई गर्तो की सतहों पर ईटों की चिनाई की गयी थी।
(iii) विलासिता का अध्ययन - परु ातत्वविदों ने इन्हें उपयोगी तथा विलास की वस्तओ ु ं में वर्गीकृत किया हैं। पहले
वर्ग में रोजमर्रा की चीजें जिन्हें पत्थर और मिट्टी से बनाया जा सकता हैं तथा दस ू रे में फर्योंस से
निर्मित
वस्तए
ु ं थी।
(iv) दर्ग
ु और निचला शहर- हड़प्पा सभ्यता में शहर नियोजन दो वर्ग में बटा था। दर्ग
ु और निचला शहर।
संभवतः दर्ग
ु में राजशाही लोग तथा निचले शहर में आम लोग निवास करते थे।
13. हड़प्पा वासियों के धार्मिक विश्वासों की जानकारी प्राप्त करने में वहाँ से प्राप्त मोहरें किस प्रकार
सहायक होती है ? संक्षेप में वर्णन करें |
How are the pieces obtained from the Harappans found in the beliefs of religious beliefs?
Describe briefly.
उ. (i) परु
ु ष दे वता- खद
ु ाई में एक मोहर मिली हैं जिस पर परु
ु ष दे वता को चित्रित किया गया हैं। उसके सिर पर तीन
सींग दिखाए गए हैं। उसे एक योगी की तरह ध्यान मद्र ु ा में बैठा दिखाया गया हैं। उसके चारों ओर
एक हाथी, एक बाघ और एक गें डा हैं। आसन्न के नीचे एक भैस तथा पावों पर दो हिरन हैं।
(ii) वक्ष
ृ ों और पशओ
ु ं की पज
ू ा- एक मोहर पर पीपल की दलियू के बीच में एक दे वता को दिखाया गया हैं।
इससे पता चलता हैं कि वे वक्ष
ृ की भी करते थे। एक अन्य मोहर पर अंकित कुबड़
वाला बैल भी इसी बात को सिध्द करता हैं।
(iv) कुछ मोहरों में बनाए गए जानवर जैसे- एक्श्रींगी गें डा कल्पित तथा संश्लेषित लगते हैं।
(v) हड़प्पा में पत्थर पर बने लिंग तथा योनि के अनेकों प्रतीक मिले हैं। इससे ये अनम
ु ान लगाया जाता हैं कि
लिंग और योनि की पज ू ा हड़प्पा काल में आरम्भ हुई।
14. परु ातत्वविद शिल्प उत्पादन केन्द्रों की पहचान कैसे करते हैं ?
How do archaeologists identify the production centers?
उ. (i) शिल्प उत्पादन केन्द्रो की पहचान के लिए परु ातत्वविद् समान्यत अनेक वस्तओ
ु को ढूंढते हैं।
जैसे- प्रस्तर पिंड, परू े शंख तथा तांबा अयस्क जैसा कच्चा माल।
(ii) औजार- औजारों से परु ातत्वविदों को यह जनने में सहायता मिली की व्यक्ति पहले किस प्रकार के शिल्प
कार्य करते थे।
(iii) अपर्ण
ू वस्तए
ु ँ - प्राप्त हुई अपर्ण
ू वस्तओ ु से यह जनने में परु ातत्वविदों को सहायता मिली कि किसी शिल्प
कार्य को करने की प्रक्रिया क्या थी।
(iv) त्याग दिया गया माल तथा कूड़ा कर्क ट- यदि वस्तओ ु ं के निर्माण के लिए शंख अथवा पत्थर को काटा जाता
था तो इन पदार्थो के टुकड़े कूड़े के रुप में उत्पादन के स्थान पर फैंक दिए जाते थे।
(v) कभी कभी बड़े आकार के टुकड़ों को छोटे आकार की वस्तए ु ँ बनाने के लिए प्रयोग किया जाता था परं तु बहुत
छोटे टुकड़ो को कार्यस्थल पर ही छोड़ दिया जाता था।
(c) हड़प्पा सभ्यता की आरं भिक बस्तियों की पहचान के लिए उसने किन वत्त
ृ ांतों का प्रयोग
किया है किसी एक का उल्लेख कीजिए । Mention any one account used by him to locate
settlements of Harappan Civilization.
उ. (a) जनरल कनिंघम भारतीए परु ातात्विक सर्वेक्षण के पहले डायेरेक्टर जनरल थे। इन्होनें ही 19वी शताब्दी के
मध्य में परु ातत्वीक उत्खन्न आरं भ किये।
(b)
(iv) उनका मानना था की भारतीय इतिहास का प्रारं भ गंगा की घाटी में पनपे पहले शहरो के साथ हुआ। इन सभी
कारणों से कनिंघम हड़प्पा के महत्व को समझने में असफल हो गए।
(c)
(i) आरं भिक बस्तियों की पहचान के लिए उन्होंने चौथी से सातवीं शताब्दी ईस्वी के बीच उपमहाद्वीप
में आए चीनी बौद्ध तीर्थ यात्रियों द्वारा छोड़े गए वत
ृ ांतों का प्रयोग किया |
(ii) कनिंघम ने अपने सर्वेक्षणों के दौरान मिले अभिलेखों का संग्रहण , प्रलेखन तथा अनव
ु ाद भी
किया | उत्खनन के समय में ऐसी वस्तओ ु ं को खोजने का प्रयास करते थे जो उनके विचार में
सांस्कृतिक महत्व की थी ।
(ii) सड़को तथा गलियों को लगभग एक "ग्रिड" पद्धति पर आधारित बनाया गया था। और ये एक दस
ू रे को
समकोण पर कटती थी।
(iii) पहले नालियों के साथ गलियों को बनाया गया था ओर फिर उनके अगल बगल आवासों का निर्माण किया
गया था।
(iv) यदि घरो के गंदे पानी को गलियों की नालियों से जोड़ना था तो प्रत्येक घर की कम से कम एक दीवार का
गली से सटा होना आवशयक था।
(v) अपशिष्ट जल को ढकी हुई नालियों के माध्यम से निकाला जाता था। जो प्रमख
ु गलियों के साथ साथ बनी
हुई थी।
उ. (i) तांबे का आयात- परु ातात्त्विक खोजें इंगित करती हैं कि तांबा संभवतः अरब प्रायद्वीप के दक्षिण पशिचमी
छोर पर स्थित 'ओमान' से भी लाया जाता था।
(ii) रसायनिक जाँचो से भी पता चला हैं कि ओमनी तथा हड़प्पाई परु ावस्तओ
ु में निकल (nickel) की परातें पाई
गई हैं |
(iii) हड़प्पाई मर्तबान- एक विशिष्ट प्रकार का मर्तबान अर्थात एक बड़ा हड़प्पाई मर्तबान जिसके ऊपर काली
मिट्टी की एक परत चढाई गाई थी ' ओमनी स्थलो' से मिला हैं।
उ. भिन्न भिन्न इतिहासकारों ने इस सभ्यता के नष्ट होने के भिन्न भिन्न कारण बताए हैं-
(iii) जलवायु परिवर्तन - एक विचार यह हैं की वर्षा की कमी से संभवतः सिंधु घाटी में रे गिस्तान बनने के लक्षण
दिखने आरं भ कर दिए हो।
(iv) भक
ू म्प - यह भी अनम
ु ान हैं कि क्वेटा जैसे किसी बड़े भक
ू म्प ने इसे स्भयता को नष्ट भ्रष्ट कर दिया हो।
(v) आक्रमणकारी- अंत में कुछ इतिहासकारों का यह भी विचार हैं कि आर्यो ने अथवा किन्हीं अन्य विदे शी
आक्रमणकारियों ने बार बार इन पर आक्रमण करके इनका अंत कर दिया हो।
(ii) केंद्रित आँगन - ज्यादातर घरों में आँगन केंद्रित होता था अर्थात भवनों के बीच में और इसके चारों तरफ
कमरे बने होते थे।
(iii) हर घर का ईटों से बना अपना एक स्नानागार होता था। जिसकी नालियाँ दीवार के माध्यम से सड़क की
नालियों से जड़
ु ी हुई थी।
(iv) प्रत्येक घर में वायु , प्रकाश एवं पानी का उचित प्रबंध होता था।
(v) लगभग हर घर में अपना अलग कुआँ होता था जो ऐसे कक्ष में बनाए गए थे। जिसमें बाहर से आया जा
सकता था और जिनका प्रयोग संभवतः राहगीरो द्वारा किया जाता था।
(vii) निजता को महत्त्व- प्रत्येक व्यक्ति की नीजता को बनाए रखने के लिए भमिू तल पर बनी दिवारों में
खिड़कियाँ नहीं थी। इसके अलावा मख्ु य द्वार से आंतरिक भाग अथवा आँगन का
सीधा अवलोकन नहीं होता था।
20. हड़प्पा लिपि को एक रहस्यमयी क्यों कहा गया है ? इसकी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए |
Why has the Harappan script been called a mysterious? Please mention its features.
उ. (i) पढ़ि न जाना- हड़प्पाई लिपि को आज तक पड़ा नहीं जा सका हैं। यह लिपि वर्णमालिय नहीं हैं जिसमें
प्रत्येक अक्षर किसी स्वर या व्यंजन को दर्शाता हैं। परु ातत्वविदों को प्राप्त अवशेषों से ही
हम इस सभ्यता के बारे में अनभ ु व लगा सकते हैं।
(ii) इस लिपि में बहुत अधिक कोई 375 से 400 के बीच चिन्ह हैं जो अलग अलग वस्तओ
ु ं एवं भावों को प्रकट
करते हैं।
विशेषताएँ
(i) ऐसा प्रतीत होता है कि यह लिपि दाई से बाई ओर लिखी जती थी क्योकिं कुछ मह
ु रो पर दाई ओर चौड़ा
अंतराल हैं और बाई ओर यह संकुचित हैं।
(ii) यह लिपि चित्रात्मक हैं। इसमें कई प्रकार के चिन्हों आदि का प्रयोग किया गया हैं।
(iii) अधिकांश अभिलेख संक्षिप्त हैं, सबसे लंबे अभिलेख में लगभग 26 चिन्ह हैं।
उ. सिन्धु सभ्यता में संपादित उत्खननों पर एक विहं गम दृष्टि डालने से प्रतीत होता है कि यहाँ के
निवासी महान ् निर्माणकर्ता थे. उन्होंने नगर नियोजन करके नगरों में सार्वजनिक तथा निजी भवन,
रक्षा प्राचीर, सार्वजनिक जलाशय, सनि
ु योजित मार्ग व्यवस्था तथा सन्
ु दर नालियों के प्रावधान किया.
1. हड़प्पा
2. मोहनजोदड़ो
3. चान्हूदड़ो
4. लोथल
5. कालीबंगा
हड़प्पा के उत्खननों से पता चलता है कि यह नगर तीन मील के घेरे में बसा हुआ था. वहाँ जो भग्नावशेष
प्राप्त हुए हैं उनमें स्थापत्य की दृष्टि से दर्ग
ु एवं रक्षा प्राचीर के अतिरिक्त निवासों – गह
ृ ों, चबत
ू रों तथा
“अन्नागार” का विशेष महत्त्व है . वास्तव में सिंधु घाटी सभ्यता का हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, कालीबंगा,
सत्ु कागेन-डोर एवं सरु कोटदा आदि की “नगर निर्माण योजना” (town planning) में मख् ु य रूप से समानता
मिलती है . इनमें से अधिकांश परु ास्थ्लों पर पर्व ू एवं पश्चिम दिशा में स्थित “दो टीले” हैं.
कालीबंगा ही एक ऐसा स्थल है जहाँ का का “नगर क्षेत्र” भी रक्षा प्राचीर से घिरा है . परन्तु लोथल तथा
सरु कोटदा के दर्ग
ु तथा नगर क्षेत्र दोनों एक ही रक्षा प्राचीर से आवेष्टित थे. ऐसा प्रतीत होता है कि दर्ग
ु के
अंदर महत्त्वपर्ण
ू प्रशासनिक तथा धार्मिक भवन एवं “अन्नागार” स्थित थे. संभवतः हड़प्पा में गढ़ी के अन्दर
समचिु त ढं ग से उत्खनन नहीं हुआ है .
(ii) दर्ग
ु (Citadel)
हड़प्पा नगर की रक्षा हे तु पश्चिम में एक दर्ग
ु का निर्माण किया गया था जो आकार में “समकोण चतर्भु ु ज”
के सदृश था. उत्तर से दक्षिण की और इसकी लम्बाई 460 गज तथा पर्व ू से पश्चिम की ओर चौड़ाई 215 गज
अनम ु ानित है . सम्प्रति इसकी ऊँचाई लगभग 40 फुट है . जिस टीले पर इस दर्ग
ु के अवशेष प्राप्त होते हैं
उसे विद्वानों ने “ए बी” टीला कहा है .
हड़प्पा में मोहनजोदड़ो की भाँति विशाल भवनों के अवशेष प्राप्त नहीं हुए तथा कोटला (दर्गु ) के ऊपर जो
अवशेष मिले हैं, उनसे प्राचीन स्थापत्य (architecture) पर कोई उल्लेखनीय प्रकाश नहीं पड़ता.
यहाँ यह उल्लेख करना प्रासंगिक होगा कि लोथल, रं गपरु एवं कालीबंगा में भवनों के निर्माण में कच्ची ईंटों
का भी प्रयोग किया गया है . कालीबंगा में पक्की ईंटों का प्रयोग केवल नालियों, कुओं तथा दलहीज के लिए
किया गया था.
लोथल के लगभग सभी भवनों में पक्की ईंटों के फर्श वाले एक या दो चबत
ू रे मिले हैं जो प्रायः स्नान के
लिए प्रयोग होते थे.
अभी तक कोई गोल सतम्भ नहीं मिला है , संभवतः इसलिए इसकी आवश्यकता नहीं थी (यद्यपि
मोहनजोदड़ों के अंतर्गत एक स्तम्भ वाले हॉल की चर्चा की जाती है परन्तु कहना कठिन है कि ये
स्तम्भ गोल हैं अथवा वर्गाकार).
अधिकांश घरों में एक कुआँ भी होता था. “जल निकास” की सवि ु धा की दृष्टि से “स्नानागार” प्रायः गली
की ओर स्थित होते थे. स्नानाघर के फर्श में अच्छे प्रकार की “पक्की ईंटों” का प्रयोग किया जाता था |
संपन्न लोगों के घरों में शौचालय भी बने होते थे. उत्खनन में मोहनजोदड़ो से जो भवनों के अवशेष मिले
हैं उनके “द्वार” मख्
ु य सड़कों की ओर न होकर “गलियों की ओर” खल ु ते थे. “खिड़कियाँ” कहीं-कहीं मिलते हैं.
भवन निर्माण हे तु मोहनजोदड़ों तथा हड़प्पा में “पकी हुई ईंटों का प्रयोग” किया गया था. सभी ईंटें
पलि
ु नमय मिट्टी (गीली मिट्टी) से बनी हैं. ईंटें भस ू े-जैसी किसी संयोजी सामग्री के बिना ही असाधारण
रूप से सनिु र्मित हैं. ये खल
ु े सांचे में बनाई जाती थीं तथा इनके शीर्ष पर लड़की का टुकड़ा ठोका जाता था,
परन्तु उनके आधार समान रूप से कठोर हैं जिससे यह संकेत मिलता है कि वे धल ू भरी जमीन पर बनाकर
सख ु ाये जाते थे.
स्नान-गह
ृ ों की सतह एकरूपतः अच्छी तरह बनाई जाती थी तथा सही जोड़ एवं समतल के लिए ईंटें बहुधा
आरे से काटी जाती थीं. इसके अतिरिक्त, उन्हें रिसाव-रोधी बनाने के लिए जिप्सम से प्लस्तर किया जाता था.
हड़प्पा सभ्यता के भवनों के द्वार जल जाने के कारण प्लस्तर (plaster) के थोड़े ही चिन्ह रह सके |
केवल मोहनजोदड़ो के दो भवनों पर “जला हुआ प्लस्तर” दृष्टिगोचर होता है .
(vi) कुएँ
साधारण अथवा असाधारण सभी भवनों के अन्दर कुएँ होते थे जिनका आकार में प्रधानतया “अंडाकार” होता
था. इनकी जगत की परिधि दो से सात फुट नाप की होती थी.
(vii) नालियाँ
सिन्धु घाटी सभ्यता की नगरीय वास्तु या स्थापत्य-कला का उत्कृष्ट उदाहरण वहाँ की सन्
ु दर “नालियों की
व्यवस्था” से परिलक्षित होता है .
इसका निर्माण पक्की ईंटों से होता था ताकि गलियों के “जल-मल” का निकास निर्वाध रूप से होता रहे .
भवनों की छत पर लगे “परनाले” भी उनसे जोड़ दिए जाते थे. लोथल में ऐसी अनेक नालियों के अवशेष मिले
हैं जो एक-दस ू रे से जड़
ु ी हुई थीं. इन नालियों को ढकने की भी व्यवस्था की गई थी. सड़कों के किनारे की
नालियों में थोड़ी-थोड़ी दरू पर “मानस ु मोखे” (mail holes) का समचि
ु त प्रावधान रहता था. हड़प्पा और
मोहनजोदड़ो में कुछ ऐसी भी नालियां मिली हैं जो “सोखने वाले गड्ढों” (soakpits) में गिरती थीं. इन नालियों
में कहीं-कहीं “दं तक मेहराब” भी पाए गये हैं.
(viii) वह
ृ द्-स्नानागार (The Great Bath)
हड़प्पा सभ्यता के स्थापत्य का सर्वोत्कृष्ट उदाहरण “वह
ृ द् स्नानागार या विशाल स्नानागार” है जिसे डॉ.
अग्रवाल ने “महाजलकंु ड” नाम से संबोधित किया है . यह मोहनजोदड़ो परु ास्थल का सर्वाधिक महत्त्व का स्मारक
माना गया है . उत्तर से दक्षिण की ओर इसकी लम्बाई 39′ तथा पर्व ू से पश्चिम की ओर चौड़ाई 23 फुट और
इसकी गहराई 8′ है . अर्थात ् इसका आकार लगभग 12x7x2.5 मीटर है . नीचे तक पहुँचने के लिए इसमें उत्तर
तथा दक्षिण की ओर “सीढ़ियाँ” बनी हैं.
स्नानागार में प्रवेश के लिए “छ: प्रवेश-द्वार” थे. स्थान-स्थान पर लगे नालों के द्वारा शीतकाल में संभवतः
कमरों को भी गर्म किया जाता था.
(ix) दे वालय
वह
ृ द् स्नानागार के उत्तर-पर्व
ू की ओर एक विशाल भवन है जिसका आकार 230′ लम्बा x 78′ चौड़ा है . अर्नेस्ट
मैके का मत है कि संभवतः यह बड़े परु ोहित का निवास था अथवा परु ोहितों का विद्यालय था.
(x) धान्यगार
वास्तक
ु ला की दृष्टि से मोहनजोदड़ो तथा हड़प्पा के बने धान्यगार (अन्नागार) भी उल्लेखनीय है . पहले इसे
स्नानागार का ही एक भाग माना जाता था किन्तु 1950 ई. के उत्खननों के बाद यह ज्ञात हुआ है कि वे
अवशेष एक “विशाल अन्नागार” के हैं. महाजलकंु ड के समीप पश्चिम में विद्यमान मोहनजोदड़ो का अन्नागार
पक्की ईंटों के विशाल चबतू रे पर निर्मित है .
हड़प्पा में भी एक विशाल धान्यागार (granary) अथवा “अन्न-भंडार” के अवशेष प्राप्त हुए हैं. इसका आकार
उत्तर से दक्षिण 169′ फीट तथा पर्व
ू से पश्चिम 135′ फीट था.
(xii) सड़कें
सिन्धु घाटी सभ्यता की नगरीय-योजना (two planning) में वास्तक ु ला की दृष्टि से मार्गों का महत्त्वपर्ण
ू
स्थान था. इन मार्गों (सड़कों) का निर्माण एक सनि ु योजित योजना के अनरू ु प किया जाता था. ऐसा प्रतीत
होता है कि मख्ु य-मार्गों का जाल प्रत्येक नगर को प्रायः पाँच-छ: खंडों में विभाजित करता था. मोहनजोदड़ो
निवासी नगर-निर्माण प्रणाली से पर्ण ू तया परचित थे इसलिए वहाँ के स्थापत्यविदों ने नगर की रूपरे खा
(layout) में मार्गों का विशेष प्रावधान किया. तदनस
ु ार नगर की सड़कें सम्पर्ण ू क्षेत्र में एक-दस
ू रे को
“समकोण” पर काटती हुई “उत्तर से दक्षिण” तथा “परू ब से पश्चिम” की ओर जाती थीं.
उ.
(i) नगर निर्माण योजना : इस सभ्यता की सबसे विशेष बात थी यहां की विकसित नगर निर्माण योजना।
(a) शहर का दो हिस्सों में बटा होना :- हड़प्पा तथा मोहन ् जोदड़ो दोनो नगरों के अपने दर्ग
ु थे जहां शासक
वर्ग का परिवार रहता था। प्रत्येक नगर में दर्ग ु के बाहर एक उससे निम्न स्तर का शहर था जहां ईंटों के
मकानों में सामान्य लोग रहते थे।
(b) सड़के : इन नगर भवनों के बारे में विशेष बात ये थी कि ये जाल की तरह विन्यस्त थे। यानि सड़कें
एक दस ू रे को समकोण पर काटती थीं और नगर अनेक आयताकार खंडों में विभक्त हो जाता था। ये बात
सभी सिन्धु बस्तियों पर लागू होती थीं चाहे वे छोटी हों या बड़ी।
(c) भवन : हड़प्पा तथा मोहनजोदड़ो के भवन बड़े होते थे। वहाँ के स्मारक इस बात के प्रमाण हैं कि वहाँ
के शासक मजदरू जट ु ाने और कर-संग्रह में परम कुशल थे। ईंटों की बड़ी-बड़ी इमारत दे ख कर सामान्य
लोगों को भी यह लगेगा कि ये शासक कितने प्रतापी और प्रतिष्ठावान थे।
(e) अन्नागार : मोहन जोदड़ो की सबसे बड़ा संरचना है - अनाज रखने का कोठार, जो 45.71 मीटर लंबा
और 15.23 मीटर चौड़ा है । हड़प्पा के दर्ग ु में छः कोठार मिले हैं जो ईंटों के चबत ू रे पर दो पांतों में खड़े हैं।
हर एक कोठार 15.23 मी. लंबा तथा 6.09 मी. चौड़ा है और नदी के किनारे से कुछ एक मीटर की दरू ी पर
है । इन बारह इकाईयों का तलक्षेत्र लगभग 838.125 वर्ग मी. है जो लगभग उतना ही होता है जितना मोहन
जोदड़ो के कोठार का। हड़प्पा के कोठारों के दक्षिण में खल ु ा फर्श है और इसपर दो कतारों में ईंट के वत्त ृ ाकार
चबत ू रे बने हुए हैं। फर्श की दरारों में गेहूँ और जौ के दाने मिले हैं। इससे प्रतीत होता है कि इन चबत ू रों
पर फ़सल की दवनी होती थी। हड़प्पा में दो कमरों वाले बैरक भी मिले हैं जो शायद मजदरू ों के रहने के
लिए बने थे। कालीबंगां में भी नगर के दक्षिण भाग में ईंटों के चबत ू रे बने हैं जो शायद कोठारों के लिए
बने होंगे। इस प्रकार यह स्पष्ट होता है कि कोठार हड़प्पा संस्कृति के अभिन्न अंग थे।
हड़प्पा संस्कृति के नगरों में ईंट का इस्तेमाल एक विशेष बात है , क्योंकि इसी समय के मिस्र के भवनों
में धपू में सखू ी ईंट का ही प्रयोग हुआ था। समकालीन मेसोपेटामिया में पक्की ईंटों का प्रयोग मिलता तो
है पर इतने बड़े पैमाने पर नहीं जितना सिन्धु घाटी सभ्यता में ।
(f) जल नियोजन : मोहन जोदड़ो की जल निकास प्रणाली अद्भत ु थी। लगभग हर नगर के हर छोटे या
बड़े मकान में प्रांगण और स्नानागार होता था। कालीबंगां के अनेक घरों में अपने-अपने कुएं थे। घरों का
पानी बहकर सड़कों तक आता जहां इनके नीचे मोरियां (नालियां) बनी थीं। अक्सर ये मोरियां ईंटों और
पत्थर की सिल्लियों से ढकीं होती थीं। सड़कों की इन मोरियों में नरमोखे भी बने होते थे। सड़कों और
मोरियों के अवशेष बनावली में भी मिले हैं।
(ii) आर्थिक जीवन : सिंधु सभ्यता की अर्थव्यवस्था कृषि प्रधान थी, किंतु व्यापार एव पशप
ु ालन भी प्रचलन में था।
सिन्धु घाटी सभ्यता के लोग गें हू, जौ, राई, मटर, ज्वार आदि अनाज पैदा करते थे। वे दो किस्म की गेँहू पैदा
करते थे। बनावली में मिला जौ उन्नत किस्म का है । इसके अलावा वे तिल और सरसों भी उपजाते थे। सबसे
पहले कपास भी यहीं पैदा की गई। इसी के नाम पर यन ू ान के लोग इस सिन्डन (Sindon) कहने लगे। हड़प्पा
योंतो एक कृषि प्रधान संस्कृति थी पर यहां के लोग पशप ु ालन भी करते थे। बैल-गाय, भैंस, बकरी, भेड़ और
सअ
ू र पाला जाता था। हड़प्पाई लोगों को हाथी तथा गैंडे का ज्ञान था।
● यह लोग गाय,भैंस,भेड़,बकरी,बैल,कुत्ते,बिल्ली,मोर,हिहाथी शग
ु र,बकरी,मर्गि
ु यां पाला करते थे। इन लोगों को घोड़े
और लोहे की जानकारी नहीं थी।
( c ) उद्योग-धंधे
यहाँ के नगरों में अनेक व्यवसाय-धन्धे प्रचलित थे। मिट्टी के बर्तन बनाने में ये लोग बहुत कुशल थे।
मिट्टी के बर्तनों पर काले रं ग से भिन्न-भिन्न प्रकार के चित्र बनाये जाते थे। कपड़ा बनाने का व्यवसाय
उन्नत अवस्था में था। उसका विदे शों में भी निर्यात होता था। जौहरी का काम भी उन्नत अवस्था में था।
मनके और ताबीज बनाने का कार्य भी लोकप्रिय था,अभी तक लोहे की कोई वस्तु नहीं मिली है । अतः
सिद्ध होता है कि इन्हें लोहे का ज्ञान नहीं था।
( d ) व्यापार
यहां के लोग आपस में पत्थर, धातु शल्क (हड्डी) आदि का व्यापार करते थे। एक बड़े भभ ू ाग में ढे र सारी
सील (मोहरें ), एकरूप लिपि और मानकीकृत माप तौल के प्रमाण मिले हैं। वे चक्के से परिचित थे और
संभवतः आजकल के इक्के (रथ) जैसा कोई वाहन प्रयोग करते थे। ये अफ़ग़ानिस्तान और ईरान (फ़ारस) से
व्यापार करते थे। उन्होंने उत्तरी अफ़गानिस्तान में एक वाणिज्यिक उपनिवेश स्थापित किया जिससे उन्हें
व्यापार में सहूलियत होती थी। बहुत सी हड़प्पाई सील मेसोपोटामिया में मिली हैं जिनसे लगता है कि
मेसोपोटामिया से भी उनका व्यापार सम्बंध था। मेसोपोटामिया के अभिलेखों में मेलह ु ा के साथ व्यापार के
प्रमाण मिले हैं साथ ही दो मध्यवर्ती व्यापार केन्द्रों का भी उल्लेख मिलता है - दलमन ु और माकन।
दिलमन ु की पहचान शायद फ़ारस की खाड़ी के बहरीन के की जा सकती है ।
(iii) राजनैतिक जीवन
इतना तो स्पष्ट है कि हड़प्पा की विकसित नगर निर्माण प्रणाली, विशाल सार्वजनिक स्नानागारों का अस्तित्व
और विदे शों से व्यापारिक संबंध किसी बड़ी राजनैतिक सत्ता के बिना नहीं हुआ होगा पर इसके पख्
ु ता प्रमाण
नहीं मिले हैं कि यहां के शासक कैसे थे और शासन प्रणाली का स्वरूप क्या था। लेकिन नगर व्यवस्था को
दे खकर लगता है कि कोई नगर निगम जैसी स्थानीय स्वशासन वाली संस्था थी।
सिंधु घाटी सभ्यता के नगरों में एक सील पाया जाता है जिसमें एक शिव का चित्र है 3 या 4 मख ु वाला,
कई विद्वान मानते है कि यह प्राचीन पशप ु ति हैं। सिंधु घाटी सभ्यता के लोग अपने शवों को जलाया करते
थे ऐसा परू ी तरह से सत्य नहीं है चंकि
ू राखीगढ़ी में हाल ही में कुछ नर कंकाल प्राप्त हुए हैं जो दर्शाते हैं
कि वे शवों को दफनाते थे। मोहन जोदड़ो और हड़प्पा जैसे नगरों की आबादी करीब 50 हज़ार थी पर फिर
भी वहाँ से केवल 100 के आसपास ही कब्रे मिली है जो इस बात की और इशारा करता है वे शव जलाते थे।
लोथल, कालीबंगा आदि जगहों पर यज्ञवेदी मिले है । इससे यह ज्ञात होता है कि सिंधु घाटी की सभ्यता
वैदिक सभ्यता थी।
यद्यपि इस यग ु के लोग पत्थरों के बहुत सारे औजार तथा उपकरण प्रयोग करते थे पर वे कांसे के
निर्माण से भली भांति परिचित थे। तांबे तथा टिन मिलाकर धातशि ु ल्पी कांस्य का निर्माण करते थे।
हालांकि यहां दोनो में से कोई भी खनिज प्रचरु मात्रा में उपलब्ध नहीं था। सत ू ी कपड़े भी बनु े जाते थे।
लोग नाव भी बनाते थे। मद्र ु ा निर्माण, म र्ति
ू का निर्माण के साथ बरतन बनाना भी प्रमखु शिल्प था।
प्राचीन मेसोपोटामिया की तरह यहां के लोगों ने भी लेखन कला का आविष्कार किया था। हड़प्पाई लिपि
का पहला नमन ू ा 1853 ईस्वी में मिला था और 1923 में परू ी लिपि प्रकाश में आई परन्तु अब तक पढ़ी
नहीं जा सकी है । लिपि का ज्ञान हो जाने के कारण निजी सम्पत्ति का लेखा-जोखा आसान हो गया।
व्यापार के लिए उन्हें माप तौल की आवश्यकता हुई और उन्होनें इसका प्रयोग भी किया। बाट के तरह
की कई वस्तए ु ँ मिली हैं। उनसे पता चलता है कि तौल में 16 या उसके आवर्तकों (जैसे - 16, 32, 48, 64,
160, 320, 640, 1280 इत्यादि) का उपयोग होता था। दिलचस्प बात ये है कि आधनि ु क काल तक भारत
में 1 रुपया 16 आने का होता था। 1 किलो में 4 पाव होते थे और हर पाव में 4 कनवां यानि एक किलो
में कुल 16 कनवां।
उ. सिंधु घाटी सभ्यता (हड़प्पा सभ्यता) की अर्थव्यवस्था कृषि और व्यापार पर आधारित थी| कृषि कार्य
हड़प्पाकालीन शहरों के आसपास के दरू स्थ और अविकसित क्षेत्र में किया जाता था, जहाँ से शासक वर्ग
भविष्य में उपयोग हे तु कृषि अधिशेष को लाकर धान्यकोठारों में जमा करते थे|
सिंधु घाटी सभ्यता की मख् ु य फसलें गेहूं, जौ, सरसों आदि थी| लोथल और रं गपरु में चावल के साक्ष्य भी
मिले हैं| कालीबंगा एकमात्र ऐसा जगह है जहाँ से खेतों के साक्ष्य मिले हैं| इस सभ्यता के लोग कपास की
कृषि: सिंधु घाटी सभ्यता की अर्थव्यवस्था कृषि पर आधारित थी जिसे व्यापार और वाणिज्य का भी
समर्थन प्राप्त था| उस समय की मख् ु य खाद्य फसलें गेहूं और जौ थी, लेकिन राई, मटर, तिल एवं सरसों
आदि की भी खेती होती थी|
व्यापार एवं वाणिज्य: सिंधु घाटी सभ्यता के दौरान धात्विक मद्र ु ाओं के उपयोग के बिना व्यापार एवं
वाणिज्य का अत्यधिक विकास हुआ था क्योंकि उस समय का व्यापार वस्त-ु विनिमय प्रणाली पर
आधारित था| हालांकि, उस समय के कुछ मह ु रों के भी साक्ष्य मिले हैं लेकिन ऐसा प्रतीत होता है
कि उनका उपयोग कुछ गिने-चन ु े वस्तओ
ु ं के व्यापार के लिए ही होता था|
पशपु ालन: सिंधु घाटी सभ्यता के दौरान कूबड़ वाले सांड, बैल, भैस, बकरी, भेड़, सअ
ू र, बिल्ली, कुत्ता और
हाथियों को पाला जाता था|
सिंधु घाटी सभ्यता के दौरान कृषि, उद्योग, शिल्प और व्यापार जैसे आर्थिक गतिविधि के सभी क्षेत्रों
में काफी प्रगति हुई थी| कारीगरों के विशेष समह
ू ों में सन
ु ार, ईंट निर्माता, पत्थर काटने वाले, बन
ु कर,
नाव बनाने वाले और टे राकोटा निर्माता शामिल थे| पीतल और तांबे के बर्तन इस सभ्यता के धातु
शिल्प का उत्कृष्ट उदाहरण है ।
हड़प्पा सभ्यता (हड़प्पा संस्कृति या सिन्धु सभ्यता) में हमे कृषि और पशप ु ालन की पर्याप्त व
महत्वपर्ण
ू जानकारी प्राप्त होती है | हड़प्पा सभ्यता के लोगों ने कृ षि पर अत्यधिक ध्यान दिया |
मोहनजोदड़ो, हड़प्पा और कालीबंगन में मिले अन्नागारों (कोठारों) से यह स्पष्ट होता है कि अनाज
इतनी अधिक मात्रा में उगाया जाता था कि उनसे हड़प्पावासियों (सिन्धव ु ासियों) की तत्कालिक
आवश्यकता की पर्ति ू हो जाने के बाद भी उन्हें जमा किया जा सके |
उल्लेखनीय है कि कपास का परू े विश्व में प्राचीनतम साक्ष्य (हड़प्पाकाल से लगभग दो हजार वर्ष पहले)
मेहरगढ़ परु ास्थल से प्राप्त हुआ है | कालीबंगन से एक उस्तरा सत ू ी कपड़े में लिपटा हुआ मिला है |
मोहनजोदड़ो से बन ु े हुए सत ू ी कपड़े का एक टुकड़ा प्राप्त हुआ है | इसके आलावा सिन्धु घाटी की
सभ्यता में कई वस्तओ ु पर कपड़े की छाप मिली है |
हल से खेती का साक्ष्य
सिन्धु सभ्यता में फसल काटने के लिए सम्भवतः पत्थर या तांबे के हँसियो का उपयोग होता था |
यहाँ से कोई फावड़ा या फाल नही मिला है | कालीबंगन की पर्व ू -हड़प्पा अवस्था में हल से खेती किये
जाने के साक्ष्य मिले है | ये हल सम्भवतः लकड़ी के बने हुए होते थे जिसके निचले सिरे पर लकड़ी
या तांबे की फाल लगी होती थी |
कालीबंगन में हल से बने निशानों से पता चलता है कि एक साथ दो फसलें (सम्भवतः चना और
सरसोँ) उगाई जाती थी | आधनि
ु क समय में भी कही-कही किसान अपने खेतों में एक साथ दो
फसलें उगाते है |
सिन्धु घाटी की सभ्यता में मोहनजोदड़ो और बनावली से हल के मिट्टी के मॉडल प्राप्त हुए है |
सम्भवतः जब अनाज का उत्पादन अधिक होने लगा तब बहुत से लोग अपनी आवश्यकताओं के
लिए अनाज उत्पादन पर निर्भर नही रहे और उन्होंने विभिन्न व्यवसाय अपनाकर अपनी इच्छानस ु ार
विभिन्न शिल्पों में दक्षता प्राप्त की | ऐसा करके उन्होंने नये कौशल विकसित किये |
सिन्धु घाटी की सभ्यता के लोगों को कूबड़ वाला सांड (बैल) विशेष प्रिय था | ये लोग गैंड,े बाघ, आदि
से भी परिचित थे | आभष ू ण यक्
ु त हाथी की आकृतियाँ कुछ महु रों पर मिलती है , जो हाथियों के पालतू
बनाये जाने का साक्ष्य है |
इस प्रकार यह स्पष्ट होता है कि हड़प्पाई समाज अपने जीवन-निर्वाह हे तु अनेक प्रकार की फसलों,
पालतू और जंगली जानवरों पर निर्भर था |
4. भारतीय परु ातात्विक सर्वेक्षण के डायरे क्टर जनरल के रूप में आर.ई.एम व्हीलर की उपलब्धियों
का उल्लेख करें | (8Marks)
Describe the achievements of R.E.M. Wheeler as Director General of Indian Archaeological
Survey.
उ. आर ई एम व्हीलर एक ब्रिटिश परु ातत्वविद् थे। वह ब्रिटिश सेना में एक अधिकारी थे। वह
लंदन में परु ातत्व संस्थान के संस्थापक थे और उन्होंने संस्थान में मानद निदे शक का पद
संभाला। उन्हें वेल्स और लंदन संग्रहालय के राष्ट्रीय संग्रहालय के निदे शक के रूप में नियक्
ु त
किया गया था।
उन्हें 1944 के दौरान भारतीय परु ातत्व सर्वेक्षण के महानिदे शक के रूप में नियक्
ु त किया गया था।
इस कार्यकाल के दौरान उन्होंने अरीकेमेडु, ब्रह्मगिरी और हड़प्पा जैसे विभिन्न स्थलों की खद
ु ाई का
कार्य किया। कांस्य यगु सिंधु घाटी सभ्यता के इतिहास में व्हीलर की बहुत बड़ी रुचि थी।
मोहनजोदड़ो और हड़प्पा के सिंधु घाटी स्थलों के निरीक्षण की अपनी प्रारं भिक अवधि के दौरान,
उन्होंने खद
ु ाई का कार्य किया जो दोनों बस्तियों पर किलेबंदी की पष्टि
ु करता है ।
भारतीय परु ातत्व सर्वेक्षण के महानिदे शक के रूप में आर.ई.एम. व्हीलर की उपलब्धियां: 1944-48
(i) अपने कार्यकाल की शरु ु आत से, उन्होंने पिछले निर्देशकों-महाप्रबंधकों और उनके प्रशासकों से दरू ी
बनाने की कोशिश की, ताकि वे प्रिंट में उनकी आलोचना करें और नए कर्मचारियों को पेश करने
का प्रयास करें जिनके पास अपने पर्व ू वर्तियों के प्रति कोई वफादारी नहीं थी। चार साल के अनब ु ंध
के साथ, व्हीलर ने आर्कि योलॉजिकल सर्वे में सध ु ार करने में सहायता करने के लिए ब्रिटे न के दो
परु ातत्वविदों, ग्लिन डैनियल और स्टुअर्ट पिगोट को भर्ती करने का प्रयास किया, हालांकि उन्होंने
इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया। फिर उन्होंने उपमहाद्वीप का दौरा किया, सर्वेक्षण के सभी
कर्मचारियों से मिलने की मांग की।
(ii) उन्होंने एक प्रोस्पेक्टस तैयार किया था जिसमें शोध प्रश्न थे, जिस पर वह सर्वेक्षण करना चाहते थे;
इनमें कांस्य यग ु सिंधु घाटी सभ्यता और अचमेनिद साम्राज्य के बीच की अवधि को समझना, वेदों
की सामाजिक-सांस्कृतिक पष्ृ ठभमि ू , आर्यन आक्रमण पर डेटिगं , और छठी शताब्दी ईस्वी पर्व
ू से पहले
(iv) अन्य नवाचारों के बीच, उन्होंने कार्टेशियन समन्वय प्रणाली, या त्रि-आयामी ग्रिड का उपयोग
विकसित किया, जिसके साथ परु ातात्विक खद ु ाई में मिली सामग्रियों के स्थान को रिकॉर्ड करने
के लिए। उस समय के अत्यधिक असामान्य-आम तौर पर परु ातत्वविद् अतीत के बारे में सवालों
को हल करने के बजाय संद ु र वस्तओ ु ं को प्राप्त करने पर आमादा थे- उनकी तकनीकें क्षेत्र में
एक नया नियम बन गई हैं।
(v) अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने परु ातत्व सर्वेक्षण के लिए 25 प्रतिशत बजट वद् ृ धि भी हासिल
की, और सरकार को नई दिल्ली में निर्मित होने वाले राष्ट्रीय परु ातत्व संग्रहालय के निर्माण के
लिए सहमत होने के लिए राजी किया।
(vi) अक्टूबर 1944 में , उन्होंने तक्षशिला में अपना छह महीने का परु ातात्विक क्षेत्र स्कूल खोला, जहाँ
उन्होंने अनश ु ासन की पद्धति में भारत भर के विभिन्न छात्रों को निर्देश दिए। व्हीलर अपने
छात्रों के बहुत शौकीन हो गए, उनमें से एक के साथ बी.बी. लाल ने बाद में टिप्पणी की कि
"भीषण बाहरी के पीछे , सर मोर्टिमर का दिल बहुत दयालु और सहानभ ु ति
ू पर्ण
ू था"।
(vii) शरूु में उपमहाद्वीप के उत्तरपश्चिम पर ध्यान केंद्रित करते हुए, व्हीलर विशेष रूप से कांस्य
यग ु सिंधु घाटी सभ्यता से मोहित था। मोहनजो-दड़ो और हड़प्पा के सिंधु घाटी स्थलों के अपने
प्रारं भिक निरीक्षण पर, उन्होंने एक बहुत ही संक्षिप्त खद
ु ाई का आयोजन किया जिसमें दोनों
बस्तियों के आसपास किलेबंदी का पता चला।
(ix) अपना ध्यान दक्षिणी भारत की ओर मोड़ने के बाद, व्हीलर ने एक संग्रहालय में एक रोमन
एम्फ़ोरा के अवशेषों की खोज की, और पहली शताब्दी ई.प.ू से एक बंदरगाह का खल ु ासा
करते हुए एरिकमेडु में खद
ु ाई शरू
ु की, जिसने रोमन साम्राज्य से माल का व्यापार किया था।
(xi) परु ातत्वविद ऑगस्टस पिट नदियों से प्रभावित, व्हीलर ने तर्क दिया कि उत्खनन और
स्ट्रै टिग्राफिक संदर्भ की रिकॉर्डिंग के लिए "व्हीलर विधि" को विकसित करने के लिए एक
तेजी से वैज्ञानिक और पद्धतिगत दृष्टिकोण की आवश्यकता थी।
(xii) व्हीलर ने एक नई परु ातात्विक पत्रिका, प्राचीन भारत की स्थापना की, जिसे वर्ष में दो बार
प्रकाशित करने की योजना थी। परु ातात्विक विषयों पर चौबीस पस् ु तकें लिखने के अलावा।
R E M Wheeler was a British archaeologist. He was an officer in the British Army. He was the
founder of the Institute of Archaeology in London and took up the post of Honorary Director
in the institute. He was appointed as a Director of National Museum of Wales and London Museum .
He was appointed as Director-General of the Archaeological Survey of India during 1944 . It was
during this tenure he undertook the excavations of various sites like Arikamedu, Brahmagiri and
Harappa.
Wheeler had a huge interest in the history of the Bronze Age Indus Valley Civilization. During
his initial period of inspection of the Indus Valley sites of Mohenjo-daro and Harappa, he
undertook excavation which confirmed fortifications on both settlements.
During his extensive excavation at the site of Harappa, he revealed more such fortifications.
Achievements of R.E.M. Wheeler as Director General of Indian Archaeological Survey of India: 1944–48
(i) From the beginning of his tenure, he sought to distance himself from previous Directors-General
and their administrations by criticising them in print and attempting to introduce new staff who
had no loyalty to his predecessors. Assigned with a four-year contract, Wheeler attempted to recruit
two archaeologists from Britain, Glyn Daniel and Stuart Piggott, to aid him in reforming the
Archaeological Survey, although they declined the offer. He then toured the subcontinent, seeking
to meet all of the Survey's staff members.
(ii) He had drawn up a prospectus containing research questions that he wanted the Survey to focus on;
these included understanding the period between the Bronze Age Indus Valley Civilization and the
Achaemenid Empire, discerning the socio-cultural background to the Vedas, dating the Aryan
invasion, and establishing a dating system for southern India prior to the sixth century CE.
(iii) Perhaps the most important of Wheeler’s accomplishments were a focus on problem-oriented excavation
and the creation of meticulous techniques for excavating sites and recording the materials therein.
(iv) Among other innovations, he developed the use of a Cartesian coordinate system, or three-dimensional
grid, with which to record the location of materials found in archaeological excavations. Highly unusual
at the time—archaeologists of his era were generally intent on acquiring beautiful objects rather than
resolving questions about the past—his techniques have become de rigueur in the field.
(v) During his time in office he also achieved a 25 per cent budget increase for the Archaeological Survey,
and convinced the government to agree to the construction of a National Museum of Archaeology, to be
built in New Delhi.
(vi) In October 1944, he opened his six-month archaeological field school in Taxila, where he instructed
various students from across India in the methodologies of the discipline. Wheeler became very fond of
his students, with one of them, B. B. Lal, later commenting that "behind the gruff exterior, Sir Mortimer
had a very kind and sympathetic heart".
(vii) Initially focusing on the northwest of the subcontinent, Wheeler was particularly fascinated by the
Bronze Age Indus Valley Civilization. On his initial inspection of the Indus Valley sites of Mohenjo-
daro and Harappa, he organised a very brief excavation which revealed fortifications around both
settlements.
(viii) He later led a more detailed excavation at Harappa, where he exposed further fortifications and
established a stratigraphy for the settlement.
(ix) Turning his attention to southern India, Wheeler discovered remnants of a Roman amphora in a museum,
and began excavations at Arikamedu, revealing a port from the first century CE which had traded in
goods from the Roman Empire.
(x) He later undertook excavations of six megalithic tombs in Brahmagiri, Mysore, which enabled him to
gain a chronology for the archaeology of much of southern India.
(xi) Influenced by the archaeologist Augustus Pitt Rivers, Wheeler argued that excavation and the recording
of stratigraphic context required an increasingly scientific and methodical approach, developing the
"Wheeler method".
(xii) Wheeler established a new archaeological journal, Ancient India, planning for it to be published twice a
year. In addition to writing twenty-four books on archaeological subjects.
5. “हड़प्पा सभ्यता में सत्ता के केंद्र अथवा सत्ताधारी लोगों के विषय में परु ातात्विक विवरण हमें कोई
त्वरित उत्तर नहीं दे ते |” प्रमाणों के साथ सिद्ध कीजिए |” (8Marks)
“Aechaeological records provide no immediate answers about centre of power or for
depictions of people in power in the Harappan Civilization.” Substantiate. Page 16 - 17
उ. हड़प्पा सभ्यता में सत्ता के केंद्र अथवा सत्ताधारी लोगों के विषय में परु ातात्विक विवरण हमें कोई त्वरित उत्तर नहीं दे ते :
(i) परु ातत्वविदों ने मोहनजोदड़ो से मिले एक विशाल भवन को प्रसाद की संज्ञा दी परं तु इससे संबंधित कोई भव्य वस्तए
ु ं
नहीं मिली है |
(iii) हड़प्पा सभ्यता की अनष्ु ठानिक प्रथाएं अभी तक ठीक प्रकार से समझी नहीं जा सकी हैं |
(iv) यह जानने का कोई स्रोत नहीं है कि क्या जो लोग इन अनष्ु ठानों का निष्पादन करते थे उन्हीं के पास राजनीतिक सत्ता
होती थी |
(v) कुछ परु ातत्वविद इस मत के हैं कि हड़प्पा समाज में शासक नहीं थे तथा सभी की सामाजिक स्थिति समान थी |
(vi) दस
ू रे परु ातत्वविद यह मानते हैं कि यहां कोई एक नहीं बल्कि कई शासक थे जैसे मोहनजोदड़ो , हड़प्पा आदि के
अपने अलग-अलग राजा होते थे |
(viii) अभी तक की स्थिति में अंतिम परिकल्पना सबसे यक्ति ु संगत प्रतीत होती है क्योंकि यह कदाचित संभव नहीं लगता
कि परू े के परू े समद
ु ायों द्वारा इकट्ठे ऐसे जटिल निर्णय लिए तथा क्रियान्वित किए जाते होंगे |
6. “हड़प्पावासी शिल्प – उत्पादन हे तु माल प्राप्त करने के लिए कई तरीके अपनाते थे |” उक्त स्थान की
पष्टि
ु कीजिए | Page 12 - 13 (8Marks)
“The Harappans procured materials for craft production in various ways.” Justify the statement.
(i) शिल्प उत्पादन के लिए कई प्रकार के कच्चे माल का प्रयोग होता था | कुछ जैसे की मिट्टी , स्थानीय स्तर पर
उपलब्ध
थे , कुछ अन्य जैसे पत्थर , लकड़ी तथा धातु जलोढ़क मैदान से बाहर के क्षेत्रों से मंगवाने पड़ते थे |
(ii) बैल गाड़ियों के मिट्टी से बने खिलौनों के प्रतिरूप संकेत करते हैं कि यह सामान तथा लोगों के लिए स्थल मार्गो द्वारा
परिवहन का एक महत्वपर्ण ू साधन था |
(iii) सिंधु तथा इसकी उपनदियों के बगल में बने नदी मार्गों और तटीय मार्गों का परिवहन के लिए प्रयोग किया जाता था |
(iv) हड़प्पावासियों ने नागेश्वर और बालाकोट में जहां शंख आसानी से उपलब्ध था बस्तियां स्थापित की |
(v) सद
ु रू अफगानिस्तान में शोर्तुघई से अत्यंत कीमती माने जाने वाले नीले रं ग के पत्थर लाजवर्द मणि , लोथल से
कार्नीलियन , दक्षिणी राजस्थान तथा उत्तरी गुजरात से सेलखड़ी और राजस्थान से धातु प्राप्त किया |
(vi) कच्चा माल प्राप्त करने के लिए राजस्थान के खेतड़ी आँचल में तांबे के लिए तथा दक्षिण भारत में सोने के लिए
अभियान भेजें |
(vii) परु ातात्विक खोजें इंगित करती हैं कि तांबा संभवतः अरब प्रायद्वीप व दक्षिण पश्चिमी छोर पर स्थित ओमान से भी
लाया जाता था |
7. “किसी परु ावस्तु की उपयोगिता की समझ अक्सर आधनि ु क समय में प्रयक्
ु त वस्तओ
ु ं से उनकी समानता
पर होती है |” उदाहरणों सहित पष्टि
ु कीजिए | (8Marks)
“An understanding of the function of an artefact is often shaped by its resemblance with
present day things.” Corroborate with examples. Page 22-23
(i) परु ातत्वविद परु ावस्तु की उपयोगिता की समझ अक्सर आधनिु क समय में प्रयक्
ु त वस्तओ
ु ं से उनकी समानता के
आधार पर करते हैं जैसे मनके , चक्कियाँ , पत्थर के फलक तथा पात्र इसके स्पष्ट उदाहरण हैं |
(iii) प्रकृति की पज
ू ा - पेड़ पौधे , उत्कीर्णित मह
ु रें |
(vii) अधिकांश परु ातत्वविद ज्ञात से अज्ञात की ओर बढ़ते हैं अर्थात वर्तमान से अतीत की ओर |
(viii) हालांकि यह नीति पत्थर की चक्कियों तथा पात्रों के संदर्भ में यक्ति
ु संगत हो सकती है लेकिन धार्मिक प्रतीक के
संदर्भ
में यह अधिक संदिग्ध रहती है |
On the given political outline map of India , locate and label the following with
appropriate symbols :
On the map of India, three places related with Matured Harappan sites have been
marked as A, B and C. Identify them and write their correct names on the lines marked
near them.
On the map of India , three places have been marked as A, B, C which are related to the
mature Harappan sites. Identify them and write their correct names on the lines marked near
them.
On the map of India , three places have been marked as A, B, C which are related to the
mature Harappan sites. Identify them and write their correct names on the lines marked near
them.
On the map of India , three places have been marked as A, B, C which are related to the
mature Harappan sites. Identify them and write their correct names on the lines marked near
them.
On the map of India , three places have been marked as A, B, C which are related to the
mature Harappan sites. Identify them and write their correct names on the lines marked near
them.
On the map of India , three places have been marked as A, B, C which are related to the
mature Harappan sites. Identify them and write their correct names on the lines marked near
them.
Solution of MAP Q4
Solution of MAP Q5
Solution of MAP Q6