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मलबे का मा�लक – मोहन राकेश

मोहन राकेश क� प्र�तभा कहा, नाटक और उपन्या—सभी �ेत्र�म� अपने कां-स्पशर् से एक नयी छाप छोड़त
है। अपने दस
ू रे संग्र‘नये बादल’ क� भू�मका म� वे स्पष्टत: स्वीकारते ह� �क उन्ह�ने और अपनी-पीढ़� ने
‘यथाथर् क� अपे�ाकृत ठहरे हुए अथार ्त् वैयिक और पा�रवा�रक रूप को अपनी रचनाओं म� अ�धक स्थान �दय
है।’ �कंतु बहुत दरू तक कलाकार केवल ऐसी ह� रचनाएं नह�ं कर सकता जो �कसी एक वैयिक्तक धारा क� ह� ह�
और अपने सामािजक संदभ� से कट� हुई रह सक�। फलत: राकेश के यहां भी ऐसी कहा�नयां ह� जो अपने समय-
संदभ� से गंभीर रूप से जुड़ी हुई ह�। इन कहा�नय� म�‘मलबे का मा�लक’ तथा ‘परमात्मा का कुत्’ �वशेष रूप से
रे खां�कत क� जा सकती ह�। राकेश क� इस कहानी को �वभाजन क� �वभी�षका पर �लखी �हंद� क� ह� नह�ं अ�पतु
भारतीय भाषाओं क� अत्यंत श्रेष्ठ कहा�नय� म� �न:संकोच र रखा जा सकता है। राकेश क� यह कहानी इस�लए
भी बहुत सशक्त बन सक� है �क इसम� उनक� व्यिक्तवाद� दृिष्ट जो सम्बंध� क� बार��कय� का बहुत सू�म
अंकन करती है उनक� सामािजक दृिष्ट से संयुक्त हो जाती , इस�लए यहां �हंद-ू मुिस्लम समस्, जो भारत-पाक
�वभाजन का कारण बनी, जैसी समस्या पर अंगुल� रखी गयी है और साथ ह� गनी �मयां क� भावनाओं का इतना
मा�मर्क अंकन हो सका है। �कसी भी कलाकार के रचन-कमर् का यह स्पृहणीय �ण है जब वह एकसाथ ह� मा-
हृदय क� भावनाओं का ऐसा संवेदनात्मक �चत्रण करता हुआ अपने समय क� ज्वलंत समस्भी जूझता है।
अपने इन्ह�ं दोन� गुण� के कारण‘मलबे का मा�लक’ आज भी उतनी ह� आकषर्क लगती है। कहानी का प्रका
1957 म� प्रका�शत राकेश के दूसरे क-संग्र‘नये बादल’ म� हुआ था, यह कहानी कई बार, न जाने �कतनी बार पढ़�
है �कंतु कभी परु ानी नह�ं लगती।

लेखक कहानी का प्रारंभ कर-करते ह� यह दृिष्ट दे देता है �क आज भी भा-पाक के सामान्य �नवा�सय� के �लए
लाहौर और अम ृतसर उतने ह� अपने ह� िजतने �वभाजन के पूवर् थे। धरती का �वभाजन केवल दो देश� क�
राजनी�तक सीमाएं ह� अलग कर सका, �दल� के नक्शे पर कोई खर�च नह�ं आयी। �हंद और मुिस्लम के बीच उस
सांप्रदा�यक वहशीपनम� जो एक अ�वश्वास उपजा, लेखक उसक� झलक भी चुपके से दे जाता है जब गल� क�
लड़क� मुसलमान का भय �दखाकर रोते बच्चे को चुप कराती है। �वभाजन के कारण बदल� हुई सामािजक िस्थ�तय
का एक रं ग यह भी है। गल� म� मुसलमान के आने क� ख़बर पर मची भगदड़ इसी क� अ�भव्यिक्त ह

कहानी क� संवेदना का दस
ू रा रूप तब प्रारंभ होता है जब मनोर� गनी �मयां को उसके मकान के मलबे के प
लाकर खड़ा कर दे ता है। जल� हुए चौखट को पकड़ कर गनी का बैठ जाना और उन्ह�ं �दन� कत्ल �कये गये अपन
बेटे �चरागद�न क� याद, मलबे क� लकड़ी का भुरभरा जाना, और उसके रे श� का झड़कर �बखर जाना, उस समय के
‘सुंदरतम’ के ढहने का प्रतीक बन जाता है। बूढ़े गनी के प�रवार के कत्ल �कये जाने के दृश्य को पूवर् द�िप्त
कहना और गनी का अपने बेटे �चरागद�न और बे�टय� �कश्वर तथा सुलताना को यद कर-करके �बलखना—सब कुछ
बहुत कारु�णक है और रक्खे पहलवान जैसे भरोसे के दोस्त के द्वारा ह� कत्ल �कया जाना वह भी मका
हड़पने क� नीयत से उन क्रूर �दन� क� िस्थ�त को स्पष्ट करता है जब इंसा�नयत हैवा�नयत म� बदल गयी थी
सारा �चत्रण उन िस्थ�तय� के प्रठक के मन म� एक आक्रोश जगाकर मानवीय संवेदना को शा�पत करने क
प्रशंसनीय कायर् करता

इसके पश्चात् कहानी क� संवेदना का एक तीसरा आयाम खुलता है जब मलबे का मा�लक होने का दंभ पालने वाले
रक्खे और गनी �मयां क� भ�ट होती है। गनी �चराग के दोस्त रक्खे पहलवान से ने को िजस प्रकार हुमकक
आगे बढ़ता है , उसके �वपर�त रक्खे उतने ह� ठंडेपन से उसका‘सामना’ करता है , ‘�मलता’ तो है ह� नह�ं। उससे
�मलने को आतुर गनी क� बांह� रक्खे के आ�लंगन के �लए तरसती हुई उठ� क� उठ� रह जाती ह�। बैठने के �लए वह
ऐसा आधार ढूंढ़ रहा है जो पत्थर(�सल, कुएं क� �सल� ) हो कर रह गया है। क्या �वडम्ब, ड्रैमे�टक ऑयर, है �क
गनी अपने बेटे �चरागद�न के का�तल से ह� पूछता है �क यह हुआ कैसे ? ‘तुम लोग उसके पास थे, सबम� भाई-भाई

ु ब्बत थ, अगर वह चाहता, तो वह तुझम� से �कसी के घर म�, ह� �छप सकता था? उसे इतनी भी समझ
क�-सी मह
नह�ं आती?’ िस्थ�त का कैसा क्रूर मज़ाक है �क साढ़े सात साल बाद भ�क से ह� र�क के व्यवहार क� अ,
अपे�ा नह�ं गहरा �वश्वास है। उसके रहते ह� तो �चराग को यह �वश्वास था �‘कोई मेरा कुछ नह�ं �बगाड़
सकता।’ �वश्वास क� यह आस्था उस प�रवार को समाप्त कर देने वाले रक्खे को भी भीतर तक �हला जाती है
वह �वच�लत हो कर ‘हे प्रभु सिच, तू ह� है , तू ह� है , तू ह� है!’ पुकार उठता है। गनी का यह कहना ‘मन
� े तुमको
दे ख �लया, तो �चराग को दे ख �लया’ रक्खे को भी �भगो देता है। ह मानो अपनी गलती का अहसास करता हुआ
जाते हुए गनी को दोन� हाथ जोड़कर प्रणाम करता है नमस्कार करता है। गनी के स्वागत के समय और अब �
दे ते समय क� रक्खे क� ये �भन्न मुद्राएं कहानी म� बहुत महत्त्वपूणर् ह�। लेखक कह�ं भी रक्खे के बदले �
वणर्न नह�ं करत अ�पतु सवर्त्र उसक� अ�भव्, �व�भन्न �क्-कलाप� के द्वारा करता है। इस प्रकार कहानी
सांप्रदा�यक एकता क� जो �वच-सार�ण आ�द से अंत तक अनुस्यूत ह , वह कह�ं भी आरो�पत रूप म� नह�ं आती
अ�पतु कहानी के बीच अंत:स�लला क� तरह प्रवा�हत होती ह

इसके पश्चात राकेश का कहानीकार बहुत कुशलता से यह �वचार करता है �क रक्खे अपने व्यवहारम� इतना �नमर
क्य� हु? गनी क� बीवी जुबेदा क� अच्छाई के सा-साथ कहानीकार ने रक्खे के �लए यह वाक्यांश �दया , ‘रक्खे
मरदद
ू का घर, न घाट, इसे �कस मा,ं बहन का �लहाज़ था?’ इसके माध्य से वह कहना चाहता है �क उस समय,
भारत-पाक-�वभाजन के समय, हुए दं ग� म� सामान्य व्यि, तो अपने व्यवहार म� ठ�क ह� रह , ये रक्खे पहलवान
जैसे ह� लोग थे िजन्ह�ने मा-काट के जघन्य कायर् �कये थे। क्या �कसी भी , चाहे वह पंजाब क� आतंकवाद�
िस्थ�तय� क� बात होअथवा �फर �दल्ल, आ�द म� इं�दरा हत्याकांड के पश्चात् हुए भीषण हत्याकांड, समाज के
असामािजक तत्त्व� का चेहरा रक्खे पहलवान जैसा ह� नह�ं ह? अपने इसी संदभर् म� यह कहानी �कसी भी सम-
संदभर् म� पुरानी नह�ं पड़ेगी। जब तक समाज म� रक्खे पहलवान जैसे लोग गे, क्या सांप्रदा�यकता के �वष
समाप्त �कया जा सकता ह?

कहानी का अंत भी बड़ा प्रभावी और प्रतीकात्मक ह�। रक्खे पहलवान क� उपलिब्ध, यह सवाल कहानी के अंत
म� उठाया गया है। उस जघन्य कायर् को करने के पश्चात् उसक� आत्मा गनी �मयां के जाने के बाद उसे ती
है। वह गनी के मकान को तो पा ह� नह�ं सका क्य��क उसे उस जैसे असामािजक तत्व� ने जला �दया , शेष रह
गया था मकान का मलबा, पर क्या रक्खे इस मलबे का भी मा�लक �सद्ध हो? उसक� प्र�तद्वंद्�वता होती
अ�धकार क� इस लड़ाई म� एक आवारा-से कुत्ते से। मलबे से व पहलवान उस कुत्ते को भी नह�ं भगा सका।
वस्तुत: कुत्ता उसे बहुत दूर तक खदेड़ देता है और अंतम� इस मलबे पर का�बज़ होता है वह कुत्ता—’कान
झटककर मलबे पर लौट आया और वहां कोने म� बैठ कर गुरार्ने लगा’ यह है मानव के कमीनेपन पर एक �टप्पणी
�क मलबे का असल� मा�लक कुत्ता ह� है या जो ऐसे मलब� को ह�थयाते ह� वे कुत्ते ह�! बहुत सुंदर अंत‘नयी
कहानी’ को �नष्कषर्�वह�न अंत क� कहा�नयां कहा गया है �कंतु यहां �नष्कषर्पूणर् अंत है �कंतु वह एक आर
आदशर् के रूपम� नह�ं। लगता ह� नह�ं �क कहानीम� कह�ं आदशर् स्था�पत हु। कुत्ते का गुरार्हट भरा आ�धपत
मानवीय सोच पर दस्तक देता ह, उसे सोचने को �ववश करता है �क इंसान जो हैवा�नयत के काम करता है , उसक�
उपलिब्ध क्या ह

कथ्य और �शल्प तथा भा-संरचना सभी दृिष्टय� स‘मलबे का मा�लक’ एक अत्यंत सशक्त कथा ह

बी.कॉम प्रोग सेम-4 �हंद�- ‘क’

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