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प्रागैतिहासिक काल (Prehistoric times)

प्राक् इतिहास या प्रागैतिहासिक काल (Pre-history or


prehistoric times)
 इस काल में मनुष्य ने घटनाओं का कोई लिखित विवरण नहीं रखा।
 इस काल में विषय में जो भी जानकारी मिलती है वह पाषाण के उपकरणों, मिट्टी के
बर्तनों, खिलौने आदि से प्राप्त होती है।

आद्य ऐतिहासिक काल (Epochal period)

इस काल में लेखन कला के प्रचलन के बाद भी उपलब्ध लेख पढ़े नहीं जा सके हैं।

ऐतिहासिक काल (Historical period)

 मानव विकास के उस काल को इतिहास कहा जाता है, जिसके लिए लिखित विवरण
उपलब्ध है। मनुष्य की कहानी आज से लगभग दस लाख वर्ष पूर्व प्रारम्भ होती है, पर
‘ज्ञानी मानव‘ होमो सैपियंस Homo sapiens का प्रवेश इस धरती पर आज से क़रीब
तीस या चालीस हज़ार वर्ष पहले ही हुआ।

पाषाण काल (Stone age)

 यह काल मनुष्य की सभ्यता का प्रारम्भिक काल माना जाता है। इस काल को तीन
भागों में विभाजित किया जा सकता है। –

1. पुरा पाषाण काल Paleolithic Age


2. मध्य पाषाण काल Mesolithic Age एवं
3. नव पाषाण काल अथवा उत्तर पाषाण काल Neolithic Age

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पुरापाषाण काल (Paleolithic Age)

 यूनानी भाषा में Palaios प्राचीन एवं Lithos पाषाण के अर्थ में प्रयुक्त होता था। इन्हीं
शब्दों के आधार पर Paleolithic Age (पाषाणकाल) शब्द बना ।
 यह काल आखेटक एवं खाद्य-संग्रहण काल के रूप में भी जाना जाता है। अभी तक
भारत में पुरा पाषाणकालीन मनुष्य के अवशेष कहीं से भी नहीं मिल पाये हैं, जो कु छ
भी अवशेष के रूप में मिला है, वह है उस समय प्रयोग में लाये जाने वाले पत्थर के
उपकरण।
 प्राप्त उपकरणों के आधार पर यह अनुमान लगाया जा रहा है कि ये लगभग
2,50,000 ई.पू. के होंगे।
 अभी हाल में महाराष्ट्र के ‘बोरी’ नामक स्थान खुदाई में मिले अवशेषों से ऐसा अनुमान
लगाया जा रहा है कि इस पृथ्वी पर ‘मनुष्य’ की उपस्थिति लगभग 14 लाख वर्ष
पुरानी है। गोल पत्थरों से बनाये गये प्रस्तर उपकरण मुख्य रूप से सोहन नदी घाटी
में मिलते हैं।
 सामान्य पत्थरों के कोर तथा फ़्लॅक्स प्रणाली द्वारा बनाये गये औजार मुख्य रूप से
मद्रास, वर्तमान चेन्नई में पाये गये हैं। इन दोनों प्रणालियों से निर्मित प्रस्तर के
औजार सिंगरौली घाटी, मिर्ज़ापुर एंवं बेलन घाटी, इलाहाबाद में मिले हैं।
 मध्य प्रदेश के भोपाल नगर के पास भीम बेटका में मिली पर्वत गुफायें एवं शैलाश्रृय
भी महत्त्वपूर्ण हैं। इस समय के मनुष्यों का जीवन पूर्णरूप से शिकार पर निर्भर था।
 वे अग्नि के प्रयोग से अनभिज्ञ थे। सम्भवतः इस समय के मनुष्य नीग्रेटो Negreto
जाति के थे। भारत में पुरापाषाण युग को औजार-प्रौद्योगिकी के आधार पर तीन
अवस्थाओं में बांटा जा एकता हैं। यह अवस्थाएं हैं-

काल अवस्थाएं
1- निम्न पुरापाषाण काल हस्तकु ठार Hand-axe और विदारणी Cleaver उद्योग
2- मध्य पुरापाषाण काल शल्क (फ़्लॅक्स) से बने औज़ार
3- उच्च पुरापाषाण काल शल्कों और फ़लकों (ब्लेड) पर बने औजार

पूर्व पुरापाषाण काल के महत्त्वपूर्ण स्थल हैं –

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स्थल क्षेत्र
1- पहलगाम कश्मीर
2- वेनलघाटी इलाहाबाद ज़िले में, उत्तर प्रदेश
3- भीमबेटका और आदमगढ़ होशंगाबाद ज़िले में मध्य प्रदेश
4- 16 आर और सिंगी तालाब नागौर ज़िले में, राजस्थान
5- नेवासा अहमदनगर ज़िले में महाराष्ट्र
6- हुंसगी गुलबर्गा ज़िले में कर्नाटक
7- अट्टिरामपक्कम तमिलनाडु

मध्य पुरापाषाण युग के महत्त्वपूर्ण स्थल हैं –

1. भीमबेटका
2. नेवासा
3. पुष्कर
4. ऊपरी सिंध की रोहिरी पहाड़ियाँ
5. नर्मदा के किनारे स्थित समानापुर

पुरापाषाण काल में प्रयुक्त होने वाले प्रस्तर उपकरणों के आकार एवं जलवायु में होने वाले
परिवर्तन के आधार पर इस काल को हम तीन वर्गो में विभाजित कर सकते हैं।-

1. निम्न पुरा पाषाण काल (2,50,000-1,00,000 ई.पू.)


2. मध्य पुरापाषाण काल (1,00,000- 40,000 ई.पू.)
3. उच्च पुरापाषाण काल (40,000- 10,000 ई.पू.)

मध्य पाषाण काल (Middle Stone Age)

 इस काल में प्रयुक्त होने वाले उपकरण आकार में बहुत छोटे होते थे, जिन्हें लघु
पाषाणोपकरण माइक्रोलिथ कहते थे। पुरापाषाण काल में प्रयुक्त होने वाले कच्चे पदार्थ
क्वार्टजाइट के स्थान पर मध्य पाषाण काल में जेस्पर, एगेट, चर्ट और चालसिडनी जैसे
पदार्थ प्रयुक्त किये गये।
 इस समय के प्रस्तर उपकरण राजस्थान, मालवा, गुजरात, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, आंध्र
प्रदेश एवं मैसूर में पाये गये हैं। अभी हाल में ही कु छ अवशेष मिर्जापुर के सिंगरौली,
बांदा एवं विन्ध्य क्षेत्र से भी प्राप्त हुए हैं।
 मध्य पाषाणकालीन मानव अस्थि-पंजर के कु छ अवशेष प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश के
सराय नाहर राय तथा महदहा नामक स्थान से प्राप्त हुए हैं।

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 मध्य पाषाणकालीन जीवन भी शिकार पर अधिक निर्भर था। इस समय तक लोग
पशुओं में गाय, बैल, भेड़, घोड़े एवं भैंसों का शिकार करने लगे थे।
 जीवित व्यक्ति के अपरिवर्तित जैविक गुणसूत्रों के प्रमाणों के आधार पर भारत में
मानव का सबसे पहला प्रमाण के रल से मिला है जो सत्तर हज़ार साल पुराना होने की
संभावना है। इस व्यक्ति के गुणसूत्र अफ़्रीक़ा के प्राचीन मानव के जैविक गुणसूत्रों
(जीन्स) से पूरी तरह मिलते हैं।
 यह काल वह है जब अफ़्रीक़ा से आदि मानव ने विश्व के अनेक हिस्सों में बसना
प्रारम्भ किया जो पचास से सत्तर हज़ार साल पहले का माना जाता है। कृ षि संबंधी
प्रथम साक्ष्य ‘साम्भर’ राजस्थान में पौधे बोने का है जो ईसा से सात हज़ार वर्ष पुराना
है।
 3000 ई. पूर्व तथा 1500 ई. पूर्व के बीच सिंधु घाटी में एक उन्नत सभ्यता वर्तमान थी,
जिसके अवशेष मोहन जोदड़ो (मुअन-जो-दाड़ो) और हड़प्पा में मिले हैं। विश्वास किया
जाता है कि भारत में आर्यों का प्रवेश बाद में हुआ। वेदों में हमें उस काल की सभ्यता
की एक झाँकी मिलती है।
 मध्य पाषाण काल के अन्तिम चरण में कु छ साक्ष्यों के आधार पर प्रतीत होता है कि
लोग कृ षि एवं पशुपालन की ओर आकर्षित हो रहे थे इस समय मिली समाधियों से
स्पष्ट होता है कि लोग अन्त्येष्टि क्रिया से परिचित थे।
 मानव अस्थिपंजर के साथ कहीं-कहीं पर कु त्ते के अस्थिपंजर भी मिले है जिनसे प्रतीत
होता है कि ये लोग मनुष्य के प्राचीन काल से ही सहचर थे।

बागोर और आदमगढ़ में छठी शताब्दी ई.पू. के आस-पास मध्य पाषाण युगीन लोगों द्वारा
भेड़े, बकरियाँ रख जाने का साक्ष्य मिलता है। मध्य पाषाण युगीन संस्कृ ति के महत्त्वपूर्ण
स्थल हैं –

स्थल क्षेत्र
1- बागोर राजस्थान
2- लंघनाज गुजरात
3- सराय नाहरराय, चोपनी माण्डो, महगड़ा व दमदमा उत्तर प्रदेश
4- भीमबेटका, आदमगढ़ मध्य प्रदेश

नव पाषाण अथवा उत्तर पाषाण काल (Neolithic or North


Stone Age)

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 साधरणतया इस काल की सीमा 3500 ई.पू. से 1000 ई.पू. के बीच मानी जाती है।
यूनानी भाषा का Neo शब्द नवीन के अर्थ में प्रयुक्त होता है। इसलिए इस काल को
‘नवपाषाण काल‘ भी कहा जाता है।
 इस काल की सभ्यता भारत के विशाल क्षेत्र में फै ली हुई थी। सर्वप्रथम 1860 ई. में ‘ली
मेसुरियर’ Le Mesurier ने इस काल का प्रथम प्रस्तर उपकरण उत्तर प्रदेश की टौंस
नदी की घाटी से प्राप्त किया।
 इसके बाद 1872 ई. में ‘निबलियन फ़्रे ज़र’ ने कर्नाटक के ‘बेलारी’ क्षेत्र को दक्षिण भारत
के उत्तर-पाषाण कालीन सभ्यता का मुख्य स्थल घोषित किया।
 इसके अतिरिक्त इस सभ्यता के मुख्य के न्द्र बिन्दु हैं – कश्मीर, सिंध प्रदेश, बिहार,
झारखंड, बंगाल, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, असम आदि।

ताम्र-पाषाणिक काल (Copper-stone age)

 जिस काल में मनुष्य ने पत्थर और तांबे के औज़ारों का साथ-साथ प्रयोग किया, उस
काल को ‘ताम्र-पाषाणिक काल’ कहते हैं। सर्वप्रथम जिस धातु को औज़ारों में प्रयुक्त
किया गया वह थी – ‘तांबा’।
 ऐसा माना जाता है कि तांबे का सर्वप्रथम प्रयोग क़रीब 5000 ई.पू. में किया गया।
 भारत में ताम्र पाषाण अवस्था के मुख्य क्षेत्र दक्षिण-पूर्वी राजस्थान, मध्य प्रदेश के
पश्चिमी भाग, पश्चिमी महाराष्ट्र तथा दक्षिण-पूर्वी भारत में हैं।
 दक्षिण-पूर्वी राजस्थान में स्थित ‘बनास घाटी’ के सूखे क्षेत्रों में ‘अहाड़ा’ एवं ‘गिलुंड’
नामक स्थानों की खुदाई की गयी। मालवा, एवं ‘एरण’ स्थानों पर भी खुदाई का कार्य
सम्पन्न हुआ जो पश्चिमी मध्य प्रदेश में स्थित है।
 खुदाई में मालवा से प्राप्त होनेवाले ‘मृद्भांड’ ताम्रपाषाण काल की खुदाई से प्राप्त अन्य
मृद्भांडों में सर्वात्तम माने गये हैं।
 पश्चिमी महाराष्ट्र में हुए व्यापक उत्खनन क्षेत्रों में अहमदनगर के जोर्वे, नेवासा एवं
दायमाबाद, पुणे ज़िले में सोनगांव, इनामगांव आदि क्षेत्र सम्मिलित हैं। ये सभी क्षेत्र
‘जोर्वे संस्कृ ति‘ के अन्तर्गत आते हैं।
 इस संस्कृ ति का समय 1,400-700 ई.पू. के क़रीब माना जाता है। वैसे तो यह सभ्यता
ग्रामीण भी पर कु छ भागों जैसे ‘दायमाबाद’ एवं ‘इनामगांव’ में नगरीकरण की प्रक्रिया
प्रारम्भ हो गयी थी।
 ‘बनासघाटी’ में स्थित ‘अहाड़’ में सपाट कु ल्हाड़ियां, चूड़ियां और कई तरह की चादरें
प्राप्त हुई हैं। ये सब तांबे से निर्मित उपकरण थे। ‘अहाड़’ अथवा ‘ताम्बवली’ के लोग
पहले से ही धातुओं के विषय में जानकारी रखते थे।

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 अहाड़ संस्कृ ति की समय सीमा 2,100 से 1,500 ई.पू. के मध्य मानी जाती है। ‘गिलुन्डु ’,
जहां पर एक प्रस्तर फलक उद्योग के अवशेष मिले हैं, ‘अहाड़ संस्कृ ति’ का के न्द्र बिन्दु
माना जाता है।
 इस काल में लोग गेहूँ, धान और दाल की खेती करते थे। पशुओं में ये गाय, भैंस, भेड़,
बकरी, सूअर और ऊँ ट पालते थे। ‘जोर्वे संस्कृ ति’ के अन्तर्गत एक पांच कमरों वाले
मकान का अवशेष मिला है। जीवन सामान्यतः ग्रामीण था।
 चाक निर्मित लाल और काले रंग के ‘मृद्‌भांड’ पाये गये हैं। कु छ बर्तन, जैसे ‘साधारण
तश्तरियां’ एवं ‘साधारण कटोरे’ महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में ‘सूत एवं रेशम के धागे’
तथा ‘कायथा’ में मिले ‘मनके के हार’ के आधार पर कहा जा एकता है कि ‘ताम्र-
पाषाण काल’ में लोग कताई-बुनाई एवं सोनारी व्यवसाय से परिचित थे।
 इस समय शवों के संस्कार में घर के भीतर ही शवों का दफ़ना दिया जाता था। दक्षिण
भारत में प्राप्त शवों के शीश पूर्व और पैर पश्चिम की ओर एवं महाराष्ट्र में प्राप्त शवों
के शीश उत्तर की ओर एवं पैर दक्षिण की ओर मिले हैं।
 पश्चिमी भारत में लगभग सम्पूर्ण शवाधान एवं पूर्वी भारत में आंशिक शवाधान का
प्रचलन था।
 इस काल के लोग लेखन कला से अनभिज्ञ थे। राजस्थान और मालवा में प्राप्त मिट्टी
निर्मित वृषभ की मूर्ति एवं ‘इनाम गांव से प्राप्त ‘मातृदेवी की मूर्ति’ से लगता है कि
लोग वृषभ एवं मातृदेवी की पूजा करते थे।
 तिथि क्रम के अनुसार भारत में ताम्र-पाषाण बस्तियों की अनेक शाखायें हैं। कु छ तो
‘प्राक् हड़प्पायी’ हैं, कु छ हड़प्पा संस्कृ ति के समकालीन हैं, कु छ और हड़प्पोत्तर काल
की हैं।
 ‘प्राक् हड़प्पा कालीन संस्कृ ति’ के अन्तर्गत राजस्थान के ‘कालीबंगा’ एवं हरियाणा के
‘बनवाली’ स्पष्टतः ताम्र-पाषाणिक अवस्था के हैं। 1,200 ई.पू. के लगभग ‘ताम्र-
पाषाणिक संस्कृ ति’ का लोप हो गया। के वल ‘जोर्वे संस्कृ ति‘ ही 700 ई.पू. तक बची रह
सकी।
 सर्वप्रथम चित्रित भांडों के अवशेष ‘ताम्र-पाषाणिक काल’ में ही मिलते हैं। इसी काल के
लोगों ने सर्वप्रथम भारतीय प्राय:द्वीप में बड़े बड़े गांवों की स्थापना की।

संस्कृ ति काल
1- अहाड़ संस्कृ ति लगभग 1700-1500 ई.पू.

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2- कायथ संस्कृ ति लगभग 2000-1800 ई.पू.
3- मालवा संस्कृ ति लगभग 1500-1200 ई.पू.
4- सावलदा संस्कृ ति . लगभग 2300-2200 ई.पू
5- जोर्वे संस्कृ ति लगभग 1400-700 ई.पू.
6- प्रभास संस्कृ ति लगभग 1800-1200 ई.पू.
7- रंगपुर संस्कृ ति लगभग 1500-1200 ई.पू.

प्रागैतिहासिक कालीन संस्कृ ति एवं विशेषताएं

संस्कृ ति के
काल मुख्य स्थल महत्व उपकरण एवं विशेषताएं
लक्षण
शल्क,
हस्त कु ठार एवं वाटिकाश्म
निम्न गंडासा, पंजाब, कश्मीर, सोहन घाटी,
उपकरण, होमो इरेक्टस के अस्थि
पुरापाषाण खंडक, सिंगरौली घाटी, छोटा नागपुर,
अवशेष नर्मदा घाटी से प्राप्त हुए
काल उपकरण, नर्मदा घाटी, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश
हैं |
संस्कृ ति
नेवासा (महाराष्ट्र), डीडवाना
मध्य खुरचनी,
(राजस्थान), भीमबेटका (मध्य फलक, बेधनी, भीमबेटका से गुफा
पुरापाषाण वेधक
प्रदेश) नर्मदा घाटी, बाकुं डा, चित्रकारी मिली है |
काल संस्कृ ति
पुरुलिया (पश्चिम बंग)
उच्च फलक एवं बेलन घाटी, छोटा नागपुर पठार, प्रारंभिक होमोसेपियंस मानव का
पुरापाषाण तक्षिणी मध्य भारत, गुजरात, महाराष्ट्र, काल, हार्पून, फलक एवं हड्डी के
काल संस्कृ ति कर्नाटक, आंध्र प्रदेश उपकरण प्राप्त हुए |
सूक्ष्म पाषाण उपकरण बढ़ाने की
मध्य सुक्ष्म आदमगढ़, भीमबेटका (मध्य
तकनीकी का विकास, अर्धचंद्राकार
पाषाण पाषाण प्रदेश), बागोर (राजस्थान), सराय
उपकरण, इकधार फलक, स्थाई
काल संस्कृ ति नाहर राय (उत्तर प्रदेश)
निवास का साक्ष्य पशुपालन |
बुर्जहोम और गुफ्कराल
प्रारंभिक कृ षि संस्कृ ति, कपड़ा
लंघनाज(गुजरात), दमदमा
पॉलिश्ड़ बनाना, भोजन पकाना, मृदभांड
नवपाषाण (कश्मीर), कोल्डिहवा (उत्तर
उपकरण निर्माण, मनुष्य स्थाई निवास बना,
काल प्रदेश), चिरौंद (बिहार), पौयमपल्ली
संस्कृ ति पाषाण उपकरणों की पॉलिश शुरू,
(तमिलनाडु ), ब्रह्मगिरि, मस्की
पहिया, अग्नि का प्रचलन |
(कर्नाटक)

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Quick Revision
 भारत में पुरा पाषाण युगीन सभ्यता का विकास प्लाइस्टोसीन या हिम युग से हुआ।
 प्रस्तर युग या पाषाण युग को मानव द्वारा प्रयोग में लाये गये पत्थर के उपकरणों
की बनावट तथा जलवायु में होने वाले परिवर्तन के आधार पर तीन भागों में बाँटा जा
सकता है

1. पुरा पाषाण काल (Paleolithic Age) 2. मध्य पाषाण काल (Mesolithic Age) 3. उत्तर
अथवा नव पाषाण काल . (neolithic Age)

 पुरा पाषाण काल में मानव शरीर के अवशेषों का अभाव रहा है। हिमयुग का अधिकांश
हिस्सा इसी काल से गुजरा। इस काल में ‘चापर-चापिंग’ (पेबुला) परम्परा के अन्तर्गत
गोल पत्थरों को तोड़कर हथियार बनाये गये, जिसके अवशेष पंजाब की सोहन नदी
घाटी से मिलते हैं।
 हस्त कु ठार (हैण्ड ऐक्स) परम्परा के हथियार मद्रास से प्राप्त हुए हैं। मद्रास के
अतिरिक्त इस काल के औजारों के अवशेष मिर्जापुर (उ० प्र०) के बेलन घाटी, दिदवाना
(राजस्थान) तथा नर्मदा नदी की घाटी से प्राप्त होते हैं। भीमबेतका (मध्य प्रदेश) की
गुहाओं में तत्कालीन मनुष्यों के आवास के अवशेष मिले हैं।
 इस युग का मानव आग से अनभिज्ञ था। कच्चा मांस अथवा फल-फू ल खाया करता
था। स्थायी निवास के अभाव में इस समय का मानव खानाबदोश का जीवन जीता
था। कृ षि कर्म तथा पशुपालन से विमुख इस समय का मानव पूर्णत: आखेटक का
जीवन जीता था।
 मध्यपाषाण काल के लोग शिकार करने, मछली पकड़ने, खाद्य-सामग्री को एकत्र करने
के साथ-साथ पशुपालन भी करने लगे। मध्य प्रदेश के ‘आदमगढ़ तथा राजस्थान के
बागोर’ से पशुपालन के सबसे पुराने साक्ष्य मिलते हैं। इस काल में शिकार में प्रयुक्त
होने वाले औजार बहुत छोटे होते थे, जिन्हें ‘माइक्रोलिथ’ (लघु पाषाणों पकरण) कहा
जाता था। छोटे आकार के पत्थरों से निर्मित उपकरण राजस्थान, गुजरात, मालवा,
पश्चिमी बंगाल, आंध्रप्रदेश तथा मैसूर से प्राप्त हुए हैं।
 सम्भवत: पहला मानव अस्थिपंजर मध्य पाषाण में ही मिला। प्रतापगढ़ के
‘सरायनाहरराय’ तथा ‘महदहा’ नामक स्थान से मध्य पाषाणकाल के प्रथम मानव
अस्थिपंजर मिले। इस काल में मानव थोडा बहुत कृ षि कर्म तथा बर्तन निर्माण कला
से भी परिचित होने लगा था। मध्य पाषाण काल में ही भारत में गुफा चित्रकारी के
अवशेष मिले हैं। विंध्याचल की गुफाओं में अनेक आखेट, नृत्य एवं युद्ध से संबंधित
प्रगैतिहासिक चित्र मिले हैं।

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 सम्भवतः इस काल के लोग अन्त्येष्टि क्रिया से भी परिचित थे। | ‘नवपाषाण युग’ के
लोग पालिशदार पत्थर के औजारों तथा हथियारों का प्रयोग करते थे। इस समय के
औजारों में कु ल्हाड़ी का महत्वपूर्ण स्थान था।
 ‘ले मेसुरियर महोदय’ ने 1860 में टोंस नदी की घाटी से प्रथम नव पाषाण उपकरण
प्राप्त किया। उत्तर-पश्चिम में स्थित कश्मीर में नवपाषाण संस्कृ ति की कई विशेषताएं
देखने को मिलती हैं, जिसमें मुख्य है गर्तनिवास । श्रीनगर के बुर्जाहोम’ (जन्मस्थान)
नामक स्थान पर इस काल के लोग | झील के किनारे गर्तावासों (गड्ढों) में रहते थे।
 गर्तनिवास का एक और स्थान था ‘गुफकराल जो श्रीनगर से 41 कि० मी० दक्षिण-
पश्चिम में स्थित है। यहाँ के लोग कृ षि और पशुपालन दोनों करते थे।
 नवपाषाण युग के लोग हड्डी द्वारा बने हथियारों का भी प्रयोग करते थे। हड्डी के
हथियार पटना (बिहार) के चिरौद नामक स्थान से प्राप्त हुए हैं। बुर्जाहोम के लोग रूखड़े
धूसर मृदभाण्ड का भी प्रयोग करते थे। यहाँ कब्रों में मालिकों के साथ उनके कु त्तों को
भी दफनाया जाता था। सम्भवत: यह परम्परा इस काल में अन्यत्र देखने को नहीं
मिली। नव पाषाण युग की मुख्य उपलब्धि थी खाद्य उत्पादन का आविष्कार, पशुओं
के प्रयोग की जानकारी, स्थिर ग्रामीण जीवन आदि। कृ षि का प्रथम स्पष्ट साक्ष्य नव
पाषाण युग में ही सिंध और बलूचिस्तान की सीमा पर कच्छी मैदान में बोलन नदी के
तट पर स्थित ‘मेहरगढ़’ नामक स्थान से प्राप्त हुआ है।
 यहाँ के लोगों द्वारा गेहूँ, जौ और कपास पैदा करने का अनुमान लगाया जा सकता है।
सम्भवत: ये कच्चे ईंटों से निर्मित घरों में रहते थे। इलाहाबाद के ‘कोल्डीहवा’ स्थान से
चावल की खेती के प्राचीनतम साक्ष्य मिलते हैं। कु म्भकारी की स्पष्ट शुरुआत इसी
काल में हुई।

स्मरणीय तथ्य

1. इतिहास के जिस काल की जानकारी के लिए लिखित साधन का अभाव है तथा मानव
असभ्य जीवन जी रहा था उसे प्रागैतिहासिक काल कहा जाता है
2. जिस काल की जानकारी के लिए लिखित साधन तो उपलब्ध हैं परंतु उसे पढ़ा नहीं जा
सकता उसे आद्य इतिहास कहा जाता है हडप्पा का इतिहास काल है
3. इतिहास किए जिस काल की जानकारी के स्रोत के रूप में लिखित साधन उपलब्ध हैं
उसे ऐतिहासिक काल कहा जाता है
4. मानव का अस्तित्व पृथ्वी पर अति नूतन काल के आरंभ में हुआ था
5. गर्त आवास का साक्ष्य गुफ्फ्कर्ल, बुर्जहोम तथा नागार्जुनकोंडा से मिला है
6. बेलन घाटी क्षेत्र पुरापाषाण काल के तीनों चरणों से जुड़ा है
7. भीमबेटका से गुफा चित्रकारी के साक्ष्य मिले हैं

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8. मध्य प्रदेश के आजमगढ़ तथा राजस्थान के बागोर से पशुपालन के सबसे पुराने
साक्ष्य मिले हैं
9. मेहरगढ़ से सर्व प्रथम कृ षि का साक्ष्य मिला है
10. नव पाषाण युग के हथियार बिहार के चिरांद नामक स्थान से प्राप्त हुए हैं
11. इलाहाबाद के कोल्डीहवा स्थान से चावल की खेती के प्राचीनतम साक्ष्य मिले हैं
12. गर्तचूल्हे का प्राचीन साक्ष्य लंघनाज तथा सराय नाहर राय से मिला है
13. कु पगल तथा काडेकल से राख का टीला मिला है
14. मृदभांड निर्माण का प्राचीनतम साक्ष्य जो चौपानी मांडो से मिला है
15. मनुष्य के साथ पालतू पशु को दफनाने का साक्ष्य बुर्जहोम से मिला है

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