You are on page 1of 14

द्वारा

पुस्तक
सताक्षी पांडय
े ,
समीक्ष
◌ा राज्य कर अ धकारी
द्वारा
सताक्षी पांडय
े ,
राज्य कर अ धकारी

द्वारा
शताक्षी पांडय
े ,
राज्य कर अ धकारी
लेखक प रचय
* जन्म - ३१ दसंबर,१९२५ ,लखनऊ जनपद में

* शक्षा- इलाहाबाद वश्व वद्यालय से स्नातक

* राग दरबारी का प्रकाशन वषर्त - १९६८

* १९७० में पुस्तक को सा हत्य अकादमी पुरष्कार मला

* १९८६ में एक दूरदशर्तन धारावा हक के रूप में प्रसारण


वषयवस्तु
* पुस्तक का केंद्र एक गांव है - शवपालगंज , िजसे स्वतंत्रता के पश्चात के भारतीय गांव या
समाज का प्रतीक समझा जा सकता है ।

* पुस्तक की कथा बहु त लम्बी चौड़ी नहीं है ।

* शवपालगंज को केंद्र बनाकर छोटे छोटे प्रसंगो के ताने बाने से स्वातंत्रयोत्तर भारतीय गांव के
यथाथर्त को उनकी समस्त कुरूपताओं और वडम्बनाओं के साथ मूतरू र्त प दया गया है ।
शीषर्तक की साथर्तकता
पुस्तक का मुख्य वषय शवपालगंज और उस गांव पर छाए हु ए वैधजी और उनकी बैठक है ।

वैधजी की बैठक ही दरबार है िजसके राग से पूरा गांव संचा लत होता है ।


पात्र
इस उपन्यास में एक दो नहीं वरन अनेक पात्र है तथा हर एक पात्र की अपनी एक महत्वपूणर्त
भू मका है ।
वैधजी
बद्री पहलवान
रुप्पन बाबू
रं गनाथ
प्रं सपल साहब
छोटे पहलवान
जोगनाथ
सनीचर
लंगड़
खन्ना मास्टर
लेखक का उद्दे श्य
लेखक ने स्वतंत्रता के पश्चात के भारतीय समाज में मौजूद असफल मूल्यों व तथाक थत
उपलिब्धयों तथा वास्त वकता के बीच के अंतर की तरफ हमारा ध्यान आकृ स्ट कया है ।
दे श काल प रिस्थ त
पुस्तक में स्वतंत्रता क़े २०-२५ वषर्त बाद की िस्थ त को एक गांव को आधार बना कर दशार्तया गया है

भाषा शैली
* व्यंग्यातमक शैली

* कई जगह अवधी भाषा का प्रयोग

* भाषा में आंच लकता क़े तत्व

* मुहावरों,कहावतों व लाक्षरीक शब्दों का प्रयोग

* चत्रात्मकता व बम्बात्मकता
समीक्षा
* कहानी में हास्य है बावजूद इसके यह एक यथाथर्तवादी रचना है ।
* कहानी का केंद्र व्यवस्था में जड़ जमा चुकी अनै तकता है ।
* आदशर्तवाद और यथाथर्तवाद के बीच की खींचतान।
* इस पुस्तक में सम्पूणर्त दे श की प्रशासन व्यवस्था , न्याय व्यवस्था और अथर्तव्यवस्था की पूरी झांकी मल जाती
है ।
* वषयान्तरों में भी अपनी व्यंग्यांत्मक शैली के कारण श्रीलाल शुक्ल एकरूपता बरकरार रखने के कौशल का
प रचय दे ते हैं।
* जीवन के अनेक प्रसंगो और िस्थ तयों की योजनानुसार भाषा प रव तर्तत होती है ।
* हर पात्र की भाषा का निश्चत ढरार्त है । इस दृिष्ट से लेखक की सावधानी सराहनीय है ।
* लेखक के सामािजक ,राजनी तक ,धा मर्तक , सांस्कृ तक , आ थर्तक आ द मानव जीवन के सभी पक्षों की वसंग तयों
को अपने व्यंग्य का आधार बनाया गया है ।

* स्वतंत्रता के पश्चात भारत के ग्रामीण इलाकों तथा अन्य क्षेत्रो में व्याप्त अराजकता का व्यंग्यांत्मक चत्रण।
समालोचना
* म हला पात्रों का उल्लेख नहीं।

* अंत अचानक से हो गया।

* भ्रष्ट व्यवस्था के स्थान पर नई व्यवस्था क्या होगी , इसका सूत्रपात कौन और कैसे करे गा ; इन
बंदओ ु ं का उल्लेख नहीं।
उपसंहार
* कहा जा सकता है की शुक्ल जी ने सामािजक , सांस्कृ तक , धा मर्तक, राज न तक , आ थर्तक आ द
मानव जीवन के सभी पक्षों की वसंग तयों को अपने व्यंग्य का आधार बनाया है ।

* अपने प्रकाशन से ५० वषर्त से भी ज्यादा पूरे हो जाने के पश्चात वतर्तमान में भी इस पुस्तक की
प्रासं गकता बरकरार है । यह लेखक की बहु त बड़ी उप्लि ध है ।
धन्यवाद

You might also like