You are on page 1of 7

साहित्यिक अनुसंधान एवं शोध पत्र में समीक्षा दृहि का मित्व

*प्रोफेसर कलानाथ हमश्र

ज्ञान हकसी एक सीमा तक आकर रूकती िै । ज्ञाहनयों के मन मत्यिष्क में


हिज्ञासा का भाव सतत् हवद्यमान रिता िै और उनके भीतर एक प्रकार का
अनुसंधान सदै व चलता रिता िै। इस प्रकार ज्ञान सतत आगे बढ़ता िै । उच्च
हशक्षा के क्षेत्र में शोध कायय या अनुसंधान का हवहशि स्थान िै । संधान का अथय
िै लक्ष्य हनधाय ररत करना या हनशाना लगाा। शोध शब्द का अथय िै संस्कार या
शु त्यि। हकसी हवषय या उसके हवहभन्न पक्षों को तथ्य, तत्व, तकय आहद कसौहियों
पर परखना या उसका शोधन करना िी शोध िै। अंग्रेिी के ‘ररसचय’ के पयाय य
के रूप में िी अनुसंधान शब्द का प्रयोगा िोता िै । डा. नगेन्द्र ने ‘अनुसंधान’
शब्द को िी मानक रूप में ग्रिण करने की बात किी िै । ‘‘ऐसी त्यस्थहत में
इस प्रसंग में एक शब्द का व्यविार त्यस्थर िो िाना चाहिए और मैं समझता हूँ
हक ‘अनुसंधान’ शब्द को िी व्यापक रूप में पाररभाहषक रूप दे दे ना चाहिए।’’

यिाूँ यि स्पि कर दे ना आवश्यक िै हक आलोचना और अनुसंधान दोनो


साहित्यिक अनुशीलन के िी दो पृथक हवधा िैं । दोनों में बहुत कुछ साम्य िोते
हुए भी अनुसंधान और आलोचना पयाय य निीं िं ैै । डॉ. नगेंद्र के अनुसार
आलोचना का शब्दाथय िै ैः सवाां ग हनरीक्षण। साहिि के क्षेत्र में आलोचना से
अहभप्राय िै , हकसी साहित्यिक कृहत का सां गोपां ग हनरीक्षण। इसके अंतगयत तीन
कतय व्य कमय आते िैं: (1) प्रभाव ग्रिण, (2) व्याख्या हवश्लेषण, और (3) मूल्ां कन
अथवा हनणय य । आलोचना मूलतैः कलाकृहत?? द्वारा प्रमाता के हृदय में उत्पन्न
प्रभाव को व्यक्त करती िै । अनुसंधान में आलोचनात्मक दृहि का िोना अहनवायय
िै । अनुसंधान में अन्वेषण पर अहधक बल रिता िै और आलोचना में हनरीक्षण-
परीक्षण पर।

शोध शब्द का प्रयोग मनुस्मृहत में स्पि करने या संदेि दू र करने के अथय में
हुआ िै । ‘‘हमट्टी से (पात्र आहद) शु ि िोते िैं , नदी वेगवती रिकर िी शु ि
िोती िै । स्नानाहद से शरीर शु ि िोता िै और मन सि से शुि िोता िै ।

अथाय त सि की हिज्ञासा िी शोध का मूल िै । शोध में प्राप्त सूचना, आं कड़ों


और तथ्यों को तिस्थ रूप से हववेचन हवश्लेषण कर शोध समस्या का समाधान
ढू ूँ ढने का प्रयास करना चाहिए। शोधाथी से अपेक्षा की िाती िै हक वि तिस्थ,
हनपेक्ष, विुहनष्ठ, तकयसम्मत दृहि एवं हववेकपूणय हववेचन द्वारा अनुसंधान के पररणाम
तक पहुूँ चे।
वैसे तो अनुसंधान को हकसी एक पररभाषा में समाहित करना संभाव निीं िै
हफर भी हवहभन्न हववेचन और व्याख्या के आधार पर शोध की एक समेहकत
पररभाषा प्रिुत की िा सकती िै -

‘‘शोध एक सुहवज्ञ हनदे शक के हनदे शन में शोध प्रहवहध का सम्यकपालन करने


वाले प्रहतभाशाली शोधक द्वारा हकसी हनहित हवषय पर हकया गया वि दृहिसम्पन्न
हवश्लेषण हववेचन िै , हिसमें तथ्य अनुसंधान के िर पर अज्ञात तथा अल्प ज्ञात
तथ्यों का अन्वे शन एवं भ्ां तज्ञात तथ्यों का संशोधन अभीि िै तथा सिान्वे षण
के िर पर तथ्यों के वगीकरण एवं हवश्लेषण के आधार पर हनभ्ाां त हनष्कषों
या सिों तक पहुूँ चने की विुहनष्ठ एवं तकय सम्मत साधना समाहित िै ।’’

हकसी सि को हनकिता से िानने के हलए शोध एक मित्त्वपूणय प्रहिया िोती


आई िै । शोध प्रबंध का स्वरूप और उसका चररत्र कई प्रकार के िो सकते
िैं । शोध प्रबंध मे कई भेदोपभेद िैं । हकन्तु शोध प्रबंध के हवषय चयन के समय
शोध के प्रकार, क्षेत्र और प्रहिहत पर हचंतन आवष्य कर ले ना चाहिए। मुख्य रूप
से शोध को हनम्न कोहि में बाूँ िा िा सकता िै -

1. साहििेहतिास से संबंहध शोध। 2. काव्यािास्त्रीय शोध। 3. भाषा वैज्ञाहनक से


िु ड़ा शोध। 4. शैली हवज्ञान, 5. पाठालोचन से िु ड़ा शोध, 6. लोक साहिि से संबि
शोध। 7. तुलनात्मक शोध, 8. अन्तरहवद्यावती शोध आहद। अन्तर हवद्यावती शोध के
हवकास के कारण अब अन्य हवषयों यथा इहतिस, भूगोल, समाि शास्त्र, मनोहवज्ञान,
दशय न आहद से िु ड़कर कई दृहियों से शोध िोने लगे िैं ।

बदलते समय में मानव समुदाय की सोच की संगत स्थाहपत करना भी शोध की
मित्ता िै । आि के युग में िब वैश्वीकरण और सूचना प्रौद्योहगकी के हविार ने
पूरी दु हनया के ज्ञान तन्त्र की सीमाओं को खोल हदया िै , प्रिेक शै हक्षक हवषय,
हवहभन्न प्रकार के शोध, हवषय के हवहभन्न प्रश्ों तथा अंतहवयषयी शोध के द्वारा
अपने को समृि करने की त्यस्थहत में िै। अब अंतहवयषयी शोध के माध्यम से
प्रिेक शै हक्षक हवषय, हशक्षानुशासन परस्पर संवाद की प्रहिया में िैं। फलतैः
अन्तहवयषयानुशासनात्मक शोध का मित्त्व बढ़ा िै । इससे हवहभन्न शै हक्षक हवषयों
का परस्पर आदान-प्रदान संभव हुआ िै। ऐसी त्यस्थहत में एक नए शोधकताय के
हलए शोध पिहत में प्रहशक्षण आवश्यक िै ताहक वि बेितर शोध कर सके।
एक अनुसंधानकताय बौत्यिक दृहि से, हिज्ञासा पूवयक और िमवार रूप से अपने
अनुसंधान कायय को पूरा कर सके इसके हलए आवश्यक िै हक वि शोध
उपकरणों का सिी प्रयोग करते हुए अपने शोध कायय को साथय क एवं उपयोगी
बनाए। इस िम में शोध के हनम्न तत्वों हनधाय ररत हकए गए िैं । 1.हवषय चयन
2. क्षेत्र हनधाय रण, 3. भाषा शै ली, 4. शोध दृहि, 5. तकय पिहत, 6.तत्वान्वे षण, 7.हनष्कषय।

शोध प्रहवहध का ज्ञान शोध करने के हलए शोधाथी को आवश्यक बौत्यिक


उपकरण प्रदान करता िै । शोध हवषय का चयन एवं शोध प्रारूप का हनमाय ण
अनुसंधान का मित्वपूणय अंग िै । हवषय चयन या शोध मागयदहशय का के हनमाय ण
से पूवय ऐसे हवद्वानों का सियोग ले ना चाहिए हिनके पास उस क्षेत्र की हवशे षज्ञता
िै । शोधकताय को हवषय से संबि सभी उपलब्ध साहििों से पूरी तरि पररहचत
िोना िोगा भी अहनवायय िै । शोधाथी को शोध-प्रहिया के हनम्न वहवध चरण पर
आगे बढना आवश्यक िै ।

1. हवषय-हनधाय रण 2. शोध-समस्या हनधाय रणअ 3. सम्बत्यित साहिि का व्यापक


सवेक्षण (survey of literature½ 4. पररकल्पना(Hypothesis) का हनमाय ण 5.
शोध की रूपरे खा तै यार करना 6. तथ्य-संग्रि एवं तथ्य-हवश्लेषण 7. पररकल्पना
की िाूँ च 8. सामान्यीकरण एवं व्याख्या 9. शोध प्रहतवेदन (Research Report)
तै यार करना।

शोधाहथय यों में शोध पिहत और प्रहिया का ज्ञान िोना आवष्यक िै । वैज्ञाहनक
दृहि और व्यविाररक ज्ञान िी शोधकताय को हनत्यचचत हदषा में आगे बढ़ने का
मागय प्रषि करता िै एवं उनके श्रम को व्यथय निीं िोने दे ता। इस दृहि से शोध
प्रारं भ करने के पूवय शोधकताय को अकादहमक पहत्रकाओं के माध्यम से हवषय
के संबंध में िानकारी प्राप्त करनी चाहिए, सम्मेलनों, काययशालाओं, प्रकाहशत या
अप्रकाहशत ग्रंथसूची तथा उसके लेखकों के हववरणों को नोि करना चाहिए
हिससे संदभय हनमाय ण में सिायता प्राप्त िो। शोधकताय आंैे को अच्छी पुिकालयों
का दौरा करना चाहिए तथा सभी स्रोतों से पररहचत िोना चाहिए िो भहवष्य में
मददगार िोंगे। यि शोध आले ख हलखने के हलए भी उतना िी आवश्यक िै ।
शोध सामग्री एकत्र करने के हनम्न स्त्रोत िो सकते िैं ।

1. प्रकाहशत ग्रंथ 2. अप्रकाहषत ग्रंथ 3. हवहभन्न ररपोिय 4. डायरी संस्मरण 5.


पत्राचार 6. रािपत्र (गिे हियर) 7. पत्र-पहत्रकाएूँ 8. हवषय से संबि व्यत्यक्त।

उक्त स्त्रोतों से सामग्री प्राप्त करने के बाद शोधाहथय यों को उनके प्रामाहणकता
की िाूँ च अवष्य कर ले नी चाहिए। शोध पिहत िे तु आूँ कड़े (डे िा) प्राप्त करने
और हवश्लेषण करने के हलए उपयोग हकए िाने वाले उपकरणों और तकनीकों
पर केंहद्रत िोती िै ।
हवहभन्न आूँ कड़े प्राप्त करने के िम में प्रश्ावली हनमाय ण भी शाहमल िै । अवलोकन,
और साक्षात्कार के साथ-साथ सां त्यख्यकीय और गैर सां त्यख्यकीय हवश्लेषण तकनीकों
तथा अनुसंधान तकनीकों का चयन और उसके हनमाय ण करने में भी इन तकनीकों
का उपयोग आवश्यक िोता िै । ऐहतिाहसक अनुसंधान के हलए ऐहतिाहसक
अहभले खों और दिावेिों, हशलाले खों के हवश्लेषण की आवश्यकता िोती िै ।
व्यत्यक्तगत साक्षात्कार या प्रश्ावली हवहध क्षेत्र अनुसंधान के मित्वपूणय साधन िैं ।
आधुहनक युग में िे लीफोन साक्षात्कार द्वारा भी समस्याओं के बारे में तथा हकसी
हवचार यथा पसंद, नापसंद आहद के बारे में लोगों से प्रहतहिया प्राप्त की िा
सकती िै । शोध प्रहिया में पूवय के शोधकताय ओं द्वारा प्रिुत मित्वपूणय हबन्दु तथा
साहिि समीक्षा पर भी हवचार हकया िाना आवश्यक िै , हिसके आधार पर नया
शोध समस्या का सम्यक समाधान

पर पहुूँ चा िा सकता िै । यिाूँ यि िानना आवश्यक िै हक साहिि की समीक्षा


दो प्रकार की िो सकती िै -1. वैचाररक साहिि की समीक्षा िै , हिसमें हसिां त
और अवधारणाएं शाहमल िैं । 2. दू सरा प्रकार का साहिि अनुभविन्य िै ।
अनुसंधान के प्रासंहगक भाग को बहुत मित्व दे कर अप्रासंहगक िानकाररयों को
िागना चाहिए। इससे अनुसंधान को अहधक से

अहधक हवहशि बनाया िा सकता िै। साहिि सवेक्षण के िम में शोध समस्या
तै यार करने के बाद एक संहक्षप्त सारां श हलखाना आवश्यक िै । शोध प्रबंध
हलखने वाले शोधाथी अपने हवषय तथा शोध प्रारूप को अनुमोदन के हलए चयन
सहमहत या अनुसंधान सहमहत को िमा करने की प्रहिया िै । शोध का आधार
हवज्ञान और वैज्ञाहनक पिहत िै , हिसमें ज्ञान भी विुपरक िोता िै । तथ्यों के
अवलोकन से कायय-कारण सम्बि ज्ञात करना शोध की प्रमुख प्रहिया िै । इस
अथय में यि स्पि िै हक ‘‘शोध का सम्बि आस्था से कम, परीक्षण से अहधक
िै ।’’

िब शोधकताय हकसी भी िर पर प्रबंध अथवा ले ख हलखते िैं तो सावधानीपूवयक


और पूरी तरि से साहिि समीक्षा करना आवश्यक िै। यि मूल गृिकायय िै।
सभी शोध पत्रों के हनमाय ण के हलए एक तथ्यपरक शोध हववरण (थीहसस
स्टे िमेंि) हलखना आवश्यक िै । इस तरि आप अपने पाठक को बता पाएं गे
हक आपने शोध की मूल बातें उपेहक्षत निीं की िैं । सवेक्षण के िम में यि
िान ले ना आवश्यक िै हक इस हवषय पर अतीत में कौन सा शोध कायय हकया
गया िै । इतना िी निीं िो हवषय सीधे आपके वतय मान शोध से संबंहधत िै उन
शोध पत्रों का मूल्ां कन, तु लना और हवरोधाभास, तथा हवषय से संबंहधत हवहभन्न
हवद्वानों का अनुसंधानात्मक ले ख, के साथ-साथ अन्य प्रासंहगक स्रोतों पर हवचार
कर ले ना भी आवश्यक िै । मौहलक प्रकृहत के अभाव में आपके शोध पत्र को
गंभीरता से निीं हलया िाएगा। अतैः शोध आले ख हलखने में हनम्न हबंदुओं पर
ध्यान दे ना आवश्यक िै । ‘साहिि यात्रा’ के संपादन के िम में अनेक शोध
आले ख दे खने उसे संपाहदत करने का अवसर हमला िै । अकसर यि दे खा िाता
िै हक शोधाथी शोध आले ख हलखने में सावधानी निी बरतते िैं हिसके कारण
उनका शोध आले ख मित्वपूणय निीं िो पाता िै ।

शोध आले ख का प्रथम खण्ड भूहमका या प्रिावना िै । भूहमका में अक्सर


हवषयान्तर दे खा िाता िै । भूहमका आलेख के मूल हवषय पर केत्यन्द्रत तथा
तथ्यपरक िोना चाहिए। भूहमका में शोध अथवा आलेख के संबंध में ले खक का
उद्दे ष्य एवं लक्ष्य स्पि रूप से हनहदय ि िोना चाहिए। शोध लेख की यहद कोई
सीमा िो तो उसका उल्लेख भी भूहमका में की िानी चाहिए। भूहमका को
अनावष्यक हविार दे ने से बचना चाहिए।
भूहमका के उपरान्त मूल हवषय का प्रहतपादन करना आवष्यक िै । हवषय के
प्रहतपादन में ले खक को कपोल कल्पना से बचकर गम्भीर समीक्षयीय दृहि का
पररचय दे ना चाहिए। वैज्ञाहनक हवचले षण के साथ-साथ वैचाररक संतुलन, तिस्थता
के साथ हवषय के हववेचन में आगे बढ़ना चाहिए।

हवषय हववेचन के बाद उपसंिार के अंतगयत शोधाथी शोध के हनस्कषय, उपादे यता,
उपलत्यब्ध और सीमाओं का शु ि रूप से वणय न करें । शोध आले ख अथवा सत्र
पत्र का आकार शोध प्रबंध से छोिा िोता िै । अतैः हवषय पररक्षेत्र सीहमत चुनना
चाहिए।

शोध आलेख मे भी पाद हिप्पहणयाूँ दे ना चाहिए हिससे आले ख की हवष्वसनीयता


के साथ साथ उसकी गुणवत्ता भी बढ़ती िै । पाद हिप्पहणयों में अपने मत के
समथय न में प्राप्त मानक सामहग्रयों तथा दू सरे मतों के खंडन के रूप में प्राप्त
हदया िाता िै। इसे पृष्ठ के नीचे दे ना चाहिए अथवा अध्याय के अंत में। शोध
आले ख में उद्दरण दे ते समय उद्दरण हचन्ह का प्रयोग करना आवष्यक िै । उद्दरण
यहद हकसी अन्य भाषा में उधृत हकया िा रिा िै तो मूल भाषा में िी उधृत
करें । इसके साथ उसका अनुवाद हदया िा सकता िै। संदभय मंैे ििाूँ से आप
उिरण अथवा संकेत ग्रिण कर रिे िैं उसे पाद हिप्पणी में उधृत करना चाहिए।
शोधाथी को पाद हिप्पहणयों मे एक रूपता बरतनी चाहिए। पाद हिप्पहणयों से
आपका आले ख प्रमाहणत िोता िै तथा उसकी हवष्वसनीयता बढ़ती िै । हकसी के
कथन को तोड़ मरोड़ कर ले ख में निीं डालना चाहिए। ले खकों में साहित्यिक
सन्यहनष्ठता का िोना आवष्यक िै ताहक पाठकों के बीच एवं हवद्वत्िगत में आपके
ले खों की प्रामाहणकता पर प्रचन हचन्ह न लगे।
शोध ले खों की ले खन शै ली प्रौढ़ तथा साहित्यिक िोना चाहिए। अनावष्यक एवं
िल्के शब्दों के प्रयोग से शोध ले खक को बचना चाहिए। शोध ले ख में ििाूँ
तक िो सके मैं और मेरा के प्रयोग से बचना चाहिए। उसके स्थान पर
शोधाथी/षोधकताय , प्रबंध ले खक शब्द का प्रयोग करना चाहिए। शोध पत्र मे
मानक वतय नी का प्रयोग करना चाहिए।

साहिि समीक्षा आपको अपने पाठकों के साथ तालमेल बनाने में मदद करती
िै । शोध आले ख के हलए यि आवश्यक िै हक पाठकों को यि भरोसा िो हक
पत्र श्रमपूवयक तैयार हकया गया िै । अपके शोध पत्र में नवीनता तथा मौहलकता
का िोना आवश्यक िै । इसी सावधानी के हलए आले ख के रचनाकार को पाठकों
तथा प्रकाशकों का हवश्वास हमलता िै । साहिि समीक्षा हलखने के हलए आप
हितनी अहधक हकताबें, ले ख और अन्य स्रोत सूचीबि कर सकते िैं , उतना िी
भरोसेमंद आपका आले ख िोगा एवं अपकी हवशे षज्ञता मानी िाएगी। शोध पत्र
ले खक के हलए हनम्न बातों का ध्यान रखना आवश्यक िै -

साहित्यिक चोरी से बचने की चेिा करें ।


शोध पत्र ले खक को साहित्यिक चोरी से बचने की चेिा करनी चाहिए। इस िम
में दोनो बातें िो सकती िं ैै। आपके आलेख की भी साहित्यिक चोरी िो सकती
िै । यहद आपने साहिि सवेक्षण के हबना एवं हवशे षज्ञता प्राप्त हकए हबना
अध्ययन के अपने क्षेत्र में एक मूल पत्र, एक शोध पत्र हलखा िै और िब उस
पत्र को आप प्रकाहशत करने वाले िोते िैं , तो पता चलता िै हक हकसी ने पिले
से िी आपके िै से हवषय पर एक पेपर प्रकाहशत कर हलया िै । बेशक, आपने
उस प्रकाशन से कुछ भी चोरी निीं हकया िै । ले हकन हफर भी यहद आप उक्त
शोध पत्र प्रकाहशत करते िैं , तो लोग आपकी प्रामाहणकता पर शक करें गे। ऐसी
त्यस्थहत में एक िी तरि के शोध को दोिराने के मित्व के बारे में स्पिीकरण
दे ना भी आवश्यक िाता िै ।

अपने शोध पर केत्यन्द्रत िों।

िब आप बािरी स्रोतों से तथ्य इकट्ठा करते िैं तो आप अपने शब्दों में बािरी
स्रोतों के गम्भीर मूल्ां कन, संश्लेषण पर स्वयं को केत्यन्द्रत करें । इस प्रहिया के
माध्यम से आप अपने शोध की प्रासंहगकता को शोध संदभय में बनाए रखने में
सक्षम िोंगे। आपको पता िोगा हक अन्य शोधकताय ओं ने पिले से िी उस हवषय
पर कैसा काम हकया िै । इस प्रकार, अनुसंधान के हवषय पर अंतदृय हि और
हवहभन्न दृहिकोण प्रदान करके आप उस हदशा में अपने शोध को आकार दे ने
में सक्षम िोंगे।
तकय संगत, ऐहतिाहसकता तथा प्रामाहणकता की अपेक्षा।

आपने शोध पत्र के क्षेत्र के आधार पर, आपकी साहिि समीक्षा हवहभन्न रूप ले
सकती िै । हवशे षज्ञता की दृहि से आपका शोधपत्र तकयवादी समीक्षा, एकीकृत
समीक्षा, ऐहतिाहसक समीक्षा, और सैिां हतक समीक्षा पर आधाररत िो सकती िै ।
परस्पर हवरोधी हवचार प्रिुत करने के हलए भी एक तकयसंगत समीक्षा हलखा िा
सकता िै । हकन्तु इसके हलए शोध पत्र में व्यक्त हवचारों के समथय न करने के
हलए भी अन्य हवद्वानों का मत मित्वपूणय िोता िै । यि तकय संगत, प्रामाहणकता
की अपेक्षा रखती िै ।

उक्त हबन्दु ओं पर ध्यान दे ने से आप एक सम्पूणय शोध पत्र तैयार कर सकतेैे


िैं हिसे हवद्वत समाि द्वारा समादृत हकया िाएगा तथा आप के ले ख की
हवश्वसनीयता बढे गी। ऐसे ले ख ज्ञान हवज्ञान के क्षेत्र के हलए ‘मील का पत्थर’
हसि िोगा तथा भत्ययष्य के शोधाहथय यों को मागयदशयन प्रदान करे गा।

You might also like