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क़ ल क पहेली

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संतोष पाठक

क़ ल क पहेली

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क़ ल क पहेली (उप यास)
© 2018 संतोष पाठक
‘सूरज पॉके ट बु स’ पु तक सं या- 43
थम सं करण: September 2018
कवर: शाहनवाज़ खान

सभी अिधकार सुरि त ह। इस काशन का कोई भी िह सा काशक क िलिखत पूवानुमित के बगैर फोटोकॉपी,
रकॉ डग या कसी भी अ य मेकैिनकल या इले ोिनक मा यम के ज़ रये पुनः उपयोग नह कया जा सकता।

मु क:
रे ि लका ेस ाइवेट िलिमटेड
सोनीपत, ह रयाणा

काशक:
सूरज पॉके ट बु स
ठाणे, महारा
Email ID: soorajpocketbooks@gmail.com & soorajpublications@yahoo.com
www.soorajbooks.com

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उप यास के सभी पा , थान एवं घटनाएं का पिनक ह। कसी भी जीिवत या मृत ि , समुदाय अथवा थान से
उनक समानता संयोग मा होगी। उप यास म िनिहत त य का योग कहानी को रोचक बनाने के िलए कया गया है
उनका वा तिवकता से कोई संबंध नह है। कसी भी कार के िववाद क ि थित म याय े द ली ही रहेगा।

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लेखक-प रचय

लेखक संतोष पाठक का ज म 19 जुलाई 1978 को, उ र देश के गाजीपुर िजले म बेटाबर
खूद गांव के एक ा ण प रवार म आ। आपके दादा जी व. ी ऋिष मुनी पाठक, बेहद
नामचीन शि सयत थे। िज ह ने सेना म अपनी अिधका रक नौकरी के दौरान ढेर मैडल
हािसल कए थे। लेखक ने अपनी ारि भक िश ा गांव से पूरी क िजसके बाद वष 1987
म आप अपने िपता ी ओम काश पाठक और माता ीमित उ मला पाठक के साथ द ली
चले गये। जहां से आपने उ िश ा हािसल क । आपक पहली रचना वष 1998 म मश र
िह दी अखबार नवभारत टाई स म कािशत ई, िजसके बाद आपने कभी पीछे मुड़कर
नह देखा। वष 2004 म आपको िह दी अकादमी ारा उ कृ लेखन के िलए पुर कृ त कया
गया। आपने स े क से, स पस कहािनयां, मनोरम कहािनयां इ या द पि का तथा
शैि क कताब का साल तक स पादन कया है। आपने िह दी अखबार के िलए यूज
रपो टग करने के अलावा सैकड़ क तादाद म स यकथाएं, फ शन, कहानी सं ह तथा
उप यास िलखे ह।

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लेखक क कलम से
कहते ह इं सान क िज दगी का कोई भरोसा नह होता। अभी है तो अभी नह है। कोई
इसे पानी का बुलबुला कहता है तो कोई इसी बात क ा या करते ए कहता है क
‘सामान सौ बरस का और पल भर क खबर नह ’ इस िलहाज से देखता ं तो म खुद को
ब त ही यादा खुसनसीब समझता ,ं जो तीन महीन के लंबे अंतराल के बाद म आज
फर अपनी नई रचना ‘क ल क पहेली‘ के साथ आपक िखदमत म हािजर ।ं
तुत उप यास क कथा हमेशा क तरह काितल क तलाश म िनकले िव ांत गोखले
क जुबानी बयान क गई है। िजसम कहानी क ज रत और िव ांत के करदार को यान
म रखते ए रोमांस का तड़का लगाना आपका खा दम नह भूला है। अलब ा ये बात म
अभी कबूल कये लेता ं क मने िसफ तड़का ही लगाया है, उप यास को रोमांस क
चासनी म डु बोने क कोिशश नह क है और ना ही कभी कर पाऊंगा।
‘क ल क पहेली‘ से पहले मेरा आशीष गौतम सीरीज का उप यास ‘मौत क द तक‘
कािशत आ था। िजसे आप सभी क भरपूर वाहवाही हािसल हो रही है। खासतौर पर
उप यास का लाईमै स भरपूर शंसा बटोर रहा है।
िव ांत गोखले सीरीज को लेकर कु छ पाठक ने िमनल लॉयर नीलम तंवर के
करदार को यान म रखते ए सलाह दी है क मुझे उप यास म ‘कोट म का दृ य‘ कु छ
लंबा करना चािहए। या फर नीलम तंवर को मु य करदार बनाकर कोई ‘कोट म ामा‘
िलखना चािहए।
माफ के साथ अज करता ं क म आपक पहली राय से सहमत नह ,ं य क सीरीज
का नायक िव ांत गोखले है ना क नीलम तंवर! ऐसे म नीलम तंवर के करदार को यादा
अहिमयत देने से िव ांत क ग रमा धूिमल होती जान पड़ेगी। अलब ा आपक दूसरी राय
से मुझे पूरा-पूरा इ फ़ाक है! नीलम तंवर के करदार को लेकर कोई ‘कोट म ामा‘
िलखा जा सकता है।
िव ांत गोखले सीरीज का मेरा पूव कािशत उप यास ‘खतरनाक सािजश’ है, िजसके
संदभ म मुझे पाठक क तरफ से ढेर सारे मेल और री ू पढ़ने को िमले, िजसम से कु छ
पाठक क राय य क य आपके सामने रख रहा ,ं जो क मुझे कं डल और डेली हंट
पर देखने को िमली थी। गौर फरमाइए - अिमत वाधवानी जी ने िलखा है - ‘वन ऑफ दी
बे ट िडटेि टव नॉवेल, रीड ऑ टर ‘इं साफ दो’ इ स अमे जंग टू सी इट ॉम ए यू ऑथर!
कै री ऑन सर! इगल वे टंग फॉर योर ने ट वक’।
आशुतोष जोिगया जी िलखते ह - ‘ए वैरी गुड बुक! टोरी एंड पेस रमे ब रं ग मी ली
चाई ड! ऑनली ॉ लम इज दैट, िव ांत गोखले इज लीयरली फोटोकॉपी ऑफ ‘सुधीर’
एटेड बाई सुर मोहन पाठक।
डॉ सी. बी. चौधरी साहब ने िसफ एक श द िलखा - ‘बकवास’। िववेक िस हा जी ने
िलखा - ‘म त बुक है’। रा ल जी ने िलखा - ‘कमाल कर दया नये पाठक साहब ने’।
मनीष पांडे जी ने िलखा - ‘िडयर सर आई हैव रीड योर ऑल ी नॉवेल एंड फाउं ड

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दीज बुक आर बे ट ाईम फ शन नॉवेल ऑ टर एसएमपी! फ ट टाईम आई लाईक ए
नॉवेल ऑफ एनी अदर ऑथर’।
िनमल सा जी ने िलखा - ‘ब त सुंदर संतोष जी, बधाई’। अ त वमा जी ने िलखा -
‘ यू राईटर िवद पोसिशयल बट कै न इं ूव ए लॉट! होप टू रीड मोर नॉवेल िवद गोखले
िडटेि टव, बट टॉप कॉ पंग सुर मोहन पाठक टाईल’।
संतोष स सेना जी ने िलखा- ‘खतनाक सािजश मुझे बेहतरीन लगा, डन इट? वाली
गजाइअटी क वजह से, एक बार पढ़ना शु करो तो कने का मन ही नह होता। ला ट
का आधा उप यास इतनी तेज गित से आगे बढ़ता है क कोई भी वधान अखरता है’।
अिमत खान जी िलखते ह - ‘वैरी इं े टंग, सुपर, ए लॉट ऑप स पस, ि स, कं पै रसन
दैन अनदेखा खतरा एंड आिखरी िशकार’।
राघव जी ने कसी उप यास िवशेष क बात ना करते ए बस इतना िलखा है क,
‘मने ब त नॉवेल पढ़े ह और िम या भाषण नह करता कभी! आप इस दौर म ाईम
फ शन के सबसे सश ह ता र ह’।
अब बात करते ह िशकायत क , िजनम दो बात अहम ह। नंबर एक मेरे उप यास म
क ल ब त यादा होते ह, उ ह कम कया जा सकता है। नंबर दो मेरे करदार इं वेि टगेशन
के दौरान माट-टॉक करने लगते ह, जो क मेरे सुबु पाठक को पसंद नह आता।
उपरो दोन िशकायत के संदभ म बस इतना कहना चा ग ं ा क आपक अपे ा पर
खरा उतरने क मेरी कोिशश जारी है।
अब आती है सबसे अहम िशकायत क बारी, क मेरी रचना म माननीय सुरे मोहन
पाठक जी के पा क टाईल दखाई देती है। साहबान! अगर आपको ऐसा लगता है, तो
यक न जािनए उसके िलए आपका ये खा दम हरिगज भी िज मेदार नह है। यहां मूल
सम या ये है क मने ाइम फ शन म सुर मोहन पाठक जी के अलावा कसी को पढ़ा ही
नह है। मुझे ये तक वीकार करने म कोई िझझक नह क मने लेखन क एबीसीडी उनके
उप यास को पढ़कर ही सीखी है। एक-एक उप यास बीिसय बार पढ़ा, पढ़कर फर पढ़ा
और आज भी पढ़ता ।ं
या क ं मन जो नह भरता!
उ मीद करता ं क आप सभी को अपने सवाल के जवाब िमल गये ह गे।
बहरहाल स ाई यही है क मने कभी कसी ऑथर के टाईल या कहानी को कॉपी करने
क कोिशश नह क और ना ही कभी क ं गा। मेरी रचना पूरी तरह मौिलक होती है और
रचना क एक-एक पंि मेरे दमाग क उपज होती है ना क म कसी अ य रचनाकार क
कथा को तोड़-मरोड़कर पेश करता ।ं
मेरी िपछली रचना ‘मौत क द तक’ के बारे म पाठक क राय अभी आनी शु ई है,
इसिलए उसका िज म अपनी अगली रचना म क ं गा। ‘मौत क द तक‘ सूरज पॉके ट
बु स से दोबारा कािशत हो रहा है, िजसका अहम कारण है उप यास को कम क मत म
पाठक के िलए उपल ध कराना, जो क ‘सूरज पॉके ट बु स‘ सरीखे लेखन को सम पत
काशक ही कर सकते ह।

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‘क ल क पहेली’ के िलए म अपने पाठक-िम ी राघव संह जी को ध यवाद देता ं
िज ह ने ना िसफ उप यास क िवसंगितय क तरफ मेरा यान आक षत कराया बि क
उप यास का अंत बेहतर बनाने म पूरा-पूरा सहयोग और सुझाव दान कया।
हमेशा क तरह तुत रचना के ित आपक अमू य राय के इं तजार म-
आपका शुभाकां ी: संतोष पाठक
स पक : skpathaknovel@gmail.com
वेबसाइट : www.santoshpathak.in
दनांक : 9 May 2018

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क ल क पहेली

22 जनवरी 2018
रात के दस बजने को थे।
म उस घड़ी साउथ द ली के इलाके म ि थत आिशयाना होटल के रे टोरट कम बार म
बैठा अपने सामने रखे पनीर के पकौड़ पर हाथ साफ कर रहा था। साथ ही ठहर-ठहर कर
ांडी का घूंट अपने हलक म उतार लेता था। उतार इसिलए लेता था य क पीने क
इ छा तो ब त पहले ही ख म हो चुक थी। वो मेरा चौथा पैग था जो उस घड़ी बेहद
बो रयत भरे ल ह मेरा साथी बना आ था।
बार म म िपछले एक घंटे से डेरा जमाये ए था। वो भी इतनी ही देर से वहां मौजूद
थी। बि क म उसके पीछे लगकर ही यहां तक प च ं ा था। ये जुदा बात थी क वो अभी तक
अपने हाथ म मौजूद दूसरे पैग को भी ांजिल नह दे पाई थी जब क बंदा तीन पैग
हलक म उतारने के बाद चौथे को जबरन भाव देने म लगा आ था।
मेरे और उसके दरिमयान तीन टेबल का फासला था जो क आम हालात म बंदे को भी
कबूल नह होता - मगर उस घड़ी हालात आम कहां थे - आम होते तो जाने कब का मेरा
हाथ उसक कमर के इद-िगद िलपट चुका होता और कोई बड़ी बात नह होती अगर वो
महजब इस व आपके खा दम के लैट क शोभा बढ़ा रही होती, या बंदा यादगार के
तौर पर उसक पांच उं गिलय क छाप अपने गाल पर च पा करवाकर वहां से चलता
बना होता।
उसका नाम सोनाली था, सोनाली भगत! उ मुि कल से छ बीस साल रही होगी,
अलब ा उस घड़ी नशे के आलम म वो मुझे वीट िस सटीन जान पड़ती थी।
वो साढ़े पांच फ ट क भारी कू ह वाली सुंदरी थी, िजसके बाल बड़े ही टाइिलश ढंग
से तराशे ए थे जो क कं ध से बस जरा ही नीचे तक प च ं रहे थे। लीवलेस टॉप और
ज स म कसा उसका गदराया आ बदन फट पड़ने को उता दखाई देता था। यूं लगता था
जैसे उसने बदन को जरा सी जुि बश दी नह क उसका टॉप सामने से दो टु कड़े हो जाएगा
- आपके खा दम को उस ‘दो टु कड़े‘ वाले नजारे का भी बड़ी बेस ी से इं तजार था - मगर
वैसा होता फलहाल दखाई नह दे रहा था।
उसके फ गर क बाबत मेरा खुद का अंदाजा ये कहता था क वो 36-30-38 का - या
उ ीस बीस के फक के साथ लगभग इतने का - रहा होगा! जो क यक नन कसी खास,
इ पोटड सांचे म ढालकर तैयार कया गया था, वरना कोई लड़क भला इतनी खूबसूरत
कै से हो सकती थी।

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खूबसूरती के अलावा सोनाली भगत के साथ दो खास बात पुछ ले क तरह जुड़ी ई
थ । नंबर एक, वो शादीशुदा थी। नंबर दो, उसका पित - सािहल भगत! शहर का टॉप का
िबजनेसमैन - मेरा लाइं ट था। इस व म उसी के कहने पर उसक परी-चेहरा बीवी के
पीछे लगा आ था। इस काम के िलए उसने मुझे पचास हजार पये एडवांस दये थे और
आगे कोई बड़ी रकम हािसल होने क उ मीद बराबर बनी ई थी।
वजह?
उसे शक था क उसक बीवी के तरासे ए बदन को सहलाने वाले हाथ िसफ उसके नह
थी। बि क कोई और भी था िजसपर उसक बीवी आजकल अपनी नवािजश लुटा रही थी।
यािन क सोनाली से शादी करके उसका पेटट अपने नाम करवा चुकने के बाद कोई उसम
भांजी मार रहा था! यािन क उसक बीवी िसफ उसक नह थी, और को भी हािसल थी।
शक क वजह बेहद मु तसर सी थी, वो कहता था क उसक चार सौ चालीस वो ट का
झटका देने वाली बीवी आजकल उससे कतराने लगी थी। उसके साथ इं टीमेट ना होना पड़े,
इसके िलए बहाने ढू ंढने लगी थी।
हालां क इसक सौ वजह हो सकती थी, मगर मेरे लाइं ट ने अपनी बीवी के बदले-
बदले से वहार क जो इकलौती और वािहयात वजह तलाश क थी, वो यही थी क
ज र उसक बीवी का कसी के साथ च र चल रहा था। इसिलए उसे बतौर ाइवेट
िडटेि टव मेरी सेवा क ज रत महसूस ई थी।
िपछले दो दन क अपनी मुतवातर मेहनत से मने उसक बीवी क बाबत जो नतीजा
िनकाला, वो कहता था क सािहल भगत का अपनी बीवी पर शक करना बेसबब नह था।
अपनी रपोट बमय सबूत, म सािहल को आज दन म ही दे चुका था। मगर उसने मुझे
िडसिमस करने के बजाय एक नया काम स प दया - अब मुझे उसक बीवी और बीवी के
यार के कसी ऐसे लवने ट का पता लगाना था, जहां दोन को रं गरे िलयां मनाते रं गे हाथ
पकड़ा जा सके - इस व म उसी मुिहम पर लगा यहां तक प च ं ा था।
सािहल भगत क बात से अब तक मुझे ये लगने लगा था क वो अपनी बीवी से तलाक
लेने क फराक म था। साथ ही वो ये भी चाहता था क तलाक क सूरत म उसे अपनी
बेहया बीवी को कोई हजा-खचा भी नह देना पड़े और देना पड़े तो वो कोई ऐसी रकम हो
जो ना देने जैसी ही हो - आिखर वो बड़ा िबजनेसमैन था! हर बात को फायदे और नुकसान
से जोड़कर देखना उसक फतरत थी - िलहाजा म अभी भी उसक बीवी के पीछे लगा
आ था।
सोनाली भगत के साथ इस व बार म जो युवक मौजूद था उसका नाम महेश बाली
था। उ उसक सोनाली से दो-चार साल ही यादा रही होगी। वो पहलवान जैसे डील-
डौल वाला छह फ ट का नौजवान था जो चेहरे से ही खूंखार दखाई देता था। ज र वो
बात-बात पर मरने-मारने पर उता हो जाता होगा। हैरानी क बात ये थी क वो फै शन
फोटो ाफर था और अपने धंधे म जाना-पहचाना नाम था। ये जुदा बात थी क उसका
पेशा उसके हाव-भाव से जरा भी मैच नह करता था। सोनाली जैसी अ सरा के साथ तो
िब कु ल भी मैच नह करता था। इसके बावजूद वो उसका टेडी था, उसके सपन का

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राजकु मार था, उसका िब तर शेयर करता था, तो यक नन उसक सारी पेिशिलटी कह
और थी, ज र वो सोनाली क सोना देह को तपाकर कुं दन बना देता होगा।
दोन के बीच क ं और िडनर का दौर बद तूर जारी था। आगे उनका मुकाम कहां
होगा, ये जानना मेरे िलए ब त ज री था। क ं करने के साथ-साथ म उन दोन क कु छ
त वीर भी लेते जा रहा था, िजसक उ ह या कसी और को खबर लग पाना मुम कन नह
था। वो सारा कमाल मेरी उस र टवॉच का था जो इस घड़ी मेरी कलाई क शोभा बढ़ा
रही थी। उसम एक बेहद शि शाली लोज स कट कै मरा लगा आ था जो दो फ ट क
दूरी से भी सामने वाले क नख-िशख त वीर उतारने म स म था। िलहाजा उस काम म
मुझे कोई असुिवधा नह हो रही थी।
उस व यारह बजने को थे जब महेश बाली ने वेटर को िबल लाने का इशारा कया।
वो इशारा वेटर के साथ-साथ मने भी कै च कया। िगलास म बची ांडी को एक ही सांस म
अपने हलक म उतारने के बाद म उठकर काउं टर पर प च ं ा। जहां मने अपना िबल चुकता
कया और उन दोन के उठने से ब त पहले वहां से बाहर िनकल आया।
पा कग म प च ं कर म अपनी बलेनो म सवार आ और िसगरे ट के कश लगाता आ
उनके वहां प च ं ने का इं तजार करने लगा। सोनाली क ने सन कार मेरे सामने वाली
कतार म पाक थी, िलहाजा इस बात का कोई डर नह था क वो दोन वहां से चलते बनते
और मुझे खबर ही नह लगती।
पांच िमनट बाद सोनाली क कमर म हाथ डाले महेश बाली पा कग म नमूनदार आ।
वो नजारा देखकर मेरे तन-बदन म आग सी लग गई! बावजूद इसके क सोनाली भगत से
मेरी कोई यारी नह थी।
बहरहाल दोन कार म सवार होकर वहां से चलते बने, तो मने अपनी कार उनके पीछे
लगा दी।
आिशयाना से िनकलकर उनक कार दाएं-बाएं होती ई वसंतकुं ज प च ं ी और
शािमयाना अपाटमट के नाम से जानी जाने वाली एक हाउ संग कॉ लै स म दािखल हो
गयी। म बद तूर उनके पीछे लगा रहा। कॉ लै स के भीतर दािखल होकर उनक कार
करीब दो सौ मीटर आगे गई फर एक तीन मंिजला इमारत के सामने जाकर खड़ी हो गई।
मने अपनी कार उस इमारत से एक लॉक पहले ही रोक दी! रोककर इं तजार करने
लगा। मेरे देखते ही देखते दोन कार से बाहर िनकलकर इमारत म दािखल हो गये। मने
फौरन अपनी कार आगे बढ़ाई और ने सन के बराबर म ले जाकर खड़ी कर दी। सी ढ़य के
दहाने पर प च ँ ते ही मुझे ऊपर जाती सिडल क खटखटाहट क आवाज सुनाई दी। म
फासला बनाकर सी ढ़यां चढ़ने लगा। कु छ देर बाद खटखटाहट बंद हो गई। म तेजी से
ऊपर क ओर बढ़ा। दूसरी मंिजल पर प च ं कर मने सावधानी से गिलयारे म झांका तो एक
दरवाजे के आगे खड़े वो दोन दखाई दे गये। मने पूरी सावधानी बरतते ए दोन क एक
त वीर उतार ली।
वैसे भी उस व दोन एक दूसरे म यूं खोये ए थे क म उनक बगल से गुजर जाता तो
भी उ ह मेरी खबर नह लगती।

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महेश बाली ने झुककर ताला खोला फर दोन भीतर दािखल हो गये। म त काल
दरवाजे के सामने जा खड़ा आ और भीतर से उभरती कोई आहट सुनने क कोिशश करने
लगा। मगर कामयाब नह हो सका। तब मने झुककर अपनी एक आंख क -होल से सटा दी।
आगे जो नजारा मुझे दखाई दया वो उसी घड़ी शु ई पॉन मूवी के टा टग सीन जैसा
था।
महेश बाली सोनाली के तन से से एक-एक करके कपड़ का आवरण हटाए जा रहा था।
कु छ ही ण म वो ज मजात न ाव था म बाली के सामने खड़ी थी! फर बाली ने उस
अहम काम को अंजाम देना शु कया िजसके िलए वो सोनाली को साथ लेकर यहां तक
प च ं ा था। जो उसक पैिशिलटी थी। िजसक वजह से सोनाली उसक दीवानी थी।
बहरहाल क -होल से आंख हटाकर मने अपनी र टवॉच को कलाई से अलग कया फर
उसका कै मरे वाला िह सा क -होल पर रखकर उसे वीिडयो मोड पर चला दया।
शु था क उस दौरान गिलयारे म कसी के कदम नह पड़े थे वरना मेरे िलए दु ारी
खड़ी हो सकती थी। तकरीबन एक िमनट तक रका डग करने के बाद मने दोबारा क -होल
से भीतर झांका तो आगे मुझे ाइं ग म खाली दखाई दया। म दरवाजे से अलग हटा और
िब डंग से बाहर िनकल आया।
नीचे प च ं कर मने सािहल भगत को फोन कया। त काल कॉल अटड क गई।
“बोलो!” उधर से कहा गया।
मने कम श द म उसे व तुि थित समझाई और जानना चाहा क आगे वो या चाहता
था।
“तु हारा काम ख म!” - वो बोला - “मेरी तरफ से तुम वहां खड़े रहने के अलावा कह
भी जाने को आजाद हो। कल िबल भेज देना, चाहो तो खुद आकर पेमट कलै ट कर लेना।”
कहकर उसने काल िड कनै ट कर दया। उसके उस वहार ने मुझे हैरान करके रख
दया। के स हाथ म लेने के बाद ये पहला मौका था जब वो मेरे साथ यूं बे खी से पेश आया
था।
बड़े लोग क बड़ी बात! या फक पड़ता था। लापरवाही से कं धे उचकाकर म अपनी
कार म सवार हो गया। शािमयाना से बाहर िनकलकर मने अपनी कार का ख अंधे रया
मोड़ क ओर कर दया मगर थोड़ा आगे जाते ही यू टन लेकर दोबारा शािमयाना के
सामने, मगर सड़क क दूसरी ओर प च ं गया। जहां कार को सड़क के कनारे लगाकर
इं तजार करने लगा।
म नह जानता था क मुझे कस बात का इं तजार था। बस मेरे अंदर कह से आवाज
आई क मुझे कु छ देर वहां कना चािहए। व -गुजारी के िलए मने एक िसगरे ट सुलगा
िलया और इं तजार करने लगा।
अपनी मौजूदा पोजीशन म मुझे वो िब डंग तो नह दखाई दे रही थी िजसम सोनाली
और बाली का का मधुर-िमलन हो रहा था। मगर िस यो रटी गेट - जो क इकलौता वहां
प च ं ने का रा ता था - मेरे एकदम सामने था। उसपर नजर रखकर हर आये गये को बखूबी
देखा जा सकता था।

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आधा घंटा यूंही गुजर गया।
फर एक कार वहां प च ं ी। उसक ाइ वंग सीट पर बैठे सािहल भगत को मने साफ
पहचाना। उसक कार बाउं ी के भीतर दािखल ई ही थी क महेश बाली वहां से बाहर
िनकलता दखाई दया। क मत अ छी थी प े क ! सािहल से उसका आमना-सामना होने
से बाल-बाल बचा था।
बाहर आकर वो पैदल ही एक ओर को चल दया। म उसके पीछे जाने क सोच ही रहा
था क उसे एक दुकान पर ठठकता देखकर मने अपना वो इरादा मु तवी कर दया।
बाली के हाथ म उस घड़ी एक पैकेट था, िजसे उसने दुकान के काउं टर पर रख दया
और एक िसगरे ट खरीदकर बड़े इ मीनान से कश लगाने लगा। मुझे वो नजारा बड़ा ही
अजीब लगा। उसे िसगरे ट के कश ही लगाने थे तो वो वािपस लैट म जाकर लगा सकता
था। या चलते-चलते लगा सकता था। मगर वो तो यूं तस ली से वहां खड़ा था जैसे उसे
वािपस लौटने क कोई ज दी ही ना हो।
या माजरा था! या सोनाली वहां से कह और चली गई थी। मगर उसक कार गेट से
बाहर िनकलती तो दखाई नह दी थी। अहम सवाल ये था क उसे लैट म अके ला
छोड़कर ये जमूरा यहां य खड़ा था। ज र उसने सािहल को वहां प च ं ते देख िलया
होगा।
मगर अगले ही पले मुझे अपना ये खयाल जहन से झटक देना पड़ा। भला लैट के भीतर
रं गरिलयां मनाते बाली को ये खबर कै से लग सकती थी क सािहल भगत वहां प च ं ने
वाला था। अगले दो िमनट म ये सािबत भी हो गया क मेरा वो याल गलत था।
मेरी िनगाह उसी घड़ी वहां प चं े ऑटो से उतरती लड़क पर गड़ सी गयी। ज र बाली
उसी के इं तजार म वहां खड़ा था। युवती पीले रं ग का सलवार कु ता पहने ए थी, साथ ही
उसने बड़े सलीके से दुप ा ओढ़ रखा था, ना क आजकल क अिधकतर लड़ कय क तरह
गले म फांसी के फं दे क तरह झुलाया आ था।
बाली ने अपने हाथ म थमा पैकेट लड़क को दे दया, फर दोन म कु छ बात िजसके
बाद बाली ने अपनी जेब से िनकालकर कोई चीज उसे पकड़ाई। दोन के बीच फर कु छ
बात , इसके बाद लड़क वािपस उसी ऑटो म सवार हो गई। लड़क के जाने के बाद
बाली वािपस घूमा और एक बार फर शािमयाना के कं पाउं ड म दािखल हो गया।
यािन क मत बस थोड़ी ही देर के िलए उसके साथ थी।
अगर मेरे लाइं ट का मुझे वहां से चले जाने का म नह होता तो आगे होने वाला
हाई टशन ामा देखे िबना म वहां से नह िहलता।
मगर वो बड़ा लाइं ट था, बड़ा और रसूक वाला लाइं ट था। म उसे नाराज करना
अफोड नह कर सकता था। इसिलए सािहल भगत क िनगाह म आये िबना मेरा वहां से
कू च कर जाना ज री था।
आगे या होने वाला था उसका अंदाजा म बखूबी लगा सकता था। िलहाजा पूरे ामे
क मन ही मन क पना करता आ म अपने घर क राह लगा।
✠✠✠

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तेईस जनवरी 2018
सुबह करीब आठ बजे म सोकर उठा। उठकर तैयार आ और कचन म प च ं कर अपने
िलए टो ट और कॉफ तैयार कया फर बैठक म प च ं कर ना ता करने लगा।
उसी दौरान मेरी िनगाह दरवाजे केे नीचे से झांकते अखबार पर पड़ी। मने अखबार
उठाकर स ल टेबल पर रख िलया और कॉफ चुसकते ए एक सरसरी िनगाह उसपर
डाली, ं ट पेज पर छपी खबर पर िनगाह पड़ते ही म ना ता करना भूल गया।
मोटे-मोटे अ र म िलखा था - ‘मश र िबजनेसमैन सािहल भगत क बीवी, सोनाली
भगत क ह या‘ - मने ज दी-ज दी पूरी खबर पढ़ डाली। खबर के अनुसार बीती रात
बारह बजे के करीब सािहल भगत ने अपनी बीवी सोनाली क गोली मारकर ह या कर दी
थी। ह या का च मदीद गवाह महेश बाली नाम का फै शन फोटो ाफर था। िजसने ह या के
बाद सािहल को मौकायेवारदात से फरार होने से रोका था। ह या महेश बाली के लैट म
क गई थी, जो क सोनाली भगत का ड बताया जाता है। पुिलस के अनुसार बाली ने जब
सािहल को अपनी बीवी क ह या करते देखा तो बाहर से लैट का दरवाजा लॉक करके
पुिलस को इि ला दे दी। बाद म पुिलस ने वहां प च ं कर दरवाजा खुलवाया और सािहल
भगत को िहरासत म ले िलया।
मने ज दी-ज दी अखबार के बाक प े पलट डाले मगर उससे संबंिधत कोई और खबर
अखबार म नह दखाई दी।
मने एक गहरी सांस ली और अखबार एक तरफ फककर बचे ए ना ते को हलक म
उतारने लगा। इस दौरान एक ही सवाल मेरे जहन म गूंजता रहा - या सचमुच सािहल ने
अपनी बीवी क ह या क थी, अगर ऐसा था तो उसने महेश बाली को जंदा य छोड़
दया था। तभी मुझे याद हो आया क क ल के व तो महेश बाली बाहर सड़क पर खड़ा
था। ज र वािपस अपने लैट पर प च ं कर उसने सािहल भगत को सोनाली क ह या
करते देख िलया होगा और इससे पहले क सािहल उसे भी गोली मार देता, उसने बाहर से
लैट का दरवाजा बंद कर दया होगा।
मुझे अपना ये याल जंचा।
ना ते से फा रग होकर मने सािहल के मोबाइल पर फोन कया मगर दो तीन कोिशश
के बाद भी मेरा उससे संपक नह हो सका। मने उसके बंगले पर फोन कया। सािहल क
बाबत पूछने पर कोई जवाब दये िबना दूसरी तरफ से कॉल िड कनै ट कर दी गयी।
दस बजे के करीब म साके त ि थत अपने रै िपड इं वेि टगेशन के ऑ फस प च ं ा। जहां
हमेशा क तरह मेरी से े टरी कम रसै शिन ट कम लेगमैन कम मेरी सब-कु छ, शीला वमा
अपने के पूरे जलाल के साथ, मेरा वागत करने के िलए मौजूद थी।
मने जी-भरकर उसका नख-िशख मुआयना कया फर बोला, ‘गुड मॉ नग यूटी न‘
“गुडमॉ नग हडसम!”
“ या कर रही है?”
“इं तजार!”
“मेरा!”

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“नह फोन का!”
“कोई खास कॉल आने वाली है।”
“आई, तो खास ही होगी वरना कै सी भी हो या फक पड़ता है?”
“ठीक कहती है खास लोग को खास कॉ स ही आती ह, या फर आती ही नह ह।”
“चलो तुमने ये तो माना क म खास ।ं ”
“वो तो तू है ही, ले कन अभी वाले खास का िज मने अपने संदभ म कया था।”
“ फर तो म ब त खास ई।”
“वो कै से?”
“वैसे ही जैसे च मच के सामने कटोरे क अहिमयत यादा होती है।”
“च मच कौन!”
“और तो कोई दखाई नह देता मुझे।”
“चल इसी बहाने च मच को कटोरे म मुंह मारने का मौका तो िमलेगा! आिखर कटोरे
क यही तो िनयित होती है।”
जवाब म उसने कु छ ण मुझे घूरकर देखा फर बोली, “फास इशारे करने म जैसे
पीएचडी कए बैठे हो, इतनी मेहनत अगर धंधे म करते तो अब तक कसी बुलंदी पर प चं
चुके होते।”
“मुझे ऊंचाई से डर लगता है, अलब ा गहराई मुझे ब त-ब त पसंद है।”
“ कसी दन गहाराई म पड़े-पड़े ही जान से हाथ धो बैठोगे।”
“परवाह नह , ज त म दािखले के बाद मौत का या खौफ!”
उसने एक लंबी आह भरी फर बोली, “आज का अखबार पढ़ा! तु हारे लाइं ट क तो
लग गई।”
“ठीक कहती है, जब से उसक िगर तारी क खबर पढ़ी है, मेरा दम िनकला जा रहा है,
ये सोचकर क अगर वो जेल चला गया तो मेरी बाक क फ स कौन भरे गा?”
“जवाब नह तु हारा!”
इससे पहले क म और कु छ कहता, मेरा मोबाइल बज उठा। न पर कोई अननोन
लडलाइन नंबर शो हो रहा था। मने कॉल अटड क तो पता चला डीसीपी ऑ फस से फोन
था। अलब ा लाइन पर एसीपी पांडे था, जो मुझे भाव देता था! इतना क ऐसी बात भी
मुझे बता देता था िजसे पुिलस टॉप सी े ट रख रही होती थी।
“गुडमॉ नग जनाब!” म आवाज पहचानकर बोला।
“गुडमॉ नग! कै सा है गोखले?”
“मेहरबानी है जनाब आपक , बनाए रखगे तो सबकु छ अ छा-अ छा ही होगा।”
“वो तो खैर हमेशा बनी रहेगी, तब तक तो यक नन बनी रहेगी जब तक क पांडे
रटायर नह हो जाता।”
“बड़ पन है जनाब आपका! म क िजए कै से याद कया?”
“सािहल भगत का नाम तो सुना होगा।”
“सुना है! अभी-अभी अखबार म भी पढ़ा, उसका िज कसिलए?”

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“वो तेरे से िमलना चाहता है। खास तेरे से! कसी वक ल से नह , कसी िमिन टर से
नह , कसी पहचान वाले से भी नह , िसफ पीडी िव ांत गोखले से।”
“कमाल है।”
“है न कमाल क बात! डीसीपी साहब ने जब उससे कहा क वो कसी से िमलना चाहे
तो िमल सकता है, फोन करना चाहे तो कर सकता है। तब उसने कहा क ाइवेट
िडटेि टव िव ांत गोखले से उसक मुलाकात कराई जाए।”
“वो िगर तार है!”
“िगर तार तो है मगर आम मुज रम क तरह नह , अभी वो यह डीसीपी ऑ फस म
है, उससे पूछताछ चल रही है। अलब ा िगर तार तो उसने होना ही है, य क बंदा रं गे
हाथ िगर तार आ है।”
“वो या कहता है क ल क बाबत?”
“गोखले आज तू ब त िबजी है या, जो डीसीपी ऑ फस तक प च ं ने म इतनी मीन-
मेख िनकाल रहा है।”
“अरे नह जनाब, मेरी मजाल नह हो सकती, वो तो उ सुकतावश सवाल करता चला
गया। बंदा बीस िमनट म हािजर होता है आपक सेवा म।”
जवाब म दूसरी ओर से कॉल िड कनै ट कर दी गई।
“वाह इसे कहते ह ेटमैन।” कॉल ख म होते ही शीला बोल पड़ी।
“तू मेरी तारीफ कर रही है।”
“नह , सािहल भगत क ।”
“िलहाजा बीवी का क ल करना तेरी िनगाह म ेटनेस क िनशानी होती है, नह ?”
“नह , मने उसे ेट इसिलए कहा य क जेल जाने के मुकाम पर प च ं कर भी उसे इस
बात का याल है क अभी उसका बदला पूरा नह आ है।”
“ या कहना चाहती है?”
“यही क बीवी को मार चुकने के बाद अब वो बीवी के यार को भी ख म कर देना
चाहता है। तभी तो उसका बदला पूरा होगा।”
“और तू समझती है क अपना बदला वो मेरे हाथ पूरा करवाना चाहता है।”
“नह , करे गा तो अपने ही हाथ ! अब जाओ देर हो रही है। तब तक म तु हारे कफन-
दफन का इं तजाम करके रखती ।ं ”
तब जाकर मेरी समझ म आया क वो या कह रही थी। मने फौरन खा जाने वाली
िनगाह से उसे घूरा।
“ या आ?” वो हड़बड़ाकर बोली।
“तू भूल रही है क उसने अपनी बीवी के यार को ढू ंढ िनकालने के िलए मुझे रटेन कया
था। ना क इसिलए य क म खुद उसक बीवी का यार था।”
“बनने क कोिशश तो तुमने ज र क होगी, बहती गंगा म डु बक लगाने का याल तो
तु ह ज र आया होगा।”
जवाब देने क बजाय म ऑ फस से बाहर िनकल गया।

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आधे घंटे बाद म डीसीपी नर भटनागर के सामने उसके ऑ फस म एसीपी पांडे के
बगल म बैठा आ था।
डीसीपी ने कु छ ण तक परखती िनगाह से मेरा मुआयना कया फर बोला, “सािहल
भगत कै से वा कफ है तुमसे।”
“इस सवाल का बेहतर जवाब तो वही दे सकता है!” - म सावधान वर म बोला, मुझे
नह मालूम था क सािहल ने उ ह या कु छ बताया था, िलहाजा गोल-मोल जवाब देना
बेहद ज री था - “ या कहता है वो इस बारे म?”
“ कस बारे म, ये क वो तु हे कै से जानता है।”
“बीवी के क ल के बारे म!”
“यही क वो बेगुनाह है उसे े म कया गया है, और वो या अके ला ऐसा कहता है,
शु -शु म हर मुज रम यही कहता है, मगर कहता रह नह पाता। य क उसके िखलाफ
उपल ध सबूत उसका मुंह बंद कर देते ह।”
“गु ताखी माफ हो जनाब ले कन हर बेगुनाह भी तो यही कहता है क वो बेगुनाह है,
उसे फं साया गया है।”
“लो अभी वो तु हारा लाइं ट बना भी नह और तुमने उसक तरफदारी शु कर दी।
जब क तु ह ये भी नह पता क उसने तु ह बुलाया कसिलए है।”
“म अपनी बात दूसरे तरीके से कहता ,ं कोई उ मीद है उसके बेगुनाह िनकल आने
क ।”
“ य भई, यहां तुम मुज रम से िमलने आए हो या मेरा इं टर ू लेने!”
“मामूली सवाल है जनाब।”
“तो मामूली सा जवाब भी सुन लो, क ल का च मदीद गवाह है हमारे पास!
आलाएक ल पर उसक उं गिलय के िनशान मौजूद ह। ऊपर से रवा वर उसक खुद क
िमि कयत है। अब म तु हारा ही सवाल दोहराता ,ं तुम बोलो उ मीद है उसके बेगुनाह
िनकल आने क ।”
“च मदीद जो क महेश बाली नाम का फै शन फोटो ाफर बताया जाता है, या उसने
सािहल भगत को सोनाली पर गोली चलाते अपनी आंख से देखा था।”
डीसीपी ने त काल एसीपी पांडे क ओर देखा, दोन के बीच आंख ही आंख म कोई
मं णा ई, फर वो मेरे से मुखाितब आ, “नह उसने सािहल को गोली चलाते नह देखा
था। िजस व वो अपने लैट पर प च ं ा सािहल क ल कर चुका था और धुआं उगलती
रवा वर हाथ म िलए बीवी क लाश के िसरहाने खड़ा था।”
“सािहल या कहता है इस बारे म, मेरा मतलब है अगर वो खुद को बेगुनाह बता रहा
है तो इस बात का भी तो उसने कोई जवाब दया होगा क उस व आलाएक ल उसके
हाथ म य था?”
“वो कहता है क महेश बाली के लैट का दरवाजा खुला देखकर वो भीतर दािखल आ
तो रवा वर उसे ा ग म म सोफे के पास फश पर पड़ी िमली थी। वो रवा वर उसे
अपनी रवा वर जैसी लगी तो उसने झुककर उसे उठा िलया। फर ये देखकर वो स ाटे म

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आ गया क वो सचमुच उसी क रवा वर थी। उस बात पर हैरान होता आ वो बेड म
के दरवाजे तक प च ं ा तो वह थमककर रह गया। दरवाजे से तिनक परे हटकर सोनाली
भगत क न लाश पड़ी थी। उसका िज म गोिलय से छलनी आ पड़ा था। ठीक तभी
महेश बाली वहां प च ं गया, सोनाली क लाश और सािहल के हाथ म थमी रवा वर
देखते ही वो कू दकर इस नतीजे पर प च ं गया क सािहल ने सोनाली क ह या क है और
उसने लैट का दरवाजा बाहर से लॉक करके पुिलस को फोन कर दया।”
“आपका गवाह इस बारे म या कहता है?”
“यही क उसे कोई मुगालता नह आ था, उस व सािहल के हाथ म थमी रवा वर
का ख बेड म क ओर था और रवा वर से धुआं िनकलता दखाई दे रहा था। ऊपर से
सोनाली क लाश से छू टते खून के फौ वारे भी ये सािबत करते थे क गोली उसी व
चलाई गई थी। सािहल को उस हाल म देखकर बाली को लगा क वो उसे भी जंदा नह
छोड़ेगा, तब घबराकर उसने बाहर से दरवाजा बंद करके पुिलस को वारदात क इि ला दे
दी।” - कहकर वो तिनक का फर आगे बोला - “ रवा वर क ‘छह क छह‘ गोिलयां
मकतूला के िज म म उतार दी गई थ जब क कसी क जान लेने के िलए एक गोली ही
ब त होती है।”
“आप इस बात पर कु छ यादा जोर देते लग रहे ह क काितल ने छह क छह गोिलयां
मकतूला के िज म म उतार दी थी।”
“ठीक समझे! इससे पता चलता है क काितल के मन म मकतूला के िलए नफरत का
कै सा सैलाब उमड़ रहा था। जो क सािहल भगत के मन म ही उमड़ सकता था। जरा
सोचकर देखो, बाली के लैट पर प च ं कर, जब उसने अपनी बीवी को िबना कपड़ के
उसके बेड म म मौजूद देखा होगा तो उसपर या बीती होगी। ऐसे व म कोई भी
गैरतमंद आदमी अपना आपा खो सकता है। फर सािहल भगत ने गु से म आकर अपनी
बीवी को मौत के घाट उतार दया तो या बड़ी बात थी। वो तो बाली क क मत अ छी
थी जो उस व वो अपने लैट म नह था वरना उसका अंजाम भी सोनाली से जुदा नह
होना था।”
“ य नह था?”
“ या कहना चाहते हो भई?”
“िसफ इतना क अपने लैट म एक परी-चेहरा औरत के साथ रं गरे िलयां मनाता श स
उसे लैट म अके ला छोड़कर बाहर य चला गया?”
“वो कहता है उसे िसगरे ट क तलब हो आई थी।”
“हालां क ये बात समझ म नह आती ले कन ऐसा था भी तो य सोनाली ने उसके
बाहर जाने के बाद भी उठकर कपड़े पहनना ज री नह समझा।”
“भई उसे यूं कसी के वहां आ प चं ने का अंदश
े ा नह रहा होगा। वो तो इ फ़ाक से
उसके पित को उसक वहां मौजूदगी क खबर लग गई वरना वहां कसी और के प च ं ने का
कोई मतलब ही नह था।”
“तो क ल क वजह महज ये है क सािहल भगत ने अपनी बीवी को गैर मद के लैट म

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िबना कपड़ के देख िलया था इसिलए गु से म आकर उसका क ल कर बैठा।”
“ य , ये या वािजब वजह नह लगती तु ह?”
“मेरा मतलब था या सािहल के पास क ल का कोई दूसरा तीसरा मो टव भी था?”
“सोनाली का पचास करोड़ का बीमा था, िजसम ए सीडट से लेकर सुसाइड तक कवर
था। कहने का मतलब ये है क वो कै से भी मरती, उसक मौत के बाद वो पचास करोड़
पये सािहल के खाते म जाने तय थे।”
“मुझे नह लगता क पचास करोड़ पये क ल का मो टव बन सकते थे। आिखरकार वो
बड़ा िबजनेसमैन है। पचास करोड़ क भला औकात ही या है उसके िलए!”
“ फर तो समझ लो बीवी क बेवफाई ही क ल क वजह बनी थी।”
“बीवी क ल कर दी गई खा वंद जेल जाने के कगार पर है। ऐसे म उसक तमाम दौलत
का दावेदार कौन होगा! मेरा मतलब है अगर सािहल बीवी के क ल के जुम म फांसी चढ़
जाता है तो उसक अरब क संपि का या होगा?”
“पूछना उससे!” - इस बार डीसीपी बोला - “और जो जवाब िमले हमसे शेयर करना
मत भूलना। अब जाकर िमल लो उससे, तड़प रहा है तुमसे िमलने को।”
मने सहमित म िसर िहला दया।
इसके बाद एक एक हवलदार को बुलाकर मुझे उसके हवाले कर दया गया। हवलदार
मुझे िजस कमरे म छोड़कर गया वो खूब बड़ा कमरा था िजसम एक मेज और चार पांच
कु सयां रखी ई थ । बा तरफ क दीवार पर एसी लगा आ था और सामने क दीवार
पर एक बड़ी सी एलईडी टीवी लगी ई थी, िजसपर उस घड़ी सािहल भगत क िनगाह
टक ई थ । उसके सामने मेज पर कॉफ का खाली कप और दो लेट रखी ई थ जो
बताती थ क वो तभी खाना खाकर हटा था। मेज के ऊपर कु छ खाली पैकेट पड़े थे,
िजसपर ओबराय का लेबल लगा आ था। िलहाजा वो पुिलस िहरासत म नह था बि क
िपकिनक मना रहा था।
कतने फायदे थे अमीर होने के ! सािहल क जगह कोई आम आदमी होता तो अब तक
जाने कतने पुिलिसय के जूते खाकर, आगे और खाने क तैयारी करता हवालात म बैठा
अपनी क मत को कोस रहा होता। मगर वो था क उसके चेहरे पर कोई िशकन तक नह
दखाई दे रही थी।
म उसके एकदम सामने प च ं कर उसका अिभवादन करता आ एक कु स पर बैठ गया।
उसने फौरन रमोट उठाकर टीवी बंद कर दी और िशकायती लहजे म बोला, “ कतनी देर
लगा दी यार।”
“सॉरी मुझे अभी आधे घंटे पहले ही खबर क गई थी।”
“अखबार नह पढ़ता, टीवी नह देखता।”
“रात को टीवी नह देखा, सुबह अखबार पढ़कर जाना क तुमने कतना बड़ा कांड कर
डाला है। फर तु हारे मोबाइल पर कॉल कया तो जवाब नह िमला। आगे तु हारे बंगले
पर फोन कया तो िबना कु छ बताए कॉल िड कनै ट कर दी गई।”
“बहाने मत बना! तू जानता है, मेरे बारे म पता करना चाहता तो चुट कय म जान

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लेता क म कहां ।ं इसिलए कबूलकर क तुझे मेरा हाल-चाल लेने क जहमत नह थी।”
“ कया कबूल! अब तुम भी मेरी एक बात सुनो और सुनकर समझने क कोिशश करो।
तुम कोई मेरे सगे वाले नह हो, इसिलए तु हारा हाल-चाल लेने म मुझे कोई खास इं े ट
नह था। सच पूछो तो म िसफ ये सोचकर हलकान था क तुम अगर जेल चले गये तो मेरी
फ स मारी जायेगी।”
“लानत है तेरे पर।”
“शु या, अब बताओ कै से याद कया? यहां मुझे फ स देने के िलए तो बुलाया नह
होगा तुमने।”
“नह मने तुझे और फ स! ब त बड़ी फ स कमाने का मौका देने के िलए बुलाया है।”
“सॉरी बॉस म फ स लेकर क ल नह करता, इसिलए इस बारे म तो सोचना भी मत क
तुम कोई बड़ी रकम ऑफर करोगे और म महेश बाली का क ल करने को तैयार हो
जाऊंगा।”
“तू पागल हो गया है, पूरी बात नह सुनता।”
“यािन बात कु छ और है।”
“हां, म चाहता ं तू मुझे बेगुनाह सािबत कर के दखा।”
“इसके मुकाबले तो बाली केे क ल वाला काम ही मुझे आसान जान पड़ता है।”
“ये तू बोल रहा है।”
“हां म बोल रहा !ं म जानता ं इस काम क मुंहमांगी फ स तुमसे वसूल कर सकता
,ं चाहे काम हो या ना हो। मगर मेरा उसूल है क म अपने लाइं ट को धोखा नह देता,
उसे कसी गलतफहमी म रखकर अपनी जेब नह भरता।”
“म तेरी साफगोई क दाद देता ,ं साथ ही ये सोचकर हैरान ं क मेरा जुम सािबत
होने से पहले ही तू मुझे गुनहगार माने बैठा है। जब क उस मामले म अभी द ली ब त दूर
है।”
“अगर तुम ऐसा सोचते हो तो तरस आता है तु हारी सोच पर। पुिलस तु हारा िलहाज
कर रही है तो इसका मतलब ये नह है क उ ह तु हारे गुनहगार होने पर कोई शक है।
उनके पास तु हारे िखलाफ िस े बंद सबूत ह। वे लोग जब चाह तु ह कोट म पेश करके
तु हारा गुनाह सािबत कर सकते ह। भले ही तुम पड़े िच लाते रहो क तुमने अपनी बीवी
का क ल नह कया है।”
“मने सोनाली का क ल नह कया है।”
“मुझसे या कहते हो, कोट म खुद को िनद ष सािबत कर के दखाना।”
“अरे म उसका क ल य क ं गा, जब क उससे तलाक लेने का इरादा पहले से बनाये
बैठा था और तेरे ज रए उसके िखलाफ काफ सारे सबूत भी मुझे हािसल थे।”
“वो बात अहम नह है। दमाग कसी का भी फर सकता है। तु हारी नीयत क चुगली
तो यही बात कये देती है क अपनी बीवी के लवने ट का पता िमलते ही तुमने मुझे वहां से
दफा होने का म दनदना दया, फर आनन-फानन म हवा क तरह वहां जा प च ं े थे।”
“म वहां प चं कर िसफ उसे जलील करना चाहता था, ना क म उसका क ल करने गया

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था।”
“और उसे जलील होता न पाकर उसपर अपनी रवा वर खाली कर दी।”
“म वहां रवा वर लेकर नह गया था।”
“ रवा वर तु हारी थी।”
“हां थी, मगर वो बाली के लैट तक कै से प चं ी म नह जानता।”
“ रवा वर रखते कहां थे तुम?”
“अपनी राइ टंग टेबल क दराज म, जहां कसी क भी प च ं हो सकती थी। हो सकता
है वो रवा वर सोनाली ही अपने साथ लेकर गई हो।”
“ फर उसी रवा वर से उसका क ल य कर हो गया?”
“ या पता उसका बाली से कोई झगड़ा हो गया हो और गु से म आकर उसने रवा वर
िनकाल ली हो। ऐसे म या बड़ी बात है अगर बाली ने उससे रवा वर छीनकर उसे शूट
कर दया हो।”
“नह हो सकता।”
“ य ?”
“िजस व सोनाली का क ल कया गया उस व बाली उस िब डंग म तो या पूरे
कॉ लै स म नह था।”
“कौन कहता है।”
“म कहता ,ं मने अपनी आंख से उसे बाहर सड़क पर खड़ा देखा था। तुम बात को यूं
समझो क इधर तु हारी कार िब डंग के कं पाउं ड म दािखल ई और उधर बाली वहां से
बाहर िनकल गया।”
“क ल वो बाहर जाने से पहले ही कर चुका होगा। हो सकता है पो टमाटम रपोट से ये
बात सािबत भी हो जाये क क ल मेरे वहां प च ं ने से पहले हो चुका था।”
“मुि कल है, यूं पो टमाटम रपोट म क ल के व को िपन वाइं ट नह कया जा
सकता। उसम कु छ िमनट आगे-पीछे क संभावना बराबर बनी रहती है। जब क हालात
बताते ह क सोनाली के क ल - अगर तुमने नह कया है - और तु हारे वहां प च ं ने का
व लगभग एक ही था। इसका साफ मतलब ये होता है क अगर तुम काितल नह हो, तो
क ल होने के फौरन बाद ही तुम वहां प च ं गये थे। ऐसे म पो टमाटम रपोट से तु हारा
कोई अला-भला होता दखाई नह देता। ऊपर से तु हारी बीवी पस म रवा वर लेकर घूम
रही थी, ये बात भी कसी को हजम नह होने वाली।”
“ठीक कहता है।” - कहकर वो तिनक का फर बोला - “क ल शायद उस व आ था
जब म पहली मंिजल क सी ढ़य पर था।”
“ऐसा तुम कै से कह सकते हो।”
“मने गोिलय क आवाज सुनी थी। मगर तब मने उस तरफ कोई यान नह दया था।
सच पूछ तो मुझे एहसास तक नह आ क वो गोिलयां चलने क आवाज थी, यूं लगा था
जैसे आस-पास कह पटाखे छोड़े गये ह ।”
“अगर ऐसा था तो तु हारी बीवी का ह यारा महेश बाली तो नह हो सकता। य क

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तब वो बाहर सड़क पर खड़ा िसगरे ट के सु े लगा रहा था। फर सबसे अहम बात ये क वो
दोन बड़े ही रोमां टक मूड म वहां प चं े थे! ऐसे म दोन के बीच झगड़ा शु हो गया और
बाली ने सोनाली को शूट कर दया! ये बात गले से नीचे नह उतरती।”
“तो फर ह यारा कोई तीसरा श स होगा िजसने बाली के वहां से जाने और मेरे वहां
प च
ं ने के बीच के मु तसर से व म सोनाली को शूट कर दया होगा।”
“उसे छह क छह गोिलयां चलाने क या ज रत थी?”
“ या पता यूं वो यक न कर लेना चाहता हो क उसके पीछे सोनाली उठकर बैठ नह
जाने वाली थी।”
“और वो तीसरा श स था कौन?”
“पता कर, यही तो तेरा काम है। मुझे बेगुनाह सािबत करके दखा और अपनी मोटी
फ स कमा।”
“ये मुि कल काम है।”
“फ स बोल अपनी!”
“हो सकता है म नाकामयाब हो जाऊं।”
“मुझे कोई िशकायत नह होगी, मगर मेहनत तो करे गा न तू।”
“वो तो म अपनी जी-जान लड़ा दूग ं ा।”
“गुड् आइएम लैड, अब बोल या चाज करे गा, बि क ठहर!” - कहकर उसने चैकबुक
िनकाला और एक लक चैक साइन करके मेरे हवाले करता आ बोला - इस चैक क
िलिमट पचास लाख है। इसका मतलब ये आ क तू पचास लाख तक क कोई भी रकम
इसम भरने को आजाद है। तेरा जो दल हो भर लेना। मेरी तरफ से तू इसे ले-जाकर अभी
अपने एकाउं ट म डाल दे, कल तक, बड़ी हद परस तक पैसे तेरे एकाउं ट म े िडट हो
जाएंगे।”
“वो तो खैर हाथ के हाथ ही हो जायगे!” - म हैरान होता आ बोला - “ य क मेरा
एकाउं ट भी इसी बक म है। मगर यूं कसी को लक चैक देना या समझदारी क बात है।”
“नह है, मगर म अफोड कर सकता ,ं तू ये समझ ले क म पचास लाख पये का गम
खा सकता ।ं अब जा यहां से, और जाकर कोई नतीजा िनकाल कर दखा।”
“अभी जाता ,ं उससे पहले जरा दो-चार ज री सवाल कर लेने दो।”
“ या जानना चाहता है?”
“देखो अब तुमने मुझे रटेन कर िलया है, तो समझो तु हारा राज, मेरा राज है। मेरा
अहम िमशन तु ह बेगुनाह सािबत करना है चाहे उसके िलए याह को सफे द करके ही य
ना दखाना पड़े। इसिलए अब एक बात का एकदम स ा जवाब दो, या अपनी बीवी का
क ल तुमने कया है।”
“मेरी बात पर यक न कर लेगा”
“अब कर लूंगा, य क अब तुम मेरे लाइं ट हो। मुझसे झूठ बोलोगे तो अपनी मुि कल
बढ़ाओगे, खुद अपनी रहाई क राह म रोड़े अटकाओगे।”
“ठीक है सुन! मने अपनी बीवी का क ल नह कया और खबरदार! जो घुमा- फराकर

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यही सवाल मुझसे दोबारा पूछा तो।”
“नह पूछूंगा, अब जरा कल क रात पर वािपस लौटो। ठीक यारह बजकर तीस िमनट
पर मने तु ह वहां प च ं ते देखा था। तुम गेट पर नह के थे, तुमने गाड से लैट का नंबर
जानने तक क कोिशश नह क थी, इसका मतलब ये बनता है क तुम पहले से जानते थे
क शािमयाना हाउ संग कॉ लै स म बाली का लैट कहां था।”
“हां जानता था, इसिलए जानता था य क वो लैट बाली का नह था बि क मेरी
बीवी क िमि कयत था।”
“ या!” म हकबका सा गया।
“उसने दो साल पहले वो लैट मुझे बताये िबना खरीदा था। अलब ा कु छ दन बाद
ही मुझे उसक खबर लग गई थी। ले कन वो कोई ऐसी बात नह थी िजसपर म सोनाली से
कोई सवाल-जवाब करता। उसका एक करोड़ का लैट खरीदना और तेरा नेवीकट का
पैकेट खरीदना, मेरी िनगाह म एक ही बात थी। बाद म एक बार वो खुद मुझे वहां लेकर
गई थी। तभी उसने बताया था क वो लैट हमारा था िजसे उसने इसिलए खरीदा था क
कभी चज क खाितर हम वहां जाकर रात गुजार सक।”
“िलहाजा उस रोज य ही तूने वसंतकुं ज के शािमयाना अपाटमट का नाम िलया, म
फौरन समझ गया क वो अपने ही लैट म थी। यही वजह है जो म िबना कसी पूछताछ के
सीधा वहां प च ं गया था।”
“कार कहां खड़ी क थी तुमने?”
“सोनाली क नै सन के बगल म।”
“तुम जैसे धनकु बेर क बीवी नै सन म य घूमती है। फरारी, बीएमड यू या ऑडी म
य नह ।”
“वो तीन भी ह उसके पास, बि क दो और भी यादा महंगी कार ह उसके इ तेमाल के
िलए। मगर जब से उसने नै सन िलया था, उसी को इ तेमाल करती थी, कहती थी द ली
क टैª फक म लंबी गािड़यां चलाना उसके वश क बात नह थी।”
“वो ाईवर रख सकती थी।”
“ य भई मेरे पास ाईवर क या कमी है जो उसे अलग से ाईवर रखना पड़ता।
मगर वो ाईवर को साथ ले जाना भला कै से अफोड कर सकती थी। करती तो ाईवर पर
उसक पोल नह खुल जाती।”
“तुम कहते हो क उस व पहली मंिजल क सी ढ़य पर थे जब तुमने गोिलय क
आवाज सुनी थी।”
“हां मगर वो आवाज बेहद धीमी थ । ज र लैट का दरवाजा बंद होने क वजह से वो
आवाज दबकर रह गई ह गी।”
“दरवाजा तु ह बंद िमला था।”
“चौखट से लगा आ था, मगर लॉ ड नह था।”
“आगे या आ।”
“वहां प चं कर मने दरवाजे का हडल ाई कया तो वो खुल गया। भीतर कदम रखते

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ही मेरी िनगाह सोफे के पास पड़ी रवा वर पर गई तो मुझे लगा वो मेरी अपनी रवा वर
है। मने झुककर उसे उठाया तो मेरी आशंका सही सािबत ई। फर रवा वर हाथ म िलए
म बेड म क ओर बढ़ा, उसका दरवाजा भी चौखट से लगा आ था। मने उसे भीतर क
ओर धके ला तो वो खुलता चला गया। आगे जो नजारा मुझे दखाई दया, वो मेरे होश
उड़ाने के िलए काफ था। फश पर सोनाली क गोिलय से बंधी ई नंगी लाश पड़ी थी,
उसके िज म से खून के फौ वारे छू ट रहे थे। वो हौलनाक नजारा देखकर म कु छ ण के
िलए जड़ होकर रह गया। फर मुझे लैट का मेन डोर खुलने क आहट िमली। म वािपस
मुड़ा तो दरवाजे पर खड़ा महेश बाली दखाई दया। मेरे हाथ म रवा वर देखकर उसके
चेहरे पर पलभर के िलए बड़े हौलनाक भाव आये, फर इससे पहले क म उसे कु छ बता
पाता उसने बाहर से लैट का मेन गेट लॉक कर दया। म घबरा सा गया, उस घड़ी बड़ी
िश त से मुझे महसूस आ क कसी ने जानबूझकर, पूरी ला नंग के साथ मुझे सोनाली के
क ल म फं साया था। फर मने लैट म कोई दूसरी चाबी तलाशने क कोिशश क जो क
मुझे नह िमली। थक-हार कर म ाइं ग म म आकर बैठ गया। करीब दस िमनट तक म
वहां बैठा िसगरे ट फूं कता रहा फर पुिलस ने वहां प च
ं कर दरवाजा खोला और मुझे लेकर
यहां आ गई।”
“ कसी ने सोनाली क ह या करके तु हारे िलए वहां ैप लगाया था, ये बात यक न म
नह आती।”
“ य ?”
“ य क तु हारा वहां प च ं ना ी- लांड नह था। वहां तुम मेरी उस कॉल क वजह से
प च ं े थे। अगर मने तु ह फोन करके ये नह बताया होता क वहां या चल रहा था, तो
तुम भला वहां य कर जाते।”
“ज र तूने वो बात कसी और को भी बताई होगी।”
“जािहल जैसी बात मत करो। जो बात मुझे ही नह मालूम थी, वो भला म कसी और
को कै से बता सकता था। तुमने तो ये फरमान जारी करके क म वहां टकने के अलावा कह
भी जाने को आजाद था, कॉल िड कनै ट कर दी थी। फर या मुझे सपना आना था क
तुम आनन-फानन म वहां प च ं जाओगे।”
वो सोच म पड़ गया। उस दौरान उसने मेज पर रखा अपना िसगरे ट का पैकेट और
लाइटर उठाकर एक िसगरे ट सुलगाया फर दोन चीज मेरी तरफ बढ़ा द । मने इं कार नह
कया और पूरी खामोशी से एक िसगरे ट सुलगाकर कश लगाने लगा।
“अगर वहां मेरे िलए कोई ैप नह लगाया गया था तो फर रवा वर फश पर य
पड़ी थी।”
“ये कोई अहम बात नह है, इसका सबसे आसान जवाब यही है क काितल को आगे
उस रवा वर क कोई ज रत नह थी। इसिलए क ल के बाद वो रवा वर घटना थल
पर ही फक गया था।” - कहकर म िसगरे ट का एक लंबा कश लगाया फर बोला - “ले कन
मुझे तु हारी ैप वाली बात से इ फ़ाक है। मुझे भी यही लगता है क वहां ज र कोई
जाल िबछाया गया था, मगर वो जाल तु हारे िलए नह था। तुम तो बस इ फ़ाक से उसम

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जा फं से थे।”
“मेरे िलए नह तो फर कसके िलए था।”
“मेरे याल से बाली के िलए।”
“ या कह रहा है यार!”
“हालात का इशारा यही है, क वहां सोनाली के क ल के बाद बाली को फं साने का
इं तजाम कया गया था। काितल को पता था क सोनाली को वहां छोड़कर बाहर िनकला
बाली वािपस वहां ज र लौटेगा। इसिलए बाली के पीठ फे रते ही उसने सोनाली का क ल
कया और रवा वर जानबूझकर ऐसी जगह पर िगरायी क लैट म दािखल होने वाले क
िनगाह उसपर पड़े िबना नह रहती। वापसी म बाली को वहां पड़ी रवा वर दखाई देती
तो वो भी उसे उठाने से बाज नह आता और यूं बे यानी म उसके फं गर ं स रवा वर
पर प च ं जाते। आगे उसके साथ भी वही सब गुजरता जो तु हारे साथ गुजरा है। अलब ा
अब तक पुिलस डंडे के जोर पर बाली से उसका जुम कबूल करवा चुक होती।”
“भले ही उसने सोनाली क ह या नह क हो।”
“भले ही उसने जीवन म म छर तक ना मारा हो मगर िजतने सबूत तु हारे िखलाफ
पुिलस के पास ह, उतने अगर बाली के िखलाफ होते तो अब तक जाने कतनी बार उसक
डंडा परे ड हो चुक होती और वो सौ बार अपना जुम - जो क उसने नह कया होता -
कबूल कर चुका होता।”
“तौबा ऐसा कह होता है।”
“नह होता तो िसफ तुम जैसे पूंजीपितय के साथ नह होता। बाक सबके साथ तो
यक नन होता है। बहरहाल ये बताओ क जब तुम िब डंग म दािखल होकर दूसरी मंिजल
पर प च ं े थे तो उस दौरान कोई आता-जाता दखाई दया था तु ह?”
“नह दखाई दया! उसक अहम वजह ये है क वहां इ ा-दु ा लैट ही आबाद ह और
दूसरी मंिजल पर तो वो भी नह ह।”
“िलहाजा कसी ने काितल को वहां प च ं ते या कू च करते देखा हो इसक उ मीद भी
नह क जा सकती।”
“ऐसा ही है।”
“कोई और खास बात जो तु ह िज के कािबल लगती हो।”
“नह ऐसी कोई बात नह है।”
“पुिलस को कोई चढ़ावा चढ़ाया है तुमने?”
“नह अभी नह , अलब ा कोई उस चढ़ावे का तलबगार दखाई दे तो मुझे कोई
ऐतराज नह है।”
“कोई वक ल तो कया होगा तुमने?”
“अब क ं गा।”
“कोई नाम है जहन म!”
“है तो, अलब ा सुना है, मुलिजम के बेगुनाही का यक न ना हो तो वो के स को हाथ भी
नह लगाती। चाहे कतनी भी बड़ी फ स य ना ऑफर कर दी जाए।”

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“िलहाजा कोई औरत है।”
“हां नीलम तंवर नाम है उसका, मने अपनी से े टरी मं दरा जोशी को उसके पास भेजा
है, देखते ह या जवाब िमलता है।”
“वो काम तुम मुझ पर छोड़ दो, म उसे तैयार कर लूंगा।”
“गुड!”
“कोई राजनैितक प च ं नह है तु हारी, आिखर इतने बड़े िबजनेसमैन हो।”
“ब त है, उनका इ तेमाल करके म हवालात म व गुजारने से तो यक नन बच
जाऊंगा मगर यूं सोनाली का ह यारा तो िगर तार नह हो जायेगा। इसिलए अभी म
अपनी उस प च ं का इ तेमाल नह करना चाहता। अभी मुझे हवालात म कोई तकलीफ
नह है, जब होगी तो सोचूंगा उस बारे म। फर अभी िव ांत गोखले नाम के श स से मेरी
उ मीद ख म नह ई ह।”
“आगे भी नह ह गी, इ मीनान रखो।”
“थ यू!”
म उससे हाथ िमलाकर दोबारा डीसीपी के कमरे म प च ं ा। उस घड़ी डीसीपी तो वहां
मौजूद नह था अलब ा एसीपी पांडे को मने अपना इं तजार करता पाया।
“काफ लंबी बातचीत ई दखती है।”
“है तो कु छ ऐसा ही जनाब! मगर उस लंबी बातचीत म ऐसी कािबलेिज कोई बात
नह है, जो आपको पहले से ही ना पता हो।”
“िलहाजा वो अपनी बेगुनाही क रट नह छोड़ रहा।”
“यही बात है।”
“बचा लेगा अपना जासूस उसको।”
“कोई चम कार ही हो जाय तो जुदा बात है वरना तो सािहल भगत क बकाया जंदगी
जेल म ही कटेगी।”
“अब अपनी कोई राय तो जािहर कर, या वो बेगुनाह हो सकता है?”
“कहना मुहाल है।”
“भई मने तेरी दो टू क राय पूछी है।”
“तो मेरा जवाब है क हो सकता है।”
“सािबत कै से करे गा?”
“आपके सहयोग से।”
“म भला पुिलस के के स क धि यां उड़ाने म तेरा सहयोग य करने लगा?”
“ य क कसी बेगुनाह को जेल हो जाए ये बात आप खुद पसंद नह करगे।”
“बात तो ठीक है तेरी, बता या चाहता है?”
“आपक इजाजत िमल जाए तो मौकायेवारदात पर एक नजर डालना चाहता ।ं ”
“दूसरी तीसरी भी डाल लेना, लैट क चाबी म अभी तुझे दलवाये देता ।ं ”
“शु या।”
उसके बाद एसीपी ने मकतूला सोनाली भगत के लवने ट क चाबी मुझे मुहय ै ा करा दी।

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“और या चाहता है।” मुझे वहां से िहलता न पाकर पांडे बोला।
“जनाब जान क अमान पाऊं तो कु छ अज क ं ”
“बे फ होकर बोल, इजाजत लेने क ज रत नह है।”
“आपका मुज रम अपनी दौलत का जलवा दखाना चाहता है।”
“तेरा मतलब है र त देना चाहता है।”
म खामोश रहा।
“वो समझता है र त देकर अपनी मौजूदा दु ारी से िनजात पा सकता है।”
“ऐसा तो वो नह समझता! य क उसे यक न है क देर-सबेर वो बेगुनाह सािबत
होकर रहेगा।”
“ फर र त क ऑफर कसिलए!”
“पुिलस के जलाल से बचने के िलए, वो नह चाहता क पुिलस उसके साथ कोई
यादती करे ।”
“वो तो हम वैसे भी नह करने वाले गोखले! उसके जैसे बड़े आदमी क डंडा परे ड करने
क मजाल तो हमारा आईजी भी नह कर सकता। अगर वो इस बात को लेकर खौफजदा है
तो बेकार है। अलब ा हम उसक ऑफर पर गौर करगे, इसिलए करगे य क उसके िलए
हम ए ा ऐफड नह करना है। कानून के साथ कोई आंख-िमचौली नह खेलनी है, समझ
गया तू”
“समझ गया जनाब, इसका साफ-साफ हंदो तानी जुबान म ये मतलब िनकलता है क
बकरा अगर खुद िजबह होने को मरा जा रहा हो तो उसे हलाल करने म कोई बुराई नह
है।”
मेरी बात सुनकर वो हंस पड़ा।
“अब फू ट ले यहां से और जाकर अपने लाइं ट के िलए कोई हाथ-पांव मार! आिखर तुझे
अपनी फ स को ज टीफाई करके भी तो दखाना है।”
“अभी लीिजए जनाब! नम ते, हैव ए गुड डे।”
डीसीपी ऑ फस से िनकलकर म बारह बजे के करीब वसंतकुं ज प च ं ा जहां मेरा इरादा
मौकायेवारदात को टटोलने का था।
दूसरी मंिजल पर प च ं कर मने मकतूला सोनाली भगत के लवने ट का दरवाजा खोला
और भीतर दािखल होकर दोबारा बंद कर िलया।
शु आत मने बेड म से कया।
फश पर जहां लाश पड़ी थी वहां चॉक से आउट लाइन बनी ई थी िजससे लाश क
ि थित का साफ पता चल रहा था। गोली लगने पर वो ज र पीठ के बल िगरी थी। य क
बेड म के दरवाजे क तरफ उसके पांव थे जब क िसर भीतर बेड क तरफ था। लाश
य क पूरी तरह न पाई गई थी इसिलए मेरा अंदाजा था क काितल जब वहां प च ं ा था
तो मकतूला बेड पर लेटी बाली के वािपस लौटने का इं तजार कर रही थी। कोई बड़ी बात
नह थी अगर उस व बेड म का दरवाजा उसने भीतर से बंद कर रखा हो। काितल ने
वहां प च ं कर दरवाजे पर द तक दी, तो मकतूला ने सोचा बाली वािपस लौटा है इसिलए

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उसने अपने न बदन को ढकने क कोई कोिशश नह क ! उसने उसी हालत म उठकर
दरवाजा खोल दया। गोली चलाने को तैयार काितल ने दरवाजा खुलते ही उसपर
अंधाधुन गोिलयां चलानी शु कर द । गोली खाकर सोनाली पीठ के बल फश पर जा
िगरी। तब काितल ने रवा वर से अपने फं गर ं स िमटाये और रवा वर को मेन गेट के
सामने सोफे के पास रखकर वहां से चलता बना।
मने कु छ और दमाग खपाया तो मुझे लगा रवा वर से फं गर ं स िमटाये नह गये
थे बि क काितल ज र द ताने पहनकर वहां प च ं ा था। वरना तो उसे मेन गेट के हडल से
भी अपने फं गर ंट िमटाने पड़ते, जब क काितल के िलए एक-एक सैकड क मती था,
य क बाहर गया बाली कसी भी व वािपस लौट सकता था।
आगे मने वहां का इं च-इं च टटोल डाला मगर कोई सू हाथ नह लगा। सामान के नाम
पर बैड म म बेड के अलावा एक पचास इं च क सोनी क एलईडी टीवी लगी ई। उसके
नीचे ही िडश टीवी का सैट-टॉप बॉ स और एक डीवीडी लेयर रखा आ था। बेड से
तिनक हटकर एक सजावटी टू ल था िजसपर एक नाईट लै प मौजूद था। एक टीवी बाहर
ाइं ग म म भी लगी ई थी, उसके सामने ही दीवार से सटाकर ी सीटर सोफा रखा
आ था िजसके इद िगद दो सोफा चेयर रखे थे। दोन दीवार के बीच एक बड़ा सा सटर
टेबल रखा आ था िजसपर कु छ मैगज स और अं ेजी के नॉवे स रखे ए थे।
बेड म से फा रग होकर मने फश पर उस जगह का मुआयना कया जहां सािहल भगत
को उसक रवा वर पड़ी दखाई दी थी। म घुटन के बल वहां बैठ गया, झुककर सोफे के
नीचे झांका तो मेरी िनगाह वहां पड़े एक पये के टील के िस े पर पड़ी, मने जेब से
माल िनकाल कर िस े पर डाला और सावधानी से उठाकर कोट क जेब म रख िलया।
फर मेरी िनगाह सोफा चेयर के पाय पर पड़ी, फश पर पाय के दबाव से बने चार
िनशान दखाई दे रहे थे, यािन इस व वो चेयर अपनी पुरानी जगह पर नह थी। नीचे
का मुआयना करके म उठने ही लगा था क मेरी िनगाह चेयर के बाय ह थे पर लगे एक
छोटे से ध बे पर पड़ी जो ब त यान से देखता होने क वजह से ही मुझे नजर आ गया था।
मने उसका एक कनारा नाखून से ह का सा खर च कर देखा तो वो त काल खुरच गया।
मुझे लगा वो खून का ध बा था। िजसके बारे म पुिलस क मदद के िबना कु छ पता लगा
पाना नामुम कन नह तो बेहद मुि कल काम तो ज र था। सबसे बड़ी बात ये थी क अगर
उस ध बे क कोई अहिमयत थी तो एक बार उसे वहां से हटाने के बाद ये सािबत कर पाना
क वो घटना थल से उठाया गया था संभव नह था। इसिलए ये बेहद ज री था क उस
काम को पुिलस ही अंजाम देती।
मने एसीपी पांडे को फोन करके अपनी ज रत समझाई तो पहले तो वो यही जानकर
हैरान रह गया क मौकायेवारदात पर कु छ ऐसा भी था जो पुिलस क िनगाह म नह आ
पाया था। फर उसने आधे घंटे म वहां लैब टै िशयन और फं गर ंट ए पट को भेजने
का वादा करके कॉल िड कनै ट कर दया।
मने जेब से माल म िलपटा िस ा बरामद कया और उसे दोबारा सोफा चेयर के नीचे
पहले वाली जगह पर डाल दया।

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अब िसवाय इं तजार के वहां करने को कु छ नह था। मने जेब से िसगरे ट का पैकेट
बरामद कया और एक िसगरे ट सुलगाकर कश लगाता आ मौजूदा घटना म पर गौर
करने लगा। उसी दौरान एक बात मुझे जोर क खटक ! खुद बा खुद मेरी िनगाह पहले
बेड म के दरवाजे पर फर मेन गेट पर और फर बारी-बारी से दोन पर फर गई।
मने बेड म का दरवाजा पूरा खोल दया फर म मेन गेट खोलकर बाहर िनकला और
दरवाजे पर खड़े होकर बेड म का नजारा करने क कोिशश क ! मेन गेट से मुझे बेड म
का दरवाजा तो दखाई दया मगर वो कु छ इस ि थित म था क उसके भीतर का कोई
नजारा कर पाना संभव नह था। म हैरान रह गया।
या मतलब था इसका! अगर सोनाली के क ल के बाद यहां प च ं े बाली ने भीतर कदम
नह रखा था तो उसे कै से पता था क सािहल ने सोनाली का क ल कर दया था। य कर
वो सािहल को लैट म बंद करने के बाद पुिलस को सोनाली क ह या क खबर दे पाया
था।
उस इकलौती बात ने मुझे ये सोचने पर मजबूर कर दया क अभी के स म गुंजाईश थी।
करीब चालीस िमनट बाद जो तीन लोग वहां प च ं े उनम से एक को म जानता था। वो
एसआई नरे श चौहान था, जो कु छ महीने पहले जेल जाने से बाल-बाल बचा था, िसफ और
िसफ आपके खा दम क वजह से बचा था। अलब ा इस व उसक वहां आमद का कोई
मतलब म नह िनकाल सका।
“कै सा है गोखले?”
“ब ढ़यां, तुम सुनाओ।”
“इधर भी सब म त है! - कहकर वो तिनक का फर बोला - “तेरी वजह से।”
म हंसा।
“म भूला नह ं भैया, तेरा एहसान तो म जंदगी भर नह चुका सकता। तू नह होता
तो सब-इं पे टर नरे श चौहान अपने ही महकमे के सौज य से जेल क च पीस रहा
होता।”
“छोड़ो उस बात को, यहां कै से आना आ।”
“एसीपी साहब ने भेजा है, ये लैब टै िशयन है दनेश और ये फं गर ंट ए पट
िजयालाल।”
मने बारी बारी से दोन से हाथ िमलाया फर उ ह बताया क म या चाहता था। दोन
फौरन अपने काम म लग गये।
महज दस िमनट म खून का ध बा सहेज िलया गया और िस े से फं गर ंट भी बरामद
हो गये। फर मेन गेट के अंद नी िह से से फं गर ंट उठाये गये। अलब ा उस बाबत
िजयालाल ने पहले ही बता दया क वहां से सारे ं स वो पहले फे रे म उठा चुका था।
िस े क बाबत उसने बताया क उसपर िसफ कसी के अंगूठे और तजनी उं गली के
िनशान िमले थे जो क इतने छोटे थे िजनसे कोई नतीजा तभी िनकल सकता था जब हम
प ा मालूम होता क वो िनशान कसके थे। अलब ा लैब टै िशन का कहना था क उसे
पूरी उ मीद थी क वो खून के ध बे से उसके लड ुप का पता लगाने म कामयाब हो

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जायेगा।
दोन अपना काम ख म करके वहां से चलते बने तो म चौहान के साथ एक सोफे पर
पसर गया।
“अब बता या माजरा है, सािहल भगत के के स म तेरा या दखल है?”
“वो मेरा लाइं ट है।”
“इतना बड़ा आदमी तेरे पास कै से प च ं गया।”
“म खुद भी बड़ा आदमी ।ं ”
“ यादा मत पसर, साफ-साफ बता या क सा है। नह बताना चाहता तो बेशक मना
कर दे।”
“बताता ं मगर आगे कह मुंह मत फाड़ना।”
उसने आहत भाव से मेरी तरफ देखा, “गोखले तू मेरे से ऐसी उ मीद करता है।”
“नह करता मगर कहना ज री था य क पुिलस को अभी तक ये नह पता क वो
अचानक यहां कै से प च ं गया। उसे खबर कै से लगी क उसक बीवी यहां अपने यार के
साथ गुलछर उड़ा रही थी।”
“तेरा मतलब है तुझे वो बात पता है।”
“हां पता है, वो बाद मने ही उसे बताई थी।”
“और तुझे कै से पता चला था।”
जवाब म मने उसे सोनाली और महेश बाली का पीछा करने वाली बात बताते ए ये
भी बता दया क वैसा म सािहल भगत के कहने पर कर रहा था।”
वो हकबकाकर मेरी श ल देखने लगा फर बोला, “तू इस बात का मतलब तो समझ
रहा है न”
“लगता है कोई खास मतलब लगा िलया तुमने”
“खास या गैर-खास एक ही मतलब िनकलता है इसका, क उसे अपनी बीवी के च र
पर शक था इसिलए उसने पीडी एंगेज कया और जब उस पीडी के ज रए उसे पता लगा
क उसक बीवी अपने यार के साथ कहां मौजूद थी तो वो फौरन उसपर चढ़ दौड़ा। जहां
उसे बीवी का यार तो नह दखाई दया मगर बेड म म नंगी पड़ी बीवी को देखकर
उसका खून खौल उठा िलहाजा उसने ठौर उसे गोली मार दी। वो भी एक नह पूरी छह
गोिलयां दागी थ उसने अपनी बीवी के िज म म। ये इकलौती बात सािबत करती है क वो
कस कदर अपनी बीवी से नफरत करता था। काितल कोई और होता तो मकतूला पर एक
गोली बड़ी हद दो गोिलयां चलाकर वहां से चलता बनता।”
“इससे िसफ इतना सािबत होता है क काितल मकतूला से वाकई नफरत करता था।
इससे ये कहां सािबत होता है क उससे नफरत करने वाला इकलौता इं सान उसका पित ही
था।”
“ये ल फे बाजी है, खुद को झूठी तस ली देने वाली बात ह।”
“ फर इसक या गारं टी है क! - म उसक बात को नजरअंदाज करके बोला - “क ल
का जो पैटन है वो जानबूझकर तैयार नह कया गया।”

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“तेेरा मतलब है काितल ने जानबूझकर उसपर रवा वर खाली कर दी ता क वो कसी
नफरत से उबलते इं सान का काम लगे।”
“ या ऐसा नह हो सकता?”
“भाई होने को तो कु छ भी हो सकता है। जीता-जागता उदाहरण म बैठा ं तेरे आगे।
मगर सािहल भगत वाले मामले म भी ऐसा आ हो इसक संभावना ना के बराबर दखाई
देती है। ले कन अगर तू कहता है क वो बेगुनाह है तो ज र होगा।”
“म नह कहता।”
“ या?”
“यही क वो बेगुनाह है, म िसफ इतना कहता ं क वो बेगुनाह हो सकता है।”
“तेरी मिहमा तू ही जाने भैया, मेरी कोई मदद चािहए हो तो बताना! बेशक आधी रात
को मोबाइल बजा देना।”
मने सहमित म िसर िहला दया। फर हम दोन एक साथ वहां से सत ए।
मेरा अगला पड़ाव था िमनल लॉयर नीलम तंवर का ऑ फस! जो क हाल ही म
उसने क तूरबा गांधी माग पर िश ट कर िलया था। अब उसका मुकाम के जी रोड पर मॉड
पेश के नाम से जानी जाने वाली एक ब मंिजला इमारत के तीसरे लोर पर था।
कार को पा कग म खड़ी करके म िल ट म सवार हो गया।
अठाइस के पेटे म प चं ी नीलम तंवर बेहद खूबसूरत युवती थी। वो िमनल लॉयर थी,
हैरानी क बात ये थी क औरत होते ए भी बतौर िमनल लॉयर उसने पेशे म खूब नाम
कमाया था। आज क तारीख म वो वक ल क एक बड़ी फम घोषाल ए ड एसोिसएट क
मािलक थी।
नीलम से मेरी मुलाकात लगभग पांच साल पहले एक क ल के के स म ई थी। बाद म
घटना म कु छ यूं तेजी से घ टत ए थे क उसके बॉस अिभजीत घोषाल का क ल हो गया
जो क इस फम का असली मािलक था। घोषाल बेऔलाद िवधुर था, हैरानी क बात ये थी
क उसने अपनी वसीयत म नीलम को अपना उ रािधकारी घोिषत कर रखा था। जो क
महज उसके फम के दूसरे वक ल क तरह ही एक वक ल थी।
बहरहाल उसके क ल के बाद उसक तमाम चल-अचल स पि जैसे छ पर फाड़कर
नीलम क गोद म आ िगरी थी। िलहाजा िजस ऑ फस म वह नौकरी भर करती थी आज
उसक इकलौती मािलक थी। और वो सोचती थी क ये सब मेरी वजह से आ था। मने भी
उसक ये गलतफहमी दूर करने क कभी कोिशश नह क । उसके बॉस क मौत के बाद
गाहे-बगाहे हमारी मुलाकात होती रह । फर ब त ज दी हम अ छे दो त बन गये। आज
तक यह दो ती य क य बरकरार थी।
कािबले िज बात ये है क वो भी शीला क तरह थी-मुझे जरा भी भाव नह देती थी।
तीसरी मंिजल पर िल ट से िनकलकर मने घोषाल एंड एसोिसए स के ऑ फस म कदम
रखा।
मेरी श ल पर िनगाह पड़ते ही रसै शिन ट िसर झुकाकर अपनी मेज क दराज
टटोलने म लग गई। य तः वो मेरे मुंह नह लगना चाहती थी।

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मगर उसके चाहने से या होता था।
म उसके करीब प च ं ा, “है लो बेबी!”
“है लो सर! - उसने िसर उठाकर बड़े ही उपे ा पूण िनगाह से मुझे देखा फर बोली -
“मे आई है प यू सर!”
“ योर िमस, यू कै न!”
“आप मैडम से िमलने आए ह।”
“म ‘उसिलए‘ भी आया ,ं ले कन मेरा अहम िमशन तुमसे िमलना था। िपछली बार
जब म यहां आया था तो वो िमशन कु छ अधूरा-अधूरा सा रह गया था।”
“ या चाहते ह?”
“वही जो मजनू लैला से चाहता था, फ रहाद सीरी से चाहता था, रोिमयो जूिलएट से
चाहता था।”
“सॉरी सर! मने ये नाम पहले कभी नह सुन।े ”
“कमाल है, फर तो तु हे मोह बत का पाठ पढ़ाने क शु आत ए फॉर ए पल से करनी
पड़ेगी।”
“सर आइएम नॉट संगल, मेरा एक वाय ड है।”
“कोई बात नह मुझे कह अगल-बगल म, जब वो अवेलेबल ना हो, एडज ट कर लेना।
वैसे भी सुना है खूबसूरत लिड़कयां एक व म एक से यादा ऑ शन रखकर चलती ह।
या पता कब कौन धोखा दे जाय, ऐसे म रे टोरट का िबल भरने वाला तो कोई होना
चािहए न!”
“म अपना िबल खुद भर सकती ,ं भरती ।ं ”
“तो फर मूवी का टकट!”
“वो भी म अफोड कर सकती ,ं इसिलए मुझे आपक , आप जैसे कसी और क कोई
ज रत नह है।”
“तु हारा मतलब है अभी नह है।”
“इ मीनान रिखए आगे भी नह पड़ने वाली, सो लीज मांइड योर िबजनेस।”
“म वही तो कर रहा ं छ मक छ लो।”
“एंड ऑ सो माइं ड योर ल वेज।”
“कम से कम अपना नाम तो बता दो।”
“ गं चुंग हं संगजांहा!”
“वॉव इ स ए रयली नाईस नेम ऑफ ए ीटी गल।”
“थ यू सर!”
“वै कम वीट हाट, तो फर शाम क मुलाकात प समझू।ं ”
“हां बशत क आपको यूं होने वाली मुलाकात के इं तजार म रात भर अके ले बैठने का
तजुबा हो।”
“तुम तो दल तोड़ रही हो।”
“शु मनाइए आपने ये बात ऑ फस क बजाय कह बाहर खड़े होकर नह कह वरना

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दल क तो बात ही या है, पता नह या- या टू ट चुका होता आपका। इसिलए मेरा
कहना मािनये वो काम क िजए िजसके िलए यहां आए ह।”
“म वही तो करने क कोिशश कर रहा ।ं ”
“सर लीज! अगर आप मेरे साथ यूं पेश आना बंद नह करगे तो मजबूरन मुझे ये नौकरी
छोड़नी पड़ेगी, िजसक क मुझे स त ज रत है।”
वो बात उसने कु छ ऐसे लहजे म कही क म हकबकाकर उसका मुंह देखने लगा। ले कन
इस बार वो मुझे पूरी तरह संजीदा दखाई दी।
“सॉरी िमस ग ं चुंग हंड बा या और जो कु छ भी तु हारा नाम है! बंदा तुमसे तहे दल से
माफ मांगता है। मुझे जरा भी अंदाजा होता क तुम मेरी बात से इस कदर आहत हो रही
हो, तो ऐसी खता म भी नह करता। सो लीज िचयरअप, इसिलए य क म जा रहा ।ं ”
वो जबरन मु कराई।
“दै स लाइक ए गुड गल, यूंही मु कराती रहा करो, अ छी लगती हो।”
कहकर म नीलम के कमरे क ओर बढ़ गया।
जनाब आजतक आपका खा दम यही समझता रहा क ऐसी बात पर लड़ कयां
य तः कतना भी गु सा होकर य ना दखाएं, भीतर से उनका मन बाग-बाग हो रहा
होता है। मगर आज एक नया तजुबा आ था। जो ये सािबत करता था क पांच उं गिलयां
बराबर नह होत । कु छ लड़ कयां बहन जी होती ह और ताउ वही बनी रहना चाहती ह।
वो एक बड़ी सी मेज के उस पार बैठी ई थी। आहट पाकर उसने िसर उठाया, मने बड़े
ही अनुराग से उसे देखा। कतनी खूबसूरत थी कमीनी, देखते ही हजम कर जाने को जी
करता था। और एक वो थी जो परवाह ही नह थी उसे मेरे ज बात क ।
उसने जैसे मेरे मन के भाव पढ़ िलये। मुझ पर िनगाह पड़ते ही उसका चेहरा िखल सा
गया - आगे उसने जो हरकत क वो और भी यादा हैरान कर देने वाली थी। वो मेज का
घेरा काटकर मेरे करीब प च ं ी और मेरे सीने से यूं लग गई जैसे बरस बाद दो लैला-मजनूं
माका ेमी अचानक ही आमने-सामने आ गये ह । मुझे जैसे हजार वो ट का झटका लगा।
पल भर को म समझ ही नह पाया क चल या रहा था। और जब समझा तो मेरा मन
मयूर बनकर नाचने लगा। मने अपनी बाह का घेरा उसका कमर पर कस जाने दया और
यूं उसक बदन क तिपश म खुद को जला डालने क कोिशश करने लगा।
इससे पहले क मेरे ज बात और भड़कते, इससे पहले क म सपन का कोई महल खड़ा
कर पाता, कमीनी मेरी बाह के घेरे से आजाद होकर दोबारा अपनी रवॉ वंग चेयर पर
जाकर बैठ गयी।
यूं लगा जैसे ज त मेरे हाथ से फसल गई हो।
म लगभग हांफता आ उसके सामने एक चेयर पर ढेर आ और जेब से िसगरे ट का
पैकेट िनकालकर एक िसगरे ट सुलगाने का उप म करने लगा। जब क वो बड़े ही मु दत मन
से अपना चेहरा दोन हथेिलय के बीच टकाये अपनी बड़ी-बड़ी आंख से मुझे देखे जा रही
थी।
जैस-े तैसे कांपते हाथ से मने एक िसगरे ट सुलगाया फर एक लंबा कश लेकर खुद को

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संतुिलत करने क कोिशश करने लगा।
“ या आ गोखले साहब?” - वो जैसे मेरा उपहास उड़ाती ई बोली - “तु हारा चेहरा
यूं तमतमाया आ य है?”
“तुझे नह मालूम!”
“लो मालूम होता तो पूछती य ?”
“अभी-अभी जो हरकत तूने क , वो या था?”
“ या कया मने! िसवाय तु हे हग करने के ।”
“उसे हग करना कहते ह!” - म उसे घूरता आ बोला - “चार सौ चालीस वो ट का
झटका देकर कहती है हग कया था।”
वो हंसी!
“सुधर जा वरना कसी दन मुझे रे प के स म जेल जाना पड़ेगा।”
वो फर हंसी!
“कै सा लगा?” - वो अपनी एक आंख दबाती ई बड़े ही धूत भाव से बोली - “मजा
आया?”
म उसके चेहरे से िनगाह हटाकर िसगरे ट का कश लगाने लगा।
“यार तुम तो नाराज हो गये”
“तो नाराजगी दूर य नह कर देती?”
“अभी, यह !”
“ या बुराई है?”
“शम करो, ये ऑ फस है। ऊपर से कोई आ गया तो इ त का जनाजा िनकल जाएगा।”
- कहकर वो तिनक क फर बोली - “अभी ेलर से काम चलाओ, िप चर फर कभी देख
लेना।”
“वादा करती है?”
“हां।”
“कब?”
“शादी के बाद जब भी तुम कहोगे।”
मने एक फरमाईशी आह भरी फर बोला, “छोड़ अब काम क बात करते ह।”
“मने सािहल भगत क से े टरी को मना कर दया। अगर उस बाबत कोई बात करना
चाहते हो तो...।”
“वही बात है।”
“कु छ नह रखा उसके के स म, सीधा-सीधा ओपेन एंड शट के स है। मगर तु हारा या
दखल है उस के स म?”
मने बताया, अब तक क सारी कहानी िसलिसलेवार ढंग से उसे कह सुनाई।
“कमाल है!”
“उससे भी बड़ा कमाल सुन! उसने बतौर फ स मुझे एक ऐसा लक चैक दया है
िजसक िलिमट पचास लाख तक है। उसक तरफ से मुझे खुली छू ट है क म जो चाहे रकम

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उसम भर सकता ।ं ”
“तुम मजाक कर रहे हो?”
“नह ।” कहकर मने उसे सािहल का दया चैक िनकालकर दखाया।
वो हकबकाई सी कभी चैक तो कभी मेरी सूरत देखती रह गई, फर बोली, “ज र
िगर तारी से उसका दमाग िहल गया होगा।”
म हंसा।
“कह तुम पूरे आधा करोड़ ही तो हड़पने क फराक म नह हो।”
“ऐसा तो खैर म नह करने वाला, अलब ा अगर उसे बेगुनाह सािबत कर सका तो
कोई मोटी रकम तो म यक नन हािसल कर के र ग ं ा।”
“लगता है उ मीद के िखलाफ उ मीद करना तु हारी आदत बनती जा रही है।”
“ऐसा तो खैर नह है, मगर जब सारे िसलिसले पर गौर करता ं तो जाने य मेरा
दल कहता है क सािहल भगत बेगुनाह है।”
“कानून दल क भाषा नह समझता।”
“वो तो खैर तू भी नह समझती।”
“बात सािहल भगत क हो रही थी।”
“मुझे लगता है वो गलती से लपेटे म आ गया।”
“मतलब!”
“मतलब ये क वहां सोनाली के यार को फं साने के िलए जाल तैयार कया गया था,
िजसम क मत का मारा सािहल भगत जा फं सा।”
“ऐसा आ नह हो सकता। काितल अगर सािहल भगत नह है तो समझो वहां उसी को
फं साने का इं तजाम वहां कया गया था, वरना सोनाली का क ल सािहल क रवा वर से
नह आ होता।”
“हो सकता है वो रवा वर उस घड़ी सोनाली के पास ही रही हो।”
“तो फर काितल महेश बाली हो सकता है। य क कोई तीसरा श स वहां सोनाली के
क ल का इरादा लेकर िबना हिथयार के प च ं ा हो ये बात हजम नह होती।”
“हो सकता है उस तीसरे श स को सोनाली के पास रवा वर क खबर रही हो।”
“ फर तो िबना हिथयार के वहां कदम रखने का दु साहस करना ही मूखता होती।
इसिलए फर कहती ं क ये सब सािहल का ही कया धरा है। तु हारी रपोट िमलने के
बाद वो घर से ही बीवी के क ल का इरादा बनाकर िनकला होगा।”
“इतना बड़ा गावदी तो वो नह लगता क अपनी ही रवा वर से बीवी का क ल करने
क गंभीरता को ना समझता हो। अगर उसे बीवी का क ल करना ही था तो उस काम को
वो कह और बेहतर ढंग से अंजाम दे सकता था। ऊपर से वो पैसे वाला आदमी है। उसके
िलए कराये का काितल हायर कर लेना या बड़ी बात थी। फर लाख पये क बात ये
क वो बीवी से तलाक लेने का फै सला कर चुका था ऐसे म उसे या फक पड़ता था क वो
कसके
साथ ऐश कर रही थी।”

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“फक तो पड़ता था जासूस साहब! अगर फक नह पड़ना होता तो वो तु हारी रपोट
पाकर आनन-फानन म वहां नह प च ं गया होता।”
“ठीक कहती है तू, ले कन एक अहम बात और है जो इशारा करती है क सािहल को
े म कया गया हो सकता है।”
“इरशाद!”
“महेश बाली का बयान है क बाहर से िसगरे ट लेकर जब वो वािपस लैट पर प च ं ा
तो उसे सािहल भगत बेड म के दरवाजे पर हाथ म रवा वर िलए खड़ा दखाई दया, जो
क उसी व अपनी बीवी का क ल करके हटा था। वो नजारा देखकर बाली ने फौरन मेन
गेट बाहर से बंद करके पुिलस को खबर कर दी क सािहल भगत ने अपनी बीवी का क ल
कर दया है।”
“ या खास है इसम?”
“म अभी मौकायेवारदात का मुआयना करके ही यहां आया ।ं वहां बेड म का
दरवाजा कु छ यूं बना है क मेन गेट पर खड़े होकर वो दरवाजा तो नजर आ सकता है मगर
बेड म म पड़ी सोनाली भगत क लाश भी नह देखी जा सकती थी।”
“तो!”
“अब मेरा सवाल ये है क िबना सोनाली क लाश देखे महेश बाली इस बात का दावा
कै से कर सकता था क सािहल ने अपनी बीवी का क ल कर दया था।”
“बाज लोग को माहौल भांप लेने म महारत हािसल होती है। ऊपर से वो सोनाली का
यार था, उसके मन के चोर ने वहां रवा वर के साथ मौजूद सािहल को देखकर फौरन
सोनाली के अिन का अंदाजा लगा िलया होगा। य क तुम खुद ये बताकर हटे हो क
बतौर सािहल भगत लैट म गोिलयां उस व चली थ जब वो पहली मंिजल क सी ढ़य
पर था। जब क बाली तो उस व पूरी िब डंग म कह नह था।”
“तू तो मेरी हर बात क पॉिलश उतारे दे रही है।”
“नह म ऐसा नह कर रही। बस हालात के हर पहलू पर गौर करने क कोिशश कर
रही ।ं तु ह वो संभािवत जवाब दे रही ं जो तु हारे सवाल के जवाब म महेश बाली के
मुंह से सुनने को िमल सकता है। इसके बावजूद दम है तु हारी बात है, इतना बड़ा आरोप
यूं ही अंदाजे से नह लगाया जा सकता।”
“म िमलता ं बाली नाम के इस घोड़े से, देखता ं या जवाब देता है इस बाबत।”
“अभी मत िमलना, अब य क ये के स तुम मुझे लेने को मजबूर कर रहे हो तो ऐसे म म
नह चाहती क उसे कोई सजता सा जवाब ढू ंढने का मौका िमल जाए। जो भी पूछना होगा
म कोट म अचानक उससे पूछूंगी फर देखते ह वो या कहता है।”
“जैसी तेरी मज , म कोट म उसका बयान होने तक इं तजार कर लूंगा।”
“गुड! अब जरा उस एक पये के िस े और खून के ध बे क बात करो जो तुमने
मौकायेवारदात से बरामद कये थे। तु ह या लगता है उससे कोई नतीजा िनकलेगा”
“ फं गर ंट का नतीजा तो झोल-मोल ही होगा अलब ा खून के सै पल से लड ुप का
पता लगा लेने का दावा पुिलस का लैब टै िशयन कर चुका है।”

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“तु हारी प च ं तो होगी उन दोन रपो स तक।”
“उ मीद तो पूरी है।”
“देखो, अगर वो लड ुप और िस े से उठाए गये ंट सोनाली के नह िनकले तो
पुिलस का के स कमजोर पड़ जाएगा। इस बात से ना तो पुिलस नावा कफ होगी ना ही
सरकारी वक ल! ऐसे म वो लोग य तु ह उसक खबर लगने दगे।”
“तू उसक चंता छोड़, दोन चीज से जो भी नतीजा िनकलेगा उसक रपोट क कॉपी
तेरे तक प च ं जायेगी। ऊपर से इस के स म पुिलस अफसर का वहार कु छ ऐसा है जैसे
क वो खुद नह चाहते क सािहल का गुनाह सािबत हो।”
“ब ढ़या, अगर पुिलस उसके िखलाफ नह है तो उसक जमानत क उ मीद क जा
सकती है।”
“िलहाजा तू उसके के स क पैरवी करने को तैयार है।”
“तु हारी वजह से, ना क मने उसे बेगुनाह मान िलया है।”
“के स हार गई तो!”
“कोई फक नह पड़ता तु हारे िलए तो म ऐसे सौ के स हारने को तैयार ।ं आिखर यार
के िलए कु छ तो फज बनता ही है।”
“बस जुबानी ही यार तसलीम कया कर, कभी यार बनके मत दखा देना।”
वो हंसी!
“मौकायेवारदात क चाबी अभी भी तु हारे पास है।”
“हां है तो!”
“म वहां एक नजर डालना चाहती ।ं ”
“अभी!”
“हां चलो।” वो उठ खड़ी ई।
हैवी ै फक म वसंतकुं ज प च ं ने म हम पूरा एक घंटा लग गया। आिखरकार मने अपनी
कार उस िब डंग के सामने ले जाकर खड़ी क िजसके सैकड लोर पर मकतूला सोनाली
भगत का लैट था।
हम दोन सी ढ़यां चढ़कर दूसरी मंिजल पर प च ं े। जेब से चाबी िनकालकर य िह मने
क -होल म डालना चाहा, ठठक कर रह गया। दरवाजा चौखट के साथ लगा आ नह था।
जब क मुझे अ छी तरह से याद था क जाते व म लैट का लॉक करके गया था।
या माजरा था। या उस व कोई भीतर मौजूद था। मने झुककर क -होल से अपनी
आंख सटा द । भीतर एक लड़क मौजूद थी िजसके कमर तक का िह सा मुझे दखाई दे
रहा था। मेरे देखते ही देखते वो सोफे पर झुक और उसे यूं टटोलने लगी जैसे कु छ तलाशने
क कोिशश कर रही हो।
म सीधा खड़ा हो गया।
“कु छ दखाई दया!” नीलम फु सफु साते ए बोली।
मने सहमित म िसर िहलाया और उसे वािपस लौटने का इशारा कया। हम दोन
सी ढ़य के दहाने पर जाकर खड़े हो गये।

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“कौन था?”
“कोई लड़क थी, म उसे नह जानता! मगर उसक यहां मौजूदगी मुझे हैरान कये दे
रही है। वापसी म म उसके पीछे जाऊंगा। तू यहां क चाबी रख ले, तेरा काम ख म होने
तक अगर म वािपस नह लौटूं तो चाबी अपने साथ लेती जाना।”
“ठीक है, अब नीचे चलो वरना लैट से िनकलते ही उसक िनगाह हमपर पड़ जायेगी,
फर उसके पीछे लगने का कोई फायदा नह होगा।”
मने सहमित म िसर िहलाया, फर दोन नीचे जाकर कार म सवार हो गये। मने कार
टाट क और उसे िब डंग से तिनक परे ऐसी जगह पर ले जाकर खड़ा कया जहां से
उसके इं स पर िनगाह रखी जा सके ।
पांच िमनट बाद एक िनहायत खूबसूरत युवती िब डंग से बाहर िनकलती दखाई दी।
वो लीवलेस टॉप और लैक कलर क ज स पहने थी। िजसम से उसके कसावदार बदन का
पोर-पोर नुमायां हो रहा था।
“अरे ! ये तो वही है।” नीलम च कती ई बोली।
“कौन वही?”
“सािहल भगत क से े टरी, मं दरा जोशी।”
“तुझसे पहचानने म कोई भूल तो नह हो रही।”
“कमाल करते हो यार! अभी कु छ घंट पहले ही तो ये ऑ फस म मेरे सामने बैठी थी।
इतनी ज दी भूल जाऊंगी इसे।”
मने जवाब नह दया। मेरी िनगाह इस व मं दरा जोशी पर टक ई थ , जो
िब डंग से िनकलकर बाहर क ओर बढ़ने क बजाय िवपरीत दशा म चल पड़ी थी।
कार से बाहर िनकलकर मने एक िसगरे ट सुलगाया और कश लगाता आ बड़े ही
लापरवाह अंदाज म उसके पीछे चल पड़ा। अगर वो एक बार भी पीछे मुड़कर देखती तो
मुझपर उसक िनगाह पड़कर रहनी थी। मगर वो र क तो मने लेना ही था, उसके िसवाय
मेरे पास चारा भी या था।
पैदल चलती वो दो िब डंग पार करके तीसरी के भीतर दािखल ई और मेरी िनगाह
से ओझल हो गयी।
म लपककर सी ढ़य के दहाने तक प च ं ा। ऊपर जाते कदम क आवाज मुझे साफ
सुनाई दे रही थी। म दबे पांव सी ढ़यां चढ़ने लगा।
कु छ देर बाद सिडल क खटखटाहट बंद हो गई।
मने फौरन अपनी र तार बढ़ा दी। पहली मंिजल पर प च ं कर सावधानी बरतते ए
गिलयारे म झांका तो मं दरा मेरे देखते ही देखते वो एक लैट का दरवाजा खोलकर भीतर
दािखल हो गई। अपने पीठ पीछे उसने दरवाजा बंद कर दया तो म लपककर दरवाजे के
सामने प च ं ा, एक बार दाएं-बाय िनगाह दौड़ाकर तस ली कया क मुझे कोई देख नह
रहा था। फर झुककर क -होल पर अपनी िनगाह टका दी।
अफसोस क मेरी वो कोिशश बेकार सािबत ई। शायद दूसरी तरफ से चाबी ताले म
फं सा दी गई थी। मने दरवाजे से कान सटाकर भीतर से उभरती कोई आहट सुनने क

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कोिशश क , खट् -िपट् क आवाज आती रह , फर थोड़ी देर बाद मुझे शॉवर चलने क
आवाज सुनाई दी तो म दरवाजे से अलग हटा और सी ढ़य क ओर बढ़ चला।
म वािपस मौकायेवारदात पर प च ं ा तो नीलम को सोफे का मुआयना करता पाया।
“कु छ हािसल आ?”
“िसफ इतना क सािहल भगत को बेगुनाह माना जा सकता है। बशत क यहां जो सू
दखाई दे रहे ह वो लांट ना कये गये ह ।”
“अ छा! फर काितल कौन है?”
“वो लड़क िजसने यहां सोफे के पास रवा वर रखा था। िजसके खून के िनशान तु हे
यहां सोफे के हडल पर िमले थे।”
“लड़क ही य , वो कोई आदमी य नह हो सकता।”
“ य क आदमी हाई हील क च पल नह पहनते।”
“ य तपा रही है, साफ-साफ बता तो कु छ प ले पड़े।”
“ठीक है सुनो, काितल अगर यहां अके ला प च ं ा था तो वो यक नन कोई लड़क थी।
ऐसी लड़क िजसने यहां प च ं कर बेड म के दरवाजे पर द तक दया और दरवाजा खुलते
ही सोनाली पर गोिलय क बौछार कर दी। इसके बाद वो सोफा चेयर के पास प च ं ी जहां
वो रवा वर रखने के िलए नीचे झुक तो उसका संतुलन िबगड़ गया। वो नीचे िगरने लगी
तो उसका माथा सोफे के हडल से टकराकर फू ट गया। उसके हाथ म कोई पस था जो फश
पर जा िगरा और िजसम से िनकलकर एक पये का ाइन लुढ़कता आ सोफे के नीचे
प चं गया। सोफा अपने थान से िहला भी इसी वजह से था य क िगरते व काितल
का िसर जोर से सोफे से टकराया था। अब अगर तुम यान से फश पर लगी टाई स का
मुआयना करोगे तो तु हे वो िनशान दखाई देगा जो क काितल का पैर फसलने क वजह
से उसक सिडल से बना हो सकता है।”
म हैरानी से उसका मुंह तकने लगा।
“कै सी रही िम टर जासूस।”
“अरे म काहे का जासूस, वो िखताब तो अभी-अभी तूने अपने नाम करा िलया। कमाल
कर दया तूने।”
कहकर म फश पर झुककर सोफा चेयर के ईद-िगद लगी टाई स का मुआयना करने
लगा। वो ठीक कह रही थी। सचमुच वहां वैसा ही एक छह इं च लंबा िनशान मौजूद था,
िजसे देखकर ही पता चल जाता था क वो कसी स त चीज के िघसटने से बना था और
एकदम नया बना था। अलब ा वो सिडल से ही बना था, इसक गारं टी कर पाना मुम कन
नह था। मगर नीलम ने घटना म का जो खांचा ख चा था उसको यान म रखकर सोचा
जाता तो वो िनशान काितल क सिडल से बना हो सकता था।
“अब लाख पये का सवाल ये है माई िडयर ड क काितल के पास मेन डोर क चाबी
य कर थी।”
“उसक कोई ज रत नह थी!” - म बोला - “यहां से जाते व महेश बाली ने दरवाजा
लॉक नह कया होगा, आिखर उसक महबूबा भीतर मौजूद थी।”

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“इसीिलए तो उसका दरवाजा लॉक करना और भी ज री था। तुम जरा क ल के व
सोनाली क हालत पर गौर करो! बाली उसे एकदम न ाव था म बेड पर छोड़कर बाहर
जा रहा था ऐसे म या ये मानने वाली बात थी क उसने मेन डोर लॉक ना कया हो।”
“नह ही कया होगा, ऊपर से सोनाली बेड म म थी, हो सकता है क बेड म का
दरवाजा उसने भीतर से बंद कर िलया हो।”
“बात यक न म तो नह आती मगर तुम कह रहे हो तो मान लेती ।ं बस एक सवाल का
जवाब दे दो क अगर दरवाजा लॉक नह भी था तो इसक खबर काितल को य कर थी।”
“ या कहना चाहती है।”
“भई काितल को या सपना आना था क यहां उसे दरवाजा खुला िमलने वाला था।”
“नह ऐसा तो नह हो सकता। इसिलए इसके तीन जवाब मुम कन ह। नंबर एक,
काितल के पास यहां क चाबी मौजूद थी, भले ही उसे मेन डोर खुला िमला हो। नंबर दो,
काितल को ताले खोलने म महारत हािसल थी, उसे यक न था क वो कै सा भी ताला
चुट कय म खोल सकता था। नंबर तीन, उसे बताया गया था क लैट का मेन डोर खुला
िमलेगा।”
“और ऐसा कौन करता!”
“जािहर है बाली, उसके अलावा इसक खबर और कसके पास हो सकती थी।”
“िलहाजा क ल म कम से कम दो लोग क िशरकत थी, िजनम से एक श तया बाली
था।”
“हो सकता है, मगर सोनाली के क ल म महेश बाली का कोई रोल था, ये बात मुझे
हजम नह होती।”
“अगर सािहल को बेगुनाह मानकर चलना है तो कसी ना कसी को तो बतौर काितल
सामने लाना ही होगा।”
“मं दरा जोशी के बारे म या कहती है, या वो लड़क मं दरा हो सकती है, िजसका
खून यहां सोफे के ह थे पर लगा पाया गया।”
“तुमने उसके माथे पर कोई चोट का िनशान देखा था।”
“नह माथे पर तो नह देखा था, मगर वो खून उसक नाक से िनकला हो सकता है, मुंह
से िनकला हो सकता है! हमारे पास ये जानने का कोई साधन नह क काितल का माथा ही
सोफे के ह थे से टकराया था।”
“नाक भी नह टकराई होगी, वरना सूजकर पकौड़ा बन गई होती। अलब ा उसका
थुथना टकराया हो सकता है, य क ह ठ पर लगे चोट क रकवरी ब त तेजी से होती
है। ऊपर से अभी जब हमने उसे देखा था तो वो चटक लाल िलपि टक पोते ए थी, ऐसे म
अगर उसके ह ठ पर कोई चोट थी भी तो िलपि टक के पीछे िछप गई हो सकती है।”
“तूने उसे ऑ फस म भी तो देखा था।”
“उस व भी वो गहरे शेड वाली लाल िलपि टक ही लगाये ए थी। अलब ा उसके
ह ठ यादा सूजे होते तो मेरी िनगाह म ज र आ जाते।”
“वो पास म ही तो रहती है।”

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“तो।”
“तो ये क हम उससे िमलकर अपनी दुिवधा दूर कर लेनी चािहए।”
“जवाब या दोगे वहां इस तरह प च ं ने का? हम उसके रे जीडस का पता कै से चला,
य क दन म वो जो काड मुझे देकर गई थी उसपर िसफ उसके ऑ फस का ही पता दज
था।”
“मोबाइल नंबर तो रहा होगा।”
“हां वो तो था।”
“उससे बात करके बोल क तू इसी व उससे िमलना चाहती है, य क तू सािहल के
के स क पैरवी के िलए तैयार है।”
“अंधेरा िघरने लगा।”
“ या फक पड़ता है, तू ाई तो कर, वो मना कर देगी तो म कोई और रा ता िनकाल
लूंगा।”
सहमित म िसर िहलाते ए उसने अपने ऑ फस म फोन करके मं दरा के काड से उसका
मोबाइल नंबर हािसल कया फर उस नंबर पर फोन लगाया।
तीन-चार बार घंटी जाते ही कॉल अटड कर ली गयी।
“है लो कौन?” उधर से पूछा गया।
“मं दरा! म नीलम तंवर बोल रही ,ं दन म तुम मेरे ऑ फस आई थी, याद आया।”
“जी हां याद है मुझ,े किहए कै से फोन कया?”
“ये बताने के िलए क म अदालत म तु हारे बॉस का िडफस करने का मन बना चुक
।ं ”
“कमाल है! कु छ ही घंट म ये चम कार य कर हो गया। दन म तो आप मेरी बात
सुनने तक राजी नह थ ।”
“हां य क तब तक मुझे पूरा यक न था क सािहल भगत ही अपनी बीवी का काितल
है। मगर तु हारे जाने के बाद जब मने पुिलस म अपने एक सोस से तु हारे बॉस के के स क
बाबत जानकारी हािसल क तो मुझे अपना याल बदलना पड़ा।”
“दै स ए गुड यूज! अभी आप मेरे से या चाहती ह?”
“के स के बारे म ही बात करनी है।”
“इस व तो म वसंत कुं ज इलाके म अपने लैट पर ,ं आपके ऑ फस प च ं ने म मुझे
एक-डेढ़ घंटा तो लग ही जायेगा, अगर आप वेट कर सकती ह तो!”
“ज रत नह पड़ेगी, म इस व महरौली म ,ं अगर तु हे ऐतराज ना हो तो म ही आ
जाती ।ं ”
“ये तो ब त अ छी बात है, वैलकम।”
“कहां आना होगा?”
उसने बताया।
“पास म ही है, बड़ी हद पं ह-बीस िमनट म म प च ं जाऊंगी।”
कहकर नीलम ने काल िड कनै ट कर दी।

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“अब!”
“अब इस ल जरी लैट का फायदा उठाते ह, बेड म म चलते ह, वहां कई तरह क
शराब क बोतल मौजूद ह और माशा अ लाह तेरा उफनता आ शबाब भी साथ म है। इसे
कहते ह मौका भी है और द तूर भी। पहले शराब और शबाब का आनंद लेते ह फर चलकर
देखते ह क िमस जोशी म कतना जोश भरा आ है।”
कहकर मने उसे अपनी बाह के घेरे म ले िलया। उसने ऐतराज नह कया। उ टा अपनी
बाह का हार मेरे गले म डाल दया और मदभरी आंख से मेरी आंख म देखती ई मुझे
ो सािहत सी करने लगी, या फर मुझे ऐसा महसूस आ क वो मुझे ो साहन दे रही है।
“ या देख रही है?” म अपनी बाह का घेरा तिनक कसता आ बोला।
“अंदाजा लगाने क कोिशश कर रही ं क तुम कतने बड़े कै रे टरलेस इं सान हो!”
“ब त बड़ा, बि क सबसे बड़ा। सच पूछ तो मेरा कोई कै रे टर ही नह है।”
“तभी तो तुम मुझे पसंद हो िम टर गोखले!” - वो मद भरे वर म बोली - “तभी तो म
अ सर तु हारी बीवी बनने के सपने देखती ।ं य क सच तो ये है क म एकदम तु हारे
ही टाईप क ं - एक नंबर क कै रे टरलेस! खूब जमेगी हमारी, य क शादी के बाद भी
हम यूंही अपने-अपने कै रे टर से लेस होते रहगे, ना तुम मुझे रोकने क कोिशश करना ना
ही म तु ह गैर औरत के म द न होने से रोकूं गी। सच कहती ं ब त मजा आएगा।”
“ या बकती है?”
“तुम बक रयां ढू ंढना मेरे हमदम और म ब बर शेर ढू ंढूंगी। फर रोज रात को अपनी-
अपनी बदचलनी के क से एक दूसरे को सुनाया करगे। तब जाकर पता चलेगा क दोन म
से यादा बड़ा बदचलन कौन है, तुम या म?”
“तू पागल हो गई है।”
“हां पागल ही तो हो गई ं म, मगर तु हारे यार म ना क सच म मेरा दमाग िहल
गया है। इसिलए आज से हर मद म तु हारा अ स देखूंगी और देखकर उसके साथ जीभर के
ऐश क ं गी।”
“वो तो ठीक है, ले कन िजसके यार म पागल है पहले उसे तो ऐश करा ले।”
“वो सब शादी के बाद! शादी से पहले ेमी के साथ ऐसे र त को पाप कहते ह।”
“और दूसर के साथ!”
“वो तो इं वायमट होता है।”
“दफा हो जा।” मने उसे खुद से परे धके ल दया।
“लो तुम तो नाराज हो गये।” वो जबरन मुझसे िलपटती ई बोली।
“तो फर बोल क मजाक कर रही थी।”
“अब म तुमसे झूठ कै से बोल सकती ।ं यार म झूठ बोलना गुनाह होता है।”
मने एक फरमाईशी आह भरी और सोफे पर बैठ कर एक िसगरे ट सुलगाने लगा। म
अ छी तरह से जानता था क उसके साथ म था फोड़ने का कोई फायदा नह था। बि क
इस दुिनया म दो ऐसी लड़ कयां थ जो आपके खा दम के िलए बनी ही नह थ । इसीिलए
म उन दोन को ही पाने का सबसे बड़ा तलबगार था।

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अगले दस िमनट तक वो मुझे मोह बत के जाने कौन-कौन से पाठ पढ़ाती रही, िजसपर
मने कान धरना ज री नह समझा। फर हम दोन इमारत से बाहर िनकलकर कार म
सवार हो गये।
पांच िमनट बाद हम मं दरा के लैट म थे।
मं दरा चावला का लैट भी सोनाली के लैट जैसा ही था अलब ा भीतरी साज-स ा
उतनी उ दा नह थी।
उसने हम ाइं ग म म बैठाया और खुद हमारे सामने एक टू ल पर बैठ गयी। हमारे
बीच एक सटर टेबल रखी ई थी िजसपर एक नोट बुक, दो बॉल पेन और एक परमानट
माकर रखा आ था।
“आप दोन कु छ लेना पसंद करगे।” कहते ए वो बे यानी म माकर उठाकर टेबल को
हौले-हौले खटखटाने लगी।
“नह शु या!” - मने आंख म दल रखकर उसका नख-िशख मुआयना कया। बेशक
वो ब त खूबसूरत थी। शायद वैसी ही लड़ कय को क परी कहा जाता होगा। वो साढ़े
पांच फ ट से कु छ िनकलते कद क रही होगी। कमर पतली और कू हे भारी थे। कु ल
िमलाकर मद क नीयत खराब कर देने वाली सारी खािसयत उसम मौजूद थी।
“तो आप ह मं दरा जोशी, सािहल भगत क पसनल, िनहायती िनजी से े टरी!”
य तः म बोला।
“कोई ऐतराज!”
“ऐतराज चल जाएगा!”
“ य आप मुझे अपनी पसनल बनाना चाहते ह?”
“वो तो खैर पॉिसबल नह है, य क आप जैसी वाई-फाई सै े टरी म अफोड नह कर
सकता।”
“वाई-फाई!”
“सॉरी जरा जुबान फसल गई थी, दरअसल मेरा मतलब हाई-फाई था। अब वसंत कुं ज
जैसे पॉश इलाके म रहने वाली लड़क कोई मामूली नौकरी पेशा लड़क तो नह सकती।”
“ओह! उस वजह से कह रहे हो तो गलत कह रहे हो, यह लैट कराये का है और लैट
का कराया मेरा ऑ फस भरता है।”
“ फर तो बड़े अ छे आदमी ए सािहल साहब।”
“अ छे और नेक दल भी! मने कसी बड़े आदमी म उनके जैसी िवन ता कभी नह
देखी।” - उसका वर अचानक भरा सा गया - “पता नह कस झमेले म फं स गये सािहल
सर! म तो अभी तक ये सोचकर हैरान ं क वो अपनी ही बीवी क ह या के जुम म पुिलस
िहरासत म ह।”
“िलहाजा तुमसे ये पूछना तो बेकार ही होगा क या तु हारा बॉस अपनी बीवी का
ह यारा हो सकता है।”
“नह हो सकते, म सात ज म म ये बात नह मान सकती क सािहल सर ने कसी क ल
कया है। फर बीवी के क ल क तो बात ही या।”

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“िलहाजा बीवी से ब त यार करता था तु हारा बॉस।”
“हां करते थे!” - उसका लहजा अचानक ही झुंझलाहट से भर गया - “भले ही वो इस
कािबल नह थी, मगर स ाई यही है क सािहल सर अपनी बीवी को ब त यार करते
थे।” - कहकर वो तिनक क फर बोली - “ या आप भी वक ल ह?”
“नह म वो ाईवेट िडटेि टव ,ं िजसे तु हारे बॉस ने सोनाली के असली काितल को
खोज िनकालने का काम स पा है।”
“ओह तो आप ह िव ांत गोखले।”
“ फलहाल तो यह फ इसी बंदे को हािसल है।”
वो तिनक हंसी, “ फर तो आप मेरे से बेहतर मैडम के बारे म जानते ह। आिखरकार
मैडम क बेवफाई का सबूत भी तो आपने ही सािहल सर को उपल ध कराया था।”
“ठीक कहती हो, मगर म ये नह जानता क दोन पित-प ी के बीच ऐसी नौबत
य कर आई क सोनाली को घर के बाहर यार पालना पड़ा।”
“बड़े बे दा ल ज इ तेमाल कर रहे ह आप!”
“जहर को चांदी के कटोरे म पेश करने से वो अमृत म नह बदल जाता, रहता तो वो
जानलेवा ही है। फर भी मुझे तु हारी बात से इ फ़ाक है, इसिलए यही सवाल म नये
तरीके से पूछता !ं बताओ िमयां बीवी के बीच म कसी तीसरे क एं ी क नौबत ही य
आई?”
“इस बारे म म कै से बता सकती ।ं अलब ा कु छ लड़ कय क फतरत ही ऐसी होती
है क वो कसी एक मद क होकर नह रह पात । अगर मैडम उस टाईप क थ तो और
कोई जवाब ही ज री नह रह जाता।”
“ठीक कहती हो, मगर कसी क बेवफाई के बदले उसक जान ले ली जाय, ये कहां का
इं साफ है।”
“सािहल सर को ऐसा करने क कोई ज रत नह थी। वो तो वैसे भी मैडम से तलाक
लेना चाहते थे। तभी तो उ ह ने तु ह मैडम के पीछे लगाया था। ऐसे म उ ह इस बात से
या फक पड़ता था क मैडम कसके साथ या गुल िखला रही थ ।”
“आम हालात म कोई फक नह पड़ने वाला था। मगर हालात आम नह थी। बीवी को
नंगी हालत म कसी का इं तजार करता पाकर कसी भी मद का खून खौल सकता है।”
“ऐसे यालात ह तु हारे और तुम कहते हो क बॉस को बचाने क कोिशश कर रहे हो।”
“हां म तु हारे बॉस क बेगुनाही सािबत करने म जुटा आ ।ं इसिलए तंज कसने क
बजाय तु हे मेरे सवाल का पूरी ईमानदारी से जवाब देना चािहए। अगरचे क तुम वाकई
सािहल भगत को कानून के िशकं जे से आजाद देखना चाहती हो तो।”
“म यही चाहती ।ं ”
“तो जवाब दो, उन हालात म आदमी अपनी बीवी का क ल करने पर उता हो सकता
है या नह ।”
“सािहल सर नह हो सकते और कसी क म नह कह सकती।”
“तुम महेश बाली को जानती हो।”

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“हां जानती ।ं उसने हमारे कु छ ोड स के िलए ोफे शनल शूट कए थे, उसी दौरान
मेरा उससे पाला पड़ा था। उसके बाद म उससे कभी नह िमली।”
“िजतना िमली हो उसी के आधार पर बताओ, कै सा आदमी है वो?”
“अगर लड़ कय को देखकर लार टपकाने वाली उसक आदत को नजरअंदाज कर द,
तो य तः उसम और कोई बुराई दखाई नह देती।”
“वो तु हारे साथ भी वैसे ही पेश आता था।”
“ य भई म लड़क नह ,ं या तुम मुझे इस कािबल नह समझते क कोई मुझे देखकर
लार टपकाने लगे।”
“दोन ही बात गलत है, य क इस व बंदे का हाल भी महेश बाली जैसा ही हो रहा
है।”
वो हंसी! खुलकर हंसी।
“बाई दी वे तु ह सािहल क रवा वर क खबर थी।”
“हां थी, मगर वो रवा वर सािहल सर अपने साथ नह रखते थे, बि क उसका मुकाम
उनके बंगले म राई टंग टेबल क दराज म होता था।”
“ रवा वर क ज रत य पड़ी?”
“ज रत वाली कोई बात नह थी, एक बार यूंही उ ह ने गन के लाइसस के िलए
अ लाई कया तो वो सहज ही उ ह हािसल हो गया। तब लगे हाथ उ ह ने एक रवा वर
भी खरीद ली थी। िजसके इ तेमाल क कभी नौबत तक नह आई।”
“आिखरकार तो आई!”
“हां आई ले कन उनके कए नह आई।”
“सािहल क रवा वर घटना थल पर कै से प च ं गई?”
“ या पता कै से प च
ं गई, इस बारे म मुझसे कु छ पूछना ही बेमानी है।”
“मने महज तु हारा अंदाजा जानना चाहा था।”
“हो सकता है मैडम वो रवा वर साथ िलए फरती ह ।”
“अगर ऐसा था तो उसी रवा वर से तु हारी मैडम का क ल य कर हो गया?”
“काितल ने रवा वर जबरन हिथयाई हो सकती है।”
“उ मीद तो नह है, य क घटना थल से ऐसा कोई सू बरामद नह आ था िजससे
ये लगता क काितल और मकतूला के बीच कोई छीना-झपटी ई हो।”
“ फर प च ं ी होगी कसी तरह, म भला कै से बता सकती ।ं ”
“बंगले म रवा वर तक कन लोग क प च ं थी।”
“ कसी क भी, मेरा मतलब है हर उस ि क िजसका कोठी म आना-जाना रहा
हो।”
“सािहल के हाउस हो ड म कतने लोग रहते ह।”
“मैडम को भूल जाओ तो सािहल सर के अलावा बस उनके अंकल आंटी ह। बंगले क
पहली मंिजल पूरी क पूरी उनके हवाले है। बाक तो बस नौकर-चाकर ही ह।”
“ कतने नौकर ह?”

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“ ाइवर को िमलाकर पं ह िजनक सं या तीन है। उसके अलावा एक रसोइयां और दो
उसके सहयोगी ह, चार माली ह, तीन हाउस क पर ह और दो गाड ह।”
“गाड कसी िस यो रटी एजसी के ह या...।”
“नह वो डाइरे ट अ वाइं ट कये ए गाड ह। दोन आम से रटायड ह और ब त
भरोसे के आदमी ह।”
“इनम से सबसे नया कौन है?”
“कोई हािलया अ वाइं टमट तो नह ई है, अलब ा बा कय के मुकाबले ाइवर नये
ह, उनम से अतर संह नाम का ाइवर सबसे नया है िजसे छह महीने पहले ही नौकरी पर
रखा गया था।”
“िपछले ाइवर को य िनकाला गया?”
“िनकाला नह गया, पहले िसफ दो ही ाइवर थे।”
“नौकर के कदम टडी म पड़ते थे?”
“गाड और ाइवर के अलावा कोई भी टडी तक प च ं सकता था। अलब ा वहां
रे युलर आवाजाही हाउस क पर के अलावा कसी क नह थी।”
“सािहल के अंकल आंटी या बेऔलाद ह?”
“नह भई! उनके दो लड़के ह, दोन ही ऑ सफोड, लंदन म पढ़ते ह।”
“बजाते खुद उनक या हैिसयत है?”
“भगत इं ड ीज म सािहल सर और उनके अंकल फ टी- फ टी के पाटनस ह। पहले वो
पाटनरिशप सािहल सर के फादर के साथ थी, िजनक मौत के बाद उसका मािलकाना हक
सािहल सर को िमला था। उसके अलावा यूिनख टॉवस के नाम से जाने जानी वाली कं पनी
के चार बोड ऑफ डाइरे टस म से एक ह। उस कं पनी म सािहल सर क भी दस फ सदी क
िह सेदारी है।”
“िलहाजा अंकल क हालत भतीजे से उ दा है।”
“हां, इसिलए अगर तुम इस मामले को दौलत के हािसल से जोड़कर देख रहे हो तो
तु हारा ये सोचना भी बेकार है क अंकल ने दौलत क लालच म सर को फं साया हो सकता
है।”
“तो फर सोनाली का क ल य आ?”
“मुझसे ये सवाल करना बेकार है।”
“कोई अंदाजा ही बयान कर दो, क अगर सोनाली का क ल गु से से उफनते खा वंद का
कया-धरा नह है तो उसका क ल कसने कया हो सकता है।”
“इस बारे म मेरा शक बार-बार महेश बाली पर जाता है। य क सािहल सर के
अलावा वो इकलौता ऐसा श स था िजसका मैडम से वा ता था, जो क ल के व
मौकायेवारदात पर मौजूद था।”
“वो भला सोनाली का क ल य करे गा?”
“नह जानती, तुमने अंदाजा लगाने को कहा था, वो मने बयान कर दया।”
“तु हारे ह ठ सूजे ए य है।”

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“ या, या कहा तुमने?” वो हकबकाई।
“मने पूछा तु हारे ह ठ सूजे ए य है?”
“बाथ म म पैर फसल गया था!” - वो बौखलाई ई सी बोली - “िगरते व टू टी से
टकरा गई थी।”
“ओह! यादा तो नह लगी थी।”
“नह मामूली चोट थी, हैरानी है क तुमने नो टस कर िलया।”
“लगी कब थी?”
“आज सुबह ही!” - कहकर उसने सं द ध िनगाह से मुझे घूरा - “ कस फराक म हो
भाई। अचानक मेरी चोट के पीछे य पड़ गये?”
“यूंही, सोचा इसी बहाने या पता तु हारे पीछे पड़ने का मौका हािसल हो जाए।”
वो हंस पड़ी, फर नीलम से मुखाितब ई, “मैडम आप जब से यहां आई ह, खामोश
बैठी ई ह। जब क सवालात क तलबगार आप थ ना क िम टर गोखले।”
“तुम यूं समझ लो क मेरा काम भी िम टर गोखले कये दे रहे ह। तु हारी स िलयत के
िलए ही ये इस व मेरे साथ ह, वरना तो तु ह अलग-अलग हम दोन के सवाल का
जवाब देना पड़ता जो क तकरीबन एक जैसे ही होते।”
“िलहाजा ये जो पूछ रहे ह, उसम आपक भी हामी है।”
“नह म बस इनके सवाल म से अपने काम क बात पर यान दे रही ।ं फर हम
दोन का मकसद जब एक ही है तो या फक पड़ता है क सवाल कसने कए।”
“ओके , तो िम टर गोखले आपको और कु छ पूछना है?”
“बस दो-चार सवाल और ह जहन म।”
“ठीक है पूिछए।”
“क ल के व आप कहां थ ?”
“यह अपने लैट पर, उतनी रात गये मुझे भला और कहां होना था। वो भी तब जब
मेरा कोई वॉय ड भी नह है।”
“तो फर मेरी अ लीके शन लगा लीिजए।”
“िम टर गोखले लीज, मेन लाइन पर बने रिहए।”
“तो फर समझ लो मेरे सवाल का िपटारा खाली हो गया।”
“एक दो सवाल मेरे भी ह!” - नीलम बोली - “ब त मामूली।”
“ लीज पूिछए।”
“तु हे उस लैट क खबर थी, जहां सोनाली का क ल कया गया।”
“नह , अलब ा मैडम ने वसंतकुं ज म कोई लैट िलया है, इस बारे म मने एक बार
सािहल सर के मुंह से ही सुना था। ले कन वो लैट मेरे लैट के इतना करीब था, ये तो म
सोच भी नह सकती थी। इसिलए जब मुझे मैडम के क ल क खबर लगी तो म ह ब
रह गई थी।”
“क ल के बाद या क ल से पहले कभी उस लैट म तु हारे कदम पड़े थे।”
“नह मेरे वहां जाने का भला या मतलब?”

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“मने सोचा या पता सािहल के कहने पर कभी तुम वहां गई हो। या क ल के बाद
उ सुकता वश वहां हो आई हो। आिखर पास म ही तो है।”
“म वहां कभी नह गई।”
“ फर तो हम इजाजत दो।” कहती ई नीलम उठ खड़ी ई।
“एक िगलास पानी िमलेगा।” म ज दी से बोला।
“अभी लाई!” कहकर वो कचन क ओर बढ़ गई। उसके कचन म दािखल होते ही मने
स ल टेबल पर रखा परमानट माकर िनचले िह से से पकड़कर उठाया और सावधानी से
उसे अपनी कोट क िनचली जेब म रख िलया।
वो उ टे पांव पानी के दो िगलास े म रखकर वािपस लौटी। हम दोन ने एक सांस म
िगलास खाली कया फर उससे िवदा लेकर िब डंग से बाहर िनकल आए।
कार को मने दोबारा मकतूला क लैट वाली िब डंग के आगे ले जाकर रोक दया और
जेब से िसगरे ट का पैकेट िनकाल कर एक िसगरे ट सुलगाने का उप म करने लगा।
“यहां य क गये?”
“म उसके ह ठ पर लगी चोट के बारे म सोच रहा ।ं या वो घटना थल पर उसका
थोबड़ा सोफे से टकराने क वजह से लगा हो सकता है।”
“कहना मुहाल है, वो चोट उसे उस तरह भी लगी हो सकती है जैसा क वो बयान कर
रही थी। अलब ा तु हारी तीखी िनगाह क दाग देनी पड़ेगी जो तु ह उसके सूजे ए ह ठ
दखाई दे गये। वरना मुझे तो एहसास तक नह आ था।”
“मुझे भी नह आ था।”
“ या कह रहे हो!”
“वो तो मने यूंही अंधेरे म तीर चलाया था जो एकदम सही िनशाने पर जाकर लगा था।
एक पल को तो वो समझ ही नह पाई क म उससे पूछ या रहा ।ं ”
“कमाल है।”
“चोट उसे चाहे जैसे भी लगी हो, मगर वो मौकायेवारदात पर अपनी आज क हािजरी
से मुकर य गई थी। उस बात म तो कोई खोट भी नह है। हमने अपनी आंख से उसे वहां
से िनकलते देखा था।”
“नह देखा था।”
“ या कहना चाहती है।”
“यही क हमने उसे िसफ िब डंग से बाहर िनकलते व देखा था और कू दकर इस
नतीजे पर प च ं गये थे क वो मकतूला के लैट से आ रही थी।”
“पूरी तरह तो ऐसा नह था, आिखर मने क -होल से उसे भीतर सोफासेट टटोलते भी
तो देखा था।”
“श ल भी देखी थी।”
“नह मगर कपड़े वही थे िजसम हमने िब डंग से िनकलते व मं दरा को देखा था।”
“ज र उस तरह के कपड़े िसफ मं दरा ही पहनती होगी।”
“तू अपनी ये बहस कोट म के िलए संभाल कर रख और अभी ये वीकार कर क लैट

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म उस व मं दरा के अलावा और कोई हो ही नह सकता था।”
“तुम कहते हो तो मान लेती ।ं ”
“शु या अब बता वो लैट म अपनी िविजट से मुकर य रही है?”
“वो नह चाहती होगी क उसके वहां गये होने क बाबत कसी को पता चले।”
“ब े मत पढ़ा, इतना तो उसक बात से ही जािहर है। मगर सवाल ये है क वो ऐसा
य चाहती है?”
“अ छा सवाल है, जैसे ही जवाब िमलेगा म तु ह िच ी िलखकर बता दूग ं ी। अब िहलो
यहां से।”
“बस एक िमनट और! जरा म चौहान को फोन करके पता कर लूं क यहां से उठाये गये
सप स का या रहा। कोई नतीजा िनकला भी या नह ।”
कहकर मने मोबाइल जेब से िनकाला तो चौहान क तीन िम ड कॉल दखाई द ।
मने उसे कॉल कया।
“कहां है भई, फोन नह उठाता।”
“सॉरी फोन साईलट पर था, मुझे पता ही नह लगा। कोई खास बात हो गई।”
“हां ब त खास! इतनी खास क मुझे इस बारे म मुंह फाड़ने से मना कर दया गया है।”
“अरे ऐसा भी या हो गया?”
“िस से उठाये गये फं गर ंट ब , सािहल भगत क उं गिलय के िनशान से मैच
करते ह।”
“हो गया पटड़ा।”
“अभी आगे सुन, वहां से उठाये गये खून का सपल बी पॉजी टव है जो क सािहल भगत
का भी लड ुप है। िलहाजा तूने सािहल को बचाने क चाह म उसके िखलाफ और भी
पु ता सबूत पुिलस को उपल ध करा दये ह। अब वो नह बचने वाला। कल उसे कोट म
पेश कया जाएगा, जहां से पुिलस उसका रमांड हािसल करे गी, फर वो खुद गा-गाकर
अपने गुनाह कबूल करे गा। अभी तक पुिलस उससे नम से इसिलए पेश आ रही थी य क
हमारे आला अफसर को यक न नह आ रहा था क इतना बड़ा िबजनेसमैन अपने हाथ
खून से रं ग सकता है। ले कन अब पुिलस के पास उसके िखलाफ अका सबूत ह, वो तो
समझ ले गया काम से।”
“और कु छ!”
“ य इतना काफ नह है।”
“वो तो खैर काफ है, मगर उसे सािहल के िखलाफ अका सबूत का दजा नह दया
जा सकता। ना तो बी पॉजी टव लड- ुप वाला वो अके ला श स है और ना ही उस एक
पये के ाइन पर बने उं गिलय के िनशान पर कोई तारीख पड़ी ई है।”
“ कसे बहला रहा है गोखले! अभी अगर ये दोन चीज कसी तीसरे से मैच करती तो तू
खुद चीख-चीखकर कह रहा होता क काितल वो तीसरा श स ही है। बोल क म गलत
कह रहा ।ं ”
मुझसे जवाब देते नह बना। मने खामोशी से उं गिलय म फं से िसगरे ट का एक गहरा

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कश िलया फर बोला, “एसीपी साहब कहां ह अभी?”
“बसंतपुर थाने म, सािहल को भी वह ले जाया गया है। आगे क सारी कारवाई अब
वह से होनी है। म भी वह जा रहा ।ं ”
“िलहाजा आजकल तु हारी तैनाती बसंतपुर थाने म है।”
“ऐसा नह है, बस एसीपी साहब आजकल मुझे अपने साथ-साथ िलए फर रहे ह। ये
थाना भी तो आिखरकार उनके अंडर म ही है।”
“म पास म ही ,ं थोड़ी देर म प चं जाऊंगा, वेट करना मेरा।”
“आराम से आ, यहां से म तीन-चार घंटे से पहले नह िहलने वाला।” कहकर उसने कॉल
िड कनै ट कर दी।
मने चुपचाप कार टाट करके आगे बढ़ा दी।
“ या आ?” नीलम ने पूछा।
जवाब म मने सारी कहानी उसे सुना दी।
“अब या कहते हो उसक बाबत!”
“वही जो पहले कहता था, वो बेगुनाह हो सकता है।”
“तु हारे इस नतीजे म उस पचास लाख क िलिमट वाले चेक का तो कोई दखल नह ,
जो तु ह सािहल से हािसल आ था।”
“ये एक मुि कल सवाल है।”
सुनकर वो हंसे िबना नह रह सक , “गोखले साहब मानो या ना मानो मगर चौहान क
रपोट के बाद तु हारा सािहल क बेगुनाही से यक न िहल गया है। ये बात तु हारे चेहरे
पर साफ-साफ िलखी ई है।”
“छोड़ उस बात को, म बसंतपुर थाने जा रहा ,ं वहां मुझे ज रत से यादा टाईम लग
सकता है। तू चाहे तो कार ले जा सकती है, म ऑटो ले लूंगा।”
“मुझे उससे वकालतनामा भी तो साइन कराना है। वहां प च ं कर तुम अपना काम
करना म अपना काम क ं गी।”
“मुझे नह लगता क पुिलस इस व तेरी उससे मुलाकात होने देगी।”
“माई डा लग यार! अभी तुमने मेरा ज रा देखा ही कहां है, वे लोग मना करके तो देख,
ऐसा हंगामा खड़ा क ं गी क या एसीपी और या डीसीपी सब मेरे सामने खड़े नाक
रगड़ते नजर आएंग,े फर एसएचओ क तो िबसात ही या है। तब देखना क तु हारी ये
ममा या- या कर सकती है, कु छ समझे या नह मेरे यारे ब े।”
“समझ गया ममा, ऐसी बात तो म फौरन समझ जाता ।ं ”
“गुड! अब मेरे िगरे बान म झांकने क कोिशश करना छोड़ो और ाई वंग पर यान
दो।”
म हड़बड़ाकर सामने देखने लगा।
दस िमनट म हम बसंतपुर थाना प च ं गये। जो क अंधे रया मोड़ से तिनक पहले
कापासहेड़ा जाने वाली सड़क पर बना आ था। कार पाक करके हम दोन भीतर प च ं े।
ूटी म म पूछने पर पता चला क एसीपी पांडे उस घड़ी एसएचओ के कमरे म था।

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मने उससे िमलने क मंशा जािहर क तो एक िसपाही मेरा काड लेकर भीतर चला गया।
जो क लगभग उ टे पांव वािपस लौटा और मुझे भीतर जाने का इशारा कर दया।
हम दोन एसएचओ के कमरे म प च ं ।े जहां एसएचओ के अलावा उस घड़ी िसफ
एसीपी पांडे ही बैठा आ था।
मने दोन का अिभवादन कया िजसका जवाब देने के बाद वो नीलम से मुखाितब आ,
“आइए वक ल सािहबा िबरािजए।”
“थ स।” कहकर वो एक िविजटर चेयर पर बैठ गयी।
“किहए द ली पुिलस आपक या िखदमत कर सकती है”
“सािहल भगत से चाहती ।ं उ मीद है आपको कोई ऐतराज नह होगा।”
“हमारे ऐतराज करने से या होगा मैडम, जब क वो ऐतराज िसफ थाने म ही चल
सकता है। आिखरकार तो आपक उससे मुलाकात होकर ही रहनी है।” - एसीपी बड़े ही
गंभीर वर म बोला - “अलब ा आपको इतना ज र बताना चा ग ं ा क सािहल भगत के
के स क पैरवी करके आप कभी कोई के स नह हारने का अपना रकाड खराब कर लगी।”
“देखगे सर! अब हार के डर से कसी बेगुनाह क पैरवी करने से तो म इं कार नह कर
सकती। य क मेरा पेशा मुझे इसक इजाजत नह देता।”
“कमाल है, एक ओपेन एंड शट के स म िगर तार मुलिजम को आप बेगुनाह बता रही
ह।”
“िलहाजा आपने तो उसे गुनहगार घोिषत भी कर दया, जब क अभी तो ायल क
नौबत ही नह आई।” नीलम हंसती ई बोली।
“वो काम तो खैर अदालत करे गी, पुिलस का काम तो बस मुलिजम के िखलाफ के स
तैयार करना है, एवीडस जुटाना है िजसक कम से कम इस के स म हमारे पास कोई कमी
दखाई नह देती।”
“वो भी देखगे, बहरहाल मुलाकात का इं तजाम तो कराइए।”
“अभी लीिजए।” कहते ए एसीपी ने एसएचओ क ओर देखा तो उसने अदली को
बुलाकर नीलम को उसके साथ भेज दया।
“ या ज रत थी सर! हम उसे बाद म आने को कह सकते थे। तब तक मुज रम से
पूछताछ कर लेते, अब तो वो जाने या- या प ी पढ़ा देगी उसे, कोई बड़ी बात नह अगर
वक ल से िमलने के बाद वो अपनी जुबान खोलने से ही इं कार कर दे। इतने बड़े आदमी से
हम डंडे के जोर पर तो उसका गुनाह कबूल नह करवा सकते।” नीलम के कमरे से िनकलते
ही एसएचओ बोल पड़ा।
“तुम जानते हो वो कौन थी?”
“वक ल थी, इसम जानने को या है।”
“वो िसफ वक ल नह थी, द ली क टॉप क िमनल लॉयर म उसका नाम शुमार है।
िजसके बारे म दावा कया जाता है क जब तक मुलिजम क बेगुनाही का यक न ना हो वो
के स को हाथ भी नह लगाती।”
“ फर तो इस बार ये दावा गलत सािबत होगा।”

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“उ मीद करो क ऐसा ही हो। तु ह नरे श चौहान वाले के स क याद होगी, आिखर
अपने ही िडपाटमट का मामला था।”
“याद है जनाब, ब त बुरा फं सा था बेचारा, क मत अ छी थी जो बच गया।”
“ क मत अ छी नह थी, वक ल अ छी थी। उस के स म, िजसे पुिलस अका मानकर
चल रही थी, पहली ही पेशी म इस एडवोके ट ने जमानत कराकर दखा दी। या पुिलस
और या सरकारी वक ल सब बस देखते ही रह गये। फर चौहान ना तो कोई बड़ा
िबजनेसमैन था ना ही कसी मं ी तक उसक प च ं थी। िलहाजा सािहल भगत के मामले
म जो ना हो जाय वही कम है। ऐसे म अगर हम उसक सािहल से मुलाकात म अड़ंगा
डालते तो जवाब म जो हंगामा खड़ा होता वो झेलते नह बनता, या समझे?”
“यही क आप उससे कु छ यादा ही भािवत दखाई देते ह।”
“ फर तो लगे हाथ तुम उस श स से भी िमल लो िजससे म उससे भी यादा भािवत
,ं वरना तु हारी जानकारी अधूरी रह जायेगी।”
“और वो कौन है?” एसएचओ हंसता आ बोला।
“तु हारे सामने बैठा है, पेशे से ाइवेट िडटेि टव है, नाम है िव ांत गोखले। इसके बारे
म बस इतना क ग ं ा क जब भी हमारा महकमा कसी के स क तह तक प च ं ने म नाकाम
हो जाता है तो म इसक सहायता लेता ,ं िजसम आजतक मुझे िनराश नह होना पड़ा।
चौहान वाले के स म काितल क िगर तारी िसफ इसक वजह से संभव हो पाई थी वरना
तो हमने चौहान के िखलाफ के स तैयार करने म कोई कसर नह छोड़ी थी।”
“कमाल है, या चीज हो भई तुम।” एसएचओ हैरानी से बोला।
“पांडे साहब का बड़ पन है जनाब! जो ऐसा सोचते ह, वरना या िप ी और या िप ी
का शोरबा।”
एसएचओ हंसा।
“गोखले!”
“जी जनाब!”
“म तेरा शु या बोलता ,ं जो तूने मौकायेवारदात से आज दो ऐसे सबूत ढू ंढ िनकाले
जो सािहल भगत के ताबूत क आिखरी क ल सािबत होने वाले ह।”
“अगर आप ऐसा समझते ह तो ये आपका बड़ पन है जनाब, मगर मुझे तो बेभाव क
पड़ गई। समझ लीिजए होम करते हाथ जला बैठा। कहां तो म उन सबूत के म ेनजर
मौकायेवारदात पर कसी तीसरे श स क हािजरी थािपत करना चाहता था और कहां
अब उन सबूत ने मेरे लाइं ट क ही लु टया डु बो दी।”
एसीपी हंसा फर बोला, “सच पूछ तो रं गे हाथ ई उसक िगर तारी के बाद भी म
उसक क पना बीवी के काितल के प म नह कर पा रहा था, मगर आज िमले सबूत ने
मेरी सोच बदल कर रख दी।”
“जनाब एक पये के ाइन से िमले फं गर ं स से िसफ इतना सािबत होता है क वो
ाइन कभी मेरे लाइं ट ने हडल कया था। रही बात ब ड सपल क तो उसक गवाह खुद
पुिलस है क िगर तारी के व सािहल भगत ज मी नह था। फर उसका खून सोफे के

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ह थे पर पाये जाने का कोई मतलब ही नह बनता।”
सुनकर वो एक ण को हकबकाया और एसएचओ का मुंह देखने लगा।
“वो चोट उसके शरीर के कसी ऐसे िह से म लगी होगी जो य तः नजर नह आते,
जैसे क उसके ह ठ के अंद नी िह से पर, दांत पर, या हो सकता है उसक जीभ कट गई
हो। अब तक तो ऐसे कसी चोट क रकवरी हो भी चुक होगी।”
“इतनी ज दी!”
“ या पता चलता है भई।”
“जनाब पुिलस का डॉ टर अभी ये सािबत कर सकता है क ऐसी कोई चोट उसे लगी
थी या नह ।”
“लगी थी!” - एसएचओ िजद भरे वर म बोला - “मुझे तु हारे सवाल करने से ही याद
आ रहा है क मौकायेवारदात पर प च ं े हमारे इं वे टीगेशन ऑ फसर ने इस बात का िज
कया था क िगर तारी के व मुलिजम का ह ठ तिनक सूजा आ था।”
मने हैरानी से उसक ओर देखा।
“यक न नह आता तो तुम खुद उससे पूछकर देख लो।”
“वो इस व थाने म होगा।”
“नह फ ड म है, अलब ा दस बजे तक लौट आएगा, तुम चाहो तो इं तजार कर लो
और इस बाबत पूरी तस ली करके ही यहां से जाना।”
“रहने दीिजए जनाब इतनी देर म तो वो ये भी कहने को तैयार हो जायेगा क सािहल
को मकतूला पर गोली चलाते महेश बाली ने नह बि क उसने खुद देखा था।”
जवाब म एसएचओ और उसका एसीपी दोन हंस पड़े। फर एसीपी पांडे मुझे समझाता
आ बोला, “अपने लाइं ट के फे वर म तेरा ऐसा कहना बनता है, मगर जब सारी बात
उसके िखलाफ ह तो ये सोचना मूखता होगी क वो ाइन वहां लांट कया गया था। या
वो खून का ध बा उसका नह था। इसिलए तू चाहे तो अपनी इं वेि टगेशन बंद कर दे,
य क िजस काम से कु छ हािसल ना हो उसपर व और दमाग खपाने का या फायदा”
“ऐसा तो खैर म नह कर सकता, उससे पहले तो नह जब तक क मुझे उसके गुनाह का
यक न नह आ जाता।”
“वो तेरी मज है, अगर मुझसे कोई मदद चािहए हो तो बेिझझक बोलना। इस बात पर
दमाग खपाये िबना बोलना क इस के स म तेरा और पुिलस का मकसद एक नह है।”
“शु या जनाब!” म उठ खड़ा आ, फर दोन पुिलस अिधका रय का अिभवादन
करके कमरे से बाहर िनकल आया।
ूटी म म प च ं कर चौहान के बारे म पता कया तो मालूम आ वो रकाड म म
था। म वहां प च ं ा तो चौहान को मुंशी के साथ ग पे हांकते पाया।
मने दोन से हाथ िमलाया और एक चेयर पर बैठ गया।
“चाय-कॉफ मंगा भाई!” - वो मुंशी से बोला - “देखता नह अपना िजगरी यार आया
है।”
मुंशी जो क हम दोन का ही हमउ था, उसक बात सुनकर हौले से हंस दया फर

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बोला, “कॉफ तो खैर म मंगवाये देता ,ं मगर उससे पहले ये फै सला कर ले चौहान क
हम दोन म से तेरा यादा िजगरी कौन है।”
उसक बात पर हम तीन ने स मिलत ठहाका लगाया। फर उसने इं टरकॉम पर कसी
को कॉफ और समोसे लाने को कह दया। जो क पांच िमनट बाद ही एक लड़का वहां रख
गया।
“अब बता या चाहता है?”
“अभी कु छ नह चाहता, आगे चलकर ज रत पड़ सकती है इसिलए पहले ही िमलने
चला आया। ता क बात म तुम ये ना कह सको क म बस मतलब से ही आता ।ं ”
जवाब म एक बार फर वहां ठहाका गूंजा।
“तुझे अभी भी कोई उ मीद दखाई देती है या?”
“अभी तो कु छ ऐसा ही है, बाद क बाद म देखगे।”
“अपनी फ स ले चुका है या अभी लेनी है।”
“दोन बाते ह, वो दे चुका है मगर अभी तक मने ली नह है।”
“ या मतलब है भई।”
“वो चेक दे चुका है मगर अभी तक मने उसे लीय रं ग के िलए अपने खाते म नह डाला
है।”
“तो फर फौरन डाल दे, कल को व का ऊंट कस करवट बैठे या पता चलता है।”
“म सोचूंगा इस बारे म, बहरहाल तुम मुझे ये बताओ क िगर तारी के व सािहल
भगत का पैरा फन टै ट िलया गया था या नह ?”
“नह िलया गया था। वो रं गे हाथ िगर तार कया गया था शायद इसीिलए कसी ने
उसक ज रत महसूस नह क । या फर कसी को ऐसा करने का याल ही नह आया
होगा। वजह चाहे जो भी रही हो हक कत यही है क उसके हाथ का पैरा फन कॉ ट नह
उठाया गया था।”
“कमाल है दो िमनट के टै ट म इतनी लापरवाही।”
“दो िमनट का टै ट तो खैर वो नह होता, य क वो कोई लड टै ट नह होता जो खून
का सै पल िलया और काम हो गया। मुज रम के हाथ से बाकायदा पैरा फन कॉ ट उठाया
जाता है, जैसे क फु ट ंट लेने के िलए ला टर ऑफ पै रस का कॉ ट उठाया जाता है।
इसिलए यूं आनन-फानन म होने वाला ये काम नह होता। आमतौर पर ये काम फोरिसक
टीम के िज मे होता है। मगर सािहल वाले के स म उसक कोई ज रत ही नह पड़ी थी।”
“मने सुना है क पैरा फन टै ट गन हडल करने के बह र घंट के भीतर कभी भी िलया
जा सकता है।”
“ठीक सुना है, मगर िजतनी देरी से वो टै ट िलया जाता है उतना ही ामक नतीजा
िनकलने का चांस बढ़ता चला जाता है। इसिलए अब अगर तू सािहल भगत के हाथ का
पैरा फन टै ट करवाने का कोई जुगाड़ करे गा तो उसका रज ट दो कौड़ी का भी नह माना
जाएगा।”
“ना माना जाय मगर ऐसा करवाया तो जा सकता है न!”

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“मेरे याल से तो करवाया जा सकता है, मगर ऐसा करने के िलए तू पुिलस को कै से
मजबूर कर सकता है?”
“देखगे चौहान साहब! बहरहाल जानकारी देने के िलए शु या।”
उठकर मने दोन से हाथ िमलाया और बाहर जाकर अपनी कार म बैठ गया। फर एक
िसगरे ट सुलगाकर मौजूदा घटना म पर दमाग खपाने लगा।
करीब बीस िमनट बाद नीलम वहां प च ं ी।
“कै सा रहा?”
“ब त बुरा, वो तो अपने वक ल तक को यक न नह दला पाया क वो बेकसूर है।
अदालत म या होगा भगवान जाने। अ छा होता अगर तु हारी बदौलत घटना थल से वो
लड सपल और ाइन बरामद नह ए होते।”
“उन दोन चीज क बाबत सािहल या कहता है।”
“िस े क बाबत वो कु छ कहने क ि थित म नह है, अलब ा सोफे के ह थे से उठाये
गये लड सपल के बारे म वो दावा करता है क वो उसका नह हो सकता य क
घटना थल पर उसे कोई चोट नह लगी थी।”
“तेरा अपना या याल है, या वो बेगुनाह हो सकता है?”
“सच पूछो तो मेरा यक न िहला जा रहा है। तुम अपनी कहो, कोई नई बात पता चली
या नह ?”
जवाब म मने जब उसे पैरा फन टै ट के बारे चौहान से आ वातालाप सुनाया तो
सुनकर उसे कु छ सकू न सा िमला। उस बात से उसके चेहरे पर इ मीनान झलकता मुझे साफ
दखाई दया।
“इ स ए गुड यूज डा लग, तुम देखना कल कोट म इस इकलौती बात के दम पर म
पुिलस के के स क कै से हवा िनकालती ।ं ”
“ज र देखूंगा, अब चल।”
“हां मगर मुझे घर ॉप करने से पहले कह िडनर कराओ, ब त भूख लगी है मुझ।े ”
“तुम लड़ कय क एक आदत कभी नह सुधर सकती।”
“वो या?”
“चाहे लाख करोड़ कमा लो ले कन जब भी कसी लड़के के साथ होती हो तो अपने
तमाम खच का ठीकरा उ ह के िसर फोड़ती हो, भले ही खच उठाने के िलए बेचारे को
कसी क मुंडी काटनी पड़ जाय।”
“भई ये तो मद का फज बनता है। ऊपर से लड़ कयां अगर खुद िबल पे करने लग तो
मद का ईगो हट होने लगता है।”
“मुझे तो कु छ और ही लगता है।”
“जैसे क!”
“जैसे क लड़ कयां यूं उ ह अपनी सोहबत का आनंद देने क क मत वसूलती ह।”
“तुम खाितर जमा रखो, मने तु हारी बात का जरा भी बुरा नह माना। इसिलए ये
फसी बात करके तुम चाहकर भी मुझसे िडनर का िबल नह भरवा पाओगे।”

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जवाब म मने चुपचाप कार आगे बढ़ा दी।
✠✠✠
चौबीस जनवरी2018
सुबह यारह बजे के करीब मुलिजम सािहल भगत को भरपूर सुर ा के बीच रमांड के
िलए यूिडिशयल मिज ेट के सामने कोट म पेश कया गया। कोट म खचाखच भरा
आ था। भीतर और बाहर मीिडया क मय का जमावड़ा लगा आ था। कोट म म
सािहल के अंकल-आंटी और कु छ र तेदार के साथ-साथ, शहर के कई गणमा य ि
पहले से ही मौजूद थे।
पुिलस क तरफ से सरकारी वक ल ने के स का खाका ख चते ए मुलिजम को एक
स ाह के पुिलस रमांड पर देने क दर वा त लगाई, िजसका िडफस लॉयर ने ये कहकर
भरपूर िवरोध कया क पुिलस पहले ही मुलिजम को दो दन से पूछताछ के नाम पर
गैरकानूनी ढंग से िहरासत म रखे ए है। इसिलए मुलिजम को रमांड पर दए जाने का
कोई मतलब नह िनकलता। साथ ही उसने बड़े ही जोर-शोर से मुलिजम का अभी तक
पैरा फन टै ट नह कराये जाने क बात उठाई और पुिलस क कारवाई पर एक सवािलया
िनशान लगा दया।
वो मुलिजम का प रखती ई बोली, “योर ऑनर! िगर तारी के व जब मुलिजम
बार-बार कह रहा था क उसने अपनी प ी पर गोली नह चलाई थी, तो पुिलस ने उसक
बात को गलत सािबत करने के िलए उसका पैरा फन टै ट कराने क ज रत य नह
महसूस क । अगर पुिलस ने लापरवाही बरतने क बजाय, गन पाउडर के िलए उसके हाथ
क जांच कराई होती तो उसी व ये सािबत हो जाता क मुलिजम बेगुनाह है, उसने
अपनी बीवी का क ल नह कया है।”
साथ ही वो मुलिजम के सामािजक तबे का हवाला देते ए बड़े ही रौबदार लहजे म
बोली - “योर ऑनर अदालत से मेरी गुजा रश है क मुलिजम के िखलाफ कोई भी फै सला
लेते व इस बात को यान म रखा जाय क पुिलस! मुलिजम के बेगुनाह सािबत हो जाने
के बाद िहरासत म बीते उन दन को वािपस नह लौटा सकती जो क उसके तबे और
इ त दोन का जनाजा िनकाल चुके ह गे। इसिलए के स को जमानत के कािबल समझा
जाय।” - कहकर वो तिनक क फर बोली - “योर ऑनर मुलिजम पुिलस जांच म हर
तरह से सहयोग करने को तैयार है, बि क वो पहले से ही कर रहा है। अगर ऐसा नह होता
तो पुिलस के िलए उसको िबना कोई चाज लगाये दो दन तक पूछताछ के नाम पर थाने
म बैठाये रहना संभव नह हो पाता।”
उसक आिखरी बात का मैिज ेट पर गहरा भाव पड़ा। उसने पि लक ॉसी यूटर
देशराज संघला क ओर देखा तो वो त काल बोल पड़ा, “योर ऑनर िडफस अटान महज
बात के दम पर मुकदमा जीतने का वाब देख रही ह। जब क हक कत ये है क पुिलस के
पास मुलिजम को मकतूला सोनाली भगत का काितल सािबत करने के िलए पया और
अका सबूत उपल ध ह।”
“तो फर मुलिजम के रमांड क दर वा त य कर रहे ह!” - नीलम तमककर बोली -

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“अदालत म पेश य नह करते उन सबूत को! इस तरह कम से कम अदालत का व
जाया होने से बचेगा।”
जवाब म कु छ कहने से पहले पि लक ॉसी यूटर देशराज संघला, एसएचओ सतबीर
संह के पास प च ं ा, दोन म महज तीस सैकड कोई मं णा ई फर वो मैिज ैट के
एकदम करीब प च ं ा, दोन म कु छ खुसर-फु सर ई फर मैिज ेट बड़े ही बुलंद आवाज म
बोला, “अदालत दस िमनट के िलए बखा त क जाती है। दस िमनट बाद मुकदम क
कारवाई फर शु होगी। साथ ही िम टर पि लक ॉसी यूटर और बचाव प के वक ल
दोन को म है क वे मेरे कमरे म आकर मुझसे िमल।”
कहकर मैिज ेट उठ खड़ा आ। उसके पीठ पीछे देशराज संघला और नीलम तंवर
दोन उसके कमरे म प च ं े।
“ लीज बी िसटेड!” - वो गंभीर लहजे म बोला।
जवाब म दोन मैिज ेट के सामने अगल-बगल कु सय पर बैठ गये।
“अब बताइए संघला साहब या कहना चाहते ह?”
“िसफ इतना कहना चाहता ं जनाब क पुिलस के पास भगत के िखलाफ पया सबूत
उपल ध ह। वो रं गे हाथ िगर तार कया गया था। उस घड़ी सािहल भगत के पास से जो
आलाएक ल रवा वर बरामद ई वो भी उसक खुद क ही िमि कयत थी। िजसपर
उं गिलय के िनशान भी िसफ उसी के पाये गये थे। ऊपर से क ल का मो टव भी ब त
तगड़ा था उसके पास। एक गैर मद के लैट म अपनी बीवी को िबना कपड़ के देखकर
कसी भी गैरतमंद मद का खून खौल सकता है, फर गु से म आकर अगर उसने अपनी
रवा वर बीवी के िज म पर खाली कर दी तो या बड़ी बात है।”
“मुझे वो सब पता है, आप िसफ इतना बताइए क पुिलस को रमांड क ज रत
कसिलए है, जब क उसके िखलाफ इतने पु ता एिवडस पहले से मौजूद ह।”
“सर मामला कतने बड़े आदमी का है, ये आपसे िछपा आ नह है। हम नह चाहते क
कल को कसी वजह से पुिलस का के स कमजोर पड़ जाय। इसिलए पुिलस को अपना के स
पु ता करने के िलए थोड़ा व चािहए, िजसके िलए मुलिजम का रमांड ज री है।”
“िमस तंवर आप या कहती ह इस बाबत, और लीज ‘मेरा मुव ल बेगुनाह है‘ जैसा
नारा लगाये िबना किहएगा।”
वो बात मैिज ेट के ने कु छ इस लहजे म कही थी क नीलम और संघला दोन क हंसी
छू ट गई।
फर त काल दोन को एहसास आ क वे कसके सामने बैठे ह, िलहाजा दोन के मुंह
से एक साथ सॉरी िनकला।
“नैवर माइं ड, अब बताइए या संघला साहब क बात से आपको इ फ़ाक है।”
“नह ! और ये म कसी पूवा ह का िशकार होकर नह कह रही ।ं बि क पूरी तरह
सोच-समझकर कह रही ।ं पुिलस को जो भी तैयारी करनी है वो िबना रमांड के भी क
जा सकती है। वो कोई ऐरा-गैरा आदमी नह है, जो इधर जमानत िमली नह क कह
िखसक जायेगा। वो देश का टॉप का िबजनेसमैन है, उसके साथ आम अपरािधय जैसा

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सलूक नह कया जा सकता। आप खुद अंदाजा लगा सकते ह क उसक प च ं कतनी
ऊपर तक होगी, इसके बावजूद अभी तक के स पर उसने कोई जायज-नाजायज दबाव
डलवाने क कोिशश नह क ! तो इसका मतलब साफ है क उसे कानून पर भरोसा है। उसे
यक न है क वो देर-सबेर बेगुनाह सािबत हो ही जाएगा। ऐसे म उसे हवालात म रखना
कहां का इं साफ होगा।”
“बात तो आपक ठीक है, मगर संघला साहब नह मानगे तो मेरे िलये उसक जमानत
क बाबत फै सला लेना ब त मुि कल हो जाएगा?”
“समझ लीिजए क मान गया! मुझे िडफस लॉयर क इस बात से पूरा इ फ़ाक है क
वो कोई आम आदमी नह है, िलहाजा वो बेल जंप करने क िहमाकत नह करे गा।” -
संघला बोला - “बस आप ये सुिनि त करा दीिजए क वो जमानत िमलने के बाद अपनी
तता के बहाने बनाकर पुिलस को ठगा नह दखाने लगेगा। जो क ऐसे धनकु बेर
अ सर करने से बाज नह आते।”
“इसके िलए म उसे चेतावनी दे सकता ं क अगर उसने पुिलस के साथ सहयोग नह
कया तो उसक जमानत किसल कर दी जायेगी।”
“ फर या बात है, मेरी उससे कोई िनजी अदावत थोड़े ही है।” - कहकर वो तिनक
का फर बोला - “सच पूिछये तो जब भी कोई बड़ा आदमी पुिलस ारा िगर तार कया
जाता है तो प रि थितयां कु छ ऐसी ही बन जाती ह। ना उगलते बनता है, ना िनगलते
बनता है।”
“ठीक कहते ह आप! बहरहाल दस िमनट होने वाले ह, इसिलए अब आप लोग कोट म
म तशरीफ ले जाइए और साथ ही म उ मीद करता ं क यहां हमारे बीच ई गु तगूं को
कसी के सामने दोहराने क गु ताखी आप दोन ही नह करगे।”
जवाब म दोन ने िसर िहलाकर हामी भरी फर मैिज ेट का शु या अदा करके कमरे
से बाहर िनकल गये।
ठीक व पर मैिज ेट ने अदालत म कदम रखा और अपनी कु स पर जा बैठा। इसके
बाद कु छ देर तक के स के बारे म बात चलती रह । आिखरकार मैिज ेट ने मुलिजम
सािहल भगत क जमानत इस शत के साथ मंजूर कर ली क वो पुिलस जांच म पूरा
सहयोग करे गा, साथ ही मुलिजम को स त लहजे म चेतावनी दी गई क इस मामले म
कोताही बरतने पर उसक जमानत फौरन किसल कर दी जायेगी। इसके बाद ने ट
िहय रं ग के िलए दो दन बाद क तारीख दे दी गई।
म नीलम से िमलकर ये जानने को तड़प रहा था क भीतर जज के कमरे म उनके बीच
या बात ई थ । मगर उस रोज नीलम के पास दो के स और थे, िलहाजा वो मौका मुझे
ज दी हािसल होता दखाई नह दे रहा था।
वहां मेरा और कोई काम नह था। इसिलए सािहल भगत क जमानत मंजूर होते ही म
बाहर आकर अपनी कार म सवार आ और अपने ऑ फस के िलए रवाना हो गया।
उस व मेरी कार इं िडया गेट से गुजर रही थी जब मेरे मोबाइल क रं गटोन बजनी
शु ई। न पर कोई अननोन नंबर शो हो रहा था। वहां आस-पास गाड़ी साइड म

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लगाकर रोकने का मतलब था बेवजह चलान कटवाना जो क ये बंदा पसंद नह करता।
िलहाजा मने वो कॉल िमस हो जाने दी।
मगर फोनकता जैसे कसम खाये बैठा था। तुरंत बाद घंटी फर बजनी शु हो गयी। तब
तक म डॉ टर जा कर सैन माग पर िनजामु ीन क तरफ जाने के िलए मुड़ चुका था। मने
कार को सड़क के कनारे ले जाकर रोका और सामने खंबे पर लगे नो पा कग नो वे टंग के
बोड को घूरते ए वो कॉल अटड क ।
“है लो िम टर िव ांत!” - एक खनकता आ जनाना वर सुनाई दया - “िव ांत
गोखले, मश र पीडी।”
“तारीफ के िलए शु या मोहतरमा, किहए या मदद कर सकता ।ं ”
“मदद आप नह करगे िम टर गोखले!” - वो मद भरे वर म बोली - “म क ं गी
आपक ! आपके ज रए आपके लाइं ट क ।”
“कौन से लाइं ट क !” म तिनक उलझन भरे वर म बोला - “ कस लाइं ट क बात
कर रही ह आप?”
“जैसे सौ-पचास लाइं ट ह आज क तारीख म आपके पास! जािहर है म सािहल भगत
क बात कर रही ।ं ”
“अगर आप उसक कोई मदद करना चाहती ह तो सीधा उससे ही बात य नह
करत ?”
“ य क उसके मुकाबले आप हम यादा समझदार दखाई देते ह। आज वो िजस
मुसीबत म फं सा है उसक गंभीरता का अंदाजा आप उससे यादा बेहतर ढंग से लगा सकते
ह।”
“तारीफ के िलए एक बार फर से आपका शु या, अब बरायमेहरबानी अपना कोई
इं ोडे शन दे डािलए।”
“िलहाजा आपक दलच पी लाइं ट का बचाव करने से यादा मेरा प रचय जानने म
है।”
“ऐसा तो खैर नह है।” - म एक गहरी सांस लेकर बोला - “एनी वे, बताइए या मदद
करना चाहती ह आप सािहल भगत क ?”
“ज र बताऊंगी िम टर, ले कन उससे पहले म तु ह कु छ दखाना चाहती ।ं ”
“कु छ या सबकु छ दखा डािलये, वैसे भी बंदा लड़ कय का सबकु छ देखने को चौबीस
घंटे, सात दन तैयार रहता है।”
“मेरा जलाल आप झेल नह पायगे िम टर गोखले, इसिलए फलहाल वो देिखये िजसे
देखना आप और आपके लाइं ट दोन के िलए बेहतर रहेगा।”
“कहां आना होगा?”
“ फलहाल तो कह नह , अभी म आपको हा स ए प पर एक वीिडयो भेज रही ,ं उसे
देिखए और देखकर उसक अहिमत पर गौर फरमाइए। म आपको ठीक पांच िमनट बाद
दोबारा फोन क ं गी।”
कहकर दूसरी ओर से कॉल िड कनै ट कर दी गयी। मने त काल उस नंबर पर कॉल बैक

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कया जवाब म मुझे कं यूटराई ड आवाज सुनाई दी, ‘आपके ारा डॉयल कया गया नंबर
उपल ध नह है, कृ या अपना नंबर जांच ले।‘
म हकबकाकर मोबाइल को घूरने लगा। फर लगे हाथ दोबरा-ितबारा ाई कर डाला,
हर बार मुझे यही सुनाई दया क नंबर गलत है। फर मने अपना हा सए प चेक कया
तो पता चला उसी नंबर से एक वीिडयो सड क गई थी। वो पांच एमबी क वीिडयो थी
जो क लगभग फौरन ही डाउनलोड हो गयी।
आगे य ही मने उस वीिडयो को ले कया मेरे हाथ से मोबाइल छू टते-छू टते बचा।
जैस-े जैसे म वीिडयो देखता गया मारे हैरानी के मेरा बुरा हाल होता चला गया।
वीिडयो क शु आत उस िब डंग से ई िजसम मकतूला सोनाली भगत का लैट था।
वीिडयो म कोई श स ओवरकोट पहने ए सी ढ़य क ओर बढ़ता दखाई दया। कै मरा
लगातार उसे फॉलो कर रहा था इसिलए ये तय था क वो रका डग उसक मज से क जा
रही थी। अलब ा वीिडयो म िसफ उसक पीठ ही दखाई दे रही थी। देखते ही देखते वो
सी ढ़यां चढ़ने लगा, फर दूसरी मंिजल के गिलयारे का दृ य दखाई दया। ओवरकोट
वाला मकतूला के लैट तक प च ं ा फर उसने झुककर दरवाजे का ताला खोला और भीतर
दािखल हो गया। इसके बाद ाइं ग म के भीतर का दृ य दखाई दया। ओवरकोट वाले ने
जेब से रवा वार िनकाला, तब मुझे उसके हाथ पर चढ़े द ताने के दशन ए। उसने पीछे
घूमे िबना रवा वर का ख कै मरे क ओर कया। फर कै मरा जूम होने लगा और न
पर िसफ रवा वर दखाई देने लगी। इसके बाद रवा वर का सी रयल नंबर दखाई दया
फर जूम कम आ और मुझे ओवरकोट वाले के शरीर का िपछला िह सा पूरा का पूरा
दखाई देने लगा।
उसने आगे बढ़कर बेड म के दरवाजे पर द तक दे दी, त काल दरवाजा खुला। सामने
भ च सी न खड़ी सोनाली दखाई दी। इसक बाद गोिलयां चलने लग । पहली ही
गोली खाकर वो पीठ के बल फश पर जा िगरी। मगर गोिलयां चलनी बंद नह । पूरी
छह गोिलयां उसने सोनाली के िज म म उतार द । फर वो सोफे के करीब प च ं ा, झुककर
उसने रवा वर सोफाचेयर के पास फश पर रख दया। इसके बाद उसने जेब से एक शीशी
िनकाली और उसम से लाल रं ग का थोड़ा सा तरल पदाथ सोफा चेयर के ह थे पर िगरा
दया। इसके बाद उसने जेब से एक ाइन िनकाला और उसे सोफे के नीचे लुढ़का दया।
फर उसने जूते को फश पर रगड़ा और मेन गेट क तरफ बढ़ गया। कै मरा सी ढ़य के दहाने
तक उसका पीछा करता रहा। फर वीिडयो म गिलयारे का दृ य दखाई देने लगा।
तकरीबन पांच िमनट बीते ह गे जब सािहल भगत गिलयारे म गट आ। कै मरे ने
मौकाएवारदात तक उसका पीछा कया फर वो लैट के भीतर जा घुसा। तकरीबन दो
िमनट बाद महेश बाली गिलयारे म दखाई दया। वो बड़े ही आराम से चलता आ लैट
तक प च ं ा। उसने दरवाजा खोला और खोलकर फौरन बंद कर दया। फर उसने दरवाजे
म चाबी घुमाया और मोबाइल िनकालकर कसी को फोन करने लगा। इसके बाद वीिडयो
ख म हो गई।
म हकबकाया सा जाने कतनी देर तक मोबाइल को घूरता रहा। वो इकलौता वीिडयो

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सािहल को कोट से बाइ त बरी करा सकता था। हैरानी थी क कसी ने यूं ही िबन मांगे
वो वीिडयो मेरे हवाले कर दी थी।
अब सवाल ये था क या मुझे वो वीिडयो यूंही फोकट म सािहल भगत के हवाले कर
देना चािहए था या उसक कोई मोटी उजरत हािसल करनी चािहए थी? फर उससे भी
बड़ा सवाल ये था क मुझे फोन करके वो वीिडयो उपल ध कराने वाली रह यमई रमणी
कौन थी? ये वीिडयो उसके हाथ कै से लग गई?
म अभी कशमकश म उलझा ही आ था क मेरा मोबाइल बज उठा। इस बार भी कोई
अननोन नंबर शो हो रहा था, अलब ा वो पहले वाला नंबर नह था। ले कन जब मने
कॉल अटड क तो पता चला फोन पर वही थी।
“उ मीद है आपने वीिडयो देख ली होगी िम टर िडटेि टव।”
“दु त फरमाया आपने, अब आप या चाहती ह?”
“एक छोटा सा सौदा करना।”
“इस वीिडयो का।”
“नह उस वीिडयो का जो मेरे पास महफू ज है।”
“यािन कोई और वीिडयो भी है आपके पास।”
“नह वीिडयो वही है जो आपको दी थी-देकर वािपस ले ली।”
“म कु छ समझा नह ।”
“म समझाती ,ं बि क खुद समझ जाओगे। अब जरा तुम अपने मोबाइल म उस
वीिडयो को तलाशने क कोिशश करो, देख वो तु ह िमलती है या नह ।”
“ य नह िमलेगी, जब मने िडलीट नह कया है तो।”
“ लीज िम टर गोखले, पहले अपनी तस ली तो कर लो।”
हालां क उसक बात म कोई दम नह था फर भी मने हा सए प खोलकर चेक कया।
और ये देखकर ह ा-ब ा रह गया क वो वीिडयो मैसेज से तो गायब थी ही, आगे
हा सए प के फो डर से भी नदारद थी। मुझे फर भी यक न नह आया क ऐसा हो
सकता है। तब मने वीिडयो लेयर खोलकर देखा, िजसम उसके ारा भेजी गई वीिडयो के
अलावा
सारी वीिडयो सही सलामत शो हो रही थ ।
“कमाल है!” - मेरे मुंह से वतः ही िनकल गया - “ऐसा कै से हो सकता है?”
“वो तो ब त मामूली काम है िम टर िडटेि टव बोलो तो तु हारे मोबाइल का सारा
डॉटा िडलीट करके दखा दू।ं ”
“अरे नह , लीज ऐसा मत करना।”
जवाब म उसक खनकती हंसी सुनाई दी।
“चलो तुम कहते हो तो नह करती, आिखर अभी तुम मेरे ब त काम आने वाले हो।”
“ या चाहती हो?”
“बताया तो था सौदा करना चाहती ।ं ”
“तुम सीधा सािहल से इस बारे म बात य नह करती?”

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“समझ लो तुम मुझे सािहल से यादा पसंद हो।”
“असल वजह या है?”
“िसफ इतनी क िजस ढंग से म इस सौदे को अंजाम देना चाहती ,ं वो सािहल के
ज रये मुि कल काम सािबत होगा। बेशक उसे जमानत िमल गई है मगर कोई बड़ी बात
नह क पुिलस उसक िनगरानी करवाना शु कर दे।”
“ओह! तो असल डर तु हे पुिलस का है।”
“ कतने समझदार हो तुम।”
“वो तो खैर म पैदायशी ,ं अब लगे हाथ उस वीिडयो क कोई क मत भी बता दो।”
“तुम खुद य नह तय कर लेते कोई क मत?”
म सोच म पड़ गया। वो वीिडयो सािहल क तमाम दु ा रयां ख म कर सकती थी, ऐसे
म वो वीिडयो के बदले मुंहमांगी क मत दे सकता था। मगर मने कम से कम म ही शु आत
करने क कोिशश क ।
“दस लाख!”
जवाब म वो जोर से हंसी।
“ या आ?” म अंजान बनता आ बोला।
“क मत तय करते व तुम भूल गये क तु हे ये फै सला सािहल क औकात को यान म
रखते ए करना है ना क तु हारी खुद क औकात को, जो क कसी िगनती म नह
आती।”
सुनकर मेरा चेहरा कान तक सूख हो उठा। मगर वो व धैय खोने का नह था।
इसिलए म खून का घूंट पीकर रह गया। फर मन ही मन िहसाब लगाता आ बोला,
“पचास लाख एंड दै स फाइनल।”
“बस तुम एक जीरो और लगाना भूल गये िम टर गोखले।”
“पांच करोड़!” - मेरे मुंह से िससकारी सी िनकल गई - “तुम पागल तो नह हो। इतने
पैस म तो वो पूरा थाना ही खरीद लेगा, फर वो खुद ही बरी हो जायेगा। फर तु हारे
पास मौजूद वीिडयो क औकात दो कौड़ी क नह रह जायेगी। वो कोई पॉन मूवी नह है
जो तुम एक ाहक के जाने पर दूसरे को बेच दोगी। उस वीिडयो को या तो सािहल खरीद
सकता है या फर कोई नह , या समझी।”
“समझी तो कु छ-कु छ! अब तुम भी समझदार बनकर दखाओ और उसे पांच करोड़ म
सौदा करने के िलए तैयार करो वरना...।”
“वरना या!”
“वरना ये क पुिलस को बताया जा सकता है, क सोनाली क उसके यार के साथ
वसंतकुं ज म मौजूदगी क खबर तुमने सािहल को दी थी।”
सुनकर म स ाटे म आ गया। फर भरसक खुद पर काबू पाता आ बोला, “ज र उस
बारे म जानकर पुिलस मुझे फांसी पर लटका देगी नह ।”
“ऐसा तो वे नह कर सकते मगर पुिलस िडपाटमट म जो तु हारी घुसपैठ है वो तो
यक नन ख म हो जायेगी। फर पीडी का धंधा या खाक करोगे। तुम या समझते हो इस

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बारे म जानने के बाद तु हारा वो फे वरे ट एसीपी पांडे कभी तु ह मुंह लगायेगा?”
म एक बार फर हैरान रह गया। यक नन ब त ही प च ं ी ई लड़क थी वो, हर बात
क उसे खबर थी। मगर कै से! कै से!
“अब बोलो या फै सला कया तुमने?”
“देखो इसम कोई शक नह क ऐसा करके तुम मेरी इ त का जनाजा िनकाल सकती
हो। मगर जरा सोचकर देखो, सािहल भगत या मेरा र तेदार लगा है जो मेरी लगाई ई
कोई भी क मत मंजूर कर लेगा। इसिलए फर कहता ं तुम सीधा उसी से बात कर के
देखो।”
“ये काम तो तु ह ही करना है िम टर गोखले! अलब ा मुझे तु हारी इस बात से
इ फ़ाक है क वो तु हारा र तेदार नह है। इसिलए तु हारे िलए म थोड़ा ब त
नेगोिसएशन करने को तैयार ।ं ”
“बदले म मुझे या िमलेगा, या फर तुमने मुझे कोई वालं टयर समझ िलया है।”
“समझ लो पुिलस िडपाटमट म तु हारी े टीज बनी रहेगी।”
“उसके अलावा या िमलेगा?”
“तुम या चाहते हो?”
“दस फ सदी।”
“ यादा है, दो फ सदी।”
“पांच पर डन करो, वरना बेशक तुम पुिलस को बता देना क सािहल को सोनाली क
यार के साथ मौजूदगी क खबर मने दी थी।”
“सौदा जायज नह है, मगर तु हारी खाितर डन। बदले म तु ह भी पूरी कोिशश करनी
है क यादा से यादा बड़ी रकम के िलए उसे तैयार कर सको, यूं तु हारा भी तो िह सा
बड़ा होगा।”
“बे फ रहो, लड़क और दौलत! दोन क भाषा मुझे ब त अ छी तरह समझ म आती
है। अब बताओ सािहल क हामी के बाद म तु हे कहां संपक क ं ?”
“उसक ज रत नह पड़ेगी, आज रात आठ बजे म तु ह फोन क ं गी, तब तक कोई
फै सला कर लेना।” कहकर उसने कॉल िड कनै ट कर दी।
मने फर उसका नंबर डॉयल कया जवाब म रांग नंबर वाला फकरा सुनकर म बस
एक लंबी आह भरकर रह गया। उसने वीिडयो के साथ जो खेल खेला था वो कोई ऐसी बात
नह थी िजसके बारे म मने पहले कभी ना सुना हो। मगर उसक कोई फ ट हड नॉलेज मुझे
नह थी। इसिलए म अभी तक हैरान था, क सचमुच ऐसा हो सकता है।
अब वहां खड़े रहकर अपना दमाग धुनने से कोई फायदा नह था। िलहाजा मने कार
आगे बढ़ा दी।
पतािलस िमनट क ाई वंग के बाद मने साके त ि थत अपने रै िपड इं वेि टगेशन के
ऑ फस म कदम रखा। जैसा क होना ही था, शीला रसै शन पर मौजूद थी।
“है लो बॉस हाऊ आर यू।”
“इधर तो सब म त है, तू बता कडनी, फे फड़े, लीवर सब सही सलामत तो ह।”

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“बस लीवर म थोड़ी सी ॉ लम दखती है, य क मुझे लगता है कल वो कडनी से
टकरा गया था, जो क शायद फे फड़े क वजह से पहले से ही इं फे टेड थी।”
“िलहाजा तीन का ही हाल बुरा है।”
“ऐसा तो खैर नह होना चािहए य क डॉ टर बोल रहा था क ए स का इन तीन
पर कोई असर नह होता। इसिलए ये सब व सम याय ह, ज दी ही िनजात िमल
जायेगी।”
“ए स य कर हो गया?”
“लो पूछते हो ए स य कर हो गया, अरे जब दन रात िबना कसी ोटे शन के इधर-
उधर मुंह मारते फरोगे तो ए स नह होगा तो या होगा?”
“तू कसक बात कर रही है।” म हैरानी से बोला।
“तु हारे िसवाय और कौन है यहां।”
“ठहर जा कमीनी!” म दांत पीसता आ बोला।
जवाब म वो ठठाकर हंस पड़ी। फर त काल हंसी को ेक लगाती ई बोली, “मुबारक
हो तु हारे लाइं ट को आिखरकार जमानत िमल ही गई।”
“हां और ब त ज दी वो बाइ त बरी भी हो जायेगा।”
“नीलम ने तो कमाल ही कर दया।”
“वो भला या कमाल करती, सािहल क जमानत िसफ और िसफ मेरी वजह से ई है।
नीलम ने तो बस मेरे बताए ढंग से अदालत म मुलिजम का प भर रखा था। वो भी
इसिलए य क मेरे पास एलएलबी क िड ी नह थी।”
“शु है नह थी वरना बेचारा सािहल इस व पुिलस क रमांड झेल रहा होता और
खुद को कोस रहा होता क य उसने तु ह अपना वक ल चुना था।”
“बक चुक !”
“नह अभी तो बस शु आत भर क है।”
“ठीक है जब बककर अपने अरमान पूरे कर ले तो भीतर आ जाना।”
“ कसिलए तु हारे अरमान पूरे करने?”
“अगर तू तैयार है तो मुझे कोई ऐतराज नह है, अलब ा कु छ ज री बात िड कस
करनी ह तेरे साथ।”
“ फर तो समझ लो िजतना बकना था बक चुक , अब तु हारी तरह बेशरम तो ं नह
क काम के व भी बक-बक करती र ।ं ”
“कहकर वो मेरे आगे-आगे मेरे के िबन म जा घुसी और एक िविजटर चेयर पर बैठती ई
बड़े ही शान से बोली लीज कम िम टर गोखले, इसे आप अपना ही ऑ फस समझ।”
मने उस बात का पटा ेप वह कर देना बेहतर समझा वरना तो कमीनी अभी जाने
कतनी वाही-तबाही बकती। अलब ा मुझे संजीदा होते देखकर उसने भी खामोशी
अि तयार कर ली।
मने एकटक उसके चेहरे पर िनगाह जमा दी। कतनी खूबसूरत थी साली! दल करता
था बस यूंही उसे अपने सामने बैठाकर िनहारता र ।ं

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“ये दीदे फाड़-फाड़कर मुझे घूरना बंद करो और काम क बात करो।”
“तू ब त खूबसूरत है।”
“हजार बार बता चुके हो, यही वो ज री बात तो नह थी जो तुम मुझसे िडसकस करने
चाहते थे। अगर हां तो म खुद ही बता देती ं क म ब त खूबसूरत !ं सै सी !ं एकदम
र क परी लगती !ं अब तक मुझे देखकर दो सौ लोग हाट अटैक से जान गवां चुके ह,
अ सी लोग मुझे कस करके शूगर के मरीज बन चुके ह, डेढ़ सौ लोग मुझे हािसल होता ना
पाकर खुदकु शी कर चुके ह।”
“बस इतना ही!”
“नह ये सब तो वे लोग ह िज ह म जानती थी, इससे कई गुना उन लोग क तादाद
होगी िजनसे म कभी नह िमली।”
“िबना िमले उ ह ने तुझे कस कै से कर िलया।”
“ वाब म।”
“यूं वाब म कस करने से शूगर लेबल बढ़ जाता है।”
“हां शहद के चासनी म डू बे मेरे रसीले ह ठ को वाब म भी चूमना खतरनाक सािबत
होता है, इसिलए व रहते बाज आ जाओ वरना कसी दन...।”
“ या कसी दन!”
“बेमौत मारे जाओगे।”
“ फर तेरा या होगा।”
“होगा तो ब त बुरा ही, आिखर खड़े पैर बेरोजगार हो जाऊंगी।”
जवाब म मने एक गहरी सांस ली, फर उसे उस वीिडयो के बारे म बताते ए, भेजने
वाली से ई सारी बात िसलिसलेवार ढंग से कह सुनाई।
सुनकर वो यूं िन वकार बनी रही जैसे उस बात का कोई मह व ही ना हो।
“तुझे हैरानी नह ई।”
“इस बात पर तो नह ई क वो वीिडयो कै से तु हारे मोबाइल म डाउनलोड होने के
बाद भी िडलीट हो गयी। उसके दो रीजन हो सकते ह। पहला ये क उन लोग ने तु हारा
आईपी ए स े हैक कर रखा होगा, जो क हर यूजर क एक यूिनक पहचान होती है। उसी के
ज रए पुिलस क साइबर सेल उन लोग तक प च ं पाती है जो साइबर ाइम म इं वॉ व
पाये जाते ह। दूसरी वजह ये रही हो सकती है क वो एक शॉट टाइम वीिडयो थी िजसके
िलए एक पेशल टाइम मुकरर कया गया था, जो क उस वीिडयो क फु ल ी मंग का
व रहा होगा। िलहाजा य िह वीिडयो क ी मंग पूरी ई वो अपने आप न हो
गयी।”
“अलब ा म इस बात पर ज र हैरान ं क कसी ने ना िसफ सोनाली के क ल क
वीिडयो तैयार क बि क उसे अपने पर इतना अिधक गुमान है क वो समझता है उस
वीिडयो के ज रए उस तक नह प च ं ा जा सकता। ये वन मैन शो नह हो सकता इसके
पीछे कई लोग का टीम वक है।”
“दो क तो चल गारं टी है, य क एक उस वीिडयो म ए ट कर रहा था और दूसरा

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कै मरा संभाले ए था मगर ये दो से यादा लोग का काम है इस बात का तू दावा कै से कर
सकती है?”
“देखो उस वीिडयो से ये तो साफ पता चलता है क काितल का मकसद उसके ज रये
पैसा कमाना था। य क अगर उसका मो टव सोनाली क ह या होता तो वीिडयो ाफ
नह क गई होती। यािन क सबकु छ ी- लांड था और टाईम िलिमट म होने वाला काम
था।”
“तेरा मतलब है सोनाली क ह या िसफ इसिलए क गई ता क उसम सािहल को
फं साकर उससे कोई मोटी रकम ठी जा सके ।”
“यही मतलब था मेरा, इसके अलावा कोई दूसरी बात हो ही नह सकती।”
“तू पागल तो नह हो गयी है?”
“अभी तक तो नह ई ।ं ”
“तो फर तू मुझे ये बता क उन लोग को या सपना आना था क सािहल ऐन क ल के
बाद वहां प च ं जाने वाला था। जवाब ये यान म रखकर देना क िजस तैयारी के साथ वे
लोग वहां प च ं े थे वो आनन-फानन म सािहल को वहां प चं ते देखकर नह क गई हो
सकती। यक नन वो पहले से ही बाली और सोनाली के पीछे लगे ए थे। उ ह दोन के
संबंध क पूरी खबर थी।”
“उन दोन के ही पीछे य , तु हारे भी पीछे य नह ?”
“मेरे पीछे लगकर उ ह या हािसल होना था।”
“ज र उन लोग ने कसी तरह तु हारे मोबाइल क सी टेप कर रखी होगी, इस
तरह वे तु हारी हर आई गई कॉल को सुन रहे ह गे। या फर उनम से कोई हर व साये
क तरह तु हारे पीछे लगा रहा होगा।”
“ये भी मान िलया मगर जब मने वसंतकुं ज से सािहल को कॉल करके उसक बीवी के
बारे म बताया तो उसने एक बार भी मुझसे ये नह कहा क वो वहां प च ं रहा है। अब जो
बात मुझे खुद नह पता था वो मेरे ज रए उन लोग को कै से पता लग सकती थी।”
“ फर तो ज र उ ह यक न रहा होगा क उनके ारा घटना थल पर छोड़े गये सबूत
से सािहल फं से ही फं से। आिखरकार रवा वर खुद सािहल क थी, उसपर उं गिलय के
िनशान भी उसी के थे, वहां मौजूद खून का ध बा उसके लड ुप से मैच करता था, सोफे के
नीचे से बरामद िस े पर पाये गये फं गर ंट भी उसके अपने थे ऐसे म वो लाख कहता क
अपनी बीवी का क ल उसने नह कया है, मगर यक न कौन करता।”
“ऐसा भी तो हो सकता है क िजस व सोनाली का क ल आ उस व का कोई ना
कोई गवाह िनकल आता जो पुिलस को बयान देता क क ल के व वो मौकायेवारदात से
ब त दूर अपने बंगले पर था। और कोई नह तो नौकर-चाकर तो उसके गवाह होते ही।”
“इतने ां स एिवडस क म पुिलस यही समझती क उसके नौकर-चाकर उसके
िसखाये-पढ़ाये ढंग से बयान दे रहे ह।”
“तू कु छ भी कह ले कन ये बात हजम नह होती क उ ह ने घटना थल पर सािहल क
मौजूदगी क गारं टी के िबना अपने काम को अंजाम दया था।”

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“तो फर समझ लो उ ह कसी भी तरह पता था क सािहल वहां प च ं ने वाला था।
इसके िलए हो सकता है उसके बंगले क िनगरानी क जा रही हो, जहां से उसके बाहर
िनकलते ही कोई उसके पीछे लग गया हो। उसी ने आगे अपने सािथय को ये खबर क हो
क सािहल क कार का ख वसंतकुं ज क ओर था।”
“ये ब त दूर क कौड़ी है, वो ऐन वसंतकुं ज प च ं कर कह और के िलए िनकल सकता
था। या फर वो बंगले से िनकला ही कह और जाने के िलए हो सकता था।”
“उस बात से काितल को कोई फक नह पड़ने वाला था। उसे तो बस इस बात क
गारं टी चािहए थी क सािहल भगत कसी ऐसी जगह पर नह था जहां कोई उसक
बेगुनाही का गवाह बन सकता हो।”
“हां तेरी ये बात कु छ समझ म आती है। मगर यहां भी एक पच है। तू भूल रही है क
मकतूला वहां अके ली नह गई थी बि क उस व उसका यार महेश बाली उसके साथ था।
ऐसे म इस बात क या गारं टी थी क वो सोनाली क वहां मौजूदगी के दौरान लैट से
बाहर िनकलेगा ही।”
“तो फर वो ज र काितल से िमला आ होगा, उसके सहयोग के िबना उस ए ट को
वहां अंजाम दया ही नह जा सकता था।”
सुनकर म सोच म पड़ गया। ऐसा आ हो सकता था। फर अचानक मेरे जहन म उस
लड़क का अ स उभर आया जो बाहर सड़क पर बाली से िमली थी, िजसे बाली ने कोई
पैकेट पकड़ाया था। या रहा होगा उस पैकेट म! काितल ारा क ल के व पहना गया
ओवरकोट, मौकायेवारदात पर इ तेमाल कया गया कै मरा या फर कु छ और?
या माजरा था, कह से कु छ पकड़ाई म नह आ रहा था।
तभी मोबाइल क घंटी बजी, सािहल भगत का फोन था।
“आजादी मुबारक हो बॉस!”
“तुझे भी गोखले, म दल से तेरा शु गुजार ।ं अब बता या ो ेस क इस के स म।”
“ ो ेस तो इतनी खास है बॉस क एक ही झटके म तुम बेगुनाह सािबत हो जाओगे,
मगर....।”
“ या मगर?”
“तु हारी बेगुनाही तु ह ब त महंगी पड़ने वाली है।”
“जान से यादा महंगी।”
“ऐसा तो खैर नह है।”
“ फर!”
“बॉस वो करोड़ का मामला है, िजसम धोखा भी हो सकता है।”
“साफ-साफ बता या बात है।”
“यूं फोन पर समझाना मुि कल काम होगा।”
“ठीक है म एक घंटे म अपने बंगले पर प च ं जाऊंगा। तू भी प च
ं , बाक क बात वह
करगे।” कहकर उसने कॉल िड कनै ट कर दी।
मने घड़ी देखी, साढ़े चार होने को थे। सािहल भगत का बंगला हौजखास म था इस

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िलहाज से मुझे पं ह बीस िमनट म अपना ऑ फस छोड़ देना था।
शीला को मने लंच आडर करने को कहा और एक िसगरे ट सुलगाकर कश लगाते ए,
गंभीरता से पूरे मामले पर िवचार करने लगा। उस व मेरा सारा यान उस अंजान
रमणी और उसके ारा भेजे गये वीिडयो के ईद-िगद घूमता रहा। मगर म लाख िसर
खपाने के बाद भी कसी नतीजे पर नह प च ं सका।
आधे घंटे बाद लंच से फा रग होकर म अपनी कार म सवार हो गया। यूं पौने छह बजे म
सािहल भगत के िवशाल बंगले के कसी फ मी सेट क तरह सजे-धजे ा ग म म कदम
रखा तो उसे क ं करता पाया। साथ ही वो सटर टेबल पर रखे नोट पैड पर कु छ लक र
उके रकता जा रहा था। ऐसा वो हर चु क के बाद करना शु कर देता था। मुझे लगा वो
कोई खास काम कर रहा था, मगर नजदीक से देखने पर पता चला क वो तो यूंही आड़ी
ितरछी रे खाएं ख चे जा रहा था।
मुझे वहां प चं ा देखकर उसने बैठने का इशारा कया फर बोला, “अपने िलए क ं
बना ले।”
म क तामील करते ए मने उसके साथ िचयस बोला।

ं के दौरान मने वीिडयो से रलेटेड सारी कहानी उसे सुना दी। सुनकर - जैसा क
वाभािवक था - वो भ च ा रह गया। आगे कु छ देर तक हम खामोश बैठे अपना-अपना
जाम चुसकते रहे।
फर उसने अपना िसगरे ट का पैकेट और लाइटर मेरी ओर बढ़ा दया, उसका इशारा
समझकर मने दो िसगरे ट सुलगाये और एक उसे थमा दया।
“तुझे या लगता है।”
“ कस बारे म?”
“वो वीिडयो जेनुइन हो सकता है।”
“लगता तो है, य क िजस तरह सारे िसलिसले को शूट कया गया है उसम कसी
जोड़-तोड़ क गुंजाईश नह दखाई देती। अगर हम कसी तरह इस बात को इ फ़ाक मान
भी ल क वीिडयो म दखाई दे रही लड़क तु हारी बीवी क कोई हमश ल थी तो आगे
इस बात को कतई इ फ़ाक नह माना जा सकता क तु हारा और महेश बाली का भी
हमश ल उन लोग ने ढू ंढ िनकाला था।”
“िलहाजा वीिडयो जेनुइन है, ऐसे म तुझे कसी धोखे का डर य सता रहा है।”
“बॉस मामला पांच करोड़ पय का है, जो क यक नन वो कसी गैरमामूली तरीके से
लेने क कोिशश करगे। य क पकड़े जाने के डर को वे नजरअंदाज नह कर सकते। ऐसे म
हो सकता है वे पैसा लेकर चलते बने और वीिडयो क कॉपी भी हमारे हाथ नह लगे।”
“तू भूल रहा है क वे लोग मेरी बेगुनाही के सबूत बेच रहे ह ना क मेरे गुनाह का
लेखा-जोखा जो भिव य म वे मुझे लैकमेल करने के िलए दोबारा इ तेमाल कर सक।
इसिलए उस वीिडयो को अपने पास रखकर उ ह भला या हािसल होगा।”
“होगा तो सही कु छ ना कु छ! मान लो वो वीिडयो सामने नह आती है और तु ह बीवी
के क ल के जुम म सजा हो जाती है, तो ऐसे म वे लोग तो पूरी तरह सेफ हो जायगे। जब क

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वीिडयो तु ह देने का मतलब होगा पुिलस को ये बताना क मकतूला का क ल तुमने नह
कया है। ऐसे म जािहर है पुिलस असली काितल को ढू ंढने के िलए जमीन-आसमान एक
कर देगी।”
“बात तो तेरी ठीक है। अब एक सवाल का सोच-समझ कर जवाब दे, अगर मेरी जगह
तू होता, और यही ऑफर तुझे दस-बीस हजार पय के बदले दी गई होती तो तू या
करता।”
“म फौरन हामी भर देता, य क दस-बीस हजार पये इतनी बड़ी रकम नह ह
िजसका र क ना िलया जा सके ।”
“ए जे टली, म भी यही कहना चाहता ं क पांच करोड़ पये मेरे िलए इतनी बड़ी
रकम नह है िजसका म र क ना ले सकूं । इसिलए उसका फोन आने पर तूने उससे
बाग नंग तो करनी है मगर कसी भी हाल म सौदे से इं कार नह करना है।”
“वो तो खैर म कर लूंगा, ले कन उ ह ने अगर सारा पया कै श म मांगा तो या तुम
खड़े पैर इं तजाम कर लोगे।”
“वो कै श म ही मांगगे, चैक या एकाउं ट म ांसफर करवाने के बारे म वे सोच भी नह
सकते।”
“मेरा भी यही अंदाजा है, ऐसे म अगर म पांच करोड़ पय के साथ कह पकड़ा जाता
ं तो मेरे िलए पुिलस को जवाब देना भी भारी पड़ जायेगा।”
“नह पड़ेगा, उसका िज मा मेरा है, म अपने सीए से बात कर लूंगा वो सब हडल कर
लेगा। िजस व तू कै श लेकर िनकलेगा उसी व तेरी तस ली करा दी जायेगी क रा ते
म कह पुिलस ारा पकड़े जाने पर तू उतना ही सेफ है िजतना क अपनी जेब से पांच
हजार पये बरामद होने पर होता।”
“ फर या बात है बॉस समझो काम हो गया।”
“नह हो गया, मेरी रहाई के बाद भी सोनाली के काितल क तलाश तुझे बद तूर जारी
रखनी है और उसे हर हाल म उसके कए क सजा दला कर रहनी है, या समझा।”
“सबकु छ समझ गया बॉस, अब इजाजत चा ग ं ा।”
“अरे कहां चला भाई, साढ़े सात तो हो ही गये ह।”
“तो!”
“लो मेरे से पूछता है तुझे खुद याद नह क आठ बजे उसे रह यमयी रमणी का फोन
आने वाला है।”
“सॉरी मुझे टाईम का याल नह रहा।”
“बि क तुझे उसक कॉल रकाड करने का भी कोई इं तजाम करना था, या पता बाद म
उसक आवाज से ही उसक िशना त हो जाय।”
“वो संभव नह है, जो लड़क मेरे मोबाइल से वीिडयो गायब कर सकती है या वो
अपनी आवाज रकाड करने दे सकती है।”
“तो फर कोई दूसरा रा ता सोच।”
मने सहमित म िसर िहलाया और उस मामले पर दमाग खपाने लगा। फर लगभग

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फौरन बाद ही मुझे उसक आवाज रकाड करने का ज रया सूझ गया।
मगर उस काम को कोई टै कल आदमी ही अंजाम दे सकता था और ऐसे कसी आदमी
क जानकारी मुझे नह थी।
मने चौहान को फोन लगाकर अपनी ज रत समझाई तो पांच िमनट हो ड कराने के
बाद उसने ये गुड यूज दी क वो एक ऐसे आदमी को मेरे पास भेज रहा था जो उस तरह के
काम का ए सपट था। जवाब म मने उसे सािहल के बंगले का पता बताया और बात को
अपने तक ही सीिमत रखने का वादा लेकर कॉल िड कनै ट कर दया।
इसके बाद मने नया जाम तैयार कया और सािहल भगत के साथ चुि कयां लेने लगा।
चौहान का भेजा आदमी वहां तकरीबन बीस िमनट म प च ं गया। मने उसे बताया क
म या चाहता था तो वो फौरन अपने काम म लग गया। उसने महज पांच िमनट के भीतर
सािहल के लडलाइन फोन के साथ एक रका डग िडवाइस फट कया और ये कहकर वहां
से चलता बना क अपना ताम-झाम वो घंटे भर बाद आकर ले जाएगा। जाने से पहले
सािहल ने उसे दो हजार पये थमाये िजसे उसने बाखुशी कबूल कर िलया था।
फर मने अपनी मोबाइल क तमाम आउटगोइं ग कॉल को सािहल के लडलाइन पर
डाइवट कर दया। जो क ब त मामूली काम था और कसी भी मोबाइल से कया जा
सकता था। िलहाजा अब मेरे मोबाइल पर कॉल क जाती तो घंटी सािहल के लडलाइन क
बजनी थी। िजसके साथ रका डग िडवाइस जोड़ी गई थी।
उस इं तजाम से संतु होकर हम आठ बजे क अपेि त कॉल का इं तजार करने लगे।
जो क ठीक आठ बजे ही आई। लडलाइन क घंटी बजी तो मने उसका रसीवर उठाकर
कान से सटा िलया।
“हैलो िम टर गोखले!” लाइन पर जाना पहचाना वर गूंजा।
“हैलो िमस हो स!”
“ या फै सला कया तु हारे लाइं ट ने।”
“उसके ना कहने का तो मतलब ही नह बनता अलब ा वो तु ह पांच क बजाय तीन
करोड़ देने क बात करता है। म इस व उसके पास ही बैठा ं अगर तुम चाहो तो अपनी
तस ली के िलए उससे बात कर सकती हो।”
“कोई फायदा नह है, अगर वो अपनी दु ा रय क क मत तीन करोड़ लगाता है तो
फर ऐसे आदमी का जेल जाना ही बेहतर होगा।”
“अरे तुमने ही तो कहा था क तुम थोड़ा-ब त नेगोिसएट कर सकती हो।”
“तो दो करोड़ तु हारी िनगाह म थोड़ा ब त होता है।”
“ना सही मगर कु छ तो डाउन करो अपनी मांग।”
“ठीक है समझ लो मने तु हारा िलहाज कया, मगर साढ़े चार करोड़ से एक पैसा कम
नह । दस सैकड म फै सला करो वरना म फोन रखती ।ं फर मेरी आवाज क रका डग के
दम पर ढू ंढते रहना जीवन भर मुझ।े ”
“ रका डग!” - म हकबका सा गया - “कै सी रका डग?”
“गोखले मेरे ब े! अपनी ममा से यादा होिशयार बनने क कोिशश मत करो। अलब ा

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म तु हारी उस कोिशश से नाराज नह ,ं इसिलए नह ं य क उससे मुझे कोई फक
नह पड़ता। अब बोलो या फै सला कया तुमने।”
मने सािहल क तरफ देखा, उसने फौरन िसर िहलाकर हामी भर दी।
“ठीक है हम मंजूर है, मगर इसक या गारं टी क हमारे साथ कोई धोखा नह होगा।”
“कोई गारं टी नह , इसिलए ऐसी वािहयात बात से परहेज करो और गौर से मेरी बात
सुनो।”
“ओके ममा, म सुन रहा ।ं ”
“सारा पया मुझे यूएस डॉलर म चािहए।”
मने फर सािहल क तरफ देखा, उसने हामी भर दी।
“ठीक है!”
“नोट एक सी रयल म नह होने चािहएं, उनपर कोई िशना ती िनशान नह होना
चािहए।”
“सब मंजूर अब बोलो कहां आना है?”
“पैस का इं तजाम कब तक हो जाएगा।”
मने फर सािहल क तरफ देखा तो वो बोला सी रयल नंबर वाली शत ना हो तो दो घंटे
म, वरना तो कल दोपहर बाद तक इं तजाम हो पायेगा।
मने फोन पर वो बात दोहरा दी।
“मुझे मंजूर है, म तु हे कल शाम चार बजे फोन क ं गी।” कहकर उसने कॉल िड कनै ट
कर दी।
मने झपटकर रका डग ले कया, शु था वो तमाम बातचीत महफू ज थी। अलब ा म
ये सोचकर ज र हैरान था क उतनी सावधािनय के बावजूद उसे रका डग क खबर लग
गई थी। या फर वो मुझसे भी बड़ी लफर थी।
बहरहाल मेरा अब वहां कोई काम नह था। इसिलए सािहल भगत से िवदा लेकर बंगले
से बाहर िनकल गया।
रा ते भर म ये सोचकर परे शान होता रहा क कल मुझे साढ़े चार करोड़ पये यािन
तकरीबन सात लाख पं ह हजार डॉलर ढोना था। जो क अगर सौ डॉलर के नोट क सूरत
म भी होता तो तकरीबन सवा सात सौ गि यां होत जो कसी ब त बड़े सूटके स म ही
समा सकती थ । फर अभी तो मुझे ये भी खबर नह थी क वो माल मुझे द ली म ही
कसी को स प देना था या द ली के बाहर कह िडलीवरी देनी थी।
रा ते म म एक जगह िडनर के िलए का फर दस बजे के करीब तारा अपाटमट ि थत
अपने टू बीएचके लैट म प च ं कर लंबी तान कर सो गया।
✠✠✠
प ीस जनवरी 2018
दस बजे के करीब म अपने ऑ फस प च ं ा। शीला क गुडमा नग का जवाब देने के
अलावा मने उससे एक श द नह कहा और सीधा अपनी के िबन म जाकर बैठ गया।
कु छ ण बाद वो दरवाजे पर गट ई तो मने सवािलया िनगाह से उसक तरफ

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देखा।
“सब खै रयत तो है?”
“हां सब ठीक है।”
“ फर आज यूं खामोश-खामोश से य नजर आ रहे हो।”
“ऐसी कोई बात नह है, आ ही गई है तो मेरे सामने आकर बैठ।”
“जवाब म वो चुपचाप मेरे सामने रखी कु स पर बैठ गई।
मने िसगरे ट का पैकेट िनकालकर एक िसगरे ट सुलगाया फर एक लंबा कश लेकर कल
शाम क सारी बात उसे कह सुनाई।
“सच पूछो तो कल रात म सोनाली के क ल के बारे म ही सोचती रही।”
“िसफ सोचती रही!”
“नह नतीजा भी िनकाला।”
“ फर तो ज र तू मुझे काितल का नाम बताने वाली है, नह ?”
“है तो कु छ ऐसा ही।”
“तो म पंिडत को बुलाऊं ता क वो आकर तुझे जुबान खोलने का कोई अ छा सा मु त
बता सके ।”
“उसक ज रत नह है, रात भर इस के स पर माथाप ी करने के बाद म इस नतीजे पर
प चं ी ं क काितल सािहल भगत ही है।”
“वाह कमाल का नतीजा िनकाला है तूने, ज र मेरी दुकानदारी बंद करवाने पर तुली
ई है।”
“म मजाक नह कर रही, हालात का तबसरा करने के बाद मने ब त सोच-समझकर ये
नतीजा िनकाला है।”
“अगर काितल सािहल है तो उस वीिडयो म सोनाली को गोली मारता श स कौन है।”
“वो खुद सािहल भगत ही रहा होगा जो थोड़ी देर के िलए ओवरकोट पहनकर भीतर
गया फर बीवी का क ल करने और मौकायेवारदात पर अपने िखलाफ सबूत छोड़ने के
बाद बाहर जाकर ओवरकोट से िनजात पाकर दोबारा यूं वहां प च ं ा जैसे वो पहली बार
तभी वहां आया हो।”
“और वो इतना बड़ा अ ल का अंधा था क उसने वहां से िखसक जाने का मौका होते
ए भी दोबारा ना िसफ वहां जाना पसंद कया बि क पहली िविजट म बीवी का क ल
करते व उसने खुद क वीिडयो ाफ भी करवाई।”
“वो ज री था, वरना बाद म वो अपनी बेगुनाही कै से सािबत करता।”
“अरे उसके िलये वहां अपने िखलाफ सबूत छोड़ना ही य ज री समझा।”
“ य क वो जानता था सोनाली के क ल के बाद पुिलस का सबसे पहले शक उसी पर
जायेगा। वो नौबत ज रत आती अगर वो घटना थल से ही िगर तार ना कर िलया गया
होता।”
“आती तो आती, मगर यूं पुिलस क उसपर चढ़ दौड़ने क , उसे िगर तार कर लेने क
नौबत तो हरिगज भी नह आई होती। तब पुिलस को उससे पूछताछ करने के िलए

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बाकायदा अ वाइं टमट क ज रत होती। फर उसने अपनी हालत खुद आ बैल मुझे मार
जैसी य कर ली। वो सौ तरीक से अपनी बीवी का क ल कर सकता था, करवा सकता
था। मगर उसने ऐसा कु छ नह कया य ?”
“इस य का बेहतर जवाब तुम खुद तलाश करो तो कै सा रहे, रा ता मने बता ही दया
अब तुम खुद भी तो कु छ करोगे।”
“ या कहने तेरे।”
“अगर तु हे सािहल के काितल होने का ऐतबार नह है तो फर म तु ह एक दूसरा
ऑ शन देती ।ं ”
“म सुन रहा ।ं ”
“वीिडयो म जो ओवरकोट वाला काितल तु हे दखाई था वो महेश बाली था। जो क
क ल के बाद अपने ओवरकोट को ठकाने लगाकर बाहर सड़क पर जा खड़ा आ। जरा
सोचकर देखो बॉस, तु हारे पहलू म ज त क परी लेटी ई है ऐसे म य कर तुम उसे
छोड़कर बाहर सड़क पर जा खड़े होगे।”
“बात तो तेरी ठीक है, मगर वो सड़क पर िसफ व गुजारी या िसगरे ट पीने नह प च ं ा
था, बि क वहां वो एक लड़क से िमला था। िजसे उसने एक पैकेट थमाया और वािपस
लौट पड़ा।”
“तो फर ज र उस पैकेट म उसका ओवरकोट और कै मरा रहा होगा, य क रवा वर
तो वो घटना थल पर ही छोड़ आया था।”
“हो तो सकता है।”
“वो लड़क कौन थी?”
“मालूम नह , अभी तो म इस िसलिसले म बाली को भी नह टटोल पाया ।ं इसिलए
ये कह पाना मुहाल है क सोनाली के क ल म उसक कोई िशरकत हो सकती है या नह ।”
“ठीक है अब म तु ह एक तीसरा ऑ शन देती ।ं ”
“कमाल है ज र कोई चौथा-पांचवा भी होगा तेरे पास।”
“नह ये आिखरी है, मगर सबसे यादा दलच प है।”
“म सुन रहा ।ं ”
“सोनाली भगत क ह या आगनाइज ाइम है।”
“ये कौन सा बड़ा नतीजा िनकाल िलया तूने। म तो उस वीिडयो के िमलने के बाद से ही
उसके क ल को इसी नज रये से देख रहा ।ं बि क कल तू खुद भी ये बात कहकर हटी थी।”
“हां मगर तु ह ये नह पता क ऐसे ाइम का िशकार होने वाला सािहल भगत कोई
पहला इं सान नह है।”
“ या मतलब तेरा, पहले भी कोई ऐसे फं दे म फं स चुका है।”
“हां, कम से कम दो लोग के बारे म तो म यक नी तौर पर कह सकती ,ं हक कतन
कोई तीसरा, चौथा, पांचवा...।”
“रहने दे म जानता ं क तुझे पूरे दस तक िगनती आती है, इसिलए फलहाल उन दोन
पर ही फोकस कर िजनके बारे म तुझे यक नी तौर पर पता है।”

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“उनम से पहला भु भोगी है रं जीत सहगल, िजसका सहगल गारमट के नाम से
लाजपत नगर म बड़ा सा शो म है और दूसरा श स है के दार नाथ आ जा, जो एमजी
पि लके शन के नाम से जाना जाने वाले एक बड़े पि लके शन हाउस का इकलौता मािलक
है। रं जीत सहगल अपने पाटनर सुजीत भार ाज क ह या के जुम म सािहल भगत क तरह
ही ऐन मौकायेवारदात पर ही िगर तार कर िलया गया था। जब क आ जा को उसक
बीवी क ह या के जुम म उसके बंगले से िगर तार कया गया था। उन दोन ही मामल म
पुिलस के पास मुलिजमान के िखलाफ अका सबूत उपल ध थे। ऐसे म उ ह कोई बड़ी
सजा हो जान महज व क बात थी। मगर कोट म सुनवाई के दौरान उनके वक ल ऐन
वैसी ही वीिडयो सामने लाने म कामयाब हो गये जैसी वीिडयो के बारे म कल तुमने मुझे
बताया था। िलहाजा उ ह फौरन जमानत दे दी गई और वीिडयो को फोरिसक जांच के
िलए भेज दया गया। आगे चलकर जांच म पता चला क वो दोन ही वीिडयो एकदम
जेनुइन थे, नतीजा ये आ क अदालत ने दोन ही मुलिजम को बाइ त बरी कर दया।
इसके बाद पुिलस ने नये िसरे से के स क तहक कात शु क जो क आज तक चल रही है।”
सुनकर म हकबकाया सा उसक सूरत देखता रह गया। मुझे लग रहा था वो कसी भी
व ठठाकर हंस पड़ेगी और बोलेगी क मजाक कर रही थी, मगर ऐसा नह आ। वो पूरी
तरह संजीदा बनी रही।
“सहगल के पाटनर क ह या तकरीबन दो साल पहले ई थी।” - कु छ ण बाद वो आगे
बोली - “जब क आ जा वाला के स तो अभी महज सात महीने पुराना ही है। हैरानी है क
तु ह उसक याद नह है।”
“वो तो खैर नह है, मगर तूने ओवरनाइट ये सब कै से जान िलया?” म हैरानी से बोला।
“यूंही तु े म जान िलया। आ यूं क कल इस के स पर दमाग खपाते-खपाते मेरे मन म
ये जानने का याल आया क यूज म इस बाबत या आ रहा है। तब मने यूंही गूगल पर
‘िम टी रयस मडर इन द ली‘ िलखकर सच मारा तो सािहल भगत के साथ-साथ जाने
कतनी क ल क वारदात सामने आ ग । उ ह को बारी-बारी देखने के बाद ये जानकारी
मेरे हाथ लगी।”
“शीला, तूने तो कमाल कर दया।”
“जो क म हमेशा करती ।ं ”
“वो तो खैर तू करती ही है!” - म तिनक िवचार करता आ बोला - “ले कन आज तुझे
एक और कमाल का काम करना है।”
“ म मेरे आका।”
“तूने आज एक खास व पर मेरा पीछा करना है। तब मेरे पास साढ़े चार करोड़ पय
से भरा एक खूब बड़ा या फर दो मीिडयम साइज के सूटके स ह गे जो क मुझे उस वीिडयो
के बदले कसी को स पना है। अब तेरा काम ये है क म वो सूटके स िजसे भी िडलीवर क ं
तूने साये क तरह उसके पीछे लग जाना है। मगर भगवान के िलए उनसे उलझने क
कोिशश मत करना। अगर तुझे लगे क उलझे िबना काम नह चल सकता तो बेशक उसका
पीछा छोड़ देना। य क जो जानकारी अभी तू मुझे देकर हटी है, उसको यान म रखते

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ए सोचा जाए तो ये कसी बड़े गग का कारनामा लगता है, ऐसे म उनसे उलझना जान
जोिखम वाला काम होगा। इसिलए पूरी तरह सावधान रहना और अपनी रवा वर साथ
लेकर जाना।”
“जब कसी से उलझना ही नह है, मार खाकर वािपस लौट आना है, तो रवा वर कस
काम आएगी।”
“अरी बावली रवा वर तुझे अपनी सुर ा के िलए रखनी है, य क मुझे नह मालूम
क आगे हालात कै से बनने वाले ह।”
“और अगर मेरी जान को कोई खतरा ना हो मगर इ त खतरे म पड़ जाय फर या
क ं ।” वो बड़े ही भोलेपन से बोली।
“तो बेशक अपनी इ त लुटवा लेना, मगर तुझे अपने हाथ-पांव या रवा वर को
तकलीफ तभी देनी है जब तेरी जान पर आन बने, अलब ा अपना दमाग इ तेमाल करने
क तुझे खुली छू ट है, या समझी।”
“वो तो खैर म समझ गई, मगर तु ह भी एक वादा करना होगा।”
“कै सा वादा?”
“अगर म अपनी इ त लुटवाकर, मुंह काला करवा कर लौटी, तो तुम मुझसे शादी से
इं कार नह करोगे। वरना जान देनी पड़ेगी।”
“अरे ऐसा मत करना लीज।”
“करना ही पड़ेगा, य क तब िसफ तु ह पता होगा क म अपना सती व गवां चुक ।ं
एक लड़क के िज म से उसका सबसे महंगा गहना लुट चुका है। उसक इ त का मोती
चूर-चूर होकर िबखर चुका है। ऐसे म अगर तु ह जंदा छोड़ दया तो कल को कसी के भी
आगे मुंह फाड़कर मेरी इ त का कचड़ा कर दोगे।”
तब जाकर मेरी समझ म आया क वो जान देने क नह मेरी जान लेने क बात कर रही
है।
“दफा हो जा।” म फुं फकारता आ बोला।
“राइट अवे सर! बस आिखरी सवाल का जवाब दे दो क ये सब करना कब है।”
“क ल ठोक कर तो नह बता सकता, बस इतना समझ ले क जो भी होना है उसक
शु आत चार बजे के बाद ही होगी। तब म जहां भी र गं ा तुझे फोन पर इि ला कर दूग
ं ा।”
“िच ी िलख दोगे तो भी चलेगा।”
जवाब म मने घूरकर उसे देखा तो त काल वो दरवाजे से बाहर िनकल गई।
मने सािहल भगत को कॉल कया तो उसने बताया क पैस का इं तजाम हो भी चुका
था। तब मने उसे एक ऐसी कार का इं तजाम करने को कहा, िजसका उससे दूर-दूर तक कोई
संबंध न हो। साथ ही उसे ये भी समझा दया क कार का इं तजाम होने के बाद उसे मेरे
ऑ फस के सामने वाली पा कग म खड़ी करवाकर कार क चाबी और पा कग क रसीद
दोन मेरे ऑ फस म भेजवा देना है।
वो इं तजाम करना शीला के िलए ज री था। हालां क म उसके िलए अपनी बलेनो
छोड़कर खुद सािहल क कसी कार से िडलीवरी के िलए जा सकता था। मगर िजस तरह

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के वाकयात सामने और रहे थे उसम पूरी उ मीद थी क फरौती वसूलने वाल को मेरी
कार क पूरी-पूरी जानकारी होगी। जानते तो वो लोग शीला के बारे म भी हो सकते थे,
मगर वो र क लेना मेरी मजबूरी थी। म नरे श चौहान क मदद ले सकता था, मगर उसे
देखकर दूर से ही पता लग जाता था क वो कोई पुिलिसया है, िलहाजा मामला सुलझने
क बजाए िबगड़ने के चांसेज यादा थे। फर लाख पये क बात ये थी क मेरे लाइं ट को
साढ़े चार करोड़ पय क कोई खास परवाह नह थी, िलहाजा कोई धोखा हो भी जाता
तो उसने उफ तक नह करना था।
अलब ा म शीला क सुर ा का कोई एिडशनल इं तजाम इं तजाम ज र करना चाहता
था, जो क उस व मेरी समझ म नह आ रहा था।
फर मेरे जहन म नीलम का नाम क धा, अगर उसे कोई बेहद ज री काम नह होता
तो यक नन वो इस िमशन पर शीला के साथ जाने को तैयार हो जाती। य क शीला क
ही तरह उसे भी एडवचर ब त-ब त पसंद था। ऊपर से िमनल लॉयर होने क वजह से
वो शीला क अपे ा हालात को यादा बेहतर ढंग से हडल कर सकती थी। जब क शीला
को हाथ-पांव और गोिलय का इ तेमाल करना यादा पसंद था।
मने उसके मोबाइल पर कॉल लगाया। कु छ देर तक घंटी बजती रही फर दूसरी तरफ से
कॉल अटड कर ली गई।
“म कोट म ,ं दस िमनट बाद फोन करती ।ं ” कहकर उसने कॉल िड कनै ट कर दया।
ऐन दस िमनट बाद उसने मुझे फोन कया तो मने उसे बताया क म या चाहता था।
जवाब म उसने झट हामी भर दी।
मने चैन क सांस ली।
मोबाइल मेज पर रखा और एक िसगरे ट सुलगाकर गहरे कश लगाता आ आगे पेश
आने वाले हालात का तबसरा करने म जुट गया।
साहबान बंदे का आज तक का िनजी तजुबा ये कहता है क आप कतने भी बड़े
मा टरमाइं ड य ना ह , आपक पूविनधा रत काय णाली महज तीस फ सदी ही आपका
साथ देती है। आगे का फै सला तो आपको हमेशा व और हालात को देखते ए अचानक
ही लेना पड़ता है।
बावजूद इसके म मगजमारी कर रहा था तो ऐसा मेरी इं सानी फतरत मुझसे करवा
रही थी। वरना तो अभी से उस बारे म सोचने का कोई फायदा नह था।
दो बजे के करीब सािहल भगत का भेजा एक आदमी, दो बड़े-बड़े सूटके स के साथ मेरे
ऑ फस प च ं ा। साथ ही वो कार क चाबी और पा कग क रसीद भी मुझे थमा गया। वो
दोन चीज मने शीला के हवाले क और नीलम के बारे म बताते ए उसे समझा दया क
आगे या करना था।
वो उसी व ऑ फस से बाहर िनकल गई। वैसा करना बेहद ज री था य मुझे पूरी
उ मीद थी क कोई मुझपर या मेरे ऑ फस पर िनगाह रखता हो सकता था।
म इं तजार करने लगा। यूं ऑ फस म खाली बैठकर दो घंटे इं तजार करना कोई आसान
काम नह था, मगर मने कया।

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ठीक चार बजे मेरे मोबाइल क घंटी बजी। नंबर इस बार भी नया था मगर कॉल उसी
रह यमयी रमणी क थी, जो क उसके पहले फकरे से ही सािबत हो गया।
“िम टर गोखले!”
“यस मदाम!”
“तैयार हो।”
“एकदम तैयार ।ं ”
“पैसा तु हारे पास है या कह से िपक करना है।”
“मेरे पास है।”
“ठीक है, ऑ फस से िनकलो और सराय काल खां प च ं ो।”
“िडलीवरी वह देनी है।”
“देखगे।” कहकर दूसरी तरफ से कॉल िड कनै ट कर दी गई।
मने ऑ फस क लडलाइन से शीला को फोन कया।
“तैयार!”
“यस बॉस!”
“कोई दखाई दया।”
“नह ।”
“नीलम कहां है?”
“वो अपनी कार म है यह आस-पास।”
“ओके म सराय काले खां के िलए िनकल रहा ।ं ”
“ठीक है।”
मने फोन रख दया। दोन सूटके स लेकर म बाहर िनकला और ऑ फस को लॉक करने के
बाद सी ढ़यां उतरने लगा। नीचे प च ं कर दाएं-बाएं िनगाह डाले िबना म अपनी बलेनो
तक प च ं ा। दोन सूटके स मने कार क िपछली सीट पर रख दये और कार को पा कग से
िनकालकर सड़क पर डाल दया।
आगे मेरा इरादा िचराग द ली होते ए रं ग रोड पकड़ने का था। म इतनी सावधानी
से ाइव कर रहा था क अगर कोई मेरे पीछे होता तो एहसास ए िबना नह रहता।
अलब ा शीला क आई वटी और नीलम क इ पाला गाहे-बगाहे मुझे नजर आती रह ।
हैवी ै फक म ाइव करता म उस घड़ी आ म से गुजर रहा था जब मेरे मोबाइल क घंटी
बजी।
“िम टर गोखले, आगे तुम राजघाट क ओर ाइव करोगे।”
म कु छ कहने ही लगा था क कॉल िड कनै ट कर दी गई।
आिखरकार सरायकाले खां होते ए म साढ़े पांच के करीब राजघाट प च ं ा और चौराहे
से तिनक पहले कार को स वस लेन म लगाकर इं तजार करने लगा।
मेरे देखते ही देखते नीलम क इ पाला चौराहा ास कर गई, अलब ा शीला क कार
मुझे नह दखाई दी।
पांच िमनट बाद उसका फर फोन आया। म आ क म अजमेरी गेट प च ं ूं।

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म फर ाइव करने लगा। राजघाट के चौराहे से ले ट टन लेते व मुझे लाल कले क
ओर जाने वाली सड़क पर नीलम खड़ी दखाई दी। पता नह उसने मुझे टन लेते देखा था
या नह । अगर देखा भी था तो आगे से यू टन लेकर वािपस आने म उसका ब त व जाया
हो जाना था। िलहाजा अब वो मेरे कसी काम नह आने वाली थी।
मने कार क र तार लो कर दी। आगे द ली गेट पर म जानबूझकर इतना लेट प च ं ा
क िस ल रे ड हो गया।
म इं तजार करने लगा।
करीब तीस सैकड बाद ही शीला क कार मेरी कार के बगल म आ खड़ी ई।
मने राहत क सांस ली।
दो िमनट बाद ब ी हरी ई तो मने कार आगे बढ़ा दी। अलब ा ै फक ब त यादा
होने क वजह से कार बस रगती सी जान पड़ती थी। आगे जीबी पंत अ पताल के सामने
तो जाम का वो हाल था क वहां से िनकलने म पूरे दस िमनट लग गये।
जाम से िनकलकर म अगले चौराहे तक प च ं ा ही था क उसक कॉल आ गई। इस बार
म आ क म नई द ली रे लवे टेशन क ीिमयम पा कग म प च ं कर अगले म का
इं तजार क ं ।
मेरे पास उसक बात मानने के अलावा और चारा भी या था।
आिखरकार म सवा छह के करीब पा कग म प च ं ा और कार पाक करने के बाद अगले
म का इं तजार करने लगा। ज र वे लोग मुझे कसी ेन म सवार कराने वाले थे। ले कन
अगले ही पल मुझे अपना िवचार बदल देना पड़ा। य क टेशन पर लगे ए सिबन मशीन
म सूटके स डाले िबना म आगे नह जा सकता था और सूटके स मशीन म डालने का मतलब
था क म वह पर पुिलस ारा धर िलया जाता।
इस बात से वे लोग अंजान ह गे ऐसा सोचना भी भारी मूखता थी। इसिलए मुझे लगने
लगा क जो भी होना है वो पा कग म ही होगा।
म इं तजार करने लगा। वो इं तजार आधा घंटा लंबा सािबत आ। फर वो आ िजसके
होने क उ मीद को म िसरे से नकार चुका था।
मेरा फोन बजा! म आ क म लेटफाम नंबर पांच पर प च ं ।ूं
“तुम पागल तो नह हो गई हो!”
“नह , िब कु ल नह इसिलए जैसा कहा गया वैसा करो।”
“अरे म साढ़े चार करोड़ पय के साथ एं ी गेट पर ही थाम िलया जाऊंगा।”
“ऐसा नह होगा, बे फ रहो हम अपने साढ़े चार करोड़ पय का नुकसान हरिगज
नह होने दगे।”
“ले कन!”
“कोई ले कन नह िम टर गोखले, दस िमनट म लेटफाम नंबर पांच पर प च ं ो, वरना
डील खा रज मान ली जायेगी।” कहकर कॉल िड कनै ट कर दी गई।
मुझे अपनी चंता नह थी, य क मेरे पास सािहल भगत के लेटर हैड पर उसक
द तखतशुदा इबारत थी क वो पये उसके थे जो क मेरे ज रये जयपुर म रह रहे अपने

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एक िबजनेसमैन दो त संभल जी अ वाल को भेज रहा था। मगर चै कं ग म पकड़े जाने पर
फजीहत तो होनी ही थी। कु छ घंटे तो पुिलस क ॉस योि नंग का सामना बंदे को
करना ही पड़ता। ले कन उसके अलावा ऑ शन भी या था मेरे पास।
म कार से बाहर िनकला, दोन सूटके स मने िपछली सीट से उठाये और गाड़ी लॉक करने
के बाद मेन इं स क ओर बढ़ गया। वहां प च ं ने पर ये देखकर हैरान रह गया क अमूनन
जहां ए सिबन के पास एक-दो पुिलिसये होते थे, उस घड़ी वहां सात सीआरपी के जवान
खड़े थे जो हर आने-जाने वाले को अपनी ए सरे करती िनगाह से घूर रहे थे। ज र वो
ए ा इं तजाम गणतं दवस क वजह से कया गया था।
मेरे आगे चार लोग थे जो एक-एक करके अपना-अपना सामान ए सिबन म डालकर
आगे बढ़ते गये। फर मेरी बारी आई। दल क धड़कन पर जबरन काबू पाते ए मने दोन
सूटके स मशीन म डाले और कांपते कदम से आगे बढ़ा। हर ण मुझे लग रहा था क अभी
वहां खड़े जवान मुझे आ घेरगे। मगर ऐसा नह आ। कसी ने मुझे नह टोका। दोन
सूटके स परली तरफ प च ं गये तो िझझकते ए मने उनक ओर हाथ बढ़ाया। अगले ही पल
मने दोेन सूटके स उठाये और घूमकर मशीन के दूसरी तरफ खड़े सीआरपी के जवान क
ओर देखा, यूं लगा जैसे सब के सब एक साथ मुझे देखकर मु करा रहे ह ।
जो क यक नन मेरा वहम था।
बहरहाल म दोन सूटके स उठाए वचिलत सी ढ़य पर सवार हो गया।
कमाल के थे वो लोग, कमाल क थी उनक सलािहयात, जो साढ़े चार करोड़ पये
ए सिबन से गुजर गये और कसी ने उसपर यान देने क भी कोिशश नह क ।
आिखरकार म ऊपर पुल पर प च ं ा और लेटफाम नंबर पांच क तरफ बढ़ चला।
सूटके स बेहद भारी थे, मगर पिहए लगे होने क वजह से मुझे कोई खास परे शानी नह हो
रही थी। अलब ा नोट म भी वजन होता है इसका एहसास आपके खा दम को पहली बार
आ था।
म उस व लेटफाम नंबर आठ के िलए नीचे उतरती सी ढ़य का दहाना पार कर रहा
था जब मेरा मोबाइल बाइ ेट होने लगा।
मने दोन सूटके स साइड म खड़े करके कॉल अटड क ।
“तु हारे सामने से जो कु ली आ रहा है, उसे दोन सूटके स स प दो और िबना कॉल
िड कनै ट कये आगे बढ़ो।”
मने त काल आगे-पीछे, दाय-बाय नजर दौड़ाई मगर ऐसा कोई दखाई नह आया जो
मुझपर नजर रखे ए हो। फर य कर उसे खबर थी क म कहां प च ं ा था। या उन लोग
ने वहां लगे सीसीटीवी कै मरे भी हैक कर रखे थे।
पता नह या माजरा था।
अभी मेरी उलझन दूर भी नह ई थी क एक कु ली मेरे सामने आकर खड़ा हो गया।
मने पय से भरे दोन बैग उसके हवाले कये और मोबाइल कान म सटाये ए उसके
पीछे-पीछे चल पड़ा।
“अब अपनी र तार धीमी करो! - मोबाइल पर म िमला - “धीरे -धीरे लगातार कम

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करते जाओ। इस तरह क कसी को शक ना हो क तुम अपने सूटके स के पीछे नह जा
रहे।”
“तु हारा मतलब है अब मुझे लेटफाम नंबर पांच पर नह जाना है।”
“ कतने समझदार हो डा लग! गुड, यूंही चलते रहो, ब त ज दी तु हे अपनी इस
वािहयात ूटी से फु रसत िमल जायेगी, चलते रहो, धीमे और धीमे, शाबाश! अब वािपस
मुड़ो और िजधर से आये थे उधर को चल पड़ो, टेशन से िनकलकर अपनी कार म सवार
हो जाओ। फर तुम जहां जाना चाहो जा सकते हो, चाहो तो उस कु ली को भी ढू ंढने क
कोिशश कर सकते हो। देखना या पता तुम उसके ज रए हम तक प च ं ने म कामयाब हो
ही जाओ।”
“मेरा ऐसा कोई इरादा नह है!” - म वािपस एि ज ट क ओर बढ़ता आ बोला - “पैसे
तु हे िमल गये अब वीिडयो मुझे कब और कै से िमलेगी।”
“वैसे ही जैसे पहले िमली थी, अपना हा सए प चेक करो।”
मने कया साथ ही इस बार एक नया काम ये कया क उसे देखने से पहले ही सािहल
को फारवड कर दया िजसे मेरी िहदायत थी क वो फौरन उसे कसी पैन ाइव म कॉपी
कर ले। उसके पास एक ओटीजी पैन ाइव पहले से ही थी जो क सीधा मोबाइल से कनै ट
हो जाती है। िलहाजा वीिडयो कॉपी करने म उसे जरा भी व नह लगना था।
“ या आ, िमली नह ।”
“िमल तो गई, मगर तुम फर िडलीट कर दोगी तो म या क ं गा।”
जवाब म मुझे उसक हंसी सुनाई दी! दल म अरमान जगाने वाली हंसी! अिभसार के
सपने देखने को मजबूर कर देने वाली हंसी।
“ऐसा नह होगा िम टर गोखले।”
“और मेरा शेयर!”
“िमल जायेगा।”
“कब कहां, कह वो भी तुम हा सए प पर ही तो नह देने वाली हो।”
“अगर उससे तु हारी तस ली होती हो तो बोलो अभी दये देती ।ं वरना खुद सोचो
और कसी तरह से फलहाल ऐसा कै से मुम कन हो सकता है। इसिलए घर जाओ और
इं तजार करो, तु हारा िह सा तुम तक प चं जायेगा, गुड बाय िम टर गोखले!”
“सुनो-सुनो, लीज!”
“बोलो!”
“तु हारी आवाज ब त सै सी है, बजाते तुम खुद कै सी हो।”
“एकदम से मदहोश कर देने वाली, देखते ही गश खा जाओगे! समने से छ ीस, िमडल
से सताइस और पीछे से सतीस ।ं ”
“िलहाजा पटाखा हो।”
“नह बम ,ं िलहाजा दूर ही रहो।”
“ या हमारी मुलाकात नह हो सकती।”
“ य शादी करने का इरादा है।”

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“ कतनी बे दी बात करती हो, जब क छ ीस-सताइस-सतीस क बताती हो खुद को।”
वो फर हंसी।
“तो म उ मीद क ं !”
“ज र करो, य क मेरे मना करने पर मान तो जाओगे नह , अलब ा रात को अपने
जहन म मेरा तसो बुर करके कु छ उ टा-सीधा मत करना वरना जान ले लूंगी।”
“उसके िलए तु ह मेरे ब होना पड़ेगा। तब देखगे कौन कसका या लेता है।”
“िलहाजा जासूस होने के साथ-साथ दलच प भी हो।”
“वो तो बंदा सौ फ सदी है, दल से च पा कर लेने लायक।”
“ फर तो कभी ना कभी मुलाकात ज र होगी, देख तब तुम मुझे पहचान भी पाते हो
या नह , तब तक के िलए अलिवदा।”
कहकर उसने कॉल िड कनै ट कर दी। मगर मुझे पूरी उ मीद थी क इतनी देर म
सािहल ने उस वीिडयो क कॉपी ज र तैयार कर ली होगी।
मने उसे फोन करके उस बाबत दरया त कया तो उसने बताया क वीिडयो पूरी तरह
महफू ज थी।
अब मुझे ये जानना था क शीला और नीलम के हाथ या लगा था, कु छ लगा भी था या
नह । मने शीला को फोन कया तो घंटी जाती रही मगर उसने कॉल अटड नह क । तब
मने नीलम के मोबाइल पर कॉल लगाई।
त काल जवाब िमला।
“कहां हो तुम दोन ?”
“ लेटफाम नंबर सात पर।”
“कु छ प ले पड़ा?”
“नह , आगे पड़ता भी नह दखाई दे रहा। तु हारे हाथ से सूटके स लेने वाला कु ली
सीधा लेटफॉम पर प च ं ा और दोन सूटके स को एक बोरे म भरकर यहां खड़ी हाजीपुर
ए स ेस के लगेज बोगी म रख दया। सबसे यादा हैरानी क बात तो ये है क उसने उसे
बुक कराने क कोिशश भी नह क । उसपर कोई िशना ती िनशान तक नह लगाया।”
“ज र रे लवे का कोई टॉफ उन लोग से िमला आ होगा, जो क आगे कसी टेशन
पर उनका माल उ ह स प देने वाला होगा।”
“हो तो सकता है मगर यूं वो दोन सूटके स कस टेशन पर उतारे जायगे हम कै से पता
लग सकता है। अगर माल बुक कराया गया होता तो हम बु कं ग िडपाटमट से उस बाबत
कोई जानकारी हािसल करने क कोिशश कर सकते थे। वरना तो हम यहां से हाजीपुर तक
हर टेशन पर ेन से उतरकर ये देखना पड़ेगा क वो माल कहां उतारा जाता है और
उसक िडलीवरी कौन लेता है।”
“ऐसा तो खैर नह होने वाला! य क मुझे पूरी उ मीद है क इ ा-दु ा टेशन पार
होते ही सूटके स वाला बोरा उतार िलया जायेगा। करोड़ क दौलत को वे लोग यूं
लावा रस छोड़ना अफोड नह कर सकते। फर भी म तुम दोन को ेन म सवार होने क
राय नह दूग ं ा। हमारा अहम मकसद वो वीिडयो हािसल करना था, जो क पूरा हो चुका

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है। इसिलए दोन वािपस लौटो और सारे िसलिसले को भूल जाओ।”
“थोड़ा ठहरो, अभी शीला उस कु ली के गले पड़ने म लगी ई है, या पता कोई काम क
बात मालूम हो ही जाय।”
“ठीक है म ीिमयम पा कग म अपनी कार म बैठा ,ं फा रग हो जाओ तो खबर
करना।”
“ठीक है।” कहकर उसने काल िड कनै ट कर दी।
कार के भीतर सवार होकर मने एक िसगरे ट सुलगाया और मौजूदा के स के अनु रत
सवाल के जवाब तलाशने क कोिशश करने लगा।
तकरीबन आधा घंटा यूंही गुजर गया। फर फोन क घंटी बजी! नीलम का फोन था।
“मेरे घर प च ं ो!” - वो बोली - “हम भी वह प च ं रहे ह, अगर पहले प चं जाओ तो
कार म मत बैठे रहना भीतर प च ं कर हमारा इं तजार करना। हाउस क पर तु ह
पहचानती है इसिलए कोई ॉ लम नह होगी।”
“ओके ।”
वो वातालाप वह समा हो गया। मने कार पा कग से िनकाली और ई ट ऑफ कै लाश
क ओर चल पड़ा जहां एक पांच सौ मीटर के वगाकार लाट पर बने बंगले म नीलम का
थाई िनवास था। जो क व तुतः उसके पूव मािलक का था और नीलम को िवरासत म
िमला था।
आठ बजे के करीब उसके बंगले पर प च ं कर मने कार का हॉन बजाया तो गाड ने गेट
खोल दया। म भीतर दािखल आ तो पता चला दोन मुझसे पहले वहां प च ं ी ईथ।
बैठक म प च ं कर म एक सोफे पर जम गया। तभी हाउस क पर हम तीन के िलए
कॉफ बना लाई।
“अब शु हो जाओ।”
“ऐसे कै से शु हो जाएं!” - जवाब शीला ने दया - “नाकामी क दा तान बयान करना
या कोई हंसी मजाक है।”
“नह , पंिडत से मु त िनकलवाये िबना भला कै से संभव है।”
“वही तो।”
“तो म इं तजाम क ं कसी पंिडत का।”
“नह फलहाल तो रहने ही दो। म ऐसे ही बताए देती ं क कु छ हाथ नह लगा।
हालां क म कु ली क जुबान खुलवाने म कामयाब हो गई थी, मगर वो इसके अलावा कु छ
नह बता सका क उसे दोन सूटके स को पैक कर के ेन क लगेज बोगी म रखने के िलए
पैसे दये गये थे।”
“ कसने दए थे।”
“वो कोई मोटा-पतला, लंबा- ठगना, दाढ़ी वाला- लीन से ड, गोरा-काला आदमी था
जो क अपना नाम रहमत अली बताता था। उसने कु ली से कहा था क एक खास व पर
उसके बताये गये आदमी से उसने दो सूटके स हािसल करने थे और एक बोरे म पैक करने के
बाद उसे हाजीपुर ए स ेस क लगेज बोगी म डाल देना है, बस उसका काम ख म।”

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“कमाल है!”
“और खास बात ये रही क इस काम के िलए उसका मेहनताना पांच हजार पया तय
आ था जो क उसे एडवांस पे कया गया था।”
“अरे यूं तो कल को कोई उसे बम रखने को दे सकता था, हिथयार का जखीरा रखने को
दे सकता था।”
“मने ऐन यही सवाल उससे कया था, तब उसने बड़े ही गव के साथ बताया क वो
उतना मूरख नह था िजतना क म उसे समझ रही थी। उसने पहले ही तय कर िलया था
क वो ए सिबन से गुजरने के बाद ही सूटके स को हाथ लगायेगा, िलहाजा वो उस घड़ी
इं ेस पर खड़ा हर आने-जाने वाले को ताड़ रहा था, जब तुमने वहां प च ं कर दोन सूटके स
मशीन म डाले थे।”
“यूं टेशन पर तो जाने कतने लोग सूटके स के साथ प चं ते ही रहते ह, उसने भीड़ म से
मुझे शॉटआउट कै से कर िलया।”
“नह कया था, कर भी नह सकता था, उसे तो बाकायदा खबर क गई थी क तुम
वहां प च ं रहे हो।”
“कमाल है उसे ये सारा िसलिसला अजीब नह लगा।”
“नह लगा, वो कहता है क ऐसा उसने कोई पहली बार नह कया था। अ सर ऐसे
क टमर आ जाते थे, जो कोई पैकेज कह दूर भेजना चाहते थे। तब वो पांच सौ हजार
पये लेकर सामान को लगेज बोगी म रखवा देता था, िजसे पूव िनधा रत टेशन पर
उतार दया जाता था। अलब ा ऐसा पहली बार आ था क क टमर ने सामान अपनी
देख-रे ख म नह रखवाया था, बि क पहले ही उसक बाबत सौदा कर चुका था।”
“ फर तो उसने ये भी बताया होगा क वो सूटके स कहां उतारे जाने ह।”
“हां, इलाहाबाद म।”
“कमाल है इस के स क एक भी बात अभी तक प ले नह पड़ रही। तेरी अगर
ताजातरीन खोज ‘आगनाइज ाइम‘ वाली बात को खा रज कर दया जाय तो जो हो रहा
है वो य कर हो रहा है, ये बात प ले नह पड़ती।”
“ये ऑगनाइज ाइम वाली बात या है।” तब नीलम पहली बार बोली।
जवाब म शीला ने उसे सारा क सा सुना डाला।
“कमाल है!” - सुनकर वो बोली - “अब अपरािधय के हौसले इतने बुलंद हो गये ह।”
“ या बड़ी बात है, जब कह बम िव फोट करने के बाद कोई आतंक संगठन उसक
िज मेदारी ले सकता है तो ये तो ब त मामूली बात है। वे लोग तो बस अपने िशकार क
बेगुनाही का सबूत बेच रहे ह ना क खुद को कानून के हवाले कर रहे ह।”
“वो वीिडयो इस व है तु हारे पास।”
“होनी तो चािहए।” कहकर मने हा सए प के फो डर म जाकर देखा तो वहां सािहल
क मुि दाता वीिडयो मौजूद थी। मने मोबाइल म ही उसे ले करके उसका ख दोन
सुंद रय क ओर कर दया।
दोन पूरी त मयता से वीिडयो देखने लग । जैस-े जैसे वीिडयो आगे बढ़ती गई, उनके

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चेहरे पर हैरानी के भाव म इजाफा होता गया।
आिखरकार वीिडयो ख म ई फर अचानक ही शीला हकबकाकर मेरा चेहरा देखने
लगी।
“ या आ?” म तिनक हड़बड़ा सा गया।
“ये तो तुम हो।” वो बोली।
“कौन म ?ं ”
“सोनाली के काितल!” - शीला बोली - “जो क इस वीिडयो म उसे गोली मारता
दखाई दे रहा है।”
“ या बकती है, काितल का चेहरा कहां दख रहा है उसम।”
“चेहरा ना सही मगर तु ह जानने वाला कोई भी श स साफ कह देगा क वीिडयो म
दखाई दे रहे श स तुम हो।”
“तू पागल तो नह हो गयी है।” - कहकर तिनक हड़बड़ाते ए मने वीिडयो को दोबारा
ले कया, फर बोला - “लगता है तुझे मुझसे मोह बत हो गई है, इसीिलए तुझे हर श स
म मेरा ही अ स दखाई देने लगा है।”
“वो तो खैर ये बंदी झेल ही लेगी कसी तरह, मगर शादी के बाद भी ऐसा बना रहा तो
कै से बीतेगी। पता लगा हनीमून पर गई तु हारे साथ और पहलू कसी और का आबाद कर
आई। घर आया दूध वाला और मुझे लगा तुम हो, बाजार गई सामान लेने और दुकानदार
म तुम दखाई देने लगे।”
“बक चुक ।”
“नह अभी तो अखबार वाले, ेस वाले और स जी वाले के बारे म बताना बाक है।”
मने फौरन खा जाने वाली िनगाह से उसे घूरा, िजसका उसपर सचमुच कोई असर आ
था क नह कहना मुहाल था, अलब ा उसने कसकर अपने जबड़े भ च िलये।
“अब तू भी तो कु छ उचर कर दखा!” - म नीलम से बोला - “और कु छ नह तो इस
वीिडयो के बारे म ही कु छ बता, अदालत म कोई वै यू है या नह इसक ।”
“वो तो बराबर है, मगर सािहल के िखलाफ के स तब तक खा रज नह होगा, जब तक
क फोरिसक टीम इस वीिडयो को जेनुइन नह घोिषत कर देती।”
“और उसपर जो पुिलस को जांच म सहयोग देने क पाबं दयां लगाई गई ह, उसका
या होगा।”
“वो तो समझो इस वीिडयो के सामने आते ही हटा ली जायेगी। ऊपर से शीला ने िजन
दो जुदा मुकदम का हवाला दया है, उसका िज भर काफ होगा, पुिलस को सोनाली के
क ल क नये िसरे से त तीश करने को मजबूर करने के िलए। मगर बतौर िडफस लॉयर
मुझे तस ली नह िमली, भला ये भी कोई मुकदमा आ जहां मुलिजम को उस सबूत के
िबना पर बेगुनाह सािबत कराया जाय जो खुद उसने, ना क उसके वक ल ने अपनी मेहनत
से हािसल कया है।”
“तो ऐसा करते ह क इस वीिडयो को सामने लाये िबना उसे बेगुनाह सािबत करने क
कोई जुगत िनकालते ह, तब तो तेरे अहम क तुि हो जायेगी।”

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वो हंसी।
“बहरहाल के स अभी जहां का तहां लटका आ है, ये वीिडयो भले ही ये सािबत कर
देगी क सािहल भगत बेगुनाह है। मगर इससे सोनाली का ह यारा तो िगर तार नह हो
जाता। िलहाजा काितल क तलाश तो अभी जारी रहेगी। सािहल भी यही चाहता है क
उसक बीवी के ह यारे को हर हाल म उसके कए क सजा िमले ना क सोनाली भगत क
ह या का के स पुिलस के अनसॉ व के स क सं या म महज इजाफा भर कर दे।”
“वो तु हारा महकमा है, मुझे यक न है क तुम बखूबी उस काम को अंजाम दे सकते हो।
अलब ा सािहल के बेगुनाह िनकल आने क सूरत म ना जाने य मेरा यान बार-बार
महेश बाली क ओर भटक जाता है। म अदालत म उसक गवाही कराने वाली थी। ले कन
मौजूदा हालात म उसक कोई ज रत मुझे खुद महसूस नह हो रही। मेरी मानो तो तुम
सबसे पहले उसी से िमलकर देखो, या पता कोई काम क जानकारी हाथ लग ही जाय।”
“ठीक कहती है, म चौहान को फोन करता ं उसे बाली का अता-पता मालूम होगा,
नह भी होगा तो मुझे पूरी उ मीद है क वो मेरी खाितर ये जहमत करे गा।”
कहकर मने चौहान को फोन करके उस बाबत सवाल कया तो पता चला क बाली का
पता ठकाना तो उसे भी नह मालूम था। अलब ा उसने दस िमनट म बताने क बात
कहकर कॉल िड कनै ट कर दी।
तब तक नौ बज चुके थे। नीलम के साथ हम दोन ने िडनर पर हाथ साफ करना शु
कया ही था क तभी चौहान का फोन आ गया।
“गोखले, तुझे बाली का पता कसिलए चािहए था।”
“ कसिलए का या मतलब है भई, वो या कोई सी े ट चीज है जो बताने से तु हे
इं कार है।”
“बहस मत कर यार!”
“सोनाली के क ल के िसलिसले म उससे दो-चार सवाल करना चाहता था और या
मुझे उससे र तेदारी जोड़नी है।”
“वो तो खैर अब तू नह कर सकता?”
“अब पर कु छ खास जोर है तु हारा।”
“हां, तकरीबन बीस िमनट पहले साके त ि थत उसके लैट म कसी ने गोली मारकर
उसक ह या कर दी।”
सुनकर म यूं िच क
ं ा, जैसे कसी िब छू ने डंक मार दया हो, हाथ म थमा िनवाला मुंह
के भीतर नह डाला गया।
“ कसने कया!”
“अरे अभी-अभी तो क ल क खबर िमली है, इतनी ज दी काितल का पता या जादू के
जोर से चल जायेगा।”
“मेरा मतलब था, कसने कया होगा।”
“सािहल भगत के बारे म या याल है।”
“वो बाली का ह यारा नह हो सकता।”

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“ य भई, जब वो ब कार बीवी क ह या कर सकता है तो बीवी के आिशक को भला
जंदा कै से छोड़ देता, जो क उसक तमाम दु ा रय क जड़ था।”
“उसने सोनाली क ह या नह क है।”
“तुझे कै से पता।”
“बस है कसी तरह, वो एक लंबी कहानी है!” - म उसक बात टालता आ बोला -
“बहरहाल, अगर वो साके त म रहता था, फर तो ये तु हारे ही थाने का के स आ।”
“हां भई, और िसफ थाने का नह बि क मेरा के स आ। इसक इं वे टीगेशन मुझे ही
स पी गई है। ूटी भुगतने ही जा रहा ।ं तेरी कॉल के बाद ही कं ोल म से उसक ह या
का मैसेज िमला था।”
“साके त म कहां?”
“एम लॉक, पांच नंबर गली।”
“मेरे वहां आने पर तु ह कोई ऐतराज तो नह होगा।”
“म कौन होता ं ऐतराज करने वाला, ऊपर से अगर पांडे साहब वहां प च ं जाते ह -
िजसक क पूरी-पूरी उ मीद है - तो मेरे ऐतराज क वै यू ही या रह जायेगी।”
म हंसा।
“तो आ रहा है तू।”
“हां पास म ही ,ं मुि कल से आधे घंटे म प च
ं जाऊंगा।”
कहकर मने काल िड कनै ट कर दया।
“ख म!” नीलम के मुंह से िनकला।
“हां, अभी आधा घंटा पहले।”
“ये तो एक नया मोड़ आ गया इस के स म।” - नीलम बड़े ही गंभीर लहजे म बोली -
“ या ऐसा हो सकता है क उसके क ल का सोनाली क ह या से कोई लेना-देना ही ना
हो।”
“होने को तो ये भी हो सकता है क वो खुद सोनाली क ह या के कारनाम म शािमल
रहा हो, िजसे कमजोर कड़ी समझकर उसके अपने ही गगवाल ने ठकाने लगा दया हो।”
“मेरे याल से तो वीिडयो म दखाई दे रहा कलर वो खुद रहा हो सकता है।” - इस
बार शीला बड़े ही संजीदा लहजे म बोली - “तुम कहते हो क क ल के व वो बाहर सड़क
पर खड़ा था। ले कन कब खड़ा था, जब सािहल वहां प च ं चुका था। पहले इस बात पर
यक न करने क वजह थी, जो क इस वीिडयो ने िसरे से खा रज कर दी है। अब जैसा क
वीिडयो म दखाई दे रहा है क सािहल वहां सोनाली के क ल के करीब दो िमनट बाद
प चं ा था। ऐसे म सदी के महान जासूस िम टर िव ांत गोखले से मेरा सवाल है क या
काितल मकतूला क ह या करने के बाद दो िमनट के व फे म मौकायेवारदात से िनकलकर
सड़क पर नह प च ं सकता था।”
“प च ं सकता था।”
“ फर काितल बाली य नह हो सकता?”
“अगर वो सोनाली का काितल है तो उसक ह या य कर दी गई?”

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“म तु हारा वाला ही जवाब दोहराती !ं बाली क ह या इसिलए क गई य क वो
जंजीर क सबसे कमजोर कड़ी था। एक बार पुिलस सािहल भगत को बेकसूर मान लेती तो
उन लोग का सारा यान बाली पर क त हो जाता, जो क पुिलस के दबाव म आकर
कसी भी व अपना मुंह फाड़ सकता था।”
“िलहाजा अब हमने सोनाली का काितल नह ढू ंढना है बि क बाली के ह यारे को
तलाशना है।”
“एक ही बात है, य क दोन क ह या का मामला उन लोग से जुड़ा आ है िज ह ने
साढ़े चार करोड़ पय के बदले म तु ह सािहल क बेगुनाही क वीिडयो मुहय ै ा कराई है।”
“ फर तो हो सकता है क टेशन वाले कु ली को पांच हजार के बदले म सूटके स को
लगेज बोगी म रखने का काम स पने वाला भी महेश बाली ही रहा हो।” - नीलम बोली -
“अगर ये बात सािबत हो जाती है तो कम से कम ये साफ हो जायेगा क बाली क उन
लोग से िमलीभगत थी। ऐसे म वीिडयो म दखाई दे रहा काितल बाली हो सकता है।”
“मगर ये बात हम सािबत कै से करगे, ये तो बड़ा व खाऊं काम होगा।”
“वो तुम मुझपर छोड़ दो, उसके िब ले क याद है मुझ,े कल म पता करवा लूंगी क उसे
पैसे देने वाला श स महेश बाली था या नह ।”
“ फर तो अब म इजाजत चा ग ं ा।”
“मौकायेवारदात पर जाओगे।”
“हां!”
“ याल रखना लीज!”
“अपना!”
“नह उस वीिडयो के िज का!” - नीलम हंसती ई बोली - “उसक बाबत कसी को
बताने से परहेज बरतना।”
“अब ब े मत पढ़ा यार!”
“सॉरी पता नह था क मु ा बड़ा हो गया है।”
“वो तो ब त बड़ा हो गया है!” - म उसके नजदीक प च ं कर उसके कान म बोला -
“बोल तो वािपस रात को यह आ जाऊं।”
“नो, पागल हो गये हो या!” - वो फु सफु साती ई बोली - “रात को हाउस क पर यह
सोती है, या सोचेगी मेरे बारे म।”
“तो तू मेरे लैट पर चल!”
“म सोचूंगी, पहले तुम मौकायेवारदात का फे रा तो लगा लो।”
“प ा सोचेगी न!”
“हां यार! अब जाओ भी।” इस दफा वो जोर से बोली और मुझे दरवाजे क ओर धके ल
दया।
साढ़े नौ के करीब म घटना थल पर प च ं ा। िब डंग के बाहर लोग का जूम इक ा
था। एक पीसीआर वैन और तीन मोटरसाइक स वहां मौजूद थ । चार पुिलिसये इमारत के
बाहर टहल रहे थे जो कसी को भी, यहां तक क उस इमारत के वा शंद तक को अंदर

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नह जाने दे रहे थे। चार म से एक पुिलिसये को म पहचानता था, इसिलए सीधा उसके
करीब प च ं ा।
“चौहान साहब आये या नह अभी तक।”
“उ ह तो यहां प चं े ब त देर हो गई।”
“और कौन है भीतर?”
“भीतर नह ऊपरी मंिजल पर! वारदात वह ई है।”
“मेरा मतलब था, पांडे साहब प च ं े या नह अभी।”
“अभी तो भैया चौहान साहब और िनहाल संह ही ह वहां, पांडे साहब क तो कोई
खबर मुझे नह है।”
“ठीक है मुझे ऊपर जाने दो।”
“ य भई दो-चार, मीठी-मीठी बात कर ल इसिलए।”
“ य लास ले रहे हो यार, मुझे या तुमने पहली बार देखा है।”
“नह पहली बार तो नह देखा, बस ये समझाने क कोिशश कर रहा ं क यहां प च ं ते
ही सीधा ऊपर जाने क बात कह देते तो भी नह रोकता तु हे, भला ऊपर जाने से कसी
को कौन रोक सकता है।”
मने हैरानी से उसक श ल देखी, त काल उसके चेहरे पर िवनोद के भाव उजागर ए।
वो हंस पड़ा तो म भी हंसा।
सी ढ़यां चढ़कर म पहले माले पर प च ं ा। वहां लैट कु छ इस तरह से बने ए थे क हर
लोर पर आमने-सामने दरवाजे वाले दो-दो लैट थे, अलब ा उनपर कोई नंबर वगैरह
नह पड़ा था। उस घड़ी दोन तरफ के दरवाजे खुले थे। िजनम से बा तरफ वाले दरवाजे
से मुझे भीतर खड़ा चौहान दखाई दया।
“भीतर मत आना!” - मुझपर िनगाह पड़ते ही उसने चेतावनी दी - “फोरिसक टीम बस
आती ही होगी, एक बार उनका काम ख म हो जाय फर जी भरकर मुआयना कर लेना।”
कहता आ वो खुद बाहर िनकल आया, “िसगरे ट है तेरे पास।”
जवाब देने क बजाय मने िसगरे ट का पैकेट और लाइटर दोन उसके हवाले कर दया।
दयानतदारी दखाते ए उसने दो िसगरे ट सुलगाये और एक मुझे थमाता आ बोला,
“ वाइं ट लक रज से शूट कया गया है इसे।”
“आलाएक ल!”
“नह िमला, ज र क ल के बाद ह यारा उसे अपने साथ ले गया होगा। उस बाबत मेरा
खुद का अंदाजा ये है क मकतूल को कसी हैवी कै िलबर क गन से शूट कया गया है।
ले कन गोली माथे म यादा भीतर तक नह गई है।”
“इसका या मतलब आ?”
“सोच दमाग पर जोर डाल, समझ जायेगा।”
“ रवा वर पर साइलसर चढ़ा आ होगा।”
“ए जे टली! वैसे भी आस-पास कसी ने गोली चलने क आवाज नह सुनी, उसक
वजह ज र साइलसर ही रहा होगा।”

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“और या जाना!”
“काितल कोई औरत हो सकती है, भीतर सटर टेबल पर दो कांच के िगलास पड़े ह,
िजनम से एक पर मै न कलर क िलपि टक के िनशान ह। दोन िगलास आधे से यादा
भरे ए ह, िलहाजा वो जो कोई भी थी यहां यादा देर तक नह क थी, वरना जाम
खाली हो चुके होते।”
“वो उनका दूसरा तीसरा...।” कहते कहते म उसे खुद को घूरता पाकर खामोश हो गया
- “ या आ?”
“मुझे एड़ा समझा है।”
“यािन तु हे यक नी तौर पर पता है क वो उनके बीच का पहला जाम ही था।”
“हां और उस यक न क वजह है कोिनयाक ांडी क वो बोतल जो तकरीबन उतनी ही
खाली है िजतनी ांडी उनके िगलास म हो सकती है।”
“यानी मकतूल के पहचान वाली कोई लड़क उससे िमलने यहां प च ं ी, मकतूल ने
उसके िलए दरवाजा खोला, उसे भीतर ले जाकर बैठाया और दोन के िलए जाम तैयार
कये। फर लड़क ने िगलास से एक दो घूंट भरे और रवा वर िनकालकर उसके माथे से
सटाकर गोली चला दी।”
“ आ तो कु छ ऐसा ही लगता है।”
“िलहाजा जब उसने रवा वर िनकालकर उसके माथे से सटाया तो मकतूल खामोशी से
बैठा उसके ारा गर ख चे जाने का इं तजार कर रहा था। या फर अपने बनाने वाले को
याद कर रहा था।”
मेरी बात सुनकर वो तिनक सकपकाया फर बोला, “ या कहना चाहता है।”
“कहना नह बि क कु छ पूछना चाहता ं क जब काितल रवा वर िनकालकर उसके
माथे से सटा रहा था, तो य कर मकतूल को उसक खबर नह ई और अगर ई तो य
उसने खुद के बचाव क कोिशश नह क ।”
“तुझे या पता क नह क ।”
“नह ही क होगी, वरना काितल ऐन उसके माथे म सुराग बनाने म कै से कामयाब हो
जाती। अगर उसने अपने बचाव क कोिशश क होती तो कोई बड़ी बात नह थी क
काितल क चलाई गोली उसे आजू-बाजू कह लगती, या लगती ही नह , लगती तो दूसरी
तीसरी गोली लगती।”
“बात तो तेरी ठीक है गोखले, मगर इसका मतलब या आ, या गोली मजाक-मजाक
म चल पड़ी थी।”
“या मजाक-मजाक म चला दी गई! मकतूल को काितल ारा खुद के माथे म िप तौल
सटाने पर कोई खतरा महसूस ही नह आ होगा। काितल ने कहा होगा, चला दूं गोली, तो
उसने हंसते ए कहा होगा, चला दो। तब काितल ने सचमुच उसे गोली मार दी और यहां
से चलती बनी।”
“यूं तो काितल मरने वाले क बेहद करीबी रही होगी।”
“सो तो है।”

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“ फर उसके इतनी करीबी ने उसे गोली य मार दी।”
“ य क सोनाली क ह या के बाद बाली क माशूका को पता चल गया था, क उसका
सोनाली से भी च र चल रहा था।”
“कमाल है तूने तो सारी िम ी ही हल कर के दखा दी। अब तो बस मकतूल क ऐसी
कोई माशूका को तलाशना बाक है और के स सॉ व! पीडी िव ांत गोखले के सौज य से।”
म हंसा, उसने मेरी हंसी म पूरा साथ दया।
“तूने अगर ये बात मजाक म भी कही है तो भी मानना पड़ेगा क तेरी योरी म दम है।
म पहला लाईन ऑफ ए शन यही िनधा रत क ं गा। यूं या पता काितल हाथ लग ही
जाय। नह लगेगा तो देखगे।”
“िलहाजा इसके क ल को लेकर फलहाल तु हारा सािहल भगत के पीछे पड़ने का कोई
इरादा नह है।”
“ फलहाल नह है, फर उसके पीछे पड़ना या हंसी मजाक है। उससे जो पूछताछ
करनी होगी एसीपी साहब करगे। सच पूछ तो क ल क वारदात म घटना थल पर मेरे
एसएचओ या एिडशन एसएसओ को होना चािहए। मगर दोन ही शहर के दूसरे छोर पर
अलग-अलग िह स म कसी बड़ी मछली का िशकार करने म त ह। इसिलए म इस
व यहां तुझे अके ला दखाई दे रहा ।ं अलब ा पांडे साहब से मेरी बात हो गई है।
उ ह ने एक घंटे म यहां प च ं ने क बात कही है। आगे उनका जैसा म होगा, तामील
करनी होगी।”
वो वातालाप वह समा हो गया य क तभी पुिलस क फोरिसक टीम वहां प च ं
गई। चौहान उनके साथ त हो गया। आगे घंटे भर से पहले वो फा रग नह होने वाला
था। िलहाजा तब तक मने कु छ मेहनत कर लेने का फै सला कया।
सामने वाले लैट का दरवाजा जो क मेरे वहां प च ं ने पर खुला दखाई दे रहा था, अब
बंद हो चुका था। मने शु आत वह से करने क सोची।
दरवाजे के सामने प च ं कर मने घंटी बजाई।
त काल दरवाजा खुला, खुले दरवाजे पर एक खूब सजी-धजी युवती गट ई। उसक
उ मुि कल से बाइस-तेईस साल रही होगी, मगर अपने भारी बदन क वजह से वो उससे
कह यादा दखाई देती थी। अलब ा वो खूबसूरत तो यक नन थी। मने उसका नख-िशख
मुआयना कया।
“सेक ल आंख।”
“अभी नह , अभी तो बस शु ही कया था क तुमने टोक दया।”
“पुिलस क े नंग म ये गुण भी िसखाये जाते ह, मुझे मालूम नह था।”
िलहाजा वो मुझे कोई पुिलिसया समझ रही थी।
“नह , ये तो मेरा पाट टाइम काम है, अलब ा अब इसे फु लटाइम जॉब बनाने क सोच
रहा ।ं ”
“ य भई पुिलस क नौकरी रास नह आ रही या?”
“सच पूछो तो यही बात है, मुझे पुिलस क नौकरी जरा भी पसंद नह है।”

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“ या कहने तु हारे ।”
“अब इजाजत दोे तो बंदा कह आराम से बैठ-वैठ जाय ता क हमारे बीच कु छ बातचीत
हो सके ।”
“अरे अभी कु छ बाक रह गया या?”
“सब बाक ही बाक है जी, अभी तो समिझये बस शु आत भर ई है।”
“कमाल है, आधा घंटा तो वो हवलदार मुझसे दुिनया जहान के सवाल करता रहा, अब
वो गया तो तुम आ गये! वारदात क खबर पुिलस को देकर मने कोई गुनाह कर दया
या।”
“ऐसा तो खैर नह है, इसिलए अगर तु हे ऐतराज है तो बंदा दरवाजे से ही इजाजत
चाहता है।”
“तुम जाओगे तो कोई और आ जाएगा।”
“अब कसी और का िज मा भला म कै से ले सकता ।ं ”
“ठीक है आ जाओ, मगर जरा ज दी करना, मुझे ाउं ड लोर पर एक पाट म शािमल
होना है।”
“कमाल है अमूनन तो औरत यादा से यादा टाइम क मांग करती ह।”
“म औरत नह ।ं ”
“लड़ कयां भी!”
“िम टर लीज! डबल मी नंग वाली बात करना बंद करो।”
“यस मैम!” - म तिनक िसर नवाकर बोला - “म सीधा मु े पर आता ।ं सबसे पहले तो
तुम अपना कोई अ छा सा नाम बता दो ता क बात करने म आसानी हो सके ।”
“मीता!” - वो बोली - “मीता स सेना।”
“मकतूल से वा कफ थ तुम! रही ही होगी आिखरी सामने के लैट म ही तो रहता
था।”
“कु छ खास नह ।”
“उसके क ल क खबर तु हे कै से लगी?”
“बस समझ लो यूंही लग गई। म तैयार होकर नीचे जा रही थी क मुझे बाली, िम टर
बाली का लैट खुला आ दखाई दया। जो क एकदम हैरान कर देने वाली बात थी।
य क आज से पहले मने कभी उनके लैट का दरवाजा खुला नह देखा था। उ सुकतावश
मने तिनक आगे बढ़कर दरवाजे से भीतर देखने क कोिशश क , तो कालीन पर पड़ा एक
लंबा हाथ मुझे दखाई दया। मुझे लगा बाली को कु छ हो गया है, झपटकर म उसके
दरवाजे तक प च ं ी। वहां प च
ं कर जब मने भीतर का नजारा कया तो हे भगवान! हे
भगवान! शु था म ठौर बेहोश होकर िगर ना गई।”
“ फर तुम अपने लैट म वािपस लौटी?”
“ना, कु छ देर तक तो म वह जड़ सी खड़ी रही, फर होश ठकाने आये,े तो मुझे
एहसास आ क पुिलस को फोन करना चािहए।”
“ फर तुम यहां वािपस लौटी।”

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“अरे सुनते नह हो, मने वो फोन बाली, िम टर बाली के लैट से कया था।”
“तुम तो बड़ी िह मत वाली लड़क हो, मुझे हैरानी हो रही है क तु ह मकतूल के लैट
म घुसते ए डर नह लगा। जब क हो सकता था काितल अभी भी भीतर होता और यूं
तु ह वहां प च
ं ता पाकर वो तु हारा भी क ल कर देता।”
“मेरा कसिलए।”
“गवाह को कौन जंदा छोड़ता है।”
“कमाल है! वो िसफ इसिलए मेरा क ल कर देता य क मने उसे बाली के लैट म
िलया होता।”
मने हैरानी से उसक ओर देखा। इतनी नासमझ तो वो कह से नह लगती थी क बात
का मम ना समझ पा रही हो। अलब ा थी तो लड़क ही, या पता चलता है।
“छोड़ो उस बात को!” - म बोला - “तो तुमने बाली के लडलाइन फोन से पुिलस को
फोन कया था।”
“वहां लडलाइन कहां रखा है।”
“ फर!”
“अरे लाश के करीब सटर टेबल पर बाली का मोबाइल दखाई दे रहा था। मने भीतर
जाकर मोबाइल उठाया और पुिलस को कॉल लगा दी।”
“ऐसा तुम अपने लैट म वािपस आकर अपने मोबाइल से भी तो कर सकती थी।”
“मेरा मोबाइल तो उस व मेरे हाथ म ही था। ले कन लाश देखकर म इतनी यादा
खौफजदा हो गई क मुझे लगा अगर मने अपने मोबाइल से पुिलस को फोन कया तो वो
लोग मुझे ही उसका काितल समझने लगगे।”
“इतनी दूर क बात तुमने सोच ली, मगर ये नह सोचा क यूं मौकायेवारदात पर कसी
चीज से छेड़खानी करना जुम माना जाता है।”
“नह सोचा, सोचती भी कै से, यूं कसी क लाश से ब होने का ये पहला मौका जो
था।”
“बहरहाल तुमने पुिलस को बाली के मोबाइल से फोन लगाया और उ ह बाली के क ल
क इि ला दे दी, फर या आ।”
“ फर या होना था, म वािपस अपने लैट म लौट आई! यहां आकर मने अपना
मेकअप दु त कया और दस बजने का इं तजार करने लगी।”
“दस बजने का य ?”
“बताया तो नीचे पाट म जाना है, सवा दस बजे! मेरी ड का बथ-डे है।”
“कमाल क लड़क हो तुम।”
“वो तो म ं ही।” - वो बड़ी शान से मु कराई फर उसने मोबाइल म व देखा और
आंदोिलत होती ई सी बोली - “ओ माई गॉड! दस बजकर दस िमनट हो गये, सुनीता तो
मुझे मार ही डालेगी।”
“सुनीता तु हारी सहेली का नाम है।”
“हां और तुम जरा ज दी-ज दी जुबान चलाओ ता क म ठीक टाइम पर वहां प च ं

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सकूं ।”
“तुम यहां अके ली रहती हो।”
“हां।”
“करती या हो?”
“एक एमएनसी म जॉब करती ।ं ”
“रहने वाली कहां क हो?”
“मथुरा क ।”
“यहां अके ली य रहती हो?”
“बस आजकल अके ली ,ं पेर स गांव गये ए ह, अगले स ाह लौट आयगे।”
“मरने वाले से कै सी बनती थी तु हारी।”
“यू मीन बाली, िम टर बाली से?”
“और कोई भी मरा है यहां।”
“नह ।”
“तो फर!”
“समझ लो बस हैलो-हाय हो जाती थी।”
“कमाल है तुम इतनी खूबसूरत हो फर भी तुम दोन के बीच बस हैलो-हाय होती थी।”
मने उसे तरह दी! वो खुश हो गई।
“सच पूछो तो हाय-हैलो भी बस होली दवाली ही होती थी!” - कहकर वो तिनक
क , एक बार मुंडी घुमाकर अपने दाएं-बाएं देखा, फर बड़े ही राजदराना अंदाज म
बोली - “मुझे तो लगता है वो गे था।”
“अरे नह ।” मने जानबूझकर हैरानी जताई।
“म सच कह रही ,ं तु ही सोचो अगर ऐसा नह होता तो या वो एक बार भी मुझे
नजर भर कर नह देखता।”
“बात तो ठीक है तु हारी, िलहाजा तुम ये कहना चाहती हो क वो तु हे जरा भी भाव
नह देता था।”
“कहते ए शरम आती है, मगर था ऐन ऐसा ही।”
“तुमने शू टंग कहां से सीखी।”
वो सवाल मने उसके पीठ पीछे दीवार पर टंगी त वीर को देखकर पूछा था। त वीर म
वो बंदक ू िलए खड़ी थी और िनशाना साधती दखाई दे रही थी।
“एन.सी.सी म।” - वो बेिहचक बोली - “मेरा िनशाना सबसे अ छा था, मुझे
िनशानेबाजी म मैडल भी िमला था।”
“कभी कोई िप तौल या रवा वर हडल कया है।”
“नह , कभी मौका ही नह िमला अलब ा वािहश ब त थी। मगर वािहश करने से
या होता है।” - उसने आह सी भरी फर बोली - “और कु छ पूछना है तु ह।”
“और तो बस तु हारी अंिगया का नाप जानना ही बाक रह गया है।”
“कै से जानोगे!” - बुरा मानने क बजाय वो मु कराती ई बोली - “मेरी जुबानी सुनोगे

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या िै टकली जानना चाहते हो।”
“तम ा तो ैि टकल क ही है, यौरी म या रखा है।”
“ फर तो तुम कसी और रोज मुझे फांसने क कोिशश करना, य क इस व म ब त
ज दी म ।ं ”
“फं स जाओगी?”
“ये तो तु हारी कोिशश पर िनभर है, हो सकता है फं स जाऊं, हो सकता है ना भी फं सू।
फलहाल तो मुझे फा रग करने क मेहरबानी करो तो म नीचे पाट म प च ं ।ूं ”
म उठ खड़ा आ और बड़े अरमान से उसक ओर देखता आ बोला, “कम से कम
बोहनी ही करा दो।”
उसने यूं श ल बनाई जैसे सोच म पड़ गई हो।
“करा सकती ं अगर वादा करो क िसफ बोहनी से स कर लोगे।”
“वादा नह भी क ं गा तो या तुमपर जबरन झपट पड़ूग ं ा।”
“पुिलसवाल का या भरोसा?”
“म पुिलसवाला नह !ं एक ाइवेट िडटेि टव ।ं ”
“ या!” - वो हैरानी से बोली - “मतलब म यहां ककर तु हारे सवाल का जवाब देने
के िलए मजबूर नह थी।”
“िब कु ल भी नह थी।”
“ फर तो बड़े कमीने इं सान िनकले तुम।”
म हंसा।
उसने मुझे यूं घूरा जैसा अभी मेरे टु कड़े-टु कड़े करके चबा जायेगी। मगर आ ऐन इसका
उ टा! मेरे एकदम करीब प च ं कर उसने अपनी दोन बाह मेरी गदन म िपरो दी और पंजो
के बल तिनक उचककर अपने ह ठ मेरे ह ठ पर रख दये।
म िनहाल हो गया।
मने कसकर उसे अपनी बाह म भ च िलया और उस मु तर से व म जो कु छ भी
करना संभव था, मने कया! कु छ ण वो िसलिसला यूंही चलता रहा।
“बस करो मुझे जाना है।” वो फु सफु साई।
“इतनी ज दी!”
“हां लीज! िवहैव नाऊ, लाइक ए जटलमैन।”
मने त काल उसे छोड़ दया। फर हम दोन एक साथ उसके लैट से बाहर िनकले। म
सामने वाले लैट क ओर बढ़ गया जब क वो सी ढ़यां उतरने लगी।
फोरिसक टीम मेरी आंख के सामने ही वहां से िवदा ई। तब मने लैट के भीतर कदम
रखा।
चौहान एक चेयर पर बैठा िसगरे ट के कश लगा रहा था।
“आ भई, कहां चला गया...।” - बोलते-बोलते अचानक ही वो खामोश हो गया और
हैरानी से मेरी श ल देखने लगा।
“ या आ?”

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“तुझे नह पता!”
“अरे या नह पता मुझ।े ”
“कहां से चाटकर आ रहा है?”
“ या?”
“िलपि टक! तेरे ह ठ लाल ए पड़े ह।”
म तिनक हड़बड़ाया फर माल िनकालकर अपने ह ठो पर रगड़ा तो माल पर गहरा
लाल रं ग उभर आया। मने अ छी तरह रगड़ कर ह ठ साफ कये और झपी सी हंसी हंसता
आ उसके बगल म एक चेयर पर ढेर हो गया।
“कोई मौका नह छोड़ता।”
म हंसा, फर त काल संजीदा होता आ बोला, “कु छ नया पता लगा।”
“नह , अलब ा अब मुझे इस बात म कोई दम नह दखाई देता क काितल कोई
लड़क थी।”
“ज र कोई खास बात सामने आ गई होगी।”
“खास बात िगलास पर िलपि टक से बन ह ठ के िनशान म है, हमारे ए सपट का
कहना है क िलपि टक के िजतने गहरे िनशान िगलास पर पाये गये ह, आमतौर पर
िगलास से िव क चुसकने से नह बन सकते ह।”
“ या मतलब आ इसका।”
“यही क वो िनशान जानबूझकर िगलास पर च पा कये गये ह ता क बाली का क ल
कसी औरत का कया-धरा नजर आए।”
“कमाल है, यूं िनशान क गहराई मापने का या कोई आला होता है, जो तु हारे
ए सपट ने ये दो टू क राय कायम कर ली।”
“आला तो नह होता मगर उसक बात म दम है। तू खुद सोचकर देख िगलास से कु छ
पीते व या हम िगलास को ह ठ के बीच दबा लेते ह, जवाब है नह । फर ऐसा य कर
संभव आ क िगलास के दोन साइड ह ठ के पूरे नाप बने ए ह।”
“िलहाजा ये कसी औरत का कारनामा नह हो सकता।”
“ऐन क ल ठोक कर पूछेगा तो म क ग ं ा क हो भी सकता है और नह भी हो सकता।”
“अब अगर इजाजत हो तो म लाश पर एक नजर डाल लूं।”
“िजतनी मज नजर डाल ले, वो या उठकर मना कर देगा।”
“उ मीद तो नह है।” कहता आ म उठकर लाश के करीब प च ं ा। मने झुककर उसके
माथे म बने गोली के सुराग का मुआयना कया! घाव का एंगल बताता था क गोली सीधा
उसके माथे म नह घुसी थी बि क ऊपर से नीचे क तरफ चलाई गई मालूम पड़ती थी।
इसिलए यादातर उ मीद इस बात क थी क उसे शूट करते व काितल उसके सामने
खड़ा था िजसक वजह से रवा वर नाल क तरफ से झुक गई होगी। अलब ा यूं उसके
सामने खड़े होकर काितल य कर उसके माथे म गोली मारने म कामयाब हो गया, ये
अपने आप म एक बड़ा सवाल था।
बाली क लाश सोफा चेयर पर पड़ी ई थी, माथे से अभी भी खून रसता दखाई दे

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रहा था। ज म क बाबत मुझे चौहान का अंदाजा ठीक जान पड़ता था क उसे कसी भारी
कै िलबर क गन से शूट कया गया था।
काितल और मकतूल के बीच कसी संघष क उ मीद ना के बराबर थी। िलहाजा गोली
चलने से पहले तक वहां जो कु छ भी घ टत आ था वो सब बेहद दो ताना माहौल म आ
था।
जो अहम सवाल इस व मेरे जहन म द तक दे रहा था वो ये था क बाली क ह या
का कोई संबंध सोनाली भगत क ह या से था या नह ? अगर नह था तो यह ए स लूिसव
तौर पर िसफ और िसफ पुिलस क मगजमारी थी क वे लोग बाली के ह यारे को खोज
िनकाल।
बहरहाल लाश का मुआयना करने के बाद मने पूरे लैट को खंगालने म कोई कसर रख
नह छोड़ी, मगर वहां ऐसा कु छ नह था जो मेरी िनगाह का मरकज बनता। उस पूरी
ि ल के दौरान चौहान मूक दशक बना रहा। आिखरकार वो जानता था क परो प से
म उसका ही काम कर रहा था।
म अपना तलाशी अिभयान ख म करने ही वाला था क मेरी िनगाह टीवी कै िबनेट के
िनचले िह से पर ठहर सी गई। करीब प च ं कर मने उसका दरवाजा खोला और भीतर
रखा फोटो े म बाहर िनकाल िलया। िजसम एक खूबसूरत लड़क क त वीर दखाई दे
रही थी। वो लड़क और कोई नह बि क सािहल भगत क से े टरी मं दरा जोशी थी।
मं दरा क त वीर बाली के लैट म देखकर मुझे बेहद हैरानी ई। म त काल उसक
क पना बाली क माशूका के प म करने लगा। िजसम िसफ एक बात आड़े आ रही थी
और वो ये थी क मं दरा जोशी को पता था क बाली क आशनाई उसके बॉस क बीवी
सोनाली के साथ थी, ऐसे म वो बाली को भला भाव य देती।
बात चाहे जो भी रही हो मगर बाली के लैट से बरामद मं दरा क त वीर क
अहिमयत को नजरअंदाज नह कया जा सकता था।
अभी त वीर मेरे हाथ म ही थी क चौहान ने वहां प चं कर त वीर पर िनगाह गड़ा द ,
“कौन है ये?”
“सािहल भगत क से े टरी मं दरा जोशी।”
“कमाल है, कस- कस से टांका िभड़ा रखा था प े ने।”
“ज री नह क उसका मं दरा से कोई अफे यर रहा हो।”
“तू िमला है कभी इस लड़क से।”
“हां हाल ही म।”
“तभी क ं बाली क उससे अफे यर क बात तुझे हजम य नह हो रही। आिखर
फतरत तो तूने भी बाली जैसी ही पाई है।”
“मेरा मं दरा जोशी से कोई मुलाहजा नह है।”
“नह है तो ना सही, अब अगर तेरा काम ख म हो गया हो तो म लाश को पो टमाटम
के िलए भेजवाने का इं तजाम क ं ।”
“खतम ही समझो और अब बंदे को इजाजत दो।”

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जवाब म उसने मुंडी भर िहला दी। म बाली के लैट से बाहर िनकला, मीता स सेना
का लैट बद तूर बंद था। िलहाजा वो अभी पाट म ही िबजी थी। नीचे प च ं कर म अपनी
कार म सवार आ और तारा अपाटमट क ओर ाइव करने लगा।
✠✠✠
छ बीस जनवरी 2018
यारह बजे के करीब म सािहल भगत के बंगले पर प च ं ा। वो मुझे लॉन म कु स डाले
चाय पीता दखाई दया।
“बैठ भई, बैठ और चाय का लु फ उठा, आज कु छ यादा ही सद है। सच पूछ तो
रपि लक डे पर मुझे हमेशा ऐसा ही महसूस होता है।”
म बड़े ही िश भाव से हंसा। फर उसके सामने एक चेयर पर बैठकर अपने िलए चाय
तैयार करने लगा।
“बाली के बारे म पता चला!”
“हां चला, आिखरकार वो अपने अंजाम तक प च ं ही गया। सच पूछ तो अगर वो यूं
मार न दया गया होता तो एक ना एक रोज मेरे हाथ से उसका क ल ज र हो गया
होता। अ छा आ कसी ने मेरा काम कर दखाया।”
“िलहाजा उसक मौत का कोई पछतावा होने का तो मतलब ही नह बनता, है न!”
“काहे का पछतावा भई, अगर वो तेरी बीवी का यार होता और यूं क ल कर दया जाता
तो या तू उसक मौत पर आंसू बहाता?”
“मेरी बीवी नह है।”
“ना सही मगर मेरी मनोि थित का अंदाजा तो लगा ही सकता है। सच पूछ तो अगर
बाली का काितल मुझे कह दखाई दे जाय तो म उसे इनाम-इकराम से नवाजने से बाज
नह आऊंगा।”
“तौबा!”
“के स क या ो ेस है?”
“अभी कोई ो ेस नह है, अलब ा अगर ये सािबत हो जाता है क बाली और तु हारी
बीवी का ह यारा एक ही है तो उसे ढू ंढना थोड़ा आसान काम सािबत होगा।”
“अगर ना भी सािबत आ तो तू सोनाली के ह यारे को खोज िनकालेगा न!”
“बेशक खोज िनकालूंगा, उन हालात म व थोड़ा यादा लग सकता है मगर काम
होकर रहेगा। िमसेज सोनाली भगत का ह यारा अपने अंजाम को प च ं कर रहेगा।”
“गुड! अब बता कै से आना आ?”
“पुिलस को शक है, बि क यक न है क बाली क ह या तु हारा ही कारनामा है।”
“अरे जब मने सोनाली का क ल नह कया तो बाली क ह या य क ं गा?”
“इस बात का यक न अभी उ ह दलाना बाक है।”
“तो फर जाकर उ ह वो वीिडयो य नह दखाता।”
“तु हारी वक ल मना करती है, उसका कहना है अगली पेशी पर वो उस वीिडयो को
सीधा अदालत म पेश करे गी, तब तक कसी को उसक भनक भी नह लगने देनी है।”

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“ठीक है फर समझने दे दो दन तक और उ ह, जो समझना चाहते ह। अंत-पंत तो
उ ह मेरा पीछा छोड़ना ही पड़ेगा।”
“िलहाजा पुिलस के सवालात से दो-चार होने म तु हे कोई तकलीफ नह है।”
“समझ ले नह है।”
“ फर तो बात ही ख म हो जाती है!” - कहकर म ण भर को का फर बोला - “आप
कसी रं जीत सहगल से वा कफ ह।”
“नह कौन है ये?”
“और के दार नाथ आ जा!” - म उसके सवाल को नजरअंदाज करके बोला - “उसे
जानते ह।”
“नह , मगर उन दोन क बाबत सवाल य ?”
“ य क ये दोन ही वो भु भोगी श स ह िज ह आपक तरह ही अलग-अलग क ल के
के स म पहले फं साया गया था और बाद म उनक बेगुनाही को सािबत करती ऐन वैसी ही
वीिडयो पेश क गई िजसके िलए तुम साढ़े चार करोड़ क रकम देकर हटे हो।”
“तेरा मतलब है उन दोन को भी वीिडयो के बदले कोई मोटी रकम देनी पड़ी थी।”
“लगता तो यही है अलब ा असल बात तो उनसे मुलाकात के बाद ही पता चलेगी।”
“िलहाजा बाद म दोन बेगुनाह सािबत हो गये।”
“जािहर है।”
“इसका मतलब तो ये आ क कोई बड़ा गग इस तरह क वारदात को अंजाम दे रहा
है। जो पहले अपने िशकार को ह या के इ जाम म फं साता है फर उसे उसक बेगुनाही क
वीिडयो बेचकर मोटी रकम झटक लेता है।”
“ऐसा ही होगा।”
“ फर तो ये आगनाइ ड ाईम आ, य क कोई अके ला ि तो कसी के िखलाफ
इतना बड़ा जाल बुन ही नह सकता।”
“वो तो वीिडयो का सौदा करने वाल के तौर-तरीक से ही सािबत हो जाता है। म तो
अभी तक इस बात पर हैरान ं क म साढ़े चार करोड़ पय के साथ रे लवे टेशन म
दािखल आ था और वहां कसी ने मुझे टोकने तक क कोिशश नह क , जब क पय से
भरा सूटके स ए सिबन से गुजरा था।”
“कमाल है!” - वो हैरानी से बोला - “ या मतलब आ इसका! या उ ह ने वहां ूटी
करते लोग को पहले से ही सांठा आ था।”
“ज र यही बात रही होगी।”
वे कु छ ण तक खामोशी से जाने या सोचता रहा फर बोला, “गोखले कह ऐसा तो
नह क वो सूटके स तेरे टेशन तक प च ं ने से पहले ही कह बदल दये गये ह ।”
मने हैरानी से उसक ओर देखा।
“और तुझे उस अदला-बदली क खबर ही ना लगी हो।”
“ऐसा कै से हो सकता है, तु हारा आदमी जब वो दोन सूटके स मेरे ऑ फस म छोड़कर
गया तो उसके बाद एक ण के िलए भी मेरी नजर उसपर से नह हटी, हट भी नह सकती

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थी। आिखर साढ़े चार करोड़ पय क बात थी। बशत क नोट से भरे सूटके स मेरे
ऑ फस प च ं ाने से पहले ही ना बदल दये गये ह ।”
“वो तो खैर मुम कन नह जान पड़ता, य क सूटके स को तेरे ऑ फस तक िडलीवर
करने का काम मेरे सी.ए. के हाथ म था। िजसे मालूम था क उन सूटके स म साढ़े चार
करोड़ क रकम बंद थी।”
“ फर तो वो कोई पुराना मुलािजम होगा।”
“ऐसा तो खैर नह है, उसने अभी छह महीने पहले ही हमारे यहां वाईन कया था।
अलब ा वो चाटड एकाउं टट था इसिलए वो सीधा एकाउं ट िडपाटमट का हैड बनाया गया
था।
“उसे ये भी मालूम था क आगे उन सूटके स को कसी और को िडलीवर कया जाने
वाला था।”
“नह , इस बारे म उसे कु छ पता नह था।”
“ फर सूटके स के साथ कोई हेर-फे र वो कै से कर सकता था। उसक िनगाह म तो वो
माल तुमने मुझे स पा था। िलहाजा उसे इस बात का पूरा-पूरा एहसास रहा होगा क अगर
मुझे सूटके स म पैसे नह िमले तो मने फौरन तु ह खबर कर देना था। फर ऐसा आ एक
और वजह से भी मुम कन नह जान पड़ता। तुम खुद सोचो या उन लोग ने रकम को चेक
कये िबना ही वीिडयो हम भेज दी होगी।”
“ऐसा तो खैर नह हो सकता।” - वो गंभीर वर म बोला - “िलहाजा रकम उन लोग
तक बराबर प च ं ी थी।”
“मेरे याल से तो हां।”
“ फर तो बात ही ख म हो जाती है।”
“हां, अब जरा अपनी से े टरी मं दरा जोशी पर प च ं ो! उसका कोई संबंध महेश बाली
से हो सकता है।”
“ कस तरह का संबंध!”
“ या वो बाली क माशूक हो सकती है।”
“नह , मगर उसक बाबत सवाल कसिलए।”
“बाली के घर से उसक फोटो बरामद ई है।”
“कमाल है!”
“इसके अलावा कोई और जवाब दो।”
“म पूछूंगा मं दरा से।”
“और उसका जो भी जवाब होगा, मुझे उसक खबर करोगे।”
“ठीक है कर दूग ं ा, और कु छ!”
“ फलहाल नह , अब बंदे को इजाजत दो।”
“लगता है अभी तक तूने अपनी फ स वाला चेक बक म लीय रं ग के िलए नह डाला।”
“अभी नह डाला, जरा ये मामला सुलझ ले फर म अपनी फ स वसूल लूंगा तुमसे।”
“जैसी तेरी मज ।”

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म उठ खड़ा आ और उससे हाथ िमलाकर बाहर िनकल आया।
वहां से म सीधा मकतूल महेश बाली के लैट पर प च ं ा। जैसा क अपेि त था, बाली
के लैट का दरवाजा मुझे ना िसफ लॉ ड िमला बि क वो पुिलस ारा सी ड भी कया जा
चुका था।
मने मीता स सेना के लैट क कॉल बेल पुश कर दी।
थोड़ी देर बाद दरवाजा खुला, जैसा क अपेि त था, दरवाजे पर मुझे मीता खड़ी
दखाई दी। जो क घुटनो से तिनक नीचे प च ं ती कै ी और एक ढीली-ढाली टी-शट पहने
थी, िजसम उसका भारी बदन और भी भारी नुमायां हो रहा था।
“तुम!” - मुझपर िनगाह पड़ते ही वो हैरानी से बोली - “तुम फर आ गये।”
“जािहर है, मगर इतनी हैरान होकर य दखा रही हो! तुमने ही तो मुझे खुद पर
लाइन मारने का लाइसस दया था।”
“तो तुम उस िलए आये हो।”
“म उस-िलए भी आया ।ं ”
“यानी असल वजह कोई और है।”
“हां!” - म पूरी शराफत से बोला - “तु ह फांसने के अहम काम को अंजाम देने से पहले
म कु छ छोटे-मोटे काम िनपटा लेना चाहता ं ता क बाद म यान इधर-उधर ना भटके ।”
“कै से काम!”
“सबकु छ चौखट पर ही खड़े-खड़े बताना होगा।”
“कै से काम!” वो िजद भरे वर म बोली।
मने एक फरामाइशी आह भरी फर बोला, “मकतूल महेश बाली से संबिधत दो-चार
सवाल करना चाहता ।ं ”
“बावजूद इसके क तुम पुिलस वाले नह हो।”
“हां अलब ा अगर तुम िजद करो क तु ह कसी पुिलसवाले से ही बात करनी है, तो
बंदा तु हारी वो वािहश भी पूरी कर सकता है।”
“ऐसी कोई बात नह है, आओ।”
कहकर उसने एक तरफ होकर मुझे भीतर आने का रा ता दे दया।
हम दोन कल वाली जगह पर आमने-सामने बैठ गये।
“अब पूछो या पूछना चाहते हो।”
“मकतूल क बाबत कु छ बताओ।”
“ या बताऊं, िजसके बारे म म खुद कु छ नह जानती, उसके बारे म तु ह या बता
सकती ।ं ”
“वो तु हारा पड़ोसी था, िलहाजा उससे िमलने-जुलने वाल पर गाहे-बगाहे तु हारी
िनगाह पड़ती ही रहती होगी।”
“हद करते हो यार! म या पड़ोिसय पर िनगाह रखती फरती ,ं जो उनके यहां कौन
आता-जाता है, उसक मुझे खबर होती।”
“िनगाह ना सही, मगर कई बार अनजाने म, आते-जाते कसी पर िनगाह पड़ जाती है।

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कोई खास बात दखाई दे जाती है, जो बे यानी म ही सही ले कन हम याद रह जाती है।”
“ऐसा कु छ मुझे याद नह आ रहा।”
“याद नह आ रहा या उससे िमलने-जुलने कोई आता ही नह था।”
“मेरे याल से तो आता ही नह था। िम टर बाली ब त रजव टाइप के आदमी थे, और
फर वो अपने लैट पर अ सर रात को ही प च ं ते थे। उसके बाद कभी कोई उनसे िमलने
आया हो तो मुझे उसक खबर कै से हो सकती है।”
“तुम तो मुझे िनराश कये दे रही हो।”
“अरे म या झूठ-मूठ कसी के बारे म बता दू।ं अगर इससे तु हारी तस ली होती हो तो
साफ बोलो! तब एक या म दिसय ऐसे लोग के बारे म तु ह बता दूग ं ी जो उससे िमलने
आते थे।”
“उससे या फायदा होगा।”
“वही तो।”
“तुम सािहल भगत से वा कफ हो।”
“िजसने हाल ही म अपनी बीवी का मडर कर दया, जो कोई बड़ा िबजनेस मैन बताया
जाता है।”
“वही!”
“म भला उतने बड़े आदमी से कै से वा कफ हो सकती ,ं अलब ा यूज म जो दखाया
जा रहा है उसक मुझे खबर है।”
“ फर तो उसक सूरत से वा कफ हो चुक होगी।”
“हां अब तो ।ं ”
“गुड! अब जरा याद कर के बताओ क कल वो तु ह यहां आता-जाता या िब डंग के
आस-पास मंडराता दखाई दया था।”
“नह मुझे नह दखा था, अलब ा वो यहां आकर चला गया हो सकता है, य क कल
म िसफ दो बार अपने लैट से बाहर िनकली थी। पहली बार तब! जब म िम टर बाली क
लाश से ब ई थी और दूसरी बार तब जब तुम यहां से रवाना ए थे, तब म तु हारे
साथ ही तो बाहर िनकली थी।”
“ओह!”
“तुम इस बाबत कॉलोनी के गाड से बात य नह करते, या पता उसने कसी को
देखा हो।”
“ठीक कहती हो, गाड से दरया त करना तो मुझे सूझा ही नह ।”
“जब क सबसे पहले तु हे उसी से बात करनी चािहए थी।”
“वापसी म क ं गा। अब तुम मुझे ये बताओ क अगर तु हारा बाली या सािहल से कोई
लेना-देना नह था तो सोनाली क ह या वाली रात तुम यहां से ब त दूर वसंत कुं ज म
बाली से िमलने य गई थी।”
मने हवा म तीर चलाया, अफसोस क िनशाने पर नह लगा।
“कौन कहता है?” वो िवचिलत ए िबना बोली।

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“है एक च मदीद गवाह, िजसका कहना है क सोनाली क ह या के महज कु छ िमनट
बाद एक लड़क उससे बाहर सड़क पर िमली थी। उन दोन म कोई बात ई फर बाली ने
उसे एक पैकेट दया िजसके बाद वो ऑटो म बैठकर वहां से चलती बनी।”
“और तुम समझते हो क वो लड़क म थी।”
“हां! मुझे यक न है क वो लड़क तुम थ ।”
“ज र उस च मदीद गवाह ने मेरी और बाली क उस मुलाकात क फोटो ख च ली
होगी, िजसे देखते ही तुम झट पहचान गये क वो लड़क म ही थी। या फर आजकल म
इतनी फे मस हो चुक ं क पूरा द ली शहर मुझे बाई-नेम, बाई-फे स पहचानने लगा है।”
“उसने बड़ी बारीक से तु हारा िलया बयान कया था। फर ये मत भूलो क पुिलस
को जब उस गवाह क खबर लगेगी तो वो उसका आमना-सामना तुमसे करवा कर रहगे।
उन हालात म आिखरकार तो तु हारी पहचान होकर रहनी है। फर उस बाबत कु छ
िछपाने का या फायदा।”
“कोई फायदा नह , इसिलए मेरी बात पर यक न करो म उस रोज, बि क कसी भी
रोज उस इलाके म नह गई, जहां क सोनाली भगत का क ल आ बताया जाता है।”
“कर िलया यक न। अब ये बताओ क तुम अगर वहां नह थी तो कहां थी?”
“यह अपने लैट म।”
“सािबत कर सकती हो।”
“इ फ़ाक से कर सकती ।ं य क उसी रोज मेरे पेर स गांव के िलए रवाना ए थे। वे
रात यारह बजे के करीब यहां से िनकले थे, िजसके बाद बारह बजे के करीब मेरी ड
सुनीता यहां आ धमक थी। हमने रात के दो बजे तक डीवीडी चलाकर एक मूवी देखी थी।
उस रात वो सोई भी मेरे ही लैट म थी। चाहो तो उससे पूछकर देख लो ाउं ड लोर पर
ही तो रहती है।”
“उसके पेर स को ऐतराज नह आ, यूं आधी रात को उसके तु हारे लैट म आने पर।”
“नह , पहली बात तो ये क इस बाबत हमारे बीच पहले ही बात हो चुक थी क मेरे
पेर स के आने तक वो हर रात मेरे लैट म सोया करे गी। दूसरी बात ये क वो एक
अ पताल म नौकरी करती है, जहां से उसक छु ी ही यारह बजे होती है। िलहाजा घर
आते-आते उसे रोज साढ़े यारह बज जाते ह। इसिलए रात बारह बजे का हवाला देना ही
बेकार है। य क तब तक उसके घर म हर कोई जगा आ होता है।”
“ये वही सुनीता है िजसका कल बथ-डे था।”
“हां वही है।” - कहकर वो तिनक क फर बोली - “अब बताओ उस लड़क को य
तलाश रहे हो तुम।”
“कोई खास वजह नह है, अलब ा िमल जाती तो उसके ज रए बाली के बारे म कोई
ऐसी बात पता चल सकती है, जो उसके क ल पर कोई रोशनी डाल पाती।”
“ फर तो तु हे उसके हमपेशा लोग से िमलना चािहए, बि क उसके ऑ फस जाकर
उसके बारे म पूछताछ करनी चािहए। या पता वहां उसका कोई ऐसा दो त िमल जाए
जो उसका अगला-िपछला सब जानता हो।”

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“ठीक कहती हो, म ढू ंढता ं ऐसे कसी खास ि को जो बाली का खास रहा हो।” -
कहकर म तिनक का फर बोला - “तुम कसी मं दरा जोशी को जानती हो।”
“हां जानती !ं ” - जवाब अनापेि त था - “अलब ा वो वही मं दरा है िजसके संदभ म
तुमने सवाल कया है, कहना मुहाल है।”
“म उस मं दरा जोशी क बात कर रहा ,ं जो वसंत कुं ज म रहती है और सािहल भगत
क पसनल से े टरी है।”
“ फर तो जानती ,ं अलब ा काफ दन से मेरी उससे मुलाकात नह ई है।”
“कै से जानती हो।”
“हम दोन ने एक साथ जीसीएसी और ऐडिमिन ेशन म िड लोमा कया था। यह कोई
तीन साल पहले क बात है। उसके बाद करीब एक साल तक हमारे बीच मेल-मुलाकात
होती रही फर धीरे -धीरे सब बंद होता चला गया।”
“उसके बारे म कोई ऐसी बात बताओ जो दलच पी के कािबल हो। िजसका मौजूदा
के स से कोई र ता बनता हो।”
“है तो एक बात ले कन वो तु हारे कसी काम क है या नह , म नह जानती।”
“तुम बताओ तो सही।”
“कभी बाली और उसके बीच ब त लंबी कोटिशप चली थी।”
“ या कहती हो।” म च के िबना नह रह पाया।
“सच कह रही ,ं अलब ा वो सब साल पुरानी बात ह। मेरे याल से तब क जब हम
दोन ऐडिमिन ेशन म िड लोमा कर रहे थे। बाद म दोन का ेकअप कब आ म नह
जानती, मगर ऐसा आ था इस बात क मुझे प खबर है।”
“कै से?”
“एक यूचल ड ने बताया था।”
“कोई नाम तो होगा उस यूचल ड का।”
“िनहा रका ीव स! वो गढ़ी म रहती है। टडी के दन म हम तीन म ब त अ छी
बनती थी। बि क िनहा रका और मं दरा म तो दांत कटी रोटी चलती थी।”
“वो अभी तु हारे टच म होगी।”
“है न, तभी तो मुझे पता है क बाली और मं दरा का ेकअप हो चुका है।”
“अगर ऐसा है तो एक मुलाकात कराओ अपनी इस सहेली से, एहसान होगा इस गरीब
िडटेि टव पर।”
“वो ब त खूबसूरत है।”
“तो!”
“उससे िमलने के बाद कह तु हारा िमजाज बदल गया, तो ये तो मेरे िलए घाटे का
सौदा होगा न।”
“नह होगा, तुमसे नाउ मीद होने से पहले कसी दूसरी के बारे म सोचना भी पाप है
मेरे िलए।”
“बात बड़ी ल छेदार करते हो, एकदम से दमाग घुमाकर रख देते हो।”

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“अगर ये मेरी तारीफ है तो शु या, अब बोलो करा सकती हो ऐसी कोई मुलाकात।”
“ या मुि कल है, कब िमलना चाहते हो।”
“अभी।”
उसने उस बात पर िवचार कया फर मोबाइल उठाकर कोई नंबर डॉयल करने लगी।
कांटे ट आ तो उसने मेरे मतलब क बात करनी शु क फर वातालाप बीच म
रोककर बोली, “कहां िमलना चाहते हो?”
“कह भी जहां तु हारी ड को कं फट फ ल हो।”
वो बात उसने आगे मोबाइल पर दोहराई फर दूसरी तरफ का जवाब सुनकर कॉल
िड कनै ट करके मुझसे बोली, “ठीक डेढ़ बजे वो तु हे नेह लेस म स यम िसनेमा के
सामने िमलेगी। अगर पहले कभी नह गये हो तो बता दूं क वहां अब स यम क जगह
तु हे आईनो स का बोड िमलेगा। य क आईनो स ने उसे टेक ओवर कर िलया है।
अलब ा लोग-बाग अभी भी उसे स यम के नाम से ही जानते ह।”
“मुझे मालूम है, तुम ये बताओ क म तु हारी सहेली को पहचानूंगा कै से।”
“डेढ़ बजे के करीब वो तु हे फोन कर लेगी, म अभी तु हारा नंबर उसे मैसेज कर देती ,ं
नंबर बोलो।”
मने बताया।
“तुम मुझे उसका नंबर य नह दे देती।”
“उसने मना कया है।”
“कमाल है।”
“कोई कमाल नह , वो फतरतन ऐसी ही है। हर बात म पेचीदगी पैदा करना उसक
हॉबी है। और बोलो या चाहते हो।”
“और के खाते म तो बस इजाजत भर दे दो!” - म उठ खड़ा आ - “व देने का
शु या!”
“िलहाजा दूसरे वाले काम क तरफ तव ो देने क फु सत नह है तु हारे पास।”
“उसके िलए तो म अपने सारे काम दर कनार कर सकता ,ं ले कन अभी तु हारी
सहेली क डेढ़ बजे क डैड लाइन फॉलो करनी है। इसिलए फलहाल उस अहम काम को
ना चाहते ए भी पो टप ड करना पड़ रहा है। मगर इसका मतलब ये नह है क तुम मेरी
मोह बत के जाल म फं सने से बच गई।”
“मोह बत!” वो हंसी।
“हां पेशल वाली, जो क तु हे अपना दीवाना बना कर रहेगी, फलहाल नम ते।”
म उसके लैट से िनकल कर बाहर खड़ी अपनी कार क ओर बढ़ा ही था क मेरी
िनगाह िस यो रटी गाड पर पड़ी जो उस घड़ी ब त त दखाई दया - त बाकू रगड़ने
म - म उसक ओर बढ़ गया।
“बड़े साहब आज यहां आये थे या नह ।” - म तिनक खे वर म बोला।
“कौन से बड़े साहब क बात कर रहे ह आप?”
“एसीपी पांडे साहब, और कौन?”

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“आज तो नह आये।”
“तुम पहचानते हो उ ह?”
“जी नह ।”
“ फर तु हे कै से पता क वो आये या नह ?”
“मेरा मतलब था आपसे पहले आज पुिलस क ओर से यहां कोई नह आया।”
“कोई बात नह , आ जाएंग।े ” - कहकर म एक िसगरे ट सुलगाने को का, फर कश
लगाता आ बोला - “कल दन म भी तु ह यहां ूटी पर थे।”
“हां साहब।”
“ फर भी तुमने िब डंग म क ल हो जाने दया।”
“हम या करते साहब, अब कसी के माथे पर थोड़े ही िलखा होता है क वो काितल
है।”
“यहां आने वाल क कसी रिज टर म एं ी वगैरह का रवाज नह मालूम होता।”
“एक साल पहले तक होता था साहब, फर िब डंग वाल ने ही इस पर ऐतराज
जताना शु कर दया तो आिखरकार वो िसलिसला हम बंद करना पड़ा।”
“तु हारी ूटी क टाइ मंग या है यहां?”
“सुबह आठ बजे से रात आठ बजे तक, ले कन हम कल सुबह आठ बजे से यह ह।”
“ऐसा य कर आ?”
“दूसरा गाड बीमार पड़ गया तो उसक ूटी भी मुझे करनी पड़ रही है।”
“बाली साहब के क ल के आस-पास के व म यहां कोई नया चेहरा दखाई दया था
तु हे।”
“नह साहब, पूरे दन सब जाने-पहचाने लोग ही यहां आते-जाते रहे थे। उनके अलावा
तो बस एक कू रयर वाला और दूसरा पो टमैन ही यहां आये थे। िजनम से पो टमैन क
सूरत मेरी जानी-पहचानी है, हमेशा वही आता है।”
“कू रयर कसका था, बाली साहब का?”
“नह , सुनीता मेमसाहब का, जो क उ ह ने मेरे सामने ही दरवाजे पर खड़े होकर
रसीव कया था। उसके बाद कू रयर वाला मेरे सामने ही यहां से बाहर चला गया था।”
“कोई और बात जो तु ह कु छ अजीब लगी हो, या नया कु छ याद आ रहा हो।”
“ऐसी तो कोई बात नह है।”
“ठीक है, मेरा नंबर नोट कर लो, बाद म अगर कु छ याद आ जाये तो मुझे फोन करना
मत भूलना।”
“ठीक है साहब!” कहकर उसने एक पॉके ट डायरी िनकालकर मेरा बताया नंबर नोट
कर िलया।
म अपनी कार म सवार आ और एक नया िसगरे ट सुलगाकर कश लगाते ए ाई वंग
करने लगा।
नेह लेस प च ं ते-प च
ं ते मुझे सवा एक बज गये। मने स यम के सामने सड़क के दूसरी
ओर बनी पा कग म कार पाक कया और बाहर आकर स यम के सामने खड़ा हो गया। तब

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तक डेढ़ बज चुके थे।
िनहा रका ीव स के कसी भी व अपेि त काल का इं तजार करते ए म वहां लगी
ब च चत फ म प ावत के बड़े-बड़े पो टस पर िनगाह दौड़ाने लगा।
बड़े-बड़े िववाद और हंगाम ने फ म का िवरोध करने वाल का कतना भला कया,
ये कहना मुहाल है। अलब ा फ म को इसका पूरा-पूरा फायदा प च ं ा और नतीजा ये आ
क रलीज से पहले ही फ म का नाम हर कसी क जुबान पर जा प च ं ा, ऐसे म ऑिडयंस
क िगनती बढ़ जाना तय था। भले ही बाद म फ म का नाम ‘प ावती‘ से बदलकर
‘प ावत‘ रख दया गया मगर उससे फ म को कोई नु सान प च ं ा हो ऐसा दखाई नह
देता था।
बहरहाल व गुजरता रहा और म बोर होता आ ‘िनहा रका‘ को िनहारने क हसरत
दल म संजोये उसका इं तजार करता रहा। यूं इं तजार करते-करते सवा दो हो गये मगर
उसक काल नह आई। आिजज आकर मने मीता को फोन लगाया। मेरी बात सुनकर उसने
स त हैरानी जािहर क , फर मुझे हो ड पर रखकर उसने िनहा रका से बात करने क
कोिशश क मगर कोई नतीजा नह िनकला। आिखरकार उसने यही जवाब दया क
िनहा रका फोन नह उठा रही।
“अब!” म पूछे िबना नह रह सका।
“अगर मुझसे पूछते हो तो थोड़ी देर और इं तजार करो। वो ज र कह फं स गयी होगी,
वरना ऐसी हरकत उसके वभाव से मेल नह खाती। तब तक म उसे कांटे ट करने क
कोिशश करती ,ं या पता वो काल िपक कर ले।”
“ठीक है, म आधा घंटा और कता ,ं इस दौरान अगर उससे तु हारी बात हो जाय तो
मुझे इं फॉम करना।”
“म तु ह उसका नंबर सड करती ।ं ”
“और उसने जो मना कया है।”
“ कया है तो करती रहे। टाईम से प च ं ी य नह । नह प च ं ी तो इं फॉम य नह
कया।”
“ओके भेजो, म ाई करता ।ं ”
कहकर मने कॉल िड कनै ट कर दी।
साहबान पीडी के धंधे म यही वो नामुराद बात है जो सबसे यादा खलती है। अभी तो
खैर मुझे मालूम था क म यहां कसके इं तजार म एिड़यां रगड़ रहा था। वरना कई बार तो
ये बात मुझे खुद नह पता होती क म कसका इं तजार कर रहा था और कसिलए कर रहा
था। कोई प च ं ने वाला था भी या नह ।
बहरहाल उसने िनहा रका का नंबर भेजा तो मने उसपर कॉल करनी शु क , एक के
बाद दूसरी और फर तीसरी! िगनती तो बंदे को पूरे सौ तक आती है मगर मने उसका
िलहाज कया जो पांच से यादा कॉल नह क ।
िनहा रका ीव स के वहां आगमन से िनराश होकर आिखर म एक बार फर अपनी
कार म सवार हो गया।

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म लाजपत नगर प च ं ा। सहगल गारमट हाउस का शो म तलाशना चुटक बजाने
जैसा आसान काम सािबत आ।
वहां प च ं कर म मैनेजर से िमला और शो म के मािलक रं जीत सहगल से िमलने क
इ छा जािहर क । शु था क वो उस व शो म म ही मौजूद था। मने मैनेजर को अपना
एक िविज टंग काड थमाया िजसे उसने मािलक के पास भेजवा दया।
दो िमनट बाद काड लेकर गया लड़का वािपस लौटा और मुझे रं जीत सहगल के पास
छोड़ आया।
सहगल कोई चालीस साल का खूब लंबा-चौड़ा तंद त ि था। जो ऑ फस क
िवशाल मेज के उस पार एक िवशाल ए जी यु टव चेयर पर पसरा आ था। मेरे भीतर
दािखल होते ही वो सीधा होकर बैठ गया और बड़े ही ेम भाव से मुझसे हाथ िमलाकर
सामने बैठने का इशारा कया।
म उसके सामने रखी एक कु स पर बैठ गया।
“कोई चाय-कॉफ मंगाऊं तु हारे िलए।”
“जी नह शु या, आपने मुझसे बात करना कबूल कया यही भारी इ त-अफजाई क
बात है मेरे िलए।”
“तो फर समझ लो म तु हारी थोड़ी और इ त बढ़ाना चाहता ।ं इसिलए को ड क ं
के िलए मना मत करना।” कहकर वो हंस पड़ा, मने बड़े ही िश भाव से उसक हंसी म
साथ दया।
हंसने के अहम काम से फा रग होकर उसने इं टरकॉम पर कसी को को ड क ं लाने का
िनदश दया फर बोला, “अब बताओ या चाहते हो।”
“जनाब सवाल आपक एक बड़ी दु ारी से ता लुक रखता है, हो सकता है उसका िज
आपको नागवार गुजरे ! मगर यक न जािनए अगर ब त यादा ज री नह होता तो म
गड़े मुद उखाड़ने यहां न प च ं ा होता।”
“तु हारी बात का ता लुक मेरे भूतपूव पाटनर सुजीत भार ाज क ह या से तो नह
है।”
“दु त अंदाजा लगाया आपने।”
“उस के स म कु छ नया घ टत हो गया है या।”
“ऐसा तो नह है, मगर ऐन उसी तरह से हाल ही म एक िबजनेस मैन को फांसा गया
है। ऐसा िसफ आपके या मेरे लाइं ट के साथ ही नह आ है, बि क ब तेरे लोग इस तरह
क वारदात के िशकार हो चुके ह। यक न जािनए अगर ऐसा करने वाल पर ज दी ही
अंकुश नह लगाया गया तो आगे जाने कतने बेकसूर लोग बेवजह अपनी जान से हाथ धो
बैठगे।”
“तु हारी बात से म पूरी तरह सहमत ं बरखुदार, मगर मुझे नह लगता क इस मामले
म तु हारी कोई मदद कर सकता ।ं अलब ा तु ह कै से भी सवाल करने क आजादी है,
पूछो या पूछना चाहते हो।”
“सबसे पहले तो सुजीत भार ाज - खुदा उ ह ज त म जगह द - क ह या के बारे म ही

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बताइए, उनक ह या कै से ई और आप पर उसका इ जाम य कर आया।”
“ये तकरीबन दो साल पुरानी बात है! - वो याद करता आ बोला - “सुजीत हमारे धंधे
म पचास फ सदी का पाटनर था। वो तनहा इं सान था, आगे-पीछे कोई नह था। िलहाजा
उसने मेरी जानकारी के िबना वसीयत कर रखी थी क उसक मौत के बाद उसका पचास
फ सदी का िह सा भी मुझे दे दया जाय। यही बात क ल का मो टव बनी थी। ह या वाले
रोज म शाम के छह बजे उसके बंगले पर प च ं ा! यूं म अ सर उसके यहां आता-जाता रहता
था। हमारी शाम स ाह म कम से कम दो दन ज र इक े गुजरती थी। उस रोज जब म
उसके बंगले पर प च ं ा तो मुझे बंगले का दरवाजा खुला िमला। कोई गाड, कोई नौकर मुझे
उस रोज दखाई नह दया।”
“म मेन गेट से भीतर दािखल आ ही था क वो मुझे ाइं ग म म पेट के बल पड़ा
दखाई दया। म दौड़कर उसके करीब प च ं ा तो पाया क उसका शरीर खून से िलथड़ा
पड़ा है। हड़बड़ाकर मने उसे सीधा कया तो उसके दल म एक बड़े हडल वाला छु रा
पेशव त दखाई दया। घबराकर मने उसे आवाज द और छु रे को उसके शरीर से बाहर
ख च िलया। मने वैसा य कया इस बात का मेरे पास आज तक कोई जवाब नह है, मगर
मने ऐन यही कया था। छु रा िनकालकर एक तरफ फकने के बाद मुझे उसक न ज टटोलने
क सूझी! न ज गायब थी! दल क धड़कन गायब थ । कु छ ण के िलए बुत बना म वह
उसक लाश के पास बैठा रहा फर जब मेरे होश ठकाने आये तो मने उ सुकतावश छु रे को
उठाकर उलट-पलट कर देखना शु कर दया। कहने का मतलब ये है क उसक लाश
देखकर म पूरी तरह अपना िववेक खो चुका था।”
“इसके बाद मुझे पुिलस को फोन करने का याल आया, तो मने अपना मोबाइल जेब से
बाहर िनकाला! मगर कॉल करने क नौबत ही नह आई। पुिलस तो जैसे जादू के जोर से
वहां प च ं गयी। त काल मुझे िहरासत म ले िलया गया। इसके बाद घंट वहां पुिलस क
कारवाई चलती रही और म िसर झुकाये बैठा इं तजार करता रहा। फर लाश को
पो टमाटम के िलए भेजवा दया गया और मुझे हवालात म डाल दया गया।”
कहकर वो खामोश हो गया, मने उसे टोकने क कोिशश नह क । इसी बीच एक लड़का
को ड क ं के दो िगलास वहां रख गया। सहगल ने िगलास उठाकर एक बड़ा घूंट भरा फर
आगे बोला, “म चीख-चीख कर कहता रहा क भार ाज क ह या से मेरा कोई लेना देना
नह था, मगर कसी ने मेरी बात पर कान नह दया। बार-बार मुझसे एक ही सवाल
कया जाता रहा क मने अपने पाटनर क ह या य क ! म भला या जवाब देता िसवाय
इसके क म िनद ष था मुझे फं साया जा रहा था। मगर पुिलस को उससे भला तस ली कै से
िमलती।”
“िलहाजा छु रे पर आपक उं गिलय के िनशान ने आपका बेड़ा गक कया था।”
“बात िसफ उतनी होती तो शायद पुिलस मान लेती क उसपर मेरे बताये तरीके से
मेरी उं गिलय के िनशान बने हो सकते थे। मगर मुझे तो भार ाज क ह या म फु ल फट
कया गया था। एक नौकर ने उ ह बताया क वो छु रा कचन म मीट काटने के काम आता
था। तब पुिलस ने कचन से उं गिलय के िनशान उठाए और हैरानी क बात थी क िजस

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कचन म मने कभी कदम नह रखा था, उसके छु रा रखने वाले टड पर मेरी उं गिलय के
िनशान बरामद हो गये। इन तमाम बात ने िमलकर मेरा फु ल खाना खराब कया िजसका
नतीजा ये आ क कसी को मेरी बेगुनाही पर यक न नह आया।”
“ले कन नाइफ टड पर आपक उं गिलय के िनशान!”
“उस व तो ये बात मेरी समझ म नह आई, ले कन बाद म मुझे पता चल गया क वो
चम कार य कर आ था। दरअसल मेरे बंगले के कचन म भी ऐन वैसा ही छु रा और टड
थे। जो क मने और भार ाज ने एक साथ ही खरीदा था। कसी ने दोन चीज को आपस म
बदल दया था।”
“यािन क आपने वो छु रा मकतूल के दल से ना भी ख चा होता तो उसपर आपक
उं गिलय के िनशान िमलते ही िमलते।”
“ऐसा ही होना था, य क छु रे को दल से ख चने जैसी अहमकाना हरकत म क ं गा
ही, इसक गारं टी सािजश रचने वाल को नह हो सकती थी। नतीजा ये होता क उनका
सारा लान पहले ही टेज पर फे ल हो जाता।”
“ठीक कहते ह आप! खैर उसके बाद या आ।”
“होना या था, मने अपने लीगल एडवाइजर के ज रए द ली का टॉप का वक ल
हायर कया, मगर जमानत नह हो पाई और मुझे रमांड पर स प दया गया। इसी दौरान
मेरे वक ल के पास एक वीिडयो भेजी गयी, जो उसके ारा ले करने के बाद खुद बा खुद
िडलीट हो गयी। वो वीिडयो या थी समझ लो ाईम सीन ब रपीट हो रहा था। बाद
म मेरे वक ल के ज रए ही दो करोड़ म उस वीिडयो का सौदा आ, जो आगे चलकर मेरी
रहाई क वजह बना था।”
“रकम कहां प च ं ाई गई थी?”
“नई द ली रे लवे टेशन पर, बड़े ही फ मी टाइल म एक कु ली को स पी गई थी।
हैरानी क बात ये थी क वो रकम चे कं ग के िलए ए स-िबन मशीन म से गुजर गई मगर
वहां बैठे पुिलसवाल के कान पर जूं तक नह रगी थी। पेमट करते ही वीिडयो क दूसरी
कॉपी मेरे वक ल के मोबाइल पर भेज दी गई, िजसे कोट म पेश करते ही मेरी जमानत
मंजूर हो गई। अलब ा क ल के इ जाम से बरी होने म पूरा साल गुजर गया। इस दौरान
पुिलस ने के स पर खूब मेहनत क मगर हािसल कु छ नह आ। वे लोग अपनी लाख
कोिशश के बावजूद आज तक भार ाज के ह यारे का पता नह लगा सके ।”
“ फरौती क रकम रे लवे टेशन पर लेकर कौन गया था।”
“मेरा सी.ए. राजेश बंसल!”
“वो अभी भी आपका एकाउं टट है।”
“नह , उस घटना के करीब महीने भर बाद ही वो नौकरी छोड़ गया था, अब कहां काम
करता है मुझे नह मालूम।”
“उसका कोई अता-पता आपको मालूम हो।”
“भई उसके बायोडाटा म उसका पता दज होगा, अगर उसने नौकरी के साथ-साथ घर
भी नह बदल दया हो तो यक नन उसी पते पर रहता होगा।”

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“अगर आपको असुिवधा न हो तो मुझे उसका पता उपल ध करा दीिजए।”
“वो तो खैर म करा दूग
ं ा, मगर तुम उससे या हािसल होने क उ मीद कर रहे हो।”
“कहना मुहाल है, अलब ा हो सकता है उससे मुलाकात के बाद कोई नई जानकारी
हािसल हो जाय। यादा कु छ नह तो वो उस कु ली का िलया तो बयान कर ही सकता है
िजसे उसने दो करोड़ पये स पे थे।”
“उ मीद तो नह है, मगर तुम व जाया करना चाहते हो तो म तु ह रोकूं गा नह ।”
कहकर उसने इं टरकॉम पर कसी को उिचत िनदश दया िजसके फल व प पांच िमनट
म ना िसफ मुझे राजेश बंसल के बायोडाटा क कॉपी हािसल हो गयी बि क उसके वोटर
आईडी क कॉपी भी िमल गयी।
िजसके िलए बंदे ने सहगल का दल से शु गुजार होकर दखाया और उठ खड़ा आ।
अभी म उससे हाथ िमलाकर बाहर िनकलने ही लगा था क वो बोल पड़ा।
“एक खास बात और सुनकर जाओ या पता तु हारे कसी काम आ जाये।”
बाहर िनकलने को त पर म दोबारा उसक तरफ घूम गया।
“दो करोड़ क पेमट करने के करीब एक स ाह बाद अखबार म मुगलसराय टेशन पर
दो लावा रस सूटके स िमलने क खबर छपी थी। िजसपर इ फ़ाकन मेरी नजर पड़ गयी।
खबर के अनुसार दो खूब बड़े सूटके स टेशन पर एक बोरे म पैक पाये गये थे। िजनपर कोई
अता-पता मौजूद नह था। एहितयातन रे लवे पुिलस ने वहां बम ॉयड को बुला िलया
िज ह ने िनरी ण के बाद उसे िनद ष घोिषत कर दया गया। उसके बाद जब रे लवे पुिलस
के जवान ने उस बोरे को खोलकर सूटके स बाहर िनकाले तो पाया क दोन सूटके स
एकदम नये थे। यहां तक क उनका टैग भी नह हटाया गया था। आगे जब उन सूटके स को
खोला गया तो दोन ही पुरानी कताब से भरे पाये गये थे। म गारं टी तो नह कर सकता
मगर मुझे ऐसा लगा था क वो दोन वही सूटके स थे िजनम दो करोड़ पये बंद करके
कु ली को स पे गये थे।”
उसक पूरी बात सुनकर म च के िबना नह रह सका, “जनाब आप कह ये तो नह
कहना चाहते क उन सूटके स से नोट िनकालकर उनम र ी भरने के बाद कसी ेन क
लगेज बोगी म रख दया गया था।”
“मगध ए स ेस से उतारे गये थे वो दोन सूटके स। अखबार म छपी खबर के अनुसार
मुगलसराय टेशन पर लगेज बोगी से कु छ सामान नीचे उतारा जाना था और कु छ पटना
के िलए उसम लोड कया जाना था। उसी म म रे लवे के कसी कमचारी क िनगाह उस
पासल पर पड़ी िजसपर कोई अता-पता दज नह था, ना ही ऐसा कोई पासल उनक िल ट
म थे। िलहाजा आिखरी टेशन पर होने वाली जहमत से खुद को बचाने के िलए कसी ने
वो पासल उसी टेशन पर उतार दया था।”
“ या वो आपके एकाउं टट का काम हो सकता था, मेरा मतलब है या उसने सूटके स से
नोट िनकालकर उसम कताब भरी हो सकती थ ।”
“नह ऐसा होना मुम कन नह था, य क वो बड़े ही भरोसे का आदमी था और िपछले
आठ साल से मेरी मुलाजमत म था। उससे भी अहम बात ये क अगर फरौती वसूलने

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वाल को वो रकम नह िमली होती तो उन लोग ने वीिडयो क कॉपी मेेरे वक ल को भी
नह स पी होती।”
“ठीक कहते ह आप! बाई दी वे वो वक ल कौन था?”
“रतनागर शु ला, टॉप का िमनल लॉयर है, शायद तुमने उसका नाम सुना हो।”
“सरासर सुना है जनाब!” - म बोला - “बहरहाल बंदे को व देने के िलए शु या, अब
इजाजत दीिजए।”
जवाब म उसने एक बार फर से उठकर मेरे से हाथ िमलाया और मुझे नीचे तक
छोड़कर आया।
अपनी कार म प च ं कर मने िनहा रका ीव स का नंबर िमलाया इस बार तीन-चार
बार रं ग जाते ही कॉल अटड कर ली गई।
“हलो!” - एक मदाना वर सुनाई दया - “कौन?”
“िव ांत गोखले!” - म बोला - “िनहा रका मैडम से बात करनी है, अगर ये नंबर उ ह
का है तो लीज!”
“नंबर उ ह का है, जरा सा हो ड क िजए।”
हो ड का वो िसलिसला तकरीबन दो िमनट चला फर लाइन पर एक जनाना वर
उभरा, “हां बोलो।”
“मैडम म िव ांत गोखले, ाइवेट िडटेि टव! िजससे आज दन म डेढ़ बजे आप स यम
के सामने िमलने वाली थ । मने आपको ब त बार कॉल कया मगर बात नह हो पाई।”
“सॉरी! म मोबाइल घर पर भूल गई थी, अभी आप कहां ह?”
“लाजपत नगर म।”
“ठीक है आप मेरे घर आ जाइए।”
“घर का पता बोिलए।”
“घर का पता!” - उसने दोहराया, फर कु छ ण तक खामोश रहने के बाद बोली -
“नोट क िजए दो सौ पतािलस मेन माकट गढ़ी।”
“थ स म दस िमनट म प च ं जाऊंगा।”
कहकर मने कॉल िड कनै ट कर दया। साथ ही मेरे दमाग म कु छ खटक सा गया। मुझे
लगा वो पता उसने कसी से पूछ कर बताया था। अगर वो िनहा रका ही थी तो ये या
समझ म आने वाली बात थी क उसे अपने घर का पता नह मालूम था।
या माजरा था!
फोन पर िनहा रका बनकर बात करने वाली औरत कौन थी? या म कसी झमेले म
फं सने जा रहा था। मगर कै सा झमेला, एक सीधी-सादी मुलाकात म भला झमेले का या
काम था। मगर मेरा मन नह माना। मेरे दल म ये बात गहरी पैठ गयी क फोन पर बात
करने वाली औरत िनहा रका नह थी।
फर कौन थी?
इसका जवाब तो वहां जाकर ही हािसल हो सकता था। मन ही मन मने सीधा वहां नह
प च ं ने का फै सला करते ए कार आगे बढ़ा दी।

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दस िमनट बाद!
म औसत र तार से कार चलाता आ दो सौ पतािलस नंबर के मकान के सामने से गुजर
गया। कोई अनापेि त बात मुझे वहां नह दखाई दी, िसवाय इसके क मकान के ठीक
सामने मगर सड़क के दूसरी ओर एक पुिलस वैन खड़ी थी, िजसम बैठे पुिलिसये आपस म
ग प मारने म त थे।
म कार दो लाक आगे िनकाल ले गया, फर वापसी म उ मकान के एकदम करीब से
गुजरा तो मेरी िनगाह उन दो लोग पर पड़ी जो लापरवाही से वहां फोन पर बात करते
ए टहल रहे थे मगर उनक चौक ी िनगाह वहां से गुजरते हर वाहन का जायजा ले रही
थ।
“पुिलस!”
अचानक ही मेरे जहन म क धा। फर अगला याल दल दहला देने वाला था। मुझे
लगभग यक न सा आ गया क िनहा रका ीव स अब इस दुिनया म नह थी। फोन पर
मुझसे बात करने वाली यक नन कोई मिहला पुिलस कम रही होगी।
अब वहां प च ं ना मेरी मजबूरी थी, वहां एक रीजनेबल टाइम तक नह प च ं ने का
मतलब था क पुिलस मुझे खोजना शु कर देती। जो क मेरा मोबाइल नंबर उनके पास
होने क वजह से चुटक बजाने जैसा आसान काम सािबत होना था।
म आगे से यू-टन लेकर वािपस लौटा और अपनी कार ऐन पुिलस कार के बगल म खड़ी
करके यूं बेपरवाही से िनहा रका के मकान क ओर बढ़ा जैसे वहां पुिलस क मौजूदगी का
मेरे िलए कोई मतलब ही ना हो। म बाउं ी वाला गेट खोलकर कं पाउं ड म दािखल आ
और मेन गेट क ओर बढ़ा। ठीक तभी बाहर मोबाइल पर बात करते दोन श स मेरे पीछे-
पीछे भीतर दािखल हो गये।
मुझे हैरानी इस बात क हो रही थी क पुिलस मेरे म इतनी यादा दलच पी य
दखा रही थी।
बहरहाल मने गेट पर प च ं कर कॉल बेल पर उं गली रख दी। त काल दरवाजा खुला।
खुले दरवाजे पर जो श स गट आ वो सफे द रं ग क शट और काली पतलून पहने था,
उसके चेहरे पर ही िलखा था क वो कोई पुिलिसया था।
“गोखले!” उसने पूछा।
“जी हां!”
“भीतर आ जाओ।” कहते ए उसने एक तरफ हटकर मुझे रा ता दे दया।
भीतर दािखल होते ही सबसे पहले मेरी िनगाह वहां एक कु स पर िसर झुकाए बैठी
मीता स सेना पर पड़ी, फर वहां से भटक तो मुझे ाइं ग म म पड़ी जनाना लाश
दखाई दी। िजसके इद-िगद कु छ ि घेरा डाले झुके ए थे। उनक बाबत मेरा अंदाजा
था क वो पुिलस क फोरिसक टीम के आदमी थे, जो उस व बड़ी त मयता से लाश का
मुआयना कर रहे थे। उनके आलावा तीन बावद पुिलिसए भीतर मौजूद थे, िजनम से एक
तीन िसतार वाला इं पे टर था।
मुझे भीतर दािखल होता देख वो मेरे करीब प च ं ा। मने उसक वद म लगी नेम लेट

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पर िनगाह डाली तो पता चला उसका नाम सुहल े संह था।
“िव ांत गोखले!” वो अपनी पैनी िनगाह से मुझे घूरता आ बोला।
“जी हां सा ात!” - कहकर मने एक बार लाश क दशा म देखा फर िनरथक सा
कया - “मर गई।”
“ य भई अंधे हो।”
“ऐसा तो नह है, अलब ा क से कहािनय म पढ़ा है क कई बार मुद उठकर बैठ जाते
ह।”
“पुिलस से मसखरी का नतीजा जानते हो।”
“िब कु ल जानता ं जनाब! खासतौर से धमक वाली जुबान तो बंदे को गोली क तरह
समझ म आ जाती है।”
“गुड! अब बताओ तुम इस मामले म कहां फट बैठते हो?”
“िलहाजा लड़क से पूछताछ नह क अभी आप लोग ने।”
“िजतना पूछा जाय उतना ही बोलो, ये पुिलस इं ॉयरी है और तुम इस व
मौकायेवारदात पर खड़े हो, इसिलए उसक गंभीरता को समझो।”
जवाब म मने उसे पूरी कहानी सुना डाली।
“तो तुम समझते हो क सोनाली भगत और महेश बाली का क ल एक ही सीरीज के दो
मैच ह।”
“हो सकता है, बि क िनहा रका का क ल भी उसी क एक कड़ी हो सकता है। इसिलए
बराय मेहरबानी बताइए क ये कै से मरी।”
जवाब म उसने कु छ ण तक आंख ही आंख म मुझे तौला फर बोला, “इसे कसी हैवी
कै लीबर क गन से शूट कया गया है। हमारे डॉ टर का अनुमान है क इसे एक बजे के
आस-पास गोली मारी गई थी, तुम कहां थे उस व !”
“उस व म कहां था, ऐन क ल ठोककर तो नह बता सकता, मगर य क सवा एक
बजे म नेह लेस म अपनी कार पाक कर रहा था तो इसका मतलब ये बनता है क एक
बजे के करीब म मूलचंद और ेटर कै लाश के बीच ऑन रोड रहा होऊंगा।”
“िलहाजा ह या के व तुम गढ़ी के आस-पास ही मौजूद थे। ऐसे म तो तुम मडर
स पे ट ए।”
“इ त अफजाई का शु या जनाब, मगर मुझे इसका काितल सािबत करना, वो भी
िबना कसी पूवा ह के मुम कन नह हो सकता।”
“पूवा ह से या मतलब है तु हारा।”
“आप खूब समझते ह, फर भी कहे देता ं क अगर आप मुझे काितल सािबत करने के
िलए कमर ही कसे बैठे ह तो और बात है, वरना तो इस मामले म द ली अभी दूर है।”
“ य भई मेरी या तुमसे कोई अदावत है।”
“नह है तो इससे अ छी बात या हो सकती है।”
जवाब म उसने घूरकर मुझे देखा, मगर िवचिलत होता न पाकर पतरा बदल कर बोला,
“अभी तुम यह कना, मुझे तुमसे ब त से सवाल करने ह।”

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मने सहमित म िसर िहला दया, तो वो लाश क ओर बढ़ गया।
उसके हटते ही म मीता स सेना के करीब िखसक आया और धीरे से िबना उसक ओर
देखे बोला, “तुम यहां कै से प च
ं गई।”
“तु हारी वजह से, मने आज जो िनहा रका के मोबाइल पर कई बार कॉल क थी, ये
उसी क देन है। मुझे फोन करके यहां प च ं ने का म दया गया था। हे भगवान म कस
मुसीबत म पड़ गई।”
“घबराओ मत! यह पुिलस क टीन कारवाई है, अगर तुम िनद ष हो तो देख लेना
तु हारा बयान लेते ही ये लोगे तु हे आजाद कर दगे।”
“अगर िनद ष !ं ” - वो तिनक त ख लहजे म बोली - “ या मतलब है भई तु हारा, म
या तु ह काितल दखाई देती ।ं ”
“नह , इसीिलए कहता ं आराम से बे फ होकर बैठो, ज दी ही तुम अपने घर म
होगी।”
“और अगर पुिलस ने नह जाने दया तो।”
“तो भी तुम घर म होगी, यक न करो मेरा, इसिलए बे फ होकर बैठो, कु छ नह होने
वाला तु हे।”
मेरी बात सुनकर उसके चेहरे पर तिनक राहत के भाव आये। म दोबारा कु छ नह बोला
और पुिलिसय के फा रग होने का इं तजार करता रहा। मुझे इस झमेले क कोई खास चंता
नह थी, य क म सािबत कर सकता था क मकतूला क ह या के व म वहां नह हो
सकता था। और कु छ नह तो कै लाश कॉलोनी के मै ो टेशन पर लगे सीसीटीवी कै मरे और
उस सड़क पर तकरीबन हर दुकान और शो म के बाहर लगे कै मरे मेरा गवाह बन सकते थे
क मने वहां से गुजरते व गढ़ी का ख नह कया था।
अलब ा िनहा रका ीव स क ह या ने मुझे िहलाकर रख दया था। या उसक ह या
िसफ इस वजह से कर दी गई क वो मुझसे िमलने आ रही थी। और काितल को डर था क
उस मुलाकात म वो कोई ऐसी बात मुझे बता सकती थी जो सोनाली और बाली क ह या
से पद उठा सकती थी।
मेरा मन नह माना। इतनी ज दी ह यारे को हमारी मुलाकात के बारे म िसफ एक ही
तरीके से पता चल सकता था, जब वो बात हम तीन म से कसी ने उसे पास-ऑन क हो।
मने ऐसा नह कया था, ये बात मुझसे बेहतर कौन जानता था। मीता स सेना से मने इस
बाबत सवाल कया तो उसका जवाब भी इं कार म था। अब तीसरा नग थी मकतूला
िनहा रका ीव स! अगर उसने ये बात कसी को नह बताई थी तो इसका मतलब साफ
था क वो पहले से ही ह यारे क िहट िल ट म थी। िलहाजा ये महज इ फ़ाक हो सकता
था क उसक ह या ऐन उसी व क गई जब वो मुझसे िमलने के िलए घर से िनकलने
वाली थी।
िलहाजा तीन ह या के बीच ज र कोई लंक बनता था जो क अभी जािहर नह हो
पा रहा था। यूंही खुद से सवाल करता और खुद ही उसका जवाब देता म व गुजारी
करता रहा।

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आिखरकार बीस िमनट बाद फोरिसक टीम के लोग वहां से िवदा ए तब इं पे टर
सुहले संह ने मुझे अपने पास आने का इशारा कया और खुद एक सोफे पर जा बैठा।
म उसके सामने एक चेयर ख चकर बैठ गया।
“म तु हारे नाम से पहले से वा कफ !ं ” - वो गंभीर लहजे म बोला - “नरे श चौहान को
तुमने कतने चम का रक ढंग से क ल के इ जाम से बचाया था, वो क सा मुझे मालूम है।
इसिलए म तु हे ह के म नह ले रहा।”
“शु या!”
“ये बात मने तु हारा शु या हािसल करने के िलए नह कही, बि क इसिलए कही है
ता क मकतूला के बारे म जो कु छ भी तुम जानते हो बगैर लाग-लपेट के मुझे कह सुनाओ।”
“मेरी बात पर यक न कर लगे।”
“हां कर लूंगा।”
“तो स ाई यही है जनाब क म उसके बारे म कु छ नह जानता। म ता जंदगी उससे
कभी नह िमला। यहां जो मीता स सेना नाम क लड़क बैठी ई है, उससे आप पूछ सकते
ह क आज दोपहर से पहले म िनहा रका ीव स के नाम से भी वा कफ नह था।”
“पूछने क ज रत नह है, समझ लो मने तु हारी बात पर यक न कर िलया। अब तुम ये
बताओ क िजसे तुम जानते नह थे, उससे मुलाकात पर या हािसल होने क उ मीद कर
रहे थे।”
“पता नह ! यही स ा जवाब है। उससे मुलाकात क वजह बस इतनी थी क वो
सािहल भगत क से े टरी क दो त थी और उस से े टरी का कसी जमाने म मकतूल महेश
बाली से अफे यर था। यूं म उसके ज रए बाली के बारे म कु छ जानने क उ मीद म उससे
िमलना चाहता था।”
“ फर तो बात ही ख म हो गयी भई। समझ लो तुम यहां से जाने को आजाद हो।”
“शु या! अब अगर आपक इजाजत हो तो बंदा एक नजर लाश पर डालना चाहता
है।”
“उससे या हािसल होगा।”
“मने कभी कसी जवान लड़क क गोली लगी लाश नह देखी है। अभी मौका है तो
बंदा इसे गवाना नह चाहता।”
जवाब म उसने कोई स त बात कहने के िलए मुंह खोला फर खुद को ज त करता आ
बोला, “जाओ जी भरकर अपनी वािहश पूरी कर लो, मगर कसी चीज को हाथ मत
लगाना।”
“हरिगज नह लगाऊंगा जनाब!” कहकर म लाश क दशा म बढ़ गया।
िनहा रका ीव स क लाश पीठ के बल फश पर पड़ी थी। माथे म बना गोली का सुराग
दूर से ही दखाई दे रहा था। गोली फासले से चलाई गई मालूम पड़ती थी य क माथे से
सटाकर चलाई गई गोली भीतर दािखल होने से पूव आस-पास क खाल को झुलसाकर रख
देती है, वैसे िनशान वहां मौजूद नह थे। उसके दाय हाथ म एक क -चैन थी, िजससे मने
अंदाजा लगाया क क ल कये जाने से ऐन पहले वो घर से बाहर जा रही थी इसीिलए

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दरवाजे क चािबयां उसके हाथ म थ । उसक आंख उस व भी खुली ई थ िजनम
आ यच कत होने के भाव अभी भी मौजूद थे। यक नन काितल कोई जाना-पहचाना श स
था िजससे उसे कसी खतरे क उ मीद नह थी। लाश पर और कसी कार के ज म या
खर च के िनशान नह थे जो ये सािबत करता था क मकतूला और काितल के बीच कसी
कार का कोई संघष नह आ था।
अ य कोई कािबलेिज बात मुझे दखाई नह दी। म वािपस सुहल े संह के पास प च ं ा
जो क उस घड़ी मीता स सेना के गले पड़ने म त था। मुझे करीब आया देखकर उसने
सवाल करती िनगाह से मुझे देखा फर बोला, “हो गई वािहश पूरी।”
“जी हां हो गई।”
“तो फर अभी तक यहां य बने ए हो, टलते य नह ।”
“जनाब आपक दयानतदारी का थोड़ा सा फायदा और उठाना चाहता ।ं ”
“बोलो!”
“इन मोहतरमा से!” - मने उसके सामने बैठी मीता स सेना क ओर इशारा कया -
“कु छ एक सवाल म भी करना चाहता ।ं ”
“जाकर बाहर बैठो, म इ ह बड़ी हद पांच िमनट म फा रग कर दूग ं ा, इसके बाद िजतने
मज हो सवाल कर लेना, चाहो तो इ ह घर तक प च ं ा आना।”
“ये तो ब त उ दा राय दी जनाब, शु या! म बाहर वेट करता ।ं ” कहकर म खुले
दरवाजे से बाहर िनकल आया और कसी तरसे ए श स क तरह िसगरे ट सुलगाकर
गहरे -गहरे कश लगाने लगा।
दस िमनट बाद मीता स सेना वहां से बाहर िनकलती दखाई दी। उसने एक बार अपने
दाएं-बाय िनगाह दौड़ाई फर मुझपर िनगाह पड़ते ही मेरी ओर बढ़ आई।
हम दोन बाहर जाकर मेरी कार म सवार हो गये। मने फौरन कार वहां से आगे बढ़ा
दी। पुिलस वाल का भला या भरोसा कब उनका िमजाज बदल जाए, और कु छ नह तो
दो-चार नये सवाल ही सूझ जाते तो वे मुझे या मीता को, या हम दोन को वह रोक लेते।
िलहाजा मने वहां ठहरने का र क लेना मुनािसब नह समझा।
कार चलाता म लाजपत नगर प च ं ा और वहां स ल माकट के पास कदरन नये बने एक
रे टोरट के सामने कार पाक करने के बाद मीता को साथ िलए भीतर दािखल हो गया।
मने मीता से पूछकर दो मसाला डोसा आडर कया और आडर सव होने का इं तजार
करने लगा।
“अब बताओ, पुिलस को इतनी ज दी तु हारी खबर य लगी।”
“बताया तो था, उन फोन कॉ स क वजह से जो म तुमसे उसक मुलाकात ना होने के
कारण बार-बार उसके मोबाइल पर कर रही थी।”
“बात तो नह ई।”
“तु ह पता है नह ई! होती भी कै से वो तो उस व अपने घर म मरी पड़ी थी। माई
गॉड कतनी भयानक लग रही थी उसक श ल। मुझे तो उसक लाश देखते ही च र आने
लगे थे। शु था म खड़े-खड़े मर नह गई।”

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“तुम लाश के करीब गई ही य ?”
“म कहां गई, एक लेडी कां टेबल ने तकरीबन जबरन मुझे लाश देखने को मजबूर कया
था, ये कहकर क मुझे लाश क िशना त करनी है।”
“ या बताया तुमने उ ह।”
“वही जो सच था, जो म उसके बारे म जानती थी।”
“पुिलस ने तुमपर क ल का इ जाम थोपने क कोिशश नह क ।”
“ऐसा सीधे-सीधे तो नह कया मगर ये हंट ज र ॉप कया क काितल कोई भी हो
सकता था, म भी!”
“अब एक सवाल म रपीट करने वाला ,ं ब त सोच-समझकर इ मीनान से जवाब दो
क या तुमने िनहा रका और मेरी मुलाकात का कसी से िज कया था।”
“नह कया था, करती तो कससे करती, फर उसम िज के कािबल बात ही या
थी।”
“तुम कोई और रा ता सुझा सकती हो िजसके ज रए काितल को िनहा रका और मेरे
बीच होने वाली मुलाकात का पता लग गया हो।”
“देखो वो बात मने कसी को नह बताई, अगर िनहा रका ने कसी से िज कया हो
तो मुझे भला खबर य कर होती।”
“उसका क ल य आ, मेरा मतलब है या तुम इस बारे म कोई अंदाजा लगा सकती
हो। इसके अलावा कोई अंदाजा क वो मुझसे िमलने वाली थी और काितल को डर था क
उस मुलाकात म वो कु छ ऐसा बता सकती थी िजससे उसका राज उजागर हो सकता था।”
“म ऐन यही कहने वाली थी, कोई दूसरी-तीसरी बात थी तो समझ लो मुझे नह
मालूम।”
“उससे िमलने-जुलने वाल के बारे म या कहती हो, या उनम से कसी क खबर है
तु हे।”
“वो तो समझ लो है! आजकल उसके सबसे करीबी क बाबत क ं तो उसका नाम मुकेश
गु ा है, जनिल ट बताता है अपने आपको, अलब ा आजतक कसी यूज पेपर या यूज
चैनल म मने उसका िज नह देखा।”
“वो कोई बड़ी बात नह है, प का रता के धंधे म ऐसे ब तेरे चेहरे होते ह जो बड़ी-बड़ी
यूज हािसल करने के बावजूद कभी लोग के सामने नह आते। ऐसे लोग हमेशा िछपी ई
िव फोटक जानका रयां खोजकर सामने लाते ह, इसिलए उनका पद के पीछे बने रहना ही
ेयकर होता है।”
“तो फर समझ लो वो भी ऐसा ही कोई प कार होगा।”
“पाया कहां जाता है?”
“जब िनहा रका जंदा थी तो अ सर उसक कार म या घर म पाया जाता था, अब आगे
कहां होगा कहना मुहाल है। मुझे उसका ए स े नह पता।”
“वो प कार है, ऐसा तु ह िनहा रका ने बताया था।”
“और कौन बताता।”

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“उसके अलावा कोई और!”
“राके श दीि त! िनहा रका को मॉडल बनाने का चु गा चुगाता था। अलब ा वो है
इसी पेशे म, इसक मुझे प खबर है।”
“वो चुग लेती थी।”
“चुग ही लेती थी, मगर फासले से, जैसे हम कसी कु े को पुच-पुच करके अपने पास
बुलाएं और जब वो यादा करीब आ जाय तो हट-हट करने लग।”
“यािन तु हारी सहेली को दीि त का यादा करीब आना पसंद नह था, मगर वो उसे
अपने काबू से बाहर भी नह जाने देना चाहती थी।”
“ऐसा ही समझ लो।”
“तुम िमली हो कभी इन दोन से।”
“दीि त से िमली ं ब त ही काइयां आदमी है, जवान लड़ कय को देखकर यूं लार
टपकाता है क बस पूछो मत! इस मामले म वो कसी का भी िलहाज नह करता।”
“ये दीि त पाया कहां जाता है?”
“मालूम नह म तो उससे िनहा रका के लैट पर ही िमली थी।”
इससे पहले क वो बातचीत आगे बढ़ती हमारा आडर सव हो गया। िलहाजा मने उस
टॉिपक को वह ितलांजिल दे दी।
वहां से िनकलकर मने मीता स सेना को उसके घर ॉप कया। तब तक शाम िघरने
लगी थी। मेरा इरादा एक च र मं दरा जोशी के लैट का लगा लेने का था। बाली से उसके
अफे यर क जानकारी के जेरेसाया उसने कु छ तो बक कर देना ही था।
म अभी रा ते म ही था क मोबाइल क घंटी बजने लगी। फोन नीलम का था। कॉल
अटड करने पर उसने बताया क रे लवे टेशन पर सूटके स क िडलीवरी लेने वाले कु ली ने
महेश बाली क िशना त उस ि के प म कर ली है िजसने उसे सूटके स ेन म रखने के
िलए पांच हजार पये दये थे।
वो खबर िव फोटक थी, अलब ा बाली के क ल क सूरत म उस बात क कोई
अहिमयत थी या नह , कह पाना मुहाल था। ले कन उस िशना त से एक बात तो साफ हो
गई थी क बाली का सोनाली भगत के ह यार से गहरा टाईअप था। िलहाजा मेरा अंदाजा
दु त हो सकता था क वो पूरे ामे का एक अहम कं तु कमजोर पा था। साढ़े चार
करोड़ क फरौती वाली बात अगर कसी तरह से सामने आ जाती तो पुिलस ने उस तक
प चं कर रहना था। ऐसे म इतना बड़ा षड़यं रचने वाल क पोल खुल जाना महज व
क बात होती। इसीिलए उ ह ने सबसे पहले जंजीर क कमजोर कड़ी को उखाड़ फका था।
अब भले ही उन लोग का बाली से लंक दखाई देने लगा था। मगर वो लंक टू टा आ
था, बाली के क ल ने ह यार और पुिलस के बीच क दूरी इतनी बढ़ा दी थी क उसे तय
करना कोई आसान काम सािबत नह होने वाला था।
“अरे तुम लाइन पर हो या नह !”
नीलम के वर ने मेरी तं ा भंग क , “लाईन पर ही ,ं बस जरा तुझसे िमली जानकारी
पर तबसरा करने लगा था।”

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“वो तुम कॉल िड कनै ट कर के भी कर सकते हो।”
“वो भी क ं गा, पहले ये बता क कु ली क खबर लेने कौन गया था?”
“राघव!”
राघव उसका ाईवर कम लेग मैन था जो उसके िलए जांच-पड़ताल जैसे फु टवक को
अंजाम देता था।
“उसक कु ली से मुलाकात कहां ई थी?”
“ टेशन के पास ही कु छ झोपिड़यां पड़ी ई ह, वो कु ली िजसका नाम जमाल है, उ ह
म से कसी एक झोपड़ी म रहता है। राघव क उससे वह मुलाकात ई थी।”
“और कोई बात पता चली।”
“नह वो अपनी कल वाली बात पर कायम है क वो उस पूरे िसलिसले म और कु छ
नह जानता। उसे पांच हजार पय के बदले एक मामूली काम स पा गया था िजसे उसने
कर दया। सूटके स म या था, वो नह जानता। उससे कहा गया था क वो माल को
इलाहाबाद टेशन पर उतरवाने क व था कर दे। िजसके िलए उसने वहां के अपने एक
पहचान वाले कु ली को उस बाबत फोन करके िहदायत दे दी थी।”
“यािन उस पासल को, िजसम दोन सूटके स बंद थे, इलाहाबाद म उतार िलया गया
होगा।”
“हां उसने राघव के सामने ही फोन करके दरया त कया था, ये अलग बात है क दोन
सूटके स को तब तक वहां से ले जाने कोई नह प चं ा था।”
“ये तो अपने आप म हैरान कर देने वाली बात है! भला कोई साढ़े चार करोड़ पय को
टेशन पर यूं लावा रस कै से छोड़ सकता है।”
“तो फर समझ लो क सूटके स म पये नह रहे ह गे।”
“मुझे भी ऐसा ही लगता है, हाल ही म कु छ ऐसी बात सामने आई ह जो सोचने पर
मजबूर करती ह क उन सूटके स म पये नह हो सकते।”
“ऐसी या बात है।”
जवाब म मने उससे रं जीत सहगल के बारे म बताते ए पूरी कहानी सुना दी।
“कमाल है!” - सुनकर वो बोली - “ फर तो सबसे पहले तु ह यही पता लगाना चािहए
क पये उन सूटके स म ह या नह ।”
“उसके िलए तो इलाहाबाद जाना पड़ेगा।”
“या कोई ऐसा जानकार िनकल आए जो इस काम को अंजाम दे सके ।”
“जानकार तो कई ह मगर उनम से ऐसा कोई नह जो इतने फसादी काम को करने क
हामी भरे ।”
“ फर तो तु ह खुद इस काम को अंजाम देना पड़ेगा।”
“ठीक कहती है।”
“पुिलस!”
“ या! कहां?”
“पुिलस क मदद से ये काम चुट कय म हो सकता है।”

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“हो तो सकता है, मगर अपना मतलब हल करवाने के िलए पहले उ ह पूरी कहानी
सुनानी पड़ेगी।”
“ या पता ना सुनानी पड़े, तुम कोिशश तो कर के देखो।”
“ठीक है तू फोन रख म कु छ करता ं इस बाबत।”
कॉल िड कनै ट करने के बाद मने मं दरा जोशी से िमलने का अपना फै सल मु तवी कर
दया और एसीपी पांडे को फोन लगाया।
त काल जवाब िमला।
“कै सा है अपना गोखले?”
“एकदम ब ढ़यां जनाब! टॉप ऑफ दी व ड।”
“जानकर खुशी ई, फोन कै से कया।”
“राजा के पास जा कसिलए जाती है, जािहर है फ रयाद करने।”
“िलहाजा कोई काम आन पड़ा है।”
“है तो कु छ ऐसा ही।”
“तेरे उस काम का संबंध सािहल भगत वाले के स से तो नह है।”
“लगता तो है, अलब ा उसका दावा काम का रज ट आने पर ही कया जा सकता है।”
“काम बोल!”
मने बताया क म उससे या चाहता था।
“चौहान से य नह बोला, आिखरकार आजकल वो तेरा िजगरी बना आ है।”
“जनाब उसे भी तो आपक परिमशन दरकार होती, इसिलए मने सीधा आपसे इि तजा
करना बेहतर समझा।”
“ !ं ” - उसने लंबी कं ार भरी फर बोला - “तू उन सूटके स से या बरामद होने क
उ मीद कर रहा है।”
“साढ़े चार करोड़ पये या फर र ी! कु छ भी हो सकता है।”
“कमाल है!”
“वो तो आ जनाब मगर आपक कृ पादृि अभी बंदे को हािसल नह ई।”
“चौहान से बोल, मना करे तो मेरे नाम का हवाला देना, काम हो जाएगा।”
“शु या जनाब।”
कहकर मने कॉल िड कनै ट करके चौहान को फोन लगाया। काफ देर तक घंटी जाती
रहने के बाद कॉल अटड क गई।
“ या हाल है चौहान साहब!”
“हाल का तो मत पूछ, बाली के के स ने खोपड़ी घुमाकर रख दी है, समझ म नह आता
क कसी तरफ कदम बढ़ाऊं।”
“िलहाजा कोई तर नह क अभी तक तुमने।”
“वो तो खैर नह ही क , तू बता कै से फोन कया।”
“एक काम था, िजसे वार फु टेज पर कया जाना ज री है, इस बाबत जब मने पांडे
साहब से बात क तो उ ह ने तुमसे बोलने को कहा।”

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“काम बोल!”
“इलाहाबाद टेशन पर एक बोरे म पैक दो सूटके स रखे ए ह जो क आज ही हाजीपुर
ए स ेस से वहां प च ं े ह। उस बोरे क पहचान ये है क उसपर कोई लेबल नह लगा आ
है। ना तो भेजने वाले का कोई नाम पता है ना ही रसीव करने वाले का। कोई ऐसा
इं तजाम करवाओ चौहान साहब क अगले चौबीस घंट तक उस पासल पर िनगाह रखी
जा सके और उसे रसीव करने वाले को फौरन िहरासत म लेकर पूछताछ क जाय। यूं जो
नतीजा िनकले उससे फौरन तु ह वा कफ कराया जाए।”
“और मान ले अगर कोई उसे रसीव करने प च ं े ही नह तो!”
“तो तुमने पासल खोले जाने का इं तजाम करवाना है, और ये पता करके रहना है क
उन दोन सूटके स के भीतर या है।”
“वो सब तो म कर लूंगा मगर मेरी समझ म ये नह आता क अचानक द ली से इतनी
दूर रखे एक पासल म तेरी दलच पी य कर हो आई, जो तू उस बारे म जानने को मरा
जा रहा है।”
“इस सवाल का जवाब फलहाल मुि कल है, मगर दो दन बाद तुम मेरे िबना बताए
ही सबकु छ समझ जाओगे।”
“गोखले!” - वो तिनक त ख लहजे म बोला - “िजससे कोई काम करवाते ह, उसके साथ
या यूं बेगान क तरह पेश आते ह।”
“ऐसी बात नह है, तुमसे कु छ िछपाने का मेरा कोई इरादा नह है। अगर तुम जाने
िबना वो काम नह करके दोगे तो आिखरकार तो सारी कहानी तु ह सुनानी ही पड़ेगी।”
“गोखले होश म आ म तेरे सामने कोई शत नह रख रहा।”
“तो फर समझ लो मेरी तुमसे इि तजा है क फलहाल उस बाबत मुझसे कोई सवाल
मत करो।”
“समझ ले इि तजा कबूल ई, अब फोन रख तो म काम म लगूं। य क ये ब त
व खाऊं काम है, अगर वहां के टॉफ म कोई पहचान वाला िनकल आया तो और बात है,
वरना तो सारा काम िस टमै टक ढंग से करना पड़ेगा, जो आज क डेट म हो भी पायेगा या
नह कहना मुहाल है।”
“तुम कोिशश तो करो।”
“वो तो खैर म क ं गा ही।”
कहकर उसने कॉल िड कनै ट कर दी।
जो काम म एसीपी पांडे से िमलकर करने वाला था वो यूंही फोन पर बनता दखाई
दया तो एक बार फर मेरे मन म सािहल भगत क परीचेहरा से े टरी मं दरा जोशी को
टटोलने का क ड़ा कु लबुलाने लगा।
उस व रात के आठ बजे थे जब मने मं दरा जोशी के लैट वाली इमारत के सामने
अपनी कार रोक और बाहर िनकलकर सी ढ़यां चढ़ता आ पहली मंिजल पर प च ं ा।
गिलयारे म यूं अंधेरा फै ला आ था जैसे वहां कोई रहता ही ना हो।
कॉल बेल पुश करके म दरवाजा खोले जाने का इं तजार करने लगा।

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कु छ ण बाद मुझे दरवाजे क ओर बढ़ते कदम क आहट िमली, फर दरवाजा खुला।
जैसा क अपेि त था, दरवाजे पर मं दरा जोशी खड़ी दखाई दी।
“नम ते!” म कान तक मु कराया।
“तुम!” - वो च कती ई बोली - “इस व यहां।”
“िलहाजा पहचान िलया आपने इस नाचीज को।”
“ य भई, मेरी या ा त म कोई नु स दखाई देता है या तु हे।”
“अभी तो नह दखाई देता, अलब ा भीतर बुलाकर कोई चाय-वाय पेश करोगी तब
पता चलेगा क नु स है या नह ।”
“म तु ह दरवाजे से ही चलता य नह कर दू।ं ”
“ य क म लसूड़ा ,ं जो लाख कोिशश के बाद भी िचपका ही रहता है।”
“यािन जबरद ती गले पड़ोगे।”
“अगर राजी से पड़ने दोगी तो जबरद ती य पड़ूग ं ा।”
“ठीक है बताओ, य आए हो यहां।”
“कमाल है िपछली मुलाकात म तो तुमने यूं िमजाज नह दखाया था।”
“तु ह पता है य नह दखाया था, तब तुम एडवोके ट नीलम तंवर के साथ यहां आए
थे।”
“घबराओ मत बंदा राजी-राजी म, बड़ी हद थोड़ी ना-नुकर के बाद राजी-राजी म
यक न रखता है। रे िप ट कहलाने का मुझे कोई शौक नह है।”
“तु ह रे िप ट कौन बोला!”
“डर तो यूंही रही हो जैसे भीतर घुसते ही म तुमपर चढ़ दौड़ूग
ं ा और...”
“ऐनफ!” - वो झुंझलाती ई बोली - “रही बात डरने क तो तुम जैस से िनपटना मुझे
बखूबी आता है।”
“ज र कजरारे नैनो के तीर चलाकर घायल कर देती होगी मद को। अगर ऐसा है तो
तुम इ मीनान रखो, बंदा पहली मुलाकात म ही फु ल घायल हो चुका है। कडनी, फे फड़े,
लीवर इस कदर घायल ह क अधमरा हो चुका ,ं ऐसे म मुझे भीतर बुलाने से भला तु ह
या खतरा हो सकता है।”
“हे भगवान! कै से िचपकू और बेशरम इं सान हो तुम!”
“भगवान को िचपकू और बेशरम बोलोगी तो परलोक म दुख पाओगी वीट-हाट।”
“अरे वो मने तु ह कहा है।”
“ फर कोई बात नह , मेरा दल ब त बड़ा है। समझो मने तु ह माफ कर दया, अब
इजाजत हो तो भीतर आ जाऊं।”
“तुम समझते य नह , इस व म तु ह अटड नह कर सकती।”
“भीतर पहले से कोई मेहमान मौजूद है!”
“यही बात है।”
“तु हारा वाय ड!”
“अगर इससे तु ह तस ली िमलती हो तो हां, भीतर मेरा वाय ड है, अब भगवान के

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िलए इस व टलो यहां से।”
“वािपस कब आऊं!”
“दो घंटे बाद, लीज!”
“ लीज कहती हो तो चला जाता ,ं मगर िसफ दो घंट के िलए, टाटा बाई-बाई।”
म वािपस लौट पड़ा।
भीतर कोई पहले से मौजूद था, इसका अंदाजा तो मुझे उसके टाल-मटोल वाले रवैये से
ही हो गया था। अलब ा भीतर मौजूद श स उसका वाय ड था! ये बात न जाने य
मेरी समझदानी म नह घुस रही थी। आिखर मेरे रहते उसका कोई वाय ड कै से हो
सकता था।
म नीचे प च ं कर अपनी कार म सवार आ और उसे इमारत से तिनक दूर खड़ा करके
इं तजार करने लगा।
उसने मुझे दो घंटे बाद आने को कहा था, िलहाजा मुझे यक न था क भीतर जो कोई भी
था वो उससे कह ब त पहले वहां से चलता- फरता नजर आने वाला था।
व गुजारी करते ए मने एक िसगरे ट सुलगा िलया और अपनी िनगाह सी ढ़य के
दहाने पर टका द ।
धीरे -धीरे व गुजरता गया। िमनट घंटे म त दील हो गया, मगर मुझे वहां से बाहर
िनकलता कोई दखाई नह दया। मेरी सारी कै कु लेशन गलत सािबत होती जा रही थी।
म ये तक सोचने पर मजबूर हो गया क कह ऐसा तो नह क मं दरा के लैट म उस घड़ी
कोई था ही नह ! उसने महज मुझे वहां से चलता करने के िलए अपने वाय ड का हवाला
दे दया हो।
ले कन अगले ही पल मने उस िवचार को अपने जहन से ये सोचकर झटक दया क
अगर ऐसा होता तो दो घंटे बाद मुझसे िमलने क हामी उसने भी नह भरी होती। लैट
उसका था, अगर वो साफ-साफ मुझसे िमलने से इं कार करते ए, मेरे मुंह पर दरवाजा बंद
कर देती तो म उसका भला या िबगाड़ लेता।
मेरी इस सोच ने मेरे जहन म फर से उ मीद क रोशनी भर दी। म एक बार फर पूरी
त मयता से इमारत क सी ढ़य को वॉच करने लगा।
डेढ़ घंटा गुजर गया।
नतीजा ढाक के तीन पात सािबत आ। इस दौरान म दस िसगरे ट फूं क चुका था।
यारहवां सुलगाने ही जा रहा था, क कोई लड़क सी ढ़यां उतरती दखाई दी। म फौरन
सजग होकर बैठ गया।
वो कु छ आगे बढ़ी तो मुझे पहली बार उसक सूरत दखाई दी। िजसपर पहली िनगाह
पड़ते ही म च क सा गया।
ये वही लड़क थी जो सोनाली क ह या वाली रात बाहर सड़क पर महेश बाली से
िमलने प च ं ी थी। िजसे बाली ने कोई पैकेट थमाया था। भले ही उसक श लोसूरत का
कोई अ स मेरे जहन म नह था, मगर उसपर िनगाह पड़ते ही मने उसे झट पहचान िलया।
पीछे मं दरा के लैट म वही मौजूद थी, ये जानने का मेरे पास कोई साधन नह था।

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अलब ा म कसी और के बाहर िनकलने क उ मीद म उसको खोना अफोड नह कर
सकता था।
नीचे प च ं कर लड़क िबना दाय-बाय देखे बाहर क ओर चल पड़ी। मने उसको काफ
आगे चले जाने दया, फर अपनी कार उसके पीछे लगा दी।
कं पाउं ड से बाहर िनकलकर उसने एक ऑटो कवाया और उसम सवार हो गई।
म बद तूर उसका पीछा करने लगा।
उसका ऑटो अंधे रया मोड़ से लै ट टन लेकर महरौली क ओर चल पड़ा और आगे
एमबी रोड पर दाय मुड़ गया। हैवी ै फक क वजह से उसके पीछे बने रहना मेरे िलए
भारी मुि कल का काम सािबत हो रहा था। साथ ही इस बात क तस ली भी थी क वो
अगर ब त यादा सावधान होती - िजसक मुझे कतई उ मीद नह थी - तो भी उसे अपना
पीछा कए जाने का एहसास नह होना था।
ऑटो म बैठी हसीना का पीछा करता म साके त तक जा प च ं ा और उस व तो हैरान
ही रह गया जब वो महेश बाली के लैट वाली इमारत के सामने प च ं कर ऑटो से नीचे
उतर गई।
मुझे लगा वो वहां मीता स सेना से िमलने प च
ं ी थी, मगर ऐसा नह आ। ऑटो से
उतर कर उसने पैसे चुकाये और ाउं ड लोर के लैट क घंटी बजा दी। मीता स सेना के
बताये ही मुझे मालूम आ था क उस लैट म उसक सहेली सुनीता रहती थी। तो या वो
सुनीता से िमलने आई थी। या फर वो खुद सुनीता ही थी।
कु छ भी हो सकता था।
दरवाजा एक बुजुग औरत ने खोला, िजसक श ल पर एक िनगाह डालते ही म समझ
गया क दोन मां-बेटी थ । दोन क सूरत हद से यादा िमलती थ , िलहाजा वहां प च ं ी
वो लड़क सुनीता या उसक कोई बहन हो सकती थी।
अब य क मुझे उसका मुकाम पता था इसिलए म कभी भी उसके गले पड़ सकता था।
मने कार को यू टन दया और वािपस मं दरा जोशी के लैट क ओर चल पड़ा।
दो घंटे का व समा हो चुका था, आगे आधा-पौना घंटा और लग जाना कोई बड़ी
बात नह थी। मगर मुझे उ मीद थी क वो िसफ इसिलए मुझसे िमलने से इं कार नह कर
देने वाली थी क म वहां लेट प चं ा था।
वापसी म मुझे सड़क पर ै फक ब त कम िमला िजसक वजह से म महज प ीस
िमनट म वािपस मं दरा जोशी के लैट क कॉल बेल पुश कर रहा था।
दरवाजा खुला, उसने एक बार आहत भाव से मेरी तरफ देखा फर भीतर आने के िलए
रा ता दे दया।
हम दोन बैठक म आमने-सामने बैठ गये।
“कोई चाय-कॉफ लेना पसंद करोगे।”
“खूबसूरत लड़ कय के हाथ से तो बंदे को जहर पीने से भी गुरेज नह है, मगर रात
काफ हो चुक है इसिलए कसी तक लुफ म पड़ने क ज रत नह है।”
“शु है तु हे व का एहसास तो है।”

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“वो तो बराबर है, तभी तो चाय-कॉफ को दर कनार कर दया ता क तुम कु छ यादा
गरम चीज पेश कर सको।”
“खाितर जमा रखो म वैसा कु छ नह करने वाली।”
“िलहाजा घर आये मेहमान क खाितरदारी का तु हारे यहां कोई रवाज नह है।”
“जबरद ती का मेहमान!”
“ या क ं तु हारा नंबर ही नह था मेरे पास वरना अ वाइं टमट लेकर आता।”
“ य भई, यहां आने का तु हारा अहम मकसद अपनी खाितरदारी करवाना है।”
“खास खाितरदारी जो क बंदे को यहां होती नह दखाई दे रही।”
“ फर य अपना व जाया करते हो, उठकर चलते फरते य नह नजर आते।”
“वो तो खैर संभव नह है, बंदा एक बार जहां आसन जमा लेता है वहां से अपना
मकसद हल कये िबना टलकर नह देता।”
“अगर ऐसा है तो व जाया करना छोड़ो और साफ-साफ बताओ क यहां कस
िसलिसले म आये हो।”
“िसलिसला तो सोनाली भगत क ह या वाला ही है जो क ए सटड होकर पहले महेश
बाली तक प च ं ा फर वहां से घूम- फरकर िनहा रका ीव स तक जा प च ं ा। तुम तो
बखूबी जानती थी उसे।”
“थी का या मतलब है, अभी भी जानती ,ं वो इस पूरे िसलिसले म कहां फट बैठती
है।”
“ये अभी जांच का मु ा है, अलब ा तु हारी जानकारी के िलए बता दूं क िनहा रका
ीव स!” - मने उसके चेहरे पर अपनी िनगाह गड़ा द - “अब मर म िनहा रका ीव स
हो चुक है।”
“ या बकते हो!” - वो बुरी तरह च क , फर तिनक शं कत वर म बोली - “मर म का
मतलब वही होता है न, जो क म इस व समझ रही ।ं ”
“तुम या समझ रही हो भला म कै से बता सकता ,ं अलब ा अगर तु हारी अं ेजी
कमजोर है तो च म बताये देता ं क आज दन म एक बजे के करीब उसक गोली
मारकर ह या कर दी गई।”
“ओह नो! ओह माई गॉड! भला उसका क ल कोई य करे गा।”
बावजूद उसके चेहरे पर नजर गड़ाये रखने के म ये अंदाजा नह लगा सका क उसे
िनहा रका क मौत क खबर पहले से थी या नह ।
कु छ देर तक हमारे बीच खामोशी छाई रही। इस दौरान उसक आंख से छलकते आंसू
मुझे साफ दखाई दए। मगर उससे या पता चलता था। कसी औरत के िलए अपनी
ज रत के व आंसु क गंगा-यमुना बहाना शु कर देना कौन सी बड़ी बात थी।
अगले पांच िमनट तक मने उसे आड़ा-ितरछा मुंह बनाकर िससक लेने दया। चार-पांच
बार नाक सुड़क लेने दी। दो बार घुटन म मुंह िछपा रो लेने दया।
आिखरकार जब उसने मेरे मुंह से सां वना के दो बोल भी नह सुने तो खुद ब खुद ही
शांत हो गई।

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बंदे का जाती तजुबा है क ऐसे मौक पर आप सामने वाल को िजतना चुप कराने क
कोिशश करगे, वो उतना ही यादा रोयेगा या रोने क ए टंग करे गा। इसिलए कहता ं
साहबान क अगर अपनी खै रयत चाहते ह तो कसी के , खासतौर पर कसी औरत के आंसू
पोछने क कोिशश ना कर।
“ कसने मारा उसे।” वो सहेली के क ल क खबर के शॉक से उबरती ई बोली।
“मालूम नह , पुिलस त तीश कर रही है, ज दी ही कोई नतीजा सामने आने क उ मीद
है।” - कहकर मने एक बार फर गौर से उसका चेहरा पढ़ने क कोिशश क , कु छ हािसल
नह आ - “तुम आिखरी बार कब िमली थी उससे!”
“कहना मुहाल है, अलब ा महीना तो गुजर ही गया होगा।”
“आज दन म एक़ बजे के करीब तुम कहां थ ?”
“ या मतलब है भई!” उसक आंख म संदह े उतर आया।
“कु छ खास नह बस एक टीन सवाल पूछा है जो आिखरकार पुिलस भी तुमसे पूछकर
रहेगी।”
“यह थी, रपि लक डे क छु ी है, और कहां होती म।”
“मने सोचा कह घूमने गई होगी, वाय ड या कसी सहेली के साथ।”
“नह गई, इसिलए नह गई य क वाय ड को यह बुला िलया। दन भर मूवी देखी,
म ती क , शाम को क ं कया और आगे िडनर कर ही रहे थे क तुम यहां आ धमके थे।”
“तुम लैि बयन हो!”
“ हाट!” - वो भड़कती ई बोली - “तु हारा दमाग तो ठीक है, या अनाप-सनाप
सवाल कर रहे हो।”
“नह हो तो इससे अ छी बात या है, मने तो ये सोचकर पूछ िलया था, य क
सुनीता मुझे कह से भी लड़का नह दखाई देती! ज र मेरी नजर ने धोखा खाया होगा
नह ।”
“िम टर गोखले!”
“यस मैम!”
“तुम एक नंबर के कमीने इं सान हो।”
“थ यू मैम।”
“सुनीता के बारे म कै से जाना।”
“वैसे ही जैसे जाना जाता है, आई एम ए िडटेि टव, रमै बर!”
“िलहाजा उस व तुम िसफ मेरे लैट के आगे से टले थे, इलाके से नह ।”
म हंसा।
“मगर यूं आनन-फानन म उसका नाम कै से जान िलया।”
“वैसे ही जैसे तु हारे और मकतूल महेश बाली के अफे यर के बारे म जाना।”
सुनकर उसके मुंह से िससकारी सी िनकल गई।
“अब बताओ, िपछली मुलाकात म तुमने ये बात िछपाई य थी।”
“कोई खास वजह नह थी, िसवाय इसके क वो मेरा बीता आ कल था, िजसका िज

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करना मुझे पसंद नह ।”
“ ेकअप य कर आ।”
“उसक भंवर वाली फतरत क वजह से, वो कसी एक का होकर रहने वाला इं सान
नह था। म उससे शादी के वाब देख रही थी और वो इधर-उधर मुंह मारता फर रहा
था। मुझे पता चला तो मने इस मु े पर उससे दो टू क बात क । जवाब म वो पूरी बेशम से
बोला क अगर म उसके भीतर एक िन ावान पित तलाश रही थी तो मेरी वो तलाश कभी
पूरी नह होने वाली थी। बस उसी रोज मने उससे तमाम र ते तोड़ िलए थे।”
“वो अपने ाइं ग म म तु हारी त वीर रखे ए था।”
“और उस त वीर क िबना पर तुम कू द कर इस नतीजे पर प च ं गये क उसके साथ
मेरा आज भी अफे यर था। बावजूद इसके क सोनाली मैडम के साथ उसके रलेशन के बारे
म तुम मुझसे यादा जानते हो।”
“सोनाली शादीशुदा थी, उससे रलेशन रखने के पीछे उसका कोई जुदा मकसद रहा हो
सकता है।”
“ या? बयान करो ऐसा कोई मकसद।”
“हो सकता है सोनाली से उसे कोई माली इमदाद हािसल होती हो। या फर हो सकता
है सोनाली वैसे ही उसपर अपनी दौलत लुटाती हो, आिखर वो एक म टी िमलेिनयर क
बीवी थी, जमा वो खुद भी एक दौलतमंद बाप क इकलौती बेटी थी।”
“था तो कु छ ऐसा ही, सोनाली क मौत के बाद ही पता चला क महेश बाली िजस
लैट म रहता था वो मैडम क ही िमि कयत था। िजस कार म वो घूमता था, वो भी मैडम
ने ही उसे िग ट कया था। इसके अलावा भी ब त कु छ ऐसा रहा हो सकता है िजसक
अभी खबर लगनी बाक है।”
“कमाल है, मुझे तो र क हो आया है, और दौलत क इस जुगलबंदी पर, खुदा
सबको ऐसी दौलतमंद गल ड नसीब करे तो िह दो तान क आधी गरीबी तो वैसे ही दूर
हो जाएगी।”
“इरादे तो नेक ह, कह यहां से िनकलते ही तुम कसी दौलतमंद क बीवी को फांसने के
फे र म तो नह लग जाने वाले हो।”
“वो काम तो बंदा अभी भी कर रहा है बस सरकार को नजर नह आ रहा।”
“तु हारा इशारा अगर मेरी तरफ है, तो बेकार ही कोिशश कर रहे हो। ना तो म कसी
क बीवी ं और ना ही दौलतमंद ।ं ”
“ क दौलत से तो मालामाल हो, ये या कम हािसल है।”
“ क दौलत से जमाने क नेमते नह हािसल क जा सकती।”
“शायद क जा सकती ह ।”
“तो फर समझ लो म उस टाइप क नह ,ं मेरी जंदगी एक बंध-े बंधाए टीन म आगे
बढ़ रही है और म उसम खुश ।ं वाब देखना मेरी आदत म शुमार नह है।”
“बड़े ही नेक खयाल ह, जानकर खुशी ई।”
“तु हारी खुशी से मुझे खुशी ई, अब अगर तु हारे सवाल-जवाब पूरे हो गये ह तो

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लीज!”
“िलहाजा बाहर का रा ता दखा रही हो।”
“अगर कु छ जायज सवाल बाक बचे ह तो समझ लो अभी नह दखा रही।”
“बड़ी बेमुर वत हो यार!”
“िम टर गोखले, लीज!”
“ओके -ओके , अब जरा सोनाली क ह या वाली रात पर आओ, िपछले फे रे म तुमने
बताया था क िजस व सोनाली का क ल आ तुम यहां अपने लैट म थ ।”
“मुझे जुबान देने क कोिशश मत करो मने िसफ इतना कहा था क ह या का जो
संभािवत व बताया जा रहा था उस व म अपने लैट म थी।”
“उसके आगे-पीछे!”
“म यहां आठ बजे प च ं ी थी, तब से अगली सुबह तक कह नह गई, रात को ऑ फस से
लौटकर कह और जाने का कोई मतलब भी नह बनता।”
“अगर गु सा ना होने का वादा करो तो एक आिखरी सवाल पूछने क इजाजत चाहता
।ं ”
“पूछो।”
“कह ऐसा तो नह क बाली के साथ सोनाली के अफे यर के बारे म जानकर तु ही ने
गु से म सोनाली को मौत के घाट उतार दया हो।”
“नह !” - वो खुद को ज त करती ई बड़े ही धैय के साथ बोली - “मने ऐसा नह कया,
करने क अब कोई वजह भी नह थी। मने जब उससे तमाम र ते तोड़ िलए थे, तो या
फक पड़ता है क वो कसके पहलू म जाकर गक होता है।”
“कई बार फक पड़ता है, या पता तु हे अपने भूतपूव स ज-शहजादे के ऊपर सोनाली
भगत का क जा होना पसंद ना आया हो।”
“ य भई वो या मेरा खसम था।”
“ना सही मगर बनाने क तलबगार तो तुम बराबर थ , बस प ा तु हारे काबू म न आ
सका।”
“ य नह आ सका, य क मने उसक फतरत क वजह से उसे अपने कािबल नह
समझा, वरना या वो और या दुिनया के बाक मद! मेरे एक इशारे पर मेरे कदम म
लोटने को तैयार हो जाएंगे।”
“अब खुद को तुम कु छ यादा ही बढ़ा-चढ़ाकर पेश कर रही हो। इसम कोई शक नह
क तुम बला क हसीन हो, मगर या दुिनया म तुम इकलौती ऐसी लड़क हो।”
“तुम मेरी इं स ट कर रहे हो।”
“नह आइना दखा रहा ,ं खुद पर नाज होना अलग बात है, मगर खुद को दुिनया के
ऊपर समझना घमंड करने क ेणी म आता है।”
“तु हे लगता है मेरा घमंड झूठा है।” वो भड़क उठी।
“है तो कु छ ऐसा ही।” मने उसे भड़कने दया।
“गेट आउट!” - वो फुं फकारती ई बोली - “इसी व दफा हो जाओ यहां से।”

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“यानी पुच-पुच करने वाल से ही राजी रहती हो।”
“गेट आउट।”
“वो तो खैर म हो जाता ,ं मगर सच कहता ं तु हारे जैसी मग र लड़क मने नह
देखी।”
“दफा हो जाओ!” - गु से से आग-बबूला होती वो उठकर खड़ी हो गई - “और दोबारा
कभी मुझे अपनी श ल मत दखाना।”
“यस मैम! राइट अवे मैम।”
कहकर म मुड़ा और दरवाजा खोलकर बाहर िनकल गया। तब जाकर मुझे एहसास आ
क मने ना िसफ उसके अहम को चोट प च ं ाई थी, बि क उसक भारी तौहीन भी कर
डाली थी। िजसका मुझे दल से अफसोस था, मगर अब उस बारे म कु छ नह कया जा
सकता था।
सबसे यादा अफसोस मुझे इस बात का था क मने मं दरा जोशी जैसी ज त क र
का साि य पाने से पहले ही उसे खो दया था। बेशक अब वो मुझे कभी मुंह नह लगाने
वाली थी।
म भारी कदम से नीचे प च ं ा और अपनी कार म सवार हो गया। तभी नरे श चौहान
क कॉल आ गई।
“तेरा काम हो गया भई!” - वो कॉल अटड होते ही बोल पड़ा - “उस पासल क
िशना त कर ली गई है और अब उसपर चौबीस घंटे वॉच रखने का इं तजाम भी कया जा
चुका है।”
“ये तो ब त अ छी खबर सुनाई चौहान साहब।”
“आगे सुन! उस कु ली का भी पता चल चुका है िजसने वो पासल वहां उतारा था। उसका
कहना है क उसके एक जानकार कु ली ने उसे ऐसा करने को कहा था जो क नई
द ली टेशन पर काम करता है।”
“वो मुझे मालूम है, तुम ये बताओ क वॉच कब तक चलेगी।”
“बड़ी हद कल शाम तक, फर भी कोई उस पासल को काबू करने नह प च ं ा तो उसे
खोलकर देखा जायेगा क उसके भीतर या है। जो भी रज ट होगा उसक खबर मुझे
िमल जायेगी और मेरे ज रए तुझे हािसल हो जाएगी।”
“शु या चौहान साहब।”
“शु या भले ही मत बोल, बस मेरा स पस दूर कर क उसम से तू या बरामद होने
क उ मीद कर रहा है।”
“छह लाख चालीस हजार यूएस डॉलर, आइएनआर म बात कर तो तकरीबन साढ़े चार
करोड़ पये। अगर पये नह ए तो समझ लो दोन सूटके स के भीतर र ी भरी होगी।”
“कमाल है ये तो ऐसा ही आ जैसे म क ं क या तो म ेसीडट बनूंगा या फर चपरासी
बनूंगा। जब क दोन बात के बीच कोई समानता नह है।”
“ना सही मगर स ाई यही है क दोन म से कोई एक चीज ज र बरामद होगी।”
“तुझे खबर कै से लगी।”

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“ य क मने ही छह लाख चालीस हजार डॉलर से भरे वो दोन सूटके स नई द ली
टेशन तक प च ं ाये थे।”
“तू मजाक कर रहा है।”
“नह , एकदम संजीदा ।ं ”
“ फर नोट यूं र ी म कै से बदल जायगे! फर सबसे अहम सवाल ये क करोड़ पय से
भरे सूटके स को तूने यूं लावा रस य छोड़ा आ है और तेरे पास इतने पये वो भी फॉरे न
करसी म आये कहां से।”
“बस कल तक इं तजार करो चौहान साहब, फर मेरे बताये िबना भी सबकु छ समझ
जाओगे।”
“समझ तो म कु छ-कु छ अभी भी रहा ,ं यक नन कसी क म क फरौती अदा करने
क कोिशश क गई है, मगर क म बैक फायर कर गई य क कसी ने ऐन मौके पर
सूटके स बदल दए। यही वो वजह है जो तू ये जानने के िलए मरा जा रहा है क उन
सूटके स म पये ह या नह । अगर यही बात है तो बेकार ही मश त कर रहा है। िजस
तरह से दोन सूटके स लावा रस हालत म टेशन पर पड़े ह उससे साफ जािहर हो रहा है
क उनम डॉलर तो या खोटा िस ा भी बरामद नह होने वाला। अब तू वीकार कर क
यही बात है।”
“ कया और तु हारे दमाग क दाद देनी पड़ेगी क पलक झपकते ही तुमने सारा
मामला भांप िलया।”
“तू मेरी िख ली उड़ा रहा है।”
“मेरी मजाल नह हो सकती, फर जरा तारीख बदलने दो तुम खुद जान जाओगे क
तुमने कतना सटीक अंदाजा लगाया है।”
“यािन पूरी बात अभी भी नह बतायेगा।”
“मजबूरी है चौहान साहब! मने कसी से वादा कया है क कल से पहले म इस पूरे
िसलिसले के बारे म कसी के आगे मुंह नह फाड़ूग ं ा, इसिलए तुमसे गुजा रश है क मुझे
अपना वादा िनभाने दो।”
“ठीक है िनभा ले, एक दन क ही तो बात है।” कहकर उसने कॉल िड कनै ट कर
दया।
मने चैन क मील लंबी सांस ली। पय के बारे म उसे बताने म मुझे कोई हज नह था
मगर नीलम क िहदायत क वजह से म वीिडयो के बारे म अपना मुंह नह फाड़ना चाहता
था। जब क उसके बारे म बताये िबना सारी कहानी उसे नह समझाई जा सकती थी। ये
जुदा बात थी क अगर वो यादा िजद करता तो मजबूरन मुझे सारी बात उसे बतानी ही
पड़ती। य क सािहल भगत िसफ मेरा एक लाइं ट था जब क चौहान क ज रत मुझे
जाने कतनी बार कतने लाइं स के िलए पड़ने वाली थी। ऐसे म उसे नाराज करना म
अफोड नह कर सकता था।
बहरहाल मने कार टाट क और बैक करना शु कया, मगर अब तक वहां कु छ कार
इस ढंग से खड़ी क जा चुक थ क वहां से यू टन ले पाना पॉिसबल नह था। िलहाजा म

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अपनी कार को गेट से िवपरीत दशा म कु छ दूर तक लेकर गया फर वहां से यू टन लेकर
वािपस लौटने ही लगा था क मेरी िनगाह तभी वहां प च ं ी एक जानी-पहचानी कार पर
पड़ी। मने त काल कार को साइड म रोका और बि यां बुझाकर इं तजार करने लगा।
दस सेकड बाद मुझे अपनी कार से बाहर िनकलता सािहल भगत दखाई दया। म इस
घड़ी उसे यहां देखकर हैरान ए िबना नह रह पाया।
मेरे देखते ही देखते वो सी ढ़यां चढ़ता चला गया। उसके िनगाह से ओझल होते ही म
अपनी कार से बाहर िनकला और उसके पीछे चल पड़ा।
पहली मंिजल पर प च ं कर मुझे मं दरा के लैट म दािखल होते सािहल क एक झलक
िमली। म लपककर दरवाजे पर प च ं ा और भीतर से उभरती कोई आवाज सुनने क
कोिशश करने लगा। मगर कु छ हािसल नह आ।
तब मने झुककर क -होल पर अपनी िनगाह टका द । शु था क उस व भीतर से
क -होल म चाबी नह लगी ई थी।
आगे का नजारा दलच पी से खाली नह था। सािहल भगत क खूबसूरत से े टरी इस
व अपने बॉस क बाह म खोई ई थी। म बरबस ही मु करा उठा।
आगे वहां ठहरने का कोई फायदा मुझे दखाई नह दया। िलहाजा नीचे प च ं कर म
अपनी कार म सवार हो गया।
रा ते भर मेरे जहन म सािहल और मं दरा का अ स क धता रहा। यक नन दोन के
बीच खास र ता था। या वो र ता ही सोनाली भगत क ह या क वजह बना था?
मेरा मन बेचैन हो उठा।
कोई बड़ी बात नह होती अगर कल को ये पता चलता क दोन ब त पहले से
मोह बत के गीत गुनगुना रहे थे। वाब के हंडोले पर झूला झूल रहे थे। अलब ा सािहल
भगत जैसे धनकु बेर का मं दरा जोशी जैसी कसी नामालूम हैिसयत वाली लड़क से कै सा
र ता हो सकता था, इसका अंदाजा म बखूबी लगा सकता था।
अब म ये सोच कर डर रहा था क कह मं दरा सािहल के आगे मेरे मुंह से िनकली
वाही-तबाही ना सुनाना शु कर दे, वरना एक बड़े लाइं ट को हाथ से िनकलने से म नह
रोक पाता।
यही सब सोचते-िवचारते म अपने गरीब खाने पर जा प च ं ा, तब जाकर मुझे याद
आया क अभी तक मने िडनर नह कया था। मने अपने पसंदीदा रे टोरट खाना-खजाना
फोन करके िडनर का आडर दया और खाना आने के इं तजार म अब तक क त तीश के
नो स बनाने म जुट गया।
✠✠✠
स ाइस जनवरी 2018
आज सािहल भगत क कोट म पेशी थी। सािहल के बताये ही मुझे मालूम आ क
िपछले दो दन म पुिलस के आला अफसर तीन बार उससे पूछताछ कर चुके थे। मगर
जैसा क जािहर था उनके प ले कु छ नह पड़ा था। मगर पुिलस को पूरी उ मीद थी क जो
एवीडस उनके पास थे, उसक िबना पर सािहल भगत को िन ववाद प से मकतूला

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सोनाली भगत का ह यारा ठहराया जा सकता था। इसिलए उ ह ने जानबूझकर उसके
साथ स ती से पेश आने क कोिशश नह क थी। जो पूछताछ ई थी वो महज पुिलस क
टीनी कारवाई थी, ानवधन के नाम पर कु छ नह आ था।
इस व कोट म खचाखच भरा आ था, बाहर मीिडया क मय का जमावड़ा लगा
आ था और हर कोई अपने-अपने ान बघारता दखाई दे रहा था। िलहाजा अटकल का
बाजार गरम था।
कोट म म सािहल के साथ उसके अंकल-आंटी आज भी मौजूद थे, साथ ही कु छ यार
दो त और र तेदार के साथ-साथ, मं दरा जोशी भी वहां मौजूद दखाई दे रही थी।
ठीक दस बजे सािहल के के स क सुनवाई शु ई। अदालत म िपन- ॉप स ाटा फै ल
गया। सरकारी वक ल ने उठकर मोटे तौर पर के स का खाका ख चा और अदालत को ये
समझाया क सािहल भगत को गुनहगार सािबत करने वाले तमाम सबूत पुिलस के पास
मौजूद थे, िजनके म ेनजर आगे उसे जमानत नह दी जा सकती थी।
अपनी बात पूरी कर सरकारी वक ल अपनी सीट पर जा बैठा, तब नीलम तंवर अपने
थान से उठी और बड़े ही भावशाली ढंग से बोलना शु कया, “योर आनर! मुझे बड़े ही
अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है क िजतनी चु ती-फु त पुिलस ने मेरे मुव ल को
िहरासत म लेने म दखाई उतनी अगर असली काितल को ढू ंढने म दखाई होती तो अब
तक वो कानून के िशकं जे म आ भी चुका होता। सबसे बड़ी हैरानी क बात तो ये है क
पुिलस ने मकतूला सोनाली भगत क ह या क सूचना देने वाले और बतौर काितल सािहल
भगत क ओर उं गली उठाने वाले श स महेश बाली से कायदे से पूछताछ भी करना ज री
नह समझा। ये जानने क कोिशश तक नह क गई क मौकायेवारदात के बाहरी दरवाजे
पर खड़े होकर बेड म का दृ य देख पाना संभव था भी या नह । मेरा जवाब है नह था,
वहां से कसी भी हालत म बेड म म मौजूद मकतूला को देख पाना संभव नह था। फर
य कर वो दरवाजे पर खड़े-खड़े पुिलस को ये बताने म स म हो सका क सािहल भगत ने
अपनी बीवी सोनाली भगत क ह या कर दी है।”
“साफ जािहर होता है योर ऑनर क वो श स मेरे मुव ल के वहां प च
ं ने से पहले ही
मकतूला क लाश से ब हो चुका था। ऐसे म अगर पुिलस ने उसके बयान को परखने क
कोिशश क होती तो आज के स का ख कु छ और होता, बि क महेश बाली भी जंदा होता,
िजसक परस रात उसके लैट म गोली मारकर ह या कर दी गई।”
उसका आिखरी फकरा सुनते ही सरकारी वक ल तमक कर उठ खड़ा आ।
“योर ऑनर, उस के स क त तीश अभी चल रही है और पुिलस को कु छ ऐसे सा य
िमल ह िजससे जािहर होता है क महेश बाली का क ल भी मुलिजम सािहल भगत का ही
कारनामा है।”
“कमाल है आप तो ऐन पुिलस वाल क जुबान बोल रहे ह, जो एक चोर पकड़त ह तो
आगे-पीछे ई चोरी क तमाम वारदात को उसके िसर थोप कर चैन क बंसी बजाने
लगते ह।”
“ऑडर-ऑडर!” - मिज ेट का हथौड़ा बज उठा - “िडफस लॉयर को चेतावनी दी

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जाती है क वो फालतू क बात से परहेज रख।”
“आई बैग योर पॉडन योर ऑनर! मगर िजस क ल क एबीसीडी भी अभी पुिलस क
समझ से बाहर है उसके बारे म ये दावा करना क वो मेरे मुव ल का कारनामा है, कहां
का इं साफ है।”
“योर ऑनर इं वेि टगेशन म व लगता है, जो क पुिलस पूरी ईमानदारी से कर रही
है।”
“अगर ऐसा है तो य पुिलस ने मेरे मुव ल को आनन-फानन म िहरासत म ले िलया,
कसी और के काितल होने पर गौर करना भी ज री य नह समझा।”
“ य क मुलिजम ही काितल है!” - सरकारी वक ल फट पड़ा - “उसके िसवाय कोई
काितल हो ही नह सकता और ये बात म अभी ूव करके दखाऊंगा।”
“क िजए!” - नीलम चैलज भरे वर म बोली - “म भी आपसे वादा करती ं सोनाली
भगत क ह या के मामले म मेरे लाइं ट क अदालत म आज क पेशी आिखरी पेशी
सािबत होगी।”
“आप वाब देख रही ह।”
“नह , वाब तो आप देख रहे ह, म तो आपको िसफ जगाने क कोिशश कर रही ं क
कसी को मुज रम मानना और ना मानना अदालत का फै सला होता है इसिलए बार-बार
मेरे लाइं ट को काितल कहना बंद क िजए।”
“योर ऑनर!” - सरकारी वक ल उपहास भरे वर म बोला - “िडफस लॉयर महज इस
िबना पर मुलिजम क जमानत चाहती ह य क वो एक बड़ा िबजनेसमैन है! इ ह ये
बताने क ज रत है क कानून क िनगाह म कोई छोटा-बड़ा नह होता। कानून सबके
िलए बराबर होता है।”
“योर ऑनर म सािबत कर सकती ं क मुलिजम बेगुनाह है।”
“कमाल है ऐसी कौन सी तोप िछपा रखी है आपने।” संगला बोला।
“तोप से कम भी नह है, िम टर पि लक ॉसी यूटर।”
जवाब म वो तिनक हंसा फर बोला, “आप मुलिजम क बेगुनाही सािबत करने क बात
तो भूल ही जाइए। फलहाल तो कोई ऐसा सू ही सामने लाकर दखा द जो उसक
बेगुनाही क तरफ महज इशारा भर करता हो तो आपके िलए ब त बड़ी बात होगी।”
संगला चलज भरे वर म बोला।
“जरा स रिखए सर!” - वो उसी के लहजे म बोली - “अभी सामने आता है।” - कहकर
वो मैिज ेट क ओर घूमी - “योर ऑनर पुिलस का दावा है क गैरमद के लैट म अपनी
बीवी को िबना कपड़ के देखकर मुलिजम अपना आपा खो बैठा और गु से म आकर उसने
रवा वर क छह क छह गोिलयां बीवी के िज म म उतार दी।”
“ या गलत है इसम।” संगला बोले िबना नह रह सका।
“कु छ नह , िसवाय इसके क अगर उसने एकाएक अपना आप खोया था तो इसका
मतलब ये बनता है क वो घर से ही बीवी के क ल का इरादा बनाकर नह चला था। अब
िम टर पि लक ॉिस यूटर से मेरा सवाल ये है क अगर बीवी के क ल का इरादा मुलिजम

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पहले से ही नह बनाये बैठा था तो उसके पास उस घड़ी रवा वर य कर मौजूद थी।”
“ये कोई बड़ी बात नह है योर ऑनर! इसके कई जवाब मुम कन ह। हो सकता है वो हर
व रवा वर अपने साथ िलए फरता हो। या फर पहले उसका मकसद िसफ बीवी के
साथ मौजूद मद को धमकाने का रहा हो इसिलए वो रवा वर साथ लेकर वहां प च ं ा हो।
बात चाहे जो भी रही हो मगर ये थािपत त य है क िजस रवा वर से मकतूला का क ल
कया गया वो मुलिजम क अपनी िमि कयत थी, उसपर िसफ और िसफ मुलिजम के
उं गिलय के िनशान पाये गये थे।”
“आपका मतलब है मुलिजम को इस बात क प खबर थी क उस व उसक बीवी
अपने मेल ड के साथ उसके लैट म मौजूद थी।”
“जािहर है तभी तो वो रवा वर लेकर वहां प च
ं ा था।”
“थ यू सर! अब अपनी इस बात पर कायम रिहयेगा, लीज!”
“ज र र ग ं ा, मगर आप कहना या चाहती ह।”
“वो बात कहना चाहती ं जो एक ही झटके म पुिलस के के स क बुिनयाद िहलाकर रख
देगी।”
“कमाल है ज र कोई बम फोड़ने वाली ह आप।”
“जी हां और वो बम ये है क िजस लैट को आप गैरमद का बताकर हटे ह वो सािहल
भगत क खुद क िमि कयत है। जहां वो कसी से िमली जानकारी के तहत नह बि क
अपनी बीवी के बुलावे पर प च ं ा था, और अपने लैट म प च ं ा था ना क आपके कहे
मुतािबक कसी गैर मद के लैट म! ऐसे म अगर उसे अपनी बीवी िबना कपड़ के दखाई
भी दे गई तो इसम आपा खोने वाली या बात थी।”
अदालत म िपन ॉप स ाटा पसर गया।
म ब त देर से ये सोचकर अपना खून जला रहा था क आिखरकार वो बात नीलम
अदालत के सामने य नह ला रही थी। अब जाकर पता चला क वो सही व का
इं तजार कर रही थी। अलब ा बीवी के बुलावे पर सािहल के वहां प च ं ने वाली बात
िब कु ल झूठ थी, इस बात को मुझसे बेहतर कौन जानता था।
“ये नह हो सकता।” सरकारी वक ल बोला।
“ या नह हो सकता?”
“यही क वो लैट मुलिजम क िमि कयत हो।”
“जनाब ये कोई ऐसी बात तो नह िजसे सािबत ना कया जा सके ।”
“म नह मानता!” - वो िजद भरे वर म बोला - “ऐसा होता तो पुिलस को उसक
खबर होती।”
“खबर तो तब होती न जब पुिलस ने इस बारे म िबना कसी पूवा ह के त तीश क
होती। पुिलस तो महेश बाली क गवाही से ही कू द कर इस नतीजे पर प च ं गई क
काितल सािहल भगत है उसके अलावा कोई और हो ही नह सकता। फर य वे लोग
दाएं-बाएं िनगाह डालने क जहमत उठाते।”
“पि लक ॉसी यूटर को और कु छ कहना है।” मैिज ेट जो क िडफस क दलील से

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साफ-साफ भािवत दखाई देने लगा था, बेहद गंभीर लहजे म बोला।
“जी नह योर ऑनर।”
“िडफस अटानी को!”
“जी योर ऑनर! म माननीय अदालत को एक वीिडयो दखाना चाहती ं जो हाथ के
हाथ के स का ख बदलकर रख देगा।”
“इजाजत है।”
नीलम ने अपना मोबाइल िनकाला और उसपर सोनाली क ह या वाली वीिडयो ले
करके मिज ेट के सामने रख दया। अदालत म खुसफु साहट शु हो गई। सरकारी वक ल
क िनगाह एकटक मैिज ेट के चेहरे पर टक ग । िजनपर उभरते च कने वाले भाव को
देखकर वो हकबकाये िबना नह रह सका। उसने त काल वहां मौजूद एसएचओ क ओर
देखा तो उसने अनिभ ता से कं धे उचका दये।
आिखरकार वीिडयो समा ई तो मैिज ेट ने मोबाइल नीलम क ओर बढ़ाते ए
म दया क इसक एक कॉपी फौरन अदालत म जमा कराई जाय।
कु छ ण के िलए अदालत म स ाटा छाया रहा फर मैिज ेट ने उस खामोशी को भंग
करते ए कहा, “िडफस अटान अदालत को बताएं क ये वीिडयो उ ह कहां से हािसल
ई।”
“म माफ चाहती ं योर ऑनर! मगर ये एकदम अलग तरह का अपराध है, िजसको
पि लक के सामने लाने से ना िसफ पुिलस क कायशैली पर िच ह उठे गा बि क आवाम
म एक नये तरह के भय का माहौल फै ल जायेगा। सबसे बड़ी बात तो ये है क ऐसा अपराध
कोई पहली बार नह कया गया है। कम से कम दो भु भोिगय को म जानती ं जो इस
तरह के षड़यं का िशकार हो चुके ह। हक कतन ये सं या उससे यादा भी हो सकती है।
उन दोन ही मुकदम म अभी तक पुिलस को कोई सफलता हािसल नह ई है। दोन ही
बार इसी तरह क वीिडयो अदालत म पेश क गई थी, तब वीिडयो के जेनुइन होने पर
सवाल उठे थे मगर बाद म फोरिसक रपोट से ये सािबत हो गया था क दोन ही वीिडयो
एकदम जेनुइन थे, उनके साथ कोई छेड़खानी नह क गई थी।”
सुनकर मैिज ेट सोच म पड़ गया। कु छ ण ये िसलिसला चला फर अदालत ने सबसे
पहले वो वीिडयो सरकारी वक ल को देखने का म दया इसके बाद एसएचओ ने देखा।
जैसा क जािहर था, उस वीिडयो ने दोन के ही होश उड़ाकर रख दये। फर अदालत ने
फै सला सुनाया क वीिडयो को फोरिसक जांच के िलए भेजा जाय और जांच क रपोट
आने तक मुलिजम सािहल भगत को जमानत दी जाती है। साथ ही नीलम तंवर को ये म
सुनाया गया क वो वीिडयो से संबंिधत तमाम जानका रयां अदालत और पुिलस को
उपल ध कराए।
इसके बाद अदालत बखा त हो गई।
एसएचओ उठकर नीलम के पास प च ं ा, “मैडम कल जब हमारे एसीपी साहब ने
आपक तारीफ के पुल बांधे थे तो मने उसपर कान तक नह दया था, मगर आज तो
नतम तक ं आपके आगे, आपने तो कमाल कर दया।”

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“कोई कमाल नह कया, इसी बात का तो अफसोस है। बीच म खामखाह ये वीिडयो
आ गई। कमाल तो तब होता सर जब इसके िबना म अपने मुव ल को बरी करा के
दखाती।”
“बरी कराने का दावा तो म नह कर सकता था, मगर मुलिजम क जमानत तो इस
वीिडयो के िबना भी - महज अपनी दलील से - आप कराने म कामयाब हो गई होत ।
बहराल आपका कोई के स ना हारने का रकाड तो बना रहा।”
“हां सो तो है।”
“इस बारे म एक बात और कहना चा ग ं ा क पुिलस ने जानबूझकर कोई लापरवाही
नह बरती। हमारी सािहल भगत से कोई अदावत तो थी नह जो हम ऐसा करते।”
“मुझे मालूम है इं पे टर साहब, मगर ये अदालत है, जहां बचाव प का िसफ एक ही
काम होता है अपने लाइं ट को उजला सािबत करना भले ही उसके िलए कसी को - आई
रपीट कसी को भी काले रं ग से रं गना पड़े, इसिलए अगर उस बात से आपको कोई
िशकायत है तो म माफ चाहती ।ं ”
“उसक कोई ज रत नह , अब बराय मेहरबानी इस वीिडयो पर कोई रोशनी
डािलए।”
“ज र डालूंगी मगर इस व नह , आजकल मीिडया के कान ब त तीखे ह कसी को
खबर लग गई तो अदालत म इस बाबत चु पी अि तयार करना बेकार जायेगा। म शाम
को थाने प चं कर आपसे तमाम बात िडसकस कर लूंगी।”
“चिलए ऐसा ही सही।”
उसके बाद नीलम बाहर िनकली तो जैसा क जािहर था मीिडया ने उसका घेराव करके
सवाल क झड़ी लगा दी। सभी उस वीिडयो के बारे म जानने को उ सुक थे, िजसने के स
का ख बदल कर रख दया था।
उस बात से उसने ये कहकर पीछा छु ड़ाया क अदालत का म है क उसके बारे म
कोई जानकारी लीक न क जाय। इस एक वा य को उसने कई-कई बार दोहराया तब
जाकर कह वो मीिडया क घेराबंदी से िनकलने म कामयाब हो पाई।
आ सािहल भगत के साथ भी ऐसा ही था मगर उसे पुिलस ने खुद उसक कार तक
प चं ाया था इसिलए उसे मीिडया क मय के सवाल क बौछार ही झेलनी पड़ी, जवाब
नह देना पड़ा था।
अब मेरा वहां कोई काम नह था। बाहर आकर म भी अपनी कार म सवार हो गया।
मेरा इरादा मीता स सेना और मं दरा जोशी क साझी सहेली से मुलाकात करने का
था। इसिलए कोट से िनकलकर मने सीधा साके त का ख कया।
कॉलबेल के जवाब म िजस युवती ने दरवाजा खोला वो सुनीता थी या नह मुझे नह
पता था ले कन थी वो रात वाली लड़क ही। जो क उस खूब सजी-संवरी दखाई दे रही
थी।
“यस?”
“सुनीता!”

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“म ही ,ं किहए।”
“मेरा नाम िव ांत गोखले है।”
“नाम से म वा कफ ,ं मीता ने तु हारे बारे म बताया था।”
“म तु हारा दस िमनट का व चाहता ,ं कु छ पूछताछ करनी है।”
“तुम पुिलस वाले हो।”
“तुम जानती हो क नह ।ं ”
“ फर!”
“ फर का जवाब ये है क म जानता ं क तुम वो लड़क हो जो सोनाली भगत क
ह या वाले रोज वसंतकुं ज म महेश बाली से िमली थी।”
जवाब म उसने हैरानी से मेरी तरफ देखी फर तिनक दलेरी से बोली, “कौन कहता
है?”
“म कहता ,ं य क मने तु ह अपनी आंख से उससे एक पैकेट लेते ए देखा था।
िजसके बाद ऑटो पर सवार होकर तुम वहां से चलती बनी थ , कहो क म गलत कह रहा
।ं ”
उसके मुंह से बोल नह फू टा।
“अब बोलो या जवाब है तु हारा।”
“एक िमनट वेट करो लीज!” कहकर उसने मेरे मुंह पर दरवाजा बंद कर दया। जो बंद
रहा नह , महज तीस सेकड म उसने दरवाजा खोला और मुझे एक चाबी पकड़ा दी।
“ये या है।”
“मीता के लैट क चाबी है, वहां प चं कर इं तजार करो, लीज!”
“ कतनी देर?”
“दस, बड़ी हद बीस िमनट, इतनी देर म म वहां प च ं जाऊंगी।”
“वो अपने लैट म नह है।”
“जािहर है तभी तो चाबी मेरे पास है।”
“ऊपर से उसके पेर स आ गये तो!”
“नह आयगे, अब टलो यहां से।”
मने सहमित म िसर िहलाया और सी ढ़य क तरफ बढ़ गया। मीता स सेना के लैट म
प च ं कर म अपनी जानी-पहचानी जगह पर बैठ गया और एक िसगरे ट सुलगा कर सुनीता
का इं तजार करने लगा।
अभी कु छ िमनट ही बीते ह गे क वहां क तलाशी लेने का शैतानी याल मेरे जहन म
कु लबुलाने लगा। िजसके िलए इससे अ छा मौका और कोई हो ही नह सकता था।
मुझे नह मालूम था क म वहां से या बरामद होने क उ मीद कर रहा था मगर व
जाया ना करते ए म फौरन उस काम म लग गया।
शु आत मने ाइं ग म से ही क , वहां रखी कं यूटर टेबल क दराज से लेकर दीवार
पर टंगी त वीर तक को उलट-पुलट कर देख डाला। फर म बेड म म प च ं ा, वहां के
ताम-झाम देखकर मुझे समझते देर नह लगी क वो मीता का कमरा था। मने वहां क

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ब त बारीक तलाशी ली मगर हािसल कु छ नह आ। आिखरी आइटम मै ेस को
थपथपाकर-पलटकर देखने के बाद मने उसक चादर वि थत क और मा टर बेड म म
प चं ा।
वहां एक कं ग साईज पलंग रखा आ था।
एक सरसरी नजर कमरे म डालने के बाद मने पलंग पर िबछा ग ा उठाकर उसका
बॉ स खोल िलया और भीतर रखे सामान को टटोलने लगा। इस तरह मने एक-एक करके
चार ढ न उठाकर उनके भीतर झांक िलया, मगर वहां ऐसा कु छ नह था जो क मेरी
िनगाह का मरकज बनता।
थक हारकर मने बेड को यथा-ि थित म प च ं ाया और वािपस ाइं ग म म आकर बैठ
गया। घड़ी देखी तो पता चला क अब तक पं ह िमनट गुजर चुके थे। मने एक नया िसगरे ट
सुलगाया और सुनीता के आगमन का इं तजार करने लगा।
तभी कॉलबेल बजी, मने उठकर दरवाजा खोला और सामने िनगाह पड़ते ही भ च ा
रह गया। मेरे सामने फु ल वद म एसआई नरे श चौहान खड़ा था। मुझे वहां देखकर वो
मुझसे यादा हैरान आ।
“ या बात है भई, िलव-इन म रहने लगा है या?”
म हंसा।
“अब भीतर तो आने दे।”
म अपनी जगह से िहला तक नह ।
“ या िछपा रहा है भई।”
“कु छ नह , बाई गॉड नह ! मगर कु छ देर के िलए यहां से टलो लीज।”
“ऐसा तू लड़क क वजह से कह रहा है।”
“कह तो लड़क क वजह से ही रहा ,ं मगर बात वो नह है जो तुम समझ रहे हो।
भीतर कोई नह है, और िजससे तुम िमलने आये हो वो अभी आने वाली भी नह है।”
“ या पहेिलयां बुझा रहा है यार।”
“म यहां कसी का वेट कर रहा ,ं वो बस आने ही वाली है। बड़ी मुि कल से उसे
बातचीत के िलए तैयार कर पाया ,ं उसने तु ह यहां देख िलया तो खामखाह िबदक....।”
कहता-कहता म खामोश हो गया। य क तभी मीता स सेना चौहान के पीछे आन
खड़ी ई।
उसने हैरानी से हम दोन को देखा। फर मुझसे सवाल कया, “तुम मेरे लैट म या
कर रहे हो।”
“इं तजार और या?”
“बको मत, म तो इ फ़ाकन तबीयत खराब होने क वजह से ऑ फस से ज दी आ गई,
और फर मेरा लैट तुमने कै से खोल िलया, जासूस हो या कोई तालातोड़!”
“तुम गलत समझ रही हो, यहां क चाबी मुझे तु हारी ड सुनीता ने दी है।”
“सुनीता ने!” - वो हैरानी से बोली - “तु हारा दमाग तो ठीक है।”
“पूरी तरह, तुम चाहो तो उससे दरया त कर सकती हो। मुझे उससे कु छ पूछताछ

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करनी थी, म नीचे प च ं ा तो उसने तु हारे लैट क चाबी देते ए कहा क म यहां बैठकर
उसका इं तजार क ं ! वो बस आती ही होगी, उसी से पूछ लेना।”
जवाब म उसने एक िनगाह अपनी र टवॉच पर डाली फर ठठाकर हंस पड़ी।
“ या आ?” - म हकबकाकर बोला - “कोई जोक सुना दया मने।”
“िम टर जासूस!” - वो पूववत् हंसती ई बोली - “उसने तु ह मेरे लैट क चाबी नह
दी, बि क बाकायदा उ लू बनाया।”
“ या मतलब आ इसका।”
“मतलब ये क एक पतीस क उसक मुंबई क लाईट है, सवा बारह तो हो भी चुके ह,
अब तो तु ह उसक हवा भी नह िमलने वाली, पूछताछ या खाक करोगे।”
म हैरानी से उसका मुंह तकने लगा।
“और इं पे टर साहब आप यहां या कर रहे ह।”
“आया तो म भी यहां पूछताछ के इरादे से ही ,ं मगर आपक सहेली से नह बि क
आप से।”
“अभी कोई कसर रह गई है।”
“म मुि कल से पांच िमनट लूंगा आपका।”
“ठीक है आइए, तुम भी कह बैठ जाओ भई, खड़े खड़े पांव दुख गये ह गे।”
“शु या, बंदा इजाजत चाहता है।”
“तु हारी मज ।” कहकर वो भीतर दािखल हो गई।
चौहान को उसके पास छोड़कर म नीचे प च ं ा, इस बार कॉलबेल क जवाब म दरवाजा
एक अधेड़ औरत ने खोला।
“नम ते।”
“नम ते।” वो अनमने वर म बोली।
“सुनीता जी ह गी घर पर।”
“वो तो नह है, आधा घंटा पहले मुंबई के िलए िनकल गई, बात या है।”
“जी कु छ खास नह , दरअसल मेरी वाईफ उनक ड है, आज हमारी मै रज एिनवसरी
थी, उनका फोन नह लग रहा था तो शाम क पाट म इनवाईट करने के िलए मुझे भेज
दया।”
“ओह!”
“मुंबई से कब लौटगी।”
“दो दन म लौट आयेगी, मेरे भाई क तबीयत खराब है, उसी को देखने के िलए गई
है।”
“ओह, फर तो इजाजत दीिजए मांजी, नम ते।”
“जीते रहो बेटा।”
म एक बार फर अपनी कार म सवार हो गया।
या लड़क थी, यूं बेवकू फ बनाया क मुझे एहसास तक नह आ क वो मुझसे प ला
झाड़ रही है। देख लूंगा कमीनी को। म दांत पीसता आ बड़बड़ाया। मुंबई या मंगल ह

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पर था। अलब ा मुझे इस बात का अफसोस ज र था क सोनाली क ह या वाली रात के
बारे म म उससे कु छ उगलवा नह सका।
हालां क उसका बयान हािसल करने का सबसे सरल रा ता तो यही था क म पुिलस
को उसक वसंतकुं ज वाली िविजट और बाली से मुलाकात के बारे म बता देता। फर
पुिलस खुद ही उससे िनपट लेती। मगर ऐसा करने को मेरा मन नह माना। िलहाजा व
तौर पर मने उससे िमलने का याल जहन से झटक दया।
ये सोचकर झटक दया क दो दन म कोई आफत नह आने वाली थी।
मेरा अगला मुकाम बना गढ़ी म िनहा रका ीव स का मकान! घर का दरवाजा उस
घड़ी मने खुला पाया। कु छ ब े बाउं ी के भीतर खेलते ए दखाई दए िजससे मने यही
अंदाजा लगाया क मकतूला के होते-सोते वहां प च ं चुके थे।
मेन गेट पर प चं कर मने कॉल बेल बजाया तो दरवाजा एक अधेड़ उ क औरत ने
खोला िजसक सूजी ई लाल आंख उस व भी डबडबाई ई दखाई दे रही थ । िलहाजा
वो मकतूला क मां हो सकती थी। मने दोन हाथ जोड़कर बड़े ही गमगीन अव था म उसे
नम ते क , िजसका उसने िसर को तिनक जुि बश देकर जवाब दया मगर मुंह से कु छ नह
बोली।
“आप शायद िनहा रका क माता जी ह।”
“उसने फर सहमित म िसर भर िहला दया।
ठीक तभी उसके पीछे एक बुजुगवार गट ए िज ह ने उसे भीतर जाकर बैठने को कहा
फर मुझसे मुखाितब ए, “कौन हो बेटा?”
“जी मेरा िव ांत गोखले है, िनहा रका के साथ जो गुजरी उसका मुझे ब त अफसोस
है।”
“तुम पुिलसवाले हो।”
“नह जनाब, ाइवेट िडटेि टव ।ं ”
“िनहा रका को कै से जानते थे।”
“नह जानता था जनाब, ले कन जब उसक लाश बरामद ई थी तो म भी यह था।”
“ या चाहते हो।”
“चाहता तो कु छ दरया त करना ही था, मगर इस गमगीन माहौल म मुझे उिचत नह
जान पड़ता इसिलए म बाद म आपसे िमलूंगा।”
“ब त अ छा करोगे बेटा, तुम ऐसा करो कल आ जाना।”
“जी ठीक है, नम ते।” मने हाथ जोडे़।
उसने नम ते का जवाब दया और भीतर जाने को मुड़ गया। म भी वािपस बाहर क
ओर बढ़ चला। घर से बाहर िनकलते ही मेरी िनगाह सड़क क दूसरी ओर खड़ी वैगन-आर
पर पड़ी, िजसक ाइ वंग सीट पर उस घड़ी एक युवक बैठा आ था, उसक िनगाह का
मरकज िनहा रका का घर ही जान पड़ता था, उस घड़ी भी वो मेन इं स पर िनगाह गड़ाये
बैठे था।
म अपनी कार क ओर बढ़ने क बजाय, सड़क पार कर गया और वैगनआर का पीछे से

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घेरा काटकर पैसजर साईड म प च ं ा। फर िबना इजाजत गेट खोलकर भीतर बैठ गया।
आहट पाकर वो मेरी ओर पलटा और हैरान िनगाह से मुझे देखता आ बोला, “म तु ह
जानता ।ं ”
मने फौरन जवाब देने क कोिशश नह क , बड़े इ मीनान से नेवीकट का पैकेट
िनकालकर उसक ओर बढ़ाया, तो उसने िहच कचाते ए एक िसगरे ट िनकाल िलया। मने
खुद भी एक िसगरे ट मुंह से लगाया और लाइटर िनकालकर बारी-बारी से पहले उसका
फर अपना िसगरे ट सुलगा दया।
“म अपना सवाल दोहराता ।ं ” - वो कश लगाता आ बोला - “ या म तु ह जानता
।ं ”
“मेरे याल से तो नह जानते।”
“ फर यूं िबना इजाजत मेरी कार म बैठने का मतलब।”
“तुम िनहा रका ीव स से वा कफ थे?”
मने उसके सवाल के बदले म सवाल कया।
“ये मेरी बात का जवाब नह है।”
“तुम मकतूला िनहा रका ीव स से वा कफ थे?”
“अगर म क ं क कौन िनहा रका तो!”
“तो म अभी पुिलस को कॉल क ं गा, मकतूला के घर को वॉच करते श स से िमलकर
उ ह ब त खुशी होगी।”
“कौन हो भाई तुम।” वो कलपता आ बोला।
“तुम मुकेश गु ा हो।” मने तु ा मारा।
जवाब म उसने िजस हैरानी से मुझे देखा उससे मुझे समझते देर नह लगी क मेरा तु ा
चल गया था।
“कै से जाना?”
“िनहा रका के बताये जाना, उसने ब त कु छ बताया था तु हारे बारे म, ये भी बताया
था क तुम खुद को जनिल ट बताते हो अलब ा कोई काम करते उसने तु ह कभी नह
देखा था, अ सर तो तुम उसके ईद-िगद ही मंडराते रहते थे।”
“ऐसा तुमसे िनहा रका ने कहा था।”
“और कौन कहता?”
“कमाल है।”
“अब बोलो या करते हो तुम।”
“अरे म सचमुच जनिल ट ं यार! ये जुदा बात है क मेरा कसी अखबार या यूज
चैनल से कोई संबंध नह है, म एक बड़ी यूज एजसी के िलए काम करता ।ं ”
“नाम बोलो एजसी का।”
“तु ह य बोलूं।”
“इतनी सी बात पर कोई त करता है।”
“पीआर यूज एजसी, टॉप फाईव म से एक है, तुमने तो कभी नाम नह सुना होगा।”

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“सुना है, मेरा एक जानने वाला वहां काम करता है, िनतीश बजाज, जानते हो उसे।”
“अ छी तरह से, तुम चाहो तो उसे फोन करके मेरे बारे म दरया त कर सकते हो।”
“ज रत नह मुझे तु हारी बात पर ऐतबार है।”
“गुड, अब बोलो तुम कौन हो?”
जवाब म मने उसे अपना प रचय दे दया।
“ओह तो तुम वो श स हो िजससे अपनी मौत से पहले िनहा रका िमलने जाने वाली
थी।”
“तु हे मालूम है।”
“हां, वो मेरे से कोई बात नह िछपाती थी, आिखर हम ज दी ही शादी करने वाले थे।”
“जो क अब होने से रही।”
“जािहर है।”
“यहां या कर रहे हो।”
“कर तो वही रहा था जो तुम समझते हो। अलब ा उ मीद के िखलाफ उ मीद करते
ए कर रहा था। ये सोचकर कर रहा था क यहां कोई ऐसा श स प च ं सकता है िजसके
ज रए काितल का कोई सुराग हािसल हो जाय, या फर काितल ही यहां प च ं जाए।”
“पहचान लोगे।”
“तुम जानते हो नह , मगर य क म िनहा रका के जानने वाले तकरीबन लोग को
जानता ,ं इसिलए उ मीद है क यहां प च ं े कसी अंजान श स को फौरन पहचान लूंगा।
जैसे क मने तु ह पहचाना था। तुम अपनी कार म जाकर बैठते तो मेरा इरादा तु हारे पीछे
लगने का था।”
“ या हािसल होता।”
“अब तो जािहर है कु छ भी नह होता मगर ये बात मुझे एडवांस म कै से पता लग
सकती थी।”
“ठीक कहते हो।” - म िसगरे ट का आिखरी कश लेकर उसे िखड़क से बाहर उछालता
आ बोला - “िनहा रका के क ल के बारे म या कहते हो।”
“म या कह सकता ।ं ”
“अरे अभी उसका इन-आउट सब कु छ जानने का दावा करके हटे हो तो अपना कोई
अंदाजा ही बयान करो, क उसका क ल कसिलए आ होगा, या कसिलए आ हो सकता
है।”
“अंदाजा पूछते हो तो बताता ,ं मुझे लगता है क वो सोनाली भगत क ह या से
संबंिधत कोई ऐसी बात जानती थी जो काितल का पदा फाश कर सकती थी। उस बात से
काितल नावा कफ नह था, िलहाजा उसक जुबान बंद करने के िलए काितल ने उसे मौत
के घाट उतार दया था।”
“ऐसी कौन सी बात हो सकती थी, या उसने कभी कोई हंट दया था, कु छ बताया था
इस बारे म।”
“एक बार हमारे बीच सोनाली क ह या क बात चली थी, तो उसने बड़े दावे के साथ

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कहा था क सािहल ने अपनी बीवी क ह या नह क थी, वो बेगुनाह फं सा था। मने उससे
पूछा क वो इस बारे म कै से जानती थी तो पहले तो उसने जुबान बंद कर ली फर बोली
उसक ड मं दरा जोशी जो क सािहल क से े टरी थी, ऐसा कहती थी और उसे अपनी
ड क बात पर पूरा यक न था।”
“तु हे हजम हो गई थी वो बात!”
“नह , साफ जािहर हो रहा था क वो कु छ िछपा रही थी। कोई ऐसी खास बात िजसक
वजह से उसे यक न था क सािहल ह यारा नह हो सकता। समझ लो वही बात उसके
क ल क वजह बनी थी। बि क मुझे तो लगता है क काितल को तुमसे होने वाली
िनहा रका क मुलाकात क भी खबर थी, तभी तो उसने पहले ही उसे मौत के घाट उतार
दया।”
“ऐसा भी या जानती रही होगी वो।”
“ या पता, उस बारे म या तो िनहा रका बता सकती थी या फर काितल, िनहा रका
ऐसी कोई बात बताने के िलए जंदा नह है और काितल का कोई सुराग दूर-दूर तक
दखाई नह देता।”
“ठीक कहते हो।”
“पुिलस को घर म फोस एं ी का कोई ल ण दखाई नह दया था, िजससे जािहर
होता था क काितल जो कोई भी था उसका जाना-पहचाना था।”
“कै से जािहर होता है, कई बार हम महज कॉलबेल बजने पर आगंतुक का नाम पूछे
िबना दरवाजा खोल देते ह। या ऐसा िनहा रका के साथ आ नह हो सकता।”
“नह हो सकता, इसके दो कारण ह, नंबर एक वो कभी भी आगंतुक के बारे म तस ली
कये िबना दरवाजा नह खोलती थी। मेन गेट म इसीिलए उसने लस लगवाया आ था।
कसी क श ल उसम से नह दखाई दे तो वो बाकायदा बाहर वाले को फोस करती थी
क वो लस के सामने खड़ा हो। दूसरी बात ये क क ल दरवाजे पर नह आ था। बि क
ाइं ग म के बीच बीच आ था। ऐसे म काितल अगर कोई अंजाना श स होता तो वो
दरवाजे के पास ही िनहा रका को गोली मारकार वहां से चलता बना होता, उसके िलए
िनहा रका को डरा-धमका कर भीतर ले जाना ज री नह था। काितल य क जाना-
पहचाना था इसिलए वो बड़े ही दो ताना माहौल म उसके साथ भीतर प च ं ा, जहां उसने
िनहा रका का क ल कया और वहां से चलता बना।”
“अब लगे हाथ कसी ऐसे श स का नाम भी बता दो।”
“है तो एक ऐसा श स, मगर उसके पास िनहा रका के क ल क दूर-दूर तक कोई वजह
दखाई नह देती।”
“तुम राके श दीि त क बात कर रहे हो।”
“हां, जानते हो उसे।”
“हाल ही म उसका िज सुना था, कभी िमला नह ।ं ”
“उसके अलावा तो िनहा रका या तो मुझसे भीगती थी या फर अपनी सहेिलय से
िजनक िगनती का कोई ओर-छोर नह है।”

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“ फर राके श दीि त का खास िज कसिलए।”
“ य क वो पंजे झाड़कर िनहा रका के पीछे पड़ा आ था।”
“तुम भी तो पड़े थे।”
“मेरी बात अलग है, म उससे शादी करने वाला था। ऊपर से िनहा रका के जानने वाल
म राके श दीि त इकलौता ऐसा मद था जो िनहा रका के साथ-साथ महेश बाली और
सािहल भगत से भी वा कफ था। जब क म उन दोन को नह जानता था।”
“तु ह कै से मालूम?”
“िनहा रका के बताये ही मालूम है। जैसे वो आजकल िनहा रका के पीछे पड़ा था उसी
तरह कभी बाली क महबूबा सोनाली भगत के पीछे भी पड़ा आ था। पीछे या पड़ा था
समझ लो एक तरह से उन दोन को लैकमेल करने क बुिनयाद तैयार कर रहा था। मगर
य ही उसने बाली के साथ पसरने क कोिशश क बाली ने उसे धुन के रख दया। उसके
बाद उसने बाली के िखलाफ पुिलस म कं लेन भी क थी, मगर अपने ोफे शन क वजह से
बाली क मीिडया म अ छी प च ं थी, िलहाजा पुिलस उसका रौब खा गई और मामला
जैस-े तैसे रफा-दफा कर दया गया।”
“जरा लैकमेल वाली बात पर वािपस लौटो, वो इस बात पर बाली को लैकमेल कै से
कर सकता था क उसका सोनाली भगत से अफे यर था।”
“म नह जानता, हो सकता है उसने बाली को कोई हंट परोसा हो क वो उसके अफे यर
वाली बात सोनाली के ह बड को पास-ऑन कर देगा।”
“मगर ऐसा करके उसे हािसल या होता।”
“ या पता भई, वो हसद का मारा आदमी है, उसके मन म या चल रहा था ये बात
दूसरे को कै से मालूम हो सकती थी।”
“बजाते खुद दीि त क या हैिसयत है।”
“ठीक-ठाक धंधा चल रहा है उसका, पैस का कोई तोड़ा अगर उसे है तो कम से कम
उसके रहन-सहन से तो मालूम नह पड़ता। अलब ा औरतो का एक नंबर का रिसया है।
कई लड़ कय को मॉड लंग के छोटे-मोटे कां े ट दलवाकर उ ह खराब कर चुका है।”
“ फर तो बड़ा ही फसादी आदमी आ।”
“ठीक कहते हो।”
“हैरानी है क ऐसे आदमी के साथ तु हारी महबूबा क नजदी कयां थ और तु ह इं कार
नह था।”
“बराबर था, मने उसक बाबत िनहा रका को कई बार चेताया भी था, यही वजह थी
क वो उससे दूरी बना कर रखती थी। अलब ा कसी से एक बार जान-पहचान बन जाय
तो उससे एकदम से नाता तोड़ना तो आसान नह होता। समझ लो ऐसा ही कु छ िनहा रका
के साथ था।”
“अगर तु हारी तमाम बात के म ेनजर देखा जाय तो भी ऐसी कोई वजह सामने नह
आती जो ये हंट देती हो क िनहा रका का काितल दीि त हो सकता है।”
“मने कब कहा क वो काितल है, मगर जाने य िनहा रका क ह या के बाद से ही

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बार-बार मेरा यान उसक ओर जा रहा है। वजह चाहे जो भी हो।”
“अब एक आिखरी सवाल का जवाब दे दो तो बंदा यहां से खसत हो जायेगा।”
“पूछो।”
“िनहा रका के क ल के व तुम कहां थे?”
“इ फ़ाक से ऑ फस म था, वहां का सारा टॉफ इस बात का गवाह है।”
“ये तो ब त अ छा आ तु हारे हक म।”
“ठीक कहते हो।”
“राके श दीि त का कोई अता-पता?”
उसने ेटर कै लाश का एक पता बताया िजसे मने अपनी पॉके ट डॉयरी म नोट कर
िलया।
“भिव य म दोबारा तुमसे संपक करना हो तो कहां ाई क ं ।”
जवाब म उसने अपना एक िविज टंग काड मुझे थमा दया। म उसक कार से बाहर
िनकला और एक बार फर अपनी कार म सवार हो गया।
राके श दीि त का ऑ फस य क पास म ही था, इसिलए मने लगे हाथ उससे िमलने
का फै सला कर डाला।
म ेटर कै लाश प चं ा।
दीि त का ऑ फस वहां क एक कम शयल इमारत -िबजनेस व ड - क दूसरी मंिजल
पर था।
उसके ऑ फस म कदम रखते ही यूं महसूस आ जैसे कसी फ म के आलीशान सेट पर
प चं गया ।ं हर तरफ रं गीिनयां थी, सुंद रयां थी। दीवार पर मंहगी प टं स और फश
पर मोटा कारपेट िबछा आ था, िजसम म टखन तक धंसा जा रहा था। कारपेट को अपने
कदम तले र दता आ म वहां के शानदार रसै शन पर प च ं ा। जहां ऑ फस क साज-
स ा से मैच करती एक खूबसूरत युवती बैठी ई थी।
उसने बड़े ही मद भरी आंख से मुझे देखा और ह ठ के कोर को कान के दोन िसर
तक मु कराने वाले अंदाज म फै ल जाने दया। उसके इस जटेशन ने मेरे दल को यूं ध ा
दया क वो मेरे हलक से उछलकर बाहर आते-आते बचा। मने जैस-े तैसे खुद के मनोभाव
पर काबू कया और उसके एकदम सामने जा खड़ा आ।
“गुड ऑ टरनून हडसम मैन!”
“थ यू अगरचे क हडसम का ये िखताब तुमने मुझे दया है।”
“अभी तो आपको ही दया है सर!”
“आगे-पीछे कसको देती हो।”
“सबको, जो भी यहां आता है।”
“सब हडसम होते ह।”
“होते तो एक परसे ट ही ह, मगर समझते सब खुद को वही ह, चाहे सूरत भले ही ऐसी
हो जैसे सीधा अ का के जंगल से चले आ रहे ह । कद ऐसा हो क बौना भी शरमा
जाय।”

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“मगर देती तुम सबको हो, हैरानी है थक नह जाती होगी, इतने सारे मद को देत-े
देत।े ”
“ या देते-देते सर!”
“वही जो तु हारे पास ब तायत म जान पड़ता है, िखताब! हडसम होने का।”
“ओह! आपका वो मतलब था।”
“नह मतलब तो वही था, जो तुम झट समझ गई थ । मगर म भला अपनी गल ड को
वो भी पहली ही मुलाकात म नाराज कै से कर सकता ।ं ”
“गल ड!” - वो बड़ी अदा से मु काराई - “िलहाजा आप भी खुद को हडसम समझने
लगे।”
“वो तो म तभी से समझता ं जब अपनी जंदगी म आई पहली औरत से िमला था।
सबसे पहले उसी ने मुझे बताया था क म उसका सूरज ,ं चंदा ं और भी जाने या-
या।”
“कौन थी वो?”
“मेरी मां।”
“ या कहने आपके !” - वो उपहास भरे वर म बोली - “अब बताइए या चाहते ह।”
“चाहता तो म ब त कु छ ,ं मगर मेरी चाहत यहां पूरी होती दखाई नह दे रह ।
इसिलए फलहाल तो म तु हारे बॉस से िमलकर ही तस ली कर लूंगा।”
“िम टर दीि त अभी ब त िबजी ह।”
“तुम मेरा काड और साथ म एक छोटा सा मैसेज उन तक प च ं ाओ, फर देखो वो कै से
गोली क तरह होते ह।”
“मैसेज बोिलए।”
“उनसे बोलना, गढ़ी वाला भेद खुल चुका है, खाक अपना चम कार दखाने वाली है।”
“इसका या मतलब आ।”
“तुम जानकर या करोगी।”
“अरे सर भी तो पूछगे।”
“नह पूछगे, तुम ाई तो करो।”
“ओके करती ,ं मगर तु हारी वजह से अगर मुझे उनक डांट सुननी पड़ी तो समझो
तु हारी खैर नह ।”
“ फर तो म भगवान से ाथना क ं गा क तुम डांट सुनो ही सुनो, ता क मेरी खैर ना
रहे।”
जवाब म उसने एक बार हैरानी से मेरी ओर देखा फर इं टरकॉम रसीवर उठाकर
इकलौता नंबर ‘तीन‘ पंच कया। दूसरी तरफ से य िह कॉल अटड क गई वो मशीनी
अंदाज म बोल पड़ी, “सर कोई िम टर िव ांत गोखले ह, जो क पेशे से ाइवेट िडटेि टव
ह और इस व मेरे सामने खड़े ह।”
“नताशा माई लव!” - दूसरी ओर से आती आवाज इतनी तेज थी क मुझे साफ सुनाई
पड़ी - “तुमसे कतनी बार कहा है क यूं मुझे िड टब मत कया करो।”

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“म नह करना चाहती सर, ले कन ये एक अजीब सा मैसेज आपको देने चाहते ह,
िजसके बारे म योर ह क सुनकर आप उनसे िमलने से इं कार नह करगे।”
“ऐसा या मैसेज है।”
“वो कहते ह क गढ़ी वाला भेद खुल चुका है, खाक अपना चम कार दखाने वाली है।”
लाईन पर स ाटा छा गया।
“सर आप लाइन पर ह।”
“हां, तुम ऐसा करो उ ह पांच िमनट बाद भीतर भेज दो।”
“यस सर!” कहकर उसने रसीवर रख दया।
“अब या कहती हो।”
“यही क समझ म उनके भी कु छ नह आया, मगर मैसेज य क अजीब था इसिलए वो
िमलने को तैयार हो गये ह। आप उधर जाकर सोफे पर बै ठये, कोई चाय कॉफ लेना है तो
बताइए।”
“शु या, नह चािहए।”
कहकर म वहां रखे सोफा सेट पर जा बैठा और इं तजार करने लगा।
ठीक पांच िमनट बाद नताशा ने मुझे इशारा कया तो म उठकर दीि त के कमरे म
प च ं ा। उस कमरे क सजावट रसै शन से भी उ दा थी। हर तरफ रईसी क खुशबू बसी
पड़ी थी, जैसे रईसी का िल ड बनाकर चार तरफ े कया गया हो।
राके श दीि त पतीसेक साल का खूबसूरत सा नौजवान िनकला, जो उस घड़ी बेहद
सजा-धजा बैठा था। मेरे भीतर कदम रखते ही वो एक िविजटर चेयर क तरफ इशारा
करता आ बोला, “ लीज िसटडाउन।”
म बैठ गया।
“कोई चाय कॉफ मंगाऊं तु हारे िलए।”
“जी नह शु या।”
“तु हारी मज , अब बताओ या चाहते हो, गढ़ी वाला कौन सा भेद खुल गया।”
उस सवाल का जवाब इतना आसान कहां था। अगर मुझे उससे कोई खास बात - अगर
वो जानता था - उगलवानी थी तो जवाब बेहद सोच समझकर देना था, गोल मोल देना था
और फौरन देना था।
“िनहा रका ीव स!” - म उसके चेहरे पर िनगाह गड़ाता आ बोला - “उसके क ल क
खबर तो लग ही गई होगी आपको।”
“हां यूज म देखा था, मगर उसका मेरे से या संबंध।”
म हंसा, उसे नवस करने के िलए बेवजह हंसा।
“मेरा मतलब है, मेरा उसके क ल से या लेना देना है।”
“कमाल है आपको नह मालूम, जब क कल तक आप उसके दीवाने आ करते थे।”
“मेरा या है यार! म तो हर खूबसूरत लड़क का दीवाना ।ं फतरत ही मने ऐसी पाई
है। बि क हर नौजवान होता है। तुम कहो क तुम ऐसे नह हो।”
“ ं तो सही।” - मने वीकार कया - “मगर इतनी दीवानगी तो कभी नह दखाई क

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मनपसंद िखलौना हािसल होता ना पाकर उसे तोड़ दू,ं उसका वजूद ही ख म कर दू।ं तू
मेरी नह तो कसी क नह वाला रवैया तो कभी नह अपनाया।”
“तुम सोचते हो उसका क ल मने कया है।”
“मेरे सोचने से या फक पड़ता है जनाब, सवाल तो ये है क पुिलस या सोचती है!” -
कहकर म तिनक का फर बोला - “ या सोच सकती है।”
“तु हारा मतलब है पुिलस मुझे िनहा रका का काितल समझ रही है।”
“अभी नह , य क अभी वो श स उनके सामने, आई रपीट उनके सामने नह आया,
जो बता सकता है क क ल के व फतरती आिशक! जनाब दीि त जी कहां थे।”
“मगर वो तु हारे हाथ लग चुका है।”
जवाब देने क बजाय म इस बार यूं खुलकर मु काराया िजसका मतलब हां म ही होता
था।
“तो अ वाल अपना मुंह बंद नह रख सका।”
म मन ही मन तिनक च क सा गया, साफ जािहर हो रहा था क कसी ने उसे क ल के
व मौकायेवारदात पर देखा था और उस ‘ कसी‘ का सरनेम अ वाल था, ऐसे म उसके
नाम से अनिभ ता गट करने का मतलब था दीि त पर बन रहा ेशर ख म हो जाता या
कम हो जाता। या पता वो समझ ही जाता क म महज हवा म तीर चला रहा था।
“जनाब कई बार इं सान को मजबूरन वो बात कबूल करनी पड़ती है जो आम हालात म
वो जुबान पर लाने क कोिशश भी नह करता। समझ लीिजए अ वाल क हालत भी कु छ
वैसी ही थी। या तो वो आपका नाम लेता या फर पुिलस के सवाल का सामना करता।
उसको आपका नाम लेना यादा स िलयत का काम दखाई दया। फर भी उसने तब तक
आपके बारे म कु छ नह कहा, जब तक क मने उसे इस बात का िव ास नह दला दया
क म उस जानकारी का कोई बेजा फायदा नह उठाऊंगा।”
“जो क अब तुम उठाना चाहता हो, ऐसा नह होता तो इस व तुम मुझसे पूछताछ
नह कर रहे होते।”
“ऐसा नह है, समझ लीिजए म आपको पुिलस के फे र म पड़ने से बचाने के िलए यहां
हािजर आ ।ं आप अपनी ि थित साफ क िजए, सािबत क िजए क आप िनहा रका
ीव स के काितल नह हो सकते। तब कम से कम मेरी वजह से आपको पुिलस के सवाल
क बौछार नह झेलने पड़ेगी, इसका म आपको िव ास दलाता ।ं ”
“वो भी कौन सा आसान काम सािबत होगा, जब क तुम जानते हो क म ऐन क ल के
बाद मौकायेवारदात पर मौजूद था।”
“वजह! य मौजूद थे आप वहां?”
“िनहा रका से ही िमलने गया था।”
“जाने से पहले ज र आपने उसे फोन करके दरया त कया होगा क वो घर पर थी या
नह ।”
“नह मने नह कया था।”
“कमाल है, यूं तो आपका वहां जाना बेकार सािबत हो सकता था, हो सकता था क तब

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वो अपने घर पर होती ही नह ।”
“हो सकता था, मगर मेरी ॉ लम ये थी क िपछले कु छ रोज से म उससे िमलने क
कोिशश कर रहा था मगर वो थी क हर बार कोई ना कोई बहाना बनाकर टाल जाती थी।
इसिलए म उसे बताये िबना अचानक वहां जा धमका था।”
“तब व या रहा होगा।”
“सवा एक या उससे दो-चार िमनट ऊपर।”
“तब मेन गेट क या पोिजशन थी?”
“वो मुझे खुला आ िमला था। दरवाजा चौखट से लगा आ नह है, ये देखकर मुझे
ब त हैरानी ई, य क इस मामले म वो ब त एहितयात बरतती थी। दरवाजा खुला
देखकर मने दो बार उसका नाम लेकर पुकारा मगर भीतर से कोई जवाब नह िमला। तब
म िझझकता आ दरवाजा पूरा खोलकर भीतर दािखल आ, जहां दो कदम आगे बढ़ते ही
वो मुझे फश पर पड़ी दखाई दी। म लपककर उसके करीब प च ं ा, क ल हाल ही म होकर
हटा मालूम होता था, य क उसके माथे से खून का फौ वारा सा छू ट रहा था। म ण भर
को हैरान िनगाह से उसको देखता रहा फर अचानक मेरे भीतर से आवाज आई क मुझे
वहां नह होना चािहए था।”
“म उ टे पांव दरवाजे से बाहर िनकल गया। ठीक उसी व मुझे अपनी तरफ बढ़ता
चं काश अ वाल दखाई दया। मेरी सूरत पर एक िनगाह डालते ही वो भांप गया क
यक नन कोई खास बात हो गई है। उसने इस बाबत मुझसे सवाल कया तो मने सबसे
पहले उससे कहा क वो मेरी तलाशी लेकर ये सुिनि त करे क मेरे पास कोई हिथयार तो
नह है। सुनकर वो हड़बड़ा सा गया। मगर मेरे बार-बार इसरार करने पर आिखरकार
उसने मेरी तलाशी ली, जैसा क मुझे मालूम था मेरे पास से कोई हिथयार बरामद नह
आ। तब मने उसे भीतर पड़ी िनहा रका क लाश के बारे म बताया। सुनकर वो स रह
गया। उसे मेरी बात पर यक न तक नह आया, वो खुद भीतर जाकर उसक लाश को
देखकर वािपस मेरे पास लौटा। हम दोन एक दूसरे के जािमन थे क हमम से कोई काितल
नह था, य क हमारे पास कोई हिथयार नह था और भीतर लाश के पास भी हम कोई
हिथयार पड़ा दखाई नह दया था। इसके बाद हम दोन के बीच ये फै सला आ क इस
बाबत हम अपनी जुबान बंद रखगे।”
“अ वाल को आप कै से जानते ह।”
“कभी वो मेरे धंधे म मेरा पाटनर आ करता था, बाद म उसने क तनगर म माबल
हाउस के नाम से अपना माबल का एक बड़ा सा शो म खोल िलया। िलहाजा उसने िसफ
पाटनरिशप से ही प ला नह झाड़ा था बि क धंधा भी बदल िलया था। जब क उस व
मुझे यही लगा था क वो अपनी खुद क मॉड लंग एजसी खोलना चाहता था, य क मेरी
अपे ा लाइं स के साथ उसक ब त अ छी िनभती थी।”
“वो िनहा रका को कै से जानता था।”
“िनहा रका दूर के र ते म उसक भांजी लगती थी। उसका अ सर उसके घर आना-
जाना आ करता था। दो साल पहले जब िनहा रका के मां-बाप वािपस अपने गांव बरे ली

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लौट गये तो पीछे िनहा रका क देख-भाल का िज मा उ ह ने अ वाल को ही स पा था।”
“िलहाजा िनहा रका यहां अके ली रहती थी।”
“हां, वो बचपन से ही शहरी प रवेश म पली बढ़ी थी इसिलए गांव म रहना उसे पसंद
नह था। अलब ा अ सर उसके मां-बाप म से कोई ना कोई दस-पं ह दन के िलए यहां
रहने आ जाया करते थे।”
“उस रोज अ वाल साहब अचानक वहां कै से आन टपके थे।”
“मुझे देखकर, दरअसल वो िनहा रका का ने ट डोर नेबर था। उस व वो िसगरे ट
लेने के िलए बाहर िनकला था जब उसक िनगाह िनहा रका के घर के सामने खड़ी मेरी
कार पर पड़ी। मेरी वहां आमद के बारे म जानकर ही वो वहां प च
ं ा था। अब तुम बोलो म
भला िनहा रका का काितल कै से हो सकता ।ं ”
“इस तरह तो नह हो सकते।”
“ कसी भी तरह नह हो सकता, मुझे भला उसके क ल से या हािसल होने वाला था।
उ टा अगर वो जंदा रहती तो उसके ज रए चार पैसे क आमदनी के साथ-साथ या पता
उसे पाने क मेरी तम ा पूरी हो जाती।”
“क ल वाले रोज आप िसफ उससे िमलने वहां गया थे या और भी कोई बात थी।”
“और बात भी थी, दरअसल आजकल उसके ऊपर मॉड लंग का भूत सवार था। यही
वजह थी क वो मुझे भाव देती थी। मुझे भी यही लगता था क अगर उसे मॉड लंग का
कोई कां े ट दलवाने म कामयाब हो जाऊं तो यक नन वो मेरे क जे म आ जायेगी।”
“वैसे मॉड स वाली कोई बात उसम नह थी!”
“ ोफे शन स वाली बात तो नह थी, अलब ा वो खूबसूरत थी और उसका फ गर
लाजवाब था। मने िपछले दन उसके कु छ फोटोशूट कये थे, जो क यूंही कु छ अ य
मॉड स के फोटो के साथ अपने लाइं स को भेज दए थे। इ फ़ाक से उनम से एक को
िनहा रका पसंद आ गई। मेरे उस लाइं ट का सूरत म सािड़य का ब त बड़ा कारखाना है।
वो चाहता था क िनहा रका को लेकर उसके िलए फोटोशूट क ं । वही खबर म िनहा रका
को देने के िलए उसके घर प चं ा था, य क वो कई दन से मेरे फोन कॉ स का जवाब
नह दे रही थी।”
“ओह!”
“और कु छ जानना चाहते हो।”
“बस एक आिखरी सवाल का जवाब और दे डािलए, क पुिलस को फोन कसने कया
था।”
“मने कया था, एक पीसीओ से।”
“आज के जमाने म भी पीसीओ होते ह।”
“इ फ़ाक से हां, जब तुम मूलचंद वाली साइड से गढ़ी क तरफ मुड़ोगे तो थोड़ा आगे
जाते ही एक िवकलांग बूथ िमलेगा, वह से मने सौ नंबर पर फोन करके पुिलस को
िनहा रका क ह या क सूचना दी थी।”
“ फर तो अब बंदे को इजाजत दीिजए।”

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उसने िसर िहलाकर हामी भरी और बाहर तक मुझे छोड़ने आया।
“तुम पुिलस को मेरे बारे म बताओगे।”
“नह , अलब ा वो खुद इस बारे म जान जाएं तो और बात है।”
सुनकर उसके चेहरे पर साफ-साफ राहत के भाव आए। म सी ढ़यां उतरकर नीचे प च ं ा
और अपनी कार म सवार हो गया।
साहबान! जैसा क आप देख ही रहे ह क अभी तक मामले का कोई भी सू पकड़ म
नह आ रहा था। तमाम गुि थयां य क य उलझी ई पड़ थी। कसी का कनारा नजर
नह आ रहा था। सबसे बड़ी बात तो ये थी क अभी तक म इस िसलिसले म िजस कसी से
भी िमला था उनम से कोई ऐसा नह जान पड़ता था, जो कसी बड़े ऑगनाइजेशन से
संब हो। कसी ऐसे ऑगनाइजेशन से जो इतना दल गुदा रखता हो क कसी का क ल
करके उसका इ जाम कसी और पर थोपकर, पहले उसके फं सने का, फं सकर तड़पने का
इं तजार करे फर उसक बेगुनाही क वीिडयो उसी को बेचकर अपनी जेब भरे । अब तक म
ये सोचने पर मजबूर हो गया था क कह ये सब कसी बाहरी गग का काम तो नह है।
कोई ऐसा गग जो द ली से बाहर रहकर अपनी काय णाली को अंजाम देता हो।
अगर ऐसा था तो आप समझ ही सकते ह क म शु से ही गलत लाइन टो कर रहा था।
बहरहाल अभी म मु य सड़क पर प च ं ा ही था क चौहान क कॉल आ गई। मने कार
को साइड म लगाकर रोका और कॉल अटड क ।
“ या हाल है चौहान साहब।”
“ध े खा रहा ं यार! तू बता कोई नई बात पता चली जो बाली के के स म मेरे काम आ
सके ।”
“ फलहाल तो ऐसा कु छ नह है, आगे देखते ह।”
“ठीक है अब अपने मतलब क बात सुन। इलाहाबाद टेशन वाला पासल खोल िलया
गया है। मगर उसम से डॉलर नह बरामद ए। दोन सूटके स म पुराने उप यास भरे पड़े
थे, और कु छ नह था। सूटके स एकदम नये ह और हाल ही म खरीदे जान पड़ते ह। अब तू ये
वीकार कर क उसम जो रकम बंद थी वो उस वीिडयो क क मत थी, िजसे तेरी सहेली ने
अदालत म पेश करके के स का ख बदल दया था।”
“ कया।”
“वो तो खैर तूने करना ही था। ले कन इतने से तेरी खलासी नह होने वाली, पूरी
कहानी बता मुझ,े िबना कसी लाग-लपेट के , िबना कु छ िछपाये।”
जवाब म मने उसे वीिडयो से संबंिधत सारा क सा सुना दया।
“ फर तो ये सब तेरे लाइं ट का कया धरा आ। उसने ज र तुझे नोट क बजाय र ी
से भरे सूटके स ही भेजवाये थे।”
“खामखां, अगर उसके पास अपनी बेगुनाही का सबूत था, तो उसने खुद ही उसे
अदालत म पेश य नह कर दया। उसके िलए इतना टेढ़ा रा ता इ तेमाल करने क या
ज रत थी।”
“मत मान मगर ये उसी का कया धरा है, वरना तू खुद सोच क लाख डॉलस से भरा

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सूटके स चै कं ग म पकड़ा य नह गया, या सब के सब अंधे हो गये थे।”
“अंधे कर दये गये थे।”
“तेरा इशारा अगर र त क तरफ है तो वो बात पॉिसबल नह है।”
“ य ?”
“ य क वीिडयो क बाबत जानने के बाद सारी कहानी फौरन मेरी समझ म आ गई
थी। तब मने टेशन पर ए सिबन के सामने मौजूद टॉफ से खूब पूछताछ क और इस
नतीजे पर प च ं ा क उस रोज कसी को र त देकर ये काम नह कराया गया हो सकता
है। य क गणतं दवस क वजह से उसी रोज वहां के तमाम टॉफ क ूटी बदल दी
गई थी। मसलन िजसक ूटी लेटफाम पर होती थी उसे पा कग क सुर ा म तैनात कर
दया गया था। जो इं स पर तैनात होता था उसे लेटफॉम पर खड़ा कर दया गया था
और सबसे अहम बात ये क ऐसा तेरे वहां प च ं ने से महज बीस िमनट पहले िबना कसी
पूव सूचना के कया गया था। अब तू खुद सोच क कसी को र त देकर उस काम के िलए
भला कै से तैयार कया जा सकता था। अब ये कोई ऐसा काम तो था नह क कोई वहां
प चं कर िस यो रटी वाल से कहता क ले भाई ये एक लाख पये रख ले और बदले म
अभी डॉलर से भरा जो सूटके स यहां प च ं ेगा उसको िनकल जाने देना। तूू बोल या यूं
कसी को र त ऑफर क जा सकती है।”
“नह ।” - मुझे वीकार करना पड़ा - “यूं तो महा र तखोर भी र त लेने से इं कार
कर देगा और देने वाले को धर दबोचेगा।”
“शु है तेरी समझ म आई तो ये बात, अब खुद सोचकर देख क ये तेरे लाइं ट का
कारनामा नह है तो और कसका है।”
“है तो एक श स, िजसे सूटके स से नोट िनकालकर र ी भर देने का पूरा-पूरा मौका
हािसल था।”
“कौन, नाम ले उसका।”
“सािहल भगत का सी.ए., िजसने दोन सूटके स मेरे ऑ फस म िडलीवर कये थे।”
“गोखले अब इतना भी लाइं ट का सगा बनकर मत दखा क आंख ही बंद कर ले।”
“ या कहना चाहते हो।”
“अरे अगर सचमुच वो वीिडयो पय के बदले स पी जानी थी तो िबना पये िमले वो
वीिडयो तेरे पास य कर प च ं गई।”
“ य प च ं गई।”
“मेरे से पूछता है तो सुन, हक कत म वो वीिडयो सािहल भगत के ज रए ही तैयार क
या करवाई गई थी। अब जो चीज उसक खुद क िमि कयत थी उसके िलए वो साढ़े चार
करोड़ पये कसको अदा करता।”
मेरे मुंह से बोल नह फू टा, बस दमाग म सांय-सांय होनी शु हो गई।
“अब कु छ बोलता य नह ।”
“ या बोलूं तुमने तो मेरी बोलती ही बंद कर दी, मगर एक बात तो तु ह माननी पड़ेगी
क वो वीिडयो साफ-साफ सािहल भगत को बेगुनाह सािबत करती है।”

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“नह करती, तू या गारं टी कर सकता है क वीिडयो म दखाई दे रहा ओवरकोट
वाला काितल खुद सािहल भगत नह हो सकता।”
“तुम भूल रहे हो क उसी वीिडयो म वो क ल के बाद वहां प च ं ता भी दखाई दया
था, फर उसके बाद महेश बाली भी वहां प च ं ा था, यहां तक क पुिलस को मोबाईल से
कॉल करता भी वो साफ दखाई दे रहा था।”
“ये कोई बड़ी बात नह है, ओवरकोट से छु टकारा पाने के िलए उसे महज नीचे खड़ी
अपनी कार तक ही तो जाना था। वहां प च ं कर उसने ओवरकोट उतारकर कार म रखा
और उ टे पांव दोबारा मौकायेवारदात पर प च ं गया। अब मेरी बात को यान म रखकर
सोच तो उस वीिडयो क औकात दो कौड़ी क भी नह रह जाती।”
“मुझे तु हारी बात से इ फ़ाक नह है, भला ये कोई मानने वाली बात है क उसने
जानबूझकर खुद को ह या के इ जाम म फं साया।”
“ऐसा ही आ दखाई देता है। बाज लोग को खुद पर ब त गुमान होता है! ज र उस
वीिडयो के बूते पर उसे यक न रहा होगा क कानून उसका कु छ नह िबगाड़ सकता। और
उसके यक न को गलत भी नह कहा जा सकता। आिखर उसी के दम पर वो कानून के
चंगुल से आजाद घूम रहा है।”
“चौहान साहब तुम कु छ भी कहो, मेरा मन ये मानने को तैयार नह क सोनाली क
ह या सािहल भगत का कारनामा है।”
“ फर तो म यही क ग ं ा क मोटी फ स ने तेरी आंख पर प ी बांध दी है।”
“ऐसा नह है, तुम भूल रहे हो क क ल िसफ सोनाली का नह आ है, बि क बाली
और िनहा रका ीव स क ह या भी मुझे सोनाली वाले के स क ही एक कड़ी जान पड़ती
है।”
“िनहा रका ीव स!” - उसने दोहराया - “ये वही लड़क है न िजसक कल गढ़ी के
इलाके म गोली मारकर ह या कर दी गई थी।”
“वही।”
“वो इस मामले म कै से फट बैठती है।”
मने बताया।
“कमाल है।”
“वो तो है ही, ले कन उससे भी बड़ा कमाल ये होगा, अगर तुम सािबत कर सको क
बाली और िनहा रका पर चलाई गई गोिलयां एक ही रवा वर से चलाई ग थ ।”
“यार ये तो तू बड़ी फसादी बात कर रहा है, इस तरह तो तीन अलग-अलग इलाके म
ई ह याएं एक ही के स से जुड़कर रह जायगी। फर कोई बड़ी बात नह अगर बाली के
साथ-साथ इस नये क ल क इं वेि टगेशन भी मेरे िसर ही थोप दी जाय।”
“तुम चेक तो कराओ या पता मेरा अंदाजा गलत सािबत हो।”
“वो तो अब कराना ही पड़ेगा।”
“जो नतीजा िनकले उसक मुझे फौरन खबर करना, लीज!”
“ठीक है शाम को फोन करना, उ मीद है तब तक इस बाबत पता चल जाएगा, या पता

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लगते ही म तुझे फोन कर दूगं ा।”
“शु या।” कहकर मने कॉल िड कनै ट कर दी।
वहां से मने गढ़ी का ख कया।
थाने प च ं कर जब मने इं पे टर सुहल
े संह क बाबत दरया त कया तो पता चला क
उसका तबा वहां के एिडशनल एसएचओ का था। मने उससे िमलने क इ छा जािहर क
साथ ही ये बताना नह भूला क इं पे टर साहब मुझसे वा कफ थे।
ये अलग बात थी क वो वाक फयत महज कु छ िमनट क थी, जो क मकतूला
िनहा रका ीव स के घर म, उसक लाश के िसरहाने ई थी।
त काल एक िसपाही भीतर गया िजसने उ टे पांव वािपस लौटकर बताया क साहब
बुला रहे ह।
सहमित म िसर िहलाता म एिडशनल एसएचओ के कमरे म दािखल आ। वो मुझे मेज
पर झुका कु छ पढ़ने म त दखाई दया। जो क दूर से मुझे कसी पो टमाटम रपोट क
कॉपी जैसी लगी।
मने उसका अिभवादन कया और उसके इशारे पर एक चेयर पर बैठ गया।
“ या चाहते हो।”
“ फलहाल तो जनाब उस माल पर एक िनगाह डालना चाहता ं जो इस घड़ी आपके
हाथ म है।”
उसने िबना त के वो रपोट मेरी तरफ बढ़ा दी।
मने रपोट का जायजा िलया तो पाया क उसम िनहा रका के क ल का व बारह
पतािलस से एक बीस के बीच का दज था। यािन डॉ टर ने क ल के व म पूरे पतीस
िमनट क गुंजाईश रख छोड़ी थी। इस तरह तो चं काश अ वाल और राके श दीि त क
मौकाये वारदात पर हािजरी भी उस दायरे म िसमट कर रह गई थी।
मकतूला के िज म से िनकाली गई गोली ब ीस कै लीबर क रवा वर से ही चलाई गई
थी। मगर उसे वाइं ट लक रज से शूट नह कया गया था, बि क रवा वर और उसक
खोपड़ी के बीच कु छ फासला रखकर गोली चलाई गई थी।
तीसरी सबसे अहम बात ये थी क पो टमाटम रपोट म इस बात क संभावना जताई
गई थी क काितल लै ट हडर हो सकता था। उस संभावना का आधार या था इसका
खुलासा रपोट म नह कया गया था।
मने रपोट सुहल े संह को वािपस कर दी।
“और कु छ!”
“अभी तो ब त कु छ बाक है जनाब! बशत क आप अपनी अपार तता का हवाला
देते ए मुझे यहां से चलता ना कर द।”
“तुम टल जाओगे।”
“ फलहाल तो टल ही जाऊंगा जनाब, सरकार से भला पंगा कै से ले सकता ।ं मगर अंत
पंत तो अपने मतलब क जानकारी हािसल कर ही लूंगा, बस ट थोड़ा लंबा अि तयार
करना पड़ेगा।”

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“ या करोगे आरटीआई फाईल करोगे?”
“तौबा जनाब, उसम तो सुना है महीन लग जाते ह जवाब आते आते, कई बार नह भी
आता।”
“ठीक सुना है, अब बोलो और या जानना चाहते हो?”
“सबसे पहले तो काितल के ले ट हडर होने क संभावना पर ही कोई रोशनी डािलये, यूं
पो टमाटम से भला ये बात कै से जािहर हो सकती है क ह यारा लै टी था।”
“आम हालात म नह हो सकती, मगर रवा वर का घोड़ा अगर यादा टाईट हो सेमी
जाम हो तो पता लग जाता है। य क उस ि थित म गोली चलाते व घोड़े पर सामा य
से यादा दबाव डालना पड़ता है। ऐसे म अगर गोली चलाते समय दोन हाथ का सहारा
ना िलया जाय तो घोड़ा दबाते व अ सर रवा वर क नाल का ख थोड़ा ितरछा हो
जाता है। अगर रवा वर राईट हड से चलाई जाय तो नाल का ख ले ट क तरफ ितरछा
हो जाता है और ले ट से चलाई जाय तो राईट साईड क ओर ितरछा हो जाता ह। यूं गोली
का एंगल चज हो जाता है िजससे इस तरह के नतीजे िनकाले जाते है, अलब ा उनके
ामक िस होने के चांसेज बराबर होते ह।”
“यािन इस बात को काितल के ले ट हडर होने का सौ फ सदी सबूत नह माना जा
सकता।”
“नह मगर इससे जांच म आसानी हो जाती है, जैसे अब इस के स म पुिलस मकतूला से
संबंिधत उन लोग पर खास यान रखेगी जो क ले ट हडर ह गे।”
“शु या जनाब, अब जरा क ल पर कोई रोशनी डािलए, कोई नई जानकारी अभी तक
सामने आई या नह ।”
“पो टमाटम रपोट म सुझाये गये क ल के व ते म एक हाईट कलर क फॉर यूनर
मकतूला के घर के बाहर खड़ी दखाई दी थी। फलहाल हमारा सारा यान उसको
तलाशने म लगा आ है। उ मीद है उसके पकड़ाई म आते ही के स सॉ ब हो जायेगा।”
“और कोई खास बात?”
“और के खाते म फलहाल तो कु छ नह है। अब तुम बताओ तु हारे हाथ या लगा है,
आिखर अपने धंधे क बड़ी तोप समझे जाते हो तुम, िलहाजा कोई तो नतीजा िनकाला ही
होगा अब तक क अपनी दौड़ भाग से।”
म िहच कचाया।
“ य भई जानका रय के मामले म तु हारी िसफ इनकॅ मंग चालू है? आउटगोइं ग बंद
कर रखी है या?”
“ऐसा तो नह है जनाब, फर पुिलस से कु छ िछपाकर मुझे अपनी शामत बुलवानी है
या।”
“िलहाजा कु छ है तु हारे पास बताने को, ऐसा कु छ जो पुिलस को पहले से नह पता।”
“है तो ऐसा ही जनाब।”
“ लीज ए स लेन।”
“मुझे उस फॉर यूनर के मािलक का नाम पता मालूम है जो पुिलस को ढू ंढे नह िमल

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रहा। अलब ा उससे जो आपको उ मीद ह वो पूरी होती दखाई नह देती।”
“कौन है, नाम लो उसका?” सुहल ै संह हैरानी से बोला।
“नाम है राके श दीि त, मॉड लंग एजसी चलाता है, ेटर कै लाश म उसका ऑ फस है।”
“कमाल है, जो श स हम ढू ंढे नह िमल रहा तुम ना िसफ उसके नाम से वा कफ हो
बि क उसका पता ठकाना भी तु ह मालूम है।”
“जािहर है मालूम है, तभी तो आपको बता रहा ।ं ”
“म अभी खबर लेता ं उसक ।”
“वो तो आप लगे ही जनाब मगर एक छोटी सी इि तजा है आपसे।”
“घबराओ मत हम तु हारा नाम सामने नह आने दगे।”
“उसके अलावा भी एक बात है जो मेरा भला तो करे गी ही, साथ ही आपका मतलब भी
बखूबी हल करे गी।”
“वो या?”
“मकतूला के पड़ोस म चं काश अ वाल नाम का उसका एक दूर के र ते का मामा
रहता है।”
“म िमला ं उस श स से, उसक या बात है।”
“वो राके श दीि त के मौकायेवारदात पर प च ं ने का गवाह है। य क दीि त के पीछे-
पीछे वो भी वहां प च ं ा था। आगे मेरी आपसे गुजा रश है क आप पहले अ वाल के गले
पड़े और उसी से कबूलवाय क राके श दीि त को उसने क ल के फौरन बाद मकतूला के घर
से िनकलते देखा था। फर उस जानकारी के हवाले से आप दीि त से पूछताछ कर तो बड़ी
मेहरबानी होगी। य क मेरा उससे वादा है क म पुिलस को उसके बारे म नह बताऊंगा।
ऐसे म अगर आप उसपर सीधा चढ़ दौड़गे तो उसे समझते देर नह लगेगी क ये जानकारी
मने आपको पास ऑन क है।”
सुनकर वो कु छ देर के िलए सोच म पड़ गया फर बोला, “तु हारे बताये रा ते पर
चलने के िलए पुिलस मजबूर तो नह है, मगर तु हारे सहयोग को यान म रखते ए हम
ऐन वैसा ही करगे जैसा क तुम चाहते हो।”
“शु या जनाब!” - मने चैन क सांस ली - “अब बंदे को इजाजत दीिजए।” कहता आ
म उठ खड़ा आ।
साहबान यूं पुिलस का ानवधन करना मेरी फतरत म शािमल नह था। मगर सुहल ै
संह क नजदी कयां भिव य म मेरे धंधे के िलए ब त मुफ द सािबत हो सकती थ ।
इसीिलए मने वो जानकारी उससे शेयर करने म कोई बुराई नह समझी। वो भी उन
हालात म जब उनका िनशाना पहले से ही दीि त क फॉर यूनर कार थी। ऐसे म पुिलस
को भला उसक बाबत जान लेने म व ही कतना लगना था। मने तो बस उनका ट
थोड़ा आसान भर कर दया था। िजसक बमय याज म भिव य म जमकर वसूली कर
सकता था।
सायं चार बजे के करीब मेरे कदम साके त ि थत अपने ऑ फस म पड़े। शीला को मने
टेिलफोन से उलझा आ पाया। आहट पाकर उसने मेरी तरफ देखा फर फोन पर बोली,

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“जरा हो ड क िजए लीज।”
म उसके करीब प च ं ा।
“िम टर रं जीत सहगल ह लाईन पर।” - वो रसीवर के माउथपीस को अपनी हथेली से
कवर करती ई बोली - “तुमसे बात करना चाहते ह।”
“करा!” - मने उसके हाथ से रसीवर ले िलया - “हलो।”
“िव ांत!”
“जी जनाब, किहए कै से याद कया?”
“कोई खास बात नह थी, बस मेरे एकाउं टट का पता लग गया था, तो सोचा तु ह उसके
बारे म बता दूं वरना उसक तलाश म तु ह जाने कहां-कहां ध े खाने पड़गे।”
“शु या जनाब!”
“तुमने सािहल भगत का नाम तो सुना होगा, हाल ही म वो अपनी बीवी के क ल क
वजह से काफ सू खय म था।”
“सुना है जनाब, उसक या बात है।”
“अपना राजेश बंसल आजकल उसी क छ छाया म काम कर रहा है।”
सुनकर म भ च ा रह गया।
“ले कन मेरे यहां से जॉब छोड़ने के बाद वो काफ समय तक कह और काम करता रहा
था।” - सहगल ने आगे बताया - “द रयागंज के इलाके म कोई एमजी पि लके शन नाम से
बड़ा पि लेकेशन हाउस है जो टै स बुक छापता है। राजेश बंसल अभी कु छ महीन पहले
तक उसका मुलािजम आ करता था।”
वो दूसरा बम था जो उसने छोड़ा था।
“शु या जनाब!” - य तः म बोला - “म बयान नह कर सकता क आपने कतनी
बड़ी जानकारी मुझे मुहय ै ा कराई है।”
“म जानना भी नह चाहता, अब फोन रखता ।ं ” कहकर उसने कॉल िड कनै ट कर
दी।
मने भी रसीवर वािपस रखा और शीला क ओर देखा जो अपनी बड़ी-बड़ी आंख से
मुझे ही घूरे जा रही थी।
“ या आ?” म हड़बड़ाकर बोला।
“ये वही रं जीत सहगल तो नह था िजसका मने तुमसे िज कया था।”
“वही था।”
“और राजेश बंसल?”
“उसका एकाउं टट था, िजसने क उसक बेगुनाही वाले वीिडयो के बदले पय से भरा
सूटके स हडल कया था। हैरानी है क आगे वो दूसरे िशकार के दारनाथ आ जा का भी
एकाउं टट था और अब सािहल भगत क मुलाजमत म है।”
“तीन बार कै श उसी ने हडल कया था।”
“आ जा के बारे म पता नह , मगर सािहल के िलए यहां तक दोन सूटके स प च ं ाने
वाला श स वही था।”

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“ फर तो ज र आ जा के िलए भी उसी ने रकम ढोई होगी। अगर ऐसा था तो उसके
काितल होने क बाबत कोई दो राय हो ही नह सकती।”
“तू भूल रही है क इस काम म कोई इकलौता जना शािमल नह था।”
“नह भूल रही मगर बाली का क ल हो चुका है, कोई बड़ी बात नह क साढ़े चार
करोड़ क दौलत पर अके ले कािबज होने क खाितर उसी ने बाली को मौत क न द सुला
दया हो।”
“हो सकता है, मगर िनहा रका ीव स के क ल को भी म सोनाली और बाली के क ल
क ही एक कड़ी समझकर चल रहा ।ं ”
“तो फर वो भी वसूली म उनक पाटनर रही होगी, आिखर फोन पर तुमसे इस
िसलिसले म तमाम बात करने वाली कोई लड़क ही तो थी। फर वो लड़क िनहा रका
य नह हो सकती।”
“कमाल है तूने तो के स सॉ व भी कर िलया।”
“बनाओ मत म जानती ं क तुम भी इस व यही सोच रहे हो।”
“है तो ऐसा ही मगर एक सवाल है जो मेरी सोच पर फट नह बैठ रहा। जरा सोचकर
देख इसक या गारं टी थी क सािहल भगत कै श हडल करने के िलए राजेश बंसल को ही
चुनता। वो उसका कोई इकलौता कमचारी तो था नह । ऐसे म अगर सािहल कसी और
को वो काम स प देता या खुद मुझसे कह देता क म दोन सूटके स उसके ऑ फस या बंगले
से िपक कर लूं तो! राजेश बंसल क योजना तो वह चौपट हो जानी थी।”
“नह होनी थी, बस उसे थोड़ी फे र बदल भर करनी पड़ती, टेशन पर कै श प च ं ाने क
जगह वो रा ते म कह भी तु ह म देता क कार को सड़क कनारे , बमय चाबी छोड़कर
चलते फरते नजर आओ। तो या तुम मना कर देत,े जवाब ये सोचकर देना क तु ह हर
हाल म वो सूटके स िडलीवर करने ही थे। फर तु हारे वहां से टलते ही वो कार म जा
बैठता और खुद ाईव करता आ कार को कसी ऐसी जगह ले जाता जहां उसक अपनी
कार पहले से ही खड़ी होती। जहां वो सूटके स के साथ कार क अदला-बदली करता और
चलता बनता, ऐसे म तुम उसका या िबगाड़ लेते।”
“ऐसा उसने पहले य नह कया। य बाली के ज रये टेशन पर सूटके स को ेन म
रखवाये जाने का फसादी इं तजाम कया।”
“िसफ इसिलए ता क तु ह यक न आ जाता क अपरािधय क प च ं ब त ऊपर तक
थी। फर उसने नया या कया था, बस अपनी िपछली काय णाली को दोहरा भर दया
था। िजससे लगता क तीन अपराध कसी बड़े संग ठत िगरोह का कारनामा थे।”
“िलहाजा सब कया धरा राजेश बंसल का।”
“मेरी मान तो हां, तु ह पुिलस को फौरन उसक खबर कर देनी चािहए, वरना वो
सािहल भगत क मुलाजमत से यूं गायब होगा क कसी को ढू ंढे नह िमलेगा।”
“फौरन नह , उससे पहले म के दारनाथ आ जा से िमलूंगा उसके बाद ही राजेश बंसल
क बाबत कोई राय कायम क ं गा।”
“तु हारी मिहमा तुम ही जान ।”

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“तूने लंच कर कया।”
“हां कर िलया।”
“मेरे िलए कु छ खाने का ऑडर कर, आज सुबह से कु छ नह खाया है।”
सहमित म िसर िहलाती वो फोन करने म मश फ हो गई। म भीतर अपने कमरे म
प च ं ा और एक िसगरे ट सुलगाकर गहरे कश लेने लगा।
आधे घंटे म लंच से फा रग होकर मने ऑ फस छोड़ दया।
द रयागंज प च ं कर एमजी पि लके शन का ऑ फस तलाश लेना िनहायती मामूली काम
सािबत आ।
मने रसै शन पर प च ं कर मािलक से िमलने क इ छा जािहर क तो पता चला वो
वहां कभी-कभार ही मौजूद होता था। अिधकतर वो नोयडा के सै टर अ सी के ऑ फस म
होता था जो क एमजी पि लके शन का ही दूसरा हािलया बना ऑ फस था।
मने रसै शिन ट से वहां का पता और आ जा का मोबाईल नंबर हािसल करके उसे
फोन लगाया।
कु छ देर घंटी जाने के बाद उसने कॉल अटड क तो मने उसे कम से कम श द म बताया
क म या चाहता था। जवाब म थोड़ी ब त आनाकानी के बाद उसने मुझसे िमलना कबूल
कर िलया और मुलाकात के िलए छह बजे का व मुकरर कर दया।
ये अलग बात थी क म पांच पचास पर ही उसके ऑ फस प च ं गया और इस घड़ी
उसके सामने बैठा उस कॉफ का लु फ उठा रहा था जो मेरे वहां प च ं ते ही पानी का
िगलास रखने के फौरन बाद पेश कर दी गई थी।
“अब बताओ, मेरी बीवी के क ल वाले के स म तु हारी या दलच पी है।” वो बड़े ही
गंभीर लहजे म बोला।
“माफ के साथ अज कर रहा ं जनाब क कोई दलच पी नह है। सच तो ये है क
अभी दो दन पहले तक म आपके नाम से भी वा कफ नह था। मगर हालात कु छ यूं बन
गये ह क हाल ही घ टत ई सोनाली भगत क ह या क वारदात, दो साल पहले ई
रं जीत सहगल के पाटनर क ह या और करीब सात महीने पहले ई आपक प ी क ह या,
सब एक ही श स या गग का कारनामा दखाई देने लगे ह। य क तीन ही ह या म
काितल का मकसद िसफ मुलिजम क बेगुनाही क वीिडयो का सौदा करना था। यािन
क ल िसफ इसिलए कया गया ता क उसम मुलिजमान को फं साकर मोटी रकम ठी जा
सके , बाक दोन ह या का पैटन एक ही था, आपक प ी क ह या कै से ई यही जानने
के िलए म यहां हािजर आ ।ं ”
“बताता ं उससे पहले तुम मुझ,े या नाम बताया था, हां रं जीत सहगल के पाटनर क
ह या के बारे म बताओ, सोनाली भगत क ह या तो इन दन हॉट यूज बनी ई है
इसिलए मुझे उसक पूरी जानकारी है।”
जवाब म मने सहगल के पाटनर क ह या से लेकर सहगल के उसम फं सने और वीिडयो
का सौदा होने तक क तमाम कहानी उसे सुना दी।
“अब बताइए या कहते ह?”

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“भई तु हारी बात सुनकर तो यही लगता है क बस टारगेट नया था, यािन सहगल के
पाटनर क जगह इस बार मेरी बीवी थी वरना तो सारी कहानी ब कॉपी दखाई देती
है।”
“ लीज ए स लेन।”
“म वह प च ं रहा ।ं मेरे याल से िशवानी क ह या िपछले साल आठ अ ैल को ई
थी। उस रोज म तिनक देर से घर प च ं ा था। मेरे याल से यारह बजे का व रहा होगा।
मेरे भीतर प च ं ते ही रसोइये ने मुझसे पूछकर खाना लगा दया। मने उससे िशवानी क
बाबत दरया त कया तो उसने बताया क मैडम अपने कमरे म सो रही ह। जो क कोई
नई बात नह थी वो अ सर दस बजे तक सो जाया करती थी। खाना खाकर म थोड़ी देर
डाइ नंग हॉल म टहलता रहा फर सोने के िलहाज से पहली मंिजल पर मा टर बेड म म
प च ं ा। कमरे म कोई रोशनी नह थी, दरवाजा खुलने से बाहर क जो थोड़ी ब त रोशनी
भीतर प च ं ी उसम म यही देख पाया क िशवानी कं बल ओढ़े सोई ई थी। मने उसे िड टब
करना उिचत नह समझा और दरवाजा बंद करके चुपचाप पलंग के दूसरे िह से म सो
रहा। रात के कसी व अचानक मेरी न द खुली तो मने पाया क म भी िशवानी के साथ
कं बल के भीतर था। मने उसक ओर करवट ले रखी थी, मेरा एक हाथ उस घड़ी उसके पेट
पर था जहां मुझे गीलेपन का एहसास आ। मने टटोलकर देखा तो मुझे उसके कपड़े भी
गीले महसूस ए। मने वजह जानने के िलए उसे आवाज दी मगर वो टस से मस नह ई।
तब मने उठकर नाईट लप जलाया, उसक रोशनी म जो नजारा मुझे दखाई दया उसे
देखकर बस इतनी ही गनीमत रही क म ठौर मर नह गया। िशवानी का पूरा िज म खून
से तर-बतर था। उसक छाती म दल वाले थान पर बना गोली का सुराग दूर से ही
दखाई दे रहा था। मेरी खुद क हालत भी उससे जुदा नह थी। मेरे कपड़े भी उसके खून से
रं गे पड़े थे। बड़ी मुि कल से मने अपने होशो-हवास काबू म कए और टेिलफोन क तरफ
बढ़ा जो कु छ दूरी पर एक टेबल पर रखा था। म अभी वहां तक प च ं ने भी नह पाया था
मुझे फश पर पड़ी एक रवा वर दखाई दी। मने झुककर उसे उठाया तो पाया क वो मेरी
रवा वर थी। मने उसे टेिलफोन के बगल म रखा और पुिलस को घटना क सूचना दे दी।
दस िमनट से भी कम समय म पुिलस मेरे बंगले के भीतर थी। उ ह ने घटना थल का
मुआयना कया और अंत म बड़ा ही वािहयात नतीजा िनकाला क काितल म था। सोने पर
सुहागा वो रवा वर सािबत ई जो मेरी अपनी िमि कयत थी, िजसपर मेरी नासमझी क
वजह से मेरी उं गिलय के िनशान च पा हो गये थे। क ल उसी रवा वर से कया गया था।
करीब घंटा भर बाद वहां प च ं े एसीपी को मने ये समझाने क भरपूर कोिशश क क
य कर खूनी रवा वर पर िसफ मेरे फं गर ंट पाये गये थे, मगर उसने मेरी बात पर कान
धरना ज री नह समझा।
अलब ा तब तक वो मुझसे ब त ही नम से पेश आ रहे थे। य क क ल का मो टव
उनक समझ म नह आ रहा था। आिखरकार लाश उठा दी गई और पुिलस पाट मुझे
लेकर थाने प च ं गई जहां उनका डीसीपी पहले से मौजूद था। उसने मुझसे खोद-खोद कर
सवाल कये। रात से सुबह और सुबह से दोपहर हो गई मगर उनके सवाल का िसलिसला

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ख म नह आ।
अभी पूछताछ चल ही रही थी क थाने का एसएचओ वहां प च ं ा और धीरे से डीसीपी
क कान म जाने कौन सा मं बुदबुदाया क डीसीपी के तेवर ही बदल गये। उसने मुझे
हवालात म डालने का म दनदना दया।”
“ऐसा या कहा था उसने?”
“वो बात मुझे कोट म मेरी पेशी के व पता चली। मेरी से े टरी ि मणी ने बयान
दया क म उससे शादी करना चाहता था जो क िशवानी के जीते जी संभव नह था।
पुिलस ने उसी बात को क ल का मो टव बना िलया और अदालत ने मेरी जमानत नामंजूर
करते ए मुझे दो दन के पुिलस रमांड पर दे दया।”
“ या सचमुच ऐसा था?”
“सवाल ही नह पैदा होता, बात िसफ इतनी थी क एक रोज मने यूंही मजाक म अपनी
से े टरी क तारीफ करते ए ये कह दया था क वो इतनी सुंदर थी क दल करता था
बीवी को तलाक देकर उससे शादी कर लू।ं ”
“उस मजाक का उसने इतना गंभीर मतलब िनकाल िलया।”
“उसने नह िनकाला भई, पुिलस ने उससे खोद-खोदकर सवाल करने शु कए तो वो
बात यूंही उसके मुंह से िनकल गई। िजसको हमारी द ली पुिलस ने पॉिलस करके ,
चमकाकर अदालत म बयान करवा दया। साथ ही उसे बाकायदा धमकाया भी गया था
क अगर वो अदालत म अपना बयान नह देगी तो िशवानी क ह या हम दोन क िमली
भगत समझी जायेगी, उस सूरत म मेरे साथ-साथ उसका भी जेल जाना तय था। वो पुिलस
के बहकावे म आ गई या फर डर गई, बात चाहे जो भी रही हो उसक इकलौती गवाही ने
मेरे िखलाफ पुिलस का के स पु ता कर दया था।”
“ फर या आ?”
“बाक सब तो वही आ जैसा क तुम सहगल वाले के स म आ बताते हो, अलब ा
वैसी वीिडयो के िलए मुझे तीन करोड़ पये देने पड़े थे।”
“वो पये िडलीवर कसने कए थे?”
“उन दन राजेश बंसल नाम का मेरा एक चाटड एकाउं टट आ करता था। पये
प च ं ाने वही गया था।”
“ओह! कोई और बात जो इस िसलिसले म आप बताना चाह।”
“तुम कु छ और पूछना चाहते हो।”
“नह , व देने के िलए आपका शु या, अब बंदे को इजाजत दीिजए।”
बाहर आकर मने चौहान को फोन करने के िलए मोबाइल िनकाला तो उसपर पहले से
ही उसक दो िम ड काल दज पाई।
मने उसे फोन कया।
“गोखले सुधर जा।” - वो काल अटड करते ही बोला - “अगर मोबाइल के बारे म यूं
लापरवाही दखायेगा तो कसी ऐसी जानकारी से चूक जायेगा जो व रहते तुझे
खबरदार कर सकती थी क फलाना जगह जायेगा तो मारा जायेगा।”

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म हंसा।
“बैिलि टक ए पट क रपोट आ गई है।” - वो संदीजा होता आ बोला - “तेरा याल
दु त था, बाली और िनहा रका के िज म से िनकाली ग गोिलयां एक ही रवा वर से
चलाई गई थ । दोन ही बार काितल ने रवा वर पर साइलसर चढ़ा रखा था। िजसक
वजह से गोली चलने क आवाज अड़ोस-पड़ोस म नह सुनाई दी थी।”
“साइलसर वाली बात कै से जानी।”
“वो पुिलस के बैिलि टक ए पट का िनकाला गया नतीजा है। ले कन बाली वाले के स
म तो म पहले से ही योर था क गोली साइलसर लगी रवा वर से चलाई गई थी।
अलब ा ए पट ओपेिनयन हम अब जाकर हािसल ई है।”
“यूं महज गोली देखकर जाना जा सकता है क उसे चलाते व रवा वर पर साइलसर
चढ़ी थी या नह ।”
“िसफ गोली देखकर नह जाना जा सकता। सबसे पहले ये पता लगाया जाता है क वो
गोली कस क म क रवा वर से चलाई गई थी और पो टमाटम रपोट ये बताती है क
गोली शरीर के भीतर कतनी गहरी धंसी पाई गई। इसके बाद ये देखा जाता है क गोली
कतने फासले से चलाई गई थी। इन बात से सि मिलत नतीजा ये िनकाला जाता है क
गोली अपने सामा य र तार से शरीर के भीतर दािखल ई थी या उसक र तार धीमी
थी। य क साइलसर लगी रवा वर से िनकली गोली क र तार आम र तार से कम
होती है। इस तरह बैिलि टक ए पट ये नतीजा िनकालने म कामयाब हो जाता है क
फलाना गोली रवा वर पर साइलसर लगाकर चलाई गई थी।”
“नतीजा सौ फ सदी खरा होने क गारं टी होती है?”
“अगर जांच के िलए रवा वर मौजूद हो तो हां!” - कहकर वो तिनक का फर बोला
- “अब तू बता अब तक क भाग-दौड़ का कोई नतीजा सामने आया या नह ।”
“आना शु हो चुका है, कहानी कु छ-कु छ समझ म भी आने लगी है, अलब ा तु हारा
साथ िमल जाता तो मजा आ जाता।”
“ या चाहता है?”
“म सािहल भगत के सी.ए. राजेश बंसल से कु छ पूछताछ करना चाहता ।ं तुम साथ
रहोगे तो वो जवाब देने म आनाकानी नह करे गा।”
“ये वही जमूरा है न िजसने सािहल के दये दोन सूटके स तेरे ऑ फस तक प च
ं ाये थे।”
“वही है।”
“उसके पीछे य पड़ना चाहता है, कह तू ये तो नह समझता क नोट वाले सूटके स
उसी ने बदले थे।”
“सोच तो म कु छ ऐसा ही रहा ,ं अगर गलत भी सोच रहा ं तो कम से कम उससे
पूछताछ के बाद ये तो साफ हो जायेगा क पूरे घटना म म इसके अलावा उसका कोई
रोल नह क उसने सािहल के दये सूटके स मेरे ऑ फस तक प च ं ाये थे।”
“गोखले म या तुझे जानता नह , ज र तू उसक बाबत कोई खास बात जान गया है,
वरना मुझे साथ चलने क पेशकश कभी नह करता।”

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“वही सही अब बताओ या फै सला है तु हारा।”
“वही जो तू चाहता है, बता कब चलना है।”
“म उससे ऑ फस म नह िमलना चाहता, इसिलए ये जानना ज री है क ऑ फस
टाईम के बाद उसका मुकाम कहां होता है, जैसे ही पता चलेगा म तु ह इं फॉम कर दूग
ं ा।”
“करना, भले ही आधी रात का व हो।”
“वो तो खैर करना ही पड़ेगा, मजबूरी जो ठहरी, मगर उससे पहले एक काम और कर के
दखाओ, लीज!”
“ या चाहता है?”
“िनहा रका ीव स क ह या के संदभ म एिडशनल एसएचओ सुहल ै संह आज चं
काश अ वाल और राके श दीि त से पूछताछ करने वाला था। मालूम करने क कोिशश
करो क उस पूछताछ का नतीजा या िनकला, पुिलस के हाथ कु छ लगा भी या नह ।”
“वो तो खैर म मालूम कर लूंगा, मगर ऐसी कोई पूछताछ वो करने वाला है, इसक
खबर तुझे य कर है।”
“ य क वो दोन नाम मने ही उसे लेट म सजाकर परोसे थे।”
“ फर तो ज र तूने कोई पुरानी खुंदक िनकाली होगी उन दोन से।”
“ऐसा नह है, य क क ल के संभािवत व फे म इन दोन ने ही मौकायेवारदात पर
हािजरी लगाई थी। इनम से एक राके श दीि त तो इस बात को कबूल भी कर चुका है।
अलब ा उसका कहना है क वो क ल के बाद वहां प च ं ा था। जब क अ वाल क बाबत
उसका बयान है क वो जब िनहा रका क लाश से ब होकर उसके घर से िनकल रहा
था तो अ वाल के वहां कदम पड़े थे।”
“कमाल है, इस तरह तो उन दोन म से कोई भी काितल हो सकता है।”
“नह भी हो सकता, या पता राके श दीि त उस िविजट के बारे म सच कह रहा हो।
असिलयत तो उनके बारे म मालूमात हािसल करने से ही पता लगेगी।”
“ठीक है म पता लगाता ं इस बारे म।”
“शु या।”
कॉल िड कनै ट करके मने सािहल भगत को फोन कया। उसने ना िसफ मुझे राजेश
बंसल का मोबाईल नंबर दया, बि क उसके घर का पता जो क डीडीए लै स कालकाजी
का था देते ए ये भी बता दया क आठ बजे के बाद उसके अपने लैट पर िमलने क पूरी
संभावना थी।
इ फ़ाक से चौहान और मेरा दोन का ही लैट उसी इलाके म था। मने आगे वो
जानकारी चौहान को देते ए ठीक आठ बजे वहां प च ं ने को कह दया।
अब तक छह बज चुके थे।
भारी ै फक म गाड़ी चलाता म साढ़े सात बजे अपने लैट पर प च ं ा जहां े श होने के
बाद मने कचन म जाकर कॉफ और टो ट तैयार कया और कपड़े चज करके बंसल से
िमलने के िलए रवाना हो गया।
चौहान वहां पहले से मौजूद था। वो मुझे एक पनवाड़ी क दुकान के आगे खड़ा िसगरे ट

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फूं कता दखाई दया।
मने ऐन िब डंग के सामने ले जाकर कार रोक तो वो मेरे करीब प च ं ा।
“लगता है काफ देर से यहां हो।”
“काफ तो नह मगर दस-पं ह िमनट तो हो ही गये ह गे।”
“अब भीतर चल।”
“वो तो चलगे ही मगर उससे पहले एक खास बात सुन! अभी थोड़ी देर पहले इस
िब डंग से मने तेरी ताजा-तरीन सहेली मीता स सेना को बाहर िनकलते देखा था।”
“वो मेरी सहेली नह है।”
“तो भी मने उसे यहां से िनकलते देखा था।”
“उसका कोई जानने वाला यहां रहता होगा।”
उसने फौरन मुझे घूरकर देखा।
“यािन उसके िज क वजह कु छ और है।”
“हां, वो ब त ज दीबाजी म मालूम पड़ती थी, इतनी यादा क उसका मोबाइल हाथ
से छू टकर नीचे जा िगरा और उसे खबर तक नह लगी।”
“ या कह रहे हो, इतना भी बेखबर कोई होता है।”
“वो सरासर थी!” - फर उसने जेब से िनकालकर मीता का मोबाइल मुझे दखाया -
“सच पूछ तो मुझे उसके होशो-हवास उड़े जान पड़ते थे। वो यहां से यूं िनकली थी जैसे
उसके पीछे भूत लगे ह । वश चलता तो दौड़ लगाने से बाज नह आती प ी।”
“कमाल है, ज र तु ह उसक बाबत कोई मुगालता आ होगा। या हो सकता है मीता
को पहचानने म तुमसे भूल ई हो।”
“अरे अहमक!” - वो झ लाकर बोला - “ य भूल रहा है क उसका मोबाइल िपछले
पांच िमनट से मेरे पास है। जो खुद ये बोल के दे रहा है क वो मीता स सेना का मोबाइल
है।”
“आके , ओके , अब भीतर चल।”
“हां चल।”
बंसल के लैट के सामने प च ं कर चौहान ने कॉलबेल बजाई और इं तजार करना लगा।
कोई ित या सामने नह आई। उसने दोबारा-ितबारा ाई कया मगर दरवाजा नह
खुला। तब उसने दरवाजे को भीतर क तरफ धके लने क कोिशश क मगर दरवाजा टस से
मस नह आ।
झुंझलाकर इस बार जो उसने कॉलबेल पर उं गली रखी तो हटाने का नाम नह िलया।
भीतर लगातार घंटी बजने क आवाज हम सुनाई देती रही मगर दरवाजा खोलने कोई
नह प च ं ा। ठीक तभी मेरी िनगाह दरवाजे के ऐन सामने, नीचे फश पर पड़ी! मेरे मुंह से
िससकारी सी िनकल गई।
“बेकार क कसरत मत करो चौहान साहब!” - म जेब से िसगरे ट का पैकेट िनकालता
आ बोला - “दरवाजा नह खुलने वाला।”
“तुझे या मालूम।” वो हैरानी से बोला।

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“अपने पैर के पास देखो, वहां जवाब मौजूद है।”
मेरी बात सुनकर उसने नीचे देखा और हड़बड़कर दो कदम पीछे हट गया। फश पर
भीतर से बाहर क ओर बहता खून दखाई दे रहा था, जो अब तक चौहान के जूत तक
प च ं चुका था।
उसने एक गहरी सांस ली और मेरे हाथ से ताजा सुलगाया गया िसगरे ट लेकर कश
लगाने लगा। दो-तीन गहरे कश लगाने के बाद उसने िसगरे ट मुझे वािपस कर दया और
बोला, “म सबसे पहले मीता स सेना क िगर तारी का इं तजाम करवाता ।ं ”
“वो कसिलए?”
“तुझे पता है कसिलए, अगर भीतर बंसल क लाश पड़ी है तो बेशक उसका क ल उसी
ने कया है, और कोई बड़ी बात नह अगर बाक क ह या के पीछे भी उसी का हाथ रहा
हो।”
“चौहान साहब होश म आओ, तुम भूल रहे हो क दरवाजा भीतर से बंद है। ऐसे म
काितल अगर कोई बाहरी श स होता तो य कर वो क ल के बाद दरवाजा भीतर से बंद
करने म कामयाब हो पाता।”
“ज र भीतर से दरवाजे क चटखनी लगाने के िलए उसने कोई तरक ब आजमाई
होगी।”
“तो कम से कम उस तरक ब का खुलासा होने तक उसक तरफ से अपना यान हटाओ
और वो करो जो ऐसे मौके पर एक पुिलस ऑ फसर को करना चािहए।”
“अभी करता ं मगर उससे पहले तू मुझे िबना लाग-लपेट के ये बता क बंसल से िमलने
को तू तड़प य रहा था, और ऐसी कौन सी बात उससे जानना चाहता था िजसक वजह
से तुझे पुिलस क मदद दरकरार थी।”
“ठीक है सुनो, मुझे पूरा यक न था क हािलया तीन वारदात के िलए वही िज मेदार
है। मुझे डर था क मेरी पूछताछ के बाद वो कह िखसक सकता था, या फर पूछताछ के
दौरान कोई ऐसी बात सामने आ सकती थी जो उसे िन ववाद प से काितल सािबत कर
सकती थी, ऐसे म उसे फौरन िगर तार कए जाना ब त ज री था वरना बाद म तो
उसक हवा भी नह िमलती।”
“कमाल है तुझे इतना यक न था उसके काितल होने पर!”
“सच पूछो तो हां, अभी थोड़ी देर पहले तक म इस के स को सॉ व हो चुका तक मानने
लगा था।”
फर मने उसे रं जीत सहगल, के दारनाथ आ जा के बारे म बताते ए सारी कहानी सुना
दी। सुनकर वो यूं भ च ा आ क उसक श ल देखते बनती थी।
“ऐन इसीिलए बंसल के क ल क बात मुझे हजम नह हो रही। अगर लैट के भीतर
सचमुच बंसल क लाश पड़ी है, तो कोई बड़ी बात नह क हालात से घबराकर उसने
आ मह या कर ली हो। यही वजह है क दरवाजा भीतर से बंद है। इसिलए फलहाल मीता
के पीछे पड़ने से तु हारा कोई अला-भला नह होने वाला।”
“अगर वो इतना बड़ा मा टरमा ड था िजतना क तू उसे सािबत करने पर तुला है, तो

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वो आ मह या य करे गा, इससे तो यादा अ छा होता क वो चुपचाप कह दूर िखसक
जाता।”
“ फर तो ज र काितल अभी भी भीतर ही होगा।”
“ या बकता है।”
“यक न जान अगर ये आ मह या का के स नह है तो काितल अभी भीतर ही होगा।
ज र उसने मीता के यहां प च ं ने पर भीतर से दरवाजा बंद कर िलया होगा। या फर
दोन के दोन ही भीतर मरे पड़े ह गे।”
“ऐसा सोचना तो पागलपन ही होगा, फर भी म एहितयातन बाहर से दरवाजा बंद
कर देता ।ं ”
कहकर उसने सचमुच लैट का दरवाजा बाहर से बंद कर दया और मोबाईल
िनकालकर सबसे पहले एसीपी पांडे को फोन कया फर उसक सलाह पर इलाके के थाने
को सूचना दे दी।
दस िमनट के भीतर वहां पांच पुिलसवाले प च ं गये िजसम से एक सब-इं पे टर भैरव
संह था जो चौहान का पुराना प रिचत था। चौहान ने सं ेप म उसे सारी बात बताई फर
कं धे क ठोकर से दरवाजे को भीतर क ओर ध ा देने लगा। ज दी ही दरवाजे क
िचटखनी भीतर से उखड़ गई।
तमाम पुिलस वाले एकदम से चाक-चौबंद नजर आने लगे। दरवाजा खुलते ही सभी ने
अपनी पोिजशन ले ली। लाश दरवाजे से थोड़ा परे एक कु स से उलझी ई फश पर पड़ी
थी। उसक कनपटी से बहता खून दूर से ही दखाई दे रहा था। उसके दाय हाथ म एक
रवा वर मौजूद थी, जो अपनी कहानी आप बयां कर रही थी।
स वस रवा वर हाथ म िलए ए सबसे पहले चौहान ने फश पर फै ले खून से बचते ए
भीतर कदम रखा, उसके पीछे भैरव संह भी भीतर दािखल हो गया। बाक के पुिलिसए
बाहर खड़े खामोशी से वो नजारा करते रहे।
चौहान और भैरव दोन ही सवाधानी से पूरे लैट म फर गये। मगर सवाधानी बरतना
बेकार सािबत आ, भीतर कोई नह था।
इसके बाद मौकायेवारदात पर क जाने वाली औपचा रकताय पूरी क जाने लगी। इस
दौरान मुझे लाश के फटकने तक नह दया गया। मने एक-दो बार ऐसी कोिशश क तो
चौहान ने ही मुझे चुपचाप बाहर खड़े रहने को कह दया।
मने एक िसगरे ट सुलगाया और कश लगाता आ, वहां मौजूद पुिलिसय क िनगाह
बचाकर सी ढ़यां उतर गया।
तेज र तार से कार चलाता आ म साके त प च ं ा।
मीता स सेना अपने लैट म मौजूद थी। अलब ा कई बार बेल बजाने के बाद कह
जाकर उसने दरवाजा खोला।
म उसक सूरत पर िनगाह पड़ते ही स रह गया! उसके होशो-हवास उड़े ए थे। शरीर
कांप रहा था, चेहरा पीला पड़ा आ था।
“तुम!” - वो खुद को संभालने क असफल कोिशश करती ई बोली - “इतनी रात को

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यहां या कर रहे हो।”
“समझ लो तु ह फं साने के िलए आया ,ं फर अभी तो नौ भी नह बजे ह।” - कहकर म
तिनक का फर बोला - “अब भीतर तो आने दो।”
उसने भारी अिन छा का दशन करते ए, एक तरफ होकर मुझे भीतर आने का रा ता
दे दया।
म अपनी जानी-पहचानी जगह पर जाकर बैठा तो मेरी िनगाह बरबस ही उस त वीर
पर टक गई, िजसम वो बंदक ू हाथ िलए िनशाना साधती दखाई दे रही थी।
“बैठ जाओ लीज!” म उसे चौखट से िहलता ना पाकर बोला। जवाब म उसने दरवाजे
को चौखट के साथ लगाया और मेरे सामने आकर बैठ गई।
“ या चाहते हो?”
“बताया तो तु हे फं साने आया !ं ” - कहकर मने आगे जोड़ा - “क ल के इ जाम म।”
“ या बकते हो, मने कसका क ल कया है।”
“हािलया क ल क बात क ं तो राजेश बंसल का, बेचारा अपने को ब त बड़ा
मा टरमाइं ड समझता था। नह जानता था क वाले भी काितल हो सकते ह। फर वो
कोई अके ला अ ल का अंधा नह था, आिखर बाली और िनहा रका भी तो तु हारे िशकार
बने थे। सच पूछो तो सबसे बड़ा अ ल का अंधा तो म था, जो तुमसे बार-बार िमलने के
बाद भी मेरे मन म एक पल को भी ये याल नह आया क ये सब कया-धरा तु हारा भी
हो सकता है।”
“म कसी राजेश बंसल को नह जानती।”
“तु हारा मतलब है िबना जाने बूझे ही उसे मौत के घाट उतार दया तुमने।”
“बक चुके।”
“अभी कहां, अभी तो बस शु आत भर क है।”
“ठीक है बकते रहो!” - वो पूरी लापरवाही से बोली - “अब तु ह मुंह लगा ही िलया है
तो झेलना तो पड़ेगा ही।”
“यािन तु ह मेरी बात से इ फ़ाक नह है।”
“ या कहने तु हारे ! तु हारी बात से इ फ़ाक जािहर क ं तो या जाकर खुद को
पुिलस के हवाले कर दू।ं उस जुम के िलए जो मने कया ही नह , िजसके बारे म सोचने से
भी मेरा दल दहलता है।”
“ऐसा होना तो नह चािहए आिखर अभी-अभी तुम बंसल का क ल करके वािपस लौटी
हो, िलहाजा दल तो तु हारा प थर जैसा होना चािहए।”
“तुम बाज नह आओगे तो मजबूरन तु ह गेट आउट कहना पड़ेगा।”
“मुझे तो बोल सकती हो, मगर पुिलस को कै से बोलोगी, जो घटना थल से बरामद ए
तु हारे मोबाइल के ज रए बस तुम तक प च ं ती ही होगी।”
वो एक फकरा सुनते ही उसक पहले से ही ब हवास सूरत यूं दखाई देने लगी, जैसे
बैठे-बैठे ही उसका दम िनकल गया हो।
“तो म पुिलस को फोन क ं ?”

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“मने उसका क ल नह कया, सच पूछो तो जो नाम तुम ले रहे हो, म उसे जानती तक
नह ।”
“ फर तो ज र वहां तुम कसी और से िमलने गई होगी, नह ?”
“हां, मगर वहां प च
ं कर जब मुझे लैट के भीतर से बहता खून दखाई दया तो म उ टे
पांव भाग खड़ी ई। मेरी घंटी बजाने तक क िह मत नह ई। इसिलए अगर तुम ये कहते
हो क मेरा मोबाइल लैट के भीतर से बरामद आ है तो म क ग ं ी क तुम एक नंबर के
झूठे हो। य क िजस जगह मने कदम नह रखा वहां मेरा मोबाइल िमलने का कोई
मतलब ही नह बनता।” - इस बार वो दृढ़ वर म बोली - “और सबसे अहम बात ये है क
वहां म िनहा रका के वाय ड मुकेश गु ा से िमलने गई थी, िजसका क वो लैट था। ना
क कसी राजेश बंसल से। इसिलए अगर वहां सचमुच कसी का क ल आ है तो वो मुकेश
गु ा का आ होगा।”
“बात को जरा तरक ब से समझने दो, तुम कहती हो क वहां मुकेश गु ा से िमलने गई
थ । जब क ये बात जािहर हो चुक है क वो राजेश बंसल का लैट था और भीतर से
बरामद लाश भी उसी क थी। ऐसे म वहां तु हारी मुलाकात मुकेश से कै से हो सकती थी।”
“म नह जानती उसने मुझे फोन पर वही पता नोट करवाया था।”
“िमलना य चाहता था वो तुमसे?”
“कहता था अगर म उसक थोड़ी सी मदद क ं तो वो िनहा रका के क ल से पदा उठा
सकता था।”
“अगर ऐसा था तो वो खुद तुमसे िमलने य नह आ गया, तु ह अपने पास य
बुलाया?”
“कहता था शाम को उसे बाली के लैट म कु छ ामा करना था िजससे काितल को रं गे
हाथ पकड़ा जा सकता था। इसिलए उसका मेरी िब डंग के आस-पास भी फटकना उसक
योजना को चौपट कर सकता था।”
“कमाल है, कम से कम कोई ऐसा झूठ तो बोलो िजसपर ऐतबार कया जा सके , यूं बे
िसर-पैर क उड़ाओगी तो कै से चलेगा।”
“तुम समझते हो म झूठ बोल रही ।ं ” वो तमककर बोली।
“सवाल ये नह है वीट-हॉट क म या समझता ।ं सवाल तो ये है क तु हारी ये
कहानी सुनकर पुिलस या समझेगी।”
“ या समझेगी?”
“कु छ नह , बस तु हे उठाकर हवालात म डाल देगी, जहां तुम गा-गा कर अपनी करतूत
बयान करती फरोगी।”
“म सािबत कर सकती ं क म वहां मुकेश गु ा के बुलावे पर गई थी।”
“करो लीज!”
जवाब म उसने अपने पस से एक कागज का टु कड़ा िनकाला, िजसपर मुकेश गु ा
िलखकर उसके आगे बंसल के लैट का पता और एक लडलाइन नंबर िलखा आ था।
मुझसे मोबाइल मांगकर उसने वो नंबर डॉयल कया और मोबाइल को पीकर पर लगा

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दया।
फौरन संपक आ।
“हैलो।”
“हैलो, कौन?” उधर से पूछा गया।
“मुकेश! म मीता बोल रही ,ं मीता स सेना।”
“हां बोलो या बात है?” दूसरी तरफ से मुझे एक दबी-दबी सी कं तु जानी-पहचानी
आवाज सुनाई दी। मने फौरन मोबाइल उसके हाथ से छीनकर कॉल िड कनै ट कर दया।
“ये या हरकत ई?” वो भड़कती ई बोली।
“िच लाओ मत! तु हारी जानकारी के िलए बता दूं क दूसरी तरफ से कॉल अटड करने
वाला मुकेश गु ा नह था। बि क एसआई नरे श चौहान था िजसे म अभी पीछे बंसल के
लैट पर इं वेि टगेशन करता छोड़कर आया ।ं ”
“ये कै से हो सकता है।”
“अगर तु हारे कये नह हो रहा है तो समझो कसी ने तु ह बंसल क ह या म फं साने
क पूरी-पूरी कोिशश क है। फर भी अगर तुम अपनी तस ली करना चाहो तो मुकेश का
नंबर मेरे पास है, उससे बात करके देख लो।”
वो तस ली कये िबना नह मानी। जैसा क होना ही था, मुकेश ने उसे फोन कया होने
से ना िसफ इं कार कर दया बि क ये भी बता दया उसे िनहा रका क कसी मीता नाम
क सहेली क याद तक नह है।
“हो गई तस ली।”
उसने खामोशी से िसर िहलाकर हामी भरी।
“अब तु ह एहसास है क तुम कतनी बड़ी मुसीबत म फं सने वाली हो।”
“नह , मुझे फर भी उसका काितल नह ठहराया जा सकता।”
“ य ?”
“ य क दरवाजा भीतर से बंद था, ऐसे म अगर उसका क ल मने कया था तो म
य कर वहां से बाहर िनकलने म कामयाब ई।”
“बड़ी देर से सूझी ये बात।”
“जवाब दो, बाहर िनकलकर म उसके लैट का दरवाजा भीतर से कै से बंद कर सकती
थी?”
“उसी तरह जैसे काितल ने कया होगा, बस पुिलस को इस का जवाब िमलने क
देर है, वो लोग फौरन तुमपर चढ़ दौड़गे।”
“मान लो अगर ऐसा हो जाता है, तो या वे लोग मुझे िगर तार करने के बाद यहां क
तलाशी भी ले सकते ह।”
“ज र लगे, मगर तलाशी से तुम य डर रही हो, ऐसा या िछपा रखा है तुमने अपने
लैट म।”
“कु छ नह !” - वो जबरन मु कराई - “यूंही पूछ िलया।”
“यूंही तो नह पूछा! तु हारी सूरत पर साफ िलखा दखाई दे रहा है क तलाशी क

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बात सुनकर तु हारे छ े छू ट गये ह।”
“िव ांत!” - उसका वर अचानक ही भरा सा गया, वो अपनी जगह से उठी और कसी
छोटे ब े क तरह मेरी गोद म चढ़कर गु छम-गु छा होकर मुझसे िलपट गई - “ लीज
मुझे बचा लो।” - उसका शरीर जोर से कांपा, आगे के श द िसस कय म बदल गये।
म िवत ए िबना नह रह सका। मेरे दल म एक क सी उठी, म उसे अपनी बाह के
घेरे म लेकर उसक पीठ सहलाने लगा।
सच कहता ं साहबान! ये एकदम नया एहसास था मेरे िलए। वो मेरी बाह म थी,
उसके बदन का पोर-पोर मुझसे िलपटा आ था मगर मेरे अरमान नह मचले। हर ण
उसक पकड़ मेरे बदन पर कसती जा रही थी मगर उस घड़ी मेरे मन म एक ण को भी
वािहयात याल नह आए। उसक इस घड़ी क हालत पर मुझे या तो तरस आ रहा था,
या फर दुलार आ रहा था। ये वैसा ही एहसास था जो कसी डरे -सहम मासूम ब े को
देखकर अ सर हमारे दल म जाग उठता है।
“शांत हो जाओ, संभालो अपने आपको!” - म उसे पुचकारता आ बोला - “कु छ नह
होने वाला तु ह! जब तुमने कु छ कया ही नह है तो डर य रही हो।”
“मने कु छ नह कया, सच कहती ं कु छ नह कया मने!” - वो िहच कयां लेकर रो
पड़ी - “ लीज मुझे बचा लो, म जेल नह जाना चाहती।”
उसक बात से इतना तो मुझे यक न हो गया क ज र कोई गंभीर बात थी जो वो
जुबान पर नह ला पा रही थी। उसक ये हालत महज घटना थल पर उसक िविजट क
वजह से नह ई हो सकती थी। असल बात यक नन कु छ और थी िजसक वजह से उसे
जेल जाने का खौफ सता रहा था।
तो या वो काितल थी?
मेरा मन नह माना।
मने जबरन उसे अपनी गोद से नीचे उतारा और कचन से पानी का िगलास लाकर
उसके हाथ म थमा दया।
िगलास वो एक सांस म खाली कर गई।
“अब बताओ कस बात का डर सता रहा है तु हे? ऐसा कौन सा गुनाह कया है तुमने
िजसक वजह से तुम जेल जा सकती हो।”
“मने नह कया, बाई गॉड मने कु छ नह कया।”
“शटअप!” - म उसे डांटता आ बोला - “साफ-साफ बताओ या बात है? य क
तु हारे पास व िब कु ल नह है, पुिलस कभी भी यहां प च ं सकती है।”
“यहां...यहां...!” - वो फट सी पड़ी - “करोड़ पये पड़े ह।”
म सकपका सा गया।
“कहां पड़े ह?”
“पलंग के बॉ स म, अभी तुमने बेल बजाई तो डरकर मने िछपा दया।”
“पूरी बात बताओ, और जरा ज दी-ज दी अपनी जुबान चलाओ।”
“आधा घंटा पहले जब म कालका जी से वािपस लौटी तो मुझे लैट के भीतर एक बड़ा

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सा बोरा रखा दखाई दया। िजसका मुंह र सी से बंधा आ था। मने जब उसे खोलकर
देखा तो हे भगवान! हे भगवान! इतनी दौलत तो मने जंदगी म कभी नह देखी थी।”
“सारे नोट डॉलर म थे।”
“सारे का मुझे पता नह मगर िजतने दखाई दे रहे थे वो डॉलर म ही थे, ले कन तु ह
कै से पता?”
“वो एक लंबी कहानी है, अभी तुम मेन लाइन पर ही रहो, या उस बोरे म पय के
अलावा भी कु छ था।”
“एक काले रं ग का ओवरकोट था, जो नोट म ही दबा पड़ा था।”
“तुमने उसी व पुिलस को खबर य नह क ?”
“म...म.. अब कर देती ।ं ”
“उस व य नह कया।”
“म लालच म आ गई थी। इतने सारे पये, ओ माई गॉड! ओ माई गॉड!”
“एक पल को भी ये याल जहन म नह आया क इतनी सारी दौलत कोई यूं ही तु हारे
लैट म य रख गया।”
“उस व तो नह ही आया समझो, म तो बस नोट क चकाच ध म खो सी गई थी।”
“भले ही जान चली जाती। भले ही जंदगी भर के िलए जेल हो जाती।”
“अब म या क ।ं ”
“क ं नह करो, अगर दौलत का नशा उतर गया हो तो वो बोरा िनकालकर यहां
लाओ।”
“तुम मेरी मदद करोगे न िव ांत, लीज!”
“जािहर है क ं गा, तभी तो पुिलस को कॉल करने क बजाय तु हारे साथ म था फोड़
रहा ।ं ”
जवाब म वो भीतर गई और एक बोरा घसीटती ई वहां ले आई।
“तमाम पये इसी म ह?”
वो िहच कचाई।
“ओह कमऑन! ये कोई व है झूठ बोलने का।”
जवाब म वो कचन म जाकर वहां रखे िड बे टटोलने लगी। म इं तजार करने लगा।
थोड़ी देर बाद जब वो वािपस लौटी तो उसके हाथ म सौ-सौ डॉलस क दस गि यां
मौजूद थ ।
मने हैरानी से उसक ओर देखा।
“सॉरी!”
“अब ये मुक मल रकम है।”
उसने िसर िहलाकर हामी भर दी।
मने वो पये फौरन बोरे म डालकर पहले क तरह उसका मुंह र सी से बांध दया।
“अब फटाफट अपना िलया दु त करो, हम इस बोरे को इसी व कह ठकाने
लगाकर आना है।”

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“इतने सारे नोट यूंही फक दोगे।”
“नह यूं ही नह फक दगे मैडम!” - एक तीसरा वर गूंजा और दरवाजा खोलकर नरे श
चौहान ने भीतर कदम रखा - “यूं ही फक दगे तो आपका गुनाह कै से सािबत कर पायगे।”
म हकबकाकर बस उसे देखता भर रह गया।
उसके पीछे-पीछे दो और पुिलिसये लैट म दािखल ए और चौहान के इशारे पर फौरन
वहां क तलाशी लेने म जुट गये।
“मैडम आपको राजेश बंसल के क ल के जुम म िगर तार कया जाता है।”
“चौहान साहब एक िमनट मेरी बात सुनो।”
“नह सुननी मुझे तेरी कोई भी बात! म अभी तक ये सोचकर हैरान ं क तू काितल
तक प च ं कर भी उसक तरफ से ना िसफ पीठ फे रकर बैठ गया बि क उसके िखलाफ
इकलौते सबूत को भी ठकाने लगाने जा रहा था। मेरा नह तो कम से कम अपने लाइं ट
का ही कोई िलहाज करता गोखले, िजसने अपनी बीवी के काितल का पता लगाने के िलए
तेरी मोटी फ स भरी होगी।”
“ये काितल नह है।”
“इसका फै सला अदालत करे गी ना क एक ाइवेट िडटेि टव!” - कहकर वो मीता क
तरफ घूमा - “मैडम आपको इसी व हमारे साथ चलना है। अगर कोई ऐतराज है तो
बताइए ता क म लेडी कां टेबल को बुलाए जाने का इं तजाम कर सकूँ ।”
मीता ने बड़े ही कातर भाव से मेरी तरफ देखा, म भला या कर सकता था। चौहान का
यही एहसान या कम था क वो मीता के साथ-साथ मुझपर भी कोई चाज नह लगा रहा
था। जो क उसक जगह कोई दूसरा पुिलिसया होता तो यक नन लगाने से बाज नह
आता। इसिलए मने उस घड़ी खामोश रहने म ही अपनी भलाई समझी।
आधे घंटे बाद पुिलस पाट मीता स सेना को अपने साथ लेकर वहां से िवदा हो गई।
दखावे के िलए म भी उनके सामने अपनी कार म जा बैठा। मगर कार टाट करने क
बजाय एक िसगरे ट सुलगाकर इ मीनान से कश लगाता आ, मौजूदा घटना म पर दमाग
दौड़ाने लगा।
मीता को काितल सािबत करने के िलए पुिलस के पास पया माण मौजूद थे। िसवाय
एक बात के क अगर उसने बंसल का क ल कया था तो वो उसके लैट का दरवाजा भीतर
से बंद करने म कै से कामयाब ई?
मगर वो कोई इतनी बड़ी बात नह थी, िजसका जवाब पुिलस ना हािसल कर पाती।
या फर उ ह पहले ही पता लग चुका था क काितल य कर भीतर क तरफ से दरवाजा
बंद करने म कामयाब आ था।
ऐसे म मीता स सेना का भिव य मुझे अंधकारमय ही दखाई दे रहा था। उसके लैट से
बरामद करोड़ पये ही क ल का मो टव बन जाने वाले थे। साफ जािहर हो रहा था क
वो पये उसने बंसल के क ल के बाद उसके लैट से चुराये थे।
तभी मुझे एक बात सूझी।
म कार से िनकलकर गाड के के िबन क ओर बढ़ा। मुझे वहां प च ं ता देखकर गाड अपने

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खोखे से बाहर िनकल आया। वो कोई नया गाड था िजसे मने अपने िपछले कसी फे रे म
नह देखा था।
“नाम या है तु हारा?” म रौबदार लहजे म बोला।
“जी दयाशंकर।”
“यहां कब से काम कर रहे हो?”
“एक साल से ऊपर हो गया।”
“ फर तो यहां रहने वाल से खूब वा कफ होगे दयाशंकर, है न!”
“जी हां, सबको जानता ।ं ” वो बड़े ही गव से बोला।
“गुड! अब जरा याद करके बताओ क अभी एक घंटा पहले जब मीता मैडम कह बाहर
से लौटी थ , तो तुमने देखा था उ ह आते ए।”
“जी हां देखा था।”
“वो यहां प च ं ी कै से थ ? मेरा मतलब है उ ह कोई छोड़कर गया था या फर वो टै सी
से आई थ ।”
“ऑटो से आई थ ।”
“तब उनके हाथ म एक बड़ा सा, खूब फू ला आ भारी बोरा था, वो तुमने उनके लैट
तक प च ं ाया था?”
“नह साहब, उनके पास लेिडज पस के अलावा और कोई सामान नह था।”
“प बात!”
“एकदम प साहब।”
“उनसे पहले कोई यहां प च ं ा हो िजसके पास कोई भारी सामान रहा हो।”
“नह साहब, आठ बजे के बाद तो ऐसा सामान लेकर यहां कोई नह आया। उससे पहले
आया हो तो मुझे नह पता।”
“अ छा अब जरा याद करके बताओ क तु हारे ूटी पर आने के बाद और मीता मैडम
के यहां प चं ने के बीच कौन-कौन यहां प च ं ा था?”
वो याद करने लगा।
“सवा आठ के करीब, तीसरे लोर वाले शमा जी आए थे। फर दस िमनट बाद सुनीता
मैडम का भाई यहां प च ं ा था। उसके बाद तो साहब! बस मीता मैडम ही आई थ ।”
“यहां प च ं ने का कोई दूसरा रा ता भी है! मेरा मतलब है या तु हारे के िबन के सामने
से गुजरे िबना, दूसरी मंिजल तक प च ं ा जा सकता है।”
“आजकल तो प च ं ा जा सकता है, य क िब डंग के पीछे वाली दीवार टू टी ई है,
कोई उधर से दािखल होकर ऊपर चला जाए तो मुझे कै से दखाई देगा?”
“तुम बाली साहब से तो वा कफ रहे होगे।”
“हां साहब ब त भले आदमी थे, जाने कसने उनक जान ले ली। बेचारे बाली साहब!
अभी उनक उमर ही या थी।”
“ठीक कहते हो दयाशंकर, अब जरा सोचकर बताओ क जब वो जंदा थे तो िब डंग म
उनक कससे सबसे अ छी बनती थी।”

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“मेरे याल से तो यहां उनक कसी से दुआ सलाम भी नह थी। बड़े ‘ रज़व’ टाईप के
आदमी थे अपने बाली साहब। कसी को मुंह नह लगाते थे। वैसे भी वो अ सर रात को ही
घर लौटते थे, इसिलए कसी से िमलना-जुलना नह हो पाता था।”
“मीता मैडम से तो िमलना-जुलना होता ही होगा, आिखर दोन का लैट एक ही लोर
पर था।”
“मने तो कभी उन दोन को बात करते नह देखा साहब! बाक क कह नह सकता,
या पता चलता है।”
“बाहर से कोई उनसे िमलने आता हो।”
“िमलने तो बाहर से भी कोई नह आता था, मगर कभी कभार एक खूब सुंदर सी मैम
साहब ज र उनके साथ आ जाती थ और घंटा दो घंटा उनके लैट म ककर वािपस
चली जाती थ ।”
ज र वो सोनाली क बात कर रहा था।
“अब बाली साहब के लैट क पोजीशन या है?”
“खाली ही पड़ा है साहब, आप लोग चाबी हम दे गये थे, तब से तो कोई चाबी मांगने
आया नह । ले कन कल उनक बहन ने कु छ सामान ज र यहां भेजवाया था।”
मेरे कान खड़े हो गये।
“नाम या था?” य तः मने पूछा।
“नाम तो मुझे नह पता, य क उनसे मेरी बातचीत फोन पर ई थी जो क सामान के
साथ यहां प च ं े लड़के ने अपने मोबाइल से करवाया था।”
“बात समझ म नह आ रही, जरा खुलकर बताओ तो कु छ प ले पड़े।”
“वो आ यूं था साहब, क कल रात नौ बजे के करीब एक लड़का दो बड़े-बड़े ग े के
िड बे लेकर यहां आया और बोला क बाली साहब के लैट म रखना है। मने उसे बताया
भी क बाली साहब तो अब रहे नह , तो वो कहने लगा क म सामान उनके लैट म रखवा
दू।ं तब मने उससे पूछा क वो सामान भेजा कसने था? जवाब म उसने अपने मोबाइल पर
मेरी बाली साहब क बहन से बात करवा दी। उ ह ने बताया क वो एक-दो दन म यहां
रहने के िलए आने वाली ह, इसिलए थोड़ा-थोड़ा करके अपना सामान यहां भेजगी, िजसे म
बाली साहब के लैट म रखवा दू।ं चाबी तो मेरे पास थी ही मने जाकर दरवाजा खोल
दया। उसने सामान भीतर रखा और चला गया।”
“वो लड़का दोबारा यहां आया?”
“अभी तक तो नह आया साहब, हो सकता है कल आए।”
“वो यहां तक प च ं ा कै से था?”
“ऑटो से आया था।”
“ऑटो का नंबर तो तुमने ज र देखा होगा।”
“हां देखा था और उनके जाने के बाद नोट करके रख भी िलया था।” कहकर उसने
अपनी जेब से एक छोटी सी डायरी बरामद क और कु छ प े पलटने के बाद खुली ई
डायरी मेरे सामने कर दी। मने अपने मोबाइल से उस पेज का एक फोटो ि लक कया और

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डायरी उसे वािपस कर दी।
“बाली साहब के लैट क चाबी अब कहां है?”
“मेरे पास है, के िबन म रखी है।”
“चाबी लेकर मेरे साथ उनके लैट तक चलो।”
“अभी लीिजए।” कहकर वो भीतर से चाबी िनकाल लाया।
हम दोन सी ढ़यां चढ़कर ऊपर प च ं ।े गाड ने दरवाजा खोल दया, मगर मेरे साथ
भीतर आने क कोिशश नह क । मुझे ा ग म म सोफे के पीछे दो काटन बॉ स रखे
दखाई दये। दोन के मुंह खुले ए थे। नजदीक प च ं कर देखने पर पता चला क दोन ही
बॉ स खाली थे।
हालां क कोई उ मीद नह थी, इसके बावजूद मने उसम समा सकने वाली चीज क
तलाश म पूरे लैट को खंगाल डाला। कह से कोई कािबलेिज व तु बरामद नह ई।
लौटते व मेरी िनगाह सटर टेबल पर पड़ी तो वहां मुझे एक नोट पैड रखा दखाई दया
िजसपर कु छ आड़ी-ितरछी लक र उके री गई थ ।
उन लक र का कोई मतलब म नह िनकाल सका। यूं लगता था जैसे कसी ने बे यानी
म वहां बैठे-बैठे नोटपैड पर पेन चलाना शु कर दया हो। अगर उनका कोई खास मतलब
था तो उस घड़ी मेरे प ले नह पड़ रहा था।
अलब ा मुझे बार-बार यूं महसूस हो रहा था जैसे हाल ही म कह और भी वैसी लक र
म देख चुका था। मगर कहां देखा था, ये लाख कोिशश के बाद भी मुझे याद नह आया।
आिखरकार म लैट से बाहर िनकल आया।
हम दोन नीचे प च ं ।े
मने दयाशंकर को अपना मोबाइल नंबर नोट करवाकर स त लहजे म िहदायत दी क
दोबारा उस लड़के के नजर आने पर उसने फौरन मुझे कॉल करनी है, और मेरे आने तक हर
हाल म उसे यह रोककर रखना है।
इसके बाद म अपनी कार म सवार हो गया।
िब डंग से बाहर िनकलकर मने शीला को फोन कया।
“गुड इव नंग हडसम वाय!” वो खनकते वर म बोली।
म िनहाल हो गया।
“गुड इव नंग! कहां है तू?”
“अपने लैट म, वाय ड के साथ म ती कर रही ।ं ”
“वो तू बाद म कर लेना, पहले मेरी बात यान से सुन।”
“बोलो।”
“अभी म तुझे एक फोटो सड कर रहा ,ं उसम एक...।”
“.....लड़क है!” - वो मेरी बात काटती ई बोली - “िजसका तु हारे िलए र ता आया
है, और अब मुझे उसके चाल-चलन के बारे म पता लगाना है। ये पता लगाना है क कह
वो भी तु हारी ही तरह दलफक तबीयत क तो नह है। अगर ऐसा है तो बेकार ही
मगजमारी कर रहे हो, म तो कहती ं क चुपचाप शादी के िलए हामी भर दो। वो कतनी

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भी बड़ी दलफक य न हो, तु हारे मुकाबले तो सती-सािव ी ही होगी।”
“पूरी बात नह सुनती, पहले ही कतरनी चलाने लगती है।”
“यािन शादी वाली कोई बात नह है।”
“नह है, उस फोटो म एक ऑटो का नंबर है! अब तूने करना ये है क अपने मोबाइल के
ले टोर म जाकर मोटर हीकल का रिज ेशन चेक करना वाला एप डाउनलोड करना है
और उसके ज रए तूने ये जानना है क वो ऑटो कसके नाम पर रिज टर है। उसके बाद
तूने उस ाइवर से िमलना है जो कल रात नौ बजे के करीब एक लड़के को महेश बाली
वाली िब डंग म ना िसफ लेकर गया था बि क वापसी म उसे कह छोड़कर भी आया था।
उसक सवारी क अहम पहचान ये है क उसके पास काटन के दो बड़े बॉ सेज थे, जो वो
बाली के लैट म रखकर वािपस लौट गया था। ाइवर से िमलकर तूने हर हाल म ये
जानकर रहना है क वो सवारी उसने कहां से उठाई थी और वापसी म उसे कहां ॉप
कया था, कर लेगी ये काम?”
“हां कर लूंगी।”
“गुड! अब फोन रख और फटाफट इस काम पर लग जा।”
“अभी?”
“और या महीने दो महीने बाद करे गी।”
“शरम करो रात के पौने दस बज रहे ह।”
“वो तो रोज बजते ह उसका या? जैसे ही नतीजा िनकले मुझे फौरन खबर करना।”
कहकर मने कॉल िड कनै ट कर दी।
वहां से िनकलकर म एक बार फर डीडीए लै स के इलाके म प च ं ा। बंसल के लैट
वाली इमारत के सामने कार खड़ी करके म बाहर िनकला।
सबसे पहले मने इस बात क तस ली क क कोई उस िब डंग को वॉच नह कर रहा
था। त प ात म उसके लैट के सामने जा खड़ा आ। एक बार सावधानी पूवक दाएं-बाएं
देखने के बाद मने अपनी जेब से चािबय का एक गु छा िनकाला और एक-एक करके कुं डे
म झूलते छोटे से ताले म लगाकर दरवाजा खोलने क कोिशश करने लगा।
अपनी इस कोिशश म मने चौदह चािबयां ाई कर डाल मगर ताला नह खुला। जो क
कोई बड़ी बात नह थी। यूं अगर थोड़ी-ब त कोिशश से ताले अपना मुंह फाड़ने लग तो
उनके होने या ना होने का मतलब ही या रह जाता। ये जुदा बात थी क अगर म वो ताला
खोलने म कामयाब हो जाता तो खुद को शाबािसयां देने से बाज नह आता।
बहरहाल अब ये काम पुिलस क मदद के िबना हो पाना संभव नह था। और वो कौन
सा आसान काम था?
लैट क चाबी या तो नरे श चौहान के पास थी, या फर एसआई भैरव संह के पास,
िजसके थाने क जद म ये इलाका आता था। नरे श चौहान मुझसे पहले ही खार खाये बैठा
था और भैरव संह से मेरा कोई मुलाहजा नह था। ऐसे म अगर म एसीपी पांडे क शरण
म जाता तो कोई बड़ी बात नह थी क चौहान ही उसे कह सुनाता क पीछे मीता स सेना
के लैट पर म या गुल िखलाने वाला था।

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मुसीबत ये थी क लैट म घुसे िबना ये जान पाना नामुम कन था क क ल के बाद
ह यारा लैट को भीतर क तरफ से बंद करने म कै से कामयाब आ था।
तभी मुझे सी ढ़य पर आहट सुनाई दी। यक नन कोई ऊपर आ रहा था। हालां क वो
कोई भी हो सकता था मगर मेरे जहन म जो पहला याल आया वो था, पुिलस!”
मने हड़बड़ाकर अगल-बगल कोई ओट तलाशने क कोिशश क फर ऊपर को जाती
सी ढ़यां चढ़ने लगा। जो कु छ इस तरह से बनी ई थ क एक मंिजल चढ़ने के िलए दो बार
टन लेना पड़ता था। म ऊपरी दहाने पर प च ं कर ठठक गया और ती ा करने लगा।
अगले ही पल सािहल भगत वहां गट आ और बंसल के लैट का दरवाजा खोलकर
भीतर दािखल हो गया। इस व मौकायेवारदात पर उसक मौजूदगी मेरे होश उड़ाए दे
रही थी। जाने कतने बुरे-बुरे याल मेरे दमाग म द तक देने लगे। उससे भी अहम बात ये
थी क उसके पास बंसल के लैट क चाबी मौजूद थी।
उसक बेगुनाही से मेरा िव ास डगमगाने लगा। ज र वो अपने िखलाफ कोई सबूत
िमटाने यहां प चं ा था या फर कोई नया सबूत लांट करना चाहता था।
कसके िखलाफ?
मीता स सेना के िखलाफ! - मेरे दल से आवाज आई - जो क पहले से ही िसर से पांव
तक क ल के इ जाम म फं सी ई थी।‘
अगर ऐसा नह था तो ज र वो मौकायेवारदात से कोई ऐसा िच ह िमटाने क फराक
म था, िजसके ज रए देर-सबेर पुिलस ये सािबत कर सकती थी, क क ल के बाद ह यारे ने
लैट का दरवाजा भीतर से कै से बंद कया था।
वो इकलौती ऐसी बात थी जो अगर सािबत नह हो पाती तो पुिलस को मजबूरन ये
वीकार करना पड़ता क बंसल ने आ मह या क थी। ऐसे म सोनाली भगत, महेश बाली
और िनहा रका ीव स के क ल का इ जाम राजेश बंसल के िसर आता और उसक मौत
हो चुक होने क वजह से पुिलस इस के स को वह लोज कर देती। नतीजा ये होता क
असली ह यारा हमेशा के िलए आजाद हो जाता।
इस याल ने मुझे आंदोिलत करके रख दया।
म सी ढ़यां उतरकर नीचे प च ं ा और दरवाजे के एकदम सामने जा खड़ा आ। आगे म
कॉलबेल पुश करने ही जा रहा था तभी भीतर से आती अजीब सी खर-खर क आवाज
सुनकर जहां का तहां ठठक गया और दरवाजे से कान सटाकर खड़ा हो गया। वो आवाज
फर रह-रहकर सुनाई देने लगी। यूं लग रहा था जैसे दरवाजे को कसी चीज से रगड़ा जा
रहा हो।
अब मेरा धैय जवाब दे गया! मने कॉलबेल पर उं गली रख दी।
कु छ देर बाद दरवाजा थोड़ा सा खुला।
“ओह! तुम हो!” - मुझपर िनगाह पड़ते ही उसके चेहरे पर राहत के भाव आए - “यहां
या रहे हो?”
“यही सवाल तो म भी करना चाहता ं बॉस क रात के दस बजे तुम मौकायेवारदात
पर या कर रहे हो।”

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“कु छ फाइल लेने आया था, जो क िपछले दन वकलोड यादा होने क वजह से बंसल
अपने साथ घर ले आया था।”
“और चाबी के बारे म या कहते हो?”
“उस बारे म या क ं िसवाय इसके क यहां क एक चाबी बंसल हमेशा ऑ फस क
अपनी दराज म रखता था।”
“अभी भीतर से मने खर-खर क जो आवाज सुनी थी वो ज र फाइल से िनकली
होगी, नह ?”
“मने तो नह सुनी, ज र तेरे कान बज रहे ह गे।”
“हो सकता है, अब मुझे भीतर आने दो।”
“म जरा ज दी म ,ं तू फर कभी यहां का फे रा लगा लेना।”
“िलहाजा फाइल िमल ग तु ह।”
“हां तभी तो जा रहा ।ं ” कहकर उसने अपना दूसरा हाथ आगे करके मुझे फाइल का
नजारा करा दया।
“मुझे फर भी भीतर आना है।” कहकर मने दरवाजा लगभग जबरन धके लकर खोला
और भीतर दािखल हो गया।
तीखी िनगाह से मने हर कोना-खुदरा देख डाला मगर कोई नई बात मुझे दखाई नह
दी। तब म कचन म प च ं ा, संक गीला पड़ा था, मगर उससे भला या सािबत होता था।
वहां से िनकलकर मने बेड म और वॉश म का मुआयना कया, कह कोई अ यािशत
बात नजर नह आई।
म वािपस ा ग म म प च ं ा। खर-खर क आवाज य क दरवाजे के पास सुनाई दी
थी, इसिलए मने उसपर खास यान दया। मगर वहां भी कु छ दखाई नह दया।
तब मने दरवाजे क चटखनी म लगे एक-एक पच का मुआयना करना शु कया, मगर
कह से भी ऐसा नह लगा क उनके साथ कोई छेड़खानी क गई हो। पूवा ह से त मने
चटखनी को पकड़कर िहलाने-डु लाने क भरपूर कोिशश क मगर वो टस से मस नह ई।
आिखरकार म बेड म से एक टू ल ले आया और उसपर खड़े होकर दरवाजे के ऊपरी
िसरे का मुआयना करने लगा। वहां भी कोई खास बात नह दखाई दी, िसवाय इसके क
दरवाजे के ऊपरी िह से पर दो जगह रगड़ से बने िनशान दखाई दे रहे थे, जो क बाहरी
कनारे तक प च ँ रहे थे।
उन दोन िनशान का अगर कोई खास मतलब था तो वो मतलब इस व मेरी समझ
से बाहर था। म टू ल से नीचे उतरा और उसे दोबारा पहले वाली जगह पर रख आया।
“हो गई तस ली?” सािहल भगत ंग भरे लहजे म बोला।
“हां हो गई।”
“तो फर यहां से िनकल चल, इससे पहले क पुिलस यहां प च ं जाए।”
“ या कहने तु हारे , पहले डर नह लगा?”
“अब िनकल भी ले यहां से।” वो मेरी बात को अनसुना करके बोला।
त प ात हम दोन बंसल के लैट से िनकलकर बाहर प च ं े और अपनी-अपनी कार म

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सवार हो गये।
तभी शीला का फोन आ गया।
“कु छ पता चला?”
“हां तभी तो फोन कया है।”
“ या जाना?”
“ऑटो ाइवर का पता संगम िवहार का िनकला। इसिलए म कदरन ज दी वहां प च ं
गई। वहां प च ं कर पता चला क वो अभी घर नह लौटा था। तब मने उसक बीवी से
नंबर लेकर उसके मोबाइल पर फोन कया, तो उसने बताया क वो खास सवारी उसने
के जी माग से उठाई थी और वापसी म उसे महरौली के इलाके म छोड़कर आया था।
“महरौली म कहां?”
“वो कहता है कु तुब से थोड़ा आगे जाकर वो लड़का ऑटो से नीचे उतर गया था। उसके
बाद वो कधर गया उसे नह मालूम, य क लड़के के उतरते ही उसे सवारी िमल गई थी,
िजसे लेकर वो वहां से चलता बना था।”
“ फर या फायदा आ इतनी भाग-दौड़ का।”
“यूं तो कु छ भी नह आ, मगर के जी माग पर िजस जगह से वो सवारी उठाने क बात
कहता है, वो जगह ऐन भगत इं ड ीज के ऑ फस के सामने है। अगर इस बात का कोई
मतलब िनकलता हो तो ठीक, वरना समझ लो क सारी कसरत बेकार सािबत ई।”
“ठीक है अब तू घर जाकर अपने वाय ड के साथ मजे कर।”
“वो तो उसी व नाराज होकर चला गया था।”
“तो नया वाय ड ढू ंढ ले, द ली शहर म या अकाल है मेरे जैसे हडसम बंद का।”
इससे पहले क वो मेरे हडसम होने पर िच ह लगाती, मने कॉल िड कनै ट कर दी।
मेरा लैट यहां से पास म ही था, इसिलए मने बाक क मगजमारी अगले दन के िलए
पो टपोन कर दी और अपने लैट क ओर ाईव करने लगा।
✠✠✠
अठाइस जनवरी 2018
आठ बजे के करीब म सोकर उठा।
उठते के साथ ही मने टीवी चलाकर उसपर यूज चैनल लगाया और रोजमरा के काम
म त हो गया। उस दौरान दुिनया भर क खबर मुझे सुनाई देती रह मगर कल रात ई
मीता स सेना क िगर तारी का कोई िज नह आया। ना ही सोनाली भगत क ह या से
संबंिधत कोई बात सुनने को िमली। तब मेरा यान अखबार क ओर गया मगर मीता
स सेना क िगर तारी क खबर मुझे वहां भी देखने को नह िमली।
आिखरकार तैयार होकर दस बजे के करीब मने अपना लैट छोड़ दया।
अब नरे श चौहान से मुलाकात मेरी मजबूरी बन चुक थी। इसिलए मन ही मन उसक
नाराजगी झेलने के िलए खुद को तैयार करता आ, म उससे िमलने के िलए चल पड़ा।
थाने प च ं कर पता चला क वो एसएचओ के कमरे म था। एसएचओ नदीम खान से
मेरी पुरानी वाक फयत थी। साथ ही थाने का तकरीबन सारा टॉफ मुझे पहचानता था

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इसिलए कसी ने मुझे उसके कमरे म जाने से रोकने क कोिशश नह क ।
भीतर प च ं कर मने पाया क दोन के बीच कसी खास स जे ट पर िड कशन चल रहा
था।
मने दोन से हाथ िमलाया और खान के इशारे पर एक िविजटर चेयर पर बैठ गया। कम
से कम हाथ िमलाते व चौहान के चेहरे पर मुझे ऐसा कोई भाव नह दखाई दया
िजससे लगता क वो मुझसे नाराज था।
“कहां रहता है भई आजकल!” - नदीम खान बोला - “ दखाई ही नह देता।”
जवाब म म बड़े ही िश भाव से हंसा।
“ कसी ज री काम से आया है।”
“है तो कु छ-कु छ ऐसा ही जनाब।”
“ या चाहता है?”
“मीता स सेना से एक मु तसर सी मुलाकात करा द तो बड़ी मेहरबानी होगी।”
त काल खान ने चौहान क तरफ देखा, “ या कहता है भई।”
“मुझे या कहना है जनाब!” - वो तिनक हड़बड़ा सा गया - “फै सला तो आपने करना
है।”
“मेरा मतलब है तुझे कोई ऐतराज तो नह , आिखर तू इस के स का इं वेि टगेशन
ऑ फसर है।”
“मुझे भला या ऐतराज हो सकता है।” - कहकर उसने मेरी तरफ देखा, फर बोला –
“चल भई तुझे िमलवा दूं तेरी सहेली से।”
“सहेली!” नदीम खान क भ ह उठ ।
“जी जनाब, आजकल दोन म इतनी गहरी छन रही है क अपना गोखले उसके िलए
जेल जाने तक को तैयार है।”
“ फर तो तुझे मुलिजम का खास याल रखना पड़ेगा।”
“वो तो जनाब म पहले से ही रख रहा ,ं तभी तो अब तक उससे पूछताछ भी नह क ,
सोचा पहले इसक इजाजत ले लूं।”
फर दोन का सि मिलत ठहाका गूंजा। म बस झपकर रह गया।
“चल भई।” कहकर चौहान कमरे से बाहर िनकला तो म उसके साथ हो िलया। वो मुझे
मीता स सेना के पास ले जाने क बजाय वो अपने कमरे म ले आया।
“बैठ भई।” - कहता आ वो अपनी चेयर पर पसर गया - “ या बात है, उखड़ा-उखड़ा
सा य दखाई दे रहा है।”
“चौहान साहब कल के िलए म...।”
“समझ ले म उस बात को भूल चुका !ं ” - वो मेरी बात काटकर बोला - “इसिलए अब
उसका िज बेमानी है।”
“शु या।”
“कॉफ पीयेगा।”
“िपलाओगे तो य नह पीऊंगा।”

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जवाब म कु छ कहने क बजाय उसने इं टरकॉम पर कसी को दो कॉफ लाने को बोल
दया।
“और बता कै सी चल रही है तेरी इं वे टीगेशन।”
“वैसी ही जैसे पहले चल रही थी, तुम चाहे इसे तरफदारी समझो मगर वो लड़क
काितल नह हो सकती।”
“अ छा! फर काितल कौन है?”
“ये अभी त तीश का मु ा है।”
“ठीक है तू काितल को लाकर मेरे सामने खड़ाकर और अपनी सहेली को ले जा।”
“वो मेरी सहेली नह है, पहले भी बताया था।”
“ठीक है तू काितल को लाकर मेरे सामने खड़ाकर और मीता स सेना को यहां से ले
जा।”
“तुम मजाक कर रहे हो।”
“हां मजाक कर रहा ।ं ” कहकर वो हंस पड़ा।
मने चैन क सांस ली।
तभी एक लड़का वहां कॉफ के दो कप रख गया।
मने िसगरे ट का पैकेट िनकालकर दो िसगरे ट सुलगाये और एक चौहान को थमा दया।
“अब बता या चाहता है?”
“बताया तो था।”
“मीता से मुलाकात के अलावा या चाहता है।”
“और तो कु छ नह चाहता, फलहाल!”
“तो फर मेरी बात यान से सुन! सुन और समझने क कोिशश कर! वो लड़क
गुनहगार है या नह वो एक जुदा मसला है। मगर हमारे पास उसके िखलाफ इतने ां स
एवीडस ह क अगर मने उसे आजाद कर दया तो मेरा डीसीपी ही मुझे लाइन हािजर कर
देगा।” - कहकर वो िसगरे ट का कश लेने को का - “मुझे तेरी काबिलयत और सूझ-बूझ
पर ना तो पहले कोई शक था और ना ही अब है। इसिलए अगर तू कहता है क वो बेगुनाह
है तो समझ ले मने मान िलया क वो बेगुनाह है। यही वजह है जो कल रात मने उसे
हवालात म रखने क बजाय एक लेडी कां टेबल के साथ उसके कमरे म सुलाया। उसके
िलए ब ढ़यां खाने का इं तजाम कया और भरपूर कोिशश क क उसे कसी बात क
तकलीफ नह होने पाए और आगे भी ये कोिशश तब तक जारी रहेगी, जब तक उसका
गुनाह मुहरबंद नह हो जाता, या फर असली काितल पकड़ा नह जाता, या समझा तू?”
“समझा तो कु छ-कु छ।”
“अभी आगे सुन, कल रात अगर म वहां अके ला प च ं ा होता तो बेशक तेरी बात
मानकर उसे आजाद छोड़ने का कोई रा ता िनकाल लेता, या फर तेरे साथ िमलकर वही
सबकु छ करता जो क तू करने जा रहा था। मगर उस घड़ी म अके ला नह था, मेरे साथ
महकम के दो लोग और थे, जो मेरे साथ गेट के बाहर खड़े तुम दोन के बीच का सारा
वातालाप सुन रहे थे। ऐसे म म अगर उसे िगर तार ना करता तो या करता?”

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“ठीक कहते हो।”
“तेरी उस करतूत के िखलाफ उ ह जुबान बंद रखने के िलए म कै से तैयार कर पाया ये
मेरा खुदा ही जानता है। वरना अब तक मीता स सेना के साथ-साथ तू भी पुिलस क
िहरासत म होता।”
“थ यू।”
“अब वो बात सुन जो अभी तक मेरे अलावा िसफ मेरे एक कलीग को पता है।” - कहकर
उसने िसगरे ट का एक लंबा कश िलया, फर बोला - “मुझे कल रात क , तेरे और तेरे
लाइं ट क बंसल के लैट वाली िविजट के बारे म पता है।”
सुनकर म हकबकाया सा उसक श ल देखने लगा।
“अब साफ-साफ बता, क तुम दोन रात के व मकतूल के लैट म या कर रहे थे।”
मने बताया, वहां क अपनी और सािहल भगत क िविजट को अ रशः बयान कर
डाला। उसे ये भी बता दया क सािहल क उस िविजट को लेकर मेरे दमाग म या चल
रहा था।
“अगर ऐसा था तो समझ ले क तूने और तेरे लाइं ट ने - भले ही दोन का मकसद जुदा
रहा हो सकता है - “बेकार ही इतनी जहमत उठाई। सािहल भगत क बाबत तो नह
कहता मगर तू तो ये बात मुझसे फोन पर भी िडसकस कर सकता था।”
“तु हारा मतलब है! तु ह पता है क ह यारे ने लैट का दरवाजा भीतर से कै से बंद
कया था।”
“नह भई, मुझे कै से पता होगा, म कोई िव ांत गोखले थोड़े ही ,ं िजसने अ लमंदी
वाले तमाम काम का टडर अपने नाम करवा रखा है।”
“सॉरी, कै से कया था।”
“ज र जानना चाहता है।”
“हां लीज!”
“ठीक है सुन, वो ब त मामूली क थी। बि क तफसील से सुन क वहां या घ टत
आ था।” - कहकर उसने िसगरे ट का आिखरी कश लेकर मेज पर रगड़ दया और बचे ए
िह से को ड टबीन म डालकर बताना शु कया - “वहां प च ं कर काितल ने सबसे पहले
रवा वर दखाकर बंसल को काबू म कया, इसके बाद उसने बंसल क लडलाइन से खुद
को मुकेश गु ा बताते ए मीता स सेना को फोन कया और आगे उसे वो प ी पढ़ाई जो
बाज रया मीता स सेना तू पहले से ही जानता है। इसके बाद काितल ने रवा वर क नाल
बंसल क कनपटी पर रखकर घोड़ा दबाया और रवा वर बंसल के हाथ म थमाकर उसक
मु ी बंद कर दी। इसके बाद काितल ने वहां क तलाशी ली और लैट म मौजूद सारा कै श
अपने क जे म कर िलया। अब बारी आई बाहर िनकलकर दरवाजा भीतर से बंद करने क !
काितल ने उसके िलए कसी महीन तार या मजबूत कं तु बेहद पतली र सी का इ तेमाल
कया। उसने दरवाजा बंद करने से पहले उस तार को चटखनी के हडल के नीचे से घुमाते
ए उसके दोन िसरे दरवाजे के ऊपर से बाहर क तरफ लटका दए। फर बाहर
िनकलकर उसने दरवाजे को चौखट के साथ लगाया और बाहर क तरफ लटक रहे तार के

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दोन िसर को एक साथ पकड़कर नीचे क ओर ख चा, िलहाजा पीछे तार म फं सी
चटखनी ऊपर क ओर िखसककर होल म जा फं सी। उसके बाद काितल ने तार का एक
िसरा पकड़कर उसे बाहर ख च िलया और वहां से चलता बना।”
“कमाल है, इतनी अनोखी तरक ब आजमाई थी ह यारे ने, इसके बावजूद तुमपर उसका
भेद खुल गया।”
“उसक वजह थी, जब मने ध ा दे-देकर दरवाजा जबरन खोला था तो कुं डी अपनी
जगह से उखड़ी नह थी, बि क अपने खांचे म ना फं सी होने क वजह से वो धीरे -धीरे नीचे
िखसककर खुद ही खुल गई थी। इसी बात ने मुझे हैरान कया था। आगे जब मने दरवाजे के
ऊपरी िह से का मुआयना कया तो उसपर दो बारीक लाइन बनी ई दखाई द जो प ले
के िपछले िसरे से होती ई बाहरी िसरे तक जा रही थ । वो लाइन ज र तार को ख चने
क वजह से बनी थ । आगे नतीजा दो म दो जोड़कर चार िनकालने जैसा था। मगर मुझे
तब तक तस ली नह ई जब तक क मने खुद उस तरह से दरवाजा बंद करके नह देख
िलया।”
“तु ह अ छी तरह से याद है क वो दोन लाईन दरवाजे के अगले और िपछले दोन
िसर पर थ ।”
“हां भई, यक न नह है तो अब चल के देख लेते ह, मगर तू उन लाइन के पीछे य
पड़ा है।”
“ य क कल रात मुझे िसफ बाहरी िह से पर बनी लाइन ही दखाई दी थ ।”
“तूने ठीक से नह देखा होगा।”
“म कु छ और कहना चाहता ।ं ”
“ या?”
“वो लाइन सािहल भगत ने िमटाई हो सकती ह। बि क कल रात वो मौकायेवारदात
पर प च ं ा ही इसीिलए था। मुझे लगता है जब मने खर-खर क आवाज सुनी थ तब वो
ज र रे गमाक या ऐसी ही कसी दूसरी चीज से रगड़कर उन लाइन को िमटाने क
कोिशश कर रहा था।”
“गोखले इसका मतलब जानता है न तू।”
“जानता ं तभी तो मेरा दल िहले जा रहा है। य क उन लाइन को िमटाने म िसफ
और िसफ काितल क ही दलच पी हो सकती है।”
“एक नंबर का वािहयात आदमी है तू! आज अगर तेरी सहेली नह फं सी होती तो तू ये
बात कभी कबूल करके राजी नह होता क काितल सािहल भगत हो सकता है।”
“ कतनी बार क ं क....।”
“रहने दे!” - वो हंसता आ बोला - “मुझे मालूम है, वो तेरी सहेली नह है।”
तभी एक िसपाही वहां प च ं ा, “डीसीपी साहब आये ह।”
“ या?” चौहान हड़बड़ाया।
“खान साहब ने आप दोन को बुलाया है।”
“दोन को! तूने ठीक से तो सुना था न।”

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“हां उ ह ने कहा क चौहान साहब के साथ एक साहब और ह गे उ ह भी बुला लाना।”
“और कौन है साहब के साथ?”
“एसीपी पांडे साहब और सािहल भगत, साथ म एक श स और भी है जो कोई वक ल
मालूम पड़ता है।”
“कमाल है!”
“नह वो तो आज छु ी पर है।” िसपाही बोला।
चौहान ने हैरानी से उसक ओर देखा फर बोला, “ठीक है आते ह।”
िसपाही चुपचाप बाहर चला गया।
“डीसीपी साहब के साथ सािहल भगत और वक ल क मौजूदगी हैरान कर देने वाली है,
ज र कोई खास बात हो गयी दखती है।”
“खास ही होगी, वरना मुझे हािजर होने को य कहा जाता।”
“ठीक कहता है, चल देखते ह या माजरा है?”
हम दोन एसएचओ के कमरे म प च ं े। जहां डीसीपी एसएचओ क कु स क जाए बैठा
था जब क एसीपी पांड,े सािहल भगत और उसके वक ल के साथ उनक बगल म बैठा आ
था।
डीसीपी ने मुझे बैठने का इशारा कया।
म वक ल के बगल म खाली पड़ी चेयर पर जाकर बैठ गया।
“चौहान!” - डीसीपी गंभीर लहजे म बोला - “कल रात तुमने मीता स सेना नाम क
एक लड़क को िगर तार कया था, राईट?”
“जी जनाब!”
“उसके पास से फॉरे न करसी भी बरामद ई थी!”
“ ई थी जनाब!”
“गुड! उन पय को िड ाइब करो।”
“जनाब वो सौ-सौ डॉलर के नोट क सूरत म सात हजार स ासी गि यां, यािन सात
लाख आठ हजार छह सौ डॉलर। जो क इं िडयन करसी म लगभग साढ़े चार करोड़ पये
बनगे।”
“गुड!” - कहकर डीसीपी ने मेरी तरफ देखा - “तुम उन साढ़े चार करोड़ पये के बारे
म या जानते हो?”
वो सवाल इतना अ यािशत था क म हड़बड़ाकर रह गया। मुझसे जवाब देते न बना।
मने एक बार कनिखय से सािहल भगत क ओर देखा मगर जुबान से कु छ नह बोला।
“अगर तुम भगत साहब क वजह से िहच कचा रहे हो तो म तु ह बता दूं क इ ह ने
खुद उन पय पर अपना लेम लगाया है। इसिलए साफ-साफ बताओ, या तु ह उस
रकम क कोई खबर है।”
“जनाब म नह जानता क आप िजन पय क बात कर रहे ह, वो वही पये ह या
नह । मगर प ीस जनवरी को मने िम टर भगत के िलए साढ़े चार करोड़ हडल कये थे जो
क इनक ज रत के मुतािबक सौ डॉलस के नोट क सूरत म होने चािहए थे। अलब ा

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मने उन पय क श ल नह देखी थी। मुझे दो लॉ ड सूटके स दये गये थे जो मने य के
य आगे िडलीवर कर दये थे।”
“यािन तु ह नह पता क उन सूटके स म पये थे या र ी भरी ई थी।”
“नह , मुझे नह मालूम।”
“अब आप बताइए िम टर भगत!” - डीसीपी गंभर लहजे म बोला - “वो पये आपके
ह, ये कै से सािबत करगे आप! या आपके पास उन नोट के नंबर ह? अगर हां तो हम
मुहयै ा कराइए और अपने पये ले जाइए।”
“वो तो खैर संभव नह है, इसिलए संभव नह है य क मुझे जरा भी उ मीद नह थी
क वो पये कभी बरामद भी हो सकते ह। ऐसे म उनके नंबर नोटकर के य रखता?”
“देिखए कोई सूरत िनकािलए, िजससे सािबत हो सके क मीता स सेना के लैट से
बरामद पये आपके ह। या फर हमारी त तीश ख म होने का इं तजार क िजए।”
“म देखता ं इस बारे म या कया जा सकता है।” कहकर उसने उठने क कोिशश क ।
“एक िमनट सािहल साहब, लीज!” म ज दी से बोला।
जवाब म वो उठता-उठता दोबारा बैठ गया।
“आप मीता स सेना से वा कफ ह?”
“नह , म उससे कभी नह िमला।”
“कभी उसके लैट पर गये ह ।”
“गोखले तू पागल हो गया है, अरे म िजसे जानता तक नह उसके लैट पर या करने
जाऊंगा!”
“ लैट पर ना सही मगर कल रात उसक िगर तारी के व आस-पास कह मौजूद रहे
ह ।”
“नह , म नह था।”
“ फर आपको उसक िगर तारी और लैट से बरामद ए पय क खबर य कर
लगी?”
कमरे म स ाटा सा फै ल गया।
“मने शायद अखबार म पढ़ा था!” - वो खा जाने वाली िनगाह से मुझे घूरता आ
बोला - “या फर टीवी पर यूज म देखा होगा!”
“नह हो सकता, मीता क िगर तारी क खबर ना तो आज के कसी अखबार म मौजूद
है और ना ही कसी यूज चैनल पर लैश हो रही है। स ाई तो ये है क पुिलस ने अभी
तक उसक िगर तारी क कसी को भनक भी नह लगने दी है। अब बताइए आपको उन
पय क खबर य कर ई?”
“ य भई तू या गवनर लगा है जो म तेरे हर सवाल का जवाब देता फ ं !”
“भगत साहब इधर देिखए लीज!” - डीसीपी दृढ़ वर म बोला - “ये कोई इतना बड़ा
सवाल नह है िजसका जवाब देने से आपको ऐतराज हो।”
“ य भई आप भी इसी के सुर म बोलने लगे।”
“ऐसा नह है, मगर इसने जो शंका का बीज बो दया उसका फौरन िनराकरण ब त

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ज री है।”
“जवाब नह दूग ं ा तो ज र आप मुझे लॉकअप म ठूं स दगे, नह ?” कहते ए उसने मेज
पर रखा पेन बे यानी म अपने हाथ म उठा िलया।
“आप जानते ह हम ऐसा नह कर सकते, इसिलए आपसे र े ट है क इसके सवाल का
जवाब दीिजए।”
“मेरे पुिलस म कु छ सोस ह!” - उसने कसमसाते ए पतरा बदला - “िजनके ज रए मुझे
उस लड़क क िगर तारी और उसके लैट से बरामद ए पय क खबर लगी थी। अब
आप लाख कोिशश कर ल, म उनके नाम तो आपको बताने से रहा।”
जवाब म डीसीपी क एसएचओ क तरफ देखा, तो उसने फौरन इं कार म िसर िहला
दया।
“ऐसा नह हो सकता।” - डीसीपी पुरजोर लहजे म बोला - “आपका वो सोस बड़ी हद
आपको मीता स सेना क िगर तारी क खबर कर सकता था, मगर इस बात क खबर
कसी को नह थी क िगर तारी के दौरान लाख क सं या म फॉरे न करसी भी बरामद
ई है। फर लाख पये का सवाल ये क आपके उस सोस को ये कै से पता हो सकता था क
मीता स सेना क िगर तारी क खबर आपके काम क हो सकती है। जवाब ये सोचकर
दीिजएगा क आपक िमसेज क ह या वाला मामला इस थाने का के स नह है।”
“अगर ऐसा नह हो सकता तो इस सवाल का जवाब भी आप इस पीडी से पूिछए,
देिखए या कहता है ये इस बारे म।” - कहकर वो मेरी तरफ घूमा, साथ ही अपनेे हाथ म
थम पेन से बे यानी म मेज पर आड़ी-ितरछी रे खाएं ख चने लगा - “बोल भई और कस
तरह से खबर लगी मुझे?”
“इसिलए लगी य क पय से भरा वो बोरा मीता स सेना के कमरे म आपने ही ले
जाकर रखा था।”
वहां मौजूद तमाम लोग हैरानी से मेरी श ल देखने लगे।
“तू प ा पागल हो गया है, वरना खुद सोच के देख, इतना बड़ा बोरा लेकर अगर म
वहां सी ढ़यां चढ़ता तो या कसी को दखाई नह देता।”
“कमाल है! िजस जगह आप अपना कदम पड़ा होने से भी इं कार कर के हटे ह, वहां जाने
के िलए सी ढ़यां चढ़नी पड़ती है ये बात आपको कै से पता लग गई?”
इस बार उससे जवाब देते नह बना।
“जवाब दीिजए िम टर भगत!” - इस बार डीसीपी बोला तो उसके वर म कोड़े जैसी
फटकार थी - “या फर कबूल क िजए क ये जो इ जाम आप पर लगा रहा है वो सच है।”
“सवाल ही नह पैदा होता! उस बाबत अभी तक म िसफ इसिलए खामोश था, य क
उस बात के जवाब का संबंध मेरी मौजूदा दु ारी से है। मगर अब लगता है क उसका
िज कए िबना बात नह बनेगी।” - वो बड़े ही शांत भाव से बोला - “सबसे पहले म आप
लोग को ये बता दूं क महेश बाली िजस लैट म रहता था, वो मेरी बीवी क िमि कयत
था।”
मेरे अलावा उस बात पर सब ने हैरान होकर दखाया। य क बाज रया मं दरा जोशी,

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वो बात मुझे पहले से ही पता थी।
“कल रात म उ मीद के िखलाफ उ मीद करता वहां कसी ऐसे सू क तलाश म प च ं ा
था जो काितल को बेनकाब कर पाता, या िजससे ये सािबत हो पाता क सोनाली और
महेश बाली का ह यारा एक ही था। वहां प च ं कर मने लैट का हर कोना-खुदरा टटोल
डाला, मगर हािसल कु छ नह आ। फर म ा ग म म जाकर सोफे पर बैठ गया। उसी
व मुझे लैट के बाहर कु छ लोग के बात करने क आवाज सुनाई द । मने सावधानी से
लैट का दरवाजा थोड़ा सा खोलकर बाहर झांका तो सामने वाले लैट म मुझे पुिलस
दखाई दी। उन लोग क बातचीत से ही मने अंदाजा लगाया क वो लोग उस लड़क को
काितल समझ रहे थे, य क वहां से फॉरे न करसी म ढेर सारे पये बरामद ए थे। फर
ज दी ही मेरी समझ म आ गया क वो वही पये थे जो मने अपनी बेगुनाही के सबूत
हािसल करने के िलए गोखले के ज रए कसी को िडलीवर करवाये थे।”
“अगर ऐसा था तो िब डंग के चौक दार ने आपको भीतर जाते य नह देखा?”
“ य क म सामने से गया ही नह था। म नह चाहता था क कोई मुझे बाली के लैट
म जाता देखे! इसिलए म िपछवाड़े के रा ते वहां दािखल आ था। जहां िब डंग क
बाउं ी वॉल टू टी पड़ी है।”
“जब आप लैट क तलाशी ले रहे थे तो या वहां सोफे के पीछे रखे दो बड़े कॉटन
बॉ सेज आपको दखाई दए थे।”
“हां मने उ ह खोलकर देखा था, मगर दोन खाली थे, उनके भीतर कु छ भी नह था।”
“यािन उनपर से आपके फं गर ं स बरामद हो जाना कोई हैरानी क बात नह
होगी।”
“जब म खुद कह रहा ं क दोन बॉ स मने खोलकर देखे थे तो उनपर से मेरी
उं गिलय के िनशान बरामद होना हैरानी क बात य कर होगी?”
“उन दोन बॉ सेज का खास िज कसिलए?” डीसीपी पूछे िबना नह रह सका।
“इसिलए जनाब, य क उन दोन काटन बॉ सेज म भरकर साढ़े चार करोड़ क रकम
महेश बाली के लैट म परस रात ही प च ं ा दी गई थी। जहां से कल राजेश बंसल के क ल
के बाद वो तमाम नोट एक बोरे म भरकर मीता स सेना के लैट म रख दये गये, ता क
वो क ल के इ जाम म फं से ही फं से।”
“तु हारा मतलब है वो लड़क काितल नह है?”
“हो ही नह सकती जनाब!”
“ य नह हो सकती? ए स लेन करो।”
जवाब म मने उसे मीता स सेना को क गई किथत मुकेश गु ा क फोन कॉल के बारे म
बताते ए उसक िगर तारी तक क सारी कहानी सुना डाली।”
“इससे ये कहां सािबत होता है क वो लड़क काितल नह है?” डीसीपी बोला।
“िब कु ल होता है जनाब, य क वो कॉल उसे मकतूल राजेश बंसल के लडलाइन फोन
से क गई थी। मुकेश गु ा य क मकतूला िनहा रका ीव स का वाय ड था इसिलए
मीता उसे ना िसफ बाई नेम जानती थी, बि क एक बार िनहा रका के लैट म उससे िमल

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भी हो चुक थी। इसिलए जब उसने िनहा रका के क ल का हवाला देते ए, काितल का
पदाफाश करने के िलए उसक सहायता मांगी तो वो इं कार नह कर सक । उसको तो
िगर तारी से पहले ये तक पता नह था क िजस लैट से बाहर िनकलता खून देखकर वो
बाहर से ही वािपस लौट आई थी। उसम कोई मुकेश गु ा नह रहता था बि क वो राजेश
बंसल का लैट था।”
“और कु छ!”
“और कु छ के खाते म तो बस इतना है जनाब क टेिलकॉम कं पनी का रकाड ये सािबत
कर देगा क उस कॉल को अटड करते व मीता स सेना क लोके शन या थी और
काितल के साथ उसक या बातचीत ई थी।”
“िम टर भगत के बारे म और कु छ कहना है तु ह?”
“िसफ इतना कहना है क मुझे नह मालूम था ये इतने बड़े टोरी टेलर ह। म इनके इस
टैलट के आगे नतम तक ।ं ”
इसके बाद सािहल भगत शान से चलता आ अपने वक ल के साथ वहां से खसत हो
गया।
“गोखले!” तब एसीपी पांडे पहली बार बोला।
“जी जनाब।”
“ दल छोटा मतकर, तेरी कही हर बात से मुझे इ फ़ाक है। मगर मजबूरी है, हम
चाहकर भी उससे जबरन कु छ नह उगलवा सकते थे, समझ गया!”
“जी जनाब शु या!”
“उसके अलावा कु छ और चाहता है तो बोल!”
“जनाब वो लड़क बेकसूर है! ऐसे म अगर मीिडया को उसक िगर तारी क भनक लग
गई तो बाद म उसका बेगुनाह सािबत हो जाना भी उसके कसी काम नह आएगा।”
उसने कु छ ण उस बात पर िवचार कया फर करती िनगाह से अपने डीसीपी
क ओर देखा।
“उसे यहां बुलाओ।”
सुनकर चौहान त काल वहां से बाहर िनकल गया और दो िमनट बाद जब वािपस लौटा
तो मीता स सेना उसके साथ थी।
वो मुझे पूरी तरह चाक-चौबंद दखाई दी, िसवाय इसके क रो-रोकर उसने अपनी
आंख सुजा ली थ । इस व भी उसक आंख डबडबाई ई थ ।
“बैठ जाओ।” डीसीपी बोला।
वो आगे बढ़कर एक कु स पर बैठ गयी।
“तुम उस श स क आवाज पहचान सकती हो िजसने मुकेश गु ा बनकर तु ह फोन
कया था।”
“जी उ मीद तो है।”
जवाब म डीसीपी ने खान क क तरफ देखा तो उसने उठकर मेज पर रखे कं यूटर को
कोई कमांड दया, िजसके फल व प कमरे म लगे पीकर पर कु छ देर पहले हमारे बीच

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ई बातचीत गूंजने लगी।
म हैरान रह गया। उस इं तजाम क मुझे आज तक खबर नह लगी थी। बहरहाल
रका डग ले होती रही मगर मीता स सेना के चेहरे पर कोई भाव नह आए। उस दौरान
जब भी सािहल भगत क आवाज गूंजी, एसीपी पांडे ने मीता का खास यान उसक तरफ
दलाया मगर वो हर बार इं कार करती रही।
आिखरकार रका डग ख म हो गयी।
“म नह जानती क म उसक आवाज पहचान पाऊंगी या नह , मगर इस बात क
गारं टी कर सकती ं क जो वातालाप आपने मुझे सुनाया है, उसम उसक आवाज नह
थी।”
“इ स ओके !” - डीसीपी बोला - “अभी तुम घर जा सकती हो। मगर! इस के स के हल
होने तक तुमने शहर से बाहर िनकलने क कोिशश भी नह करनी है। अगर ऐसा करोगी
तो ना िसफ अपने िलए, बि क िव ांत के िलए भी दु ा रयां खड़ी करोगी, िजसक
कोिशश क बदौलत तु ह आजादी हािसल हो रही है।”
“थ यू सर!” - उसका वर अचानक ही भरा सा गया - “थ यू िव ांत! म कह नह
जाऊंगी, ॉिमस करती ।ं ”
“गुड अब तुम जा सकती हो।” - कहकर डीसीपी ने चौहान क ओर देखा - “लड़क को
कसी टै सी या ऑटो म बैठाकर आओ भई।”
“अभी लीिजए जनाब!” कहकर वो मीता स सेना के साथ बाहर िनकल गया।
“अब खुश िम टर िडटेि टव।” डीसीपी हंसता आ बोला।
“जी जनाब, ब त यादा! शु या।”
“वो तो आ, मगर के स तो अभी भी जहां का तहां लटका आ है। उस बारे म या राय
है तु हारी? कम से कम मेरा नह तो पांडे साहब का िलहाज करो जो तु हारी सूझ-बूझ के
ब त बड़े अ ायरर ह।”
“खाितर जमा रिखए जनाब, म पांडे साहब को िनराश नह कर सकता। इसिलए वादा
करता ं क तारीख बदलने से पहले ह यारा कानून के िशकं जे म होगा।”
जवाब म वहां बैठे तीन पुिलिसए हकबकाकर मेरी श ल देखने लगे।
“ब त बड़ी बात कह रहो हो।”
“मुझे पूरा-पूरा एहसास है जनाब! इसिलए अब बंदे को इजाजत दीिजए, य क
काउं ट-डाऊन शु हो चुका है।”
कहकर म उठ खड़ा आ।
म बाहर िनकला तो चौहान मुझे वािपस लौटता दखाई दया। म उसे लेकर अपनी कार
म जा बैठा।
“कोई खास बात है।” वो पैसजर सीट पर बैठता आ बोला।
“हां और वो खास बात ये है क अभी-अभी म तु हारे आला अफसरान के सामने ये बड़ा
बोल बोलकर आ रहा ं क तारीख बदलने से पहले मुज रम उनक िगर त म होगा।”
“ज र तेरा दमाग फर गया होगा।”

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“यही समझ लो, उस व मेरे भीतर के जासूस को तु हारे डीसीपी ने कु छ इस तरह से
ललकारा क वो बात खुद बा खुद मेरी जुबान से िनकल गई।”
“जब क तू नह जानता क काितल कौन है?”
“अगर सािहल भगत काितल नह है तो समझ लो नह जानता।”
“मुझसे या चाहता है?”
“मने कल तु ह एक काम स पा था!”
“सॉरी म तुझे बताना भूल गया क उन दोन को पुिलस ने खूब ठोक-बजाकर देख िलया
है, तू समझ ले उनम से कोई भी िनहा रका ीव स का काितल नह हो सकता। इसिलए
दूसरी वारदात म भी उन दोन का हाथ नह हो सकता।”
“ओह! अब जरा मीता स सेना पर आओ, अगर वो काितल नह है तो ऐसे म सवाल ये
उठता है क ह यारा उसके बंद लैट म नोट से भरा बोरा रखने म कै से कामयाब हो
गया।”
“इसके दो जवाब मुम कन ह, नंबर एक ह यारे के पास उसके लैट क चाबी रही होगी।
नंबर दो ह यारे को ताला खोलने म महारत हािसल होगी।”
“दूसरी बात तो मुम कन नह जान पड़ती, य क क ल के जो भी संभािवत किडडे स
ह वो सब वेल एजुकेटेड पसन ह। ऐसे लोग क क पना म कसी तालातोड़ के प म नह
कर सकता।”
“ फर तो समझ ले कसी तरह काितल को मीता के लैट क चाबी उपल ध रही होगी।
अब अगर कोई ऐसा श स दखाई दे जाय िजसक प च ं उसके लैट क चाबी तक रही
हो, तो कम से कम इस बात का खुलासा तो हो ही जाएगा क य कर ह यारा उसके लैट
म नोट वाला बोरा प च ं ाने म कामयाब आ।”
“सुनीता चौहान!” - मने चुटक बजाई - “मीता के लैट क एक चाबी हमेशा उसके
घर म रहती है।”
“ये वही लड़क तो नह जो तुझे उ लू बनाकर एयरपोट िखसक गई थी।”
“वही है।”
“ले कन वो चाबी तो उसने तेरे हवाले कर दी थी।”
“हां मगर य कर दी थी? य क उसे एहसास था क ये बात सामने आए िबना नह
रहेगी क मीता के लैट क एक चाबी िसफ और िसफ उसके पास रहती थी।”
“अरे जब उसने तुझे वो चाबी स प दी, तो फर उसी चाबी से उसने मीता के लैट का
लॉक कै से खोल िलया?”
“ य क उसने पहले से ही उस चाबी के ज रए डु लीके ट चाबी बनवा रखी होगी।”
“कमाल है यार! वो िसफ इसिलए काितल हो गई य क उसके पास मीता स सेना के
लैट क चाबी थी।”
“और बात भी है।”
“ या, ए स लेन कर।”
“सोनाली भगत के क ल वाली रात जब बाली शािमयाना अपाटमट से िनकलकर सड़क

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पर प च ं ा था, तो वो सुनीता चौहान से ही िमलने गया था। उस व उसके हाथ म एक
पैकेट मौजूद था जो उसने लड़क को देकर उसे कु छ समझाया फर दोन अपनी-अपनी
राह हो िलए थे।”
“और ये बात तू अब मुझे बता रहा है।”
“सॉरी मेरे यान से उतर गया था।”
“ या रहा होगा उस पैकेट म?”
“होने को तो कु छ भी हो सकता था मगर मेरे याल से उसम ह यारे का ओवरकोट और
क ल के दौरान इ तेमाल कया गया वीिडयो कै मरा रहा होगा।”
“कै मरा कसिलए, वो वीिडयो कसी मोबाईल फोन से रकाड य नह क गई हो
सकती।”
“ य क वीिडयो म कई बार कै मरा जूम आ था, वहां के लगभग स र-अ सी मीटर के
गिलयारे को जूम करते ए सोनाली के लैट को दखाया गया था। यहां तक क एक बार
तो रवा वर का सी रयल नंबर तक दखाया गया था। ऐसी रका डग कसी मोबाइल
फोन से नह क जा सकती।”
“दम तो है तेरी बात म, मगर वो लड़क काितल नह हो सकती। कम से कम बंसल का
क ल तो उसने नह कया हो सकता, य क क ल वाले रोज वो मु बई म रही होगी।”
“ या पता उसने मुंबई जाने का बस दखावा भर कया हो।”
“ठीक है, चल पता करते ह।”
मने त काल कार आगे बढ़ा दी।
हम मीता स सेना लैट पर प च ं ।े िजसने करीब-करीब हम ये िव ास दला दया क
सुनीता चौहान उस रोज मुंबई ही गई थी जहां से अभी तक नह लौटी थी। अपनी बात को
सािबत करने के िलए मीता ने अपने मोबाइल म कु छ फोटो ॉ स दखाए िजसे सुनीता ने
उसके साथ शेयर कया था।
इसके बाद मीता ने उसे फोन करके बताया क पुिलस उससे कु छ पूछताछ करना
चाहती है, जो क फौरन कया जाना ब त ज री था। सुनकर वो खुद ही वीिडयो कॉ लंग
पर आ गई।
“हॉय एवरीबॉडी!” - वो न पर हाथ िहलाती दखाई दी - “उस दन के िलए सॉरी
िव ांत! म बस यूंही तु हारे साथ चुहल कर बैठी थी, दल पर मत लेना, लीज!” कहकर
वो इयर फोन लगाने को क फर बोली - “अब पूछो या जानना चाहते हो तुम दोन ।”
“सबसे पहले तो ये वीकार करो क िजस रात सोनाली भगत का क ल आ था, उस
रात तुम महेश बाली से िमलने वसंत कुं ज गई थ । जहां सड़क कनारे खड़े होकर तुमने
उससे बात क थी।”
“म खास उससे िमलने नह गई थी। म वहां पास म ही एक अ पताल म जॉब करती ।ं
वािपस लौटते व मेरे पास उसका फोन आ गया। उसने मुझसे र े ट कया क म उसका
एक सामान उसके लैट म ले जाकर रख दू।ं वो जगह य क मेरे ट म ही थी इसिलए
मुझसे इं कार करते नह बना।”

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“ या था उस पैकेट म।”
“मुझे नह मालूम, बाई गॉड नह मालूम। ना तो मने पूछा और ना ही उसने कु छ
बताया। म तो बस उससे पैकेट और लैट क चाबी लेकर वहां से चलती बनी थी।”
“कै सा पैकेट था वो?”
“पॉलीथीन म कोई सामान रखकर उसे ाउन टेप से पूरी तरह ढक दया गया था।
कनार से वो पैकेट सॉ ट था, मगर बीच म कोई स त चीज रखी मालूम होती थी। मेरे
याल से दो कलो के आस-पास उस पैकेट का वजन रहा होगा।”
“बाद म जब तु ह सोनाली के क ल क खबर लगी तब तुमने उस बारे म पुिलस को य
नह बताया?”
“सच पूछो तो म डर गई थी। क ल य क उसी इलाके म आ था और महेश बाली खुद
को उसका आई िवटनेस बता रहा था, इसिलए मने उस बारे म चु पी अि तयार करने म
ही अपनी भलाई समझी। बाद म जब महेश बाली का भी क ल हो गया तो उस बारे म
कसी को कु छ बताना ना बताना मुझे बेमानी लगने लगा।”
“महेश बाली से अ सर तु हारी बातचीत होती थी।”
“अ सर तो नह मगर कभी-कभार वो मुझे फोन कर लेता था।”
“कह उसके साथ तु हारा अफे यर तो नह था।”
“नो नेवर! मुझे उसके जैसे बुलडॉग टाइप लड़के िब कु ल पसंद नह , बावजूद इसके क
वो बड़ा ही सलीके वाला मद था। हमेशा जटलमैन क तरह बात करता था।”
“तु हारे पास मीता के लैट क चाबी रहती थी।”
“तु ह मालूम है रहती थी, तभी तो उस रोज तु ह थमाकर ऊपर उसके लैट म भेज
दया था।”
“कभी तुमने वो चाबी कसी और को दी थी, चाहे थोड़ी देर के िलए ही सही।”
“हां दी थी।” वो जवाब हमारे िलए अ यािशत था।
“ कसे दी थी?”
“िनहा रका को, िजस रोज उसका क ल आ उससे एक दन पहले वो यहां आई थी।
तब म घर पर ही थी, मगर मीता अभी ऑ फस से नह लौटी थी। मने उसे अपने घर म
बैठकर वेट करने को कहा तो उसने ये कहकर मुझसे मीता के लैट क चाबी मांग ली क
वो वह बैठकर इसका वेट कर लेगी।”
“िनहा रका के अलावा कसी को दया हो?”
“और तो बस तु ह ही दया था।”
मेरे पास और कोई सवाल नह था। मने चौहान क तरफ देखा।
“बो डग पास!” - वो ज दी से बोला - “ द ली से मुंबई का, उ मीद है तुमने फका नह
होगा।”
“नह फका, म अभी उसक िप चर सड कये देती ।ं ओ रजनल कल आकर दखा
दूग
ं ी, और कु छ?”
“नह शु या।”

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उसने कॉल िड कनै ट कर दी।
“कु छ प ले पड़ा!” म चौहान से बोला।
“लगता तो है, मेरे याल से िनहा रका ीव स ने ह यारे के कहने पर कसी साबुन
वगैरह पर चाबी क छाप ले ली होगी। िजसके ज रए ह यारा यहां क डु लीके ट चाबी
बनवाने म कामयाब हो गया होगा।”
“छाप लेने क ज रत नह थी।” - अब तक खामोश बैठी मीता स सेना अचानक ही
बोल पड़ी - “ य क वो चाबी िनहा रका अपने साथ ले गई थी। बाद म रात आठ बजे के
करीब वो मुझे ये कहकर चाबी लौटा गई, क मेरा काफ देर तक इं तजार करने के बाद जब
वो यहां से लैट बंद करके िनकली, तो चाबी वािपस करना भूल गयी थी।”
“ फर तो इस बात का जवाब अपने आप ही िमल जाता है क काितल इस लैट का
दरवाजा खोलने म य कर कामयाब आ।”
“ य क उसके पास लैट क डु लीके ट चाबी मौजूद थी।”
“चलो एक िम ी तो सॉ व ई।”
हम दोन उठ खड़े ए, तभी मुझे एक सवाल सूझ गया, “तु हारी ड िनहा रका करती
या थी।”
“कं यूटर ो ामर थी, बि क हैकर कह लो। उसका जब मन होता था हमारे मोबाइल म
घुसकर सारे फोटोज, वीिडयो चुराकर हम हैरान कर देती थी।”
“उसक माली हालत कै सी थी?”
“टॉप ऑफ दी व ड! पैसे उड़ाने म उसक कोई बराबरी नह कर सकता था। और ये
हाल तब था, जब वो कोई नौकरी भी नह करती थी।”
“ फर उसके पास उड़ाने के िलए दौलत कहां से आती थी?”
“ या पता कहां से आती थी, मगर पैस का उसे कोई तोड़ा नह था।”
वो वातालाप वह समा हो गया।
नीचे प चं कर हम एक बार फर मेरी कार म सवार हो गये।
“अब?” चौहान ने सवाल कया।
“अब हम उस श स को खोजना है जो परस रात यहां नोट से भरे दो कॉटन बॉ स
रखकर गया था।”
“तुझे यक न है क उनम नोट ही भरे ए थे।”
“हां और कु छ हो ही नह सकता था। जरा तुम नोट से भरे बोरे के वजन का अंदाजा
लगाओ, या ये मानने वाली बात है क ह यारा उतना भारी बोरा अपने िसर पर रखकर
यहां प चं ा होगा? यादा से यादा यहां प च ं ते व उसके पास एक करोड़ बारह लाख
पये रहे हो सकते ह, जो क बंसल के क ल के बाद उसके हाथ लगे ह गे।”
“िह से क बाबत तू इतना योर कै से है?”
“समझ लो अंदाजा है मेरा! अब तक क त तीश बताती है क सोनाली भगत क ह या
म चार लोग का हाथ था। िजनके बीच सािहल भगत से हािसल ई रकम का बंटवारा
आ होगा। आगे म ये मानकर चल रहा ं क चार के बीच रकम बराबर-बराबर बांटी

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गई होगी। इस िहसाब से हर एक के प ले करीब एक करोड़ साढ़े बारह लाख क रकम पड़ी
होगी। अब उनम से तीन का क ल हो चुका है िजनका िह सा कु ल िमलाकर तीन करोड़
साढ़े सतीस लाख पये बनते ह जो क डॉलस क सूरत म होने क वजह से उन दोन ग े
के िड ब म बखूबी समा सकते थे। काितल ने वो पये एक दन पहले यहां इसीिलए भेज
दये ता क आिखरी व पर उसे साढ़े चार करोड़ क रकम का वजन ना ढोना पड़े।”
“अगर ऐसा था तो उसने अपने सािथय क ह या य क ?”
“जािहर है उनका िह सा क जाने के िलए।”
“गोखले तेरा दमाग चल गया मालूम होता है!” - चौहान बोला - “अगर क ल उनका
िह सा क जाने के िलए कया गया था तो य कर काितल ने वो सारी रकम मीता स सेना
के लैट म प च ं ाकर उसे फं साने का इं तजाम कया।”
“ज र उसे पकड़े जाने का डर सताने लगा होगा।”
“खामाखां! हमसे बेहतर ये बात कौन जानता है क अभी तक हम काितल क बाबत
कोई एकजुट राय तक नह बना पाये ह। फर ऐसा या घ टत हो गया जो काितल को
अपने पकड़े जाने का भय सताने लगा।”
“तुम बताओ!”
“मेरे से पूछता है तो सुन! पुिलस के पास अभी तक ऐसा कु छ नह है जो काितल क
तरफ इशारा तक कर सके । कल बंसल के मामले म भी तूने यही कहा था क उसने हालात
से घबराकर आ मह या कर ली होगी। तब मने तुझसे ये कहा था क अगर वो इतना ही
बड़ा सूरमा था तो आ मह या य करता, वो चुपचाप सारी दौलत लेकर यूं फरार हो गया
होता क कसी को ढू ंढे नह िमलता। वही बात फर दोहराता ं काितल कानून से डरने क
बजाय कह फरार य नह हो गया। य उसने साढ़े चार करोड़ क रकम यूं मीता
स सेना के लैट म फक दी जैसे वो कोई सौ पये का नोट फक रहा हो।”
“ फर तो ज र काितल कोई ऐसा श स है िजसके िलए साढ़े चार करोड़ क रकम ब त
मामूली चीज थी। वो उसका गम खा सकता था या फर रकम क बरामदगी के बाद उसे
लेम कर सकता था।”
“तेरा इशारा फर सािहल भगत क तरफ जान पड़ता है।”
“हामी भरते कलेजा फटता है ले कन जवाब है हां, उसके अलावा इस के स म ऐसा कोई
नह है जो साढ़े चार करोड़ पये का गम खा सकता हो। फर देखा नह कै से वो सारी
रकम लेम करने के िलए थाने प च ं गया था। हालां क अपनी कहानी से उसने सबक
बोलती बंद कर दी थी, मगर उसक बात पर यक न तो तु हारे डीसीपी को भी नह आया
था।”
“यािन सब कया धरा सािहल भगत का।”
“लगता तो यही है।”
“ फर तो हम बेकार ही मश त कर रहे ह, य क उसके िखलाफ सािबत कर पाने
लायक हमारे पास कु छ भी नह है।”
“इतनी आसानी से तो म हार नह मानूंगा।”

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“कमाल है आज तो उ टी गंगा बह रही है, तू अपने लाइं ट को गुनहगार बता रहा है
जब क मेरा मन उसे बेगुनाह मान रहा है। खैर अब तू मुझे ये बता क आगे या इरादा है।”
मने उसे ऑटो का नंबर दया, िजससे क नोट से भरे दोन काटन बॉ स बाली के लैट
मप च ं ाये गये थे। फर शीला से हािसल ऑटो ाइवर का नाम-पता और मोबाइल नंबर
भी उसे नोट करवा दया।
“चौहान साहब तु ह रकाड टाईम म ये पता लगाना है क वो लड़का कौन है और
कसके कहने पर उसने दोन बॉ सेज बाली के लैट म प च ं ाए थे।”
“ये ब त मुि कल काम है भैया, अगर वो अपने घर के आस-पास या गली के सामने
ऑटो से उतरा था, तो समझ ले उसका पता चल जाएगा।” - चौहान गंभीर वर म बोला -
“और अगर ऐसा नह है तो पूरे महरौली म तो उसे शायद महीने भर म भी तलाश ना
कया जा सके ।”
“मुझे अभी-अभी एक बात सूझी है, तुम महरौली म उसे तलाशने के साथ-साथ मामले
का दूसरा िसरा पकड़ो और ये जानने क कोिशश करो क या सािहल भगत का कोई
कमचारी उस इलाके म रहता है, जहां वो लड़का ऑटो से उतरा था।”
“बहस के िलए मान ले वो लड़का हमारे हाथ लग जाता है और वो ये वीकार कर लेता
है क उसने सािहल भगत के कहने पर वो दोन िड बे बाली के लैट तक प च ं ाए थे। तो
इससे या सािबत हो जाएगा? य क म नह समझता क उसको िड बे के भीतर मौजूद
रकम क कोई भनक तक रही होगी।”
“चौहान साहब तुम उसे तलाशने क कोिशश तो करो, या पता कोई खास बात सामने
आ ही जाय।”
“ठीक है भई, अब तू मुझे थाने तक छोड़कर आ तो म इस काम पर लगू।ं ”
सहमित म िसर िहलाते ए मने कार आगे बढ़ा दी।
चौहान को थाने तक ॉप करने के बाद म गढ़ी प च ं ा जहां मेरा इरादा चं काश
अ वाल से िमलने का था। बेशक पुिलस को उसक और राके श दीि त क बेगुनाही का
यक न आ गया था मगर मेरा मन अभी उन दोन क तरफ से साफ नह आ था। या
पता दोन म से कौन कसे बचाने क कोिशश कर रहा था। या फर दूसरे को पता ही ना
हो क पहला काितल है।
उस व पांच बजने को थे जब मने अ वाल के बंगले क घंटी बजाई। त काल एक
नौकर दरवाजा खोलकर मेरे सामने अड़कर खड़ा हो गया।
“ कससे िमलना है?”
“अ वाल साहब से।”
“वो तो इस व घर पर नह ह।”
“आज नह ह या इस व होते ही नह ह।”
“होते ही नह ह, आठ बजे आओगे तो मुलाकात हो जाएगी।”
“ठीक है म बाद म आता ।ं ”
“साहब पूछ कौन आया था तो या बोलू।ं ”

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“कहना यमराज का भेजा मौत का दूत आया था, उनक क मत अ छी थी जो वो घर
पर नह थे।”
“ फर तो म उ ह आठ बजे के िलए भी सावधान कर दूग ं ा।”
“कोिशश कर के देख लेना, या पता तब तु हारा नंबर साहब से पहले आ जाए।”
कहकर म वािपस मुड़ा और बंगले से बाहर िनकल आया। वहां से म लाजपत नगर
प चं ा, जहां एक रे टोरट म मने खाना खाया। फर बाहर िनकलकर अपनी कार म जा
बैठा।
चौहान क रपोट आने तक करने के िलए अब मेरे पास कु छ नह था। आगे बढ़ने के
तमाम रा त पर जैसे नो एं ी का बोड लगा दया गया हो। मने बेमन से एक िसगरे ट
सुलगाया और कश लगाता आ अपना अगला कदम िनधा रत करने लगा।
तब तक साढ़े छह बज चुके थे।
सािहल भगत के बारे म अगर कोई काम क जानकारी दे सकता था, तो वो थी मं दरा
जोशी! मगर वो भला अपने बॉस के िखलाफ अपना मुंह य फाड़ती। ऊपर से िपछली
मुलाकात पर मने उसक जो बेइ ती क थी, उसके म ेनजर तो शायद मं दरा मेरे िलए
अपने लैट का दरवाजा भी नह खोलती। इसिलए उससे िमलने से कोई फायदा हािसल
होता दखाई नह दे रहा था।
मगर उ मीद के िखलाफ उ मीद करना इं सानी फतरत होती है। ये सोचकर क या
पता वो मुझे मुंह लगा ही ले, मने वसंतकुं ज जाने का फै सला कर िलया।
उस व साढ़े सात बजे थे जब मने शािमयाना अपाटमट प च ं कर मं दरा जोशी के
लैट के बाहर लगे कॉलबेल के ि वच पर उं गली रख दी।
मं दरा जोशी अपने लैट म मौजूद थी। मेरी सूरत पर िनगाह पड़ते ही उसने दरवाजा
बंद कर लेने क भरपूर कोिशश क िजसे मने कामयाब नह होने दया।
“म पुिलस बुला लूंगी।” वो धमक भरे लहजे म बोली।
“बेशक बुला लेना मगर उससे पहले या ये नह जानना चाहोगी क तु हारे चहेते
म टीिमलेिनयर बॉस का अगला मुकाम कहां होने वाला है।”
“तुम सािहल सर क बात कर रहे हो?”
“अगर तु हारे और भी बॉस ह तो समझ लो नह कर रहा।”
“उनको या आ है?”
“ आ नह है, होने वाला है। ब त ज द सािहल भगत का मुकाम जेल क सलाख के
पीछे होगा।”
“अ छा ऐसा या कर दया उ ह ने?”
“बताता ं पहले जरा कह बैठ जाऊं, फर बताता ।ं ”
इस बार उसने िबना कसी त के एक तरफ होकर मुझे रा ता दे दया। भीतर
प च ं कर म एक चेयर पर बैठ गया और िसगरे ट सुलगाने का उप म करने लगा।
मं दरा मेरे सामने आकर बैठ गई।
“अब फटाफट बताओ क तुम मुझसे या चाहते हो?”

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“जानकारी! तु हारे बॉस ने बंसल का क ल य कया।”
“तुम होश म तो हो भला उ ह या ज रत थी बंसल का क ल करने क ।”
“तो फर उसका क ल ज र तु हारा कारनामा होगा।”
“ या कहने तु हारे , रे विड़यां बांटते फर रहे हो! इसने नह िलया तो उसे दे दया।”
“मेरा सवाल अभी भी जहां का तहां है वीट हाट! बताओ मुझे तुमने बंसल का क ल
य कया।”
“पागल ए हो, म भला उसका, या कसी और का क ल य करने लगी। म या तु ह
काितल दखाई देती ।ं ”
ठीक तभी मेरा मोबाइल वाइ ेट होने लगा, चौहान क कॉल थी! मने अटड कया।
“गोखले उस लड़के का पता हमारी उ मीद से कह पहले चल गया। तेरा दूसरा वाला
आइिडया काम कर गया। मने उसके ऑ फस के एक कमचारी को काबू म कया तो उसने
फौरन बता दया क सुशील नाम का एक लड़का महरौली से आता था जो क ऑ फस म
बॉस के चमचे के प म जाना जाता है। साथ ही उसने ऑ फस से बाहर िनकलते उस
लड़के क मुझे श ल भी दखा दी। आगे जब मने उससे इस बाबत पूछताछ क तो वो
पसरने लगा। मगर तब तक हम ऑटो ाइवर को काबू म कर चुके थे। लड़के का जब उससे
आमना-सामना करवाया गया तो उसने फौरन उसक िशना त अपनी परस वाली उस
सवारी के प म कर ली जो दो बड़े साइज के ग े के िड ब के साथ पहले साके त गया था,
फर वापसी म महरौली प च ं ा था। इसके बाद उससे इं कार करते नह बना। उसने कबूल
कर िलया क सािहल भगत के कहने पर ही उसने वो दोन काटन बॉ स महेश बाली के
लैट पर प चं ाए थे। ले कन समझ म नह आता क इस जानकारी से हािसल या आ?”
“शु या!” म बोला, मगर कॉल िड कनै ट करने क मने कोई कोिशश नह क ।
अलब ा मोबाइल कान से हटा िलया।
“तुम कु छ कह रही थ ।” म मं दरा जोशी से मुखाितब आ।
“म ये कह रही थी क म या तु ह काितल दखाई देती ?ं ”
“हां, दखाई देती हो, य क तु हारे आलावा कोई और काितल हो ही नह सकता।”
“अभी कु छ ण पहले यही यालात तुम सािहल सर के बारे म जािहर कर के हटे थे।”
“हां ले कन अब मेरी फे वरे ट किडडेट तुम बन गयी हो।”
“कमाल है!”
“कमाल ही समझ लो, म हैरान ं क पहले मेरा यान तु हारी ओर य नह गया।
जाता भी कै से, मीता स सेना के लैट से बरामद ए पय से पहले तो म इस पूरे मामले
को ‘चोर को मोर‘ पड़ने वाले नज रये से देखता रहा था।”
“भ कते रहो, भ कते रहो, या फक पड़ता है।”
“फक पड़ता है! पुिलस ने जैसा िलहाज सािहल भगत का कया था, तु हारा नह करने
वाली। इसिलए तु हारा जेल जाना तय है। और यक न जान एक बार सािहल को ये पता
लगने क देर है क उसक बीवी - भले ही वो कै सी भी थी - के क ल के षड़यं म तुम खुद
शािमल थी, वो तु हारा सारा िलहाज भूल जाएगा।”

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“अरे या वाही-तबाही बके जा रहे हो तुम।”
“म स ाई बयान कर रहा ,ं पुिलस ने एक ऐसा च मदीद गवाह ढू ंढ िनकाला है िजसने
क ल के व एक नह बि क दो लड़ कय को मौकायेवारदात पर जाते देखा था। उनम से
एक लड़क क िशना त हो चुक है, जो क मीता स सेना थी। दूसरी क िशना त के िलए
पुिलस अभी ध े खा रही है मगर अंत-पंत तो उन लोग को तु हारा याल आकर रहना है,
तब या उनका वो गवाह तु ह पहचानने से इं कार कर देगा।”
मने हवा म तीर चलाया, इस बात क गुंजाईश रखकर क अगर वो बंसल के लैट पर
नह गई थी, तो यही सोचती क ज र कोई दूसरी लड़क वहां प च ं ी थी।
“देखो तुम यक न करो या नह , मगर स ाई यही है क मने उसे गोली नह मारी। म
वीकार करती ं क कल म वहां गई थी। मगर तब तक उसका क ल हो चुका था। मुझे
उसके लैट का दरवाजा भीतर से बंद िमला था। मने दो बार कॉलबेल बजाई मगर उसने
दरवाजा नह खोला, तब मेरी िनगाह दरवाजे से बाहर बहते खून पर पड़ी। खून देखकर म
इस कदर खौफजदा ई क वहां से िखसक जाने म ही अपनी भलाई समझी थी। उसका
कोई वािहयात मतलब िनकालोगे तो मेरे साथ नाइं साफ करोगे।”
िलहाजा तीर एकदम दु त जगह जाकर लगा था।
“सवाल ये नह है मैडम क म या मतलब िनकालता ,ं सवाल तो ये है क पुिलस
या मतलब िनकालती है और वे लोग जो मतलब िनकालगे वो तु ह रास नह आने
वाला।”
“अरे जब मने क ल कया ही नह तो...।”
“तुम उससे िमलने य गई थी?”
“उसी ने फोन करके बुलाया था, कहता था एकाउं ट ऑ फस का कोई कमचारी कं पनी के
एकाउं ट म घपला करके लाख पये पार कर चुका था। िजसके बारे म मुझसे िडसकस
करने के बाद ही वो सािहल सर को उसक खबर करना चाहता था।”
“ऐसी बात वो ऑ फस टाईम म भी तो कर सकता था।”
“कर सकता था, मगर वो जानकारी तभी उसे हािसल ई थी िजसके िलए उसे अगले
रोज तक इं तजार करना मंजूर नह था।”
“यू कं पनी के खाते म हेर-फे र करने वाले का कोई नाम भी तो बताया होगा उसने।”
“नह बताया, मेरे बार-बार पूछने पर भी नह बताया, कोई हंट तक नह दया था
उसने।”
“तुम बंसल क आवाज पहचानती हो।”
“हां पहचानती ,ं य ?”
“कह ऐसा तो नह क बंसल बनकर वो कॉल तु ह कसी और ने क हो?”
“नह ऐसा नह था, वो आवाज बंसल क ही थी।”
“उसका फोन तु ह कब आया था?”
“सात बजे, तब ऑ फस से म यहां लौटी ही थी क उसक कॉल सुनकर उ टे पांव बाहर
िनकल गई।”

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“तुम वहां तक प चं ी कै से थ ?”
“मने ओला क कै ब बुलाई थी।”
“ य , तुम अपनी कार से वहां य नह ग ?”
“मुझे हैवी ै फक म ाइव करते ए डर लगता है।”
“ या कहने तु हारे ।”
“म सच कह रही ।ं ”
“सच म कहता ,ं तुम नह चाहती थी क तु हारी कार बंसल के लैट के आस-पास
देखी जाती। इससे साफ जािहर होता है क तु हारी नीयत म खोट था। तुम वहां प च ं ी ही
थ बंसल के क ल का इरादा लेकर।”
“मेरे पास उसके क ल क कोई वजह नह थी।”
“वजह तो थी मैडम, और वो वजह ये थी क बंसल तु हारा जोड़ीदार था, वो भिव य म
तु हारे िलए ढेर दु ा रयां खड़ी कर सकता था।”
“ कस काम म जोड़ीदार था!”
“सोनाली के क ल म! वो कोई वन मैन शो नह था। हो ही नह सकता था। गोली
चलाने वाले हाथ भले ही बाली के थे मगर सोनाली के क ल म तुम चार क हामी थी।
ऐसे म महेश बाली और िनहा रका के बाद इकलौता बंसल ही तो था, जो भिव य म कभी
भी तु हारा भेद खोलने क धमक देकर तु ह लैकमेल कर सकता था। िलहाजा तुमने उसे
भी मौत के घाट उतार दया।”
“अ छा फर तो ज र उसके क ल के बाद बाहर िनकलकर मने जादू के जोर से भीतर
क चटखनी चढ़ा दी होगी नह ।”
“ कसी गलतफहमी म मत रहो मैडम! वो िम ी तो घटना थल पर प च ं े पुिलस
ऑ फसर ने चुटक बजाते ही सॉ व कर डाली थी। इसिलए अगर तुम बंसल क आ मह या
म पनाह तलाशना चाहती हो तो उसका तु ह कोई फायदा नह होने वाला।”
“अ छा म भी तो सुनूं क दरवाजा भीतर से कै से बंद कया गया था।”
जवाब म मने नरे श चौहान से हािसल जानकारी उसके आगे दोहरा दी, फर बोला, “वो
भेद य क पहले ही पुिलस पर जािहर हो चुका था इसिलए बाद म तु हारे बॉस का वहां
प चं कर दरवाजे पर बने तार के िनशान को िघसकर िमटाना बेमानी काम सािबत आ।
हालां क कामयाब तो वो फर भी नह हो पाया, य क तभी मने वहां प च ं कर उसका
खेल िबगाड़ दया था। ले कन वो कामयाब हो भी जाता तो उस बात से कोई फक नह
पड़ने वाला था। अलब ा ये बात मुझे अभी तक समझ म नह आई क तुमने उस काम के
िलए उसे या कहकर तैयार कया था। कौन सी प ी पढ़ाई थी तुमने सािहल भगत को, जो
वो तु हारे इशार पर नाचने म कामयाब हो गया?”
“बक चुके।”
“नह अभी और सुनो, कल रात डॉलस क सूरत म जो रकम मीता स सेना के लैट से
बरामद ई थी, वो बोरे म भरकर तुमने ही वहां तक प च ं ाया था। यही नह सुशील नाम
का सािहल का जो कमचारी ग े के िड ब म भरा पया महेश बाली के लैट म रखने

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गया था। उसके मोबाइल पर बाली क बहन बनकर तुमने ही िब डंग के चौक दार से बात
क थी। कहो क म झूठ बोल रहा ।ं ”
“तुम सात ज म म मुझे काितल सािबत नह कर सकते।”
“वो भी देखगे वीट हाट!”
“यािन तुम बाज नह आओगे।”
“ कतनी समझदार हो! तो अब बंदा पुिलस को फोन करे ।”
“कै से करोगे।”
“जािहर है मोबाइल से।”
“वो तो तुम तब करोगे डा लग! जब तु ह नंबर डॉयल करने का मौका िमलेगा।”
कहकर उसने सोफे पर रखा अपना हाथ ऊपर उठाया तो उसम एक न ह सी हाथी दांत
के मूठ वाली रवा वर के मुझे दशन ए।”
“करो फोन!” - वो फुं फकारती ई बोली - “देखती ं तुम नंबर पहले डॉयल करते हो
या म गोली पहले चलाती ।ं ”
म हड़बड़ा सा गया। तब जाकर पहली बार म ये सोचने पर मजबूर आ क म हवा म
तीर नह चला रहा था, बि क काितल के सामने बैठा उसके गुनाह क पोटली खोल रहा
था।
“तो तुम कबूल करती हो क चार क ल तुमने ही कए ह।”
“अभी भी कु छ बाक रह गया या?”
“जब इतना कबूल कर ही चुक हो तो लगे हाथ वजह भी बयान कर डालो।”
“तुम खुद ही य नह बता देते, आिखर इतने आलम-फािजल बने फरते हो।”
“अगर मेरे मुंह से सुनना चाहती हो तो सुनो, इन सारी ह या के पीछे अहम वजह
दौलत ही थी। अलब ा सोनाली क ह या के मामले म ब त बड़ी दौलत का हाथ था। वो
दौलत जो तुम सािहल भगत से याह रचाकर हािसल करना चाहती थी। सोनाली क
ह या म तु ह दोहरा फायदा था। नंबर एक उसक मौत के बाद सािहल भगत तुमसे शादी
कर सकता था, य कर सकता था मुझे नह मालूम। मगर ऐसा अगर तुम महज सािहल से
अपने अफे यर क वजह से सोच रही हो तो मुझे तरस आता है तु हारी अ ल पर! सािहल
क बीवी बनने का वाब देखने से पहले तु ह ये सोचना चािहए था क सािहल जैसे
अरबपित लोग तुम जैसी लड़ कय को अपना मनपसंद िखलौना मान सकते ह, बड़ी हद
रखैल बनाकर रख सकते ह। मगर शादी तो वो खानदानी लोग म ही करते ह।” - कहकर
म तिनक का फर बोला - “बावजूद इसके म मानकर चल रहा ं क तु ह इस बात का
पूरा यक न था क सोनाली के मरते ही सािहल तु ह अपनी बीवी बना लेगा। मगर
सोनाली को रा ते से हटाने का हौसला तुम अपने भीतर नह जुटा पा रही थ । उधर
सोनाली और सािहल के तलाक के मामले म द ली अभी दूर थी। तु हारी ये मुि कल
राजेश बंसल ने आसान कर दी। िजसने तु हारे सामने ना िसफ सोनाली क ह या का
ताव रखा, बि क उसम सािहल भगत को फं साकर एक मोटी रकम ठने का मंसूबा भी
जािहर कर दया।”

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“तु ह उस रकम के लालच ने नह सताया, य क तुम तो सािहल से शादी करके दौलत
के अंबार पर बैठने का मंसूबा बांधे बैठी थ । जो क सोनाली के जीते जी मुम कन नह था।
इसिलए तुमने बंसल क योजना म शािमल होने क हामी भर दी। आगे सबकु छ बंसल के
लान के मुतािबक ही आ। य क वो पहले भी इस तरह के ाईम को पूरी सफलता से
अंजाम दे चुका था। नतीजा ये आ क साढ़े चार करोड़ क रकम तुम लोग के हाथ लग
गई। िजसका पूरी ईमानदारी से तुम चार के बीच बंटवारा भी हो गया। मगर इससे
तु हारी तस ली नह ई। ज दी ही तु ह लगने लगा क इस तरह तो सािहल से शादी के
बाद वो तीन िमलकर या फर उनम से कोई भी तु ह लैकमेल कर सकता था। तब तुमने
वो भयानक फै सला िलया िजसके बारे म सोनाली क ह या से पहले तुम सोच भी नह
सकती थ । तुमने अपने तमाम राजदार के मुंह एक-एक करके बंद करने शु कर दये।”
“इस िमशन के तहत तुमने अपना सबसे पहला िशकार बाली को चुना। िब डंग क
टू टी ई बाउं ी वॉल के रा ते तुम उसके लैट तक प च ं ी। बड़े ही दो ताना माहौल म
उसने तु ह ाइं ग म म अटड कया। आिखर वो ना िसफ सोनाली क ह या म तु हारा
पाटनर था बि क तु हारा भूतपूव आिशक भी था। बस एक बात समझ म नह आ रही क
जब तुमने रवा वर िनकालकर उसके माथे से सटाया तो उसने बचने क कोिशश य नह
क ?”
“जानना चाहते हो?”
“हां लीज!”
“उसक बड़ी वजह थी बाली क कु जैसी फतरत, क ं के दौरान उसने मौका पाते
ही मुझे दबोच िलया। तब मने उसे धके ल कर वािपस सोफे पर बैठा दया और उसके
एकदम सामने जाकर खड़ी हो गई। रवा वर मने अपनी ज स म पीठ क तरफ ख स रखा
था। िजसक उपि थित िछपाने के िलए मने उस रोज खूब ढीला-ढाला कु ता पहना आ
था। म उसके सामने खड़ी ई तो उसने मुझे ‘राजी‘ समझ िलया और मेरे बदन से खेलने
लगा। तभी मने रवा वर िनकालकर उसके माथे से सटाया और एक पल क भी देरी कए
िबना उसे शूट कर दया। बेचारा बाली कु छ समझ पाने से पहले ही जह ुम प च ं चुका
था।”
“दूसरा क ल तुमने िनहा रका ीव स का कया। मगर उसके क ल से एक रोज पहले
तुमने उसके ज रए मीता स सेना के लैट क डु लीके ट चाबी हािसल कर ली थी। जब
इतनी बात बता ही चुक हो तो लगे हाथ ये भी बता दो क उस चाबी के िलए तुमने
िनहा रका को कौन सी प ी पढ़ाई थी।”
“कु छ खास नह , मने बस उसे इतना समझाया क बाली के िह से के एक करोड़ साढ़े
बारह लाख पये मीता स सेना के हाथ लग गये हो सकते ह। य क पुिलस क त तीश
म बाली के लैट से वो पये बरामद नह ए थे। ऐसे म अगर मीता के लैट क भरपूर
तलाशी ली जाए तो वो पये हमारे हाथ लग सकते थे जो क हम दोन आधा-आधा बांट
लगे।”
“वो तलाशी उसने उसी व य नह ली जब वो सुनीता से चाबी हािसल कर उसके

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लैट म जा बैठी थी।”
“ली तो ज र होगी प ी ने मगर वहां कु छ होता तब तो उसके हाथ लगता। फर उसके
पास टाईम का तोड़ा भी तो था इसिलए सरसरी तलाशी लेकर ही वो वािपस लौट आई
होगी। बहरहाल उसी रोज उसने मीता के लैट क डु लीके ट चाबी बनवाकर असली चाबी
उसे लौटा दी।”
“ फर तो बस बंसल के क ल क ही बात रह जाती है। मेरा दावा है क उसने तु ह कसी
एकाउं ट म हो रहे हेर-फे र क जानकारी देने के नह बुलाया था, बि क तुम खुद वहां गई
थ । य क तुम उस आिखरी श स का मुंह हमेशा के िलए बंद कर देना चाहती थ , जो
सोनाली क ह या से तु हारा र ता जोड़ सकता था।”
“यहां तु हारी सारी ला नंग बंसल क ह या को आ मह या का जामा पहनाने क थी।
मगर वो ला नंग फे ल भी हो सकती थी, इसिलए लगे हाथ तुमने मीता स सेना क
मौकायेवरदात पर हािजरी का इं तजाम भी कर डाला। मुझे यक न है क बंसल के
लडलाइन नंबर से मुकेश गु ा बनकर जो कॉल मीता स सेना को क गई थी, वो ज र
तुमने रवा वर क नोक पर बंसल से करवाई होगी। इसम कोई शक नह क बंसल क
ह या के िलए तुमने ब त शानदार जाल बुना था। दरवाजा भीतर से बंद, कमरे म लाश
और लाश के हाथ म िप तौल। यािन ह या को आ मह या सािबत करने वाले तमाम सा य
वहां मौजूद थे। ये तो तु हारा बैडलक ही कहा जाय क दरवाजे के ऊपरी िह से पर तार
को ख चे जाने से बने िनशान व से पहले पुिलस क िनगाह म आ गये, वरना तो तु हारे
आिशक ने उ ह िमटाने म कोई कसर नह छोड़ी थी। एक बार अगर उन िनशान का वजूद
ख म हो जाता तो तु ह मीता स सेना के लैट म नोट से भरा बोरा रखने क भी ज रत
नह पड़ती।”
फर कहानी यूं बनती क राजेश बंसल, महेश बाली और िनहा रका ीव स ने पूरी
ला नंग के साथ सोनाली भगत क ह या क और मौकायेवारदात पर सािहल भगत के
िखलाफ सबूत लांट करके उसे क ल के इ जाम म फं सा दया। फर मौकायेवारदात पर
शूट क गई वीिडयो सािहल भगत को बेचकर साढ़े चार करोड़ क रकम हािसल क । इसके
बाद राजेश बंसल ने दौलत के लालच म आकर अपने दो सािथय महेश बाली और
िनहा रका ीव स क भी ह या कर डाली। और आगे चलकर जब उसे लगने लगा क वो
कानून के चंगुल से नह बच पायेगा तो पकड़े जाने के डर से खुद को गोली मारकर
आ मह या कर ली।”
“के स लोज।”
जवाब म वो िखलिखलाकर हंसी, मगर उस हंसी म मासूिमयत नह थी, सै स अपील
नह थी, खुिशयां नह थ , वो तो ू रता से भरी ई हंसी थी। वैसी हंसी तो कोई डायन ही
हंस सकती थी।
उस हंसी ने मुझे भीतर तक िहलाकर रख दया।
फर अचानक ही उसक हंसी को ेक लग गया, “और कु छ कहना चाहते हो िम टर
िडटेि टव?”

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“अब तो बस यही क ग ं ा क बंदा तु हारी दमागी सूझ-बूझ को सलाम करता है।
िजसका इ तेमाल अगर तुमने कसी अ छे काम के िलए कया होता तो यक नन आज तुम
बुलं दय पर होत । मगर अफसोस क आगे तु हारा मुकाम जेल क सलाख के पीछे
होगा।”
“बड़े ही खुशफहम इं सान हो िम टर िव ांत गोखले! रवा वर मेरे हाथ म है और
धम कयां तुम दे रहे हो, ऐसा कै से चलेगा?”
“तुम मुझे नह मार सकती।” म डरे ए लहजे म बोला।
“ज र तुमने आबेहयात पी रखा होगा, नह ?”
“ऐसा तो खैर नह है ले कन मने तु हारा या िबगाड़ा है?”
“कमीने!” - वो अचानक ही फट पड़ी - “सबकु छ िबगाड़कर पूछता है क तूने मेरा या
िबगाड़ा है, ठहर जा साले!”
कहते ए उसने िबजली क सी फू त से सामने रखे सटर टेबल म अपने दोन पैर फं साये
और जोर से मेरी तरफ धके ल दया। मेरा संतुलन िबगड़ा, म कु स पर बैठे-बैठे पीछे क
ओर उलट गया। मेरा िसर भड़ाक से दीवार से टकराया। दमाग म अनार से फू टने लगे और
मुंह से ना चाहते ए भी चीख िनकल गई। इतनी ही गनीमत रही क उस चोट ने मेरे
होशो हवास नह छीन िलए।
अभी म उस तकलीफ से उबरकर उठने क कोिशश कर ही रहा था क तभी उसने सोफे
के बगल म रखा फू लदान पूरी ताकत से मुझपर ख च मारा जो क िसर बचाने क कोिशश
म मेरी छाती से टकराया। एक बार फर मेरे मुंह से चीख िनकल गयी, आंख के आगे
अंधेरा छाने लगा, मने अपनी सारी ताकत खुद को बेहोश होने से बचाने क कोिशश म
लगा दी। मगर उसने उतने से बस नह कया। फू लदान उठाकर ताबड़तोड़ ढंग से तीन-चार
वार फश पर पसरे मेरी टांग पर कर दया। म हलाल होते बकरे क तरह डकारा।
“ साले, भोस..वाले, मादर चो.., कहता है मने तु हारा या िबगाड़ा है।” - गािलयां
बकते ए उसने रवा वर क नाल मेेरी कनपटी से सटाया और दांत पीसती ई गुराई -
“ साले हराम के जने, तूने छोड़ा ही या है मेरे पास! सबकु छ तो बरबाद कर डाला। मेरे
सपने िमटा डाले, मेरा यूचर तबाह कर डाला और पूछता है िबगाड़ा या है?”
रवा वर मेरी कनपटी पर लगाये ए वो मेरे पास उकड़ू होकर बैठ गई और फू ट-
फू टकर रोने लगी, फर फौरन यूं शांत हो गई जैसे िबजली का ि वच दबाकर ब ब बंद कर
दया गया हो, इसके बाद बड़े ही खतरनाक अंदाज म मेरी कनपटी पर रवा वर क नाल
गड़ाती ई बोली, “अब म तुझसे एक सवाल पूछती ।ं ”
म खामोश पड़ा रहा, जाने या पूछने वाली थी वो?
“जवाब दे कमीने वरना रवा वर क सारी गोिलयां तेरे भेजे म उतार दूग
ं ी।”
“तुम सवाल तो करो।” म डरते-डरते धीरे से बोला।
“सवाल! हां सवाल तो म करना ही भूल गयी।” कहती ई वो उठकर खड़ी हो गई।
ठीक तभी बाहर से दरवाजा भड़भड़ाया जाने लगा।
“कौन है?” - वो गला फाड़कर िच लाई - “दफा हो जाओ यहां से वरना जान ले लूंगी।”

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“पुिलस!” - मैन चौहान क आवाज साफ पहचानी - “फौरन दरवाजा खोलो वरना हम
तोड़ दगे।”
“तोड़ देगा, देखो तो साले को एक दो टके का पुिलसवाला मुझे धमक दे रहा है क
दरवाजा तोड़ देगा।” - कहती ई वो तेजी से दरवाजे क ओर बढ़ी - “ठहर जा साले तू
जानता नह क म म टीिमलेिनयर क बीवी !ं अभी बताती ं तुझ।े ”
कहकर उसने रवा वर का ख जैसे ही दरवाजे क ओर कया म गला फाड़कर
िच लाया, “चौहान बचो वो गोली चला रही है।”
मगर तब तक वो तीन फायर कर चुक थी। जो दरवाजे को छेदकर बाहर कसी को
लगा था या नह ये जानने का मेरे पास कोई साधन नह था।
म उसपर िनगाह रखते ए अपनी जगह से धीरे -धीरे उठने क कोिशश करने लगा।
“मैडम रवा वर फककर खुद को कानून के हवाले कर दो।” - चौहान क आवाज गूंजी -
“वरना बेमौत मारी जाओगी।”
“मार साले, िहजड़े क औलाद मारता य नह ।” कहकर उसने फर दरवाजे क ओर
ताबड़तोड़ दो फायर कर दये।
ये वो पहला व था जब मेरी तरफ से उसका यान भटक गया, मने मौके का पूरा
फायदा उठाते ए अपने शरीर क बची खुची ताकत बटोरी और उठकर उसपर छलांग
लगा दी। इस कोिशश म म उसे िलए दए फश पर जा िगरा। वो मुंह के बल फश पर िगरी
थी। उसका माथा भड़ाक से फश से टकराया और वो अपने होश खो बैठी। म जैसे तैसे उसके
ऊपर से उठकर खड़ा आ, अलब ा मेरी टांगे मेरे शरीर का भार उठाने से इं कार कये दे
रही थ । मने सबसे पहले रवा वर को उसक प च ं से दूर कया और दीवार के सहारे
चलता आ आगे बढ़कर दरवाजा खोल दया।
“तू ठीक तो है।” भीतर घुसते ही चौहान ने सवाल कया। “अगर कोई पसली-वसली ना
टू टी हो, टांग म ै चर ना आया हो तो समझ लो ठीक ।ं ”
“मर गई?”
“कहना मुहाल है, खुद देख लो।”
जवाब म वो मं दरा के पास उकड़ू बैठकर उसक न ज टटोलने लगा। फर उठ खड़ा
आ।
“अभी जंदा है, इसे फौरन अ पताल भेजवाने का इं तजाम करना होगा।”
कहकर वो मोबाइल पर त हो गया।
उस दौरान म कांखता-कराहता लैट म रखे वाडरोब तक प च ं ा। िजसके भीतर एक
नजर डालते ही वहां रखा वीिडयो कै मरा मुझे दखाई दे गया। उसे सावधानी से हडल
कया जाना ज री था, य क मं दरा के बच जाने क सूरत म उस वीिडयो कै मरा का
दरजा उसके िखलाफ एक अहम सबूत का होता। बशत क अभी भी उसके भीतर सोनाली
के क ल वाली रका डग सुरि त होती।
मने एक उं गली क सहायता से उसे ऑन कया और उसके भीतर मौजूद वीिडयो को ले
कर दया।

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मेरी मुराद पूरी ई! रका डग सुरि त थी।
मने चौहान को उसक जानकारी दी, फर हम दोन ने िमलकर एक चाबी भी वहां से
बरामद कर ली, जो मीता स सेना के लैट क थी या नह ये तो बाद म पता चलना था,
मगर थी वो कोई डु लीके ट चाबी ही, ऐसा उसक बनावट से साफ पता चल रहा था।
म ा म म वािपस लौटा और सोफे पर पसर कर एक िसगरे ट सुलगाने का उप म
करने लगा।
दस िमनट बाद वहां एक एंबुलस प च ं ी जो मं दरा जोशी को लेकर वहां से रवाना हो
गई। तब तक उसे होश नह आया था।
उन ीस जनवरी 2018
वो एक छोटी सी पाट थी जो सािहल भगत क ओर से उसके छतरपुर के इलाके म
ि थत फॉम हाउस पर अरज क गई थी। िलहाजा बीवी क ह या और महबूबा के जेल जाने
का गम वो भूल भी चुका था।
उस पाट म मेजबान क तरफ से आपके खा दम के अलावा शीला वमा, नरे श चौहान,
नीलम तंवर, मीता स सेना, और राके श दीि त को इनवाइट कया गया था। ये सभी वो
लोग थे जो कसी ना कसी प म सोनाली भगत के क ल वाले के स से जुड़े ए थे।
इनवाइट तो उसने एसीपी पांडे और उसके डीसीपी को भी कया था, मगर उन दोन ने ही
असमथता जताते ए पाट म िशरकत करने से इं कार कर दया था।
बहरहाल पाट उनके िबना भी जारी थी।
उस घड़ी हम सभी एक गोल मेज के ईद-िगद बैठे ए थे। मद के हाथ म िव क के
िगलास थे, जब क लड़ कयां ऑरज जूस पी रही थ ।
तभी सािहल भगत अपने िगलास से मेज खटखटाता आ बोला, “आइ वांट टू से थ स,
टू ऑल ऑफ यू गाइज! िबकाज यू हैव िगवन मी फे वर इन सम फॉम! कसी ने कम कया,
कसी ने यादा कया तो वह कसी ने अनजाने म कया। पेिस फकली आई हेव टू से
थ स अ टन टू िव ांत गोखले, दी ेट ाइवेट िडटेि टव! िजसक बदौलत ना िसफ मेरी
बीवी क ह या का राज खुला, बि क काितल क िगर तारी भी िसफ इसी क वजह से
संभव हो पाई।”
जवाब म वहां जोरदार लै पंग ई।
“थ यू बॉस!” म तिनक िसर नवाकर बोला।
“साहबान! बात िसफ इतनी नह है, इसिलए नह है य क म एक िबजनेस मैन ।ं हर
बात को नफे और नुकसान के तराजू पर तौलकर देखना मेरी फतरत है। इसिलए म
बेिझझक ये वीकार करता ं क मुझे सोनाली और मं दरा के हौलनाक अंजाम का तो दुःख
है, मगर इस बात का जरा भी अफसोस नह है क आज वो दोन ही मेरी जंदगी म नह
ह।”
सब हकबका कर उसक श ल देखने लगे।
“म जानता ं मेरी बात आप सभी को नागवार गुजरी होगी। मगर जरा सोचकर
देिखए, एक शादीशुदा औरत का पराये मद के साथ संबंध रखना या जायज था! मेरी

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सहानभूित शायद फर भी उसके साथ होती, बशत क उसक नीयत, महेश बाली के साथ
शादी करके जंदगी गुजारने क होती। अब म मं दरा जोशी पर आता !ं एक बार सोनाली
से तलाक लेने का फै सला कर चुकने के बाद मं दरा के भीतर मुझे एक िन ावान प ी का
अ स दखाई देने लगा था। मगर वो तो सोनाली से भी चार कदम आगे िनकली। इस बात
क या गारं टी थी क मुझसे शादी करने के िलए सोनाली को मौत के मुंह म प च ं ाने वाली
लड़क , कल को कसी और के िलए मेरा गला नह काट देती? अब आप खुद सोचकर
देिखए क ऐसी औरत के अपनी जंदगी से दूर चले जाने का दुःख मुझे य कर होना
चािहए।”
कसी के पास उस बात का कोई जवाब नह था।
“इसिलए उनके अंजाम का मातम मनाने क बजाय, टेक युअर पैग एंड से िचयस िवद
मी! फॉर बोथ ऑफ दोज ग स। िजनम से एक मेरी होकर ना रह सक और दूसरी जो मेरी
होते-होते रह गयी।”
सबने एक साथ िचयस बोला। जब मेजबान को खुद उन दोन के अंजाम क परवाह
नह थी तो बाक लोग भला य गमगीन होने का नाटक करते।
िलहाजा क ं का दौर चलता रहा। उस दौरान म उठकर सािहल भगत के बगल म
खाली पड़ी एक चेयर पर जाकर बैठ गया।
“कु छ कहना चाहता है।”
“नह कु छ पूछना चाहता ।ं ”
“रहने दे म खुद ही बताये देता ।ं ”
“तु ह मालूम है क म या पूछने वाला ?ं ”
“हां एक ही तो सवाल बाक रह गया है िजसका जवाब तुझे मेरे बताये िबना नह
मालूम हो सकता।”
“ फर तो फौरन बताओ, लीज!”
“ठीक है सुन, मुझे पहले से ही मालूम था क बंसल का क ल मं दरा ने कया था।”
“कमाल है! फर भी तुमने उसक बाबत मुंह नह खोला?”
“उसक वजह थी! दरअसल बंसल के क ल को लेकर मं दरा ने जो टोरी मुझे सुनाई,
उसे सुनते ही म लैट हो गया था।”
“कमाल है ऐसी भी कौन सी लोरी गाकर सुना दी उसने तु ह जो तुम उसका साथ देते
चले गये।”
“बंसल के क ल के बाद वो सीधा मेरे बंगले पर प चं ी थी। वहां प च
ं कर मं दरा ने मुझे
बताया क उसने बंसल को शूट कर दया है! सुनकर मेरे तो होश ही उड़ गये। आगे जब मने
उससे बंसल के क ल क वजह पूछी तो उसने मुझे बताया क बंसल ने ही महेश बाली और
िनहा रका ीव स के साथ िमलकर सोनाली क ह या क थी। उसने मुझे ये भी बताया क
बाली और िनहा रका का क ल भी बंसल का ही कारनामा था।”
“तब तुमने उससे सवाल नह कया क उसे ये बात कै से पता चली?”
“ कया था, जवाब म उसने बताया क साढ़े चार करोड़ पय से भरे सूटके स क

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तु हारे ऑ फस म िडलीवरी को लेकर, उसे शु से ही बंसल पर शक था, क उसने
िडलीवर करने से पहले ही दोन सूटके स से सारे पये िनकालकर उसम र ी भर दी थी।
यह बात दन दन उसके मन म यूं गहरी पैठती जा रही थी क आिखरकार उसने बंसल के
घर क तलाशी लेने का फै सला कर डाला। फर क ल वाले रोज उसने ऑ फस म बंसल के
मेज क दराज से उसके लैट क चाबी हािसल क और डीडीए लै स प च ं कर उसके
लैट क तलाशी लेने लगी, उस दौरान ना िसफ साढ़े चार करोड़ पये उसके हाथ लग
गये बि क एक रवा वर भी उसे िमल गई, िजसके बारे म उसने अंदाजा लगाया क उसी
रवा वर से पहले बाली फर िनहा रका को शूट कया गया था। आगे उसने अपने बैडलक
का हवाला देते ए बताया क वो वहां से िनकलने भी नह पाई थी क ऊपर से बंसल वहां
प चं गया। मं दरा को वहां देखकर उसे समझते देर नह लगी क वो कस फराक म थी।
मगर इससे पहले क बंसल उसे कोई नुकसान प च ं ाता, उसने वहां से बरामद ई
रवा वर बंसल पर तान दया और गोली मार देने क धमक देते ए उसे अपना गुनाह
कबूल करने पर मजबूर कर दया। फर य ही बंसल ने ये वीकार कया क उसने ही
सोनाली क ह या क थी, मं दरा अपना आप खो बैठी और उसने रवा वर क नाल बंसल
क कनपटी से सटाकर उसे गोली मार दी।”
“कमाल है!” - म हैरानी जािहर कए िबना नह रह सका - “इतनी शानदार कहानी
गढ़ ली उसने बंसल के क ल क ?”
“अभी आगे सुन! उसने मुझे बताया क क ल के बाद वो वहां से बाहर िनकलने लगी तो
उसके मन म इस बात क आशंका जागी क कह पुिलस बंसल के क ल के िलए मुझे यािन
सािहल भगत को ही गुनहगार ना ठहराने लगे। तब उसने मुझे उस झमेले से बचाने के िलए
बंसल के क ल को आ मह या का जामा पहनाने क कोिशश क !” - कहकर वो तिनक का
फर बोला - “उसके िलए उसने मौकायेवारदात पर कै सा सीन एट कया था, तुझे पता
ही है। बहरहाल उसने मेरे सामने आशंका जािहर कया क िजस तार के ज रए उसने
दरवाजे को भीतर क तरफ से बंद कया था, उसके िनशान दरवाजे के ऊपरी िह से पर
मौजूद हो सकते ह, जो अगर पुिलस क िनगाह म आ गए तो उ ह समझते देर नह लगेगी
क बंसल ने आ मह या नह क थी बि क उसका क ल कया गया था।”
“ओह! तो मेरा अंदाजा सही था, परस रात तुम उन िनशान को िमटाने ही वहां प च ं े
थे।”
“हां मगर तूने कामयाब कहां होने दया।”
“उस काम म अगर तुम कामयाब हो भी जाते तो तु ह कोई फायदा नह होने वाला था,
य क चौहान पहले ही ताड़ चुका था क दरवाजा भीतर से कै से बंद कया गया था।” -
कहकर मने एक िसगरे ट सुलगाया फर बोला - “तुमने मं दरा से ये नह पूछा क दरवाजा
भीतर से बंद करने का इतना नायाब तरीका उसे कहां से सूझा?”
“वो कहती थी क उसने ‘ ाइम पे ोल‘ के कसी एिपसोड म ह यारे को ऐन वैसे ही
दरवाजा बंद करते देखा था।”
“ पय से भरा बोरा मीता स सेना के लैट म रखने वाला आइिडया कसका था?”

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“मं दरा का, उसम मेरी कोई भागीदारी अगर थी तो िसफ इतनी क मने अपने एक
कमचारी के ज रए वो पये बाली के लैट तक भेजवा दए थे। अलब ा कया वो भी मने
उसके कहने पर ही था।”
“ फर तुम बाली के लैट पर या करने गये थे।”
“उस बारे म मने थाने म एकदम सच बोला था। म सचमुच वहां कसी सू क तलाश
म गया था।”
“या कसी हसद के हवाले गये थे, ये देखने क तु हारी बीवी के आिशक का रहन-सहन
कै सा था?”
“गोखले!” उसने मुझे कसकर घूरा।
“सॉरी बॉस!”
“कोई बात नह अभी तो तेरी सारी खताएं माफ ह! - कहता आ वो अपना मुंह मेरे
कान के पास ले आया फर धीरे से बोला - “ य क सोनाली के क ल क वजह से मुझे
खरब पये का फायदा आ है।”
सुनकर म च क सा गया।
“नह समझा?” वो पूवतः धीमे वर म बोला।
मने इं कार म मुंडी िहलाई।
“अगर म सोनाली से तलाक लेता तो वो या फोकट म हो जाता। बावजूद उसक
बेवफाई सािबत करने के तमाम सबूत उपल ध होने के , वो अरब पये मुझसे झटकने म
कामयाब हो गयी होती। अब हालात ये ह क उसका शौहर होने के नाते उसक खरब क
संपि , जो हमारी शादी के समय उसे अपने बाप से िमली थी, खुद बा खुद मेरी हो गई
है।”
मने हैरानी से उसे देखा! कमाल का िबजनेसमैन था वो!
“बॉस खता माफ करने का वादा करो तो एक चुभने वाली बात कहना चाहता ।ं ”
“सब माफ है, बे फ होकर बोल!”
“तुमसे बड़ी कु ी चीज मने ता जंदगी नह देखी।”
जवाब म उसने एक ण को कड़ी िनगाह से मुझे घूरा फर हो-हो करके हंस पड़ा।
बहरहाल वो पाट रात यारह बजे तक चली। फर जब मेहमान के िवदा होने का व
आया तो सािहल ने अपने एक नौकर को कु छ इशारा कया। जवाब म भीतर जाकर वो
रं ग-िवरं गे कागज से पैक कए गये ढेर सारे पैकेट उठाकर वहां ले आया। हर एक पैकेट पर
वहां मौजूद लोग म से कसी ना कसी का नाम िलखा दूर से ही दखाई दे रहा था।
“ये सब या है?” म पूछे िबना नह रह सका।
“यहां मौजूद सभी मेहमान के िलए मेरी तरफ से खास तोहफा! साथ ही मेरी र े ट है
क इसे आप अपने-अपने घर प च ं कर ही खोल और तोहफे के संदभ म आपम से कोई भी
मुझे कॉल ना कर! थ यू बोलने के िलए भी नह , य क म ब त त आदमी ।ं ”
जवाब म कोई कु छ नह बोला।
त प ात सािहल भगत पैकेट पर िलखा नाम पढ़-पढ़कर पैकेट हम पकड़ाने लगा।

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इसके बाद एक-एक करके सारे मेहमान वहां से खसत होने लगे। सबसे आिखर म म,
शीला और मीता स सेना के साथ बाहर िनकला। मीता से मेरा वादा था क म वापसी म
उसे उसके लैट तक छोड़कर आऊंगा, अलब ा वहां तक प च ं ी वो अके ली ही थी।
हम तीन मेरी कार म सवार होकर वहां से चल पड़े।
“ या होगा इस पैकेट म!” शीला जैसे खुद से बोली।
“भगत इं ड ीज का कोई नया ोड ट होगा, जो अभी माकट म लांच नह आ होगा।”
“ फर तो ज र कोई महंगा आइटम ही होगा, आिखर िग ट करने वाला
म टीिमलेिनयर आदमी है।”
“तू खोलकर देख य नह लेती?”
“भूल गये उसने या कहा था?”
“ या कहा था?”
“यही क पैकेट हम घर प च ं कर ही खोल।”
“ फर तो ज र पैकेट म कोई टाईम बम होगा, िजसे उसने आधे घंटे के बाद के व पर
सेट कर रखा होगा। वो नह चाहता होगा हम रा ते म मरकर ै फक जाम कर द! आिखर
सुबह उसे इसी रा ते से ऑ फस भी तो जाना होगा।”
“बको मत! देख लेना इसम कोई क मती आइटम ही होगा।”
“अरी बावली खोलकर देख य नह लेती, खोल और खोलकर स पस दूर कर अपना
और साथ म हमारा भी।”
“ठीक है खोलती ।ं ” - कहकर वो पैकेट खोलने म त हो गई, फर मुझे उसक
कलकारी सुनाई दी - “ओ माई गॉड! ओ माई गुड गॉड! यक न नह आता क कोई इतना
द रया दल भी हो सकता है।”
जवाब म मने बैक ू िमरर म से देखा तो दोन लड़ कय क आंख मुझे फट पड़ने को
उता दखाई द ।
“ज र उसने तुझे मंगनी क अंगूठी दी है! है न?”
“उससे कम भी नह है यार! जानते हो इस पैकेट म या है?”
“कु छ बताएगी तभी तो जानूंगा।”
“सौ-सौ डॉलर के नोट क दो गि यां िग ट म दी ह उसने मुझे!”
सुनकर म स रह गया।
“जरा बताओ तो िव ांत इसक इं िडयन वै यू या होगी?”
“सौ डॉलर क दो गि यां, यािन बीस हजार डॉलर! अगर पसठ का भी भाव चल रहा
हो तो तेरह लाख पये!” - मेरे मुंह से िससकारी सी िनकल गई - “शीला तेरी तो लॉटरी
लग गई।”
“हां, वो भी ब पर वाली।”
“तुम भी अपना पैकेट खोलकर य नह देख लेत !” - म मीता स सेना से बोला -
“देखो उसम भी नोट ही भरे ह या और कु छ है?”
“नह म नह खोलूंगी, अगर उसम नोट ना ए तो मेरी तौहीन हो जाएगी।” वो हंसती

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ई बोली।
“ फर तो ज र खोलो!” - शीला बोली - “अगर तु हारे पैकेट म से नोट नह िनकले तो
म वादा करती ं क इसम से एक ग ी म तु ह दे दूग ं ी।”
ऐसी ही थी शीला, और होती भी य नह आिखर अपने बाप क जंदगी म उसक
हैिसयत भी सािहल भगत जैसी ही तो थी।
“तुम मजाक कर रही हो?” मीता हैरानी से बोली।
“नो नैवर! िव ांत गवाह है मेरी बात का, बोलो िव ांत हो न?”
“िब कु ल ं वीट-हाट!”
उसके बाद मीता स सेना ने अपना पैकेट खोला। उसे िनराश नह होना पड़ा! उसम भी
ऐन उतनी ही रकम बंद थी।
म हैरान रह गया। सािहल भगत पर या अचानक ही परोपकार का कोई भूत सवार हो
गया था, जो उसने यूं दल खोलकर अपनी दौलत लुटाई थी।
“अब तुम अपना पैकेट इधर करो।”
“रहने दे मेरा पैकेट ब त ह का है, उसम नोट क गि यां नह हो सकत ।”
“अरे दखाओ तो!” - कहते ए उसने खुद ही पैसजर सीट पर रखा मेरा पैकेट उठा
िलया - “ये तो सचमुच ब त ह का है, ज र उसने तु ह इतनी ही रकम का चैक काटकर
दया होगा।”
कहकर वो पैकेट खोलने म त हो गई। फर च कती ई बोली, “अरे इसम तो टॉ प
पेपर भरे पड़े ह।”
“ या बक रही है?”
“सच कह रही ,ं मगर लक नह ह! को मुझे जरा पढ़ने दो इसम या िलखा है।”
“ज र उसने अपने सारे असे ट मेरे नाम कर दए ह गे।” म हंसता आ बोला।
“वेट करो लीज!” - कहकर वो उन कागजात को पढ़ती रही, फर बोली - “िव ांत!”
“यस माई िडयर।”
“यू आर ए लक डॉग!”
“अगर कु ा ही कहना है तो उसके आगे लक लगा या मत लगा या फक पड़ता है।”
“आइ हैव ए िबग सर ाइज फॉर यू डा लग।” वो मेरी बात को नजरअंदाज करके
बोली।
“अब स पस मत फै ला वरना म ए सीडट कर बैठंू गा।”
“ठीक है सुनो, मौकायेवारदात अब तु हारे हवाले है।”
“अरे कौन सी जुबान बोल रही है यार!
“म सच कह रही !ं सािहल भगत ने अपना वसंतकुं ज वाला लैट तु हारे नाम कर
दया है।”
“कमाल है!” म हकबका-सा गया।
तब तक म साके त प च ं चुका था। मीता को उसके लैट के सामने उतारकर म
कालकाजी क ओर ाईव करने लगा।

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उपसंहार
शीला और मीता के अलावा चौहान और राके श दीि त को भी सािहल भगत ने डालस
के नोट क दो-द गि यां िग ट क थ । अलब ा नीलम के िग ट पैकेट म दो क बजाय
पांच गि यां थ ।
मं दरा जोशी के िसर म लगी चोट घातक िस ई। अ पताल म इलाज के दौरान
तीसरे दन उसक मौत हो गई। अलब ा मौत से पहले पुिलस उसका बयान हािसल करने
म कामयाब रही थी। िजसम उसने ना िसफ सोनाली क ह या म अपनी भागीदारी कबूल
क बि क बाली, िनहा रका और बंसल का क ल खुद कया होने क बात भी वीकार क
थी।
देखा जाय तो मौत के मुंह म समा जाना उसके िलए फायदे का सौदा रहा, वरना उसके
अपराध क गंभीरता को देखते ए ये अंदाजा लगा पाना मुि कल नह था क आगे उसक
तमाम जंदगी जेल क काल कोठरी म ही गुजरनी थी।
सािहल भगत ने वसंतकुं ज वाला जो लैट आपके खा दम को िग ट कया था, उसके
पेपर म अगली ही सुबह उसे लौटा आया था। य क उसम से मुझे अपना मेहनताना नह
बि क खैरात क बू आती महसूस हो रही थी। जो क बंदे को - भी कबूल नह था।
अलब ा अपनी फ स वसूलने म मने उसका कोई िलहाज नह कया और उसके दये
लक चैक म प ीस लाख क रकम भरकर अपने एकाउं ट म जमा कर दया जो क सेम
बक होने क वजह से हाथ के हाथ लीयर हो गया था।

समा

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