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क्रांतिदूि

झराँसी फरइल्स िथर करशी

मैंने डॉ मनीष श्रीवास्तव की यह दोनों पस्ु तकें बिना बकसी जानकारी और अपेक्षा के प्रारंभ की थीं। पर जि शरूु की
तो बिना समाप्त बकये रखना कबिन हो गया। भारत के सनु -े अनसनु े, जाने-अनजाने क्ांबतदतू ों की यह जीवन गाथा
उनके समय में ले जाने का अद्भुत प्रयास हैं यह पस्ु तकें । मनीष जी ने बजस तरह से क्ांबतकाररयों के जीवन, उनके
सघं षष, उनके उद्देश्य, उनके मानवीय पहलओ ू ं के इदष बगदष अपनी लेखनी जोड़ी है वह वाकई प्रशसं नीय है।
पस्ु तक पढ़ एहसास हुआ बक बिबस्मल, सबिन्द्रनाथ सान्द्याल, राजेन्द्र लाबहड़ी, अशफ़ाक़, आज़ाद, भगत बसंह,
सख ु देव, राजगरुु ,यह सभी क्ांबतदतू होने के साथ एक आम इसं ान भी थे। वो हँसते भी थे, मज़ाक भी करते थे,
आपस में लड़ते- झगड़ते भी थे। इस सि के िावजदू उन्द्होनें अपना ध्येय अपना जीवन िबलदान कर प्राप्त बकया।
यह देश उन्द्हें क्यों भल
ू गया, यह अपने आप में शोध का बवषय है।
उन्द्हीं सि भल
ू ी-बिसरी यादों को एक क्म में सजाने का यह प्रयास सराहनीय है।
क्ांबतदतू श्ररंखला संभवतः10 भागों में प्रकाबशत होगी। पहले दो भाग जो मैंने पढ़े वो अभी आज़ाद के झांसी और
काशी के प्रवास और शेखर के िंरशेखर आजाद िनने और बनखरने की गाथा है।
मैं उन सि को, जो भारत के भूले और शायद नकारे क्ाबं तकारी पवष को जानना िाहते हैं, को यह पस्ु तकें
recommend करता ह।ँ इबतहास को उपन्द्यास लेखनी की तरह से प्रस्ततु करने का यह अनिू ा प्रयास है। लेखक
को साधवु ाद।

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