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क्रांतिदि

ू - भरग १ झराँसी फरइल्स "पुस्िक समीक्षर "

भारत के ऐततहासिक दस्तावेजों में क्ाांतत के पन्ने इधर उधर बिखरे हुए पड़े हैं। एक िम्पूर्ण
वाांग्मय क्ाांतत के ककिी भी नायक को स्वतांत्रता के इतने वर्षों िाद भी प्राप्त नह ां हुआ है। १९०९
में वीर िावरकर की पस् ु तक "१८५७ का स्वतांत्रता िमर" जि प्रकासित हुआ, ति "१८५७ की
क्ाांतत को" भारत के प्रथम स्वतांत्रता िांग्राम के रूप में पहचान प्राप्त हुई। यदद िावरकर जैिे
राष्ट्रवाद नेता १८५७ की क्ाांतत का िादहत्य/इततहाि सिखने का कष्ट्ट न करते, तो १८५७ का वर्षण
केवि छोटे मोटे िांघर्षण के रूप में ह याद ककया जाता। वह १८५७ की क्ाांतत ह थी जजिने अांग्रेजों
को कम्पनी िांद करने पर मजिूर ककया और भारत के जन प्रतततनधधयों को भारतीय व्यवस्था में
जगह िनाने का मौका ददया।

इन्ह ां भारत के जन प्रतततनधधयों को हम भारत के आधुतनक तनमाणता के रूप में जानते हैं। जजि
क्ाांतत ने इनको पहचान ददिाई, उिे ह इन्होंने िाद में नकारा कहकर उिका ववरोध ककया।
इन्होंने इि िात पर अधधक जोर ददया की भारत उन्हें ककि रूप में याद रखेगा, और यह कारर्
रहा की इन्होंने अपना िादहत्य और अपने ववचारों को िगातार छपवाया। क्ाांतत की पहचान को
इन्होंने िदै व तछपाने का प्रयत्न ककया। हमारे पाि आज आधुतनक भारत के तनमाणता के रूप में
पहचान िना चुके नेताओां के िम्पूर्ण दस्तावेज उपिब्ध हैं, पर जि क्ाांतत के ककिी नायक को
हम पढ़ना चाहते हैं, ति हमें बिखरे पड़े िादहत्य/इततहाि के पन्नो को खोजना पड़ता है।

क्ाांतत १८५७ के अध्याय के िाद िमाप्त नह ां हुई थी, उि अजग्न की िपटें ककिी न ककिी रूप
में भारत के कोने कोने में िमय िमय पर प्रकट होती रह ां हैं। कभी कूका ववद्रोह के रूप में
भड़कीां तो कभी चाफेकर िांघ के रूप में िांघदित हुईं, कभी काकोर काण्ड के रूप में प्रकट हुईं
तो कभी गदर पाटी के रूप में तैयार हुईं। यदद िीक िे िमझा जाए तो इन िभी के तार कह ां न
कह ां एक दि
ु रे िे जुड़े हुए थे, और इन्होंने भारत को िांगदित रखने में एक महत्वपूर्ण भूसमका
तनभाई थी। इन िि तारों को जोड़ने का प्रयाि कभी िीक िे नह ां हुआ, और हम क्ाांतत के कई
नायकों िे आज तक अांजान ह हैं।

डॉ. मनीर्ष श्रीवास्तव "क्ाांततदत


ू पुस्तक श्रुांखिा" में इन दस्तावेजों को जोड़ने का प्रयाि करते हैं।
इि प्रयाि के सिए उन्हें ककतना पररश्रम करना पड़ा होगा, उिे आप पुस्तक के अांततम कुछ
पन्नों में िांदभण के रूप में दे ख ह िकते हैं। श्रांख
र िा की प्रथम पुस्तक क्ाांततकाररयों के उि जीवन
िे पररधचत करवाती है जो उन्होंने काकोर काण्ड के िाद अज्ञातवाि में रहते हुए बिताया। इिके
केंद्र में है "झााँिी", "चांद्रिेखर आज़ाद" और आज़ाद जी के समत्र एवां िड़े भाई "मास्टर रुद्रनारायर्
सिांह"। काकोर में हुई घटना के िाद जि क्ाांततकाररयों ने पुसिि की दबिि िे िचने के सिए
कुछ िमय अज्ञात जीवन जीने का तनश्चय ककया, ति आज़ाद को याद आए मास्टर रुद्रनारायर्
सिांह। झााँिी फाइल्ि की कहानी यह ां िे आगे िढ़ती है। झााँिी में कैिा था आज़ाद जी का
जीवन? कौन थे मास्टर रुद्रनारायर् जी? झााँिी में उनके और ककतने िाथी थे और उन्होंने
भारत के इततहाि में ककि तरह और ककि रूप में अपने रां ग छोड़े, ये िि जानने के सिए
आपको यह पुस्तक पढ़नी चादहए।

पुस्तक िवण भार्षा रस्ट द्वारा प्रकासित की गयी है , इिका मूल्य १५० रुपये रखा गया है , जो
पुस्तक की कथा के दहिाि िे िीक िगता है। पुस्तक की िांदभण िूची को दे खते हुए, इिमें िताई
गयीां ऐततहासिक घटनाओां के सिए िेखक ने जो पररश्रम ककया है , वह भी ददखता है । पुस्तक की
जजल्दिांद
िे थोड़ी परे िानी हुई, क्योंकक िभी पन्ने अिग अिग हो गए हैं। पुस्तक की
अनक्
ु मणर्का में जो पष्ट्र ि िांख्या िताई गयी है , वह अांदर की पष्ट्र ि िांख्या िे मेि नह ां खाती।
इन छोट छोट िमस्याओां को पस्
ु तक के अगिे िांस्करर् में दरू ककया जाना चादहए। इन
िमस्याओां िे कथा पर कोई प्रभाव नह ां पड़ता, पष्ट्र ि िांख्या की ग़िती पर मेरा ध्यान ति गया
जि मैं इिे तीिर िार पढ़ रहा था। कथा को िन
ु ाने का और प्रस्तत
ु करने का अांदाज िेहतर न
है, िेखक की इि िात के सिए जजतनी तार फ़ की जाए वह कम है । यकीन मातनये इि पस्
ु तक
को पढ़कर आप अपने जीवन िे कुछ अनमोि ह जोड़ेंगे, तरु ां त मांगवाइये और पदढ़ए "क्ाांततदत
ू "

पुस्तक मांगवाने के सिए : https://www.amazon.in/-/hi/Dr-Manish-


Shrivastva/dp/9393605149/ref=sr_1_3?crid=1HAM9EA75P0SU&keywords=krantidoot&qid=16
51059884&s=books&sprefix=kranti%2Cstripbooks%2C347&sr=1-3

ई िकु के रूप में यहााँ पढ़ें :


https://books.google.co.in/books?id=SLtpEAAAQBAJ&source=gbs_navlinks_s

@Prad_Rajput – प्रद प राजपत


B/2 - 404 Madhuvan Glory Nava Naroda , Ahmedabad Gujarat - 382330 +91-8866634116

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