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उ - मा टर ीतम चंद जो कूल के 'पीट ' अ यापक थे, वे लड़क क कतार के पीछे खड़े-खड़े
यह दे खते रहते थे क कौन सा लड़का कतार म ठ क से नह ं खड़ा है । सभी लड़के उस 'पीट '
अ यापक से बहुत डरते थे य क उन िजतना स त अ यापक न कभी कसी ने दे खा था और
न सुना था। य द कोई लड़का अपना सर भी इधर-उधर हला लेता या पाँव से दस
ू रे पाँव क
पंडल खज
ु लाने लगता, तो वह उसक ओर बाघ क तरह झपट पड़ते और 'खाल खींचने' (कड़ा
दं ड दे ना, बहुत अ धक मारना-पीटना) के मह
ु ावर को सामने करके दखा दे ते। यह कारण था क
जब कूल म काउ टंग का अ यास करते हुए कोई भी व याथ कोई गलती न करता, तो पीट
साहब अपनी चमक ल आँख हलके से झपकाते और सभी को ‘शाबाश’ कहते। उनक एक
‘शाबाश’ लेखक और उसके सा थय को ऐसे लगने लगती जैसे उ ह ने कसी फ़ौज के सभी पदक
या मैडल जीत लए ह ।
3 - नयी ेणी म जाने और नयी का पय और पुरानी कताब से आती वशेष गंध से लेखक
का बालमन य उदास हो उठता था?
उ - हर साल जब लेखक अगल क ा म वेश करता तो उसे पुरानी पु तक मला करतीं थी।
उसके कूल के हे डमा टर शमा जी एक बहुत धनी लड़के को उसके घर जा कर पढ़ाया करते थे।
हर साल अ ैल म जब पढ़ाई का नया साल आर भ होता था तो शमा जी उस लड़के क एक
साल परु ानी पु तक लेखक के लए ले आते थे। उसे नयी का पय और परु ानी पु तक म से ऐसी
गंध आने लगती थी क उसका मन बहुत उदास होने लगता था। आगे क क ा क कुछ
मिु कल पढ़ाई और नए मा टर क मार-पीट का डर और अ यापक क ये उ मीद करना क
जैसे बड़ी क ा के साथ-साथ लेखक सवगुण संप न या हर े म आगे रहे वाला हो गया हो।
य द लेखक और उसके साथी उन अ यापक क आशाओं पर पूरे नह ं हो पाते तो कुछ अ यापक
तो हमेशा ह व या थय क 'चमड़ी उधेड़ दे ने को तैयार रहते' थे।
4 - काउट परे ड करते समय लेखक अपने को मह वपूण 'आदमी' फ़ौजी जवान य समझने
लगता है ?
उ – इस न का उ र छा वयम ् लखगे।
उ - िजतना खेल जीवन म ज र है , उतने ह ज र जीवन म बहुत से काय होते ह जैसे- पढाई
आ द। य द खेल वा य के लए आव यक है , तो पढाई भी आपके जीवन म कामयाबी के लए
बहुत आव यक है । य द हम अपने खेल के साथ-साथ अपने जीवन के अ य काय को भी उसी
लगन के साथ परू ा करते जाएँ िजस लगन के साथ हम अपने खेल को खेलते ह तो अ भभावक
को कभी भी खेल से कोई आप नह ं होगी।
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