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Scholarly Research Journal for Humanity Science & English Language,

Online ISSN 2348-3083, SJ IMPACT FACTOR 2021: 7.278,


http://www.srjis.com/issues_data?issueId=215
PEER REVIEWED & REFEREED JOURNAL, JUNE-JULY 2023, VOL-11/58
https://doi.org/10.5281/zenodo.8220624

उपन्यास और ससनेमा का अंतसंबंध : विशेष संदर्भ मराठी उपन्यास

िृषाली सुरेश बापट1 & सुरसर् विप्लि2 Ph.D

1पीएच.डी. शोधार्थी (फिल्म अध्ययन),प्रदशभनकारी कला विर्ाग, महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय फहं दी
विश्वविद्यालय, िधाभ
2सहायक आचायभ (फिल्म अध्ययन), प्रदशभनकारी कला विर्ाग (प्रयागराज केंद्र), महात्मा गांधी
अंतरराष्ट्रीय फहं दी विश्वविद्यालय, िधाभ

Paper Received On 20 July 2023


Peer Reviewed On 28 July 2023
Published On: 1 August 2023

Abstract

सारांश:

ससनेमा कला की एक शाखा है जो फिल्म में संिाद, संपादन, दृश्य के लेआउट, प्रकाश,
ध्िसन और सजािट का उपयोग करती है । ससनेमा में मानि को गहराई से सब कुछ
समझाने का अिसर है । यह एक स्क्रीन या पदे पर चलती छवियों में सामाजजक,
आसर्थभक और सांस्क्कृ सतक मुद्दों का स्क्र्थानांतरण है । ससनेमा एक आविष्कार है जजसकी
जडें प्राचीन कलाओं में हैं । ससनेमा की सनसमभती के पूिभ कर्थानक का सनमाभण एिं उसपर
गहन विचार फकया जाता हैं । पूिभ में केिल एक संकल्पना होती हैं । इस संकल्पना के र्ी
विसर्न्न स्त्रोत पाये जाते हैं । जैसे की, कोई सत्य घटना, काल्पसनक घटना, विसशष्ट
सांस्क्कृ सतक मान्यता एिं परम्परा(जैसे की कान्तारा), िैज्ञासनक आविष्कार, युद्ध,
अवप्रय घटनाये, जीिसनया, नाटक, आपदाएं एिं उपन्यास। इन सर्ी स्त्रोतों में से सबसे
बृहत और आसानी से उपलब्ध होने िाला स्त्रोत है उपन्यास। उपन्यास अपने अपेक्षाकृ त
दीघभ लेखन के माध्यम से कहानी या कर्थानक के रूप में जानी जाने िाली युवि द्वारा
प्रेररत होता है । उपन्यास की रचना अक्सर उपन्यासकार द्वारा की जाती है , जजसमें िह
आमतौर पर साफहजत्यक गद्य शैली का उपयोग करते है । उपन्यास मनोरं जन का एक
महत्िपूणभ साधन र्ी मानागया है । उपन्यास सलजखत साफहत्य के विधाओं में र्ी एक
प्रमुख विधा है । ससनेमा की पटकर्था र्ी जब सनसमभत होती है तब िह र्ी एक अप्रकासशत
वृषाली सुरेश बापट & सुरभि भवप्लव 393
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उपन्यास ही होती है । आजकल तो कॉपी राईट के चलते ससनेमा सनमाभण के पहले ही


पटकर्था को उपन्यास के रूप में प्रकासशत कर उसके राईट लेने का संदर्भ हाल ही का
ससनेमा दृश्यम-2 में फदखाई पडता है । यह तो स्क्पष्ट है की हर उपन्यास एक ससनेमा
पोषक पटकर्था हो सकती है और प्रत्येक ससनेमा की पटकर्था एक प्रकार का उपन्यास
है । जब बात मराठी उपन्यास और उसपर सनसमभत फिल्मों की है तो इसकी शुरुआत
“कंु कू” ससनेमा से पाई जाती है (इसके पाफहले र्ी यह प्रयोग पाए जा सकते है पर
जानकारी उपलब्ध नहीं)। पर जब मराठी में उपलब्ध प्रससद्ध उपन्यासों की बात करे तो
उनकी संख्या कािी बडी होगी उसकी तुलना में मराठी उपन्यासों पर सनसमभत ससनेमा
की बात करे तो संख्या कािी कम पाई जाती है । लेफकन यह बात तो स्क्पष्ट होती है फक
उपन्यास ससनेमा के मुख्य स्त्रोतों में से एक है ।

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प्रस्क्तािना:
उपन्यास एक गद्यात्मक लेखन प्रकार है जो साधारणतः विस्क्तृत स्क्िरुप में पाया जाता
है । यह गद्य िास्क्तविक, काल्पसनक या दोनों का समश्रण र्ी हो सकता है । उपन्यास
लेखन का िो प्रकार है , जो न केिल पाठको का मनोरं जन करता है , बजल्क उसपर अपना
प्रर्ाि र्ी छोडता है । एक अच्छा उपन्यास अपने पाठकों को पकड कर रखता है । यह
पाठको को प्रेररत र्ी करता है । खासकर इसके मनोिैज्ञासनक प्रर्ािों को नजरं दाज नहीं
फकया जा सकता,इससलए स्क्टीिन फकंग कहते है फकताबें एक विसशष्ट सिरी जाद ू
हैं ।1फकताबों को एक अच्छे सार्थी के रूप में र्ी पररर्ावषत फकया जाता है इससलए
साफहत्य में उपन्यास का एक विसशष्ट स्क्र्थान है । सार्थ ही र्ारतिषभ र्ावषक विविधताओं
के सलए जाना जाता है । जब बात साफहत्य की है तो र्ारत दे श साफहत्य में अग्रसर पाया
जाता है । विसर्न्न स्रोतों से प्रसत दे श प्रसत िषभ प्रकासशत पुस्क्तक शीषभकों की संख्या में
र्ारत दे श दसिें पायदान पर है । िषभ 2013 में कुल 90000 पुस्क्तक र्ारत में प्रकासशत
हो चुकी र्थी। आईएसबीएन के सार्थ 2018 में र्ारत दे श 129,326 फकताबों के सार्थ

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चौर्थी पायदान पर र्था।2र्ारत में एक सनजी स्क्िासमत्ि िाली शोध संस्क्र्था, द पीपल्स
सलंजविजस्क्टक सिे ऑफ़ इं फडया ने अपने दे शव्यापी सिेक्षण के दौरान र्ारत में 66 से
असधक विसर्न्न सलवपयों और 780 से असधक र्ाषाओं को दजभ फकया है , जजसे यह
संगठन र्ारत में सबसे बडा र्ाषाई सिेक्षण होने का दािा करता है । (सहाय,
2013)शायद ही कोई ऐसा दे श विश्व में हों जहा इतनी सारी र्ाषाएँ बोली या सलखी
जाती हों। जब बात मराठी र्ाषा की हो तो ‘लीळा चररत्र’ से इसकी शुरआत पायी जाती
है । संत साफहत्य में तो मराठी अग्रणी र्ी मानी जाती है िही आधुसनक र्ारत में तो
मराठी समाज सुधार संबंधी लेखन की र्ी कोई कमी नहीं पायी जाती है । मराठी को
पारं पररक रूप से संस्क्कृ त से विकससत ि संस्क्कृ त की अपेक्षाकृ त आधुसनक र्ाषा माना
जाता है । शास्त्रीय र्ाषा की जस्क्र्थसत के अपने दािे को पुष्ट करने के सलए महाराष्ट्र राज्य
द्वारा सनयुि शास्त्रीय मराठी ससमसत द्वारा प्रस्क्तुत दस्क्तािेजी साक्ष्य इं सगत करते है फक
यह कम से कम 2,300 साल पहले संस्क्कृ त के सार्थ सहोदर के रूप में अजस्क्तत्ि में र्थी।3
मराठी र्ाषा के साफहत्य में और र्ारतीय फिल्म इसतहास में मराठी ससनेमा की एक
विशेष जगह रही है । दादा साहे ब तोरणे (आर॰ जी॰ तोणे) की 'पुण्डसलक' एक मूक मराठी
फिल्म पहली र्ारतीय फिल्म र्थी जो 18 मई 1912 को 'कोरोनेशन ससनेमेटोग्राि',
मुंबई, द्वारा र्ारत में ररलीज़ हुई।4र्ारत की पहली पूरी अिसध की िीचर फिल्म का
सनमाभण दादा साहब िाळके द्वारा फकया गया र्था। दादा साहब र्ारतीय फिल्म उद्योग के
अगुआ र्थे। िे र्ारतीय र्ाषाओँ और संस्क्कृ सत के विद्वान र्थे जजन्होंने संस्क्कृ त महाकाव्यों
के तत्िों को आधार बनाकर राजा हररश्चन्द्र (1913), मराठी र्ाषा की मूक फिल्म का
सनमाभण फकया र्था।5 यह सब सावबत करता है फक र्ारतीय साफहत्य में मराठी साफहत्य

3
https://timesofindia.indiatimes.com/city/mumbai/clamour-grows-for-marathi-to-be-
given-classical-language-status/articleshow/63776578.cmsसे अनुिाफदत 17_03_2023
4
https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A5%80%E0%A4%AF
_%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A5%87%E0%A4%AE%E0%A4%BE#cite_note-Maharashtratimes-
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https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A5%80%E0%A4%AF
_%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A5%87%E0%A4%AE%E0%A4%BE#cite_note-Maharashtratimes-
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अग्रणी में से एक तो रहा ही है और ससनेमा में र्ी मराठी अग्रणी रही है । इन दोनों
जस्क्र्थसतयों में मराठी को केंफद्रत करते हुए उपन्यासों और ससनेमा के संबंध का अध्ययन
प्रासंसगक बन जाता है ।
उपन्यास क्या है ?
उपन्यास अपने अपेक्षाकृ त दीघभ लेखन के माध्यम से कहानी या कर्थानक के रूप में
जानी जाने िाली युवि द्वारा प्रेररत होता है । उपन्यास की रचना अक्सर उपन्यासकार
द्वारा की जाती है , जजसमें िह आमतौर पर साफहजत्यक गद्य शैली का उपयोग करते है ।
उपन्यास मनोरं जन का एक महत्िपूणभ साधन है । यह दृक माध्यम का सबसे
प्रर्ािशाली मनोरं जन साधन र्ी माना गया है । उपन्यास स्क्र्थानीय पाठको तक ही
सीसमत न रहते हुए इसका प्रसार िैजश्वक पटल पर र्ी पाया जाता है । है री पॉटर जैसे
उपन्यास की र्ारत में लोकवप्रय होना इसका उत्तम उदाहरण है । िैश्वीकरण में उपन्यासों
के दायरे को र्ी बढ़ा फदया है । दस
ू री ओर उपन्यास न केिल मनोरं जन तक सीसमत है
बजल्क इसके मनोिैज्ञासनक प्रर्ाि तो असधक महत्िपूणभ होते है । उपन्यास पाठकों को
कर्था के सिर पर लेकर र्ी जाता है । यफद उपन्यास उत्तम र्ाषा में सलखा हों तो पढ़ते
समय िह न केिल पाठकों को कर्था मे जकड लेता बजल्क उसके मानस में उस कर्था का
सचत्रण र्ी सनमाभण करता है । यही कारण है फक छत्रपती सशिाजी महाराज पर बने
ससनेमा से ज्यादा प्रर्ािी ऊनपर सलखा गया लेखन साफहत्य पाया जाता है ।
ससनेमा क्या है ?
सत्यजीत रे कहते है “फिल्म छवि हैं ,फिल्म शब्द है ,फिल्म गसत है ,फिल्म नाटक
है ,फिल्म कहानी है ,फिल्म संगीत है -फिल्म में मुजश्कल से एक समनट का टु कडा र्ी इन
सब बातो को एक सार्थ फदखा सकता है ।” इं गमार बगभमन
ै कहते है “फिल्म स्क्िप्न की
तरह है ,संगीत की तरह है | यह कलारूप जजस तरह हमारी चेतना को प्रर्ावित करता
है ,कोई अन्य कलारूप नहीं कर सकता| यह र्ािनाओं के हमारे घर में,आत्मा के अँधरे े
कमरों में सीधे और गहरे प्रिेश करता है ।”(वबप्लि, 2020) ससनेमा कला की एक शाखा
है जो फिल्म में संिाद, संपादन, दृश्य के लेआउट, प्रकाश, ध्िसन और सजािट का

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उपयोग करती है । ससनेमा में मानि को गहराई से सब कुछ समझाने का अिसर है । यह


एक स्क्रीन या पदे पर चलती छवियों में सामाजजक, आसर्थभक और सांस्क्कृ सतक मुद्दों का
स्क्र्थानांतरण है । ससनेमा एक आविष्कार है जजसकी जडें प्राचीन कलाओं में हैं । यह
मोशन वपक्चसभ की ररकॉफडं ग है । हालांफक ससनेमा का साफहत्य, सचत्रकला या अन्य
लसलत कलाओं की तरह गहरा इसतहास नहीं है , लेफकन इसने अपनी असर्व्यवि की
संर्ािनाओं को अपने उद्भि के तुरंत बाद विकससत फकया है ।6 र्लेही ससनेमा का
साफहत्य, सचत्रकला या अन्य लसलत कलाओं की तरह गहरा इसतहास नहीं है परं तु
आसर्थभक तौर तकनीकी तौर पर सबसे विकससत और मनोरं जन के क्षेत्र में असधक
लोकवप्रय इसे ही पाया जाता है । ससनेमा र्ी केिल मनोरं जन तक सीसमत न हो कर
जनजागृसत, सामाजजक पररितभन, समाज सुधार,एिं जनसंचार का एक महत्िपूणभ र्ाग
रहा है । दस
ू री ओर बाज़ारों में उपलब्ध उत्पादो के प्रसार में ससनेमा अहम र्ूसमका
सनर्ाते है ।
ससनेमा के स्त्रोत:
ससनेमा की सनसमभती के पूिभ उसके कर्थानक के सनमाभण पर गहन विचार फकया जाता हैं ।
पूिभ में केिल एक संकल्पना होती हैं । इस संकल्पना के र्ी विसर्न्न स्त्रोत पाये जाते हैं ।
जैसे की, कोई सत्य घटना, काल्पसनक घटना, विसशष्ट सांस्क्कृ सतक मान्यता एिं
परम्परा (जैसे की कान्तारा), िैज्ञासनक आविष्कार, युद्ध, अवप्रय घटनाये, जीिसनया,
नाटक, आपदाए एिं उपन्यास । इन सर्ी स्त्रोतों में से सबसे बृहत और आसानी से
उपलब्ध होने िाला स्त्रोत है उपन्यास। उपन्यास सलजखत साफहत्य के विधाओं में र्ी एक
प्रमुख विधा है । इस स्त्रोत का जजस हद तक ससनेमा के स्त्रोत के रूप में उपयोग होना
चाफहए उस हद तक नहीं हो पाया है । आज र्ी चुसनंदा ससनेमा ही उपन्यास पर पाए
जाते हैं , इतना प्रमुख आसान महत्िपूणभ स्त्रोत आज र्ी अनछुआ ही पाया जाता हैं ।

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उपन्यास एिं ससनेमा का अंतसंबंध:


ससनेमा और साफहत्य ये ऐसे दो घटक है जो एक दस
ू रे से परस्क्पर संबंसधत है । साफहत्य
की सर्न्न विधायें है जजसमें से एक विधा ससनेमा है । ससनेमा के पटकर्था का स्त्रोतों में से
एक महत्िपूणभ बृहत ् स्त्रोत साफहत्य है । साफहत्य की विधाओ में से नाटक,
उपन्यास,लोक कर्थाएं,लोकगीत,धासमभक ग्रंर्थ, दं त कर्थाएं एिं तत्सम विधाओ के ऊपर
ससनेमा की सनसमभती करना संर्ावित र्ी है एिं प्रचसलत र्ी हैं ।
जब बात इन दो सर्न्न विधा के अंतसंबंध की है तब यह दे खा जाता है फक ससनेमा की
पटकर्था र्ी अपनी सनसमभसत के दौरान एक अप्रकासशत उपन्यास ही होती है । आजकल
तो कॉपी राईट के चलते ससनेमा सनमाभण के पहले ही पटकर्था को उपन्यास के रूप में
प्रकासशत कर उसके राईट लेने का संदर्भ हाल ही का ससनेमा दृश्यम-2 में फदखाई पडता
है । जजससे यह बात स्क्पष्ट होती है फक हर उपन्यास एक ससनेमा पोषक पटकर्था हो
सकती है और प्रत्येक ससनेमा की पटकर्था एक प्रकार का उपन्यास है । उपन्यास पर
सनसमभत ससनेमा विस्क्तृत पैमाने पर दशभकों तक पहुंच जाता हैं ,उपन्यास सलजखत रूप में
होने के कारण उसकी कहानी मे रहने िाले पात्र, उसमे आयी हुई हर घटना ससिभ पढ़कर
ही अनुर्ि की जा सकती है जबफक ससनेमा में घटनाओं को दे खा जाता है । चूफं क ससनेमा
दृश्य-श्राव्य माध्यम में होता है इससलए उसके कर्थानक को बेहतर तरीके से महसूस
फकया जा सकता है । उपन्यास और ससनेमा में और एक अंतसंबंध पाया जाता है जैसे
फक कई बार उपन्यास पढ़ने के बाद उसपर सनसमभत ससनेमा दे खने की इच्छा सनमाभण
होती है । िही बहुत बार यह उलटा होते हुए र्ी पाया जाता है । उदाहरण के सलए जब
‘बाजीराि मस्क्तानी’ ससनेमा आया तब ‘राऊ’ इस मराठी उपन्यास की मांग में तो
बढ़ोतरी हुई ही र्थी सार्थ ही में पूना के शसनिारिाडा को दे खेने के सलए आनेिाले लोगो
की तादात र्ी बढ़ी र्थी। िस्क्तुतः आज ससनेमा और साफहत्य की संबंधात्मक
अिधारणायें विसर्न्न स्क्तरों पर अलगीकृ त हो गयी हैं । लेफकन स्क्र्थूल रूप में एक अच्छे
सनदे शक की साफहजत्यक कृ सत पर आधाररत फिल्म ने जनमानस को ससनेमा के असली
ताकत से पररसचत तो कराया ही है । (कुमार, 2010) यहाँ बात ससनेमा श्रेष्ठ है या

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उपन्यास! इसकी नहीं है बजल्क इन दोनों की अपनी एक अलग जगह है । बािजूद इसके
इन दो विधा में गहरा अंतसंबंध पाया जाता है । उपन्यास एिं ससनेमा का अंतसंबंध
अत्यासधक घसनष्ठ पाया जाता है ।
मराठी उपन्यास और ससनेमा का संदर्भ:
जब बात मराठी उपन्यास और उसपर सनसमभत फिल्मों की है तो इसकी शुरआत “कंु कू”
ससनेमा से पाई जाती है । यह फिल्म नारायण हरी आपटे द्वारा सलजखत उपन्यास “न
पटणारी गोष्ट” के कर्थानक पर 1937 में िी. शांताराम द्वारा सनदे सशत की गई। इसे
मराठी में पफहला प्रयास कहा जा सकता है (इसके पहले र्ी यह प्रयोग पाए जा सकते है
पर जानकारी उपलब्ध नहीं)। इस उपन्यास और ससनेमा दोनों को जनमानस द्वारा
सराहा गया। सार्थ ही “श्याम ची आई” ससनेमा जो साने गुरूजी द्वारा सलजखत “श्याम ची
आई” यह उपन्यास पर 1953 में प्रल्हाद केशि अत्रे द्वारा सनदे सशत की गई। और 1977
में गो. सन. दांडेकर द्वारा सलजखत “जैत रे जैत” उपन्यास पर जब्बार पटे ल द्वारा सनदे सशत
“जैत रे जैत” ससनेमा आता है । उसके बाद 1979 में ससहांसन, 1995 में बनगरिाडी
आफद ससनेमा आते है । 1995 से 2009 के वबच ऐसा प्रयास नहीं दे खा जाता है (हो र्ी तो
इस पर जानकारी उपलब्ध नहीं)। इस प्रयास की पुन: शुरआत 2009 में डॉ.राजन गिस
द्वारा सलजखत “चौंडक” और “र्ंडारर्ोग” उपन्यास पर सनसमभत राजीि पाफटल सनदे सशत
“जोगिा” ससनेमा आया। तदप
ु रांत 2010 में जयिंत पिार का उपन्यास “अधांतर” पर
महे श मांजरे कर सनदे सशत “लालबाग परळ”, 2010 में आनंद यादि का उपन्यास
“नटरं ग” पर रिी जाधि सनदे सशत “नटरं ग”, 2011 में समसलंद बोकील के उपन्यास
“शाळा” पर संजय ढाके द्वारा सनदे सशत “शाळा”, 2012 में ि.पु.काळे का उपन्यास
“पाटभ नर” पर समीर रमेश सुिे सनदे सशत “श्री पाटभ नर”,2013 में राजन खान की उपन्यास
“सत ना गत” पर राजू पसेकर द्वारा सनदे सशत “सत ना गत”, और सुहास सशरिळकर के
उपन्यास “दसु नयादारी” पर संजय जाधि सनदे सशत “दसु नयादारी”, 2014 में डॉ प्रकाश
बाबा आमटे के उपन्यास “प्रकाशिाट” पर समृद्धी पोरे द्वारा सनदे सशत “डॉ प्रकाश बाबा
आमटे ”,2017 में जयिंत दळिी का उपन्यास “ऋणानुबंध” पर प्रसाद ओक द्वारा
सनदे सशत “कच्चा सलंब”ू ,2017 में बाबा र्ांड के उपन्यास “दशफरया” पर संदीप र्ालचंद्र
पाटील द्वारा सनदे सशत “दशफरया”, 2018 में कांचन कासशनार्थ घाणेकर के उपन्यास
“नार्थ हा माझा” पर असर्जीत दे शपांडे द्वारा सनदे सशत “आजण काशीनार्थ घाणेकर”,

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2019 में नीला सत्यनारायण के उपन्यास “ऋण” पर समीर रमेश सुिे सनदे सशत
“जजमेंट” और 2019 में अण्णार्ाऊ साठे का उपन्यास “आिडी” पर प्रिीण क्षीरसागर
द्वारा सनदे सशत “इभ्रत”आफद प्रयास पाए जाते है । 2022 में अरुण साधू का उपन्यास
“जझपरया” पर केदार िैद्य द्वारा सनदे सशत “जझपरया”, और विश्वास पाटील का उपन्यास
“चंद्रमुखी” पर प्रसाद ओक सनदे सशत “चंद्रमुखी” आफद ससनेमा में उपन्यास के नाम को
ही ससनेमा का नाम फदया गया है । पर यहाँ एक बात गौर करने लायक है , जजतने र्ी ऐसे
प्रयास हुए उसमें कुछ उपन्यास और ससनेमा के नाम में कोई पररितभन नहीं फदखता है
और कुछ प्रयासों में उपन्यास के नाम एिं ससनेमा के नाम में अत्यसधक अंतर पाया
जाता है ।
सनष्कषभ:
उपन्यास और ससनेमा यह दोनों साफहत्य की दो सर्न्न विधा है । एक केिल दृश्य है तो
दस
ू री दृश्य-श्राव्य है । साफहत्य में दोनों की जगह अहम रही है । दोनों के अपने अलग-
अलग श्रोता समूह तो है ही पर इनमें समान समूह र्ी है जो इन दोनों विधाओ को पसंद
करते है । उपन्यास यह एक गद्यात्मक लेखन प्रकार है जो फक साधारणतः विस्क्तृत
स्क्िरुप में पाया जाता है । िही ससनेमा आम तौर पर कला की एक शाखा है फिल्म में
संिाद, संपादन, दृश्य के लेआउट, प्रकाश, ध्िसन और सजािट का उपयोग करती है । पर
जब ससनेमा सनसमभती की बात है तो ससनेमा के पटकर्था या कर्थानक के सर्न्न स्त्रोत हो
सकते हैं जजसमे सत्य घटनाएं, आविष्कार, कल्पनाए, और उपन्यास। इन स्त्रोतों में
उपन्यास महत्िपूणभ बनाता है यह स्क्पष्ट है ससनेमा की पटकर्था यह अपने आप में एक
उपन्यास ही है र्ले ही िह प्रकासशत हो या अप्रकासशत। दस
ू री ओर र्ारत िषभ अपने
साफहत्य के सलए र्ी प्रससद्ध है । शायद ही धरती पर ऐसा कोई दे श होगा जजसके पास
इतनी सर्न्न र्ाषाओं में साफहत्य उपलब्ध हों। जब बात मराठी साफहत्य की है तो र्ारत
दे श में मराठी साफहत्य की अपनी एक सर्न्न पहचान और जगह फदखाई पडती है ।
उपन्यास से ससनेमा सनसमभती का प्रचलन मराठी साफहत्य में समलता र्ी है । फकंतु जब
मराठी में उपलब्ध प्रससद्ध उपन्यासों की बात करें तो उनकी संख्या कािी बडी होगी,
उसकी तुलना में मराठी उपन्यासों पर सनसमभत ससनेमा की बात करें तो संख्या कािी
कम पाई जाती है ।हालांफक उपन्यास ससनेमा के मुख्य स्त्रोतों में से एक है यह तो
वििेचन से स्क्पष्ट होता है ।

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संदर्भ सूची :
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वबप्लि, सु. (2020) ससनेमा के विविध संदर्भ, फदल्ली: अनुज्ञा बुक्स, ISBN: 978-93-89341-76-8
https://www.audible.com/blog/quotes-bibliophiles से अनुिाफदत 17_03_2023
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17_03_2023

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Vrushali Suresh Bapat, & Surbhi Viplav. (2023). UPNYAS AUR CINEMA KA ANTSAMDH:
VISHESH SANDHRBH MARATHI UPNYAS. Scholarly Research Journal for Humanity
Science & English Language,, 11(78), 392–400.
https://doi.org/10.5281/zenodo.8220624

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