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कला एवं संस्कृ तत


भाग-2
क्रम ऄध्याय पृष्ठ संख्या
संख्या
1 भारतीय रं गमंच 1-15
2 प्राचीन तवज्ञान तथा प्रौद्योतगकी 16-39

3 भारत में धमम एवं दर्मन 40-58


4 देर्ज ऄतभव्यति 59-80
5 भाषा और सातहत्य 81-106

6 भारत का सांस्कृ ततक आततहास एवं तवरासत 107-145

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भारतीय रं गमंच
तवषय सूची
1. भारतीय रं गमंच: तवरासत, संक्रमण और भतवष्य के तवकल्प ______________________________ 4
1.1. चरण (Phases) _______________________________________________________________________ 4
1.1.1. प्रथम चरण (र्ास्त्रीय काल) ________________________________________________________________ 4
1.1.2 तितीय चरण (पारंपररक काल) ______________________________________________________________ 5
1.1.3. तृतीय चरण (अधुतनक काल)_______________________________________________________________ 5

1.2. पहचान (Identity) _____________________________________________________________________ 6

1.3. पररवतमन (Changes) ___________________________________________________________________ 6

2. पारं पररक रं गमंच के तवतभन्न रूप (Different forms of Traditional Theatre) __________________ 7
2.1. भांड-पाथर (Bhand Pather) _____________________________________________________________ 7

2.2. स्वांग (Swang) _______________________________________________________________________ 7

2.3. नौटंकी (Nautanki) ____________________________________________________________________ 7

2.4. रासलीला (Rasleela)___________________________________________________________________ 8

2.5. भवाइ (Bhavai) _______________________________________________________________________ 8

2.6. जात्रा (Jatra) _________________________________________________________________________ 8

2.7. माच (Maach) ________________________________________________________________________ 9

2.8. भाओना (Bhaona) _____________________________________________________________________ 9

2.9. तमार्ा (Tamaasha) ___________________________________________________________________ 9

2.10. दर्ावतार (Dashavatar) ______________________________________________________________ 10

2.11. कृ ष्णाट्टम (Krishnattam) ______________________________________________________________ 10

2.12. मुतडयेट्टु (Mudiyettu) ________________________________________________________________ 10

2.13. थेय्यम (Theyyam) __________________________________________________________________ 11

2.14. कु रटयाट्टम (Koodiyattam) _____________________________________________________________ 11

2.15. यक्षगान (Yakshagaana) ______________________________________________________________ 12

2.16. थेरूक्कू थु (Therukoothu) ______________________________________________________________ 12

2.17. रामलीला __________________________________________________________________________ 12

2.18. भूता _____________________________________________________________________________ 13

2.19. दसकरिया _________________________________________________________________________ 13

2.20. पोवाडा ___________________________________________________________________________ 13

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2.21. तवल्लु पत्तु _________________________________________________________________________ 14

2.22. बुराम कथा __________________________________________________________________________ 14

2.23. पंडवानी (छत्तीसगढ़) __________________________________________________________________ 15

2.24. कतनयन कू थु ________________________________________________________________________ 15

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1. भारतीय रं ग मंच : तवरासत, संक्र मण और भतवष्य के तवकल्प


(Indian Theatre: Inheritance, Transitions and Future Options)
 भारतीय रंगमंच परंपरा कम से कम 5000 वषम पुरानी है।
 सम्पूणम तवश्व में नाट्यकला पर प्रथम पुस्तक भारत में तलखी गयी थी। आसे नाट्य र्ास्त्र कहा गया।
 यह भरत मुतन िारा तलतखत व्याकरण या रंगमंच/नाट्यरूप की पतवत्र पुस्तक है। आसका रचना
काल 2000 इसा पूवम से चतुथम र्ताब्दी इस्वी के मध्य रखा जा सकता है। ककसी भी कला या
गतततवतध के तसद्ांत और प्रस्तुततकरण को अकार देने के तलए समय और ऄभ्यास की एक लंबी
ऄवतध अवश्यक है।
 नाट्य र्ास्त्र जैसे ग्रन्थ के अधार पर यह तवश्वास के साथ कहा जा सकता है कक, भारतीय रंगमंच
की परम्परा बहुत प्राचीन है, रामायण और महाभारत जैसे महाकाव्यों में आसके ऐततहातसक साक्ष्य,
पुरातातत्वक साक्ष्य या सन्दभम ईपलब्ध होते हैं।
 भारत में रंगमंच का प्रारम्भ कथात्मक रूप में हुअ, ऄथामत् पािन, गायन और नृत्य रंगमंच के
ऄतभन्न तत्व बन गए। कथात्मक तत्वों पर आस जोर ने हमारे रंगमंच को वास्तव में प्रारम्भ से ही
नाट्यर्ाला का रूप दे कदया। यही कारण है कक भारत में रंगमंच ने सातहत्य, मूकऄतभनय, संगीत,
नृत्य, गतततवतध, तचत्रकला, मूर्ततकला और वास्तुकला जैसे सातहत्य और लतलत कला के ऄन्य रूपों
को ऄपनी भौततक प्रस्तुतत में र्ातमल कर तलया।
 यह कहा जा सकता है कक दुतनया की सभी प्राचीन परंपराएँ - चाहे वे पूवी हों या पतिमी –
रंगमंच का लगभग समान तचत्र प्रस्तुत करती हैं। दोनों परंपराओं का सतही ऄवलोकन करने पर, वे
ऄपने वाह्य या भौततक ऄतभव्यति में समान लग सकती हैं परन्तु यकद हम दोनों के दर्मन और
दृतिकोण की गहराइ में जाएं तो यह समझना सरल होगा कक ऄपनी मूल प्रकृ तत में वे दोनों दो छोर
हैं।
 पािात्य जीवन दर्मन का यह गहरा तवश्वास है कक मृत्यु के बाद कोइ जीवन नहह है वहह भारतीय
दर्मन, तवर्ेषतः तहन्दू धमम, जीवन को तनरंतरता में देखता है, ऄथामत, मृत्यु के ईपरान्त भी जीवन
का पूणम ऄंत नहह है। जीवन एक वृत्ताकार पथ पर चलता रहता है।
 पतिम में रंगमंच जीवन को वैसा ही प्रस्तुत करता है जैसा वह है, जबकक भारत में यह जीवन को
ऐसे प्रस्तुत करता है जैसा कक होना चातहए। दूसरे र्ब्दों में , यह आस तरह से समझाया जा सकता
है: पािात्य संस्कृ तत में जीवन को रंगमंच या ऄन्य कलाओं में वास्ततवकता के तनकट तचतत्रत ककया
गया है, लेककन भारत में यह अदर्मवादी संदभम में ऄतधक व्याख्यातयत ककया गया है।

1.1. चरण (Phases)

भारतीय रंगमंच के आस अधारभूत प्रकृ तत को समझने के बाद, अगे हम भारत में आसके तवकास को
तवस्तारपूवमक प्रस्तुत कर सकते हैं। मोटे तौर पर यह तीन तवतर्ि चरणों में तवभातजत ककया जा सकता
है: र्ास्त्रीय काल; पारंपररक काल और अधुतनक काल।

1.1.1. प्रथम चरण (र्ास्त्रीय काल)

 प्रथम चरण 1000 इस्वी तक के रंगमंच के लेखन और ऄभ्यास को सतम्मतलत करता है, जो नाट्य
र्ास्त्र िारा प्रदान ककये गए लगभग सभी तनयमों, तवतनयमों और संर्ोधनों पर अधाररत है।
 ये नाटकों, प्रदर्मन स्थलों और नाटकों के मंचन की परंपराओं के लेखन के तलए प्रयुि होते हैं। भास,
कातलदास, र्ूद्रक, तवर्ाखदत्त और भवभूतत जैसे नाटककारों ने संस्कृ त में तलतखत ऄपने नाटकीय
अख्यानों के माध्यम से महत्वपूणम योगदान कदया है। ईन्होंने महाकाव्यों, आततहास, लोक कथाओं

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और ककवदंततयों अकद जैसे स्रोतों को ऄपने कथानकों का अधार बनाया है। दर्मक पहले से ही आन
कहातनयों से पररतचत थे। आसतलए, रंगमंच की भाषा में मुद्राओं (gestures), मूकऄतभनय
(Mime) और गतत (movement) के माध्यम से एक दृश्य प्रस्तुतत अवश्यक थी।
 कलाकार सभी लतलत कलाओं में तनपुण होना चातहए था। एक तरह से, यह सम्पूणम रंगमंच की एक
तस्वीर थी। प्रतसद् जममन नाटककार और तनदेर्क ब्रेक्ट (Bertolt Brecht) ने वस्तुतः आन स्रोतों से
'महाकाव्य रंगमंच' (Epic Theatre) के ऄपने तसद्ांत और 'परकीयकरण' (Alienation) की
ऄवधारणा को तवकतसत ककया।

1.1.2 तितीय चरण (पारं प ररक काल)

 तितीय चरण रंगमंच की ईस कक्रया को सतम्मतलत करता है जो मौतखक परंपरा पर अधाररत था।
 1000 इस्वी के बाद से लेकर 1700 इस्वी तक यह प्रदर्तर्त ककया जा रहा था और यह अज भी
भारत के लगभग प्रत्येक भाग में प्रचलन में है।
 रंगमंच के आस प्रकार का ईद्भव भारत में राजनीततक तंत्र के पररवतमन तथा साथ ही साथ देर् के
सभी भागों में तवतवध क्षेत्रीय भाषाओँ के ऄतस्तत्व में अने के साथ जुड़ा हुअ है। ये भाषाएं स्वयं ही
1000 इस्वी के असपास ऄतस्तत्व में अईं ऐसे में ईन भाषाओं में ककसी भी लेखन की ईम्मीद
करना बहुत बेमानी था। यही कारण है कक आस सम्पूणम कालावतध को लोक या पारंपररक ऄवतध के
रूप में जाना जाता है, ऄथामत, रंगमंच को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक एक मौतखक परंपरा के
माध्यम से सौंपा गया। रंगमंच के आस पारंपररक प्रकार में और दूसरे बड़े पररवतमनों ने भी ऄपना
स्थान बनाया।
 र्ास्त्रीय रंगमंच जो कक नाट्य र्ास्त्र पर अधाररत है, ऄपने रूप और प्रकृ तत में बहुत ऄतधक
पररष्कृ त था और पूरी तरह से र्हरी-ईन्मुख था जबकक यह पारंपररक रंगमंच ग्रामीण पृष्ठभूतम से
तवकतसत हुअ। हालांकक रंगमंच के ऄन्य तत्वों संगीत, मूकऄतभनय, गतत, नृत्य और कथाओं का
ईपयोग लगभग समान बना रहा। यह परवती रंगमंच ऄतधक सरल, तात्कातलक और अर्ुरतचत
था और यहां तक कक समकालीन सीमा में था।
 आसके ऄततररि जहाँ र्ास्त्रीय रंगमंच ऄपनी प्रस्तुततकरण में एक तनतित समय में भारत के समस्त
भागों में लगभग एकसमान था, वहह पारंपररक रंगमंच ने प्रस्तुततकरण की दो ऄलग ऄलग
पद्ततयों को ऄपनाया - ईत्तरी भारत में सभी लोक और पारंपररक रूप मुख्यतः मौतखक रहे हैं,
ऄथामत, गायन और सस्वर पाि अधाररत जैसे रामलीला, रासलीला, भांड नौटंकी अकद तजसमें
कोइ जरटल मुद्रा या गतत और नृत्य के तत्व नहह थे।

1.1.3. तृ तीय चरण (अधु तनक काल)

 तृतीय चरण पुनः भारत में राजनीततक व्यवस्था में पररवतमन के साथ जुड़ा था- आस समय पतिम से
एक वाह्य प्रभाव अ रहा था। तब्ररटर् र्ासन के ऄधीन लगभग 200 वषों की समय ऄवतध
भारतीय रंगमंच को पतिमी रंगमंच के साथ सीधे संपकम में लाती है। भारत में पहली बार, रंगमंच
के लेखन और ऄभ्यास कायम पूणमतः वास्ततवक या यथाथम प्रस्तुततकरण की कदर्ा में गततमान हुए।
ऐसा नहह है कक यथाथमवाद या प्रकृ ततवाद जैसे तत्व हमारी परंपरा में पूरी तरह से ऄनुपतस्थत थे।
यह सदैव ईपतस्थत था जैसाकक नाट्यर्ास्त्र में लोकधमी (Lokdharmi) की ऄवधारणा के माध्यम
से पररकतल्पत भी ककया गया था, ऄथामत, दैनतन्दन मुद्राओं और व्यवहार (लोकजीवन) के साथ
जुड़ी प्रस्तुततकरण की एक र्ैली और नाट्यधमी (Natyadharami), - ऄथामत, एक र्ैली जो
प्रकृ तत में ऄतधकतया प्रस्तुततकरण संबंधी और नाटकीय थी। परन्तु कहातनयों का ईपयोग
तनरपवाद रूप से एक ही स्रोत से ककया गया था। अधुतनक रंगमंच में कहानी ने भी ऄपनी प्रकृ तत
को बदल कदया है। ऄब यह बड़े नायकों और देवताओं के असपास बुना न होकर अम अदमी की
तस्वीर बन गइ है।

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 एक तरह से यह प्राचीन काल से लेकर वतममान तक प्रस्तुत भारतीय रंगमंच की पूरी तस्वीर है।
जैसाकक हम पहले ही देख चुके हैं, समकालीन भारत में रंगमंच ऄपने ऐततहातसक पररप्रेक्ष्य में
व्याख्यातयत आसके तवकास के तीन ऄलग-ऄलग चरणों का एक संयोजन है। लेककन दुतनया के सही
ऄथों में यह कभी भी पेर्ेवर नहह बना, ऄथामत, प्रारंभ से ही लोग कभी भी ऄपनी अजीतवका के
तलए रंगमंच पर पूणमतया तनभमर नहह बने। यद्यतप ऐसा प्रतीत होता है कक भारत में रंगमंच एक
सतत गतततवतध बनी हुइ है, तथातप वास्ततवकता में ऐसा नहह है। यह सदैव त्योहारों या मनोरंजन
के ऄन्य ऄवसरों से संबंतधत कायमक्रमों का भाग रहा है। रंगमंच ऄतधक से ऄतधक ऄक्टूबर से माचम
के बीच- के वल छह महीने के तलए तथाकतथत वातणतययक या व्यावसातयक कं पतनयों िारा -प्रस्तुत
ककया जाता है।
 साल के बाकी समय में, लोग या तो कृ तष या ककन्हह ऄन्य व्यवसायों में लगे रहते हैं। आस प्रकार की
तस्थतत भारतीय रंगमंच के तलए एक बड़ी समस्या पैदा करता है। यह ऄभी भी हमारे जीवन का
तहस्सा और व्यवहार नहह बन पाया है, जैसाकक पतिम में है। यहाँ तक कक पतिम बंगाल और
महाराष्ट्र जैसे राययों में, जहाँ रंगमंच परम्परा बहुत सफल है, कोइ भी कलाकार रंगमंच के प्रतत
पूणमतः समर्तपत नहह है। वे कदन के समय ककसी व्यवसाय या ककसी ऄन्य कायम में संलग्न रहते हैं तथा
के वल र्ाम को वे ऄभ्यास या प्रदर्मन करने के तलए अते हैं। भारत में व्यावसातयक प्रदर्मनों की
सूची वाली कं पतनयों की ऄवधारणा बहुत नइ है। भारतीय ऄतभनेता और रंगमंच कायमकताम के तलए
रंगमंच एक व्यवसाय कै से बन सकता है? यह सबसे बड़ा प्रश्न है। यह कै से ईसे ईसके भोजन की
ईपलब्धता के साथ-साथ ईसकी कला के ऄभ्यास का ऄवसर प्रदान कर सकता है?

1.2. पहचान (Identity)


 एक ऄन्य प्रश्न है जो अज भारतीय रंगमंच की पहचान से संबंतधत है। जब रंगमंच पर संस्कृ त जैसी
एक ही भाषा में प्रदर्मन ककया जाता था, तब आसकी ऄपनी स्वयं की एक राष्ट्रीय पहचान थी।
लेककन अज तस्वीर पूरी तरह से बदल गइ है। भारत 22 भाषाओं और तवतवध संस्कृ ततयों वाला
एक तवर्ाल देर् है। यह ककसी भी पतिमी देर् की तरह नहह है जहां एक ही भाषा और संस्कृ तत
होने के कारण रंगमंच आन तत्वों के साथ र्ीघ्र ही पहचाना जा सकता है।
 भारत में राष्ट्रीय रंगमंच की ऄवधारणा को क्षेत्रीय संदभम में तवर्ुद् रूप से देखा जाना चातहए।
सभी क्षेत्रों की ऄपनी भाषा, आततहास और संस्कृ तत है और ईनके रंगमंच पर भी ईन पररतस्थततयों
का गहरा प्रभाव है। आसतलए, कभी-कभी यह ककसी तवर्ेष रूप/र्ैली या क्षेत्र को चुनने के तलए एक
समस्या बन जाता है। क्या यह भारतीय चररत्र, संस्कृ तत और सभ्यता की एक पूणम तस्वीर प्रस्तुत
करता है? यही कारण है कक तपछले 30 से 40 वषों से, आसके यथाथम और प्रामातणक रूप की खोज
हो रही है, जो अधुतनक भारत की अकांक्षाओं के साथ ही ऄपनी परं पराओं की तनरंतरता का
प्रतततनतधत्व कर सके ।

1.3. पररवतम न (Changes)

रंगमंच से कफल्मों की ओर भारी संख्या में पलायन कोइ नइ घटना नहह है। टेलीतवज़न, वीतडयो, कफल्म
और ईपग्रह चैनलों ने लोगों की ऄतधकतम संख्या को रंगमंच से आन तवकल्पों के प्रतत अकर्तषत ककया है
क्योंकक यहां ऄतधक पैसा, चकाचौंध करने वाला अकषमण और बाजार के ऄवसर हैं। पररणामतः,
रंगमंचीय गतततवतधयां तपछले 15 वषों से एक गंभीर बाधा से बुरी तरह से प्रभातवत हैं। हालांकक, पुनः
धीरे-धीरे तस्थतत बदलना प्रारम्भ हुइ है। दर्मक छोटे परदे से तंग अ चुके प्रतीत होते हैं। रंगमंच एक
जीतवत और प्रत्यक्ष माध्यम रहा है और सदैव ऄपने दर्मकों के साथ मानवीय स्तर पर काम करता रहा
है, जो कभी मर नहह सकता है। यहाँ तक कक ऄसंख्य बाधाओं और आततहास में ईथल-पुथल के बाद भी
यह ऄंत में हमेर्ा एक तवजेता के रूप में ईभरा है।

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2. पारं प ररक रं ग मंच के तवतभन्न रूप (Different forms of


Traditional Theatre)
2.1. भां ड -पाथर (Bhand Pather)

 यह कश्मीर का पारंपररक नाट्य है।


 यह नृत्य, संगीत और नाट्यकला का ऄनोखा
संगम है।
 व्यंग्य, मज़ाक और नकल ईतारने हेतु आसमें
हँसने और हँसाने को प्राथतमकता दी गयी है।
 आस रंगमंच र्ैली में संगीत के तलए सुरनाइ,
नगाड़ा और ढोल आत्याकद का प्रयोग ककया जाता
है।
 भांड-पाथर के कलाकार मुख्यतः कृ षक वगम के
हैं, आसतलए आस नाट्यकला पर ईनकी जीवन र्ैली, अदर्ों तथा संवेदना का गहरा प्रभाव पड़ा है।

2.2. स्वां ग (Swang)

 प्रारंभ में, स्वांग रंगमंच र्ैली मूलत:


संगीत अधाररत था, परन्तु बाद में आसमें
गद्य का भी समावेर् हुअ और संवादों ने
ऄपनी भूतमका तनभाइ।
 आस रंगमंच र्ैली में भावों की कोमलता,
रसतसतद् के साथ-साथ चररत्र का तवकास
भी दृिव्य है।
 स्वांग की दो मह्वपूणम र्ैतलयां रोहतक
तथा हाथरस र्ैतलयां ईल्लेखनीय हैं।
 रोहतक र्ैली में हररयाणवी (बांगरू)
भाषा तथा हाथरस र्ैली में ब्रजभाषा की
प्रधानता है।

2.3. नौटं की (Nautanki)

 यह प्राय: ईत्तर प्रदेर् से सम्बंतधत है।


 आस पारंपररक रंगमंच र्ैली के कें द्र कानपुर,
लखनउ तथा हाथरस हैं।
 आसका नाम ‘र्हजादी नौटंकी’ नामक नाटक
से तलया गया है।
 आसमें प्राय: दोहा, चौबोला, छप्पय, बहर-
ए-तबील छंदों का प्रयोग ककया जाता है।
 पहले नौटंकी में पुरुष ही स्त्री पात्रों का
ऄतभनय करते थे, परन्तु ऄब तस्त्रयां भी
काफी मात्रा में आसमें भाग लेने लगी हैं।
 कानपुर की गुलाब बाइ ने आसमें जान डाल दी। ईन्होंने नौटंकी के क्षेत्र में नये कीर्ततमान स्थातपत
ककए।

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2.4. रासलीला (Rasleela)

 ईत्तर प्रदेर् में ब्रज भूतम कृ ष्ण की


लीला स्थली मानी जाती है।
 रासलीला ऄनन्य रूप से कृ ष्ण की
लीलाओं पर अधाररत है।
 ऐसी मान्यता है कक रासलीला
सम्बंधी नाटक जो की कृ ष्ण के जीवन
पर अधाररत हैं सवमप्रथम नंददास
िारा रतचत हुए।
 आसमें गद्य-संवाद, सुन्दर गेय पद और
कृ ष्ण के लीला दृश्य का ईतचत योग
है।

2.5. भवाइ (Bhavai)

 यह गुजरात की पारंपररक रंगमंच


र्ैली है।
 आस र्ैली का कें द्र कच्छ तथा
कारियावाड़ को माना जाता है।
 भवाइ में प्रयुि वाद्ययंत्र भुग
ं ल,

तबला, बांसरु ी, पखावज, रबाब,

सारंगी, मंजीरा आत्याकद हैं।


 भवाइ में भति और रूमातनयत का
ऄद्भुत मेल देखने को तमलता है।

2.6. जात्रा (Jatra)

 देवपूजा के तनतमत्त अयोतजत


मेलों, ऄनुष्िानों अकद से जुड़े

नाट्यगीतों को ‘जात्रा’ कहा जाता


है।
 यह र्ैली मूल रूप से बंगाल में
पली-बढ़ी है।
 वस्तुत: श्री चैतन्य के प्रभाव से
कृ ष्ण-जात्रा बहुत लोकतप्रय हो
गयी थी।
 बाद में आसमें लौककक प्रेम प्रसंग
भी जोड़े गए।
 आसका प्रारंतभक रूप संगीतात्मक
रहा है।
 परवती चरण में आसमें कहह-कहह संवादों को भी संयोतजत ककया गया है।
 दृश्य, स्थान अकद के बदलाव के बारे में पात्र स्वयं बता देते हैं।

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2.7. माच (Maach)

 यह मध्य प्रदेर् की पारंपररक रंगमंच र्ैली


है।
 ‘माच’ र्ब्द मंच और खेल दोनों ही ऄथों में
आस्तेमाल ककया जाता है।
 माच में संवादों के बीच में पद्य की ऄतधकता
होती है।
 आसके संवादों को बोल तथा छंद योजना
(Rhyme) को वणग (Vanag) कहते हैं।
 आस रंगमंच र्ैली के धुनों को रंगत
(Rangat) के नाम से जाना जाता है।

2.8. भाओना (Bhaona)

 यह ऄसम के ऄंककअ
नाट की प्रस्तुतत है।
 आस र्ैली में ऄसम,

बंगाल, ईड़ीसा, वृद


ं ावन-
मथुरा अकद की
सांस्कृ ततक झलक तमलती
है।
 आसका सूत्रधार दो
भाषाओं में कहानी को
प्रकट करता है- पहले
संस्कृ त तथा बाद में
ब्रजबोली ऄथवा ऄसतमया में।

2.9. तमार्ा (Tamaasha)

 यह महाराष्र की पारंपररक रंगमंच


र्ैली है।
 यह गोंधल, जागरण व कीतमन जैसे
पूवमवती रूपों से तवकतसत हुइ है।
 ऄन्य रंगमंच र्ैतलयों से तभन्न, तमार्ा
में स्त्री कलाकार लोकनाट्य में नृत्य
कक्रया की प्रमुख प्रततपाकदका होती है।
 वह ‘मुरकी’ (Murki) के नाम से जानी
जाती है।
 नृत्य के माध्यम से र्ास्त्रीय संगीत,

तवद्युत् गतत के पदचाप, तवतवध मुद्राओं िारा सभी भावनाएं दर्ामयी जा सकती हैं।

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2.10. दर्ावतार (Dashavatar)

 यह कोंकण व गोवा क्षेत्र की ऄत्यंत तवकतसत रंगमंच र्ैली है।


 प्रस्तोता पालन व सृजन के
देवता-भगवान तवष्णु के दस
ऄवतारों को प्रस्तुत करते हैं।
 दस ऄवतार हैं- मत्स्य
(Fish), कू मम (Tortoise),
वराह (Varah), नरससह
(Lion-man), वामन
(Dwarf), परर्ुराम, राम,
कृ ष्ण (या बलराम), बुद् व
कतल्क।
 र्ैलीगत साज-श्रृंगार से परे
दर्ावतार का प्रदर्मन करने वाले लकड़ी व पेपरमेर्े का मुखौटा पहनते हैं।

2.11. कृ ष्णाट्टम (Krishnattam)


 यह के रल की रंगमंच र्ैली है,
जो 17वह र्ताब्दी के मध्य कालीकट के
महाराज मनवेदा के र्ासन के ऄधीन
ऄतस्तत्व में अया।
 कृ ष्णाट्टम अि नाटकों का वृत्त है, जो
क्रमागत रुप में अि कदन प्रस्तुत ककया
जाता है।
 ये नाटक हैं- ऄवतारम्, कातलयमदमन,
रासक्रीड़ा, कं सवधम्, स्वयंवरम्,
वाणयुद्म्, तवतवद वधम्, स्वगामरोहण।
 ईपकथाएं भगवान कृ ष्ण के तवषय पर
अधाररत हैं- श्रीकृ ष्ण जन्म, बाल्यकाल
की धृिताएं तथा बुराइ पर ऄच्छाइ के
तवजय को तचतत्रत करते तवतवध कायम।

2.12. मु तडये ट्टु (Mudiyettu)

 के रल के पारंपररक
लोकनाट्य का ईत्सव वृतिकम्
(नवम्बर-कदसम्बर) मास में
मनाया जाता है।
 यह प्राय: देवी के सम्मान में
के रल के के वल काली मंकदरों में
प्रदर्तर्त ककया जाता है।
 यह ऄसुर दाररका पर देवी
भद्रकाली की तवजय को तचतत्रत
करता है।
 गहरे साज-श्रृंगार के अधार पर
मुतडयेट्टु में सात चररत्रों का
तनरूपण होता है- तर्व, नारद,
दाररका, दानवेन्द्र, भद्रकाली, कू तल, कोआतम्बदार (नंकदके श्वर)।

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2.13. थे य्यम (Theyyam)

 यह के रल की एक पारंपररक और
ऄत्यंत लोकतप्रय रंगमंच र्ैली है।
 'थेय्यम' र्ब्द संस्कृ त के र्ब्द 'दैव'ं
(Daivam) से व्युत्पन्न है तजसका ऄथम
है परमेश्वर।
 ऄत: आसे भगवान का नृत्य कहा जाता
है।
 पूवमजों की अत्मा, लोक नायकों, और
तवतभन्न रोगों और बीमाररयों के देवी-
देवताओं की पूजा करने की परंपरा को
दतक्षण भारत में प्राचीन काल से ही
देखा जा सकता है।
 थेय्यम तवतभन्न जाततयों िारा आन
अत्माओं को खुर् करने व तृप्त करने के तलए ककया जाता है
 थेय्यम के तवतर्ि तवर्ेषताओं में से एक है, रंगीन पोर्ाक और प्रेरणादायक टोपी [ Mudi (मुडी)]
जो लगभग 5 से 6 फीट उंची सुपारी के जोड़, बांस, सुपारी की पत्ती से अच्छाकदत और लकड़ी के
तख्तों से बना है और तवतभन्न पक्के रंगों हल्दी, मोम और Arac (ऄरक) से रंतजत है।

2.14. कु रटयाट्टम (Koodiyattam)

 यह के रल की सवामतधक
प्राचीन पारंपररक रंगमंच
र्ैली है, जोकक संस्कृ त
नाटकों की परंपरा पर
अधाररत है।
 आसकी ईत्पतत्त दो हजार
वषम पूवम हुइ थीI
 भारत के प्रख्यात संस्कृ त
नाटकों से भी आसकी
ईत्पतत्त को संबद् ककया
जा सकता है।
 कु रटयट्टम संस्कृ त के
र्ास्त्रीय स्वरुप और के रल
की स्थानीय प्रकृ तत के संश्लेषण का प्रतततनतधत्व करता है।
 कु रटयट्टम, पुरुष ऄतभनेताओं तजन्हें चकयार (Chakyars) तथा मतहला कलाकारों तजन्हें नांतगयार
(Nangiars) कहा जाता है के एक समूह िारा ककया जाता है।
 आस कला में ढ़ोल बजाने वालों को नातम्बयासम कहा जाता है, रंगर्ालाओं को कु ट्टमपालम
(Kuttampalams) कहा जाता है।
 सूत्रधार और तवदूषक या मसखरे कु रटयाट्टम् के तवर्ेष पात्र हैं।
 तसफम तवदूषक को ही संवाद बोलने की स्वंतत्रता है।
 हस्तमुद्राओं तथा अंखों के संचलन पर बल देने के कारण यह नृत्य एवं नाट्य रूप तवतर्ष्ट बन
जाता है।
 हाल ही में, कु रटयट्टम को यूनेस्को िारा "मानवता की मौतखक और ऄमूतम तवरासत की कृ ततयों में
ईत्कृ ि" के रूप में घोतषत ककया गया है।

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 ऄतभनेताओं को आस कला में महारत प्राप्त करने के तलए दस से पंद्रह वषम के किोर प्रतर्क्षण से
गुजरना होता है तभी वे ऄपनी श्वास पर तनयंत्रण करने तथा चेहरे और र्रीर की पेतर्यों िारा
सूक्ष्म भावों की प्रस्तुतत को रंगमंच के ऄनुसार पररवर्ततत करने में समथम हो पाते हैं।

2.15. यक्षगान (Yakshagaana)


 यह कनामटक की पारंपररक रंगमंच
र्ैली है जो कक तमथकीय कथाओं
तथा पुराणों पर अधाररत है।
 मुख्य लोकतप्रय कथानक महाभारत
से तलये गये हैं, जो आस प्रकार हैं :
द्रौपदी-स्वयंवर, सुभद्रा-तववाह,
ऄतभमन्यु-वध, कणम-ऄजुन
म युद् तथा
रामायण से तलए गए कथानक हैं :
लवकु र्-युद्, बातल-सुग्रीव युद् और
पंचवटी।

2.16. थे रू क्कू थु (Therukoothu)

 यह ततमलनाडु की पारंपररक लोकनाट्य


कलाओं में ऄत्यंत प्रतसद् है, तजसका
सामान्य र्ातब्दक ऄथम है- सड़क पर ककया
जाने वाला नाट्य।
 यह मुख्यत: ऄच्छी फसल के तलए मररयम्मन
[(Mariamman) वषाम की देवी] और द्रौपदी
ऄम्मा के वार्तषक मंकदर ईत्सव के समय
प्रस्तुत ककया जाता है।
 थेरूक्कू थु के तवस्तृत तवषय-वस्तु के रुप में
मूलत: द्रौपदी के जीवन-चररत्र पर अधाररत
अि नाटकों का चक्र होता है।
 कारट्टयकारन सूत्रधार की भूतमका तनभाते
हुए नाटक का पररचय देता है तथा कोमली [ komali (clown)] ऄपने मसखरेपन से श्रोताओं का
मनोरंजन करता है।

2.17. रामलीला
 रामलीला ईत्तरी भारत में परम्परागत रूप
से खेला जाने वाला राम के चररत पर
अधाररत नाटक है।
 यह प्रायः तवजयादर्मी के ऄवसर पर खेला
जाता है।
 दर्हरा ईत्सव में रामलीला का मंचन भी
महत्वपूणम है।
 रामलीला में राम, सीता और लक्ष्मण के
जीवन वृत्तांत का वणमन ककया जाता है।
 रामलीला नाटक का मंचन देर् के तवतभन्न
क्षेत्रों में होता है।
 यह देर् में ऄलग-ऄलग तरीके से मनाया जाता है।

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2.18. भू ता

 भूता गीत का अधार


ऄन्धतवश्वास से जुडा है।
 के रल के कु छ समुदाय भूत-
प्रेत को भगाने के तलए भूता
ररवाज ऄपनाते हैं।
 आस ररवाज के साथ
श्रमसाध्य नृत्य का अयोजन
ककया जाता है तथा आसकी
प्रकृ तत बहुत तीव्र और
भयानक होती है।

2.19. दसकरिया
 दसकरिया ओतडर्ा में
प्रचतलत गाथा गायन की एक
र्ैली है।
 ‘दसकरिया’ काष्ि से बने
र्ब्द ‘कािी’ ऄथवा ‘राम
ताली’ नामक एक संगीत
वाद्य से तलया गया है,
तजसका ईपयोग प्रस्तुतीकरण
के दौरान ककया जाता है।
 प्रस्तुतीकरण एक प्रकार की
पूजा है तथा भक्त ‘दास’ की
ओर से भेंट है।

2.20. पोवाडा

 पोवाडा, महाराष्र की एक
पारम्पररक लोक कला र्ैली है।
 यह नृत्य मुख्य रूप से महाराष्ट्र के
के न्द्रीय तज़ले धुतलया के
अकदवातसयों िारा ककया जाता है।
 पोवाडा र्ब्द का ऄथम,’ र्ानदार
र्ब्दों में एक कहानी का वृतान्त है।
 वृतान्त सदैव ककसी वीर ऄथवा
घटना ऄथवा स्थान की प्रर्ंसा में
सुनाया जाता है।
 मुख्य वृतान्तकताम को र्ाहीर के नाम
से जाना जाता है जो लय बनाए
रखने के तलए डफ बजाता है।
 आस नृत्य में प्लेटों पर डंतडयों के वादन से धुन तनकाली जाती है।
 आसके ऄलावा ढोल का प्रयोग भी आस नृत्य में ककया जाता है।

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 गीत तीव्र होता है और मुख्य गायक िारा तनयंतत्रत होता है तजसका समथमन मंडली के ऄन्य सदस्यों

िारा ककया जाता है।

 प्राचीनतम ईल्लेखनीय पोवाडा ऄतग्नदास िारा रतचत ऄफज़ल खानचा वध (ऄफज़ल खाँ का वध-

1659) था, तजसमें ऄफज़ल खाँ के साथ तर्वाजी के संघषम का वणमन ककया गया है।

2.21. तवल्लु पत्तु

 तवल्लु पत्तु ततमलनाडु

का एक लोकतप्रय लोक

संगीत है।

 प्रमुख गायक मुख्य

तनष्पादनकताम की भी

भूतमका तनभाता है।

 वह प्रमुख वाद्य बजाता है

जो धनुष के अकार का

होता है।

 गीत सैद्ातन्तक तवषयों

पर अधाररत होते हैं और

ऄच्छाइ की बुराइ पर तवजय पर बल कदया जाता है।

2.22. बु राम कथा

 बुराम कथा, गाथा रूप में एक

ईच्च कोरट की नाटक र्ैली है।

 आसमें मुख्य कलाकार िारा

गाथा वणमन के दौरान बोतल

अकार का एक ड्रम (तम्बूरा)

बजाया जाता है।

 गाथा गायक, मंच नायक की

तरह ऄत्यंत अकषमक पोर्ाक

पहनता है।

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2.23. पं ड वानी (छत्तीसगढ़)

 यह छत्तीसगढ़ में प्रचतलत एक लोक गीत है तजसमें पांडवों की कहानी का वणमन ककया जाता है।
 परंपरागत रूप से यह पुरुषों िारा
प्रदर्तर्त ककया जाता था, लेककन ऄब
मतहलाएं भी आसका प्रदर्मन करती हैं।
 आसमें एक मुख्य कलाकार और कु छ
सहायक गायक और संगीतकार होते
हैं।
 मुख्य कलाकार एक के बाद एक
प्रकरण प्रस्तुत करता है तथा
पररदृश्य में पात्रों को ऄपने ऄतभनय
के माध्यम से जीवंत करता चला
जाता है, कभी-कभी वह बीच में नृत्य
भी प्रस्तुत करता है।
 प्रदर्मन के दौरान वह ऄपने हाथ में
पकड़े हुए आकतारे की लय पर ऄपना
गीत प्रस्तुत करता है। पंडवानी गायन की दो र्ैतलयाँ प्रचतलत हैं: वेदमतत और कापातलक।

2.24. कतनयन कू थु

 कतनयन कू थु ततमलनाडु में मंकदर


त्योहारों के ऄवसर पर प्रदर्तर्त की
जाने वाली एक पारंपररक कला है
तजसमे के वल पुरुष भाग लेते हैं।
 कतनयन कू थु नाम वस्तुतः आसके
कलाकारों के समुदाय कतनयन से
तलया गया है। कतनयन एक
ऄनुसतू चत जनजातत है।
 कतनयन कू थु कम से कम 300 वषम
पुरानी कला है एवं 17वह र्ताब्दी से
आसके संकेत तमलते हैं।

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प्राचीन विज्ञान तथा प्रौद्योवगकी


विषय सूची

1. पररचय ___________________________________________________________________________________ 17

2. गवणत ____________________________________________________________________________________ 17

3. ज्योवतष एिं खगोल विद्या ______________________________________________________________________ 20

4. भौवतक तथा रसायन__________________________________________________________________________ 22

4.1. भौवतक विज्ञान __________________________________________________________________________ 22

4.2. रसायन शास्त्र ___________________________________________________________________________ 23

5. वचककत्सा शास्त्र _____________________________________________________________________________ 23

6. प्रौद्योवगकी (Technology) ____________________________________________________________________ 26

7. भारत के महान िैज्ञावनक_______________________________________________________________________ 32

7.1. प्राचीन भारत के महान िैज्ञावनक ______________________________________________________________ 32


7.1.1. बौधायन (Baudhayan) (800BCE) ______________________________________________________ 32
7.1.2. अययभट्ट (Aryabhatta) (476-550 CE) ____________________________________________________ 32
7.1.3. ब्रम्हगुप्त (Bramha Gupta) _____________________________________________________________ 33
7.1.4. दैिाजन िाराहवमवहर (Daivajna Varaāhamihira) ___________________________________________ 33
7.1.5. भास्कराचायय II ______________________________________________________________________ 34
7.1.6. महािीराचायय (Mahaviracharya) _______________________________________________________ 34
7.1.7. कणाद (Kanad) _____________________________________________________________________ 34
7.1.8. नागाजुयन (Nagarjun) _________________________________________________________________ 35
7.1.9. सुश्रुत (Susruta) ____________________________________________________________________ 35
7.1.10. चरक (Charak) ____________________________________________________________________ 35
7.1.11. पतंजवल (Patanjali) _________________________________________________________________ 36

7.2. अधुवनक भारत के महान िैज्ञावनक _____________________________________________________________ 36


7.2.1. सर जगदीश चंद्र बोस (Sir Jagdish Chandra Bose) (1858-1937) ______________________________ 36
7.2.2. श्रीवनिास रामानुजन (Srinivasa Ramanujan) (1887-1920) __________________________________ 37
7.2.3. सर सी.िी. रमन (Sir C.V. Raman)(1888-1970) ___________________________________________ 37
7.2.4. सुब्रह्मण्यम चंद्रशेखर (Subrahmanyam Chandrasekhar) (1910-1995) _________________________ 37
7.2.5. मेघनाद साहा (Meghnad Saha) (1893-1956) _____________________________________________ 38
7.2.6. वशवशर कु मार वमत्रा – (1890-1963) ______________________________________________________ 38
7.2.7. सत्येन्द्द्र नाथ बोस (1894-1974)__________________________________________________________ 38
7.2.8. जी. एन. रामचंद्रन (1922-2001) _________________________________________________________ 39
7.2.9. प्रशांत चंद्र महालनोवबस (P.C. Mahalanobis) (1893-1972) ___________________________________ 39
7.2.10. डॉ हरगोविद खुराना (Dr. Har Gobind Khorana)(1922-2011) _______________________________ 39

16

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1. पररचय
 प्राचीन काल में भारतीयों ने विशेष रूप से धमय तथा दशयन में रूवच ली, ककन्द्तु आसका ऄथय यह
कदावप नहीं है कक व्यािहाररक विज्ञान में ईनकी कोइ रूवच नहीं थी।
 पाषाणकाल से ही यहााँ के वनिावसयों के िैज्ञावनक बुवि होने का स्पष्ट प्रमाण वमलता है। विज्ञान के
कु छ क्षेत्रों जैसे गवणत, ज्योवतष तथा धातुविज्ञान में भारतीयों द्वारा ककये गए अविष्कारों तथा
सफलता से सम्पूणय विश्व पररवचत है।
 प्रागैवतहावसक काल से ही भारतीयों की िैज्ञावनक बुवि का पररचय हमें प्राप्त होने लगता है।
िास्ति में पाषाणकालीन मानि ही िनस्पवत शास्त्र, प्राणी शास्त्र, ऊतु शास्त्र अकद का जन्द्मदाता
है। पशुओं का वचत्र तैयार करने के दौरान ईसने ईनकी शरीर संरचना की ऄच्छी जानकारी प्राप्त
कर ली, खाद्य- ऄखाद्य पदाथों का भी ईसे ज्ञान था तथा खाद्य पदाथों को ईत्पन्न करने के वलए
ईपयुक्त ऊतु की भी ईसे जानकारी थी। ऄवि पर वनयंत्रण स्थावपत कर आसने सुन्द्दर और सुडौल
ईपकरण, हवथयार अकद बनाना प्रारम्भ कर कदया था। आसी ज्ञान ने कालांतर में भौवतकी तथा
रसायन शास्त्र को जन्द्म कदया।
 वसन्द्धु सभ्यता में भी हमें िैज्ञावनक प्रगवत का स्पष्ट ज्ञान प्राप्त होता है। एक सुवनवित योजना के
अधार पर नगरों का वनमायण, भार-माप के वनवित पैमानों का प्रयोग, दशमलि पिवत का ज्ञान,

पात्रों के उपर प्राप्त ज्यावमतीय ऄलंकरण, तौल की आकाइ के रूप में 16 की संख्या तथा ईसके

अितयकों का प्रयोग, विकवसत पाषाण तथा धातु ईद्योग, मुहरें, मनके , अभूषण, मूर्ततयााँ, ईपकरण
अकद ईनके विकवसत िैज्ञावनक तथा तकनीकी ज्ञान के पररचायक हैं। कालीबंगा तथा लोथल से
प्राप्त बालक के छेदयुक्त कपालों से ऐसा वनष्कषय वनकाला जाता है कक ये लोग शल्य-वचककत्सा
करना भी जानते थे।
 ईपयुयक्त तथ्यों से यह स्पष्ट होता है कक भारत में प्राचीन काल से ही विज्ञान एिं तकनीकी की एक
समृि विरासत रही है। आस प्रकार अगे हम ईन विवभन्न क्षेत्रों पर दृवष्ट डालते हैं जहााँ हमें भारत के
विज्ञान तथा प्रौद्योवगकी एिं विवभन्न िैज्ञावनकों के योगदान का पता चलता है।

2. गवणत
 िैकदक काल में हम गवणत शास्त्र के विकवसत होने का प्रमाण प्राप्त करते हैं। आस दृवष्ट से सूत्र-काल
(लगभग इ. पू. 600-400) महत्िपूणय है।

o आसमें कल्पसूत्र के ऄन्द्तगयत अने िाला ‘शुल्ि-सूत्र’ विशेष महत्ि का है।

o ‘शुल्ि’ का शावददक ऄथय नापना होता है। यज्ञों में िेकदयां और मण्डप बनाये जाते थे। िेदी की

अकृ वत वभन्न-वभन्न होती थी- िगय, समचतुभुयज, समबाहु समलंब, अयत, समकोण वत्रभुज,
अकद।
o आन्द्हें तैयार करने के वलये नाप-जोख की अिश्यकता पड़ती थी। आस कायय के वलये जो विवध-
विधान बनाये गये ईन्द्हें शुल्ि सूत्रों में वलखा गया।
o िस्तुतः ये सूत्र ही भारत के गवणतशास्त्र में प्राचीनतम ग्रन्द्थ कहे जा सकते हैं, वजनमें हम
ज्यावमवत ऄथिा रेखागवणत संबंधी ज्ञान को ऄत्यन्द्त विकवसत पाते हैं।
o गौतम, बौधायन, अपस्तम्ब, कात्यायन, मैत्रायण, िाराह, िवशष्ठ अकद प्राचीन सूत्रकार हैं।
 रेखागवणत संबंधी वसिान्द्तों के प्रवतपादन तथा विकास का प्रधान श्रेय बौिायन को ही कदया जा
सकता है। ईन्द्होंने ही सबसे पहले2जैसी संख्याओं को ऄपररमेय मानते हुए ईनका ऄवधकतम शुि
मूल्य ज्ञात ककया था।

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 यूनानी दाशयवनक पाआथागोरस (540 इ. पू.) के नाम से प्रचवलत प्रमेय वजसके ऄनुसार ‘समकोण
वत्रभुज के कणय पर बना िगय शेष दो भुजाओं पर बने िगों के योग के बराबर होता है’ का ज्ञान
बौिायन को शतावददयों पूिय ही था और ऄब ऄवधकांश विद्वान् आसे ‘शुल्ि प्रमेय’ ही कहना ज्यादा
पसन्द्द करते हैं।
 बौिायन ने िृत्त को िगय तथा िगय को िृत्त में बदलने का वनयम प्रस्तुत ककया तथा वत्रभुज, अयत
समलम्ब चतुभुयज जैसी रेखागवणत की अकृ वतयों से िे पूणय पररवचत थे।
 अपस्तम्ब ने वद्वतीय शताददी इसा पूिय में व्यािहाररक रेखागवणत की ऄिधारणाओं को प्रस्तुत
ककया वजसमें न्द्यन
ू कोण, ऄवधककोण और समकोण का भी ईल्लेख वमलता है। कोणों के आस ज्ञान से
ईन कदनों ऄवि िेकदयों के वनमायण में सहायता वमलती थी।
 यजुिेद तथा विष्णु पुराण से स्पष्ट होता है कक एक से दस तथा दस पर अधाररत ऄन्द्य संख्याओं के
संबंध में दाशवमक पिवत का ज्ञान िैकदककालीन भारतीयों को था।
 ऄंक वचन्द्हों के साथ आस पिवत का प्रयोग सियप्रथम बक्षाली पाण्डु वलवप (तीसरी-चौथी शताददी
इस्िी) में ही प्राप्त होता है।
o बक्षाली, पाककस्तान के पेशािर के समीप एक ग्राम है।
o यहीं से 1881 इ. में एक ककसान को खुदाइ करते समय खवण्डत ऄिस्था में यह पाण्डु वलवप
प्राप्त हुइ थी।
o समकालीन गवणत की वस्थवत पर प्रकाश डालने िाला यह एकमात्र ग्रन्द्थ है।
o आसमें न के िल भाग, िगयमूल, ऄंकगवणतीय एिं ज्यावमतीय श्रेवणयों जैसे प्रारवम्भक विषयों की
व्याख्या है, ऄवपतु यह कु छ विकवसत विषयों जैसे सवम्मश्र श्रेवणयों के योग, समरेखीय
समीकरणों तथा प्रारवम्भक वद्वघात समीकरणों जैसे विकवसत विषयों पर भी प्रकाश डालता
है।

बक्षाली पाण्डु वलवप में प्रयोग ककये गए ऄंक


 सूत्रकाल के बाद ज्यावमतीय वसिान्द्तों का विकास गुप्तकाल के गवणतज्ञ अययभट्ट द्वारा ककया गया
वजनकी सुप्रवसि रचना ‘अययभट्टीयम्’ है।
o आसमें ऄंकगवणत, ज्यावमवत, बीजगवणत तथा वत्रकोणवमवत के वसिान्द्त कदये गये हैं।
o यह िृत्तों, वत्रभुजों, चतुभुयजों और ठोसों के कु छ महत्िपूणय गुणधमों का संकेत भी करता है।
o िृत्त के क्षेत्रफल के विषय में ईनका कहना है कक यह पररवध तथ व्यास के अधे का गुणनफल
(1/2 पररवध × 1/2 व्यास) होता है।
o वत्रभुज के क्षेत्रफल के विषय में ईनका कहना है कक यह अधार तथा समान कोरि के गुणनफल
का अधा है।
o ईन्द्होंने पाइ का असन्न मान 22/7 ऄथायत् 3.1416 बताया है जो आस समय भी शुितम है।
o अययभट्ट ने ऄंकसख्याओं का ईल्लेख करते हुए ईसमें गणना की दाशवमक पिवत (decimal
system) का प्रयोग ककया है। यह प्रथम नौ संख्याओं के स्थानीय मान (place value) तथा
शून्द्य के प्रयोग पर अधाररत था।
 िस्तुतः शून्द्य तथा दशवमक पिवत की खोज जो ऄब समस्त विश्व में स्िीकृ त है , भारतीयों की
गवणत क्षेत्र में महानतम् ईपलवदध है। बहुत समय तक यह माना जाता रहा कक संख्याओं के
दशमलि वसिान्द्त का अविष्कार ऄरबिावसयों ने ककया था, ककन्द्तु यह तथ्य सही नहीं है।
ऄरबिासी स्ियं गवणत को ‘वहन्द्दसा’ ऄथिा ‘वहवन्द्दस्त’ (भारतीय विद्या) कहते थे। आस संबंध में

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पविमी संसार भारत का वचरऊणी है। आब्निवशया (9िीं शती), ऄलमसूदी (दसिी शती) तथा
ऄल्बरूनी (12िीं शती) जैसे ऄरब लेखक आस पिवत के अविष्कार का श्रेय वहन्द्दओं

(भारतिावसयों) को ही देते हैं।
 अययभट्ट के पिात् ‘ब्रह्यगुप्त’ (लगभग सातिीं शती) का नाम अता है। ईनकी प्रवसि कृ वत ‘ब्रह्मस्फु ि
वसिान्द्त’ 628 इ. में वलखी गयी।
o ऄपनी पुस्तक में आन्द्होंने शून्द्य का ईल्लेख पहली बार एक संख्या के रूप में ककया।
o आसमें िृतीय चतुभुयजों, िगों, अयतों, अकद की पररभाषा तथा व्याख्या के वलये ऄनेक सूत्र
कदये गये हैं।
o आन्द्होंने िृत्तीय चतुभुयजों के क्षेत्रफल को 21िें श्लोक में, ‘िालेमी प्रमेय’ को 28िें श्लोक में, सूची
स्तंभ (pyramid) और वछन्नक (frustum) के अयतन को 45िें एिं 46िें श्लोक में िर्तणत
ककया है।
 ब्रह्मगुप्त के पिात महािीर (निीं शती) तथा भास्कर ऄथिा भास्कराचायय (12िीं शती) जैसे
प्रवसि गवणतज्ञों का नाम अता है। आन्द्होंने जो ऄनुसंधान ककये ईनके विषय में पविमी जगत्
पुनजायगरण काल ऄथिा ईसके बाद तक नहीं जानता था। महािीर ने ऄत्यन्द्त सुबोध शैली में
विविध प्रकार के िृत्तों का क्षेत्रफल वनकालने की विवध प्रस्तुत की। धनात्मक तथा ऊणात्मक
पररणामों से िे पररवचत थे, िगयमूल एिं घनमूल वनकालने की ठोस प्रणाली का प्रितयन ककया तथा
िगय समीकरण एिं ऄन्द्य प्रकार के ऄवनवित समीकरणों का हल वनकालने में िे वनपुण थे।
 गवणतज्ञ भास्कर खानदेश (महाराष्ट्र) के वनिासी थे वजनका सुप्रवसि गन्द्थ ‘वसिान्द्त वशरोमवण’ है।
यह पुस्तक चार भागों में विभावजत है- लीलािती, बीजगवणत, ग्रहगवणत तथा गोलाध्याय।
o ऄवन्द्तम भाग में मुख्यतः खगोल का िणयन है।
o भास्कराचायय ने ‘लीलािती’ में ‘क्षेत्र व्यिहार’ नामक ऄध्याय वलखा है- समकोण वत्रभुजों पर
‘शुल्ब प्रमेय’ (पाआथागोरस प्रमेय) की ईपपवत्त दी है।
o लीलािती ऄंकगवणत और महत्िमानि (क्षेत्रफल, घनफल) का स्ितंत्र ग्रन्द्थ है, वजसमें पूणायक
और वभन्न, त्रैरावशक (rule of three), दयाज, व्यापार गवणत, वमश्रण, श्रेवणयां (series),
क्रमचय (permutation), मावपकी (mensuration) और थोड़ी बीजगवणत भी है।
o चूंकक प्राचीनकाल में गणना पािी पर धूल वबछाकर ईं गली या लकड़ी से की जाती थी ऄतः
लीलािती को ‘पािी गवणत’ भी कहते हैं।
o यद्यवप ऄवनणीत समीकरणों (interminate equations) का ऄध्ययन अययभट्ट प्रथम के
समय से ही अरंभ हो गया था, लेककन भास्कर ने ईसे चरम तक पहुंचाया।
o ऄपने महत्िपूणय ग्रन्द्थ ‘बीजगवणत’ में भास्कर ने 213 पद्य वलखे हैं। िर्तणत विषय हैं- धनणय
(धनात्मक) संख्याओं का योग, करणी (surds) संख्याओ का योग, कट्टक (भाजक और भाज्य)
की प्रकक्रया, िगय प्रकृ वत, एक-िगय समीकरण, ऄनेक-िगय समीकरण अकद।
o भास्कर ने ऄवनणीत िगय समीकरण के हल की जो विवध दी है , ईसे ‘चक्रिाल विवध’ (cyclic
method) की संज्ञा दी गइ और यह खोज जो भास्कराचायय ने 12िीं शती में की, ईसे 16िीं
शती में पािात्य गवणतज्ञों ने खोजा।
o वसिान्द्त वशरोमणी में सबसे महत्िपूणय ‘वनरन्द्तर गवत का विचार’ (idea of perpetual
motion) है। यह ऄरबों द्वारा बारहिीं शताददी में यूरोप में फै लाया गया।
o आसी से कालान्द्तर में शवक्त तकनीक (power technology) का विकास हुअ।

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o न्द्यूिन से शतावददयों पूिय भास्कर ने ‘पृथ्िी के गुरुत्िाकषयण वसिान्द्त’ का पता लगा वलया था।
भास्कर ने बताया कक पृथ्िी का कोइ अधार नहीं है और यह के िल ऄपनी शवक्त से वस्थर है।
िे ‘शून्द्य’ तथा ‘ऄनन्द्त’ (infinity) का वनवहताथय भलीभांवत समझते थे।
o आस प्रकार निीन ऄंकन पिवत, शून्द्य तथा दाशवमक पिवत का अविष्कार गवणत क्षेत्र में
प्राचीन भारतीयों की सिायवधक महत्िपूणय ईपलवदधयां हैं। ऄपनी वजन महत्िपूणय खोजों तथा
अविष्कारों के उपर यूरोप के लोग आतना गिय करते हैं, ईनमें से ऄवधकांश विकवसत गवणतीय
पिवत के वबना संभि नहीं थे। भास्कर के पिात् भारत में गवणत शास्त्र का कोइ मौवलक
लेखक नहीं हुअ।
 नौंिीं शताददी में, जेम्स िेलर ने लीलािती का ऄनुिाद ककया। मध्य युग में, नारायण पंवडत ने ऐसी
गवणत रचनाओं की रचना की वजसमें ‘गवणतकौमुदी’ और ‘बीजगवणतिताम्सा’ का समािेश है।
 नीलकं ठ सोमासुत्िन ने ‘तंत्रसंग्रह’ की रचना की, वजसमें वत्रकोणवमतीय फलनों के वनयम का
समािेश है। नीलकं ठ ज्योवतर्तिद ने तावजक का संकलन ककया जो कक बड़ी मात्रा में फ़ारसी
तकनीकी शददों से संबंवधत है। मुगलकाल में शेख फै जी (1587 इ.) ने लीलािती का फारसी
ऄनुिाद प्रस्तुत ककया। तत्पिात् ईनकी कृ वतयों का ऄंग्रेजी ऄनुिाद भी हुअ।

‘शून्द्य’ तथा ‘ऄनन्द्त पर भास्कराचायय के विचार:


 भास्कराचायय ‘शून्द्य’ तथा ‘ऄनन्द्त’ (infinity) का वनवहताथय भली-भांवत समझते थे। गवणत द्वारा
ईन्द्होंने यह वसि ककया कक शून्द्य िस्तुतः ऄनन्द्त है जो कभी भी विभावजत नहीं होता। आसे ककसी
रावश में जोड़ने ऄथिा आसमें कोइ रावश जोड़ने या कफर ककसी रावश में से घिाने से रावश वचन्द्ह में
कोइ पररितयन नहीं होता। शून्द्य को ककसी रावश को गुणा करने पर गुणनफल शून्द्य रहेगा ककन्द्तु रावश
को शून्द्य से भाग देने से फल ‘खहर’ ऄथिा ‘खछेद’ होता है। यही ‘खहर’ अज का ऄनंत (∞) है। आस
प्रकार शून्द्य का ककतना भी विभाजन ककया जाय िह ऄनन्द्त ही रहेगा। भास्कर ने आसे आस समीकरण
द्वारा स्पष्ट ककया ∞/x = ∞ ।
 भारत में आस ऄनन्द्तता की ऄनुभूवत ब्रह्म ऄथिा अत्मा के संबंध में िेदावन्द्तयों द्वारा शतावददयों पूिय
की जा चुकी थी, जहां बताया गया कक ‘पूणय से पूणय वनकालने पर पूणय ही शेष रहता है।’ आस प्रकार
की स्पष्ट ऄिधारणा क्लावसकल गवणतज्ञों की कभी नहीं रही। िस्तुतः शून्द्य तथा ऄनन्द्त ही अधुवनक
गवणत के अधार हैं।

3. ज्योवतष एिं खगोल विद्या


 भारतीय ज्योवतष का आवतहास भी ऄत्यन्द्त प्राचीन है। िेदों को भली-भांवत समझने के वलए वजन
छः िेदांगों की रचना की गयी थी ईनमें ऄवन्द्तम ‘ज्योवतष’ है। खगोल शास्त्र को ऄंग्रेजी में
एस्रोनॉमी कहा जाता है। यह यज्ञ-याग के ईवचत समय का वनदेश करता है। आसके वलये समय-
शुवि की महती अिश्यकता होती थी। यज्ञ के कु छ विधानों का संबंध संित्सर तथा ऊतु से भी
होता था। नक्षत्र, वतवथ, पक्ष, माह का भी वनधायरण यज्ञ के वलये अिश्यक था। आन सबका ज्ञान
ज्योवतष के ज्ञान के वबना संभि नहीं था। यह बताया गया है कक ज्योवतष को भली-भांवत जानने
िाला व्यवक्त ही यज्ञ का यथाथय ज्ञाता होता है। आस प्रकार प्राचीन ज्योवतर्तिद्या का ईदेशेश्य समय-
समय पर होने िाले यज्ञों का मूहुतय एिं काल वनधायररत करना था। ईस काल की अिश्यकताओं के
वलये यह पयायप्त था।
 गुप्तकाल के पूिय भारतीय ज्योवतष के विषय में हमारी जानकारी ऄत्यल्प है। संभितः प्राचीन काल
के भारतीय ज्योवतष ज्ञान पर मेसोपोपोिावमया का प्रभाि था। इसा की प्रारवम्भक शतावददयों से
ज्योवतष पर यूनानी प्रभाि के विषय में स्पष्ट सूचना वमलने लगती है। बृहत्संवहता में ‘यिनों’ को
ज्योवतष का जन्द्मदाता होने के कारण ऊवषयों के समान पूज्य बताया गया है। भारतीय ग्रन्द्थों में

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ज्योवतष के पांच वसिान्द्तों- पैतामह, िावशष्ठ, सूय,य पौवलश तथा रोमक का ईल्लेख ककया गया है।
आसमे ऄवन्द्तम दो की ईत्पवत्त यूनान से मानी गयी है। रोमक वसिान्द्त के संबंध में िाराहवमवहर ने
वजन नक्षत्रों का ईल्लेख ककया है िे यूनानी लगते हैं। पौवलश वसिान्द्त वसकन्द्दररया के प्राचीन
ज्योवतषी पाल के वसिान्द्तों पर अधाररत प्रतीत होता है। ज्योवतष के माध्यम से यूनानी भाषा के
ऄनेक शदद संस्कृ त तथा बाद की भारतीय भाषाओं में प्रचवलत हो गये।
 गुप्त काल में संस्कृ वत के ऄन्द्य पक्षों के साथ-साथ ज्योवतष एिं खगोल विद्या का भी सिाांगीण
विकास हुअ। गुप्तकाल के आवतहास-प्रवसि ज्योवतषी ‘अययभट्ट’ प्रथम एिं ‘िाराहवमवहर’ हैं।
o अययभट्ट प्रवसि खगोलविद् होने के साथ-साथ महान् गवणतज्ञ भी थे। अययभट्ट के प्रवसि ग्रन्द्थ
‘अययभिीयम’ से ज्योवतष के प्रगवत के वनवित एिं प्रत्यक्ष साक्ष्य वमलते हैं।
o अययभट्ट ज्योवतष पर लेखनी ईठाने िाले प्रथम प्राचीनतम ज्ञात ऐवतहावसक व्यवक्त थे।
अययभट्ट ने कभी भी ककसी मत का ऄन्द्धानुकरण नहीं ककया बवल्क ज्योवतष संबंधी ईनके
वनष्कषय स्ियं के वनरीक्षणों एिं ऄन्द्िेषणों पर अधाररत थे।
o अययभट्ट ने आस बात को नहीं माना कक सूयय एिं चन्द्द्र ग्रहणों का कारण राहु और के तु जैसे ऄसुर
हैं। ईन्द्होंने यह मत कदया कक चन्द्द्र या सूयय ग्रहण चन्द्द्रमा पर पृथ्िी की छाया पड़ने से ऄथि
सूयय और पृथ्िी के बीच चन्द्द्रमा के अ जाने से लगते हैं।
o अययभट्ट पहले भारतीय खगोलशास्त्री थे, वजन्द्होंने यह खोज की कक पृथ्िी गोल है तथा ऄपने
ऄक्ष (axis) के चारों ओर पररभ्रमण करती है, सूयय वस्थत है तथा पृथ्िी गवतशील है, चन्द्द्रमा
तथा दूसरे ग्रह सूयय के प्रकाश से ही प्रकावशत होते हैं, ईनमें स्ियं कोइ प्रकाश नहीं होता है।
o आन्द्होंने ही जीिा के फलनों (sine functions) का पता लगाया तथा खगोल के वलये ईनका
ईपयोग ककया, दो क्रमागत कदनों की ऄिवध में िृवि या कमी को नापने के वलये सिीक सूत्र
प्रस्तुत ककया, ग्रहीय गवतयों के वििरण की व्याख्या के वलये ‘ऄवधचक्रीय वसिान्द्त’
(epicyclic theory) की स्थापना ककया, चन्द्द्र की कक्षा में पृथ्िी की छाया के कोणीय व्यास
को शुि रूप में प्रकि ककया।
o ईन्द्होंने यह वनवित करने के भी वनयम बनाये कक ककसी ग्रहण में चन्द्द्रमा का कौन सा भाग
अच्छाकदत होता है तथा ग्रहण कक ऄिवध में ऄधायश तथा पूणय ग्रास का ज्ञान ककस प्रकार ककया
जा सकता है।
o अययभट्ट ने िषय की लम्बाइ 365.2586805 कदनों की बताइ। यह िालमी द्वारा मान्द्य लम्बाइ
365.2631579 कदनों की यथाथय ऄिवध के सवन्नकि है। ये सभी खगोल क्षेत्र में ईन्नत ज्ञान के
पररचालक हैं ककन्द्तु यह खेद का विषय है कक हम ईन पिवतयों तथा परीक्षणों के बारे में कु छ
भी नहीं जानते वजन्द्होंने आन ईपलवदधयों को सुगम बनाया।
o दूरबीन (Telescope) के ज्ञान के ऄभाि में खगोल क्षेत्र में आतनी ईच्चकोरि की ईपलवदध
अियय की बात कही जायेगी।
o पािात्य जगत् कोपरवनकस (1473-1543) को ब्रह्माण्ड के ‘सूयय के वन्द्द्रक वसिान्द्त’ का
ऄन्द्िेषक मानता है, जबकक आसके शतावददयों पूिय भारतीय खगोलशास्त्री अययभट्ट ने आस
वसिान्द्त का पता लगाकर ब्रह्माण्डीय गवतविवधयों का के न्द्द्र सूयय को घोवषत कर कदया था।
o अययभट्ट ने ज्योवतष को गवणत से ऄलग शास्त्र के रूप में प्रवतस्थावपत कर कदया। ईनके विचार
सबसे ऄवधक िैज्ञावनक थे।
o अययभट्ट के पिात् ईनके वशष्यों- वनःशंक, पाण्डु रंगस्िामी तथा लािदेि द्वारा ईनके वसिान्द्तों
का प्रचार-प्रसार ककया गया। आनमें लािदेि सबसे ऄवधक प्रवसि हैं वजसने ‘पौवलश’ तथा
‘रोमक वसिातों’ की व्याख्या प्रस्तुत की। ईन्द्हें ‘सिय वसिान्द्त गुरु’ भी कहा जाता है।

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 अययभट्ट के पिात् भारतीय ज्योवतवषयों में िाराहवमवहर (छठी शताददी) का नाम ईल्लेखनीय है।
यकद अययभट्ट गवणत ज्योवतष के प्रितयक थे तो िाराहवमवहर फवलत ज्योवतष के प्रणेता के रूप में
स्मरणीय हैं।
o आनका गवणत ज्योवतष संबंधी प्रवसि ग्रन्द्थ ‘पंचवसिावन्द्तका’ है वजसमें इसा की तीसरी-चैथी
शती में प्रचवलत ज्योवतष के पांचों वसिान्द्तों- पैतामह, िावशष्ठ, रोमक, पौवलश तथा सूय-य का
ईल्लेख वमलता है।
o पंचवसिावन्द्तका के प्रथम खण्ड में खगोल विज्ञान पर विशद प्रकाश डाला गया है।
o ब्रह्माण्डीय वपण्डों का ऄवस्तत्ि, ईनका परस्पर संबंध तथा प्रभाि संबंधी िाराहवमवहर का
ज्ञान अज भी हमें चमत्कृ त करता है। आनमें मात्र सूयय वसिान्द्त संबध
ं ी पाण्डु वलवप तथा िीकायें
ही आस समय प्राप्त हैं।
o िाराहवमवहर ने विज्ञान की ईन्नवत में कोइ मौवलक योगदान तो नहीं कदया ककन्द्तु
‘पंचवसिावन्द्तका’ वलखकर ईन्द्होंने ज्योवतष का बड़ा ईपकार ककया। यकद यह ग्रन्द्थ न वमलता
तो ज्योवतष शास्त्र का आवतहास ऄपूणय रहता।
o ‘पंचवसिावन्द्तका’ के ऄवतररक्त िाराहवमवहर ने कु छ ऄन्द्य ग्रन्द्थों- बृहज्जातक बृहत्संवहता तथा
लघुजातक- की भी रचना की। ये फवलत ज्योवतष की रचनायें हैं। बृहत्जातक एिं बृहत्संवहता
में भौवतक भूगोल, नक्षत्र विद्या, िनस्पवत विज्ञान, प्रावण शास्त्र अकद का विश्लेषण ककया गया
है। पौधो में होने िाले विवभन्न रोगों तथा ईनके ईपचार के क्षेत्र में भी ईन्द्होंने बड़ा काम
ककया। विवभन्न औषवध के रूप में पौधों के गुणकारी ईपयोग संबंधी ईनके शोध अयुिेद की
ऄमूल्य वनवध है। बृहत्संवहता, ज्योवतष, भौवतक भूगोल, िनस्पवत तथा प्राकृ वतक आवतहास का
विश्वकोश ही है।
 अययभट्ट तथा िाराहवमवहर के पिात् भारतीय ज्योवतवषयों में ‘ब्रह्मगुप्त’ का नाम प्रवसि है। आनके
प्रवसि ‘ब्रह्मस्फु ि वसिान्द्त’ के कु ल चौबीस ऄध्यायों में से बाआस ज्योवतष से ही संबंवधत हैं। ‘खण्ड
खाद्यक’ आनका दूसरा ग्रन्द्थ है। ब्रह्मगुप्त को आस बात का श्रेय कदया जाता है कक ऄरबों में ज्योवतष
का प्रचार सियप्रथम ईन्द्होंने ही ककया। ईनके ग्रंथों का ऄल्बरूनी द्वारा ऄनुिाद ककया गया।

4. भौवतक तथा रसायन


4.1. भौवतक विज्ञान
 आस क्षेत्र में प्राचीन भारतीयों की ईपलवदधयां ऄपेक्षाकृ त सीवमत हैं। भौवतकी विषयक भारतीय
विचार धमय एिं अध्यात्म के साथ घवनष्ठ रूप से संबंवधत थे। ऄतः आस शास्त्र का स्ितन्द्त्र रूप से
विकास नहीं हो पाया।
 अधुवनक भौवतकी का सियप्रमुख वसिान्द्त ‘परमाणुिाद’ (Atom theory) है। भारत में आस
वसिान्द्त का ऄवस्तत्ि बुिकाल (इसा पूिय छठीं शती) में ही कदखाइ देता हैं।
 बुि के एक समकालीन ‘पकु धकच्चायन’ ने यह बताया कक सृवष्ट का वनमायण सात तत्िों- पृथ्िी, जल,
ऄवि, िायु, सुख, दुःख तथा जीि से वमलकर हुअ है। आनमें कम से कम चार तत्िों का ऄवस्तत्ि
सभी सम्प्रदाय स्िीकार करते हैं। अवस्तक वहन्द्दओं
ु तथा जैवनयों ने आसमें ‘अकाश’ नामक पांचिां
तत्ि जोड़ कदया तथा आस प्रकार ये ‘पञ्चतत्ि’ सृवष्ट रचना ऄथिा मानि शरीर के रचनात्मक तत्ि
स्िीकार कर वलये गये। आस प्रकार पािात्य मान्द्यता के विपरीत भारतीय परमाणुिाद यूनानी
प्रभाि से मुक्त था।
 भारत में परमाणुिाद का संस्थापक िैशेवषक दशयन के प्रितयक महर्तष कणाद (इ. पू. शती) को माना
जाता है। आन्द्होंने भारत में भौवतक-शास्त्र का अरम्भ ककया। आनका कहना था कक समस्त भौवतक
िस्तुयें परमाणुओं के संयोग से ही बनती हैं। तत्ि के सूक्ष्मतम एिं ऄविभाज्य कण को परमाणु कहते
हैं। परमाणु वनत्य एिं ऄविभाज्य होते हैं। ईन्नीसिीं शती के िैज्ञावनक जॉन डाल्िन को परमाणुिाद
के वसिान्द्त का प्रवतपादक माना जाता है, ककन्द्तु आसके शतावददयों पूिय भारतीय मनीवषयों द्वारा
आसकी कल्पना की जा चुकी थी। भारतीय परमाणु वसिान्द्त परीक्षण पर अधाररत न होकर
ऄन्द्तदृवय ष्ट एिं तकय पर अधाररत थे, आसी कारण ईन्द्हें विश्व में मान्द्यता नहीं वमल सकी।

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4.2. रसायन शास्त्र

 प्राचीन रसायन शास्त्र ‘रसविद्या’, ‘रसतंत्र’, ‘रसकक्रया’ ऄथिा ‘रसशास्त्र’ के नाम से जाना जाता है।
वजसका ऄथय है, तरल पदाथय का विज्ञान। प्राचीन ग्रन्द्थों में रसविद्या को ‘पराविद्या’ भी कहा गया है
जो तीनों लोकों में दुलयभ तथा भोग और मुवक्त प्रदान करती है।
 रसायनज्ञों ने मध्ययुगीन यूरोपीयों के समान मूल धातु को स्िणय में रूपान्द्तरण करने की तकनीक में
कदलचस्पी नहीं ली तथा ऄपना ध्यान ऄवधकांशतः औषवधयों, अयुिधयक रसायनों, िाजीकरों
(aphrodisics), विषों तथा ईनके प्रवतकारों अकद के बनाने पर ही के वन्द्द्रत ककया। ये रसायनज्ञ
विचूणयन (calculation) तथा असिन (distillation) जैसी सामान्द्य प्रकक्रया द्वारा विविध प्रकार
के ऄम्ल, क्षार तथा धातु लिण बनाने में सफल भी हो गये। ईन्द्होंने एक प्रकार की बारुद का भी
अविष्कार कर वलया था।
 भारतीय परम्परा में बौि दाशयवनक ‘नागाजुन
य ’ को रसायन का वनयामक माना गया है जो कवनष्क
के समकालीन थे। संभि है आस नाम के कु छ और अचायय भी बाद में हुए हों। व्हेनसांग के ऄनुसार
नागाजुयन दवक्षण कोशल में वनिास करते थे।
o ये रसायन शास्त्र में वसि थे तथा आन्द्होंने ऄत्यन्द्त लम्बी अयु देने िाली एक वसिििी का
ऄविष्कार ककया था।
o सोने, चांदी, तांब,े लोहे अकद के भस्मों द्वारा ईन्द्होंने रोेेगों की वचककत्सा का विधान भी
प्रस्तुत ककया था।
o पारा (mercury) की खोज ईनका सबसे महत्िपूणय ऄविष्कार था जो रसायन के आवतहास में
युगान्द्तकारी घिना है।
o आन्द्होंने ‘रसरत्नाकर’ नामक एक प्रबंध की रचना की जो कक रसायन शास्त्र पर अधाररत एक
पुस्तक थी।
o नागाजुयन ने ‘ईत्तरतंत्र’ की भी रचना की जो कक सुश्रुत संवहता का एक पूरक है और
वचककत्सीय औषवधयों के वनमायण से संबंवधत है।
o बाद के िषों में जब ईनकी रूवच जैविक रसायन शास्त्र और वचककत्सा की ओर स्थानांतररत
हुइ तो ईन्द्होंने चार अयुिेकदक ग्रंथों की भी रचना की। महर्तष कणाद के िैशवे षक दशयन में भी
रसायवनक प्रकक्रया (chemical action) का ईल्लेख ककया गया है।
 मेहरौली वस्थत लौह स्तम्भ आस बात का जीिंत प्रमाण है कक प्राचीन भारतीय िैज्ञावनक ‘धातु
विज्ञान’ (Metallurgy) में ऄत्यन्द्त पारंगत थे। िास्ति में, धातुकमय में होने िाले विकास में लौह
युग से कांस्य युग और िहां से ितयमान युग तक हुइ प्रगवत का विशेष योगदान है।
 वजस समय पविमी विश्व में भी लोहा बनाने की विवध का ऄधूरा ज्ञान था, भारतीय धातु शोधकों
ने आस लौह स्तम्भ को आतनी वनपुणता से बनाया कक वपछले डेढ़ हजार िषों से धूप और िषाय में
खुला खड़ा होने पर भी आसमें ककसी प्रकार की जंग नहीं लगने पाइ है। आसकी पावलश अज भी
धातु िैज्ञावनक के वलये अियय की िस्तु है। कइ शतावददयों तक आतने बड़े लौह स्तम्भ का वनमायण
मानि कल्पना के परे था।
5. वचककत्सा शास्त्र
 आस क्षेत्र में प्राचीन भारतीयों की ईपलवदधयां ऄत्यंत महत्िपूणय हैं। भारत में वचककत्सा ऄथिा
‘औषवधशास्त्र’ का आवतहास ऄत्यन्द्त प्राचीन है और आसकी ऐवतहावसकता िैकदक काल तक जाती है।
 ऊग्िेद में ‘ऄवश्वन’ को देिताओं का कु शल िैद्य कहा गया है जो ऄपने औषधों से रोगों को दूर करने
में वनपुण थे।
 ऄथियिद
े में ‘अयुिद
े के वसिान्द्त’ तथा व्यिहार संबंधी बातें वमलती हैं। रोग, ईनके प्रवतकार तथा
औषध संबंधी ऄनेक ईपयोगी तथा िैज्ञावनक तथ्यों का वििरण आसमें कदया गया है। विविध प्रकार

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के ज्िरों, यक्ष्मा, ऄपवचत (गण्डमाला), ऄवतसार, जलोदर जैसे रोगों के प्रकार एिं ईनकी
वचककत्सा का विधान प्रस्तुत ककया गया है। ‘
 विषस्य विषमौषधम्’ ऄथायत् विष की दिा विष ही होती है का वसिांत भी ऄथियिेद के एक मन्द्त्र
में वमलता है। ईल्लेखनीय है कक आसी पिवत पर अधुवनक होवमयोपैथी वचककत्सा अधाररत है,
वजसका मूल-वसिान्द्त सम से सम की वचककत्सा’ (समः समे शमयवत) है। आसी को लैरिन भाषा में
वसवमवलया वसवमवलबस क्यूरेन्द्िर (Similia Similibus Curantur) कहा जाता है। प्राचीन
भारतीयों ने आस वसिांत को ऄपनाया था।
 बुिकाल में औषवध शास्त्र का व्यापक ऄध्ययन होता था। जातक ग्रन्द्थों से पता चलता है कक प्रवसि
विश्वविद्यालय तक्षवशला में िैद्यक के ख्यावत प्राप्त विद्वान थे जहां दूर-दूर से विद्याथी अयुिेद का
ऄध्ययन करने के वलए अते थे। आन्द्हीं में जीिक का नाम वमलता है। वबवम्बसार ने ईसे ऄपना
राजिैद्य बनाया तथा ईसने वबम्बसार, प्रद्योत तथा महात्मा बुि तक की वचककत्सा कर ईन्द्हे
रोगमुक्त ककया था।
 ऄथयशास्त्र से पता चलता है कक मौययकाल में वचककत्सा शास्त्र विकवसत था। साधारण िैद्यों, चीड़-
फाड़ करने िाले वभजषों एिं चीड़-फाड़ में प्रयुक्त होने िाले यंत्रों, पररचाररकाओं, मवहला
वचककत्सकों अकद का ईल्लेख वमलता है। शि-परीक्षा (Post mortem) भी ककया जाता था। शिों
को विकृ त होने से बचाने के वलए तेल में डु बोकर रखा जाता था। ऄकाल मृत्यु के विवभन्न मामलों
जैसे फांसी, विषपान अकद की जांच कु शल वचककत्सक करते थे।
 अयुिद
े में मुवन आ़त्रेय का िही स्थान है जो यूनानी वचककत्सा में वहपोक्रेिीस का है। अत्रेय संवहता
में साध्य रोग, ऄसाध्य रोग, ज्िर, ऄवतसार, पेवचश, क्षय, रक्तचाप अकद के ईपचार की विशेष
चचाय की गइ है। आस ग्रन्द्थ में जल वचककत्सा का भी िणयन है। वचककत्सा शास्त्र के क्षेत्र में ईल्लेखनीय
प्रगवत इसा पूिय प्रथम शती से ही हुइ जबकक ‘चरक’ तथा ‘सुश्रत
ु ’ जैसे सुप्रवसि अचायों ने अयुिेद
विषयक ऄपने ज्ञान से सम्पूणय विश्व को अलोककत ककया।
 चरक:
o चरक को काय वचककत्सा का प्रणेता कहा जा सकता है। िे कु षाण नरेश कवनष्क प्रथम के राजिैऺद्य
थे। ईनकी कृ वत ‘चरक संवहता’ काय वचककत्सा का प्राचीनतम प्रामावणक ग्रन्द्थ है और महर्तष अत्रेय
के ईपदेशों पर अधाररत है।
o यह मुख्य रूप से अयुिेद विज्ञान से संबंवधत है वजसके वनम्नवलवखत अठ ऄियि हैं - काय
वचककत्सा (सामान्द्य वचककत्सा), कौमार-भत्यय (बाल वचककत्सा), शल्य वचककत्सा (सजयरी), सलक्य
तंत्र (नेत्र विज्ञान/इएनिी), बूिा विद्या (भूत विद्या/मनोरोग), ऄगाद तंत्र (विष विद्या), रसायन तंत्र
(सुधा), िाजीकरण तंत्र (कामोत्तेजक)। ऄल्बरूनी ने आसे औषवध शास्त्र का ‘सियश्रेष्ठ ग्रन्द्थ’ बताया है।
o चरक संवहता में 120 ऄध्याय हैं। आसमें अठ खण्ड हैं, वजन्द्हें ‘स्थान’ कहा गया है‘- सूत्र, वनदान,
विमान, शरीर, आंकद्रय, वचककत्सा, कल्प तथा वसवि । आसमें शरीर रचना, गभय वस्थवत, वशशु का
जन्द्म तथा विकास, कु ष्ठ, वमरगी, ज्िर जैसे प्रमुख अठ रोग, मन के रोगों की वचककत्सा, भेदोपभेद
अहार, पेथ्यापथ्य, रूवचकर स्िास्थिधयक भोज्यों, औषधीय िनस्पवतयों अकद का िणयन ककया गया
है। प्राचीन िनस्पवत एिं रसायन के ऄध्ययन का भी यह एक ईपयोगी ग्रन्द्थ है। आसमें वचककत्सकों
के पालनाथय जो व्यािसावयक वनयम कदये गये हैं िे वहप्पोक्रेिस के वनयमों का स्मरण कराते हैं तथा
प्रत्येक समय तथा स्थान के वचककत्सक के वलये ऄनुकरणीय हैं।
o ‘चरक संवहता’ का न के िल भारतीय ऄवपतु सम्पूणय विश्व वचककत्सा के आवतहास में महत्िपूणय स्थान
है। आसका ऄनुिाद कइ विदेशी भाषाओं में हो चुका है। भारतीय वचककत्सा शास्त्र का तो यह
विश्वकोश ही है। आसके द्वारा वनदेवशत वसिान्द्तों के अधार पर ही कालान्द्तर में अयुर्तिज्ञान का
विकास हुअ।

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 ‘सुश्रत
ु ’
o चरक के कु छ समय पिात् ‘सुश्रत
ु ’ का ऄविभायि हुअ। यकद चरक काय वचककत्सा के प्रणेता थे तो
सुश्रत
ु शल्य वचककत्सा के ।
o ईनके ग्रन्द्थ ‘सुश्रत
ु संवहता’ में ईपदेष्टा धन्द्ित
ं रर हैं और संपूणय संवहता सुश्रुत को सम्बोवधत करके
कही गयी है।
o आसमें विविध प्रकार की शल्य एिं छेदन कक्रयाओं का ऄवतसूक्ष्म वििरण कदया गया है।
मोवतयावबन्द्द,ु पथरी जैसे कइ रेागों का शल्योपचार बताया गया है। शिविच्छेदन का भी िणयन है।
सुश्रुत ने शल्य कक्रया में प्रयुक्त होने िाले लगभग 121 ईपकरणों के नाम वगनाये हैं जो ऄच्छे लोहे
के बने होते थे। िे वचककत्सा तथा शल्य विज्ञान में दीवक्षत होने िाले छात्रों का वििरण भी प्रस्तुत
करते हैं। िे सूआयों (Injections) तथा पट्टी बांधने की विविध विवधयों का भी ईल्लेख करते हैं।
 चरक के समान सुश्रुत की ख्यावत भी विश्वव्यापी थी। गुप्तकाल में भी चरक तथा सुश्रुत के वसिान्द्तों
को मान्द्यता वमलती रही तथा ईन्द्हें ऄत्यन्द्त सम्मान के साथ देखा जाता था। मनुष्यों के साथ-साथ
पशुओं की वचककत्सा पर भी ग्रन्द्थ वलखे गये। आसका एक ऄच्छा ईदाहरण पालकाप्य कृ त
‘हस्त्यायुिद
े ’ है। आस विस्तृत ग्रन्द्थ के 160 ऄध्यायों में हावथयों के प्रमुख रोगों, ईनकी पहचान एक
वचककत्सा का िणयन ककया गया है। ईनके शल्य कक्रयाओं का भी ईल्लेख है।
 भारतीय वचककत्सा पिवत तीन रसों- कफ, िात तथा वपत्त के वसिान्द्त पर अधाररत थी। आनके
संतुवलत रहने पर ही मनुष्य स्िस्थ रहता था। तीनों रस जीिनी शवक्त माने जाते थे। अहार-विहार
के संतुलन पर भी विशेष बल कदया जाता था। स्िच्छ िायु तथा प्रकाश के महत्ि को भी भली-
भांवत समझा गया था। ऄनेक एवशयाइ जड़ी-बूरियां यूरोप में पहुंचने के पहले से ही यहां ज्ञात थीं,
जैसे कक छौलमुग्र िृक्ष का तेल, वजसे कु ष्ठ रोग की औषवध माना जाता था।
 भारत में यहााँ के ईदार शासकों एिं धार्तमक संस्थानों ने वचककत्सा शास्त्र को विशेष रूप से संरक्षण
प्रदान ककया वजससे आस क्षेत्र की यथेष्ट प्रगवत हुइ।
 ऄशोक नेऄपने राज्य में मानि तथा पशु जावत, दोनों की वचककत्सा की ऄलग-ऄलग व्यिस्था
करिाइ थी। चीनी यात्री फाह्यान वलखता है कक यहां धार्तमक संस्थानों द्वारा औषधालय स्थावपत
ककये गये थे जहां मुफ्त औषवधयां वितररत की जाती थीं।
 भारतीय वचककत्सक विविध रोगों के विशेषज्ञ थे। यद्यवप शिों के सम्पकय पर वनषेध के कारण शरीर
विज्ञान एिं जीि विज्ञान के क्षेत्र में यथेष्ठ प्रगवत नहीं हो सकी तथावप भारतीयों ने एक प्रयोगावश्रत
शल्य शास्त्र (empirical surgery) का विकास कर वलया था। िे प्रसिोत्तर शल्य कक्रया से
पररवचत थे, ऄवस्थ संधान में वनपुणता प्राप्त कर ली थी तथा वचककत्सक नष्ट, युिक्षत ऄथिा दण्ड
स्िरूप विकृ त ककये गये नाक, कान एिं होठों को पुनः जोड़कर ठीक कर सकते थे।

सुश्रत
ु संवहता में िर्तणत शल्य वचककत्सा में प्रयोग होने िाले ईपकरण

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6. प्रौद्योवगकी (Technology)
 पाषाण प्रौद्योवगकी: प्रागैवतहावसक काल से ही प्राचीन भारतीयों ने विज्ञान के साथ-साथ
प्रौद्योवगकी (technology) के क्षेत्र में भी महत्िपूणय प्रगवत की। आस काल में पाषाण प्रौद्योवगकी
का खूब विकास हुअ।
 अकद मानि ने पाषाण से विविध प्रकार के ईपकरणों का वनमायण ककया। पाषाण काल के प्रमुख
ईपकरण कोर (core), फ्लेक (flakes), तथा दलेड (Blades) हैं।
o ईपकरण बनाने के वलये कोइ ईपयुक्त पत्थर चुना जाता था, कफर ईस पर ककसी गोल-मिोल पत्थर
(pebble) से हथौड़े के समान चोि की जाती थी वजससे ईसका एक छोिा खण्ड वनकल जाता था।
आस विवध से कइ छोिे-छोिे िुकडेऺ वनकल जाते थे तथा बचे हुए अन्द्तररक भाग को बार-बार चोि
करके ऄभीष्ट अकार का ईपकरण तैयार कर वलया जाता था। आसे ही कोर कहते थे।
o जबकक ऄलग हुए िुकड़ों को फ्लेक कहा जाता था।
o आनके ककनारों पर बारीक वघासाइ करके ईन्द्हें धारदार बना कदया जाता था जो दलेड कहलाते थे।
o कु छ ईपकरणों के वनमायण में ऄत्यन्द्त ईन्नत प्रौद्योवगकी के दशयन होते हैं। पाषाण वनर्तमत प्रमुख
ईपकरण हैं- गड़ासा (chopper) तथा खण्डक (chopping) ईपकरण, हैन्द्ड एक्स तथा क्लीिर,
खुरचनी (scraper,) बेधनी (point), तक्षणी (burin), बेधक (borer) अकद।
o पूिय पाषाणयुगीन मानि ने पत्थरों की किाइ, वघसाइ अकद के द्वारा ऄभीष्ट ईपकरण बनाने में
दक्षता प्राप्त कर ली थी।

कोर एिं फ्लेक तकनीकी दलेड तकनीकी

गड़ासा (chopper) खण्डक (chopping)

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खण्डक (chopping) वनमायण विवध


 मध्य पाषाण काल में ऄपेक्षाकृ त छोिे ईपकरण तैयार ककये गये वजन्द्हें लघु पाषाणोपकरण
(microliths) कहा जाता है।
o आस काल के मानि ने प्रक्षेपास्त्र तकनीक के विकास का प्रयत्न ककया। यह एक महान् प्रौद्योवगक
क्रांवत थी।
o ऄब तीर-धनुष का विकास कर वलया गया। तीर की नोंक बनाने के वलये छोिे पत्थर के
ईपकरण सािधानीपूियक गढ़े जाते थे। आनकी धार ऄत्यन्द्त तेज बनाइ जाती थी।
o मध्य-पाषाणकालीन ईपकरण ऄधयचवन्द्द्रक (Lunate), वछद्रक, बेधनी, दलेड तथा दयूररन अकद
हैं जो चिय, चाल्सडनी और एगेि् पत्थरों से बने हैं।

मध्य पाषाण कालीन लघु पाषाण ईपकरण

 निपाषाण काल तक अते-अते मनुष्य का तकनीकी ज्ञान और ऄवधक विकवसत हो गया।


o ऄब मनुष्य ने पाषाण फलकों से गढ़ायी (packing), वघसाइ (grinding) तथा ईन पर
पावलश (polishing) करके ऄभीष्ट ईपकरण तैयार करना प्रारम्भ कर कदया था।
o पाषाण के साथ-साथ ऄवस्थयों एिं सींगों से भी ईपकरण तैयार ककये जाते थे। आनमें सबसे
प्रमुख पावलशदार पत्थर की कु ल्हावड़यां है जो देश के विवभन्न भागों से बड़ी मात्रा में पायी
गयी हैं। ये वििवध अकार-प्रकार की हैं।

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 आस प्रकार पाषाण प्रौद्योवगकी का विकास पाषाणकाल में हो चुका था। पत्थर से िस्तुयें बनाने का
ईद्योग कालान्द्तर में ऄत्यन्द्त विकवसत हो गया।

पाषाण युग के ईपकरण पाषाण ईपकरण वनमायण तकनीकी


 धातु प्रौद्योवगकी: पाषाण प्रौद्योवगकी के बाद धातु प्रौद्योवगकी का विकास स्पष्ट रूप से कदखाइ देता
है। धातुओं में मनुष्य ने सियप्रथम तांबे का प्रयोग ककया। तत्पिात कांसा तथा ऄन्द्ततः लोहे का
प्रयोग ककया।
 बहुत समय तक मनुष्य ने तांबे तथा पत्थर के ईपकरणों का साथ-साथ प्रयोग ककया। आसी कारण
आस ऄिस्था को ताम्रपाषावणक ऄिस्था (Chalcolithic) कहा जाता है। यह संस्कृ वत प्राक् हड़प्पा,
हडप्पा तथा ईत्तर हडप्पा काल तक फै ली हुइ है। लोग तांबे को वपघलाने की कला जानते थे।
 हड़प्पा संस्कृ वत में हम ऄत्यन्द्त ईन्नत धातुकमय तकनीक का विकास पाते हैं-
o यहां के विवभन्न स्थलों से तांबे तथा कांसे की बनी हुइ िस्तुयें प्राप्त होती हैं। ऐसा प्रतीत होता
है कक समाज में कांस्य वशवल्पयों का कोइ महत्िपूणय संगठन काययरत था।
o िे प्रवतमाओं और बतयनों के ऄवतररक्त कइ प्रकार के औजार और हवथयार भी बनाते थे।
o मूर्ततयों का भी वनमायण ककया जाता था। मोहनजोदड़ों से प्राप्त कांस्य नतयकी की मूर्तत धातु
वशल्प का सियश्रेष्ठ नमूना है।
o आसके ऄवतररक्त आस सभ्यता में हमें बड़े पैमाने पर पाषाण फलकों का ईत्पादन, मनका ईद्योग,
सेलखड़ी की अयताकार मुहरें बनाने का ईद्योग, आवष्टका ईद्योग अकद के भी सुविकवसत होने
का प्रमाण वमलता है।

मोहनजोदड़ो की कांस्य नतयकी धातु ईपकरण , वसन्द्धु घािी सभ्यता

 सैन्द्धि सभ्यता के बाद भारत के विवभन्न क्षेत्रों में ताम्रपाषावणक संस्कृ वतयों के दशयन होते हैं-
o आनमें ताम्र धातु का व्यापक प्रयोग हुअ। तांबे को घरों में वपघलाकर िस्तुयें बनाने के साक्ष्य
वमलते हैं।

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o राजस्थान का क्षेत्र ताम्र धातु ईद्योग का सियप्रमुख के न्द्द्र था। यहां के एक पुरास्थल ऄहाड़ का
एक ऄन्द्य नाम ताम्बिती ऄथायत् तांबे िाली जगह भी वमलता है।
o आसी के समीप गणेश्वर नामक स्थल से बड़ी मात्रा में तांबे के ईपकरण वमलते हैं।
o आन तथ्यों से सूवचत होता है कक ऄब देश के विवभन्न भागों में धातु प्रौद्योवगकी काफी विकवसत
एिं लोकवप्रय हो गयी थी। लगभग 1200 इ. पू. के अस-पास ताम्रपाषावणक संस्कृ वतयों का
पतन हो गया।
 इ. पू. छठी शताददी ऄथिा बुि काल में गंगा-घािी में नगरों का तेजी से ईत्थान हुअ। आसे वद्वतीय
नगरीकरण कहा जाता है-
o आसके पीछे लौह तकनीक का विकास भी ईत्तरदायी था।
o मगध क्षेत्र में कच्चा लोहा असानी से प्राप्त हो जाता था। यहां के लुहार लोहे के ऄच्छे -ऄच्छे
हवथयार बना लेते थे जो मगध के शासकों को सहज में सुलभ थे। आससे मगध साम्राज्यिाद को
विकवसत एिं सुदढ़ृ होने का ऄिसर वमला।
o युि संबंधी ऄस्त्र-शस्त्रों के साथ-साथ ऄब गंगाघािी में बड़े पैमाने पर लोहे से कृ वष में काम
अने िाले ईपकरण भी तैयार ककये जाने लगे। आनकी सहायता से िनों की किायी कर
ऄवधकावधक भूवम कृ वष योग्य बनाइ गयी तथा प्रभूत ईत्पादन होने िाला। ईत्पादन ऄवधशेष
(surplus produce) ने नगरीकरण को पुष्ट ककया।
 मौयय काल में पाषाण एिं लौह प्रौद्योवगकी का खूब विकास हुअ-
o ऄशोक के एकाश्मक स्तम्भ पाषाण तराशने की कला की ईत्कृ ष्टता के साक्षी हैं।
o लगभग पचास िन िजन तथा तीस फीि से ऄवधक की ईं चाइ िाले स्तम्भों को पांच-छह सौ
मील की दूरी तक ले जाकर स्थावपत करना तत्कालीन ऄवभयावन्द्त्रकी कु शलता को सूवचत
करता है तथा अज के िैज्ञावनक युग में भी अियय की िस्तु है।
o आसी प्रकार का एक ऄन्द्य ईदाहरण सुदशयन झील का वनमायण है।
o आस काल के पुरास्थलों से लोहे के औजार तथा हवथयार भारी संख्या में वमलते हैं।
o वचवत्रत धूसर मृद्भाण्ड (painted grey ware) के प्रयोक्ता लौह ईपकरणों से भली-भांवत
पररवचत थे। यह संस्कृ वत लौह तकनीक के विकास को सूवचत करती है।

ऄशोक स्तम्भ, लौररया नंदनगढ़ (वबहार)

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 मौयोतर काल प्रौद्योवगकी प्रगवत की दृवष्ट से ऄत्यन्द्त महत्िपूणय माना जा सकता है-
o महािस्तु ग्रंथ में राजगृह नगर में वनिास करने िाले 36 प्रकार के वशवल्पयों ऄथिा कामगारों
का ईल्लेख वमलता है तथा वमवलन्द्दपन्द्हो में 75 व्यिसायों का ईल्लेख है वजनमें लगभग 60
विवभन्न प्रकार के वशल्पों से संबि थे।
o अठ वशल्प सोना, चांदी, सीसा, रिन, तांबा, पीतल, लोहा तथा हीरे-जिाहरात जैसे ईत्पादों
से संबंवधत थे।
o आससे सूवचत होता है कक धातुकमय के क्षेत्र में पयायप्त वनपुणता हावसल कर ली गयी थी- विशेष
रूप से लोहा ढलायी का तकनीकी ज्ञान काफी विकवसत हो गया था।
o प्रौद्योवगकी प्रगवत के पररणामस्िरूप इसा की प्रथम तीन शतावददयों में नगरीकरण ऄपने
ईत्कषय की पराष्ठा पर पहुंच गया। आसके बाद लौह धातु अम ईपयोग की सबसे महत्िपूणय
िस्तु बन गयी।
 गुप्तकाल भी प्रौद्योवगकी प्रगवत की दृवष्ट से ईन्नत था-
o ऄमरकोश में लोहे के वलये सात नाम कदये गये हैं। पांच नाम हल के फाल से संबंवधत हैं।
o मेहरौली लौह स्तम्भ से सूवचत होता है कक लौह कमय का तकनीकी ज्ञान ऄपने चरमोत्कषय पर
पहुंच गया था। आस पर मात्र मैिीज अक्साआड (MgO)की पतली परत चढ़ाकर आसे जंगरवहत
बना कदया गया है। दुभायग्यिश आसके बाद आस तकनीकी विकास को समझने के वलये हमारे
पास कोइ स्रोत ही नहीं है। आसमें लगी पावलश अज भी धातु िैज्ञावनकों के वलये अियय की
िस्तु बनी हुइ है।
o सुल्तानगंज (वबहार) से प्राप्त महात्मा बुि की लगभग साढ़े सात फु ि उंची तथा एक िन भार
िाली कांस्य प्रवतमा ईल्लेखनीय है।
o धातु प्रौद्योवगकी के सुविकवसत होने का प्रमाण वसक्कों तथा मुहरों की बहुलता में देखा जा
सकता है।
o बहुमूल्य धातुओं एिं पत्थरों से अभूषण तैयार करने का ईद्योग भी प्रगवत पर था। जहाजरानी
ईद्योग की भी ईन्नवत हुइ। सुप्रवसि कलाविद् अनन्द्द कु मार स्िमी के ऄनुसार यह पोत
वनमायण (ship building) का महानतम युग था।

मेहरौली लौह स्तम्भ (कदल्ली) बुि की कांस्य प्रवतमा, सुल्तानगंज (वबहार)

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 गुप्तोत्तर काल में प्रौद्योवगकी की वस्थवत-


o आस काल में भी प्रौद्योवगकी का विकास ईसी गवत से जारी रहा, परन्द्तु आस काल में वशल्प
विज्ञान तथा वशल्पकाररता में कोइ क्रांवतकारी पररितयन नहीं हुअ।
o कृ वष की ईन्नवत तथा व्यापक अधार प्राप्त कर लेने के फलस्िरूप वसचाइ तकनीक ईन्नत हो
गयी।
o राजतरंवगणी में खूया नामक आंजीवनयर का ईल्लेख है, वजसने झेलम ति पर बांध बनिाया
तथा नहरें वनकलिायी थीं।
o चन्द्दल
े तथा परमार शासकों के काल में बड़ी-बड़ी झीलों तथा तालाबों का वनमायण ककया
गया। ऄवधकतर वसचाइ रहि (ऄरघट्ट) से की जाती थी। विविध प्रकार के ईद्योग-धन्द्धे
विकवसत ऄिस्था में थे।
o वशल्पकारों तथा व्यापाररयों की ऄनेक श्रेवणयों थी।
o खानों से धातुयें वनकाली जाती तथा ईनसे ईपकरण एिं बतयन, अभूषण, ऄस्त्र-शस्त्र अकद
तैयार ककये जाते थे।
o बड़ी-बड़ी शहतीरों (beams) का वनमायण ककया जाने लगा था, जैसा कक आस काल के मवन्द्दरों
को देखने से पता चलता है।
o युि संबंधी ऄस्त्र-शस्त्र भी बहुतायत में वनर्तमत ककये जाते थे। कु छ क्षेत्रों में सफे द चमचमाती
तलिारें बनाइ जाती थी।
o बनारस, मगध, नेपाल, सौराष्ट्र तथा कवलग के कारीगरों ने तलिार बनाने में दक्षता प्राप्त कर
रखी थी।
o ऄन्द्य धातुओं में सोना, कांसा, तांबा अकद से अभूषण, ईपकरण एिं बतयन बनाने का ईद्योग
भी काफी विकवसत था।
o कांसे की ढलाइ कर सुन्द्दर-सुन्द्दर मूर्ततयां तैयार की जाती थी। मूर्तत बनाने िाले को ‘रूपकार’
तथा पीतल पर काम करने िाले कमयकार को ‘पीतलहार कहा जाता था।
o चमय-ईद्योग भी प्रगवत पर था। माको पोलो नामक यात्री गुजरात के ऄद्भुत एिं सुविकवसत
चमय ईद्योग का ईल्लेख करता है।

रहि (ऄरघट्ट)
 दवक्षण भारत भी प्रौद्योवगकी के विकास की दृवष्ट से ऄत्यवधक समृि रहा-
o वसचाइ के वलये जो बहुसंख्यक तालाबों एिं बांधों का वनमायण करिाया गया ईनमें ईच्चकोरि
की ऄवभयांवत्रक कु शलता कदखाइ देती है। आसका ईत्कृ ष्ट ईदाहरण कािेरी नदी ति पर चोल
राजाओं द्वारा श्रीरंगम् िापू के नीचे बनिाया गया बांध है।
o सम्पूणय दवक्षण में विविध प्रकार के वशल्प एिं ईद्योग धन्द्धे प्रचवलत थे।
o िस्त्र ईद्योग, नमक ईद्योग, मोती, सीप अकद के व्यिसाय सभी प्रगवत पर थे।
o दवक्षण के विवभन्न भागों से बहुसंख्यक पाषाण मवन्द्दर तथा मूर्ततयां वमलती हैं, वजनमें नाना
प्रकार की नक्काशी की गयी है। आससे पाषाण तकनीक के समुन्नत होने का प्रमाण वमलता है।

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o पल्लि तथा चोलकालीन कलाकृ वतयां ईच्चतम तकनीकी प्रगवत की सूचक है।
 आस प्रकार प्राचीन भारत के विवभन्न कालों में विज्ञान एिं प्रौद्योवगकी के क्षेत्र में ईल्लेखनीय प्रगवत
हुइ। कु छ क्षेत्रों में भारतीय ज्ञान-विज्ञान को विदेवशयों ने भी ग्रहण ककया तथा ईसकी प्रशंसा की।

दवक्षण भारतीय मंकदर दवक्षण भारतीय मंकदर

7. भारत के महान िैज्ञावनक


(THE GREAT SCIENTISTS FROM INDIA)

7.1. प्राचीन भारत के महान िै ज्ञावनक

7.1.1. बौधायन (Baudhayan) (800BCE)

 ये गवणत की ईन विवभन्न ऄिधारणाओं तक पहुाँचने िाले प्रथम व्यवक्त थे, वजन्द्हें बाद में पािात्य
विश्व द्वारा खोजा गया।
 पाइ (π) के मूल्य की गणना सबसे पहले आन्द्हीं के द्वारा
की गइ। अज वजसे पाआथागोरस प्रमेय के रूप में जाना
जाता है, िह पहले से ही बौधायन के शुल्ि सूत्र
(Salbasutra) में है, वजसे पाआथागोरस से कइ िषय
पहले वलखा गया था।
 ये ‘बौधायन सूत्र’ के लेखक थे।
 बौधायन सूत्र को छः िगों में बांिा गया - 1. श्रौतसूत्र
(Srautasutra), 2. कमायन्द्तसूत्र (Karmantsutra),
3. द्वैधसूत्र (dvaidhsutra) 4. गृह्यसूत्र (Grihyasutra), 5. धमयसत्र
ू (Dharmasutra) 6.
शुल्िसूत्र (Salbasutra)।

7.1.2. अयय भ ट्ट (Aryabhatta) (476-550 CE)

 अययभट्ट पांचिीं शताददी के गवणतज्ञ, नक्षत्रविद, ज्योवतर्तिद और भौवतकी के ज्ञाता थे।


 आनकी सबसे महत्िपूणय कृ वत ‘अययभट्टीयम’ (499 CE) और ‘अययवसिावन्द्तका’ हैं।
 ‘अययभट्टीयम’ में ऄंकगवणत, ज्यावमवत, बीजगवणत तथा वत्रकोणवमवत के वसिान्द्त कदये गये हैं।

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 अययभट्ट ने शून्द्य की खोज की वजसकी सहायता से आन्द्होंनेपृथ्िी और चन्द्द्रमा के मध्य दूरी का सही
मापन ककया।
 अययभट्ट ने सियप्रथम स्पष्ट ककया की पृथ्िी गोल है और ऄपनी
धुरी पर घूमती है।
 आन्द्होंने तत्कालीन समय में मान्द्य सूयय की पूिय से पविम की
ओर गवत को ईदाहरण द्वारा गलत वसि ककया।
 अययभट्ट ने यह भी स्पष्ट ककया कक चााँद और ऄन्द्य ग्रह सूयय की
रोशनी के प्रवतवबम्ब के कारण ही चमकते हैं।
 ईन्द्होंने चंद्रग्रहण और सूयग्र
य हण का िैज्ञावनक स्पष्टीकरण
कदया और कहा कक ग्रहण के िल राहु या के तु या ककसी ऄन्द्य
राक्षस के कारण नहीं होते।
 खगोल विज्ञान से सम्बंवधत ऄन्द्य कायय: सौर मण्डल की गवत,
नक्षत्र ऄिवध और सूयय का के न्द्द्रीय वसिांत। आन्द्हीं के नाम पर भारत के प्रथम ईपग्रह का नाम
‘अययभट्ट’ रखा गया।

7.1.3. ब्रम्हगु प्त (Bramha Gupta)

 ब्रह्मगुप्त का जन्द्म सातिीं शताददी में हुअ था।


 ईन्द्होंने ऄपनी गुणन की विवधयों में स्थान का मूल्य ईसी
प्रकार वनधायररत ककया जैसा कक अजकल ककया जाता है।
 ईन्द्होंने ऊणात्मक संख्याओं का भी पररचय कदया और
गवणत में शून्द्य पर ऄनेक प्रकक्रयाएं वसि कीं।
 ब्रह्मगुप्त ईज्जैन में खगोलीय िेधशाला के प्रमुख थे।
 ईन्द्होंने गवणत तथा खगोल विद्या पर कु छ महत्िपूणय ग्रन्द्थ
वलखे-
o 624 इस्िी में कणमेखला
o 628 इस्िी में ब्रम्हस्फु ि वसिांत
o 665 इस्िी में खण्डनखाद्यक।

7.1.4. दै िाजन िाराहवमवहर (Daivajna Varaāhamihira)

 ये एक खगोल विज्ञानी, गवणतज्ञ, और ज्योवतषी थे।


 आन्द्हें गुप्त काल के प्रवसि शासक चन्द्द्रगुप्त विक्रमाकदत्य के दरबार के नौ रत्नों में से एक माना जाता
है।
 आनकी प्रवसि रचनाएं- बृहत्संवहता, बृहज्जातक,
लघुज्जातक तथा पञ्चवसिावन्द्तका है।
 आन्द्होंने बृहत्संवहता के ऄध्याय 32 में भूकंप बादल
वसिांत का िणयन ककया है। यह वसिांत भूकंप अने के
पूिय बनने िाले बादल को स्पष्ट करता है जो भूकंप के
अने का संकेत देते हैं) ।
 िराहवमवहर ने बताया कक चंद्र पृथ्िी का चक्कर लगाता है
और पृथ्िी सूयय का चक्कर लगाती है।
 ईसने ग्रहों के संचार और ऄन्द्य खगोलीय समस्याओं के
ऄध्ययन में यूनावनयों की ऄनेक कृ वतयों का सहारा
वलया।

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 िराहवमवहर पहले िैज्ञावनक थे, वजन्द्होंने दािा ककया कक दीमक और पौधे भी भूगभीय जल की
पहचान के वनशान हो सकते हैं।
 ईन्द्होंने छः पशुओं और तीस पौधों की सूची दी जो पानी के सूचक हो सकते हैं।

7.1.5. भास्कराचायय II

(Bhaskaracharya II) (12 िीं सदी)


 भाष्कराचायय II 12 िीं शताददी के विख्यात गवणतज्ञ
थे।
 ये ऄपनी पुस्तक वसिांत वशरोमवण वलए प्रवसि हैं।
 यह पुस्तक चार भागों में विभावजत है: लीलािती
(ऄंकगवणत), बीजगवणत (Algebra), गोलाध्याय
Goladhyaya (गोला) और ग्रहगवणत (ग्रहों की
गवणत)।
 ईन्द्होंने बीजगवणतीय समीकरणों को हल करने की
‘चक्रिाल विवध’ [ ऄवनणीत िगय समीकरण के हल की
विवध ] (Cyclic Method) का सूत्रपात ककया।
 मुग़ल काल में शेख फै जी (1587 इस्िी) ने लीलािती
का फ़ारसी में ऄनुिाद ककया और तत्पिात 19 िीं
सदी में ऄंग्रेज जेम्स िेलर ने लीलािती का ऄंग्रेजी ऄनुिाद प्रस्तुत कर आस महान कायय से दुवनया
को पररवचत करिाया।

7.1.6. महािीराचायय (Mahaviracharya)

 जैन सावहत्य (500BC-100BC) में गवणत का विस्तृत


िणयन है।
 जैन अचायय यह जानते थे कक वद्वघात समीकरणों को कै से
हल ककया जाता है।
 जैन अचायय महािीराचायय ने 850 इस्िी में ‘गवणत सार
संग्रह’ (Ganit saar Sangraha) वलखा, जो ितयमान
शैली में वलवखत गवणत की पहली पाठ्यपुस्तक है।
 संख्याओं का लघुत्तम समापितयक हल करने की ितयमान
पिवत भी ईन्द्हीं के द्वारा खोजी गइ थी।
 आस प्रकार जॉन नेवपयर द्वारा दुवनया से आसे पररवचत
करिाने के बहुत पहले से ही भारतीय आसे जानते थे।

7.1.7. कणाद (Kanad)

 ये छठिीं शताददी के िैशवे षक सम्प्रदाय के िैज्ञावनक थे।


 ईनका मूल नाम औलुक्य (Aulukya) था।

 बाल्यािस्था में ऄवत सूक्ष्म कण (वजसे ‘कण’ कहा जाता है) में
विशेष रूवच होने के कारण ईनका नाम ‘कणाद’ पड़ा।

 ईनके परमाणु वसिांत ककसी भी अधुवनक परमाणु वसिांत के


सामान है।

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 कणाद के ऄनुसार भौवतक जगत कणों, (ऄणु / atom) से बना है वजसे मानि नेत्र के माध्यम से
नहीं देखा जा सकता है तथा आसका और ऄवधक विभाजन नहीं ककया जा सकता।
 आस प्रकार, ये ऄविभाज्य और ऄविनाश्य हैं। यही तथ्य अधुवनक ऄणु वसिांत भी बताता है।

7.1.8. नागाजुय न (Nagarjun)

 ये दसिीं शताददी के िैज्ञावनक थे।


 आनके प्रयोगों का मुख्य ईदेशेश्य अधार तत्िों का सोने में
रूपांतरण था, जो पविमी दुवनया के रसायन बनाने िालों
(alchemists) की तरह था।
 हालांकक, िह ऄपने ईदेशेश्य में सफल नहीं हुए।
 िे सोने जैसी चमक िाला एक तत्ि बनाने में सफल रहे।
 वजससे अज नकली अभूषण बनाये जाते हैं।
 ऄपने ग्रंथ ‘रसरत्नाकर’ (Rasaratnakara) में ईन्द्होंने स्िणय,
रजत, रिन और तांबे जैसी धातुओं के वनष्कषयण की विवधयों
का िणयन ककया है।

7.1.9. सु श्रु त (Susruta)

 ये शल्य वचककत्सा के क्षेत्र में ऄग्रणी थे।


 आन्द्होंने शल्यकक्रया को, "वचककत्सा कला की ईच्चतम श्रेणी और
सबसे कम संभाव्य ऄशुवि” िाला कहा।
 सुश्रुत संवहता में, 1100 से ऄवधक बीमाररयों का ईल्लेख
ककया गया है। 760 से ऄवधक पौधों का ईपचारात्मक ईदेशेश्य
के वलए िणयन है।
 शल्य कक्रया में प्रयुक्त होने िाले 121 ईपकरणों के नाम
वगनाए गए हैं।
 ईन्द्होंने मृत शरीर के संरक्षण और आसकी विवध के बारे में
विस्तार से िणयन ककया है।
 ईनका सबसे बड़ा योगदान Rhinoplasty (विशेष रूप से
नाक की प्लावस्िक सजयरी) और नेत्र शल्य वचककत्सा (मोवतयावबद को हिाने) के क्षेत्र में था।
 आन्द्होंने शल्य वचककत्सा के साथ-साथ अयुिेद के ऄन्द्य पक्षों जैसे शरीर सरं चना, काय वचककत्सा,
बाल रोग, स्त्री रोग, मनोरोग अकद की जानकारी भी दी।
 रोगों के आलाज के वलए ईन्द्होंने अहार और सफाइ पर जोर कदया।

7.1.10. चरक (Charak)

 आन्द्हें प्राचीन भारतीय औषवध वचककत्सा विज्ञान के जनक के रूप


में माना जाता है।
 ये कु षाण शासक कवनष्क के दरबार में राजिैद्य थे।
 आनकी ‘चरकसंवहता’ औषवध-शास्त्र (कायवचककत्सा) पर वलखी गइ
पुस्तक है।
 ये पाचन, चयापचय और प्रवतरोधक क्षमता के बारे में बताने िाले
प्रथम व्यवक्त थे जो कक स्िास्थ्य और वचककत्सा विज्ञान के वलए
महत्िपूणय था।
 आन्द्हें 'अयुिेद' का जनक माना जाता है।

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 चरकसंवहता में ज्िर, कु ष्ठ, वमगी और यक्ष्मा के ऄनेक भेदोपभेदों का िणयन है।
 शायद चरक यह नहीं जानते कक आनमें कु छ बीमाररयां छू त से भी फै लतीं हैं।
 आनकी पुस्तक में भारी संख्या में ईन पेड़-पौधों का िणयन है वजनका प्रयोग दिा के रूप में होता है।
 आस प्रकार यह पुस्तक न के िल भारतीय अयुर्तिज्ञान के ऄध्ययन के वलए बवल्क प्राचीन भारत के
िनस्पवत और रसायन शास्त्र के ऄध्ययन के वलए भी ईपयोगी है।
 बाद की सकदयों में भारत में अयुर्तिज्ञान का विकास चरक के बताये मागय पर होता रहा।

7.1.11. पतं ज वल (Patanjali)

 औषवध के वबना शारीररक और मानवसक स्तर पर


वचककत्सा करने के वलए अयुिेद के एक संबि विज्ञान के
रूप में योग का विज्ञान प्राचीन भारत में विकवसत हुअ।
 ‘योग’ शदद संस्कृ त के शदद ‘योक्त्र’ (Yoktra) से ईद्भूत
हुअ है, वजसका ऄथय है 'आंकद्रयों के िाह्य विषयों से पृथक
कर ऄपने मन को ऄपनी ऄंतरात्मा से जोड़ना।
 ये आसे वचत्त के रूप में पररभावषत करते हैं ऄथायत ; व्यवक्त
की चेतना के विचारों, भािनाओं और आच्छाओं को
वमिाकर संतुलन की वस्थवत को प्राप्त करना।
 यह ईस शवक्त को गवत प्रदान करता है जोकक दैविक
ऄनुभूवत के वलए चेतना को शुि और ईन्नत करता है।
शारीररक योग को हठयोग कहा जाता है तथा मानवसक
योग को राजयोग।
 योग के अठ ऄंग हैं – यम, वनयम, असन, प्राणायाम, प्रत्यहार, धारणा, ध्यान, समावध।
 योग एक ऊवष से दूसरे ऊवष तक मौवखक रूप से पहुंचा।
 आस विज्ञान को सुव्यिवस्थत रूप में प्रस्तुत करने का श्रेय पतंजवल को जाता है।
 पतंजवल के योग सूत्रों में ॎ इश्वर का प्रतीक बताया गया है। िह ॎ को एक ऄंतररक्षीय ध्िवन
बताते हैं जो हर समय अकाश में वनरंतर व्याप्त रहती है और के िल प्रबुि को ही पूरी तरह ज्ञात
होती है।
 योग सूत्रों के ऄवतररक्त पतंजवल ने एक ग्रन्द्थ औषधविज्ञान पर भी वलखा और पावणवन के व्याकरण
पर भाष्य वलखा जो ‘महाभाष्य’ के नाम से प्रवसदेश है।

7.2. अधु वनक भारत के महान िै ज्ञावनक

7.2.1. सर जगदीश चं द्र बोस (Sir Jagdish Chandra Bose) (1858-1937)

 आन्द्होंने सूक्ष्मतरंगों (माआक्रोिेि) के क्षेत्र में ऄग्रणी कायय ककया है।


 आन्द्होंने छोिी तरंग दैध्यय की रेवडयो तरंगों तथा सफे द और
पराबैंगनी प्रकाश दोनों के वलए, ररसीिर बनाने हेतु गेलेना
कक्रस्िल के ईपयोग का विकास ककया।
 1895 में, मारकोनी के प्रदशयन से दो साल पहले, बोस ने रेवडयो
तरंगों का ईपयोग कर बेतार संचार का प्रवतपादन ककया। आन्द्होंने
आसे दूर से ककसी घंिी को बजाने के वलए तथा बारूद में विस्फोि
करने के वलए प्रवतपाकदत ककया था।
 आन्द्होंने बहुत से सूक्ष्म तरंगीय घिक जैसे तरंग गाआडों (Wave
Guides), हॉनय ऐन्द्िन
े ा, पोलराआज़र, पारदुयवतक लेंस
(Dielectric lenses) एिं वप्रज़्म और यहां तक कक सूयय से होने
िाले विद्युत चुम्बकीय विककरण की पहचान करने िाले ऄधयचालकों का अविष्कार और ईपयोग
19 िीं सदी के ऄंवतम दशक में ककया।

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 आन्द्होंने सूयय से होने िाले विद्युत चुम्बकीय विककरण के ऄवस्तत्ि का सुझाि भी कदया, वजसकी पुवष्ट
1944 में की गइ।
 बोस को 1917 में नाआि की ईपावध दी गइ और आसके बाद शीघ्र ही आन्द्हें भौवतक विज्ञानी और
जीिविज्ञानी दोनों के रूप में रॉयल सोसाआिी, लंदन का फे लो वनिायवचत ककया गया।

7.2.2. श्रीवनिास रामानु ज न (Srinivasa Ramanujan) (1887-1920)

 ये 20 िीं शताददी के महानतम गवणतज्ञों में से एक थे।


 रामानुजन की गवणत का ऄवधकांश भाग संख्या पिवत से
सम्बंवधत था जो गवणत का शुितम रूप है।
 ईन्द्होंने विश्लेषणात्मक संख्या पिवत (Analytical Number
Theory), दीघयिृत्तीय फलन (Elliptic Function), सतत
वभन्न (Continude Fractions) और ऄनंत श्रेणी (Infinite
Series) के क्षेत्र में ईत्कृ ष्ट योगदान कदया।
 ईनके प्रकावशत और ऄप्रकावशत कायय अज भी दुवनया के कु छ
ईत्कृ ष्ट गवणतीय बुवि िाले लोगों के वलए चुनौती हैं।

7.2.3. सर सी.िी. रमन (Sir C.V. Raman)(1888-


1970)

 आन्द्होंने कं पन (Vibration), ध्िवन(Sound), संगीत


ईपकरण (musical Instruments), पराश्रव्य
(Ultrasonic), विितयन (Diffraction), प्रकाशविद्युवतकी
(Photo electricity), कोलाआडी कणों (Colloidal
Particles), एक्स-रे विितयन (X-Ray Diffraction),
मैिेरान, पारदुयवतक (Dielectric) अकद क्षेत्रों में ऄनुसंधान
के वलए विशेष योगदान कदया।
 आस ऄिवध में विशेष रूप से प्रकाश के प्रकीणयन पर ककये गए
ईनके कायय ने ईन्द्हें दुवनया भर में ख्यावत कदलाइ।
 1924 में आन्द्हें लंदन की रॉयल सोसाआिी का फे लो चुना
गया।
 1930 में आन्द्हें रमन प्रभाि के वलए नोबेल पुरस्कार से
सम्मावनत ककया गया।
 भारत सरकार ने आन्द्हें 1954 में ऄपने सिोच्च पुरस्कार, भारत रत्न से सम्मावनत ककया।

7.2.4. सु ब्र ह्मण्यम चं द्र शे ख र (Subrahmanyam Chandrasekhar) (1910-1995)

 आन्द्होंने पता लगाया कक एक सफे द बौने तारे का


ऄवधकतम द्रव्यमान सूयय के द्रव्यमान का लगभग 1.44
गुना है। आसे ‘चन्द्द्रशेखर सीमा’ के रूप में जाना जाता
है। यही िह सीमा है वजसके परे कोइ भी तारा ऄवस्थर
हो जाता है।
 चंद्रशेखर को तारे की संरचना और ईद्भि की भौवतक
प्रकक्रया के महत्ि के सैिांवतक ऄध्ययन के वलए 1983
में भौवतकी के नोबेल पुरस्कार से सम्मावनत ककया
गया।

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7.2.5. मे घ नाद साहा (Meghnad Saha) (1893-1956)

 ये एक भारतीय खगोलविद् थे, वजन्द्हें तारों में रासायवनक और


भौवतक वस्थवत का िणयन करने के वलए प्रयुक्त साहा वशक्षा
(Saha education) के विकास के वलए विशेष रूप से जाना
जाता था।
 िे आवण्डयन एसोवसएशन फॉर द कवल्ििेशन ऑफ
साआंसज
े (IACS) के प्रथम वनदेशक थे, जोकक भारत का सबसे

पुराना ऄनुसंधान संस्थान (1876) था।

 1947 में आन्द्होंने परमाणु भौवतकी संस्थान (Institute of

Nuclear Physics) की स्थापना की, जो बाद में Saha Institute of Nuclear

Physics (SINP) [1949] के रूप में नावमत हुअ।

 साहा समीकरण का ऄनुप्रयोग तारों के िणयक्रमीय (Spectral) िगीकरण का िणयन करने में हुअ।

7.2.6. वशवशर कु मार वमत्रा – (1890-1963)

 अयनमंडल (ionosphere) को उाँचाइ के ऄिरोही क्रम

में F, E, D, और C जैसे स्तरों द्वारा िगीकृ त ककया गया


है।

 अयनमंडल के E-संस्तर का पहला प्रायोवगक प्रमाण

1930 में वशवशर कु मार वमत्रा और ईनके सहयोवगयों


द्वारा प्राप्त ककया गया था।

7.2.7. सत्ये न्द्द्र नाथ बोस (1894-1974)

 ये गवणतीय भौवतकी में विशेषज्ञता रखने िाले भौवतक विज्ञानी थे।


 1924 में, ढाका विश्वविद्यालय के भौवतक विज्ञान विभाग में
रीडर के रूप में कायय करते हुए बोस ने प्लैंक के क्ांिम
विककरण की नइ व्युत्पवत्त िाला एक शोध पत्र ‘Planck’s

Law and the Hypothesis of Light Quanta’ वलखा।

 बोस द्वारा व्युत्पन्न (derived) पररणाम ने क्ांिम सांवख्यकी


की नींि रखी।
 आस पररणाम ने पदाथय की एक ऄिस्था; बोसॉन का घनीभूत

संग्रहण (dense collection of bosons) की भविष्यिाणी

करने में मदद की। आसे बोस अआंस्िीन कं डेंसिे (Bose Einstein condensate) के नाम से जाना
गया।
 बोस अआंस्िीन कं डेंसेि के ऄवस्तत्ि का प्रदशयन प्रयोगों द्वारा 1995 में ककया गया।

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7.2.8. जी. एन. रामचं द्र न (1922-2001)

 1955 के दौरान, बायोकफवज़क्स के क्षेत्र में काम करते हुए रामचंद्रन ने एक्स-रे विितयन (x-ray
diffraction) और संबंवधत अंकड़ों के अधार पर कोलेजन
(collagen) के वलए एक संरचना का प्रस्ताि रखा।
 बाद में आसे ‘वद्वबंध संरचना (two bonded structure)' का नाम
कदया गया।
 आस संरचना ने ककसी भी पेप्िाआड / प्रोिीन की गठनात्मक जांच में
आस जानकारी का ईपयोग करने के नए विचार को जन्द्म कदया,
वजसने बाद में रामचंद्रन मैप (Ramachandran map) के रूप में
अकार वलया।
 रामचंद्रन मैप प्रोिीन संरचना से सम्बंवधत ककसी भी विश्लेषण के
वलए एक महत्िपूणय विवध है। यह न्द्यूवक्लक एवसड (Nuclic
Acids) और पालीसैकराआड्स (polysaccharides) जैसे ऄन्द्य बायोपॉलीमर (biopolymer) पर
भी लागू होता है।
 रामचंद्रन ने प्रोिीन गठन के क्षेत्र में ऄपना योगदान कदया, जैसे कक प्रोवलल घिकों (Prolil
residues) का ऄध्ययन, हाआड्रोजन बंध विभि कक्रया (Hydrogen bonding potential
function) और कु ण्डवलनी (Helix) तथा L और D घिकों की एकान्द्तरता।

7.2.9. प्रशां त चं द्र महालनोवबस (P.C. Mahalanobis) (1893-1972)

 ये एक भारतीय िैज्ञावनक और प्रायोवगक सांवख्यकीविद् थे।


 आन्द्हें महालनोवबस दूरी (Mahalanobis Distance) के वलए
विशेष रूप से स्मरण ककया जाता है जोकक एक सांवख्यकीय माप
होती है।
 आनके द्वारा भारत में मानिवमवत (anthropometry) के क्षेत्र में
ऄग्रणी ऄध्ययन कायय ककए गए।
 आन्द्होंने भारतीय सांवख्यकी संस्थान की स्थापना की और बड़े
पैमाने पर नमूना सिेक्षण के वडजाआन में विशेष योगदान कदया।

7.2.10. डॉ हरगोविद खु राना (Dr. Har Gobind Khorana)(1922-2011)

 आन्द्हें अनुिंवशक कोड का रहस्योद्घािन करने के वलए 1968 में माशयल नीरेनबगय (marshall
Nirenberg) और रॉबिय हॉली के साथ संयुक्त रूप से वचककत्सा
और शरीरकक्रया विज्ञान (कफवजयोलॉजी) के नोबेल पुरस्कार से
सम्मावनत ककया गया।
 आन्द्होंने स्थावपत ककया कक यह कोड, सभी जीिों के वलए समान है
और तीन ऄक्षरों से बने शदद के रूप में ईच्चाररत ककया जाता है।
तीन न्द्युवक्लयोिाइडों (Nucleotides) से बना प्रत्येक सेि एक
विवशष्ट एवमनो एवसड को कोड करता है।
 डॉ. खुराना ओवलगोन्द्यवु क्लयोिाइड्स (oligonucleotides:
न्द्यूवक्लयोिाआडों का तार) को संश्लेवषत करने िालों में भी प्रथम
थे। अज, ओवलगोन्द्युवक्लयोिाइड्स जैि प्रौद्योवगकी में ऄवनिायय
ईपकरण हैं, जोकक ऄनुक्रमण, क्लोवनग और जेनेरिक
आंजीवनयररग के वलए जीि विज्ञान प्रयोगशालाओं में व्यापक रूप से प्रयोग हो रहे हैं।

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भारत में धमम एवं दर्मन


िवषय सूची

1. िहन्दू धमम (Hinduism) _______________________________________________________________________ 41

1.1. िहन्दू धमम की प्रमुख ऄवधारणाएँ ______________________________________________________________ 42


1.1.1. ब्रह्म ______________________________________________________________________________ 42
1.1.2. अत्मा _____________________________________________________________________________ 42
1.1.3. पुनजमन्म ___________________________________________________________________________ 43
1.1.4. मोक्ष ______________________________________________________________________________ 43
1.1.5. वणमव्यवस्था _________________________________________________________________________ 43
1.1.6. अश्रम व्यवस्था ______________________________________________________________________ 44
1.1.7. चार योग __________________________________________________________________________ 44
1.1.8. चार पुरुषाथम ________________________________________________________________________ 45
1.1.9. सोलह संस्कार _______________________________________________________________________ 45

1.2. भारतीय दर्मन के छः सम्प्प्रदाय (Six Schools of Indian Philosophy) _________________________________ 46

1.3. वैष्णव-अंदोलन _________________________________________________________________________ 48

1.4. र्ैव-धमम _______________________________________________________________________________ 48


1.4.1. दिक्षण भारत में र्ैव अंदोलन ____________________________________________________________ 49

1.5. तांििक सम्प्प्रदाय _________________________________________________________________________ 50

2. चावामक-दर्मन _______________________________________________________________________________ 50

3. बौद्ध धमम (Buddhism) _______________________________________________________________________ 50

4. जैन धमम (Jainism) __________________________________________________________________________ 53

4.1. जैन का यथाथमवाद : सात प्रकार के मूल तत्त्व_______________________________________________________ 54

5. िसख धमम (Sikhism) _________________________________________________________________________ 54

6. आस्लाम (Islam) ____________________________________________________________________________ 56

7. इसाइ धमम (Christianity) _____________________________________________________________________ 57

8. जरथुष्ट्र/पारसी धमम (Zoroastrianism) ____________________________________________________________ 57

9. यहूदी धमम (Judaism) ________________________________________________________________________ 58

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धमम अत्मा का िवज्ञान है। नैितकता और अचार नीित धमम पर ही अधाररत हैं। अरंिभक काल से ही
धमम ने भारतीयों के जीवन में एक महत्त्वपूणम भूिमका िनभाइ है। धमम ने ऄपने से जुड़े लोगों के िभन्न-
िभन्न वगों के फलस्वरूप ऄनेक रूप धारण कर िलए। िविभन्न जन-वगों के धार्ममक-िवचारधारणाएं और
अचार ऄलग-ऄलग हुअ करते थे और समय व्यतीत होने के साथ-साथ धमम में पररवतमन और िवकास
होने लगा। भारत में धमम कभी भी ऄपने रूप में स्थायी नहीं रहा बिकक अन्तररक गितपूणम र्िि से
पररवर्मतत होता रहा।

1. िहन्दू धमम (Hinduism)


 प्राचीन काल में ‘हहदू’ र्ब्द का धार्ममक ऄथम नहीं था, आसने मुख्य रूप से हसधु (Indus) क्षेि के
असपास रहने वाले लोगों के एक समूह का संकेत ददया। आस र्ब्द ने के वल िब्ररिर् काल के दौरान
धार्ममक ऄिभधान हािसल कर िलया।
 िहन्दू धमम भारत का प्रमुख धमम है, िजसकी प्राचीनता एवं िवर्ालता के कारण आसे 'सनातन धमम'
भी कहा जाता है। ऄन्य प्रचिलत धमों के समान िहन्दू धमम दकसी पैगम्प्बर या व्यिि िवर्ेष द्वारा
स्थािपत धमम नहीं है, बिकक यह प्राचीन काल से चले अ रहे िविभन्न धमों, मतों, अस्थाओं,
परम्प्पराओं एवं िवश्वासों का समुच्चय है।
 आस धमम की सिहष्णुता के कारण आसमें िनत नये-नये अयाम जुड़ते गये।
 वास्तव में िहन्दू धमम में िविभन्न स्थानीय एवं क्षेिीय परम्प्पराएँ , ििदेव एवं ऄन्य देवता तथा
िनराकार ब्रह्म और ऄत्यंत गूढ़ दर्मन अदद सभी िबना दकसी ऄन्तर्मवरोध के समािहत हैं और स्थान
एवं व्यिि िवर्ेष के ऄनुसार सभी की अराधना होती है।
 िहन्दू धमम में एक ओर वैददक तथा पुराणकालीन देवी-देवताओं की पूजा-ऄचमना होती है, तो दूसरी
ओर कापिलक और ऄवधूतों द्वारा ऄत्यंत भयावह कममकांडीय अराधना की जाती है। एक ओर
भििमागीय धाराएँ हैं तो दूसरी ओर ऄनीश्वर-ऄनात्मवादी और यहाँ तक दक नािस्तक सम्प्प्रदाय
भी ईपिस्थत है।
 वास्तव में िहन्दू धमम सवमथा िवरोधी िसद्धान्तों का ईत्तम एवं सहज समन्वय है।
 िहन्दू धमम की परम्प्पराओं एवं मान्यताओं का मूल वेद हैं।
 वैददक धमम प्रकृ ित-पूजक, बहुदेववादी तथा ऄनुष्ठानपरक था।
 यद्यिप ईस काल में प्रत्येक भौितक तत्त्व के िलए ऄलग-ऄलग ऄिधष्ठाता देवी या देवता होते थे
परन्तु आनमें ऄिश्वन, वरुण, पूषा, ईषा, आन्र, रुर, पजमन्य, ऄिि, िमि, सिवता, सूय,म वृहस्पित, सोम
अदद प्रमुख थे।
 आन देवताओं की अराधना यज्ञ तथा मंिोच्चारण के माध्यम से की जाती थी।
 मंददर तथा मूर्मत पूजा का ऄभाव था।
 ईपिनषद काल में िहन्दू धमम के दार्मिनक पक्ष का िवकास हुअ। साथ ही एके श्वरवाद की ऄवधारणा
बलवती हुइ।
 इश्वर को ऄजर-ऄमर, ऄनादद, सवमव्यापी कहा गया।
 आसी समय योग, सांख्य, वेदांत अदद षड दर्मनों का भी िवकास हुअ। िनगुण
म तथा सगुण की भी
ऄवधारणाएं ईत्पन्न हुइ। नौंवीं से चौदहवीं र्ताब्दी के मध्य िविभन्न पुराणों की रचना हुइ।
 पुराणों में मध्य युगीन धमम, ज्ञान-िवज्ञान तथा आितहास का वणमन िमलता है।
 पुराणों ने ही िहन्दू धमम में ऄवतारवाद की ऄवधारणा का सूिपात दकया।
 मूर्मतपूजा, तीथमयािा, व्रत अदद वतममान में प्रचिलत परम्प्पराएँ पुराणों की ही देन हैं।
 पुराणों के पश्चात् भििकाल का अगमन होता है, िजसमें िविभन्न संतों एवं भिों ने साकार ऄथवा
िनराकार इश्वर की अराधना पर जोर ददया तथा जनसेवा, परोपकार और प्राणी माि की
समानता एवं सेवा को इश्वर अराधना का ही रूप बताया। फलस्वरूप प्राचीन दुरूह कममकांडों के
बंधन कु छ ढीले पड़े।

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वैददक काल में यज्ञ बहुदेववाद की ऄवधारणा

ऄवतारवाद की ऄवधारणा

1.1. िहन्दू धमम की प्रमु ख ऄवधारणाएँ

कइ र्तािब्दयों में हुए िवकास के फलस्वरूप िहन्दू धमम में िवकिसत प्रमुख ऄवधारणाएं िनम्निलिखत हैं-

1.1.1. ब्रह्म

 िहन्दू धमम में ब्रह्म को सवमव्यापी, एकमाि सत्ता, िनगुण


म तथा सवमर्ििमान माना गया है।
 यह एके श्वरवाद के 'एकोऽहं, िद्वतीयो नािस्त' (ऄथामत् एक ही है, दूसरा कोइ नहीं) का 'परब्रह्म' है,
जो ऄजर, ऄमर, ऄनन्त और आस जगत का जन्मदाता व ककयाणकताम है।

1.1.2. अत्मा

 ब्रह्म को सवमव्यापी माना गया है ऄत: जीवों में भी ईसका ऄंर् िवद्यमान है।
 जीवों में िवद्यमान ब्रह्म का यह ऄंर् ही अत्मा कहलाती है, जो जीव की मृत्यु के पश्चात भी समाप्त
नहीं होती और दकसी नवीन देह को धारण कर लेती है। ऄंतत: मोक्ष प्रािप्त के पश्चात् वह ब्रह्म में
लीन हो जाती है।

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1.1.3. पु न जम न्म

 अत्मा के ऄमरत्व की ऄवधारणा से ही पुनजमन्म की भी ऄवधारणा पुष्ट होती है।


 जीव की मृत्यु के पश्चात् ईसकी अत्मा नया र्रीर धारण करती है ऄथामत् ईसका पुनजमन्म होता है।
आस प्रकार देह अत्मा का अवरण माि है।

पुनजमन्म की ऄवधारणा का काकपिनक िचि

1.1.4. मोक्ष

 िहन्दू धमम में मोक्ष का तात्पयम है- अत्मा का जीवन-मरण के दुष्चक्र से मुि हो जाना ऄथामत्
परमब्रह्म में लीन हो जाना।
 िहन्दू धमम के ऄनुसार आसके िलए िनर्मवकार भाव से सत्कमम करना और इश्वर की अराधना
अवश्यक है।

1.1.5. वणम व्य वस्था

 ऋग्वेद के दसवें मंडल के पुरुष सूि में वणमव्यवस्था का प्रारंिभक साक्ष्य िमलता है।
 प्रारिम्प्भक िहन्दू समाज कमम के अधार पर चार वणों में िवभािजत था - ब्राह्मण, क्षििय, वैश्य तथा
र्ूर।
 िवद्याजमन, िर्क्षण, पूजन, कममकांड सम्प्पादन अदद करने वाले वणम को ब्राह्मण कहा जाता था।
 देर् व धमम की रक्षा हेतु र्स्त्र धारण करने एवं युद्ध करने वाले वणम को क्षििय कहा जाता था।
 वैश्यों का कृ िष एवं व्यापार द्वारा समाज की अर्मथक अवश्यकताएँ पूणम करने वाले वणम को वैश्य
कहा जाता था।
 ऄन्य तीन वणों की सेवा करने एवं ऄन्य जरूरतें पूरी करने वाले वणम को र्ूर कहा जाता था।
 ऄथामत दकसी भी कु ल में जन्म लेने वाला व्यिि ऄपने कमम या व्यवसाय के अधार पर आन वणों में
से दकसी भी वणम का हो सकता था।
 कालांतर में वणम व्यवस्था जरिल होती गइ और यह वंर्ानुगत तथा र्ोषणपरक हो गइ। र्ूरों को
ऄछू त माना जाने लगा।
 बाद में िविभन्न वणों के बीच दैिहक सम्प्बन्धों से ऄन्य मध्यवती जाितयों का जन्म हुअ। वतममान में
जाित व्यवस्था ऄत्यंत िवकृ त रूप में दृिष्टगोचर होती है।

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पुरुष सूि में वर्मणत वणमव्यवस्था

1.1.6. अश्रम व्यवस्था

 िहन्दू धमम के ऄनुसार मनुष्य क सम्प्पूणम जीवन काल को चार चरणों में बांिा गया है िजन्हें अश्रम
कहा जाता है।
 ये चार अश्रम हैं- ब्रह्मचयम, गृहस्थ, वानप्रस्थ और सन्यास।
o ब्रह्मचयम अश्रम में व्यिि गुरु अश्रम में जाकर िवद्याध्ययन करता है।
o गृहस्थ अश्रम में िववाह, संतानोत्पित्त, ऄथोपाजमन, दान तथा ऄन्य भोग िवलास करता है।
o वानप्रस्थ में व्यिि धीरे -धीरे संसाररक ईत्तरदाियत्व ऄपने पुिों को सौंप कर ईनसे िवरि
होता जाता है।
o ऄन्तत: सन्यास अश्रम में गृह त्यागकर िनर्मवकार होकर इश्वर की ईपासना में लीन हो जाता
है।

अश्रम व्यवस्था

1.1.7. चार योग

 िहन्दू धमम में मोक्ष के चार मागम बताये गए हैं ज्ञानयोग, भिियोग, कममयोग तथा राजयोग।
o ज्ञान योग दार्मिनक एवं तार्ककक िविध का ऄनुसरण करता है।
o वहीं भिियोग अत्मसमपमण और सेवा भाव का।

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o कममयोग समाज के दीन दुिखयों की सेवा का।


o राजयोग र्ारीररक एवं मानिसक साधना का ऄनुसरण करता है।
 ये चारों परस्पर िवरोधी नहीं, बिकक सहायक और पूरक हैं।

1.1.8. चार पु रु षाथम

 धमम, ऄथम, काम और मोक्ष- ये चार पुरुषाथम ही जीवन के


वांिछत ईद्देश्य हैं।
 ईपयुि अचार-व्यवहार और कतमव्य परायणता ही धमम
है।
 ऄपनी बौिद्धक एवं र्रीररक क्षमतानुसार पररश्रम द्वारा
धन कमाना और ईनका ईिचत तरीके से ईपभोग करना
ऄथम है।
 र्ारीररक अनन्द भोग ही काम है।
 धमामनुसार अचरण करके जीवन-मरण से मुिि प्राप्त
कर लेना ही मोक्ष है।
 धमम व्यिि का जीवन भर मागमदर्मक होता है, जबदक
ऄथम और काम गृहस्थाश्रम के दो मुख्य कायम हैं और मोक्ष सम्प्पूणम जीवन का ऄंितम लक्ष्य।
प्राचीन भारतीय दार्मिनकों ने मोक्ष प्राप्त करने के िलए िभन्न िभन्न तरीके िनधामररत दकए हैं। आन
िवचारकों ने ऄपने स्वयं के दार्मिनक सम्प्प्रदाय स्थािपत दकए। भारतीय दर्मन के छः सम्प्प्रदाय ईभरकर
सामने अए िजन्होंने मोक्ष प्राप्त करने के ऄपने-ऄपने मागम बताए।

1.1.9. सोलह सं स्कार

िहन्दू धमम में मनुष्य के जन्म से लेकर मृत्यु तक िनम्निलिखत सोलह पिवि संस्कार सम्प्पन्न दकये जाते हैं-
1. गभामधान
2. पुंसवन (गभम के तीसरे माह तेजस्वी पुि प्रािप्त हेतु दकया गया संस्कार),
3. सीमोन्तोन्नयन (गभम के चौथे महीने गर्मभणी स्त्री के सुख और सांत्वना हेतु),
4. जातकमम (जन्म के समय)
5. नामकरण
6. िनष्क्रमण (बच्चे का सवमप्रथम घर से बाहर लाना),
7. ऄन्नप्रार्न (पांच महीने की अयु में सवमप्रथम ऄन्न ग्रहण करवाना),
8. चूड़ाकरण (मुंडन)
9. कणमछेदन
10. ईपनयन (यज्ञोपवीत धारण एवं गुरु अश्रम को प्रस्थान)
11. के र्ान्त ऄथवा गौदान (दाढ़ी को सवमप्रथम कािना)
12. समावतमन (िर्क्षा समाप्त कर गृह को वापसी)
13. िववाह
14. वानप्रस्थ
15. सन्यास
16. ऄन्त्येिष्ट
आस प्रकार िहन्दू धमम की िविवधता, जरिलता एवं बहु अयामी प्रवृित्त स्पष्ट है। आसमें ऄनेक दार्मिनकों ने
ऄलग-ऄलग प्रकार से इश्वर एवं सत्य को समझने का प्रयास दकया, फलस्वरूप ऄनेक दार्मिनक मतों का
प्रादुभामव हुअ। िजनमें से छह प्रमुख हैं।

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1.2. भारतीय दर्म न के छः सम्प्प्र दाय (Six Schools of Indian Philosophy)

1. सांख्य (Sankhya)- संस्थापक किपल मुिन। यह सबसे पुराना है।


आन्होंने सांख्य-सूि की रचना की।
 यह दर्मन कहता है दक मोक्ष वास्तिवक ज्ञान के माध्यम से प्राप्त
दकया जा सकता है।
 वास्तिवक ज्ञान यह है दक, अत्मा और पदाथम पृथक-पृथक हैं ऄथामत

यह सम्प्प्रदाय द्वैतवाद (Dualism) में िवश्वास करता है।


 यह मानता है दक वास्तिवकता दो िसद्धांतों से गरित होती है -
प्रकृ ित और पुरुष।
 प्रकृ ित के तीन िनणामयक घिक या गुण हैं - सत, रज और तम्। आन्हीं गुणों में पररवतमन ऄथवा
रूपान्तरण के पररणामस्वरूप सभी वस्तुओं में पररवतमन होते हैं।
 सांख्य दर्मन में ज्ञान के तीन माध्यम हो सकते हैं- प्रत्यक्ष, ऄनुमान
और र्ब्द।
2. न्याय (Nyaya) - संस्थापक - गौतम
 न्याय या िवश्लेषण पद्धित का िवकास तकम र्ास्त्र के रूप में हुअ है।
 आस दर्मन के ऄनुसार मोक्ष ज्ञान ऄथामत वैध ज्ञान (Valid

knowledge) की प्रािप्त से ही संभव हो सकता है।


 न्याय-दर्मन के ऄनुसार वैध् ज्ञान को ही यथाथम ज्ञान के रूप में
पररभािषत दकया जाता है यािन दकसी वस्तु को ईसी रूप में जानना
िजस रूप में वह है। ईदाहरणाथम - साँप को साँप तथा प्याले को प्याले के रूप में समझना।
 न्याय-दर्मन इश्वर को सृिष्ट का रचियता, पालनकताम तथा संहारकताम मानता है।

 सत्यता की जाँच ऄनुमान, र्ब्द और ईपमान द्वारा की जाती है।


 न्याय-सूि का रचियता गौतम को माना जाता है।
3. वैर्िे षक (Vaiseshikha) - संस्थापक - कणाद।
 वैर्ेिषक दर्मन रव्य ऄथामत भौितक तत्वों के िववेचन को महत्व देता
है।
 यह सामान्य और िवर्ेष के मध्य ऄन्तर करता है।
 पृथ्वी, जल, ऄिि, वायु और अकार् के मेल से नयी वस्तुएं बनती
हैं।
 वैर्ेिषक दर्मन ने परमाणुवाद की स्थापना की। आसके ऄनुसार
भौितक वस्तुएं परमाणुओं के संयोजन से बनी हैं। आस प्रकार
वैर्ेिषक दर्मन ने ही भारत में भौितक र्ास्त्र का अरम्प्भ दकया। लेदकन आस वैज्ञािनक दृिष्ट को इश्वर
में िवश्वास और ऄध्यात्मवाद ने ऄपने में फं सा िलया और दर्मन में भी स्वगम और मोक्ष र्ािमल गए।
 आस सम्प्प्रदाय का मानना है दक मोक्ष ब्रह्मांड के परमाणु चररि की मान्यता के माध्यम से संभव है,

ऄथामत वैर्ेिषक का बुिनयादी िसद्धांत यह है दक, प्रकृ ित परमाणु है ऄथामत भौितक वस्तुएं
परमाणुओं के संयोजन से बनी हैं। परमाणु अत्मा से पृथक है।
 कणाद् ने वैर्ेिषक-दर्मन का मूल ग्रंथ िलखा।
 कणाद द्वारा िलिखत मूल ग्रंथ पर बहुत सी िीकाएँ िलखी गईं दकन्तु प्रर्स्तपाद द्वारा छिी र्ताब्दी
में िलिखत िीका आनमें सवमश्रेष्ठ है।

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 वैर्ेिषक दर्मन सृिष्ट की रचना को अजीवक िसद्धांत के अधार पर स्पष्ट करता है।
4. योग (Yoga) - संस्थापक – पतंजिल
 योग का मूल पतंजिल के योग सूि में िमलता है जो दूसरी
र्ताब्दी इ.पू. में िलखा गया माना जाता है।
 मोक्ष ध्यान और र्ारीररक साधना के माध्यम से संभव है।
 ‘योग’ र्ब्द संस्कृ त के र्ब्द ‘योक्त्ि’ (Yoktra) से ईद्भूत हुअ है,
िजसका ऄथम है 'आंदरयों को वाह्य िवषयों से पृथक कर ऄपने मन
को ऄपनी ऄंतरात्मा से जोड़ना।
 आसे िचत्त के रूप में पररभािषत करते हैं ऄथामत; व्यिि की चेतना
के िवचारों, भावनाओं और आच्छाओं को िमिाकर संतुलन की िस्थित को प्राप्त करना। यह ईस र्िि
को गित प्रदान करता है जोदक दैिवक ऄनुभूित के िलए चेतना को र्ुद्ध और ईन्नत करता है।
 र्ारीररक योग को हियोग कहा जाता है तथा मानिसक योग को
राजयोग।
 योग के अि ऄंग (ऄष्टांग-योग) हैं – यम, िनयम, असन,
प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, समािध।
5. मीमांसा (Mimansa) - संस्थापक - जैिमनी
 मीमांसा का मूल ऄथम है तकम करने और ऄथम लगाने की कला।
 लेदकन आसमें तकम का प्रयोग िविवध वैददक कमों के ऄनुष्ठानों का
औिचत्य िसद्ध करने में दकया गया है और आसके ऄनुसार मोक्ष
आन्हीं वेद-िविहत कमों के ऄनुष्ठानों से प्राप्त होता है।
 मीमांसा के ऄनुसार वेद में कही गयी बातें सदा सत्य हैं।
 आस दर्मन का मुख्य लक्ष्य स्वगम और मोक्ष की प्रािप्त है।
 मनुष्य तब तक स्वगम-सुख पाता रहता है जब तक ईसका संिचत पुण्य र्ेष रहता है। जब वह पुण्य
समाप्त हो जाता है तब वह दफर धरती पर अ जाता है। परन्तु
यदद वह मोक्ष पा लेता है तो वह सांसाररक जन्म-मृत्यु के चक्र
से सदा के िलए मुि हो जाता है।
 मीमांसा के ऄनुसार मोक्ष पाने के िलए यज्ञ करना चािहए।
 आसके मूल ग्रन्थ के रूप में जैिमिन कृ त सूि है िजसकी रचना
तीसरी सदी इसवी पूवम हुइ।
 कु माररल भट्ट और र्बर स्वामी आस दर्मन सम्प्प्रदाय के ऄन्य
महत्वपूणम दार्मिनक हैं।
6. वेदांत (Vedanta) - संस्थापक- बादरायण (Badrayana)
 आसे ईत्तर मीमांसा (Later Mimansa) भी कहा जाता है।
 यह गैर-द्वैतवाद या एक सत्य /वास्तिवकता ‘ऄद्वैतवाद’ ("Advaitvada") में िवश्वास रखता है।
 वेदांत का ऄथम है वेद का ऄंत।
 इसा पूवम दूसरी र्ताब्दी में संकिलत बादरायण का ब्रह्मसूि आस दर्मन का मूल ग्रन्थ है। बाद में आस
पर दो प्रख्यात भाष्य िलखे गए, पहला र्ंकर का नौवीं सदी में और दूसरा रामानुज का बारहवीं
सदी में।
 र्ंकर ब्रह्म को िनगुण
म बताते हैं, दकन्तु रामानुज के ऄनुसार ब्रह्म सगुण है।
 र्ंकर ज्ञान को मोक्ष का मुख्य कारण मानते हैं, दकन्तु रामानुज भिि को मोक्ष-प्रािप्त का मागम
बताते हैं।
 वेदांत दर्मन का मूल अरंिभक ईपिनषदों में पाया जाता है।

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 आस दर्मन के ऄनुसार ब्रह्म ही सत्य है, ऄन्य हर वस्तु माया ऄथामत ऄवास्तिवक है। अत्मा और ब्रह्म
में ऄभेद है। ऄतः जो कोइ अत्मा को या ऄपने अप को पहचान लेता है, ईसे ब्रह्म का ज्ञान हो
जाता है और मोक्ष िमल जाता है। ब्रह्म और अत्मा दोनों र्ाश्वत और ऄिवनार्ी हैं। ऐसा मत
स्थाियत्व और ऄपररवतमनीयता की भावना जगाता है। अध्याित्मक दृिष्ट से जो सत्य है वह ईस
व्यिि की ऄपनी सामािजक और भौितक पररिस्थित में भी सत्य हो सकता है। बाद में कममवाद भी
वेदांत के साथ जुड़ गया। आसका ऄथम है की मनुष्य को पूवमजन्म में दकये गए कमों का पररणाम
भुगतना पड़ता है।

1.3. वै ष्णव-अं दोलन

 गुप्त काल में वैष्णव सम्प्प्रदाय लगभग सम्प्पूणम भारत वषम में प्रसाररत हो चूका था।
 महाभारत तथा पुराणों अदद ग्रंथों में िवष्णु -नारायण की ईपासना का भागवत सम्प्प्रदाय से
एकीकरण होने के कारण वैष्णव धमम को िवर्ेष लोकिप्रयता प्राप्त हुइ।
 गीता के अधार पर िवकिसत प्रपित्त (िवष्णु-कृ ष्ण-नारायण के प्रित पूणम समपमण) इश्वर के प्रसाद
द्वारा मुिि प्राप्त होने के भिि मागी िसद्धांत को दिक्षण के ऄनेक वैष्णव अचायों ने िवकिसत
दकया। बाद में ईत्तरी भारत में आसी िसद्धांत को रामभिि र्ाखा के रूप में और ऄिधक प्रचाररत
प्रसाररत दकया गया। यह सम्प्प्रदाय ‘श्रीवैष्णव’ नाम से प्रिसद्ध हुअ िजसमें व्यिि द्वारा ऄपने सारे
कममफल त्यागने पर बल ददया गया।
 वैष्णव धमम की ईदारवादी प्रवृित्त के कारण आसमें पौरािणक काल से ही िवष्णु के ऄवतार के रूप में
ऄनेक लौदकक देवताओं की ईपासना भी समािहत हुइ। आससे वैष्णव सम्प्प्रदाय ऄत्यंत लोकिप्रय
हुअ।
 वैष्णव भिि अंदोलन में कृ ष्ण की रासलीला का बड़ा महत्व था।
 गुप्तकाल के ऄंत से लेकर 13वीं सदी इसवी के पहले दर्क तक वैष्णव-अंदोलन का आितहास
मुख्यतया दिक्षण भारत से सम्प्बंिधत है।
 वैष्णव भि-किव ‘ऄलवारों’ (िवष्णु की भिि में िनमि व्यिियों के िलए तिमल भाषा का र्ब्द) ने
िवष्णु की भिि तथा ईसमें एकान्त-िनष्ठा के गीत गाए। आनके गीतों को समग्र रूप से ‘प्रबंध’् कहा
जाता है।
 अण्डाल ऄपने समय की प्रिसद्ध ऄलवार संत थीं।

िवष्णु अण्डाल की प्रितमा

1.4. र्ै व -धमम


 वैष्णव-धमम के िवपरीत, र्ैव-धमम की ईत्पित्त ऄित प्राचीन है।
 पािणिन ने िर्व-पूजकों के एक समूह का ईकलेख िर्व-भागवत् के रूप में दकया है।
 ये ऄपने हाथ में ििर्ूल और दंड धारण करते थे तथा पर्ुओं की खाल से बने वस्त्र पहनते थे।
 पािणनी ने िर्व-भिों के प्रभावी िविचि कममकाण्डों का ऄप्रत्यक्ष तथा संिक्षप्त ईकलेख दकया है।

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 र्ैव मत के ऄनेक सम्प्प्रदाय तथा ईप-सम्प्प्रदाय थे िजनके ऄनुयािययों में ऄपने िविर्ष्ट दर्मन तथा
चयाम के अधार पर िभन्नता होने पर भी वे लोग रूर-िर्व की सवोच्च र्िि के रूप में ईपासना
करते थे।
 कश्मीरी र्ैवमत के ऄनुसार व्यिि की अत्मा तथा िर्व एक ही हैं।
 समस्त सांसाररक िविवधता पररवतमनर्ीलता के कारण है। अत्मा को िर्व में लीन करना र्ुद्ध
चैतन्य तथा मोक्ष है।
 वीरर्ैव मत भी ऄनेक प्रांतों में पयामप्त लोकिप्रय था।
 आसके ऄितररि पार्ुपत, कापािलक, कालामुख, ऄघोरी, हलगायत, िर्वाद्वैत अदद ऄनेक ईप-
सम्प्प्रदाय िवद्यमान थे।
o आनमें पार्ुपत सम्प्प्रदाय ऄिधक लोकिप्रय था। ये िर्व की पर्ुपित के रूप में अराधना करते
हैं।
o पार्ुपत सम्प्प्रदाय दो प्रकार के थे - 1) श्रौत (वैददक) पार्ुपत जो वैददक परंपरा के ऄनुकूल था
; 2) ऄश्रौत (लौदकक) पार्ुपत, जो लौदकक परम्प्परा के ऄनुकूल नहीं था।
 कापािलकों में नरबिल प्रथा थी।
o आनमें कपाल धारण करना तथा कपाल में भोजन अदद ग्रहण करने की अददम भयावह
परम्प्परा थी।

िर्व कापािलक

1.4.1. दिक्षण भारत में र्ै व अं दोलन

 दिक्षण भारत में र्ैव-धमम का िवकास 63 संतों के एक समूह के प्रयास से हुअ।


 आन्हें तिमल भाषा में ‘नयनार’ कहा जाता है।
 तिमल भाषा में िलिखत आनके भावना-प्रधान गीतों को त्वरम् स्रोत कहा जाता है। आसका एक ऄन्य
नाम रिवड़ वेद भी है।
 आसे स्थानीय िर्व-मंददर में धार्ममक ऄवसरों पर गाया जाता
है।
 नयनारों में सभी जाितयों के लोग थे। सैद्धांितक स्तर पर बहुत
से र्ैव िवद्वानों द्वारा आस पक्ष को समथमन ददया गया।
 बारहवीं सदी में एक और भी ऄिधक लोकिप्रय धार्ममक
अंदोलन का ईदय हुअ। यह था हलगायत या वीरर्ैव
अंदोलन।
o आसके संस्थापक थे बसव और ईसका भतीजा चन्नबसव।
o ये कनामिक के कलचुरी राजा के दरबार से सम्प्बंिधत थे।
o ईन्होंने जैनों के साथ िववाद के ईपरान्त ऄपने सम्प्प्रदाय
की स्थापना की।
o हलगायत िर्व के ईपासक हैं ईन्होंने जाितप्रथा का प्रबल िवरोध दकया और ईपवास, भोज,
तीथमयािा तथा यज्ञ को नकार ददया।
o सामिजक क्षेि में ईन्होंने बाल-िववाह का िवरोध दकया और िवधवाओं के िववाह का समथमन
दकया।

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1.5. तां ििक सम्प्प्र दाय

 तांििक धमम के कु छ रूपों का संकेत हमें ऄथवमवेद से प्राप्त होता है।


 गुप्त काल तक र्िि की ईपासना पूणम रूप से प्रितिष्ठत हो चुकी थी।
 पावमती, दुगाम, लक्ष्मी, श्रीकाली, कराली अदद ऄनेक रूपों में र्िि की ईपासना प्रचिलत थी।

 आस वाममागी सम्प्प्रदाय में ‘तंि’ (ज्ञान का िवस्तार), ‘यंि’ (रहस्यमय चक्रों पर ध्यान करना) तथा

‘मंि’ का िवर्ेष महत्व था।

 आसमें र्िि की सवोच्च प्रितष्ठा है, िजससे सभी जीव, देवता तथा सम्प्पूणम ब्रह्माण्ड की ईत्पित्त होने
का िसद्धांत मान्य है।
 तांििक साधना के ऄंतगमत ध्यान-योग (पूजा) तथा चयाम (ऄनेक प्रकार के अचार) की व्यवस्था है।
 गुरु की दीक्षा तथा किोर मानिसक िनयंिण द्वारा पंचमकार (पंचतत्व- मद्य, मत्स्य, मांस, मुरा,

मैथन
ु ) की साधना द्वारा मुिि प्राप्त होती है।

2. चावामक -दर्मन
 चावामक-दर्मन का प्रणेता बृहस्पित को माना जाता है।
 आसकी चचाम वेद और बृहदारण्यक ईपिनषद् में िमलती है। ऄतः माना जाता है दक ज्ञान की आस
र्ाखा का ईद्भव आन ग्रंथों से पहले हुअ होगा।
 आस दर्मन की मान्यता है दक ज्ञान चार भौितक पदाथों के मेल से बनता है और मृत्यु के बाद आसका
कोइ ऄिस्तत्व नहीं रहता।
 चावामक भौितकवादी दर्मन है।
 आसे लोकायत-दर्मन ऄथवा जन साधारण का दर्मन भी कहते हैं।
 आस दर्मन में लोक ऄथामत दुिनया के साथ लगाव को महत्व ददया गया है और परलोक में ऄिवश्वास
व्यि दकया गया है।
 यह दर्मन मोक्ष की कामना का िवरोधी था।
 यह दकसी दैवी या ऄलौदकक र्िि के ऄिस्तत्व को नहीं मानता था। यह ईन्हीं वस्तुओं की सत्ता या
यथाथमता स्वीकार करता था िजन्हें मानव की बुिद्ध और आिन्रयों द्वारा ऄनुभव दकया जा सके ।
स्पष्टतः आसका ऄथम यह हुअ दक ब्रह्म और इश्वर की सत्ता नहीं होती है।
 आसके ऄनुसार यज्ञ की ककपना ब्राह्मणों ने दिक्षणा ऄर्मजत करने के ईद्देश्य से की है।
 चावामक का वास्तिवक योगदान है ईसकी भौितकवादी दृिष्ट।
 यह दर्मन दकसी भी कायम में ददव्य या ऄलौदकक हाथ को नकारता है और मानव को सभी दक्रयाओं
का मूल मानता है।
 चावामक के ऄनुसार परलोक नहीं है आसिलए मृत्यु के साथ मनुष्य के ऄिस्तत्व की समािप्त हो जाती
है और आंदरय अनंद ही जीवन का लक्ष्य है।
 चावामक दर्मन भौितक पदाथों के ऄितररि और कोइ सत्ता नहीं मानता।
 पृथ्वी, जल, ऄिि, वायु और अकार् में से यह अकार् की सत्ता स्वीकार नहीं करता क्त्योंदक ईसके
ऄनुसार अकार् का प्रत्यक्षीकरण नहीं होता है।
 आस दर्मन के ऄनुसार सम्प्पूणम िवश्व के वल चार तत्त्वों (पृथ्वी, जल, ऄिि, वायु) से ही बना है।

3. बौद्ध धमम (Buddhism)


 बौद्ध धमम की िवचारधारा छिीं र्ताब्दी इसा पूवम में गौतम बुद्ध द्वारा प्रचाररत की गइ थी।
 आनका जन्म 563 इसा पूवम में लुिम्प्बनी (नेपाल) नामक स्थान पर हुअ था।

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 ऄपने जीवन के प्रारंिभक वषों में गौतम बुद्ध ने गृहस्थ जीवन का अनंद िलया और 29 साल की
अयु में ईन्होंने सांसाररक सुख का त्याग कर ददया और
तपस्वी बन गए। 5 वषम तक वे जगह जगह भिकते रहे और
35 वषम की अयु में बोधगया में ईन्होंने िनवामण (परमानंद
और र्ांित) या मोक्ष या अत्मज्ञान प्राप्त दकया।
 गौतम बुद्ध ने ऄपना प्रथम ईपदेर् सारनाथ में ददया जो धमम-
चक्र-प्रवतमन (धमम का चक्र बदलना) के रूप में जाना जाता है।
 बुद्ध, धम्प्म और संघ को बौद्ध धमम का ििरत्न कहा जाता है।
 ईन्होंने दो महत्वपूणम िसद्धांत प्रितपाददत दकए-
1. चार अयम सत्य (दुःख, दुःख समुदाय, दुःख-िनरोध तथा दुःख
िनरोध-गािमनी-प्रितपदा)
2. ऄष्टांिगक मागम (सम्प्यक दृिष्ट, सम्प्यक संककप, सम्प्यक वाणी, सम्प्यक कमम, सम्प्यक अजीव, सम्प्यक
व्यायाम, सम्प्यक स्मृित, सम्प्यक समािध)
 गौतम बुद्ध ने प्रत्येक व्यिि को जन्म-मरण के चक्र से मुिि (िनवामण) प्राप्त करने के िलए ऄष्टांिगक
मागों के ऄनुर्ीलन पर बल ददया है।
 गौतम बुद्ध ने ऄपने ऄनुयािययों को वैचाररक रूपरेखा प्रदान करने के बाद महापररिनवामण प्राप्त
दकया, ऄथामत आनकी मृत्यु 483 इसा पूवम में कु र्ीनगर (यूपी) में हुइ।
 गौतम बुद्ध की मृत्यु के ईपरान्त ईनके ऄनुयािययों ने 483 इसा पूवम में राजगृह नामक स्थान पर
प्रथम बौद्ध संगीित बुलाइ। िजसकी ऄध्यक्षता बौद्ध िवद्वान महाकस्सप द्वारा की गइ थी।
 आसे समकालीन र्ासक ऄजातर्िु द्वारा संरक्षण प्राप्त हुअ।
 आस संगीित में दो महत्वपूणम पुस्तकों का संकलन दकया गया
1. सुत्त-िपिक – आसमें गौतम बुद्ध की मूल िर्क्षाएं संकिलत हैं।
2. िवनय-िपिक – आसमें िभक्षु-िभक्षुिणयों के संघ के दैिनक जीवन सम्प्बन्धी
अचार-िवचार तथा िनयम संग्रहीत हैं।
 िद्वतीय बौद्ध संगीित 383 इसा पूवम में वैर्ाली (िबहार) में बुलाइ गइ
थी, यह बौद्ध िवद्वान सुबक
ु ामी की ऄध्यक्षता में हुइ और आसे
समकालीन र्ासक कालार्ोक द्वारा संरक्षण प्रदान दकया गया था।
o आस संगीित में, ऄनुयािययों का दो सम्प्प्रदायों के मध्य एक ऄनौपचाररक िवभाजन हो गया-
1. स्थिवरवादी (Sthavirvadins) - ये बौद्ध धमम के रूदढ़वादी ऄनुयायी थे।
2. महासंिघक (Mahasangvikas) - ये बौद्ध धमम के ईदारवादी ऄनुयायी थे।
 तृतीय बौद्ध संगीित पाििलपुि (िबहार) में 250 इसा पूवम में बुलाइ
गइ थी। आसकी ऄध्यक्षता बौद्ध िभक्षु मोगिलपुत्तितस्य ने की और
ऄर्ोक द्वारा आस संगीित को संरक्षण प्रदान दकया गया।
o आस संगीित में एक नया िपिक (पाि) िलखा गया था, िजसे
ऄिभधम्प्मिपिक (Abhidammapitaka) नाम ददया गया।
o आस िपिक में गौतम बुद्ध के जीवन के िर्क्षण की दार्मिनक व्याख्याएं
संकिलत की गइ हैं।
 आन तीनों संकलनों को सिम्प्मिलत रूप से िििपिक कहा जाता है,
ऄथामत सुत्त िपिक, िवनय िपिक, ऄिभधम्प्मिपिक। जोदक बौद्ध धमम
के पिवि ग्रन्थ हैं।

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 चतुथम बौद्ध संगीित प्रथम र्ताब्दी इसवी में कश्मीर (कुं डलवन) में बुलाइ गइ थी, बौद्ध िभक्षु

वसुिमि ने आसकी ऄध्यक्षता की थी तथा ऄश्वघोष ईपाध्यक्ष थे और आसे कु षाण नरेर् किनष्क द्वारा
संरक्षण प्रदान दकया गया था।
o आस संगीित में बौद्ध धमम के ऄनुयािययों का दो महत्वपूणम संप्रदायों में औपचाररक िवभाजन हो
गया।

1. हीनयान – ये प्रकृ ित में रूदढ़वादी थे।

2. महायान – ये प्रकृ ित में ईदारवादी थे।

 आस संगीित के बाद, बौद्ध धमम का हीनयान संप्रदाय दिक्षण पूवम एिर्या के देर्ों में लोकिप्रय हो

गया और महायान मध्य एिर्या (ऄफगािनस्तान) के देर्ों में लोकिप्रय हुअ।


 आनके ऄितररि पांचवीं बौद्ध संगीित 1871 इसवी में मांडले, बमाम (म्प्यानमार) में राजा िमन्डन

(Mindon) के समय तथा छिीं बौद्ध संगीित 1954 में बमाम के Kaba Aye नामक स्थान पर बमाम

सरकार द्वारा करवाया गया था।

बौद्ध संगीितयाँ
 बौद्ध धमम मूलतः ऄनीश्वरवादी है।
 सृिष्ट का कारण इश्वर को नहीं माना गया है। तकम यह है दक यदद इश्वर को संसार का रचियता
माना जाए तो ईसे दुःख को ईत्पन्न करने वाला भी मानना होगा।
 वास्तव में बुद्ध ने इश्वर के स्थान पर मानव प्रितष्ठा पर ही बल ददया है।
 आसी प्रकार बौद्ध धमम में अत्मा की पररककपना भी नहीं है।
 ऄनत्ता ऄथामत ऄनात्मवाद के िसद्धांत के ऄंतगमत यह मान्यता है की व्यिि में जो अत्मा है वह
ईसके ऄवसान के साथ समाप्त हो जाती है।
 अत्मा र्ाश्वत या िचरस्थायी वास्तु नहीं है जो ऄगले जन्म में भी िवद्यमान रहे। दकन्तु बौद्ध धमम में
पुनजमन्म की मान्यता है। आसके कारण कमम-फल का िसद्धांत भी तकम संगत होता है। आस कमम-फल
को ऄगले जन्म में ले जाने वाला माध्यम अत्मा नहीं है। दफर कमम-फल ऄगले जन्म का कारण कै से
होता है? आसके ईत्तर में िमिलन्दपन्हो में कहा गया है दक िजस प्रकार पानी में एक लहर ईिकर

दुसरे को जन्म देकर स्वयं समाप्त हो जाती है ईसी प्रकार कमम-फल चेतना के रूप में पुनजमन्म का

कारण होता है।

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4. जैन धमम (Jainism)


 जैन धमम वद्धममान महावीर द्वारा स्थािपत दकया गया था।
 महावीर का जन्म 540 इसा पूवम में वैर्ाली (कुं डग्राम)
नामक स्थान पर हुअ था।
 जैन िवचारधारा के ऄनुसार वद्धममान महावीर 24 वें
तीथंकर थे और जैन धमम की मूल वैचाररक रूपरेखा आनके
पूवमवर्मतयों द्वारा दी गयी थी।
 सम्प्यक दर्मन, सम्प्यक ज्ञान तथा सम्प्यक अचरण को जैन
धमम का ििरत्न कहा जाता है।
 जैन धमम के तीथंकर - अददनाथ, ऄिजत, संभव,
ऄिभनन्दन, सुमित, पद्मप्रभ, सुपाश्वम, चन्रप्रभ, सुिविध,

र्ीतल, श्रेयांस, वासुपज्ू य, िवमल, ऄनंत, धमम, र्ांित, कु न्थु, अरा, मिकल, मुिन सुव्रत, नामी, नेमी,
पाश्वम तथा महावीर।
 जैन धमम की मूल िवचारधारा-
o जैन धमम के पञ्च महाव्रत-

1. ऄहहसा- हहसा मत करो।


2. सत्य- झूि मत बोलो।
3. ऄस्तेय- चोरी मत करो।

4. ऄपररग्रह- संपित्त एकिित मत करो।

5. ब्रह्मचयम- ऄनुर्ािसत जीवन जीने का तरीका।


 आनमें से के वल पांचवां (ब्रह्मचयम) महावीर द्वारा प्रितपाददत है।
 कइ वषों के ईपदेर् के बाद महावीर 468 इसा पूवम में राजगीर नामक स्थान पर 72 वषम की अयु
में मृत्यु को प्राप्त हुए।
 चतुथम र्ताब्दी इसा पूवम के ऄंत में ईत्तर भारत में िवर्ेष रूप से पाििलपुि में एक गंभीर ऄकाल
पड़ा। जलवायु पररिस्थितयों की गंभीरता से बचने के िलए, चंरगुप्त मौयम ने एक सुरिक्षत गंतव्य पर
स्थानांतररत होने का िनणमय िलया। वे एक जैन संत भरबाहु के साथ अधुिनक कनामिक में
श्रवणबेलगोला नामक स्थान पर िवस्थािपत हो गए।
 चंरगुप्त मौयम ने भरबाहु के प्रभाव में अकार जैन धमम स्वीकार कर िलया और संलख
े ना िविध
(क्रिमक ईपवास) द्वारा ऄपने जीवन को समाप्त कर िलया।

 प्रथम जैन सभा 299 इसा पूवम में पाििलपुि नामक स्थान पर बुलाइ गइ थी।
o आस जैन सभा की ऄध्यक्षता जैन संत स्थूलभर द्वारा की गइ और आसे मौयम नरेर् हबदुसार का
संरक्षण प्राप्त था।
o आस सभा में, महावीर और ईनके पूवमवर्मतयों की िर्क्षाओं को िविभन्न पुस्तकों में संिहताबद्ध

दकया गया िजसे ‘पुब्व’ (Purvas) के रूप में जाना जाता है। ये संख्या में 14 थे।

 िद्वतीय जैन सभा 512 इस्वी में गुजरात के वकलभी नामक स्थान पर बुलाइ गइ िजसकी ऄध्यक्षता
जैन संत देवर्मधक्षमाश्रमण ने की थी। आसे गुजरात के चालुक्त्य र्ासकों द्वारा संरक्षण प्रदान दकया
गया था। आस सभा में जैन धमम के ऄनुयािययों का दो महत्वपूणम समूहों में एक औपचाररक िवभाजन
हुअ।

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1. ददगम्प्बर (Digambars) - ये रूदढ़वादी ऄनुयायी थे और आन्होंने महावीर की मूल िर्क्षाओं का


पालन दकया। आन्होंने नि रहना प्रारम्प्भ कर ददया जैसे ददर्ाएं ही ईनका वस्त्र हों।
2. श्वेताम्प्बर (Shwetambars) - ये ईदार ऄनुयायी थे और आन्होंने श्वेत वस्त्र पहनना अरम्प्भ कर
ददया आस प्रकार ये श्वेत वस्त्र पहनने वालों के रूप में जाने गए।
 जैन धमम में इश्वर की मान्यता नहीं है।
 संसार है तथा वास्तिवक है, दकन्तु आसकी सृिष्ट का कारण इश्वर नहीं है।
 यह संसार ऄनादद काल से िवद्यमान है और आसका ऄिस्तत्व र्ाश्वत है।
 यह संसार 6 रव्यों- जीव, पुद्गल (भौितक तत्व), धमम, ऄधमम, अकार् और काल - से िनर्ममत है।
 ये रव्य िवनार्रिहत तथा र्ाश्वत हैं। जो िवनार् दीखता है वह माि आन रव्यों का पररवतमन है।
आसी कारण यह संसार भी िनत्य, र्ाश्वत तथा पररवतमनर्ील है।
 आन रव्यों के भाँित-भाँित के संगिन-िवघिन से िविभन्न वस्तुओं का स्वरुप ऄिस्तत्व में अता है
तथा ईनका रूप पररवर्मतत होता है।
 जैन धमम के ऄनुसार आस संसार में अत्मा के ऄितररि कु छ भी ऄसीम नहीं है।
 यह अत्मा संसार की सभी वस्तुओं में है।
 जीव-जंतु, पेड़-पौधे तथा ईंि-पत्थर में भी अत्मा िनिहत है।
 प्रत्येक जीव में दो तत्व सदैव िवद्यमान रहते हैं- एक अत्मा और दूसरा आसे घेरने वाले भौितक
तत्व।
 जीव का परम लक्ष्य अत्मा को भौितक तत्व से मुि करना है जो जीवन में िवकार तथा भ्रम ईत्पन्न
करता है।
 अत्मा से भौितक तत्व के ऄलग होने पर ही िनवामण का मागम प्रर्स्त होना संभव है।
 जीव में अित्मक तत्व ही सत है।
 आससे अवृत्त भौितक तत्व ऄसत है जो सत के ज्ञान को ऄवरुद्ध करता है।
 दकन्तु जैन दर्मन में जैसे जीव िभन्न-िभन्न होते है वैसे ही ईसमें िवद्यमान अत्मा भी िभन्न-िभन्न है।

4.1. जै न का यथाथम वाद : सात प्रकार के मू ल तत्त्व


 जैिनयों का िवश्वास है दक ब्रह्मांड की भौितक और पराभौितक वस्तुओं के सात वगम होते हैं। आनके
नाम हैं- जीव, ऄजीव, ऄिस्तकाय, बंध,् संवर, िनजमन और मोक्ष।
o र्रीर जैसे पदाथम जो ऄिस्तत्व में होते हैं ईन्हें ऄिस्तकाय कहते हैं।
o ‘समय’ ऄनिस्तकाय है क्त्योंदक ईसका कोइ अकार नहीं होता है।
o रव्य ही गुणों का अधार है। रव्य में जो गुण पाये जाते हैं ईन्हें धमम कहते हैं।
o जैिनयों का िवश्वास है दक रव्य में गुण होते हैं। ये गुण समय गुजरने के साथ बदलते हैं।
o जैन-िवश्वास के ऄनुसार रव्य के गुण ऄिनवायम , र्ाश्वत तथा ऄिस्तत्व में पररवतमनीय होते हैं।
िबना ऄिनवायम गुण के कोइ वस्तु नहीं होती। आसिलए, गुण सभी चीजों में पाये जाते हैं।
ईदाहरण के रूप में चेतना अत्मा का गुण है। आच्छा, खुर्ी और दुःख आसके पररवतमनीय गुण
हैं।

5. िसख धमम (Sikhism)


 आस धमम की बुिनयादी िवचारधारा गुरु नानक (1469-1538) की िर्क्षाओं द्वारा प्रदान की गयी
है, जो ईत्तर-भारत के ऄद्वैतवादी संत थे।
 गुरु नानक के बाद 9 ऄन्य अध्याित्मक गुरु हुए िजन्होंने िसख धमम को एक औपचाररक अकार
ददया।

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 गुरु नानक के बाद गुरु ऄंगद दूसरे गुरु हुए, िजन्होंने गुरुमुखी िलिप का अिवष्कार दकया, िजसका

प्रयोग िसख धमम के पिवि ग्रन्थ अददग्रन्थ (Adigrantha) को

िलखने में दकया गया था।


 गुरु ऄंगद के बाद गुरू ऄमरदास सािहब तीसरे गुरु हुए।
 आनके पश्चात आनके दामाद और िर्ष्य रामदास चौथे गुरु बने।
 पाँचवे गुरु ऄजुन
म देव हुए िजन्होंने िसख धमम के प्रित काफी
योगदान ददया और 1604 इस्वी में अददग्रंथ (Adigrantha) की

रचना की।
 आनके पश्चात गुरू हरगोहवद हुए िजन्होंने िसख ऄनुयािययों के बीच
सैन्य भाइचारे खालसा की ऄवधारणा प्रदान की तथा िसखों को लड़ाकू जाित के रूप में पररवर्मतत
करने का कायम दकया।
 आनके पश्चात गुरू हर राय और गुरु हरदकर्न िसखों के गुरु हुए।
 नौवें अध्याित्मक गुरु गुरु तेग बहादुर थे िजनकी समकालीन मुगल
सम्राि औरंगजेब द्वारा हत्या कर दी गइ थी।
 दसवें और ऄंितम अध्याित्मक गुरु गुरु गोहवद हसह थे। आन्होंने
खालसा की ऄवधारणा को औपचाररक अकार ददया।
 गुरु गोहवद हसह की मृत्यु के पश्चात अध्याित्मक नेताओं (गुरुओं)
को िनयुि करने की प्रणाली समाप्त हो गइ और राजनीितक नेताओं
का चयन दकया जाना र्ुरू कर ददया गया। आन के बीच में प्रथम
बंदा बहादुर था। पाहुल या बपितस्मा की संककपना (Concept of

Pahul or baptism)

o पाहुल या ऄमृत संस्कार की ऄवधारणा के ऄनुसार,

िसख धमम के सामान्य ऄनुयािययों को मुख्यधारा के


धमम में प्रवेर् कराया जाता है।
o पुरुष सदस्यों के नाम के अगे सम्प्मानसूचक पद हसह
और मिहलाओं के नाम के अगे कौर लगाया जाना
र्ुरू हुअ।
 िसखों के पिवि स्थलों ऄथामत गुरुद्वारों को एक कें रीय
संस्था के माध्यम से प्रबंिधत दकया जाता है िजसे
िर्रोमिण गुरुद्वारा प्रबंधक सिमित ऄिधिनयम (SGPC act) जोदक 1925 में प्रभावी हुअ के रूप

में जाना जाता है।


 SGPC ऄिधिनयम के ऄितररि भारत में चार तख़्त है जो िसख धमम में होने वाले धार्ममक िववादों

को हल करते हैं।
o ऄमृतसर में िस्थत 'ऄकाल तख्त' सबसे महत्वपूणम है।

o अनंदपुर सािहब, पंजाब में िस्थत तख़्त श्री के र्गढ़ सािहब


o पिना में िस्थत तख़्त पिना सािहब
o महाराष्ट्र के नांदड़
े में िस्थत तख़्त हुजूर सािहब

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6. आस्लाम (Islam)
 आस्लाम धमम पैगब
ं र मोहम्प्मद द्वारा 622 इस्वी में स्थािपत
दकया गया था।
 ‘आस्लाम’ र्ब्द एक ऄरबी र्ब्द है, िजसका ऄथम है के वल एक ही
सत्ता के प्रित समपमण जो दक सवमर्ििमान इश्वर (ऄकलाह) है।
 यह एक एके श्वरवादी धमम है। एके श्वरवाद को ऄरबी में तौहीद
कहते हैं, जो र्ब्द वािहद से अता है िजसका ऄथम है एक।
 ऄकलाह के पिवि र्ब्द एक दूत िजब्राआल (Gibrail) के माध्यम
से नबी को ददए गए और पिवि र्ब्द को एक पुस्तक के रूप में
िलखा गया िजसे पिवि ‘कु रान’ के रूप में जाना जाता है।
 कु रान ऄरबी भाषा में रची गइ पिवि पुस्तक है।
 मुसलमान देवदूतों (ऄरबी में मलाआका/ ईदुम मे "फ़ररश्ते") के
ऄिस्तत्व को मानते हैं। ईनके ऄनुसार देवदूत स्वयं कोइ िववेक नहीं रखते और इश्वर की अज्ञा का
यथारूप पालन ही करते हैं।
 मोिे तौर पर आस्लाम को दो श्रेिणयों में बांिा गया है:
1. िर्या
2. सुन्नी
 दोनों के ऄपने ऄपने आस्लामी िनयम हैं लेदकन अधारभूत िसद्धान्त िमलते-जुलते हैं।
 सुन्नी आस्लाम में प्रत्येक मुसलमान के 5 अवश्यक कतमव्य होते हैं, िजन्हें आस्लाम के 5 स्तम्प्भ भी
कहा जाता है। ये िनम्निलिखत हैं-
o साक्षी होना (र्हादा )- आस का र्ािब्दक ऄथम है गवाही देना।
o प्राथमना (सलात)- आसे फ़ारसी में नमाज भी कहते हैं। प्रत्येक मुसलमान के िलये ददन में 5 बार
नमाज पढ़ना ऄिनवायम है।
o व्रत (रमजान) (सौम )- आस के ऄनुसार आस्लामी कै लेंडर के नवें महीने में सभी सक्षम मुसलमानों के
िलये सूयोदय (फरज) से सूयामस्त (मग़ररब) तक व्रत रखना(भूखा रहना)ऄिनवायम है। आस व्रत को
रोजा भी कहते हैं।
o दान (जकात )- यह एक वार्मषक दान है जो दक हर अर्मथक रूप से सक्षम मुसलमान को िनधमन
मुसलमानों में बांिना ऄिनवायम है।
o तीथम यािा (हज)- हज ईस धार्ममक तीथम यािा का नाम है जो आस्लामी कै लेण्डर के 12वें महीने में
मक्का में जाकर की जाती है।
 मुसलमानों के ईपासना स्थल को ‘मिस्जद’ कहा जाता है। मिस्जद आस्लाम में के वल इश्वर की
प्राथमना का ही कें र नहीं होता है ऄिपतु यहाँ पर मुिस्लम समुदाय के लोग िवचारों का अदान
प्रदान और ऄध्ययन भी करते हैं।
 िवश्व की सबसे बड़ी मिस्जद मक्का की मिस्जद ऄल हराम या ऄल हरम है। मुसलमानों का पिवि
स्थल काबा आसी मिस्जद में है।

ऄल हरम मिस्जद (मक्का ) पिवि काबा

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7. इसाइ धमम (Christianity)


 यह धमम इसा मसीह द्वारा स्थािपत दकया गया था और यह चतुथम र्ताब्दी इसवी में रोमन साम्राज्य
का राज्य धमम बन गया।
 इसा मसीह को परमेश्वर द्वारा आस दुिनया के िलए
भगवान का संदर्
े प्रसाररत करने हेतु भेजा गया था।
 ईन्हें दुिनया में मसीहा के रूप में जाना जाता था।
 इसाइ ऄनुयािययों का यह िवश्वास था दक इसा मसीह को
सूली पर चढ़ाए जाने के बाद भी वह पिवि अत्मा के रूप
में पृथ्वी पर वापस अए।
 आस प्रकार इसाइ धमम में 3 महत्वपूणम तत्त्व हैं। िपता, पुि
और पिवि अत्मा।
 यहाँ दो महत्वपूणम ऄवधारणायें रही हैं:
1. बपितस्मा (Baptism)

2. पिवि कोमुन्यो/ यूकाररस्ि (Holy Communion)

 बपितस्मा का ऄथम है ‘डु बोना’, ‘प्रक्षालन करना’, ऄथामत्

‘धार्ममक स्नान’ िजसमें मुख्य धारा के धमम में इसाइ धमम के देर
से अने वाले ऄनुयािययों को प्रवेर् कराया जाता है।
 पिवि कोमुन्यो िजसका ऄथम है ईपासक एक दूसरे और इसा
के साथ एकता प्रदर्मर्त करने के िलए ब्रेड और र्राब अपस
में बांिकर खाते हैं।
 पिवि पुस्तक बाआिबल है िजसके दो महत्वपूणम खंड हैं।
1. ओकड िेस्िामेंि (The old Testament) - मूल रूप से
एक यहूदी पाि।
2. न्यू िेस्िामेंि (New Testament) - इसाइ धमम के ऄनुयािययों द्वारा िलखा गया है।

 आन दोनों को संयुि रूप से “बाआिबल” के रूप में जाना जाता है।

8. जरथुष्ट्र /पारसी धमम (Zoroastrianism)


 यह धमम पारसी संत जरथुष्ट्र द्वारा स्थािपत दकया गया था।
 यह माना जाता है दक दुिनया में दो प्रकार की र्िियां हैं।
ऄच्छाइ की र्िि और बुराइ की र्िि।
 आनके ऄनुयािययों द्वारा यह माना जाता है दक ऄच्छाइ की
र्िि बुराइ की र्िि से प्रबल होगी और आस दुिनया में
एक अदर्म समाज स्थािपत दकया जाएगा।
 ऄच्छाइ की र्िि भगवान ऄहुरा मज़्दा (Ahura Mazda)
का प्रितिनिधत्व करती है।
 बुराइ की र्िि का प्रितिनिधत्व ऄंिगरा मैन्यु (Angra

Mainue) ऄथवा ऄिहरमन द्वारा दकया जाता है।

 आस धमम की पिवि पुस्तक ऄवेस्ता ('AVESTA)' है। एक

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र्ब्दकोष और ऄनुपूरक पाि आस ऄवेस्ता में जोड़ा गया िजसे जेंद


(Zend) के रूप में जाना जाता था। और आन दोनों ग्रंथों को संयुि रूप

से ‘जेंद-ऄवेस्ता’ कहा जाता है, जो आस धमम की पिवि पुस्तक है।


 आनके ऄनुयािययों का मानना है दक मृत र्रीर असपास के वातावरण
को प्रदूिषत करतीं हैं, ऄतः मृत र्रीरों को अवास योग्य स्थलों से दूर
खुली जगहों पर रखा जाता है।
 भारत में यह जगह मुब
ं इ में र्ांित के मीनार (Tower of Silence) के
रूप में जाना जाता है।

9. यहूदी धमम (Judaism)


 आस धमम की स्थापना तब हुइ जब इश्वर ने ऄपना सन्देर्
एक व्यिि के माध्यम से प्रेिषत दकया, िजसका नाम
आब्रािहम था।
 आस धमम की यह मान्यता है दक इश्वर ऄपना संदर्

पैगम्प्बरों के माध्यम से प्रेिषत करता है।
 आब्रािहम की मृत्यु के बाद, इश्वर ने ऄपने पिवि सन्देर्
को ईसके पुि इसाक तथा आनकी मृत्यु के बाद आनके पुि
जैकब को प्रेिषत दकया।
 जैकब को आसराआल के रूप में भी जाना जाता है और
जैकब के ऄनुयायी आसराआल के बालक के रूप में भी
जाने जाते हैं।
 आसके ऄलावा, यहूददयों के भगवान ने िसनाइ पवमत पर मूसा नामक एक व्यिि को दस अदेर्

ददए, जो आस दुिनया में यहूददयों द्वारा पालन दकए जाने वाले अचार संिहता को िनधामररत करता
है।
 यहूदी िवश्वास के आन महत्वपूणम िसद्धांतों को यहूदी धमम के पिवि ग्रन्थ में र्ािमल दकया गया िजसे
'तोरा' (Torah) के रूप में जाना जाता है।यहूदी धमम एके श्वरवाद में िवश्वास रखता है।

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देशज ऄभभव्यभि
भिषय सूची

1. बाईल (Baul) ___________________________________________________________________________ 61

2. गोंड (Gond) ___________________________________________________________________________ 61

3. पंडिानी (Pandwani) _____________________________________________________________________ 61

4. पपगुली भचत्रकथी (Pinguli Chitrakathi) ________________________________________________________ 62

5. कलमकारी (Kalamkari) ___________________________________________________________________ 62

6. पट्टभचत्र (Patachitra) _____________________________________________________________________ 63

7. कािड़ (Kavad) _________________________________________________________________________ 63

8. िली (Warli) ___________________________________________________________________________ 64

9. पटुअ (Patua) __________________________________________________________________________ 64

10. माता-नी-पछेड़ी (Mata-ni-Pachedi) _________________________________________________________ 65

11. पाबूजी का फड़ (Pabuji ka Phad) ___________________________________________________________ 65

12. जादू पट (Jadu Pat) _____________________________________________________________________ 66

13. रजिार भभभि भचत्र (Rajwar murals) _________________________________________________________ 66

14. भपथौरा (Pithora) _______________________________________________________________________ 67

15. रािण छाया (Ravan chaya) ______________________________________________________________ 67

16. मधुबनी (Madhubani) ___________________________________________________________________ 68

17. थंका (Thanka) ________________________________________________________________________ 68

18. थेय्यम (Theyyam) ______________________________________________________________________ 69

19. तोलप्पािक्कू िु/थोलपािाकु थु (Tholpavakoothu) _________________________________________________ 69

20. बरााकथा (Burrakatha) ___________________________________________________________________ 70

21. चंबा रूमाल (Chamba Rumal) ____________________________________________________________ 70

22. बहुरूभपया कला _________________________________________________________________________ 70

23. कच्छी घोड़ी नृत्य ________________________________________________________________________ 71

24. जंगम जोगी ____________________________________________________________________________ 71

25. चन्नापटना काष्ठकला ______________________________________________________________________ 72

26. काइ भसलाम्बम _________________________________________________________________________ 72

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27. कोलकल्ली तथा मरगम ____________________________________________________________________ 73

28. काठी सामू और कराा सामू __________________________________________________________________ 73

29. सांगोड्ड त्योहार _________________________________________________________________________ 74

30. रोगन कला ____________________________________________________________________________ 74

31. कलारीपयट्टु (के रल का माशाल अटा) ___________________________________________________________ 74

32. थांग टा (मभणपुर की माशाल अटा कला) _________________________________________________________ 75

33. मलखंब (महाराष्ट्र) _______________________________________________________________________ 75

34. नाडा कु श्ती ____________________________________________________________________________ 76

35. फु लकारी______________________________________________________________________________ 76

36. ज़रदोजी ______________________________________________________________________________ 77

37. चेिीनाड सूती साभड़यााँ ____________________________________________________________________ 77

38. तांगभलया बुनाइ _________________________________________________________________________ 78

39. बीदरी भशल्प कला _______________________________________________________________________ 79

40. थेिा भशल्प कला_________________________________________________________________________ 79

41. जोगी अददिासी कला _____________________________________________________________________ 80

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1. बाईल (Baul)
 ‘बाईल’ बंगाल के घुम्मकड़ लोकगायकों द्वारा

भिकभसत लोक संगीत की एक भिधा है, जो बंगाल में

रहस्यिाद की सहभजया (Sahajiya) परंपरा का


संरक्षण कर रही है।

 बाईल गीत के भिषय ज्यादातर दाशाभनक हैं जो


असानी से जीिन के रहस्य, प्रकृ भत के भनयम, प्रेम,
भनयभत के अदेश और परमात्मा के साथ चरम
संयोजन को प्रकट करते हैं।

 भिशेष रूप से ग्रामीण बंगाल में एक लोकभप्रय संचार


माध्यम के रूप में व्यापक रूप से बाईल का प्रयोग
दकया गया है।

2. गोंड (Gond)
 गोंड देश में सबसे बड़े अददिासी समुदाय हैं, जो मुख्य रूप से मध्य भारत में पाए जाते हैं।
 गोंड कलाकारों की भचत्रकारी की शैली भिभशष्ट रूप से भद्वअयामी है।
 हालांदक, िे मात्र सजािट के भलए भचत्रकारी नहीं करते, बभल्क आन भचत्रकाररयों के माध्यम से िे
ऄपनी धार्ममक भािनाओं, प्राथानाओं और जीिन के प्रभत ऄपनी ऄनुभूभत को भी व्यि करते हैं।
 ऄपनी कला शैली के माध्यम से गोंड समुदाय ने ऄपनी सददयों पुरानी सांस्कृ भतक परंपराओं और
कालातीत प्रासंभगकता को संरभक्षत दकया है।

3. पंड िानी (Pandwani)


 यह एक लोक कथात्मक (balled) नाट्ड है, भजसका छिीसगढ़ में मुख्य रूप से प्रदशान दकया जाता
है।

 पंडिानी महाकाव्य महाभारत में िर्मणत पांडिों की कहानी को दशााता है जहां से आसका नाम
भनकला है।
 कथा बहुत ही जीिंत है और दशाकों के मन में यह लगभग सजीि दृश्यों का भनमााण करती है।

 पंडिानी में कथन की दो शैभलयााँ हैं – िेदमती (Vedamati) और कापाभलक (Kapalik)।

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 िेदमती शैली में मुख्य कलाकार जहााँ प्रदशान के दौरान फशा पर बैठ कर कहाभनयााँ सुनाते हैं िहीं
ईत्साहपूणा कापाभलक
शैली में कथािाचक
िस्तुतः दृश्यों और चररत्रों
का ऄभभनय भी संपाददत
करते हैं।
 यह समुदाय के मनोरंजन
का एक बड़ा स्रोत रहा है
और ईस समय ग्रामीण
जन को ईनकी सांस्कृ भतक
भिरासत के बारे में
भशभक्षत करता है।
 तीजन बाइ आस शैली की
प्रभसद्ध कलाकार हैं।

4. पपगुली भचत्रकथी (Pinguli Chitrakathi)


 पपगुली भचत्रकथी महाराष्ट्र और अं प् प्रदेश में कहानी सुनाने की एक शैली है जो 17 िीं और 18
िीं सदी के बीच बहुत लोकभप्रय थी और गांिों में मनोरंजन का एक प्रमुख साधन थी।
 कथा के दौरान दशाकों के समक्ष बड़े अकार के भचत्रों का प्रदशान दकया जाता था, भजनकी कहाभनयां
मुख्य रूप से दो महाकाव्यों और ईपाख्यानों से ली जाती थीं।
 यह दुलाभ कला मुख्यतः पपगुली और पैठण में फली-फू ली और आनका प्रयोग तीथायाभत्रयों को आन
भचत्रों के माध्यम से एक दृश्य कहानी भचभत्रत करने के भलए दकया गया।

5. कलमकारी (Kalamkari)
 प्राचीन समय में, महाकाव्यों और पुराणों से ईद्धरण ले कर प्रभसद्ध कहाभनयों को गायकों,
संगीतकारों और भचत्रकारों के समूह द्वारा ग्रामिाभसयों को सुनाया जाता था, आन कहानी सुनाने
िालों को भचत्रकथी कहा जाता था, जो गााँि- गााँि घूमते रहते थे।
 धीरे-धीरे ईन्होंने ऄपने िृतांतों की सभचत्र व्याख्या के भलए कै निास के बड़े थानों का ईपयोग दकया
और मौभलक ढंग से तथा पौधों से भनकाले गए डाइ से आन पर रंग भरा। आस प्रकार, प्रथम
कलमकारी पैदा हुइ।
 कलमकारी शब्द का ऄथा िस्तुतः पेन की सहायता से सजािट करने की कला है।
 यह कला अन् प् प्रदेश के दो गांिों - श्रीकलाहस्ती (Srikalashasti) और मसूलीपट्टनम
(Masulipatnam) में दो भिभशष्ट शैली के साथ भपछले 3000 िषों में भिकभसत हुइ है।

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 यह मुि हस्त रेखांकन तकनीकी तथा मंददरों और रथों पर सजािटी तत्ि के रूप में पैनलों के
प्रयोग द्वारा प्रदर्मशत की जाती है।
 यह परंपरा ग्रामीण लोगों की कइ देशज कला शैभलयों में से एक है, भजसने भारत की रचनात्मक
भिरासत को समृद्ध बनाने में योगदान ददया है।

6. पट्टभचत्र (Patachitra)
 ईड़ीसा और बंगाल की पट्टभचत्र परंपरा आस क्षेत्र के जनजाभतयों के भलए ऄभद्वतीय है, जो बंगाल में
'पाटीदार' के रूप में जाने जाते हैं।
 यह एक प्रतीकात्मक कला रूप है जो यह दशााता है दक कै से भचत्रकाररयााँ प्राकृ भतक िातािरण के
साथ सामंजस्य स्थाभपत कर सकती हैं, कटािदार भडजाआनों में रंग चढ़ाने के भलए रंग और सामग्री
प्राकृ भतक तत्िों से भनकाली जाती है।
 भारतीय पौराभणक कथाएाँ, लोकगीत, महाकाव्यों और पुरी के आष्टदेि भगिान जगन्नाथ एिं कृ ष्ण
जैसे देिताओं से सम्बंभधत प्रकरण आस कला के दृश्य अख्यानों के भिषय हैं।
 गीत, संगीत और नृत्य द्वारा आसमें संगत ददया गया जाता है।

पट्टभचत्र

7. कािड़ (Kavad)
 कािड़ (Kavad) िस्तुतः कथािाचन की सभचत्र परंपरा है भजसमें ऄनपढ़ और सामाभजक रूप से
िंभचत िगों, भजनका मंददर में प्रिेश िंभचत था, को धार्ममक ग्रंथों और महाकाव्यों से संबंभधत
मनोरंजन और भशक्षा प्रदान की जाती थी।
 ये ईठा कर ले जाने लायक, कइ मुड़ने िाले दरिाजे लगे लघु मंददर रूप हैं, भजनमें से प्रत्येक को
महाकाव्यों और भमथकों के भनरूपण के साथ भचभत्रत दकया जाता है।

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 घुमंतू पुजारी भजन्हें कािभड़या भट्ट कहा जाता है द्वारा सभचत्र कथािाचन कािड़ है, जो कािड़ पर
भचभत्रत ईभचत दृष्टांतों पर संकेत करते हुए कथािाचन करते हैं।
 लगभग भद्वतीय शताब्दी इसिी तक प्राचीन यह परंपरा राजस्थान की सबसे ऄभधक दशानीय
ईद्बोधक कलाओं में से एक है और दुभनया में जहां भी नैभतकता और नीभत की भशक्षाएाँ कहाभनयों के
माध्यम से दी जाती हैं िहां यह बहुत ऄभद्वतीय है।
8. िली (Warli)
 िली (Varlis) जनजाभत
महाराष्ट्र-गुजरात और ईसके
असपास के सीमािती क्षेत्रों में
भनिास करती है।
 ईनके ऄपने खुद के ऄनूठे
अध्याभत्मक भिश्वास, जीिन
शैली, रीभत-ररिाज और
परंपराएाँ हैं, जो ईनके घरों की
दीिारों पर ऄलंकृत ईनकी
भचत्रकाररयों में सजीि रूप में
व्यि होती हैं।
 िे दैभनक और सामाभजक
ददनचयाा और कु छ प्रजनन
देिताओं को दशााते हैं जो दक
िली कला का प्रमाण भचन्ह है।
 आन प्रमाण भचह्नों को दसिीं शताब्दी तक देखा जा सकता है।
 यह कला िली के मानि-पयाािरण ऄंतःदिया का ऄनुकरणीय शानदार ईदाहरण दशााती है जो
स्ियं में प्रकृ भत को सभम्मभलत करती है और मौसम के चि के चारों ओर घूमती है।
 सिर के दशक के प्रारम्भ में खोजी गइ, िली पेंटटग को समुदाय द्वारा शुभ माना गया। जहां भचत्रों
का संतल
ु न ब्रह्ांड के संतल
ु न का प्रतीक है और आसका संपूरक है।
 यह कला स्िदेशी ज्ञान का खजाना है।

9. पटु अ (Patua)
 पटुअ समुदाय मुख्य रूप से भबहार और पभिम बंगाल में पाए जाते हैं।
 िे एक गांि से दूसरे गांि की यात्रा करते हैं और ऄपने भचत्रों को उपर नीचे करते हुए (स्िॉल)
ग्रामीण भीड़ को ददखाते हुए कहानी कहते हैं और कइ सामाभजक मुद्दों पर ऄपनी पचताओं से
संिाद स्थाभपत करते हैं और दशाकों से प्रभतदियाओं का अह्िान करते हैं।
 आस तरह के स्िॉल की छभियों में रामायण और महाभारत जैसे लोकभप्रय महाकाव्य िणान के भलए
प्रयोग दकए गए थे।
 धीरे-धीरे पटुअओं में भिभिधता अइ और ईनकी कथा सामग्री में प्रमुख ऐभतहाभसक घटनाओं और
सामाभजक व्यंग्य के रूप में नए भिषयों की शुरुअत हुइ।

पटुअ स्िॉल भचत्र

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10. माता-नी-पछे ड़ी (Mata-ni-Pachedi)


 एक प्रभतभष्ठत कपड़ा कला परंपरा भजसका प्रयोग गुजरात का िाघरी खानाबदोश समुदाय करता
है।
 माता-नी-पछेड़ी भशल्प जैसा दक नाम से ही स्पष्ट है दक यह देिी माता के महाकाव्यों के कथात्मक
पदे से सम्बंभधत है।
 आन पदों की ऄनोखी भिशेषता यह है दक चार से पांच मंददर के पदे का ईपयोग पभित्र स्थान बनाने
के भलए होता है और ये भचभत्रत कपड़े कहाभनयों का िणान करने के भलए एक दृश्यात्मक ऄिलंब के
रूप में प्रयुि होते हैं।
 ग्रामिासी भिशेष रूप से निराभत्र के समय आन कथात्मक पदों को प्रयोग में लाते हैं।
 परंपरागत रूप से गहरे भूरे (maroon) और काले रंग का कपड़ा प्रयुि दकया जाता है।

माता-नी-पछेड़ी (कपड़ा कला, दुगाा)

11. पाबूजी का फड़ (Pabuji ka Phad)


 दुभााग्य और बीमारी के समय भिशेष रूप से राजस्थान में ग्रामीण लोग पाबूजी की फड़ प्रदशान
करने के भलए भोपाओं (Bhopas), भाटों (Bards) और पुरोभहतों को अमंभत्रत करते हैं, जो आस
कला के पारंपररक कथािाचक हैं।
 कलाकार एक खानाबदोश जीिन जीते हैं और गांिों में लोगों की भीड़ के सामने ऄपनी कला का
प्रदशान करते हैं।
 एक पुस्तक (सूचीपत्र) भजसे 'फड़' कहा जाता है, ऄत्यभधक श्रद्धेय 14 िीं सदी के लोक नायक
(राजपूत राजकु मार) पाबूजी के िीरतापूणा कायों पर प्रकाश डालती है।
 एक गीत और दशानीय ऄभद्वतीय भचत्रों की एक श्रृंखला द्वारा आसका िणान दकया जाता है।
 ग्रामीण संघषा और आभतहास की समृभद्ध का संरक्षण आस कला रूप की भिशेषता है।

पाबूजी का फड़ (भचत्रों की श्रृख


ं ला )

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12. जादू पट (Jadu Pat)


 जादू पट भचत्रकार और कहानी कहने िाले हैं, जो तत्कालीन बंगाल, भबहार और ईड़ीसा के परगना
भजले के संथाल जनजाभत से संबंभधत हैं।
 ये खानाबदोश ऄपने भचभत्रत कागज़ के गोल गट्ठर (Scrolls) के साथ गााँि-गााँि घूमते हुए
सामाभजक और धार्ममक प्रासंभगकता के भिभभन्न भिषयों का अख्यान प्रस्तुत करते हैं।
 जादू भजसका शाभब्दक ऄथा "जादूगर" है जो आन पटुअओं द्वारा कागज के गोल गट्ठर पर बनाया
जाता है, ईनकी रचनात्मकता का एक प्रमाण है।
 एक जादू पटुअ दशाकों की आच्छा के अधार पर कागज के एक गोल गट्ठर पर भचभत्रत भिभभन्न
कहाभनयों का िणान कर सकता है।
 "मृतु पट" या "मृत्यु की छभि" आस जनजाभत की सबसे ईत्कृ ष्ट भचत्रकला (पेंटटग) है।
 यह भिचारोिेजक कला रूप के िल मनोरंजन का एक स्रोत नहीं है बभल्क यह मनुष्य को जीिन और
मृत्यु की िास्तभिकताओं के साथ भी जोड़ता है।

13. रजिार भभभि भचत्र (Rajwar murals)


 राजिार भबहार, छिीसगढ़ और मध्य प्रदेश के कृ षक समुदायों से सम्बंभधत हैं और आनकी सघन
जनसंख्या सरगुजा भजले में भनिास करती है।
 रजिार समुदाय की मभहलाएाँ ‘भलपाइ’ में भिशेषज्ञता रखती हैं।
 िे फसलोपरांत मनाए जाने िाले ईत्सि छेरता (chherta) पिा के दौरान ऄपने घरों की दीिारों,
गभलयारों और दीिारों के छज्जों की पुताइ कच्ची भमट्टी के उपर गाय के गोबर से करती हैं।
 भभभि भचत्र बहुत कल्पनाशील होते हैं और ईनके सामाभजक संरचना का िणान करते हुए दैभनक
जीिन का भचत्र प्रस्तुत करते हैं।
 भभभि भचत्र के भिषय- िस्तु जीिन के बारे में ईनके सामान्य ग्रामीण ऄनुभिों के भनर्मििाद तथ्यों
को प्रभतपबभबत करती हैं।

रजिार भभभि भचत्र

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14. भपथौरा (Pithora)


 भपथौरा भचत्रकला दकसी पररिार या समुदाय में शुभ ऄिसर के अगमन को द्योभतत करती है।
 यह एक ऐसी कला शैली है जो ऄभनिाया रूप से दकसी समुदाय के अनंद और ईत्सि को व्यि
करती है और भपथौरा भचत्रकारी ऄपने रंगों और सजीि भचत्रों के माध्यम से भािनाओं को कु शलता
पूिाक प्रदर्मशत करती है।

 गुजरात और मध्य प्रदेश की राठिा (Rathwas), भील (Bhilas), और नायक (Naykas)


जनजाभतयााँ आस ऄनुष्ठाभनक कला परंपरा का भनिााह करती हैं और ग्रामीण भारत की िास्तभिक
नृजातीयता प्रदर्मशत करने िाले आन भचत्रों को आनके घरों की दीिारों पर देखा जा सकता है।

भपथौरा भचत्रकला

15. रािण छाया (Ravan chaya)


 ईड़ीसा की पारंपररक छाया कठपुतली रंगमंच (भथयेटर), रािण छाया, मध्ययुगीन ईभड़या कभि
भिश्वनाथ खुरं टया द्वारा रभचत ईनके ‘भिभचत्र रामायण’ पर अधाररत राम की कथाओं से सम्बंभधत
है।
 आसके पारंपररक कलाकार भाट (Bhats) समुदाय से होते थे।
 आसका प्रस्तुभतकरण पारंपररक रूप से रामायण के सात कांडों के ऄनुसार लगातार सात रातों में
होता है।
 यह नाटक स्ियं में के िल मौभखक परंपरा में ईपभस्थत है और भहरण की खाल से बनी अकषाक
कठपुतभलयााँ ग्रामीण लोगों के अनंद के भलए एक बहुत ही मनोरंजक प्रस्तुभत देती है।

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16. मधुब नी (Madhubani)


 भचत्रकला की मधुबनी या भमभथला शैली का नाम भबहार के भमभथला क्षेत्र के नाम से भनकली है।
 यह हमारी ग्रामीण संस्कृ भत में दाशाभनक
पररपक्वता की प्रदशान मंजूषा है जो दक प्रेम की
सािाभौभमक शभि, लालसा और शांभत का

प्रभतपादन करती है, जो पररिारों के भिभभन्न


प्रयोजनों और त्योहारों को भिभशष्ट नमूने के
माध्यम से भचभत्रत करते हुए भनर्ममत की गइ है।
 यह भचत्रण परंपरागत रूप से मभहलाओं द्वारा
दकया जाता है, भचत्र ईनके भािनात्मक प्रिाह
हैं, जो आस क्षेत्र के सामाभजक और धार्ममक
िातािरण का िणान करते हैं।
 िे ज्यादातर पुरुषों और प्रकृ भत के साथ ईनके
संयोजन और प्राचीन महाकाव्यों से दृश्यों और
देिताओं के साथ-साथ शाही दरबारों और शादी
भििाह जैसे सामाभजक प्रयोजनों को भचभत्रत
करती हैं।
 ये कौशल सददयों से पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तान्तररत
की गइ है और आसभलए मधुबनी पेंटटग को
प्रभतभष्ठत भौगोभलक संकेतक का दजाा प्रदान दकया गया है।

17. थं का (Thanka)
 थंका में कशीदेकारी के साथ रेशम पर
भचत्रकारी होती है।
 ये थंका बुद्ध, भिभभन्न प्रभािशाली
लामाओं, ऄन्य देिी-देिताओं,
बोभधसत्िों के जीिन का भचत्रण करते
हुए महत्िपूणा भशक्षण ईपकरण के रूप
में काया करते हैं।
 ये पचतनशील ऄनुभिों के भलए
दस्तािेज और मागादशाक का भी काया
करते हैं, जहााँ प्रभतमाशास्त्रीय भिज्ञान
को भचत्रात्मक रूप में प्रदर्मशत दकया
जाता है।
 कइ थंका भचत्रों और दृश्यों का पररचय
औपचाररक और सूक्ष्म ऄनूददत
भलभपयों में बताते हैं।
 ‘जीिन का चि’ (The Wheel of
Life) आसका एक प्रमुख भिषय है, जो
अध्याभत्मक ईन्नयन के भलए अिश्यक ऄभभधमा भशक्षाओं (अत्मज्ञान की कला) का एक दृश्य
भनरूपण है।

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18. थेय्यम (Theyyam)


 थेय्यम या थेय्यऄट्टम ईिरी के रल (मालाबार) की सबसे जीिंत, सुंदर और पारंपररक अनुष्ठाभनक
कला रूपों में से एक है।
 ऄनुष्ठान, मुखर (कं ठ संगीत) और िाद्य संगीत, नृत्य, भचत्रकला, मूर्मतकला और साभहत्य का
संयोजन थेय्यम नायकों और पैतक
ृ अत्माओं की पूजा को काफी महत्ि देता है साथ ही यह एक
सामाभजक-धार्ममक समारोह भी है।
 थेय्यम त्योहार सामान्यतः प्रत्येक िषा ऄक्टूबर से मइ के बीच अयोभजत दकया जाता है।
 ईिरी के रल का कन्नूर या (Cannanore) आसके ऄग्रणी कें द्रों में से एक है, जो लोक कला और
पारंपररक एिं प्राचीन संस्कृ भतयों के संरक्षण को सिााभधक महत्ि देता है।

थेय्यम अनुष्ठाभनक कला (के रल)

19. तोलप्पािक्कू िु / थोलपािाकु थु (Tholpavakoothu)


 थोलपािाकु थु के रल की छाया कठपुतली है।
 कठपुतली नाटक की कथा एक प्राचीन भिद्वान भचन्नाथम्पी िधयार (Chinnathampi Vadhyar)

द्वारा रची गयी थी, जो दक 12 िीं शताब्दी के महान तभमल भिद्वान और कभि कं बन के कम्बन
रामायण पर अधाररत है।
 रामायण की कथा के पूणा प्रदशान के भलए भहरण की खाल से बनी लगभग 180 कठपुतभलयां
अिश्यक हैं।
 थोलपािाकु थु की 21 रातों की प्रस्तुभतकरण हेतु यह कथा 21 भागों में बनी हैं।
 यह ग्रामीण क्षेत्रों में मनोरंजन का एक लोकभप्रय रूप था।

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20. बरााक था (Burrakatha)


 बरााकथा नृत्य, संगीत और ऄभभनय का एक ईत्कृ ष्ट भमश्रण है।
 बरााकथा का प्रयोग आस कला शैली के कलाकारों द्वारा सामाभजक चेतना का प्रसार संदश
े ों के
माध्यम से व्यि करने के भलए दकया गया है, भजसके भलए ऄसाधारण कौशल की अिश्यकता होती
है।
 यह भनष्पादन कला की एक पारंपररक शैली है जो अं प् प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में मनोरंजन का
स्रोत है।

बरााकथा
21. चंबा रूमाल (Chamba Rumal)
 आसे भहमाचल प्रदेश की कशीदेकारी के रूप में जाना जाता है।
 चंबा रुमाल का प्रयोग ईपहार और प्रसाद को ढंकने (किर) के भलए दकया जाता है।
 परंपरागत रूप से आन रुमालों का दूल्हे और दुल्हन के पररिारों के बीच अदान-प्रदान दकया जाता
था और ईच्च िगा की मभहलाओं द्वारा आन पर कढ़ाइ की जाती थी।
 हषोन्माद के क्षणों को संजोते ये रुमाल मोटे तौर पर भचत्रकला की कांगड़ा और चंबा शैभलयों पर
अधाररत हैं।
 रास मंडल और कृ ष्ण के रूपांकन बहुत लोकभप्रय हैं।
 यह कला अनंद और ईत्सि की ऄभभव्यभि है।
 ये भडजाआन सांस्कृ भतक परंपराओं और आस क्षेत्र के धार्ममक भिश्वासों की भिरासत का प्रदशान करते
हैं।

चंबा रूमाल (भहमाचल प्रदेश)


22. बहुरूभपया कला
 बहुरूभपया शब्द का ईद्भि सं स्कृ त भाषा के बहु (कइ) और रूप (प्रकार) शब्दों के सं योग
से हुअ है ।
 िता मान में बहुरूभपया कला के प्रदशा न को के िल भां डों का काया मान भलया गया है दकन्तु
ऄतीत में ब्राह्ण सभहत भिभभन्न जाभतयों के सदस्य , गां िों के साथ ही दरबारों में भी आस
कला का प्रदशा न करते थे ।

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 लोगों को प्रचभलत चररत्रों के रूप से ऄभधकतम समरूपता ( impersonation) का


ऄनु भ ि करा दे ने की क्षमता बहुरूभपया कला का मु ख्य तत्ि है ।
 एक बहुरूभपया के छद्म रूप को भेष कहा जाता है, जो संस्कृ त में कपड़ों या िेशभूषा के भलए प्रयोग
में लाया जाता है।
 दकसी समय में यह कला ऄभभजात्य िगा के मनोरंजन का साधन हुअ करती थी।
 यह दकसी चररत्र ऄभभनय एिं हाभज़रज़िाबी के माध्यम से मनोरंजन करने की एक कला है।
 आसमें भिशेष सतका ता तथा चातुया की अिश्यकता पड़ती है।
 यह कला ऄब भिलुप्त होती जा रही है। बहुत कम लोग ही आस कला को ऄपना रहे हैं तथा ईसमें भी
ऄभधकांशतः भभक्षािृभि हेतु आसका प्रयोग करते हैं।
 राजस्थान में आसे स्िांग भी कहा जाता है।

23. कच्छी घोड़ी नृत्य


 यह एक लोक नृत्य है।
 आस नृत्य का ईद्भि स्थल राजस्थान का शेखािाटी क्षेत्र है।
 यह पुरुषों द्वारा प्रदर्मशत दकया जाने िाला नृत्य है।
 आसमें नकली घोड़ों का प्रयोग दकया जाता है।
 यह बांसुरी तथा ढ़ोल की धुन पर दकया जाने िाला नृत्य है।
 चूंदक आस नृत्य के कलाकार भबना दकसी मंच के खुले अकाश के नीचे ऄपनी कला का प्रदशान करते
हैं, ऄतः ये कलाकार ‘मैदानी कलाकार’ के रूप में जाने जाते हैं।

कच्छी घोड़ी नृत्य (राजस्थान)

24. जंग म जोगी


 ये हररयाणा और पंजाब के क्षेत्रों से संबद्ध लोक गायक हैं।
 यह भगिान भशि को समर्मपत भभि संगीत की एक शैली है।

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 आस संगीत कला में डफली, खंजरी तथा खरताल जैसे छोटे तथा असानी से एक स्थान से दूसरे
स्थान पर ले जाए जा सकने िाले िाद्य यंत्रो का प्रयोग दकया जाता है, क्योंदक आसके कलाकार
यात्रा करते रहते हैं।

जंगम जोगी
25. चन्नापटना काष्ठकला
 चन्नापटना कनााटक की पारंपररक काष्ठकला है।
 आस कला का प्रयोग भखलौने बनाने हेतु दकया जाता है।
 आन भखलौनों में कोइ भी तीक्ष्ण दकनारा नहीं होता है तथा के िल जैभिक रंगों के प्रयोग के कारण
यह बच्चों के भलए पूरी तरह सुरभक्षत होते हैं।
 आन भखलौनों को WTO के तहत GI दजाा प्राप्त है।
 चन्नापटना कला भारत की प्राचीनतम भशल्प कला से भी सम्बंभधत है।

चन्नापटना काष्ठकला (कनााटक)


26. काइ भसलाम्बम
 यह पुदचु ेरी की पारंपररक लोक कला है।
 यह के रल के कलाररपयाट्टू और श्रीलंका की ऄंगमपोर कला से ऄत्यंत भनकटता से संबंभधत है।
 भसलाम्बम का अशय बांस के लट्ठ से है (आस शैली में प्रयुि मुख्य हभथयार)।
 यह ितामान में मलेभशया में भी प्रचभलत है।

भसलाम्बम

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27. कोलकल्ली तथा मरगम


 कोलकाली के रल में प्रदर्मशत की जाने िाली एक लोक कला है।
 यह कला कलाररपयाट्टू कला से प्रभाभित है।
 के रल के सीररयाइ इसाइ समुदायों द्वारा आसे पुनजीभित दकया गया है।
 मरगम नृत्य भी के रल का एक लोक नृत्य है।
 यह नृत्य के रल में पहले के त्रािणकोर के साआररयन दिभिन समुदाय में काफी लोकभप्रय है।
 आस कला में समूह नृत्य के साथ परीचमुट्टू कली की तरह माशाल अटा का प्रदशान दकया जाता है।
 आस कला के प्रदशान में गाया जाने िाला भिषय गीत संत थॉमस के जीिन चररत्र की पृष्ठभूभम का
बखान करता है।

कोलकल्ली लोक कला

28. काठी सामू और कराा सामू


 यह अं प् प्रदेश की एक माशाल अटा (युद्ध कला) है, भजसका ईद्भि भिजयनगर साम्राज्य में हुअ।
 काठी सामू और कराा सामू आस कला में प्रयुि हभथयारों का नाम है।
 आस युद्ध कला में भिभभन्न हभथयारों का ईपयोग दकया जाता है जैसे-
o चाकू युद्ध (बाकू सामू)
o तलिार युद्ध (काठी सामू)
o लाठी युद्ध (कराा सामू)

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29. सांगोड्ड त्योहार


 यह त्योहार गोिा में 29 जून को मानसून के दौरान मनाया जाता है।
 सुबह पुजाररयों के द्वारा मछु अरों के द्वारा प्रयोग दकये जाने िाले सुपारी के डंडों (पोल) तथा
सांगोड्ड को अशीिााद देने और भव्य भोज के बाद सांगोड्ड ईत्सि दोपहर में प्रारंभ होता है।
 सांगोड्ड 2 नािों को साथ बांधना है जो भिश्वास के बंधन का प्रतीक है।

सांगोड्ड त्योहार का एक दृश्य


30. रोगन कला
 रोगन कपड़े पर पेंटटग की कला हैI
 आसकी ईत्पभि फारस में हुइ तथा यह भारत के कच्छ क्षेत्र में लोकभप्रय हैI
 आस कला में प्राकृ भतक रंगों का प्रयोग दकया जाता हैI
 आन्हें िनस्पभतयों से भनर्ममत रंजको को एरंड के तेल (कै स्टर अयल) के साथ भमभश्रत करके भनर्ममत
दकया जाता हैI
 यह पेंटटग छड़ी, रॉड या धातु ब्लॉक के ईपयोग के द्वारा बनायी जाती है।
 आसमें पीले, नीले तथा लाल रंगों का सिााभधक प्रयोग दकया जाता है।

31. कलारीपयट्टु (के रल का माशा ल अटा )


 कलारीपयट्टु पां च सौ से ऄभधक िषों से प्रचभलत के रल की स्िदे शी माशा ल अटा है ।
 यह गु रु -भशष्य परम्परा के माध्यम से सददयों से सु र भक्षत है ।
 यह एक समग्र कला है भजसमें दू स रों पर अिमण के साथ ही ईससे बचाि की तकनीक
भी शाभमल है ।

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 आसके तीन क्षे त्रीय रूप हैं भजनमें ईनकी अिामक और रक्षात्मक शै भलयों के अधार पर
भिभे द दकया जाता है ।
 कलारीपयट्टु तकनीक कदम (चु िातु ) और मु द्रा (िाददिु ) का सं योजन है ।
 तभमल और मलयालम में कलारी का ऄथा है - स्कू ल या प्रभशक्षण हाल जहां माशा ल अटा
भसखाइ जाती है ।

कलारीपयट्टु (के रल की माशाल अटा)

32. थांग टा (मभणपुर की माशाल अटा कला)


 मभणपु र के मे आ ती समु दाय में माशा ल अटा का एक भिभशष्ट रूप प्रचभलत है भजसे थां ग -टा
कहा जाता है , भजसमें एक थां ग (भाला) और एक टा (तलिार) प्राथभमक हभथयार के
रूप में प्रयु ि होते हैं ।
 यह एक जीिन पद्धभत है ।
 व्यायाम, गभतशीलता, लड़ने की तकनीकों के माध्यम से ऄनु शासन पै दा करने के साथ ही
आससे अत्म-भिश्वास में िृ भद्ध, मभहलाओं की रक्षा, बड़ों का सम्मान या राज्य की र क्षा की
जा सकती है ।
 ऄरम्बाइ (arambai) (यह एक छोटा नु कीला भाला होता है भजसका ऄग्र भाग
पारं प ररक भिष से ले भपत होता है ) , 'थां ग ' और चु न्गोइ (chungoi) तथा ऄन्य कइ शस्त्र
थां ग -टा को प्रभािशाली माशा ल अटा बनाते हैं ।

33. मलखंब (महाराष्ट्र)


 मलखं ब जै सा दक आसके नाम से ही स्पष्ट है कु श्ती के खे ल में ऄपने कौशल का ऄभ्यास
करने के भलए पहलिानों द्वारा आस्ते माल दकया जाने िाला एक खम्भ (pole) है ।
 ले दकन ऄब प्रिृ भि में बदलाि अ गया है और आसे एक भिशे ष पहचान भमली है ।
 मलखं ब में एकाग्रता, गभत और लचीले प न की अिश्यकता होती है ।

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 यह हमारे शरीर और भिशे ष रूप से रीढ़ की हड्डी के भलए एक ऄच्छा व्यायाम है ।


 मलखम्ब का प्रारं भभक ईल्ले ख 12 िीं सदी में दे खा जा सकता है ।
 मलखं ब का प्रदशा न तीन तरीकों से दकया जा सकता है ।
 एक भस्थर खं भ पर, लटकते हुए खं भ पर या रस्सी पर।
 तीन दशक पहले , खं भ मलखं ब के स्थान पर रस्सी अधाररत मलखं ब ऄभधक प्रचभलत हो
गया है ।

मलखंब का प्रदशान

34. नाडा कु श्ती


 यह मै सू र के लोगों में ऄत्यभधक प्रचभलत कु श्ती का एक पारं पररक रूप है ।
 आस खे ल को 17 िीं सदी के प्रारं भ से ही शाही सं र क्षण प्राप्त हो चु का था।
 नाडा कु श्ती भनम्न मध्यम िगा और ग्रामीण क्षे त्रों के लोगों के बीच ऄत्यभधक लोकभप्रय है ।
 ऄब यह खे ल के िल ग्रामीण मनोरं ज न के रूप में ही बचा है और काफी हद तक दशहरा
ईत्सि तक ही सीभमत है ।

नाडा कु श्ती

35. फु लकारी
 आस कला का प्रमाण 15िीं शताब्दी से भमलता है ।
 यह भशल्प का एक रूप है भजसमें शॉल और दुप ट्टे पर सरल और भबखरी हुइ भडजाआन में
कढ़ाइ की जाती है ।

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 जहां भडजाआन पर बहुत बारीक काम दकया गया हो और पू रे िस्त्र पर कढ़ाइ की गयी
हो, िहां आसे बाग (फू लों का बगीचा) कहा जाता है ।
 आसमें प्रयु ि भसल्क के धागे को पट (pat) कहा जाता है ।

फु लकारी कढ़ाइ

36. ज़रदोजी
 ज़रदोजी धातु से की जाने िाली एक सुं द र कढ़ाइ है , जो भारत में राजाओं और शाही
पररिारों के व्यभियों की पोशाक के भलए आस्ते माल की जाती थी।
 फारसी शब्द ज़र (ZAR) का ऄथा सोना और दोजी ( Dozi) का ऄथा कढ़ाइ होता है ।
 आसमें सोने और चां दी के धागे का ईपयोग करके भिस्तृ त भडजाआन बनाए जाते हैं । साथ
ही, कीमती पत्थर, हीरे , पन्ने और मोती का प्रयोग भी दकया जाता है ।
 ईपयोग:
o शाही टें ट की दीिारों , म्यानों, दीिार के पदे और शाही हाथी और घोड़ों के िस्त्रों को
सजाने के भलए।
o ज़रदोजी कशीदाकारी काया िस्तु तः लखनउ, भोपाल, है द राबाद, ददल्ली, अगरा,
कश्मीर, मुंब इ, ऄजमे र और चे न्न इ जै से शहरों की भिशे ष ता रही है ।
o 2013 में भौगोभलक सं के तक रभजस्री ( GIR) द्वारा लखनउ ज़रदोजी को भौगोभलक
सं के तक (GI) पं जीकरण प्रदान दकया गया।
o ज़रदोजी ईत्पाद लखनउ और 6 ऄन्य भनकटिती भजलों (बाराबं की, ईन्नाि,
सीतापु र , रायबरे ली, हरदोइ और ऄमे ठी) में भनर्ममत दकये जाते हैं ।

37. चेिीनाड सूती साभड़यााँ


 आन साभड़यों को यह नाम तभमलनाडु के भशिगं गा भजले के एक छोटे से शहर चे िीनाड से
भमला है ।
 चे िीनाड की पारं प ररक साभड़यों को कानडं घी (Kandanghi) कहा जाता है जो सू त से
बनी होती हैं ।

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 चे िीनाड साभड़यों को चटकीले रं गों जै से मस्टडा रं ग , ईंट जै सा लाल, नारं गी, बसन्ती और
भू रे रं ग के चे क (checks) का प्रयोग करके तै यार दकया जाता है ।
 चे क और टें प ल बॉडा र चे िीनाड साभड़यों में प्रयोग दकए जाने िाले पारं प ररक पै ट ना हैं ।

कानडंघी, चेिीनाड सूती साड़ी

38. तांग भलया बुनाइ


 यह 700 िषा प्राचीन स्िदेशी भशल्पकला है, जो सूती या उनी धागों का प्रयोग करके कु छ पबदुओं
से लेकर ऄभधकाभधक भिस्तृत व्यिस्था िाले 'दानों' (danas) या 'मोभतयों' (beads) से भनर्ममत
थीम समाभिष्ट करने िाली भिभशष्ट बुनाइ तकनीक का ईपयोग करती है।
 आसका ऄभ्यास के िल गुजरात के सुरेंद्रनगर भजले में डांगभसया (Dangasia) समुदाय द्वारा दकया
जाता है।
 तांगभलया पररधान का प्रयोग सामान्यत: भारिाड़ गड़ररया समुदाय की मभहलाओं द्वारा शॉल के
रूप में और लपेटे जाने िाले घाघरे के रूप में दकया जाता है।
 तांगभलया शॉल को के न्द्र सरकार द्वारा 2009 में भौगोभलक संकेतक (GI) की मान्यता प्रदान की
गइ है।
 डांगभसया समुदाय
o डांगभसया शब्द डांग शब्द से व्युत्पन्न हुअ है।
o स्थानीय भाषा में डांग का ऄथा छड़ी होता है।
o यह गड़ररयों द्वारा ऄपने भेड़ों के झुंड को भनयंभत्रत करने के भलए ईपयोग की जाने िाली छड़ी
का िाचक है।
o डांगभसया पहदू धमा का ऄनुपालन करते हैं।
o िे देिी पािाती के एक रूप चामुडं ा देिी में भिश्वास करते हैं एिं निराभत्र मनाते हैं।
o िे सभी प्रमुख पहदू त्यौहारों जैसे होली, दीिाली, ईिरायण और जन्माष्टमी मनाते हैं और
साथ ही साथ ऄन्य स्थानीय त्यौहारों एिं मेलों में सदिय भागीदारी करते हैं।
o िे भारिाड़ों के साथ सहजीिी संबंध साझा करते हैं, जहााँ भारिाड़ उन प्रदान करते हैं और
डांगभसया ईनके भलए िस्त्र बुनते हैं।

तांगभलया शॉल

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39. बीदरी भशल्प कला


 यह कनााटक के बीदर भजले की एक धातु हस्तभशल्प है।
 आस भशल्प कला की ईत्पभि फारस में हुइ तथा 14िीं शताब्दी में यह भारत पहुंची।
 भारत में यह कला बहमनी साम्राज्य के ऄंतगात फली फू ली।
 बीदरी कला में मुख्यतः जस्ता धातु का आस्तेमाल होता है।
 आस कला से भनर्ममत बीदरी पात्रों की भिशेषता आसकी काली चमक है।
 यह चमक बीदरी में पायी जाने िाली भिशेष भमट्टी के प्रयोग के कारण अती है।

40. थेिा भशल्प कला


 थेिा भशल्प कला अभूषण बनाने की एक ऄनोखी कला है।
 थेिा-अभूषणों के भनमााण में भिभभन्न रंगों के शीशों (कांच) को चांदी के महीन तारों से बने फ्रेम में
डाल कर ईस पर सोने की बारीक कलाकृ भतयां ईके री जाती हैं।
 आसका ईद्भि लगभग 400 िषा पूिा राजस्थान के प्रतापगढ़ भजले में हुअ था।

 थेिा शब्द दो शब्दों से बनता है: थारना तथा िाडा- भजसमें थारना का ऄथा है ‘हथौड़ा’ और िाडा

का ऄथा है ‘चांदी का तार’।


 आसके ईद्भि का श्रेय सोनार नाथुजी सोनी को ददया जाता है।
 आन्हें प्रतापगढ़ के राजा सािंत पसह ने राजसोनी की ईपाभध प्रदान की थी।
 ईपाभध और भशल्प दोनों ही पीढ़ी दर पीढ़ी स्थानांतररत होते रहे हैंI

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41. जोगी अददिासी कला


 जोगी कला अददिासी कला का एक रूप है भजसमें लाआनों और डॉट्स का प्रयोग दकया जाता है।
 आसमें मुख्यतः सफे द और काले रंग का प्रयोग दकया जाता है, परंतु हाल ही में जयपुर में दकए गए

भचत्रों के प्रदशान में चमकीले रंगों का प्रयोग दकया गया है।


 यह राजस्थान के भसरोही भजले के ररयोदर तहसील के मगरीिाड़ा के कलाकारों द्वारा बनायी जाती
है। ददलचस्प बात यह है दक ितामान में यह भचत्रकला भसफा एक ही पररिार द्वारा बनाइ जाती है।
 राजस्थान सरकार ने पूरे जयपुर में जोगी अददिासी कला के भचत्रों को प्रदर्मशत दकया है।
 सरकार द्वारा यह कदम लोगों को जागरूक करने और पारंपाररक कलाओं को जीभित रखने के भलए
ईठाया गया है।

जोगी अददिासी कला

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भाषा और साहहत्य
हिषय सूची

1. हड़प्पा सभ्यता की हिहप____________________________________________________________________ 83

2. संस्कृ त साहहत्य (Sanskrit Literature) _________________________________________________________ 85

2.1 िेद (Ved) ___________________________________________________________________________ 85


2.1.1 ऊग्िेद (Rigveda) ____________________________________________________________________ 86
2.1.2 यजुिेद (Yajurveda) __________________________________________________________________ 87
2.1.3 सामिेद (Samaveda) _________________________________________________________________ 87
2.1.4. ऄथिविेद (Atharvaved) _______________________________________________________________ 88

2.2 संहहताएं (Samhitas) __________________________________________________________________ 89

2.3 ब्राह्मण और अरण्यक ( Brahmans and Aranyakas) ____________________________________________ 89

2.4 ईपहनषद (Upanishad) _________________________________________________________________ 89

2.5 रामायण और महाभारत __________________________________________________________________ 90

2.6 भगिद्गीता ___________________________________________________________________________ 90

2.7 पुराण (Purans) ______________________________________________________________________ 91

3. पािी और प्राकृ त साहहत्य (Pali and Prakrit Literature) ____________________________________________ 91

3.1 बौद्ध साहहत्य (Buddhist Literature) _______________________________________________________ 91

3.2 जैन साहहत्य (Jaina Literature) ___________________________________________________________ 92

4. ऄन्य संस्कृ त साहहत्य _______________________________________________________________________ 93

5. प्रारंहभक द्रहिड़ साहहत्य (Early Dravidian Literature) _____________________________________________ 94

5.1 तहमि या संगम साहहत्य (Tamil or Sangam literature) __________________________________________ 94


5.1.1 कु छ महत्िपूणव संगम ग्रंथ (Some important Sangam Texts) ___________________________________ 95
5.1.2 संगम युग के महाकाव्य __________________________________________________________________ 95

6. तेिगु साहहत्य ___________________________________________________________________________ 96

7. कन्नड़ साहहत्य ___________________________________________________________________________ 96

8. मियािम साहहत्य ________________________________________________________________________ 97

9. भारत में फारसी साहहत्य (Persian Literature in India) ____________________________________________ 98

10. ईदूव साहहत्य का आहतहास (History of Urdu Literature)____________________________________________ 99

11. हहदी साहहत्य__________________________________________________________________________ 100

12. बांग्िा ______________________________________________________________________________ 102

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13. ऄसमी ______________________________________________________________________________ 103

14. ओहडया _____________________________________________________________________________ 103

15. पंजाबी साहहत्य ________________________________________________________________________ 103

16. राजस्थानी साहहत्य ______________________________________________________________________ 104

17. गुजराती साहहत्य _______________________________________________________________________ 104

18. हसन्धी साहहत्य ________________________________________________________________________ 104

19. मराठी साहहत्य ________________________________________________________________________ 105

20. कश्मीरी साहहत्य _______________________________________________________________________ 105

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1. हड़प्पा सभ्यता की हिहप


 ऄन्िेषणों से यह स्पष्ट होता है कक हड़प्पाइ िोगों ने िेखन किा का अहिष्कार कर हिया था।
यद्यहप हड़प्पाइ हिहप का सबसे पुराना नमूना 1853 में हमिा था और 1923 तक पूरी हिहप
प्रकाश में अ गयी, ककन्तु िह ऄभी तक पढ़ी नहीं जा सकी है। कु छ िोग आसे द्रहिड़ या अद्य-द्रहिड़
भाषा से जोड़ने का प्रयास करते हैं, कु छ िोग संस्कृ त से तो कु छ िोग सुमेरी भाषा से , परन्तु आनमें
से कोइ भी मत संतोषप्रद नहीं है। हिहप न पढ़े जाने के कारण साहहत्य में हड़प्पाइ िोगों का क्या
योगदान रहा आस हिषय में कु छ कहा नहीं जा सकता।
 पत्थर की मुहरों और ऄन्य िस्तुओं पर हड़प्पाइ िेखन के िगभग 4000 नमूने प्राप्त हुए हैं।
हड़प्पाइ िोगों के ऄहभिेख ईतने िम्बे-िम्बे नहीं हैं हजतने हमस्र और मेसोपोटाहमयाइ िोगों के हैं।
ऄहधकााँश ऄहभिेख मुहरों पर हैं और हर एक में दो-चार ही शब्द हैं। आन मुहरों का प्रयोग धनाढ्य
िोग ऄपनी हनजी संपहि को हचहन्हत करने और पहचानने के हिए करते होंगें।
 आस हिहप में कु ि हमिकर 250 से 400 तक हचत्राक्षर (हपक्टोग्राफ) हैं और हचत्र के रूप में हिखा
प्रत्येक ऄक्षर ककसी ध्िहन, भाि या िस्तु का सूचक है। हड़प्पा हिहप िणावत्मक नहीं, बहकक मुख्यतः
हचत्राक्षर है। मेसोपोटाहमया और हमस्र की समकािीन हिहपयों के साथ आसकी तुिना करने के
प्रयास ककये गए हैं। परन्तु यह तो हसधु प्रदेश का अहिष्कार है और पहिम एहशया की हिहपयों से
आसका कोइ सम्बन्ध कदखाइ नहीं देता है।

हड़प्पाइ हिहप सुमरे रयाइ हिहप


 अरम्भ में जैनों ने मुख्यतः ब्राह्मणों द्वारा सम्पोहषत संस्कृ त भाषा का पररत्याग ककया और ऄपने
धमोपदेश के हिए अमिोगों की बोिचाि की प्राकृ त भाषा को ऄपनाया। ईनके धार्ममक ग्रन्थ
ऄधवमागधी भाषा में हिखे गए। ये ग्रन्थ इसा की छठी सदी में गुजरात के िकिभी में ऄंहतम रूप से
संकहित ककये गए। यह हिद्या का एक महत्िपूणव कें द्र था।
 जैनों ने प्राकृ त को ऄपनाया, आससे प्राकृ त भाषा और साहहत्य ऄत्यंत समृद्ध हुअ। प्राकृ त भाषा से
कइ क्षेत्रीय भाषाएाँ हिकहसत हुईं। आनमें हिशेष ईकिेखनीय हैं- शौरसेनी, हजससे मराठी भाषा
हनकिी है। जैनों ने ऄपभ्रंश भाषा में पहिी बार कइ महत्िपूणव ग्रन्थ हिखे और आसका पहिा
व्याकरण तैयार ककया।
 जैन साहहत्य में महाकाव्य, पुराण, अख्याहयका और नाटक हैं। जैनों ने मध्य काि में संस्कृ त का भी
खूब प्रयोग ककया और आसमें बहुत से ग्रन्थ हिखे। ऄंततः जैनों ने कन्नड़ के हिकास में भी यथे्
योगदान कदया; आस भाषा में ईन्होंने प्रचुर िेखन ककया।
 जनसाधारण की भाषा पािी को ऄपनाने से बौद्ध धमव के प्रचार को बि हमिा। आससे अम जनता
में बौद्ध धमव का प्रचार असान हुअ। ऄपने नए धमव के हसद्धांतों का प्रहतपादन करने के हिए बौद्धों
ने नए प्रकार की साहहत्य सजवना की। ईन्होंने ऄपने िेखन से पािी को समृद्ध ककया।
 अरंहभक पािी साहहत्य को तीन कोरटयों में बांटा जा सकता है-
o प्रथम कोरट में बुद्ध के िचन और ईपदेश हैं
o दूसरी में संघ के सदस्यों द्वारा पािनीय हनयम अते हैं
o तीसरी में धम्म का दाशवहनक हििेचन है।

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ब्राह्मी हिहप, पािी भाषा (ऄशोक का ऄहभिेख, हगरनार)

 इसा की प्रथम तीन शताहब्दयों में पािी और संस्कृ त को हमिाकर बौद्धों ने एक नयी भाषा
चिायी, हजसे हमहित संस्कृ त कहते हैं।
 तृतीय शताब्दी इसा-पूिव में प्राकृ त देश भर की संपकव -भाषा का काम करती थी। सम्पूणव देश के
प्रमुख भागों में ऄशोक के हशिािेख प्राकृ त भाषा और ब्राह्मी हिहप में हिखे गए थे। बाद में यह
स्थान संस्कृ त ने िे हिया और देश के कोने -कोने में राजभाषा के रूप में प्रचहित हुयी। यह
हसिहसिा चतुथव शताब्दी इसिी में अकर गुप्त काि में और भी मजबूत हुअ। यद्यहप गुप्त काि के
बाद देश ऄनेक छोटे-छोटे भागों में हिभाहजत हो गया, कफर भी राजकीय दस्तािेज संस्कृ त में ही
हिखे जाते रहे।

ब्राह्मी हिहप ब्राह्मी हिहप (ऄशोक स्तम्भ, सारनाथ)

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 इरान और भारत के संपकव के फिस्िरूप इरानी हिहपकार (काहतब) भारत में िेखन का एक ख़ास
रूप िेकर अये जो अगे चिकर खरो्ी नाम से मशहूर हुअ। यह हिहप ऄरबी की तरह दायीं से
बायीं ओर हिखी जाती है। इसा पूिव तृतीय शताब्दी में पहिमोिर भारत में ऄशोक के कु छ
ऄहभिेख आसी हिहप में हिखे गए हैं। प्राकृ त भाषा में हिखे गए ऄशोक के ये ऄहभिेख साम्राज्य के
ऄहधकााँश भागों में ब्राह्मी हिहप में हिखे गए हैं। ककतु पहिमोिर भाग में ये खरो्ी और ऄरामेआक
हिहपयों में हैं और ऄफगाहनस्तान में आनकी भाषा और हिहप ऄरामेआक और यूनानी दोनों हैं।
ऄशोक द्वारा देश में स्थाहपत की गयी राजनीहतक एकता में एक भाषा और प्रायः एक हिहप ने
एकता सूत्र का काम ककया।

खरो्ी हिहप खरो्ी हिहप

 हद्वतीय शताब्दी के शक शासक रुद्रदामन ने सिवप्रथम हिशुद्ध संस्कृ त भाषा में िम्बे ऄहभिेख जारी
ककये। काव्य शैिी का पहिा नमूना रुद्रदामन का कारठयािाड़ में जूनागढ़ ऄहभिेख है, हजसका
समय िगभग 150 इ. है। आसके बाद से ऄहभिेख पररष्कृ त संस्कृ त भाषा में हिखे जाने िगे।

2. संस्कृ त साहहत्य (Sanskrit Literature)


 यह कइ भारतीय भाषाओं की जननी है। संस्कृ त साहहत्य मुख्य रूप से दो िेहणयों में हिभाहजत है..

िैकदक (Vedic) शास्त्रीय (Classical)


ऊग्िेद, यजुिेद, सामिेद, काव्य, नाटक, प्रबोधक दंतकथाएं, व्याकरण िैज्ञाहनक साहहत्य, हचककत्सा,
ऄथिविेद गहणत, खगोि हिज्ञान अकद

 कु ि हमिाकर यह प्रकृ हत में धमवहनरपेक्ष है।


 िेद, पुराण, ईपहनषद और धमव-सूत्र संस्कृ त में हिखे गए हैं। जेंद ऄिेस्ता भी संस्कृ त में हिखा गया
था।
 ऄष्टाध्यायी - पाहणनी द्वारा हिहखत संस्कृ त का व्याकरण ग्रन्थ है।
 बौद्ध धमव की कु छ महत्िपूणव पुस्तकें जैसे हीनयान सम्प्रदाय की महािस्तु और महायान सम्प्रदाय
की पहित्र पुस्तक िहितहिस्तर भी संस्कृ त में हिखी गइ थी।
 संभितः के िि यही िह भाषा है जो धमव और सीमाओं की बाधा को पार कर गइ है।

2.1 िे द (Ved)
 िेद भारत के प्राचीनतम ज्ञात साहहत्य हैं। िेद संस्कृ त में रचे गए तथा एक पीढी से दूसरी पीढ़ी को
मौहखक रूप में सम्प्रेहषत होते रहे।
 िेद का शाहब्दक ऄथव ‘‘ज्ञान’’ होता है। हहन्दू संस्कृ हत में िेदों को शाश्वत और इश्वर प्रदि ज्ञान माना
गया है। िे समस्त हिश्व को एक मानि पररिार मानते हैं ‘‘िसुधैि कु टुम्बकम।’’

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 िेद चार हैंःः ऊग्िेद, यजुिेद, सामिेद तथा ऄथिविद


े । प्रत्येक िेद के ऄपने ईपहनषद्, अरण्यक
तथा ब्राह्मण ग्रन्थ हैं।
 ऊग्िेद, सामिेद तथा यजुिेद संयुक्त रूप में ‘‘िेदत्रयी’’ के रूप में जाने जाते हैं। कु छ समय बाद
ऄथिविेद को भी आस िगव में सहम्महित कर हिया गया।

िेद की पांडुहिहप

2.1.1 ऊग्िे द (Rigveda)

 ऊग्िेद प्राचीनतम िेद है, हजसमें िैकदक संस्कृ त में 1028 सूहक्तयों का संकिन है। ईनमें से ऄनेक में
प्रकृ हत का सुंदर िणवन है।
 ऄहधकांश ऊचाओं में हिश्व की समृहद्ध की प्राहप्त के हिए इश्वर से प्राथवना की गइ है। ऐसा माना
जाता है कक ये ऊचाएाँ ऊहषयों की स्िच्छन्द ऄहभव्यहक्त हैं जो ईन्होंने आहन्द्रयातीत मानहसक
ऄनुभूहत की ऄिस्था में की थीं।
 आन सुहिख्यात ऊहषयों में िहश्, गौतम, गृत्समद, िामदेि, हिश्वाहमत्र, ऄहत्र अकद हैं।

 ऊग्िेद के प्रमुख देि आन्द्र, ऄहि, िरुण, रुद्र, अकदत्य, िायु, ईषा, ऄकदहत और ऄहश्वनी बंधु हैं।

प्रमुख देहियों में ईषा- प्रभात काि की देिी, िाक- िाणी की देिी और पृथ्िी- भूहम की देिी है।
 ऄहधकांश सूहक्तयों में प्रकृ हत का सुंदर िणवन , सािवभौहमक मान्यता प्राप्त जीिन के ईच्च मूकयों जैसे
कक सत्यिाकदता, इमानदारी, समपवण, त्याग, शीि अकद का िणवन है। यह प्राचीन भारत की

सामाहजक, राजनीहतक और अर्मथक हस्थहत का ज्ञान भी ईपिब्ध कराता है।


 ऊग्िेद के ब्राह्मण ग्रन्थ - कौषीतकी और ऐतरेय

ऊग्िेद की पांडुहिहप (19 िीं शताब्दी में कागज़ पर पुनर्मिहखत) ऊग्िेद की पांडुहिहप

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2.1.2 यजु िे द (Yajurveda)

 ‘यजुिेद’ का ऄथव है ‘कमवकांड’ या ‘पूजा’। आसमें हिहभन्न यज्ञों से सम्बंहधत ऄनु्ान हिहधयों और
मन्त्रों का ईकिेख है। यह यज्ञों के अयोजन को कदशा हनदेश देता है। आसमें गद्य-पद्य दोनों रूपों में
व्याख्याएाँ हैं। यह कमवकाण्ड से संबंहधत पहित्र पुस्तक होने के कारण चारों िेदों में सिावहधक
िोकहप्रय है।
 यजुिेद की दो प्रमुख शाखाएाँ हैं, शुक्ि तथा कृ ष्ण यजुिेद ऄथावत् िाजसनेयी संहहता तथा तैहिरीय
संहहता।
 यजुिेद के दो ब्राह्मण पाठ हैं, हजसमें से तैहिरीय (Taitereya) कृ ष्ण यजुिद
े और शतपथ

(Shatpath) शुक्ि यजुिद


े से सम्बहन्धत है।
 यह ग्रन्थ तत्कािीन भारतीय सामाहजक तथा धार्ममक हस्थहत को दशावता है।

यजुिेद की पांडुहिहप

2.1.3 सामिे द (Samaveda)

 ‘साम’ का ऄथव है ‘संगीत’ ऄथिा ‘गायन’। आसमें 16,000 राग और राहगहनयां या संगीतात्मक सुर
हनहहत हैं।
 आसे संगीत के िेद के रूप में और गंधिविेद को जोकक सामिेद का एक ईपिेद है, संगीत के हिज्ञान के
रूप में माना जाता है।
 तांड्य और जैहमनीय आसके ब्राह्मण ग्रन्थ हैं। तांड्य ब्राह्मण को पंचहिश ब्राह्मण भी कहते हैं क्योंकक
आसमें 25 मण्डि हैं।
 आसके कु ि 1875 मन्त्रों में से के िि 75 मूि हैं, शेष ऊग्िेद से हिए गए हैं। सामिेद में ऊग्िेद की
ऊचाओं का संगीतमय पाठ करने की हिहध का ईकिेख ककया गया है। यह ग्रन्थ भारतीय संगीत के
हिकास का मूि है।

सामिेद

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2.1.4. ऄथिव िे द (Atharvaved)

 आसे ‘ब्रह्मिेद’ के रूप में भी जाना जाता है। आसमें 99 रोगों के ईपचार शाहमि हैं। आस िेद का स्रोत
दो ऊहषयों ऄथिाव (Atharvah) और ऄंहगरस (Angirash) को माना जाता है।
 आसमें देिताओं की स्तुहत के साथ जादू, चमत्कार, हचककत्सा, हिज्ञान और दशवन के भी मन्त्र हैं।
 भूगोि, खगोि, िनस्पहत हिद्या, ऄसंख्य जड़ी-बूरटयााँ, अयुिेद, गंभीर से गंभीर रोगों का हनदान
और ईनकी हचककत्सा, ऄथवशास्त्र के मौहिक हसद्धान्त, राजनीहत के गुह्य तत्त्ि, राष्ट्रभूहम तथा
राष्ट्रभाषा की महहमा, शकयहचककत्सा, कृ हमयों से ईत्पन्न होने िािे रोगों का हििेचन, मृत्यु को दूर
करने के ईपाय, प्रजनन-हिज्ञान ऄकद सैकड़ों िोकोपकारक हिषयों का हनरूपण ऄथिविेद में है।
 ॠग्िेद के ईच्च कोरट के देिताओं को आस िेद में गौण स्थान प्राप्त हुअ है।
 यह ईिर िैकदक काि के पाररिाररक, सामाहजक तथा राजनीहतक जीिन की हिस्तृत जानकारी
प्रदान करता है। आसकी ‘‘पैप्पिाद’’ तथा ‘‘शौनक’’ दो शाखाएाँ हैं।
 ऄथिविेद का ब्राह्मण ग्रन्थ - गोपथ।

ऄथिविद
े की पांडुहिहप
िेदांग
 िेदांग शब्द से ऄहभप्राय है- 'हजसके द्वारा ककसी िस्तु के स्िरूप को समझने में सहायता हमिे'।
 िेदों को जानने के हिए िेदांग ऄथावत् िेदों के ऄंगों को जानना अिश्यक है। िेदों के ये सहायक ग्रंथ
हशक्षा, व्याकरण, ककप (कमवकाण्ड) हनरुक्त ( व्युत्पहि), छंद (छंदहिधान) और ज्योहतष का ज्ञान
देते हैं। छन्द को िेदों का पाद, ककप को हाथ, ज्योहतष को नेत्र, हनरुक्त को कान, हशक्षा को नाक
और व्याकरण को मुख कहा गया है।
 ऄहधकांश साहहत्य आन्हीं हिषयों पर रचे गये हैं। यह सूत्र-शैिी में ईपदेशों के रूप में हिखे गये हैं।
संहक्षप्त शैिी में हनबद्ध हनदेश सूत्र कहिाता हैं। आसका सिावहधक प्रहसद्ध ईदाहरण पाहणहन की
व्याकरण है, हजसे ‘ऄष्टाध्यायी’ कहा जाता है। आसमें व्याकरण के हनयमों का ईकिेख ककया गया है
तथा यह पुस्तक ईस समय के समाज, ऄथवव्यिस्था तथा संस्कृ हत पर भी प्रकाश डािती है।

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2.2 सं हहताएं (Samhitas)

 यह मंत्रों और मंगिकामनाओं की पुस्तकें हैं। सभी चार िेदों की ऄपनी स्ियं की संहहताएं हैं।
हािांकक संहहताएं िैकदक ग्रंथों तक ही सीहमत नहीं हैं बहकक कइ ईिर िैकदक संहहताएं भी हैं।
 संहहताएं मूि रूप से स्तुहतग्रन्थ हैं, परन्तु आसमें व्याख्यायें नहीं हैं।

2.3 ब्राह्मण और अरण्यक ( Brahmans and Aranyakas)

 ब्राह्मण िेदों के बाद हिखे गए और यह िैकदक ऄनु्ानों का एक हिस्तृत हििरण प्रदान करते हैं।
यह हनदेश देते हैं और कमवकांड के हिज्ञान के साथ सम्बद्ध हैं।
 ब्राह्मण के कु छ परिती ऄंशों को ‘अरण्यक’ कहा जाता था। अरण्यक के ऄंहतम भाग दाशवहनक
पुस्तकें हैं, हजसे ‘ईपहनषद’ के नाम से जाना जाता है, जोकक ब्राह्मण ग्रंथों के परिती चरण से
सम्बंहधत हैं।
 अरण्यक अत्मा, जन्म, मृत्यु और आसके अगे के जीिन से सम्बंहधत हैं। िानप्रस्थ अिम में यह
पुरुषों द्वारा ऄध्ययन ककया जाता था और पढ़ाया जाता था।

2.4 ईपहनषद (Upanishad)

 ईपहनषद संस्कृ त शब्द ईप+ हन+ सद के युग्म से व्युत्पन्न है, हजसमें ‘ईप’ का ऄथव है समीप, ‘हन’
ऄथावत हन्ापूिक
व तथा ‘सद’ का ऄथव है बैठना, आस प्रकार ईपहनषद का ऄथव है ‘गुरु के समीप

हन्ापूिक
व बैठना’।

 यह हशष्यों के ऐसे समूह को द्योहतत करता है, जो गुरु-हशष्य परम्परा में गुरु के समीप बैठकर
रहस्यात्मक ज्ञान और हसद्धांतों का ऄजवन करते हैं।
 ईपहनषद भारतीय हचतन की पररणहत को हचहन्हत करते हैं और ये िैकदक साहहत्य के ऄंहतम भाग
हैं। आसमें परम दाशवहनक समस्याओं के ऄमूतव और गूढ़ हिचार- हिमशव समाहिष्ट होते हैं। आन्हें
हिद्यार्मथयों को सबसे ऄंत में पढ़ाया जाता था, आसी कारण आन्हें िेदों का ऄंत कहा जाता है।
 ईपहनषद ब्रह्मांड की ईत्पहि, जीिन और मृत्यु, भौहतक और अध्याहत्मक जगत, ज्ञान की प्रकृ हत
और आसी तरह के कइ ऄन्य प्रश्नों से सम्बंहधत हैं।
 ईपहनषदों की संख्या के हिषय में मतभेद है, परन्तु मुहक्तकोपहनषद में 108 ईपहनषदों का ईकिेख
हमिता है।
 कु छ महत्िपूणव ईपहनषदों के नाम आस प्रकार हैं- इश, के न, कठ, प्रश्न, मुण्डक, मांडूक्य, तैहिरीय,

ऐतरेय, छान्दोग्य, बृहदारण्यक अकद।

ईपहनषद की पांडुहिहप

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2.5 रामायण और महाभारत

 रामायण और महाभारत प्राचीन भारतीय साहहत्य के दो प्रहसद्ध महाकाव्य हैं।


 िाकमीकक की रामायण मूि रामायण है। आसे अकदकाव्य कहा जाता है और महर्मष िाकमीकक को
अकद कहि। रामायण एक अदशव समाज का हचत्र प्रस्तुत करती है।
 दूसरा महाकाव्य, महाभारत, महर्मष व्यास द्वारा रहचत ग्रंथ है।
o यह मूितः संस्कृ त में है।
o प्रारम्भ में आसमें 8800 श्लोक थे, आसे ‘‘जय’’ कहा जाता था ऄथावत् हिजय से सम्बहन्धत ग्रन्थ।
o अगे चिकर आन श्लोकों की संख्या बढ़कर 24000 हो गइ और प्राचीनतम िैकदक जनजाहत के
नाम पर आसे ‘भारत’ के नाम से प्रहसहद्ध हमिी।
o ऄंहतम संकिन 1,00,000 श्लोकों का है, हजसे ‘महाभारत’ या शतसहस्त्री संहहता के रूप में
जाना जाता है।
o यह कौरि-पाण्डि युद्ध से संबंहधत कथात्मक, िणवनात्मक और ईपदेशपरक ग्रंथ है।
 महाभारत और रामायण के हभन्न-हभन्न रूप् ऄनेक भारतीय भाषाओं में पाए जाते हैं। सुहिख्यात
भगित् गीता महाभारत का ही एक भाग है हजसमें दैिी प्रज्ञा का सार है और िास्ति में िह
सािवभौहमक धमवग्रन्थ है। यद्यहप यह ऄत्यंत प्राचीन धार्ममक ग्रंथ है तथा आसकी मौहिक हशक्षाएाँ
अज भी प्रयोग की जाती हैं।

रामायण की पांडुहिहप महाभारत की पांडुहिहप

2.6 भगिद्गीता
 भगिद्गीता में िीकृ ष्ण ने ऄजुवन को एक योद्धा और राजा के
कतवव्यों को समझाया और हिहभन्न यौहगक तथा िेदाहन्तक
दशवनों को ईदाहरणों तथा समानान्तर कथानकों से स्पष्ट
ककया।
 गीता हहन्दू दशवन का एक संहक्षप्त ग्रन्थ और जीिन के हिए
एक संहक्षप्त, सारगर्ममत हनदेहशका है।
 अधुहनक युग में स्िामी हििेकानन्द, बाि गंगाधर हतिक,
महात्मा गांधी तथा बहुत से ऄन्य िोगों ने भारतीय
स्ितंत्रता अंदोिन में गीता से ही प्रेरणा प्राप्त की। ऐसा
आसहिए था क्योंकक भगिद्गीता मानिीय कमों में
सकारात्मकता को प्रधानता देती है।
 यह इश्वर और मनुष्य दोनों के ही प्रहत हबना फि की
हचन्ता ककए ऄपने कतवव्य का पािन करने की प्रेरणा देती
है।

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2.7 पु राण (Purans)

 ‘पुराण’ शब्द का ऄथव है ‘ककसी पुराने का निीनीकरण करना’। पुराण हहदुओं के पहित्र साहहत्य में
एक ऄहद्वतीय स्थान रखते हैं। महत्ि के अधार पर िेद और महाकाव्यों के बाद आनका ऄगिा स्थान
है।
 िगभग सदैि आसका ईकिेख आहतहास के साथ ककया जाता है। िेदों की सत्यता को स्पष्ट करने और
आनकी व्याख्या करने के हिए पुराण हिखे गए थे।
 पुराण पौराहणक या ऄयथाथव कायव हैं जो दृष्टान्तों और दंतकथाओं के माध्यम से धार्ममक और
अध्याहत्मक संदश े ों का प्रचार कर रहे हैं। ये महाभारत और रामायण जैसे दो प्रमुख महाकाव्यों की
पंहक्तयों का पािन करते हैं।
 अरंहभक पुराण गुप्त काि में संकहित ककए गए। आसके ईद्भि को समय से काफी पीछे जा के खोजा
जा सकता है जब बौद्ध धमव महत्ि प्राप्त कर रहा था और ब्राह्मणिादी संस्कृ हत का प्रमुख प्रहतद्वंद्वी
था।
 ऐसा कहा जाता है कक पुराण संख्या में ऄठारह है और िगभग आतनी ही संख्या ईपपुराणों की भी
है।
 पुराणों के मुख्यतः पााँच हिषय हैं- सगव, प्रहतसगव, मन्िंतर, िंश, िंशानुचररत।
 कु छ ज्ञात पुराण हैं- ब्रह्म, भागित, पद्म, हिष्णु, िायु, ऄहि, मत्स्य और गरुड़।

भागित पुराण की पांडुहिहप


3. पािी और प्राकृ त साहहत्य (Pali and Prakrit
Literature)
 पािी और प्राकृ त दोनों िैकदक काि के बाद भारतीयों द्वारा बोिी जाने िािी भाषाएाँ थीं। व्यापक
दृहष्ट से देखें तो प्राकृ त ऐसी ककसी भी भाषा को आंहगत करती थी जो मानक भाषा संस्कृ त से ककसी
रूप में हनकिी हो।
 पाहि एक ऄप्रचहित प्राकृ त है। आन्हें बौद्ध और जैन मतों ने प्राचीन भारत में ऄपनी पहित्र भाषा के
रूप में ऄपनाया था। भगिान बुद्ध ने ऄपने ईपदेशों में पाहि भाषा का प्रयोग ककया।

3.1 बौद्ध साहहत्य (Buddhist Literature)


 बौद्ध साहहत्य मुख्यतः दो प्रकार के हैं।
o हिहहत साहहत्य (Canonical Literature)- यह पािी में हिखा है। यह हत्रहपटकों में सिोिम
रूप से प्रदर्मशत होता है। आसमें तीन हपटकों का संकिन है-

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 हिनय हपटक (Vinaya Pitaka) -बौद्ध मठिाहसयों के संबंध में मठिासीय हनयम
शाहमि हैं।
 सुिहपटक (Suttapitaka) - बुद्ध के भाषणों और संिादों का एक संग्रह है।
 ऄहभधम्महपटक (Abhidhamma Pitaka)- नीहतशास्त्र, मनोहिज्ञान या ज्ञान के
हसद्धान्त से जुड़े हिहभन्न हिषयों का िणवन करती है।
o गैर हिहहत साहहत्य (Non canonical Literature) - आसमें जातक काथाएं सहम्महित हैं
हजसमें बुद्ध के पूिव जन्मों से संबंहधत कथाओं का िणवन है। ये कहाहनयां बौद्ध धमव के हसद्धान्तों
का प्रचार करती हैं तथा संस्कृ त एिं पाहि दोनों में ईपिब्ध हैं।
 जातक (Jataks): ये छठी शताब्दी इसा पूिव से िेकर दूसरी शताब्दी इसा पूिव तक के
सामाहजक और अर्मथक हस्थहत पर ऄमूकय प्रकाश डािते हैं। ये बुद्ध काि में राजनीहतक
घटनाओं के हिए प्रासंहगक संदभव भी प्रस्तुत करते हैं।

जातकमािा पांडुहिहप (8 िीं- 9 िीं शताब्दी)


 थेरीगाथा (Therigatha): यह अत्मत्याग ऄथिा संन्यास के प्रहत हस्त्रयों के ऄनुभि का िणवन
करता है। यह आसहिए भी महत्िपूणव है क्योंकक यह कु छ प्राचीन ईपिब्ध भारतीय ग्रंथों में से एक
है हजसके संकिन का िेय हस्त्रयों को कदया जाता है।
 पािी या िीिंकाइ आहतहास दीपिंश (Dipavamsa) और महािंश (Mahavamsa) में हसहि
नरेशों, बुद्ध के जीिन का ऐहतहाहसक और पौराहणक अख्यान, तीनों संगीहतयों अकद का िणवन
ईपिब्ध होता है। यह भारत के बाहर बौद्ध धमव के प्रसार का ऄध्ययन करने के हिए भी एक
ऄत्यन्त महत्िपूणव स्रोत है।
 बौद्ध साहहत्य संस्कृ त में भी प्रचुर मात्रा में ईपिब्ध हैं। ईदहारणतः ऄश्वघोष द्वारा रहचत
बुद्धचररत, सौंदरानन्द, साररपुत्रप्रकरण, िज्रसूची अकद।

3.2 जै न साहहत्य (Jaina Literature)


प्राकृ त साहहत्य:
 प्राकृ त साहहत्य जैन धमव के आहतहास और हसद्धांतों, प्रहतद्वंद्वी सम्प्रदायों के हसद्धांतों, संतों के जीिन
की कहाहनयों और संघ में हभक्षुओं और हभक्षुहणयों के जीिन के सम्बन्ध में ज्ञान प्रदान करता है।
 तत्कािीन समय के सांस्कृ हतक आहतहास के ऄन्य पहिुओं के बारे में जानकारी के हिए भी आन ग्रंथों
का प्रयोग ककया जा सकता है।
 जैन ग्रंथ प्राकृ त भाषा में हिखे गए थे और गुजरात के िकिभी में छठी शताब्दी इस्िी में ऄंहतम रूप
से संकहित ककए गए थे।
 जैन साहहत्य को ‘अगम’ (हसद्धांत) कहा जाता है, आसके ऄंतगवत महत्िपूणव संकिन को ऄंग
(Angas), ईपांग (Upangas), प्रकीणव (Prakirnas), छेदसूत्र (ChhedabSutras) और

मूिसूत्र (Mulasutras), ऄनुयोग सूत्र तथा नंकदसूत्र के रूप में जाना जाता है।

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 जैन धमव ने एक समृद्ध साहहत्य के हिकास में योगदान कदया हजसमें कहिता, दशवन और व्याकरण
समाहिष्ट हैं।
 प्राकृ त, संस्कृ त और ऄपभ्रंश भाषा के िृहत जैन हशक्षाप्रद या नीहतपरक कहानी (कथा) तथा
साहहत्य तत्कािीन समय के अम जन-जीिन का दृष्टांत ईपिब्ध कराते हैं।
 जैन ग्रंथ व्यापार और व्यापाररयों के बारे में प्रायः ईकिेख करते हैं। आनमें ऐसे बहुत से ऄितरण हैं
जो पूिी ईिर प्रदेश और हबहार के राजनीहतक आहतहास की पुनसंरचना करने में हमारी सहायता
करते हैं।
 जैन ग्रन्थ सामान्यतः चररत्र में नीहतपरक और हशक्षाप्रद हैं। आन्हें प्राकृ त के कु छ रूपों में हिखा गया
है।
 जैन साहहत्य संस्कृ त भाषा में भी ईपिब्ध हैं, जैसे 906 इसिी में हसद्धराहश द्वारा हिहखत

ईपहमहतभि प्रपंच कथा (Upamitibhava Prapancha Katha)।


 आनके ऄहतररक्त कु छ ऄन्य जैन संस्कृ त ग्रन्थ ि ईनके िेखक - तत्िाथावहधगम सूत्र (ईमास्िामी),

न्यायाितार (हसद्धसेन कदिाकर), द्रव्य संग्रह (नेहमचंद्र), स्यादिादमंजरी (महकिसेन)।

4. ऄन्य संस्कृ त साहहत्य


 भारत में हिहभन्न हिज्ञानों, हिहध, औषहध, व्याकरण अकद के ग्रन्थों का एक बहुत बड़ा भण्डार है।
आसी िगव में हिहध-हिधान संबंधी ग्रंथ भी अते हैं, हजन्हें ‘धमव सूत्र’ तथा ‘स्मृहत’ कहते हैं। दोनों को
हमिाकर ‘धमवशास्त्र’ कहा गया है।

 धमवसूत्रों को 500-200 इ.पू. के मध्य संकहित ककया गया। आनमें हिहभन्न िणों के साथ-साथ
राजाओं और ईनके कमवचाररयों के कतवव्य बताए गए हैं।
 आनमें संपहि रखने , बेचने और आसके ईिराहधकार के हनयम कदए गए हैं। ईनमें चोरी, अक्रमण,

हत्या, यौनाचार अकद के दोषी िोगों के हिए सजा भी हनधावररत की गइ है।


 मनुस्मृहत समाज में स्त्री और पुरुष की भूहमका, ईनके हिए अचार-संहहता तथा ईनके अपसी
संबंधों के बारे में बताती है।
 कौरटकय द्वारा रहचत ‘ऄथवशास्त्र’ मौयवकाि का सबसे महत्िपूणव ग्रंथ है। यह ग्रंथ ईस समय के समाज
की दशा और ऄथव-व्यिस्था को दशावता है। प्राचीन-भारत की राज व्यिस्था और ऄथव-व्यिस्था के
ऄध्ययन के हिए यह ग्रंथ प्रचुर सामग्री ईपिब्ध कराता है।
 भास, शूद्रक, काहिदास और बाणभट्ट की रचनाएाँ गुप्त और हषव कािीन, ईिरी तथा मध्य भारत के
सामाहजक एिं सांस्कृ हतक जीिन की झिक देती हैं। गुप्तकाि में ही पाहणहन और पतंजहि के
संस्कृ त व्याकरण पर अधाररत व्याकरण ग्रन्थों का हिकास हुअ।
 कु षाण राजाओं ने संस्कृ त के हिद्वानों को संरक्षण कदया। ऄश्वघोष ने ‘‘बुद्धचररतम’’ की रचना की

है, हजसमें बुद्ध का जीिन चररत्र है। ईन्होंने ‘‘सौन्दरानन्द’’ भी हिखा जो संस्कृ त भाषा की एक िे्
कृ हत है।
 भारतिषव में गहणत, खगोि, ज्योहतष, कृ हष तथा भूगोि जैसे हिषयों पर महान साहहत्य हिखा
गया। चरक ने हचककत्सा शास्त्र तथा सुित
ु ने शकय हचककत्सा संबंधी ग्रन्थ हिखे। माधि ने
‘‘औषहधहिज्ञान ग्रंथ’’ की रचना की।
 िाराहहमहहर तथा अयवभट्ट द्वारा ऄंतररक्ष हिज्ञान पर तथा िगधाचायव द्वारा ज्योहतष शास्त्र पर
रहचत पुस्तक बहुत प्रहसद्ध हैं।
 बृहत् संहहता, अयवभट्टीयम् तथा िेदांग ज्योहतष ऄतुिनीय ग्रन्थ हैं।

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 ‘गुप्त काि’ भारत की संस्कृ हत का स्िणवकाि माना जाता है। गुप्तकािीन राजाओं ने शास्त्रीय संस्कृ त
साहहत्य को बढ़ािा कदया। िे संस्कृ त के कहि तथा हिद्वानों की सहायता करते थे। आससे संस्कृ त
भाषा समृद्ध हुइ।
 िास्ति में आस काि में संस्कृ त भाषा सभ्य तथा हशहक्षत िोगों की भाषा बन गइ। आस काि में बहुत
से महान कहियों, नाटककारों और हिद्वानों ने ईच्चकोरट के संस्कृ त साहहत्य का सृजन ककया-
o काहिदास- कहि काहिदास ने ऄनेक सुंदर कहिताएं और नाटक हिखे। संस्कृ त में ईनको काव्य
साहहत्य का ‘रत्न’ माना जाता है। ईनकी अियवजनक हिद्वता दो खण्ड काव्य ‘मेघदूत’ तथा
‘ऊतुसह
ं ार’, दो महाकाव्य ‘‘कु मारसंभि’’ और ‘‘रघुिश
ं ’’ अकद महान काव्यों में देखी जा
सकती है। ‘‘ऄहभज्ञानशाकु न्तिम’’ तथा ‘‘हिक्रमोिवशीयम’’, ‘‘मािहिकाहिहमत्रम्’’ ईनके
सुप्रहसद्ध नाटक हैं।
o हिशाखदत- हिशाखदत ईस समय के एक ऄन्य महान नाटककार है। अपने ‘‘मुद्राराक्षस’’ तथा
‘‘देि चन्द्रगुप्त’’ जैसे दो ऐहतहाहसक नाटक रचे।
o शूद्रक- अपने ‘‘मृच्छकरटकम् (हमट्टी की गाड़ी)’’ जैसा सामहयक नाटक हिखा। यह ईस काि
की सामाहजक तथा सांस्कृ हतक हस्थहतयों का स्रोत है।
o हररसेण- हररसेण गुप्त काि के ऄनेक महान कहियों तथा नाटककारों में एक थे। अपने
समुद्रगुप्त की िीरता की प्रशंसा में ऄनेक कहिताएं हिखी। यह प्रयाग प्रशहस्त पर स्पष्ट रूप से
देखी जा सकती है।
o भास- अपने ईस समय के जीिनदशवन और हिश्वास तथा संस्कृ हत के प्रतीक तेरह नाटक हिखे।
 ईिरी भारत में मध्यकाि के बाद कश्मीर में संस्कृ त साहहत्य का ईदय हुअ। सोमदेि का
‘‘कथासररतसागर’’ तथा ककहण की ‘‘राजतरंहगणी’’ ऐहतहाहसक महत्ि के ग्रंथ हैं। यह कश्मीर के
राजाओं के हिषय में महत्िपूणव सूचनाएाँ देती हैं।
 जयदेि का ‘गीतगोहिद’ आस काि के संस्कृ त साहहत्य की सिोिम रचना है। आसके ऄहतररक्त
हिहभन्न हिषय जैसे किा, िास्तुकिा, हशकपकिा, मूर्मतकिा अकद संबंहधत क्षेत्रों में भी महत्िपूणव
ग्रन्थ हिखे गए।

5. प्रारं हभक द्रहिड़ साहहत्य (Early Dravidian


Literature)
 भारतीय िोग मुख्य रूप से चार हभन्न पररिारों से संबंहधत भाषाएं बोिते हैं- अहस्िक, द्रहिड़,
चीनी-हतब्बती और भारोपीय (आंडो यूरोपीय)। आन चार हभन्न भाषा समूहों के ऄहतररक्त, आन भाषा
समूहों के साथ-साथ एक भारतीय हिशेषता भी प्रिाहमान है।
 द्रहिड़ साहहत्य में मुख्य रूप से तहमि, तेिग
ु ,ू कन्नड़ और मियािम सहम्महित होते हैं।
 तहमि सबसे पुरानी है, हजसने ऄपने द्रहिड़ चररत्र को सबसे ऄहधक संरहक्षत रखा है। कन्नड़, एक
सांस्कृ हतक भाषा के रूप में िगभग तहमि हजतनी ही प्राचीन है।

5.1 तहमि या सं ग म साहहत्य (Tamil or Sangam literature)


 ‘संगम’ संस्कृ त भाषा का शब्द है हजसका ऄथव है ‘हमिन’। यह प्राचीन भारत में कृ ष्णा और तुंगभद्रा
नकदयों के तहमिकम प्रदेश में तहमि कहियों एिं हिद्वानों का हमिन था।
 संगम संस्कृ हत में सुदरू दहक्षण के मुख्यतः तीन राज्य सहम्महित थे- चोि, चेर और पांड्य। संगम
साहहत्य मुख्य रूप से तहमि भाषा में हिखे गए हैं। आसमें काव्य की दो हिधाएं मुख्य रूप से
प्रचहित थीं-
o ऄहम् (Aham) – हजसका प्रमुख हिषय व्यहक्तपरक प्रेम कहिताएं हैं।
o पुरम (Puram) – हजसका प्रमुख हिषय सािवजहनक कहिता, युद्ध और िीरोहचत कहिताएं हैं।

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 संगम साहहत्य में कु छ महत्िपूणव संग्रह ग्रन्थ हैं, हजनमें से एतुिौके ऄथिा ऄष्टसंग्रह प्रथम संग्रह

ग्रन्थ है हजनमें 8 पद्य संग्रह हैं और पिुप्पातु ऄथिा दशगीत हद्वतीय संग्रह ग्रन्थ हैं जो दस िंबी
कहिताओं का संग्रह है।
 आसके ऄहतररक्त पकदनेकककिकणक्कु तीसरा संग्रह ग्रन्थ है, हजसमें 18 सदाचारपरक गीत हैं। ये
ऄपनी सरितापूणव ऄहभव्यहक्त के हिए हिशेष रूप से जाने जाते हैं। आनकी रचना 473 कहियों

द्वारा की गइ थी, हजनमें से 30 हस्त्रयां थीं, आनमें से ऄिय्यर (Avvaiyar) एक प्रहसद्ध किहयत्री थी।

5.1.1 कु छ महत्िपू णव सं ग म ग्रं थ (Some important Sangam Texts)

 तोिकाहप्पयम (Talakappiyam) - तहमि व्याकरण पर एक ग्रन्थ।


 हतरुक्कु रि (Thirukuural) – यह हतरुिकिुिर द्वारा हिहखत है – यह अदशव जीिन व्यतीत करने
के हिए एक हनयमाििी के रूप में पथप्रदशवक का बोध कराती है। यह जीिन के प्रहत एक
धमवहनरपेक्ष, नैहतक और व्यािहाररक दृहष्टकोण का प्रहतपादन करती है।

5.1.2 सं ग म यु ग के महाकाव्य

 संगम युग में कु ि पांच महाकाव्य हैं- हशिप्पाकदकारम, महणमेखिै, जीिकहचन्तामहण, बियपहत,
कुं डिके हश।
 आन महाकाव्यों के रचनाकाि को तहमि साहहत्य का स्िणवयुग कहा जाता है। आनमें से प्रथम तीन
ही ईपिब्ध हैं-
o हशिप्पाकदकारम (Silappadhikaram) – आिांगोअकदगि (Ilango-Adigal) द्वारा हिहखत
(नुपुर की कहानी), आस ग्रन्थ को तहमि साहहत्य का आहियड माना जाता है।

o महणमेखिै (Manimekalai)- सीतिैसत्त्नार (Chattanar ) द्वारा हिहखत, आस ग्रन्थ को


तहमि साहहत्य का ओहडसी माना जाता है।
o जीिकहचन्तामहण (Jeevakchintamani)- हतरुतक्कदेिर द्वारा हिहखत।
 आन ग्रंथों से तत्कािीन तहमि जन-जीिन तथा समाज के हिषय में हिशद िणवन प्राप्त होता है।
 तहमि साहहत्य की एक और मुख्य हिशेषता िैष्णि भहक्त साहहत्य है। ऄििार (Alvar) और
नयनार (Nayanar) तहमि संत कहियों ने आसे िैष्णि तथा शैि सम्प्रदायों के प्रहत समर्मपत होकर
हिखा और गाया। ऄििार कहियों में से ऄंडाि एक महहिा थी।

ताड़ पत्र पर हिहखत प्राचीन तहमि िेख

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हशिप्पाकदकारम का एक दृश्य हचत्र महणमेखिै का एक दृश्य हचत्र

6. तेि गु साहहत्य
 हिजयनगर काि को तेिगु साहहत्य का स्िणव युग कहा जाता था। बुक्का प्रथम के राजकहि नाचणा
सोमनाथ ने ‘‘ईिरहररिंशम’’ नामक काव्य की रचना की।
 हिजयनगर के महानतम शासक कृ ष्णदेि राय (1509 इ.-29) स्ियं महान कहि थे। ईनकी रचना
‘ऄिमुक्तमाकयद’’ तेिगु साहहत्य में ईत्कृ ष्ट प्रबंध रचना मानी जाती है। ‘ऄष्टकदग्गज’ रूप में प्रख्यात
तेिगु भाषा के अठ महान साहहत्यकार ईनके दरबार की शोभा थे।
 आनमें से ऄकिसनी पेड्डना महानतम साहहत्यकार माने जाते थे, हजन्होंने ‘मनुचररतम’ नामक ग्रंथ
की रचना की। ईन्हें अंध्र कहिता का हपतामाह कहा जाता है। ऄन्य सात कहियों में
‘पाररजातापहरणम’ के रचहयता नंदी हतम्मणा के ऄहतररक्त मदयगरी मकिण, धुजत
व ी,
ऄय्यािाराजू रामभद्र कहि, हपगिी सुराण, रामराज भूषण तथा तेनािी रामकृ ष्ण हैं।
 हशि भक्त धूजवती ने ‘‘किा हहस्तस्िर माहात्म्यम’’ और ‘किाहहस्तस्िर शतकम्’ नामक दो रचनाएाँ
हिखीं।
 हपगिी सुराण ने ‘राघिपांडहियम्’ तथा ‘किापुरानोदयम्’ नामक रचनाएाँ हिखीं। पहिी रचना में
ईन्होंने रामायण और महाभारत की कथा को एक साथ रचने की कोहशश की है। राजहिदूषक
तेनािी रामकृ ष्ण ‘‘पांडुरंग माहात्म्यम’’ के रचनाकार हैं। ईनकी यह रचना तेिुगु साहहत्य की
महान कृ हत मानी जाती है।
 रामराजभूषण ‘‘िासुचररतम’’ के रचनाकार हैं। आन्हें भट्टमूर्मत नाम से भी जाना जाता है।
नरशंभप
ु ांडहियम् तथा हररिंद्र निोपाख्यानम्’ आनकी ऄन्य कृ हतयााँ हैं। यह ‘राघिपाण्डिीयम’ की
पद्धहत पर हिखी काव्य रचना है। आसमें नि और हररिंद्र की कथाएाँ साथ-साथ पढ़ी जा सकती हैं।
 मदयगरी मकिण कृ त ‘राजशेखरचररत’ एक प्रबंध रचना है। आसकी हिषयिस्तु ऄिन्ती के सम्राट
राजशेखर का युद्ध एिं प्रेम है।
 ऄय्यािाराजू रामभद्र ‘रामाम्युदयम’ तथा सकिकथासार संग्रहम् कृ हतयों के रचनाकार हैं।

7. कन्नड़ साहहत्य
 तेिगु रचनाकारों के ऄिािा हिजयनगर शासकों ने कन्नड़ और संस्कृ त िेखकों को भी अिय कदया।
ऄनेक जैन हिद्वानों ने कन्नड़ साहहत्य में योगदान ककया।
 माधि ने पन्द्रहिें तीथंकर पर धमवनाथ पुराण हिखा। जैन हिद्वान ईररत हििास ने ‘धमव परीक्ष ग्रंथ
की रचना की। आस काि की संस्कृ त कृ हतयों में िेदनाथ देहशक का ‘यादिाभ्युदयम्’ तथा
माधिाचायव की ‘पराशरस्मृहत व्याख्या’ शाहमि है।

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 कन्नड़ भाषा का संपूणव हिकास दसिीं शताब्दी के बाद हुअ। कन्नड़ की प्राचीनतम साहहहत्यक कृ हत
‘कहिराजमागव’ है जो राष्ट्रकू ट के राजा नृपतुग
ं ऄधोिषव प्रथम द्वारा हिखी गइ।
 पंपा ने ऄपनी ईत्कृ ष्ट काव्यात्मक कृ हतयााँ ‘अकदपुराण’ और ‘हिक्रमाजुन
व हिजय’ दसिीं शताब्दी इ.
में हिखीं। पम्पा को कन्नड़ कहिता का जनक कहा जाता है। िे चािुक्य नरेश ऄररके शरी के दरबार
में रहते थे। ऄपने काव्यात्मक ज्ञान, सौंदयव के िणवन , चररत्रों की व्याख्या और रसों के सूजन में पंपा
का कोइ जोड़ नहीं है।
 राष्ट्रकू ट राजा कृ ष्ण तृतीय के राज्य में रहने िािे ऄन्य दो कहि पोन्ना और रान्ना थे। पोन्ना ने
‘शांहतपुराण’ नामक एक महाकाव्य हिखा और रान्ना ने ‘ऄहजतनाथ पुराण’ हिखा। आसहिए पंपा,
पोन्ना और राना को ‘रत्नत्रय’ (तीन रत्न) की ईपाहध दी गइ।
 12िीं शताब्दी के ईिराधव में बसिेश्वर का अहिभावि हुअ। ईन्होंने िीरशैि मत का पुन: संघटन
करके कनावटक के धार्ममक एिं सामाहजक जीिन में एक क्राहन्त िा दी।
 बसि तथा ईनके ऄनुयाहययों ने ऄपने मत के प्रचार के हिए बोिचाि की कन्नड भाषा को माध्यम
बनाया। िीरशैि भक्तों ने भहक्त, ज्ञान, िैराग्य, सदाचार एिं
नीहत पर हनराडंबर शैिी में ऄपने ऄनुभिों की बातें सुनाइ, जो
‘िचन साहहत्य’ के नाम से प्रहसद्ध हुइ।
 आस काि में ऄक्का महादेिी एक प्रहसद्ध किहयत्री थीं।
 तेरहिीं शताब्दी में कन्नड़ साहहत्य में नए अयाम जुड़े। हररश्वर ने
‘हररिन्द्र काव्य’ और ‘सोमनाथ चररत’ तथा बंधि
ु माव ने
‘हररिंश- ऄभ्युदय’ और ‘जीिन संबोधन’ की रचना की।
होयसि शासकों के संरक्षण में ऄनेक साहहहत्यक ग्रंथों की रचना
हुइ। रुद्रभट्ट ने ‘जगन्नाथ हिजय’ की रचना की। ऄनदआया का
‘मदनहिजय’ या ‘कहब्बगार काि’ हबना संस्कृ त के ईपयोग के हिशुद्ध कन्नड़ की एक रोचक पुस्तक
है।
 महकिकाजुन
व के द्वारा ककया गया कन्नड़ सूहक्तयों का पहिा संकिन ‘सूहक्तसुधाणवि’ और व्याकरण
पर के सीराजा की ‘शब्दमहणदपवण’ कन्नड़ भाषा की दो ऄन्य महान कृ हतयााँ हैं।
 माना जाता है कक चौदहिीं और सोिहिीं शताब्दी के बीच हिजयनगर के राजाओं के संरक्षण में
कन्नड़ साहहत्य फिा-फू िा। कुं िर व्यास ने ‘भारत’ और नरहरर ने ‘तारि रामायण’ की रचना की।
 सत्रहिीं शताब्दी में िक्ष्मीशा हजन्होंने ‘जाहमनी भारत’ हिखा, ईन्हें कामना-कररकु तिन-चैत्र
(कनावटक की अम्र-ईपिन की बसंत) की ईपाहध हमिी। तत्कािीन समय के ऄन्य महत्िपूणव कहि
महान ‘सिवजन’ थे, जो जनता के कहि के नाम से िोकहप्रय थे। ईनके द्वारा रहचत हत्रपदी सूहक्तयााँ ,
ज्ञान और अचरण का स्रोत हैं।
 कन्नड़ की सम्भितः शायद पहिी ऄहद्वतीय किहयत्री, होनाम्मा, हिशेष रूप से ईकिेखनीय हैं।
ईनकी रचना ‘हाकदबदेय धमव’ (िद्धािान पत्नी का कतवव्य) अचरण मूकयों का सार-संक्षेप है।

8. मियािम साहहत्य
 मियािम भाषा के रि और अस-पास के आिाकों में बोिी जाती है। मियािम भाषा का ईद्भि
िगभग 11िीं शताब्दी में हुअ। 15िीं शताब्दी तक मियािम को एक स्ितंत्र भाषा के रूप में
पहचान हमि गइ।
 ईपिब्ध साहहहत्यक कृ हत 'राम-चररतम' (12िीं सदी के ईिराद्धव या 13िीं सदी के पूिावद्धव में) है।
आसकी हिषयिस्तु रामायण के िंकाकांड की कथा है। के रि के चीरामन नामक कहि ने आसकी
रचना की है।

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 अयविंशज नंपूहतररयों के प्रभाि से के रि में ‘महणप्रिािम्’ नामक हमि भाषा का हिकास हुअ। यह
तहमि और संस्कृ त का हमिण थी। 10िीं और 15िीं सदी इसिी के मध्य ‘महणप्रिाि साहहत्य’ की
ऄत्यहधक पुहष्ट हुइ। आसी महणप्रिाि के माध्यम से संस्कृ त के ऄनेक काव्यरूपों का संक्रमण
मियािम् में हुअ।
 एक तरफ महणप्रिाि साहहत्य का हिकास होता गया तो दूसरी तरफ "पाट्टु" (गीत) नामक
काव्यशाखा की भी िृहद्ध होती गइ। आस शाखा में धार्ममक एिं खेती तथा ऄन्य पेशों से संबद्ध ऄनेक
िोकगीत हैं।
 पंद्रहिीं शताब्दी में अहिभूवत "कृ ष्णगाथा" के िि पुराण का पुनराख्यान मात्र नहीं है बहकक
कृ ष्णगाथा को मियािम् का सिवप्रथम स्ितंत्र महाकाव्य मान सकते हैं।
 ‘‘भाषा कौरटकय’’ और ‘कोकासंकदसन’ मियािम में रहचत दो महान कृ हतयां हैं। आसमें भाषा
कौरटकय ऄथवशास्त्र पर एक रटप्पणी है।
 राम पहणकर और रामानुजन एजहुथाचन मियािम साहहत्य के जाने-माने साहहत्यकार हैं।
 हािांकक ऄन्य दहक्षण भारतीय भाषाओं की तुिना में मियािम भाषा का हिकास बहुत बाद में
हुअ, कफर भी आसने ऄहभव्यहक्त के एक शहक्तशािी माध्यम के रूप में ऄपनी ईपहस्थहत दजव की है।

महणप्रिािम् शैिी (तहमि और संस्कृ त का हमिण)

9. भारत में फारसी साहहत्य (Persian Literature in


India)
 10 िीं शताब्दी के दौरान भारत में तुकों के अगमन के साथ ही देश में फ़ारसी नामक एक नइ
भाषा का अहिभावि हुअ।
 आस्िामी कानून के सार-संग्रह फ़ारसी भाषा में तैयार ककये गए हजनमें भारतीय हिद्वानों का काफी
योग्दान्न रहा। आनमें से सिावहधक प्रहसद्ध था कफ़क-ए-कफरोजशाही जो कफ़रोजशाह के शासन काि
में तैयार ककया गया था।
 10 िीं शताब्दी से इरान और मध्य एहशया में फ़ारसी भाषा में ईन्नहत हुइ एिं फारसी भाषा के
कु छ महानतम कहियों जैसे कफ़रदौसी और सादी, एिं रहस्यिादी
प्रेम के महान कहियों जैसे हसनाइ, आराक़ी, जामी, हाकफ़ज़ अकद
ने 10 िीं और 14 िीं शताहब्दयों के मध्य ऄपनी-ऄपनी रचनायें
हिखीं।
 अरम्भ से ही तुकों ने भारत में साहहत्य और प्रशासन की भाषा के
तौर पर फारसी को ऄपनाया तथा िाहौर फारसी भाषा के
ऄध्ययन का पहिा कें द्र बना।
 गजनिी और गौरी िंश के साथ आसका भारत में अगमन हुअ।
हखिजी काि भारत में फारसी साहहत्य का महत्िपूणव काि था।
और आस ऄिहध के दो महत्िपूणव व्यहक्तत्ि थे - ऄमीर खुसरो तथा
शेख नज्मुद्दीन हसन (हसन-ए-देहििी)। हजन्होंने भारत में फारसी साहहत्य के प्रसार की कदशा में
महत्िपूणव योगदान कदया।

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ऄमीर खुसरो :
 ख़ुसरो ने फ़ारसी की एक नइ शैिी हिकहसत की हजसे सबक़-ए-हहन्दी या भारत की शैिी कहा
जाने िगा।
ऄमीर खुसरो
 फारसी में खुसरो की पांच महत्िपूणव साहहहत्यक कृ हतयााँ हनम्नहिहखत हैं-
o (1) खमसा (Khamsa) (2) हस्तरीन खुसरो (Stirin khusrau) (3) िैिा-मजनू (Laila-
Majnun) (4) अआन-ए-हसकं दरी (Aina-i-Sikandari) (5) हश्त-बहहश्त (Hast –
Bihisht)।
 आसके ऄहतररक्त खुसरो की कु छ ऄन्य महत्िपूणव कृ हतयां भी सहम्महित हैं – मसनिी, दीिान,
ककरान-ईस-सादेन, खज़ाआन-ईि-फु तूह (Khaza-in-ul-Futuh), तुगिक नामा (Tughlaq
Nama), हमफ्ताह-ईि-फु तूह (Miftah-ul-Futah), नूह हशपहर (Nuh-Siphir)।
 आस काि में पयावप्त रूप से फ़ारसी में आहतहास िेखन का कायव भी हुअ। आस काि के प्रहसद्ध
आहतहासकार हमन्हाज़ हसराज़, हजयाईद्दीन बरनी, ऄफीफ़ एिं आसामी थे।
 मुग़ि काि में बादशाहों ने ऄपनी जीिहनयााँ हिखकर ऐहतहाहसक चेतना का प्रमाण कदया। साथ
ही आन्होंने ऄपना आहतहास हिखिाने के हिए ईस समय के प्रहसद्ध आहतहासकारों और िेखकों को
हनयुक्त ककया। गैर- सरकारी आहतहासकारों का भी मुग़ि कािीन आहतहास िेखन के हिकास में
महत्िपूणव योगदान रहा। आनके ईदाहरण हनम्निहखत हैं-
o बाबर ने तुकी में तुज़क
ु -ए-बाबरी (बाबरनामा) हिखा था, हजसका पहिे शेख़ जेतुद्दीन ख्िाज़ा
द्वारा और बाद में ऄब्दुि रहीम खान-ए-खाना द्वारा फ़ारसी में ऄनुिाद ककया गया।
o हुमायूं नामा ईसकी बहन गुिबदन बेगम द्वारा फ़ारसी भाषा में हिखी गइ।
o ऄकबरनामा ऄबुि फजि द्वारा तथा तुज़क
ु -ए- जहांगीरी (Tuzuk-i-jahangiri) स्ियं
जहांगीर द्वारा हिखा गया था।
o ऄकबरनामा, पादशाहनामा, अिमगीरनामा मुग़ि कािीन सरकारी आहतहास के ईकिेखनीय
ईदाहरण हैं।
o आनके ऄहतररक्त आस काि में तारीख-ए-रशीदी, कानूने हुमायून
ाँ ी, तजककरातुि िाकयात,
िाकयात-ए-मुश्ताकी, ऄकबरनामा के भाग के रूप में अआन-ए-ऄकबरी, तबकात-ए-ऄकबरी,
मुन्तखब-ईत-तिारीख अकद महत्िपूणव रचनाएं की गईं।

10. ईदूव साहहत्य का आहतहास (History of Urdu


Literature)
 चौदहिीं शताब्दी के ऄंत तक ईदूव एक स्ितंत्र भाषा के रूप में स्थाहपत होने िगी। तुकी िोग
कदकिी पर हिजय (1192 इ.) के ईपरांत आस क्षेत्र में ही बस गए। ईदूव का जन्म आन नए हनिाहसयों
तथा हशहिर में रहने िािे सैहनकों की अम िोगों के बीच की
ऄन्तःकक्रया से हुअ।
 पहिमी सौरसेनी ऄपभ्रंश ईदूव के व्याकरण हिन्यास का स्त्रोत है,
जबकक आस भाषा का शब्द संग्रह, ईसके मुहािरे और साहहहत्यक
परम्पराएं तुकी और फारसी से काफी प्रभाहित हैं। ऄमीर खुसरो ने
सबसे पहिे साहहहत्यक ईद्देश्यों के हिए आस भाषा का प्रयोग ककया।
 ईदूव को सबसे पहिे दरबारी संरक्षण दहक्षण भारत के गोिकुं डा
(ितवमान हैदराबाद) और बीजापुर में हमिा, आसहिए आसे दक्खनी
कहा गया। आस भाषा में मौजूद प्राचीनतम कृ हत कदमराि पदमराि
एक काव्यात्मक हििरण है, हजसे हनज़ामी (1421-1434) ने हिखा
और आसके ऄिािा िजही द्वारा रहचत सबरस (1655) रूपक है, जो ईनकी मौत के काफ़ी बाद में
प्रकाहशत हुइ।

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 18िीं और 19िीं शताब्दी को शास्त्रीय ईदूव साहहत्य का स्िर्मणम काि माना जाता है।
 आस काि के महान् िेखकों में - मीर तक़ी मीर (मृत्यु- 1810), सौदा (मृत्यु-1781), ख़्िाजा मीर
ददव (मृत्यु-1784), आंशा (मृत्यु-1817), मुशाफ़ी (मृत्यु-1824), नाहसख (मृत्यु-1838), अहतश
(मृत्यु-1847), मोहमन (मृत्यु-1852), ज़ौक (मृत्यु-1854) और ग़ाहिब (मृत्यु- 1869) शाहमि हैं।
हमज़ाव ग़ाहिब
 सभी िणवनात्मक और कथात्मक ईदेश्यों के हिए मसनिी शैिी को पसंद ककया जाता था, क्योंकक
आसमें बहुत स्ितंत्रता थी (के िि प्रत्येक शेर की पहक्तयों का क़ाकफ़या हमिना चाहहए था)।
 दक्कन में सभी प्रमुख शायरों ने कम से कम एक िंबी मसनिी हिखी, िेककन ईनकी बोिी से
ऄपररचय के कारण ईन्हें ईतनी प्रशंसा नहीं हमिी। ऄत: ऄहधक प्रहसद्ध मसनहियां कदकिी ि
िखनउ के बाद के शायरों, जैसे मीर, मीर हसन, दया शंकर नसीम और हमज़ाव ज़ौक़ ने हिखीं।
 िणवनात्मक मसनहियों के हिषय, दैहनक जीिन की घटनाओं से बादशाहों की हशकार यात्राओं तक
और प्रकृ हत की हिहभन्न ऊतुओं के रंगों से अत्मकथात्मक हनबंधों तक हिस्तृत थे। कथात्मक
मसनहियां ऄपेक्षाकृ त िंबी होती हैं और ईनमें हज़ारों शेर होते हैं। दक्कन में बहुत से शायरों ने
फ़ारसी मसनहियों के संहक्षप्त रूपांतरण हिखे , िेककन बहुत से ऄन्य रचनाकारों ने मूि रचनाएं
हिखीं, हजनमें भारतीय और साथ ही फ़ारसी ि ऄरबी रूमाहनयत थी।
 आन मसनहियों में फ़ारसी ि ऄरबी कहिताओं से प्रेररत नायकों के नामों के ऄिािा बाक़ी सब कु छ
स्थानीय था। कु दरती नज़ारे, शहरी जीिन, जुिूस, परंपराएं, रीहत-ररिाज, सामाहजक मूकय और
पाबंकदयााँ यहां तक कक िोगों के रूप-रंग भी पूरी तरह भारतीय थे, हािांकक िे मुख्यत: मुसिमान
और सामंती थे।
 ऄपनी िंबाइ के बािजूद आन रचनाओं को बहुत िोकहप्रयता हमिी और कम से कम ईिरी भारत में
आन्हें सािवजहनक स्थानों पर ऄक्सर ईसी तरह पढ़ा जाता था, जैसे कथािाचक कथाएं सुनाते हैं।
 मसनिी शैिी का कु छ हहदी सूफ़ी कहियों ने भी ईपयोग ककया।
 एक ऄन्य शैिी मर्मसया है, हजसका ऄथव शोकगीत है, िेककन ईदूव साहहत्य में अमतौर पर आसका
ऄथव हुसैन (मुहम्मद के पोते) के पररिार ि ररश्तेदारों के कष्टों पर शोकगीत और आराक़ के कबविा में
ईनकी क़ु बावनी है। ये शोकगीत और ऄन्य हििाप गीत सािवजहनक जनसमूह में पढ़े जाते हैं, ख़ासकर
मुहरवम के महीने में।
11. हहदी साहहत्य
 हहन्दी भारत और हिश्व में सिावहधक बोिी जाने िािी भाषाओं में से एक है। आसकी जड़ें प्राचीन
भारत की संस्कृ त भाषा में तिाशी जा सकती हैं। परंतु हहन्दी साहहत्य की जड़ें मध्ययुगीन भारत
की ब्रजभाषा, ऄिधी, मैहथिी और मारिाड़ी जैसी भाषाओं के साहहत्य में पाइ जाती हैं।
 हहदी में गद्य का हिकास बहुत बाद में हुअ और आसने ऄपनी
शुरुअत कहिता के माध्यम से की जो कक ज्यादातर िोकभाषा
के साथ प्रयोग कर हिकहसत की गइ।
 हहदी में तीन प्रकार का साहहत्य हमिता है। गद्य, पद्य और
चम्पू।
 ‘पृथ्िीराज रासो’ को हहन्दी भाषा की पहिी पुस्तक माना जाता
है। यह कदकिी के राजा पृथ्िीराज चौहान की िीरता का िेखा-
जोखा है। आसके ऄनुकरण में ऄनेक रासो ग्रंथों की रचना की
गइ।
 देिकीनन्दन खत्री द्वारा हिहखत ईपन्यास चंद्रकांता हहन्दी की
पहिी प्रामाहणक गद्य रचना मानी जाती है।
 मागवदशवन के हिए हहन्दी साहहत्य ने संस्कृ त के शास्त्रीय ग्रंथों को अधार बनाया और भरत मुहन के
‘नाट्यशास्त्र’ को हहन्दी िेखकों ने ध्यान में रखा।

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 भहक्त अंदोिन की धारा के ईिर भारत पहुाँचने के पिात हहदी साहहत्य की कहिताओं का मुख्य
चररत्र भहक्त रस हो गया। कु छ कहि जैसे तुिसीदास सीहमत क्षेत्र में रहे और ईन्होंने काव्य रचना
ईस क्षेत्र की भाषा में की, जहााँ के िे हनिासी थे।
 दूसरी ओर कबीर जैसे ऄन्य कहि एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमते रहते थे आसहिए ईनकी
कहिता में फारसी के साथ-साथ ईदूव भाषा के शब्द भी अ गए।
 यह सही है कक तुिसीदास ने ‘रामचररतमानस’ की रचना
िाकमीकक रहचत ‘रामायण’ के अधार पर की, ककन्तु
िोककथाओं में ईपिब्ध् कु छ नए दृश्यों और हस्थहतयों को भी
ईन्होंनें आसमें जोड़ा।
 सूरदास ने ‘सूरसागर’ की रचना की। मीराबाइ राजस्थानी
भाषा में पद रचना करती थीं। यद्यहप, रसखान मुसिमान थे,
पर ईन्होंने कृ ष्ण-भहक्त के पद हिखे हैं। कृ ष्ण भक्त कहियों में
एक महत्त्िपूणव नाम नंददास का है। रहीम और भूषण
ऄिगधारा के कहि हैं। आनके काव्य का हिषय भहक्त नहीं, बहकक
अध्याहत्मक था।
 हबहारी ने सत्रहिीं सदी में ‘सतसइ’ हिखी। आनके दोहों में शृंगार
(प्रेम) के साथ ऄन्य रसों का भी सुंदर िणवन है।
 कबीर को छोड़कर ईक्त सभी कहियों ने ऄपनी भािनाओं को
ऄहनिायवतः ऄपनी धार्ममक प्रिृहियों को संतुष्ट करने के हिए
व्यक्त ककया। कबीर संस्थागत धमव में हिश्वास नहीं करते थे। िे
हनराकार इश्वर के भक्त थे। ईस इश्वर का नाम िेना ही ईनके
हिए सब कु छ था। आन सब कहियों ने ईिर भारतीय समाज को
आस प्रकार प्रभाहित ककया जैसा पहिे कभी नहीं हुअ था।
 ईन्नीसिीं सदी के अरंभ में ही हहन्दी गद्य ऄपने सही रूप में अ
सका। भारतेंद ु हररिंद्र हहन्दी के अरंहभक नाटककारों में से एक
थे। ईनके कु छ नाटक संस्कृ त तथा ऄन्य भाषाओं के नाटकों के
ऄनुिाद हैं। ईन्होंने नइ परंपरा की शुरूअत की। आन्होंने हहन्दी
भाषा को बढ़ािा कदया।
 महािीर प्रसाद हद्विेदी एक ऄन्य िेखक थे, हजन्होंने संस्कृ त के
ग्रन्थों का ऄनुिाद ऄथिा रूपांतरण ककया। हहन्दी में स्िामी
दयानंद सरस्िती के योगदान को ऄनदेखा नहीं ककया जा सकता।
मूितः िे गुजराती थे और संस्कृ त के हिद्वान थे, तथाहप ईन्होंने
हहन्दी को पूरे भारत की अम भाषा बनाने का समथवन ककया।
ईन्होंने हहन्दी में हिखना शुरू ककया और धार्ममक तथा सामाहजक
सुधारों से जुड़ी पत्र-पहत्रकाओं में िेख हिखे। हहन्दी में ‘‘सत्याथव
प्रकाश’’ ईनकी सिावहधक महत्त्िपूणव रचना है।
 हहन्दी साहहत्य को हजन िोगों ने समृद्ध बनाया है, ईनमें मुश
ं ी
प्रेमचंद्र का नाम प्रमुख है, हजन्होंने ईदूव से हहन्दी में हिखना
प्रारम्भ ककया।

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 सूयक
व ांत हत्रपाठी ‘हनरािा’ को ख्याहत हमिी क्योंकक ईन्होंने ऄपने साहहत्य के माध्यम से ऄपने
समाज की रूकढ़यों पर प्रश्नहचह्न िगाए। हनरािा अधुहनक भारत के जागृहत के ऄग्रदूत बने।
 महादेिी िमाव पहिी महहिा िेहखका हैं हजन्होंने नाररयों से सम्बद्ध हिषयों पर हिखा। आन्होंने
समाज में महहिाओं की दशा का हिस्तृत िणवन ककया।
 मैहथिीशरण गुप्त एक ऄन्य नाम है जो ईकिेखनीय है। जयशंकर प्रसाद ने ईत्कृ ष्ट नाटक हिखे।
 रामधारी हसह ‘कदनकर’ तथा हररिंशराय बच्चन ने हहन्दी काव्य के हिकास में महान योगदान ककया
है।
 अधुहनक समय में हहन्दी भाषा का हिकास 18िीं सदी के ऄंहतम समय में हुअ। आस काि के प्रमुख
िेखक थे मुश
ं ी सदासुख िाि तथा आन्शाकिाह खान। आसी प्रकार राजा िक्ष्मण हसह ने ‘शाकुं तिम्’
का हहन्दी में ऄनुिाद ककया। आस समय हहन्दी हिपरीत ऄिस्था में भी हिकास कर रही थी क्योंकक
कायावियों का कायव ईदूव में ककया जाता था।

12. बांग्िा
 हहन्दी के बाद सबसे ऄहधक समृद्ध साहहत्य बांग्िा साहहत्य था। भहक्त अंदोिन के हिकास तथा
चैतन्य की हिहभन्न भहक्तपूणव रचनाओं ने बंगािी भाषा को हिकहसत करने में योगदान ककया।
 ‘‘मंगि काव्य’’ के नाम से प्रहसद्ध कथात्मक कहिताएाँ आस काि में बहुत प्रहसद्ध हुईं। ईन्होंने चण्डी
जैसी स्थानीय देहियों की स्तुहत का प्रचार ककया तथा पौराहणक देिों जैसे हशि तथा हिष्णु को
घरेिू देिों के रूप में प्रस्तुत ककया।
 हिहियम करे ने बांग्िा का व्याकरण हिखा और एक ऄंग्रेजी-बांग्िा शब्दकोश भी प्रकाहशत ककया।
आसके ऄहतररक्त ईन्होंने संिाद और कहाहनयों की भी पुस्तकें हिखीं।
 राजा राममोहन राय ने ऄंग्रेजी के ऄिािा बांग्िा में भी हिखा। आससे बांग्िा साहहत्य को बि
हमिा। इश्वरचंद्र हिद्यासागर (1820-91) और ऄक्षय कु मार दि (1820-86) आस अरंहभक ऄिहध्
के दो ऄन्य िेखक थे।
 आनके ऄहतररक्त बंककम चंद्र चटजी (1834-94) और शरत् चंद्र
चटजी (1876-1938) और अर.सी. दि, जो एक जाने माने

आहतहासकार और गद्यिेखक थे, सभी ने बांग्िा साहहत्य में योग

कदया। ककन्तु सिावहधक महत्त्िपूणव नाम रिीन्द्रनाथ टैगोर (1861-


1941) का है, हजन्होंने समस्त भारत को प्रभाहित ककया। ईन्होंने

ईपन्यास, नाटक, िघुकथा, अिोचना, संगीत और हनबंधों की

रचना की। 1913 में ‘गीतांजहि’ के हिए ईन्हें साहहत्य का नोबि


पुरस्कार भी हमिा।
 सन् 1800 तक का ऄहध्कांश साहहत्य धमव या दरबारी साहहत्य तक ही सीहमत था। हिषय
आहिौककक थे। हािााँकक थोड़े बहुत धार्ममक-साहहत्य की रचना भी हुइ, पर ईसमें कु छ नया नहीं
था।
 पहिमी प्रभाि के कारण िेखक अम अदमी के हनकट अए। ईन्नीसिीं सदी के ऄंहतम और बीसिीं
सदी के पूिावद्धव में ‘राष्ट्रिाद’ साहहत्य के एक नए हिषय के रूप में ईभरा। आस नइ प्रिृहि में दो बातें
देखी गइ। एक ओर आहतहास और संस्कृ हत के प्रहत सम्मान और ऄंग्रेजों द्वारा ककए गए शोषण से
सम्बंहधत तथ्यों के संबंध् में जागरूकता।
 िहीं, दूसरी ओर हिदेहशयों को भारत से खदेड़ने के हिए भारतीयों का अह्िान ककया जाने िगा।
आस नइ प्रिृहि को सुब्रह्मण्यम भारती ने तहमि में और बांग्िा में काजी नजरूि आस्िाम ने

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ऄहभव्यक्त ककया। पाठकों में राष्ट्रिादी भािनाअःेःं को जगाने में आन दो िेखकों का योगदान
अियवजनक था। आनके काव्य का ऄनुिाद ऄन्य भारतीय भाषाओं में भी ककया गया।

13. ऄसमी
 ऄसमी भाषा भी भहक्त अंदोिन के कारण हिकहसत हुइ। शंकरदेि ने
ऄसम में िैष्णि धमव का प्रचार ककया और ऄसमी भाषा के हिकास में
योगदान ककया।
 आसके साथ पुराणों का भी ऄसमी भाषा में ऄनुिाद ककया गया। अरंहभक
ऄसमी साहहत्य में बरोंजी (दरबारी आहतहास) प्रमुख था। शंकरदेि ने
ऄनेक धार्ममक कहिताएं हिखी हैं हजन्हें िोग हषोन्मुक्त होकर गाते हैं।
 1827 इ. के बाद ही ऄसमी साहहत्य के सृजन में ऄहधक रुहच कदखाइ देने
िगी। िक्ष्मीकांत बेजबरूअ और पद्मनाभ गोसाईं बरूअ, शंकरदेि
सिावहधक ख्याहत प्राप्त ऄसमी िेखक हैं।

14. ओहडया
 ईड़ीसा से फकीरमोहन सेनापहत और राधनाथ रे के नाम ईकिेखनीय हैं। आनका िेखन ईहड़या
साहहत्य के आहतहास में महत्त्िपूणव स्थान रखता है।
 ओहडया साहहत्य में एक नये युग को जन्म देने का िेय ईपेन्द्र भंजा (1670-1720) को जाता है।
सरिदास काव्य ईहड़या साहहत्य की प्रथम साहहहत्यक कृ हत कहिाती है।

15. पं जाबी साहहत्य


 पंजाबी एक ऐसी भाषा है हजसके ऄनेक प्रहतरूप हैं। यह गुरुमुखी और फारसी दो हिहपयों में हिखी
जाती है। ईन्नीसिीं सदी के ऄंत तक गुरुमुखी हिहप हसखों की धमव-पुस्तक अकद ग्रंथ तक ही सीहमत
रही। गुरुद्वारों में पहित्र ग्रंथ साहब का पाठ करने िािे ग्रंहथयों के ऄिािा बहुत कम िोगों ने आस
हिहप को सीखने का प्रयास ककया। परंतु आस भाषा में साहहत्य का ऄभाि नहीं रहा।
 गुरु नानक पंजाबी के प्रथम कहि थे। कु छ ऄन्य समकािीन कहि, हजनमें ज्यादातर सूफी संत थे,
आस भाषा में गाया करते थे। आन सूकफयों या आनके ऄनुयाहययों ने जब ऄपनी कहिता को हिहखत
रूप देना चाहा तो फारसी हिहप का प्रयोग ककया।
 आन कहियों की सूची में पहिा नाम फरीद का है। ईनके काव्य को अकदग्रंथ में भी स्थान हमिा है।
आस भाषा ने ऄपने अरंहभक कदनों में ही हीर-रांझा, ससी-पुन्नु और सोहनी महीिाि की प्रेम
कहाहनयों को ऄपना मूि हिषय बनाया।
 पूरण भगत की कहानी भी कु छ कहियों के हिए प्रेरणा-स्रोत बनी। स्थानीय रचनाकारों द्वारा
रहचत ऄनेक ऄन्य कथाकाव्य भी हैं।
 आसमें िोक साहहत्य सुरहक्षत रखा गया है। आनमें सिावहधक महत्त्िपूणव है, िाररस शाह की ‘हीर’।
अरंहभक रचनाओं में यह सिावहधक िोकहप्रय है। पंजाबी काव्य में आसका ईकिेखनीय स्थान है।
 बुकिेशाह एक सूफी संत थे ईन्होंने ऄनेक गीत हिखे। ईनकी रचनाओं का एक िोकहप्रय रूप था
कै फी। यह शास्त्रीय तरीके से गाया जाता है। ‘‘कै फी’’ को िोग काफी ईत्साह के साथ अज भी गाते
हैं।
 बीसिीं सदी में, पंजाबी स्ितंत्र भाषा के रूप में स्थाहपत हो गइ। भाइ िीर हसह ने ‘राणा सूरत
हसह’ नामक एक महाकाव्य की रचना की। पूरनहसह और डा. मोहन हसह सबसे प्रहसद्ध िेखकों में
हैं। हनबंध,् िघु कथा, ईपन्यास, अिोचना और िेखन के ऄन्य रूपों ने पंजाबी के साहहहत्यक
पररदृश्य को ऄिंकृत ककया है।

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गुरुमुखी हिहप

16. राजस्थानी साहहत्य


 राजस्थानी, हहन्दी की ही एक बोिी है, पर आसका भी एक ऄपना योगदान है। भाट (घुमत
ं गायक)
एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूम-घूम कर िोगों का मनोरंजन करते रहे और िीरों की कहाहनयों
को ईन्होंने जीहित रखा।
 कनवि टाड ने आन्हीं गाथागीत गायकों से राजस्थान के िीरों की कहाहनयों का संग्रह ककया और आन्हें
एनकस एंड एंटीकिटीज ऑि राजस्थान (राजस्थान का आहतहास और ईसकी प्राचीनता) नामक ग्रंथ
में संकहित ककया।
 मध्यकािीन राजस्थानी साहहत्य कइ स्थानीय बोहियों से प्रभाहित था और कदगि और हपगि
नामक काकपहनक िेखन के दो मुख्य रूप थे। आस संदभव में सबसे प्रहसद्ध ग्रंथ ढोिा मारू है।
 मीराबाइ के धार्ममक गीतों का राजस्थानी भाषा और राजस्थानी धार्ममक संगीत के आहतहास में
गौरिपूणव स्थान है। ऄपने प्रभु (भगिान कृ ष्ण) के प्रहत मीराबाइ का प्रेम कइ बार आतना गहन हो
जाता है कक पाठक को आस िौककक संसार से ईठाकर गाहयका की भािभूहम में िे जाता है।
17. गुज राती साहहत्य
 गुजराती साहहत्य का सबसे पुराना ईदाहरण 12िीं शताब्दी के जैन हिद्वान् और संत हेमचंद्र की
कृ हतयों से हमिता है। यह प्राचीन परंपरा गुजरात में ऄभी भी िोकहप्रय है। आसी प्रकार की एक
कृ हत तरुणप्रभा द्वारा हिहखत 'बािाबोध' है, आसी काि का जैनेतर ग्रंथ 'िसंत-हििास' है।
 15िीं शताब्दी के दो गुजराती भहक्त कहि नरसी मेहता और भकिण (या पुरुषोिम महाराज) थे।
भकिण ने 'भागित पुराण' के 10िें ऄध्याय को छोटे गीहतस्िरूप में ढािा। नरसी मेहता का नाम
आस संबंध् में सिोपरर है।
 गुजरात के िोगों ने ऄपने िोक नृत्यों में आन भहक्त गीतों को सहम्महित कर हिया है और धार्ममक
समारोहों में धार्ममक तरीके से आनकी प्रस्तुहत की जाती है।
 नमवद के काव्य ने गुजराती साहहत्य को एक नइ उजाव दी। गोिधवन राम का ईपन्यास ‘सरस्िती चंद्र’
का स्थान गुजराती साहहत्य की िे् रचनाओं में है और आसने ऄन्य िेखकों को प्रेरणा दी है।
 डॉ. के . एम. मुश
ं ी एक ऄन्य प्रहसद्ध साहहत्यकार हैं। िे ईपन्यासकार, हनबंधकार और आहतहासकार
थे। ‘पृथ्िी िकिभ’ ईनका एक ईत्कृ ष्ट ईपन्यास है।

18. हसन्धी साहहत्य


 हसध् सूकफयों का एक महत्त्िपूणव कें द्र था। सूकफयों ने हिहभन्न स्थानों पर खानकाह स्थाहपत ककए थे।
भहक्त संगीत के दीिाने सूफी गायकों ने आस भाषा को और भी िोकहप्रय बनाया।
 हसन्धी में साहहत्य सृजन का िेय हमजाव कहिश बेग और दीिान कौरामि को जाता है।

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19. मराठी साहहत्य


 महाराष्ट्र एक पठारी प्रदेश है और यहााँ आस क्षेत्र में ऄनेक स्थानीय बोहियों का प्रयोग होता था।
आन्हीं स्थानीय बोहियों से मराठी का जन्म हुअ है।
 पुतवगािी धमव प्रचारकों ने मराठी भाषा का प्रयोग ऄपने धार्ममक
हसद्धांतों का ईपदेश देने के हिए ककया। प्रारंहभक मराठी कहिता
और गद्य की रचना तेरहिीं शताब्दी के संत ज्ञानेश्वर ने की।
ईन्होंने भगिद्गीता की दीघव टीका भी हिखी। ईन्होंने महाराष्ट्र में
कीतवन परंपरा भी अरंभ की।
 आनके बाद नामदेि (1270-1350), गोरा, सेना और जानाबाइ
अए। संत ज्ञानेश्वर आन सबने मराठी भाषा में गीत गाए और आसे
िोकहप्रय बनाया।
 िगभग दो शताहब्दयों के बाद, एकनाथ (1533-99) मराठी
साहहत्य के पररदृश्य पर ईभर कर अए। ईन्होंने रामायण और
भागित् पुराण पर टीकाएाँ हिखीं।
 आसके बाद तुकाराम (1598-1650) का अगमन हुअ। आन्हें सिविे् भक्त कहि माना जाता है।
हशिाजी के गुरु, रामदास (1608-81), आन भक्त-रचनाकारों में ऄंहतम हैं। िे ‘राम’ के भक्त थे।
 ईन्नीसिीं सदी के ऄंहतम िषों में मराठी साहहत्य में एक बड़ा पररितवन अया। राष्ट्रीय अंदोिन ने
मराठी गद्य को ऄत्यहधक िोकहप्रय और हिहशष्ट बनाया। बाि गंगाधर हतिक (1857-1920) ने
मराठी में ऄपना पत्र ‘के सरी’ हनकािना अरंभ ककया। आससे मराठी साहहत्य के हिकास में सहायता
हमिी।
 के शि सुत और िी.एस. हचपिूणकर का योगदान भी कु छ कम न था। हररनारायण अप्टे और
ऄगरकर ने िोकहप्रय ईपन्यास हिखे।
 एच.जी. सािगांिकर का नाम प्रेरक काव्य रचना के हिए याद ककया जाता है। आसके ऄहतररक्त
एम.जी. रानाडे, के .टी. तैिग
ं , जी.टी. माद्योिकर (कहि और ईपन्यासकार) का योगदान भी कम
महत्िपूणव न था।

20. कश्मीरी साहहत्य


 कश्मीर को साहहहत्यक जगत में सम्मानजनक स्थान तब हमिा
जब ककहण ने संस्कृ त में राजतरंहगणी हिखी। ककन्तु यह
ऄहभजात िगव की भाषा में हिखी गइ थी।
 स्थानीय िोगों के हिए कश्मीरी िोकहप्रय भाषा थी। यहााँ भी
भहक्त अंदोिन ने ऄपनी भूहमका हनभाइ।
 चौदहिीं सदी की िािदेबी, कश्मीरी भाषा की संभितः पहिी
किहयत्री थीं। िे शैि रहस्यिादी किहयत्री थीं।
 आस क्षेत्र में आस्िाम के प्रसार के बाद सूफी प्रभाि स्पष्टतः
दृहष्टगोचर होने िगा। हाबा खातून, महजूर, हजदा कौि,
नूरदीन के नाम से हिख्यात नंद ऊहष, ऄख्तर मोहहईद्वीन,
सूफी गुिाम मोहम्मद और दीनानाथ नदीम ने कश्मीरी में भहक्त काव्य की रचना की। आन िोगों ने
कश्मीरी साहहत्य के हिकास में ऄमूकय योगदान कदया।
 ईन्नीसिीं सदी के ऄंत तक पहिमी प्रभाि कश्मीर तक नहीं पहुंचा था। प्रथम हसक्ख युद्ध के बाद
1846 में जम्मू के डोगरा यहां के शासक बने। डोगरा शासक कश्मीरी की ऄपेक्षा डोगरी भाषा में

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ऄहधक रुहच िेते थे। परन्तु, न तो यहां कोइ हिद्यािय था और न ही हशक्षा की ऄच्छी व्यिस्था थी।
चारों ओर गरीबी और अर्मथक हपछड़ापन था। यही कारण है कक कश्मीरी में ऄच्छा साहहत्य नहीं
हिखा जा सका।
संिध
ै ाहनक हस्थहत
 भारत में हिहभन्नता का स्िरूप न के िि भौगोहिक है, बहकक भाषायी तथा सांस्कृ हतक भी है। एक
ररपोटव के ऄनुसार भारत में 1652 मातृभाषायें प्रचिन में हैं, जबकक संहिधान द्वारा 22 भाषाओं
को राजभाषा की मान्यता प्रदान की गयी है।
 संहिधान के ऄनुच्छेद 344 के ऄंतगवत पहिे के िि 15 भाषाओं को राजभाषा की मान्यता दी गयी
थी, िेककन 21िें संहिधान संशोधन के द्वारा हसन्धी को तथा 71िें संहिधान संशोधन द्वारा नेपािी,

कोंकणी तथा महणपुरी को भी राजभाषा का दजाव प्रदान ककया गया। बाद में 92िााँ संहिधान
संशोधन ऄहधहनयम, 2003 के द्वारा संहिधान की अठिीं ऄनुसूची में चार नइ भाषाओं बोडो,

डोगरी, मैहथिी तथा संथािी को राजभाषा में शाहमि कर हिया गया। आस प्रकार ऄब संहिधान में

22 भाषाओं को राजभाषा का दजाव प्रदान ककया गया है।


 आस प्रकार संहिधान की अठिीं ऄनुसूची में हनम्नहिहखत भाषाएाँ सहम्महित हैं-
o ऄसमी, बंगािी, गुजराती, हहन्दी, कश्मीरी, मराठी, ईहड़या, पंजाबी, संस्कृ त, हसन्धी, ईदू,व

तहमि, तेिगु, कन्नड़, मियािम, नेपािी, महणपुरी, कोंकणी, बोडो, मैहथिी, संथािी ि
डोगरी

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भारत का साांस्कृ ततक ाआततहास एवां तवरासत


तवषय सूची

1.1. भीमबेटका की गुफाएां, मध्य प्रदेश __________________________________________________________ 110

1.2. तभतितचत्र, भीमबेटका, मध्य प्रदेश _________________________________________________________ 110

1.3. नगर की योजना, तसन्धु सभ्यता, लोथल, गुजरात ________________________________________________ 110

1.4. मुहर, एकशृग


ां ी, ससधु सभ्यता, हड़प्पा, पाककस्तान ________________________________________________ 111

1.5. नृतयाांगना, काांस्य प्रततमा, ससधु सभ्यता, मोहनजोदड़ो, पाककस्तान _____________________________________ 112

1.6. चौरी/चांवर वाहक (CHAURI BEARER), मौयय काल, पटना, तबहार ____________________________________ 113

1.7. ससह प्रतीक, मौयय काल, सारनाथ, ाईिर प्रदेश ___________________________________________________ 114

1.8. महाकतप जातक, भरहुत स्तूप, मध्य प्रदेश _____________________________________________________ 114

1.9. साांची स्तूप, साांची, मध्य प्रदेश_____________________________________________________________ 115

1.10. बुद्ध की प्रततमा, गाांधार क्षेत्र _____________________________________________________________ 115

1.11. बुद्ध का जीवन, सारनाथ, ाईिर प्रदेश _______________________________________________________ 116

1.12. महावीर जैन की मूर्तत, ततमलनाडु _________________________________________________________ 116

1.13. गोमतेश्वर, श्रवणबेलगोला, कनायटक ________________________________________________________ 117


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1.14. रानी गुफ


ां ा, ाईदयतगरर, ओतड़शा ___________________________________________________________ 117
l.c
ai
gm

1.15. मांकदर क्रमाांक 17, गुप्त काल, साांची, मध्य प्रदेश _________________________________________________ 118
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80
h1

1.16. लौह स्तांभ, गुप्त काल, कदल्ली ____________________________________________________________ 118


ng
si
sh

1.17. बाह्य दृश्य, ाऄजांता गुफाएां, औरांगाबाद, महाराष्ट्र ________________________________________________ 119


ar
ad

1.18. बुद्ध का तचत्र, ाऄजांता, औरांगाबाद, महाराष्ट्र ___________________________________________________ 119

1.19. ाईतकीणय फलक, महाबतलपुरम, ततमलनाडु ____________________________________________________ 120

1.20. तत्रमूर्तत, एतलफें टा, महाराष्ट्र _____________________________________________________________ 120

1.21. सेंथोम कै थीड्रल, चेन्नाइ, ततमलनाडु ________________________________________________________ 121

1.22. ाऄतगयारी, मुब


ां ाइ, महाराष्ट्र ______________________________________________________________ 121

1.23. जामा मतस्जद, कदल्ली _________________________________________________________________ 122

1.24. स्वणय मांकदर, ाऄमृतसर, पांजाब ____________________________________________________________ 122

1.25. पाांच रथ, महाबतलपुरम, ततमलनाडु ________________________________________________________ 123

1.26. कै लाशनाथ मांकदर, कााँचीपुरम, ततमलनाडु ____________________________________________________ 123

107

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1.27. नटराज, कै लाशनाथ मांकदर, काांचीपुरम्, ततमलनाडु _____________________________________________ 124

1.28. नटराज, बादामी, कनायटक ______________________________________________________________ 124

1.29. ाअम दृश्य, मांकदर समूह, पट्टदकल कनायटक ____________________________________________________ 125

1.30. वीरूपाक्ष मांकदर, पट्टदकल, कनायटक ________________________________________________________ 125

1.31. कै लाशनाथ मांकदर, एलोरा, महाराष्ट्र ________________________________________________________ 125

1.32. नटराज, कै लाशनाथ मांकदर, एलोरा, महाराष्ट्र __________________________________________________ 126

1.33. वृहदेश्वर मांकदर, तांजावुर, ततमलनाडु _______________________________________________________ 126

1.34. सोमस्कन्द, राजकीय सांग्रहालय, मद्रास ______________________________________________________ 127

1.35. सूयय मांकदर, मोढ़ेरा, गुजरात _____________________________________________________________ 127

1.36. सूयय की मूर्तत, सूयय मांकदर, मोढ़ेरा, गुजरात ____________________________________________________ 128

1.37. मांकदर समूह, खजुराहो, मध्य प्रदेश _________________________________________________________ 128

1.38. तवश्वनाथ मांकदर, खजुराहो, मध्य प्रदेश______________________________________________________ 129

1.39. मूर्ततमय फलक, लक्ष्मण मांकदर, खजुराहो, मध्य प्रदेश _____________________________________________ 129

1.40. सांगीतकार, खजुराहो, मध्य प्रदेश __________________________________________________________ 130

1.41. बाह्य दृश्य, के शव मांकदर, बेलरू , कनायटक _____________________________________________________ 130

1.42. के शव मांकदर, सोमनाथपुर, कनायटक ________________________________________________________ 131

1.43. मूर्तत-फलक, हेलीतबड, कनायटक ___________________________________________________________ 131

1.44. सूयय मांकदर, कोणाकय , ओतड़शा ____________________________________________________________ 132

1.45. चक्र, सूयय मांकदर, कोणाकय , ओतड़शा _________________________________________________________ 132

1.46. तचतत्रत फलक, नतयक, सूयय मांकदर, कोणाकय , ओतड़शा _____________________________________________ 133

1.47. ताड़ के पिे पर तलखी पाांडुतलतप, तबहार _____________________________________________________ 133

1.48. तभतितचत्र, श्रीनाथजी की ाअराधना, नाथद्वारा राजस्थान__________________________________________ 134

1.49. ग्वातलयर का ककला, ग्वातलयर, मध्य प्रदेश ___________________________________________________ 134

1.50. लक्ष्मी नारायण मांकदर, चम्बा, तहमाचल प्रदेश _________________________________________________ 135

1.51. तवट्ढल मांकदर और रथ, हम्पी, कनायटक _______________________________________________________ 135

1.52. नरससह, तवजयनगर, हम्पी, कनायटक _______________________________________________________ 136

1.53. चौमुखा मांकदर, मााईण्ट ाअबू, राजस्थान _____________________________________________________ 136

1.54. कक्ष, ाईतकीणय स्तांभ एवां सांगमरमर की छत, तवमल वसाही मांकदर, मााउांट ाअबू, राजस्थान ______________________ 137

1.55. प्रततमा, ाईतकीणय स्तांभ, मााउांट ाअबू, राजस्थान _________________________________________________ 137

108

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1.56. कल्पसूत्र, पाांडुतलतप (तततथ ाऄतनतित), पतिमी भारत ____________________________________________ 138

1.57. कु तुब मीनार, कदल्ली__________________________________________________________________ 138

1.58. सुलख
े (खुशनवीसी), कु तुब मीनार, कदल्ली____________________________________________________ 139

1.59. ाऄलााइ दरवाजा, कु तुब पररसर, कदल्ली ______________________________________________________ 139

1.60. तुगलकाबाद, कदल्ली _________________________________________________________________ 140

1.61. ग्यास-ाईद्-दीन तुगलक का मकबरा, तुगलकाबाद, कदल्ली __________________________________________ 140

1.62. कफरोजशाह कोटला, कदल्ली _____________________________________________________________ 141

1.63. कफरोज शाह तुगलक का मकबरा, हौज खास, कदल्ली _____________________________________________ 141

1.64. बड़ा गुम्बद, लोदी बाग, कदल्ली __________________________________________________________ 141

1.65. तसकन्दर लोदी का मकबरा, कदल्ली ________________________________________________________ 142

1.66. जामा मतस्जद, ाऄहमदाबाद, गुजरात _______________________________________________________ 142

1.67. जाली का कायय, ाअांतररक दृश्य, सीदी सैय्यब मतस्जद, ाऄहमदाबाद, गुजरात ______________________________ 143

1.68. गोलकुां डा का ककला, ाअांध्र प्रदेश ___________________________________________________________ 143

1.69. कु रान, सल्तनत, दक्खन _______________________________________________________________ 144

1.70. पाांडुतलतप का तचत्र, हम्जा नामा __________________________________________________________ 144

1.71. ताजमहल, ाअगरा, ाईिर प्रदेश ___________________________________________________________ 144

1.72. चार मीनार, हैदराबाद ाअन्ध्र प्रदेश ________________________________________________________ 145

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1.1. भीमबे ट का की गु फाएां , मध्य प्रदे श

 हमारी साांस्कृ ततक तवरासत की कहानी लगभग 10,000 वषय पुरानी है। सवायतधक प्राचीन
ऐततहातसक काल को पूवय-ऐततहातसक काल ाऄथवा पाषाण युग के नाम से जाना जाता है। ाआस काल
में लोगों ने ाऄतत जल-वृति ाअकद प्राकृ ततक तवपदाओं से बचाव के तलए गुफाओं में ाअश्रय तलया था।
वे तशकार और फल-फू ल एकतत्रत कर जीवन यापन करते थे। ाईन्होंने पतथरों, लकड़ी तथा हतियों से
साधारण औजार भी बना तलए थे।

 यह गुफाएां भोपाल शहर के दतक्षणी कदशा में वहाां से कोाइ पचास ककलोमीटर दूर भीमबेटका में
तस्थत है। ाआन गुफाओं में पतथरों को तराश कर बनाए गए औजार तमले हैं तथा ाआनकी दीवारें
तशकार, सांगीत एवां नृतय ाअकद के दृश्यों से प्रचुर रूप से तचतत्रत हैं। ाआन्हीं सब के कारण ाआन गुफाओं
को, ाआनमें रह चुके लोगों के दैतनक जीवन की जानकारी देने वाला भांडार गृह माना जाता है।

1.2. तभतितचत्र, भीमबे ट का, मध्य प्रदे श

 भीमबेटका की प्राकृ ततक पहाड़ी गुफाओं में तजन लोगों ने ाअश्रय तलया था, ाईन्होंने गुफाओं की
दीवारों की तभतितचत्रों से सजाया। ाआन तभतितचत्रों में ाआस्तेमाल ककए गए रांग ाआस क्षेत्र में तमलने
वाले खतनज पदाथों एवां पतथरों से प्राप्त ककए गए थे।

 ये तभतितचत्र हमें ाआस बात की जानकारी प्रदान करते हैं कक गुफा-तनवासी ककस प्रकार के औजार
ाईपयोग में लाते थे और ककस प्रकार तशकार करते थे। यह भी एक ाअिययजनक बात है कक लगभग
10,000 वषय पूवय मानव ने ऐसे सुन्दर तचत्रों की रचना की जो ाईनके दैतनक जीवन के तवतभन्न पक्षों
को दशायते हैं।

1.3. नगर की योजना, तसन्धु सभ्यता, लोथल, गु ज रात

 करीब 5000 वषय पूवय, तसन्धु नदी के ककनारे एक महतवपूणय सभ्यता तवकतसत हुाइ थी। बाद में की
गाइ खुदााइ से ाआस तथ्य का भी पता चलता है कक ाआस सभ्यता से सम्बतन्धत ाईिर प्रदेश, राजस्थान,

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गुजरात तथा महाराष्ट्र के काइ स्थलों में भी ाआसी प्रकार की नगर-योजना तवद्यमान थी। मानवीय
सभ्यता के प्रारांतभक काल में ाआस प्रकार के सुतनयोतजत नगरों की रचना ससधु सभ्यता की एक
दुलयभ तवशेषता है। नगर-योजना में मुख्य मागों के साथ ाईप-मागय जुड़े थे एवां ाअवासीय क्षेत्र ाऄलग
थे। सभी मकान, यहाां तक कक दो मांतजल ाउांचे मकान भी, ईंट से बनाए जाते थे।

गोदी-बाड़ा (Dockyard), ससधु सभ्यता, लोथल, गुजरात


 ाअांतररक तचत्र गोदी-बाड़े का है। यह माना जाता है कक ससधु सभ्यता के दौरान लोथल एक
बांदरगाह था और ाआस बात के प्रमाण भी तमलते हैं कक भारत और मेसोपोटातमया के बीच
व्यापाररक सांबांध थे। जलपोत काष्ठ से बनते थे और सांभवताः नातवक ाऄपनी यात्राओं के समय चमय
वस्त्र पहनते थे।

1.4. मु ह र, एकशृां गी, ससधु सभ्यता, हड़प्पा, पाककस्तान

 सभ्यता के स्थानों पर की गाइ खुदााइ के दौरान 2000 से भी ज्यादा मुहरें प्राप्त हुाइ हैं। यह मुहरें
चौरस और ाअयताकार हैं। ाआन्हें नमय पतथर से बनाया गया है तथा ाआन पर तचत्र तथा तलतप ाईतकीणय
हैं। ाईतकीणय तचत्रों में साांड, बकरा, भैंस, शेर तथा हाथी ाअकद पशुओं के तचत्र हैं एवां लेखों में दस से
बीस प्रतीक हैं। ये मुहरें , वतयमान में व्यवहार में लााइ जाने वाली मुहरों जैसी ही हैं तथा नमय तमट्टी
की पट्टी पर दबा कर ाऄांककत की जाती थीं। ाआन्हें सांभवताः व्यापाररक कायों तथा सांपति पर
स्वातमतव दशायने हेतु ाआस्तेमाल ककया जाता होगा। प्रस्तुत तचत्र में एक श्रृांगी पौरातणक पशु को देखा
जा सकता हैं। सांभवताः यह ककसी व्यापाररक घराने का व्यापाररक प्रतीक रहा होगा।

तचतत्रत पात्र, ससधु सभ्यता, लोथल, गुजरात


 प्रस्तुत तचत्र दशायया पात्र चाक पर बना है तथा ससधु सभ्यता के दौरान ाआस कला की तवकतसत
तकनीक की जानकारी देता है। यह पात्र सुखाने के पिात् पकाया गया था तथा कफर ाआसकी लाल
सतह पर काले रांग से पतियों, पतक्षयों तथा जानवरों की ाअकृ ततयाां तचतत्रत की गाइ थीं। यह पात्र
काफी बड़ा है। सांभवत: ाआसका ाआस्तेमाल खाद्यान्न या जल को रखने के तलए ककया जाता रहा होगा।

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तमट्टी के तखलौने, ससधु सभ्यता, मोहनजोदड़ो, पाककस्तान


 ससधु घाटी की खुदााइ के दौरान मानव व पशुओं के लघु रूप वाले सैकड़ों तमट्टी के तखलौने प्राप्त हुए
थे। ाआन खोजों से ज्ञात होता है ससधु घाटी के तनवातसयों का प्रकृ तत से गहरा सांबांध था। तचत्र में
दशायया तखलौना तमट्टी से बना है। ाआसका मस्तक ाऄलग से बना कर एक धागे से जोड़ा गया था
तजससे धागे के खींचने पर वह हरकत करता है। नन्हें बच्चों के तलए एक कदलचस्प तखलौना है।

1.5. नृ तयाां ग ना, काां स्य प्रततमा, ससधु सभ्यता, मोहनजोदड़ो, पाककस्तान

 हड़प्पा तथा मोहनजोदड़ो में की गाइ खुदााइ से प्राप्त वस्तुओं से यहाां के तनवातसयों की कलातमक
प्रततभा का भी पता चलता है। ाईनकी महतवपूणय ाईपलतधधयों में ाईतकीणय मुहरें तथा मानव-
ाअकृ ततयाां हैं। ाआनमें सवायतधक महतवपूणय नृतयाांगना की प्रततमा है। ाआस काांस्य प्रततमा को नृतयाांगना
नाम ाआसतलए कदया गया है क्योंकक ाईसके खड़े होने की मुद्रा भव्य है। ाईसने एक हाथ में चूतड़यााँ
पहन रखी हैं तथा दूसरे में एक कटोरा है। यह तथ्य ाऄतयांत महतवपूणय है कक हजारों वषय पहले के
कलाकार धातु-तवज्ञान से पररतचत थे और धातु को ढाल कर कलातमक वस्तुएां बना सकते थे।

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पुजारी, तमट्टी की मूर्तत, ससधु सभ्यता, हड़प्पा, पाककस्तान


 शाल धारण ककए हुए ाआस पुरुष की प्रततमा को "पुजारी" भी कहा जाता है। सांभवताः ाआसका कारण
यह है कक यह ककसी ऐसे पुजारी से मेल खाती है जो ध्यानावस्था में बैठा हो और ाईसके नेत्र ाअधे
मुांदे हों। यह मूर्तत ाईस काल की वेशभूषा, कपड़ों के तडजााआन और के श तवन्यास के बारे में जानकारी
प्रदान करती है।

1.6. चौरी/चां व र वाहक (Chauri Bearer), मौयय काल, पटना, तबहार


 यह सुन्दर मूर्तत तशल्प मौयय वांश के शासक ाऄशोक महान के शासन काल की है। सम्राट ाऄशोक
भारत के एक महान राजा तथा बौद्ध मत के प्रचारक थे। यह "चौरी" (चांवर) हाथ में तलए हुए एक
स्त्री की सुन्दर मूर्तत है। चौरी राजसी पररवार तथा ाईच्च पद के लोगों को हवा करने के तलए ाईपयोग
में लााइ जाती थी एवां शान की प्रतीक थी। यह मूर्तत पटना सांग्रहालय में रखी हुाइ है। सम्राट ाऄशोक
के शासन काल में ऐसी बहुत-सी ाईच्चकोरट की पॉतलश वाली पतथर की मूर्ततयाां तनर्तमत हुाइ थीं, जो
ाअज भी शीशे की तरह चमकती हैं। ाअभूषणों से हमें ाआस बात की जानकारी तमलती है कक ाईस
समय की तस्त्रयाां ककस प्रकार के ाअभूषण पहनती थीं।

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1.7. ससह प्रतीक, मौयय काल, सारनाथ, ाईिर प्रदे श

 सम्राट ाऄशोक ने ाऄपने पूरे राज्य में बहुत से “स्तांभ' तनर्तमत करवाए थे। प्रतयेक स्तांभ के ाउपर
बौद्धमत का एक प्रतीक है तथा ाईन पर सम्राट ाऄशोक के तनयम एवां कानून तलतपबद्ध हैं ताकक लोग
ाईन्हें जान सके । सम्राट ाऄशोक का यह ससह प्रतीक ाईिर प्रदेश तस्थत सारनाथ में पाया गया और
ाआसे भारतीय गणतांत्र के प्रतीक तचन्ह के रूप में चुना गया।
 ाआस ससह प्रतीक को सभी भारतीय तसक्कों, रुपयों, सरकारी मुहरों और ाऄन्य सरकारी कागजातों पर
पाएांगे। ाआसमें चार ससह बने हुए हैं जो प्रतीकातमक रूप में हमारे देश की चार कदशाओं ाऄथायत्
ाईिर, दतक्षण, पूवय और पतिम की रक्षा करते हैं। ससहों के नीचे, बौद्ध प्रतीक-धमयचक्र है जो
धमयपरायणता और प्रगतत का तचन्ह है। ाआसके नीचे बैल, बल तथा सदाशयता का एवां हाथी, घोड़ा
तहरण, शति, गतत और सुांदरता के प्रतीक रूप हैं।

1.8. महाकतप जातक, भरहुत स्तू प , मध्य प्रदे श


 महाकतप जातक को दशायने वाला भरहुत
फलक भगवान बुद्ध के पूवय जन्म के सकायों के
बारे में जातक कथा को साक्षात् करता है। ाआस
तचत्र में दर्तशत ऐसी ही एक कथा में एक
तशकारी बांदरों का तशकार करने ाअता है। बुद्ध
स्वयां को नदी पर दो पेड़ों के बीच एक पुल के
रूप में पररवर्ततत कर लेते हैं तथा बांदरों को
तशकारी से बचने में सहायता करते हैं। बुद्ध
की पीठ बुरी तरह घायल हो गाइ है, पर
ाईन्होंने दूसरों के तलए कि सहन कर ाऄपनी
महानता कदखााइ। पेड़ के नीचे ाअप तशकारी
को दयालुता एवां परतहत की तशक्षा देते हुए
भगवान बुद्ध को देख सकते हैं।

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1.9. साां ची स्तू प , साां ची, मध्य प्रदे श

 प्राचीन काल में तनर्तमत बौद्ध स्तूपों तथा धार्तमक स्थलों का पयाययवाची शधद, साांची है। स्तूप एक
ठोस ाऄधयवृिाकार भवन होता है, तजससे भगवान बुद्ध या बौद्ध सांतों और ाऄध्यापकों के भौततक
ाऄवशेष रखे जाते हैं।

 बौद्ध मत में स्तूप भगवान बुद्ध का प्रतीक भी माना जाता है। ाआसके तीन घेरे (रेसलग) होते हैं। भूतम
पर तस्थर घेरा पृथ्वी का प्रतीक माना जाता है, मेतध घेरा ाऄांतररक्ष का तथा हर्तमका स्वगय का। यहाां
दृतिगत हो रहे साांची के स्तूप क्रमाांक-3 में एक ही छत्रावली है। गुांबद को पुनाः बनाया गया था।
ाआसमें भगवान बुद्ध की प्रारांतभक तशष्यों-सररपुतासा और महमोगलनासा के ाऄवशेष हैं।
 ाऄन्यों से सम्बद्ध स्तूप सांख्या-3 के भू-स्तांभ ाईस समय के जीवन की दृश्यावली तचतत्रत करता है,
तजसकी सहायता से ततकालीन जीवन-शैली का ाऄध्ययन ककया जा सकता है। सााँची से सम्बद्ध कु छ
मूर्ततयााँ सांग्रहालय में सांरतक्षत हैं।

1.10. बु द्ध की प्रततमा, गाां धार क्षे त्र


 ाइसा पूवय तीसरी शताधदी में तसकां दर ने
तहन्दुस्तान के एक तहस्से पर तवजय प्राप्त की।
वापस जाते हुए ाईसने तवतजत प्रदेश गाांधार,
जो वतयमान पांजाब व पाककस्तान के भाग थे,
को ाऄपने सेनाध्यक्ष को शासन के तलए सौंप
कदया था। ाआस प्रकार सहदुस्तान, यूनान और
रोम के लोगों के सांपकय में ाअया और ाईन्होंने
एक-दूसरे को प्रभातवत ककया। ाआस ाअपसी
प्रभाव से कला की एक नाइ शैली "गाांधार-
शैली" तवकतसत हुाइ। ाआस तचत्र में दृतिगोचर
बौद्ध प्रततमा ाआसी शैली की है। गाांधार की बौद्ध
मूर्ततयों में हमें “टोगा" नामक रोमन वेशभूषा
देखने को तमलती है। साथ ही मुखाकृ तत एवां
के श सज्जा पर भी रोमन प्रभाव कदखााइ देता
है। ाआस प्रकार हम गाांधार की मूर्ततकला में कला
की सहदू यूनानी-रोमन शैतलयों का परस्पर
तमश्रण देखते हैं।

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1.11. बु द्ध का जीवन, सारनाथ, ाईिर प्रदे श


 पाषाण में तनर्तमत ाआस मूर्तत तशल्प में
भगवान बुद्ध के जीवन की सांपूणय कथा
दशायाइ गाइ है। ाआसके तनचले भाग में बुद्ध
की माता माया की लेटी हुाइ मुद्रा में
ाअकृ तत है। कहा जाता है कक ाईन्हें स्वप्न
में श्वेत हाथी कदखााइ कदया था। ाआसका
ाऄथय यह तनकाला गया था कक ाईन्हें एक
पुत्र की प्रातप्त होगी जो सवयत्र सुख-
समृतद्ध लाएगा।
 बालक बुद्ध को कमल के फू ल पर खड़े
हुए कदखाया गया है। ाआसके पिात्
ाउपरी फलक में तशल्पकार ने भगवान
बुद्ध के सन्यास ग्रहण को ाऄांककत ककया
है। हम ाईन्हें ाऄपने महल, सांपति तथा
ाऄन्य मूल्यवान वस्तुओं का पररतयाग
कर घोड़े पर सवार हो जाता देख सकते
हैं। ाऄांतताः हम ाईन्हें “पद्मासन" की मुद्रा
में ध्यान में बैठे हुए देख सकते हैं।

1.12. महावीर जै न की मू र्तत, ततमलनाडु


 महावीर जैन भी भगवान बुद्ध की भाांतत ही महान् सांत एवां तशक्षक थे। वे जैन धमय के चौबीसवें
तीथंकर थे। ाईनका जन्म एक राजसी पररवार में हुाअ था, पर ाईन्होंने धार्तमक व्यति एवां ाईपदेशक
के रूप में जीवन व्यतीत करने के तलए ाऄपने महल तथा राजसी जीवन का पररतयाग कर कदया था।
ाईन्होंने यह खोजने के तलए ध्यान लगाया कक मानव मात्र ककस प्रकार से प्रसन्न और शाांततपूवयक
जीवन जी सकता है। ाईन्होंने ाऄपने कपड़ों तक का पररतयाग कर कठोर तपस्या की थी। कफर ाईन्होंने
धमय का प्रचार करने के तलए 12 वषों तक भ्रमण ककया। वे मगध से लेकर बांगाल की पतिमी
सीमाओं तक गए। 72 वषय की ाऄवस्था में ाईन्होंने पटना के तनकट पावापुरी में महापररतनवायण प्राप्त
ककया।

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1.13. गोमते श्व र, श्रवणबे ल गोला, कनाय ट क


 भारत में श्रवणबेलगोला जैन धमय स्थानों में सवायतधक प्राचीन एवां महतवपूणय है। यहीं भगवान
बाहुबली (गोमतेश्वर) की 57 फीट ाउांची
प्रततमा भी है। ाआसे तवश्व की सवायतधक बड़ी
एकाश्म प्रततमाओं में माना जाता है। गांग
राजा-पांचमल्ल के शासनकाल में ाआसका
तनमायण हुाअ था। सन् 981 में ाऄरतस्तनेमी
नामक मूर्ततकार ने ाआसका तनमायण ककया था
तथा पांचमल्ल के एक सेनापतत द्वारा
स्थातपत ककया गया था। यह एकल चट्टान
से तनर्तमत है तथा भगवान बाहुबली की
ध्यानावस्था को साकार ककया गया है।
ऐसा माना है कक भगवान बाहुबली ने
तबना तहले-डु ले खड़े रह कर ऐसी कठोर
तपस्या की थी कक ाईन्हें ाऄपने शरीर के
पौधों एवां लताओं द्वारा ाअच्छाकदत हो
जाने का भी पता नहीं चला था।
 हर 12 वषों के बाद होने वाले
महामस्तकातभषेक में तसक्कों, नाररयल के
दूध, दही से भरे हजारों घड़ों, के सर, चांदन,
घी, शहद, के ले, खसखस के बीजों, गुड़ और
दूध से ाईनके मस्तक का ाऄतभषेक ककया
जाता है। ाआसके तलए एक तवशेष मांच बनाया जाता है।

1.14. रानी गुांफा, ाईदयतगरर, ओतड़शा


 रानी गुांफा की गुफाओं में तराश कर बनाए गए कमरों तथा कक्षों की पांतियाां हैं। तजनमें बौद्ध व
जैन मठातधकारी रहते और साधना करते थे। प्राकृ ततक चट्टानों को तराश कर दो मांतजले कमरे
बनाए गए। ाआनके सम्मुख एक खुला प्राांगण था जहाां श्रद्धालु एकतत्रत हो सकते थे। रानी गुांफा के
कक्षों को बड़ी प्राथयना सभाओं के तलए ाआस्तेमाल ककया जाता था। ाआन सभा भवनों के दरवाजों और
दीवारों को सुन्दर मूर्तत-तशल्पों से ाऄलांकृत ककया गया था।

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1.15. मां कदर क्रमाां क 17, गु प्त काल, साां ची, मध्य प्रदे श

 भारत में मांकदरों के तवकास के ाआततहास में गुप्तकाल का महतवपूणय स्थान है। साांची में तजस मांकदर के
भग्नावशेष प्राप्त हुए हैं वह गुप्त काल में तनर्तमत प्रारांतभक मांकदर है। यह पतथर का बना हुाअ है। ाआस
का गभय गृह छोटे ाअकार का है तथा ाईस में देव मूर्तत स्थातपत थी। ाआसका एक प्राांगण भी था तजसमें
ाऄतयलांकृत स्तांभ थे। ाआसमें सुांदरतापूवयक बने स्तांभों के साथ एक द्वारमण्डप भी था। ध्यान देने पर
देखा जा सकता है कक मांकदर की छत सपाट है। धीरे -धीरे, समय के साथ-साथ यह छत शानदार
रूप से बने तशल्पयुि तशखर में तवकतसत हुाइ। ाआसी प्रकार के तशखरों को हम बाद में तनर्तमत मांकदरों
में देख सकते हैं। दतक्षण भारतीय मांकदरों में प्रचुर रूप में ततक्षत “गोपुरम" या प्रवेशद्वार एवां तशखर
होते हैं।

1.16. लौह स्तां भ , गु प्त काल, कदल्ली


 लौह स्तांभ गुप्त काल के दौरान शुद्ध
लोहे से तनर्तमत हुाअ था। तपछले
1500 वषय के ाऄपने ाऄतस्ततव के
दौरान ाआसमें जांग लगने का कोाइ भी
तनशान नहीं तमला है। यह 7.20
मीटर ाउांचा है और ाआसका वजन 3
टन से भी ज्यादा है। यह स्तांभ गुप्त
काल की ाईच्च स्तरीय तकनीक का
एक नमूना है। ाआततहास में लौह स्तांभ
के ाईद्भव के तवषय में ाऄनेक मत हैं।
स्तांभ पर प्राप्त एक गुप्तकालीन लेख
यह ाआांतगत करता है। कक यह मूलताः
राजा चन्द्र की स्मृतत में बनाया गया
एक तवष्णुध्वज था। ाआस शानदार
स्तांभ की सपाट, चौकोर और बुलांद
चोटी पर एक छेद है जो यह दशायता
है कक मूलताः ाआस मीनार (स्तांभ) पर
गरूड़ (तवष्णु के वाहन) की एक
ाअकृ तत थी। यह भी एक रोचक

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मान्यता है कक यकद कोाइ स्तांभ के ाअस-पास ाऄपनी बाांहें डालकर (ाऄपनी पीठ स्तांभ की ओर करके )
कु छ माांगता है तो ाईसकी गुप्त ाआच्छा पूरी हो जाती है।

1.17. बाह्य दृ श्य, ाऄजां ता गु फाएां , औरां गाबाद, महाराष्ट्र

 ाऄजांता, मठों और गुफा मांकदरों में तनर्तमत मूर्ततकला एवां तचत्रकला के तलए प्रतसद्ध है। वघोरा नदी
पर घोड़े की नाल की ाअकार की चट्टानों को तराश कर 30 गुफाएां बनााइ गाइ हैं, तजनमें सुन्दर
मूर्ततयाां एवां तभतितचत्र हैं।
 गुप्तवांश से वैवातहक सांबांध रखने वाले वाकाटक शासकों के शासन काल में ाआन गुफा एवां मठों का
तनमायण हुाअ था। वाकाटक शासक हररसेन के मांत्री और सामांतों के पुत्रों ने सांघ की प्रचुर रूप से
ाअर्तथक तथा ाऄन्य रूपों में मदद की थी।

1.18. बु द्ध का तचत्र, ाऄजां ता, औरां गाबाद, महाराष्ट्र

 ाऄजांता की गुफाएां बौद्ध कला का


एक प्रकार से प्रलेखन हैं। मूर्ततकारों
एवां तचत्रकारों ने भारतीय कला के
सवोिम रूप को यहाां साकार
ककया है। ाआस सुन्दर तचत्र में
भगवान बुद्ध को मठातधकारी के
रूप में तचतत्रत ककया गया है।
 नगर में तभक्षा ग्रहण करते-करते वे
ाऄपने महल में ाअ जाते हैं। वहाां
ाईन्हें ाईनकी पत्नी व पुत्र तमलते हैं,
पर वे ाआतने ध्यान मग्न होते हैं कक
ाईन्हें पहचानते ही नहीं। ाआस
तभतितचत्र में कलाकार ने भगवान
बुद्ध पर स्वगय से पुष्प वषाय होते
कदखााइ है। तशल्पकार ने भगवान
बुद्ध की ाअकृ तत को ाउांचा ाअकार दे
कर ाईनकी महानता को दशायया है।

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1.19. ाईतकीणय फलक, महाबतलपु र म, ततमलनाडु


 महाबतलपुरम पल्लवों का बांदरगाह था तथा वहाां की गाइ खुदााइ से ज्ञात हुाअ है कक ाईसकी जल-
तवतरण प्रणाली ाऄतयांत सुतनयोतजत थी। यह ाऄपने तट मांकदर, चट्टानों को तराशने की वास्तुकला,
गुफाओं, ाईभारदार ाईतकीणय तशल्प तथा रथों के तलए प्रतसद्ध है।
 महाबतलपुरम की जो ाऄतयांत ाईल्लेखनीय मूर्तत-तशल्प रचना है, वह महेन्द्रवमयन (प्रथम) या ाईसके
बेटे मामल्ला द्वारा तनर्तमत प्रतसद्ध ाईभारदार मूर्तत-तशल्प है। यह दो तवशाल तशलाखांडों को तराश
कर बनााइ गाइ है तथा ाआसके बीच में एक दरार सी है। मूर्ततकारों ने सूयय , चांद्रमा तथा पररयाां ाअकद
खगोलीय शतियों एवां पृथ्वी व जल की ाअकृ ततयाां ाईतकीणय की हैं। ाआसे “गांगा का ाऄवतरण" या
"ाऄजुयन का तप" नामों से पहचाना जाता है। ाआस फलक पर ाईतकीणय तवतभन्न ाअकृ ततयों में एक
तपस्वी की ाअकृ तत तवशेष स्थान रखती है। ाईसे एक पैर पर खड़ा दशायया गया है तथा ाईसके हाथ
ाअसमान की ओर फै ले हैं। ाआस पूरी ाअकृ तत की लांबााइ 30 मीटर से ज्यादा एवां ाउांचााइ लगभग 15
मीटर है।

1.20. तत्रमू र्तत, एतलफें टा, महाराष्ट्र


 ाआस तचत्र में जो मूर्तत कदखााइ दे रही
है, वह ाऄपने स्थान, ाअकार और
ाऄपने ाऄथय के कारण एतलफें टा की
समस्त मूर्ततयों में ाऄपना एक
तवशेष महतव रखती है। ाआसे
सदातशव, महेश्वर या महेश मूर्तत
भी कहा जाता है। यह तीन मुखों
वाली मूर्तत भगवान तशव के
तवतभन्न रूपों को दशायती है। बाईं
तरफ की मूर्तत में ाईनके नेत्र खुले हैं
एवां ाईनकी मूांछे दशााइ गाइ हैं। यह
ाईनका भैरव रूप है। मध्य की मूर्तत
में वे भव्य, सौम्यता तलए हुए शाांतत
का प्रसार कर रहे हैं। दााइ तरफ
नारी का रूप है। ाआस तत्रमूर्तत से
जगत में व्याप्त तत्रगुणों क्रमशाः
तमोगुण, सतोगुण, रजोगुण का

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ाऄथय भी तलया जाता है। कु छ तवद्वानों का यह भी मत है कक यद्यतप मूर्तत में तीन मुख ही हैं पर
मूर्ततकार चौथा यहाां तक कक पाांचवाां मुख भी बना सकते थे।

1.21. सें थोम कै थीड्रल, चे न्न ाइ, ततमलनाडु


 ऐसा माना जाता है कक ाइसा पूवय प्रथम शताधदी में ाइसा मसीह का एक तशष्य सांत थॉमस था ाआसााइ
धमय के प्रसार-प्रचार के ाईद्देश्य से पतिम एतशया से भारत ाअए। बहुत वषों के बाद, यह कै थीड्रल
(धमयमांकदर) ाइसा के ाआस महान तशष्य की याद में बनवाया गया था। ाआस कै थीड्रल में एक बड़ा सभा
गृह है, जहाां सैकड़ों लोग एक साथ प्राथयना करते हैं। यह कै थीड्रल ाअकषयक मूर्ततयों एवां नीले, लाल
तथा पीले रांग वाले शीशेयुि तखड़ककयों से सुसतज्जत था। रांगीन शीशों का तडजााआन बड़ा ही जरटल
था।

1.22. ाऄतगयारी, मुां ब ाइ, महाराष्ट्र

 8वीं शताधदी के ाअसपास


ाऄनेक पारसी पररवार ाऄपने
पैतृक स्थान ाआरान को छोड़ कर
भारत में बस गए थे। प्राचीन
पारसी तशल्पकला को प्रायाः
'ाऄवेस्ता' के नाम से जाना जाता
है। ाईनका यह मानना है कक
मनुष्य ाऄपने जीवन और धमय
को तनधायररत करने के तलए
स्वतांत्र होता है। वे मूलत:
ाऄतग्नपूजक हैं। ाईनके मांकदरों में
सदा ाऄतग्न प्रज्जवतलत रहती है।
हालाांकक भारत में पारसी
समुदाय बहुत ही छोटा है, पर
ाईनमें ाअपस में तनकट सांपकय है
और ाईन्होंने भारत की समृतद्ध
और तवकास में बहुत योगदान
कदया है।

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1.23. जामा मतस्जद, कदल्ली


 शतातधदयों से ाऄरब व्यापाररयों के भारत के साथ व्यापाररक सांबांध थे तथा नौवीं शताधदी के
ाअसपास ाआस्लाम धमय भारत में पहुांचा था। तब भारतीय सांगीत, सातहतय, नृतय और यहाां तक कक
वस्त्र धारण करने का तरीका भी ाआस्लामी सांस्कृ तत से प्रभातवत हुाअ। मुगल काल में शाहजहाां द्वारा
तनर्तमत जामा मतस्जद एतशया की सब से बड़ी मतस्जदों में से एक है और वह भारत में सहदू-
ाआस्लामी वास्तुकला
का एक तवतशि
ाईदाहरण है। मुतस्लक
तयौहारों के तवशेष
कदनों में, ाआस चार सौ
वषय पुरानी मतस्जद
में, हजारों लोग एक
साथ नमाज पढ़ते हैं।
ाआस मतस्जद में एक
बड़ा प्राांगण है। ाआसके
पतिमी भाग में ाअप
तीन गुम्बद देख
सकते हैं जो ककबला
दीवार पर हैं। नमाज
पढ़ते समय लोग ाआसी
ओर मुांह करके खड़े रहते हैं। ाअांगन के बीच में प्राथयना से पूवय वजू के तलए जल कुां ड है।

1.24. स्वणय मां कदर, ाऄमृ त सर, पां जाब


 तसख समुदाय का पतवत्रतम मांकदर-स्वणय मांकदर पांजाब के एक बड़े नगर ाऄमृतसर में तस्थत है। ाआस
शहर की स्थापना चौथे तसख गुरु-गुरु रामदास ने सन् 1577 में की थी। ऐसा माना जाता है कक
ाईनके बेटे तथा पाांचवें गुरु ाऄजुयन देव ने सन् 1579 में ाआस मांकदर का तनमायण करवाया था।
 गुरु ाऄजुयन देव ने एक तालाब के मध्य में एक मांकदर बनवाया था तथा ाईसके जल को पतवत्र कर
वहाां गुरुग्रांथ साहब की स्थापना की थी। ाऄमृतसर यह नाम ाऄमृत और सर ाआन दो शधदों से तमल
कर बना है। सन् 1803 में महाराजा रणजीत ससह ने ाआस मांकदर का सांगमरमर और सोने से
पुनर्तनमायण करवाया
था। ऐसा कहा जाता
है कक के वल ाआस के
गुांबदों पर ही 400
ककलो सोना लग गया
था। तभी से ाआसे
स्वणय मांकदर कहा
जाने लगा है। स्वणय
मांकदर पररसर में
ाऄनेक ऐततहातसक
महतव के पतवत्र स्थल
हैं तजन में सबसे
महतवपूणय ाऄकाल
तख्त है। ाआसके दतक्षण
में एक बाग है तजसमें
बाबा ाऄटल मीनार है। रामगकढ़या मीनार मांकदर पररसर के बाहर तस्थत है।

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1.25. पाां च रथ, महाबतलपु र म, ततमलनाडु

 पल्लवों का बांदरगाह नगर महाबतलपुरम चैन्नाइ से 55 ककलोमीटर दूर दतक्षण में तस्थत है तथा छठीं
एवां सातवीं शताधदी में एकाश्म चट्टानों को तराश कर बनााइ गाइ कलाकृ ततयों और मांकदरों के तलए
प्रतसद्ध है। पल्लवों ने दतक्षण भारत ने ाऄपने शासनकाल के दौरान ाऄपने पूरे साम्राज्य में बड़ी सांख्या
में मांकदर बनवाए। ाईनके काल के पूवायद्धय में मुख्यताः तराश कर और ाईिराद्धय में तनर्तमत भवनों को
बनवाया गया।
 महाबतलपुरम में
ाऄनेक एकाश्म
स्मारक हैं। ाईनमें
समुद्र तट के
तनकट के
धमयराज रथ,
भीम रथ, ाऄजुयन
रथ, द्रौपदी रथ
और नकु ल-
सहदेव रथ,
तजन्हें पांच पाांडव
रथ कहा जाता
है, भी शातमल
हैं। सांभवत: ाआनका मामला प्रथम के शासनकाल में ाईतकीणयन हुाअ। ाआन मांकदरों में बहुमांजलीय
भवनों की तनमायण कला तथा तवतभन्न रूपों की छतों को देखा जा सकता है।
 वैसे यह एक रोचक तथ्य है कक कु छ भवनों की छत गाांवों में थाप कर बनाए गए घरों की छतों के
ाऄनुरूप है।

1.26. कै लाशनाथ मां कदर, कााँ चीपु र म, ततमलनाडु


 कााँचीपुरम ाऄनेक पल्लव स्मारकों से जतड़त है। ाआनमें सबसे प्रतसद्ध है- कै लाशनाथ मांकदर। ाआसके पूवय
में नांदी मांडप हैं और मांकदर में प्रदतक्षणा करने के तलए प्रदतक्षणा पथ है तजसमें बहुत से लधु कक्ष हैं।
 मांकदर को
राजससहेश्वर के
नाम से भी जाना
जाता है। ऐसा हो
सकता है। कक यह
नाम ाईसके ककसी
एक तशलालेख के
ाऄनुच्छेद से प्राप्त
हुाअ हो, तजसमें
कहा गया है कक
कै लाशनाथ मांकदर
का तशखर ाअकाश
को छू ता है एवां
कै लाश पवयत की
सुन्दरता का हरण करता है।
 मांकदर के ाअधार में एक तशल्प परट्टका है तजसमें गणों सतहत ाऄन्य जीव दशायए गए हैं जो कारीगरों
की दक्षता को प्रदर्तशत करते हैं। मांकदर का ाऄध्ययन करते हुए हमें सोमस्कन्द सतहत पूवय-पल्लव वांश
की कला की एक तवषय-वस्तु का भी ाअगमन कदखााइ देता है।

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1.27. नटराज, कै लाशनाथ मां कदर, काां चीपु र म् , ततमलनाडु


 कै लाशनाथ के मांकदरों की दीवारें
ककवदांततयों और पौरातणक
कथाओं की घटनाओं को दशायने
वाली मूर्ततयों से प्रचुर रूप से
ाईतकीणय हैं। यह मकदर भगवान
तशव को समर्तपत है तथा ाआसमें
सेवकों सतहत भगवान तशव को
दशायने वाली ाऄनेक कलाकृ ततयाां
हैं। यह मान्यता है कक भगवान
तशव ने ाऄपने ाऄलौककक नृतय के
द्वारा ाआस ब्रह्माण्ड की रचना की
थी। एक बार ाईन्होंने ाऄपनी पत्नी
पावयती को नृतय की चुनौती दी
थी। ाआस मूर्तत तशल्प में भगवान
तशव ाऄपने वाहन नांदी तथा
सेवकों के साथ नृतय करते दशायए
गए हैं। ाआस मूर्तत में ाईन्होंने नटों
की भाांतत ाऄपना एक पैर ाऄपने
कां धों के ाउपर तक ाईठाया हुाअ है।
चूांकक यह मुद्रा तस्त्रयों के तलए
सम्मानीय नहीं थी ाआसीतलए
पावयती ने ाआस मुद्रा का ाऄनुसरण
करने का प्रयत्न ही नहीं ककया।

1.28. नटराज, बादामी, कनाय ट क


 चट्टानों को ततक्षत कर तनर्तमत वास्तुतनमायण के नमूने ततमलनाडु के महाबतलपुरम् (छठी से ाअठवीं
शताधदी), महाराष्ट्र के ाऄजांता और
एलोरा (दूसरी से नौवीं शताधदी),
ओतड़शा के ाईदयतगरी में (सामन्य
काल से पूवय दूसरी शताधदी से ाइसा
पिात् पााँचवीं शताधदी) तथा
कनायटक के बादामी और एहोले में
(छठी से ाअठवीं शताधदी) पाए जाते
हैं।
 बादामी की प्राकृ ततक पहातड़यों में
स्तांभों युि सुांदर भवन या मांडप तथा
ाअदमकद मूर्ततया तराशी गाइ हैं।
प्रस्तुत तचत्र में दशायाइ गाइ भगवान
नटराज की यह ाअकृ तत ाईस युग में
प्रचतलत मूर्ततकला शैली का
ाईदाहरण है। ाआसमें हाथ तथा पैरों की
तवशेष तस्थतत को दशाय कर
नाटकीयता पैदा की गाइ है। ाऄट्ठारह
भुजाओं वाले भगवान तशव गणेशजी के साथ, ाऄवनद्ध (ढोल, ाअकद) वाद्यों की सांगतत में नृतय कर
रहे हैं। पृष्ठभूतम में ाईनका वाहन नांदी भी कदखलााइ पड़ रहा है।

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1.29. ाअम दृ श्य, मां कदर समू ह , पट्टदकल कनाय ट क


 पट्टदकल चालुक्यवांश की पूवय राजधातनयों बादामी तथा एहोले के पिात् तीसरी राजधानी था
तथा यह बादामी से सोलह
ककलोमीटर दूर है। यह
मालप्रभा नदी के तट पर तस्थत
है। यह नगर प्रारांतभक पतिमी
चालुक्य मांकदरों के तलए प्रतसद्ध
है तथा राजा तवजयाकदतय एवां
तवक्रमाकदतय के शासनकाल में
यह साम्राज्य चरमोतकषय पर
पहुांचा। यहाां की वास्तुतनमायण
कला शैली ाअठवीं शताधदी के
पूवायद्धय में तवकतसत हुाइ थी।
 पट्टदकल में नागर तथा द्रतवड़
शैतलयों में तनर्तमत मांकदरों को देखा जा सकता है। ाआनकी वास्तुतनमायण कला का गहरााइ से ाऄध्ययन
करने पर ज्ञात होता है कक दोनों शैतलयों ने एक-दूसरे को प्रभातवत ककया था। मुख्य मांकदर के पूवय में
तस्थत जैन मांकदर का सांबांध राष्ट्रकू ट काल से जोड़ा जाता है।

1.30. वीरूपाक्ष मां कदर, पट्टदकल, कनाय ट क


 भगवान तशव को समर्तपत वीरूपाक्ष का यह मांकदर द्रतवड़ शैली में बनाया गया है। चालुक्य राजाओं
ने पल्लवों पर तवजय
प्राप्त कर यह ाअदेश कदया
था कक ततमलनाडु के
काांचीपुरम् में तस्थत
कै लाशनाथ मांकदर की
नकल पर वीरूपाक्ष
मांकदर बनाया जाए। ाआस
मांकदर में भी तवतशि
तक्षतततजय स्तरों वाला
तशखर, दीवारों पर मूर्तत
फलक और ाईतकीणय स्तांभों
वाला मांडप है। यह सारा
पररसर एक दीवार से तघरा हुाअ हैं तथा प्रवेश द्वार पर एक छोटा सा गोपुरम है।

1.31. कै लाशनाथ मां कदर, एलोरा, महाराष्ट्र

 ाअठवीं शताधदी में राष्ट्रकू टों ने प्रारांतभक पतिमी चालुक्य राजाओं को परातजत कर दक्खन पर
तवजय प्राप्त की थी। वैसे तो यहाां
पर ऐसे ाऄनेक स्थान हैं जहाां
राष्ट्रकू टों की कला को देखा जा
सकता हैं पर मुख्य स्थान है-
एलोरा। यहाां ाईस काल की भवन
तनमायण कला एवां वास्तुकला की
तवतशिताओं के भव्य समतन्वत
रूप में कृ ष्ण (प्रथम) द्वारा चट्टानों
को काट कर बनवाया गया
कै लाशनाथ मांकदर तस्थत है। ाअम पररपाटी के तवपरीत ाआस मांकदर का तनमायण कायय ाआसकी चोटी से
शुरू ककया गया था। वास्तुकारों ने ाऄतयांत सूक्ष्मतापूवयक कायय योजना बनाकर चट्टानों को तराशा

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था। ाआसके गभयगृह के प्रवेशद्वार के दोनों तरफ गांगा तथा यमुना की बड़ी ाअकृ ततयाां थीं। ाऄब वे
मस्तकतवहीन हैं।
 यह कै लाशनाथ मांकदर ाऄपने तडजााआन के कारण ततमलनाडु के काांचीपुरम् के कै लाशनाथ मांकदर
तथा कनायटक के वीरूपाक्ष मांकदर से काफी साम्यता रखता है, पर ाईनकी तुलना में ाआसका ाअकार
बड़ा है।

1.32. नटराज, कै लाशनाथ मां कदर, एलोरा, महाराष्ट्र


 ाअठवीं शताधदी का यह मूर्तत
फलक ाऄपने सेवकों से तघरे सांगीत
की सांगतत में नृतय करते भगवान
तशव को दशाय रहा है। ाईनकी नृतय
मुद्रा, हाथ और पैरों की तस्थतत
ठीक कु छ वैसी ही हैं जैसी कक कु छ
वतयमान नृतय शैतलयों में होती है।
वैसे ाआस बात के भी प्रमाण तमले हैं
कक ाआस पाषाण की मूर्तत पर
प्लस्तर और रांग ककया गया था।
यह सांपूणय मूर्तत एक ाअले में तस्थत
है तजसके चारों तरफ पुष्प और
पुष्प मालाएां ाईतकीणय हैं।

1.33. वृ ह दे श्व र मां कदर, तां जावु र , ततमलनाडु


 दसवीं शताधदी ाइस्वी में चोलों ने पल्लवों पर तवजय प्राप्त की। भारतीय ाआततहास में चोल-काल की
तवतशि कलातमक
ाईपलतधधयों का ाईल्लेख
प्राप्त होता है, क्योंकक
प्रतसद्ध चोल काांस्य तशल्प
कृ ततयों को भारतीय
कला की ाईतकृ ि कृ ततयों
के रूप में जाना जाता है।
 तांजावुर तस्थत वृहदेश्वर
मांकदर एक सवायतधक
महतवपूणय चोल स्मारक
है। ाआस मांकदर को तशव-
मतहमा के कारण
वृहदेश्वर कहा जाता है।
ाआसे 'राजाओं के राजा''
राजराजा प्रथम द्वारा तनर्तमत कराया गया। स्वयां राजा ने राजततलक के समय ाऄपना नाम ाआसी
प्रकार घोतषत ककया था।
 मांकदर की वास्तुकला-योजना ाऄतयांत साधारण-सी है। प्रसाद, मांडप, नांदी और गोपुरम् पूवय-पतिम
ाऄक्षाांश के ठीक ाउपर ाऄवतस्थत हैं। मांकदर का सवायतधक प्रभावकारी पहलू है-ाईसका तवमान। यह
साठ मीटर ाउांचा है और तनमायण के समय शायद यह एतशया की सबसे ाउाँची वास्तुकला सांरचना
रही होगी। तवमान के ाउपर ाऄवतस्थत तवशाल तशखर का वजन ाऄस्सी टन से भी ाऄतधक होगा,
ऐसा माना जाता है। तचत्र (ाअन्तररक तचत्र) में हम तशखर की चौदह ाऄवरोहातमक मांतजलें देख
सकते हैं। तवमान के दोनों ओर बैठे हुए ाऄग्रोन्मुख शीषय वाले नांदी हमें महाबलीपुरम् में नांदी के
प्रततरूप की याद कदलाते प्रतीत होते हैं। तीथय मांकदर में स्थातपत सलग मांकदर के ही समान, ाअकार में

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तवशाल हैं। तवमान के चबूतरे पर तस्थत कु छ तशलालेख चोल-काल के दौरान जीवन-शैली का


तववरण प्रस्तुत करते हैं।
 ाआस मांकदर को स्वयां राजराजा-प्रथम के नाम के ाअधार पर 'राजराजेश्वर मांकदर'' ाऄथवा 'महान
मांकदर' के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकक ाईस समय शैव मांकदरों में स्थातपत सलग का नाम,
प्रतसद्ध व्यति ाऄथवा राजा या सांरक्षक के नाम पर रखने की परांपरा प्रचतलत थी।

1.34. सोमस्कन्द, राजकीय सां ग्र हालय, मद्रास


 पल्लव और चोल काल के
दौरान बड़े-बड़े मांकदरों और
सुांदर पाषाण । मूर्ततयों के
साथ-साथ ाईच्च-कोरट की
काांस्य प्रततमाएां भी तनर्तमत
हुाइ थीं। ाआन काांस्य प्रततमाओं
को बनाने के तलए कारीगर
पहले मोम का एक ढाांचा
बनाते थे और कफर ाईस ढाांचे
या ाअकृ तत पर तमट्टी की परतें
चढ़ा दी जाती थीं। सूखने पर
ढाांचे की पेंदी में छेद करके
ाईसे गमय ककया जाता था
तजसमें ाऄांदर की सारी मोम
तपघल कर तनकल जाती थी।
ाआसके पिात् ाईस ढाांचे में
तपघली धातु भर कर ठां डा होने कदया जाता था। ठां डा होने पर तमट्टी की परत ाईतार कर ाईस
ाअकृ तत को सांवार कर पॉतलश की जाती थी। प्रस्तुत तचत्र में भगवान तशव और पावयती को बैठी
मुद्रा में दशायया गया है। ाईनके बीच में पहले कार्ततके य या स्कां द की मूर्तत भी थी, पर ाअज वह गुम
हो गाइ है। ध्यान से देखने योग्य बात यह है कक धातु ककस प्रकार मोम के तरल गुण को धारण कर
लेती है, ककस प्रकार सूक्ष्म रूप में गहनों को गढ़ा जा सकता है और वस्त्रों को सजाया जा सकता है।

1.35. सू यय मां कदर, मोढ़े रा, गु ज रात

 सोलांकी राजवांश ने 11वीं शताधदी ाइस्वीं में सूयय मांकदर का तनमायण करवाया था। यह मांकदर भगवान
सूयय को समर्तपत है तथा
ाआसी प्रकार के सूयय
मांकदर ओतडशा के
कोणाकय में तथा कश्मीर
के मातयड में भी हैं।
मांकदर के सम्मुख एक
तवशाल तालाब है तथा
जलस्तर तक ढलुवाां
सीकढ़यों के द्वारा पहुांचा
जा सकता है। धार्तमक
ाऄनुष्ठानों में ाआस जल का
ाईपयोग ककया जाता
था। तालाब के पायदानों पर भी छोटे -छोटे मांकदर तथा दीपक रखने के तलए ाअले बने हुए हैं।
यद्यतप ाआस मांकदर का एक भाग क्षततग्रस्त हो गया है लेककन कफर भी तजस तवस्तृत पैमाने पर ाआसकी
सजावट की गाइ थी, ाईसे ाअज भी देखा जा सकता है।

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1.36. सू यय की मू र्तत, सू यय मां कदर, मोढ़े रा, गु ज रात


 भगवान सूयय की ाअराधना भारतीय
जीवन, तवधारधारा तथा दशयन का
एक महतवपूणय भाग रही है। प्रस्तुत
मूर्तत-तशल्प में भगवान सूयय को
ाआांद्रधनुष के रांगों का प्रतततनतधतव
करने वाले सात घोड़ों द्वारा खींचे
जाने वाले रथ पर खड़ी मुद्रा में
दशायया गया है। प्रततकदन सूयय के
ाईदय होने पर प्रकृ तत में होने वाली
प्रततकक्रया को दशायने के प्रतीक के
रूप में भगवान सूयय के प्रतयेक कां धे
पर तखले हुए कमल के तवशाल फू ल
ाऄांककत ककए हुए हैं। भगवान सूयय के
साथ ाईनकी पतत्नयाां ाउषा एवां छाया
सेवकों सतहत दशाययीं गाइ हैं।

1.37. मां कदर समू ह , खजु राहो, मध्य प्रदे श


 खजुराहो के मांकदरों की कु छ खास तवशेषताएां हैं। लगभग सभी मांकदर एक ाउाँचे और ठोस चबूतरे -
जगती-पर बनाए गए हैं। यह चबूतरा खुले प्रदतक्षणा पथ का काम भी देता था। ाआनके प्रवेशद्वार
वास्तु तनमायण कला एवां मूर्ततकला की बेजोड़ ाईपलतधध हैं।
 प्रस्तुत तचत्र में ाअप कां दररया महादेव के मांकदर को देख रहे हैं। ाआसी चबूतरे पर दातहनी तरफ छोटा
महादेव का मांकदर तथा देवी जगदांबा का मकदर भी देख सकते हैं।
 कां दररया महादेव का मांकदर खजुराहो का भव्यतम मांकदर माना जाता। है। यह मांकदर भगवान तशव
को समर्तपत है तथा कां दररया का ाऄथय है कां दराओं में तवचरण करने वाले भगवान तशव। मांकदर के
मुख्य स्थान में
सांगमरमर का सलग
स्थातपत हैं। यह
पूवायतभमुखी है तथा
प्रवेशद्वार ाआकहरे
पतथर से तनर्तमत है।
दोनों ओर से
पौरातणक मगरमच्छों
के मस्तक पर जो
माला है, वह चार
फे रों में ाऄतयांत
ाऄलांकृत रूप में
ाईतकीणय की गाइ है। कां दररया महादेव एवां देवी जगदम्बा के मांकदर के मध्य में छोटा महादेव का
मांकदर तस्थत है। एक ससह तथा मांडप में एक झुकी हुाइ ाअकृ तत मांकदर की महतवपूणय मूर्ततयाां हैं।
 देवी जगदांबा का मांकदर मूलत: भगवान तवष्णु को समर्तपत था मगर बाद में देवी की एक ाऄधय
तनर्तमत मूर्तत ने ाआसका नाम पररवर्ततत ककया। मांकदर की बाहरी दीवारों पर मूर्ततयों की तीन
परट्टकाएां हैं। ाआसी मांकदर में तीन मस्तक और ाऄिभुजा वाले भगवान तशव तथा भगवान तवष्णु के
वराह-ाऄवतार की ध्यानाकषयक मूर्ततयाां भी हैं।
 मांकदर का तशलालेख यह दशायता है कक राजा धांगदेव ने ाआसका तनमायण करवाया था और वहाां एक
तशला तथा मरकत सलग स्थातपत ककया।

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1.38. तवश्वनाथ मां कदर, खजु राहो, मध्य प्रदे श

 खजुराहो के मांकदर मध्य भारत की वास्तुकला के शतातधदयों के तवकास के पिात् ाईसके चरमोतकषय
रूप को दशायते हैं। ये मांकदर चांदल

काल के तनवातसयों के सामातजक,
ाअर्तथक एवां धार्तमक जीवन पर
प्रकाश डालते हैं। ाआन मांकदरों की
एक ाऄन्य खास तवशेषता ाईनकी
तवतशि वास्तुतनमायण कला है।
प्रायाः सभी मांकदर एक ाउांचे और
ठोस चबूतरे पर तस्थत हैं।
तवश्वनाथ मांकदर की धरातलीय
एवां ाउपरी योजना कां दररया
महादेव मांकदर तथा लक्ष्मण मांकदर
से मेल खाती है। प्रवेशमागय के
साथ की तीन मूर्ततमय परट्टकाएां खजुराहो की सुांदरतम मूर्ततयाां दशायती हैं। यह मांकदर भगवान तशव
को समर्तपत है तथा ाआसमें तशवसलग स्थातपत है। ाआस मांकदर की छत पर ाऄनेक दलों वाले फू ल
ाईतकीणय हैं। मांकदर का मुख्य तशखर शांकु के ाअकार का है तथा ाईसके ाअसपास ाऄनेक छोटे तशखर हैं
जो पवयतमाला का ाअभास देते हैं।
 मांकदर का तशलालेख यह दशायता है कक राजा धांगदेव ने ाआसका तनमायण करवाया था और वहाां एक
तशला तथा पन्ना तमतश्रत सलग स्थातपत ककया।

1.39. मू र्ततमय फलक, लक्ष्मण मां कदर, खजु राहो, मध्य प्रदे श

 खजुराहो के मांकदरों में वास्तुतनमायण कला एवां मूर्ततकला ाऄपने सुांदरतम रूप में ाईभरी है। मांकदरों की
दीवारें ाअांतररक एवां बाहरी दोनों तरफ प्रचुर रूप से ाईतकीणय हैं। ाईनमें स्त्री-ाअकृ ततयों एवां प्रेमरत
युगलों की
प्रचुरता को
देखकर तवद्वान
ाऄनेक तसद्धाांतों
का प्रततपादन
करते हैं।
 प्रस्तुत तचत्र में
ाअांतररक ाअलों
में पौरातणक
पशुओं की
ाअकृ ततयों तथा
नृतय करती,
वाद्ययांत्र
बजाती, दपयण
में स्वयां को
तनहारती तथा
ससदूर, काजल
और ाअलते से स्वयां का श्रृांगार करती स्त्री-ाअकृ ततयों को देख सकते हैं। ाआन सभी ाअकृ ततयों के
पररधान बड़े ही सुांदर हैं तथा ाईनका ाऄांग-प्रतयांग ाअभूषणों से सुसतज्जत है। ये सभी ाअकृ ततयाां
दीवार से ाईभरी हुाइ हैं तथा कमोबेश मुि ाऄवस्था में हैं। ग्रेनााआट तथा बलुाअ पतथर का ाईपयोग
भवन तथा मूर्ततयाां बनाने के तलए ककया गया है।

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1.40. सां गीतकार, खजु राहो, मध्य प्रदे श

 खजुराहो की मूर्ततयों का भांडार वहाां रहने वाले ाईस काल के लोगों के सामातजक, ाअर्तथक एवां
धार्तमक जीवन के बारे में जानकारी प्रदान करता है। वहाां ऐसे ाऄनेक मूर्ततमय फलक हैं जो घरेलू
जीवन, नृतय तथा सांगीत ाअकद ाऄनेक तवषयों को दशायते हैं। ाआस तचत्र में दशाय ए गए सांगीतकारों से
ज्ञात होता है कक ाईस काल में कै से वाद्ययांत्र होते थे। ाआसी से यह भी पता चलता है कक
खजुराहोवासी वतयमान दो मुखी प्रकार की बाांसुरी, मांजीरे तथा पखावज से साम्यता रखती ढोलक
से पररतचत थे।

1.41. बाह्य दृ श्य, के शव मां कदर, बे लू र , कनाय ट क


 होयसाल शासकों ने कनायटक के मांकदरों के तडजााआन की एक ाऄतद्वतीय शैली दी जो बेलूर, हेलीतबड
तथा सोमनाथपुर में
देखी जा सकती है।
ाआस क्षेत्र में पृथ्वी के
धरातल की
प्राचीनतम चट्टानों
में से एक प्राप्त होती
हैं। ाआन्हें धारवाड़
चट्टान कहा जाता
है। यह गहरे रांग का
हररयाली ाअभा
तलए काला पतथर
होता है तथा यह
ाआतना बेहतरीन है
कक मूर्ततकार ाईस
पर धागे जैसी
महीन नक्काशी भी की जा सकती है।
 होयसाल राजा तवष्णुवधयन ने ाऄपने वास्तुकार जनक ाअचायय को ाअदेश कदया था कक वह कनायटक
के हासन तजले के बेलूर में भगवान चन्न के शव का मांकदर बनाए। ाआस मांकदर में होयसाल
वास्तुतनमायण कला की सभी तवशेषताएां जैसे कक तारों के ाअकार के पूजा-स्थल, चबूतरा, गेंद की
ाअकार की मीनारें तथा स्तांभयुि मांडप हैं। ाआस मांकदर के मांडप में खूबसूरत गोल पतथर के चबूतरे

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हैं। समूचा मांकदर पररसर 440 x 360 फीट के तवशाल ाअयताकार क्षेत्र में फै ला है। मांकदर पररसर
में पारांपररक गोपुरम बाद में तनर्तमत हुए थे।

1.42. के शव मां कदर, सोमनाथपु र , कनाय ट क


 सोमनाथपुर का के शव मांकदर वास्तुकला की होयसाल शैली का ाऄनुपम ाईदाहरण है। होयसाल वांश
के राजाओं एवां वातसयों ने ाऄपने पूजा स्थलों के तलए वास्तुतनमायण की नाइ पद्धतत तवकतसत की थी।
समूचा मांकदर तारे की
ाअकृ तत वाले चबूतरे पर
तनर्तमत है। तारे की यह
ाअकृ तत मांकदर के
तवमान और तशखर में
भी देखी जा सकती है।
मांकदर के तारों की
ाअकृ तत वाले तीन
तशखर हैं जो ाआसके तीन
गभयगृहों की ओर सांकेत
करते हैं तजनमें देवताओं
की मूर्ततयाां स्थातपत
थीं। ाआसके मध्य का कक्ष
तीन पतवत्र कमरों से
जुड़ा है तजसमें ाईतकीणय
स्तांभ एवां दीवारगीर हैं।
मांकदर की बाहरी दीवारें
नीचे से लेकर तशखर तक ाअड़ी मूर्ततमय परट्टयों से ाऄलांकृत हैं। ाआन ाअकृ ततयों में पशु, पौरातणक
चररत्र तथा महाभारत और रामायण के दृश्यों के साथ देवताओं की ाअकृ ततयाां हैं।

1.43. मू र्तत-फलक, हे लीतबड, कनाय ट क

 होयसाल मांकदर की समूची दीवार को ाऄनेक मूर्तत-फलकों में तवभातजत ककया जा सकता है। दीवार
के तनचले भाग पर जलूस के रूप में जाते हातथयों की कतारें ाईतकीणय हैं। ाआनके ाउपर ाऄश्वों की
ाअकृ ततयाां तथा ाईनके पहले
फू लों एवां लताओं को
ाईतकीणय ककया हुाअ है। ाआस
कतार के ाउपर काल्पतनक
जीवों हांसों, देवी-देवताओं
की तवशाल सजावटी
मूर्ततयों की कतार है। सबसे
पहले रेखागतणतीय
तडजााआन वाली छत है जो
कक प्राचीन सुांदर काष्ठ
भवन तनमायणकला का
प्रततरूप प्रतीत होती है।
नटराज, हेलीतबड, कनायटक
 होयसाल मांकदर की
तवशाल मूर्ततयों को एक
तनतित ाअकार-प्रकार

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(बनावट) को ाईतकीणय ककया गया है। मुख्य ाअकृ तत फू लों और लताओं के शोभायमान चांदोवे से
तघरी हुाइ है। देवताओं की ाअकृ ततयाां शास्त्र-पद्धतत या शास्त्रानुसार भारी ाअभूषणों से ाऄलांकृत हैं।
ाआस मूर्तत तशल्प में भगवान तशव को ाऄज्ञानता के दानव ाऄपस्मार की लेटी हुाइ मुद्रा में ततक्षत
ाअकृ तत के ाउपर नृतय करते दशायया गया है। ाईनके हर हाथ की एक तवशेष नृतय मुद्रा है।

1.44. सू यय मां कदर, कोणाकय , ओतड़शा


 वतयमान ओतड़शा राज्य की सीमाओं में ाअज भी सुांदर मांकदरों की एक श्रृांखला तवद्यमान है। ाआनसे
कसलग वांश के ाआततहास का ाअद्योपाांत
ज्ञान होता है।
 ाआस काल की वास्तु रचना की एक
महतवपूणय ाईपलतधध कोणाकय का सूयय
मांकदर है। ाआस मांकदर का तनमायण
नरससह प्रथम द्वारा 1238-58 ाइस्वी के
बीच करवाया गया था। जैसा कक नाम
से स्पि है, यह मांकदर भगवान सूयय को
समर्तपत है। यह सूयय मांकदर एक बड़े
चौकोर प्राांगण में तस्थत है। और ाआसका
तनमायण सूयय देव के सात घोड़ों द्वारा
खींचे जाने वाले बड़े रथ के समान है।
 सूयय मांकदर की रथ के रूप में कल्पना के
पीछे भारत के तवतभन्न भागों में
समारोहों के ाऄवसर पर लकड़ी की
गातड़यों में देवताओं की तनकाली जाने
वाली शोभा यात्राओं का प्रचलन रहा होगा। भगवान सूयय के ाआस रथ में बारह जोड़ी पतहए दशायए
गए हैं जो कक वषय के बारह महीनों के प्रतीक हैं।
 बांगाल की खाड़ी के समीप होने के कारण ाआस मांकदर को वातावरण की लवणता ने काफी क्षतत
पहुांचााइ है। ाऄब भारतीय पुराताततवक सवेक्षण तवभाग ने ाआसके सांरक्षण का काम ाऄपने हाथ में
तलया है।

1.45. चक्र, सू यय मां कदर, कोणाकय , ओतड़शा


 सूयय मांकदर के सांपूणय तडजााआन की कल्पना भगवान सूयय के कदव्य रथ के रूप में की गाइ थी। ाआस की
मांत्रमुग्ध करने
वाली ाअकृ ततयों
में ाआसके
तवशालकाय
चक्र हैं। हर चक्र
का व्यास तीन
मीटर से ाऄतधक
है तथा ाआसके
ाअठ बड़े और
ाअठ छोटे ाऄरें
हैं। धुरे सतहत
सभी चक्रों पर
बहुत ही
ाअकषयक रूप से
दानेदार घेरों

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तथा कमल की पतियों की पांतियााँ ाईतकीणय की गाइ हैं। चक्रों के नीचे की तचत्रवल्लरी पर चलते हुए
हातथयों के समूह को बड़ी सूक्ष्मता से ाईतकीणय ककया गया है।

1.46. तचतत्रत फलक, नतय क , सू यय मां कदर, कोणाकय , ओतड़शा


 कोणाकय का सूयय मांकदर कला का
ाऄथाह भांडार है। यहाां की मूर्ततयाां ,
यहाां की स्थापतयकला पर प्रभुतव तो
नहीं रखती परांतु मांकदर की सुन्दरता
को बढ़ा देती हैं।
 ाआस मांकदर की मूर्ततयाां क्लोरााआट,
लेटरााआट तथा खोंडेलााआट नामक
तीन प्रकार के पतथरों से बनााइ गाइ
हैं। यह पतथर ाऄवश्य ही बाहर के
स्थानों से यहाां लाए गए होंगे क्योंकक
ाअज ाआस स्थान के ाअस-पास ाआनमें से
कोाइ भी पतथर ाईपलधध नहीं हैं।
 सूयय मांडप के सम्मुख ाईठे हुए चबूतरे
को नाट्ड मांडप कहते हैं। समूची
दीवार पर तवतभन्न मुदाओं में
सांगीतकारों एवां नतयकों की ाअकृ ततयाां
ाईतकीणय हैं। ाआन ाअकृ ततयों से हम
तेरहवीं शताधदी में प्रचतलत नृतय-
शैतलयों का ाऄध्ययन कर सकते हैं
तथा ाईनकी वतयमान ओड़ीसी नृतय-शैली के साथ तुलना कर सकते हैं। कलाकार ने नतयक की तत्रभांग
की तस्थतत, ाईसकी मुद्रा, ाईसके पररधान एवां ाअभूषणों का बड़ी कु शलता से प्रदशयन ककया है।
मूर्ततकार ने सारी दीवार को ाअकाश में प्रततकदन भ्रमण करते भगवान सूयय के सम्मान में नृतय एवां
सांगीत प्रस्तुत करते सांगीतकारों और नतयकों की ाअकृ ततयों से सुसतज्जत ककया है।

1.47. ताड़ के पिे पर तलखी पाां डु तलतप, तबहार

 मध्य काल में भवन तनमायणकला तवशेषकर मकदरों का तनमायण , मूर्ततकला, तचत्रकला, सांगीत, नृतय
और सातहतय ाअकद कलाएां राज दरबार के सांरक्षण में खूब तवकतसत हुाइ। भारत के सभी भागों में
ताड़ के पिे पर ाईिम तचत्रों
वाली पाांडुतलतपयों को तैयार
ककया गया। कागज के
तनमायण से पहले महतवपूणय
धार्तमक मूलग्रांथों की
पाांडुतलतपयाां ताड़ के पिों
पर तैयार की गाइ। ाआसके
तलए सबसे पहले पिे को
सुखाकर समतल (प्रेस) ककया
जाता था। प्रतयेक पिे को
मूल ग्रांथ में, सतचत्र तथा
सुसतज्जत ककनारों के तलए
खांडों में तवभि ककया गया।
कफर, कुां तचयों की सहायता से तडजााआन बनाए जाते थे। ाआस तचत्र में बैठे कदखााइ दे रहे दो बौद्ध
तभक्षु महातमा बुद्ध की तशक्षा की व्याख्या कर रहे हैं।

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1.48. तभतितचत्र, श्रीनाथजी की ाअराधना, नाथद्वारा राजस्थान


 यह प्राचीन तचत्र ाऄठारहवीं शताधदी का है। ाआस तभतितचत्र में कृ ष्ण की ाअराधना तथा मांकदर में
होने वाले तवतभन्न ाऄनुष्ठानों को तचतत्रत ककया गया है। तचत्र को देखकर यह जानकारी तमलती है
कक फू लों, वस्त्रों तथा ाअभूषणों से देवताओं की मूर्ततयों का ककस प्रकार श्रृांगार ककया जाता था।
मध्य काल में भतिवाद ने ाऄनेक ाअधुतनक भारतीय भाषाओं को समृद्ध करने में महतवपूणय भूतमका
तनभााइ थी। सांतों, कतवयों और सांगीतकारों ने देवी-देवताओं के सम्मान में भतिपदों की रचना की
थी।

1.49. ग्वातलयर का ककला, ग्वातलयर, मध्य प्रदे श


 ग्वातलयर का ककला सपाट चोटी तथा मुड़े हुए ककनारों वाली एक बलुाअ पतथर की ाउांची और
ाऄलग सी पहाड़ी पर तस्थत है। यह लांबी एवां सांकरी पहाड़ी ाअस-पास के समतल मैदानों से लगभग
300 फीट ाउाँचााइ तक जाती है। यह ाईिर से दतक्षण तक लगभग 3 कक.मी. लम्बी तथा पूवय से
पतिम तक लगभग 600 से 2800 फीट चौड़ी है। पहाड़ी के ककनारों पर कु छ ाआस प्रकार से
पलस्तर लगाया गया है कक ककले की दीवार पहाड़ी के ाऄन्दर से ही ाईभरती हुाइ सी प्रतीत होती है।

 ग्वातलयर का नगर दुगय (ककला) दसवीं शताधदी में तनर्तमत हुाअ। सन् 950 में यहाां सूरज पाल द्वारा
तहन्दू राजवांश सांस्थातपत हुाअ। सन् 1129 में जब यह राजवांश लुप्त हो गया तो ाआसके पिात्
पररहार राजवांश ाअया
तजसका सन् 1232 में कदल्ली
के बादशाह ाआल्तुततमश द्वारा
ककला जीत लेने तक ककले पर
ाअतधपतय रहा। सन् 1398 में
बीरससह देव नाम तोमर
राजपूत ने तैमूर की चढ़ााइ
द्वारा फै ली ाऄशाांतत का लाभ
ाईठाया। वह ग्वातलयर का
राजा बन गया और ाईसने
तोमर राजवांश की स्थापना
की। सन् 1486 में मानससह
ग्वातलयर का राजा बना जो सभी तोमर शासकों में सबसे शतिशाली था। सन् 1516 में ाईसकी
मृतयु हुाइ और ाईसके पिात् ाईसके पुत्र तवक्रमाकदतय ने सन् 1518 तक ग्वातलयर पर शासन ककया।

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सन् 1518 में ाआब्राहीम लोदी ने ाऄपनी दो वषय की घेरेबांदी सफलतापूवयक पूरी की और कदल्ली
सल्तनत के तलए ग्वातलयर का ककला जीत तलया। मुगल शासकों का ाऄठारहवीं शताधदी के मध्य
तक ककले पर ाअतधपतय रहा और सन् 1754 में मराठों ने ककले को ाऄपने ाऄतधकार में ले तलया।
 ाऄगले 50 वषों तक ाऄनेक राजवांशों द्वारा ककले पर ाअक्रमण होते रहे और ाऄांत में तसतन्धया राजवांश
ने ाआस पर ाअतधपतय जमा तलया।
 ाआस ऐततहातसक काल के दौरान ककले के नीचे और ककले के ाऄन्दर बहुत-सी ाआमारतें बनााइ गाइ,
तजसमें मांकदर और मुतस्लम महल शातमल हैं जैसे मानससह महल, गुजयरी महल, सास-बहू मांकदर,
तेली का मांकदर, ाअकद।

1.50. लक्ष्मी नारायण मां कदर, चम्बा, तहमाचल प्रदे श

 चम्बा और कु ल्लू में 13वीं शताधदी के


पूवय के समय के कु छ थोड़े-से छोटे
मांकदर हैं। ये मदर ाआस समय की
तहमालयी वास्तुकला के ाईिम
ाईदाहरण हैं और ाऄपने सादे तडजााआन
और तवमान की मनोहर रेखाओं के
कारण स्मरणीय हैं। तशखरों की छतें
और डयोकढ़याां (द्वार मांडप)
व्यावहाररक ढांग से ढलुवाां बने हुए हैं।
ाआसी कारण तहमपात होने पर ाआन पर
बफय ाआकट्ठी नहीं होती एवां ढलुवाां होने
के कारण नीचे सरक कर तगर जाती है।
 प्रस्तुत तचत्र में, हम चम्बा तस्थत लक्ष्मी नारायण मांकदर को देख सकते हैं। कहा जाता है कक
सातहला वमयन द्वारा शहर की नींव रखे जाने के कु छ ही समय पिात् यह मांकदर बनवाया। गया
था। ाआस मांकदर में सफे द सांगमरमर से बनी और स्वणय ाअभूषणों से ाऄलांकृत भगवान तवष्णु की
प्रततमा है।

1.51. तवट्ढल मां कदर और रथ, हम्पी, कनाय ट क

 हम्पी, कनायटक के बेल्लारी तजले में तुांगभद्रा नदी के दतक्षणी ककनारे पर तस्थत है। हम्पी का
ाआततहास नवप्रस्तर काल और साथ ही चालुक्य, चोल तथा पाांडय राजवांशों से जुड़ा हुाअ है। यहाां
पर, सन् 1336 में तवजयनगर ाऄथायत "तवजय के नगर' को हररहर और बुक्का नामक दो भााइयों ने
स्थातपत ककया, तजन्हें
जनतप्रय रूप में हुक्का और
बुक्का नाम से जाना जाता है।
हालाांकक, तवजयनगर के
सवायतधक शतिशाली,
लोकतप्रय और तवतशि राजा
- कृ ष्णदेव राय थे , तजन्होंने
सन् 1509 से सन् 1530 तक
शासन ककया। वे स्वयां एक
कतव थे और नृतय, सांगीत
कला तथा वास्तुकला के
महान सांरक्षक थे।

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 हम्पी में बहुसांख्य ाआमारतें बनााइ गाइ, तजनमें बड़े गोपुरम, स्तांभयुि मांडप और मांकदर रथ
सतम्मतलत हैं। प्रस्तुत तचत्र में चबूतरे पर नक्काशीदार तशल्प से ाऄलांकृत मकदर, मांडप और सुांदर ढांग
से ततक्षत स्तांभ देखे जा सकते हैं। ाऄग्र भाग में, तचत्र के दातहनी ओर, ाअप पतथर पर ाईतकीर्तणत
पतहयों के साथ एक सांपूणय रथ देख सकते हैं। ाअज बहुत से ाआततहासकार और वास्तुकलातवद् ाआस
स्थान का ाऄध्ययन करने हेतु हम्पी की प्राचीन राजधानी, ाईसके महलों, सड़कों, मांकदरों और ाऄन्य
ाआमारतों की खुदााइ कर रहे हैं।

1.52. नरससह, तवजयनगर, हम्पी, कनाय ट क


 दतक्षण व ाईिरी तवधाओं की तुलना में
तवजयनगर के कलाकारों ने ाऄपने मांकदरों में
ज्यादा ाईभार वाली ाईतकीणय कला का प्रयोग
बहुत ही कम ककया है। तवजयनगरीय तवशेष
मूर्तत शैली में राज्य के तवतभन्न भागों में तवशाल
एकाश्म ाईतकीणय-तशल्प तमलते हैं। लेपाक्षी मांकदर
के ाईिर-पूवी तहस्से में तवशाल नांदी तथा
गणेशजी-समर्तपत मांकदर में गणेशजी की तवशाल
ाअकृ तत ाईस युग के सुांदर कला-नमूने हैं।
 सांभवताः ाआन से भी ज्यादा भव्य तो तवजयनगर
में बैठे हुए ाईग्र नरससह का मूर्तत-तशल्प है। यह
साढ़े छाः मीटर ाउाँची है तथा कृ ष्णदेव राय के
शासनकाल में सन् 1528 में तनर्तमत की गाइ थी।
एक प्रकार से यह तवशाल ाअकृ तत मानवीय
भिों के सम्मुख तवशालकाय लगती है। ऐसी
धारणा है कक मूलताः नरससह देवता की गोद में
बैठी लक्ष्मी की ाअकृ तत भी थी। यह चारदीवारी
से तघरे स्थान में तस्थत है एवां पूवायतभमुखी है।
नरससह के मस्तक के ाउपर सात फन वाले
शेषनाग के तसर को भी देखा जा सकता है।
 यद्यतप यह मूर्तत-तशल्प काफी क्षततग्रस्त हो गया था पर पुरातत्त्व सवेक्षण तवभाग द्वारा ाआसका
पुनरूद्धार कर कदया गया।

1.53. चौमु खा मां कदर, मााईण्ट ाअबू , राजस्थान

 राजस्थान तस्थत मााईण्ट ाअबू


ाऄपने बहुसांख्य जैन मांकदरों के
तलए प्रतसद्ध है। यह भारत में
जैन वास्तुकला का एक नवीन
ाईदाहरण है। ाआन मांकदरों का
बाह्य भाग साधारण हैं पर
ाऄन्दर की दीवारों पर ाईतकृ ि
रूप से नक्काशी ककए हुए
सांगमरमर के फलक हैं। जैन
मांकदर में ाऄनुप्रस्थ भाग, स्तांभ
युि द्वार मांडप और मांडपों से
युि एक बांद सभा भवन है जो
कक बावन कक्षों में तीथंकरों की मूर्ततयों से युि एक दीवार से तघरा हुाअ है।

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1.54. कक्ष, ाईतकीणय स्तां भ एवां सां ग मरमर की छत, तवमल वसाही मां कदर, मााउां ट ाअबू ,
राजस्थान

 तवमल वसाही का यह मांकदर सन्


1031 के ाअसपास गुजरात के
सोलांकी वांश के पहले राजा के एक
मांत्री ने तनर्तमत करवाया था तथा
ाईसने ाआस मांकदर को पहले तीथयकर
ाअकदनाथ को समर्तपत कर कदया
था। ाआसका ाऄिकोणीय गुांबद
सांकेतन्द्रत घेरों से बना है जो कक
ाऄलांकृत ाईतकीणय स्तांभों पर
ाअधाररत है। यह मांकदर पूणयताः
श्वेत सांगमरमर से बना है तथा
ाआसका ाअकार-प्रकार जैन
वास्तुकला के ाऄनुसार है। सजावट
के तलए ाआस्तेमाल ककया गया
सफे द सांगमरमर यहाां से चालीस
ककलोमीटर दूर तस्थत मकराना की
खदानों से लाया गया था। यह
ाअज तक एक रहस्य बना हुाअ है
कक ाआस सांगमरमर को पहाड़ की चार हजार फीट की ाउांचााइ तक कै से पहुांचाया गया था। सांगमरमर
ाईच्च श्रेणी का होने के कारण ही मूर्ततकार ाऄतयांत सूक्ष्म रूप में ाअभूषण एवां वस्त्रों के तडजााआन
ाईतकीणय करने में सफल रहे थे।

1.55. प्रततमा, ाईतकीणय स्तां भ , मााउां ट ाअबू , राजस्थान

 मांकदर में मांडप के स्तांभों को


सजाने वाली ाअकृ ततयाां,
तभति स्तांभों तथा पुष्पमय
चांदोवे के सजावटी ाअलों में
तस्थत हैं। ये ाअकृ ततयाां या
तो बैठी हुाइ तस्थतत में हैं या
कफर नृतय की मुद्रा में खड़ी
हुाइ और या कफर लेटी हुाइ
मुद्रा में हैं। ाआन मूर्तत-तशल्पों
से हमें ततकालीन लोगों के
सामातजक एवां साांस्कृ ततक
जीवन के साथ-साथ ाईनके
पररधानों, के शतवन्यास एवां
ाअभूषणों के तडजााआन के
तवषय में काफी जानकारी
प्राप्त होती है।

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1.56. कल्पसू त्र , पाां डु तलतप (तततथ ाऄतनतित), पतिमी भारत


 धमय शातस्त्रयों एवां तचत्रकारों ने धार्तमक एवां धमयतनरपेक्ष पाट्ण सामग्री तैयार की थी तथा तजस मूल
पाठ की नकल की जानी
थी वह पाांडुतलतप के पृष्ठों
पर ाईतारा गया था। ाआस
कायय में हातशया तथा
तचत्रों के तलए स्थान
छोड़ने सांबांधी सावधानी
बरती गाइ थी। तचत्रों के
तलए मूल रांगों-लाल,
नीला तथा पीला के
साथ-साथ काला एवां श्वेत
रांग भी ाआस्तेमाल ककया
गया था। ाअभूषणों, वस्त्रों
तथा तभतितचत्रों के ाऄन्य
भागों को ाईभारने के
तलए। सोने का ाईपयोग
ककया गया था।
ाअयताकार पृष्ठों को एक साथ बाांधकर पाांडुतलतप का रूप कदया गया था।

1.57. कु तु ब मीनार, कदल्ली


 ाऄगर हम भारत के ककसी प्रतीक तचह्न के बारे में तवचार करते हैं तो हमारे नेत्रों के सम्मुख जो
छतवयाां प्रकट होती हैं ाईनमें से एक कु तुब मीनार की तस्वीर भी है। ाआस बात में कोाइ सांदह
े नहीं है
कक यह भारत के महतवपूणय स्मारकों में से एक
है। 72.5 मीटर ाउांची यह गगनचुांबी ाआमारत
पररष्कृ त रूप से गोल, मूल्ताः लाल पतथर से
तनर्तमत है। धरातल पर ाआसका पररमाप 13.75
मीटर है जो ाउांचााइ पर जाकर 2.75 मीटर रह
जाता है।
 ाआस भव्य मीनार का तनमायण कायय 12वीं
शताधदी में प्रारांभ हुाअ था जब कु तुब-ाईद्-दीन
ने कु तुब मतस्जद योजना का तवचार ककया था।
मगर कु तुब-ाईद्-दीन के दामाद और
ाईिरातधकारी ाआल्तुततमश ने ाआसके तनमायण कायय
को पूरा करवाया था। भारत की ाअज तक की
पतथरों से बनी ाआस सबसे ाउांची मीनार का
ाईपयोग, कहते हैं, मुाऄजीन नमाज की ाऄजान
देने के तलए ककया करता था। कु तुब शधद का ाऄथय है-स्तांभ जो न्याय और सांप्रभुता का प्रतीक है।
 प्रारांभ में कु तुब मीनार की चार मांतजलें थीं। ाअज ाआसकी पााँच मांतजलें हैं तजनमें पहली तीन लाल
पतथर की तथा शेष दोनों लाल पतथर और सांगमरमर को तमलाकर बनााइ गाइ है। बाहर की तरफ से
सजावटी छज्जों से ाआसकी हर मांतजल ाऄलग कदखााइ देती है। ाआसी प्रकार ाआसकी प्रथम तीन मांतजलें
तभन्न-तभन्न ाअकार-प्रकार की हैं। चौथी तसफय गोल है। तथा ाअतखरी चौथी मांतजल जो सन् 1368 में
कफरोजशाह के काल में क्षततग्रस्त हो गाइ थी, ाईसने ाईसे दो मांतजलों में तवभि कर सांगमरमर से
बनवाया था।

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1.58. सु ले ख (खु श नवीसी), कु तु ब मीनार, कदल्ली


 लाल बलुाअ पतथर व सफे द सांगमरमर से बनी यह मीनार भारत में पााइ जाने वाली पतथर से बनी
श्रेष्ठतम मीनारों में से एक हैं। ाआसकी कु ल ाउांचााइ 72.5 मीटर है। कु तुब मीनार की पाांच मांतजलें हैं
और प्रतयेक की बनावट तभन्न है। प्रतयेक मांतजल प्रक्षेपी छज्जों द्वारा तवभातजत हैं। छज्जों के नीचे
कु रान के वाक्यों के सुलेख सतहत नक्काशीदार पतथर के फलक हैं। सुलतान ने ाऄपने भवनों के
तनमायण के तलए स्थानीय तशल्पकारों और कलाकारों को रखा था।

1.59. ाऄलााइ दरवाजा, कु तु ब पररसर, कदल्ली


 ाऄलााइ दरवाजे में प्रवेश करते ही हम ाआस्लामी वास्तु तनमायण कला की ऐसी खूबसूरत दुतनया में
प्रवेश कर जाते हैं
जहाां कक ाऄनूठी
रचना, मेहराबें,
खास धरातलीय
तडजााआन तथा
(ाऄलााउद्दीन के
प्रवेश द्वार) ाऄलााइ
दरवाजे के गुबांद की
मूल कल्पना जो कक
14वीं सदी के
प्रारम्भ की वास्तु
तनमायण की ाऄद्भुत
कला है, ाईसे सराहे तबना नहीं रह सकें गे।
 यह सन् 1305 के ाअसपास तनर्तमत हुाअ था तथा यह ाऄफगान तुकय के खानदान के तीसरे वांशज
तखलजी गाांव के रहने वाले ाऄलााईद्दीन तखलजी ने भवनों की जो योजना बनााइ थी, ाईसके ाऄांतगयत
तनर्तमत हुाअ था। तखलजी सन् 1296 में कदल्ली के शाही शख्त पर बैठा था। लाल पतथरों का यह
दरवाजा कु व्वत-ाईल-ाआस्लाम मतस्जद में दतक्षण की तरफ से प्रवेश करने के तलए बनवाया गया था।
 सकदयों पुरानी ाआस मतस्जद का यह शाही दरवाजा तपछली छह शतातधदयों के दौरान थोड़ा-सा
क्षततग्रस्त हुाअ है। ाआस प्रवेशद्वार का एक के न्द्रीय कक्ष भी है जो लगभग 16,76 मीटर लांबा है तथा

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ाआसका गुांबद लगभग 18.28 मीटर ाउांचा है। ाआसकी ाआस कदशा के मध्य में एक प्रवेशद्वार हैं। तजनके
दोनों तरफ जालीदार पतथरों की तखड़ककयाां या झरोखे हैं। ाआस प्रकार का हर प्रवेशद्वार एक
ाऄांदरूनी कमरे में खुलता है जो 9.14 मीटर चौड़ा है तथा ाईसकी छत गुांबदाकार है।
 लाल पतथर के ये दरवाजे स्वयां में ाऄपने प्रकार के ऐसे पहले तनमायण हैं। तजनमें ाआस्लामी बनावट
एवां सजावट का ाईपयोग ककया गया है।

1.60. तु ग लकाबाद, कदल्ली

 तुगलक खानदान के सांस्थापक


ग्यास-ाईद्-दीन तुगलक ने
ाऄपनी राजधानी को दतक्षणी
कदल्ली तस्थत 'तसरी' से हटा
कर कदल्ली के दतक्षण-पूवी
तहस्से में स्थातपत ककया तथा
वहाां एक तवशाल ककला
तुगलकाबाद बनवाया। ाआस
ककले का तडजााइन लगभग
ाऄिकोणीय है तथा ाआसका
व्यास लगभग 6.5 ककलोमीटर
है। ाआसकी दीवारें 10-15
मीटर ाउांची हैं तथा ककले में बुजय और मजबूत द्वार हैं। बड़े-बड़े तशलाखांडों को एक साथ जोड़कर
ककले की दीवारें बनााइ गाइ थीं ताकक बाहरी ाअक्रमणों से रक्षा हो सके ।

1.61. ग्यास-ाईद् - दीन तु ग लक का मकबरा, तु ग लकाबाद, कदल्ली

 ग्यास-ाईद्-दीन तुगलक एक शाही तुकय था तथा सन् 1321 में ाईसने तखलजी वांश के बाद राजगद्दी
सांभाली थी। वह कु शल
वास्तुकार भी था। ाईसने
कदल्ली में ाऄपनी नाइ
राजधानी बसााइ थी।
ाऄपनी ाउांची बुजाय तथा 13
दरवाजों वाला यह
ककलेबांद नगर -
तुगलकाबाद, कदल्ली का
तीसरा शहर था। एक तरह
से यह ककला ग्यास-ाईद्-
दीन की रचनातमक
शतियों का प्रतीक था।
 ाआस ाऄिकोणीय ककले के
दतक्षणी मुख्य प्रवेशद्वार के
ाईस पार लाल पतथर से
बना ग्यास-ाईद्-दीन का मकबरा है। ाईसने ाआस मकबरे को स्वयां बनवाया था। ाआसकी दीवारों पर
यहाां-वहाां सांगमरमर का ाआस्तेमाल ाआस ककलेनुमा मकबरे को तवतशि बना देता है।
 सफे द सांगमरमर के गुांबद पर लाल पतथर की चोटी ाआस ाईतकृ ि मकबरे के गौरव को दशायती हैं।
मूलताः यह मकबरा वषाय के पानी के एक कृ तत्रम तवशाल तालाब के बीच बनाया गया था तथा एक
पुल के जररए तुगलकाबाद से जोड़ा गया था। ाअज ाआस पुल के बीच से कु तुब -बदरपुर सड़क जाती
है।

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1.62. कफरोजशाह कोटला, कदल्ली

 मोहम्मद तबन तुगलक के ाईिरातधकारी कफरोज शाह तुगलक ने सन् 1354 में यमुना नदी के
दातहनी ककनारे पर कदल्ली
का पाांचवा मध्ययुगीन शहर
कफरोजशाह बनवाया था।
 ाईस काल के बहुत ज्यादा
जनसांख्या वाले ाआस नगर के
भग्नावशेष दतक्षण में हौज
खास से लेकर ाईिर की
हररयाली पट्टी तथा पूवय में
यमुना के ककनारे तक फै ले
हैं। मुख्य ाऄवशेष यमुना के
ककनारे पर तस्थत कु श्क-ए-
कफरोज या कफरोज शाह का
महल है। ाआस महल की एक
खास तवशेषता ाइसा पूवय
तीसरी शताधदी के लाल
बलुाअ पतथर का पातलश
ककया गया शृांडाकार एकाश्म
स्तांभ है, तजसे ाऄशोक स्तांभ के नाम से जाना जाता है। कफरोजशाह ाऄपने महल की शोभा बढ़ाने हेतु
ाआसे ाऄांबाला से लेकर ाअया था। यह ाऄशोक का दूसरा स्तांभ है तथा ाआसकी ाउांचााइ 13.1 मीटर (42'
7'') है।
 ककले की तवशाल मोटी दीवारें बड़े-बड़े पतथरों को गारे से जोड़कर बनााइ गाइ थीं तथा खुरदरी
दीवारों को तचकना बनाने के तलए पलस्तर ककया गया था या पातलश ककए गए पतथर की परत
चढ़ााइ गाइ थी।

1.63. कफरोज शाह तु ग लक का मकबरा, हौज खास, कदल्ली

 कफरोज शाह तुगलक का स्वयां बनवाया गया ाऄपना मकबरा एक चौरस कक्ष पर तस्थत है , ाईसकी
दीवारें ाउांची होने के
साथ-साथ जरा सी
कोणीय भी हैं। ाउांचा
गुांबद हौज खास के
खूबसूरत वातावरण में
तस्थत है। मकबरे का
ाअांतररक भाग मोटे
पलस्तर में तवभि
जयातमततय तडजााआनों
से कु शलतापूवयक सजाया
गया है।

1.64. बड़ा गु म्बद, लोदी बाग, कदल्ली

 ाआस्लामी बागों और प्राांगणों का स्वयां में ाऄपना ही एक खास ाअकषयण होता है। ककसी स्थान पर
बाग स्थातपत करने का ाऄथय है कक ाईस स्थान के महतव को ाईजागर करना। ाआस्लामी सातहतय के गद्य
एवां पद्य दोनों में ही बागों की प्रशांसा होती रही है और ाईनकी तुलना स्वगय के बाग के साथ की
जाती रही है।

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 लेडी तवसलगड़न पाकय के नाम से भी पहचाने जाने वाली लोदी बागों में -मोहम्मद शाह सैयद का
मकबरा, बड़ा गुांबद, शीश गुांबद तथा
तसकां दर शाह लोदी का मकबरा - ये
चार ऐततहातसक महतव के स्मारक
तस्थत हैं।
 15वीं शताधदी के ाऄांत में तसकन्दर
लोदी के शासनकाल में तनर्तमत
मतस्जद सहदू-ाआस्लामी वास्तुकला के
तवकास में महतवपूणय स्थान रखती है।
कु छ मकबरों के साथ बनी मतस्जदों में
बड़ा गुांबद सबसे प्रारांतभक है। प्रचुर
रूप में ाऄलांकृत कु रान की ाअयतों से
ाआसकी दीवारों को सजाया गया है। खूबसूरत रांग वाले पतथर का ाईपयोग मतस्जद की एक
महतवपूणय तवशेषता है। एक तवशेष ाअकार की पाांच खुली-चौड़ी मेहराबें, तजनकी छत सपाट हैं,
मतस्जद में नवीनता का समावेश करती हैं।

1.65. तसकन्दर लोदी का मकबरा, कदल्ली

 लोदी बाग में ही तसकां दर लोदी का मकबरा भी तस्थत है। यह स्मारक एक ककले के लघु रूप से तघरे
चौरस बाग में
तस्थत है।
मकबरा ाऄपनी
योजना में
ाऄिकोणीय है।
ाआसके कें द्रीय कक्ष
में तसकां दर लोदी
की कब्र है तथा
ाईसके चारों तरफ
गुांबद हैं। यहाां के
ाऄिकोणीय
मकबरे की
योजना को ाआसके
बाद के मुगल मकबरों जैसे कक ताज महल ाअकद में ाआस्तेमाल ककया गया है।

1.66. जामा मतस्जद, ाऄहमदाबाद, गु ज रात


 ाऄहमदाबाद की जामा मतस्जद तन:सांदह
े भारत की एक खूबसूरत मतस्जद है। यह ाआस शहर के
सांस्थापक ाऄहमदशाह द्वारा सन्
1424 में बनवााइ गाइ थी। खुले
प्राांगण की तीन और स्तांभ वाले
गतलयारे हैं। तथा पतिम की तरफ
की ककबला दीवार के सम्मुख 260
स्तांभों वाला एक तवशाल प्राथयना
कक्ष है। ाअले, गतलयारे तथा स्तांभों
के चारों तरफ ज्यातमतीय तथा फू लों
वाले तडजााआन हैं। प्राांगण की एक
तरफ पानी की हौदी है तजसका ाईपयोग वजू के तलए ककया जाता है। ाआसमें बलुवा पतथर के फलकों
की कलातमक सजावट में सहदू-ाआस्लामी परांपराओं का सांश्लेषण है।

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1.67. जाली का कायय , ाअां त ररक दृ श्य, सीदी सै य्यब मतस्जद, ाऄहमदाबाद, गु ज रात

 सन् 1572-73 के ाअसपास


तनर्तमत सीदी सैय्यद मतस्जद
तवतभन्न पुष्पमय एवां ज्यातमतीय
तडजााआनों वाली बलुवा पतथर की
भव्य जातलयों के कारण ाऄतयांत
प्रतसद्ध है।
 जाली का तडजााआन ाऄद्धय
गोलाकार है तथा ाईसके मध्य में
ताड़ का वृक्ष है जो जीवन का
प्रतीक है। ाआसके चारों तरफ लता
तलपटी हुाइ है जो मेहराब के
ाअकार के खुले स्थान को ाऄपनी
पतियों और छोटे फू लों से ढकती
है। पूणयमासी के कदन, चांद्रमा को
जाली के पीछे से देखना ाऄपने
ाअप में। एक सुखद ाऄनुभव होता है।

1.68. गोलकुां डा का ककला, ाअां ध्र प्रदे श

 गोलकुां डा, 16वीं शताधदी के ाअरम्भ में बहमनी साम्राज्य के तवघटन के बाद बने प्राांत का एक
शतिशाली एवां धन के न्द्र था। यह ाआस्लामी वास्तुकला की दक्खन शैली के तीसरे और ाअतखरी
चरण का प्रतततनतधतव
करने वाले ककलों और
शाही मकबरों के तलए
ाईल्लेखनीय है।
गोलकुां डा का ककला
हैदराबाद से पतिम
कदशा में 8.5
ककलोमीटर दूर है।
तथा यह सन् 1512 में
120 मीटर ाउांची
पहाड़ी चोटी पर
बनाया गया था। ककले
की बाहरी परदे वाली
दीवार की पररतध 4.8
ककलोमीटर है। तथा
तवशाल पतथरों की
दीवार बड़े तशलाखांडों
से बनााइ गाइ थी। ाऄनेक तशलाखांडों का वजन काइ टन है।
 ाआस ककले की खास तवशेषताओं में से एक ाआसकी ध्वतन-तनयांत्रण की व्यवस्था भी है। ककले के तनचले
भाग में बजााइ गाइ ताली की ाअवाज ाउांचााइ पर तस्थत दरबार हाल में सुनी जा सकती है।
 यह ककला ाआतना ाऄजेय था कक औरांगजेब की सेना सन् 1686 में एक वषय की घेराबांदी के पिात् ही
ाआस पर ाऄतधकार कर पााइ थी। गोलकुां डा के कु तुब शाही स्मारकों की बड़ी मेहराबें, ाऄलांकृत
ाऄग्रभाग और गुांबद ाआसकी तवशेष पहचान है।

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1.69. कु रान, सल्तनत, दक्खन

 कु रान के ाआस पृष्ठ को 16वीं


शताधदी के ाअरांभ में तचतत्रत
ककया गया था। कागज ाऄरब
व्यापाररयों द्वारा ाईसके
ाऄतवष्कार के स्थान चीन से
भारत में लाया गया था। काइ
पृष्ठों वाली पुस्तकों की नकल
की गाइ थी और ाईन्हें हाथों से
सजाया गया था। लेखक-
कलाकारों ने पानी वाले
तवतभन्न रांगों और सोने के रांग
का ाआस्तेमाल ककया था। ाआस
प्रकार की एक पाांडुतलतप को
तैयार करने में ाऄनेक वषय लगते
थे तथा हर पृष्ठ को कला का
नमूना बनाने के तलए
कलाकारों को लगन एवां कठोर मेहनत से काम करना पड़ता था।

1.70. पाां डु तलतप का तचत्र, हम्जा नामा


 ाऄनेक कहातनयों एवां दांत कथाओं का सांग्रह है। हरेक क्षेत्र ने ाऄपने यहाां की तचत्रण शैली को
बरकरार रखते हुए ाआस पाांडुतलतप की तवतभन्न कालों में नकल तैयार की थी। नकल करने वाले की
तचत्रण शैली स्वयां में तवतशि हैं। हम्जा नामा के ाआस 16वीं सदी के तचत्र में बाग युि स्तांभों वाला
बरामदा दशायया गया है। ाआसमें फू ल, वृक्ष, कमरों की साज-सज्जा तथा ाईस काल के पररधानों को
भी देखा जा सकता है। ाआन तचत्रों से हमें जानकारी तमलती है कक तवतभन्न ऐततहातसक कालों में
लोगों का रहन-सहन एवां वेश भूषा कै सी थी।

1.71. ताजमहल, ाअगरा, ाईिर प्रदे श


 भारत में मुगल शासन के भवन तनमायण काल में शाहजहााँ का समय स्वणय काल माना जाता है।
शाहजहााँ के पूवयजों ने भवन तनमायण में बलुवा पतथर ाआस्तेमाल ककया था। परन्तु शाहजहााँ ने ाआसकी
तुलना में सांगमरमर को प्राथतमकता दी।

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 तवश्व के सात ाअियों में से ताजमहल भी एक है और यह ाऄपने सांतुतलत तडजााआन के तलए माना
जाता है। ाआस मक़बरे का हर तहस्सा-चाहे वह गुांबद हो या छतररयााँ या कफर मीनारें , बाग़ और
सजावट, सभी तमलकर एक सुांदर एवां पूणय सामांजस्य स्थातपत करते हैं। ताज वैसे तो यमुना के
ककनारे तस्थत था,
पर कालाांतर में
यमुना नदी ाऄपने
स्थान से ाऄपना
मागय बदलते हुए
ाऄब ताज से थोड़ा
हट कर बहती है।
 मुख्य मकबरा एक
ाउाँचे चबूतरे पर
तस्थत है तथा ाआसके
हर कोने में एक
मीनार है। ाआन
मीनारों की
तडजााआन कु छ ाआस
प्रकार का है कक
ाआनका झुकाव
थोड़ा-सा बाहर की
तरफ है। ऐसा ाआसतलए ककया गया है कक ाऄगर कभी ये तगरें भी, तो बाहर की तरफ तगरें , मुख्य
मक़बरे पर नहीं। चार बाग़ शैली में बना बारा, लॉन और फव्वारों से सुव्यवतस्थत है। बाग के मध्य
में सांगमरमर का जल-कुां ड भी है। दातहनी तरफ पेड़ों के पीछे ाआस मक़बरे का पूवी दरवाजा दृतिगत
है।

1.72. चार मीनार, है द राबाद ाअन्ध्र प्रदे श


 पुराने हैदराबाद शहर के
मध्य में सुप्रतसद्ध चार
मीनार का तनमायण मुहम्मद
कु ली कु तुब शाह ने सन्
1511 में करवाया था। चार
मांतजलें ाआस भवन की सबसे
ाउपरी मांतजल पर मतस्जद
तस्थत है। खास कु तुब शाही
शैली में तनर्तमत ाआस मतस्जद
में तैयार गज तथा गुलदस्तों
के ाअकार की मीनारें हैं।
कोनों में भी लघु रूप में
मीनारें हैं। चार मीनार के
चारों तरफ भरा-पूरा और
व्यस्त बाजार है। चार
मीनार के पास ही मक्का
मतस्जद की ाआमारत है। यह
तवश्व की सबसे बड़ी मतस्जदों में से एक मानी जाती है तथा ाआसमें 10,000 लोग एक साथ नमाज
ाऄदा कर सकते हैं। ाआसका तनमायण सन् 1614 में प्रारांभ हुाअ था तथा 70 वषय के तवतभन्न चरणों में
पूरा हुाअ।

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